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 हशॊदी व्माकयण (TAGORE VISION)

वलऴम वचू ि

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Mob. 9813880414 Com. By Sandeep Sir
हहन्दी की उऩबाषाएॉ फोलरमाॉ व ऺेत्र
हशन्दी की उऩबाऴाएॉ ल फोलरमाॉ इव प्रकाय शैं :

 फोरी : एक छोटे ऺेत्र भें फोरी जाने वारी बाषा फोरी कहराती है । फोरी भें साहहत्म यचना नहीॊ होती
 उऩबाषा : अगय ककसी बाषा भें साहहत्म यचना होने रगती है औय ऺेत्र का ववस्ताय हो जाता है तो
वह फोरी न यहकय उऩबाषा फन जाती है ।
 बाषा : साहहत्मकाय जफ उस उऩबाषा को अऩने साहहत्म के द्वाया ऩरयननष्ठत सववभान्म रूऩ प्रदान
कय दे ते हैं तथा उसका औय ऺेत्र ववस्ताय हो जाता है तो वह बाषा कहराने रगती है ।
एक बाषा के अॊनगवत कई उऩबाषाएॉ होती हैं तथा एक उऩबाषा के अॊतगवत कई फोलरमाॉ होती है । हहन्दी
ऺेत्र की सभस्त फोलरमों को 5 वगों भें फाॉटा गमा है । इन वगों को उऩबाषा कहा जाता है । इन उऩबाषाओॊ
के अॊतगवत ही हहन्दी की 18 फोलरमाॉ आती है ।

उऩबाषा फोलरमाॉ भुख्म ऺेत्र

याजस्थानी भायवाडी (ऩश्चचभी याजस्थानी), जमऩुयी मा ढुढाडी (ऩूवी याजस्थानी), भेवाती याजस्थान
(उत्तयी याजस्थानी), भारवी (दक्षऺणी याजस्थानी)

ऩश्चिभी कौयवी मा खडी फोरी, फाॉगरू मा हरयमाणवी, ब्रजबाषा, फुॊदेरी, कन्नौजी हरयमाणा, उत्तय प्रदे श
हशन्दी

ऩूली हशन्दी अवधी, फघेरी, छतीसगढी भध्म प्रदे श, छत्तीसगढ,


उत्तय प्रदे श

बफशायी बोजऩयु ी, भगही, भैथरी बफहाय, उत्तय प्रदे श

ऩशाडी कुभाऊॉनी, गढवारी, नेऩारी उत्तयाखण्ड, हहभाॊचर


प्रदे श
वलचल हशन्दी वम्भेरन
वलचल हशन्दी वम्भेरन/World Hindi Conference का उद्देचम – सॊमुक्त याष्र सॊघ (UNO) की बाषाओॊ भें
हहन्दी को स्थान हदराना औय हहन्दी का प्रचाय-प्रसाय कयना है । अफ तक ननम्नलरखखत सम्भेरन सम्ऩन्न
हुए है :

क्रभ हदनाॊक आमोजन-स्थर

ऩशरा 10-14 जनवयी, 1975 नागऩुय (बायत)

दव
ू या 28-30 अगस्त, 1976 ऩोटव रई
ु (भॉयीशस)

तीवया 28-30 अक्टूफय, 1983 नई हदल्री (बायत)

िौथा 02-04 हदसम्फय, 1983 ऩोटव रई


ु (भॉयीशस)

ऩाॉिलाॉ 04-08 अप्रैर, 1996 ऩोटव ऑप स्ऩेन (बत्रननदाद)

छठा 14-18 लसतम्फय, 1999 रॊदन (बब्रटे न)

वातलाॉ 05-09 जून, 2003 ऩायाभारयफो (सूयीनाभ)

आठलाॉ 13-15 जुराई, 2007 न्मूमाकव (अभेरयका)

नलाॊ 22- 24 लसतम्फय, 2012 जोहन्सफगव (दक्षऺणी अफ्रीका)

दवलाॊ 10-12 लसतम्फय, 2015 बोऩार (बायत)

ग्मायशलाॉ 18-20 अक्टूफय, 2018 ऩोटव रुई (भॉयीशस)

 12लाॊ वलचल हशन्दी वम्भेरन/ World Hindi Conference


इस आमोजन 2021 भें भध्म प्रदे श के दे वास भें ककमा जाएगा। इसके अरावा भॉयीशस ऩूयी दनु नमा भें से
एक ही दे श है , जो 11 वें ववचव हहन्दी सम्भेरन के आमोजन के साथ तीसयी फाय ववचव हहन्दी सम्भेरन
की भेजफानी कय यहा है ।

वणवभारा: वणव, उच्चायण औय वतवनी

बाषा के द्वाया भनुष्म अऩने बाव-ववचायों को दस


ू ये के सभऺ प्रकट कयता है तथा दस
ू यों के बावो-ववचायों
को सभझता है । आयम्ब भें ककसी फात को सुयक्षऺत यखने का एक ही साधन था – माद यखना। अऩनी
बाषा को सुयक्षऺत यखने, उसे नेत्रों के लरए दृचमभान फनाए औय बावी सन्तनत के स्थान औय कार की
सीभा से ननकार कय अभय फनाने की ओय भनीवषमों का ध्मान गमा।

वषों फाद भनीवषमों महा अनब


ु व ककमा कक उनकी बाषा भें जो ध्वननमाॉ प्रमक्
ु त हो यहीॊ हैं, उनकी सॊख्मा
ननश्चचत है औय इन ध्वननमों के मोग से शब्दों का ननभावण हो सकता है । फाद भें इनहह उच्चारयत
ध्वननमों के लरए लरवऩ से अरग-अरग चचन्ह फना लरए गए, श्जन्हें वणव कहते हैं। इस प्रकाय श्जन
ध्वननमों के सॊमोग से शब्द ननभावण होता है , वे वणव कहराते हैं। बाषा कक साथवक इकाई वाक्म है । वाक्म
से छोटी इकाई उऩवाक्म, उऩवाक्म से छोटी इकाई ऩदफन्ध, ऩदफन्ध से छोटी इकाई अऺय औय अऺय से
छोटी इकाई ध्वनन मा वणव है ।

 हहन्दी भें उच्चायण के आधाय ऩय वणो की सॊख्मा 45 (10 स्वय + 35 व्मॊजन) भानी गई है ।
 हहन्दी भें रेखन के आधाय ऩय वणों के आधाय ऩय 52 (13 स्वय + 35 व्मॊजन + 4 सॊमुक्त व्मॊजन)
होती है ।
स्वय – स्वतॊत्र रूऩ से फोरे जाने वारे वणव ‘स्वय’ कहराते हैं।

 ऩयॊ ऩयागत रूऩ भें स्वयों की सॊख्मा 13 भानी गई है ।


 उच्चायण की दृश्ष्ट से केवर 10 ही स्वय हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
स्लयों का उच्िायण मा लगीकयण –

1. भूर स्लय/ह्रस्ल स्लय – श्जनके उच्चायण भें कभ सभम (एक भात्रा का सभम) रगता है । (अ, इ, उ)
2. दीघघ स्लय – श्जनके उच्चायण भें ह्रस्व स्वय से अचधक सभम (दो भात्र का सभम) रगता है । (आ, ई,
ऊ, ए, ऐ, ओ, औ)
3. प्रुत स्लय – श्जनके उच्चायण भें दीघव स्वय से बी अचधक सभम रगता है ; ककसी को ऩुकायने भें मा
नाटक के सॊवादों भें इसका प्रमोग ककमा जाता है । (ओ३भ, या३भ)
व्मॊजन – स्लयों की वशामता वे फोरे जाने लारे लणघ ‘व्मॊजन’ कशराते शैं।

1. स्ऩळघ व्मॊजन –
श्जन व्मॊजनों का उच्चायण कयते सभम हवा पेपडों से ननकरते हुए भुॉह के ककसी स्थान-ववशेष कॊठ, तारु,
भध ू ाव, दाॉत मा होठ का स्ऩशव कयते हुए ननकरे।

लगघ उच्िायण स्थान अघोऴ अल्ऩप्राण अघोऴ भशाप्राण अल्ऩप्राण वघोऴ वघोऴ भशाप्राण अल्ऩप्राण वघोऴ नालवक

‘क’ वगव कण्ठ क ख ग घ ङ

‘च’ वगव तारु च छ ज झ ञ

‘ट’ वगव भूधाव ट ठ ड ढ ण

‘त’ वगव दन्त्म ट थ द ध न

‘ऩ’ वगव ओष्ठ ऩ प फ ब भ

2. अन्त्स्थ व्मॊजन –
श्जन वणो का उच्चायण ऩायॊ ऩरयक वणवभारा (Alphabet / Varnmala) के फीच अथावत ् स्वयों औय व्मॊजनों
के फीच श्स्थत हो।

वगव उच्चायण स्थान

म तारव्म तारु सघोष,अल्ऩप्राण

य वत्समव दॊ तभूर/भसूढा

र वत्समव दॊ तभर
ू /भसढ
ू ा
ल दॊ तोष््म ऊऩय के दाॉत + ननचरा ओॊठ

3. ऊष्भ/वॊघऴी व्मॊजन –

श्जन व्मॊजनों का उच्चायण कयते सभम वामु भुख भें ककसी स्थान-ववशेष ऩय घषवण/यगड खा कय ननकरे
औय ऊष्भा/गभी ऩैदा कये ।

वगव उच्चायण स्थान

ळ तारव्म तारु सघोष,अल्ऩप्राण

ऴ भूधन्
घ म भूधाव

व लत्वमघ दॊ तभूर/भसूढा

श स्लयमॊत्रीम स्वयमॊत्र (कण्ठ के बीतय श्स्थत) सघोष,भहाप्राण

आमोगलाश – अॊ, अ्

वॊमुक्त व्मॊजन – श्जन व्मॊजनों के उच्िायण भें अन्म व्मॊजनों कक वशामता रेनी ऩडती शै , वॊमुक्त
व्मॊजन कशराते शैं :-

 क् + ष = ऺ  ज् + ञ = ऻ
 त ् + य = त्र  श ् + य = श्र
द्वलगुणी / उश्त्षप्त व्मॊजन –

श्जन व्मॊजनों के उच्िायण भें श्जह्ला की उल्टी शुई नोंक तारु को छूकय झटके वे शट जाती शै , उन्शे
द्वलगण
ु ीउश्त्षप्त व्मॊजन कशते शैं। ड/, ढ़ द्वलगण
ु ीउश्त्षप्त व्मॊजन शैं।/

उऩसगव(Prefixes) औय प्रत्मम(Suffixes)

उऩवगघ (Prefixes) :

 उऩसगव = उऩ (सभीऩ) + सगव (सश्ृ ष्ट कयना) का अथव है – ककसी शब्द के सभीऩ आकाय नमा शब्द
फनाना।
 जो शब्दाॊश शब्दों से ऩहरे जुडकय उनके अथव भें मा तो ववलशष्टता उत्ऩन्न कय दे ता है मा उसके
अथव को ऩरयवनतवत कय दे ता है उसे उऩवगघ कहते हैं।
हशन्दी भें प्रिलरत उऩवगघ को ननम्न बागों भें वलबाश्जत ककमा शै –

 सॊस्कृत के उऩसगव  उदव ू औय पायसी के उऩसगव  उऩसगव के सभान प्रमुक्त


 हहन्दी के उऩसगव  अॊग्रेजी के उऩसगव होने वारे सॊस्कृत के अव्मम
वॊस्कृत के उऩवगघ:-

उऩवगघ अथघ ळब्द

अनत अचधक अत्मचधक, अत्मॊत, अनतरयक्त, अनतशम


अचध ऊऩय, श्रेष्ठ अचधकाय, अचधऩनत, अचधनामक

अनु ऩीछे , सभान अनुचय, अनुकयण, अनुसाय, अनुशासन

अऩ फुया, हीन अऩमश, अऩभान, अऩकाय

अलब साभने, चायों ओय, ऩास अलबमान, अलबषेक, अलबनम, अलबभख


अव हीन, नीच अवगुण, अवननत, अवताय, अवननत

आ तक, सभेत आजीवन, आगभन

उत ् ऊॉचा, श्रेष्ठ, ऊऩय उद्गभ, उत्कषव, उत्तभ, उत्ऩश्त्त

उऩ ननकट, सदृश, गौण उऩदे श, उऩवन, उऩभॊत्री, उऩहाय

दयु ् फयु ा, कहठन दज


ु न
व , दग
ु भ
व , दद
ु व शा, दयु ाचाय

दस
ु ् फुया, कहठन दचु चरयत्र, दस्
ु साहस, दष्ु कय

ननय् बफना, फाहय, ननषेध ननयऩयाध, ननजवन, ननयाकाय, ननगण


ुव

ननस ् यहहत, ऩयू ा, ववऩरयत ननस्साय, ननस्ताय, ननचचर, ननश्चचत

नन ननषेध, अचधकता, नीचे ननवायण, ननऩात, ननमोग, ननषेध


ऩया उल्टा, ऩीछे ऩयाजम, ऩयाबव, ऩयाभशव, ऩयाक्रभ

ऩरय आसऩास, चायों तयप ऩरयजन, ऩरयक्रभ, ऩरयऩूणव, ऩरयणाभ

प्र अचधक, आगे प्रख्मात, प्रफर, प्रस्थान, प्रकृनत

प्रनत उरटा, साभने, हय एक प्रनतकूर, प्रत्मऺ, प्रनतऺण, प्रत्मेक

वव लबन्न, ववशेष ववदे श, ववराऩ, ववमोग, ववऩऺ

सभ ् उत्तभ, साथ, ऩूणव सॊस्काय, सॊगभ, सॊतुष्ट, सॊबव

सु अच्छा, अचधक सुजन, सुगभ, सुलशक्षऺत, सुऩात्र

हहन्दी के उऩसगव:-

उऩवगघ अथघ ळब्द

अ अबाव, ननषेध अछूता, अथाह, अटर

अन अबाव, ननषेध अनभोर, अनफन, अनऩढ

कु फयु ा कुचार, कुचैरा, कुचक्र


दु कभ, फुया दफ
ु रा, दर
ु ाया, दध
ु ारू

नन कभी ननगोडा, ननडय, ननहत्था, ननकम्भा

औ हीन, ननषेध औगुन, औघय, औसय, औसान

बय ऩयू ा बयऩेट, बयऩयू , बयसक, बयभाय

सु अच्छा सुडौर, सुजान, सुघड, सुपर

अध आधा अधऩका, अधकच्चा, अधभया, अधकचया

उन एक कभ उनतीस, उनसठ, उनहत्तय, उॊ तारीस

ऩय दस
ू या, फाद का ऩयरोक, ऩयोऩकाय, ऩयसगव, ऩयहहत

बफन बफना, ननषेध बफनब्माहा, बफनफादर, बफनऩाए, बफनजाने

अयफी-फायसी के उऩसगव:-

उऩवगघ अथघ ळब्द

कभ थोडा, हीन कभजोय, कभफख़्त, कभअक्र

खुश अच्छा खुशनसीफ, खुशखफयी, खुशहार, खुशफू


गैय ननषेध गैयहाश्जय, गैय़ानूनी, गैयभुल्क, गैय-श्जम्भेदाय

ना अबाव नाऩसॊद, नासभझ, नायाज, नारामक

फ औय, अनुसाय फनाभ, फदौरत, फदस्तूय, फगैय

फा सहहत फाकामदा, फाइज्जजत, फाअदफ, फाभौका

फद फुया फदभाश, फदनाभ, फदक़स्भत,फदफू

फे बफना फेईभान, फेइज्जजत, फेचाया, फेवकूफ

रा यहहत राऩयवाह, राचाय, रावारयस, राजवाफ

सय भुख्म सयताज, सयदाय, सयऩॊच, सयकाय

हभ सभान, साथवारा हभददी, हभयाह, हभउम्र, हभदभ

हय प्रत्मेक हयहदन, हयसार, हयएक, हयफाय

अॊग्रेजी के उऩसगव:-

उऩवगघ अथघ ळब्द


सफ अधीन, नीचे सफ-जज सफ-कभेटी, सफ-इॊस्ऩेक्टय

डडप्टी सहामक डडप्टी-करेक्टय, डडप्टी-यश्जस्राय, डडप्टी-लभननस्टय

वाइस सहामक वाइसयाम, वाइस-चाॊसरय, वाइस-प्रेसीडेंट

जनयर प्रधान जनयर भैनेजय, जनयर सेक्रेटयी

चीफ प्रभुख चीफ-लभननस्टय, चीफ-इॊजीननमय, चीफ-सेक्रेटयी

हे ड भुख्म हे डभास्टय, हे ड क्रकव

उऩसगव के सभान प्रमुक्त होने वारे सॊस्कृत के अव्मम:-

उऩवगघ अथघ ळब्द

अध् नीचे अध्ऩतन, अधोगनत, अधोभुखी, अधोलरखखत

अॊत् बीतयी अॊत्कयण, अॊत्ऩुय, अॊतभवन, अॊतदे शीम

अ अबाव अशोक ,अकार, अनीनत

चचय फहुत दे य चचयॊ जीवी, चचयकुभाय, चचयकार, चचयामु

ऩुनय् कपय ऩुनजवन्भ, ऩुनरेखन, ऩुनजीवन


फहहय् फाहय फहहगवभन, फहहष्काय

सत ् सच्चा सज्जजन, सत्कभव, सदाचाय, सत्कामव

ऩुया ऩुयातन ऩुयातत्त्व, ऩुयावत्ृ त

सभ सभान सभकारीन, सभदशी, सभकोण, सभकालरक

सह साथ सहकाय, सहऩाठी, सहमोगी, सहचय

प्रत्मम (Suffixes):-

♦ प्रत्मम = प्रनत (साथ भें ऩय फाद भें) + अम (चरने वारा) शब्द का अथव है ऩीछे चरना।

♦ वे शब्द जो ककसी शब्द के फाद (ऩीछे ) जुडकय उसके अथव भें मा तो ववलशष्टता उत्ऩन्न कय दे ते हैं मा
अथव भें ऩरयवतवन कय दे ता है उसे प्रत्मम कहते हैं।

प्रत्मम (Pratyay) के बेद –

 कृत प्रत्मम
 तवित प्रत्मम
कृत प्रत्मम :-ले प्रत्मम जो धातु (किमा) भें जोडे जाते शै कृत प्रत्मम कशराते शै औय कृत प्रत्मम वे फने
ळब्द कृदन्त ळब्द कशराते शैं। हशन्दी भें कृत प्रत्ममों की वॊख्मा 28 शै ।

प्रत्मम भूर ळब्द\धातु उदाशयण


अक रेख,् ऩा्, कृ, गै रेखक, ऩाठक, कायक, गामक

अन ऩार,् सह्, ने, चय् ऩारन, सहन, नमन, चयण

अना घट्, तुर,् वॊद्, ववद् घटना, तुरना, वन्दना, वेदना

अनीम भान,् यभ,् दृश,् ऩज


ू ,् श्रु भाननीम, यभणीम, दशवनीम, ऩज
ू नीम, श्रवणीम

आ सूख, बूर, जाग, ऩूज, इष,् लबऺ् सूखा, बूरा, जागा, ऩूजा, इच्छा, लबऺा

आई रड, लसर, ऩढ, चढ रडाई, लसराई, ऩढाई, चढाई

आन उड, लभर, दौड उडान, लभरान, दौडान

इ हय, चगय, दशयथ, भारा हरय, चगरय, दाशयचथ, भारी

इमा छर, जड, फढ, घट छलरमा, जडडमा, फहढमा, घहटमा

इत ऩठ, व्मथा, पर, ऩुष्ऩ ऩहठत, व्मचथत, पलरत, ऩुश्ष्ऩत

इत्र चय्, ऩो, खन ् चरयत्र, ऩववत्र, खननत्र

इमर अड, भय, सड अडडमर, भरयमर, सडडमर

ई हॉस, फोर, त्मज,् ये त हॉसी, फोरी, त्मागी, ये ती


उक इच््, लबऺ् इच्छुक, लबऺुक

तव्म कृ, वच ् कतवव्म, वक्तव्म

ता आ, जा, फह, भय, गा आता, जाता, फहता, भयता, गाता

नत अ, प्री, शक् , बज अनत, प्रीनत, शश्क्त, बश्क्त

ते जा, खा जाते, खाते

त्र अन्म, सवव, अस ् अन्मत्र, सववत्र, अस्त्र

न क्रॊद, वॊद, भॊद, खखद्, फेर, रे क्रॊदन, वॊदन, भॊदन, खखन्न, फेरन, रेन

ना ऩढ, लरख, फेर, गा ऩढना, लरखना, फेरना, गाना

भ दा, धा दाभ, धाभ

म गद्, ऩद्, कृ, ऩॊडडत, ऩचचात,् दॊ त,् ओष्् गद्म, ऩद्म, कृत्म, ऩाश्ण्डत्म, ऩाचचात्म, दॊ त्म, ओष््म

मा भग
ृ , ववद् भग
ृ मा, ववद्मा

रू गे गेरू
वारा दे ना, आना, ऩढना दे नेवारा, आनेवारा, ऩढनेवारा

ऐमा\वैमा यख, फच, डाॉट\गा, खा यखैमा, फचैमा, डटै मा, गवैमा, खवैमा

हाय होना, यखना, खेवना होनहाय, यखनहाय, खेवनहाय

तवित प्रत्मम :- ले प्रत्मम जो धातु को छोडकय अन्म ळब्दों (वॊसा, वलघनाभ ल वलळेऴण) भें जडु ते शैं
तवित प्रत्मम कशराते शै । तवित प्रत्मम वे फने ळब्द तविताॊत कशराते शै ।

प्रत्मम ळब्द उदाशयण

आइ ऩछताना, जगना ऩछताइ, जगाइ

आइन ऩश्ण्डत, ठाकुय ऩश्ण्डताइन, ठकुयाइन

आई ऩश्ण्डत, ठाकुय, रड, चतुय, चौडा ऩश्ण्डताई, ठकुयाई, रडाई, चतुयाई, चौडाई

आनी सेठ, नौकय, भथ सेठानी, नौकयानी, भथानी

आमत फहुत, ऩॊच, अऩना फहुतामत, ऩॊचामत, अऩनामत

आय/आया रोहा, सोना, दध


ू , गाॉव रोहाय, सन
ु ाय, दध
ू ाय, गॉवाय

आहट चचकना, घफया, चचल्र, कडवा चचकनाहट, घफयाहट, चचल्राहट, कडवाहट


इर पेन, कूट, तन्र, जटा, ऩॊक, स्वप्न, धूभ पेननर, कुहटर, तश्न्रर, जहटर, ऩॊककर, स्वश्प्नर, धूलभर

इष्ठ कन,् वय्, गुरु, फर कननष्ठ, वरयष्ठ, गरयष्ठ, फलरष्ठ

ई सुन्दय, फोर, ऩऺ, खेत, ढोरक, तेर, दे हात सुन्दयी, फोरी, ऩऺी, खेती, ढोरकी, तेरी, दे हाती

ईन ग्राभ, कुर ग्राभीण, कुरीन

ईम बवत,् बायत, ऩाखणनी, याष्र बवदीम, बायतीम, ऩाखणनीम, याष्रीम

ए फच्चा, रेखा, रडका फच्चे, रेख,े रडके

एम अनतचथ, अबत्र, कॊु ती, ऩुरुष, याधा आनतथेम, आत्रेम, कौंतेम, ऩौरुषेम, याधेम

एर पुर, नाक पुरेर, नकेर

ऐत डाका, राठी डकैत, रठै त

एया/ऐया अॊध, साॉऩ, फहुत, भाभा, काॉसा, रुट अॉधेया, सॉऩेया, फहुतेया, भभेया, कसेया, रुटेया

ओरा खाट, ऩाट, साॉऩ खटोरा, ऩटोरा, सॉऩोरा

औती फाऩ, ठाकुय, भान फऩौती, ठकयौती, भनौती


औटा बफल्रा, काजय बफरौटा, कजयौटा

क धभ, चभ, फैठ, फार, दशव, ढोर धभक, चभक, फैठक, फारक, दशवक, ढोरक

कय ववशेष, ऽास ववशेषकय, ऽासकय

का खट, झट खटका, झटका

जा भ्राता, दो बतीजा, दज
ू ा

डा, डी चाभ, फाछा, ऩॊख, टाॉग चभडा, फछडा, ऩॊखडी, टॉ गडी

त यॊ ग, सॊग, खऩ यॊ गत, सॊगत, खऩत

तन अद्म अद्मतन

तय गरु
ु , श्रेष्ठ गरु
ु तय, श्रेष्ठतय

त् अॊश, स्व अॊशत्, स्वत्

ती कभ, फढ, चढ कभती, फढती, चढती


शब्द बेद(Kind of Words)

हहन्दी के शब्दों के वगीकयण के िाय आधाय हैं|

1. उत्ऩश्त्त/स्रोत/इनतशाव
उत्ऩश्त्त मा स्रोत मा इनतहास के आधाय ऩय शब्द ऩाॉच प्रकाय के होते हैं।
 तत्सभ शब्द  ववदे शज/ववदे शी/आगत
 तद्भव शब्द शब्द
 दे शज/दे शी शब्द  सॊकय शब्द
2. व्मुत्ऩश्त्त/यिना/फनालट
व्मत्ु ऩश्त्त मा यचना मा फनावट के आधाय ऩय शब्द तीन प्रकाय के होते हैं।
 रूढ शब्द  मौचगक शब्द  मोगरूढ शब्द

3. रूऩ/प्रमोग/व्माकयणणक वललेिन
रूऩ मा प्रमोग मा व्माकयखणक वववेचन के आधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) दो प्रकाय के होते हैं।
 ववकायी शब्द  अववकायी शब्द
4. अथघ
अथव के आधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) चाय प्रकाय के होते हैं।
 एकाथी शब्द  सभानाथी/ऩमावमवाची शब्द
 अनेकाथी शब्द  ववरोभाथी/ववरोभ शब्द

1. स्रोत/इनतशाव के आधाय ऩय
स्रोत मा इनतहास के आधाय ऩय शब्द के ऩाॉि बेद होते हैं।
(i) तत्वभ ळब्द :

‘तत्सभ’ (तत ् + सभ) शब्द का अथव है - ‘उसके सभान’ अथावत ् सॊस्कृत के सभान । हहन्दी भें अनेक शब्द
सॊस्कृत से सीधे आए हैं औय आज बी उसी रूऩ भें प्रमोग ककए जा यहे हैं। अत् सॊस्कृत के ऐसे शब्द
श्जसे हभ ज्जमों-का-त्मों प्रमोग भें राते हैं, तत्सभ शब्द कहराते है ; जैसे—अश्नन, वामु, भाता, वऩता, प्रकाश,
ऩत्र, सूमव आहद ।

(ii) तद्भल ळब्द:

‘तद्भव’ (तत ् + बव) शब्द का अथव है - ‘उससे होना’ अथावत ् सॊस्कृत शब्दों से ववकृत होकय (ऩरयवनतवत होकय)
फने शब्द । हहन्दी भें अनेक शब्द ऐसे हैं जो ननकरे तो सॊस्कृत से ही हैं; ऩय प्राकृत, अऩभ्रॊश, ऩयु ानी हहन्दी
से गुजयने के कायण फहुत फदर गमे हैं। अत्, सॊस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अऩभ्रॊश, ऩुयानी हहन्दी आहद से
गज
ु यने के कायण आज ऩरयवनतवत रूऩ भें लभरते हैं, तदबव शब्द कहराते है ; जैसे—

वॊस्कृत प्राकृत हशन्दी

उज्जज्जवर उज्जजर उजरा

कऩयूव कप्ऩूय कऩूय

सॊध्मा सॊझा साॉझ

हस्त हत्थ हाथ

कुछ भशत्लऩूणघ तत्वभ तद्भल की वूिी :

तत्सभ शब्द तद्भव शब्द तत्सभ शब्द तद्भव शब्द

अश्स्थ हड्डी कणव कान

कृऩा ककयऩा अॊधकाय अॊधेया


काक कौआ ग्रश्न्थ गाॉठ

आम्र आभ कोककर कोमर

िन्र चाॉद वऩऩासा प्मास

अॉगुरी उॉ गरी घत
ृ घी

जीणघ झीना अश्रु आॉसू

गणना चगनती दशभ दसवाॉ

उष्र ऊॉट चटका चचडडमा

दॊ ड डॊडा कामव काज

ऩषी ऩॊछी भहहषी बैसॊ

षेत्र खेत मभन


ु ा जभना

ग्राभ गाॉव फाहु फाॉह

यासी यानी चैत्र चैत

रोशकाय रोहाय बचगनी फहन

धूम्र धुआॉ भुख भॉह


चलवुय ससुय चवास साॉस

नालवका नाक ऩत्र ऩत्ता

वूत्र सूत हास हॉसी


श्ॊग
ृ सीॊग सूमव सूयज

बक्त बगत भत्ृ मु भौत

अॊध अॊधा कऩोत कफूतय

अक्षष आॉख कऩाट ककवाड

भक्षषका भक्खी स्वप्न सऩना

कृष्ण ककशन काष्ठ काठ

गश
ृ घय गदव ब गधा

उज्जज्जलर उजारा ओष्ठ होंठ

कोष्ठ कोठा गत
ृ गड्ढा

श्जह्ला जीब ऩत्र


ु ऩत

षीय खीय दचध दही

ग्राशक गाहक ज्जमेष्ठ जेठ

लबषा बीख दॊ त दाॉत

भस्तक भाथा दनु ध दध


रज्जजा राज हस्त हाथ

धैमघ धीयज अम्फा अम्भा

ननॊरा नीॊद लभत्र भीत

अट्टालरका अटायी अग्र आगे


भौश्क्तक भौती शुष्क सूखा

अधघ आधा सऩव साॊऩ

अद्म आज हस्ती हाथी

अश्ग्न आग एकत्र इकट्ठा

कज्जजर काजर

(iii) दे ळज/दे ळी :

‘दे शज’ (दे श + ज) शब्द का अथव है – ‘दे श भें जन्भा’ । अत् ऐसे शब्द जो ऺेत्रीम प्रबाव के कायण
ऩरयश्स्थनत व आवचमकतानुसाय फनकय प्रचलरत हो गए हैं दे शज मा दे शी शब्द कहराते हैं; जैसे–थैरा,
गडफड, टट्टी, ऩेट, ऩगडी, रोटा, टाॉग, ठे ठ आहद ।

(iv) वलदे ळज/वलदे ळी/आगत :

‘ववदे शज’ (ववदे श + ज) शब्द का अथव है - ‘ववदे श भें जन्भा’ । ‘आगत’ शब्द का अथव है – आमा हुआ। हहन्दी
भें अनेक शब्द ऐसे हैं जो हैं तो ववदे शी भूर के, ऩय ऩयस्ऩय सॊऩकव के कायण महाॉ प्रचलरत हो गए हैं।
अत् अन्म दे श की बाषा से आए हुए शब्द ववदे शज शब्द कहराते हैं। ववदे शज शब्दों भें से कुछ को ज्जमों-
का-त्मों अऩना लरमा गमा है (आडवय, कम्ऩनी, कैम्ऩ, कक्रकेट इत्माहद) औय कुछ को हहन्दीकयण (तद्भवीकयण)
कय के अऩनामा गमा है । (ऑपीसय > अपसय, रैनटनव > रारटे न, हॉश्स्ऩटर > अस्ऩतार, कैप्टे न > कप्तान
इत्माहद ।)

अचधक प्रिलरत लगघ के वलदे ळज ळब्द

अयफी :

अजफ, अजीफ, अदारत, अक्र, अल्राह, असय, आखखय, आहदभी, इनाभ, इजरास, इज्जजत, इराज, ईभान, उम्र,
एहभान, औयत, औसत, कफ, कभार, कजव, ककस्भत, कीभत, ककताफ, कुसी, खत, खखदभत, खमार, श्जस्भ, जुरूस,
जरसा, जवाफ, जहाज, दक
ु ान, श्जक्र, तभाभ, तकदीय, तायीख, तककमा, तयक्की, दवा, दावा, हदभाग, दनु नमा,
नतीजा, नहय, नकर, पकीय, कपक्र, पैसरा, फहस, फाकी, भुहावया, भदद, भजफूय, भुकदभा, भुश्चकर, भौसभ,
भौरवी, भस
ु ाकफय, मतीभ, याम, लरफाफा, वारयस, शयाफ, हक, हजभ, हाश्जय, हहम्भत, हुक्भ, है जा, हौसरा, हकीभ,
हरवाई इत्माहद ।

पायवी :

आफरू, आनतशफाजी, आफत, आयाभ, आभदनी, आवाया, आवाज, उम्भीद, उस्ताद, कभीना, कायीगय, ककशलभश,
कुचती, कूचा, खाक, खद
ु , खद
ु ा, ऽाभोश, खयु ाक, गयभ, गज, गवाह, चगयफ्ताय, चगदव , गर
ु ाफ, चादय, चाराक, चचभा,
चेहया, जरेफी, जहय, जोय, श्जन्दगी, जागीय, जाद,ू जुयभाना, तफाह, तभाशा, तनखाह, ताजा, तेज, दॊ गर, दफ्तय,
दयफाय, दवा, हदर, दीवाय, दक
ु ान, नाऩसॊद, नाऩाक, ऩाजाभा, ऩयदा, ऩैदा, ऩुर, ऩेश, फारयश, फुखाय, फपी, भजा,
भकान, भजदयू , भोयचा, माद, माय, यॊ ग, याह, रगाभ, रेककन, वावऩस, शादी, लसताय, सयदाय, सार, सयकाय, हफ्ता,
हजाय इत्माहद ।

अॊग्रेजी :

अऩीर, कोटव , भश्जस्रे ट, जज, ऩुलरस, टै क्स, करक्टय, डडप्टी, अपसय, वोट, ऩेन्शन, काऩी, ऩें लसर, ऩेन, वऩन, ऩेऩय,
राइब्रेयी, स्कूर, कॉरेज, अस्ऩतार, डॉक्टय, कॊऩाउडय, नसव, आऩये शन, वाडव, प्रेग, भरेरयमा, कॉरया, हाननवमा,
डडप्थीरयमा, कैं सय, कोट, कारय, ऩैंट, है ट, फुचशटव , स्वेटय, है ट, फूट, जम्ऩय, ब्राउज, कऩ, प्रेट, जग, रैम्ऩ, गैस,
भाचचस, केक, टॉपी, बफस्कुट, टोस्ट, चाकरेट, जैभ, जेरी, रे न, फस, काय, भोटय, रायी, स्कूटय, साइककर, फैटयी,
ब्रेक, इॊजन, मूननमन, ये र, हटकट, ऩासवर, ऩोस्टकाडव, भनी आडवय, स्टे शन, ऑकफस, क्रकव, गाडव इत्माहद ।

(v) वॊकय :

दो लबन्न स्रोतों से आए शब्दों के भेर से फने नए शब्दों को सॊकय शब्द कहते हैं, जैसे –

छामा (सॊस्कृत) + दाय (पायसी) = छामादाय ये र (अॊग्रेजी) + गाडी (हहन्दी) = ये रगाडी

ऩान (हहन्दी) + दान (पायसी) = ऩानदान सीर (अॊग्रेजी) + फॊद (पायसी) = सीरफॊद
2. यिना/फनालट के आधाय ऩय
यचना मा फनावट के आधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) तीन प्रकाय के होते हैं ।

(i) रूढ़ :

श्जन शब्दों के साथवक खॊड न हो सकें औय जो अन्म शब्दों के भेर से न फने हों उन्हें रूढ शब्द कहते हैं।
जैसे – चावर शब्द का महद हभ खॊड कयें गे तो चा + वार मा चाव + र तो मे ननयथवक खॊड होंगे । अत्
चावर शब्द रूढ शब्द है । अन्म उदाहयण — हदन, घय, भुॊह, घोडा आहद

(ii) मौचगक :

‘मौचगक’ का अथव है -भेर से फना हुआ । जो शब्द दो मा दो से अचधक शब्दों से लभर कय फनता है , उसे
मौचगक शब्द कहते हैं, जैसे—ववऻान (वव + ऻान), साभाश्जक (सभाज + इक), ववद्मारम (ववद्मा का
आरम), याजऩुत्र (याजा का ऩुत्र) आहद ।

मौचगक शब्दों की यचना तीन प्रकाय से होती है —उऩसगव से, प्रत्मम से औय सभास से ।

(iii) मोगरूढ़ :

वे शब्द जो मौचगक तो होते हैं, ऩयन्तु श्जनका अथव रूढ (ववशेष अथव) हो जाता है , मोगरूढ शब्द कहराते
हैं। मौचगक होते हुए बी मे शब्द एक इकाई हो जाते हैं मानी मे साभान्म अथव को न प्रकट कय ककसी
ववशेष अथव को प्रकट कयते हैं; जैसे-ऩीताम्फय, जरज, रॊफोदय, दशानन, नीरकॊठ, चगयधायी, दशयथ, हनभ
ु ान,
रारपीताशाही, चायऩाई आहद ।

‘ऩीताम्फय’ का साभान्म अथव है ‘ऩीरा वस्त्र’, ककन्तु मह ववशेष अथव भें श्रीकृष्ण के लरए प्रमुक्त होता है ।
इसी तयह, ‘जरज’ का साभान्म अथव है ‘जर से जन्भा’; ककन्तु मह ववशेष अथव भें केवर कभर के लरए
प्रमुक्त होता है । जर भे जन्भे औय ककसी वस्तु को हभ ‘जरज’ नहीॊ कह सकते। फहुव्रीहह सभास के सबी
उदाहयण मोगरूढ शब्द के उदाहयण हैं ।
3. रूऩ प्रमोग के आधाय ऩय
प्रमोग के अधाय ऩय शब्द (Shabd Bhed) दो प्रकाय के होते हैं –

(i) वलकायी ळब्द :

श्जनभें लरॊग, वचन व कायक के आधाय ऩय भूर शब्द का रूऩाॊतयण हो जाता है , ववकायी शब्द कहराते हैं।
जैसे –

रडका ऩढ यहा है । (लरॊग ऩरयवन) रडकी ऩढ यही है ।

रडका दौड यहा है । (वचन ऩरयववन) रडके दौड यहे हैं।

रडके के लरए आभ राओ। (कायक ऩरयवतवन) रडकों के लरए आभ राओ !

सॊऻा, सववनाभ, ववशेषण एवॊ कक्रमा शब्द ववकायी शब्द हैं।

(ii) अवलकायी ळब्द :

श्जन शब्दों का प्रमोग भूर रूऩ भें होता है औय लरॊग, वचन व कायक के आधाय ऩय उनभें कोई ऩरयवतवन
नहीॊ होता अथावत जो शब्द हभेशा एक-से यहते हैं, वे अववकायी शब्द कहराते हैं। जैसे – आज, भें, औय, आहा
आहद।

सबी प्रकाय के अव्मम शब्द अववकायी शब्द होते हैं।

4. अथघ के आधाय ऩय
अथव के आधाय ऩय शब्द िाय प्रकाय के होते हैं
(i) एकाथी ळब्द :

श्जन शब्दों का केवर एक ही अथव होता है , एकाथी शब्द कहराते हैं। व्मश्क्तवाचक सॊऻा के शब्द इसी
कोहट के शब्द हैं, जैसे—गॊगा, ऩटना, जभवन, याधा, भाचव आहद ।

(ii) अनेकाथी ळब्द :

श्जन शब्दों के एक से अचधक अथव होते हैं, अनेकाथी शब्द कहराते हैं, जैसे –

शब्द अनेक अथव

शाय गरे की भारा, ऩयाजम

कय हाथ, टै क्स

कनक सोना, धतयू ा

अथघ प्रमोजन, धन

(iii) वभानाथी ऩमाघमलािी ळब्द :

हहन्दी बाषा भें अनेक शब्द ऐसे हैं जो सभान अथव दे ते हैं, उन्हें सभानाथी मा ऩमावमवाची शब्द कहते हैं,
जैसे –

शब्द ऩमावमवाची शब्द

आकाळ नब, गगन, आसभान

फादर भेघ, जरद, वारयद

वम
ू घ यवव, बान,ु बास्कय
पूर ऩुष्ऩ, सुभन, प्रसून

(iv) वलऩयीताथी / वलरोभ ळब्द :

जो शब्द ववऩयीत अथव का फोध कयाते हैं, ववऩयीताथी मा ववरोभ शब्द कहराते हैं; जैसे –

शब्द ववरोभ शब्द

जम ऩयाजम

ऩाऩ ऩण्
ु म

वि झूठ

हदन यात
लरॊग(Gender) औय प्रकाय

लरॊग (Gender) की ऩरयबाऴा :

लरॊग (Gender in hindi) शब्द सॊस्कृत बाषा का है , श्जसका शाश्ब्दक अथव है -चचह्न। श्जस चचह्न द्वाया
मह जाना जाए कक अभक
ु शब्द ऩरु
ु ष जानत का है मा स्त्री जानत का, उसे लरॊग (Gender) कहते है ।
हहन्दी भें लरॊग दो प्रकाय के होते हैं –

1. ऩुश्ल्रग (Masculine gender)


2. स्त्रीलरॊग (Feminine gender)
ऩुश्ल्रॊग (Masculine gender) : श्जन सॊऻा शब्दों से मथाथव मा कश्ल्ऩत ऩुरुषत्व का फोध होता है उन्हें
ऩुश्ल्रॊग कहते हैं; जैसे-रडका, फैर, घोडा, ऩेड, नगय इत्माहद। महाॉ ‘रडका’ ‘फैर’ ‘घोडा’ से मथाथव ऩुरुषत्व तथा
‘ऩेड’ औय ‘नगय’ से कश्ल्ऩत ऩुरुषत्व का फोध होता है ।

स्त्रीलरॊग (Feminine gender) : श्जन सॊऻा शब्दों से मथाथव मा कश्ल्ऩत स्त्रीत्व का फोध होता है उन्हें
स्त्रीलरॊग कहते हैं; जैसे-रडकी, गाम, रता, ऩुयी, इत्माहद। महाॉ ‘रडकी’ औय ‘गाम’ मथाथव स्त्रीत्व का तथा ‘रता’
औय ‘ऩयु ी’ से कश्ल्ऩत स्त्रीत्व का फोध होता है ।

लरॊग ननणघम कुछ आलचमक ननमभ इव प्रकाय शैं-

1. सॊस्कृत के ऩश्ु ल्रॊग तथा नऩॊस


ु कलरॊग शब्द जो हहन्दी भें प्रमक्
ु त होते हैं वे प्राम् ऩश्ु ल्रॊग तथा
सॊस्कृत के स्त्रीलरॊग शब्द जो हहन्दी भें प्रचलरत हैं प्राम् स्त्रीलरॊग ही यहते हैं; जैसे–तन, भन, धन,
दे श, जगत ् आहद शब्द ऩुश्ल्रॊग हैं; सन्
ु दयता, आशा, रता, हदशा इत्माहद स्त्रीलरॊग हैं।
2. श्जन शब्दों के अन्त भें आ, आव, ऩा, ऩन, न प्रत्मम हो जैसे-छोटा, भोटा, ऩडाव, फुढाऩा, फचऩन, रेन-
दे न आहद शब्द ऩश्ु ल्रॊग हैं।
3. श्जन शब्दों के अन्त भें आई, वट, हुट आहद प्रत्मम हो वे प्राम् स्त्रीरा होते हैं; जैसे-लसराई, फुनाई,
कटाई, लरखावट, फनावट, चचल्राहट इत्माहद।
4. भहीनों, हदनों, ग्रहों औय ऩववतों के नाभ ऩुश्ल्रॊग होते हैं; फैसाख, ज्जमेष्ठ, अषाढ …; सोभवाय, भॊगरवाय,
फुधवाय, गुरुवाय …; याहु, केतु, हहभारम, ववन्ध्माचर इत्माहद।
5. नहदमों, नतचथमों तथा नऺत्रों के नाभ स्त्रीलरॊग होते हैं; जैसे-गॊगा, मभुना, गोदावयी, कावेयी …;
द्ववतीमा, तत
ृ ीमा, चतुथी …; अश्चवनी, योहहणी आहद।
6. सॊस्कृत के ऊकायान्त औय उकायान्त शब्द ऩश्ु ल्र होते हैं, जैसे-प्रब,ू भ्रू; अश्रु, जन्तु, याहु, बत्रशॊकु आहद।
इसी प्रकाय तद्भव ऊकायान्त ऩुश्ल्रॊग होते हैं; जैसे-डाकू, वऩल्रू, जनेऊ आहद।।
7. सॊस्कृत के कुछ ऩश्ु ल्रॊग शब्द औय नऩॊस
ु कलरॊग शब्द हहन्दी भें स्त्रीलरॊग के रूऩ भें प्रमक्
ु त होते हैं
जैसे-अश्नन, आत्भा, ऋतु, वामु, सन्तान, यालश, इत्माहद।
8. रव्मवाचक शब्द प्राम् ऩश्ु ल्रग रूऩ भें प्रमक्
ु त होते हैं; जैसे-
रव्म : घी, तेर, भक्खन, दध
ू , ऩानी; हीया, भोती, ऩन्ना, रोहा, ताॊफा इत्माहद।
अनाज : गेहूॊ, चावर, चना, फाजया, उडद आहद।
ऩेड : आभ, जाभुन, ऩीऩर, फयगद, चीड, दे वदाय आहद।
अऩलाद : अयहय, दार, लभट्टी, चाॉदी, आहद स्त्रीलरॊग हैं।
9. बाषा, फोरी औय लरवऩ का नाभ स्त्रीलरॊग भें होता है ; जैसे-हहन्दी, अॊग्रेजी, रूसी, चीनी, अयफी, पायसी,
अवधी, फघेरी, छत्तीसगढी, बोजऩुयी, कुभाऊॉनी, गढवारी, दे वनागयी, योभन, कैथी, भुडडमा, खयोष्टी, ब्राह्भी
इत्माहद।
10. कुछ प्राखणवाचक शब्द ऩुरुषत्व औय स्त्रीत्व दोनों का फोध कयाते हैं। व्मवहाय के अनुसाय मे
ननत्म ऩश्ु ल्रॊग मा ननत्म स्त्रीलरॊग होते हैं; जैसे-
ननत्म ऩुश्ल्रॊग : िीता, उल्रू, तोता, कौआ, खटभर, शाथी आहद।
ननत्म स्त्रीलरॊग : भैना, भक्खी, कोमर, िीर, गौयै मा आहद।
इन शब्दों के लरॊग ननधावयण के लरए शब्दों के साथ ‘नय’ मा ‘भादा’ शब्द जोड दे ते हैं; जैसे-तोता (नय), चीता
(भादा), कोमर (नय) आहद। स्त्रीलरॊग प्रत्मम
: ऩुश्ल्रॊग ळब्द को स्त्रीलरॊग फनाने के लरए कुछ प्रत्ममों को ळब्द भें जोडा जाता शै श्जन्शें स्त्री० प्रत्मम
कशते शैं।

