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[1]

इकहरे बदन का ल बा-सा यु


वक था। उसका मु
ख सुदर था और रंग गोरा था। चौड़े
म तक पर च ता क गहरी
लक र पड़ गई थ । गाल धँस गए थे
। आँख बड़ी-बड़ी क तु पथराई ई-सी थ , जनम कभी-कभी यौवन क आग
क ीण तथा णक चमक आ जाती थी। उन आँ ख केचार ओर का लमा क एक हलक -सी प र ध खची ई
थी। उसकेबाल बड़े-बड़े और खे थेऔर बड़ी असावधानी सेखचेए थे ।

वह चाइना स क का सू ट प हने
था, जसकेनीचे चे
कदार रे
शम क कमीज थी। सू ट नया था और कसी अ छ
अंेजी कान का सला आ मालू म पड़ता था। रे
शमी टाई सूट केबाहर उड़ रही थी, सोला है
ट बगल म दबा आ
था। रे
शमी मोजेपर पे
टेट चमड़ेका काला आ सफड शू था। जेब म एक क मती फाउ टे न पे
न तथा एक माल था,
जसका रंग टाई केरंग सेमलता-जुलता था। कलाई पर चाँद क चौपहली घड़ी थी।

याग- व व ालय केसाइं स डपाटमेट और आट् स डपाटमेट को मलाने


वाली सड़क का नाम यू
नव सट रोड है

उसी यूनव सट रोड पर वह यु
वक चल रहा था। उसका सर झु
का आ था, मानो वह कसी गहरेवचार म म न हो।

जुलाई का अ तम स ताह था; यू


नव सट दो-चार दन पहलेही खुली थी। उस समय दोपहरी ढल रही थी।
व ा थय क भीड़-क -भीड़ यू नव सट सेअपने घर को तथा बो डग को जा रही थी। न ता का जीवन तीत
करने वालेव ाथ ोफे सर केशासन से मु होकर अपने इ छत वातावरण म आ गए थे । कु
छ काले ज क पढ़ाई
क बात कर रहेथे, कु
छ नई फ म केवषय म पू छ-ताछ कर रहे थे
, कु
छ फुटबाल मैच क तै यारी कर रहे
थेऔर
कुछ रात क यूजक पाट का ब ध कर रहे थे
। वेायः जोर सेहँस भी दे
तेथे

पर वह युवक अके ला था, और वह इनम सेकसी भी वषय पर कु छ नह सोच रहा था। वह कभी-कभी च ककर
अपने आसपास केव ा थय को दे ख अव य लेता था; पर उसक वह नरथक तथा शू य होती थी। सरे
ही
ण वह अपनेवचार म म न होकर गरदन नीची कर ले ता था। कुछ र तक चलने केबाद वह का और उसने एक
ठं
ड़ी साँस ली। अपना सर उठाकर उसने अपने चार ओर दे खा इसकेबाद उसक एक कान पर क गई। उस
कान पर शरबत, चाय, रोट , कलम, दावात, ब नयाइन इ या द सब कार क व तु एँबकती थ । बगल म चार-छह
मे
ज पड़ी थ , और उनकेचार ओर कुसयाँ र खी थ । कु छ व ाथ बै ठे ए शरबत पी रहेथे, बजली का पं
खा चल
रहा था। इस बार मानो यु
वक का वचार- म टूट ा, उसनेअपने हाथ म बँ
धी ई घड़ी देखी। उस समय तीन बज रहे
थे
। वह कान पर चढ़ गया और नौकर से उसने कहा–‘‘एक गलास गु लाब का शरबत’’–इतना कहकर वह खाली
कुस पर बैठ गया। थोड़ी दे
र म नौकर ने
शरबत का गलास उस यु वक केसामने पड़ी ई मेज पक रख दया।

शरबत का गलास उस यु
वक नेअपनेमुहँम लगाया, एक घू
टँम ही उसनेगलास खाली कर दया। गलास सामने
रखतेए उसने कहा–‘‘ सरा गलास।’’

