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Ashwarthama
Ashwarthama
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आशुतोष गग का ज म 1973 म द ली म आ। हमाचल दे श
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व व ालय से एम.ए. ( हद ) तथा द ली से नातको र ड लोमा
(प का रता एवं अनुवाद) ा त करने के प ात् इं दरा गाँधी मु
व व ालय से एम.बी.ए (मानव संसाधन) क ड ी ा त क ।
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कूल के दन से ही क वताएँ और कहा नयाँ लखने का सल सला
आरंभ हो गया था और अब तक आपके ारा लखी और अनू दत
लगभग 15 कताब का शत हो चुक ह।
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आप अं ेजी और हद दोन भाषा पर समान प से अ धकार
रखते ह तथा अनुवाद के े म एक प र चत नाम ह। दशराजन्,
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ौपद क महाभारत, आनंद का सरल माग, ी हनुमान लीला आ द
हद म आपके ारा कये गए मुख अनुवाद ह, ज ह काफ़ सराहा
गया है। आशुतोष नय मत प से समाचार-प व प का म
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पु तक क शंसा म
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व. मै थलीशरण गु त ने उपे त नायक-ना यका को संदभ म
लाने का यास अपने सा ह य म लगातार जारी रखा। इसी तरह
र मरथी कण को स दभ म लाने का ेय रा क व दनकर को
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जाता है। सा ह य के क ध पर यह ज़ मेदारी है क वह व मृत
नायक-ना यका को पुन था पत करे। ऐसा इस लए भी मह वपूण
है क इ तहास और यहाँ तक क कवदं ती के पा कह न कह
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जीवन म का एक ह सा होते ह और इस लए सदा ासं गक रहते
ह। ‘अ थामा’ इस ेणी म एक आव यक और महनीय यास है।
अ थामा का च र रोचक पर तु कम ात है, ऐसे म ी आशुतोष
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—डॉ. कुमार व ास
क व एवं राजनेता
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करके दे खना शायद असंभव है। या अ छा है और या बुरा, यह
अपने आप म ता कक है, इस लए इसका व ेषण ज़ री है। य द
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उप यासकार हर संग म अ छाई या बुराई ढूँ ढेगा तो या वह सही
अथ म च र के साथ इंसाफ़ कर पाएगा?
आशुतोष गग का अ थामा संग के बारे म लखना अपने
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आप म ट पणी है। आप इस कताब को पढ़, य क अ सर हम
बड़ी आसानी से कसी को सही या गलत कह दे ते ह और इससे
महाभारत के यु के ासं गक होने क वजह ख म हो जाती है।
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मेरी तरफ़ से आशुतोष को ढे र शुभकामनाएँ! उ मीद है वे इसी
तरह नए एवं क ठन वषय पर लखते रहगे।
—सुतपा सकदार
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ले खका एवं फ़ म नमाता
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अ थामा
महाभारत का शा पत यो ा
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आशुतोष गग
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मंजुल प ल शग हाउस
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मंजुल प ल शग हाउस
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कॉरपोरेट एवं संपादक य कायालय
तीय तल, उषा ीत कॉ ले स, 42 मालवीय नगर, भोपाल—462003
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व य एवं वपणन कायालय
7/32, अंसारी रोड, द रयागंज, नई द ली-110002
वेबसाइट: www.manjulindia.com
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वतरण के
अहमदाबाद, बगलु , भोपाल, कोलकाता, चे ई,
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ISBN 978-81-8322-806-0
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आशुतोष गग इस पु तक
के लेखक होने क नै तक ज़ मेदारी वहन करते ह
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सम त अ भलाषा
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के ाता
भगवान कृ ण के
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ीचरण म
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वषय-सूची
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आभार
भू मका
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उपसंहार
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आभार
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य हआमेदरीसेपहली कृ त नह है य क मुझे अनुवाद तथा संपादन
संबं धत काय करते काफ़ समय बीत चुका है और इस
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बीच मेरे नाम से अनेक पु तक का शत हो गई ह। परंतु मौ लक
उप यास के संदभ म, यह अव य मेरा थम यास है।
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लेखक क या ा, सव के समान होती है य क लेखक को
अपनी पु तक के काशन से वही आनंद और संतोष ा त होता है,
जो ी को संतान के ज म के बाद मलता है! लेखक क इस
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गग ने, जो वयं एक स लेखक व अनुवादक ह, ह पौरा णक
सा ह य से मेरा कुछ इस तरह प रचय करवाया क पौरा णक
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कथाएँ, मेरे ान और चतन का ह सा बन ग । मेरी माताजी,
ीमती आशा गग, सदा मेरे लए साहस और संघष का काश- तंभ
रही ह। उ ह ने मुझे सखाया है क संघषशील , कभी उदास
नह हो सकता! उनका यही गु -मं मुझे बना थके, काय करते
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रहने क असीम ऊजा दे ता है। म अपनी प नी गुंजन का दय से
ध यवाद करता ँ, जो मेरे काय म मुझे सतत सहयोग दे ती ह, मेरे
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लखे मसौद को बार-बार धैयपूवक सुनती ह और जनके सुझाव से
मेरा लेखन खर होता चलता है। म अपने यो य पु , अ और
चाँद-सी पु ी, अ पूणा को भी हा दक ध यवाद दे ता ँ य क वे
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ेम-भरी खल खलाहट और अपने अनंत नेह ारा, मेरे
जीवन म आनंद और उ लास के छोटे , कतु अनमोल ण भरते ह।
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म अपने उन सम त म को ध यवाद दे ना चाहता ँ, ज ह ने
हमेशा मेरे लखे को सराहा; म उ ह क शंसा और ो साहन से
आज इस पड़ाव तक प ँच पाया ँ। म अपने उन सभी म का भी
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के ोत ह!
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भू मका
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पौ रा- रामायण
णक सा ह य म दो ंथ सबसे अ धक लोक य माने जाते ह
और महाभारत। जहाँ एक ओर रामायण भाइय के
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बीच अटू ट ेम को दशाती भ - धान रचना है, वह महाभारत
राजतं और कूटनी त पर आधा रत चचेरे भाइय के बीच ए
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र रं जत यु क महागाथा है।
महाभारत ह का एकमा ऐसा ंथ है, जो धा मक,
पौरा णक, ऐ तहा सक और दाश नक सभी कोण से मह वपूण
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आपको अ य कह नह मलेगा!
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पांडव के बीच आ यु अ ारह दन चला। दोन प क सेना
का स म लत सं या बल अ ारह अ ौ हणी था, जसम यारह
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अ ौ हणी कौरव क और सात अ ौ हणी पांडव क थी। संपूण
महाभारत ंथ भी अ ारह पव म वभ है और महाभारत के
भी म पव के अ तगत व णत ीम गव ता म भी अ ारह अ याय
ह। कुल मलाकर, रामायण क तुलना म, महाभारत के त लोग
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के मन म कौतूहल और च अ धक दे खने को मलती है। महाभारत
का अचं भत कर दे ने वाला रोचक कथानक तथा और उसके
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वल ण एवं गु पा पाठक को अंत तक बाँधे रखते ह।
महाभारत यु को धम-यु भी कहा जाता है य क इसम
कौरव तथा पांडव, मशः अधम एवं धम के तीक ह और रामायण
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क भां त, महाभारत का अंत भी अ याय पर, याय क वजय तथा
धम क पुन थापना के साथ आ है। य धन के नेतृ व म यु रत
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सभी कौरव अहंकार और हठ क वेद म वाहा हो गए और अंत म
पांडव वजयी ए।
धम-अधम क ऐसी कथा म, पा का अ छे और बुरे खेम
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लए कभी मा नह कया।
कौरव प के इन लभ पा के बीच, एक पा ऐसा भी है
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षत छाया से सदै व र रखा। एक ऐसा अनूठा व, जसने
अपने नी त- य दय को य धन क मूढ़ हठध मता के नरंतर
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आघात से बचाए रखा। महाभारत के यु के दौरान, उस पा से दो
ऐसे अपराध हो गए, जनके कारण भगवान ीकृ ण ने उसे शाप
दया क उसके शरीर के घाव कभी नह भरगे और वह अपने सड़े
ए, जजर तन को लए चरकाल तक पृ वी पर भटकता रहेगा!
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ऐसा माना जाता है क वह , ीकृ ण ारा दए गए दं ड क
पीड़ा आज तक भोग रहा है। महाभारत का वह अनूठा पा है -
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अ थामा! कहते ह, कृ ण ारा दए गए शाप के कारण,
अ थामा हज़ार वष के बाद, आज भी जी वत है और अपने पाप
का प रणाम भोग रहा है।
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यह स य है क अ थामा ने यु के अंत म ऐसे कुकम कए,
ज ह ने उसक जीवन-भर क शु चता और सौ यता को छ - भ
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कर डाला। म यह भी मानता ँ क उसके ये कम अ य अपराध
क ेणी म आते ह। यह भी स य है क य धन जैसे कपट और
कुबु वाले का साथ दे ने के कारण अ थामा नदनीय है।
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अ याय है। महाभारत के यु म ऐसे अनेक पा ह जो अ थामा
क भां त छलपूण र पात के दोषी ह, कतु सबसे अ धक
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क दायक और द घका लक दं ड केवल अ थामा को मला।
यहाँ, भगवान ीकृ ण के दं ड वधान को चुनौती दे ना मेरा
ल य नह है य क ीकृ ण वयं ई र का अवतार ह और ई र के
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वधान म ु ट होने क क पना करना थ है। इसी त य को यान
म रखते ए, अ थामा भी उस शाप से उ प क को भोगने के
दौरान, आ म-मंथन तथा न प ता से अपने वहार का व ेषण
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करता रहता है। वह अपने जीवन क अ छ -बुरी घटना को याद
करता है तथा कृ ण ारा दए गए उस अ यंत द घका लक शाप के
कारण को खोजने का यास करता है। अंत म, वह कृ ण के उस
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वकट शाप का औ च य समझने म सफल हो जाता है। उसे पता
लगता है क कृ ण ने उसे भयंकर दशा म जी वत छोड़कर,
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आधु नक मानव समाज को मह वपूण संदेश दया है!
मने बचपन से आज तक, जब भी महाभारत क कथा को
पढ़ा-सुना, मेरे मन म अ थामा के त सदा सहानुभू त व क णा
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यास भी कए जाते रहे ह। अ थामा को अमर मानकर, उसक
खोज करने वाले लोग के लए भी इस उप यास म एक संदेश है,
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जसे समझने और उस पर अमल कए जाने क आव यकता है।
एक बात और! लोग ायः चीज़ को प प से दे खना
चाहते ह कतु हमेशा ऐसा संभव नह होता। आपके और मेरे
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कोण के अलावा एक और कोण होता है, जो तट थ रहता
है; वह इधर या उधर नह झुकता। कसी के च र के वषय
म ज द -से नणय दे ना ब त सरल है ले कन हम इस वृ से
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बचना चा हए य क इस ज दबाजी से, उस के साथ अ याय
होने क संभावना बढ़ जाती है। म जानता ँ क अ थामा के बारे
म लोग क आम धारणा कैसी है। य द यह उप यास अ थामा के
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वषय म आपके कसी पूवा ह को चुनौती दे ता है या आपको उसके
वषय म दोबारा सोचने पर ववश करता है, तो म इसे अपनी
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रचना मक सफलता समझूँगा।
चूं क यह मेरा पहला मौ लक उप यास है, ब त संभव है क
मुझसे अ ानतावश, बीच-बीच म अ भ अथवा त य-संबंधी
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—आशुतोष गग
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नई द ली
ईमेल: ashutoshgarg343@gmail.com
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क हतेनधाह,रतमनुहोयजाता
के ज म के साथ ही उसक मृ यु का समय भी
है, ले कन मेरे साथ ऐसा कुछ नह आ।
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त व-वे ा लोग भी थे जो, य द आज जी वत होते तो शायद मुझे
मेरी मृ यु के वषय म कुछ बता पाते। परंतु यह भी मेरा ही भा य है
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क वह सब एक-एक करके शता दय पूव वग या नरक - कौन
जाने कहाँ - गमन कर गए और म आज भी अपनी मृ यु क ती ा
म पृ वी पर अकेला, बेसहारा और बेहाल भटक रहा ँ।
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मुझे अपनी जजर शारी रक अव था तथा हेय मनोदशा का
वणन करने क इ छा तो नह है, कतु आपको यह बताना इस लए
अ नवाय है य क इस कथा के अंत म आपको मेरे कम और उनके
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लए मुझे मले दं ड का न प व ेषण करना है। इसके बाद ही
आप यह समझ पाएँगे क मेरे बारे म आपने अब तक जो कुछ पढ़ा
है, सुना है, और आप जो कुछ मेरे वषय म सोचते ह, या वह
सचमुच सही है!
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मेरा तन ल लुहान हो गया है और म अनेक असा य आ ध-
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ा धय से त ँ। मेरे शरीर पर लगे घाव से नरंतर मवाद का
ाव होता रहता है, जसके कारण मेरे तन से भयंकर गध आती
है। इस कारण नान कए बना तो चैन मलने का ही नह , और
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फल ह या कंकड़! अपनी पैनी और वण-श पर कभी मुझे
इतना गव था क श द-भेद बाण चलाने म पांडु-पु अजुन के
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अ त र मेरा कोई सानी नह था। तथा प, आज मेरी थ त ऐसी है
क मेरे ने कु वंश क महारानी गांधारी के ने क तरह अथहीन
हो चुके ह य क मुझे आँख होते ए भी साफ़ दखाई नह दे ता।
जहाँ तक बोलने व सुनने का है, तो यहाँ भी मुझसे यादा
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अभागा कोई नह य क ीकृ ण के शापवश कई शता दय से
मुझे इन बीहड़ व नजन वन म बात करने वाला कोई नह
bo
मला है।
मेरा मन जब ब त खी हो जाता है, तो सामा य मनु य क
भां त, मेरा भी रोने का मन करता है। म चाहता ँ क मेरी आँख से
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आँसू नकल ता क मेरा मन हलका हो सके, ले कन मेरा भा य
अपनी चरमाव था म है और वह मुझे ऐसी अव था म ले आया है
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जहाँ अब मेरी आँख से अ ु भी नह नकलते। उनके थान पर भी
ने से र क बूँद ही टपकती ह। पछले लगभग पाँच सौ वष से
मने दन के काश म वचरण करना छोड़ दया है य क सूय क
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ढोते ए अपनी गुहा से बाहर नकलता ँ तो नशाचर जगत के वे
सब ह पशु भयभीत होकर अपनी-अपनी माँद म बक जाते ह
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और ास रोके मेरे भोजन से नवृ होने क ती ा करते ह। इतने
वष के एकाक तथा व य जीवन ने मुझे अनोखे पशु म प रव तत
कर दया है। मेरे लए जीवन क इस अप र मत अव ध के दौरान,
फल और मांस का अंतर मट गया है और वाद अपना मह व खो
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चुका है। म फल के रस और पशु के र का अंतर भूल चुका ँ।
जो आनंद मुझे कसी रसदार फल को चूसने म आता है, वही तृ त
bo
मांस के लोथड़े को कुतरने म मल जाती है।
मेरे तन के इन घाव से कह अ धक पीड़ादायक, पाँच अबोध
बालक क ह या और नद ष उ रा के गभ थ बालक के वध से
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उ प ला न का दं श है। मेरे उसी कम के दं ड व प ीकृ ण ने
मुझे यह शाप दया क मेरे तन के घाव कभी नह भरगे और म इस
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सड़ी काया को लए हज़ार वष तक इसी कार पृ वी पर भटकता
र ँगा। उ ह ने यह भी शाप दया क म जब तक जी वत र ँगा, मेरी
कसी से बात नह हो सकेगी। ीकृ ण यह शाप दे कर ही
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अब कोई जानकारी नह है।
यह कथा म सुना रहा ँ इस लए वैसे तो मेरा और मेरे माता-
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पता का उ लेख पहले होना चा हए, परंतु चरंजीवी का संदभ
नकल आया तो मने अपने मामा कृपाचाय का उ लेख कर दया।
अब जब कृपाचाय क बात उठ ही गई है, तो म इस महागाथा का
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आरंभ भी उ ह क कथा से करता ँ। वैसे भी, इस नजन बीहड़ म
बैठकर मेरे पास इन बात को मरण करने के अ त र कोई अ य
वक प भी नह है। कृपाचाय वभाव से अ यंत सौ य और
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सहनशील थे। उनके नाम क भां त उनके ज म क कथा भी ब त
रोचक है।
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अं गरस वंश म एक तेज वी बालक ने ज म लया जो बाद म
मह ष गौतम के नाम से व यात आ। गौतम मु न तथा उनक
प नी अह या के घर एक वल ण बालक ने ज म लया। ज म के
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समय ही, उसके तन पर शर (बाण) बँधे थे तथा वह ब ल काया से
यु था। अपने पु का यह अद्भुत प दे खकर मह ष गौतम क
स ता क ठकाना न रहा और ब त वचार करने के उपरांत
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के नाते तप या का गुण भी शर ान को नैस गक प से ा त आ
था। उ ह ने अपने पता के मागदशन म कठोर तप ारा एक-एक
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करके सभी कार के अ -श ा त कर लए और वह एक े
तप वी के साथ-साथ असाधारण यो ा भी बन गए। वल ण
धनु व ा और तपोबल क म हमा से शी ही पृ वीलोक म, शर ान
क क त पताका फहराने लगी।
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शर ान जब धनु व ा का अ यास करते तो दे वतागण भी उसे
ऊपर से दे खा करते थे और जब वह धनुष को कंधे से उतारकर,
bo
कुशासन पर तप या के लए बैठते तो भी दे वलोक म उथल-पुथल
आरंभ हो जाती थी। इ तहास सा ी है, पृ वी पर जब-जब कसी
यो ा या तप वी के यश का डंका बजता है, तो उसके नाद से य द
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कसी को अपने भु व पर सबसे पहले आँच आने का भय उ प
होता है, तो वह दे वराज इं ह! ऐसी वषम प र थ तय म इं
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हमेशा से जो करते आए ह, उ ह ने इस बार भी उसी कृ य क
पुनरावृ क । य ही इं ने शर ान का यशोगान सुना, उ ह ने
शर ान के तप म व न डालने तथा क त को कलं कत करने के
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थी क तभी आपके ऊपर पड़ गई। आपका अ यंत भावशाली
प दे खकर म वयं को रोक न सक और भीतर चली आई।
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आपक चौड़ी छाती, पु कंधे तथा सुंदर ब ल काया से आपके
शरीर म दौड़ रहे य र का आभास मलता है, कतु आपके
मुख के तेज एवं ने म तप या क चमक से आपके तप वी होने
का भी संकेत मल रहा है। कृपया आप वयं बताएँ क आप ऋ ष ह
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अथवा य?” जानपद ने अपना असली योजन छपाते ए
नाटक य ढं ग से पूछा।
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“दे वी, म मह ष गौतम का पु शर ान ँ। ज म से तो ऋ ष-
पु ही ँ कतु मेरा मन धनु व ा म अ धक रमता है और यही कारण
है क यु -कौशल के सतत अ यास ने मेरी काया को य जैसा
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प व सौ व दान कर दया है। आप अपने ववेक के आधार पर
जो चाह, समझ ल, कतु मेरी एक वनती है क आप यहाँ से
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त काल थान कर ता क म अपनी तप या जारी रख सकूँ।”
“ऋ षवर, मुझे आपके ऋ ष अथवा यो ा होने से कोई
सरोकार नह है। मुझे तो आपके प ने मो हत कर लया है। मेरे
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लया। हालां क मन म उ प ए वकार के चलते उनका ओज वी
तन उ े जत हो चुका था। वयं को रोक लेने के बावजूद शर ान का
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वीय ख लत हो गया और नीचे पड़े सरकंड पर गर गया। अपने
मन क चंचलता को दे खकर शर ान को अ य धक ला न ई और
उ ह ने अपने धनुष, बाण और मृगचम का सदा के लए याग कर
दया तथा आ म छोड़कर चले गए। शर ान ने आ म तो छोड़
ok
दया, कतु उनके वीय क बलता से नीचे पड़ा सरकंडा दो भाग म
वभ हो गया। सरकंडे के उन दो भाग से दो शशु का ज म
bo
आ। एक बालक था और एक बा लका थी।
उधर दे वक या जानपद इं के ारा दए गए काय को पूण
करने के प ात वहाँ से अंतधान हो गई कतु शर ान के वीय से
e/
उ प बालक-बा लका का युगल वह धरती पर लेटा रोता रहा।
सामा य तौर पर, ऐसी थ त म वन के बीच थत आ म म
.m
असहाय व नवजात शशु का जी वत बच पाना असंभव है, कतु
य द ऐसा हो जाता तो यह कथा आगे कैसे बढ़ती? इस लए, ऐसा
कुछ नह आ!
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गु जी ने अपनी आँख बंद क और कुछ पल सोचने के बाद
बोले, “महाराज, चूं क इन दोन ब च को आपक कृपा के कारण
sm
जीवनदान मला है, इस लए इनका नाम भी इसी गुण के आधार पर
रखना उ चत होगा। मेरा सुझाव है क आप बालक का नाम ‘कृप’
तथा बा लका का नाम ‘कृपी’ रख।”
ok
“जो आ ा, गु दे व! कृपया आप कृप और कृपी के भ व य के
वषय म भी कुछ बताएँ।”
“महाराज! भ व यवाणी करना ई र के वधान म व न डालने
bo
के समान होता है, इस लए म इनके भ व य के वषय म कुछ नह
क ँगा, कतु आपने पूछा है इस लए इतना बता सकता ँ क यह
e/
बालक कृप अ यंत भा यशाली होगा और यह भारतवष के सबसे
श शाली वंश का कुलगु बनेगा।”
.m
“अ त उ म!” शांतनु ने ह षत होकर कहा, “और गु दे व,
कृपी? उसका भ व य कैसा होगा?”
“कृपी का भा य व च होगा। इसका जीवन तप वनी के प
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नकल गए।
इस बीच, आ म छोड़कर वन म तप या करने चले गए
शर ान को अपने तपोबल से अपनी दोन संतान तथा उनके ज म
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कथा व तार से कह सुनाई। शर ान क कथा सुनकर राजा शांतनु
का कोमल दय ब त खी आ। उ ह ने शर ान से आ ह कया
sm
क वे वयं बालक कृप को श ा-द ा, धनु व ा तथा सम त
शा -वेद का ान दान कर। अपने पु को श य के प म
पाकर शर ान अ यंत स ए और उ ह ने शांतनु का ताव
सहष वीकार कर लया।
ok
अपने परम ानी पता व गु के सा य म कुछ ही समय म
कृप सभी वषय के आचाय हो गए। राजा शांतनु के गु क
bo
भ व यवाणी के अनुसार, यही कृप आगे चलकर कु वंश के कुलगु
कृपाचाय के प म व यात ए।
e/
यह मा संयोग है क कृपाचाय मेरे मामा ह और वह भी मेरी
तरह चरंजीवी ह!
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स चइसकवीरान
ँ तो मेरा उ े य अपनी कथा सुनाना नह है। म तो यहाँ
जंगल म अकेला बैठा अपने पाप का बोझ ढो रहा
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पता के ज म म भी दे वराज इं ने वही कु टल भू मका नभाई थी
जो उ ह ने मेरे मामा कृप के ज म के संदभ म नभाई थी।
sm
कहते ह, उस समय गंगा ार नाम के एक थान पर मह ष
भर ाज का आ म था। उ ह ने अपने तशील वभाव से संपूण
संसार म यश अ जत कया था। ऐसा माना जाता था क उस काल
ok
म पृ वी पर मह ष भर ाज क गनती उन गने-चुने ऋ ष-मु नय म
होती थी ज ह ने अपने तप और संयम से अपनी सम त इ छा
और कामना पर वजय ा त कर ली थी। जैसा क मने पहले भी
bo
कहा है और आप भी यह बात जानते ह क पृ वीलोक पर कसी भी
मनु य के आ म-संयम एवं तप क वजय-गाथा का चार सुनकर
दे वराज इं का सहासन त काल डोलने लगता था और उनके पास
e/
ऋ ष-मु नय के आ या मक वजय-रथ को रोकने का एकमा
साधन था — अ सराएँ और उनका कामा ! इं के दरबार म एक
.m
से बढ़कर एक अ सराएँ और दे वक याएँ थ , जनका उपयोग इं
अपने मनोरंजन करने तथा मनु य व दै य क तप या म व न
डालने के लए कया करते थे। इं के दरबार क लगभग सभी
m
शर ान क भां त भर ाज मु न क या त ने भी इं को
आ ांत कया आ था। भर ाज कोई साधारण ऋ ष नह थे और
उनके संयम क श एवं तपोबल से भयभीत होने के कारण
अ धकतर अ सरा ने उनक साधना भंग करने क चुनौती को
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“आह, घृताची!” इं ने मु ध होकर घृताची को दे खा और
कहा, “तुम मेरे दरबार क े अ सरा म से हो। तुम सम त
sm
कला म नपुण हो और तु हारे अलौ कक स दय के मोहजाल से
बच पाना कसी साधारण मनु य के लए असंभव है। म चाहता ँ
क तुम पृ वीलोक पर जाओ और अपने प से भर ाज मु न के
तपोबल को ीण कर दो।”
ok
“परंतु,” घृताची ने सकुचाते ए कहा, “भर ाज मु न साधारण
मनु य नह ह।”
bo
“जानता ँ,” इं ने कहा, “परंतु तुम भी तो साधारण अ सरा
नह हो, घृताची! तु हारे लए भर ाज मु न को अपने माग से
e/
डगाना सरल नह कतु असंभव भी नह है। मुझे व ास है क तुम
इस काय म अव य सफल हो जाओगी। इसके अ त र , हमारे पास
तक करने का समय नह है। इसे हमारी राजा ा समझो!” घृताची ने
.m
इं को णाम कया और भर ाज का तप भंग करने के लए
गंगा ार चल पड़ी।
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गरने दया और उसे अपने य पा म रख लया। उनके य पा का
नाम ोण था। नयत समय पर, उस पा म से एक तेज वी बालक
sm
ने ज म लया। मह ष भर ाज ने अपने य पा के नाम पर ही अपने
पु का नाम ोण रखा। भर ाज को पता था क उनके वीय से
उ प पु , उ ह क भां त वल ण एवं तभावान होगा। मह ष
भर ाज ने अपने पु को अपना श य बना लया और सभी वेद-
ok
वेदांग क श ा द । इसी के साथ, ोण को अ -श क भी
श ा द गई। एक समय आया जब पृ वी पर अ -श क व ा
bo
के संदभ म ोण से अ धक े कोई नह था। भर ाज मु न अपने
यो य पु को आ नेया नाम के एक वशेष अ का ान भी दे ना
चाहते थे। परंतु उ ह ने वह ान, ोण के ज म से पूव ही, अ नवे य
e/
को दे दया था, इस लए ोण को आ नेया क श ा दे ने का काय
अ नवे य ने संपूण कया। आगे चलकर, ोण कौरव और पांडव
के गु ोणाचाय कहलाए। मह ष भर ाज के लीन हो जाने के
.m
बाद ोण ने अपने पता के आ म म रहना आरंभ कर दया।
कालांतर म, ोण ने शर ान क पु ी कृपी से ववाह कर लया।
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पीकर आए थे।
“ ध! भला यह या होता है?” मने कौतूहल वश अपने एक
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म से पूछा।
“अरे अ थामा, तुझे ध नह पता?” यह कहते ए सब लोग
मुझ पर हँसने लगे। मने यह बात अपनी माता को बताई तो उनक
ok
आँख भर आ । म उस समय उनके रोने का कारण समझ नह
सका।
bo
मने माँ से कहा, “माँ, मुझे भी ध पीना है।”
माँ ने नम आँख से णभर के लए कुछ सोचा और फर
रसोईघर म चली ग । कुछ ही दे र म वे ध-जैसा ेत मीठा पतला
e/
घोल लेकर आ और मुझे पला दया। चूं क मने असली ध कभी
दे खा नह था और न पया था, इस लए वह सफ़ेद मीठा घोल पीकर
.m
मुझे लगा क मने ध पी लया। म जब अपने सा थय के साथ
खेलने गया बाहर गया तो वे मुझे दे खकर फर हँसने लगे।
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माता कृपी ने संयमपूवक पता से कहा, “य द छोट -छोट
व तु के लए हम त दन इसी तरह ल जत होना पड़ा तो कुछ
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दन बाद अ थामा का भरण-पोषण करना भी हमारे लए क ठन
हो जाएगा। आप कहते थे क गु कुल के समय का आपका म
पद, आजकल पंचाल दे श का राजा है। आप उसके पास जाकर
सहायता य नह माँगते?”
ok
मने पहले भी बताया क मेरे पता ब त वा भमानी थे। कसी
के सामने साथ फैलाने का वचार उ ह व म भी न आता, परंतु
bo
प नी व पु के उ रदा य व के भार और दन दन बढ़ती द र ता ने
आ ख़र ोण के आ म-स मान को व त कर दया।
e/
अगले ही दन ोण पंचाल के लए रवाना हो गए। उ ह माग म
पद के साथ गु कुल म बताए दन याद आ रहे थे। बचपन क
मीठ मृ तय से उनका मन व ां त महसूस कर रहा था। उन सुखद
.m
मृ तय के सहारे पाँच घंटे क लंबी या ा को मानो पंख लग गए
और जब ोण वतमान म लौटे तो उ ह ने वयं को पद के राजमहल
के सामने खड़ा पाया। उ ह ने मन ही मन यह मान लया था क पद
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जकड़ लया और दरबा रय क उ सुक ने पद के पाँव म
संकोच क बे ़डयाँ डाल द ।
sm
“आप कौन ह और मुझसे या चाहते ह?” पद ने ल जा के
पद के पीछे से छपकर पूछा।
ोण अचं भत रह गए। परंतु वष के कटु अनुभव से उ ह यह
ok
समझते दे र न लगी क उनके सामने गु कुल का सखा पद नह ,
ब क पंचाल नरेश पद खड़ा था। पद के छ प से ोण के
चेहरे पर आ य, अ व ास और नराशा के म त भाव उभर आए।
bo
यह जानते ए क पद सबकुछ जानकर भी नासमझ बनने का ढ ग
कर रहा था, ोण ने पुरानी म ता और राज- त ा का स मान
e/
करते ए पद को एक और अवसर दे ने का फ़ैसला कया।
“राजन! म आपका म ोण ँ। आपको मरण होगा क हम
.m
दोन मेरे पता भर ाज मु न के आ म म एक साथ पढ़ते थे। जब
हमारी श ा-द ा समा त हो गई तो गु कुल से थान करते समय
आपने मुझसे कहा था, “ ोण! तुम मेरे सबसे अ छे म हो और म
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दे ने से उसक ती ता न केवल मंद पड़ जाती है अ पतु वह अनायास
ही मादान क संभावना भी उ प कर दे ता है। इसके वपरीत,
sm
य द ोध क चगारी को धैय एवं संयम क पत क नीचे छपा
लया जाए तो वह समय के साथ चंड अ न का प धारण कर
लेती है और फर तशोध ही उसके शमन का एकमा उपाय रह
जाता है!
