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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज.)

सलाहकार / सम वयक एवं सद य


सम वयक/ परामशदाता सद य स चव / सम वयक
ोफेसर डॉ. एस.सी. कलवार डॉ. अशोक शमा
पू व ोफेसर एवं वभागा य , भू गोल वभाग सह आचाय, राजनी त व ान
राज थान व व व यालय, जयपु र(राज.) वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

सद य
1. ोफेसर(डॉ.) संतोष शु ला 2. डॉ. जे .के. जैन
ोफेसर एवं वभागा य , पू व एसो सये ट ोफेसर एवं वभागा य ,
सामा य एवं यवहा रक भू गोल वभाग भू गोल वभाग
एच.एस. गौड़ व व व यालय,सागर(म. .) जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर (राज.)
3. ोफेसर(डॉ.) एन. एल. गु ता 4. डॉ. बी.एल. शमा
पू व ोफेसर एवं वभागा य , भू गोल वभाग वभागा य , भू गोल वभाग
एम.एल. सु ख ड़या व व व यालय, उदयपु र(राज.) राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)
5. डॉ. मनोज गौतम
व र ठ या याता, भू गोल वभाग
राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)

संपादन तथा पाठ ले खन


संपादक 1. डॉ. राजे प रहार
डॉ. बी.एल. शमा अ स टे ट ोफेसर, भू गोल वभाग
वभागा य , भू गोल जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर (राज.)
राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)
लेखक 3. डॉ. एस.सी. म ा
2. ो. आर.बी. संह वभागा य , भू गोल वभाग
भू गोल वभाग, कू ल ऑफ इकॉनो म स राजक य महा व यालय पोकरण िजला जैसलमर (राज.)
द ल व व व यालय, द ल
4. डॉ. जे .के. जैन 5. डॉ. एस.बी. यादव
पू व एसो सये ट ोफेसर एवं वभागा य व र ठ या याता, भू गोल वभाग
भू गोल वभाग राजक य नातको तर महा व यालय, नारनौल (ह रयाणा)
जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर (राज.)
6. डॉ. एल.सी. वमा 7. डॉ. एल.सी. अ वाल
पू व ाचाय झालावाड़ नातको तर व र ठ या याता,
राजक य म हला महा व यालय झालावाड़(राज.) राजक य नातको तर महा व यालय,कोटा(राज.)
8. डॉ. सुधीर बंसल 9. डॉ. आर.एन. शमा
एसो सये ट ोफेसर अ स टे ट ोफेसर, भू गोल वभाग
मह ष दयान द व व व यालय रोहतक (ह रयाणा) राज थान व व व यालय जयपु र
10. डॉ. पी. आर. चौहान 11. डॉ. मनोज गौतम
पू व अ स टे ट ोफेसर, भू गोल वभाग व र ठ या याता, भू गोल वभाग
जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर (राज.) राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)
12. डॉ. ट . एस. चौहान 13. डॉ. बी. पी. शमा
अ स टे ट ोफेसर, भू गोल वभाग वभागा य , भू गोल वभाग
राज थान व व व यालय जयपु र (राज.) सु बोध नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो.(डॉ.) नरे श दाधीच ो. (डॉ.) एम.के. घड़ो लया योगे गोयल
कु लप त नदे शक भार
वधमान महावीर खु ला व व व यालय,कोटा अकाद मक पा यसाम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

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उ पादन : पु नः मु ण : जू न, 2010
इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा
या अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।
व. म. खु. व., कोटा के लये कु लस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत

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GE-08
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

भारत का भू गोल
इकाई सं. इकाई पृ ठ सं
इकाई -1 भू गा भक संरचना, धरातल य वभाग एवं अपवाह तं 8—40
इकाई -2 जलवायु 41—67
इकाई -3 म ी, वन प त एवं वन वतरण 68—92
इकाई -4 संचाई- मु ख ोत एवं प रयोजनाएँ 93—112
इकाई -5 कृ ष एवं पशु पालन 113—154
इकाई -6 सू खा और बाढ़ 155—182
इकाई -7 ख नज संसाधान 183—207

इकाई -8 ऊजा संसाधन 208—236


इकाई -9 मु ख उ योग एवं औ यो गक दे श 237—269
इकाई -10 जनसं या एवं नगर करण 270—301
इकाई -11 यातायात – रे ल एवं सड़क यातायात 302—316
इकाई -12 भारत का वदे शी यापार 317—354
इकाई -13 मु ख जनजा तयाँ – नागा, गो ड, भील, संथाल, टोडा, एवं सह रया 355—371
इकाई -14 ादे शक वषमताएँ 372—400
इकाई -15 नयोजन दे श 401—417

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प रचया मक

भारत एक वशाल एवं व वधताओं वाला रा है । इसक अपनी अनूठ सं कृ त है ।


व व आ थक संकट के दौरान व व के शि तशाल रा संयु त रा य अमे रका क आ थक
ि थ त डाँवाडोल हो गई ले कन भारतीय अथ यव था पर वशेष भाव नह ं पड़ा । तु त
पु तक म भारत क भौ तक, आ थक, सामािजक व सां कृ त आ द पहलु ओं का समावेश कया
गया है । भारत के भू गोल का मु य उ े य व या थय को दे श के व भ न पहलु ओं क
जानकार दे ना है । इस पु तक का लेखन भू गोल के व र ठ व वजन से कराया गया है ।
तु त पु तक को 15 इकाईय मे वभ त कया गया है । डी. ट . एस. चौहान ने भू ग भक
संरचना भौ तक वभाग एवं वाह, (इकाई-1) जब क डॉ. पी. आर. चौहान ने जलवायु (इकाई -
2) डॉ. राजे प रहार ने म ी, वन प त एवं वन तथा संचाई के मु ख ोत ् एवं संचाई
प रयोजनाएँ (इकाई – 3-4) डॉ. एस. सी. यादव ने ामीण जनसं या का आ थक आधार कृ ष
एवं पशु पालन । दे श म सु र ा एवं बार क सम या हमेशा बनी रहती है, िजसका वश ववरण
इकाई - 6) म डॉ. एस. सी म ा ने कया है । इकाई 7,8, व 9 ख नज ऊजा एवं उ योग से
स बि धत है । इन इकाईय का लेखन मश: डॉ. एल. सी. वमा, डॉ. आर. रन. शमा एवं डी.
मनोज गौतम ने कया है । डी. बी. पी. शमा ने जनसं या एवं नगर करण (इकाई - 10), डॉ.
सु धीर बंसल ने रे ल व सड़क प रवहन इकाई – 11) डी. जे. के. जैन ने भारत का वदे शी
यापार एवं ादे शक वषमताएँ इकाई 12 व 14), डॉ. एल. सी. अ वाल ने मु ख जनजा तय
इकाई - 13) का जब क अि तम इकाई 15 नयोजन दे श का लेखन डॉ. आर. बी. संह ने
कया है ।
भौगो लक त य को बोधग य बनाने के लए यथा थान पर मान च एवं रे खा च दए
गए है । आव यकतानुसार नवीन आँकड को ता लका के प म तु त कया गया है । पु तक
क भाषा सरल एवं सु बोध है ता क छा पु तक से लाभाि वत हो सके ।

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इकाई 1: भू ग भक, संरचना धरातल य वभाग एवं अपवाह
तं (Geological Structure, Physiographic
Division and Drainage Pattern)
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 भारत क भू ग भक संरचना
1.2.1 भू ग भक संरचना का इ तहास
1.2.2 पुरा कैि यन युगीन शैल
1.2.3 पुराण युगीन शैल
1.2.4 वड़ युगीन शैल
1.2.5 आय युगीन शैल
1.2.6 भारत के भू क पीय े व भौग भक संरचना का स ब ध
1.3 भारत के धरातल य वभाग
1.3.1 उ चावचीय त प
1.3.2 हमालय पवतीय े
1.3.3 उ तर भारत का वशाल मैदान
1.3.4 ाय वीपीय पठार
1.3.5 समु तट य मैदान
1.3.6 भारतीय वीप
1.4 भारत का अपवाह तं
1.4.1 भारत म नद अपवाह तं का वकास
1.4.2 भारत म न दय के अपवाह त प
1.4.3 अरबसागर य अपवाह तं
1.4.4 बंगाल क खाड़ी म गरने वाल न दय का अपवाह तं
1.4.5 उ तर एवं द ण भारत क न दय क तुलना
1.5 सारांश
1.6 श दावल
1.7 स दभ थ

1.8 बोध न के उ तर
1.9 अ यासाथ न

1.0 उ े य (Objective)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरांत आप समझ सकगे :-

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 भारत क भौग भक संरचना - भौग भक संरचना का इ तहास,
 भारत के धरातल य वभाग - येक वभाग क वशेषताय
 भारत का अपवाह तं - उ तर भारत व द णी भारत क वाह णाल

1.1 तावना (Introduction)


व णु पुराण म च वत स ाट भरत क संतान के आवास दे श के प म व णत भारत
या भारतवष व व के ाचीनतम दे श मे से एक है, िजसक सं कृ त 5000 वष से अ धक
ाचीन है । ाचीनकाल म आय क भरत नाम क शाखा वारा अनाय पर आ धप य था पत
करने से ाचीनकाल से इसे भारत नाम से जाना जाता रहा है।
भारत का व तार
भारत े फल क ि ट से व व म सो वयत स, कनाडा, ाजील, यू.एस.ए.,
ऑ े लया व चीन के प चात ् सातवाँ बड़ा दे श है । इसक आकृ त चतु कोणीय ह, इसका कु ल
े फल 32,87,267 वग कमी. है । यह भू म डल के 2.4 तशत भू-भाग को घेरे हु ए है ।
जनसं या क ि ट से यह व व म चीन के प चात ् वतीय थान पर है । यहाँ व व क
लगभग 15 तशत जनसं या नवास करती है । जनगणना वष 2001 म इसक कु ल जनसं या
107 करोड़ थी ।
भारत उ तर गोला म वषुवत रे खा के उ तर 8°4' उ तर अ ांश से 37°18 ' उ तर
अ ांश तक व तृत है । क तु अंडमान नकोबार वीप समू ह का द णी छोर ेट नकोबार से
द ण म ि थत इं दरा. पॉइ ट 6°30' उ तर अ ांश तक व तृत है । कक रे खा इसके म य म
से गुजरती है जो उ तर व द णी भारत म वभ त करती है ।
इसका पि चमी-पूव व तार 68°7' पूव दे शा तर से 97°25' पूव दे शांतर तक ह ।
82°5' पूव दे शांतर रे खा भारत के लगभग म य होकर नकलती है ।
भारत का उ तर से द ण व तार 3214 कमी. तथा पि चम से पूव व तार 2735
कमी. है । इसक थलवत सीमाओं क ल बाई 15200 कमी. है तथा समु सीमा का व तार
7516.6 कमी. है । िजसम मु य थल क तट य तथा भारतीय वीप क सीमा भी सि म लत
है ।
अ वभािजत भारत क भौगो लक इकाई ए शया म अपने व श ठ यि त व के कारण
उपमहा वीपीय सं ा स अलंकृ त है । उ तर क वशाल उ च पवतीय मालाओं, द ण म ह द
महासागर, बंगाल क खाड़ी, अरब सागर क ि थ त के कारण यह शेष ए शया से अलग वतं
यि त व लये हु ए है । उ त भू ख ड क ए शया महा वीप के संदभ म एक अलग क तु
व श ट सं कृ त व इ तहास है- अत: भारत भौ तक, सां कृ तक व ऐ तहा सक पृ ठभू म क ि ट
से एक व श ठ रा है ।
भारत के आकार क वशालता के कारण यहाँ व भ न दे श क उ चावच, ाकृ तक
ि थ त जलवायु मृदा जल वाह , ाकृ तक वन प त क व भ नताओं के साथ जनसं या वतरण,

“भारत क सीमा तथा े फल के आकड़ का आधार इि डया ईयर बुक-2008, पृ ठ- 1

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नवा सय क भाषा, बोल रहन-सहन, खान-पान, यौहार आ द सां कृ तक व भ नताय होते हु ए
भी एकता के दशन होते है, दे श के कसी भी ा त के नवासी ह , हम सब भारतदे श के वासी
भारतीय ह । हमारे रा य पव स पूण दे श म मनाये जाते ह, यहाँ क नृ य कलाय , संगीत,
लोकगीत, लोक नृ य , सं वधान म व णत 15 भाषाओं के साथ स पक भाषा अं ज
े ी के साथ
राजक य भाषा ह द एकता के सू ह, दे श के सभी धमावल बी एक दूसरे क सं कृ त से
भा वत ह, पर पर आदर करते ह । साथ ह दे श के पवत , न दय , मैदान , पठार म भू म से
सभी दे शवासी ऋणी ह, स पूण दे श मानसू नी वषा से यून अ धक मा ा म भा वत ह, ये सभी
भारत म व भ नताओं म एकता के कारक है ।
भारत के पड़ौसी दे श म पि चम एवं उ तर पि चम म पा क तान, उ तर सीमा पर
नेपाल, भू टान तथा चीनमय त बत पूव सीमा पर यांमार (बमा) द ण म ह द महासागर म
ि थत ीलंका, बंगाल क खाड़ी के शीष पर ि थत बांगलादे श मु य ह । व व के सभी दे श से
भारत के स ब ध शां त, म ता व सह अि त व पर आधा रत है । व व क सभी महाशि तयां
व अ य सभी रा भारत के त अपने स मान का द दशन करते ह ।
वतमान समय म कुल 28 रा य तथा 7 के शा सत दे श ह । ये न न है -
रा य: 1. आं दे श, 2. असम, 3. उड़ीसा, 4. उ तर दे श, 5. केरल, 6. ज मु-कशमीर,
7. पंजाब, 8. ह रयाणा, 9. पि चमी बंगाल, 10. बहार, 11, महारा , 12. गुजरात, 13. म य
दे श, 14. त मलनाडु , 15. कनाटक, 16. राज थान, 17. नागालै ड, 18. हमाचल दे श, 19.
मेघालय, 20. म णपुर , 21. पुरा, 22 सि कम, 23. मजोरम, 24. अ णाचल दे श, 25.
गोआ, 26. उ तराख ड, 27. झारख ड एवं, 28. छ तीसगढ़ ।
के शा सत दे श : 1. द ल , 2. अ डमान एवं नकोबार वीप समू ह, 3. ल वीप,
म नकोय तथा अमीनद वी वीप समू ह, 4. दादरा व नगरहवेल , 5. दमन एवं वीप, 6.
पाि डचेर एवं, 7. च डीगढ़ । के शा सत द ल दे श को व श ट रा य का दजा ा त है ।
बोध न : 1
1. े फल क ि ट से भारत का व व म न न म से थान ह –
(अ) पाँ च वा (ब) छठा
(स) सातवीं (द) आठवाँ
2. भारत म भू म डल के कु ल े फल का िजतना तशत भाग ह, वह है –
(अ) 2.1 तशत (ब) 2.2 तशत
(स) 2.3 तशत (द) 2.4 तशत
3. अ डमान एवं नकोबार वीप के द ण म ि थत भारत के अं तम भू - भाग का
नाम है :-
(अ) ने ह पॉइ ट (ब) गां धी पॉइ ट
(स) इं दरा पॉइ ट (द) पटे ल पॉइ ट
4. भारत क थलवत सीमाओं क ल बाई है :-
(अ) 15000 कमी. (ब) 15100 कमी.

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(स) 15200 कमी. (द) 15300 कमी.
5. भारत का उ तर से द ण व तार ह :-
(अ) 3000 कमी. (ब) 3214 कमी.
(स) 4000 कमी. (द) 4214 कमी.

1.2 भारत क भू ग भक संरचना (Geological Structure of India)


कसी भी दे श क भू ग भक संरचना तथा म य , ख नज संसाधन म सह स ब ध होता
ह । भू वै ा नक इ तहास क ि ट से भारत म पुराकैि यन युग क ाचीनतम शैल से लेकर
वाटरनर युग क नवीनतम शैल भी पायी जाती है ।
भू ग भक वशेषताओं के आधार पर भारत को तीन मुख भाग म वभ त कया जा
सकता ह-जो पर पर एक दूसरे से नतांत भ न है :-
1. ाय वीपीय भारत: गौ डवाना लै ड का भाग है, द ण का ाय वीपीय भू ख ड
वं याचल पवतमालाओं के द ण म ि थत थायी कठोर ाचीन च ान वारा न मत
है।
2. हमालय तथा नवीनव लत पवत मालाय: जो सागर य जल म न े पत अवसाद शैल से
न मत ह ।
3. वशाल उ तर काँप म ी के मैदान: जो उपरो त दोन भू ख ड के म य तथा दोन
भू ख ड के अपरदन से ा त पदाथ के न ेपण से न मत भू ग भक् ि ट से नवीनतम
क तु एक व श ट भू ख ड है आ कयन शैले

1.2.1 भू ग भक संरचना का इ तहास

भारत क भू ग भक संरचना के इ तहास को


न न 4 युग म वभ त कया जा सकता है (अ)
पुरा कैि यन (अ त ाचीन) युग , (ब) पुराण युग ,
(स) वड़ युग एवं (द) आय युग

1.2.2 पुराकैि यन युगीन शैल

इस अ त ाचीन काल म न मत
शैल को दो वग म वभ त कया जा
सकता है (अ) आ कयन म क च ान एवं
(ब) धारवाड़ म क शैल ।
(अ) आ कयन युगीन शैल का व तार
ाय वीप पठार के लगभग दो तहाई भाग
पर पाया जाता है । इस म क च ान म

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ेनाइट, नील व श त शैल तथा धारवाड़ म क च ान सि म लत ह । उ त संरचना क
च ान का व तार भारत म 1 .87 लाख वग कमी. े पर पाया जाता है । ये मु यत:
कनाटक, त मलनाडु , आ दे श, उड़ीसा, म य दे श, छ तीसगढ, झारख ड तथा बहार के
अ त र त सी मत े म द णी एवं द णीपूव राज थान, पि चमी बंगाल म पायी जाती है ।
ये च ान रवेदार काया त रत होने के कारण इनम जीवा म का अभाव है । ( च 1. 1)
(ब) धारवाड़ म क च ान का नमाण आ कयन युगीन च ान के अ य धक रण से हु आ,
फलत: इनम जीवा म का अभाव पाया जाता है । धारवाड़ ु ाइट,
म क च ान म आ नेय ( ेनल
लोराइट आ द) तथा अवसाद ( वाटजाइट, टै क श त, लेट, लाइम टोन, कॉ लोमसेट आ द)
दोन कार क पायी जाती ह । इन च ान से लौह अय क, मगनीज, सोना, तांबा, ज ता, आ द
धाि वक ख नज ा त होते है ।
ये च ान ाय वीपीय तथा अ ाय वीपीय भारत दोन म पायी जाती ह । ाय वीपीय
े म ये शैल मु यत: 1 कनाटक म धारवाड़, बलार व शमोगा िजल म, 2. महारा म
नागपुर िजले म , 3. म य दे श म जबलपुर, बालाघाट, र ंवा, हजार बाग, 4. उड़ीसा के
वशाखाप नम िजले म. पायी जाती है ( च 1 .2) ।
अ ाय वीपीय े म धारवाड़ शैले हमाचल दे श म पीतीघाट , उ तरांचल म गढ़वाल,
कु मायू ं े तथा क मीर एवं असम रा य म पायी जाती है ।
इन च ान म लोहा, सोना, मगनीज, तांबा, ज ता, अ क, ' ो मयम, टं टन,
वुल ाम, सीसा, सु रमा, इ मेनाइट आ द ख नज मुखत: पाये जाते ह ।

1.2.3 पुराण युगीन शैल

पुराण महाक प क अव ध लगभग 250


करोड़ वष पूव से 60 करोड़ वष पूव क मानी जाती ह
। धारवाड़ म क शैल के नमाण के प चात ्
ववत नक हलचल के फल व प पुराण क प क
शैल क उ प त हु ई । इस युग म 2 कार क शैल
का नमाण हु आ. (अ) कु द पा म क शैल एवं (ब)
वं यन म क शैल ।

मान च 1.3 व यन शैल


(अ) कु द पा म क शैल
इन शैल का नमाण धारवाड़ म क च ान के जल य अपरदन के प चात ् अवसाद
न ेपण से हु आ । इन शैल म चू ना प थर, लेट वा ज क धानता है । ये जीवा म र हत ह,
इनका काया तरण भी हु आ है । इनका नामकरण आ दे श के कुडू पा िजले के नाम पर हु आ
ह, यहाँ ये व तृत े म पायी जाती ह । ये शैल कृ णा घाट , न लामलाई पहा ड़य , राज थान,

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उ तर पि चमी म य दे श, उ तर छ तीसगढ़ आ द े म पायी जाती ह । इन शैल म लौह
अय क, मगनीज, तांबा आ द पाये जाते ह ।
(ब) वं यन म क शैल
इन शैल क उ प त कुड़ पा म क शैल के बाद हु ई ह । वं याचल े म ये अ धक
व तृत प म पायी जाती है, अत: ये वं यन म नाम से स है । इन च ान म बालू चू ना
प थर, शैल क धानता है । ये च ान द णी-पूव उ तर दे श, प. बहार, उ तर म य दे श,
नमदा घाट , अरावल व समीपवत े म पायी जाती है ( च 1.3) ।

1.2.4 वड़ युगीन शैल

इसके अंतगत कैि यन युग से लेकर


म य काब नीफेरस युग म न मत शैल
सि म लत ह । िजसका स ब ध लगभग 60
करोड़ वष से लेकर 35 करोड़ वष तक क
अव ध से ह । ये शैल पी त घाट , क मीर,
कु माऊँ, शमला, गढ़वाल आ द म पायी जाती
है । इन शैल म जीव के अवशेष मलते ह ।
ाय वीपीय े म ती अना छादन के कारण
ये शैल व यमान नह ं ह

1.2.5 आययुगीन शैल

इसके अंतगत ऊपर काब नीफेरस से ि ल टोसीन युग तक का लगभग 35 करोड़ वष से


1 करोड़ वष पूव न मत शैल आती है ।
इस युग क शैल को न न 4 भाग मे वभ त कया जाता है –
(अ) ग डवाना कम क शैल (ब)
द कन े प, (स) टरशर (द) वाटरनर म
क शैल ।
(अ) ग डवान म क शैल
इन शैल का नमाण ऊपर
काब नीफेरस से जुरै सक युग के म य हु आ
। इस काल म व व म एक वशाल
थलु पुज
ं के वख डन से जल व थल के
वतरण म भार प रवतन के फल व प
अंगारा लै ड, ग डवाना लै ड, टथीस सागर
को नमाण के प चात ् हमयुग का अ वभाव
हु आ तथा हमनद य व नद य अपरदन से
न तवत भाग म अवसाद न ेपण हु आ,

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दलदल घा टय म उगे वन दलदल े मे दब गय, फलत: वन प त के पा तरण से कोयले
क उ प त हु ई । भारत म ग डवाना शैल ाय वीपीय भारत म मु यत: दामोदर घाट , महानद
घाट , गोदावर घाट के अ त र त आंध दे श व महारा म पाई जाती ह ( च 14) । इन शैल
से दे श का 98 तशत कोयला ा त होता ह, बालू प थर, चीका म ी व ल नाइट भी मलता
है।
(ब) द कन े प
टे शस युग के अंत म ाय वीपीय भारत
के पि चमी भाग पर दरार उदभेदन से बड़े पैमाने पर
वालामुखी या होने से द कन के मु य पठार क
उ प त हु ई । दकन े प म बेसा ट व डोलोराइट लावा
न मत शैल मुखत: पाई जाती ह । लावा न ेप क
परत कु छ े म 2 मीटर से 35 मीटर गहर ह
क तु पि चमी भाग मे 2500 मीटर से अ धक
गहराई तक मलती है।
वालामुखी च ान के रण से ए यू मना
लोहा, मगनीज यु त उवर काल म ी का नमाण
हु आ, िजसे रे गर या कपास क काल म ी भी कहते
ह ।
भारत म दकन े प का व तार लगभग 5
लाख वग कमी. े पर मु यत: महारा , गुजरात, मान च 1.6 ट यर शैल
त मलनाडु के अ त र त म य दे श, आ दे श, कनाटक आ द रा य म दे खा जाता है ( च 15)।
(स) टरशर म क शैल
इन शैल का नमाण इओसीन युग से लेकर लायोसीन युग तक हु आ । इस युग म पांच
व भ न चरण म हमालय का उ थान हु आ । इस युग म न मत च ान भारत म हमालय ेणी,
िजनका व तार समीपवत पड़ौसी दे श पा क तान म मकरान तट ेणी, सु लेमान-क थर तथा
यांनमार म अराकान योमा तक है तथा ाय वीपीय भारत म केवल तट य े म भी टरशर
शैल पायी जाती ह ( च 1 .6) । इन च ान म चू ना प थर, बलु आ प थर, लेट आ द के साथ
जीवा म भी पाये जाते है ।
(द) वाटरनर युगीन शैल
इस समू ह से स बि धत शैल का नमाण ल टोसीन तथा आधु नक काल (होलोसीन
युग ) म हु आ । ल टोसीन म क शैल क उ प त काल म यापक हमावरण का सार था ।
इस युग म क मीर घाट , झेलम घाट क शैल क उ प त के साथ गंगा, मपु , सतलज,
नमदा, ता ती, गोदावर , कृ णा न दय क घा टय मे पुरातन काँप (गंगा घाट म िजसे बागर भी
कहते है) तथा उ त न दय क नचल घा टयाँ म नवीन काँप (िजसे गंगा धाट मे खादर कहा
जाता है) यापक प मे पायी जाती है ।
14
बोध न : 2
1. आ क यनयु गीन शै ल द णी ाय वीप के कु ल भाग के कतने तशत भाग पर
व तृ त ह, वह है :
(अ) 1/4 भाग पर (ब) 1/2 भाग पर
(स) 2/3 भाग पर (द) 3/4 भाग पर
2. धारवाड़ म क च ान का नामकरण कनाटक रा य के िजस िजले के आधार
पर हु आ ह, वह है
(अ) धारवाड़ (ब) शमोगा
(स) चतलदु ग (द) चकमं ग लू र
3. व ड़यन यु गीन शै ल का नमाण आज से कतने वष पू व हु आ ह, वह है
(अ) 60 करोड़ वष से 35 करोड़ वष पू व
(ब) 70 करोड़ वष पू व.
(स) 80 करोड़ वष से 40 करोड़ वष पू व
(द) 90 करोड़ वष पू व
4. दकन े प म लावा न े प क गहराई जहाँ तक ह , वह ह
(अ) 2000 मीटर से कम 2500 मीटर से अ धक (व)
(स) 2500 मीटर से कम (द) 3000 मीटर से अ धक
5. हमालय िजस पवत नमाणकार यु ग से स बि धत ह, वह ह :
(अ ी के ि यन यु ग (ब) के ि टयन यु ग
(स) हरसी नयन यु ग (द) ट शयर यु ग
आधु नक युग क शैल क नमाण या वतमान समय भी अनवरत प से जार है ।
उ तर व द णी भारत क न दय के मु हान पर काँप के नवीनतम न ेप के माण ह।
गंगा- मपु क नचल घाट के बंगाल क खाड़ी तट य े म बालु का तु प के नवीनतम
न ेप इसी ेणी म आते ह ।

1.2.6 भारत के भू क पीय े व भौग भक संरचना का स ब ध

भारत के भूक पीय े उसक भौग भक संरचना पर पर घ न ठ प से स बि धत है ।


दकन का भू ख ड एक ि थर ाचीनतम भू भाग ह, जो भूक प से यूनतम भा वत है । वष
1993 म लाटू र मे आये भीषण भू क प ने इस मा यता को अमा य कर दया । हमालय भू भाग
व व का नवीनतम पवतीय भाग है, िजसका उ थान वतमान म भी जार है तथा असंतु लत है ।
इन दोन के म य उ तर. का वशाल मैदान हमालय क भां त अभी संतु लत नह ं है । हमालय
ख ड तथा उ तर के मैदानी े म पवत नमाणकार शि तय के कारण अभी भी आंत रक
हलचल होती ह । जब क सामा य भा वत े म उ तर का मैदान सि म लत है । हमालय का
द णी भाग, भारत के सु दरू उ तर पूव भाग, गुजरात का क छ े भीषण व अ य धक गहन
भू क प क आवृ त का े रहा है ।

15
1.3 धरातल य वभाग (Relief divisions)
भारत क धरातल य आका रक म पया त व वधताये पायी जाती ह । उ तर भाग म
युवाव लत ऊँचे पवत, हमा छादन, वषम धरातल, युवा नद घा टयाँ व यमान है । इसके
द ण म समाना तर प मे व तृत मैदान अवि थत ह । द ण म ाचीन युग के अपर दत
ाय वीपीय पठार भू ख ड ि थत है, द ण म यह पठार दोन ओर से तट य मैदान से आब है
तथा अरब सागर व बंगाल क खाड़ी म वीपीय मालाय अवि थत है । इन उ चवचीय व प के
वकास म भू ग भक संरचना, म तथा वकास क अव था का भाव प टत: प रल त होता
है । इन भू व प क व वधताओं के प रपे य म भारत क उ चावचीय व वधताओं को
न नां कत तीन वग म वभ त कया जा सकता है ।
1. 300 मीटर से कम ऊँचाई वाले भूभाग : दे श का लगभग 43 तशत भू भाग 300 मीटर
से कम ऊँचाई वाला है, इसम गुजरात का क छ ांत 50 मीटर से कम ऊँचा है, जब क गंगा
सतलज के मैदान 150-300 मीटर ऊँचे ह, पूव व पि चमी समु तट य मैदानी भाग 50 से
150 मीटर ऊँचे ह ।
2. 300 मीटर से 1200 मीटर ऊँचाई वाले भू भाग : दे श का स पूण ाय वीपीय भाग इस
ेणी म आता ह, जो दे श के 27.7 तशत भाग पर फैला हु आ है ।
3. 1200 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले भूभाग: इस वग म भारत के उ तर भाग क
पवतीय े णयां सि म लत ह । दे श के 29.3 तशत भूभाग पर पवत े णय का व तार
दे खा जा सकता है।

1.3.1 भौ तक वभाग

उ त धरातल य व वधताओं के आधार


पर भारत को न न उ चावचीय त प म
वभ त कया जा सकता है ( च 1.7) ।
1. हमालय पवत े
2. उ तर भारत का वशाल मैदान
3. ाय वीपीय पठार
4. समु तट य मैदान
5. भारतीय वीप मान च 1.7 भौ तक वभाग

1.3.2 हमालय पवतीय े

इस पवतीय भू भाग का व तार 5 लाख वग कमी. पर ह । हमालय पवतीय े भारत


के उ तर भाग म चापाकार आकृ त म है ।
क मीर से लेकर अ णाचल दे श तक 2400 कमी. ल बाई म व तृत ह । इसक
चौड़ाई 160 कमी. से 400 कमी. के म य तथा औसत ऊँचाई 600 मीटर ह । मु य हमालय

16
खृं ला का व तार भारत, नेपाल व भू टान म ह कं तु इसका उ तशं ढाल अंशत: त बत म,
पि चमी व तार पा क तान, अफगा न तान, म य ए शया म ह । व तु त: यह पवतीय खृं ला
पामीर क गाँठ से द ण पूव म नकलने वाल एक शाखा है ।
व वान ने इस पवतीय भूभाग को दो भाग म वभ त कर अ ययन कया है :-
(1) भौगो लक वभाजन, (2) ादे शक वभाजन
(1) हमालय का भौगो लक वभाजन –
इस वभाजन को अनुदै य वभाजन भी
कहते ह । इस 'आधार पर हमालय को चार
भाग म वभािजत कया जाता है । (अ) ांस
हमालय, (ब) वृहद हमालय , (स) लघु हमालय
एवं (द) शवा लक ( च 1.8)।
(अ) ांस हमालय : यह हमालयी पवत
े णय उ तरतम व त बत क ओर अवि थत
होने से इसे त बत हमालय भी कहते ह । ांस
हमालय क ल बाई लगभग. 1000 कमी चौड़ाई
म य म 20 कमी से लेकर शर पर 40 कमी. मान च 1.8 हमालय तथा उससे संबं धत
पवत मालाएँ
तथा औसत ऊँचाई 3000 मीटर है । ांस हमालय म ।मान च 1 .8 हमालय तथा उससे
स बि धत पवत मालाएँ कराकोरम, ल ाख, जा कर, कैलाश पवत े णयॉ सि म लत ह ।
जा कर व ल ाख े णय के म य संधु नद वा हत होती है, कराकोरम ेणी क मुख चोट के
2 है जो 8611 मीटर ऊँची है । यहाँ अनेक हमन दयां ह, िजनम सयाचेन हसपार, बलटार
मु य ह तथा डगला बमा, शाल आ द मु ख दर भी ि थत है ।
(ब) वृहद हमालय: इसे हमा , महान हमालय, मु य हमालय, आंत रक हमालय भी कहा
जाता है । इसका व तार पि चम म संधु नद के मोड़ (नंगा पवत के पास) से पूव म ापु
नद के मोड़ (नामचा बरवा पवत के पास) तक लगभग 2500 कमी. ल बाई ह । इसक औसत
ऊँचाई 6000 मीटर ह । इसम 40 से अ धक पवत चो टयां 7000 मीटर से अ धक ऊँची ह ।
इनम मु य उ लेखनीय - माउं ट एवरे ट (या सागर माथा या चोमोलंगमा 8848), न दादे वी
(7818 मीटर), नंगा पवत (8126 मीटर), गोसाई थान (8013 मीटर), गाड वन आ तीन
(8611 मीटर), कंचनजंघा (8598 मीटर), मकालू (8481मीटर), अ नपूणा (8078 मीटर),
मनसालू (8156 मीटर), धौला गर (8172 मीटर), ब नाथ (7138 मीटर), नीलकंठ (7033
मीटर) पवत चो टयाँ है ( च 1.9) । अ धक ऊँचाई के कारण ये पवत े णयाँ सदै व हमा छा दत
रहती ह तथा यहाँ अनेक हमन दयां ह िजनम गलाम, गंगो ी, जेमू हमनद मु य ह । यहां
संध,ु सतलुज, व मपु ( दहांग) न दय क बहु त सक ण
ं घा टयाँ है तथा यह े गंगा, यमु ना
व इसक सहायक न दय का उ गम े भी ह । इस े म भी अनेक दर भी मलते ह - इनम

17
ज मु क मीर म बुिजला, जोिजला, हमाचल दे श म शपक ला, उ तराख ड म ल पूलेख,
सि कम म नाधू ला दरा वशेष उ लेखनीय ह ।
(स) लघु हमालय : इसे म य हमालय भी कहते ह । यह े महान ् हमालय के द ण म
समाना तर प से फैला ह, िजसक चौड़ाई 60 से 80 कमी. तथा ऊँचाई मु यत: 1000 से
3000 के म य ह तथा अ धकतम ऊँचाई 4500 मीटर तक पायी जाती है । यहाँ क मु य
े णयां मे पीरपंजाल, धौलाधर उ लेखनीय है । इस दे श मे ि थत पवत ढाल पर घास के मैदान
ह, िजनमे गुलमग, सोनमग, खलनमग, टनमग स घास के मैदान है । लघु हमालय मे
ि थत पवत े णय पर शमला, चकराता, नैनीताल, रानीखेत, मसूर आ द पयटन नगर बसे हु ए
ह । इस दे श के पि चमी भाग म क मीर घाट तथा पूव म य भाग मे काठमांडू क घाट
ि थत है ।
(द) शवा लक: इसे उप हमालय या बा ा हमालय भी कहते ह, ये हमालय के द णी भाग
ह । इस े म ज मू क पहा ड़य से लेकर वखं डत खृं ला म नेपाल म धां ग, ड डवा तथा
अ णाचल दे श म डफला, म र अभोर आ द पहा ड़याँ सि म लत है ।
इस े म व तृत धा टयाँ भी ि थत ह, िज ह पि चम म दून तथा पूव म वार कहते
ह । इनम दे हरादून, ह र वार वशेष उ लेखनीय है ।
(1) हमालय का ादे शक वभाजन
यह हमालय का अनु थ वग करण नाम से भी जाना जाता है । सडनी बुराड ने नद
घा टय के आधार पर हमालय का ादे शक वग करण तु त कया ह, िजसक पूव सीमा
मपु नद तथा पि चमी सीमा संधु नद वारा नधा रत होती है । इ होन क मीर से असम
तक हमालय को 4 ादे शक ख ड म वभ त कया है, जो न न है -

मान च 1.9 हमालय के मु ख पवत शखर


(अ) पंजाब हमालय: यह दे श क मीर म संधु नद से हमाचल दे श म सतलज नद के
म य ि थत 560 कमी. ल बाई व तृत है । जहां कराकोरम , जा कर, पीरपंजाल,
धौलाधर पवत े णयां ि थत ह ।
(ब) कु मायू ं हमालय: इसका व तार पि चम म सतलज और पूव म काल न दय के म य
320 कमी. क ल बाई म ह, इसका अ धकांश भाग उ तराखंड रा य म फैला हु आ ह ।
गंगा-यमु ना न दय के उ गम े यह ं ि थत ह । ब नाथ, केदारनाथ, गंगो ी, सतोपथ
आ द पवत शखर इसी े म ि थत ह ।

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(स) नेपाल हमालय: हमालय का यह भाग पि चम म काल नद से लेकर पूव म त ता
नद के म य 800 कमी. क ल बाई म व तृत है । हमालय क 8000 मीटर से
अ धक ऊँची चो टयां इसी भाग म ि थत ह, उनम माउ ट एवरे ट, कंचनजगा, मकालू
धौला गर , मनसालू अ नपूणा मु य ह ।
(द) असम हमालय : इसका व तार त ता नद से दहंग ( मपु ) नद तक 720 कमी.
ल बाई म सि कम से अ णाचल दे श रा य म व तृत ह । यहां क पवत े णय मे
चोमोलहाट , कु लाकाग डी, आका, दफला, म र, अमोर, आ द मु य ह ।
पूवाचल क पवत े णय म मु य प से मेघालय मे गारो, खासी, जयं तयाँ, तथा
नागालै ड, म णपुर, पुरा क े णय मे मसमी, पटकोई व लु साई उ लेखनीय ह ।
बोध न : 3
1. भारत म 3 00 मीटर से कम ऊँ चाई वाले भू भाग कु ल े का तशत है :
(अ) 33 तशत (ब) 43 तशत
(स) 53 तशत (द) 23 तशत
2. भारत म 1200 मीटर से अ धक ऊँ चाई वाले भू भाग कु ल े का तशत है :
(अ) लगभग 29.3 तशत (ब) लगभग 3 0. 3 तशत
(स) लगभग 31. 3 तशत (द) लगभग 32.3 तशत
3. क मीर से अ णाचल दे श तक हमालय कु ल ल बाई म चापाकार आकृ त म
फै ल ह , वह है :
(अ) 23 00 कमी ल बाई म (ब) 24 00 कमी. ल बाई म
(स) 25 00 कमी ल बाई म (द) 2200 कमी. ल बाई म
4. हमालय पवत े णय क ओर सबसे बा य भाग भाग का नाम न न म से
ह:-
(अ) कु मायू ं हमालय (ब) ने पाल हमालय
(स) ां स हमालय (द) लघु हमालय
5. के 2 पवत शखर क ऊँ चाई ह
(अ) 8411 मीटर (ब) 85 1 1 मीटर
(स) 66 1 1 मीटर (द) 87 11 मीटर
6. पि चम म सतलज व पू व म काल संध के म य ि थत हमालय का ादे शक
वग करण का नाम ह:
(अ) पं जाब हमालय (ब) कु मायू ं हमालय
(स) ने पाल हमालय (द) असम हमालय
असम हमालय के ादे शक वग करण हे तु इसक पू व एवं पि चमी सीमाओं पर
वा हत होने वाल जो न दयाँ ह , वे ह
(अ) संधु व सतलज (ब) सतलज व काल
(स) काल व त ता (द) त ता एवं मपु
हमालय क उ प त

19
हमालय क उ प त 65-70 म लयन वष पूव पुरानी मानी गई ह । काब नीफेरस काल
(35 म लयन वष पूव ) म हमालय के थान पर एक टे थीजसागर नामक भूस न त थी, िजसके
उ तर म अंगारा लै ड एवं द ण म गौ डवाना लै ड भू ख ड अवि थत थे । कालांतर म टे थीज
सागर म तलछट न ेपण होता गया । त प चात ् मेसोजोइक युग के अं तम चरण म तथा
के य जोइक युग के ारं भक काल म गौ डवाना लै ड के उ तर क ओर खसकने से टैथीज सागर
म न े पत अवसाद म स पीडन से हमालय का उदव ट शयर काल म हु आ । हमालय क
उ पत क या इयोसीन, मायोसीन, लायोसीन, काल तक अनवरत जार रह । व वानो का
मत ह क वतमान म भी हमालय ऊँचा हो रहा है ।
लेट ववत नक के अनुसार हमालय का उ थान भारतीय लेट के यूरे शयन लेट से
टकराव के कारण पांच चरण म स प न हु आ । इस मतानुसार हमालय का थम उ थान
टे शयस पूव इयोसीन युग म ादे शक काया तरण हु आ, वतीय उ थान इयोसीन युग म
टै थीज सागर म हु आ, तृतीय उ थान म य मायोसीन युग म लघु हमालय म वृहद चलन के प
म था, चौथा उ थान लायोसीन- ल टोसीन युग म हमालय पद य भाग म ऊ थान के साथ
मु य सीमा श
ं क उ प त हु ई तथा पांचवा ग थान ल टोसीन युग म हमालय अवसानकाल म
हु आ ।
हमालय का मह व
भारत क भू आक रक म हमालय का अपना अ वतीय थान व व श ट मह व ह यथा
1. हमालय भारत क जलवायु को नयं त फरता ह उ तर से आने वाल ठं डी हवाओं को
रोककर दे श म उ च ताप बनाये रखन म योगदान दे ता ह, रगथ ह मानसू नी
आ तायु त पवन को रोककर वषा करने म अहम कु मइका अदा करता ह ।
2. हमालय अनेक हम न दय का उ गम ोत ह, गंगौ ी व यमु नो ी से मश: गंगा व
यमु ना न दयाँ ज म लेती ह । इ ह ं न दय से उ तर भारत के मैदान म जलाशतइr
होती ह ।
3. हमालय े म सघन वन व धास के मैषान भी पाये जाते ह
4. ये व य जीव क आ य थल , फलो यान, वभ न कार के पु प, जड़ी बू टय ,
ाकृ तक चारागाह उपल य कराते ह ।
5. हमालय े म ल नाइट, पे ो लयम, तांबा, सीसा आ द अनेक कार के ख नज ा त
होते ह ।
6. इस े म अनेक पयटन वार यवधक थल ि थत ह यथा पहलगाम, गुलमग , ीनगर,
धमशाला, शमला, सोलन, अ मोड़ा, मसू र , रानीखेत, दे हरादून आ द ।
7. यहाँ ब नाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, ह र वार आ द तीथ थल ि थत ह ।

1.3.2 उ तर भारत का वशाल मैदान

यह मैदान हमालय पवत एवं द णी ाय वीप के म य अवि थत ह ।


मैदान क वशेषताय -

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1. ि थ त एवं व तार : उ तर भारत का मैदान हमालय पवत एवं द णी ाय वीप के
म य अवि थत ह । रावी-सतलज के कनार से लेकर गंगा नद के मु हाने तक 2400 क.मी.
ल बाई म व तृत ह , िजसक चौड़ाई अ धकांशत: 250 से 350 कलोमीटर ह कं तु सबसे संक ण
प म असम घाट म 90 से 100 क.मी.तथा बंगाल म अ धकतम 400 क.मी., चौड़ा है ।
इसका कुल े फल 7.77 लाख दवग क.मी.है िजसमे संध का मैदान, पंजाब ह रयाणा का
मैखाना राज थान का म थल, गंगा यमु ना का मैदान व असम क मपु क घाट सि म लत
है।
2. जलोढ़क न ेप क गहराई : यह मैदान उ तर म हमालय तथा द ण मे ाय वीपीय
भारत से आने वाल न दय वारा लाये गये जलोढ़क पदाथ के न ेपण से न मत हु आ है ।
अत: यह एक व श ट अ भवृ क के प मे ह , जहाँ जलोढ़ के जमाव 2000 मीटर क गहराई
तक मलते ह, पि चमी भाग म तलछट का भराव सापे क प से कम गहरा है ।
3. ढाल व ऊँचाई : यह मैदान समतल एवं धीमे ढाल क वशेषताओ से यु त है । इस
मैदान का औसत ढाल 25 सेमी. त क.मी.से भी कम है । यह मैदान औसतन समु तल से
200-300 मीटर ऊँचा ह । मैदान का ढाल समु के नकट म ी तलछट जमाव से इतना कम
हो जाता है न दय म म ी भार वहन करने क शि त ीण हो जाती है । प रणामत: नद
अनेक धाराओं म वभ त हो जाती है, बीच-बीच म डे टा दे श म रे त के ट ले न े पत हो जाते
ह ।
4. उप वभाग : उ तर भारत के वशाल मैदान भी उ चावच भ नताओं तथा कछार -तलछट
के भ न वभाव व कृ त के आधार पर इसे न न उप वभाग म वभािजत कया जा सकता
है-
(अ) भाबर: सतलज से त ता नद तक 8 से 16 क.मी. चौड़ाई म व तृत पवतपद य मैदान
को भाबर कहते ह । शवा लक के ढाल पर तेज ग त से वा हत नद के साथ कंकड़, रे त बजर
आ द यहाँ न े पत हो जाते ह । चू ं क ये न ेप काफ पारग य होते ह अत: छोट -छोट
स रताय ी म ऋतु म यहाँ भू मगत हो जाती ह, बड़ी न दय म अ धक जल वाह से सतह पर
वा हत दखाई दे ती है ।
(ब) तराई : यह े भाबर के लगभग द ण म समाना तर प से 15 से 30 क.मी.चौड़ाई
म व तृत ह जहाँ भाबर े म भू मगत हु ई न दय पुन: धरातल पर कट होती ह तथा चू ं क
यहाँ न दय का नि चत वाह माग नह ं होने से जल फैल जाता है अत: यह दलदल भू व प
बन जाता है । भाबर क तु लना म यहाँ तलछट न ेप बार क कण को दे खा जाता है। यहां वन
का अ छा व तार ह, फलत: व य जीव ज तु भी पाये जाते ।
(स) बांगर: उ तर भारत म न दय के तट से दूर उ चभाग पर पुराने कछार तलछट न ेप
को बांगर कहते ह । यहाँ क म ी म चू ना, कंकड़-प थर न े पत हो जाते ह । अब यहाँ न दय
क बाढ का पानी नह , पहु ंचता है । यहां बाढ़कृ त मैदान के ऊपर जलोड़क वे दकाय बनी हु ई
दे खी जाती ह । बांगर म य -त मलने वाले बालू के ढे र को भू ड़ कहते ह ।

21
(द) खादर : नद तट के नकट ये नवीन काँप के ऐसे मैदान ह जहाँ तवष बाढ़ के पानी
वारा म ी का नवीनीकरण होता रहता ह । फलत: म ी क उवरता बनी रहती ह । ये पंजाब,
उ तर दे श, बहार तथा बंगाल म अ धक ह । उ तर दे श म इ ह खादर तथा पंजाब म बेट कहते
ह ।
उ तर मैदान का ादे शक वभाजन
उ चावचीय वशेषताओं के आधार पर इस मैदान को न न भाग म वभ त कया जाता
ह :-

मान च 1.10 उ तर भारत का मैदान


1. पंजाब-ह रयाणा मैदान : इसे सतलज मैदान कहा जाता है । इस मैदान का व तार पंजाब,
ह रयाणा द ल रा य म लगभग 1.75 लाख वग क.मी. े म ह । यह मैदान 640
क.मी.ल बा तथा लगभग 300 कमी. चौड़ा है । यह सतलज, रावी, यास न दयाँ वा हत
है । इसका ढाल उ तर-पूव से द ण-पि चम क ओर है ।रावी और यास नद के म य के
भाग को बार दोआब तथा सतलज और यास नद के म य को ब त जलंधर दोआब कहते
ह ।
2. ऊपर गंगा मैदान: इस मैदान का व तार उ तर म शवा लक ेणी, द ण म ाय वीपीय
पठार, पि चम म यमु ना नद , पूव म इलाहाबाद तक व तृत ह । इस भाग क मुख न दयाँ
यमु ना, गंगा..शारदा, गोमती व घाघरा ह । यह मैदान 550 क.मी.ल बा तथा 380
क.मी.चौड़ा व 100-300 मीटर ऊँचा है ।
3. म यगंगा मैदान : इस मैदान का व तार पूव उ तर दे श तथा बहार के मैदानी भाग ह,
इसक पूव पि चम ल बाई 600 क.मी.उ तर-द ण चौड़ाई 320 क.मी.है । समु तल से
ऊँचाई 100 मीटर से भी कम ह । इस मैदान क मु ख न दयाँ गंगा क सहायुक घाघरा,
गंडक, कोसी मु य है ।
4. नचल गंगा का मैदान : इस मैदान का व तार उ तर पहाड़ी सर को छो कर स पूण
पि चमी बंगाल पर है । यहा क मु ख न दयाँ त ता, भागीरथी, मयूरा ी, हु गल , दामोदर,
वणरे खा आ द मु य है । इस मैदान क ल बाई उ तर-द ण से 580 क.मी. पूव -पि चम
अ धकतम चौड़ाई 200 क.मी.व अ धकतम ऊँचाई 45 मीटर है । इसका अ धकांश द णी
भाग समु वार से जल ला वत रहता है । नई. पंक, पुरानी पंक व दलदल इस मैदान क
भू यावल क मु य वशेषता है ।

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5. मपु का मैदान : हमालय पवत तथा मेघालय पठार के बीच ि थत संक ण प ी म
व तृत इस मैदान क मु य नद मपु है । यह मैदान 720 क.मी.ल बा तथा 80
क.मी. चौड़ा है ।
6. राज थान का मैदान : यह एक शु क व अ शु क रे तीला म थल य मैदान ह जो अरावल
पवत के पि चम म भारत-पाक सीमा तक 644 क.मी.ल बाई व 661 क.मी.चौड़ाई म
व तृत है । यह राज थान के थार म थल के नाम से जाना जाता है , जहाँ बालु का तु प
पाये जाते ह ।
मैदान क उ पत : हमालय पवत मालाओं के उ थान प चात ् पवतीय भाग के पदतल पर
इओसीन काल म वशाल खडु का नमाण हु आ । यह खडु पवत म तथा व यन- कैमू र पवत
के म य समु वारा आवृत था । कालांतर म भौग भक हलचल से इस जल य खडु का अवसान
होता गया । इओसीन काल म समु के मश: सकु ड़त जाने से उ तर पि चमी वा हत न दय
वारा आसाम से पंजाब तक वा हत होता रहा । व भ न भौग भक हलचल से काला तर म
उ तर पि चमी जल वाह म प रवतन होने से न दय को पुनजीवन मलने से तलछट भराव
होता रहा तथा काला तर म वृह खडु भरने से भारत के उ तर मैदान का नमाण हु आ ।

1.3.3 ाय वीपीय पठार

भारत के वशाल उ तर भारत के द ण म भु जाकार आकृ त म लगभग 16 लाख वग


क.मी. े पर फैला यह व व के ाचीनतम पठार म से एक ह, जो तीन ओर से समु वारा
घरा है । इसके पूव म बंगाल क खाड़ी. पि चम म अरब सागर तथा द ण म ह द महासागर
है ।
उ पि त : भू ताि वक इ तहास क ि ट से ाय वीपीय पठार केि बयन काल के ाचीनतम भूख ड
ग डवाना लै ड का भू ख ड है । ये थायी भू ख ड कभी जलम न नह ं रहे. । अपने भौग भक
काल म भूख ड हलचल वारा ये अ भा वत रह तथा कभी यहां वलन उ प न नह ं हु ए । हालाँ क
स पीड़न व तनाव याओं वारा यहाँ श
ं व दूटन के माण मलते ह ।
व वान ने माण के आधार पर बतांबा क ाचीन गौ डवाना लै ड भौग भक. हलचल
के कारण अलग-अलग भू ख ड म यथा- ाय वीपीय भारत, मेडागा कर. द णी अ का, द णी
अमे रका, आ े लया एवं अंटाक टका म वभ त ह । उ त सभी भू भाग म समान ार क
कठोर रवेदार च ान मलती है ।
भौगो लक वशेषताय
1. इस पठार क पि चम म गुजरात से पूव म
पि चमी बंगाल तक अ धकतम चौड़ाई 1400 क.मी.
उ तर म राज थान से द ण म कुमार अंतर प तक
अ धकतम ल बाई 1700 क.मी.ह इसक औसत ऊँचाई
600 मीटर है ।
2. यह व व के ाचीनतम पठार म से एक ह ।
मान च 1.11 द ण का पठार

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3. यह द ण म ऊँचा है तथा उ तर पूव क ओर अपे ाकृ त नीचा होता गया है । यहाँ पर
पूव म यह औसतन 760 मीटर ऊँचा है व अ धक कटा-फटा है ।
4. पि चमी भाग पर अरब सागर के समाना तर पवतीय द वार को पि चमी घाट कहते ह
इस घाट म तीन दर ह । उ तर म थाल घाट व भोर घाट तथा द ण-पि चम म पाल घाट है ।
इन दर से रे लमाग गुजरते ह ।
5. पठार के पूव भाग पर महानद , गोदावर , कृ णा, कावेर आ द न दयाँ तट य डे टा
बनाकर समु म गरती है ।
ाय वीपीय पठार क मह वपूण पवत े णयाँ
इस पठार े के उ तर सरे पर पूव-पि चम व तार वाले पवत तथा शेष उ तर-द ण
व तार वाले पवतीय भू भाग इसके पि चमी व पूव भाग पर फैले हु ए ह । ये पवत अनावृ तकरण
क याओं के फल व प काफ अपर दत हो गये ह तथा अव श ट पवत के प म दखाई दे त
ह ।
अरावल पवत ेणी: भारत के पवत म अरावल सवा धक ाचीनतम ह । ये े णयाँ गुजरात से
द ल तक लगभग 800 क.मी.क ल बाई म फैल ह । ये े णयाँ औसतन 200 से 600 मीटर
तक ऊँची ह । इनम सव च शखर आबू पवत पर गु शखर है । अरावल ेणी जल वभाजक
के प म मलती ह । इस ेणी से नकलकर पि चम क ओर माह व लू नी न दयाँ अरबसागर
म गरती ह तथा पूव क ओर बनास जो चंबल क सहायक ह, यमु ना नद म मलकर बंगाल क
खाड़ी म गरती ह ।
वं याचल कैमू र पवत खृं ला : पि चम म गुजरात से ार भ होकर भारत के म यवत भाग पर
मालवा के पठार के द ण म बघेलख ड तक 760 से 1220 मीटर ऊँचाई म फैल वं याचल
पवत ह । ये े णयाँ मु यत: बलु ई, चू ना प थर व वाटजाइट च ान से न मत ह । पूव क
ओर वं याचल पवत ेणी एक ढ़ कगार के प म पायी जाती ह । यह ेणी एक (जल
वभाजक के प म गंगा के वाह दे श को नमदा-ता ती तथा महानद के वाह दे श से अलग
करते हु ए उ तर भारत को द ण भारत से अलग करती ह । कैमू र े णयाँ बघेलख ड और
बु दे लख ड क सीमा पर व तृत ह ।
सतपुड़ा : नमदा ओर ता ती न दय के म यवत व तृत दे श अनेक समाना तर े णय से धरा
हु आ है, ये े णयाँ सतपुड़ा क ह िजनक ल बाई 1120 क.मी.ह, ये पि चम म पि चमी घाट से
राजपीपला पहा ड़य से होती हु ई महादे व, मैकाल क पहा ड़य के प म छोटा नागपुर पठार तक
फैले हु ए ह । सतपुड़ा क औसत ऊँचाई 760 मीटर ह, धू पगढ़ (1350 मी.), पंचमढ़ (1334
मी.), व अमरकंटक (1066 मी.) मु ख चो टयाँ है ।
पि चमी घाट क पहा ड़याँ: यह पवत खृं ला द णी पठार के पि चमी-उ तर से द ण दशा मे
पि चमी तट के समाना तर कु मार अंतर प तक 1600 क.मी.ल बाई म फैल हु ए ह । अरब
सागर क ओर से कगार स श है । जब क पूव म इनका ढाल कम है ।
उ तर मे ये 50 क .मी.चौड़े ह जब क द ण म इनक चौड़ाई 80 क.मी.है । इनक
औसत ऊँचाई 1200 मीटर ह, क तु द ण म ये 2600 मी. से अ धक ऊँचे ह । अ नैमलाई म

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अनैमद (2700 मीटर), नील गर क पहा ड़य म दोदाबेटा (2636 मी.) यहाँ क स पवत
शखर है ।
उ तर म पि चमी घाट के उ तर भाग क ताि त नद से गोआ तक फैला है, उसे उ तर
सहया नाम से जाना जाता है । यहां महाबले वर (1438 मी.) एक स पयटन थल है ।
द ण सहया े म अ य पयटन थल म नील गर क तलहट म उटकमंड, पालनी
क पहा ड़य म कोडाईकनाल ि थत है ।
पूव घाट क पहा ड़याँ : पूव घाट ाय वीप के पूव भाग पर समु तट के समाना तर लगभग
1300 क.मी.ल बाई म फैला हु आ ह । ये पि चमी घाट क भां त सतत ् अ वि छ न खृं ला के
प म नह ं ह, महानद गोदावर , कृ णा, कावेर न दय ने इसे कई टु कड़ म काट कर वभ त
कर दया है । इसक औसत ऊँचाई 615 मीटर तथा उ तर म चौड़ाई लगभग 200 क.मी. व
द ण म लगभग 100 क.मी.है । उ तर भाग म गंजाम म महे गर शखर (1501 मीटर)
कोरापुत म नमै गर (1516 मीटर), द ण म शवैराय (1650 मीटर) मु ख पवत शखर है ।
पूव घाट क पहा ड़याँ घस- घस कर अपरदन वारा अ व श ट प म प रव तत हो गई ह ।
ाय वीप के म यवत मु ख पठार
ाय वीपीय पठार दे श लाख वष से नर तर मौसमी याओं तथा अपरदन शि तय
के भाव से अनेक छोटे -छोटे पठार म वभािजत हो गया है । इन पठार म मु य ह - म य दे श
म मालवा, वा लयर, बु दे लख ड, बघेलख ड के पठार, छ तीसगढ़ और ब तर के पठार,
झारख ड रा य म छोटा नागपुर का पठार, उड़ीसा म कोरापुर पठार, महारा रा य म महारा
पठार, गुजरात म सौरा पठार, कनाटक का माल द पठार, त मलनाडु म कोय बटू र व मदुरे का
पठार मु य है । मेघालय रा य म ि थत पठार भी ाय वीपीय पठार का ह भाग माना जाता है,
यह पूवकाल म सतत ् प से ाय वीप से जु ड़ा हु ाअ था कं तु बाद म अधो ंशन से पृथक हो गया
। यह 240 क.मी. ल बा व 96 क.मी.चौड़ा 11000 मीटर ऊँचा कटा-फटा पठार है ।
इनम दकन का पठार महारा , म य दे श, गुजरात, कनाटक व आ दे श के पठार
सि म लत होते ह, छोटा नागपुर का पठार क मु य नद दामोदर नद है । इस पठार क उ तर
सीमा राजमहल व पारसनाथ क पहा ड़याँ बनाती ह, सोन नद उ तर पि चमी सीमा बनाती है,
महानद द णी सीमा, सु वण रे खा नद इसके द णी पूव भाग म बहती ह, ख नज क ि ट से
यह पठार अ यंत समृ है । यहां बॉ साइट , अ क, कोयला, तांबा, वाटज, ोमाइट आ द
ख नज पया त मा ा म मलते ह ।
भारत का ाय वीपीय पठार यहाँ वा हत होने वाल न दय यथा महानद , गोदावर ,
कृ णा, दामोदर, सोन आ द के अपरदन से कई उप वभाग म वभ त हो गया है ।
ाय वीपीय पठार क मह वपूण ंश घा टयाँ : ाय वीपीय पठार के भू ग भक इ तहास के दौरान
कई ववतनकार हलचल वारा श
ं घा टय का नमाण हु आ ह । व वान के मतानुसार ट शयर
युग के पहले हमालय उ थान के पूव सहया पवत के पि चमी घाट का पि चमी ढाल ती है ।

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हमालय उ थान काल न समय भी ाय वीपीय भाग पर ंश पड़ने से नमदा व ता ती
न दय का वाह उ त ंश म नधा रत हु आ । इनम नमदा नद घाट ंश सवा धक मह वपूण
ह ।
नमदा श
ं घाट के उ तर म वं याचल तथा द ण म सतपुड़ा पवत ि थत है । इस
नद घाट क कुल ल बाई 1312 क.मी.है । इसम अपवाह े का वृहद भाग म य दे श म
पड़ता है, शेष गुजरात व महारा रा य म बहु त कम भाग है ।

1.3.4 भारत का समु तट य मैदान

उ प त : एडवड वेस के अनुसार भारतीय तटरे खा क उ प त टे शयस युग म गौ डवाना लै ड


के खि डत होने से हु ई है । जब मूल गौ डवाना लै ड के भाग के पूव अ का , मेडागा कर से
द णी ाय वीपीय भारत खि डत हु आ तब उसका तट सीधा व सपाट था । इसी कारण भारत
का पि चमी तट कम चौड़ा ह ।
अ य व वान ने भारत के तट को कमजोर था बतांबा ह, ऐसा मत एस. बुराड का है ।
अत: यह जलम न एवं उ जनन याओं से भा वत रहा है । क छ व क ठयावाड़ तट पर उ पे
के माण मलते ह । मु बई
ं तट पर जलम नता के माण ि टगोचर होते ह, केरल तट काला तर
से धीरे -धीरे ऊपर उठ रहा है, जो लैगन
ू , बालु का तू प क उ प त से प ट है । पूव तट पर
उ जनन के माण मलते ह य क यहां तटवत े म 20 मीटर ऊँचे ट ल म ि टगोचर होने
वाले सू म जीव के अवशेष मलते ह ।
वशेषताय
1. भारत क समु तट रे खा क कुल ल बाई 4640 क.मी.है जो भारत के कु ल व तार को
दे खते हु ए कम ल बी है ।
2. भारतीय तट रे खा ाय: सीधी सपाट है । तट रे खा म खा ड़याँ, कटान बहु त कम है ।
3. पि चमी तट अ धक संकरा तट है । पि चमी तट एक पतल प ी के प म 64 क.मी.चौड़ाई
म क छ क खाड़ी से लेकर कु मार अंतर प तक फैला ह, कह -ं कह ं 20 क.मी.से 30
क.मी.चौड़ा है वशेषकर क कण एवं मालाबार तट वाले द ण भाग ।
4. पूव तट य मैदान जो ाय वीपीय पठार के पूव घाट व बंगाल क खाड़ी के म य वण रे खा
नद से कु मार अंतर प तक फैला ह, इस तट य मैदान क चौड़ाई 80 से व 150 क.मी.तक
है जो पि चमी तट य मैदान से अ धक है । यह पर न दय वारा बछायी गई कछार म ी
के न ेप ह ।
5. पि चमी तट के सबसे उ तरतम तटवत े क छ ाय: वीपीय तट, क छ से सू रत तक का
तट, का ठयावाड़ तट, सू रत से गोवा तक का े क कण े , गोवा से मंगलू र का े
कनाटक तट, मंगलू र से कु मार अंतर प तक का े मालाबार तट कहलाता है । क छ क
खाड़ी, ख भात व मालाबार तट पर लैगन
ू मलते ह । यह समु लहर वारा बालू जमा
करने से ल बाकार बालू भि तयाँ बन गई ह तथा इन पर वन प त का वकास हु आ है ।

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6. लैगन
ू के ट ब को जब नहर वारा तट के पृ ठ भाग से जोड़ दया जाता है, पृ ठ जल (बैक
वॉटर) बन जाते ह, मालाबार तट पर पृ ठ जल के य दे खे जाते ह ।
7. मालाबार तट पर उथला जलम न मैदान भी है, िजसे समु लहर ने काटकर बचनुमा बना
दया ह ।
8. पूव तट य े जो कृ णा नद के उ तर म गंगा के डे टा तक का भाग काक नाड़ा गोलकु डा
तट नाम से जाना जाता है । कृ णा नद के द ण से कुमार अंतर प का भाग कोर म डल
तट नाम से जाना जाता है ।
9. पूव तट पर अनेक सु दर लैगन
ू झील क उपि थ त दे खी जाती ह । इनम महानद डे टा के
द ण म च का झील िजसक ल बाई 75 क.मी.है, आ दे श के समु तट य भाग पर
पुल कट नामक एक अ य भ य लैगन
ू झील है िजसे ी ह रकोटा नामक वीप समूह समु
से अलग कये हु ए है । मालाबार तट पर संकरे, कं तु ल बे लैगन
ू को कयाल कहते ह ।
10. तट रे खा पर कटान, खा ड़याँ कम होने से अ छे ाकृ तक पोता य कम है । पूव तट पर
वशाखाप नम, मछल प नम ् समु प नम ह अ छे ाकृ तक पोता य के प म वक सत
हु ए ह, जब क पि चमी तट पर मु बई, पणजी, मंगलूर , कोचीन अ छे ब दरगाह वक सत
हु ए ह ।
11. पूव तट पर जलम न घा टयाँ है । इनके ढाल क टबंध महा वीपीय जलम न तट बना रहे ह।
बोध न : 4
1. पु रानी तलछट न े प जहां नद बाढ़ का पानी न पहु ँ चे, वह िजस नाम से जाना
जाता है , वह ह :
(अ) तराई (ब) बां ग र
(स) खादर (द) भाबर
2. भारत का ाचीनतम भू - व प ह
(अ) हमालय (ब) तट य मै दान
(स) द ण का पठार (द) थार का म थल
3. भारत के ाय वीपीय पठार का े फल ह
(अ) लगभग 15 लाख वग क.मी. (ब) लगभग 16 लाख वग क.मी..
(स) लगभग 15.5 लाख वग क.मी. (द) लगभग 16.6 लाख वग क.मी.
4. नील ग र पवत क मु ख चोट का नाम ह
(अ) अमरकं टक (ब) दोदाबे टा
(स) पचमढ़ (द) महे गर

1.3.5 भारतीय वीप समू ह

ाय वीपीय भारत के पि चम म अरबसागर एवं पूव म बंगाल क खाड़ी म ि थत वीप


का ववरण न न
(अ) अरब सागर के वीप

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1. तट के समीपवत वीप: तट के समीप कई छोटे -छोटे वीप वक सत हु ए ह ।
का ठयावाड़ समु तट के कनारे पीरम व भैसला वीप, ख भात क खाड़ी म द व
वीप, क छ क खाड़ी म ि थत वेद, परटान क मार व नोरा वीप तथा नमदा व
ता ती न दय के मु हान के नकट आ लया वेट तथा ख डया वे काँप से न मत छोटे -छोटे
वीप है ।
मु बई के नकट समु े म कई वीप ि थत है । मु बई वयं सालसेट नामक वीप
पर बसा हु आ है । इसके नकट ह हैनरे, कैनरे , बुचर , अरनाल व पयटन थल एल फै टा वीप
ि थत है । मंगलूर के उ तर म भटकल, जननाक वीप अवि थत ह ।
2. तट से दूरवत वीप : भारत के पि चमी तट से लगभग 200 से 300 क.मी.दूर
अरबसागर म 29 वग क.मी. े पर व तृत 25 वीप के समूह-ल वीप समू ह
ि थत ह । इस समू ह म 3 वीप वशेष उ लेखनीय ह । 1 ल क (ल वीप), 2.
अमीनी वीप, 3. मनीकाय वीप । ये सभी वीप मु यत: वाल भि तय से न मत
है । व वान के मतानुसार ये वीप पूववत जलम न अरावल पवत ेणी के ह
अव श ट भाग ह िजन पर वाल भि तयाँ वक सत हो गई है ।
(ब) बंगाल क खाड़ी के वीप
1. तट के समीपवत वीप : बंगाल क खाड़ी मे न दय के मुहान समीप काँप से न मत
कई वीप पाये जाते है । इनम हु गल नद के मुहाने के सामने वीप, महानद के डे टा
े समीप शोट वीप, मु हाने पर हवीलर वीप मु य ह । कु छ च ानी वीप भी पाये
जाते ह उनम च का झील समीप मांडला वीप, ने लोर के नकट ी ह रकोटा मु य है
। तु तीको रन समीप वाल न मत हे यर वीप, म नार क खाड़ी म ो ोडाइल कोटा,
अंडा व पामवन वीप आ द च ानी वीप है ।
2. तट से दूरवत वीप : बंगाल क खाड़ी म लगभग 590 क.मी.ल बाई म, लगभग 58
क.मी.चौड़ाई से व तृत 222 वीप का समू ह चापाकार प म मु य भू म से लगभग
1400 क.मी.पूव म अ डमान नकोबार वीप समूह ि थत है । पोट लेयर यहाँ क
राजधानी है । इस वीप समू ह क ट शयर काल म न मत हमालय के पूवाचल ेणी
का ह एक भाग माना जाता है । ये अराकानयोमा के ह सामु क जलम न पवतीय
व तार ह । अ डमान वीप समू ह म मु य अ डमान (उ तर , म य, द णी,
अ डमान) व लघु अ डमान वीप समू ह म वभ त ह ।
बोध न : 5
का ठयावाड़ तट का व तार न न म से िजन े के म य है , वह ह.
(अ) सू रत से गोआ तक (ब) क छ से सू रत तक
(स) मु बई से सू रत तक (द) मु बई से गोआ तक
पि चमी तट के द ण भाग का नाम न न म से ह.
(अ) गोलकु डा तट (ब) उ तर सरकार
(स) मालाबार तट (द) कोरोम डल तट

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गोलकु डा तट न न म से िजन े के म य ह , वह ह :
(अ) कृ णा नद डे टा से गं गा नद डे टा तक
(ब) कृ णा नद डे टा से कु मार अं त र प तक
(स) सू रत से गोवा तक
(द) मं ग लू र से कु मार अं त रप तक
पु ल कट झील भारत के िजस रा य से स बि धत ह वह ह :
(अ) आं ध दे श (ब) त मलनाडु
(स) उड़ीसा (द) पि चमी बं गाल
भारत के पि चमी समु तट के िजस भाग पर लै गू न का पयाय कयाल नाम से
स है , वह ह
(अ) मालाबार तट (ब) कनाटक तट
(स) का ठयावड़ तट (द) क कण तट
अ डमान वीप समू ह तथा नकोबार वीप समू ह क वभाजक रे खा का नाम
बातइये ।
(अ) 7 ड ी चै न ल (ब) 8 ड ी चै न ल
(स) 9 ड ी चै न ल (द) 10 ड ी चै न ल
नकोबार वीप समू ह 10 ड ी चैनल वारा अ डमान वीप समू ह से अलग है । इसम
उ तर समू ह कार नकोबार तथा द ण भाग महान नकोबार कहलाता है।

1.4 भारत का अपवाह तं (Drainage Pattern of India)


न दयाँ मानव जा त के लए सवा धक मह वपूण है । आ दकाल से ये मानव क र त
के प म भू मका अदा कर रह ं ह।
अपवाह तं दे श के ाकृ तक भू य तथा मानव क आ थक याओं को भा वत करता
है ।
अपवाह तं म नद का वकास, नद का अपवाह ा प, अपवाह णाल , जल हण े
आ द सि म लत होता है । जल वाह णाल से अ भ ाय कसी े क मु य नद एवं उसक
सहायक न दय वारा वक सत एक यव था ह जो पवतीय ढाल के संदभ म नद के बहाव को
अ भ य त करती है ।
भारत म व व के कुल जल संसाधन का 5 तशत भाग ह । भारत म तवष 1869
अरब घन मीटर धरातल य जल रा श का आकलन कया गया है । सतह जल के मु य साधन
न दयाँ, झील, तालाब, पोखर आ द होते है । सतह जल का अ धकांश भाग न दय मे वा हत
होता है । व वान के अनुमान के आधार पर भारत म कुल जल वाह का 32 तशत सतह
जल का उपयोग हो पाता है । भारत म सतह जल का सवा धक वाह संध,ु गंगा एवं मपु
म ह, जो कुल वाह का 60 तशत है ।

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1.4.1 भारत म नद अपवाह तं का वकास

भारत म अपवाह तं का वकास भू थल क नमाण या से स बि धत है । द ण


भारत क न दयाँ (नमदा व ता ती को छो कर) उ तर भारत क हमालय े क न दय से
अ धक ाचीन है, जो ाचीन गौ डवाना लै ड क च ान पर वा हत होती ह । इस भू ख ड पर
व भ न काल म हु ए अनेक नमाणकार प रवतन के कारण इन न दय के वाह म अनेक
प रवतन हु ए है ।
द णी ाय वीपीय न दयां उस ाचीनकाल म भी वा हत होती थी, जब हमालय का
अि त व नह ं था, वहां टे थीज सागर था । जब टे थीज सागर अवसाद न ेप से भर गया तथा
स पीडन से हमालय उ थान के साथ इसके द ण म भू स न त वक सत हु ई, उसम भी द णी
भारत क न दया गरती थीं ।
ाय वीपीय भू ंश म वा हत नमदा और ता ती न दयाँ अपे ाकृ त नई ह । इस श
ं का
ज म गौ डवाना लै ड के वरथापन के कारण हु आ, िजसके कारण हमालय का उदभव हु आ ।
उ तर भारत क वाह णाल नई है । हमालय के उ थान के साथ पुरानी वाह
णाल छ न- भ न हो गई तथा समयानुसार संधु, गंगा, मपु क वाह णाल का वकारा
हु आ ।

1.4.2 भारतीय न दय के अपवाह त प

भारतीय न दय के उापवाह त प का ववरण न न है


1. वृ नुमाकार अपवाह त प : भारत क अ धकांश न दयाँ वृ नुमाकार अपवाह त प
अपनाये हु ये ह । द ण भारत म कृ णा, गोदावर , गंगा-यमु ना व उसक सहायक न दयाँ वृ नुमा
अपवाह तं का नमाण करती है ।
2. समाना तर अपवाह त प : उ गम के बाद हमालय क शवा लक ेणी से गंगा नद
क सभी सहायक न दयाँ ऊपर भाग म समाना तर अपवाह त प का नमाण करती है ।
ाय वीपीय भारत म नमदा व ता ती न दयाँ भी ंश घाट के एक-दूसरे के समाना तर वा हत
होती है ।
3. आयताकार अपवाह त प : आयताकार त प का वाह तं कोसी तथा इसक
सहायक न दय म दे खा जाता है
4. अंशीय या के बहु मुखी अपवाह त प: छोटा नागपुर े म महानद , सोन, नमदा
तथा गोदावर न दयाँ उ च म यवत भाग से बाहर क ओर के बहु मु खी त प या अंशीय
ा प का सु द
ं र उदाहरण
5. खि डत अपवाह त प : हमालय से ज म लेने वाल न दयाँ भाभर के मैदान के लु त
होकर आगे पुन : धरातल पर वा हत होने लगती है । अत: ये खि डत अपवाह त प धारण
करती है ।
6. गुि फत अपवाह त प : अपने वृह डे टा े म अ तमंद ढालयु त धरातल होने से
मु य नद अनेक शाखाओं म वभ त होकर वा हत होती है, उदाहरणतया गंगा, मपु , प ा,

30
मेघना, भागीरथी, हु गल , आ द अनेक उपभाग मे वभ त हो जाती है । यह गुि फत अपवाह
त प के उदाहरण है ।
7. पूववत अपवाह त प: हमालय दे श क संध,ु मपु , गंगा व अ य न दयाँ
हमालय ज म के पूव त बत व इ डो म ( शवा लक) नामक ाचीन न दय के प म
व यमान थी । इ ह ने हमालय के उ थान के साथ-साथ अपने वाह माग को पूववत थान पर
ह बनाय रखकर हजार फ ट महाख ड का नमाण कया है । इन न दय ने ऊपर भाग म
उ थान के व संधष कया ह । अत: ये पूववत अपवाह त प के अ वतीय उदाहरण है ।
8. पूवारो पत (अ यारो पत) अपवाह त प : इस वग म द णी ाय वीपीय भारत क
न दय के अपवाह तं सि म लत होत ह य क इन न दय ने च ानी संरचना के व संधष
कया है, पठार के ऊपर नचल परत क च ानी संरचना म भ नता होने के बावजू द
ाय वीपीय न दय वारा अपना वाह तं उसी माग पर बनाये रखे हु ए ह ।
भू-वै ा नक के मत म वण रे खा, दामोदर, च बल आ द न दयाँ अ यारो पत अपवाह णाल क
तीक है
9. अ तः थल य अपवाह त प : भारत म राज थान के थार म थल म घ घर,
पनारायण, मेढ़ा आ द न दयाँ कसी समु म नह ं गरती ह । ये न दयाँ अ तः थल य अपवाह
त प का नमाण करती. ह । सं ेप म भारत म जल वाह णाल के दोन प अनुवत
(धरातल य ढाल का अनुसरण करने वाल ) तथा अनुवत (धरातल के ढाल के अनु प नह ं , पूववत
व अ यारो पत) अपवाह णाल के प म वा हत होती है ।
भारत क मु ख न दयाँ
भारतं क न दय को मु य प से दो वग - उ तर भारत क न दयाँ व द णी भारत
क न दयाँ म वभ त कया जाता है ।
1. उ तर भारत क न दयाँ : उ तर भारत क अ धकांश मुख न दयाँ हमालय पवत म
ि थत हमनद एवं झील से ज म लेने के कारण वष वा हनी होती है, जो न न ह :
1. संधु नद म : यह व व के वृह अपवाह तं म से एक ह । इस अपवाह तं के
अंतगत संध, झेलम, चनाव, रावी, सतलज, यास मुख न दयाँ है ।
संधु नद का उ गम थल त बत म ि थत मानसरोवर झील का समीपवत भाग -
कैलाश हमानी ह जो समु तल से 5 हजार मीटर ऊँचाई से नकलकठ ल ाख ेणी के सहारे
वा हत होती हु ई नंगा पवत के नकट मोड़ बनाती हु ई द ण पि चम दशा म मु ड़कर भारत
पा क तान म बहती हु ई अरब सागर म गरती ह इस नद क कु ल ल बाई 3890 क.मी.ह ।
भारत म यह 1114 क.मी.ल बाई म बहती ह ।
इसम आकर. मलने वाल छोट -छोट न दय ( गल गत, यांग, योक काबुल नद ) के
अ त र त पांच बड़ी न दयाँ - झेलम (400 क.मी.) चनाव (1180 क.मी.) रावी (25 क.मी)
यास (615 क.मी.) एवं सतलज (470 क.मी.) मु य ह । ये सभी हमालय क बफ ल चो टय
से नकलती ह । इन न दय का वाह े लगभग 12 लाख वग क.मी. है, िजसका 3/4. भाग

31
पा क तान के अंतगत अवि थत है । संधु व इसक पांच न दय का अपवाह पंचनद े
ऐ तहा सक भारतीय पौरा णक वै दक सं कृ त का जनक थल भी रहा है ।
2. माह , साबरमती एवं लू नी अपवाह म : ये न दयाँ क छ क खाड़ी व ख भात क खाड़ी
म गरने वाल न दयाँ. है माह नद : माह नद का उ गम े वं यन क पहा ड़याँ ह इसक
सहायक न दयाँ सोम तथा जाखम, अरावल के द णी भाग से पेनाम तथा बनास वं यन क
पहा ड़य से ज म लेती ह । माह नद मालवा पठार के धार, झाबुआ, राज थान के डू ग
ं रपुर
त प चात गुजरात म वेशकर गोधरा, बड़ोदरा िजल क सीमा बनाते हु ए ख भात क खाड़ी मे
गर जाती है । इस नद क कुल ल बाई 583 क.मी. है ।
साबरमती: यह नद भी राज थान म द णी अरावल दे श म उदयपुर के सीमावत े
से ज म लेती है । इस नद क ल बाई 583 क.मी.है । अ य सहायक न दयाँ हाथमती, मं बा,
मजाम आ द डू ग
ं रपुर पहाड़ी से नकलकर साबरमती म मलती ह तथा गुजरात म बहती हु ई
ख भात क खाड़ी म गर जाती है ।
लू नी: इस नद क ल बाई 450 क.मी.है । इस नद का ज म थल अजमेर के समीप
अरावल क पहा ड़याँ ह तथा अरावल के समाना तर बहती, अ म थल य े से गुजरती हु ई,
गुजरात तट पर क छ क खाड़ी म गरती है । यह केवल वषा काल म ह वा हत होती है ।

3. नमदा व ता ती अपवाह म
नमदा: इस नद का उ गम मैकाल पवत क 1057 मीटर ऊँची अमरकंटक चोट ह, इस
नद क कुल ल बाई 1312 क.मी.व वाह े 98.8 हजार वग क.मी.ह जो अरब सागर म
गरने वाल ाय वीपीय भारत क सबसे बड़ी नद है । यह उ तर म वं ययन पवतमाला कगार
तथा द ण म सतपुड़ा पवत खृं ला के म य ि थत एक दरारघाट म पूव से पि चम दशा म
बहती ह । नमदा नद जबलपुर के नकट संगमरमर च ानी े पर धु आधार (क पल धारा) 9
मीटर ऊँचा जल पात का नमाण करती है तथा भड़ौच समीप ख भात क खाड़ी म गरती है ।
इसके कनारे पर अनेक धा मक थल वक सत हु ए ह और यह भारत क प व न दय म से
एक है ।
ता ती: इसका उतगम थल सतपुड़ा पवत म 760 मीटर ऊँचे मु ताई नामक थान
(बैतू ल िजला) है । इसक ल बाई 724 क.मी.तथा अपवाह े लगभग 65.15 हजार वग
क.मी.है । यह नमदा नद के समाना तर बहती हु ई सू रत नगर के समीप ख भात क खाड़ी म
अपने मु हाने से गर जाती है ।
4. पि चमी तट य नद म
भारत के पि चमी घाट से अनेक छोट छोट न दयाँ बफ ले शखर से अनुवत अपवाह प म
ज म लेती ह, जो एक दूसरे के समाना तर बहती हु ई अरब सागर म दुत वाह से गर जाती है
। इनम गुजरात तट क श ु जी (182 क.मी.) भादर (198 क.मी.) न दयाँ तथा उ तर क कण
क उ हास, वैतरणा, अि बका, सा व ी, वा शरथी एवं गोआ-उ तर कनाटक तट क का ल द ,
गंगावती-वेदती, सरावती और द ण कनाटक क नेभावती (िजस पर मंगलू र नगर बसा हु आ है)
मु य है ।