ई फडा-फडी, छोटा-छोटी, बरा-बरी

इनी मोगी-मोचगनी, कभर-कभलरनी

इन धोफी-धोबफन, तेरी-तेलरन

नी भोय-भोयनी, चोय-चोयनी
आनी आनी जेठ-जेठानी, दे वय-दे वयानी

आइन ठाकुय-ठकुयाइन, ऩॊडडत-ऩॊडडताइन

इमा फेटा-बफहटमा, रोटा-रुहटमा

कुछ शब्द अथव की दृश्ष्ट से सभान होते हुए बी लरॊग की दृश्ष्ट से लबन्न होते हैं। उनका उचचत एवॊ
सम्मक प्रमोग कयना चाहहए। जैसे-

ऩश्ु ल्रॊग स्त्रीलरॊग ऩश्ु ल्रॊग स्त्रीलरॊग

कवल कवनमत्री भहान भहती

वलद्लान ववदष
ु ी साधु साध्वी

नेता नेत्री रेखक रेखखका

उऩमक्
ुघ त ळब्दों का वशी प्रमोग कयने ऩय शी ळुि लाक्म फनता शै । जैवे-

1. आऩकी भहान कृऩा होगी-अळि


ु लाक्म
आऩकी भहती कृऩा होगी-ळुि लाक्म
2. वह एक ववद्वान रेखखका है -अळि
ु लाक्म
वह एक ववदष
ु ी रेखखका है -ळुि लाक्म
सॊऻा औय उसके बेद

ऩरयबाऴा: वॊसा (Noun) को ‘नाभ’ बी कशा जाता शै। श्जन वलकायी ळब्दों वे ककवी व्मश्क्त, स्थान,
प्राणी, गुण, काभ, बाल आहद का फोध शोता शै , उन्शें ‘वॊसा’ कशते शैं।

वॊसा के प्रकाय
ऩाॉि प्रकाय की शोती शै ।

 व्मश्क्तलािक वॊसा  रव्मलािक वॊसा (Mass  बाललािक वॊसा


(Proper Noun) Noun) (Abstract Noun)
 वभूशलािक वॊसा
 जानतलािक वॊसा
(Collective Noun)
(Common Noun)
(क) व्मश्क्तवाचक सॊऻा (Proper Noun) :

श्जन शब्दों से ककसी एक ही वस्तु, व्मश्क्त मा स्थान आहद का फोध होता है । उन्हें व्मश्क्तलािक
वॊसा कहते हैं; जैवे— याभ, गाॉधी जी, गॊगा, काशी इत्माहद। ‘याभ’, ‘गाॉधी जी’ कहने से एक-एक व्मश्क्त का
‘गॊगा’ कहने से एक नदी का औय ‘काशी’ कहने से एक नगय का फोध होता है । व्मश्क्तवाचक सॊऻाएॉ
जानतवाचक सॊऻाओॊ की तुरना भें कभ हैं।

व्मश्क्तलािक वॊसा के उदाशयण –

(I) व्मश्क्तमों के नाभ – याभ, कृष्ण, भहात्भा फुि, हजयत भोहम्भद, ईसा भसीह आहद ;
(II) परों के नाभ – आभ, अभरूद, सेफ, सन्तया, केरा आहद ;
(III) ग्रन्थों के नाभ – याभामण, याभचरयत भानस, ऩद्मावत, काभामनी, कुयान, साकेत आहद ;
(IV) वभािाय ऩत्रों के नाभ – हहन्दस्
ु तान, दै ननक जागयण, नवबायत टाइम्स, अभय उजारा, ‘आज’ आहद ;
(V) नहदमों के नाभ – गॊगा, ब्रह्भऩुत्र, कृष्णा, कावेयी, लसन्ध आहद ;
(VI) नगयों के नाभ – रखनऊ, वायाणसी, आगया, जमऩुय, ऩटना आहद ;
(VII) हदळाओॊ के नाभ – उत्तय, दक्षऺण, ऩूव,व ऩश्चचभ ;
(VIII) दे ळों के नाभ – बायत, जाऩान, अभेरयका, ऩाककस्तान, वभाव ;
(IX) याष्रीम जानतमों के नाभ – रूसी, बायतीम, अभेरयकी ;
(X) वभर
ु ों के नाभ – कारा सागय, बभ
ू ध्म सागय, हहन्द भहासागय, प्रशाॊत भहासागय ;

इन शब्दों से एक ही वस्तु का फोध होता है अत् मे सबी व्मश्क्तलािक वॊसा शब्द हैं। जफ व्मश्क्तवाचक
सॊऻा एक से अचधक का फोध कयाने रगती है तो वह जानतलािक वॊसा हो जाती है ,

जैवे— आज के मुग भें जमचन्दों की कभी नहीॊ है । महाॉ ‘जमचन्दो’ ककसी व्मश्क्त का नाभ न होकय
ववचवासघाती व्मश्क्तमों की जाती का फोधक है ।

(ख) जानतवाचक सॊऻा (Common Noun) :

श्जन शब्दों से ककसी एक ही प्रकाय की अनेक वस्तुओॊ अथवा व्मश्क्तमों का फोध होता है , उन्हें जानतलािक
वॊसा कहते हैं; जैवे– भनुष्म, घय, ऩहाड, नदी इत्माहद।

‘भनुष्म’ कहने से सॊसाय की भनुष्म-जानत का, ‘घय’ कहने से सबी तयह के घयों को, ‘ऩहाड कहने से सॊसाय के
सबी ऩहाडों का औय नदी’ कहने से सबी नहदमों का जानतगत फोध होता है ।

जानतलािक वॊसाओॊ की श्स्थनतमाॉ इस प्रकाय हैं –

(i) वम्फश्न्धमों, व्मलवामों, ऩदों औय कामों के नाभ – फहन, बाई, भाॉ, डॉक्टय, वकीर, भन्त्री, अध्मऺ, ककसान,
अध्माऩक, भजदयू इत्माहद।
(ii) ऩळु-ऩक्षषमों के नाभ – फैर, घोडा, हहयन, तोता, भैना, भोय इत्माहद।
(iii) लस्तओ
ु ॊ के नाभ – भकान, कुसी, भेज, ऩस्
ु तक, करभ इत्माहद।
(iv) प्राकृनतक तत्त्लों के नाभ – बफजरी, वषाव, आॉधी, तूपान, बूकम्ऩ, ज्जवाराभुखी इत्माहद।

जानतवाचक औय व्मश्क्तवाचक सॊऻा भें अन्तय


जानतवाचक सॊऻा कवव स्त्री नदी नगय ऩववत

व्मश्क्तवाचक सॊऻा सूयदास याधा मभुना भुम्फई हहभारम

(ग) रव्मलािक वॊसा (Mass Noun) :

श्जन शब्दों से ककसी ऐसे ऩदाथव मा रव्म का फोध होता है , श्जसे हभ नाऩ-तौर सकते हैं रेककन चगन नहीॊ
सकते हैं उन्हें रव्मवाचक सॊऻा कहते हैं; जैवे—

(I) धातुओॊ के नाभ – सोना, चाॉदी, रोहा, ताॉफा, ऩीतर आहद ;


(II) ऩदाथों के नाभ – दध
ू , दही, घी, तेर, ऩानी आहद हैं।
अत: मे सबी रव्मलािक वॊसा शब्द हैं।

(घ) वभश
ू लािक वॊसा (Collective Noun) :

श्जन शब्दों से एक ही जानत की वस्तुओॊ के सभूह का फोध होता है उन्हें वभूशलािक वॊसा कहते हैं; जैवे—
कऺा, सेना, सभूह, सॊघ, टुकडी, चगयोह औय दर इत्माहद व्मश्क्तमों के सभूह, कुञ्ज, ढे य, गट्ठय, गुच्छा इत्माहद
वस्तुओॊ के सभूह का फोध कयाते हैं।

(ङ) बाललािक वॊसा (Abstract Noun) :

श्जन शब्दों से ककसी वस्तु के गुण, दशा मा व्माऩाय का फोध होता है उन्हें बाललािक वॊसा कहते हैं; जैवे—
रम्फाई, फढ
ु ाऩा, नम्रता, लभठास, सभझ, चार इत्माहद। हय ऩदाथव का धभव होता है । ऩनन की शीतरता, आग
भें गभी, भनुष्म भें दे वत्व औय ऩशुत्व इत्माहद का होना आवचमक है । ऩदाथव का गुण मा धभव ऩदाथव से
अरग नही यह सकता। घोडा है तो उसभें फर है , वेग है औय आकाय बी है । व्मश्क्तवाचक सॊऻा की तयह
बाववाचक सॊऻा से बी ककसी एक ही बाव का फोध होता है । ‘धभव गुण। अथव’ औय ‘बाव’ प्राम् ऩमावमवाची
शब्द हैं।

बाललािक वॊसा के बेद इव प्रकाय शैं-

 गुण मा धभघ के अथघ भें ; लभठास, खटास, यसीरा, कडवाहट, सुन्दयता, कुशाग्रता, फुविभत्ता आहद
 अलस्था के अथघ भें ; अभीयी, गयीफी, जवानी, फुढाऩा आहद
 दळा के अथघ भें ; उन्ननत, अवननत, चढाई, ढरान आहद हैं।
 बाल के अथघ भें ; लभत्रता, शत्रत
ु ा, कृऩणता इत्माहद।
इन शब्दों से बाव ववशेष का फोध होता है अत् मे सबी बाललािक वॊसा (Bhav Vachak Sangya) शब्द
हैं।

बाललािक वॊसाओॊ का ननभाघण –

 जानतवाचक सॊऻा से,  सववनाभ से,  कक्रमा से


 व्मश्क्तवाचक सॊऻा से,  ववशेषण से,  अव्मम से
बाववाचक सॊऻाओॊ का ननभावण जानतलािक वॊसा वे, व्मश्क्तलािक वॊसा वे, वलघनाभ वे, वलळेऴण वे, किमा
वे तथा अव्मम भें आल, अन, ई, ता, त्ल, ऩन, आई आहद प्रत्मम जोडकय ककमा जा सकता है । जैवे –

(I) जानतलािक वॊसा वे बाललािक वॊसा

जानतवाचक सॊऻा बाववाचक सॊऻा

ऩरूऴ ऩुरुषत्व

फूढ़ा फुढाऩा

रडका रडकऩन

भनुष्म भनुष्मता

नायी नायीत्व

गुरु गुरुत्व
(II) व्मश्क्तलािक वॊसा वे बाललािक वॊसा

व्मश्क्तवाचक सॊऻा बाववाचक सॊऻा

याभ याभत्व

यालण यावणत्व

लळल लशवत्व

(III) वलघनाभ वे बाललािक वॊसा

सववनाभ बाववाचक सॊऻा

अऩना अऩनत्व

भभ भभत्व

ननज ननजत्व

अशॊ अहॊ काय

(IV) वलळेऴण वे बाललािक वॊसा

ववशेषण बाववाचक सॊऻा

कठोय कठोयता

िौडा चौडाई

लीय वीयता/वीयत्व
वुन्दय सुन्दयता, सौन्दमव

धीय धीयता, धैमव

रलरत रालरत्म

बोरा बोराऩन

शया हरयमारी

(V) किमा वे बाललािक वॊसा

कक्रमा बाववाचक सॊऻा

घफयाना घफयाहट

खेरना खेर

ऩढ़ना ऩढाई

लभरना लभराऩ

बटकना बटकाव

(VI) अव्मम वे बाललािक वॊसा

अव्मम बाववाचक सॊऻा

दयू दयू ी

ननकट ननकटता
नीिे नीचाई

रुकना रुकावट

थकना थकावट

वभीऩ साभीप्म

वॊसा का ऩद-ऩरयिम (Parsing of Noun) :लाक्म भें प्रमुक्त ळब्दों का

ऩद ऩरयिम दे ते वभम वॊसा, उवका बेद, लरॊग, लिन, कायक एलॊ अन्म ऩदों वे उवका वॊफॊध फताना िाहशए।
जैवे- याभ ने यावण को वाण वे भाया।

1. याभ – सॊऻा, व्मश्क्तवाचक, ऩुलरॊग, एकवचन, कताव कायक, ‘भाया’ कक्रमा का कताव
2. यालण – सॊऻा, व्मश्क्तवाचक, ऩुलरॊग, एकवचन, कभव कायक, ‘भाया’ कक्रमा का कभव
3. लाण – सॊऻा, जानतवाचक, ऩुलरॊग, एकवचन, कयण कायक ‘भाया’ कक्रमा का साधन
ऩद ऩरयचम भें वाक्म के प्रत्मेक ऩद को अरग-अरग कयके उसका व्माकयखणक स्वरूऩ फताते हुए अन्म
ऩदों से उसका सॊफॊध फताना ऩडता है । इसे अन्लम बी कहते हैं।

सॊऻा का रूऩ ऩरयवतवन लरॊग, लिन, कायक के अनुरूऩ होता है , इसके के मे तीन आधाय हैं, इन्हें ‘वॊसा की
कोहटमाॉ’ बी कहा जाता है ।
सववनाभ औय उसके बेद

ऩरयबाऴा: वॊसा के स्थान ऩय प्रमुक्त शोने लारे ळब्दों को वलघनाभ (Pronoun) कशते शैं।
जैवे- भैं, तभ
ु , शभ, ले, आऩ आहद ळब्द वलघनाभ शैं।

‘वलघनाभ’ शाश्ब्दक अथव है - सफका नाभ । सववनाभ शब्द ‘सवव’ + ‘नाभ’ से लभरकय फना है । ‘सवव’ का अथव है –
सफ औय ‘नाभ’ का अथव है सॊऻा।

जैसे-‘भैं’ शब्द को हभ अऩने लरए प्रमुक्त कय सकते हैं, यभेश अऩने लरए, सुयेश अऩने लरए अथावत ् सबी
रोग अऩने-अऩने लरए ‘भैं’ शब्द का प्रमोग कय सकते हैं।

उदाहयणाथव-याभ फाजाय गमा है , याभ नौ फजे आएगा, याभ बोजन कयके कारेज चरा जाएगा। महाॉ ‘याभ’
शब्द फाय-फाय आमा है , ककसी बी शब्द का फाय-फाय आना अच्छा नहीॊ रगता। महद महाॉ याभ शब्द के
स्थान ऩय सववनाभ का प्रमोग कय हदमा जाए तो वह अवप्रम नहीॊ रगेगा;

जैसे—याभ फाजाय गमा है । वह नौ फजे आएगा औय बोजन कयके कारेज चरा जाएगा। महाॉ ऩय वह शब्द
का प्रमोग ऩूवावऩय सम्फन्ध से ही ककमा गमा है । याभ शब्द ऩूवव आमा है इसके फाद (अऩय) ‘वह’ शब्द
आमा है । इस प्रकाय सॊऻा शब्दों की ऩन
ु यावश्ृ त्त योकना औय उनके स्थान ऩय स्वमॊ कामव कयना सववनाभ का
उद्देचम है । हहन्दी भें सववनाभों की सॊख्मा नमायह है -भैं, तू, आऩ, मह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन, क्मा।

वलघनाभ के प्रकाय औय उदाशयण


व्मावहारयक आधाय ऩय सववनाभ के छ् बेद फताए गए हैं –

1. ऩुरुषवाचक सववनाभ 3. अननचचमवाचक सववनाभ 5. प्रचनवाचक सववनाभ


2. ननचचमवाचक सववनाभ 4. सॊफॊधवाचक सववनाभ 6. ननजवाचक सववनाभ
(1) ऩुरुषवाचक सववनाभ(Personal Pronoun) :

ऩुरुषवाचक सववनाभ— वक्ता, श्रोता औय अन्म (श्जसके सम्फन्ध भें फात हो) का , सववनाभ, ऩुरुषवाचक
सववनाभ कहराता है । अथाघत
जो सववनाभ फोरने वारे, सन
ु ने वारे मा ककसी अन्म व्मश्क्त के लरए आए, उसे ऩरू
ु षवाचक सववनाभ कहते
हैं।

ऩुरुषवाचक सववनाभ तीन प्रकाय के होते हैं

1. उत्तभ ऩुरुऴ
2. भध्मभ ऩरु
ु ऴ
3. अन्म ऩुरुऴ
उत्तभ ऩरु
ु ऴ- भैं, हभ, भैंन,े हभने, भेया, हभाया, भझ
ु े, भ झ
ु को ।
भध्मभ ऩुरुऴ- तू, तुभ, तुभने, तुझे, तूने, तुम्हें , तुभको, तुभसे, आऩने, आऩको ।
अन्म ऩुरुऴ–वह, मह, वे, मे, इन, उन, उनको, उनसे, इन्हें , उन्हें , इससे, उसको ।

(2) ननचचमवाचक सववनाभ(Demonstrative Pronoun) :

श्जस सववनाभ से ककसी ननश्चचत वस्तु व्मश्क्त की ओय सॊकेत ककमा जाता है , अथावत ननकट मा दयू के
व्मश्क्तमों मा वस्तुओॊ का ननचचमात्भक सॊकेत श्जन शब्दों से व्मक्त होता है , उन्हें ननचचमवाचक सववनाभ
कहते हैं। जैसे—मह, वह, मे, वे ।

1. मह भेयी ऩुस्तक है । 3. मे भेये हचथमाय हैं। 5. वह वहाॉ खेर यहा है ।


2. वह उनकी भेज है । 4. वे तुम्हाये आदभी हैं।
(3) अननचचमवाचक सववनाभ (Indefinite Pronoun): श्जन वलघनाभों वे ककवी लस्तु मा व्मश्क्त का
ननश्चित फोध नशीॊ शोता उन्शें अननचिमलािक वलघनाभ कशते शैं। जैवे- कोई, कुछ।

1. कोई आ गमा तो क्मा कयोगे ? 3. कोई गा यहा है ।


2. उसने कुछ नहीॊ लरमा। 4. कभये भें कुछ ऩडा है ।
(4) सॊफॊधवाचक सववनाभ (RelativePronoun):

श्जस सववनाभ से ककसी दस


ू ये सववनाभ से सॊफॊध स्थावऩत ककमा जाम, अथावत श्जन सववनाभों द्वाया वाक्मों
भें आऩसी सम्फन्ध प्रकट होता है उसे सॊफॊधवाचक सववनाभ कहते हैं। जैसे- जो, सो।

1. जो आमा है , सो जामेगा मह ध्रुव सत्म है ।


2. जो कये गा सो बये गा।
3. श्जसकी राठी उसकी बैंस।
इन वाक्मों भें जो, सो, श्जसकी, उसकी आहद सम्फन्ध को प्रकट कयने वारे हैं अत् मे सबी सम्फन्धवाचक
सववनाभ हैं।

(5) प्रचनवाचक सववनाभ (Interrogative Pronoun) :

प्रचन कयने के लरए प्रमुक्त होने वारे सववनाभ शब्दों को अथावत श्जन शब्दों भें कोई प्रचन ककमा जाए वे
प्रचनवाचक सववनाभ कहराते हैं। जैसे- कौन, क्मा ?

1. कौन आमा था ? 3. दध
ू भें क्मा चगय ऩडा ?
2. वह क्मा कह यहा था ? 4. ववद्मारम भें कौन जा यहा है ?
(6) ननजवाचक सववनाभ (Reflexive Pronoun):

वक्ता मा रेखक जहाॉ अऩने लरए ‘आऩ’ मा ‘अऩने आऩ’ शब्द का प्रमोग कयता है वहाॉ ननजवाचक सववनाभ
होता है । ननजवाचक सववनाभ है —आऩ । मह अऩने आऩ मा ‘स्वमॊ’ के लरए प्रमुक्त सववनाभ है । जैसे—मह
कामव भैं ‘आऩ’ ही कय रूॊगा।

ध्मान यहे कक महाॉ प्रमुक्त ‘आऩ’ स्वमॊ के लरए प्रमुक्त है । जो कक ऩुरुषवाचक भध्मभ ऩुरुष आदयणीम
सववनाभ ‘आऩ’ से अरग है ।

कबी-कबी कुछ ‘शब्द-सभूह’ बी सववनाभ के रूऩ भें प्रमुक्त होते हैं। जैसे—

1. कुछ न कुछ, 2. कोई न कोई, 3. सफ कुछ,


4. हय कोई, 5. कुछ बी, 6. कुछ-कुछ आहद ।

वलघनाभ: एक नजय भें


1. ऩुरुषवाचक (i) उत्तभ ऩुरुष–भें, शभ

(ii) भध्मभ ऩुरुऴ–त,ू तुभ, आऩ

(iii) अन्म ऩुरुऴ–वह, वे, मह, मे

2. ननचिमलािक (i) ननकटलती–मह, मे

(ii) दयू लती–वह, वे

3. अननचिमलािक (i) प्राणण फोधक-कोई

(ii) लस्तु फोधक–कुछ

4. वम्लन्धलािक जो, सो

5. प्रचनलािक (i) प्राणण फोधक–कौन

(ii) लस्तु फोधक–क्मा

6. ननजलािक आऩ
ववशेषण औय उसके बेद

 जो शब्द सॊऻा मा सववनाभ की ववशेषता फतराते हैं उन शब्दों को ववशेषण (Adjective) कहते हैं।
 जो शब्द ववशेषता फताते हैं, उन्हें ववशेषण (Adjective)कहा जाता है औय श्जसकी ववशेषता फताई
जाती है , उसे ववशेष्म कहा जाता है । जैसे— भोटा रडका हॉस ऩडा।
महाॉ ‘भोटा’ ववशेषण है तथा ‘रडका’ ववशेष्म (सॊऻा) है ।

वलळेऴण के बेद
वलळेऴण भूरत् िाय प्रकाय के शोते शैं –

 साववनालभक ववशेषण  सॊख्मावाचक ववशेषण


 गुणवाचक ववशेषण  ऩरयभाणफोधक ववशेषण
(1) साववनालभक ववशेषण (Demonstrative Adjective) :

ववशेषण के रूऩ भें प्रमुक्त होने वारे सववनाभ को वालघनालभक वलळेऴण कहा जाता है मा जो सववनाभ शब्द
सॊऻा के लरए ववशेषण का काभ कयते हैं, उन्हें ‘वालघनालभक वलळेऴण’ कहते हैं। मह, वह, जो, कौन, क्मा, कोई,
ऐसा, ऐसी, वैसा, वैसी इत्माहद ऐसे सववनाभ हैं जो सॊऻा शब्दों के ऩहरे प्रमक्
ु त होकय ववशेषण का कामव
कयते हैं, इसलरए इन्हें वालघनालभक वलळेऴण कहते हैं। जफ मे सववनाभ अकेरे प्रमुक्त होते हैं तो सववनाभ
होते हैं।

इनके दो उऩबेद शैं-

(i) भौलरक वालघनालभक वलळेऴण :

जो सववनाभ बफना रूऩान्तय के भौलरक रूऩ भें सॊऻा के ऩहरे आकय उसकी ववशेषता फतराते हैं उन्हें इस
वगव भें यखा जाता है । जैसे-

1. मह घय भेया है । 2. वह ककताफ पटी है । 3. कोई आदभी यो यहा है ।


(ii) मौचगक वालघनालभक वलळेऴण :

जो सववनाभ रूऩान्तरयत होकय सॊऻा शब्दों की ववशेषता फतराते हैं, उन्हें मौचगक साववनालभक ववशेषण कहा
जाता है । जैसे-

1. ऐसा आदभी नहीॊ दे खा। 2. कैसा घय चाहहए ? 3. जैसा दे श वैसा बेष

(2) गुणवाचक ववशेषण (Adjective of Quality):

जो शब्द सॊऻा अथवा सववनाभ के गण


ु -धभव, स्वबाव का फोध कयाते हैं, उन्हें गण
ु लािक वलळेऴण कहते हैं।
गुणवाचक ववशेषण अनेक प्रकाय के हो सकते हैं। जैसे-

कारफोधक नमा, ऩुयाना, ताजा, भौवभी, प्रािीन।

बावफोधक शूयवीय, कामय, फरवान, दमारु, ननदव मी, अच्छा, फयु ा आहद।

यॊ गफोधक रार, ऩीरा, कारा, नीरा, फैंगनी, हया।

दशाफोधक भोटा, ऩतरा, मव


ु ा , वि
ृ , गीरा, सख
ू ा

सभमफोधक प्रात:कारीन, सामॊकारीन, भालसक, त्रैभालसक, साप्ताहहक, दै ननक इत्माहद।

गण
ु फोधक अच्छा, बरा, फयु ा, कऩटी, झठ
ू ा, सच्चा, ऩाऩी, न्मामी, सीधा, सयर।

आकायफोधक गोर, चौकोय, नतकोना, रम्फा, चौडा, नुकीरा, सुडौर, ऩतरा, भोटा।

स्थानफोधक ग्राभीण, शहयी, भैदानी, ऩहाडी, ऩॊजाफी, बफहायी इत्माहद।

(3) सॊख्मावाचक ववशेषण (Adjective of Number) :

जो शब्द सॊऻा अथवा सववनाभ की सॊख्मा का फोध कयाते हैं, उन्हें सॊख्मावाचक ववशेषण कहा जाता है ।
जैसे-एक भेज, चाय कुलसवमाॉ, दस ऩुस्तकें, कुछ रुऩए इत्माहद।मे दो प्रकाय के होते हैं-
(i) ननश्चित वॊख्मालािक :

श्जन ववशेषण शब्दों से ननश्चचत सॊख्मा का फोध होता है , उन्हें ननश्चचत सॊख्मावाचक ववशेषण कहते हैं;
जैसे- दस रडके, फीस आदभी, ऩचास रुऩमे, एक, दो, तीन; ऩहरा, दस
ू या, तीसया; इकहया, दोहया; दोनों, तीनों,
चायों, ऩाॉचों इत्माहद।

ननश्चचत सॊख्मावाचक ववशेषणों को प्रमोग के अनुसाय ननम्न बेदों भें ववबक्त ककमा जा सकता है -

गणनावाचक एक, दो, िाय, आठ, फायश।

क्रभवाचक ऩहरा, दसवाॊ, सौवाॊ, चौथा।

आवश्ृ त्तवाचक नतगन


ु ा, चौगन
ु ा, सौगन
ु ा।

सभद
ु ामवाचक चायों, आठों, तीनों।

(ii) अननश्चित वॊख्मालािक :

श्जन ववशेषण शब्दों से अननश्चचत सॊख्मा का फोध होता है , उन्हें अननश्चचत सॊख्मावाचक ववशेषण कहते हैं;

जैसे-थोडे आदभी, कुछ रुऩए आहद।

1. कुछ आदभी चरे गए। 3. सफ कुछ सभाप्त हो


2. कई रोग आए थे। गमा।

(4) ऩरयभाणफोधक ववशेषण (Adjective of Quantity) :

श्जन ववशेषणों से सॊऻा अथवा सववनाभ के ऩरयभाण (नाऩ-तौर) का फोध होता है , उन्हें ऩरयभाणफोधक
ववशेषण कहते हैं। इनके बी दो बेद हैं-

(i) ननश्चचत ऩरयभाणवाचक (ii) अननश्चचत ऩरयभाणवाचक।


(i) ननश्चित ऩरयभाणलािक-

श्जन ववशेषण शब्दों से सॊऻा की ननश्चचत भात्रा का फोध होता है उन्हें ननश्चचत ऩरयभाणवाचक ववशेषण
कहते हैं;

जैसे—एक रीटय दध
ू , दस भीटय कऩडा, एक ककरो आरू आहद।

(ii) अननश्चित ऩरयभाणलािक-

श्जन ववशेषण शब्दों से सॊऻा की अननश्चचत भात्रा का फोध होता है , उन्हें ‘अननश्चचत ऩरयभाणवाचक
ववशेषण कहते हैं;

जैसे-थोडा दध
ू , कुछ शहद, फहुत ऩानी, अचधक ऩैसा आहद।। |

प्रववशेषण : वे शब्द जो ववशेषणों की ववशेषता फतराते हैं, प्रववशेषण कहे जाते हैं। जैसे-

1. वह फशुत तेज दौडता है ।

महाॊ ‘तेज’ ववशेषण है औय फहुत’ प्रववशेषण है क्मोंकक

मह तेज की ववशेषता फतरा यहा है ।

2. सीता अत्मन्त सन्


ु दय है ।

महाॉ ‘सन्
ु दय’ ववशेषण है तथा अत्मन्त’ प्रववशेषण है ।
ववशेषणाथवक प्रत्मम : सॊऻा शब्दों को ववशेषण (Adjective) फनाने के लरए उनभें श्जन
प्रत्ममों को जोडा जाता है , उन्हें ववशेषणाथवक प्रत्मम कहते हैं। जैसे-

प्रत्मम वॊसा ळब्द वलळेऴण

ईरा चभक चभकीरा

इक अथव आचथवक

भान फुवि फुविभान

ई धन धनी

लान दमा दमावान

ईम बायत बायतीम

ववशेषण (Adjective) की तर
ु नावस्था :

तुरनात्भक ववशेषण ववशेषण सॊऻा शब्दों की ववशेषता फतराते हैं। मह ववशेषता ककसी भें साभान्म, ककसी
भें कुछ अचधक औय ककसी भें सफसे अचधक होती है । ववशेषणों के इसी उताय-चढाव को तर
ु ना कहा जाता
है । इस प्रकाय दो मा दो से अचधक वस्तुओॊ मा बावों के गुण, भान आहद के लभरान मा तुरना कयने वारे
ववशेषण को तर
ु नात्भक ववशेषण कहते हैं। हहन्दी भें तर
ु नात्भक ववशेषण की तीन अवस्थाएॉ हैं।

 भर
ू ावस्था (Positive Degree)  उत्तभावस्था (Superlative Degree)
 उत्तयावस्था (Comparative Degree)
1. भूरावस्था (Positive Degree) -इसभें तुरना नहीॊ होती; साभान्म रूऩ से ववशेषता फतराई जाती है ;
जैसे—अच्छा, फुया, फहादयु , कामय आहद।
2. उत्तयावस्था (Comparative Degree) -इसभें दो की तुरना कयके एक की अचधकता मा न्मूनता
हदखाई जाती है ; जैसे-याभ चमाभ से अचधक फुविभान है । इस वाक्म भें याभ की फुविभत्ता चमाभ से
अचधक फताई गई है , अत् महाॉ तर
ु नात्भक ववशेषण की उत्तयावस्था’ है ।
3. उत्तभावस्था (Superlative Degree) इसभें दो से अचधक वस्तुओॊ, बावों की तुरना कयके एक को
सफसे अचधक मा न्मन
ू फतामा जाता है . जैसे—अॊकुय कऺा भें सफसे अचधक फवु िभान है । इस वाक्म
भें अॊकुय को कऺा भें सफसे अचधक फुविभान फतरामा गमा है अत् महाॉ तर ववशेषण की
उत्तभावस्मा है ।
तुरनात्भक वलळेऴण (Visheshan) की दृश्ष्ट वे वलळेऴणों के रूऩ इव प्रकाय शोते शैं -

भूतालस्था उत्तयालस्था उत्तभालस्था

रघु रघुतय रघुतभ

अचधक अचधकतय अचधकतभ

उच्ि उच्चतय उच्चतभ

कोभर कोभरतय कोभरतभ

गुरु गुरुतय गुरुतभ

ननकट ननकटतय ननकटतभ

ननम्न ननम्नतय ननम्नतभ

फश
ृ त् फह
ृ त्तय फह
ृ त्तभ

भशत ् भहत्तय भहत्तभ

वन्
ु दय सन्
ु दयतय सन्
ु दयतभ
ववशेषण(Adjective) का ऩद ऩरयचम (Parsing of Adjective) :

वाक्म भें ववशेषण ऩदों का अन्वम (ऩद ऩरयचम) कयते सभम उसका स्वरूऩ-बेद, लरॊग, वचन, कायक औय
ववशेष्म फतामा जाता है । जैसे-

कारा कुत्ता भय गमा।

कारा—ववशेषण, गुणवाचक, यॊ गफोधक, ऩुलरॊग, एकवचन, ववशेष्म- कुत्ता ।

भुझे थोडी फशुत जानकायी है ।

थोडी फशुत—ववशेषण, अननश्चचत सॊख्मावाचक, स्त्रीलरॊग, कभववाचक, ववशेष्म–जानकायी।

ववशेषण सम्फन्धी भहत्त्वऩण


ू व अनद
ु ेश

 हहन्दी भें ववशेषण शब्दों के आगे ववबश्क्त चचह्न नहीॊ रगते; जैसे-वीय भनुष्म, अच्छे घय का।
 ववशेषण के लरॊग वचन औय कायक वही होते हैं जो ‘वलळेष्म’ के; जैसे-अच्छे ववद्माथी, अच्छा
ववद्माथी आकायान्त ववशेषण स्त्रीलरॊग भें ईकायान्त हो जाते हैं, जैसे-
कारा घोडा, कारी घोडी, अच्छा रडका, अच्छी रडकी आहद।
 ऩुश्ल्रग आकायान्त ववशेषण का अश्न्तभ ‘आ’ कताव कायक एकवचन को छोडकय अन्म सफ कायकों भें
‘ए’ हो जाता है ; जैसे-अच्छे रडके को; फुये रोगों से।
 ववशेषणों की ववशेषता फताने वारा शब्द बी ववशेषण होता है ; जैसे-थोडा पटा कऩडा, फहुत सुन्दय
घय आहद।
 सॊस्कृत ववशेषणों के रूऩ हहन्दी भें ववशेष्म के लरॊग के अनुसाय कबी नहीॊ फदरते औय कबी फदर
जाते हैं; जैसे-सुन्दय कामा, सुशीर रडकी आहद।
कायक औय उसके प्रकाय

ऩरयबाऴा :

 सॊऻा मा सववनाभ का वाक्म के अन्म ऩदों (ववशेषत् कक्रमा) से जो सॊफॊध होता है , उसे कायक (Case)
कहते हैं।
 कक्रमा के साथ श्जसका सीधा सम्फन्ध हो, उसे कायक (Case) कहते हैं।
जैसे-याभ ने यावण को वाण से भाया।

इस वाक्म भें याभ कक्रमा (भाया) का कताव है ; यावण इस भायण कक्रमा का कभव है ; वाण से मह कक्रमा सम्ऩन्न
की गई है , अत् वाण कक्रमा का साधन होने से कयण है ।

इन कायकों के नाभ एलॊ उनके कायक (Case) चिह्नों का वललयण इव प्रकाय शै -

क्र.सॊ. ववबश्क्त कायक (Case ) का नाभ कायक( Case ) चचन्ह

1 प्रथभा कताव (Nominative) ने

2 द्ववतीमा कभव (Objective) को

3 तत
ृ ीमा कयण (Instrumental) से, के द्वाया

4 चतुथी सम्प्रदान (Dative) को, के लरए

5 ऩॊचभी अऩादान (Ablative) से

6 षष्ठी सम्फन्ध (Genitive) का, के, की, या, ये , यी, ना, ने, नी

7 सप्तभी अचधकयण (Locative) भें , ऩय

8 सम्फोधन सम्फोधन (Abdressive) हे ! ऐ ! अजी ! ओ ! अहो ! अये ! इत्माहद।


कायक ऩरयिम
1. कताघ कायक: लाक्म भें श्जव ळब्द द्लाया काभ कयने का फोध शोता शै उवे कताव कशते शैं; जैवे-
‘याभ ने चमाभ को भाया’-इव लाक्म भें ‘याभ’ कताघ शै , क्मोंकक ‘भाया’ किमा कयने लारा ‘याभ’ शी शै । इवका
ऩयवगघ ‘ने’ शै । ‘ने’ के प्रमोग के कुछ ननमभ ननम्नलरणखत शैं –

 ‘ने’ का प्रमोग केवर नतमवक सॊऻाओॊ औय सववनाभ के फाद होता है ;जैसे—याभ ने, रडकों ने, भैंने,
तुभने, आऩने, उसने इत्माहद।
 ने’ का प्रमोग कताव के साथ तफ होता है जफ कक्रमा सकभवक तथा साभान्मबूत, आसन्नबूत, ऩूणब
व ूत
औय सॊहदनधबूत कारों भें कभववाच्म मा बाववाच्म हो; जैसे-
वाभान्मबूत फारक ने ऩुस्तक ऩढी।

आवन्नबूत फारक ने ऩुस्तक ऩढी है ।

ऩण
ू ब
घ त
ू फारक ने ऩस्
ु तक ऩढ री थी।

वॊहदग्धबत
ू फारक ने ऩुस्तक ऩढी होगी।

शे तश
ु े तभ
ु द्भत
ू फारक ने ऩुस्तक ऩढी होती तो उत्तय ठीक होता।

इस प्रकाय केलर ‘अऩूणब


घ त
ू ’ को छोडकय ळेऴ ऩाॉि बत
ू कारों भें ‘ने’ का प्रमोग शोता शै ।

 साभान्मत: अकभवक कक्रमा के साथ ‘ने का प्रमोग नहीॊ होता है । रेककन नहाना, छीॊकना, थक
ू ना,
खाॉसना आहद भें ‘ने’ का प्रमोग होता है ; जैसे-भैंने छीॊका। याभ ने थूका। आऩने नहामा। उसने खाॉसा
इत्माहद।
 जफ अकभवक कक्रमाएॉ सकभवक फनकय प्रमुक्त होती हैं, तफ ‘ने’ का प्रमोग होता है ; जैसे—
 उसने अच्छा गामा।
 आऩने अच्छा ककमा।
हशन्दी भें ‘ने’ का प्रमोग वुननश्चित शै रेककन उवका वलघत्र प्रमोग नशीॊ । शोता। इव वम्फन्ध भें उल्रेखनीम
फातें इव प्रकाय शैं-

 अकभवक कक्रमाओॊ के साथ भें ’ का प्रमोग नहीॊ होती है , जैसे-


 भोहन हॉसता है ।
 वह आएगा।
 चमाभ गमा।
 सकभवक कक्रमाओॊ के साथ बी कताव के साथ वतवभान औय कार भें ‘ने’ का प्रमोग नहीॊ होता है ; जैसे-
 याभ योटी खाएगी।
 भैं चाम ऩीता हूॉ।
 श्जन वाक्मों भें फकना, फोरना, बूरना, राना, रे जाना, चुकना आहद सहामक कक्रमाएॉ आती हैं उनभें
‘ने’ का प्रमोग नहीॊ होता है ; जैसे-
 भैं लरखना बूर गमा।
 भैं साइककर नहीॊ रामा।
 वह नहीॊ फोरा।
 वह ऩस्
ु तक ऩढ चुका।
2. कभघ कायक

वाक्म भें कक्रमा का प्रबाव मा पर श्जस शब्द ऩय ऩडता है उसे कभव कहते हैं; जैसे-
‘याभ ने चमाभ को भाया’ महाॉ कताव याभ है औय उसके भायने का पर चमाभ ऩय ऩडता है अत: ‘चमाभ’
‘कभघ’ है । महाॉ चमाभ के साथ कायक (Case ) चचह्न को का प्रमोग हुआ है । इसके प्रमोग के कुछ ननमभ
इस प्रकाय हैं-

 कभव कायक ‘को’ का प्रमोग चेतन मा सजीव कभव के साथ होता है ; जैसे-
 चमाभ ने गीता को ऩत्र लरखा।
 याभ ने चमाभ को ऩुस्तक दी।
 वऩता ने ऩुत्र को फुरामा।
 गुरु ने लशष्म को लशऺा दी।
 हदन, सभम औय नतचथ प्रकट कयने के लरए को’ का प्रमोग होता है ; जैसे-
 चमाभ सोभवाय को रखनऊ जाएगा।
 15 अगस्त को हदल्री चरेंगे।
 यवववाय को ववद्मारम फन्द यहे गा।
 जफ ववशेषण का प्रमोग सॊऻा के रूऩ भें कभव कायक की बाॉनत होता है , तफ उसके साथ को’ का
प्रमोग होता है ; जैसे-
 फयु ों को कोई नहीॊ चाहता।
 बूखों को बोजन कयाओ।
उल्रेखनीम-अिेतन मा ननजील कभघ के वाथ को का प्रमोग नशीॊ शोता ; जैवे-

 उसने खाना खामा।


 गोऩार ने कपल्भ दे खी।
 सीता घय गई।
 पूर भत तोडो।
3. कयण कायक:

कयण का अथव है -‘वाधन‘। सॊऻा का वह रूऩ श्जससे ककसी कक्रमा के सा फोध हो, उसे ‘कयण कायक‘ कहते हैं;
जैसे- ‘लळकायी ने ळेय को फन्दक
ू वे भाया।‘ इस वाक्म भें फन्दक
ू द्वाया शेय भायने का उल्रेख है
अतएव ‘फन्दक
ू ’ कयण कायक हुआ। कयण कायक के चचह्न हैं-वे, के द्लाया, द्लाया, के कायण, के वाथ, के
बफना, आहद। कयण कायक का प्रमोग ननम्नलरखखत श्स्थनतमों भें होता है -

 साधन के अथव भें कयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-


 भैंने गुरु जी वे प्रचन ऩूछा।
 उसने तरवाय वे शत्रु को भाय डारा।
 गोता तलू रका वे चचत्र फनाती है ।
 साधक के अथव भें बी कयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 उससे कोई अऩयाध नहीॊ हुआ।
 भुझसे मह सहन नहीॊ होता।
 बाववाचक सॊऻा से कक्रमा ववशेषण फनाते सभम कयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 नम्रता वे फात कयो।
 खुद वे कहता हूॉ।
 भूल्म मा बाव फताने के लरए कयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 आजकर आरू ककस बाव से बफक यहा है ।
 उत्ऩश्त्त सच
ू क अथव भें बी कयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 कोमरा खान वे ननकरता है ।
 गन्ने के यस वे चीनी फनाई जाती है ।
 रोब से ऺोब उत्ऩन्न होता है ।
 प्माय, भैत्री, फैय होने ऩय कयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 याभ को यावण वे शत्रुता थी।
 याभ का वववाह सीता के साथ हुआ।
4. वम्प्रदान कायक:

श्जसके लरए कुछ ककमा जाए मा श्जसको कुछ हदमा जाए इसका फोध कयाने वारे शब्द
को वम्प्रदान कायक कहते हैं; जैसे-‘उवने वलद्माथी को ऩुस्तक दी‘ वाक्म भें ववद्माथी सम्प्रदान है औय इसका
चचह्न ‘को‘ है ।

कभव औय सम्प्रदान कायक का ववबश्क्त चचह्न ‘को’ है , ऩयन्तु दोनों के अथों भें अन्तय है । वम्प्रदान का ‘को’
के लरए’ अव्मम के स्थान ऩय मा उसके अथव भें फुक्त होता है जफकक कभघ के ‘को’ का ‘के लरए’ अथव से कोई
सम्फन्ध नहीॊ है । जैसे-

कभघकायक वभप्रदान कायक

सुनीर अननर को भायता है । सुनीर अननर को रुऩए दे ता है ।

भाॉ ने फच्चों को खेरते दे खा। भाॉ ने फच्चे के लरए खखरौने खयीदे ।

उस रडके को फर
ु ामा। उसने रडके को लभठाइमाॉ दीॊ।
5. अऩादान कायक :

सॊऻा मा सववनाभ के श्जस रूऩ से दयू होने, ननकरने, डयने, यऺा कयने, ववद्मा सीखने, तुरना कयने का बाव
प्रकट होता है उसे अऩादान कायक कहते हैं। इसका चचह्न ‘वे‘ है ; जैसे-

 भैं अल्भोडा वे आमा हूॉ।  अॊककत भभता वे छोटा है ।


 भैं जोशी जी वे आशलु रवऩ सीखता हूॉ।  हहयन शेय वे डयता है ।
 आऩने भुझे हानन वे फचामा।
6. वम्फन्ध कायक:

सॊऻा मा सववनाभ के श्जस रूऩ से ककसी अन्म शब्द के साथ वम्फन्ध मा रगाल प्रतीत हो
उसे वम्फन्ध कायक कहते हैं। सम्फन्ध कायक भें ववबश्क्त सदै व रगाई जाती है । इसके प्रमोग के ननमभ
ननम्नलरखखत हैं-

 एक सॊऻा मा सववनाभ का, दस


ू यी सॊऻा मा सववनाभ से सम्फन्ध प्रदलशवत कयने के लरए सम्फन्ध
कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 अनीता सयु े श की फहन है ।  सयु े न्र वीये न्र का लभत्र है ।
 अननर अजम का बाई है ।
 स्वालभत्व मा अचधकाय प्रकट कयने के लरए सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 आऩ ककस की आऻा से आए हैं।  मह उभेश की करभ है ।
 नेताजी का रडका फदभाश है ।
 कतत्वृ व प्रकट कयने के लरए सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है । जैसे—
 प्रेभचन्द के उऩन्मास  भैचथरीशयण गुप्त का साकेत
 लशवानी की कहाननमाॉ  कफीयदास के दोहे इत्माहद।

 ऩरयभाण प्रकट कयने के लरए बी सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-ऩाॉच भीटय की ऩहाडी, चाय
ऩदों की कववता आहद।
 भोरबाल प्रकट कयने के लरए बी सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-दस रुऩए का प्माज, फीस
रुऩए के आरू, ऩचास हजाय की भोटय साइककर आहद।
 ननभाघण का वाधन प्रदलशवत कयने के लरए बी सम्फन्ध कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-ईंटों का भकान,
चभडे का जूता, सोने की अॊगूठी आहद।
 सववनाभ की श्स्थनत भें सम्फन्ध कायक का रूऩ ‘या’ ये ‘यी’ हो जाता है ; जैसे-भेयी ऩस्
ु तक, तम्
ु हाया ऩत्र,
भेये दोस्त आहद।
7. अचधकयण कायक

सॊऻा मा सववनाभ के श्जस रूऩ से कक्रमा का आधाय सचू चत होता है उसे अचधकयण कायक कहते हैं, इसके
ऩरयसगव ‘भें’ ‘ऩय’ हैं, अचधकयण कायक के प्रमोग के ननमभ ननम्नलरखखत हैं-

 स्थान, सभम, बीतय मा सीभा का फोध कयाने के लरए अचधकयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 उभेश रखनऊ भें ऩढता है ।  ठीक सभम ऩय आ जाना।
 ऩुस्तक भेज ऩय है ।  वह तीन हदन भें आएगा।
 उसके हाथ भें करभ है ।
 तुरना, भूल्म औय अन्तय का फोध कयाने के लरए अचधकयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 कभर सबी पूरों भें सुन्दयतभ ् है ।  कुछ साॊसद चाय कयोड भें बफक गए।
 मह करभ ऩाॉच रुऩए भें लभरता है ।  गयीफ औय अभीय भें फहुत अन्तय है ।

 ननधावयण औय ननलभत्त प्रकट कयने के लरए अचधकयण कायक का प्रमोग होता है ; जैसे-
 छोटी-सी फात ऩय भत रडो।  साया हदन ताश खेरने भें फीत गमा।
8. वम्फोधन कायक:

सॊऻा के श्जस रूऩ से ककसी को ऩुकायने, चेतावनी दे ने मा सम्फोचधत कयने का फोध होता है
उसे वम्फोधन कायक कहते हैं। सम्फोधन कायक की कोई ववबश्क्त नहीॊ होती है । इसे प्रकट कयने के
लरए ‘शे ’,’अये ‘,’अजी‘, ‘ये ‘ आहद शब्दों का प्रमोग होता है ; जैसे-

 शे याभ! यऺा कयो।  शे रडकों! खेरना फन्द कयो।


 अये भूख!घ सॉबर जा।
कयण औय अऩादान भें अन्तय : कयण औय अऩादान दोनों कायको भें ‘वे‘ चचह्न का प्रमोग होता है ककन्तु इन
दोनों भें भूरबूत अॊतय है । कयण किमा का वाधन मा उऩकयण है ।
कताव कामघ वम्ऩन्न कयने के लरए श्जव उऩकयण मा वाधन का प्रमोग कयता है , उसे कयण कहते हैं। \
जैसे- भैं करभ से लरखता हूॉ।

महाॉ करभ लरखने का उऩकयण है अत् करभ शब्द का प्रमोग कयण कायक भें हुआ है ।

अऩादान भें अऩाम (अरगाल) का बाव ननहहत है ।

जैसे-ऩेड से ऩत्ता चगया।

वाभान्मत् कायक (Case) ननम्न प्रकाय ऩशिाने जाते शैं –

कताव किमा को वम्ऩन्न कयने लारा।

कभव कक्रमा से प्रबाववत होने वारा

कयण कक्रमा का साधन मा उऩकयण

सम्प्रदान श्जसके लरए कोई कक्रमा सम्ऩन्न की जाम ।

अऩादान जहाॉ अरगाव हो वहाॉ ध्रुव मा श्स्थय भें अऩादान होता है ।

सॊफॊध जहाॉ दो ऩदों का ऩायस्ऩरयक सॊफॊध फतामा जाए।

अचधकयण जो कक्रमा के आधाय (स्थान, सभम, अवसय) आहद का फोध कयामे।

सम्फोधन ककसी को ऩक
ु ाय कय सम्फोचधत ककमा जाम

लाक्म भें कायक (Case) वॊफॊधी अनेक अळुविमाॊ शोती शैं। इनका ननयाकयण कयके
लाक्म को ळुि फनामा जाता शै । जैवे-

अशुि वाक्म शुि वाक्म

तेये को कशाॊ जाना शै ? तुझे कहाॉ जाना है ?


