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हिंदी व्याकरण (Tagore Vision)
हिंदी व्याकरण (Tagore Vision)
वलऴम वचू ि
फोरी : एक छोटे ऺेत्र भें फोरी जाने वारी बाषा फोरी कहराती है । फोरी भें साहहत्म यचना नहीॊ होती
उऩबाषा : अगय ककसी बाषा भें साहहत्म यचना होने रगती है औय ऺेत्र का ववस्ताय हो जाता है तो
वह फोरी न यहकय उऩबाषा फन जाती है ।
बाषा : साहहत्मकाय जफ उस उऩबाषा को अऩने साहहत्म के द्वाया ऩरयननष्ठत सववभान्म रूऩ प्रदान
कय दे ते हैं तथा उसका औय ऺेत्र ववस्ताय हो जाता है तो वह बाषा कहराने रगती है ।
एक बाषा के अॊनगवत कई उऩबाषाएॉ होती हैं तथा एक उऩबाषा के अॊतगवत कई फोलरमाॉ होती है । हहन्दी
ऺेत्र की सभस्त फोलरमों को 5 वगों भें फाॉटा गमा है । इन वगों को उऩबाषा कहा जाता है । इन उऩबाषाओॊ
के अॊतगवत ही हहन्दी की 18 फोलरमाॉ आती है ।
याजस्थानी भायवाडी (ऩश्चचभी याजस्थानी), जमऩुयी मा ढुढाडी (ऩूवी याजस्थानी), भेवाती याजस्थान
(उत्तयी याजस्थानी), भारवी (दक्षऺणी याजस्थानी)
ऩश्चिभी कौयवी मा खडी फोरी, फाॉगरू मा हरयमाणवी, ब्रजबाषा, फुॊदेरी, कन्नौजी हरयमाणा, उत्तय प्रदे श
हशन्दी
दव
ू या 28-30 अगस्त, 1976 ऩोटव रई
ु (भॉयीशस)
हहन्दी भें उच्चायण के आधाय ऩय वणो की सॊख्मा 45 (10 स्वय + 35 व्मॊजन) भानी गई है ।
हहन्दी भें रेखन के आधाय ऩय वणों के आधाय ऩय 52 (13 स्वय + 35 व्मॊजन + 4 सॊमुक्त व्मॊजन)
होती है ।
स्वय – स्वतॊत्र रूऩ से फोरे जाने वारे वणव ‘स्वय’ कहराते हैं।
1. भूर स्लय/ह्रस्ल स्लय – श्जनके उच्चायण भें कभ सभम (एक भात्रा का सभम) रगता है । (अ, इ, उ)
2. दीघघ स्लय – श्जनके उच्चायण भें ह्रस्व स्वय से अचधक सभम (दो भात्र का सभम) रगता है । (आ, ई,
ऊ, ए, ऐ, ओ, औ)
3. प्रुत स्लय – श्जनके उच्चायण भें दीघव स्वय से बी अचधक सभम रगता है ; ककसी को ऩुकायने भें मा
नाटक के सॊवादों भें इसका प्रमोग ककमा जाता है । (ओ३भ, या३भ)
व्मॊजन – स्लयों की वशामता वे फोरे जाने लारे लणघ ‘व्मॊजन’ कशराते शैं।
1. स्ऩळघ व्मॊजन –
श्जन व्मॊजनों का उच्चायण कयते सभम हवा पेपडों से ननकरते हुए भुॉह के ककसी स्थान-ववशेष कॊठ, तारु,
भध ू ाव, दाॉत मा होठ का स्ऩशव कयते हुए ननकरे।
लगघ उच्िायण स्थान अघोऴ अल्ऩप्राण अघोऴ भशाप्राण अल्ऩप्राण वघोऴ वघोऴ भशाप्राण अल्ऩप्राण वघोऴ नालवक
2. अन्त्स्थ व्मॊजन –
श्जन वणो का उच्चायण ऩायॊ ऩरयक वणवभारा (Alphabet / Varnmala) के फीच अथावत ् स्वयों औय व्मॊजनों
के फीच श्स्थत हो।
य वत्समव दॊ तभूर/भसूढा
र वत्समव दॊ तभर
ू /भसढ
ू ा
ल दॊ तोष््म ऊऩय के दाॉत + ननचरा ओॊठ
3. ऊष्भ/वॊघऴी व्मॊजन –
श्जन व्मॊजनों का उच्चायण कयते सभम वामु भुख भें ककसी स्थान-ववशेष ऩय घषवण/यगड खा कय ननकरे
औय ऊष्भा/गभी ऩैदा कये ।
ऴ भूधन्
घ म भूधाव
व लत्वमघ दॊ तभूर/भसूढा
आमोगलाश – अॊ, अ्
वॊमुक्त व्मॊजन – श्जन व्मॊजनों के उच्िायण भें अन्म व्मॊजनों कक वशामता रेनी ऩडती शै , वॊमुक्त
व्मॊजन कशराते शैं :-
क् + ष = ऺ ज् + ञ = ऻ
त ् + य = त्र श ् + य = श्र
द्वलगुणी / उश्त्षप्त व्मॊजन –
श्जन व्मॊजनों के उच्िायण भें श्जह्ला की उल्टी शुई नोंक तारु को छूकय झटके वे शट जाती शै , उन्शे
द्वलगण
ु ीउश्त्षप्त व्मॊजन कशते शैं। ड/, ढ़ द्वलगण
ु ीउश्त्षप्त व्मॊजन शैं।/
उऩसगव(Prefixes) औय प्रत्मम(Suffixes)
उऩवगघ (Prefixes) :
उऩसगव = उऩ (सभीऩ) + सगव (सश्ृ ष्ट कयना) का अथव है – ककसी शब्द के सभीऩ आकाय नमा शब्द
फनाना।
जो शब्दाॊश शब्दों से ऩहरे जुडकय उनके अथव भें मा तो ववलशष्टता उत्ऩन्न कय दे ता है मा उसके
अथव को ऩरयवनतवत कय दे ता है उसे उऩवगघ कहते हैं।
हशन्दी भें प्रिलरत उऩवगघ को ननम्न बागों भें वलबाश्जत ककमा शै –
दस
ु ् फुया, कहठन दचु चरयत्र, दस्
ु साहस, दष्ु कय
हहन्दी के उऩसगव:-
ऩय दस
ू या, फाद का ऩयरोक, ऩयोऩकाय, ऩयसगव, ऩयहहत
अयफी-फायसी के उऩसगव:-
अॊग्रेजी के उऩसगव:-
प्रत्मम (Suffixes):-
♦ प्रत्मम = प्रनत (साथ भें ऩय फाद भें) + अम (चरने वारा) शब्द का अथव है ऩीछे चरना।
♦ वे शब्द जो ककसी शब्द के फाद (ऩीछे ) जुडकय उसके अथव भें मा तो ववलशष्टता उत्ऩन्न कय दे ते हैं मा
अथव भें ऩरयवतवन कय दे ता है उसे प्रत्मम कहते हैं।
कृत प्रत्मम
तवित प्रत्मम
कृत प्रत्मम :-ले प्रत्मम जो धातु (किमा) भें जोडे जाते शै कृत प्रत्मम कशराते शै औय कृत प्रत्मम वे फने
ळब्द कृदन्त ळब्द कशराते शैं। हशन्दी भें कृत प्रत्ममों की वॊख्मा 28 शै ।
आ सूख, बूर, जाग, ऩूज, इष,् लबऺ् सूखा, बूरा, जागा, ऩूजा, इच्छा, लबऺा
न क्रॊद, वॊद, भॊद, खखद्, फेर, रे क्रॊदन, वॊदन, भॊदन, खखन्न, फेरन, रेन
म गद्, ऩद्, कृ, ऩॊडडत, ऩचचात,् दॊ त,् ओष्् गद्म, ऩद्म, कृत्म, ऩाश्ण्डत्म, ऩाचचात्म, दॊ त्म, ओष््म
मा भग
ृ , ववद् भग
ृ मा, ववद्मा
रू गे गेरू
वारा दे ना, आना, ऩढना दे नेवारा, आनेवारा, ऩढनेवारा
ऐमा\वैमा यख, फच, डाॉट\गा, खा यखैमा, फचैमा, डटै मा, गवैमा, खवैमा
तवित प्रत्मम :- ले प्रत्मम जो धातु को छोडकय अन्म ळब्दों (वॊसा, वलघनाभ ल वलळेऴण) भें जडु ते शैं
तवित प्रत्मम कशराते शै । तवित प्रत्मम वे फने ळब्द तविताॊत कशराते शै ।
आई ऩश्ण्डत, ठाकुय, रड, चतुय, चौडा ऩश्ण्डताई, ठकुयाई, रडाई, चतुयाई, चौडाई
ई सुन्दय, फोर, ऩऺ, खेत, ढोरक, तेर, दे हात सुन्दयी, फोरी, ऩऺी, खेती, ढोरकी, तेरी, दे हाती
एम अनतचथ, अबत्र, कॊु ती, ऩुरुष, याधा आनतथेम, आत्रेम, कौंतेम, ऩौरुषेम, याधेम
एया/ऐया अॊध, साॉऩ, फहुत, भाभा, काॉसा, रुट अॉधेया, सॉऩेया, फहुतेया, भभेया, कसेया, रुटेया
क धभ, चभ, फैठ, फार, दशव, ढोर धभक, चभक, फैठक, फारक, दशवक, ढोरक
जा भ्राता, दो बतीजा, दज
ू ा
तन अद्म अद्मतन
तय गरु
ु , श्रेष्ठ गरु
ु तय, श्रेष्ठतय
1. उत्ऩश्त्त/स्रोत/इनतशाव
उत्ऩश्त्त मा स्रोत मा इनतहास के आधाय ऩय शब्द ऩाॉच प्रकाय के होते हैं।
तत्सभ शब्द ववदे शज/ववदे शी/आगत
तद्भव शब्द शब्द
दे शज/दे शी शब्द सॊकय शब्द
2. व्मुत्ऩश्त्त/यिना/फनालट
व्मत्ु ऩश्त्त मा यचना मा फनावट के आधाय ऩय शब्द तीन प्रकाय के होते हैं।
रूढ शब्द मौचगक शब्द मोगरूढ शब्द
3. रूऩ/प्रमोग/व्माकयणणक वललेिन
रूऩ मा प्रमोग मा व्माकयखणक वववेचन के आधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) दो प्रकाय के होते हैं।
ववकायी शब्द अववकायी शब्द
4. अथघ
अथव के आधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) चाय प्रकाय के होते हैं।
एकाथी शब्द सभानाथी/ऩमावमवाची शब्द
अनेकाथी शब्द ववरोभाथी/ववरोभ शब्द
1. स्रोत/इनतशाव के आधाय ऩय
स्रोत मा इनतहास के आधाय ऩय शब्द के ऩाॉि बेद होते हैं।
(i) तत्वभ ळब्द :
‘तत्सभ’ (तत ् + सभ) शब्द का अथव है - ‘उसके सभान’ अथावत ् सॊस्कृत के सभान । हहन्दी भें अनेक शब्द
सॊस्कृत से सीधे आए हैं औय आज बी उसी रूऩ भें प्रमोग ककए जा यहे हैं। अत् सॊस्कृत के ऐसे शब्द
श्जसे हभ ज्जमों-का-त्मों प्रमोग भें राते हैं, तत्सभ शब्द कहराते है ; जैसे—अश्नन, वामु, भाता, वऩता, प्रकाश,
ऩत्र, सूमव आहद ।
‘तद्भव’ (तत ् + बव) शब्द का अथव है - ‘उससे होना’ अथावत ् सॊस्कृत शब्दों से ववकृत होकय (ऩरयवनतवत होकय)
फने शब्द । हहन्दी भें अनेक शब्द ऐसे हैं जो ननकरे तो सॊस्कृत से ही हैं; ऩय प्राकृत, अऩभ्रॊश, ऩयु ानी हहन्दी
से गुजयने के कायण फहुत फदर गमे हैं। अत्, सॊस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अऩभ्रॊश, ऩुयानी हहन्दी आहद से
गज
ु यने के कायण आज ऩरयवनतवत रूऩ भें लभरते हैं, तदबव शब्द कहराते है ; जैसे—
अॉगुरी उॉ गरी घत
ृ घी
गश
ृ घय गदव ब गधा
कोष्ठ कोठा गत
ृ गड्ढा
कज्जजर काजर
(iii) दे ळज/दे ळी :
‘दे शज’ (दे श + ज) शब्द का अथव है – ‘दे श भें जन्भा’ । अत् ऐसे शब्द जो ऺेत्रीम प्रबाव के कायण
ऩरयश्स्थनत व आवचमकतानुसाय फनकय प्रचलरत हो गए हैं दे शज मा दे शी शब्द कहराते हैं; जैसे–थैरा,
गडफड, टट्टी, ऩेट, ऩगडी, रोटा, टाॉग, ठे ठ आहद ।
‘ववदे शज’ (ववदे श + ज) शब्द का अथव है - ‘ववदे श भें जन्भा’ । ‘आगत’ शब्द का अथव है – आमा हुआ। हहन्दी
भें अनेक शब्द ऐसे हैं जो हैं तो ववदे शी भूर के, ऩय ऩयस्ऩय सॊऩकव के कायण महाॉ प्रचलरत हो गए हैं।
अत् अन्म दे श की बाषा से आए हुए शब्द ववदे शज शब्द कहराते हैं। ववदे शज शब्दों भें से कुछ को ज्जमों-
का-त्मों अऩना लरमा गमा है (आडवय, कम्ऩनी, कैम्ऩ, कक्रकेट इत्माहद) औय कुछ को हहन्दीकयण (तद्भवीकयण)
कय के अऩनामा गमा है । (ऑपीसय > अपसय, रैनटनव > रारटे न, हॉश्स्ऩटर > अस्ऩतार, कैप्टे न > कप्तान
इत्माहद ।)
अयफी :
अजफ, अजीफ, अदारत, अक्र, अल्राह, असय, आखखय, आहदभी, इनाभ, इजरास, इज्जजत, इराज, ईभान, उम्र,
एहभान, औयत, औसत, कफ, कभार, कजव, ककस्भत, कीभत, ककताफ, कुसी, खत, खखदभत, खमार, श्जस्भ, जुरूस,
जरसा, जवाफ, जहाज, दक
ु ान, श्जक्र, तभाभ, तकदीय, तायीख, तककमा, तयक्की, दवा, दावा, हदभाग, दनु नमा,
नतीजा, नहय, नकर, पकीय, कपक्र, पैसरा, फहस, फाकी, भुहावया, भदद, भजफूय, भुकदभा, भुश्चकर, भौसभ,
भौरवी, भस
ु ाकफय, मतीभ, याम, लरफाफा, वारयस, शयाफ, हक, हजभ, हाश्जय, हहम्भत, हुक्भ, है जा, हौसरा, हकीभ,
हरवाई इत्माहद ।
पायवी :
आफरू, आनतशफाजी, आफत, आयाभ, आभदनी, आवाया, आवाज, उम्भीद, उस्ताद, कभीना, कायीगय, ककशलभश,
कुचती, कूचा, खाक, खद
ु , खद
ु ा, ऽाभोश, खयु ाक, गयभ, गज, गवाह, चगयफ्ताय, चगदव , गर
ु ाफ, चादय, चाराक, चचभा,
चेहया, जरेफी, जहय, जोय, श्जन्दगी, जागीय, जाद,ू जुयभाना, तफाह, तभाशा, तनखाह, ताजा, तेज, दॊ गर, दफ्तय,
दयफाय, दवा, हदर, दीवाय, दक
ु ान, नाऩसॊद, नाऩाक, ऩाजाभा, ऩयदा, ऩैदा, ऩुर, ऩेश, फारयश, फुखाय, फपी, भजा,
भकान, भजदयू , भोयचा, माद, माय, यॊ ग, याह, रगाभ, रेककन, वावऩस, शादी, लसताय, सयदाय, सार, सयकाय, हफ्ता,
हजाय इत्माहद ।
अॊग्रेजी :
अऩीर, कोटव , भश्जस्रे ट, जज, ऩुलरस, टै क्स, करक्टय, डडप्टी, अपसय, वोट, ऩेन्शन, काऩी, ऩें लसर, ऩेन, वऩन, ऩेऩय,
राइब्रेयी, स्कूर, कॉरेज, अस्ऩतार, डॉक्टय, कॊऩाउडय, नसव, आऩये शन, वाडव, प्रेग, भरेरयमा, कॉरया, हाननवमा,
डडप्थीरयमा, कैं सय, कोट, कारय, ऩैंट, है ट, फुचशटव , स्वेटय, है ट, फूट, जम्ऩय, ब्राउज, कऩ, प्रेट, जग, रैम्ऩ, गैस,
भाचचस, केक, टॉपी, बफस्कुट, टोस्ट, चाकरेट, जैभ, जेरी, रे न, फस, काय, भोटय, रायी, स्कूटय, साइककर, फैटयी,
ब्रेक, इॊजन, मूननमन, ये र, हटकट, ऩासवर, ऩोस्टकाडव, भनी आडवय, स्टे शन, ऑकफस, क्रकव, गाडव इत्माहद ।
(v) वॊकय :
दो लबन्न स्रोतों से आए शब्दों के भेर से फने नए शब्दों को सॊकय शब्द कहते हैं, जैसे –
ऩान (हहन्दी) + दान (पायसी) = ऩानदान सीर (अॊग्रेजी) + फॊद (पायसी) = सीरफॊद
2. यिना/फनालट के आधाय ऩय
यचना मा फनावट के आधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) तीन प्रकाय के होते हैं ।
(i) रूढ़ :
श्जन शब्दों के साथवक खॊड न हो सकें औय जो अन्म शब्दों के भेर से न फने हों उन्हें रूढ शब्द कहते हैं।
जैसे – चावर शब्द का महद हभ खॊड कयें गे तो चा + वार मा चाव + र तो मे ननयथवक खॊड होंगे । अत्
चावर शब्द रूढ शब्द है । अन्म उदाहयण — हदन, घय, भुॊह, घोडा आहद
(ii) मौचगक :
‘मौचगक’ का अथव है -भेर से फना हुआ । जो शब्द दो मा दो से अचधक शब्दों से लभर कय फनता है , उसे
मौचगक शब्द कहते हैं, जैसे—ववऻान (वव + ऻान), साभाश्जक (सभाज + इक), ववद्मारम (ववद्मा का
आरम), याजऩुत्र (याजा का ऩुत्र) आहद ।
मौचगक शब्दों की यचना तीन प्रकाय से होती है —उऩसगव से, प्रत्मम से औय सभास से ।
(iii) मोगरूढ़ :
वे शब्द जो मौचगक तो होते हैं, ऩयन्तु श्जनका अथव रूढ (ववशेष अथव) हो जाता है , मोगरूढ शब्द कहराते
हैं। मौचगक होते हुए बी मे शब्द एक इकाई हो जाते हैं मानी मे साभान्म अथव को न प्रकट कय ककसी
ववशेष अथव को प्रकट कयते हैं; जैसे-ऩीताम्फय, जरज, रॊफोदय, दशानन, नीरकॊठ, चगयधायी, दशयथ, हनभ
ु ान,
रारपीताशाही, चायऩाई आहद ।
‘ऩीताम्फय’ का साभान्म अथव है ‘ऩीरा वस्त्र’, ककन्तु मह ववशेष अथव भें श्रीकृष्ण के लरए प्रमुक्त होता है ।
इसी तयह, ‘जरज’ का साभान्म अथव है ‘जर से जन्भा’; ककन्तु मह ववशेष अथव भें केवर कभर के लरए
प्रमुक्त होता है । जर भे जन्भे औय ककसी वस्तु को हभ ‘जरज’ नहीॊ कह सकते। फहुव्रीहह सभास के सबी
उदाहयण मोगरूढ शब्द के उदाहयण हैं ।
3. रूऩ प्रमोग के आधाय ऩय
प्रमोग के अधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) दो प्रकाय के होते हैं –
श्जनभें लरॊग, वचन व कायक के आधाय ऩय भूर शब्द का रूऩाॊतयण हो जाता है , ववकायी शब्द कहराते हैं।
जैसे –
श्जन शब्दों का प्रमोग भूर रूऩ भें होता है औय लरॊग, वचन व कायक के आधाय ऩय उनभें कोई ऩरयवतवन
नहीॊ होता अथावत जो शब्द हभेशा एक-से यहते हैं, वे अववकायी शब्द कहराते हैं। जैसे – आज, भें, औय, आहा
आहद।
4. अथघ के आधाय ऩय
अथव के आधाय ऩय शब्द िाय प्रकाय के होते हैं
(i) एकाथी ळब्द :
श्जन शब्दों का केवर एक ही अथव होता है , एकाथी शब्द कहराते हैं। व्मश्क्तवाचक सॊऻा के शब्द इसी
कोहट के शब्द हैं, जैसे—गॊगा, ऩटना, जभवन, याधा, भाचव आहद ।
श्जन शब्दों के एक से अचधक अथव होते हैं, अनेकाथी शब्द कहराते हैं, जैसे –
कय हाथ, टै क्स
अथघ प्रमोजन, धन
हहन्दी बाषा भें अनेक शब्द ऐसे हैं जो सभान अथव दे ते हैं, उन्हें सभानाथी मा ऩमावमवाची शब्द कहते हैं,
जैसे –
वम
ू घ यवव, बान,ु बास्कय
पूर ऩुष्ऩ, सुभन, प्रसून
जो शब्द ववऩयीत अथव का फोध कयाते हैं, ववऩयीताथी मा ववरोभ शब्द कहराते हैं; जैसे –
जम ऩयाजम
ऩाऩ ऩण्
ु म
वि झूठ
हदन यात
लरॊग(Gender) औय प्रकाय
लरॊग (Gender in hindi) शब्द सॊस्कृत बाषा का है , श्जसका शाश्ब्दक अथव है -चचह्न। श्जस चचह्न द्वाया
मह जाना जाए कक अभक
ु शब्द ऩरु
ु ष जानत का है मा स्त्री जानत का, उसे लरॊग (Gender) कहते है ।
हहन्दी भें लरॊग दो प्रकाय के होते हैं –
स्त्रीलरॊग (Feminine gender) : श्जन सॊऻा शब्दों से मथाथव मा कश्ल्ऩत स्त्रीत्व का फोध होता है उन्हें
स्त्रीलरॊग कहते हैं; जैसे-रडकी, गाम, रता, ऩुयी, इत्माहद। महाॉ ‘रडकी’ औय ‘गाम’ मथाथव स्त्रीत्व का तथा ‘रता’
औय ‘ऩयु ी’ से कश्ल्ऩत स्त्रीत्व का फोध होता है ।
इन धोफी-धोबफन, तेरी-तेलरन
नी भोय-भोयनी, चोय-चोयनी
आनी आनी जेठ-जेठानी, दे वय-दे वयानी
कुछ शब्द अथव की दृश्ष्ट से सभान होते हुए बी लरॊग की दृश्ष्ट से लबन्न होते हैं। उनका उचचत एवॊ
सम्मक प्रमोग कयना चाहहए। जैसे-
वलद्लान ववदष
ु ी साधु साध्वी
उऩमक्
ुघ त ळब्दों का वशी प्रमोग कयने ऩय शी ळुि लाक्म फनता शै । जैवे-
ऩरयबाऴा: वॊसा (Noun) को ‘नाभ’ बी कशा जाता शै। श्जन वलकायी ळब्दों वे ककवी व्मश्क्त, स्थान,
प्राणी, गुण, काभ, बाल आहद का फोध शोता शै , उन्शें ‘वॊसा’ कशते शैं।
वॊसा के प्रकाय
ऩाॉि प्रकाय की शोती शै ।
श्जन शब्दों से ककसी एक ही वस्तु, व्मश्क्त मा स्थान आहद का फोध होता है । उन्हें व्मश्क्तलािक
वॊसा कहते हैं; जैवे— याभ, गाॉधी जी, गॊगा, काशी इत्माहद। ‘याभ’, ‘गाॉधी जी’ कहने से एक-एक व्मश्क्त का
‘गॊगा’ कहने से एक नदी का औय ‘काशी’ कहने से एक नगय का फोध होता है । व्मश्क्तवाचक सॊऻाएॉ
जानतवाचक सॊऻाओॊ की तुरना भें कभ हैं।
(I) व्मश्क्तमों के नाभ – याभ, कृष्ण, भहात्भा फुि, हजयत भोहम्भद, ईसा भसीह आहद ;
(II) परों के नाभ – आभ, अभरूद, सेफ, सन्तया, केरा आहद ;
(III) ग्रन्थों के नाभ – याभामण, याभचरयत भानस, ऩद्मावत, काभामनी, कुयान, साकेत आहद ;
(IV) वभािाय ऩत्रों के नाभ – हहन्दस्
ु तान, दै ननक जागयण, नवबायत टाइम्स, अभय उजारा, ‘आज’ आहद ;
(V) नहदमों के नाभ – गॊगा, ब्रह्भऩुत्र, कृष्णा, कावेयी, लसन्ध आहद ;
(VI) नगयों के नाभ – रखनऊ, वायाणसी, आगया, जमऩुय, ऩटना आहद ;
(VII) हदळाओॊ के नाभ – उत्तय, दक्षऺण, ऩूव,व ऩश्चचभ ;
(VIII) दे ळों के नाभ – बायत, जाऩान, अभेरयका, ऩाककस्तान, वभाव ;
(IX) याष्रीम जानतमों के नाभ – रूसी, बायतीम, अभेरयकी ;
