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Entrepreneurship Meaning in Hindi Notes
Entrepreneurship Meaning in Hindi Notes
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(Concept of Entrepreneurship)
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(I) प्राचीन परिभाषाएँ - इस वर्ग में उन विद्वानों की परिभाषाओं को सम्मिलित करते हैं जिन्होंने उद्यमिता को जोखिम
वहन एवं व्यवसाय के प्रवर्तन से सम्बन्धित के रूप में परिभाषित किया है । प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
पीटर किलबाड के अनुसार उद्यमिता व्यापक क्रियाओं का सम्मिश्रण है। इसमें विभिन्न कार्यों के साथ-साथ बाजार
अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का संयोजन एवं प्रबन्ध करना तथा उत्पादन तकनीक एवं वस्तुओं को
अपनाना सम्मिलित है।”
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ए०एच० कोल के अनुसार उद्यमिता एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह की एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है, जिसमें निर्णयों
की एक एकीकृ त श्रृंखला सम्मिलित होती है। यह आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन अथवा वितरण के लिए एक
लाभप्रद व्यवसायिक इकाई का निर्माण, संचालन एवं विकास करता है।”
(II) नव प्राचीन परिभाषाएँ -इस वर्ग में उन विद्वानों की परिभाषाओं को सम्मिलित करते हैं, जिन्होंने उद्यमिता को
प्रबन्धकीय कौशल एवं नवप्रवर्तन के संदर्भ में परिभाषित किया है। प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं
जे० इ० स्पेटनेक के अनुसार, “उद्यमिता किसी उपक्रम में जोखिम करने की क्षमता, संगठन की योग्यता तथा
विविधीकरण करने एवं नवप्रवर्तनों को जन्म देने की इच्छा है।”
पीटर एफ० डकर के अनुसार, “व्यवसाय में अवसरों को अधिकाधिक करना अर्थपूर्ण है वास्तव में उद्यमिता की यही
सही परिभाषा है।”
(III) आधुनिक परिभाषा-इस वर्ग में उन विद्वानों की परिभाषों को सम्मिलित करते हैं. जिन्होंने उद्यमिता को
सामाजिक नवप्रवर्तन एवं गतिशील नेतृत्व से सम्बन्धित किया है । प्रमुख परिभाषाएं निम्न हैं-
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रिचमेन तथा कोपेन के अनुसार, “उद्यमिता किसी सृजनात्मक, बाह्य अथवा खुली प्रणाली की ओर संके त करती है।
यह नवप्रवर्तन, जोखिम वहन तथा गतिशील नेतृत्व का कार्य है।
” राबर्ट लैम्ब के अनुसार, “उद्यमिता सामाजिक निर्णयन का वह स्वरूपं है, जो आर्थिक नवप्रर्वतकों द्वारा सम्पादित
किया जाता है !”
उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने से स्पष्ट है कि वर्तमान में उद्यमिता से आशय । व्यवसाय में विभिन्न जोखिमों को
वहन करने, लाभप्रद साहसिक निर्णय लेने, सामाजिक नवप्रवर्तन करने तथा गतिशील नेतृत्व प्रदान करने, व्यूह
रचनात्मक योग्यता को दर्शाने तथा अवसरों का श्रेष्ठ या अर्थपूर्ण उपयोग करने की क्रिया है ।
(1) नवप्रवर्तन करने की योग्यता (Ability to Innovote)-नवप्रवर्तन नये-नये कार्य करने की प्रक्रिया है,
जिसके द्वारा सृजनशील विचारों को क्रियान्वित किया जा सकता है । उद्यमी | उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के
अनुसार उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तन करता है, उसमें नवीनता लाता है। पीटर एफ० ड्र कर के अनुसार, “नवप्रवर्तन
उद्यमिता का विशेष उपकरण है।”
(2) जोखिम वहन करना. (Risk Bearing)-व्यवसाय एवं उद्योग की स्थापना में जोखिम वहन करने की क्षमता
ही उद्यमिता है और जो व्यक्ति जोखिम वहन करता है, उसे उद्यमी कहा जाता है। इस प्रकार उद्यमिता में व्यवसाय व
उद्योग की भावी अनिश्चितताओं का । सामना करने व जोखिम उठाने की भावना निहित होती है।
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(3) व्यवसाया अभिमुखी (Business Oriented)- उद्यमिता व्यक्ति को उद्यमी बनाने व किसी उपक्रम को
स्थापित करने की प्रेरणा देती है। इससे समाज में नये-नये उद्योग-धन्धों को स्थापना होती है। ड्र कर ने कहा है:
“उद्यमिता के पूर्व प्रत्येक संयंत्र एक कचरा तथा प्रत्येक खनिज मात्र एक चट्टान है ।” उद्यमिता के द्वारा ही व्यवसायिक
सृजनशीलता आती है और देश में उद्योग-धन्धों का विकास होता है।
(4) सृजनात्मक क्रिया (Creative Activity)-उद्यमिता व्यक्ति को नवीन अवसरों की खोज करने, निरन्तर
रचनात्मक चिन्तन करने व नवीन विचारों को क्रियान्वित करने की प्रेरणा दती है। इसीलिए शुम्पीटर ने कहा है
“उद्यमिता वस्तुतः एक सृजनात्मक क्रिया (Creative Activity) है।” उद्यमिता के कारण ही देश में पूँजी निर्माण व
अन्य रचनात्मक कार्य सतत् । रूप से चलते रहते हैं।
(5) व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया उद्यमिता के वल व्यवसाय या उद्योग के प्रवर्तन अथवा नवप्रवर्तन की क्रिया मात्र न
