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Hindi Presentation1
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माको यामऊची
योगसूत्र – पतंजिल
संिक्षप्त पिरचय
इन सभी तथ्यों को जांने के बाद यह बहुत ही महत्वपूणर् जान्ना पतंजिल, योग सूत्र के मूल लेखक नहीं
अिपतु संकलनकत्तार् माने जाते हैं।
बुधवार १८ मई
माको यामऊची
िवद्वानों का ऐसा मान्ना भी है, िक उन्होंने अपने समय में प्रचिलत योग की िविभन्न पद्धितयों का संग्रह कर
उनको सूत्रात्मक रूप में अपने ग्रंथ में संग्रिहत िकया।
सूत्र का थ लक्षण भी होता है, िक वह कम से कम शब्दों में िबना कोई संदेह उत्पन्न िकए बहुत बड़े
िसद्धान्त को भी अपने में समेट ले।
समािध पाद
जैसा िक आप नाम से ही समझ रहे होंगे, समािध पाद का अंतगर्त, समािध से सम्बंिधत मुख्य-मुख्य
िवषयों को िलया गया है।
समािध से सम्बंिधत सभी दाशर्िनक िसद्धांतों और िवषयों को इस अध्याय के अंतगर्त बड़े ही व्यविस्थत
क्रम में बताकर बाद में समािध की िस्थित को प्राप्त करने के िलए यौिगक पाद्धितयों का वणर्न भी
िमलता है।
इस अध्याय में सवर्प्रथम योग की पिरभाषा बताई गयी है जो िक िचत्त की वृित्तयों का सभी प्रकार से
िनरुद्ध होने की िस्थित का नाम है।
बुधवार १८ मई
माको यामऊची
साधन पाद
भाष्यकारों के अनुसार, समािध पाद के अंतगर्त बताए गाए अभ्यास उत्तम अिधकार प्राप्त योिगयों के
िलए उपायुक्त है।
जबिक माध्यम और साधारण अिधकारी उन अभ्यासों को करने में सक्षम नहीं है।
इसी को ध्यान में रखकर इस अध्याय में यह स्पष्ट कर िदया है िक माध्यम अिधकारी के िलए िक्रया
योग ही सवोर्त्तम साधन है।
िक्रया योग में स्वाध्याय और ईश्वर प्रिणधान का समावेश िकया है।
इसी अध्याय के अंतगर्त अष्टांग योग की वणर्न भी िकया गया है।
अष्टांग योग के अंतगर्त यम, िनयम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समािध का
समावेश िकया गया है।
िवभूित पाद
धारणा, ध्यान और समािध के वणर्न से शुरू होने वाले इस अध्याय के अंतगर्त बड़े ही रहस्यास्पद एवं
रोचक िवषयों का समावेश देखने को िमलता है।
िवभूित का अथर् यहाँ पर िसिद्धयों से ही है।
जो योग की अंतरंग अवस्था में जाकर संयम का पिरणाम बताई गयी है।
कैवल्य पाद
जैसा िक इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है, यह अध्याय योग के चरम लक्ष्य ‘कैवल्य’ की िस्थित को
बताने वाला है।
इस अध्याय पाँच प्रकार से प्राप्त होने वाली िसिद्धयों (जन्म, औषिध, मंत्र, तप, समािध) के वणर्न से
शुरू गई है।
पहले के अध्यायों की अपेक्षा यह अध्याय अिधक छोटा है, परंतु इसके िबना योग की पूणर्ता भी नहीं
होती।
इस कारण इस अध्याय का महत्तव और अिधक बढ़ जाता है।