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अथ सर्वतीथथवदिकत्वं
मथुरथ सभी तीथों में श्रेष्ठ है
आदि पुरथण में यह कहथ गयथ
है -
मथुरा महातम्य 4
Text 30
न वर्द्यते दह पथतथले
नथन्तरीक्षे न मथनुषे।
समं तु मथुरथयथ दह
तीथं मम र्सुन्धरे !
हे भूिेर्ी! न तो पथतथल ,
न स्वगव और न ही
मनुष्य लोक में मथुरथ के
समथन कोई पुण्य स्थली है ।
मथुरा महातम्य 4
Text 31
तत्र श्रीधरणीप्रश्नः
नैममषं पुष्करं चैर् पुरीं
र्थरथणसीं तथथ ৷
एतथन् दहत्वथ महथभथग! मथुरथं
ककिं प्रशंससस ?
भूिेर्ी पूछती हैं :
यहथं नैमीशथरण्य , पुष्कर
झील तथथ र्थरथणसी कथ
मथुरा महातम्य 4
नगर है । हे महथभथग , आप
उनको छोड़कर मथुरथ कथ
गुणगथन क्यों करते हैं ?
मथुरा महातम्य 4
Text 34
चक्रथङ्ककतं दह तत् सर्ं
कृष्णस्यैर् पिेन तु
बथलक्रीड़्नरूपथणण
कृतथवन सह गोपकैः
Text 37-
शृणु तत्त्वेन मे भूममऽ !
कथ्यमथनम् अथोऽनघे !
मथुरेवत सुवर्ख्यथतथ
यस्मिन् क्षेत्रे वप्रयथ मम ৷৷
हे वनष्पथप भू िेर्ी! कृपयथ
सुनो जो मैं तुम्हें सत्य
बतलथऊंगथ । मथुरथ मेरी
मथुरा महातम्य 4
Text 39
ययथवतनृप-र्ंशे ऽहम्
उत्पत्स्यथमम र्सुन्धरे !
शतथवन पञ्चर्षथवणथम्
अत्र स्थथस्यथमम वनश्चयः||
हे भू िेर्ी! मैं रथजथ ययथवत के
कुल में जन्म लूंगथ तथथ मैं
यहथं 125 र्षों तक वनर्थस
करूं गथ।
मथुरा महातम्य 4
Text 40-
अयोध्यथ मथुरथ मथयथ
कथशी कथञ्ची अर्न्तन्तकथ
पुरी द्बथरथर्ती चैर्
सप्तैतथ मोक्षिथमयकथ:||
अयोध्यथ ,मथुरथ, मथयथ,
कथशी, कथञ्ची, अर्न्तन्तकथ
और द्वथरकथ यह सथत
मथुरा महातम्य 4
हे महथप्रथज्ञ , हे धमव-वर्त्
कृपयथ जो प्रश्न आपने पूछथ
है उसकथ उत्तर सुवनए। ।
मथुरथ मण्डल सथत पवर्त्र
नगररयों में से सर्थवमधक
गोपनीय जथनथ जथतथ है ।
मथुरा महातम्य 4
Text 42
वत्रिंशद्-र्षव सहस्रथणण
वत्रिंशद्-र्षव शतथवन च।
यत् फलं भथरते र्षे
तत् फलं मथुरथं िरन्
मथुरथ कथ िरण मथत्र भी
भथरत र्षव में 33000 सथलों
तक पुण्य करने के बरथबर है
|
मथुरा महातम्य 4
Text 44
कथमत्तिक्यं चैर् यत् पुण्यं
पुष्करे तु र्सुन्धरे
तत् फलं लभते मत्यो
मथुरथयथम् दिने दिने
हे भू िेर्ी, पुष्कर सरोर्र में
कथवतिक मथस के समय जो
पुण्य फल प्रथप्त होतथ है , र्ह
मथुरा महातम्य 4
Text 45
र्थरणस्यथम् तु यत् पुण्यं
रथहुग्रिे दिर्थकरे
तत् फलं लभते िेवर्
मथुरथयथं सजतेणियः
मथुरा महातम्य 4
Text 46
पूणे र्षव सहस्रे तु
र्थरणस्यथम् तु यत् फलम्।
तत् फलं लभते िेवर् !
मथुरथयथं क्षणेन दह
हे िेर्ी र्ह पुण्य फल जो
व्यवि र्थरथणसी में हजथर
र्षों पश्चथत प्रथप्त करतथ
मथुरा महातम्य 4
Text 48
गोिथर्री -द्वथिशको नरो यः,
क्षेत्रे कुरूणथं णक्षवतिथयको यः
षन्-मथसकथन् सथधयते गयथयथं
समं भर्ेन् नो दिनमेकं मथथुरम् ||
एक व्यवि जो गोिथर्री के
तट पर बथरह मथस के सलए
वनर्थस करतथ है तथथ जो
कुरुक्षेत्र में भूमम कथ िथन िेतथ
है अथर्थ जो छह मथस गयथ
मथुरा महातम्य 4
Text51-
मथुरथयथं प्रकुर्वन्तन्त
पुरी सथधथरणीदृशम्।
ये नरथस् ते ऽवप वर्ज्ञेयथ:
पथपरथसशचभर् अन्तितथ:
वर्द्वथन् होने पर भी जो मनुष्य
पथप रथसश से युि होते हैं
र्ह मथुरथ को सथधथरण
नगरी के समथन मथनते हैं |
मथुरा महातम्य 4
Text53-
न दृष्टथ मथुरथ येन
दिदृक्षथ यस्य जथयते ।
यत्र तत्र मृतस्यथवप
मथथुरे जन्म जथयते।
र्ह व्यवि जो मथुरथ कथ
िशवन नहीं कर पथतथ यद्यवप
र्ह इसकथ िशवन करने के
सलए लथलथमयत रहतथ है
मथुरा महातम्य 4