होकर व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया है । कोई व्यक्ति मात्र नवप्रवर्तन को अपनाने से ही उद्यमी नहीं बन जाता बल्कि
उसमें निरन्तर क्रियाशील रहकर कु छ नया करने की अभिलाषा होती है, जो उसे एक अलग पहचान देती है। पारीक
एवं नाडकर्णी के शब्दों में, “उद्यमिता के वल किसी नये कार्य अथवा व्यवहार को अपनाना ही नहीं बल्कि एक व्यक्ति के
व्यक्तित्व का रूपान्तरण है। इसके द्वारा व्यक्ति एक नई पहचान स्थापित करता है।”
(6) उद्यमिता स्वाभाविक नहीं, बल्कि एक अर्जित कार्य है-उद्यमिता व्यक्ति का स्वाभाविक गुण नहीं है बल्कि वह
अपनी लगन कार्य करने की क्षमता, नवीन सोच और कु छ करने की अभिलाषा उसे साहसी या उद्यमी बनाती है। अत:
यह सत्य है कि उद्यमिता स्वभाविक नहीं बल्कि अर्जित कार्य है । ड्र कर के शब्दों में “साहसिक व्यवसाय उद्यमिता को
एक कर्त्तव्य मानते हैं। वे इसके प्रति अनुशासित होते हैं, वे इसके लिए प्रयास करते हैं तथा वे इसे व्यवहार में लाते हैं।”
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(7) ज्ञान पर आधारित व्यवहार (Knowledge based behaviour)- उद्यमिता ज्ञान पर आधारित क्रिया है।
जिन व्यक्तियों में पर्याप्त ज्ञान होता है उनमें कु छ कार्य करने की चाहत भी होती है । इस प्रकार व्यक्ति का ज्ञान
उद्यमिता का आधार है। पीटर एफ ड्र कर के शब्दों में “उद्यमिता न एक विज्ञान है, न एक कला है, यह एक व्यवहार है
। ज्ञान इसका आधार है।” साहसी (उद्यमी) अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर उच्च उपलब्धि प्राप्त करता है।
(8) सभी व्यवसायों एवं अर्थव्यवस्थाओं में आवश्यक-व्यवसाय छोटा हो या बड़ा उद्यमिता सभी में आवश्यक होती
है । वस्तुत: यह प्रत्येक व्यवसाय के जीवित रहने एवं विकसित होने के लिए आवश्यक है। राबर्ट ने लिखा है कि, “सभी
समाज अपने ढं ग से उद्योगी होते
(9) वातावरण प्रेरित क्रिया-उद्यमिता वातावरण से प्रभावित एक बाह्य एवं खुली प्रणाली है। उद्यमी हमेशा सामाजिक,
आर्थिक, राजनैतिक एवं भौतिक वातावरण के घटकों को ध्यान में रखकर वस्तुओं का निर्माण करते हैं तथा उनमें
परिवर्तन करने का जोखिम उठाते हैं । जोसेफ शप्पीटर का कथन है कि “उद्यमिता प्रत्येक बाह्य स्थिति का एक
सृजनात्मक प्रत्युत्तर है।”
(10) उद्यमिता के वल व्यक्तिगत लक्षण नहीं बल्कि सामूहिक आचरण है-उद्यमिता व्यक्ति विशेष का मात्र गुण नहीं
बल्कि एक सामूहिक आचरण है । उद्यमिता में नेतृत्व एक व्यक्ति से विशेषज्ञों के एक संगठित समूह में हस्तान्तरित हो
जाता है इसीलिए उद्यमिता को सामूहिक आचरण कहा जाता है।
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(11) एक जीवन शैली-वर्तमान परिवर्तनशील व्यावसायिक जगत में उद्यमिता एक कार्य, व्यवसाय या पेशा ही नहीं
अपितु जीवन को व्यवस्थित रूप से जीने का एक तरीका है। मेरीडिथ व नेल्सन के शब्दों में “एक उद्यमी किसी कार्य या
पेशे को अपनाने से अधिक जीवन की एक शैली है।”
(12) परिणामजनित व्यवहार-उद्यमिता हमेशा परिणामों को महत्व देती है, भाग्य को नहीं । उद्यमी सार्थक
प्रयासों,ठोस योजनाओं, कु शल नेतृत्व,उपयुक्त निर्णयों एवं परिणामजनित अर्जित व्यवहार के द्वारा उपलब्धियाँ प्राप्त
करने पर बल देता है।
(13) प्रबन्ध उद्यमिता का माध्यम है-उद्यमी प्रवृत्तियों के क्रियान्वयन का आधार प्रबन्ध है। प्रबन्ध के द्वारा ही साहसी
व्यवसाय में नये-नये परिवर्तन एवं सुधार लाता है तथा व्यूह रचनात्मक लाभों को प्राप्त करता है। ड्र कर के अनुसार,
“साहसिक प्रबन्धक आज प्रत्येक प्रबन्धक के कार्य का अनिवार्य अंग बन चुका है।”
(14) सार्वभौमिक क्रिया-उद्यमिता एक सार्वभौमिक क्रिया है जो छोटे-बड़े सभी व्यवसायों एवं समाजों में आवश्यक है।
वस्तुतः यह प्रत्येक व्यवसाय के अस्तित्व एवं विकास का आधार है । व्यवसाय का आकार उद्यमिता की भावना में बाधक
नहीं होता है ।
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(15) परिवर्तनों का परिणाम उद्यमिता मात्र आर्थिक घटना ही नहीं बल्कि समाज में होने वाले सामाजिक,
राजनैतिक, वैज्ञानिक व तकनीकी परिवर्तनों का परिणाम भी है। सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं, शिक्षा, विज्ञान,
जनसंख्या, सरकारी नीतियों आदि के कारण व्यक्तियों के दृष्टिकोण व विचार में जो परिवर्तन हो रहे हैं, वह साहसिक
प्रवृत्तियों के परिचायक हैं। ड्र कर के शब्दों में “किसी भी राष्ट्र में साहसिक अर्थव्यवस्था का उदय एक उतनी ही
सांस्कृ तिक एवं मनौवैज्ञानिक घटना है, जितनी कि यह एक आर्थिक अथवा प्रौद्योगिकीय घटना।”
(16) सृजनात्मक क्रिया-उद्यमिता एक सृजनात्मक क्रिया है। मनुष्य अपने चिन्तन के आधार पर नये-नये विचारों का
सृजन करता है। यही विचार उसे भावी अवसरों की खोज करने के लिए प्रेरित करते हैं।
(17) भावी घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगाने की क्षमता-उद्यमिता की सफलता भविष्य में होने वाली घटनाओं