32
इसके अ रि त मालाबार तट क मह वपूण न दय म पे रयार , वेपरु , भारतपुझा, प पा
आ द मु य है ।

1.4.4 बंगाल क खाड़ी म गरने वाल न दयो का अपवाह तं

1. गंगा अपवाह म:
यह भारत भू म के सबसे ठडे भूभाग पर वा हत होने वाला अपवाह तं है । इस नद
तं क सबसे मु ख नद गंगा है । इस नद तं का व तार 8.6 लाख वग क.मी. े पर
व तृत है । इस नद का ज म थल महान हमालय म उ तरकाशी नकट गंगो ी 7016 मी.
ऊँचाई पर ि थत है । ारंभ म गंगा नद क 2 शाखाय ह - भागीरथी एंव अलकन दा, िजनका
संगम दे व याग म होता है । इनम भागीरथी मु य ह । मंदा कनी तथा अलकन दा का संगम
याग म होता ह तथा अलकन दा तथा प डार का संगम कण याग म होता ह अलकन दा तथा
धौल का संगम व णु याग म होता है ।
ह र वार के बाद गंगा मैदानी भाग मे वा हत होती है। इसका गंगा नद नामकरण दे व याग म
भागीरथी - अनलन दा दोन के मलन ले प चात होता ह । गंगा नद क ल बाई 2510 क .मी.
है तथा हमालय े मे 4870 मीटर गहरे गाज का नमाण करती है ।
इस णाल म हमालय से आकर मलने वाल सहायक न दय म यमु ना, रामगंगा,
गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी मुख है तथा ाय: वीपीय पठार भाग से आने वाल सहायक
न दय म च बल, बेतवा, सोन, केन आ द मु य है ।
उ तरखंड, उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल म बहती हु ई बंगाल क खाडी म गरने से
पूव यह नद कई शाखाओं म वभ त हो जाती है यथा - भागीरथी, हु गल , माटला ह रघाटा,
ना डया, मलचा आ द । हु गल-मेघाना के म य 51.31 हजार वग क. मी. े पर व तृत डे टा
का नमाण करती ह, डे टा े म समु तट पर सघन वन आ छा दत ह, िज ह सु दर वन
कहते ह । इस डे टा े म छोट -छोट उपजलधाराओ के म य छोटे -छोटे वीप भी ि थत है ।
यह भारत क दय थल , दे वभू म, मानव स यता का पलना तथा आ द के , मानवता
क ाण पोषक तीथ थल जननी, मो दा यनी नद के प म पहचानी जाती है ।
अना दकाल म गंगा नद सभी भारतवा सय क आ था का के रह है व सदै व रहे गी ।
2. मपु अपवाह म
यह नद त बत म कैलाश पवत व
मानसरोवर झील के नकट ज म लेकर सापू (सां पो)
नाम धारण कर पि चम से पूव दशा म 1600
क.मी.क दूर वा हत होकर नमचा बरवा पवत के
नकट आसाम हमालय े म दहांग नाम धारण
कर वेश करती ह तथा अपनी सहायक दवांग नद
से मलकर स मपु नाम से अना दकाल से
भारतवा सय के लये सु प र चत तथा एक प व
नद है । मान च 1.12 भारत क न दयाँ

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मपु क सहायक न दय म सु वग ग र, धन शर , मानस, स कोश, रै दाक त ता,
दवांग लो हत, द शू यमु ना, कोपल आ द मु य है ।
बांगलादे श म मपु को यमु ना नद कहते ह । सु रमा नद से मलने के बाद इसे
मेघना नद कहते ह, अंत म मेघना व पदमा (गंगा) नद मपु के नचले भाग म मलती है ।
इसका नचला वाह े बांगलादे श म अवि थत है ।
मपु नद क कु ल ल बाई 2900 क.मी. है । भारत म यह 916 क.मी.ल बाई म
बहती है तथा इसका कुल जल हण े 5,80,000 वग क.मी.से अ धक है, िजसम से भारत म
3,40 वग क.मी.है ।
3. महानद अपवाह म
महानद ाय वीप भाग क एक मु ख नद है, जो म य दे श के अमरकटक के द णी
भाग से ज म लेकर पूव, द ण मे वा हत होती हुई 890 क.मी.ल बाई युका छ तीसगढ़ व
उड़ीसा म वा हत होकर दसात डे टा का नमाण कर कटक के नकट बंगाल क खाड़ी म गरती
है ।
इस नह पर ह राकं ु ड , टकरपारा नराज व अ य बांध बनाये गये है ।
मपु , वैतरणी व वण नद अपवाह म
ा मणी नद (799 क.मी..), सु वण ( पण रे खा) रे खा (395 क.मी.), छोटा नागपुर
पठार के समीपवत े से ज म लेकर वैतरणी य झर से ज म लेकर वा हत होती हु ई बंगाल
क खाड़ी म गरती ह
गोदावर नद वाह तं
ाय वीपीय भारत क (1465 क.मी.ल बी) अपवाह े क ि ट से सबसे बड़ी नद
पि चमी घाट के समीप ना सक से 60 क.मी.दूर 1067 मीटर ऊँचाई वाले यवंक नामक थान
से ज म लेकर द ण पूव दशा म बहती हु ई अपनी सहायक - वेनगंगा, मजरा, पेनगंगा, वधा,
इ ावती आ द न दयो को साथ लेती हु ई बंगाल क खाडी म गरने से पूव वृह डे टा बनाती है ।
कृ णा नद अपवाह तं
कृ णा नद ाय वीपीय भारत क दूसर मु ख नद है । यह नद पि चमी घाट के
महाबले वर के नकट 1337 मीटर क ऊँचाई वाले थल से ज म लेकर 1401 क.मी.ल बाई म
द ण पूव दशा म वा हत होती हु ई बंगाल क खाड़ी म गरती ह । इसक मु ख न दय म -
तु ंगभ ा, कोयना, यरला, वणा, पंचगंगा, दूध गंगा, भीमा, घट भा आ द ह । कृ णा नद भी एक
वृह डे टा बनाती है । यह डे टा गोदावर नद ' वारा न मत डे टा से संल न है ।
कावेर नद अपवाह म
भारत म 'द ण क गंगा' के नाम से अलंकृ त 800 क.मी.ल बाई यु त इस नद का
ज म थल कनाटक रा य, के 1340 मीटर उ च कु ग पठार े ह तथा द ण पूव क ओर
कनाटक-त मलनाडु रा य म वा हत होती हु ई नचल घाट म 3100 क.मी.वृहद उपजाऊ डे टा
बनाती हु ई बंगाल क खाड़ी म गरती है । इसका डे टा 'द ण का उ यान' कहलाता है । इसक
मु ख सहायक न दय म हेमावती, लोकपावनी ल मणतीथ, सु वणवती, भवानी आ द ह । यह

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शवसमु म नामक स जल पात बनाती है । इस नद से संबं धत कई बहु उ श
े ीय प रयोजनाय
संचा लत ह ।

1.4.4 उ तर एवं द ण भारत क न दय क तु लना

1. उ तर भारत क हमालय से ज म लेने वाल न दयाँ बफ ल चो टय / े से नकलती


है, इनके जल ोत वषा व हम दोन ह, िजसके कारण इनम वषपय त जल रहता है, ये
वषवा हनी न दयाँ ह जब क ाय वीपीय न दय का जल ोत सफ वषा जल ह है, जो वषा काल
म बाढ़ लाती है, शेष काल म कु छ अ पजलयुका होती ह, कुछ सू ख जाती है।
2. हमालय क न दय का जल सं हण े यापक ह, जब क ाय वीपीय न दय का जल
हण े
अपे ाकृ त. कम यापक है ।
3. ाय वीपीय न दय क तुलना म उतर भारत क न दयाँ अ धक ल बी है ।
4. उ तर भारत क न दयाँ व लत पवतो से नकलती है, तंग ती ढालयु त महाख ड का
नमाण करती ह, अभी वकास क यय था म ह, जब क ाय वीपीय न दयाँ अपनी ौढ़ाव था
म है ।
5. द णी भारत क न दयाँ आधारतल क ा त कर चु क ह, इनक अपरदन मता ीण
है, घा टयाँ चौड़ी ह, जब क उ तर भारत क न दयाँ युवा, तंग घा टयाँ यु त ह , इनक अपरदन
मता अ धक ह । हमालय क न दयाँ हमालय के उ थान के साथ लाख करोड़ वषा तक क
अव ध अपरदन से न मत महाख से होकर वा हत होती है ।
बोध न : 6
1. भारत मे न न म से जो न दयाँ समाना तर वाह णाल का उदाहरण तु त
करती है , वह ह:-
(अ) कृ णा-गोदावर नद (ब) गोदावर नद -महानद
(स) नमदा-ता ती नद (द) सतलज-रावी नद
2. भारत म पू व वत अपवाह त प का उदहारण जो नद करती ह, उनमे से :-
(अ) मपु (ब) महानद
(स) नमदा नद (द) ता ती नद
3. घ घर नद िजस अपवाह त प का उदहारण तु त करती ह, वह ह -
(अ) अ तः थल य (ब) के बहु मु खी
(स) के मु खी (द) वृ ानु माकार
4. नमदा नद के उ गम थल का नाम न न म से ह :-
(अ) सतपु ड़ा पवत का मु ताई े
(ब) मै कालपवत क अमरकं टक चोट
(स) छोटा नागपु र े
(द) पि चमी घाट का महाबले वर े
5. गं गा नद नामकरण िजस थान से होता है , वह ह :-

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(अ) दे व याग (ब) याग
(स) कण याग (द) व णु याग
6. भारत म िजस नद को द ण क गं गा कहते ह , वह ह :-
(अ) नमदा नद (ब) गोदावर नद
(स) कृ णा नद (द) कावे र नद
6. हमालय ज नत न दयाँ जब कॉप जलौढू मैदानी भाग म वा हत होती ह तो वे वसपण
का नमाण करती ह, अमु ख े म अपना माग भी प रव तत करती ह, कं तु ाय वीपीय
न दयाँ अपनी तल य कठोर च ान व जलोढ़ क कमी से वसपण का नमाण नह ं कर पाती है ।
7. व तृत समतल मैदानी भाग म उ तर भारत क न दयाँ यातांबात क ि ट से अ धक
उपयोगी है, उनम वष भर या त जल रहता है, जब क ाय वीपीय न दयाँ पठार े म ती
वेग से बहन से तथा वे माग म अनेक जल ापत बनाती ह, तथा वषा काल के अ त र त न दय
म जल क कमी होने से कुछ न दयाँ सूख जाने से जल यातांबात के अ धक अनुकू ल नह ं ह ।

1.5 साराश (Summary)


भारत का कुल े फल 32.87 लाख वग क.मी.है जो व व का लगभग 2.4 तशत ह
। यह ए शया के द णी भाग म म यवत ि थ त लये हु ए है । भारत के आकार क वशालता
के कारण यहाँ उ चावच, जलवायु, मृदा , जल वाह, ाकृ तक वन प त के साथ-साथ सामािजक
सां कृ तक य भ नताय होते हु ए भी एकता के दशन होते ह । वतमान मे भारत मे, कु ल 28
रा य एवं 7 के शा सत दे श है ।
भारत म पुरा कैि यन युग क ाचीनतम शैल से लेकर याटरनर युग क नवीनतम
शैल भी पायी जाती ह । भारत क भू ग भक संरचान के इ तहास को 4 भाग म वभ त कया
जा सकता है – 1. पुरा कैि यन (अ त ाचीन) युग , 2. पुराण युग , 3. वड़ युग , 4. आय
युग ।
अत ाचीन काल म न मत शैल को दो भाग म वभ त कया जा सकता है -
आ कयन युग क शैल तथा धारवाड़ म क शैल, पुराणयुगीन शैल म कु ड़ पा म, वं ययन
म क शैल मु य है । वडयुगीन एवं आययुगीन म क च ान मश: 60 करोड़ वष से
लेकर 35 करोड़ तथा 35 करोड़ से 1 करोड़ वष पूव न मत ह । धरातल य व वधताओं के आधार
पर भारत को न न उ चावचीय त प म वभ त कया जा सकता है – 1. हमालय या
पवतीय े , 2. उ तर भारत का वशाल मैदान, 3. ाय वीपीय े , 4. समु तट य मैदान, 5.
भारतीय वीप ।
हमालय का भौगो लक वभाजन क ि ट से ांस हमालय, वृहद हमालय , लघु
हमालय एवं शवा लक म वग कृ त कया जा सकता है तथा ादे शक वभाजन क ि ट से
पंजाब हमालय, कमायू ं हमालय, नेपाल हमालय तथा असम हमालय म वग कृ त कया जा
सकता है । हमालय का भारत क भू आकृ त म अपना वशेष थान व व श ट मह व है ।
उ तर भारत का वशाल मैदान रावी सतलज के कनार स गंगा नद के मु हाने तक
लगभग 240 क. मी. क ल बाई म व तृत है । तथा इसक औसत चौड़ाई 250 से 350
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क.मी.है । उ तर मैदान को पंजाब, ह रयाणा, ऊपर गंगा मैदान, म य गंगा मैदान, नचल गंगा
मैदान, मपु का मैदान, राज थान के मैदान म वग कृ त कया गया है ।
ाय वीपीय भारत के उ तर भारत मैदान के द ण म लगभग 16 लाख वग क.मी. े
म फैला हु आ है, जो व व के ाचीनतम पठार म से एक. है ।
भारत के ादे शक पठार के पूव समु तट य मैदान तथा पि चमी भाग पर पि चमी
तट य मैदान अवि थत है । ाय वीपीय भारत के पि चम म अरब सागर तथा पूव म बंगाल क
खाड़ी म अनेक वीप है । इनम ल वीप, अमीनी द द , मंनीकाय अ डमान नकोबार वीप
सबसे मह वपूण ह । भारत म न दय के व वध अपवाह त प वभािजत हु ए ह यथा -
वृ ानुमाकार , समा तर अपवाह त प, आयताकार, के बहुमु खी, खि डत, गुि फत, पूववत ,
पूवारो पत तथा अ तः थल य अपवाह त प ।
उ तर भारत क मु ख न दय म संध,ु झेलम, चनाव, रावी, वास, सतजल, तथा गंगा
युमना व इसक सहायक न दयाँ तथा मपु मु य है । द ण भारत क मु ख न दय म
नमदा, ता ती, महानद , गोदावर , कृ णा तथा कावेर मु य ह । भारत क म ी से सोना उगलने
का मु य कारण यहां का धरातल, भौग भक संरचना, जलवायु, मानवीय म के अ त र त
जीवनदा यनी न दयाँ है ।

1.6 श दावल (Glossary)


1. भू ग भक संरचना : च ान क बनावट / संरचना, उनम कठोरता का अंश,
परत का ै तज, झु काव का अंश, उनम रं क मा ा

2. धरातल य वभाग : समान उ चवचीय वशेषताओं के आधार पर उनका
मु य व गौण दे श म वभािजत करना ।
3. भू क पीय े : भू क प तरं गो क आवृ त /ती ता के आधार पर उनके
दे श अं कत करना ।
4. भादर : हमालय के शवा लक े म छोटे -बढ़ कंकड़, प थर रे त
से न मत पवतपद य े जहा छोट स रताय भू मगत
हो जाती है ।
5. बांगर : पुरातन कछार तलछट न े पत े जहा बाढ़ का पानी
नह ं पहु ँ चता हो ।
6. खादर : नवीन काँप तलछट न े पत े जो बाढ़ के जल से
आ ला वत होता ह ।
7. अपवाह तं : कसी े क मु य व सहायक न दय वारा न मत
वाह का त प ।
8. बेट : भारत के पंजाब रा य म खादर को बेट कहते ह ।
9. गुि फत अपवाह तं : कसी एक मु य नद का अनेक शाखाओं म वभ त
होकर वा हत होना ।

37
10. अनुवत नद : धरातल के ढाल का अनुसरण करते हु ए वा हत होने
वाल स रता ।
11. अनुवत नद : धरातल के ढाल का अनुसरण नह ं करते हु ए वा हत
होने वाल स रता ।
12. अ यारो पत वाह णाल : ऊपर व नचल च ान परत म संरचना म भ नता
होते हु ए भी नद घाट का उसी थान पर वा हत होना
व घाट वक सत करना (नद का व भ न च ानी
संरचना के व संघष)
13. पूवारो पत वाह णाल : भू ख ड के कलेप के साथ-साथ नद वारा पूव माग पर
ह अपने धाट / वाह माग अपनाये रहना (नद का
उ थान के व संघष)

1.7 संदभ ंथ (References)


1. संह आर. एल : इि डया-ए र जनल यो ाफ ,
2. मामो रया म ा : भारत का वृहत भू गोल, सा ह य भवन पि लकेशन, आगरा
3. खु लर, डी. आर. : इि डया-एका ीहोि सव यो ाफ , क याणी काशन, नई द ल
4. चौहान एवं साद : भारत का वृहद भू गोल, वसु धरा काशन, गोरखपुर
5. वमा, एल. एन. : भारत का भू गोल, राज. ह द ं अकादमी, जयपुर

6. चौहान, गौतम : भारत वष का व तृत भू गोल, र तोगी काशन, मेरठ
7. बंसल, सु रेशच : भारत का वृहत भू गोल

1.8 बोध न के उ तर
बोध न 1 का उ तर
1. (स) सातवाँ
2. (द) 2.4 लशत
3. (स) इं दरा पॉइंट
4. (स) 15200 कलोमीटर
5. 3214 क.मी.
बोध न 2 का उ तर
1. (स) 2/3 भाग पर
2. (अ) धारवाड़
3. (अ) आज से 60. करोड़ वष से 35 करोड़ वष पूव
4. (ब) 2500 मीटर से अ धक गहराई तक
5. (द) टि यर युग
बोध न 3 का उ तर
1. (ब) लगभग 43 तशत

38
2. (अ) लगभग 29.3 तशत
3. (ब) 2400 क.मी.ल बाई म
4. (स) ांस हमालय
5. (स) 8611मी.
6. (ब) कुमायू ँ हमालय
7. (द) त ता व मपु न दय के म य भाग
बोध न 4 का उ तर
1. (स) बांगर
2. (स) द ण का पठार
3. (स) लगभग 16 लाख वग क.मी...
4. (ब) दोदाबेटा
बोध न 5 का उ तर
1. (ब) क छ से सू रत तक
2. (स) मालाबार तट
3. (अ) कृ णा नद डे टा से गंगा नद डे टा तक
4. (अ) आ दे श
5. (अ) मालाबार तट
6. (द) 10 ड ी चैनल
बोध न 6 था उ तर
1. (स) नमदा - ता ती नद
2. (अ) मदु नहो
3. (अ) अ त: थल य
4. (ब) मैकाल पवत क अमरकंटक चोट
5. (अ) दे व याग
6. (द) कावेर नद

1.9 अ यासाथ न
1. भू ग भक संरचना क ि ट -से भारत को व भ न भाग म वभ त क िजए तथा येक
का वणन क िजए ।
2. भारत को धरातल य वभाग म वभ त क िजए तथा हमालय क उ प त क या या
करते हु ए इसका भौगो लक व ादे शक वग करण का ववरण द िजए ।
3. भारत के उ तर मैदान क वशेषताओं का उ लेख. करते हु ए इसके ादे शक वभाजन
का ववरण द िजए ।
4. भारत के ाय वीपीय पठार क उ प त का वणन करते हु ए इसक मु ख भौगो लक
वशेषताओं व उ चावच का वणन क िजए ।

39
5. भारत के पूव तथा पि चमी समु तट य मैदान क वशेषताओं का उ लेख करते हु ए
उनम अंतर बताइये ।
6. अपवाह तं कसे केहते ह? भारत म नद अफवाह तं के वकास क या या करते हु ए
भारतीय न दय के वाह त प का उदाहरण स हत वणन क िजए ।
7. भारत म उ तर व द णी भारत क न दय क तु लना करते हु ए न दय के अपवाह तं
का वणन क िजए ।

40
इकाई 2: जलवायु (Climate)
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 भारत क जलवायु क मु ख वशेषताएँ
2.2.1 जलवायु को भा वत करने वाले घटक
2.3 मानसू न क उ पि त एवं या- व ध संक पनाएँ
2.3.1 तापीय संक पनाएँ
2.3.2 ग या मक संक पनाएँ
2.3.3 अ भनव स ा त
2.3.3.1 जेट म
2.3.3.2 त बत का पठार
2.3.3.3 महासागर य रा शयाँ
2.4 मौसम क दशाएँ
2.4.1 शीत ऋतु
2.4.2 उ ण शु क ऋतु
2.4.3 आ ऋतु
2.4.4 लौटते हु ए मानसू न क ऋतु
2.5 वा षक वषा का वतरण
2.5.1 वषा क प रवतनशीलता-सू खा एवं बाढ़
2.6 जलवायवीय दे श
2.6.1 कोपेन का वग करण
2.6.2 थान वेट का वग करण
2.7 सारांश
2.8 श दावल
2.9 संदभ नथ
2.10 बोध न के उ तर
2.11 अ यासाथ न

1.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन से आप समझ सकगे :
 भारत क जलवायु तथा मौसम क दशाएँ
 जलवायु को भा वत करने वाले संघटक
 मानसू न क उ पि त एवं या व ध

41
 वष क चार ऋतु ओं का वतरण तथा कृ त
 मानसू नी जलवायु क वशेषताएँ
 कोपेन तथा थान वेट वारा ता वत जलवायु वभाग

2.1 तावना (Introduction)


भारत को य य प मानसू नी जलवायु का दे श माना गया है क तु सव जलवायु म
समानता नह ं दे खी जाती है । दे श का वशाल आकार तथा व वध भौगो लक प रि थ तयाँ
जलवायवीय दशाओं क व वधता के लए उ तरदायी ह । यह कारण है क लैनफोड ने इन
व भ नताओं का उ लेख करते हु ए लखा है क ''हम भारत क जलवायुओं (Climates) के वषय
म कह सकते ह, जलवायु (Climate)के वषय म नह ,ं य क वयं व व म जलवायु क इतनी
वषमताएँ नह ं मलतीं िजतनी अकेले भारत ने अथात ् व व क सम त कार क जलवायु भारत
म पाई जाती है । फर भी दे श क जलवायु म महान वषमताओं के बावजूद एक यापक एकता
मलती है । टा प के श द म 'भारत मूलत: उ ण क टब ध म ि थत है जो यापा रक पवन
के े म आता है । मौसम क लयब ता (Rhythm) तथा पवन क दशा का उ कमण
(Reversal) भारत को जलवायवीय व श टता का व प दान करते ह, िजसे मानसू न कहा
गया है ।''

2.2 भारत क जलवायु क मख वशेषताएँ (Major Characteristics


of Climate of India)
1. वषा क अ नि चतता भारत क जलवायु क मु ख वशेषता है । कभी इसका आगमन
समय पूव हो जाता है तो कभी दे र से होता है । वषा क मा ा भी मानसू न के प रवतन पर
नभर करती है । मानसू न क यह अ नय मतता तथा अ नि चतता कृ ष तथा अथ यव था पर
तकू ल भाव डालती है ।
2. वषा का उतार-चढ़ाव अथवा प रवतनशीलता (Variability) जलवायु के मुख ल ण ह ।
ाय: पाँच वषा म केवल एक बार सामा य वषा होती है, कभी दो वष म कम तथा दो वष म
अ धक वषा होती है ।
3. इस कार वषा क दो व श ट ऋतु एँ पाई जाती ह - एक चु र वषा स हत और दूसर
अ प वषा स हत । चु र या भार वषा ी मकाल न मानसू न क तथा अ प वषा शीतकाल न
मानसू न क घोतक है ।
4. स दु-गंगा के मैदान तथा त मलनाडु के तट य े को छोड़कर अ पमा ा उ तर भारत
म रबी क फसल तथा त मलनाडु म चावल क खेती के लए बहु त लाभदायक होती है ।
5. उ तर-पि चम म तापमान म तापा तर अ धक होते ह, जब क तटवत भाग म न न
तापा तर रहते ह । दे श के उ तर-पि चमी भाग म ी मकाल न तापमान 50°C तक पहु ँच जाते
ह, जब क शीतकाल म हमांक ब दु तक गर जाते ह ।
6. ी मकाल म दो कार के मौसम का भाव रहता है - वषायु त तथा वषा वह न ।
उपमहा वीप का अ धकांश भाग उ ण तथा शु क मौसम के भाव म रहता है । जू न माह म

42
उ तर मैदान म गम लू के थपेड़े महसू स कए जाते ह क तु जू न माह के म य म सापे क
आ ता बढ़ने लगती है और जुलाई से सत बर माह के म य पूरे दे श म यापक वषा होती है ।
ाय: इस मौसम म वा षक वषा का 80% ा त होता है ।
7. म थल य भाग म वा षक वषा का औसत 25 सेमी से भी कम रहना और मेघालय के
मॉव सनराम थान पर सवा धक 1141 सेमी वा षक वषा का औसत दे श क जलवायु के एक
अ य ल ण को दशाती है ।
8. दे श के कसी न कसी े म उ ण आ , उ ण शु क, उपो ण, समशीतो ण और शीत
जलवायु का पाया जाना जलवायु व वधता क वशेषता है ।
9. पि चमी तट पर मु बई के नकट तापमान सम रहते ह, ले कन केरल तट पर मौसम
गम रहता है, जब क दस बर से फरवर तक क मीर म कड़ाके क सद पड़ती है ।
10. ी मकाल न वषा का आगमन और समापन भी भ न- भ न थान पर अलग-अलग
होता है । पि चमी समु तट तथा भारत के पूव भाग म मानसू न पहले आ जाता है, ले कन
उ तर-पि चम भारत म मानसू न क ती ा करनी पड़ती है ।

2.2.1 भारत क जलवायु को भा वत करने वाले घटक (Factors affecting the


Climate of India)

1. भू म डल य ि थ त : भारत को दो भाग म वभािजत करने वाल कक रे खा का: उ तर


े उपो ण क टब धीय तथा द णी भाग उ ण क टब धीय े म दशाया जाता है ले कन उ तर
म हमालय क उपि थ त ने इस भू ख ड को वशेषीकृ त कर दया है तदनुसार हमालय के द ण
का स पूण भाग उ ण क टब ध के प म माना जाता है । इसी कार कक रे खा पर ि थ त
पृ वी के प र मण का भाव भी दशाती है िजसके कारण भारत म शीत तथा ी म दो धान
ऋतु ओं का उदभव हु आ है । इन ऋतु ओं के अनुसार ह मानसू नी हवाएँ अपनी दशा बदलती रहती
ह । इसी कारण भारत क जलवायु को मानसू नी जलवायु कहा जाता है ।

2. ए शया के व तृत भू -ख ड से स ब ध: जनवर माह म स पूण ए शया म उ च वायुदाब


पाया जाता है, जब क उ तर शा त महासागर पर न न वायुदाब था पत रहता है । इस कारण
स पूण पूव तथा द णी ए शया इन थल य पवन के भाव म आ जाता है । इन पवन को
शीतकाल न मानसू न कहते ह । भारत म ये हवाएँ ीण तथा अ नय मत होती ह, जब क द णी-
पूव ए शया म नय मत प से चलती ह ।
जू न म जब सू य कक रे खा पर चमकता है तब उ च वायुदाब जापान के द णी शा त
महासागर म होता है । दूसरा उ च वायुदाब ह द महासागर म ऑ े लया म वक सत होता है ।
इसके वपर त न न वायुदाब का े ए शया महा वीप म होता है । प रणाम व प समु से
थल क ओर वा पयु त पवन चलती ह । द णी गोला म चलने वाल द ण-पूव यापा रक
हवाएँ भी इस सामा य वाह म सि म लत हो जाती ह । इससे मानसू न शि तशाल हो जाता है
जो ी मकाल न या द ण-पि चमी मानसू न कहलाता है । प ट है क भारत क जलवायु पर

43
ए शया भू-ख ड पर उ प न होने वाले उ च वायुदाब तथा न न वायुदाब तथा उनके म य
वा हत होने वाल हवाओं का भाव पड़ता है ।
3. ह द महासागर से स ब ध: ह द महासागर क नकटता से भारत को उ ण मानसू नी
जलवायु क आदश दशाएँ ा त होती ह । समु जल के भाव के कारण तटवत े के
तापमान सम रहते ह, अथात ् तापा तर कम पाए जाते ह, जब क े ीय व तार क वशालता के
कारण भारत का आ त रक भाग इस भाव से वं चत रहता है । आ त रक भाग म महा वीपीय
जलवायु का प पाया जाता है । अत: थल य पवन क अ धकता होती है । यहाँ वायु शु क पाई
जाती है, दै नक ताप प रसर अ धक होता है और वषा क यूनता पाई जाती है ।
4. धरातल य व प: भारत क जलवायु पर यहाँ के पवत, पठार तथा मैदानी व प का
यापक भाव दखाई दे ता है । हमालय पवत े णयाँ अ य त ऊँची ह । इन भाग म ऊँचाई के
साथ तापमान घटते जाते ह और हमालय के अ य त ऊँचे भाग वष भर हमा छा दत रहते ह ।
ऊंचाई क व वधता तथा उसके साथ तापमान, आ ता, वषा आ द जलवाय वक दशाओं म
भ नता के कारण ह व भ न ऊँचाइय पर अलग-अलग कार क जलवायु पाई जाती ह ।
इसके अ त र त हमालय पवत ेणी एक ओर म य ए शया से आने वाल ठं डी हवाओं
को रोककर जलवायु को महा वीपीय प दान करती है तो दूसर ओर यह मानसू नी हवाओं को
रोककर उ ह भारत म वषा करने को बा य करती ह । हमालय पवत के भाव के कारण ह
स पूण मैदानी भाग ी म काल म अ य धक गम रहता है और ी मकाल के उ तरा म वषा
भी ा त करता है ।
5. वायुम डल य याओं का भाव :अ यतन अनुसध
ं ान दशाता है क भारतीय जलवायु
पर थानीय घटक के अ त र त भू म डल य (Global) वायुम डल क व भ न वशेषताओं का
भाव भी पड़ता है । जेट म एवं एल ननो भाव भारत क जलवायु दशाओं म अ तवाद
ि थ त लाते ह । इसका मु ख कारण भूम डल य तर पर वायुम डल क ऊपर परत म होने
वाला प रवतन है ।
बोध न :1
1. भारत क जलवायु को कोन से दो कारक जलवायवीय व श टता दान करते ह?
2. वषा क कोन सी कृ त भारत क कृ ष तथा अथ यव था पर तकू ल भाव
डालती है ?
3. शीत काल न वषा क अ प मा ा ह कहाँ और कन फसल के लए लाभदायक
है ?
4. भारत के कस थान पर वषा का सवा धक औसत रहता है ?
5. भारत को दो भागो मे बाटने वाल रे खा का तथा क टबंधीय े के नाम बताइये ।
6. ह द महासागर के नकटता भारत को कोण सो जलवायु दान करती है ?

44
2.3 भारतीय मानसू न क उ पि त एवं या- व ध (Origin and
Mechanism of Indian Monsoon)
2.3.1 तापीय संक पना (Thermal Concept)

एडम ड हैल (Edmund Halley,1686) के अनुसार मानसू न पवन बड़े पैमाने पर


थल य एवं समु समीर (Breezes) ह ह जो महा वीपीय तथा महासागर य भाग से भ न-
भ न मौसमी ताप से उ प न होती ह । ी मकाल म धरातल समु सतह क अपे ा अ धक
गम हो जाता है । फल व प भारत का उ तर-पि चमी भाग न न दाब के भाव म आ जाता है
जब क समु सतह अपे ाकृ त ठ डी होती है और उ च दाब रहते ह । प रणामत: समु क ओर
से थल क ओर नमीयु त पवन चलने लगती ह, िजनसे भार वषा होती है, जब क शीतकाल म
व तु ि थ त उलट जाती है, तब उ तर -पि चमी भारत म उ चदाब उ प न हो जाते ह और संल न
समु भाग म न न दाब रहते ह और ठ डी थल य पवन समु क ओर चलने लगती ह ।
केवल त मलनाडु तट पर शीतकाल म वषा हो पाती है और दे श के शेष भाग लगभग वषा वह न
रहते ह ।
हैल क इस तापीय संक पना का एंगेट (Anget), हान (Hann), कोपेन (Koppen)
मलर (Miller) आ द व वान ने समथन कया । क तु मानसू न या- व ध क यह सरल
या या मानसू न के अनेक ल ण को प ट नह ं कर पाई है । अत: इसक व वसनीयता पर
अनेक संशय य त कये गये ह -
1. आधु नक मौसम वै ा नक थल पर शीतकाल म उ च -तथा ी मकाल म न नदाब से
तापीय उ पि त को नकारते ह । उनके अनुसार शीतकाल न उ च वायुदाब भारत म द णी जेट
पवन क उपि थ त से उ प न तच वातीय दशाओं का प रणाम है, जब क ी मकाल न
न नदाब उ तर अ तरा-उ णक टब धीय अ भसरण (NITC) के सहारे पाये जाने वाले
उ णक टब धीय च वात ह । च वातीय तथा तच वातीय के क उ पि त तापीय क अपे ा
ग या मक (Dynamic) घटको से स बि धत है ।
2. य य प भारत के उ तर-पि चम म न नदाब मई माह तक था पत हो जाते ह, क तु
म य जू न से पहले, दे श के द णी भाग को छोड़कर वषा नह ं हो पाती ।
3. य द मानसू न क उ पि त का कारण तापीय होता, तो वायुम डल क ऊपर सतह म
त-मानसू नी संचार (anti-monsoon circulation) होना चा हए, जो व तु त: नह ं दखता ।
4. ी मकाल न न नदाब तथा शीतकाल न उ चदाब इतने ती नह ं होते क वे पवन का
स पूण उ मण (reversal) करा सके ।
5. संल न समु क ओर से चलने वाल नमीयु त मानसू नी पवन पूरे दे श म यापक वषा
नह ं करा सकतीं । ऐसी वषा च वातीय व ेप तथा संवाह नक धाराओं से ह स भव है ।

45
6. ी मकाल न वषा न तो नय मत होती है और न ह समान प से वत रत । इसक
अ नय मत तथा अ नि चत कृ त दशाती है क मानसू नी वषा केवल मानसू नी पवन पर ह
नभर नह ं ह ।

2.3.2 ग या मक संक पना (Dynamic Concept)

ग या मक संक पना के रच यता लोन (Flohn,1951) के अनुसार मानसू न वायुदाब


पे टय तथा ह य पवन का मौसमी थाना तरण मा है । ी म सं ां त (summer solstice)
के दौरान सू य करण कक रे खा पर ल बवत होती ह । प रणामत: लोब क सम त वायुदाब
पे टयाँ उ तर क ओर खसक जाती ह । इस समय अ तरा-उ ण क टब धीय अ भसरण (ITC)
उ तर क ओर खसक जाता है तथा उ तर अ तरा उ ण क टब धीय अ भसरण (NITC) द णी
तथा द णी पूव ए शया म 30° उ तर तक फैल जाता है । इस थाना तरण के कारण भारतीय
उपमहा वीप का अ धकांश भाग पछुआ पवन के भाव म आ जाता है, िजसे द णी-पि चमी
मानसू न कहते ह । शीतकाल म वायुदाब तथा पवन पे टयाँ द ण क ओर थाना त रत हो जाती
है, िजससे दे श म उ तर पूव यापा रक पवन था पत हो जाती ह, जो उ तर पूव मानसू न
कहलाता है, यह सामा यत: शु फ होता है और वषा नह ं कराता । इस संक पना पर भी
न नां कत न च ह लगाए जाते ह -
1. सू य का उ तर क ओर बढ़ना एक नय मत एवं नि चत या है । अत: द णी
पि चमी मानसू न का था पत होना भी नय मत होना चा हए क तु दे श के व भ न भाग म
वषा का आगमन अ नि चत तथा अ नय मत होता है ।
2. वषा आर भ होने के प चात भ न- भ न अव ध के शु क काल भी पाए जाते ह ।.
3. सू य के वा पस लौटने से बहु त पहले ह वषा ऋतु अक मात समा त हो जाती है ।

2.3.3 अ भनव संक पना (Recent Concept)

मानसू न क उ पि त के अ भनव स ांत वायुम डल के ऊपर तर म वायु दशा क


ऋि वक भ नता से स बि धत है । यह संक पना 1950 के बाद अब तक कये गये अनुसध
ं ान
पर आधा रत ह । को े वरम, एसर ना, पाथसारथी, लोन (Flohn), रामनाथन, ग वट वाकर
आ द व वान ने अपने वचार तु त कये ह । ये वचार मानसू न क या व ध क या या
के लए मु यत: जेट म, त बत के पठार तथा महासागर क रा शय क भू मका पर
आधा रत ह ।

2.3.3.1 जेट म संक पना (Jet Stream Concept)

जेट म म य अ ांश म 9 से 15 क.मी. ऊँचाई पर ती ग त से चलने वाल पछुआ


हवाएँ ह । ये पछुआ हवाएँ धरातल क मौसमी दशाओं पर पया त भाव डालती ह । मोटे तौर
पर प रवतन म डल (Troposphere) के ऊपर भाग म तेज ग त से पृ वी के घूणन ग त के
समाना तर चलने गल इन पवन को जेट म कहा जाता है । मानसू न क या न केवल
वायुदाब एवं सनातनी पवन पे टय के उ तर या द णी दशा म खसकाव से जु डी हु ई ह बि क

46
यह वायुम डल के ऊपर तर म चलने वाल जेट पवन क ऋि वक भ नता एव प रवतन से
भी जु ड़ी हु ई ह । जेट हवाओं के ऋि वक प रवतन का गहरा भाव अ त: उ ण क टबंधीय
अ भसरण (inter-tropical convergence) के उ तर या द णी दशा म थाना तरण पर
पड़ता है जो मानसू न को भारत क और अ सर करने म एक मह वपूण भू मका नभाती है ।
धरातल के वायुम डल म वायुदाब क जो हय यव था पायी जाती है ठ क उसके वपर त
यव था वायुम डल के ऊपर भाग म पाई जाती है । जैसे- धरातल य वायुम डल म दो-तीन
क.मी. क ऊँचाई तक न न अ ांश के पास वायुदाब कम रहता है , क तु ऊँचे अ ांश क ओर
अ धक रहता है । इसके वपर त ऊपर वायुम डल म ु व पर वायुदाब कम तथा न न अ ांश
क ओर अ धक होता है । इस कारण उ तर तथा द णी दोन ु व पर न न वायुम डल य दाब
बहु त बड़े व तार म था पत रहता है । ु व पर वायुम डल कम होने के कारण वायु म घूमने
क एक ग त पाई जाती है । समताप म डल के न न तर (21 क.मी. ऊँचाई) पर शीत ऋतु म
ु वीय च वात के कारण सभी अ ांश पर पछुआ हवाएँ चलती ह । इसी कार 5.5 क.मी. क
ऊँचाई पर शीत ऋतु म ह 25° उ तर अ ांश म द ण पि चम च वातीय हवाएँ चलती ह,
क तु गम म म द ग त से पूव त-च वातीय हवाएँ चलती ह । वायुम डल के ऊपर भाग म
ि थत यह वायु- णाल धरातल क वायु णाल के वपर त है । धरातल के वायुम डल म
शीतऋतु म तच वात क ि थ त होती है और ी म ऋतु म च वातीय ि थ त होती है।

च 2.1. और 2.2 शीतकाल न मानसू न


शीत ऋतु म ऊपर जेट म ए शया म वायुम डल क 12 क.मी. ऊँचाई पर ि थत
होती है । हमालय तथा त बत के पठार के अवरोध के कारण ये जेट हवाएँ दो शाखाओं म
बंटकर एक शाखा हमालय पवत तथा त बत के पठार के उ तर म तथा दूसर द णी शाखा
इनके द ण म बहती है । यह द णी शाखा अफगा न तान के ऊपर घड़ीवृत ( तच वातीय
माग म) तथा हमालय के द णी सरे पर घड़ी के सुईय के तकूल (च वातीय माग म) माग
का अनुसरण करती है । अफगा न तान तथा पा क तान के ऊपर उ च दाब के कारण उ तर-
पि चमी भारत के ऊपर वायु नीचे बैठती है

47
च 2.2 : ी मकाल न मानसू न
ी म ऋतु म ु व के ऊपर उ चदाब कमजोर पड़ जाता है और ऊपर वायुम डल य
प र ु वीय भंवर (circum polar whirl) उ तर क ओर खसक जाता है । प रणामत: ऊपर
वायुम डल य पछुआ जेट पवन भी हमालय के द णी ढाल से हटकर उ तर क ओर खसक
जाती ह । ये पछुआ जेट पवन जू न के थम स ताह के अ त तक हमालय के द णी ढाल से
अ य हो जाती ह तथा वषुवत रे खीय पछुआ जेट पवन भारतीय उपमहा वीप पर चलने लगती ह
। जेट म के त बत के पठार से उ तर क ओर खसकने से उपमहा वीप के उ तर तथा
उ तर-पि चम भाग के ऊपर मु त वायु के वाह के व का उ कमण (reversal) हो जाता है ।
इस च वातीय व के कारण उ तर ईरान तथा अफगा न तान के ऊपर एक ग या मक गत
(dynamic depression) बन जाता है । यह घटना एक कार से एक गर का काय करती
है, िजससे मानसून का व फोट (burst of monsoon) होता है।

2.3.3.2 त बत के पठार क भू मका (Role of Tibetan Plateau)

सन ् 1973 म आयोिजत मॉ न स (MONEX) अ भयान से सं हत मौसम के आकड़


से सो वयत मौसम व इस न कष पर पहु ंचे क त बत का पठार भारत पर मानसू न संचार क
उ पि त म मह वपूण भू मका अदा करता है । इससे पूव 1956 म मौसम व कोटे वरम ने
अपना मत तुत कया था क ी मकाल म त बत के पठार का तपना भारत के मानसू न म
मह वपूण घटक है ।
4000-5000 मीटर क ऊँचाई पर ि थत त बत का पठार एक अवरोध के साथ अपनी
ऊँचाई के कारण अपने चतु दक े से अ धक सू यताप ा त करता है । इससे वायुम डल दो
कार से भा वत होतौ है- (1) एक याि क बाधा के प म (2) उ च तल य ऊ मा के ोत के
प म । त बत का पठार जेट म को उ तर क ओर थाना तरण को व रत करता है तथा
अ टू बर माह के म य म जेट म को हमालय के द ण क ओर बढाने म सहायक होता है ।

48
ी मकाल म त बत के पठार के तपने से इस दे श म 500 मल बार क ऊँचाई पर
एक तापीय तच वात उ प न हो जाता है जो हमालय के द ण म ि थत पि चमी उपो ण
क टब धीय जेट म को कमजोर कर दे ता है, क तु इस तच वात के द ण क ओर उ ण
क टब धीय पूव जेट पैदा कर दे ता है । यह उ ण क टब धीय पूव जेट 80° पूव दे शा तर पर
वक सत होती है तथा ह द महासागर के ऊपर उ च दाब को शका को ती बनाती है, िजससे
द णी पि चमी मानसू न स य होता है ( च 2 .3) ।

च 2.3 : ी मकाल न मानसू न संचार क उ पि त एवं त बत का पठार


क तु अ टू बर माह म दशाएँ उलट जाती ह । त बत के पठार का तच वात छ न-
भ न हो जाता है, उ ण क टब धीय पूव जेट समा त हो जाती है और उ तर भारत के ऊपर
उपो ण क टब धीय पि चमी जेट म पुन : था पत हो जाती है । अब शीतकाल न (उ तर-पूव )
मानसू न ार भ हो जाता है ।

2.3.3.3 महासागर य रा शयाँ (Ocean Bodies)

यह स हो चु का है क सागर के ऊपर उ प न होकर थल क ओर चलने वाले


च वात यापक वषा कराने म वशेष भू मका अदा करते ह । ये च वात पि चमी शा त
महासागर म, ए शयाई तट के नकट उ प न होने वाले उ ण क टब धीय च वात से स ब ह,
जो परवल यक प से (parabolically) ग तशील होकर द ण पूव ए शया म भार वषा कराते
ह । कु छ शि तशाल च वात बंगाल क खाड़ी म वेश करते ह तथा भारत के मु य थल क
ओर बढ़ते ह ।
एनसो भाव (ENSO Effect)
कभी-कभी एल-नीनो-द णी दोलन (EN-SO) इन उ ण क टब धीय च वात क
उ पि त तथा ग तशीलता म बाधा डालते है । इसे ENSO भाव कहा जाता है ।
सामा यत: ह बो ट धारा (ठ डी धारा) पी के तट के सहारे बहती है जो पूव शा त
महासागर म पि चमी शा त महासागर क तु लना म अ धक दाब के लए उ तरदायी है । पूव म
पवन तथा महासागर य धारा का वाह बंगाल क खाड़ी म उ ण क टब धीय च वात क उ पि त
म सहायक होता है । क तु कभी-कभी एल नीनो (गम धारा) जनवर तथा माच के म य इ वेडोर
तथा पी के तट के सहारे द ण क ओर वा हत होती है । यह धारा थानीय म यो पादन

49
क ऋतु का अ त कर दे ती ह । इस प रघटना ने सव थम 1972 म यान आक षत कया, जब
ल बे समय तक समु तट य जल के उ ण रहने पर पी का म यो पादन यवसाय ठ प हो
गया तथा भयंकर खा य संकट पैदा हो गया । इसी समय भारत म मानसू नी वषा कमजोर रह
तथा सहेल दे श (अ का) म सू खा पड़ा । ये पर पर दूर थ प रघटनाएँ एक सु नि चत लोबीय
त प के प म पर पर स बि धत लगती थी जो एल-नीनो से स बि धत थी । अब यह स
हो चु का है क एल/नीनो तथा द णी दोलन य प से भारतीय मानसू न से स बि धत ह ।
1987 तथा 2002 क एल नीनो के कारण भारत म अ प वषा क ऋतु अनुभव क गई ।
भारतीय मौसम सेवाओं के थम डायरे टर जनरल गलबट वाकर (Gilbert Walker)
ने सव थम 1924 म एल नीनो भाव का आंकलन कया था । उ ह ने यह खोज नकाला क
शा त महासागर म उ च दाब होने पर ह द महासागर म न न दाब होता है तथा शा त
महासागर म न न दाब होने पर ह द महासागर म उ च दाब वक सत होता है । उ ह ने इस
प रघटना को 'द ण दोलन' (Southern Oscilltion) नाम दया । लगभग चार दशक बाद,
बयकनीज (j.Bjerknes), एक डच मौसम व ने, द णी दोलन तथा एल नीनो म घ न ठ
स ब ध बतांबा ।
चू ं क वायुदाब तथा वषा का वपर त (Inverse) स बंध होता है, इससे ात होता है क
जब ह द महासागर म शीतकाल म न न दाब होते ह तो आगामी मानसू न वषा चुर मा ा म
होती है । द णी दोलन क ती ता (SOI) म य शा त महासागर तथा ह द महासागर म पोट
डा वन के सागर तल वायु दाब के अ तर वारा मापी जाती है । द णी दोलन सू चक (SOI) का
ऋणा मक मान उ तर ह द महासागर म उ चतर वायुदाब तथा दुबल मानसू न को सू चत करता
है । इस कार, एल नीनो के कट होने तथा द णी दोलन के ऋणा मक सूचक म घ न ठ
स बंध होता है । द णी दोलन सूचक क ऋणा मक ाव था तथा एल नीनो के कट करण को
(ENSO) प रघटना कहा जाता है ।
अत: प ट है क द णी पि चमी मानसू न न न ल खत मु ख कारक क अ त या
को प रल त करता है - (1) जेट म क ि थ त, (2) अ तरा-उ ण क टब धीय अ भसरण का
सार एवं संकुचन, (3) त बत के पठार के ऊ मन म अ तर, (4) शा त महासागर म उ ण
क टब धीय च वात क उ पि त तथा ग तशीलता एवं ENSO का यवहार ।
बोध न : 2
7. एडम ड हे ल नामक मौसम वद ने मानसू न क या व ध स बची कौन सी
सं क पना का तपादन कया है ?
8. पलोन के अनु सार मानसू न कन घटक का थाना तरण मा है ?
9. अ भनव सं क पना कन त य पर आधा रत है ?
10. कस जलवायवीय सं क पना के अनु सार शीतकाल म वायु दाब तथा पवन पे टयाँ
द ण क ओर थाना त रत हो जाया करती ह ?

50
2.4 भारतीय जलवायु क ऋि वक वशेषताएँ (Seasonal
Characteristics of Indian Climate) भारतीय मौसम वभाग
ने वष को चार व श ट ऋतु ओं म वभ त कया है -
1. शीत ऋतु (म य दस बर से म य माच तक)
2. उ ण शु क ऋतु (म य माच से मई के अ त तक)
3. आ ऋतु (जू न से सत बर तक)
4. लौटते हु ए मानसू न क ऋतु (अ टू बर से म य दस बर तक)

2.4.1 शीत ऋतु (Winter Season)

शीत ऋतु उ तर-पि चम भारत म अ टू बर से ार भ होकर दस बर तक स पूण दे श म


या त हो जाती है । व तुत : इस समय स पूण ए शया म न न तापमान रहते है । प रणामत:
उ च वायुदाब क एक पेट म य ए शया के ऊपर वक सत होकर सऊद अरब, ईरान, पा क तान
से होकर भारत तक उ तर-पूव चीन तक फैल जाती है । व छ आकाश, सु हाना मौसम, ह क
हवाएँ और न न आ ता इस मौसम क मु य वशेषताएँ ह । -( च 2.4)

च 2.4 : गीत ऋतु (जनवर ) क समताप रे खाएँ


तापमान : उ तर स द ण क ओर सामा यत: तापमान म वृ होती है और समताप
रे खाएँ अ ाशो के लगभग समाना तर रहती ह । जनवर क 21°C क समताप रे खा दे श के
लगभग म य से पूव पि चम दशा म ि थत होती ह । दे श के उ तर-पि चम भाग मे 15°C से
कम तापमान होता है । द ण भारत म समताप रे खाएँ मुड़कर तट के समा तर ि थत होती ह ।

51
औसत दै नक यूनतम तापमान उ तर पि चम म 5°C से ाय वीप मे 24°C तक होता है ।
उ तर पि चम के मैदानी भाग म रा के तापमान कभी-कभी हमांक से नीचे गर जाया करते ह,
िजससे धरातल य कोहरा पैदा होता है । जनवर म ाय: उ तर मैदान म शीत लहर चलती है,
कैि पयन सागर तथा तु क तान से आने वाल ठ डी पवन शीतलता म वृ करती ह, िजससे
घना कोहरा एवं पाला पैदा होता है । इसके वपर त, ाय वीपीय पठार पर सु नि चत ठ डी ऋतु
का अनुभव नह ं होता ।
वषा: उ तर तथा कोरोम डल तट को छो कर स पूण दे श म शीत ऋतु सामा यत: शु क होती है
। उ तर भारत म भूम य सागर क ओर से ईरान तथा पा क तान होकर भारत म वेश करने
वाले पि चमी व ोभ से दस बर से फरवर के म य ह क वषा होती है । इन च वात के पथ
सामा यत: हमालय के सहारे ि थत होते ह । इन च वातीय गत क सं या 4-6 होती है ।
य य प इनसे अ प वषा होती है िजसक मा ा पूव क ओर घटती जाती है । फर भी, यह वषा
उ तर भारत म रबी क फसल के लए अ य धक लाभदायक होती ह ( च 2.5)

च 2.5 : शीतकाल न (जनवर ) वषा का वतरण


ज मू एवं क मीर, हमाचल दे श तथा उ तरांचल क पहा ड़य म हमपात होता है ।
भारत के उ तर पूव भाग मे शीतकाल मे कुछ वषा होती है । इन मह न मे अ णाचल दे श
तथा असम म 50 मल मीटर तक वषा होती है ।
अ टू बर म बंगाल क खाड़ी के उ तर भाग म एक न न दाब का े ि थत होता है
जो नव बर के ार भ म द ण क ओर बढ़ने लगता है । इस न न दाब को शका क ओर
थल य पवन आक षत होती ह जो कोरोम डल तट क ओर मुड़ जाती ह तथा वहाँ अ टू बर-

52
नव बर म वषा कराती ह । 90°E के पि चम म उ प न कुछ च वात भी तट क ओर बढ़ते हु ए
त मलनाडु के तट य मैदान म वषा कराते ह ।

2.4.2 उ ण-शु क ( ी म) ऋतु (Hot-Dry Summer Season)

सू य के उ तर म कक रे खा क ओर पलायन के साथ ह तापमान म वृ होने लगती है


। अ ेल तक सतपुड़ा के द ण म ाय वीपीय े म औसत अ धकतम तापमान 40°C पहु ँ च
जाते ह । मई म औसत अ धकतम तापमान 42°C राज थान, पि चमी उ तर दे श, द ल ,
ह रयाणा तथा द णी पंजाब म दज होते ह । उ तर पि चमी भारत म कु छ थान पर दै नक
तापमान 45°C से 47°C तक पहु ँच जाते ह । इस समय ं ानगर म तो तापमान 50°C से
ीगग
भी अ धक दज होते ह क तु द णी तथा उ तर पूव भाग म इतने ऊँचे तापमान नह ं होते ।
पवतीय े म ठ डा तथा फू तदायक मौसम रहता है ।
शीत तथा वषा ऋतु के म य एक सं मण काल होने के कारण इस ( ी म) ऋतु म
वायुदाब तथा पवन संचार अि थर होता है । सू य के उ तर क ओर ग तमान होने पर न न
वायुदाब का े भी द ण पूव से उ तर पि चम क ओर सरकने लगता है जो अ तत: मई के
अ त म उ तर पि चमी भारत पर ि थर हो जाता है । इस समय नकटवत सागर म उ च दाब
रहता है । मई के अ त तथा जू न म उ तर पि चमी भारत म शु क धूल भर आ धयाँ (तू फान)
चलती ह तथा उ तर मैदानी भाग म शु क गम पवन, िज ह 'लू, कहते ह, चलती ह । पि चमी
बंगाल तथा असम म ती सवाह नक पछुआ जेट म से स बि धत तू फान चला करते ह ।
य य प ये तू फान णक होते ह, क तु भार वषा, तेज हवाओं, मेघ गजन, व युत चमक तथा
ओलावृि ट के कारण इनसे जन-जीवन क बहु त हा न हो जाया करती है ।
इस ऋतु म वषा क मा ा 2.5 सेमी से कम राज थान, गुजरात, म य दे श तथा
महारा म, 5-15 सेमी पंजाब, उ तराखंड, उ तर दे श तथा बहार के उपपवतीय दे श एवं
उड़ीसा म, 15-25 सेमी मालाबार तट पर तथा 50 सेमी से अ धक असम म होती है ।
कनाटक म तू फान से होने वाल वषा को ' लोसम शॉवर' (blossom shower) कहा
जाता है य क ये कहवा के बागान के लए अ य त लाभकार होती ह । अ य द ण भारत
म इस वषा को 'आ वषा' (mango shower) कहा जाता है । ाय वीपीय भारत म माच तथा
मई के म य कु छ मानसू न-पूव वषा होती है । क तु उ तर मैदान म गम तथा शु क पवन से
कोई राहत नह ं मलती, िजनसे जन-जीवन दूभर हो जाता है वशेषत: 'लू लगने से अनेक लोग
बीमार हो जाते ह ।

2.4.3 आ (वषा) ऋतु (Wet (Rainy) Season)

मई के अ त म पि चमी राज थान पर उ प न तापीय न न दाब गहरा होने लगता है ।


जेट म क द णी शाखा कमजोर पड़कर अ तत: जू न के म य तक हमालय के द णी ढाल
से हट जाती है । अ तरा उ ण क टब धीय अ भसरण (ITC) अ धक उ तर क ओर पलायन कर
म य जू न तक 25° उ तर अ ांश पर था पत हो जाता है, िजससे उपमहा वीप म वषुवतीय
पछुआ पवने चलने लगती ह । उ ण क टब धीय पूव जेट म जो त बत के पठार के तपने से

53
उ प न होती है, ह द महासागर मे उ च दाब को शका को ती बना दे ती है जहाँ से द ण
पूव यापा रक पवने ाय वीपीय भारत क ओर द ण पि चमी मानसू न के प म खंच आती ह।
तापमान : मानसू न के व फोट के पूव मई-जू न म अ धकतम तापमान होते ह । जू न म
औसत दै नक अ धकतम तापमान जोधपुर तथा इलाहाबाद म 40°C, द ल म 39°C, पुणे तथा
तेजपुर मे 32°C, मामु गाओ म 31°C, को च तथा ीनगर म 29°C, तथा शमला मे 23°C
होते ह । मानसू न के आगमन पर ये तापमान 1-7°C घट जाते ह । जु लाई का औसत तापमान
राज थान, पंजाब, ह रयाणा तथा उ तर दे श म 30°C से अ धक तथा अ य उ तर मैदान एवं
ाय वीपीय भारत म 25-30°C के म य रहते ह । उ तर के पवतीय े के तापमान 20°C से
कम रहते ह ( च 2.6)

च 2.6 ी म ऋतु (मई) क समताप रे खाएँ


मई तथा जू न म उ च तापमान के कारण उ तर पि चमी भारत पर अ य त न न दाब
था पत हो जाता है । यह दाब नर तर घटकर जु लाई म 997 मल बार रह जाता है । वायुदाब
द ण तथा द ण पूव क ओर बढ़ता है तथा केरल तट के नकट एवं अ डमान, नकोबार
वीप म 1000 मल बार तक पहु ंच जाता है । न न दाब का एक ल बाकार े जो मानसू न
‘गत' (monsoon trough) कहलाता है, हमालय क तलहट के लगभग समा तर स दु-गंगा
मैदान के सहारे बनता है । यह मानसू न गत उ तर या द ण क ओर खसकता है तथा दे श मे
मानसू नी वषा क आशा जगाता है । म थल य े को छोड़कर दे श म सापे क आदता 80-
90% तक रहती है ।

54
वषा : जू न के ार भ म द ण-पि चम मानसू न ह द महासागर क ओर से ाय वीप पर
पहु ँ चता है और लगभग एक माह के भीतर मानसू न स पूण दे श परब फैल जाता है तथा मेघ
गजन के साथ मानसू न वी फोट होता है । ायद प क धरातल य आकृ त के कारण मानसू न
पवन दो शाखाओं म बट जाती है -
1. अरब सागर य शाखा : द णी-पि चमी मानसू न केरल तट पर हार करके उ तर म
क कण क ओर बढ़ता है । पि चमी घाट (स या ) जो 1200 मीटर ऊँचे ह मानसू नी पवन के
समु ख पड़ते ह । पि चमी तट तथा स या के पि चमी ढाल पर पवतीय वषा होती है जो 250
सेमी से अ धक होती ह । घाट के वमु ख ढाल वृि ट छाया म पड़ने के कारण कम वषा (100
सेमी) ा त करते ह जो पूव क ओर मश: 50 सेमी तक घटती है । वषा क मा ा उ तर क
ओर भी घटती जाती है; पि चमी तट पर ि थत मंगलौर म 301 सेमी, र ना ग र म 253 सेमी,
मु बई म 183 सेमी तथा सूरत म 106 सेमी मा तक रह जाती है ।
अरब सागर य मानसू न क एक शाखा पि चमी घाट को पार कर नमदा घाट के सहारे
म य दे श तक पहु ंचती है । इस शाखा का उ तर भाग गुजरात तथा थार म थल होकर
हमाचल दे श तक पहु ंचता है । गुजरात तथा राज थान म वरल वषा ह होती है य क यहाँ
वषाकार पवन को रोकने के लए कोई पवत या पहाड़ी नह ं है । अरावल क नीची पहा ड़यां
मानसू न पवन क दशा के समाना तर ि थत होने के कारण कोई अवरोध उपि थत नह ं कर
पाती, अतएव ाय: वषा वह न रह जाती ह । ( च 2.7)

च 2.7 : आ ऋतु म वषा का वतरण

55
2. बंगाल क खाड़ी क शाखा : बगाल क खाड़ी का मानसू न लगभग 20 मई तक अ डमान
एवं नकोबार वीप पर सव थम द तक दे ता है तथा लगभग व जू न तक पुरा एवं मजोरम
पहु ंचता है । इसक एक शाखा पि चम क ओर मु ड़कर असम धाट म वेश कर मेघालय क
ं ी (1087 सेमी) तथा मौ सनराम (1141 सेमी)
खासी पहा ड़य म भार वषा करती है । चेरापूज
भारत म अ धकतम वषा ा त करने वाले थान ह । मेघालय क व श ट क पाकार (funnel
shaped) ि थ त तथा 1525 मीटर ऊँची पहा ड़य से घरे रहने के कारण इस दे श म भार
वषा होती है । इन पहा ड़य के उ तर म ि थत शलॉग म मा 143 सेमी वषा होती है, जब क
गुवाहाट म 161 सेमी वषा होती है । मानसू न आगे बढ़कर गंगा घाट म वेश करता है तथा
पंजाब तक पहु ंचता है । वषा क मा ा मश: पि चम क ओर घटती जाती है । कोलकाता म
119 सेमी, पटना म 105 सेमी, इलाहाबाद म 91 सेमी, द ल म 56 सेमी तथा बीकानेर म
24 सेमी वषा होती है । हमालय के ढाल पर भी वषा क मा ा पि चम क ओर घटती जाती ह
- दाज लंग म 250 सेमी, मसू र म 206 सेमी तथा शमला म 122 सेमी वषा होती है ।
हमालय के ढाल से गंगा के मैदान म उतरते हु ए भी वषा क मा ा म कमी दज होती है ।
नैनीताल म 206 सेमी, बरे ल म 81 सेमी तथा आगरा म मा 75 सेमी वषा हो पाती है ।
पि चम क ओर वा त वक वषा के दन क सं या भी घटती जाती है ।
आ मानसू नी ऋतु का मौसम तथा वषा बंगाल क खाड़ी तथा अरब सागर पर बनने
वाले च वातीय गत से भी भा वत होते ह । मानसू न काल म ऐरने 20-25 च वातीय गत
उ प न होते है, िजनम से कुछ . तटवत े म रहने वाले लोग के जीवन तथा स पि त को
बहु त हा न पहु ंचाते ह । लाख है टे यर े म खड़ी फसल भी न ट हो जाती ह तथा लाख लोग
बेघरबार हो जाया करते ह ।

2.4.4 लौटते मानसू न क ऋतु (Season of Retreating Monsoon)

सत बर के अ त तक सू य द ण क ओर पलायन आर भ कर दे ता है िजससे उ तर-


पि चमी भारत का न न दाब का े कमजोर होने लगता है । द ण-पि चमी मानसू न अब
लौटना ार भ करता है । क तु मानसू न के नवतन म, आगमन क अपे ा अ धक समय
लगता है, िजससे उ तर मैदान से सत बर के अ त तक मानसू न पूणत: हट जाता है । नम
सागर य समीर के थान पर शु क थल य समीर चलने लगती है । दे श के अ धकांश भाग पर
त-च वातीय दशाएँ था पत हो जाती ह । मौसम ठ डा तथा शु क होने लगता है । अ टू बर के
म य तक जेट म क द णी शाखा अपनी शीतकाल न ि थ त ( हमालय के द ण) म वा पस
आ जाती है । इसके साथ ह धरातल पर ह क उ तर-पूव यापा रक पवन चलने लगती ह ।
तापमान : अ टू बर के ार भ म वशेषत: दन के तापमान ऊँचे रहते है, जब क रात
20°C या कम औसत तापमान के साथ सु हानी होती ह । दै नक तापा तर अ धक रहते ह ।
नव बर म तापमान घटने लगता है तथा दस बर तक शीत ऋतु था पत हो जाती है । औसत
तापमान उ तर तथा उ तर पि चम म 16°C ाय वीप के आ त रक भागो मे 20°C तथा तट य
े म 26°C रहते ह ।

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वषा : इस ऋतु म उ तर पूव पवन सामा यत: शु क होती ह तथा नव बर म सापे क
आ ता कम रहती है - जयपुर म 48%नागपुर म 59%, हैदराबाद म 68%, मु बई म
73% त वन तपुर 87% तथा चे नई म 83%रहती है । लौटते मानसू न से त मलनाडु के तटवत
े म कु छ वषा होती है, जब ये मानसू नी पवन बंगाल क खाड़ी को पार करते समय कु छ नमी
ा त कर लेती ह । वनाशकार च वात से भी त मलनाडु के तट य े म वषा होती है, िजससे
लोग के जीवन तथा स पि त को बहु त हा न होती है ।

2.5 वा षक वषा का वतरण (Distribution of Annual Rainfall)


भारत म वा षक वषा का था नक वतरण बहु त वषम है । पि चमी घाट, हमालय,
मेघालय तथा उ तर पूव क पहा ड़याँ वषा कराने म भावी भू मका अदा करते ह । 100 सेमी क
वषा रे खा दे श को दो भाग म बांटती है जो चावल क बारानी खेती तथा गेहू ँ क खेती के म य
सीमा नधा रत करती है । वषा क मा ा के आधार पर भारत को पांच दे श म बांटा जा सकता
है -
1. अत यून वषा (30 सेमी से कम) : दे श म अ त यून वषा ा त करने वाले दो दे श
ह - (1) ज मू एवं क मीर म जा कर ेणी के उ तर म ि थत दे श तथा (ii) क छ तथा
राज थान के पि चमी भाग जो 10 सेमी से कम वा षक वषा ा त करते ह ।

च 2.8: भारत म औसत वा षक वषा

57
2. यून वषा (30-60 सेमी): ये अ शु क े ह जो तीन भाग म वभ त ह - (1) ज मू
एवं क मीर मे दे वसाई पवत तथा जा कर ेणी स हत एक संक ण पवतीय पेट , (2) पंजाब-
ह रयाणा मैदान , म यवत राज थान तथा पि चमी गुजरात म व तृत एक च ाकार पेट तथा
(3) पि चमी घाट के पूव म ि थत एक संक ण पेट जो। महारा के पठार, कनाटक तथा
द णी पूव आं दे श के पि चमी भाग से होकर गुजरती
3. म यम वषा (60-100 सेमी) यह एक ल बी पेट है जो उ तर पंजाब से लेकर द ण म
क याकुमार तक व तृत है तथा यून वषा के कु छ े वारा वि छ न होती है । इसके
अ तगत क मीर घाट , उ तर दे श का द णी भाग, पूव राज थान, म य दे श, पूव गुजरात ,
महारा के पठार का अ धकांश भाग, कनाटक का पठार. द णी आं दे श तथा त मलनाडु के
आ त रक भाग सि म लत ह ।
4. उ च वषा (100-200 सेमी) : दे श म उ च वषा के चार े ह जो पर पर पृथक ह - (i)
पि चमी घाट तथा नमदा के द ण म गुजरात का तट य मैदान , (ii) ज मू क पहा ड़याँ, द ण
हमाचल दे श, उ तराखंड, उ तर दे श, बहार, पि चमी बगाल के उ तर मैदान, उड़ीसा,
म यवत म य दे श, छ तीसगढ़, पूव महारा तथा उ तर आं दे श सि म लत प से एक
उ च वषा का वशालतम े बनाते ह, (iii) त मलनाडु क द ण पूव तट य संकर पेट तथा
(iv) असम क म यवत एवं नचल घाट , म कर पहा ड़याँ, म णपुर एवं पुरा ।
5. अ यु च वषा (200 सेमी से अ धक): इस दे श म दो े सि म लत कए जाते ह -
(1) सलवासा से त वन तपुरम तक एक ल बी व संकर पेट , पि चमी घाट के पि चमी ढाल
तथा संल न तट य मैदान एवं (2) दाज लंग एवं बंगाल दुआर, मेघालय, असम क ऊपर घाट
तथा अ णाचल दे श ।

2.5.1 वषा क प रवतनशीलता (Variability of Rainfall)

मानसू नी वषा प रवतनशील है । प रवतनशीलता के मापन म न नां कत सू का योग


कया जाता है-

उपयु त सू वारा ा त मान को वचलन का गुणक कहते ह जो ल बी अव ध म दज


होने वाल वषा के औसत मू य (मान) से घट-बढ़ (fluctuation) क मा ा को सू चत करता है ।

दे श म वा षक वषा क प रवतनशीलता उ तर-पि चमी भाग को छो कर 15-30%तक


पाई जाती है 30%प रवतनशीलता क सममू य रे खा द णी गुजरात, म य दे श तथा म यवत
उ तर दे श से होकर गुजरती है । इसके पि चम तथा उ तर पि चम म ि थत सम त दे श म
( हमालय तथा उप हमालय े के अपवाद स हत) 30%से अ धक प रवतनशीलता पाई जाती है ।
गुजरात तथा पूव राज थान म प रवतनशीलता 40% से अ धक है जो पि चमी राज थान के

58
म थल े म 80% तक बढ़ जाती है । इसके वपर त, पि चमी तट, उप हमालय पेट ,
सि कम, अ णाचल दे श तथा उ तर पूव के पहाड़ी े यथा नागालै ड, म णपुर तथा मजोरम
म 15% से कम प रवतनशीलता मलती है । ाय वीपीय पठार के आ त रक भाग तथा पि चम
बंगाल एवं उड़ीसा से उ तर तथा पि चम क ओर प रवतनशीलता म वृ होती है । महारा ,
आं दे श तथा कनाटक के आ त रक भाग 30% तक उ च प रवतनशीलता । दज करते ह ।
वषा क प रवतनशीलता से वषा क कमी तथा अ धकता क दोहर सम याएँ पैदा होती ह जो
मश: सूखा (drought) तथा बाढ़ के प म ि टगोचर होती है । '

च : 2.9 : वषा क प रवतनशीलता


1. सूखा (droughts) : वषा क कमी होने पर जल क कमी से सू खे क ि थ त उ प न होती
है । मानसू न क अ नय मत कृ त, ल बे शु क काल तथा उ च तापमान स हत, भारत म सूखे
क ि थ त उ प न करने के लए उ तरदायी ह । औसत प से पांच वष म से एक वष सू खे का
होता है । इसक ती ता वष दर वष भ न होती है । यह ि थ त न न (60 सेमी) तथा
प रवतनशील (40 तशत से अ धक) वषा वाले े म ाय: दे खी जाती है । वशेषत: जहाँ
संचाई क सु वधाएँ वक सत नह ं ह । ऐसे े दे श के 35 तशत े पर ि थत ह तथा सूखा
वण े (drought prone area) कहलाते ह । भारत म न न ल खत े सूखा वण े
ह –
1. शु क एवं अ शु क दे श : इसके अ तगत राज थान, गुज रात, पि चमी म य दे श,
द ण पि चम उ तर दे श, पंजाब एवं ह रयाणा के लगभग 6 लाख वग क.मी. े सि म लत
है । सू खे क ती ता उन े म अ धक दखाई दे ती है जहां संचाई सु वधाएँ वक सत नह ं ह ।

59
राज थान म इि दरा गांधी नहर प रयोजना तथा गुजरात म नमदा नद पर सरदार सरोवर बांध
प रयोजना सूखे के भाव को कम करने म लाभदायक स हु ई है । ( च 2.11)

च 2.10 : सू खा वण े
2. पि चमी घाट के वृि टछाया दे श : पि चमी घाट क पहा ड़य के पूव का भाग वृि ट
छाया दे श कहलाता है । अरब सागर य मानसू नी हवाएँ सहया पहा ड़य के पि चम क ओर
अ धक वषा करने के बाद जब इस भाग पर पहु ंचती ह तब उनम वषा करने क मता ीण हो
जाती है । प रणामत: यहां अ य त कम वषा हो पाती है और यह भाग ाय: सूखा त रह
जाता है । इस दे श का व तार जलगांव (महारा ) से च तू र (आ दे श) तक व तृत 300
क.मी. चौड़ी व तृत पेट म पाया जाता है ।
3. अ य े : इसके अ त र त भारत के लगभग एक लाख वग क.मी. े म सू खा त
े बखरे हु ए पाए जाते ह । इनम कालाहा डी (उड़ीसा), पु लया (प. बंगाल), मजापुर पठार
(उ तर दे श), पलामू (झारख ड), कोय बटू र तथा त नेलवल (त मलनादडु आ द उ लेखनीय ह।
आधु नक समय म प रवहन एवं संचार के साधन के व तार तथा संचाई सु वधाओं के
वकास ने सू खे तथा अकाल क ती णता को कम ज र कया है, क तु फर भी इनका दे श क
अथ यव था तथा जन-जीवन पर तकू ल भाव पड़ता है ।
2. बाढ़े (floods) : मानसू नी वषा ाय: तेज धाराओं के प म आती ह, िजससे न दय म
बाढ़ आ जाती ह । इसके अ त र त नवीनीकरण, दोषपूण भू-उपयोग, बाढ़ मैदान म अ नयोिजत
बि तयां, ाकृ तक अपवाह म बाधा आ द मानवीय कारक भी बाढ़ के संकट म वृ करते ह ।
बाढ़ का लगभग 25 म लयन हे टे यर े बाढ़ वण (flood prone) है िजसम 7.4 म लयन
हे टे यर े त वष बाढ़ त होता है । 3.1 म लयन हे टे यर े कृ ष के अ तगत है । ऐसा
60
अनुमान है क बाढ़ से होने वाल कु ल त का 60 तशत नद क बाढ़ से होता है तथा शेष
40 तशत च वात तथा वषा से । हमालय के पवत पद य बे सन म दो तहाई त बाढ़ से
होती है । उ तर दे श सवा धक बाढ़ त रा य है जहाँ 33 तशत त दज होती है । बहार
(27 तशत), पंजाब एवं ह रयाणा (15 तशत) बाढ़ वारा त त अ य रा य ह ।
मपु वनाशकार बाढ़ के कारण असम का शोक कहलाती है । दामोदर, कोसी, ग डक घाघरा,
रामगंगा, गंगा तथा यमु ना भी वृहत े को बाढ़ त करती है ।
पूव तथा पि चमी तट के तटवत े भी ाय: उ ण क टब धीय च वात से भा वत
होते ह िजनसे आकि मक बाढ़े आती ह तथा जन-स पि त क हा न होती है । उड़ीसा, आ दे श
तथा त मलनाडु च वात के शकार होते ह ।
रा य बाढ़ नय ण काय म व 1954 म ार भ कया गया । इसके तीन चरण ह -
(i) ता का लक, (ii) लघु अव ध तथा (iii) द घ अव ध । 1976 म सरकार ने बाढ़ के नय ण
एवं ब धन के लंए रा य बाढ़ आयोग का गठन कया है । के य बाढ़ भ व ये ण संगठन
(Central Flood Forecasting Organisation) दे श भर म बाढ़ को मो नटर करता है तथा
चेतावनी भी जार करता है । इस संगठन के दे श भर म नौ के ह जो सू रत, भड़ौच, वाराणसी
ब सर, पटना, गुवाहाट , लखनऊ, द ल तथा गांधीनगर म ि थत ह ।

च : बाढ़ त े

61
2.6 जलवायवीय दे श (Climatic Regions)
अनेक व वान ने भारत को जलवायवीय दे श म बांटने के यास कये ह । इनम
कोपेन (1931-1936) तथा थान वेटट (1933-1948) के वभाजन उ लेखनीय ह ( च 2.13)।

2.6.1 कोपेन का वग करण (Koeppen’s Classification)

लैनफोड (Blanford, 1889) भारत का जलवायवीय वग करण तुत करने वाले थम


व वान थे । उ ह ने भारत म व व यापी जलवायु के अ तर को दे खा । बाद म, कोपेन
(Koeppen, 1918) ने भारत को तीन मु ख जलवायवीय दे श म बांटा - (i) शु क (b)(8),
(ii) अ शु क (C,D) तथा (iii) आ (A) । ये दे श तापमान एवं वषा के मौसमी अ तर के
आधार पर पुन : उप वभािजत कये गये । इस कार कोपेन के अनुसार भारत को नौ जलवायवीय
वभाग म बांटा जा सकता है -
1. AW (उ ण क टब धीय सवाना कार): यह वभाग उ ण क टब धीय सवाना घास भू म
तथा पणपाती मानसू नी वन से स ब है । ाय वीपीय भारत, द ण बंगाल तथा
झारख ड म इस कार क जलवायु पायी जाती है । यहां मई उ णतम मास है तथा
शीतलतम मास का तापमान 18°C से अ धक होता है । यहां क जलवायु क वशेषताएँ
मौसमी वषा, शु क शीत ऋतु तथा उ च तापा तर है ।
2. AMw(उ ण क टब धीय मानसू नी कार): लघु शु क शीतकाल तथा भार ी मकाल न
वषा जो सघन सदापण वषा वन के लए अनुकू ल ह, इस जलवायु क मु ख वशेषताएँ
ह । यह जलवायु क कण, मलाबार तट, पि चमी घाट, पुरा, मजोरम आ द म पायी
जाती है ।
3. As' (उ ण क टब धीय नम कार) : शु क ी म काल इस जलवायु क वशेषता है ।
यहाँ 75 तशत वषा सत बर से दस बर के म य होती है । यह जलवायु कोरोम डल
तट क एक संक ण पेट म मलती है ।
4. Bshw (अ शु क टे पी कार) : इस जलवायु क मु ख वशेषताएँ ी मकाल न वषा
एवं 18°C से अ धक औसत वा षक तापमान ह । इस वभाग के अ तगत कनाटक एवं
त मलनाडु के वृि ट छाया दे श, पूव राज थान तथा पि चमी ह रयाणा के कु छ भाग
सि म लत ह ।
5. BWhw (उ ण म थल कार) : उ च तापमान, उ च तापा तर तथा वरल वषा इस
जलवायु क वशेषता' है । ऐसी जलवायु राज थान के पि चमी भाग (थार म थल) म
पाई जाती है ।
6. Cws (म यम तापीय कार) : यह उ ण शीतो ण आ जलवायु से स बि धत है । इस
जलवायु क वशेषताएँ शु क शीतकाल, शीतलतम मास का तापमान 18°C से कम तथा
उ णतम मास का तापमान 10°C से अ धक है । यह जलवायु गंगा के मैदान म पाई
जाती है ।

62
7. Dfc (शीतल आ शीत ऋतु कार). इस दे श म शीत ऋतु अ धक ठ डी रहती है ।
इसम उ णतम मास का तापमान 2200 से नीचे तथा शीतलतम मास का तापमान
1000 के आसपास रहता है । इसम सि कम, असम के कुछ भाग तथा अ णाचल
दे श सि म लत ह ।
8. E( ु वीय या पवतीय कार) : इस जलवायु म उ णतम माह का तापमान 10°C से कम
रहता है । ज मु क मीर तथा हमाचल दे श म यह जलवायु मलती है ।
9. ET (टु ा कार) : इस जलवायु म उ णतम मास का तापमान शू य से 10°C के बीच
रहता है । यह जलवायु उ तराखंड के उ तर पवतीय े म पायी जाती है ।

च 2.12 भारत जलवायवीय वभाग (कोपेन के अनुसार)


आलोचना : कोपेन का वग करण एक सराहनीय यास था, जो तापमान और वषा पर
आधा रत है । फर भी इनके वग करण म कु छ क मयाँ पायी जाती ह । अ य धक अ र के
योग के कारण वग करण अ य त दु ह हो गया है । तापमान तथा वषा का तकसंगत आधार
नह ं गनाया गया । इनक सीमाएँ अनुभव के आधार पर नधा रत क गई ह । तापा तर, वषा
क ती ता, मेघा छादन, पवन क दशा, समु क नकटता आ द पर वचार नह ं कया गया है।

2.6.2 थान वेट का वग करण (Thornth Wate’s Classification)

कोपेन क तरह थान वेट ने भी सांके तक श दावल का योग कया है । वषा क


भा वता (तट) तापीय द ता (P/E)ए तथा वषा के मौसमी वतरण के आधार पर उ ह ने
जलवायु दे श को वग कृ त कया । थान वेट वारा तुत वभाजन के आधार पर भारत को
न न ल खत जलवायु दे श म बांटा जाता है ( च 2.13) -

63
1- AA’r - यह वभाग अ धक आ जलवायु का सूचक है िजसम वष पय त ऊँचे तापमान
तथा आ ता पायी जाती है । यहाँ PE/TE सू चक 128 से अ धक, उ च तापमान, भार वषा
तथा उ ण क टब धीय वषा वन पाये जाते ह । इसका व तार पि चमी घाट के सहारे , एक
संक ण पेट म, पुरा एवं मजोरम म मलता है ।
2- BA’w - यह जलवायु उ ण क टब धीय नम (wet) कार क है िजसम शीतकाल म
नमी कम होती है तथा ग मय म वषा होती है । PE128 से अ धक तथा TE 64-127 रहता है
। यह जलवायु पि चमी घाट तथा पि चम बंगाल के पूव भाग म मलती है ।
3- BB’w - यह समशीतो ण क टब धीय आ जलवायु है िजसम शीतकाल म नमी कम
रहती है । PE/TE अनुपात 64-127 रहते ह । यह जलवायु मेघालय, असम, नागालै ड तथा
म णपुर म पायी जाती है ।
4- CA’w - यह उ ण क टब धीय उपा जलवायु है िजसम शीतकाल शु क रहता है और
ी मकाल म वषा होती है । वषण भा वत (PE अनुपात) 32-63 तथा तापीय द ता (TE
अनुपात) 128 से अ धक पाया जाता है । इस जलवायु का व तार अ धकांश ाय वीपीय भारत
तथा गंगा के मैदान के द णी भाग म मलता है ।
5- CB’w - यह उपो ण क टब धीय तथा उपा जलवायु है िजसम शीत ऋतु म वषा क
कमी रहती है । इसका वषण भा वत (PE अनुपात) 32-63 तथा (TE अनुपात) 64-127 रहता
है । यह जलवायु गंगा, मपु के मैदान के व तृत भाग म मलती है

च 2.13 : भारत जलवायु वभाग (थान वेट के अनुसार)

64
6- DA’w - यह उ ण क टब धीय अ शु क जलवायु है जहाँ शीतकाल शु क रहता है ।
इसका वषण भा वत (pe अनुपात) 16-31 तथा तापीय द ता (TE अनुपात) 128 से अ धक
होता है । यह जलवायु क छ तथा द णी पूव राज थान म मलती है ।
7- DB'w - यह शीतो ण क टब धीय अ शु क जलवायु है िजसका वषण भा वत (PE
अनुपात) 16-31 तापीय द ता (Te अनुपात) 64-127 तथा शीतकाल शु क रहता है । इसके
अ तगत उ तर पि चमी राज थान, पंजाब तथा द णी पि चमी ह रयाणा सि म लत ह ।

8- DB’d - यह शीतो ण क टब धीय अ शु क जलवायु है िजसम वष पय त नमी. क


कमी रहती है, अनुपात 16-31 तथा अनुपात 64-127 होता है । यह जलवायु स या के वृि ट
छाया दे श म मलती है ।
9- D' - यह टै गा तु य जलवायु है, िजसम तापीय द ता (TE अनुपात) 16-31 रहता है ।
यह हमालय के नचले ढाल पर हमाचल दे श से अ णाचल दे श तक व तृत है ।
10- EA’d - यह उ ण क टब धीय म थल य जलवायु है िजसम TE अनुपात 128 से
अ धक तथा PE अनुपात 16 से कम मलता है । सभी मौसम म वषा क कमी रहती है । यह
जलवायु राज थान के पि चमी भाग (थार म थल) म मलती है ।

11- E - यह टु ा कार क जलवायु है, िजसम TE अनुपात 16 से कम मलता है । वष


पय त तापमान हमांक ब दु से नीचे रहता है । जाड़े म हमपात के प म वषा होती है ।
इसका व तार क मीर के उ तर भाग पर तथा ल ाख म पाया जाता है ।
आलोचना: थान वेट ने वा पीकरण को जलवायु वभाजन का आधार बनाया है । इसके
आकड़े आसानी से नह ं मलते । फलत: वसंग तयाँ अ धक ह । जलवायु को भा वत करने वाले
घटक पर कोई यान नह ं दया है । वषण भा वता (PE अनुपात), तापीय द ता (TE
अनुपात) तथा वषा के मौसमी संके ण के आधार पर भारत को 11 जलवायवीय वभाग म बांटा
गया है । दे श के अ धकांश भाग को मेगा-तापीय वग म रखा है, जो ु टपूण है ।
बोध न : 3
11. भारतीय मौसम ने वष को कतने और कन- कन चार व श ट ऋतु ओ मे
वभ त कया है ?
12. म य अ ां शो मे चलने वाल पछु आ हवाओ को कस नाम से पु कारते है ?
13. ाय वीप क धरतल य आकृ त के कारण मानसू न कोन सी दो शाखाओं म बं ट
जाता है ?
14. सत बर के अं त तक दे श से मानसू न के पू ण त: हट जाने पर दे शके अ धकां श
भाग पर कौन सी वायु दशाएँ था पत हो जाती है ?
15. वषा क प रवतनशीलता के कारण भारत मे कौन सी दोहर सम याएँ पै दा हो
जाती है ?
16. कौनसी सं था मे बाढ़ ( floods) क मॉ नट रं ग करती है ?