लश घोडे के ऊऩय फैठा शै । वह घोडे ऩय फैठा है ।

योगी वे दार खाई गई। योगी के द्वाया दार खाई गई।

भैं करभ के वाथ लरखता शूॊ। भैं करभ से लरखता हूॊ।

भुझे कशा गमा था। भुझसे कहा गमा था।

रडका लभठाई को योता शै । रडका लभठाई के लरए योता है ।

इव ककताफ के अन्दय फशुत कुछ शै । इस ककताफ भें फहुत कुछ है ।

भैंने आज ऩटना जाना शै । भुझे आज ऩटना जाना है ।

तेये को भेये वे क्मा रेना-दे ना ? तुझे भुझसे क्मा रेना-दे ना ?

उवे कश दो कक बाग जाम। उससे कह दो कक बाग जाम।

वीता वे जाकय के कश दे ना। सीता से जाकय कह दे ना ।

तुम्शाये वे कोई काभ नशीॊ शो वकता । तुभसे कोई काभ नहीॊ हो सकता ।

भैं ऩत्र लरखने को फैठा। भैं ऩत्र लरखने के लरए फैठा।

भैंने याभ को मश फात कश दी थी। भैंने याभसे मह फात कह दी थी।

इन दोनों घयों भें एक दीलाय शै। इन दोनों घयों के फीच एक दीवाय है ।


अव्मम औय उसके प्रकाय

अव्मम(Indeclinables) ऩरयबाषा :

ऐसे शब्द श्जनभें लरॊग, वचन, ऩुरुष, कायक आहद के कायण कोई ववकाय नहीॊ आता, अव्मम कहराते हैं।

मे शब्द सदै व अऩरयवनतवत, अववकायी एवॊ अव्मम यहते हैं।इनका भूर रूऩ श्स्थय यहता है , कबी फदरता नहीॊ।

अव्मम का शाश्ब्दक अथव है – ‘अ + व्मम’; जो व्मम न हो उसे अव्मम कहते हैं, इसे अववकायी शब्द बी
कहते हैं क्मोंकक इसभें ककसी प्रकाय का ववकाय नहीॊ हो सकता, मे सदै व सभान यहते हैं।

जैसे — आज, कफ, इधय, ककन्तु, ऩयन्त,ु क्मों, जफ, तफ, औय, अत्, इसलरए आहद ।

अव्मम के बेद : अव्मम के िाय बेद फताए गए शैं :

 कक्रमा ववशेषण (Adverb)  सभच्


ु चमफोधक, (Conjunction)
 सम्फन्धफोधक, (Post Position)  ववस्भमाहदफोधक (Interjection)

(1) किमा वलळेऴण :

जो शब्द कक्रमा की ववशेषता फतराते हैं, उन्हें कक्रमा ववशेषण कहा जाता है । कक्रमा ववशेषण को अवलकायी
वलळेऴण बी कहते हैं; जैसे – धीये िरो। वाक्म भें ‘धीये ’ शब्द ‘चरो कक्रमा की ववशेषता फतराता है अत् ‘धीये ’
शब्द कक्रमा ववशेषण है । इसके अनतरयक्त कक्रमा ववशेषण दस
ू ये कक्रमा ववशेषण की बी ववशेषता फताता है ;
जैसे — लश फशुत धीये िरता शै । इस वाक्म भें फहुत’ कक्रमा ववशेषण औय मह दस
ू ये कक्रमा ववशेषण ‘धीये ’ की
ववशेषता फतराता है ।

अथव के आधाय ऩय कक्रमा ववशेषण चाय प्रकाय के होते हैं :

 कारवाचक (Adverb of Time)  स्थानलािक (Adverb of Place)


 ऩरयभाणलािक (Adverb of  यीनतलािक (Adverb of Manner)
Quantity)
1. स्थानलािक (Adverb of Place) : श्जन शब्दों से कक्रमा भें स्थान सम्फन्धी ववशेषता प्रकट हो, उन्हें
स्थानवाचक कक्रमा ववशेषण कहते हैं;
श्स्थनतवाचक मशाॉ, लशाॉ, बीतय, फाशय।

हदशावाचक इधय, उधय, दाएॊ, फाएॊ।

2. कारलािक (Adverb of Time) : श्जन शब्दों से कक्रमा भें सभम सम्फन्धी ववशेषता प्रकट हो, उन्हें
कारवाचक कक्रमा ववशेषण कहते हैं;
सभमवाचक आज, कर, अबी, तुयन्त

अवचधवाचक यात बय, हदन बय, आजकर, ननत्म

फायॊ फायतावाचक हय फाय, कई फाय, प्रनतहदन

3. ऩरयभाणलािक (Adverb of Quantity) : श्जन शब्दों से कक्रमा का ऩरयभाण (नाऩ-तौर) सम्फन्धी


ववशेषता प्रकट होती है उन्हें ऩरयभाणवाचक कक्रमा ववशेषण कहते हैं;
अचधकताफोधक फशुत, खूफ, अत्मन्त, अनत

न्मूनताफोधक जया, थोडा, ककॊ चचत,् कुछ।

ऩमावश्प्तफोधक फस, मथेष्ट, कापी, ठीक

तुरनाफोधक कभ, अचधक, इतना, उतना

श्रेणीफोधक फायी-फायी, नतर-नतर, थोडा-थोडा

4. यीनतलािक (Adverb of manner): श्जन शब्दों से कक्रमा की यीनत सम्फन्धी ववशेषता प्रकट होती
है उन्हें यीनतवाचक कक्रमा ववशेषण कहते हैं। जैसे – ऐसे, वैसे, कैसे, धीये , अचानक, कदाचचत ्, अवचम,
इसलरए, तक, सा, तो, हाॉ, जी, मथासम्बव।
यीनतवाचक कक्रमा ववशेषणों की सॊख्मा फहुत फडी है । श्जन कक्रमा ववशेषणों का साभवेश दसये वगों भें नहीॊ
हो सकता, उनकी गणना इसी भें की जाती है । यीनतवाचक मा कक्रमा ववशेषण को ननम्नलरखखत बागों भें
फाॉटा जा सकता है –

प्रकाय ऐवे, कैवे, लैवे, भानों, अिानक, धीये -धीये स्लमॊ, ऩयस्ऩय, ” आऩव भें, मथाळश्क्त, पटापट, झटऩट, आऩ शी आऩ इत्माहद।

ननचचम नन:सन्दे ह, अवचम, फेशक, सही, सचभुच, जरूय, अरफत्ता, दयअसर, मथाथव भें , वस्तुत् इत्माहद

अननचचम कदाचचत,् शामद, सम्बव है , हो सकता है , प्राम् मथासम्बव इत्माहद।

स्वीकाय हाॉ, हाॉ जी, ठीक, सच आहद।

ननषेध न, नहीॊ, गरत, भत, झठ आहद।

कायण इसलरए, क्मों, काहे को आहद।

अवधायण तो, ही, बी, भात्र, बय, तक, आहद।

(2) वम्फन्धफोधक:

जो अव्मम ककसी सॊऻा के फाद आकय उस सॊऻा का सॊफॊध वाक्म के दस


ू ये शब्द से हदखाते हैं, उन्हें सॊफॊध
फोधक कहते हैं। जैसे –

1. वह हदन बय काभ कयता यहा।


2. भैं ववद्मारम तक गमा था।
3. भनुष्म ऩानी के बफना जीववत नहीॊ यह सकता।
सम्फन्धफोधक अव्ममों के कुछ औय उदाहयण ननम्नवत ् हैं –अऩेऺा, सभान, फाहय, बीतय, ऩूव,व ऩहरे, आगे,
ऩीछे , सॊग, सहहत, फदरे, सहाये , आसऩास, बयोसे, भात्र, ऩमवन्त, बय, तक, साभने ।
(3) वभुच्िमफोधक:
दो वाक्मों को ऩयस्ऩय जोडने वारे शब्द सभुच्चमफोधक अव्मम कहे जाते हैं। जैसे :

सूयज ननकरा औय ऩऺी फोरने रगे। महाॊ ‘औय सभुच्चमफोधक अव्मम है ।

सभच्
ु चमफोधक अव्मम भर
ू त् दो प्रकाय के होते हैं :

 वभानाचधकयण

 व्मचधकयण

(4) वलस्भमाहद फोधक:

श्जन अव्ममों से हषव, शोक, घण


ृ ा, आहद बाव व्मॊश्जत होते हैं तथा श्जनका सॊफॊध वाक्म के ककसी ऩद से
नहीॊ होता, उन्हें ववस्भमाहदफोधक अव्मम कहते हैं, जैसे –

हाम ! वह चर फसा ।।

इस अव्मम के ननम्न उऩबेद है :

हषवफोधक लाश, आश, धन्म, ळाफाळ

शोकफोधक हाम, आह, त्राहह-त्राहह

आचचमवफोधक ऐॊ, क्मा, ओहो, हैं

स्वीकायफोधक हाॉ, जी हाॉ, अच्छा, जी, ठीक।

अनुभोदनफोधक ठीक, अच्छा, हाॉ-हाॉ।

नतयस्कायफोधक नछ्, हट, चधक, दयू ।


सम्फोधनफोधक अये , ये , जी, हे , अहो

सश्न्ध

वश्न्ध(Joining)

 दो वणों मा ध्वननमों के समोंग से होने वारे ववकाय को सश्न्ध/Sandhi (Joining)कहते हैं। सश्न्ध कयते
सभम कबी-कबी एक अऺय भें , कबी-कबी दोनों अऺयों भें ऩरयवतवन होता है औय कबी-कबी दोनों अऺयों
के स्थान ऩय एक तीसया अऺय फन जाता है । इस सश्न्ध ऩिनत द्वाया बी शब्द की यचना होती है । सश्न्ध
भें ऩहरे शब्द के अॊनतभ वणव एवॊ दस
ू ये शब्द के आहद वणव का भेर होता है ।

उदाहयण : दे व + आरम = दे वारम

जगत ् + नाथ = जगन्नाथ सयु + इन्र = सयु े न्र

भन् + मोग = भनोमोग ववद्मा + आरम = ववद्मारम


 सश्न्ध के ननमभों द्वाया लभरे वणो को कपय भूर अवस्था भें रे आने को सश्न्ध-ववच्छे द कहते हैं।

उदाहयण : ऩयीऺाथी = ऩयीऺा + अथी

वागीश = वाक् + ईश अन्त्कयण = अन्त् + कयण

सश्न्ध के बेद :सश्न्ध के तीन बेद होते है -

(1) स्वय सश्न्ध (2) व्मॊजन सश्न्ध (3) ववसगव सश्न्ध ।


स्लय वश्न्ध :

स्वय के साथ स्वय का भेर होने ऩय जो ववकाय होता है , उसे स्वय सश्न्ध कहते हैं। स्वय सश्न्ध के ऩाॉच
बेद होते हैं :-

 दीघव सश्न्ध  ववृ ि सश्न्ध  अमादी सश्न्ध


 गण
ु सश्न्ध  मण ् सश्न्ध
1. दीघघ वश्न्ध :

ह्रस्व मा दीघव ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, के ऩचचात क्रभश् ह्रस्व मा दीघव ‘अ’, ‘इ’, ‘उ’, स्वय आएॉ तो दोनों को लभराकय
दीघव ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, हो जाता है ।

वश्न्ध उदाशयण

अ + अ = आ ऩुष्ऩ + अवरी = ऩुष्ऩावरी

आ + अ = आ भामा + अधीन = भामाधीन

अ + आ = आ हहभ + आरम = हहभारम

आ + आ = आ ववद्मा + आरम = ववद्मारम

इ + इ = ई कवव + इच्छा = कवीच्छा

ई + इ = ई भही + ईश = भहीन्र
इ + ई = ई हरय + ईश = हयीश

ई + ई = ई नदी + ईश = नदीश

उ + उ =ऊ सु + उश्क्त = सश्ू क्त

ऊ + उ =ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव

उ + ऊ =ऊ लसॊधु + ऊलभव = लसन्धभ


ू ी

ऊ + ऊ =ऊ बू + ऊध्वव = बध्
ू वव

ऋ + ऋ = ऋ भात ृ + ऋण = भातण

2. गण
ु वश्न्ध :

महद ‘अ’ औय ‘आ’ के फाद ‘इ’ मा ‘ई’, ‘उ’ मा ‘ऊ’ औय ‘ऋ’ स्वय आए तो दोनों के लभरने से क्रभश् ‘ए’, ‘ओ’
औय ‘अय्’ हो जाते है ।

वश्न्ध उदाशयण

अ + इ = ए उऩ + इन्र = उऩेन्र
आ + इ = ए भहा + इन्र = भहे न्र

अ + ई = ए गण + ईश = गणेश

आ + ई = ए यभा + ईश = यभेश

अ + उ = ओ चन्र + उदम = चन्रोदम

आ + उ = ओ भहा + उत्सव = भहोत्सव

अ + ऊ = ओ सभर
ु + ऊलभव = सभर
ु ोलभव

आ + ऊ = ओ गॊगा + ऊलभव = गॊगोलभव

अ + ऋ = अय् दे व + ऋवष = दे ववषव

आ + ऋ = अय् भहा + ऋवष = भहवषव

Trick – श्जन ळब्दों भें ए औय ओ की भात्रा आती शै उन वबी ळब्दों भें गुण वश्न्ध शोती शै ।

3. लवृ ि वश्न्ध :

‘अ’ मा ‘आ’ के फाद ‘ए’ मा ‘ऐ’ आए तो दोनों के भेर से ‘ऐ’ हो जाता है तथा ‘अ’ औय ‘आ’ के ऩचचात ‘ओ’
आए तो दोनों के भेर से ‘औ’ हो जाता है ।
वश्न्ध उदाशयण

अ + ए = ऐ ऩुत्र + एषणा = ऩुत्रैषणा

आ + ए = ऐ सदा + एव = सदै व

अ + ऐ = ऐ भत + ऐक्म = भतैक्म

आ + ऐ = ऐ भहा + ऐचवमव = भहे चवमव

अ + ओ = औ जर + ओकस = जरौकस

आ + ओ = औ भहा + औदामव = भहौदामव

अ + औ = औ ऩयभ + औषध = ऩयभौषध

आ + औ = औ भहा + औषचध = भहौषचध

Trick – श्जन ळब्दों भें ऐ औय औ की भात्रा आती शै उन वबी ळब्दों भें लवृ ि वश्न्ध शोती शै ।

4. मण ् वश्न्ध :

महद ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ औय ‘ऋ’ के फाद लबन्न स्वय आए तो ‘इ’ औए ‘ई’ का ‘म’, ‘उ’ औय ‘ऊ’ का ‘व’ तथा ‘ऋ’ का
‘य्’ हो जाता है ।
वश्न्ध उदाशयण

इ + अ = म् अनत + अल्ऩ = अत्मल्ऩ

ई + अ = म् दे वी + अऩवण = दे व्मऩवण

उ + अ = व् सु + आगत = स्वागत

ऊ + आ = व् वधू + आगभन = वध्वागभन

ऋ + अ = य् वऩत ृ + आऻा = वऩत्राऻा

रृ + आ = र ् र ृ + आकृनत = राकृनत

5. अमादी सश्न्ध :

महद ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ स्वयों का भेर दस


ू ये स्वयों से हो तो ‘ए’ का ‘अम’, ‘ऐ’ का ‘आम’, ‘ओ’ का ‘अव ्’, तथा ‘औ’
का ‘आव ्’ के रूऩ भें ऩरयवतवन हो जाता है ।

वश्न्ध उदाशयण

ए + अ = अम ् ने + अमन = नमन

ऐ + अ = आम ् नै + अक = नामक
ओ + अ = अव ् ऩो + अन = ऩवन

औ + अ = आव ् ऩौ + अक = ऩावक

व्मॊजन सश्न्ध :

व्मॊजन के साथ व्मॊजन मा स्वय का भेर होने से जो ववकाय होता है , उसे व्मॊजन सश्न्ध कहते हैं। व्मॊजन
सश्न्ध के प्रभुख ननमभ इस प्रकाय हैं :-

1. महद स्ऩळघ व्मॊजनों के प्रथभ अषय अथाघत ् क् , ि ्, ट्, त ्, ऩ ्, के आगे कोई स्लय अथला ककवी लगघ का
तीवया मा िौथा लगघ अथला म, य, र, ल आए तो क् , ि ्, ट्, त ्, ऩ ्, के स्थान ऩय उवी लगघ का तीवया अषय
अथाघत ् क के स्थान ऩय ग, ि के स्थान ऩय ज, त के स्थान ऩय ड, त के स्थान ऩय ड औय ऩ के स्थान
ऩय ‘फ’ शो जाता शै ।

हदक् + अम्फय = हदगम्फय षट् + आनन = षडानन उत ् + घाटन = उद्घाटन

वाक् + ईश = वागीश सत ् + आचाय = सदाचाय तत ् + रूऩ = तरऩ


अच ् + अन्त = अजन्त सऩ
ु ् + सन्त = सफ
ु न्त

2. महद स्ऩळघ व्मॊजनों के प्रथभ अषय अथाघत ् क् , ि ्, ट्, त ्, ऩ ् के आगे कोई अनुनालवक व्मॊजन आए तो
उवके स्थान ऩय उवी का ऩाॉिलाॉ अषय शो जाता शै ।

वाक् + भम = वाड्भम उत ् + भत्त = उन्भत्त

षट + भास = षण्भास अम + भम = अम्भम

3. जफ ककवी ह्रस्ल मा दीघघ स्लय के आगे छ् आता शैं तो छ् के ऩशरे ि ् फढ़ जाता शै ।


ऩयी + छे द = ऩरयच्छे द रक्ष्भी + छामा = ऩद + छे द = ऩदच्छे द
रक्ष्भीच्छामा
आ + छादन = आच्छादन गह
ृ + नछर = गह
ृ श्च्छर

4. महद भ ् के आगे कोई स्ऩळघ व्मॊजन आए तो भ ् के स्थान ऩय उवी लगघ का ऩाॉिलाॉ लणघ शो जाता शै ।

शभ ् + कय = शॊकय घभ ् + टा = घण्टा स्वमभ ् + बू = स्वमम्बू

सभ ् + चम = सञ्जम सभ ् + तोष = सन्तोष

5. महद भ के आगे कोई अन्तस्थ मा ऊष्भ व्मॊजन आए अथाघत ् म ्, य्, र ्, ल ्, ळ ्, ऴ ्, व ्, ह् आए तो ‘भ’


अनुस्लाय भें फादर जाता शै ।

सभ ् + साय = सॊसाय स्वमॊ + वय = स्वमॊवय

सभ ् + मोग = सॊमोग सभ ् + यऺा = सॊयऺा

6. महद त ् को द् के आगे ज ् मा झ आए तो उवका ‘ज ्’ शो जाता शै ।

उत ् + ज्जवर = उज्जज्जवर ववऩद् + जार = ववऩज्जजार

सत ् + जन = सज्जजन सत ् + जानत = सज्जजानत

7. महद त ्, द् के आगे ळ ् आए तो त ्, द् का ‘ि ्’ औय ळ ् का ‘छ्’ शो जाता शै । महद त ्, द् के आगे अ आए


तो त ् का ‘द्’ आय श का ‘ध ्’ शो जाता शै ।

सत ् + चचत = सश्च्चत उत ् + हाय = उिाय

तत ् + शयीय = तच्छशयीय तद् + हहत = तवित

8. महद ि ् मा ज ् के फाद न ् आए तो न ् के स्थान ऩय ‘स’ मा ञ ् शो जाता शै ।

मज ् + न = मऻ माच ् + न = माञ्जा
9. महद अ, आ, को छोडकय ककव स्लय के आगे व ् आता शै तो फशुधा व ् के स्थान ऩय ऴ ् शो जाता शै ।

अबी + सेक = अलबषेक वव + सभ = ववषभ नन + सेध = ननषेध सु + सप्ु त = सष


ु प्ु त

10. ऴ ् के ऩचिात त ् मा थ ् आने ऩय उवके स्थान ऩय िभळ् ट् औय ठ् शो जाता शै ।

आकृष + त = आकृष्ट ऩष
ृ + थ = ऩष्ृ ठ

तष
ु + त = तष्ु ट षष ् + थ = षष्ठ

11. महद ऋ, य मा ऴ के आगे न ् आए औय फीि भें िाशे स्लय का लगघ ऩ लगघ, अनुस्लाय अथला म, श आए
तो न के स्थान ऩय ण शो जाता शै ।

बय + अन = बयण याभ + अमन = याभामण ऋ + न = ऋण

बूष + अन = बूषण ऩरय + भान = ऩरयभाण

वलवगघ वश्न्ध : वलवगों का प्रमोग वॊस्कृत को छोडकय वॊवाय की ककवी बी बाऴा भें नशीॊ शोता
शै । हशन्दी भें बी वलवगों का प्रमोग नशीॊ के फयाफय शोता शै । कुछ इने-चगने वलवगघमुक्त ळब्द हशन्दी भें
प्रमुक्त शोते शैं। जैवे – अत्, ऩुन्, प्राम्, ळनै् ळनै् आहद। हशन्दी भें भन्, तेज्, आमु्, शरय्, के स्थान ऩय
भन, तेज, आमु, शरय ळब्द िरते शैं, इवलरए मशाॉ वलवगघ वश्न्ध का प्रचन शी नशीॊ उठता। कपय बी हशन्दी ऩय
वॊस्कृत का वफवे अचधक प्रबाल शै । वॊस्कृत के अचधकाॊळ वलचध ननऴेध हशन्दी भें प्रिलरत शै । वलवगघ वश्न्ध
के सान के आबाल भें शभ लतघनी की अळवु िमों वे भक्
ु त नशीॊ शो वकते, अत् इवका सान शोना आलचमक
शै ।

ववसगव के साथ स्वय मा व्मॊजन के सॊमोग से जो ववकाय हप्ता है , उसे ववसगव सश्न्ध कहते है । इसके
ऩयभुख ननमभ ननम्नलरखखत हैं :–

1. महद वलवगघ के आगे ळ, ऴ, व आए तो लश िभळ् ळ ्, ऴ ्, व ् भें फदर जाता शै ।


नन् + शॊक = ननचशॊक, द्ु + शासन = दचु शासन, नन् + सॊग = ननस्सॊग, नन् + शब्द = ननचशब्द, नन् +
सन्दे ह = ननस्सन्दे ह, नन् + स्वाथव = ननस्स्वाथव

2. महद वलवगघ वे ऩशरे इ मा उ शो औय फाद भें य आए तो वलवगघ का रोऩ शो जाएगा औय इ तथा उ


दीघघ ई, ऊ भें फादर जाएॉगे। नन् + यव = नीयव, नन् + योग = ननयोग, नन् + यस = नीयस

3. महद वलवगघ के फाद ि, छ, ट, ठ, तथा त, ठ आए तो वलवगघ िभळ् ळ ्, ऴ ्, व ्, भें फदर जाते शै ।

नन् + ताय = ननस्ताय, द्ु + चरयत्र = दचु चरयत्र, नन् + छर = ननचछर, धन्ु + टॊ काय = धनष्ु टॊ काय, द्ु +
तय = दस्
ु तय, नन् + चम = ननचचम

4. वलवगघ के फाद क, ख, ऩ, प, यशने ऩय वलवगघ भें कोई वलकाय नशीॊ शोता।

प्रात् + कार = प्रात्कार, ऩम् + ऩान = ऩम्ऩान, अन्त् + कयण = अन्त्कयण

5. महद वलवगघ वे ऩशरे अ मा आ को छोडकय कोई स्लय शो औय फाद भें कोई लगघ के तत
ृ ीम, ितुथघ औय
ऩॊिभ लणघ अथला म, य, र, ल, भें वे कोई लणघ शो तो वलवगघ य भें फदर जाता शै ।

नन् + धन = ननधवन, द्ु + ननवाय = दनु नववाय, नन् + गुण = ननगुण


व , द्ु + फोध = दफ
ु ोध , नन् + आधाय
= ननयाधाय, नन् + झय = ननझवय

6. महद वलवगघ वे ऩशरे अ, आ को छोडकय कोई अन्म स्लय आए औय फाद भें कोई बी स्लय आए तो बी
वलवगघ य भें फदर जाता शैं।

नन् + आशा = ननयाशा, नन् + ईह = ननयीह, नन् + उऩाम = ननरुऩाम, नन् + अथवक = ननयथवक

7. महद वलवगघ वे ऩशरे अ आए औय ब्फाड भें म, य, र, ल, मा श आए तो वलवगघ का रोऩ शो जाता शै तथा


अ ‘ओ’ भें फदर जाता शै ।

भन् + ववकाय = भनोववकाय, भन् + यथ = भनोयथ, ऩयु ् + हहत = ऩयु ोहहत, भन् + यभ = भनोयभ
8. महद वलवगघ वे ऩशरे इ मा उ आए औय फाद भें क, ख, ऩ, प भें वे कोई लणघ आए तो वलवगघ ऴ भें
फदरजता शै ।

नन् + कभव = ननष्कभव, नन् + काभ = ननष्काभ, नन् + करुण = ननष्करुण, नन् + ऩाऩ = ननष्ऩाऩ, नन् +
कऩट = ननष्कऩट, नन् + पर = ननष्पर

सभास (Compound)

ऩरयबाऴा :सभास ( Compound ) का ळाश्ब्दक अथघ शै ‘सॊऺेऩ’ । वभाव प्रकिमा भें ळब्दों का

वॊक्षषप्तीकयण ककमा जाता शै ।


दो अथवा दो से अचधक शब्दों से लभर कय फन हुए नए साथवक शब्द को वभाव कहते हैं।

वभस्त–ऩद /वाभालवक ऩद : सभास के ननमभों वे फना ळब्द सभस्त–ऩद मा साभालसक शब्द कशराता शै ।

वभाव–वलग्रश :

सभस्त ऩद के सबी ऩदों को अरग-अरग ककए जाने की प्रकक्रमा वभाव–वलग्रश कहराती है ; जैसे- ‘नीर
कभर’ का ववग्रह ‘नीरा है जो कभर’ तथा ‘चौयाहा’ का ववग्रह है - चाय याहों का सभूह ।

वभाव यचना भें प्राम् दो ऩद होते हैं। ऩहरे को ऩूवऩ


व द औय दस
ू ये को उत्तयऩद कहते हैं; जैसे- ‘याजऩुत्र’ भें
ऩूवऩ
व द ‘याज’ है औय उत्तयऩद ‘ऩुत्र’ है । वभाव प्रकक्रमा भें ऩदों के फीच की ववबश्क्तमाॉ रुप्त हो जाती हैं,
जैसे—याजा का | ऩुत्र–याजऩुत्र । महाॉ ‘का’ ववबश्क्त रुप्त हो गई है ।

वभाव के बेद-वभाव के छश भख्


ु म बेद शैं :

1. अव्ममीबाव सभास 3. कभवधायम सभास 5. द्वॊद्व सभास


2. तत्ऩुरुष सभास 4. द्ववगु सभास 6. फहुव्रीहह सभास
ऩदों की प्रधानता के आधाय ऩय लगीकयण –

ऩूवऩ
व द प्रधान – अव्ममीबाव
उत्तयऩद प्रधान – तत्ऩुरुष, कभवधायम व द्ववगु
दोनों ऩद प्रधान – द्वॊद्व
दोनों ऩद अप्रधान- फहुव्रीहह (इसभें कोई तीसया अथव प्रधान होता है )

1. अव्ममीबाल वभाव : श्जस सभास का ऩहरा ऩद (ऩूवऩ


व द) अव्मम तथा प्रधान हो, उसे अव्ममीबाव
सभास कहते है , जैसे-

ऩशिान : ऩशरा ऩद अन,ु आ, प्रनत, बय, मथा, मालत, शय आहद शोता शै ।

ऩूलऩ
घ द-अव्मम + उत्तयऩद = वभस्त-ऩद वलग्रश

प्रनत + हदन = प्रनतहदन प्रत्मेक हदन

आ + जन्भ = आजन्भ जन्भ से रेकय

मथा + सॊबव = मथासॊबव जैसा सॊबव हो

अनु + रूऩ = अनुरूऩ रूऩ के मोनम

बय + ऩेट = बयऩेट ऩेट बय के

प्रनत + कूर = प्रनतकूर इच्छा के ववरुि


हाथ + हाथ = हाथों-हाथ हाथ ही हाथ भें

2. तत्ऩुरुऴ वभाव : श्जस सभास भें फाद का अथवा उत्तयऩद प्रधान होता है तथा दोनों ऩदों के फीच
का कायक-चचह्न रुप्त हो जाता है , उसे तत्ऩुरुष सभास कहते हैं, जैसे –

याजा का कुभाय = याजकुभाय, धभव का ग्रॊथ = धभवग्रॊथ, यचना को कयने वारा = यचनाकाय

तत्ऩरु
ु ष सभास के बेद : ववबश्क्तमों के नाभों के अन्दय छह बेद हैं

(i) कभघ तत्ऩुरुऴ (द्वलतीमा तत्ऩरु


ु ऴ) :

इसभें कभव कायक की ववबश्क्त ‘को’ का रोऩ हो जाता है ; जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

गगन को चभ
ू ने वारा गगनचॊफ
ु ी

मश को प्राप्त मशप्राप्त

चचडडमों को भायने वारा चचडीभाय

ग्राभ को गमा हुआ ग्राभगत

यथ को चराने वारा यथचारक

जेफ को कतयने वारा जेफकतया


(ii) कयण तत्ऩुरुऴ (तत
ृ ीमा तत्ऩुरुऴ) :

इसभें कयण कायक की ववबश्क्त ‘से’, ‘के द्वाया’ का रोऩ हो जाता है , जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

करुणा से ऩूणव करुणाऩूणव

बम से आकुर बमाकुर

ये खा से अॊककत ये खाॊककत

शोक से ग्रस्त शोकग्रस्त

भद से अॊधा भदाॊध

भन से चाहा भनचाहा

ऩद से दलरत ऩददलरत

सयू द्वाया यचचत सयू यचचत

(iii) वॊप्रदान तत्ऩरु


ु ऴ (ितुथी तत्ऩुरुऴ) :

इसभें सॊप्रदान कायक की ववबश्क्त ‘के लरए’ रप्ु त हो जाती है ; जैसे –


वलग्रश वभस्त-ऩद

प्रमोग के लरए शारा प्रमोगशारा

स्नान के लरए घय स्नानघय

मऻ के लरए शारा मऻशारा

गौ के लरए शारा गौशारा

दे श के लरए बश्क्त दे शबश्क्त

डाक के लरए गाडी डाकगाडी

ऩयीऺा के लरए बवन ऩयीऺा बवन

हाथ के लरए कडी हथकडी

(iv) अऩादान तत्ऩुरुऴ (ऩॊिभी तत्ऩुरुऴ) :

इसभें अऩादान की ववबश्क्त ‘से’ (अरग होने का बाव) रप्ु त हो जाती है ; जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

धन से हीन धनहीन
ऩथ से भ्रष्ट ऩथभ्रष्ट

ऋण से भुक्त ऋणभुक्त

ऩद से च्मुत ऩदच्मुत

गण
ु से हीन गण
ु हीन

दे श से ननकारा दे शननकारा

ऩाऩ से भुक्त ऩाऩभुक्त

जर से हीन जरहीन

(v) वॊफॊध तत्ऩुरुऴ (ऴष्ठी तत्ऩुरुऴ) :

इसभें सॊफॊधकायक की ववबश्क्त ‘का’, ‘के’, ‘की’ रुप्त हो जाती है ; जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

याजा का ऩुत्र याजऩुत्र

दे श की यऺा दे शयऺा

याजा की आऻा याजाऻा


लशव का आरम लशवारम

ऩय के अधीन ऩयाधीन

गह
ृ का स्वाभी गह
ृ स्वाभी

याजा का कुभाय याजकुभाय

ववद्मा का सागय ववद्मासागय

(vi) अचधकयण तत्ऩरु


ु ऴ (वप्तभी तत्ऩरु
ु ऴ) :

इसभें अचधकयण कायक की ववबश्क्त ‘भें’, ‘ऩय’ रुप्त हो जाती है ; जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

शोक भें भनन शोकभनन

रोक भें वप्रम रोकवप्रम

ऩुरुषों भें उत्तभ ऩुरुषोत्तभ

धभव भें वीय धभववीय

आऩ ऩय फीती आऩफीती
करा भें श्रेष्ठ कराश्रेष्ठ

गह
ृ भें प्रवेश गह
ृ प्रवेश

आनॊद भें भनन आनॊदभनन

3. कभघधायम वभाव :श्जस सभस्तऩद का उत्तयऩद प्रधान हो तथा ऩूवऩव द व उत्तयऩद भें -
ववशेष्म सॊफॊध हो-उऩभेम अथवा ववशेषण-उऩभान, कभवधायम सभास कहराता है ; जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

कभर के सभान चयण चयणकभर

कनक की-सी रता कनकरता

कभर के सभान नमन कभरनमन

प्राणों के सभान वप्रम प्राणवप्रम

चॊर के सभान भख
ु चॊरभख

भग
ृ के सभान नमन भग
ृ नमन
दे ह रूऩी रता दे हरता

क्रोध रूऩी अश्नन क्रोधाश्नन

रार है जो भखण रारभखण

नीरा है जो कॊठ नीरकॊठ

भहान है जो ऩुरुष भहाऩुरुष

भहान है जो दे व भहादे व

आधा है जो भया अधभया

ऩयभ है जो आनॊद ऩयभानॊद

4. द्वलगु वभाव :श्जस सभस्त-ऩद का ऩूवऩ


व द सॊख्मावाचक ववशेषण हो, वह द्ववगु सभास कहराता है ।
इसभें सभह
ू मा सभाहाय का ऻान होता है ; जैसे –

वलग्रश वभस्त-ऩद

सात लसॊधओ
ु ॊ का सभह
ू सप्तलसॊधु

दो ऩहयों का सभूह दोऩहय


तीनों रोकों का सभाहाय बत्ररोक

चाय याहों का सभूह चौयाहा

नौ याबत्रमों का सभूह नवयात्र

सात ऋवषमों का सभह


ू सप्तऋवष/सप्तवषव

ऩाॉच भहढमों का सभूह ऩॊचभढी

सात हदनों का सभूह सप्ताह

तीनों कोणों का सभाहाय बत्रकोण

तीन यॊ गों का सभूह नतयॊ गा

5. द्लॊद्ल वभाव :श्जस सभस्त-ऩद के दोनों ऩद प्रधान हों तथा ववग्रह कयने ऩय ‘औय’, ‘अथवा’, ‘मा’,
‘एवॊ’ रगता हो वह द्वॊद्व सभास कहराता है ; जैसे –

ऩशिान : दोनों ऩदों के फीि प्राम् मोजक चिह्न ( Hyphen) (-) का प्रमोग

वलग्रश वभस्त-ऩद

नदी औय नारे नदी-नारे

ऩाऩ औय ऩण्
ु म ऩाऩ-ऩण्
ु म
सुख औय द्ु ख सुख-द्ु ख

गुण औय दोष गुण-दोष

दे श औय ववदे श दे श-ववदे श

ऊॉच मा नीच ऊॉच-नीच

आगे औय ऩीछे आगे-ऩीछे

याजा औय प्रजा याजा-प्रजा

नय औय नायी नय-नायी

खया मा खोटा खया-खोटा

याधा औय कृष्ण याधा-कृष्ण

ठॊ डा मा गयभ ठॊ डा-गयभ

छर औय कऩट छर-कऩट

अऩना औय ऩयामा अऩना-ऩयामा


6. फशुव्रीहश वभाव : श्जस सभस्त-ऩद भें कोई ऩद प्रधान नहीॊ होता, दोनों ऩद लभर कय ककसी तीसये
ऩद की ओय सॊकेत कयते हैं, उसभें फहुव्रीहह सभास होता है , जैसे-‘नीरकॊठ’, नीरा है कॊठ श्जसका
अथावत ् लशव । महाॉ ऩय दोनों ऩदों ने लभर कय एक तीसये ऩद ‘लशव’ का सॊकेत ककमा, इसलरए मह
फहुव्रीहह सभास है :

वभस्त-ऩद वलग्रश

रॊफोदय रॊफा है उदय श्जसका (गणेश)

दशानन दस हैं आनन श्जसके (यावण)

चक्रऩाखण चक्र है ऩाखण भें श्जसके (ववष्णु)

भहावीय भहान वीय है जो (हनुभान)

चतब
ु ज
ुव चाय हैं बज
ु ाएॉ श्जसकी (ववष्ण)ु

प्रधानभॊत्री भॊबत्रमों भें प्रधान है जो (प्रधानभॊत्री)

ऩॊकज ऩॊक भें ऩैदा हो जो (कभर)

अनहोनी न होने वारी घटना (कोई ववशेष घटना)

चगरयधय चगरय को धायण कयने वारा है जो (कृष्ण)


ऩीताॊफय ऩीत है अॊफय श्जसका (कृष्ण)

ननशाचय ननशा भें ववचयण कयने वारा (याऺस)

चौरडी चाय हैं रडडमाॉ श्जसभें (भारा)

बत्ररोचन बत्ररोचन तीन हैं रोचन श्जसके (लशव)

चॊरभौलर चॊर है भौलर ऩय श्जसके (लशव)

ववषधय ववष को धायण कयने वारा (सऩव)

भग
ृ ें र भग
ृ ें र भग
ृ ों का इॊर (लसॊह)

घनचमाभ घन के सभान चमाभ है जो (कृष्ण)

भत्ृ मॊज
ु म भत्ृ मु को जीतने वारा (शॊकय)

कभघधायम औय फशुव्रीहश वभाव भें अॊतय

इन दोनों सभासों भें अॊतय सभझने के लरए इनके ववग्रह ऩय ध्मान दे ना चाहहए। कभवधायम सभास भें एक
ऩद ववशेष मा उऩभान होता है औय दस
ू या ऩद हदशेष्म मा उऩभेम होता है ; जैसे –

‘नीरगगन’ भें ‘नीर’ ववशेषण है तथा ‘गगन’ ववशेष्म है । इसी तयह ‘चयणकभर’ भें ‘चयण’ उऩभेम है औय
‘कभर’ उऩनाभ है । अत् मे दोनों उदाहयण कभवधायम सभास के हैं।
फहुव्रीहह सभास भें सभस्त ऩद ही ककसी सॊऻा के ववशेष का कामव कयता है , जैसे – ‘चक्रधय’ चक्र को धायण
कयता है जो अथावत ् ‘श्रीकृष्ण’ ।

द्वलगु औय फशुव्रीहश वभाव भें अॊतय

द्ववगु सभास का ऩहरा ऩद सॊख्मावाचक ववशेषण होता है औय दस


ू या ऩद ववशेष्म होता है जफकक फहुव्रीहह
सभास भें सभस्त ऩद ही ववशेषण का कामव कयता है , जैसे –

चतब
ु ज
ुव – चाय बज
ु ाओॊ का सभूह द्ववगु सभास ।

चतब
ु ज
ुव – चाय हैं बुजाएॉ श्जसकी अथावत ् ववष्णु – फहुव्रीहह सभास

ऩॊचवटी – ऩाॉच वटों का सभाहाय द्ववगु सभास ।

ऩचवटी – ऩाॉच वटों से नघया एक ननश्चचत स्थर अथावत ् दॊ डकायण्म भें श्स्थत वह स्थान जहाॉ वनवासी
याभ ने सीता औय रक्ष्भण के साथ ननवास ककमा – फहुव्रीहह सभास

दशानन ् – दस आननों का सभूह द्ववगु सभास ।

दशानन – दस आन हैं श्जसके अथावत ् यावण – फहुव्रीहह सभास

द्वलगु औय कभघधायम भें अॊतय

(i) द्ववगु का ऩहरा ऩद हभेशा सॊख्मावाचक ववशेषण होता है । जो दस


ू ये ऩद की चगनती फताता है जफकक
कभवधायम का एक ऩद ववशेषण होने ऩय बी सॊख्मावाचक कबी नहीॊ होता है ।

(ii) द्ववगु का ऩहरा ऩद ही ववशेषण फन कय प्रमोग भें आता है जफकक कभवधायम भें कोई बी ऩद दस
ू ये
ऩद का ववशेषण हो सकता है , जैसे –

नवयर – नौ यनों का सभूह – द्ववगु सभास


चतुवण
व व – चाय वषों का सभूह – द्ववगु सभास

ऩरु
ु षोत्तभ – ऩरु
ु षों भें जो है उत्तभ – कभवधायम सभास

यक्तोत्ऩर – यक्त है जो उत्ऩर – कभवधायम सभास

अरॊकाय की ऩरयबाषा, बेद

अरॊकाय की ऩरयबाऴा

 अरॊकाय शब्द का शाश्ब्दक अथव होता है ‘आबष


ू ण’ मानी गहने, ककन्तु शब्द ननभावण के आधाय ऩय
अरॊकाय शब्द ‘अरभ ्’ औय ‘काय’ दो शब्दों के मोग से फना है । ‘अरभ ्’ का अथव है ‘शोबा’ तथा ‘काय’
का अथव हैं ‘कयने वारा’। अथावत ् काव्म की शोबा फढाने वारे तथा उसके शब्दों एवॊ अथों की
सुन्दयता भें ववृ ि कयके चभत्काय उत्ऩन्न कयने वारे कायकों को अरॊकाय (Alankar) कहते हैं।

अरॊकायों के बेद :भुख्म रूऩ से दो औय सॊस्कृत बाषा भें तीन है ।

1. ळब्दारॊकाय 2. अथाघरॊकाय 3. उबमारॊकाय


1. ळब्दारॊकाय – जहाॉ ऩय साहहत्म भें कववता के भाध्मभ से वणों वशब्दो का सॊग्रह चभत्काय उत्ऩन्न
कयता है वहाॉ शब्दारॊकाय होता है ।

इवके ननम्न बेद शोते शै ।

1. अनप्र
ु ाव अॊरकाय / Anupras Alankar- जहाॉ ऩय कववता भें ककसी एक वणव की फाय-फाय आवनृ त
द्वाया चभत्काय उत्ऩन्न होता है । वहाॉ अनुप्रास अरॊकाय होता है ।
जैवे –
 चारू चन्र की चॊचर ककयणें, खेर यही है जर-थर भें।
स्वच्छ चाॉदनी बफछी हुई है , अवनी औय अम्फय तर भें।।
‘च’ वणव की आवश्ृ त्त
 ऩावस ऋतु बी ऩववत प्रदे ष, ऩर-ऩर ऩरयवनतवत प्रकृनत वेष।।
‘ऩ’ वणव की आवश्ृ त्त’
 बगवान बक्तों की बमॊकय बूरय बीनत बगाइमे।
‘ब’ वणव की आवश्ृ त्त
 तयनन-तनुजा तट तभार तरुवय फहु छामे।
‘त’ वणव की आवश्ृ त्त
 गॊधी गॊध गुराफ को, गॊवई गाहक कौन ?
‘ग’ वणव की आवश्ृ त्त
 कर कानन कुण्डर भोय ऩॊखा
‘क’ वणव की आवश्ृ त्त
 छोयटी है गोयटी मा चोयटी अहीय की
‘ट’ वणव की आवश्ृ त्त
 कॊकन ककॊककन नऩ
ू यु धनु न सनु न
‘क’ वणव की आवश्ृ त्त
 भहु दत भहीऩनत भॊहदय आए।
सेवक सचचव सुभॊत फुराए।
‘भ’ वणव की आवश्ृ त्त
 सॊसाय की सभयस्थरी भें धीयता धायण कयो
‘स’ वणव की आवश्ृ त्त
छे कानुप्राव, लत्ृ मनुप्राव, श्ुत्मनुप्राव, अन्त्मनुप्राव, राटानुप्राव आहद अनुप्राव के उऩबेद शैं।