ok
ोण ने कसी तरह संयम रखा और ोध को मन म ही दबा
लया। वे नह चाहते थे क पद को शाप ारा त काल दं डत करके
bo
उनका ोध शांत हो जाए। कहते ह, शूल को नकालने के लए भी
शूल क आव यकता होती है। ोण का आहत मन उस अपमान के
शूल को नकालने तथा उससे उ प पीड़ा का शमन करने हेतु कोई
तीखी e/
अ य उ चत तशोध पी शूल खोजने लगा। उ ह ने पद पर एक
डाली और मन म उसके सवनाश का कठोर संक प
.m
लेकर चुपचाप राजमहल से बाहर नकल गए।
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ो णनकल
तेज़ क़दम से चलते ए पंचाल रा य क सीमा से बाहर
आए थे। आगे बढ़ते येक क़दम के साथ, उनके दय
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मु कराए। वे समझ गए थे क उन बालक क सम या के नदान
ारा ही उनक अपनी सम या का नवारण संभव था।
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“बस, इतनी सी बात के लए परेशान हो?” ोण ने हँसते ए
कहा। “जाओ और ज द से आस-पास पड़े कुछ सरकंडे ले आओ।
हम अभी तु हारी गद बाहर नकाल दे ते ह।”
ok
यह सुनकर बालक स हो गए। उ ह ने शी ही ोण के
सामने ब त-से सरकंडे लाकर रख दए और फर कौतूहल से
ा ण क ओर दे खने लगे। ोण ने झटपट कुछ सरकंडे उठाए और
bo
फर बाण क तरह नशाना साधकर, उ ह एक के बाद एक कुएँ म
फकने लगे। बालक ने दे खा क ोण ारा फके गए पहले सरकंडे ने
e/
गद को म य से ब ध दया था तथा बाद म फके गए सरकंडे एक-
सरे से जुड़ते जा रहे थे। कुछ ही पल म ोण ने अं तम सरकंडा
पकड़कर ऊपर ख चा तो उसके साथ गद स हत सभी सरकंडे कुएँ
.m
से बाहर नकल आए। ोण का यह अद्भुत चम कार दे खकर
बालक के आ य का ठकाना न रहा। वे ख़ुशी-ख़ुशी अपनी गद
लेकर राजमहल लौट आए। वहाँ जब उ ह ने अपने पतामह, भी म
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कु राजकुमार क श ा का दा य व ोण को स प दया।
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इस बात से मुझे भी य लाभ आ। चूं क मेरे पता अब
कु राजवंश के उ रा धका रय के गु बन गए थे, तो यह
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वाभा वक था क मेरी श ा-द ा भी अपने पता के सा य म
राजसी ठाठ-बाट से होने लगी। इस बीच, मुझे पांडव और कौरव
को नकट से दे खने और उनके वभाव एवं च र को समझने का भी
अवसर मला। म समय-समय पर उनके वषय म भी बात क ँ गा।
ok
भी म के साथ ई भट ने हमारे प रवार क द र ता को पलक
झपकते र कर दया। य प मेरे पता के लए उससे भी अ धक
bo
संतोष क बात यह थी क उ ह पद के साथ तशोध का खेल
खेलने के लए अब न सफ़ बसात मल गई थी, अ पतु अबोध कु
राजकुमार के प म मोहरे भी उपल ध हो गए थे। भा य से, म भी
e/
उन मोहर म स म लत हो गया था। हालां क म इस बात को मानता
ँ क पद ने मेरे पता ोण के साथ अपने राजदरबार म जो कया
.m
वह सवथा अनु चत और अभ था, फर भी मेरा मानना है क पद
को सबक़ सखाने का जो तरीक़ा मेरे पता ने चुना, वह अ धक
वकृत एवं अशोभनीय था। अपनी हठ कामना क पू त हेतु मेरे
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ोण का सबसे य श य भी बन गया।
ोण को आचाय क पदवी मल चुक थी, कतु वे राजकुमार
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एक साथ पढ़ाना उनक ववशता था परंतु यह वाभा वक था क
उनका पतृ-मन सदा यह यास करता रहता क कैसे भी, वे मुझे
sm
पांडव व कौरव से अ धक ान दान कर द। यहाँ तक क ऐसा
करने के लए उ ह ने एक यु भी खोज ली। अ यास के बीच म
वह अपने श य को पानी लाने के लए भेज दे ते थे। पानी के लए
सबको एक-एक पा दया जाता था। ोण अपने अ य श य को
ok
पानी लाने के लए सँकरे मुँह वाला पा दे ते थे, जब क मुझे जो पा
मलता था, उसका मुँह चौड़ा था। इसके फल व प मेरा पा अ य
bo
लोग के पा से पहले भर जाता था और म पानी लेकर ज द लौट
आता था। इतनी दे र म, मेरे पता अ य श य के प ँचने से पहले,
मुझे अ - व ा का कोई न कोई नया गु त रह य सखा दे ते थे
जससे उनके अ य श य वं चत रह जाते थे।
e/
अपने पता के इस वभाव म घुले छल से मेरा पहली बार तभी
.m
सामना आ जब उ ह ने यह पा वाली यु अपनाई थी। उनके
त मेरे मन म अ तशय स मान था, कतु मुझे जब उनके च र क
इस बलता का भान आ तो मुझे मन म ोभ तो आ। परंतु मुझे
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स कया। अजुन ने वशेष साधना ारा ोण से व णा का
योग सीख लया था, जसके ारा जल-वषा क जा सकती थी।
sm
अजुन अपना जल-पा भरने के लए इस अ का योग करने
लगा और वह भी अपना पा भरकर मेरे साथ ही लौट आता था।
पता नह य , ले कन अपने पता क कु टलता को असफल होते
दे ख मुझे अ छा लग रहा था। म च र क शु चता को धनु व ा से
ok
बढ़कर मानता ँ। यह बात वैसे तो इतनी बड़ी नह थी ले कन जस
कार न बू क सफ़ एक बूंद पड़ जाने से ध फट जाता है और
bo
फर पीने यो य नह रहता, उसी तरह ोण के इस ु कपट के
कारण मेरे न छल मन म अपने पता के लए जो आदर था, उसक
आधार शला को ठे स प ँची थी।
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इ सचलाने
घटना के तुरंत बाद, अजुन ने आचाय ोण से श द-भेद बाण
क व ा सीखना शु कर दया। अ य लोग जब सो जाते
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जैसे-जैसे हम लोग का श ण आगे बढ़ा, ोण के श ा-
कौशल क क त च ँ ओर फैलने लगी। र- र से अनेक राजकुमार
sm
उनके पास श ा-द ा के लए आते थे परंतु श य बनाने से पहले
ोण आगंतुक को धनुष दे कर उसक परी ा लेते, तथा उसक
पा ता जाँचने के बाद ही अं तम नणय लेते थे। ोण क कसौट पर
खरा उतरना सह के मुँह से उसका भोजन चुराने के समान था। एक
ok
दन एक युवक ोण के पास आया।
“ णाम गु वर!” युवक ने आदर स हत कहा, “म आपसे
bo
धनु व ा सीखना चाहता ँ। कृपया मुझे अपना श य बना
ली जए।”
“तुम कौन हो व स?” ोण ने पूछा।
“म नषादप त हर यधनु का पु एकल e/
ँ,” वह बोला।
.m
“मने आपका ब त यश सुना है। य द आप मुझे अपना श य बना ल
तो मेरा जीवन ध य हो जाएगा।”
“म अव य तु ह श ा दे ता व स,” ोण बोले, “ कतु मुझे खेद
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पूछा।
“एकल , तु हारा संबंध नषाद जा त से है और म केवल
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“आप मुझे अपना श य भले ही न बनाएँ आचाय,” एकल
ने हाथ जोड़कर कहा, “ कतु म दय से आपको अपना गु मान
sm
चुका ँ! आ ा द जए, चलता ँ।” एकल ने ोण को णाम
कया और वहाँ से चला गया।
एकल ने जाते समय मुड़कर मेरी ओर दे खा। उसक म
ok
छपे भाव ने मुझे भीतर तक ब ध दया। य राजकुमार के साथ
चल रही मेरी श ा या ोण के स ांत के अनुकूल थी? या एक
बार फर पु —मोह ने गु —धम को ल जत नह कर दया था?
bo
उसके जाने के बाद मने दे खा क मेरे पता ह ठ दबाकर
मुसकरा रहे थे। मने उ ह इस तरह मु कराते पहले कभी नह दे खा
e/
था। उनक मु कराहट के पीछे या छपा था? या इसम भी कोई
चाल थी जसका उ ाटन होना शेष था। अ यापन के कुशासन पर
बैठकर ोण अपने श य को बताया करते थे क ज म से
.m
नह अ पतु कम से बड़ा होता है। परंतु उ ह ने वयं ही एकल क
तभा और उसके सीखने क मता का आकलन उसके ज म के
आधार पर कर लया था।
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हमने दे खा क मृगचम पहने और सर पर जटाएँ बाँधे एक
युवक हमारी ओर पीठ करके खड़ा था। सामने पेड़ पर उसका ल य
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बँधा आ था। उसक दा ओर एक ऋ ष क म से बनी तमा
था पत थी और तमा के गले म पु प-हार लटका आ था।
“कौन हो तुम?” अजुन ने र से च लाकर युवक से पूछा।
ok
उसक पीठ अब भी हमारी ओर थी और वह धनुष पर चढ़ा बाण
छोड़ने वाला था।
अजुन क आवाज़ सुनकर, युवक ने धनुष क डोर ढ ली छोड़
bo
द और बाण हाथ म लेकर हमारी ओर मुड़ा।
“अरे, यह तो एकल है!” मने उ े जत होकर कहा।
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हमारे साथ आए ोणाचाय को दे खते ही एकल ने अपने
धनुष-बाण धरती पर रख दए और झुककर उ ह णाम कया।
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“एकल , तुम!” ोण ने अचं भत होकर कहा। उनक
म क तमा पर पड़ी तो दे खा क वह उनक अपनी तमा थी।
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उसके लए संसार का सव े धनुधर बन पाना सरल नह होगा। जो
द ता और फुत एकल के पास थी, वही अजुन के पास भी थी
sm
कतु अजुन यह सोचकर डर गया क जो गु क तमा से
ेरणा पाकर इतना कुछ सीख सकता है, वह सचमुच गु के
सा य म रहने से या कुछ नह कर सकता! यह वचार अजुन क
भावी योजना को धराशायी करने के लए पया त था।
ok
अजुन ने कातर भाव से ोणाचाय को दे खा। अजुन के चेहरे के
भाव दे खकर ोण ने अजुन के मन क हताशा को भाँप लया। उ ह
bo
अपना वचन याद आ गया जो उ ह ने अजुन को दया था: “अजुन!
म यास क ँ गा क संसार म तु हारे समान कोई और धनुधर न
हो!” ोण क भँव तन ग । वह शांत खड़े अपनी तमा को
e/
एकटक दे खते रहे। म अपने पता क सू म से सू म भाव—भं गमा
से भली—भां त प र चत था। उ ह इस तरह शांत दे ख म समझ गया
.m
क उनके इस भी मौन के पीछे एक भयानक तूफ़ान पनप रहा था।
उ ह ने दो ण से भी कम का समय लया और फर उनके भाव
एकदम बदल गए। उनके उ न चेहरे पर मु कान छा गई।
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कुछ मेरे पास है, वह आपका ही दया आ है। आप न संकोच
अपनी द णा माँ गए। म अपना वचन पूरा क ँ गा।”
sm
“ब त अ छा! मुझे गु -द णा म तु हारे दा हने हाथ का
अँगूठा चा हए!” ोण ने अ यंत ठं डे वर म एकल से कहा।
मेरा अनुमान ठ क था। मेरे पता ने अपना दाँव खेल दया था।
ok
सभी राजकुमार अपने गु क इस कठोर माँग को सुनकर त ध रह
गए।
bo
ोणाचाय ने एक झटके म अजुन को दए वचन क र ा हेतु
उसक राह म सहसा उग आए एकल नामक संभा वत शूल का
समूल नाश कर दया था। अजुन का तन एक पल को तो काँप उठा,
e/
कतु फर उसका अ भलाषी मन फु लत हो गया। अजुन का मन
दो भाग म बँट गया। उसका एक मन अपने गु का जीवनभर के
.m
लए ऋणी हो गया था, कतु सरा मन एकल के लए वत था।
वह जानता था, य द एकल ने अपने गु क माँग पूण कर द तो
वह फर कभी बाण नह चला पाएगा।
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ok
bo
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ो णाचाय रा
करते थे।
म सोने से पहले कभी—कभी मुझसे बात कया
leg
“पू छए पताजी!”
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“य द कोई म या नकट संबंधी तु हारा अपमान कर दे तो
तुम या करोगे? उससे बदला लोगे या फर उसे मा कर दोगे…
sm
या करोगे?” ोण ने मुझसे पूछा।
“ पताजी, आपने मुझे अ —श क श ा इस लए द है
क म आव यकता पड़ने पर उसका उपयोग कर सकूँ। य धम म
ok
अपमान का तशोध अपमान से लया जाना ही ेय कर माना गया
है, कतु मानव—धम अपमान के घाव को मा के मरहम से भरना
बेहतर मानता है। म यु —कौशल म नपुण अव य ँ कतु मेरा मन
bo
मुझे मानव—धम नभाने को कहता है। इस लए, मुझे सरा वक प
ही अ धक उपयु जान पड़ता है य क मादान से न केवल
तशोध का भाव सदा के लए शांत हो जाता है, अ पतु यह
आ मो थान का भी े माग है।”
e/
“उ म!” ोण ने मेरे सर पर हाथ फेरते ए कहा, “मुझे
.m
तु हारा उ र पसंद आया। अ छा पु , अब सो जाओ!”
म उस समय समझ नह सका क मेरे पता के मन म या चल
m
रहा था।
दो दन बाद, ोणाचाय ने सब श य को अपने पास बुलाया।
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पद को बंद बनाकर मेरे पास ले आओ!”
गु ारा माँगी गई द णा सुनकर सब राजकुमार त ध रह
sm
गए। पद ने अपने दरबार जस समय मेरे पता का अपमान कया
था, म उस समय बालक था और मुझे भी उस घटना के वषय म
नह पता था। इतने वष म कसी ने ोण के मुख से पद का नाम
ok
नह सुना था, फर सहसा गु दे व के मन म पद को बंद बनाने का
वचार य आया? ोण का पद से या संबंध था? सबके मन म
कौतूहल जाग गया परंतु ोणाचाय ने अपने श य को गु के आदे श
bo
का औ च य पूछना नह सखाया था। अपने गु क आ ा शरोधाय
करने के अ त र श य के पास कोई वक प नह था। पद वाली
घटना से अंजान होने के बावजूद, म दे ख रहा था क मेरे पता ोण
e/
ारा कु टल एवं भीषण गु -द णा माँगने का नृशंस खेल अभी
समा त नह आ था।
.m
पंचाल नरेश पद के दरबार म ए अपमान के दं श का घाव
पक चुका था। ोणाचाय ने इतने वष तक मन म जल रही तशोध
क आग को बुझने नह दया। वष पहले कुएँ म से कु राजकुमार
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पद ने कया।
“मेरे गु का नाम ोण है।” अजुन ने गव से कहा, “उनक
sm
आपके साथ या श ुता है, मुझे न तो इसक जानकारी है और न ही
यह जानने म मेरी कोई च है। उनका श य होने के नाते मुझे
केवल उनक आ ा का पालन करना है। मेरी आपसे वनती है क
ok
आप कृपया बना वरोध कए मेरे साथ च लए।”
ोण का नाम सुनते ही पद के पैर के नीचे से धरती सरक
गई। अनेक वष पूव, अपने दरबार म ोण के साथ कया वहार
bo
उसे मरण हो आया। काल ने अपना च पूरा कर लया था और
अब बाज़ी ोण के हाथ म थी। पद को व ास था क ोण उसे
e/
केवल अपमा नत करना चाहता था य क य द पद क ह या
करनी होती तो अजुन ने यह काय ब त पहले कर दया होता।
.m
पद कुछ पल अजुन को दे खता रहा। वह अजुन के साहस
एवं यु —कौशल से अ य धक भा वत था। “काश, अजुन के
समान, मेरा भी एक पु होता!” पद के मन म वचार उठा।
m
पद का सर अब भी झुका आ था और उसक ोण के
पैर पर टक ई थी। वह सोच रहा था क शायद ज द ही उसे उन
पैर पर गरकर ोण से मा क भीख माँगनी पड़ेगी।
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अपना दास बनाकर अपमा नत कर सकता ँ, कतु म तु हारी तरह
अहं के वश होकर, अपने ा ण व को कलं कत नह करना
sm
चाहता। मुझे पता है क अपमान ारा अपमान का तकार ब त
सरल है, कतु मनु य का धम यह है क अपमान के घाव को मा के
मरहम से भरने का य न करे य क मा से न केवल तशोध क
अ न शांत हो जाती है, अ पतु यही आ मो थान का एकमा और
ok
े माग है।”
अपने पता का उ र सुनकर म ठठक गया। दो दन पूव हमारे
bo
बीच जो वातालाप आ था, उसक जड़ मुझे अब दखाई पड़ रही
थ । मेरे पता मुझे दे खकर मु करा रहे थे।
e/
“तु ह याद होगा पद,” ोण क बात अभी समा त नह ई
थी, “तुमने वयं कहा था क म ता बराबर वाल म होती है। आज
तु हारे पास कुछ नह है य क तु हारा रा य अब मेरा है। परंतु म
.m
तुमसे वष पुरानी म ता तोड़ना नह चाहता। इस लए म न केवल
तु ह मा कर रहा ँ, अ पतु तु हारी ही बात को मह व दे ते ए
पंचाल रा य का, जो अब पूरी तरह मेरे अधीन है, आधा भाग तु ह
m
अब हम फर से म हो गए ह।”
यह सुनते ही अजुन ने आगे बढ़कर पद क बे ़डयाँ खोल द
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कौ रवराजाऔरधृतरापांडसेव कहा,
क श ा संप हो चुक थी। ोणाचाय ने
“महाराज, म चाहता ँ क इतने वष
leg
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कौरव और पांडव राजकुमार ने वेश कया तो लोग उ सा हत
नज़र से उ ह दे खने लगे।
sm
कुछ ही समय म, कौशल- दशन आरंभ हो गया। अपने
राजकुमार क द ता दे खकर धृतरा और भी म आ द भाव- वभोर
हो उठे । उनके कौशल को दे खकर न केवल राज-प रवार को अ पतु
ok
सम त नगरवा सय को यह व ास हो गया क ऐसे े एवं वीर
यो ा के हाथ म ह तनापुर क सीमाएँ पूणतः सुर त थ ।
हालां क मने भी अ - व ा हण क थी कतु नयमानुसार रंगभू म
bo
म कौशल दशन का वशेषा धकार केवल राजकुमार का था,
इस लए ा ण-पु होने के नाते मुझे यह अवसर नह मल सका।
अजुन के अ त र , सभी ने अपना-अपना कौशल दखा दया था।
e/
अंत म, मेरे पता ने गव से अजुन क ओर संकेत करते ए घोषणा
क । “अब म अपने सव य श य अजुन को यु -कौशल के दशन
.m
हेतु रंगभू म म आमं त करता ँ।”
मेरे वचार से राजा एवं जा के सम खुले म य प से
राजकुमार के बीच भेद-भाव करना और कसी एक श य को अ य
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वायवा का योग कया जससे रंगभू म म भीषण आँधी चलने
लगी। वह धीरे-धीरे इतनी तेज़ हो गई क हाथ को हाथ नह सूझ रहा
sm
था। अजुन ने दे खा क आँधी से घबराकर लोग रंगभू म से भागने
लगे तो उसने पज या चलाकर बादल पैदा कर दए। आकाश म
बादल के छा जाने से आँधी त काल थम गई। इसके बाद, अजुन ने
ऐसे अनेक व च अ के योग से वहाँ बैठे लोग को अचं भत
ok
कर दया। रंगभू म लोग क ता लय क गड़गड़ाहट से गूँज रही थी।
दशन से पूव ोण को अजुन क शंसा करनी चा हए थी अथवा
bo
नह , इस बात पर ववाद हो सकता था, कतु अजुन ारा अपनी
धनु व ा के दशन के बाद इस बात म कसी तरह के ववाद क
कोई संभावना नह थी क न संदेह, अजुन एक वल ण धनुधर था
e/
और हम सबम े भी! इसी कारण से वह मेरे पता का सबसे य
श य भी था। अंत समय तक, अजुन के त उनका नेह कम नह
आ।
.m
“शाबाश अजुन!” ोण ने हषपूवक कहा। “मुझे तुम पर गव
है। न संदेह, इस संसार म तुमसे े धनुधर कोई नह है।” यह
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दशक अब भी अजुन के लए ता लयाँ बजा रहे थे। तभी
ता लय क गूँज को चीरती ई एक आवाज़ आई।
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“ कए!” उस गरजदार आवाज़ को सुनकर लोग शांत हो गए
और पूव दशा क ओर दे खने लगे जहाँ से वह आवाज़ आई थी। म
उस समय अपने पता के समीप खड़ा था। हमने दे खा क लंबी-
ok
चौड़ी एवं ब ल काया वाला एक तेज वी युवक हाथ म धनुष और
बाण लए रंगभू म के भीतर चला आ रहा था। उसके तन पर बँधा
कवच और कान के कुंडल वण क भां त चमक रहे थे। उसक
bo
चलने का अंदाज़ राजसी था जससे पता लगता था क वह कोई
साधारण युवक नह था। हालां क उसके तन के व दे खने से लग
रहा था क वह कसी उ च कुल का नह है। उसके असाधारण
व तथा सामा य व
e/
से एक व च कार का वरोधाभास
उ प हो रहा था। इसी बीच, उसने रंगभू म म खड़े अजुन के नकट
.m
प ँचकर, ऊपर दे खा और राजा धृतरा को णाम कया।
“तुम कौन हो युवक? इस तरह रंगभू म के बीच म य आए
हो?” ोण ने पूछा।
m
साहस भी झलक रहा था। उसक बात सुनकर राज-प रवार के सभी
लोग आ यच कत हो गए। कण क बात सुनकर य धन, जो सदा
से पांडव को नीचा दखाने क ताक म रहता था, अचानक मु कराने
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ही क पांडव को ट कर दे ने वाला भी कोई मौजूद था।
कण क बात सुनकर अजुन भी उसे अचरज से दे खने लगा।
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मने ोणाचाय क ओर दे खा तो वे ब त यान से कण का वण
कवच दे ख रहे थे। उनके मुख पर चता का वही भाव उभर आया था
जो एकल को दे खकर उभरा था। म समझ गया क उ ह कण म
ok
एकल क छ व दखाई दे रही थी। ोण ने एकल को तो
नममता से अजुन के माग से हटा दया था, कतु वे कण से न तो
गु द णा माँगने के अ धकारी थे और न ही उ ह कण ारा अजुन
bo
को द गई खुली चुनौती क कोई काट सूझ रही थी। उनक अनुभवी
ने त काल भाँप लया क उनके सबसे य श य अजुन का
माग अब भी पूरी तरह न कंटक नह आ था। मेरे पता ने
e/
अचानक घूमकर नी त नपुण कृप को दे खा। उ ह ने कृपाचाय को
आँख से या संकेत दया, म उसे समझ नह सका, कतु मेरे मामा
.m
कृपाचाय ने ोण क मंशा जान ली थी। अगले ही पल ोण पीछे हट
गए और उनका थान कृपाचाय ने ले लया।
“ य कण, हम यह दे खकर ब त स ता हो रही है क हमारे
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इसी लए कण न सा हत दखाई दे रहा था। कण क हताशा,
य धन क भावी मह वाकां ा का गला घ ट रही थी। य धन के
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लए इस घुटन का शी नदान करना अ नवाय हो गया था।
इससे पहले क कण कुछ कह पाता, य धन ने कृपाचाय को
संबो धत करते ए कहा, “आचाय, य द अजुन से यु करने के
ok
लए कण का राजवंशी होना अ नवाय है, तो म कण को अपना अंग
रा य दान करता ँ और इसे वहाँ का राजा नयु करता ँ। आज
से, कण मेरे म ह तथा ये अंगराज के नाम से जाने जाएँगे!”
bo
ोणाचाय के इशारे पर आचाय कृप ने कण के जस वंश-
संबंधी घाव को कुरेदकर अपमान का ाव नकालने का यास
e/
कया था, य धन ने उस घाव को अपनी उदारता से न केवल ढँ क
दया अ पतु अपने मधुर वचन से उस पर मै ी का मरहम भी लगा
दया। कण ने य धन क ओर दे खा। मै ी क भाषा, चाहे य हो
.m
अथवा सांके तक, अ यंत सश होती है तथा उसम से सहज ही ेम
एवं व ास का ज म हो जाता है। कण ने य धन क भाषा को
सहजता से हण कर लया। दोन एक- सरे को दे खकर मु कराए।
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तु ह कण जैसे वीर के वषय म ऐसी बात करना शोभा नह दे ता।
बल और साहस के अ त र य के यश का कोई अ य मापदं ड
sm
नह हो सकता। शूरवीर और न दय का उ म उतना सहज नह
होता, जतना दखाई पड़ता है। इस तेज वी और सवगुण संप कण
क ओर यान से दे खो! या यह तु ह न न कुल का वंशज लगता
है? मुझे व ास है क कण अपने बा बल और मेरे सहयोग से अंग
ok
दे श तो या, सम त पृ वी पर शासन कर सकता है!”
जहाँ एक ओर य धन ने कण को अंग दे श का रा य दान म
bo
दे कर अपने लए राजनी तक मै ी था पत कर ली थी, वह सरी
ओर दान म मले रा य को वीकार करके कण ने भी अपने मन म
सूतपु होने क कुंठा का दमन कर लया था। सूया त होने वाला
कण ने गहरी ास ली और फर उसक e/
था। रंगभू म के काय म को आगे बढ़ाना संभव नह था।
अनायास ही
.m
अ त होते सूय क ओर चली गई। वह, न जाने य , ब त दे र तक
प म दशा म तज क ओर दे खता रहा। कण जब भी
ह तनापुर आता था तो मने अनेक बार उसे नद -तट पर सूय दय एवं
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य हाँआपको
से आगे, इस कथा म ब त-से रोचक मोड़ आएँगे, इस लए,
कु राजप रवार क कुछ मह वपूण बात एवं घटना
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एक बार पांडु आखेट पर गया आ था। वहाँ उसे सरोवर के
नकट कुछ आवाज़ आई तो उसे जंगली पशु क आवाज़ समझकर
sm
पांडु ने श द-भेद बाण चला दया। उसे बाद म पता लगा क वह
बाण भूल से कदम ऋ ष को लग गया, जो उस समय अपनी प नी
के साथ र त- या म संल न थे। बाण लगने से कदम मु न क मृ यु
हो गई। पांडु ने मु न क ह या का ाय त करने के उ े य से
ok
ह तनापुर रा य का याग कर दया और अपनी दो प नय कुंती
और मा के साथ सं यास लेकर वन म चला गया। कुछ समय बाद,
bo
यह समाचार मला क वन म पांडु क मृ यु हो गई और मा उसक
चता के साथ सती हो गई। वन म रहते ए, पांडु के अपनी दोन
प नय , कुंती और मा से पाँच पु ए थे, ज ह लेकर बाद म
कुंती ह तनापुर लौट आई।
e/
अनुज पांडु क मृ यु के बाद, ने हीन धृतरा को संयोगवश
.m
ह तनापुर का सहासन ा त हो गया। अक मात राजा बने धृतरा
को राज सहासन और राजमुकुट से ऐसी आस ई क वह रा
को सोते समय भी मुकुट पहनने लगा। उसे हर पल यही भय सताता
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प त क तरह हीन रहने का ढ़ संक प कर लया।
मेरा यह मानना है क गांधारी, य द चाहती तो, अपने ने हीन
sm
प त क आँख बनकर जीवनभर उसका मागदशन कर सकती थी
तथा रा य के काम-काज को सुचा ढं ग से चलाने म मह वपूण
योगदान दे सकती थी, परंतु उसने ऐसा नह कया। आँख पर प
ok
बाँधकर गांधारी ने राज-काज म अपने प त का कतना साथ दया,
इसका आकलन कर पाना क ठन है। समय बीतता गया और इस
बीच, गांधारी और धृतरा ने सौ पु एवं शला नाम क एक पु ी
bo
को ज म दया। धृतरा के सौ पु म, ज ह कौरव कहा जाता है,
य धन ये था।
e/
पांडव और कौरव एक साथ बड़े होने लगे और उनक श ा-
द ा भी साथ म होने लगी। उसके बाद, उनके और अपने बचपन
क कथा म आपको पहले सुना चुका ँ। इस बीच, काफ़ समय बीत
.m
गया। हम लोग युवा भी हो गए।
इधर, मेरे पता ोण ने पद को आधा रा य लौटाकर उससे
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उसके अपमान का तशोध ले सकता था। समय बीतने के साथ,
पद के गले म अटका अपमान का घूँट कड़वा होता गया तथा साथ
sm
ही, उसके मन म ोण से बदला लेने हेतु एक वीर संतान क कामना
बलवती होती गई।
पद क कोई संतान नह थी, इस लए उसने संतान- ा त के
ok
लए पु कामे य करने का नणय कया। ब त यास करने के
बाद, पद ने याज नाम के एक गुणी ा ण को य करने के लए
तैयार कर लया। शी ही, य संप हो गया, जसके फल व प
bo
अ नकुंड म से एक द बालक और कृ ण वण क एक अ यंत
सुंदर बा लका का ज म आ। उस बालक क वचा का रंग धधकती
अ न के समान था और उसने ज म लेते ही भीषण गजना आरंभ
e/
कर द । ा ण ने दोन ब च के प और वभाव को यान से
दे खा और कहा, “यह बालक वभाव से बड़ा धृ लगता है और
.m
इसक उ प अ न क ु त से ई है, इस लए इसका नाम
‘धृ ु न’ रखना उ चत होगा और यह बा लका अपने कृ ण वण के
कारण ‘कृ णा’ कहलाएगी।”
m
और एक पु ी ने ज म लया है। पद क पु ी के लए यो त षय ने
कहा है क उसका भ व य ब त उ वल है। उसके भा य म रा य
leg
“ य , पताजी?”
