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Sanskrit Subject Related Question Answer
Sanskrit Subject Related Question Answer
वैदिक संस्कृत
संस्कृत भाषा
संस्कृत (संस्कृतम्) भारत की एक शास्त्ीर् भाषा है । इसे िे ववार्ी अर्वा सजरभारती भी कहा जाता है । र्ह षवश्व की
सबसे पुरानी उक्तल्लक्तखत भाषाओं में से एक है । संस्कृत षहन्द-र्ू रोपीर् भाषा-पररवार की षहन्द-ईरानी शाखा की षहन्द-आर्य
उपशाखा में शाषमल है । र्े आदिम-दहन्द-यू रोपीय भाषा से बहुत अषधक मेल खाती है । आधु षनक भारतीर् भाषाएाँ
जै से मैषर्ली, षहन्दी, उिू य , कश्मीरी, उषडर्ा, बां ग्ला, मराठी, षसिी, पंजाबी, (नेपाली), आषि इसी से उत्पन्न हुई हैं । इन सभी
भाषाओं में र्ू रोपीर् बं जारों की रोमानी भाषा भी शाषमल है । संस्कृत में षहन्िू धमय से सम्बं षधत लगभग सभी धमयग्रन्थ षलखे
गर्े हैं । बौद्ध धमय (षवशे षकर महार्ान) तर्ाजै न धमय के भी कई महत्त्वपूणय ग्रन्थ संस्कृत में षलखे गर्े हैं । आज भी षहन्िू धमय
के अषधकतर र्ज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं ।
संस्कृत को सभी उच्च भाषाओं की जननी माना जाता है । इसका कारण हैं इसकी सवायषधक शुद्धता और इसीषलए र्ह
कम्प्यूटर सॉफ्टवेर्र के षलए एक उपर्ुि भाषा है (फोर्ब्य पषत्रका जु लाई 1987 की एक ररपोटय में)।
इषतहास[संपाषित करें ]
मजख्य लेख : संस्कृत भाषा का इदतहास
संस्कृत का इषतहास बहुत पुराना है । वतय मान समर् में प्राप्त सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेि है जो कम से कम ढाई
हजार ईसापूवय की रचना है ।
व्याकरण[संपाषित करें ]
संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यन्त पररमाषजयत एवं वै ज्ञाषनक है । बहुत प्राचीन काल से ही अनेक व्याकरणाचार्ों ने संस्कृत
व्याकरण पर बहुत कुछ षलखा है । षकन्तु पाषणषन का संस्कृत व्याकरण पर षकर्ा गर्ा कार्य सबसे प्रषसद्ध है ।
उनका अष्टाध्यार्ी षकसी भी भाषा के व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है ।
संस्कृत में संज्ञा, सवय नाम, षवशे षण और षक्रर्ा के कई तरह से शब्द-रूप बनार्े जाते हैं , जो व्याकरषणक अर्य प्रिान करते
हैं । अषधकां श शब्द-रूप मूलशब्द के अन्त में प्रत्यर् लगाकर बनार्े जाते हैं । इस तरह र्े कहा जा सकता है षक संस्कृत
एक बषहमुयखी-अन्त-क्तश्लष्टर्ोगात्मक भाषा है । संस्कृत के व्याकरण को वागीश शास्त्ी ने वै ज्ञाषनक स्वरूप प्रिान षकर्ा है।
ऋ -- आधु षनक षहन्दी में "रर" की तरह, संस्कृत में अमेररकी अंग्रेजी शब्दां श (American English syllabic) / r /
की तरह
ॠ -- केवल संस्कृत में (िीघय ऋ)
ऌ -- केवल संस्कृत में (syllabic retroflex l)
अं -- आधे न्, म्, ङ् , ञ् , ण् के षलर्े र्ा स्वर का नाषसकीकरण करने के षलर्े
अँ -- स्वर का नाषसकीकरण करने के षलर्े (संस्कृत में नहीं उपर्ु ि होता)
अः -- अघोष "ह्" (षनःश्वास) के षलर्े
व्यंर्न[संपाषित करें ]
जब कोई स्वर प्रर्ोग नहीं हो, तो वहााँ पर 'अ' माना जाता है । स्वर के न होने को हलन्त् अर्वा षवराम से िशाय र्ा जाता है ।
जै से षक क् ख् ग् घ् ।
स्पशथ
अल्पप्रार् महाप्रार् अल्पप्रार् महाप्रार्
नादसक्य
अघोष अघोष घोष घोष
क / kə / ख / khə / ग / gə / घ / gɦə / ङ / ŋə /
