Professional Documents
Culture Documents
Bhaba Valley
Bhaba Valley
भभभभ भ भभभभभ भभ भभ
पाणडेशवर चोटी कटगाव के पिशमोतर मे है िजसके समानानतर काङनाङ चोटी िसथत है । पाणडेशवर की
समुदतल से ऊँचाई लगभग 5800 मीटर है । पाणडेशवर का संबध ं पाणडवो से माना जाता है । यह धािमरक महतव इस
याता को अतयनत िवलकण बना देता है । कटगाव से काङनाङ तक जाने के िलए शागो तथा हौये होते हुए कराबा गाव के
ऊपर िसथत दूिलंग नामक चरागाह की ओर चढना पडता है । कराबा का संबध ं कौरवो के साथ माना जाता है । यदिप
इस संदभर मे ऐितहािसक साकयो का अभाव है । कराबा गाव के ऊपर िसथत दूिलंग मे कैल व रई के वृको से िघरी छोटी -
छोटी समतल रमणीय चरागाहे है । यहा से देखने पर रशनाङ, भुसनािगन व पाणडेशवर के दृशयो के साथ-साथ दुतरङ के
ऊपरी हरे-भरे वनो का सौदयर सदा के िलए आँखो मे बस जाता है । यहा से पाणडेशवर की ओर भी जाया जा सकता है
।
इस केत मे बफर के कौवे, जंगली मुगे व मोनाल की अचानक िदखाई देनेवाली उडाने हर िकसी के धयान को
अपनी ओर आकिषरत करती है । काङनाङ चोटी पर नाग देवता का िनवास माना जाता है । यहा से गगनचुमबी
पाणडेशवर चोटी का दृशय एक अिवसमरणीय घटना बन कर मन -मिसतषक पर अिमट छाप छोड जाता है। यहा से देखने पर
यह चोटी मानो हमे ऊपर चढने का आमंतण देती िदखाई देती है। िजस ओर भी धयान व दृिष जाती है -वनौषिधयो से
सुवािसत पवन व वनो-झरनो के सुनदर दृशय िदखाई देते है । पकृित के इसी बुलावे का अनुभव करते हुए ही तो कदािचत
पंत जी कह उठे होगे:
‘बबबब बब बबबबबबब बब बबबबब, बबबब बबब बबब बबब बबबबबब ब
ब बबबब बबबब बब बबब बबब,बबबबबब बबबब बबबबब बबबब’
काङनाङ से भुसनािगन व पाणडेशवर के मधय यूला की ओर जानेवाला दरा साफ िदखाई देता है । इसे देखने
के िलए दूरबीन की आवशयकता नही पडती । यह दृशय पूवर की ओर का है; पिशम की ओर काङनाङ व पाणडेशवर की
समानानतर शृंखलाएँ है । जहा पर पूवर व पिशम का दरे जैसा भाग खुलता है वही से बफर िपघलने से सुरचो नाला आरमभ
होता है ।
पाणडेशवर को सथानीय लोग ‘पाणडुशर’ या ‘पाणडू की कोठी’ कहते है ।वैसे भािषक दृिष से ‘शार’ शबद
अनय पहाडी बोिलयो मे भी ‘मुणडेर’ के िलए पयुकत होता है । यह चोटी सुरचो नाले के उदगम सथल से लगभग पाच सौ
मीटर ऊँची व ऊपरी सतह पर लगभग पंदह सौ मीटर समतल होने के कारण सचमुच कोठी या मुणडेरनुमा लगती है ।
काङनाङ पाणडेशवर की दिकण िदशा मे िसथत है । इस चोटी तक पहुँचने मे कटगाव से सात घंटे का समय
लग जाता है । यहा से देखने पर लगता है िक हमारी सभी कारोबारी िचंताएँ भी कही दूर उसी तरह छू ट गई है जैसे यहा
पहुँचते-पहुँचते सभी वनसपितया काफी नीचे छू ट जाती है । इस िशखर पर सदैव तेज हवा चलती रहती है , तापमान इतना
कम होता है िक पीने के िलए भी कही नीचे से जमा हुआ पानी लाना पडता है ।
काङनाङ के पिशमोतर छोर से छोताङ नाला िनकलता है । वापसी के िलए यिद जोिखम भरे मागर के
रोमाच की इचछा हो तो इसी नाले से नीचे उतरना चािहए । इसमे पानी अकसर जमा रहता है । इस मागर पर गिमरयो मे भी
