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भभभभ-भभभभ भभभ भभभभभभभ

‘बबबब बबबबबब बबबबबब बबब बबब बबबबब बबबब


बबबबबबब बब बबब बबबबब बबब बबबबबब.......
बबबबब बब बबब बबबबब बबबब बब बबबबब बब बबबबबबब बबबबब
बबब बब‍ बबबब‍बब बब बबब बब बबब बबबबबब बबबब बबब......
..... बबबब
बबबबब बब बबब ‍ बबबबब बबबब बबब‍बबबब बब बबबबब
बबब बबब बबब बबबब
बबबबब बब बबब बब बबब;
बबबब बब बबब बबब बब, बबबबब, बबबबब बबबब
बबब बब बब.....’
िवजयदेव नारायण साही की किवता की ये पंिकतया िकसी अन‍य केत के बारे मे सही ठहरती हो या नही ,
परन‍तु िहमाचल पदेश के जनजतीय िजले िकन‍नौर के अनुपम सौदयर से अवश‍य मेल खाती है । िकन‍नौर मे भाबा-घाटी का
िवशेष महत‍व है । केवल इसिलए नही िक यहा बहने वाली भाबा नदी के जल को रोक कर ही 120 मैगावाट कमता की
संजय िवदुत पिरयोजना का िनमाण िकया गया है; बिलक इसिलए भी िक यहा की नैसिगरक सुषमा अिदतीय है। वागतू के
पास सतलुज नदी पार करके भाबा पिरयोजना के भूिमगत िवदुतगृह के पास रारङ से भाबा -घाटी की सीमा आरम‍भ होती है
। िपन-घाटी के िलए जाने वाले भाबा-दरे के िनचले केतो से आरम‍भ होकर वागतू के पास सतलुज मे िमलने वाली भाबा नदी
के दोनो ओर 10 से 12 हजार फीट तक की ऊँची चोिटया है । ये चोिटया पायः बफर से ढकी रहती है । भाबा दरे के
आसपास से आरम‍भ होकर पाण‍डेश‍वर तक फैली बफर की शुभ-चादर भाबा नदी को जीवनदायी जल उपलब‍ध कराती है ।
वागतू से पंदह िक.मी. की दूरी पर िसथत है भाबा-घाटी का केन‍दीय स‍थल कटगाव। वागतू से आगे शुष‍क
और थकाने वाले मागर मे कई बार तो मन उदास होने लगता है,परन‍तु शेरपा-बस‍ती से थोडा-सा आगे जैसे ही सडक एक
बडा-सा मोड लेती है दोनो ओर के संकरे पहाडो और चटानो के मध‍य से सामने हरे -भरे बागो और वनो से िघरा एक सुरम‍य
गाव िदखाई देता है । यह सारा दृश‍य एक सुन‍दर िचत की तरह लगता है । महेश‍वर मंिदर के िलए पूरे िकन‍नौर मे पिसद
इसी गाव का नाम है-कटगाव। यह भिल-भाित सडक सुिवधा से सम‍बद है । इसके अितिरक‍त यहा पर िह.प. िवदुत
पिरषद का िवशाम गृह तथा दूरभाष, डाकघर, पाथिमक स‍वास‍थ‍य केनद‍ आिद अन‍य सुिवधाएँ भी है । यहा दैिनक
आवश‍यकता की सभी वस‍तुएँ सुगमता से उपलब‍ध हो जाती है । कटगाव पहुँचने पर हम स‍वयं को एक िवलकण लोक मे पाते
है ।
भाबा-घाटी मे यायावरी के िलए कटगाव को ही आधार -िशिवर के रप मे चुनना सबसे अच‍छा रहता है ।
वैसे िवशेष पिरिसथितयो मे यहा से चार िक.मी. की दूरी पर सडक के साथ बसे काफनू को भी रहने के िलए चुना जा
सकता है । काफनू मे भाबा पिरयोजना की िवशाल झील है । यहा पर िनिज िवशाम-गृह की सुिवधा भी उपलब‍ध है ।
िजस पकार िकन‍नौर की याता को देवलोक की याता कहने वाले राहुल साकृत‍यायन ने कहा था िक पाठको
को उनकी याता पर संदेह हो सकता है; उसी पकार शायद कुछ लोग यहा िदए जा रहे िववरण पर भी संदेह कर सकते है
। परन‍तु आपको इतना िवश‍वास तो करना ही पडेगा िक यहा विणरत चारो टैिकंग मागों पर यायावरी करने हेतु उतरने पर
आपको यहा िदए गए वणरन से अिधक मोहक बहुत कुछ िमलेगा।

