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• सहकारिता पिस्पि सहयोग के माध्यम से सामहू हक औि व्यहिगत लाभ प्राप्त किने की मल ू भावना पि आधारित है। कोई

भी कायय जो पािस्परिक लाभ के हलए हमलजल ु कि हकया जाए, सहकारिता की परिहध में िखा जा सकता है ।
• उत्पादन, क्रय, हवक्रय या हवतिण आहद के हलए व्यहियों का हमलजुल कि कायय किना ताहक वे संयि ु रूप से लाभाहववत
हो सकें , सहकारिता की मल ू भावना को प्रहतहिहं ित किता है।
• अंतििाष्ट्रीय सहकारिता संघ (इटं िनेशनल को ऑपिे हटव एलायंस) ने सहकारिता को हनम्नानसु ाि परिभाहित हकया है -
"सहकारिता एक ऐसा स्वशासी संगठन है जिसमें व्यजि अपने समान आजथिक, सामाजिक औि सांस्कृजतक
उद्देश्यों, आवश्यकताओ ं औि अपेक्षाओ ं को सयं ि ु स्वाजमत्व औि प्रिातांजिक तिीके से जनयजं ित सस्ं था के
माध्यम से पूिा किने के जिए स्वैजछिक रूप से एकजित होते हैं । "
उपययि
ु परिभािा के अनसु ाि “सहकारिता" की हनम्नहलहखत हवशेिताएं उभि कि सामने आती हैं :-
(1) यह व्यहियों का संगठन है |
(2) सहकारिता एक स्वशासी संगठन है |
(3) इसमें व्यहि स्वैहछिक रूप से शाहमल होते हैं। इसका अर्य यह हुआ हक सहकारिता के अतं गयत सदस्यता अहनवायय नहीं होती।
इसके सदस्य अपनी इछिा सेशाहमल होते हैं औि अपनी इछिा से सदस्यता िोड़ने के हलए स्वतत्रं होते हैं।
(4) सहकारिता के आधाि पि गहठत सस्ं र्ा के सदस्य अपने समान आहर्यक, सामाहजक औि सास्ं कृ हतक उद्देश्यों तर्ा
आवश्यकताओ ं को पिू ा किने के हलए हमलजल ु कि कायय किने की दृहि से एकहत्रत होते हैं ।
(5) सहकािी सस्ं र्ा सयं ि
ु स्वाहमत्व वाली ऐसी सस्ं र्ा होती है हजस पि सदस्यों का प्रजाताहं त्रक रूप से हनयत्रं ण िहता है।
सहकारिता का इहतहास –
• 19वीं शताब्दी की शरुु आत में ग्रेट हिटेन में एक आंदोलन का रूप ले हलया। िािटय ओवेन जैसे आहर्यक सामाहजक
सधु ािकों ने सहकारिता के हवचाि को ठोस शक्ल देने में उल्लेखनीय भहू मका हनभाई।
• भाित में को-ऑपिे हटव सोसायहटयों को शरू ु किने का हवचाि सिसे पहले मद्रास सिकाि के एक अहधकािी फ्रेडरिक
हनकोलसन (Fredrick Nicholson ) द्वािा 1885 में हदया गया र्ा, हजवहें ग्रामीण ऋणग्रस्तता को दिू किने तर्ा सस्ते दि
पि ग्रामीण ऋण महु यै ा किाये जाने के उद्देश्य से िाज्य में एक भहू म िैंक प्रणाली शरूु हकए जाने की सभं ावनाओ ं की जााँच
किने के हलए 1892 में हनयि ु हकया गया र्ा।
• 1897 में प्रस्ततु की हजसमें ग्रामीण ऋणग्रस्तता के हनदान के हलएभाित में सहकािी ऋण सोसायहटयों की शरुु आत हकए
जाने की जोिदाि वकालत की। हालााँहक, इसके पहले जमयनी के ग्रामीण िैंकों से प्रभाहवत होकि हवहलयम वेडि िनय तर्ा श्री
जी. एम. िानडे द्वािा भी 1882 में इसी तिह के िैंकों की स्र्ापना के हलए हिहटश सिकाि के समक्ष एक प्रस्ताव प्रस्ततु हकया
गया र्ा।
• लॉडय कजयन द्वािा एडवडय लॉ की अध्यक्षता में 1901 में एक सहमहत गहठत की गई। इस सहमहत की हसफारिशों के आधाि पि
1904 में प्रर्म को-ऑपिे हटव सोसायटी एक्ट पारित हकया गया ।
• 1919 के प्रशासहनक सधु ाि अहधहनयम (Reform Act, 1919) के अंतगयत सहकारिता को एक प्रांतीय हविय िना हदया
गया तर्ा सिकाि में एक मत्रं ी को इसका प्रभाि हदया गया। हवहभवन िाज्यों ने अपनी जरूितों के अनरू ु प अपना को-
ऑपिे हटव सोसायटी एक्ट पारित हकया।
• आजादी के पश्चात मध्यप्रदेश की हवधानसभा ने मध्यप्रदेश सहकािी सोसायटी अहधहनयम 1960 पारित हकया जोहक 12
मई 1961 को िाजपत्र में प्रकाहशत हुआ |
• ि.ग िाज्य िना तो (1 नवम्िि 2000) 13 जनू 2001 को हवहधयों का अनक ु ू लन आदेश (ADAPTATION OF
LAWS ORDER) पारित कि म.प्र. सहकािी सोसायटी अहधहनयम को अपना हलया गया |
सहं वधान में सहकारिता सम्िवधी प्रावधान –