कण्ठ्य
k; अंग्रेजी: skip kh; अंग्रेजी: cat g; अंग्रेजी: game gh; महाप्राण /g/ n; अंग्रेजी: ring
छ / chə
झ / ɟɦə / or /
च / cə / or / tʃə / / or /tʃhə/ ज / ɟə / or / dʒə / ञ / ɲə /
तालव्य dʒɦə /
ch; अंग्रेजी: chat chh; महाप्राण j; अंग्रेजी: jam n; अंग्रेजी: finch
jh; महाप्राण /ɟ/
/c/
ट / ʈə / ड / ɖə / ण / ɳə /
ठ / ʈhə / ढ / ɖɦə /
मूधयन्य t; अमेररकी अंग्रेजी:: d; अमेररकी अंग्रेजी:: n; अमेररकी अंग्रेजी::
th; महाप्राण /ʈ/ dh; महाप्राण /ɖ/
hurting murder hunter
त / t̪ ə / र् / t̪ hə / ि / d̪ə / ध / d̪ɦə / न / nə /
िन्त्य
t; स्पैषनश: tomate th; महाप्राण /t̪ / d; स्पैषनश: donde dh; महाप्राण /d̪/ n; अंग्रेजी: name
प / pə / फ / phə / ब / bə / भ / bɦə / म / mə /
ओष्ठ्य
p; अंग्रेजी: spin ph; अंग्रेजी: pit b; अंग्रेजी: bone bh; महाप्राण /b/ m; अंग्रेजी: mine
स्पशथरदहत
िन्त्य/ कण्ठोष्ठ्य/
तालव्य मूधथन्य
वर्त्स्थ काकल्य
र् / jə / र / rə / ल / lə / व / ʋə /
अन्तस्र्
y; अंग्रेजी: you r; स्कॉषटश अंग्रेजी: trip l; अंग्रेजी: love v; अंग्रेजी: vase
ऊष्म/ श / ʃə / ष / ʂə / स / sə / ह / ɦə / or / hə /
संघषी sh; अंग्रेजी: ship sh; मूधयन्य /ʃ/ s; अंग्रेजी: same h; अंग्रेजी: behind
नोट करें :
इनमें से ळ (मूधयन्य पाषवयक अन्तस्र्) एक अषतररि वर्ंजन है षजसका प्रर्ोग षहन्दी में नहीं होता है । मराठी और
वै षिक संस्कृत में इसका प्रर्ोग षकर्ा जाता है ।
संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता र्ा : जीभ की नोंक को मूधाय (मुाँह की छत) की ओर उठाकर श जै सी आवाज़
करना। शुक्ल र्जुवेि की माध्यंषिषन शाखा में कुछ वाक्यों में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य र्ा। आधु षनक
षहन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है ।
षहन्दी में र् का उच्चारण ज़्यािातर डँ की तरह होता है , र्ाषन षक जीभ मुाँह की छत को एक ज़ोरिार ठोकर मारती
है । षहन्दी में क्षदर्क और क्शदडं क में कोई अंतर नहीं है , परन्तु संस्कृत में ण का उच्चारण न की तरह षबना ठोकर
मारे होता र्ा, अंतर केवल इतना षक जीभ र् के समर् मुाँह की छत को कोमलता से छूती है ।
(१) संस्कृत, षवश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेि) की भाषा है । इसषलर्े इसे दवश्व की प्रर्म भाषा मानने में कहीं षकसी
संशर् की संभावना नहीं है [कृपर्ा उद्धरण जोडें ]।
(२) इसकी सजस्पष्ट व्याकरर् और वर्थमाला की वैज्ञादनकता के कारण सवय श्रेष्ठता भी स्वर्ं षसद्ध है ।
(३) सवाय षधक महत्वपूणय सादहत्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी षनषवय वाि है ।
(५) संस्कृत केवल स्वषवकषसत भाषा नहीं बक्ति संस्काररत भाषा भी है अतः इसका नाम संस्कृत है । केवल संस्कृत
ही एकमात्र भाषा है षजसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नही ं षकर्ा गर्ा है। संस्कृत को संस्काररत
करने वाले भी कोई साधारण भाषाषवि् नहीं बक्ति महषषय पाषणषन, महषषय कात्यार्न और र्ोग शास्त् के प्रणेता महषषय
पतं जषल हैं । इन तीनों महषषयर्ों ने बडी ही कुशलता से र्ोग की षक्रर्ाओं को भाषा में समाषवष्ट षकर्ा है । र्ही इस
