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गाँव

मेरा मधुमय है वातावरण, शिक्षित हो रहे है सभी अब,


धरा का हरित श्रंगार है। पर सुशिक्षित होना है बाकी।
गान सुमधुर है पक्षियो का, समरसता भी अब घट रही है,
सारा जीवन ही गुलजार है।। हृदय पट खुलना है बाकी॥

वृक्ष है फलो से आच्छादित, नशाखोरी चरम बिन्दु पर है,


मिलती ताजी बयार है। नाश करते है बहुमूल्य जीवन।
जीवों का है यहा पर बसेरा, द्यूत क्रीड़ा मे संलिप्त रहकर,
स्वच्छंद करते विहार है।। नष्ट करते कमाया हुआ धन॥

परिश्रम के परिमाण को, मेरी गलियों मे सन्नाटे है,


कृ षक करते चरितार्थ है। न कोई यहा पर कौतूहल।
उपजाते है अन्नदाने, बेरोजगारी के इस दौर मे,
सारा जीवन ही परमार्थ है।। दूर शहरो मे खो रहा यौवन॥

रहते है सभी मिलजुल कर, है निवेदन ये मेरा सभी से,


सम्मिलित सारे परिवार है। सहेजो मेरे अस्तित्व को।
बृद्ध देते है अनमोल सीखे, जीवटता रहे पहले जैसी,
मेरा बृद्धों को आभार है॥ बदलो थोड़ा सा व्यक्तित्व को॥

तीज, होली और दीपावली, स्वर्णिम अतीत को संभाले,


आते सारे ही त्योहार है। मै प्यारा सा इक गाँव हूं।
गीत गाते है सब साथ मिलकर, भविष्य को मेरे सवारों,
होती खुशियों की बौछार है॥ मै जीवन की इक छांव हूं॥

बदलते हुए परिवेश मे, ~~~अतुल कु मार


बदला लोगो का व्यवहार है।
बढ़ रहा है द्वेष ईर्ष्या,
षडयंत्रो का अंबार है॥

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