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बुधवार १८ मई

माको यामऊची

योगसूत्र – पतंजिल
संिक्षप्त पिरचय

भारत में बहुत से सूत्र गुरंथ िलखे गए।


इन ग्रंथों की अपनी एक परम्परा है। योग सूत्र भी इन्हीं सूत्र ग्रंथ परम्परा का एक िहस्सा है।
योग सूत्र उन कई ग्रंथों का संकलन है जो सांख्य के वैचािरक िवकास के लंबे इितहास में उभरे हैं, िजन्हें
पतंजिल द्वारा चुना और संपािदत िकया गया था ।

तो पतंजिल कौन है?


पतंजिल योग सूत्र के प्रणेता है और पतंजिल का पिरचय िदए िबना योग सूत्र पर िवचार करना िनरथर्क
है।
कुछ लोगों का मांना है, िक पतंजिल नाम के बहुत से व्यिक्त हमारे प्राचीन इितहास में हुए होंगे िजनको
लेकर हमेशा से मतवाद हो रहा है।
िवद्वानों के अनुसार िविभन्न कालों में हुए पतंजिल नाम के आचायर् या िफर पतंजिल का िववरण मुख्य
रूप से तीन संदभोर्ं में िमलता है -
1. योग सूत्र के रचियता
2. पािणनी व्याकरण के महाभाष्यकार
3. आयुवेर्द के िकसी संदेहास्पद ग्रंथ के रचियता
प्रचिलत मान्यता में, योग के द्वारा िचत्त शुिद्ध, व्याकरण के द्वारा वचन शुिद्ध और आयुवेर्द के द्वारा शरीर
शुिद्ध, इन तीनों कायोर्ं के श्रेय पतंजिल को ही जाता है।
अन्य िवद्वानों के मत में पतंजिल को गोनदीर्य कहकर उनको उत्तर प्रदेश राज्य के अंतगर्त गोण्डा का
िनवासी भी बताया है।
वहीं दू सरी और एक अन्य प्रचिलत मान्यता के आधार पर इन्हें शेषनाग का अवतार बताया जाता है।
इस संदभर् में िवद्वानों को मान्ना है िक ये कश्मीर में रहनें वाले नागू जाित के ब्राह्मणों के बीच पैदा हुए थे
और मुिखया थे।
कुछ िवद्वान इन्हें शुंगवंशीय महाराज पुष्यिमत्र के दरबारी पंिडत के रूप में भी बताते हैं।
इस आधार पर इनका समय िद्वतीय शताब्दी पूवर् (2 Centry B.C.) िनणर्य िकया जाता है।

इन सभी तथ्यों को जांने के बाद यह बहुत ही महत्वपूणर् जान्ना पतंजिल, योग सूत्र के मूल लेखक नहीं
अिपतु संकलनकत्तार् माने जाते हैं।
बुधवार १८ मई
माको यामऊची

िवद्वानों का ऐसा मान्ना भी है, िक उन्होंने अपने समय में प्रचिलत योग की िविभन्न पद्धितयों का संग्रह कर
उनको सूत्रात्मक रूप में अपने ग्रंथ में संग्रिहत िकया।
सूत्र का थ लक्षण भी होता है, िक वह कम से कम शब्दों में िबना कोई संदेह उत्पन्न िकए बहुत बड़े
िसद्धान्त को भी अपने में समेट ले।

तो पतंजिल द्वारा िलखा गया यह योग सूत्र क्या है?


जैसा िक शुरुआप में उल्लेखज िकया गया है, योग सूत्र ऐितहािसक रूप से सांख्य दशर्न को योग से
पहले बताया जाता है।
लेिकन यह भी िनिवर् वाद रूप से सत्य है, िक योग सांख्य दशर्न का िक्रयात्मक पक्ष प्रस्तुत करता है।
िजसके कारण कभी-कभी दोनों दशर्नों को एक दू सरे का पूरक या समान तंत्र भी कहा जाता है।
यिद योग सूत्र के इितहास पर दृष्ट डालें तो पतंजिल के सूत्रों के पश्चात िजस रचना को सवार्िधक
प्रिसद्ध िमली वह थी – व्यास भाष्य।
व्यास भाष्य, व्यास के द्वारा योग सूत्र की प्रथम टीका या व्याख्या थी।

योग सूत्र की िवषय वस्तु क्या है?


योग के बड़े-बड़े दाशर्िनक िवचारों को बड़े ही सरल, प्रामािणक और व्यविस्थत ढंग से प्रस्तुत िकया गया
है।
इसके िवषयों को चार अध्ययायों के अंतगर्त रखा गया है िजन्हें ‘पाद’ की संज्ञा दी है –
1. समािध पाद (51 सूत्र)
2. साधन पाद (55 सूत्र)
3. िवभूित पाद (55 सूत्र)
4. कैवल्य पाद (34 सूत्र)

समािध पाद
जैसा िक आप नाम से ही समझ रहे होंगे, समािध पाद का अंतगर्त, समािध से सम्बंिधत मुख्य-मुख्य
िवषयों को िलया गया है।
समािध से सम्बंिधत सभी दाशर्िनक िसद्धांतों और िवषयों को इस अध्याय के अंतगर्त बड़े ही व्यविस्थत
क्रम में बताकर बाद में समािध की िस्थित को प्राप्त करने के िलए यौिगक पाद्धितयों का वणर्न भी
िमलता है।
इस अध्याय में सवर्प्रथम योग की पिरभाषा बताई गयी है जो िक िचत्त की वृित्तयों का सभी प्रकार से
िनरुद्ध होने की िस्थित का नाम है।
बुधवार १८ मई
माको यामऊची

साधन पाद
भाष्यकारों के अनुसार, समािध पाद के अंतगर्त बताए गाए अभ्यास उत्तम अिधकार प्राप्त योिगयों के
िलए उपायुक्त है।
जबिक माध्यम और साधारण अिधकारी उन अभ्यासों को करने में सक्षम नहीं है।
इसी को ध्यान में रखकर इस अध्याय में यह स्पष्ट कर िदया है िक माध्यम अिधकारी के िलए िक्रया
योग ही सवोर्त्तम साधन है।
िक्रया योग में स्वाध्याय और ईश्वर प्रिणधान का समावेश िकया है।
इसी अध्याय के अंतगर्त अष्टांग योग की वणर्न भी िकया गया है।
अष्टांग योग के अंतगर्त यम, िनयम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समािध का
समावेश िकया गया है।

िवभूित पाद
धारणा, ध्यान और समािध के वणर्न से शुरू होने वाले इस अध्याय के अंतगर्त बड़े ही रहस्यास्पद एवं
रोचक िवषयों का समावेश देखने को िमलता है।
िवभूित का अथर् यहाँ पर िसिद्धयों से ही है।
जो योग की अंतरंग अवस्था में जाकर संयम का पिरणाम बताई गयी है।

कैवल्य पाद
जैसा िक इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है, यह अध्याय योग के चरम लक्ष्य ‘कैवल्य’ की िस्थित को
बताने वाला है।
इस अध्याय पाँच प्रकार से प्राप्त होने वाली िसिद्धयों (जन्म, औषिध, मंत्र, तप, समािध) के वणर्न से
शुरू गई है।
पहले के अध्यायों की अपेक्षा यह अध्याय अिधक छोटा है, परंतु इसके िबना योग की पूणर्ता भी नहीं
होती।
इस कारण इस अध्याय का महत्तव और अिधक बढ़ जाता है।

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