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SAMPLE FILE PAPER 4 PART B उद्यमिता, प्रबंधन, व्यक्तित्व विकास एवं
SAMPLE FILE PAPER 4 PART B उद्यमिता, प्रबंधन, व्यक्तित्व विकास एवं
उद्यिमता (Entrepreneurship)
एन्ट्रीप्रीन्यरू Entrepreneur शब्द फ्रेंच शब्द एन्टरप्रेंडरे से िनकला है िजसका अथर् होता है कायर् का उ�रदाियत्व लेना।
16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में फ्रांस के जो लोग सेना के अिभयान का नेतृत्व करते थे उन्हें उद्यमी कहते थे।
17वीं शताब्दी में इस शब्द का प्रयोग सावर्जिनक कायर् में लगे वास्तक ु ार एवं ठे केदारों के िलए होता था।
इसके प�ात इसको श्रिमक जटु ाने, माल का क्रय करने तथा उनसे तैयार उत्पादों को पहले से तय मल्ू यों पर बेचने के िलए प्रयोग िकया जाने लगा।
वास्तव में 18वीं शताब्दी में उद्यमी शब्द का प्रयोग फ्रांस के अथर्शा�ी कट�लोन ने व्यवसाय के संदभर् में िकया था िजसे उसने एक मध्यस्थ बताया
जो उत्पादन के साधनों को क्रय एवं एकित्रत कर उन्हें िवपणन योग्य वस्तुओ ं में बदलने के िलए करता था।
एक और फ्रांसीसी श्री जेबीसे ने कट�लोन के िवचार को और िवस्तृत �प प्रदान िकया तथा उद्यमी क� अवधारणा एक व्यावसाियक फमर् के सगं ठनकतार्
के �प में क�।
भारत जैसे िवकासोन्मख ु देश में इससे अिभप्राय उस व्यि� से है जो एक नये व्यवसाय का प्रारम्भ करता है, जोिखम उठाता है, अिनि�तताओ ं को
वहन करता है तथा िनणर्य लेने एवं समन्वय जैसे प्रबन्धक�य काय� को करता है।
कई देशों में उद्यमी उस व्यि� को कहते हैं जो अपने स्वयं का नया एवं छोटा व्यवसाय प्रारम्भ करता है।
अतः उद्यिमता का अिभप्राय उद्यमी द्वारा िकये गये काय� से है। यह एक ऐसी प्रिक्रया है िजसमें एक व्यि� िकसी नये व्यवसाय क�
स्थापना में िनिहत िविभन्न काय� को करता है। वास्तव में जो कुछ उद्यमी करता है वही उद्यिमता है।
उद्यिमता का अथर्-
उद्यिमता एक कायर्िविध एवं भावना का समन्वय है। यह मात्र जीिवकोपाजर्न क� कायर्-प्रणाली ही नहीं, अिपतु कौशल एवं व्यि�त्व िवकास क�
प्रभावी तकनीक भी है। आिथर्क �ेत्र में परम्परागत �प में उद्यिमता का अथर् व्यवसाय एवं उद्योग में िनिहत िविभन्न अिनि�तताओ ं एवं जोिखमों का
सामना करने क� प्रवृि� है। जो व्यि� जोिखम वहन करते हैं, उनको उद्यमी कहते हैं।
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“उद्यिमता” के कारक -
उद्यिमयों का िवकास और उद्यिमता क� संस्कृ ित कई कारकों द्वारा संचािलत होती है िजन्हें इस प्रकार िवभािजत िकया जा सकता हैः
व्यि�गत पहल
अवसरों को पहचान
�ढ़ता
व्यि�गत कारक( आतं �रक कारक)
समस्या समाधान व्यवहार
सामािजक-आिथर्क प�रिस्थितयाँ
औद्योिगक उद्यिमता
सेवा उद्यिमता
व्यावसाियक
व्यापा�रक उद्यिमता
िक्रया
कृ िष उद्यिमता
िमिश्रत उद्यिमता
के न्द्रीकृ त उद्यिमता
स्थानीयकरण
िवके िन्द्रकृ त उद्यिमता
वृहद् उद्यिमता
आकार
लघु उद्यिमता
अभ्यास प्र�
अित लघु उ�रीय- उद्यिमता एवं प्रबन्ध के बीच अन्तर को स्प� क�िजए।
उद्यिमता क्या है? दीघर् उ�रीय-
उद्यिमता क� िकन्हीं दो िवशेषताओ ं को िलखें। उद्यिमता से आप क्या समझते हैं इसक� प्रकृ ित को स्प� करें ।
िनजी उद्यिमता से आप क्या समझते हैं? उद्यिमता क� अवधारणा को स्प� करें । इसक� िवशेषताओ ं का
संय� ु उद्यिमता क्या है? उल्लेख करें ।
उद्यिमता क� नवप्रवतर्न अवधारणा क्या है। उद्यिमता के अवयवों के बारे में बताइए और प्रत्येक अवयव के
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उद्यमशीलता के ल�ण - िसद्धांत, िवशेषताएँ एवं नवाचार का महत्व।
उद्यिमता के िसद्धातं
ऐसे कई िसद्धांत हैं जो उद्यिमता के वैचा�रक �ेत्र का आधार बनते हैं। इन िसद्धांतों क� उत्पि� अथर्शा�, मनोिव�ान, समाजशा� (Sociology), मानवशा�
(Anthropology) और प्रबधं न से ह�ई है। इन िसद्धातं ों में प्रमख
ु इस प्रकार हैं:-
मैक्लेलैंड िसद्धांत
सस
ं ाधन-आधा�रत उद्यिमता
A. मनोवै�ािनक उद्यिमता का िसद्धांत-
इस िसद्धांत में, व्यि� के व्यि�त्व के ल�णों पर ध्यान कें िद्रत िकया गया है।
इस िसद्धांत के पैरोकारों का मानना है िक कुछ िवशेष ल�णों वाले लोगों के उद्यमी बनने क� संभावना अिधक होती है।
ल�ण िसद्धात ं कारों के अनसु ार, उद्यम शीलता �मता के िलए आवश्यक ल�ण जन्म जात होते हैं।
कून, 2004 के अनस ु ार व्यि�त्व ल�णों को िनरंतर गणु ों के �प में प�रभािषत िकया जा सकता है जो एक व्यि� ज्यादातर िस्थितयों में प्रदिशर्त करता
है। इसके अनुसार, उद्यमी ज्यादातर अवसरों को महससू करते हैं, अपे�ाकृ त रचनात्मक हैं और प्रबंधन कौशल को तेजी से सीखने क� भख ू रखते हैं।
कई िवशेष� उद्यिमता के मनोवै�ािनक िसद्धांत में िव�ास करते हैं जो व्यि�गत व्यि�त्व ल�णों पर जोर देता है। उनका मानना है िक इन्हीं गण ु ों के
कारण उद्यमी उभर कर आते हैं। उद्यिमता के तीन सबसे लोक िप्रय मनोवै�ािनक िसद्धातं नीचे िदए गए हैं:
a) मैक्लेलैंड िसद्धांत (McClelland's Theory)-
o डेिवड मैक्लेलैंड िसद्धांत (David McClelland Theory) का कहना है िक उद्यमी तीन महत्वपणू र् आवश्यकताओ ं से िनद�िशत और प्रे�रत
होते हैं जैसे:-
1. संबद्धता क� आवश्यकता (Need for Affiliation),
2. शि� क� आवश्यकता (Need for Power)
3. उपलिब्ध क� आवश्यकता (Need for achievement)।
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रख सकता है तथा उन्हें याद रखकर आसानी से कायर् िनष्पािदत o उद्यमी को हमेशा आशावान होना चािहये। उसे असफलताओ ं
कर सकता है। से िनराश नहीं होना चािहये वरन् उसे असफलताओ ं को सफलता
o उद्यमी में व्यवसाियक चुनौितयों का सामना करने तथा क� ओर जाने वाली सीिढ़यां मानना चािहये
प्रितकूल प�रिस्थितयो में भी अिडग बने रहने के िलये
आत्मिव�ास क� शि� होनी चािहये।
उद्यमी के प्रकार-
नवप्रवतर्क उद्यमी
