Professional Documents
Culture Documents
जीवन का पाठ
● उसे संदेह था
● वह भयभीत था
● उसके मन में पक्षपात था
जीवन का पाठ
पश्य—दे खये; एताम ्—इस; पाण्डु -पुत्राणाम ्—पाण्डु के पुत्रों की; आचायर्म—हे आचायर्म (गुरु) ;
महतीम ्— वशाल; चमूम ्—सेना को; व्यूढाम ्—व्यवि थत; द्रुपद पुत्रण े —द्रुपद के पुत्र
द्वारा; तव—तुम्हारे ; शष्येण— शष्य द्वारा; धी-मता—अ यन्त बुद् धमान ।.
हे आचायर्म! पाण्डु पुत्रों की वशाल सेना को दे खें, िजसे आपके बुद् धमान ् शष्य द्रुपद के पुत्र ने
इतने कौशल से व्यवि थत कया है ।
LESSON
हम जीवन के हर क्षेत्र में नकारा मक लोगों
से घरे हु ए हैं ले कन हम खुद को कतना
प्रभा वत होने दे ते हैं, यह चुनाव हमारा है
श्लोक 1.4
अत्र शूरा महे ष्वासा भीमाजुन
र्म समा यु ध ।
युयुधानो वराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥ ४ ॥
अत्र—यहाँ; शूरा:—वीर; महा-इषु-आसा:—महान धनुधरर्म ; भीम-
अजुन
र्म —भीम तथा अजुन र्म ; समा:—के समान; यु ध—युद्ध में ;
युयुधान:—युयुधान; वराट:— वराट; च—भी; द्रुपद:—द्रुपद; च—भी;
महा-रथ:—महान योद्धा ।.
इस सेना में भीम तथा अजुनर्म के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर
धनुधरर्म हैं—यथा महारथी युयुधान, वराट तथा द्रुपद।
श्लोक 1.5
play_arrowpause मेरी सेना में वयं आप, भीष्म, कणर्म, कृ पाचायर्म, अश्व थामा,
वकणर्म तथा सोमदत्त का पुत्र भू रश्रवा आ द हैं जो युद्ध में सदै व वजयी रहे हैं।
श्लोक नंबर ९ में दुयर्योधन अपने पक्ष के प्रधान वीरों के नाम बतलाते हु ए अन्य वीरों के स हत उनकी प्रशंशा करते हैं और
बतलाते हैं ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लए अपना जीवन याग करने के लए उद्यत हैं।
श्लोक 1.9
अन्ये च बहवः शूरा मदथर्वे य तजी वताः ।
नानाश त्रप्रहरणाः सवर्वे युद्ध वशारदाः ॥ ९ ॥
play_arrowpause ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लए अपना जीवन याग
करने के लए उद्यत हैं। वे व वध प्रकार के ह थयारों से सुसि जत हैं और
युद्ध वद्या में नपुण हैं।
अध्याय १ के श्लोक १०
अपने महारथी योद्धाओं की प्रसंसा करके अब दुयर्योधन दोनों सेनाओं की तुलना करते हु ए अपनी सेना को पांडव सेना की अपेक्षा
हमारी शि त अप रमेय है
श्लोक 1.10
अपयार्मप्तं तद माकं बलं भीष्मा भर क्षतम ् ।
पयार्मप्तं ि वदमेतष
े ां बलं भीमा भर क्षतम ् ॥ १० ॥
श्लोक 1.11
अयनेषु च सवर्वेषु यथाभागवमि थताः ।
भीष्ममेवा भरक्षन्तु भवन्तः सवर्म एव ह ॥ ११ ॥
अयनेषु—मोचर्चों में ; च—भी; सवर्वेषु—सवर्मत्र; यथा-भागम ्—अपने-अपने थानों पर; अवि थता:—
ि थत; भीष्मम ्—भीष्म पतामह की; एव— नश्चय ही; अ भरक्षन्तु— सहायता करनी चा हए;
भवन्त:—आप; सवर्वे—सब के सब; एव ह— नश्चय ही ।.