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Hindi Presentation1
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माको यामऊची
योगसूत्र – पतंजलि
संक्षिप्त परिचय
इन सभी तथ्यों को जांने के बाद यह बहुत ही महत्वपूर्ण जान्ना पतंजलि, योग सूत्र के मूल लेखक नहीं अपितु संकलनकर्त्ता माने जाते हैं।
विद्वानों का ऐसा मान्ना भी है, कि उन्होंने अपने समय में प्रचलित योग की विभिन्न पद्धतियों का संग्रह कर उनको सूत्रात्मक रूप में अपने
ग्रंथ में संग्रहित किया।
सूत्र का थ लक्षण भी होता है, कि वह कम से कम शब्दों में बिना कोई संदेह उत्पन्न किए बहुत बड़े सिद्धान्त को भी अपने में समेट ले।
यदि योग सूत्र के इतिहास पर दृष्ट डालें तो पतंजलि के सूत्रों के पश्चात जिस रचना को सर्वाधिक प्रसिद्ध मिली वह थी – व्यास भाष्य।
व्यास भाष्य, व्यास के द्वारा योग सूत्र की प्रथम टीका या व्याख्या थी।
समाधि पाद
जैसा कि आप नाम से ही समझ रहे होंगे, समाधि पाद का अंतर्गत, समाधि से सम्बंधित मुख्य-मुख्य विषयों को लिया गया है।
समाधि से सम्बंधित सभी दार्शनिक सिद्धांतों और विषयों को इस अध्याय के अंतर्गत बड़े ही व्यवस्थित क्रम में बताकर बाद में समाधि की
स्थिति को प्राप्त करने के लिए यौगिक पाद्धतियों का वर्णन भी मिलता है।
इस अध्याय में सर्वप्रथम योग की परिभाषा बताई गयी है जो कि चित्त की वृत्तियों का सभी प्रकार से निरुद्ध होने की स्थिति का नाम है।
साधन पाद
भाष्यकारों के अनुसार, समाधि पाद के अंतर्गत बताए गाए अभ्यास उत्तम अधिकार प्राप्त योगियों के लिए उपायुक्त है।
जबकि माध्यम और साधारण अधिकारी उन अभ्यासों को करने में सक्षम नहीं है।
इसी को ध्यान में रखकर इस अध्याय में यह स्पष्ट कर दिया है कि माध्यम अधिकारी के लिए क्रिया योग ही सर्वोत्तम साधन है।
क्रिया योग में स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान का समावेश किया है।
इसी अध्याय के अंतर्गत अष्टांग योग की वर्णन भी किया गया है।
अष्टांग योग के अंतर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का समावेश किया गया है।
विभूति पाद
धारणा, ध्यान और समाधि के वर्णन से शुरू होने वाले इस अध्याय के अंतर्गत बड़े ही रहस्यास्पद एवं रोचक विषयों का समावेश देखने
को मिलता है।
विभूति का अर्थ यहाँ पर सिद्धियों से ही है।
जो योग की अंतरंग अवस्था में जाकर संयम का परिणाम बताई गयी है।
कै वल्य पाद
जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है, यह अध्याय योग के चरम लक्ष्य ‘कै वल्य’ की स्थिति को बताने वाला है।
बुधवार १८ मई
माको यामऊची
इस अध्याय पाँच प्रकार से प्राप्त होने वाली सिद्धियों (जन्म, औषधि, मंत्र, तप, समाधि) के वर्णन से शुरू गई है।
पहले के अध्यायों की अपेक्षा यह अध्याय अधिक छोटा है, परंतु इसके बिना योग की पूर्णता भी नहीं होती।
इस कारण इस अध्याय का महत्तव और अधिक बढ़ जाता है।