नवप्रवतर्न योग्यता के अनकु रणीय उद्यमी
आधार पर सावधान उद्यमी
आलसी उद्यमी
मल
ू प्रवतर्क
प्रबन्धक
िवकास क� गित के
लघु प्रवतर्क
आधार पर
प्रारम्भक
उद्यमी के प्रकार अनसु ंगी
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नए उद्यम प्रबंधन में मख्
ु य मुद्दे एवं वैधािनक आवश्यकताएँ, मिहला उद्यिमयों के सामने आने वाली चुनौितयाँ।
नए उद्यम का प्रबंधन अत्यंत समझदारी पवू र्क िकया जाना चािहए । इसके प्रबंधन से िनधार्�रत होता है िक यह उद्यम िकतना प्रभावशाली होगा तथा िकतने लंबे
समय तक यह चलेगा। प्रबधं न के प्रमख
ु मद्दु ों में स्थान का चयन, पयार्वरण, काननू ी प्रावधान, िव�ीय स�मता आिद शािमल होते हैं
नये उद्यम क� स्थापना करते समय उिचत स्थान का चयन उद्यमी को प्रितस्पधार् लाभ प्रदान करने के साथ-साथ उद्यम क� सफलता में योगदान दे सकता है।
पयार्वरण िजसमें नये उद्यम को कायर् करना है िस्थर न होकर प�रवितर्त होते रहते हैं। रणनीित िवकिसत करते समय उद्यिमयों को उद्योग का अध्ययन करने के
साथ-साथ पयार्वरण सम्बन्धी आवश्यकताओ ं तथा काननू ों का अवलोकन कर इसक� पिू तर् करना अत्यन्त आवश्यक है। व्यापार क� िव�ीय स�मता के साथ ही
प्रभावी प्रबन्धन आवश्यक है। यह सभी मद्दु े एक नए उद्यम को व्यापक तरीके से प्रभािवत हैं।
A. स्थान
िकसी भी नये उद्यम क� स्थापना के साथ ही उस उद्यम के उत्पादों तथा सेवाओ ं के उत्पादन के िलए स्थान सम्बन्धी िनणर्य लेना िविनमार्ण कम्पिनयों के िलए
एक रणनीितक तथा महत्वपणू र् पहलू होता है। नये उद्यम क� स्थापना करते समय उिचत स्थान का चयन उद्यमी को प्रितस्पधार् लाभ प्रदान करने के साथ-साथ
उद्यम क� सफलता में योगदान दे सकता है। यह मौिद्रक तथा मानवीय ससं ाधनों के िलए दीघर्कािलक प्रितबद्धता है।
िकसी स्थान का मूल्यांकन तथा चयन करने के कारक-
ऐसे बह�त से कारक है िजनका मूल्यांकन उिचत स्थान के चयन के िलए आवश्यक है इनका वणर्न िनम्न िकया गया है:
o बाजारों के िवकास क� सम्भावनायें
1. श्रम सम्बन्धी कारक-
o िवपणन सेवाओ ं क� उपलब्धता
श्रम सम्बन्धी कारकों को िनम्नवत सूचीवद्ध कर मल्ू यांिकत िकया जा
o आय क� सम्भावना
सकता है:
o जनसंख्या का �झान
o श्रिमकों क� उपलब्धता,
o अनुकूल प्रितस्पधार्त्मक िस्थित
o कुशल तथा अकुशल श्रिमकों क� उपलब्धता,
o उपभो�ा िवशेषतायें
o श्रिमकों का शैि�क स्तर,
o भिवष्य के िवस्तार के अवसर
o श्रिमकों क� जीवन लागत,
o मजदरू ी क� दर, श्रिमक सघं ों का अिस्त�व। 4. कच्ची सामग्री से सम्बिन्धत कारक-
o कच्चे माल क� उपलब्धता
2. प�रवहन सम्बन्धी कारक-
o आपिू तकतार्ओ ं का स्थान
प�रवहन सम्बन्धी कारकों में िनम्न िबन्दओ
ु ं का अध्ययन / मल्ू याक
ं न
o कच्चे माल तथा अन्य सम्बिन्धत घटकों क� लागत
आवश्यक है।
o कच्चे माल के भण्डारण सिु वधा
o राजमागर् सिु वधाओ ं क� उपलब्धता
o वायम ु ागर् सिु वधाओ ं क� उपिस्थित 5. औद्योिगक स्थल सम्बन्धी कारक-
o रे लवे सिु वधाओ ं क� उपिस्थित o औद्योिगक भिू म क� लागत
o पानी (बन्दरगाह) क� उपलब्धता o िवकिसत औद्योिगक पाकर् क� उपिस्थित
o कच्चे माल प�रवहन क� लागत o बीमा सिु वधाओ ं क� उपिस्थित तथा लागत
o तैयार माल प�रवहन लागत o अन्य उद्योगों से िनकटता
o डॉक सेवाओ ं क� उपलब्धता
6. सरकारी व्यवहार सम्बन्धी कारक-
3. बाजार सम्बन्धी कारक- o पयार्वरण तथा प्रदषू ण सम्बन्धी कानून
o उपभो�ा सामान के बाजारों में िनकटता o उद्यम स्थापना से सम्बिन्धत िविभन्न िक्रयाकलापों से सम्बिन्धत
o उत्पादक सामान के बाजार क� िनकटता कानून व िनयम
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नए उद्यम प्रबंधन में वैधािनक आवश्यकताएँ
भारत में व्यवसाियक / औद्यािगक इकाई क� स्थापना एवं सचं ालन में कई वैधािनक औपचा�रकताओ ं का पालन करना पड़ता है। इकाई क� स्थापना का पजं ीयन
कराने से उसके भिू म, भवन, िवकास, पेटेंट, ट्रेडमाकर् आिद को क्रय करने, ऋण प्रा� करने, उनके आधीन अनुबन्धों का िनष्पादन कराने आिद तक सभी चरणों में
अनेक वैधािनक अिधिनयम हैं िजनका पालन करना पडता है।
नवीन इकाई क� स्थापना मे प्रमख
ु अिधिनयम
स्वािमत्व प्रा�प सम्बन्धी अिधिनयम- o कमर्चारी राज्य बीमा अिधिनयम, 1948 -बीिमत कमर्चा�रयों
o भारतीय साझेदारी अिधिनयम,1932 - साझेदारी प्रा�प में उपक्रम तथा उनके प�रवारों को िविभन्न प्रकार के लाभ तथा सिु वधाएँ
क� स्थापना हेतु। प्रदान करता है।
o सीिमत दाियत्व साझेदारी अिधिनयम, 2008 - पारस्प�रक o मजदरू ी भृि�/भगु तान अिधिनयम, 1936 -मजदू री, मजदरू ी क�
समझौते पर आधा�रत साझेदारी को नया �प देने का लचीलापन अविध तथा भगु तान का समय से सबं ंिधत
प्रदान करने हेतु। प्रदूषण िनवारण एवं िनयंत्रण संबंधी अिधिनयम-
o कम्पनी अिधिनयम, 1956 - व्यावसाियक स्वािमत्व के कम्पनी
o जल प्रदषू ण िनवारण एवं िनयंत्रण अिधिनयम 1974
प्रा�प क� स्थापना हेतु। o वायु प्रदषू ण िनवारण एवं िनयंत्रण अिधिनयम 1981
o भारतीय सहकारी अिधिनयम 1912 - समानता के आधार पर
परस्पर आिथर्क िहतों क� अिभवृिद्ध के िलए। दुकान तथा वािणिज्यक सस्ं थान अिधिनयम-
o सभी राज्यों में अलग-अलग - नयी दक ु ान अथवा नये
उद्योग एवं श्रम सम्बन्धी अिधिनयम- वािणिज्यक सस्ं थान को अपने राज्य में पंजीकृ त कराने हेतु।
o कारखाना अिधिनयम, 1948 - कारखानों क� स्वीकृ ित,
लाइसेंिसंग एवं पंजीयन हेतु तथा श्रिमकों क� कायर् दशाओ ं के आवश्यक वस्तु अिधिनयम, 1955-
संदभर् में। o नवीन इकाई द्वारा आवश्यक वस्तुओ ं के उत्पादन से सम्बिन्धत
o न्यूनतम मजदू री अिधिनयम, 1948 - उद्योगों को सरकार द्वारा कर अिधिनयम-
िनधार्�रत न्यूनतम मजदू री का भगु तान करने के िलए बाध्य करता o वस्तु एवं सेवा कर अिधिनयम 2017
है
o श्रम संघ अिधिनयम, 1926 -श्रिमकों एवं सेवायोजकों के बीच
िविभन्न पंजीयन-
o अस्थायी पज ं ीयन प्रमाण पत्र