65
17. कोपे न वारा तपा दत जलवायवीय वभाग कन मौसमी करको पर आधा रत
है ?

2.7 सारांश (Summary)


भारत को य य प मानसू नी जलवायु का खंड माना जाता है, ले कन सव जलवायु
दशाओं म समानता नह ं पाई जाती, य क भारत क भौगो लक प रि थ त ह ऐसी है क यहाँ
व व के लगभग सभी जलवायु के प दे खने को मलते ह । दे श के कसी न कसी भाग म
उ ण, उपो ण, उ ण शु क, आ , समशीतो ण एवं शीत जलवायु अव य पायी जाती है । भारतीय
मौसम वभाग ने यहाँ के वष को चार व श ट ऋतु ओं म बांटा है; शीत ऋतु, उ ण-शु क ऋतु,
आ ऋतु तथा लौटते मानसू न क ऋतु । भारत के मानसून क अ नि चतता एवं अ नय मतता
को ि टगत रखकर अनेक व वान ने मानसू न क उ पि त एवं उसक या व ध (origin and
mechanism of monsoon) के स ांत तु त कए ह, जो मानसू न के ल ण को भी दशाते
ह । जलवायवीय वल णता के कारण अनेक व वान ने भारत को जलवायवीय वभाग
(climatic regions) म भी बांटने के यास कए ह, िजनम कोपेन तथा थान वेट के नाम
उ लेखनीय है ।

2.7 श दावल (Glossary)


1. पवन उ मण (Wind reversal) : कसी े म पवन का वलोम बहाव िजसम
पवन के बहाव क दशा उलट जाती है और वपर त दशा म बहने लगती ह ।
2. वायु अ भसरण (Wind Convergence) : वायु के अवत लत होने (नीचे बैठने) क
या।
3. मानसू न (monsoon) : पृ वी के नचले वायुम डल (भू तल के ऊपर) म चलने वाल
पवन िजनक दशा म ऋतु वत प रवतन होते ह । यह अरबी भाषा के मौ सम श द से
बना है, िजसका अथ मौसम होता है ।

2.9 स दभ ध (References)
एस.सी. बंसल : भारत का भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ, 2004
अलका गौतम : भारत का वृह भू गोल, शारदा पु तक भवन, इलाहबाद, 2007,
पी.आर. चौहान एवं : भारत का व तृत भू गोल, र तोगी काशन, मेरठ, 2007
महातम साद :
बी.पी राव. : भारत - एक भौगो लक समी ा, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2007
R.C.Tiwari : Geography of India, Prayag Pustak Bhawan,
Allahbad, 2003
R.L. Singh (ed.) : India _A Regional Geography, NGSI, Varansi, 1971

66
2.10 बोध न के उ तर
1. मौसम क लयब ता (Rhythm) तथा पवन क दशा का उ मण (reversal)
2. अ नय मतता तथा अ नि चतता
3. उ तर भारत म रबी क तथा त मलनाडु म चावल क फसल
4. मेघालब के मौ नसराम थान पर
5. कक रे खा - उ तषी े उपो ण का टब ध तथा द णी े उ ण क टब ध े
6. उ ण मानसू नी जलवायु
7. तापीय संक पना (thermal concept)
8. वायुदाब पे टय तथा ह य पवन का मौसमी थाना तरण
9. जेट म, त बत के पठार तथा महासागर य रा शय
10. ग या मक संक पना (dynamic concept)
11. चार व श ट ऋतु ओ;ं शीत, उ ण-शु क, आ तथा लौटते मानसू न क ऋतु
12. जेट म
13. अरब सागर य तथा बंगाल क खाड़ी क शाखा
14. तच वातीय दशाएँ
15. सू खा तथा बाढ़
16. तापमान और वषा

2.11 अ यासाथ न
1. भारत क जलवायु क वशेषताओं तथा उसका भा वत करने वाले संघटक का वणन
क िजए ।
2. भरतीय मानसू न क उ पि त तथा या- व ध (mechanism) क ववेचना क िजए ।
3. भारत क जलवायु क ऋि वक वशेषताओं क ववेचना क िजए ।
4. कोपेन तथा थान वेट वारा तपा दत भारत के जलवायु दे श को स च दशाइये ।
5. भारत म वषा क प रवतशीलता तथा उसके दु प रणामो क ववेचना क िजए ।
6. 'भारतीय वषा समय व थान दोन म अ नि चत है । प ट क िजए ।

67
इकाई 3 : म ी, ाकृ तक वन प त एवम ् वन- वतरण,
(Soil, Natural vegetation and Forest)
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 म य के कार
3.3 म य का वतरण
3.4 म य क सम याएँ
3.5 म य का संर ण
3.6 वन प त एवं वन
3.7 वन के कार
3.8 वन का वतरण
3.9 वन क सम याएँ
3.10 वन का संर ण
3.11 सारांश'
3.12 श दावल
3.13 स दभ थ
3.14 बोध न के उ तर
3.15 अ यासाथ न

3.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे.
मृदा , वन प त एवं वन
 भारत म म य का वतरण
 रा म म य क सम याएँ
 म य का व धवत संर ण
 भारत म वन प त एवं वन का वतरण
 भारत मे वन क सम याएँ
 दे श म वन का व धथत संर ण

3.1 तावना (Introduction)


भू--पृ ठ के ऊपर भाग पर पाए जाने वाले उस पदाथ को म ी कहा जाता है जो छोटे -
छोटे कण से न मत है । म य का नमाण एक सतत म के तहत होता है । भारत जैसे
वशाल रा म म य क व वधता एक सावभौ मक स य है, म ी म पाई जाने वाल े ीय

68
भ नताओं का मूल आधार च ान क कृ त, जलवायु, पशु-प ी, क ड़ -मकोड़ , मानव का भाव,
ाकृ तक वन प त इ या द से है ।
उपरो त सभी घटक का य एवं परो भाव एक-दूसरे पर पड़ता है । इसके
अ त र त म य के नमाण म च ान का वख डन एवं यीकरण मु ख कारण है । च ान के
वख डन का मूल आधार तापमान क असमानता , वषा, वायु इ या द है िजनसे म ी छोटे -छोटे
कण म प रव तत हो जाती है । यह म ी को पुन: वषा वायु के कारण एक थान से दूसरे थान
पर वा हत कर दे ती है ।
भारत म म य का वै ा नक व प म यवि थत अ ययन व भ न व वान वारा
समय-समय पर तुत कया गया है जो म य के कार , वतरण एवं संरचना मक आयाम
पर पूण काश डालते है । भारत क म य पर मूलभूत प से ारि भक अ ययन वॉलेकर
(Volekar) महोदय वारा 1893 ई. म तथा लेदर (Leather) महोदय वारा 1898 म तु त
कया गया । इसी कार से 1921 म े प महोदय तथा 1932 म सी वै ा नक ीमती
कोक सकाया (Zjschokalskaya) ने वन प त, च ान एवं जलवायु को आधार मान कर
म य के वतरण का मान च तु त करने का साथक यास कया है । इसी कार से 1936
म चैि पयन महोदय ने भी वन का वग करण करते समय म य का अ ययन तु त कया था
। इसी म म भारतीय व वान का योगदान भी अमू य माना जाता है । भारतीय व वान ने
म य के अ ययन म धरातल य व प, भू-त व इ या द को आधार मानकर व तृत अ ययन
तु त कया है । डी. डी.एन. वा डया एवं उनके सहयो गय ने 1935 म भू- व व ान के आधार
पर दे श क म य का मान च तैयार कया । 1937 म बसु महोदय ने यह था पत कया क
भारत के व भ न दे श म उस वशेष कार क भ नताएँ पाई गयी है । 1944 म व वनाथ
एवं उनके साथी उ कल ने भारतवष क म य को अलग-अलग जलवायु दे श म वग कृ त कया
। डॉ. एम.एस. कृ णनन एवं डॉ. एस.पी. चटज का योगदान भी अभू तपूव है । इसी कड़ी म
1954 म डी. एसपी. राय चौधर तथा मु खज ने म ी के नमाण म भू-त व, जलवायु एवं
वन प त के भाव का अ ययन कर स पूण रा ो 16 वृह तथा 106 लघु म ी दे श मे
वभािजत कया ।

3.2 म य के कार (Types of Soils)


भारतवष म पाई जाने वाल वभ न कार क म य के मु य कारक कई है िजनके
आधार पर वग करण तु त कया जाता है जैसे -
(1) कण का आकार (Texture) - कण के आकार पर भारत क म याँ मु य प से चार
कार क मानी जाती है -
चकनी म ी : इसके कण अ य त बार क होते है । 50 तशत से अ धक चकनाहट होती है ।
दोमट म ी : यह म ी मले-जु ले कण वाल होती है तथा इसके कण म यम आकार के होते है ।
बलु ई म ी : इस कार क मदट के कण बड़े होते है तथा इसे भू डा नाम ले भी जाना जाता है।
पेतील ओमदडी : इसके लण अ य त बड़े होते है जो अनुपजाऊ कार के होते है ।

69
(2) रग : भारत वष क म याँ मू लतः चार कार के रग क मानी जाती है जो उसके
भौ तक फप क प रचायक है जैसे - लाल, काशी, पील एवं भू र कार इ या द ।
(3) उ पादक मता : कसान या लगान अ धका रय वारा म ी क उवरता को आधार मान
कर भी. मृदा का वग करण कया गया है जो उसक उ पादक मता को दशाता है जैसे -
 अ धक उपजाऊ म ी
 उपजाऊ म ी
 कम उपजाऊ म ी
 अनुपजाऊ म ी
(4) भू-त वीय गुण :
म ी म पाई जाने वाल च ान , उसके अवशेष इ या द के आधार पर भारत क म याँ
मू लत: पाँच कार क मानी जाती है
 ाचीन रवेदार एवं प रव तत च ान से न मत लाल एवं पील म याँ
 कु ड पा एवं वं यन कम क च ान से न मत बार क बलु ई एवं ार य म याँ
 ग डवाना काल क च ान से बनी रवेदार अनुपजाऊ म याँ
 ड कन े प क लावा च ान से बनी काल उपजाऊ म याँ
 टर शयर काल व नवीन च ान से न मत म याँ जैसे - खादर, बाँगर,
 डे टाई कांप, लेटेराईट एवं म थल म ी इ या द ।
(5) कृ ष अनुसध
ं ान का वग करण :
ं ान सं थान, नई द ल
भारतीय कृ ष अनुसध वारा भारत क म य को न न वग मे
वभािजत कया - (मान च 3.1)
 न दय वारा लाई गई म ी
 नद वारा लाई गई ख नजीय लवणयु त म ी
 न दय वारा लाई गई तट य दे श क बलु ई म ी
 नद क तलहट क पुरानी म ी
 डे टा दे श क लवणमय म ी
 तराई क म ी
 दलदल मदट
 चू नायु त मदट
 गहर काल म ी
 म यकाल म ी
 म त म ी (काल + लाल)
 कम गहर चकनी म ी
 लाल म ी
 लाल बलु ई म ी
 लाल दोमट एवं बलु ई म ी
 कंकर ल म ी

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 पवतीय म ी
 पीट म ी
 रे तील म ी

मान च -3.1 : भारत क म य का वतरण

3.3 म य का वतरण (Distribution of soils)


स पूण रा के भौगो लक व तार एवं म य के कार के ि टकोण से वतरण को
चार मु ख भाग म वभािजत कया गया है -
(1) हमालय पवतीय े क मइ याँ :
हमालय पवतीय े क म य का नमाण अभी अपूण माना जाता ह, य क यह
म याँ अभी नूतन, पतल , छ मय एवं दलदल है । पहाड़ी ढाल पर ह क बलु ई, छछल व
छ मय म याँ मलती है िजसमे वन प त का अंश कम होता है । न दय क घा टय और
पहाड़ी ढाल पर ये अ धक गहर होती है । पि चमी हमालय के ढलान पर अ छ बालू म ी
मलती है जब क म य हमालय क म याँ वन प त के अंश क अ धकता के कारण अ धक
उपजाऊ है । हमालय े क इन म य को उनक उ पादक मता, संरचना एवं कण के
आकार के आधार पर न न वग म बांटा गया है -
(अ) चू ना व डोलो ाईट से बनी म याँ (Calcareous and Dolomite soil) - हमालय े म
जहाँ चू ना एवं डोलोमाईट च ान पाई जाती है, उसके समीपवत े म इस कार क म ी का
नमाण हु आ है । वषा के जल के साथ चू ने का अ धकांश भाग इस म ी म से बह कर चला
जाता है तथा कुछ अंश भू म पर रह जाता है िजससे वहाँ क भू म अनु पादक एवं बीहड़यु त हो
जाती है, कह -ं कह ं घा टय म चावल क खेती भी होती है । वन प त म चीड़, साल के वृ पाये

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जाते है । उ तराखंड के नैनीताल, मसूर , चकरोता के समीपवत भू-भाग म इसी कार क म ी
पाई जाती है ।
(ब) आ नेय म याँ (Inneous soil): हमालय पवत े ीय भाग म डायोराईट और ेनाइट
नामक आ नेय च ाने पाई जाती है िजससे आ नेय म य का नमाण हु आ है । इन म य म
चु र खेती होती ह य क इसम नमी बनाए रखने क मता होती है ।
(स) टर शयर म ी (Tertiary soil): हमालय के घाट े म एक त हु ई कम गहराई क
म ी इसी कार क है । क मीर एवं दून घाट म इस कार क म ी मु य प से पाई जाती है
जो काफ उपजाऊ भी ह एवं इसक मु य फसल चाय, चावल, आलू इ या द है ।
(द) चाय म ी - हमालय पवतीय े के म यवत भाग म पाई जाने वाल यह म ी िजसम
वन प त अंश तथा लोहे क मा ा क अ धकता तथा चू ने क मा ा कम होती है । इसे चाय क
म ी के नाम से भी जाना जाता है य क यह चाय उ पादन के लए सव े ठ मानी जाती है ।
इस कार क म ी क चुरता असम रा य के पहाड़ी ढलान , उ तर बंगाल के दािज लंग,
दे हरादून तथा कांगड़ा े म पाई जाती है ।
(य) पथर ल म ी: हमालय पवत के द णी भू-भाग म इसक अ धकता पाई जाती है । इस
कार क म ी म कंकड़-प थर के टु कड़े िजसके कण मोटे होते है । पवतीय ढलान के नचले
भाग म चुरता होती है ।
(2) दलदल म याँ (Marshy soils) :
(3) समु तट य एवं कांप े म न दय एवं झील के सूखने, वहाँ क वन प त के सड़ने,
गलने इ या द से दलदल म ी का नमाण होता है । इस म ी म लोहे एवं जीवा म का अंश
होता है िजसके फल व प इसका रं ग नीला हो जाता है । भारतवष म इस कार क म याँ
त मलनाडु रा य क द णी-पूव समु य तट, उड़ीसा के समु तट य े एवं पि चमी बंगाल के
सु दरवन एवं म यवत बहार के भू-भाग म पाई जाती है ।
(4) पीट म याँ (Peat soil) :
इस कार क म ी का नमाण वन प त के सडने से होता है । इसका बाहु य - आ
दे श म है । जै वक साम ी का अ धक मा ा म इक ा होना ह इन म य के बनने का मु य
कारण है । इस । म ी मे - उ चत मा ा म घुलनशील नमक भी पाया जाता है । यह म ी ार य
होने के साथ- साथ एवं काले रं ग क होती है । वषा क समाि त के तु र त बाद इसम धान क
खेती क जाती है । भारत मे 'इस कार क म ी त मलनाडु एवं केरल रा यो म पाई जाती है ।
(5) नमक न म याँ एवं अ य :
उ तर भारत के वशाल मैदानी भाग म उपर सतह पर सफेद पत जमा हो जाती है
िजसके फल व प भू म क उ पादक मता यूनतम हो जाती है । इसे ऊसर या क लर भी
कहते है । इस कार क म ी म सो डयम मै नी शयम लवण एवं कैि शयम क मा ा अ धक
होती है । इस म ी म नमक क मा ा इस लए अ धक होती है क बहते हु ए पानी म नमक
घुलकर नचले भाग म पहु ँच जाता है । नचल परत के यादा पानी सोखने तथा उपर परत पर
भी नमक न पानी से सीधा स पक हो जाता है । जब गम के मौसम म वा पीकरण ती होने
लगता है तब नीचे क सतह का पानी उपर आने लगता है । इस म म पानी तो भाप बन कर

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उड़ जाता है पर तु उसके साथ घुलकर आए हु ए नमक क तह म ी के उपर जम जाती है । इस
जमे हु ए सफेद पदाथ को रे ह (Reh) नाम से भी जाना जाता है । इसम सो डयम काब नेट,
लोराइड, स फेट, कैि शयम तथा मै नी शयम लवण के त व पाये जाते है । इस कार क म ी
म नमक क मा ा न न ोत से धीरे -धीरे जमा होती रहती है
1. हमालय से नकलने वाल न दयाँ अपने साथ नमक न ख नज त व बहाकर लाती है, जो
धीरे -धीरे म ी म जमा होता रहता है ।
2. द ण-पि चम मानसू न क वायु जब क छ के रण से गुजरती है तब अपने साथ नमक के
कण उड़ा कर लाती है, जो वषा के जल म घुलकर कम ऊँचाई वाले े म जमा हो जाते है

3. समु तट य भाग म वार के समय सागर का नमक न जल नकटवत भू म म फैल जाता है
इस लए दलदल े म नमक न म ी क अ धकता दे खी जाती है ।
वन म य का नमाण वन े म पाए जाने वाले जै वक त व के जमा होने के
फल व प होता है । इस कार क म ी मे वन प त का अंश अ धक होता है । इसका रं ग भू रा
होता है य क इसम ह के अ ल य तथा गहरे अ ल य त व पाये जाते है ।
म थल य म याँ भारतवष के पि चमो तर े , द णी ह रयाणा, पि चमी राज थान
एवं उ तर गुजरात रा य के भू-भाग म थल य े है । इस े म वषा बहु त कम होती है,
तेज वायु आ धय वारा म ी एक थान से दूसरे थान पर जमा होती रहती ह िजसे रे तीले
ट ल के नाम से जाना जाता है । यह भू-भाग थार के रे ग तान के नाम से भी स है । इस
म ी म ख नज नमक (शी घुलनशील) अ धक मा ा म पाया जाता है । म थल य म ी े
म कह -ं कह ं पर पानी क पया त मा ा पाई जाती है जहाँ पर संचाई से खेती क जाती है । इन
भाग म लगभग हर वष अकाल क ि थ त बनी रहती है तथा इस े क म ी अनुपजाऊ होती
है ।
बोध न : 1
1. रं ग के आधार पर भारत क म याँ मू ल त: कतने कार क ह ?
2. भारत म कस कार क म ी के कण अ य त सू म होते ह ?
3. भारत के द कन े प क लावा च ान से बनी म ी का रं ग कै सा है ?
4. भारत क म य म पाये जाने वाले च ान के अवशे ष के आधार पर म याँ
कतने कार क है ?
5. उ तराखं ड के नै नीताल एवं मसू र े मे कस कार क म ी पायी जाती है ?

3.4 म य क सम याएँ (problems of soils)


भारत एक कृ ष धान रा है जहाँ पर लगभग 70 तशत लोग खेती पर नभर है ।
अत: म य के कार, वतरण एवं उ पादन मता दे श क अथ यव था म मह वपूण भू मका
अदा करती है तथा म य के संबं धत सम याओं का ान एवं उनका नराकरण परम आव यक
है । भारतवष म म य क मु य सम याऐ इस कार है -

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(1) बंजर भू म क सम या (Problem of Wasteland)
(2) म भू म व तार क सम या (Problem of desert land)
(3) भू म अपरदन क सम या (Soil erosion)
(4) ार य भू म क सम या (Problem of alkaline soil)
(5) जल स ती क सम या (Problem of Water logging)
(6) कृ ष भू म के वकास हे तु अप हण क सम या (Problem of Agricultural land
grabbing for development)
(7) भू-शोषण क सम या. (Problem of land exploitation)
(1) बंजर भू म क सम या (Problem of Wasteland)
भारतवष म म य क मुख सम याओं म तवष होने वाल सैकड़ है टे यर भू म का
बंजर होना चतादायक है सरकार ने इस सम या के समाधान हे तु बंज र भू म बंधन बोड का
गठन कया है । इसका मु यालय नई द ल म है तथा इस संदभ म शोध एवं अनुसध
ं ान जार
है जो सम या के समाधान म सहायक स होगा ।
(2) म भू म व तार क सम या (Problem of desert land)
भारत के पि चमो तर भाग म जो क उ तर के मैदान का अ भ न अंग है, को थार के
रे ग तान के नाम से भी जाना जाता है । यह भू-भाग भारत एवं पा क तान के संयु त रे ग तान
का े है । भारत के पि चमो तर भाग का रे ग तान उ तरोतर द णी ह रयाणा, द ल एवं
पि चमी उ तर दे श तथा पूव उ तराख ड क ओर बढ़ रहा है । इस े म चलने वाल तेज
वायु एवं आ धयो के कारण रे ग तान का व तार होता है जो क भारतीय म य क एक
वलंत सम या है । यह म ी अनुपजाऊ होती है तथा वायु के वेग से एक थान से दूसरे था न
पर जमा होकर रे तीले ट लो का प हण कर लेती है । अत: पि चमो तर भारत म म भू म
व तार म दटयो क एक मु य सम या है ।
(3) भू म अपरदन क सम या (Soil erosion)
स पूण रा क लगभग एक-चौथाई कृ ष यो य भू म अपरदन क सम या से सत है
। वायु या जल वारा कसी थान वशेष क भू म के उपर आवरण क परत का धीरे -धीरे न ट
हो जाना, इस म म भू म का कटाव या अपरदन माना जाता है । यह कटाव या अपरदन दो
कार का होता है -
1. परत अपरदन (Soil erosion): कसी भू-भाग के म ी क उपर परत ाकृ तक
शि तयाँ (वायु जल) इ या द वारा बहा कर या उड़ा कर ले जायी जाती है तब यह अपरदन कहा
जाता है । इसके कारण नीचे क परत उपर आ जाती है जो अनुपजाऊ होती है एवं इस भू म को
बंजर छोड़ना पडता है ।
2. अवना लका अपरदन (Gully erosion): इस कार का अपरदन सामा यत: ढालदार
भू म पर तेज पानी के बहाव या वायु के वेग वारा होता है । इसके फल व प भू म मे गहरे
ग ढे एवं ना लयां बन जाती है, भू म उबड़-खाबड़ हो जाती है िजसे अवना लका अपरदन या कटाव
कहा जाता है । दे श के मैदानी भाग म जल वारा एवं शु क भाग म वायु वारा अपरदन होता

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है जो म ी क एक मु य सम या है । इस सम या से नजात पाने के लए भारत सरकार ने
1953 म के य भू म र ा बोड क थापना क थी िजसके मु य उ े य थे - म भू म के
व तार को नयि त करना, कृ ष भू म क उवरता बनाए रखना तथा कट -फट भू म को कृ ष
यो य बनाना ।के सरकार ने इन उ े य क पू त हे तु दे हरादून, जोधपुर, कोटा, ऊटकम ड एवं
बेलार म शोध सं थान था पत कए है ।

मान च - 3.2. भारत म म य का अपरदन वायु एवं जल वारा


भू म अपरदन के कारण
म ी अपरदन के कई कारण होते ह पर तु मु य कारण इस कार ह -
(अ) भौगो लक ि थ त: कसी भी थान वशेष पर अपरदन कतना एवं कैसा होगा यह पूणत:
नधा रत होता है उस थान क व तु ि थ त से जैसे - मैदानी भाग, पठार भाग, पवतीय भाग
इ या द । अपरदन क शि तय (वायु एवं जल) का भाव सव एक समान नह ं होता है ।
(ब) भू म का ढाल : म ी अपरदन म भू म का ढाल मह वपूण माना जाता है य क ढाल क
कृ त जैसे - ती या म यम या यूनतम ढाल के अनु प ह अपरदन क ग त नधा रत होती है
। इसी कार अपरदन का भाव भौगो लक ि थ त के अनु प कम एवं यादा भा वत करता है।
(स) वन प त क ि थ त : कसी भी थान पर पाई जाने वाल वन प त क सघनता या
यूनता भी अपरदन क ग त को य प रो भा वत करती है । वृ र हत े म म ी का
कटाव सवा धक होता है य क अपरदन क शि तय (वायु, जल) का वेग बढ़ जाता है एवं उसी
वेग के अनु प अपरदन होना ार भ होता है ।

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(द) वायु वषा क ि थ त: अ य धक वषा, तेज वायु आ द भी अपरदन क ग त को य प से
भा वत करती है । मू सलाधार वषा वाले े म भू म को जल सोखने का अवसर ह नह ं मलता
तथा शी ह तेज अपरदन ार भ हो जाता है । इसी कार से कम एवं यूनतम वषा तथा वायु
वेग वाले े म अपरदन क ग त यूनतम दे खी जाती है ।
भू-उपयोग
अपरदन क ग त, ि थ त इ या द भू म के उपयोग पर नि चत प से नभर करती है ।
भू म के परत, चारागाह, खनन, कृ ष जैसे व भ न यवसाय भी म ी के कटाव को नधा रत
करते है । परती एवं चारागाह पर अपरदन क ग त सवा धक तथा कृ षगत भू म म अपरदन क
गत यूनतम होती है ।
भारत के अपरदन से भा वत े
भारतवष म अपरदन क सम या एक मु य सम या है जो वशेषत: ज मु क मीर,
हमाचल दे श, उ तराखंड, पंजाब, ह रयाणा, उ तर दे श, म य दे श, छ तीसगढ़, गुजरात, उड़ीसा
एवं असम रा य म वकराल प हण कर चु क है ।
भू म अपरदन क ग त कृ त क दोन शि तय (वायु एवं जल) वारा भा वत होती है
। दे श के व भ न भाग म दोन शि तय का सि म लत एवं अलग-अलग वाह अपरदन को
भा वत करता है । (मान च 3 .2)
पंजाब, ह रयाणा े म जल एवं वायु दोन शि तय वारा अपरदन क ग त भा वत
होती है । य क यहां पर शवा लक पहा ड़य से आने वाल न दयाँ उन थान से म ी बहा कर
लाती है इ ह थानीय भाषा म चो के नाम से या रे तील न दय के नाम से जाना जाता है । इस
े म अ बाला एवं हो शयारपुर िजल म ऐसी रे तील न दय का भाव सवा धक दे खा जाता है ।
उ तर दे श, द ल एवं राज थान. के भू-भाग म वायु वारा भू म का अपरदन सवा धक दे खा
जाता है य क राज थान के रे ग तान का व तार उ तरो तर एवं उ तर एवं पूव सीमांत े
क ओर बढ़ रहा है । राज थान क भू म पर पा क तान के संध से म थल य म ी का भाव
भी बढ़ रहा है िजसके फल व प जोधपुर, बीकानेर, जयपुर , भरतपुर, कशनगढ़ आ द िजल म
गत शता द म त वग कलोमीटर भू म म लगभग 34 लाख टन उपजाऊ म ी वायु वारा उड़ा
कर ले जाई गई है जो अपरदन क गहन व तु ि थ त का वलंत उदाहरण है ।
भारतवष म जल वारा भू म अपरदन मु य प से मपु एवं उसक सहायक न दयां
जैसे - कोसी, त ता, हु गल , गंगा, यमु ना, गंडक, महानद इ या द के सहारे सवा धक दे खा जाता
है । उ तर दे श के द णी-पि चमी भू-भाग, उ तर एवं म य बहार, पि चमी बंगाल, जल
वारा अपरदन से भा वत े म सवा धक मह वपूण े है । इन े के आगरा, मथुरा,
पटना, इटावा जैसे नगर एवं शहर पर भी जल वारा अपरदन का सवा धक भाव दे खा जाता है
। इसी कार से म य दे श म च बल नद एवं उसके घाट े म जल वारा अपरदन सवा धक
दे खा जाता है । इससे भा वत े म भ ड, मु रैना, वा लयर मु ख है जहाँ पर हजार है टे यर
भू म असमतल भू म मे प रव तत हो चु क है िजसे बीहड़ (Ravines) के नाम से जाना जाता है

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। इसी कार से झारख ड के े , त मलनाडु के धमापुर , क यापुर , त चराप ल , सेलम,
कोय बदूर े म भी न दय वारा अपर दत भू- व प को य प से दे खा जा सकता है ।
इस कार भारतवष म भू म अपरदन क सम या एक मह वपूण वलंत सम या मानी
जाती है िजसके नराकरण हे तु वशेषत: वतं ता के प चात के य एवं थानीय रा य सरकार
यासरत ह एवं नकट भ व य म स पूण रा क न दय को आपस म जोड़ने क प रयोजना से
सम या के आं शक समाधान क संभावना है ।
(4) लवणता एवं ार य भू म क सम या (Problem of alkaline soil)
ार यता जल, थल सब जगह पाई जाती है । एक नि चत तर से अ धक ार यता
अपने आप म सम या है । ाय: यह माना जाता है क सभी कार के ाकृ तक पयावरण म 4
से 9 के म य अ ल यता (pH) पाई जाती है । जल य पयावरण म यह ार यता 2.5 से 7.8 के
म य रहती है । ार यता से स ब ध समु म गहराई से भी य प से भा वत होता है ।
1000 मीटर क गहराई पर ार यता 36.5 है जब क 1200 मीटर पर 36 त प चात ् नर तर
कम होती जाती है । अत: सरल श द म यह य त कया जाता है क जल म लवणता क वृ
2000 मीटर तक पाई जाती है । उसके बाद ार यता उ तरो तर वत: कम हो जाती है । जल
क सतह के नकट जहाँ पर जल एवं वायुम डल क काबनडाईआ साईड म सतुलन रहता है ,
औसत अ ल यता से कुछ वचलन पाया जाता है । वालामु खीय े म ि थत झील म 2.5
(pH) जब क म थल य शु क ईगल म 10.5 तक अ ल यता पाई जाती है ।
जल के साथ काबन डाईऑ साईड म त होने पर काब नक अ ल बनता है । अत:
सतह पर 8.1 से 8.3 तक (pH) रहती है तथा जहाँ पर भी काश सं लेषण क या होती है
वहाँ पर अ ल यता क मा ा इससे भी अ धक होती है । काश सं लेषण क या से काबन
डाईऑ साईड क मा ा घटती है तथा (pH) अ ल यता बढ़ती है । काश सं लेषण क टबंध के
न न तर पर जै वक या को भा वत करती है । चू ं क ाणी ऑ सीजन हण करते है तथा
काबन डाईऑ साईड बाहर नकालते है अत: समु तल म (pH) 7.5 एवं कह -ं कह ं 7.0 से भी
कम पाया जाता है । इसी कार से थल य (pH) भी थल य पयावरण के अनु प म ी म पाये
जाने वाले नमक क मा ा के अनु प ह ार य त व को नि चत करती है । सामा यत: म ी
म 85 या उससे अ धक (pH) को ह ार यता क ेणी म माना जाता है । नमक क मा ा
घुलनशील अव था म होती है तथा य प से म ी क उवरता को भा वत करती है । इस
कार म ी म ार य त व क धानता अपने आप म एक वकट सम या है ।
भारत वष म म ी क ार य सम या मु य प से शु क एवं अ -शु क म थल य
े , उ च वा पीकरण के भू-भाग तथा शीत रे ग तान के आ त रक दे श म पाई जाती है ।
इस सम या का ार भ मू ल प से म ी म पाये जाने वाले नमक क मा ा उ तरो तर जल के
वाह, अवशोषण, स ती इ या द के कारण सतह पर आ जाती है जो एक सम या का प हण
कर लेती है । शु क दे शो 'म समतल भाग क लवणता, शु क े के ह नमक न खारे पानी
क झील का भाग इरनके वलंत उदाहरण है । इन भू-भाग म कृ ष स हत अ य यवसाय
बा धत होते है य क भू म क उवरता समा त हो जाती है । इस कार क सम या रा म

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राज थान के रे ग तान, ज मू क मीर के लरदाख, आ दे श के रायलसीमा इ या द े ो म
या त है ।
(5) जल स ती क सम या (Problem of Water logging)
भारत म म य क सम याओं म जल स ती क सम या भी अपने आप मे एक
मह यपूण सम या है िजसके समाधान हे तु थानीय एवं के य सरकार, जन सेवी सं थाय
इ या द यासरत है । यह सम या मु य प से नद वाह े म, अ तवृि ट , बाढ़, जल के
नकास म अवरोध, चकनी म ी का जमाव इ या द भू-भाग म केि त होती है । इसके साथ ह
नहर े , अ य धक रासाय नक खाद के उपयोग े इ या द म मु य प से पाई जाती है ।
इसके प रणाम व प भू म क उवरता म कमी जल के एक त रहने से चकनी म ी का जमाव,
आवागमन के साधन म अवरोध तथा व भ न कार क बीमा रय जैसे मले रया, हैजा इ या द
का कोप मुखता से पाया जाता है । उपरो त े म सामा यत: म ी क अवशोषण शि त से
अ धक, ल बी समयाव ध तक वषा इ या द के कारण रा के पंजाब, ह रयाणा, उ तर बहार,
पि चम बगाल एवं पि चमो तर राज थान के घ घर नद वाह े हनुमानगढ़ , गंगानगर इ या द
दे शो म वकट सम या है ।
(6) कृ ष भू म के वकास हे तु अप हण सम या
(Problem of Agricultural land grabbing for development)
भारत वष म म य क सम याओं म अप हण कृ ष क सम या भी अपने आप म
एक मह वपूण सम या मानी जाती है । य क वभ न थान पर वशेषत: कृ ष यो य भू म
पर यि तय , समू ह , सं थान , नगम एवं व भ न कार के संगठन वारा आवास- नवास,
यातांबात के साधन का वकास, उ योग एवं अ य त ठान हे तु नर तर कृ ष भू म का
अप हण कया जाता है । िजसके फल व प कृ षगत उवरक म ी का अ य यवसाय म
प रवतन एक वकट सम या है ।
यह म भारत वष म वशेषत: केरल, महारा , गुजरात, पि चम बंगाल, बहार, उ तर
दे श, ह रयाणा एवं पंजाब जैसे े म या त है ।
औ यो गकरण एवं शहर करण एक ऐसी या है िजसके वारा उ तरो तर शहर एवं
औ यो गक सं थान के समीपवत उवरक दे श क म ी का अप हण होता रहता है । चू ं क
शहर करण एवं औ यो गक करण मूल प से एक सतत या है जो जनसं या क वृ के
कारण, नवीनतम तकनीक के आ व कार तथा मानवीय आव यकताओं ( यवसाय प रवतन एवं
आवास) क पू त हे तु अनवरत प से संचा लत होता रहता है । रा म आ थक वकास का
म ार भ होने के कारण म ी अप हण क सम या सामाना तर प से संचा लत होती हे ।
अत: समय के साथ इस सम या का समाधान भी च तनीय एवं वचारणीय है ।
(7) भू-शोषण (land exploitation)
भारत वष म भू-शोषण क सम या भी अपने आप म म ी क व भ न सम याओं म
मु ख मानी जाती है । य क शहर करण एवं यवसाय के प रवतन के फल व प कृ ष यो य
भू म का व भ न कार से प प रवतन, वकास क तेज ग त, आधु नक तकनीक , अ धक से

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अ धक पूज
ं ी अिजत करने क लालसा इ या द के फल व प वकट सम या के प म था पत
हु ई है । रा म उ तर के वकासरत रा य तथा द ण भारत के हैदराबाद, वशाखाप नम एवं
चै नई जैसे शहरो क व तार के कारण दन- त दन भू-शोषण क सम या अि त व म आई है
। इसका समाधान समय क मह वपूण आव यकता है ।
बोध न : 2
1. भारतीय म य क सबसे बड़ी सम या या है ?
2. अपरदन क मु य शि तयां या- या है ?
3. दे श मे जल वारा कतनी म ी समु मे तवष वा हत हो जाती है ?
4. ढालदार भू म पर होने वाले अपरदन को या कहते है ?
5. बीहड़ ( Ravines) कसे कहते है ?
6. वायु वारा भारत मे सवा धक अपरदन कहाँ होता है ?
7. ार यता कसे कहते है ?

3.5 म यो का संर ण (Conservation of soils)


भारतवष म म य का संर ण अ त मह वपूण है । य क अपरदन एवं ार यता तथा
अ य कारण से तवष वशेषत: मैदानी एवं पहाड़ी ढलान पर म ी का तवष कटाव होता है ।
अत: संर ण वारा यह कटाव रोका जा सकता है । इसके न दय के कनारे , बंजर भू म तथा
पहाड़ी ढलान पर वृ ारोपण , पशु ओं क चराई पर नयं ण एवं बहते हुए जल को खेत म मेड़
बंद करना, रे ग तानी भाग म ती वायु वेग को रोकने हेतु व भ न थान पर घासफूस अथवा
लोहे के अवरोध लगाना, मैदानी भाग म कृ ष यो य भू म म व भ न फसल को बार -बार से
बोना, इसी कार से नद या नहर के बहते हु ए जल को सं ह करने, छोटे -छोटे तालाब या बांध
के नमाण से कृ ष एवं अ य काय म उपयोग लेना, जो म ी जल वारा वा हत हु ई है उसे
रोकने हेतु खेत के ढलान पर खाई खोदना, दे श के व भ न भाग म वशेषत: गांव म, छोटे
कसब म, नगर के बहार पशु ओं के चराने हे तु एक नि चत थान पर चारागाह वक सत करना,
कृ ष यो य भू म जहाँ पर तेज वषा से बचाव हेतु छोट वन प त या घास को रोपण एवं कु छ
समयाव ध के प चात उसे खाद के प म उपयोग हेतु था पत करना, कृ ष यो य भू म म छोटे -
छोटे पौध या दाल इ या द का उ पादन आ द उपाय कये जा सकते है । इसी कार से वायु
वारा होने वाले म ी के कटाव को रोकने हेतु उन खाद का योग कराना िजससे भू म म
जल हण शि त बढ़ती है, का उपयोग करना ।
भारतवष म वतं ता के प चात म य के संर ण हे तु व भ न पंचवष य योजनाओं म
व भ न काय म लागू कये गये िजसके फल व प दे श के व भ न भाग म म य क
सम याओं एवं संर ण हे तु साथक यास कये गये । थम पंचवष य योजना म 1.6 करोड़ पये
े ीय अनुसध
ं ान श ण के एवं अ य मृदा स ब धी श ण एवं सं थान क थापना हेतु
यय कये गये । िजसके फल व प 4800 है टर भू म म वृ ारोपण एवं 600 है टयर भू म म
सव च. 'बांध तथा 1.89 है टयर म म ी संर ण के व भ न काय स प न कये गये । सन ्

79
1953 म म ी संर ण बोड क थापना भी इसी उ े य से क गई थी । इसी कार वतीय
पंचवष य योजना म 500 है टयर भू म म बड़े बांध, 50 है टयर भू म पर मेड़बंद , 300 लाख
है टयर भू म पर भू म संर ण एवं चारागाह इ या द वक सत कये गये । तृतीय पंचवष य
योजना म 550 लाख है टयर भू म पर' शु क खेती के वकास, नद घा टय म बांध का नमाण,
भू म के कटाव पर नय ण एवं भू म क उपजाऊ मता, भाखड़ा नांगल, दामोदर, ह राकु ड
जैसी मु य प रयोजनाओं क थापना क गई । इसी कार से राजरथान, पंजाब, कनाटक,
महारा , गुजरात इ या द रा य म 5 लाख है टयर भू म का सुधार कया गया िजसम ढाई लाख
हे टयर बंजर भू म भी सि म लत है । चतु थ पंचवष य योजना म म ी के संर ण हे तु 71 लाख
है टयर भू म म वृ ारोपण , कृ ष सु धार एवं अ य संर ण काय स प न कये गये । इसी कार
से पांचवी पंचवष य योजना म लगभग 10 लाख है टे यर भू म पर जल हण, भू म सु धार, नद -
घाट योजनाओं, बीहड़ भू म सुधार इ या द के यास कये गये । इसी कार से छठ पंचवष य
योजना म भू म के कटाव, संर ण, छोटे बांध बनाने, मेड़बंद इ या द हे तु 450 करोड़ का
ावधान नि चत कया गया । इसी कार से सातवीं, आठवीं, नवीं एवं दसवी पंचवष य योजना
म वशेषत: पूव तर भारत, उ तर भारत के वशाल मैदान, राज थान के रे ग तान गुजरात,
महारा एवं आ दे श के े म पाई जाने वाल ार य व बंजर भू म इ या द को वक सत
करने हे तु वशेष यास कये गये । जल एवं वायु वारा अपर दत म य के संर ण हे तु
म थल य एवं पवतीय ढलान क म य के संर ण व तृत काय म , श ण एवं मृदा
स बि धत त ठान क थापना क गई ।
भारतवष म भारत के कुल े म से लगभग 8 करोड़ है टयर भू म वा त वक कृ ष के
अ तगत है िजसम 4 करोड़ हे टयर भू म का कटाव वायु एवं जल वारा तवष होता है । इसी
कार से अपरदन क अ य शि तय वारा दे श के व भ न भाग म भू म के कटाव इ य द के
बंधन हे तु संर ण के ि टकोण से के य म ी शोध सं थान, के य शु क अनुसंधान सं थान
जैसी व भ न सं थान वारा भी समय-समय पर दे श के व भ न भाग म भू म के संर ण
संबं धत श ण काय म, बाढ़ नय ण, जल शि त बंधन इ या द के वारा यापक यास
कये गये है । चू ं क रा म भू म संर ण एक मह वपूण आयाम है । अत: के एवं व भ न
रा य सरकार वारा व भ न कारगर उपाय कये गये है जैसे - छोटे क ब एवं शहरो के मलबा,
कू ड़ा करकट इ या द को बंजर भू म, अनुपजाऊ मृदा , रे ग तानी े इ या द म डालना, इसी
तरह बड़े शहर एवं महानगर के कूड़ा कररट इ या द का भी भू म संर ण म उपयोग कया जा
सकता है । नद -नाल एवं झील म भी पाये जाने वाले व भ न पदाथ का कृ ष एवं अ य भू म
संर ण हे तु उपयोग लया जा सकता है । य क सड़ा-गला कू डा-करकट िजसम व भ न कार
के जै वक त व भी होते है, बंजर एवं उसर भू म म खाद का काम करते है ।
इस कार से भारतवष म भू म संर ण हे तु व भ न सं थान , रथानीय एवं के य
सरकार वारा समय-समय कये गये साथक यास अ त मह वपूण एवं कारगर माने जाते है ।

80
बोध न : 3
1. म ीके रण को रोकने के चार मु ख उपाय बताईये ?
2. म ी म जल हण क मता कै से बढ़ाई जा सकती है ?
3. भारत मे म ी सं र ण बोड क थापना कब हु ई ?
4. क य म ी सं क शन बोड के उदे य या– या है ?

3.6 वन प त एवं वन (Vegetation and Forest)


भारतवष म वन प त इसके व भ न कार, के करण एवं वतरण म मु य प से
असमानता पाई जाती है । वन प त श द का सामा य अथ पेड़-पौध क व भ न जा तय के
समु चय से लया जाता है जो कसी वशेष ाकृ तक प रि थ तय म अपना अि त व रखते है ।
इसके वपर त वन श द का सामा य ता पय पेड़-पौध एवं झा डयो से आ छा दत बडे े के
लए यु त कया जाता है । अत: वन मुख प से पेड़-पौध के वशाल समू ह के व तार का
पयायवाची माना जाता है । चू ं क हमारे दे श मे वन प त म वन क धानता है अत: दे श के
आ थक एवं सवागीण वकास म इनका मह वपूण योगदान माना जाता है य क इनसे हम
बहु मू य लकड़ी, औष धयां एवं कु ट र, म यम इ या द उ योग हे तु भ न- भ न आयाम ा त
होते है । भारत वष म वन प त एवं वन का वतरण एवं के करण उ तरो तर भ न- भ न
समयाव धय म प रव तत होता आया है । जैसे ाचीन समयाव ध, म यकाल न, आधु नक एवं
अ त आधु नक प रि थ तय म ाकृ तक वन प त के व भ न आयाम का प भ न- भ न
त प म था पत हु आ है । ाचीन एवं म यकाल न समयाव धय म शासक एवं शासक तथा
जन सामा य का ाकृ तक संसाधन के साथ स ब ध एक भ न र े य म दे खा जाता है ।
जब क आधु नक एवं अ त आधु नक समयाव धय म ाकृ तक वन प त एवं वन क व तु ि थ त
पर जन सामा य, आ दम वग , शासक एवं शासक का ि टकोण मूलत: भ न प से दे खा
जाता है । भारत वष म पाई जाने वाल वन प त क मूल उ पि त जो क उ तर के वशाल
मैदान, थार के म थल, ाय वीपीय भारत इ या द पर व भ न कार एवं े का भाव दे खा
जाता है । (मान च 3.3) जैसे भारतवष म पाये जाने वाले पौध को लगभग 40 तशत ह सा
वदे शी है जो साईनो त बती े से ा त माना जाता है । इसे अ य श द म वन प त को
वो रयल वन प त जा त के नाम से भी जाना जाता है । जब क राज थान के म थल य े क
वन प त का उदगम अ का माना जाता है । इसी कार उ तर -पूव भारत क वन प त का
उ गम थान इ डो-मले शया माना जाता है । इस कार भारतवष म पाई जाने वाल वन प त के
वभ न कार पर रा के समीपवत एवं दूर थ पयावरण का य भाव दे खा जाता है
।भारतवष म वन प त एवं वन के व तार पर नवीनतम तकनीक एवं जानका रय के मा यम से
थानीय, रा य सरकार उप म , अ य गैर-सरकार सं थान इ या द के वारा संक लत आकड़
के अनुसार भारतवष म मा 22.7 तशत भाग पर ह वन पाये जाते है जो क अपने आप म
वतमान प रि थ तय के अनु प एक अपूण ाकृ तक या वन व तार क व तु ि थ त है ।

81
मान च - 3.3 भारत म वन प त के कार

3.7 वन के कार (Types of Forest)


व भ न वन प त शाि य ने भारत क ाकृ तक वन प त एवं उसका वग करण तु त
कया है । इनमे से एच.जी. चैि पयन काल ाल, सीसी. कैले डर, सेठ एवं जी.एस. पुर जैसे
व वान मु ख है । 1936 म एच.जी. चैि पयन तथा जी.एच. पुर ने भारतीय वन का वग करण
शास नक एवं या म य को आधार मान कर इस कार कया है:
(1) शास नक आधार :
(अ) सुर त वन: यह वन भारत म 337 लाख है टे यर भू म पर व यमान है जो कुल वन का
52.8 तशत है । इन वन को काटना हा नकारक होता है य क भू म के कटाव को रोकने,
बांध का नय ण, म थल के सार एवं जलवायु तथा अ य भौ तक कारण से इन वन के
काटने पर रोक लगायी जाती है । इन वन े म पशु चारण भी तबि धत माना जाता है ।
(ब) संर त वन: इस कार के वन 199 लाख है टे यर भू म अथात ् कु ल वन के 31.2 तशत
भू-भाग पर व तृत है तथा इस कार के वन म पशुओ को चराने, लकड़ी काटने इ या द क
सु वधा द जाती है पर तु नय ण एवं नयमन के साथ ता क वन को अ धक नुकसान न हो
तथा वन समा त न हो इ या द ।
(स) अवग कृ त वन: इस कार के वन 16 तशत भाग या 101 लाख है टे यर भू म पर
व यमान है । इसम लकड़ी काटने, पशु ओं को चराने इ या द पर कोई रोक नह ं है ।
82
(2) वा म व के आधार पर:
वन के इस कार पर वा म व को आधारभू त कारक मान कर वभाजन तुत कया
गया है जो इस कार है:
(अ) राजक य वन: इस वन पर पूणत: सरकार नय ण होता है जो लगभग 717 लाख है टयर
भू म पर व यमान है एवं वन का 96.11 तशत इसी वग म सि म लत है ।
(ब) सं थानीय वन: यह कार ाय: थानीय नगर पा लकाओं तथा िजला प रषद के नय ण म
होता है । इसका े फल 20 लाख है टे यर जो क कुल वन का 2.68 तशत है ।
(स) यि तगत वन: यह वन मु य प से यि तगत लोग के अ धकार े म आता है िजसका
े फल मा 9 लाख है टे यर है ।
भारतीय व वान पुर एवं सेठ के अनुसार वन के मु य कार इस कार है , िजनका
मु य आधार जलवायु धरातल य वशेषता, वन प त के कार इ या द है ।
(1) उ णक टब धीय आ वन : यह कार भारत म वन के वग करण म सव मुख है जो 5 उपभाग
म वभािजत है
(अ) उ णक टब धीय आ सदाबहार वन: इस कार के वन का व तार 250 सेमी. वषा वाले
े म मलता है जहाँ पर ऊँचे एवं घने वृ का बाहु य होता है । इस कार के वन म तु सर,
च लास, महोगनी जैसे मह वपूण वृ सि म लत है तथा भारतवष म यह वन नागालै ड ,
म णपुर, पुरा , असम, मेघालय तथा अ डमान तथा नकोमार वीप समू ह म पाये जाते है ।
(ब) उ णक टब धीय आ अ सदाबहार वन: इस कार के वन का व तार 200 से 250 सेमी,
वषा वाले भूभागो म पाया जाता है तथा इन वन से ा त लकड़ी बहु मू य मानी जाती है िजससे
ईधन, इमारती उपयोग, दयासलाई एवं कागज उ योग मे यु त होती है । इस कार के वन
मु य प से उड़ीसा के तट य भाग, पि चमी बंगाल, असम घाट तथा पि चमी घाट के पवतीय
प ी इ या द े मे पाये जाते है ।
(स) आ पतझड़ वन: यह वन मु य प से मानसू न वन है िजसका व तार पूव एवं पि चमी
घाट के म य से ाय वीपीय पठार, म य दे श, झारख ड, पि चम बंगाल, छ तीसगढ़ इ या द
े म पाया जाता है । उपरो त वन
े म ा त होने वाले मु ख वृ सागवान, शीशम, च दन, रोजवुड, साल, महु आ, खेर इ या द
आ थक ि ट से उपयोगी एवं मह वपूण उ पादन ा त होते है ।
(द) साल वन: इस कार के वन का आ थक मह व अ धक होता है जो क वन के कु ल भाग का
12 तशत ह सा इसी का माना जाता है । इस कार के वन मु य प से पूव घाट, उड़ीसा
क पहा ड़या, बघेलख ड, छोटे नागपुर का पठार इ या द े म पाया जाता है । इन वृ क
लकड़ी से रे ल क पट रयां एवं भवन नमाण इ या द म उपयोग लाया जाता है ।

83
(य) वार य वन: भारतवष म समु तट , दलदल य भाग , न दय के डे टाई भाग म पाये जाते
है जैसे - गंगा नद के डे टा का सु दरवन इ या द मु ख है । इस कार के वन से ताड़, बत,
केतक तथा नाव बनाने हे तु लकड़ी एवं ईधन के प म उपयोग लाया जाता है ।
(2) उ णक टब धीय शु क वन: इस कार के वन 100 सेमी. से कम वषा वाले भू-भाग म
पाये जाते है जो मु य प से 4 कार के है
(अ) शु क सदाबहार वन: इस कार के वन का व तार त मलनाडु के समु तट य, आ दे श
के द णी पूव भाग तक है । य क मानसू न के लौटते समय ा त वषा वाले भू-भाग माने
जाते है तथा इन वन को कृ ष हेतु समा त भी कया जाता है । इन वन े क मु य उपज
केसु आर ना वृ है ।
(ब) शु क पतझड़ वन: इस कार के वन ाय वीपीय पठार, हमालय के तराई भाग, न दय के
कनारे , भारत के म यवत भाग इ या द है जहाँ पर बांस, खेर, साल, पै डु ला एवं सवाई घास
मु य उ पादन है ।
(स) शु क कंट ल झाड़ी वन: भारतवष म पि चमो तर भाग के रे ग तान तथा पि चमी घाट के
वृि ट छाया दे श सव मुख है जहाँ पर कंट ल झा ड़या, खेजड़ी, बबूल एवं झाऊ इ या द वृ है ।
(द) म थल य वन: इस कार के वन पि चमी राज थान, द णी ह रयाणा इ या द े म पाये
जाते है । यह पर पाये जाने वाले मु ख वृ कंट ल झा ड़या खेजडी, ताड, नागफनी, खजू र, केर
एवं क ंकर है ।
(3) उपो ण क टब धीय पवतीय वन: इस कार के वन भारत म पालनी एवं नील गर
पहा ड़या िजनक ऊँचाई 1070 से 1525 मीटर तक ह, के े म मैकाल सतपुडा एवं स यादर
भू भाग म पाये जाते है । इसी कार से हमालय े म 1000 से 2000 मीटर क ऊँचाई पर
पाये जाने वाले मु ख वृ ऑक, चे टनट, एश इ या द सि म लत ह । इसी म पि चमी हमालय
के चीड तथा क मीर हमालय के जैतू न इ या द उपवग भी सि म लत है ।

(4) पवतीय शीतो ण क टब ध वन : इस कार के वन पवत के ऊँचाई वाले भाग म पाये


जाते है जैसे- आ शीतो प िजनम मंगो लया, सनकोना, वाटल तथा युि ल टस वृ शा मल है ।
इसी कार से कम आ शीतो प वन म स वर, दे वदार, पाईन इ या द वृ सि म लत है तथा
शु क शीतो ण म जू नीपर वृ मु ख है जो हमालय के वृि ट छाया े े पाये जाते है ।

(5) उ च ादे शक वन : इस कार के वन हमालय े म 3400 मीटर तथा उससे भी


उ च भाग म पाये जाते है इ ह अलपाईन वन भी कहा जाता है । इसके अ त र त बच रोडो
डे ोन एवं अलपाइन घास सव मु ख

84
3.8 वनो का वतरण (Distribution of Forest)

मान च 3.4 : वन के कार


दे श म भौ तक दे श क व तु ि थ त के अनुसार वन का वतरण 2001 म इस कार है :
ता लका 3.1 : भारत म वन का वतरण
भौ तक दे श े फल (वग क.मी.) कु ल वन का तशत
हमालय पवतीय दे श 127458.6 20.00
उ तर का मैदानी दे श 47797.1 7.50
ाय वीपीय भारत 318646.5 50
पि चमी घाट 66915.6 10.50
पूव घाट 76475.2 12
सा रणी 3.1 से व दत होता है क स पूण रा का 50 तशत वन एवं उसका व तार
ाय वीपीय भारत मे पाया जाता है त प चात ् हमालय पवत े , पूव घाट , पि चमी घाट एवं
समसे यूनतम उ तर भारत के मैदानी भाग म या त है । उ तर भारत के यूनतम एवं
हमालय े के भी कु ल भू म का रा य वन नी त के अनु प कम भाग वनो से आ छा दत है

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यो क पवतीय े ो क कुल भू म का 60 तशत एवं मैदानी भाग का कु ल भू म का 20
ातेशत भागो पर वन का व तार होना चा हए । जब क उ तर भारत के मैदान एवं हमालय े
भी इसके अपवाद ह । भारत म नये रा य के गठन के प चात रा य म वन का वतरण इस
कार है :
ता लका 3.2 : भारत म रा यवार वन का तशत
.सं. रा य े (वग तशत .सं. रा य े (वग तशत
क.मी.) क.मी.)
1. आ दे श 44229 16.08 16. झारख ड 26052 34.9

2. अ णाचल दे श 68847 82.21 17. महारा 46672 15.17


3. असम 23688 30.20 18. म णपुर 17384 77.86
4. बहार 3174 3.2 19. मेघालय 15633 69.70
5. गोवा 1251 33.79 20. मजोरम 18338 86.99
6. गुजरात 12965 6.61 21. नागालै ड 14164 85.43
7. ह रयाणा 964 2.18 22. उड़ीसा 37022 20.01
8. हमाचल दे श 13082 23.50 23. पंजाब 1412 2.80
9. ज मु क मीर 20441 9.20 24. राज थान 13871 4.05
10. कनाटक 32467 16.93 25. सि कम 3118 43.94
11. केरल 10323 26.56 26. त मलनाडु 17078 13.13
12. म य दे श 86750 28.2 27. पुरा 5745 54.79
13. उ तर दे श 16483 6.8 28. पि चम बंगाल 8362 9.42
14. उ तराखड 35160 63.0 29. के शा सत 7906 72.04
15. छ तीसगढ़ 67747 50.1 योग 637293 19.39

भारत मे त यि त वनो का तशत केवल 0.2 है टे यर जब क ाजील मे सवा धक


8.6 है टे यर,आ े लया 5.1 है टे यर,सो वयत स मे 3.5 है टे यर, वीडन मे 3.2 है टे यर तथा
संयु त रा य अमे रका मे 1.8 है टे यर है।
हमारे यहाँ पर व भ न रा यो एवं क शा सत दे श पर या त वन े का वतरण
भी असमान है ।
बोध न : 4
1. ताड़ एवं के वड़ा कस वन े के वृ है?
2. इमल और खे र के वृ कहाँ पाये जाते है ?
3. भारत म गू ल र के वृ कहाँ पाये जाते है ?
4. पि चमी घाट के पि चमी भाग के सदाबहार वन कस नाम रमे जाने जाते है ?

86
3.9 वन क सम याएँ (Problems of Forests)
भारतवष म वन क सम याएं एवं उनसे स बि धत व भ न आयाम व व के अ य
दे श से दयनीय ि थ त म है । भारतवष म वन क ह न दशा का मु य कारण यह है क रा
के पूव तर रा य , म य दे श एवं हमालय े के अ त र त सभी थान पर वन े कम पाये
जाते है तथा उ तरो तर इसम गरावट दज क गई है । भारत म वन क वा षक त है टे यर
उ पादकता केवल 0.5 घन मीटर है जब क अमे रका म 1.25, ांस म 3.9 घन मीटर, जापान
म 1.8 घन मीटर इ या द है । इसी कार से भारत म त यि त वन का े फल 0.14
है टयर है जब क सो वयत स म 3.5 है टे यर, संयु त रा य अमे रका म 1.8 है टे यर तथा
व व का औसत 1.08 है टयर है । भारत म एक ह े म एक ह कार के वृ समू ह नह ं
मलते ह अत: कसी वशेष कार क लकड़ी ा त करने म समय एवं पूज
ं ी दोन क अ धकता
आव यक होती है । इसी कार से व व के अ य रा क तु लना मे भारत म लकड़ी का उपयोग
कम होता है । आवास, फन चर इ या द म अ य रा म जैसे इं लै ड, संयु त रा य अमे रका
म अ धकतम लकड़ी का योग कया जाता है । भारतवष म लगभग 37 तशत वन नजी
स प त म है । शेष 63 तशत सरकार नय ण म है । इस कार वन के बंधन इ या द म
अ यव था है । वन एवं वन प त के त वै ा नक ि टकोण एवं यवि थत बंधन हेतु जन
सामा य म श ण एवं श ा क आव यकता ह । वन व ान के अथवा वन र ण व या के
ान के अभाव म वन स प त का पूरा बंध, उपयोग इ या द अ यवि थत है । जनसामा य म
वन के त िज मेवार एवं उपयो गता के ि टकोण म पूणत: अन भ ता दे खी जाती है । इसी
कार से रा म वन आधा रत उ योग जैसे लकड़ी काटना इ या द म भी आधु नक तकनीक का
अभाव है । भारत म लगभग 10 लाख है टे यर वन तवष न ट हो रहे है ।
इसी कार से वन प त एवं वन के वै ा नक बंधन म के एवं रा य के सतत
यास के उपरा त भी वै ा नक ि टकोण उ प न करने हेतु व भ न आव यकताओं क ज रत
है । रा म वशेषत: उ तर भारत के वशाल मैदान म वन एवं वन े का जनसं या वृ ,
शहर करण एवं औ यो गकरण के फल व प उ तरो तर ास हो रहा है िजसके वकास एवं बंधन
हे तु वशेष यास क आव यकता है । वन क मु य सम याओं, मे 40 तशत वन पदतीय
े , दुग य थानो पर ि थत होने के कारण आवागमन एवं प रवहन के साधन से दूर थ ि थत
है । इसी कार से षशुचारण, वृ क कटाई, पूव तर रा य मे झू मंग कृ ष इ या द ला व भी
वन क मु य सम याओ म वलंत मु े है । वन के त जाग कता, बै ा नक ि टकोण
इ या द उ प न करने हेतु जनसामा य एवं कमचा रयो के श ण हे तु दे हरादून एवं कोयंबटू र
इ या द थान पर था पत कये गये ह ।
बोध न : 5
1. वन क सबसे बड़ी सम या या है ?
2. भारत म तवष कतने े म वन न ट हो रहे है ?
3. दे श म पशु चारण क वकट सम या कह है ?
4. भारत म झू मंग कृ ष कहाँ होती है ? ;

87
3.10 वन का संर ण (Conservation of Forest)
भारतवष म ाकृ तक वन प त एवं वन संसाधन एक वशाल वरासत है । िजसम
लगभग 5 हजार कार क जा तयां पाई जाती है तथा उसम से 450 कार क जा तयां एवं
उनका उपयोग आ थक एवं यवसा यक मह व का है । व भ न वन प तय का औष यीय
उपयोग जैसे - लोरोफाम, स केनेमाइड, म थल ए कोहोल, तेल, ए सटोन इ या द वन से ा त
होता है । वन म 856960 लाख घन मीटर उ तम क म ट बर लकड़ी के वृ है । अ य
इमारती वृ म कोणधार वन से ा त , चौड़ी प ती से ा त लक ड़य से कागज, पेि सल, चाय
क पे टयाँ, लाईवुड, दयासलाई एवं अ य खलौने इ या द बनाये जाते है । अत: उपरो त सभी
कार के वृ , वन का आ थक, यवसा यक एवं दै नक जीवन के उपयोग हे तु संर ण अ त
आव यक है य क वन े म अ धवास करने वाले आ दम वग क जीवन शैल मु य प से
वन से नधा रत होती है ।
भारतवष म चू ं क अ धकांश वन दुग य थान म केि त है अत: उनका उपयोग,
आवागमन, सदुपयोग इ या द मानव पहु ँ च से बाहर है । रा म वन का भौगो लक वषमताओं के
अनु प ह असमान वतरण है । अत: पूव तर एवं हमालय े एवं पि चमी घाट के े पर
पाये जाने वाले वन का संर ण अ त आव यक है । य क उ तर के मैदान म वन क नर तर
कमी, पशु चारण, नये वृ के रोपण मे कमी , जनसं या वृ इ या द के फल व प कृ षगत
भू म का उ तरो तर वृ के फल व प वन का संर ण आव यक माना जाता है । संर ण के
ि टकोण से भारत क वन नी त 1952,1983 इ या द भी मह वपूण मानी जाती है य क वन
संर ण हे तु इसम व भ न कारगर उपाय समा हत कये गये है । वन के संर ण के मुख
उपायो म वन के वनाश को रोकना अत: सी मत पशु पालन, सामािजक वा नक , पवतीय ढलान
पर मेढ़ बना कर वृ एवं म ी के कटाव को रोकना , सरकार सं थान क थापना, वन े म
प रवहन के माग का वकास, वन के त े म तथा छोटे क ब एवं महानगर म वन क
उपयो गता एवं मनोरं जन वा नक के ि टकोण से व भ न सं थान था पत करना । इसी कार
से पवतीय ढलान , नद वभाजक , समु तट , बंजर भू म म सु र ा मक वन लगाना इ या द
सि म लत है । वृ ारोपण एवं वन संर ण का वतमान संदेश 'एक यि त एक वृ ' को च रताथ
करना इ या द वन संर ण के मु य याकलाप माने जाते है ।
बोध न : 6
1. वन क सु र ा एवं अ य उप म से व वध पू व क वन के वनाश को रोकने को
या कहा जाता है ?
2. वन सं र ण मे भू - व प क या भू मका है ?
3. वन सं र ण के कोई दो कारगर उपाय बताइये ।
4. वन सं र ण के अ य उपाय या है ?

88
3.11 सारांश (Summary)
भारत एक कृ ष धान रा है अत: म य को मह व दे श के वकास एवं कृ ष
यवसाय म मूलभू त माना जाता है । रा म पाई जाने वाल म ी एवं उसके व भ न कार एवं
वतरण पर भू- व प एवं च ान क कृ त क अ मट छाप दे खी जाती है मृदा के वभ न
कारो को नधा रत करने म म ी के कण, उसक आकृ त, रं ग, े एवं च ानो क मू लभू त
ं ान सं थान, नई द ल ने
संरचना मक ढांचे को आधार माना जाता है । भारतीय कृ ष अनुसध
स पूण रा क म य को 27 भाग म वभािजत कया है । दे श म 35 तशत े पर वायु
या जल वारा वा हत म ी 'तथा 20 तशत भाग पर बलु ई, काप चकनी और चका म ी
पाई जाती है ।
भारत म 2.04 करोड़ है टे यर पहाड़ी दे श क म ी है । उ तर भारत के मैदान मे
क छार , कांप एवं जलोड़ म यां पाई जाती है जो अ धक उपजाऊ होती है । द णी भारत क
म यां पठार है जो काल रे गड कार क है । काल म ी म जल हण क मता अ धक होती
है । दे श क अ य म य म लाल, भू र , म थल य पीट इ या द मु य है । भारत म पाई जाने
वाल म य क मु य सम याएं अपरदन, लवणता एवं ार यता, बंजर भू म, जल स ती, म
व तार, भू-शोषण इ या द मु ख है । जल वारा सवा धक अपरदन पूव तर भारत तथा पि चमी
घाट े म होता है जब क वायु वारा सवा धक अपरदन राज थान के म थल , द णी
ह रयाणा, द ण पि चम पंजाब इ या द म होता है । दे श म लवणीयता और ार यता भी एक
वकट सम या है । 68 हजार वग कलोमीटर े म यह सम या या त है जो मूलत: उ तर
बहार, उ तर दे श, ह रयाणा, पंजाब, राज थान, महारा एवं आं दे श आ द म केि त है ।
म य के संर ण हे तु वतं ता के प चात वशेष यास कये गये है । भारतवष म
1429 करोड़ है टै यर अत: भू म के 44.8 तशत भाग पर ह कृ ष होती है । 2 तशत भू म
कृ ष यो य तवष जल एवं वायु वारा न ट कर द जाती है । अत: अपरदन के कारण म ी क
उवरता समा त हो जाती है । 60 करोड़ टन म ी तवष जल वारा बहा कर समु म वा हत
कर द जाती है । भारत म म य का संर ण अ त आव यक है । म ी के संर ण हे तु
वृ ारोपण, पशुचारण पर नय ण , मेडु बनाना, छोटे -छोटे बांध एवं तालाब बना कर बहते जल
को रोकना एवं उसे संचाई म उपयोग लेना, खेती म फसल का हे रफेर कर बोना, कसान एवं
जनसामा य को भू म संर ण के संबं धत श ा एवं श ण दे ना इ या द मु ख है ।
भारत म पाई जाने वाल वन प त एवं वन का भी रा क धरातल य असमानता एवं
व वधता से गहरा संबध
ं है । वन प त एवं वन का व तार हमालय पवत े , पूव तर भारत,
ाय वीपीय भारत, पि चमी घाट पर सवा धक है । इसके वप रत पि चमो तर भारत के
रे ग तान, ह रयाणा, पंजाब, उ तर दे श, बहार, बंगाल एवं महारा इ या द े म वन क
यूनता पाई जाती है । वन क व भ नता को नधा रत करने म वषा क मा ा भी आधारभूत
कारण है । रा म वन का तशत उ तरो तर घट रहा है अत: उपरो त सभी सम याओं का
समाधान वन के संर ण म ह न हत है ।

89
3.12 श दावल (Glossary)
खादर : नवीन जलोढ़ म ी
बागर : पुरातन जलोढ़ म ी
रे ह (REH) : पृ वी के धरातल पर नमक यु त सफेद पदाथ जो अ धक वा पीकरण के
कारण जल के उड़ जाने के प चात दखाई दे ता है ।
बंजर भू म : अनुपजाऊ म ी या े िजसक उवर मता समा त हो गई हो ।
लवणता : कसी त व म पाई जाने वाल नमक क मा ा ।
अ ल यता : िजस त व म चू ने क मा ा कम हो ।.
ार यता : िजस त व म चू ने क मा ा अ धक हो ।
ड कन े प : द ण भारत का भू-भाग ।
अपरदन : जल एवं वायु वारा म ी का एक थान से दूसरे थान पर जमाव ।
बीहड : नद -घाट े का उबड़-खाबड़ भाग जो जल वाह के फल व प वक सत
होता है ।
भू-रव प : पृ वी के धरातल पर समु तल क ऊँचाई के अनु प भू-भाग जैसे मैदान,
पठार, पवत इ या द ।
जल हण : वषा या अ य ोत से ा त जल को अपने आप म रोके रखने क मता ।
वृ ारोपण : नये वृ लगाना ।
जल सि त : नद , नहर इ या द के वाह े म जल का एक त होना ।
झू मंग कृ ष : तवष थान प रवतन करके क जाने वाल खेती ।
संर ण : व धपूवक न ट होने से रोकना ।
सदाबहार : येक दन, तवष एक समान ि थ त म रहना ।

3.13 स दभ ंथ (References of Books)


1. बंसल एस.सी. : भारत का वृह भू गोल,मीना ी काशन, मेरठ, 2007 ।
2. चौहान एवं गौतम : भारतवष का व तृत भू गोल,र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2005 ।
3. नेगी बी.एस. : संसाधन भू गोल,केदारनाथ, रामनाथ, मेरठ, 2002 ।
4. उदयभानु : भारत का भू गोल,केदारनाथ रामनाथ, मेरठ, 2003. ।
5. मामो रया चतु भु ज : आधु नक भारत का वृह भू गोल,सा ह य भवन पि लकेशन, आगरा,
1984
6. Carter, C.C: An Outline of Vegetation in India,1937
7. Puri, I.S: Indian Forest Ecology, 1960.
8. Seth, S.K: Forest Types of India, 1967.
9. Singh, R.L: India: A Regional Geography, UBS Publishers
Ltd.,5,Ansari Road Delhi1976
10. India 2008: Ministry of Information and Broadcasting Govt. of India

90
3.14 बोध शन के उ तर
बोध न-1
1. चार कार क लाल, काल , पील एवं भू र ।
2. चकनी म ी ।
3. काला
4. पाँच कार क ।
5. चू ना एवं डोलोमाईट से बनी म ीया ।
बोध न-2
1. भू म अपरदन क सम या ।
2. वायु एवं जल ।
3. लगभग 60 करोड़ टन म ी ।
4. अवना लका अपरदन ।
5. म य दे श एवं राज थान के च बल नद घाट े म जल वारा अपर दत भू-भाग ।
6. राज थान के म थल य े म ।
7. 8.5 या उससे अ धक pH क मा ा ।
बोध न-3
1. न दय के कनारे , पहाड़ी ढलान पर तथा बंजर भू म म वृ ारोपण व पशु ओं क चराई पर
नय ण ।
2. म ी म पड़ी रहने वाल वन प त को वत: सड़ने दया जाए ।
3. के सरकार वारा सन ् 1953 म ।
4. म ी संर ण हे तु व भ न काय म बनाना तथा रा य सरकार को इस संबध
ं म सलाह दे ना।
बोध न -4
1. 33 तशत ।
2. राज थान के रे ग तान म ।
3. वार दे शीय या दलदल वन े ।

4. नद तट के वन े म ।
5. पि चमी हमालय े म ।
6. शोला वन (Shola Forest)
बोध न-5
1. वन े का े फल उ तरो तर घट रहा है ।
2. लगभग 10 लाख है टयेर ।
3. मैदानी भाग म ।
4. उ तर-पूव रा य म ।

91
बोध न-6
1. संर ण ।
2. वन े का 43 तशत भाग दुग य थान पर ि थत है ।
3. वृ क कटाई पर रोक , वृ ारोपण ।
4. पशु चारण पर नय ण, भू म कृ ष पर रोक ।

3.15 अ यासाथ न
. 1. भारत म पाई जाने वाल म य का वणन क िजए ।
. 2. रा म म य क या- या सम याएं है?
. 3. मृदा संर ण के कारगर उपाय बताईये ।
. 4. भारत म वन के कार एवं वतरण को प ट क िजए ।
. 5. दे श म वन क या- या सम याएं है? वणन क िजए ।
. 6. भारत म वन संर ण के उपाय बताईये ।

92
इकाई 4 : सचांई - मुख ोत तथा प रयोजनाएँ
(Irrigation – Major Sources and Projects)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 संचाई
4.3 मु ख ोत
4.4 प रयोजनाएँ
4.5 दामोदर घाट
4.6 च बल
4.7 सरदार सरोवर
4.8 इं दरा गाँधी नहर
4.9 सारांश
4.10 श दावल
4.11 स दभ थ
4.12 बोध न के उ तर
4.13 अ यासाथ न

4.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन के उपरा त आप समझ सकगे:
 भारत म संचाई के मुख ोत
 दे श क मु ख नद -घाट प रयोजाएं
 दामोदर घाट का व तृत अ ययन
 च बल नद घाट का ववरण
 सरदार सरोवर क जानकार
 इं दरा गांधी नहर का मह व

4.1 तावना (Introduction)


भारतवष एक कृ ष धान रा है जहाँ पर औ योगीकरण, सेवा े के अ त र त कृ ष
एक मूलभू त यवसाय है िजसम अ धकांश जनसं या संल न है तथा रा के आ थक वकास म
कृ ष का मह वपूण योगदान है । कृ ष यवसाय म संचाई, उसके व भ न ोत एवं वत ता के
प चात वक सत क गई व भ न कार क नद -घाट प रयोजनाएँ अपने आप म मह वपूण
थान रखती है । कृ ष काय के लए भू म के साथ-साथ जल भी आव यक है । जल कृ ष काय
हे तु दो ोत ल ा त होता है - ाकृ तक एवं कृ म । ाकृ तक ोत म जल मानसू न वषा
वारा ा त होता है । इसके अ त र त कृ म साधन म वषा से ा त जल का ह वभ न

93
म वारा समय -समय पर सदुपयोग सि म लत है । भारतवष म ाचीनकाल से ह संचाई के
कृ म साधन का योग होता आया है । वेद म कुओं, नहर , बांध, तालाब इ या द का प ट
उ लेख मलता है । ऋ वेद म ‘अवाता’ श द कु ए का प रचायक माना जाता है । यजु वद म
कु या नहर के लए तथा ‘सरसी’ श द तालाब के लए यु त हुआ है । इसी कार से अथवद म
भी नहर क खु दाई का वणन मलता है । भारत के महान व वान चाण य ने अपने अथशा
के थ म भी नहर का प ट उ लेख कया है । इस कार दे श म संचाई क यव था, ोत
एवं व तु ि थ त ाचीनकाल से म यकाल एवं वतमान समयाव ध तक व णल है । ई वी शता द
के आसपास संचाई के साधन का चलन तथा ईसा क दूसर सद म ाय वीपीय भारत के चोल
राजाओं ने कावेर नद पर ांड ए नकट बांध का नमाण संचाई के लए करवाया था । इसी
कार से बौ काल न समयाव ध म खेत संचाई एवं ना लय के संदभ म वशेष न वणन कया है
। दसवीं एवं बाहरवीं सद म. त मलनाडु रा य म जलाशय का नमाण संचाई के ि टकोण से
वक सत कया गया था । म यकाल न समयाव ध म मु गल शासक वारा यमु ना नद ं से
व भ न नहर नकाल कर समीपवत े म संचाई यव था को सु यवि थत प से था पत
कया था ।
चू ं क रा क भौगो लक व भ नताओं, धरातल य व प एवं व भ न अ य आयाम
को ि ट म रखते हु ए दे श के व भ न भाग म संचाई क यव था समान प से था पत करने
म धरातल य व प को आधार मानकर भ न- भ न समयाव ध तथा शासक वारा यवि थत
प से था पत करने का यास कया गया है । रा म कृ ष, जल क ाि त, मानसू न क
व तु ि थ त, जनसं या का वतरण एवं धरातल य असमानता के ि टकोण से स पूण रा को
व भ न संचाई के मह व को आधार मानकर न न कार से व णत कया जाता है-
(1) म ी क कृ त
उ तर भारत के वशाल मैदान एवं ाय वीपीय े म पाई जाने वाल मु य म ी जैसे
काँप, दोमट बलु ई दोमट इ या द क उवरक मता इ या द के आधार पर उपरो त े क
न दय से नहर वारा एवं अ य कृ म साधन ारा संचाई को संचा लत कया जाता है ।
(2) मानसू न क अ नि चतता
भारतवष मु य प से मानसू नी वषा का भू-भाग है जो अपने आप म तवष अ नि चत
होता है । य क कसी वष वषा क अ धकता एवं कसी वष यूनता दे खी जाती है िजसके
फल व प संचाई के साधन का वकास अकाल समयाव ध म अ त आव यक मानी जाती है।
(3) वषा का असमान वतरण
भारत म वषा का औसत लगभग 100 सेमी. माना जाता है तथा पूव तर के असम
रा य एवं पि चमी तट य े जहाँ पर 250 सेमी. वषा पि चमो तर के रे ग तानी े ो म 25
सेमी. से भी कम वषा आंक जाती है जो क वषा क असमानता को द शत करती है । अत:
उपरो त प र य म दे श म संचाई क यव था कृ ष यवसाय हे तु एक मह वपूण आयाम माना
जाता है ।