पानी जमने के कारण बनी एक से तीन फुट तक मोटी काच जैसी बफर की चादर होती है । िजस पर से जान हथेली पर
रखकर उतरना पडता है । साथ ही िवशालकाय चटानो के ऊपर से पाच से दस फीट तक छलाग लगाकर व पचास से सौ
फीट तक गहरी खडड के साथ-साथ िबना रासते के झािडयो, घास आिद को पकडकर उतरने का जोिखम भी उठाना
पडता है । इस तरह लगभग 6-7 िक.मी. तक ही उतरा जा सकता है । इससे आगे उतरना इसिलए संभव नही है
कयोिक शारङ नामक सथान के नीचे लगभग सौ मीटर सीधी खडी चटान पर एक जल-पपात बन जाता है । यहा पहुँच कर
एक ही िवकलप बचता है िक दाई ओर की छह इंच चौडी वनय जीवो दारा बनाई पगडंडी पर कँटीली झािडयो व घास को
पकडकर चलते हएु एक अनय झरने को पार िकया जाए तथा मुसरङ गाव के ऊपरी वन -केत से आने वाले रासते से समपकर
सथािपत िकया जाए । परनतु यह कायर अतयत ं जोिखम भरा है । मुसरङ से होमते काफनू होते हुए अपने आधार -िशिवर
तक सुगमतापूवरक पहँुचा जा सकता है । काङनाङ से काफनू तक उतरने मे तीन घंटे लग जाते है ।
भभभभभभ भभ भभभभभ
यह मागर एक िदन मे तय नही हो पाता। अतः यायावरी का भरपूर आननद उठाने के िलए राती -िवशाम का
सामान साथ ले जाना चािहए । कटगाव से भाबा नदी पार करके शागो गाव पडता है । यह सुरचो नाले व भाबा के संगम
के पास उतरी छोर पर बसा है। इसका नामकरण संभवतः सुरचो नाले के आधार पर हुआ है । सुरचो नाले के दोनो छोरो
पर पाणडेशवर की तराई से ही छरमा नामक झाडी बहुतायत मे है । िजसे अंगेजी मे ‘बबबब बबबबब’ कहते है । इसी का
नाम सथानीय बोली मे ‘सुरचो’ है । यह वही छरमा नामक गुलम है िजसका पयोग चीनी िचिकतसा पदित मे बहुतायत मे होता
है ।
शागो से पूवर की ओर सुरचो नाला पार करके दुतरंग गाव पडता है । दुतरंग अतयतं ितरछी ढलान पर थोडी
सी सीधी जमीन पर बसा है तथा कुछ वषर पूवर एक बार तो अिगनदेव की भेट भी चढ चुका है । यहा से आगे दा’रे नामक
धार आती है । दा’रे से आगे पगडंडी के सहारे कानगरङ नामक गाव तक जाना पडता है । िफर एक नाला पार करके
कुछ चढाई भोजपतो के पेडो मे से तय करके हम पहुँचते है रशनाङ की अितिवसतृत चरागाह मे । यह केत तब तक हरा -
भरा रहता है तब तक िक नई नवेली बफर आकर यहा के शयामल हिरत तृणो को अपने शुभ सौदयर के िलए खतरा मानकर
जला नही देती ।
रशनाङ मे सदैव तेज हवा बहती रहती है । यहा से सवािधक िचताकषरक दृशय पूवर की ओर िनचार व बरी
के ऊपर की गगनचुमबी पवरत-शृंखलाओं का िदखाई देता है । इस शृंखला मे मन व नयन ऐसे खो जाते है िक उनहे इसमे से
बाहर िनकलने का मागर ही नही िमलता । उतर की ओर यूला का िशखर व िकननर-कैलाश पवरत-शृंखला की छिव पाकर
हर कोई इस याता को सफल मान लेता है ।
उतर-पिशम की ओर पाणडेशवर की िदशा मे भुसनािगन चोटी की ओर चढने का जोिखम उठाए िबना यह
याता अधूरी ही है । इस चोटी पर चढते समय सामने के कुछ दृशय अिधक सपषट हो जाते है । िनचार साफ िदखाई देने
लगता है और साथ ही वहा का पिसद ऊषा देवी का मंिदर भी । ऊषा का धयान आते ही दिकण -पूवर की ओर तराणडा के
ऊपर से सराहन के िशखरो की ओर दृिष चली जाती है। िजससे धयान उन पौरािणक घटनाओं की ओर चला जाता है जब
