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New Bhaktivedanta Vidyapitha BHAKTI-VAIBHAVA Student Handbook - Hindi Module1
New Bhaktivedanta Vidyapitha BHAKTI-VAIBHAVA Student Handbook - Hindi Module1
भि वैभव
छा पुि तका
-बक और पाठ्य म िदशािनदश
भि वेदातं िव ापीठ
इ कॉन गोवधन इकोिवलेज,
गालतरे , हमरापुर पो , वाडा तालुका, पालघर िजला, महारा , भारत - 421303. | www.vidyapitha.in
भि वैभव छा पुि तका 3
अनु मिणका
1. पा म संरचना
4. मौ खक ु ितयां
a. ु ित के िलए िदशािनदश
b. मू ां कन ि या
c. ु ित िवषय - ं ध 1 और 2
d. ु ित िवषय - ंध3
e. ु ित िवषय - ंध4
f. ु ित िवषय - ं ध 5 और 6
5. ोक परी ण
6. अ यन साम ी
भि वैभव छा पुि तका 5
पाठ्य म संरचना
मू ांकन का कार मह
1 ब िवक ीय (एमसी ू टे ) 10%
2 बंद िकताब परी ा और ोक परी ण 35%
3 खुली िकताब परी ा 30%
4 मौ खक ुितयां 25%
बं द िकताब परी ा
ेक मॉ ूल के िलए बंद िकताब परी ा का ा प (कुल – 100 अं क)
अनुभाग I: लघु उ रीय (~75 श )
6 , ेक 5 अंक
अनुभाग II: लघु िनबं ध (~200 श )
4 , ेक 10 अंक
अनुभाग III: लं बे िनबंध (~500 श )
2 , ेक 15 अंक
यिद संभव हो तो छा अपने उ रों म ासंिगक ोक उद् धृत कर सकते ह, हालां िक यह अिनवाय नहीं है।
बंद पु क परी ा बक
मॉ ूल 1 ( ीम ागवतम ं ध 1 और 2)
1. ीम ागवतम् िलखने के िलए नारद मुिन ारा े रत होने के बाद ासदे व (1.7.4-7) के ान का वणन कर।
2. बताएं िक कृ िकस कार सभी अवतारों के ोत ह?
3. कुंती महारानी की ाथनाओं के िविभ खंडों को दशाने वाला एक वाह तािलका ( ो चाट) बनाएं ।
4. भी दे व ने पांडवों को कैसे शांत और ो ािहत िकया ? (1.9.12-17)
5. भी दे व की ाथनाओं का सारांश दीिजए । (1.9.29-43)
6. 1.5.8-22 म भ की ि या की मिहमा िकस कार बतायी गई ह?
1. शोक के िनवारण के िलए नारद की युिधि र महाराज से ई बातचीत के मुख अंश िल खए । (1.13.38-60)
2. परीि त ने गाय और बैल से अपराधी के बारे म कैसे पूछा? ील भुपाद उन पूछताछों पर ा िट िणयाँ दे ते ह?
(1.17.1-16)
3. ंृगी के ाप का समाचार पाकर परीि त की ा िति या थी? िव ार म बताइए । उसने शमीक से माफ़ी ों नही ं
मां गी? (.19.1-7)
भि वैभव छा पुि तका 8
िदशा-िनदश
ओपन बुक ए ाम छा ों की याद रखने की मता से ादा उनकी समझ की परी ा ले ते ह।
ावहा रक अनु योग, गत अनु योग, िव ेषण और शा ीय समझ कुछ ऐसे िवषय ह िजन पर खुली िकताब
के पूछे जाते ह।
उ र के िवषय के अनु प होने चािहए। उ र ासंिगक तक ुत करके को नकार भी सकता है।
आव कतानु सार वा िवक जीवन की घटनाएं और ासंिगक शा ीय उ रण, उपमाएं , उदाहरण और गत
ितिबंब भी शािमल िकए जा सकते ह।
खुली िकताब िनबंधों के मू ांकन म दे खे गए कुछ पहलू िन िल खत ह -
o संतुिलत ुित: कृपया सू ( पी गत/ ावहा रक अनु योग, एल िनबंध, ई उदाहरण, ए नालॉजी, एस
ए क कने न और ई योगशाला - उ र म इनम से एक या अिधक पहलू शािमल हो सकते ह)
o दाशिनक सटीकता
o की ासंिगकता की िड ी (कृपया)।
o वा टु ता, अितरे क, श ों की सं ा, आिद।
ीमद-भागवतम के पहले छह ं दों पर कुल 20,000 श ों तक के खु ले पु क िनबंध िलखने की
उ ीद की जाती है ।
ेक परी ा के िलए 12-20 खुली िकताब वाले िदए गए ह और छा ों को उनम से िकसी भी 7 से
12 का उ र दे ना होगा, िजससे सभी िनबंधों की कुल श सं ा िनिद सं ा 5000 ित मॉ ूल हो
जाएगी।
मॉ ूल 1 ( ीम ागवतम ं ध 1 और 2)
2. नैिमषार के संतों, पां डव, परीि त आिद ऋिषयों जैसी महान आ ाओं की सामा जनता के ित मनोदशा से हम
ा िस ां त सीखते ह?