2. मभक अरॊकाय – जहाॉ ऩय कववता भें एक शब्द की आवश्ृ त्त दो मा अचधक फाय हो व अथव अरग-
अरग ननकरे वहाॉ मभक अरॊकाय होता है ।
उदा.
 कनक-कनक ते, सौ गुनी भादकता अचधकाम।
वा खामे फौयाए नय, मा ऩामे फौयाम।।
मशाॉ ‘कनक’ ळब्द दो फाय प्रमुक्त शुआ शै श्जवभें ऩशरे भें कनक ‘वोना’ तथा दव
ू ये भें ‘धतूया’ के
अथघ भें प्रमुक्त शुआ शै ।
 जेते तभ
ु ताये , तेते नब भे न ताये हैं।
ताये – प्रताडडत कयना
ताये – आसभान के ताये
 गुनी गुनी सफ के कहे , ननगुनी गुनी न होत।
 सन्
ु मौ कहुॉ तरु अयक तें , अयक सभानु उदोत।।
 ऊॉचे घोय भन्दय के अन्दय यहन वायी।
ऊॉचे घोय भन्दय के अन्दय यहाती हैं।
 कहै कवव फेनी, फेनी ब्मार की चुयाई रानी (फेनी-कवव, फेनी चोटी)
 यनत-यनत सोबा सफ यनत के सयीय की (यनत-यनत – जया सी, यनत – काभदे व की ऩत्नी)
 कारी घटा का घभॊड घटा (घटा- फादरों की घटा, घटा – कभ होना)
 बजन कह्मौ ताते बज्जमौ, बज्जमौ न एको फाय (बज्जमौ – बजन ककमा, बज्जमौ- बाग ककमा)
 भारा पेयत जुग गमा, कपया न भनका पेय।
कय का भनका डारय दे , भन का भनका पेय।। (भनका – भारा का दाना, भन का- रृदम का)
 जे तीन फेय खाती थी ते तीन फेय खाती हैं (तीन फेय – तीन फेय के दाने, तीन फेय – तीन फाय)
 तू भोहन के उयफसी ह्वै उयफसी सभान
 ऩच्छी ऩय छीने एसे ऩये ऩय छीने फीय,
तेयी फयछी ने फय छीने हैं खरन के।
 जेते तभ
ु ताये तेते नब भें न ताये है ।
 ऩास ही ये । हीये की खान
उसे खोजता कहाॉ नादान
 ऊॉचे घोय भॊदय के अन्दय यहनवायी
ऊॉचे घोय भॊदय के अॊन्दय यहती है ।
3. चरेऴ अरॊकाय – जहाॉ ऩय साहहत्म भें एक ही शब्द हो। तथा सॊदबव फदरने ऩय अथव अरग-2 ननकरे
वहाॉ चरेष अरॊकाय होता है ।
उदाशयण
 यहहभन ऩानी याखखए, बफन ऩानी सफसून।
ऩानी गए न ऊफये , भोती भानष
ु चन
ू ।।
महाॉ ‘ऩानी’ शब्द का भोती के सॊदबव भें अथव है चभक, भनुष्म के सॊदबव भें ‘इज्जजत’ तथा चून
(आटा) के सॊदबव भें जर।
 हरय फोरा हरय ने सन
ु ा, हरय गए हरय के ऩास।
वे हरय तो हरय भें गए, वे हरय बए उदास।।
शरय – भेढ़क, शरय – ताराफ, शरय – वाॉऩ
 एक कफूतय दे ख हाथ भें, ऩूछा कहाॉ अऩय है ।
उसने कहा अऩय कैसा, वह उड गमा सऩय है ।।
अऩय – कफूतय अऩय-बफना ऩय का
 को तुभ हो? इत आए कहाॉ।
‘घनष्माभ’ है , तो ककतहूॉ फयसो।
 ‘सुफयण को ढूॉढत कपयत, कवव, व्मलबचायी चोय।’
मशाॉ ‘वुफयण’ भें चरेऴ शै । वुफयण का कवल के वॊदबघ भें वुलणघ (अषय), व्मलबिायी के वॊदबघ भें
‘वुन्दय रूऩ’ तथा िोय के वॊदबघ भें ‘वोना’ अथघ शै ।
 भधुफन की छाती को दे खो, सूखी ककतनी इसकी कलरमाॉ
(कलरमाॉ- णखरने वे ऩूलघ पूर की दळा, कलरमाॉ-मौलन वे ऩशरे की अलस्था)
 जो यहीभ गनत दीऩ की, कुर कऩत
ू गनत सोम।
फाये उश्जमायो कयै , फढें अॉधेयो होम।।
े़
(फढ़े – फडा शोने ऩय, फढे - फझ ु ने ऩय)
 को धहट मे वष
ृ बनुजा वे हरधय के वीय
 नय की अरू नरनीय की गनत एकै कय जोम
जेतो नीचो ह्वै चरे ततो ऊॉचो हो।।
 यावन लसय सयोज फनचायी।
चलर यघुवीय लसरीभुख धायी (लवरीभुख – फाण, भ्रभय)

2. अथाघरॊकाय – जहाॉ ऩय कववता भें अथव के भाध्मभ से चभत्काय उत्ऩन्न होता है । वहाॉ अथावरॊकाय होता
है ।

प्रकाय – अथाघरॊकाय के प्रकाय ननम्न शै –


1. उऩभा अरॊकाय / Upma Alankar – इसभें प्रस्तुत वस्तु को दे खकय अप्रस्तुत वस्तु से फयाफयी
कयना अथावत ् तुरना कयना उऩभा अरॊकाय कहराता है । दव
ू ये ळब्दों भें , काव्म भें जफ दो लबन्न
व्मश्क्त, वस्तु के ववशेष गण
ु , आकृनत, बाव, यगॊ, रूऩ आहद को रेकय सभानता फतराई जाती है
अथावत ् उऩभेम औय उऩभान भें सभानता फतराई जाती है , वहाॉ उऩभा अरॊकाय होता है ‘सागय सा
गॊबीय रृदम हो’। उऩभा के चाय अॊग हाते हैं –
 उऩभेम: वणवनीम व्मश्क्त मा वस्तु मानी श्जसकी सभानता अन्म ककसी से फतराई जाती है ।
उक्त उदाहयण भें ‘रृदम’ के फाये भें कहा गमा है अत् ‘रृदम’ उऩभेम है ।
 उऩभान: श्जस वस्तु के साथ उऩभेम की सभानता फतरावइ जाती है उसे उऩभान कहते हैं। उक्त
उदाहयण भें ‘रृदम’ की सभानता सागय से की गई है । अत् महाॉ ‘सागय’ उऩभान है ।
 वभान धभघ: उऩभेम औय उऩभान भें सभान रूऩ से ऩामे जाने वारे गुण को ‘सभान धभव’ कहते
हैं। उक्त उदाहयण भें रृदम व सागय भें ‘गम्बीयता’ को रेकय सभानता फतराई गई है , अत्
‘गम्बीय’ शब्द सभान धभव है ।
 लािक ळब्द: श्जन शब्दों के द्वाया उऩभेम आयै उऩभान को सभान धभव के साथ जोडा जाता है
उसे ‘वाचक शब्द’ कहते हैं। उक्त उदाहयण भें ‘सा’ शब्द द्वाया उऩभान तथा उऩभेम के सभान
धभव को फतरामा गमा है । अत् ‘सा’ शब्द वाचक शब्द है ।
अन्म उदाशयण-
 ऩीऩय ऩात वरयव भन डोरा।
 कोहट कुलरस वभ वचन तम्
ु हाया।
 सीता का भुख चन्रभा के सभान सुन्दय है ।
 याधा-यनत के सभान सन्
ु दयी है ।
 आनन सुन्दय चन्र-सा।
 हरय-ऩद कोभर कभर से
 उसी तऩस्वी से रम्फे थे
दे वदारू दो चाय खडे।
 असॊख्म कीनतव यश्चभमाॉ ववकीणव हदव्म दाह-सी।
 मह दे खखए, अयववॊद-से लशशुवॊद
ृ कैसे सो यहे ।
 नहदमा श्जनकी मशधाया-सी फहती है ।
 भुख फार-यवव-सभ रार होकय ज्जवारा-सा फोचधत हुआ।
 नीर गगन-सा शाॊत ह्नदम था हो यहो
 भखभर के झूरे ऩडे हाथी-सा टीरा
 लसॊधु-सा ववस्तत
ृ औय अथाह एक ननवावलसत का उत्साह
 ऩहरे उदाहयण भें उऩभेम (भन), उऩभान (ऩीऩय ऩात), सभान धभव (डोरा) तथा वाचक शब्द
(सरयस) उऩभा के चायों अॊगों का प्रमोग हुआ है अत् इसे ऩूणोऩभा कहते हैं जफकक दस
ू ये
उदाहयण भें उऩभेम (वचन), उऩभान (कोहट कुलरस) तथा वाचक शब्द (सभ) का प्रमोग हुआ है
महाॉ सभान धभव प्रमुक्त नहीॊ हुआ है अत् इसे रुप्तोऩभा कहा जाता है । क्मोंकक इसभें उऩभा
के चायों अॊगों का सभावेश नहीॊ है ।
2. रूऩक अरॊकाय / Roopak Alankar- उऩभेम भें उऩभान के आयोऩ को रूऩक अरॊकाय कहते है ।
काव्म भें जफ उऩभमे भें उऩभान का ननषेध यहहत अथावत ् अबेद आयोऩ ककमा जाता है अथावत ्
उऩभमे आयै उऩभान दोनों को एक रूऩ भान लरमा जाता है वहाॉ रूऩक अरॊकाय होता है । इसका
ववचरेषण कयने ऩय उऩभेम उऩभान के भध्म ‘रूऩी’ वाचक शब्द आता है ।
‘अम्फय-ऩनघटभें डुफो यही ताया-घट ऊषा-नागयी’ उक्त उदाहयण भें तीन स्थरों ऩय रूऩक अरॊकाय /
Rupak Alankar का ”प्रमागे हुआ है । मथा ‘अम्फय-ऩनघट’, ताया-घट, एवॊ ‘ऊषा-नागयी’।
जैवे –
 भुख चन्र है ।
 वॊदऊ चयण कभर हरय याही।
 अम्फय रूऩी ऩनघट।
 ताया रूऩी घट।
 ऊषा रूऩी नागयी।
चयण-कभर फन्दौं हरय याई।
 भुख-चन्र तुम्हाया दे ख सखे।
भन-सागय भेया रहयाता।
 भैमा! भै तो चन्र-खखरौना रैहों।
 ऩामो जी भैने याभ-यतन धन ऩामो।
 एक याभ घनचमाभ हहत चातक तुरसीदास।
 याभ नाभ भनन-दीऩ धरू, जीम दे हयी द्वाय।
3. उत्प्रेषा अरॊकाय – उऩभेम भें उऩभान की सम्बावना को उत्प्रेऺा अरॊकाय कहते है ।
ऩशिान – जनु, जानुह, भनहु, ज्जमों, त्मों, भानो, इव आहद शब्द आते है ।
उदा.
 भुख भानहूॉ चन्र है ।
 चभचभाता चॊचर नमन, बफच घूघ
ॉ ट ऩट झीन।
भानहूॉ सयु सरयत ववभर जर उछयत मग
ु भीने।।
 जान ऩडता नेत्र, दे ख फडे-2।
हीय को भें गोर नीरभ है जडे।।
ऩद्म यागो से अधय भानों फने।
भोनतमो से दाॉत ननलभवत है घने।।
 भानो भाई धनधन अॊतय दालभनन।
 सोहत ओढे ऩीत ऩट, स्माभ सरोने गात।
भनहुॉ नीरभनन सैर ऩय, आतऩ ऩमौ प्रबात।।
 उस कार भाये क्रोध के तनु काॉऩने उसका रगा।
भानो हवा के जोय से सोता हुआ सागय जगा।।
 कहती हुई मो उत्तया के, नेत्र जर से बय गए।
हहभ के कणों से ऩूणव भानों, हो गए ऩॊकज नए।।
 भनु दृग पारय अनेक जभुन ननयखत ब्रज सोबा
 रे चरा भै तझ
ु े कनक, ज्जमों लबऺुक रेकय स्वणव-झनक।
4. वन्दे श अरॊकाय – जहाॉ ऩय कववता भें अथव स्ऩष्ट न हो। औय वास्तववक श्स्थनत से अवगत न
हुआ। वहाॉ सन्दे ह अरॊकाय होता है ।
दवू ये ळब्दों भें – जहाॉ ककसी वस्तु को दे खकय सॊषम फना यहे है । ननष्चम न हो वहा सॊदेह अरॊकाय
होता है ।
जैवे –
 सायी फीच नायी है , कक नायी फीच सायी है ।
सायी ही की नायी है , कक नायी ही की सायी है ।।
5. भ्राश्न्तभान अरॊकाय – जहाॉ ककसी वस्तु को दे खकय ककसी ववषेष सभानता के कायण ककसी दस
ू यी
वस्तु का भ्रभ हो जाए। वहाॉ भ्राश्न्तभान अरॊकाय होता है ।
जैवे –
 नाक का भोती अधय की काॊनत से, फीज दाडडभ का सभझकय भ्राश्न्त से,। दे ख उसको ही हुआ
शुक भौन है , सोचता है अन्म शुक मह कौन है ।
 ऩाॊम भहावय दे न को नाइन फैठी आम।
ऩुनन-ऩुनन जान भहावयी एडी भोडनत जाम।।
6. अन्मोश्क्त अरॊकाय – जफ कोई फात ववषेष रक्ष्म को यखकय दस
ू ये व्मश्क्त के सन्दबव भें कही जाती
है तो वहाॉ अन्मोश्क्त अरॊकाय होता है ।
उदा.
 भारी आफत ् दे खकय कलरमन कयी ऩुकाय
पूरे-पूरे चन
ु लरमे कार हभायी फाय।।
7. अनतऴमोश्क्त अरॊकाय – जहाॊ ककसी वस्तु मा फात को फढा चढाकय कय वणवन ककमा जाए। अथवा
सीभा के फाहय की फात कही जाए। वहाॊ अनतषमोश्क्त अरॊकाय होता है ।
उदा.
 ऩडी अचानक नदी अऩाय ककस ववध घोडा उतये ऩाय।
याणा ने सोचा इस ऩाय, तफ तक चेतक उस ऩाय।।
 दे ख रो साकेत नगयी है
मही स्वगव से लभरने गगन भे जा यही है ।
 फाॉधा था ववधु को ककसने इन कारी जॊजीयो से ।
भखण वारे पखणमों का भख ु , क्मों बया हुआ हीयों से।।
8. अत्मुश्क्त अरॊकाय – जहाॉ ककसी वस्तु का फढा-चढाकय ककमा गमा वणवन झूठा प्रतीत हो वहाॉ
अत्मश्ु क्त अरॊकाय होता है ।
उदा.
 रखन सकोऩ वचन जफ फोरे।
डगभगानन भाहह हदनगज डोरे।।
9. वलबालना अरॊकाय – जहाॉ कायण के बफना कामव की उत्ऩश्त्त हो वहाॉ ववबावना अरॊकाय होता है ।
उदा.
 बफनु ऩद चरे सुने बफनु काना।
कय बफनु कयभ कये ववचध नाना।।
10. वलऴेऴोश्क्त अरॊकाय – जहाॉ ऩय कामव नही हो यहा है वहाॉ ववषेषोश्क्त अरॊकाय होता है ।
उदा.
 ऩानी बफच भीन, भीन वऩमासी,
भोहह सन
ु ी-सन
ु ी आवे हाॉसी।।
मभक औय चरेऴ भें अन्तय:
मभक अरॊकाय भें ककसी शब्द की आवश्ृ त्त दो मा दो से अचधक फाय होती है तथा प्रत्मेक फाय उसका अथव
लबन्न होता है , जफकक चरेष अरॊकाय भें ककसी एक ही शब्द के प्रसॊगानुसाय एक से अचधक अथव होते
हैं।जैवे –
मभक: कनक कनक ते सौ गुनी, भादकता अचधकाम।
चरेऴ: ऩानी गमे न ऊफये , भोती भानुस चून।

उऩभा औय रूऩक: उऩभा अरॊकाय भें ककसी फात को रेकय उऩभेम एवॊ उऩभान भें सभानता फतराई जाती
है जफकक रूऩक भें उऩभेम उऩभान का अबेद आयोऩ ककमा जाता है . जैवे –
उऩभा – ऩीऩय ऩात सरयस भन डोरा।
रूऩक – चयण-कभर फन्दौं हरय याई।।

कक्रमा औय उसके बेद

ऩरयबाषा : श्जव ळब्द वे ककवी कामघ का शोना मा कयना वभझा जाम, उवे किमा (Verb)कशते शैं। जैवे-
खाना, ऩीना, ऩढ़ना, वोना, यशना, जाना, लरखना, िरना, दौडना इत्माहद। हशन्दी भें किमा के
रूऩ ‘लरॊग’, ‘वचन’ औय ‘ऩुरुऴ’ के अनुवाय फदरते शैं।

धातु : किमा (Verb) के भूर रूऩ को धातु कशते शैं।

‘धातु’ से ही कक्रमा(Verb) ऩद का ननभावण होता है इसीलरए कक्रमा के सबी रूऩों भें ‘धातु’ उऩश्स्थत यहती है ।
जैसे-

चरना कक्रमा भें ‘चर’ धातु है ।

ऩढना कक्रमा भें ‘ऩढ’ धातु है ।

प्राम् धातु भें ‘ना’ प्रत्मम जोडकय कक्रमा का ननभावण होता है ।


धातु के दो बेद हैं—भर
ू धातु, मौचगक धातु।

(I) भूर धातु : मह स्वतन्त्र होती है तथा ककसी अन्म शब्द ऩय ननबवय नहीॊ होती, जैसे—जा, खा, ऩी, यह
आहद ।

(II) मौचगक धातु : मौचगक धातु भूर धातु भें प्रत्मम रगाकय, कई धातुओॊ को सॊमुक्त कयके
अथवा वॊसा औय वलळेऴण भें प्रत्मम रगाकय फनाई जाती है । मह तीन प्रकाय की होती है -

1. प्रेयणाथघक किमा (Verb) (धातु) 2. मौचगक किमा (Verb)(धात)ु 3. नाभ धातु

 प्रेयणाथघक किमा (धातु) :प्रेयणाथवक कक्रमाएॉ अकभवक एवॊ सकभवक दोनों कक्रमाओॊ से फनती हैं मा
श्जन कक्रमाओॊ से मह फोध होता है कक कताव स्वमॊ कामव न कयके ककसी दस
ू ये कामव को कयने के
लरए प्रेरयत कयता है , उन्हें प्रेयणाथवक कक्रमा कहते हैं; जैसे-
भूर धातु प्रेयणाथवक धातु

उठना उठाना, उठवाना

वोना सुराना, सुरवाना

दे ना हदराना, हदरवाना

खाना खखराना, खखरवाना

कयना कयाना, कयवाना

ऩीना वऩराना, वऩरवाना

 मौचगक किमा (धात)ु : दो मा दो वे अचधक धातुओॊ के वॊमोग वे मौचगक किमा फनती शै । जैवे-योना-
धोना, उठनाफैठना, िरना-कपयना, खा रेना, उठ फैठना, उठ जाना।
 नाभ धातु : वॊसा मा ववशेषण वे फनने लारी धातु को नाभ धातु कशते शैं। जैवे—गारी वे गरयमाना,
रात वे रनतमाना, फात वे फनतमाना ।

(Verb) कक्रमा के बेद् यचना की दृश्ष्ट से कक्रमा के दो बेद हैं

1. वकभघक किमा (Transitive Verb) 2. अकभघक किमा (Intransitive Verb)

 वकभघक किमा (Transitive Verb) :

जो कक्रमा कभव के साथ आती है , मा श्जन कक्रमाओॊ के कामव का पर कताव को छोडकय कभव ऩय ऩडता है
उन्हें ‘सकभवक कक्रमा कहते हैं, जैसे-

1. याभ पर खाता है । (खाना कक्रमा के साथ कभव पर है )


2. सीता गीत गाती है । (गाना कक्रमा के साथ गीत कभव है )
 अकभघक किमा(Intransitive Verb) :

अकभवक कक्रमा के साथ कभव नहीॊ होता तथा उसका पर कताव ऩय ऩडता है मा श्जन कक्रमाओॊ के कामव का
पर ‘कताव’ भें ही यहता है उन्हें ‘अकभवक कक्रमा’ कहते हैं, जैसे-

1. याधा योती है । (कभव का अबाव है तथा योती है कक्रमा का पर याधा ऩय ऩडता है )


2. भोहन हॉसता है ।(कभव का अबाव है तथा हॉसता है कक्रमा का पर भोहन ऩय ऩडता है )
श्जन धातुओॊ का प्रमोग अकभघक औय वकभघक दोनों रूऩों भें होता है उन्हें ‘उबमवलध धातु‘ कहते हैं।

कुछ कक्रमाएॉ ‘एक कभघ लारी‘ औय ‘दो कभघ लारी’ होती हैं; जैसे-‘याशुर ने योटी खाई।‘ इस वाक्म भें कभव एक ही
है । ककन्तु ‘भैं रडके को गणणत ऩढ़ाता शैं।’ इस वाक्म भें दो कभव हैं-‘रडके को’ औय ‘गणणत‘। दो कभव वारी
कक्रमा को ‘द्वलकभघक किमा‘ कहते हैं।

कक्रमा के कुछ अन्म बेद ननम्नवत ् हैं

 वशामक किमा (Helping Verb) :


सहामक कक्रमा भुख्म कक्रमा के साथ प्रमुक्त होकय अथव को स्ऩष्ट एवॊ ऩूणव कयने भें सहामता कयती है ।
जैसे-

1. भैं घय जाता हूॉ। (महाॉ ‘जाना’ भुख्म कक्रमा है औय हूॉ’ सहामक कक्रमा है ) ।
2. वे हॉस यहे थे। (महाॉ हॉसना’ भख्
ु म कक्रमा है औय ‘यहे थे’ सहामक कक्रमा है )
 ऩूलक
घ ालरक किमा (Absolutive Verb) :

जफ कताव एक कक्रमा को सभाप्त कय दस


ू यी कक्रमा कयना प्रायम्ब कयता है तफ ऩहरी कक्रमा को ऩूवक
व ालरक
कक्रमा कहा जाता है अथवा श्जन कक्रमाओॊ के ऩहरे कोई अन्म कक्रमा आए, उन्हें ऩव
ू क
व ालरक कक्रमा कहते हैं।

जैसे—याभ बोजन कयके सो गमा।

महाॉ बोजन कयके ऩूलक


घ ालरक किमा है , श्जसे कयने के फाद उसने दस
ू यी कक्रमा (वो जाना) सम्ऩन्न की है ।

 नाभफोधक किमा (Nominal Verb) :

वॊसा अथवा वलळेऴण के साथ कक्रमा जुडने से नाभफोधक कक्रमा फनती है । जैसे-

सॊऻा + कक्रमा = नाभफोधक कक्रमा

1. राठी + भायना = राठी भायना

2. यक्त + खौरना = यक्त खौरना

ववशेषण + कक्रमा = नाभफोधक कक्रमा

1. द्ु खी + होना = द्ु खी होना


2. ऩीरा + ऩडना = ऩीरा ऩडना

द्ववकभवक कक्रमा(Double Transitive Verb) :

श्जस कक्रमा के दो कभव होते हैं उसे द्ववकभवक कक्रमा कहा जाता है । जैसे-

1. अध्माऩक ने छात्रों को हहन्दी ऩढाई। (दो कभव–छात्रो, हहन्दी)


2. चमाभ ने याभ को थप्ऩड भाय हदमा। (दो कभव–याभ, थप्ऩड)
 वॊमक्
ु त किमा(Compound Verb) : जफ कोई ककमा दो कक्रमाओॊ के सॊमोग मा दो मा दो से अचधक
कक्रमाओॊ के मोग से जो ऩूणव कक्रमा से ननलभवत होती है , तफ उसे सॊमुक्त कक्रमा कहते हैं। जैसे-
1. वह खाने रगा। 5. वह खेरती कृती यहती 8. अफ त्मागऩत्र दे ही
2. भुझे ऩढने दी। है । डारो।
3. वह ऩेड से कूद ऩडा। 6. आऩ आते जाते हैं।
4. भैंने ककताफ ऩढ री। 7. चचडडमाॊ उडा कयती हैं।
 किमाथघक वॊसा (Verbal Noun) : जफ कोई कक्रमा वॊसा की बाॊनत व्मवहाय भें आती है तफ उसे
कक्रमाथवक वॊसा कहते हैं।जैसे-
1. टहरना स्वास््म के लरए राबदामक है ।
2. दे श के लरए धयना कीनतवदामक है ।
कक्रमाओॊ भें रूऩान्तय

कक्रमा ववकायी शब्द है अत: इसके रूऩ भें ऩरयवतवन होता यहता है ।

इव ऩरयलतघन के छ: आधाय शैं

 वाच्म  ऩुरुष  वचन


 अथव मा बाव  लरॊग  कार

कक्रमा के सम्फन्ध भें ननम्न त्म बी ववचायणीम हैं :

 लाच्म (voice) : वाच्म कक्रमा का रूऩान्तयण है श्जसके द्वाया मह ऩता चरता है कक वाक्म भें कताव,
कभव मा बाव भें से ककसकी प्रधानता है ।
वाच्म के तीन बेद हैं-

1. कृतलाच्म (Active Voice) 2. कभघलाच्म (Passive Voice) 3. बाललाच्म (Impersonal


Voice)

 कृतलाच्म (Active Voice): कक्रमा के उस रूऩान्तयण को कतववाच्म कहते हैं, श्जससे वाक्म भें कताव
की प्रधानता का फोध होता है । जैसे-
1. याभ ने दध
ू वऩमा। 2. सीता गाती है । 3. भैं स्कूर गमा ।
 कभघलाच्म (Passive Voice): कक्रमा के उस रूऩान्तयण को कभववाच्म कहते हैं, श्जससे वाक्म भें कभव
की प्रधानता का फोध होती है । जैसे-
1. रेख लरखा गमा । 2. गीत गामा गमा । 3. ऩुस्तक ऩढी गई।
 बाललाच्म (Impersonal Voice): कक्रमा का वह रूऩान्तय बाववाच्म कहराता है , श्जससे वाक्म भें
‘बाव’ (मा कक्रमा) की प्रधानता का फोध होता है । जैसे-
1. भझ
ु से चरा नहीॊ जाता। 2. उससे चऩ
ु नहीॊ यहा 3. सीता से दध
ू नहीॊ वऩमा
जाता । जाता।
 कार (Tense) :कक्रमा के श्जस रूऩ से कामव व्माऩाय के सभम तथा उसकी ऩूणत
व ा अथवा अऩूणत
व ा
का फोध होता है , उसे कार कहते हैं। मा कक्रमा के श्जस कार रूऩ से उसके होने के सभम का फोध
होता है , उसे कार कहते हैं।
कार के तीन बेद शोते शैं

1. लतघभान कार 2. बूतकार 3. बवलष्मत ् कार

 लतघभान कार : कक्रमा के श्जस रूऩ से वतवभान सभम भें कक्रमा का होना ऩामा जाए, उसे वतवभान
कार कहते हैं। इसभें कक्रमा का आयम्ब हो चुका होता है ऩय सभाश्प्त नहीॊ है ।
इसके ऩाॊच बेद हैं :

वाभान्म लतघभान मह ऩढता है ।


तात्कालरक लतघभान मह ऩढ यहा है ।

ऩूणघ लतघभान वह ऩढ चुका है ।

वॊहदग्ध लतघभान वह ऩढता होगा ।

वॊबाव्म लतघभान वह ऩढता हो ।

 बूतकार : कक्रमा के श्जस रूऩ से कामव की सभाश्प्त का फोध हो उसे ‘बूतकार’ कहते हैं। दस
ू ये शब्दों
भें श्जस कक्रमा से फीते हुए सभम भें कक्रमा का होना ऩामा जाता है उसे बत
ू कार कहते हैं।
बत
ू कार के छ् बेद हैं :

1. वाभान्मबूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से फीते हुए सभम का ननश्चचत ऻान न हो उसे साभान्मबूत कहते
हैं;
जैसे-चमाभ गमा। गीता आई।

2. आवन्नबूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से कक्रमा के व्माऩाय का सभम आसन्न (ननकट) ही सभाप्त सभझा
जाए उसे आसन्नबूत कहते हैं;
जैसे-अॊकुय नैनीतार से रौटा है । भैं खाना खा चुका हूॉ।

3. अऩूणब
घ ूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से मह जाना जाए कक कक्रमा बूतकार भें हो यही थी, रेककन उसकी
सभाश्प्त का ऩता न चरे, उसे ‘अऩूणब
व ूत’ कहते हैं;
जैसे-लसताय फज यहा था।

4. ऩण
ू ब
घ त
ू : कक्रमा के श्जस रूऩ से फीते सभम भें कामव की सभाश्प्त का ऩण
ू व फोध होता है , उसे ऩण
ू ब
व त

कहते हैं;
जैसे-भैं खाना खा चुका हूॉ।
5. वॊहदग्धबूत : कक्रमा के श्जस रूऩ से फीते हुए सभम भें कामव के ऩूणव होने मा न होने भें सन्दे ह होता
है , उसे सॊहदनधबूत कहते हैं,
जैसे-चमाभ ने गामा होगा।

6. शे तश
ु े तभ
ु दबत
ू : कक्रमा के श्जस रूऩ से मह ऩता चरे कक कक्रमा बत
ू कार भें होने वारी थी ऩय ककसी
कायणवश न हो सकी, उसे हे तुहेतुभद्भत
ू कहते हैं;
जैसे-महद वह ऩढता तो ऩयीऺा भें उत्तीणव हो जाता।

 बवलष्मत ् कार : कक्रमा के श्जस रूऩ से बववष्म भें होने वारी कक्रमा का फोध हो, उसे बववष्मत ् कार
कहते हैं।
इवके तीन बेद शैं :

1. वाभान्म बवलष्मत ् : कक्रमा के श्जस रूऩ से बववष्म भें होने वारे कामव के सम्फन्ध भें साभान्म हो
अथवा मह व्मक्त हो कक कक्रमा साभान्मत् बववष्म भें होगी, उसे साभान्म बववष्मत ् कहते हैं;
जैसे-रता गीत गाएगी।

2. वम्बाव्म बवलष्मत ् : कक्रमा का वह रूऩ श्जससे कामव होने की सम्बावना का फोध हो, उसे सम्बाव्म
बववष्मत ् कहते हैं;
जैसे-सम्बव है कक वह कर जाएगा।

3. शे तुशेतुभद् बवलष्मत ् : कक्रमा का वह रूऩ श्जससे बववष्म भें एक सभम भें एक कक्रमा का होना दस
ू यी
कक्रमा ऩय ननबवय हो हे तुहेतुभद् बववष्मत ् कहराता है ।
जैसे-याभ गाए तो भैं फजाऊॉ।

कक्रमा का ऩद ऩरयचम (Parsing of Verb) :

कक्रमा के ऩद ऩरयचम भें कक्रमा, कक्रमा का बेद, वाच्म, लरॊग, ऩरु


ु ष, वचन, कार औय वह शब्द श्जससे कक्रमा
का सॊफॊध है , फतानी चाहहए। जैसे-

1. याभ ने ऩुस्तक ऩढी।


ऩढी- कक्रमा, सकभवक, कभववाच्म, साभान्म बत
ू , स्त्रीलरॊग, एकवचन, कभव ऩस्
ु तक से सम्फश्न्धत ् ।
2. भोहन कर जामेगा।
जामेगा- कक्रमा, अकभवक, कतव
वृ ाच्म, साभान्म बववष्मत ्, ऩुलरॊग, एकवचन, कताव भोहन से सम्फश्न्धत

लाक्म

लाक्म (Vakya) – साथवक शब्दों का व्मवश्स्थत सभूह श्जससे कोई साथवक अथव प्रकट होता है , उसे वाक्म
कहते हैं।

वाक्म के छ् अननवामव तत्व होते हैं।

1. साथवकता 3. आकाॊऺा 5. ऩदक्रभ


2. मोनमता 4. ननकटता 6. अन्वम

(i) वाथघकता :वाक्म का कुछ न कुछ अथव अवचम होता है । अत् इसभें इसभें साथवक शब्दों का ही प्रमोग
हुआ है । साथवकता वाक्म का प्रभखु गुण है । इसके लरए आवचमक है कक वाक्म भें साथवक शब्दों का प्रमोग
हो, तबी वाक्म बावलबव्मश्क्त के लरए सऺभ होगा।

(ii) मोग्मता :वाक्म भें प्रमुक्त शब्दों भें प्रसॊग के अनुसाय यक्षऺत अथव प्रकट कयने की मोनमता होती है ;
जैसे- ‘चाम वाई’. मह वाक्म नहीॊ है क्मोंकक चाम खाई नहीॊ जाती फश्ल्क ऩी जाती है ।

(iii) आकाॊऺा :‘आकाॊऺा’ का अथव है ‘इच्छा’, वाक्म अऩने आऩ भें ऩूया होना चाहहए। उसभें ककसी ऐसे शब्द
की कभी नहीॊ होनी चाहहए श्जसके कायण अथव की अलबव्मश्क्त भें अधूयाऩन को। जैसे—ऩत्र लरखता है , इस
वाक्म भें कक्रमा के कताव को जानने की इच्छा होगी। अत् ऩण
ू व वाक्म इस प्रकाय होगा-याभ ऩत्र लरखता है ।

(iv) ननकटता :फोरते तथा लरखते सभम वाक्म के शब्दों भें ऩयस्ऩय ननकटता का होना फहुत आवचमक
है , रूक-रूक कय फोरे मा लरखे गए शब्द वाक्म नहीॊ फनाते । अत् वाक्म के ऩद ननयॊ तय प्रवाह भें ऩास-
ऩास फोरे मा लरखे जाने चाहहए।
(v) ऩदिभ :लाक्म भें ऩदों का एक ननश्चित िभ शोना िाहशए । ‘वुशालनी शै यात शोती िाॉदनी’ इवभें
ऩदों का िभ व्मलश्स्थत न शोने वे इवे लाक्म नशीॊ भानेंगे। इवे इव प्रकाय शोना िाहशए—’िाॉदनी यात
वश
ु ालनी शोती शै ।

(vi) अन्लम :अन्लम का अथघ शै -भेर । लाक्म भें लरॊग, लिन, ऩुरुऴ, कार, कायक आहद का किमा के वाथ
ठीक-ठीक भेर शोना िाहशए; जैवे— ‘फारक औय फालरकाएॉ गईं’, इवभें कताघ किमा अन्लम ठीक नशीॊ शै ।
अत् ळि
ु लाक्म शोगा ‘फारक औय फालरकाएॉ गए’।

वाक्म के दो अॊग हैं-

1. उद्देचम
2. ववधेम

1. उद्देचम (Subject) :श्जसके फाये भें कुछ फतामा जाता है , उसे उद्देचम कहते हैं; जैसे-अनुयाग खेरता
है । वचिन दौडता है ।

इन वाक्मों भें ‘अनुयाग’ औय ‘सचचन’ के ववषम भें फतामा गमा है । अत् मे उद्देचम हैं। इसके अॊतगवत कताव
औय कताव का ववस्ताय आता है जैसे— ‘ऩरयश्भ कयने लारा व्मश्क्त वदा वपर शोता शै ।’ इस वाक्म भें
कताव (व्मश्क्त) का ववस्ताय ‘ऩरयश्रभ कयने वारा’ है ।

2. वलधेम (Predicate) :लाक्म के श्जव बाग भें उद्देचम के फाये भें जो कुछ कशा जाता शै , उवे वलधेम
कशते शैं; जैवे-अनुयाग खेरता है । इव लाक्म भें ‘खेरता शै ’ वलधेम शै । वलधेम के वलस्ताय के अॊतगघत लाक्म
के कताघ (उद्देचम) को अरग कयने के फाद लाक्म भें जो कुछ बी ळेऴ यश जाता शै , लश वलधेम कशराता शै ,
जवे-रॊफे-रॊफे फारों लारी रडकी अबी-अबी एक फच्िे के वाथ दौडते शुए उधय गई।
इव लाक्म भें ‘अबी-अबी एक फच्िे के वाथ दौडते शुए उधय गई’ वलधेम का वलस्ताय शै तथा ‘रॊफे-रॊफे
फारों लारी रडकी उद्देचम का वलस्ताय शै ।

लाक्म के बेद :लाक्म अनेक प्रकाय के शो वकते शैं। उनका वलबाजन शभ दो आधायों ऩय कय वकते शैं

1. अथव के आधाय ऩय
2. यचना के आधाय ऩय
1. अथघ के आधाय ऩय लाक्म के बेद

अथव के आधाय ऩय वाक्म के ननम्नलरखखत आठ बेद हैं

(a) ववधानवाचक (Assertive Sentence): श्जन लाक्मों भें किमा के कयने मा शोने की वूिना लभरे, उन्शें
वलधानलािक लाक्म कशते शैं; जैवे—भैंने दध
ू वऩमा । लऴाघ शो यशी शै । याभ ऩढ़ यशा शै ।

(b) ननषेधवाचक (Negative Sentence) : श्जन लाक्मों वे कामघ न शोने का बाल प्रकट शोता शै , उन्शें
ननऴेधलािक लाक्म कशते शैं; जैवे—भैंने दध
ू नशीॊ वऩमा। भैंने खाना नशीॊ खामा । तुभ भत लरखो।

(c) आऻावाचक (Imperative Sentence) :श्जन वाक्मों से आऻा, प्राथवना, उऩदे श आहद का ऻान होता है ,
उन्हें आऻावाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—फाजाय जाकय पर रे आओ। भोहन तभ
ु फैठ कय ऩढो। फडों का
सम्भान कयो ।

(d) प्रचनवाचक (Interrogative Sentence) :श्जन वाक्मों से ककसी प्रकाय का प्रचन ऩूछने का ऻान होता
है , उन्हें प्रचनवाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—सीता तुभ कहाॉ से आ यही हो ? तुभ क्मा ऩढ यहे हो ? यभेश
कहाॉ जाएगा ?

(e) इच्छावाचक (Illative Sentence) :श्जन वाक्मों से इच्छा, आशीष एवॊ शुबकाभना आहद का ऻान होता
है , उन्हें इच्छावाचक वाक्म कहते हैं, जैसे—तुम्हाया कल्माण हो । आज तो भैं केवर पर खाऊॉगा। बगवान
तम्
ु हें रॊफी उभय दे ।

(f) सॊदेहवाचक (Sentence indicating Doubt) :श्जन वाक्मों से सॊदेह मा सॊबावना व्मक्त होती है , उन्हें
सॊदेहवाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—शामद शाभ को वषाव हो जाए। वह आ यहा होगा, ऩय हभें क्मा भारूभ ।
हो सकता है याजेश आ जाए।

(g) ववस्भमवाचक (Exclamatory Sentence) :श्जन वाक्मों से आचचमव, घण


ृ ा, क्रोध, शोक आहद बावों की
अलबव्मश्क्त होती है , उन्हें ववस्भमवाचक वाक्म कहते हैं; जैसे—वाह! ककतना सुॊदय दृचम है । हाम ! उसके
भाता-वऩता दोनों ही चर फसे । शाफाश ! तभ
ु ने फहुत अच्छा काभ ककमा।
(h) वॊकेतलािक (Conditional Sentence) :श्जन लाक्मों भें एक किमा का शोना दव
ू यी किमा ऩय ननबघय
शोता शै । उन्शें वॊकेतलािक लाक्म कशते शैं; जैवे-महद ऩरयश्भ कयोगे तो अलचम वपर शोगे। वऩताजी अबी
आते तो अच्छा शोता । अगय लऴाघ शोगी तो फ़वर बी शोगी।

2. यिना के आधाय ऩय लाक्म के बेद

यचना के आधाय ऩय वाक्म के ननम्नलरखखत तीन बेद होते हैं

(a) वयर लाक्म/वाधायण लाक्म (Simple Sentence) :श्जन लाक्मों भें केलर एक शी उद्देचम औय एक शी
वलधेम शोता शै , उन्शें वयर लाक्म मा वाधायण लाक्म कशते शैं, इन लाक्मों भें एक शी किमा शोती शै ; जैवे—
भुकेळ ऩढ़ता शै । लळल्ऩी ऩत्र लरखती शै । याकेळ ने बोजन ककमा।

(b) वॊमुक्त लाक्म (Compound Sentence) :श्जन लाक्मों भें दो मा दो वे अचधक वयर लाक्म
वभुच्िमफोधक अव्ममों (औय, तथा, एलॊ, ऩय, ऩयॊ तु आहद) वे जुडे शों, उन्शें वॊमुक्त लाक्म कशते शै ; जैवे—लश
वुफश गमा औय ळाभ को रौट आमा। वप्रम फोरो ऩय अवत्म नशीॊ। उवने ऩरयश्भ तो फशुत ककमा ककॊतु
वपरता नशीॊ लभरी।

(c) लभचश्त/लभश् लाक्म (Complex Sentence) :श्जन लाक्मों भें एक भुख्म मा प्रधान लाक्म शो औय
अन्म आचश्त उऩलाक्म शों, उन्शें लभचश्त लाक्म कशते शैं। इनभें एक भुख्म उद्देचम औय भुख्म वलधेम के
अराला एक वे अचधक वभावऩका किमाएॉ शोती शैं; जैवे- ज्जमों शी उवने दला ऩी, लश वो गमा। महद ऩरयश्भ
कयोगे तो, उत्तीणघ शो जाओगे। भैं जानता शूॉ कक तुम्शाये अषय अच्छे नशीॊ फनते ।

उऩलाक्म (Clause)
महद ककसी एक वाक्म भें एक से अचधक सभावऩका कक्रमाएॉ. होती हैं तो वह वाक्म उऩवाक्मों भें फॉट जाता
है औय उसभें श्जतनी बी सभावऩका कक्रमाएॉ होती हैं उतने ही उऩवाक्म होते हैं। इन उऩवाक्मों भें से जो
वाक्म का केंर होता है , उसे भख्
ु म मा प्रधान वाक्म कहते हैं औय शेष को आचश्रत उऩवाक्म कहते हैं।
आचश्रत उऩवाक्म तीन प्रकाय के होते हैं
1. सॊऻा उऩवाक्म 2. ववशेषण उऩवाक्म 3. कक्रमाववशेषण उऩवाक्म
(1) वॊसा उऩलाक्म :जो आचश्त उऩलाक्म प्रधान लाक्म की किमा के कताघ, कभघ अथला ऩूयक के रूऩ भें
प्रमक्
ु त शों, उन्शें वॊसा उऩालाक्म कशते शैं; जैवे—

1. भैं जानता हूॉ कक लश फशुत ईभानदाय शै ।


2. उसका ववचाय है कक याभ वच्िा आदभी शै ।
3. यश्चभ ने कहा कक उवका बाई ऩटना गमा शै ।
इन वाक्मों भें भोटे अऺयों वारे अॊश सॊऻा उऩवाक्म हैं।

(2) वलळेऴण उऩलाक्म :जफ कोई आचश्त उऩलाक्म प्रधान लाक्म की वॊसा ऩद की वलळेऴता फताते शैं,
उन्शें वलळेऴण उऩलाक्म कशते शैं, जैवे—

1. भैंने एक व्मश्क्त को दे खा जो फशुत भोटा था।


2. वे पर कहाॉ है श्जन को आऩ राए थे।
इन वाक्मों भें भोटे अऺयों वारे अॊश ववशेषण उऩवाक्म हैं।
Note – ववशेषण उऩवाक्म का प्रायॊ ब जो अथवा इसके ककसी रूऩ (श्जवे, श्जव को, श्जवने, श्जन को
आहद) से होता है ।

(3) किमावलळेऴण उऩलाक्म :जो आचश्त उऩलाक्म प्रधान लाक्म की किमा की वलळेऴता फताए, उवे
किमावलळेऴण उऩलाक्म कशते शैं। मे प्राम् किमा का कार, स्थान, यीनत, ऩरयभाण, कायण आहद के वि
ू क
किमावलळेऴणों के द्लाया प्रधान लाक्म वे जुडे यशते शैं; जैवे-

1. जफ लऴाघ शो यशी थी तफ भैं कभये भें था ।


2. जशाॉ-जशाॉ ले गए, उनका स्वागत हुआ।
3. भैं वैसे ही जाता हूॉ, जैवे यभेळ जाता शै ।
4. महद भैंने ऩरयश्भ ककमा शोता तो अवचम सपर होता ।
इन वाक्मों भें भोटे अऺयों वारे अॊश कक्रमाववशेषण उऩवाक्म हैं।
उऩलाक्म औय ऩदफॊध :
उऩवाक्म से छोटी इकाई ऩदफॊध है । ‘भेया बाई भोहन फीभाय है ’ उऩवाक्म है औय इसभें ‘भेया बाई भोहन’
सॊऻा ऩदफॊध है । ऩदफॊध भें अधूया बाव प्रकट होता है ककन्तु उऩवाक्म भें ऩूया बाव प्रकट हो बी सकता है
औय कबी कबी नहीॊ बी। उऩवाक्म भें कक्रमा अननवामव यहती है जफकक ऩदफॊध भें कक्रमा का होना आवचमक
नहीॊ। उदाहयण :

यभेश की फहन शीरा तेजी से चरती फस से चगय ऩडी औय उसे कई चोटें आईं। (वाक्म)

यभेश की फहन शीरा तेजी से चरती फस से चगय ऩडी (उऩवाक्म)

यभेश की फहन शीरा (सॊऻा ऩदफॊध)


तेजी से चरती फस (कक्रमा ववशेषण ऩदफॊध) – ऩदफॊध
चगय ऩडी (कक्रमा ऩदफॊध)

ऩमाघमलािी ळब्द (Synonyms)


अॊक – सॊख्मा, चगनती, क्रभाॊक, ननशान, चचह्न, छाऩ।

अॊकभार – अॊकवाय, आलरॊगन, प्रेभालरॊगन।

अॊकुय – कोंऩर, अॉखुवा, कल्रा, नवोलबद्, कलरका, गाब।

अॊकुळ – प्रनतफन्ध, योक, दफाव, रुकावट, ननमन्त्रण, अटकाव।

अॊग – अवमव, अॊश, करा, हहस्सा, बाग, खण्ड, उऩाॊश, घटक, टुकडा।

अगाध – अथाह, गम्बीय, गहन, गहया, असीभ, अऩाय।


अश्ग्न – आग, अनर, ऩावक, जातवेद, कृशानु, वैचवानय, हुताशन, योहहताचव, वामुसुख, हव्मवाहन।