“ यो त षय ने यह भी भ व यवाणी क है क पद का पु ,
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जसका नाम उ ह ने धृ ु न रखा है, मेरे लए घातक स होगा।”
पताजी ने उ र दया।
sm
“ पताजी, आप चता न कर! धृ ु न तो अभी नवजात शशु
है। उसे बड़ा होने म समय लगेगा, और फर मेरे रहते ए आपके
ऊपर कोई संकट आ जाए, तो ध कार है मेरे जीवन को!” मने उ ह
ok
आ त करते ए कहा।
म नह जानता क मेरे ऐसा कहने से मेरे पता क ाकुलता
कम ई अथवा नह , कतु उ ह ने मेरे सर पर नेहपूवक हाथ फेरा,
bo
और मुझे यह संकेत अव य दया क उ ह मेरे साम य पर पूरा
भरोसा था।
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सौ तेसाथ,
ले भाइय के बीच मधुर संबंध कम ही बन पाते ह। समय के
पांडव और कौरव के बीच भी मतभेद बढ़ने लगे।
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था, दोबारा वही अ याय उसके पु य धन के साथ दोहराया
जाएगा।
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ोध क तरह लोभ और ई या भी के आचरण को
कर दे ते ह। ने हीन धृतरा का दशाहीन दमाग़ यु ध र स हत
सभी पांडव को य धन के माग से हटाने क कु सत योजना बुनता
ok
रहता था। उन दन राजा के पास अपने माग के काँटे हटाने के
अनेक तरीक़े आ करते थे, कतु पांडव को हटाना सरल नह था।
इसके तीन मु य कारण थे। एक, पांडव श शाली होने के साथ-
bo
साथ अ यंत चतुर और ववेकशील थे। सरा, उ ह प रवार के
सम त वृ जन का समथन एवं नेह ा त था। तीसरा, राजप रवार
के सद य होने के नाते वे वयं भी कु टल योजना व ष ं के
e/
नयोजन को भली-भां त पहचानते थे। उ ह मारने के लए धृतरा
को कुछ भ , कुछ ऐसा करने क आव यकता थी जो अक मात हो
.m
जाए और घटना जैसा लगे!
धृतरा क बेचैनी इतनी बढ़ गई क उसने एक दन य धन
को अपने मन क बात कह डाली। य धन को पहले तो अपने
m
लूँगा!”
धृतरा ने पांडव को बुलाया और उनके सामने वारणावत
तथा वहाँ लगने वाले मेले क भरपूर शंसा क । उसके बाद, उसने
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तैयारी कर ली और उधर य धन ने अपने मं ी और व ास-पा
पुरोचन को बुलवाया और उसे तुरंत वारणावत जाकर पांडव के
sm
रहने के लए एक वशेष भवन बनवाने का नदश दया।
“पुरोचन! राल, लकड़ी, तेल, चब और लाख को मलाकर
ऐसा भवन बनवाओ, जो केवल एक चगारी लगने से जलकर भ म
ok
हो जाए।” य धन ने पुरोचन के कान म कहा।
एक बार तो पुरोचन के होश ही उड़ गए कतु फर उसे यान
आया क वह य धन से बात कर रहा था, जो न केवल छल-कपट
bo
का पयाय था अ पतु ह तनापुर का भावी स ाट भी था और उसक
इ छा पर लगाने का अथ अपनी जान गँवाना हो सकता था।
e/
“जी, राजकुमार! भवन का नमाण तो म करवा ँ गा, कतु
आग? वह कैसे लगाई जाएगी?” पुरोचन ने पूछा।
.m
“तुम ब त करते हो, पुरोचन!” य धन ने मु कराते ए
कहा। “सुनो, वारणावत म पांडव के रहने क व था उसी
ला ागृह म क जाएगी और फर रा म अवसर पाकर, जब सब
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गया।
धृतरा का ववाह जब गांधारी के साथ आ तो गांधारी का
sm
भाई शकु न भी ह तनापुर म आकर रहने लगा था। शकु न र ते म
य धन का मामा था, कतु उसने य धन को छल, धूतता, ष ं
और ूत- ड़ा के अ त र कुछ नह सखाया। शकु न के हाथ म
ok
ूत के पाँसे ऐसे रहते थे जैसे कसी भ के हाथ म माला के मनके!
मुझे आज भी लगता है क य द गांधारी के साथ शकु न न आया
होता, अथवा समय रहते उसे गंधार वापस भेज दया गया होता तो
bo
शायद वह सब न होता जो उसके रहते आ और फर अंत समय
तक होता ही रहा!
e/
य धन के कु टल व ई यालु वभाव के बावजूद म उसका
शंसक था य क वह अ यंत साहसी तथा उदार च था। य प,
उसके वभाव म एक गुण भी था क उसके पेट म कोई बात
.m
अ धक दे र तक पचती नह थी याने वह कसी भेद को छपाकर नह
रख पाता था। पांडव क ह या क योजना क जानकारी पहले
केवल तीन लोग को थी - य धन, धृतरा और पुरोचन। परंतु, बाद
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उ ह ने जब नगर सीमा तक साथ चलने क बात कही तो सबको
आ य आ य क इस कार के वहार पर जाना राजकुमार के
sm
लए सामा य बात थी और व र ने पहले कभी इस तरह का ताव
नह कया था। मुझे ऐसी अंत रणा ई क महा मा व र पांडव से
अव य कुछ गु त एवं गूढ़ बात कहना चाहते थे, जसे राजमहल म
कहना संभव नह था। म इस रह य को समझने के लए आतुर हो
ok
गया, कतु मने अपनी उ सुकता को छपाए रखा।
शी ही हम सब ह तनापुर क सीमा पर प ँच गए। नगर के
bo
कई अ य लोग भी पांडव को वदाई दे ने साथ म आए थे, इस लए
व र को ये पांडव, यु ध र से बात करने का अवसर नह मल
रहा था। आ ख़र, उ ह ने सांके तक भाषा म यु ध र से बात क ।
e/
व र क कही वह बात मुझे आज सैकड़ साल बाद भी श दशः
याद है।
.m
व र बोले, “व स, तुम वयं धम के अवतार हो और अधम क
त नक-सी आहट भी तु ह सतक कर दे ती है, फर भी तु हारा
शुभ चतक होने के नाते यह मेरा कत है क म तु ह कसी अ ात
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समझ गया ँ!” यु ध र ने कहा और फर व र को णाम कर
पाँच पांडव भाई वारणावत क ओर चल पड़े।
sm
चूं क म य धन और पुरोचन क कपट योजना से अवगत
नह था, इस लए म उस समय यह नह समझ सका क व र ने
यु ध र को या समझाया और यु ध र ने उनक बात को कैसे
ok
समझा। तथा प, व र के सा य म कभी-कभी रहने से मुझे यह
लाभ आ क म इतना तो समझ गया क वारणावत म कुछ घ टत
होने वाला था तथा व र ने यु ध र को संकेत से उस संकट क
bo
तथा उससे बच नकलने क यु बता द थी।
मने, नगर क ओर लौटते समय, व र से माग म उनक
e/
सांके तक भाषा का प आशय जानने का य न कया, कतु
उ ह ने यह कहकर बात को टाल दया, “अ थामा, समय क
ती ा करो। तु ह वयं ही सब पता लग जाएगा।” म उ ह दे खता
.m
रहा और वे र तज म दे खते रहे।
कुछ पल ककर, व र ने फर कहा, “अ थ, मुझे इस बात
m
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कंकाल पुरोचन का भी था!
पांडव क असमय व भा यपूण मृ यु का समाचार सुनकर
sm
ह तनापुर म शोक क लहर दौड़ गई। जो लोग यु ध र के
वारणावत से लौटकर उसके युवराज बनने क ती ा कर रहे थे,
उनके लए इससे बुरा समाचार कोई नह हो सकता था। कु वंश म
ok
ई इस ासद से संपूण राजप रवार शोक म डू बा आ था, हालां क
य धन और धृतरा का ख केवल ऊपरी था। दोन , मन ही मन,
अ यंत स थे और शकु न से तो उसक ख़ुशी सँभल ही नह रही
bo
थी। धृतरा क आ ा से वारणावत म ही पाँच पांडव तथा उनक
माता कुंती क अं ये कर द गई। इतना कुछ हो जाने के बाद भी,
मेरा मन इस बात को वीकार नह कर रहा था क पांडव जैसे
e/
शूरवीर और ववेकशील पु ष इस तरह क घटना का शकार हो
सकते थे। म इसी बात को सोचकर परेशान था क व र ारा
.m
यु ध र को द गई चेतावनी थ कैसे जा सकती थी।
म ब त दन शांत रहा कतु मुझसे यह अवसाद सहन नह
आ। म एक दन अवसर पाकर व र के पास गया और बोला,
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उस समय इतना जान लेना पया त था! यह प था पांडव वेश
बदल, वारणावत छोड़कर कसी अ य सुर त थान पर चले गए
sm
ह गे ता क य धन उ ह मरवाने के लए दोबारा कोई ष ं न रचने
लगे।
वह रात मेरे लए असमंजस से भरी थी। मेरा मन अधम
ok
य धन के त न ा और धमपरायण पांडव के त सहानुभू त के
बीच लोलक क तरह झूल रहा था। य द म य धन का प लेकर
पांडव के जी वत होने का भेद उसके सम कट कर दे ता तो वह
bo
त काल अपने सै नक को पांडव क खोज म वारणावत भेज दे ता
और उ ह फर से मारने का य न करता। सरी ओर, य द म पांडव
का प लेकर उ ह बचाने का यास करता तो यह य धन के साथ
e/
व ासघात करने के समान था य क म सदा उसक कृपा का पा
रहा ँ।
.m
भीषण ऊहापोह क थ त के बीच, आ ख़र मने य धन के
सम पांडव के जी वत होने का रह य कट नह कया। म नह
जानता क इ तहास मेरे इस कृ य को य धन के साथ कया गया
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e/ 11
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बाँध लया था, भुला नह सका था। इसी कारण, अपनी पु ी ौपद
के लए, महार थय से भरे संसार म पद को अजुन से बेहतर कोई
नाम नह सूझ रहा था।
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सम या यह थी क ौपद और अजुन क पहले कभी भट नह ई
थी और पद को डर था क वयंवर के दौरान, ौपद कसी अ य
sm
पु ष को अपना वर न चुन ले। इस लए, पद ने अपने पु धृ ु न
के साथ मलकर ौपद के वयंवर के लए एक अ यंत क ठन
तयो गता का आयोजन कया। वह तयो गता इतनी क ठन थी
क कसी साधारण के लए तो उसम भाग लेना ही संभव नह
ok
था और पद को मन म यह व ास था क उस तर तयो गता
म अजुन के अ त र कोई अ य वजयी नह हो पाएगा!
bo
तयो गता क शत यह थी क उसम भाग लेने वाले
तभा गय को वयंवर-क क छत पर घूमती ई धातु- न मत
मछली क आँख को भेदना था ले कन इसम भी दो शत थ । पहली
e/
शत यह थी क तभागी अपने ल य को सीधे नह दे ख सकते थे।
उ ह यह नशाना मछली के ठ क नीचे रखे जल-पा म मछली क
.m
परछा को दे खकर लगाना था। सरी शत, पहली से भी अ धक
क ठन थी क नशाना लगाने के लए वे अपने साथ लाए श का
योग नह कर सकते थे। ल य-भेदन के लए उ ह संसार के सबसे
m
भारी कधार नामक धनुष का योग करना था, जसे चलाने से पूव
उसक यंचा चढ़ाना आव यक था। ल य-भेदन के लए उ ह
ra
उ सव का यह सोलहवां दन था।
वयंवर म भाग लेने के उ े य से य धन स हत उसके ब त-
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जय सेन, वराट, सुशमा, चे कतान, पौ क, भगद , श य,
शशुपाल, जरासंध आ द आए ए थे। मने दे खा, ौपद ब त सुंदर
sm
थी और शायद इसी कारण सभा म आमं त राजा व राजकुमार
के अ त र ब त-से ा ण और अ य जा त के लोग भी वहाँ
वराजमान थे। म वयं ौपद के प पर मु ध था और अपना भा य
परखने हेतु पद के दरबार म प ँच गया था। चूं क मने कु
ok
राजकुमार के साथ रहते ए धनु व ा सीखी थी, इस लए मुझे पता
था क हम सबम केवल अजुन ही उस क ठन ल य को भेद सकता
bo
था। हालां क जस आ म- व ास से रंगभू म म कण ने अजुन को
ललकारा था, उसे दे खते ए कण भी संभा वत याशी हो सकता
था। वारणावत क घटना के बाद, केवल म जानता था क पांडव
e/
जी वत ह कतु मुझे भी उनके वषय म कोई जानकारी नह थी।
अजुन क अनुप थ त म कण के जीतने क संभावना बढ़ गई थी,
परंतु भगद , श य, शशुपाल और जरासंध को भी कम आँकना
.m
सही नह था।
तभी सबक पद-कुमारी कृ णा पर पड़ी जो अ त सुंदर
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को सीधे नह दे ख सकते। उ ह यह नशाना नीचे रखे जल-पा म
मछली क परछाई को दे खकर लगाना है। सरी शत यह है क
sm
नशाना लगाने के लए आप अपने अ -श का योग नह
करगे। इसके लए आपको कधार धनुष एवं यहाँ रखे बाण का ही
योग करना है। ल य-भेदन के लए अ धक से अ धक पाँच बाण
मारने का अवसर दया जाएगा। जो कुलीन पु ष इस काय को संप
ok
करेगा, मेरी य बहन ौपद उस े पु ष का प त- प म वरण
करेगी।”
bo
धृ ु न ने य ही वयंवर क इस तयो गता के नयम
बताए, सभी तभा गय ने ऊपर छत पर घूमती ई मछली क ओर
दे खा। “इसे भेदना तो असंभव है!” शशुपाल च लाया। सरे राजा,
e/
जो मन म यही बात सोच रहे थे, अपनी बलता छपाने के लए
मुसकराए मानो शशुपाल का उपहास कर रहे ह । जहाँ एक ओर
.m
ौपद के प को दे खकर सभा म बैठे राजा क बाँछ खल रही
थ , वह छत पर घूमती ई मछली तथा सामने रखे भारी-भरकम
कधार धनुष को दे खकर उनके हौसले प त ए जाते थे। म भी उस
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अ धक, तयो गता छोड़ दे ना बेहतर लग रहा था। परंतु महार थय
क सभा म ऐसा करना धनुष उठाने म वफल होने से भी अ धक
sm
हीन समझा जाता। इस लए, म अपना तथा सभा का मान रखने के
उ े य से उठकर गया। कधार को हाथ लगाते ही मुझे लगा मानो
उस चम कारी धनुष ने मेरे भीतर का सम त बा बल को अपने
भीतर ख च लया। म जान गया क कधार को उठाना मेरे लए
ok
संभव नह था। मने उस महान धनुष को णाम कया और उसे
उठाने का यास कए बना ही, म अपने आसन पर वापस लौट
bo
आया। मेरे पता ने बाद म ऐसा करने के लए मेरी शंसा क थी।
अपने साम य का सही अनुमान होना यो ा के लए नतांत
आव यक होता है।
e/
मेरे बाद कण क बारी थी। मुझे कण के बा बल और उसक
धनु व ा पर पूरा भरोसा था। य ही कण अपने आसन से उठकर
.m
धनुष क ओर बढ़ा, धृ ु न ने उसे रोक दया।
“ को कण!” धृ ु न बोला, “तुमने शायद मेरी बात ठ क से
नह सुनी। मने आरंभ म ही कहा था क जो कुलीन पु ष इस महान
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बैठे हो, वह तु ह न तो वरासत म मला है और न ही तुमने उसे
अपने परा म से जीता है। वह रा य तु ह राजकुमार य धन से
sm
भ ा म ा त आ है। दान म मली व तु तु हारी द नता भले ही र
कर दे , कतु वह तु ह कुलीन नह बना सकती! इस लए, पीछे लौट
जाओ और अपना आसन हण करो, सूतपु कण!”
ok
कुल के नाम पर, कण का यह सरी बार तर कार आ था।
कण क आँख ोध एवं अपमान से जल रही थ । उसका दा हना
हाथ कमर म बा ओर बँधी तलवार क मूठ पर प ँच गया था। मने
bo
दे खा क धृ ु न ने भी अपनी तलवार थाम ली थी। तभी य धन ने
कण को संकेत से वापस लौट आने को कहा। कण चुपचाप अपने
थान पर आकर बैठ गया। मुझे यह सोचकर ख हो रहा था क
e/
य धन क अनुकंपा ने कस कार सह के समान बलशाली एवं
नभ क कण को बकरी-सा बल एवं असहाय बना दया था! य द
.m
कण य धन के कृपा-सू से बँधा न होता तो पंचाल राजसभा म
उस दन ौपद क डोली के थान पर दो-चार महार थय क
अ थयाँ उठ जात !
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तेज़ी से धनुष को उठाया और उस पर यंचा चढ़ा द । फर उसने
धनुष के नकट रखा बाण उठाया और अगले ही ण, नीचे रखे
sm
जल-पा म मछली क परछा को दे खकर ऊपर घूमते अपने ल य
पर बाण चला दया। इससे पहले क वहाँ बैठे लोग कुछ दे ख अथवा
समझ पाते, छत से लटक ई मछली तीर से बधकर नीचे गर गई
और सबने दे खा क उस ा ण का बाण मछली क आँख को
ok
भेदकर पार नकल गया था।
पद क सभा म स ाटा छा गया। पद स हत सभी राजा
bo
और सभासद हैरान थे क उस असंभव काय को एक ा ण ने
इतने कौशल एवं फुत से पूण कर दया था।
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उठकर थ के झगड़े म उसका साथ ँ । परंतु मेरे जीवन के अपने
कुछ नयम ह। मेरी म ा ण ने कोई अपराध नह कया था
sm
और उसे कृ णा का प त बनने का नै तक अ धकार था। मने य धन
को दे खकर मुँह फेर लया और अपने थान पर बैठा रहा।
तभी कुछ ऐसा आ जसक कसी ने क पना नह क थी।
ok
भीड़ म से ा ण-वेश म एक और भीमकाय उठा और कृ णा
के प त के बचाव म सामने आ गया। वहाँ बैठे लोग ने शायद यान
न दया हो, मने दे खा था क उसी तरह के ा ण वेश म ेत व
bo
पहने तीन और ब ल ा ण पीछे क पं म बैठे ए थे।
मेरे मन म वचार आया, “ या ये पाँच ा ण, पांडव ह?”
e/
तभी एक ज़ोरदार आवाज़ आई, “तुम पीछे हट जाओ,
कृ णा!” बाण चलाने वाले ा ण ने ौपद को पद के पीछे
.m
धकेलते ए कहा।
इसके बाद, उन दोन ा ण ने वहाँ वरोध कर रहे राजा
क मार-मारकर जो दशा क उसे यहाँ करना क ठन है और
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कह दया, “दे खना या है पु , जो कुछ लाए उसे पाँच भाई आपस
म बाँट लो!”
sm
कृ णा पीछे खड़ी थी। कुंती क बात सुनकर मानो उसका र
जम गया। कुंती क बात का अथ था क वह पाँच भाइय म बँटने
वाली थी!
ok
“ या मुझे पाँच प तय के साथ रहना होगा? वह सोचने लगी।
“पाँच प तय क प नी बनने से तो मर जाना बेहतर होगा!” ौपद
का सोचना ठ क था। उस युग म पु ष को एक से अ धक प नयाँ
bo
रखने का अ धकार होता था, कतु एक से अ धक प त होने पर ी
को वे या मान लेने क संभावना बल थी! ौपद ने पाँच भाइय
e/
क प नी बनने पर कड़ी आप जताई, ले कन मातृ-भ पांडव ने
उस अबला क एक नह सुनी।
.m
मेरे वचार से ौपद पर केवल अजुन का अ धकार था। मुझे
लगता है, य द अजुन अपनी माता कुंती को पूरी बात प करके
बताता तो वह ौपद को अपने पाँच पु क प नी बनने के लए
m
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च इस तरह अचानक उ ट चाल य चलने लगा! आप भी तो
पहले मेरी इस योजना क शंसा कर रहे थे। अब त नक गड़बड़ हो
sm
गई, तो आप मुझे ताना मारने लगे!”
“तुम लोग आपस म झगड़ना बंद करो और आगे क सोचो,”
धृतरा ने अपना मुकुट सँभालते ए कहा, “अब जब पांडव वापस
ok
ह तनापुर लौटगे तो उ ह जा का पहले से भी अ धक नेह ा त
होगा और सबसे पहले मेरे मुकुट के छन जाने का संकट सामने है!
यु ध र ये पांडव है और आयु म य धन से बड़ा है, इस लए
bo
युवराज के पद पर पहला अ धकार उसी का बनेगा।” तीन दे र रात
तक इसी सम या पर चचा करते रहे।
e/
अगले दन सुबह राजदरबार म, इससे पहले क धृतरा कुछ
कह पाता, भी म पतामह ने बोलना शु कर दया। “हम सबके
लए यह अ यंत स ता भरा समाचार है क पाँच य पांडव
.m
जी वत व सकुशल ह। यही नह , ई र क कृपा से पंचाल नरेश पद
क पु ी कृ णा के वयंवर म वजयी होने के फल व प, उनका
ववाह भी स प हो गया है। मेरे वचार से अब समय आ गया है क
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रा य पर कौरव का अ धकार रहेगा। इसम तो कसी को कोई
आप नह होनी चा हए। य द अब भी कसी को आप है तो म
sm
केवल इतना क ँगा क इस प रवार का ये होने का नाते यह मेरा
आदे श है और इसका पालन कया जाना चा हए। पांडव को
त काल ह तनापुर आमं त कया जाए!”
ok
भी म के वर म इतनी ढ़ता थी क उनक बात पर हामी
भरने के अ त र कसी के पास कोई वक प नह था। य धन
जानता था क कुछ और कहने से भी म कु पत हो सकते थे। उसने
bo
सर झुकाकर अपनी मौन वीकृ त कट कर द । हालां क मने कण
और य धन क आँख म े ष क लौ जगमगाती दे ख ली थी और
मुझे पता था क वे पांडव को आधा रा य भले ही लेने द कतु उ ह
e/
सुखपूवक जीने नह दगे। परंतु म नह जानता था क मेरा अनुमान
इतनी ज द सच हो जाएगा!
.m
पांडव को ह तनापुर लेकर आने का काय महा मा व र को
स पा गया। कुछ ही समय म, व र पाँच पांडव के साथ ौपद
और कुंती को लेकर ह तनापुर लौट आए। बड़े आदर के साथ उन
m
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काश झल मलाता था।
व र से अजुन के वनवास का कारण पूछने पर एक नई और
sm
रोचक बात पता लगी।
पाँच प तय के साथ एक ी का रहना कोई सहज बात नह
थी। इस व च व था को सुचा ढं ग से चलाने के लए तथा
ok
ौपद के लए उन पाँच को यथो चत समय दे ने हेतु मह ष वेद ास
ने कुछ वशेष नयम बनाए थे। कुछे क सामा य बात के अ त र ,
मु य नयम यह था क ौपद एक वष तक एक भाई क प नी
bo
बनकर रहती थी और फर अगले वष वह सरे भाई क प नी बन
जाती थी। इस तरह, एक बार म एक ही पु ष, ौपद का प त
e/
बनकर रहता था। अनेक पु ष के संसग म आने के कारण यह
वाभा वक था क ौपद के मन म कसी एक क अपे ा सरे के
लए अ धक नेह उ प हो सकता था, परंतु वेद ास ने इसका भी
.m
समु चत बंध कर दया गया था। उ ह ने ौपद को यह वरदान
दया क उसके मन म सभी भाइय के लए समान नेह बना रहेगा।
प त-प नी के म य एकांत का भी यान रखना आव यक था।
m
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वनवास के समय, संयोग से रैवतक पवत पर अजुन क भट
ीकृ ण से हो गई जो उसे अपने साथ ारका ले गए। पांडव क
sm
माता कुंती, कृ ण क बुआ थी। उस नाते कृ ण और अजुन म
भाइय जैसा नेह था। एक, इस संबंध के कारण और सरा, पता
नह य , कृ ण को भी ोणाचाय क भां त, अजुन अ त य था। म
पहले भी कह चुका ँ क अजुन म कुछ वशेष आकषण अव य था
ok
जसके कारण वह हम सबसे भ था। कृ ण के साथ घ न ता के
चलते ारका म अजुन का हष लास से वागत आ। कृ ण क
bo
एक बहन थी। उसका नाम सुभ ा था। अजुन ने सुभ ा को दे खा तो
बस, दे खता ही रह गया! कृ ण ने उसके मन क बात पढ़ ली।
अजुन क बढ़ती बेचैनी को दे खते ए, ीकृ ण ने एक दन
e/
अजुन को सुझाव दया। “अजुन,” कृ ण बोले, “मुझे पता है क
तु ह सुभ ा से ेम हो गया है और तुम उससे ववाह करने के इ छु क
.m
हो। परंतु, तु ह तो पता क क या का ववाह वयंवर ारा होता
है। ऐसे म, य द सुभ ा के लए वयंवर आयो जत कया जाए तो
यह आव यक नह क वह तुमको ही अपना वर चुनेगी।”
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आ ख़र सुभ ा मेरी ब हन है! म अपनी बहन के अपहरण म तु हारी
इससे अ धक सहायता नह कर सकता!” कृ ण ने ं य-बाण
sm
चलाया। इसके बाद, ीकृ ण मु कराते ए अजुन को उसके वचार
के साथ छोड़कर चले गए। कौन यह मानेगा क एक भाई अपनी
बहन के अपहरण के लए अपने ही म को उकसा सकता है? परंतु
ीकृ ण के वषय म या कहा जा सकता है। उनक भां त उनक
ok
लीलाएँ भी अनंत ह!
अजुन रात-भर कृ ण क बात पर वचार करता रहा और
bo
अगले दन सुबह वह रैवतक पवत पर जा प ँचा। उसने अवसर पाते
ही सुभ ा का अपहरण कर लया तथा उसे रथ पर बैठाकर भाग
नकला। पल-भर म सुभ ा-हरण का समाचार ारका म आग क
e/
तरह फैल गया। समूचे यादव कुल म हाहाकार मच गया। कृ ण के
बड़े भाई बलराम तो गु़ से से आग-बबूला हो उठे । बलराम को
.m
शेषनाग का अवतार कहा जाता था। उ ह ने आवेश म आकर अपना
गदा एवं हल उठा लया और अजुन को मारने उसके पीछे दौड़ पड़े।
परंतु उ चत समय पर कृ ण ने वहाँ प ँचकर बात सँभाल ली।
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गया। अजुन ने अपने बारह वष के वनवास के दौरान अनेक वण
यो य काय कए थे, अतः ा ण ने अजुन के पु का नाम
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‘ ुतकमा’ रखना उ चत समझा। नकुल से जब पूछा गया तो उसने
कहा क वह कु वंश के एक तापी राजा शतानीक से अ यंत
भा वत था और अपने पु का नाम उ ह के नाम पर रखना चाहता
था। उसक इ छा का आदर करते ए नकुल के पु का नाम
ok
‘शतानीक’ रखा गया। सहदे व का पु कृ तका न म पैदा आ
था, इस लए उसका नाम ‘ ुतसेन’ रख दया गया। कु वंश क कथा
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म यूँ तो इन बालक का कोई य योगदान नह है, कतु मेरे
अ भश त जीवन से इन पाँच बालक का ब त गहरा संबंध है।
इसके बारे म समय आने पर व तार से बताऊँगा।
e/
ीकृ ण क कृपा तथा अपने बा बल से पांडव ने कुछ ही
समय म इं थ रा य को समृ और ऐ यवान बना लया। अपने
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पौ ष से पाँच भाइय ने द वजय या ा पूरी क और इं थ के
वैभव का चार दशा म व तार हो गया।
एक दन हम लोग धृतरा के क म बैठकर ह तनापुर के
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“यहाँ कैसे आना आ व स?” भी म ने पूछा।
“यु ध र ने आपके चरण म णाम भेजा है, पतामह!”
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नकुल ने कहा। “दरअसल, अपनी द वजय या ा पूण करने के बाद
वे राजसूय य करने के इ छु क ह और इसके लए उ ह ने आप
सबको इं थ आमं त कया है।”
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“अ त उ म!” पतामह अपनी खु़शी को सँभाल नह पा रहे
थे। “यु ध र से कहना, हम राजसूय य म अव य आएँगे।”
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नयत समय पर, हम लोग ह तनापुर से चलकर इं थ प ँच
गए। पांडव ने सबका यथो चत वागत कया। सभी अ त थय के
सहयोग से वह य भली-भां त संप हो गया। य के अंत म,
e/
अ भषेक होना बाक़ था। उस दन स कार क परंपरा थी। सम त
ा ण, मह ष और पू यगण वहाँ एक त थे। स कार से पहले,
.m
यु ध र के सम एक वधा उ प हो गई।
वहाँ उप थत सभी लोग वंदनीय थे, इस कारण यु ध र के
लए यह तय कर पाना क ठन हो गया क उन सब लोग म कसक
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वधा क।
“ पतामह! कृपया आप बताइए क इन समागत स जन म
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सव े ह और वही अ पूजा के उपयु पा ह!”
मने दे खा, लगभग सभी लोग ने भी म क बात पर अपनी
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वीकृ त क । भी म के उ र से स एवं संतु होकर य ही
यु ध र पूजा क साम ी लेकर कृ ण क ओर बढ़ा, तभी चे दराज
शशुपाल, चढ़कर अपने आसन से उठ खड़ा आ।
ok
“यु ध र! बड़े-बड़े महा मा और राज षय क उप थ त
म कृ ण क अ पूजा करने का या औ च य है? कृ ण राजा न होते
ए भी राजा के बीच स मान पाने का अ धकारी कैसे हो सकता
bo
है? यह आयु म वृ नह है और अभी इसके पता वसुदेव भी
जी वत ह, तो फर इसक अ पूजा य हो रही है? य द तुम इसे
e/
अपना हतैषी मानकर कृ ण क अ पूजा कर रहे हो तो या यह
तु हारे लए राजा पद से भी बढ़कर है? य द तुम कृ ण को अपना
आचाय मानते हो तो भी ोणाचाय क उप थ त म इसका स मान
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सवथा अनु चत है। य द ऋ वज क से दे ख तो सबसे पहले
पूजा मह ष वेद ास क होनी चा हए। और अं तम बात यह क
पतामह भी म के रहते, कृ ण क अ पूजा करने का वचार भी
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का वषय हो सकता था, कतु उस समय मुझे लगा क मेरी न ा
दाँव पर थी। मुझे डर था क कह लोग को यह म न हो जाए क
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शशुपाल ारा मेरे नाम के ताव म मेरी भी सहम त है। इस लए
मेरे लए वहाँ अपनी थ त को प करना अ नवाय हो गया।
मने धीरे से उठकर उतना ही कहा, जतना उस ण के लए
ok
आव यक था। “म चे दराज शशुपाल क बात से सहमत नह ँ।
मुझे वासुदेव कृ ण क अ पूजा पर कोई आप नह है!” इतना
कहकर म अपने थान पर बैठ गया। मेरे पता मुझे दे खकर धीमे-से
bo
मु कराए। मने उनक मु कान म अपने त गव का पुट दे ख लया
था। मने जो कया, उससे म स था।
e/
शशुपाल, अपना दाँव बेकार जाता दे खकर तल मलाया और
बोला, “यु ध र, या तु ह राजा धराज य धन, भरतवंश के
कुलगु कृपाचाय, सवगुण संप आचाय म दखाई नह दए? य द
.m
तु ह इस कार वे छा से ही कृ ण क अ पूजा करनी थी तो इन
सब राजा और महा मा को बुलाकर तुमने इनका अपमान य
कया? तुम जैसे धमा मा को या इस तरह धम क राह से भटकना
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यु ध र से भी म और कृ ण का अपमान सहन नह आ। वह
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बोला, “राजा शशुपाल! अब आप अपनी सीमा का उ लंघन कर रहे
ह। यहाँ पतामह भी म से बड़ा त व-वे ा कोई नह है। जब उ ह ने
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वयं कृ ण क अ पूजा का ताव रखा है तथा कसी को कोई
आप नह है तो फर आपको इसम आप य है? आपको यह
पता होना चा हए क इस संसार म ान एवं बल म कृ ण से बढ़कर
कोई नह है। वह सम त सृ क उ प एवं लय के थान ह। वे
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ज म लेने तथा मृ यु को ा त होने वाले पदाथ से परे ह। वे हमारे
आचाय, पता और गु भी ह।” इसके बाद भी म और सहदे व ने भी
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कृ ण के प म अपनी-अपनी बात रखी।
इसी बीच मेरी नज़र य धन पर गई। उसके चेहरे के भाव
बतला रहे थे क वह कृ ण और यु ध र के हो रहे अपमान पर
e/
स था हालां क उसम इतना साहस नह था क वह सावज नक
प से खड़ा होकर शशुपाल क बात का समथन कर पाता।
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शशुपाल क आँख से वाला नकल रही थी। उसके सर पर
ख़ू़न सवार था। वह भी म क ओर मुड़ा और च लाने लगा, “इस
मूख और घमंडी कृ ण क शंसा करते-करते तु हारी जीभ नह
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(वृषभासुर) को मार डाला, तुम उसे जगतप त कहते हो? तुम ऐसे
नमम ह यारे क पूजा करना चाहते हो? इस ने अपने मामा
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शशुपाल ज म से ही वकृत है। जब यह पैदा आ तो इसके तीन
ने थे और चार भुजाएँ थ । पैदा होते ही यह गधे क तरह रकने
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लगा था। उस समय यह भ व यवाणी ई थी क जसक गोद म
इसक दोन भुजाएँ तथा तीसरी आँख हट जाएँ, उसी के हाथ
इसक मृ यु होगी। इसके ज म के समय, म अपने बड़े भाई बलराम
के साथ इसे दे खने गया था। संयोग से मेरी ही गोद म इसके दोन
ok
हाथ और तीसरी आँख हटे । तब इसक माँ तथा मेरी बुआ ने मुझसे
इसके ाण क भ ा माँगी थी। मने तब उ ह यह वचन दया क म
bo
इसे एक सौ ऐसे अपराध के मा कर ँ गा, जनके लए इसे मृ यु-
दं ड मलना चा हए!”