वहाँ
बैठे ए लोग क आँख उस यु
वक क ओर उठ ग ; पर यु
वक नेइस पर कु
छ बु
र ा न माना, वह के
वल मु
करा
दया। नौकर सरा गलास बनाने
लगा। उस यु
वक ने
बाहर क ओर दे
खा, एक टक वह अपने सामनेसेनकलतेए
व ा थय क भीड़ को दे
ख रहा था। सामने
एक मे ला-सा लगा आ था; पै
दल, साइ कल पर, ताँ
ग पर और मोटर
पर यू
नव सट केव ाथ तथा ोफे सर जा रहे
थे।

यु
वक ने अपनी आँख नीची कर ल । वह फर वचार-म न हो गया। शायद वह अपने सामने सेनकलनेवाली भीड़ पर
ही कु
छ सोच रहा था। नौकर ने शरबत का गलास उसकेसामने रख दया। उसने उसे नह दखा। नौकर ने कभी
कसी व ाथ को वचार म इतना त लीन न दे खा था। इस लए उसका कौतूहल बढ़ा। उस समय तक कान पर बै ठे
ए अ य व ाथ चले गए थे। नौकर को कोई काम न था। इस लए वह वह पर खड़ा होकर उस व च मनु य पर
आ य करने लगा, काफ दे र हो गई, गलास म पड़ेए बरफ केटु कड़ेगल गए; पर फर भी उस यु वक क
त लीनता न भं
ग ई। नौकर से न रहा गया, उसने कहा–‘‘बाबूजी ! शरबत ठं
ढा हो रहा है
।’’

यु
वक च क उठा। उसने अपना म तक उठाया–‘‘ या कहा ? शरबत ठं ढा हो रहा है
?’’–यह कहकर उसनेगलास
उठाया। इसकेबाद वह हँ
स पड़ा–‘‘जनाब शरबत ठंढ़ा नह हो रहा है
, ब क गरम हो रहा है।’’ अपनी गलती पर
ल जत होकर नौकर ने अपनी आँ
ख नीची कर ल । यु
वक नेगलास मु हँम लगाया। एक घूटँपीकर उसनेगलास
मे
ज पर रख दया–‘‘कहो जी खलावन, अ छ तरह से तो रहे
।’’

बाबू
‘‘हाँ जी।’’–इस बार नौकर ने यु
वक को पहचाननेक को शश क । कु छ देर तक सोचनेकेबाद वह कह
उठा–‘‘अरे रमे
श बाबू ! बाबू
जी ब त दन बाद आए। हम तो बाबू
जी का प हचानैन सके
न। बाबू
जी ब त बलेए
गए। का बाबू
जी बीमार रहे?’’

यु
वक हँ
सने
लगा–‘‘नह , बीमार तो म नह रहा।’’–इतना कहकर उसनेगलास उठाकर सरा घू
टँ पया।

नौकर नेफर कहा–‘‘बाबू


जी कौन बो डग मा ठहरे
ह ?’’

यु
वक ने
इस को शायद नह सु
ना। वह सामनेसड़क पर आने
वाली कार को बड़े
गौर से
दे
ख रहा था। इसी समय
कु
छ और व ाथ कान पर आ गए थे । उनम से
एक नेआवाज द –‘‘ खलावन आइस म।’’–नौकर चला गया।

जस कार क ओर यु वक देख रहा था, वह उस समय तक कान केसामने आ गई थी। वह छह सलडर क आ टन


कार थी, और एक युवती उसेचला रही थी। यु
वती अकेली थी और उसक अव था ायः बीस वष क थी। वह गठे
बदन क थी और उसका रं ग गोरा था। उसकेबाल अंेजी ढं
ग सेकटेए थे , माथेपर सेर क लाल ब द थी। वह
नीलेरं
ग क छपी ई रेशमी साड़ी पहने थी और उसका ज पर भी उसी कपड़े का था, जसक साड़ी थी। यु
वती का
मु
ख भरा आ तथा गोल था और उसकेहोठ छोटे -छोटे
तथा लाल थे। भ ह धनी और काली थ । मु
ख पर क मती
पाउडर तथा होठ पर क मती लप टक का योग कया गया था; य क दन म भी सौ दय का एक अ छा पारखी,
जो वदेशी-कला सेअन भ नह है , उसकेसौ दय क शं सा कए बना नही रह सकता था।

यु
वती क अचानक कान पर बै
ठे ए पुष पर जा पड़ी। एकाएक उसकेमु
ख सेनकल
पड़ा–‘‘अरे
!’’–और पै
र वयं ही े
क पर जा पड़ा। कार एक झटकेकेसाथ क गई।
यु
वक नेयह दे
खा। एक ण केलए उसने अपना मु
ख फे
र लया, और शरबत का तीसरा घू
टँपीने
का य न कया।
फर कु
छ सोचकर उसनेगलास मे
ज पर रख दया और वह उठ खड़ा आ। वह सीधे कार केपास प च
ँा। यु
वती ने
मुकरातेए कहा–‘‘रमे
श ! कब आए ?’’