अॊिर – ऩल्रू, छोय, ऺेत्र, अॊत, प्रदे श, आॉचर, ककनाया।

अिानक – अकस्भात, अनामास, एकाएक, दै वमोग।

अच्छा – उचचत, उऩमक्


ु त, ठीक, सही, फहढमा, चोखा, फेहतय।

अजनफी – अऩरयचचत, अनजान, अऻात, गैय, नावाककप, अनलबऻ।

अटर – अडडग, श्स्थय, ऩक्का, दृढ, अचर, ननचचर।

अठखेरी – कौतक
ु , क्रीडा, खेर-कूद, चर
ु फर
ु ाऩन, उछर-कूद, हॉसी-भजाक।

अभत
ृ – अलभम, ऩीमष
ू , अभी, भधु, सोभ, सध
ु ा, सयु बोग।

अमोग्म – अनहव, मोनमताहीन, नारामक, नाकाबफर।

अथघ – अलबप्राम, प्रमोजन, आशम, तात्ऩमव, भतरफ।

अजुन
घ – बायत, गुडाकेश, ऩाथव, सहस्राजन
ुव , धनञ्जम।

अलसा – अनादय, नतयस्काय, अवभानना, अऩभान।

अचल – घोडा, तुयॊग, हम, फाश्ज, सैन्धव, घोटक, फछे डा।

अवुय – यजनीचय, ननशाचय, दानव, दै त्म, याऺस, दनुज, मातुधान।

अडेगा – रुकावट, ववघ्न, अवयोध, व्मवधान।

अनतचथ – भेहभान, ऩहुना, अभ्मागत, रयचतेदाय, नातेदाय, आगन्तुका।


अतीत – ऩूवक
व ार, बूतकार, ववगत, गत।

अनी – कटक, दर, सेना, पौज, चभ,ू अननककनी।

अनाज – अन्न, शस्म, धान्म, गल्रा, खाद्मान्न।

अनाडी – अनजान, अनलबऻ, अऻानी, अकुशर, अदऺ, अऩटु, भख


ू ,व अल्ऩऻ, नौलसखखमा।

अनाय – सन
ु ीर, वल्कपर, भखणफीज, फीदाना, दाडडभ, याभफीज, शक
ु वप्रम।

अननष्ट – फयु ा, अऩकाय, अहहत, नक


ु सान, हानन, अभॊगर।

अनुकम्ऩा – दमा, कृऩा, भेहयफानी।

अनभ
ु ान – अन्दाज, अटकर, कमास।

अनुयक्त – भनन, व्मस्त, तल्रीन, आसक्त।

अनुऩभ – सुन्दय, अतुर, अऩूव,व अद्ववतीम, अनोखा, अप्रनतभ, अद्भत


ु , अनूठा।

अनुवयण – नकर, अनुकृत, अनुगभन।

अऩभान – अनादय, उऩेऺा, ननयादय, फेइज्जजती।

अप्वया – ऩयी, दे वकन्मा, अरुणवप्रमा, सुखवननता, दे वाॊगना, हदव्माॊगना।

अबम – ननडय, साहसी, ननबीक, ननबवम, ननश्चचन्त।

अबागा – फदनसीफ, बानमहीन, फदककस्भत, कभवहीन।

अबाल – कभी, तॊगी, न्मूनता, अऩूनतव।


अलबजात – कुरीन, सुजात, खानदानी।

अलबप्राम – प्रमोजन, आशम, तात्ऩमव, भतरफ, अथव, भॊतव्म, ववचाय।

अलबस – जानकाय, ववऻ, ऩरयचचत, ऻाता।।

अलबभान – गौयव, गवव, नाज, घभॊड, दऩव, स्वालबभान।

अलबमोग – दोषायोऩण, कसयू , अऩयाध, गरती।

अलबराऴा – काभना, भनोयथ, इच्छा, आकाॊऺा, ईहा, ईप्सा, चाह, रारसा, भनोकाभना।

अलबलादन – नभस्ते, नभस्काय, प्रणाभ, दण्डवत, याभ-याभ।

अभ्माव – रयमाज, ऩन
ु यावश्ृ त्त, दोहयाना, भचक।

अभय – भत्ृ मुॊजम, अववनाशी, अनचवय, अऺय, अऺम।

अभीय – धनी, धनाढ्म, सम्ऩन्न, धनवान, ऩैसेवारा।

अळोक – ताम्रऩल्रव, हे भऩुष्ऩक, कणवऩूयक, वऩण्डऩुष्ऩक, यक्तऩल्रव, अॊगनावप्रम।

अनन्त – असॊख्म, अऩरयलभत, अगखणत, फेशुभाय।

असानी – अनलबऻ, अनजान, भूख,व भूढ, अफोध, नासभझा।

अगुआ – अग्रणी, सयदाय, भुखखमा, प्रधान, नामक।

अधय – यदन, छद, यदऩुट, होंठ, ओष्ठ।

अध्माऩक – आचामव, लशऺक, गुरु, व्माख्माता, अवफोधक, अनुदेशक।


अॊधकाय – तभ, नतलभय, ध्वान्त, अॊचधमाया।

अनर – धभ
ू केतु, ऩावक, कृशानु, हुताशन, अश्नन, आग।

अघाना – छकना, तप्ृ त होना, सन्तष्ु ट होना, ऩेट बयना।

अनुरूऩ – अनुकूर, सॊगत, अनस


ु ाय, भआ
ु कपका।

अऩकाय – अननष्ट, अभॊगर, अहहत, अनहहत।

आतयु – फेचैन, अधीय, उद्ववनन, आकुर।

अनोखा – ववरऺण, अद्भत


ु , अनठ
ू ा, ववचचत्र।

अन्त्ऩयु – यननवास, बोगऩयु , जनानखाना हयभ।

अदृचम – अन्तधावन, नतयोहहत, ओझर, रुप्त।

अकार – बुखभयी, कुकार, दष्ु कार, दलु बवऺा।

अळुि – दवू षत, गॊदा, अऩववत्र, अशुचच।

अवभ्म – अबर, अववनीत, अलशष्ट, गॎवाय, उजड्ड, अलशष्ट, गॉवाय, जॊगरी, दे हाती, ननयॊ कुश, उद्दॊड।

अलबप्राम – आशम, तात्ऩमव, उद्देचम, भॊशा।

अनुऩभ – अतुर, अऩूव,व अप्रनतभ, ननरूऩभ, अद्ववतीम, फेजोड।

अधभ – नीच, ननकृष्ट, ऩनतत।

अलसा – नतयस्काय, अवहे रना, अवभान, तौहीन।


अतीत – ववगत, व्मतीत, गत, गुजया हुआ, फीता हुआ।

अननश्चित – भ्राभक, सॊहदनध, अननणीत।

अऩकीनतघ – अऩमश, फेदनाभी, ननॊदा, अकीनतव।

अध्ममन – अनश
ु ीरन, ऩायामण, ऩठनऩाठन, ऩढना।

अनयु ोध – अभ्मथवना, प्राथवना, ववनती, माचना, ननवेदन।

अखण्ड – ऩण
ू ,व सभस्त, सम्ऩण
ू ,व अववबक्त, सभच
ू ा, ऩयू ा।

अऩयाधी – भज
ु रयभ, दोषी, कसयू वाय, सदोष।

अधीन – आचश्रत, भातहत, ननबवय, ऩयाचश्रत, ऩयाधीन।

अनुचित – नाजामज, गैयवाश्जफ, फेजा, अनुऩमुक्त, अमुत।

अन्लेऴण – अनुसन्धान, गवेषण, खोज, जाॉच।

अनफन – वववाद, झगडा, तकयाय, फखेडा।

अभूल्म – अनभोर, फहुभूल्म, भूल्मवान, फेशकीभती।

अलननत – अऩकषव, चगयाव, चगयावट, घटाव, ह्रास।

अचरीर – अबर, अचधभ्रष्ट, ननरवज्जज फेशभव, असभ्म।


आकुर – व्मग्र, फेचैन, ऺुब्ध, फेकर।

आषेऩ – अलबमोग, आयोऩ, दोषायोऩण, इल्जाभ।

आकृनत – आकाय, चेहया-भोहया, नैन-नक्श, डीर-डौर।

आदळघ – प्रनतरूऩ, प्रनतभान, स्टै न्डडव, भानक।

आरवी – ननठल्रा, फैठा-ठारा, ठरआ


ु , सस्
ु त, ननकम्भा, काहहर।

आमष्ु भान – चचयामु, दीघावमु, शतामु, दीघवजीवी।

आसा – आदे श, ननदे श, पयभान, हुक्भ।

आश्म – सहाया, आधाय, बयोसा, अवरम्फ, प्रश्रम।

आख्मान – कहानी, वत्ृ ताॊत, कथा, ककस्सा।

आधुननक – अवावचीन, नूतन, नव्म, वतवभानकारीन, नवीन, अधुनातन।

आलेग – तेजी, स्पूनतव, जोश, त्वया, तीव्र, पुती, चऩरता।

आरोिना – सभीऺा, टीका, हटप्ऩणी, नुक्ताचीनी, सभारोचना।

आयम्ब – श्रीगणेश, शुरूआत, सूत्रऩात, उऩक्रभ।

आलचमक – अननवामव, अऩरयहामव, जरूयी, फाध्मकायी।

आहद – ऩहरा, प्रथभ, आयश्म्बक, आहदभ।


आियण – व्मवहाय, फयताव, सदाचाय, लशष्टाचाय।

आऩश्त्त – ववऩदा, भस
ु ीफत, आऩदा, ववऩश्त्त।

आपत – आऩद, आऩदा, आऩश्त्त, कष्ट, आऩत ्, ववऩश्त्त, सॊकट, भस


ु ीफत, फरा, ववऩदा, तकरीफ, द्ु ख, ऩये शानी,
उऩरव

अयण्म – जॊगर, कान्ताय, वववऩन, वन, कानन।

आकाळ – नब, अम्फय, अन्तरयऺ, आसभान, व्मोभ, गगन, हदव, द्मौ, ऩुष्कय, शून्म।

आियण – चार-चरन, चरयत्र, व्मवहाय, आदत, फतावव।

आडम्फय – ऩाखण्ड, ढकोसरा, ढोंग, प्रऩॊच, हदखावा।

आॉख – अक्षऺ, नमन, नेत्र, रोचन, दृग, चऺु।

आॉगन – प्राॊगण, फगड, फाखय, अश्जय, अॉगना, सहन।

आभ – यसार, आम्र, परयाज, वऩकफन्धु, सहकाय, अभत


ृ पर।

आश्भ – भठ, ववहाय, कुटी, आखाडा, सॊघ।

आनन्द – आभोद, प्रभोद, ववनोद, उल्रास, प्रसन्नता, सुख, हषव।

आयाभ – ववश्राभ, चैन, याहत, ववश्राश्न्त, शाश्न्त।

आळा – उम्भीद, तवक्को, आस।

आळीलाघद – आशीष, दआ
ु , शब
ु ाशीष, शब
ु काभना।
आचिमघ – अचम्बा, अचयज, ववस्भम, ताज्जजुफ।

आशाय – बोजन, खयु ाक, खाना, बक्ष्म, बोज्जम।

आस्था – ववचवास, श्रिा, भान, ‘कदय, भहत्त्व, आदय।

इश्न्दया – रक्ष्भी, यभा, श्री, कभरा।

इच्छा – रारसा, काभना, चाह, भनोयथ, ईहा, ईप्सा, आकाॊऺा, अलबराषा, भनोकाभना।

इन्र – भहे न्र, सयु े न्र, सयु े श, ऩयु न्दय, दे वयाज, भधवा, ऩाकरयऩु, ऩाकशासन, ऩयु हूत।

इन्राणी – शची, इन्रवधू, भहे न्री, इन्रा, ऩौरोभी, शतावयी, ऩर


ु ोभजा।

इन्काय – अस्वीकृनत, ननषेध, प्रत्माख्मान।

इच्छुक – अलभराषी, रारानमत, उत्कश्ण्ठत, आतयु ।

इळाया – सॊकेत, इॊचगत, ननदे श।

इन्रधनुऴ – सुयचाऩ, इन्रधनु, शक्रचाऩ, सप्तवणवधनु।

ईख – गन्ना, ऊख, यसडॊड, यसार, ऩें डी, यसद।

ईभानदाय – सच्चा, ननष्कऩट, सत्मननष्ठ, सत्मऩयामण।

ईचलय – ऩयभात्भा, ऩयभेचवय, ईश, ओभ, ब्रह्भ, अरख, अनाहद, अज, अगोचय, जगदीश।
ईष्माघ – भत्सय, डाह, जरन, कुढना

उचित – ठीक, सम्मक् , सही, उऩमुक्त।

उच्छृॊखर – उद्दॊड, अक्खड, आवाया, अॊडफॊड, नरयॊकुश, भनभजी, स्वेच्छाचायी।

उश्क्त – कथन, वचन, सश्ू क्त।

उत्कऴघ – उन्ननत, उत्थान, अभ्मद


ु म, उन्भेष।

उत्ऩश्त्त – ऩैदाइश, उद्भव, जन्भ।

उत्ऩात – दॊ गा, उऩरव, पसाद, हडदॊ ग, गडफड।

उत्वल – सभायोह, आमोजन, ऩवव, त्मोहाय।

उत्वाश – जोश, उभॊग, हौसरा, उत्तेजना।

उत्वुक – आतुय, उत्कश्ण्ठत, व्मग्र, उत्कणव, रुचच, रुझान।

उदाय – सदम, उदात्त, सरृदम।

उदाव – उन्भन, ववभनस्क, खखन्न।

उदाशयण – लभसार, नभूना, दृष्टान्त।

उद्देचम – प्रमोजन, ध्मेम, रक्ष्म।

उद्मत – तैमाय, प्रस्तुत, तत्ऩय।


उन्भूरन – ननयसन, अन्त, उत्सादन।

उऩकाय – ऩयोऩकाय, अच्छाई, बराई, नेकी, हहत, उिाय, कल्माण।

उऩश्स्थत – ववद्मभान, हाश्जय, प्रस्तत


ु ।

उत्कृष्ट – उत्तभ, श्रेष्ठ, प्रकृष्ट, प्रवय।

उत्थान – उत्कषव, उठान, उत्क्रभण, चढाव, आयोह।

उल्राव – हषव, आनन्द, प्रभोद, आह्राद।

उऩभा – तर
ु ना, लभरान, सादृचम, सभानता।

उऩावना – ऩज
ू ा, आयाधना, अचवना, सेवा।

उदावीन – ववयक्त, ननलरवप्त, अनासक्त, वीतयाग।

उद्मभ – ऩरयश्रभ, ऩुरुषाथव, श्रभ, भेहनत।

उजारा – प्रकाश, आरोक, प्रबा, ज्जमोनत।

उिाय – भुश्क्त, ननस्ताय, अऩभोचन, छुटकाया।

उरझन – असभॊजस, दवु वधा, अननचचम, सॊभ्रभ।

उऩाम – मुश्क्त, ढॊ ग, तयकीफ, तयीका।

उऩमुक्त – उचचत, ठीक, वाश्जफ, भुनालसफ, वाॉछनीम।

उऩेषा – उदासीनता, ववयश्क्त, अनासश्क्त, ववयाग।


उल्टा – प्रनतकूर, ववरोभ, ववऩयीत, ववरुि।

उजाड – ननजवन, वीयान, सन


ु सान, बफमावान ्।

उग्र – तेज, प्रफर, प्रचण्ड।

उऩशाय – बेंट, सौगात, तोहपा।

उऩारम्ब – उराहना, लशकवा, लशकामत।

उल्रॊघन – नतयस्काय, उऩेऺा, अवऻा।

उल्रू – उरक
ू , रक्ष्भीवाहन, कौलशक।

ऊॉिा – उच्च, शीषवस्थ, उन्नत, उत्तॊग


ु ।

ऊजाघ – ओज, स्पूनतव, शश्क्त।

ऊवय – अनुवयव , सस्महीन, अनुऩजाऊ, ये त, ये ह।

ऊष्भा – उष्णता, तऩन, ताऩ, गभी।

ऋवऴ – भुनन, भनीषी, भहात्भा, साधु, सन्त।

ऋवि – फढती, फढोतयी, ववृ ि, सम्ऩन्नता, सभवृ ि


एकता – एका, सहभनत, एकत्व।

एशवान – आबाय, कृतऻता, अनुग्रह।

ऐळ – ववरास, ऐमाशी, सुख-चैन।

ऐचलमघ – वैबव, प्रबुता, सम्ऩन्नता, सभवृ ि।

ऐश्च्छक – स्वेच्छाकृत, वैकश्ल्ऩक, अश्ख्तमायी।

ओज – दभ, जोय, ऩयाक्रभ, फर, शश्क्त, ताकत।

ओझर – अॊतधावन, नतयोहहत, अदृचम।

औय – (i) अन्म, दस
ू या, इतय, लबन्न (ii) अचधक, ज्जमादा (ii) एवॊ, तथा।

औऴचध – दवा, दवाई, बेषज।

कॊजूव – सभ
ू , अनद
ु ाय, कृऩण, भक्खीचस
ू ।

कऩडा – चीय, वस्त्र, वसन, अम्फय, ऩट, चैर, दक


ु ूर
कऩाट – ऩट, ककवाड, द्वाय, दयवाजा।

कभर – सयोज, सयोरुह, जरज, ऩॊकज, नीयज, वारयज, अम्फुज, अम्फोज, अब्ज, सतदर, अयववन्द, कुवरम,
अम्बोरूह।

कणघ – अॊगयाज, सूमस


व ुत, अकवनन्दन, याधेम, सूतऩुत्र, यववसुत, आहदत्मनन्दन।

करी – भुकुर, जारक, ताम्रऩल्रव, कलरका, कुडभर, कायक नवऩल्रव, अॉखुवा, कोंऩर।

कल्ऩलष
ृ – कल्ऩतरु, कल्ऩशार, कल्ऩरभ
ु , कल्ऩऩादऩ, कल्ऩववटऩ।

कन्मा – कुभारयका, फालरका, ककशोयी, फारा।

कहठन – दफ
ु ोध, जहटर, दरू
ु ह।

कॊगार – ननधवन, गयीफ, अककॊचन, दरयर।

कॊिन – सोना, स्वणव, सुवणव, सोना, हे भ।

कृताथघ – उऩकृत, आबायी, धन्म, अहसानभॊद।

कभजोय – दफ
ु र
व , ननफवर, अशक्त, ऺीण।

काभना – अलबराषा, आकाॊऺा, भनोयथ, चाह।

कुहटर – छरी, कऩटी, धोखेफाज, चारफाज

कृऩा – अनुकम्ऩा, अनुग्रह, दमा, भेहयफानी।

काभुकता – व्मलबचारयता, बोगासश्क्त, ववषमासश्क्त, इॊहरमरोरऩ


ु ता।
काक – काग, काण, वामस, वऩशुन, कयठ, कौआ।

कुत्ता – कुक्कय, चवान, शन


ु क, कूकुय।

कफत
ू य – कऩोत, यक्तरोचन, हायीत, ऩायावत।

कृबत्रभ – अवास्तववक, नकरी, झठ


ू ा, हदखावटी, फनावटी।

कल्माण – भॊगर, मोगऺेभ, शब


ु , हहत, बराई, उऩकाय।

कठोय – कडा, ककवश, ऩरु


ु ष, ननष्ठुय।

कर – सन्
ु दय , अगरा हदन , भशीन , आयाभ , श्रेष्ठ। कऩडा – चीय , ,ऩट , वसन , अम्फय , वस्त्र।

करश – वववाद, झगडा, फखेडा।

कूर – ककनाया, तट, तीय।

कृऴक – ककसान, काचतकाय, हरधय, जोतकाय, खेनतहय।

श्क्रष्ट – दरू
ु ह, सॊकुर, कहठन, द्ु साध्म।

कामय – फुजहदर, बीरू, डयऩोक, कातय।

कौळर – करा, हुनय, पन, मोनमता, कुशरता।

कभघ – कामव, कृत्म, कक्रमा, काभ, काज।

कलरका – करी, भुकुर, ऩॊखुडी, कोयक।

कडला – कटु, तीखा, तीक्ष्ण, तेज।


कस्तुयी – भग
ृ भद, भग
ृ नालब, भदरता।

कॊदया – गह
ु ा, गप
ु ा, खोह, दयी।

कथन – ववचाय, वक्तव्म, भत, फमान।

कटाष – आऺेऩ, व्मॊनम, ताना, छीॊटाकशी।

कुरूऩ – बद्दा, फेडौर, फदसयू त, असन्


ु दय।

करॊक – दोष, दाग, धब्फा, राॊछन, करष


ु ता।

केलट – भाॊझी, नाववक, भल्राह, धीवय।

कोभर – भद
ृ र
ु , सक
ु ु भाय, नाजुक, नयभ, भर
ु ामभ।

ककयण – यश्चभ, केतु, अॊशु, भयीचच, अॊश, कय, भमूख, ऩुॊज।

कुळर – दऺ, प्रवीण, ननऩुण, चतुय।

कवक – ऩीडा, ददव , टीस, द्ु ख

कोमर – कोककर, चमाभा, वऩक, भदनशराका।

काल्ऩननक – अमथाथव, भनगढॊ त, कश्ल्ऩत।

कामयता – बीरुता, अऩौरुष, ऩाभयता, साहसहीनता।

कॊटक – काॉटा, शूर, खाय।

काभदे ल – भनोज, कन्दऩव, आत्भबू, अनॊग, अतनु, काभ, भकयकेतु, ऩुष्ऩचाऩ, स्भय, भन्भथ।
कानतघकेम – कुभाय, ऩाववतीनन्दन, शयबव, स्कन्ध, षडानन, गुह, भमूयवाहन, लशवसुत, षड्वदन।

ककरा – दग
ु ,व कोट, गढ, लशववय।

ककॊचित –(i) कनतऩम, कुछ एक, कई एक (ii) कुछ, अल्ऩ, जया।

ककन्तु – रेककन, ऩयन्तु, भगय, क्मोंकक, ऩय।

ककताफ – ऩस्
ु तक, ग्रॊथ, ऩोथी।

ककनाया –(i) तट, भह


ु ाना, तीय, ऩलु रन, कूर। (ii) अॊचर, छोय, लसया, ऩमवन्त।

कीभत – भल्
ू म, दाभ, रागत।

कुफेय – याजयाज, ककन्नये श, धनाचधऩ, धनेश, मऺयाज, धनद।

कुभुदनी – नलरनी, कैयव, कुभुद, इन्दक


ु भर, चन्रवप्रमा।

कृष्ण – नन्दनन्दन, भधुसूदन, जनादव न, भाधव, भुयारय, कन्है मा, द्वायकाधीश, गोऩार, केशव, नन्दकुभाय,
नन्दककशोय, बफहायी।

कृतस – आबायी, उऩकृत, अनुगह


ृ ीत, ऋणी, कृताथव।

केरा – यम्बा, कदरी, वायण, अशुभत्परा, बानुपर, काष्ठीरा।

िोध – गुस्सा, अभषव, योष, कोऩ, आक्रोश, ताव।

करुणा – दमा, तयस, यहभ, आत्भीमबावा।

कशानी – दास्तान, गाथा, ककस्सा, आख्मानमका।

कामय – डयऩोक, फज
ु हदर, बीरु।

खग – ऩऺी, चचडडमा, ऩखेरू, द्ववज, ऩॊछी, ववहॊ ग, शकुनन।

खॊजन – नीरकण्ठ, सायॊ ग, करकण्ठ।

खफय – जानकायी, सच
ू ना, सभाचाय, सन्दे श।

खर – शठ, दष्ु ट, धत
ू ,व दज
ु न
व , कुहटर, नारामक, अधभ।

खर
ु ा – स्ऩष्ट, प्रत्मऺ, जाहहय।

खळ
ु ी – उल्रास, आनन्द, हषव, प्रसन्नता।

खफ
ू वयू त – सन्
ु दय, सयु म्म, भनोऻ, रूऩवान।

खोज – अन्वेषण, आववष्काय, शोध, अनस


ु न्धान।

खन
ू – रुचधय, रहू, यक्त, शोखणत।

णखडकी – जॊगरा, झयोखा, गवाऺ, वातामन, अन्तद्वाय, झज्जझय |

खम्बा – खम्ब, स्तूऩ, स्तम्ब।

खतया – अॊदेशा, बम, डय, आशॊका।

खत – चचट्ठी, ऩत्र, ऩत्री, ऩाती।

खया – शुि, ननभवर, स्वच्छ, साप।

खाभोळ – नीयव, शान्त, चुऩ, भौन।


खोटा – अशुि, झूठा, नकरी, कृबत्रभ।

खयाफी – दोष, फयु ाई, अवगण


ु , ववकाय।

खीझ – झॊझ
ु राहट, झल्राहट, खीझना, चचढना।

गरुड – खगेचवय, सऩ
ु णव, वैतनेम, नागान्तक।

गलघ – घभण्ड, दऩव, अकड, दम्ब, अलबभान।

गौयल – भान, सम्भान, भहत्त्व, फडप्ऩन।

गम्बीय – गहया, अथाह, अतर।

गीदड – श्रॊग
ृ ार, लसमाय, जम्फुक।

गप्ु त – ननबत
ृ , अप्रकट, गढ
ू , अऻात, ऩयोऺ।

गनत – चार, यफ्ताय।

गनत – हार, दशा, अवस्था, श्स्थनत।

गुस्वा – अभषव, क्रोध, योष, ऺोब, कोऩ।

गॊगा – बागीयथी, दे वसरयता, भॊदाककनी, ववष्णुऩदी, बत्रऩथगा, दे वाऩगा, सुयसरय, ऩाऩछालरका।

गणेळ – रम्फोदय, भूषकवाहन, बवानीनन्दन, ववनामक, गजानन, भोदकवप्रम, जगवन्द्म, हे यम्फ।

गज – हस्ती, लसॊधुय, भातॊग, कुम्बी, नाग, हाथी, ववतुण्ड, कॊु जय, कयी, द्ववऩ।
गधा – गदहा, खय, धूसय, गदव ब, चक्रीवाहन, यासब, रम्फकणव, फैशाखनन्दन।

गाम – धेनु, सयु लब, भाता, कल्माणी, ऩमश्स्वनी, गौ।

गरना – रवीबत
ू होना, रववत होना, वऩघरना, नष्ट होना।

गशन – अगाह, अथाह, अगाध, गहया।

गर
ु ाफ – सभ
ु ना, शतऩत्र, स्थरकभर, ऩाटर, वन्ृ तऩष्ु ऩ।

गॊड
ु ा – रोपय, शयायती, नॊगा, फदभाश, रपॊगा, उदॊ ड।

गन
ु ाश – गरती, अधभव, ऩाऩ, अऩयाध, खता, त्रहु ट, कुकभव।

गोदाभ – भारखाना, बण्डाय, कोठा, गोडाउन।

घट – करश, घडा, कुम्ब, गागय, ननऩ, गगयी, कुट।

घय – भहर, सदन, ननकेतन, बवन, गह


ृ , गेह, ओक, हवेरी, सदन, राज, ननवास, कुटी, भकान, आवास, आरम।

घूव – चाॉदी का जूता, उऩदानक, रयचवत, उत्कोच।

घी – घत
ृ , हवव, अभत
ृ ।

घाटा – हानन, नुकसान, टोटा।

घन – जरधय, वारयद, अॊफुधय, फादर, नीयद।

घण
ृ ा – जुगुप्सा, अरुचच, नघन, वीबत्स।
ि

िॊदन – भॊगल्म, भरमज, श्रीखण्ड।

िाॉदी – यजत, रूऩा, यौप्म, रूऩक।

िऩरता – चॊचरता, अधीयता चर


ु फर
ु ाऩन।

िरयत्र – आचाय, सदाचाय, शीर, आचयण।

िेतना – होश, एहसास, ऻान, सध


ु फध
ु ।

चिॊता – कपक्र, सोच, ऊहाऩोह।

िौकीदाय – आयऺी, ऩहये दाय, प्रहयी, गायद, गचतकाय।

िोटी – शॊग
ृ , तॊग
ु , लशखय, ऩयकोहट।

चिक्कन – चचकना, भस्रण, श्स्ननध, स्नेहहर।

िि – ऩहहमा, चाक, चक्का।

िभक – काश्न्त, आबा, द्मुनत, दीश्प्त

चिककत्वा – उऩचाय, इराज, दवादारू।

ितुय – कुशर, नागय, प्रवीण, दऺ, ननऩुण, मोनम, होलशमाय, चा समाना, ववऻ।

िन्र – सोभ, याकेश, यजनीश, याकाऩनत, चाॉद, ननशाकय, हहभाॊशु, भमॊक, सुधाॊशु, भग
ृ ाॊक, चन्रभा, करा-ननचध,
ओषधीश।

िाॉदनी – चश्न्रका, ज्जमोत्स्ना, कौभद


ु ी, कुभद
ु करा, जन्
ु हाई, अभत
ृ वषव चन्रातऩ, चन्रभयीचच।
िऩरा – ववद्मुत ्, बफजरी, चॊचरा, दालभनी, तडडत।

िचभा – ऐनक, उऩनेत्र, सहनेत्र, उऩनमन।

िाटुकायी – खश
ु ाभद, चाऩरस
ू ी, लभ्मा प्रशॊसा, चचयौयी, चभचाचगयी।

चिह्न – प्रतीक, ननशान, रऺण, ऩहचान, सॊकेत।

िोय – यजनीचय, दस्म,ु साहलसक, कलबज, खनक, भोषक, तस्कय।

छात्र – ववद्माथी, लशऺाथी, लशष्म।

छामा – सामा, प्रनतबफम्फ, ऩयछाई, छाॉव।

छर – प्रऩॊच, झाॉसा, पये फ, कऩट।

छटा – आबा, काॊनत, चभक, सौन्दमव, सन्


ु दयता।

छानफीन – जाॉच-ऩडतार, ऩूछताछ, जाॉच, तहकीकात।

छे द – नछर, सूयाख, यॊ ध्र।

छरी – ठग, छद्मी, कऩटी, कैतव, धूत,व भामावी।

छराॊग – उछार, पाॊद, चौकडी, उछरकूद।

छाती – उय, वऺ, वऺ्स्थर, सीना।


जुगनू – प्रबाकीट, खद्मोत, ऩटफीजना।

जननी – भाॉ, भाता, भाई, भइमा, अम्फा, अम्भा।

जहटर – दफ
ु ोध, दरू
ु ह, ऩेचीदा, श्क्रष्ट।

जलान – मव
ु ा, मव
ु क, ककशोय, तरुण।

जीवलका – आजीववका, वश्ृ त्त, योटी, योजी।

श्जद्दी – हठी, दयु ाग्रही, हठीरा, दद


ु ावन्त।

जोळ – आवेश, उपान, उफार।

जील – प्राणी, दे हधायी, जीवधायी।

जानकायी – ऻान, फोध, ववऻता।

श्जसावा – उत्सुकता, उत्कॊठा, कुतूहर।

ज्जमोनतऴी – दै वऻ, गणक, बववष्मवक्ता।

जॊग – मुि, यण, सभय, रडाई, सॊग्राभ।

जग – दनु नमा, सॊसाय, ववचव, बुवन, भत्ृ मुरोक।

जर – सलरर, उदक, तोम, अम्फु, ऩानी, नीय, वारय, ऩम, अभत


ृ , | जीवक, यस, अऩ।

जशाज – जरमान, वामुमान, ववभान, ऩोत, जरवाहन।


जानकी – जनकसुता, वैदेही, भैचथरी, सीता, याभवप्रमा, जनकदर
ु ायी, जनकनश्न्दनी।।

जट
ु ाना – फटोयना, सॊग्रह कयना, जग
ु ाड कयना, एकत्र कयना, जभा कयना, सॊचम कयना।

जोळ – आवेश, साहस, उत्साह, उभॊग, हौसरा।

झॊडा – ध्वजा, केतु, ऩताका, ननसान।

झयना – सोता, स्रोत, उत्स, ननझवय, जरप्रऩात।

झेऩ – सकुचाहट, सॊकोच, तकल्रुप, खखसी, हमा।

झगडा – करह, टॊ टा, तकयाय, ववतॊडा।

झोऩडी – कुटी, कुहटमा, ऩणवकुटी, कॊु ज।

झॊड
ु – जत्था, सभह
ू , भॊडरी, ऩॊज
ु ।

झुकाल – रुझान, प्रवश्ृ त्त, प्रवणता, उन्भुखता।

टीका – बाष्म, वश्ृ त्त, वववनृ त, व्माख्मा।

टक्कय – लबडॊत, सॊघट्ट, सभाघात, ठोकय।

टोर – सभूह, भण्डरी, जत्था, झुण्ड, चटसार, ऩाठशारा।

टीव – सार, कसक, शूर, शूक्त, चसक, ददव , ऩीडा।


टे ढ़ा – (i) फॊक, कुहटर, नतयछा, वक्र (ii) कहठन, ऩेचीदा, भुश्चकर, दग
ु भ

ठॊ ड – शीत, हठठुयन, सदी, जाडा, ठॊ डक।

ठे व – आघात, चोट, ठोकय, धक्का।

ठौय – हठकाना, स्थर, जगह।

ठग – जारसाज, प्रवॊचक, वॊचक, प्रतायका

ठाठ – आडम्फय, सजावट, वैबव।

डगय – फाट, भागव, याह, यास्ता, ऩथ, ऩॊथ।

डय – त्रास, बीनत, दहशत, आतॊक, बम, खौप।

डेया – ऩडाव, खेभा, लशववय।

डोय – डोयी, यज्जज,ु ताॊत, यस्सी, ऩगहा, तन्त।ु

डकैत – डाकू, रट
ु े या, फटभाय।

डाश – ईष्र्मा, कुढन, जरन।

ढीठ – धष्ृ ट, प्रगल्ब, अववनीत, गुस्ताख।


ढोंग – स्वाॉग, ऩाखण्ड, कऩट, छर।

ढॊ ग – ऩिनत, ववचध, तयीका, यीनत, प्रणारी, कयीना।

ढे य – यालश, सभह
ू , अम्फाय, घौद, झण्
ु ड।

तन – शयीय, कामा, श्जस्भ, दे ह, वऩ।ु

तऩस्मा – साधना, तऩ, मोग, अनष्ु ठान।

तयॊ ग – हहरोय, रहय, ऊलभव, भौज, वीचच।

तयकळ – तण
ू , तण
ू ीय, भाथा, त्रोण, ननषॊग।

तरु – वऺ
ृ , ऩेड, ववटऩ, ऩादऩ, रभ
ु ।

तरलाय – अलस, खडग, लसयोही, चन्रहास, कृऩाण, शभशीय, कयवार, कयौरी।

तस्लीय – चचत्र, पोटो, प्रनतबफम्फ, प्रनतकृनत, आकृनत।

ताराफ – जराशम, सयोवय, तार, सय, तडाग, जरधय, सयसी, ऩद्माकय, ऩुष्कय।

तायीख – हदनाॊक, लभती, नतचथ।

तायीप – फडाई, प्रशॊसा, सयाहना, प्रशश्स्त, गुणगान।

तीय – नायाच, फाण, लशरीभुख, शय, सामक।

तुयन्त – तत्कार, तत्ऺण, सत्वय, अववरम्फ, जल्दी।


तोता – सुवा, शुक, दाडडभवप्रम, कीय, सुनगा, यक्ततुॊड।

ताकना – अवरोकन, दे खना, ननहायना, झाॊकना, ननयखना।

तत्ऩय – तैमाय, कहटफि, उद्मत, सन्नि।

तन्भम – भनन, तल्रीन, रीन, ध्मानभनन।

तारभेर – सभन्वम, सॊगनत, साभॊजस्म।

तोऴ – जस्मा तश्ृ प्त, सॊतोष, तश्ु ष्ट।

नतयस्काय – अऩभान, ननयादय, उऩेऺा, अवभानना।

तकरीप – योग, अस्वस्थता, रुनणता।

तयकायी – शाक, सब्जी, बाजी।

तुपान – झॊझावात, अॊधड, आॉधी, प्रबॊजन।

तादात्म्म – तरऩ
ू ता, अलबन्नता, सारूप्म, एकात्म्म।

त्रुहट – अशुवि, बूर-चूक, गरती।

थकान – क्राश्न्त, श्राश्न्त, थकावट, थकन।

थोडा – कभ, जया, अल्ऩ, स्वल्ऩ, न्मून।

थाश – अन्त, छोय, लसया, सीना।


दऩघण – शीशा, आइना, भुकुय, आयसी।

दमा – तयस, करुणा, यहभ, अनुकम्ऩा।

दाव – चाकय, नौकय, सेवक, ऩरयचायक, ऩरयचय, ककॊकय, अनच


ु य।

द्ु ख – क्रेश, खेद, ऩीडा, मातना, ववषाद, मन्त्रणा, ऺोब, कष्ट।

दध
ू – ऩम, दनु ध, स्तन्म, धीय, अभत
ृ ।

दे लता – सयु , आहदत्म, अभय, दे व, वस।ु

दोस्त – सखा, लभत्र, स्नेही, अन्तयॊ ग, हहतैषी, सहचय।

रोऩदी – चमाभा, ऩाॉचारी, कृष्णा, सैयन्ध्री, माऻसेनी, रऩ


ु दसत
ु ा, ननत्ममौवना।

दौरत – सम्ऩश्त्त, सम्ऩदा, धन, रव्म, ववबनू त, ववत्त।

दावी – फाॉदी, सेववका, ककॊकयी, ऩरयचारयका।

दै त्म – असुय, सुयारय, दनुज, यजनीचय।

दीऩक – आहदत्म, दीऩ, प्रदीऩ, दीमा।

दग
ु ाघ – लसॊहवाहहनी, कालरका, अजा, बवानी, चश्ण्डका, कल्माणी, सुबरा, चाभुण्डा।

दष्ु ट – नीच, खर, दज


ु न
व , वऩशुन।

दभन – अवयोध, ननग्रह, योक, ननमन्त्रण, वश, अटकाव।


दीघघ – ववशार, फडा, ववस्तत
ृ ।

हदव्म – अरौककक, स्वचगवक, रोकातीत, रोकोत्तय।

दर
ु ब
घ – अरम्ब, नामाफ, ववयर, दष्ु प्राप्म।

हदरेय – साहसी, शयू , वीय, फहादयु ।

दळा – अवस्था, रयॊथनत, हारत।

दळघन – बेट, साऺात्काय, भर


ु ाकात।

दॊ गा – उऩरव, पसाद, उत्ऩात, ऊधभ।

द्लेऴ – फैय, शत्रत


ु ा, दचु भनी, खाय।

दयलाजा – ककवाड, ऩल्रा, कऩाट, द्वाय।

दाई – धामा, धात्री, अम्भा, सेववका।

दे लारम – दे वभश्न्दय, दे वस्थान, भश्न्दय।

दृढ़ – ऩुष्ट, भजफूत, ऩक्का, तगडा।

दग
ु भ
घ – अगम्म, ववकट, कहठन, दस्
ु तय, ववषभ।

धनुऴ – चाऩ, धनु, शयासन, वऩनाक, कोदण्ड, कभान, ववलशखासन।

धीयज – धीयता, धीयत्व, धैम,व धायण, धनृ त।


धयती – धया, धयणी, ऩ्
ृ वी, क्षऺनत, वसुधा, अवनी, भेहदनी।

धनी – धनवान, धनाढ्म, दौरतभॊद, भारदाय, धन्नासेठ।

धन्मलाद – कृतऻता, शकु क्रमा, आबाय, भेहयफानी।

धलर – चवेत, सपेद, उजरा।

धॊध
ु – कुहया, नीहाय, कुहासा।

ध्लस्त – नष्ट, भ्रष्ट, बनन, खश्ण्डत।

धर
ू – यज, खेहट, लभट्टी, गदव , धलू र।

ध्रल
ु – दृढ, अटर, श्स्थय, ननश्चचत।

ध्मान – एकाग्रता, भनोमोग, तल्रीनता, तन्भमता।

धाभ – गह
ृ , ननकेतन, सदन, घय।

धॊधा – योजगाय, व्माऩाय, कायोफाय, व्मवसाम।

धनुधयघ – धन्वी, तीयॊ दाज, धनुषधायी, ननषॊगी।

धाक – योफ, दफदफा, धौंस।

नदी – सरयता, दरयमा, अऩगा, तहटनी, सलररा, स्रोतश्स्वनी, कल्रोलरनी, प्रवाहहणी।

नभक – रवण, रोन, याभयस, नोन।


नमा – नवीन, नव्म, नूतन, आधुननक, अलबनव, अवावचीन, नव, ताजा।

नामक – अलबनेता, लसताया, ऩात्र, कराकाय, अगव


ु ा, प्रभख
ु ऩात्र।

नाळ – (i) सभाश्प्त, अवसान (ii) ववनाश, सॊहाय, ध्वॊस, नष्ट-भ्रष्ट।

ननत्म – हभेशा, योज, सनातन, सववदा, सदा, सदै व, चचयॊ तन, शाचवत।

ननमभ – ववचध, तयीका, ववधान, ढॊ ग, कानन


ू , यीनत।

नीरकभर – इॊदीवय, नीराम्फज


ु , नीरसयोज, उत्ऩर, अलसतकभर, कुवरम, सौगश्न्धत।

नौका – तरयणी, डोंगी, नाव, जरमान, नैमा, तयी।

नायी – स्त्री, भहहरा, यभणी, वननता, वाभा, औयत।

ननन्दा – अऩमश, फदनाभी, फुयाई, फदगोई।

ननलभत – हे त,ु उद्देचम, ध्मेम, प्रमोजन।

नये ळ – नये न्र, याजा, नयऩनत, बूऩनत, बूऩार।

ननकम्भा – ननठल्रा, अकभवण्म, ननखट्टू, फेकाय।

ननबघम – ननडय, हदरेय, नन्शॊक, फेधडक।

ननष्ऩष – उदासीन, अरग, ननयऩेऺ, तटस्थ।

ननमनत – बानम, प्रायब्ध, होनी।

ननकट – सभीऩ, कयीफ, आसन्न।


नलर – अद्भत
ु , ववचचत्र, ववरऺण, अनोखा।

नषत्र – ताया, लसताया, खद्मोत, तायक।

नलीन – नव, नत
ू न, अलबनव, नवेरा।

नाग – सऩव, ववषधय, बज


ु ॊग, व्मार, पणी।

नग – बध
ू य, ऩहाड, ऩववत, शैर, चगरय।

नयक – मभऩयु , मभरोक, जहन्नभ


ु , दौजख।

नम्र – लशष्ट, सश
ु ीर, ववनीत, ववनमशीर।

ननचध – कोष, खजाना, बण्डाय।

नग्न – नॊगा, हदगम्फय, ननववस्त्र, अनावत


ृ ।

ननधान – आश्रम, आधाय, अवरम्फ।

नीयव – यसहीन, पीका, सूखा, स्वादहीन।

नीयल – भौन, चुऩ, शान्त, खाभोश।

ननयथघक – फेभानी, फेकाय, अथवहीन, व्मथव

ननष्ठा – आस्था, श्रिा, ववचवास।

ननणघम – ननष्कषव, पैसरा, ऩरयणाभ।

ननष्ठुय – ननदव म, ननभवभ, फेददव , फेयहभ।


नेकी – उऩकाय, बराई, अच्छा, बरा।

ऩत्ता – ऩणव, ऩल्रव, ऩत्र, ऩाती, ऩत्ती, दर।

ऩत्थय – ऩाहन, प्रस्तय, सॊग, अचभ, ऩाषाण।

ऩनत – स्वाभी, कान्त, बतावय, फल्रब, बताव, ईश।

ऩत्नी – दर
ु हहन, अधाांचगनी, गहृ हणी, बत्रमा, दाया, जोरू, गह
ृ रक्ष्भी, सहधलभवणी, सहचयी।

ऩचथक – याही, फटाऊ, ऩॊथी, भस


ु ाकपय, फटोही।

ऩश्ण्डत – ववद्वान, सध
ु ी, ऻानी, धीय, कोववद, प्राऻ।

ऩयळयु ाभ – बग
ृ स
ु त
ु , जाभदनन्म, बागवव, ऩयशध
ु य, बग
ृ न
ु न्दन, ये णक
ु ातनम।

ऩलघत – ऩहाड, अचर, शैर, नग, बध


ू य, भेरू, भहीधय, चगरय।

ऩलन – सभीय, अननर, भारुत, वात, ऩवभान, वामु, फमाय।

ऩवलत्र – ऩुनीत, ऩावन, शुि, शुचच, साप, स्वच्छ।

ऩान – ताम्फूर, ऩणवरता, नागयफेर, नागवल्री, सप्तलशरा, नाचगनीऩत्र।

ऩालघती – बवानी, अश्म्फका, गौयी, अबमा, चगरयजा, उभा, सती, लशववप्रमा।

वऩता – जनक, फाऩ, तात, गुरु, पादय, वालरद।

ऩुत्र – तनम, आत्भज, सुत, रडका, फेटा, औयस, ऩूत।


ऩुत्री – तनमा, आत्भजा, सुवा, रडकी, फेटी, दहु हता।

ऩथ्
ृ ली – वसध
ु ा, वसन्
ु धया, भेहदनी, भही, ब,ू बलू भ, इरा, उवी, जभीन, क्षऺनत, धयती, धात्री।