भभभभभभ-‍ ‍ भभ‍भभभ‍ ‍ भ‍ -भभभ


कटगाव पहुँचने पर यिद इस घाटी के सुरम‍य स‍थानो के बारे मे चचा की जाए तो सबसे पहले जो स‍थान
पत‍येक व‍यिकत की जुबान पर आते है वे है- मूिलंग व कारा ।
काफनू से होमती की ओर जानेवाली पथरीली कच‍ची सडक पर मोरानुङ नाले के उतरी िकनारे पर िसथत
उदान िवभाग का सुरम‍य बगीचा तथा आस-पास की समतल वािदयो मे सेब के बाग देखते ही बनते है । इन बागो के
लाल-लाल सेबो को देखकर िकसी की भी लार टपकने लगती है । भाबा नदी पर बने लकडी के पुल को पार करके
मुसरङ की ढलानदार पगडंडी पर ितरछे-ितरछे चलते हएु अखरोटो के झुरमुट के मध‍य पहुँच कर रास‍ता ऊपर चढना
आरम‍भ हो जाता है । इस स‍थान से थोडा सा चढने के बाद होमती नामक स‍थान आता है । यहा पर कुछ जजरर से मकान
तथा उजडे हुए से खेत देखने को िमलते है ।
होमती के सौदयर को शब‍दो के माध‍यम से वणरन कर पाना असंभव ही है । सामने मोरानुङ के चटानी िशखरो
से बफर नीचे सरक-सरक कर भाबा नदी को अवरद कर देती है । और, इस ग‍लेिशयर के कारण उस नदी पर बनता है
बफर का पुल । होमती से आगे मूिलंग तक के मागर मे कम से कम पाच स‍थानो पर ऐसे बफर के पुल पायः बनते है , जो िक
कई बार तो तीन मास तक भी नही गल पाते । पहला पुल मुसरङ और होमती के मध‍य , दूसरा होमती के नीचे, तीसरा
चोखापानी के कुछ पीछे तथा सबसे बडा पुल चोखापानी के नाचे बनता है । इन पुलो की मोटाई को देखते हुए स‍थानीय
लोग इन पर नदी के आर-पार भी जाते है ।
होमती के आस-पास देवदार, रई तोस व खनोर के घने वन सहसा ही िवशाम करने को बाध‍य करते है ।
यहा पर सुरम‍य वृको के अितिरक‍त िदव‍य वनौषिधयो की भरमार भी पाई जाती है । शालमपंजा , धूप, थुनेर, अतीस,
महामेदा तथा अष‍टवगर की अन‍य अनेक वनौषिधया यहा पचुरता मे है ।
कुछ ही िमनटो की याता के बाद चोखापानी नामक जलसोत से मूिलंग की छोटी-छोटी रमणीय घािटया
िदखाई देने लगती है । चोखापानी के पास मटमैली बफर से बने पुल से भाबा नदी लगभग पाच सौ मीटर तक ढकी रहती है
। संभवतः िकन‍नौर की िकसी भी नदी पर
बननेवाला यह सबसे बडा बफर का पुल होता है । यदिप यहा तक की याता मे भी कटगाव से दो घंटे लग जाते है और
थकान महसूस होने लगती है; परन‍तु मूिलंग की एक झलक मात से मन नए उत‍साह से भर कर सारी थकान भूल जाता है
। यहा से आगे की लगभग चार िक.मी. की याता भाबा नदी के तट के साथ-साथ घने वनो मे से होकर तय करनी पडती
है । िफर हम पवेश करते है एक छोटी सी घाटी मे । यह देवदार, फर, थुनेर व भोजपत के वृको से आच‍छािदत है ।
यहा पिशम की ओर खडे तंग ढलानदार िशखरो से सटी भाबा नदी कुछ पूवर की ओर सरक गई है । िजसके कारण एक
छोटा-सा दीपनुमा पवरत पिशम की ओर बन गया है । पिरणामस‍वरप यहा भाबा नदी एक लम‍बा मोड लेते हुए काफी गहरी
िदखाई देती है । यहा पर अच‍छी चरागाहे तथा चरवाहो के टू टे-फूटे मकान भी है । पिशम की ओर सटा हुआ छोटा-सा
पवरत मूिलंग के पवेश दार पर िसथत है ।
मूिलंग लगभग दो िक.मी.लम‍बे मैदान मे फैली हुई समतल चरागाह है। िजसके एक ओर भाबा नदी बडे ही
शात भाव से बह रही है । यहा से 6-7 िक.मी. की चढाई तय करके कारा पहुँचा जा सकता है । कारा भाबा घाटी के
अिनतम छोर पर िसथत है जहा से ऊपर चलकर भाबा दरा आता है । इस दरे के माध‍यम से स‍पीित घाटी मे िसथत बलधर
तक टैिकंग मागर है ।
कारा एक सुंदर सुडौल िकन‍नरी युवित की तरह लगता है; िजसका आँचल मूिलंग के रप मे नीचे फैला हुआ
है । इस आँचल मे कढाई की तरह रंग-िबरंगे पुष‍प व मखमली जडी-बूिटया अनुपम दृश‍य पस‍तुत करती है । समूची भाबा
घाटी मे भाबा नदी का शोर सवरत हमारा पीछा करता रहता है । परन‍तु मूिलंग पहुँच कर इन समतल वािदयो मे खोकर वह
भी मानो यह समझ कर िनःशब‍द हो जाता है िक कही िकसी यायावर के एकान‍त मे व‍यवधान न पड जाए। कारा मे बहुत
बडी-बडी चरागाहे है; जहा की स‍वास‍थ‍यवधरक ‘नीर’ घास चरकर भेड-बकिरया व अन‍य पशु िनभरय होकर िवचरण करते
रहते है ।
शीकृषण‍ जन‍माष‍टमी के िदन मूिलंग-कारा मे समूची भाबा-घाटी के लोग इकटे होकर मेला मनाते है ।
पातःकालीन सूयर की िकरणे पडते ही कारा की नैसिगरक सुषमा और भी िनखर उठती है । राती िवशाम कारा मे करके
वािपस आने को शायद ही िकसी का मन करे। परन‍तु इस संसार की िववशताएँ है िक............ ।