भाषा का रहस्य है ।
(६) शब्द-रूप - षवश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक र्ा कुछ ही रूप होते हैं , जबषक संस्कृत में प्रत्ये क शब्द
के 27 रूप होते हैं ।
(७) दद्ववचन - सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबषक संस्कृत में षद्ववचन अषतररि होता है ।
(८) सक्तन्ध - संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूणय षवशे षता है सक्ति। संस्कृत में जब िो अक्षर षनकट आते हैं तो वहााँ
सक्ति होने से स्वरूप और उच्चारण बिल जाता है ।
(९) इसे कम्प्यूर्टर और कृदत्रम बजक्तद्ध के षलर्े सबसे उपर्ुि भाषा माना जाता है ।
(१०) शोध से ऐसा पार्ा गर्ा है षक संस्कृत पढ़ने से स्मरर् शक्ति बढ़ती है ।
(११) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को षकसी भी क्रम में रखा जा सकता है । इससे अर्य का अनर्य होने की बहुत कम र्ा
कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसषलर्े होता है क्योंषक सभी शब्द षवभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और
क्रम बिलने पर भी सही अर्य सुरषक्षत रहता है । जै से - अहं गृ हं गच्छादम र्ा गच्छादम गृहं अहम् िोनो ही ठीक हैं ।
(१२) संस्कृत षवश्व की सवायषधक 'पूणय' (perfect) एवं तकयसम्मत भाषा है [कृपर्ा उद्धरण जोडें ]।
(१३)संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमश: अंगुषलर्ों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्यर्न करने वाले
छात्रों को गषणत, षवज्ञान एवं अन्य भाषाएाँ ग्रहण करने में सहार्ता षमलती है ।
(१४) संस्कृत भाषा में साषहत्य की रचना कम से कम छह हजार वषों से षनरन्तर होती आ रही है । इसके कई लाख
ग्रन्थों के पठन-पाठन और षचन्तन में भारतवषय के हजारों पुश्त तक के करोडों सवोत्तम मक्तस्तष्क षिन-रात लगे रहे हैं
और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं षक संसार के षकसी िे श में इतने काल तक, इतनी िू री तक व्याप्त, इतने उत्तम
मक्तस्तष्क में षवचरण करने वाली कोई भाषा है र्ा नहीं। शार्ि नहीं है ।
(१५) संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अषपतु संस्कृत एक षवचार है संस्कृत एक संस्कृषत है एक संस्कार है
संस्कृत में षवश्व का कल्याण है शां षत है सहर्ोग है वसुिैव कुटु म्बकम् षक भावना है |
(१६) 6th अौौर 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर अौाधाररत होगें । *नासा
षहन्िू , बौद्ध, जै न आषि धमों के प्राचीन धाषमयक ग्रन्थ संस्कृत में हैं ।
भारतीर् भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है। भारतीर् संषवधान की धारा 343,
धारा 348 (2) तर्ा 351 का सारां श र्ह है षक िे वनागरी षलषप में षलखी और मूलत: संस्कृत से अपनी पाररभाषषक
शब्दावली को ले ने वाली षहन्दी राजभाषा है ।
संस्कृत का प्राचीन साषहत्य अत्यन्त प्राचीन, षवशाल और षवषवधतापूणय है । इसमें अध्यात्म, िशयन, ज्ञान-षवज्ञान और
साषहत्य का खजाना है। इसके अध्यर्न से ज्ञान-षवज्ञान के क्षेत्र में प्रगषत को बढ़ावा षमलेगा।
संस्कृत को कम्प्यूटर के षलर्े (कृषत्रम बु क्तद्ध के षलर्े ) सबसे उपर्ु ि भाषा माना जाता है ।
1962 श्री लाल बहािु र शास्त्ी राष्टरीर् संस्कृत षवद्यापीठ नर्ी षिल्ली