प्रकाळ – चभक, ज्जमोनत, द्मनु त, दीश्प्त, तेज, आरोक।

प्रनतष्ठा – गौयव, भहानता, इज्जजत, सम्भान, आफरू, कीनतव, मश।

प्रबात – सवेया, सफ
ु ह, ववहान, प्रात्कार, बोय, ऊषाकार।

प्रथा – प्रचरन, चरन, यीनत, रयवाज, ऩयम्ऩया, ऩरयऩाटी, रूहढ।

प्रफन्ध – इन्तजाभ, व्मवस्था, फन्दोफस्त।

प्ररम – कमाभत, ववप्रव, कल्ऩान्त, गजफ।

प्रलवि – भशहूय, नाभी, ख्मात, नाभवय, ववख्मात, प्रख्मात, मशस्वी।

प्राथघना – ववनम, ववनती, ननवेदन, अनुयोध, स्तुनत, अभ्मथवना, अचवना, अनुनम।

वप्रमा – वप्रमतभा, प्रेमसी, सजनी, हदररुफा, प्मायी।

प्रेभ – प्रीनत, स्नेह, दर


ु ाय, राड-प्माय, भभता, अनुयाग, प्रणम।

ऩैय – ऩाॉव, ऩाद, चयण, गोड, ऩग, ऩद, ऩगु, टाॉग।

प्रबा – छवव, दीश्प्त, द्मुनत, आबा।

ऩारा – हहभ, तुषाय, नीहाय, प्रारेम।

ऩॊथ – याह, डगय, ऩथ, भागव।


ऩयतन्त्र – ऩयाधीन, ऩयवश, ऩयाचश्रत।

ऩॊककर – गॊदरा, भैरा, भलरन।

ऩरयलाय – कुर, घयाना, कुटुम्फ, कुनफा।

ऩयभाथघ – बराई, उऩकाय, ऩयोऩकाय।

ऩयछाई – प्रनतच्छामा, सामा, प्रनतबफम्फ, छामा।

ऩरयिय – सेवक, नौकय, बत्ृ म, चाकय।

ऩषी – ववहग, ननहॊ ग, खग, शकुन्त।

ऩर – ऺण, रम्हा, दभ।

ऩचिाताऩ – अनुताऩ, ऩछतावा, नरानन, सॊताऩ।

ऩरयष्कृत – ऩरयभाश्जवत, प्राॊजर, शुि।

ऩताका – झॊडा, ध्वज, ननशान।

प्रिुय – ऩमावप्त, फहुत, मथेष्ट।

ऩयािभ – ऩुरुषाथव, ताकत, शश्क्त।

ऩरयलाद – ननॊदा, फुयाई, अऩमश, फदनाभी।

ऩरयताऩ – क्रेष, व्मथा, द्ु ख, ऩीडा।

ऩयख – छानफीन, ऩयीऺण, जाॉच, ऩहचान।


ऩरयणाभ – ऩरयऩाक, नतीजा, पर।

ऩयाश्जत – ऩयाबत
ू , ऩयास्त, ववश्जत।

ऩाऩ – ऩातक, गन
ु ाह, अऩकभव।

ऩागर – दीवाना, ववक्षऺप्त, उन्भत्त।

ऩाखण्ड – आडम्फय, ढोंग, प्रऩॊच, स्वाॊग, ढकोसरा।

ऩादऩ – ऩेड, वऺ
ृ , रभ
ु , तरू।

ऩाभय – ऩाऩी, दष्ु ट, दयु ात्भा, ऩातकी।

ऩाळ – जारफॊधन, पॊदा, फॊधन, जकडन।।

ऩीडा – ददव , व्मथा, वेदना, मॊत्रणा।

ऩुकाय – दह
ु ाई, गुहाय, परयमाद।

ऩुयातन – प्राचीन, ऩूवक


व ारीन, ऩुयाना।

ऩुष्ट – फलरष्ठ, रृष्ट-ऩुष्ट, तगडा।

ऩूजा – आयाधना, अचवना, उऩासना।

प्रकाॊड – अनतशम, ववऩुर, अचधक, बायी।

प्रगल्ब – अहॊ कायी, दम्बी, गवीरा, अलबभानी।

प्रसा – फुवि, ऻान, भेधा, प्रनतब।


प्रिण्ड – बीषण, उग्र, बमॊकय।

प्रणम – स्नेह, अनयु ाग, प्रीनत, अनयु श्क्त।

प्रचथत – ववख्मात, प्रलसि, प्रख्मात, नाभवय।

प्रताऩ – प्रबाव, धाक, फोरफारा, इकफार।

प्रनतशाय – दयफान, चोफदाय, द्वायऩार, द्वाययऺक।

प्रनतहशॊवा – प्रनतशोध, फदरा, प्रनतकाय।

प्रनतसा – प्रण, वचन, वामदा।

प्रायब्ध – बानम, तकदीय, ककस्भत, नसीफ।

प्रस्तालना – प्राक्कथन, बूलभका, ऩुयोवचन, आभुख।

प्रेषागाय – नाट्मशारा, यॊ गशारा, अलबनमशारा, प्रेऺागह


ृ ।

प्रौढ – अधेड, प्रफुि।

पवाद – उत्ऩाद, दॊ गा, फरवा।

पर – भीजान,फीजकोश,ऩुष्ऩाण्ड,प्रबुबोज,सस्म,यसाफाद, पय,ऩुष्ऩज ।

पुनगी – कोंऩर, भॊजयी, अॊकुय, ककसरम।

पणी – सऩव, साॉऩ, पणधय, नाग।


पौयन – तत्कार, तत्ऺण, तुयन्त।

पूर – सभ
ु न, कुसभ
ु , गुर, प्रसन
ू , ऩष्ु ऩ, ऩह
ु ु ऩ।

पौज – सेना, रचकय, ऩल्टन, वाहहनी, सैन्म।

फरयाभ – हरधय, फरवीय, ये वतीयभण, फरबर, हरी, चमाभफन्धु।

फाग – उऩवन, वाहटका, उद्मान, ननकॊु ज, पुरवाडी।

फन्दय – कवऩ, वानय, भकवट, शाखाभग


ृ , कीश।

फट्टा – घाटा, हानन, टोटा, नक


ु सान।

फलरदान – कुफावनी, आत्भोत्सगव, जीवनदान।

फफघय – असभ्म, जॊगरी, अलशष्ट, उित।

फशे लरमा – अहे यी, लशकायी, व्माध, रुब्धका।

फॊजय – ऊसय, ऩयती, अनुऩजाऊ, अनुवयव ।

फयाफयी – सभान, सदृश, तुल्म।

फडप्ऩन – फडाई, भहत्त्व, भहत्ता, गरयभा।

बफगाड – ववकाय, दोष, खयाफी।

फगालत – ववप्रव, ववरोह, गदय।


फशादयु – वीय, सूयभा, शूय, जवाॉभदव ।

बफछोश – ववमोग, जद
ु ाई, बफछोडा, ववप्ररॊब।

बफमालान – ननजवन, सन
ू सान, वीयान, उजाड।

फेजोड – अनऩ
ु भ, अद्ववतीम, अतर
ु ।

ब्रह्भा – ववचध, चतयु ानन, कभरासन, ववधाता, ववयॊ चच, वऩताभह, अज, प्रजाऩनत, स्वमॊब।ू

फादर – भेघ, ऩमोधय, नीयद, वारयद, अम्फद


ु , फराहक, जरधय, घन, जीभत
ू ।

फार – केश, अरक, कुन्तर, योभ, लशयोरूह, चचकुय।

बफजरी – तडडत, दालभनी, ववद्मत


ु , सौदालभनी, चॊचरा, फीजयु ी।

बाॉग – ववजमा, भॎग, लशवा, चऩरा, जमा।

बाई – भ्राता, फन्धु, सहोदय।

बम – डय, त्रास, बीनत, खौप।

बगलान – ऩयभेचवय, ऩयभात्भा, सवेचवय, प्रबु, ईचवय।

बचगनी – दीदी, जीजी, फहहन।

बॊग – नाश, ध्वॊस, ऺम, ववनाश।

बायती – सयस्वती, ब्राह्भी, ववद्मा दे वी, शायदा, वीणावाहदनी।


बाल – आशम, अलबप्राम, तात्ऩमव, अथव।

बार – रराट, भस्तक, भाथा, कऩार।

बयोवा – सहाया, अवरम्फ, आश्रम, प्रश्रम।

बास्कय – चभकीरा, आबाभाम, दीश्प्तभान, प्रकाशवान।

बग
ु तान – बयऩाई, अदामगी, फेफाकी।

बोरा – सीधा, सयर, ननष्कऩट, ननचछर।

बोजन – आहाय, खाद्म साभग्री, खाना।

बल
ु न – जगत, सॊसाय, ववचव, दनु नमा।

बूखा – फुबुक्षऺत, ऺुधातुय, ऺुधारु, ऺुधात।

बॊलया – भ्रभय, भूॊग, भधुकय, भधुऩ, अलर, द्ववये प।

बाई – अग्रज, अनुज, सहोदय, तात, बइमा, फन्धु।

भछरी – भीन, भत्स्म, सपयी, झष, जरजीवन।

भजाक – हदल्रगी, उऩहास, हॉसी, भखौर, भसखयी, व्मॊनम, छीॊटाकशी।

भहदया – शयाफ, हारा, आसव, भद्म, भधु, सुया।

भशादे ल – शॊकय, शॊबु, लशव, ऩशुऩनत, चन्रशेखय, भहे चवय, बूतेश, आशुतोष, चगयीश।
भॊगर – भहीसुत, बौभ, रोहहताॊग।

भक्खन – नवनीत, दचधसाय, भाखन, रौनी।

भट्ठा – भाठा, छाछ, गोयस।

भॊडन – अरॊकयण, शॊग


ृ ाय, रूऩसज्जजा।

भॊगनी – वानदान, परदान, सगाई।

भत – धायणा, सम्भनत, भॊतव्म, ववचाय।

भनीऴी – ऩश्ण्डत, ववचायक, ऻानी, ववद्वान।

भतबेद – असहभनत, भातवैध, असम्भनत।

भुॊश – भुख, आनन, फदन।

लभत्र – सखा, दोस्त, सहचय, सुरृद।

भैना – सारयका, चचत्ररोचना, करहवप्रमा।

भनोशय – भनहय, भनोयभ, रुबावना, चचत्ताकषवक।

भॊथन – बफरोना, ववरोडन, आरोडना।

भशक – ऩरयभर, वास, सुवास, खुशफू।

भशत्ता – फडाई, गरयभा, भहात्म्म, गौयव।

भशर – याजबवन, याजप्रासाद, याजभहर, प्रासाद।


भत्ृ मु – दे हावसान, दे हान्त, ऩॊचतत्वरीन, ननधन।

भशात्भा – भहाऩरु
ु ष, भहाभना, भहानब
ु ाव, भहाशम।

भाॊझी – भल्राह, नाववक, केवट।

भालभघक – भभावतक, भभवस्ऩशी, रृदमस्ऩशी, भभवबेदी।

भामा – छर, छरना, प्रऩॊच, प्रतायणा।

भाधयु ी – भाधम
ु ,व लभठास, भधयु ता।

भानल – भनज
ु , भनष्ु म, भानष
ु , इॊसान।

भानक – प्रनतभान, आदशव, भानदण्ड।

भुश्क्त – ननवावण, भोऺ, ऩयभऩद, अभत


ृ त्व।

भोती – सीवऩज, भौश्क्तक, भुक्ता, शलशप्रबा।

भेढक – दादयु , ददव यु , भण्डूक, वषाववप्रम, बेक।

भोय – भमूय, नीरकण्ठ, लशखी, केकी, कराऩी।

भोष – भुश्क्त, ननवावण, कैवल्म, ऩयभधाभ, ऩयभऩद, अऩवगव, सद्गनत।

मभ – सूमऩ
व ुत्र, धभवयाज, श्रािदे व, कीनाश, शभन, दण्डधय, मभुनाभ्राता।

मत्न – प्रमत्न, चेष्टा, उद्मभ।


मळ – कीनतव, ख्मानत, प्रलसवि।

मालभनी – ननशा, यजनी, याका, ववबावयी।

मल
ु ती – तरुणी, प्रभदा, यभणी।

मोग्म – कुशर, सऺभ, कामवऺभ, काबफर।

मात्रा – भ्रभण, दे शाटन, ऩमवटन, सपय, घभ


ू ना।

माद – सचु ध, स्भनृ त, ख्मार, स्भयण।

यक्त – खन
ू , रहू, रुचधय, शोखणत, रोहहत, योहहत।

यत – ननभनन, लरप्त, अनयु क्त, तल्रीन।

याधा – ब्रजयानी, हरयवप्रमा, याचधका, वष


ृ बानज
ु ा।

यानी – याऻी, भहहषी, याजऩत्नी।

यालण – रॊकेश, दशानन, दशकॊठ।

याज्जमऩार – प्रान्तऩनत, सूफेदाय, गवनवय।

याम – भत, सराह, सम्भनत, भॊत्रणा, ऩयाभशव।

योिक – भनोहय, रुबावना, हदरचस्ऩ।

रूहढ़ – प्रथा, दस्तूय, यस्भ।


यषा – फचाव, सॊयऺण, हहपाजत, दे खये ख।

यभा – कभरा, इश्न्दया, रक्ष्भी, हरयवप्रमा, सभर


ु जा, चॊचरा, ऺीयोदतनमा, ऩदभा, श्री, बागववी।

याजा – नये न्र, नये श, नऩ


ृ , बऩ
ू ार, याव, बऩ
ू ।

याभिन्र –यघव
ु य, यघन
ु ाथ, सीताऩनत, कौशल्मानन्दन, अलभताब, याघव, यघयु ाज, अवधेश।

यात – यै न, यजनी, ननशा, ववबावयी, मालभनी, तभी, तभश्स्वनी, शववयी, ववबा, ऺऩा, याबत्र।

रयऩु – फैयी, दचु भन, ववऩऺी, ववयोधी, प्रनतवादी, अलभत्र, शत्र।ु

योना – ववराऩ, योदन, रूदन, क्रॊदन, ववरऩन।

रक्ष्भण – अनॊत, रखन, सौलभत्र।

रग्न – सॊमक्
ु त, सॊरनन, सम्फि, सॊमक्
ु त।

रज्जजा – शभव, हमा, राज, ब्रीडा।

रशय – रहयी, हहरोय, तयॊ ग, उलभव।

रारवा – तष्ृ णा, अलबराषा, लरप्सा, रारच।

रुटेया – डकैत, डाकू, फटभाय, अऩहताव।

रोरुऩ – रारची, रोबी, तष्ृ णारु।

रगाताय – सतत, ननयन्तय, अजस्र, अनवयत।


रडाई – झगडा, खटऩट, अनफन, भनभुटाव, मुि, यण, सॊग्राभ, जॊग।

रता – फेर, वल्रयी, रनतका, प्रतान, वीरुध।।

लऴाघ – फयसात, भेह, फारयश, ऩावस, चौभास।

लष
ृ – सीना, छाती, वऺस्थर, उदयस्थर।

लन – अयण्म, अटवी, कानन, वववऩन।

लस्त्र – ऩरयधान, ऩट, चीय, वसन, अम्फय।

लऩु – दे ह, कामा, तन, फदन।

लगघ – श्रेणी, कोहट, सभद


ु ाम, सम्प्रदाम, सभह
ू ।

लऴघ – सार, फयस, वत्सय।

वलकाय – ववकृनत, दोष, फुयाई, बफगाड।

वलध्लॊव – ध्वॊस, ववनाश, नाश।

वलऩन्न – व्मचथत, आतव, ऩीडडत, ववऩश्त्तग्रस्त।

वलऴ – गयर, भाहुय, हराहर, कारकूट।

वलपर – व्मथव, फेकाय, ननयथवक, ननष्पर।

वलबल – सम्ऩश्त्त, धन, अथव, ऐचवमव।


वलरुद – प्रशश्स्त, कीनतव, मशोगान, गुणगान।

वलरषण – ववचचत्र, ननयारा, अद्भत


ु , अनठ
ू ा।

वलस्भम – अचयज, आचचमव, है यानी।

वलवलध – नाना, प्रकीणव, ववलबन्न।

वलबोय – भस्त, भनु ध, भनन, रीन।

वलयश्क्त – अनासश्क्त, ववयाग, ननलरवप्तता।

वलप्न – बद
ू े व, ब्राह्भण, भहीसयु , ऩयु ोहहत।

वलबा – प्रबा, आबा, काॊनत, शोबा।

वलळायद – ऩश्ण्डत, ऻानी, ववशेषऻ, सुधी।

वलराव – आनन्द, बोग, सन्तुश्ष्ट, वासना।

व्मवन – रत, वान, टे क, आसश्क्त।

लष
ृ – रभ
ु , ऩादऩ, तरु, ववटऩ।

लेचमा – गखणका, वायाॊगना, ऩतुरयमा, यॊ डी।

वललेिन – व्माख्मा, वणवन, टीका।

लवन्त – भधुभास, ऋतुयाज, भाधव, कुसुभाकय, काभसखा, भधुऋतु।

वलद्मा – ऻान, लशऺा, गुण, इल्भ, सयस्वती।


वलचध – शैरी, तयीका, ननमभ, यीनत, ऩिनत, प्रणारी, चार।

वलभर – स्वच्छ, ननभवर, ऩववत्र, ऩावन, ववशि


ु ।

वलभान – वामम
ु ान, खग, उडनखटोरा, हवाई जहाज।

वलष्णु – नायामण, केशव, गोववन्द, भाधम, जनादव न, ववशम्बय, भक


ु ु न्द, रक्ष्भीऩनत, कभराऩनत।

ळऩथ – कसभ, प्रनतऻा, सौगन्ध हरप, सौं।

ळशद – भधु, भकयॊ द, ऩष्ु ऩयस, ऩष्ु ऩासव।

ळब्द – ध्वनन नाद, आचव, घोष, यव, भख


ु य।

ळयाफ – हारा, अम्रता, भद्म, अभत


ृ ा, वीया, भहदया।

ळयीय – करेवय, दे ह, गात, वऩ,ु तन, बत


ू ात्भा।

ळयण – सॊश्रम, आश्रम, त्राण, यऺा।

लळष्ट – शारीन, बर, सॊभ्रान्त, सौम्म।

ळेय – नाहय, केहरय, वनयाज, केशयी, भग


ृ ेन्द।

ळस्म – पसर, ऩैदावाय, उऩज।

लळया – नाडी, धभनी, नसा

ळुब – भॊगर, कल्माणकायी, शुबकय।


ळामद – कदाचचत ्, सम्बवत्, स्मात ्।

लळषा – नसीहत, सीख, तारीभ, प्रलशऺण, उऩदे श, लशऺण ऻान।

लळवलका – ऩारकी, डाॉडी, डोरी।

चलेत – सपेद, लसत, धवर।

वफ – अखखर, सम्ऩण
ू ,व सकर, सवव, सभस्त, सभग्र, ननखखर।

वॊकल्ऩ – वत
ृ , दृढ ननचचम, प्रनतऻा, प्रण।

वॊतप्ृ त – व्मचथत, क्रेलशत, वेदनाग्रस्त।

वॊग्रश – सॊकरन, सॊचम, जभाव।

वॊन्मावी – फैयागी, दॊ डी, ववयत, ऩरयव्राजक।

वजग – सतकव, चौकस, चौकन्ना, सावधान।

वॊशाय – अन्त, नाश, सभाश्प्त, ध्वॊस।

वतीत्ल – ऩनतव्रत्म, सतीधलभवता, सतीऩन।

वन्नि – ताऩय, कहटफि, तैमाय, प्रस्तुत।

वभ्मता – लशष्टाचाय, लशष्टता, बरता, शीरवत्ता।

वभवाभनमक – सभकालरक, सभकारीन, सभवमस्क, वतवभान।


वदन – गह
ृ , घय, ननकेतन, आवास।

वभीषा – वववेचना, भीभाॊसा, आरोचना, ननरूऩण।

वभर
ु – नदीश, वायीश, यत्नाकय, उदचध, ऩायावाय।

वखी – सहे री, सहचयी, सैयॊधी।

वज्जजन – बर, साधु, ऩॊग


ु व, सभ्म, कुरीन।

स्तन – ऩमोधय, छाती, कुच, उयस, उयोज।

स्भायक – बण्डाय, कोष, कब्र, माद भें/स्भनृ त भें सॊग्रहारम, स्भनृ त, स्भयणोत्सव, ऻान कोष

वन्
ु दयी – रलरता, सन
ु ेत्रा, सन
ु मना, ववरालसनी, कालभनी।

वुफोध – सुगभ, सुस्ऩष्ट, सयर, फोधगम्म।

वूिी – अनुक्रभ, अनुक्रभखणका, तालरका, पेहरयस्त, सारयणी, सयणी।

स्लणघ – सुवणव, सोना, कनक, हहयण्म, हे भ।

स्लगघ – सुयरोक, द्मुरोक, फैकॊु ठ, ऩयरोक, हदव।

स्लालभकानतघकेम – लशखखवाहन, भहासेन, ऩाववतीनन्दन, कानतवकेम, भहासेन।

स्लच्छन्द – ननयॊ कुश, स्वतन्त्र, ननफांध।

स्लालरम्फन – आत्भाश्रम, आत्भननबवयता, स्वाश्रम।

स्नेश – प्रेभ, प्रीनत, अनुयाग, प्माय, भोहब्फत, इचक।


वभुर – सागय, यत्नाकय, ऩमोचध, नदीश, लसन्धु, जरचध, ऩायावाय, वायीश, अणवव, अश्ब्ध।

वयस्लती – बायती, शायदा, वीणाऩाखण, चगया, वाणी, भहाचवेता, श्री, बाष, वाक् , हॊ सवाहहनी, ऻानदानमनी।

वम
ू घ – हदनकय, हदवाकय, बास्कय, यवव, नायामण, सववता, कभरफन्धु, आहदत्म, प्रबाकय, भातवण्ड।

वम्ऩकघ – लभरन, बेट, लभराऩ, सॊमोग, भर


ु ाकात।

वम्ऩण
ू घ – ऩण
ू ,व सभग्र, ताया, ऩयू ा।

वद्भाल – सभन्वम, भेर-लभराऩ, भेरजोर।

वऩघ – बज
ु ॊग, अहह, ववषधय, व्मार, पणी, उयग, साॉऩ, नाग, अहह।

वयु ऩयु – सर
ु ोक, स्वगवरोक, हरयधाभ, अभयऩयु , दे वयाज्जम, स्वगव।

वेठ – भहाजन, सूदखोय, साहूकाय, ब्माजजीवी, ऩॉज


ू ीऩनत, भारदाय, धनवान, धनी, ताल्रुकदाय।

शॊ व – भुक्तभुक, भयार, सयस्वतीवाहन।

शॊ गाभा – हल्रा-गुल्रा, हरचर, शोय-गुर, भायऩीट

शॊ वी – श्स्भनत, भुस्कान, हास्म।

दृढ़ – श्जद, अड, टे क, दयु ाग्रह।

हशत – कल्माण, बराई, बरा, उऩकाय।

शरयण – भग
ृ , हहयन, कुयॊ ग, सायॊ ग।
शक – कल्माण, बराई, बरा, उऩकाय।

हशभारम – हहभचगरय, हहभाहर, चगरययाज, शैरेन्र।

शनभ
ु ान – ऩवनसत
ु , भहावीय, आॊजनेम, कऩीश, फज्ाॊगी, भारुनतनन्दन, फजयॊ ग।

शाथ – कय, हस्त, ऩाखण, बज


ु ा, फाहु, बज
ु ाग्र।

शाथी – गज, कॊु जय, ववतण्


ु ड, भतॊग, नाग, द्ववय।

शाय – (i) ऩयाजम, ऩयाबव, लशकस्त, भाता (ii) भारा, कॊठहाय, भोहनभारा, अॊकभालरका।

हशभ – तष
ु ाय, तहु हन, नीहाय, फपव।

हशयन – भग
ृ , हरयण, कुयॊ ग, सायॊ ग।

शोलळमाय – सभझदाय, ऩटु, चतुय, फुविभान, वववेकशीर।

षेत्र – प्रदे श, इराका, बूबाग, बूखण्ड।

षणबॊगुय – अश्स्थय, अननत्म, नचवय, ऺखणका।

षम – तऩेहदक, मक्ष्भा, याजयोग।

षुब्ध – व्माकुर, ववकर, उद्ववनन|

षभता – शश्क्त, साभ्मव, फर, ताकत।

षीण – दफ
ु र
व , कभजोय, फरहीन, कृश।
वलरोभ ळब्द(Antonym)
(अ)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

अदोष सदोष अचय चय

अग्रज अनुज अवावचीन प्राचीन

अनाथ सनाथ अदोष सदोष

अल्ऩामु दीघावमु अग्रज अनुज

अनुयश्क्त ववयश्क्त अकाभ सुकाभ

अल्ऩऻ फहुऻ अन्तयॊ ग फहहयॊ ग

अस्वस्थ स्वस्थ अऩवण ग्रहण

अगरा वऩछरा अस्त उदम

अन्त आहद अभय भत्मव

अनुरोभ प्रनतरोभ अवननत उन्ननत


अवनन अम्फय अनुकूर प्रनतकूर

अथव अनथव अश्नन जर

अनाहूत आहूत अनत अल्ऩ

अतक
ु ान्त तक
ु ान्त अरुचच सरु
ु चच

अत्मचधक अत्मल्ऩ अनेकता एकता

अध् उऩरय अभत


ृ ववष

अचधकतभ न्मूनतभ अभीय गयीफ

अधुनातन ऩुयातन अननत्म ननत्म

अनग्र
ु ह ववग्रह अतर ववतर

अवऩवत गह
ृ ीत अचधक अल्ऩ

अजवन वजवन अचधकायी अनचधकायी

अऩेऺा उऩेऺा अॊधकाय प्रकाश

अधभ उत्तभ अॊतभख


ुव ी वहहभख
ुव ी
अॊगीकाय अस्वीकाय अश्रु हास

अऻ ववऻ अलबऻ अनलबऻ

अनतवश्ृ ष्ट अनावश्ृ ष्ट अग्र ऩचच

अभावस्मा ऩखू णवभा अऩभान सम्भान

अघ अनघ अथ इनत

अकार सुकार अनुयाग ववयाग

अथी प्रत्मथी अगभ सुगभ

अनैक्म ऐक्म अन्तद्ववन्द्व फहहद्ववन्द्व

अॊत अनॊत अऩना ऩयामा

अचय चय अभत
ृ ववष

अवावचीन प्राचीन अनेक एक

अदोष सदोष अवनत उन्नत


अग्रज अनुज अजेम जेम

अनाथ सनाथ अदे म दे म

अल्ऩामु दीघावमु अकाभ सुकाभ

अनयु श्क्त ववयश्क्त अन्तयॊ ग फहहयॊ ग

अल्ऩऻ फहुऻ अऩवण ग्रहण

अस्वस्थ स्वस्थ अस्त उदम

अगरा वऩछरा अभय भत्मव

अन्त आहद अवननत उन्ननत

अनर
ु ोभ प्रनतरोभ अनक
ु ूर प्रनतकूर

अवनन अम्फय अश्नन जर

अथव अनथव अनत अल्ऩ

अनाहूत आहूत अरुचच सरु


ु चच

अतुकान्त तुकान्त अनेकता एकता


अत्मचधक अत्मल्ऩ अभत
ृ ववष

अध् उऩरय अभीय गयीफ

अचधकतभ न्मूनतभ अननत्म ननत्म

अधन
ु ातन ऩयु ातन अतर ववतर

अनुग्रह ववग्रह अचधक अल्ऩ

अवऩवत गह
ृ ीत अचधकायी अनचधकायी

अजवन वजवन अॊधकाय प्रकाश

अऩेऺा उऩेऺा अॊतभख


ुव ी वहहभख
ुव ी

अधभ उत्तभ अश्रु हास

अॊगीकाय अस्वीकाय अलबऻ अनलबऻ

अऻ ववऻ अग्र ऩचच

अनतवश्ृ ष्ट अनावश्ृ ष्ट अऩभान सम्भान


अभावस्मा ऩूखणवभा अथ इनत

अघ अनघ अनुयाग ववयाग

अकार सुकार अगभ सुगभ

अथी प्रत्मथी अन्तद्ववन्द्व फहहद्ववन्द्व

अनैक्म ऐक्म अऩना ऩयामा

अॊत अनॊत अभत


ृ ववष

अनेक एक

(आ)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

आहाय ननयाहाय आचाय दयु ाचाय

आवचमक अनावचमक आश्स्तक नाश्स्तक

आरव शुष्क आववबत


ूव नतयोबत

आलभष ननयालभष आकषवण ववकषवण


आग्रह दयु ाग्रह आधाय ननयाधाय

आसक्त अनासक्त आच्छाहदत अनाच्छाहदत

आधुननक प्राचीन आस्था अनास्था

आहद अनाहद आयम्ब अन्त

आगत अनागत आकॊु चन प्रसायण

आचश्रत ननयाचश्रत आगाभी ववगत

आयोह अवयोह आजाद गुराभ

आवत
ृ अनावत
ृ आहदष्ट ननवषि

आदान प्रदान आरोक अॊधकाय

आशा ननयाशा आभ्मन्तय फाह्म

आमात ननमावत आकाश ऩातार

आत्भा ऩयभात्भा आगभ रोऩ


आग्रही दयु ाग्रही आगे ऩीछे

आतुय अनातुय आदत्त प्रदत्त

आम व्मम आना जाना

आहान ववसजवन

(इ, ई)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

इनत अथ इहरोक ऩयरोक

इसका उसका इकट्ठा अरग

इच्छा अननच्छा इष्ट अननष्ट

ईचवय अनीचवय ईद भुहयव भ

ईषत ् अरभ ईश अनीश

(उ, ऊ)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ


उऩकाय अऩकाय ऊऩय नीचे

उदात्त अनुदात्त उत्तीणव अनुत्तीणव

उधाय नकद उदम अस्त

उन्ननत अवननत उच्च ननम्न

उद्घाटन सभाऩन उत्साह ननरुत्साह

उन्भीरन ननभीरन उचचत अनुचचत

उत्तयामण दक्षऺणामन उऩचाय अऩचाय

ऊध्वव ननम्न उऩभेम अनुऩभेम

उत्थान ऩतन उऩभा अनऩ


ु भा

उऋण ऋण उऩाम ननरुऩाम

उदमाचर अस्ताचर उऩमोग दरु


ु ऩमोग

उत्तय दक्षऺण उत्कषव अऩकषव


उत्कृष्ट ननकृष्ट उऩमुक्त अनुऩमुक्त

उन्भुख ववभुख उत्तभ अधभ

उद्मभ ननरुद्मभ ऊधभ ववनम

उित ववनीत उग्र सौम्म

उऩश्स्थत अनुऩश्स्थत उऩसगव प्रत्मम

ऊध्वव अधो उववय अनुवयव /फॊजय

ऊॉच नीच ऊध्ववगाभी अधोगाभी

(ए, ऐ)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

एक अनेक एडी चोटी

एकर फहुर एकत्र ववकीणव

एकता अनेकता एकाग्र चॊचर

ऐहहक ऩायरौककक ऐक्म अनैक्म


ऐचवमव अनैचवमव ऐनतहालसक अनैनतहालसक

(ओ, औ)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

ओजस्वी ननस्तेज औचचत्म अनौचचत्म

औऩचारयक अनौऩचारयक औऩन्मालसक अनाऩन्मालसन

(क वगव)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

कर आज क्रभ व्मनतक्रभ

कठोय कोभर कुकृनत सुकृनत

कुहटर ऋज/ु सयर क्रम ववक्रम

कृबत्रभ प्राकृत करुष ननष्करुष

कामव अकामव कडुवा भीठा

कहठन सयर कुख्मात ववख्मात


क्रूय अक्रूय कृतऻ अकृतऻ/कृतघ्न

क्रोध ऺभा कीनतव अऩकीनतव

कननष्ठ ज्जमेष्ठ करॊक ननष्करॊक

कामय ननडय कोऩ कृऩा

कुरूऩ सुन्दय कदाचाय सदाचाय

कऩूत सऩूत कटु भधु

कृष्ण शुक्र कृऩण उदाय/दानी

कभवण्म अकभवण्म ककवश सुशीर

करुण ननष्करुण कसयू वाय फेकसयू

कुसुभ व्रज ऺय अऺय

ऺभा क्रोध ऺभ अऺभ

ऺुर भहत ् ऺखणक शाचवत

ऺभा दण्ड खर सज्जजन


ख्मार कुख्मात खखरना भुयझाना

खगोर बूगोर खाद्म अखाद्म

खुरा फन्द खीझना यीझना

खॊडन भॊडन खया खोटा

खेद प्रसन्नता गत आगत

ग्रस्त भुक्त गम्बीय वाचार

गुप्त प्रकट गह
ृ ीत त्मक्त

गुण अवगुण गगन ऩ्


ृ वी

गोचय अगोचय गयर सध


ु ा

गभन आगभन गणतन्त्र याजतन्त्र

गुरु रघु गह
ृ ी त्मागी

ग्राह्म त्माज्जम गेम अगेम


गद्म ऩद्म गभी सदी

गयीफ अभीय गहया नछछरा

ग्राम्म लशष्ट गीरा सूखा

घय फाहय घण
ृ ा प्रेभ

घटना फढना घात प्रनतघात

घन तयर घये रू फनैरा

(च वगव)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

चय अचय चढाव उताय

चचन्भम जड चॊचर श्स्थय

चर अचर चाह अनचाह

चोय साघु चतयु भढ


चचयन्तन नचवय चचय अचचय


चेतन अचेतन छाॉह धूऩ

छरी ननचछर जन्भ भत्ृ मु

ज्जमेष्ठ कननष्ठ ज्जवाय बाटा

ज्जमोनतभवम तभोभम जम ऩयाजम

जर थर जवानी फुढाऩा

जागयण ननरा जाग्रत सुषुप्त

जागनृ त सुषुश्प्त जाडा गभी

जोड घटाव जीवन भयण

जड चेतन जॊगभ स्थावय

जेम अजेम जानत कुजानत

जीत हाय ऻान अऻान

झठ
ू सच झोऩडी भहर
(त वगव)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

ताभलसक साश्त्वक तष्ृ णा ववतष्ृ णा

ताना बयनी ताऩ शीत

तायीप लशकामत नतक्त भधयु

नतलभय प्रकाश तीक्ष्ण कॊु हठत

तीव्र भॊद तुकाॊत अतुकाॊत

तुच्छ भहान त्माज्जम ग्राह्म

तरुण वि
ृ तुर अतुर

तष
ृ ा तश्ृ प्त तप्ृ त अतप्ृ त

थरचय जरचय थोडा फहुत

थोक पुटकय दमारु ननदव म

दानी कॊजूस दद
ु ावन्त शाॊत
दरु
ु ऩमोग सदऩ
ु मोग धनी ननधवन

दज
ु न
व सज्जजन दानव दे व

धभव अधभव दग
ु न्
व ध सुगन्ध

ध्वॊस ननभावण धनी ननधवन

धूऩ छाॉह धया गगन

नख लशख नय नायी

नागरयक ग्राभीण नूतन ऩुयातन

ननवषि ववहहत ननदव म सदम

ननरवज्जज सरज्जज ननयालभष सालभष

ननरा जागयण नैसचगवक कृबत्रभ

ननयाकाय साकाय नगद उधाय

ननचछर छरी नीयस सयस


नभक हयाभ नभक हरार ननगण
ुव सगुण

ननषेध ववचध नगय ग्राभ

ननचचेष्ट सचेष्ट ननजीव सजीव

हदन यात न्मन


ू अचधक

दीघवकाम कृशकाम दयु ाचायी सदाचायी

दाता सूभ दयु ाशम सदाशम

दक्षऺण वाभ दे म अदे म

दृढ ववचलरत हदवा याबत्र

दफ
ु र
व सफर दृचम अदृचम

दवू षत स्वच्छ द्ु शीर सुशीर

धीय अधीय दोष गुण

धालभवक अधालभवक धष्ृ ट ववनीत

न्माम अन्माम नचवय शाचवत


नाभ अनाभ ननदोष सदोष

ननयथवक साथवक ननन्दा स्तुनत

ननॊद्म वॊद्म ननष्काभ सकाभ

नेक फद ननयऺय साऺय

नैनतक अनैनतक नयक स्वगव

ननयाशा आशा ननधवन धनी

ननभवर भलरन नकर असर

नमा ऩुयाना नाश्स्तक आश्स्तक

ननत्म अननत्म नकायात्भक सकायात्भक

ननभावण ध्वॊस नेकी फदी

(ऩ वगव)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ


ऩऺ ववऩऺ ऩरुष कोभर

ऩॊडडत भूखव ऩुण्म ऩाऩ

ऩहठत अऩहठत ऩयभाथव स्वाथव

ऩयतॊत्र स्वतॊत्र ऩव
ू व
व ती ऩयवती

ऩाचचात्म ऩौवावत्म प्रवश्ृ त्त ननवश्ृ त्त

प्रसाद ववषाद प्रत्मऺ ऩयोऺ

प्राकृनतक कृबत्रभ पर ननष्पर

पूरना भुयझाना फैय प्रीनत

वन्धन भोऺ/भश्ु क्त फद नेक

फहढमा घहटमा फि भुक्त

फफवय सभ्म फरवान फरहीन

फहहयॊ ग अॊतयॊ ग फाढ सख


ू ा

फाह्म आभ्मॊतय फाढग्रस्त सूखाग्रस्त


बम ननबवम भ्रान्त ननधावन्त

बूगोर खगोर बूत बववष्म

बूरोक धुरोक बेद अबेद

बोगी मोगी बोनम अबोनम

भसण
ृ रूऺ भहात्भा दयु ात्भा

भानवीम अभानवीम लभत्र शत्रु

भुख प्रनतभुख, ऩष्ृ ठ लभरन ववयह

भीठा कडुवा भत्मव अभय

भद
ृ र
ु रूऺ भाता वऩता

भालरक नौकय भोऺ फॊधन

ऩात्र कुऩात्र ऩुरुष स्त्री

ऩतन उत्थान ऩयाजम जम


ऩयामा अऩना ऩता खोज

ऩरयश्रभ ववश्राभ ऩववत्र अऩववत्र

प्रकाश अॊधकाय प्रख्मात अख्मात

प्रऻ भढ
ू प्रनतकूर अनक
ु ूर

प्रपुल्र म्रान प्ररम सश्ृ ष्ट

प्रशॊसा ननॊदा प्रकट गुप्त/प्रच्छन्न

ऩानी आग ऩारक सॊहायक

ऩुयातन नवीन ऩूवव उत्तय / ऩश्चचभ

ऩव
ू व
व त् नत
ू नवत ् ऩखू णवभा अभावस्मा

प्रेभ घण
ृ ा ऩूणव अऩूणव

ऩयाथव स्वाथव ऩयकीम स्वकीम

ऩयु स्काय नतयस्काय ऩतनोन्भख


ु ववकासोन्भख

प्रसायण सॊकोचन प्रभुख/प्रधान गौण


प्राचीन अवावचीन प्राची प्रतीची

प्रजा याजा पूट भेर

पामदा नुकसान फुया अच्छा

बरा फयु ा बर अबर

लबखायी दाता बौनतक आध्माश्त्भक

बायी हल्का भानव दानव

भान अऩभान भानक अभानक

भुख्म गौण भूक वाचार

भलरन ननभवर भयण जीवन

भनुज दनुज लभहनती आरसी

भत
ृ जीववत भुनापा नुकसान
(म, य, र, व)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ

मश अऩमश मथाथव कश्ल्ऩत

यत ववयत याग ववयाग

रघु गरु
ु लरखखत अलरखखत

रौककक अरौककक रेन दे न

वहहष्काय स्वीकाय व्मास सभास

ववऩश्त्त सम्ऩश्त्त वश्ृ ष्ट अनावश्ृ ष्ट

ववऩन्न सम्ऩन्न ववचरेषण सॊचरेषण

ववस्ताय सॊऺेऩ व्मश्ष्ट सभश्ष्ट

वववाद ननववववाद / ननणवम ववसजवन आह्वान

वि
ृ तरुण वैतननक अवैतननक

वादी प्रनतवादी ववजम ऩयाजम


ववकास ह्रास वन भरु

वसॊत ऩतझड वह
ृ त् रघु

ववचध ननषेध ववभुख उन्भुख

ववयह लभरन ववचवास अववचवास

ववष अभत
ृ मोग ववमोग

मोगी बोगी यात हदन

यचना ध्वॊस / ववनाश याजतॊत्र प्रजातॊत्र

याभ यावण रयक्त ऩूणव

रूऩवान क्रुरूऩ यॊ गीन यॊ गहीन फेयॊग

याजा यॊ क / प्रजा राब हानन

रुप्त प्रकट रौह स्वणव

लरप्त ननलरवप्त व्मथव अव्मथव / साथवक


ववयत ननयत / शत ववनीत उित

ववकीणव सॊकीणव ववऩद् सम्ऩद्

वैभनस्म सौभनस्म ववलशष्ट साधायण

व्मस्त अकभवण्म व्मम आम

ववक्रम क्रम ववस्तत


ृ सॊक्षऺप्त

ववधवा सधवा ववख्मात कुख्मात

ववषाद आह्राद वक्र ऋजु

वन्म ऩालरत ववृ ि हास

ववकषव आकषव ववनाश ननभावण

ववमोग सॊमोग ववशारकाम रघुकाम

ववशेष साभान्म ववसजवन सजवन

(ळ, ऴ, व, श)

ळब्द वलरोभ ळब्द वलरोभ


शोषण ऩोषण शीत उष्ण

शयण अशयण शमन जागयण

चवेत चमाभ शुब अशुब

लशव अलशव शासक शालसत

शकुन अऩशकुन शुक्र कृष्ण

शत्रु लभत्र शोक हषव

शुष्क आरव शुचच अशुचच

चरीर अचरीर शोषक ऩोषक, शोवषत

शाॊत अशात श्रव्म अश्रव्म / दृचम

श्रीगणेश इनत श्राॊत अश्राॊत

श्रिा अश्रिा शॊख


ृ रा ववश्रॊख
ृ रा

षॊड भदव षॊडत्व ऩॊस


ु त्व
सगुण ननगण
ुव स्वजानत ववजानत

सऺभ अऺभ सकाभ ननष्काभ

सज्जजन दज
ु न
व सॊन्मासी गह
ृ स्थ

सत ् असत ् सन्
ु दय कुरूऩ

सूभ दाता सुनाभ दन


ु ावभ

स्ऩचृ म अस्ऩचृ म साऺय ननयऺय

सऩूत कऩूत स्वगव नयक

साकाय ननयाकाय सश्ृ ष्ट प्ररम

सदाशम दयु ाशम सफर ननफवर

सुख द्ु ख श्स्थय चॊचर

सत्म असत्म सॊकीणव ववस्तीणव

सक
ु य दष्ु कय सादय ननयादय

स्वल्ऩामु चचयामु स्वकीमा ऩयकीमा


सुरभ दर
ु ब
व सभ्म असभ्म

सॊग नन:सॊग हषव शोक/ववषाद

ह्रास ववृ ि हहॊसा अहहॊसा

ह्रस्व दीघव सभ ववषभ

सहमोगी प्रनतमोगी सयर कहटन

साभान्म ववलशष्ट सुधा गयर

सजर ननजवर सदव गभव

सच झूठ सुगभ दग
ु भ

सॊचध ववग्रह सॊघटन ववघटन

सदम ननदव म सुफह शाभ

सवणव अवणव स्वप्न जागयण

सक
ु ृ नत ककृनत सयस नीयस
सभाज व्मश्क्त सॊऩन्न ववऩन्न

सम्भान अऩभान ससीभ असीभ

सहज दष्ु कय/कहठन स्थूर सूक्ष्भ

स्थावय जॊगभ स्भयण ववस्भण

स्वाथव ऩयभाथव स्वदे शी ऩयदे शी

स्वाधीन ऩयाधीन सॊगत असॊगत

सॊश्चरष्ट ववश्चरष्ट साथवक ननयथवक

साऩेऺ ननयऩेऺ सालभष ननयालभष

साय असाय सग
ु ॊध दग
ु ध
ां

सुबग दब
ु ग सुयाज दयु ाज

सौबानम दब
ु ावनम स्वतन्त्र ऩयतन्त्र

स्तनु त ननॊदा सदाचाय ववमोग

सुभनत कुभनत सॊमोग कदाचाय/दयु ाचाय


सत्काय नतयस्काय सभास व्मास

साश्त्वक ताभलसक सम्भुख ववभुख

सुशीर द्ु शीर सभश्ष्ट व्मश्ष्ट

सॊऩद् ववऩद् हास रुदन

हॉसना योना हाय जीत


हशॊदी के प्रलवि कवल एलॊ
उनकी यिनाएॉ

जमळॊकय प्रवाद की प्रभख


ु यिनाएॊ

 प्रेभऩचथक भळ
ुॊ ी प्रेभिॊद की प्रभख
ु यिनाएॊ
 नततरी
 कॊकार
 गोदान
 इयालती
 गफन
 ध्रुलस्लालभनी
 यॊ गबूलभ
 िॊरगुप्त
 कभघबूलभ
 स्कॊधगुप्त
 कामाकल्ऩ
 ऩचथक
 वेला वदन
 झयना
 प्रेभाश्म
 आॊवू
 आकाळदीऩ
भलरक भोशम्भद जामवी की प्रभख
ु यिनाएॊ
 छामा
 आॊधी
 इॊरजार
 ऩद्मालत
 जन्भेजम का नाग मस
 चित्ररेखा
 काभामनी
 कशयनाभा
 आखयी कराभ
वलष्णु ळभाघ की प्रभख
ु यिना याभधायी लवॊश हदनकय की प्रभख
ु यिनाएॊ

 ऩॊितॊत्र  उलघळी
 शुॊकाय
 ये णक
ु ा
याभिॊर ळुक्र की प्रभख
ु यिनाएॊ  कुरुषेत्र

दे लकीनॊदन खत्री जी की प्रभख


ु यिना
 चिॊताभणण
 यव भीभाॊवा

 िॊरकाॊता
गोस्लाभी तुरवीदाव जी की प्रभख
ु यिनाएॊ

अमोध्मा लवॊश उऩाध्माम शरयऔध की प्रभख


ु यिन
 याभिरयतभानव
 वलनम ऩबत्रका
 दोशालरी  अधणखरा पूर

 कवलतालरी  वप्रमप्रलाव

 गीतालरी  यवकरळ

 लैयाग्म वॊदीऩनी  ऩद्मप्रवून

 ऩालघती भॊगर  लैदेशी लनलाव

 जानकी भॊगर
िॊदफयदामी की प्रभख
ु यिना

 ऩथ्
ृ लीयाज यावो
पणीचलयनाथ “ये णु” की प्रभख
ु यिना वम
ू क
घ ाॊत बत्रऩाठी ननयारा की प्रभख
ु यिनाएॊ

 भैरा आॊिर  कुकुयभुत्ता


 अनालभका
 ऩरयभर
लॊद
ृ ालन रार लभाघ की प्रभख
ु यिना

केळल दाव की प्रभख


ु यिनाएॊ
 भग
ृ नमनी

 यलवकवप्रमा
कफीय की प्रभख
ु यिनाएॊ  कवलवप्रमा

फारकृष्ण ळभाघ नलीन की प्रभख


ु यिना
 फीजक

भशादे ली लभाघ की प्रभख


ु यिनाएॊ  उलभघरा

लॊद
ृ ालन रार लभाघ की प्रभख
ु यिना
 माभा
 यश्चभ

 भग
ृ नमनी
मळऩार जी की प्रभख
ु यिनाएॊ वलु भत्रानॊदन ऩॊत की प्रभख
ु यिनाएॊ

 चिदॊ फया
 दादा काभये ड
 लीणा
 झूठा वि
 स्लणघधलू र
 मुगलाणी
वब
ु रा कुभायी िौशान की प्रभख
ु यिनाएॊ  ग्राम्मा
 फूढ़ा िाॊद

 झाॊवी की यानी
शरयलॊळ याम फच्िन की प्रभख
ु यिनाएॊ
 भक
ु ुर
 बत्रधाया
 बफखये भोती
 भधळ
ु ारा
 क्मा बूरूॊ क्मा माद करूॊ
वयू दाव की प्रभख
ु यिनाएॊ  भधुकरेळ

 वयू वागय
भैचथरीळयण गुप्त की प्रभख
ु यिनाएॊ
 वूयऩच्िीवी
 वूयवायालरी
 बायत बायती
 वाहशत्म रशयी
 वाकेत
 जमरथ लध
 ऩॊिलटी
 मळोधया
याभधायी लवॊश हदनकय की प्रभख
ु यिनाएॊ भशादे ली लभाघ की प्रभख
ु यिनाएॊ

 ये णक
ु ा  ननशाय
 शुॊकाय  ननयजा
 कुरुषेत्र  वाध्म गीत
 उलघळी  दीऩलळखा
 यश्चभयथी  माभा, यश्चभ
 यवलॊती  वप्तऩणाघ वॊचधनी आधुननक कवल
 ििलार शाये को शरयनाभ
 द्लॊद्ल – गीत धभघलीय बायती की प्रभख
ु यिनाएॊ
 ऩयळुयाभ की प्रतीषा
 नीभ के ऩत्ते
 कनुवप्रमा
 नीर कुवुभ
 ठॊ डा रोशा
 वीऩी औय ळॊख
 वात गीत लऴघ
 आत्भा की आॊखें
 अॊधा मुग
 इनतशाव के आॊवू
 फाऩ,ू धूऩ छाॊल
 नए वुबावऴत
 फायदोरी वलजम
 धूऩ औय धुआॊ
कुटज
भशालीय प्रवाद द्वललेदी की प्रभख
ु यिनाएॊ

 वूयदाव
 वाहशत्म का भभघ
 अद्भत
ु आराऩ  अनाभदाव का ऩोथा
 कालरदाव की ननयॊ कुळता  फाणबट्ट की आत्भकथा
 नैऴधीमिरयतभ ् ििाघ  हशॊदी वाहशत्म की बूलभका
 वाहशत्म वीकय  वलिाय औय वलतकघ
 वलिाय-वलभळघ  कालरदाव की रालरत्म मोजना
 हशॊदी बाऴा की उत्ऩश्त्त
 हशॊदी नलयत्न
 नाट्मळास्त्र
 कालरदाव औय उनकी कवलता