भभभभ‍‍ भ‍ भभभ‍भभ भभ भभ
पाण‍डेश‍वर चोटी कटगाव के पिशमोतर मे है िजसके समानान‍तर काङनाङ चोटी िसथत है । पाण‍डेश‍वर की
समुदतल से ऊँचाई लगभग 5800 मीटर है । पाण‍डेश‍वर का संबध ं पाण‍डवो से माना जाता है । यह धािमरक महत‍व इस
याता को अत‍यन‍त िवलकण बना देता है । कटगाव से काङनाङ तक जाने के िलए शागो तथा हौये होते हुए कराबा गाव के
ऊपर िसथत दूिलंग नामक चरागाह की ओर चढना पडता है । कराबा का संबध ं कौरवो के साथ माना जाता है । यदिप
इस संदभर मे ऐितहािसक साक‍यो का अभाव है । कराबा गाव के ऊपर िसथत दूिलंग मे कैल व रई के वृको से िघरी छोटी -
छोटी समतल रमणीय चरागाहे है । यहा से देखने पर रशनाङ, भुसनािगन व पाण‍डेश‍वर के दृश‍यो के साथ-साथ दुतरङ के
ऊपरी हरे-भरे वनो का सौदयर सदा के िलए आँखो मे बस जाता है । यहा से पाण‍डेश‍वर की ओर भी जाया जा सकता है