3. ील भुपाद कहते ह:
“िपछले पांच सौ वष के भीतर, कई िव ान िव ानों और आचाय जैसे जीव गो ामी, सनातन गो ामी, िव नाथ
च वत , व भाचाय और भगवान चैत के समय के बाद भी कई अ िति त िव ानों ने भागवत पर िव ृत
िट िणयाँ कीं। और गंभीर िव ाथ के िलए अ ा होगा िक वह पारलौिकक संदेशों का बेहतर आनंद लेने के िलए
उनका अ यन करने का यास करे ।'' (1.1.1 पी)
“ गत अहसास का मतलब यह नहीं है िक िकसी को, घमंड से बाहर, िपछले आचाय से आगे िनकलने की
कोिशश करके अपनी खुद की सीख िदखाने का यास करना चािहए। उसे िपछले आचाय पर पूरा भरोसा होना
चािहए, और साथ ही उसे िवषय व ु का इतनी अ ी तरह से एहसास होना चािहए िक वह िवशेष प र थितयों के
िलए िवषय को उपयु तरीके से ुत कर सके”- (1.4.1 पी)
इस पर िवचार कर िक ील भुपाद के ता य म कैसे थर रहा जाए, िफर भी िपछले आचाय की िट िणयों
का अ यन कर, और िफर भी, स म हो सक आधुिनक दशकों के िलए भागवतम को उपयु प से ुत
भि वैभव छा पुि तका 10
कर।
5. "कृ की मिहमा ही समाधान है" िवषय पर एक िनबंध िलख सभी सम ाओं के िलए," ासदे व-नारद करण
पर आधा रत | (1.4-6)
6. भ वेदांत ता य के आधार पर अपनी समझ ुत कर: (i) ीमद-भागवतम के व ा की यो ता, (ii) ीमद-
भागवतम के ोता के गुण, (iii) ीमद-भागवतम की श ।
7. “ लेिकन, वैसे भी, हम केवल सौहोने के िलए अपनी तक और भेदभाव करने की श को नहीं छोड़ना
चािहए। िकसी चीज़ को उसकी यो ता के आधार पर परखने के िलए के पास अ ी भेदभावपूण श
होनी चािहए ।
(1.7.42) ील भुपाद उपरो पं यों को वामा- भाव श के संबंध म िलखते ह, जो भाव से सौ और
न है। ा वामा- भाव जीवन की ावहा रकताओं से िनपटने म एक बाधा है ? िट णी।
8. ील भुपाद िलखते ह, “...यह भावना की गुणव ा पर िनभर करता है । एक असहाय भावनापूवक भगवान के
पिव नाम का उ ारण कर सकता है, जबिक एक जो महान भौितक संतुि के साथ उसी पिव नाम का
उ ारण करता है, वह इतना ईमानदार नहीं हो सकता..." कुछ चीज़ों का उ ेख कर जो आपको वा िवक भावना
के साथ पुकारने म मदद करती ह और कुछ चीज जो भु केपिव नाम म आपकी शरण की भावना को कम कर
दे ती ह |
9. रानी कुंती अिधक से अिधक किठनाइयों के िलए ाथना करती है तािक वह कृ को याद कर सके ।
a. कृ चेतना के अपने अ ास के िलए रानी से गत अनु योग के िस ां त ा कर , कु ी का ि कोण.
b. एक भ की ऐसी मनोदशा को िकसी नवागंतुक या गैर-अ ासी कृ चेतना के सम ुत करने पर अपने िवचार
िलख ।
10. “ जो िवषय व ु मरते ए मनु को आकिषत करती है वही उसके अगले जीवन की शु आत बन जाती है । ”
भी दे व ने अपना शरीर कैसे छोड़ा, इसके आधार पर , "जीवन - मरने की एक कला" पर अपने िवचार ुत कर।
11. i ) मेहमानों का ागत करना, ( ii ) समय की श के बारे म भी दे व के करण से हम कौन से सामा िस ांत
ले सकते ह ?