आिामघ शजायी प्रवाद द्वललेदी की प्रभख


ु यिनाएॊ

 अळोक के पूर
 आरोक ऩलघ
 वलिाय प्रलाश
 कल्ऩ रता
 कफीय
शरयळॊकय ऩयवाई की प्रभख
ु यिनाएॊ

 जैवे उनके हदन कपये ,


 यानी नागपनी की कशानी
 तट की खोज
 बूत के ऩाॊल ऩीछे
 वदािाय का ताफीज
 लळकामत भुझे बी शै
 शॊ वते शैं योते शै
 तफ की फात औय थी
 फेईभानी की ऩयत
 ऩगडॊडडमों का जभाना
 औय अॊत भें
 वलकराॊग श्िा का दौय

हशॊदी वाहशत्म वे वॊफचॊ धत भशत्लऩण


ू घ प्रचन उत्तय
 ककस ऩस्
ु तक का 15 बायतीम बाषाओॊ औय 40 ववदे शी बाषाओॊ भें अनुवाद ककमा जा चुका है । –
ऩॊितॊत्र
 सॊववधान की आठवीॊ अनुसूची भें शालभर की गई चाय नहीॊ बाषाएॊ कौन सी है । – वॊथारी, भैचथरी,
फोडो,औय डोगयी
 ननशा ननभॊत्रण के यचनाकाय कौन है । – शरयलॊळ याम फच्िन
 गागय भें सागय बयने का कामव ककस कवव ने ककमा है । – बफशायी
 यस भीभाॊसा यस- लसिाॊत से सॊफॊचधत ऩुस्तक के रेखक हैं। – आिामघ याभिॊर ळुक्रा
 गाथा कहने से ककस रोक प्रचलरत काव्म बाषा का फोध होता है । – प्राकृत
 तुरसीदास का वह ग्रॊथ कौन सा है श्जसभें ज्जमोनतष का वणवन ककमा गमा है । – याभासा प्रचनालरी
 बायत बायतीम( काव्म) के यचनाकाय है । – भैचथरीळयण गुप्त
 आचामव याभचॊर शुक्र ने बत्रवेणी भें ककन तीन भहा कववमों की सभीऺा प्रस्तुत की है । – वूय ,
तर
ु वी एलॊ जामवी
 वीयों का कैसा हो फसॊत कववता के यचनाकाय हैं। – वुबरा कुभायी िौशान
 हहॊदी के ककस सभाचाय ऩत्र भें खडी फोरी को भध्म दे शीम बाषा कहा गमा है । – फनायव अखफाय
 हहॊदी कववता को छॊ दों की ऩरयचध से भुक्त कयाने वारे थे। – वूमक
घ ाॊत बत्रऩाठी ननयारा
 चीनी- नतब्फती बाषा सभह
ू की बाषाओॊ के फोरने वारों को कहा जाता है । – ननऴाद
 याभचरयत्र भानस भें प्रधान यस के रूऩ भें ककस यस को भान्मता प्राप्त हुई है । – बश्क्त यव
 साॊच फयाफय तऩ नहीॊ, झूठ फयाफय ऩाऩ इस ऩॊश्क्त के यचनमता है । – कफीय
 याभधायी लसॊह हदनकय को बायतीम ऻानऩीठ ऩुयस्काय प्राप्त हुआ था। – उलघळी ऩय
 काभामनी ककस प्रकाय का ग्रॊथ है । – भशाकाव्म
 ऩल्रव के यचनमता कौन है । – वुलभत्रानॊदन ऩॊत
 कौन सी बाषा बायतीम सॊववधान की आठवीॊ अनुसूची भें नहीॊ दी गई है । – अॊग्रेजी
 हहॊदी साहहत्म के इनतहास के सववप्रथभ रेखक का नाभ क्मा। – गावाघ द तावी
 दे श भें एकभात्र ककस याज्जम की याजबाषा अॊग्रेजी है । – नागारैंड
 बत्रऩयु ा की याजबाषा है । – फाॊग्रा
 प्रेभसागय के यचनाकाय हैं। – रल्रू रारजी
 सम
ू क
व ाॊत बत्रऩाठी ननयारा को कैसा कवव भाना जाता है । – िाॊनतकायी
 सुहाग के नूऩुय के यचनमता है । – अभत
ृ रार नागय
 झयना काव्म सॊग्रह के यचनमता। – जमळॊकय प्रवाद
 इस दे श भें अचधकतभ सॊख्मा भें बाषाएॊ फोरी जाती है । – बायत भें
 चारु शब्द की शुि बावात्भक सॊऻा है । – िारुता
 बायतीम बाषाओॊ को ककतने प्रभुख वगों भें फाॊटा गमा है । – िाय
 बायत भें सफसे अचधक फोरा जाने वारा बाषा सभूह है । – इॊडो आमघन
 आॊचलरक यचनाएॊ ककससे सॊफॊचधत होती हैं। – षेत्र वलळेऴ वे
 ककस नाटककाय ने अऩने नाटकों के लरए यॊ गभॊच को अननवामव नहीॊ भाना है । – जमळॊकय प्रवाद
ने
 कौन सा एक व्मॊनम रेखक है । – शरयळॊकय ऩयवाई
 भनुष्म तत्व की साभान्म बावना को आगे कयके ननम्न श्रेणी की जनता भें आत्भ गौयव का बाव
जगाने वारे श्रेष्ठ कवव थे। – कफीय
 प्रादे लशक गोलरमों के साथ यश्जमा भध्म दे श की बाषा का आश्रम रेकय एक साभान्म साहहत्म बाषा
स्वीकृत हुई श्जसे नाभ हदमा गमा। – वऩॊगर बाऴा
 ननयारा के याभ तर ु सीदास के याभ से लबन्न औय बव बनू त के याभ के ननकट है मह कथन ककस
हहॊदी आरोचक का है । – डॉ याभवलराव ळभाघ
 नभक का दयोगा कहानी के रेखक। – प्रेभिॊर
 डोंगयी बाषा भुख्म रूऩ से कहाॊ फोरी जाती है । – जम्भू कचभीय
 प्रलसि कहानी” नभक का दायोगा” के रेखक है । – प्रेभिॊर
 सॊस्कृत से सफसे अचधक प्रबावशारी रववड बाषा कौन सी है । – तेरुगू
 हहॊदी को बायतीम सॊववधान भें कहा गमा है । – याजबाऴा
 वह कौन सी यचनाकाय हैं श्जन्होंने सफसे अचधक टीका लरखी हैं। – बफशायी वतवई
 बूषण ककस यस के कवव भाने जाते हैं। – लीय यव के
 हहॊदी शब्द का प्रमोग सववप्रथभ बाषा के सॊफॊध भें ककसके द्वाया ककमा गमा था। – अभीय खुवयो
 आहदकार को आयॊ लबक कार की सॊऻा ककस के द्वाया दी गई थी। – लभश् फॊधु
 मह ककसने कहा था कक साहहत्म का इनतहास जनता की चचत्त वश्ृ त्त का इनतहास है । – आिामघ
याभिॊर ळुक्र ने
 ककस कवव को अऩभ्रॊश का वाल्भीकक कवव कहा जाता है । – स्लमॊबू को
 हहॊदी के प्रथभ कवव भाने जाते हैं। – वयशऩा
 हहॊदी के प्रथभ भौलरक नाटक का नाभ फताइए। – नशुऴ( गोऩार िॊर)
वाक्माॊश के लरए एक शब्द
23. ऩयॊ ऩया से चरी आ यही कथा – अनुश्रुनत
1. ववधानमका द्वाया स्वीकृत ननमभ – अचधननमभ
24. श्जसका कोई दस
ू या उऩाम नहीॊ हो – अनन्मोऩाम
2. सवावचधक अचधकाय प्राप्त शासक अचधनामक
25. श्जसका बाषा द्वाया वणवन नहीॊ ककमा जा सके –
3. वह स्त्री श्जसके ऩनत ने दस
ू या वववाह कय लरमा हो –
अवणवनीम
अध्मूढा
26. जो ननमभ के अनुसाय नहीॊ हो – अननमलभत
4. ऩहाड के ऊऩय की सऩाट जभीन – अचधत्मका
27. श्जसका ववयोध नहीॊ हुआ हो – अननरुि
5. श्जसे अचधकाय भें रे लरमा गमा हो – अचधकृत
28. श्जसके ववषम भें कोई ऻान नहीॊ हो – अऻात
6. वास्तववक भूल्म से अचधक लरमा जाने वारा भूल्म –
अचधशुल्क 29. वह बाई जो अन्म भाता से उत्ऩन्न हुआ हो – अन्मोदय

7. धभव के ववरुि कामव – अधभव 30. जो ननमॊत्रण भें नहीॊ हो – अननमॊबत्रत

8. श्जसका कोई आयॊ ब ना हो – अनाहद 31. ऩरक को झऩकाए बफना – अननभेष

9. एक बाषा के ववचायों को दस
ू यी बाषा भें व्मक्त कयना – 32. जो दोहयामा गमा नहीॊ हो – अनावत्ृ त
अनुवाद
33. श्जसका ककसी भें रगाओ मा प्रेभ हो – अनुयक्त
10. ककसी सॊप्रदाम मा लसिाॊत का सभथवन कयने वारा –
34. जो फात ऩहरे सुनी ही नहीॊ गई हो – अनसुनी
अनुमामी
35. श्जस भहहरा का वववाह नहीॊ हुआ हो – अनूढा
11. ककसी प्रस्ताव का सभथवन कयने की कक्रमा – अनुभोदन
36. जो अनुग्रह से मुक्त हो – अनुगहृ ीत
12. श्जसका अनुबव ककमा गमा हो – अनुबूत
37. श्जस ऩय आक्रभण नहीॊ ककमा गमा हो – अनाक्रान्त
13. जो ऩयीऺा भें उत्तीणव नहीॊ हुआ हो – अनुत्तीणव
38. श्जसका उत्तय नहीॊ हदमा गमा हो – अनुत्तरयत
14. ककसी एक भें ही आस्था यखने वारा – अनन्म
39. ऩहरे लरखे गए ऩत्र का स्भयण कयते हुए लरखा गमा ऩत्र
15. श्जसका कोई घय नहीॊ हो – अननकेत
– अनुस्भायक
16. श्जसके भाता-वऩता नहीॊ हो – अनाथ
40. ऩीछे -ऩीछे चरने वारा – अनग
ु ाभी
17. श्जस बाई ने फाद भें जन्भ लरमा हो – अनज

41. अनक
ु यण कयने मोनम – अनक
ु यणीम
18. श्जसकी उऩभा नहीॊ दी जा सके – अनुऩभ
42. अनस
ु यण कयने मोनम – अनस
ु यणीम
19. श्जसका जन्भ ननम्न वणव भें हुआ हो – अन्त्मज
43. वह लसिाॊत जो हय वस्तु को नचवय भानता हो –
20. वह ववद्माथी जो आचामव के ऩास ही ननवास कयता हो – अननत्मवादी
अॊतव
े ासी
44. जो कबी नहीॊ आमा हो – अनागत
21. भूर कथा भें आने वारा प्रसॊग – अन्तकवथा
45. जो श्रेष्ठ गुणों से मुक्त नहीॊ हो – अनामव
22. श्जसका ननवायण नहीॊ ककमा जा सके – अननवामव
46. जो सफके भन की फात जानता हो – अन्तमावभी
47. श्जसे ककसी फात का ऩता नहीॊ हो – अनलबऻ 72. श्जसको ऩैदा नहीॊ जा सके – अबेद्म

48. जो बफना सोचे सभझे ववचवास कयें – अन्धववचवासी 73. जो ऩहरे नहीॊ हुआ हो – अबूतऩूवव

49. जो बफना सोचे सभझे अनुगभन कयें – अन्धानुगाभी 74. श्जसकी भत्ृ मु नहीॊ होती हो – अभय

50. श्जसकी अऩेऺा नहीॊ हो – अऩेक्षऺत 75. श्जस वस्तु का भूल्म नहीॊ आॊका जा सके – अभूल्म

76. जो बफना भाॊगे लभर जाए – अमाचचत


51. श्जसकी आवचमकता नहीॊ हो – अनावचमक
77. श्जसकी कोई यऺा नहीॊ कय यहा हो – अयक्षऺत
52. श्जस का आदय नहीॊ ककमा गमा हो – अनादृत
78. जो साहहत्म करा आहद भें यस नहीॊ रेता हो – अयलसक
53. जो ऩूणव नहीॊ हो – अऩूणव
79. श्जसको प्राप्त नहीॊ ककमा जा सके – अरभ्म
54. जो भाऩा नहीॊ जा सके – अऩरयभेम
80. श्जसको दे खा नहीॊ जा सके – अरक्ष्म
55. जो ऩहरे ऩढा नहीॊ गमा हो – अऩहठत
81. श्जसको राॉघा नहीॊ जा सके – अरघ्म
56. नीचे की ओय राना मा खीॊचना – अऩकषव
82. जो कभ जानता हो – अल्ऩऻ
57. जो धन को व्मथव ही खचव कयता हो – अऩव्ममी
83. जो कभ फोरता हो – अल्ऩबाषी
58. जो साभने नहीॊ हो – ऩयोऺ
84. जो इस रोक का नहीॊ हो – अरौककक
59. जो ऩहरे कबी नहीॊ हुआ हो – अऩव
ू व
85. जो वध कयने मोनम नहीॊ हो – अवध्म
60. श्जसका वववाह नहीॊ हुआ हो – अवववाहहत
86. आदे श की अवहे रना – अवऻा
61. जो ऩीने मोनम नहीॊ हो – अऩेम
87. जो बरा फुया नहीॊ सभझता हो – अवववेकी
62. श्जसका कोई ऩाय नहीॊ हो – अऩाय
88. श्जसका ववबाजन नहीॊ ककमा जा सके – अववबाज्जम
63. श्जसका त्माग नहीॊ हो सके – अत्माज्जम
89. श्जसका ववबाजन नहीॊ ककमा गमा हो – अववबक्त
64. श्जसके आय ऩाय नहीॊ दे खा जा सके – अऩायदशी
90. श्जस ऩय ववचाय नहीॊ ककमा गमा हो – अववचारयत
65. वह सभम जो दोऩहय के फाद आता है – अऩयाहन
91. जो बफना वेतन के काभ कयता हो – अवैतननक
66. श्जस वस्तु को ऩहना नहीॊ गमा हो – अप्रहत
92. जो कामव अवचम होने वारा हो – अवचमम्बावी
67. श्जस खेत को जोता नहीॊ गमा हो – अप्रहत
93. श्जसको व्मवहाय भें नहीॊ रामा गमा हो – अव्मवरृत
68. श्जसकी आशा नहीॊ की गई हो – अप्रत्मालशत
94. श्जसका ववचवास नहीॊ ककमा जा सके – अववचवसनीम
69. ककसी काभ को फाहय फाहय कयने का अनुबव यखने वारा
– अभ्मस्त 95. जो ववधान के अनस
ु ाय नहीॊ हो – अवैधाननक

70. ककसी वस्तु को प्राप्त कयने की तीव्र इच्छा – अबीप्सा 96. नहीॊ हो सकने वारा – अशक्म

71. श्जस ऩय अलबमोग रगामा गमा हो – अलबमक्


ु त 97. जो शोक कयने मोनम नहीॊ हो – अशोक्म
98. जो कहने सुनने दे खने भें नघनौना हो – अचरीर 123. श्जसे सॉघ
ू ा जा सके – आघ्रेम

99. पेंककय चरामा जाने वारा हचथमाय – अस्त्र 124. ककसी स्थान के सवावचधक ऩुयाने ननवासी – आहदवासी

100. श्जसको सहन नहीॊ ककमा जा सके – असह्म 125. वह चीज श्जसकी चाहत हो – इश्च्छत

101. जो सहनशीर नहीॊ हो – असहहष्णु 126. इस रोक से सॊफॊचधत – इहरौककक

102. जो साभान नहीॊ हो – असभान 127. जो इॊर ऩय ववजम प्राप्त कय चुका हो – इन्रजीत

103. जो साधा नहीॊ जा सके – असाध्म 128. जो इश्न्रमों से ऩये हो – इश्न्रमातीत

104. श्जस योग का इराज नहीॊ ककमा जा सके – राइराज 129. उत्तय औय ऩूवव के फीच की हदशा – ईशान

105. ककसी फात ऩय फाय-फाय जोय दे ना – आग्रह 130. जो दस


ू ये की उन्ननत दे खकय जरता हो – ईष्मावरु

106. वह स्त्री श्जसका ऩनत प्रदे श से रौटा हो – आगतऩनतका 131. वह ऩववत जहाॊ से सूमव औय चॊरभा उहदत होते भाने
जाते हैं – उदमाचर
107. जो जन्भ रेते ही चगय मा भय गमा हो – आजन्भऩात
132. ऩववत के नीचे तरहटी की बलू भ – उऩत्मका
108. भत्ृ मु ऩमांत – आभयण
133. ककसी के सॊफॊध भें कुछ लरखने मोनम – उल्रेखनीम
109. जो गण
ु दोष का वववेचन कयता हो – आरोचक
134. श्जसके ऊऩय ककसी का उऩकाय हो – उऩकृत
110. जो ईचवय भें ववचवास यखता हो – आश्स्तक
135. ऐसी जभीन जो अच्छी उत्ऩादक हो – उववया
111. वह कवव जो तत्कार कववता कय सके – आशुकवव
136. जो छाती के फर चरता हो – उयग
112. श्जसे आचवासन ऩय ववचवास हो – आचवस्त
137. श्जसने अऩना ऋण ऩूया चुका हदमा हो – उऋण
113. ववदे श से दे श भें साभान भॊगवाना – आमात
138. श्जसका ऊऩय कथन ककमा गमा हो – उऩमुक्
व त
114. लसय से ऩाॊव तक – आऩादभस्तक
139. श्जसका भन जगत से उचट गमा हो – उदासीन
115. प्रायॊ ब से रेकय अॊत तक – आधोऩान्त
140. बोजन कयने के फाद फचा हुआ अन्न – उश्च्छष्ट
116. अऩने आऩ को खुद ही सभाप्त कय रेने वारा –
आत्भघाती 141. श्जस बूलभ भें कुछ बी ऩैदा नहीॊ होता हो – ऊसय

117. ऩववत्र आचयण कयने वारा – आचायऩूत 142. ववचायों का ऐसा प्रवाह श्जससे कोई ननष्कषव नहीॊ ननकरे
– ऊहाऩोह
118. दस
ू ये के हहत भें अऩना जीवन त्माग कय दे ना –
आत्भोत्सगव 143. जो केवर एक आॊख वारा हो – एकाऺ

119. जो फहुत क्रूय व्मवहाय कयता हो – आततामी 144. जो इश्न्रमों से सॊफॊचधत हो – ऐश्न्रम

120. श्जसका सॊफॊध आत्भा से हो – आध्माश्त्भक 145. साॊसारयक वस्तुओॊ को प्राप्त कयने की इच्छा – एषणा

121. श्जस ऩय हभरा ककमा गमा हो – आक्रान्त 146. श्जस ऩय ककसी एक का ही अचधकाय हो – एकाचधकाय

122. श्जस ने हभरा ककमा हो – आक्रान्ता 147. वह श्स्थनत जो अॊनतभ ननणावमक हो – एकाश्न्तक
148. कई जगह से लभरकय इकट्ठा ककमा गमा हो – एकीकृत 173. श्जसका कोई शत्रु ना हो – अजातशत्रु

149. जो व्मश्क्त की इच्छा ऩय ननबवय कयता हो – ऐश्च्छक 174. जो खाने मोनम न हो – अखाद्म

150. इश्न्रमों को भ्रलभत कयने वारा – ऐन्रजालरक 175. श्जसका चचॊतन नहीॊ ककमा जा सके – अचचन्त्म

151. जो इस रोक से सॊफॊचधत हो – ऐहहक 176. जो ऺभा नहीॊ ककमा जा सके – अऺम्म

152. साॊऩ-बफच्छू के जहय मा बूत प्रेत के बम को भॊत्रों से 177. श्जसको कहा ना जा सके – अकथनीम
झडने वारा – ओझा
178. श्जसको काटा न जा सके – अकाट्म
153. जो उऩननषदों से सॊफॊचधत हो – औऩननषहदक
179. नहीॊ टूटने वारा – अटूट
154. जो भात्र लशष्टाचाय व्मवहाय के लरए हो – औऩचारयक
180. अॊडे से जन्भ रेने वारा – अण्डज
155. दो व्मश्क्तमों की ऩयस्ऩय होने वारी फातचीत –
181. जो अऩनी फात से नहीॊ डडगे – अडडग
कथोऩकथन
182. जो छुआ न गमा हो – अछूता
156. ऐसी रडकी श्जसका वववाह नहीॊ हुआ हो – कुभायी
183. जो छूने मोनम न हो – अछूत
157. कभव कयने भें तत्ऩय व्मश्क्त – कभवठ
184. जो खारी न जाए – अचक

158. फतवन फेचने वारा – कसेया
185. श्जसके फाये भें कोई ननश्चचम नहीॊ हो – अननश्चचत
159. जो काभ से जी चुयाता है – कभचोय
186. जो अऩने स्थान से अरग नहीॊ ककमा जा सके –
160. सफसे आगे यहने वारा – अग्रणी
अच्मुत
161. श्जसका खण्डन नहीॊ ककमा जा सके – अखण्डनीम
187. जो अऩनी फात से टरे नहीॊ – अटर
162. जो ऩहरे चगना जाता हो – अग्रगण्म
188. ऩदाथव का अत्मॊत सूक्ष्भ बाग – ऩयभाणु
163. जो ऩहरे जन्भा हो – अग्रज
189. श्जसके आगभन की नतचथ ननश्चचत नहीॊ हो – अनतचथ
164. श्जसे जाना न जा सके – अऻेम
190. आवचमकता से अचधक फयसात – अनतवश्ृ ष्ट
165. श्जसका ऩता न हो – अऻात
191. फयसात बफल्कुर नहीॊ होना – अनावश्ृ ष्ट
166. जो इॊहरमों द्वाया ना जाना जा सके – अगोचय
192. फहुत कभ फयसात होना – अल्ऩवश्ृ ष्ट
167. जो फहुत गहया हो – अगाध
193. इॊहरमों की ऩहुॊच से फाहय – अतीश्न्रम
168. श्जसने अबी तक जन्भ नहीॊ लरमा हो – अजन्भा
194. सीभा का अनचु चत उल्रॊघन – अनतक्रभण
169. श्जसकी चगनती न की जा सके – अगखणत
195. जो तकव से ऩये हो – तकावतीत
170. आगे आने वारा – आगाभी
196. ककसी फात को अत्मचधक फढा कय कहना –
171. श्जसको जीता न जा सके – अजेम अनतशमोश्क्त

172. जो कबी फूढा न हो – अजय 197. जो व्मतीत हो गमा हो – अतीत


198. श्जसको त्मागा न जा सके – अत्माज्जम 220. श्रॊग
ृ ारयक वासनाओॊ के प्रनत आकवषवत – काभुक

199. श्जसकी तुरना नहीॊ की जा सके – अतुरनीम 221. जो दख


ु मा बम से ऩीडडत हो – कातय

200. श्जसकी गहयाई का ऩता न रग सके – अथाह 222. दस


ू ये की हत्मा कयने वारा – हत्माया

201. श्जसका दभन नहीॊ ककमा जा सके – अदम्म 223. अऩनी गरती स्वीकाय कयने वारा – कामर

202. श्जसे दे खा न जा सके – अदृचम 224. ईचवय का साभूहहक रूऩ से ककमा जाने वारा गुणगान
– कीतवन
203. जो ऩहरे नहीॊ दे खा गमा हो – अदृष्टऩूवव
225. बूख से ऩीडडत – ऺुधातव
204. आगे का ववचाय नहीॊ कय सकने वारा – अदयू दशी
226. वऺ
ृ रता पूरों से नघया हुआ कोई सुॊदय स्थान – कॊु ज
205. जो दे खने मोनम न हो – अदशवनीम
227. ऩव
ू व भें हुई हानन की बयऩाई – ऺनतऩनू तव
206. श्जसके फयाफय दस
ू या नहीॊ हो – अद्ववतीम
228. श्जसका अथव स्वमॊ ही लसि है – लसिाथव
207. जो एक ननश्चचत अवचध तक ही रागू हो – अध्मादे श
229. ऩहरे से चरी आ यही ऩयॊ ऩया का अनऩ
ु ारन कयने वारा
208. श्जस ऩय ककसी ने अचधकाय कय लरमा हो – अचधकृत
– गतानुगनतक
209. वह सच
ू ना जो सयकाय के प्रमास से जायी हो –
230. आकाश को स्ऩशव कयने वारा – गगनचुम्फी
अचधसूचना
231. श्जस नाटक के सॊवाद गीतों के रूऩ भें लरखे हो –
210. अऩने काभ के फाये भें कुछ बी ननचचम नहीॊ कयने
गीनतनाट्म
वारा – ककॊ कतवव्मववभूढ
232. गुप्त रूऩ से घूभ कय सूचना दे ने वारा – गुप्तचय
211. जो फात ऩूवव कार से रोगों भें कह सुनकय प्रचलरत हो
– ककवदन्ती 233. हय ऩदाथव को अऩनी ओय आकृष्ट कयने वारी गुरुत्व
शश्क्त – गरु
ु त्वाकषवण
212. फुये भागव ऩय जाने वारा व्मश्क्त – कुभागवगाभी
234. जो फोर नहीॊ सकता हो – गॉग
ू ा
213. जो अच्छे कुर भें उत्ऩन्न हुआ हो – कुरीन
235. श्जम्भेदायी ऩूयी नहीॊ कयने वारा – ाैय-श्जम्भेदाय
214. श्जसकी फवु ि फहुत तेज हो – कुशाग्र
236. हदन औय यात के फीच का सभम – गोधूलर वेरा
215. फवु ि फयु ी सॊगत भें यहने वारा – कुसॊगी
237. जो ग्रहण कयने मोनम हो – ग्राह्भ
216. अऩने लरए ककए हुए उऩकाय को माद यखने वारा –
कृतऻ 238. जो नछऩाने मोनम हो – गोऩनीम

217. अऩने लरए ककए हुए उऩकाय को बुरा दे ने वारा – 239. जहाॊ से गॊगा नदी का उद्गभ होता है – गॊगोत्री
कृतघ्न
240. घास खोदकय जीवन ननवावह कयने वारा – घलसमाया
218. जो ऩैसों को अत्मचधक कॊजूसी से खचव कयता हो –
241. शयीय की हानन कयने वारा – घातक
कॊजस

242. जो ऩदाथव घूभने मोनम हो – घुरनशीर
219. श्जसे खयीद लरमा गमा हो – क्रीत
243. घोडे के यखे जाने की जगह – घुडसार 265. श्जसके लसय ऩय चन्रकरा हो – चन्रचूड

244. जो घण
ृ ा का ऩात्र हो – घखृ णत 266. रॊफे सभम तक जीववत यहने वारा – चचयञ्जीवी

245. कोई कामव कयने के लरए नाजामज रूऩ भें धन रेने 267. फहुत सभम से ऩरयचचत – चचयऩरयचचत
वारा – घूसखोय
268. चचय ननरा को प्राप्त हुआ – चचयननहरत
246. जहाॊ धयती औय आकाश लभरते हुए हदखाई दे ते हैं –
269. चचॊता कयने मोनम फात – चचन्तनी
क्षऺनतज
270. सावधान कयने के लरए हदमा गमा सॊकेत – चेतावनी
247. साॉऩ के शयीय से ननकरी हुई खोरी – केंचर
ु ी
271. सबी प्रकाय की चचॊताओॊ को दयू कयने वारी एक भखण
248. जो ऺभा ककमा जा सके – ऺम्म
– चचन्ताभखण
249. श्जसका कुछ ही सभम भें नाश हो जाए – ऺणबॊगयु
272. जो गप्ु त रूऩ से ननवास कय यहा हो – छद्मवासी
250. जो ऺभा कयने वारा हो – ऺभाशीर
273. जहाॊ सैननक ननवास कयते हो – छावनी
251. आकाश के वऩॊडों का वववेचन कयने वारा शास्त्र –
274. जो दस
ू यों भें केवर दोषों को ही खोजता हो –
खगोरशास्त्र
नछरान्वेषी
252. श्जस ग्रहण भें सूमव मा चॊर का ऩूणव बफॊफ ग्रलसत हो
275. नछऩकय आक्रभण कयने वारा – छाऩाभाय दर
जाता है – खग्रास
276. ऩत्थय को गढने वारा औजाय – छै नी
253. जो व्मश्क्त अऩने हाथ भें तरवाय लरए यहता है –
खड्गहस्त 277. एक स्थान से दस
ू ये स्थान ऩय चरने वारा – जॊगभ

254. दस
ू यों के भत का ववयोध कयना – खण्डन 278. जो जर फयसाता हो – जरद

255. वह स्त्री श्जसका ऩनत अन्म स्त्री के साथ यात को 279. जो जर से उत्ऩन्न होता हो – जरज
यहकय प्रात् रौटे – खश्ण्डता
280. जो जीव जॊतु जर भें यहते हो – जरचय
256. खाने के मोनम वस्तु – खाद्म
281. जो चभत्कायी कक्रमाओॊ का प्रदशवन कयता है – जादग
ू य
257. आकाश भें ववचयण कयने वारे जॊतु – नबचय
282. जो अकायण जल्
ु भ ढाका हो – जालरभ
258. शयीय का व्माऩाय कयने वारी स्त्री – गखणका
283. श्जॊदा यहने की इच्छा – श्जजीववषा
259. जो अलशष्ट व्मवहाय कयता हो – गॉवाय
284. श्जसने इश्न्रमों को वश भें कय लरमा हो – श्जतेश्न्रम
260. जो फहुत सभम तक ठहय सके – चचयस्थामी
285. श्जसने आत्भा को जीत लरमा हो – श्जतात्भा
261. चौथे हदन आने वारा फुखाय – चौचथमा
286. जो जीतने के मोनम हो जेम जेठ का ऩुत्र – जेठोत
262. चक्र के रूऩ भें घूभती हुई चरने वारी हवा – चक्रवात
287. अऩनी इज़्जजत को फचाने के लरए ककमा गमा अश्नन
263. आचचमव भें डार दे ने वारा कामव – चभत्काय प्रवेश – जौहय

264. वह कृनत श्जसभें गद्म एवॊ ऩद्म दोनों लभचश्रत हो – 288. वह ऩहाड श्जसके भुॊह से आग ननकरे – ज्जवाराभुखी
चम्ऩू
289. रॊफे औय बफखये फारों वारा – झफया 311. सत्व, यज औय तभ का सभूह – बत्रगुण

290. फहुत गहया तथा फहुत फडा प्राकृनतक जराशम – झीर 312. गॊगा, मभुना औय सयस्वती का सॊगभ – बत्रवेणी

291. जहाॊ लसक्कों की ढराई होती है – टकसार 313. बूत, वतवभान औय बववष्म को जानने वारा – बत्रकारऻ

292. अचधक दे य तक यहने वारा मा चरने वारा – हटकाऊ 314. श्जसके तीन आॊखें हैं बत्रनेत्र तीन भहीने भें एक फाय –
त्रैभालसक
293. वववाह का सॊफॊध तम कयने के लरए वय को वस्त्र आहद
वस्तुएॊ प्रदान कयने की यस्भ – टीका 315. वह स्थान जो दोनों बक
ृ ु हटमों के फीच होता है – बत्रकुटी

294. फतवन फनाने वारा – ठठे या 316. जो त्माग दे ने मोनम हो – त्माज्जम

295. जो छोटे कद का हो – हठगना 317. सॊकुचचत ववचाय यखने वारा – दक़मानूस

296. जनता को सच
ू ना दे ने हे तु फजामा जाने वारा वाद्म – 318. ऩनत औय ऩत्नी का जोडा दम्ऩनत दस वषों का सभम
हढॊढोया – दशक

297. जो ककसी बी गुट भें नहीॊ हो – तटस्थ 319. वह व्मश्क्त श्जसे गोद लरमा जाए – दत्तक

298. जो ककनाये से सटे हुए हो – तटवती 320. याननमों के साथ दहे ज के रूऩ भें बेजी गई सेववकाआएॉ
– दासी
299. जो ककसी कामव मा चचॊतन भें डूफा हुआ हो – तल्रीन
321. जॊगर भें पैरने वारी आग – दावाश्नन
300. जो चोयी-नछऩे भार राता औय रे जाता हो – तस्कय
322. दो फाय जन्भ रेने वारा – द्ववज
301. ऋवषमों के तऩ कयने की बूलभ तऩोबूलभ उसी सभम का
– तत्कारीन 323. श्जसे कहठनाई से जाना जा सके – दऻ
ु ेम

302. वह याजकीम धन जो ककसानों की सहामता हे तु हदमा 324. श्जस ने दीऺा री हो – दीक्षऺत


जाता है – त़ाफी
325. ऩनत के स्नेह से वॊचचत स्त्री – दब
ु ग
व ा
303. दै हहक, दै ववक औय बौनतक दख
ु – ताऩत्रम
326. श्जसे कहठनाई से राॉघा जा सके – दर
ु घ्
ां म
304. तकव कयने वारा व्मश्क्त – ताककवक
327. श्जसे कहठनता से साधा जा सके – द:ु साध्म
305. ताॊफे के यॊ ग के सभान रार यॊ ग – ताम्रऩणी
328. जो कहठनाई से सभझ भें आता है – दफ
ू ोध
306. तैयने की इच्छा – नततीषाव
329. श्जसको कहठनाई से वहन ककमा जा सके – दव
ु ह

307. ऻान भें प्रवेश का भागवदशवक – तीथवङ्कय
330. जो फुया आचयण कयता हो – दयु ाचायी
308. फाणों को यखने का ऩात्र – तुणीय
331. फुये बाव से की गई सश्न्ध – दयु लबसश्न्ध
309. ककसी ऩद को छोडने के लरए लरखा गमा ऩत्र –
332. वह भागव जो चरने भें कहठनाई ऩैदा कयता हो – दग
ु भ

त्मागऩत्र
333. श्जसभें ऽयाफ आदतें हो – दव्ु मवसनी
310. वह व्मश्क्त जो छुटकाया हदराता है – त्राता
334. श्जस को जीतना फहुत कहठन हो – दज
ु ेम
335. दै व मा ज्जमोनतष शास्त्र को जानने वारा – दै वऻ 359. ध्मान कयने मोनम – ध्मेम

336. आगे की फात को बी सोच रेने वारा व्मश्क्त – दयू दशी 360. ध्मान कयने वारा – ध्माता

337. श्जसे दे वता बी ऩूछते हो – दे वायाध्म 361. ताॊडव नत्ृ म की भुरा भें लशव – नटयाज

338. दीऺा की सभाश्प्त ऩय हदमा जाने वारा उऩदे श – 362. नाक से अऩने आऩ ननकरने वारा ऽून – नकसीय
दीऺान्त बाषण
363. सम्भान भें दी जाने वारी बें ट – नजयाना
339. ऩुत्री का ऩत्र
ु – दौहहत्र
364. नाखून से चोटी तक का वणवन – नखलशख वणवन
340. ऩुत्री की ऩत्र
ु ी – दौहहत्री
365. श्जसका जन्भ अबी-अबी हुआ हो – नवजात
341. वह कामव श्जसको कयना कहठन हो – दष्ु कय
366. श्जस स्त्री का वववाह अबी हुआ हो – नवोढा
342. वह फच्चा जो अबी भाॊ के दध
ू ऩय ननबवय है – दध
ु भॉह
ु ा
367. श्जसका उदम हार भें हुआ हो – नवोहदत
343. जो दो अरग-अरग बावषमों के फीच अनव
ु ाद कयके
368. जो वस्तु नाशवान हो – नचवय
फात कयवाता हो – दब
ु ावषमा
369. श्जसका लसय झक
ु ा हुआ हो – नतभस्तक
344. जो शीघ्रता से चरता हो – रत
ु गाभी
370. जो आकाश भें ववचयण कयता है – नबचय
345. जो धनुष को धायण कयता हो – धनुधावयी
371. जो नमा नमा आमा है – नवागत
346. धन की इच्छा यखने वारा – धनेच्छु
372. श्जसे ईचवय ऩय ववचवास नहीॊ हो – नाश्स्तक
347. सबी को धायण कयने वारी – धयणी
373. जो ऩढना-लरखना नहीॊ जानता हो – ननयऺय
348. माबत्रमों के लरए ननशुल्क साववजननक आवास गह
ृ –
धभवशारा 374. श्जसको डय नहीॊ हो – ननडय

349. गयीफों के लरए दान के रूऩ भें हदमा जाने वारा धन- 375. श्जसका कोई अथव नहीॊ हो – ननयथवक
अन्न आहद – धाभावदा
376. श्जसका कोई आकाय नहीॊ हो – ननयाकाय
350. ककसी के ऩास यखी हुई दस
ू ये की वस्तु – धयोहय 377. श्जसका कोई आधाय नहीॊ हो – ननयाधाय
351. भछरी भाय कय आजीववका चराने वारा – धीवय
378. श्जससे ककसी प्रकाय की हानन नहीॊ हो – ननयाऩद
352. श्रेष्ठ गुणों से सॊऩन्न शूयवीय नामक – धीयोध्दत्त
379. जो भाॊस नहीॊ खाता हो – ननयालभष
353. शूयवीय ककॊ तु क्रीडावप्रम नामक – धीयरलरत
380. श्जसकी कोई इच्छा नहीॊ हो – नन:स्ऩह

354. धभव के अनुसाय व्मवहाय कयने वारा – धभावत्भा
381. बफना बोजन के – ननयाहाय
355. श्जसकी धभव भें ननष्ठा हो – धभवननष्ठ
382. जो उत्तय नहीॊ दे सके – ननरुत्तय
356. आधायबूत कामों भें प्रवीण – धुयन्धय
383. श्जसभें दमा नहीॊ हो – ननदव म
357. जो धीयज यखता हो – धीय
384. श्जसके ऩास धन नहीॊ हो – ननधवन
358. अऩने स्थान ऩय अचर यहने वारा – ध्रुव
385. श्जसको बम नहीॊ हो – ननबवम 409. अऩने भागव से बटका हुआ – ऩथभ्रष्ट

386. श्जसके कोई करॊक नहीॊ हो – ननष्करॊक 410. अऩने ऩद से हटामा हुआ – ऩदच्मुत

387. श्जस काभ के लरए धन नहीॊ हदमा जाए – नन:शुल्क 411. केवर दध
ू ऩय जीववत यहने वारा – ऩमोहायी

388. श्जसका अऩना कोई स्वाथव नहीॊ हो – नन:स्वाथव 412. जो प्रत्मऺ नहीॊ हो – ऩयोऺ

389. श्जसके कोई सॊतान नहीॊ हो – ननस्सॊतान 413. दस


ू यों ऩय ननबवय यहने वारा ऩय – ऩयाचश्रत

390. श्जसको ककसी भें बी आसश्क्त नहीॊ हो – असॊग 414. घूभने कपयने वारा साधु – ऩरयव्राजक

391. व्माऩारयक वस्तुओॊ को ककसी दस


ू ये दे श भें बेजने का 415. भहीने के प्रत्मेक ऩऺ से सॊफॊचधत – ऩाक्षऺक
कामव – ननमावत
416. हाथ से लरखी हुई ऩुस्तक – ऩाण्डुलरवऩ
392. श्जसको दे श से ननकार हदमा गमा हो – ननवावलसत
417. श्जसभें से आय-ऩाय दे खा जा सके – ऩायदशी
393. यात भें ववचयण कयने वारा – ननशाचय
418. श्जसका स्वबाव ऩशु के सभान हो – ऩाशववक
394. बफना ककसी फाधा के – ननफावध
419. जनप्रनतननचधमों द्वाया ऩरयचालरत शासन-व्मवस्था –
395. जो भभत्व से यहहत हो – ननभवभ जनतन्त्र

396. श्जसकी ककसी से तुरना नहीॊ की जा सके – ननरुऩभ 420. ककसी प्रचन का तत्कार उत्तय दे सकने वारी फुवि –
प्रत्मुत्ऩन्न भनत
397. जो ननणवम कयने वारा हो – ननणावमक
421. ऩदे के अॊदय यहने वारी – ऩदावनशीन
398. श्जसका कोई उद्देचम नहीॊ हो – ननरुद्देश
422. ककसी वाद का ववयोध कयने वारा – प्रनतवादी
399. जो ऩाऩ से यहहत हो – ननष्ऩाऩ
423. शयणागत की यऺा कयने वारा – प्रणतऩार
400. जो सफ प्रकाय की चचॊताओॊ से यहहत हो – ननश्चचॊत
424. वह ध्वनन जो कहीॊ से टकयाकय आए – प्रनतध्वनन
401. जो नीनत के अनुकूर हो – नैनतक
425. जो ककसी भत को सववप्रथभ चराता है – प्रवतवक
402. आजीवन ब्रह्भचमव का व्रत रेने वारा – नैश्ष्ठक

403. श्जसभें दमा का बाव नहीॊ हो – ननष्ठुय

404. भहीने के दो ऩऺों भें से एक ऩऺ – ऩखवाडा

405. अऩनी ककसी गरती के लरए हुआ दख


ु – ऩचचाताऩ

406. केवर अऩने ऩनत भें अनयु ाग यखने वारे स्त्री –


ऩनतव्रता

407. ऩनत को चन
ु ने की इच्छा यखने वारी कन्मा –
ऩनतम्वया

408. उऩाम फताने वारा – भागवदशवक


रोकोश्क्तमाॉ एवॊ कहावतें
11. बफच्छू का भॊतय न जाने, साॉऩ के बफर भें हाथ डारे
1. फाॉझ का जाने प्रसव की ऩीडा अथव् भूखत
व ाऩूणव कामव कयना।
अथव् ऩीडा को सहकय ही सभझा जा सकता है । 12. बफना योए तो भाॉ बी दध
ू नहीॊ वऩराती
2. फाड ही जफ खेत को खाए तो यखवारी कौन कये अथव् बफना मत्न ककए कुछ बी नहीॊ लभरता।
अथव् यऺक का बऺक हो जाना। 13. बफल्री औय दध
ू की यखवारी?
3. फाऩ बरा न बइमा, सफ से बरा रूऩइमा अथव् बऺक यऺक नहीॊ हो सकता।
अथव् धन ही सफसे फडा होता है । 14. बफल्री के सऩने भें चूहा
4. फाऩ न भाये भेढकी, फेटा तीयॊ दाज अथव् जरूयतभॊद को सऩने भें बी जरूयत की ही वस्तु
अथव् छोटे का फडे से फढ जाना। हदखाई दे ती है ।
5. फाऩ से फैय, ऩूत से सगाई 15. बफल्री गई चूहों की फन आमी
अथव् वऩता से दचु भनी औय ऩुत्र से रगाव। अथव् डय खत्भ होते ही भौज भनाना।
6. फायह गाॉव का चौधयी अस्सी गाॉव का याव, अऩने काभ 16. फीभाय की यात ऩहाड फयाफय
न आवे तो ऐसी-तैसी भें जाव अथव् खयाफ सभम भश्ु चकर से कटता है ।
अथव् फडा होकय महद ककसी के काभ न आए, तो 17. फड्ु ढी घोडी रार रगाभ
फडप्ऩन व्मथव है । अथव् वम के हहसाफ से ही काभ कयना चाहहए।
7. फायह फयस ऩीछे घूये के बी हदन कपयते हैं 18. फुढाऩे भें लभट्टी खयाफ
अथव् एक न एक हदन अच्छे हदन आ ही जाते हैं। अथव् फुढाऩे भें इज्जजत भें फट्टा रगना।
8. फासी कढी भें उफार नहीॊ आता 19. फहु ढमा भयी तो आगया तो दे खा
अथव् काभ कयने के लरए शश्क्त का होना आवचमक अथव् प्रत्मेक घटना के दो ऩहरू होते हैं – अच्छा औय
होता है । फुया।
9. फासी फचे न कुत्ता खाम 20. लरखे ईसा ऩढे भूसा
अथव् जरूयत के अनस
ु ाय ही साभान फनाना। अथव् गॊदी लरखावट।
10. बफॊध गमा सो भोती, यह गमा सो सीऩ
अथव् जो वस्तु काभ आ जाए वही अच्छी।