सम्बन्धों का िविनयम करने हेतु
o स्थायी पज ं ीयन प्रमाण पत्र
o औद्योिगक िववाद अिधिनयम, 1947 -औद्योिगक िववादों के
o आयात लाइसेन्स
समाधान हेतु।
प्रबंध- अवधारणा, महत्व, �ेत्र, प्रबंध एवं प्रशासन। क्रय तथा सामग्री प्रबंधन।
प्रबंध- अवधारणा
प्रबन्ध का अथर्:- सामान्य शब्दों में प्रबन्ध से अिभप्राय व्यि�यों के समहू से कायर् कराने से होता है।
प्रबन्ध एक िवस्तृत एवम् जिटल िवचारधारा है। इसिलए िभन्न-िभन्न िवद्वानों ने इसका प्रयोग िभन्न-िभन्न अथ� में िकया है। प्रबन्ध क� कुछ महत्वपणू र्
प�रभाषाएं िनम्निलिखत हैं-
1. एफ. डब्ल्यू टे लर के अनस
ु ार "प्रबन्ध यह जानने क� कला है िक आप व्यि�यों से वास्तव में क्या काम लेना चाहते हैं और िफर यह देखना
िक वे उसको सबसे िमतव्ययी तथा सवर्श्रे� ढंग से सम्पन्न करते हैं।"
उपरो� प�रभाषा के अनसु ार सबसे पहले यह िनधार्�रत िकया जाता है िक हमारे उद्देश्य क्या हैं। इन्हें अनक
ु ू लतम ढगं से कै से प्रा� िकया जा
सकता है तथा इसके िलए हमें क्या-क्या समायोजन करने पड़ेंगे।
2. पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार - प्रबन्ध का कायर् �ान एक क� शाखा के �प मे िकया जाने वाला एक कायर् है और प्रबन्धक �ान का व्यवहार
में प्रयोग करते हैं,तथा िवशेष काय� को संपािदत करते हैं।
इस प�रभाषा के अनसु ार प्रबन्ध को एक कायर् माना गया है जो िक प्रबन्धकों के द्वारा परू ा िकया जाता है। यह �ान क� एक शाखा है िजसमें
िव�ेषण के बाद प्रबन्धक अपने �ान का व्यवहार में प्रयोग करते हैं। इस प्रकार ड्रकर के अनुसार प्रबन्ध िव�ान एवम् कला है।
अतः हम िनष्कषर् के �प में यह कह सकते हैं िक प्रबन्ध एक ऐसा नेतत्ृ व कायर् है िजसमें सामान्य ल�यों क� प्राि� के िलए मानवीय प्रयासों का
िनयोजन, संगठन, िनद�शन एवम् िनयन्त्रण िकया जाता है। यह भौितक एवम् मानवीय संसाधनों के कुशलतम उपयोग द्वारा उिचत िनणर्यन एवम्
िनद�शन के माध्यम से दसू रों से कायर् लेने क� कला है।
प्रबन्ध: िवशेषताएं एवं ल�ण
प्रबन्ध को िवद्वानों द्वारा िविभन्न तरीके से प�रभािषत िकया गया है इनका िव�ेषण करने पर प्रबन्ध के िनम्न ल�ण या िवशेषताएँ �ात होती हैं-
1. प्रबन्धक अन्य लोगों से कायर् करवाते हैं और वे स्वयं प्रबन्धक�य कायर् (िनयोजन, संगठन, िनद�शन एवं िनयन्त्रण) करते हैं।
2. प्रबन्ध कायर् िन�द्देश्य या ल�यहीन नहीं होता है। प्रबन्ध के पूवर् िनधार्�रत कुछ उद्देश्य होते हैं।
3. प्रबन्ध कायर् औपचा�रक समहू ों में सम्पन्न िकया जाना सहज होता है। असगं िठत व्यि�यों का समहू के वल भीड़ होती है िजनका प्रबन्ध करना
किठन होता है।
4. प्रबन्ध एक मानवीय कायर् है। प्रबन्ध कायर् समाज के श्रे� या िविश� व्यि�यों द्वारा िकया जाने वाला कायर् है। ऐसे व्यि� (प्रबन्धक) िविश�
�ान, अनुभव एवं अनुभिू त वाले होते हैं।
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चंिू क यह बुिद्धमान कमर्चा�रयों को अत्यिधक सन्तोष प्रदान करता है, अतः प्रबन्धकों को अपने अिधनस्थों को उनके पहल को िदखाने
हेतु अपने व्यि�गत दंभ (ग�र) का त्याग करना चािहये। हालांिक फे योल के अनुसार यह प्रािधकार एवं अनुशासन के सम्मान (आदर)
में सीिमत होनी चािहये।
14. सहयोग क� भावना-
कमर्चा�रयों के मध्य मे सामजं स्य एवं दल-भावना को प्रोत्सािहत िकया जाना चािहये। यह सगं िठत कायर् क� (गितिविध) एक प्रमख ु
िवशेषता है, िक अनेक व्यि�, पूणर् सहयोग क� भावना के साथ समान ल�यों क� प्राि� हेतु कायर् करते है। संगठन में ऐसे वातावरण का
िनमार्ण िकया जाना चािहये जो िक व्यि�यों को एक दसू रे के कायर् में सहयोग करने को इस प्रकार प्रे�रत करे , िजससे िक उन सबका
सिम्मिलत प्रयास उद्यम को सम्पूणर् उद्देश्य क� प्राि� हेतु प्रोत्सािहत करें ।
प्रबन्ध के स्तर
िकसी उद्यम में प्रबन्ध के कई स्तर हो सकते है। प्रबन्ध के स्तर से सन्दभर् उद्यम में िविभन्न प्रबन्धक�य िस्थितयों (पदों) के मध्य िवभेदक रे खा से है।
प्रबन्ध का स्तर उद्यम के आकार, तकनीक�, सिु वधाओ ं तथा उत्पादन क� सीमा (�ेत्र) पर िनभर्र करता है।
सामान्यतया: हमारा सामना प्रबन्ध के दो व्यापक स्तरों प्रशासिनक प्रबन्ध (उच्च स्तरीय प्रबन्ध) तथा प�रचालन प्रबन्ध (िनम्न स्तर का
प्रबन्ध) से होता है।
प्रशासिनक प्रबन्ध 'िवचार' िक्रया (कायर्) से सम्बिन्धत है अथार्त नीितयों का िनधार्रण िनयोजन तथा मानकों का िनि�तीकरण आिद
प्रशासिनक प्रबन्ध के अन्तगर्त आते है।
प�रचालन प्रबन्ध 'करने' से अथार्त नीितयों के िक्रयान्वयन तथा उद्यम के उद्देश्य क� प्राि� हेतु प�रचालन को िनद�िशत करने से सम्बिन्धत
है। िकन्तु वास्तिवक व्यवहार में 'िवचार प्रिकया' तथा 'कायर् प्रिकया' के बीच में स्प� िवभेदक रेखा खींच पाना सम्भव नहीं है। क्योंिक
मल ू (प्राथिमक) प्रबन्धक�य काय� का सम्पादन समस्त प्रबन्धकों के द्वारा िकया जाता है, चाहें वे िकसी भी स्तर, श्रेणी (पद) पर पदस्थ
हों।
उदाहरण- कम्पनी का मजदरू ी व वेतन िनदेशक, संचालक मण्डल के सदस्य के �प में मजदरू ी एवं वेतन िनधार्रण में सहायता कर सकता
है, िकन्तु मजदरू ी एवं वेतन िवभाग के मिु खया के �प में उसका कायर् यह देखना है िक ये िनणर्य िक्रयािन्वत हो रहें है।
स्तरों क� वास्तिवकता मह�ा यह है िक वे संगठन में प्रािधकार सम्बन्ध को विणर्त करता है। प्रािधकार एवं उ�रदाियत्व के पदसोपान को
िवचा�रत करते ह�ये प्रबन्ध के िनम्निलिखत तीन स्तरों क� पहचान क� जा सकती है-
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प्रबन्धक�य कौशल
कौशल िकसी व्यि� के �ान को िक्रया (कायर्) के �प में �पान्त�रत करने क� योग्यता होती है। अतः यह व्यि� के िनष्पादन में अवत�रत होती है।
कौशल आवश्यक �प से जन्मजात ही नहीं होती वरन इसे िनयिमत अभ्यास एवं िकसी के स्वयं के व्यि�गत अनुभव एवं पृ�भूिम के द्वारा िवकिसत