(X) वभर
ु ों के नाभ – कारा सागय, बभ
ू ध्म सागय, हहन्द भहासागय, प्रशाॊत भहासागय ;
इन शब्दों से एक ही वस्तु का फोध होता है अत् मे सबी व्मश्क्तलािक वॊसा शब्द हैं। जफ व्मश्क्तवाचक
सॊऻा एक से अचधक का फोध कयाने रगती है तो वह जानतलािक वॊसा हो जाती है ,
जैवे— आज के मुग भें जमचन्दों की कभी नहीॊ है । महाॉ ‘जमचन्दो’ ककसी व्मश्क्त का नाभ न होकय
ववचवासघाती व्मश्क्तमों की जाती का फोधक है ।
श्जन शब्दों से ककसी एक ही प्रकाय की अनेक वस्तुओॊ अथवा व्मश्क्तमों का फोध होता है , उन्हें जानतलािक
वॊसा कहते हैं; जैवे– भनुष्म, घय, ऩहाड, नदी इत्माहद।
‘भनुष्म’ कहने से सॊसाय की भनुष्म-जानत का, ‘घय’ कहने से सबी तयह के घयों को, ‘ऩहाड कहने से सॊसाय के
सबी ऩहाडों का औय नदी’ कहने से सबी नहदमों का जानतगत फोध होता है ।
(i) वम्फश्न्धमों, व्मलवामों, ऩदों औय कामों के नाभ – फहन, बाई, भाॉ, डॉक्टय, वकीर, भन्त्री, अध्मऺ, ककसान,
अध्माऩक, भजदयू इत्माहद।
(ii) ऩळु-ऩक्षषमों के नाभ – फैर, घोडा, हहयन, तोता, भैना, भोय इत्माहद।
(iii) लस्तओ
ु ॊ के नाभ – भकान, कुसी, भेज, ऩस्
ु तक, करभ इत्माहद।
(iv) प्राकृनतक तत्त्लों के नाभ – बफजरी, वषाव, आॉधी, तूपान, बूकम्ऩ, ज्जवाराभुखी इत्माहद।
श्जन शब्दों से ककसी ऐसे ऩदाथव मा रव्म का फोध होता है , श्जसे हभ नाऩ-तौर सकते हैं रेककन चगन नहीॊ
सकते हैं उन्हें रव्मवाचक सॊऻा कहते हैं; जैवे—
(घ) वभश
ू लािक वॊसा (Collective Noun) :
श्जन शब्दों से एक ही जानत की वस्तुओॊ के सभूह का फोध होता है उन्हें वभूशलािक वॊसा कहते हैं; जैवे—
कऺा, सेना, सभूह, सॊघ, टुकडी, चगयोह औय दर इत्माहद व्मश्क्तमों के सभूह, कुञ्ज, ढे य, गट्ठय, गुच्छा इत्माहद
वस्तुओॊ के सभूह का फोध कयाते हैं।
श्जन शब्दों से ककसी वस्तु के गुण, दशा मा व्माऩाय का फोध होता है उन्हें बाललािक वॊसा कहते हैं; जैवे—
रम्फाई, फढ
ु ाऩा, नम्रता, लभठास, सभझ, चार इत्माहद। हय ऩदाथव का धभव होता है । ऩनन की शीतरता, आग
भें गभी, भनुष्म भें दे वत्व औय ऩशुत्व इत्माहद का होना आवचमक है । ऩदाथव का गुण मा धभव ऩदाथव से
अरग नही यह सकता। घोडा है तो उसभें फर है , वेग है औय आकाय बी है । व्मश्क्तवाचक सॊऻा की तयह
बाववाचक सॊऻा से बी ककसी एक ही बाव का फोध होता है । ‘धभव गुण। अथव’ औय ‘बाव’ प्राम् ऩमावमवाची
शब्द हैं।
गुण मा धभघ के अथघ भें ; लभठास, खटास, यसीरा, कडवाहट, सुन्दयता, कुशाग्रता, फुविभत्ता आहद
अलस्था के अथघ भें ; अभीयी, गयीफी, जवानी, फुढाऩा आहद
दळा के अथघ भें ; उन्ननत, अवननत, चढाई, ढरान आहद हैं।
बाल के अथघ भें ; लभत्रता, शत्रत
ु ा, कृऩणता इत्माहद।
इन शब्दों से बाव ववशेष का फोध होता है अत् मे सबी बाललािक वॊसा (Bhav Vachak Sangya) शब्द
हैं।
ऩरूऴ ऩुरुषत्व
फूढ़ा फुढाऩा
रडका रडकऩन
भनुष्म भनुष्मता
नायी नायीत्व
गुरु गुरुत्व
(II) व्मश्क्तलािक वॊसा वे बाललािक वॊसा
याभ याभत्व
यालण यावणत्व
लळल लशवत्व
अऩना अऩनत्व
भभ भभत्व
ननज ननजत्व
कठोय कठोयता
िौडा चौडाई
लीय वीयता/वीयत्व
वुन्दय सुन्दयता, सौन्दमव
रलरत रालरत्म
बोरा बोराऩन
शया हरयमारी
घफयाना घफयाहट
खेरना खेर
ऩढ़ना ऩढाई
लभरना लभराऩ
बटकना बटकाव
दयू दयू ी
ननकट ननकटता
नीिे नीचाई
रुकना रुकावट
थकना थकावट
वभीऩ साभीप्म
ऩद ऩरयिम दे ते वभम वॊसा, उवका बेद, लरॊग, लिन, कायक एलॊ अन्म ऩदों वे उवका वॊफॊध फताना िाहशए।
जैवे- याभ ने यावण को वाण वे भाया।
1. याभ – सॊऻा, व्मश्क्तवाचक, ऩुलरॊग, एकवचन, कताव कायक, ‘भाया’ कक्रमा का कताव
2. यालण – सॊऻा, व्मश्क्तवाचक, ऩुलरॊग, एकवचन, कभव कायक, ‘भाया’ कक्रमा का कभव
3. लाण – सॊऻा, जानतवाचक, ऩुलरॊग, एकवचन, कयण कायक ‘भाया’ कक्रमा का साधन
ऩद ऩरयचम भें वाक्म के प्रत्मेक ऩद को अरग-अरग कयके उसका व्माकयखणक स्वरूऩ फताते हुए अन्म
ऩदों से उसका सॊफॊध फताना ऩडता है । इसे अन्लम बी कहते हैं।
सॊऻा का रूऩ ऩरयवतवन लरॊग, लिन, कायक के अनुरूऩ होता है , इसके के मे तीन आधाय हैं, इन्हें ‘वॊसा की
कोहटमाॉ’ बी कहा जाता है ।
सववनाभ औय उसके बेद
ऩरयबाऴा: वॊसा के स्थान ऩय प्रमुक्त शोने लारे ळब्दों को वलघनाभ (Pronoun) कशते शैं।
जैवे- भैं, तभ
ु , शभ, ले, आऩ आहद ळब्द वलघनाभ शैं।
‘वलघनाभ’ शाश्ब्दक अथव है - सफका नाभ । सववनाभ शब्द ‘सवव’ + ‘नाभ’ से लभरकय फना है । ‘सवव’ का अथव है –
सफ औय ‘नाभ’ का अथव है सॊऻा।
जैसे-‘भैं’ शब्द को हभ अऩने लरए प्रमुक्त कय सकते हैं, यभेश अऩने लरए, सुयेश अऩने लरए अथावत ् सबी
रोग अऩने-अऩने लरए ‘भैं’ शब्द का प्रमोग कय सकते हैं।
उदाहयणाथव-याभ फाजाय गमा है , याभ नौ फजे आएगा, याभ बोजन कयके कारेज चरा जाएगा। महाॉ ‘याभ’
शब्द फाय-फाय आमा है , ककसी बी शब्द का फाय-फाय आना अच्छा नहीॊ रगता। महद महाॉ याभ शब्द के
स्थान ऩय सववनाभ का प्रमोग कय हदमा जाए तो वह अवप्रम नहीॊ रगेगा;
जैसे—याभ फाजाय गमा है । वह नौ फजे आएगा औय बोजन कयके कारेज चरा जाएगा। महाॉ ऩय वह शब्द
का प्रमोग ऩूवावऩय सम्फन्ध से ही ककमा गमा है । याभ शब्द ऩूवव आमा है इसके फाद (अऩय) ‘वह’ शब्द
आमा है । इस प्रकाय सॊऻा शब्दों की ऩन
ु यावश्ृ त्त योकना औय उनके स्थान ऩय स्वमॊ कामव कयना सववनाभ का
उद्देचम है । हहन्दी भें सववनाभों की सॊख्मा नमायह है -भैं, तू, आऩ, मह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन, क्मा।
ऩुरुषवाचक सववनाभ— वक्ता, श्रोता औय अन्म (श्जसके सम्फन्ध भें फात हो) का , सववनाभ, ऩुरुषवाचक
सववनाभ कहराता है । अथाघत
जो सववनाभ फोरने वारे, सन
ु ने वारे मा ककसी अन्म व्मश्क्त के लरए आए, उसे ऩरू
ु षवाचक सववनाभ कहते
हैं।
1. उत्तभ ऩुरुऴ
2. भध्मभ ऩरु
ु ऴ
3. अन्म ऩुरुऴ
उत्तभ ऩरु
ु ऴ- भैं, हभ, भैंन,े हभने, भेया, हभाया, भझ
ु े, भ झ
ु को ।
भध्मभ ऩुरुऴ- तू, तुभ, तुभने, तुझे, तूने, तुम्हें , तुभको, तुभसे, आऩने, आऩको ।
अन्म ऩुरुऴ–वह, मह, वे, मे, इन, उन, उनको, उनसे, इन्हें , उन्हें , इससे, उसको ।
श्जस सववनाभ से ककसी ननश्चचत वस्तु व्मश्क्त की ओय सॊकेत ककमा जाता है , अथावत ननकट मा दयू के
व्मश्क्तमों मा वस्तुओॊ का ननचचमात्भक सॊकेत श्जन शब्दों से व्मक्त होता है , उन्हें ननचचमवाचक सववनाभ
कहते हैं। जैसे—मह, वह, मे, वे ।
प्रचन कयने के लरए प्रमुक्त होने वारे सववनाभ शब्दों को अथावत श्जन शब्दों भें कोई प्रचन ककमा जाए वे
प्रचनवाचक सववनाभ कहराते हैं। जैसे- कौन, क्मा ?
1. कौन आमा था ? 3. दध
ू भें क्मा चगय ऩडा ?
2. वह क्मा कह यहा था ? 4. ववद्मारम भें कौन जा यहा है ?
(6) ननजवाचक सववनाभ (Reflexive Pronoun):
वक्ता मा रेखक जहाॉ अऩने लरए ‘आऩ’ मा ‘अऩने आऩ’ शब्द का प्रमोग कयता है वहाॉ ननजवाचक सववनाभ
होता है । ननजवाचक सववनाभ है —आऩ । मह अऩने आऩ मा ‘स्वमॊ’ के लरए प्रमुक्त सववनाभ है । जैसे—मह
कामव भैं ‘आऩ’ ही कय रूॊगा।
ध्मान यहे कक महाॉ प्रमुक्त ‘आऩ’ स्वमॊ के लरए प्रमुक्त है । जो कक ऩुरुषवाचक भध्मभ ऩुरुष आदयणीम
सववनाभ ‘आऩ’ से अरग है ।
कबी-कबी कुछ ‘शब्द-सभूह’ बी सववनाभ के रूऩ भें प्रमुक्त होते हैं। जैसे—
4. वम्लन्धलािक जो, सो
6. ननजलािक आऩ
ववशेषण औय उसके बेद
जो शब्द सॊऻा मा सववनाभ की ववशेषता फतराते हैं उन शब्दों को ववशेषण (Adjective) कहते हैं।
जो शब्द ववशेषता फताते हैं, उन्हें ववशेषण (Adjective)कहा जाता है औय श्जसकी ववशेषता फताई
जाती है , उसे ववशेष्म कहा जाता है । जैसे— भोटा रडका हॉस ऩडा।
महाॉ ‘भोटा’ ववशेषण है तथा ‘रडका’ ववशेष्म (सॊऻा) है ।
वलळेऴण के बेद
वलळेऴण भूरत् िाय प्रकाय के शोते शैं –
ववशेषण के रूऩ भें प्रमुक्त होने वारे सववनाभ को वालघनालभक वलळेऴण कहा जाता है मा जो सववनाभ शब्द
सॊऻा के लरए ववशेषण का काभ कयते हैं, उन्हें ‘वालघनालभक वलळेऴण’ कहते हैं। मह, वह, जो, कौन, क्मा, कोई,
ऐसा, ऐसी, वैसा, वैसी इत्माहद ऐसे सववनाभ हैं जो सॊऻा शब्दों के ऩहरे प्रमक्
ु त होकय ववशेषण का कामव
कयते हैं, इसलरए इन्हें वालघनालभक वलळेऴण कहते हैं। जफ मे सववनाभ अकेरे प्रमुक्त होते हैं तो सववनाभ
होते हैं।
जो सववनाभ बफना रूऩान्तय के भौलरक रूऩ भें सॊऻा के ऩहरे आकय उसकी ववशेषता फतराते हैं उन्हें इस
वगव भें यखा जाता है । जैसे-
जो सववनाभ रूऩान्तरयत होकय सॊऻा शब्दों की ववशेषता फतराते हैं, उन्हें मौचगक साववनालभक ववशेषण कहा
जाता है । जैसे-
बावफोधक शूयवीय, कामय, फरवान, दमारु, ननदव मी, अच्छा, फयु ा आहद।
गण
ु फोधक अच्छा, बरा, फयु ा, कऩटी, झठ
ू ा, सच्चा, ऩाऩी, न्मामी, सीधा, सयर।
आकायफोधक गोर, चौकोय, नतकोना, रम्फा, चौडा, नुकीरा, सुडौर, ऩतरा, भोटा।
जो शब्द सॊऻा अथवा सववनाभ की सॊख्मा का फोध कयाते हैं, उन्हें सॊख्मावाचक ववशेषण कहा जाता है ।
जैसे-एक भेज, चाय कुलसवमाॉ, दस ऩुस्तकें, कुछ रुऩए इत्माहद।मे दो प्रकाय के होते हैं-
(i) ननश्चित वॊख्मालािक :
श्जन ववशेषण शब्दों से ननश्चचत सॊख्मा का फोध होता है , उन्हें ननश्चचत सॊख्मावाचक ववशेषण कहते हैं;
जैसे- दस रडके, फीस आदभी, ऩचास रुऩमे, एक, दो, तीन; ऩहरा, दस
ू या, तीसया; इकहया, दोहया; दोनों, तीनों,
चायों, ऩाॉचों इत्माहद।
ननश्चचत सॊख्मावाचक ववशेषणों को प्रमोग के अनुसाय ननम्न बेदों भें ववबक्त ककमा जा सकता है -
सभद
ु ामवाचक चायों, आठों, तीनों।
श्जन ववशेषण शब्दों से अननश्चचत सॊख्मा का फोध होता है , उन्हें अननश्चचत सॊख्मावाचक ववशेषण कहते हैं;
श्जन ववशेषणों से सॊऻा अथवा सववनाभ के ऩरयभाण (नाऩ-तौर) का फोध होता है , उन्हें ऩरयभाणफोधक
ववशेषण कहते हैं। इनके बी दो बेद हैं-
श्जन ववशेषण शब्दों से सॊऻा की ननश्चचत भात्रा का फोध होता है उन्हें ननश्चचत ऩरयभाणवाचक ववशेषण
कहते हैं;
जैसे—एक रीटय दध
ू , दस भीटय कऩडा, एक ककरो आरू आहद।
श्जन ववशेषण शब्दों से सॊऻा की अननश्चचत भात्रा का फोध होता है , उन्हें ‘अननश्चचत ऩरयभाणवाचक
ववशेषण कहते हैं;
जैसे-थोडा दध
ू , कुछ शहद, फहुत ऩानी, अचधक ऩैसा आहद।। |
प्रववशेषण : वे शब्द जो ववशेषणों की ववशेषता फतराते हैं, प्रववशेषण कहे जाते हैं। जैसे-
महाॉ ‘सन्
ु दय’ ववशेषण है तथा अत्मन्त’ प्रववशेषण है ।
ववशेषणाथवक प्रत्मम : सॊऻा शब्दों को ववशेषण (Adjective) फनाने के लरए उनभें श्जन
प्रत्ममों को जोडा जाता है , उन्हें ववशेषणाथवक प्रत्मम कहते हैं। जैसे-
इक अथव आचथवक
ई धन धनी
ईम बायत बायतीम
ववशेषण (Adjective) की तर
ु नावस्था :
तुरनात्भक ववशेषण ववशेषण सॊऻा शब्दों की ववशेषता फतराते हैं। मह ववशेषता ककसी भें साभान्म, ककसी
भें कुछ अचधक औय ककसी भें सफसे अचधक होती है । ववशेषणों के इसी उताय-चढाव को तर
ु ना कहा जाता
है । इस प्रकाय दो मा दो से अचधक वस्तुओॊ मा बावों के गुण, भान आहद के लभरान मा तुरना कयने वारे
ववशेषण को तर
ु नात्भक ववशेषण कहते हैं। हहन्दी भें तर
ु नात्भक ववशेषण की तीन अवस्थाएॉ हैं।
भर
ू ावस्था (Positive Degree) उत्तभावस्था (Superlative Degree)
उत्तयावस्था (Comparative Degree)
1. भूरावस्था (Positive Degree) -इसभें तुरना नहीॊ होती; साभान्म रूऩ से ववशेषता फतराई जाती है ;
जैसे—अच्छा, फुया, फहादयु , कामय आहद।
2. उत्तयावस्था (Comparative Degree) -इसभें दो की तुरना कयके एक की अचधकता मा न्मूनता
हदखाई जाती है ; जैसे-याभ चमाभ से अचधक फुविभान है । इस वाक्म भें याभ की फुविभत्ता चमाभ से
अचधक फताई गई है , अत् महाॉ तर
ु नात्भक ववशेषण की उत्तयावस्था’ है ।
3. उत्तभावस्था (Superlative Degree) इसभें दो से अचधक वस्तुओॊ, बावों की तुरना कयके एक को
सफसे अचधक मा न्मन
ू फतामा जाता है . जैसे—अॊकुय कऺा भें सफसे अचधक फवु िभान है । इस वाक्म
भें अॊकुय को कऺा भें सफसे अचधक फुविभान फतरामा गमा है अत् महाॉ तर ववशेषण की
उत्तभावस्मा है ।
तुरनात्भक वलळेऴण (Visheshan) की दृश्ष्ट वे वलळेऴणों के रूऩ इव प्रकाय शोते शैं -
फश
ृ त् फह
ृ त्तय फह
ृ त्तभ
वन्
ु दय सन्
ु दयतय सन्
ु दयतभ
ववशेषण(Adjective) का ऩद ऩरयचम (Parsing of Adjective) :
वाक्म भें ववशेषण ऩदों का अन्वम (ऩद ऩरयचम) कयते सभम उसका स्वरूऩ-बेद, लरॊग, वचन, कायक औय
ववशेष्म फतामा जाता है । जैसे-
हहन्दी भें ववशेषण शब्दों के आगे ववबश्क्त चचह्न नहीॊ रगते; जैसे-वीय भनुष्म, अच्छे घय का।
ववशेषण के लरॊग वचन औय कायक वही होते हैं जो ‘वलळेष्म’ के; जैसे-अच्छे ववद्माथी, अच्छा
ववद्माथी आकायान्त ववशेषण स्त्रीलरॊग भें ईकायान्त हो जाते हैं, जैसे-
कारा घोडा, कारी घोडी, अच्छा रडका, अच्छी रडकी आहद।
ऩुश्ल्रग आकायान्त ववशेषण का अश्न्तभ ‘आ’ कताव कायक एकवचन को छोडकय अन्म सफ कायकों भें
‘ए’ हो जाता है ; जैसे-अच्छे रडके को; फुये रोगों से।
ववशेषणों की ववशेषता फताने वारा शब्द बी ववशेषण होता है ; जैसे-थोडा पटा कऩडा, फहुत सुन्दय
घय आहद।
सॊस्कृत ववशेषणों के रूऩ हहन्दी भें ववशेष्म के लरॊग के अनुसाय कबी नहीॊ फदरते औय कबी फदर
जाते हैं; जैसे-सुन्दय कामा, सुशीर रडकी आहद।
कायक औय उसके प्रकाय
ऩरयबाऴा :
सॊऻा मा सववनाभ का वाक्म के अन्म ऩदों (ववशेषत् कक्रमा) से जो सॊफॊध होता है , उसे कायक (Case)
कहते हैं।
कक्रमा के साथ श्जसका सीधा सम्फन्ध हो, उसे कायक (Case) कहते हैं।
जैसे-याभ ने यावण को वाण से भाया।
इस वाक्म भें याभ कक्रमा (भाया) का कताव है ; यावण इस भायण कक्रमा का कभव है ; वाण से मह कक्रमा सम्ऩन्न
की गई है , अत् वाण कक्रमा का साधन होने से कयण है ।
3 तत
ृ ीमा कयण (Instrumental) से, के द्वाया
6 षष्ठी सम्फन्ध (Genitive) का, के, की, या, ये , यी, ना, ने, नी
‘ने’ का प्रमोग केवर नतमवक सॊऻाओॊ औय सववनाभ के फाद होता है ;जैसे—याभ ने, रडकों ने, भैंने,
तुभने, आऩने, उसने इत्माहद।
ने’ का प्रमोग कताव के साथ तफ होता है जफ कक्रमा सकभवक तथा साभान्मबूत, आसन्नबूत, ऩूणब
व ूत
औय सॊहदनधबूत कारों भें कभववाच्म मा बाववाच्म हो; जैसे-
वाभान्मबूत फारक ने ऩुस्तक ऩढी।
ऩण
ू ब
घ त
ू फारक ने ऩस्
ु तक ऩढ री थी।
वॊहदग्धबत
ू फारक ने ऩुस्तक ऩढी होगी।
शे तश
ु े तभ
ु द्भत
ू फारक ने ऩुस्तक ऩढी होती तो उत्तय ठीक होता।
साभान्मत: अकभवक कक्रमा के साथ ‘ने का प्रमोग नहीॊ होता है । रेककन नहाना, छीॊकना, थक
ू ना,
खाॉसना आहद भें ‘ने’ का प्रमोग होता है ; जैसे-भैंने छीॊका। याभ ने थूका। आऩने नहामा। उसने खाॉसा
इत्माहद।
जफ अकभवक कक्रमाएॉ सकभवक फनकय प्रमुक्त होती हैं, तफ ‘ने’ का प्रमोग होता है ; जैसे—
उसने अच्छा गामा।
आऩने अच्छा ककमा।
हशन्दी भें ‘ने’ का प्रमोग वुननश्चित शै रेककन उवका वलघत्र प्रमोग नशीॊ । शोता। इव वम्फन्ध भें उल्रेखनीम
फातें इव प्रकाय शैं-
वाक्म भें कक्रमा का प्रबाव मा पर श्जस शब्द ऩय ऩडता है उसे कभव कहते हैं; जैसे-
‘याभ ने चमाभ को भाया’ महाॉ कताव याभ है औय उसके भायने का पर चमाभ ऩय ऩडता है अत: ‘चमाभ’
‘कभघ’ है । महाॉ चमाभ के साथ कायक (Case ) चचह्न को का प्रमोग हुआ है । इसके प्रमोग के कुछ ननमभ
इस प्रकाय हैं-
कभव कायक ‘को’ का प्रमोग चेतन मा सजीव कभव के साथ होता है ; जैसे-
चमाभ ने गीता को ऩत्र लरखा।
याभ ने चमाभ को ऩुस्तक दी।
वऩता ने ऩुत्र को फुरामा।
गुरु ने लशष्म को लशऺा दी।
हदन, सभम औय नतचथ प्रकट कयने के लरए को’ का प्रमोग होता है ; जैसे-
चमाभ सोभवाय को रखनऊ जाएगा।
15 अगस्त को हदल्री चरेंगे।
यवववाय को ववद्मारम फन्द यहे गा।
जफ ववशेषण का प्रमोग सॊऻा के रूऩ भें कभव कायक की बाॉनत होता है , तफ उसके साथ को’ का
प्रमोग होता है ; जैसे-
फयु ों को कोई नहीॊ चाहता।
बूखों को बोजन कयाओ।
उल्रेखनीम-अिेतन मा ननजील कभघ के वाथ को का प्रमोग नशीॊ शोता ; जैवे-
कयण का अथव है -‘वाधन‘। सॊऻा का वह रूऩ श्जससे ककसी कक्रमा के सा फोध हो, उसे ‘कयण कायक‘ कहते हैं;
जैसे- ‘लळकायी ने ळेय को फन्दक
ू वे भाया।‘ इस वाक्म भें फन्दक
ू द्वाया शेय भायने का उल्रेख है
अतएव ‘फन्दक
ू ’ कयण कायक हुआ। कयण कायक के चचह्न हैं-वे, के द्लाया, द्लाया, के कायण, के वाथ, के
