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2015.348928.Bal-Jeevan Text
2015.348928.Bal-Jeevan Text
मार्च, १९६४
लेखक
गुणाकर मुले
डी. पी. सिनहा द्वारा न्यू एज प्रिटिय प्रेस, रानी झांसी रोड, नई दिल्ली
में मुद्रित घोर उन्हीं के द्वारा पीपुल्स पब्छिशिंग हाउस (प्रा.) लिमिटेड,
नई दिल्ली की तरफ से प्रकाशित ।
खेल-सेल में...
१०
* बे:
१५
रिचेली को अब पास्कल के पिता की याद हो
आई । टक्सों में वृद्धि कीवात को लेकर जो मतभेद
हो गया था, अब उसे काफी दिन बीत चुके थे । रिचेली
ने यही उचित समझा कि अव उस झगड़े कों आगे न
वढ़ाया जाय। जक्वेलिन के अभिनय से वे बहुत
खुश थे ।
रिचेली की कृपा से पास्कल के पिता को राउग्रेन
नामक स्थान पर पुनः अधिकार को जगह मिल गयी ।
पास्कछ-परिवार राउयेन में रहने लगा | पास्कछ-परि-
वार में पुनः खुशी के दिन लछोट आये ।
यहीं पर बालक पास्कल का कार्नेी नाम के एक
नाटककार से परिचय हुआ। पास्कल की प्रतिभा से
कार्नेली वहुत प्रभावित हुआ ।
लेकिन पास्कलछ तो पूर्णर्प से गणित के अध्ययन
में मन था | पास्कल अपने को गणित के छिए ही
अधपित कर चुका था। उसके रोम-रोम में गणित ही
समाया हुआ था ।
इस समय पास्कछ की आय १६ साल की थी।
तुम घायद पूछना चाहोगे : क्या पास्कल ने अब्र
तक गणित में कोई ऐसी चीज खोज निकाली थी जिसे
श्र
हा, पास्कल
ऐके ऐसा प्र ने की आयु मे
मेय पोज निकाला ज्यामिति
फा एक उहलप का
र्ण और अ प्ण ज्यामित
वयाक्ति न द्भुत प्रमे ्ति
होर्ग कहें तो अत
नह पमेय ि
टेम उसे सम कौस- जा था ? तु
झ पकते ह म पायद पछ
हों, तुम उसे ै ? ो
ऊफर पढ़ो, औ पमझ सकते
र पदि का हो, बशतें कि
स्वयं करने गज और प व्यान छगा
छग जा. े हाथ में कर
जाओगे | ए ) और भरी
क बार पुम री
फिर कभी नहीं भोग
इ मझ्
| आगे प मझ जोगे
पणित पत्षेगपे तो
उसके महत्व ो तुम्हें यह वे तुम
के तुम आयेगा और उच्च
ओगे तभी
85
ले लिया न कागज-पेंसिल ?
अच्छा, पहले में तुम्हें एक प्राचीन गणितज्ञ का
परिचय करा दूं। इनका नाम था : अपोलोनियस । यह
आकिमीदिज के समकालीन एक ग्रीक गणितज्ञ थे ।
जानते हो यह कितनी पुरानी बात है ? लगभग २२००
वर्ष पुरानी ।
यूकिलिड और उनकी ज्यामिति की पुस्तक
'एलिमेंट्स' के बारे में तुम सुन ही चुके हो। अब
अपोछोनियस की ज्यामिति के बारे में भी कुछ जान लो |
किसी थांकु, यानी कोन, की कल्पना करों। इस
दंकु को यदि किसी समतल द्वारा विभिन्न स्थितियों में
काठा जाय तो पांच संभव वक्र प्राप्त होते हँ : एक-
दुसरे को काटनेवाली दो सरल रेखाएं, वृत्त, दीव॑ब्रत
(इल्िप्सि), परवलकय (पैरावबोछा) और अतिपरवलसय
(हाइपरवबोछा ) । इन सभी वक्रों कोगणित में थांकव
(कॉमनिक-सेव्शन ) का नाम दिया गया है ।
हक
आधा
६]
अपोलोनियस ने आज से लगभग २००० वर्ष पहले
इन्हीं शांकवों की ज्यामिति का निर्माण किया । अपो-
लोनियस की ज्यामिति पहले से यदि तेयार न होती,
महान ज्योतिषी केपलर ने यदि इस ज्यामिति का
खगोल की गतियों के लिए उपयोग न किया होता, तो
न्यूटन के लिए गुरुत्वाकषंण के नियमों को खोज
निकालना शायद संभव न होता ।
लेकिन पास्कल के समय से अपोलोनियस की
ज्यामिति का दूसरा अध्याय शुरू हो जाता है ।
पास्कल का अद्भुत प्रमेय इन्हीं शांकवों से
संबंधित है । पास्कल ने तो इसे “रहस्यमय पट्भ्रुज
का नाम दिया था, परन्तु गणितशास्त्र भैआज यह
प्रमेय “पास्कल का प्रमेय” नाम से प्रसिद्ध है ।
किसी भी शांकव को लिया जा सकता है; किन्तु
सुविधा के लिए तुम वृत्त को ही ले लो। इस वृत्त की
परिधि पर कोई भी छः: विदु लो। मान लो कि तुमने
छः विदु लिये हैं: अब क ड य ह।
अब इसी क्रम में वृत्त केभीतर इन विंदुओं को
सरल रेखाओं से जोड़ लो । वृत्त के भीतर छ: रेखाओं
से वंधी हुईं एक आक्ृत्ति तुम्हें मिल जायेगी। इसे ही
“अल ला
।
कक मे
तुम पूछोगे, इसमें क्या रहस्य है ? यह तो बड़ी
सरल बात है।
तो लो, सुनो रहस्य की बात...
