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14-02-23 : Japa Talk @ 6 am

आज की जपा टॉक ी भुपाद कृत हरी नाम जप की मिहमा नामक पु क की ावना से ली


गई है ।
हरे कृ ा आं दोलन की शु आत।

1965 म कृ कृपा मू ित ी ीमद् ए सी भ वेदां त ामी भुपाद ारा लाया गया "हरे कृ "
शी ही घर घर का जाना पहचाना श बन गया। और कुछ ही वष म, वह एक िव आं दोलन
बन गया, िजसे हम कृ भावना अमृत आं दोलन के नाम से जानते ह।

उस समय, पा ा संगीत के चरमो ष पर यिद कोई था, तो वह बीट ु प था। जॉज है रसन
तथा जॉन लेनन, ी भु पाद के हरे कृ कीतन से अ ंत आकिषत ए। ील भुपाद ने
समझाया, महामं की िद िन हमारी िद चेतना को पुनजागृत करने की सरल सहज
िविध है।
यह जीवा ा अने कों ज ों से जड़ पदाथ के संग म रहने से, हमारी चे तना को भी कृित के रं ग
म रं ग चुकी है । इस भौितक कृित को ही माया कहते ह।

हरे कृ का कीतन हमारी शु चेतना को पुनजागृत करने की िद प ित है । कृ भावना


तो जीवा ा की मूल ाभािवक थित है । जब हम इस िद िन को सुनते ह, तो वह चेतना
जागृत हो उठती है ।

इस महामं के कीतन के िलए, ना तो इसकी भाषा समझने की आव कता है , ना ही कोई


अटकल लगाने की आव कता है , और ना ही अपनी बु को तोड़ने मरोड़ने की आव कता
है । आ ा क र से आने के कारण, यह आ ा के िलए सहज है । और इसिलए, िबना
िकसी पूव यो ता के, कोई भी इसम भाग ले सकता है । यह हरे कृ महामं का कीतन,
को तु रंत आ ा क र पर ले जाता है । इस कीतन- नृ म, एक ब ा भी भाग ले
सकता है । आव कता केवल एक है , थोड़ा समय िनकालना होगा, थोड़ा समय लगाना
होगा। और इस िद म से, हम कृ भावना को पा सकगे।

"हरा" श का योग भगवान की श के संबोधनाथ होता है । और, कृ एवं राम, यं


भगवान के नाम ह। कृ और राम दोनों का अथ है , परम आनंद, परम आकषक। और हरा
भगवान को सव आनंद दे ने वाली श है । और जब उस श को पु कारा जाता है , तो वह
हरे श हो जाता है । भगवान की वह आहलािदिन श , भगवान तक प ं चाने म हमारी
सहायता करती है । यह तीन श , हरे , कृ और राम, महामं के िद बीज प ह। यह
कीतन भगवान और उनकी श से संर ण की एक पुकार है । कलह और कपट के इस
कलयुग म, आ ा क सा ा ार का अ कोई माग नही ं है । केवल यह महामं एक
उपाय है । हरे कृ हरे कृ , कृ कृ हरे हरे । हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।

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