97वां संजवधान संशोधन अजधजनयम 2011 –

1). अनुछिे द 19 का संशोधन –


भाग 3 , अनछु िे द 19(1)(ग) – सघं के पश्चात सहकािी सजमजत शब्द िोड़ा गया |

2). नवीन अनुछिे द 43(ख) िोड़ा गया –


भाग 4 , अनछु िे द 43(ख) – सहकािी सजमजतयों का उन्नयन (PROMOTION)

3). संजवधान में नवीन भाग 9ख िोड़ा गया –


अनुछिे द 243ZH – अनुछिे द 243ZT (13 अनुछिे द)

सहकािी सजमजत -

सहकािी सजमजत

सहकािी साख सजमजत सहकािी गैि साख सजमजत

1). सहकािी साख सजमजत – प्राथजमक कृजि साख सजमजत

2).सहकािी गैि साख सजमजत – दुग्ध सहकारिता , शक्कि सहकारिता

सहकािी बैंजकंग – जिस्तिीय सिं चना


ऋण देना –
सहकािी सहमहत के सदस्यों को तीन तिीके के ऋण की पात्रता होती है –
1). अल्पकालीन ऋण - अल्पकालीन ऋण की अवहध 12 से 15 माह तक होती है, हजसे कृ हि के अछिे िीज, उवयिक, हसंचाई,
पौध सिं क्षण आहद की व्यवस्र्ा हेतु फसल प्रणाली के आधाि पि हदया जाता है।
2). मध्यकालीन ऋण - सहकािी साख सहमहतयों द्वािा मध्यकालीन ऋण 3 से 7 विों की अवहध के हलये सदस्यों को हदया जाता है,
हजसमें िैल खिीदने, दधु ारू पशु क्रय किने, ताि फें हसगं , कृ हि उपकिण जैसे- थ्रेसि, हवद्यतु पम्प, डीजल पम्प खिीदने, कुआं हनमायण
एवं कुआं मिम्मत हेतु ऋण हदया जाता है ।
3). दीघयकालीन ऋण - जनिे टि, पावि थ्रेसि, िीपि, रैक्टि, पम्प, फुहािा (Sprinkler) हिड़काव हसच
ं ाई (Drip Irrigation) आहद
के हलये दीघयकालीन ऋण हदया जाता है । (7 विों से अहधक)