शशुपाल ने यह सुना तो ठठाकर हँस पड़ा। “तो कृ ण, अब
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तुम मुझे यह कहकर डराना चाहते हो क तुम मुझे मारोगे?”
कृ ण ने शशुपाल को संबो धत करते ए अपनी बात जारी
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रखी, “ शशुपाल! तुमने य वं शय का सवनाश करने म कोई कसर
नह छोड़ी। मेरे ा यो तषपुर जाने के बाद, तुमने पीछे से
ारकापुरी को जलाकर न करने का यास कया। तुमने मेरे पता
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उनका सुदशन च नकला और अगले ही ण शशुपाल का कटा
आ सर लुढ़कता आ मेरे पैर के पास आ गया। मने उठाकर
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दे खा तो च उनके हाथ म लौट चुका था। यह सब इतनी ज द
आ क अ धकतर लोग ने केवल शशुपाल के सर को धरती पर
गरते दे खा होगा। अगले ही पल, शशुपाल के धड़ से सूय के समान
चमचमाती यो त नकली और दे खते-दे खते कमल-लोचन ीकृ ण
ok
म वलीन हो गई। मेरे लए यह ीकृ ण के ई रीय प का थम
दशन था!
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य धन इस य से त ध था। उसके चेहरे पर आ य का
भाव आया और फर अचानक वह शांत हो गया। उसने अव य
सोचा होगा क अ छा आ जो उसने शशुपाल क बात का समथन
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नह कया! कुछ ही दे र म शा ो चत व ध से यु ध र ने कृ ण क
अ पूजा एवं अचना पूरी कर द ।
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यु वहध उसे
र को जहाँ एक ओर राजसूय य संप करने क ख़ुशी थी,
इस बात का ख भी था क य का अंत शशुपाल-वध
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था। महल के ग लयारे दन म र न क द त से चमचमाते थे और
रा म वहाँ कसी अ त र रोशनी क आव यकता नह होती थी
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य क उन र न से नकलने वाला काश ग लयार को रोशन कए
रखता था। इससे पूरे महल म छोटे -छोटे द पक के जलने का
शानदार आभास होता था। महल क द वार पारदश फ टक क
बनी थ । उस व यास से अनजान कसी के लए चलते-चलते
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उन द वार से टकरा जाना सामा य बात थी। महल के म य म बना
आंगन भी फ टक का था, जो पानी का बब तुत करता था।
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पहली बार आने वाला येक आंगन म पैर रखने से पहले,
इस डर से अपने व उठा लेता था क उसके व गीले न हो जाएँ!
इसके वपरीत, महल के पछले भाग म एक उ ान था जसम एक
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भाग ऐसा था जो ठोस प थर का बना दखाई पड़ता था, कतु
वा तव म उस थान पर एक छोटा-सा सरोवर था। इसका प रणाम
यह होता था क वहाँ आने वाला उस जगह को प थर का
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समझकर आगे बढ़ता और बेचारा वहाँ बने सरोवर म गर जाता था।
उ ान के सामने बने बुज पर खड़ी रा नयाँ तथा उनक दा सयाँ
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लया और इस लए, उसके मन म य धन से उन अपमानजनक
श द के लए मा माँगने का वचार भी नह आया।
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पानी म गरने से गीले ए व तो बदले जा सकते थे कतु
ौपद के मुँह से जो बात नकल गई थी, उसे लौटा पाना संभव नह
था। ौपद के कटा ने य धन के दय को भीतर तक छलनी कर
ok
दया।
“इस महल म ककर हम अपना अपमान नह करवाएँगे और
कल ही ह तनापुर लौट जाएँगे,” य धन ने ो धत होकर शकु न से
bo
कहा।
“ बलकुल भांजे!” शकु न बोला, “अब यहाँ कने का कोई
औ च य नह है।”
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य धन ने कुछ सोचते ए कहा, “ले कन मामाजी, जाने से
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पूव मेरी यह जानने क इ छा है क यु ध र का यह व च मायावी
महल कसने बनाया है?”
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दानव उसी वन म छपा आ था। तब अजुन ने मय के ाण क
र ा क थी। कृ ण ने भी अ नदे व को इं के कोप से बचाया था।
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उसी उपकार के बदले म मय ने हमारे लए इस महल का नमाण
कया तथा अ नदे व ने अजुन से स होकर उसे गांडीव धनुष
दया। अ नदे व ने ही कृ ण को वह सुदशन-च भी दया था
जसक धार, तुम राजसूय य म शशुपाल पर दे ख चुके हो।”
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य धन तथा शकु न को पांडव क उपल धय को दे खकर
बुरी तरह ई या हो रही थी। उ ह ने यु ध र को णाम कया और
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बना कुछ कहे ह तनापुर के लए कूच कर गए। इं थ से लौटते
समय, य धन अपने साथ दो इ छाएँ ले जा रहा था - एक, ौपद
ारा ए अपमान क पीड़ा का तशोध लेने क इ छा तथा सरी,
पांडव का रा य और मायावी महल हड़पने क इ छा!
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शकु न ूत के पाँसे डालने म जतना मा हर था, वह सामने
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वाले के भाव पढ़ने म भी उतना ही तेज़ था। उसने य धन क
मु ा और उसके चेहरे के हाव-भाव दे खकर त काल यह जान लया
क य धन के मन म अपमान क फाँस चुभ चुक थी। वह समझ
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शकु न अपनी उ लू जैसी गोल आँख नचाते ए बोला,
“ य धन! म तु हारे मन म ा त ोभ को समझ सकता ँ परंतु
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तुम बलकुल चता मत करो। मने तु हारे ख को ख़ुशी म बदलने
का उपाय सोच लया है। तुम जन दो इ छा को मन म लेकर
आए हो, वह शी ही पूरी हो जाएँगी।”
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“छो ड़ए मामाजी,” य धन ने चढ़ते ए कहा, “आप सफ़
बात करते ह, आपसे कुछ होता तो है नह !”
“ य य धन,” शकु न ने अपना गु़ सा दबा लया, “तुम
bo
कसी तरह अपने ने हीन पता से कहलवाकर पांडव को एक बार
ह तनापुर म ूत खेलने के लए बुलवा लो। फर दे खना, मेरा
कमाल!”
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“… कतु मामाजी, म पांडव के साथ ूत कैसे खेलूँगा? मुझे
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तो ठ क से पाँसे डालना भी नह आता।”
“म ँ न!” शकु न ने ह ठ दबाते ए कहा, “दाँव तुम लगाना
और म तु हारे लए पाँसे फकूँगा!”
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स ता छा गई।
ह तनापुर प ँचते ही शकु न और य धन ने पांडव के वैभव
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नह थी! पांडव अ न छा से ह तनापुर आ प ँचे और ूत के लए
बसात बछ गई।
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य धन ने खेल शु होने से पहले ही धृतरा को प कह
दया, “महाराज, म इस खेल म दाँव लगाऊँगा कतु मेरे लए पाँसे
शकु न मामा डालगे।” ऐसा कोई नयम नह था, कतु ऐसा न करने
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का भी कोई नयम नह था! धृतरा ने गदन हलाकर य धन को
अनुम त दे द और ववशता म, इसी शत पर वह खेल आरंभ हो
गया।
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शकु न पाँस का जा गर था। वह जैसे चाहता था, पाँसे वैसे ही
गरते थे। शकु न पाँसे डालता गया और यु ध र हारता चला गया।
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यु ध र ने पहले अपने म णमय हार और वण मुहर को दाँव पर
लगाया और उ ह हार गया। फर उसने अपना धन-भंडार दाँव पर
लगा दया, और उसे भी हार बैठा। शकु न ने अपने पाँस क श
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से कुछ ही दे र म यु ध र को कंगाल बना दया। उसका धन, वैभव,
संप सब य धन ने जीत लए।
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रा य भी गँवा बैठा। भीम ने अपना सर पकड़ लया। य धन क
एक इ छा पूरी हो गई थी!
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ूत का खेल धीरे-धीरे वकराल प लेता जा रहा था। व र
और भी म ने अनेक बार यु ध र को समझाया क वह खेल को
छोड़कर उठ जाए कतु यु ध र क बु भी कुछ समय के लए
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हो गई। वह बैठकर दाँव खेलता रहा। व र ने धृतरा से भी
खेल को बंद करवाने का आ ह कया, कतु यह पहला मौक़ा था
जब धृतरा , बंद आँख से अपने पु क ख़ुशी दे ख पा रहा था!
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शकु न ने बड़े ेम से यु ध र के सर पर हाथ फेरा और कहा,
“यु ध र, यूँ ह मत न हारो! तुम एक महान और तापी राजा हो।
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ूत म वजय उसी क होती है, जसके पास धैय होता है और तुम
तो धैय क तमा हो, व स!”
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यु ध र ने शकु न को दे खकर पूछा, “ले कन अब मेरे पास
दाँव पर लगाने के लए कुछ नह है, म खेलूँ कैसे?”
शकु न ने मु कराते ए य धन को दे खा और यु ध र से
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“ नराश य होते हो य यु ध र!” शकु न बोला, “यह तो
खेल ही ऐसा है। इसम परा जत होकर भी जीत जाता है…
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और फर तुम अब भी सबकुछ नह हारे हो! ौपद को भूल गए
या?”
इसके बाद जो आ, उसे बताते भी मुझे ल जा आती है। गले
ok
तक हताशा म डू बे यु ध र ने कसी अ या शत प रणाम क आशा
म ौपद को दाँव पर लगाकर अं तम दाँव खेल दया। जब तक पाँसे
शकु न के हाथ म थे, तब तक ूत के खेल म कुछ भी अ या शत
bo
नह था। यु ध र दाँव हार गया और ौपद भी य धन क संप
बन गई। उस समय, यु ध र से अ धक कंगाल शायद संसार
भर म कोई नह था।
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जाओ।”
“चुप रह घमंडी औरत!” य धन च लाया, “तूने सबके
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सामने मुझे अंधे का पु अंधा कहा था! तब तुझे शम नह आई?
तेरा यह मूख प त तुझे ूत म हार चुका है। अब तू रज वला हो या
एकव ा, तू मेरी दासी है। शासन! इस अहंकारी ी के तन का
ok
यह आ ख़री व भी उतार लो और इसे न न करके मेरी जँघा पर
बैठाओ। म ब त दन से इसके हाथ ए अपमान क अ न म जल
रहा ँ। इसके प को ज़रा नकट से दे खूँगा, तो मेरी यह जलन शांत
bo
होगी!” शकु न ने अपने पाँस क सहायता से य धन क सरी
इ छा भी पूरी कर द थी!
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य धन का इतना कहना था क शासन ने ौपद का चीर
पकड़ लया। वह चीख़ती रही, च लाती रही परंतु शासन ने
उसका व नह छोड़ा। शासन चीर को जतना ज़ोर से ख च रहा
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था, ौपद भी उसे उतने ही ज़ोर से थामे ए थी। उस एक व पर
ौपद और कु वंश क , मयादा टक ई थी!
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पूरी तरह ई र के ीचरण म सम पत कर दे , तो दस य धन
मलकर भी उसका कुछ नह बगाड़ सकते। कु राजसभा म यही
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आ! जैसे ही ौपद ने व छोड़ा तथा हाथ जोड़कर ीकृ ण का
मरण कया, तो मने और पूरी सभा ने वह दे खा जसक क पना
करना भी संभव नह है।
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शासन दोन हाथ से ौपद क साड़ी ख चता जा रहा था
और साड़ी खुलती जा रही थी। ौपद अपने थान पर खड़ी ‘हे
कृ ण, हे कृ ण’ बोलती ई घूम रही थी। शासन ख चता रहा…
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साड़ी खुलती रही परंतु उसका अंत नह आ। ख चते-ख चते
शासन के हाथ खने लगे, माथे से पसीना ऐसे टपक रहा था मानो
वह तेज़ धूप म हल चलाकर आया हो, कतु साड़ी समा त होने का
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नाम नह ले रही थी। सभा म व का अंबार लग गया था।
आ ख़रकार, शासन थककर नीचे बैठ गया। ई र के त समपण
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क श का यह बेजोड़ य था। मने उस दन सरी बार ीकृ ण
को ई र प म दे खा!
भीम का तन ोध से काँप रहा था। “सुन शासन!” वह
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“महाराज!” ौपद ने ँ धे गले से कहा, “आपक राजसभा म
आप ही के पु के हाथ आपक ही पु वधू क लाज हरने का
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घनौना यास आ है। इस अपमान के बदले म य द आपके पु
को अपने प त त के तपोबल से शाप दे कर भ म कर ँ तो भी मेरे
अपमान क भरपाई नह हो सकती! परंतु आप मेरे लए पता-तु य
ह इस लए आप केवल इतना कर द जए क मुझे व मेरे प तय को
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अपने कपट पु के दास व से मु कर द जए और हमारा रा य
लौटा द जए।”
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“इं थ क महारानी ौपद क इ छा का त काल पालन
कया जाए!” धृतरा ने ऐलान कर दया। मने पहली बार धृतरा
को सावज नक प से भयभीत दे खा था।
मेरी
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म यह ौपद का सौज य और कौरव का सौभा य
था क उसने य धन व शासन जैसे नकृ लोग को उनके
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अ य अपराध के बावजूद जी वत छोड़ दया था। जस सभा म
राजप रवार क पु वधू का उसके प तय के सामने अपमान आ
हो, जस सभा म राजा और वृ के सम एक धमपरायण और
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असंभव था!
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भी कपट-
म के दबाव और कृ ण क चम कारी लीला के चलते उस
ड़ा के अंत म पांडव को उनका रा य आ द वापस
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बैठकर दन-रात पांडव को दोबारा छलने व परा जत करने क
धूततापूण योजनाएँ बनाते रहते थे।
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एक दन मुझे पता लगा क यु ध र अपने भाइय के साथ
फर से ूत खेलने ह तनापुर आ रहा है। यह भी पता लगा क
पछली बार ई घटना को यान म रखते ए, इस बार खेल के
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नयम प रव तत कए गए थे। यह न य कया गया क धन, रा य
अथवा कसी को दाँव पर नह लगाया जाएगा अ पतु, हारने
वाले को बारह वष का वनवास और फर एक वष का अ ातवास
bo
काटना होगा। य द अ ातवास के दौरान उसे पहचान लया गया तो
फर से बारह वष का वनवास वीकार करना होगा!
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मुझे बाद म पता लगा क यु ध र को य प अ छे पाँसे
डालने नह आते थे, तथा प उसे ूत खेलना ब त पसंद था।
य धन ने यु ध र क इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर उसे फर
.m
से ूत के लए आमं त कर लया था। यह भी प था क य धन
ने यह शत इस लए रखी थी य क वह जुए म जीतकर, पांडव को
वनवास भेजकर उनका रा य हड़प लेना चाहता था। मुझे व ास
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और संकेत ारा ही, पांडव के त अपना नेह कर दया
करते थे।
sm
मेरे पता ोणाचाय और तथा मामा कृपाचाय, धृतरा के
उपकार के नीचे इतने दब चुके थे क उनसे राजसी मामल के
अ त र , कसी भी कार के गत संवाद के ार लगभग बंद
ok
हो चुके थे। मुझे याद है जब कभी म उनसे अंधे धृतरा और उसके
मूख पु के व कुछ कहने का यास करता तो वे राजा के त
न ा और कत परायणता का लंबा पाठ पढ़ाकर मुझे शांत कर
bo
दया करते थे। यही हाल व र का भी था। अनेक अवसर पर उनके
साथ ई वाता से मुझे यह प हो चुका था क उ ह कौरव का
आचार- वचार पसंद नह था तथा प, वे धृतरा के अनुज होने के
कारण खुलकर कौरव-प के व
e/
बोलने से झझकते थे। यही
मु य कारण था क समान सोच- वचार होने के कारण, हम दोन
.m
कभी-कभी सांके तक भाषा म बातचीत करके अपना मन हलका
कर लेते थे। मने न संकोच व र के सम अपनी वधा रख द
और पांडव के दोबारा ह तनापुर आकर य धन क चाल म फँसने
m
का कारण पूछा।
व र मुझे दे खकर मु कराए और शांत भाव से बोले, “समय
ra
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और यु ध र को पता था क उसे इस अंश म अपनी मह वपूण
भू मका नभानी है।
sm
ह तनापुर क सभा म एक बार फर ूत खेला गया। वहाँ
कसी अ या शत घटना के होने क उ मीद नह थी। ऐसा कुछ
आ भी नह ! यु ध र को हारना था और वह हार गया। उसने
ok
अपने भाइय तथा प नी ौपद के साथ बारह वष का वनवास सहष
वीकार कर लया। य धन, शकु न और धृतरा अ त स थे
य क उ ह इस बात क कदा प आशा नह थी क उनक कपटपूण
bo
चाल इतनी सरलता से सफल हो जाएगी।
यह सबकुछ मंच पर खेले जाने वाले कसी नाटक क भां त हो
e/
रहा था, जहाँ येक कलाकार अपनी भू मका तथा संवाद से भली-
भां त प र चत होता है। या य धन क चाल सचमुच कामयाब हो
गई थी? या यु ध र ने जान-बूझकर इस कपट चाल म फँसना
.m
वीकार कया था? समय का च कसका व वंस और कसका
नमाण करने को आतुर था? व र के अनुसार, इन के उ र
जानने के लए मेरे पास ती ा करने के अ त र कोई अ य
m
वक प नह था।
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उस सरोवर म गंधवराज च सेन पहले से जल- ड़ा कर रहा था।
च सेन के गंधव सै नक ने य धन को रोकने का यास कया तो
sm
य धन उनसे ववाद करने लगा। च सेन के सै नक भी अपने
वामी के त पूण न ावान थे। उ ह ने य धन को सरोवर म
उतरने से साफ़ मना कर दया। य धन म अनेक गुण थे। उनम से
एक यह था क वह घमंडी होने के कारण, छोट -छोट बात को
ok
त ा का बना लेता था।
य धन वहाँ भी अड़ गया और च सेन के सै नक से बोला,
bo
“ च सेन से कहो, य द उसे सरोवर म नान करना है तो पहले बाहर
आकर मुझसे यु करे!”
e/
मुझे य धन क मूखता पर ब त ग़ सा आया। मने उससे
धीरे-से समझाया, “ य धन! हम लोग मनोरंजन के लए आए ह।
इस सरोवर को छोड़ो, हम कसी अ य सरोवर पर चलते ह।”
.m
परंतु य धन को इतनी समझ होती तो फर बात ही या थी!
य धन क अकड़ से गंधव चढ़ गए और अगले ही पल च सेन के
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च सेन ने हम सबको छोड़ दया।
गंधव से अपमा नत होने के बाद य धन अ यंत ख था।
sm
उसके अपमान के घाव म अ धक पीड़ा इस लए थी य क जन
पांडव के ाण हरने का उसने अनेक बार यास कया, उ ह
पांडव ने अपनी वीरता से य धन के ाण क र ा क थी। वह
ok
मन-ही-मन अपनी शारी रक और मनोवै ा नक पराजय पर उ न
था कतु वह अपने झूठे अ भमान क धमक म उस पराजय के पाठ
को सुन नह सका। घमंड व ल जा ने य धन को इतना संत त कर
bo
दया क उसने वह ै तवन म अ -जल यागकर अपने ाणांत
करने का न य कर लया। म, कण और शासन ब त मु कल से
समझा-बुझाकर उसे वापस ह तनापुर लेकर आए। मने लौटकर
e/
व र को यह घटना सुनाई तो हम दोन ब त दे र तक य धन क
मूखता और उसक दशा पर चचा कर हँसते रहे। हम व ास था
.m
क इतना कठोर सबक़ मलने के बाद य धन दोबारा पांडव के
व कोई काय नह करेगा।
इस घटना के कुछ दन बाद, मह ष वासा अपने ब त-से
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य धन के मानो भा य खुल गए! उसे इसी णक ती ा
थी।
sm
“ऋ षवर!” य धन ने कु टल मु कान छपाते ए कहा, “यह
मेरा सौभा य है क आपने मुझे सेवा का अवसर दया। आप तो
जानते ह क हमारे कुल म यु ध र मेरे ये भाई ह। वे इन दन
ok
अपने भाइय के साथ ै तवन म रहते ह। मुझे इस बात का ख हो
रहा है क वे वनवास के कारण आपक सेवा के पु य-काय से वं चत
रह गए ह। आप य द मेरी सेवा से सचमुच स ह और मुझे
bo
आशीवाद दे ना चाहते ह तो मेरी केवल यही इ छा है क आप अपने
श य के साथ एक बार मेरे बड़े भाई यु ध र के पास भी जाएँ तथा
उ ह भी अपनी सेवा का सुअवसर दान कर!”
e/
“अव य य धन!” वासा ने भोलेपन से कहा।
.m
“ऋ षवर!” य धन बोला, “मेरी एक और ाथना है क आप
यु ध र के पास उस समय पधार जब ौपद अपने प तय को
भोजन परोसकर, वयं भी भोजन से नवृ हो चुक हो। ता क वे
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व कपट मनु य क यही पहचान होती है क वह अवसर
मलने पर अपने लए सुख-शां त से पूव अपने श ु क हा न क
sm
इ छा करता है! मुझे यह दे खकर ब त आ य आ क वासा जैसे
यश वी एवं परम ानी को य धन क नीयत पर त नक भी संदेह
नह आ!
ok
य धन ने पांडव क भावी दशा का वृ ांत जानने के लए
अपने गु तचर वासा के पीछे भेज दए। गु तचर ने ै तवन से
लौटकर जो कुछ बताया उसे सुनकर य धन तथा अ य सभी त ध
bo
रह गए।
य धन को दए वचन के अनुसार वासा ने ै तवन प ँचकर
e/
अपने श य से पता करवा लया क पांडव दोपहर के भोजन से
नवृ हो चुके थे। वे उसी समय सब श य को लेकर यु ध र के
ार पर जा प ँचे। वासा के दशन होना कसी वप से कम न
.m
था!
यु ध र समेत सभी पांडव भाइय ने उ ह णाम कया और
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़ लहाल, चता का वषय यह था क इतने कम समय म वासा
फ
और उनके श य को भोजन खलाकर तृ त कैसे जाए। उ ह यह भी
sm
भली-भां त पता था क य द वासा उनके स कार से संतु न ए तो
इसका प रणाम या होगा!
“हमने य धन को गंधव के कोप से बचाया,” भीम ने दाँत
ok
पीसते ए कहा, “ले कन उसके नीच वहार म कोई सुधार नह
आ है। दे खो, उसने हम कस संकट म डाल दया!”
यु ध र ने ौपद से पूछा, “ ौपद , या तु हारा अ य पा
bo
इस समय हमारी सहायता कर पाएगा?”
“नह महाराज!” ौपद ने खी वर म कहा, “वह अ यपा
e/
मुझे सूयदे व ने दया था और कहा था क उसम पकाए गए भोजन से
एक दन म असं य लोग का पेट भरा जा सकता है कतु ऐसा
.m
करना केवल तब तक संभव है, जब तक म वयं भोजन न कर लूँ।
मेरे भोजन से नवृ हो जाने के बाद, वह पा भोजन दान नह
कर सकता। भा य से, मने अभी कुछ दे र पहले ही भोजन समा त
m
वहाँ आ गए।
“अरे!” ौपद कृ ण को दे खकर आ यच कत रह गई। “आप
यहाँ कैसे आए?” उसने पूछा।
tp
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“म ै तवन से गुज़र रहा था। अचानक मुझे ब त तेज़ भूख
लगी, तो मने सोचा क आज तुम लोग के साथ भोजन कर लया
sm
जाए!” कृ ण ने मु कराते ए उ र दया।
“प रहास मत करो कृ ण,” ौपद ने खीजते ए कहा, “म
नह जानती क आपको हमारी परेशानी के बारे म पता है अथवा
ok
नह कतु, इस समय मेरे पास आपको खलाने के लए भोजन का
एक दाना भी नह है।”
“म तु हारी परेशानी के वषय म बाद म सोचूँगा, मगर पहले
bo
मुझे खाने को कुछ चा हए। एक बार मुझे अपना पा तो दखाओ।
हो सकता है, उसम कुछ भोजन शेष हो।”
e/
“आपको मुझ पर व ास नह है तो लो, वयं दे ख लो।” यह
कहते ए ौपद ने अपना अ यपा कृ ण के हाथ म थमा दया।
.m
“आह! दे खा, तु हारा झूठ पकड़ा गया!” कृ ण ने उस पा के
कनारे पर चपका, चावल का एक दाना उठाते ए कहा, “तुम तो
कह रही थ क तु हारे पास एक भी दाना नह है, तो फर यह कहाँ
m
से आया?”
“ कतु… मगर… मने तो…” ौपद से कुछ बोलते नह बन
ra
रहा था।
ीकृ ण ने चावल का वह दाना अपने म मुँह म रखा और उसे
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और ब त-से फल इ या द थे।
“मह ष वासा को कहाँ छोड़ आए, भीम?” कृ ण ने मु कराते
sm
ए पूछा।
ौपद ने अचं भत होकर कृ ण को दे खा, कतु कृ ण मु कराते
ए भीम के उ र क ती ा कर रहे थे।
ok
“आज ब त व च बात ई!” भीम ने कहा। “वन से लौटते
समय हम फर से ऋ ष वासा व उनके श य मले थे। वे हमारी
bo
कु टया से र कसी अ य दशा म जा रहे थे। मने उनसे वापस जाने
का कारण पूछा और भोजन के लए आमं त भी कया। परंतु वे
बोले क उनका पेट भर गया है। फर उ ह ने ब त ज़ोर से डकार ली
e/
और हम आशीवाद दे कर अपने श य के साथ आगे बढ़ गए!”
ौपद को अपने कान पर व ास नह आ।
.m
एक बार फर ीकृ ण ने पांडव पर आई ब त बड़ी वपदा
को टाल दया था। मने जब यह करण सुना तो जहाँ एक ओर
ीकृ ण के त मेरी आ था पहले से भी अ धक बल हो गई, वह
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उ नकौरव-प
दन महारथी कण ह तनापुर आया आ था। मेरी
म कण एकमा ऐसा यो ा ऐसा था जसने य धन
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व तु के रहते उसे मार पाना असंभव था। कण के वषय म यह
भी यात था क वह अ यंत दानवीर था और नान से लौटते समय
sm
उससे कोई कुछ भी माँगता तो वह मना नह करता था। इस कारण
नान के बाद उसे माग म ायः याचक मल जाते थे जो कण से मुँह-
माँगी व तुएँ पाकर संतु होकर लौटते थे।
ok
उस दन भी कुछ ऐसा ही आ। याचक को दान दे ने के बाद
कण आगे बढ़ गया। उसे माग म एक ा ण मला। कण ने ा ण
को णाम कया और पूछा, “ ा ण दे वता, क हए म आपके लए
bo
या कर सकता ँ?”
“यश वी भव!” ा ण ने कहा, “मने सुना है क तुम कसी
e/
याचक को नराश नह करते। म इसी आशा म तुमसे कुछ माँगने
आया ँ।”
.m
“आदे श कर ा ण दे वता!” कण ने कहा। “म यास क ँ गा
क आपको नराश न क ँ ।”
“म तु हारे द कवच और कुंडल क कामना लेकर आया
m
दानी कोई नह है। संभवतः मने ग़लत सुना था। मुझे और कुछ नह
चा हए। कोई बात नह , कण! म चलता ँ।”
“ कए ा ण दे व!” कण ने ण-भर सोचने के बाद कहा,
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क संसार उपहास करे और कहे क कण को अपने ाण अपने
वचन से अ धक य थे और इस लए उसने एक ा ण को नराश
sm
कर दया।” यह कहकर कण ने कमर म बँधा छु रा नकाला और
अपने द कवच-कुंडल को तन से काटकर अलग कर दया। कण
का तन ख़ून से लथपथ हो गया। उसे दे खकर इं क आँख म आँसू
आ गए।
ok
इं ने कहा, “म तुमसे ब त स ँ, दानवीर कण! मेरा व
छोड़कर तुम मुझसे कुछ भी माँग सकते हो।”
bo
“ भु,” कण बोला, “मने अपनी ाण-र क व तुएँ आपको
दान म दे द ह। इसके बदले आप मुझे कोई अचूक द ा
द जए!”
e/
“तथा तु!” इं बोले, “म तु ह अपनी अमोघ श दे ता ँ।
.m
यह अचूक है और इससे श ु का अंत न त है। परंतु यान रहे क
तुम यु म इसका योग केवल एक बार कर सकते हो।” कण को
अमोघ श दान करके, और उसके कवच-कुंडल लेकर इं
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के उ ान को पार करने के बाद व र के और मुझे दे खकर उ ह ने
कहा, “अजुन, वा तव म दे वराज इं का पु है! इं ने छल से कण
sm
का द कवच-कुंडल लेकर अपने पु क वजय का माग श त
कर दया है, अ थामा!”