िकया जा सकता है। अपने भूिमका के सफल िनवर्हन हेतु िकसी प्रबन्धक में तीन प्रमख
ु कौशल का होना आवश्यक है।
ये तीन कौशल है-
एक और जहाँ सैद्धािन्तक एवं तकनीक� कौशल उिचत िनणर्यन हेतु आवश्यक है, सैद्धािन्तक
वही मानव सम्बन्ध कौशल अच्छे नेता हेतु आवश्यक है। कौशल
सैद्धािन्तक कौशल- यह एक प्रबन्धक क� िनम्निलिखत योग्यताओ ं से सन्दिभर्त कौशल
है- मानव-
संगठन तथा उसके भिवष्य के बारे में व्यापक एवं दरू दिशर्ता पूणर् िनणर्य सम्बन्ध
लेने क� योग्यता। कौशल
स� ं ेप में िवचारण क� योग्यता। तकनीक�
िकसी िस्थित में कायर्रत शि�यों के िव�े षण क� योग्यता। कौशल
प्रबन्ध क� रचनात्मक एवं अिभनवीकरण (अिभनव) योग्यता।
पयार्वरण एवं इसमें हो रहे प�रवतर्नों तक पह�ँचने क� योग्यता। स�
ं ेप में अपने वातावरण, सगं ठन एवं अपने कायर् के मानस-िचत्रण क�
योग्यता िजससे िक वह अपने संगठन, स्वयं के िलये तथा अपने दल के िलये उिचत ल�य िनधार्रण कर सके ।
यह कौशल एक प्रबन्धक को सगं ठन में उच्च पद (दाियत्व) प्रा� करने में उसके महत्व को बढ़ाने वाला प्रतीत होता है। तकनीक� कौशल, प्रबन्धक
के अपने अधीन कायर् करने वाले कमर्चा�रयों के कायर् क� प्रकृ ित को समझने का कौशल है। यह एक व्यि� क� िकसी प्रकार क� प्रिक्रया एवं तकनीक
में उसके �ान एवं द�ता से सदं िभर्त है।
एक उत्पादन िवभाग में इसका आशय उत्पादन प्रिकया क� तकनीिकयों को समझने से होगा। यह िनम्न स्तर प्रबन्धन के �ेत्र में अिधक महत्वपणू र्
होती है तथा जैसे-जैसे प्रबन्धक उच्च पदों क� ओर अग्रसर होता जाता है, प्रबन्धक�य दाियत्वों में इन कौशलों का महत्व कम होता जाता है। उच्च
कायार्त्मक पदों, यथा माक� िटंग प्रबन्धक अथवा उत्पादन प्रबन्धक, आिद में सैद्धािन्तक कौशल का महत्व बढ़ता जाता है, तथा तकनीक� कौशल
का महत्व कम होता जाता है।
मानव सम्बन्ध कौशल-
समस्त स्तरों पर कायर्रत व्यि�यों के साथ प्रभावी ढंग से अन्तरिक्रया करने क� योग्यता है।
यह कौशल प्रबन्धक में िनम्निलिखत योग्यताये संतोषजनक मात्रा में िवकिसत करता है -
o दस ू रों क� भावनाओ ं एवं संवेदनाओ ं को पहचानने (मान्यता प्रदान करने) क� योग्यता।
o अपने द्वारा िकये जा रहे कायर् श्रृंखला के सम्भािवत काय� एवं उनके प�रणामों के सम्बन्ध में िनणर्य (अिभिनणर्य) क� योग्यता ।
o अपने िसद्धान्तों एवं मल्ू यों के परी�ण क� योग्यता जो उसे अपने स्वयं के िवषय में अिधक उपयोगी अिभ�ख के िवकास हेतु स�म
बनायेगी। कौशल का यह प्रकार समस्त स्तर के प्रबन्धकों के िलये महत्वपूणर् होती है।
तकनीक� कौशल-
उच्च स्तर पर तकनीक� कौशल कम महत्वपण ू र् हो जाता है, इसी कारण उच्च स्तर पर कायर्रत व्यि� सरलता से एक उद्योग से दसू रे
उद्योग में स्थानान्त�रत हो जाते है, बगैर अपनी द�ता में िकसी कमी के । उनक� सैद्धािन्तक एवं मानव-सम्बन्ध योग्यता नवीन कायर् के
तकनीक� पहलू के साथ अप�रिचतता क� पिू तर् कर देती है।
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प्रबंध प्रिक्रया, संसाधन प्रबंधन एवं प्रबंध के कायर् िनयोजन, संगठन, िनद�शन, िनयंत्रण, समन्वय,
िनणर्यन, अिभप्रेरणा, नेतत्ृ व एवं सच
ं ार।
प्रबंध: प्रिक्रया
प्रबन्ध एक जिटल, गितशील तथा लचीली प्रिक्रया है। यह प्रिक्रया स्वयं में कई चरणों अथवा तत्वों को सिम्मिलत करती है जो स्वतन्त्र प्रकृ ित के
न होकर आपस में एक दसू रे पर िनभर्र होते है।
प्रबधं प्रिक्रया के अतं गर्त एक के बाद एक कई कायर् सिम्मिलत होते हैं जो सतत �प से चलते रहते हैं। इस प्रकार से प्रबधं कों द्वारा इन सभी िक्रयाओ ं
के िनष्पादन को ही सिम्मिलत �प से प्रबंध प्रिक्रया कहा जाता है।
प्रबन्ध प्रिक्रया को समझने का एक तरीका इसके आधारभतू काय� को पहचाना है जो िमलकर इस प्रिक्रया को बनाते हैं। ये कायर् सभी स्तरों पर,
उच्च अिधशासी से अधीनस्थ तक प्रबन्धक�य िक्रयाओ ं के आधार हैं।
प्रबध
ं प्रिक्रया क� िवशेषताए-ं
यह एक सामािजक प्रिक्रया है क्योंिक व्यि�यों के आपसी संबंध पर िनभर्र करती है।
यह एक सावर्भौिमक प्रिक्रया है क्योंिक छोटे से छोटे व्यवसाय से लेकर वृहद संगठनों तक इसका प्रयोग होता है।
एक प�रणाम प्रधान प्रिक्रया है क्योंिक इसका मल ू उद्देश्य ल�य क� प्राि� है।
क्योंिक सभी प्रबंधक मानव होते हैं अतः यह एक मानवीय प्रिक्रया भी है।
यह सतत �प से चलने वाली प्रबंध से जड़ ु े काय� क� एक गितशील प्रिक्रया है।
प्रबध
ं प्रिक्रया के चरण
116
अिभप्रेरणा बढ़ाने क� िवचारधाराएं
परंपरागत आधुिनक
148
िवपणन / माक� िटंग एवं िवक्रय में अंतर
उद्देश्य ग्राहकों क� संतुि� द्वारा दीघर्काल में लाभ अिजर्त करना जब िक िवक्रय में वस्तु व सेवाओ ं का स्वािमत्व हस्तांतरण ही
इसका उद्देश्य होता हैं। उद्देश्य होता हैं।
�ेत्र इसका �ेत्र अत्यिधक व्यापक होता है। उत्पाद के यह िवपणन क� िक्रयाओ ं में से िसफर् एक िक्रया हैं।
उत्पादन से लेकर ग्राहक क� संतुि� तक।
मुख्य िवपणन में ग्राहक ही मुख्य के न्द्र िबन्दु होता है उसक� उत्पाद के ग्राहक को हस्तांतरण क� िक्रयाओ ं पर ही मख्ु य ध्यान
के न्द्रिबन्दु आवश्यकताओ,ं व्यवहार को ध्यान में रखकर िनणर्य रहता हैं।
िलये जाते हैं।
ल�य िवपणन का ल�य ग्राहक को सतं ु� करना होता है िवक्रय का ल�य ग्राहक को अिधक से अिधक िवक्रय कर लाभ
कमाना होता है।
िक्रयाओ ं का िवपणन क� िक्रया उत्पाद बनने से पहले से प्रारंभ हो जाती िवक्रय क� िक्रया उत्पाद बन जाने के बाद प्रारंभ होती है तथा िवक्रय
प्रारंभ व अंत हैं तथा वस्तु के िवक्रय, पहचान, ग्राहक के सतं ु� होने पर हो जाने के बाद समा� हो जाती है
खत्म होती है
िवशेषताएँ िवपणन में ग्राहकों क� आवश्यकताओ ं क� अनसु ार िवक्रय में ग्राहक क� बनी वस्तु क्रय करने हेतु प्रोत्सािहत िकया जाता
उत्पाद में प�रवतर्न तथा बदलाव लाये जाते है। है