क् इस पट्थ्रुजाकृति के आमने-सामने वाली रेखाओं
को इस प्रकार बढ़ाओ की वे एक दूसरी को एक बिंद॒
पर काट । ऐसा करने से वृत्त के बाहर तुम्हें तीन विदु
मिल जायेंगे ।
मालूम हुई कोई रहस्य की बात ? नहीं ? तो
देखो. ..आखीर के इन तीनों विदुओं को साधो। ये
तीनों विदु एक ही सरल रेखा पर स्थित मिलंगे ।
श्र
न लक, हैं न अद्भुत
४ । छ् बात ? लेकिन इतना
५ ही नहीं, यह तो एक
(2 बड़े रहस्य की झलक
भानलताई 7 मात्र है ।
वत्त की परिधि
पर किसी भी तरह
छ: विदु लिये जायें
और पटकोण बनाया
जाय, तब भी परि-
णाम यही होगा ।
२४८
तुम शायद पूछो : क्या केवल दृत्त पर ही यह
नियम लागू होता है ! हु
नहीं, केवल वृत्त पर ही यह नियम लागू नह
होता, यह दीर्घवृत्त पर भी लागू होता हैं। विश्वास न
होता हो तो अण्डाकृति वाला एक दीघेवृत्त खींच कर
देख लो । जिस प्रकार वृत्त पर छः विंदु लेकर रेखाएं
खींची गयी हैं, उसी प्रकार रेखाएं खींच लो। तुम
देखोगे कि तीनों विदू एक ही सरल रेखा पर स्थित हैं ।
सच तो यह है कि न केवल वृत्त केलिए, न केवल
दीधेवृत्त केलिए, वल्कि हर शांकव के लिए यह प्रमेय
सही है । यही इस प्रमेय की सबसे बड़ी खूबी है ।
हैन प्रमेय सरल ? फिर इसके निर्माण के लिए
ज्यादा साधनों कीभी जरूरत नहीं है । दृत्त के लिए
तो केवल कंपास-युगूम और स्केल की ही जरूरत है ।
यूक्लिड की ज्यामिति में प्रमेयों की .स्थापना के
लिए रेखाओं के मापन और कोणों का उल्लेख रहता
है । लेकिन पास्कल के इस प्रमेय में तुम पाओगे कि
रेखाओं एवं कोणों के मापन की जरूरत नहीं है ।
ग्रीक दाशनिक अऑरिस्टोटल तथा अच्य चिन्तकों की
प्राचीन काल से यह धारणा रही है कि गणितशास्त्र
परिमाणों (क्वांटिटीज) का विज्ञान है | किन्तु पास्कल
२५
का यह प्रमेय सिद्ध करता है कि यह गुणों (क्वालि-
टीज) का भी विज्ञान है।
् हिढ
में सेविभिन्त स्थितियों मेंकांच का एक समतलू
सरकाओ ।
तुम देखोगे किवह कांच-समतरू जिन कढक्रों में
उस प्रकाश-शंकु को काटता है वे वक्र विभिन्न शांकवों
को दरशाते हैं, जैसे : बृत्त, दीघवृत्त, परवलूय आदि ।
अब, यदि तुम उस कांच के समतल पर पास्करूू
का “रहस्यमय षट्कोण” अंकित करो, और कांच का
ही एक दूसरा समतलू लेकर, पहले समतल की छाया
इस दूसरे समतल पर पड़ने दो तो तुम देखोगे कि इस
छाया में और पहले समतल के “षट्कोण” में कोई
विशेष फक नहीं है। तुम पाओगे कि छाया वाली
आकृति भी एक “रहस्यमय षट्कोण” ही होगी !