बफना, आहद। कयण कायक का प्रमोग ननम्नलरखखत श्स्थनतमों भें होता है -
श्जसके लरए कुछ ककमा जाए मा श्जसको कुछ हदमा जाए इसका फोध कयाने वारे शब्द
को वम्प्रदान कायक कहते हैं; जैसे-‘उवने वलद्माथी को ऩुस्तक दी‘ वाक्म भें ववद्माथी सम्प्रदान है औय इसका
चचह्न ‘को‘ है ।
कभव औय सम्प्रदान कायक का ववबश्क्त चचह्न ‘को’ है , ऩयन्तु दोनों के अथों भें अन्तय है । वम्प्रदान का ‘को’
के लरए’ अव्मम के स्थान ऩय मा उसके अथव भें फुक्त होता है जफकक कभघ के ‘को’ का ‘के लरए’ अथव से कोई
सम्फन्ध नहीॊ है । जैसे-
उस रडके को फर
ु ामा। उसने रडके को लभठाइमाॉ दीॊ।
5. अऩादान कायक :
सॊऻा मा सववनाभ के श्जस रूऩ से दयू होने, ननकरने, डयने, यऺा कयने, ववद्मा सीखने, तुरना कयने का बाव
प्रकट होता है उसे अऩादान कायक कहते हैं। इसका चचह्न ‘वे‘ है ; जैसे-
सॊऻा मा सववनाभ के श्जस रूऩ से ककसी अन्म शब्द के साथ वम्फन्ध मा रगाल प्रतीत हो
उसे वम्फन्ध कायक कहते हैं। सम्फन्ध कायक भें ववबश्क्त सदै व रगाई जाती है । इसके प्रमोग के ननमभ
ननम्नलरखखत हैं-
ऩरयभाण प्रकट कयने के लरए बी सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-ऩाॉच भीटय की ऩहाडी, चाय
ऩदों की कववता आहद।
भोरबाल प्रकट कयने के लरए बी सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-दस रुऩए का प्माज, फीस
रुऩए के आरू, ऩचास हजाय की भोटय साइककर आहद।
ननभाघण का वाधन प्रदलशवत कयने के लरए बी सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-ईंटों का भकान,
चभडे का जूता, सोने की अॊगूठी आहद।
सववनाभ की श्स्थनत भें सम्फन्ध कायक का रूऩ ‘या’ ये ‘यी’ हो जाता है ; जैसे-भेयी ऩस्
ु तक, तम्
ु हाया ऩत्र,
भेये दोस्त आहद।
7. अचधकयण कायक
सॊऻा मा सववनाभ के श्जस रूऩ से कक्रमा का आधाय सचू चत होता है उसे अचधकयण कायक कहते हैं, इसके
ऩरयसगव ‘भें’ ‘ऩय’ हैं, अचधकयण कायक के प्रमोग के ननमभ ननम्नलरखखत हैं-
स्थान, सभम, बीतय मा सीभा का फोध कयाने के लरए अचधकयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
उभेश रखनऊ भें ऩढता है । ठीक सभम ऩय आ जाना।
ऩुस्तक भेज ऩय है । वह तीन हदन भें आएगा।
उसके हाथ भें करभ है ।
तुरना, भूल्म औय अन्तय का फोध कयाने के लरए अचधकयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
कभर सबी पूरों भें सुन्दयतभ ् है । कुछ साॊसद चाय कयोड भें बफक गए।
मह करभ ऩाॉच रुऩए भें लभरता है । गयीफ औय अभीय भें फहुत अन्तय है ।
ननधावयण औय ननलभत्त प्रकट कयने के लरए अचधकयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
छोटी-सी फात ऩय भत रडो। साया हदन ताश खेरने भें फीत गमा।
8. वम्फोधन कायक:
सॊऻा के श्जस रूऩ से ककसी को ऩुकायने, चेतावनी दे ने मा सम्फोचधत कयने का फोध होता है
उसे वम्फोधन कायक कहते हैं। सम्फोधन कायक की कोई ववबश्क्त नहीॊ होती है । इसे प्रकट कयने के
लरए ‘शे ’,’अये ‘,’अजी‘, ‘ये ‘ आहद शब्दों का प्रमोग होता है ; जैसे-
महाॉ करभ लरखने का उऩकयण है अत् करभ शब्द का प्रमोग कयण कायक भें हुआ है ।
सम्फोधन ककसी को ऩक
ु ाय कय सम्फोचधत ककमा जाम
लाक्म भें कायक (Case) वॊफॊधी अनेक अळुविमाॊ शोती शैं। इनका ननयाकयण कयके
लाक्म को ळुि फनामा जाता शै । जैवे-
तुम्शाये वे कोई काभ नशीॊ शो वकता । तुभसे कोई काभ नहीॊ हो सकता ।
अव्मम(Indeclinables) ऩरयबाषा :
ऐसे शब्द श्जनभें लरॊग, वचन, ऩुरुष, कायक आहद के कायण कोई ववकाय नहीॊ आता, अव्मम कहराते हैं।
मे शब्द सदै व अऩरयवनतवत, अववकायी एवॊ अव्मम यहते हैं।इनका भूर रूऩ श्स्थय यहता है , कबी फदरता नहीॊ।
अव्मम का शाश्ब्दक अथव है – ‘अ + व्मम’; जो व्मम न हो उसे अव्मम कहते हैं, इसे अववकायी शब्द बी
कहते हैं क्मोंकक इसभें ककसी प्रकाय का ववकाय नहीॊ हो सकता, मे सदै व सभान यहते हैं।
जैसे — आज, कफ, इधय, ककन्तु, ऩयन्त,ु क्मों, जफ, तफ, औय, अत्, इसलरए आहद ।
जो शब्द कक्रमा की ववशेषता फतराते हैं, उन्हें कक्रमा ववशेषण कहा जाता है । कक्रमा ववशेषण को अवलकायी
वलळेऴण बी कहते हैं; जैसे – धीये िरो। वाक्म भें ‘धीये ’ शब्द ‘चरो कक्रमा की ववशेषता फतराता है अत् ‘धीये ’
शब्द कक्रमा ववशेषण है । इसके अनतरयक्त कक्रमा ववशेषण दस
ू ये कक्रमा ववशेषण की बी ववशेषता फताता है ;
जैसे — लश फशुत धीये िरता शै । इस वाक्म भें फहुत’ कक्रमा ववशेषण औय मह दस
ू ये कक्रमा ववशेषण ‘धीये ’ की
ववशेषता फतराता है ।
2. कारलािक (Adverb of Time) : श्जन शब्दों से कक्रमा भें सभम सम्फन्धी ववशेषता प्रकट हो, उन्हें
कारवाचक कक्रमा ववशेषण कहते हैं;
सभमवाचक आज, कर, अबी, तुयन्त
4. यीनतलािक (Adverb of manner): श्जन शब्दों से कक्रमा की यीनत सम्फन्धी ववशेषता प्रकट होती
है उन्हें यीनतवाचक कक्रमा ववशेषण कहते हैं। जैसे – ऐसे, वैसे, कैसे, धीये , अचानक, कदाचचत ्, अवचम,
इसलरए, तक, सा, तो, हाॉ, जी, मथासम्बव।
यीनतवाचक कक्रमा ववशेषणों की सॊख्मा फहुत फडी है । श्जन कक्रमा ववशेषणों का साभवेश दसये वगों भें नहीॊ
हो सकता, उनकी गणना इसी भें की जाती है । यीनतवाचक मा कक्रमा ववशेषण को ननम्नलरखखत बागों भें
फाॉटा जा सकता है –
प्रकाय ऐवे, कैवे, लैवे, भानों, अिानक, धीये -धीये स्लमॊ, ऩयस्ऩय, ” आऩव भें, मथाळश्क्त, पटापट, झटऩट, आऩ शी आऩ इत्माहद।
ननचचम नन:सन्दे ह, अवचम, फेशक, सही, सचभुच, जरूय, अरफत्ता, दयअसर, मथाथव भें , वस्तुत् इत्माहद
(2) वम्फन्धफोधक:
सभच्
ु चमफोधक अव्मम भर
ू त् दो प्रकाय के होते हैं :
वभानाचधकयण
व्मचधकयण
हाम ! वह चर फसा ।।
सश्न्ध
वश्न्ध(Joining)
दो वणों मा ध्वननमों के समोंग से होने वारे ववकाय को सश्न्ध/Sandhi (Joining)कहते हैं। सश्न्ध कयते
सभम कबी-कबी एक अऺय भें , कबी-कबी दोनों अऺयों भें ऩरयवतवन होता है औय कबी-कबी दोनों अऺयों
के स्थान ऩय एक तीसया अऺय फन जाता है । इस सश्न्ध ऩिनत द्वाया बी शब्द की यचना होती है । सश्न्ध
भें ऩहरे शब्द के अॊनतभ वणव एवॊ दस
ू ये शब्द के आहद वणव का भेर होता है ।
सश्न्ध के ननमभों द्वाया लभरे वणो को कपय भूर अवस्था भें रे आने को सश्न्ध-ववच्छे द कहते हैं।
स्वय के साथ स्वय का भेर होने ऩय जो ववकाय होता है , उसे स्वय सश्न्ध कहते हैं। स्वय सश्न्ध के ऩाॉच
बेद होते हैं :-
ह्रस्व मा दीघव ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, के ऩचचात क्रभश् ह्रस्व मा दीघव ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, स्वय आएॉ तो दोनों को लभराकय
दीघव ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, हो जाता है ।
वश्न्ध उदाशयण
ई + इ = ई भही + ईश = भहीन्र
इ + ई = ई हरय + ईश = हयीश
ई + ई = ई नदी + ईश = नदीश
ऊ + ऊ =ऊ बू + ऊध्वव = बध्
ू वव
ऋ + ऋ = ऋ भात ृ + ऋण = भातण
ृ
2. गण
ु वश्न्ध :
महद ‘अ’ औय ‘आ’ के फाद ‘इ’ मा ‘ई’, ‘उ’ मा ‘ऊ’ औय ‘ऋ’ स्वय आए तो दोनों के लभरने से क्रभश् ‘ए’, ‘ओ’
औय ‘अय्’ हो जाते है ।
वश्न्ध उदाशयण
अ + इ = ए उऩ + इन्र = उऩेन्र
आ + इ = ए भहा + इन्र = भहे न्र
अ + ई = ए गण + ईश = गणेश
आ + ई = ए यभा + ईश = यभेश
अ + ऊ = ओ सभर
ु + ऊलभव = सभर
ु ोलभव
Trick – श्जन ळब्दों भें ए औय ओ की भात्रा आती शै उन वबी ळब्दों भें गुण वश्न्ध शोती शै ।
3. लवृ ि वश्न्ध :
‘अ’ मा ‘आ’ के फाद ‘ए’ मा ‘ऐ’ आए तो दोनों के भेर से ‘ऐ’ हो जाता है तथा ‘अ’ औय ‘आ’ के ऩचचात ‘ओ’
आए तो दोनों के भेर से ‘औ’ हो जाता है ।
वश्न्ध उदाशयण
आ + ए = ऐ सदा + एव = सदै व
अ + ऐ = ऐ भत + ऐक्म = भतैक्म
अ + ओ = औ जर + ओकस = जरौकस
Trick – श्जन ळब्दों भें ऐ औय औ की भात्रा आती शै उन वबी ळब्दों भें लवृ ि वश्न्ध शोती शै ।
4. मण ् वश्न्ध :
महद ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ औय ‘ऋ’ के फाद लबन्न स्वय आए तो ‘इ’ औए ‘ई’ का ‘म’, ‘उ’ औय ‘ऊ’ का ‘व’ तथा ‘ऋ’ का
‘य्’ हो जाता है ।
वश्न्ध उदाशयण
ई + अ = म् दे वी + अऩवण = दे व्मऩवण
उ + अ = व् सु + आगत = स्वागत
रृ + आ = र ् र ृ + आकृनत = राकृनत
5. अमादी सश्न्ध :
वश्न्ध उदाशयण
ए + अ = अम ् ने + अमन = नमन
ऐ + अ = आम ् नै + अक = नामक
ओ + अ = अव ् ऩो + अन = ऩवन
औ + अ = आव ् ऩौ + अक = ऩावक
व्मॊजन सश्न्ध :
व्मॊजन के साथ व्मॊजन मा स्वय का भेर होने से जो ववकाय होता है , उसे व्मॊजन सश्न्ध कहते हैं। व्मॊजन
सश्न्ध के प्रभुख ननमभ इस प्रकाय हैं :-
1. महद स्ऩळघ व्मॊजनों के प्रथभ अषय अथाघत ् क् , ि ्, ट्, त ्, ऩ ्, के आगे कोई स्लय अथला ककवी लगघ का
तीवया मा िौथा लगघ अथला म, य, र, ल आए तो क् , ि ्, ट्, त ्, ऩ ्, के स्थान ऩय उवी लगघ का तीवया अषय
अथाघत ् क के स्थान ऩय ग, ि के स्थान ऩय ज, त के स्थान ऩय ड, त के स्थान ऩय ड औय ऩ के स्थान
ऩय ‘फ’ शो जाता शै ।
अच ् + अन्त = अजन्त सऩ
ु ् + सन्त = सफ
ु न्त
2. महद स्ऩळघ व्मॊजनों के प्रथभ अषय अथाघत ् क् , ि ्, ट्, त ्, ऩ ् के आगे कोई अनुनालवक व्मॊजन आए तो
उवके स्थान ऩय उवी का ऩाॉिलाॉ अषय शो जाता शै ।
4. महद भ ् के आगे कोई स्ऩळघ व्मॊजन आए तो भ ् के स्थान ऩय उवी लगघ का ऩाॉिलाॉ लणघ शो जाता शै ।
मज ् + न = मऻ माच ् + न = माञ्जा
9. महद अ, आ, को छोडकय ककव स्लय के आगे व ् आता शै तो फशुधा व ् के स्थान ऩय ऴ ् शो जाता शै ।
आकृष + त = आकृष्ट ऩष
ृ + थ = ऩष्ृ ठ
तष
ु + त = तष्ु ट षष ् + थ = षष्ठ
11. महद ऋ, य मा ऴ के आगे न ् आए औय फीि भें िाशे स्लय का लगघ ऩ लगघ, अनुस्लाय अथला म, श आए
तो न के स्थान ऩय ण शो जाता शै ।
वलवगघ वश्न्ध : वलवगों का प्रमोग वॊस्कृत को छोडकय वॊवाय की ककवी बी बाऴा भें नशीॊ शोता
शै । हशन्दी भें बी वलवगों का प्रमोग नशीॊ के फयाफय शोता शै । कुछ इने-चगने वलवगघमुक्त ळब्द हशन्दी भें
प्रमुक्त शोते शैं। जैवे – अत्, ऩुन्, प्राम्, ळनै् ळनै् आहद। हशन्दी भें भन्, तेज्, आमु्, शरय्, के स्थान ऩय
भन, तेज, आमु, शरय ळब्द िरते शैं, इवलरए मशाॉ वलवगघ वश्न्ध का प्रचन शी नशीॊ उठता। कपय बी हशन्दी ऩय
वॊस्कृत का वफवे अचधक प्रबाल शै । वॊस्कृत के अचधकाॊळ वलचध ननऴेध हशन्दी भें प्रिलरत शै । वलवगघ वश्न्ध
के सान के आबाल भें शभ लतघनी की अळवु िमों वे भक्
ु त नशीॊ शो वकते, अत् इवका सान शोना आलचमक
शै ।
ववसगव के साथ स्वय मा व्मॊजन के सॊमोग से जो ववकाय हप्ता है , उसे ववसगव सश्न्ध कहते है । इसके
ऩयभुख ननमभ ननम्नलरखखत हैं :–
नन् + ताय = ननस्ताय, द्ु + चरयत्र = दचु चरयत्र, नन् + छर = ननचछर, धन्ु + टॊ काय = धनष्ु टॊ काय, द्ु +
तय = दस्
ु तय, नन् + चम = ननचचम
5. महद वलवगघ वे ऩशरे अ मा आ को छोडकय कोई स्लय शो औय फाद भें कोई लगघ के तत
ृ ीम, ितुथघ औय
ऩॊिभ लणघ अथला म, य, र, ल, भें वे कोई लणघ शो तो वलवगघ य भें फदर जाता शै ।
6. महद वलवगघ वे ऩशरे अ, आ को छोडकय कोई अन्म स्लय आए औय फाद भें कोई बी स्लय आए तो बी
वलवगघ य भें फदर जाता शैं।
नन् + आशा = ननयाशा, नन् + ईह = ननयीह, नन् + उऩाम = ननरुऩाम, नन् + अथवक = ननयथवक
भन् + ववकाय = भनोववकाय, भन् + यथ = भनोयथ, ऩयु ् + हहत = ऩयु ोहहत, भन् + यभ = भनोयभ
8. महद वलवगघ वे ऩशरे इ मा उ आए औय फाद भें क, ख, ऩ, प भें वे कोई लणघ आए तो वलवगघ ऴ भें
फदरजता शै ।
नन् + कभव = ननष्कभव, नन् + काभ = ननष्काभ, नन् + करुण = ननष्करुण, नन् + ऩाऩ = ननष्ऩाऩ, नन् +
कऩट = ननष्कऩट, नन् + पर = ननष्पर
सभास (Compound)
ऩरयबाऴा :सभास ( Compound ) का ळाश्ब्दक अथघ शै ‘सॊऺेऩ’ । वभाव प्रकिमा भें ळब्दों का
वभस्त–ऩद /वाभालवक ऩद : सभास के ननमभों वे फना ळब्द सभस्त–ऩद मा साभालसक शब्द कशराता शै ।
वभाव–वलग्रश :
सभस्त ऩद के सबी ऩदों को अरग-अरग ककए जाने की प्रकक्रमा वभाव–वलग्रश कहराती है ; जैसे- ‘नीर
कभर’ का ववग्रह ‘नीरा है जो कभर’ तथा ‘चौयाहा’ का ववग्रह है - चाय याहों का सभूह ।
ऩूवऩ
व द प्रधान – अव्ममीबाव
उत्तयऩद प्रधान – तत्ऩुरुष, कभवधायम व द्ववगु
दोनों ऩद प्रधान – द्वॊद्व
दोनों ऩद अप्रधान- फहुव्रीहह (इसभें कोई तीसया अथव प्रधान होता है )
ऩूलऩ
घ द-अव्मम + उत्तयऩद = वभस्त-ऩद वलग्रश
2. तत्ऩुरुऴ वभाव : श्जस सभास भें फाद का अथवा उत्तयऩद प्रधान होता है तथा दोनों ऩदों के फीच
का कायक-चचह्न रुप्त हो जाता है , उसे तत्ऩुरुष सभास कहते हैं, जैसे –
याजा का कुभाय = याजकुभाय, धभव का ग्रॊथ = धभवग्रॊथ, यचना को कयने वारा = यचनाकाय
तत्ऩरु
ु ष सभास के बेद : ववबश्क्तमों के नाभों के अन्दय छह बेद हैं
वलग्रश वभस्त-ऩद
गगन को चभ
ू ने वारा गगनचॊफ
ु ी
मश को प्राप्त मशप्राप्त
इसभें कयण कायक की ववबश्क्त ‘से’, ‘के द्वाया’ का रोऩ हो जाता है , जैसे –
वलग्रश वभस्त-ऩद
बम से आकुर बमाकुर
ये खा से अॊककत ये खाॊककत
भद से अॊधा भदाॊध
भन से चाहा भनचाहा
ऩद से दलरत ऩददलरत
इसभें अऩादान की ववबश्क्त ‘से’ (अरग होने का बाव) रप्ु त हो जाती है ; जैसे –
वलग्रश वभस्त-ऩद
धन से हीन धनहीन
ऩथ से भ्रष्ट ऩथभ्रष्ट
ऋण से भुक्त ऋणभुक्त
ऩद से च्मुत ऩदच्मुत
गण
ु से हीन गण
ु हीन
दे श से ननकारा दे शननकारा
जर से हीन जरहीन
वलग्रश वभस्त-ऩद
दे श की यऺा दे शयऺा
ऩय के अधीन ऩयाधीन
गह
ृ का स्वाभी गह
ृ स्वाभी
वलग्रश वभस्त-ऩद
आऩ ऩय फीती आऩफीती
करा भें श्रेष्ठ कराश्रेष्ठ
गह
ृ भें प्रवेश गह
ृ प्रवेश
3. कभघधायम वभाव :श्जस सभस्तऩद का उत्तयऩद प्रधान हो तथा ऩूवऩव द व उत्तयऩद भें -
ववशेष्म सॊफॊध हो-उऩभेम अथवा ववशेषण-उऩभान, कभवधायम सभास कहराता है ; जैसे –
वलग्रश वभस्त-ऩद
चॊर के सभान भख
ु चॊरभख
ु
भग
ृ के सभान नमन भग
ृ नमन
दे ह रूऩी रता दे हरता
भहान है जो दे व भहादे व
वलग्रश वभस्त-ऩद
सात लसॊधओ
ु ॊ का सभह
ू सप्तलसॊधु
5. द्लॊद्ल वभाव :श्जस सभस्त-ऩद के दोनों ऩद प्रधान हों तथा ववग्रह कयने ऩय ‘औय’, ‘अथवा’, ‘मा’,
‘एवॊ’ रगता हो वह द्वॊद्व सभास कहराता है ; जैसे –
ऩशिान : दोनों ऩदों के फीि प्राम् मोजक चिह्न ( Hyphen) (-) का प्रमोग
वलग्रश वभस्त-ऩद
ऩाऩ औय ऩण्
ु म ऩाऩ-ऩण्
ु म
सुख औय द्ु ख सुख-द्ु ख
दे श औय ववदे श दे श-ववदे श
नय औय नायी नय-नायी
ठॊ डा मा गयभ ठॊ डा-गयभ
छर औय कऩट छर-कऩट
वभस्त-ऩद वलग्रश
चतब
ु ज
ुव चाय हैं बज
ु ाएॉ श्जसकी (ववष्ण)ु
भग
ृ ें र भग
ृ ें र भग
ृ ों का इॊर (लसॊह)
भत्ृ मॊज
ु म भत्ृ मु को जीतने वारा (शॊकय)
इन दोनों सभासों भें अॊतय सभझने के लरए इनके ववग्रह ऩय ध्मान दे ना चाहहए। कभवधायम सभास भें एक
ऩद ववशेष मा उऩभान होता है औय दस
ू या ऩद हदशेष्म मा उऩभेम होता है ; जैसे –
‘नीरगगन’ भें ‘नीर’ ववशेषण है तथा ‘गगन’ ववशेष्म है । इसी तयह ‘चयणकभर’ भें ‘चयण’ उऩभेम है औय
‘कभर’ उऩनाभ है । अत् मे दोनों उदाहयण कभवधायम सभास के हैं।
फहुव्रीहह सभास भें सभस्त ऩद ही ककसी सॊऻा के ववशेष का कामव कयता है , जैसे – ‘चक्रधय’ चक्र को धायण
कयता है जो अथावत ् ‘श्रीकृष्ण’ ।
चतब
ु ज
ुव – चाय बज
ु ाओॊ का सभूह द्ववगु सभास ।
चतब
ु ज
ुव – चाय हैं बुजाएॉ श्जसकी अथावत ् ववष्णु – फहुव्रीहह सभास
ऩचवटी – ऩाॉच वटों से नघया एक ननश्चचत स्थर अथावत ् दॊ डकायण्म भें श्स्थत वह स्थान जहाॉ वनवासी
याभ ने सीता औय रक्ष्भण के साथ ननवास ककमा – फहुव्रीहह सभास
(ii) द्ववगु का ऩहरा ऩद ही ववशेषण फन कय प्रमोग भें आता है जफकक कभवधायम भें कोई बी ऩद दस
ू ये
ऩद का ववशेषण हो सकता है , जैसे –
ऩरु
ु षोत्तभ – ऩरु
ु षों भें जो है उत्तभ – कभवधायम सभास
अरॊकाय की ऩरयबाऴा
1. अनप्र
ु ाव अॊरकाय / Anupras Alankar- जहाॉ ऩय कववता भें ककसी एक वणव की फाय-फाय आवनृ त
द्वाया चभत्काय उत्ऩन्न होता है । वहाॉ अनुप्रास अरॊकाय होता है ।
जैवे –
चारू चन्र की चॊचर ककयणें, खेर यही है जर-थर भें।
स्वच्छ चाॉदनी बफछी हुई है , अवनी औय अम्फय तर भें।।
‘च’ वणव की आवश्ृ त्त
ऩावस ऋतु बी ऩववत प्रदे ष, ऩर-ऩर ऩरयवनतवत प्रकृनत वेष।।
‘ऩ’ वणव की आवश्ृ त्त’
बगवान बक्तों की बमॊकय बूरय बीनत बगाइमे।
‘ब’ वणव की आवश्ृ त्त
तयनन-तनुजा तट तभार तरुवय फहु छामे।
‘त’ वणव की आवश्ृ त्त
गॊधी गॊध गुराफ को, गॊवई गाहक कौन ?