रणनीितयाँ िवपणन में उत्पाद बनने से लेकर उसके संवधर्न मल्ू य िवक्रय में प्रवतर्न तथा तैयार करने से संबंिधत रणनीितयां सिम्मिलत
िनधार्रण, भौितक िवतरण आिद सभी रणनीितयाँ का हैं।
िनधार्रण िकया जाता है।
सामािजक िवपणन में सामािजक उ�रदाियत्व पर ध्यान िदया जाता िवक्रय में सामािजक उ�रदाियत्व पर ध्यान नही िदया जाता है
उ�रदाियत्व है।
मूल्य िनधार्रण िवपणन में ग्राहक को उत्पाद से होने वाली संतुि� तथा िवक्रय में उत्पाद क� लागत के आधार पर लाभ जोड़कर मल्ू य
उपयोिगता के आधार पर मूल्य िनधार्रण होता है िनधार्रण होता है।
िनयोजन िवपणन में भिवष्य में आने वाली मांग तथा पिू तर् को ध्यान िवक्रय में वतर्मान में उपलब्ध माल के िवक्रय हेतु िनयोजन िकया
में रखकर दीघर्कालीन िनयोजन िकया जाता है। जाता है जो अल्पकालीन होता हैं।
170
नेटविक� ग
ऑक्सफोडर् इिं ग्लश िडक्शनरी अनुसार ‘नेटवकर् ' (स�ं ा) शब्द के अथर्-
1. �ैितज और ऊध्वार्धर रे खाओ ं को काटने क� एक व्यवस्था।
2. परस्पर जड़ु े ह�ए लोगों या चीजों का एक समूह या प्रणाली (िक्रया)
3. कंप्यूटर नेटवकर् प्रणाली
4. सचू नाओ ं के आदान-प्रदान और पेशेवर या सामािजक संपकर् िवकिसत करने के
िलए दसू रों के साथ बातचीत करें ।
व्यावसाियक नेटविक� ग रे फरल और प�रचय के आधार पर िबक्र� के अवसरों और संपक�
को िवकिसत करने के िलए एक प्रभावी, कम लागत वाली िवपणन पद्धित है। यह या तो
बैठकों और समारोहों में आमने-सामने, या फोन, ईमेल और तेजी से बढ़ती सामािजक और व्यावसाियक नेटविक� ग जैसी अन्य संपकर् िविधयों द्वारा
स्थािपत एवं सपं ािदत क� जाती है।
संि�� शब्द 'नेटविक� ग' को कंप्यूटर नेटविक� ग/नेटवकर् के साथ भ्रिमत िकया जा सकता है, जो कई कंप्यूटर प्रणािलयों के कनेक्शन और पह�ंच से
संबंिधत अलग शब्दावली है।
संपक� का एक व्यावसाियक नेटवकर् आपके िलए बाज़ार तक पह�चं ने का एक मागर् और एक िवपणन पद्धित दोनों है। िबजनेस नेटविक� ग िनणर्य-
िनमार्ताओ ं तक पह�चं ने का एक तरीका प्रदान करती है, अन्यथा पारंप�रक िव�ापन िविधयों का उपयोग करके इसमें शािमल होना बह�त मिु श्कल हो
सकता है।
इसके अलावा, व्यावसाियक नेटविक� ग अपने साथ िसफ़ा�रश और व्यि�गत प�रचय का अित�र� लाभ लेकर आती है, जो व्यावसाियक अवसरों
के िवकास के िलए हमेशा बह�त सहायक होते हैं।
अंत:कहा जा सकता है िक नेटविक� ग व्यवसाय का एक ऐसा कायर् है िजसका उद्देश्य आपको नए सपं कर् बनाने, व्यावसाियक संबंध बनाने और
आपके व्यवसाय के उत्पादों और सेवाओ ं के बारे में जाग�कता पैदा करने में मदद करना है। सामान्यत: व्यवसाय नेटविक� ग ऑनलाइन सोशल
मीिडया मचं ों से लेकर पारंप�रक कॉकटेल पाट�ज और व्यावसाियक कायर्क्रमों तक कहीं भी हो सकती है।
नेटवकर् के प्रकार
इबारा और हंटर (2007) ने अपने लेख “हाउ लीडसर् िक्रएट एडं यूज़ नेटवक्सर्” में िनम्निलिखत नेटवक� क� चचार् क� है-
1. प�रचालन नेटवकर् -
प�रचालन नेटवकर् उन संपक� (नेटवक�) से बने होते हैं जो िकसी गितिविध का समथर्न या अवरोध कर सकते हैं।
संपकर् :
o अिधकाश ं तः आतं �रक होते हैं, जैसे कमर्चारी, सहकम� और व�र� अिधकारी।
o इसमें आपिू तर्कतार्, िवतरक और ग्राहक जैसे प्रमख ु बाहरी लोग शािमल हैं।
वे वतर्मान मांगों और काम परू ा करने पर ध्यान कें िद्रत कर रहे हैं।
2. व्यि�गत नेटवकर् -
व्यि�गत नेटवकर् अिधकतर आपके व्यवसाय से बाहर के करीबी संपकर् होते हैं।
इसके राहत अपने व्यावसाियक उन्नित को बढ़ावा देकर उसमें सध
ु ार करें ।
साथ ही उपयोगी जानकारी और रे फरल प्रदान करें ।
178
बेचने का दबाव-
o कुछ व्यावसाियक नेटविक� ग समहू सदस्यों पर अपने उत्पाद या सेवाएँ बेचने का दबाव डाल सकते हैं। यह कुछ लोगों के िलए
अ�िचकर हो सकता है, और हो सकता है िक यह हर िकसी के िलए उपयु� न हो।
यिद आप िकसी िबजनेस नेटविक� ग समहू में शािमल होने पर िवचार कर रहे हैं, तो आपके िलए सही व्यि� का पता लगाने के िलए अपना शोध
करना महत्वपणू र् है। वहाँ कई अलग-अलग प्रकार के समहू हैं, इसिलए आपको वह ढूढं ने में स�म होना चािहए जो आपक� आवश्यकताओ ं को
परू ा करता हो।
अभ्यास प्र�
लघु उ�रीय-
ब्रािं डंग क� अवधारणा को स्प� क�िजए
ब्रांिडंग क� िवशेषताओ ं को स्प� क�िजए
ब्रांड िन�ा क� अवधारणा क्या होती है
माक� िटंग क� िवशेषताएँ िलिखए।
माक� िटंग एवं िवक्रय में अत
ं र िलिखए।
वतर्मान समय में िडिजटल माक� िटंग के लाभ िलिखए
दीघर् उ�रीय-
ब्रांिडंग के चरण कौन कौन से होते हैं।
ब्रांिडंग क� प्रमखु रणनीितयाँ कौन कौन सी है
ब्रांिडंग के प्रमख
ु प्रकारों को िलिखए
माक� िटंग क� िविभन्न अवधारणाएँ कौन कौन सी है
िडिजटल माक� िटंग के िविभन्न प्रकार कौन कौन से हैं।
181
182
UNIT- 3
�शासन व �बंधन
लोक �शासन में �बध ं के मह�वपण ू � आयाम। मानव ससं ाधन �बध
ं ।
िव�ीय �बंध- लोक �शासन में उनका काय��े� एवं मह�व।
लोक काय� �े� में तनाव �बधं न एवं िववाद �बंधन क� िविभ�न तकनीकें एवं उनका मह�व।
बह�लता (अनेकता) का �बध ं न एवं �शासन, जन �बध ं न के अवसर एवं चुनौितयाँ।
आपदा �बंधन ।
लोक �शासन-
लोक प्रशासन दो शब्दों से िमलकर बना है, लोक और प्रशासन। लोक प्रशासन एक प्रबंधन क� धारा है जो सावर्जिनक सस्ं थानों को संचािलत करने
के िलए नीितयों के िनमार्ण से सबं िं धत है। यह व्यि�यों को सबसे कुशल तरीके से सावर्जिनक सेवा करने के िलए प्रिशि�त भी करता है। लोक प्रशासन
सरकारी काय� क� योजना, आयोजन, िनद�शन, समन्वय और िनयंत्रण है।
o लोक प्रशासन कायर्पािलका क� िक्रयान्वयन शाखा है।
o लोक प्रशासन सरकारी नीितयों के िक्रयान्वयन हेतु उ�रदायी है।
o लोक प्रशासन सभी राष्ट्रों क� एक िवशेषता है, चाहे उनक� सरकार क� प्रणाली कुछ भी हो।
o राष्ट्रों के भीतर कें द्रीय, मध्यवत� एवं स्थानीय स्तरों पर लोक प्रशासन का उद्यम िकया जाता है।
o एक राष्ट्र के भीतर सरकार के िविभन्न स्तरों के मध्य संबंध लोक प्रशासन के िलए एक बढ़ती ह�ई समस्या का िनमार्ण करती है।