यु
वक केमु
ख पर भी एक खी तथा ं
या मक मु
कराहट दौड़ गई–‘‘ भा तु
म !’’

म आज सु
बह आया।’’

[2]

तीन वष पहले
क बात है

इलाहाबाद-यू नव सट क गम क छुय केबाद खु लने का पहला दवस था। इंग लश डपाटमे ट म बी. ए. फ ट
इयर केकमरे म कुछ व ाथ बैठे ए आपस म एक- सरे का प रचय ा त कर रहे थे
, और कु छ कताब लास म
रखकर बाहर टहल रहे थे
। अगली सीट पर एक व ाथ अके ला बै
ठा आ एक पु तक पढ़ रहा था। वह व ाथ ब द
गले का गब न का कोट पहने था, जो काफ पु
र ाना था और फटने लगा था। उसक धोती मोट थी और घु टनेके
नीचेका कुछ थोडा-सा ही ह सा ढँक सकती थी। पै र म एक काला डरबी शू पहनेए था, जो शायद नया था। सर
पर एक पुर ानी फेट कै
प थी, जसने कभी अ छेदन अव य दे खे ह गे
; पर अब उस पर आध इं च मोट तैल क तह
जमी ई थी। टोपी का चँदवा उठा आ था, और एक ल बी-सी चु टया उस टोपी केबाहर पीछेक ओर नकली ई
थी। व ाथ क अव था लगभग अठारह वष क थी।

व ाथ का रं
ग गोरा था, उसका मु
ख गोल, मस भीग रही थ ; पर दाढ़ पर अभी तक उ तरा न चला था। वह बड़ी
त मयता केसाथ पु तक पढ़ रहा था। अपनेचार ओर होनेवालेकोलाहल क उसे कोई च ता न थी। अपनेव भ न
वातावरण के त वह सवथा उदासीन था।

घं
ट ा बजा और बाहर टहलने
वाले य नेलास म वे श कया। व ाथ अपनी-अपनी जगह पर बैठने
लगे
। एक
व ाथ ने आकर अगली सीट पर बै
ठे ए व ाथ केकं
धेपर हाथ लगाया, उसने
च ककर पीछे
दे
खा।

‘‘जनाब आदाब अज ! जस सीट पर आप डटेए ह, वह मे


र ी है
।’’

जस नेयेश द कहेथेवह दोहरे


बदन का एक ल बा-सा नवयुवक था। दाढ़ -मू

ँ साफ, आँख पर च मा और
कपड़ से सेट क महक। धारीदार स क का ब त सुदर सू
ट पहने था, जे
ब म रे
शमी माल और फाउ टेन पे
न,
कलाई पर सोनेक र टवाच और उँग लय म हीरे
क अँगूठ । मोजा, माल और टाई एक ही रं
ग केथे

नवाग तु
क का यह वा य सु
नकर उस व ाथ नेउसेदे
खा और फर खड़ा हो गया–‘‘आपक कताब यहाँ
न थ,
इस लए म बै
ठ गया था, मा क जएगा।’’–यह कहकर वह पासवाली सीट पर बै
ठ गया।
नवाग तु
क नेपासवाली सीट पर बै ठकर उस व ाथ को गौर से
दे
खा। वह कुछ मु
कराया, उसक आँ
ख चमकने
लग । उसनेकहा–‘‘मे र ा नाम कु

वर अ जतकु
मार सह है
। आपका नाम ?’’