‘ग’ वणव की आवश्ृ त्त
कर कानन कुण्डर भोय ऩॊखा
‘क’ वणव की आवश्ृ त्त
छोयटी है गोयटी मा चोयटी अहीय की
‘ट’ वणव की आवश्ृ त्त
कॊकन ककॊककन नऩ
ू यु धनु न सनु न
‘क’ वणव की आवश्ृ त्त
भहु दत भहीऩनत भॊहदय आए।
सेवक सचचव सुभॊत फुराए।
‘भ’ वणव की आवश्ृ त्त
सॊसाय की सभयस्थरी भें धीयता धायण कयो
‘स’ वणव की आवश्ृ त्त
छे कानुप्राव, लत्ृ मनुप्राव, श्ुत्मनुप्राव, अन्त्मनुप्राव, राटानुप्राव आहद अनुप्राव के उऩबेद शैं।
2. मभक अरॊकाय – जहाॉ ऩय कववता भें एक शब्द की आवश्ृ त्त दो मा अचधक फाय हो व अथव अरग-
अरग ननकरे वहाॉ मभक अरॊकाय होता है ।
उदा.
कनक-कनक ते, सौ गुनी भादकता अचधकाम।
वा खामे फौयाए नय, मा ऩामे फौयाम।।
मशाॉ ‘कनक’ ळब्द दो फाय प्रमुक्त शुआ शै श्जवभें ऩशरे भें कनक ‘वोना’ तथा दव
ू ये भें ‘धतूया’ के
अथघ भें प्रमुक्त शुआ शै ।
जेते तभ
ु ताये , तेते नब भे न ताये हैं।
ताये – प्रताडडत कयना
ताये – आसभान के ताये
गुनी गुनी सफ के कहे , ननगुनी गुनी न होत।
सन्
ु मौ कहुॉ तरु अयक तें , अयक सभानु उदोत।।
ऊॉचे घोय भन्दय के अन्दय यहन वायी।
ऊॉचे घोय भन्दय के अन्दय यहाती हैं।
कहै कवव फेनी, फेनी ब्मार की चुयाई रानी (फेनी-कवव, फेनी चोटी)
यनत-यनत सोबा सफ यनत के सयीय की (यनत-यनत – जया सी, यनत – काभदे व की ऩत्नी)
कारी घटा का घभॊड घटा (घटा- फादरों की घटा, घटा – कभ होना)
बजन कह्मौ ताते बज्जमौ, बज्जमौ न एको फाय (बज्जमौ – बजन ककमा, बज्जमौ- बाग ककमा)
भारा पेयत जुग गमा, कपया न भनका पेय।
कय का भनका डारय दे , भन का भनका पेय।। (भनका – भारा का दाना, भन का- रृदम का)
जे तीन फेय खाती थी ते तीन फेय खाती हैं (तीन फेय – तीन फेय के दाने, तीन फेय – तीन फाय)
तू भोहन के उयफसी ह्वै उयफसी सभान
ऩच्छी ऩय छीने एसे ऩये ऩय छीने फीय,
तेयी फयछी ने फय छीने हैं खरन के।
जेते तभ
ु ताये तेते नब भें न ताये है ।
ऩास ही ये । हीये की खान
उसे खोजता कहाॉ नादान
ऊॉचे घोय भॊदय के अन्दय यहनवायी
ऊॉचे घोय भॊदय के अॊन्दय यहती है ।
3. चरेऴ अरॊकाय – जहाॉ ऩय साहहत्म भें एक ही शब्द हो। तथा सॊदबव फदरने ऩय अथव अरग-2 ननकरे
वहाॉ चरेष अरॊकाय होता है ।
उदाशयण
यहहभन ऩानी याखखए, बफन ऩानी सफसून।
ऩानी गए न ऊफये , भोती भानष
ु चन
ू ।।
महाॉ ‘ऩानी’ शब्द का भोती के सॊदबव भें अथव है चभक, भनुष्म के सॊदबव भें ‘इज्जजत’ तथा चून
(आटा) के सॊदबव भें जर।
हरय फोरा हरय ने सन
ु ा, हरय गए हरय के ऩास।
वे हरय तो हरय भें गए, वे हरय बए उदास।।
शरय – भेढ़क, शरय – ताराफ, शरय – वाॉऩ
एक कफूतय दे ख हाथ भें, ऩूछा कहाॉ अऩय है ।
उसने कहा अऩय कैसा, वह उड गमा सऩय है ।।
अऩय – कफूतय अऩय-बफना ऩय का
को तुभ हो? इत आए कहाॉ।
‘घनष्माभ’ है , तो ककतहूॉ फयसो।
‘सुफयण को ढूॉढत कपयत, कवव, व्मलबचायी चोय।’
मशाॉ ‘वुफयण’ भें चरेऴ शै । वुफयण का कवल के वॊदबघ भें वुलणघ (अषय), व्मलबिायी के वॊदबघ भें
‘वुन्दय रूऩ’ तथा िोय के वॊदबघ भें ‘वोना’ अथघ शै ।
भधुफन की छाती को दे खो, सूखी ककतनी इसकी कलरमाॉ
(कलरमाॉ- णखरने वे ऩूलघ पूर की दळा, कलरमाॉ-मौलन वे ऩशरे की अलस्था)
जो यहीभ गनत दीऩ की, कुर कऩत
ू गनत सोम।
फाये उश्जमायो कयै , फढें अॉधेयो होम।।
े़
(फढ़े – फडा शोने ऩय, फढे - फझ ु ने ऩय)
को धहट मे वष
ृ बनुजा वे हरधय के वीय
नय की अरू नरनीय की गनत एकै कय जोम
जेतो नीचो ह्वै चरे ततो ऊॉचो हो।।
यावन लसय सयोज फनचायी।
चलर यघुवीय लसरीभुख धायी (लवरीभुख – फाण, भ्रभय)
2. अथाघरॊकाय – जहाॉ ऩय कववता भें अथव के भाध्मभ से चभत्काय उत्ऩन्न होता है । वहाॉ अथावरॊकाय होता
है ।
उऩभा औय रूऩक: उऩभा अरॊकाय भें ककसी फात को रेकय उऩभेम एवॊ उऩभान भें सभानता फतराई जाती
है जफकक रूऩक भें उऩभेम उऩभान का अबेद आयोऩ ककमा जाता है . जैवे –
उऩभा – ऩीऩय ऩात सरयस भन डोरा।
रूऩक – चयण-कभर फन्दौं हरय याई।।
ऩरयबाषा : श्जव ळब्द वे ककवी कामघ का शोना मा कयना वभझा जाम, उवे किमा (Verb)कशते शैं। जैवे-
खाना, ऩीना, ऩढ़ना, वोना, यशना, जाना, लरखना, िरना, दौडना इत्माहद। हशन्दी भें किमा के
रूऩ ‘लरॊग’, ‘वचन’ औय ‘ऩुरुऴ’ के अनुवाय फदरते शैं।
‘धातु’ से ही कक्रमा(Verb) ऩद का ननभावण होता है इसीलरए कक्रमा के सबी रूऩों भें ‘धातु’ उऩश्स्थत यहती है ।
जैसे-
(I) भूर धातु : मह स्वतन्त्र होती है तथा ककसी अन्म शब्द ऩय ननबवय नहीॊ होती, जैसे—जा, खा, ऩी, यह
आहद ।
(II) मौचगक धातु : मौचगक धातु भूर धातु भें प्रत्मम रगाकय, कई धातुओॊ को सॊमुक्त कयके
अथवा वॊसा औय वलळेऴण भें प्रत्मम रगाकय फनाई जाती है । मह तीन प्रकाय की होती है -
प्रेयणाथघक किमा (धातु) :प्रेयणाथवक कक्रमाएॉ अकभवक एवॊ सकभवक दोनों कक्रमाओॊ से फनती हैं मा
श्जन कक्रमाओॊ से मह फोध होता है कक कताव स्वमॊ कामव न कयके ककसी दस
ू ये कामव को कयने के
लरए प्रेरयत कयता है , उन्हें प्रेयणाथवक कक्रमा कहते हैं; जैसे-
भूर धातु प्रेयणाथवक धातु
दे ना हदराना, हदरवाना
मौचगक किमा (धात)ु : दो मा दो वे अचधक धातुओॊ के वॊमोग वे मौचगक किमा फनती शै । जैवे-योना-
धोना, उठनाफैठना, िरना-कपयना, खा रेना, उठ फैठना, उठ जाना।
नाभ धातु : वॊसा मा ववशेषण वे फनने लारी धातु को नाभ धातु कशते शैं। जैवे—गारी वे गरयमाना,
रात वे रनतमाना, फात वे फनतमाना ।
जो कक्रमा कभव के साथ आती है , मा श्जन कक्रमाओॊ के कामव का पर कताव को छोडकय कभव ऩय ऩडता है
उन्हें ‘सकभवक कक्रमा कहते हैं, जैसे-
अकभवक कक्रमा के साथ कभव नहीॊ होता तथा उसका पर कताव ऩय ऩडता है मा श्जन कक्रमाओॊ के कामव का
पर ‘कताव’ भें ही यहता है उन्हें ‘अकभवक कक्रमा’ कहते हैं, जैसे-
कुछ कक्रमाएॉ ‘एक कभघ लारी‘ औय ‘दो कभघ लारी’ होती हैं; जैसे-‘याशुर ने योटी खाई।‘ इस वाक्म भें कभव एक ही
है । ककन्तु ‘भैं रडके को गणणत ऩढ़ाता शैं।’ इस वाक्म भें दो कभव हैं-‘रडके को’ औय ‘गणणत‘। दो कभव वारी
कक्रमा को ‘द्वलकभघक किमा‘ कहते हैं।
1. भैं घय जाता हूॉ। (महाॉ ‘जाना’ भुख्म कक्रमा है औय हूॉ’ सहामक कक्रमा है ) ।
2. वे हॉस यहे थे। (महाॉ हॉसना’ भख्
ु म कक्रमा है औय ‘यहे थे’ सहामक कक्रमा है )
ऩूलक
घ ालरक किमा (Absolutive Verb) :
वॊसा अथवा वलळेऴण के साथ कक्रमा जुडने से नाभफोधक कक्रमा फनती है । जैसे-
श्जस कक्रमा के दो कभव होते हैं उसे द्ववकभवक कक्रमा कहा जाता है । जैसे-
कक्रमा ववकायी शब्द है अत: इसके रूऩ भें ऩरयवतवन होता यहता है ।
लाच्म (voice) : वाच्म कक्रमा का रूऩान्तयण है श्जसके द्वाया मह ऩता चरता है कक वाक्म भें कताव,
कभव मा बाव भें से ककसकी प्रधानता है ।
वाच्म के तीन बेद हैं-
कृतलाच्म (Active Voice): कक्रमा के उस रूऩान्तयण को कतववाच्म कहते हैं, श्जससे वाक्म भें कताव
की प्रधानता का फोध होता है । जैसे-
1. याभ ने दध
ू वऩमा। 2. सीता गाती है । 3. भैं स्कूर गमा ।
कभघलाच्म (Passive Voice): कक्रमा के उस रूऩान्तयण को कभववाच्म कहते हैं, श्जससे वाक्म भें कभव
की प्रधानता का फोध होती है । जैसे-
1. रेख लरखा गमा । 2. गीत गामा गमा । 3. ऩुस्तक ऩढी गई।
बाललाच्म (Impersonal Voice): कक्रमा का वह रूऩान्तय बाववाच्म कहराता है , श्जससे वाक्म भें
‘बाव’ (मा कक्रमा) की प्रधानता का फोध होता है । जैसे-
1. भझ
ु से चरा नहीॊ जाता। 2. उससे चऩ
ु नहीॊ यहा 3. सीता से दध
ू नहीॊ वऩमा
जाता । जाता।
कार (Tense) :कक्रमा के श्जस रूऩ से कामव व्माऩाय के सभम तथा उसकी ऩूणत
व ा अथवा अऩूणत
व ा
का फोध होता है , उसे कार कहते हैं। मा कक्रमा के श्जस कार रूऩ से उसके होने के सभम का फोध
होता है , उसे कार कहते हैं।
कार के तीन बेद शोते शैं
लतघभान कार : कक्रमा के श्जस रूऩ से वतवभान सभम भें कक्रमा का होना ऩामा जाए, उसे वतवभान
कार कहते हैं। इसभें कक्रमा का आयम्ब हो चुका होता है ऩय सभाश्प्त नहीॊ है ।
इसके ऩाॊच बेद हैं :
बूतकार : कक्रमा के श्जस रूऩ से कामव की सभाश्प्त का फोध हो उसे ‘बूतकार’ कहते हैं। दस
ू ये शब्दों
भें श्जस कक्रमा से फीते हुए सभम भें कक्रमा का होना ऩामा जाता है उसे बत
ू कार कहते हैं।
बत
ू कार के छ् बेद हैं :
1. वाभान्मबूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से फीते हुए सभम का ननश्चचत ऻान न हो उसे साभान्मबूत कहते
हैं;
जैसे-चमाभ गमा। गीता आई।
2. आवन्नबूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से कक्रमा के व्माऩाय का सभम आसन्न (ननकट) ही सभाप्त सभझा
जाए उसे आसन्नबूत कहते हैं;
जैसे-अॊकुय नैनीतार से रौटा है । भैं खाना खा चुका हूॉ।
3. अऩूणब
घ ूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से मह जाना जाए कक कक्रमा बूतकार भें हो यही थी, रेककन उसकी
सभाश्प्त का ऩता न चरे, उसे ‘अऩूणब
व ूत’ कहते हैं;
जैसे-लसताय फज यहा था।
4. ऩण
ू ब
घ त
ू : कक्रमा के श्जस रूऩ से फीते सभम भें कामव की सभाश्प्त का ऩण
ू व फोध होता है , उसे ऩण
ू ब
व त
ू
कहते हैं;
जैसे-भैं खाना खा चुका हूॉ।
5. वॊहदग्धबूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से फीते हुए सभम भें कामव के ऩूणव होने मा न होने भें सन्दे ह होता
है , उसे सॊहदनधबूत कहते हैं,
जैसे-चमाभ ने गामा होगा।
6. शे तश
ु े तभ
ु दबत
ू : कक्रमा के श्जस रूऩ से मह ऩता चरे कक कक्रमा बत
ू कार भें होने वारी थी ऩय ककसी
कायणवश न हो सकी, उसे हे तुहेतुभद्भत
ू कहते हैं;
जैसे-महद वह ऩढता तो ऩयीऺा भें उत्तीणव हो जाता।
बवलष्मत ् कार : कक्रमा के श्जस रूऩ से बववष्म भें होने वारी कक्रमा का फोध हो, उसे बववष्मत ् कार
कहते हैं।
इवके तीन बेद शैं :
1. वाभान्म बवलष्मत ् : कक्रमा के श्जस रूऩ से बववष्म भें होने वारे कामव के सम्फन्ध भें साभान्म हो
अथवा मह व्मक्त हो कक कक्रमा साभान्मत् बववष्म भें होगी, उसे साभान्म बववष्मत ् कहते हैं;
जैसे-रता गीत गाएगी।
2. वम्बाव्म बवलष्मत ् : कक्रमा का वह रूऩ श्जससे कामव होने की सम्बावना का फोध हो, उसे सम्बाव्म
बववष्मत ् कहते हैं;
जैसे-सम्बव है कक वह कर जाएगा।
3. शे तुशेतुभद् बवलष्मत ् : कक्रमा का वह रूऩ श्जससे बववष्म भें एक सभम भें एक कक्रमा का होना दस
ू यी
कक्रमा ऩय ननबवय हो हे तुहेतुभद् बववष्मत ् कहराता है ।
जैसे-याभ गाए तो भैं फजाऊॉ।
लाक्म
लाक्म (Vakya) – साथवक शब्दों का व्मवश्स्थत सभूह श्जससे कोई साथवक अथव प्रकट होता है , उसे वाक्म
कहते हैं।
(i) वाथघकता :वाक्म का कुछ न कुछ अथव अवचम होता है । अत् इसभें इसभें साथवक शब्दों का ही प्रमोग
हुआ है । साथवकता वाक्म का प्रभखु गुण है । इसके लरए आवचमक है कक वाक्म भें साथवक शब्दों का प्रमोग
हो, तबी वाक्म बावलबव्मश्क्त के लरए सऺभ होगा।
(ii) मोग्मता :वाक्म भें प्रमुक्त शब्दों भें प्रसॊग के अनुसाय यक्षऺत अथव प्रकट कयने की मोनमता होती है ;
जैसे- ‘चाम वाई’. मह वाक्म नहीॊ है क्मोंकक चाम खाई नहीॊ जाती फश्ल्क ऩी जाती है ।
(iii) आकाॊऺा :‘आकाॊऺा’ का अथव है ‘इच्छा’, वाक्म अऩने आऩ भें ऩूया होना चाहहए। उसभें ककसी ऐसे शब्द
की कभी नहीॊ होनी चाहहए श्जसके कायण अथव की अलबव्मश्क्त भें अधूयाऩन को। जैसे—ऩत्र लरखता है , इस
वाक्म भें कक्रमा के कताव को जानने की इच्छा होगी। अत् ऩण
ू व वाक्म इस प्रकाय होगा-याभ ऩत्र लरखता है ।
(iv) ननकटता :फोरते तथा लरखते सभम वाक्म के शब्दों भें ऩयस्ऩय ननकटता का होना फहुत आवचमक
है , रूक-रूक कय फोरे मा लरखे गए शब्द वाक्म नहीॊ फनाते । अत् वाक्म के ऩद ननयॊ तय प्रवाह भें ऩास-
ऩास फोरे मा लरखे जाने चाहहए।
(v) ऩदिभ :लाक्म भें ऩदों का एक ननश्चित िभ शोना िाहशए । ‘वुशालनी शै यात शोती िाॉदनी’ इवभें
ऩदों का िभ व्मलश्स्थत न शोने वे इवे लाक्म नशीॊ भानेंगे। इवे इव प्रकाय शोना िाहशए—’िाॉदनी यात
वश
ु ालनी शोती शै ।
(vi) अन्लम :अन्लम का अथघ शै -भेर । लाक्म भें लरॊग, लिन, ऩुरुऴ, कार, कायक आहद का किमा के वाथ
ठीक-ठीक भेर शोना िाहशए; जैवे— ‘फारक औय फालरकाएॉ गईं’, इवभें कताघ किमा अन्लम ठीक नशीॊ शै ।
अत् ळि
ु लाक्म शोगा ‘फारक औय फालरकाएॉ गए’।
1. उद्देचम
2. ववधेम
1. उद्देचम (Subject) :श्जसके फाये भें कुछ फतामा जाता है , उसे उद्देचम कहते हैं; जैसे-अनुयाग खेरता
है । वचिन दौडता है ।
इन वाक्मों भें ‘अनुयाग’ औय ‘सचचन’ के ववषम भें फतामा गमा है । अत् मे उद्देचम हैं। इसके अॊतगवत कताव
औय कताव का ववस्ताय आता है जैसे— ‘ऩरयश्भ कयने लारा व्मश्क्त वदा वपर शोता शै ।’ इस वाक्म भें
कताव (व्मश्क्त) का ववस्ताय ‘ऩरयश्रभ कयने वारा’ है ।
2. वलधेम (Predicate) :लाक्म के श्जव बाग भें उद्देचम के फाये भें जो कुछ कशा जाता शै , उवे वलधेम
कशते शैं; जैवे-अनुयाग खेरता है । इव लाक्म भें ‘खेरता शै ’ वलधेम शै । वलधेम के वलस्ताय के अॊतगघत लाक्म
के कताघ (उद्देचम) को अरग कयने के फाद लाक्म भें जो कुछ बी ळेऴ यश जाता शै , लश वलधेम कशराता शै ,
जवे-रॊफे-रॊफे फारों लारी रडकी अबी-अबी एक फच्िे के वाथ दौडते शुए उधय गई।
इव लाक्म भें ‘अबी-अबी एक फच्िे के वाथ दौडते शुए उधय गई’ वलधेम का वलस्ताय शै तथा ‘रॊफे-रॊफे
फारों लारी रडकी उद्देचम का वलस्ताय शै ।
लाक्म के बेद :लाक्म अनेक प्रकाय के शो वकते शैं। उनका वलबाजन शभ दो आधायों ऩय कय वकते शैं
1. अथव के आधाय ऩय
2. यचना के आधाय ऩय
1. अथघ के आधाय ऩय लाक्म के बेद
(a) ववधानवाचक (Assertive Sentence): श्जन लाक्मों भें किमा के कयने मा शोने की वूिना लभरे, उन्शें
वलधानलािक लाक्म कशते शैं; जैवे—भैंने दध
ू वऩमा । लऴाघ शो यशी शै । याभ ऩढ़ यशा शै ।
(b) ननषेधवाचक (Negative Sentence) : श्जन लाक्मों वे कामघ न शोने का बाल प्रकट शोता शै , उन्शें
ननऴेधलािक लाक्म कशते शैं; जैवे—भैंने दध
ू नशीॊ वऩमा। भैंने खाना नशीॊ खामा । तुभ भत लरखो।
(c) आऻावाचक (Imperative Sentence) :श्जन वाक्मों से आऻा, प्राथवना, उऩदे श आहद का ऻान होता है ,
उन्हें आऻावाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—फाजाय जाकय पर रे आओ। भोहन तभ
ु फैठ कय ऩढो। फडों का
सम्भान कयो ।
(d) प्रचनवाचक (Interrogative Sentence) :श्जन वाक्मों से ककसी प्रकाय का प्रचन ऩूछने का ऻान होता
है , उन्हें प्रचनवाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—सीता तुभ कहाॉ से आ यही हो ? तुभ क्मा ऩढ यहे हो ? यभेश
कहाॉ जाएगा ?