“अ” वे ळरू
ु शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ
21. अॊडा लवखाले फच्िे को कक िीॊ-िीॊ भत कय : जफ कोई छोटा फडे को उऩदे श दे ।
उदा-भोहन का छोटा बाई भोहन के द्वाया प्रचन गरत हर कयने ऩय उसका छोटा बाई उसे लसखाने रगता है तो भोहन उससे
कहता है अॊडा लसखावे फच्चे को कक चीॊ चीॊ भत कय।
22. अन्त बरे का बरा : जो बरे काभ कयता है , अन्त भें उसे सख
ु लभरता है ।
उदा-याभरार ने अऩनी ऩुत्री को ऩढा लरखा कय फडा ककमा अफ वि
ृ अवस्था भें उसकी ऩत्र
ु ी ने उसकी दे खबार की इसे कहते हैं
अॊत बरे का बरा।
23. अॊधा क्मा िाशे , दो आॊखे : आवचमक मा अबीष्ट वस्तु अचानक मा अनामास लभर जाती है , तफ ऐसा कहते हैं।
उदा- भैं वऩकननक जाने का सोच ही यही थी कक भैंने कहा चरो कर वऩकननक चरते हैं मह तो वही हुआ अॊधा क्मा चाहे दो
आॊखें।
24. अॊधा फाॊटे ये लडी कपय-कपय अऩने को शी दे ् अचधकाय ऩाने ऩय स्वाथी भनुष्म अऩने ही रोगों औय इष्ट-लभत्रों को ही राब ऩहुॊचाते
हैं।
उदा- छात्र चुनाव भें याहुर ने जीतने के फाद अऩने ही दोस्तों को अन्म ऩदों ऩय ननमुक्त कय हदमा मह तो वही फात हुई अॊधा
फाॊटे ये वडी कपय-कपय अऩने को ही दे ।
25. अॊधा लवऩाशी कानी घोडी, वलचध ने खूफ लभराई जोडी: जहाॊ दो व्मश्क्त हों औय दोनों ही एक सभान भख
ू ,व दष्ु ट मा अवगण
ु ी हों
वहाॊ ऐसा कहते हैं।
उदा- याभ औय चमाभ दोनों अनऩढ है कपय बी उन्होंने ववद्मारम खोर लरमा लशऺक की बती रेनी थी रेककन दोनों अनऩढ। मह
तो वही फात हुई अॊदय लसऩाही का ननगोडी बी
26. अॊधी ऩीवे, कुत्ते खामें : भख
ू ों को कभाई व्मथव नष्ट होती है ।
उदा- याभ ने उसकी भाॊ के ना यहने ऩय फडी भश्ु चकर से खाना फनामा ऩयॊ तु उसका ऩडोसी आकय साया खाना खा गमा मह तो
वही फात हुई अॊधी ऩीसे कुत्ता खाए।
27. अॊधे के आगे योले, अऩना दीदा खोले : भूखों को सदऩ
ु दे श दे ना मा उनके लरए शुब कामव कयना व्मथव है ।
उदा- अध्माऩक ववद्मारम भें बाषण दे यहे थे औय छात्र अऩनी फातों भें भस्त है वह बाषा भें कोई रुचच नहीॊ रे यहे थे फस शोय
भचाते जा यहे थे इसे कहते हैं अॊधे के आगे योवे, अऩना दीदा खोवे।
28. अॊधे को अॊधेये भें फशुत दयू की वझ
ू ी : जफ कोई भख
ू व भनष्ु म फवु िभानी की फात कहता है तफ ऐसा कहते हैं।
उदा- योहहत हभेशा शयायत की ही फातें कयता यहता है रेककन आज उसने अध्माऩक से ऩढाई के ववषम भें ऩूछा तो अध्माऩक ने
उससे कहा अॊधे को अॊधेये भें फहुत दयू की सूझी।
29. अॊधेय नगयी िौऩट याजा, टका वेय बाजी टका वेय खाजा: जहाॊ भालरक भूखव होता है , वहाॊ गुण का आदय नहीॊ होता।
उदा- एक कॊऩनी का भालरक भूखव था तथा वहाॊ के कभवचायी गुणवान रेककन कपय बी उनके गुणों का आदय नहीॊ होता था। इसे
कहते हैं अॊधेय नगयी चौऩट याजा, टका सेय बाजी टका सेय खाजा
30. अॊधों भें काना याजा : भूखों मा अऻाननमों भें अल्ऩऻ रोगों का बी फहुत आदय होता है ।
उदा- टे स्ट नहीॊ जहाॊ सबी के जीयो नॊफय आए वहाॊ याभ दो नॊफय से प्रथभ आ गमा। इसे कहते हैं अॊधों भें काना याजा।
31. अऩनी-अऩनी डपरी, अऩना-अऩना याग : कोई काभ ननमभ-कामदे से न कयना
32. अऩनी ऩगडी अऩने शाथ : अऩनी इज्जजत अऩने हाथ होती है ।
33. अभानत भें खमानत : ककसी के ऩास अभानत के रूऩ भें यखी कोई वस्तु खचव कय दे ना
34. अस्वी की आभद, िौयावी खिघ : आभदनी से अचधक खचव
35. अनत वलघत्र लजघमेत ् : ककसी बी काभ भें हभें भमावदा का उल्रॊघन नहीॊ कयना चाहहए।
36. अऩनी कयनी ऩाय उतयनी : भनुष्म को अऩने कभव के अनुसाय ही पर लभरता है
37. अॊत बरा तो वफ बरा : ऩरयणाभ अच्छा हो जाए तो सफ कुछ भाना जाता है ।
38. अॊधे की रकडी : फेसहाये का सहाया
39. अऩना यख ऩयामा िख : ननजी वस्तु की यऺा एवॊ अन्म वस्तु का उऩबोग
40. अच्छी भनत जो िाशो फूढ़े ऩूछन जाओ : फडे फूढों की सराह से कामव लसि हो सकते हैं।
41. अफ की अफ, जफ की जफ के वाथ : सदा वतवभान की ही चचन्ता कयनी चाहहए
42. अऩनी नीॊद वोना, अऩनी नीॊद जागना : ऩूणव स्वतॊत्र होना
43. अऩने झोऩडे की खैय भनाओ : अऩनी कुशर दे खो
भशत्लऩूणघ रोकोश्क्तमाॉ

44. अकेरा िना बाड नशीॊ पोड वकता/पोडता : अकेरा आदभी कोई फडा काभ नहीॊ कय सकता; उसे अन्म रोगों की सहमोग की
आवचमकता होती है ।
45. अक्र के अॊधे, गाॉठ के ऩूये : ननफवुव ि धनवान ् इसका भतरफ मह है कक श्जसके ऩास बफरकुर फुवि नहीॊ हो कपय बी वह धनवान
हो तफ इसका प्रमोग ककमा जाता है ।
46. अक्र फडी की बैंव : फुवि शायीरयक शश्क्त से श्रेष्ठ होती है ।
47. अटका फननमा दे उधाय : श्जस फननमे का भाभरा पॊस जाता है , वह उधाय सौदा दे ता है ।
48. अनत बश्क्त िोय के रषण : महद कोई अनत बश्क्त का प्रदशवन कये तो सभझना चाहहए कक वह कऩटी औय दम्बी है ।
49. अधजर/अधबय गगयी छरकत जाम : श्जसके ऩास थोडा धन मा ऻान होता है , वह उसका प्रदशवन कयता है ।
50. अधेरा न दे , अधेरी दे : बरभनसाहत से कुछ न दे ना ऩय दफाव ऩडने ऩय मा पॊस जाने ऩय आशा से अचधक चीज दे दे ना।
51. अनदे खा िोय फाऩ फयाफय : श्जस भनुष्म के चोय होने का कोई प्रभाण न हो, उसका अनादय नहीॊ कयना चाहहए। ।
52. अनभाॊगे भोती लभरे भाॊगे लभरे न बीख : सॊतोषी औय बानमवान ् को फैठे-बफठामे फहुत कुछ लभर जाता है ऩयन्तु रोबी औय
अबागे को भाॊगने ऩय बी कुछ नहीॊ लभरता।
53. अऩना घय दयू वे वूझता शै : अऩने भतरफ की फात कोई नहीॊ बूरता। मा वप्रमजन सफको माद यहते हैं।

54. अऩना ऩैवा लवक्का खोटा तो ऩयखैमा का क्मा दोऴ? : महद अऩने सगे-सम्फन्धी भें कोई दोष हो औय कोई अन्म व्मश्क्त उसे
फुया कहे , तो उससे नायाज नहीॊ होना चाहहए।
55. अऩना रार गॊलाम के दय-दय भाॊगे बीख : अऩना धन खोकय दस
ू यों से छोटी-छोटी चीजें भाॊगना।
56. अऩना शाथ जगन्नाथ का बात : दस
ू ये की वस्तु का ननबवम औय उन्भुक्त उऩबोग।
57. अऩनी अक्र औय ऩयाई दौरत वफको फडी भारूभ ऩडती शै : भनुष्म स्वमॊ को सफसे फुविभान सभझता है औय दस
ू ये की सॊऩश्त्त
उसे ज्जमादा रगती है ।
58. अऩनी-अऩनी डपरी अऩना-अऩना याग : सफ रोगों का अऩनी-अऩनी धुन भें भस्त यहना।
59. अऩनी गरी भें कुत्ता बी ळेय शोता शै :अऩने घय मा भोहल्रे आहद भें सफ रोग फहादयु फनते हैं।
60. अऩनी पूटी न दे खे दव
ू ये की पूरी ननशाये : अऩना दोष न दे खकय दस
ू ये के छोटे अवगुण ऩय ध्मान दे ना।
61. अऩने घय भें दीमा जराकय तफ भश्स्जद भें जराते शैं : ऩहरे स्वाथव ऩूया कयके तफ ऩयभाथव मा ऩयोऩकाय ककमा जाता है ।
62. अऩने दशी को कोई खट्टा नशीॊ कशता : अऩनी चीज को कोई फयु ा नहीॊ कहता।
63. अऩने भये बफना स्लगघ नशीॊ हदखता : अऩने ककमे बफना काभ नहीॊ होता।
64. अऩने भुॊश लभमाॊ लभऱू: अऩने भुॊह से अऩनी फडाई कयने वारा व्मश्क्त।

65. अफ ऩछताए शोत क्मा जफ चिडडमा िुग गई खेत : काभ बफगड जाने ऩय ऩछताने औय अपसोस कयने से कोई राब नहीॊ होता।
66. अबी हदल्री दयू शै : अबी काभ ऩूया होने भें दे य है ।
67. अभीय को जान प्मायी, पकीय/गयीफ एकदभ बायी : अभीय ववषम-बोग के लरए फहुत हदन जीना चाहता है . रेककन खाने की कभी
के कायण गयीफ आदभी जल्द भय जाना चाहता है ।
68. अयध तजहशॊ फध
ु वयफव जाता : जफ सववनाश की नौफत आती है तफ फवु िभान रोग आधे को छोड दे ते हैं औय आधे को फचा
रेते हैं
69. अळकपघ मों की रूट औय कोमरों ऩय छाऩ /भोशय : फहुभूल्म ऩदाथों की ऩयवाह न कयके छोटी-छोटी वस्तुओॊ की यऺा के लरए
ववशेष चेष्टा कयने ऩय उश्क्त।
70. अळुबस्म कार शयणभ ् : जहाॊ तक हो सके, अशुब सभम टारने का प्रमत्न कयना चाहहए।
71. अशभक वे ऩडी फात, काढ़ो वोटा तोडो दाॊत : भूखों के साथ कठोय व्मवहाय कयने से काभ चरता है ।

„आ‟ वे ळरू
ु शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ

72. आॊख के अॊधे नाभ नमनवुख : नाभ औय गण ु भें ववयोध होना, गणु हीन को फहुत गण ु ी कहना।
73. आॊखों के आगे ऩरकों की फयु ाई : ककसी के बाई- फन्धओु ॊ मा इष्ट-लभत्रों के साभने उसकी फयु ाई कयना।
74. आॊखों ऩय ऩरकों का फोझ नशीॊ शोता : अऩने कुटुश्म्फमों को खखराना-वऩराना नहीॊ खरता। मा काभ की चीज भहॊ गी नहीॊ जान
ऩडती।
75. आॊवू एक नशीॊ औय करेजा टूक-टूक : हदखावटी योना।
76. आई शै जान के वाथ जाएगी जनाजे के वाथ : वह ववऩश्त्त मा फीभायी जो आजीवन फनी यहे ।
77. आ गई तो ईद फायात नशीॊ तो कारी जम्
ु भे यात : ऩैसे हुए तो अच्छा खाना खामेंगे, नहीॊ तो रूखा-सख
ू ा ही सही।
78. आई भौज पकीय को, हदमा झोऩडा पूॊक : ववयक्त(बफगडा हुए) ऩुरुष भनभौजी होते हैं।
79. आए थे शरय बजन को, ओटन रगे कऩाव: श्जस काभ के लरए गए थे, उसे छोडकय दस
ू ये काभ भें रग गए।
80. आगे कुआॊ, ऩीछे खाई : दोनों तयप ववऩश्त्त होना।
81. आगे नाथ न ऩीछे ऩगशा, वफवे बरा कुम्शाय का गदशा मा (खाम भोटाम के शुए गदशा) : श्जस भनुष्म के कुटुम्फ भें कोई न हो
औय जो स्वमॊ कभाता औय खाता हो औय सफ प्रकाय की चचॊताओॊ से भक्
ु त हो।
82. आठों ऩशय िौंवठ घडी : हय सभम, हदन-यात।
83. आठों गाॊठ कुम्भैत : ऩूया धूतव, घुटा हुआ।
84. आत्भा वुखी तो ऩयभात्भा वख
ु ी : ऩेट बयता है तो ईचवय की माद आती है ।
85. आधी छोड वायी को धाले, आधी यशे न वायी ऩाले : अचधक रारच कयना अच्छा नहीॊ होता; जो लभरे उसी से सन्तोष कयना
चाहहए।
86. आऩको न िाशे ताके फाऩ को न िाहशए : जो आऩका आदय न कये आऩको बी उसका आदय नहीॊ कयना चाहहए।
87. आऩ जाम नशीॊ वावुये, औयन को लवणख दे त : आऩ स्वमॊ कोई काभ न कयके दस
ू यों को वही काभ कयने का उऩदे श दे ना।
88. आऩ तो लभमाॊ शफ्तशजायी, घय भें योलें कभों भायी : जफ कोई भनुष्म स्वमॊ तो फडे ठाट-फाट से यहता है ऩय उसकी स्त्री फडे कष्ट
से जीवन व्मतीत कयती है तफ ऐसा कहते हैं।
89. आऩ भये जग ऩयरम: भत्ू मु के फाद की चचन्ता नहीॊ कयनी चाहहए।
90. आऩ लभमाॊ भाॊगते दयलाजे खडा दयलेळ : जो भनुष्म स्वमॊ दरयर है वह दस
ू यों को क्मा सहामता कय सकता है ?
91. आ फैर भुझे भाय : जान- फूझकय ववऩश्त्त भें ऩडना।
92. आभ के आभ गुठलरमों के दाभ : ककसी काभ भें दोहया राब होना।
93. आभ खाने वे काभ, ऩेड चगनने वे क्मा काभ? (आभ खाने वे भतरफ कक ऩेड चगनने वे? ) : जफ कोई भतरफ का काभ न कयके
कपजर
ू फातें कयता है तफ इस कहावत का प्रमोग कयते हैं।
94. आमा शै जो जामेगा, याजा यॊ क पकीय : अभीय-गयीफ सबी को भयना है ।
95. आयत काश न कयै कुकयभू : द्ु खी भनुष्म को बरे औय फुये कभव का ववचाय नहीॊ यहता।
96. आव ऩयाई जो तके, जीवलत शी भय जाए : जो दस ू यों ऩय ननबवय यहता है , वह जीववत यहते हुए बी भया हुआ होता है ।
97. आव-ऩाव फयवे, हदल्री ऩडी तयवे : श्जसे जरूयत हो, उसे न लभरकय ककसी चीज का दस ू ये को लभरना।
98. इक नाचगन अव ऩॊख रगाई : ककसी बमॊकय चीज का ककसी कायणवश औय बी बमॊकय हो जाना।
99. इन नतरों भें तेर नशीॊ ननकरता: ऐसे कॊजूसों से कुछ प्रश्प्त नहीॊ होती।

„इ‟,‟ई‟ वे ळुरू शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ

100. इश्ब्तदा-ए-इचक शै . योता शै क्मा, आगे-आगे दे णखए, शोता शै क्मा : अबी तो कामव का आयॊ ब है ; इसे ही दे खकय घफया गए, आगे
दे खो क्मा होता है ।
101. इवके ऩेट भें दाढ़ी शै : इसकी अवस्था फहुत कभ है तथावऩ मह फहुत फवु िभान है ।
102. इशाॊ कुम्शड फनतमा कोउ नाशीॊ, जो तजघनन दे खत भरय जाशीॊ : जफ कोई झूठा योफ हदखाकय ककसी को डयाना चाहता है ।
103. इशाॊ न रागहश याउरय भामा् महाॊ कोई आऩके धोखे भें नहीॊ आ सकता।
104. ईळ यजाम वीव वफशी के : ईचवय की आऻा सबी को भाननी ऩडती है ।
105. ईचलय की भामा, कशीॊ धूऩ कशीॊ छामा : बगवान की भामा ववचचत्र है । सॊसाय भें कोई सुखी है तो कोई द्ु खी, कोई धनी है तो कोई
ननधवन।

„उ‟,‟ऊ‟ वे ळुरू शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ

106. उधये अन्त न शोहशॊ ननफाश । कारनेलभ श्जलभ यालण याशू।। : जफ ककसी कऩटी आदभी को ऩोर खुर जाती है , तफ उसका ननवावह
नहीॊ होता। उस ऩय अनेक ववऩश्त्त आती है ।
107. उत्तभ वलद्मा रीश्जए, जदवऩ नीि ऩै शोम : छोटे व्मश्क्त के ऩास महद कोई ऻान है , तो उसे ग्रहण कयना चाहहए।
108. उतय गई रोई तो क्मा कये गा कोई : जफ इज्जजत ही नहीॊ है तो डय ककसका?
109. उधाय का खाना औय पूव का ताऩना फयाफय शै : पूस की आग फहुत दे य तक नहीॊ ठहयती। इसी प्रकाय कोई व्मश्क्त फहुत हदनों
तक उधाय रेकय अऩना खचव नहीॊ चरा सकता।
110. उभादाव जोनतऴ की नाई, वफहशॊ निालत याभ गोवाई : भनुष्म का ककमा कुछ नहीॊ होता। भनुष्म को ईचवय की इच्छा के
अनस
ु ाय काभ कयना ऩडता है ।
111. उल्टा िोय कोतलार को डाॊटे: अऩना अऩयाध स्वीकाय न कयके ऩछ
ू ने वारे को डाॊटने-पटकायने मा दोषी ठहयाने ऩय
उश्क्त(कथन)।
112. उवी की जूती उवी का लवय : ककसी को उसी की मुश्क्त(वस्तु)से फेवकूप फनाना।
113. ऊॊिी दक
ु ान पीके ऩकलान : श्जसका नाभ तो फहुत हो, ऩय गुण कभ हो।
114. ऊॊट के गरे भें बफत्री: अनचु चत, अनऩ
ु मुक्त मा फेभेर सॊफॊध वववाह।
115. ऊॊट के भॊशु भें जीया : फहुत अचधक आवचमकता वारे मा खाने वारे को फहुत थोडी-सी चीज दे ना।
116. ऊॊट-घोडे फशे जाए, गधा कशे ककतना ऩानी : जफ ककसी काभ को शश्क्तशारी रोग न कय सकें औय कोई कभजोय आदभी उसे
कयना चाहे , तफ ऐसा कहते हैं।
117. ऊॊट दल्ू शा गधा ऩुयोहशत : एक भूखव मा नीच द्वाया दस
ू ये भूखव मा नीच की प्रशॊसा ऩय उश्क्त(वाक्म/कथन)।
118. ऊॊट फयाघता शी रदता शै : काभ कयने की इच्छा न यहने ऩय डय के भाये काभ बी कयते जाना औय फडफडाते बी जाना।
119. ऊॊट बफराई रे गई, शाॊ जी, शाॊ जी कशना : जफ कोई फडा आदभी कोई असम्बव फात कहे औय दस
ू या उसकी हाभी बये ।

„ए‟ वे ळुरू शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ

120. एक अॊडा लश बी गॊदा : एक ही ऩुत्र, वही बी ननकम्भा।


121. एक आॊख वे योना औय एक आॊख वे शॊ वना : हषव(खुशी) औय ववषाद (द्ु ख) एक साथ होना।
122. एक औय एक ग्मायश शोते शैं : भेर भें फडी शश्क्त होती है ।
123. एक श्जन्दगी शजाय ननमाभत शै : जीवन फहुत फहुभूल्म होता है ।
124. एक तले की योटी, क्मा ऩतरी क्मा भोटी : एक ऩरयवाय के भनुष्मों भें मा एक ऩदाथव के कई बागों भें फहुत कभ अन्तय होता है ।
125. एक तो कये रा (कडला) दव ू ये नीभ िढ़ा : कटु मा कुहटर स्वबाव वारे भनष्ु म कुसॊगनत भें ऩडकय औय बफगड जाते हैं।
126. एक (शी) थैरे के िट्टे -फट्टे : एक ही प्रकाय के रोग।
127. एक न ळुद, दो ळुद: एक ववऩश्त्त तो है ही दस
ू यी औय सही।
128. एक ऩथ दो काज : एक वस्तु मा साधन से दो कामों की लसवि।
129. एक भछरी वाये ताराफ को गॊदा कयती शै : महद ककसी घय मा सभूह भें एक व्मश्क्त फुये चरयत्र वारा होता है तो साया घय मा
सभह
ू फयु ा मा फदनाभ हो जाता है ।
130. एक रख ऩूत वला रख नाती, तो यालण घय दीमा न फाती : ककसी अत्मन्त ऐचवमवशारी व्मश्क्त के ऩूणव ववनाश हो जाने ऩय इस
रोकोश्क्त का प्रमोग ककमा जाता है ।

„ओ‟,‟औ‟ वे ळरू
ु शोने लारी रोकोश्क्तमाॉ

131. ओठों ननकरी कोठों िढ़ी : जो फात भुॊह से ननकर है , वह पैर जाती है , गुप्त नहीॊ यहती।
132. ओखरी भें लवय हदमा तो भव
ू रों का क्मा डय : कष्ट सहने ऩय उतारू होने ऩय कष्ट का डय नहीॊ यहता।
133. औय फात खोटी, वशी दार-योटी : सॊसाय की सफ चीजों भें बोजन ही भुख्म है ।

कुछ प्रभुख रोकोश्क्तमाॉ

134. अॊधों भें काना याजा – भूखों भें कुछ ऩढा-लरखा व्मश्क्त
135. अकेरा चना बाड नहीॊ पोड सकता – अकेरा आदभी राचाय होता है
136. अधजर गगयी छरकत जाम – डीॊग हाॉकना
137. आॉख का अॉधा नाभ नमनसुख – गुण के ववरुि नाभ होना
138. आॉख के अॊधे गाॉठ के ऩूये – भुखव ऩयन्तु धनवान
139. आग रागॊते झोऩडा, जो ननकरे सो राब – नुकसान होते सभम जो फच जाए वही राब है
140. आगे नाथ न ऩीछे ऩगही – ककसी तयह की श्जम्भेदायी न होना
141. आभ के आभ गठ ु लरमों के दाभ – अचधक राब
142. ओखरी भें सय हदमा तो भूसरों से क्मा डये – काभ कयने ऩय उतारू
143. ऊॉची दक
ु ान पीका ऩकवान – केवर फाह्म प्रदशवन
144. एक ऩॊथ दो काज – एक काभ से दस
ू या काभ हो जाना
145. कहाॉ याजा बोज कहाॉ गॊगू तेरी – उच्च औय साधायण की तुरना कैसी
146. घय का जोगी जोगडा, आन गाॉव का लसि – ननकट का गण ु ी व्मश्क्त कभ सम्भान ऩाटा है, ऩय दयू का ज्जमादा
147. चचयाग तरे अॉधेया – अऩनी फुयाई नहीॊ हदखती
148. श्जन ढूॊढा नतन ऩाइमाॉ गहये ऩानी ऩैठ – ऩरयश्रभ का पर अवचम लभरता है
149. नाच न जाने आॉगन टे ढा – काभ न जानना औय फहाने फनाना
150. न यहे गा फाॉस, न फजेगी फाॉसुयी – न कायण होगा, न कामव होगा
151. होनहाय बफयवान के होत चीकने ऩात – होनहाय के रऺण ऩहरे से ही हदखाई ऩडने रगते हैं
152. जॊगर भें भोय नाचा ककसने दे खा – गुण की कदय गण
ु वानों फीच ही होती है
153. कोमर होम न उजरी, सौ भन साफुन राई – ककतना बी प्रमत्न ककमा जामे स्वबाव नहीॊ फदरता
154. चीर के घोसरे भें भाॉस कहाॉ – जहाॉ कुछ बी फचने की सॊबावना न हो
155. चोय राठी दो जने औय हभ फाऩ ऩूत अकेरे – ताकतवय आदभी से दो रोग बी हाय जाते हैं
156. चॊदन की चुटकी बयी, गाडी बया न काठ – अच्छी वास्तु कभ होने ऩय बी भूल्मवान होती है , जश्ब्क भाभूरी चीज अचधक होने
ऩय बी कोई कीभत नहीॊ यखती
157. छप्ऩय ऩय पूॊस नहीॊ, ड्मोढी ऩय नाच – हदखावटी ठाट-वाट ऩयन्तु वास्तववकता भें कुछ बी नहीॊ
158. छछूॊदय के सय ऩय चभेरी का तेर – अमोनम के ऩास मोनम वस्तु का होना
159. श्जसके हाथ डोई, उसका सफ कोई – धनी व्मश्क्त के सफ लभत्र होते हैं
160. मोगी था सो उठ गमा आसन यहा बबूत – ऩुयाण गौयव सभाप्त

हशन्दी रोकोश्क्तमाॉ

161. वूखी तराईमा भ भें ढक कयम टय-टय : खुरी आॉखों से सऩने दे खकय खुशी व्मक्त कयना।
162. श्जवकी फॊदयी लशी निाले औय निाले तो काटन धाले : श्जसका जो काभ होता है वही उसे कय सकता है ।
163. श्जवकी बफल्री उवी वे म्माऊॉ कये : जफ ककसी के द्वाया ऩारा हुआ व्मश्क्त उसी से गुयावता है ।
164. श्जवकी राठी उवकी बैंव : शश्क्त अनचधकायी को बी अचधकायी फना दे ती है , शश्क्तशारी की ही ववजम होती है ।
165. श्जवके ऩाव नशीॊ ऩैवा, लश बराभानव कैवा : श्जसके ऩास धन होता है उसको रोग बराभानस सभझते हैं , ननधवन को रोग
बराभानस नहीॊ सभझते।
166. श्जवके याभ धनी, उवे कौन कभी : जो बगवान के बयोसे यहता है , उसे ककसी चीज की कभी नहीॊ होती।
167. श्जवके शाथ डोई (कयछी) उवका वफ कोई : सफ रोग धनवान का साथ दे ते हैं औय उसकी खुशाभद कयते हैं।
168. श्जवे वऩमा िाशे लशी वुशाचगन : श्जस ऩय भालरक की कृऩा होती है उसी की उन्ननत होती है औय उसी का सम्भान होता है ।
169. जी कशो जी कशराओ : महद तुभ दस
ू यों का आदय कयोगे, तो रोग तुम्हाया बी आदय कयें गे।
170. जीब औय थैरी को फॊद शी यखना अच्छा शै : कभ फोरने औय कभ खचव कयने से फडा राब होता है ।
171. जीब बी जरी औय स्लाद बी न ऩामा : महद ककसी को फहुत थोडी-सी चीज खाने को दी जामे।
172. जीमे न भानें वऩत ृ औय भुए कयें श्ाि : कुऩात्र ऩुत्रों के लरए कहते हैं जो अऩने वऩता के जीववत यहने ऩय उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीॊ
कयते, ऩय भय जाने ऩय श्राि कयते हैं।
173. जी शी वे जशान शै : महद जीवन है तो सफ कुछ है । इसलरए सफ तयह से प्राण-यऺा की चेष्टा कयनी चाहहए।
174. जुत-जुत भयें फैरला, फैठे खाम तुयॊग : जफ कोई कहठन ऩरयश्रभ कये औय उसका आनॊद दस
ू या उठावे तफ कहते हैं, जैसे गयीफ
आदभी ऩरयश्रभ कयते हैं औय ऩॉज
ू ीऩनत उससे राब उठाते हैं।
175. जॉू के डय वे गुदडी नशीॊ पेंकी जाती : साधायण कष्ट मा हानन के डय से कोई व्मश्क्त काभ नहीॊ छोड दे ता।
176. जेठ के बयोवे ऩेट : जफ कोई भनुष्म फहुत ननधवन होता है औय उसकी स्त्री का ऩारन-ऩोषण उसका फडा बाई (स्त्री का जेठ)
कयता है तफ कहते हैं।
177. जेते जग भें भनुज शैं तेते अशैं वलिाय : सॊसाय भें भनुष्मों की प्रकृनत-प्रवश्ृ त्त तथा अलबरुचच लबन्न-लबन्न हुआ कयती है ।
178. जैवा ऊॉट रम्फा, लैवा गधा खलाव : जफ एक ही प्रकाय के दो भख ू ों का साथ हो जाता है ।
179. जैवा कन बय लैवा भन बय : थोडी-सी चीज की जाॉच कयने से ऩता चरा जाता है कक यालश कैसी है ।
180. जैवा काछ काछे लैवा नाि नािे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूर काभ कयना चाहहए।
181. जैवा तेया ताना-फाना लैवी भेयी बयनी : जैसा व्मवहाय तुभ भेये साथ कयोगे, वैसा ही भैं तुम्हाये साथ करूॉगा।
182. जैवा दे ळ लैवा लेळ : जहाॉ यहना हो वहीॊ की यीनतमों के अनुसाय आचयण कयना चाहहए।
183. जैवा भॉशु लैवा तभािा : जैसा आदभी होता है वैसा ही उसके साथ व्मवहाय ककमा जाता है ।
184. जैवी औढ़ी काभरी लैवा ओढ़ा खेळ : जैसा सभम आ ऩडे उसी के अनस
ु ाय अऩना यहन-सहन फना रेना चाहहए।
185. जैवी िरे फमाय, तफ तैवी दीजे ओट : सभम औय ऩरयश्स्थनत के अनुसाय काभ कयना चाहहए।
186. जैवी तेयी तोभयी लैवे भेये गीत : जैसी कोई भजदयू ी दे गा, वैसा ही उसका काभ होगा।
187. जैवे कन्ता घय यशे लैवे यशे वलदे ळ : ननकम्भे आदभी के घय यहने से न तो कोई राब होता है औय न फाहय यहने से कोई हानन
होती है ।
188. जैवे को तैवा लभरे, लभरे डोभ को डोभ, दाता को दाता लभरे, लभरे वभ
ू को वभ
ू : जो व्मश्क्त जैसा होता है उसे जीवन भें वैसे ही
रोगों से ऩारा ऩडता है ।
189. जैवे फाफा आऩ रफाय, लैवा उनका कुर ऩरयलाय : जैसे फाफास्वमॊ झूठे हैं वैसे ही उनके ऩरयवाय वारे बी हैं।
190. जैवे को तैवा लभरे, लभरे नीि भें नीि, ऩानी भें ऩानी लभरे, लभरे कीि भें कीि : जो जैसा होता है उसका भेर वैसों से ही होता
है ।
191. जो अनत आतऩ व्माकुर शोई, तरु छामा वख
ु जाने वोई : श्जस व्मश्क्त ऩय श्जतनी अचधक ववऩश्त्त ऩडी यहती है उतना ही
अचधक वह सुख का आनॊद ऩाता है ।
192. जो कये लरखने भें गरती, उवकी थैरी शोगी शल्की: योकड लरखने भें गरती कयने से सम्ऩश्त्त का नाश हो जाता है ।
193. जो गॊलाय वऩॊगर ऩढ़ै , तीन लस्तु वे शीन, फोरी, िारी, फैठकी, रीन वलधाता छीन: चाहे गॊवाय ऩढ-लरख रे नतस ऩय बी उसभें तीन
गुणों का अबाव ऩामा जाता है। फातचीत कयना, चार-ढार औय फैठकफाजी।
194. जो गडु खाम लशी कान नछदाले: जो आनॊद रेता हो वही ऩरयश्रभ बी कये औय कष्ट बी उठावे।
195. जो गुड दे ने वे भये उवे वलऴम क्मों हदमा जाए: जो भीठी-भीठी फातों मा सुखद प्ररोबनों से नष्ट हो जाम उससे रडाई-झगडा नहीॊ
कयना चाहहए।
196. जो टट्टू जीते वॊग्राभ, तो क्मों खयिैं तुयकी दाभ: महद छोटे आदलभमों से काभ चर जाता तो फडे रोगों को कौन ऩूछता।
197. जो दव
ू यों के लरए गड्ढ़ा खोदता शै उवके लरए कुआॉ तैमाय यशता शै : जो दस
ू ये रोगों को हानन ऩहुॉचाता है उसकी हानन अऩने
आऩ हो जाती है ।
198. जो धन दीखे जात, आधा दीजे फाॉट : महद वस्तु के नष्ट हो जाने की आशॊका हो तो उसका कुछ बाग खचव कयके शेष बाग फचा
रेना चाहहए।
199. जो धाले वो ऩाले, जो वोले वो खोले : जो ऩरयश्रभ कयता है उसे राब होता है , आरसी को केवर हानन ही हानन होती है ।
200. जो ऩूत दयफायी बए, दे ल वऩतय वफवे गए : जो रोग दयफायी मा ऩयदे सी होते हैं उनका धभव नष्ट हो जाता है औय वे सॊसाय के
कतवव्मों का बी सभचु चत ऩारन नहीॊ कय सकते।
201. जो फोरे वो कॊु डा खोरे : महद कोई भनुष्म कोई काभ कयने का उऩाम फतावे औय उसी को वह काभ कयने का बाय सौऩाजामे।
202. जो वुख छज्जजू के िौफाये भें, वो न फरख फुखाये भें : जो सख
ु अऩने घय भें लभरता है वह अन्मत्र कहीॊ बी नहीॊ लभर सकता।
203. जोगी काके भीत, करॊदय ककवके बाई : जोगी ककसी के लभत्र नहीॊ होते औय पकीय ककसी के बाई नहीॊ होते , क्मोंकक वे ननत्म एक
स्थान से दस
ू ये स्थान ऩय जाते यहते हैं।
204. जोगी जग
ु त जानी नशीॊ, कऩडे यॊ गे तो क्मा शुआ : गैरयक वस्त्र ऩहनने से ही कोई जोगी नहीॊ हो जाता।
205. जोगी जोगी रड ऩडे, खप्ऩड का नुकवान : फडों की रडाई भें गयीफों की हानन होती है ।
206. जोरू चिकनी लभमाॉ भजूय : ऩनत-ऩत्नी के रूऩ भें ववषभता हो, ऩत्नी तो सुन्दय हो ऩयन्तु ऩनत ननधवन औय कुरूऩ हो।
207. जोरू टटोरे गठयी, भाॉ टटोरे अॊतडी : स्त्री धन चाहती है औयभाता अऩने ऩुत्र का स्वास््म चाहती है । स्त्री मह दे खना चाहती है
कक भेये ऩनत ने ककतना रुऩमा कभामा। भाता मह दे खती है कक भेया ऩुत्र बूखा तो नहीॊ है ।
208. जोरू न जाॊता, अल्राश लभमाॊ वे नाता : जो सॊसाय भें अकेरा हो, श्जसके कोई न हो।
209. ज्जमों-ज्जमों बीजै काभयी, त्मों-त्मों बायी शोम : श्जतना ही अचधक ऋण लरमा जाएगा उतना ही फोझ फढता जाएगा।
210. ज्जमों-ज्जमों भग
ु ी भोटी शो, त्मों-त्मों दभ
ु लवकुडे : ज्जमों-ज्जमों आभदनी फढे , त्मों-त्मों कॊजस
ू ी कये ।
211. ज्जमों नकटे को आयवी, शोत हदखाए िोध : जफ कोई व्मश्क्तककसी दोषी ऩुरुष के दोष को फतराता है तो उसे फहुत फुया रगता है ।
212. झगडे की तीन जड, जन, जभीन, जय : स्त्री, ऩ्ृ वी औय धन इन्हीॊ तीनों के कायण सॊसाय भें रडाई-झगडे हुआ कयते हैं।
213. झट भॉगनी ऩट ब्माश : ककसी काभ के जल्दी से हो जाने ऩय उश्क्त।
214. झटऩट की धानी, आधा तेर आधा ऩानी : जल्दी का काभ अच्छा नहीॊ होता।
215. झडफेयी के जॊगर भें बफल्री ळेय : छोटी जगह भें छोटे आदभी फडे सभझे जाते हैं।
216. झूठ के ऩाॊल नशीॊ शोते : झूठा आदभी फहस भें नहीॊ ठहयता, उसे हाय भाननी होती है ।
217. झूठ फोरने भें वयफ़ा क्मा : झूठ फोरने भें कुछ खचव नहीॊ होता।
218. झूठे को घय तक ऩशुॉिाना िाहशए : झूठे से तफ तक तकव-ववतकव कयना चाहहए जफ तक वह सच न कह दे ।
219. टॊ टा वलऴ की फेर शै : झगडा कयने से फहुत हानन होती है ।
220. टका कताघ, टका शताघ, टका भोष वलधामका्
221. टका वलघत्र ऩूज्जमन्ते, बफन टका टकटकामते : सॊसाय भें सबी कभव धन से होते हैं ,बफना धन के कोई काभ नहीॊ होता।
222. टका शो श्जवके शाथ भें , लश शै फडा जात भें : धनी रोगों का आदय- सत्काय सफ जगह होता है ।
223. टट्टू को कोडा औय ताजी को इळाया : भूखव को दॊ ड दे ने की आवचमकता ऩडती है औय फुविभानों के लरए इशाया कापी होता है ।
224. टाट का रॊगोटा नलाफ वे मायी : ननधवन व्मश्क्त का धनी-भानी व्मश्क्तमों के साथ लभत्रता कयने का प्रमास।
225. टुकडा खाए हदर फशराए, कऩडे पाटे घय को आए : ऐसा काभ कयना श्जसभें केवर बयऩेट बोजन लभरे , कोई राब न हो।
226. टे य-टे य के योले, अऩनी राज खोले : जो अऩनी हानन की फात सफसे कहा कयता है उसकी साख जाती यहती है ।
227. ठग भाये अनजान, फननमा भाये जान : ठग अनजान आदलभमों को ठगता है , ऩयन्तु फननमा जान-ऩहचान वारों को ठगता है ।
228. ठुक-ठुक वोनाय की, एक िोट रोशाय की : जफ कोई ननफवर भनुष्म ककसी फरवान ् व्मश्क्त से फाय-फाय छे डखानी कयता है ।
229. ठुभकी गैमा वदा करोय : नाटी गाम सदा फनछमा ही जान ऩडती है । नाटा आदभी सदा रडका ही जान ऩडता है ।
230. ठे व रगे फवु ि फढ़े : हानन सहकय भनष्ु म फवु िभान होता है ।
231. डयें रोभडी वे नाभ ळेय खाॉ : नाभ के ववऩयीत गुण होने ऩय।
232. डामन को बी दाभाद प्माया : दष्ु ट श्स्त्रमाॉ बी दाभाद को प्माय कयती हैं।
233. डूफते को नतनके का वशाया : ववऩश्त्त भें ऩडे हुए भनुष्मों को थोडा सहाया बी कापी होता है ।
234. डेढ़ ऩाल आटा ऩुर ऩय यवोई : थोडी ऩॉज
ू ी ऩय झूठा हदखावा कयना।
235. डोरी न कशाय, फीफी शुई शैं तैमाय : जफ कोई बफना फर
ु ाए कहीॊ जाने को तैमाय हो।
236. ढाक के लशी तीन ऩात : सदा से सभान रूऩ से ननधवन यहने ऩय उक्त, ऩरयणाभ कुछ नहीॊ, फात वहीॊ की वहीॊ।
237. ढाक तरे की पूशड, भशुए तरे की वुघड : श्जसके ऩास धन नहीॊ होता वह गुणहीन औय धनी व्मश्क्त गुणवान ् भाना जाता है ।
238. ढे रे ऊऩय िीर जो फोरै, गरी-गरी भें ऩानी डोरै : महद चीर ढे रे ऩय फैठकय फोरे तो सभझना चाहहए कक फहुत अचधक वषाव
होगी।
(1) बाऴा के लरणखत रूऩ भें फात फताते शैं। (8) हशन्दी भें व्मॊजनलणो की वॊख्मा ककतनी शै?

(A) फोरकय (B) लरखकय (A) 22 (B) 10


(C) 33 (D)30
(C) (A) औय (B) दोनों (D) इनभें वे कोई नशीॊ

(2) बायत की याष्रबाऴा शै। (9) कलगघ का उच्िायण-स्थान शै ?


(A)उदघ ू (B) हशॊदी (A) भध
ू ाघ (B) दन्त
(C) अॉग्रेजी (D) इनभें वे कोई नशीॊ (C) ओष्ठ (D) कण्ठ

(3) व्माकयण बाऴा के फताता शै । (10) ऩलगघ का उच्िायण स्थान शै?


(A) ननमभ (B) काभ (A) दन्त (B) कण्ठ
(C) (A) औय (B) दोनों (D) इनभें वे कोई नशीॊ (C) ओष्ठ (D) भूधाघ

(11) टलगघ का उच्िायण स्थान शै?


(4) ऩुष्ऩ कौन-वा ळब्द शै?
(A) दन्त (B) कण्ठ
(A) तत्वभ (B) तद्भल
(C) ओष्ठ (D) भूधाघ
(C) दे ळज (D) वलदे ळज

(12) िलगघ का उच्िायण स्थान शै?


(5) उ, ऊ के उच्िायण स्थान शै ?
(A) तारु  (B) ओष्ठ
(A) दन्त (B) कण्ठ
(C) कण्ठ (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(C) ओष्ठ (D) शोठों

(13) ऩ, प, फ, ब, भ का उच्िायण स्थान शै?


(6) ए, ऐ, ओ, औ कौन वा स्लय शै?
(A) तारु (B) ओष्ठ
(A) शस्ल स्लय (B) दीघघ स्लय
(C) कण्ठ (D)दन्त
(C) वॊमुक्त स्लय (D) इनभें वे कोई नशीॊ

(14) अन्त् स्थ व्मॊजन ककतने प्रकाय के शोते शै ?


(7) भात्राएॉ ककतने प्रकाय के शोते शै?
(A) वात (B) आठ
(A) दो (B) तीन
(C) िाय (D)ऩाॉि
(C) ऩाॉि (D)वात
(15) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण शै ? (23) इनभें वे कौन वा ळब्द ऩॊलु रॊग वे फना शुआ स्त्रीलरॊग शै ?

(A)कुरीन (B)नभक (A)कारी (B)फडा


(C) कृऩा (D)जानत (C)ऐवा (D) इनभें वे कोई नशीॊ

(16) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण शैं? (24) कौन वा ळब्द वॊस्कृत वे तद्भल फनामा गमा शै?

(A) जाऩान (B) गुणी (A)फच्िा (B)लच्छ


(C)दान (D) जानत (C) (A) औय (B) दोनों

(17) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण नशीॊ (25) कौन वा ळब्द गण
ु लािक वलळेऴण शै?
शै ?
(A)रार पूर
(A) नभकीन (B) दमारु (B)ऩाॉि रडके
(C) धनलान (D)पुती (C)दव शाथी
(D) इनभें वे कोई नशीॊ
(18) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण नशीॊ
शै ? (26) वॊख्मालािक वलळेऴण ककतने प्रकाय के शोते शै ?

(A)अऩभाननत (B) ननमलभत (A)दो (B)तीन


(C)लावऴघक (D)अऩभान (C)ऩाॉि (D) आठ

(19) इनभें वे कौन वा ळब्द वॊसा वे फना शुआ वलळेऴण शै ?


(27) कौन वा ळब्द ऩरयभाणफोधक वलळेऴण शै?
(A)इच्छुक (B) प्माव
(C)ऩळु (D)वन्तोऴ (A)वेय बय दध
ू  (B)िाय गज
(C)वफ धन (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(20) इनभें वे कौन वा ळब्द वलघनाभ वे फना शुआ वलळेऴण
शै ? (28) प्रमोग की दृश्ष्ट वे वलळेऴण ककतने प्रकाय के शोते शै ?

(A)भैं (B)लश (A)दव (B)िाय


(C)कोई (D)तेया (C)दो (D) इनभें वे कोई नशीॊ

(21) इनभें वे कौन वा ळब्द किमा वे फना शुआ वलळेऴण नशीॊ (29) इनभें वे कौन वलधेम-वलळेऴण शै?
शै ?
(A) भेया रडका आरवी शै । (B)वतीळ वद
ॊु य रडका शै।
(A)िारू (B)कभाऊ (C) (A) औय (B) दोनों (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(C)वभझना (D)ऩहठत

(30) इनभें वे कौन वा ळब्द भूरालस्था शै?


(22) इनभें वे कौन वा ळब्द किमा वे फना शुआ वलळेऴण शै ?
(A) वप्रमतय (B)रघत
ु भ
(A)लशाॉ (B)मशाॉ (C)वुन्दय (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(C)कर (D)आज का

(31) दाॉत का उच्िायण स्थान क्मा शै?


(A)नाक (B)कण्ठ (40) ननम्न भे कौन वी बाऴा बायत की प्रथभ दे ळबाऴा शै?
(C)ओष्ठ (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(A)ऩॊजाफी (B)वॊस्कृत
(C)हशॊदी (D) ऩालर
(32) हशन्दी भें ककतने लणघ शै ?

(A) 32 (B)52 (41) दक्षषणी बायत भे हशन्दी प्रिाय वबा का भख्


ु मारम कशॉ
ऩय श्स्थत शै?
(C)40 (D) 20

(33) हशन्दी बाऴा का जन्भ कशाॉ शुआ शै? (A)भैवूय (B)िेन्नई


(C)फॊगरोय (D) शै दयाफाद
(A) उत्तयबायत (B)आॊध्रप्रदे ळ
(C)जम्भू कचभीय (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(42) हशन्दी बाऴा ककव लरवऩ भें लरखी जाती शै ?

(34) हशन्दी खडी फोरी ककव श्जरा भें फोरी जाती शै? (A)वौयाष्री (B)ब्राह्भी
(C)गुरूभुखी (D) दे लनागयी
(A)याभऩयु (B)भेयठ
(C) दे शयादन
ू (D) इनभें वे वबी
(43 ) ननम्न भे वे कौन वी बाऴा दे लनागयी लरवऩ भें लरखी
जाती शै?
(35) बाऴाई आधाय ऩय वलघप्रथभ ककव याज्जम का गठन शुआ?
(A)लवॊधी (B)उडडमा
(A)आॊध्रप्रदे ळ (B)ऩॊजाफ
(C)गुजयाती (D) भयाठी
(C) याजस्थान (D)जम्भू कचभीय

(44) उच्िायण भें लामप्र


ु षेऩ की दृश्ष्ट वे व्मॊजनों के ककतने
(36) बाऴा के ककतने रूऩ शोते शै?
बेद शै?
(A)एक (B)दो
(A)िाय (B)दो
(C) िाय (D) तीन
(C)ऩाॉि (D) इनभें वे कोई नशीॊ

(37) कौन वी बाऴा इव दे ळ की ऩुयानी शै?


(45) 'त' ध्लनन का वशी उच्िायण-स्थान क्मा शै?
(A)हशॊदी (B)वॊस्कृत
(A)दन्त (B)भूधाघ
(C) भयाठी (D)अॉग्रेजी
(C)तारु (D) कण्ठ

(38) कौन वा बाऴा भध्मदे ळ की प्रभुख बाऴा थी?


(46) 'ल' का उच्िायण-स्थान क्मा शै?
(A)भागधी (B)ऩैळािी
(A)दन्तोष्ठ (B)भूधाघ
(C)ळौयवेनी (D)अिघभागधी
(C)तारु (D) कण्ठ
(47) भशे न्र का वश्न्ध वलच्छे द क्मा शै?
(39) भगशी ककव बाऴा की उऩफोरी शै?
(A)भशो+इन्र (B)भशा+इन्र
(A)याजस्थानी (B)ऩश्चिभी हशन्दी (C)भशे +इन्र (D) इनभें वे कोई नशीॊ
(C)ऩूली हशन्दी (D)बफशायी
(48) ननम्न भे वे दन्तम ध्लनन कौन वी शै ? (50) दक्षषणी बायत भे हशन्दी प्रिाय वबा का भख्
ु मारम कशॉ
ऩय श्स्थत शै?
(A)ऩ, प (B)क, ख
(C)त, थ  (D) ि, छ (A)भैवूय (B)िेन्नई
(C)फॊगरोय (D) शै दयाफाद
(49) ननम्न भे वे कॊठ्म ध्लनन कौन वी शै?

(A)ग, घ  (B)द, ध
(C)फ, ब (D)ढ़, ण

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