इस केत मे बफर के कौवे, जंगली मुगे व मोनाल की अचानक िदखाई देनेवाली उडाने हर िकसी के ध‍यान को
अपनी ओर आकिषरत करती है । काङनाङ चोटी पर नाग देवता का िनवास माना जाता है । यहा से गगनचुम‍बी
पाण‍डेश‍वर चोटी का दृश‍य एक अिवस‍मरणीय घटना बन कर मन -मिस‍तष‍क पर अिमट छाप छोड जाता है। यहा से देखने पर
यह चोटी मानो हमे ऊपर चढने का आमंतण देती िदखाई देती है। िजस ओर भी ध‍यान व दृिष जाती है -वनौ‍षिधयो से
सुवािसत पवन व वनो-झरनो के सुन‍दर दृश‍य िदखाई देते है । पकृित के इसी बुलावे का अनुभव करते हुए ही तो कदािचत
पंत जी कह उठे होगे:
‘बबबब बब‍ बबबब‍बबब बब बबबबब, बबबब बबब बबब बबब बबबबबब ब
ब बबबब बबबब बब बबब बबब,बबबबबब बबबब बबबबब बबबब’
काङनाङ से भुसनािगन व पाण‍डेश‍वर के मध‍य यूला की ओर जानेवाला दरा साफ िदखाई देता है । इसे देखने
के ‍ िलए दूरबीन की आवश‍यकता नही पडती । यह दृश‍य पूवर की ओर का है; पिशम की ओर काङनाङ व पाण‍डेश‍वर की
समानान‍तर शृंखलाएँ है । जहा पर पूवर व पिशम का दरे जैसा भाग खुलता है वही से बफर िपघलने से सुरचो नाला आरम‍भ
होता है ।
पाण‍डेश‍वर को स‍थानीय लोग ‘पाण‍डुशर’ या ‘पाण‍डू की कोठी’ कहते है ।वैसे भािषक दृिष से ‘शार’ शब‍द
अन‍य पहाडी बोिलयो मे भी ‘मुण‍डेर’ के िलए पयुक‍त होता है । यह चोटी सुरचो नाले के उदगम स‍थल से लगभग पाच सौ
मीटर ऊँची व ऊपरी सतह पर लगभग पंदह सौ मीटर समतल होने के कारण सचमुच कोठी या मुण‍डेरनुमा लगती है ।
काङनाङ पाण‍डेश‍वर की दिकण िदशा मे िसथत है । इस चोटी तक पहुँचने मे कटगाव से सात घंटे का समय
लग जाता है । यहा से देखने पर लगता है िक हमारी सभी कारोबारी िचंताएँ भी कही दूर उसी तरह छू ट गई है जैसे यहा
पहुँचते-पहुँचते सभी वनस‍पितया काफी नीचे छू ट जाती है । इस िशखर पर सदैव तेज हवा चलती रहती है , तापमान इतना
कम होता है िक पीने के िलए भी कही नीचे से जमा हुआ पानी लाना पडता है ।
काङनाङ के पिशमोतर छोर से छोताङ नाला िनकलता है । वापसी के िलए यिद जोिखम भरे मागर के
रोमाच की इच‍छा हो तो इसी नाले से नीचे उतरना चािहए । इसमे पानी अक‍सर जमा रहता है । इस मागर पर गिमरयो मे भी
पानी जमने के कारण बनी एक से तीन फुट तक मोटी काच जैसी बफर की चादर होती है । िजस पर से जान हथेली पर
रखकर उतरना पडता है । साथ ही िवशालकाय चटानो के ऊपर से पाच से दस फीट तक छलाग लगाकर व पचास से सौ
फीट तक गहरी खडड के साथ-साथ िबना रास‍ते के झािड‍यो, घास आिद को पकडकर उतरने का जोिखम भी उठाना
पडता है । इस तरह लगभग 6-7 िक.मी. तक ही उतरा जा सकता है । इससे आगे उतरना इसिलए संभव नही है
क‍योिक शारङ नामक स‍थान के नीचे लगभग सौ मीटर सीधी खडी चटान पर एक जल-पपात बन जाता है । यहा पहुँच कर
एक ही िवकल‍प बचता है िक दाई ओर की छह इंच चौडी वन‍य जीवो दारा बनाई पगडंडी पर कँटीली झा‍िड‍यो व घास को
पकडकर चलते हएु एक अन‍य झरने को पार िकया जाए तथा मुसरङ गाव के ऊपरी वन -केत से आने वाले रास‍ते से सम‍पकर
स‍थािपत िकया जाए । परन‍तु यह कायर अत‍यत ं जोिखम भरा है । मुसरङ से होमते काफनू होते हुए अपने आधार -िशिवर
तक सुगमतापूवरक पहँुचा जा सकता है । काङनाङ से काफनू तक उतरने मे तीन घंटे लग जाते है ।