और अनिश्चितताओं के सही पूर्वानुमान पर निर्भर करता है। कोई भी व्यक्ति जोखिम तभी उठाता है, जब उसे उपयुक्त
परिणाम आने के अवसर दिखाई देते हैं। सही पूर्वानुमान करने की योग्यता उद्यमिता का महत्वपूर्ण तत्व है
(18) सिद्धान्त, न कि अन्तर्ज्ञान-उद्यमिता व्यक्ति के अन्तर्ज्ञान या अन्तः प्रेरणा के कारण उत्पन्न होने वाली भावना
मात्र नहीं बल्कि यह निश्चित सिद्धान्तों पर आधारित एक व्यवहार है
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि समाज के बदलते परिवेश में समय के अनुसार चलन तभी सम्भव है जब व्यवसायी
उद्यमी है, वह निरन्तर प्रयत्नशील है, लगनशील है. नई सोच का धनी है तथा कु छ करने की अभिलाषा रखता है तभी
वह बाजार में टिक सके गा। अत: यह स्पष्ट है कि आज वही व्यवसाय प्रगति के पथ पर अग्रसर है, जो उद्यमिता के
वरण को धारण किये हुए है।
वर्तमान बदलते परिवेश में जहाँ नित्य प्रतिदिन उत्पादन तकनीक में परिवर्तन हो रहे हैं, इन परिवर्तनों को अपने
व्यवसाय में समाहित करने, ताकि कु छ नया उत्पादन हो यह उद्यमिता द्वारा ही सम्भव है । यदि आज व्यवसाय व
उद्योग पर एक दृष्टि डालें तो ऐसा अनुभव होता है कि उनके उत्पादन में न के वल निरन्तर सुधार हो रहा है बल्कि
उत्पादन के डिजाइन, पैकिं ग व प्रस्तुतीकरण की शैली में भी निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। यह सब उद्यमी की सोच का
परिणाम है। यही कारण है कि आज प्रत्येक उद्योगपति या व्यवसायी कु छ नया करने के लिए निरन्तर तत्पर व प्रयासरत
रहता है। इसीलिए कहा जाता है कि उद्यमिता एक नवप्रवर्तन का कार्य है। उद्यमिता वह प्रेरणा है जो उद्यमी को निरन्तर
कु छ नवीन कार्य करते रहने और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित करती है।
आर्थिक जगत में होने वाले परिवर्तनों ने व्यवसाय के संगठनकर्ता को मात्र स्वामी ही नहीं बल्कि उपक्रम में कार्यरत
कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करने वाला नेता बना दिया है। उद्यमी स्वामी अपनी नवीन सोच को अपने अधीनस्थ
कर्मचारियों से पूरा कराता है। इसलिए उसका स्थान संस्था के स्वामी के बदले एक नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति के
रूप में विकसित हुआ है। यही उद्यमिता का मूल सार है। इसीलिए कहा जाता है कि उद्यमिता एक स्वामित्व की अपेक्षा
नेतृत्व कार्य है।
यि मि के
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(I) पूँजी के स्वामित्व के आधार पर (On the Basis of Capital Ownership) पूँजी के स्वामित्व के
आधार पर उद्यमिता के निम्न स्वरूप हो सकते हैं
(i) निजी उद्यमिता-जब व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी व्यवसाय का आरम्भ निजी क्षेत्र में करता है और उसकी
जोखिम स्वयं लेते हैं तथा नवप्रवर्तन करते हैं तो यह निजी उद्यमिता कहलाती है। पूँजीवादी देशों जैसे-अमेरिका, ब्रिटेन,
जर्मनी आदि में निजी उद्यमिता के कारण ही तीव्र आर्थिक विकास हुआ है।
(ii) सरकारी अथवा सार्वजनिक उद्यमिता-जब सरकार जनकल्याण की भावना से सार्वजनिक क्षेत्र में व्यावसायिक
उपक्रम स्थापित करती है तथा जोखिम उठाती है तो यह सार्वजनिक उद्यमिता कहलाती है। समाजवादी एवं साम्यवादी
देशों जैसे रूस, चीन आदि में प्राय: उद्यमिता का यही रूप देखने को मिलता है। इन देशों में अधिकांश उद्योग
सार्वजनिक क्षेत्र में ही विकसित किये गये हैं । स्वतन्त्रा के बाद भारत में भी सार्वजनिक उद्यमिता का विस्तार हुआ था।
(iii) संयुक्त उद्यमिता-संयुक्त उद्यमिता निजी स्वामित्व या सार्वजनिक स्वामित्व का मिला-जुला स्वरूप है। संयुक्त
उद्यमिता की दशा में सरकार निजी उद्यमियों और जनता के साथ मिलकर एक निश्चित अनुपात में धन का विनियोजन
करती है। इस उद्यमिता में सरकार (के द्रीय, राज्य अथवा दोनों) की भूमिका प्रमुख होती है। भारत में सन्तुलित आर्थिक
विकास तथा बन्द पड़ी औद्योगिक इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिए संयुक्त उद्यमिता की भूमिका बढ़ रही है।
(iv) सहकारी उद्यमिता-जब कु छ व्यक्ति मिलकर सहकारिता के आधार पर उपक्रम प्रारम्भ करते हैं या नवकरण
करते हैं तो इसे सहकारी उद्यमिता कहते हैं। भारत में डेयरी उद्योग, लघु एवं कु टीर उद्योग, खाद्यान्न, वस्त्र, कृ षि, चीनी
उद्योग आदि सहकारी उद्यमिता के अन्तर्गत स्थापित किये जा रहे हैं।
भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश है। यद्यपि स्वतन्त्रा से पूर्व भारत में निजीउद्यमिता का विकास हुआ किन्तु
स्वतन्त्रता के बाद सार्वजनिक उद्यमिता का युग प्रारम्भ हुआ है और वर्तमान में, संयुक्त एवं सहकारी उद्यमिता भी
विकसित हो रही है।
(2) विकास या परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण के आधार पर (On the Basis of attitude towards
Change or Development)-विकास या परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण के आधार पर व्यावसायिक उद्यमिता के