(e) इच्छावाचक (Illative Sentence) :श्जन वाक्मों से इच्छा, आशीष एवॊ शुबकाभना आहद का ऻान होता
है , उन्हें इच्छावाचक वाक्म कहते हैं, जैसे—तुम्हाया कल्माण हो । आज तो भैं केवर पर खाऊॉगा। बगवान
तम्
ु हें रॊफी उभय दे ।
(f) सॊदेहवाचक (Sentence indicating Doubt) :श्जन वाक्मों से सॊदेह मा सॊबावना व्मक्त होती है , उन्हें
सॊदेहवाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—शामद शाभ को वषाव हो जाए। वह आ यहा होगा, ऩय हभें क्मा भारूभ ।
हो सकता है याजेश आ जाए।
(a) वयर लाक्म/वाधायण लाक्म (Simple Sentence) :श्जन लाक्मों भें केलर एक शी उद्देचम औय एक शी
वलधेम शोता शै , उन्शें वयर लाक्म मा वाधायण लाक्म कशते शैं, इन लाक्मों भें एक शी किमा शोती शै ; जैवे—
भुकेळ ऩढ़ता शै । लळल्ऩी ऩत्र लरखती शै । याकेळ ने बोजन ककमा।
(b) वॊमुक्त लाक्म (Compound Sentence) :श्जन लाक्मों भें दो मा दो वे अचधक वयर लाक्म
वभुच्िमफोधक अव्ममों (औय, तथा, एलॊ, ऩय, ऩयॊ तु आहद) वे जुडे शों, उन्शें वॊमुक्त लाक्म कशते शै ; जैवे—लश
वुफश गमा औय ळाभ को रौट आमा। वप्रम फोरो ऩय अवत्म नशीॊ। उवने ऩरयश्भ तो फशुत ककमा ककॊतु
वपरता नशीॊ लभरी।
(c) लभचश्त/लभश् लाक्म (Complex Sentence) :श्जन लाक्मों भें एक भुख्म मा प्रधान लाक्म शो औय
अन्म आचश्त उऩलाक्म शों, उन्शें लभचश्त लाक्म कशते शैं। इनभें एक भुख्म उद्देचम औय भुख्म वलधेम के
अराला एक वे अचधक वभावऩका किमाएॉ शोती शैं; जैवे- ज्जमों शी उवने दला ऩी, लश वो गमा। महद ऩरयश्भ
कयोगे तो, उत्तीणघ शो जाओगे। भैं जानता शूॉ कक तुम्शाये अषय अच्छे नशीॊ फनते ।
उऩलाक्म (Clause)
महद ककसी एक वाक्म भें एक से अचधक सभावऩका कक्रमाएॉ. होती हैं तो वह वाक्म उऩवाक्मों भें फॉट जाता
है औय उसभें श्जतनी बी सभावऩका कक्रमाएॉ होती हैं उतने ही उऩवाक्म होते हैं। इन उऩवाक्मों भें से जो
वाक्म का केंर होता है , उसे भख्
ु म मा प्रधान वाक्म कहते हैं औय शेष को आचश्रत उऩवाक्म कहते हैं।
आचश्रत उऩवाक्म तीन प्रकाय के होते हैं
1. सॊऻा उऩवाक्म 2. ववशेषण उऩवाक्म 3. कक्रमाववशेषण उऩवाक्म
(1) वॊसा उऩलाक्म :जो आचश्त उऩलाक्म प्रधान लाक्म की किमा के कताघ, कभघ अथला ऩूयक के रूऩ भें
प्रमक्
ु त शों, उन्शें वॊसा उऩालाक्म कशते शैं; जैवे—
(2) वलळेऴण उऩलाक्म :जफ कोई आचश्त उऩलाक्म प्रधान लाक्म की वॊसा ऩद की वलळेऴता फताते शैं,
उन्शें वलळेऴण उऩलाक्म कशते शैं, जैवे—
(3) किमावलळेऴण उऩलाक्म :जो आचश्त उऩलाक्म प्रधान लाक्म की किमा की वलळेऴता फताए, उवे
किमावलळेऴण उऩलाक्म कशते शैं। मे प्राम् किमा का कार, स्थान, यीनत, ऩरयभाण, कायण आहद के वि
ू क
किमावलळेऴणों के द्लाया प्रधान लाक्म वे जुडे यशते शैं; जैवे-
यभेश की फहन शीरा तेजी से चरती फस से चगय ऩडी औय उसे कई चोटें आईं। (वाक्म)
अॊग – अवमव, अॊश, करा, हहस्सा, बाग, खण्ड, उऩाॊश, घटक, टुकडा।
अठखेरी – कौतक
ु , क्रीडा, खेर-कूद, चर
ु फर
ु ाऩन, उछर-कूद, हॉसी-भजाक।
अभत
ृ – अलभम, ऩीमष
ू , अभी, भधु, सोभ, सध
ु ा, सयु बोग।
अजुन
घ – बायत, गुडाकेश, ऩाथव, सहस्राजन
ुव , धनञ्जम।
अनाय – सन
ु ीर, वल्कपर, भखणफीज, फीदाना, दाडडभ, याभफीज, शक
ु वप्रम।
अनभ
ु ान – अन्दाज, अटकर, कमास।
अलबराऴा – काभना, भनोयथ, इच्छा, आकाॊऺा, ईहा, ईप्सा, चाह, रारसा, भनोकाभना।
अभ्माव – रयमाज, ऩन
ु यावश्ृ त्त, दोहयाना, भचक।
अनर – धभ
ू केतु, ऩावक, कृशानु, हुताशन, अश्नन, आग।
अवभ्म – अबर, अववनीत, अलशष्ट, गॎवाय, उजड्ड, अलशष्ट, गॉवाय, जॊगरी, दे हाती, ननयॊ कुश, उद्दॊड।
अध्ममन – अनश
ु ीरन, ऩायामण, ऩठनऩाठन, ऩढना।
अखण्ड – ऩण
ू ,व सभस्त, सम्ऩण
ू ,व अववबक्त, सभच
ू ा, ऩयू ा।
अऩयाधी – भज
ु रयभ, दोषी, कसयू वाय, सदोष।
आऩश्त्त – ववऩदा, भस
ु ीफत, आऩदा, ववऩश्त्त।
आकाळ – नब, अम्फय, अन्तरयऺ, आसभान, व्मोभ, गगन, हदव, द्मौ, ऩुष्कय, शून्म।
आळीलाघद – आशीष, दआ
ु , शब
ु ाशीष, शब
ु काभना।
आचिमघ – अचम्बा, अचयज, ववस्भम, ताज्जजुफ।
इच्छा – रारसा, काभना, चाह, भनोयथ, ईहा, ईप्सा, आकाॊऺा, अलबराषा, भनोकाभना।
इन्र – भहे न्र, सयु े न्र, सयु े श, ऩयु न्दय, दे वयाज, भधवा, ऩाकरयऩु, ऩाकशासन, ऩयु हूत।
ईचलय – ऩयभात्भा, ऩयभेचवय, ईश, ओभ, ब्रह्भ, अरख, अनाहद, अज, अगोचय, जगदीश।
ईष्माघ – भत्सय, डाह, जरन, कुढना
उऩभा – तर
ु ना, लभरान, सादृचम, सभानता।
उऩावना – ऩज
ू ा, आयाधना, अचवना, सेवा।
उल्रू – उरक
ू , रक्ष्भीवाहन, कौलशक।
औय – (i) अन्म, दस
ू या, इतय, लबन्न (ii) अचधक, ज्जमादा (ii) एवॊ, तथा।
कॊजूव – सभ
ू , अनद
ु ाय, कृऩण, भक्खीचस
ू ।
कभर – सयोज, सयोरुह, जरज, ऩॊकज, नीयज, वारयज, अम्फुज, अम्फोज, अब्ज, सतदर, अयववन्द, कुवरम,
अम्बोरूह।
करी – भुकुर, जारक, ताम्रऩल्रव, कलरका, कुडभर, कायक नवऩल्रव, अॉखुवा, कोंऩर।
कल्ऩलष
ृ – कल्ऩतरु, कल्ऩशार, कल्ऩरभ
ु , कल्ऩऩादऩ, कल्ऩववटऩ।
कहठन – दफ
ु ोध, जहटर, दरू
ु ह।
कभजोय – दफ
ु र
व , ननफवर, अशक्त, ऺीण।
कफत
ू य – कऩोत, यक्तरोचन, हायीत, ऩायावत।
कर – सन्
ु दय , अगरा हदन , भशीन , आयाभ , श्रेष्ठ। कऩडा – चीय , ,ऩट , वसन , अम्फय , वस्त्र।
श्क्रष्ट – दरू
ु ह, सॊकुर, कहठन, द्ु साध्म।
कॊदया – गह
ु ा, गप
ु ा, खोह, दयी।
कोभर – भद
ृ र
ु , सक
ु ु भाय, नाजुक, नयभ, भर
ु ामभ।
काभदे ल – भनोज, कन्दऩव, आत्भबू, अनॊग, अतनु, काभ, भकयकेतु, ऩुष्ऩचाऩ, स्भय, भन्भथ।
कानतघकेम – कुभाय, ऩाववतीनन्दन, शयबव, स्कन्ध, षडानन, गुह, भमूयवाहन, लशवसुत, षड्वदन।
ककरा – दग
ु ,व कोट, गढ, लशववय।
ककताफ – ऩस्
ु तक, ग्रॊथ, ऩोथी।
कीभत – भल्
ू म, दाभ, रागत।
कृष्ण – नन्दनन्दन, भधुसूदन, जनादव न, भाधव, भुयारय, कन्है मा, द्वायकाधीश, गोऩार, केशव, नन्दकुभाय,
नन्दककशोय, बफहायी।
कामय – डयऩोक, फज
ु हदर, बीरु।
ख
खफय – जानकायी, सच
ू ना, सभाचाय, सन्दे श।
खर – शठ, दष्ु ट, धत
ू ,व दज
ु न
व , कुहटर, नारामक, अधभ।
खर
ु ा – स्ऩष्ट, प्रत्मऺ, जाहहय।
खळ
ु ी – उल्रास, आनन्द, हषव, प्रसन्नता।
खफ
ू वयू त – सन्
ु दय, सयु म्म, भनोऻ, रूऩवान।
खन
ू – रुचधय, रहू, यक्त, शोखणत।
खीझ – झॊझ
ु राहट, झल्राहट, खीझना, चचढना।
गरुड – खगेचवय, सऩ
ु णव, वैतनेम, नागान्तक।
गीदड – श्रॊग
ृ ार, लसमाय, जम्फुक।
गप्ु त – ननबत
ृ , अप्रकट, गढ
ू , अऻात, ऩयोऺ।
गज – हस्ती, लसॊधुय, भातॊग, कुम्बी, नाग, हाथी, ववतुण्ड, कॊु जय, कयी, द्ववऩ।
गधा – गदहा, खय, धूसय, गदव ब, चक्रीवाहन, यासब, रम्फकणव, फैशाखनन्दन।
गरना – रवीबत
ू होना, रववत होना, वऩघरना, नष्ट होना।
गर
ु ाफ – सभ
ु ना, शतऩत्र, स्थरकभर, ऩाटर, वन्ृ तऩष्ु ऩ।
गॊड
ु ा – रोपय, शयायती, नॊगा, फदभाश, रपॊगा, उदॊ ड।
गन
ु ाश – गरती, अधभव, ऩाऩ, अऩयाध, खता, त्रहु ट, कुकभव।
घी – घत
ृ , हवव, अभत
ृ ।
घण
ृ ा – जुगुप्सा, अरुचच, नघन, वीबत्स।
ि
िोटी – शॊग
ृ , तॊग
ु , लशखय, ऩयकोहट।
ितुय – कुशर, नागय, प्रवीण, दऺ, ननऩुण, मोनम, होलशमाय, चा समाना, ववऻ।
िन्र – सोभ, याकेश, यजनीश, याकाऩनत, चाॉद, ननशाकय, हहभाॊशु, भमॊक, सुधाॊशु, भग
ृ ाॊक, चन्रभा, करा-ननचध,
ओषधीश।
िाटुकायी – खश
ु ाभद, चाऩरस
ू ी, लभ्मा प्रशॊसा, चचयौयी, चभचाचगयी।
जहटर – दफ
ु ोध, दरू
ु ह, ऩेचीदा, श्क्रष्ट।
जलान – मव
ु ा, मव
ु क, ककशोय, तरुण।
जट
ु ाना – फटोयना, सॊग्रह कयना, जग
ु ाड कयना, एकत्र कयना, जभा कयना, सॊचम कयना।
झॊड
ु – जत्था, सभह
ू , भॊडरी, ऩॊज
ु ।
डकैत – डाकू, रट
ु े या, फटभाय।
ढे य – यालश, सभह
ू , अम्फाय, घौद, झण्
ु ड।
तयकळ – तण
ू , तण
ू ीय, भाथा, त्रोण, ननषॊग।
तरु – वऺ
ृ , ऩेड, ववटऩ, ऩादऩ, रभ
ु ।
ताराफ – जराशम, सयोवय, तार, सय, तडाग, जरधय, सयसी, ऩद्माकय, ऩुष्कय।
तादात्म्म – तरऩ
ू ता, अलबन्नता, सारूप्म, एकात्म्म।
दध
ू – ऩम, दनु ध, स्तन्म, धीय, अभत
ृ ।
दग
ु ाघ – लसॊहवाहहनी, कालरका, अजा, बवानी, चश्ण्डका, कल्माणी, सुबरा, चाभुण्डा।
दर
ु ब
घ – अरम्ब, नामाफ, ववयर, दष्ु प्राप्म।
दग
ु भ
घ – अगम्म, ववकट, कहठन, दस्
ु तय, ववषभ।
धॊध
ु – कुहया, नीहाय, कुहासा।
धर
ू – यज, खेहट, लभट्टी, गदव , धलू र।
ध्रल
ु – दृढ, अटर, श्स्थय, ननश्चचत।
धाभ – गह
ृ , ननकेतन, सदन, घय।
ननत्म – हभेशा, योज, सनातन, सववदा, सदा, सदै व, चचयॊ तन, शाचवत।
नलीन – नव, नत
ू न, अलबनव, नवेरा।
नग – बध
ू य, ऩहाड, ऩववत, शैर, चगरय।
नम्र – लशष्ट, सश
ु ीर, ववनीत, ववनमशीर।
ऩत्नी – दर
ु हहन, अधाांचगनी, गहृ हणी, बत्रमा, दाया, जोरू, गह
ृ रक्ष्भी, सहधलभवणी, सहचयी।
ऩश्ण्डत – ववद्वान, सध
ु ी, ऻानी, धीय, कोववद, प्राऻ।
ऩयळयु ाभ – बग
ृ स
ु त
ु , जाभदनन्म, बागवव, ऩयशध
ु य, बग
ृ न
ु न्दन, ये णक
ु ातनम।
ऩथ्
ृ ली – वसध
ु ा, वसन्
ु धया, भेहदनी, भही, ब,ू बलू भ, इरा, उवी, जभीन, क्षऺनत, धयती, धात्री।
प्रबात – सवेया, सफ
ु ह, ववहान, प्रात्कार, बोय, ऊषाकार।
ऩयाश्जत – ऩयाबत
ू , ऩयास्त, ववश्जत।
ऩाऩ – ऩातक, गन
ु ाह, अऩकभव।
ऩादऩ – ऩेड, वऺ
ृ , रभ
ु , तरू।
ऩुकाय – दह
ु ाई, गुहाय, परयमाद।
पर – भीजान,फीजकोश,ऩुष्ऩाण्ड,प्रबुबोज,सस्म,यसाफाद, पय,ऩुष्ऩज ।
पूर – सभ
ु न, कुसभ
ु , गुर, प्रसन
ू , ऩष्ु ऩ, ऩह
ु ु ऩ।
बफछोश – ववमोग, जद
ु ाई, बफछोडा, ववप्ररॊब।
बफमालान – ननजवन, सन
ू सान, वीयान, उजाड।
फेजोड – अनऩ
ु भ, अद्ववतीम, अतर
ु ।
ब्रह्भा – ववचध, चतयु ानन, कभरासन, ववधाता, ववयॊ चच, वऩताभह, अज, प्रजाऩनत, स्वमॊब।ू
बग
ु तान – बयऩाई, अदामगी, फेफाकी।
बल
ु न – जगत, सॊसाय, ववचव, दनु नमा।
भशादे ल – शॊकय, शॊबु, लशव, ऩशुऩनत, चन्रशेखय, भहे चवय, बूतेश, आशुतोष, चगयीश।
भॊगर – भहीसुत, बौभ, रोहहताॊग।
भशात्भा – भहाऩरु
ु ष, भहाभना, भहानब
ु ाव, भहाशम।
भाधयु ी – भाधम
ु ,व लभठास, भधयु ता।
भानल – भनज
ु , भनष्ु म, भानष
ु , इॊसान।
मभ – सूमऩ
व ुत्र, धभवयाज, श्रािदे व, कीनाश, शभन, दण्डधय, मभुनाभ्राता।
मल
ु ती – तरुणी, प्रभदा, यभणी।
यक्त – खन
ू , रहू, रुचधय, शोखणत, रोहहत, योहहत।
याभिन्र –यघव
ु य, यघन
ु ाथ, सीताऩनत, कौशल्मानन्दन, अलभताब, याघव, यघयु ाज, अवधेश।
यात – यै न, यजनी, ननशा, ववबावयी, मालभनी, तभी, तभश्स्वनी, शववयी, ववबा, ऺऩा, याबत्र।
रग्न – सॊमक्
ु त, सॊरनन, सम्फि, सॊमक्
ु त।
लष
ृ – सीना, छाती, वऺस्थर, उदयस्थर।
वलप्न – बद
ू े व, ब्राह्भण, भहीसयु , ऩयु ोहहत।
लष
ृ – रभ
ु , ऩादऩ, तरु, ववटऩ।
वलभान – वामम
ु ान, खग, उडनखटोरा, हवाई जहाज।
वफ – अखखर, सम्ऩण
ू ,व सकर, सवव, सभस्त, सभग्र, ननखखर।
वॊकल्ऩ – वत
ृ , दृढ ननचचम, प्रनतऻा, प्रण।
वभर
ु – नदीश, वायीश, यत्नाकय, उदचध, ऩायावाय।
स्भायक – बण्डाय, कोष, कब्र, माद भें/स्भनृ त भें सॊग्रहारम, स्भनृ त, स्भयणोत्सव, ऻान कोष
वन्
ु दयी – रलरता, सन
ु ेत्रा, सन
ु मना, ववरालसनी, कालभनी।
वयस्लती – बायती, शायदा, वीणाऩाखण, चगया, वाणी, भहाचवेता, श्री, बाष, वाक् , हॊ सवाहहनी, ऻानदानमनी।
वम
ू घ – हदनकय, हदवाकय, बास्कय, यवव, नायामण, सववता, कभरफन्धु, आहदत्म, प्रबाकय, भातवण्ड।
वम्ऩण
ू घ – ऩण
ू ,व सभग्र, ताया, ऩयू ा।
वऩघ – बज
ु ॊग, अहह, ववषधय, व्मार, पणी, उयग, साॉऩ, नाग, अहह।
वयु ऩयु – सर
ु ोक, स्वगवरोक, हरयधाभ, अभयऩयु , दे वयाज्जम, स्वगव।
शरयण – भग
ृ , हहयन, कुयॊ ग, सायॊ ग।
शक – कल्माण, बराई, बरा, उऩकाय।
शनभ
ु ान – ऩवनसत
ु , भहावीय, आॊजनेम, कऩीश, फज्ाॊगी, भारुनतनन्दन, फजयॊ ग।
शाय – (i) ऩयाजम, ऩयाबव, लशकस्त, भाता (ii) भारा, कॊठहाय, भोहनभारा, अॊकभालरका।
हशभ – तष
ु ाय, तहु हन, नीहाय, फपव।
हशयन – भग
ृ , हरयण, कुयॊ ग, सायॊ ग।
षीण – दफ
ु र
व , कभजोय, फरहीन, कृश।
वलरोभ ळब्द(Antonym)
(अ)
अतक
ु ान्त तक
ु ान्त अरुचच सरु
ु चच
अनग्र
ु ह ववग्रह अतर ववतर
अवऩवत गह
ृ ीत अचधक अल्ऩ
अघ अनघ अथ इनत
अचय चय अभत
ृ ववष
अनर
ु ोभ प्रनतरोभ अनक
ु ूर प्रनतकूर
अधन
ु ातन ऩयु ातन अतर ववतर
अवऩवत गह
ृ ीत अचधकायी अनचधकायी
अनेक एक
(आ)
आवत
ृ अनावत
ृ आहदष्ट ननवषि
आहान ववसजवन
(इ, ई)
(उ, ऊ)
(ए, ऐ)
(ओ, औ)
(क वगव)
कर आज क्रभ व्मनतक्रभ
गुप्त प्रकट गह
ृ ीत त्मक्त
गुरु रघु गह
ृ ी त्मागी
घय फाहय घण
ृ ा प्रेभ
(च वगव)
जर थर जवानी फुढाऩा
झठ
ू सच झोऩडी भहर
(त वगव)
तरुण वि
ृ तुर अतुर
तष
ृ ा तश्ृ प्त तप्ृ त अतप्ृ त
दानी कॊजूस दद
ु ावन्त शाॊत
दरु
ु ऩमोग सदऩ
ु मोग धनी ननधवन
दज
ु न
व सज्जजन दानव दे व
धभव अधभव दग
ु न्
व ध सुगन्ध
नख लशख नय नायी
दफ
ु र
व सफर दृचम अदृचम
(ऩ वगव)
ऩयतॊत्र स्वतॊत्र ऩव
ू व
व ती ऩयवती
भसण
ृ रूऺ भहात्भा दयु ात्भा
भद
ृ र
ु रूऺ भाता वऩता
प्रऻ भढ
ू प्रनतकूर अनक
ु ूर
ऩव
ू व
व त् नत
ू नवत ् ऩखू णवभा अभावस्मा
प्रेभ घण
ृ ा ऩूणव अऩूणव
भत
ृ जीववत भुनापा नुकसान
(म, य, र, व)
रघु गरु
ु लरखखत अलरखखत
वि
ृ तरुण वैतननक अवैतननक
वसॊत ऩतझड वह
ृ त् रघु
ववष अभत
ृ मोग ववमोग
(ळ, ऴ, व, श)
सज्जजन दज
ु न
व सॊन्मासी गह
ृ स्थ
सत ् असत ् सन्
ु दय कुरूऩ
सक
ु य दष्ु कय सादय ननयादय
सच झूठ सुगभ दग
ु भ
व
सक
ु ृ नत ककृनत सयस नीयस
सभाज व्मश्क्त सॊऩन्न ववऩन्न
साय असाय सग
ु ॊध दग
ु ध
ां
सुबग दब
ु ग सुयाज दयु ाज
सौबानम दब
ु ावनम स्वतन्त्र ऩयतन्त्र
प्रेभऩचथक भळ
ुॊ ी प्रेभिॊद की प्रभख
ु यिनाएॊ
नततरी
कॊकार
गोदान
इयालती
गफन
ध्रुलस्लालभनी
यॊ गबूलभ
िॊरगुप्त
कभघबूलभ
स्कॊधगुप्त
कामाकल्ऩ
ऩचथक
वेला वदन
झयना
प्रेभाश्म
आॊवू
आकाळदीऩ
भलरक भोशम्भद जामवी की प्रभख
ु यिनाएॊ
छामा
आॊधी
इॊरजार
ऩद्मालत
जन्भेजम का नाग मस
चित्ररेखा
काभामनी
कशयनाभा
आखयी कराभ
वलष्णु ळभाघ की प्रभख
ु यिना याभधायी लवॊश हदनकय की प्रभख
ु यिनाएॊ
ऩॊितॊत्र उलघळी
शुॊकाय
ये णक
ु ा
याभिॊर ळुक्र की प्रभख
ु यिनाएॊ कुरुषेत्र
िॊरकाॊता
गोस्लाभी तुरवीदाव जी की प्रभख
ु यिनाएॊ
कवलतालरी वप्रमप्रलाव
गीतालरी यवकरळ
जानकी भॊगर
िॊदफयदामी की प्रभख
ु यिना
ऩथ्
ृ लीयाज यावो
पणीचलयनाथ “ये णु” की प्रभख
ु यिना वम
ू क
घ ाॊत बत्रऩाठी ननयारा की प्रभख
ु यिनाएॊ
यलवकवप्रमा
कफीय की प्रभख
ु यिनाएॊ कवलवप्रमा
लॊद
ृ ालन रार लभाघ की प्रभख
ु यिना
माभा
यश्चभ
भग
ृ नमनी
मळऩार जी की प्रभख
ु यिनाएॊ वलु भत्रानॊदन ऩॊत की प्रभख
ु यिनाएॊ
चिदॊ फया
दादा काभये ड
लीणा
झूठा वि
स्लणघधलू र
मुगलाणी
वब
ु रा कुभायी िौशान की प्रभख
ु यिनाएॊ ग्राम्मा
फूढ़ा िाॊद
झाॊवी की यानी
शरयलॊळ याम फच्िन की प्रभख
ु यिनाएॊ
भक
ु ुर
बत्रधाया
बफखये भोती
भधळ
ु ारा
क्मा बूरूॊ क्मा माद करूॊ
वयू दाव की प्रभख
ु यिनाएॊ भधुकरेळ
वयू वागय
भैचथरीळयण गुप्त की प्रभख
ु यिनाएॊ
वूयऩच्िीवी
वूयवायालरी
बायत बायती
वाहशत्म रशयी
वाकेत
जमरथ लध
ऩॊिलटी
मळोधया
याभधायी लवॊश हदनकय की प्रभख
ु यिनाएॊ भशादे ली लभाघ की प्रभख
ु यिनाएॊ
ये णक
ु ा ननशाय
शुॊकाय ननयजा
कुरुषेत्र वाध्म गीत
उलघळी दीऩलळखा
यश्चभयथी माभा, यश्चभ
यवलॊती वप्तऩणाघ वॊचधनी आधुननक कवल
