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सन्दर्भ:-
हाल ही में पीएम के यर्स फं ड के उपयोग पर डाली गई सूचना प्राप्ति कि याचिका को प्रधानमंत्री
कार्यालय द्वारा
सूचना उपलब्ध कराने से मना कर दिया गया , जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय ने
भी उचित ठहराया है।

परिचय:-
'सूचना का अधिकार अधिनियम' एक पथ-प्रदर्शक विधान है, जो गोपनीयता के अंधकार से
पारदर्शिता के युग में
जाने का संके त देता है। यह लोक प्राधिकारियों के मस्तिष्क को चेतना
प्रदान करता है, जो संदेह और
गोपनीयता से घिरा हुआ है। भ्रष्टाचार से संघर्ष करने के लिये
भी सूचना का अधिकार एक सशक्त साधन है।
सूचना का अधिकार अधिनियम द्वारा कारगर
ढंग से और अधिक भागीदारीपूर्ण वाले प्रजातंत्र को बढ़ावा
मिलेगा। परन्तु कई बार इसके
दुरूपयोग से प्रजातंत्र की जड़े कमजोर हो जाती हैं।
पीएम के यर्स फण्ड जिसे कोरोना के विरुद्ध प्रयोग करने हेतु बनाया गया था उसकी सूचना
मांगे जाने पर सूचना
के अधिकार अधिनियम के धारा 7( डायवर्सन ऑफ़ रिसोर्स ) को ध्यान
में रखकर प्रधान मंत्री कार्यालय ने
सूचना देने से मना कर दिया।
सूचना के अधिकार अधिनियम -क्या है?
सूचना के अधिकार सरकार के
कामकाज से संबंधित सामान्य जानकारी का खुलासा करने की
अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए 2005 में
बनाया गया एक ऐतिहासिक कानून है। भारतीय
संविधान के अनुच्छेद 19 1 a के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता का तत्वार्थ भी सूचना
के अधिकार में निहित है।

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सूचना के अधिकार के मुख्य प्रावधान :-
कोई भी नागरिक एक " सार्वजनिक प्राधिकरण " से जानकारी का अनुरोध कर सकता है ,
अतः यह निजी
क्षेत्रो पर लागू नहीं है।आयुक्त को अनुरोध का उत्तर 30 दिनों में दिया
जाना चाहिए।
अधिनियम प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने रिकॉर्ड को कं प्यूटरीकृ त की आवश्यकता
पर भी बल देता
है।
यदि नागरिक दी गई जानकारी से संतुष्ट नहीं है, तो वह 90 दिनों के भीतर पुनः अपील
दायर कर सकता है।
इसके कार्यान्वयन की देखरेख के लिए, कें द्रीय सूचना आयोग नाम की एक संस्था की
स्थापना की गई है, जो
यह सुनिश्चित करती है कि RTI की भावना का पालन किया जाता
है। CIC सूचना प्रदान नहीं करने के लिए
विभागों पर जुर्माना भी लगा सकता है।
प्रत्येक विभाग में अब एक पीआईओ या लोक सूचना अधिकारी होता है जो संबंधित विभाग
की ओर से सूचना
प्रदान करने के लिए प्रभारी होता है।

सूचना के अधिकार अधिनियम के अपवाद :-


ये अपवाद आरटीआई अधिनियम की धारा 8 वर्णित स्थितियां हैं जिनके आधार पर सार्वजनिक
प्राधिकरण सूचना देने
से मना कर सकता है

1. ऐसी जानकारी जो राष्ट्रीय सुरक्षा हितों, राष्ट्रीय आर्थिक हितों, राष्ट्रीय वैज्ञानिक रुचियों, अखंडता, विदेशी
राज्यों के साथ संबंध को प्रभावित करे या राष्ट्र में अपराध को भड़काने का कारण बन सकती हो।
2. विदेशी राज्यों से विश्वास में प्राप्त जानकारी
3. कै बिनेट की बैठकों से संबंधित जानकारी
4. न्यायालय द्वारा निषिद्ध सूचना
5. ऐसी सूचना जो संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन का कारण बन सकती है
6. पेटेंट और व्यापार रहस्य से संबंधित जानकारी
7. सूचना जो व्यक्तिगत संबंध से संबंधित है और जिसका कोई सार्वजनिक हित नहीं है
8. जब तक यह सार्वजनिक रूप से प्रकटीकरण सार्वजनिक हित में नहीं है, तब तक एक व्यक्ति को उसकी
विवेचना (संविदात्मक संबंध) में उपलब्ध जानकारी
9. सूचना जो किसी भी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरे में डालती है।
10. जानकारी जो जांच की प्रक्रिया को बाधित कर सकती है
11. “ कें द्रीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों जैसे आईबी, प्रवर्तन निदेशालय ,रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, कें द्रीय
जांच ब्यूरो (सीबीआई), राजस्व खुफिया निदेशालय जैसे संस्थानो को तथा एराज्य सरकारों द्वारा निर्दिष्ट
एजेंसियों को भीक अधिसूचना के माध्यम से सूचना अधिकार के दायरे से बाहर रखा जाएगा। हालांकि यह
बहिष्करण, पूर्ण नहीं है और इन संगठनों का दायित्व है कि वे मानवाधिकारों के उल्लंघन के
आरोपों से संबंधित
जानकारी प्रदान करें”