ऐसा न जाने य होता था क मेरे कसी के उ र म व र
ok
कुछ ऐसा कह दे ते थे जससे फर कसी नए का ज म हो जाता
था जसका उ र भी मुझे व र ही से मलता था। म सोचने लगा क
कुंती का प त पांडु था तो फर अजुन के पता, इं दे व कस कार
bo
हो सकते ह। मने व र से यह कया तो उ र म मुझे ऐसी बात
जानने को मली जसक म क पना भी नह कर सकता था।
e/
व र ने बताया क पांडु के बाण से जब र त- या म संल न
कदम मु न क मृ यु ई थी तो कदम ने पांडु को शाप दया था क
उसक मृ यु भी अपनी प नी के साथ संभोग करने से ही होगी! बाद
.m
म, कदम मु न क ह या का ाय त करने के लए पांडु वन म रहने
लगा। वहाँ रहते ए एक दन उसके मन म संतान क इ छा उ प
ई कतु शाप के भय से वह अपनी प नय के नकट नह जा
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कामना पूण होने से पांडु का मान सक तनाव समा त हो गया। एक
दन कामास होने पर पांडु ने मा के साथ संसग करने का यास
sm
कया और तभी कदम के शाप के भाव से पांडु क मृ यु हो गई।
मा ने वयं को पांडु क मृ यु का दोषी माना और वह पांडु क
चता के साथ सती हो गई। इसके बाद, कुंती के पास अपने पाँच
अबोध बालक को लेकर ह तनापुर लौटने के अ त र कोई
ok
वक प नह था।
व र का यह अनुमान था क कदम मु न ारा दए शाप वाली
bo
बात शायद कसी को पता नह थी इस लए जब कुंती अपने नवजात
पु के साथ ह तनापुर लौट तो कसी ने उससे यह नह कया
क मु न के शाप के कारण पांडु के लए संभोग करना अंसभव था
तो फर कुंती के पाँच बालक का ज म कैसे आ!
e/
कुंती ारा वरदान क सहायता से इं और अजुन का संबंध
.m
प हो गया। हालां क, वरदान कभी-कभी अ भशाप भी बन जाते
ह, यह बात मुझे तब समझ म आई जब पांडव के ही ज म से जुड़ा
एक और रह य मुझे ब त बाद म पता लगा। म उस रह य को भी
m
समा त हो जाएगा।
leg
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मुझे सहसा एक घटना याद आ रही है। हालां क इसम मेरी मूखता ही
प रल त होती है, कतु जीवन के इस पड़ाव पर, जब मुझे अपने
leg
अ धक नह है!
जन दन पांडव वन म थे, उस बीच म कुछ समय के लए
ारका म वृ णवं शय के साथ रहने गया आ था। उ ह ने मेरा
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हर पल अपनी तजनी म धारण कए रखते ह। मने सोचा, य द वह
च मुझे मल जाए तो म भी अजेय हो सकता ँ! यह वचार मन म
sm
आते ही म उस च को पाने क मूखतापूण कामना लेकर ीकृ ण
के पास जा प ँचा।
“गो वद!” मने अ यंत मधुर वाणी म कृ ण से कहा, “मेरे पता
ok
ोणाचाय ने भीषण तप या ारा महामु न अग य से ा ात
कया था। वह अ अब मेरे पास है और मेरे पता ने उसे चलाने क
व ा भी मुझे सखाई है कतु साथ ही उसे योग न करने क
bo
चेतावनी भी द है य क उसके योग से सम त पृ वी न हो
सकती है। मुझे नह लगता क कभी कोई ऐसी थ त उ प होगी
जब मुझे उस अ को योग करने क आव यकता पड़ेगी और
इस लए मेरे लए उस ा का कोई लाभ नह है।”
e/
ीकृ ण मु कराते ए बोले, “म जानता ँ अ थामा। वह
.m
सचमुच ही द और श शाली अ है। तुम अ यंत भा यशाली
हो क वह महान अ तु हारे पास है और तु ह उसके उपयोग क
व ध भी ात है। परंतु तुम यह सब मुझे य बता रहे हो?”
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य ह, इस लए वैसे तो मुझे तु हारी ाथना तुरंत अ वीकार कर
दे नी चा हए य क तु ह अपना सुदशन च दे ना, पांडव के लए
sm
घातक हो सकता है, कतु यह मेरी बलता है क म समपण भाव से
आए कसी को ख़ाली हाथ नह लौटा सकता। मुझे तु हारी
इ छा पूरी करनी ही होगी। मेरे पास धनुष, श , च और गदा - ये
चार मु य अ ह। तुम इनम से जो चाहो, ले सकते हो!”
ok
मेरी स ता का ठकाना न रहा। मने आगे बढ़कर तुरंत अपने
बाएँ हाथ से च को उठाना चाहा। परंतु वह इतना भारी था क
bo
मुझसे हला भी नह । मने अपने दा हने हाथ से यास कया कतु
च नह हला। मने दोन हाथ से अपना पूरा ज़ोर लगाया। मेरे माथे
से पसीने क बूँद टपक रही थ , चेहरा लाल हो गया था, कतु
e/
ीकृ ण का वह हज़ार अर तथा व क ना भ वाला सुदशन च
टस से मस न आ! म अपने जीवन काल म पहली बार इतना
.m
ल जत महसूस कर रहा था। म नराश होकर पीछे हट गया और
झुकाए ीकृ ण के सामने खड़ा रहा।
“अ थामा!” ीकृ ण बोले, “मने हमालय म बारह वष तक
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ँ क आप अजेय ह और इसम आपके सुदशन च का भी योगदान
है। यही कारण था क म आपका च ा त करके आप ही से यु
sm
करता और फर आपको परा त करके अजेय बनना चाहता था!”
यह कहकर मने ीकृ ण को णाम कया और उ ह मेरी मूखता पर
मु कराता छोड़ ारका से लौट आया।
ok
bo
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ू तवषमचल
हारने के बाद, पांडव के बारह साल के वनवास का अं तम
रहा था। एक दन वन म घूमते ए पांडव को यास
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वलंब य हो रहा है? मुझे ब त चता हो रही है। आप कृपया
जाइए और दे खए, मुझे लगता है क वे चार कसी संकट म ह।”
sm
यु ध र को ौपद क बात सही लगी। वह अपने चार भाइय
क खोज म नकल पड़ा। अपने भाइय को खोजता आ यु ध र
एक सरोवर के पास प ँचा तो उसने दे खा क उसके चार भाई धरती
ok
पर अचेत पड़े थे। वह उनके नकट गया तो आ य से उसका र
जम गया। चार पांडव मर चुके थे! यु ध र का दय ख से वद ण
हो गया। वह अपने भाइय क अक मात मृ यु का कारण जानने के
bo
लए आतुर हो गया। उसने इधर-उधर दे खा और फर तालाब के
पानी म उतरने लगा।
“ठहरो!” तालाब के भीतर से आवाज़ आई। “म य
e/ ँ और
इस तालाब का र क ँ। मने ही तु हारे चार भाइय को मारा है!”
.m
“ कतु मेरे भाइय का अपराध या था?” यु ध र ने ँ धे गले
से पूछा।
“मने इ ह तालाब से पानी पीने से रोका था, कतु उसके
m
को वीकार कर लया।
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“सूय को कौन उ दत करता है?” य ने पहला कया।
“सूय को उ दत करता है,” यु ध र ने आ म व ास से
sm
पहला उ र दया।
“सूय के चार ओर कौन चलते ह?”
ok
“सूय के चार ओर दे वता चलते ह।”
“सूय को अ त कौन करता है?” य के गंभीर होते जा
रहे थे।
bo
“सूय को धम अ त करता है।” यु ध र ने सहजता से उ र
दया।
“सूय कसम
“सूय, स य म
त त है?”
e/
त त है” धमराज के अंश, यु ध र ने कहा।
.m
इसके बाद, य ने आ या मकता के गूढ़तम से लेकर
सामा य ान तक सब तरह के पूछे।
m
ह।”
य के धीरे-धीरे पेचीदा होते जा रहे थे। ले कन यु ध र
अ यंत धैय और बु से सभी के उ र दे रहा था। इस तरह
s:/
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“इस संसार का सबसे बड़ा आ य या है?”
यु ध र ने एक पल के लए सोचा और फर कहा, “ त दन
sm
असं य लोग मृ यु को ा त होते ह, कतु फर भी जो लोग बच जाते
ह, वे सदा जी वत रहने क कामना रखते ह। यही इस संसार का
सबसे बड़ा आ य है!”
ok
“अ त सुंदर यु ध र! तुमने मेरे सभी के उ र बलकुल
ठ क दए ह। म तुमसे ब त स ।ँ म तु हारे चार भाइय को तो
जी वत कर ही ँ गा, साथ ही म तु ह दो वरदान दे ना चाहता ँ।
bo
माँगो, या चा हए?”
ब त दे र तक सोचने के बाद यु ध र बोला, “हम लोग का
e/
वनवास-काल समा त होने वाला है और हम एक वष अ ातवास म
बताना है। य द कसी ने हम इस बीच पहचान लया तो हम फर से
.m
बारह वष का वनवास बताना होगा। इस लए आप मुझे यह वरदान
द जए क उस एक वष के अ ातवास के दौरान हम कोई न पहचान
सके।”
m
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अपने-अपने लए काय माँग लया। अजुन के अ त र , चार
भाइय और ौपद को उनक यो यता एवं पसंद के अनुसार वराट
sm
के महल म काय मल गया।
यु ध र को पाँसे खेलने का शौक था, तो उसने ‘कंक’ नामक
ा ण के प म राजा वराट का सभासद बनकर उसके साथ ूत
ok
खेलने एवं उसका मनोरंजन करने का नणय लया। भीमसेन को
भोजन पकाना और खाना ब त पसंद था, इस लए उसने अपने लए
‘व लभ’ नाम चुना और वराट के रसोइये का काय उसे पसंद
bo
आया। नकुल को अ - व ा का ब त अ छा ान था, तो उसने
‘ ं थक’ नाम के अ पाल के प म काय सँभालने का वचार
बनाया। सहदे व को गाय क अ छ जानकारी थी, इस लए उसने
e/
‘तं तपाल’ नाम चुना और राजा वराट क गौशाला म काम करने का
नणय लया। ौपद ने न य कया क वह वयं को ‘सैरं ी’ नाम
.m
से ौपद क दासी बताकर वराट क प नी क से वका बन
जाएगी। परंतु अजुन यह नणय नह कर पा रहा था क वह अपने
लए कौन-सी भू मका का चयन करे।
m
व च बात थी।
“भैया!” अजुन ने यु ध र से कहा, “इसम भी एक रह य है
जो मने आपको नह बताया था। म जन दन द ा क खोज म
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गई और उसने ेम का ताव कर दया। मने उन दन चय त
ले रखा था, इस लए मने उवशी को कहा क म उसका आदर करता
sm
ँ और म उससे ववाह करने म अ म ँ।” यह सुनकर वह हँसी
और बोली, “हम अ सराएँ ववाह नह करत । म आपके आकषक
व पर आस हो गई ँ। म काम से पी ड़त ँ और आपसे
वनती करती ँ क आप मेरा क र क जए।”
ok
अजुन ने आगे बताया, “मने उवशी को कई कार से समझाने
क को शश क । मने उससे यह भी कहा क जस कार कुंती, मा
bo
और इं क प नी शची मेरी माताएँ ह, उसी तरह आप भी मेरी माता
के समान ह तथा मेरे लए वंदनीय ह!”
e/
यह सुनते ही उवशी को ोध आ गया और वह बोली,
“अजुन! म कामातुर होकर तु हारे पास आई थी कतु तुमने ी का
क र करने के बजाय उसे और बढ़ा दया है। म तु ह शाप दे ती ँ
.m
क तु ह य क तरह नतक बनकर रहना पड़ेगा। तु ह अपने
जस पौ ष पर इतना घमंड है, उसे खोकर तु ह नपुंसक का जीवन
जीना पड़ेगा!”
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बनकर उस शाप को भोगने का यही सबसे उपयु समय है।”
इस कार, पांडव ने ौपद के साथ म यदे श म वेश कया
sm
और जो कुछ तय आ था, उसके अनुसार सबने अपना-अपना
कायभार सँभाल लया। वे सब अपने काय म इतने पारंगत थे क
राजा वराट को कसी तरह का संदेह नह आ। एक ओर, यु ध र,
ok
राजा वराट के साथ ूत खेलकर समय बताना और उसका
मनोरंजन करना आरंभ कर दया तथा सरी ओर, सैरं ी के प म
ौपद ने भी अपनी ंगार-कला और सेवा से वराट क प नी
bo
महारानी सुदे णा का दल जीत लया। इसी तरह, भीमसेन, नकुल
और सहदे व भी अपना-अपना काय करने लगे।
e/
पांडव म सबसे अ धक दयनीय अव था अजुन क थी। शाप
के भाव से रात -रात उसके सर के बाल लंबे होकर पीठ तक आ
गए थे और चेहरे पर से उसक रौबदार मूँछ सहसा ग़ायब हो गई थ ।
.m
वह रेशमी साड़ी व हाथ म कंगन पहनकर चलता तो उसका एक
हाथ कमर पर और सरा हाथ हवा म लहराता रहता था। माथे पर
बड़ी-सी बद और बाल म वेणी बाँधकर जब वह य क तरह
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बसता था!
पांडव का अ ातवास पूरा होने वाला था। एक दन म, कण
sm
और य धन यह सोच रहे थे क अ ातवास से लौटते ही पांडव
अपना रा य वापस माँगने आ जाएँगे। तभी त ने समाचार दया क
म य नरेश वराट के रसोइये व लभ ने रानी सुदे णा के भाई क चक
ok
को मार डाला। बाद म पता लगा क क चक ने सुदे णा क दासी
सैरं ी पर कु डाली तथा उसे अपमा नत कया जसके कारण
व लभ ने ोध म आकर क चक क ह या कर द । यह साधारण
bo
समाचार नह था य क राजा के सेवक ारा रानी क से वका के
साथ ए वहार के लए रानी के भाई क ह या करना कोई सहज
बात नह थी!
e/
हम जानते थे क क चक इतना बलशाली था क उसे मारना
तो र, उससे लड़ने के वषय म सोचना भी सहज नह था। य धन
.m
को संदेह हो गया क यह न य ही कसी असाधारण का
काम था! कुछ समय बाद, य धन के गु तचर ने, जो पछले एक
वष से पांडव को खोजने म जुटे ए थे कतु य के वरदान के
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भीमसेन ही है।
य धन का मन राज-काज से अ धक इस बात म लगता था
leg
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ह तनापुर के राज सहासन और उसके त न ा से बँधे
सम त लोग ने अपने अ -श सँभाले और वराट पर आ मण
sm
के लए कूच कर दया। मुझे भी ववशता म भी म, ोण, कृप, कण,
य धन, शासन के साथ जाना पड़ा। हम य ही म यदे श क
सीमा तक प ँचे, हमने दे खा क एक रथ हमारी ओर चला आ रहा
था। रथ के ऊपर म यदे श क पताका लहरा रही थी कतु आ य
ok
क बात यह थी क सारथी के थान पर वराट का पु उ र बैठा था
और पीछे अ -श से सुस जत अजुन खड़ा था! अ ातवास
bo
पूरा हो जाने के कारण पांडव ने अपना असली प वराट के सम
कट कर दया था।
ह तनापुर क रंगभू म म तो अजुन का यु -कौशल सबने
e/
दे खा था कतु यह रंगभू म नह थी। यह रण-भू म थी! अजुन ने
अपने धनुष क जो एक बार यंचा चढ़ाई तो फर कसी को
.m
सँभलने का अवसर नह मला। हम जसका भय था, वही आ।
सारे यो ा एक के बाद एक धराशायी होते गए। ह तनापुर के
सव े यो ा को इतना असहाय मने पहले कभी नह दे खा था।
m
लौट आए।
म सोचता रहा, य धन के कुबु -ज नत हठ के हाथ अभी
leg
अजुन-पु अ भम यु से कर दया।
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म और व र एक दन उ ान म टहलते ए यु क संभावना
पर चचा कर रहे थे। सहसा हमने दे खा क य धन अपने सफ़ेद
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तुम इस समय कहाँ से लौट रहे हो, य धन?”
“म पांडव के साथ होने वाले यु के लए सहायता माँगने
sm
वासुदेव कृ ण के पास गया था!” य धन ने व र को दे खकर कहा।
“ ीकृ ण के पास य , युवराज?” व र ने आ य से पूछा।
ok
“मुझे अपने गु तचर से सूचना मली थी क अजुन, ीकृ ण
के पास यु के लए मदद माँगने जाने वाला है, तो मने सोचा क
इस काय म म पीछे य र ँ। इस लए म अजुन के प ँचने से पहले
bo
ही कृ ण के पास प ँच गया। अ थ मेरे म , अब इस यु म
हमारी वजय न त है!”
“अरे वाह! यह तो ब त शुभ समाचार है य धन, कतु पहले
e/
यह तो बताओ क कृ ण ने तु ह ऐसा या कह दया जो तुमने यु
से पहले ही यु का नणय भी जान लया?” मने हँसते ए पूछा।
.m
सच क ँ तो मुझे व ास नह हो रहा था क य धन जैसा जड़म त
और अहंकारी ीकृ ण के ार पर सहायता माँगने चला गया
और फर वहाँ से वजयी होने का आशीवाद भी ले आया!
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“और अजुन, तुम यहाँ य आए हो?” कृ ण ने अजुन से
पूछा।
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अजुन ने पहले कृ ण को णाम कया और फर आदरपूवक
कहा, “केशव! म तो यु से पहले केवल आपका आशीवाद लेने
आया ँ। हमारे लए इतना ही पया त है!”
ok
कृ ण मु कराए और बोले, “तुम दोन ही मुझे य हो और म
तुम दोन क सहायता करना चाहता ँ। म तुम दोन म से एक को
अपनी नारायणी सेना दे सकता ँ और सरी ओर, म अकेला र ँगा,
bo
कतु म न तो यु क ँ गा और न ही श उठाऊँगा! मेरी चूं क
अजुन पर पहले पड़ी थी, इस लए म उसे पहला अवसर दे रहा ँ।”
e/
य धन ने बताया, “यह सुनकर मने सोचा क अजुन न त
प से कृ ण से उनक नारायणी सेना माँगेगा, कतु मुझे लगता है
.m
क तेरह वष वन म कंद-मूल खाने से उसक बु कुं ठत हो गई है।
उस मूख ने कृ ण से कहा, ‘केशव! मुझे तो बस आपका साथ
चा हए। म चाहता ँ क यु म आप मेरे सारथी बन।’ ीकृ ण ने
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कौरव और पांडव के म य संभा वत यु क पदचाप सुनाई
दे ने लगी थी। इसे लेकर य धन के मन म तरह-तरह के वचार आते
sm
थे। वह अ धकतर यु को लेकर उ सा हत दखाई दे ता था, कतु
जब कभी उसे म य दे श क सीमा पर अजुन और उ र के साथ ए
यु क याद आती थी तो उसका उ साह ठं डा पड़ने लगता था। उस
दन अकेले अजुन ने सम त कौरव यो ा के हौसले प त कर दए
ok
थे, तो य द पाँच पांडव और उनके साथ ीकृ ण भी आ जाएँगे तो
यु का प रणाम कौरव प म होने क संभावना वाभा वक तौर
bo
पर नह के बराबर थी।
मुझे कभी-कभी ऐसा लगता था क य धन को पांडव के
साथ हो रहे अ याय एवं वहार पर मन म खेद तो होता था और
e/
वह यु को टालना भी चाहता था, परंतु उसका हठ व रा ही
वभाव उसे धम के स माग पर आगे बढ़ने नह दे ता था।
.m
इसी बीच एक दन ह तनापुर म ीकृ ण के आगमन का
समाचार आया। हालां क कृ ण का कु वंश के साथ पुराना संबंध था
और उनका ह तनापुर म आना कोई अनहोनी घटना नह थी कतु
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से एक थी।
उसने स ता और आदर का छ ावरण लपेटा और कृ ण को
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कर लया। य धन डाल-डाल था तो कृ ण पात-पात चलते थे!
उ ह ने तुरंत य धन का ताव अ वीकार कर दया और राजसी
sm
स कार को छोड़कर महा मा व र के घर म सामा य ढं ग से रहना
पसंद कया। य धन क कपट-लीला वफल हो गई। वह ऊपर से
तो सामा य बना रहा कतु इस बात पर कृ ण से चढ़ गया।
ok
अगले दन सुबह ही कृ ण मु कराते ए धृतरा के राजदरबार
म आ गए और सबको णाम करके अपनी बात कह द , “महाराज
धृतरा ! म यहाँ वासुदेव कृ ण बनकर नह , अ पतु पांडव का त
bo
बनकर आया ँ और यु ध र क ओर से एक सं ध- ताव लाया ँ।
पांडव नह चाहते क भारत का सबसे भु वशाली कु वंश आपसी
भेद-भाव और अहंकार क लड़ाई क भट चढ़ जाए। य द दोन प
e/
मलकर रह तो पृ वी पर कोई ऐसा थान नह जहाँ वे आ धप य
था पत नह कर सकते। यु का प रणाम केवल वनाश होता है,
.m
इस लए उ ह ने मुझे आपके पास भेजा है ता क आप अपने पु
य धन को समझाएँ क वह अपना अनु चत हठ छोड़ दे और
पांडव को शां तपूवक उनका रा य लौटा दे ।”
m
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“म जानता ँ य धन,” ीकृ ण ने य धन को समझाते ए
कहा, “तुमने और तु हारे मामा शकु न ने इं थ को कस तरह
sm
छल से जीता है कतु यह मत भूलो क यु ध र न केवल तु हारा
ये भाई है, अ पतु तुमने ूत म हारने का जो दं ड तय कया था,
उसे यु ध र ने नयमपूवक और पूरी न ा के साथ भोगा है। अब
उसका रा य उसे लौटाना तु हारा कत है।”
ok
“नह कृ ण!” य धन के तेवर तीखे होते जा रहे थे, “म एक
बार जो नणय ले लेता ँ, वह अं तम होता है। मने कह दया क म
bo
पांडव को उनका रा य नह ँ गा। अब अ छा यही होगा क आप
मेरा यह संदेश यु ध र को प ँचा द।”
“यु ध र अ यंत मृ और माशील
e/
है,” ीकृ ण ने
फर समझाया, “वह कसी भी थ त म तुमसे भू म के लए यु
नह करना चाहता। उसे शायद इस बात क आशंका पहले से है क
.m
तुम इं थ रा य लौटाने के लए सहजता से तैयार नह होगे
इस लए उसने तु ह एक अ य वक प भी दया है। यु ध र अ धक
भू म क कामना नह करता। उसने कहा है य द तुम पूरा इं थ
m
केवल पाँच गाँव वापस माँग रहे ह। तुम उ ह अ व थल, वृक थल,
माकंद , वारणावत और उनक पसंद का कोई एक अ य गाँव दे दो।
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जाओ, और जाकर अपने य यु ध र से कह दो क पाँच गाँव तो
या, म उसे सुई क नोक के बराबर भी भू म नह ँ गा! और तुम यह
sm
भी सुन लो, य द तुमने एक श द भी और कहा तो म भूल जाऊँगा
क तुम हमारे संबंधी अथवा पांडव के त हो और मुझे ववश
होकर तु ह बंद बनाना पड़ेगा!”
ok
य धन क बात सुनकर सारा राजदरबार स रह गया। य प
ीकृ ण को य धन से ऐसी ही हठध मता क आशा थी, फर भी
अमया दत होने क भी कोई सीमा होती है!
bo
ीकृ ण के चेहरे के भाव बदलने लगे। वे बोले, “ य धन! यह
तो मुझे पता है क तुम अ ानी हो परंतु तुम अहंकारवश इस तरह
e/
अपनी मयादा भूल जाओगे, यह मने नह सोचा था। य द तुम
समझते हो क म अकेला ँ और तुम मुझे बंद बना लोगे तो यह
तु हारी भूल है। सुनो य धन, सम त पांडव, वृ ण और
.m
अंधकवंशीय यादव यह मेरे साथ ह। वे ही नह सारे आ द य, ,
वसु और सम त मह षगण भी यह मेरे साथ उप थत ह!”
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लपट तथा रोमकूप म से सूय-सी करण नकल रही थ । काश, म
कृ ण के वराट एवं द प के दशन कर पाता!
sm
कृ ण का यह प कुछ ही पल के लए रहा और उसके बाद,
वे अपने सामा य प म लौट आए। य धन के माथे से पसीना
टपक रहा था। यह प दखाई दे रहा था क ीकृ ण क द ता
ok
ने उसके रोम-रोम को आ ांत कर दया था और उसक वाणी मौन
हो गई थी। वह चुपचाप खड़ा कृ ण को दे खता रहा। य धन को इस
तरह भयभीत दे खकर ीकृ ण हलका-सा मु कराए और केवल
bo
इतना बोले, “यु क तैयारी कर लो, य धन!” इससे पहले क
भी म, ोण और व र उ ह रोक पाते, ीकृ ण कौरव-राजसभा से
जा चुके थे। म समझ गया क ीकृ ण के साथ, कौरव का भा य
e/
भी उनक पराजय क भू मका लखकर कु राजसभा से सदा के
लए वदा हो चुका था!
.m
इस घटना के बाद यह तय हो गया क य धन ने पांडव का
रा य वापस न दे ने का न य कर लया था। इसका अथ यह था क
कु वंश एक महान यु क ओर अ सर हो रहा था जसम भाई
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के पु से यु करने का सदा ही वरोध कया है, कतु अब जब इस
हठ और अ भमानी य धन के कारण यह यु हमारे ऊपर थोप
sm
दया गया है, तो म इसका नेतृ व करने के लए तैयार ँ। परंतु इसके
लए मेरी एक शत है। म यु म तभी भाग लूँगा य द यह सूतपु
कण रणभू म से बाहर रहेगा!”
ok
गंगापु भी म भीषण त ाएँ लेने और उ ह न ापूवक
नभाने के लए व यात थे। परंतु ऐसे समय म, जब क यह यु
समूचे कु वंश के अ त व का बन गया था, पतामह क यह
bo
शत मुझे सवथा अनु चत जान पड़ी। म वयं य धन के कपट और
कम का वरोधी था, कतु मने कभी मुखर होकर उसका वरोध
नह कया। तथा प इस अवसर पर मुझसे चुप नह रहा गया।
e/
मने भी म से कहा, “ पतामह! आप इस प रवार म सबसे
अनुभवी एवं पूजनीय ह इस लए म आपक येक बात का दय से
.m
स मान करता ँ, कतु आपक यह शत मुझे उ चत नह लगती।
आपका कण से कसी भी बात पर अथवा कतने भी वषय पर
वैचा रक मतभेद हो सकता है, कतु अभी हम यु भू म म खड़े ह
m
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रहा हो, फर भी अब इन सब बात के लए दे र हो गई है। मेरा
मानना है क कण अ यंत वीर और कुशल यो ा है और कण क
sm
सहायता के बना हमारे लए यह वकट यु जीतना संभव नह
होगा। इस लए मेरा आपसे आ ह है क इस कार क शत रखकर
इस क ठन यु को कौरव के लए और अ धक कर मत
बनाइए!”
ok
“अ थामा!” भी म का वर पहले से भी यादा तीखा था,
“ य के लए यु सरल या क ठन नह होता, वह बस यु होता
bo
है। म चा ँ तो इस पृ वी को अकेला ही जीत सकता ँ और इसके
लए न मुझे तु हारे परामश क आव यकता है और ही इस सूतपु
क सहायता क ! य द तुम मुझे कौरव का सेनाप त बनाना चाहते
e/
हो तो यही मेरी शत है क कण को रणभू म म उतरने से पूव मेरी
मृ यु क ती ा करनी होगी!” यह कहकर भी म ने इस वधा को
.m
और पेचीदा बना दया य क भी म क मृ यु उनके अपने हाथ म
थी! उ ह आजीवन चारी रहने क अपनी भीषण त ा के लए
उनके पता महाराज शांतनु ने उ ह इ छा-मृ यु का वरदान दया था।
m
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य धन को भी म के नेतृ व तथा कण के बा बल म से कसी
एक का चयन करना था। मने महसूस कया क य धन को वधा
sm
म फँसा और कण को ववशता म जकड़ा दे ख भी म को एक कार
से नमम सुख मल रहा था। भी म ने अपनी स ता को छपाते ए
य धन से कहा, “हताश न होओ, पु ! म जानता ँ क तुम
यु भू म म कण क अनुप थ त से श ु को मलने वाले लाभ को
ok
लेकर च तत हो, कतु म तु ह वचन दे ता ँ क म त दन पांडव
के असं य सै नक का वध क ँ गा और यह यास क ँ गा क तु ह
bo
यु भू म म कण का अभाव न महसूस हो! य प, पांडव मुझे
अ त य ह, म तु ह यह वचन भी दे ता ँ क रणभू म म कसी
कार का भेदभाव नह क ँ गा तथा शखंडी के अ त र मेरे
सामने जो भी आएगा, म उसे यमलोक प ँचा ँ गा!”
e/
शखंडी! मने यह नाम पहली बार सुना था, परंतु मुझे छोड़कर
.m
वहाँ उप थत कसी भी के चेहरे पर आ य का भाव नह
आया। इसका अथ था क वहाँ केवल मुझे ही शखंडी के वषय म
पता नह था। आ ख़र यह शखंडी कौन था, जससे धरती के
m
नह छोड़गे?”
“हाँ पु , मने सुना था,” ोण ने कहा।
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“यह ब त लंबी और पुरानी कथा है अ थ!” पताजी ने एक
द घ न ास के साथ कहा, “म तु ह सं ेप म बता दे ता ँ। भी म का
sm
शखंडी के साथ पूवज म का संबंध है। उस समय, काशी के राजा
क तीन क याएँ थ - अंबा, अं बका और अंबा लका। काशी नरेश ने
उन तीन का एक साथ ववाह करने का नणय लया और एक
वयंवर रचा जसम त कालीन सभी पड़ोसी राजा को आमं त
ok
कया गया ता क तीन राजकुमा रयाँ, अपनी-अपनी पसंद से अपना
वर चुन सक। उन दन गंगापु भी म युवा थे, कतु वे अपने पता
bo
शांतनु क ख़ुशी के लए आजीवन चारी रहने और ह तनापुर के
राज सहासन क र ा का वचन दे चुके थे। हालां क शांतनु और
स यवती का पु व च वीय ववाह-यो य था, परंतु काशी नरेश ने
नह कया। इस अपमान से
e/
उस वयंवर म क ह कारण से ह तनापुर के युवराज को आमं त
होकर भी म अकेले ही वयंवर म
प ँच गए। उ ह ने काशी नरेश और सम त राजागण के सम न
.m
केवल ह तनापुर के अपमान का वरोध कया, अ पतु सबके सामने
से बलपूवक तीन राजकुमा रय को अपने रथ म बैठाकर ह तनापुर
m
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दशा के लए भी म को दोषी ठहराया। अंबा ने यह भी कहा क
उसक मयादा और त ा क र ा करना भी म का दा य व है।
sm
अंबा ने भी म के सामने ववाह का ताव रख दया। परंतु भी म
चय- त क त ा से बँधे ए थे, इस लए उ ह ने भी अंबा को
अपनाने से मना कर दया। इस कार भी म ारा आवेश म ई भूल
के कारण अंबा बार-बार अपमा नत ई और उसका जीवन न हो
ok
गया।”
“ कतु पताजी,” मने ोण को बीच म टोकते ए कहा, “अंबा
bo
क यह बात ठ क थी क भी म के उ माद और आवेश के चलते ही
अंबा का जीवन न आ। मेरे वचार से उस समय भी म का नै तक
दा य व यह था क वे अपनी त ा क आ त दे कर नरपराध
e/
अंबा क ल जा पर लगे कलंक को मटा सकते थे एवं शा वराज
ारा याग दए जाने के बाद अंबा से ववाह कर सकते थे। … फर
.m
या आ पताजी?”