मतलब यह कि इस प्रमेय, या इससे संबंधित उप-
प्रमेयों को, छायाओं में “प्रक्षेपित” किया जाय तो इन
प्रमेयों केमूल गुण-धर्मों मेँकोई परिवतंन नहीं होगा;
एन प्रमेयों केमूल गुण-धर्म उसी प्रकार कायम रहते हैं।
गणितशास्त्र में यह एक विशेष खोज थी।
यूविलड की ज्यामितीय आक्ृतियों में यह विशेषता नहीं
€। इस माने में भी पास्कल का यह प्रमेय, या इस
प्रमेय से संबंधित ज्यामिति, अनोखी थी ।
ध्स प्रकार तुमने देखा है कि प्रक्षेप के अन्तर्गत
भी पास्कल की ज्यामिति की आश्ृतियां अपने गुण-धर्मो
पे
का यह प्रमेय सिद्ध करता है कि यह ग्रुणों (क्वालि-
टीज) का भी विज्ञान है।
के
कुछ गणितज्ञों को तो गणित में ही ईश्वर के दर्शन होते
रहे हैं। ग्रीक गणितज्ञ पाइथागोरस ने कहा था:
“प्राकृतिक संख्याएं ही ईश्वर हैं ।” प्लेटो ने कहा था :
“ ईदवर हमेशा ज्यामिति का निर्माण करता रहता
है । जंकोबी ने कहा था : “ईश्वर हमेशा अंकगणित
का निर्माण करता रहता है।” २०वीं शताब्दी के महान
भौतिकवेत्ता जेम्स जीन्स ने अटल विद्वास के साथ यहां
तक कह डाला कि : “महान विश्व-निर्माता (ईश्वर)
अब 'गणितन्ञ' के रूप में प्रकट होने लगा है ।*
इसके विपरीत कुछ ऐसे भी गणितज्ञ मिलते हैँ
जिनका कि किसी साम्प्रदायिक देवी-देवता में भी
विश्वास रहा है और अपनी गणितीय खोजों को उन्होंने
इन्हीं की क्रपा का प्रसाद बताया है। लेकिन ऐसे
गणितन्नों की संख्या वहत बड़ी है जिन्होंने गणित के
लिए किसी ईश्वरीय सत्ता की जरूरत नहीं समझी ।
प्ाओं ही का हि धा॥
; पु ि
# !20:55॥
5 क्र मल
॥॥02/0॥:
2तय छःथ
बा क. ७ बन
तट
7275 आह 2७6०००नकट 8 “ ट गज
न 2 कार
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>न् पं [| 2
गीत
छः / जज
ता
5 प्त
] ।
गणपफ-यंत्र पा सीतरो द्थय ।
मम
ीव।
कि ५
सार य॑ अंक दायीं से वायीं ओर क्रमशः इकाई, दहाई
सकड़ा, हजार, दस हजार और राख को प्रकट करते
हैं। २, ५ ओर ३ को जोड़ने पर इकाई के सिलेंडर
पर ० नजर आयेगा ओर दहाई के सिलेंडर पर १ ।
इस प्रकार १० उत्तर मिल जायेगा ।
इस तरह छः: सिलेंडरों की सहायता से, तुम
९९९,९९९ तक का जोड़ बताने वाली संख्याओं को
जोड़ सकते हो । वास्तव में पास्कल की इस मजञ्ञीन में
विपरीत क्रम में भी डायलछों पर अंक अंकित थे, जो
संख्याओं को घटाने के लिए इस्तेमाल होते थे ।
पास्कल ने अपने पिता के हिसाब को जोड़ने और
घटाने के लिए यह मद्यीन १६४२ में तेयार को थी ।
बाद में इसी सिद्धान्त पर और भी मशीनें बनायी गयीं।
जिस मॉडल को यहां पर चित्र में दिखाया गया है वह
सन् १६५२ का है । मूल गणक-यंत्र आज भी पेरिस के
एक संग्रहालय में देखने को मिल सकता हैं। इसका
एक नमूना छंदन के साइंस-म्यूजियम में भी देखने को
मिल्त जायेगा ।
जो मणीन अंकों को जोड़ सकती है वही मशीन,
विपरीत क्रम से, अंकों को बठा भी सकती है। इसी
तरह जो मजीन अंकों का गुणा कर सकती है बहीं
+ 7
हि
कक
श्र
मणीन, विपरीत क्रम से, अंकों काभाग भी कर सकती