ििलार शाये को शरयनाभ
द्लॊद्ल – गीत धभघलीय बायती की प्रभख
ु यिनाएॊ
ऩयळुयाभ की प्रतीषा
नीभ के ऩत्ते
कनुवप्रमा
नीर कुवुभ
ठॊ डा रोशा
वीऩी औय ळॊख
वात गीत लऴघ
आत्भा की आॊखें
अॊधा मुग
इनतशाव के आॊवू
फाऩ,ू धूऩ छाॊल
नए वुबावऴत
फायदोरी वलजम
धूऩ औय धुआॊ
कुटज
भशालीय प्रवाद द्वललेदी की प्रभख
ु यिनाएॊ
वूयदाव
वाहशत्म का भभघ
अद्भत
ु आराऩ अनाभदाव का ऩोथा
कालरदाव की ननयॊ कुळता फाणबट्ट की आत्भकथा
नैऴधीमिरयतभ ् ििाघ हशॊदी वाहशत्म की बूलभका
वाहशत्म वीकय वलिाय औय वलतकघ
वलिाय-वलभळघ कालरदाव की रालरत्म मोजना
हशॊदी बाऴा की उत्ऩश्त्त
हशॊदी नलयत्न
नाट्मळास्त्र
कालरदाव औय उनकी कवलता
अळोक के पूर
आरोक ऩलघ
वलिाय प्रलाश
कल्ऩ रता
कफीय
शरयळॊकय ऩयवाई की प्रभख
ु यिनाएॊ
9. एक बाषा के ववचायों को दस
ू यी बाषा भें व्मक्त कयना – 32. जो दोहयामा गमा नहीॊ हो – अनावत्ृ त
अनुवाद
33. श्जसका ककसी भें रगाओ मा प्रेभ हो – अनुयक्त
10. ककसी सॊप्रदाम मा लसिाॊत का सभथवन कयने वारा –
34. जो फात ऩहरे सुनी ही नहीॊ गई हो – अनसुनी
अनुमामी
35. श्जस भहहरा का वववाह नहीॊ हुआ हो – अनूढा
11. ककसी प्रस्ताव का सभथवन कयने की कक्रमा – अनुभोदन
36. जो अनुग्रह से मुक्त हो – अनुगहृ ीत
12. श्जसका अनुबव ककमा गमा हो – अनुबूत
37. श्जस ऩय आक्रभण नहीॊ ककमा गमा हो – अनाक्रान्त
13. जो ऩयीऺा भें उत्तीणव नहीॊ हुआ हो – अनुत्तीणव
38. श्जसका उत्तय नहीॊ हदमा गमा हो – अनुत्तरयत
14. ककसी एक भें ही आस्था यखने वारा – अनन्म
39. ऩहरे लरखे गए ऩत्र का स्भयण कयते हुए लरखा गमा ऩत्र
15. श्जसका कोई घय नहीॊ हो – अननकेत
– अनुस्भायक
16. श्जसके भाता-वऩता नहीॊ हो – अनाथ
40. ऩीछे -ऩीछे चरने वारा – अनग
ु ाभी
17. श्जस बाई ने फाद भें जन्भ लरमा हो – अनज
ु
41. अनक
ु यण कयने मोनम – अनक
ु यणीम
18. श्जसकी उऩभा नहीॊ दी जा सके – अनुऩभ
42. अनस
ु यण कयने मोनम – अनस
ु यणीम
19. श्जसका जन्भ ननम्न वणव भें हुआ हो – अन्त्मज
43. वह लसिाॊत जो हय वस्तु को नचवय भानता हो –
20. वह ववद्माथी जो आचामव के ऩास ही ननवास कयता हो – अननत्मवादी
अॊतव
े ासी
44. जो कबी नहीॊ आमा हो – अनागत
21. भूर कथा भें आने वारा प्रसॊग – अन्तकवथा
45. जो श्रेष्ठ गुणों से मुक्त नहीॊ हो – अनामव
22. श्जसका ननवायण नहीॊ ककमा जा सके – अननवामव
46. जो सफके भन की फात जानता हो – अन्तमावभी
47. श्जसे ककसी फात का ऩता नहीॊ हो – अनलबऻ 72. श्जसको ऩैदा नहीॊ जा सके – अबेद्म
48. जो बफना सोचे सभझे ववचवास कयें – अन्धववचवासी 73. जो ऩहरे नहीॊ हुआ हो – अबूतऩूवव
49. जो बफना सोचे सभझे अनुगभन कयें – अन्धानुगाभी 74. श्जसकी भत्ृ मु नहीॊ होती हो – अभय
50. श्जसकी अऩेऺा नहीॊ हो – अऩेक्षऺत 75. श्जस वस्तु का भूल्म नहीॊ आॊका जा सके – अभूल्म
70. ककसी वस्तु को प्राप्त कयने की तीव्र इच्छा – अबीप्सा 96. नहीॊ हो सकने वारा – अशक्म
99. पेंककय चरामा जाने वारा हचथमाय – अस्त्र 124. ककसी स्थान के सवावचधक ऩुयाने ननवासी – आहदवासी
100. श्जसको सहन नहीॊ ककमा जा सके – असह्म 125. वह चीज श्जसकी चाहत हो – इश्च्छत
102. जो साभान नहीॊ हो – असभान 127. जो इॊर ऩय ववजम प्राप्त कय चुका हो – इन्रजीत
104. श्जस योग का इराज नहीॊ ककमा जा सके – राइराज 129. उत्तय औय ऩूवव के फीच की हदशा – ईशान
106. वह स्त्री श्जसका ऩनत प्रदे श से रौटा हो – आगतऩनतका 131. वह ऩववत जहाॊ से सूमव औय चॊरभा उहदत होते भाने
जाते हैं – उदमाचर
107. जो जन्भ रेते ही चगय मा भय गमा हो – आजन्भऩात
132. ऩववत के नीचे तरहटी की बलू भ – उऩत्मका
108. भत्ृ मु ऩमांत – आभयण
133. ककसी के सॊफॊध भें कुछ लरखने मोनम – उल्रेखनीम
109. जो गण
ु दोष का वववेचन कयता हो – आरोचक
134. श्जसके ऊऩय ककसी का उऩकाय हो – उऩकृत
110. जो ईचवय भें ववचवास यखता हो – आश्स्तक
135. ऐसी जभीन जो अच्छी उत्ऩादक हो – उववया
111. वह कवव जो तत्कार कववता कय सके – आशुकवव
136. जो छाती के फर चरता हो – उयग
112. श्जसे आचवासन ऩय ववचवास हो – आचवस्त
137. श्जसने अऩना ऋण ऩूया चुका हदमा हो – उऋण
113. ववदे श से दे श भें साभान भॊगवाना – आमात
138. श्जसका ऊऩय कथन ककमा गमा हो – उऩमुक्
व त
114. लसय से ऩाॊव तक – आऩादभस्तक
139. श्जसका भन जगत से उचट गमा हो – उदासीन
115. प्रायॊ ब से रेकय अॊत तक – आधोऩान्त
140. बोजन कयने के फाद फचा हुआ अन्न – उश्च्छष्ट
116. अऩने आऩ को खुद ही सभाप्त कय रेने वारा –
आत्भघाती 141. श्जस बूलभ भें कुछ बी ऩैदा नहीॊ होता हो – ऊसय
117. ऩववत्र आचयण कयने वारा – आचायऩूत 142. ववचायों का ऐसा प्रवाह श्जससे कोई ननष्कषव नहीॊ ननकरे
– ऊहाऩोह
118. दस
ू ये के हहत भें अऩना जीवन त्माग कय दे ना –
आत्भोत्सगव 143. जो केवर एक आॊख वारा हो – एकाऺ
119. जो फहुत क्रूय व्मवहाय कयता हो – आततामी 144. जो इश्न्रमों से सॊफॊचधत हो – ऐश्न्रम
120. श्जसका सॊफॊध आत्भा से हो – आध्माश्त्भक 145. साॊसारयक वस्तुओॊ को प्राप्त कयने की इच्छा – एषणा
121. श्जस ऩय हभरा ककमा गमा हो – आक्रान्त 146. श्जस ऩय ककसी एक का ही अचधकाय हो – एकाचधकाय
122. श्जस ने हभरा ककमा हो – आक्रान्ता 147. वह श्स्थनत जो अॊनतभ ननणावमक हो – एकाश्न्तक
148. कई जगह से लभरकय इकट्ठा ककमा गमा हो – एकीकृत 173. श्जसका कोई शत्रु ना हो – अजातशत्रु
149. जो व्मश्क्त की इच्छा ऩय ननबवय कयता हो – ऐश्च्छक 174. जो खाने मोनम न हो – अखाद्म
150. इश्न्रमों को भ्रलभत कयने वारा – ऐन्रजालरक 175. श्जसका चचॊतन नहीॊ ककमा जा सके – अचचन्त्म
151. जो इस रोक से सॊफॊचधत हो – ऐहहक 176. जो ऺभा नहीॊ ककमा जा सके – अऺम्म
152. साॊऩ-बफच्छू के जहय मा बूत प्रेत के बम को भॊत्रों से 177. श्जसको कहा ना जा सके – अकथनीम
झडने वारा – ओझा
178. श्जसको काटा न जा सके – अकाट्म
153. जो उऩननषदों से सॊफॊचधत हो – औऩननषहदक
179. नहीॊ टूटने वारा – अटूट
154. जो भात्र लशष्टाचाय व्मवहाय के लरए हो – औऩचारयक
180. अॊडे से जन्भ रेने वारा – अण्डज
155. दो व्मश्क्तमों की ऩयस्ऩय होने वारी फातचीत –
181. जो अऩनी फात से नहीॊ डडगे – अडडग
कथोऩकथन
182. जो छुआ न गमा हो – अछूता
156. ऐसी रडकी श्जसका वववाह नहीॊ हुआ हो – कुभायी
183. जो छूने मोनम न हो – अछूत
157. कभव कयने भें तत्ऩय व्मश्क्त – कभवठ
184. जो खारी न जाए – अचक
ू
158. फतवन फेचने वारा – कसेया
185. श्जसके फाये भें कोई ननश्चचम नहीॊ हो – अननश्चचत
159. जो काभ से जी चुयाता है – कभचोय
186. जो अऩने स्थान से अरग नहीॊ ककमा जा सके –
160. सफसे आगे यहने वारा – अग्रणी
अच्मुत
161. श्जसका खण्डन नहीॊ ककमा जा सके – अखण्डनीम
187. जो अऩनी फात से टरे नहीॊ – अटर
162. जो ऩहरे चगना जाता हो – अग्रगण्म
188. ऩदाथव का अत्मॊत सूक्ष्भ बाग – ऩयभाणु
163. जो ऩहरे जन्भा हो – अग्रज
189. श्जसके आगभन की नतचथ ननश्चचत नहीॊ हो – अनतचथ
164. श्जसे जाना न जा सके – अऻेम
190. आवचमकता से अचधक फयसात – अनतवश्ृ ष्ट
165. श्जसका ऩता न हो – अऻात
191. फयसात बफल्कुर नहीॊ होना – अनावश्ृ ष्ट
166. जो इॊहरमों द्वाया ना जाना जा सके – अगोचय
192. फहुत कभ फयसात होना – अल्ऩवश्ृ ष्ट
167. जो फहुत गहया हो – अगाध
193. इॊहरमों की ऩहुॊच से फाहय – अतीश्न्रम
168. श्जसने अबी तक जन्भ नहीॊ लरमा हो – अजन्भा
194. सीभा का अनचु चत उल्रॊघन – अनतक्रभण
169. श्जसकी चगनती न की जा सके – अगखणत
195. जो तकव से ऩये हो – तकावतीत
170. आगे आने वारा – आगाभी
196. ककसी फात को अत्मचधक फढा कय कहना –
171. श्जसको जीता न जा सके – अजेम अनतशमोश्क्त
201. श्जसका दभन नहीॊ ककमा जा सके – अदम्म 223. अऩनी गरती स्वीकाय कयने वारा – कामर
202. श्जसे दे खा न जा सके – अदृचम 224. ईचवय का साभूहहक रूऩ से ककमा जाने वारा गुणगान
– कीतवन
203. जो ऩहरे नहीॊ दे खा गमा हो – अदृष्टऩूवव
225. बूख से ऩीडडत – ऺुधातव
204. आगे का ववचाय नहीॊ कय सकने वारा – अदयू दशी
226. वऺ
ृ रता पूरों से नघया हुआ कोई सुॊदय स्थान – कॊु ज
205. जो दे खने मोनम न हो – अदशवनीम
227. ऩव
ू व भें हुई हानन की बयऩाई – ऺनतऩनू तव
206. श्जसके फयाफय दस
ू या नहीॊ हो – अद्ववतीम
228. श्जसका अथव स्वमॊ ही लसि है – लसिाथव
207. जो एक ननश्चचत अवचध तक ही रागू हो – अध्मादे श
229. ऩहरे से चरी आ यही ऩयॊ ऩया का अनऩ
ु ारन कयने वारा
208. श्जस ऩय ककसी ने अचधकाय कय लरमा हो – अचधकृत
– गतानुगनतक
209. वह सच
ू ना जो सयकाय के प्रमास से जायी हो –
230. आकाश को स्ऩशव कयने वारा – गगनचुम्फी
अचधसूचना
231. श्जस नाटक के सॊवाद गीतों के रूऩ भें लरखे हो –
210. अऩने काभ के फाये भें कुछ बी ननचचम नहीॊ कयने
गीनतनाट्म
वारा – ककॊ कतवव्मववभूढ
232. गुप्त रूऩ से घूभ कय सूचना दे ने वारा – गुप्तचय
211. जो फात ऩूवव कार से रोगों भें कह सुनकय प्रचलरत हो
– ककवदन्ती 233. हय ऩदाथव को अऩनी ओय आकृष्ट कयने वारी गुरुत्व
शश्क्त – गरु
ु त्वाकषवण
212. फुये भागव ऩय जाने वारा व्मश्क्त – कुभागवगाभी
234. जो फोर नहीॊ सकता हो – गॉग
ू ा
213. जो अच्छे कुर भें उत्ऩन्न हुआ हो – कुरीन
235. श्जम्भेदायी ऩूयी नहीॊ कयने वारा – ाैय-श्जम्भेदाय
214. श्जसकी फवु ि फहुत तेज हो – कुशाग्र
236. हदन औय यात के फीच का सभम – गोधूलर वेरा
215. फवु ि फयु ी सॊगत भें यहने वारा – कुसॊगी
237. जो ग्रहण कयने मोनम हो – ग्राह्भ
216. अऩने लरए ककए हुए उऩकाय को माद यखने वारा –
कृतऻ 238. जो नछऩाने मोनम हो – गोऩनीम
217. अऩने लरए ककए हुए उऩकाय को बुरा दे ने वारा – 239. जहाॊ से गॊगा नदी का उद्गभ होता है – गॊगोत्री
कृतघ्न
240. घास खोदकय जीवन ननवावह कयने वारा – घलसमाया
218. जो ऩैसों को अत्मचधक कॊजूसी से खचव कयता हो –
241. शयीय की हानन कयने वारा – घातक
कॊजस
ू
242. जो ऩदाथव घूभने मोनम हो – घुरनशीर
219. श्जसे खयीद लरमा गमा हो – क्रीत
243. घोडे के यखे जाने की जगह – घुडसार 265. श्जसके लसय ऩय चन्रकरा हो – चन्रचूड
244. जो घण
ृ ा का ऩात्र हो – घखृ णत 266. रॊफे सभम तक जीववत यहने वारा – चचयञ्जीवी
245. कोई कामव कयने के लरए नाजामज रूऩ भें धन रेने 267. फहुत सभम से ऩरयचचत – चचयऩरयचचत
वारा – घूसखोय
268. चचय ननरा को प्राप्त हुआ – चचयननहरत
246. जहाॊ धयती औय आकाश लभरते हुए हदखाई दे ते हैं –
269. चचॊता कयने मोनम फात – चचन्तनी
क्षऺनतज
270. सावधान कयने के लरए हदमा गमा सॊकेत – चेतावनी
247. साॉऩ के शयीय से ननकरी हुई खोरी – केंचर
ु ी
271. सबी प्रकाय की चचॊताओॊ को दयू कयने वारी एक भखण
248. जो ऺभा ककमा जा सके – ऺम्म
– चचन्ताभखण
249. श्जसका कुछ ही सभम भें नाश हो जाए – ऺणबॊगयु
272. जो गप्ु त रूऩ से ननवास कय यहा हो – छद्मवासी
250. जो ऺभा कयने वारा हो – ऺभाशीर
273. जहाॊ सैननक ननवास कयते हो – छावनी
251. आकाश के वऩॊडों का वववेचन कयने वारा शास्त्र –
274. जो दस
ू यों भें केवर दोषों को ही खोजता हो –
खगोरशास्त्र
नछरान्वेषी
252. श्जस ग्रहण भें सूमव मा चॊर का ऩूणव बफॊफ ग्रलसत हो
275. नछऩकय आक्रभण कयने वारा – छाऩाभाय दर
जाता है – खग्रास
276. ऩत्थय को गढने वारा औजाय – छै नी
253. जो व्मश्क्त अऩने हाथ भें तरवाय लरए यहता है –
खड्गहस्त 277. एक स्थान से दस
ू ये स्थान ऩय चरने वारा – जॊगभ
254. दस
ू यों के भत का ववयोध कयना – खण्डन 278. जो जर फयसाता हो – जरद
255. वह स्त्री श्जसका ऩनत अन्म स्त्री के साथ यात को 279. जो जर से उत्ऩन्न होता हो – जरज
यहकय प्रात् रौटे – खश्ण्डता
280. जो जीव जॊतु जर भें यहते हो – जरचय
256. खाने के मोनम वस्तु – खाद्म
281. जो चभत्कायी कक्रमाओॊ का प्रदशवन कयता है – जादग
ू य
257. आकाश भें ववचयण कयने वारे जॊतु – नबचय
282. जो अकायण जल्
ु भ ढाका हो – जालरभ
258. शयीय का व्माऩाय कयने वारी स्त्री – गखणका
283. श्जॊदा यहने की इच्छा – श्जजीववषा
259. जो अलशष्ट व्मवहाय कयता हो – गॉवाय
284. श्जसने इश्न्रमों को वश भें कय लरमा हो – श्जतेश्न्रम
260. जो फहुत सभम तक ठहय सके – चचयस्थामी
285. श्जसने आत्भा को जीत लरमा हो – श्जतात्भा
261. चौथे हदन आने वारा फुखाय – चौचथमा
286. जो जीतने के मोनम हो जेम जेठ का ऩुत्र – जेठोत
262. चक्र के रूऩ भें घूभती हुई चरने वारी हवा – चक्रवात
287. अऩनी इज़्जजत को फचाने के लरए ककमा गमा अश्नन
263. आचचमव भें डार दे ने वारा कामव – चभत्काय प्रवेश – जौहय
264. वह कृनत श्जसभें गद्म एवॊ ऩद्म दोनों लभचश्रत हो – 288. वह ऩहाड श्जसके भुॊह से आग ननकरे – ज्जवाराभुखी
चम्ऩू
289. रॊफे औय बफखये फारों वारा – झफया 311. सत्व, यज औय तभ का सभूह – बत्रगुण
290. फहुत गहया तथा फहुत फडा प्राकृनतक जराशम – झीर 312. गॊगा, मभुना औय सयस्वती का सॊगभ – बत्रवेणी
291. जहाॊ लसक्कों की ढराई होती है – टकसार 313. बूत, वतवभान औय बववष्म को जानने वारा – बत्रकारऻ
292. अचधक दे य तक यहने वारा मा चरने वारा – हटकाऊ 314. श्जसके तीन आॊखें हैं बत्रनेत्र तीन भहीने भें एक फाय –
त्रैभालसक
293. वववाह का सॊफॊध तम कयने के लरए वय को वस्त्र आहद
वस्तुएॊ प्रदान कयने की यस्भ – टीका 315. वह स्थान जो दोनों बक
ृ ु हटमों के फीच होता है – बत्रकुटी
296. जनता को सच
ू ना दे ने हे तु फजामा जाने वारा वाद्म – 318. ऩनत औय ऩत्नी का जोडा दम्ऩनत दस वषों का सभम
हढॊढोया – दशक
297. जो ककसी बी गुट भें नहीॊ हो – तटस्थ 319. वह व्मश्क्त श्जसे गोद लरमा जाए – दत्तक
298. जो ककनाये से सटे हुए हो – तटवती 320. याननमों के साथ दहे ज के रूऩ भें बेजी गई सेववकाआएॉ
– दासी
299. जो ककसी कामव मा चचॊतन भें डूफा हुआ हो – तल्रीन
321. जॊगर भें पैरने वारी आग – दावाश्नन
300. जो चोयी-नछऩे भार राता औय रे जाता हो – तस्कय
322. दो फाय जन्भ रेने वारा – द्ववज
301. ऋवषमों के तऩ कयने की बूलभ तऩोबूलभ उसी सभम का
– तत्कारीन 323. श्जसे कहठनाई से जाना जा सके – दऻ
ु ेम
336. आगे की फात को बी सोच रेने वारा व्मश्क्त – दयू दशी 360. ध्मान कयने वारा – ध्माता
337. श्जसे दे वता बी ऩूछते हो – दे वायाध्म 361. ताॊडव नत्ृ म की भुरा भें लशव – नटयाज
338. दीऺा की सभाश्प्त ऩय हदमा जाने वारा उऩदे श – 362. नाक से अऩने आऩ ननकरने वारा ऽून – नकसीय
दीऺान्त बाषण
363. सम्भान भें दी जाने वारी बें ट – नजयाना
339. ऩुत्री का ऩत्र
ु – दौहहत्र
364. नाखून से चोटी तक का वणवन – नखलशख वणवन
340. ऩुत्री की ऩत्र
ु ी – दौहहत्री
365. श्जसका जन्भ अबी-अबी हुआ हो – नवजात
341. वह कामव श्जसको कयना कहठन हो – दष्ु कय
366. श्जस स्त्री का वववाह अबी हुआ हो – नवोढा
342. वह फच्चा जो अबी भाॊ के दध
ू ऩय ननबवय है – दध
ु भॉह
ु ा
367. श्जसका उदम हार भें हुआ हो – नवोहदत
343. जो दो अरग-अरग बावषमों के फीच अनव
ु ाद कयके
368. जो वस्तु नाशवान हो – नचवय
फात कयवाता हो – दब
