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सृि

@ShrishtySays

1 Tweets • 2023-06-14 •  See on Twitter


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एक मु लम ले खका ारा सम त िह द ू (woke) समाज पर ऐसा


थ पड़ मारा गया है िक गाल सहलाने के सवा कोई जवाब नह सूझता।

मु लम मिहला ारा लखा गया लेख :

"आपके साथ हुए दरु ाचार के दोषी आप वयं ह, पता है यूं ?? म


बताती हू.ं ...

• आपक िववािहत मिहलाओं ने माथे पर प ू तो छोिड़ये, साड़ी


पहनना तक छोड़ िदया, पा ा य देश का पहनावा उनक पहली पसंद
बन गई है, और आपको इससे कोई आप नह । जबिक हमारे समाज
म मिहलाएं स य और समाज म मा य व ही पहनती ह।

• आपने घर से िनकलने से पहले तलक लगाना तो छोड़ा ही, आपक


मिहलाओं ने भी आधुिनकता और फैशन के च र म और फारवड
िदखने क होड़ म माथे पर बदी लगाना य छोड़ िदया?

•हमारे यहां ब ा जब चलना सीखता है तो बाप क उं ग लयां पकड़ कर


इबादत के लए जाता है और जीवन भर इबादत को अपना फज़
समझता है।
आप लोग ने वयं ही मंिदर क ओर देखना छोड़ िदया, जाते भी
केवल तभी हो जब भगवान से कुछ मांगना हो अथवा िकसी संकट से
छुटकारा पाना हो।अब यिद आपके ब े ये सब नह जानते िक मंिदर म
य जाना है, वहाँ जाकर या करना है और ई र क उपासना उनका
कत य है....

तो या ये सब हमारा दोष है?

• आप के ब े कॉ वट से पढ़ने के बाद पोयम सुनाते थे तो आपका सर


ऊंचा होता है! होना तो यह चािहये था िक वे ब े भगव ीता के चार
ोक कंठ थ कर सुनाते तो आपको गव होता!
हमारे घर म िकसी बाप का सर तब शम से झुक जाता है जब उसका
ब ा र तेदार के सामने कोई दआ
ु नह सुना पाता!

•हमारे घर म ब ा बोलना सीखता है तो हम सखाते ह िक सलाम


करना सीखो।
आप लोग ने णाम और नम कार को हैलो हाय से बदल िदया...

तो इसके दोषी या हम ह?

•हमारे मजहब का लड़का कॉ वट से आकर भी उद ू अरबी सीख लेता है


और हमारी धा मक पु तक पढ़ने बैठ जाता है!
और आपका ब ा न रामायण पढ़ता है और ना ही गीता। उसे सं कृत
तो छोिड़ये, शु हदी भी ठीक से नह आती...

या यह भी हमारी ुिट है ?

• आप लोग ही तो पीछा छुड़ाएं बैठे ह अपनी जड़ से! हम ने अपनी


जड़ ना तो कल छोड़ी थी और ना ही आज छोड़ने को राजी ह!

•आप लोग को तो वयं ही तलक, जनेऊ, शखा आिद से और


आपक मिहलाओं को भी माथे पर बदी, हाथ म चूड़ी और गले म
मंगलसू -इन सब से ल ा आने लगी, इ ह धारण करना अनाव यक
लगने लगा और गव के साथ खल
ु कर अपनी पहचान द शत करने म
संकोच होने लग गया!

तथाक थत आधुिनकता के नाम पर आप लोग ने वयं ही अपने री त


रवाज, परंपराएं , सं कार, भाषा, पहनावा सब कुछ िपछड़ापन
समझकर याग िदया!

आज इतने वष बाद आप लोग क न द खल


ु ी है तो आप अपने ही
समाज के दस
ू रे लोग को अपनी जड़ से जुड़ने के लये कहते िफर रहे
ह!
अपनी पहचान के संर ण हेतु जागृत रहने क भावना िकसी भी सजीव
समाज के लोग के मन म वत: फूत होनी चािहये, उसके लये आपको
अपने ही लोग को कहना पड़ रहा है।
िवचार क जये िक यह िकतनी बड़ी िवडंबना है! और या इस िवडंबना
के ज मेदार हम या हमारा मजहब है ?

आपक सम या यह है िक आप अपने समाज को तो जागा हुआ देखना


चाहते ह कतु ऐसा चाहते समय आप वयं आगे बढ़कर उदाहरण
तुत करने वाला आचरण नह करते, जैसे बन गए ह वैसे ही बने रहते
ह।
ठीक इसी कार आपके समाज म अ य सब लोग भी ऐसा ही आपके
जैसा डबल टडड वाला हाइपोि िटकल यवहार करते ह!

या यह भी हमारी ुिट है ??

दशक से अपनी हद ू पहचान को िमटा देने का काय आप वयं ही एक


दस
ू रे से अ धक बढ़-चढ़ करते रहे, परंतु हम अपनी पहचान आज तक
भी वैसे ही बनाए रखने म सफल रहे ह। आपके थ त के ज मेदार
आप वयं ह ना िक हम मुसलमान।"

उनका ये लेख पढ़कर म तो िनश द हो गई। जवाब देने के लए कुछ था


नह मेरे पास। अगर आपके पास उ र है, तो कमट म बताइएगा ज र
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