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श्रीनन्दनन्दन स्तोत्र

बालं नवीन शतपत्र ववशालने त्रं वबम्बाधरं सजल मे घरुव ं मनोज्ञम् ।


मन्दस्मितं मधुर सुन्दरमन्दयानं श्रीनन्दनन्दनमहं मनसा नमावम ॥१॥
मञ्जीरनू पुररणन्नवरत्नकाञ्ची श्रीहार केसररनखप्रवतयंत्र संघम् ।
दृष्टयावतिहाररमविवबन्दु ववराजमानं वन्दे कवलन्दतनुजा तटबाल केवलम् ॥२॥
पुणेन्दु सुन्दरमु खोपरर कुवञ्चताग्रा: केशा नवीनघननीलवनभा स्फुरस्मि ।
राजि आनतवशर: कुमु दस्य यस्य नन्दामत्मजाय सबलाय नमो नमस्ते ॥३॥
श्रीनन्दनन्दस्तोत्रं प्रातरुत्थाय य: पठे त् । तत्रे त्रगो रं यावत सानन्दं नन्दनन्दन: ॥४॥
जो वनत्य इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके ने त्रों के समक्ष श्री कृष्ण प्रकट हो जाते है !

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