भभभभभभभभ भभ भभभभभ भभभभभभभ भभभ


यागोराङ एक चोटी का नाम है, जो िक कटगाव की दिकण-पिशम िदशा मे िसथत है । इसके आसपास
अत‍यतं रमणीय वनकेत है । कटगाव से यागोराङ की ओर जाने के िलए सबसे पहले एक -डेढ घंटे की चढाई तय करके
बई-कण‍डा पहुँचना पडता है । यह बई गाव वालो की चरागाह है । जहा पहुँचकर घने वनो के मध‍य असंख‍य वनौषिधयो से
भरी पडी वािदया हमारा मन मोह लेती है । यहा पर गामवािसयो के पशु चरते रहते है ।
यहा खुले स‍थान पर मखमली घास के गलीचे पर बैठकर पिशमोतर िदशा मे भाबा -दरे का सौदयर छलकता
हुआ नजर आता है, तो पूवर की ओर िनचार की ऊपरी पवरत-शृंखला । पशुओं की उछलकूद के मध‍य कही दूर घने वनो से
आती बंसी की तान हमारा ध‍यान भंग करती है, तो कही यहा की नैसिगरक सुषमा से भी सुंदर सौदयर की सजीव मूितर के
समान ितरछी टोपी पहने पशु चराती िकन‍नरी बालाओं का रप-यौवन िकसी भी यायावर को सहसा रकने के िलए िववश कर
देता है ।
सामने पूवर की ओर सतलुज पार पानवी गाव के ऊपर डुलगी-जोत िदखाई देती है । स‍थानीय लोग ‘जोत’
दरे को कहते है । इस जोत से होते हएु िजला िशमला के रोहडू केत तक पहुँचा जा सकता है । यह पवरत -शृंखला अत‍यत

रमणीय है तथा बरसात को छोडकर वषर के बाकी िदनो मे बफर से पटी रहती है । यही वह केत है जहा 1997 मे बादल
फटने की घटना हुई थी । इस घटना के पिरणामस‍वरप पूवर की ओर चडगाव मे तथा पिशम की ओर वागतू मे भारी तबाही
हुई थी । इस केत मे सन् 2000 मे भी बादल फटने की घटना हुई थी ।
बई-कण‍डा से पिशम की ओर एक सुंदर पगडंडी दारा कटगाव-कण‍डा तक पहुँचा जा सकता है । यह केत
भी हिरयाली का जीता जागता उदाहरण है । यहा से एक छोटा-सा झरना िनकलकर कटगाव की ओर आता है । आसपास
देवदार, थुनेर, रई आिद के घने वृको के मध‍य मोनाल की झलक भी कभी-कभार िमल जाती है । यहा की फैली हुई
ढलानदार घािटयो मे नवम‍बर-िदसम‍बर मे पडी हुई बफर पर स‍कीग करने का अपना ही आनन‍द है । यहा से ऊपर चढकर
यागोराङ की वनस‍पित रिहत चोटी तक पहुँचा जा सकता है । कटगाव से यागोराङ पहुँचने मे पाच घंटे लग जाते है ।
यागोराङ से सतलुज पार बरी-कण‍डा की िचलिचलाती बफर, दिकणी ढलान से नीचे संतरे की फाको की
तरह अजीब से िचत बनाते कण‍ढार के ऊपरी िमिशत -वन तथा दूर घरशू व रपी की मध‍यम ऊँचाई वाली धारो के उस पार
िजला कुल‍लू मे िसथत शीखण‍ड महादेव चोटी की छटा- ये सभी दृश‍य मन व आँखो मे नही समा पाते । िनिशत तौर पर ऐसी
ही िकन‍ही वािदयो मे घुमक‍कड किव नागाजुरन ‘‍ ‍ ‍ ‍-बबबब‍
‍ बबबबबब बब बबबबब बबबबब बबबबबबबबब बब
बबबब बब बबबबब’ देख व ‘बबब बबब बबबब बब बबबबबब बब बबबब बब बबबबब’ देख मंतमुग‍ध हो गए होगे

यागोराङ चोटी के आसपास कुछ नीचे की ओर जहा घने वृको से आच‍छािदत सुरम‍य वन केत एवं चरागाहे है,
वहा कई छोटी-बडी झीले सहज ही हमारा मन मोह लेती है । इन झीलो से उदतू झरनो के साथ-साथ कपूर-कचरी अपने
श‍वेत पुष‍पो के दारा िवलकण छटा िबखेरता कही-कही नजर आ जाता है । यहा भोजपत के वृक बहुतायत मे है । िजनके
मध‍य आगे बढते हएु कई छोटे-छोटे झरनो को पार कर मोरानुङ नामक चोटी तक पहुँचा जा सकता है । यह चोटी काफनू
के ठीक ऊपर िसथत है । इसके तथा यागोराङ के मध‍य एक बहुत गहरी घाटी सी है । िजसमे उतरने के िलए लगभग एक
िक.मी. तक नीचे की ओर चलना पडता है । यह स‍थान हर ओर से एक गडढा सा िदखाई देता है, जो िक वषर के
अिधकाश िहस‍से मे बफर से भरा रहता है । इस गडढे के पूवी छोर पर भोजपत व तोस के वृको के मध‍य एक पंदह -बीस
फीट चौडा समतल स‍थान है । जहा से काफनू मे संजय िवदुत पिरयोजना हेतु भाबा नदी को रोककर बनाई गई झील के
नयनािभराम दृश‍य को देखना नही भूलना चािहए । मोरानुङ नाले के रास‍ते काफनू तक पहुँचा जा सकता है ।