12. " िद माधुय म संबंध थािपत करने का सबसे अ ा तरीका है कृ के पास उनके मा ता ा भ ों के मा म
से जाना।" (1.9.22पी) कोई इसे कृ चेतना के अपने गत अ ास म कैसे लागू कर सकता है ?
13. ह नापुर मिहलाओं के श ों को " सव ुित मनोहरम् " कहकर मिहमामंिडत िकया गया है । ील भुपाद
िट णी करते ह, " भगवान की ुित म गाया गया कुछ भी ुित मं है ।" िन िल खत के बारे म शा ीय संदभ
को उद् धृ त करते ए एक संि नोट िलख: ( i ) कृ चेतना का अ ास नही ं करने वाले लोगों ारा भ
भि वैभव छा पुि तका 11
14. “ मिहलाएं , जो भगवान के िवचारों और काय म लीन थीं, उ ोंने भगवान की कृपा से वैिदक ान की चे तना िवकिसत
की। और इसिलए, हालाँ िक ऐसी मिहलाएँ सं ृ त या िकसी अ भाषा म ब त िव ान नहीं थीं, िफर भी वे जो कुछ
भी बोलती थीं वह वैिदक मं ों की तुलना म अिधक आकषक था। ” (1.10.20पी) कोई भ म कैसे थर हो सकता
है और शा के गहन अ यन की तुलना म सरल ाथनाओं से भगवान को अिधक स कर सकता है ? िकसी को
धम ंथों का अ यन करने म इतना समय ों लगाना चािहए?
15. 1.13.10 भ ों को पिव थानों के अवतार के प म विणत करता है । ासंिगक शा ीय सं दभ को उद् धृत करते
ए, एक धाम और एक भ की शु करण श की तुलना कर ।
16. पूछने पर भी िवदु र पा वों को यदु ओं के बारे म स ाई नहीं बताते । वह जीवन के न स को धृ तरा को तब भी
कट करता है जब उसने इसके िलए नहीं पूछा था। इस वहार से हम ा सीखते ह? चचा कर िक इसे भ के
अ ास म कैसे लागू िकया जाए ? [या]
17. "िकसी को नकारा कता फैलाने का साधन नहीं बनना चािहए।" 1.13 के ासंिगक छं दों के आधार पर इसकी ा ा
कर और एक अ ास करने वाले भ के जीवन म गत और सं थागत दोनों तरह से इसका पालन न करने के
िनिहताथ पर चचा कर।
18. युिधि र महाराज ( i ) यु म ए िवनाश, ( ii ) भी दे व के थान , ( iii ) अपने चाचा और चाची की बेख़बर
सेवािनवृ ि , ( iv ) भगवान कृ के गायब होने से दु खी थे । इनम से केवल दो मामलों म भ ों ने उ सलाह दी,
बाकी दो म नहीं। चचा कर िक इससे ा िन ष िनकाला जा सकता है और ा सीखा जा सकता है।
19. यिद परीि त महाराज ने कली को माफ करने के बजाय उसे मार डाला होता, तो अब हम कली के भाव नहीं झेल
रहे होते । यिद कोई यह तक उठाता है तो आप उसे ापक प से कैसे उ र दगे?
20. परीि त महाराज और ं ध 1 म विणत कई अ ों के साथ अनुिचत वहार िकया गया, लेिकन उ ोंने इसे
सहन िकया । 1.18.48 कहता है िक भ कभी ितकार नही ं करता। हम इसे अपने ावहा रक जीवन म कैसे लागू
कर? ा इसका मतलब यह है िक िकसी को अपना शोषण होने दे ना चािहए? िव ार म बताना।
21. ील भुपाद 1.13 के अिभ ाय म िलखते ह, " महान आ ाएँ एक महान उ े के िलए धोखा दे ती ह ।" कुछ
शा ीय उदाहरणों के आधार पर इस िस ांत का िव ार से वणन कर।
22. " समझदार को ऐसे उपकारों के िलए भगवान के ित कृत महसूस करना चािहए और ऐसी श का उपयोग
भगवान की सेवा के िलए करना चािहए। " (1.15.5पी). कोई अपने काय की सफलता का ेय गु की कृपा और
वै व आवास को कैसे दे सकता है ? अपने जीवन म एक थित चुन और उस थित के िविभ पहलुओं को अपने
व र ों के आशीवाद से ठोस तरीके से जोड़ने का यास कर।
23. अपने महल म वापस आने के बाद, परीि त ने शमीक ऋिष के साथ अपने वहार पर िवचार िकया । उसे अपनी
छोटी सी गलती के िलए खुद पर िवपि आने की उ ीद थी और वह चाहता भी था । उनके उदाहरण से आपको ा
ेरणा िमलती है ?