निम्न दो स्वरूप हो सकते हैं
(i) परम्परागत या विकासात्मक उद्यमिता-जब उपक्रम में परिवर्तनों की गति धीमी होती है, उत्पादन परम्परागत
तरीकों से किया जाता है तथा अनुसन्धान कार्यों पर न्यूनतम व्यय किया जाता है, तो यह परम्परागत या विकासात्मक
उद्यमिता कहलाती है। इसमें उद्यमी विकास की स्वभाविक गति में विश्वास रखते हैं, वे जोखिम कम लेते हैं तथा
नवप्रवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते। भारत में अधिकांश उद्यमियों में ऐसी प्रवृत्ति पायी जाती है।
(ii) आधुनिक या क्रान्तिकारी उद्यमिता-जब उद्यमी उत्पादन की नवीन विधियों को अपनाते हैं, जोखिमपूर्ण योजनाएं
प्रारम्भ करते हैं, नवप्रवर्तन में रुचि लेते हैं तथा तीव्र गति से उपक्रम में विस्तार करते हैं, तो वे आधुनिक या क्रान्तिकारी
उद्यमी कहलाते हैं। रूस, चीन एवं पूर्वी यूरोप के कु छ देशों के औद्योगिक विकास में क्रान्तिकारी उद्यमी की विचारधारा
ने महत्वपूर्ण योगदान किया है। वर्तमान में अधिकांश शिक्षित युवक क्रान्तिकारी उद्यमिता में ही विश्वास रखते हैं।
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(i) के न्द्रीकृ त उद्यमिता-जब आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता के कारण अधिकांश – उपक्रम एक ही क्षेत्र तथा
स्थान पर स्थापित होने की प्रवृत्ति रखते हैं तो यह के न्द्रीकृ त उद्यमिता कहलाती है। कु छ समय के बाद इस क्षेत्र अथवा
स्थान पर उद्योग स्थापित करना लाभप्रद नहीं होता क्योंकि अनेक समस्याएँ जन्म ले चुकी होती हैं।
(ii) विके न्द्रित उद्यमिता-जब उद्यमी देश के विभिन्न क्षेत्रों में उपक्रमों की स्थापना करते हैं तो यह विके न्द्रित उद्यमिता
कहलाती है। अविकसित क्षेत्रों के विकास, रोजगार के साधन, देश के सन्तुलित आर्थिक विकास तथा धन के समान
वितरण की दृष्टि से विके न्द्रित उद्यमिता लाभप्रद है और सरकार भी इसे प्रोत्साहित करती है क्योंकि सरकार का मूल
उद्देश्य देश का सन्तुलित आर्थिक विकास करना तथा सभी क्षेत्रों में रोजगार के साधन उपलब्ध कराना होता है।
विके न्द्रित उद्यमिता समाजवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
(4) आकार के आधार पर (On the Basis of Size)- आकार के आधार पर उद्यमिता निम्न दो प्रकार की
होती है-
(i) वृहत् या दीर्घ उद्यमिता- जब व्यवसाय में अत्यधिक पूँजी विनियोजित होती है,उत्पादन का पैमाना वृहत् होता है,
यन्त्रों व मशीनों का अधिक प्रयोग होता है, अधिक श्रमिक कार्य करते हैं, तब वह दीर्घ या वृहत् उद्यमिता कहलाती है।
भारत में टाटा, बिड़ला, बॉगड,साराभाई आदि दीर्घ उद्यमी श्रेणी में आते हैं। वृहत उद्यमिता एकाधिकारी प्रवृत्तियों को
जन्म देती है ।
(ii) लघु उद्यमिता-जब व्यावसायिक इकाई का आकार छोटा होता है, पूँजी विनियोग अपेक्षाकृ त कम होता है, श्रमिकों
की संख्या कम होती है, तब वह लघु उद्यमिता कहलाती है। उद्यमिता के विकास से तात्पर्य मुख्यतः लघु उद्यमिता के
विकास से ही होता है । लघु उद्यमिता के विकास से देश में ग्रामीण एवं कु टीर उद्योगों का विकास सम्भव होता है ।
(5) अन्य आधार (Other Basis)- उपरोक्त स्वरूप के अतिरिक्त उद्यमिता के कु छ अन्य स्वरूप भी हैं, जो
निम्नलिखित हैं-
(i) शहरी तथा ग्रामीण उद्यमिता जब उद्यमिता का विकास देश के बड़े शहरों जैसे-दिल्ली मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई,
जयपुर, लखनऊ, कानपुर आदि तक सीमित होता है तो इसे शहरी उद्यमिता कहते हैं, इसके विपरीत यदि उद्यमिता
का विकास छोटे-गांवों एवं कस्बों में होता है तो उसे ग्रामीण उद्यमिता कहते हैं। शहरी उद्यमिता के विकास से शहरों में
अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्यायें जैसे-प्रदू षण, भीड़भाड़, गन्दी बस्तियाँ, सामाजिक अपराध बढ़ने लगते हैं
जबकि ग्रामीण उद्यमिता धन के समान वितरण, गरीबी उन्मूलन व गाँवों के आर्थिक विकास का प्रमुख आधार है
(ii) व्यवस्थित उद्यमिता-पीटर एफ० ड्र कर ने सामान्य उद्यमिता की अपेक्षा व्यवस्थित उद्यमिता का वर्णन किया है।
इसमें उद्यमी एक व्यवस्थित अनुसन्धान प्रक्रिया एवं सिद्धान्तों का पालन करते हैं। यह उद्यमिता उद्देश्यपूर्ण,नवप्रवर्तन पर
आधारित होती है। यह नवीन बाजार, नये ग्राहक व नवीन अवसरों की खोज पर बल देती है।
उद्यमिता विकास
(Entrepreneurship Development)
उत्तर -उद्यमिता के विकास से आशय उद्यमियों के विकास तथा उद्यमशील श्रेणी के व्यक्तियों के प्रवाह को प्रोत्साहित
करने की प्रक्रिया से है। सरल शब्दों में, यह व्यक्तियों की उद्यमशील क्षमताओं एवं योग्यताओं को पहचानने, उन्हें
विकसित करने तथा उनके प्रयोग हेतु अधिकतम अवसर उपलब्ध कराने की प्रक्रिया है। प्रो० पारीक एवं नाडकर्णी के
अनुसार, “उद्यमिता के विकास से आशय उद्यमियों के विकास एवं उद्यमशील श्रेणी में व्यक्तियों के प्रवाह को प्रोत्साहित
करना है।”
मि वि को वि ने ले