|/ । पास्कल की मशीन में
अंकों को केवल जोड़ने ओर
घटाने की ही व्यवस्था थी । उसमें गुणा करने या भाग
देने की व्यवस्था नहीं थी ।
है
£हे
है
धर
छ
>पक <भप्टू।
शान्काक के जले पारा
कलक
रासरा
भरिक
जार फि
्ष्कपर पिर
२९
नलिका को पारा भरे एक पात्र में उलट दिया । टोरि-
सेली ने देखा कि वायुमंडल के भार में परिवर्तन के
साथ-साथ नलिका के भीतर पारे की ऊंचाई में भी
परिवर्तन होता है ।
गंलीलियो और टोरिसेली की खोजों के आधार
पर पास्कल ने एक 'बेरोमीटर' यंत्र बनाया और प्रयोगों
द्वारावायुमंडलीय भार के बारे में ऐसे नियम खोज निकाले
जिन्हें आज भोतिक-शास्त्र का प्रत्येक विद्यार्थी जानता है ।
इस बीच पास्कल की एक बहन का विवाह एम,
पेरियर नामक एक सज्जन से हो गया था। पास्कल के
सुझाव पर पेरियर महाशय बरोमीटर को एक ऊंचे
पहाड़ पर ले गये। वहां उन्होंने देखा कि बरोमीटर में
पारे की ऊंचाई घट गयी है |
बाद में पास्कल जब अपनी बहन के साथ पेरिस
आया तो वहां पुनः उसने यही प्रयोग किया ।
अपने प्रयोगों केआधार पर पास्कलछ ने जिस
सिद्धान्त की खोज की बह पास्कलछ की मृत्यु के ३००
वर्ष वाद भी 'पास्कल का तरछ-भार रिद्धान्त' नाम
से प्रसिद्ध हे
आज के हाइड्रोलिक जंक, हाइड्रोछिक प्रग आर
इसी प्रकार की अन्य मणीनें पास्कल वे इसी सिद्धान्त
पर वाधारित हैं
2
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था ।
फिर भी, वयस्क दकात॑ ने तरुण पारकल को एक
उपयोगी सलाह दी |
कोन सी सलाह ?
पास्कल की तरह दकाते का भी स्वास्थ्य बचपन
से हो खराब रहा। परन्तु एक विशेष युक्ति से दकाते
अपने स्वास्थ्य की रक्षा करता रहा । सुबह जाग जाने
पर वह बिस्तर पर ही पड़ा रहता । बिस्तर पर पढ़े-
पड़े ही वह सोचता या पढ़ता रहता ।
पास्कल को भी दकाते ने यही सुझाव दिया ।
अजीण को दूर करने के लिए दकात॑ ने पास्कछ को
बीफ-चाय पीने की सलाह दी ।
परन्त पास्कल ने दकाते के सुझाव को द्ुकरा
दिया--भायद इसलिए कि ये सुझाव दकात से प्राप्त
हा थे ।
कितना अच्छा होता कि पास्कल दकार्त के गुझावों
को मान छेता और अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर
मकता!
लेकिन महान प्रतिभाओं के तो रंग-ढंग ही निराल
होते हैं। पास्क को प्रतिभा का झुकाव अब एक
निराली दियाहककी ओर घम चला ।
्ध्र
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आत्मम्यका (मा कक 4,
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में पास्कल-परिवार पुनः पेरिस छौट आया । यहीं अगछे
वर्ष, १६५१ में, पास्कल के पिता की मृत्यु हुई ।
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सं, 5फे
की ।
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हक
बस, यह १॥२ भिन्न सिक्के के चित गिरने की
समावना दरशाता है ।
“अच्छा, मान लिया | एक सिक्के के लिए तो एस
वात को समझना सरल है,” एक मित्र ने बीच मेंही टोका,
“लेकिन उछाली जाने वाली चीज अगर पांसा हो तो ?
