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श्लोक १ में दो चीजें बताई गई हैं

1. कुरुक्षेत्र के गौरव के बारे में

● कुरुक्षेत्र धमर्म क्षेत्र था


● पाण्डु के पुत्र धा मर्मक थे
● कुरुक्षेत्र पूजा का थान था

जीवन का पाठ

थान का हमारी चेतना पर प्रभाव पड़ता है


2. धृतराष्ट्र की मान सकता के बारे में

● उसे संदेह था
● वह भयभीत था
● उसके मन में पक्षपात था

जीवन का पाठ

नेता अपने ही जैसे लोगों को आक षर्मत करता है जैसी


उसकी अपनी मान सकता होती है
भगवद गीता को हमारे मूल मूल्यों को फर से
प रभा षत करने की अनुम त दें
1. अपने च रत्र को सुधारो
2. वा त वक अगुवों की ओर आक षर्मत होने में हमारी
मदद करें जो आध्याि मक जीवन में मदद कर सकते
हैं
श्लोक 1.2
सञ्जय उवाच
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुयर्योधन तदा ।
आचायर्ममुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत ् ॥ २ ॥
सञ्जय: उवाच—संजय ने कहा; दृष्ट्वा—दे खकर; तु—ले कन; पाण्डव-
अनीकम ्— पाण्डवों की सेना को; व्यूढम ्—व्यूहरचना को; दुयर्योधन:—राजा
दुयर्योधन ने; तदा— उस समय; आचायर्मम ्— शक्षक, गुरु के; उपसङ्गम्य—
पास जाकर; राजा—राजा; वचनम ्—शब्द; अब्रवीत ्—कहा ।.
संजय ने कहा—हे राजन ्! पाण्डु पुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना दे खकर राजा
दुयर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे ।
श्लोक 1.3

पश्यैतां पाण्डु पुत्राणामाचायर्म महतीं चमूम ् ।


व्यूढां द्रुपदपुत्रण
े तव शष्येण धीमता ॥ ३ ॥

पश्य—दे खये; एताम ्—इस; पाण्डु -पुत्राणाम ्—पाण्डु के पुत्रों की; आचायर्म—हे आचायर्म (गुरु) ;
महतीम ्— वशाल; चमूम ्—सेना को; व्यूढाम ्—व्यवि थत; द्रुपद पुत्रण े —द्रुपद के पुत्र
द्वारा; तव—तुम्हारे ; शष्येण— शष्य द्वारा; धी-मता—अ यन्त बुद् धमान ।.

हे आचायर्म! पाण्डु पुत्रों की वशाल सेना को दे खें, िजसे आपके बुद् धमान ् शष्य द्रुपद के पुत्र ने
इतने कौशल से व्यवि थत कया है ।
LESSON
हम जीवन के हर क्षेत्र में नकारा मक लोगों
से घरे हु ए हैं ले कन हम खुद को कतना
प्रभा वत होने दे ते हैं, यह चुनाव हमारा है
श्लोक 1.4
अत्र शूरा महे ष्वासा भीमाजुन
र्म समा यु ध ।
युयुधानो वराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥ ४ ॥
अत्र—यहाँ; शूरा:—वीर; महा-इषु-आसा:—महान धनुधरर्म ; भीम-
अजुन
र्म —भीम तथा अजुन र्म ; समा:—के समान; यु ध—युद्ध में ;
युयुधान:—युयुधान; वराट:— वराट; च—भी; द्रुपद:—द्रुपद; च—भी;
महा-रथ:—महान योद्धा ।.
इस सेना में भीम तथा अजुनर्म के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर
धनुधरर्म हैं—यथा महारथी युयुधान, वराट तथा द्रुपद।
श्लोक 1.5

धृष्टकेतुश्चे कतानः का शराजश्च वीयर्मवान ् ।


पुरुिज कुिन्तभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ॥ ५ ॥

धृष्टकेतु:—धृष्टकेतु; चे कतान:—चे कतान; का शराज:—का शराज; च—भी;


वीयर्म वान ्—अ यन्त शि तशाली; पुरुिजत ्—पुरुिजत ्; कुिन्तभोज:—कुिन्तभोज;
च—तथा; शैब्य:—शैब्य; च—तथा; नर-पुङ्गव:—मानव समाज में वीर ।.

इनके साथ ही धृष्टकेतु, चे कतान, का शराज, पुरुिजत ्, कुिन्तभोज तथा शैब्य


जैसे महान शि तशाली योद्धा भी हैं।
श्लोक 1.6
युधामन्युश्च वक्रान्त उत्तमौजाश्च वीयर्मवान ् ।
सौभद्रो द्रौपदे याश्च सवर्म एव महारथाः ॥ ६ ॥
युधामन्यु:—युधामन्यु; च—तथा; वक्रान्त:—पराक्रमी; उत्तमौजा:—
उत्तमौजा; च— तथा; वीयर्म-वान ्—अ यन्त शि तशाली; सौभद्र:—
सुभद्रा का पुत्र; द्रौपदे या:—द्रोपदी के पुत्र; च—तथा; सवर्वे—सभी; एव—
नश्चय ही; महा-रथा:—महारथी ।.
play_arrowpause पराक्रमी युधामन्यु, अ यन्त शि तशाली
उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रौपदी के पुत्र—ये सभी महारथी हैं।
श्लोक 1.7
अ माकं तु व शष्टा ये तािन्नबोध द् वजोत्तम ।
नायका मम सैन्य य संज्ञाथर्म तान्ब्रवी म ते ॥ ७ ॥

अ माकम ्—हमारे ; तु—ले कन; व शष्टा:— वशेष शि तशाली; ये—जो; तान ्—


उनको; नबोध—जरा जान लीिजये, जानकारी प्राप्त कर लें; द् वज-उत्तम—हे
ब्राह्मणश्रेष्ठ; नायका:—सेनाप त, कप्तान; मम—मेरी; सैन्य य—सेना के;
संज्ञा- अथर्मम ्—सूचना के लए; तान ्—उन्हें ; ब्रवी म—बता रहा हू ँ; ते—आपको ।.