भि वैभव छा पुि तका 12
2. " महान अिधका रयों के तरीकों के बाद पिव नाम का िनरं तर जप सभी के िलए सफलता का िन ंदेह और िनडर
तरीका है । " अपने जप म आने वाली बाधाओं को पहचान और चचा कर िक भागवत के इस अनुभाग का अ यन
आपको उन बाधाओं को दू र करने म कैसे मदद करता है ।
4. 2.1-5, िवशेषकर 2.1.13 और 2.3.17-24 की साम ी के आधार पर िकसी के जीवन की सही उपयोिगता का वणन
कर।
5. भगवान के सावभौिमक प को समझने की आव कता का वणन करने वाले ील भुपाद के कथनों को एकि त
कर। उन कथनों से ावहा रक अनु योग िबंदु सामने लाएँ ।
7. 2.3.15पी म, एसपी कहते ह, " ...महाराजा पारीक का बचपन से हीाभािवक प से भगवान कृ की ओर झुकाव
था । उ ोंने उपयु गितिविधयों म से िकसी एक का अनुकरण िकया होगा, और ये सभी उनकी बचपन से ही महान
भ को थािपत करते ह, जो महाभागवत का एक ल ण है । ब ों को कृ की ओर आकिषत करने के कुछ
ावहा रक तरीके ुत कर ।
8. 2.5 म नारद मुिन के ों की तुलना ांड िव ान की आधुिनक जां च से कर। नारद के ों म आपके िलए सबसे
उ ेखनीय िवशेषताएँ ा ह? उनसे पूछकर उ ा हािसल होने वाला है , इसके बारे म अपनी समझ बताएं ।
9. पारीक ऋिष, शुकदे व, नारद, ा और भगवान के पा ों से गु , िश के आदश गुणों और उनके संबंधों को पहचान
।
10. भगवान ा ीकार करते ह िक वे कृ को नहीं समझ सकते ह ( ीम ागवतम 2.6.35) और कृ को समझना
ही भगवद ा का माग है ! (बी.जी. 4.9) बताएं िक इसे कैसे सुलझाया जाए और कृ को समझने के िलए कृ
चेतना म अपने यासों को उिचत ठहराया जाए । अपने उ र को शा पर आधा रत कर ील भुपाद और/या अ
आचाय के संदभ और कथन ।
11. 2.7.51-53 के संदभ म ीम ागवत के संदेश को संरि त करने और िवत रत करने के मह पर चचा कर । यह
िमशन आपके िलए िकस कार ासंिगक है ?
12. कैसे होता है चतुः - ोकी भागवत संबंध, अिभधेय और योजन की ा ा करते ह ?
भि वैभव छा पुि तका 13
मौ खक ु ितयां
छा ों को पहले 6 सग पर चार ुितयाँ ( ेक 45-60 िमनट) दे नी होती ह:
o ं धस 1 और 2 पर ुित 1 (मॉ ूल 1 के बाद)
o ं ध 3 पर ुित 2 (मॉ ूल 2 के बाद)
o ं ध 4 पर ुित 3 (मॉ ूल 3 के बाद)
o ं धस 5 और 6 पर ुित 4 (मॉ ूल 4 के बाद)
छा ों को अपनी समझ को पावरपॉइं ट ेजटे शन के पम ुत करना आव क है - ेक ुित के िलए 1
िवषय।
िवषय नीचे िदए गए िवषयों की सू ची से चु ने जा सकते ह या छा अपना यं का िवषय लेकर आ सकते ह।
ुित का 60% भाग मु पाठ और संबंिधत ं ध के भ वेदांत ता य पर आधा रत होना चािहए।
मू ांकन ि या
ुितयों का मू ां कन िन िल खत पहलुओं ( सीपीयू ) के आधार पर िकया जाता है
साम ी - 30%
o साम ी का उपयोग करने की मता और भावशीलता (कृपया)
ुित - 30%
o ील भुपाद के कथनों को भावी ढं ग से जोड़ना
o " ासंिगक" छं दों को उद् धृत करते ए, उिचत ासंिगक उपमाओं और उदाहरणों के साथ समझाते ए।
o ाकृितक वाह: बयान दे ने म कोई अचानक उछाल नहीं
o िवषय के िलए उद् धृत कृपया की ासंिगकता।
o ाइड, आ िव ास, शारी रक भाषा, ाकरण, आिद।
िवषय की समझ – 40%
o िवषय के दाशिनक पहलुओं की समझ.