1). प्रार्हमक कृ हि ऋण सहमहतयां -

• प्रार्हमक कृ हि ऋण सहमहतयां ऐसी सहकािी ऋण सस्ं र्ाएं हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में ज़मीनी स्ति से जड़ु ी हुई हैं। इनका सीधा
संपकय व्यहियों तर्ा ग्राहकों से होता है।
• िोटे- िोटे गांवों, खेहतहि मज़दिू ों, लघु कृ िकों औि गृहस्र्ों की पहुचं प्रार्हमक कृ हि ऋण सहमहतयों तक ही सीहमत होती
है, इसहलए इन सहमहतयों की सदस्यता अहधकांशतः कमज़ोि वगय से िनी होती है।
• ये सहमहतयां िोटे-िोटे कजय देने के अलावा, सावयजहनक खाद्यावन हवतिण प्रणाली तर्ा अवय आवश्यक सामग्री की आपहू तय
में योगदान देती हैं।
• यह सहमहत अल्पकालीन व मध्यकालीन ऋण उपलब्ध किाती है |

2). हज़ला मध्यवती सहकािी िैंक (हजला के वद्रीय िैंक)

• हज़ला मध्यवती सहकािी िैंक हजले की सभी प्रार्हमक सहमहतयों की हवत्तीय आवश्यकताओ ं को पिू ा किता है ।
• यह िाज्य सहकािी िैंक तर्ा प्रार्हमक सहकािी सहमहतयों के िीच संपकय माध्यम का कायय किता है।
• कृ हि ऋण सहमहतयों को उत्पादन, हवपणन तर्ा आपहू तय प्रयोजनों हेतु ऋण महु यै ा किाने का कायय किता है ।
• हजले में सहकािी गहतहवहधयों को सदृु ढ़ता प्रदान किना एवं अपने अहधकाि क्षेत्र में मागयदशयक के रूप में कायय किना इसका
प्रमख
ु उद्देश्य है।

3). िाज्य सहकािी िैंक (अपैक्स िैंक) -


ये िैंक िाज्य में सहकारिता के लीडि हैं। िाज्य सहकािी िैंक, हजला मध्यवती सहकािी िैंकों को हवत्तीय सहायता प्रदान किते हैं।
ित्तीसगढ़ सहकािी सोसाइटी अजधजनयम, 1960
उद्देश्य - लोकतांहत्रक साधन औि जनता की संस्र्ा के रूप में, स्वैहछिक गठन, लोकतांहत्रक सदस्यों का हनयंत्रण, सदस्यों की
आहर्यक सहभाहगता औि स्वशासी हक्रयाकिण के हसद्ांतों पि आधारित सहकािी संस्र्ाओ ं को संगहठत औि हवकहसत किने हेतु
अहधहनयम ।
भाित गणिाज्य के ग्यािहवें विय में मध्यप्रदेश हवधानमण्डल द्वािा हनम्न हलहखत रूप में यह अहधहनयहमत हो :-
मध्यप्रदेश िाजपत्र में हदनांक 12 मई, 1961 को प्रर्म िाि प्रकाहशत की गई।
कुल अध्याय – 11
कुल धािा – 96
अध्याय-1 (प्रािंहभक)
धािा 1. संहक्षप्त नाम, हवस्ताि तर्ा प्रािम्भ-(1) इस अहधहनयम का संहक्षप्त नाम "ित्तीसगढ़ सहकािी सोसाइटी अहधहनयम, 1960"
है।
(2) इसका हवस्ताि सम्पणू य ित्तीसगढ़ पि है।
(3) यह ऐसी तािीख को प्रवृत्त होगा हजसे िाज्य सिकाि, अहधसचू ना द्वािा,हनयत किे ।
धािा 2 परिभािा –
अध्याय -2 (िहजस्रीकिण)
धािा 3 िहजस्राि तर्ा अवय अहधकािी-(1) िाज्य सिकाि िाज्य के हकसी व्यहि को सहकािी सोसाइहटयों का िहजस्राि हनयि ु किे गी
औि हनम्नहलहखत प्रवगों के एक या अहधक अहधकारियों को इस हेतु हनयि ु कि सके गी हक वे उसकी सहायता किें , अर्ायत-्
(क) सहकािी सोसाइहटयों का अपि िहजस्राि;(additional)
(ख) सहकािी सोसाइहटयों का सयं ि ु िहजस्राि;(joint)
(ग) सहकािी सोसाइहटयों का उप िहजस्राि;(sub)
(घ) सहकािी सोसाइहटयों का सहायक िहजस्राि;(assistant)
(ङ) अहधकारियों के ऐसे अवय प्रवगय जो हक हवहहत हकये जायें।
(2) िहजस्राि को सहायता किने के हलए हनयि ु हकये गये अहधकािी, इस अहधहनयम द्वािा या उसके अधीन िहजस्राि को प्रदत्त की
गई ऐसी शहियों का तर्ा इस अहधहनयम द्वािा या उसके अधीन िहजस्राि पि अहधिोहपत हकये गये ऐसे कतयव्यों का,जैसा हक िाज्य
सिकाि आदेश, द्वािा हनदेश दे, प्रयोग तर्ा पालन ऐसे क्षेत्रों के भीति किें गे जैसे हक िाज्य सिकाि हवहनहदयि किें :
पिवतु अपि िहजस्राि या संयि ु िहजस्राि से हभवन हकसी भी अहधकािी को इस िात के हलये हवहनहदयि नहीं हकया जायेगा हक वह
धािा 78 के अधीन अपीलों की सनु वाई किने की शहियों का प्रयोग किें ।
(3) िहजस्राि की सहायता किने के हलये हनयि ु हकये गये अहधकािी िहजस्राि के अधीनस्र् होंगे औि उसके साधािण मागयदशयन,
पययवेक्षण तर्ा हनयत्रं ण के अधीन कायय किें गे।