“ठीक है,, गणितज्ञन ने कहा, “आइए, हम एफ
पांसे को ही ले लें। पांसा घनाकार होता है, यानी
उसके छः: चेहरे होते हैं। उसके प्रत्येक चेहरे पर संस्या-
निन्न होते हँ--एक से लेकर छः तक ।
“ठीक है । दसरे मित्र ने कहा। “छेकिन पहट
द्री दांव में ६ आने की संभावना क्या है ?”
“/ कुल रांभमावनाएं कितनी हूँ ?” गणितज्ञ समझाते
ट्टा बीठा : “घन के छ: चेहरे हू इसलिए १ से ६
तक कोई भी संख्या पहल दांव में आजा सकती है । अतः
इस स्थिति में संभावना होगी : १/६ ।”
गोष्ठी ने अब दूसरा ही रूप धारण कर लिया ।
मेजबान ने गणितनज्ञ से पुछा : “तो क्या किसी भी
घटना की संभावना (प्रोवेश्विलिटी) निकाली जा सकती
हैं ? मेरा अनुमान है कि खिड़की के सामने से गुजरन
ह
!$
“यदि हम यह मान लेते हैं कि संसार में पुरुष
और स्त्रियों की संख्या समान है तो इस अनुमान को
संभावना १२ है ।” गणितन् ने सीधा-सा उत्तर दे
दिया ।
“ओर, पहले दो व्यक्ति पुरुष ही होंगे--इस घटना
की संभावना वया है ?” एक दूसरे व्यक्ति ने पूछा ।
“पहले हम विभिन्न संभावनाओं पर विचार
करेंगे । पहले तो यह संभव है कि दोनों ही व्यक्ति
पुरुष होंगे। दूसरे, पहला पुरुष हो सकता है, दूसरो
स्त्री । तीसरे, पहली स्त्री होसकती है, दूसरा पुएप ।
दोये, दोनों औरते हो सकती हैं। इस तरह ४ ही
संभावनाएं हैं। और इनमें से हमें वेबण एक संभावना
घचारिए । इसलिए एस अपेक्षित घटना पी संभावना १/४
४ । यही आपके प्रण्न वा उत्तर है ।”
“यह तो समप्त ये आ गया ।” उस व्यक्ति ने दहा ।
"लेविन प्रश्य यदि तीन पुरुषों का हो तो ? हमारी
ते गुजरनेवाल प्रथम तीन व्यक्ति
रह कु जजर
आाकामा लेता पक घथ्स नर रण ्व्याः
टरनााअकम्यात
दानन्न
कक *. . उमर --#भाकुल० अनु
पत्रसचा-
श्स द्य क्् 2०5०, यु दिन जज,
रशलर है ३ 9
गज 0 तल जा र्गा
तत्पर दादा
० कार फफ ५
के
संभावनाएं ४ हैं। एक और राहगीर को जोड़ने से
संभावनाएं दुगनी हो जाती हैं। कारण यह कि दो
राहगीरों की ४ संभावनाओं में से हरेक में हम एक
पुरुष या एक स्त्री जोड़ सकते हैं। अतः इस उदाहरण
में ८ विभिन्न सभावनाएं हैं। जाहिर है, इस बार
संभावना १/८ होगी--क्योंकि ८ में से केव८ एक ही
संभावना की हमें अपेक्षा है ।'
“लेकिन संभावना निकालने का तरीका क्या है ?
एक मित्र ने गणितज्ञ से पूछा ।
“संभावना निकालने का तरीका यह है : दो राह-
गीरों के उदाहरण में संभावना होगी, १/२:६३१/२८०१/४ ।
तीन राष्रगीरों के उदाहरण में सांभावना होगी,
१/२२८१/२ »१/२--०१/८ । आप देखे कि हर बार सभा-
बना कम होतो जाती 2 ।
४५० राहगीरों के लिए क्या संभावना होगी /”
क्रिसी ने पूछ दिया ।
आपका मतलछव टै-- प्रथम दंगे राह्रगार प्रुद्स
ही होंगे इस बात की संभावना क्या होगी / यह होगी:
नि 85: /३ ४
जिन 72/२2/6426]
। इस घटना पट आप १ रुपये की शत
] न कि, शा
१/६२-
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६9४:८ ८ के
प का.