183
लोक काय� �े� में िववाद �बध
ं न क� िविभ�न तकनीकें एवं उनका मह�व
"िववाद" शब्द श�ु में िवचारों या लड़ाइयों क� छिवयां उत्पन्न कर सकता है, लेिकन यह समझना महत्वपणू र् है िक िववाद स्वाभािवक �प से नकारात्मक नहीं
है। िववाद तब होता है जब दो या दो से अिधक प�ों को लगता है िक उनके ल�य, िहत या मल्ू य परस्पर िवरोधी हैं। तनाव तब पैदा होता है जब लोग मानते हैं
िक उनक� ज़�रतें या इच्छाएँ एक साथ नहीं रह सकतीं।
िववाद के �ोत / कारक
सगं ठनात्मक िववाद के स्रोतों को दो मख्ु य श्रेिणयों में वग�कृ त िकया जा सकता है-
संरचना�मक कारक- o धारणाएँ
जो सग
o बह�लता
ं ठन क� प्रकृ ित और कायर् के आयोजन के तरीके से
संबंिधत हैं; o व्यि�गत समस्याएँ
o िवशेष�ता अ�य कारक-
o सामान्य संसाधन o कायर् पैटनर् में प�रवतर्न
o ल�य अंतर o धारणाओ ं में अतं र
o परस्पर िनभर्रता o मल्ू यों में अंतर
o प्रािधकार संबंध o िवकल्पों क� उपलब्धता
o िस्थित में अंतर
o सीिमत संसाधनों का आवंटन
o अतं र-िनभर्रता
o �ेत्रािधकार संबंधी अस्प�ताएँ
o असमान कायर्भार
o भूिमकाएँ और अपे�ाएँ
o अधीनस्थों का प�पातपणू र् मल्ू यांकन
�यि�गत कारक- o अप्राप्य ल�य
जो संगठनात्मक सदस्यों के बीच मतभेदों से संबंिधत हैं o िव�ास और आत्मिव�ास क� कमी
o कौशल और �मताएं o यथािस्थित के िलए खतरा
o व्यि�त्व िववाद
िहदं ी पाठ्यक्रम में विणर्त “जन �बंधन” शब्द का आशय “लोक �शासन” शब्द से लगाया गया है क्योंिक अंग्रेज़ी पाठ्यक्रम में “जन �बंधन” का
अंग्रेजी �पांतरण “PUBLIC ADMINISTRATION” िदया गया है।
लोक प्रशासन दो शब्दों लोक ( सरकार) तथा प्रशासन (सेवा करना) से िमलकर बना है। इसके अंतगर्त सरकार द्वारा जनता क� सेवा के िलए संचािलत गितिविधयां
सिम्मिलत है जैसे सावर्जिनक भवनों का िनमार्ण, करो िक वसल
ू ी आिद ।
वु�ो िव�सन- “लोक प्रशासन का काम कानून को सिवस्तार व्यविस्थत �प से लागू करना है। कानून लागू करने क� प्रत्येक कायर्वाही प्रशासन क�
ही एक गितिविध है।”
एल.डी. �हाइट- “लोक प्रशासन में वे सभी गितिविधयां शािमल हैं, िजनका उद्देश्य लोकनीित क� पिू तर् करना या उसे लागू करना है।”
लोक प्रशासन के अथर् से संबिं धत दो �ि�कोण प्रचिलत है-
o संकुिचत �ि�कोण- इस �ि�कोण के अनसु ार लोक प्रशासन का संबंध सरकार क� शीषर् स्तर पर कायर्पािलका शाखा से है।
इसके समथर्क िवचारक है हबर्टर् साइमन, लथ
ू र गिु लक है।
हबर्टर् साइमन के अनस
ु ार लोक प्रशासन का सबं धं कें द्र राज्य एवं स्थानीय सरकारों क� कायर्पािलका शाखा से है।
o �यापक �ि�कोण- इस �ि�कोण के अनसु ार लोक प्रशासन का संबंध सरकार क� तीनों शाखाओ ं कायर्पािलका, िवधाियका, न्यायपािलका
से है।
इसके समथर्क िवचारक है एफ.एम. माक्सर्, एफ नीग्रो, एल.डी. वाइट है।
लोक �शासन क� िवशेषताए-ं
इसके अंतगर्त प्रशासिनक अिधका�रयों द्वारा िकए गए कायर् सिम्मिलत हैं।
यह मल ू तः सरकारों क� कायर्पािलका शाखा से संबंिधत है लेिकन वतर्मान में या सरकार क� तीनों शाखाओ ं कायर्पािलका िवधाियका न्यायपािलका
से संबंिधत हो गया है।
इसका सब ं ंध सावर्जिनक नीितयों का िनमार्ण एवं िक्रयान्वयन से है।
इसके अंतगर्त सरकारी �ेत्र में जनिहत में संचािलत कायर्क्रम सिम्मिलत है।
यह िवधाियका द्वारा िविधयों को िक्रयािन्वत करने का कायर् करता है।
यह िनजी प्रशासन से िभन्न है।
इसके अत ं गर्त कायर्रत लोकसेवक पदसोपानवत ढंग से सगं िठत होते हैं।
लोक सेवक के काय� का स्प�ीकरण होता है।
231
�शासन लोक �शासन
िकसी सामान्य उद्देश्य को लेकर िविभन्न व्यि�यों द्वारा िकया गया िकसी िविधक स�ा द्वारा िनिमर्त नीितयों योजनाओ ं तथा कायर्क्रमों को
सामिू हक प्रयास प्रशासन है। िक्रयािन्वत करने वाला िविश� तंत्र लोक प्रशासन है।
प्रशासन एक प्रिक्रया है। लोक प्रशासन एक तंत्र है िजसके द्वारा िविभन्न जन कल्याणकारी कायर् िकए
जाते हैं।
इसका संबंध िविभन्न लोगों से कायर् करवाने से है। इसका संबंध दो अथ� में एक िवषय के �प में दसू रा एक तंत्र के �प में
प्रशासन व्यापक �ि�कोण है। लोक प्रशासन संकुिचत �ि�कोण है क्योंिक यह प्रशासन का भाग है।
�शासन व �बध ं न-
प्रबंधन का अथर् प्रशासन यह संगठन के उस भाग से है जो संसाधनों के समिु चत उपयोग उनके मध्य समन्वय व संगठन के ल�यों को प्रा� करने के
क्रम में उनका संचालन करना सिु नि�त करवाता है प्रबंधन कहलाता है
लूथर गुिलक के अनुसार संसाधनों का समिु चत उपयोग कर ल�यों को प्रा� करने को ही प्रबंधन कहा जाता है
�शासन �बंध
प्रशासन एक व्यापक अवधारणा है। प्रबंध प्रशासन का ही अंग है अतः संकुिचत अवधारणा है।
प्रशासन का मख्ु य कायर् संगठन के ल�यों को िनधार्�रत करना। प्रबंध से िनधार्�रत ल�यों को प्रा� करने का प्रयास करता है।
प्रशासन संगठन में प्रभावी िनद�शन सिु नि�त करता है। प्रबंध संगठन में प्रभावी कायर् िनष्पादन सिु नि�त करता है।
232
आपदा �बंधन
आपदा जोिखम प्रबधं न नए आपदा जोिखमों को रोकने, मौजदू ा आपदा जोिखमों का न्यनू ीकरण और अविश� जोिखमों का प्रबधं न करने, सनु म्यता को स�ु ढ़
करने तथा �ित को कम करने में योगदान प्रदान करने हेतु आपदा जोिखम न्यूनीकरण नीितयों एवं रणनीितयों का अनुप्रयोग है।
आपदा �बध
ं न च� को तीन चरणों में िवभािजत िकया जा सकता है-
जाग�कता और �मता िनमार्ण
िनयोजन
आपदा-पूव�
िनगरानी
A. आपदा-पवू � (Pre-disaster)-
यह एक िनवारक प्रिक्रया है। इसमें ऐसे उपाय सिम्मिलत हैं, जो आपदा क� िस्थित में सरकारों, समुदायों और व्यि�यों को तीव्र अनुिक्रया करने में
स�म बनाते हैं, तािक आपदा का प्रभावी तरीके से सामना िकया जा सके ।
इसमें चार घटक शािमल हैं-
जाग�कता और �मता िनमा�ण-
o लोगों को खतरे के जोिखम क� सीमा और इसके प्रित उनक� सुभेद्यता के संबंध में जाग�क बनाना तथा उन्हें इस प्रकार आपदा प्रबंधन रणनीित