आरटीआई अधिनियम की उपलब्धियां


हर साल लगभग 50 लाख आरटीआई भरे जा रहे हैं, जिससे पता चलता है कि लोगों का
आरटीआई में कितना
विश्वास है तथा इसका लगतार उपयोग भी हो रहा है
इसने कॉमनवेल्थ, 2 जी और अन्य जैसे कई घोटालों को उजागर करने में मदद की है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार इससे भ्रष्टाचार का मुकाबला करने में मदद
मिली है। ।
आरटीआई की मदद से, आईआईटी जेईई और सिविल सर्विसेज की उत्तर कुं जी छात्रों के लिए उपलब्ध कराई गई
थी, जो इसकी उच्च उपयोगिता दर्शाती है।
माननीय न्यायालयों ने भी आंशिक रूप से खुद को सूचना अधिकार के दायरे में लाया है।
यहां तक कि ​ भारत का अनुशरण करते हुए श्रीलंका ने भी आरटीआई को अपनाया है

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सूचना अधिकार अधिनियम की सीमाएं :-
राजनीतिक दलों और न्यायपालिका जैसे प्रमुख संस्थानों ने खुद को आरटीआई की जांच से बाहर रखा है।
इसी तरह, मीडिया सूचना के अधिकार से बाहर है
धारा 8 के अलावा, दो अन्य खंडों का उपयोग महत्वपूर्ण सूचनाओं को रोकने के लिए किया जाता है।

ये दो खंड इस प्रकार हैं:


1. धारा 7 में कहा गया है कि उन मामले में सूचना उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है,
जिनमे बहुत अधिक संसाधन
की आवश्यकता हो, अर्थात जिसकी जानकारी प्राप्त
करने में अत्यंत धन , श्रम तथा स्टाफ की आवश्यकता
हो।
2. धारा 11 उन सूचनाओं को सीमित करता है जो किसी तीसरे पक्ष से संबंधित प्रदान की
जा सकती हैं

सूचना अधिकार से सम्बंधित एक कें द्रीयकृ त डेटाबेस की कमी के कारण डाटा का कु -प्रबंधन
है।
आयुक्तों द्वारा हालांकि अपील का जवाब देने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। इसीलिए
वर्तमान में
सूचना आयुक्त के पास लगभग 2 लाख लंबित हैं।
मात्र 1 % संस्थान ऐसे हैं जिन्हे उत्तर न देने पर दंड दिया गया है।
अध्ययन से पता चलता है कि, आरटीआई में कई अप्रासंगिक मामले भी पूछे जाते हैं। यह
सरकारी
विभागों पर अत्यधिक बोझ उत्पन्न करता है और विकास के काम के लिए उस
समय और प्रयास कमी
आती है ।
आरटीआई का प्रयोग सार्वजनिक अधिकारियों को ब्लैकमेल करने के भी मामले सामने आये
हैं। जो कई
बार नीतिगत पक्षाघात का कारक बनता है।
सूचना वापसी का आधार
अनुरोधक के अनुरोध पर एक आरटीआई मामला वापस लिया जा सकता है
आरटीआई के मामले अनुरोधक की मृत्यु के बाद बंद कर दिए जाते हैं।

आगे की राह :-
आरटीआई अधिनियम के साथ साथ ऑफिसियल सेक् रेसी अधिनियम भी है जो सूचना के प्रसार को
रोकता
है। भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता हेतु आवश्यक है कि सूचना के अधिकार जैसे अधिनियमों
के तत्वार्थो का
पालन हो। इस दृष्टिकोण से द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुशंसाओं को
लागू करना उचित रहेगा।
इस प्रकार भारत में पारदर्शिता बनी रहेगी।

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2


शासन

मुख्य परीक्षा प्रश्न :

सूचना का अधिकार अधिनियम का तत्वार्थ पारदर्शिता है , यदि किसी भी स्थिति में इसका उलंघन
होता है तो
यह पारदर्शी लोकतान्त्रिक शासन के विरुद्ध है । कथन की आलोचनात्मक समीक्षा करें
?

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