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भि त शा ी के लए कंठ थ करने हे तु लोक

ईकाई -४ ( ी भि तरसामत
ृ स धु - अ याय १ से १९)

ी भि तरसामत
ृ स धु १.१.११ ी भि तरसामत
ृ स धु १.१.१२

अ या भला षता-शू यं ान-कमा द-अनावत


ृ म् । सव पा ध व नमु तं त पर वेन नमलं |
आनक
ु ू येन कृ णानुशीलनं भि तर् उ मा || षीकेण षीकेश सेवनं भि तर उ यते ||

जब थम ेणी क भि मय सेवा उ प होती है तो भि का अथ है अपनी सम त इि य को परम भगवान


ि को सभी कार क भौितक इ छा , एका मवादी क सेवा म लगाना जो सभी इि य के वामी है | जब
मायावादी दशन से ा ान तथा सकाम कम से पूणत: आ मा भगवान क सेवा करती है तो इसके दो फलीभूत
मु होना चािहए | भ को िनरं तर कृ ण क प रणाम होते है, थम- ि सभी भौितक उपािधयो से
इ छानुसार अनुकूलतापूवक कृ ण क सेवा करनी चािहए मु हो जाता है और ि तीय -भगवान क सेवा म
| िनयोिजत मा होने से ि क इि य का शुि करण
हो जाता है |

ी भि तरसामत
ृ स धु १.२.२३३ ी भि तरसामत
ृ स धु १.२.२३४

नाम चंताम ण: कृ ण: चैत यरस व ह: | अत: ीकृ ण नामा द न भवे ा यं इि यै: |


पूण: शु ध: न यमु त: अ भ न वात नामना मनो:|| सेवो मुखे ह िज वादौ वयं एव फुर त अद: ||

भगवान के पिव नाम तथा सा ात् भगवान म कोई चूँ क कृ ण के नाम, प, गुण, लीला आ द सभी परम
अंतर नह है | फलतः पूणता, शु ता तथा िन यता म द है, अत: भौितक इि याँ उनक सराहना व अनुभव
नाम, भगवान के ही समान पूण है | पिव नाम न तो नह कर सकती है | जब एक ब जीव कृ ण भावनामृत
भौितक विन है न ही इसम कोई भौितक क मष है | म जागृत होता है और अपनी िज वा से भगवान के
पिव नाम के जप और भगवान के साद को हण
करने के ारा सेवा अ पत करता है, तो उसक िज वा
शु हो जाती है और ि धीरे -धीरे यह पहचान पाता
है क कृ ण वा तव म कौन है |

ी भि तरसामत
ृ स धु १.२.२५५ ी भि तरसामत
ृ स धु १.२.२५६

अनास त य वषयां यथाSहमुपयु जत: | ापं चकतया बु ु : |


या ह रस बि ध व तन
नबध: कृ ण स ब धे यु तं वैरा यं उ यते || मुमु ु भ: प र यागो वैरा यं फ गु क यते ||

जब मनु य कसी व तु के ित आस न रहते ए कृ ण मुि क इ छा रखने वालो का दखावटी प से के वल


से स बंिधत हर व तु को वीकार करता है तो वह सभी बुि ारा भगवत स ब धी व तु का याग, फ गु
कार के प र ह भाव से परे उिचत धरातल पर
वैरा य कहलाता है |
िव मान होता है |

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