र ा नाम रमे
‘‘मे शच ीवा तव है
।’’

‘‘और शायद आप ब लया केरहने वालेह।’’–अ जतकु मार ने


अपनी मु कराहट दबातेए कहा–‘‘दे खए
महाशयजी, आपक चोट जो आपक टोपी केअ दर रहने सेवरोध करती है, वही आपक चोट , दे
खए भू
ल गया
क या कहनेवाला था। हाँ
, महाशयजी, वही आपक चोट बड़ी मजे दार चीज है। और यह आपक अशोक केसमय
क टोपी, जसकेचँ दवे पर अशोक ने अपना तूप बनवा दया था, महाशयजी, इस टोपी को आप दशनी म
भजवाइए, दशनी म ! समझे !’’–अ जतकु मार अब अपनी मु कराहट को न दबा सका और वह खल खलाकर
हँ
स पड़ा।

रमेश चु प था। जब से वह याग आया था, लोग उससेइसी कार क बातचीत करते थे
। उसने
इस बात का जरा भी
बुर ा न माना। दबी जबान से
उसनेके
वल इतनी ही कहा–‘‘म ब लया का रहने
वाला नह ,ँम झाँ
सी सेआ रहा
।ँ’’

‘‘आप झाँ
सी सेआ रहे ह !’’–अ जतकु मार नेमु
ख पर आ य क मुा लातेए कहा–‘‘यह झाँ सी कौन-सी
जगह है? माफ क जएगा, गलती हो गई। साहब यह झाँ सी अ छ जगह होगी, ले कन आपकेझाँ सी केजू क
बाबत मने
पहलेकभी नह सु ना था, इस लए यह गलती हो गई। अब आप मे र ी गलती का कारण समझ ही गए ह गे ।
लेकन महाशयजी, आपकेसा थय को, आपका तु ड़ा कर यहाँ परचतला आना, बु र ा तो लगाही होगा। दे
खए,
उनलोग को भु
ला दे
ना कोई अ छ बात नह है । कह इस तरह से भाई-चारा तोड़जाताहै ...’’ इतनेही म ोफेसर ने
कमरेम वेश कया और अ जतकु मार क बात अधू र ी रह गई।

ोफे
सर के वे
श करते ही लास- म म न त धता छा गई। कु स पर बै ठकर ोफे सर साहब नेलास का आ द से
अ त तक नरी ण कया। ोफे सर साहब क मे ज एक डायस पर र खी थी। उनकेसामने चार-चार क दो कतार म
लड़क क डे क तथा कुसयाँपड़ी थ । इन दो कतार केबीच म रा ता था। ोफे
सर साहब केबगल म, बा ओर
कुछ डे
क तथा कुछ कुसयाँपड़ी थ , जन पर लास क ले डी टू
डे ट्
स बैठती थ ।

र ज टर खोलकर ोफेसर साहब ने


लड़क केनाम लखना आर भ कया। नाम लखने
केसाथ-साथ वे
उनक
यो यता भी पू
छते
जातेथे

शच
‘रमे ीवा तव ! कस काले
ज से
आए ?’’

टरमी डएट काले


‘‘इं ज, झाँ
सी से
।’’

‘‘ कस डवीजन म इं
टरमी डएट पास कया ?’’
‘‘फ ट डवीजन म।’’

हारी कौन सी पोजीशन थी ?’’


‘‘तु

‘‘फ ट।’’

नाम लखकर ोफे


सर साहब ने
अ जतकु
मार सह से
पू
छा–

हारा नाम ?’’


‘‘तु

‘‘कु

वर अ जतकु
मार सह’’

‘‘ कस काले
ज से
आए ?’’

‘‘ सीडसी काले
ज कलक ा से
।’’

हारी वाली फके


‘‘तु शन ?’’

बी.ए. म दो वष फे
‘‘वहाँ ल आ।’’

‘‘ या वह पढ़े
? एफ. ए. कस डवीजन म पास कया ?’’

‘‘मने एफ.ए. नह पास कया। आ सफोड म चार साल तक अं


डर े
जु
एट अव य रहा ।ँइसकेबाद मे
र ा नाम काट
दया गया। म सी नयर कै ज पास ।ँ
’’

लास केलड़क क आँ ख अ जतकु मार पर लगी थ । ोफे


सर साहब मु
कराए–‘‘अ छा तो य क हए क आप
तफरीहन पढ़ रहे
ह।’’ अ जतकु
मार नेभी मुकरातेए उ र दया–‘‘बहरहाल ज दगी म कुछ करना ज र
चा हए।’’

लड़केहँ
स पड़े
, ोफे
सर नेसरे
लड़क केनाम लखना आर भ कर दया।

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