भभभभभभ भभ भभभभभ
यह मागर एक िदन मे तय नही हो पाता। अतः यायावरी का भरपूर आनन‍द उठाने के िलए राती -िवशाम का
सामान साथ ले जाना चािहए । कटगाव से भाबा नदी पार करके शागो गाव पडता है । यह सुरचो नाले व भाबा के संगम
के पास उतरी छोर पर बसा है। इसका नामकरण संभवतः सुरचो नाले के आधार पर हुआ है । सुरचो नाले के दोनो छोरो
पर पाण‍डेश‍वर की तराई से ही छरमा नामक झाडी बहुतायत मे है । िजसे अंगेजी मे ‘बबबब बबबबब’ कहते है । इसी का
नाम स‍थानीय बोली मे ‘सुरचो’ है । यह वही छरमा नामक गुल‍म है िजसका पयोग चीनी िचिकत‍सा पदित मे बहुतायत मे होता
है ।
शागो से पूवर की ओर सुरचो नाला पार करके दुतरंग गाव पडता है । दुतरंग अत‍यतं ितरछी ढलान पर थोडी
सी सीधी जमीन पर बसा है तथा कुछ वषर पूवर एक बार तो अिगनदेव की भेट भी चढ चुका है । यहा से आगे दा’रे नामक
धार आती है । दा’रे से आगे पगडंडी के सहारे कानगरङ नामक गाव तक जाना पडता है । िफर एक नाला पार करके
कुछ चढाई भोजपतो के पेडो मे से तय करके हम पहुँचते है रशनाङ की अितिवस‍तृत चरागाह मे । यह केत तब तक हरा -
भरा रहता है तब तक िक नई नवेली बफर आकर यहा के श‍यामल हिरत तृणो को अपने शुभ सौदयर के िलए खतरा मानकर
जला नही देती ।
रशनाङ मे सदैव तेज हवा बहती रहती है । यहा से सवािधक िचताकषरक दृश‍य पूवर की ओर िनचार व बरी
के ऊपर की गगनचुम‍बी पवरत-शृंखलाओं का िदखाई देता है । इस शृंखला मे मन व नयन ऐसे खो जाते है िक उन‍हे इसमे से
बाहर िनकलने का मागर ही नही िमलता । उतर की ओर यूला का िशखर व िकन‍नर-कैलाश पवरत-शृंखला की छिव पाकर
हर कोई इस याता को सफल मान लेता है ।
उतर-पिशम की ओर पाण‍डेश‍वर की िदशा मे भुसनािगन चोटी की ओर चढने का जोिखम उठाए िबना यह
याता अधूरी ही है । इस चोटी पर चढते समय सामने के कुछ दृश‍य अिधक स‍पष‍ट हो जाते है । िनचार साफ िदखाई देने
लगता है और साथ ही वहा का पिसद ऊषा देवी का मंिदर भी । ऊषा का ध‍यान आते ही दिकण -पूवर की ओर तराण‍डा के
ऊपर से सराहन के िशखरो की ओर दृिष चली जाती है। िजससे ध‍यान उन पौरािणक घटनाओं की ओर चला जाता है जब
ऊषा व पदुम‍न के पुत अिनरद ने प‍यार िकया था । प‍यार की यह देवी ऐसी सुरम‍य वािदयो मे बसी है जहा पहुँचकर िकसी
को भी पकृित-बाला के पेम-आमंतण को अस‍वीकार करना असंभव हो जाता है । सराहन ऊषा के िपता बाणासुर की
राजधानी शोिणतपुर रहा है । क‍या सचमुच इन‍ही डरावने और िनजरन पवरत-िशखरो तथा आसपास के अितिवस‍तृत वनस‍पित-
िवहीन भूखण‍ड पर शीकृष‍ण और बाणासुर का संगाम हुआ था ? इस उजडे हुए से िदखनेवाले केत को देखकर कम से कम
आज तो ऐसा ही लगता है । वही युद िजसके पिरणामस‍वरप दो चाहने वाले एक-दूसरे को िमल पाए थे । भुसनािगन की