९)
क कि
लगाते हैं तोइस घटना के घटित न होने पर में १०००
रपयों की शर्त लगा सकता हूं ।” गणितज्ञ ने कहा ।
“शर्त तो बड़ी लभावनी है।” मंडली में से एक
व्यक्ति बोल उठा। “मैं तो १००० के लिए १ रुपये से
ज्यादा की शर्ते छगा सकता हूं।*
“लेकिन यह मत भूलिए कि इस छाते को जीतने
की संभावना १००० में सिर्फ एक है। गणिततन्न ने
पाहा ।
“कोई वात नहीं ।” शत बदने वाल व्यक्ति ने
चटवा वार वाहा | “१००० के लिए १ रुपया लगाने के
लिए तो में इस संभावना के लिए भी तयार हूं कि
पहले १०० व्यत्तिः पुरप ही होंगे ।”
“आप जानते हैं कि इस घटना की संभावना
वितनी काम है ?” गणितन्न बोझा ।
"शायद दस लाख में एक । उस व्यक्ति ने झहा।
यह एस सार
ाविकुणणयं ५“है पठा ) ) उस करन क्त्ति हिल न््मनागक
न थक
> | ये
मल
“खर ! आप
20 आप
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मित्र + गणितञ
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कम ' सम झत े है ं ? इत नी तो समुद्र
“क्या आप इस े
में बूंदें भी नहीं हें ।
मे रे ए क हु पय े के मु काबले कितने
“खैर | आप द
की शर्त लगाते हैं !
स भ ी कु छ _ ज ो कु छ मेरे पास है.
“सभी कुछ ।
बड ़े आत ्म -व िश ्व ास के साथ कहा ।
गणितज्ञ ने
तो बह ुत ज् या दा होगा। में अपने
“सभी कु छ
प की साइकिल ले लु ंगा ।
हुपये के बद ले के वल आ
नह ीं जा नत े कि भाप कभी
“लेकिन आप यह नहीं
लत को साइकिल कभी
जीत नहीं सकते।
ने फिर कहा ।
मिलेगी ।” गणितज्ञ
म त ल ग ा ओ ं , गणितज्ञ के
“नहीं, यहें शव | रुपये के
बीच मे ं ह ी टो का
मित्र ने गणितज्ञ को हा ते ? य ह ती सरासर
क ी
बदले एक साइकिल
पागलपन है
मु का बल े मे ं ए क रु पये की शर्ते भी
“लेकिन, इसके अडा रहा ।
ितज् न अपनी वात पर
पागलपन है! गण
बे
रे जी तन े क ी कु छ तो संभावना है
(फिर भी मे ं मु स् कर ात े हुए कहा
वा ले व् यक ्त ि ने
ही ? शत लगाने
०!
ी प्र से
पलटने डिंग
गुजर रही हे ।
ढेचारा गणिदन्
हार गया
क े स ह ो न े पर मे
प ू छ ो , स ं भाषना इसी
तुम !
त क े स े एा० गधा
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“संभाविता-सिद्धान्त” का कुछ न कुछ अंदाजा तुम्हें
अब हो गया होगा । तुम्हें याद होगा कि एक जुआरी
के मामूली सवाल को लेकर इस विज्ञान की शुरूआत
हुई । फर्मा और पास्कल के बीच इस सवाल को लेकर
लम्बा पत्र-व्यवहार हुआ और अन्त में “संभाविता-
सिद्धान्त ने जन्म लिया ।
तुम शायद आश्चर्य करोगे कि एक जुआरी के
एक मामूली सवाल ने एक महत्वपूर्ण विज्ञान को केसे
जन्म दिया ? सच तो यह है कि विज्ञान के इतिहास में
ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है । मामूली घटनाओं ने,
मामूली सवालों ने, जो आरम्भ में बहुत सरल मालम
होते हैं, विज्ञान को अमृल्य निधियां दी हैं ।
जुआरी के जिस सवाल ने संभाविता-सिद्धान्त को
जन्म दिया, वह आज बड़े महत्व का है। सभी प्रकार
के बीमा-व्यापारों में, गणितीय-सांख्यिकी में, जीव-विज्ञान
में, गणनाओं और भीतिकी आदि विज्ञानों के मूल में--
यही संभाविता-सिद्धान्त काम करता है। आधुनिक
भौतिक-विज्ञान में तोयह वहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध
हुआ है ।
प्रमाण का नाम तुमने सुना हाोगा। सरल दब्दा
में कहें तो परमाणु के केन्द्र मेंएक नाभिक होता £
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इस नियम के अनुसार अब तुम जरा ७वीं पंक्ति
तो निकालछो ।
निस्संदेह, इसमें कुछ संख्याएं ७ होंगी : दोनों सिरों
पर १-१; वायें से दायें, दूसरी संख्या होगी : १ +-५--६;
तीसरी संख्या होगी: ५--१०७--१५; चौथी संख्या
होगी : १०+१०८-२०; पांचवीं संख्या होगी : १०+५
5१५; छठो संख्या होगी...