ु ावषमा
369. श्जसका लसय झक
ु ा हुआ हो – नतभस्तक
344. जो शीघ्रता से चरता हो – रत
ु गाभी
370. जो आकाश भें ववचयण कयता है – नबचय
345. जो धनुष को धायण कयता हो – धनुधावयी
371. जो नमा नमा आमा है – नवागत
346. धन की इच्छा यखने वारा – धनेच्छु
372. श्जसे ईचवय ऩय ववचवास नहीॊ हो – नाश्स्तक
347. सबी को धायण कयने वारी – धयणी
373. जो ऩढना-लरखना नहीॊ जानता हो – ननयऺय
348. माबत्रमों के लरए ननशुल्क साववजननक आवास गह
ृ –
धभवशारा 374. श्जसको डय नहीॊ हो – ननडय
349. गयीफों के लरए दान के रूऩ भें हदमा जाने वारा धन- 375. श्जसका कोई अथव नहीॊ हो – ननयथवक
अन्न आहद – धाभावदा
376. श्जसका कोई आकाय नहीॊ हो – ननयाकाय
350. ककसी के ऩास यखी हुई दस
ू ये की वस्तु – धयोहय 377. श्जसका कोई आधाय नहीॊ हो – ननयाधाय
351. भछरी भाय कय आजीववका चराने वारा – धीवय
378. श्जससे ककसी प्रकाय की हानन नहीॊ हो – ननयाऩद
352. श्रेष्ठ गुणों से सॊऩन्न शूयवीय नामक – धीयोध्दत्त
379. जो भाॊस नहीॊ खाता हो – ननयालभष
353. शूयवीय ककॊ तु क्रीडावप्रम नामक – धीयरलरत
380. श्जसकी कोई इच्छा नहीॊ हो – नन:स्ऩह
ृ
354. धभव के अनुसाय व्मवहाय कयने वारा – धभावत्भा
381. बफना बोजन के – ननयाहाय
355. श्जसकी धभव भें ननष्ठा हो – धभवननष्ठ
382. जो उत्तय नहीॊ दे सके – ननरुत्तय
356. आधायबूत कामों भें प्रवीण – धुयन्धय
383. श्जसभें दमा नहीॊ हो – ननदव म
357. जो धीयज यखता हो – धीय
384. श्जसके ऩास धन नहीॊ हो – ननधवन
358. अऩने स्थान ऩय अचर यहने वारा – ध्रुव
385. श्जसको बम नहीॊ हो – ननबवम 409. अऩने भागव से बटका हुआ – ऩथभ्रष्ट
386. श्जसके कोई करॊक नहीॊ हो – ननष्करॊक 410. अऩने ऩद से हटामा हुआ – ऩदच्मुत
387. श्जस काभ के लरए धन नहीॊ हदमा जाए – नन:शुल्क 411. केवर दध
ू ऩय जीववत यहने वारा – ऩमोहायी
388. श्जसका अऩना कोई स्वाथव नहीॊ हो – नन:स्वाथव 412. जो प्रत्मऺ नहीॊ हो – ऩयोऺ
390. श्जसको ककसी भें बी आसश्क्त नहीॊ हो – असॊग 414. घूभने कपयने वारा साधु – ऩरयव्राजक
396. श्जसकी ककसी से तुरना नहीॊ की जा सके – ननरुऩभ 420. ककसी प्रचन का तत्कार उत्तय दे सकने वारी फुवि –
प्रत्मुत्ऩन्न भनत
397. जो ननणवम कयने वारा हो – ननणावमक
421. ऩदे के अॊदय यहने वारी – ऩदावनशीन
398. श्जसका कोई उद्देचम नहीॊ हो – ननरुद्देश
422. ककसी वाद का ववयोध कयने वारा – प्रनतवादी
399. जो ऩाऩ से यहहत हो – ननष्ऩाऩ
423. शयणागत की यऺा कयने वारा – प्रणतऩार
400. जो सफ प्रकाय की चचॊताओॊ से यहहत हो – ननश्चचॊत
424. वह ध्वनन जो कहीॊ से टकयाकय आए – प्रनतध्वनन
401. जो नीनत के अनुकूर हो – नैनतक
425. जो ककसी भत को सववप्रथभ चराता है – प्रवतवक
402. आजीवन ब्रह्भचमव का व्रत रेने वारा – नैश्ष्ठक
407. ऩनत को चन
ु ने की इच्छा यखने वारी कन्मा –
ऩनतम्वया
“अ” वे ळरू
ु शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ
21. अॊडा लवखाले फच्िे को कक िीॊ-िीॊ भत कय : जफ कोई छोटा फडे को उऩदे श दे ।
उदा-भोहन का छोटा बाई भोहन के द्वाया प्रचन गरत हर कयने ऩय उसका छोटा बाई उसे लसखाने रगता है तो भोहन उससे
कहता है अॊडा लसखावे फच्चे को कक चीॊ चीॊ भत कय।
22. अन्त बरे का बरा : जो बरे काभ कयता है , अन्त भें उसे सख
ु लभरता है ।
उदा-याभरार ने अऩनी ऩुत्री को ऩढा लरखा कय फडा ककमा अफ वि
ृ अवस्था भें उसकी ऩत्र
ु ी ने उसकी दे खबार की इसे कहते हैं
अॊत बरे का बरा।
23. अॊधा क्मा िाशे , दो आॊखे : आवचमक मा अबीष्ट वस्तु अचानक मा अनामास लभर जाती है , तफ ऐसा कहते हैं।
उदा- भैं वऩकननक जाने का सोच ही यही थी कक भैंने कहा चरो कर वऩकननक चरते हैं मह तो वही हुआ अॊधा क्मा चाहे दो
आॊखें।
24. अॊधा फाॊटे ये लडी कपय-कपय अऩने को शी दे ् अचधकाय ऩाने ऩय स्वाथी भनुष्म अऩने ही रोगों औय इष्ट-लभत्रों को ही राब ऩहुॊचाते
हैं।
उदा- छात्र चुनाव भें याहुर ने जीतने के फाद अऩने ही दोस्तों को अन्म ऩदों ऩय ननमुक्त कय हदमा मह तो वही फात हुई अॊधा
फाॊटे ये वडी कपय-कपय अऩने को ही दे ।
25. अॊधा लवऩाशी कानी घोडी, वलचध ने खूफ लभराई जोडी: जहाॊ दो व्मश्क्त हों औय दोनों ही एक सभान भख
ू ,व दष्ु ट मा अवगण
ु ी हों
वहाॊ ऐसा कहते हैं।
उदा- याभ औय चमाभ दोनों अनऩढ है कपय बी उन्होंने ववद्मारम खोर लरमा लशऺक की बती रेनी थी रेककन दोनों अनऩढ। मह
तो वही फात हुई अॊदय लसऩाही का ननगोडी बी
26. अॊधी ऩीवे, कुत्ते खामें : भख
ू ों को कभाई व्मथव नष्ट होती है ।
उदा- याभ ने उसकी भाॊ के ना यहने ऩय फडी भश्ु चकर से खाना फनामा ऩयॊ तु उसका ऩडोसी आकय साया खाना खा गमा मह तो
वही फात हुई अॊधी ऩीसे कुत्ता खाए।
27. अॊधे के आगे योले, अऩना दीदा खोले : भूखों को सदऩ
ु दे श दे ना मा उनके लरए शुब कामव कयना व्मथव है ।
उदा- अध्माऩक ववद्मारम भें बाषण दे यहे थे औय छात्र अऩनी फातों भें भस्त है वह बाषा भें कोई रुचच नहीॊ रे यहे थे फस शोय
भचाते जा यहे थे इसे कहते हैं अॊधे के आगे योवे, अऩना दीदा खोवे।
28. अॊधे को अॊधेये भें फशुत दयू की वझ
ू ी : जफ कोई भख
ू व भनष्ु म फवु िभानी की फात कहता है तफ ऐसा कहते हैं।
उदा- योहहत हभेशा शयायत की ही फातें कयता यहता है रेककन आज उसने अध्माऩक से ऩढाई के ववषम भें ऩूछा तो अध्माऩक ने
उससे कहा अॊधे को अॊधेये भें फहुत दयू की सूझी।
29. अॊधेय नगयी िौऩट याजा, टका वेय बाजी टका वेय खाजा: जहाॊ भालरक भूखव होता है , वहाॊ गुण का आदय नहीॊ होता।
उदा- एक कॊऩनी का भालरक भूखव था तथा वहाॊ के कभवचायी गुणवान रेककन कपय बी उनके गुणों का आदय नहीॊ होता था। इसे
कहते हैं अॊधेय नगयी चौऩट याजा, टका सेय बाजी टका सेय खाजा
30. अॊधों भें काना याजा : भूखों मा अऻाननमों भें अल्ऩऻ रोगों का बी फहुत आदय होता है ।
उदा- टे स्ट नहीॊ जहाॊ सबी के जीयो नॊफय आए वहाॊ याभ दो नॊफय से प्रथभ आ गमा। इसे कहते हैं अॊधों भें काना याजा।
31. अऩनी-अऩनी डपरी, अऩना-अऩना याग : कोई काभ ननमभ-कामदे से न कयना
32. अऩनी ऩगडी अऩने शाथ : अऩनी इज्जजत अऩने हाथ होती है ।
33. अभानत भें खमानत : ककसी के ऩास अभानत के रूऩ भें यखी कोई वस्तु खचव कय दे ना
34. अस्वी की आभद, िौयावी खिघ : आभदनी से अचधक खचव
35. अनत वलघत्र लजघमेत ् : ककसी बी काभ भें हभें भमावदा का उल्रॊघन नहीॊ कयना चाहहए।
36. अऩनी कयनी ऩाय उतयनी : भनुष्म को अऩने कभव के अनुसाय ही पर लभरता है
37. अॊत बरा तो वफ बरा : ऩरयणाभ अच्छा हो जाए तो सफ कुछ भाना जाता है ।
38. अॊधे की रकडी : फेसहाये का सहाया
39. अऩना यख ऩयामा िख : ननजी वस्तु की यऺा एवॊ अन्म वस्तु का उऩबोग
40. अच्छी भनत जो िाशो फूढ़े ऩूछन जाओ : फडे फूढों की सराह से कामव लसि हो सकते हैं।
41. अफ की अफ, जफ की जफ के वाथ : सदा वतवभान की ही चचन्ता कयनी चाहहए
42. अऩनी नीॊद वोना, अऩनी नीॊद जागना : ऩूणव स्वतॊत्र होना
43. अऩने झोऩडे की खैय भनाओ : अऩनी कुशर दे खो
भशत्लऩूणघ रोकोश्क्तमाॉ
44. अकेरा िना बाड नशीॊ पोड वकता/पोडता : अकेरा आदभी कोई फडा काभ नहीॊ कय सकता; उसे अन्म रोगों की सहमोग की
आवचमकता होती है ।
45. अक्र के अॊधे, गाॉठ के ऩूये : ननफवुव ि धनवान ् इसका भतरफ मह है कक श्जसके ऩास बफरकुर फुवि नहीॊ हो कपय बी वह धनवान
हो तफ इसका प्रमोग ककमा जाता है ।
46. अक्र फडी की बैंव : फुवि शायीरयक शश्क्त से श्रेष्ठ होती है ।
47. अटका फननमा दे उधाय : श्जस फननमे का भाभरा पॊस जाता है , वह उधाय सौदा दे ता है ।
48. अनत बश्क्त िोय के रषण : महद कोई अनत बश्क्त का प्रदशवन कये तो सभझना चाहहए कक वह कऩटी औय दम्बी है ।
49. अधजर/अधबय गगयी छरकत जाम : श्जसके ऩास थोडा धन मा ऻान होता है , वह उसका प्रदशवन कयता है ।
50. अधेरा न दे , अधेरी दे : बरभनसाहत से कुछ न दे ना ऩय दफाव ऩडने ऩय मा पॊस जाने ऩय आशा से अचधक चीज दे दे ना।
51. अनदे खा िोय फाऩ फयाफय : श्जस भनुष्म के चोय होने का कोई प्रभाण न हो, उसका अनादय नहीॊ कयना चाहहए। ।
52. अनभाॊगे भोती लभरे भाॊगे लभरे न बीख : सॊतोषी औय बानमवान ् को फैठे-बफठामे फहुत कुछ लभर जाता है ऩयन्तु रोबी औय
अबागे को भाॊगने ऩय बी कुछ नहीॊ लभरता।
53. अऩना घय दयू वे वूझता शै : अऩने भतरफ की फात कोई नहीॊ बूरता। मा वप्रमजन सफको माद यहते हैं।
54. अऩना ऩैवा लवक्का खोटा तो ऩयखैमा का क्मा दोऴ? : महद अऩने सगे-सम्फन्धी भें कोई दोष हो औय कोई अन्म व्मश्क्त उसे
फुया कहे , तो उससे नायाज नहीॊ होना चाहहए।
55. अऩना रार गॊलाम के दय-दय भाॊगे बीख : अऩना धन खोकय दस
ू यों से छोटी-छोटी चीजें भाॊगना।
56. अऩना शाथ जगन्नाथ का बात : दस
ू ये की वस्तु का ननबवम औय उन्भुक्त उऩबोग।
57. अऩनी अक्र औय ऩयाई दौरत वफको फडी भारूभ ऩडती शै : भनुष्म स्वमॊ को सफसे फुविभान सभझता है औय दस
ू ये की सॊऩश्त्त
उसे ज्जमादा रगती है ।
58. अऩनी-अऩनी डपरी अऩना-अऩना याग : सफ रोगों का अऩनी-अऩनी धुन भें भस्त यहना।
59. अऩनी गरी भें कुत्ता बी ळेय शोता शै :अऩने घय मा भोहल्रे आहद भें सफ रोग फहादयु फनते हैं।
60. अऩनी पूटी न दे खे दव
ू ये की पूरी ननशाये : अऩना दोष न दे खकय दस
ू ये के छोटे अवगुण ऩय ध्मान दे ना।
61. अऩने घय भें दीमा जराकय तफ भश्स्जद भें जराते शैं : ऩहरे स्वाथव ऩूया कयके तफ ऩयभाथव मा ऩयोऩकाय ककमा जाता है ।
62. अऩने दशी को कोई खट्टा नशीॊ कशता : अऩनी चीज को कोई फयु ा नहीॊ कहता।
63. अऩने भये बफना स्लगघ नशीॊ हदखता : अऩने ककमे बफना काभ नहीॊ होता।
64. अऩने भुॊश लभमाॊ लभऱू: अऩने भुॊह से अऩनी फडाई कयने वारा व्मश्क्त।
65. अफ ऩछताए शोत क्मा जफ चिडडमा िुग गई खेत : काभ बफगड जाने ऩय ऩछताने औय अपसोस कयने से कोई राब नहीॊ होता।
66. अबी हदल्री दयू शै : अबी काभ ऩूया होने भें दे य है ।
67. अभीय को जान प्मायी, पकीय/गयीफ एकदभ बायी : अभीय ववषम-बोग के लरए फहुत हदन जीना चाहता है . रेककन खाने की कभी
के कायण गयीफ आदभी जल्द भय जाना चाहता है ।
68. अयध तजहशॊ फध
ु वयफव जाता : जफ सववनाश की नौफत आती है तफ फवु िभान रोग आधे को छोड दे ते हैं औय आधे को फचा
रेते हैं
69. अळकपघ मों की रूट औय कोमरों ऩय छाऩ /भोशय : फहुभूल्म ऩदाथों की ऩयवाह न कयके छोटी-छोटी वस्तुओॊ की यऺा के लरए
ववशेष चेष्टा कयने ऩय उश्क्त।
70. अळुबस्म कार शयणभ ् : जहाॊ तक हो सके, अशुब सभम टारने का प्रमत्न कयना चाहहए।
71. अशभक वे ऩडी फात, काढ़ो वोटा तोडो दाॊत : भूखों के साथ कठोय व्मवहाय कयने से काभ चरता है ।
„आ‟ वे ळरू
ु शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ
72. आॊख के अॊधे नाभ नमनवुख : नाभ औय गण ु भें ववयोध होना, गणु हीन को फहुत गण ु ी कहना।
73. आॊखों के आगे ऩरकों की फयु ाई : ककसी के बाई- फन्धओु ॊ मा इष्ट-लभत्रों के साभने उसकी फयु ाई कयना।
74. आॊखों ऩय ऩरकों का फोझ नशीॊ शोता : अऩने कुटुश्म्फमों को खखराना-वऩराना नहीॊ खरता। मा काभ की चीज भहॊ गी नहीॊ जान
ऩडती।
75. आॊवू एक नशीॊ औय करेजा टूक-टूक : हदखावटी योना।
76. आई शै जान के वाथ जाएगी जनाजे के वाथ : वह ववऩश्त्त मा फीभायी जो आजीवन फनी यहे ।
77. आ गई तो ईद फायात नशीॊ तो कारी जम्
ु भे यात : ऩैसे हुए तो अच्छा खाना खामेंगे, नहीॊ तो रूखा-सख
ू ा ही सही।
78. आई भौज पकीय को, हदमा झोऩडा पूॊक : ववयक्त(बफगडा हुए) ऩुरुष भनभौजी होते हैं।
79. आए थे शरय बजन को, ओटन रगे कऩाव: श्जस काभ के लरए गए थे, उसे छोडकय दस
ू ये काभ भें रग गए।
80. आगे कुआॊ, ऩीछे खाई : दोनों तयप ववऩश्त्त होना।
81. आगे नाथ न ऩीछे ऩगशा, वफवे बरा कुम्शाय का गदशा मा (खाम भोटाम के शुए गदशा) : श्जस भनुष्म के कुटुम्फ भें कोई न हो
औय जो स्वमॊ कभाता औय खाता हो औय सफ प्रकाय की चचॊताओॊ से भक्
ु त हो।
82. आठों ऩशय िौंवठ घडी : हय सभम, हदन-यात।
83. आठों गाॊठ कुम्भैत : ऩूया धूतव, घुटा हुआ।
84. आत्भा वुखी तो ऩयभात्भा वख
ु ी : ऩेट बयता है तो ईचवय की माद आती है ।
85. आधी छोड वायी को धाले, आधी यशे न वायी ऩाले : अचधक रारच कयना अच्छा नहीॊ होता; जो लभरे उसी से सन्तोष कयना
चाहहए।
86. आऩको न िाशे ताके फाऩ को न िाहशए : जो आऩका आदय न कये आऩको बी उसका आदय नहीॊ कयना चाहहए।
87. आऩ जाम नशीॊ वावुये, औयन को लवणख दे त : आऩ स्वमॊ कोई काभ न कयके दस
ू यों को वही काभ कयने का उऩदे श दे ना।
88. आऩ तो लभमाॊ शफ्तशजायी, घय भें योलें कभों भायी : जफ कोई भनुष्म स्वमॊ तो फडे ठाट-फाट से यहता है ऩय उसकी स्त्री फडे कष्ट
से जीवन व्मतीत कयती है तफ ऐसा कहते हैं।
89. आऩ भये जग ऩयरम: भत्ू मु के फाद की चचन्ता नहीॊ कयनी चाहहए।
90. आऩ लभमाॊ भाॊगते दयलाजे खडा दयलेळ : जो भनुष्म स्वमॊ दरयर है वह दस
ू यों को क्मा सहामता कय सकता है ?
91. आ फैर भुझे भाय : जान- फूझकय ववऩश्त्त भें ऩडना।
92. आभ के आभ गुठलरमों के दाभ : ककसी काभ भें दोहया राब होना।
93. आभ खाने वे काभ, ऩेड चगनने वे क्मा काभ? (आभ खाने वे भतरफ कक ऩेड चगनने वे? ) : जफ कोई भतरफ का काभ न कयके
कपजर
ू फातें कयता है तफ इस कहावत का प्रमोग कयते हैं।
94. आमा शै जो जामेगा, याजा यॊ क पकीय : अभीय-गयीफ सबी को भयना है ।
95. आयत काश न कयै कुकयभू : द्ु खी भनुष्म को बरे औय फुये कभव का ववचाय नहीॊ यहता।
96. आव ऩयाई जो तके, जीवलत शी भय जाए : जो दस ू यों ऩय ननबवय यहता है , वह जीववत यहते हुए बी भया हुआ होता है ।
97. आव-ऩाव फयवे, हदल्री ऩडी तयवे : श्जसे जरूयत हो, उसे न लभरकय ककसी चीज का दस ू ये को लभरना।
98. इक नाचगन अव ऩॊख रगाई : ककसी बमॊकय चीज का ककसी कायणवश औय बी बमॊकय हो जाना।
99. इन नतरों भें तेर नशीॊ ननकरता: ऐसे कॊजूसों से कुछ प्रश्प्त नहीॊ होती।
100. इश्ब्तदा-ए-इचक शै . योता शै क्मा, आगे-आगे दे णखए, शोता शै क्मा : अबी तो कामव का आयॊ ब है ; इसे ही दे खकय घफया गए, आगे
दे खो क्मा होता है ।
101. इवके ऩेट भें दाढ़ी शै : इसकी अवस्था फहुत कभ है तथावऩ मह फहुत फवु िभान है ।
102. इशाॊ कुम्शड फनतमा कोउ नाशीॊ, जो तजघनन दे खत भरय जाशीॊ : जफ कोई झूठा योफ हदखाकय ककसी को डयाना चाहता है ।
103. इशाॊ न रागहश याउरय भामा् महाॊ कोई आऩके धोखे भें नहीॊ आ सकता।
104. ईळ यजाम वीव वफशी के : ईचवय की आऻा सबी को भाननी ऩडती है ।
105. ईचलय की भामा, कशीॊ धूऩ कशीॊ छामा : बगवान की भामा ववचचत्र है । सॊसाय भें कोई सुखी है तो कोई द्ु खी, कोई धनी है तो कोई
ननधवन।
106. उधये अन्त न शोहशॊ ननफाश । कारनेलभ श्जलभ यालण याशू।। : जफ ककसी कऩटी आदभी को ऩोर खुर जाती है , तफ उसका ननवावह
नहीॊ होता। उस ऩय अनेक ववऩश्त्त आती है ।
107. उत्तभ वलद्मा रीश्जए, जदवऩ नीि ऩै शोम : छोटे व्मश्क्त के ऩास महद कोई ऻान है , तो उसे ग्रहण कयना चाहहए।
108. उतय गई रोई तो क्मा कये गा कोई : जफ इज्जजत ही नहीॊ है तो डय ककसका?