चढाई मे इन‍ही ख‍यालो मे डू बते-उतराते हम चोटी तक पहुँच जाते है ।
पाण‍डेश‍वर व भुसनािगन के मध‍य यूला की ओर जानेवाले दरे के मध‍य उतरने के िलए पिशमोतर ढलान का
सहारा लेना पडता है । इस उतराई मे चोटी से थोडा सा नीचे की ओर लगभग दो सौ मीटर व‍यास का पाच सौ मीटर गहरा
गडढा आता है । यह िगलास के पैदे की तरह गोल है तथा पिशम को छोडकर तीनो ओर से बंद है । गडढे की दाई तरफ
से छोटे-बडे पत‍थरो के मध‍य िघसट-िघसट कर इस दरे मे उतरा जा सकता है । यह काफी किठन व रोमहषरक कायर है ।
दो चोिटयो के मध‍य इस िवलकण दरे मे तेज हवा के चलते रहने के कारण सदैव साय-साय की ध‍विन गूँजती रहती है ।
गिमरयो और बरसात के कुछेक महीनो को छोडकर ऊपर विणरत गडढे जैसे स‍थान व इस दरे मे बफर जमी रहती है ।
इस स‍थान की संरकक बन जहा पाण‍डेश‍वर की चोटी खडी है , वही पिशम मे भाबा दरे की ओर से
समानान‍तर आने वाली काङनाङ व पाण‍डेश‍वर की पवरत-शृंखलाएँ है । यह दरा दिकण की ओर खुलता है । इसके पूवर व
पिशम से बफर िपघलने के कारण िनकलने वाले जलसोत लगभग एक िक.मी. नीचे आकर िमलकर सुरचो नाले का रप ले
लेते है। िजस स‍थान पर इन सोतो का नाम ‘सुरचो’ पडता है वहा तक दरे से उतरने के िलए पूवी छोर से अत‍यत ं जोिखम-
भरा मागर अपनाना पडता है । यहा पर छोटी -छोटी झािड‍या, तालीसपत व भोजपत आिद के बौने वृक िमलने आरम‍भ हो
जाते है । आगे सुरचो-खडड होते हुए सुरचो गाव तक तथा वापस शागो व कटगाव तक का मागर अपेकाकृत सुगम है ।
भाबा-घाटी मे यायावरी के िलए िसतम‍बर व अक‍तूबर सबसे अच‍छे मास है । इन िदनो जहा सवरत हिरयाली
ही हिरयाली नजर आती है व रंग-िबरंगे फूल पदे-पदे हमारा स‍वागत करते है; वही घािटयो मे बफर भी नही होती । वैसे बफर
पर भी इन केतो मे घुमक‍कडी का एक िवलकण आनन‍द है ।
भाबा-घाटी के पाकृितक सौदयर का जो भी वणरन यहा िकया गया है, वस‍तुतः वह अधूरा ही कहा जाएगा।
ऐसे िकसी भी वणरन को भाषा की सीमाओं को देखते हुए ‘िचताधार’ मे जयशंकर पसाद के िनम‍न कथनानुसार पकृित को
नमन करते हुए समाप‍त करना पडता है:

‘बबबबबबब बबबबबबब
‍ बबब‍बबबब बबबब बब बब बबबबबब
बबबब बब..... (बबबब) बबब‍‍ बबबबब बबब बब बबबबब बबबब
बब बबबबब
‍ बबब‍बब बब बबब बब बबबबबबबब बबबब बब ब
बब बबबबबबब बबबब! बबबबब ‍ बबबब‍बबब ‍ बब ब बबबब‍बबबब
बबब बबबबबब बब..... बबबब‍ बब‍बबबबब, बबबब बबबबब
बबब, बबबबब बबबबबबब ‍ बब बबबब‍बबबब बबब बबबबबबबबब
बबब बबबबबबबबबब बबबब बब; बबबबब बबबबब बबबबब
बबबब बब बबब
‍ ‍ बबबबब‍ब बब बबबब‍बबब ब बबबबबब बब बब
बबबब बबबब ब’

$$?

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