में शािमल करना, जो उन्हें स्वयं और अपनी संपि�यों को काफ� हद तक सुरि�त करने में स�म बनाता हो।
िनयोजन-
o िनवारक उपायों, सुर�ा उपायों, पनु बर्हाली िवकल्पों आिद के संदभर् में िनयोजन, आपदा जोिखम का अनम
ु ान लगाने और उसके अनसु ार बचाव
काय� को सचं ािलत करने में सहायता करता है।
िनगरानी-
ू र्क िनगरानी करने क� आवश्यकता होती है, तािक िकसी भी संभािवत त्रिु ट से
o तैयारी के तहत सभी कायर्क्रमों और योजनाओ ं क� सावधानीपव
बचा जा सके ।
�व�रत चेतावनी �णाली-
o यह सरकारी एजेंिसयों को आपदा प्रवण �ेत्रों में सावर्जिनक सच
ू ना प्रेिषत करने में स�म बनाता है, तािक िकसी खतरे के प�ात त्व�रत आवश्यक
कायर्वाही क� जा सके ।
239
नाग�रक और आपरािधक दािय�व-
o अिधिनयम के प्रावधानों के उल्लंघन के प�रणामस्व�प िविभन्न नाग�रक और आपरािधक देयताओ ं के िलये अिधिनयम कई धाराओ ं का
प्रावधान करता है।
भारत में आपदा प्रबंधन के िलए आपदा प्रबंधन अिधिनयम 2005 के अंतगर्त िवद्यमान सस्ं थागत ढांचा बह�स्तरीय एवं बह� आयामी है। इसके अंतगर्त कें द्र
,राज्य एवं स्थानीय स्तर पर अनेक संस्थाएं िवद्यमान है जो आपसी सामजं स्य से आपदा प्रबधं न के िलए कायर् करती है।
243
250
इकाई - 4
व्यि�त्व को अंग्रेजी भाषा में Personality कहते हैं िजसक� उत्पि� लैिटन भाषा के शब्द Persona से ह�ई है। परसोना शब्द का अथर् है बाहरी वेशभूषा या
मखु ौटा (Mask)।
इस प्रकार व्यि�त्व का अथर् व्यि� के बदले ह�ए �प से है िजसमें उसक� बोलचाल, वेशभषू ा, व्यवहार, रंग,�प आिद सिम्मिलत िकये जाते हैं। लेिकन
व्यि�त्व को बाहर के आवरण (वेशभूषा) अथवा शारी�रक गठन के �प में मानना पणू र् �प से सही नहीं होगा है ।
कुछ िश�ािवदों ने व्यि�त्व को आंत�रक गणु ों का पजंु मात्र माना है । उनके कहने का अिभप्राय यह है िक व्यि� समाज के प्रित जो कुछ करता है
वह इन्हीं आंत�रक गणु ों के कारण करता है। परन्तु वास्तव में व्यि�त्व न व्यि� का बा� �प है और न के वल आंत�रक गणु ों का बिल्क “व्यि�त्व
संपणू र् व्यवहार का दपर्ण है।” यह शारी�रक, सामािजक व आंत�रक गणु ों का संगठन है।
“व्यि�त्व सपं ूणर् व्यवहार का दपर्ण है।व्यि�त्व क� अिभव्यि� व्यि� के आचार–िवचार, व्यवहार िक्रयाओ ं एवं उसक� गितिविधयाँ होती हैं।”
“व्यि� के आचरण व्यवहार में शारी�रक मानिसक, सवं गे ात्मक और सामािजक गणु ों का िमश्रण होता है िजसमें एक�पता एवं व्यवस्था पाई जाती है । इस प्रकार
व्यि�त्व व्यि� के व्यवहार का समग्र गणु है।”
व्यि� का समस्त व्यवहार सामािजक प�रवेश से अनक
ु ू लन करने के िलये होता है। प्रत्येक व्यि� सामािजक प�रवेश में अपने िवशेष व्यि�त्व के कारण, िवशेष
व्यवहार करता है।
गै�रसन, कालर् सी. ने िलखा है - "व्यि�त्व मनष्ु य क� स्वाभािवक अिभ�िच तथा �मताएँ और उसके भतू काल में अिजर्त िकये गये �ान, इन कारकों का सगं ठन
तथा समन्वय व्यवहार प्रितमानों, आदशर्, मल्ू यों तथा अपे�ाओ ं क� िवशेषताओ ं से पणू र् होता है।”
व्यि�त्व का अथर्-
िविभन्न िवद्वानों के �ि�कोण से व्यि�त्व के अथर् को इस प्रकार स्प� िकया जा सकता है -
दाशर्िनक �ि�कोण से व्यि�त्व का अथर् (Philosophical view)
o दशर्न के अनुसार इसक� प�रभाषा िनम्न प्रकार से है- "व्यि�त्व आत्म- �ान का ही दस
ू रा नाम है, यह पणू र्ता का प्रतीक है। इस पणू र्ता का आदशर्
ही व्यि�त्व को प्रदिशर्त करता है।”
251
SVEEP कायर्क्रम
Systematic Voters' Education and Electoral Participation
सव्ु यविस्थत मतदाता िश�ा एवं िनवार्चक सहभािगता कायर्क्रम, स्वीप के �प में अिधक जाना जाता है।
यह भारत में मतदाता िश�ा, मतदाता जाग�कता का प्रचार-प्रसार करने एवं मतदाता क� जानकारी बढ़ाने के
िलए एक प्रमख ु कायर्क्रम है।
वषर् 2009 से हम भारत के िनवार्चकों को सजग करने और उन्हें िनवार्चन प्रिक्रया से संबंिधत बुिनयादी
जानकारी से लैस करने क� िदशा में कायर् कर रहे हैं।
SVEEP कायर्क्रम के उद्देश्य-
स्वीप का प्रमख
ु ल�य िनवार्चनों के दौरान सभी पात्र नाग�रकों को मत देने और जाग�क िनणर्य लेने के िलए प्रोत्सािहत करके भारत में सही मायनों में सहभागी
लोकतंत्र का िनमार्ण करना है।
मतदाता पंजीकरण और टनर् आउट के माध्यम से िनवार्चक सहभािगता बढ़ाना
नीितपरक एवं सिू चत मतदान के सदं भर् में गण ु ात्मक सहभािगता बढ़ाना
सतत िनवार्चन एवं लोकतंत्र िश�ा को बढ़ावा देना।
SVEEP के घटक
297
िविधक सेवा प्रािधकरण अिधिनयम राष्ट्रीय, राज्य, िजला एवं तहसील स्तर पर िविधक सेवा प्रािधकरणों क� स्थापना करता है। इसमें लोक अदालतों के संबंध
में प्रावधान िकया गया है
राष्ट्रीय िविधक सेवा प्रािधकरण
राज्य िविधक सेवा प्रािधकरण
िजला िविधक सेवा प्रािधकरण
तहसील िविधक सेवा प्रािधकरण
321
324
इकाई - 5
के स स्टडी प्र�पत्र के खण्ड (ब) में सिम्मिलत िवषयवस्तु पर आधा�रत पाठ्यक्रम
अ�यास के स स्टडी- 1
आप एक कालेज में प्रोफे सर के �प में कायर्रत हैं एक युवा िवद्याथ� िजसे आप िपछले तीन सालों से कॉलेज में पढ़ा रहे हैं कॉलेज के अंितम वषर् में आपके सम�
आता है एवं भिवष्य के िलए आपसे सझु ाव मांगता है आप उसके व्यि�त्व से प�रिचत हैं िक उसका व्यि�त्व समन्वय, नवप्रवतर्न क� ओर झक ु ाव रखता है एवं
उसने कॉलेज के दौरान कई सारे ऐसे कायर् िकए हैं िजससे उसका झक ु ाव उद्यिमता क� तरफ लगता है आपको आ त
ं �रक िव�ास है िक अगर यह िवद्याथ� स्वयं
का कोई उद्यम प्रारंभ करे गा तो अवश्य ही सफल होगा। परंतु उसके प�रवारजनों का दबाव है िक वह शासक�य सेवा क� तैयारी करें एवं सरकारी नौकरी को प्रा�
करें । इस िस्थित में वह िवद्याथ� आपक� राय जानना चाहता है।
1. एक उद्यमी में कौन-कौन से गणु होना चािहए?
2. आप उस िवद्याथ� को क्या सझु ाव देंगे?
3. आप उस िवद्याथ� के प�रवार जनों को क्या सझु ाव देंगे ?