109. उधाय का खाना औय पूव का ताऩना फयाफय शै : पूस की आग फहुत दे य तक नहीॊ ठहयती। इसी प्रकाय कोई व्मश्क्त फहुत हदनों
तक उधाय रेकय अऩना खचव नहीॊ चरा सकता।
110. उभादाव जोनतऴ की नाई, वफहशॊ निालत याभ गोवाई : भनुष्म का ककमा कुछ नहीॊ होता। भनुष्म को ईचवय की इच्छा के
अनस
ु ाय काभ कयना ऩडता है ।
111. उल्टा िोय कोतलार को डाॊटे: अऩना अऩयाध स्वीकाय न कयके ऩछ
ू ने वारे को डाॊटने-पटकायने मा दोषी ठहयाने ऩय
उश्क्त(कथन)।
112. उवी की जूती उवी का लवय : ककसी को उसी की मुश्क्त(वस्तु)से फेवकूप फनाना।
113. ऊॊिी दक
ु ान पीके ऩकलान : श्जसका नाभ तो फहुत हो, ऩय गुण कभ हो।
114. ऊॊट के गरे भें बफत्री: अनचु चत, अनऩ
ु मुक्त मा फेभेर सॊफॊध वववाह।
115. ऊॊट के भॊशु भें जीया : फहुत अचधक आवचमकता वारे मा खाने वारे को फहुत थोडी-सी चीज दे ना।
116. ऊॊट-घोडे फशे जाए, गधा कशे ककतना ऩानी : जफ ककसी काभ को शश्क्तशारी रोग न कय सकें औय कोई कभजोय आदभी उसे
कयना चाहे , तफ ऐसा कहते हैं।
117. ऊॊट दल्ू शा गधा ऩुयोहशत : एक भूखव मा नीच द्वाया दस
ू ये भूखव मा नीच की प्रशॊसा ऩय उश्क्त(वाक्म/कथन)।
118. ऊॊट फयाघता शी रदता शै : काभ कयने की इच्छा न यहने ऩय डय के भाये काभ बी कयते जाना औय फडफडाते बी जाना।
119. ऊॊट बफराई रे गई, शाॊ जी, शाॊ जी कशना : जफ कोई फडा आदभी कोई असम्बव फात कहे औय दस
ू या उसकी हाभी बये ।
„ओ‟,‟औ‟ वे ळरू
ु शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ
131. ओठों ननकरी कोठों िढ़ी : जो फात भुॊह से ननकर है , वह पैर जाती है , गुप्त नहीॊ यहती।
132. ओखरी भें लवय हदमा तो भव
ू रों का क्मा डय : कष्ट सहने ऩय उतारू होने ऩय कष्ट का डय नहीॊ यहता।
133. औय फात खोटी, वशी दार-योटी : सॊसाय की सफ चीजों भें बोजन ही भुख्म है ।
134. अॊधों भें काना याजा – भूखों भें कुछ ऩढा-लरखा व्मश्क्त
135. अकेरा चना बाड नहीॊ पोड सकता – अकेरा आदभी राचाय होता है
136. अधजर गगयी छरकत जाम – डीॊग हाॉकना
137. आॉख का अॉधा नाभ नमनसुख – गुण के ववरुि नाभ होना
138. आॉख के अॊधे गाॉठ के ऩूये – भुखव ऩयन्तु धनवान
139. आग रागॊते झोऩडा, जो ननकरे सो राब – नुकसान होते सभम जो फच जाए वही राब है
140. आगे नाथ न ऩीछे ऩगही – ककसी तयह की श्जम्भेदायी न होना
141. आभ के आभ गठ ु लरमों के दाभ – अचधक राब
142. ओखरी भें सय हदमा तो भूसरों से क्मा डये – काभ कयने ऩय उतारू
143. ऊॉची दक
ु ान पीका ऩकवान – केवर फाह्म प्रदशवन
144. एक ऩॊथ दो काज – एक काभ से दस
ू या काभ हो जाना
145. कहाॉ याजा बोज कहाॉ गॊगू तेरी – उच्च औय साधायण की तुरना कैसी
146. घय का जोगी जोगडा, आन गाॉव का लसि – ननकट का गण ु ी व्मश्क्त कभ सम्भान ऩाटा है, ऩय दयू का ज्जमादा
147. चचयाग तरे अॉधेया – अऩनी फुयाई नहीॊ हदखती
148. श्जन ढूॊढा नतन ऩाइमाॉ गहये ऩानी ऩैठ – ऩरयश्रभ का पर अवचम लभरता है
149. नाच न जाने आॉगन टे ढा – काभ न जानना औय फहाने फनाना
150. न यहे गा फाॉस, न फजेगी फाॉसुयी – न कायण होगा, न कामव होगा
151. होनहाय बफयवान के होत चीकने ऩात – होनहाय के रऺण ऩहरे से ही हदखाई ऩडने रगते हैं
152. जॊगर भें भोय नाचा ककसने दे खा – गुण की कदय गण
ु वानों फीच ही होती है
153. कोमर होम न उजरी, सौ भन साफुन राई – ककतना बी प्रमत्न ककमा जामे स्वबाव नहीॊ फदरता
154. चीर के घोसरे भें भाॉस कहाॉ – जहाॉ कुछ बी फचने की सॊबावना न हो
155. चोय राठी दो जने औय हभ फाऩ ऩूत अकेरे – ताकतवय आदभी से दो रोग बी हाय जाते हैं
156. चॊदन की चुटकी बयी, गाडी बया न काठ – अच्छी वास्तु कभ होने ऩय बी भूल्मवान होती है , जश्ब्क भाभूरी चीज अचधक होने
ऩय बी कोई कीभत नहीॊ यखती
157. छप्ऩय ऩय पूॊस नहीॊ, ड्मोढी ऩय नाच – हदखावटी ठाट-वाट ऩयन्तु वास्तववकता भें कुछ बी नहीॊ
158. छछूॊदय के सय ऩय चभेरी का तेर – अमोनम के ऩास मोनम वस्तु का होना
159. श्जसके हाथ डोई, उसका सफ कोई – धनी व्मश्क्त के सफ लभत्र होते हैं
160. मोगी था सो उठ गमा आसन यहा बबूत – ऩुयाण गौयव सभाप्त
हशन्दी रोकोश्क्तमाॉ
161. वूखी तराईमा भ भें ढक कयम टय-टय : खुरी आॉखों से सऩने दे खकय खुशी व्मक्त कयना।
162. श्जवकी फॊदयी लशी निाले औय निाले तो काटन धाले : श्जसका जो काभ होता है वही उसे कय सकता है ।
163. श्जवकी बफल्री उवी वे म्माऊॉ कये : जफ ककसी के द्वाया ऩारा हुआ व्मश्क्त उसी से गुयावता है ।
164. श्जवकी राठी उवकी बैंव : शश्क्त अनचधकायी को बी अचधकायी फना दे ती है , शश्क्तशारी की ही ववजम होती है ।
165. श्जवके ऩाव नशीॊ ऩैवा, लश बराभानव कैवा : श्जसके ऩास धन होता है उसको रोग बराभानस सभझते हैं , ननधवन को रोग
बराभानस नहीॊ सभझते।
166. श्जवके याभ धनी, उवे कौन कभी : जो बगवान के बयोसे यहता है , उसे ककसी चीज की कभी नहीॊ होती।
167. श्जवके शाथ डोई (कयछी) उवका वफ कोई : सफ रोग धनवान का साथ दे ते हैं औय उसकी खुशाभद कयते हैं।
168. श्जवे वऩमा िाशे लशी वुशाचगन : श्जस ऩय भालरक की कृऩा होती है उसी की उन्ननत होती है औय उसी का सम्भान होता है ।
169. जी कशो जी कशराओ : महद तुभ दस
ू यों का आदय कयोगे, तो रोग तुम्हाया बी आदय कयें गे।
170. जीब औय थैरी को फॊद शी यखना अच्छा शै : कभ फोरने औय कभ खचव कयने से फडा राब होता है ।
171. जीब बी जरी औय स्लाद बी न ऩामा : महद ककसी को फहुत थोडी-सी चीज खाने को दी जामे।
172. जीमे न भानें वऩत ृ औय भुए कयें श्ाि : कुऩात्र ऩुत्रों के लरए कहते हैं जो अऩने वऩता के जीववत यहने ऩय उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीॊ
कयते, ऩय भय जाने ऩय श्राि कयते हैं।
173. जी शी वे जशान शै : महद जीवन है तो सफ कुछ है । इसलरए सफ तयह से प्राण-यऺा की चेष्टा कयनी चाहहए।
174. जुत-जुत भयें फैरला, फैठे खाम तुयॊग : जफ कोई कहठन ऩरयश्रभ कये औय उसका आनॊद दस
ू या उठावे तफ कहते हैं, जैसे गयीफ
आदभी ऩरयश्रभ कयते हैं औय ऩॉज
ू ीऩनत उससे राब उठाते हैं।
175. जॉू के डय वे गुदडी नशीॊ पेंकी जाती : साधायण कष्ट मा हानन के डय से कोई व्मश्क्त काभ नहीॊ छोड दे ता।
176. जेठ के बयोवे ऩेट : जफ कोई भनुष्म फहुत ननधवन होता है औय उसकी स्त्री का ऩारन-ऩोषण उसका फडा बाई (स्त्री का जेठ)
कयता है तफ कहते हैं।
177. जेते जग भें भनुज शैं तेते अशैं वलिाय : सॊसाय भें भनुष्मों की प्रकृनत-प्रवश्ृ त्त तथा अलबरुचच लबन्न-लबन्न हुआ कयती है ।
178. जैवा ऊॉट रम्फा, लैवा गधा खलाव : जफ एक ही प्रकाय के दो भख ू ों का साथ हो जाता है ।
179. जैवा कन बय लैवा भन बय : थोडी-सी चीज की जाॉच कयने से ऩता चरा जाता है कक यालश कैसी है ।
180. जैवा काछ काछे लैवा नाि नािे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूर काभ कयना चाहहए।
181. जैवा तेया ताना-फाना लैवी भेयी बयनी : जैसा व्मवहाय तुभ भेये साथ कयोगे, वैसा ही भैं तुम्हाये साथ करूॉगा।
182. जैवा दे ळ लैवा लेळ : जहाॉ यहना हो वहीॊ की यीनतमों के अनुसाय आचयण कयना चाहहए।
183. जैवा भॉशु लैवा तभािा : जैसा आदभी होता है वैसा ही उसके साथ व्मवहाय ककमा जाता है ।
184. जैवी औढ़ी काभरी लैवा ओढ़ा खेळ : जैसा सभम आ ऩडे उसी के अनस
ु ाय अऩना यहन-सहन फना रेना चाहहए।
185. जैवी िरे फमाय, तफ तैवी दीजे ओट : सभम औय ऩरयश्स्थनत के अनुसाय काभ कयना चाहहए।
186. जैवी तेयी तोभयी लैवे भेये गीत : जैसी कोई भजदयू ी दे गा, वैसा ही उसका काभ होगा।
187. जैवे कन्ता घय यशे लैवे यशे वलदे ळ : ननकम्भे आदभी के घय यहने से न तो कोई राब होता है औय न फाहय यहने से कोई हानन
होती है ।
188. जैवे को तैवा लभरे, लभरे डोभ को डोभ, दाता को दाता लभरे, लभरे वभ
ू को वभ
ू : जो व्मश्क्त जैसा होता है उसे जीवन भें वैसे ही
रोगों से ऩारा ऩडता है ।
189. जैवे फाफा आऩ रफाय, लैवा उनका कुर ऩरयलाय : जैसे फाफास्वमॊ झूठे हैं वैसे ही उनके ऩरयवाय वारे बी हैं।
190. जैवे को तैवा लभरे, लभरे नीि भें नीि, ऩानी भें ऩानी लभरे, लभरे कीि भें कीि : जो जैसा होता है उसका भेर वैसों से ही होता
है ।
191. जो अनत आतऩ व्माकुर शोई, तरु छामा वख
ु जाने वोई : श्जस व्मश्क्त ऩय श्जतनी अचधक ववऩश्त्त ऩडी यहती है उतना ही
अचधक वह सुख का आनॊद ऩाता है ।
192. जो कये लरखने भें गरती, उवकी थैरी शोगी शल्की: योकड लरखने भें गरती कयने से सम्ऩश्त्त का नाश हो जाता है ।
193. जो गॊलाय वऩॊगर ऩढ़ै , तीन लस्तु वे शीन, फोरी, िारी, फैठकी, रीन वलधाता छीन: चाहे गॊवाय ऩढ-लरख रे नतस ऩय बी उसभें तीन
गुणों का अबाव ऩामा जाता है। फातचीत कयना, चार-ढार औय फैठकफाजी।
194. जो गडु खाम लशी कान नछदाले: जो आनॊद रेता हो वही ऩरयश्रभ बी कये औय कष्ट बी उठावे।
195. जो गुड दे ने वे भये उवे वलऴम क्मों हदमा जाए: जो भीठी-भीठी फातों मा सुखद प्ररोबनों से नष्ट हो जाम उससे रडाई-झगडा नहीॊ
कयना चाहहए।
196. जो टट्टू जीते वॊग्राभ, तो क्मों खयिैं तुयकी दाभ: महद छोटे आदलभमों से काभ चर जाता तो फडे रोगों को कौन ऩूछता।
197. जो दव
ू यों के लरए गड्ढ़ा खोदता शै उवके लरए कुआॉ तैमाय यशता शै : जो दस
ू ये रोगों को हानन ऩहुॉचाता है उसकी हानन अऩने
आऩ हो जाती है ।
198. जो धन दीखे जात, आधा दीजे फाॉट : महद वस्तु के नष्ट हो जाने की आशॊका हो तो उसका कुछ बाग खचव कयके शेष बाग फचा
रेना चाहहए।
199. जो धाले वो ऩाले, जो वोले वो खोले : जो ऩरयश्रभ कयता है उसे राब होता है , आरसी को केवर हानन ही हानन होती है ।
200. जो ऩूत दयफायी बए, दे ल वऩतय वफवे गए : जो रोग दयफायी मा ऩयदे सी होते हैं उनका धभव नष्ट हो जाता है औय वे सॊसाय के
कतवव्मों का बी सभचु चत ऩारन नहीॊ कय सकते।
201. जो फोरे वो कॊु डा खोरे : महद कोई भनुष्म कोई काभ कयने का उऩाम फतावे औय उसी को वह काभ कयने का बाय सौऩाजामे।
202. जो वुख छज्जजू के िौफाये भें, वो न फरख फुखाये भें : जो सख
ु अऩने घय भें लभरता है वह अन्मत्र कहीॊ बी नहीॊ लभर सकता।
203. जोगी काके भीत, करॊदय ककवके बाई : जोगी ककसी के लभत्र नहीॊ होते औय पकीय ककसी के बाई नहीॊ होते , क्मोंकक वे ननत्म एक
स्थान से दस
ू ये स्थान ऩय जाते यहते हैं।
204. जोगी जग
ु त जानी नशीॊ, कऩडे यॊ गे तो क्मा शुआ : गैरयक वस्त्र ऩहनने से ही कोई जोगी नहीॊ हो जाता।
205. जोगी जोगी रड ऩडे, खप्ऩड का नुकवान : फडों की रडाई भें गयीफों की हानन होती है ।
206. जोरू चिकनी लभमाॉ भजूय : ऩनत-ऩत्नी के रूऩ भें ववषभता हो, ऩत्नी तो सुन्दय हो ऩयन्तु ऩनत ननधवन औय कुरूऩ हो।
207. जोरू टटोरे गठयी, भाॉ टटोरे अॊतडी : स्त्री धन चाहती है औयभाता अऩने ऩुत्र का स्वास््म चाहती है । स्त्री मह दे खना चाहती है
कक भेये ऩनत ने ककतना रुऩमा कभामा। भाता मह दे खती है कक भेया ऩुत्र बूखा तो नहीॊ है ।
208. जोरू न जाॊता, अल्राश लभमाॊ वे नाता : जो सॊसाय भें अकेरा हो, श्जसके कोई न हो।
209. ज्जमों-ज्जमों बीजै काभयी, त्मों-त्मों बायी शोम : श्जतना ही अचधक ऋण लरमा जाएगा उतना ही फोझ फढता जाएगा।
210. ज्जमों-ज्जमों भग
ु ी भोटी शो, त्मों-त्मों दभ
ु लवकुडे : ज्जमों-ज्जमों आभदनी फढे , त्मों-त्मों कॊजस
ू ी कये ।
211. ज्जमों नकटे को आयवी, शोत हदखाए िोध : जफ कोई व्मश्क्तककसी दोषी ऩुरुष के दोष को फतराता है तो उसे फहुत फुया रगता है ।
212. झगडे की तीन जड, जन, जभीन, जय : स्त्री, ऩ्ृ वी औय धन इन्हीॊ तीनों के कायण सॊसाय भें रडाई-झगडे हुआ कयते हैं।
213. झट भॉगनी ऩट ब्माश : ककसी काभ के जल्दी से हो जाने ऩय उश्क्त।
214. झटऩट की धानी, आधा तेर आधा ऩानी : जल्दी का काभ अच्छा नहीॊ होता।
215. झडफेयी के जॊगर भें बफल्री ळेय : छोटी जगह भें छोटे आदभी फडे सभझे जाते हैं।
216. झूठ के ऩाॊल नशीॊ शोते : झूठा आदभी फहस भें नहीॊ ठहयता, उसे हाय भाननी होती है ।
217. झूठ फोरने भें वयफ़ा क्मा : झूठ फोरने भें कुछ खचव नहीॊ होता।
218. झूठे को घय तक ऩशुॉिाना िाहशए : झूठे से तफ तक तकव-ववतकव कयना चाहहए जफ तक वह सच न कह दे ।
219. टॊ टा वलऴ की फेर शै : झगडा कयने से फहुत हानन होती है ।
220. टका कताघ, टका शताघ, टका भोष वलधामका्
221. टका वलघत्र ऩूज्जमन्ते, बफन टका टकटकामते : सॊसाय भें सबी कभव धन से होते हैं ,बफना धन के कोई काभ नहीॊ होता।
222. टका शो श्जवके शाथ भें , लश शै फडा जात भें : धनी रोगों का आदय- सत्काय सफ जगह होता है ।
223. टट्टू को कोडा औय ताजी को इळाया : भूखव को दॊ ड दे ने की आवचमकता ऩडती है औय फुविभानों के लरए इशाया कापी होता है ।
224. टाट का रॊगोटा नलाफ वे मायी : ननधवन व्मश्क्त का धनी-भानी व्मश्क्तमों के साथ लभत्रता कयने का प्रमास।
225. टुकडा खाए हदर फशराए, कऩडे पाटे घय को आए : ऐसा काभ कयना श्जसभें केवर बयऩेट बोजन लभरे , कोई राब न हो।
226. टे य-टे य के योले, अऩनी राज खोले : जो अऩनी हानन की फात सफसे कहा कयता है उसकी साख जाती यहती है ।
227. ठग भाये अनजान, फननमा भाये जान : ठग अनजान आदलभमों को ठगता है , ऩयन्तु फननमा जान-ऩहचान वारों को ठगता है ।
228. ठुक-ठुक वोनाय की, एक िोट रोशाय की : जफ कोई ननफवर भनुष्म ककसी फरवान ् व्मश्क्त से फाय-फाय छे डखानी कयता है ।
229. ठुभकी गैमा वदा करोय : नाटी गाम सदा फनछमा ही जान ऩडती है । नाटा आदभी सदा रडका ही जान ऩडता है ।
230. ठे व रगे फवु ि फढ़े : हानन सहकय भनष्ु म फवु िभान होता है ।
231. डयें रोभडी वे नाभ ळेय खाॉ : नाभ के ववऩयीत गुण होने ऩय।
232. डामन को बी दाभाद प्माया : दष्ु ट श्स्त्रमाॉ बी दाभाद को प्माय कयती हैं।
233. डूफते को नतनके का वशाया : ववऩश्त्त भें ऩडे हुए भनुष्मों को थोडा सहाया बी कापी होता है ।
234. डेढ़ ऩाल आटा ऩुर ऩय यवोई : थोडी ऩॉज
ू ी ऩय झूठा हदखावा कयना।
235. डोरी न कशाय, फीफी शुई शैं तैमाय : जफ कोई बफना फर
ु ाए कहीॊ जाने को तैमाय हो।
236. ढाक के लशी तीन ऩात : सदा से सभान रूऩ से ननधवन यहने ऩय उक्त, ऩरयणाभ कुछ नहीॊ, फात वहीॊ की वहीॊ।
237. ढाक तरे की पूशड, भशुए तरे की वुघड : श्जसके ऩास धन नहीॊ होता वह गुणहीन औय धनी व्मश्क्त गुणवान ् भाना जाता है ।
238. ढे रे ऊऩय िीर जो फोरै, गरी-गरी भें ऩानी डोरै : महद चीर ढे रे ऩय फैठकय फोरे तो सभझना चाहहए कक फहुत अचधक वषाव
होगी।
(1) बाऴा के लरणखत रूऩ भें फात फताते शैं। (8) हशन्दी भें व्मॊजनलणो की वॊख्मा ककतनी शै?
(16) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण शैं? (24) कौन वा ळब्द वॊस्कृत वे तद्भल फनामा गमा शै?
(17) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण नशीॊ (25) कौन वा ळब्द गण
ु लािक वलळेऴण शै?
शै ?
(A)रार पूर
(A) नभकीन (B) दमारु (B)ऩाॉि रडके
(C) धनलान (D)पुती (C)दव शाथी
(D) इनभें वे कोई नशीॊ
(18) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण नशीॊ
शै ? (26) वॊख्मालािक वलळेऴण ककतने प्रकाय के शोते शै ?
(21) इनभें वे कौन वा ळब्द किमा वे फना शुआ वलळेऴण नशीॊ (29) इनभें वे कौन वलधेम-वलळेऴण शै?
शै ?
(A) भेया रडका आरवी शै । (B)वतीळ वद
ॊु य रडका शै।
(A)िारू (B)कभाऊ (C) (A) औय (B) दोनों (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(C)वभझना (D)ऩहठत
(34) हशन्दी खडी फोरी ककव श्जरा भें फोरी जाती शै? (A)वौयाष्री (B)ब्राह्भी
(C)गुरूभुखी (D) दे लनागयी
(A)याभऩयु (B)भेयठ
(C) दे शयादन
ू (D) इनभें वे वबी
(43 ) ननम्न भे वे कौन वी बाऴा दे लनागयी लरवऩ भें लरखी
जाती शै?
(35) बाऴाई आधाय ऩय वलघप्रथभ ककव याज्जम का गठन शुआ?
(A)लवॊधी (B)उडडमा
(A)आॊध्रप्रदे ळ (B)ऩॊजाफ
(C)गुजयाती (D) भयाठी
(C) याजस्थान (D)जम्भू कचभीय
(A)ग, घ (B)द, ध
(C)फ, ब (D)ढ़, ण