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(I) व्यक्तिगत घटक (Individual Factors)-व्यक्ति ही उपक्रम विशेष की स्थापना करने का प्रमुख निर्णय
लेता है। व्यक्ति अपने विशिष्ट व्यवहार एवं गुणों के माध्यम से उपक्रम को यह जीवन प्रदान करता है। व्यक्ति की इस
प्रकार की साहसिक भूमिका को निम्न घटक प्रभावित करते हैं
(1) अभिप्रेरणा घटक (Motivational Factors)-उद्यमिता के विकास में अभिप्रेरणा व्यक्ति की आधारभूत एवं
अद्वितीय शक्ति है। इसके अभाव में व्यक्ति साहसिक कार्यों की दिशा में प्रेरित ही नहीं हो पाता है। अभिप्रेरणा व्यक्ति
की आन्तरिक इच्छा एवं शक्ति है, जो कि उसे विशिष्ट लक्ष्य की ओर आकर्षित करने एवं सफलता प्राप्त करने का
उत्साह प्रदान करती है। उद्यमिता के सम्बन्ध में अभिप्रेरणा के निम्नांकित तीन तत्व अधिक महत्वपूर्ण हैं(i) साहसिक
अभिप्रेरणा (ii) प्रभावोत्पादकता एवं (iii) संघर्ष करने की क्षमता।
(2) साहसिक कौशल (Entrepreneurial Skills)- उद्यमी की सफलता के लिए विभिन्न प्रकार के कौशल,
जैसे-तकनीकी-कौशल, प्रबन्धकीय कौशल, मानवीय कौशल आदि की विशेष आवश्यकता होती है। इन्हीं के आधार पर
उद्यमियों के लिए आवश्यक कौशल को विकसित करके उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जा सकता है । इन विभिन्न
प्रकार के कौशलों की विद्यमानता से ही उद्यमी में परियोजना के विकास, उपक्रम का प्रबन्ध एवं उपक्रम के निर्माण के
सम्बन्ध में सृजनात्मक निर्णयन एवं उनके क्रियान्वयन की क्षमता का संचार होता है।
(3) साहसी ज्ञान (Entrepreneurial Knowledge)- उद्यमिता का विकास प्रमुख रूप से उद्यमियों के ज्ञान
पर निर्भर करता है। विभिन्न क्षेत्रों एवं विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी के आधार पर साहसी न के वल
अपने कौशल का प्रभावी उपयोग कर सकता है अपितु उपक्रम की सुदृढ़ व्यूह रचना का निर्माण भी कर सकता है।
उद्यमिता के विकास हेतु उद्यमियों को वातावरण, उद्योग, प्रौद्योगिकी आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करना नितान्त
आवश्यक है।
(II) सामाजिक एवं सांस्कृ तिक घटक (Social and Cultural Factors)-उद्यमिता के विकास में
सामाजिक-सांस्कृ तिक घटकों, जैसे- पारिवारिक पृष्ठभूमि,सामाजिक मूल्य, आदर्श, रीति-रिवाज, व्यक्तिगत परम्पराएँ ,
धार्मिक परम्पराएँ , वैचारिक पद्धतियाँ आदि की विशेष भूमिका होती है। उद्यमी जिन मूल्यों, प्रवृत्तियों एवं व्यवहार का
प्रदर्शन करता है, वह उसके सामाजिक-सांस्कृ तिक वातावरण का ही परिणाम होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति
की आदतों, दृष्टिकोण, चिन्तनशैली, जीवन ढं ग, आकांक्षाओं इत्यादि को विशेष रूप से प्रभावित करती है। सामाजिक
प्रशिक्षण, व्यक्ति के परिवार, स्कू ल-कॉलेज एवं समाज में निरन्तर चलता रहता है। यह सामाजिक प्रशिक्षण ही व्यक्ति
के साहसी गुणों; जैसे-आत्म-निर्भरता, पहलपन, स्वतन्त्रता, चुनौतियों एवं जोखिमों के प्रति स्वीकृ ति, अवसरों का लाभ,
उपलब्धि की इच्छा आदि के विकास में पथ-प्रदर्शक होता है। उद्यमिता के विकास में निम्नांकित दो घटकों का विशेष
प्रभाव पड़ता है-
(i) समाजीकरण
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(III) वातावरणीय घटक (Environmental Factors)- उद्यमिता के विकास में राष्ट्र का आर्थिक, राजनैतिक
एवं तकनीकी वातावरण अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है । उद्यमिता के विकास में राष्ट्र की राजनैतिक प्रणाली, आर्थिक
विकास के प्रति सरकार की निष्ठा, प्रौद्योगिकीय स्तर, राष्ट्रीय साहस, विकास कार्यक्रमों, सरकारी नियमों व कानूनों की
पर्याप्त भूमिका होती है
(IV) सहायता प्रणाली (Support System)– उद्यमिता के विकास के लिए उपलब्ध सहायता प्रणाली; जैसे-बैंक
एवं वित्तीय संस्थाएँ , लघु उद्योग, विकास संस्थान, औद्योगिक विस्तार सेवाएँ , शैक्षणिक संगठन, जिला विकास प्रशासन,
शोध व अनुसंधान संस्थाएँ , परामर्श सेवाएँ आदि, उद्यमिता के विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं । उद्यमी को
उपक्रम की स्थापना एवं संचालन हेतु इन विभिन्न संस्थाओं की सेवाओं की परम आवश्यकता होती है। इनकी स्वच्छ एवं
सुदृढ़ कार्य-प्रणाली उद्यमी के व्यवहार एवं कार्यकु शलता को प्रभावित करती
उपर्युक्त सभी घटक परस्पर एक-दू सरे को प्रभावित करते हैं। व्यक्तिगत एवं सामाजिक-सांस्कृ तिक घटक उद्यमिता के
विकास में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देते हैं. जबकि वातावरण एवं सहायता प्रणाली सम्बन्धी घटक उद्यमिता के विकास
में प्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते हैं।
(1) शुम्पीटर मॉडल (The Schumpter Model)-जोसेफ शुम्पीटर के अनुसार,उद्यमी का मुख्य कार्य व्यवसाय
में नवप्रवर्तनों को प्रारम्भ करना है। शुम्पीटर के अनुसार, उद्यमी का व्यवहार प्रत्येक स्थिति में सृजनात्मक होता है।