o शगल/घटना के संदभ को समझना।
o िवचारों की ता, ों का उ र दे ने की मता।
ुित िवषय - ं ध 1 और 2
1. ीम ागवतम 1.1.1 - "ज ा " ोक की ा ा
2. ीमद-भागवतम, अमल पुराण ( ीमद-भागवतम की मिहमा )
3. ं ध 1 और 2 म और उ र
4. परीि त महाराज की मिहमा
5. भगवान से अलगाव/िवरह (नारद, युिधि र, अजुन, भूिम... के उदाहरण के साथ)
6. ीमद-भागवतम की पर रा
7. भ सेवा म असंतोष
8. आ ा क गु - िश िश ाचार ( ास - नारद, सूत - नैिमषार के ऋिष, नारद - ा, ा - भगवान)
9. भगवान की इ ा को पहचानना (अजुन (1.7 म), पांडवों की सेवािनवृि , परीि त थान की तैयारी कर रहे ह)
10. भगवान पर िनभरता (अजुन का िवलाप, परीि त का आ य लेना, शुकदे व गो ामी के िनदश, आिद)
11. धम के चार चरण - उ े और मह
12. संत की या ा का उ े (िवदु र, शुकदे व गो ामी, नारद के उदाहरण के साथ...)
13. समय कारक (भी की ाथनाएँ ...)
14. एक वै व की सहनशीलता ( ौपदी, ासदे व, परीि त और धम के उदाहरणों के साथ ...)
15. भ सेवा के माग म चरण (1.5.23-37, 1.2.16-22, दासी के पु के प म नारद मुिन के जीवन के उदाहरण
के साथ)
16. भगवान अपने भ ों की मिहमा करते ह (परीि त, भी , पां डवों के उदाहरणों के साथ.. )
17. एक साधक की सफलता की कहानी (नारद मुिन का जीवन)
18. अ े िनदशों के ित हणशीलता (धृतरा , अ ामा, परीि त, ासदे व, ऋिष, नारद के उदाहरणों के साथ...)
19. भु के अवतार ( ीम ागवतम 1.3 और 2.7 से)
20. भु का अ हाथ दे खना (परीि त महाराज का जीवन - गभ म बचाया गया लेिकन मरने का ाप िदया गया )
21. ं अिकंचन गोचरम् ...
22. युिधि र और परीि त का शासन
23. भागवत के व ा और ोता की मनोदशा/यो ताएं (सुत गो ामी की मनोदशा से, नारद संवाद, और अ
भि वैभव छा पुि तका 15
अनुभाग...)
24. ' वणम्' की मिहमा (पहले 2 ं ध के िविभ ोकों/ख ों से )
25. भ -योग की े ता ( ीम ागवतम 1.5-6, ीम ागवतम 2.1-3, आिद से)
26. सृजन की ि या
27. भौितकवादी जीवन (िवदु र, शुकदे व गो ामी, ऋिषयों और ील भुपाद, आिद ारा भौितकवादी पु षों की
आलोचना से )
28. चतुः ोकी ( चतुः ोकी म संबंध , अिभधेय और योजन )
29. ीम ागवत के दस िवषय
30. िव प/सृि के बारे म ों जान?
31. भगवान के अिधकृत ितिनिध/भागवत व ा की भावना (सूत गो ामी की मनोदशा, शुकदे व गो ामी की
ाथना, ा-नारद सवाद और अ वग से)
32. भगवान ा के उपादान, िनिम और भावी कारण के प म ( ं ध 2)
33. शासन और नेतृ के िस ांत (परीि त, युिधि र और ाजी के उदाहरणों के साथ ... )
34. ाकृितक जीवन
35. भ ों के बारे म सुनना
भि वैभव छा पुि तका 16
ोका टे
भि वैभव ोक सच
ू ी
Sr No Sloka No Sloka Sr No Sloka No Sloka
CANTO 1 28 3.9.11 tvaṁ bhakti-yoga...