“पु , तुम ठ क कहते हो। भी म का नै तक कत यही था
और ई र ने उ ह अपने कम के प र कार का अवसर भी दया था।
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मानो जल से भरे बतन म अचानक छे द हो जाने से उसम से पानी
नकल जाता है!”
sm
“अंत म अंबा अपने नाना हो वाहन के सुझाव पर भी म के
गु तथा ऋ ष जमद न के पु , परशुराम के पास सहायता माँगने
गई। परशुराम ा ण थे कतु अ यंत ोधी थे और य से यु
ok
करने को सदा आतुर रहते थे। उ ह ने अंबा क था सुनी तो वे
त काल उसक मदद के लए तैयार हो गए। उ ह ने पहले भी म से
आ ह कया क वे अंबा को वीकार कर ल। परंतु भी म के मना
bo
करने पर परशुराम ो धत हो गए और फर बात ऐसी बगड़ी क
यु तक प ँच गई!”
पूछा।
“परशुराम और भी म के बीच यु
e/ आ?” मने आ य से
.m
“हाँ!” पताजी बोले, “उन दोन महार थय के बीच घमासान
यु आ जसे दे वता समेत पूरे संसार ने दे खा। अंत म, जब कई
दन के बाद भी हार-जीत का नणय नह हो सका तो भी म क
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ज म म भी उसने तप नह छोड़ा तो आ ख़र उमाप त भगवान शंकर
ने उसको दशन दए। उसने वरदान म भगवान शव से भी म का वध
sm
करने का उपाय पूछा। तब भगवान शंकर ने अंबा से कहा क भी म
को इ छा-मृ यु का वरदान ा त है, इस लए वे अंबा को भी म के
वध का वरदान तो नह दे सकते कतु उ ह ने अंबा को यह वचन
दया क वह अपने अगले ज म म, यु के दौरान भी म के वध का
ok
कारण बनेगी!”
“परंतु फर अंबा का या आ?” मेरी उ सुकता को पंख लग
bo
चुके थे और म उस कथा को पूरा सुने बना सोना नह चाहता था।
“ शव से वरदान पाकर अंबा को यह व ास हो गया क उसे
e/
भी म का अंत करने के लए अगला ज म लेना पड़ेगा और इसके
लए अपने वतमान जीवन का अंत करना आव यक था। अंबा अपने
उ े य के त इस सीमा तक सम पत थी क उसने एक ण क दे र
.m
कए बना वयं अपने लए चता तैयार क तथा उसम जलकर भ म
हो गई।”
m
है क पद क दो संतान ह। पूण स य यह है क धृ ु न और
कृ णा से पहले, अंबा ने पद के घर म क या- प म ज म लया
था। उसी क या का नाम शखंडी है!”
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म कैसे भाग लेगी?” मेरी ज ासा अपनी सीमाएँ लाँघ चुक थी।
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“यह भी एक रह य है, पु !” पता ोण ने कहा, “ शखंडी
का ज म क या के प म ही आ था, कतु पद के अंदर पु -
sm
ा त क इ छा इतनी बल थी क उसने लोग के बीच यह चार
कया क शखंडी क या नह , पु है। इसके अ त र , अपने झूठ
को स य स करने के लए पद ने शखंडी को आरंभ से ही पु
के सं कार दए और पु क ही भां त उसका पालन-पोषण कया।
ok
इसका प रणाम अ यंत भयंकर आ।”
“कुछ समय बाद शखंडी ववाह-यो य हो गई कतु पद के
bo
अपने चार के कारण लोग शखंडी को युवक ही समझते थे। इस
बीच, दशाणराज हर यवमा ने शखंडी ( जसे वह युवक समझता
था) के साथ अपनी क या के ववाह का ताव भेजा। पद वधा
e/
म पड़ गया परंतु उसके लए अपनी त ा और लोक-लाज का
बोझ इतना अ धक हो चुका था उसने ववशता म हर यवमा का
.m
ताव वीकार कर लया!”
“ या! पद ने ऐसी मूखता कर डाली? ी का ी से ववाह
हो गया?” मुझे इस कथा पर मानो व ास नह हो रहा था।
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प धारण कर लया!”
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“यह तो लग प रवतन का अद्भुत उदाहरण है, पताजी!”
मने आ य से कहा, “उसके बाद या आ?”
sm
“इसके बाद,” ोण ने कथा आगे बढ़ाते ए कहा, “ शखंडी
सीधा दशाणराज के पास आया और अपनी पौ ष-परी ा उ ीण
करके उसने दशाणराज के संदेह को ग़लत स कर दया। य से
ok
ई सं ध के अनुसार, शखंडी जब दोबारा वन म लौटा तो उसने
दे खा क य थूनाकण वलाप कर रहा था। शखंडी ने उससे
कारण पूछा तो य बोला क एक दन य राज कुबेर उस वन म
bo
आया था और थूनाकण को ी- प म दे खकर उसे ब त हैरानी
ई और जब उसे शखंडी के साथ कए लग प रवतन का पता लगा
तो उसने गु़ से म थूनाकण को शाप दे दया क उसे अब ी
e/
बनकर ही रहना पड़ेगा तथा शखंडी क मृ यु के बाद ही उसे अपना
पु ष व वापस मल पाएगा। थूनाकण को ई असु वधा के लए
.m
शखंडी खी तो आ कतु वह असहाय था। इसके बाद, युवक
शखंडी अपने पता पद के पास पंचाल लौट आया।”
“… कतु आपको यह सब कैसे पता है?” मुझे लगा मने यह
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हम सब भी तो अपने पूवज म म ी या पु ष रह चुके ह तो
या कसी पु ष को, जो पूवज म म ी था, पु ष न मानकर ी
sm
ही मानते रहना बु म ा है? अतीत व पूवज म के तंतु पर पर
गुँथकर कस कार वतमान के व यास एवं भ व य क रचना करते
ह? या शखंडी के लए भी म के इ छा-मृ यु के कवच को भेद
पाना संभव होगा? यही सब सोचते-सोचते मेरी आँख लग गई।
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होने वाले उस महायु क न व रखने म उसक भी मह वपूण
भू मका थी, कतु वकलांगता के चलते, यु म भाग लेना तो र,
sm
कृ त ने उसे यु क घटना को दे खने से भी वं चत कर दया
था। सबको पता था क यु म वजय उसी क होगी जसके साथ
धम होगा। ानीजन यह भी जानते थे क वासुदेव कृ ण, सदा धम
के साथ होते ह और उसी धम का साथ दे ने के लए उस यु म
ok
कृ ण ने अपनी नारायणी सेना तक को याग दया था और वे अकेले
पांडव के साथ खड़े हो गए थे। धृतरा को छोड़कर अ य सभी को
bo
कौरव-प क पराजय का पूवाभास था, कतु पु -मोह और
राजभोग क ल सा ने अंधे धृतरा को ववेक से वं चत कर दया
था। उसे व ास था क भी म, ोणाचाय, कृपाचाय, कण और
e/
कृ ण क नारायणी सेना के सहयोग से उसके उ माद पु य धन
के लए वह यु जीतना क ठन नह होगा।
.m
य प धृतरा जानता था क उसे अपनी मह वाकां ा क
पू त हेतु अपने तथा अपने अनुज पांडु के पु के र पात के
अ त र कुछ नह मलने वाला था, तथा प उसके मन म उस
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इस लए इस कथा को आगे बढ़ाने के लए उनका उ लेख करना
आव यक है।
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संजय ने धृतरा को बताया क रणभू म म यु के नयम-
नधारण के बीच शंखनाद आ और फर कौरव तथा पांडव के बीच
वह महासं ाम आरंभ हो गया। रणभू म म, अ क हन हनाहट,
ok
हा थय क चघाड़ और सै नक क चीख़-पुकार के अ त र कुछ
सुनाई नह दे रहा था। रथी से रथी, महारथी से महारथी और
अ तरथी से अ तरथी लड़ रहे थे। भी म, ोण और कृपाचाय के रथ,
bo
पूरे मैदान म आँधी क भां त घूम रहे थे। बाण क वषा से यु के
पहले दन ही रणभू म शव से पट गई। ऐसा लग रहा था मानो
आकाश से र क वषा ई थी, जससे भू म का रंग लाल हो गया
e/
था। कौरव यो ा क तरह, पांडव क ओर से भी भयंकर बाण-
वषा हो रही थी। पांडव क ओर से, अजुन के यु -कौशल तथा
.m
भीम के भीषण गजना के सामने कसी का टक पाना मु कल हो
गया था। पहले ही दन दोन ओर से सकड़ो सै नक एवं यो ा मारे
गए और उससे भी अ धक सं या म गंभीर प से घायल हो गए।
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याम तन पर फहराता आ पीत व काले वषा-मेघ के बीच
व ुत- करण के समान चमक रहा था। उनका रौ प दे खकर
sm
सबके मन म शशुपाल-वध क मृ त ताज़ा हो आई और भय ने
रणभू म म अपने पैर पसार दए।
कृ ण का व वंसकारी प दे खकर सब लोग आतं कत दख
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रहे थे। परंतु भी म त नक भी नह घबराए। उ ह ने हाथ जोड़कर
कृ ण से कहा, “हे च धारी माधव! आप इस संपूण जगत के वामी
ह और सबको शरण दे ते ह। आपके हाथ से य द म मारा गया तो मेरे
bo
लए इससे अ धक सौभा य क बात या होगी! आइए भु, मेरे
ाण लेकर मेरा गौरव बढ़ाइए!” हज़ार सै नक को त दन मार
गराने वाले भयंकर भी म क स दय आँख भ व ेम से गीली हो
e/
गई थ । कृ ण के हाथ म सुदशन च अब भी घूम रहा था और
उनका चेहरा ोध से लाल था।
.m
मुझे कृ ण क त ा याद आ गई जो उ ह ने अजुन और
य धन के सम ली थी क वे यु म अ -श नह उठाएँगे। तो
फर उ ह ने अपनी त ा य तोड़ी? म अभी इस बारे म सोच ही
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क जाइए!” भ ने अपने ेम के क चे सूत से भगवान को बाँध
लया था। कृ ण क गए और दोबारा रथ पर जा बैठे।
sm
मुझे अपने का उ र मल गया था। इस घटना ने मुझ पर
ब त गहरा भाव डाला। म यु के बीच खड़ा उस रणभू म म दो
वकट व क नजी त ा क तुलना कर रहा था। एक
ok
ओर पतामह भी म थे, जो अपनी त ा क र ा हेतु, धम को दाँव
पर लगाकर य धन क ओर से अधम के प म यु कर रहे थे।
सरी ओर ीकृ ण थे, जनके लए धम के सामने उनक नज व
bo
त ा का कोई मू य नह था। भी म के लए जहाँ उनक त ा ही
सव प र थी, वह कृ ण ने धम क अ ु णता तथा अपने भ क
र ा के लए अपनी त ा तोड़ने म पल-भर का भी वलंब नह
कया!
e/
कृ ण जानते थे क पांडव क थ त को सँभालने के लए
.m
भी म को मारना अ नवाय था। उ ह ने सूया त के बाद, श वर म
बैठकर अगले दन क रणनी त पर चचा करते ए अजुन से कहा,
“ शखंडी को यु म उतारने का समय आ गया है!”
m
प ँचा।
“ शखंडी!” सहसा उसे कान म कृ ण क आवाज़ आई।
“तु हारे तशोध का यही ण है! वार करो!” शखंडी ने पीछे
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मुड़कर दे खा। परंतु कृ ण तो पीछे वाले रथ म बैठे अजुन का सार य
कर रहे थे, तो फर यह आवाज़ कसक थी? “ शखंडी, या सोच
sm
रहे हो? भी म पर बाण चलाओ!” उसके कान म फर से ीकृ ण
का वर गूँजा। शखंडी भाँप गया क यह कृ ण का ही गु त संदेश
था। उसने तुरंत अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और भी म पर चला
दया। उसका बाण भी म क बाँह के ऊपरी ह से पर लगा था।
ok
सामने शखंडी को दे खकर भी म धीमे से मु कराए। यह व च बात
थी क कुछ पल पूव श ु पर व पात करने वाले भी म, शखंडी
bo
के हार के बावजूद शांत खड़े थे। शखंडी ने भी म पर एक के बाद
एक अनेक तीर चलाए और उ ह आं शक प से घायल कर दया।
उ ह ने शखंडी पर बाण न चलाने क त ा क थी और इसी बात
e/
का लाभ लेने के लए ीकृ ण, शखंडी को सामने लेकर आए थे।
उस महासमर म एक बार नह , अ पतु अनेक बार ीकृ ण क
चातुयपूण यु याँ दे खने को मलती रह । हालां क वे य प से
.m
यु नह लड़ ले रहे थे, तथा प पाँच पांडव, कृ ण क द ता क
छ -छाया म कौरव क यारह अ ौ हणी सेना के व सहजता
m
से यु लड़ रहे थे।
शखंडी ने सामने आकर भी म को थोड़ा आहत तो कर दया
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ख च!
अजुन के बाण ने अपना ल य बेध दया था। वह तीर पतामह
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धनुष उठा पाते, अजुन दजन बाण चला चुका था। एक भी तीर
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ल य- नह आ। आ ख़र अजुन संसार का सव े धनुधर था!
अगले ही पल भी म का वृ कतु ब ल शरीर अजुन के तीर से
sm
छलनी हो गया। सभी तीर इतनी सट क और संतु लत श से
चलाए गए थे क वे भी म के शरीर के अ भाग से पार होकर पृ
भाग से बाहर नकले ए दखाई दे रहे थे और बाहर नकले ए
ह स क लंबाई भी बलकुल एक समान थी जो अजुन क
ok
धनु व ा का एक और अ तम उदाहरण था।
भी म अ यंत पीड़ादायक वर के साथ धरती पर गर पड़े।
bo
उनका पूरा शरीर नीचे गरते समय अजुन के बाण पर ही टक गया।
अजुन, अपने जन पतामह क गोद म खेलकर बड़ा आ था, उ ह
के शरीर को नममता से ब धने के बाद अजुन के हाथ से धनुष छू ट
e/
गया और वह नीचे बैठकर फूट-फूटकर रोने लगा। गंगापु भी म के
गर जाने से रणभू म म स ाटा छा गया। पल-भर के लए सभी
.m
यो ा लड़ना छोड़कर शर-श या पर लेटे उस महान यो ा को दे खने
लगे। शखंडी और कृ ण एक- सरे को दे खकर मु करा रहे थे।
यु क यह वशेषता है क वह वनाश का अ त होने के
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जब द - ा त संजय ने भी म के भू म पर गर जाने क
बात धृतरा को बताई तो वह भयभीत हो गया। भी म क मृ यु या
कह, उनक यह न यता ह तनापुर के राज सहासन के लए
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जो र ता उ प हो गई थी, उसे कण ने अपने परा म से सहज ही
भर दया।
sm
ोणाचाय और कण के रण म उतरने के बाद यु का पलड़ा
फर से कौरव के प म झुकने लगा था। पांडव के लए यह
न त ही चता क बात थी। उ ह इस समय कसी ऐसे वीर यो ा
ok
क आव यकता थी, जो कण के साहस का यु र बन पाता।
अजुन अपनी ओर से पूरा यास कर रहा था ले कन कण और ोण
क संयु श के काले मेघ, अजुन के परा म क ु त को ढँ क
bo
तो नह सके, तथा प कुछ पल के लए उसे फ का अव य कर दया।
परंतु अजुन तो फर अजुन था! शी ही वह अपने रौ प म लौट
आया। उसके ारा क जा रही भीषण बाण-वषा ने कौरव सेना के
बड़े-बड़े रणबाँकुर को धूल चटा द ।
e/
सहसा मने दे खा क कण ने एक मं ो चारण कया और अगले
.m
ही पल उसके हाथ म इं ारा द गई अचूक ‘श ’ आ गई। उसे
दे खते ही कृ ण ने तेजी से अजुन का रथ घुमाया और उसे कण से
ब त र द ण दशा म ले गए। अजुन को ीकृ ण के इस तरह
m
“श !” कृ ण ने एक श द म उ र दे ते ए कहा, “कण ने
जो अचूक श इं से ा त क थी, वह अब उसका योग करने
का नणय कर चुका है और अजुन, उसका वह ल य तुम हो! वा तव
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न त है!”
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“अब या होगा कृ ण? या मेरे ाण का कोई उपाय है या
फर…?”
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ीकृ ण कुछ पल सोचते रहे। उ ह कण के हाथ इतनी
सहजता से अपने सखा अजुन का वध होने दे ना वीकाय नह था।
“पाथ!” कृ ण ने अजुन के कंधे पर हाथ रखकर, उसे दलासा
ok
दे ते ए कहा, “तुम न त रहो। य द मेरे रहते ए तु हारा अ न हो
गया, तो मेरे होने का अथ ही या है? हम कण क श के लए
शी ही कोई उ चत ल य खोजना होगा।” ीकृ ण के उ र से
bo
न त होकर अजुन ने भावुक से वासुदेव क ओर दे खा और
फर अपना गांडीव उठाकर यु म रत हो गया।
तलाश थी जो कण क श के व e/
कृ ण को अब अजुन क र ा के लए कसी ऐसे यो ा क
अजुन का कवच बन सकता
.m
था। सं या-काल के समय कृ ण ने भीम से पूछा, “भीम, तुम इतना
मह वपूण और महान यु लड़ रहे हो, कतु मने अभी तक तु हारे
पु , घटो कच को नह दे खा। या उसे इस समय अपने पता के
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त भेजा। भीम का संदेश मलते ही, ह डबा ने घटो कच को तुरंत
अपने पता क सहायता हेतु कु े भेज दया। अगले दन सूया त
sm
के कुछ ही दे र बाद, रणभू म म घटो कच का आगमन हो गया।
मनु य के बीच हो रहे उस यु म घटो कच दै य को पांडव के प
म खड़ा दे खकर कौरव सेना म हाहाकार मच गया। भीम के
अ त र , पांडव अथवा कौरव म से कसी ने घटो कच को पहले
ok
कभी नह दे खा था। उसक काया इतना ऊँची थी क उसके समीप
खड़े होकर, उसके वा त वक आकार का अनुमान लगा पाना
bo
असंभव था।
कौरव सेना ने घटो कच पर बाण क वषा कर द । उनके तीर
घटो कच के तन से टकराते अव य थे, कतु घास के तनक क
e/
तरह टू टकर गर जाते थे। यहाँ तक क उस पर, ोण और कृपाचाय
ारा चलाए गए बाण का भी कोई भाव नह आ। उसके अ हास
.m
से कौरव यो ा के कान फट रहे थे और उ ह समझ म नह आ
रहा था क वे उस भीमकाय रा स से बचकर कस तरफ़ भाग! वे
कसी भी दशा म भागते, तो घटो कच लंबे डग भरकर उ ह तुरंत ही
m
सम त कौरव प के यो ा ने यह न कष नकाला क य द
घटो कच को तुरंत नह रोका गया तो दस दन से चल रहे उस
भीषण यु को वह अकेला एक ही दन म समा त कर दे गा।
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“कण, म तु हारे साधारण बाण क बात नह कर रहा। उस
तरह के बाण तो हमारे पास भी ह। तु हारे पास एक ऐसा द ा
sm
है, जो हम घटो कच से बचा सकता है।”
“कौन-सा द ा आचाय?” कण ने अचं भत होकर पूछा।
“इं ारा द गई अमोघ श ही अब हम घटो कच से बचा
ok
सकती है!” ोण ने प कया।
“आचाय, वह श मने अजुन को मारने के लए बचा रखी
bo
है!” कण प बात करने के लए स था।
अजुन का नाम सुनते ही ोणाचाय क मु ा बदल गई।
घटो कच को मारना अ नवाय था और उसके लए श का योग
e/
भी आव यक था, कतु ोण को य ही पता लगा क कण ने उस
श को अजुन के वध के लए बचा रखा है, उनका दय वच लत
.m
हो गया। उनका आ ह, सहसा हठ म बदल गया।
“तु हारा ऐसा सोचना ग़लत है, कण!” ोण ने कहा, “तुम जब
m
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मोह क वेद म एकल और कण जैसे वल ण धनुधर क द ता
अव य वाहा हो चुक थी!
sm
सहसा रणभू म म भीषण कतु ददनाक गजना ई। कुछ पल
के लए यु थम गया। ऐसा लगा मानो ब त दे र से व वंस मचा रहा
तूफ़ान थम गया हो! हम नकट प ँचे तो दे खा क घटो कच का
ok
न ाण शरीर भू म पर पड़ा था। कण ारा चलाई गई श ,
घटो कच क छाती के पार हो गई थी और उसका गहरा लाल र
रणभू म पर अ वरल बह रहा था। उसक वशाल काया के नीचे दोन
bo
प के सैकड़ सै नक दबकर मर गए थे।
घटो कच क मृ यु से पांडव सेना म शोक और चता क लहर
दौड़ गई। तभी मेरी
e/
ीकृ ण पर पड़ी और म यह दे खकर हैरान
रह गया क उनके चेहरे पर अवसाद क जगह हष के भाव थे
जससे यह प था क कृ ण को घटो कच के वध के ख से
.m
अ धक, अजुन क र ा होने क ख़ुशी थी। मने जैसा क पहले भी
कहा था क यु म दोन प , वजय एवं पराजय के म य लोलक
क भां त झूलते रहते ह। कसी एक क त, सरे का लाभ बन
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पराजय होने म अ धक समय नह लगेगा।”
“म जानता ँ,” ोणाचाय ने कहा, “आज म एक च ूह क
sm
रचना करने जा रहा ँ। इसे अजुन क अ त र कोई नह भेद
सकता। य द तुम अजुन को कसी तरह चालाक से यहाँ से र ले
जा सको तो उसक अनुप थ त म मेरा बनाया आ च ूह
ok
पांडव के लए मृ यु का ार बन जाएगा।”
“उ म, आचाय!” य धन का चेहरा स ता से खल उठा।
“यह तो ब त शानदार योजना है। म अभी संश तक से कहता ँ
bo
क वे सब मलकर अजुन को यु के लए ललकार और इस बहाने
से उसे द ण दशा क ओर ले जाएँ। उसके चले जाने के बाद आप
ूह-रचना आरंभ कर द जए।”
e/
योजना के अनुसार, य धन के कहने पर संश तक ने अजुन
.m
को यु के लए ललकारा, जसे सुनकर अजुन को उनके साथ यु
के लए जाना पड़ा। वे धीरे-धीरे अजुन को द ण दशा म रणभू म
से र ले गए, ोण ने उधर कु े म ूह-रचना आरंभ कर द ।
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आवाज़ थी।
“तुम!” भीम ने कहा, “व स अ भम यु, तुम इस च ूह को
sm
कैसे तोड़ोगे? तु हारे पता अजुन के अ त र कोई इसे भेदना नह
जानता!”
“आप ठ क कह रहे ह तात ी,” अ भम यु ने मु कराते ए
ok
कहा, “परंतु जब म अपनी माँ के गभ म था तो एक दन पताजी माँ
को च ूह-भेदन का तरीक़ा समझा रहे थे। मने वह तकनीक उसी
समय अपनी माँ के गभ म ही सीख ली थी!”
bo
“शाबाश पु !” यु ध र ने स तापूवक कहा, “अब हम
चता करने क कोई आव यकता नह !”
e/
“ कतु एक सम या है,” अ भम यु ने कुछ संकोच से कहा,
“मने ूह के भीतर घुसना तो सीख लया था, ले कन जस समय
.m
पताजी च ूह से बाहर नकलने क व ध माँ को बता रहे थे, उस
बीच माँ को न द आ गई और म बाहर नकलने क व ध सुन नह
पाया।”
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अपने सै नक क सहायता से ूह का माग बंद कर दया। च ूह
का माग बंद होने से अ भम यु के अ त र कोई भी पांडव यो ा
sm
च ूह म वेश नह कर सका। श ु ारा ूह भेदने के यास को
वफल करने हेतु मेरे साथ ूह के भीतर कण, ोणाचाय, कृपाचाय,
बृह ल और कृतवमा भी खड़े थे। अब ूह के अंदर हम छह
महार थय के बीच स ह वष का अ भम यु अकेला फँस गया था।
ok
इसके बाद जो कुछ आ, म आज भी उस य क क पना करता ँ
तो मेरा मन घृणा व ला न से सहर उठता है।
bo
अ भम यु भीतर अकेला था, ले कन उसने ह मत नह हारी।
वह अपने पता अजुन क ही भां त अ यंत परा मी था और वह
साहसपूवक अकेला लड़ता रहा। जस तरह नजन वन म ाध क
e/
टोली से घरा मृग छौना तेज दौड़ने और कुलाँचे भरने के बाद भी
कुछ ही दे र म नढाल हो जाता है, उसी तरह छह-छह महायो ा
.m
से अकेले लड़ते-लड़ते वीर अ भम यु भी शी ही थक गया। उसका
तन हमारे बाण व तलवार के हार से छलनी हो गया था। वह
लड़खड़ाता आ ज़मीन पर गर पड़ा। उसके कंध , बाँह और मुँह
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“तुम सब अपने आपको महारथी समझते हो?” अ भम यु
ब त मु कल से बोल पाया। “तुम लोग महारथी नह , अ पतु
sm
महाकायर हो। संसार म जब-जब इस महासमर क गाथा का
उ लेख होगा, तुम छह लोग के नाम पर मुझ नह थे और अकेले
यो ा को घेरकर कायरतापूण ढं ग से मारने का लगा कलंक कभी
साफ़ नह होगा। कायर ! इस कुकृ य के लए इ तहास तु ह मा
ok
नह करेगा!” इ ह अं तम वचन के साथ अ भम यु के ाण नकल
गए।
bo
मने यु म अन गनत सै नक को मार गराया था, कतु उस
यु म अ भम यु के वध से अ धक नमम शायद ही कुछ आ हो।
ूह के भीतर छह सश यो ा के हाथ नह थे अ भम यु क
e/
ह या, नममता क पराका ा के साथ-साथ कायरता क चरमसीमा
भी थी। मरते समय अ भम यु ने जो कुछ कहा, म उसका समथन
.m
करता ँ। इ तहास सा ी है क संसार ने हम छह यो ा को इस
कम के लए कभी मा नह कया!
इस बीच, अजुन संश तक को परा जत करके जब सायंकाल
m
“ य अजुन!” यु ध र ने कहा, “अ भम यु ने जब ूह का
ार तोड़ दया तो उसके पीछे हम लोग भी लगभग वेश कर चुके
थे, कतु तभी सधुराज जय थ ने हमारा माग रोक लया और उसके
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ह या क बात सुनी तो ोध से उसका तन आँधी म सूखे प े क
तरह काँपने लगा। उसके नथुने फूल गए और बाँह फड़कने लग ।
sm
सहसा अजुन के अ ु-पू रत ने म ोध क ला लमा उभर आई।
“जय थ!” वह श ु के श वर क दशा म दे खते ए
च लाया, “म यह त ा करता ँ क य द मने कल सूया त होने से
ok
पूव तेरा का वध करके अपने अ भम यु क ह या का तशोध नह
लया तो म आ म-दाह कर लूँगा!”
अजुन क इस भीषण त ा से जहाँ एक ओर पांडव के खेमे
bo
म हलचल मच गई, वह सरी ओर कौरव के लए इससे अ छा
समाचार और या हो सकता था! पांडव म सवा धक वीर और
e/
ख़तरनाक अजुन था और उसे समा त करने का यह व णम अवसर
था। उ ह केवल अगले दन, सूया त होने तक जय थ को अजुन क
से छपाकर रखना था!
.m
पांडव, जस समय, अजुन क त ा पर चता और
पूवाभासी शोक कर रहे थे, उस बीच कृ ण अपने य सखा
m
जाएगी।
अजुन अपनी सम त ऊजा के साथ रणभू म म उतरा और
आते ही जय थ को खोजने लगा। वह इतना उ े जत और परेशान
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भी समय उसके पास शेष है, उसम अपने क का पालन करते
ए अ धक से अ धक श ु का संहार करने का यास करे। परंतु
sm
आवेश और ोध से अजुन हतबु हो गया। वह उ म होकर
इधर-उधर दौड़ रहा था। अजुन का रथ रणभू म म इतनी तेज़ ग त से
घूम रहा था क रथ के नकल जाने के बाद सफ़ रथ के प हय से
उड़ी धूल दखाई दे ती थी!
ok
इसी भाग-दौड़ म पूरा दन नकल गया कतु जय थ का कह
पता न लगा। अजुन अपने ल य को पाने के लए इतना हो गया
bo
था क उसे यह भी यान नह रहा क सूया त होने म कुछ ही समय
शेष था। सरी ओर, कृ ण के हाथ रथ चला रहे थे कतु उनक
तेज़ी से ढलते सूय पर टक ई थी। दवस का अवसान नकट था।
e/
सूय क मंद होती येक करण के साथ अजुन का अंत नकट
आता था।
.m
सहसा कुछ आ जसने सव हलचल पैदा कर द । अचानक
चार ओर अँधकार छाने लगा, नभ म उड़ रहे प ी अपने-अपने नीड़
को लौटने लगे और आकाश सं याकाल क ला लमा से र म हो
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ीकृ ण क बात सुनकर जय थ और अजुन समेत सब लोग
आकाश क ओर दे खने लगे। यह सचमुच अद्भुत य था। आकाश
sm
म छाए बादल पूरी तरह छँ ट चुके थे और सूय अपनी पूण
ओज वता के साथ प म दशा म डू बने क तैयारी कर रहा था।
“अजुन, तु ह अब कस बात क ती ा है?” कृ ण ने अजुन
ok
से कहा। “तु हारा ल य तु हारे सामने है। अपनी त ा पूण करो
और अ भम यु क ह या का तशोध ले लो!” अभी ीकृ ण का
वा य पूरा भी नह आ था, क मने दे खा अजुन अपने वशाल
bo
गांडीव धनुष पर बाण साधे तैयार खड़ा था। कृ ण ने अजुन को फर
टोका, “एक बात का यान रखना। जय थ के पता वृ ने यह
भ व यवाणी क ई है क जो उसके पु जय थ का सर
e/
काटकर पृ वी पर गराएगा, उसके अपने सर के सौ टु कड़े हो
जाएँगे! इस लए तुम अपने बाण को इस तरह चलाओ क जय थ
.m
का सर कटकर उसी के पता क गोद म गर जाए। उसके पता
वृ , इस समय सं यावंदन म लीन ह। ज द करो, पाथ! सूया त
होने को है।”
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रहा था!