धािा 4. सोसाइहटयां जो िहजस्रीकृ त की जा सकें गी-इस अहधहनयम के उपिंधों के अध्यधीन िहते हुए, हकसी भी ऐसी सोसाइटी को,
हजसका उद्देश्य अपने सदस्यों के आहर्यक हहत या उनके साधािण कल्याण को सहकािी हसद्ावतों के अनसु ाि संप्रवहतयत किना हो, या
हकसी ऐसी सोसाइटी को, जो हक हकसी ऐसी सोसाइटी को संहक्रयाओ ं को सक ु ि िनाने के उद्देश्य से स्र्ाहपत की गई हो, इस
अहधहनयम के अधीन िहजस्रीकृ त हकया जा सके गा।
धािा 5. परिसीहमत (limited) या अपरिसीहमत(unlimited) दाहयत्व सहहत सोसाइहटयों का िहजस्रीकिण-
कोई सोसाइटी परिसीहमत या अपरिसीहमत दाहयत्व सहहत िहजस्रीकृ त की जा सके गी: पिवतु जि तक हक िाज्य सिकाि, साधािण या
हवशेि आदेश द्वािा अवयर्ा हनदेहशत न किे , हकसी ऐसी सोसाइटी का, हजसकी हक सदस्य कोई अवय सोसाइटी हो, दाहयत्व
परिसीहमत होगा।