94
(4) खा या न क बढ़ती हु ई मांग
रा मे जनसं या क वृ के साथ-साथ खा या न क मांग उ तरो तर बढ़ रह है तथा
वषा क असमानता एवं म य क व भ नता के कारण यह इस मांग क पू त करना अस भव
तो नह ं पर तु क ठन ज र है । अत: उपरो त असंतु लन का संतु लत करने हे तु संचाई का
वै ा नक व प म वकास आव यक है ।
(5) जनसं या क वृ
दे श म अ नयि त एवं अ नयोिजत जनसं या वृ के व भ न आयाम के समाधान हे तु
संचाई साधन का वकास अ तआव यक है । वतमान भारत क जनसं या 102 करोड़ है जो
तवष लगभग 1.8 करोड़ यि त बढ़ जाते है अत: इनक मू लभू त आव यकताओं क पू त हे तु
संचाई के साधन का वकास समीचीन है ।
वषा क यूनतम समयाव ध
भारतवष म ा त होने वाल वषा क समयाव ध मा 3 से 4 मह ने है, जो क अपने
आप म अपूण है । य क उपरो त समयाव ध म भी अ तराल के प चात ाकृ तक जल ा त
होता है । उनका संर ण, रख-रखाव इ या द भी धरातल य व प के आधार पर लगभग
अ नयि त है । अत: इस संतु लन को यवि थत करने हेतु य क अ धकांश समयाव ध सू खा
एवं अकाल के अ तगत होती है इसके समाधान हेतु संचाई क यव था परम आव यक मानी
जाती है ।
दे श क कुल कृ षत भू म का 30 तशत भू-भाग सू खा एवं 35.9 तशत भू-भाग
म यम तथा शेष भाग अ य वग म समा हत है । अत: रा के िजन े म संचाई क अ त
आव यकता है उनक पहचान वषा क ा त मा ा, कृ षत भू म के अनुपात इ या द पर कया
जाता है । वषा के ि टकोण से स पूण रा को चार भाग म बांटा जाता है - उ च, म यम,
न न एवं अपया त । उ च वषा वाले भाग म पि चम बंगाल, केरल, उड़ीसा, छ तीसगढ़,
म णपुर, नागालै ड, मेघालय एवं सि कम रा य सि म लत है । म यम े म महारा ,
म य दे श, कनाटक एवं द णी आ दे श इ या द सि म लत है । न न वषा े म उ तर
म य दे श, द णी उ तर दे श इ या द े सि म लत है जब क अपया त वषा वाले भू-भाग म
राज थान एवं उ तर-पूव गुजरात सि म लत है । इसी कार उ तर आ दे श िजसका 75
तशत भाग अपया त वषा े म सि म लत है ।

4.2 संचाई (Irrigation)


रा म सं चत े जो क 2001 म कु ल कृ ष े 14.28 करोड़ है टे यर था िजसम
8.47 करोड़ है टयर भू म पर संचाई क सु वधा उपल ध थी इसी कार से 1901 से 2001 तक
सं चत े का तशत भू-भाग इस कार है
ता लका 4.1 भारत म सं चत े , तशत
वष कु ल कृ षत भू म सं चत े तशत (लाख है टे यर म)
(लाख है टे यर म)
1901 822 131 16

95
1930-31 923 171 18.90
1950-1951 1188 208 17.60
1970-71 1391 380 27.32
1990-91 1420 708 49.85
2000-2001 1430 947 68.00
उपरो त ता लका से व दत होता है क वत भारत के संचाई े म भार वृ हु ई
है य क अ वभािजत भारत म कु ल सं चत े 282 लाख है टे यर था जो व व के कसी भी
दे श के सं चत े से अ धक था । दे श वभाजन के प चात भारत का सं चत ै 195 लाख
है टे यर रह गया एवं 50 वष प चात 947 लाख है टे यर सं चत े हो गया जो क 1947-48
के सं चत े का चार गुणा है । अत: कु ल कृ षत भू म म सं चत े का अनुपात 19.6
तशत से बढ़ कर 68 तशत हो गया है । अत: दे श के व भ न भाग म संचाई सु वधाओं के
व तार ने कृ ष उ पादन म नि चतता दान क है । रा म ह रत ाि त जैसे यास एवं
पंजाब, त मलनाडु एवं महारा के अपया त वषा वाले े को संचाई के साधन से ह समु चत
वकास दान कया है ।

4.3 संचाई के मु ख ोत (Major Source of irrigation)


हमारे दे श म जलवायु दशाओं, मानवीय अ धवास, धरातल य व प एवं कृ ष वकास के
व भ न आयाम आ थक तथा राजनै तक कारण के फल व प रा के व भ न भाग म संचाई
के व भ न ोत का उपयोग नधा रत कया है । जहाँ पर संचाई हेतु भू मगत एवं धरातल य
दोन कार के जल योग व भ न प म उपयोग म लया जाता है । दे श म संचाई के साधन
मु य प से दो कार के माने जाते है - भू मगत जल िजनम कु एँ नलकू प इ या द के सि म लत
तथा धरातल य जल के व भ न ोत िजनम ताताब, नहरे इ या द सि म लत है । दे श म पछले
50 वष म संचाई के व भ न साधन का वकास हु आ है । वतमान समय म कुल सं चत भू म
का 39 तशत भाग नहर से, 46 तशत भाग कु ओं से एवं नलकू प से तथा 9 तशत भाग
तालाब से तथा शेष भाग अ य साधन से सींचा जाता है । 1950-51 से वतमान तक नहर एक
मु ख साधन के प म वक सत हु आ है । जो पछले 30 वष म लगभग पौने दो गुणा अ धक
हु आ है । उस समयाव ध म यह वृ अभू तपूव अं कत क गई है जैसे 1985-86 को छोड़ कर
अ य समयाव ध म नहर वारा संचाई भू म का लगभग 45 तशत भाग सं चत माना गया है
। उपरो त संचाई के साधन म उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा, पि चम बंगाल, बहार इ या द
मह वपूण है ।
भारत म संचाई के व भ न साधन वारा सं चत भू म का तशत इस कार है
ता लका 4.2 भारत - सं चत भू म का तशत
संचाई के साधन
सचाई के वष
साधन 1950-51 1960-61 1970-71 1980-81 1990-91 2000-01
कु आं एवं नलकू प 31.91 29.67 37.82 28.00 56.80 60.00

96
नहर 44.15 41.86 40.06 45.00 37.20 37.00
तालाब 19.15 18.68 16.42 17.00 6.00 3.00
अ य 4.79 9.79 7.70 10.00 - -
उपरो त संचाई के व भ न साधन एवं उनके दशक समयाव ध म प रव तत होते हु ए
व प को अ ययन हे तु तु त कया जा सकता है । जैसे कु आ एवं नलकू प वारा उ तरो तर
वृ दशायी गयी है पर तु अपवाद व प 1980-81 म कम हु ई है (28 तशत) जब क वतमान
म यह 60 तशत है । इसी कार से नहर वारा सं चत े का तशत यूतनम होता जा
रहा है । जैसे 1980-81 म यह 45 तशत था जो क वतमान म 37 तशत है । इसी कार
से तालाब वारा सं चत े के अनुपात म मू लभू त प रवतन हु आ है । य क 1950-51 जो
19.15 था जो वतमान म केवल 3 तशत है ।
(अ) कुओं वारा संचाई
इस कार दे श के व भ न भाग म कु एँ और नलकू प वारा संचाई का काय सव च
थान पर माना जाता है । कु ओं का नमाण उनक रचना के आधार पर तीन भाग म बांटा गया
है - क चे कु ए, प के कु ए और नलकू प इ या द । नलकू प जो क वा तव म वतमान शता द क
दे न है िजसका ार भ भारतवष म 1930 के आसपास माना जाता है । त प चात ् इसक
अ भवृ दे खी गयी है ।चू ं क भू मगत जल का भंडार, उसका उपयोग इ या द के संदभ म कु ओं
का मह वपूण थान माना जाता है , रा म वशेषकर उ तर े के मैदानी भाग जैसे गुजरात,
महारा , राज थान, पंजाब, उ तर दे श इ या द े क कु ल सं चत भू म का लगभग 50
तशत भाग कुओं एवं नलकू प वारा ह सं चत कया जाता है । इसी कार से े के अनु प
गुजरात म सं चत भू म का 78 तशत महारा म, 56 तशत, राज थान म 62 तशत,
उ तर दे श म 61 एवं पंजाब म 51 तशत भाग नलकूप वारा सींचा जाता है । शेष अ य
रा य म सं चत भ म का सवा धक भाग कु ओं एवं नलकू प के संि म लत आयाम से सींचा जाता
है जैसे ह रयाणा, कनाटक, आ दे श, त मलनाडु एवं बहार इ या द ।
भारत म बढ़ती हु ई जनसं या के फल व प कुओं एवं नलकू प से संचाई का म भी
तेजी से उसी अनु प म बढ़ रहा है । नलकू प एवं प प सेट क सवा धक सं या 10.3 लाख
त मलनाडु म जो क स पूण रा का 16 तशत है के प चात वतीय थान महारा का
माना जाता है जहाँ पर 8.9 लाख प प सेट है जो कुल आयाम का 15.6 तशत है । इसी कार
से अ य े म जैसे म य दे श 4.58 लाख (8 तशत), आ दे श 6.64 लाख (11.6
तशत), उ तर दे श 5.27 लाख (9.2 तशत), कनाटक 4.37 लाख (7.6 तशत), पंजाब
3.88 लाख (6.8 तशत) है जब क अ य रा य म इनक सं या यूनतम है ।
पंजाब, ह रयाणा एवं राज थान तथा पि चमी उ तर दे श के भू-भाग म नलकू प का
मह व एवं उपयोग वगत 20 वष से बहु त अ धक बढ़ा है । पि चमी राज थान के वशेषत:
पाल , जोधपुर , जैसलमेर एवं नागौर तथा गुजरात रा य के सु रे नगर, भु ज, अहमदाबाद तथा
त मलनाडु के त चलाप ल , थंजाबुर तथा पि चमी बंगाल के मालदा, हावड़ा, हु गल एवं चौबीस
परगना े नलकू प से संचाई काय म ो साहन हे तु स है ।

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(ब) नहर वारा संचाई
इसी कार से भारत म नहर वारा संचाई भी अपने आप म मह वपूण आयाम माना
जाता है । समतल एवं मुलायम च ान को कृ ष काय हेतु उपयोग म लेने के कारण नहर वारा
वकास कया जाता है । सन ् 1900 म नहर वारा केवल 59.2 लाख है टे यर भू म सं चत क
जाती थी जो 50 वष प चात ् 1950-51 म यह े बढ़ कर 83 लाख है टयेर हो गया है ।
वत ता के प चात व भ न पंचवष य योजनाओं म दे श क कृ ष यव था को सु यवि थत करने
हे तु नहर े का वकास, नहर का नमाण इ या द पर वशेष बल दया गया है ।
पंजाब-ह रयाणा क नहर
सर ह द नहर: यह नहर रोपड नामक थान पर 1886 म नकाल गई थी । इसक कु ल
ल बाई 6115 कलोमीटर है । मु य शाखाएं प टयाला, हबोर भ ट डा, कोटला तथा घ घर है ।
पि चमी यमु ना नहर: यह नहर 14वीं शता द म फरोजशाह तु गलक वारा बनायी गयी
थी जो यमु ना नद से तेजवाना थान से नकाल गई है । 1568 म अकबर ने इसक मर मत
करवायी । 1628 म अल मरदान ने जीण वार कया तथा 1886 म अं ेज ने इसम सु धार
कया । सन ् 1944-45 म इसका व तार कया गया । यह नहर 3200 क.मी. ल बी है तथा
इसक मु य शाखाएं सरसा, हांसी और द ल है ।
ऊपर बार दो-आब नहर: यह नहर पंजाब म सन ् 1879 म रावी नद से माधोपुर थान
से नकाल गई है । इसक ल बाई 2900 कलोमीटर है । इससे अमृतसर , गुरदासपुर िजलो क
3 लाख है टे यर भू म क संचाई होती है । इसक लाहौर और कसूर शाखाएं अभी पा क तान म
है ।
ब त दो-आब: यह नहर 1954 म सतलज नद के नोवा थान से नकाल गई है ।
इसक ल बाई 145 क.मी. ह । इससे जालंधर, हो शयारपुर िजल क 4 लाख है टयेर भू म म
संचाई होती है ।
पूव नहर: 1954 म माधोपुर यास स पक नहर खोदकर रावी नद से नकाल गई है ।
इससे फरोजपुर िजले क संचाई होती हे ।
भाखड़ा नहर: यह रोपड से सतलज नद से नकाल गई है, शाखाओं स हत इसक
ल बाई 3360 क.मी. है ।
वष कु आ एवं नलकू प नहर तालाब अ य
1950-51 31.91 44.15 19.15 4.79

1960-61 29.67 41.86 18.68 9.79

1970-71 37.52 40.06 16.42 7.70


1980-81 28.00 45.00 17.00 10.00
1990-91 56.80 37.20 6.00
2000-01 60.00 37.00 3.00

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इसक ल बाई 64 क.मी. है जो पूणत: सीमे ट न मत है तथा यह नांगल बांध से
नकाल गई है । इससे अ बाला, हसार, करनाल, प टयाला, नाभा, जालंधर, लु धयाना तथा
उ तर राज थान म संचाई होती है ।
गुडगांव नहर: यमु ना नद से ओखला के नकट से नकाल गई है िजससे फर दाबाद एवं
गुडगांव े क 3.2 लाख है टे यर क संचाई होती है ।
उ तर दे श क नहर
उ तर दे श रा य म 30 तशत भू म पर नहर वारा संचाई होती है ।
पूव यमु ना नहर: िजसक शाखाओं स हत ल बाई 1440 क.मी. है तथा 2 लाख है टे यर
भू म क संचाई होती है । यह नहर 1831 म बनाई गई है ।
आगरा नहर: इसक ल बाई शाखाओं स हत 1600 क.मी. है जो 1857 म बनाई गई थी
। इससे द ल , आगरा, मथुरा, गुडगांव और भरतपुर क 1.5 लाख हे टे यर भू म क संचाई
होती है ।
ऊपर नगा नहर: यह नहर ह र वार के पास गंगा नद से नकाल गई है । इसका
नमाण 1842 से 56 म य हु आ । यह गंगा-यमु ना दो आब के साहरनपुर, बुलंदशहर , मेरठ,
अल गढ़, मथु रा, इटावा, कानपुर तथा फतेह पुर िजल क 7 लाख है टे यर भू म क संचाई करती
है । शाखाओं स हत इसक ल बाई 5600 क.मी. है ।
नचल गंगा क नहर : यह नहर गंगा नद से नरोरा के नकट से नकाल गई है ।
इसक धान शाखाएं कानपुर और इटावा है । शाखाओं स हत इसक कुल ल बाई 8800 क.मी.
है तथा इससे मैनपुर , अल गढ, इलाहाबाद, कानपुर , एटा एवं फ खाबाद िजल क 45 लाख
है टर भू म क संचाई होती है । इसका नमाण 1872 से 1878 के म य हु आ हे । अ य नहर
म शारदा नहर तथा बतवा नहर मु ख है ।
बहार क नहर : बहार क नहर मे पूव सोन नहर जो 1875 म बनाई गई थी पटना
के समीप गंगा म मलती है तथा पटना गया िजल क संचाई करती है ।
पि चमी सोन नहर : यह ब सर के नकट गंगा म मल जाती है । इनक शाखाओं म
डु मराव तथा आरा, चौसा मु य है । बहार क अ य नहरो म वेणी, कोशी मु ख है ।
उड़ीसा क नहर : उड़ीसा रा य क मुख नहर म के पारा जो ब पा नद से नकाल
गई है,तल दा नहर जो महानद से नकाल गई है तथा सल द नहर जो बालासोर म 62 हजार
है टे यर भू म क संचाई करती है ।
पि चम बंगाल : पि चम बंगाल क मु ख नहर म मदनापुर नहर 1888 म कोसी नद
से नकाल गई है । पूव म यह हु गल नद म मल जाती है । इसक ल बाई 520 क.मी. है ।
इससे लगभग 50 है टे यर भू म क संचाई होती है । पि चम बंगाल क अ य नहर म एडन
नहर जो 1938 म दामोदर नद से नकाल गई है । इसक ल बाई 65 कलोमीटर है । पि चम
बंगाल क अ य नहर म तलपाडा बांध से दो नहर नकाल गई है जो वीरभूम तथा मु शदाबाद
िजल क संचाई करती है ।
(स) तालाब वारा संचाई

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भारत म तालाब वारा संचाई भी एक मह वपूण आयाम है । वषा वारा जल एक त.
होने पर तालाब के मा यम से कृ म व प से भू म खोद कर तालाब का नमाण कया जाता
है एवं इस साधन वारा दे श म सवा धक संचाई त मलनाडु , आ दे श, पि चम बंगाल, द णी
म य दे श, द णी पूव राज थान, झारखंड इ या द मु ख है । पंजाब एवं उ तर पूव ह रयाणा
ऐसे े है जहाँ पर तालाब वारा संचाई लगभग नग य है ।
भारतवष म कु ओं एवं नलकू प तथा नहर एवं तालाब तथा अ य सोती के मा यम से
संचाई संच लत करने हे तु मु य प से मानसू न दवा पर आधा रत माना जाता है य क वषा
वारा ा त जल ह धरातल पर एवं भू गभ मे संच लत होता है । जैसे भारत मे ा त होने वाल
वषा का 45 तशत जल न दय म वा हत होता है, 36 ि तशत जल वा प बन कर उड़ जाता
है और 22 तशत जल भू म वारा सोख लया जाता है तथा भू गभ म समा हत होता है ।
बोध न :1
1. भारत मे कु ल सं चत े कतना है ?
2. दे श मे संचाई के मु य ोत या- या है ?
3. भारत मे सवा धक संचाई कस ोत से होती है ?
4. दे श मे नहर वारा कतने तशत संचाई क जाती है ?
5. भारत मे सबसे कम संचाई कस ोत से होती है ?

4.4 प रयोजनाएँ (Projects)


भारतवष म संचाई के व भ न साधन को वै ा नक व प संचा लत करने हे तु वशेषत:
नद -घाट प रयोजनाओं को वक सत कया गया है । य क इनक सहायता से समीपवत े
म संचाई के व भ न साधन वक सत कये जाते है । वतं ता के प चात पंचवष य योजनाओं
म रा के भ न- भ न भाग म व भ न नद -घा टय को प रयोजनाओं के ि टकोण से
वक सत कया गया है ।
इनसे ा त शु पीने यो य जल, व युत, अ य उ योग, संचाई इ या द आयाम को
याि वत कया जाता है । उपरो त म म रा क मह वपूण नद -घाट प रयोजनाएँ को
व भ न समयाव ध म वक सत कया गया है । िजनका दे श के आ थक वकास म मह वपूण
योगदान है ।
दे श क नद -घाट प रयोजनाओं को वक सत करने के मु य उ े य इस कार है -
 न दय पर बांध बना कर जल व युत गृह क थापना करना ।
 अनावृि ट के समय जल क सु वधा,
 नद जलाशय एवं नहर म म य पालन करना
 नद -घाट एवं समीप थ थल म पयटन थल का वकास
 नद -घाट म उपल ध संसाधन का सु नयोिजत वकास
 भू म का वै ा नक उपयोग
 बाढ क रोकथाम

100
 वृ ारोपण वारा म ी के कटाव को रोकना इ या द मह वपूण है ।
उपरो त उ े य क पू त हे तु थानीय एवं के य सरकार सतत य नशील है । भारत
म वशेषत: वतं ता के प चात वै ा नक व प म वक सत क गई नद -घाट प रयोजनाओं का
वणन आगे कया गया है ।

मान च 4.1 - भारत क नद घाट योजनाएं-

4.5 दामोदर घाट (Damodar Valley Project)


यह नद घाट प रयोजना नवग ठत झारख ड रा य क एक मह वपूण योजना है जो
पलामु िजले म छोटा नागपुर पठार के 610 मीटर ऊँची पहा डय से नकल कर स पूण रा य म
290 कलोमीटर क दूर तय करती है । इसके प चात यह नद पि चमी बंगाल रा य म वेश
करके 240 कलोमीटर या ा तय करती है एवं कोलकाता से 50 कलोमीटर नीचे हु गल नद म
मल जाती है । दामोदर नद को झारख ड एवं पि चमी बंगाल का शोक नाम से भी जाना जाता
है य क वशेषत: वषा ऋतु म इसम आने वाल बाढ़ के फल व प जल ला वत े का
व तार, जानलेवा बीमा रय का कोप इ या द मुख है । े म बोकार , कोनार, बाराकर एवं
जमु नया दामोदर क मुख सहायक न दयां मानी जाती है । झारखंड के ऊपर घाट े म
संथाल परगना, संह भू म हजार बाग, रांची एवं पलामु िजल के े सि म लत है । पि चमी
बंगाल के नचल घाट े के मदनापुर, हावड़ा, व मान एवं बांकु डा े मु ख है । इन े म
अ धक वषा के कारण नद का ती वेग कोप के प म दे खा जाता है । नद वारा कनार क

101
म ी को काट कर अपने साथ एक थान से दूसरे थान पर उवरक भू म का पा त रत करती
रहती है । इसी कार से यातांबात, दूरसंचार, आवास, फसल एवं जंगल को भी न ट करती हु ई
मानव स हत पशु-प य क हा न करती हु ई े के लगभग 20 हजार वग कलोमीटर तक के
े म अ यव था उ प न करती है । दामोदर नद वारा लगभग 16 बार भीषण बाड़े िजसम से
1913,1919,1935,1943 मह वपूण है । 1948 म भारत सरकार वारा दामोदर घाट नगम
क थापना क गई िजसका मु य उ े य झारख ड एवं पि चम बंगाल घाट े के नवा सय
का जीवन तर सुधारना एवं सु र त रखना है । इसके साथ-साथ संचाई हे तु नहर का नमाण,
जल- व युत उ प न करना, जल प रवहन वक सत करना, मछल पालन, भू म रण को
नयि त करना इ या द सि म लत है । दामोदर घाट े म दे श के कुल लोहे का 90 तशत,
अ क का 70 तशत, म नीज 10 तशत एवं ोमाइट 70 तशत इसी दामोदर घाट
प रयोजना े से ा त होता है ।

मान च 4.2 - दामोदर नद -घाट प रयोजना


दामोदार घाट प रयोजना के अ तगत 8 अवरोधक बांध एवं जल- व युत के था पत
कये गए ह - तलैया बांध जो कोडरमा टे शन से 22 कलोमीटर द ण म बनाया गया है, 320
मीटर ल बा और 33 मीटर ऊँचा है । कोनार बांध जो क हजार बाग िजले म कोनार नद पर
दामोदर के संगम से 25 कलोमीटर दूर उ तर-पि चम म बनाया गया है िजसक ल बाई 3.5
कलोमीटर तथा ऊँचाई 49 मीटर है । मैथान बांध धनबाद िजले म आसनसोल से 25 कलोमीटर
उ तर म बनाया गया है िजसक ल बाई 4.4 कलोमीटर एवं ऊँचाई 56 मीटर है । पंचेत बांध
धनबाद तथा पि चम बंगाल के सीमा े म बनाया गया है जो 1959 म बन कर तैयार हु आ है,
दुगापुर अवरोध बांध दुगापुर के नकट दामोदर नद पर यह बांध बनाया गया है जो एक
कलोमीटर ल बा तथा 12 मीटर ऊँचा है । बोकार तापीय व युत राह, च पुरा तापीय व युत
गृह , दुगापुर तापीय व युत गृह , अ मर बांध, बरमो बांध, बाल पहाड़ी बांध, बोकार बांध इ या द
सव मु ख है ।
बोध न : 2
1. दामोदर नद कहाँ से ार भ होती है ?
2. दामोदर घाट नगम क थापना कब हु ई ?

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3. दामोदर घाट प रयोजना कन – कन सरकार के सहयोग से याि वत हो रह
है ?
4. दामोदर घाट ने कु ल कतने बां ध बनाए जाएं गे ?
5. बं गाल का शोक कसे कहते है ?

4.6 च बल घाट प रयोजना(Chambal valley Project)


च बल घाट प रयोजना एक बहु उइदे यीय योजना है िजसम भू म कटाव को रोकना,
पेयजल क यय था, जल व युत उ पादन, बाढ़ नय ण इ या द उ े य सि म लत कये गये
ह । यह मह वपूण प रयोजना राज थान एवं म य दे श दोन रा य क सि म लत प रयोजना है
िजसे च बल नद पर वक सत कया गया है । च बल नद म य दे श के वं याचल ेणी के
उ तर ढाल से 554 मीटर क ऊँचाई पर नकल कर 320 कलोमीटर उ तर म सीतामऊ, इ दौर
इ या द े से वा हत होकर राज थान म वेश करती है । राज थान म इसक ल बाई 306
कलोमीटर है । पुन : उ तर दे श म इटावा िजले म पहु ँच कर यमु ना नद म समा हत हो जाती है
। नद क कु ल ल बाई 1045 कलोमीटर है तथा 1.4 लाख वग कलोमीटर े का जल बहाकर
लाती है । इसम सवा धक वाह वषा ऋतु म दे खा जाता है । यह घाट प रयोजना 1943 म
तैयार क गई है तथा 1953 म याि वत क गई ।
गांधी सागर बांध 1959 म च बल नद पर राज थान एवं म य दे श क सीमा पर 514
मीटर ल बा एवं 62 मीटर ऊँचा था पत कया गया है, िजससे लगभग 5 लाख है टयर भू म क
संचाई क जाती है ।
च बल घाट प रयोजना मु य प से तीन चरण म यवि थत क गई है । थम चरण
म गांधी सागर बांध क थापना, वतीय चरण म राणा ताप सागर बांध तथा कौटा अवरोध
बांध था पत कये गये है । तृतीय चरण म अ य नहर का वकास इ या द सि म लत है ।
थम चरण-
(1) गांधी सागर बांध का नमाण
(2) गांधी सागर व युत गृह का नमाण ।
(3) कोटा संचाई बांध का नमाण ।
(4) कोटा संचाई बांध के दांई-बांई तरफ नहर यव था ।
वतीय चरण-
(1) राणा ताप सागर बांध का नमाण ।
(2) राणा ताप सागर व युत गृह का नमाण ।
(3) बांध क भू मगत टनल का नमाण ।
तृतीय चरण-
(1) जवाहर सागर याध का नगाण ।
(1) जवाहर सागर व युत गृह का नमाण ।

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मान च 4.3 - च बल घाट प रयोजना
च बल नद -घाट प रयोजना राज थान के लये वरदान स हु ई है, य क इसके वारा
औ योगीकरण व युतीकरण, संचाई एवं भू म कटाव तथा बाढ़ नय ण जैसे आयाम स पा दत
हु ए है । इस प रयोजना से 3.86 लाख कलोवाट व युत उ पादन मता का वकास हु आ है जो
रा य के व युतीकरण एवं औ योगीकरण जैसे आयाम स पूण हु ए है । इस प रयोजना म
व युत उ पादन इकाईय म गांधीसागर बांध, राणा ताप सागर बांध एवं जवाहर सागर बांध
सव मु ख है । इसी कार से थमल पावर क दो इकाईयां कोटा बैराज पर जो क येक इकाई
220-220 मेगावाट मता क है, कायरत है । संचाई क सु वधा म कोटा बैराज से नकाल गई
दायीं-बायीं नहर से राज थान एवं म य दे श क 56 लाख है टे यर भू म मे संचाई क सु वधा म
वृ हु ई है । इसी कार से बाढ़ नय ण, म ी कटाव जैसी अ य सम याओं का समाधान भी
इसी नद -घाट प रयोजना से संभव हु आ है ।
बोध न : 3
1. चं ब ल नद घाट प रयोजना कन- कन रा य का सं यु त यास है ?
2. यह घाट प रयोजना कतने चरण म पू ण होगी?
3. च बल नद -घाट प रयोजना से राज थान एवं म य दे श क कतनी भू म मे
4. संचाई होती है ?
5. कोटा संचाई बां ध कब बन कर तै यार हु आ?

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4.7 सरदार सरोवर प रयोजना(Sardar सरोवर Project)
यह प रयोजना मु य प से नमदा घाट प रयोजना का एक अ भ न भाग है जो क
भारत क सबसे बड़ी पांचवी प रयोजना मानी जाती है िजसका मु य उ े य जल- व युत , संचाई
एवं जल आपू त इ या द है । यह प रयोजना 1312 कलोमीटर ल बी है िजसम नमदा क
सहायक न दय पर बड़े बांध, 135 म यम तथा 3000 छोटे बांध का नमाण ता वत है । इन
सभी बांध म 2 बड़े बांध मु ख है जो सरदार सरोवर एवं नमदा सागर के नाम से स है ।

मान च 4.4 - सरदार सरोवर प रयोजना


सरदार सरोवर बांध मु य प से गुजरात रा य के भ च िजले म न मत कया गया है,
िजसक ऊँचाई 138.72 मीटर तथा ल बाई 1210 मीटर है । यह बांध मु य प से गुजरात
रा य एवं समीपवत राज थान के संचाई, जल- व युत एवं पीने यो य जल हेतु अ त उपयोगी
माना जाता है । सरदार सरोवर बांध के पूण वक सत होने पर लगभग 15 लाख है टे यर भू म
क संचाई होगी एवं दो व युत गृहो का नमाण होया जहाँ पर 14500 मेगावाट व युत उ प न
होगी िजसका नि चत अनुपात म महारा , गुजरात एवं म य दे श रा य म वभािजत होगा ।
उपरो त प रयोजना के संदभ म ववाद एवं पयावरण वद के वचार मु य प से इन े वशेष
से व था पत होने वाले अ धवा सय के संबध
ं म व व स है ।
बोध न : 4
1. सरदार सरोवर प रयोजना क नीं व कब व कसने रखी थी ?
2. सरदार सरोवर कस मु य प रयोजना का ह सा है ?
3. सरदार सरोवर बां ध कस रा य म बनाया गया है ?
4. सरदार सरोवर प रयोजना से सवा धक लाभ कस रा य को होगा ?

4.8 इि दरा गाँधी नहर प रयोजना (Indira Gandhi Canal


Project)
पूव मे इसका नाम राज थान नहर था जो यास एवं सतलज न दय के संगम पर
न मत ह रके बांध से नकाल गई है । इसके वारा राज थान एवं पंजाब रा य क संचाई होती
है । पजाब मे इसक ल बाई 132 कलोमीटर तथा राज थान म 470 कलोमीटर है ।

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राज थान के वशाल रे तीले भू-भाग पर जहाँ पर कसी समयाव ध म सर वती नद
वा हत होती थी, के थान पर वतमान म सव थम राज थान नहर क प रक पना बीकानेर
रा य के त काल न इंिज नयर ी कंवरसेन ने 1948 म क थी । इ ह ने बीकानेर रा य म पानी
क आव यकता को यान म रखते हु ए एक ारि मक अ ययन रपोट भारत सरकार को तुत
क थी, परं तु दुभा यवश सन ् 1957 इस संदभ म कोई वशेष कदम नह ं उठाया गया । त प चात ्
इस नहर का नमाण आर भ कया गया ।
पंजाब रा य म सतलज एवं यास न दय के संगम पर ह रके बैराज से राज थान फ डर
नहर ार भ होती है । यह नहर पंजाब एवं ह रयाणा रा य के े म 177 क.मी. क दूर तक
वा हत होने के प चात राज थान म वेश करती है ।
राज थान के कु ल 3.42 करोड़ है टे यर े म से 37 भाग तशत म थल य े है ।
इस त य को यान म रखते हु ए गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर', बाड़मेर, जोधपुर , नागौर, पाल
एवं चु िजल क पेयजल एवं संचाई यव था के वकास हे तु इस नहर का नमाण व भ न
इकाईय एवं चरण म आर भ कया गया ता लका 4.3 म दशाया है ।
ता लका 4.3: इं दरा गांधी नहर प रयोजना – व भ न चरण
. सं. इकाई थम चरण वतीय चरण योग
इं दरा गांधी फ डर 204 - 204
इं दरा गांधी फ डर कमी 189 256 445
इं दरा गांधी नहर कमी 393 256 649
योग ( कलोमीटर)

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वतरण णाल क ल बाई
वाह े कमी 2743 3152 5895
लपट े कमी 332 1960 2292
योग ( कलोमीटर) 3075 5112 8187
कृ ष यो य सं चत े
वाह े लाख है टे यर 4.79 7.00 11.79
लपट े लाख है टे यर 0.79 3.12 3.58
योग(लाख है टे यर) 5.25 10.12 15.37
संचाई मता लाख है टे यर 5.78 8.10 13.88
नमाण काय क लागत करोड़ है टे यर 255 1420 1675
वा षक खा या न उ पादन लाख टन 14.5 22.5 37.00
औ यो गक तथा पेयजल हे तु आर ण घनफुट पानी / सै. 1200
थम चरण : नमाण क ि टकोण से इस योजना को दो भाग म वभािजत कया गया
है । थम चरण म 204 कलोमीटर क ल बाई म राज थान फ डर नहर जो क जू न 1964 म
बन कर तैयार हो गई थी । इसी कार राज थान मु य नहर िजसक ल बाई 189 कलोमीटर
जो क जू न 1975 म बन कर तैयार हो गई थी । थम चरण के अ तगत 3075 कलोमीटर
क ल बाई म वतरण णाल न मत कये जाने का ल य नधा रत कया गया था, जो माच
1999 तक स पूण हो चु का है । थम चरण म नकलने वाल मु ख शाखाओं म सूरतगढ़,
अनूपगढ़ व पूगल शाखाएँ है । इस चरण का एक मह वपूण ह सा बीकाने र लू णकरणसर
जलो थान नहर 1976 म बन कर तैयार हो गई थी । चतुथ पि पंग टे शन तक वतरण णाल
1980 म पूण कर ल गई थी । शेष काय भी माच 1984 तक स पूण हो गया था । इस
णाल म 10342 कलोमीटर ल बी प क जल धाराओं का नमाण स पूण हो चु का है िजसके
अ तगत नौरं गसरदे सर, रावतसर, खेतावल जाखपुरा वतरक नहर को नमाण काय भी स पूण
हो गया है । थम चरण का नमाण काय माच 1990 तक स पूण होकर 5.76 लाख है टे यर
भू म क (सचाई हे तु युका हो रहा है । उपरो त े म लगभग 100 करोड़ से अ धक वा षक
उ पादन संभव हु आ है । थम चरण म 246 करोड़ पये क अनुमा नत लागत माच 1990 तक
बढ़ कर 264.69 करोड़ पये तक वृ हो चु क है ।
वतीय चरण : इसके अंतगत 256 कलोमीटर मु य नहर तथा 5112 कलोमीटर
ल बी वतरण णाल का नमाण िजसम लगभग 8.10 लाख है टे यर े क संचाई का ल य
नधा रत है। इसके अंतगत वतरण णाल तक 256 कलोमीटर ल बी नहर तथा 1067
कलोमीटर ल बी वतरण णाल का काय स पूण हो चु का है । पि चमी राज थान के लये 1
जनवर 1987 का दन ऐ तहा सक माना जाता है य क 649 कलोमीटर ल बी इं दरा गांधी
नहर इसी दन स पूण हु ई है । त काल न व त मं ी ी व वनाथ ताप संह ने जैसलमेर के
मोहनगढ के नकट नहर के अं तम छोर पर पानी क अगवानी क । इसम 449 कलोमीटर
ल बी प क मु य नहर बनाने म 28 वष 9 मह ने का समय तथा 500 करोड़ पये खच हु ए ।

107
मु य नहर क चौड़ाई तल म 125 फ ट व ऊपर 200 फ ट है जब क गंगानगर े म यह मा
52 फ ट व 80 फ ट है । जनवर 1987 को ह अि तम छोर पर 1458.5 आरडी से सागरमल
गोपा शाखा म भी जल वा हत कया जाने लगा है । इस े के 8.1 लाख है टे यर े म
संचाई के फ व प सागरमलगोपा ल लवा डीगा बीरबल इ या द शाखाओं के मा यम से संचाई
होती है । वतीय चरण का संशो धत ा प सत बर 1984 म भारत सरकार को े षत कया
गया था िजसके अ तगत 7 लाख है टे यर कृ ष यो य सं चत े को लपट योजनाओं के
मा यम से संचाई, जल आपू त औ यो गक आव यकताओं हे तु 1200 यूसेक पानी का आर ण
कया गया है ।
मु ख जलो थान योजनाओं म सहाबा, कोलायत, गजनेर, फलोद , पोकरण, बागड़सर
इ या द मु ख है । इन नहर से पानी को 60 मीटर ऊँचा उठा कर गंगानगर, बीकानेर, चु ,
जोधपुर एवं जैसलमेर िजल म 3.12 लाख है टे यर भू म सं चत करने क योजना है ।
इं दरा गांधी नहर प रयोजना से वशेषत: उ तर एवं पि चमी राज थान के गंगानगर,
बीकानेर, चु , जैसलमेर, जोधपुर नागौर एवं बाड़मेर िजल क लगभग 15 लाख है टे यर भू म म
संचाई क सु वधाऐं उपल ध होगी । इसके साथ-साथ म थल वकास रोकने म मददगार स
होगी । कृ ष उपज तवष लगभग 1000 करोड़ पये के आसपास होगी । उपरो त े म
पेयजल क आपू त हे तु 1800 यूसेक पानी आर त रहता है िजससे लगभग 25 लाख
जनसं या एवं पशुओं को पीने यो य शु जल उपल ध होता है । इसी तरह पयटन, उ योग,
पशु पालन इ या द यवसाय भी इं दरा गांधी नहर प रयोजना के फल व प पि चमी राज थान म
वक सत हु ए ह ।
बोध न :5
1. इं दरा गां धी नहर (पू व मे राज थान नहर) क प रक पना कसने क थी ?
2. इं दरा गां धी नहर कहाँ से ार भ होती है ?
3. इं दरा गां धी नहर क कु ल ल बाई कतने कलोमीटर है ?
4. इं दरा गां धी नहर से प चमी राज थान मे कतनी भू म पर संचाई होगी?
5. इं दरा गां धी नहर को कु ल कतनी शाखाओं एवं उप-शाखाओं म वभािजत कया
गया है ?

4.9 सारांश (Summary)


भारतवष एक कृ ष धान रा है । यहाँ पर कृ ष काय ाचीन समय से ह होता आया
है । कृ ष यवसाय को वक सत करने हे तु संचाई क आव यकता होती है । म यकाल म भी
भारतीय कृ ष क स प नता के कारण ह , यहाँ पर वदे शय का आगमन हु आ । आधु नक काल.
म टश शासक वारा भी भारतीय कृ ष, संचाई के साधन वशेषत: नहर इ या द के वकास
पर पूरा यान केि त कया गया ।
वतं ता के प चात कृ ष यवसाय, संचाई के व भ न साधन पर वशेष बल दया गया
य क भारत एक मानसू न जलवायु दे श का भू भाग है । जहाँ पर वषा अ नय मत, कम समय

108
के लये होती है । अत: संचाई के साधन का वकास एक अ त आव यक आयाम है । 1901 म
भारत का सं चत े 131 लाख है टे यर (16 तशत) था जो 1950 म 208 लाख है टे यर
(17.60 तशत) हो गया एवं 2001 म 947 लाख है टे यर (68 तशत) है जो यह दशाता है
क रा क वतं ता के प चात लगभग संचाई े म 50 तशत क अ भवृ हु ई है । 50
वष क समयाव ध अपने आप मे मह व रखती है, परं तु त य के व लेषण से ात होता है क
थम पंचवष य योजना से पूव मा सं चत े क वृ 1.60 थी । अत: वतमान भारत म
संचाई क सु वधा तवष 1 तशत के अनुपात म बढ़ रह है ।
भारत म सचाई के व भ न ोत म से कु एं एवं नलकू प अपने आप म वशेष थान
रखते ह, य क दे श क कुल सं चत भू म का 60 तशत भाग इसी से स प न होता है ।
अत: भू-गभ का जल उ तरो तर अ धक उपयोग म लाया जा रहा है । भारत म उ तर दे श,
पंजाब, राज थान, गुजरात एवं महारा म दन- त दन कु ओं एवं नलकू प से संचाई का चलन
बढ़ रहा है ।
दे श म नहर वारा संचाई का अनुपात उ तरो तर घट रहा है य क 1950 म जो
44.15 तशत था वह 2001 म 37 तशत रह गया है । इसी कार से तालाब वारा संचाई
म भी मू लभू त गरावट आई है । जैसे - 1950 म जो 19.15 तशत थी वह 2001 म मा 3
तशत रह गई है । अत: भारतवष म संचाई के ाचीन साधन- ोत जैसे - तालाब एवं नहर का
चलन कम हो रहा है तथा कु ओं एवं नलकू प वारा भू-गभ का जल दोहन लगातार बढ़ रहा है ।
भारत म वक सत क गई नद -घाट प रयोजनाओं का मूल उ े य मु यत: न दय पर
बांध बना कर ज ल व युत गृहो क थापना करना, बाढ़ क रोकथाम, संसाधन को सु नयोिजत
वकास, म ल पालन, अनावृि ट म जल का उपयोग, पयटन उ योग वक सत करना इ या द है ।
दामोदर घाट प रयोजना से झारख ड, बहार एवं बंगाल रा य म बाढ़ पर नय ण,
संचाई, व युत उ पादन एवं भू म बंधन म सहयोग मला है । दामोदर नद िजसे बंगाल का
शोक नाम से भी जाना जाता है, इस प रयोजना के फल व प जल एवं धन क हा न से भी
बचाव हु आ है । हजार है टे यर भू म का कटाव का है । नद-घाट मे कुल 9 बांध बना कर
संचाई एवं जल- व युत तथा पयटन उ योग वक सत कया जा रहा है ।
च बल नद -घाट प रयोजना से राज थान एवं म य दे श रा य क 3.5 लाख है टे यर
भू म सं चत होगी, जल व युत क ाि त, कोटा शहर एक औ यो गक त ठान के प म
वक सत हु आ, पयटन उ योग म वृ , इ या द मह वपूण उ े य क पू त हु ई है ।
इसी कार से गुजरात रा य क सरदार सरोवर प रयोजना भी गुजरात एवं समीपवत
राज थान रा य क बाड़मेर, जालोर े म संचाई एवं शु पेयजल क आपू त होगी । सरदार
सरोवर प रयोजना मूलत: वशालकाय नमदा घाट प रयोजना का अ भ न अंग है । यह नद -घाट
प रयोजना वशालकाय बांध, अ य छोटे बांध इ या द के लये स है । मु य बांध क ऊँचाई,
व था पत क सम याएं, पयावण य प रपे य एवं यायपा लका का ह त ेप इ या द के कारण
यह योजना सदै व सु खय म रह है ।

109
इं दरा गांधी नहर प रयोजना पूव म राज थान नहर के नाम से जानी जाती थी,
म थल य े म सव दय का काम कर रह है । इस नहर क प रक पना सव थम बीकानेर
रा य के इंजी नयर कवंरसेन ने 1948 म क थी । यह नहर पंजाब रा य के सतलज एवं यास
न दय के संगम थल से ह रके बैराज से नकाल गई है । इं दरा गांधी नहर क कुल ल बाई
649 कलोमीटर है जो राज थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ , बीकानेर, नागौर, चु , जोधपुर,
जैसलमेर, बाड़मेर एवं पाल े क पेयजल सम या एवं 15 लाख है टे यर भू म क संचाई
करे गी । यह नहर 9 शाखाओं एवं 21 उप-शाखाओं म वभािजत क गई है ।
रा के आ थक एवं सवागीण वकास म कृ ष काय, संचाई क यव था, संचाई के
ाचीन एवं नवीनतम ोत व भ न नद -घाट प रयोजनाओं इ या द का य एवं परो प से
मह वपूण योगदान है । िजसे उ तरो तर वक सत करने हेतु दे श क आजाद के प चात भ न-
भ न पंचवष य योजनाओं म साथक यास कये गये है तथा इनके सकारा मक प रणाम
प रल त हु ए है ।

4.10 श दावल ( लोससरय)


संचाई : जल क सहायता से कृ ष काय करना ।
मानसू न : अरबी भाषा का श द जो अरब सागर से होकर आने वाल द ण पि चम वायु
के लये यु त होता है ।
कृ ष भू म : वह े जहाँ पर व भ न फसल का उ पादन होता है ।
नलकू प : भू-गभ से जल नकालने हे तु मशीन क सहायता से खोदा गया संकरा कुआं ।
नहर : मानव वारा खोद गई खाई िजसक चौड़ाई आव यकतानुसार नि चत क
जाती है तथा िजसके मा यम से नद बांध का जल एक थान से अ य थान
पर ले जाकर कृ ष, पीने हे तु शु जल इ या द उपयोग होता है ।
प रयोजनाएँ : व तृत योजनाएं या काय म िजसके वारा भा वत े का आ थक वकास
संभव होता है ।
बांध : न दय के जल रोकने हे तु मानव वारा न मत क चा-प का, छोटा एवं वशाल
संरचना मक ढांचा ।
मेगावाट : व युत शि त को नापने क बड़ी इकाई ।

4.11 संदभ थ (Reference Books)


1. शमा एवं शमा: राज थान का भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2001 ।
2. स सेना : राज थान का भू गोल, राज थान ह द थ अकादमी, जयपुर , 1998 ।
3. लोढा : राज थान का भू गोल, हमांशु काशन, उदयपुर, 1999 ।
4. चौहान : राज थान का भू गोल, व ान काशन, जोधपुर , 1996-1997 ।
5. म ा : राज थान का भू गोल, नेशनल बुक ट, नई द ल , 1967 ।
6. पु प व सैदावत : राज थान का भू गोल, र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2003 ।
7. बंसल : भारत का वृह भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ, 2007 ।

110
8. Kothari & Singh: The Narbada Valley Project: A Critic, New Delhi,
1987.
9. Morse B.F. : Independent Review of Sardar Sarovar Project.,
Report, june18, 1992.
10. Joshi, V. : Sardarsarovar Project, Jesus Antithesis and Synthesis,
yojna, june1-15, Delhi, 1990.

4.12 बोध नो के उ तर
बोध न - 1
1. 947 लाख है टे यर, 68 तशत ।
2. कु आ एवं नलकू प, नहर तथा तालाब ।
3. कु आ एवं नलकू प से, 60 तशत ।
4. 37 तशत ।
5. तालाब वारा, 3 तशत ।
बोध न - 2
1. छोटा नागपुर क पहा ड़य से ।
2. 1948 ई वी म ।
3. के सरकार, बहार, पि चमी बंगाल ।
4. नौ (9) ।
5. दमोदर नद को ।
बोध न - 3
1. म य दे श एवं राज थान ।
2. तीन (3)
3. 3.5 लाख है टे यर ।
4. 1960 ।
बोध न - 4
1. 1961, धानमं ी जवाहर लाल नेह ने ।
2. नमदा घाट प रयोजना का ।
3. गुजरात म ।
4. गुजरात रा य को ।
बोध न - 5
1. इजी नयर ी कंवरसेन ने 1948 म ।
2. पंजाब म सतलज एवं यास न दय के संगम पर बने ह रके बैराज से ।
3. 649 कलोमीटर ।
111
4. 15 लाख है टे यर ।
5. 9 शाखाओं एवं 21 उप-शाखाओं म ।

4.13 अ यासाथ न
.1 भारत म संचाई के खेत या- या है? वणन क िजए ।
.2 रा म वतं ता के प चात सं चत भू म म वृ हु ई है । प ट क िजए ।
.3 दामोदर घाट प रयोजना के मु य उ े य या- या ह?
.4 दामोदर घाट प रयोजना से पि चमी बंगाल को या- या लाभ हु ए ह ।
.5 च बल नद -घाट प रयोजना से व युत आपू त म वृ हु ई है प ट क िजए ।
.6 कोटा शहर के वकास पर च बल नद -घाट प रयोजना का भाव या है? ववेचना
क िजए।
.7 सरदार सरोवर प रयोजना को सु प ट क िजए
.8 इं दरा गांधी नहर से पि चमी राज थान क कायाक प हो रह है । या या क िजए ।
.9 इं दरा गांधी नहर के संदभ म व तृत ववरण द िजए ।

112
इकाई 5 : कृ ष एवं पशु पालन (Agriculture and
Livertock)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 भारतीय कृ ष क मुख वशेषताएँ
5.3 मु य फसल
5.3.1 चावल
5.3.2 गेहू ँ
5.3.3 कपास
5.3.4 ग ना
5.3.5 चाय
5.3.6 कहवा
5.4 ह रत ां त
5.4.1 भारत म ह रत ां त
5.4.2 ह रत ां त भाव
5.4.3 ह रत ां त दोष एवं सम याय
5.5 कृ ष दे श
5.5.1 भारत के कृ ष दे श
5.6 पशु सस
ं ाधन/पशु पालन
5.6.1 भारत म पशुसंसाधन एवं इसका मह व
5.6.2 भारत म पशु पालन े
5.6.3 भारत मे पशु ओं क न ल
5.6.4 पशु सध
ु ार योजनाय
5.7 सारांश
5.8 श दावल
5.9 स दभ थ

5.10 बोध न के उ तर
5.11 अ यासाथ न

5.0 उ े य (ओ जेि तवेस)


इस इकाई के अ ययन से आप समझ सकगे :-

113
 भारत क ख नज क मुख वशेषताये ।
 भारत क मु ख फसल के उ पादन े ।
 ह रत ां त का अथ, भाव व इससे उ प न सम याएँ ।
 भारत मे कृ ष दे श ।
 भारत के पशु पालन े ।
 भारत म पशु ओ क व भ न न ल तथा पशु सुधार योजनाएँ ।

5.1 तावना (Introduction)


भारत एक कृ ष धान दे श ह, दे श को कु ल मक शि त का लगभग 70 तशत भाग
कृ ष काय म संल न है । हमारे दे श क कुल रा य आय का 35 तशत भाग कृ ष से ह
ा त होता ह । हमार दे श क कृ ष वारा भोजन क उपलि ध के साथ-साथ करोड पशुओं को
चारा तथा अनेक उ योग ध ध को क चा माल भी दान कया जाता ह । भारतीय जनसं या का
एक बहु त बड़ा भाग कृ ष कायी म लगा हु आ है फर भी कसान क आ थक ि थ त अ छ नह ं
ह । 50 तशत से अ धक कसान के पास 5 एकड़ से भी कम भू म ह । जोत का आकार कम
होने के कारण ह रत ाि त का पूरा लाभ कसान तक नह ं पहु ंच पा रहा ह । उपज का उ चत
मू य ा त नह ं होने के कारण भी अ धकांश कृ षको का जीवन तर न न बना हु आ ह ।
भारतीय कृ ष अब लाभ का यवसाय न रहकर केवल जीवन यापन का साधन मा रह गई ह ।

5.2 भारतीय कृ ष क मुख वशेषताएँ


(Major characteristics of Indian Agriculture)
भारतीय कृ ष क मुख वशेषताएँ न न ल खत है -
1. जोत का छोटा होना : हमारे दे श म जोत का आकार बहु त छोटा है । हमार सामािजक
यव था के अनुसार पता क जमीन उसके पु म वभािजत हो जाती ह िजससे जोत का
आकार छोटा होता जा रहा ह । वतमान म भारत के जोत का औसत आकार 2 हे टे यर ह तथा
दे श के कुछ भाग म तो यह आकार एक हे टे यर से भी कम ह । जब क इं लै ड म यह आकार
25 हे टे यर तथा संयु त रा य अमे रका म यह औसत 40 हे टे यर ह ।
2. जीवन नवाह कृ ष : भारत क कृ ष अभी भी जीवन नवाह कृ ष ह । यहां यापा रक
कृ ष क मह ता बहु त कम ह । हमारे दे श म 70 तशत जनसं या कृ ष काय म लगी हु ई ह
फर भी अपनी आव यकता के लए यहु त अ धक कृ ष उ पादन नह कर पाते । कृ षक अपने
प रवार के खा या न क पू त के लए खेती करते ह । इसके वप रत यू.एस.ए. म 6 तशत
लोग कृ ष काय म लगे हु ए है, और यह दे श अपनी आव यकताओं क पू त के प चात बड़ी मा ा
म वदे श को कृ ष उ पादन नयात कर दे ता है ।
3. कृ ष यो य भू म का व तार : भारत दे श क अ धकांश उ तम कृ ष उ तर भारत के
वशाल मैदानी दे श तथा तट य मैदानी दे श म व तृत है । हमारे दे श क भू म का कु ल
े फल 32 करोड़ 87 लाख हे टे यर ह । कु ल े फल भू म म से 6 करोड़ 88 लाख हे टे यर
भू म पर वन दे श ह और 4 करोड़ 14 लाख हे टे यर भू म कृ ष के लए उपल ध नह ं ह । इस

114
कार हमारे दे श का 66.5% भू म पर कृ ष क जाती ह । अत: प ट ह क भारत म कृ ष े
के व तार क काफ स भावनाय मोजू द ह ।
4. भारतीय कृ ष मानसू न के हाथ म जु आ ह : हमारे दे श क कृ ष अभी भी मानसू नी वषा
पर नभर करती ह । भारतीय मानसू न वषा अ नय मत तथा अ नि चत ह । कभी कभी तो
सामा य से कम वषा होने के कारण सूख क ि थ त पैदा हो जाती ह तो कभी-कभी सामा य से
अ धक वषा होन पर बाड़े आ जाती ह । कभी-कभी मानसून वषा समय से पहले हो जाती ह या
दे र से हो जाती ह या बीच बीच म कई दन तक वषा नह ं हो पाती । इस कार प ट ह क
भारत क कृ ष क सफलता मानसू न पवन वारा होने वाल वषा पर यादा नभर ह अत:
भारतीय कृ ष मानसू न के हाथ म जु आ ह ।
5. कृ ष पर जनसं या का दबाव : हमार जनसं या का बहु त बड़ा ह सा कृ ष पर नभर
करता ह । इसका कारण अभी भी ह रत ां त का लाभ सह दे श म नह ं पहु ंच पाया है और
हमार कृ ष म य ीकरण का अभाव ह । अ धकांश कृ ष काय कसान तथा उसके प रवार के
सद य हाथ से करते ह िजससे कृ ष पर जनसं या का दबाव बहु त अ धक है ।
6. संचाई क सु वधाओं का अभाव : भारत म वषा अ नि चत तथा अ नय मत मानसू न
पवन वारा होती ह िजस पर भरोसा नह ं कया जा सकता । इस लए नय मत कृ ष करने के
लए संचाई क सु वधाओं का पया त मा ा म उपल ध होना अ त आव यक है । ले कन अभी
तक भारत म कु ल बोई भू म के 45% भाग पर ह संचाई क सु वधा उपल ध करवाई जा सक
ह ।
7. कृ ष फसल क व वधता : भारत एक वशाल दे श ह । उ तर से द ण तक हमारे दे श
म वभ न कार क जलवायु पाई जाती ह । यह कारण ह क हमारे दे श म अनेक कार क
फसल उ प न क जाती है।
8. म ी क उपजाऊपन शि त का कम होना : भारत म स दयो से खेती होती आ रह ह ।
लगातार खेती ह ने से म ी क उपजाऊपन शि त बहु त ीण हो जाती ह । मजबूत आाथक दशा
के अभाव म यादातर कसान महंगे रासाय नक खाद को खर दने म असमथ रहते ह ।
9. फसल क बीमा रयां तथा क ड़े : अनेक कार क बीमा रय तथा क ड़े-मकौड़े भी फसल
को नुकसान पहु चाते ह । गेहू ँ को करंजवा (Rust) नामक बीमार लग जाती ह िजससे गेहू ं के
दाने बेकार हो जाते ह । कई क ड़े मकोड़े भी फसल को नुकसान पहु ंचाते ह । भारत म लगभग
10 तशत फसल क ड़ वारा खराब कर द जाती ह ।
10. त हे टे यर उपज क कमी : य य प हमारा दे श कृ ष धान दे श है तथा प हमारे दे श
क कृ ष अ य वक सत दे श क अपे ा पछड़ी हु ई ह । भारत क कृ ष पछड़ी होने के
न न ल खत कारण ह :-
1. भारत दे श के अ धकांश भाग म अभी तक ाचीन प त से बैल तथा हल आ द से
कृ ष क जाती ह । खेती म आधु नक कृ ष य का योग बहु त ह कम होता ह । कमजोर
पशु ओ तथा पुराने कृ ष य वारा उ तम खेती स भव नह ं ह ।

115
2. हमारे दे श के कृ षक के पास छोटे-छोटे खेत ह ओर साथ ह ये खेत अलग-अलग और
दूर तक बखरे हु ए ह अलग-अलग दशाओं म और दूर-दूर बखरे खेत को जोतने, बोने तथा
उनक सुर ा करने म बहु त अ धक असु वधा होती ह ।
3. हमारे दे श के अ धकांश कृ षक अभी भी अ श त है । वे न तो अ छे बीज का योग
करते ह न रासाय नक खाद का योग करते ह, न ह कृ ष म आधु नक कृ ष य का योग
करते और न ह उ हे उ चत फसल प रवतन का ान ह । उनम खेती बाड़ी के सामा य ान क
कमी ह । अत: कसान का अ श त होना भी कृ ष के पछड़ेपन का एक बहु त बड़ा कारण ह ।
4. भारत म ाचीन समय से ह भू म पर कृ ष क जा रह है िजससे भू म के पोषक त व
और उपजाऊपन शि त समा त होने के कगार पर है । य द भू म म रासाय नक खाद न डाले
जाएँ तो कसान को पूरा लाभ नह ं मल सकता । गर ब क खाद का भी योग नह ं कर पाता
य क वह गोबर को भी उपले बनाकर ईधन के प म जला दे ता है । अत: कसान का आ थक
प से स प न न होना भी दे श क कृ ष के पछड़े होने का एक मह वपूण कारण है ।
उपरो त कारण के प रणाम व प हमारे दे श म त हे टे यर उपज दूसरे दे श क अपे ा
कम है । हमारे दे श म गेहू ं का त. हे टे यर उ पादन 2770 क. ाम है जब क ांस म यह
4773 क. ाम तथा टे न म 5212 क. ाम है । इसी कार भारत म चावल का त हे टे यर
उ पादन 208 क ाम है जब क जापान म 6340 क. ाम तथा को रया म 6556 क. ाम है ।

5.3 मु य फसल (Major Crops)


वम न कार क भौगो लक पप रि थतय जैसे धरातल, जलवायु, म ी आद क
व भ नता के कारण भारत म लगभग सभी कार क फसल बोई जाती है । भारत के व भ न
भागो म भ न भ न कार क फसल उगाई जाती है । भारत मे व भ न मु य फसल क
तहे टे यर उपज म वृ ता लका 5.1 से प ट ह ।
ता लका 5.1
भारत-मु य फसल क त हे टे यर उपज ( क ा. त हे टे यर)
फसल 1950-51 1960-61 1970-71 1980-81 1990-91 2000-01 2006-07
चावल 668 1013 1123 1336 1740 1901 2127
गेहू ँ 655 851 1307 1630 2281 2708 2671
वार 353 533 466 660 814 764 876
बाजरा 288 286 622 458 658 688 906
म का 547 926 1279 1159 1518 1822 1907
दाल 441 539 524 473 578 544 616
तलहन 481 507 579 532 771 810 917
कपास 88 125 106 152 225 190 422
जू ट 1043 1049 1180 1245 1833 2026 2339

ोत : आ थक समी ा , 1980-81 एवं 2007-08, भारत सरकार द ल ।


भारत मे उ प न क जाने वाल मुख फसल न न ल खत ह -
1. खा या न - चावल, गेहू ँ वार, बाजरा, म का, जौ तथा दाल आ द ।

116
2. पेय फसल - चाय तथा कहवा ।
3. यवसा यक फसल - ग ना, रबड़, त बाकू तलहन ।
4. रे शेदार फसल - कपास, पटसन ।
5.3.1 चावल: चावल भारत क मह वपूण खा य फसल ह । ाचीन काल से ह ह दुओं के
धा मक काय म चावल का योग होता आया है । भारत क 50 तशत से अ धक जनसं या
चावल पर नभर करती ह । भारत क कुल कृ ष भू म के 23 तशत भाग पर चावल क खेती
क जाती ह । इसक खेती के लए न न ल खत भौगो लक दशाओं क आव यकता होती ह -
उपज क दशाएँ - चावल क कृ ष के लए न न ल खत दशाएँ आव यक है :-
तापमान : आदत गम जलवायु का पौधा है इसक कृ ष के बोते समय 21° सेि सयस बढ़ते समय
24° सेि सयस तथा पकते समय 27° सेि सयस क आव यकता होती है । 20° सेि सयस से
कम तापमान पर चावल अंकु रत ह नह होता है ।
वषा : चावल क खेती के 150 से 200 से.मी. वा षक वषाहोनी चा हए। 100 से.मी. से कम वषा
वाले े म संचाई क सहायता से कृ ष क जाती ह ।
धरातल : चावल क खेती मे पानी अ धक दे र तक भरा रहना आव यक है । इस लए चावल क
कृ ष के लए मैदानी भाग उपयु त है । बाढ के मैदान तथा न दयो के डे टा चावल क कृ ष के
लए उ तम थान है । म ी चावल क कृ ष के लए उपजाऊ चकनी म ी उपयु त होती ह
य क इस म अ धक समय तक नमी धारण करने क शि त अ धक होती है ।
म : चावल क कृ ष के लए लगभग सभी काय हाथ से करने पड़ते ह, इस लए इसक खेती के
लए प र मी, कु शल तथा स ते मजदूर क आव यकता होती ह यह कारण है क चावल क
कृ ष घनी आबाद वाले े मे ह क जाती ह ।
जी.बी े सी के अनुसार ''चावल को अ धक ताप, अ धक जल, अ धक कॉप क म ी
तथा अ धक म क आव यकता होती ह ता क यह अ धक जनसं या को अ धक भोजन दे
सके।''

मान च 5.1 चावल उ पादक े


117
चावल बोने क व धयाँ :
भारत म चावल बोने क न न ल खत ती व धयाँ ह -
1. पौध लगाकर (Transplantation) : पौध लगाकर चावल क कृ ष करने क वध
सबसे अ धक लाभ द तथा च लत है । सबसे पहले चावल को यार म बोकर उसक
पौध तैयार क जाती ह । 40 दन बाद इस पौध को जड स हत उखाडकर पहले से
तैयार कए गये खेत म लगाया जाता ह । इस व ध म उपज भी अ धक होती ह ।
2. हल चलाकर (Drilling Method) : इस व ध म हल चलाए जाते ह और उसक नाल
म चावल बीज बोते जाते ह । यह व ध शु क दे श म अपनाई जाती है ।
3. दाने बखेर कर (Board casting Method) : इस व ध म चावल के दान को हाथ
से बखेर दया जाता ह । काला तर म बीज अंकु रत हो जाते ह और फसल बढ़ने लगती
ह । यह व ध आसान तथा स ती है पर तु इसम उपज बहु त ह कम होती ह ।
उ पादन तथा वतरण
उ पादन : चावल भारत क एक मु ख खा या न फसल ह । व व म चीन के बाद
चावल उ पादन म भारत का दूसरा थान ह । दे श क कु ल कृ ष भू म के 23 तशत भाग पर
चावल क कृ ष क जाती है । भारत म तवष लगभग 4 करोड़ हे टे यर भू म पर चावल क
कृ ष क जाती ह और 8 करोड़ टन चावल का उ पादन कया जाता है जो संसार के कु ल उ पादन
का 21 तशत है ।
भारत म चावल के अ तगत े उ पादन तथा त हे टे यर उपज म पया त वृ हु ई है
। सन ् 1950-51 म हमारे दे श म कुल 308.10 लाख हे टे यर भू म पर चावल उगाया जाता था
और उ पादन 205.76 लाख टन था त हे टे यर उपज 668 क ाम थी । 2001-02 म चावल
के अ तगत े फल 447.12 लाख हे टे यर उ पादन 876.98 लाख टन तथा उपज त हे टे यर
1906 क ाम त हे टे यर हो गई । 2005-06 म चावल के अ तंगत 435.40 लाख हे टे यर
उ पादन 910.10 लाख टन तथा उपज त हे टे यर 2093 क ाम रकॉड क गई ।
ता लका 5.2
भारत- चावल का े फल, उ पादन तथा त हे टे यर उपज
वष े फल (लाख उ पादन (लाख. त हे टे यर
हे टे यर) टन) ( क. ाम)
1950-51 308.10 205.76 688
1960-61 341.28 345.74 1013
1970-71 375.92 422.25 1123
1980-81 401.42 536.31 1336
1990-91 426.87 742.91 1740
2000-01 447.12 876.98 1908
2005-06 435.40 910.10 2093
Source : India 2007 – A Refrence Annual

118
वतरण : संचाई के वकास से पहले चावल क कृ ष डे टाई तथा तट य दे श म होती थी जहां
वा षक औसत वषा 150 सेमी. से अ धक होती ह अब संचाई क उ न त से सतलज गंगा के
मैदान म भी चावल क कृ ष ने आ चयजनक वकास कया है । भारत म चावल के मु य
उ पादक रा य उ तर दे श, पि चमी बंगाल, आ दे श, पंजाब, बहार, त मलनाडु तथा उड़ीसा ह
। इनके अ त र त असम, छ तीसगढ़, ह रयाणा, कनाटक, महारा तथा म य दे श रा य म भी
चावल क खेती क जाती है ।
पि चमी बंगाल : यह भारत का सबसे अ धक चावल उ पादक रा य है । यह दे श का 16.61
तशत चावल का उ पादन करता है । इस रा य क लगभग 60 तशत भू म पर चावल क
कृ ष क जाती है जो मश: जाड़े, पतझड़ तथा गम क ऋतु म बोई जाती है । यहां मदनापुर,
बांकु रा, फर दपुर तथा बदवान तथा जलपाईगुड़ी मु ख चावल उ पादक िजले ह ।

ता लका 5.3
भारत- चावल का रा यवार उ पादन, 2005-06
रा य उ पादन (लाख. टन) भारत के कुल उ पादन का
तशत
1. पि चमी बंगाल 146.62 16.61
2. उ तर दे श 130.18 16.75
3. पंजाब 95.56 10.94
4. आ दे श 89.52 10.19
5. उड़ीसा 68.02 7.71
6. बहार 53.93 6.11
7. असम 38.81 4.39
8. त मलनाडु 32.23 3.60
9. अ य 226.93 25.70
भारत 882.80 100.00
Source CMIE, March 2006-p50
2. उ तर दे श : पहले उ तर दे श भारत का केवल 7 से 8 तशत चावल ह उ प न
करता था । अब यह भारत का लगभग 15 तशत चावल उ प न करता ह । उ नत संचाई क
सु वधा, अ छे बीज और रासाय नक खाद के योग ने इस दशा म सहयोग कया है । उ तर
दे श म चावल क कृ ष ी मकाल म क जाती है । सहारनपुर, गोरखपुर , दे व रया, लखनऊ,
ग डा, ब ती, ब लया, रायबरे ल तथा पील भीत िजले चावल के मु ख उ पादक है ।
3. पंजाब : यह रा य चावल उ पादन क ि ट से भारत म तीसरे थान पर है । यहाँ
भारत का लगभग 11 तशत चावल उ प न कया जाता है । इस रा य म चावल क कृ ष
ी मकाल म क जाती है । संचाई क सु वधाओं के वकास के कारण चावल क कृ ष म बहु त
अ धक उ न त हु ई ह ।

119
4. आ दे श: यह रा य चावल का चौथा बड़ा उ पादक रा य है । यहाँ भारत का लगभग
10 तशत चावल उ प न कया जाता है । यह कृ णा तथा गोदावर न दय के डे टा, एवं
घा टय म चावल क कृ ष क जाती है । इस रा य के स उ पादक िजले कनू ल, गोदावर ,
कृ णा, कु ड पा, नैलोर तथा गंतरू ह ।
5. उड़ीसा : यह रा य भारत का 7.71 तशत चावल का उ पादन करता ह । कटक, पुर
तथा स भलपुर यह के स चावल उ पादक िजले ह । महानद का डे टा चावल क कृ ष के
लए वशेष प से अनुकू ल ह।
6. बहार: चावल क उपज के लए बहार रा य का भारत म छठा थान है । यहाँ दे श का
लगभग 6 तशत चावल उ प न कया जाता ह । इस रा य क कृ ष भू म के 30 तशत भाग
पर चावल क कृ ष क जाती है । गया, भागलपुर , मु ज फरपुर, तथा मु ंगरे िजले चावल क कृ ष
के लए बहु त स ह ।
7. असम : यह रा य भारत का 4.39 तशत चावल उ प न करता है । यह पहाड़ी
ढलान के साथ-साथ मपु तथा सुरमा न दय क घा टय म चावल क कृ ष क जाती है ।
गोलपाड़ा, नंदगांव तथा काम प यहां के मु य चावल उ पादक िजले ह जहां लगभग 75 तशत
भाग पर चावल क कृ ष क जाती ह ।
8. त मलनाडु : यह रा य भारत का 3.60 तशत चावल उ प न करता ह । यहाँ कावेर
डे टा चावल क कृ ष के लए स है । नील ग र, तंजाबूर , चंगलपेट तथा द णी अरकाट
िजल म चावल क खेती क जाती
9. अ य उ पादक : ह रयाणा, छ तीसगढ़, कनाटक, महारा , म य दे श तथा केरल चावल
के अ य उ पादक रा य ह । यहाँ पि चमी घाट तथा तट य भाग म चावल क खेती क जाती ह
। केरल म मालाबार तट य मैदान चावल क कृ ष के लए स है । ह रयाणा म संचाई क
सहायता से करनाल तथा कु े िजल म चावल उ प न कया जाता है ।
यापार :
य य प भारत संसार म चावल का दूसरा सबसे बड़ा उ पादक ह तथा प अ धक जनसं या
के कारण घरे लु खपत अ धक होने के कारण हम वदे श से चावल आयात करना पड़ता है । हम
मु यत: थाईलै ड, तथा क बो डया से चावल खर दते ह । ह रत ाि त के कारण अब हमारे दे श
म उ पादन बढ़ा है इसके प रणाम व प हम थोड़ी मा ा म चावल नयात भी कर दे ते ह । सन ्
2004-05 म भारत ने 2700 करोड़ पये का बासमती चावल स तथा मौ रशस आ द दे श को
नयात कया । यहां कम चावल उ पादक रा य म खपत अ धक ह अत: अ धक उ पादकता वाले
रा य कम चावल उ पादकता वाले रा य को रा य क आव यकतानुसार चावल भेजते है । अत:
घरे लु यापार अ तरा य यापार क अपे ा अ धक मह वपूण ह ।

5.3.2 गेहू ँ (Wheat)

ाचीन काल से भारत गेहू ँ क कृ ष के लए स रहा ह । मोहनजोदड़ो क खु दाई से


पता चलता ह क ईसा से 3000 वष पूव गेहू ँ क खेती क जाती थी तथा गेहू ँ लोग का मु य
आहार था । आज भी चावल के बाद गेहू ँ भारत का दूसरा मह वपूण खा य पदाथ ह ।
120
उपज क दशाय :- गेहू ँ क कृ ष के लए न न ल खत दशाय आव यक होती ह :-
1. तापमान : गेहू ँ शीतकाल न उपज है । गेहू ँ के बोते समय 10° से 15° से. तथा पकते
समय 20° से 28° से. तापमान होना चा हए । अत: गेहू ँ बोते समय ठ डी तथा नम जलवायु
तथा पकते समय गम जलवायु क आव यकता होती है ।
2. वषा : गेहू ँ क कृ ष के लए 50 सेमी. से 75 सेमी. औसत वा षक वषा क आव यकता
होती है । इससे कम वषा वाले े म संचाई क सहायता से गेहू ँ क कृ ष क जाती है ।
3. म ी : गेहू ँ अनेक कार क म य म बोया जाता है । दोमट, बलु ई, दोमट, ह क
चकनी म ी गेहू ँ क कृ ष के लए उ तम होती है । गहर भू र म ी म भी गेहू ँ क कृ ष क
जाती है ।
4. धरातल : गेहू ँ क कृ ष के लए समतल मैदानी भाग उ तम होते ह । समतल भू म पर
नहर वारा संचाई आसानी से क जा सकती ह तथा कृ ष य का योग आसानी से कया जा
सकता है ।
5. म : गेहू ँ क कृ ष म कृ ष य का योग अ धक होने के कारण म क आव यकता
कम पड़ती है । भारत के छोटे कसान को अपना अ धकतर कृ ष काय हाथ से करना पड़ता है
अत: स ते म क आव यकता होती ह ।

मान च 5.2 गेहू ँ उ पादन े


उ पादन तथा वतरण :
उ पादन: ह रत ाि त के बाद गेहू ँ के उ पादन, े तथा त हे टे यर उपज म अभू तपूव उ न त
हु ई है । सन ् 1950-51 म हमारे दे श म कुल 97.46 लाख हे टे यर भू म पर गेहू ँ क कृ ष क
जाती थी तथा उ पादन 64.42 लाख टन था व त हे टे यर उपज 663 क ाम थी.। 2004-05

121
म गेहू ँ के अ तगत े फल बढ़कर 265.7 लाख हे टे यर, उ पादन 740.50 लाख टन तथा उपज
2790 क ाम त हे टे यर हो गई । गेहू ँ के उ पादन म वृ के मु य कारण संचाई का
वकास, उ नत कार के बीज का तथा रासाय नक खाद का उपयोग ह ।
वतरण : उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा, म य दे श, बहार, तथा महारा रा य दे श के मु ख
उ पादन रा य ह । गेहू ँ के अ य उ पादक रा य गुजरात तथा ज मु क मीर ह जो थोड़ा बहु त
गेहू ँ उ पादन करते ह ।
उ तर दे श : इस रा य म गेहू ँ क उपज सबसे अ धक होती ह । यह रा य दे श के कुल गेहू ँ
उ पादन का 35.46 तशत गेहू ँ उ प न करता है । गंगा-घाघरा दोआब तथा गंगा यमु ना दोआब
गेहू ँ क कृ ष के मु ख उ पादक े ह । ये दोन े उ तर दे श क मश: 50 तथा 25
तशत गेहू ँ पैदा करते है । यहां क उ नत संचाई यव था तथा उपजाऊ म ी गेहू ँ उ पादन म
मु य प से सहयोग दे ती है । सहारनपुर , मु ज फर नगर, मु रादाबाद, मेरठ, कानपुर , रामपुर
तथा बुल दशहर आ द इस रा य के मु ख गेहू ँ उ पादक िजले ह ।
ता लका 5.4
भारत म गेहू ँ का रा यवार, उ पादन (2003-04)
.सं. रा य भारत के कु ल उ पादन का तशत
1. उ तर दे श 35.46
2. पंजाब 20.10
3. ह रयाणा 12.87
4. म य दे श 10.02
5. राज थान 8.15
6. बहार 5.24
7. अ य 8.36
भारत 7100.00
Source: Statistical Abstract of India 2005
पंजाब: गेहू ँ उ पादन म पंजाब का दे श म वतीय थान है । यहां क कुल कृ ष यो य भू म के
30 तशत भाग पर गेहू ँ उगाया जाता ह । यहां कु ल कृ ष भू म के 70 तशत भाग पर संचाई
क सु वधा है । गेहू ँ क कृ ष पर ह रत ाि त का मह वपूण भाव दे खने को मलता है । रा य
के अ धकांश कृ ष काय मशीन तथा मक वारा कए जाते ह । यहां के मु य गेहू ँ उ पादक
िजले लु धयाना, जाल धर, अमृतसर , कपूरथला, प टयाला, फरोजपुर, भ ट डा तथा संग र है ।
ह रयाणा : ह रयाणा रा य भारत का 12.67 तशत गेहू ँ पैदा करके तीसरे थान पर है ।
रोहतक, हसार, करनाल, कु े , अ बाला, जींद, फर दाबाद तथा सोनीपत मु य उ पादक िजले
ह । रा य के अ य िजल म भी थोडा बहु त गेहू ँ उ प न कया जाता है ।
म य दे श : यह रा य भारत का लगभग 10 तशत गेहू ँ पैदा करता है । गेहू ँ के उ पादन के
लए इस रा य को चौथा थान ा त है । यहां क पथर ल भू म तथा संचाई सु वधाओं के अ प

122
वकास के कारण यहां त हे टे यर उ पादन कम है । गेहू ँ के मुख उ पादक िजले उ जैन,
होशंगाबाद, सागर, इ दौर, भोपाल, दे वास, गुना , जबलपुर तथा वा लयर आ द है ।
राज थान : यह रा य भारत का 8.15 तशत गेहू ँ उ प न करता है । वषा क कमी के कारण
यहां गेहू ँ क खेती मु यत: संचाई क सहायता से क जाती है । इस रा य के गेहू ँ उ पादक
मु य िजले ी गंगानगर, भरतपुर , भीलवाड़ा, कोटा, आ द है ।
अ य : अ य रा य म महारा , पि चम बंगाल, गुजरात तथा उ तराखंड मुख गेहू ँ उ पादक
रा य ह । ये सभी रा य मलकर दे श का 8.36 तशत गेहू ँ पैदा करते ह ।
यापार : भारत म जनसं या म ती वृ के कारण गेहू ँ क मांग म वृ हु ई है । िजस कारण
गेहू ँ का नयात नह ं हो पाता है । भारत म गेहू ँ का आयात व नयात यादा नह ं है । जब हमारे
दे श म गेहू ँ अ धक हो जाता है तो हम नयात कर दे ते ह और जब कम उ प न होता है तो हम
गेहू ँ का आयात कर लेते ह । सन ् 2004-05 म भारत ने 1560 करोड़ . मू य का गेहू ँ नयात
कया है ।

5.3.3 कपास (Cotton)

कपास एक झाड़ीनुमा पौधा है िजसक ल बाई लगभग 1.5 से 2 मीटर तक पाई जाती है
। कपास एक रे शेदार फसल है िजसके रे शे से व बनाये जाते है । व व म आधे से अ धक
व कपास के रे शे के ह बनाये जाते ह । भारत म कपास के रे शे से व बनाने का काय 5000
वष पूव भी कया जाता था । यूनानी व वान हे रोडोटस ने भारत म कपास का उ लेख कया ह ।
कपास के कार
यवसा यक ि टकोण से कपास का वग करण इसके रे शे क ल बाई चमक तथा मजबूती
के आधार पर कया जाता है । कपास को न न ल खत तीन वग म बांटा जा सकता ह :-
1. ल बे रे शे क कपास : यह उ नत क म क कपास होती है िजसका रे शा ल बा,
चमक ला, ह का, मु लायम तथा मजबूत होता है । इसके रे शे क ल बाई 60 मल मीटर होती है
। इससे उ च को ट के व बनाये जाते ह । भारत क कु ल कपास क उपज का 41 तशत
भाग ल बे रे शे क कपास है ।
2. म यम रे शे क कपास : इसका रे शा 25 मल मीटर से 40 मल मीटर तक होता ह ।
यापा रक ि टकोण से यह मह वपूण कपास है । भारत म उ प न होने वाल 43 तशत
कपास म यम रे शे वाल कपास होती है ।
3. छोटे रे शे वाल कपास : इस जा त क कपास का रे शा 25 मल मीटर से कम ल बा
होता है । भारत म कु ल उपज का 16 तशत भाग छोट रे शे क कपास का होता है ।
4. भारत म कपास के कुल े फल का 39 तशत ल बे रे शेवाल , 44 तशत म यम रे शे
वाल तथा 17 तशत छोटे रे शे वाल कपास के अ तगत आता है ।
उपज क दशाएँ : कपास क कृ ष के लए न न ल खत भौगो लक प रि थ तय क आव यकता
होती है :-

123
1. तापमान : कपास उ ण क टब धीय पौधा है । इसके लए 250 सेि सयस तापमान आव यक
होता है । इसक कृ ष के लए वष म 210 दन पाला र हत दन होने चा हए । पाला कपास
क कृ ष के लए ह नकारक होता है । तेज धू प इसके लए उ तम होती है ।
2. वषा : कपास क , खेती के लए 50 से 100 सेमी. वा षक वषा उपयु त होती है । इससे
कम वषा वाले े म संचाई क सहायता से कपास क कृ ष क जाती है ।
3. म ी : काल म ी तथा भूर दोमट म ी कपास क कृ ष के लए उ तम होती है । म ी म
चू ने के अंश क अ धकता होनी चा हए । चू ने का अंश कम हो तो उवरक का योग करना
चा हए ।
4. म : कपास क कृ ष म यादातर काय हाथ से कया जाता है । इसक गुड़ाई तथा बनाई
के समय कुशल एवं स ते मको क आव यकता होती है ।

उ पादन : भारत व व का मु ख कपास उर पादक दे श है । भारत म व व क 8 तशत कपास


पैदा क जाती है । भारत व व के कु ल कपास े फल के 20 तशत े फल पर कपास उ प न
करता है ।
ता लका 5.5
भारत- कपास का े फल व उ पादन
वष े फल उ पादन उपज त हे टे यर
(लाख हे टे यर) (लाख गांठ म) ( क. ाम)
1950-51। 58.52 30.44 88
1960-61 58.10 56.04 125
1970-71 58.05 47.63 106
1980-81 58.23 70.10 152
1990-91 58.40 98.40 225
2001-02 58.35 95.23 190
2005-06 89.20 185.11 375
एक गांठ = 170 कलो ाम
Source: Statistical Abstract of India 2003
एवं आ थक समी ा 2006-07

124
उपरो त ता लका से प ट है क सन ् 1950-51 म भारत म 58.82 लाख हे टे यर
े फल पर 30.44 लाख गाँठ का उ पादन कया गया जो 2005-06 म बढ़कर 89.20 लाख
हे टे यर े फल र 185.11 लाख गॉठे हो गया ह ।
वतरण :
भारत क लगभग 70% कपास द णी भारत म काल म ी के े म उ प न क
जाती ह । जब क 30% कपास भारत के उ तर भाग म उगाई जाती ह । द णी भारत के
रा य म गुजरात, महारा , आ दे श, कनाटक तथा त मलनाडु रा य कपास क कृ ष के लए
स है । उ तर भारत के रा यो म पंजाब, ह रयाणा राज थान तथा उ तर दे श रा य कपास
क खेती के लए स है ।
ता लका 5.8
भारत- रा यानुसार कपास उ पादन
स. रा य उ पादन (लाख गांठ म) भारत के कु ल उ पादन का:

1. गुजरात 40.26 29.03


2. महारा 30.38 22.21
3. आ दे श 18.90 13.63
4. पंजाब 14.78 10.66
5. ह रयाणा 14.05 10.13
6. राज थान 7.09 5.11
7. म य दे श 60.58 4075
8. कनाटक 3.21 2.32
9. अ य 2.99 2.16
10. भारत 138.66 100.00
Source: CEMI, March 2006, P-200
गुजरात : उ पादन क ि ट से यह भारत का थम कपास उ पादक रा य ह । यहाँ क काल
म ी कपास क कृ ष के लए बहु त उ तम है । सन ् 2003-04 के आकड़ के अनुसार यहाँ कुल
40.26 गांठे उ प न क गई । अहमदाबाद, महे साणा, भड़ौच, पंचमहल. सूरत, साबरमती, वडोदरा
इ या द मु ख उ पादक िजले ह ।
महारा : महारा म नमीयु त जलवायु तथा काल म ी कपास क कृ ष के लए अ य त
उपयु त है । यहां उ तम क म क ल बे रे शे वाल कपास उगाई जाती ह । वष 2003-04 म
इस रा य म कपास क 30.80 लाख गांठ का उ पादन कया । अकोला, अमरावती, नागपुर ,
शोलापुर, नांदेड, जलगांव, यवतपाल व ना सक इ या द यहां के मु ख कपास उ पादक िजले ह ।
आ दे श : यह रा य दे श का 13.63 कपास का उ पादन करता है । यहाँ ल बे तथा छोटे रे शे
क कपास उ प न क जाती है । सन ् 2003-04 म इस रा य म 18.90 लाख गांठ का उ पादन
कया । कनूल, गजू र, कु ड पा, पि चमी गोदावर , महबूब नगर , हैदाराबाद, कृ णा मुख कपास
उ पादक िजले ह ।
125
पंजाब : संचाई क सहायता से यहां उ तम क म क लंबे रे शे वाल कपास का उ पादन कया
जाता है । सन ् 2003-04 म इस रा य ने दे श क 10.66% कपास उ प न क । ह रत ाि त
के कारण यहाँ उपजाऊ म ी उ नत संचाई तथा वक सत कृ ष तकनीक यहाँ कपास का त
हे टे यर उ पादन बढ़ाने म काफ़ सहायक रहे ह ।
भ टंडा, लु धयाना, अमृतसर , फरोजपुर तथा संग र मु ख उ पादक िजले ह ।
ह रयाणा : यहाँ संचाई क सहायता से कपास क कृ ष म उ लेखनीय ग त हु ई ह । इस रा य
म दे श क व 10.13%कपास उ प न क जाती है । हसार व सरसा इस रा य के मु ख कपास
उ पादक िजले ह जो यहाँ क 80% कपास पैदा करते ह । फतेहबाद, जींद, रोहतक, रवाड़ी तथा
भवानी म भी कपास क कृ ष क जाती है।
राज थान : इस रा य क 50% कपास अकेला गंगानगर िजला उ प न करता ह । च तौड़गढ़,
भीलवाड़ा, अलवर, अजमेर तथा झालावाड अ य कपास उ पादक िजले ह । 2003-04 म इस
रा य ने भारत क 5.11% कपास उ प न क ।
म य दे श: यह रा य भारत क 4.75% कपास उ प न करता है । यहां पर अनुकूल भौगो लक
प रि थ तयां नह ं होने के कारण कपास का उ पादन त हे टे यर बहु त कम होता ह । उ जैन,
दे वास, रतलाम, भोपाल, छ दवाड़ा, पूव नमार तथा पि चमी नमार यहां के मु ख उ पादक
िजले ह ।
कनाटक : यह रा य दे श क 2.32% कपास उ प न करता है । यहां क काल म ी कपास क
कृ ष के लए अ य त उपयोगी ह । सन ् 2003-04 म यहां कपास क 6.58 लाख गांठ का
उ पादन कया गया । बे लार , चतलदुग, शमोगा, चकमंगलूर , बीजापुर व बेलगांव यहां के
मु ख कपास उ पादक िजले ह ।
अ य : उपरो त के अ त र त पि चमी बंगाल, बहार, उड़ीसा, असम व मेघालय म भी थोड़ी
बहु त मा ा म कपास उ प न क जाती है ।
यापार : हमारे दे श क जनसं या तेजी से बढ़ रह ह । अत: हम कपास के अ धक उ पादन के
बाद भी नयात करने क ि थ त म नह ं है । कई बार अपनी बढ़ती हु ई घरे लु मांग क पू त के
लए हम कपास का आयात भी करना पड़ता है । भारत ल बे रे शे वाल उ तम कपास संयु त
रा य अमे रका, म , पा क तान, कजा क तान, सू डान, क नया, आ द दे श से आयात करता ह
तथा छोट रे शे घ टया क म का कपास जापान तथा संयु त रा य अमे रका को नयात कर दे ता
है ।
सन ् 2004-05 म भारत ने 327 करोड़ पये क कपास नयात क तथा 1349 करोड़
पये क कपास का आयात कया ।

5.3.4 ग ना (Sugar Cane)

ग ना भारत का मूल पौधा ह । ग ने का रस मीठा होता ह िजससे चीनी, गुड़ तथा


खा डसार बनाई जाती ह । इसके शीरे से शराब बनाई जाती ह । इसक पि तयां तथा डंठल
पशु ओं के चारे के प म काम आती ह ।

126
उपज क दशाएँ - ग ने क कृ ष के लए न न ल खत भौगो लक दशाओं क आव यकता होती
ह:-
1. तापमान : ग ने क फसल के वधनकाल काफ ल बा होता है िजसे पकने म लगभग
एक वष लग जाता ह । ग ने क फसल के लए 20° से 30° तापमान क आव यकता होती है ।
इससे कम या अ धक तापमान पर ग ने क फसल को नह ं उगाया जा सकता । अ धक शीत
और पाला इसके लए हा नकारक होता ह ।
2. वषा : ग ने क कृ ष के लए 100 से 125 सेमी. वा षक वषा होनी चा हए । इससे कम
वषा वाले े म संचाई क सहायता से ग ने क कृ ष क जाती है ।
3. म ी : ग ने क कृ ष के लए दोमट तथा नमीयु त म यां उपयुक त रहती ह ।
द ण क लावायु त म ी म ग ना उ प न कया जाता है । नद घा टयां, डे टाई म ी तथा
बाढ़ के मैदान ग ने क कृ ष के लए बहु त उपयु त होते ह । इसक कृ ष के लए अ धक
उवरक क आव यकता होती है ।
4. भू म : इसके लए समतल मैदानी भाग उ तम रहते ह । समतल मैदान म ग ने क
खेती के लए आधु नक कृ ष य का योग आसानी से हो सकता है । 5. म. ग ने क खेती
म अ धकांश काय हाथ से करना पड़ता ह अत: अ धक म क आव यकता पड़ती है । िजन े
म ग ने क कृ ष म मशीनो का योग हो रहा है वहां कम म से काम चल जाता है ।
उ पादन : भारत व व क एक तहाई कृ ष भू म पर संसार का लगभग 2590, ग ना उ प न
करता ह, पर तु त हे टे यर उ पादन कम होने के कारण कु ल उ पादन भी कम होता है ।

ता लका 5 .7
भारत- ग ने का े फल व उ पादन
वष े फल उ पादन (लाख टन) उपज
(लाख हे टे यर) (ि वंटल) ( त हे टे कयर)
1970-71 26.15 1236.68 483.22
1980-81 26.17 154248 578.44
1990-91 36.86 241046 653.95
2001-02 43.16 295996 685.72
2005-06 42.10 315540 660
ोत : आ थक समी ा 2008-07
उपरो त ता लका से प ट है क ग ने के े फल उ पादन तथा त हे टे यर उपज म
उ लेखनीय बढो तर हु ई ह । वष 1970-71 म ग ने के अधीन े 26.15 लाख हे टे यर,
उ पादन 1263.68 लाख टन तथा उपज त हे टे यर 483.22 ि वंटल थी जो वष 2005-06 म
बढ़कर े फल 42.10 लाख हे टे यर, उ पादन 3155.40 लाख टन तथा उपज 660.00 ि वंटल
त हे टे यर हो गई ।
वतरण :

127
भारत के उ तर वशाल मैदान म भारत का लगभग दो तहाई ग ना उ प न होता ह ।
यहाँ उ तर दे श, पंजाब ह रयाणा तथा बहार ग ना के मु य उ पादक रा य ह ।
द ण भारत म महारा , त मलनाडु , आ दे श, कनाटक तथा म य दे श रा य म
ग ने क कृ ष क जाती ह ।
ता लका 5.8
भारत म ग ने का वतरण (2003-04)
. सं. रा य भारत के कु ल उ पादन का :
1. उ तर दे श 47.51
2. महारा 11.37
3. त मलनाडु 7.44
4. कनाटक 6.66
5. आ दे श 6.35
6. गुजरात 5.34
7. ह रयाणा 3.94
8. पंजाब 2.79
9. अ य मय 8.60
10. भारत 100.00

Source: Statistical Abstract of India 2005


उ तर दे श : उ तर दे श का दे श के ग ना उ पादन रा यो म पहला थान है । उ तर दे श के
लगभग सभी भाग म ग ने क कृ ष क जाती ह यह रा य भारत का 47-51% ग ना उ प न
करता है । सहारनपुर , फैजाबाद, गोरखपुर , ब लया, मुरादाबाद, मेरठ, आजमगढ़, जोनपुर ,
वाराणसी, बुल दशहर , आ द मुख ग ना उ पादक िजले ह ।
महारा : यह रा य भारत का 11.3% ग ना उ प न करके दूसरे थान पर ह । यहाँ अहमद
नगर, ना सक, शोलापुर , र ना ग र तथा गुण मु ख ग ना उ पादक िजले है । कनाटक : यह
रा य दे श का 6.66% ग ना उ प न करता है । शमोगा, बलार , चारचू र, बेलगांव तथा कोलार
यहाँ के मुख ग ना उ पादक रा य ह ।
आ दे श : यह रा य भारत 6.35% का ग ना उ प न करता ह । इस रा य के पि चमी भाग
तथा नद घा टय और डे टाओं म ग ने क कृ ष क जाती है । पूव एवं पि चमी गोदावर ,
वशाखाप नम, नजामाबाद आ द मु ख ग ना उ पादक रा य ह ।
गुजरात: यह रा य भारत का 5.345 ग ना उ प न करता ह । जू नागढ़, सू रत, भावनगर,
राजकोट तथा जामनगर िजले ग ने के मु ख उ पादक है ।
ह रयाणा : ह रयाणा भारत का 3.94% ग ना उ प न करता है । यहाँ ग ने क कृ ष मु य प
से संचाई क सहायता से क जाती है । रोहतक, सोनीपत, पानीपत, करनाल तथा फर दाबाद म
ग ने क फसल उगाई जाती है ।

128
पंजाब : यह रा य भारत का 2.79% ग ना उ प न करता है । लु धयाना, जाल धर, अमृतसर ,
फरोजपुर तथा गुरदासपुर िजलो म ग ने क कृ ष क जाती है । अ य. उपरो त के अ त र त
उ तराख ड, बहार, म य दे श तथा पि चमी बंगाल भारत के अ य ग ना उ पादक रा य है ।

5.3.5 चाय (Tea)

चाय एक पेय पदाथ है जो एक कार क झाड़ी क सुखाई हु ई प ती है । संसार म सबसे


पहले चीनी लोग ने इसे पेय के प म योग कया था । अब धीरे -धीरे पूरे व व म चाय पीने
का रवाज बन गया है । 1823 म थम बार भारत के असम े म चाय क झा ड़यां उगाने का
य न कया गया । आज असम चाय क पनी भारत म एक बड़ी क पनी के प म संचा लत है।
सबसे पहले चाय क पौध तैयार क जाती है और जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते ह तो चाय
के पौधे एक-एक मीटर के फासले पर कतार म लगाये जाते ह । लगभग दो वष के बाद इन
पि तय को तोड़ा जाता है । चाय क झाड़ी एक बार लगने के बाद पचास वष तक प ती दान
करती ह । येक झाड़ी से वष म तीन बार पि तयाँ चु नी जाती है । इनको चु नने के बाद लगभग
दो दन सु खाया जाता है फर इनको काटने व सु खाने वाल मशीन म डाल दया जाता है । जहां
मशीन वारा गम हवा दे कर इनक सु खाने से इनका रं ग काला हो जाता ह । पि तय के पूण
सू खने के बाद इनको डब म भर लया जाता है । कह ं-कह ं चाय क हर पि तय को कहाड़ म
भू नकर सु खाया जाता है । िजससे इनका रं ग हरा रह जाता है ।
उपज क दशाएँ : चाय क कृ ष के लए न न ल खत भौगो लक दशाएँ होना आव यक है :
तापमान : चाय क कृ ष के लए औसत तापमान 25° से 30° होना चा हए । इसक झाड़ी कठोर
होती है । अत: इसके लए ल बे ी मकाल क आव यकता होती ह । औस व धु ध भरा
वातावरण इसक झाड़ी के लए अनुकूल होता है ।
वषा : चाय क कृ ष के लए वष भर अ धक वषा होना चा हए । इसके लए 200 से 250 सेमी.
वा षक वषा उ तम रहती है । बार-बार बौछार का होना इसक कृ ष के लए अनुकूल होता है ।
धरातल : चाय क झाड़ी क जड़ म पानी एक त हो जाये तो इसक जड़े गल जाती ह और
झाड़ी न ट हो जाती है । अत: चाय क खेती के लए पवतीय ढालू े उ तम रहते ह ।
म ी : इसक कृ ष के लए गहर उवरा म ी क आव यकता होती ह । म ी म फा फोरस,
पोटाश तथा लोहाश पया त मा ा म होना चा हए ।
म: चाय क पि तय को चु नने के लए सु खाने तथा डबो म भरने के लए अ धक मानवीय म
क आव यकता होती है । अत: कुशल व स ते मक चुर मा ा म उपल ध होने चा हए । चाय
उ प न करने वाले े म पि तय को तोड़ने का काय औरत व ब चे बड़ी कु शलता से स ते दर
पर कर दे ते ह ।
उ पादन तथा वतरण :
उ पादन :
भारत व व के चाय उ पादन म थम थान पर है । यहा व व क लगभग 33% चाय
उ प न होती है । हमारे दे श मे चाय के अ तगत े , उ पादन तथा त हे टे यर उपज मे
नरं तर वृ हो रह है । सन ् 1950-51 म भारत मे चाय के अ तगत े फल 3.14 लाख

129
हे टे यर उ पादन 2.77 लाख टन तथा उपज. त हे टे यर 876 कलो ाम थी जो वय 2004-05
म बढ़कर मश : 4.85 लाख हे टे यर 8.00 लाख टन तथा 1649 क ाम त हे टे यर हो गई।

मान च 5.4 चाय का े


ता लका 5.9
भारत चाय का े फल, उ पादन तथा त हे टे यर उपज
वष े फल उ पादन उपज त हे टे यर
(लाख हे टे यर) (लाख टन) ( कलो ाम)
1950-51 3.14 3.77 876
1960-61 3.31 3.22 970
1970-71 3.54 4.23 1184
1980-81 3.65 5.68 14.56
1990-91 4.38 6.45 1505
2000-01 4.36 8.50 1949
2004-05 4.85 8.00 1649
Source: Statistical Abstract of India, CMIE-2005
वतरण : चाय क कृ ष के लए उ तर पूव भारत के मु य उ पादक रा य असम, पि चमी
बंगाल है जो भारत क लगभग 76% चाय का उ पादन करते ह । बहार, उ तर दे श, हमाचल
दे श, पुरा , सि कम, नागालै ड, अ णाचल दे श आ द अ य गौण चाय उ पादक रा य ह ।
द णी भारत म त मलनाडु तथा केरल व कनाटक के रा य के पहाड़ी े म लगभग 22%
चाय का उ पादन कया जाता है ।
असम : यह रा य हमारे दे श का सबसे बड़ा चाय उ पादक है । यहां 2003-04 म दे श क
52.76% चाय का उ पादन कया गया । यहां के पवतीय ढाल चाय क खेती के लए अनुकू ल ह

130
। चाय के मु य उ पादक िजले शवसागर, लखीमपुर व दरांग, नवगांव, तेजपुर व जोरहट,
गोलपाडा व काम प है । असम क मु य अथ यव था चाय क कृ ष पर ह आधा रत है ।
पि चमी बंगाल : यहाँ भारत क लगभग 24% चाय का उ पादन कया जाता है । चाय के मु य
उ पादक िजले दािज लंग, जलपाईगुडी, कू च बहार तथा पु लया है । दािज लंग क चाय
सु गि धत तथा उ तम कार क होती है िजसक दे श व वदे श म भार मांग रहती ह ।
त मलनाडु : यह रा य भारत क लगभग 15% चाय उ प न करता है । यहाँ नील गर तथा
अ नामलाई क पहा ड़य म इस रा य क मश: 46% तथा 33% चाय ा त होती है । चाय के
मु य उ पादक िजले नील गर , अ नामलाई, क याकु मार , कोय बटू र, मदुरई तथा त ने वल ह।
केरल : यह रा य भारत क लगभग 8% चाय उ प न करता ह । ावनकोर तथा कानन दे व स
केरल रा य क लगभग 75% चाय उ प न करते ह ।
अ य े : हमाचल दे श, उ तराख ड, पुरा, म णपुर, अ णाचल दे श तथा कनाटक म भी
अ प मा ा म चाय का उ पादन कया जाता है ।
यापार : भारत व व क चाय का मुख उ पादक होने के साथ-साथ चाय का सबसे बड़ा
नयातक भी है । व व के कु ल चाय नयात लगभग 25% भाग भारत से होता है । सन ् 1950-
51 से अब तक चाय के उ पादन म तो वृ हु ई है ले कन नयात म वशेष वृ नह ं हु ई ।
इसका कारण यह है क हमारे दे श म जनसं या वृ के साथ-साथ चाय क खपत म भी वृ का
होना है । 1950-51 म हम दे श क उपज का लगभग 70% चाय नयात करते थे और व व के
कु ल नयात का लगभग 40% था ।
ता लका 5.10
भारत-चाय का नयात
वष नयात (लाख टन म) मू य (करोड़ पये म)
1950-51 1.95 80
1960-61 1.99 124
1970-71 1.99 148
1980-81 2.29 1070
190-91 1.99 1070
1999-2000 1.65 1364
2005-06 1.81 1631
Source: Tea Board Statistices, Kolkata, 2006-07
उपरो त ता लका से प ट है क 1950-51 म हमारे दे श से 1.95 लाख टन चाय का
नयात कया गया जो 60 करोड़ पये का था । सन ् 2005-06 म 1.81 लाख टन चाय का
नयात कया गया िजसका मू य 16314 करोड़ पये था । चाय के नयात म तो कमी हु ई
जब क यापार मू य म लगभग 19 गुना वृ हु ई है ।
भारत क चाय का सबसे बडा ाहक दे श टे न है जो हमार चाय के कुल नयात का
60% खर दता है । हमारे दे श क चाय के अ य ाहक संयु त रा य अमे रका, स, आ े लया,

131
कनाडा, ईरान, पि चमी जमनी, नीदरलै ड, तु क , इराक, अफगा न तान, सू डान ह । भारत क
अ धकांश चाय कोलकाता, चे नई, मु बई, मंगलौर तथा कोची ब दरगाह से नयात क जाती है।

5.3.8 कहवा (Coffee)

कहवा एक झाड़ी क उपज है िजनके फल लगते ह तथा उनके फूल के बीज को भू नकर
पीस लया जाता है और फर इसको चायं क भां त योग कया जाता है ।
उपज क दशाएँ :- कहवा एक गम एवं नम जलवायु का पौधा है । उ ण क टब धीय े म 15
से 1800 मीटर क ऊँचाई तक आता है । इसके लए व 17 से 25° सेि सयस तापमान क
आव यकता होती है । छोटे पौध को छायादार पौधे उगाकर धू प से र ा क जाती है । कहवे क
जड़ भी पानी म गल जाती है अत: इसे पहाड़ी ढाल पर उगाया जाता है । इसके लए उपजाऊ
गहर तथा सु वा हत म ी िजसम जीवांश तथा लोहांश तथा चू ना हो उपयु त होती है । अ धक
खड़ी ढाल इसके लए उपयु त नह ं रहती ।
म : कहवा के उ पादन म अ धक तथा स ते मक क आव यकता होती है । पेड़ को काटने,
छांटने, फल तोड़ने, बीज नकालने तथा धोने तथा सु खाने के लए तथा कहवा तैयार करने के
लए चुर म आव यक है : ।
उ पादन तथा वतरण :
भारत म लगभग 300 हजार हे टे यर भू म पर कहवा क कृ ष क जाती है । 1995-96
म 223 लाख टन कहवा का उ पादन कया गया जो व व का 3.5 तशत है । कनाटक रा य
सम त भारत का लगभग 70 तशत कहवा उ प न करता है । थम गा कनाटक, काठू र तथा
हसन िजल म कहवा क कृ ष के लए स है । त मलनाडु के नील ग र, उ तर अराकट तथा
कोय बटू र िजल म कहवा क कृ ष क जाती है । केरल तथा उड़ीसा रा य म भी कहवा के बाग
लगाये जाते ह ।

5.4 ह रत ाि त (Green Revolution)


भारत एक कृ ष धान दे श है । य य प हमारे दे श म औ यो गक वकास काफ तेजी से
हु आ है । ले कन हमार रा य आय मे कृ ष का काफ मह वपूण योगदान है । भारत म
नवीनतम ह रत ाि त का आर भ छठे दशक म हु आ । यह दपुल उ पादन दे ने वाले द जो के
योग के साथ ार भ हु आ । दे श मे आजाद के बाद से भारत मे खा या न के आयात के लए
सयु त रा य अमे रका पर काफ नभर हो गया था । सन ् 1906 ने ो. अरनै ट बोरलॉग ने
मैि सको मे गेहू ँ क अ धक फसल दे ने थाल फसल का वकास कया । अत: ो. अरनै ट
बोरलॉग को मे ह रत ाि त का ज मदाता माना जाता है । ह रत ाि त श द का सव थम
योग अमे रक व वान व लयम गॉड (William Gaud) ने सन ् 1988 म कया था ।
ह रत ाि त वा तव म कृ षगत नये नवेश तथा कृ ष क नवीन व ध के पैकेज का
नाम है । ो. दा तेवाला के अनुसार ह रत ाि त के दो मु य त व ह - एक तो नई तकनीक
और दूसरा अ धक उपज दे ने वाले बीज । नये बीज मैि सको से लाए गए और उनका उपयोग
तेजी से बढ़ाया गया । इनक बहु त अ धक उपज दे ने क मता के कारण ह इ ह चम कार बीज
कहा गया ।
132
5.4.1 भारत म ह रत ाि त (Green Revolution in India)

दे श क वतं ता के बाद जब तृतीय योजना काल तक (1968 तक) कृ ष उ पादन बढ़ाने


के लए अनेक यास करने के बाद भी पया त सफलता नह ं मल पा रह थी िजस कारण भारत
म खा या न क ि थ त काफ वकट हो गई थी । सन ् 1966 के बाद सरकार ने अ छे बीज,
खाद संचाई और उ नत साधन के योग के वारा एक नई कृ ष नी त का सू पात कया ।
इसके फल व प गेहू ं क उपज म तेज ग त से वृ हु ई और अ य उपज क वृ के लए एक
नया वातावरण तैयार हो गया । इसी को ह रत ाि त का नाम दया गया । भारत म ह रत
ाि त के 1966-67 से 1967-68 के एक वष के अ दर खा या न के उ पादन म 25 तशत
वृ हु ई । सन ् 1950-51 क तुलना म 2001-2002 म खा या न का उ पादन बढ़कर चार गुणा
हो गया । ह रत ाि त से दे श म या त भु खमर , गर बी तथा कु पोषण जैसी सम याओं को
समा त करने म सहायता मल है ।
ह रत ाि त के मु य कारक या वशेषताएँ - ह रत ाि त अनेक कारक के सामू हक
यास का फल है । ह रत ाि त क मु य वशेषताएँ न न ल खत है:
1. उ नत क म के बीज का योग:
जहाँ पया त वषा अथवा संचाई क सु वधाएँ वक सत ह, उन े म चावल, गेहू ँ वार,
बाजरा तथा म का क अ धक उपज दे ने वाल क म का योग कया गया ह । भारत म ह रत
ाि त के बाद से उ नत क म के बीज के योग म लगातार वृ हो रह है जो. न न
ता लका से प ट ह ।
ता लका 5.11
भारत- उ नत बीज के अ तगत कृ ष े (लाख है टे यर म)
फसल का नाम 1966-67 2004-05
चावल 8.9 294.3
गहू 5.4 220.9
वार 1.9 76.2
बाजरा 0.6 60.2
म का 2.1 29.5
योग 18.9 681.1
2. रासाय नक खाद का योग -
कृ ष वै ा नक के अनुसार खेत म अ धका धक रासाय नक खाद डालकर कृ ष उ पादन
म आशा अनु प वृ द क जा सकती ह । भारत म रासाय नक खाद का योग बढ़ाने का यास
कया जा रहा ह ।
ता लका 5.12
भारत-रासाय नक खाद क खपत (हजार टन)
नाइ ोजन उवरक फा फेट पोटाश कु ल
1960-61 210 53 29 292
1970-71 1487 624 228 2339

133
1980- 81 3678 1214 624 5516
1990-91 8000 3200 1300 12500
2004-05 11076 4124 1598 16798
3. सचाई का व तार :-
ह रत ाि त के लए बीज और खाद के. साथ-साथ संचाई क यव था करना अ य त
आव यक ह । भारत म वषा कुछ क मह न म होती है तथा वह भी अ नय मत एवं अ नि चत
होती है । अत: संचाई पर वशेष यान दया गया है । भारत म 1965-66 म केवल 320 लाख
हे टे यर भू म पर संचाई क सु वधा उपल ध थी जो 2002-03 म बढ़कर 728 लाख हे टे यर हो
गई तथा 2010 तक 1130 लाख हे टे यर कृ ष े को संचाई के अ तगत उपल ध कराने क
योजना है ।
4. लघु संचाई यव था :-
यह यव था बडे बांध के अ त र त कु ओं, नहर नलकू प तथा तालाब से भी करनी
पड़ती है िजससे छोट, म यम व बड़े कसान को इसका लाभ पहु ंचे । इस यव था म नलकू प,
कु एँ तथा तालाब बनाने के लए सरकार सहायता उपल ध कराती ह । सन ् 2004-05 म कुल
सं चत भू म क 70 तशत से अ धक संचाई लघु संचाई योजनाओं वारा क गई ।
5. क टनाशक दवाइय का योग :
एक अनुमान के अनुसार फसल म लगने वाल बीमा रयाँ तथा क ड़े -मकोड़े जीव-ज तु
फसल के उ पादन को एक चौथाई तक कम कर दे ते ह । अत: अ धक कृ ष उ पादन ा त करने
के लए फसल को क ड़े-मकोडे तथा बीमा रय से बचाना आव यक है । इनक रोकथाम के लए
वभ न कार क क टनाशक दवाइय का योग कया गया है । खड़ी फसल क र ा के लए
भारत म के य पौध संर ण सं थान, हैदराबाद श ण दे ता ह । प रणाम व प भारत म
क टनाशक दवाइय क खपत लगातार बढ़ रह है ।
6. आधु नक कृ ष य का योग :- भारतीय कृ ष म पुराने साधारण तथा पर परागत हाथ के
औजार के थान पर आधु नक मशीन का योग अ धक बढ़ गया िजससे ह रत ाि त को
सफलता मल । आधु नक कृ ष य म ै टर, क बाइन, हाव टर, थैशर, डीजल ईजन
तथा संचाई के लए अ याधु नक सबम सबल प प आ द का योग शु कर दया है । इन
सभी साधन के योग से अब भारतीय कसान अपने सभी कृ ष काय समय पर समा त
करने म स म हो गया है । कसान को स ती तथा अ छ मशीनर दलाने के लए
व भ न रा य म कृ ष उ योग नगम था पत कये गए ह । ये नगम कसान को कृ ष
स ब धी उपकरण स ते ऋण तथा आसान क त पर भी उपल ध कराते ह । कई रा य म
ै टर, थैशर, क बाईन आ द उपकरण कसान के लए कमाई के साधन बन गए ह ।
7. बहु फसल णाल - कृ ष य , उ नत बीज , रासाय नक उवरक तथा संचाई आ द क
सु वधाओं से फसल कम समय म पक कर तैयार होने लगी ह । इससे एक ह खेत म वष म
दो या दो से अ धक फसल उगाना भी स भव हो गया है । पर परागत खर फ व रबी क
फसल के अ त र त अब जायद फसल भी उगाना स भव हो गया है । वतमान म कु ल
सं चत े के लगभग 35 तशत भाग म दो फसल या अ धक फसल बोई जा सकती है ।

134
8. सु ऋण-सु वधाएँ :- सरकार नी त के अ तगत कसान को ऋण क सु वधाएं ा त होने लगी
ह । पहले कसान अपनी आव यकता का 90 तशत ऋण महाजन से ऊंचे याज पर लया
करता था । िजसे चु काना उसके लए बहु त क ठन हो जाता था । पर तु अब कसान को
सरकार स म तय , बैक तथा अ य साधन से कम याज पर ऋण मलने लगा है । कम
याज पर आव यकतानुसार ऋण मलने पर कसान उ चत मा ा म उ नत बीज, कृ ष य ,
उवरक आ द खर द सकता है और संचाई के साधन का योग भी कर सकता है ।
9. मृदा-पर ण :- ह रत ाि त के व तार हे तु मृदा पर ण अ त आव यक है । इस स दभ म
सरकार ने व तृत काय म बनाया है , िजसके अ तगत व भ न े क मृदा का सरकार
योगशालाओं म पर ण कया जाता है । इस पर ण से यह पता लगाया जाता है क
वभ न कार क म य म कन त व क कमी है और इसे कन उवरक तथा तर क से
दूर कया जा सकता है क कस कार क म ी म कस कार क फसल अ धक होगी और
उसम कस कार के बीज का योग कया जाए िजससे कृ ष फसल का अ धकतम लाभ
ा त हो सक ।
10. भू-संर ण :- ह रत ाि त को सफल बनाने के लए भू-संर ण का काय म भी लागू कया
गया ह । भू म कटाव को रोकने तथा भू म उवरता को बनाए रखने के लए व भ न उपाय
कये गऐ ह म थल के व तार को रोकने तथा शु क णाल के व तार को रोकने क
नई-नई योजनाएं बनाई जा रह है दे श के लगभग 5 करोड़ एकड़ बंजर भू म को कृ ष यो य
बनाने के लए य न कये जा रहे ह । इससे फसल म हेर-फेर को भी ो साहन मल रहा
है िजसके आगे कु छ सकारा मक प रणाम भी मले ह ।
11. कृ ष श ा एवं शोध :- कृ ष श ा एवं शोध ह रत ाि त क एक नई तथा मुख वशेषता
है । ह रत ाि त के बाद दे श म कृ ष को उ नत बनाने के लए कृ ष काय म सभी तर
पर शोध करना अ य त आव यक हो गया है । भारत सरकार ने 1975 से ह कृ ष
अनुसंधान सेवा का गठन करके सारे दे श म िजला तर पर कृ ष ान के खोले ह । ये
के अपने कमचा रय तथा कसान को कृ ष श ण श ा तथा नवीनतम कृ ष तकनीक
क जानकार दे ते ह । रे डयो -तथा ट वी. पर भी कृ ष से स बि धत काय म का सारण
कया जा रहा है ता क कसान को अ धक से अ धक से अ धक लाभ ा त हो सके ।
12. ामीण व युतीकरण :- कृ ष उपकरण को चलाने के लए व युत सबसे स ता एवं सु गम
शि त साधन है । अत: कृ ष के वकास के लए ामीण व युतीकरण नगम क थापना
क गई है । वत ता ाि त के समय हमारे दे श म केवल 0.5 तशत गाँव को ह
बजल उपल ध थी । सन ् 1970- 71 म 18.5 तशत गाँव , 1980-81 म या 47.3
तशत गाँव , 1990-91 म 80.6 तशत गाँव को बजल ा त हो चुक थी । 31 माच
2000 तक कुल 580,781 गाँव म से 5,08,065 गाँव अथात 87.48 तशत गाँव म
व युतीकरण हो चु का था । ह रयाणा दे श का पहला रा य था जहां पर सभी गाँव को
बजल उपल ध कराई गई ।पंजाब, केरल, आं दे श, कनाटक, गुजरात, हमाचल दे श,
त मलनाडु महारा तथा नागालड आ द म 97 तशत से 100 तशत गाव म बजल
ा त हो चुक ह ।

135
13. कृ ष वकास हेतु नगम क थापना :- भारत म ह रत ाि त क सफलता के लए अनेक
नगम को था पत कया गया है । कृ ष मि डय , रा य. बीज नगम, भारतीय खाद
नगम, रा य सहकार वकास नगम, ामीण व युतीकरण नगम तथा रा य डेयर
वकास जैसी सं थाऐं कृ ष वकास के लए क टब ह । कृ षक को उनक उपज का उ चत
मू य मल सके, इसके लए भारत सरकार ने 'कृ ष मू य आयोग' क भी थापना क ।
14. उ पाद क ब स ब धी सु वधाएँ :- पहले कसान अपनी फसल को महाजन को बेचते थे
। इससे उनको उ चत मू य नह ं मल पाता था । आज कसान अपनी फसल को अपनी
इ छा से बेचने के लए वत है । सरकार मि डय क थापना, सरकार वारा कृ ष
उपज को खर दना, समय पर पैस का भु गतान आ द क उपल धता के कारण अब कसान
कृ ष काय म च ले रहा है तथा कसान क इस कार क च के कारण ह रत ाि त
वकास क ओर अ सर है ।
15. समथन मू य या फसल क क मत का नधारण :- अनेक बार कृ ष उ पादन अ धक हो
जाने क वजह से बाजार म कृ ष उपज क क मत कम हो जाती है । इससे कृ ष उ पादन
पर वपर त भाव पड़ता ह । इस सम या को दूर करने के लए सरकार ने कृ ष लागत तथा
मू य आयोग क थापना क । इस आयोग का काय व भ न फसल का यूनतम मू य
नधा रत करना है । अगर कभी फसल का वा त वक मू य यूनतम समथन मू य से कम
होने लगता है तो सरकार अपने वारा नधा रत मू य पर कसान से फसल खर द लेती है ।
इससे कसान को कोई दु वधा नह ं रहती और वह नि चत होकर कृ ष करता है ।

5.4.2 ह रत ाि त के भाव (Effects of Green Revolution)

अ य वकासशील दे श क भां त भारत म भी ह रत ाि त ने अथ यव था को काफ


भा वत कया है । इसके मह वपूण भाव न न ल खत ह :-
1. कृ ष उ पादन म वृ :-
भारत म ह रत ाि त के आगमन से य य प सभी फसल के उ पादन म वृ हु ई है ।
ह रत ाि त के बाद सभी कृ ष उपज म त हे टे यर 28 तशत से भी अ धक वृ हु ई है ।
खा या न म भी गेहू ँ का उ पादन सबसे अ धक बढ़ा । 1960-61 से 1990-91 तक खा या न
के उ पादन म लगभग दो गुना वृ हो गई । इसी कारण ाय: यह कहा जाता है क भारत म
ह रत ाि त मु यत: 'गेहू ँ ाि त'' है । स पूण भारत म 1960-61 से 2004-05 के बीच
खा या न म 3 गुना से अ धक वृ हु ई है ।
ता लका 5.13 म भारत म खा या न का उ पादन द शत ' कया गया है ।
ता लका 5.13
भारत म खा या न का उ पादन (लाख टन मे)
वष गहू चावल वार बाजरा म का कु ल खा या न
1960-61 109.97 345.74 98.14 32.83 40.80 627.48
1970-71 238.32 422.25 81.05 80.29 74.86 896.77
1980-81 363.13 536.31 104.31 53.43 69.56 1126.74

136
1990-91 696.81 876.98 75.29 67.59 120.43 1837.1
2004-05 740.50 871.20 76.50 81.10 141.30 1910.60
Source: Statistical Abstract of India 2005, CMIE 2005may
2. कसान क आ थक ि थ त म सुधार :- ह रत ाि त से कृ ष उ पादन म अ य धक
वृ होने से कसान क आ थक ि थ त म काफ सु धार हु आ है और वे समृ क और अ सर
हु ए है । ह रत ाि त से छोटे तथा बड़े कसान को लाभ हु आ है ।
3. कसान क वचारधारा म प रवतन :- ह रत ाि त के आने से भारतीय कसान क
ढ़वाद वचारधारा म प रवतन हु आ है । अब कसान ाचीन कृ ष प त को छो कर नई कृ ष
प त अपनाने लगा है । जहां कह ं भी नई तकनीक मल है कसी भी कसान ने उसके भाव
से इ कार नह ं कया ।
4. ं ीवाद खेती :- ह रत
पू ज ाि त म नई कृ ष तकनीक से पूरा लाभ उठाने के लए
वभ न कार क मशीन , उवरक , उ नत बीज तथा संचाई आ द का ब ध कया जाता है ।
िजनके लए पया त धन क आव यकता होती है । इससे कृ ष म पूज
ं ीवाद को बढ़ावा मलता है
। अत: बड़े कसान िजनके पास 10 एकड़ से अ धक जमीन है वे अ धक कृ ष उ पादन के लए
कृ ष क गई तकनीक के ब ध म होने वाले खच को सहन करने म समथ होते है तथा छोटे
कसान िजनके पास दो एकड़ से कम जमीन है वे पया त मा ा म कृ ष म पूज
ं ी लगाने म
असमथ रहते ह । अत: ह रत ाि त से बड़े कसान ह यादा लाभाि वत हो रहे ह । वतमान म
ऋण आ द सु वधाओं के कारण छोटे कसान भी इसका लाभ उठा रहे ह ।
5. उ योग का वकास :- आधु नक य , उ नत बीज, रासाय नक खाद, संचाई के साधन,
ह रत ाि त के आधार ह । ह रत ाि त के अ तगत व भ न कार क मशीन जैसे ै टर,
थैशर, हाव टर, डीजल इंजन, प प सैट तथा रासाय नक उवरक जैसे नाइ ोजन, फ केट, पोटाश
आ द बड़े पैमाने पर योग कये जाते ह । अत: ह रत ाि त के बाद भारत म उपरो त व तु ओं
के नमाण उ योग म उ लेखनीय वकास हु आ है ।
6. मू य पर नय ण :- तृतीय पंचवष य योजना म कृ ष उपज के मू य म ती ग त से
वृ हु ई । पर तु ह रत ाि त के बाद कृ ष उ पादन म ती ग त से वृ हु ई िजसके
प रणाम व प कृ ष उ पाद के मू य म काफ कमी आई है । अत: प ट है क ह रत ाि त ने
अपने आरि भक वष म मू य को अ धक बढ़ने से रोकने म सहायता क ।
7. कृ ष काय म समय क बचत :- ह रत ाि त के अ तगत कृ ष का आधु नक करण होने
से कृ ष काय म मशीन का अ धका धक योग कया जाने लगा है । मशीनीकरण से कृ ष काय
करने पर समय क बचत होती है । कसान अब बचे हु ए समय का सदुपयोग अ य आ थक
ग त व धय म करके अ त र त आय ा त कर रहे ह ।
8. कृ ष के व प म प रवतन :- कृ ष काय म नवीन कृ ष य , रासाय नक उवरक के
उपयोग के साथ-साथ संचाई के साधन के वकास से ाकृ तक वषा पर कसान क नभरता
कम हु ई ह । भारतीय कृ ष अब जीवन नवाह कृ ष न रहकर एक यापा रक कृ ष का प ले
चु क ह । अत: हम कह सकते ह क वतमान म ह रत ाि त से भारतीय कृ ष का व प
ब कु ल बदल गया ह ।

137
5.4.3 ह रत ाि त के दोष या सम याएँ (Problems of green Revolution)

ह रत ाि त ने दे श म कृ ष उ पादन म ाि त ला द ह वह ं दूसर ओर इससे अनेक


सम याऐं भी पैदा हु ई ह । ह रत ाि त से आ थक, सामािजक तथा े ीय वषमताएँ बढ ह ।
ह रत ाि त के दोष या सम याऐं न न ल खत ह -
1. सी मत फसल :- ह रत ाि त का भाव केवल कुछ सी मत खा य फसल जैसे गेहू ँ
चावल, बाजरा, वार तथा म का पर पड़ा । यापा रक फसल जैसे चाय, कपास, पटसन, ग ना
तथा दाल आ द ह रत ाि त के लाभ से वं चत रह ह । जहाँ पहले दाल बोई जाती थी उन े
म अब गेहू ँ बोया जाने लगा ह । ह रत ाि त का भाव गेहू ँ क फसल पर ह अ धक पड़ा ह
िजसके कारण इसे भारत म ह रत ाि त क अपे ा गेहू ँ ाि त कहा जा सकता ह ।
2. सी मत दे श :- भारत म ह रत ाि त से सभी रा य तथा े समान प से भा वत
नह ं हो सके । दे श क 40 तशत भू म ह ह रत ाि त से लाभाि वत हु ई और 60 तशत
भू म इसके लाभ से वं चत रह गई । पंजाब, ह रयाणा, महारा तथा त मलनाडु रा यो म ह रत
ाि त का भाव सबसे अ धक हु आ । पर तु भारत के अ य रा य म ह रत ाि त का कोई
वशेष भाव दखाई नह ं दया ।
3. े ीय अस तु लन म वृ - ह रत ाि त का भाव दे श के सभी रा य म समान प
से नह ं पड़ा ह । केवल उ ह ं े म कृ ष का उ पादन बढा जहां पहले ह कृ ष का वकास
उ नत अव था म था । इसका भाव मु य प से ह रयाणा, पंजाब, महारा , त मलनाडु तथा
पि चमी उ तर दे श म ह पड़ा ह । अत: उपरो त रा य कृ ष क ि ट से अ य धक वक सत
हो गये ह तथा आ थक ि ट से स प न ह । इसके वपर त दे श के अ य रा य म कृ ष पछड़ी
हु ई अव था म ह । अत: भारत म कृ ष वकास म े ीय अस तु लन को ो सा हत करने म
ह रत ाि त का मह वपूण योगदान ह ।
4. यि तगत वषमताओं म वृ :- ह रत ाि त का अ धकतम लाभ बड़े कसान तक ह
सी मत रहा ह । य क उनके नास आव यक कृ ष उपकरण, उ नत बीज, रासाय नक उवरक
तथा संचाई के साधन को खर दने के लए पया त पूज
ं ी थी । इसके वपर त छोटे कसान के
पास इन व तु ओं को 'खर दने के लए पया त धन क कमी थी और वे इन साधन के अभाव म
कृ ष उ पादन अ धक नह ं बढ़ा सके । अत: बड़े कसान अ धक धनी तथा छोटे कसान अ धक
गर ब हो गये । डी. वी.के.आर वी.राव के अनुसार ' 'यह एक सव व दत त य ह क िजस ह रत
ाि त के फल व प उ पादन म वृ हु ई ह उसके कारण आ थक समानता भी बढ़ ह । काफ
सं या म छोटे कसान के का तकार हक समा त कर दये गये और गांव म सामािजक व
आ थक तनाव बढ़ा ह । ''
5. बेरोजगार म वृ :- ह रत ाि त के अ तगत कृ ष काय मशीन के वारा कया जाता
ह िजससे कृ ष मजदूर म बेरोजगार अ धक फैल गई ह । ले कन चाय, चावल, ग ना, कपास
आ द फसल म मशीन का यादा योग अस भव ह अत: इनम कृ ष मजदूर के रोजगार क

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स मावना बनी हु ई ह । फर भी हम कह सकते ह क भू मह न मजदूर क दशा पहले से अ धक
खराब हो गई है ।
6. पयावरण दूषण : - कसान अ धक उ पादन के लए अ धक क टनाशक दवाओं तथा
रासाय नक उवरक का योग करते ह िजससे वायु, जल तथा भू म दू षत होती ह । वायु तथा
जल दूषण के कारण मनु य तथा जीव ज तु अनेक बीमा रय से त हो जाते ह जब क भू म
दूषण से म ी क उपजाऊ शि त न ट होकर भू म बंजर हो जाती ह ।
7. म ी क उपजाऊ शि त म ास :- कसान वारा अ धक पैदावार के लालच म एक ह
भू-भाग पर बार-बार खेती करने से भू म क उपजाऊ शि त कम ह जाती ह । कसान अ धक
पैदावार के च कर म भू म से िजतने पोषक त व को खींचते ह उसके बदले उतने लौटा नह ं पाते
। ह रयाणा तथा पंजाब के अनेक भाग म ह रत ाि त के कारण गहन कृ ष का चलन इसका
मु य कारण है ।
8. जल जमाव तथा खारे पन क सम या :- ह रत ाि त के अ तगत दे श म नहर तथा
नलकू प से संचाई क सु वधा क यव था क गई ह । कृ ष भू म क नहर वारा अ य धक
संचाई से जल जमाव क सम या आर भ हो गई ह साथ ह साथ पंजाब, ह रयाणा तथा उ तर
दे श क कृ ष भू म म खारे पन (रे ह) क सम या भी उभरकर सामने आ रह ह िजससे कसान
को लाभ होन क अपे ा हा न अ धक होती ह ।
ह रत ाि त क सफलता एंव था य व के लए सु झाव :-
दे श मे ह रत ाि त क सफलता एवं था य व के लए न न ल खत सु झाव दये जा
सकते ह :-
1. यापक े :- दे श म ह रत ाि त का भाव कु छ रा य जैसे पंजाब, ह रयाणा,
त मलनाडु तथा महारा तथा पि चम उ तर दे श तक ह सी मत ह जो पया त नह ं ह । ह रत
ाि त का पूरा लाभ उठाने के लए इसे दे श के अ य रा य म भी फैलाना आव यक ह ।
2. यापक फसल :- ह रत ाि त का भाव गेहू ँ के उ पादन तक ह सी मत ह । इसे
चावल, कपास, ग ना, पटसन आ द अ य यापक फसल क कृ ष पर भी लागू कया जाना
चा हए ।
3. संचाई क सु वधाओं का व तार :- ह रत ाि त क सफलता के लए संचाई का बहु त
अ धक मह व ह । उ नत बीज के योग के लए संचाई का मह वपूण योगदान ह । अत: ह रत
ाि त क सफलता के लए अ धक से अ धक े म संचाई क यव था क जानी चा हए ।
4. बहु फसल णाल :- ह रत ाि त का पूरा लाभ उठाने के लए वष म दो या दो से
अ धक फसल को बोया जाना चा हए । इससे कृ ष उ पादन बढ़े गा और बेरोजगार क सम या को
कम करने म भी सहायता मलेगी ।
5. एक कृ त फाम नी त :- इस नी त के अ तगत कसान को उ नत बीज, क टनाशक
दवाय, कृ ष य उ चत मू य पर उपल ध कराए जाते ह । इस नी त से छोटे तथा गर ब कसान
भी पूण लाभ उठा सकेग ।

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6. छोटे कसान पर वशेष यान :- दे श म 85 तशत छोटे कसान ह । ह रत ाि त से
बड़े कसान को ह लाभ हु आ ह । छोटे कसान क आ थक ि थ त सुधारने के लए
न न ल खत सुझाव दए जा सकते ह:-
1. भू म सुधार को तुर त लाग कया जाए ।
2. अ त र त भू म को भू मह न तथा छोटे कसान म बांटा जाये ।
3. छोटे कसान को कृ ष य स ते कराये पर मलने चा हए ।
4. छोटे कसान को उ नत बीज, खाद तथा कृ ष य खर दने के लए कम याज पर
ऋण उपल ध होने चा हए ।
5. फसल के नुकसान पर तु र त भु गतान क यव था होनी चा हए तथा फसल बीमा
योजना अ नवाय होनी चा हए ।
7. नई कृ ष नी त म सुधार :- दे श क नई कृ ष नी त म न न ल खत सु धार कये जाने
चा हए:-
1. दे श के येक रा य म अ धक उपज दे ने वाले बीज का योग कया जाना चा हए ।
2. रासाय नक खाद क जगह गोबर तथा क पो ट खाद का अ धका धक योग कया जाना
चा हए ।
3. खाद बनाने के लए कारखान म महंगे ख नज तेल क बजाय सरसे कोयले तथा व युत
शि त का योग कया जाना चा हए । ऐसा करने से खाद नमाण लागत कम हो जायेगी तथा
छोटे कसान को खाद स ती दर पर उपल ध क जा सकेगी ।
8. सं थागत सुधार :- ह रत ाि त क सफलता म सं थागत सु धार का मह वपूण योगदान
हो सकता ह । का तकार के हत क र ा क जानी चा हए । इसके अलावा जोत का वभाजन
भी रोकने का यास करना चा हए ता क अ धक उ पादन को बढ़ावा मल सके । कृ ष उपज के
वपणन क उ चत सु वधा होनी चा हये । संचाई सु वधाओं के लए नहर, नद व जल ड क
योजनाएँ चलाई जानी चा हए । म ी कटाव से होने वाले नुकसान क जानकार कसान को द
जानी चा हए । जोत का आकार बढ़ाया जाना चा हये िजससे कृ ष उ पादन म वृ हो सके ।
उपरो त सु झाव को यान म रखकर कसान अपनी फसल म वृ कर खुशहाल जीवन
यतीत कर सकता ह ।

5.5 कृ ष दे श (Agriculture Regions)


कृ ष दे श क संक पना ग तज ह । समय-समय पर भूगोलवे ता अपने-अपने ढं ग से
कृ ष के भ न- भ न तमान को आधार मानकर कृ ष दे श का नधारण करते ह । भारत म
भौ तक, आ थक एवं सामािजक, सां कृ तक दशा क व वधता पाई जाती ह । अतएव अनेक
कार क कृ ष यहां च लत ह ।
गलबट (E.W.Gilbert1960) के अनुसार '' दे श क या या करना उतना ह क ठन ह
िजतना क यि त वशेष क चचा ।''
डी. वीटल सी 1936 के अनुसार ''कृ ष दे श ऐसे व तृत े होते है जहां फ ल क
क म तथा उनक उ पादन व ध म सम पता मलती ह । साथ ह कृ ष भू म उपयोग म

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व श टता ज य स ब ता मलती ह ।'' अत: कृ ष दे श का अ भ ाय ऐसे दे श से ह जहाँ कृ ष
भू म के उपयोग, फसल के कार तथा उनक उ पादन व ध म सम पता मलती ह । भारत म
भौगो लक व वधताओं के फल व प कृ षगत फसल म भी व भ नताएँ पाई जाती है । तापमान,
वषा धरातल य दशा, म ी, फसल एवं पशु ओं के सह स ब ध तथा कृ ष उ पादन व ध इ या द
त य के आधार पर कृ ष दे श का नधारण कया जाता है ।

5.5.1 भारत के कृ ष दे श (Agriculture Regions of India)

भारत के कृ ष दे श के वभाजन के स ब ध म न न ल खत व वान के अ ययन


मह वपूण है ।
डी. र धावा का कृ ष दे शीय वग करण :-
कृ ष वशेष डी. र धावा ने भारत को 5 वृहद कृ ष दे श म बाँटा है जो न न ल खत ह:-
1. शीतो ण हमालय दे श:- इस दे श को दो उप- वभाग म वभािजत कया गया है:-
(अ) पूव हमालय दे श :- इसम अ णाचल दे श, ऊपर असम, सि कम तथा भू टान आता है ।
यहाँ 250 सेमी. से अ धक वषा होती है तथा चाय एवं चावल यह क मुख फसल ह ।
(ब) पि चमी हमालय दे श :- इसम जग व क मीर, हमाचल दे श एवं उ तर दे श एवं उ तर
दे श के पवतीय भाग शा मल ह । क मीर, कु लू, कांगड़ा, दून घा टय म व नचले ढाल म
सेब, नाशपाती, आलू चावल आ द क फसल उगाई जाती है । यहाँ भेड़ व बकर पशु चारण भी
मह वपूण है । उ तर उ च ढाल पर हमा छादन के कारण कृ ष काय नह ं होता ।
2. उ तर शु क गेहू ँ उ पादन े :- इस े म ह रयाणा, पंजाब, द ल , राज थान, म य
दे श, पि चमी उ तर दे श तथा गुजरात रा य शा मल है । यहाँ कॉप व बलु ई म याँ पाई जाती
है । गेहू ँ चना जौ, म का, ग ना तथा कपास यह क मु ख फसल ह तथा फसलो पादन म
संचाई मह वपूण है । इस े म 75 सेमी. से कम वा षक वषा होती है । यहाँ दु ध यवसाय
के लए पशु पालन काय भी मह वपूण है ।
3. पूव आ चावल उ पादक दे श :- इस दे श म पूव उ तर दे श, पूव म य दे श ,
बहार, प. बंगाल, उड़ीसा, आं दे श, त मलनाडु के तट य भाग, असम, मेघालय, पुरा,
मजोरम सि म लत है । यहाँ कांप म ी पाई जाती है । यहाँ औसत वा षक वषा 15 से.मी. से
अ धक पाई जाती है । चाय, जू ट, ग ना तथा चावल यहाँ क मु ख फसल ह ।
4. पि चमी आ मालाबार ना रयल दे श:- इसम महारा से केरल का पि चमी तट य
मैदान सि म लत कया गया है । यहाँ 350 से.मी. से अ धक औसत वा षक वषा होती है । यहाँ
लेटराइट व लाल म य क धानता है । यहाँ चावल, ना रयल, काजू रबड, कहवा, इलायची,
काल मच आ द फसल मह वपूण है ।
5. द णी मोटे अनाज उ पादक दे श :- इसम द णी पि चमी म य दे श, पूव महारा ,
द णी गुजरात, पि चमी आ दे श, त मलनाडु तथा कनाटक के पूव भाग सि म लत है ।
काल म ी के े म ग ना व कपास क व लेटराइट म य के े म वार, बाजरा, मू ंगफल
आ द फसल उगाई जाती है । यहाँ भेड़पालन का काय भी मु खता से कया जाता है ।

141
ो. आर.एल. संह का वग करण:-
फसल क धानता के आधार पर डॉ. रामलोचन संह ने भारत को न न ल खत 10
मु ख तथा 50 गौण दे श म बांटा है ।
1. चावल दे श
2. वार बाजरा दे श
3. गेहू ँ दे श
4. चना दे श
5. कपास दे श
6. म का दे श
7. मू ंगफल दे श
8. ना रयल दे श
9. बागाती या रोपण दे श
10. थाना तरणशील कृ ष दे श
ो. संह ने चावल दे श को 21, गेहू ँ दे श को 7, चना दे श को 3, वार बाजरा दे श
को 12 तथा कपास दे श को दो गौण भाग म बांटा ह मू ंगफल , म का, बागाती कृ ष,
थाना तरणशील कृ ष तथा ना रयल दे श एक-एक े म सीमां कत कये ह ।
भारत के कृ ष दे श :
जलवायु तथा म ी क व भ नता के कारण कृ ष म व भ नता पाई जाती है । समान
भौ तक प रि थ तय वाले दे श म बोई जाने वाल फसल लगभग एक जैसी होती है, उनको कृ ष
दे श कहते ह । भारत के व भ न भाग म भौ तक प रि थ तयाँ असमान होने के कारण वहाँ
वभ न कार क फसल उ प न क जाती है । कुछ दे श ऐसे ह जहाँ भौ तक प रि थ तयाँ
समान होती ह वह कृ ष लगभग समान होती है । अत: भौ तक प रि थ तय वशेषकर जलवायु
तथा म ी को यान म र कर भारत को न न ल खत कृ ष दे श म बीटा जा सकता है ।
1. नचल गंगा एवं मपु घाट का दे श :- इस दे श म प. बंगाल तथा असम सि म लत
है । यहाँ वष भर उ च तापमान, 150 से 250 सेमी. वा षक वषा तथा कांप म याँ पाई जाती
है । चावल, जू ट, ग ना तथा तलहन यह क मु य फसल ह । अ धकतर जनसं या कृ ष काय
म लगी हु ई है ।
2. गंगा क म य घाट का दे श:- इसम बहार व पूव उ तर दे श को शा मल कया गया
है । इसम दे श म 100 से 150 सेमी. वा षक तापमान तथा उपजाऊ कांप म याँ पाई जाती है
। यह चावल, गेहू ँ जी, चना व म का मु ख खा या न तथा ग ना व तलहन मु य यावसा यक
फसले ह । यह दे श वषा क अ नय मतता तथा अ नि चतता के कारण सामा यत: अकाल त
एवं बाढ़ त रहता है ।
3. गंगा क ऊपर घाट का दे श:- यह दे श पि चमी उ तर दे श म फैला हु आ है । यह ं
75 से 100 सेमी. वा षक वषा, उ च वा षक तापमान तथा कॉप म ी पाई जाती है । गहू ग ना,

142
चावल, जौ, चना, वार, म का, तलहन व कपास यह क मु य उपज ह । शीतकाल म संचाई
क सहायता से रबी फसल बोई जाती ह ।
4. सतलूज दे श :- यह दे श पंजाब तथा ह रयाणा रा य म व तृत है । यह वा षक वषा
50 से 75 सेमी. होती है । नहर वारा संचाई से चारा तथा फसल का उ पादन कया जाता है
। गेहू ँ यह क मु ख फसल ह । इस दे श म वार, बाजरा, जौ, तलहन चना तथा फलो पादन
क अ य मु ख फसल ह ।
5. म थल य दे श:- यह दे श उ तर-पि चमी गुजरात एवं राज थान म फैला हु आ है ।
इस दे श म 10 से 30 सेमी. वा षक वषा तथा उ च तापमान पाया जाता है । शु क े होने
कारण यह संचाई क बहु त अ धक आव यकता है । भाखड़ा नांगल, च बल एवं इं दरा गाँधी
नहर योजना से इस दे श क कृ ष काफ लाभाि वत हु ई है । गेहू ँ चना वार, बाजरा चना, मोठ,
जौ तथा कपास यहाँ क मु ख फसल है ।
6. काल म ी का दे श:- इस दे श म महारा , द णी गुजरात, पि चमी म य दे श
तथा कनाटक रा य के कुछ भाग शा मल है । यह 75 से 100 सेमी. वा षक वषा, उ च वा षक
तापमान तथा काल म ी पाई जाती है । लपा२नृ ग ना , गेहू ँ बाजरा, वार आ द यहाँ क मु ख
फसल है ।
7. लाल व लेटराइट म ी का दे श :- यह दे श कनाटक, उड़ीसा, पूव महारा , अ ध दे श
एवं मधा दे श रा य पर वसात है । यहाँ पर 75 से 125 सेमी के म य वा षक वषा होती है ।
यहाँ लेटराइट म ी पाई जाती है । यह उपजाऊ नह ं होती है । नद घा टय के उपजाऊ े म
चावल, ग ना, वार, बाजरा, कपास तथा मू गफल मह वपूण फसल उगाई जाती है । यह गेहू ँ
का उ पादन काफ कम पाया जाता है । पहाड़ी ढालू भाग म चाय, कहवा, मसाले आ द फसल
क कृ ष क जाती है । यहाँ तालाब वारा संचाई क यव था मह वपूण है ।
8. तट य मैदान :- यह दे श का व तार पूव एवं पि चमी समु तट य मैदान पर है । इन
तट पर पया त वषा होती है । तट य मैदान म चावल मुख खा या न फसल है । यह ग ना,
कपास, ना रयल, त बाकू व गम मसाले अ य मु ख यापा रक फसल उगाई जाती है ।
9. उ तर पवतीय दे श:- इस दे श म ज मु-क मीर, हमाचल दे श, उ तराखंड, सि कम,
अ णाचल दे श, नागालै ड, म णपुर , मेघालय, पुरा आ द पवतीय दे श शा मल है । यह कृ ष
का वकास बहु त कम हु आ है । पवतीय ढलान पर पशु एवं भेड़ बक रयाँ पाल जाती है । यहाँ
सेब क खेती अ धकतर क मीर, हमाचल दे श तथा उ तराखंड म क जाती है । क मीर म
केसर क कृ ष क जाती है ।
बोध न : 1
1. भारत क कु ल आय का कतने तशत भाग कृ ष से ा त होता है?
2. भारतीय कृ ष क चार मु ख वशे ष ताय लख ।
3. न न म से कौनसी फसल खा या न फसल नह ं है ?
(अ) चावल (ब) ग ना (स) गे हू ँ (द) म का
4. न न म से चाय का उ पादक नह ं है .

143
(अ) प.बं गाल (ब) हमाचल दे श (स) उ तराखं ड (द) म य दे श
5. ह रत ां त के ज मदाता का नाम बताइये ।
6. कृ ष दे श से आप या समझते ह?
7. भारत के कृ ष दे श नधा रत करने वाले दो मु ख व वान के नाम बताइये ।

5.6 पशु संसाधन/पशु पालन (Cattle Rearing)


भारत एक कृ ष धान दे श है । भारत जैसे कृ ष धान दे श म पशु ओं का मह वपूण
थान रहा है अथात हम कह सकते ह क कसी दे श क अथ यव था म पशु ओं का थान
मह वपूण होता है । अत: भारत म पशु स पदा ह नह ं संसाधन भी ह ।
डॉ. डा लग के अनुसार :- ''एक शाकाहार दे श म इससे अ धक दुःखदायी बात य हो
सकती है क यहां पशु ओं के अभाव म घी, दूध, म खन, पनीर एवं अ य पशु उ पाद आ द
पौि टक पदाथ क ाि त का ह अकाल पड सकता है । ''
2003 क पशु गणना के अनुसार भारत म कुल 48.5 करोड़ पशु है । 1972 से 1982
के बीच म कु ल पशु धन सं या म 13.3% क वृ हु ई जब क वष 1982 के बीच पशुधन म
11.5% क वृ हु ई । उ लेखनीय है क भारत के पास ाजील के बाद व व म सबसे अ धक
पशु धन है । भारत व व म गो-पशु ओं तथा भैस के स ब ध म थम, बक रय के स ब ध म
वतीय तथा भेड़ के स ब ध म तृतीय थान पर है । व व क कु ल भैस क सं या का 57%
भारत म है ।

5.6.1 भारत म पशु संसाधन एवं इसका मह व

1. भारतीय कृ ष म पशु संसाधन मह वपूण भू मका नभाते है । पशु ओं से गोबर ा त होता


है जो कृ ष के लए खा के प म काम करता है तथा कुओं से पानी नकालने, खेत को जोतने
तथा अनाज को मि डय तक ले जाने का काय करते है । यातांबात के प म भी इनका योग
कया जाता है ।
2. दु ध उ पादन : दु ध उ पादन म पशुओं का मह वपूण थान है । वष 2006-07 के
दौरान भारत म कु ल 100 म लयन टन दु ध का उ पादन हु आ । दे श म त यि त दूध क
उपल धता 1996-97 म 202 ाम त दन थी जो बढ़कर 2006-07 म 245 ाम त दन हो
गई । दु ध उ पादन म भारत व व म थम थान पर है ।
3. नयात से आय : पशुधन से ा त उ पाद के नयात से हम काफ आय क ाि त होती
है यह कारण है क हम कु ल नयात म से अकेले चमड़ा े से 2660 करोड़ पये क आय है।
4. रोजगार सृजन : पशु पालन े बड़े पैमाने पर वरोजगार उपल ध कराता है वतमान म
यह पशु पालन े म लगभग 20 म लयन लोग को रोजगार उपल ध करवा रहा है ।
5. उ पादन मू य म वृ : वष 2004-05 के दौरान पशु धन एवं म य सक े से
उ पादन मू य लगभग 2,08.027 करोड़ पये था जो कृ ष और सहायक े से 5,82,773

144
करोड़ पये के उ पादन मू य का लगभग 35.7% है । 2004-05 के दौरान सकल घरे लू उ पाद
म इन े का योगदान 5.40% रहा ।
ता लका 5.14
भारत म पशुधन क ि थ त (करोड़ मे)
पशु धन 1966 1972 1982 1997 2003
1 गौ पशु 17.6 17.9 19.2 19.89 18.52
2 भस 5.3 5.8 7.0 8.99 9.79
3 भेड़ 4.2 4.0 4.9 5.75 6.15
4 बकर 5.5 6.8 9.5 12.27 12.44
5 अ य 0.8 0.8 1.4 1.68 1.60
योग 34.4 35.5 42.0 48.54 48.50
ोत- भारत- पशु गणना तवेदन 2003-04
6. अ डा उ पादन :- अ डा उ पादन म वगत वष म नर तर ग त हु ई है । िजसका मूल
कारण सरकार क अनुसध
ं ान तथा वकासा मक योजनाएं एवं संग ठत नजी े वारा
भावकार ब धन एवं वपणन था । वष 2005-06 म दे श म अ ड का उ पादन 46.5
म लयन था । भारत का अ डा उ पादन म पांचवा थान है ।
7. ऊन उ पादन:- पशु पालन म ऊन उ पादन का मह वपूण थान है दे श म ऊन का उ पान
1990-91 म 41.20 म लयन कलो ाम था वह बढ़कर 2005-06 म 49.0 म लयन
क ाम तक पहु ंच गया ।
8. अ य योगदान :- पशु पालन े म दूध, अ डा, मांस आ द के मा यम से पोषक त व
मानवीय आहार के लए ह ोट न उपल ध करता है बि क पशु े चमड़ा तथा खाल, र त,
ह डी तथा वसा जैसी क ची साम ी भी उपल ध करता है ।

5.6.2 भारत म पशु पालन े (Cattle Rearing areas in India):

भारत म पशु पालन के े अ य शीतो णु दे श के समान ह ह भारत म पशु पालन के


मु य े पंजाब, ह रयाणा, राज थान, म य दे श, गुजरात और उ तर दे श ह । इन भाग म
वषा क मा ा इतनी नह ं होती क अ स चंत े म भी कृ ष क जा सके अत: पशु पालन धान
यवसाय है । भारत म आ दे श के पशु दुबले व कम दूध दे ने वाले होते है इसके वपर त
शु क दे श म अ धक पशु पाले जाते है ।
भारत म न न ल खत पशु दे श ह :-
1. हमाचल दे शीय े : इसके अ तगत भू टान, नेपाल, उ तराखंड के कुमायु, गढ़वाल
िजले, हमाचल दे श का शमला िजला, कांगड़ा एवं कु लू क घाट तथा ज मु तथा क मीर
सि म लत कये जाते है । इस दे श म भेड़-बक रयां ह मु य पालतू पशु है ।
2. उ तर शु क जलवायु े : इसम पंजाब, ह रयाणा, द ल , राज थान, पि चमी उ तर
दे श, म य दे श के पि चमी भाग सि म लत होते है । यहां मु यत: गाय, ऊँट, घोड़े, ख चर व
गधे अ धक पाये जाते ह । इस भाग म गाय व भस क उ नत न ल पायी जाती है ।

145
3. पूव और पि चमी े : इसम बहार, पं. बंगाल, उड़ीसा, असम, पूव उ तर दे श ,
केरल तथा आ दे श सि म लत कये जाते ह । यहां पर पायी जाने वाल गाय कम दूध दे ने
वाल होती ह । चारे के लए बहु त ह कम भू म बोयी जाती है । इस े म भस व भसे अ धक
पाले जाते ह । इ ह दूध दे ने और खेती म काम करने के लए अ धक योग म लाया जाता है ।
4. म य वषा वाले े : इसम हम म य दे श, आ दे श, पं. त मलनाडू आ द को
सि म लत करते है । यह पर मोटे अनाज म बाजरा, वार आ द मु य फसल ह । दूध के लए
भस यादा पाल जाती है ।
दे श म गाय-बैल क सवा धक सं या म य दे श एवं पि चमी बंगाल रा य म है । इन
दोनो ह रा य म कु ल गाय-बैल क सं या का 20.42% भाग पाया जाता है ।
भसे मु यत: उ तर दे श के साथ-साथ पंजाब, ह रयाणा. आ दे श व पूव बहार म
पाल जाती ह । झारखंड, राज थान, महारा , गुजरात और म य दे श अ य मु ख भस पालक
रा य ह । दे श म भस क मूल सं या का एक चौथाई से कु छ कम अकेला उ तर दे श म पाया
जाता है ।
दे श म कुल भेड़ का 60% भाग मा तीन रा यो तथा आ दे श (34.77%) राज थान
(16.35%) तथा त मलनाडु (9.09%) म पाया जाता है । शेष महारा , कनाटक, उ तर दे श
और ह रयाणा म मु यतः पायी जाती ह ।
मु ख पशु पालन स ब धी अनुसध
ं ान :
भारतीय पशु च क सा ं ान सं थान ,
अनुसध इ जतनगर (बरे ल ), रा य डेयर
अनुसंधान सं थान करनाल (ह रयाणा), के ं ान सं थान, नगर मैसू र, के
य प ी अनुसध य भेड़
अनुसंधान सं थान अ वकानगर (राज थान) एवं के ं ान सं थान,
य भस अनुसध हसार
(ह रयाणा) आ द मु ख पशु पालन स ब धी अनुसध
ं ान ह ।

5.6.3 भारत म पशु ओं क न ल (Cattle Breeds in India):

1. गाय: भारत मे अ धक दूध दे ने वाल गाय क 14 न ल तथा भस क 7 न ले मलती


ह । भारत म चौपाय क न ल मु यत: तीन भाग म बांट जाती है -
1) अ धक दूध दे ने वाल न ल ।
2) सामा य उपयोग वाल न ल ।
3) बोझा ढोने वाल न ल ।
1) अ धक दूध दे ने वाल न ल :
पंजाब क हांसी, ह रयाणा क गर (1,670 ल टर), संधी (1,135 से 1,725 ल टर), साह वाल
(2,625 से 3,175 ल टर) न ल से 1500 से 2,250 ल टर तक दूध ा त होता है । द ल क
मु रा सौरा क जफरावाड़ी और ह रयाणा क रोहतक क भसे अ धक दूध दे ती ह । उ नत न ल
क मुरा भसे अब त दन 20 से 28 कलो ाम तक दूध 7 से 8 माह तक दे ती ह ।
2) सामा य उपयोग वाल न ल :

146
इसम ह रयाणा, ओंगोल धोआलो, कृ णा घाट , थारपारकर तथा कांकरे ज जा त क गाय बहु त
स ह ।
3) बोझा ढोने वाले न ल :
इसम मु य प से बहु त कम दूध दे ने वाल गाय भी होती है पर तु बैल बोझा ढोने यो य होते ह
। मु य प से नागोर , सांचोर कनकथा, मालवी, ह ल कर, खलार पंवार और सीर गाय क
जा तयां ह । भारत म
गाय क मु य न ल न न ह :
1. गर: यह मु य प से दूध दे ने वाल ट-पु ट एवं ल बे ऐंठे सींग वाल न ल है । इस
न ल का मू ल थान गुजरात म गर वन दे श है । यह गुजरात, महारा और राज थान म
मलती है । इससे त दूध काल (325 दन) मे 2000 ल टर तक दूध मलता है ।
2. कांकरे ज : इसका मूल थान क छ क खाड़ी का तट य दे श है । इस न ल का शर र
भार , सींग मोटे तथा बडे होते ह । इससे औसत तदु ध काल (325 दन) म 1800 ल टर दूध
मलता है ।
3. दे यनी : यह न ल हैदराबाद के नकटवत े म मलती है । इसक पीठ सीधी पु े
और पैर मजबूत, कान छोटे तथा सींग मु ड़े हु ऐ और शर र ध बेदार होता है । इसक उ नत न ल
1200 से 1800 ल टर तक दूध दे ती है ।
4. थारपारकर: इस न ल का ज म थान पा क तान के स ध े म है । भारत म
जोधपुर, जैसलमेर और गुजरात के क छ े म पायी जाती है । इसके सींग तथा सर छोटे होते
है । गाय मु य प से दुध के लए पायी जाती है ।
5. साह वाल :- यह न ल मु य प से पा क तान म मॉटगोमर िजले क है । भारत म
पंजाब के करनाल िजले उ तर दे श, म य दे श, बहार तथा द ल रा य म मलती ह । इस
न ल क गाय त दु ध काल म 1350 ल टर तक दूध दे ती है ।
6. मेवाती :- यह न ल उ तर दे श के खेरागढ़ म मलती है । इसका वतरण राज थान के
अलवर, भरतपुर तथा उ तर दे श के मथुरा िजले म वशेष प से पाया जाता ह
7. संधी :- इस न ल का ज म थान पा क तान है, क तु भारत म यह न ल सौरा ,
कनाटक, केरल, उड़ीसा, पंजाब आ द रा य म पाई जाती है । गाय का त ल टर दु ध काल
1800 से 2000 होता है ।
भैस क मु ख न ल न न है:
गायो के अलावा दु ध ाि त के लए भसे अ धक पाल जाती है । इनका दूध अ धक
पौि टक, भार और चकना होता है । सबसे अ धक आ दे श म उ तर दे श, आ दे श और
त मलनाडु म भी भसे पाल जाती ह । भस क मु ख न ल न न है
1. जाफरावाद : न ल सौरा के ग र वन दे श म पायी जाती है । इसका रं ग काला,
सींग बड़े और सर बड़ा होता है । इस कार क न ल तवष 1,900 से 5,000 ल टर तक दूध
दे ती है ।

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2. मु रा : इस कार क न ल मु य प से उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा और द ल म
यह पायी जाती ह । इसका शर र भार , सु ग ठत एवं सर छोटा तथा रं ग काला होता है । इस
न ल क भस त दूध काल म 1800 से 6000 ल टर तक दूध दे ती है ।
3. मदावर : उ तर दे श के इटावा और म य दे श के वा लयर िजल म यह वशेष प से
मलती है । इस न ल से 1500 से 2500 कलो ाम तक दूध ा त होता है ।
भारत म भेड़ क न ल तथा भेड़ पालन े :
भेड़ : भारत म भेड़ व तृत चारागाह े म पायी जाती ह । भारत म लगभग 6.14 करोड़ भेड़
है। ये अ धकतर शीतल और सूखे े म मलती ह । भेड़ को मु यत: दो ि ट से पाला जाता
है -
1. इनसे ब ढ़या क म का ऊन ा त कया जाता है । उ पादन का 40 तशत वदे श का
नयात कया जाता है ।
2. भेड़ मांस के लए भी पाल जाती है पर तु इनक मा ा कम होती है ।
भेड़ पालन के मु ख े :
1. भारत के उ तर े : इस े म अ धक अ छ और सफेद बाल वाल भेड़ पाल जाती
है । भेड़ पालन के मु य े पंजाब म लु धयाना, अमृतसर , प टयाला, ह रयाणा म हसार और
अ बाला िजले, उ तराख ड म गढ़वाल, अ मोड़ा तथा ज मु-क मीर का पवतीय भाग आता है ।
हमाचल दे श क मु य न ल न न ह :
1. गुरैल : यह क मीर क गुरैल तहसील म पायी जाती ह । ये बना सींग वाल होती ह ।
इनसे सफेद ऊन वष म दो बार 6 से 8 माह ा त होती है ।
2. गढ़ या भदरवाह: इस कार क भेड़ ज मू क भदरवाह और क तवार तहसील म पाल
जाती है । इसके मु ँह पर काले या भूरे ध बे होते ह । इनसे वष म तीन बार ऊन काट जाती है ।
इनसे क बल और शाल बनाने के लए अ छ क म क ऊन ा त होती है ।
3. अ य कार क भेड़ : इसम भ खरवाल, करजा आ द न ल क भेड़ पाल जाती है ।
इसम भी भ खरवाल भेड़ क मीर के नचले ढाल तथा क मीर घाट म व पहलगांव तहसील म
पायी जाती ह । इसक ऊन मोट और मह न दोनो ह कार क होती है ।
2. शु क उ तर पि चमी े : भारत के पि चमी शु क े म जो भेड़ पायी जाती ह वे
गम तथा कठोर शीत को भी सहन कर सकती ह ये छोट घास पर ह नभर रह सकती ह । इस
े म पायी जाने वाल भेड़ के बाल का उपयोग गल चे बनाने म कया जाता है ।
पि चमी भाग म न न न ल क भेड़ पायी जाती है :
1. बीकानेर : इस कार क भेड़ मु य प से राज थान, ह रयाणा के सूखे भाग और
पंजाब के फरोजपुर िजले म पायी जाती ह । इनके कान छोटे और सींग नह ं होते, मु ँह लाल या
सफेद होता है । त भेड़ 4 से 8 माह तक ऊन मलती है ।
2. लोह : इस कार क भेड़ राज थान क द णी भाग तथा अमृतसर म पाल जाती ह
। इनक ऊन से मोटे क बल तथा कपडे बनाये जाते है ।

148
3. मारवाड़ी : इस न ल क भेड़ जोधपुर, पाल व बाड़मेर िजल म पायी जाती ह । त
भेड़ के पीछे 1.5 से 2.5 कलो ाम ह के क म का ऊन मलता है ।
3. अ -शु क द णी े :
1. दकनी भेड़: ये मु यत: द णी महारा और कनाटक रा य म मलती है इस कार
क भेड़ से 1.5 कलो ाम ऊन वष भर म ा त होती है ।
2. नेलौर : यह मु य प से त मलनाडु और कनाटक म पायी जाती ह । इनसे सफेद,
भू रा, पील आ द रं ग क ऊन ा त क जाती है । यह भारतीय भेड़ म सबसे ल बी
न ल होती है ।
भारत म ऊन के कु ल उ पादन का लगभग 40 तशत अकेले राज थान से ा त होता
है । शेष उ पादन ज मूक मीर, गुजरात, आं दे श, कनाटक, उ तर दे श व पंजाब से ा त
होता है ।
भारत म भेड़ क न ल सुधार के काय के लए 90 भेड़ जनन के और 1331
व तार के खोले गये है । ह रयाणा के हसार म ि थत फाम ने व भ न रा य को अब तक
4000 से अ धक उ तम न ल के भेड़ जनन के लए उपल ध कराये ह । राज थान म
अ वकानगर एवं सूरतगढ़ म के य भेड़ अनुसध
ं ान सं था खोले गऐ ह ।
ऊँट :
यह म थल य और अध-म थल य पशु है । वशष प से ऊँट म थल य े म
सवार करने और बोझा ढोने के लए इसका उपयोग कया जाता है । यह कई दन तक बना
खाना खाये व जल पीये रह सकते ह । इनका पावं चौड़ा व गदे दार होता है । अत: यह म थल
म भी अ छ तरह दौड़ व चल सकता है । यह कारण है क ऊँट को म थल का जहाज कहा
जाता है ।
ऊँट के बाल से र से-क बल, द रयां आ द बनायी जाती है । चमड़े का उपयोग काठ ,
थैले और तेल रखने क कु ि पयाँ बनाने को कया जाता है ।
भारत म सबसे अ धक ऊँट राज थान म मलते ह । पंजाब, ह रयाणा, गुजरात उ तर
दे श म भी यह पाया जाता है । भारत म मु य प से तीन कार के ऊँट पाये जाते है -
1. मैदानी: जो मु य प से पंजाब तथा उ तर दे श म पाये जाते ह ।
2. म थल : इस कार के ऊँट राज थान के जैसलमेर तथा बीकानेर म पाये जाते ह।
ये काफ मजबूत होते ह ।
3. पहाड़ी ऊँट: इस कार के ऊँट पंजाब के पवतीय े म पाये जाते है ।
राज थान म ऊँट क अलवर, बीकानेर , क छ , जैसलमेर न ल सव तम मानी जाती ह
। एक ऊँट 50 क.मी.तक दन भर म चल सकता है ।
बक रयाँ :
बकर गर ब क गाय समझी जाती है । बकर बहु उपयोगी होती है । इससे दूध, मांस,
चमड़ा और बाल ा त होते है । इनका दूध वा य क ि ट से बड़ा उपयोगी माना जाता है 20
तशत बक रयाँ दूध के लए पाल जाती ह ।

149
1. जमु नापार :- इस कार क बक रयाँ, गंगा, च बल न दय के े म पायी जाती ह ।
इनका रं ग सफेद तथा भू रा होता है । इनके बाल ल बे तथा सींग छोटे होते ह । इनका उपयोग
भार ढोने. मांस और दूध ा त करने के लए कया जाता है । एक बकर से त दन औसतन 5
कलो ाम दूध ा त होता है ।
2. बरबर :- यह मु य प से द ल , ह रयाणा के गुड़गाँव और करनाल िजल तथा यूपी
के इटावा, मथुरा व आगरा मे पायी जाती है । यह 1 से 2 माह त दन दूध दे ती है ।
3. हमालय बकर :- यह हमाचल दे श, पंजाब और क मीर रा य म मु य प से दूध के
लए पाल जाती ह । इस बकर के बाल अ धक मु लायम होते है ।
4. प मीना :- इस न ल क बकर हमाचल े म 3500 मीटर क ऊंचाई तक पाल
जाती है । इससे ा त ऊन से कपड़े तैयार कया जाता ह ।
5. बंगाल :- यह बकर बंगाल म अ धक वषा वाले े म पायी जाती है इनसे दूध कम व
मांस का योग यादा कया जाता है । इनका मांस बड़ा ह वा द ट होता है ।
अ य पशु पालन :
अ य पशु पालन म घोड़े व ट ू ख चर, गधे, मु ग पालन, रे शम क ट पालन को शा मल
कया जाता है ।

5.6.4 पशु ओं क दशा सुधारने के लए सरकार ने न न ल खत योजनाऐं बनायी ह

1. गौशालाएँ :- भारत म लगभग 1000 गौशालाओं म से लगभग 425 गौशालाएँ चु नी गई


ह । जहाँ पशु ओं क दशा सुधार गई ह । सरकार इन गौशालाओं म अ छ न ल के पशु भी
रखती ह । दे श क पहल गौशाला ह रयाणा के रे वाडी िजले म वामी दयान द सर वती के हाथ
से उ घा टत क गई ।
2. ाम के योजना - इस योजना के तहत तीन या चार गाँव क तीन साल से अ धक
अव था वाल लगभग 500 गाय सि म लत क जाती ह । इस योजना का उ े य न ल सुधार
करना है । न ल सु धारने के अ त र त ाम के योजना बछडो के पालन, चारे क यव था
तथा पशु ओं से मलने वाल ब का सहकार ढं ग से ब ध करना है ।
3. पशु ओं क बीमा रय से रोक :- पशुओं को कोई बीमार न हो इसके लए सरकार क और
च क सा के के मा यम से यास कया जा रहा है । रा य तथा संघ रा य े म 26540
पशु च क सालय खोले गऐ है ।
4. उ तम सा ड के - उ तम सा ड के ा ती के लए अभी 125 सरकार फाम है जहाँ
तवष लगभग 5000 बैल उ प न कये जाते ह ।
5. कु छ अ य उपाय न न है -
क) गहन चौपाये वकास प रयोजनाएँ :- इसके अ तगत दु ध का उ पादन बढ़ाने के
127 प रयोजनाएँ काय कर रह ह ।
ख) के य पशु जनन फाम :- पशु ओं क न ल सु धार के लए राज थान, त मलनाडु ,
उड़ीसा आ द रा य म जनन फाम का वकास तेजी से बढ़ाया जा रहा है ।

150
ग) ब ढ़या न ल का आयात :- यूल लै ड से जस और हा ट न फ िजयन न ल का
आयात कर उ ह व भ न रा य म बाँटा जा रहा है ।
घ) चारे व पशु खा यान के लए फाम क थापना :- ज मु-क मीर, क याणी, पि चमी
बंगाल, सू रतगढ हसार और ममीद प ल (आं दे श) म चारा उ प न के फाम
था पत कये जा रहे ह ।
ङ) दुधा पशु ओं क न ल सुधारने म रा य डेयर वकास बोड (NDDB) आन द,
गुजरात एवं खेड़ा डेयर वकास आन द वारा व ता रत योजना एवं शोध तथा
सहयोग कया जा रहा है । इनसे गाँव- गाँव म पशु न ल सुधार हो सकता है ।
अत: सभी योजनाऐं ऐसी ह, िजससे पशु ओं क दशा को सुधारने म मदद मलती है ।
बोध : 2
1. 2003 क पशु गणना के अनु सार भारत म कु ल पशु कतने ह?
2. व व म भारत का पशु धन क ि ट से कौनसा थान है ?
3. न न म से गाय क न ल नह ं ह:
(अ) गर (ब) मु रा (स) कां क रे ज (द) थारपारकर
4. के य भे ड़ अनु सं धान सं थान कह ं पर ि थत है ?

