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भि त के 64 अंग

ओम नमो भगवते वासुदेवाय


ओम नमो भगवते वासदु े वाय
ओम नमो भगवते वासद ु े वाय

ॐ अ ान त मरा ध य ाना जन शलाकया।


च ु मी लतं येन त मै ीगुरवे नमः॥

(जय) ीकृ णचैत य भु न यानंद । ी अ वैत गदाधर ीवासा द गौर भ तवंद


हरे कृ ण हरे कृ ण कृ ण कृ ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
हरे कृ ण हरे कृ ण कृ ण कृ ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
हरे कृ ण हरे कृ ण कृ ण कृ ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
भि त सेवा क च सठ अंग म हमारे शर र, मन
और वाणी क सभी काया शा मल होनी चा हए
हमार सभी इं य को भगवान क सेवा म नयोिजत कया जाना
चा हए। वा तव म उ ह कस कार से नयोिजत कया जा
सकता है, इसका वणन भि त के 64 अंग म कया गया है ।

पाँच ानेि याँ ह - कान (शो ), आँख (च ु), नाक


(ग ृ णु), जीभ (जीव) और वचा ( वक् )।

पाँच कमि याँ ह- मँुह, पैर, हाथ, मल वार और गु तांग


• सनातन गो वामी ने वै णव के
मागदशन के लए ह र-भि त- वलास • भि तरसामत ृ स धु के छठे
का संकलन कया है अ याय म ील प गो वामी जी
• उसम वै णव वारा पालन कए जाने ने केवल मलू स धांत का उ लेख
वाले कई नयम और व नयम का कया है , ववरण का नह ं।
व तार से उ लेख कया है।
1-10 काय वीकार करना
( वृ )
भि त सेवा का नवहन शु करने के लए
भि त के 20 अंग पहले दस अंग ारं भक आव यकताएं ह

11-20 काय अ वीकार करने


भि त के 64 अंग के लए ( नव ृ )

साधना हे तु 21-59 अंग


भि त म सेवा के 44
अ त र त अंग
60-64 सबसे भावी त व
साधु-संग, नाम-क तन, भागवत- वण
मथुरा-वास, ीमू त धा सेवन
Source https://bhayaharidas.com/64-angas-of-sadhana-vaidhi-bhakti
गु -पादा यस ्
• एक ामा णक आ याि मक गु के चरण कमल का आ य वीकार करना
• श य ील भुपाद, उनके द ा-गु और श ा-गु ओं क शरण लेता है

ी-कृ ण-द ा द- श ानम ्


• आ याि मक गु से द त होना
• उनसे भि त सेवा का नवहन करना सीखना

व भेण गुरोः सेवा


https://www.wisdomlib.org/hinduism/book/sri-bhakti-rasamrta-sindhu/d/doc217354.html
• साधारण सेवा , कत य क चेतना से उ प न होती है ।
• दय के ेमपूण नेह (अनरु ाग) से सेवा, और यह सेवा असाधारण है । यह व भ -गु -सेवा है ।

साध-ु व मानुवतनम ्
• आ याि मक गु के नदशन म महान आचाय के न शेकदम पर चलना
• आचाय वारा अनुमो दत शा के नयम और व नयम का पालन करना

स -धम- छ
• आ याि मक गु से पूछना क कृ ण भावनामत
ृ म कैसे आगे बढ़ा जाए
• आ याि मक गु के पास वन तापूवक और आ ाका रतापूवक जाकर स य जानने का यास कर
Cc. Madhya 13.80 :शु ध भ त क सहायता के
बना कसी को भि त और वैरा य का ान ीम भागवतम ् (2.7.46) पारं प रक भ त क सेवा
नह ं हो सकता भि त क पहल शत है

गु -पादा यस ् य?

भि तरसामत ृ स ध:ु मनु य को कृ ण के पास यासदे व को ीम भागवत लखने के लए एक


सीधे नह ं, बि क पारदश मा यम से जाना आ याि मक गु (नारद) क आव यकता थी
चा हए:
यहां तक ​ क भगवान चैत य और वयं कृ ण
ने भी एक आ याि मक गु को वीकार कया

Source :https://prabhupada.io/compile/smd/1
ह र-भि त- वलास (2.6) :जब तक कसी को कसी
भि त-संदभ (283) :द ा वह या है िजसके
ामा णक आ याि मक गु से द ा नह ं मलती,
वारा कोई यि त अपने द य ान को जागत

उसक सभी भि त ग त व धयाँ बेकार ह। िजस
कर सकता है और पापपण
ू ग त व ध के कारण
यि त क द ा ठ क से नह ं हुई वह पन
ु ः पशु
होने वाल सभी त याओं को दरू कर सकता है ।
यो न म जा सकता है ।

द ा य?

भि त-संदभ (298): रासाय नक हे रफेर वारा, पारे


रामाचन-चि का: हरे कृ ण महा-मं का जाप
के पश से घंट धातु सोने म बदल जाती है ; इसी
इतना शि तशाल है क यह आ धका रक द ा पर
कार, जब कोई यि त उ चत प से द त होता
नभर नह ं करता है , ले कन य द कोई द त है
है , तो वह ा मण के गुण ा त कर सकता है
और पंचरा - व ध (दे व पज
ू ा) म संल न होता है , तो
उसक कृ ण चेतना बहुत ज द जागत
ृ हो जाएगी

Source : https://vedabase.io/en/library/cc/madhya/15/108/

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