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Shankaranandi Test English
Shankaranandi Test English
ये उक्तलचणवाली दो प्रकृतियाँ जिनकी योनि ( कारगा ) हैं वे एतद्योनि हैं, जन्मसे सत्ताको
प्राप्त करनेवाले भूत हैं | ब्रह्मासे लेकर स्तम्ब तक, जंगम और स्थावर, "भूत, वर्तमान तथा
भविष्यत ् जन्मवाले सभी भूतोंको जननी ये दो प्रकृतियाँ हैं, ऐसा समझो - अवधारण करो, यह
अर्थ है । जब श्रापकी दोनों प्रकृतियाँ ही जगत्को कारण हैं, तो 'जिससे ये भूत उत्पन्न होते हैं'
इत्यादि श्रुतियों में प्रसिद्ध आप जगत ् के कारण कैसे हैं ? ऐसी आकांक्षा होनेपर उनका कार्य
जो जगत्का जनन है , वह मेरा हा कार्य है , क्योंकि मेरी व्याप्ति से हो उन दोनों में
जगत्जननकी शक्ति है , केवल दोनो में नहीं है , जैसे जीव की व्याप्तिसे दे हमें पुराना किया
करने की शक्ति है , केवल दे हमें नहीं है । यदि केवल दे ह में ही पुण्यपापकारिता मानी जाय,
तो केवल दे ह को हो स्वर्गादिभोग प्राप्त होगा, इसलिए दे हकी उपाधिवाले जीवकी ही जैसे
पुण्यपापकारिता मानी जाती है , वैसे ही इन दो उपाधिवाले मझ
ु सर्वज्ञका ही सम्पूर्ण जगत्को
"
The actions of both the above natures are called - 'etad' and so on.
These two natures mentioned above, whose vagina (Karaga) they are, are Etdyoni, the
ghosts who have attained existence by birth. From Brahma to Stambha, Jangam and
Sthavar, “Consider that these two natures are the mother of all ghosts of past,
present and future births, this is the meaning. When both the natures of curse are
the cause of the world, then how are you the cause of the world, famous in the
Shrutis 'from which these ghosts arise' etc.?
When there is such an aspiration, their work which is the birth of the world, is my
work, because both of them have the power to give birth to the world, not only in
both of them, just as the body has the power to do old things by the presence of
the soul, not only in the body. If virtuous deeds are considered to be done only in
the body, then only the body will get the heavenly pleasures, therefore, just as a
soul with the title of the body is considered to be virtuous, in the same way, I am
omniscient with these two titles, the whole world
करनारूप कार्य है , क्योंकि 'उसने कामना की, मैं बहुत होऊँ' इससे मेरा ही बहुत हा
संकल्प सुनने में आता है , इसलिए मैं ही सम्पूर्ण जगत्का कारण हूँ, ऐसा कहते हैं—
'हम' कुस्न का स्थूल, सूक्ष्म और कारण सम्पूर्ण जगत्का मैं ही प्रभव - उपादान - समय
(उपसर्गवश प्रलय किया जाता है - निष्पादन किया जाता है - जिससे, वह प्रलय (1)
पानी निमित्त कारण दोनों मैं ही हूँ, यह अथ है ||६||
कोई ब्रह्मसे अन्य में जगत ् कारणताकी कल्पना करके श्रति
ु योंसे विरुद्ध जगत ् के कारण और
आचारका वर्णन करते हैं, उनके मत का खण्डन करते हुए कहते हैं - 'मत्तः' इत्यादिसे ।
- प्रकृतिरूप उपाधिवाले, सत्य आदि लक्षण वाले परमेश्वर से – परतर कारण द्वारा कल्पित
प्रधान, नैयायिकों द्वारा स्वीकृत परमाणुरूप अथवा अन्य कुछ भी नहीं कि प्रकृति आदि के
कारण होने में प्रमाण नहीं है । 'जिससे ये ' इत्यादि श्रुति ही प्रमाण कहो तो 'ईदतेनशब्दम ्'
इत्यादि अधिकरणोंसे जगत ् के कारणको चेतनत्व श्रादि कसे श्रुति के अर्थका विषय न होनेसे
प्रकृति आदिमें कारणत्वका निरास किया स है , सर्ववित ् है , जिसका ज्ञानमय तप है ', 'यह
सबका ईश्वर है , वह सर्वज्ञ है , है , यह सबका कारण है ', 'भत
ू का उपादान और निमित्त' इत्यादि
श्रति
ु यों में चेतन र सर्वज्ञ मैं ही सम्पर्ण
ू जगत्का कारण हूँ, यह अर्थ है । और भी स्थित होते
हैं' ऐसा उपक्रम करके श्रतिु ने रसातल से लेकर ब्रह्मलोक तक सब