कौन सी ?
५+१55६ |
अब तो तुम स्वयं भी इस त्रिकोण का निर्माण
कर सकते हो !
बसे तो गणितश्ञास्त्र में इस अद्भुत त्रिकोण के कई
उपयोग हैं, और स्वयं पास्कल ने “संभाविता-सिद्धान्त'
से सम्बंधित गणनाओं के लिए इसकी खोज की थी ।
पर, लगे हाथ तुम्हें भीइसका एक उपयोग बता दूं ।
वीजगणित के नीचे लिखे श्रेणी-विस्तार पर विचार
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(१-+-त)" (१)-(१)त'
(१+त)*. ह« (१)+-(२)त-+-(१)6.
(१+त)ः (१)-(३)व-+(शतसन- (तर
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गणित के क्षेत्र में पास्क्ल की यह
बाद विज्ञान के लिए
थी और पोर्ट-रॉयल में आने के
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उसकी यही सबसे बड़ी देन थी
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भरे तुम पूछ रहे हो : यह ज्यामि
क्या बला है !
तो सुनो, तुम्हें, बतलाएं ।
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किसी भी बवृत्ताकृति की कल्पना करो : मान लो
एक पहिया है । इस पहिए की परिधि पर एक स्थिर
विदु ले लो। अब इस पहिए को समतलरू भूमि पर
चलाओ । सवाल है : पहिए की परिधि पर स्थित विद
किस मार्ग मे गमन करेगा ?
तुम चाहो तो एक गोल सिक्का लेकर भी यह
प्रयोग कर सकते हो। कागज पर एक सरल रेखा
खींचकर इस पर उस सिक्के को चलाओ। साथ ही
परिधि पर चिन्हित विदु के मार्ग को निर्धारित करते
जाओ । तुम देखोगे कि तुम्हें एक बक्र प्राप्त होता है।
गणित की भाषा में इस वक्र को 'साइकलोआइड'
कहते हैं ।
वृत्त, दीघेवृत्त, परवकूय आदि वक्रों की तरह
'साइकलोआइड' भी एक खास वक्र है। वृत्त, दीघ्घंबृत्त
की तरह ही इस वक्र के भी अपने कुछ ग्रुण-धर्म हैं ।
वास्तव में पास्कल के लगभग डेढ़-सो साल पहले
ही यह वक्र ज्यामिति में प्रवेश कर चुका था । प्रसिद्ध
वैज्ञानिक गेलीलियों और उसके द्िप्य विवियानी ने
भी इस वक्र का अध्ययन किया था । गेलिलियों ने सबसे
पहले सुझाव दिया था कि इस वक्र के आकार के आक
पुल बनाये जा सकते हैं। जब से कक्रीट को तैयार
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कारना संभव हुआ है, बड़े-बड़े मार्गों परइस वक्र के
आकार के पुलों का निर्माण होने लगा है ।
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मण किया गया है। इतना जबरदस्त आक्रमण कि
कुछ लोगों के मत में जेसुइट-संप्रदाय वाले अभी तक
इससे अपनी रक्षा नहीं कर पाये | कुछ धामिक लोगों
की तो यहां तक मान्यता रही है कि इन 'प्रॉविशल
लेटस में कोई “जादू ही निहित है। इन पत्रों ने
जेसुइटों पर विष-सा असर किया ।
उपरोक्त पत्रों को लिखने के बाद पास्कल को
'ईसाई धर्म की क्षमा-याचना' लिखने की इच्छा हुई ।
परन्तु कमजोर स्वास्थ्य के कारण वह अपनी इस योजना
को पूरा नहीं कर पाया। इस योजना के लिए जो
नोट्स उसने तंयार किये, वे ही बाद में 'पेंसी! के नाम
से प्रकाशित हुए ।
पास्कल ने गणित के अछावा जो कुछ भी कार्य
किया वह सब घामिक रहस्यवाद से सराबोर है ।
लेकिन इसके अछावा इन रचनाओं का खास
साहित्यिक महत्व है । पास्कल की भाषा इतनी प्रभाव-
शाली है कि वह हर पाठक को मोह लेती है। इसी-
लिए आज भी पास्कछ को बढ़े उत्साह से पढ़ा जाता
है; इसीलिए जनसाधारण पारकलछ से फ्रंच गद्य के
निर्माता के रूप में परिचित हें ।
तरह समाज और मनुष्य के अन्तर्भेदों तक पहुंचना पड़ता
है, उसी प्रकार गणितज्ञ को प्रकृति के गृढ़तम रहस्यों
तक पहुंचने केलिए सामाजिक आवरण को ठुकरा देना
पड़ता है। पास्कल के सामाजिक-जीवन के गुण-दोपों
की अपेक्षा उसके वेज्ञानिक आविष्कार कहीं ज्यादा
महत्वपूण हैं ।
क्या तुम्हें इस बात पर आइचर्य नहीं होता कि
१२ वष का एक बालक, किसी की सहायता के बिना
स्वयं ही यूक्लिड के कई प्रमेयों को सिद्ध करता है !