परिभािा - "परिसीहमत दाहयत्व वाली सहकािी सोसाइटी" से अहभप्रेत है कोई ऐसी सोसाइटी हजसके सदस्यों का दाहयत्व उसकी
उपहवहधयों द्वािा उस िकम, यहद कोई हो, जो हक उनके द्वािा धारित अश
ं ों पि अदत्त हो, तक परिसीहमत हो या ऐसी िकम हजसका
हक, उस सोसाइटी का परिसमापन हो जाने की दशा में, उसकी आहस्तयों के प्रहत अहभदाय किने का हजम्मा वे अपने ऊपि लें, तक
परिसीहमत हों’’
धािा 6. िहजस्रीकिण की शतें-
• हजस सोसाइटी की सदस्य कोई अवय सोसाइटी हो |
• उस सोसाइटी से हभवन कोई भी सोसाइटी इस अहधहनयम के अधीन िहजस्रीकृ त नहीं की जायेगी, जो कम से कम ऐसे [दस]
व्यहियों से हमलकि न िनी हो तर्ा जो हनकट के नातेदाि न होकि [दस] हभवन-हभवन कुटुम्िों के हो, औि उस दशा में
जिहक सोसाइटी के उद्देश्यों में उसके सदस्यों की उधाि दी जाने वाली हनहधयों का सृहजत हकया जाना सहम्महलत हो इस
अहधहनयम के अधीन िहजस्रीकृ त नहीं की जायेगी यहद ऐसे व्यहि उस दशा में के उसी नगि या ग्राम में या ग्रामों के हकसी
समहू में हनवास न किते हो |
• हवद्याहर्ययों के फायदे के हलये िनाई गई कोई सोसाइटी इस िात के होते हुए भी िहजस्रीकृ त की जा सके गी हक ऐसी
सोसाइटी के सदस्यों ने उस हवहध, हजसके हक अध्यधीन है, के अनसु ाि वयस्कता की आयु प्राप्त नहीं की है।
• पिवतु यह औि भी हक िहजस्राि वयनू तम सदस्यता की शतय को, ऐसी सोसाइटी के हलए, हजसकी स्र्ापना के कमयचारियों के
कल्याण के हलए संगहठत की गई है, हशहर्ल कि सके गा।
• पिवतु यह औि भी हक हकसी प्रार्हमक सोसाइटी की दशा में िहजस्रीकिण के समय कम से कम 33 प्रहतशत महहला सदस्य
होंगे:
• पिवतु यह औि भी हक िहजस्राि पयायप्त कािणों से महहला सदस्यों की हवहहत प्रहतशतता की शतों को हशहर्ल कि सके गा।]

धािा 7. िहजस्रीकिण के हलये आवेदन-


(1) िहजस्रीकिण के प्रयोजनों के हलए, हकसी सोसाइटी को िहजस्रीकृ त किने के हलए आवेदन हवहहत प्ररूप में िहजस्राि को हकया
जायेगा औि उसके सार् सोसाइटी की प्रस्र्ाहपत उपहवहधयों की चाि-चाि प्रहतहलहपयां सल
ं ग्न होंगी। वह व्यहि, हजसके द्वािा या
हजसकी ओि से ऐसा आवेदन हकया जाय, सोसाइटी के िािे में ऐसी जानकािी देगा जैसी हक िहजस्राि अपेहक्षत किें ।

(2) आवेदन-
(क) हकसी ऐसी सोसाइटी की दशा में, हजसकी हक सदस्य कोई अवय सोसाइटी न हो, कम से कम दस ऐसे व्यहियों द्वािा, जो धािा 6
की अपेक्षाओ ं के अनसु ाि अहहयत हों, औि
(ख) हकसी ऐसी सोसाइटी की दशा में, हजसकी हक सदस्य कोई िहजस्रीकृ त सोसाइटी हो, प्रत्येक ऐसी िहजस्रीकृ त सोसाइटी की
ओि से हकसी ऐसे व्यहि द्वािा, जो सम्यकरूपेण प्राहधकृ त हकया गया हो, औि जहां उस सोसाइटी के समस्त सदस्य िहजस्रीकृ त
सोसाइहटयां न हों, वहां दस अवय सदस्यों द्वािा या, जि अवय सदस्य दस से कम हों, तो उन सिके द्वािा, हस्ताक्षरित हकया जायेगा।

धािा 8. कहतपय प्रश्नों को हवहनहश्चत किने की िहजस्राि की शहि – जहां हकसी सोसाइटी के िनाये जाने, उसका िहजस्रीकिण हकया
जाने या उसके िने िहने के संिंध में या हकसी व्यहि को हकसी सोसाइटी के सदस्य के रूप में स्वीकृ त हकये जाने के संिंध में कोई
ऐसा प्रश्न उद्भूत हो हक कोई व्यहि कृ िक है या नहीं अर्वा कोई व्यहि हकसी हवहशि क्षेत्र में हनवास किता है या नहीं अर्वा कोई
व्यहि हकसी हवहशि वगय या उपजीहवका से सिं हं धत है या नहीं अर्वा जहां हकसी सोसाइटी का सदस्य िनने के हलये हकसी व्यहि
की पात्रता के संिंध में ऐसा ही कोई अवय प्रश्न उद्भूत हो, वहां ऐसा प्रश्न िहजस्राि द्वािा हवहनहश्चत हकया जायेगा औि उसका हवहनश्चय
अंहतम होगा।