5.7 सारांश (Summary)


भारत क लगभग 70 तशत जनसं या कृ ष काय म संल न है। भारतीय कृ ष क
मु ख वशेषताय जोत का छोटा होना, जीवन नवाह कृ ष, मानसू नी जु आ, जनसं या दबाव,
फसल वै व य, त एकड़ कम उ पादन आ द है । यह क मु य फसल चावल, गेहू ँ चाय,
ग ना, कपास व जू ट है ।
चावल क कृ ष धानत: पि चमी बंगाल, उ तर दे श, उ तराखंड, पंजाब, आ दे श,
बहार व उड़ीसा म क जाती है । चावल का घरे लू यापार अथ यव था म मह वपूण थान रखता
है । गेहू ँ के मु ख उ पादक उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा, म य दे श, राज थान एवं बहार है ।
कपास मु खत: गुजरात, महारा , आ दे श, पंजाब, ह रयाणा एवं राज थान म उ पा दत क
जाती है । उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा, बहार व आ दे श ग ने के मु ख उ पादक रा य है ।
चाय का उ पादन मुखत: असम, पि चमी बंगाल, त मलनाडु , हमाचल दे श व केरल म कया
जाता है ।
ो. अरने ट वोरलॉग को व व म ह रत ां त का ज मदाता माना जाता है । भारत म
ह रत ां त का सू पात 1966 के उपरांत हु आ । इसके फल व प गेहू ँ उ पादन म ती वृ हु ई
तथा अ य उपज क वृ हे तु नया वातावरण बना । ह रत ां त क मु य वशेषताय ह- उ नत
क म क टनाशक का योग, आधु नक कृ ष यं का योग, बहु फसल णाल , म सु वधाय,
मृदा पर ण , भू संर ण, कृ ष श ा एवं शोध आ द है । ह रत ां त से उ पादन म आ चय
जनक वृ तो हु ई ले कन अ य नई सम याय उ प न हो गई जैसे- फसल वशेष का ह

151
उ पादन, म ी क उ पादन मता के हलास, जल भाव व खारापन, े ीय असंतु लन व
यि तगत वएषमताय. आ द ।
कृ ष दे श से अ भ ाय ऐसे दे श से है जहाँ कृ ष भू म के उपयोग, फसल के कार व
उ पादन व ध म सम पता मलती है । डा. र धावा व डा. आर.एल. सह वारा भारत के कृ ष
दे श नधारण का यास सराहनीय है ।
भारतीय कृ ष म पशु संसाधन भी मह वपूण भू मका नभाते है । दे श म गाय-बैल क
सवा धक सं या म य दे श एवं पि चमी बंगाल म है । भसे मु यत: उ तर दे श, पंजाब,
ह रयाणा, आं दे श व बहार म पाल जाती है । भेड़ धानत: आ दे श, राज थान व
त मलनाडु म पायी जाती है । बरे ल , करनाल, अ वकानगर हसार आ द म मुख पशु अनुसंधान
सं थान है । ऊँट सवा धक राज थान म मलते है । पशु ओ क दशा सुधार हे तु गौशालाय, ाम
के योजना, उ तम वैल के , पशु जनन फाम, रा य डेयर वकास योड आ द क थापना
क गई है ।

5.8 श दावल (Glossary)


कृ ष  सामा य प म म ी क जुताई करके उसम फसल का उ पादन
कया जाना कृ ष कहलाता है ।
कृ ष  ऐसा दे श जहाँ कृ ष भू म के उपयोग, फसल के कार तथा उनक
दे श उ पादन व ध म, सम पता मलती है ।
बहु पासल  एक ह खेत म वष म दो या अ धक फसल का उगाया जाना ।

5.9 स दभ थ (Reference Books)


बोध न-1
1. गु त व जैन : भू गोल का प रचय एवं भारत का भू गोल, मॉडन पि लशस, जाल धर
- 2005
2. खोखर : भू गोल का प रचय एवं भारत का भू गोल, जीवन संस पि लकेश स,
नई द ल - 2006
3. खु लर : भू गोल का प रचय एवं भारत का भू गोल, सर वती हाऊस ा. ल. नई
द ल - 2007
4. जैन : भारतीय अथ यव था, वी.के. पि लकेश स, अ बाला - 2003-04
5. टे ट ट कल अब े ट ऑफ इ डया - 2001 से 2007
6. मामो रया : भारत का बृहत ् भू गोल, सा ह य भवन पि लकेश स, आगरा 2008
7. आ थक समी ा : 2006-07

5.10 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. 35 तशत

152
2. ज़ोत का छोटा होना, मानसू न का जु आ, फसल वै व य, त एकड़ उजप कम
3. (ब)
4. (द)
5. ो. अरने ट बौरलॉग
6. कृ ष दे श से अ भ ाय ऐसे दे श से है जहाँ पर कृ ष भू म के उपयोग, फसल के
कार तथा उनक उ पादन व ध म सम पता मलती है ।
7. ो. र धावा एवं ो.आर.एल. संह
बोध न-2
1. करोड़
2. वतीय
3. (ब)
4. अ वकानगर, मालपुरा (राज थान)

5.11 अ यासाथ न
1. भारतीय कृ ष क वशेषताओं का व तारपूवक वणन क िजए।
2. भारत म चावल के उगाने क दशाएँ उपज एवं ववरण क ववेचना क िजए।
3. गेहू ँ क कृ ष के लए अनुकूल प रि थ तय का वणन क िजए और भारत म गेहू ँ क कृ ष
का उ लेख क िजए।
4. कपास क उपज के लए कौन-कौन सी भौगो लक प रि थ तयाँ अनुकू ल ह? भारत म
इसके उ पादन तथा वतरण का व तृत वणन क िजए ।
5. कपास क कृ ष के लए अनुकूल प रि थ तय का वणन क िजए और भारत म कपास
क कृ ष क ववेचना क िजए ।
6. ग ने क कृ ष के लए कौन-कौन सी भौगो लक प रि थ तय अनुकू ल ह? भारत म ग ने
के उ पादन तथा वतरण का वणन क िजए ।
7. भारत म चाय के उ पादन, वतरण तथा यापार क ववेचना क िजए तथा इसक कृ ष
के भौगो लक कारक क या या क िजए।
8. भारत म पैदा होने वाले मु ख पेय पदाथ के नाम गनाते हु ए कसी एक पेय पदाथ हे तु
आदश भौगो लक दशाओं वतरण तथा यापार का वणन क िजऐ ।
9. न न ल खत का कारण बताइए :-
1. चावल मु यत: नद डे ट क फसल है ।
2. गेहू ँ मु यत: सतलुज गंगा के मैदान म उगाया जाता है ।
3. भारत क दो तहाई चाय असम व पि चमी बंगाल म होती है।
4. महारा कपास का मु य उ पादक है ।
5. चाय का आ थक मह व अ धक है ।
10. भारतीय अथ यव था म पशु स पदा के मह व एवं पशुओं क वतमान ि थ त क
समी ा क िजए।

153
11. भारत म गाय क मु य न ल के वतरण ा प का वणन किजए ।
12. भारत म भस क मु ख न ल के वतरण ा प का वणन क िजए ।
13. ट पणी ल खए :
1. भारत के मु य पशु पालन े ।
2. भेड़ और बक रय क उ नत न ल एवं वतरण ा प ।
3. ऊट क क म एवं वतरण ा प ।
4. पशु धन सु धार के उपाय ।

154
इकाई 6 : सू खा और बाढ़ (Drought and Flood)
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 सू खा
6.3 सू खे के कार
6.4 सू खा पड़ने के कारण
6.5 दे श म मु ख सखा वष
6.6 सू खा भा वत े
6.7 सू खे का भाव एवं सम याएँ
6.8 सू खे का समाधान
6.9 बाढ़
6.10 बाढ़ के कारण
6.11 बाढ़ भा वत े
6.12 बाढ़ का भाव एवं सम याएँ
6.13 बाढ़ से होने वाल त
6.14 बाढ़ का समाधान
6.15 बाढ़ नयं ण स ब धी काय
6.16 सारांश
6.17 श दावल
6.18 संदभ थ
6.19 बोध न के उतर
6.20 अ यासाथ न

6.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप समझ सकगे -
 सू खा के कार, सू खा से उ प न सम याएँ तथा समाधान के लए सुझाव।
 बाढ़ के कारण, भा वत े , सम याएँ तथा समाधान के लए सुझाव ।
 सू खा व बाढ आपदा ब धन के वषय म जानकार ।

6.1 तावना (Introduction)


सू खा जल क कमी का प रणाम होता है।यह जल धान प से वषा से ा त होता है ।
वषा वायुम डल तथा म ी क नमी एवं धरातल के जल ोत को बनाये रखती है , िजससे संपण

जैव क आव यकताओं क पू त होती है । वषा न होने अथवा आव यकता से बहु त कम होने पर
सू खे क ि थ त बन जाती है, प रणाम व प वन प तयाँ सू खने लगती है और ा णय के लए
जल क कमी हो जाती है । जलाभाव या सू खा उस ि थ त का योतक है । िजसम अनावृि ट के
कारण भू म क सतह पर एवं भू गभ म पानी का नता त अभाव उ प न हो जाता है । सू खा एक

155
ाकृ तक आपदा है । िजसका जन-जीवन तथा औ यो गक जगत पर बहु त तकूल भाव पड़ता
है ।

6.2 सू खा (Drought)
सू खा एक ाकृ तक संकट है और ाचीनकाल से ह एक च ता का वषय है । हमारे.
दे श म तवष कह ं न कह ं सूखा पडता है ले कन संपण
ू दे श म एक साथ सू खा कभी नह ं पड़ता
। दे श म ऐसे बहु त कम े ह िज ह सू खे का सामना नह ं करना पड़ता । इस ि ट से भारत
का पूव तथा उ तर -पूव े अव य भा यशाल है जहाँ सूखे क संभावना बहु त ह कम रहती है
। शेष भारत नर तर पड़ने वाले सूखे क सम या से सत रहता है । सू खा अब एक ाकृ तक
आपदा के साथ-साथ य से मानवीय याकलाप का तफल माना जाने लगा है । कृ त के
नर तर असी मत दोहन से वातावरण म असाम यक प रवतन होता जा रहा है । हमारे दे श म
नर तर पडने वाला सू खा एक सीमा तक उसी का प रणाम है । आज जलवायु प रवतन क
सम या से न केवल भारत अ पतु संपण
ू व व के दे श च ततन है । इस सम या के समाधान के
लए अनेक दे श यासरत है ।
इ तहास सा ी है क हमारे दे श को सू खे क ि थ त का अनेक बार सामना करना पड़ा है
। आज से लगभग 2000 वष पूव मौय युग के महान ् दाश नक चाण य ने सू खे से भा वत
जनता को राहत उपल ध कराने के वषय म रा य के काय और दा य व का वशद वणन कया
है । मु गलकाल न शासक वारा भी सूखा से लोग को बचाने के लए भावशाल उपाय कये
जाते थे । जगह-जगह बावड़ी व तालाब इ या द का नमाण इसके सूचक ह । राज थान म ऐसे
अनेक उदाहरण मौजू द ह । शु क े म जनसं या क वृ त जलाभाव के कारण ह पाई जाती
है । 19वीं शता द म दे श म -लगातार अकाल क ि थ त से ववश होकर टश सरकार ने
1878 ई. म एक आयोग का गठन कया िजसने दु भ सं हता क परे खा तु त क । यह
सं हता थानीय तर पर कु छ उपयोगी अव य स हु ई थी ले कन बड़े अकाल म यह यव था
कारगर नह ं हु ई । वष 1943 के बंगाल के अकाल म हजार लोग मारे गये जो क अकाल आपदा
ब ध, णाल के वफल होने का एक मु ख उदाहरण है । गत 50 वष म भारत म 14 से
अ धक बार भीषण सू खा पड़ा है िजनम व 1987 का सूखा सबसे भीषणतम सू खा था िजसने क
दे श के आधे से अ धक भाग को अपने चपेट म लया था ।
जल के अभाव के संचयी भाव से सू खा का ज म होता है तथा इसके कोप से अकाल
क ि थ त उ प न हो जाती है । ात य है क द घकाल तक शु कता म वृ के कारण उ प न
होने वाले सू खे का वषा क मा ा सामा य औसत वा षक वषा से उसका वचलन तथा व भ न
उ े य के लए जल क थानीय मांग से गहरा स ब ध होता है । सू खे के लए वषा क मा ा
उतनी िज मेदार नह ं होती िजतनी वषा क अ नय तता िज मेदार होती है । सामा यतया सूखे क
प रभाषा जमीन म नमी क उपल ता के आधार पर द जाती है िजसे आ ता सू चकाँक के प म
मापा जाता है । इसके अनुसार सूखा तकू ल आ ता सूचकॉक अथवा तकूल जल संतल
ु न को
कट करता है । य द थानीय फसल क सामा य आव यकताओं क पू त के लये वषा जल
उपल ध नह ं होता, उसे सू खे क ि थ त कहा जा सकता है । इस तरह से सूखे क सम या
मू ल प से कसी े वशेष क सम या होती है जो उस थान पर उगाई जाने वाल फसल के

156
लए जल क आव यकता पर नभर है । कसी भी े म सू खे क घोषणा वहाँ होने वाल कम
वषा के कारण फसल को हु ई त के आधार पर रा य सरकार वारा वत प से क जाती
है । उदाहरण के लए पि चमी राज थान म जहाँ बाजरा क फसल अ प वषा होने पर भी
सफलतापूवक उगा ल जाती है वह ये मापद ड पूव भारत के पि चमी बंगाल के मापद ड से पूर
तरह भ न है य क वहाँ धान क फसल के लए अ धक पानी क आव यकता होती है ।
सू खे को प रभा षत करना बहु त क ठन है । इसके नधारण म वषा एक मु ख वचार है
तथा प सूखे क प रभाषाओं एवं सूचकांको म सौ यक व करण तापमान, वा पीकरण आ ता, वायु,
मृदा , आ ता, स रत वाह वन प त आ द वचार को भी सि म लत कया जाता है । उपयु त
वचार के आधार पर क तपय प रभाषाएँ न न ल खत ह -
''सू खे क ि थ त उस समय उ प न होती है जब वा षक वषा सामा य वा षक वषा क
75 तशत या उससे कम तथा मा सक वषा सामा य मा सक वषा क 60 तशत या उससे
कम होती है ।
- सी.जी.बे स 1925
''जब वा षक एवं मा सक वषा सामा य वषा के 85 तशत से कम होती है तब सू खे क
ि थ त उ प न होती है ।
- जे.सी.होयट, 1936
''सू खे के समय एक स ताह तक वषा सामा य क आधी या उससे कम होती है । ''
- डी.ए.रामदास, 1950
भारत के स दभ म सू खा को प रभा षत करना अनेक कारण से क ठन है य क
भारतीय कृ षकाय का आधार जल मौसमी वृ त से स बि धत होता है । भारतीय सू खे का
य भाव खर फ क फसल पर पड़ता है । मानसू नी वषा के नह ं होने से अथवा कम होने से
सू खे क ि थ त उ प न हो जाती है तथा खर फ फसल न ट हो जाती है । भारतीय मौसम
व ान वभाग (आई.एम.डी.) के अनुसार उस दशा को सूखा कहते ह जब कसी भी े म
सामा य वषा से वा त वक वषा 75 तशत से कम होती है । सरल श द म कह सकते ह क
सू खा असामा य मौसम वाल समयाव ध है, िजसम वषा का पूण या लगभग अभाव होता है
िजससे वन प तयाँ और फसल सू खने लगती ह ।

6.3 सू खे के कार (Types of Drought)


मू ल प से सूखे को 4 े णय म रखा जाता है -
(1) मौसम वै ा नक सू खा : जब वा षक वषा ल बी अव ध तक बहु त कम होती है तो उसे मौसम
वै ा नक सूखा कहा जाता है । उदाहरण के लए मानसू नी वषा का सामा यसे 59 तशत कम
होना ।
(2) जल वैइग़ नक सूखा : जब भू मगत जल तर अ य धक नीचे चला जाता है और न दय आ द
जलाशय से सामा य ज रत क पू त नह होती तो उसे जल वैइग़ नक सू खा कहा जाता है ।

157
(3) कृ षगत सू खा : मौसम वै ा नक और जल वै ा नक सूख के कारण जब पौध क जड़ म
पयापत नमी नह ं मलती तो उसे कृ षगत सू खा कहते है । कृ षगत सूखे का ह सवा धक
समािजक व आ थक भाव पड़ता है।
(4) पा र थ तक य सूखा : जब पानी क कमी से ाकृ तक पा र थ तक य तं क उ पादकता घट
जाती है और ाकृ तक पयावरण त त हो जाता है तो इसे पा रि थ तक य सू खा कहा जाता
है।
गहनता के आधार पर सू खे को तीन भाग म वभािजत कया जाता है:
1. अ य त सू खा े : यह कु ल सू खा भा वत े के 12 तशत भाग पर फैला है ।
2. बल सूखा े : इसका व तार 42 तशत भाग पर मलता है ।
3. म यम सू खा े : इसके अ तगत कु ल सू खा भा वत े का 46 तशत भाग सि म लत
कया जाता है ।

6.4 सू खा पड़ने के कारण (Causes of Drought)


वषा क कमी, शु क मौसम क ल बी अव ध, भा वत े का बड़ा आकार, संचाई
सु वधाओं क कमी, जनसं या क ती वृ -दर, अकु शल जल ब ध नी त, उ योग और कृ ष
े वारा भू मगत जल का अ धा-धु ध योग, बड़े पैमाने पर वन का हू लास आ द सू खे क
संभावना और गहनता को बढ़ाने वाले कारक है । य य प सू खा पूण प से ाकृ तक आपदा है
ले कन मानव के कृ य भी इसके लए िज मेदार ह । इस कार सूखा कृ तज य के साथ
मानवज य भी है ।
ाकृ तक कारण : इसके अ तगत वषा क कमी, वषा क अ नय मतता, मानसू न क वभंगता,
शु क मौसम क ल बी अव ध, म ी क संरचना व वभाव आ द को सि म लत कया जाता है ।
(i) अपया त वषा का होना : भारत म वषा का वतरण बहु त ह असमान है । यहाँ क औसत
वा षक वषा 109 सेमी. मानी गई है । दे श के कु ल े फल का 49.6 तशत ऐसे े है जहाँ
वा षक वषा का औसत 76 सेमी. से कम है । आ दे श, बहार, गुजरात, ज मु-क मीर, केरल,
म य दे श, छ तीसगढ़, त मलनाडु , महारा , कनाटक, उड़ीसा, पंजाब, ह रयाणा, राज थान,
उ तर दे श, उ तराखंड और द ल रा य के अ धकांश भाग म वषा कम होती है । यह े सूखे
क आंशका से सदै व सत रहते है । पि चमी राज थान व पि चमी गुजरात म वषा क नता त
कमी से अकाल क पुनरावृ त रहती है । मानसू न हवाएँ तेश म कस वष कतना स य रहे गी,
यह कह पाना बहु त क ठन है । सू खे क उ प त वषा क कमी के कारण अथवा वषा नह ं होने से
होती है । इससे वन प तयाँ सू ख जाती है ओर ा णय के लए पेयजल क कमी हो जाती है ।
यह ि थ त भीषण अकाल का कारण बनती है ।
(ii) वषा क अ नय मतता दे श के अ धकांश े म वषा क अ नय मतता सदै व व यमान रहती
है । िजन े म वषा म वषा अ धक होती है वह अ नय मतता का तशत कम रहता है
ले कन जैसे-जैसे वषा क मा ा कम होती जाती है, वैस-े वैसे वषा क अ नय मतता बढ़ती जाती है
। वषा क प रवतनशीलता का तशत सबसे कम पूव भारत म (20 तशत) तथा सबसे अ धक

158
पि चमी भारत (50 तशत) म पाया जाता है । यह नय मतता अ धकतम व यूनतम वषा वाले
े म अ धक भावशाल नह ं होता य क जहाँ एक और अ धकतम वषा वाले े म सदै व ह
फसल के लए जल पया त मा ा म ा त हो जाता है वहाँ दूसर ओर शु क े म फसल
उगाने क लए संचाई क पहले से ह समु चत यव था कर लये जाने के कारण उ पादन पर
बहु त अ धक वपर त भाव नह ं पड़ता । म यम वषा वाले े म वषा क ं अ नय मतता फसल
उ पादन पर एकदम भावकार स होती है । ऐसा वशेष प से 50 से 100 सेमी. वषा वाले
े म होता है । यह थोड़ी सी वषा कम होने पर अकाल पड़ने क संभावना बढ़ जाती है ।
ऊपर व म य गंगा का मैदान, ाय वीप भारत ् के अ धकांश भाग म पडने वाला सू खा
ी मकाल न द.पि चमी मानसू न क अ नय मतता का प रणाम है । यह ं भाग भारत के अकाल
े कहलाते है । (मान च 6. 1)
इसी कार वषा क अ नि चतता का भाव भी सू खे क उ पि त पर पड़ता है । कभी
मानसू न समय से पूव, कभी समय पर तो कभी कई स ताह क दे र से आता है । ऐसा अनुमान
है क दस वष म से केवल दो वष मानसू न समय पर आता है वह समय पर समा त होता है
शेष आठ वष म उसका आने जाने का समय अ नि चत रहता ह ।
(iii) मानसू न वभंगता : मानसू नी वषा लगातार नह ं होती अ पतु क- ककर हु आ करती है । दो
वष के बीच म यह अ तर कभी-कभी जु लाई व अग त के मह ने म बहु त ल बा हो जाता है ।
इससे खड़ी फसल सू ख जाती है और कसान को बहु त त उठानी पड़ती है । कृ ष ज य सूखे
पर मानसू न क वभगता का सवा धक भाव पडता है ।
(iv) शु क मौसम क ल बी अव ध : भारत म 4 मह ने वषा क ऋतु रहती है । शेष 8 मह ने
शु क यतीत होते है । ी मकाल न द णी-पि चमी मानसून से (जू न से सत बर) दे श क कुल
वषा का 75 तशत ा त होता है । इसी समय संपण
ू दे श म वषा होती है । रबी क फसल के
लए संचाई आव यक हो, जाती है । शीतकाल न वषा' का े बहु त यापक नह ं है ।
(v) म ी क संरचना व वभाव : येक थान पर एक समान संरचना वाल म ी नह ं पायी
जाती है । कु छ म ी म अ धक दन तक नमी धारण करने क मता होती है जैसे चकनी म ी
और कु छ म ी म नमी धारण क मता अ पतम होती है जैसे रे तील म ी या मोटे कण वाल
म ी । एक ह े म समान वषा होने पर भी कसी े क फसल हर भर बनी रहती ह,
जब क उसी े म ि थत मोटे कण वाल म ी क फसल कम वषा होने पर सू ख जाती है ।
(vi) अल- नन भाव : मौसम वै ा नक ने वीकार कया है क अल- ननो का मानसू न पर गहरा
भाव पड़ता है । अल नन एक ऐसी प रघटना है जो शा त महासागर के तापमानो म भार
प रवतन से स बि धत है । यह मौसमी प रघटना 5 से 10 वष के अ तराल पर होती है तथा
व व म सूखा, बाढ़ तथा अ य मौसमी अ तरे क उ प न करती है । इसके भाव से पी तथा
म यवत शा त महासागर य वीप म भार वषा होती है जब क भारत, द णी पूव ए शया,
ऑ े लया आ द म सू खा पड़ता है ।
मानवीय कारक:

159
सू खा क गहनता को बढ़ाने वाले मानवीय कारक म वन वनाश, भू मगत जल का
अ धका धक मा ा म दोहन, बांधो व नहर का नमाण, जलच म अवरोध जल ोत का लु त
होना, जनसं या म वृ आ द को सि म लत कया जाता है ।
(i) वन वनाश : वन ाकृ तक पा रि थ तक तं या तं के जै वक संघटको म से एक मह वपूण
संघटक है तथा पयावरण क ि थरता तथा पा रि थ तक य संतल
ु न उस े क वन संपदा क
दशा पर आधा रत होता है । औ यो गक एवं आ थक मानव ने अपनी आव यकताओं क भू म के
लए वन क अ धाधु ध कटाई क है िजससे संपण
ू दे श का प रतं बदल गया है । हमालय े
म हमरे खा क ऊँचाई बढ़ रह है । सततवा हनी न दयाँ सू ख रह ह । राज थान म धीरे-धीरे
बंजर भू म के े फल म वृ हो रह है । गंगा नद म पानी का तर काफ गर गया है । जहाँ
कभी सू खा नह ं पड़ता था वहाँ सूखा पड़ना आम बात हो गई है । वन वायुम डल म नमी बनाये
रखने म सहयोग करते ह । इनके वनाश से बाढ़ एवं सू खे क घटनाओं म वृ हु ई है ।
(ii) गरता जल तर : घरे लू उपयोग एवं फसल क संचाई के लए सतह के नीचे से जल के
भार मा ा मे न कासन एवं दोहन से दन- त दन भू मगत जल- तर गरता जा रहा है । दे श
के अनेक भाग म भू मगत जल का दोहन उनक वा षक बहाल मता से अ धक हो रहा है ।
भू मगत जल का भ डारण एक नय मत, द घका लक ाकृ तक म द या है । इस या म
वषा, जलाशय, नद का जल, धीरे -धीरे रसकर भू मगत जल म प रवतन होता है । भू गा भक
जल के वशाल ोत पंजाब, ह रयाणा, उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल एवं तट य मैदान म
अनुमा नत कये गये ह । शेष भारत म भू मगत जल क ि थ त बहु त अ छ नह ं ह । शु क
े म भू मगत जल बहु त गहराई पर मलता है । भू मगत जल तर ऊपर रहने से वन प तयाँ,
कृ ष फसल तालाब , झील , न दय , आ द को जीवनदान मलता रहता है । अ धक दोहन से
जलाशय, न दय आ द म पानी क कमी हो जाती है । िजससे सू खे क गहनता म वृ होती है
। दे श के अनेक भाग म भू जल तर म तेजी से गरावट आने तथा सू खे कु ओं क बढ़ती सं या
इस बात के माण है क हम भू जल दोहन क सु र त सीमा को पार कर गये ह ।
(iii) बांधो तथा नहर का नमाण : नर तर बहने वाल न दयाँ न केवल अ त र त जल रा श को
वहन करती है अ पतु अपने माग के भू मगत जल ोत को भी भरती चलती ह । बांधो एवं नहर
के नमाण से जहाँ बाँधो के ऊपर भाग म संचाई आ द सु वधाओं का व तार होता है वह ं दूसर
तरफ नद के नचले भाग म भू मगत जल तर नीचे चला जाता है । महारा म येरला नद
पर न मत बाँध के कारण नचले े के सभी कु एँ सू ख गये । इसी कार यमु ना नद से अ धक
सं या म नहर नकालने के कारण गम म यह नद लगभग जल वह न हो गई है । इससे
समीपवत े के भू मगत जल तर काफ गहराई तक नीचे चले गये ह ।
(iv) जल च म अवरोध : मनु य अपनी याओं वारा जलयच को थानीय तर से लेकर
ादे शक तर तक भा वत तथा प रव तत कया है । इस प रवतन के प रमाण म पया त
अ तर होता है । इन प रवतन से उ प न कुछ भाव लघु तर य तथा नग य होते है जब क कु छ
भाव वृह तर य तथा लयकार होते है ।
जलच म मानवीय याओं के कारण उ प न अवरोध से वायुम डल य दशाओं पर
भाव पड़ता है िजससे सूखे क संभावना बढ़ जाती है ।

160
(v) जल ोत का लु त होना : कृ ष भू म के व तार के कारण भू म उपयोग म प रवतन हु आ
है । नद , नाल तथा तालाब म जहाँ वषा का जल एक त होता था वहाँ अब कृ ष होने के
कारण वषा का जल अनाव यक प से बह जाता है । इससे एक तरफ अ तवृि ट से बाढ़ क
ि थ त उ प न होती है वह ं दूसर तरफ जल ोत के लु त होने से भू मगत जल के तर म
गरावट आती है । ये जल ोत वायुम डल क नमी बनाये रखने म सहयोग दे ते ह । जल ोत
वायुम डल क नमी बनाये रखने म सहयोग दे ते है । जल ोत क कमी से सू खे क पुनरावृि त
म वृ हो जाती है ।
(vi) जनसं या म वृ : 1901 म भारत क जनसं या लगभग 24 करोड़ थी जो 2001 म
बढ़कर 103 करोड़ हो गई । इतनी बड़ी जनसं या के भरण-पोषण के लए ाकृ तक संसाधन का
दोहन बड़े पैमाने पर जहाँ कया गया वह ं दूसर तरफ कृ ष के े म यापक व तार हु आ ।
इन याओं से ाकृ तक पा रतं पर दबाव बढ़ा िजसके प रणाम व प बाढ़-सू खा क आवृि त म
वृ हु ई । बना ऋतु के मौसम म उगाई जाने वाल कृ ष फसल के कारण भी सूखे क ि थ त
उ प न हु ई है ।
इस कार सं ेप म कहा जा सकता है क भारत म मानसून क अ नि चतता, असमान
व पया त वषा सू खे का मु ख कारण है । वन वनाश, म ी का अपरदन, अ नयं त पशु चारण,
कृ ष यो य भू म का व तार, भू मगत जल तर म गरावट आ द ऐसे कारण है जो सूखे से होने
वाले भाव को यापक बना दे ते ह ।

6.5 सू खा भा वत े (Drought Affected Areas)


सू खा जल क कमी का प रणाम है । भारतीय वषा क कृ त मानसू नी है और
अ नि चतता भारतीय मानसून क मुख वशेषता । वषा क कमी ाय: दे श के येक रा य म
कभी न कभी अव य होती है ले कन मानसू न का सु खद पहलू यह है क समू चे दे श म एक साथ
वह कभी वफल नह ं होता । भारत क लगभग 28 तशत कृ ष भू म पर सू खे का भय बना
रहता है । सूखा एक ऐसी दै वीय आपदा है जो मानव स हत अनेक जीव को थान प रवतन के
लए बा य करती है ।
सू खा का सवा धक भाव कृ ष पर ह य प से पड़ता है और भारतीय कृ ष व
फसल का कार वषा क मा ा का अनुकरण करती है जैसे अ धक वषा वाले े म चावल व
कम वषा वाले े म बाजरे क फसल मु ख होती है । य द हम इसे दूसरे श द म कहे तो कह
सकते ह क वषा क मा ा और व भ न कार क फसल का आपस म सु दर सम वय है । यह
सम वय जब बगड़ता है तो सूखे क भंयकर ि थ त उ प न हो जाती है । भारत के कुल
भौगो लक े फल का लगभग 19 तशत भाग सू खे से भा वत है । इस े म दे श क
लगभग 12 तशत जनसं या नवास करती है ।
एक अनुमान के आधार पर दे श का लगभग 26 तशत कृ ष े सूखे क आंशका से
सत रहता है । भारत मे सू खे से ाय: भा वत होने वाले े राज थान, गुजरात, बहार,
झारख ड का पठार भाग, उ तर दे श का बु दे लख ड े , मराठवाड़ा, तेलगांना रायलसीमा तथा
उड़ीसा म कालाहा डी और समीपवत े ह ।

161
सू खे क ि ट से भारत म तीन ऐसे े ह िज ह सूखा त े के अ तगत रखा जा
सकता है । ये े (मान च 6.1) न न ल खत है :-
(अ) म थल य एवं अ म थल य े : यह े अहमदाबाद, कानपुर तथा जाल धर को आपस
म जोडने वाल रे खा के पि चम म ि थत है । इस म डल के अ तगत संपण
ू राज थान तथा
गुजरात, ह रयाणा. पंजाब, द णी पि चमी उ तर दे श पि चमी तथा म य दे श के पि चमी एवं
उ तर दे श, पि चमी तथा म य दे श के पि चमी एवं उ तर पि चमी सीमा त भाग को
सि म लत कया जाता है । यह म डल लगभग 6 लाख वग मी े पर फैला है । यह वषा
नहायत कम होती है । औसत वा षक वषा 35 से 75 सेमी. तक होती है पर तु सु द ूर पि चमी
रे ग तानी भाग म 35 सेमी. से भी कम वषा होती है । वा तव म पंजाब तथा ह रयाणा म सू खे
का कोई वशेष भाव नह पड़ता य क यहाँ पर संचाई क पया त यव था है पर तु िजन े
म संचाई क सु वधाओं का अभाव है वह ं पर च ड सू खे के कारण अकाल तथा भू खमर क
ि थ त उ प न हो जाती है

मान च 8.1 सू खा भा वत े
(ब) पि चमी घाट म ि ट छाया वाले े : पि चमी घाट क पहा ड़य के पूव म वृि ट छाया
दे श ि थत है । अरबसागर य मानसू न पि चमी घाट क पहा ड़य के सहारे उठकर पि चमी भाग
म वषा तो कर दे ती है ले कन जब ये हवाएँ पि चमी घाट को पार करके पूव म पहु ँ चती है तो
वषण क मता कम हो जाती है । यह भाग ाय: सूखा त रहता है । यह े लगभग 4 लाख
वग क.मी.पर व तीण है । लगभग 300 क.मी.क चौड़ाई म फैले इसे सू खा भा वत े के
अ तगत द णी-पि चमी आ दे श पूव कनाटक (पि चमी घाट के पूव म ि थत) तथा द णी
162
पि चमी महारा (पि चमी घाट के पूव म ि थत) को सि म लत कया जाता है । यहाँ पर
औसत वा षक वषा 75 से ट मीटर से कम है ।
(अ) अ य े : भारत के व भ न भाग म बखरे हु ए कुछ छट-पुट े भी है ाय: सू खे से
भा वत होते रहते ह । वैगाई नद के द ण म ि थत त नेवाल जनपद, कोय बटू र े ,
बहार ा त का लामू े , पि चमी बंगाल का पु लया जनपद , उड़ीसा का कालाहांडी े मु ख
ह । इस क ण सू खा े का व तार लगभग 1 लाख वग कलोमीटर े पर पाया जाता है ।
संचाई आयोग के अनुसार जहाँ 75 से ट मीटर से कम वषा होती है, ऐसे िजलो क
सं या 77 है । दे श के 50 िजल म सू खे क बल संभावना हमेशा बनी रहती है और 22 िजले
ऐसे ह जो सदै व सू खा से सत रहते ह । इन सभी िजल का व तार राज थान, गुजरात,
कनाटक म य दे श, महारा व उ तर दे श म वशेष प से पाया जाता है । उ तर पूव रा य
पि चमी व पूव पबंगाल तथा उड़ीसा रा य के अ धकांश भाग सू खा भाव से मु त है । ता लका
6.। म भारत के सूखा त े को रा यानुसार दशाया गया है ।
सू खा वा तव म द णी पि चमी ( ी मकाल न) मानसू न क प रवतनशीलता के कारण
पड़ता है । िजन े म वषा क प रवतनशीलता िजतनी अ धक है वहाँ सूखे क बल आंशका
भी अ धक रहती है । ( च 6.2)
संचाई आयोग (1972) के अनुसार भारत के सू खा त े को दो भाग म वभािजत
कया गया है ।
(अ) सामा य से 25 तशत तक वषा क प रवतनशीलता वाले सू खा त े : ऐसे े जहाँ
वषा क अ नि चतता सवा धक पाई जाती है और वषा क औसत वा षक मा ा 50 सेमी. से भी
कम होती है, इसके अ तगत सि म लत ह । पि चमी राज थान तथा पि चमी गुजरात इसके
सबसे अ छे उदाहरण ह ।

मान च 6.2 वषा क प रवतन शीलता

163
ता लका 6.1
भारत: रा यानुसार सू खा भा वत े
रा य का नाम भा वत भा वत िजल का कु ल सू खे से भा वत रा य का कुल
िजलो क े फल (वग क .मी.म) े भा वत े फल
सं या (वग क .मी.म) का तशत
1. आ दे श 8 12113.03 32839.05 11.93

2. बहार व झारख ड 6 433384.50 - -

3. गु जरात 11 1212338.90 8338.50 18.85

4. ह रयाणा 4 16587.85 8338.50 18.85

5. ज मू क मीर 2 15999.30 2407.60 30.01


6. कनाटक 14 152163.33 57645.54 30.05

7. म य दे श व छ तीसगढ़ 11 87219.525 37307.93 12.10

8. महारा 9 123767.05 57664.70 18.73


9. राज थान 13 218945.50 194203.27 56.74

10. त मलनाडु 8 840.90 7451.66 5.72

11. उ तर दे श 6 43033.10 4609.40 1.93

12. प.बंगाल 3 26720.80 - -

कु ल 95 1081131.33 511228.64 15.55

6.6 दे श म मु ख सू खा वष (Prominent years of Drought in


India)
भारत म सू खा तता तथा अकाल पड़ने का एक ल बा इ तहास रहा है । 1770 ई. म
बंगाल, 1826 ई. उ.पूव भारत, 1866 ई. म उड़ीसा तथा 1876-77 ई. म ाय वीपीय भारत
का अकाल (गुजरात, महारा , आ दे श त मलनाडु के अपनी भीषणतम ि थ त के लए वशेष
उ लेखनीय रहे ह । वतं भारत म 1979,1982,1987, 2000 ई. अकाल आपदा त रहे ह ।
इन सु खा वष का हमार अथ यव था पर बहु त वपर त भाव पड़ा । ता लका 6.2 म भारत म
पड़ने वाले मु ख सू खा-वष को द शत कया गया है ।
ता लका 6.2
भारत : भीषण सू खे के वष
वष थान े णी
1877 2 आपदा त
1899 3 आपदा त
1918 1 आपदा त
1987 4 घोर आपदा त
वैसे तो भारत म मानसू न क वफलता के कारण कसी भी े म सू खा पड़ सकता ह,
ले कन बहार, गुजरात, सौरा एवं क छ, पि चमी राज थान, मराठवाड़ा व उड़ीसा म सू खा

164
पड़ता रहता है । इन े म कु ल मलाकर 1950-60 के दशक म 9,1961-70 म 10, 1971-
80 म 16 तथा 1981-90 के दशक म 35 बार सूखा पडा । इससे प ट होता है दे श म सू खे क
आवृ त नर तर बढ़ती जा रह है ।

6.7 सू खे का भाव एवं सम याएँ (Impact and Problems of


Drought)
यह आ चय क ह बात है क पृ वी के 71 तशत भाग पर पानी होने के बावजू द
सू खा एक अ तरा य संकट बना हु आ है । हमारे दे श म सू खे क सम या बहु त वकराल है और
इसक आवृि त होती रहती है । लवडे के अनुसार 'छोटे अकाल 5 वष के च म और बड़े अकाल
50 वष के च म पड़ते ह । '' सू खा या अकाल िजन े म पड़ता है वहाँ क कृ ष स ब धी
और आ थक संतु लन डगमगा जाता है । येक वष दे श का कोई न कोई भाग सू खे से उ प न
हु ई सम याओं का सामना करता है । सू खे से उ प न मुख ता का लक सम याएँ न न ल खत
है
1. पेयजल का अभाव हो जाता ह । यह सम या उन े म और वकराल हो जाती है जहाँ
भू मगत जल का तर बहु त नीचे और कम होता है ।
2. जल के अभाव म कृ ष फसल सूख जाती है इससे खा या न संकट उ प न हो जाता है
और भू खमर क ि थ त हो जाती है ।
3. चारे के अभाव म मवे शय क त होती है । मवेशी कमजोर होकर अथतं पर बोझ
बन जाते है । सू खे के कोप के कारण पशुओं का दूसरे रा य म पलायन ार भ हो जाता है ।
4. अनाज व पानी के कमी के कारण वा य व कु पोषण क सम याएँ उ प न हो जाती ह

5. सू खा त े से लोग का बलात पलायन ारंभ हो जाता है यह पलायन गाँव से और
गाँव से नगर क ओर होता है । इससे नगर पर दबाव बढ़ जाता है ।
6. आ थक वघटन, बेरोजगार और सामािजक संघष जैसी वषम प रि थ तयाँ पैदा जो
जाती है ।
7. सू खे के कारण कसान को ऋण लेना आव यक हो जाता है । मु नाफाखोर के कारण
उ ह अ धक याज चु काना पड़ता है ।
8. शु क े म अकाल के कारण कभी-कभी सड़क माग व रे लमाग रे त आ जाने के कारण
अव हो जाते ह । इससे यातांबात बा धत होता है और रे त हटाने के लए आ थक हा न भी
उठानी पड़ती है ।
यह सम या बहु त बडी हो जाती है । ये सम याएँ न न ल खत है
1. म थल करण क या म वृ होती है ।
2. आवास प तय म प रवतन होने लगता है ।
3. वन प त वृ पर नकरा मक भाव पड़ता है । वना छा दत भू म का े फल कम होने
लगता है । इससे वन पर आधा रत उ योग के सामने क चे माल का संकट उपि थत हो जाता
है ।

165
4. सामािजक जीवन शैल म थायी प रवतन हो जाता है ।
5. नगर क आबाद म वृ होने से अनेक नगर य सम याओं का ज म होता है ।
6. शु क े के अनेक गाँव जन-पलायन के कारण वीरान हो जाते है ।
7. कृ ष पर आधा रत उ योग के लए क चे माल क सम या उ प न हो जाती है । दे श
के आठ औ यो गक समू ह (पेय व त बाकू व , जू ता, रबड़ उ पादन, रसायन व रसायन उ पादन
इ या द) सू खे से अ धक भा वत रहते है ।
8. सू खा के कारण ामीण नवा सयो क यशि त मे हलाल हो जाता है । इससे
औ यो गक माल क मांग म कमी हो जाती है ।
9. सू खा राहत काय म चलाने के लए सरकार दूसर अनेक प रयोजनाओं को ब द करना
पड़ता है ।
10. द घका लक सू खे के कारण पौध तथा ज तु ओं क कु छ जा तयाँ समा त हो जाती ह,
य क वे कठोर सूखे को बदा त नह ं कर पाती ह ।
11. द घका लक सू खे के कारण दे श वशेष के ाकृ तक पा रि थ तक तं के जै वक संघटक
म प रवतन हो जाता है ।
वा तव म द घका लक सू खे पा रि थ तक, आ थक, जंनां कक य प पर भाव पड़ता है,
िजससे अनेक सम याएँ उ प न -होती है ।

6.8 सू खे -का समाधान (Solution of Drought)


वा तव मे सू खे को पूणतया रोक पाना संभव नह ं है ले कन पुवानुमान एवं उ चत बंधन
वारा सू ख का भाव कम अव य कया जा सकता हे । इसके लए न न उपाय कये जाने
चा हये –
1. जल के उपयोग और अ त र त जल संसाधन क उपल धता पर सतत ् नगरानी रखी जानी
चा हए ।
2. (i) ता का लक उपाय के प म सूखा त े म भोजन, चारा और पानी क सु नि चत
यव था होनी चा हए ।
(ii) खा य पदाथ पर सि सडी दे नी चा हए िजससे भू खमर इ या द क सम याएँ न ह ।
(iii) सू खा त म रोजगार सृजन करके जन समु दाय को पलायन आ द से रोका जा सकता है ।
(iv) काल के समय ाय. कुपोषण आ द से कई बीमा रयाँ हो जाती है । इसके नदान के लए
पूरक वा य काय म चलाया जाना ता हए ।
3. वषा जल के उपयोग क पर परागत व धय का पुन . योग कया जाना चा हए ।
जैसे-
(i) छत पर गरने वाले वषा जल का सं ह थार म थल म उपयोगी स हो सकता ह ।
बाढ़मेर म ऐसे उदाहरण अनेक थान पर दे खन को मलते ह । यह जल लगभग दूषण मु त
होता है । ऐसे कुछ यास अ य ा त म भी कये गये ह । जैस-ै त मलनाडु म बहु मंिजला
इमारतो म बरसात कै पानी का सं ह सरकार वारा अ नवाय कया गया है । इसी कार

166
म य दे श के दे वास िजल म मशन ाउ ड वाटर के तहत छत पर गरने वाले जल का सं ह
कया जाता है ।
(ii) छोटे बाँध अ धक उपयोगी स हु ए है । महारा म बाला राज मारक बाँध छोटे बाँध का
आदश उदाहरण है
(iii) गुजरात के बलसाड़ा िजल म चैक बाँध और उठान संचाई प रयोजनाओं से पयावरण म
आमू ल-चू ल प रवतन हु आ है । यह व ध अ य सू खा त े ो म अपनाई जा सकती है ।
(iv) सू खे कुओं को पुनजी वत कया जा सकता है । जैसे पोरब दर (गुजरात) को पास घोर जी म
कु ओं को पानी से पुनजी वत कया गया है ।
(v) अलवर म जोहड क सहायता से अटवार नद पानी से फर भर गई है । उ चत थान का
सव ण करके यह तर का अ य भी अपनाया जा सकता है ।
(vi) गुजरात और राज थान म सीढ़ दर बाव डय का पुन ार कया गया है । यह एक साह सक
कदम है । इसी कार तालाब का पुन ार अ नवाय कया जाना चा हए । इस काय म जन
सहभा गता आव यक होनी चा हए ।
(vii) पेय जल कह ं पर हो उसके उपयोग क नई व ध खोजी जानी चा हए । जैस-े हमाचल दे श
क पीतीघाट म कु हल नाम क छोट -छोट नाल दार 'नहर के मा यम से हमा नय से नकलने
वाल न दय का पानी गाँव तक पहु ँचाया गया है ।
(viii) आमजन के स य सहयोग से वषा के जल सं हण के समि वत काय म भी उपयोगी रहते
ह । महारा क पानी पंचायत और ह रयाणा म सू खामाजर योग सू खे का सामना करने के
लए यह एक साथक य न ह । यह काय म सभी सू खा र त े म जन सहयोग से चलाया
जाना चा हए ।
4. सू खे क च डता को कम करने के लए कु छ द घका लक यव था भी क जानी चा हए
इनम मुख है - वायु क नमी, जलवषा क मा ा तथा भू म म जलवषा के जल के अ त:
प दन आ द म वृ के लए वनारोपण करना , सू खा रत े म कृ ष क वषा पर नभरता को
कम करने के लए शु क कृ ष क व धय का योग, म थल करण तथा म थल सार पर
नयं ण करना, जल-संर ण उपाय पर स ती से अमल करना, जल भ डार का नमाण, कु ओं
का नमाण आ द । इसके अ त र त रोजगार गांरट , एक कृ त ामीण वकास उपयु त फसल
च , भू-संर ण, वैकि पक बाँध टे नॉलाजी पर भी, यान केि त करके सूखे के भाव को कम
कया जा सकता है । दूरदश ब धन नी त हे तु ाकृ तक वपदाओं पर थाई रा य आयोग
और थाईआपदा राहत कोष का गठन कया जाना चा हए ।
5. भू मगत जल भ डार क खोज के लए सु द ूरसंवेदन, उप हण मान च ण तथा भौगो लक
सू चना णाल जैसी यु कायो का उपयोग कया जाना चा हए ।
6. िजन े म नमक न म ी पायी जाती है उनम प- संचाई क णाल अपनाकर पुन ार
क गई म ी म फसला पादन कया जाना चा हए ।

167
7. सं चत े का व तार कया जाना चा हए । वतमान म अि तम संचाई मता का
आकलन व 39.80 म लयन हे टे यर कया गया है । इस मता का अब तक 68 तशत भाग
ा त कर लया गया है ।
8. खु ले चारागाह, घास थल, और ाकृ तक वन प त सू खे के भाव के आकलन के लए
व वसनीय संकेत होते है । सु दरू संवेदन णाल से सु द ूर संवेद ऑकड के आधार पर सू खे का
व वसनीय पूवानुमान लगाया जा सकता है । तदनु प राहत काय क पूव म तैया र रखी जा
सकती है ।
रा य तर पर यास:
मु ख सू खा त े म व भ न काय म के अ तगत उनेक भावशाल योजनाए
व भ न मं ालय के अधीन चलायी जा रह है । कृ ष मं ालय वारा बारानी तथा झू मंग कृ ष
वाले े म रा य जलागम वकास प रयोजना और खार भू म म सु धार काय म चलाये जा
रहे ह । ामीण वकास मं ालय वारा समि धत जलागम वकास प रयोजनाओं का वकास तथा
वशेष रोजगारो मु ख काय म और म थल वकास काय म संचा लत हो रहे ह । इसी कार
पयावरण और वन मं ालय ने व भ न े म समि वत वनीकरण और पा रि थ तक य वकास
प रयोजनाएँ लागू क है । वनीकरण तथा वृ ारोपण के लए वशेष सहायता काय म भी ारं भ
कया गया है ।
रा य जल ड
दे श को बाढ़ सू खा तथा बड़े जल संकट से बचाने के लए जल ड योजना एक थायी
समाधान हो सकता है । न दय को आपस म जोड़कर जल ड बनाने का ताव सव थम 1972
ई. म त काल न के य सचाई मं ी (एवं इंजी नयर के.एल.राव ने गंगा- कावेर नद 2640
क.मी.ल बी नहर वारा 'आपस म जोड़ने का सुझाव दया था ले कन कु छ कारण से यह योजना
मूत प नह ं ले सक । भारत म होने वाल मानसू नी वषा 4 मह ने (जू न से सत बर) ह होती है
। शेष 8 मह ना लगभग शु क ह यतीत होता है । इसका कृ ष व उ योग पर वपर त भाव
पड़ रहा है । उ चतम यायालय ने सरकार को दे श क मुख न दय को सन ् 2012 तक आपस
म जोडने का ऐ तहा सक नणय दया है । के सरकार ने 2035 तक ाय वीपीय तथा सन ्
2043 तक हमालयी न दय को आपस म जोड़ने का वचन दया है ।
सू खा नयं ण क नवीन योजनाएँ :
भारत सरकार ने सन ् 1973 म सू खा नयं ण े काय म तैयार कया था । इसके
1973-74 से 1993-94 तक लगभग 28.51 लाख हे टे यर भू म को सूखे से मु त कया जा चु का
है, 92 लाख हे टे यर भू म पर जल-संसाधन को उपयोग म लाया गया है तथा 1696 वकास
ख ड म सूखा नयं ण े काय म चलाया गया है । इससे दे श के 13 रा य के 149 िजले
लाभाि वत हु ए है ।
बोध न : 1
1. भारतीय मौसम व ान वभाग के अनु सार सू खा क प रभाषा बताइये ।
2. कौन से सू खे का सवा धक भाव पड़ता है ?
3. मु ख सू खा त े कौन-कौन से है ?

168
4. सू खा नयं ण े काय म क थापना कब हु ई थी

6.9 बाढ़ (Flood)


भारत एक मानसू नी दे श है जहाँ अ तवृि ट ओर अनावृि ट एक सामा य घटना है ।
य य प भारत क सभी न दय म कभी न कभी बाढ आती है ले कन उ तर भारत का वशाल
मैदान और पूव भारत बाढ़ क वभी षका से अ धक त रहता है । यह एक ाकृ तक आपदा है
िजसके लए कृ त अ धक िज मेदार है और अ थक मानव भी अपने कृ य से य प से
बाढ म अपना योगदान दे ता है । न दय म बाढ उस समय आती है जब जल क मा ा उसक
वाह मता से अ धक हो जाती है । अ य धक वषा, वन वनाश, अवसाद का जमाव, ु टपूण
भू म उपयोग, बाढ़ के मैदान म अ नयोिजत अ धवास, अपवाह तं म अवरोध, अ धक संचाई से
जल का उ थान आ द कारक य और अ य प से बाढ़ क ती ता को बढ़ाता है ।
म रथल भाग मे या जहाँ न दयाँ नह ं होती, वहाँ भी अ तवृि ट से जल लावन होता है व
धनजन क हा न होती है । इनके ऊपर पूण नयं ण क आशा नह ं क जानी चा हए, हाँ इसके
भाव व प रणाम को कुछ कम कया जा सकता है । इसक रोकथाम के लए रा य बाढ
आयोग ने त काल न अ पका लक व द घका लक योजनाएँ तैयार क है ।
य य प बाढ से बहु त अ धक ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन को त पहुचती
ँ है ले कन
बाढ से य और परो लाभ भी होता है । यथा नवीन कॉप म ी जमाव, बा कृ त मैदान क
रचना, भू मगत जल भ डार म वृ , नद जल म दूषण क मा ा म कमी, न दय क सफाई
तथा वक सत अपवाह त इ या द ।
सामा यत: कसी भू म पर आकि मक प से अ य धक जलरा श पहु ँच जाने से उ प न
अधरातल य जल वाह िजससे वरतृत भू - े जला छा दत हो जाता है, बाढ़ कहते है । आकि मक
भार वषा, हम वण, आ द कारण से बाढ़े आती है और व तृत नचल भू म जलम न हो जाती
है ।
दे श क वशालता तथा भौ तक व प क व भ नता के कारण बाढ आती है । बाढ़ से
हमारा दे श भारत सवा धक भा वत रहता है । तवष दे श का कोई न कोई भाग बाढ़ क
वभी षका से त रहता है । दे श का उ तर वशाल मैदान, िजसे हम स ध, गंगा-यमु ना तथा
मपु का मैदान भी कहते ह तथा पूव एवं पि चमी समु तल य मैदानी े म बाढ़ का आना
एक सामा य ाकृ तक घटना है । वैसे तो बाढ़ दे श म कह ं भी आ सकती है । ले कन बहार,
उ तर दे श, आ दे श, पि चमी बंगाल, गुजरात, त मलनाडु , ह रयाणा, असम, पंजाब तथा
म य दे श भी बाढ़ क चपेट म आता रहते है । बाढ़ के कोप का प रणाम मानव एवं पशु सभी
को भु गतने पड़ते है ।
यह भी आ चयजनक स य है क कभी-कभी एक ह साथ दे श का कोई भाग भंयकर सू खे
रो पी ड़त रहता है । य द एक े म जल- लावन क ि थ त रहती है तो उसी समय दूसरा भाग
वषा के लए आकाश क ओर दे खता है ।

169
6.10 बाढ़ के कारण (Causes of floods)
सामा यतता बाढ़ एक ाकृ तक घटना है, ले कन जब यह दुघटना के प म कट होती
है तथा अपार धन जन के हा न का काराण बनती है । बाढ़ के कारण व व के सभी े म
समान नह ं है । कह ं कोई कारण बल है तो कह ं अ य बाढ़ मानव ज नत संकट भी है । बाढ़
ज य कारण ( ाकृ तक एवं मानव-ज नत) के सापे क मह व म थानीय व भ नताएँ पायी
जाती है । बाढ़ के कृ त-ज य कारण म ल बी अव ध तक उ च ती ता वाल जलवषा, (घनघोर
वृि ट) न दय के वस पत माग, व तृत बाढ़ , मैदान, न दय क जलधारा क वणता म
अचानक प रवतन, भू- खलन तथा वालामु खी उ गार के कारण न दय के वाभा वक वाह म
अवरोध, न दय क घा टय तथा जलधाराओं क वशेषताएँ मु ख है । मानवजा त कारक म
नमाणकाय, ती नगर करण न दय के जलमाग म प रवतन न दय पर बाँध , पुल एवं
जलभ डार का नमाण, कृ षकाय, भू म, उपयोग प रवतन आ द मु ख है । ये कई कार क
सम याओं का ज म दे ते ह, जैसे भीषण बाढ़ न दय के माग म थाना तरण एवं प रवतन, बाढ़
मैदान म जलोढ़ रे त, मृ तका , स ट आ द का न ेपण । इस कार कई कारण के सि म लत
संचयी भाव के कारण न दय के वनाशकार एवं आपदाप न बाढ़ क ि थ त उ प न होती है ।
बाढ़ उ प न करने वाले कारक का सं त वणन न न कार है ।
1. अ तवृि ट : भारत म होने वाल अ धक वषा मानसू नी है ल बे समय तक घनघोर वषा होना
न दय क बाढ़ का मू ल कारण है । न दय के ऊपर भाग और नद बे सनो म घनघोर वृि ट होने
के कारण उन न दय के नचले भाग म जल के आयतन म अचानक वृ हो जाती है िजस
कारण अपार जलरा श न दय के कनार के ऊपर से वा हत होकर आस-पास के न न े को
जलम न कर दे ती है । भारत म चार मह ने वषा क ऋतु होती है और इसी समय बाढ़ का कोप
भी अ तवृि ट के कारण होता ह । वष के अ धकांश भाग म न दय म जल का आयतन बहु त
कम होता है िजसका कारण जल का वसजन यूनतम होता है । उदाहरण के लए इलाहाबाद के
पास जुलाई-अग त म गंगा नद का जल वसजन. 40000 से 50,000 घनमीटर त सेक ड
तक हो जाता है जब क माच से जू न तक क समयाव ध म 1000 घनमीटर त सेक ड से भी
कम हो जाता है । उ तर भारत म वषाकाल म अचानक द घका लक घनघोर वषा के कारण
न दय के जल के आयतन म अ या शत वृ हो जाती है तथा न दय म बाढ़ क ि थ त
उ प न हो जाती है ।
वषा क अ नि चतता के कारण शु क एवं अ शु क े म अचानक एवं अ या शत
घनघोर वषा के कारण जल- लावन क ि थ त उ प न हो जाती है य क ऐसे े म
सामा यतया अ प वषा होती है तथा ाकृ तक अपवाह तं अ छ दशा म नह ं होते ह ।
राजरथान के अ धकांश े म आनी वाल बाढ़ इसी कार क होती है । एसी बाढ़ से कभी-कभी
बहु त त हो जाया करती है । अ तवृि ट वाले दे श म. बाढ़ का आना एक वाभा वक ाकृ तक
या है । इस कारण ऐसे े म बाढ़ से उतनी त नह ं होती िजतनी अ नि चत वषा वाले
े म होती है ।

170
2. नद क पेट म अवसाद का जमाव : न दय वारा अपरदन, प रवहन तथा अपर दत पदाथ
का न ेपण एक सामा य घटना है । न दयाँ अपने वारा अपर दत पदाथ को प रवहन करने क
मता रखती है, ले कन जब कभी नद माग म भू खलन अ धक हो जाता है तो अवसाद अ धक
आ जाने से नद का बोझ बढ़ जाता है तो नद क मलवा प रवहन क मता घट जाती है और
मलवा नद क पद म जमा हो जाता है । इससे नद क अपवाह मता कम हो जाती है ।
प रणाम व प अ धक वषा होने पर बाढ़ क ि थ त उ प न हो जाती है ।
हमालय से नकलने वाल न दयाँ उ तर के वशाल मैदानी भाग म अवसाद क अपार
रा श का न ेप करती है िजसके कारण न दय क घा टय म भराव होता है, उनका तल ऊपर
उठता है, न दय के माग म आये दन प रवतन होते रहते है, अथात न दय क जलधाराएँ कई
शाखाओं एवं तशाखाओं म वभ त हो जाती है तथा बाढ़ क आवृि त एवं प रमाण म वृ हो
जाती है । गंगानद म अवसाद भार ता लका 6.3 म द शत कया गया ह ।
आ थक एवं ौ यो गक मनु य के नर तर बढ़ते या- लाप (कृ ष म मशीन का
अ धका धक योग,वन वनाश, चराई, नमाण काय, खनन, नगर करण, औ योगीकरण, तकनीक
वकास म तेजी से वृ आ द) के कारण भौ मक य अपरदन म वृ होने के प रणाम व प
अवसाद क मा ा म तेजी से वृ हो रह है ।
3. नद क धारा म प रवतन : मैदानी भाग म न दय के वसप के कारण न दय के जल का
वाह कम हो जाता है । इस तरह न दय का वस पत माग न दय म जल के वाभा वक
वसजन को अव करता है तथा समीपवत भाग म बाढ़ उ प न करता है । उ तर भारत क
ाय: येक जलोढ़ नद म (गंगा, यमु ना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, ग डक, कोसी, त ता
आ द) इस तरह के वसप का वकास हो गया है । ये न दयां अपनी भयकर बाढ़ वारा ाय: हर
समय कहर ढाती है । वसप म बहने वाल न दयाँ कभी-कभी अ तवृि ट के कारण अपना माग
सीधा कर लेती है ओर बाढ़ उ प न कर दे ती है । कोसी नद अपने माग प रवतन एवं बाढ़ के
लए बहु त कु यात है ।
4. वन वनाश : वन- वनाश मानव-ज नत बाढ़ कारक म सबसे अ धक मह वपूण ह । मानव
अपनी आव यकताओं क पू त के लए न दय के लए न दय के ऊपर जल हण े म
यापक तर पर वन क कटाई क है । वन क कटाई के कारण न दय के ऊपर जल हण े
म धरातल य े न न हो जाता है । इससे वषा के जल का भू म म अ त: प दन यूनतम
तथा धरातल य वाह जल अ धकतम हो जाता है । फल व प यह धरातल त वाह जल बना
कसी अवरोध के न दय तक शी पहु ँच जाता है और जल के आयतन म वृ कर दे ता है ।
िजस कारण बाढ़ क ि थ त उ प न हो जाती है ।
वन क अ धाधु ध कटाई के कारण मृदा अपरदन म वृ होने से न दय के अवसाद
भार म अ य धक वृ होती जाती है । इस कार अवसाद से अ तभा रत न दयाँ अपनी घा टय
म अवसाद का जमाव करने लगती है । अवसादाकरण के कारण नद क तल धीरे -धीरे ऊपर
उठने लगती है और उसम जलधारण करने क मता घट जाती है । प रणाम व प अ तवृि ट के
समय धरातल य वाह जल के कारण न दय क घा टयाँ जल से शी भर जाती ह तथा जल

171
उनके कनार के ऊपर से होकर घाट के आस-पास दूर-दूर तक फैल जाता है तथा व तृत बाढ़
आ जाती है ।
ता लका 6.3
उ तर दे श म नगा नद का व भ न थान पर अवसाद भार तथा वाह जल
स ट मापन उ गम से औसत वा षक औसत औसत स टलो स ट
के थान दूर वाह जल (हजार वा षक डफै टर (हे टे यर क टे ट
कलोमीटर म लयन घन स ट ( मल. मी. त 100 वग ( तशत)
मी.) टन) तवष लोड
ऋ षकेश 250 27.78 24.99 8.34 0.064
कानपुर 760 33.43 53.28 - 0.109
वाराणसी 1115 116.99 179.72 2.48 0.116
उ तर दे श
तथा बहार

सीमा 1370 213.28 328.38 3.48 0.110
वगत सौ वष म हमालय े म वन क असी मत कटाई का कारण हमालय से
नकलने वाल न दयो म बाढ़ क आवृि त , ती ता तथा व तार म नर तर वृ दे खी जा रह है ।
गंगा, यमु ना, रामगंगा, घाघरा, ग डक, बूढ ग डक, कोसी व त ता आ द न दयाँ बाढ़ के कोप
वारा तबाह मचाती रहती ह ।
5. नद माग म मानव न मत यवधान : मानव ने अनेक कार से नद के माग म यवधान
खड़े कये है । (क) रे ल और सड़क सेत,ु जलाशय बाँध, तट बाँध, नहर नमाण आ द के कारण
नद जल वसजन म बाधा आती है और जल फैलकर बाढ़ क ि थ त उ प न कर दे ता है (ख)
ती नगर करण के कारण न दय के कनारे ि थत नगर के अप श ट पदाथ नद जल के बहाव
मे बाधा उ प न करता है । (ग) बढ़ती जनसं या के कारण उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल
इ या द रा य के तालाब म जहाँ जल एक त होकर धीरे -धीरे नद -नाल के वारा वसिजत होता
था वह ं अब उन भाग म कृ ष काय होने से वषा जल बना रोक टोक नद के जल के आयतन
म वृ करता है । (घ) नद तटवत े म कृ ष काय हेतु खेत आ द तैयार करने से भी नद
माग अव हु आ है । नगर क बाढ़ से सुर ा के लए न मत बाँध भी बाढ़ को बढ़ावा दे ने म
सहायक हु ए ह । (च) ल बे चौड़े भाग पर व तीण बड़े नगर क सड़के प क होने के कारण वषा
का जल िजसका बहु त बड़ा भाग भू म के अ दर चला जाता था । बना रोक टोक बहता हु आ नद
के जल का आयतन बढ़ाकर बाढ़ क वभी षका म सहयोग दे ता है ।
6. तटब ध और तट य आवास : बाढ़ को रोकने के लए बनाये गए तटब ध बाढ़ के कारण
बनते रहे ह य क इससे एक े या थान पर बाढ़ से राहत मल जाती है, ले कन अ य े
पर इसका दु भाव पड़ता है । वा तव म ये तटब ध एक कार से नद जल- वाह म अवरोध
उ प न करते ह । इसी कार तट य आवास भी नद के वाह म अवरोध उ प न करते ह और
बाढ़ का कारण बनते है ।

172
7. दोषपूण संचाई प त : संचाई वाले े म अ य धक जल के योग करने से एवं जल
नकासी क समु चत यव था नह ं होने के कारण जला ांत क ि थ त पैदा हो जाती है ।
जला ांत के कारण भू म कुछ जल सोख नह ं पाती िजससे पृ ठ य वाह ती हो जाता है और
अचानक वषा होने से आसपास के े म बाढ़ आ जाती है । पंजाब, ह रयाणा, राज थान का
नहर े तथा पि चमी उ तर दे श इस सम या से सत है ।

6.11 बाढ़ भा वत े (Flood Affected Areas)


भारत एक वशाल दे श है । इसके कुल 3280 लाख हे टे यर भौगो लक े म लगभग
400 लाख हे टे यर े बाढ़ से भा वत रहता है । इसम से लगभग 80 लाख हे टे यर भू म पर
तवष बाढ़ आती है िजसके लगभग 31 तशत भाग पर कृ ष फसल होती है । सामा यतया
बाढ़ से होने वाले कु ल नुकसान म 60 तशत न दय के बाढ़ का तथा शेष 40 तशत च वात
तथा भार वषा का योगदान होता है । भारत के बाढ़ त े फल म हमालय क न दय का
योगदान अनुमानत: 66 तशत होता है । बाढ़ क वभी षका क आवृ त तथा कोप अ य धक
वषा वाले े म अ धक दे खने को मलता है । भारत म अ य धक वषा के दो े ह :
(अ) भारत का उ तर पूव भाग एवं पि चमी घाट का पि चमी ढाल दे श के उ तर पूव भाग के
अ तगत पूव उ तर दे श , उ तर बहार एवं बंगाल, म णपुर , अ णाचल दे श और असम के
भाग आते ह । उपयु त े म अ य धक जल-वृि ट के प चात जब जल न दय के ऊपर भाग
से वा हत होकर मैदानी े म पहु ँचता है, तब उसक मा ा नद क वाह मता से अ धक हो
जाती है । जल- नकासी म अवरोध उ प न होने के कारण बाढ़ क यापकता म वृ हो जाती है ।
(ब) पि चमी घाट के पि चमी ढाल पर य य प अरबसागर य मानसू न से अ य धक वषा होती है,
ले कन वहाँ पर ती ढाल तथा न दय का माग छोटा होने के कारण वषा का जल बना बाढ़
उ प न कये ह अरब सागर म पहु ँच जाता है । अत: यहाँ पर भारत के मैदानी े क तरह
बाढ़ नह ं आती है । इस कार वह संपण
ू े जहाँ अ य धक वषा होती है वहाँ मैदानी े म
बाढ़ का आना एक सामा य घटना है ।
इसके अलावा भारत म ऐसे बहु त से े है जहाँ साधारण वषा होती है । फर भी कभी-
कभी अ य धक वृि ट से बाढ़ जा जाती है । सामा यतया भारतीय म थल बाढ़ क आशंका से
मु त े है, ले कन कभी-कभी यहाँ भी अ तवृि ट से बाढ़ आकर तबाह मचा दे ती है । पि चमी
घाट के वृि ट छाया दे श म आने वाले े बाढ़ मु त रहते है । बाढ़ क ि ट से संपण
ू भारत
को पाँच भाग म वभािजत कया जाता है (मान च 6.3 एवं 6.4) ।
1. पूव ख ड : यह े घाघरा नद के पूव रो डबूग ढ़ के आगे तक व तीण है । पूव
उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल, म णपुर, अ णाचल दे श और आसाम पूव ख ड म आने
वाले बाढ़ भा वत े ह । इन े म हमालय से नकलने वाल न दयाँ बड़ी मा ा म जलरा श
और भार चकनी म ी बहाकर लाती है जो समतल धरातल तथा नचले भाग को जल- ला वत
कर दती ह । गंगा, यमु ना, रामगंगा, घाघरा, गोमती, कोसी, त ता, हापु आ द न दय से
उ प न वकराल बाढ़ से अपार त होती रहती है ।

173
2. उ तर ख ड : ज मु क मीर, हमाचल दे श, पंजाब, ह रयाणा तथा पि चमी उ तर दे श
उ तर ख ड के बाढ़ भा वत े म सि म लत कये जाते ह । इस ख ड क न दयाँ छोट ह ।
इनके माग म अ धक प रवतन नह ं होता और न ह इन न दय म जल क मा ा अ धक होती है
। फर भी झेलम, यास, रावी, चनाव, सतलज, यमु ना और स ध नद म जब वषा ऋतु म
अ य धक वषा के कारण बाढ़ आती है तो वनाश क ि थ त उ प न हो जाती है ।

मान च 8.3 बाढ़ त े


3. द णी ख ड : यह ाय वीपीय भारत म फैला हु आ है जहाँ वषा क मा ा कम होने से
न दय म जल अ धक नह ं होता तथा म ी क मा ा भी कम होती है । यहाँ वा हत होने वाल
न दय के माग म भी कोई वशेष प रवतन नह ं पाया जाता है । अत: इस े म बाढ़े
सामा यतया तवष नह ं आकर ल बे अ तराल पर आती है, ले कन जब आती ह, तो जनघन
तथा फसल को वशेषकर डे टाई े म बड़ी त पहु ँ चाती है । गोदावर , कृ णा, कावेर और
पै नार न दयाँ अपनी बाढ़ के लए स ह । इस ख ड म महारा , कनाटक, आ दे श तथा
त मलनाडु रा य आते ह ।
4. म यवत ख ड : इस े का व तार दे श के म यवत भाग पर ि थत गुजरात, म य दे श
तथा राज थान म है । च बल, बनास, साबरमती व नमदा, यहाँ क मु ख न दयाँ है, जो वषा
ऋतु म बाढ़ से भा वत रहती है ।

174
5. म यपूव ख ड : उड़ीसा रा य म महानद , वैतरणी व ा मणी न दयाँ ावा हत होती ह ।
वषा के दन म जब ये न दयाँ अ धक मा ा म जल वा हत कर लाती ह तो उनके मु हान पर
तेजी से जल बहाव न हो पाने के कारण ाय: बाढ़े आ जाती है' ।

मान च 6.4 बाढ़ भा वत े


य य प संपण
ू भारत म कभी न कभी बाढ़े अव य आती है ले कन दे श के अ धक बाढ़-
भा वत एवं बाढ़ पी ड़त े उ तर भारत खासकर उ तर दे श, बहार तथा पि चमी बंगाल के
मैदानी े म ि थत ह । वा तव म उ तर दे श, बहार तथा आ दे श म बाढ़ कोप वारा क
गई सि म लत त सम त भारत म बाढ़ वारा होने वाल त का 63 तशत होती है ।

6.12 बाढ़ का भाव एवं सम याएँ Impact and Problems of


Flood)
बाढ़ एक वकट सम या है । तवष जल लावन और बाढ़ से भारत म करोड़ो पये क
स पि त, हजार मनु य और करोड़ो जीवज तु कालकव लत होते ह । बाढ़ का बहु त यापक

175
भाव पड़ता है और इससे अनेक सम याओं का ज म होता है । सं ेप म बाढ़ का न न ल खत
भाव पड़ता है -
1. इससे अनेक पयावरणीय सम याएँ उ प न हो जाती है । जैसे - संकटाप न बाढ़, भू म
खलन, मलवापात इ या द ।
2. बाढ़ के कारण न दय के माग म थाना तरण एवं प रवतन होता है ।
3. बाढ़ के मैदानो म जलोढ़, रे त, म ी, स ट आ द का न ेपन हो जाता है ।
4. बाढ़ आने से कृ तक वन प तयो को भार मा ा म त पहु ँ चती है ।
5. म ी के अपरदन क सम या बढ़ जाती है ।
6. ाकृ तक तट बांध को त पहु ँचती है ओर बाढ़ क वकरालता म वृ होती है ।
7. बाढ़ से हजार हे टे यर भू म पर फैल कृ ष फसल को त पहु ँ चती है ।
8. सु र ा के लए बनाये गये बाँध के टू टने से कभी-कभी न दय के कनारे ि थत नगर म जल
लावन क ि थ त उ प न हो जाती है ।
9. बाढ़ त े म जन-धन एवं पशुधन क हा न होती है ।
10. भीषण बाढ़ से सड़क माग एवं रे लमाग टू ट जाता है एवं त त हो जाता है ।
11. बाढ़ के कारण कृ ष पर आधा रत उ योग के सम क चे माल क सम या उ प न हो जाती
है ।
12. बाढ़ के कारण जल-आपू त म बाधा उ प न होती है ।
13. नगर य एवं ामीण मकान व त हो जाते है ।
14. बाढ़ के कारण संचार एवं व युत आपू त म अवरोध उ प न होता है ।
15. राहत काय चलाने के लए अ त र त धनरा श क यव था करनी पड़ती है । इससे राजक य
कोष पर अनाव यक भार पड़ता है ।
16. बाढ़ के बाद ाय: सं मत बीमा रय का कोप बढ़ जाता है ।
17. अनाज एवं पशु ओं के लए चारे क कमी हो जाती है ।
18. बाढ़ त े म बेरोजगार बढ़ जाती है और आ थक संकट उ प न हो जाती है ।
19. बाढ़ का दूरगामी भ व पड़ता है । इससे मँहगाई बढ़ जाती है और जनजीवन भा वत होने
लगता है ।

6.13 बाढ़ से होने वाल त (Loss Due to flood):


भारत का अथ त कृ ष पर नभर है । सकल घरे लू उ पाद म कृ ष एवं स ब े
का योगदान आज भी 22 तशत से अ धक है । ाकृ तक आपदाओं (सूखा एवं बाढ़) से यहाँ क
कृ ष पर बहु त तकू ल भाव पड़ता है । हमारे दे श मे तवष लगभग 32 करोड़ हे टे यर भू म
एवं 30 करोड़ यि त बाढ़ से भा वत होते है तथा इससे अरब पये क त होती है ।
बाढ़ का कोप नर तर बढ़ता जा रहा है, िजसके दो कारण बताये जा रहे है । पहला
कारण है, वषा के का लक और था नक वतरण म मौसमी वलोमता तथा दूसरा कारण बाढ़
भा वत े म जनसं या का सार, इससे बाढ़ के कोप का मू यांकन बढ़ गया है । वष

176
1953 से 1975 के म य बाढ़ से होने वाले नुकसान का दे श म अनुमान लगाया गया था , िजसके
अनुसार औसतन 74 लाख हे टे यर भू म तवष भा वत होती है, िजसम 31 लाख हे टे यर भू म
बोई गई है । औसतन 8 लाख मकान और 50 हजार पालतू पशु ओं का नुकसान होता है । मृतक
क औसत सं या 742 ऑक गई और फसल नुकसान 2 अरब पये से अ धक आँका गया ।
कभी-कभी यह नुकसान 1 साल म 9 अरब पखे तक पहु ँच जाता है । इसक तपू त के लए
सरकार को अ धक धनरा श खच करनी पड़ती है । लगभग तवष आने वाल बाढ़ से होने वाल
कु छ त का 72 तशत फसल , 20 तशत मकान , 8 तशत प रवहन एवं संचार साधनो व
सावज नक स पि त का होता है ।
बाढ़ से होने वाल सबसे अ धक त बहार, उ तर दे श और आ दे श म होती है ।

6.14 बाढ़ का समाधान (Solution of flood) :


बाढ़ को रोकने के लए अ त र त वाह जल पर कया गया नयं ण बाढ़ नयं ण
कहलाता है । इसके अ तगत ती वषा से ा त धरातल य जल को न दय तक पहु ँचने म
वल ब करना, न दय म जल के वसजन म शी ता करना, नद -जल के आयतन को कम
करना, जल- वाह क दशा को मोड़ना, बाढ़ के भाव को कम करना, तटबंध को मजबूत करना,
बाँध का नमाण करना, अ त र त जल को रोकने के लए जलाशय का नमाण, वन लगाना,
वनरय तय का संर ण, बाढ़ क भ व यवाणी आ द काय सि म लत होते ह । ले कन यह स य है
क भारत के बाढ़ त े क न दयाँ तल जमाव, मोड़ और माग संकुचन से आ ा त ह ।
फलत: इनम अ धक जल आ जाने से बाढ़ का आहना वाभा वक है । बाढ़ को कम करने के लए
आव यक है क इनक वाह मता म वृ क जाय । यह नद े नंग योजना से संभव है िजस
पर अभी यान नह ं दया जा रहा है ।
बाढ़ पर नयं ण के लए दो तरह से उपाय कये जाते ह –
(अ) संरचना मक: इसके अ तगत बाँध बनाना, तटबांध बनाना, न दय के माग को गहरा करना
तथा बाढ़ से राहत हे तु छमक ना लय का नमाण करना आ द बाढ़ के मैदान को कालख ड म
बाँटकर उनका नयोजन करते ह जैसे तवष, त पाँचव वष, त बीस वष वाले बाढ़ के े
आ द । इसे बाढ़ े नयोजन व ध कहते ह।
(ब) यवहारज य : बाढ़ वपदा से मनु य को जूझना ह पड़ता है तथा हा न को वीकार करना
पड़ता है, य क यह ाकृ तक संकट है । यह संकट मानव ज नत भी है । इसके भाव को कम
करने के लए आ थक सहायता दे ना, बाढ़ बीमा करना, बाढ़ का पूवानुमान आ द आवय यक होता
है ।
बाढ़ एक ाकृ तक आपदा है इस पर पूण प से नयं ण संभव नह ं है , हाँ इसके भाव
को यून ओर इससे होने वाले त को न चय प से कम कया जा सकता है । ाकृ तक
आपदा के साथ ह साथ बाढ़ मानव ज नत भी है । बाढ़ क ती ता को न न उपाय वारा
नयं ण म लाया जा सकता है:-
1. बाढ़ का मू ल कारण घनघोर जलवृि ट है िजसको रोकने क मता मनु य म नह ं है ।
घनघोर वृि ट से उ प न धरातल य वाह जल के न दय तक पहु ँ चने के समय को अव य बढ़ाया