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य धन क बात म स चाई थी और इसी लए, वह बात मेरे
पता को चुभ गई। यह सच था क धृतरा क राजसी कृपा का पा
sm
होने के बावजूद ोण क आस पांडव , वशेषकर अजुन के त,
इतनी अ धक थी क वे साम यवान होते ए भी पांडव का अ न
नह कर पा रहे थे। परंतु य धन के वर म कटु ता को दे खते ए
ोण के लए अब यह नणय लेना आव यक हो गया क वह पांडव
ok
के त आस और कौरव के त क - न ा म से कसे चुनते
ह।
bo
जीवन के अं तम ण म ोणाचाय जैसे व - व यात गु
को अपने माथे पर कत क अवहेलना का कलंक लगवाना
वीकार नह था। उ ह ने अपने अ -श सँभाले और य धन को
e/
उसी के तीखे वर म उ र दया, “ य धन, तु हारी बु
है। वजय पाने क लालसा म तु ह उ चत-अनु चत का भी भान नह
हो गई
.m
रहा। म तु हारी ओर से यु लड़ रहा ँ और पूरी न ा से लड़ रहा
ँ, फर भी य द तु ह मेरी न ा पर संदेह है तो म यह शपथ लेता ँ
क आज ऐसा भीषण यु क ँ गा क श ु-प के दल दहल
m
अ -श और यु -कौशल से शी ही यु का पलड़ा फर से
कौरव-प क ओर झुका दया। उनका रथ समरभू म म व ुत से
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वहाँ क धरती श ु के शव से पट जाती थी। पांडव के लए ोण
को रोकना आव यक था। परंतु पृ वी के सव े धनुधर के गु को
sm
रण म रोकना या परा जत करना कोई हँसी-खेल नह था!
अजुन ने अपने गु का ऐसा वीभ स और रौ प पहले नह
दे खा था। उसे समझ नह आया क ोण क बाण-वषा और उनके
ok
द अ -श को रोकने के लए वह या करे! अजुन को पहली
बार यु करते समय भय महसूस हो रहा था। ीकृ ण ने त काल
अजुन क शंका और उसके भय को भाँप लया।
bo
कृ ण ने रथ रोककर अजुन से कहा, “अजुन! तुम यह भली-
भां त जानते हो क ोणाचाय धनुधा रय म सव े ह और जब तक
e/
इ ह ने अपने हाथ म धनुष पकड़ा आ है, उ ह दे वराज इं भी
परा जत नह कर सकते। य द तुम ोणाचाय को रोकना चाहते हो
तो कोई ऐसा उपाय करो क वे अपना धनुष नीचे रख द। वही ण
.m
होगा जब तुम ोण का वध कर सकोगे!”
“माधव!” अजुन ने आ य से कहा, “यह आप या कह रहे
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सरककर नीचे आ गरा था। याद है, अजुन?”
“हाँ याद है, कृ ण!” अजुन ने अ भम यु के वध के ददनाक
sm
पल को याद करते ए कहा, “म उन ण को कैसे भूल सकता ँ?
अपने पु क मृ यु का समाचार सुनकर कस पता के कंधे से
उसका धनुष नह छू ट जाएगा?”
ok
“म तु ह यही समझाने का यास कर रहा ँ पाथ क
ोणाचाय के हाथ से उनका धनुष नीचे रखवाने का अब केवल यही
एक माग है क उ ह अ थामा क मृ यु का समाचार सुनाया
bo
जाए!” ीकृ ण ने मु कराते ए कहा।
“अ थामा क मृ यु!” अजुन का मुँह खुला रहा गया। “परंतु
e/
केशव, अ थामा तो जी वत है! वह पूव दशा म नकुल-सहदे व के
साथ घमासान यु लड़ रहा है। आचाय ोण से इतना बड़ा झूठ
.m
कौन बोलेगा? य द एक ण को मान भी लया जाए क उनसे
कसी ने यह बात कह द तो भी आचाय इस बात पर इतनी सरलता
से न तो व ास करगे और न ही अपना धनुष छोड़गे।”
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केशव!” अजुन ने घबराकर ज द से उ र दया।
“तो फर म जैसा कहता ँ, वैसा ही करो!” ीकृ ण बोले,
sm
“भीम से कहो वह त काल अपनी गदा से इं वमा के हाथी का वध
कर दे और फर ोण से कहे क ‘अ थामा मारा गया।’ ज द
करो, अजुन! हमारे पास गँवाने के लए समय नह है।”
ok
कृ ण से तक करने का कोई अथ नह था। अजुन ने त काल
भीम को संदेश भजवा दया। कुछ ही दे र बाद भीम र से सनी
अपनी भयंकर गदा लेकर ‘अ थामा मारा गया! अ थामा मारा
bo
गया!’ च लाता आ ोण के सम जा खड़ा आ। म सचमुच उस
समय पूव दशा म पहाड़ी क तलहट के पास नकुल और सहदे व से
यु कर रहा था।
e/
ोण ने भीम के मुँह से ये कठोर वचन सुने तो वे त ध रह
.m
गए। उ ह ने भीम को दे खा। उसक व णम गदा के चमचमाते शीष
और मूठ से ताज़े र क बूँद टपक रही थ । ोण उसे एकटक
दे खते रहे। उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे। उनक मु ा पहले-सी
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मु कराते ए बोले, “आचाय ोण! न संदेह अ थामा अ यंत
बलशाली और परा मी था कतु यह स य है क उसका तन भीम
sm
क गदा के हार को अ धक दे र नह झेल सका। आप वयं ही
बताएँ क अ थामा क मृ यु पर आप कैसे व ास करगे!” कृ ण
म यह वल ण गुण था क वह अपने घोर श ु से बात करते ए भी
मु करा लेते थे और अपनी मधुर बात से कसी को भी अपने वश म
ok
कर सकते थे।
कृ ण क बात सुनकर ोण सोच म डू ब गए। एक लंबे वराम
bo
के बाद उ ह ने कृ ण से कहा, “इस पूरी पृ वी पर केवल यु ध र है,
जो तीन लोक का रा य पाने के लोभ म भी कदा प झूठ नह बोल
सकता। य द यु ध र अ थामा क मृ यु क पु कर दे , तो म यह
बात मान लूँगा!”
e/
अजुन और भीम एक- सरे को दे खने लगे। उ ह ोण से इस
.m
कार क शत क अपे ा नह थी। ोण क बात सुनकर यु ध र
को आगे आना पड़ा। मने यु ध र के म तक पर चता क ऐसी
गहरी लक र इससे पहले कभी नह दे खी थ । उसे समझ म नह आ
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एक पता के लए उसके पु क मृ यु से अ धक खद या हो
सकता है! ोण ने अपना धनुष नीचे रख दया और नीचे बैठ गए।
sm
ीकृ ण के पास हर सम या क काट थी!
बड़े-बड़े महार थय को पल-भर म धूल चटा दे ने वाला वह
महान यो ा आज वयं धूल म बैठा अ ु बहा रहा था। जन कुशल
ok
हाथ ने कतने ही राजकुमार को धनु व ा म स ह त बना दया
था, आज उन हाथ म न तो धनुष उठा पाने का साम य शेष था और
न ही यु क इ छा बाक़ रह गई थी। अ थामा क मृ यु का
bo
समाचार सुनकर, ोण अंदर से इतने टू ट गए क उ ह ने धरती पर
बैठे-बैठे आँख बंद कर ल और योग न हो गए।
e/
अजुन उस समय ोण क पीड़ा को भली-भां त महसूस कर
पा रहा था। जस महान गु ने पांडव को सव े यो ा और कुशल
धनुधर बनाने के लए अपना जीवन सम पत कर दया, आज उसका
.m
अपना जीवन उ ह पांडव के म या-वचन के कारण संकट म था।
अजुन का मन ला न से भर आया परंतु अब दे र हो चुक थी। कृ ण
के तरकश से नकला बाण न फल नह जा सकता था। अजुन ारा
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अगले ही पल ोण का सर धरती पर लुढ़क गया। ोण के शरीर से
र क धार फूट और उनके आस-पास क भू म त काल र रं जत
sm
हो गई।
यु म कोई नह थे श ु पर वार नह करेगा! नह थे ोण क
ह या के साथ, अ य नयम क भां त, महायु का यह नयम भी
ok
टू ट चुका था। इस महायु क यह अनोखी वशेषता थी क इसके
आरंभ म बनाए गए लगभग सम त नयम, यु के अंत तक तोड़े
जा चुके थे।
bo
म जब सं याकाल म यु से लौटा तो दे खा क श वर म शोक
और मातम छाया आ था। मेरे वेश करते ही सब मेरी ओर व च
ढं ग से दे खने लगे। मने आस-पास
e/
दौड़ाई तो दे खा क हमारी
सेना के सभी मुख यो ा मौजूद थे। अपने पता को वहाँ न दे ख,
मेरा दल बैठ गया! म आगे को दौड़ा और फर सहसा, ठठककर
.m
क गया। मेरे पता व गु ोणाचाय का ख़ून से लथपथ सर वहीन
शव ज़मीन पर पड़ा था। मुझे याद नह क उस समय, मुझे ोध
और ख म अ धक या महसूस हो रहा था!
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असंभव है!”
“तुम ठ क कहते हो पु !” मामा कृपाचाय ने हाथ से मेरे आँसू
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तन काँप रहा था। मने सबके सम गरजकर कहा, “मेरे पता वीर
क भां त लड़ते ए मृ यु को ा त ए ह, इस लए अब म उनके
sm
लए अ धक शोक नह क ँ गा। परंतु मेरे पता ने ह थयार डाल दए
थे, फर भी उस अधम धृ ु न ने न केवल उनके केश पकड़कर
उ ह सबके सामने अपमा नत कया, ब क नह था होने के बावजूद
उनक ह या कर द । इसके लए म उस पापी धृ ु न को कभी
ok
मा नह क ँ गा! उसे अपने पाप का प रणाम भोगना पड़ेगा!”
सहसा मेरे मेरी आँख के सामने वह य उभर आया जब हम
bo
छह महार थय ने मलकर ोण- न मत च ूह के अंदर फँसे
अकेले व नह थे अ भम यु को नममता से मार डाला था। या
नय त ने ोण को एक मान सक ूह म फँसाकर मरने पर ववश
नह कर दया था? कह ऐसा तो नह क नय त ने नह थे
e/
अ भम यु क ह या के कारण उसके पता को ई घोर पीड़ा का
.m
तशोध मेरे पता क ह या के फल व प मुझे यह घोर पीड़ा दे कर
लया था?
जो भी हो, म अपने पता क ह या से इतना अ धक उ म हो
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य धन मेरी वेदना क अ न म अपने र को गम करने का
यास कर रहा था! वह धीरे-धीरे मुझे पांडव के व उकसा रहा
sm
था। वह और उसक सेना पछले पं ह दन म पांडव का सवनाश
करने म वफल रहे थे और इस लए अब य धन ने मेरी आहत
भावना को अपना अ बना लया था। म अपने पता क ह या
से इतना ु ध था क मने वयं को भावावेश म बह जाने दया।
ok
“कल सुबह,” मने आगे कहा, “जब म रथ म बैठकर रणभू म
म उत ँ गा तो मुझे पांडव तो या, दे वता, गंधव, असुर, नाग और
bo
रा स भी नह रोक सकगे! म कल ही पांडव क संपूण सेना को
म म मलाकर रणभू म म लय क थ त पैदा कर ँ गा। ब त
हो गई ीकृ ण क लीला!” यह कृ ण के व मेरी थम ट पणी
थी।
e/
“ब त अ छा!” य धन ने कहा, “परंतु अजुन को कम न
.m
आँको, अ थ! मत भूलो क वह सव े धनुधर ही नह , अ वे ा
भी है। उससे अ धक अ -श का ान कसी को नह है। ऐसे म
या अजुन को परा जत कर पाना संभव…”
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वह रात, सुबह क ती ा करते कट गई। अगले दन यु
आरंभ होने पर मने आचमन एवं मं ो चारण कया। अगले ही ण
sm
वह द नारायणा कट हो गया। यह उसी अ क ही म हमा
थी क सहसा आकाश म मेघ गरजने लगे और तेज हवा बहने लगी।
मौसम को यूँ बदलता दे ख दोन ओर क सेनाएँ अ यंत हैरान थ ।
चार ओर से भयानक गजन सुनाई पड़ रहा था। समु म तूफ़ान
ok
उठने लगा और बड़ी-बड़ी न दय ने अपने वाह क दशा बदल द ।
पवत के शखर टू टकर बखरने लगे। कुल मलाकर, ऐसी थ त
bo
बन गई, जसे दे खने से ही लय का एहसास होने लगा। यो ा
अपनी-अपनी जगह पर क गए और सभी क मेरे हाथ म
मौजूद नारायणा पर टक गई। मुझे अचानक याद आया क
e/
भगवान नारायण ने अपना वह अ मेरे पता ोण को दे ते ए कहा
था क इसका योग उ मा दत होकर नह करना चा हए। इस वचार
ने मेरे हाथ को रोक लया। म सोच म पड़ गया।
.m
“सोच म मत पड़ो, अ थामा!” य धन क आवाज़ मेरे
कान म पड़ी। शायद उसने मेरी वधा को भाँप लया था और वह
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उ ह ने त काल पांडव को एक जगह बुलाकर कहा, “नारायणा
को शांत करने का बस एक ही तरीक़ा है क इसके सामने ह थयार
sm
डालकर सर झुका दया जाए। चूं क अ थामा ने इसका योग
मु य प से हमारे व कया है तो अब तुम सब लोग अपने-
अपने रथ से नीचे उतर आओ और अ -श छोड़कर नारायणा
को णाम करो, अ यथा आज तुम सबक मृ यु न त है!”
ok
ीकृ ण क वाणी क अवहेलना करने से बड़ी मूखता या हो
सकती थी! पांडव ने अपने-अपने श ा द छोड़ दए और वे सब
bo
त काल रथ से नीचे कूद आए। उ ह ने सर झुकाकर उस अनोखे
द ा को नमन कया। ऐसा करते ही नारायणा शांत हो गया।
e/
म यह मानता ँ क य द य धन ने ीकृ ण क नारायणी
सेना वीकार करने क मूखता न क होती तो पांडव के लए वह
यु जीत पाना असंभव था। परंतु यह भी कहाँ संभव था! आ ख़र,
.m
धम तो पांडव के साथ ही था। जहाँ धम है, वह कृ ण ह और जहाँ
ीकृ ण ह, वह तो वजय है!
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यु लथपथ
क वनाश-लीला जारी थी। चार ओर चरे-कटे और ख़ून से
शव के ढे र लगे ए थे। रणभू म म शायद ही कोई थान
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गया। यु कौशल म तो वह पारंगत था ही, वह साहस एवं परा म
म भी बेजोड़ था। अजुन क भां त उसके पास भी अनेक कार के
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द ा थे। वह बीच-बीच म उनका योग करता था जनका
सामना करना पांडव सेना के लए भारी पड़ जाता था। मु य प से
यु उस समय अजुन और कण के बीच चल रहा था। दोन एक-
सरे के र के यासे थे। उनके बीच हो रहे संघष को दे खने से यह
ok
प था क दोन म से एक क मृ यु के बाद ही यु थमेगा। इस
बात से मुझे एक बात और याद आई। मह ष वासा से कुंती को
bo
मले वरदान के फल व प पांडव के ज म क कथा सुनाते समय
मने कहा था क कभी-कभी वरदान भी अ भशाप बन जाते ह। मने
उस समय एक रह य के वषय म भी बात क थी। उस रह य को
कट करने का अब समय आ गया है!
e/
मह ष वासा से वरदान पाकर कुंती इतनी स हो गई क
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उसके मन म वरदान को परखने का इ छा जा त हो गई। उसने
सबसे पहले सूयदे व का आ ान कया। वरदान के झूठा होने का
कोई नह था! सूयदे व कट हो गए। कुंती ने उ ह णाम कया
m
लया। कुंती उस समय अ ववा हता थी। उसके लए, ववाह से पूव
अपने शरीर का दान करना संभव नह था। तब सूयदे व ने अपनी
द श से, बना पश कए, कुंती के गभ म एक पु था पत
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कुछ समय बाद, वह टोकरी बहती ई यमुना नद से गंगा नद म जा
प ँची। वह टोकरी जस समय चंपापुरी े से बहती ई जा रही
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थी, उसे धृतरा के सारथी, अ धरथ ने दे ख लया। अ धरथ
न संतान था, तो वह उस द बालक को भगवान का साद
मानकर अपने घर ले आया। इसके बाद अ धरथ और उसक प नी
राधा ने मलकर उस बालक का पालन-पोषण कया।
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आपका अनुमान सही है! यही बालक बड़ा होकर कण
कहलाया! हाँ, यही पूण स य है क कण वा तव म कुंती-पु था
bo
और इस नाते वह पांडव का ये भाई था। इससे भी अ धक
आ य क बात यह है क कण और कुंती दोन ही इस रह य को
यु आरंभ होने से पहले से जानते थे! यु के बाद जब मेरे मामा
e/
कृपाचाय ने मुझे यह बात बताई तो मने उनसे सबसे पहला
कया, “ या कुंती ने कण को उसके ज म क बात बताकर उसे
यही
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पांडव के साथ रहने के लए आ ह नह कया? सब कुछ पता
लगने के बाद भी कण ने य धन का साथ य दया और अपने
भाइय के व यु य कया?”
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इसके बाद कुंती ने कण को वासा से मले वरदान और
सूयदे व के अंश से कण के ज म क कथा सुनाई। कुंती ने कण के
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सामने रो-रोकर माँ का दा य व न नभा पाने के लए उससे मा भी
माँगी।
“मुझे मा कर दो पु ,” वह बोली, “मने लोक-लाज के भय
ok
से तु ह ज म के समय याग दया और अपने कुल क क त
अ ु ण रखने के लए तु हारा भ व य और वतमान खं डत कर
दया! म अपना अपराध वीकार करती ँ और तुमसे ाथना करती
bo
ँ क तुम अपने भाइय के साथ मलकर रहो। म तु ह वचन दे ती ँ
क यु ध र और उसके अनुज तु ह यथो चत स मान दगे और तुम
इं थ के राजा बनोगे! य धन और कपट है। वह जानता है
e/
क तु हारी सहायता के बना वह यु नह जीत सकता। उसका
साथ छोड़ दो, कण!”
.m
कुंती ने एक ास म सबकुछ कह दया, जो इतने वष से वह
अपने मन म दबाए बैठ थी। कुंती को व ास था क अपनी
वा त वक माता को सामने दे खकर कण न केवल ह षत हो जाएगा
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“परंतु पु ,” कुंती ने मुझे टोकते ए कहा, “ य धन ने यह
सब वाथ के वश कया है। उसने पांडव से तशोध लेने के लए
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तु ह केवल अपना मोहरा बनाया है।”
“म जानता ँ,” कण ने दो टू क उ र दया। “परंतु य द मेरे
ज म के समय आपके ारा वाथवश मेरा याग करना उ चत है, तो
ok
य धन ारा वाथवश मुझे अपनाना अनु चत कैसे हो सकता है?
रंगभू म म पांडव मेरे वषय म कुछ नह जानते थे, परंतु य धन भी
मुझसे अंजान था, फर भी उसने एक स चे यो ा क भां त मेरा
bo
स मान कया। म आज जो कुछ ँ, य धन के कारण ँ, अ यथा
लोग ने तो मुझे ‘सूतपु ! सूतपु !’ कहकर मेरे आ म- व ास को
चूर-चूर कर दया था। आज व तु थ त जो भी हो, कतु अब म
य धन के साथ व ासघात नह कर सकता।”
e/
कण से स य कहकर कुंती के मन का बोझ अव य ह का हो
.m
गया था, कतु कण का ढ़ संक प दे खकर और उसका कटा
सुनकर कुंती क आ मा पर कई गुना बोझ आ पड़ा। वह समझ गई
क कण को पांडव के प म करना संभव नह होगा। तब हताश
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अजुन को था।
“ओह!” कण के चेहरे के भाव बदल गए। “मुझ पर य धन
के उपकार का ऋण है और यु म य धन के श ु का नाश
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करना मेरा दा य व है। परंतु म आपको भी नराश नह क ँ गा। म
आपके सभी पु को मार सकता ँ, कतु म आपको वचन दे ता ँ
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क अजुन को छोड़कर म यु ध र, भीम, नकुल व सहदे व - इनम से
कसी का वध नह क ँ गा। मेरा मुक़ाबला मु य प से अजुन से है
और उसके वध से ही मुझे यश व संतोष मलेगा। य द म मारा गया
तो अजुन जी वत रहेगा और य द अजुन मारा गया तो म जी वत
ok
र ँगा। इस तरह, दोन ही थ तय म आपके पाँच पु अव य
जी वत रहगे! आशा करता ँ क यह आपको वीकाय होगा। अब
bo
मुझे आ ा द जए। णाम!” यह कहकर कण मुड़ा और कुंती को
उसक वधा के साथ वह खड़ा छोड़ चला गया।
कुंती को वह पल याद आ रहा था जब उसने न हे कण को
e/
टोकरी म लटाकर नद म बहा दया था। उस समय कुंती ने अपने
स मान क र ा हेतु अपने पु को याग दया था, आज उसी पु ने
.m
अपने स मान एवं वचन क र ा के लए अपनी माँ का प र याग कर
दया था! या नय त कुंती से तशोध ले रही थी?
इस बीच अजुन और कण का आमना-सामना हो गया। उन
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थकान से न द आने लगी तो वे कण क गोद म सर रखकर सो गए।
उसी समय एक क ड़ा, कण क जाँघ पर चढ़ गया और उसे काट
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लया। क ड़े के दं श से कण को भयंकर दद आ और उसक जाँघ
से ख़ून बहने लगा। कण को अपने गु क न ा भंग हो जाने का डर
था, इस लए उसने अपना पाँव नह हलाया। घाव से ख़ून बहने लगा,
कतु कण उस पीड़ा को सहन करके शां त से बैठा रहा और अपने
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गु के उठने क ती ा करता रहा। कुछ ही दे र म कण क जाँघ से
बहता आ र परशुराम के चेहरे पर टपक गया तो उनक न द
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खुल गई और वह उठ बैठे। परशुराम ने दे खा क कण क जाँघ से
काफ़ ख़ून बह चुका था। उ ह ने कण से पूछा तो उसने परशुराम को
बताया क उनक न ा भंग होने के डर से, वह उस भयंकर पीड़ा
स ह बार
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को सहन करता रहा। परशुराम को यह समझते दे र न लगी क इतनी
पीड़ा सहन करना कसी ा ण के लए संभव नह है। पृ वी पर
य का संहार करने के बाद परशुराम के लए य
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र क गंध पहचानना क ठन नह था! उ ह ज़बरद त ोध आ
गया और वह बोले, “मूख! तूने अपने गु को धोखा दया है। तू
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है। परशुराम ोधी होने के साथ-साथ अहंकारी भी थे! उ ह ने कण
को मा नह कया और कण अपनी अकुलीनता के बोझ एवं
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परशुराम के शाप से त नराश होकर आगे चल दया।
इस घटना के बाद कण को लगा क वह अपने ल य के नकट
प ँचकर, उससे ब त र हो गया था। उसने हताश होकर फर से
ok
अपनी या ा आरंभ कर द । कुछ समय बाद, वह घूमता आ एक
गाँव के नकट प ँच गया। उस समय तक अँधेरा हो गया था तो कण
ने रा ने उसी गाँव म बताने का न य कया। रात म वह एक वृ
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के नीचे लेटा आ था। सहसा उसने झा ड़य के समीप सरसराहट
सुनी। वहाँ कसी जंगली पशु को खड़ा समझकर, कण ने उस पर
श द-भेद बाण चला दया। उसका नशाना अचूक था। वह पशु,
e/
क ण ची कार करता आ नीचे गर पड़ा। कण ने नकट जाकर
दे खा क उसके हाथ भूल से एक नद ष गाय क ह या हो गई थी!
.m
कण भयभीत हो गया। वह जानता था क गाय के वामी को इस
बात का पता लगते ही वह कण को दं ड दे ना चाहेगा। कण चाहता तो
वहाँ रा म से भाग सकता था कतु वह भा यशाली अव य था,
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कोई अ य वक प नह था।
म फर से कण और अजुन के यु पर लौटता ँ। दोन ही
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क गया। उसने नीचे झुककर दे खा क रथ का बायाँ प हया जमीन
म धँस गया था जससे उसका रथ एक ओर झुकने लगा। यु म
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अ -श और यु -कौशल जतने आव यक होते ह, उतना ही
मह व रथ क थ त का भी होता है। कण का रथ बाय ओर
झुकता जा रहा था। उसके घोड़े लड़खड़ाने लगे। रथ के प हये को
बाहर नकाले बना कण के लए आगे बढ़ना संभव नह था। वह
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नीचे कूदा और पूरी श से रथ के प हये को ख चने का यास
करने लगा। ब त को शश करने के बाद भी प हया नह हला। कण
bo
क थ त असहाय हो रही थी। कण ारा जस ा ण क गाय क
ह या हो गई थी, उसका शाप अपना भाव दखाने लगा था। कण
के माथे से पसीना टपक रहा था। उसने सम त ऊजा रथ का प हया
e/
नकालने म लगा द , कतु प हया ऐसा धँसा क फर नकला ही
नह !
.m
इधर अजुन ने अवसर दे खकर कण पर बाण क वषा कर द ।
उसके बाण के हार से कण का कवच कट गया और उसके शरीर
से र बहने लगा। उसने सर उठाकर अजुन को दे खा और बोला,
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खेलने के बहाने, हमारे साथ छल कया और हमारा रा य छ न
लया, उस समय तु हारे धम का कहाँ लोप हो गया था? जब तुम
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छह लोग ने मलकर मेरे नह थे पु अ भम यु क नममता से ह या
क थी, या तु हारा वह कृ य धम के अनुसार था? तेरह वष बीत
जाने के बाद भी तुमने और तु हारे कु टल म य धन ने पांडव का
रा य नह लौटाया, उस समय तु ह धम क याद नह आई? तुमने
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सदा से अधम का साथ दया है और जब मृ यु तु हारे सर पर खड़ी
है तो तुम धम क हाई दे रहे हो?”
bo
कण से अजुन का कटा सहन नह आ। उसने परशुराम से
ा त द ा का आ ान करने हेतु अपना हाथ ऊपर उठाया और
उन अ से संबं धत मं ो चारण आरंभ कया कतु उसे यह
e/
जानकर ब त आ य आ क भरपूर यास के बाद भी उसे कोई
मं याद ही नह आ रहा था। अभी ा ण के शाप का भाव पूरा
.m
भी नह आ था क परशुराम का शाप भी उसके साथ जुड़ गया।
कण को लगा क वह परशुराम से ा त सम त व ा भूलता जा रहा
है। कण ने यह क पना भी नह क थी क दोन शाप उसके जीवन
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ण के लए अपने पु क मृ यु से शोकाकुल हो गए थे! कण क
मृ यु से कौरव सेना, वशेषकर य धन के हौसले पूरी तरह प त हो
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गए थे। य धन ने अपने जस सबसे व सनीय एवं कुशल यो ा-
म के भरोसे पर यह यु लड़ने का ख़तरा उठाया था, वही उसे
अकेला छोड़कर चला गया!
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य धन ने आकाश क ओर दे खा। उसे अपने ऊपर बादल
मँडराते ए दखाई दए। कह ये पराजय के बादल तो नह थे? वह
घबरा गया। वह शव से पट रणभू म को ताकने लगा। पं ह दन
bo
पहले तक यारह अ ौ हणी सेना का नायक य धन समरभू म म
अकेला खड़ा था। य धन और उसके कुछ सै नक के अ त र
अब रणभू म म केवल म, कृपाचाय और कृतवमा जी वत बचे थे!
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इ तने दन तक नरंतर यु
गया था। इसके अ त र
करने से य धन का शरीर श थल हो
, अपनी सेना के संहार और सामने
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इधर पांडव को य धन के सरोवर म छप होने क बात का
पता लगते दे र न लगी। वे सब ीकृ ण स हत सरोवर तक आ गए।
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य धन अपनी योगश और माया से सरोवर के ब त अंदर छपा
आ था और दखाई नह दे रहा था। यु ध र ने बाहर से ही य धन
को ललकारा, “ य धन! कायर क भां त सरोवर के अंदर छप कर
य बैठे हो? दे खो, हम सब पांडव यह आ गए ह। बाहर आओ,
ok
और हम मारकर अपने रा य का उपभोग करो!”
कुछ पल बाद सरोवर के अंदर से य धन का वर सुनाई पड़ा,
bo
“यु ध र! तुम कस रा य को भोगने क बात कर रहे हो? अब न
मेरे भाई जी वत ह और न कोई अ य नाते- र तेदार। मने जन लोग
के लए यह यु आरंभ कया था, जब वे लोग ही नह रहे तो अब
e/
इस यु का या औ च य है और इस रा य को भोगने म या सुख
है? म चा ँ तो अकेला ही तुम पाँच को अपनी गदा के हार से
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यमलोक प ँचा सकता ँ कतु अब मेरी च न इस यु म है और
न ही राज-पाट म। अ छा होगा क तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो
और आनंद से अपने भाइय के साथ रहो!”
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म इस महायु म अपनी पराजय वीकार कर लूँगा और यह रा य
भी तु हारा हो जाएगा और य द तुम परा जत होकर मारे गए, तब तो
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तु ह वगलोक मलना ही है!”
मने यु ध र क ओर दे खा। मुझे उसक बात पर व ास नह
हो रहा था। य धन ने गदा-यु कृ ण के बड़े भाई बलराम से सीखा
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था और इस कला म उसका मुक़ाबला करना भीम के अ त र
कसी के लए संभव नह था। तो फर, यु ध र ने ऐसी मूखता भरी
बात कैसे कह द ? इस लोभन के पीछे यु ध र क कौन-सी चाल
bo
छपी थी?