उद्यमी कोई तकनीकी व्यक्ति या पूंजीपति नहीं है, बल्कि वह एक ‘नवप्रवर्तन’ है। यद्यपि नवीन परिवर्तनों के द्वारा वह
लाभार्जन की इच्छा भी रखता है तथापि मूल रूप से वह अपनी मनोवैज्ञानिक शक्तियों से ही प्रेरित होता है।
(2) मैक्लीलैंड मॉडल (The McClelland Model)-मैक्लीलैंड ने ‘उपलब्धि की इच्छा’ (Need for
Achievement) को व्यक्ति के उद्यमिता व्यवहार का मुख्य कारण माना है। उनके अनुसार, सर्वोत्तम रहने की भावना
उद्यमिता के विकास का मुख्य आधार है । व्यवसाय के क्षेत्र में नये आयामों को छू ने, उत्तम निष्पादन करने तथा नेतृत्व
की भावना से ही व्यक्ति में उद्यमी होने की क्षमता विकसित होती है। उच्च उपलब्धि के लिए उद्यमी को पर्याप्त
कल्पनापूर्ण व चिन्तनपूर्ण होना आवश्यक है ।
(3) एवरे ट हेगेन का मॉडल (Everett Hagen’s Model)- एवरे ट हेगेन का मत है कि, समाज में किसी
पीड़ित अल्पसमूह (Disadvantaged Minority Group) की सृजनात्मकता ही उद्यमिता का मुख्य स्रोत है। उन्होंने
अपनी विचारधारा का प्रतिपादन जापान के ‘समराई समुदाय’ (Samurai Community) के आधार पर किया था।
परम्परागत रूप से जापान का यह समुदाय अत्यन्त प्रतिष्ठित था। किन्तु बाद में इसे अपनी प्रतिष्ठा गंवानी पड़ी। इस खोई
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हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए यह समुदाय अत्यन्त कर्मठ,सृजनशील एवं शक्तिशाली बन गया था तथा इसने
कई साहसियों को जन्म दिया।
(4) जॉन कु नके ल मॉडल (The John Kunkel Model)- जॉन कु नके ल ने साहस पूर्ति के सम्बन्ध में एक
व्यावहारिक मॉडल प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार उद्यमिता का विकास किसी भी समाज की विगत एवं विद्यमान
सामाजिक संरचना पर निर्भर करता है तथा यह विकास आर्थिक एवं सामाजिक प्रेरणाओं से प्रभावित होता है।
(II) समाजशास्त्रीय मॉडल (Sociological Models)-समाजशास्त्रियों की मान्यता रही हैं कि साहसी क्रियायें
समाज के मूल्यों एवं पदानुक्रम (Status Hierarchy) से प्रभावित होती हैं । समाज में विभिन्न व्यक्तियों की स्थिति,
परम्परा, सांस्कृ तिक मूल्य, समूह गत्यात्मकता आदि घटक उद्यमिता को प्रभावित करते हैं।
(1) फ्रैं क डब्ल्यू० यंग मॉडल (Frank W. Young Model)- फ्रैं क डब्ल्यू. यंग उद्यमिता को वैयक्तिक स्तर पर
स्वीकार नहीं करते हैं। उनका मत है कि व्यक्तियों से नहीं, वरन् ‘साहसी समूह’ से ही साहसी क्रियाओं का विस्तार
सम्भव है, क्योंकि समूह में विशिष्टता के कारण प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है।
(2) मेक्स वेबर मॉडल (The Max Waber Model)-मेक्स वेबर की विचारधारा बतलाती है कि व्यक्ति जिस
धर्म-सम्प्रदाय में जीता है तथा जिन धार्मिक मूल्यों व विश्वासों को स्वीकार करता है, वे उसके व्यावसायिक जीवन, पेशे
तथा साहसिक ऊर्जा व उत्साह को प्रभावित करते हैं। दू सरे शब्दों में, वेबर ने उद्यमियों की उत्पत्ति व सफलता को
समाज की नैतिक मूल्य प्रणालियों (ethical value systems) से सम्बद्ध किया है।
(3) बी० एफ० हॉसलिज की विचारधारा (B.E Hoselitz’a Theory)-बी. एफ. हॉसलिज का विचार है कि
औद्योगिक उद्यमिता का विकास के वल ऐसे समाज में ही सम्भव होता है, जहाँ सामाजिक प्रक्रियायें स्थिर नहीं होती हैं,
जहाँ व्यक्ति के रोजगार के लिए व्यापक विकल्प उपलब्ध होते हैं तथा जो समाज उद्यमशील व्यक्तियों के व्यक्तित्व
विकास को प्रोत्साहित करता है।
(4) कोक्रे न की विचारधारा (Cochran’s Theory)-कोक्रे न ने उद्यमिता के विकास में सांस्कृ तिक मूल्यों,
भूमिका आकांक्षाओं एवं सामाजिक अनुमोदन को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है।
(III) आर्थिक मॉडल (The Economic Model)- आर्थिक मॉडल उद्यमिता के विकास को अनेक प्रेरणाओं
का परिणाम मानते हैं अर्थव्यवस्था एवं बाजार के अन्तर्गत उपलब्ध आर्थिक अवसरों का अधिकतम दोहन करने के लक्ष्य
से व्यक्ति औद्योगिक क्षेत्र में प्रवेश करते हैं । इस सम्बन्ध में मुख्य रूप से पेपनेक एवं हैरिस (Papanek and
Harries) के विचार प्रमुख हैं। उनकी मान्यता है कि आर्थिक लाभ को वास्तविक आय में वृद्धि करने की इच्छा प्रत्येक
समाज में विद्यमान होती है। यही भावना आर्थिक विकास को जन्म देती है
(IV) एकीकृ त मॉडल (The Integrated Models)-उद्यमिता विकास के एकीकृ त मॉडल कई प्रकार के
आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व मनौवैज्ञानिक घटकों पर आधारित हैं। कु छ प्रमुख एकीकृ त विचारधारायें निम्नलिखित
हैं-
(1) टी० वी० राव की विचारधारा (T.V. Rao’s Theory)-टी. वी. राव ने उद्यमिता के विकास के लिए साहसी
मनोवृत्ति (Entrepreneurial Disposition) को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है, किन्तु इसके अतिरिक्त उन्होंने
अवबोधक घटकों, वैयक्तिक संसाधनों तथा भौतिक संसाधनों को भी व्यवहार की स्थापना के लिए आवश्यक बताया है।