धािा 9. िहजस्रीकिण- (1) यहद िहजस्राि का समाधान हो जाए हक हकसी सोसाइटी ने इस अहधहनयम तर्ा हनयमों के उपिवधों का
अनपु ालन हकया है औि यह हक उसकी प्रस्र्ाहपत उपहवहधयां इस अहधहनयम या हनयमों के प्रहतकूल नहीं हैं, तो वह उस सोसाइटी
को िहजस्रीकृ त कि सके गा:
पिवतु हकसी सोसाइटी को िहजस्रीकृ त नहीं हकया जायेगा यहद, िहजस्राि की िाय में, उसके आहर्यक दृहि से कमजोि हो जाने की
सभं ावना हो या यह सभं ावना हो हक उसका हकसी अवय सोसाइटी पि प्रहतकूल प्रभाव पड़ेगा।
(2) जहााँ िहजस्राि हकसी सोसाइटी को या उसकी उपहवहधयों को िहजस्रीकृ त किने से इक ं ाि कि देता है, वहााँ वह इक
ं ाि संिंधी
आदेश उस इक ं ाि के कािणों सहहत आवेदन के प्रर्म हस्ताक्षिकताय को संसहू चत किे गा।
(3) िहजस्राि, हकसी सोसाइटी के िहजस्रीकिण के हलए आवेदन प्राप्त होने की तािीख से, [पैंतालीस हदन] के भीति, हवहनश्चय किे गा:
पिवतु यहद िहजस्राि, पवू ोि कालावहध के भीति ऐसे आवेदन का हनपटािा किने में असफल िहता है, तो वह ऐसी कालावहध का
अवसान होने की तािीख से, पवद्रह हदन के भीति ऐसे आवेदन को अगले उछच अहधकािी को, औि जहां िहजस्राि स्वयं
िहजस्रीकिण अहधकािी है, वहां िाज्य सिकाि को हनदेहशत किे गा, यर्ाहस्र्हत जो या हजसके द्वािा. आवेदन प्राप्त होने की तािीख से
दो मास के भीति हनपटािा हकया जाएगा औि यर्ाहस्र्हत, ऐसे उछच अहधकािी या िाज्य सिकाि द्वािा उस कालावहध के भीति
आवेदन का हनपटािा किने में असफल िहने पि सोसाइटी औि उसकी उपहवहधयां िहजस्रीकृ त कि दी गई समझी जाएगी।
(4) िहजस्राि, इस अहधहनयम के अधीन िहजस्रीकृ त अर्वा िहजस्रीकृ त समझी गयी सोसाइहटयों का एक िहजस्टि िखेगा।