क्या तुम्हें इस बात पर आइचय नहीं होता कि १६ साल
का एक अस्वस्थ बालक “रहस्यमय पटभ्रुज जैसे प्रमेय
की सृष्टि करके, “शांकवों पर प्रबंध” लिखकर, गणित-
दास्त्र में एक नये अंग की सृष्टि करता है ? “प्रक्षेप-
ज्यामिति” को जन्म देकर पास्कल ने विज्ञान के मार्ग
को कितना प्रशस्त किया है, यह विज्ञान का बिद्यार्थी ही
समझ सकता है ।
और फिर, जुआरी के उस सवाल ने तो हमारे
ज्ञान-भवन की नीव को ही हिला दिया । दशताब्दियों तक
बड़े-बड़े दाशनिकों की यह मान्यता रही है कि प्रकृति के
समस्त कार्य-कछाप पूव निर्वारित किये जा सकते
हम गणित की सहायता से यह पहले ही निर्धारित कर
| ९.4
महत्वपूर्ण आविष्कार करके पास्कल ने विज्ञान के
भंडार को समृद्ध किया ।
सामान्यतः हम मान लेते हैं कि स्वस्थ शरीर मे
ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। किन्तु पास्कलू
को स्वस्थ शरीर नहीं मिलू पाया। जीवन भर वह अजीर्ण
ओर अनिद्रा से पीड़ित रहा । पास्कल के जीवन के इस
पक्ष पर सहदयता से विचार किया जाय तो आश्चर्य
होता है कि वह यह सब कुछ कंसे कर पाया ।
पास्कल ने इस संसार में केवल ३९ वर्षों तक
सांस ली है। सन १६५४ में वह पोट-रॉयल भें चला
गया था | इसके बाद जीवन के अंतिम दिनों तक, बीच
वे केवल ८ दिनों को छोड़कर, पास्कल ने गणित को
हाथ भी नहीं लगाया । अतः हम कह सकते हैं कि
गणितज पास्कलछ की मृत्यु, ३१ वर्ष की आयु में, १६५४
में ही हुई ।
इन ८ वर्षा में गणित के हिस्से में तोकेवल ८ दी
दिन आये और गणितद्ास्त्र को “ज्यामिति की हेलन
के नये गुणों की प्राप्ति हुई, परन्तु फ्रंच-साहित्य को नयी
दौली मिल गयी । 'पेंसी' और 'प्रॉविद्वल लेटस फ्रच
साहित्य की अमर क्रतियां मानी जाती हें ।
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9 ह
पाहित्य और धर
डायरा भले ही ्म के लेकर गै
सीमित रहा हो स्किल के चिंतन
, रित्तु विज्ञान का
से उसके थआा वि की
ष्का
प्रभाविता-सिद्धान्त रों का वहुत व्यापक भहृत् दृष्टि
! जार प'ल्ले व है |
सकल ने क्रेबल फ्रांस क प सि द्धान्त! क्षे स
अने भय | े, अपितु चि् वे के, महाम ाथ
ानव
तिथि-पस्पवेका
एनग्य ; १५ एन, १६२३ ।
पिला ; एटियने पारदाल
शाता : एटोीएनेट बेगाने ।
शाम ; गिल्यट छोर जबवेलिंग ।
दिक्षा : दज्षपन्र में पिता की दैलस-रेल में छिक्षा। एयामितियी दर
विध्ेपष शायपण । १२-१४ बे मो शाग में रेबटा; इंणागशि शे
प्रभयों को सिद्ध बरने बने छगव |
६९६९ : 'रायाग परप्शज | पोज, 'एांचिद) पर प्ररकूध ६५
भत्ते ॥
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है] तन कण >«॥ हल्की ४ है ३. चारकइआ-क जकय>+ $अं कुकी म--. च्छ का वात ३ पक कप्प अल जनम.फलय-अतम
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