(2) बी० एस० वेंकटराव की विचारधारा (B.S. Vankata Rao’s Theory)-श्री वेंकटराव ने उद्यमिता के
विकास की निम्नलिखित पांच अवस्थाओं का वर्णन किया है(i) उत्प्रेरणा (Stimulation) (ii) पहचान
(Identification) (iii) विकास (Development) (iv) संवर्धन (Promotion) (v) अनुवर्तन (Follow up)
आदि ।
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उद्यमिता की प्रवर्तन अवधारणा का प्रतिपादन 1934 में शुम्पीटर द्वारा किया गया उन्होंने उद्यमिता को वातावरण
सृजनात्मक एवं नवप्रवर्तनशील घटक माना है। व्यवसाय एवं उद्योग में कच्ची सामग्री के नवीन स्रोतों, नवीन वस्तुओं,
नवीन उत्पादन विधियों, नवीन पद्धतियों, नवीन अवसरों की खोज ही उद्यमिता की नव प्रवर्तन अवधारणा का मूल तत्व
है । शुम्पीटर के अनुसार “एक गतिशील अर्थव्यवस्था में उद्यमी वह व्यक्ति अथवा व्यक्ति-समूह है जो आर्थिक व्यवस्था
में नवप्रवर्तन का कार्य करता है।” विकासशील एवं विकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमिता की नवप्रवर्तन अवधारणा का
स्वरूप दिखायी देता है.क्योंकि विकास की गति व्यवसाय में किए जाने वाले नवीन परिवर्तनों, नवीन सुधारों एवं
नवविचारों पर ही निर्भर करती है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया में नवप्रवर्तन उद्यमिता का प्रेरक घटक हैतथा उद्यमी
एक स्वप्नद्रष्टा है।
मैक्लीलैण्ड ने उद्यमिता को व्यक्ति का आकस्मिक व्यवहार (Casual behaviour) मानकर इसे मनोवैज्ञानिक प्रेरणा
माना है। यह मनोवैज्ञानिक प्रेरणा व्यक्ति में नैसर्गिक रूप से विद्यमान होती है। व्यक्ति उच्च उपलब्धियों के लिए प्रेरित
होता है तथा महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु सार्थक प्रयास करता है।
(ब) अनिश्चितता में त्वरित एवं विवेकपूर्ण निर्णय लेना। इस अवधारणा के अनुसार उच्च उपलब्धि प्राप्त करना ही
उद्यमिता है, जिसके लिए
उद्यमिता की संगठन व समन्वय आवधारणा परम्परागत विचार है। इस अवधारणा के अनुसार उद्यमी को संगठनकर्ता
(Organiser) के रूप में जाना जाता है। उद्यमी अथवा संगठनकर्ता उत्पादन के विभिन्न उपादानों का संयोजन कर नई
उपयोगी वस्तु अथवा सेवा का सृजन करता है। इसलिए प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री प्रो० जे० बी० ने कहा है “उद्यमिता वह
आर्थिक घटक है, जो उत्पादन के विभिन्न साधनों को संगठित करता है।” इसी प्रकार फ्रे डरिक हारबिसन (Fredric
Harbison) ने संगठन निर्माण योग्यता को औद्योगिक विकास का महत्वपूर्ण आधार माना है। उनके अनुसार,
“उद्यमिता उपक्रम के संसाधनों को विकसित करने, मानवीय क्षमता का विकास करने एवं नए विचारों को समन्वित
करने का गुण है।” प्रो० मार्शल के अनुसार उद्यमी तथा पूंजीपति के मध्य अन्तर होता है । उद्यमी एक अच्छा नेता
(Leader) होता है। वह कु शल प्रशासन, नेतृत्व, प्रशासन क्षमता एवं सृजनात्मकता के द्वारा ही उद्यमी संगठन का
निर्माण एवं क्रियाओं का समन्वय करता है ।
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इस अवधारणा के अनुसार उद्यमिता एक वैयक्तिक योग्यता नहीं बल्कि सामाजिक एकात्मकता के लिए की जाने वाली
प्रतिक्रियात्मक क्षमता है। एफडब्ल्यू० यंग के अनुसार, “उद्यमिता व्यक्तिगत न होकर सामूहिक स्तर पर उत्पन्न
प्रतिक्रियाशीलता’ है, जो समाज के
प्रतिक्रियावादी समूहों के कारण उत्पन्न होती है। महिलाओं, नवयुवकों, उपभोक्ताओं पर्यावरणवादियों एवं व्यवसायियों के
द्वारा सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से व्यक्त एवं प्रकट की गई प्रतिक्रियाशीलता एवं विभेदीकरण ही उद्यमिता की
अवधारणा है। उक्त अवधारणाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि उद्यमिता आर्थिक अवसरों एवं प्रेरणाओं का
परिणाम होने के साथ-साथ सामाजिक मनोवैज्ञानिक क्रिया है। उद्यमिता को अवधारणा को निम्न चार्ट द्वारा स्पष्ट किया
जा सकता है।
image 13
प्रोजे०एस० मिल० ने उद्यमिता को निरीक्षण (Supervision), नियन्त्रण (Control) एवं निर्देशन (Direction) की
योग्यता माना है। इसी प्रकार होसलिज (Hoselitz) ने प्रबन्धकीय कौशल को उद्यमिता का महत्वपूर्ण तत्व माना है।
उद्यमिता की प्रबन्धकीय अवधारणा के अनुसार उद्यमी को प्रबन्धकीय कार्यों का कौशलपूर्ण ढं ग से सम्पादन करना
पड़ता है। इस सन्दर्भ में एच०एन० पाठक ने कहा है कि “उद्यमिता उन व्यापक क्षेत्रों को सम्मिलित करती है जिनके
सन्दर्भ में अनेक निर्णय लेने होते हैं।” इन निर्णयों को प्रमुख रूप से तीन वर्ग में बांटा गया है:
(3) औद्योगिक इकाई को एक लाभप्रद, गतिशील एवं विकासशील संस्था के रूप में संचालित करना।
उत्तर-“उद्यमिता जोखिम उठाने की इच्छा, आय एवं प्रतिष्ठा की चाह तथा स्वअभिव्यक्ति, सृजनात्मक एवं स्वतन्त्रता की
अभिलाषा का मिश्रण है। यह दांव लगाने की भावना का उत्साह तथा सम्भवतः सूक्ष्म मनौवैज्ञानिक तत्व है।”