177
जा सकता है । इसके लए नद जल हण े म बड़े पैमाने पर वृ ारोपण करना चा हए ।
वना छा दत भू म न न प म बाढ़ कम करने म सहायता करती है वन प तयाँ जल को नद
तक पहु ँ चने म वल ब करती है । वन के कारण वषा जल का अ त: प दन अ धक होने से
वाह जल म कमी होती है । वन के कारण मृदा अपरदन कम होता है , िजससे न दय म अवसाद
भार कम हो जाता है । और नद म जल प रवहन क मता अ धक हो जाती है । इस कार
वन भी कटाई पर रोक तथा वृ ारोपण से न दया क बाढ़ क आवृि त तथा व तार दोन म कमी
क जा सकती है।
टे नसी घाट प रयोजना के आधार पर ह दामोदर घाट नगम के अ तगत बाढ़ के
नयं ण एवं अ य उ े य क पू त के लए दामोदर बहु उ े यीय नद घाट प रयोजना को साकार
प दया गया है । दामोदर तथा उसक सहायक न दय पर बाँध बनाकर (1958 से कायरत)
नचल दामोदर घाट म काफ हद तक बाढ़ पर नयं ण कर लया गया है । इसी कार ता ती
नद पर उकाई बाँध तथा जलाशय के नमाण वारा नद के नचले भाग तथा सूरत नगर
(गुजरात) को बाढ़ के कोप से काफ हद तक बचा लया गया है ।
4. बाढ़- द प रवतन णाल के वारा बाढ़ के कोप को एक सीमा तक कम कया जा
सकता है । इस णाल के अ तगत बाढ़ के समय अ त र त जल को न न भू मय , गती या
कृ म ढं ग से न मत जलवा हकाओ म मोड़ दया जाता है । इससे बाढ़ के प रमाण म कमी हो
जाती है । उदाहरण के लये बाढ़ क ि थ त म राज थान म व ट होने के पहले घ घर नद पर
न मत घ घर द प रवतन योजना के अ तगत 340 यूसे स (घन मीटर त सेक ड) जल को
गत , न नभू मय तथा बालु का- तूप के म य े म 'रोक लया जाता है ता क बाढ़ को
सु र त सीमा म रखा जा सकता है ।
2. मैदानी भाग म ाय: बड़ी न दयाँ वसप तथा मोड़ बनाती हु ई वा हत होती है िजससे
जल वसजन म बाधा आती है और व तृत े बाढ़ क चपेट म आ जाता है अत: जहाँ न दयाँ
अ धक वस पत है उनके माग को सीधा करके जल लावन क ि थ त से बचा जा सकता है ।
ले कन इस काय हेतु पया त धन क आव यकता होती है और दूसरे जलोड़ न दय म वसप का
नमाण एक ाकृ तक या है य द कसी थान पर इनका माग सीधा कर भी दया जाये तो
दूसरे थान पर वसप का नमाण हो जाता है ।
3. नद के माग म बाढ़- नयं ण भ डारण जलाशय का नमाण करके न दय के जल के
आयतन म कमी क जा सकती है । इसके अ तगत नद के माग म जल के भ डारण के लए
कई जल-भ डार का नमाण कया जाता है तथा बाढ़ के समय इनम अ त र त जलरा श को रोक
लया जाता है । ऐसा करने से दो लाभ होते ह 1. इन जलभ डार के कारण न दय के जल के
आयतन म कमी हो जाती है तथा 2. संचाई के जल सुलभ हो जाता है ।
4. बाढ़ नयं ण जल भ डारण का नमाण बाढ़- नयं ण के भावी उपाय के प म
अ य धक स हो गया है । यह व ध सव थम 1913 ई. म संयु त रा य अमे रका क
मयामी नद (ओ हयो ा त) पर अपनाई गयी थी । 1933 ई. म टे नेसी घाट प रयोजना के
तहत (संयु त रा य अमे रका) कई बाँध तथा जलभ डार के नमाण के वारा टे नेसी नद के
बाढ़ पर पूण पेण नयं ण कर लया गया है ।

178
5. न दय के कनारे बॉध बनाकर बाढ़ के जल को नद के अ तगत ह सी मत करने का
यास कया जाता है । गंगा मैदान म मु ख न दय के कनारे पर ि थ त अ धकांश नगर को
बाढ़ से बचाने के लए म ी के तटब धो का नमाण कया गया है । जैसे- द ल , लखनऊ,
इलाहाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़, पटना आ द नगर को बाढ़ से बचाने के लए इनसे स बि धत
न दय के कनार पर म ी के तटब ध बनाये गये ह । कह ं-कह ं पर बाढ़कृ त मैदान म फसल
को बचाने के लए भी स बि धत न दय के कनार पर म ी क ल बी-ल बी डाइक अ धक दूर
तक बनायी जाती है । इस तरह के तटब ध कोसी नद , वागमती नद तथा महान दा नद पर
बनाये गये ह । इससे लाख हे टे यर कृ ष भू म क बाढ़ से र ा होती है ।
6. भारत म बाढ़ नय ण
ं संगठन तथा बाढ़ क भ व यवाणी एवं चेतावनी णाल - सन ्
1954 ई. म बाढ़ क भ व यवाणी एवं आगमन क पूव सूचना तथा बाढ़ के नयं ण एवं बचाव
काय म के लए के य बाढ़- नयं ण बोड क थापना हु ई । इसी के साथ ा तीय बाढ़- नयं ण
बोड क भी थापना क गई है । द ल म बाढ़ को नयं त करने के लए बाढ़ भ व यवाणी
तथा चेतावनी णाल का थम शुभार भ 1950 ई. म कया गया इस समय’ दे श के व भ न
भागो म मु ख न दयो क बाढ़ क ताजा ि थ तय का सामना करने के लए बाढ़-भ व यवाणी
तथा चेतावनी णाल का जाल बछा दया गया है । इस णाल के अ तगत गंगा तथा उसक
सहायक न दय (यमु ना, रा ती, गोमती, घाघरा, बूढ गंडक , कोसी आ द) मपु तथा उसक
सहायक न दयाँ, वणरे खा, दामोदर, बैतरनी, तापी, नमदा, गोदावर , च बल, बेतवा, लू नी, माह
आ द क स भा वत बाढ़ क मानीटं रग क जाती है तथा भावी बाढ़ क पूव सू चना दूदशन,
रे डय तथा समाचार प के मा यम से जनता तक पहु ँचाई जाती है िजससे आकि मक कोप से
बचाव हो सके । बाढ़ भ व यवाणी का मुख कायालय पटना म ि थत है । गोहाट , मैथान
(झारख ड) द ल इसके के है ।
बाढ़ के वषय म पूव जानकार ा त हो जाने जान-माल और स पि त के नुकसान तथा
मानवीय वपि त को कु छ सीमा तक कम कया जा सकता है । द घकाल न और भावी उपाय से
बाढ़ से होने वाल त पूव क अपे ा बहु त कम हु ई है ।

6.15 बाढ़ नयं ण स ब धी काय (Work Concerned with Flood


Control)
बाढ़ क सम या क भीषणता दे खते हु ए भारत सरकार ने जु लाई 1976 ई. म रा य
बाढ़ आयोग (के य बाढ़ नयं ण बोड क थापना 1954 ई. म क गयी थी) क थापना क ।
यह आयोग बाढ़ नयं ण क समि वत, समे कत व वै ा नक नी त तैयार करता है । रा य बाढ़
आयोग ने 320 लाख हे टे यर भू म बाढ़ त बतायी है िजसम से 1995 ई. तक 145 लाख
हे टे यर भू म को बाढ़ के भाव से मु त कया जा चु का है । 11400 क.मी.ल बे तटब ध का
नमाण कया गया है । 21000 क.मी.ल बी जल नकासी के लए ना लयाँ बनाई गई है । 280
नगर तथा 4700 गाँवो को बाढ़ के तर से ऊँचा कया गया है । इतने यास के बाद भी बाढ़
एक आपदा बनी हु ई है और यह दे श म कह ं न कह ं तवष आती रहती है ।

179
बोध न : 2
1. बाढ़ के लए उ तरदायी मानवजा त कारक का उ ले ख क िजए।
2. भारत का सवा धक बाढ़ वाला े कौन सा है ?
3. बाढ़ दक् प रवतन णाल कसे कहते है ?
4. बाढ़ से सवा धक त कौन सी नद से होती है ?
5. बाढ़ वारा होने वाल ता का लक त बताइए।

6.8 सारांश (Summary)


सू खा एक ाकृ तक आपदा है िजसका पा ररथ तक तं , जन-जीवन तथा औ यो गक
जगत पर तकूल भाव पड़ता है । भारत म सूखे क आवृि त होती रहती है । भारत का
लगभग 26 तशत े सू खे क आंशका से सत रहता है । गुजरात, राज थान, बहार,
इगरख ड का पठार भाग, उतर दे श का बु दे लख ड े मराठवाड़ा, तेलगांना, रायलसीमा तथा
उड़ीसा म कालाहा डी और समीपवत े सवा धक सूखा भा वत े है । अ नि चत,
अ नय मत एवं असमान वत रत वषा सू खे के लए उ तरदायी है । वन क कटाई, कृ ष यो य
भू म का व तार, ाकृ तक ससाधन का दोहन आ द अनेक ऐसे कारण है जो सूखा से होने वाले
नुकसान को यापक बना दे ते है । सू खा को रोकना संभव नह ं है, ले कन सू खा त े म
पानी, भोजन व चारा क त काल यव था करके इसके भाव को कम कया जा सकता है ।
द घकाल न समाधान म संचाई आ द क यव था मुख है । सू खा राहत काय म सरकार क
ाथ मकता म है । सूखे के थाई समाधान के लए रा य जल ड क संक पना क गई है ।
सरकार सहयोग के साथ-साथ जन सहयोग से भी स बल मल रहा है । सू खा पर नयं ण के
लए अनेक भावशाल योजनाएँ सरकार वारा चलाई जा रह है । सू खे क तरह बाढ़ भी एक
ाकृ तक संकट है िजसे आ थक मानव अपने-अपने कृ य ने इसे यापक बनाया है । सामा यतया
बाढ़ से होने वाले कुल नुकसान म 60 तशत न दय के बाढ़ का तथा शेष 40 तशत च वात
तथा भार वषा का योगदान होता है । उ तर दे श, बहार तथा आ दे श म बाढ़ का कोप
सबसे अ धक रहता है । दे श का लगभग 400 लाख हे टे यर े बाढ़ से भा वत रहता है ।
इसम से लगभग 80 लाख हे टे यर भू म पर तवष बाढ़ आती है, िजसके लगभग 31 तशत
भाग पर कृ ष फसल होती है । वैसे दे श क लगभग सभी न दय म बाढ़ आती है ले कन गंगा व
उसक सहायक न दय से उ तर दे श, बहार व बंगाल म बाढ़ से बहु त त पहु ँचती है । दे श म
तवष आने वाल बाढ़ से होने वाल कुल त का 72 तशत फसल , 20 तशत मकान , 8
तशत प रवहन एवं संचार साधन व सावज नक स पि त का नुकसान होता है ।
भारत म बाढ़ के आगमन क पूव सू धना तथा बाढ़ के नयं ण एवं बचाव के काय म
के लए के य एवं ा तीय तर पर व भ न योजनाएं चलाई जा रह है ।

6.17 श दावल (Glossary)


अनावृि ट : सामा य से बहु त कम वषा
च ड सू खा : वषा का अभाव सामा य वषा से 50 तशत अ धक ।

180
सामा य सू खा : वषा का अभाव सामा य वषा से 50 से 25 तशत के बीच ।
खर फ : वषा के आर भ पर बोई जाने वाल फसल ।
अकाल या
दु भ : वषा क नता त कमी से जीवन के सम उ प न संकट ।
अकाल राहत : सू खा के समय द जाने वाल सहायता ।
अ तवृि ट : सामा य से अ धक वषा
जलोढ़ : न दय वारा प रवहन कया जाने वाला अवसाद ।
धरातल य
वाह जल : धरातल पर बहने वाला वषा जल ।
शु क कृ ष : सामा यतया 50 सेमी. वा षक वाले भाग म क जाने वाल अ सं चत कृ ष
कृ म तटब ध : बाढ़ से सु र ा के लए न दय के कनार बनाया गया बाँध ।
झू मंग कृ ष : वन को साफ करके ा त क गई भू म पर क जाने वाल थाना त रत
कृ ष

6.18 स दभ ंथ (Reference book)


1. सु रेश च बंसल : भारत का -वृहत भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ, 2007
2. डॉ.डी. वी. पीराव : भारत क भौगो लका समी ा, वसु धरा काशन, गोरखपुर ,
2007
3. डॉ. चतुभज : भारत का भू गोल, सा ह य भवन पि लकेश स, आगरा, 2003
मामो रया
4. एवं डी. एससी. जैन
5. सव संह : पयावरण भू गोल, पु तक भवन, इलाहाबाद, 2007
6. अ का गौतम : भारत का वृहद भू गोल, शारदा पु तक भवन, इलाहाबाद,
2007
7. पी.आर.चौहान : भारत का वृहद भू गोल, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2007
एवं महातम साद
8. पी. एस. नेगी : पा रि थ तक एवं पयावरण भू गोल र तोगी पि लकेश स,मेरठ,
2006-07

6.19 बोध न के उ तर
बोध न 1
1. भारतीय मौसम व ान वभाग (आई.एमडी.) के अनुसार उस दशा को सू खा कहते है जब
कसी भी े म सामा य वषा से वा त वक वषा 75 तशत से कम होती है ।
2. कृ षगत सूखे का सवा धक सामािजक व आ थक भाव पड़ता है ।
3. प. राज थान, गुजरात, बहार, मराठवाड़, तेलगांना रायलसीमा, उ तर दे श तथा उड़ीसा
म काला हा डी और समीपवत े मु ख सू खा त े ह ।

181
4. भारत सरकार वारा इसक थापना सन ् 1973 म क गई थी ।
बोध न 2
1. मानव ज नत कारक म नमाणकाय, ती नगर करण, न दय के जल माग म प रवतन
न दय पर बाँध , पुल एवं जलभ डार का नमाण , कृ ष काय, वन- वनाश, भू म-उपयोग
प रवतन आ द मु ख है ।
2. उ तर का वशाल मैदान े ।
3. जब बाढ़ के समय अ त रका जल को न नभू मय गत या कृ म ढं ग से न मत जल-
वा हकाओं म मोड़ दया जाता है तो उसे बाढ़ द प रवतन कहते ह । इससे बाढ़ के
प रणाम म कमी हो जाती है ।
4. गंगा व उसक सहायक न दय वारा ।
5. दे श म आने वाल तवष बाढ़ से फसल , मकान , प रवहन एवं संचार साधन
सावज नक स पि त तथा जन-धन क ता का लक त पहु ँचती है ।

6.20 अ यासाथ न
1. सू खा कृ तज य के साथ-साथ मानव ज य भी ह । प ट क िजए ।
2. सू खा नयं ण के लए भावी उपाय बताइए ।
3. बाढ़ के कोप एवं उसके नयं ण पर सं त काश डा लए ।

182
इकाई 7 : ख नज संसाधन (Mineral Resources)
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 लौह अय क
7.2.1 लौह अय क के कार
7.2.2 लौह अय क भ डार
7.2.3 लौह अय क उ पादन का ादे शक वतरण
7.2.4 लौह अय क यापार
7.3 मगनीज
7.3.1 मह व
7.3.2 मगनीज के संर त भ डार
7.3.3 मगनीज उ पादन का ादे शक वतरण
7.3.4 मगनीज का यापार
7.4 तांबा
7.4.1 मह व
7.4.2 सं चत भ डार
7.4.3 तांबा उ पादन का ादे शक वतरण
7.4.4 तांबे का यापार
7.5 अ क
7.5.1 मह व
7.5.2 कार
7.5.3 अ क के संर त भ डार व उ पादन
7.5.4 अ क उ पादन का ादे शक वतरण
7.5.5 अ क यापार
7.6 सारांश
7.7 श दावल
7.8 स दभ थ
7.9 बोध न के उ तर
7.10 अ यासाथ न

7.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का उा ययन करने के प चात ् आप समझ सकगे :-
 ख नज का मह व, वग करण, भारत म ख नज क मु ख पे टयाँ
 भारत म लौह अय क के कार, सं चत भ डार, उ पादक े , वतरण, यापार
 भारत मे मगनीज के सं चत भ डार, उ पादक े , वतरण, यापार

183
 भारत मे तांबा के सं चत भ डार उ पादक े , वतरण, यापर
 भारत मे अ क खनन, कार, उ पादक े , वतरण, यापार

7.1 तावना (Introduction)


मानवं स यता के आ दकाल से मानव को मह वपूण ख नज व बहु मू य प थर का ान
था । कसी भी दे श के आ थक वकास म ख नज संसाधन क भू मका मह वपूण होती है ।
ख नज ह उ योग क आधार शला होते ह । आधु नक औ यो गक युग म ख नज क मांग,
उ खनन और उपगोग म ती वृ हु ई है । ख नज सव , खदान से उ खनन, प र करण,
यापार आ द संबं धत याओं से जनसं या को रोजगार मलता ह, दे श को वदे शी मु ा ा त
होती है । ख नज का औषधीय उपभोग भी मानवता के लए वरदान स हु आ है ।
व वध ख नज क ि ट से भारत एक समृ दे श ह । दे श म ख नज के सव ण ,
आकलन, दोहन, अनुसंधान, यापार हेतु अनेक तभाग क थापना क गई यथा भारतीय भू गभ
सव ण, रा य ख नज वकास नगम, ख नज एवं धातु यापार नगम, रा य मेटलिजकल
योगशाला, ख नज सलाहकार बोड, ख नज अ वेषण नगम ल मटे ड आ द । इनके अ त र त
नागपुर म भारतीय खनन यूर क थापना के साथ भारत ने चार े ीय ख नज वकास म डल
था पत कये ह, िजनके मु यालय उ तर म डल का अजमेर, पूव म डल का कोलकाता, म य
म डल का नागपुर व द ण म डल का बंगलौर म अवि थत है ।

7.11 ख नज संसाधन क मेखलाय (Belts of Mineral Resources)

भारत म ख नज का वतरण समान नह ं ह । भारत म पाये जाने वाले व वध कार के


ख नज को उनके वतरण के अनुसार न न मेखलाओं म सीमाब कया जा सकता है ।
1. बहार-झारख ड-उड़ीसा-पि चम बंगाल मेखला : यह मेखला छोटा नागपुर व समीपवत
े म फैल हु ई ह । यह मेखला लौह अय क, मगनीज, तांबा, अ क, चू ना प थर, इ मैनाइट,
फा फेट, मॉ साइट आ द ख नजो क ि ट से धनी है । इसमे झारख ड ख नज उ पादन क
ि ट से मु ख रा य है
2. म य दे श-छ तीसगढ़-आ दे श-महारा मेखला : इस मेखला म भी लौह अय क,
मगनीज, बाँ साइट, चू ना प थर, ऐ बे टॉस, ेफाइट, अ क, स लका, ह रा आ द बहु लता से
ा त होते है ।
3. कनाटक-त मलनाडु मेखला : यह इखला सोना, ल ना ट, लौह अय क, तांबा, मगनीज,
िज सम, नमक, चू ना ए थर के लये स है ।
4. राज थान-गुजरात मेखला : यह मेखला पै ो लयम, ाकृ तक गैस, यूरे नयम, तांबा,
ज ता, घीया प थर, िज सम, नमक, मु लानी म ी आ द ख नज क ि ट से धनी है ।
5. केरल मेखला : केरल रा य म व तृत इस मेखला म इ मैनाइट, िजरकन, मोनोजाइट
आ द अणु शि त के ख नज, चकनी म ी, गारनेट आ द बहु लता से पाये जाते है ।
उ त मेखलाओं के अ त र त न न े म ख नज उपल ध होते ह ।

184
1. असम-अ णाचल े म ाकृ तमक गैस, पै ो लयम मलता है ।
2. ज मु-क मीर, हमाचल, उ तराखंड, आ द े म कोयला, िज सम, चू ना प थर आ द
मलते ह ।
3. अरब सागर म ख भात क खाड़ी, मु बई हाई, बसीन क कण, ल वीप म, बंगाल क
खाड़ी े म ख नज तेल व ं ा, शैल, मोती आ द पाये जाते ह ।
ाकृ तक गैस के अ त र त मू ग
कावेर , कृ णा, गोदावर बे सन म भी ख नज तेल व ाकृ तक गैस के भ डार मले है ।
उपरो त ववरण से प ट ह क दे श म अ धकांश ख नज कठोर, अ यंत ाचीन शैल से
न मत ाय वीपीय भाग म मलते ह जब क गंगा-सतलज- मपु का मैदानी भाग बालू कंकड़
आ द नवीन शैल से न मत ह, ख नज का यहां अभाव है ।

7.1.2 भारत म उपल ध ख नज संसाधन (Available Mineral Resources in India)

वृहद तौर पर भारत म 125 कार के ात ख नज म आ थक ि ट से बड़े पैमाने पर


मह वपूण ख नज क सं या 35 ह । योजना आयोग ने भारत म ख नज क उप धता व मह ता
के आधार पर 3 े णय म वभ त कया है-
1. पया त उ पादन के साथ आ थक मह व वाले ख नज : लौह अय क, मगनीज, अ क,
कोयला, सोना, इ मैनाइट, बॉ साइट व भवन नमाण साम ी आ द ।
2. पया त संर त भ डार वाले ख नज : औ यो गक म यां, ोमाइट, अणु ख नज
आ द।
3. औ यो गक ि ट से मह वपूण क तु अ प उपल धता वाले ख नज : टन, ग धक,
न कल, तांबा, कोबा ट, ेफाइट, पारा, ख नज तैल आ द ।
नवीन भौग भक रव णो वारा दे श मे ाकृ तक गैस, ख नज तेल, सीसा, ज ता, ताश,
सोना पाइराइट, फा फेट, िज सम, ल नाइट आ द आ थक ि ट से मह वपूण ख नज के नये
भ जार पाये गये ह ।
भारत म ख नज संसाधन के भ डार :
दे श मे मु ख ख नज के संर त भ डार न नानुसार है ।
ता लका 7.1
भारत क ख नज स पदा भ डार
ख नज भ डार (करोड़ टन म) ख नज भ डार (करोड़ टन म)
कोयला 24411 डोलोमाइट 734.90
ल नाइट 371 बेरासइट 8.50
लोह धातु 1231 ोमाइट 11.4
मैगनीज 40.60 िज सम 7.60
तांबा 71.25 अि न म ी 7.70
बॉ साइट 307 चू ना प थर 169.94
न कल 18.87 काओ लन 235
फा फेट ख नज 19.32 ससां एवं ज ता 23.1

185
एपेटाइट 20(लाख टन) सोना 222 टन
मै नेसाइट 41.50 ह रा 9.82कैरे ट
इ मेनाइट 37 लूसपार 141.51(लाख टन)
कायनाइट 160(लाख टन) तंग टन 4.31
ेफाइट 160(लाख टन) अ क 59065

ोत : इि डया, 2008
भारत म मह वपूण ख नज का उ पादन न न ता लका म दखाया गया है
ता लक 7.2
ख नज धन उ पादन मा ा मू य(करोड़ .) उ पादन मा ा मू य(करोड़ .)
2004-05 2006-07
कोयला ( म लयन टन) 382 27250 430 34245
ल नाइट ( म लयन टन) 30 1970 31 2262.9
ा. गैस ( म लयन टन) 30828 8940 31800 9209
पै ोल (अशु म लयन टन) 34 18946 33 18221
धाि वक ख नज -
ोमाइट (हजार टन) 3610 815 4101 1171.6
लौह अय क (हजार टन) 140462 5406 172296 9695
मगनीज (हजार टन) 2375 467 1822 477
बॉ साइट (हजार टन) 11598 264 13075 303
तांबा अय क (हजार टन) 146 199 - -
सोना ( क ा.) 3638 192 2937 199.6
सीसा (हजार टन) 82 67 109 89.3
ज ता (हजार क ा.) 667 401 1020 647
अधाि वक ख नज -
ह रा (कैरे ट) 78297 34 2769 1.98
डोलोमाइट (हजार टन) 4506 88 4433 104
िज सम (हजार टन) 35 42 2207 29.68
चू ना प थर ( म लयन टन) 161 1595 179 2018.2
मै नेसाइट (हजार टन) 282 53 221 32.2
बेराइ स (हजार टन) 1085 47 1459 73.7
ट टाइट (हजार टन) 708 33 576 29

ोत : इि डया, 2006 व 2008


यहाँ आपको भारत के न न उ पादन, नयात व औ यो गक ि ट से सबसे मह वपूण ख नज
क जानकार द जायेगी, यथा लौह अय क, मगनीज, तांबा तथा अ क ।

7.2 लौह अय क(Iron Ore)


आधु नक औ यो गक स यता का आधारभू त ख नज - लौह अय क के भ डार व
उ पादन क ि ट से भारत व व का एक मह वपूण दे श ह ।

186
7.2.1 लौह अय क के कार Types of Iron - Ore)

भारत म लौह अय क मु यत: 4 कार का ा त होता है :-


1. मै नेटाइट : यह सव च क म का लौह अय क होता है, िजसम शु धातु का अंश 72
तशत तक होता है । इसका रं ग काला होता है । इसम चु बक य लोहे के ऑ साइड होते ह ।
मै नेटाइट अय क के भ डार कनाटक, आ दे श, त मलनाडु , गोवा, झारख ड आ द रा य म
पाये जाते ह ।
2. हे मेटाइट : यह लाल या भूरे रं ग का होता है । इसम शु धातु क मा ा 60-70 तशत
तक होती है । यह मु यत: झारख ड, म य दे श, उड़ीसा, महारा , कनाटक व गोवा रा य म
मलता है ।
3. लमोनाइट : इसका रं ग पीला या ह का भू रा होता है । इसम 40 से 60 तशत तक
शु धातु का अंश होता है । पि चमी बंगाल, उ तराखंड, हमाचल दे श आ द रा य म इस
क म का लोहा पाया जाता है ।
4. सडेराइट ; इस क म के लोहे का रं ग ह का भू रा होता है । इसम धातु का अंश 40 से
48 तशत तक होता है तथा अशु यां अ धक होती है ।

7.2.2 लौह अय क के संर त भ डार (Reserves of Iron - ore)

व व प र े य म लौह अय क के सं चत भ डार क ि ट से भारत बहु त धनी दे श ह ।


सव ण के अनुमान के अनुसार भारत म व व के कुल सं चत भ डार का एक चौथाई भाग
न हत है । क चे लोहे क ि ट से भारत का व व म थम थान है ।
लौह अय क के सं चत भ डार क ि ट से भारत के दो े सवा धक मह वपूण ह :-
अ. ाय वीपीय े का उ तर पूव पठार भाग जो झारख ड , उड़ीसा तथा म य दे श व
छ तीसगढ़ रा य म व तृत ह । उ तम क म का मै नेटाइट व हे मेटाइट लौह
अय क के संर त भ डार यहाँ न हत है ।
ब. ाय वीपीय े का द णी पि चमी द कन दे श – 1. इस े के अंतगत
कनाटक, गोवा, महारा के े सि म लत होते ह । अ धकांश लौह अय क
धारवाड़ म क च ान म पाया जाता है ।
भारतीय भू गभ वभाग के सव ण के अनुसार भारत म अनुमानत: दोहन यो य
मै नेटाइट लौह अय क के 340.8 करोड़ टन तथा हेमेटाइट लौह अय क के लगभग 1005.2
करोड़ टन सं चत भ डार पाये जाते ह ।
सव ानुसार लौह अय क के संर त भ डार दे श के व भ न भाग म पाये जाते ह
क तु मा 6 रा य -झारख ड उड़ीसा, म य दे श, छ तीसगढ़, कनाटक तथा गोवा म दे श के कु ल
संर त भ डार का लगभग 9 तशत नी हत है । संर त भ डार क ि ट से झारख ड म
भारत के कु ल लौह अय क भ डार का लगभग 25 तशत सं चत है तथा वह इस ि ट से दे श
म अ णीय रा य ह ।

187
दे श के अ य रा य म इसके बाद उड़ीसा (21%), कनाटक (20%), म य दे श व
छ तीसगढ़ (18%) तथा गोआ (11%) मु य है ।

7.2.3 लौह अय क के उ पादन का ादे शक वतरण

(Regional Distribution of Iron Production)


व व म लौह अय क उ पादक रा य म भारत का सातवां थान ह । दे श म लौह
अय क उ पादन म वतं ता ाि त प चात ् नर तर वृ हु ई है । वष 1950-51 म लौह अय क
का उ पादन जहां 4.1 म लयन टन (मू य लगभग 3 करोड़ .) था, वह 10 वष प चात ् 1960-
61 म 4 गुना से अ धक बढ़कर 18.7 म लयन टन हो गया । लौह अय क उ पादन 2002-03
म वष 1960-61 क तु लना म लगभग 5 गुना बढ़कर 96.9 म लयन टन हो गया । ि यका
मू य लगभग 2700 करोड़ पये था । वष 2005-06 म उ पादन बढ़कर 14.0 करोड़ टन हो
गया ।
ता लका 7.3
भारत - लौह अय क का उ पादन
उ पा दत वष उ पादन ( म लयन टन म) मू य (करोड़ .म)
1950-51 4.1 2.3
1960-61 18.7 13.5
1970-71 34.3 40.1
1980-81 41.6 144.3
1990-91 54.9 535.7
2000-01 74.9 21117.9
2001-02 86.2 2496.9
2002-03 96.9 2710.4
ोत : टे टि टकल एब े ट इं डया 1997 व 2003

मान च 7.1 लौह अय क का वतरण

188
भारत म रा य के अनुसार लौह अय क का उ पादन न न ता लका से प ट है क
लौह अय क मुख उ पादक रा य म कनाटक, उड़ीसा, छ तीसगढ़, गोआ,झारख ड मु य है ।
ता लका 7.4
भारत के मु ख रा य म लौह अय क का उ पादन
.सं. रा य उ पादन ( म लयन टन म)
1. कनाटक 24.0
2. उड़ीसा 21.5
3. तीसढ़ 19.3
4. गोआ 17.5
5. झारख ड 13.7
6. अ य 0.9
7. योग 96.9
ोत - टे टि टकल एव े ट ऑफ इि डया, 2003
कनाटक :
यह रा य भारत के लौह अय क उ पादक रा य म अ णीय रा य ह । जो दे श के कुल
लौह अय क का लगभग एक चौथाई भाग उ प न करता है । उ च को ट का लौह अय क
चकमंगलूर िजले क बाबाबूदन पहा ड़य म केमनगुडी , क मु ख, कालाहाड़ी तथा बे लार िजले म
हारपेट- संदरू खदान ह । यहां लोहांश 65 तशत तक होता है तथा मु यत: मै नेटाइट व
हे मेटाइट क म का लौह अय क पाया जाता है ।
अ य लौह अय क उ पादक िजल म च दुग, उ तर क नड, शमोगा, धारवाड़, व
टु मकुर मु य ह ।
बोध न : 1
1. भारतीय खनन यू र का मु यालय कहाँ है?
2. भारत सरकार वारा था पत चार े ीय ख नज वकास म डल (उ तर , पू व ,
म य , द णी म डल) कहाँ था पत है ?
3. मे ने टाइट अय क म शु लौह धातु क मा ा कतने तशत तक पायी जाती
है ?
4. लौह अय क के सं चत भ डार क ि ट से भारत म कौन सा रा य थम थान
पर है ?
5. कनाटक म बाबाबदू न क पहा ड़याँ कस ख नज के खनन के लए स है ?
उड़ीसा :
यहाँ दे श का लगभग 22 तशत लौह अय क ा त होता ह । यहाँ लौह अय क
उ पादन क ि ट से मयूरभंज िजल म गो मा हसानी बादाम पहाड़, सु लेपट मु य ह जहां
लोहांश क मा ा 60 तशत से अ धक ह । अ य े म सु दरगढ़ िजले का बोनाई े तथा
य झर िजल म बांसपानी, क ब क खान अ धक स है । इन सभी े म हेमेटाइट

189
क म का लौह अय क ा त होता है । स बलपुर, कटक आ द िजल से भी लौह अय क
उ पा दत होता है ।
छ तीसगढ़ :
यह रा य दे श के कुल लौह अय क का लगभग 20 तशत उ पादन करता ह । यहाँ
उ तम क म का मै नेटाइट व हे मेटाइट लौह अय क पाया जाता ह । यहां मु य लौह अय क
उ पादक िजल म ब तर, दुग रायगढ, बलासपुर, म डला, बालाधाट सरगूजा आ द है ।
इनम ब तर िजल म अवि थत बैलाडीला एवं राव घाट तथा दुग िजले क द ल,
राजहरा सबसे स खान ह, बैलाडीला क लौह अय क खान ए शया क सबसे बड़ी यं ीकृ त
खान म से एक ह, जहां भारतीय खनन वकास नगम वारा खनन काय कया जाता है । यहां
48 क.मी.ल बी प ी म 14 लौह अय क भ डार अवि थत ह । यहां लगभग 1422 म लयन
टन लौह अय क के संर त भ डार ह । यहां से लौह अय क वशाखाप नम बंदरगाह वारा
जापान को नयात भी कया जाता है ।
गोवा :
भारत के अ य लौह अय क उ पादन खनन े क तु लना म यहां क खनन े का
वकास ती ग त से हु आ है । वतमान समय म यह दे श का लगभग 18 तशत लौह अय क
उ पादन करने वाला रा य ह हांला क कुछ वष तक इसका थम थान भी रहा । 1975 म
भारतीय भू ग भक सव ण वभाग ने उ तर , म यवत व द ण गोवा म 34 लौह अय क के
संर त भ डार क अं कत कया । यहां मु यत: लमोनाइट व सडेराइट क म का लौह अय क
पाया जाता है । यहां क खान खु ल हु ई तथा मशीनीकृ त ह । परना अदोल, पाले ओनड़ा,
कु डनेम- पस लेम, वचो लग- स रगांव अरवालम, कु डनम- डगनेस-सरल बेलगाम-पाले, बराजाम-
बलेना आ द मु य स लौह अय क े ह । यह से लौह अय क मारमु गोआ बंदरगाह वारा
व व के अ य दे श को नयात कया जाता ह ।
झारख ड :
ख नज क ि ट से इस धनी रा य को दे श के लौह अय क संर त भ डार का
लगभग 25 तशत भाग अवि थत ह तथा दे श के कुल लौह अय क उ पादन का लगभग 18
तशत इस रा य से ा त होता है । यह से अ धकांशत: उ च क म का मै नेटाइट व हे मेटाइट
लौह अय क ा त होता ह । इस रा य के लौह अय क उ पादक िजल म संह भू म, पलामू
हजार बाग, संथाल परगना, धनबाद, रांची मु य ह ।
इनम संहभू म िजला उ लेखनीय उ पादक े ह । यह इस े क मु ख खादान
नोदूबू , नोटू बू , गोआ, पसार बु बांसगडा आ द ह । झारख ड क लौह अय क क पेट उड़ीसा
क लौह अय क पेट से सतत ् प से जुड़ी हु ई है । पलामू िजले का डा टनगंज भी लौह अय क
उ पादन के लये स ह । उ त खादान से ा त लौह अय क जमशेदपुर, बनपुर , कु ट ,
दुगापुर , व रकेला ि थत ट ल कारखान को भेजा जाता है ।

190
महारा :
इस रा य के लौह अय क उ पादक े इसके पूव तथा द ण पि चम दो धु र े म
व तृत है । थम पूव धु र े चांदा िजले म अवि थत ह - इस े म पीपलगांव दे वलागांव
लोहरा, सू रजगढ़, असोला मु य खदान ह ।
दूसर द णी पि चमी धु र े र ना ग र िजल म ि थत ह । यहाँ रे डी, गु डू र,
वेनगूरला, सावतवाद मु य लौह अय क खदान ह ।
आ दे श :
अ धकांशत: इस रा य म 50 से 60 तशत शु ता वाले लौह अय क के जमाव पाये
जाते ह, कु छ े म मै नेटाइट क म के लौह अय क के भी संर त भ डार पाये जाते ह ।
कृ णा, गु , कु ड पा, अन तपुर , कनू ल, ने लोर, ख माम आ द िजल म मै नेटाइट क म का
लौह अय क पाया जाता ह । आ दलाबाद, कर मनगर नजामाबाद लौह अय क के सबसे स
उ पादक े ह ।
त मलनाडु :
इस रा य म उ तम क म का मै नेटाइट लौह अय क सालेम िजल म पाया जाता ह ।
यहाँ कजामलाई ग डू मलाई, को लामलाई, तीथमलाई पहा ड़य पर लौह अय क के मु य जमाव ह
। अ य े म पंचमलाई, धरतामलाई, छे तर , अ तूर, महादे वी क पहा ड़या मु य है ।
ह क क म का लौह अय क कोय बटू र, मदुरै, त नवेल , रामनापुरम िजल म पाया
जाता ह । उपरो त के अ त र त लौह अय क उ तर अकाट व नील ग र िजल म भी पाया जाता
है । रा य क लौह खदान से ा त लोहा सालेम ि थत इ पात कराखान क आव यकता पू त
करता है ।
गुजरात :
यह लमोनाइट क म का लौह अय क पाया जाता ह । यहाँ पोरब दर, भावनगर,
नवागर बड़ोदरा जू नागढ, खा डे वर आ द लौह अय क उ पादक िजले मु य ह ।
केरल :
इस रा य म कोजीकोडे िजला लौह अय क उ पादन क ि ट से मह वपूण ह । यह
इल चेतीमाला चे रा, आलमयादा नान भंडा आ द मुख लौह अय क उ पादक े ह । यहां
मै नेटाइट क म का लौह अय क पाया जाता ह ।
राज थान :
राज थान म हेमेटाइट क म का लौह अय क पाया गया ह । लौह अय क उ पादन क
ि ट से राज थान एक मह वपूण रा य नह ं ह । यहां लौह अय क उ पादक े म जयपुर
िजल म मोर जा बानोल े , दौसा िजले नीमला उदयपुर िजले म नाथरा क पाल मु य ह ।
ं , डू ग
अ प मा ा म लौह अय क बूद ं रपुर, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा आ द िजल म भी पाया जाता है ।
ह रयाणा, पि चमी बंगाल, ज मू क मीर, उ तराखंड, उ तर दे श एवं हमाचल दे श :
रा य म लमोनाइट क म का लौह अय क पाया जाता है ।

191
ह रयाणा रा य म महे गढ़ िजल म लौह अय क ा त होता है, पि चमी बंगाल म
दािज लंग पहाड़ी े , व वान, वीरभू म े म लौह अय क के जमाव ह । अ प मा ा म ज मू
क मीर म उधमपुर व ज मू े म, उ तराखंड म गढ़वाल, अ मौड़ा, नैनीताल े म, हमाचल
दे श म कांगड़ा व मंडी े म, उ तर दे श म मजापुर िजले म भी लौह अय क पाया जाता
है।

7.2.4 लौह अय क का यापार (Trade of Iron ore)

भारत के वदे शी यापार म लौह अय क के नयात क मह वपूण भू मका है । अनुमान


ह क भारत म कु ल ख नज नयात मू य म 60 तशत योगदान लौह अय क दान करता ह
तथा व व के कु ल लौह यापार का लगभग 8 तशत भारत से ा त होता ह । भारत के कुल
लौह अय क उ पादन का 50-60 तशत भाग नयात कया जाता ह । उ लेखनीय ह क भारत
से कुल लौह अय क नयात का लगभग 60 तशत भाग जापान को भेजा जाता है । शेष
चैको लोवा कया, मा नया, बेि जयम हंगर , ईरान, इटल आ द भारतीय लौह अय क के
आयातक दे श ह ।
ता लका 7.8
भारत : लौह अय क का नयात
वष लौह अय क का नयात मू य (करोड़ . म)
1960-1961 3.2 17
1970-1971 21.2 117
1980-1981 22.4 303
1990-1991 32.5 1049
2000-2001 20.2 1634
2001-2003 23.08 2034
2002-2003 57.09 4500
ोत - टे टि टकल एव े ट ऑफ इि डया, 2003
भारत से लौह अय क का नयात वशाखाप नम, पाराद प, मारमगोआ तथा मंगलूर
आ द बंदरगाह वारा स प न कया जाता है । वष 1960-61 म भारत से 3-2 म लयन टन
लौह अय क का नयात हु आ था वष 2000-2001 म यह लगभग 6 गुना बढ़कर 20.3 म लयन
टन हो गया क तु उ लेखनीय है क लौह अय क का नयात मू य वष 1960-61 म 17 करोड़
. से वष 2000-2001 म 96 गुना बढ़कर 2034 करोड़ हो गया ।
वष 2002-2003 म भारत से कु ल 57 म लयन टन लौह अय क का नयात हु आ
िजसका नयात मू य 4200 करोड़ था । अत: वष 2001-02 से 2002-03 म य लौह अय क का
ु े से अ धक है । वष 2005-06 म 19829 करोड़
नयात मा ा व नयात मू य दोन दुगन पये के
क चे लोहे का नयात कया गया जब क 2004-05 म 14726 करोड़ पये का नयात कया
गया है ।

192
बोध न : 2
1. व व के कु ल अय क यापार का भारत से लगभग कतने तशत ा त होता
है ?
2. भारत के कु ल लौह अय क का सवा धक भाग कस एकमा दे श को हय जाता
है ?
3. भारत के पू व तट तथा पि चमी तट के एक-एक बं द रगाह का नाम उ ले खत
क िजएं जहाँ से लौह अय क नयात कया जाता है ?

7.3 मगनीज (Manganese)


7.3.1 मह व (Importance)

मगनीज एक व वध उपयोगी धातु ह । हालां क मगनीज का अ धकांश उपयोग धातु


नमाण काय म होता है, िजसम लौहा और मगनीज के म ण से न मत फैर मगनीज के
योग से अ य धक कठोर ढ़ तथा कम घसने वाला इ पात बन जाता ह जो यु के टक, खनन
यं आ द के नमाण म काम आता है । मगनीज तांबे के म ण से टबाइन ले स बनाय जाते
ह, ए यू म नयम के साथ मलाकर व युत तरोधक तार बनाये जाते ह , कांसे के साथ म त
कर जलयान के ोपेलर बनाये जाते ह ।
इनके अ त र त मगनीज का ल चंग पाऊडर, क टनाशक दवाओं, रसायन, वा नश,
टाइ स, लोर न गैस, आ सीजन, बै नमाण, काँच बनाने आ द म भी उपयोग होता है ।

7.3.2 मगनीज के संर त भ डार (Reserves of Manganese)

भारत म मगनीज के कुल भ डार लगभग 23.3 करोड़ टन आंके गय ह । मगनीज के


कु ल भ डार क ि ट से भारत का व व म िज बा बे के प चात ् दूसरा थान है । संर त
भ डार क ि ट से कनाटक का दे श म 37.8 तशत के साथ थम थान है । इसके प चात ्
मक प से उड़ीसा म 17.6 तशत, म य दे श म 10.4 तशत, महारा म 7.8 तशत
मगनीज के भ डार अवि थत ह तथा शेष रा य म गोआ, आ दे श गुजरात, राज थान,
झारख ड, पि चमी बंगाल आ द मु य ह जहां अ प मा ा म मगनीज के संर त भ डार ह । दे श
के मगनीज भ डार म 45 तशत या अ धक धातु का अंश पाया जाता है ।

7.3.3 मगनीज उ पादन का ादे शक वतरण

(Regional Distribution of Manganese Production)


भारत मगनीज उ पादन मे व व का पांचवा बड़ा दे श ह । भारत म वगत कई दशक से
मगनीज उ पादन नह ं हु आ, इस ता लका से प ट ह :-

193
ता लका 7.8
भारत म मगनीज उ पादन
वष मगनीज उ पादन (लाख टन मे)
1950-51 13.98
1960-61 14.05
1970-71 18.41
1980-81 15.32
1990-91 13.88
2000-01 15.19

2002-31 16.62
ोत : टे टि टकल एब े ट ऑफ इि डया, 2003

मान च 7.2 मगनीज े


भारत म वष 1950-51 म मगनीज का उ पादन 13.98 लाख टन हु आ था, जब क वष
2002-03 म यह 16.62 लाख टन हु आ । इस स पूण काल म दे श म मगनीज उ पादन म
प रवतन यूना धक होता रहा । वतं ता ाि त प चात ् काल म मगनीज के मू य म बहु त
अ धक वृ हु ई ह । वष 1950-51 म उ पा दत मगनीज का मू य 10.6 करोड़ . था, जब क
वष 2002-03 म उ पा दत मगनीज का मू य क मत वृ के कारण 245.5 करोड़ . था । वष
2005-06 म भारत म 19.63 लाख टन मगनीज अय क का उ पादन हु आ था ।
ता लका 7.9
भारत - रा यानुसार मगनीज का उ पादन (2002-03)
रा य उ पादन (लाख टन म)
उड़ीसा 6.16
महारा 3.97
कनाटक 2.23
आ दे श 0.73

194
अ य 0.14
योग 16.62
ोत - टे टि कल एब े ट ऑफ इि डया-2003
उ त ता लका से प ट है क भारत के कुल मगनीज उ पादन का लगभग 99 तशत
भाग उड़ीसा, महारा , कनाटक तथा आ दे श रा य से ा त होता ह । उड़ीसा तथा महारा
संयु त प से दे श म कुल मगनीज उ पादन का लगभग आधा भाग मगनीज पैदा करते ह ।
उड़ीसा : भारत म मगनीज उ पादन म इस रा य का थम थान ह । दे श के कुल मगनीज
उ पादन का यहां से लगभग 37 तशत ा त होता ह । यहां 40 से 50 तशत धातु शु ता
वाला मगनीज पाया जाता है । यहां मगनीज उ पादक मु य िजले - सु दरगढ़, य झर,
कालाहांडी, कोरापुर , ढकनाल, तालचेर, गंगापुर व स बलपुर आ द है।
महारा : महारा दे श के कुल मगनीज का लगभग 24 तशत उ पादन के साथ दूसरा मु ख
रा य ह । यहाँ नागपुर, भ डारा व र ना गर मगनीज उ पादन क ि ट से मु ख ह । नागपुर
िजले म मगनीज क मु ख खपत 19 वग क.मी. े म व तृत ह । यहां मु ख खदान
रामड गर भ डार खोल , धवल , सा दर चोखावल , चरगावां, नगरधान आ द ह । भ डारा िजले
के मु ख उ पादक े - कु समवाह, अशोलपानी, ड गर , सीतासोगी नवगांव व कांदे रया आ द है।
म य दे श : म य दे श म दे श का लगभग 20 तशत मगनीज उ पादन होता ह । म य दे श म
मगनीज उ पादक े 20 क.मी. ल बी तथा 16 क.मी.चौड़ी पेट म बालाघाट - छ दवाड़ा
िजल मे व तृत ह । मगनीज उ पादक अ य िजले - बलासपुर , झाबुआ, माडला, घाट, ब तर,
जबलपुर व इंदौर ह ।
उ लेखनीय है क म य दे श क बालाघाट व छंदवाड़ा मगनीज पेट सतत ् प से
महारा म नागपुर -भ डारा तक 200 क.मी.ल बी व 16 से 25 क.मी.चौडी व तृत है ।
कनाटक : इस रा य म 30 से 50 तशत धातु शु ता वाला मगनीज ा त होता ह । यह रा य
दे श के कु ल उ पादन का 16 तशत मगनीज उ पादन करता ह । यहाँ के मु ख उ पादक िजले
- चतलदुग, धारवाड़, बेलगाम, बेलार , संदरू , शमोगा, उ तर कनारा चकमंगलू र, बीजापुर आ द
ह । इनम बेजापुर िजला सबसे मु ख मगनीज उ पादक े ह । भ ावती व सलेम ि थत
कारखान म यहां से मैगनीज क आपू त क जाती ह । आ दे श दे श म मैगनीज उ पादन म
इस रा य का पांचवा थान ह । यहां के उ पा दत मगनीज म 25 से 55 तशत धातु शु होती
ह । इस रा य म मुख मैगनीज उ पादक िजले कु डामा, वशाखाप नम तथा ीकाकुलम ह ।
अ प मा ा म वजयनगर, गु त
ं ु र िजल से भी मगनीज ा त कया जाता है ।
झारख ड : इस रा य म संहभू म, धनबाद व हजार बाग िजल से मगनीज ा त होता है ।
संहभू म िजले म मगनीज मु य प से वीरपु पुर, चाइबासा, बसाडेरा, पहाड़पुर े मे पाया
जाता है ।
अ य े : इनके अ त र त अ प मा ा म अ य रा य म भी मगनीज पाया जाता ह । गोवा म
परनेम बरदार े से मगनीज ा त होता है ।

195
गुजरात : गुजरात म मगनीज उ पादन क ि ट से दो िजले पंचमहल तथा बडोदरा मु य ह ।
पंचमहल िजल म जाटवद, शवराजपुर , दोहद, वामनकु आ व भाट आ द मु ख मगनीज उ पादक
े ह । वडोदरा म खाडी तथा उनाध रया े म मगनीज पाया जाता ह । अ पमा ा म घ टया
क म का मगनीज सावरकाठा तथा बनासकाठा िजल म पाया जाता ह ।
राज थान : यहाँ का अ धकांश मगनीज बांसवाड़ा िजल से ा त होता ह । इसके अ त र त
ं रपुर, उदयपुर सरोह , पाल िजल म मगनीज पाया जाता ह । उदयपुर िजल म नाथ वारा,
डू ग
दे बार तथा सागरवाड़ा े म भी मगनीज उ पा दत होता ह । पाल िजल म ह रापुर े से
मगनीज पाया जाता है ।

7.3.4 मगनीज का यापार (Trade of Manganese)

भारत व व म मगनीज का छठा बड़ा नयातक दे श है । यहां से मगनीज को क ची


धातु के प म ह नयात कर दया जाता ह । फैरामगनीज म प रव तत करके मगनीज नयात
करना अ धक लाभकार ह । भारत म मगनीज का नयात जापान, ेट टे न, संयु त रा य
अमे रका, ांस, जमनी, बेि जयम, वीडन, यू े न लोवा कया , पौलड, चेक गणरा य आ द दे श
को कया जाता ह । मगनीज नयात का लगभग 50 तशत से अ धक जापान को होता है ।
वयं दे श म मगनीज उपभोग म वृ होने से इसका नयात नर तर मश: कम हो
रहा ह । हालां क मगनीज क अ तरा य क मत बढ़ने से इसके के नयात मू य म वृ हो रह
ह । वष 1950-51 म 10.6 करोड़ . क तुलना म वष 2002-03 म 245.3 करोड़ . मू य का
मगनीज नयात हु आ था ।
ता लका 7.10
मगनीज का नयात
वष नयात (लाख टन म)
1970-71 16.36
1980-81 6.09
1990-91 3.18
2000-01 2.65
2001-02 2.48
2002-03 3.30
ोत : टे टि टकल एब े ट इि डया, 2004
बोध न : 3
1. मगनीज एवं तां बा धातु म ण से या बनाये जाते ह ?
2. वष 2002-03 म भारत म मगनीज उ पादन म कौनसा रा य थम थान पर
था ?
3. कालाहां डी े कस ख नज उ पादन के लये स है ?
4. उड़ीसा रा य से भारत म कु ल मगनीज उ पादन का कतना तशत भाग ा त
होता ह ?

196
5. राज थान म मु ख तां बा उ पादन का अ धकां श भाग कस िजले से ा त होता
ह?

7.4 तांबा (Copper)


7.4.1 मह व

तांबा एक ऐसी धातु है िजसका मानव वारा उपयोग स यता के आ द काल से होता रहा
ह । यह धातु बजल का सुचालक तथा अघातवतनीय आ द अपने वशेष गुण के कारण बजल
के तार, मोटर इंजन, बजल के ब व, डायनम , रे डय , दूरभाष व अ य व युत उपकरण म
वशेष उपयोगी ह ।
ाचीनकाल से स के, बतन, जेवर, आभू षण, रसायन व दवाइय म इस धातु का
उपयोग होता रहा ह । दूसर धातु ओं म तांबे को म त कर अनेक उपयोगी धातु एं तैयार क
जाती ह िजसम तांबा म रांगा मलाकर कांसा, सोना मलाकर रो ड गो ड, ज ता मलाकर
पीतल, सीसा मलाकर इ पात आ द बनाये जाते ह ।

7.4.2 सं चत भ डार (Reserve of Copper)

यह लाल भूरे रं ग क अलौह धातु ाचीन रवेदार एवं पा त रत च ान म स फाइड,


ऑ साइड, लोराइड एवं काब नेट के साथ म त प म पाया जाता ह । यह चांद , टन, सोना
आ द धातु ओं के साथ म त प म भी पाया जाता है । तांबे क धातु म ता अय क औसत
प से 1.5 या 2 तशत या अ धकतम 6 तशत अंश ह पाया जाता ह । भू वै ा नक
अ ययन के अनुसार भारत म दोहन यो य तांबे के लगभग 71.25 करोड़ टन भंडार ह । इसम
लगभग 94 लाख टन ता धातु उपल ध ह । इसके सबसे अ धक व तृत भंडार झारख ड,
म य दे श तथा राज थान ह । उ लेखनीय ह क दे श के कु ल सं चत ता भ डार का 85
तशत इ ह ं तीन रा य म अवि थत ह तथा इनम भी झारख ड का (लगभग 44 तशत)
भारत म थम थान ह । अ प मा ा म तांबे के भ डार आ दे श कनाटक, गुजरात, सि कम,
उड़ीसा, उ तराखंड व पि चमी बंगाल म भी पाये जाते ह ।

7.4 तांबा उ पादन व ादे शक वतरण (Regional Distribution of


Copper production)
भारत म ताँबे के उ पादन मे कई मह वपूण ब दु यात य ह । वष 1950-51 मे 3.74
लाख टन से बढ़कर वष 1970-71 के म य 20 वष मे ताँबे का उ पादन 6.66 लाख टन होकर
ु ा हो गया तथा वष 1970-71 क तुलना मे वष 1980-81 म
पूव क तु लना म लगभग दुगन
6.66 लाख से तीन गुना बढ़कर 21.72 लाख टन हो गया, जब क वष 1990-91 म इसका
रकॉड उ पादन म 52.90 लाख टन हो गया - कं तु इसके प चात ् इसके उ पादन म नरं तर कमी

197
होकर वष 2004-03 म मा 1.53 लाख टन रह गया । वष 2006-07 म उ पादन लगभग
1.25 लाख टन ह हु आ ।
ता लका 7.11
भारत मे तांबा अय क का उ पादन
वष उ पादन (लाख टन म)
1950-51 3.74(मू य 1.94 करोड़ .)
160-61 4.23
1970-71 6.66
1980-81 21.72
1990-91 52.90
2000-01 1.64
2004-05 (मू य 242.96 करोड़ .)
ोत भारत, 2006
भारत म मु ख तांबा उ पादक रा य न नानुसार ह :-
चू ं क भारत म तांबा संर त मु य भ डार सी मत े म सं चत ह । अत: भारत म
इसका उ पादन कुछ रा य म मु य प से झारख ड, राज थान, म य दे श, कनाटक, आ दे श
म अ धक केि त ह । अ य रा य म त मलनाडु , महारा , पि चम बंगाल, बहार, उ तराखंड,
हमाचल दे श, सि कम आ द है ।
झारख ड : तांबा संर त भ डार व उ पादन क ि ट से इस रा य का भारत म थम थान ह
। दे श के कुल तांबा उ पादन का लगभग आधा भाग यहाँ से ा त होता ह । यहां के मु य तांबा
उ पादक िजल म संहभू म, मानभू म, हजार बाग, लोहरडागा, कोडरमा, गरडीह, पलामू आ द ह
। संहभू म िजला मु य उ पादक े ह जहां 130 क.मी.ल बी पेट म तांबा न ेप पाये जाते ह
। इस े म 2 खदान से ा त तांबे म 1.7 तशत से 2.7 तशत शु धातु पायी जाती ह ।
यह मु ख तांबा उ पादक खनन े स नामाखी, मोसाबानी, घाट शला, धोबनी, राजदाहा,
तामापहाड, मु रमडीस आ द ह । मोसाबानी खान म तांबा उ पादन काय भारतीय तांबा नगम
वारा संचा लत कया जाता है ।
राज थान : भारत का दूसरा बड़ा तांबा उ पादक रा य कहलाता ह । भारत के कु ल तांबा उ पादन
का लगभग 40 तशत यहाँ से ा त होता ह । रा य म तांबे के 13 करोड़ टन से अ धक
भ डार का अनुमान ह । रा य म तांबा उ पादक मु य िजल म झु झूनू, अलवर, उदयपुर ,
भीलवाड़ा, चु , झालावाड़ व दौसा आ द है । इनम सवा धक झु झूनू िजला मह वपूण ह । यहां
खेतड़ी- संघाना े म चादमानी खोरखेड़ा को लहान, मंधान कुधगांन खान से तांबा ा त होता ह
। तांबा खनन काय ह दु तान तांबा नगम वारा कया जाता ह । यहां ांस के सहयोग से
खेतड़ी क पर कॉ पले स तांबा सं ावक था पत कया गया ह ।

198
सीकर िजल म नीमकाथाना के समीप भी तांबा पाया जाता ह । अलवर िजल म खो-
दर बा, भीलवाड़ा िजल मे पुर-बनेड़ा उदयपुर म सलू बर, रे लमगरा, दलवाड़ा, दे बार आ द े से
तांबा ा त होता ह ।
हाल ह जयपुर, द सा व बांसवाड़ा िजल म भी तांबे के नये भ डार मले ह ।
आ दे श : भारत म तांबा उ पादन म झारख ड व राज थान के प चात ् इस रा य का तीसरा
थान ह । यह ं तांबा उ पादक िजल म गु , ने लौर, कु डू पा, कु रनूल, नलग डा, अन तपुर आ द
मु य ह । गु िजल म 3.5 कलोमीटर अि न गुडाला पेट म तांबा, ज ता के म त भ डार
मले ह । इस पेट म लगभग 50 लाख टन तांबा न ेप का अनुमान ह । इस े म तांबे क
खदानो म धातु का तशत 0.5 ह ।
अ य तांबा उ पादक रा य :
त मलनाडु : इस रा य म द णी अकाट िजल म माम दूर े सै तांबा पाया जाता है । कुछ
मा ा म व लुपरु म , कु ालोट े से भी तांबा ा त होता है ।
महारा : महारा म च पुर िजल म तांबे क खदान पायी जाती ह ।
म य दे श : म य दे श म जबलपुर, होशंगाबाद, सागर िजल म तांबे क खदान ह जहां से तांबा
ा त होता ह । बालाघाट म खुल खदान से तांबा नकाला जाता है ।
बहार : बहार म गया िजले म तांबे के भ डार अ व थत है ।
उ तराखंड : यहां गढ़वाल िजले के
धानपुर व पोखट म , अ मोड़ा िजले म
दवालथल व बागे वर एवं दे हरादून िजले
म का सी म तांबे के भ डार 97
क.मी. े म व तृत ह ।
सि कम : यहाँ सबसे अ छ क म का
3 से 4 तशत धातु शु ता वाला रांगपो
के नकट ि थत भोटाग क खनन े
म चांद , सीसा, ज ता यु त तांबा पाया
जाता है । इसके अ त र त ड यू रोटोक
सरब ग आ द म भी तांबे क खाने
ि थत ह । ज मु क मीर म घाट म मान च 7.3 ताँबा एवं अ क े
हपतनगर के नकट ब नहाल-डोडा े , रयासी िजले म गेती े म तांबा मलता है ।
छ तीसगढ़ ब तर िजले म, हमाचल दे श म कांगड िजले व क न घाट आ द े म अ प
मा ा म तांबा पाया जाता है ।

7.4.3 तासे का यापार (Trade of Copper)

चू ं क भारत मे वगत वष मे वष 1900-91 के प चात तांबा उ पादन मे कमी हु ई ह


तथा दे श म तांबा धातु क मांग मे वृ होने से अपनी आव यकता का अ धकाश भाग तांबा
आयात कया जाता है ।
199
भारत म तांबा संयु त रा य अमे रका, कनाडा, िज बा वे, जापान, मैि सको आ द दे श
से आयात कया जाता ह । वष 2002-03 म भारत ने 242 करोड़ ऊ, का तांबा आयात कया ।
भारत म हंद ु तान कॉपर ल मटे ड सं थान वारा तांबे का सव ण, खान, उपयोग आ द
कया जाता ह । इस सं थान के अधीन इसक कई उप इकाइयाँ रा य म काय कर रह ह
िजनम राज थान म झु झुन-ू दर बा अलवर, झारख ड मे घाट शला, म य दे श म बालाघाट,
झारख ड म संहभू म, छ तीसगढ़ म रायगढ़ म ।
बोध न : 4
1. ताँ बे म जरता म ण करने से कस धातु का नमाण कया जाता ह ?
2. राज थान म खे त ड़ी - संघाना े म कौन सा धाि वक अय क पाया जाता ह ?
3. भारत म मु ख तां बा उ पादक संह भू म िजला कस रा य म ह ?

7.5 अ क (Mica)
7.5.1 मह व

अ क एक बहु पयोगी अधाि वक ख नज ह । इसका ाचीन काल से औषधीय मह व के


साथ-साथ आधु नक युग म इसके औ यो गक मह व म वृ हु ई है । इस ख नज म अनेक वशेष
गुण ह - यथा व छता, लचकता, पतल परत म होना, पारदशकता, न यता, व युत व ताप
का कुचालक, वजन म ह का आ द । अत: इसका सवा धक उपयोग बजल के कारखान , बजल
के उपकरण , बैटर के तार, रे डयो, वायुयान , डायनम , वायरलेस, बजल क मोटर, इले ो नक
उपकरण, धमन भ य म ताप सह एवं व युत कुचालक ईट, लालटे न क चम नय , माइकेनाइट
क चादर, यु स ब धी व सै य उपकरण बनाने म होता है । इसके अ त र त आयु वे दक
औष धय , साज- ंगार, कृ म आभू षण, खलौने, सजावट के सु दर कागज नमाण म भी अ क
का योग लया जाता ह ।

7.5.2 अधक के कार (Types of Mica)

अ क आ नेय एवं काय त रक च ान म पायी जाती ह । अ क व वध रं ग म पायी


जाती ह – इनम तीन रं ग क अ क मु ख ह – 1. वेत अ क - िजसे बी माइका भी कहते ह,
2. गुलाबी अ क - िजसे म कोवाइट भी कहते ह, 3. इनके अ त र त पील रं ग क अ क िजसे
पलोगोपाइट नाम से भी पहचाना जाता ह । इसके अ त र त कु छ ह क काल व हरे रं ग क
अ क भी मलती ह ।

7.5.3 अ क के संर त भ डार व उ पादन

व व म अ क के संर त भ डार क ि ट से भारत का थम थान ह । भारत म


रा यानुसार अ क के संर त भ डार क ि ट से तीन रा य सवा धक मह वपूण ह, ये न न ह

200
- आ दे श, झारख ड तथा राज थान । आ दे श म अ क के अनुमा नत भ डार लगभग 45
हजार टन, झारख ड म 13.5 हजार टन तथा राज थान म 1.5 हजार टन ह ।
व व म अ क के उ पादन क ि ट से भारत का थम थान ह । व व क कुल
अ क उ पादन का लगभग 80 तशत भाग भारत म उ पा दत होता है, िजसका अ धकांश भाग
अ छ क म क अ क ह । अ क के छोटे -छोटे चूण , टु कड़ म घ टया क म से न मत
माइकोनाइट क चादर का 90 तशत भाग भी भारत म उ पा दत होता है, िजसमे भी भारत का
व व का थमं थान ह ।

ता लका 7.12
भारत - अ क उ पादन
वष उ पादन(हजार टन म)
1960-61 28.34
1970-71 15.09
1980-81 8.53
1990-91 38.06
2000-01 11.54
2001-02 2.26
2002-03 1.21
ोत- टे टि टकल एव े ट ऑफ इि डया, 2003

7.5.4 अ क उ पादन का ादे शक वतरण

भारत के मु ख अ क उ पादक रा य का ववरण इस कार है :-


आ दे श : वगत कु छ वष म आ दे श म अ क का उ पादन बढ़ने से वशेषकर वष 2002-03
म 883 टन अ क उ पादन कर जो दे श का कुल अ क उ पादन का 72 तशत ह, इस रा य
का भारत म थम थान ह । इस रा य म अ क क पेट 65 क.मी.ल बी तथा 20 से 30
क.मी.चौड़ी व तृत है , िजसका कुल े फल 1550 वग क.मी.है । यहां के मु य अ क उ पादक
िजले ने लोर, गु , कृ णा, कु डु पा, वशाखाप नम, ख भा, अन तपुर व पूव एवं पि चमी
गोदावर आ द ह । ने लोर िजले का 100 वग क.मी.म अ च कार आकृ त म व तृत हरे रं ग
क अ क का उ पादक े व व स ह । वशाखाप नम ब दरगाह से यहां के अ क का
नयात कया जाता है । इस रा य म उ पा दत अ क हरे रं ग क होने से हर अ क भी कहते
ह।
राज थान : अ क उ पादन म राज थान का दे श म आ दे श के बाद दूसरे थान ह । वष
2002-03 म यहां 190 टन अ क का उ पादन हु आ जो भारत के कु ल अ क का लगभग 15.6
तशत ह । यहां अ क उ पादक मु य े जयपुर से उदयपुर के म य 320 क.मी.ल बाई तथा
100 क.मी.चौड़ाई म व तृत ह । यहां अ क उ पादक मु ख िजले जयपुर, सीकर, अजमेर,

201
ट क, भीलवाड़ा, उदयपुर, डू ग
ं रपुर आ द ह । रा य म सवा धक अ क भीलवाड़ा िजले क घोरास
तापुरा, टु का, छपर , बनेडी, फू लया, गंगापुर , घोटला, बे लया आ द खान से ा त होता ह ।
उदयपुर िजले का अ क उ पादन म रा य म दूसरा थान ह । इस रा य क अ क आ दे श,
झारख ड क तु लना म घ टया ेणी है ।
झारख ड : झारख ड रा य भी अ क उ पादन म दे श का सबसे मह वपूण रा य ह । यहां क
व व स अ क हजार बाग, ग रडीह, संथाल, कोडरमा, दे वगढ़, दूम का, धनबाद, रांची,
बोकार , पालामाऊ संहभू म आ द े म पायी जाती ह । रा य म अ छ क म क अ क
उ पादन का अ धकांश भाग अकेले हजार बाग िजले से ा त होता ह । रा य म अ क क कुल
600 खदान ह । यहां अ क एक पेट म पाया जाता ह, जो चतरा से दूमका तथा कोडरमा से
संहभू म िजले तक व तृत है । इस पेट का कुल े फल 3380 वग कलोमीटर है । यहां
उ तम क म क बी अ क पायी जाती ह । यहां पर अ क 30 मीटर तक क मोटाई वाल
परत म पायी जाती ह ।
बहार : झारख ड रा य नमाण से पूव अ वभािजत बहार भारत क कुल अ क का 48 तशत
उ पादन कर थम थान पर था । अ क उ पादक अ धकांश मु ख े झारख ड म चले जाने
के कारण बहार से वतमान समय मे भारत क कु ल अ क उ पादन का लगभग 13 तशत
ा त होती है ।
इस रा य के मु य अ क उ पादक े म ओरं गाबाद, गया, नवादा, शेखपुरा आ द ह ।
अ क उ पादक अ य रा य : भारत म उपयु त मु ख अ क उ पादक रा य के अ त र त अ य
रा य से भी अ क ा त होती ह । क तु रा य तर पर इनका कम मह व ह । ऐसे शेष
अ क उ पादक रा य ह ।
त मलनाडु : इस रा य म त नवेल िजले म को वलप ी के नकट अ क क खदान अवि थत ह
। अ क उ पादक अ य िजल म त चराप ल , नील ग र, सालेम मदुरै तथा कोय बटू र आ द
मु य है ।
म य दे श : म बालाघाट, छ दवाडा तथा नर समपुरा े म अ क का उ पादन होता है ।
छ तीसगढ़ : म ब तर, सरगुजा, बलासपुर मु य अ क उ पादक े ह ।
उड़ीसा : इस रा य म स भलपुर, ढकनाल, गंजाम, कोरापुट , सु दरगढ़, कटक आ द िजल म
अ क का उ पादन होता है ।
कनाटक : इस रा य म मैसरू व हासन िजल म अ क ा त होता है ।
पि चमी बंगाल : इस रा य म बांकु रा व मदनापुर िजल म अ क उ पा दत होता है ।
ह रयाणा : इस रा य म गुड़गाँव तथा नारनौल िजल म अ क ा त होती है । नारनौल िजले म
महे गढ़ अ क उ पादक े ह ।
केरल : इस रा य म ह क क म का अ क अले पी, ि व लोन, पु नालूर िजल म पाया जाता
ह ।
हमाचल दे श : इस रा य म क नौर िजल म अ क पाया जाता है ।

202
7.5.5 अ क यापार (Trade of Mica)

ता लका 7.13
भारत - अ क का नयात
वष उ पादन(हजार टन म)
1960-61 28.34
1970-71 26.7
1980-81 16.7
1990-91 42.0
2000-01 63.2
2001-02 57.7
2002-03 33.8
ोत : इकोनो मक सव, 2004-05 पृ ट 3।-84-86
बोध न : 5
1. राज थान म सवा धक अ क- उ पादक िजला कौन सा है ?
2. वष 2001-02 म भारत म अ क उ पादन कतना हु आ है?
3. वष 2002-03 म भारत म अ क उ पादन म कौन सा रा य थम थान पर
है ?
4. अ क के सं र त भ डार कस कार क च ान म पाये जाते है ?
ल बे समय से अ तरा य तज पर भारत मु ख अ क नयातक दे श रहा ह । वष
1960 से पूव अ क नयात मे भारत का व व म एका धकार था । क तु इसके बाद
अ तरा य बाजार म अ क क मांग कम होने के साथ ह अ य दे श म अ क उ पादन वृ
तथा नयात त प ा म वृ हु ई है । अ तरा य अ क नयात म ाजील वतमान समय
भारत का त पध दे श के प म उभर रहा ह । भारत से अ क नयात ास के अ य कारण
म मु य ह – 1. वदे शो म कृ म अ क के उ पादन म वृ के कारण ाकृ तक अ क क मांग
म कमी होना, 2. अ क का छोटे - छोटे टु कड़ म उ पादन होना, 3. प रवहन खच अ धक होने
से अ क नयात अपे ाकृ त अ धक लाभ द न होना आ द ।
भारत से कुल अ क नयात का 80 तशत मांग संयु त रा य अमे रका, इं लै ड,
कनाडा, नीदरलै ड, बेि जयम, जमनी, ांस, चीन, पौले ड, नाव, हगर आ द दे श को जाता ह ।
इनम संयु त रा य अमे रका तथा ेट टे न भारत के मुख अ क आयातक दे श ह ।
भारत से अ धक नयात म अ धक वृ हे तु भारत सरकार वारा माइका े डंग
कॉरपोरे शन ऑफ इि डया ( मटको) क थापना क गई ह । इस सं थान वारा अ क छोटे -छोटे
उ पादक से वयं अ क य कर अ क आधा रत उ योग म इसका उपयोग कर व वध साम ी
का उ पादन कया जाता ह - यथा - स वर माइका, कागज, माइ ोनाइट पाउडर, माइका
केपे सटर, ह टर माइ ोनाइट आ द । इन उ पाद को वदे श म नयात कया जाता है । भारत से
अ क क ईट का भी नयात कया जाता ह ।

203
7.8 सारांश (Summary)
मानव स यता के आ दकाल से मानव को व वध ख नज तथा बहु मू य प थर का
ान था । एक दे श के आ थक वकास म ख नज संसाधन क मह वपूण भू मका होती है ।
ख नज से दे श म औ यो गक वकास होता ह, जनसं या को रोजगार ा त होता है, इसके
नयात से दे श को वदे शी मु ा ा त होती ह ।
भारत ख नज क ि ट से एक धनी दे श ह । भारत म ख नज संसाधन का सव ण,
आकलन, दोहन, अनुसंधान, यापार हेतु भारतीय भू गभ सव ण वभाग, रा य ख नज नगम,
ख नज व धातु यापार नगम, ख नज अ वेषण नगम ल मटे ड, ख नज सलाहकार बोड आ द क
थापना क गई ह । भारत म ख नज का वतरण असमान ह - भारत म व वध कार के
ख नज 5 मेखलाओं म अ धक पाये जाते ह - ये मेखलाय न न ह-
1. बहार - झारख ड, उड़ीसा - पि चमी बंगाल मेखला, 2. म य दे श - छ तीसगढ़ -
आ दे श - महारा मेखला, 3. कनाटक त मलनाडु मेखला, 4. राज थान गुजरात मेखला, 5.
केरल मेखला ।
भारत म अ धकांश ख नज अ यंत ाचीन शैल से न मत ाय वीपीय भाग म पाय जाते
ह जब क उ तर भारत के नवीन शैल से न मत मैदानी भाग म ख नज का अभाव है ।
भारत म पया त उ पादन के साथ आ थक मह व वाले ख नज म लौह अय क,
मगनीज, अ क, कोयला, सोना, इ मैनाइट, बॉ साइट आ द ह तथा औ यो गक ि ट से
मह वपूण कं तु अ प मा ा म पाये जाने वाले ख नज म तांबा , न कज, टन, कोबा ट, ेफाइट
पारा, ख नज तेल आ द ह ।
लौह अय क : व व म लौह अय क के सं चत भ डार, उ पादन क ि ट से भारत का मह वपूण
थान ह । लौह अय क 4 कार के होते ह मै नेटाइट, हे मेटाइट, लमोनाइट, सडेराइट । सबसे
शु धातु का अंश मै नेटाइट म 72 तशत से अ धक, हे मेटाइट म 60 से 70 तशत,
लमोनाइट म 40 से 60 तशत, सडेराइट म 40 से 48 तशत तक होता है ।
भारतीय भू गभ वभाग के सव ण के अनुसार भारत म दोहनयो य मै नेटाइट लौह
अय क के लगभग 340.8 करोड़ टन तथा हेमेटाइट लौह अय क के लगभग 1005.2 करोड़ टन
सं चत भ डार ह । भारत म कु ल लौह सं चत भ डार का झारख ड म दे श का लगभग 25
तशत, उड़ीसा म 21 तशत, कनाटक म 20 तशत व म य दे श व छ तीसगढ़ म संयु त
प से 18 तशत व गोआ म 11 तशत सं चत ह ।
भारत म लौह अय क उ पादन का लगभग एक चौथाई भाग कनाटक, उड़ीसा 22
तशत, छ तीसगढ़ 20 तशत, गोआ 18 तशत, झारख ड 18 तशत रा य से ा त होता
है, अ य रा य म महारा , आ दे श त मलनाडु , गुजरात , राज थान आ द मु य ह । भारत
से कुल लौह अय क नयात का लगभग 60 तशत भाग जापान व शेष चैको लोवा कया,
मा नया, बेि जयम, हंगर , ईरान, इटल आ द दे श म नयात कर दया जाता है।

204
मगनीज : भारत म 16.70 करोड़ टन के संर त भ डार पाये जाते ह । भारत म मगनीज सं चत
भ डार का कनाटक म 37.8 तशत, उड़ीसा म 17.6 तशत, म य दे श म 10.4 तशत,
महारा म 7.8 तशत भाग न े पत है । भारत म मगनीज उ पादक मु ख रा य उड़ीसा (37
तशत), महारा (24 तशत), कनाटक (20 तशत) एवं अ य रा य म आ दे श,
झारख ड, गुजरात आ द ह ।
तांबा : भारत म तांबा ाचीन रवेदार व पा त रत च ान म चांद , टन, सीसा, व सोना आ द
धातु ओं के साथ म त प म पाया जाता ह । भू वै ा नक सव ण के अनुसार भारत म दोहन
यो य तांबे के भ डार लगभग 71.25 करोड़ टन ह । इनका अ धकांश भाग झारख ड, म य दे श,
राज थान, आ दे श, कनाटक, गुजरात आ द रा य म पाया जाता ह ।
भारत म तांबा उ पादक मु ख रा य न न ह - झारख ड (दे श के तांबा उ पादन का
लगभग आधा भाग) राज थान (40 तशत), आ दे श, त मलनाडु , महारा , बहार आ द ।
भारत म तांबा संयु त रा य अमे रका, िज बा वे, जापान, मैि सक आ द दे श से
आयात कया जाता है ।
अ क : अ क एक बहु उपयोगी अधाि वक ख नज ह । अ क आ नेय एवं कायांत रत च ान म
पायी जाती है । अ क मु यत: वेत, गुलाबी, पील रं ग क पायी जाती ह - कु छ ह क काल व
हरे रं ग म भी पायी जाती ह । व व म अ क के संर त भ डार व उ पादन क ि ट से भारत
का थम थान ह । भारत म मु ख उ पादक रा य म आ दे श, राज थान, झारख ड, बहार,
त मलनाडु आ द है ।
व व म अ क नयातक दे श म भारत एक अ णी दे श ह । भारत से अ क नयात का
80 तशत संयु त रा य अमे रका, टे न, कनाडा, नीदरलै ड, बेि जयम, जमनी, ांस, चीन,
पोले ड, हंगर , नाव आ द दे श को जाता है । भारत से अ क क ईट का भी नयात कया जाता
है । भारत से अ क नयात म वृ हे तु भारत सरकार वारा माइका े डंग कॉरपोरे शन ऑफ
इि डया ( मटको) क थापना क गई ह ।

7.7 श दावल Glossary)


1. संर त भ डार : भू ग भक सव ण के आधार पर कसी अमु ख ख नज क
अनुमा नत भ डार के न ेपण के आकलन क मा ा ।
2. ख नज मेखला : कसी े वशेष म व श ट ल बाई-चौड़ाई व तार से
कसी ख नज वशेष क अ धक उपल धता होना ।
3. अय क : कसी ख नज वशेष का धातु व म ी म त ाकृ तक
प म अ य अशु य के प म पाया जाना।
4. भारतीय खान यूरो : एक वै ा नक व तकनीक संगठन, िजसका मु यालय
नागपुर म ह - येक ादे शक कायालय भारत म 12
थान पर ह- अजमेर, बंगलौर, कोलकाता, दे हरादून,
गोआ, हैदराबाद हजार बाग, जबलपुर , चै नई, उदयपुर
आद ।
205
5. ख नज अ वेषण नगम : इसक थापना 1972 म क गई - मु य उ े य ख नज
प रयोजनाओं को परामश व वशेष सेवाय दे ना ।
6. भारतीय भू वै ा नक सव ण : इसक थापना 1851 म क गई । इसका मु य उ े य
भारत म भौगो लक सव ण कर ख नज भ डार का
आकलन करना ।
7. रा य ख नज वकास : इसक थापना 1985 म क गई, इसका मु य उ े य
खनन े म नगम ल मटे ड ख नज का दोहन स ब धी
नी तयाँ बनाना ।
8. मटको : माइका े डंग कॉरपोरे शन ऑफ इि डया ।

7.8 संदभ ंथ (Reference Books)


1. संह, आर. एल इि डया - ए र जनल यो ाफ , नेशनल यो ाफ कल सोसायट ,
वाराणसी 1971
2. मामो रया व म ा : भारत का वृहत भू गोल, सा ह य भवन पि लकेशन, आगरा, 2001
3. खु लर डी.आर : इि डया - ए का ीहे ि सव यो ाफ , क याणी काशन, नई द ल ,
2006
4. चौहान एवं साद : भारत का वृहद भू गोल, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2005
5. वमा, एल.एन : भारत का भू गोल, राज. ह द ं अकादमी, जयपुर 2005

6. चौहान व गौतम : भारतवष का व तृत भू गोल, र तोगी काशन, मेरठ, 2005-06
7. बंसल, सु रेशच : भारत का वृहत भू गोल, मीना ी काशन,
8. वा ड़या, डी. एन. : िजओलोजी ऑफ इि डया, मैक मलन ए ड कं., लंदन, 1967
9. नेगी : यो ाफ ऑफ इि डया, र तोगी काशन, मेरठ, 2005
10. तवार , वीके : भारत का वृहत भू गोल, हमालय पि लकेश स, मेरठ, 2005
11. इि डया (2008) पि लकेशन ड वजन, सू चना एंव सारण मं ालय, भारत सरकार नई
द ल ।

7.9 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. नागपुर
2. उ तर म डल-अजमेर, पूव म डु ल-कोलकाता म य म डल- नागपुर , द णी म डल-
बंगलौर
3. 60 - 70 तशत
4. झारख ड
5. मै नेटाइट व हैमेटाइट क म का लौह अय क
बोध न - 2

206
1. लगभग 8 तशत
2. जापान
3. पूव तट पर - वशाखाप नम
4. पि चमी तट पर - मारमगोओ या मंगलोर
बोध न - 3.
1. टरबाइन ले स
2. उड़ीसा
3. मगनीज
4. लगभग 37 तशत
5. बांसवाड़ा िजला
बोध न - 5
1. पीतल
2. तांबा
3. झारख ड
बोध न - 5
1. भीलवाड़ा िजला
2. 20.26 हजार टन
3. आ दे श
4. आ नेय एवं कायांत रत च ान म

7.10 अ यासाथ न
1. भारत म लौह अय क के संर त भ डार, उ पादन, वतरण व यापार का ववरण
द िजये ।
2. भारत म मगनीज के उ पादन, वतरण एवं अ तरा य यापार पर एक भौगो लक लेख
ल खये ।
3. भारत म तांबा के संर त भंडार, उ पादन, वतरण के साथ यापार का वणन क िजये ।
4. भारत म अ क के उ पादन, वतरण के साथ अ तरा य यापार म भारत क ि थ त
का वणन क िजए ।

207
इकाई 8 : ऊजा संसाधन (Energy Resources)
इकाई क परे खा :
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 कोयला
8.2.1 कोयले क उ पि त
8.2.2 कोयले क क म
8.2.3 कोयले के सुर त भ डार
8.2.4 भारत म कोयले का वतरण एवं उ पादन
8.2.5 कोयले का उपयोग
8.2.6 कोयले क सम याएं एवं संर ण
8.3 ख नज तेल
8.3.1 ख नज तेल क उ पि त
8.3.2 भारत म ख नज तेल के भ डार
8.3.3 भारत म ख नज तेल का वतरण एवं उ पादन
8.3.4 तेल शोधनशालाएं
8.3.5 ख नज तेल का उपयोग
8.3.6 ख नज तेल का आयात- नयात
8.3.7 ख नज तेल का संर ण
8.3.8 भारत म ाकृ तक गैस
8.4 जल- व युत
8.4.1 जल- व युत उ पादन क आव यक दशाएं
8.4.2 भारत म जल- व युत उ पादन के स भा वत े
8.4.3 भारत म जल- व युत उ पादन े
8.4.4 जल- व युत का उपयोग एवं मह व
8.5 आण वक ऊजा
8.5.1 भारत म आण वक ख नज पदाथ
8.5.2 आण वक ऊजा का उ पादन
8.5.3 आण वक ऊजा का उपयोग
8.5.4 आण वक ऊजा का संर ण
8.6 गैर-पार प रक ऊजा ोत
8.6.1 सौर ऊजा
8.6.2 पवन ऊजा
8.6.3 वार य ऊजा