नोट - इस अहधहनयम क अधीन िहजस्रीकृ त प्रत्येक सहकािी सोसाइटी, इस अहधहनयम के प्रवृत्त होने की तािीख से ि:मास की
कालावहध के भीति, ऐसी उपहवहधयां, हवलोहपत या संशोहधत किे गी, जो इस संशोधन अहधहनयम के उपिंधों को ध्यान में िखते हुए.
ऐसी अहतरिि उपहवहधयां िनाएगी, जैसा हक आवश्यक हो।
10. सोसाइहटयों का वगीकिण-(1) िहजस्राि समस्त सोसाइहटयों का वगीकिण हनम्नहलहखत एक या अहधक शीिों के अधीन किे गा,
अर्ायत-्
(1) उपभोिा सोसाइटी (Consumer Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो अपने सदस्यों तर्ा सार् ही अवय ग्राहकों के हलए माल
अहभप्राप्त किने या उसका उत्पादन किने तर्ा प्रसंस्किण किने एवं उवहें उसका हवतिण किने या उनके हलए अवय सेवायें किने के
तर्ा ऐसे प्रदाय, उत्पादन, प्रसंस्किण एवं हवतिण से उत्पवन होने वाले लाभों को अपने सदस्यों तर्ा ग्राहकों के िीच उस अनपु ात में,
जो हक ऐसी सोसाइटी की उपहवहधयों में अहधकहर्त हकया जाये, हवतिण किने के उद्देश्य से िनाई गई हों |
(2) कृ हि फमय सोसाइटी (Farmer Society)- कोई ऐसी सोसाइटी जो भहू म के हवकास तर्ा खेती की अहधक अछिी पद्हतयों को
संप्रवहतयत किने के उद्देश्य से िनाई गई हो औि उसके अंतगयत आती हैं िेहति कृ हि फमय सोसाइटी, अहभधािी(tenant) कृ हि फमय
सोसाइटी, सामहू हक कृ हि फमय सोसाइटी, संयि ु कृ हि फमय सोसाइटी, हसंचाई सोसाइटी तर्ा फसल संिक्षण सोसाइटी |
(3) संघीय सोसाइटी (Fedral Society) - वह सोसाइटी हजसकी अंशपंजू ी का, सिकािी अंशपंजू ी को अपवहजयत किते हुए, कम से
कम पचास प्रहतशत सोसाइहटयों द्वािा धारित हो |
(4) के वद्रीय सोसाइटी (Central Society)- हजला सहकािी कृ हि औि ग्रामीण हवकास िैंक या अवय कोई सोसाइटी हजसका
काययक्षेत्र िाज्य के हकसी भाग तक सीहमत हो तर्ा हजसका उद्देश्य सदस्य सोसाइहटयों के उद्देश्यों को संप्रवहतयत किना है औि हजसकी
कम से कम पांच सदस्य सोसाइहटयााँ है |
(5) गृह हनमायण सोसाइटी (Housing Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो इस उद्देश्य से िनाई गई हो हक वह अपने सदस्यों के हलये
हनवास स्र्ान की व्यवस्र्ा किें |

(6) हवपणन सोसाइटी (Marketing Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो कृ हि या अवय उपज का हवपणन किने के प्रयोजन के हलए
िनाई गई हो औि हजसके उद्देश्यों में ऐसी उपज के हलये अपेहक्षत वस्तओ
ु ं का प्रदाय किना सहम्महलत हो |

(7) िहुप्रयोजन सोसाइटी (Multipurpose Society) – 2 या 2 से अहधक काम

(8) उत्पादक सोसाइटी (Producers Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो माल का उत्पादन तर्ा व्ययन (disposing) अपने
सदस्यों की सामहू हक संपहत्त के रूप में किने के उद्देश्य से िनाई गई है औि उसके अवतगयत कोई ऐसी सोसाइटी आती है जो उसके
सदस्यों के श्रम के सामहू हक उपयोजन के उद्देश्य से िनाई गई है |

(9) प्रसस्ं किण सोसाइटी (Processing Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो माल का उत्पादन याहं त्रक या शािीरिक प्रहक्रया द्वािा
किने के उद्देश्य से िनाई गई हो औि उसके अवतगयत कोई औद्योहगक सोसाइटी तर्ा कोई ऐसी सोसाइटी, जो कृ हि उपज का
प्रसस्ं किण किने के हलए हो, आती है |
(10) ससं ाधन सोसाइटी (Resource Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो इस उद्देश्य से िनाई गई हो हक वह अपने सदस्यों के हलए
उधाि (क्रेहडट), माल या सेवायें, जो हक उनके द्वािा अपेहक्षत हों, अहभप्राप्त किें औि उसके अवतगयत कोई सेवा सोसाइटी तर्ा कोई
प्रार्हमक साख सोसाइटी आती हैं |

(11) साधािण सोसाइटी (General Society) - कोई ऐसी सोसाइटी जो धािा 10 की उपधािा (1) में हवहनहदयि हकए गए शीिय
(एक) से (नौ) तक में से हकसी भी शीिय के अवतगयत न आती हो;

(12) औद्योहगक सोसाइटी (Industrial Society) - नकि, िढ़ई, धातक ु मयकािों, मोची या कोई अवय सोसाइटी, हजसका लक्ष्य
हकसी भी प्रकाि के कछचे माल से परिष्ट्कृत माल हनहमयत किना है, के हवकास को सप्रं वहतयत किने के उद्देश्य से हविहचत कोई
सोसाइटी |