(1) आर्थिक मॉडल, (2) समाजशास्त्रीय मॉडल, (3) मनोवैज्ञानिक मॉडल,(4) एकीकृ त मॉडल।
उत्तर-आधुनिक युग में विशेषकर विकसित देशों में उद्यमिता एक पेशे के रूप में विकसित हो रही है। अब यह
भावन्यता विकसित हो रही है कि प्रबन्धक योग्यताओं एवं कौशल की भाँति, उद्यमिता योग्यताओं को शिक्षण एवं
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प्रशिक्षण द्वारा विकसित किया जा सकता है । विकासशील देशों में व्यक्तियों में से उद्यमशील प्रवृत्तियाँ जाग्रत करने के
लिए विभिन्न क्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
उत्तर-उद्यमिता मूल्य से आशय उन आदर्शों से है जिन्हें प्राप्त करने के लिए उद्यमी को प्रयास करने चाहिए। ये मूल्य
निम्न प्रकार हैं
(a) समाज को अच्छी से अच्छी वस्तुएँ एवम् सेवायें उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना।
(d) अपने यहाँ कार्य करने वाले कर्मचारियों एवम् अधिकारियों को उचित वेतन एवम् सुविधायें उपलब्ध कराना।
(e) देश में प्रचलित सभी नियमों एवम् समाज में प्रचलित सभी मान्यताओं का पालन करना।
उत्तर-उद्यमिता अभिप्रेरणा से आशय उन सभी तत्वों से है जो उद्यमिता के विकास को प्रेरित करते हैं। इनमें से कु छ
प्रमुख तत्व निम्न प्रकार हैं-(i) पारिवारिक पृष्ठभूमि, (ii) व्यक्तिगत गुण एवं रुचि, (iii) शिक्षा एवं प्रशिक्षण, (iv) बाजार
की आवश्यकता, (v) सरकार द्वारा कु छ विशेष क्षेत्रों अथवा उद्योगों के लिए छू ट की घोषणा ।
उत्तर-व्यवहार में, जब हम किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए कु छ कार्य करते हैं तो यह कहा जाता है
कि हम उसे प्रशिक्षित कर रहे हैं। इस प्रकार परिभाषा के रूप में किसी विशिष्ट कार्य को विशिष्ट ढं ग से सम्पन्न करने
की कला,ज्ञान एवं कौशल का अभिप्राय शिक्षण ही प्रशिक्षण है। इसकी महत्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे दी गयी हैं-
जूसियस के अनुसार, “प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशिष्ट कार्यों के सम्पादन हेतु कर्मचारियों की
अभिवृत्तियों, निपुणताओं एवं योग्यताओं में अभिवृद्धि की जाती है।” फिलिप्पों के शब्दों में, “प्रशिक्षण किसी विशेष कार्य
को करने हेतु एक कर्मचारी के ज्ञान एवं कौशल में अभिवृद्धि करने की एक क्रिया है।”
उत्तर-आर्थिक, व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र अनिश्चितताओं एवं जोखिम से पूर्ण है।
जोखिम उठाने की इच्छा, योग्यता तथा अनिश्चितता के विरुद्ध सफलता की सम्भावना प्रदान करने की शक्ति ही
उद्यमिता की जोखिम अवधारणा है।
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प्रश्न 9. उद्यमिता के वल व्यक्तिगत लक्षण नहीं बल्कि सामूहिक आचरण है। समझाइये।
उत्तर- उद्यमिता व्यक्तित्व का मात्र गुण नहीं बल्कि एक सामूहिक आचरण है। उद्यमिता में नेतृत्व एक व्यक्ति से
विशेषज्ञों के एक संगठित समूह में हस्तान्तरित होता है। आधुनिक युग में उद्यमी के साथ ही बहुउद्यमी, संयुक्त उद्यमी
अथवा समूह उद्यमी की धारणा ही अधिक व्यावहारिक है। इसलिए उद्यमिता को सामूहिक आचरण कहा जाता है। इसमें
विनियोजक, प्रवर्तक, पूंजीपति, आविष्कारक, प्रबन्धक समूह में उद्यमी प्रवृत्तियों का आचरण कहते हैं।
उत्तर-उद्यमिता को विकसित करने की दिशा में नवीनतम कदम विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना हैं । के न्द्र सरकार की
अनुमति प्राप्त करके राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में ऐसे क्षेत्र स्थापित किए हैं या स्थापित करने की घोषणा की
है जिनमें विशिष्ट औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित की जायेंगी। इन क्षेत्रों के लिए सस्ते मूल्य पर भूमि आबंटित की गई है
तथा अनेक अन्य सुविधाओं की घोषणा की गई है। आशा है कि इन क्षेत्रों से देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास को
एक नई दिशा मिलेगी तथा निर्यातों में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।
प्रश्न 11. उद्यमी की सफलता को प्रभावित करने वाले प्रमुख तीन घटक कौन से हैं?
(2) साहसी की भूमिका के सम्बन्ध में अनुमोदन समूहों द्वारा रखी जाने वाली आकांक्षाएँ
प्रश्न 12. उद्यमिता के विकास में आने वाली प्रमुख बाधाएँ कौन-सी है ?
(1) सक्षम अवधारणा का अभाव, (2) बाजार परिचितता का आभाव, (3) व्यावसायिक ज्ञान का अभाव, (4)
टेक्नीकल चातुर्य का अभाव,(5) जॉब्स का न होना ,(6) आत्म-सन्तुष्टि, अभिप्रेरणा का न होना, (7) कानूनी बाधाएँ ,
(8) एकाधिकार संरक्षणवाद, (9) समय दबाव, दू सरी ओर ध्यान होना , (10) पेटेण्ट सम्बन्धी बाधाएँ ।
उत्तर-किसी भी छोटे या बड़े सभी प्रकार के उद्यमों में निम्न पाँच तत्व पाये जाते हैं-
प्रश्न 14. उद्यमिता विकास प्रशिक्षण के लाभ बताइये। उत्तर-प्रशिक्षण उद्यमिता विकास के लिये निम्न प्रकार
उपयोगी है-
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