म अभी सोच ही रहा था क य धन भीषण गजना के साथ
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सरोवर से बाहर नकल आया और बोला, “यु ध र! म थका आ
अव य ँ कतु इतना बल नह ँ क अपने से कसी कमज़ोर
यो ा से यु क ँ । म तु हारे साथ अथवा अजुन, नकुल या सहदे व
.m
के साथ गदा-यु करके संसार को अपने ऊपर हँसने का अवसर
नह ँ गा। म इ तहास को यह कहने का मौक़ा नह ँ गा क य धन
इस लए जीत गया य क उसने अपने लए बल त ं का
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उसक आवाज़ एक मु त तक हवा म गूँजती थी जसे सुनकर
य धन व मत हो जाता था। य धन भी अपने पतरे बदलकर
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भीमसेन को अचरज म डाल दे ता था। दोन क गदाएँ जब टकरात ,
तो चगा रयाँ फूट पड़ती थ और उनक आवाज़ से आस-पास के
वृ पर बैठे प ी अपने नीड़ छोड़कर उड़ जाते थे। दो यो ा के
बीच ऐसा भयानक गदा-यु शायद ही कभी लड़ा गया हो।
ok
ब त समय तक लड़ते ए भीम और य धन के तन ल लुहान
हो गए। ऐसा लग रहा था, य द वह यु रोका न गया तो वह अनंत
bo
काल तक चलता रहेगा और एक- सरे के र के यासे दोन
महारथी इसी कार लड़ते रहगे। तभी मेरी कृ ण क ओर गई
जो अपने हाथ से भीम को कुछ संकेत कर रहे रहे थे। इधर ीकृ ण
भीमसेन ने पूरी श e/
ने अपना बायाँ हाथ अपनी बा जाँघ पर थपथपाया और उधर
से अपनी गदा य धन क बा जाँघ पर दे
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मारी। न त प से य धन क जाँघ टू ट गई थी। वह लड़खड़ाते
ए च लाया, “भीम! तु ह ध कार है! बलराम जी का श य होकर
तुमने गदा-यु के नयम को तोड़ा है! या तु ह यह नह पता क
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वैर नह था। हमने भी पांडव को रोकने अथवा उनसे लड़ने का
यास नह कया य क हमारे लए उस समय य धन को
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सँभालना अ धक मह वपूण था।
मने और कृपाचाय ने य धन को श वर म ले जाना चाहा,
कतु उसने मना कर दया। वह बोला, “म एक यो ा ँ और म
ok
यो ा क भां त रणभू म म ाण यागकर अपनी क त को कलं कत
होने से बचा सकूँगा। अ थामा, मुझे खु़शी है क तुम अभी जी वत
हो। तुम अव य सबको बताना क य धन यु म पीठ दखाकर
bo
नह भागा और न ही उसने कसी बल से यु करना वीकार
कया। तुम यह भी कहना क भीमसेन ने नयम के व हार
करके य धन को मारा है। मेरे साथ छल आ है अ थामा! मेरे
साथ छल आ है!” यह कहकर य धन ससकने लगा। उसका
e/
चेहरा म से सना आ था। यारह अ ौ हणी सेना का वामी,
.m
समरभू म म धूल-धूस रत, अकेला, घायल और असहाय पड़ा ाण
याग रहा था।
अं तम ास लेने से पूव य धन ने कृपाचाय से कहकर जल
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तरह के वृ व लता से भरा एक वन था। हमने चार ओर
घुमाई तो एक वशाल वटवृ दखाई दया। सं या हो चुक थी और
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अँधकार हो चला था। हमने रात वह बताने का न य कया।
अ य धक थकान के कारण कृपाचाय और कृतवमा को न द
आ गई। म भी सोना चाहता था कतु मेरा मन रोष व ोध से भरा
ok
आ था। म ब त दे र तक वटवृ के प के बीच से टम टमाते
तार को दे खता रहा। सहसा मेरी एक भयंकर उ लू पर पड़ी,
जो कह से अचानक उड़ता आ आया और उसने वृ पर घ सल
bo
म सो रहे कौ को नोचना-मारना शु कर दया। उस एक उ लू ने,
दे खते ही दे खते, अनेक सोते ए कौव को मार डाला और फर वहाँ
से उड़ गया। उ लू का ऐसा कपटपूण वहार दे खकर म आ य म
e/
पड़ गया। अचानक मुझे लगा क वह उ लू मुझे कुछ संदेश दे ने
आया था। रा म सोते ए श ु पर वार करके उसे मार डालने का
.m
संदेश!
मेरे दमाग़ म तुरंत यही वचार आया क वजयो लास म चूर,
पांचाल भी कौव क तरह अपने श वर म सो रहे ह गे। उ ह मारने
m
कृपाचाय को जगाया।
“मामाजी उ ठए!” मने कृपाचाय से कहा, “मेरा मन ब त
बेचैन है और मुझे न द नह आ रही है।”
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“ या बात है? तुम इतने परेशान य हो?”
इसके बाद मने कृपाचाय को उ लू और कौव वाली घटना
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बताई और यह भी बताया क उससे ेरणा लेकर कस तरह मेरे मन
म सोते ए श ु को मार डालने का वचार आया था।
मेरी बात सुनकर कृपाचाय त ध रह गए। ऐसा नह था क
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वह श ु का हत चाहते थे, कतु शायद वे कसी सोते ए ाणी को
मारने के प म नह थे।
bo
वे मुझे नेहपूवक समझाने लगे, “ य अ थामा, म तु हारा
ख समझता ँ। जस तरह पांडव ने छल से तु हारे पता को और
फर य धन को मारा है, वह न य ही धम- व और नदनीय है।
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इसके बाद भी, मेरी बात मानो और अपने मन को क़ाबू म रखो।
ऐसा कोई काय मत करो जसके कारण तु ह बाद म प ाताप करना
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पड़े। शा कहते ह क जो सोया आ हो, जसने श रख दए ह ,
रथ और घोड़े खोल दए ह , जो शरणागत हो, जसके बाल खुले ए
ह और जसका वाहन न हो गया हो, उसका वध करना धम ारा
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बने रहे। परंतु तुमने य धन के अधम काय म कभी मुखर प से
उसका समथन नह कया। तुम सूय के समान तेज वी हो और
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श धा रय म े माने जाते हो। म नह चाहता क तुम उ मादवश
कोई ऐसा काय कर बैठो, जससे तु हारी क त कलं कत हो जाए।
इस लए मेरी सलाह मानो और अपने मन से इस पापपूण वचार को
याग दो। कल सुबह सूय दय के साथ एक स चे यो ा क भां त
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रणभू म म उतरो और अपने श ु से यु करो। म तु हारे
न कलंक आचरण तथा दोषर हत च र का सा ी ँ और आजीवन
bo
र ँगा!”
कृपाचाय मेरे मामा थे कतु उ ह ने मेरी शंसा म इतना कुछ,
पहली बार कहा था। उनक बात सुनकर म एक पल के लए भाव-
e/
व ल हो गया और मुझे सचमुच लगा क सोते ए श ु को
मारना उ चत नह होगा। परंतु उस महायु के नृशंस नरसंहार ने
.m
मुझे ू र और न ु र बना दया था।
मने कुछ दे र वचारने के बाद कहा, “मामाजी! आप जो कुछ
कह रहे ह वह न संदेह ठ क है परंतु आप जस धम और मयादा के
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श ु क अं तम रात होगी!”
जीवन-मरण और हा न-लाभ क तरह यश और अपयश भी
sm
व ध के हाथ होता है। जस तरह अंत समय नकट आने पर
काल का ास बनने के लए वयं चलकर काल के मुँह तक प ँच
जाता है, उसी तरह जब अपयश मलने का समय आता है तो मनु य
ok
क बु हो जाती है और उसे अपने शुभ चतक भी वरोधी
नज़र आने लगते ह। मेरे साथ भी ऐसा ही आ। मुझे अपने मामा का
सुझाव उ चत तो लगा, कतु मेरे ार ध ने मुझे उस सदाचारी सुझाव
bo
का पालन नह करने दया।
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ok
bo
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मे रेअधैय-शने मेरसँा भसाथ छोड़ दया था। मने आधी रात म ही अपने
ाले और घोड़ को जोतकर पांडव के श वर क
leg
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और बाजूबंद के थान पर बड़े-बड़े साँप बंधे थे। बीच-बीच म न
केवल उसके मुख से, ब क कान, नाक और आँख म से भी वाला
sm
नकलती थ । उसका प इतना भयावह था क कसी सामा य
के लए तो उसे दे ख पाना ही क ठन था। म कुछ री से उसे
दे खता रहा। मुझे आ य हो रहा था क पांडव श वर के बाहर इतना
भयावह और वकट ारपाल कौन था, जसे मने यु के दौरान
ok
पहले कभी नह दे खा था।
म जस योजन से वहाँ गया था, उसे पूण करना ही मेरा
bo
एकमा उ े य था। मुझे उस पु ष का प दे खकर थोड़ी बेचैनी तो
अव य ई, कतु म घबराया नह था। मेरा ल य श वर के अंदर
वेश करना था कतु उस ारपाल के रहते यह संभव नह था। प
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उपासना के अ त र कोई माग नह था।
मने महादे व क तु त आरंभ कर द । मने तु त के उपरांत मन
sm
म संक प कया क य द म इस तर वप से पार हो गया तो
अपने शरीर क ब ल दे कर भगवान शंकर का यजन क ँ गा! मने
य ही अपने मन म यह ढ़ संक प धारण कया, सहसा मेरे सामने
ok
एक सुवणमयी वेद कट ई और उसम अ न व लत होने
लगी। उसम से ब त-से गण कट हो गए, जनके अनेक सर और
पैर थे और उनम चं मा और सूय के समान तेज था। ऐसा लगा मानो
bo
उनम जरायुज, अंडज, वेदज और उ ज - चार कार के ा णय
को न करने का साम य था। बचपन से ही मेरे अंदर यह गुण था
क कतनी भी वकट सम या या प र थ त हो, मुझे उसम डर नह
e/
लगता था। उन भूत समान गण को दे खकर म त नक भी भयभीत
नह आ।
.m
मुझे लगने लगा क म जस पाप कम को करने वहाँ गया था,
उसे करने म वफल हो चुका था और अब मुझे उस वेद म अपनी
ब ल दे नी थी। मने इसे भी दै व का वधान मानकर वीकार कया
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है क म ीकृ ण के स मान व प यहाँ ारपाल का प बनाकर
पांचाल क र ा हेतु खड़ा था। परंतु कालवश अब ये न तेज हो
sm
चुके ह तथा इनका जीवन पूण हो चुका है। म तु हारे साहस और
याग से स ँ अ थामा! समय आ गया है क तुम अपने
संक प को पूण करो!” यह कहकर भगवान शंकर ने मेरे हाथ म
एक चमचमाती तलवार थमा द । म उस तलवार को अपने हाथ म
ok
लेकर अभी दे ख ही रहा था क मेरे शरीर म एक ती उ ेजना ई।
म पूण व ास से तो नह कह सकता कतु मुझे ऐसा लगा क
bo
वयं भगवान शंकर मेरे शरीर म लीन हो गए जसके कारण यु से
श थल एवं न तेज, मेरा शरीर फर से ऊजा वत हो गया और मेरे
ओज म कई गुना वृ हो गई।
e/
भगवान शंकर क श को अपने भीतर महसूस करने के बाद
मेरे उ साह म भी कई गुना वृ हो गई थी। मुझे पता था क पांडव
.m
उस श वर म न होकर कसी अलग श वर म थे। म बना समय
गँवाए पहले पांचाल के श वर म घुस गया। मने उस रात उ लू से
े रत होकर सम त वंश को मौत के घाट उतारने का ण कया आ
m
था, कतु मेरी सबसे पहले धृ ु न को खोज रही थी। मेरे पता
का ह यारा धृ ु न! मुझे उसका तंबू खोजने म अ धक समय नह
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“धृ ु न!” म ब त गु़ से म था। “तू अपने कुल का कलंक
है। तूने अपने श वहीन गु को मारने का जघ य अपराध कया
sm
है। म तुझे कसी श से मारकर यो ा का पु य अ जत नह करने
ँ गा। तेरे ारा कए गए पाप के लए म तुझे आज ऐसे ही मा ँ गा।”
इतना कहकर मने धृ ु न के मम थल पर ज़ोरदार हार
ok
कया। उसके मुख से ददभरी एक अं तम चीख़ नकली और उसने
दम तोड़ दया। मेरी आँख के सामने अब भी अपने पता का कटा
आ सर घूम रहा था। मेरा ोध कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा
bo
था। मने धृ ु न के मृत शरीर को भी पैर से ठोकर मारी। मुझे
लगता है य द मेरे पास उस दन थोड़ा समय होता तो मने धृ ु न
के तन को त- व त कर दया होता! यह शायद भगवान शंकर क
श
e/
ही भाव था क केवल मेरे हाथ व पैर के ही हार से
धृ ु न जैसे महाबली यो ा के ाण-पखे उड़ गए!
.m
अपने ल य क इस थम सफलता ने मुझम ह मत और
उ साह का ज़बरद त संचार कर दया। उसके बाद मने उ मौजा
और उसके भाई युधाम यु का भी वही हाल कया। मेरे सर पर इस
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आल य से भरा आ था और म त क भी पूरी तरह सचेत नह था।
मुझे इसी ण क ती ा थी। मने सबसे पहले त व य पर वार
sm
कया। वह बेचारा एक ही वार म धरती पर लेट गया। उसके बाद
सुतसोम आगे आया तो मने तलवार से उसक भुजा काट द । वह
छटपटाता आ धरती पर गर गया। मने अगले ही ण अपनी
तलवार उसके व म उतार द । अपने दो भाइय को इस तरह मरता
ok
दे ख शतानीक, ुतकमा और ुतक त ने एक साथ मुझ पर
आ मण कर दया। शतानीक ने पास पड़ा रथ का प हया उठाकर
bo
मुझ पर फका। म उसके हार के लए तैयार नह था। वह प हया
मेरे दा हने कंधे पर लगा, जसके कारण मुझे भयंकर पीड़ा ई और
हाथ हलाने म ब त दद होने लगा।
e/
मुझे घायल दे खकर उन तीन ने सोचा क मुझे मारना सहज
होगा। वे भूल गए थे क जसके पता को रणभू म म छल से
.m
असहाय थ त म मार दया गया हो, जसके दय म र कम और
तशोध क वाला अ धक हो, उसे एक प हए क मामूली चोट से
रोक पाना संभव नह था। मुझे शतानीक, ुतकमा और ुतक त
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रही तशोध क अ न म कोई वशेष कमी नह आई थी।
म रथ पर सवार आ और हाथ म धनुष लेकर आगे बढ़ता
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गया। श वर म जो भी सामने आया मने उसे त काल ही मार
गराया। न ा और भय से ाकुल लोग यहाँ-वहाँ भाग रहे थे। चार
ओर धूल उड़ रही थी, जससे श वर म रा का अंधकार गुना लग
ok
रहा था। मुझे इस बात का बलकुल अनुमान नह था क मने उ माद
के ण म कतने नद ष ब च , य या सै नक का संहार कर
डाला। म र पात और नरसंहार करता आ बाहर आया तो मने
bo
दे खा क मामा कृपाचाय और कृतवमा भी वह मौजूद थे और श वर
के अंदर से बाहर भागने वाले लोग को बाल से पकड़कर मौत के
घाट उतार रहे थे। मेरे भीतर का रा स इस संहार को दे खकर अ यंत
e/
ह षत था। हम व ास था क अंधकार का फ़ायदा उठाकर कुछ
लोग न त प से श वर के भीतर छप गए ह गे। यह सोचकर
.m
कृतवमा ने श वर म आग लगा द । आग लगते ही श वर म उजाला
हो गया। श वर के जलने से, जो लोग भीतर छपे बैठे थे, वे बाहर
भागने लगे। वनाश एवं मृ यु का तांडव फर आरंभ हो गया। मने
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नभाई थी।
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सफलता पर ह षत था, कतु मेरे मन म उठ रहे केवल पांडव
तक सी मत नह थे। मेरा दय मुझसे भी कुछ कर रहा था।
sm
या मेरे अंतर म ा त मानवता और मेरा स ाव, अमष-
ज नत भीषण हसा क भट नह चढ़ गए थे? या म सोते ए
नद ष लोग क ह या के बाद वयं चैन से सो सकूँगा? उस उ लू ने
ok
तो अपनी कृ त के अनु प शकार कया था, कतु या एक प ी
से ेरणा लेकर वयं हसक पशु जैसा आचरण करना उ चत है?
सहसा मेरा दय मुझे ध कारने लगा था। म मनु य से रा स हो
bo
गया था! मेरा हष धीरे-धीरे वषाद म बदलने लगा।
अमानवीय कृ य करने के उपरांत दय म वषाद क उ प
इस बात का सूचक है क
e/
म मानवता का कुछ अंश अभी
सुर त है। मुझे ख़ुशी थी क म पूरी तरह अमानव नह हो गया था।
अपने मन म ला न का भाव लए, म उस कुकम के साथ उसके
.m
रेचन एवं समाधान के उ े य से गंगा के तट पर ासजी के पास जा
प ँचा। म उनके पास इस आशा के साथ गया था क मेरे कम को
यु का ही अंश माना जाएगा और जस तरह यु म यो ा ारा
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धारण कए अजुन, च हाथ म कए ीकृ ण और उनके साथ
यु ध र, नकुल व सहदे व भी थे। मेरे पास सोचने के लए न समय
sm
शेष था और न ही बु ! अपनी मृ यु को सामने दे ख मेरी शरा म
बह रहा र मानो जमने लगा था। मेरा सर भारी होने लगा। या
मेरे पास अब भी कोई माग शेष था?
ok
ीकृ ण के हाथ म सह अर तथा व क ना भ वाला द
च दे खकर मुझे वह घटना याद आ गई जब म अपने ारका म
वास काल के दौरान ीकृ ण से उनका वह द च माँगने जा
bo
प ँचा था। मुझे सहसा याद आ गया क मने ीकृ ण को सुदशन
च के बदले उ ह अपना ा दे ने क बात कही थी।
ही e/
“ ा !” यह श द यान म आते ही ऐसा लगा मानो
म थल म यास से मर रहे को पानी मल गया हो! मने य
ा का चतन कया, वह मेरे दा हने हाथ म कट हो गया।
.m
उसके योग के लए आव यक मं का उ चारण करते ही उसक
नोक से अ न उ प हो गई और पलक मारते ही उसने चंड वाला
का प ले लया। मने उसे हाथ म लेकर पांडव क ओर दे खा। वे
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“अजुन! इस अ थामा ने आ ख़र ा का योग कर ही
दया। आचाय ोण का दया यह ा तु हारे दय म भी
sm
व मान है। अब उसके योग का समय आ गया है य क ा
को ा ारा ही रोका जा सकता है। तुम शी ही उसका मरण
करो और पांडव क मंगलकामना के साथ उसे छोड़ दो!”
ok
अजुन ने आँख बंद क और ा का मरण कया। अगले
ही पल उसके भी हाथ म ठ क वैसा ही ा कट हो गया।
अजुन ने उसे ऊजा वत करने हेतु मं पढ़ा और ‘पांडव का मंगल
bo
हो!’ कहकर उसने भी अपना ा छोड़ दया। हम दोन के
ा हवा म टकरा गए और उनसे भीषण गजना ई। हज़ार
उ काएँ गरने लग । सव अ न क लपट उठने लग , जनसे संत त
e/
होकर ाणी इधर-उधर भागने लगे। आचाय ोण ने कभी व म भी
नह सोचा था क कसी दन उनका पु और उनका श य इस तरह
.m
आमने-सामने आ जाएँगे और उनके आदे शानुसार व जत अ का
पयोग कया जाएगा! ा के योग से उ प वाला तीन
लोक को जलाने लगी।
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पढ़ा और उसका ा उसके पास वापस चला गया।
मेरा ारा चलाया गया ा आकाश म ही घूमता रहा और
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पृ वी क थ त गंभीर होती चली गई। नारद और ासजी ने मेरी
ओर दे खा। प था क उ ह मुझसे भी अब वही अपे ा थी। मने
मं पढ़ा कतु उसका कोई भाव नह आ। ा ारा चल रही
ok
वनाश लीला य क य जारी रही।
सब लोग व मत थे क मं ो चारण के बाद भी ा
लौटकर य नह आया। इसका कारण यह था क ा को
bo
लौटाने के लए केवल मं का ान होना पया त नह था, अ पतु उस
द अ के धारक का संयमी और सदाचारी होना भी एक
अ नवाय शत थी। मने
उसके योग से मानव जा त क
e/
ा का योग मादवश कया था तथा
त क उपे ा कर द थी, जससे
मेरा संयम व सदाचार व त हो चुका था। इस लए यास करने के
.m
बाद भी म अपना ा वापस नह ले पाया था। अजुन अ यंत
ती और संयमी था तथा उसने अपना ा सचमुच मेरे अ को
शांत करने के लए ही चलाया था, इस लए वह अपना अ लौटाने
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म सफल हो गया।
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अ भम यु क प नी, उ रा के गभ पर छोड़ रहा ँ!”
“नह !” अजुन च लाया, “नह ! अ थामा तुम ऐसा नह
sm
कर सकते! इस यु म पहले ही अनेक नद ष बालक और य
क ह या हो चुक है। तु ह कसी गभ थ शशु पर ा जैसा
घातक अ चलाने का कोई अ धकार नह है।”
ok
“अजुन तुम कहते तो ठ क हो,” मने उ र दया, “ कतु म
कैसे भूल जाऊँ क उ रा के गभ म तु हारा ही वंशज है? मने
ा चलाने से पहले तुम पांडव के सवनाश क कामना क थी।
bo
म तुम लोग को मारकर उस कामना को शायद पूरा न कर पाऊँ।
परंतु मेरे पास तु हारा भावी वंश समा त करने का वक प अभी
मौजूद है!” ऐसा कहकर मने
कर दया।
e/
ा को उ रा के गभ पर क त
.m
आकाश म भीषण नाद आ और सहसा मेरे ा ने अपनी
दशा बदली और पांडव श वर म घुस गया। कुछ ण बाद, सव
हो रहा वनाश थम गया। अ ने अपना ल य भेद दया था। वह
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तथा प हसा ारा हसा का तकार करना और ह या ारा ह या
का तशोध लेना अमानवता क पराका ा के अ त र कुछ नह
sm
है। म यह सब सोच रहा था क तभी ीकृ ण मेरे पास आ गए।
कृ ण ने कहा, “अ थामा! तुमने ा का पयोग करके
जो अपराध कया है उसका दं ड तो तु ह अव य ही मलेगा परंतु
ok
तुमने उ रा के गभ म पल रहे शशु क ह या का जो जघ य पाप
कया है, उसके लए कोई भी दं ड कम है! तु हारे ारा कए ा
के पयोग से अब इस दे श म बारह वष तक वषा नह होगी।
bo
इसके कारण यहाँ के नवा सय को तरह-तरह के क झेलने पड़गे।
इन सबके उ रदायी तुम हो। इसके अ त र , तीन लोक म तु हारे
मूखतापूण काय के चलते भयंकर वनाश आ है और ा ण जगत
e/
को भारी त ई है। वह पाप भी तु हारे सर पर है! तु हारे इस
माद-ज नत कृ य का यह दं ड है क तु हारे म तक म जो यह द
.m
म ण है, वह तु ह नकालकर दे नी होगी, उसके बाद ही तु ह पांडव
से अभयदान मल सकेगा!”
“हे कृ ण,” मने आत वर म उ र दया, “पांडव और कौरव
m
र क धारा फूट पड़ी। भयंकर पीड़ा से मेरा तन काँप रहा था। वहाँ
खड़े दे खने वाल के मुख खुले रह गए। मने छु रे क तीखी नोक को
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बाहर ख च लया। वह अद्भुत म ण, जो कण के कवच-कुंडल क
भां त मेरे शरीर का अंग थी, मेरे म तक से बाहर नकल आई। मने
sm
एक हाथ से म ण को पकड़ा और उसे धीरे-से ीकृ ण के हाथ पर
रख दया।
म ण के बाहर नकलते ही मेरा शरीर तेजहीन होने लगा। मुझे
ok
लगा मानो मेरे भीतर वष क थकान ा त थी और मुझे अब
उसका एहसास हो रहा था। म अ यंत बल महसूस कर रहा था। मेरे
म तक से र क धार बह रही थी। म सर झुकाए खड़ा कृ ण के
bo
अगले आदे श क ती ा कर रहा था य क म जानता था क मुझे
अब तक सफ़ ा को चलाने का दं ड मला था। उसे उ रा के
गभ पर छोड़ने तथा पांडव के अं तम वंशज क ह या का हसाब
होना अभी शेष था!
e/
मेरे म तक से नकली म ण, ीकृ ण के हाथ म लघु सूय क
.m
भां त जगमगा रही थी। उ ह ने म ण पर डाली और फर उसे
यु ध र को स प दया। इसके बाद वे बोले, “अ थामा! तुमने
पांचाल श वर म घुसकर नद ष सै नक , यो ा , बालक व
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क है! यह बालक बड़ा होकर परी त के नाम से व यात होगा
तथा तु हारी आँख के सामने, पांडव कुल क क त को आगे
sm
बढ़ाएगा। म पांडव वंश को समा त करने क तु हारी इस घृ णत
यु को वफल कर रहा ँ!”
मुझे व ास हो गया था क मेरे इस पाप के लए कृ ण मुझे
ok
अव य मृ यु-दं ड दगे, कतु जब उ ह ने यह कहा क ‘वह बालक
मेरी आँख के सामने पांडव क क त को आगे बढ़ाएगा,’ तो मने
राहत क साँस ली य क इसका अथ यह था क ीकृ ण ने मुझे
bo
जीवनदान दे दया था। म यह सोचकर मन म स हो रहा था क म
अभी कुछ समय और जी वत रहने वाला था, क तभी मुझ पर
भयंकर व पात आ।
e/
ीकृ ण ने अपनी बात को आगे बढ़ाते ए कहा, “परंतु
अ थामा, मेरी बात अभी समा त नह ई है। यह यु है, और यु
.m
म र पात होना वाभा वक है। म तु ह पांचाल- श वर म नमम नर-
संहार और ौपद के सोते ए पु क ह या करने के लए मा कर
सकता ँ, कतु हे अ थामा! तुमने अपने पता ारा दए गए
m
ा क श का पयोग कया है और उ रा के गभ म पल
रहे शशु क ह या क है। पृ वी पर अपनी श के पयोग तथा
ra
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उनक अमरता हष और गौरव का वषय है, वह तु हारी अमरता
अ भशाप बनकर आजीवन तु हारे साथ चलेगी!”
sm
ीकृ ण का कठोर शाप सुनकर मेरी आ मा काँप उठ ।
हज़ार वष का क पूण, जजर और एकाक जीवन! म ऐसे जीवन
का या क ँ गा? म ीकृ ण के चरण म सर रखकर रोने लगा। “हे
ok
गो वद!” मने कृ ण से वनती क , “मुझ पर दया क जए। म अपने
सम त पाप वीकार करता ँ। म आपक शरण म ँ, माधव! आप
चाह तो सुदशन च से इसी ण, मेरे ाण ले ली जए। आप जो भी
bo
दं ड दगे, म उसे सहष वीकार कर लूँगा, कतु मुझे इस भयंकर शाप
से मु कर द जए। भु, म हज़ार वष तक ऐसी दशा म जी वत
रहकर या क ँ गा? म आपसे ाथना करता ँ क मुझे सड़े ए
e/
मांस का लोथड़ा बनाकर मत छो ड़ए, केशव…दया क जए…मुझ
पर कृपा क जए!”
.m
मने सर उठाया तो, म आ यच कत रह गया। वहाँ कोई नह
था। ीकृ ण स हत पांडव एवं अ य सब लोग जा चुके थे। वहाँ,
केवल म था - अकेला! सहसा, मेरे शरीर म प रवतन होने लगा। वह
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हो गया था।
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उपसंहार
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उ सदशा
भयंकर घटना को हज़ार वष बीत चुके ह। इस बीच, मेरी जो
ई है, मने उसका थोड़ा-सा वणन आरंभ म कया था।
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अब मेरी थ त ऐसी हो गई है क म अपनी था का पूरा वणन
करने लायक़ भी नह रहा। मने तो अब यह सोचना भी छोड़ दया है
.m
क मुझे इस दयनीय दशा म अभी और कतने वष यूं ही सड़ना है
य क म इसे जीवन कह नह सकता और मृ यु मेरे वश म नह है!
इस पीड़ादायक जीवन को भोगने पर भी मुझे इस बात का
m
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रखने म सफल हो सका ँ। इन बात का उ लेख करके, वयं को
नद ष स करने क मेरी मंशा नह है। म पूण न ा के साथ यह
sm
भी वीकार करता ँ क मुझसे यु के दौरान अपराध ए ह।
म अपने पता से अ य धक ेम करता था और इस लए म
उनक छलपूण ह या सहन नह कर पाया। उसके प रणाम व प, म
ok
अपना ववेक खो बैठा और मने पांचाल के श वर म घुसकर
नद ष का र बहाया और नमम नरसंहार कया। मेरे पता ने मुझे
ा , जन-क याण के लए दया था परंतु मने हठ और अहंकार
bo
वश, उस श का पयोग कया, जससे सम त पृ वी के ा णय
का जीवन संकट म पड़ गया था। ीकृ ण के समझाने के बावजूद,
म अपनी उस श को नयं त नह कर सका और उस
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व वंसकारी अ का संधान, एक नद ष गभवती ी के ऊपर कर
बैठा तथा उसके गभ म पल रहे शशु क ह या कर द ! म य द थोड़ा
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धैय रखता और वासुदेव कृ ण से मा माँगकर, अपने ा को
रोकने का उपाय पूछता तो वे अव य कोई यु सुझा दे ते, कतु वहाँ
मुझसे फर भूल हो गई। यही दो मु य कारण थे जनके लए कृ ण
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मनु य के लए काटना मु कल हो सकता था, तो फर हज़ार वष
का शाप य ?
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चूं क मेरे पास इन बीते वष म करने के लए कोई काम तो था
नह , इस लए म इसी पर चतन-मनन करता रहा। ब त समय
तो मुझे यही लगता रहा क मुझे इस जजर और दयनीय अव था म
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इतने लंबे समय तक जीने का वकट शाप दे कर ीकृ ण ने मेरे साथ
अ याय कया है। परंतु, फर मुझे यान आया क ीकृ ण तो वयं
ई र ह; उनके वधान म ु ट होने का तो ही नह है! इसका
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अथ यह आ क यह शाप दे ने के पीछे कृ ण का अव य कोई
मंत रहा होगा। समय य - य क लयुग क प र ध म वेश
करता गया, मेरे सामने इस द घका लक शाप का उ े य प होता
गया।
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कृ ण जानते थे क वह शाप मेरे लए असहनीय होगा। परंतु
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ीह र व णु का अवतार होने के कारण कृ ण ने भ व य म झाँक
लया था क क लयुग म, पृ वी पर अधम बढ़े गा। वे जानते थे क
आने वाले समय म लोग तरह-तरह के व वंसक अ -श को
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सीख क ऐसे अपराध का प रणाम कतना असहनीय हो सकता है।
म इतने वष के बाद, इस बात को समझ पाया क ीकृ ण,
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मुझे यह शाप दे ने के लए ववश थे। परंतु उ ह ने मुझे अपना उ े य
उस समय नह बताया य क वह ई र क भावी योजना का ह सा
था और साधारण मनु य को भ व य क जानकारी नह होनी
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चा हए!
म यह प दे ख सकता ँ क कृ ण ने मेरे साथ जो कया, वह
मानव समाज को व वंसकारी अ -श के पयोग तथा ूण-
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ह या जैसे जघ य अपराध से र रखने के लए नतांत आव यक
था। म चाहता ँ क उन कम के लए, मने जो पीड़ा भोगी है, वह
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कसी अ य मनु य को न भोगनी पड़े। मुझे लगता है क मने इस
कथा के मा यम से, ई र का वह संदेश लोग तक प ँचा दया है,
जसके लए कृ ण ने मुझे जी वत छोड़ दया था। इस लए, म
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सुदशन च धारी भगवान ीकृ ण से ाथना करता ँ क अब वे मेरे
ऊपर कृपा कर और मुझे इस असहनीय क से मु कर द!
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