(13) सेवा क्षेत्र सोसाइटी (Service Sector Society) - ऐसी सोसाइटी, जो अपने सदस्यों एवं अवय के हलए हवहभवन ग्राहक सेवाएाँ
प्रदान किने के उद्देश्य से िनायी गई हो |

[(1-क) िहजस्राि उपधािा (1) में हवहनहदयि हकये गये शीिो में से हकसी शीिय के अधीन आने वाली सोसाइहटयों का हनम्नहलहखत
शीिो के अधीन औि भी वगीकिण कि सके गा, अर्ायत-्

(क) शीिय सोसाइटी - वह सोसाइटी हजसका प्रधान उद्देश्य उन अवय सोसाइहटयों को जो हक उससे संिद् हो, हक्रयाकिण के हलये
सहु वधाएं देना हो औि हजसके हक्रयाक्षेत्र का हवस्ताि सम्पणू य ित्तीसगढ़ पि हो |
(ख) के वद्रीय सोसाइटी,

(ग) प्रार्हमक सोसाइटी (Primary Society) - वह सोसाइटी जो न तो शीिय सोसाइटी हो औि न के वद्रीय सोसाइटी |
धािा 11. सोसाइटी की उपहवहधयों का संशोधन-(1) हकसी सोसाइटी की उपहवहधयों का कोई भी संशोधन ति तक हवहधमावय नहीं
होगा जि तक हक इस अहधहनयम के अधीन िहजस्टि में दजय न हकया गया हो, हजस प्रयोजन के हलये उस प्रस्ताहवत सश ं ोधन की चाि
प्रहतयां हवहहत िीहत में िहजस्राि को भेजी जाएगी
पिवतु प्रत्येक सहकािी सोसाइटी इस अहधहनयम या इसके अधीन िनाये गये हनयम में हकये गये हकसी सश ं ोधन के हदनाक ं से 45
हदवस के भीति, उि संशोधन के अनपु ालन में उप-हवहधयों में संशोधन हेतु प्रस्ताव चाि प्रहतयों में हवहहत िीहत में िहजस्राि को प्रेहित
किे गी।
(2) यहद िहजस्राि का यह समाधान हो जाय हक प्रस्ताहवत सश ं ोधन इस अहधहनयम या उसके अधीन िनाये गए हनयमों के प्रहतकूल
नहीं है तर्ा सोसाइटी के लक्ष्यों तर्ा उद्देश्यों के या उसकी हवद्यमान उपहवहधयों में से हकसी भी उपहवहध के प्रहतकूल नहीं है तो वह
उस संशोधन को िहजस्टि में दजय कि सके गा।
(3) िहजस्राि, आवेदक सोसाइटी को सनु वाई का अवसि हदए हिना, उपहवहधयों के हकसी संशोधन को िहजस्टि में दजय किने से इक ं ाि
नहीं किे गा। यहद वह हकसी संशोधन को िहजस्टि में दजय किने से इक ं ाि किने का हवहनश्चय किता है तो वह इकं ाि संिंधी आदेश उस
इक ं ाि के कािणों सहहत प्रस्ताव प्राप्त होने की तािीख से [ तीस हदन] के भीति सोसाइटी को ससं हू चत किे गा:
पिवतु यहद िहजस्राि, पवू ोि कालावहध के भीति ऐसे आवेदन का हनपटािा किने में असफल िहता है तो वह ऐसी कालावहध का
अवसान होने की तािीख से पंद्रह हदन के भीति ऐसे आवेदन को अगले उछच अहधकािी को, औि जहां िहजस्राि स्वयं िहजस्रीकिण
अहधकािी है, वहां िाज्य सिकाि को हनदेहशत किे गा, यर्ाहस्र्हत, जो या हजसके द्वािा, आवेदन प्राप्त होने की तािीख से दो मास के
भीति हनपटािा हकया जाएगा औि यर्ाहस्र्हत, ऐसे उछच अहधकािी या िाज्य सिकाि द्वािा उस कालावहध के भीति आवेदन
का हनपटािा किने में असफल िहने पि उपहवहधयों का सश ं ोधन िहजस्रीकृ त कि हदया गया समझा जाएगा।

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