अ�यास के स स्टडी- 2
आप एक बैंक के मैनजे र हैं तथा उद्यिमता को बढ़ाने के िलए आप सदैव बैंक के द्वारा ऋण प्रदान करने में आप मदद करते हैं। एक िदन एक व्यि� आपके पास
आता है तथा स्वयं का उद्यम श� ु करने के िलए आपसे ऋण देने का आग्रह करता है। आप उससे बातचीत के दौरान समझ पाते हैं िक इस व्यि� को उद्यिमता
क� समझ नहीं है यह के वल कुछ व्यि�यों क� सफलताओ ं को देखकर नया करने का प्रयास कर रहा है। ना तो इसे उस व्यवसाय क� समझ है िजसे यह प्रारंभ
करना चाह रहा है ना ही उसके पास उसे व्यवसाय से संबिं धत बिु नयादी कौशल है। इसके अलावा उसे व्यवसाय के िलए रॉ मटे�रयल कहां से िमलेगा, उसे कहां
पर बेचेगा एवं उससे िकस प्रकार यह लाभ प्रा� करे गा इसक� जानकारी भी उस व्यि� को नहीं है उसके द्वारा जो फाइल बनाई गई है उसमें भी कई सारी त्रिु टयां
हैं। आपके ऊपर दबाव है िक आप ज्यादा से ज्यादा ऋण को बैंक के माध्यम से प्रदान करें
1. िकसी भी व्यि� में उद्यम श� ु करने से पहले कौन-कौन से गणु ों का होना आवश्यक है?
2. िकसी भी उद्यम को श� ु करने से पहले उस उद्यम से सबं िं धत कौन-कौन सी बिु नयादी जानकारी िकसी व्यि� को होना अत्यंत आवश्यक है?
3. इस के स में आप क्या िनणर्य लेंगे और क्यों?
अ�यास के स स्टडी- 3
आप एक िनजी कंपनी के सीईओ हैं आपक� कंपनी िकसी िविश� �ेत्र में िविश� उत्पाद के िलए जानी जाती है । आप अपनी कंपनी के अंदर सदैव नवाचार को
प्रोत्साहन देते हैं तथा आप कंपनी के कायर्कतार्ओ ं को सदैव कुछ नया करने का टास्क भी देते हैं। एक िदन आप देखते हैं िक आपका सबसे मेहनती कायर्कतार्
आपको नए उत्पाद के बारे में सझु ाव देता है एवं उसे कंपनी के अंदर लागू करने के िलए आपसे िनवेदन करता है परंतु ससं ाधनों क� कमी होने के कारण आप उसे
लागू नहीं कर पाते हैं। बाद में वही कमर्चारी आपसे अपना इस्तीफा देते ह�ए कहता है िक अब मैं यह इस िविश� उत्पाद को व्यि�गत तौर से बनाना चाह�गं ा एवं
इसको लेकर अपनी एक स्वयं का उद्यम स्थािपत क�ंगा ।
1. इस िस्थित में आपके पास क्या िवकल्प होंगे?
2. कंपनी ऐसे कौन से प्रयास करें िजससे वह सभी सकारात्मक सझु ावों को अपना सके ?
3. भिवष्य में एक बेहतर उद्यमी बनने के िलए आप उस कायर्कतार् को क्या सझु ाव देंगे?
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अ�यास के स स्टडी- 4
िविभन्न राज्यों में व्यवसाय श� ु करने से संबंिधत मानक अत्यंत किठन होते हैं तथा व्यवसाय प्रारंभ करने में कई सारी चनु ौितयां जैसे अवसंरचना क� कमी ,पयार्�
ससं ाधनों का उपलब्ध ना होना , पयार्� उद्यम अनक ु ू ल माहौल का ना होना जैसी चनु ौितयों का सामना करना पड़ता है इसके कारण िविभन्न राज्यों के ज्यादातर
उद्यमी बेंगल�ु ,पणु े, हैदराबाद गड़ु गावं जैसे शहरों में जाकर अपना उद्यम प्रारंभ करते हैं इससे एक और राज्य को आिथर्क नुकसान होता है दसू री तरफ राज्य में
नए उद्यम प्रारंभ नहीं हो पाते हैं
1. राज्य के प्रमख ु सिचव होने के नाते राज्य में उद्यम अनुकूल माहौल बनाने के िलए आप क्या प्रयास करें गे?
2. बेंगल�ु शहर में भारत के अिधकांश स्टाटर्अप होते हैं उसके पीछे क्या कारण है?
3. मध्य प्रदेश में युवाओ ं में उद्यिमता के िवकास करने के िलए क्या-क्या प्रयास िकया जा सकते हैं?
अ�यास के स स्टडी- 5
मध्य प्रदेश देश के मध्य भाग में िस्थत है मध्य प्रदेश में एक व्यापक सांस्कृ ितक िवरासत मौजदू है इसके अलावा मध्य प्रदेश का अपना एक गौरवपणू र् इितहास है
मध्य प्रदेश में भारत में सवार्िधक वन है िजसके फलस्व�प मध्य प्रदेश में प्राकृ ितक एवं नैसिगर्क पयर्टन क� अपार संभावनाएं मौजदू है मध्य प्रदेश में धािमर्क
स्थलों क� भी बह�लता है। इसके बावजदू मध्य प्रदेश में पयर्टन का स्थल अन्य पड़ोसी राज्यों जैसे राजस्थान, गजु रात क� अपे�ा काफ� कम है। उपरो� सभी
सभं ावनाएं मध्यप्रदेश के युवाओ ं को िकस प्रकार उधमशीलता के िलए प्रे�रत कर सकती हैं।
1. उद्यिमता के िसद्धांत कौन कौन से हैं।
2. िविभन्न िसद्धांतों का परी�ण क�िजए एवं इस बात को स्प� करने का प्रयास करें िक मध्य प्रदेश के संदभर् में कौन-कौन से िसद्धांत लागू हो सकते हैं
एवं िकस प्रकार में उद्यिमता को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।
3. कौन सा अथवा कौन से िसद्धातं इस स्टडी में सबसे बेहतर तरीके से लागू होता है।
अ�यास के स स्टडी - 6
आप मध्य प्रदेश के िसवनी िजले के कॉलेज के प्राचायर् हैं। आपका िजला मध्य प्रदेश के दि�ण पवू � िहस्से में मध्य प्रदेश का दरू स्थ िजला है एवं यह िजला कृ िष
प्रधान िजला है िजसमें सवार्िधक मक्के का उत्पादन होता है इसके अलावा भी यह िजला गेह�ं उत्पादक िजले के �प में जाना जाता है। दि�ण पवू � िजला होने के
साथ-साथ यह िजला अन्य राज्यों के साथ अपनी सीमा को साझा करता है इस िजले में उद्योगों क� वतर्मान में उपलब्धता नहीं है परंतु अगर प्रयास िकया जाए
तो यहां पर औद्योिगक संभावनाएं व्यापक तौर पर मौजदू हैं।
1. उपलब्ध ससं ाधनों के आधार पर आप कॉलेज के प्राचायर् होने के नाते कॉलेज के यवु ाओ ं में उद्यिमता के िवकास हेतु िकस प्रकार के प्रयास कर सकते
हैं।
2. युवाओ ं में उद्यिमता के िवकास हेतु मध्य प्रदेश सरकार क्या-क्या प्रयास कर रही है
3. सभी अभ्यथ� अपने िजले में उपलब्ध संसाधनों एवं उनके आधार पर स्थािपत िकया जा सकने वाले उद्योगों के बारे में जानकारी जटु ाने एवं उन्हें
िलखने का प्रयास करें ।
अ�यास के स स्टडी - 7
नये व्यवसाय को प्रारम्भ करने क� दशा में पहला कदम है अवसरों क� खोज करना। उद्यमी को सवर्प्रथम यह खोजना होता है िक वे कौन-कौनसे अवसर हैं िजनका
लाभ उठाने के िलए व्यवसाय क� स्थापना क� जा सकती है। व्यवसाय क� स्थापना क� दशा में अगला कदम है, खोजे गये अवसरों का िव�े षण एवं मल्ू यांकन
करना। प्रत्येक अवसर का मल्ू यांकन करने के िलए िजन आधारों का उपयोग िकया जाना चािहए वे हैं-अवसरों क� उपलब्धता क� अविध, अवसरों का वास्तिवक
एवं अनुभिू त मल्ू य, बाजार मांग एवं आकार का आकलन, संसाधनों क� उपलब्धता, �मता और कौशल क� उपलब्धता, जोिखम एवं प्रितफल का आकलन,
प्रितस्पध� िस्थित का आकलन तथा वातावरण के घटक।
1. एक नये व्यवसाय को प्रारम्भ करने से सम्बद्ध चरणों क� सं�ेप में व्याख्या क�िजए।
2. खोजे गये अवसरों का िव�े षण एवं मल्ू यांकन करने से क्या आशय है।
3. नए व्यवसाय को प्रारंभ करने में कौन कौन सी चुनौितयां आती है।
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