कन्तु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! आपकी सूचना के लए मैं अपनी सेना के उन नायकों के


वषय में बताना चाहू ँगा जो मेरी सेना को संचा लत करने में वशेष रूप से नपुण
हैं।
श्लोक 1.8
भवान्भीष्मश्च कणर्मश्च कृ पश्च स म तंजयः ।
अश्व थामा वकणर्मश्च सौमद त्त तथैव च ॥ ८ ॥

भवान ्—आप; भीष्म:—भीष्म पतामह; च—भी; कणर्म:—कणर्म; च—और; कृ प:—


कृ पाचायर्म; च—तथा; स म तञ्जय:—सदा संग्राम- वजयी; अश्व थामा—
अश्व थामा; वकणर्म:— वकणर्म; च—तथा; सौमद त्त:—सोमदत्त का पुत्र; तथा—भी;
एव— नश्चय ही; च—भी ।.

play_arrowpause मेरी सेना में वयं आप, भीष्म, कणर्म, कृ पाचायर्म, अश्व थामा,
वकणर्म तथा सोमदत्त का पुत्र भू रश्रवा आ द हैं जो युद्ध में सदै व वजयी रहे हैं।
श्लोक नंबर ९ में दुयर्योधन अपने पक्ष के प्रधान वीरों के नाम बतलाते हु ए अन्य वीरों के स हत उनकी प्रशंशा करते हैं और
बतलाते हैं ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लए अपना जीवन याग करने के लए उद्यत हैं।

श्लोक 1.9
अन्ये च बहवः शूरा मदथर्वे य तजी वताः ।
नानाश त्रप्रहरणाः सवर्वे युद्ध वशारदाः ॥ ९ ॥

अन्ये—अन्य सब; च—भी; बहव:—अनेक; शूरा:—वीर; मत ्-अथर्वे—मेरे लए;


य त-जी वता:—जीवन का उ सगर्म करने वाले; नाना—अनेक; श त्र—आयुध;
प्रहरणा:—से यु त, सुसि जत; सवर्वे—सभी; युद्ध- वशारदा:—युद्ध वद्या में
नपुण ।.

play_arrowpause ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लए अपना जीवन याग
करने के लए उद्यत हैं। वे व वध प्रकार के ह थयारों से सुसि जत हैं और
युद्ध वद्या में नपुण हैं।
अध्याय १ के श्लोक १०
अपने महारथी योद्धाओं की प्रसंसा करके अब दुयर्योधन दोनों सेनाओं की तुलना करते हु ए अपनी सेना को पांडव सेना की अपेक्षा
हमारी शि त अप रमेय है

श्लोक 1.10
अपयार्मप्तं तद माकं बलं भीष्मा भर क्षतम ् ।
पयार्मप्तं ि वदमेतष
े ां बलं भीमा भर क्षतम ् ॥ १० ॥

अपयार्मप्तम ्—अप रमेय; तत ्—वह; अ माकम ्—हमारी; बलम ्—शि त; भीष्म—भीष्म


पतामह द्वारा; अ भर क्षतम ्—भलीभाँ त संर क्षत; पयार्मप्तम ्—सी मत; तु—ले कन; इदम ्—
यह सब; एतेषाम ्—पाण्डवों की; बलम ्—शि त; भीम—भीम द्वारा; अ भर क्षतम ्—भलीभाँ त
सुर क्षत ।.

हमारी शि त अप रमेय है और हम सब पतामह द्वारा भलीभाँ त संर क्षत हैं, जब क पाण्डवों


की शि त भीम द्वारा भलीभाँ त संर क्षत होकर भी सी मत है ।
इस प्रकार भीष्म द्वारा संर क्षत अपनी सेना को अजय बताकर दुयर्योधन सब और से भीष्म की रक्षा
करने के लए द्रोणाचायर्म आ द सम त महार थयों से अनुरोध करते हैं

श्लोक 1.11
अयनेषु च सवर्वेषु यथाभागवमि थताः ।
भीष्ममेवा भरक्षन्तु भवन्तः सवर्म एव ह ॥ ११ ॥

अयनेषु—मोचर्चों में ; च—भी; सवर्वेषु—सवर्मत्र; यथा-भागम ्—अपने-अपने थानों पर; अवि थता:—
ि थत; भीष्मम ्—भीष्म पतामह की; एव— नश्चय ही; अ भरक्षन्तु— सहायता करनी चा हए;
भवन्त:—आप; सवर्वे—सब के सब; एव ह— नश्चय ही ।.

अतएव सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोचर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म


पतामह को पूरी-पूरी सहायता दें ।
दुयर्योधन की मान सकता

खुद के बारे में शेखी बघारना


अपने वफादार आद मयों के इरादों पर शक
करना
मान सकता में दोहराव
सरलता का अथर्म है कोई दोहरापन नहीं
वचार वाणी और कमर्म में समान
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