ऊषा व पदुमन के पुत अिनरद ने पयार िकया था । पयार की यह देवी ऐसी सुरमय वािदयो मे बसी है जहा पहुँचकर िकसी
को भी पकृित-बाला के पेम-आमंतण को असवीकार करना असंभव हो जाता है । सराहन ऊषा के िपता बाणासुर की
राजधानी शोिणतपुर रहा है । कया सचमुच इनही डरावने और िनजरन पवरत-िशखरो तथा आसपास के अितिवसतृत वनसपित-
िवहीन भूखणड पर शीकृषण और बाणासुर का संगाम हुआ था ? इस उजडे हुए से िदखनेवाले केत को देखकर कम से कम
आज तो ऐसा ही लगता है । वही युद िजसके पिरणामसवरप दो चाहने वाले एक-दूसरे को िमल पाए थे । भुसनािगन की
चढाई मे इनही खयालो मे डू बते-उतराते हम चोटी तक पहुँच जाते है ।
पाणडेशवर व भुसनािगन के मधय यूला की ओर जानेवाले दरे के मधय उतरने के िलए पिशमोतर ढलान का
सहारा लेना पडता है । इस उतराई मे चोटी से थोडा सा नीचे की ओर लगभग दो सौ मीटर वयास का पाच सौ मीटर गहरा
गडढा आता है । यह िगलास के पैदे की तरह गोल है तथा पिशम को छोडकर तीनो ओर से बंद है । गडढे की दाई तरफ
से छोटे-बडे पतथरो के मधय िघसट-िघसट कर इस दरे मे उतरा जा सकता है । यह काफी किठन व रोमहषरक कायर है ।
दो चोिटयो के मधय इस िवलकण दरे मे तेज हवा के चलते रहने के कारण सदैव साय-साय की धविन गूँजती रहती है ।
गिमरयो और बरसात के कुछेक महीनो को छोडकर ऊपर विणरत गडढे जैसे सथान व इस दरे मे बफर जमी रहती है ।
इस सथान की संरकक बन जहा पाणडेशवर की चोटी खडी है , वही पिशम मे भाबा दरे की ओर से
समानानतर आने वाली काङनाङ व पाणडेशवर की पवरत-शृंखलाएँ है । यह दरा दिकण की ओर खुलता है । इसके पूवर व
पिशम से बफर िपघलने के कारण िनकलने वाले जलसोत लगभग एक िक.मी. नीचे आकर िमलकर सुरचो नाले का रप ले
लेते है। िजस सथान पर इन सोतो का नाम ‘सुरचो’ पडता है वहा तक दरे से उतरने के िलए पूवी छोर से अतयत ं जोिखम-
भरा मागर अपनाना पडता है । यहा पर छोटी -छोटी झािडया, तालीसपत व भोजपत आिद के बौने वृक िमलने आरमभ हो
जाते है । आगे सुरचो-खडड होते हुए सुरचो गाव तक तथा वापस शागो व कटगाव तक का मागर अपेकाकृत सुगम है ।
भाबा-घाटी मे यायावरी के िलए िसतमबर व अकतूबर सबसे अचछे मास है । इन िदनो जहा सवरत हिरयाली
ही हिरयाली नजर आती है व रंग-िबरंगे फूल पदे-पदे हमारा सवागत करते है; वही घािटयो मे बफर भी नही होती । वैसे बफर
पर भी इन केतो मे घुमककडी का एक िवलकण आननद है ।
भाबा-घाटी के पाकृितक सौदयर का जो भी वणरन यहा िकया गया है, वसतुतः वह अधूरा ही कहा जाएगा।
ऐसे िकसी भी वणरन को भाषा की सीमाओं को देखते हुए ‘िचताधार’ मे जयशंकर पसाद के िनमन कथनानुसार पकृित को
नमन करते हुए समापत करना पडता है:
‘बबबबबबब बबबबबबब
बबबबबबब बबबब बब बब बबबबबब
बबबब बब..... (बबबब) बबब बबबबब बबब बब बबबबब बबबब
बब बबबबब
बबबबब बब बबब बब बबबबबबबब बबबब बब ब
बब बबबबबबब बबबब! बबबबब बबबबबबब बब ब बबबबबबबब
बबब बबबबबब बब..... बबबब बबबबबबब, बबबब बबबबब
बबब, बबबबब बबबबबबब बब बबबबबबबब बबब बबबबबबबबब
बबब बबबबबबबबबब बबबब बब; बबबबब बबबबब बबबबब
बबबब बब बबब
बबबबबब बब बबबबबबब ब बबबबबब बब बब
बबबब बबबब ब’
$$?