1 1.1.1 janmādy asya... 29 3.9.25 so ’sāv adabhra-karuṇo...
2 1.1.2 dharmaḥ projjhita... 30 3.12.2 sasarjāgre ’ndha-tāmisram...
3 1.1.3 nigama-kalpa-taror... 31 3.15.43 tasyāravinda-nayanasya...
4 1.2.6 sa vai puṁsāṁ... 32 3.23.56 neha yat karma...
5 1.2.11 vadanti tat... 33 3.25.20 prasaṅgam ajaraṁ...
6 1.2.13 ataḥ pumbhir... 34 3.25.21 titikṣavaḥ kāruṇikāḥ...
7 1.3.28 ete cāṁśa-kalāḥ... 35 3.25.25 satāṁ prasaṅgān mama...
8 1.5.11 tad-vāg-visargo... 36 3.28.32 hāsaṁ harer avanatākhila...
9 1.7.7 yasyāṁ vai... 37 3.29.11-12 mad-guṇa-śruti-mātreṇa...
10 1.7.10 ātmārāmāś ca... 38 3.29.13 sālokya-sārṣṭi...
11 1.8.42 tvayi me ’nanya... 39 3.33.6 yan-nāmadheya...
12 1.11.36 uddāma-bhāva-piśunāmala... 40 3.33.7 ho bata śva-paco ’to...
13 1.13.10 bhavad-vidhā... CANTO 4
14 1.18.13 tulayāma lavenāpi... 41 4.3.17 vidyā-tapo-vitta...
15 1.18.48 tiraskṛtā vipralabdhāḥ... 42 4.8.34 guṇādhikān mudaṁ...
16 1.19.16 punaś ca bhūyād... 43 4.9.6 yo ’ntaḥ praviśya...
CANTO 2 44 4.9.11 haktiṁ muhuḥ...
17 1.19.16
2.1.16 etāvān sāṅkhya... 45 4.20.23 varān vibho...
18 2.3.10 akāmaḥ sarva-kāmo... 46 4.20.25 sa uttamaśloka...
19 2.9.33 aham evāsam evāgre... 47 4.22.39 yat-pāda-paṅkaja...
20 2.9.34 ṛte ’rthaṁ yat... 48 4.22.47 yair īdṛśī bhagavato...
21 2.9.35 yathā mahānti... 49 4.30.33 yāvat te māyayā...
22 2.9.36 etāvad eva... 50 4.31.14 yathā taror...
23 2.10.1 atra sargo... 51 4.31.19 dayayā sarva...
CANTO 3 CANTO 5
24 3.2.20 tathaiva cānye... 52 5.5.1 nāyaṁ deho...
25 3.2.23 aho bakī yaṁ... 53 5.5.2 mahat-sevāṁ...
26 3.7.14 aśeṣa-saṅkleśa-śamaṁ... 54 5.5.5 parābhavas tāvad...
27 3.8.2 so ’haṁ nṛṇāṁ... 55 5.5.8 puṁsaḥ striyā...
भि वैभव छा पुि तका 18
Sr No Sloka No Sloka
CANTO 6
68 6.3.27 te deva-siddha...
71 6.11.25 na nāka-pṛṣṭhaṁ...
72 6.11.26 ajāta-pakṣā iva...
73 6.11.27 mamottamaśloka-janeṣu...
75 6.17.28 nārāyaṇa-parāḥ...
भि वैभव छा पुि तका 19
अ यन साम ी
अ यन साम ी
कृ कृपा मूित अभय चरणारिवंद भ वेदांत ामी ील भुपाद ारा ीम ागवतम ं द 1 से 6
अित र स भ
साराथ दशनी ील िव नाथ च वत ठाकुर ारा, अं ेजी अनु वाद एचएच भानु ामी महाराज ारा
भागवत सुबोिधनी (अ यन गाइड) ं ध 1-2, ं ध 3, ं ध 4 और ं ध 5-6, गौरांग दशन दास ारा
भागवत र माला ( ोक पु क) ं ध 1-6, गौरां ग दशन दास ारा सं किलत