208
8.6.4 जैव ऊजा
8.6.5 भू तापीय ऊजा
8.7 सारांश
8.8 श दावल
8.9 संदभ थ

8.10 बोध न के उ तर
8.11 अ यासाथ न

8.0 उ े य(Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप स नझ सकगे क -
 भारत म पर परागत एवं गैर-पर परागत ऊजा ोत का ववरण ।
 कोयले का वतरण, उपयोग एवं संर ण ।
 ख नज तेल का वतरण, मह व एवं संर ण ।
 जल व युत उ पादन क आव यक दशाएं, उ पादन े , उपयोग एवं मह व ।
 आण वक ऊजा का उ पादन, आण वक ख नज, उनका उ पादन एवं सरं ण ।
 गैर-पर परागत ऊजा ोत जैसे सौर ऊजा, पवन ऊजा, वार य ऊजा, जैव ऊजा एवं भू-
तापीय ऊजा का ववरण, मह व, सम याएं एवं स भावनाएं आ द ।

8.2 तावना (Introduction)


इस इकाई म आपके वारा पर परागत एवं गैर-पर परागत ऊजा ोत का अ यन
कया जायेगा । मानव ाचीन काल से ह अपनी शार रक शि त तथा पशुओं क शि त का
योग करता रहा है । बाद म मनु य ने पवन और बहते जल के वारा चि कय और यं को
चलाना आर भ कया था । अ ारहवीं सद क औ यो गक ाि त के बाद से कोयला, ख नज
तेल, जल व युत और ाकृ तक गैस का योग शि त साधन के प म कया जाने लगा ।
कसी भौ तक या जै वक त व म व यमान काय करने क शि त को ऊजा कहते ह ।
ऊजा कसी मा यम क सहायता से एक प से दूसरे प म प रवतनीय होती है । उपयोग म
आने वाल सभी कार के ऊजा संसाधन के मु यत: दो ोत ह - (1) अ यशील ोत और (2)
यशील ोत । अ यशील ोत के अ तगत सौर ऊजा, पवन, जल, भू ग भक ताप आ द आते ह
और यशील ोत के अ तगत जीवा म ईधन (कोयला, ख नज तेल, ाकृ तक गैस) और
वख डनीय (आि वक) ऊजा को सि म लत कया जाता है । इसम अ यशील ोत से द घकाल
तक ऊजा ा त होती रहे गी जब क यशील ोत के सं चत भ डार सी मत ह और योग के
प चात सदा के लए समा त हो जाते ह ।
भारत म 1975 तक ऊजा संसाधन क आपू त वक सत दे श क तु लना म पूणत: भ न
थी। यहाँ पर गैर-पर परागत ऊजा ह गाँव व करच म मु यत: काम आती थी । इसी कारण
1960 से 1970 के म य ऊजा क आव यकता का 40 तशत ह पर परागत ऊजा या कोयला,
पे ो लयम, ाकृ तक गैस एवं व युत से ा त होती थी य क भारत म आम आदमी को घरे लू

209
यावसा यक, कु ट र उ योग व लघु उ योग आ द के लये तब तक 60 तशत ऊजा क आपू त
गोबर, लकड़ी, पशुधन एवं मनवा म से ा त होती थी । 1975 के प चात नर तर भार
उ योग का वकास, यापा रक ऊजा क ाि त व नभरता म तेजी से वृ , जल व युत व
ख नज तेल तेजी से गांव तक पहु ँ चना, स क का जाल, वाहन क सं या म वृ तथा लघु व
म यम उ योग को बढ़ना आ द कारण से पर परागत ऊजा उ पादन व उपभोग म वृ हु ई ।

8.2 कोयला(Coal)
कोयला काला रग भू रे रं ग का काबनयु ता ठोस जीवा म ईधन है, जो मु यत: अवसाद
शैल म पाया जाता है । यह वलनशील होता है । यह घरे लू ईधन से लेकर औ यो गक ईधन
तक म उपयोग म लाया जाता है ।

8.2.1 कोयले क उ पि त (Origin of coal)

कोयला एक ख नज पदाथ है । िजसम काबन क मा ा अ धक पायी जाती है । काबन के


अ त र त ऑ सीजन, हाइ ोजन, नाइ ोजन तथा अ य कुछ अप य पदाथ कोयले म पाये जाते
ह । यह एक जीवा म वन प त है । ाय: कोयले क उ पि त के मु यत: दो युग माने जाते ह ।
(1) काब नीफेरस युग और (2) टर शयर युग । इन युग म भू तल के व भ न दे श म व तृत
सघन दलदल वन छाये हु ए थे, जो भू ग भक हलचल के कारण भू म म दब गये । मश: दबाव
के कारण यह कठोर होती गयी और भंचाव से जल का अंश बाहर नकल गया और यह वन प त
कोयले के प म बदल गयी । इन दे श म इसके ऊपर क चड़, मृदा और तलछट जमती रह ।
इससे कोयले क तह भार से दबती गई । प रणाम व प दबाव, भंचाव तथा आ तारे क गम से
कोयले क व भ न क म का नमाण हु आ ।
भारत के अ धकांश कोयला े का वकास पठार भाग पर आज से लगभग 35 करोड़
वष पूव पर मयन काल म हु आ था । इसे ग डवाना खृं ला से स बि धत कोयला भी कहते ह ।
ऐसी च ान झारख ड, प. बंगाल, उड़ीसा एवं छ तीसगढ़ म व भ न ेणी के नाम से जानी जाती
ह । दामोदर घाट म वक सत हु ई सर ज क ऊपर परत दामु दा एवं नचल परत बाराकर ेणी
कहलाती ह । इसी कार पर मयन काल का बटु म स कोयला रानीगज खृं ला के नाम से
रानीगंज, झ रया, बोकार एवं करनपुरा े म मलता है । इसी कार ऐसा कोयला आं दे श
व महारा म वरधा क घाट व महानद घाट म पाया जाता है । दे श म अ छ ेणी के कोयले
का 98.3 तशत का जमाव द कन के पठार के उ तर व उ तर पूव भाग म ग डवाना युग क
शलाओं म पाया जाता है । यह कोयला 25 से 35 करोड़ वष पुराना माना जाता. है ।

8.2.2 कोयले क क म (Kinds of Coal)

कोयले म काबन त व क मा ा के अनुसार ऊजा मता होती है । इसके आधार पर


न न क म पायी जाती ह -
(1) ए े ाइट (Anthracite) - यह कोयला सव तम
स कार का होता है । यह कठोर,
चमकदार, रवेदार तथा भंगरु होता है । इसम काबन क मा ा 90 तशत से 96 तशत होती

210
ह । इसम वा पशील पदाथ बहु त कम होता है । यह जलने म धु आँ कम दे ता है तथा ताप बहु त
अ धक होता है ।
(2) बटु मनस (Bituminus)- यह काले रं ग का चमकदार कोयला होता है । इसम काबन
क मा ा 70 तशत से 90 तशत होती है । इसम वा पशील पदाथ क मा ा अ धक होती है
। यह जलने म बहु त धु आँ दे ता है । यह पील लौ के साथ जलता है ।
(3) ल नाइट (Lignite) -यह भू रे रं ग का कोयला है, इसम काबन क मा ा 45-70 तशत
होती है । यह जलने म धुऑ अ धक दे ता है तथा राख भी बहु त छोड़ता है । इसम वन प त का
अंश अ धक मा ा म होता
(4) पीट कोयला (Peat Coal) - यह वन प त के मौ लक प म थोड़ा सा ह प रव तत
कोयला है । इसम काबन क मा ा 40 तशत पायी जाती है । यह ाय: लकड़ी क तरह जलता
है और जलने म बहु त धुऑ दे ता है ।

8.2.3 कोयले के सुर त भ डार (Reserves of Coal)

व व म भारत का कोयला उ पादन एवं भ डार म मह वपूण थान है । भारतीय भू गभ


सव ण वभाग के अनुसार 2004 तक दे श म धरातल से 1200 मीटर क गहराई तक सुर त
कोयले का भ डार 2,45,693 म लयन टन है । एक अनुमान के अनुसार भारत म कु ल कोयला
भ डार म से 18973 करोड़ टन ग डवाना कोयला तथा 406 करोड़ टन टर शयर कोयला है ।
भारत म कोयले के भ डार का वतरण न न ता लका से प ट होता है -
ता लका 8.1 भारत कोयले के सु र त भ डार, 2005 ( म लयन टन म)
.स. रा य भ डार
1. झारख ड 71864
2. उड़ीसा 60988
3. छतीसगढ़ 39545
4. पं. बंगाल 27394
5. म य दे श 18660
6. आ दे श 16697
7. महारा 8414
8. अ य रा य 2131
ोत : आ थक सव ण, RBI व त, उधोग, वा ण य एवं सांि यक मं ालय, नई
द ल , 2007 ।

8.2.4 भारत म कोयले वतरण एवं उ पादन (Distribution and Production of Coal
in India)

भारत म कोयले का उ पादन ग डवाना दे श म 98 तशत तथा ट शयर युग म 2


तशत कया जाता है । िजसम से 86 तशत कोयले के भ डार झारख ड, पि चम बंगाल,

211
छ तीसगढ़ व म य दे श रा य म अवि थत ह । शेष 12 तशत कोयला आ दे श, उड़ीसा,
महारा , मेघालय, असम, नागालै ड, ज मु क मीर तथा अ णाचल दे श म उ पादन कया
जाता है । भारत के कोयला उ पादक े को ग डवाना तथा ट शयर दो भाग म वभािजत
कया गया है, िजनका वणन न न कार से है-
गो डवाना कोयला े -
1. महानद घाट कोयला े - यह े मु य प से उड़ीसा के धनकमल, स बलपुर,
सु दरगढ़ िजल म पाया जाता है । यह े भारत के कुल कोयला भ डार का 2 तशत तथा
उ पादन का 6 तशत भाग उ पा दत करता है । उड़ीसा का धनकनाल िजला तीसरा मु य
कोयला उ पादक िजला है, जहाँ तलचर े मु ख है । यह े लगभग 518 वग क.मी. े म
वसात है । यहाँ 8 मीटर मोटाई तक क कोयले क परत पायी जाती है । रामपुर- हम गर
कोयला उ पादक े स बलपुर-सु दरगढ़ िजल म व तृत है । यहाँ लगभग 150 करोड़ टन
कोयला के भ डार ह ।
2. गोदावर नद घाट कोयला े - इसका व तार गोदावर नद घाट म आं दे श के
आ दलाबाद, पि चमी गोदावर , कर म नगर, ख माम तथा वारं गल िजल म है । यहाँ भारत के
कु ल उ पादक का 7.5 तशत कोयला ा त होता है । आ दलाबाद िजले का त दूर े गोदावर
तथा तहर न दय के म यवत भाग म लगभग 250 वग क.मी. े म व तृत है । वधा नद के
पि चम म ि थत स ती तथा अ नागाँव इस िजले के अ य कोयला उ पादक े है । ख माम
िजले का संगरोल े , येले दू कोठागुडम
े , ताताप ल , वारं गल िजले के करलाप ल अ य
मह वपूण कोयला उ पादक े ह ।
आरे ख 8.1 भारत - रा यानुसार कोयला उ पादन ( तशत मे)

212
3. दामोदर नह घाट शोयला े - यह भारत का मुख कोयला उ पादक तथा सवा धक
भ डार रखने याला े है । िजस पर स पूण भारत क औ यो गक याएं नभर ह । इस े
को न न उपभाग म वभािजत कया जाता है ।
(1) मु य दामोदर नद घाट कोयला े - झारख ड म मु य कोयला उ पादक े रानीगंज
से 48 क.मी.पि चम मे ि थत झ रया है जो 436 वग क.मी. े म व तृत है । इस े म
दे श का 90 तशत को कं ग कोयले का भ डार है । कुल भ डार लगभग 1860 करोड़ टन है ।
धनबाद िजले का झ रया े अकेला झारख ड का 50 तशत कोयला उ पा दत करता है । यहाँ
उ तम क म का बदु म स कोयला मलता है । िजसक लगभग 20 मीटर मोट परत पायी
जाती है । च पुरा व धनबाद म घ टया क म का कोयला मलता हे ।
हजार बाग िजला झारख ड का दूसरा मुख कोयला उ पादक िजला है । जहाँ गर डीह ,
बोकार , करनपुरा व रामगढ़ मु ख उ पादक े ह । गर डीह े म उ तम ेणी का टम
कोक मलता है िजसका कुल भ डार 7.3 करोड़ टन है ।

मान च 8.1 कोयला े

213
बोकार े बोकार नद घाट म व तृत है । यह झ रया से 3 क.मी.पि चम म
अवि थत है । 674 वग क.मी. े म व तृत यह दे श पूव तथा पि चमी बोकार े म
वभािजत है । इस े म 30 मीटर मोट कोयले क परत पायी जाती ह । यहाँ कुल भ डार
लगभग 1004 करोड़ टन है ।
करनपुरा े बोकार े के 3 क.मी.पि चम म ि थत है, जो रानीगंज तथा झ रया के
बाद कोयला उ पादन म अपना मह वपूण थान रखता है । 1500 वग क.मी. े म व तृत यह
दे श उ तर तथा द णी करनपुरा म वभािजत है । जहाँ 1260 करोड़ टन कोयला के भ डार ह
। रामगढ़ े करनपुरा कोयला े के पि चम म ि थत है । जहाँ लगभग 103 करोड़ टन
कोयले के भ डार है ।
इसका व तार भारत के झारख ड तथा पि चम बंगाल रा य म है । जहाँ से भारत का
लगभग 50 तशत कोयला उ पा दत होता है । पि चम बंगाल म रानीगंज मु य कोयला
उ पादक े ह। िजसका व तार बदवान, पु लया तथा बाँकु डा िजल म है । रानीगंज कोयला
े म ह भारत म सव थम 1774 म कोयला उ पादन शु हु आ । यह े 1092 वग
क.मी. े म व तृत है , जहाँ लगभग 9508 करोड़ टन कोयले का भ डार अवि थत है । यह
भारत का सबसे बड़ा कोयला उ पादक े है । जहाँ से भारत का लगभग 25 तशत कोयला
उ पा दत होता है । इस े म कोयले क परत 16 मीटर तक मोट है । धनबाद, हजार बाग
िजले झारख ड के मु ख उ पादक िजले ह ।
(2) उ तर दामोदर नद घाट कोयला े - इसका व तार मु य दामोदर नद घाट के
उ तर भाग म ि थत राजमहल पहा ड़य (झारख ड) म ह । जहाँ सहजोर जै ती तथा कु ि दत
छोटे उ पादक े है । यह दे श झारख ड रा य के पूव भाग तथा पि चम बंगाल म व तृत है।
(3) पि चमी एवं उ तर-पि चमी दामोदर नद घाट कोयला े - मु य दामोदर नद घाट के
उ तर-पि चम एवं पि चम भाग म व तृत इस े का व तार झारख ड रा य के पलामू िजले
के ओरं गा डा टनगंज, हु नार े म पाया जाता है । डा टनगंज मु य े है, जो 80 वग
क.मी. े म व तृत है ।
(4) छ तीसगढ़ कोयला े - इस रा य के उ तर भाग म मु य कोयला उ पादक े ि थत
है । िजसम रामकोला तातापानी कोयला उ पादक े मह वपूण ह । यह लगभग 2000 वग
क.मी. े म व तृत है ले कन यहाँ अ धकतर कोयला न न ेणी का है । छ तीसगढ़ के
बलासपुर के समीप ि थत कोरबा े है , जहाँ लगभग 36.5 करोड़ टन कोयले के भ डार
अवि थत है । अ धकतर कोयला उ तम ेणी का है, िजसका उपयोग भलाई लौह इ पात
कारखाने म होता है । सरगुजा िजले के व ामपुर े म लगभग 1 करोड़ टन कोयले का भ डार
है । जहाँ 2 मीटर से 60 मीटर मोट कोयले क परत ि थत है । इसके अ त र त इस िजले के
झल मल , झगड़ख ड, खर सया, सोवहर तथा को रयागढ़ म भी कोयले के भ डार पाए जाते ह ।
रामपुर ह गर चरामेर -कु र सया लखनुपर आ द इस रा य के अ य मह वपूण कोयला उ पादक
े ह ।

214
ये सभी कोयला उ पादक े ग डवाना च ान से स बि धत है जहाँ भारत के कुल
कोयला भ डार का 98 तशत है । स पूण ग डवाना युगीन कोयले के भ डार लगभग 90650
वग क.मी. े म व तृत है , जहाँ अ धकतर बटु मनस कोयला पाया जाता है । िजसम 55
तशत काबन, 15 से 20 तशत राख, कम वा प तथा गंधक एवं फा फोरस क मा ा म त
प से पायी जाती है ।
(5) सोन नद घाट कोयला े - इस े का व तार म य दे श रा य म है । जहाँ शहडे..
तथा सीधी िजल म संगरोल मु य कोयला उ पादक े है । यहाँ 3 से 5 मीटर मोट कोयले
क परत के प म लगभग 830 करोड़ टन के भ डार है । जो लगभग 300 वग क.मी. े म
व तृत है । शहडोल िजले का दूसरा मु य कोयला उ पादक े सोहागपुर है । उम रया इस
दे श का तीसरा मु य कोयला उ पादक े है। इस े म उ पा दत कोयले म राख तथा
जलवा प क अ धकता के कारण इसका अ धकतर उपयोग कोयले क वा प तथा गैस बनाने म
कया जाता है ।
(6) वधा घाट कोयला े - इसका व तार महारा म है, जहाँ भारत के कुल कोयला
भ डार का 3 तशत कोयला है । मु य उ पादक े च पुर िजले के घुघु , बसेरा म ि थत
है, जहाँ 50 करोड़ टन कोयले के भ डार है । इसके अ त र त यवतमाल िजले का ब लारपुर
े , नागपुर का का पट े अ य मु य कोयला उ पादक े ह।
(7) सतपुड़ा कोयला उ पादक े - इस े का व तार म य दे श तथा महारा के
समीपवत े म दोन रा य म पाया जाता ह । इस े म अ धकतर कोयला म यम तथा
न न ेणी का है । नर संहपुरा िजले म महपानी े , छ दवाड़ा िजले के का हन तथा पच घाट
े तथा वे य िजले के पाथरखेड़ा म कोयले के पया त भ डार अवि थत ह ।
ट शयर युग के कोयला े - भारत म 1.8 से 2 तशत कोयला टशर युग क च ानो से ा त
होता है । इसे भूरा या ल नाइट कोयला भी कहते ह । इसम पया त मा ा म आ ता पायी जाती
है । इसके उ पादन े न न ह-
ज मू-क मीर के द णी-पि चमी भाग म कारे वा संरचनाओं के अ तगत घ टया क म का कोयला
मलता है । यहां के मु य कोयला े म चनाव नद के पि चम म कालाकोट, महोगला चकर
व मेटका क खाने तथा धनसाल-सवालकोट े और चनाव नद के पूव म ल ा े मु ख है ।
असम म कोयला पूव नागा पवत के लखीमपुर तथा शवसागर िजल म पाया जाता है । यहां का
सबसे बड़ा े माकूम है, जो 80 क.मी.ल बा है । यह नामदं गा ल डो कोल े के नाम से
स है ।
पि चम बंगाल- इस रा य के उ तर भाग म ि थत दािज लंग िजले के पनकाबड़ी े म टर शयर
काल न कोयला का उ पादन कया जा रहा है ।
अ णाचल दे श- यहां क डाफला पहा ड़य म ि थत डगराक े मु य कोयला उ पादक है ।
मेघालय- इस रा य म कोयला उ पादक े गारो पहाड़ी है, जो 52 वग क.मी. व तृत है । यह
15.6 करोड़ टन कोयला के भ डार ह । हर गाँव सीजू दौज शर र गरे गर उ बले मु य उ पादन
े है । इसके अ त र त खासी पहाड़ी े म याहां, बेर, लरकर, चेरापूज
ं ी, जयं तयाँ पहाड़ी े
म लकाद ग अ य कोयला उ पादक े है ।
215
ल नाइट कोयला े - ग डवाना तथा ट शयर काल न कोयला क अपे ा यह एक घ टया ेणी
का कोयला है । िजसके उ पादक रा य न न ह-
त मलनाडु - भारत म ल नाइट कोयले के उ पादन म त मलनाडु का नेवेल मह वपूण कोयला
उ पादक े है । नेवेल े का व तार त मलनाडु के वे लोर त वनालोर िजल म लगभग
256 वग क.मी. े म ह । यह े चे नई से 216 क.मी.दूर है । इस े म 52 मीटर क
गहराई पर 20 मीटर मोट परत के प म ल नाइट कोयला पाया जाता है । न न ेणी का
होते हु ए भी नेवल
े ल नाइट कोयले का मह व अ धक है, य क भारत के द णी भाग म
कोयले क कमी थी िजसक पू त इन भ डारो से हो जाती है । इस े म औ यो गक वकास
नेवल
े ल नाइट कोयला े क ाि त के बाद ह अ धक हु आ है ।
राज थान - इस रा य म ल नाइट कोयले के भ डार मु य प से बीकानेर, जोधपुर, नागौर,
जैसलमेर तथा बाड़मेर िजल म पाये जाते ह । यीकानेर के पलाना, खार , चा नेर गंगा सरोवर,
मढ़ मु य कोयला उ पादक े है । िजसम पलाना मे सवा धक कोयला उ पा दत कया जाता है।
इसके अ त र त उ तराखड के शोहरतगढ़ तथा खाजावाल े म भी ल नाइट कोयले के जमाव
पाए जाते ह, जो तराई े मे ि थत ह ।
ता लका 8.2 भारत - कोयला उ पादन
उ पा वत वष उ पादन ( म लयन टन मे)
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8

ोत - आ थक सव ण, व त उ योग, वा ण य एवं सांि यक मं ालय, नई द ल


2007
वतमान म कोयला उ पादन काय अ धकतर सावज नक े म हो रहा है । केवल
ट को, इ को, डी. बी. सी. खान ह नजी े म है । जहाँ उ पादन नजी े म हो रहा है ।
भारत म कोल इि डया क पनी वारा सावज नक े म को कं ग कोयले का उ पादन कया जा
रहा ह । इसके वपर त ल नाइट कोयले का उ पादन नेवेल ल नाइट कॉरपोरे शन तथा गुजरात
मनरल डवलपमे ट कॉरपोरे शन वारा कया जा रहा है । भारत मे उ पा दत कोयले का
अ धकतम उपयोग दे श के उ योग , रे ल प रवहन तथा ऊजा उ पादन म हो जाता है । 1950-51
म जहाँ 36.4 तशत उ पा दत कोयला भारत म रे ल प रवहन म तथा केवल 7.9 तशत

216
व युत उ पादन म होता था । 2003-04 म यह बदलकर व युत म लगभग 76 तथा रे ल
प रवहन म मा 0.31 तशत रह गया ।
व व यापार - भारत अपने उ पा दत कोयले का कु छ भाग वदे श म नयात भी करता है ।
मु य आयातक दे श भारत के पड़ौसी दे श भू टान, नेपाल, मॉर शस, याँमार, पा क तान,
बां लादे श, ीलंका, संगापुर आ द ह । व व म कोयले यापार म भारत का अंश केवल 0.5
तशत है । भारत कोयले के साथ-साथ कोक कोयला का आयात भी करता है य क भारत म
उ पा दत कोयले म 20 से 30 तशत तक राख क मा ा पायी जाती है । िजसके कारण इसका
उपयोग करने से पहले इसम कोक कोयला मलाया जाता है । अत: भारत कोयला का नयात
करने के साथ-साथ कोक कोयला का आयात भी करता है ।

8.2.5 कोयले का उपयोग (Utilisation of Coal)

कोयले का उपयोग न न े म कया जाता है:-


 घरे लू ईधन के प म,
 कारखान म मशीन के संचालन म,
 उ योग, प रवहन, कृ ष आ द म ऊजा के प म योग,
 क चे माल के प म
 कोल गैस बनाने म
 कोक, तारकोल, अम गा, ने यल न, फनायल आ द के नमाण म,
 सु गं धत तेल तथा साधन साम य के नमाण म आ द ।

8.2.6 कोयले क सम याएं एवं संर ण (Problems and Conservation of Coal)

भारत म कोयले के उ पादन क अनेक सम याएं ह, िजनका ववरण न न कार से ह-


(1) उ तम ेणी के कोयले का अभाव
(2) कोयला भ डार का असमान वतरण,
(3) कोयला उ ख न म पुरानी व धय का योग,
(4) यातायात के साधन का अभाव
(5) छोट आकार क खान
(6) मानव म क अ धकता
(7) गहर खान का होना
(8) कोयले म राख क मा ा अ धक, िजससे उ ख न मंहगा पड़ता है,
(9) आग का लगना
(10) खान म पानी का आना
कोयला एक अन यकरणीय संसाधन है, िजसका उपयोग होने पर न ट होता जाता है ।
द घकाल उपयोग करने के लए न न कार के य न कये जाने चा हए-

217
1. कोयले का उ पादन कसी वशेष व ध से हो, िजसम कोयले का य कम हो ।
2. रासाय नक कया वारा न न क म के कोयले को उ तम क म का बनाया जाये ।
3. भाप के ईधन म कोयले के उपयोग पर रोक ।
4. कोयले का शु करण उ पादन े के पास म हो ।
5. कोयले का उपयोग अ य त आव यक उ योग म ह हो ।
6. कोयले का वक प योजना चा हए ।
7. उ च गुणव ता क मशीन म कोयले का उपयोग हो, िजससे अ धक ऊजा ा त क जा
सके आ द ।
बोध न : 1
1. कोयले क उ पि त कै से हु ई?
2. कोयले के कार ल खये ।
3. सव े ठ कोयला कौनसा है ?
4. कोयला उ पादन म व व म भारत का कौनसा थान है ?
5. भारत के सवा धक कोयला उ पादन के पां च े ो के नाम लखो ।
6. कोयला कौनसी शै ल म पाया जाता है ?

8.8 ख नज तेल (Mineral Oil)


8.3.1 ख नज तेल क उ पि त (Origin Mineral Oil)

ख नज तेल वतमान युग का सबसे मह वपूण पर परागत ऊजा का ोत है । यह कृ त


वारा न मत हाइ ो-काबन त व है । िजसका नमाण वान प तक त व तथा जीव के अवशेष के
पा तरण से हु आ है । यह एक जीवा म ईधन है, िजसको पे ो लयम भी कहते ह । इसक
उ पि त वन प तय तथा जीव ज तु ओं के सड़ने व गलने से होती है । सामा यतया: उथले
समु , झील , दलदल व न दय के डे टाओं आ द म मृत जीव-ज तु तथा वन प तयाँ तल पर
एक त होते रहते ह और उनके ऊपर अवसाद जमा होते रहते ह । भू गभ मे करोड़ वष तक
शैल मे दबे रहने के कारण ताप, दाब तथा रे डयोध मता से पे ो लयम, काबन, गंधक आ द त व
का उ व होता है । यह अवसाद शैल म जल क भां त सं चत रहता है । मु यत: ट शयर युग
क अवसाद शैलो म ख नज तेल पाया जाता है ।
भू गभ से ा त ख नज तेल अशु प म मलता है । इसे शोधन शालाओं म शो धत
कया जाता है । शो धत तेल को तीन े णय म वभािजत कया जाता है-
1. पे ोल
2. डीजल
3. केरोसीन

8.3.2 भारत म ख नज तेल के भ डार (Reserves of Mineral Oil in India)

218
भारत म ाचीन एवं नवीन भू ग भक सव ण के अनुसार वतमान म ख नज तेल के कुल
भ डार 625 करोड़ टन ह । िजसम से 500 लाख टन गुजरात म , 500 लाख टन असम म और
1250 लाख टन मु बई म भ डार ि थत ह । गंगा नद के उ पा दत े मे अवसाद च ान के
े म नवीन तेल भ डार मलने क संभावनाएं है । भारत मे 1990 से पि चमी समु तट य
े मे तेल उ पादन काय को ती ग त से संचा लत कया जा रहा है । इस े म नीलम,
मु ता प ना तथा मु बई हाई म एल- वतीय, एल-तृतीय आ द े म तेल का उ पादन का
काय संचा लत कया जा रहा है । वतमान म नवीन तेल भ डार क खोज, सव ण काय और
उ पादन का काम दो रा य क प नयां तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग तथा ऑयल इि डया
ल मटे ड कर रह ह । भारत म ख नज तेल के भ डार का वदरण न न ता लका से प ट है-
ता लका नं. 8॰3 भारत क चे तेल के भ डार ( म लयन मै क टन)
े (AREA) 1990 2000 2002 2003 2004 2005 2006 2007
1 2 3 4 5 6 7 8 9
Onshore 307 317 332 339 357 376 387 357
Offshore 432 386 409 422 382 410 369 369
Total 739 703 741 761 739 786 756 726
ोत : http;//data.un.org/data.aspx?d=edata ef

8.3.3 भारत म ख नज तेल का वतरण एवं उ पादन (Distribution and production of


Mineral Oil in India)

भारत म ख नज तेल का वतरण थल य, सागर तट य एवं अ तःसागर य भाग म पाया


जाता है । यहाँ पर पे ो लयम नकालने का ार भं सव थम 1860 म असम म ड बोई े म
कया गया । आ थक-तकनीक व आवागमन के साधन के कारण इस े म 1890 से ख नज
तेल का व धवत आर भ हु आ । ार भ म तेल उ पादन का काय असम तेल क पनी वारा कया
जाता था । बाद म सुरमा घाट , माकूम आ द े म भी तेल नकालने का काय ार भ हु आ ।
इन तीन े को बमा तेल क पनी को स प दया गया । वतं ता के प चात ् 1953 म प.
बंगाल के सु दर वन े म तेल का सव ण काय टै डड वे यूम ऑयल क पनी वारा कया
गया, िजसका 1956 म नाम बदलकर तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग कर दया गया । भारत म
तेल उ पादन एक् खोज का काय तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग तथा ऑयल इि डया ल मटे ड के
नदशन म हो रहा है ।
भारत के तेल उ पादक े का वणन न न कार से है-
1. असम- इस रा य म न न े मु य तेल उ पादक दे श है ।
(अ) डगबोई े - यह े असम रा य के लखीमपुर िजले क नागा पहा ड़य म ि थत
ट पम पहा डय के पूव भाग म ि थत है । जहाँ भारत म सव थम ख नज तेल का उ पादन
ार भ हु आ । यहाँ लगभग 13 वग क.मी. े म तेल उ पादन हो रहा है । इस े म लगभग
800 कुएँ है, जहाँ 300 से 1200 मीटर क गहराई से तेल नकाला जाता है । ऑयल इि डया

219
ल मटे ड इस े के ब पापांग, हसापांग, डगबोई, पानीटाले े म ि थत कुँ ओं म उ पादन काय
कर रह ह, जो डगबोई तेल शोधन शाला म साफ कया जाता है ।
(ब) नाहरक टया े - यह तेल े डगबोई से लगभग 40 क.मी.दूर द हांग नद तट के
समीप ि थत है, जहाँ 1953 से ख नज तेल उ पादन हो रहा है । यहां पर तेल के साथ-साथ
ाकृ तक गैस का उ पादन भी कया जा रहा है । यहां पर लगभग 60 कु ए ह िजनम 4000 से
5000 मीटर क गहराई से तेल नकाला जाता है । बरोनी तथा नूनमती तेल शोधन शालाओं म
तेल को साफ कया जाता है । इस े म ऑयल इि डया कं. वारा तेल उ पादन कया जाता है।
(स) सू रमा घाट - इस दे श के मु य तेल उ पादक े बदरपुर, मसीमपुर, पथ रया ह, जहाँ
लगभग 60 कुओं से तेल उ पादन हो रहा है । इस े म ा त तेल म यम ेणी का है जो
अ धक गहराई से नकाला जाता है ।
(द) सागर-लखवा े - यह े शवसागर िजले म ि थत है । जहाँ लगभग 50 करोड़
टन तेल के भ डार है । तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग वारा खोज एवं उ पादन काय कया जा
रहा है ।
(य) हगर जन-मोरे न े - यह दे श नाहरक टया के द ण-पि चम म 40 क.मी.दूर ि थत
है । इस े म तेल के 22 कु ए ह, जहाँ उ पादन कया जा रहा है ।
2. गुजरात - इस रा य म तेल उ पादक पेट सूरत से राजकोट तक 15360 वग
क.मी. े म व तृत है । नवीन खोज के अनुसार इस रा य के क छ े म भी तेल के नवीन
भ डार क स भावना है । इस रा य म न न मु य तेल उ पादक े ह-
(अ) अंकले वर े - यह े गुजरात के भड़ौच िजले म बड़ोदरा से 45 क.मी.द ण म
नमदा नद के तट पर ि थत है । यहाँ उ पा दत तेल म म ी के तेल तथा गैसोल न क मा ा
पायी जाती है । इस े म 1100 से 1200 मीटर गहराई से तवष लगभग 30 लाख टन तेल
का उ पादन कया जाता है ।
(ब) कलोल े - यह े अहमदाबाद के पि चम म नवागाँव कोस बा, मेहसाना, कोथाना
रकसोल सान द, बचराजी, काडी वासना आ द छोटे तेल उ पादक े म व तृत है ।
(स) लू नेज े - यह े गुजरात म अरब सागर के तट य े म ख भात क खाड़ी के
ऊपर उ तर भाग म ि थत है । जहाँ से 15 लाख टन वा षक तेल उ पादन हो रहा है ।
(द) अ य े - इसके अ त र त गुजरात के बड़ौदा, भडौच सूरत, खेड़ा, अहमदाबाद, आ द
िजल म छोटे े म भी तेल उ पादन कया जा रहा है ।
3. भारत के मैदानी भाग म गुजरात तथा असम के तेल उ पादक े ि थत है । इसके
अ त र त भारत म मु य तेल उ पादक े समु तट के अपतट य े म भी ि थत है िजनका
वणन न न कार से है-
(अ) मु बई हाई - यह भारत म सवा धक तेल उ पादक े है । महारा रा य के अरब
सागर के तट य े म महा वीपीय म न तट पर मु बई से लगभग 176 क.मी., उ तर-पि चम
मु बई हाई तेल उ पादक े ि थत है । इस े म तेल ाि त सागर स ाट नामक जलयान
वारा 1975 म हु ई, जहां 1976 से उ पादन हो रहा है । इस े म 2500 वग क.मी. े म

220
तेल उ पादन च ान व तृत ह, जो 80 मीटर तक क गहराई मे पायी जाती ह । िजनका नमाण
मायो सन युग म हु आ । वतमान म इस े से 200 लाख टन तेल का उ पादन तवष कया
जा रहा है । नवीन सव ण काय म म मु बई हाई े म नवीन तेल उ पादक े का पता
चला है । जहाँ भ व य म उ पादन होने लगेगा । एक अनुमान के अनुसार मु बई हाई म
3,78,000 लाख घन मीटर गैस तथा 5,110 लाख टन ख नज तेल के भ डार अवि थत ह ।
(ब) आ लयाबेट े - यह े गुजरात के सौरा े म भावनगर से 45 क.मी.पूव म
अरब सागर अपतट य े म ि थत है । इस दे श म स क सहायता से सव ण एवं खोज
काय कया गया था । यह ं वतमान म तेल उ पादन हो रहा है ।
(स) बेसीन े - यह एक नवीन तेल े है, जो अरब सागर म मु बई हाई के द ण म
ि थत है । इस े म 1900 मीटर क गहराई तक अगाध-तेल भ डार ा त हु ए ह । इस े
म 1986 म तेल भ डार का पता लगा है । इस े म 1110 लाख टन तेल के भ डार
अवि थत ह ।
कावेर नद का बे सन े तथा गोदावेरोरनद बे सन म भी नवीन खोज से पया त तेल
तथा गैस के भ डार का पता चला है ।
4. राज थान - इस रा य म 1999 म पहल बार बाड़मेर िजले म गुढा के पास म गा क
ढाणी के धोर के नीचे 1910 मीटर क गहराई पर तेल भ डार मला । इसका नाम ' सर वती
ऑयल फ ड ' रखा गया । इसी म म सन 2002 म बाड़मेर के को प व साढाझु ड म 1400
मीटर क गहराई पर तेल भ डार मला । फरवर , 2003 म गुढामलाणी के नगर गाँव म 1241
मीटर क गहराई पर तेल भ डार मला । जनवर 2004 म बाड़मेर के ह बायत कवास लाँक म
केवल 900 मीटर क गहराई पर ह उ च गुणवजा वाला तेल मला । यह 450 से 1150
म लयन बैरल तेल के भ डार ह । इसका नाम बदलकर 10 फरवर 2004 को ' मगला 1 ' कर
दया गया है । रा य म इं लै ड क केयन एनज ल. स हत अनेक क प नयाँ तेल खोजने म
लगी ह ।

मान च 8.2 ख नज तेल एवं तेल शोधन शालएँ

221
5. ख नज तेल संभा वत े - उपयु त तेल उ पादक रा य के अ त र त पंजाब के
हो शयारपुर, लु धयाना दासूजा े मे तेल के तर वधमान है । हमाचल दे श के वालामु खी,
नूरपुर , धमशाला और बलासपुर तथा ज मु म मू सलगढ़ म भी तेल मलने क स मावना है ।
उड़ीसा के आठगडू , पुर , बालासोर एवं वार पदा तथा आ दे श के गोदावर बे सन म तेल के
भ डार का पता चला है । कावेर नद घाट , त मलनाडु क पाक खाड़ी और अ डमान- नकोबार
वीप के तट य े म भी तेल भ डार क स मावना ह ।
ता लका 8.4 भारत - ख नज तेल उ पादन (000 टन मै)
ववरण 1990-91 2001-02 2004-05 2006-07
1 2 3 4 5
(अ) थल य े
गुजरात 6357 5815 6187 6212
असम 5070 5199 4503 4400
अ य 357 677 600 674
कु ल 11784 11791 11590 11326
(ब) अपतट य े
ओएनजीसी 20376 16629 18165 17993
जेवीसी 0 4006 4226 4669
कु ल 20376 20635 22391 22882
सम त योग 32160 32426 33981 33988
ोत – http.:data.un.org./data.aspx? d=edata &f

8.3.4 तेल शोधनशालाएँ (Refineries)

भारत म वतमान म 17 तेल शोधनशालाए ह । िजसम 15 शोधनशालाए सावज नक े


म, एक नजी े म तथा एक संयु त े म है । इनक तेल शोधक मता 1166.7 लाख टन
है । ये तेल शोधक शालाएं न न है –
तेल शोधनशालाएँ (Oil - REFINERIES)
सं. शाला रा य सं. शाला रा य
1 डगबोई असम 10 हि दया प. बंगाल
2 मु बई (HPCL) महारा 11 ब गाई गाँव असम
3 मु बई (BPCL) महारा 12 मथुरा उ तर दे श
4 वशाखाप नम आ दे श 13 पानीपत ह रयाणा
5 गोवाहाट असम 14 मंगलूर कनाटक
6 बरौनी बहार 15 नुमाल गढ़ असम
7 कोयल गुजरात 16 कावेर थालावार त मलनाडु

222
8 कोचीन केरल 17 जामनगर गुजरात
9 म ास त मलनाडु

8.3.5 ख नज तेल का उपयोग (Utilisation of Mineral Oil)

आधु नक युग म ख नज तेल एक मह वपूण शि त संसाधन के साथ-साथ व वध कार


के े म क चे माल के प म उपयोग कया जाता है जो न न ल खत है-
 पे ो रासाय नक उ योग म क चे माल के प म,
 ख नज तेल वतमान प रवहन तं का मू लाधार है, यथा मोटर वाहन , रे ल इंजन ,
जलयान , वायुयान आ द के संचालन म उपयोग,
 कलपुज म नेहक तेल के प म यु त ,
 घरे लू ईधन के प म,
 कारखान क मशीन तथा कृ ष म यु त यं ो म उपयोग,
 व नमाण उ योग म ऊजा के प म आद ।
भारत मे ख नज तेल का उपयोग का ववरण न न ल खत ता लका से प ट होता है-
ता लका नं. 8.5 भारत - ख नज तेल उपयोग ( म लयन टन)
ववरण 2000-1 2004-05 2006-07
भ डार क चा तेल 703 739 756
उपभोग
1. क चा तेल 104 128 147
2. पे ो लयम उ पाद 100 112 120
उ पादन
1. क चा तेल 33 34 34
2. पे ो लयम उ पाद 96 119 135

ोत – http.;//data.un.org/data.aspx?d=edata&f

8.3.6 भारत म ख नज तेल का आयात- नयात (Import – Export of Mineral Oil in


India)

भारत म पे ो लयम का आयात 2000-01 म 03.37 म. टन था जो नर तर बढ़ता


हु आ 2006-07 म 127.83 म. टन हो गया । इसी तरह भारत वारा पे ो लयम वारा न मत
उ पाद का नयात 2000-01 म 75.0 म. टन तथा 2006-07 मे 95.43 म. टन कया गया,
जो न न ता लका से प ट होता है ।
ता लका 8.6 - भारत ख नज तेल आयात- नयात
ववरण 2000-01 2004-06 2006-07
आयात
1. क चा तेल 74.10 95.86 110.86

223
2. पे ो लयम उ पाद 9.27 8.83 16.97
नयात पे ो लयम उ पाद 8.37 18.21 32.4
ोत – http.;//data.un.org/data.aspx?d=edata&f

8.3.7 ख नज तेल का संर ण (Conservation of Mineral Oil)

ख नज तेल एक जीवा म ईधन है । इसका नमाण भू-वै ा नक युग म जैव त व क


रासाय नक या वारा हु आ है । यह एक यशील ऊजा संसाधन है । अत: इसके संर ण के
लए न न उपाय अपे त ह-
 ख नज तेल का भू ग भक सव ण से वा त वक मा ा का पता लगाना ।
 इसके शोधन क आधु नक वै ा नक तकनीक को अपनाना ।
 इसका उपयोग ऊजा के थान पर क चे माल के प म करना ।
 ख नज तेल के वक प क खोज करना ।
 घरे लू ईधन के प म योग पर पाब द लगाना ।
 व व मे उपयु त एवं सु ढ ख नज तेल नी त को लागू करना ।
 आव यक उ योग म ह क चे तेल के प म ख नज तेल का योग करना ।
 ख नज तेल के थान पर अ यशील ऊजा ोत को योग म लाना ।

8.3.8 भारत म ाकृ त गैस (Natural Gas in India)

यह गैस पूणत: वलनशील है । यह का लख र हत ईधन है । इसका उ पादन कम


खच ला है । इसका उपयोग उवरक नमाण उ योग, ताप व युत संयं व रसोई गैस आ द म
कया जाता है । ख नज तेल े मे ह ाकृ तक गैस के भ डार पाये जाते है । भारत के
पि चमी तट, ख भात क खाड़ी, कावेर तट व जैसलमेर 'आ द म ाकृ तक गैस के अपार भ डार
ह । हजीरा, वजयपुर जगद शपुर (HBJ) पाइपलाइन के न मत होने से ाकृ तक गैस के
उ पादन म वृ हु ई है । भारत म ाकृ तक गैस का उ पादन न न ता लका से प ट है-
ता लका नं. 8.7 भारत ाकृ तक गैस उ पादन एवं उपयोग (मी लयन घन मीटर म)
ववरण 2000-01 2002-03 2003-04 2004-05 2005-06 2006-07
कु ल उ पादन 29.48 31.39 31.96 31.76 32.20 31.75
उपयोग 27.86 29.96 30.91 30.78 31.31 30.79
बोध न : 2
1. पे ो लयम का शाि दक अथ या है ?
2. ख नज ते ल क उ पि त कै से हु ई?
3. भारत म सव धक ख नज ते ल उ पादक े कौनसे है ?
4. आधु नक यु ग म पे ो लयम का या मह व है?

8.4 जल- व यु तशि त (Hydro-Electricity)

224
जल व युत एक कार क यां क ऊजा है । यह ऊपर से नीचे गरती हु ई जलधारा क
ऊजा से संचा लत टरबाइन तथा डायनेम से उ प न क जाती है । य य प ाचीन काल से ह
समु लहर व जल- पात से पन चि कय को चलाने का चलन रहा है । क तु जल व युत
का उ पादन बीसवीं शता द से कया जाने लगा है । इसके अ तगत धरातल के वाह जल के
वेग तथा आयतन को यां क ऊजा म प रव तत करके जल व युत का उ पादन कया जाता है ।
भारत का सबसे पहला जल- व युत के 1898 ई. म दािज लंग मे बनाया गया था ।

8.4.1 जल व युत उ पादन क आव यक दशाएं

(Suitable Conditions Hydro-Electricity Production)

भारत म जल व युत के उ पादन म अ य धक वषमताएं पायी जाती ह । ये वषमताएं


भौ तक तथा मानवीय दशाओं के कारण होती ह । िजनको हम न न ब दुओं वारा समझ सकते
ह-
1. भौ तक दशाएं :- इसके व भ न ब दु इस कार से ह -
 पहाड़ी-पठार भू म का होना
 भू म का अ य धक ती ढाल
 जल पात का होना
 ती गामी नय मत जल- वाह होना
 बांध का नमाण करना
 जल भ डार के लए व तृत भू म क उपलि ध
 जल वाह के लए तापमान का हमांक से ऊपर होना अ नवाय है ।
2. मानवीय दशाएं :- जल व युत के उ पादन म मानवीय कारक बहु त उपयोगी होते ह, जो
न न है
 उ नत ौ यो गक क आव यकता
 पू ज
ं ी का पया त होना
 ऊजा के अ य ोत यथा कोयला, पे ो लयम व ाकृ तक गैस का अभाव
 व युत क औ यो गक एवं नगर य े म मांग बढ़ना
 मांग े क समीपता
 व युत इकाइय का उ चत रख रखाव
 उपयु त ब धन
 कु शल मक
 राजनी तक ढता एवं ती इ छाशि त का होना आ द

8.4.2 भारत म जल- व युत उ पादन के संभा वत े

(Possible Areas of Hydro-Electricity Production in India)

भारत म मु यत: जल शि त के तीन े पाये जाते ह -

225
1. भारत म हमालय पवत के सहारे पि चम म क मीर से लगाकर सुदरू पूव म सीमावत
पहा ड़य तक फैला है ।
2. द ण ाय वीप क पि चमी सीमा के पि चमी घाट, सहया पवत व अ य पहा ड़यां
तथा पठार भाग तक जल व युत शि त का े है ।
3. तीसरा जल व युत शि त का े सतपुड़ा , व यांचल, महादे व और मैकाल क
पहा ड़य के
4. सहारे -सहारे पि चम से पूव तक ि थत है ।

8.4.3 भारत म जल व युत उ पादन े

(Hydro Electricity Production Areas of India)

भारत म जल व युत का उ पादन पवतीय एवं पठार भाग म सवा धक हो रहा है ,


िजनका ववरण न न कार से है-
1. महारा - इस रा य म मु बई क टाटा जल- व युत प रयोजना, लोन वाला क
आं घाट व युत प रयोजना, भीवपुर , कोयना, वेतरणी पूणा व मरकर जल व युत प रयोजना ,
अकोला, ा बे आ द जल व युत शि त के है ।
2. त मलनाडु - इस रा य म पायकारा प रयोजना, मेस, प रयोजना, पापानासम प रयोजना,
पे रयार प रयोजना, परि बकुलम योजना, नैवेल व कोडायर आ द जल व युत शि त प रयोजना
है ।
3. केरल - इस रा य म प ल वासल प रयोजना, शोलायार प रयोजना, ने खयामगलम
सबर गर प रयोजना व इडीक प रयोजना आ द मु ख जल व युत शि त प रयोजनाएं ह ।
4. कनाटक - इस रा य म शवासमु म जल पात, कृ णराज सागर बांध, महा मा गांधी
प रयोजना, जोग कनाटक व युत म, ावती प रयोजना, काल नद आ द जल व युत शि त
प रयोजनाएं है ।
5. ज मु-क मीर - इस रा य म स धु घाट व युत प रयोजना , सलाल, पहलगांव, झेलम
नद , वूलर झील, चेनानी प रयोजना, आ द मुख जल व युत शि त योजनाएं है ।
6. उ तराखंड-उ तर दे श - यहां पर रह द, रामगंगा, माताट ला, नरौरा, शारदा, बेतवा,
ओबरा, संगरोल , ओ रया कानपुर आ द शि तगृह एवं प रयोजनाएं ह ।
7. हमाचल दे श - इस रा य म म डी और ना पाजाखड़ी मु य जल व युत शि त
प रयोजनाएं ह ।
8. उड़ीसा - ह राकु ड और बाल मेला प रयोजनाएँ ।
9. पंजाब व ह रयाणा - भाखडा-नाँगल, प ग, थीन, यास, दे हर आ द प रयोजनाएँ ।
10. बहार-झारख ड - दामोदर घाट , कोसी, ग डक च दन जलाशय, वणरे खा आ द
प रयोजनाएँ ।

226
ता लका नं. 8.8 - भारत म जल व युत उ पादन (दस लाख कलोवाट त घ टे )
उ पा दत वष जल व युत
1950-51 25
1960-61 78
1970-71 252
1980-81 465
1990-91 717
2000-01 745
2001-02 736
2004-05 998
ोत – http.;//data.un.org/data.aspx?d=edata&f

मान च 8.3 जल शि त े

227
8.4.4 जल व युत का उपयोग एवं मह व

(Utilisation and Importance of Hydro Electricity)

भारत म धरातल य उ चावच क ि थ त और न दय म वष भर जल का वाह से जल


व युत उ प न क उपयु त दशा है । भारत म जल सवा धक थायी और अ ु ण संसाधन है ।
बीसवीं शता द से जल वारा व युत उ प न करने म सवा धक वृ हु ई है, य क जल व युत
ऊजा का थायी ोत है । इसका उपयोग न न काय म कया जाता है-

मान च 8.4 मु ख जल शि त गह
 उधोग-ध ध म,
 कृ ष काय म,
 प रवहन के साधन म,

228
 व भ न भाग म ऊजा के प म,
 घरे लू उपकरण म,
 काश के लए,
 यापा रक काय म आ द ।
हम न न ब दुओं से जल- व युत के मह व को दशायगे-
 उपयोग म सु गम एवं सरल,
 अ ु ण संसाधन,
 तु लना मक ि ट से स ता साधन
 उ च बो ट क शि त का होना
 बहु उपयो गता का ऊजा ोत
 सं ेषण म सु गमता,
 घरे लू उ योग, यापा रक, शै क व रोशनी आ द सभी े म उपयोग से
मह वअ धक है ।
बोध न : 3
1. भारत मे सबसे अ धक जल व यु त कौन से रा य म उ प न क जाती है ?
2. कौन से उ चावच म जल व यु त उ प न करने क सबसे अ धक सं भावना है ?
3. आधु नक समय म जल- व यु त का अ धक मह व. य है ?

8.5 आण वक ऊजा (Atomic Energy minerals)


भारत म ौ यो गक वक सत करने के लए 1957 म परमाणु ऊजा त ठान का गठन
कया गया । सव थम 1969 म तारापुर म परमाणु संयं क थापना क गई । आण वक ऊजा
का उ पादन यूरे नयम, थो रयम, रे डयम, चू टो नयम और ल थयम व वरल मृदाओं जैसे ख नज
से कया जाता है । यह ऐसे ख नज पदाथ ह िजनके परमाणु ओं के संगलय एवं वख डन से ऊजा
होती है । इस ऊजा के उ पादन म उ च तकनीक , अ धक पू ज
ं ी एवं व करण से सु र ा क
आव यकता होती है ।

8.5.1 भारत म आण वक ख नज पदाथ (Atomic Energy minerals in India)

भारत म पाये जाने वाले आण वक ख नज पदाथ का ववरण इस कार है -


 थो रयम - भारत म थो रयम का मु य ख नज मोनाजाइट का न ेप समु तट य बालु ओं
म त मलनाडु व केरल रा य के तट य भाग म पाया जाता है तथा पूव तट के न दय
के मु हान , डे टाओं और लहरो वारा मोनाजाइट के जमाव पाये जाते ह ।
 यूरे नयम - यह ख नज झारख ड के तांबा े और राज थान मे उदयपुर िजले के उमरा
नामक े मे उ पा दत कया जाता है ।
 बैर लयम- यह आ नेय शलाओ से ा त होता है । यह झारख ड रा य के हजार बाग,
गया तथा राज थान के उदयपुर िजले मे , आ दे श मे नैलोर और त मलनाडू के
कोय बटू र िजले म उ पा दत कया जाता है ।

229
 िजरकन - इस ख नज के मु ख े वलोन और क याकुमार के बीच त मलनाडु और
आ दे श म पाये जाते ह ।

8.5.2 आण वक ऊजा का उ पादन (Production of Atomic Energy)

वतमान म भारत म सात थान पर आण वक ऊजा संयं था पत ह । इसम तारापुर


(महारा ) म 3 रावतभाटा (राज थान) म 4, कलप कम व कु डनकुलम (त मलनाडु ) म 2, नरौरा
(उ तर दे श) म 2, केगा (कनाटक) म 2 तथा काकरापार (गुजरात) मे 4 संयं ह ।

8.5.3 आण वक ऊजा का उपयोग (Utilisation of Atomic Energy)

आण वक ऊजा का उपयोग न न े म कया जाता है-


 मानव क याणकार काय म,
 साम रक उ े य के लए
 च क सा व ान के े म
 कृ ष, उ योग तथा ताप व युत के उ पादन म
 सजन तथा वकास क अपार शि त वधमान है।।

8.5.4 आण वक ऊजा का संर ण (Conservation of Atomic Energy)

मानव के आ थक वकास व उ च जीवन तर के लए ऊजा का उपयोग अ नवाय है ।


इस लए ऊजा संकट से बचने के लए ऊजा संर ण आव यक है । इसके लए न न ल खत उपाय
अपे त ह-
 आण वक ख नज क खोज करके उ टनन णाल म सुधार करना चा हए ।
 रे डयो-धम पदाथ से अ य रे डयो-धम करण का उ सजन होता है । इसका मनु य व
अ य जीव के वा य पर दु भाव पड़ता है ।
 परमाणु बम के व फोट पर रोक लगनी चा हए ।
 परमाणु भ य से होने वाले रसाव पर नयं ण ।
 रे डयो-धम यथ पदाथ का न तारण सह तर के से करना चा हए । आण वक ऊजा का
उपयोग मानव वकास और व थ जीवन के लए होना चा हए ।
बोध न : 4
1. आण वक ऊजा या है ?
2. आण वक ख नज पदाथ के नाम ल खए ।
3. भारत के आण वक लु त के ो के नाम ल खए ।
4. आण वक ऊजा का उपयोग कन े ो मे कया जाता है ।

8.6 गैर-पर परागत ऊजा ोत (non-Conventional Energy


Sources)
गैर-पर परागत ऊजा ोत से ता पय ऐसे ऊजा ोत से है, िजनका पुन : योग के लए
नवीनीकरण कया जा सकता है । यह ऊजा ोत अ यशील होते ह । ये कृ त म कभी भी न ट

230
नह ं होने वाले होते ह । इनका पुन: उपयोग कया जाता है । इन ोत के उपयोग से पयावरण
म दूषण नह ं होता है । सौर ऊजा, पवन ऊजा, जैव ऊजा, वार य ऊजा तथा भूतापीय ऊजा
आ द अप परागत ऊजा ोत ह । भारत म इन ऊजा ोतो का वकास होना अभी शेष है ।

8.8.1 सौर ऊजा (Solar Energy)

सू य असीम ऊजा शु ि त का ोत ह । इससे ा त होने वाल ऊजा को '' सौर ऊजा ''
कहते है । यह सतत प से ा त होने वाला थायी ऊजा ोत है । सौर ऊजा सू य क सतह से
लघु तरं ग वारा सा रत होती है । भारत म उ तर पहाड़ी े को छोड़कर स पूण दे श म वष
भर कु छ मह न को छोड़कर सू य का काश दनभर ा त होता है । िजस कारण भारत म सौर
ऊजा क पया त स भावनाएं ह । सौर ऊजा का को ड टोरे ज, शीतन, खाना पकाने, पानी गम
करना, बजल उ पादन करना, सौर चू हा, सौर फोटो बोि टक सैल आ द म उपयोग कया जाता
है ।
भारत म व व के वशालतम सौर सरोवर क थापना गुजरात म भु ज नगर के समीप
‘माधापार’ नामक थान पर क गई है । ह रयाणा, कनाटक, त मलनाडु , म य दे श, महारा ,
उ तर दे श और राज थान म सौर ऊजा उ पादन लांट था पत है । राज थान म जोधपुर िजले
के मथा नया क बे म सौलर ऊजा शि तगृह था पत कया गया है । खाना बनाने के लए व व
क सबसे बड़ी सौर वा प णाल आ दे श म त माला म 2002 म था पत क गई । भारत
म 2002 तक 500 मेगावाट व युत का उ पादन सौर ऊजा से हो रहा है ।

8.6.2 पवन ऊजा (Wind Energy)

भारत म पवन चि कय का योग ऊजा के प म ाचीन काल से ह है । पवन क


दशा म घूमकर चलने वाले पंखे का उपयोग भू म से पानी खींचने व आटा पीसने म कया जाता
था । पवन ऊजा एक कार क ग तज ऊजा है । िजसके वेग से टरबाइन को संचा लत करके
व युत ऊजा उ प न क जाती है यह ऊजा उ ह ं भाग म उ प न क जाती है, िजन े म
अप रवत एवं म यम वायु हमेशा चलती है । इसके लए वायु क ग त 25 क.मी.से 80 क.मी.
त घ टा मानी जाती ह ।
भारत म 2005 म पवन ऊजा से लगभग 40,000 मेगावाट ऊजा उ प न क गई ।
िजसम त मलनाडु भारत का सवा धक पवन ऊजा उ प न करने वाला रा य है । महारा , केरल,
गुजरात. उड़ीसा, राज थान आ द रा य म भी पवन ऊजा का उ पादन हो रहा है । इस ऊजा का
उपयोग पेयजल, संचाई, छोट मशीन चलाने और ईधन के प म कया जाता है ।

8.6.3 वार य ऊजा (Tidal Energy)

समु तट य भाग म ाय: त दन नि चत अ तराल के प चात वार-भाटा आते रहते ह


। सागर म वार क उ पि त च मा और सू य के गु वाकषण बल के कारण होती है । वार य
तरं ग के दबाव से व युत उ प न क जाती है । इसे वार य ऊजा कहते ह । सागर तट पर

231
वार च क या सागर मल था पत क जाती है, इनको वार य तरं ग से ा त होने वाल
शि त से संचा लत कया जाता है ।
भारत म ख भात क खाड़ी तथा गंगा नद के मु हाने वाले े म वार य लहर वारा
ऊजा उ पादन क अ धकतम स भावनाएँ है । पि चमी तट य े म एक वार य ऊजा संयं क
थापना केरल के तट य े म ि थत व झंगम थान पर क गई है । यहां पर 105 मेगावाट
ऊजा उ प न क जा रह है । इस ऊजा के उ पादन म पू ज
ं ी एवं तकनीक क अ धक आव यकता
होती है ।

8.6.4 जैव ऊजा (Bio Energy)

जैव ऊजा का उ पादन जीव के उ सिजत पदाथ , पशुओं के गोबर , वन प तय के


अप श ट पदाथ , शहर के कूड़ा-करकट, मानव का मल-मू व ग दे पानी को सड़ाया व गलाया
जाता है और उससे बायोगैस उ प न क जाती है, िजसका उपयोग ऊजा के प म कया जाता
है।
भारत म ामीण े म खाद एवं ामो योग वकास बोड वारा वशेष अनुदान से
बायोगैस इकाइयाँ था पत क जा रह ह । भारत म 1995 तक 2.0 लाख और 2005 तक 3.7
लाख बायोगैस संयं था पत कये जा चुके ह । अब IREDA सं थान ने भी बायोगैस संयं
लगाने का काय म हाथ म लया है । यह काय म भारत के ामीण े म बहु त कारगर
सा बत हु आ है । यह सबसे स ती और आसान तकनीक तथा अप श ट पदाथ का उपयोग होने
के कारण सबसे -सफल ऊजा उ पादन साधन है । भारत म 2005 म 20 लाख तथा 2005 म
160 लाख मेगावाट जैव ऊजा उ प न क जा रह है ।

8.8.5 भू तापीय ऊजा (Thermal Energy)

भू ग भक ताप से ा त होने वाल ऊजा को भू तापीय ऊजा कहते ह । यह भू म के


आ त रक तापमान पर नभर है । धरातल के नीचे 1 से 5 मील क गहराई पर उ ण चटृ ान है ।
इन उ ण च ान क उ मा का उ चत योग कू प खोदकर तथा शीत जल को प प वारा इन
च ान म वा हत करके कया जाता है ।
भारत म भू-तापीय ऊजा ोत उ तर-पि चमी हमालय के पवतीय े के पि चमी तट,
हमाचल म पावती नद क घाट एवं छ तीसगढ़ रा य के तातापानी म भू तापीय ऊजा उ पादन
के व युत संयं का नमाण कया गया है । भारत म 2005 म 20 मेगावाट भू-तापीय ऊजा
उ प न क गई । इस ऊजा का उपयोग रोशनी, संचाई, छोटे उ योग एवं घरे लू इले ो नक
उपकरण म कया जाता है ।
ता लका 8.10 भारत-गैर-पर परागत ऊजा का उ पादन (मेगावाट तघ टा)
स. ऊजा 2001 2005
1 जैव ऊजा 120 लाख 160 लाख
2 भू तापीय ऊजा - 20 लाख
3 वार य ऊजा 5 105

232
4 पवन ऊजा 20,000 40,000
5 सौर ऊजा 120 1500
Source: Annual Report Non-Conventional sources Ministry 205-06
बोध न : 5
1. सौर ऊजा या है ?
2. पावन ऊजा या है ?
3. भू - तापीय ऊजा कै से उ प न होती है ?
4. वार य ऊजा या है ?
5. जै व ऊजा के उ पादन म कन दाथ का उ पादन कया जाता है ?

8.7 सारांश (Summary)


मानव के वकास और आव यक सु वधाओं के लए ऊजा क आव यकता होती है ।
सामा यतया समृ के लए कसी न कसी शि त के संसाधन का उपयोग कया जाता है ।
मानव ार भ से ह अपनी भौ तक सु वधाओ, आ थक वकास, सामािजक उ च जीवन तर आ द
के लए पूण प से संसाधन पर नभर है । भारत म शि त के संसाधन के वतरण म यूनता
पायी जाती है । कोयला, ख नज तेल, जल व युत और आण वक ऊजा पर परागत ऊजा के ोत
ह । भारत म यशील ऊजा के ोत म कमी पायी जाती है और अ यशील ोत का वकास
अभी अधूरा है । अपर परागत ऊजा के ोत का पू ज
ं ी और तकनीक के अभाव म वकास नह ं हो
रहा है । भारत म ऊजा के अभाव म उ योग, कृ ष, तकनीक , प रवहन, व ान आ द क ि ट
से समृ शाल नह ं हो सके ह । इसके लए ऊजा के ोत को बढ़ाना होगा ।
आ थक वकास का मापद ड ऊजा से माना जाता है । भारत के ऊजा उ पादन े के
वतरण से प ट होता है क पर परागत ऊजा ोत धीरे -धीरे ख म होते जा रहे ह । ऐसी ि थ त
म अपर परागत ऊजा ोत जो कभी न ट नह ं होने वाले ह, िजनके उ पादन से पयावरण दू षत
नह ं होता है । ऐसे ऊजा के ोत पवन ऊजा, जैव ऊजा, सौर ऊजा, भू तापीय ऊजा व वार य
ऊजा आ द ह । इन ऊजा ोत को वक सत करने म ाकृ तक प रि थ तय के साथ उ च
तकनीक एवं पया त पूज
ं ी व मशीन क आव यकता होती है जो भ व य म आ थक वकास का
आधार रहगे । भारत धीरे -धीरे अपर परागत ऊजा ोत क ओर यान दे रहा है ।

8.8 श दावल (Glossary)


1. यशील ोत - ऐसे साधन िजनका उपयोग करने पर हमेशा के लए समा त हो जाते ह,
जैसे- कोयला, पे ो लयम, आण वक ख नज आ द
2. अ यशील ोत- ऐसे साधन िजनका उपयोग करने पर वे न ट नह होते ह, जैसे - सौर
ऊजा पवन जल आ द ।
3. जीवा म इंधन - िजनका नमाण भू-वै ा नक युग म जैव त वो क रासाय नक या
वारा हु आ है ।
4. यां क ऊजा - जो ऊजा संचा लत डायनेमो (टरबाइन ) से उ प न क जाती है ।

233
5. वक ण - लघु तंरग का सा रत होना ।
6. सू यताप - सू य से पृ वी को ा त होने वाल व करण ऊजा ।
7. बायोमास - त इकाई े फल म व यमान जै वक पदाथ का कुल भार ।
8. वार - सागर य जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ।
9. भाटा - सागर य जल नीचे गरकर पीछे लौटने को ।

8.9 स दभ ंथ (References)
1. चतुभु ज, मामो रया (2007) : आधु नक भारत का वृहत भू गोल, सा ह य' भवन,
आगरा ।
2. एल.एन. वमा (2003) : भारत का भू गोल, राज थान ह द थ
अकादमी, जयपुर ।
3. रामकु मार गुजर व बी. सी. जाट : भारत का भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर ।
4. एस. सी. बंसल (2007) : भारत का भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ ।
5. ट . एस. चौहान (1995) : भारत का भू गोल, व ान काशन, जोधपुर ।
6. Gopal Singh (1998) : Geography of India, Atma Ram&
Sans, New Delhi
7. 7. R.L. Singh (1978) : India, A Regional Geography, UBS
Publishers, Delhi
8. T.C. Sharma (2003) : Economic and Commercial
Geography of India, Vikas Publish
House, New Delhi.
9. India 2008 Govt. of India
10. Economic Survey of India 2007- Govt. of India

8.10 बोध नो के उ तर
बोध न-1
1. व तृत सघन दलदल वन का भू ग भक हलचल के कारण भू म म दबने से
आ त रक दबाव, भचाव एवं ताप से कोयले क उ पि त ।
2. (i) ए ेसाइट
(ii) बटु मनस
(iii) लगनाइट
(iv) पीट
3. ए ेसाइट
4. तीसरा
5. (i) झ रया

234
(ii) रानीगंज
(iii) गर डह
(iv) संगरोल
(v) रामकोला तातापानी
6. अवसाद शैल म
बोध न-2
1. शैल से ा त तेल
2. उथले समु , झील , दलदल , न दयो के डे टाओं आ द म मृत जीव-ज तु तथा
वन प तय पर नर तर अवसाद के जमाव एवं. आ त रक ताप, दाब व रे डयो
ध मता के भाव से ख नज तेल क उ पि त ।
3. (i) मु बई हाई
(ii) डगबोई
(iii) अंकले वर े
(iv) सु रमा घाट
4. (i) पे ो-रासाय नक उ योग म
(ii) प रवहन के साधन म
(iii) कलपुज म नेहक के प म
(iv) व नमाण उ योग म
(v) मशीन एवं कृ ष यं म
बोध न-3
1. महारा
2. ती ढाल वाले पहाड़ी-पठार भू-भाग
3. (i) तु लना मक ि ट से स ती ऊजा ोत
(ii) अ य धक ऊजा का उ प न होना
(iii) व भ न भाग म उपयोग
(iv) उपयोग म सरल आ द
बोध न-4
1. आण वक ख नज के वखंडन से ा त होने वाल ऊजा
2. यूरे नयम , थो रयम, रे डयम तथा लू टो नयम
3. तारापुर, रावतभाटा, कलप कम, नरोरा व काकरापारा
4. (i) मानव क याणकार काय म
(ii) च क सा व ान के े म
(iii) साम रक मह व के उ े य के लए
(iv) कृ ष-उ योग म उपयोग
(v) ताप व युत उ पादन
235
(vi) आण वक बन एवं रे डयाधम दूषण
बोध न-5
1. सू य से ा त होने आल ऊजा?
2. पावन के वेग से तरबाइन को संचा लत करके व युत ऊजा उ प न करना ?
3. भू ग भक ताप से उ प न होने वाल ऊजा
4. समु तट य भाग म वार य तरं ग के दबाव से व युत उ प न करना।
5. वन प तय के अप श ट पदाथ, पशुओं का गोबर, जीव के उ सिजत पदाथ, कूड़ा-
करकट आ द पदाथ से जैव ऊजा उ प न क जाती है ।

8.11 अ यासाथ न (Exercise)


1. भारत म कोयला के उ पादन े ो का वणन क िजये तथा इसके भ व य पर समी ा मक
या या क िजये ?
2. ''वतमान म भारत क अथ यव था पे ो लयम से भा वत होती है '' इसक समी ा
क िजये?
3. भारत म जल व युत शि त के उ पादन े का वणन क िजये '
4. ''गैर-पार प रक ऊजा के ोत भ व य म ऊजा संकट को कम करने म सहायक स हो
सकेग । '' या या क िजये?
5. भारत म आण वक ऊजा ोत का वणन क िजये ?

236
इकाई 9: मु ख उ योग एवं अदयौ गक दे श (Major
Industries and Industrial Regions)
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 मु ख उ योग- लोहा इ पात उ योग
9.2.1 थानीयकरण के कारक
9.2.2 इ पात उ योग का वतरण
9.2.3 इ पात उ पादन
9.2.4 इ पात उ योग क सम याएँ
9.2.5 यापार
9.3 सू ती व उ योग
9.3.1 उ योग का थानीयकरण
9.3.2 उ योग का वतरण
9.3.3 उ योग का उ पादन
9.3.4 उ योग क सम याय
9.4 सीमे ट उ योग
9.4.1 उ योग का थानीयकरण
9.4.2 उ योग का वतरण
9.4.3 उ योग का उ पादन
9.4.4 उ योग क सम याएँ
9.4.5 यापार
9.5 ए यु म नयम उ योग
9.5.1 उ योग का थानीयकरण
9.5.2 उ योग का उ पादन
9.5.3 उ योग का वतरण
9.5.4 यापार
9.6 लु द व कागज उ योग
9.6.1 क चा माल
9.6.2 थानीयकरण के कारक
9.6.3 वतरण
9.6.4 उ पादन
9.6.5 उ योग क सम याएँ

237
9.6.6 यापार
9.7 औ यो गक दे श
9.7.1 औ यो गक दे श से अ भ ाय
9.7.2 करण जेन क स के अनुसार औ यो गक दे श
9.7.3 आर.एल. संह के अनुसार औ यो गक दे श
9.7.4 सामा य वग करण
9.7.5 मु ख औ यो गक दे श
9.8 सारांश
9.9 श दावल
9.10 स दभ म थ
9.11 बोध न के उ तर
9.12 अ यासाथ न

9.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात आप :-
 उ योग क कृ त एवं वषय े को समझना,
 उ योग के वकास को समझना
 उ योग क थानीयकरण कारक क पालना,
 उ योग क उ पादन के वषय म जानकार होना,
 उ योग के वतरण का ान होना तथा,
 औ यो गक दे श के बारे म समझना ।

9.1 तावना (Introduction)


मनु य वारा कये जाने वाले आ थक आखेट तथा मछल पकड़ना, कृ ष एवं पशु पालन,
उ खनन, उ योग, यापार तथा प रवहन ह । कृ ष के बाद उ योग ह मह वपूण आ थक काय है
। इनम संसार क कायरत जनसं या का 19.4 तशत जी वका पाता है । उ योग का वकास
का मापद ड भी माना जाता है । िजन दे श म उ योग का वकास हु आ है वहाँ अ य आ थक
काय जैसे, यापार तथा प रवहन का वकास होना वाभा वक है । उ योगो वारा बना हु आ
सामान रा य तथा अ तरा य बाजार मे जाता है । ओ यो गक वकाश से जीवन तर भी
ऊँचा उठता है । य शि त के बढ़ने से बाजार का भी व तार होता है िजससे कृ ष तथा
पशु पालन, म य उ योग तथा अ य उपभो ता साम ी के उ योग भी वक सत हो जाते है ।
उ योग के नये के मान च पर उभरते है । नगर के नकट उ योगो के वकास होने पर नगर
तेजी से बढ़ते तथा फैलते है; उनक जनसं या म औसत से अ धक वृ होती है य क जी वका
के आकषण म लोग आकर बसते है । यह कारण है क औ यो गक के द; नगर पुज
ँ (Urban

238
agglomeration) को वक सत होने म सहायता दे ते है, साथ ह नगर पु ज
ं म औ यो गक
वकास क सु वधा के कारण अनेक उ योग आक षत होते है ।
'इंड ' श द का अ ेजी मे अथ ह क चे माल से व तु ओ का नमाण करना
(Febrication from raw material) । जमन श द इ ड (Industria) का अथ है मशीन
अथवा या से आधु नक ढं गो वारा बड़ पैमाने पर नमाण (Processing on large scale
with the use of machinery of modern method of working) लै टन श द इंडि या
(Industria) का अथ है यवसाय अथवा म का नंरतर उपयोग (study application to
business or labour) ।
रॉ ब सन ने उ योग को और प ट श द म प रभा षत कया है: पदाथ को या के
बाद उनका प प रव तत कया जाता है, िजसम कोई नई उपयोगी व तु बनाई जाती है ।
(Manufacture may be define as the processing and altering to materials,
whather in their raw or partly altered state, to make new products to
serve new ends.)
उ योग वह आ थक काय है िजससे उपयोगी व तु एँ बनाई जाती है या सेवा काय का
ज म होता है (Economic activity which yields goods ,utilities, of service) ।
अले जडर ने भी औ यो गक भू गोल को प रभा षत कया है- औ यो गक भू गोल म उ योग क
वतमान वतरण क ववेचना क जाती है, संसार, महा वीप दे शो दे श तथा नगर म
।(Geography of manufacturing is concerned with the interpretation of the
present distribution patterns global, continental, national, regional or
urban) । यह कारण है क औ यो गक भू गोल क मु ख वषय व तु उ योग का थानीकरण
एवं वतरण है । थानीकरण के कारक सभी उ योग म लगभग समान है क तु वभ न
उ योग म उनका सापे क मह व भ न- भ न है । यह एक मह पबूण कारण है क सभी
उ योग का कसी दे श अथवा दे श के समान वतरण नह मलता है । वभ न कार के
उ योग संसार म समान प से वक सत भी नह होते । व ान तथा तकनीक के वकास के
साथ अनेक नये उ योग वक सत होते जाते है । उनका थानीकरण भी उनक आव यकताओं के
अनु प भ न- भ न होता जाता है ।

9.2 मु ख उ योग लोहा-इ पात उ योग (Important Industries-


Iron and Steel Industry)
ग तशील दे श को येक उ योग के लए लोहे और इ पात क आव यकता होती है ।
कृ ष उ योग, च क सा आ द अनेक काय बना इ पात के योग के पूरे नह कये जा सकते ।
भार मशीन से लेकर छोटे से छोटे पूज तक म इसका उयोग होता ह वतमान युग को य द
इ पात-युग कहा जाये , तो कोई अ युि त न होगी । नमू क जो स के अनुसार '' लोहे और
काबन क म त धातु को, जो इ पात के नाम से व यात है, य द अलग कर दया जाये तो
मानव जा त के सम एक ऐसा संसार होगा, िजसम रे ल, जहाज, हवाई जहाज, तरह-तरह के

239
य और उपकरण तथा प रवहन के साधन इ या द न रहे गे और इस कार का समाज आधु नक
जीवन के लये आव यक व तु य तैयार करने म पूणतया असमथ रहे गा ।''

9.2.1 थानीयकरण के कारक

इ पात उ योग मूलत: क चे माल पर आधा रत उ योग है । लोह धातु भार तथा स ती
होती है । कोयल मगनीज, चू ना प थर, डोलामाइट, आ द भी आव यक क चे माल है । इस लये
क चे माल के नकट ह इ पात उ योग क थापना होती है । इसके अ त र त जल, स ता
प रवहन, शि त एवं मक क भी आव यकता होती है । एक टन ढलवाँ लोहा (Pig iron)
बनाने के लए 3 टन कोयला व 2 टन लोहा आव यक होता है । इस लये कोयला व लोहा े के
नकट ह इ पात उ योग था पत करना उपयोगी रहता है । हमारे दे श म सभी सु वधाये एक ह
े म ा त नह है । अतएवं इ पात उ योग क थापना चार भ न ि थ तय वाले े ो म हु ई
है-
1. कोयला े के नकट- बनपुर , ह रापुर , कु लट (IISCO), दुगापुरा व बोकार के कारखाने
ि थत है ।
2. लोह अय क े के नकट- भलाई, राउरकेला व भ ावती कारखान के अ त र त सलेम
व वजयनगर (कनाटक) के कारखाने ने भी लोह े ो के ह नकट ि थत एवं ता वत
है ।
3. कोयला व लोह धातु े के म य प रवहन सु वधा के नकट- टाटा का इ पात कारखाना
ि थत है ।
4. यापार क सु वधा- वशाखापतनम इ पात कारखाने को तट य ि थ त के कारण प रवहन
एवं यापार क वशेष सु वधा ा त है ।
भारत म क चा माल (लोह धातु) पया त मा ा म मौजू द है । झारख ड, उड़ीसा, गोवा,
महारा , म य दे श व कनाटक म लोहा पाया जाता है । उ तम को कं ग कोयला वहार,
झारख ड तथा घ टया कोयला म य दे श म मु यत: पाया जाता है । चू ना प थर म य दे श,
बहार, झारख ड, उड़ीसा व कनाटक म बड़ी मा ा म मलता है । मगनीज भी इ ह ं रा य म
मलता है । उपरो त सु वधाये पि चमी बंगाल, बहार, उड़ीसा, म य दे श, छ तीसगढ व
कनाटक म मलती है, अतएवं इ ह रा य म इ पात उ योग वक सत हु आ है ।

9.2.2 इ पात उ योग का वतरण

1. टाटा आयरन एवं ट ल क पनी (TISCO) यह कारखाना 1907 मे सांकची (झारख ड),
म था पत कया गया है । थम व व यु के समय इस कारखाने ने पया त उ न त क ।
सरकार का संर ण इसको बराबर मलता रहा । वतीय व व यु म इस कारखाने का ओर
अ धक वकास हु आ । कारखाने का नकटवत े जमशेदपुर नाम से एक बहु त बडा औ यो गक
के बन गया है । लोह-इ पात उ योग के था पत कये जाने के लये यहाँ भौगो लक सु वधाये
ह । लोहे क क ची धातु बहार (अब झारख ड) के सहभूम िजले म कोलहन व नोआमु डी क
खान से तथा उड़ीसा क मयूरभंज े से मलती है । कोयला 217 क.मी. दूर रानीगंज ओर

240
झा रया से आता ह । धुला हु आ कोयला जमदोबा, पि चमी बोकार , लोदना व भेगरडीह के
कारखान से ा त होता है । मेगनीज डोलोमाइट टं सटन, आ द पदाथ 500 क.मी. घेरे क े
म. ह ा त होते है । आइटे नयम द णी भारत से तथा अि न म ी बेलपहाड़ से ा त होती है
। चू ना और डोलोमाइट उड़ीसा से गंगपुर थान से ा त कये जाते ह । मैगनीज बहार,
झारख ड, और म य दे श से आता ह । लोहा ढालने क भ य को बनाने के लए वाटजाइट
कलू केवल 10 कसी दूर काल मती नामक थान से ा त होता है । वण रे खा ओर खोरकाई
न दय का व छ जल ह उपल ध होता है । पूव उ तर दे श , म य दे श, छ तीसगढ़,
झारख ड, बहार उड़ीसा रा य से स ते मक मल जाते है । जमशेदपुर, द णी पूव रे लमाग
वारा कोलकाता और मु बई से जु ड़ा ह । कोलकाता े म अनेक इंजी नय रंग उ योगो म
इ पात क थानीय खपत होती है ।
इस औ यो गक के म लोहे क चादर, गाडर, रे ल के डबे, प ट रयाँ ल पर, काँटेदार
तार, आ द भी बनाये जाते है । व भ न व तु ओं के नमाण के लये यहाँ अलग-अलग कारखान
को था पत कया गया है- जैसे भारतीय टन- लेट इ ड ज इ पात व तार क पनी टाटा
इंजी नय रंग ए ड लोकेमो टव क पनी, ए ीक वर इ पल मे स आ द ।
2. इि डयन आयरन ए ड ट ल क पनी (IISCO) - इसके कारखाने पि चमी बंगाल म
कु ती (1864) ह रापुरा (1908) और बनपुर (1937) म था पत कये गये है । कु लती बाराकर
नद पर ि थत ह तथा कोलक ता म 215 क.मी. दूर है । ह रापुर आसनसोल के केवल 6
क.मी. और कु लती से 11 क.मी. दूर है । कुलती के कारखाने म इ पात के प ड बनाये जाते ह
तथा बनपुर म तैयार इ पात बनाया जाता है, जो क ह रापुर म लोह- प ड के प म उ प न
कया गया था । इस लोहा-इ पात औ यो गक के को अनेक सु वधाय ा त है । संह भू म
और मयूरभंज से लोहा मल जाता है । रानीगंज , झ रया व रामनगर से कोयले क सु वधा ह ।
धु ला हु आ कोयला प थर हड, लोदना जमदोबा व पि चमी बोकार के कारखाने से ा त होता ह
चू ना प थर उड़ीसा क गंगपुर से तथा व छ जल दामोदर नद से ा त होत ह । कलक ता व
हु गल के औ यो गक े म इनके उ पा दत माल क बहु त खपत होती है । मक क पू त
पि चमी बंगाल से सघन आबाद े , उड़ीसा, बहार, म य दे श आ द से होती है । रे ल और
जल माग वारा इस े को कलक ता से जोड़ दया गया है । इस औ यो गक के क
नधा रत मता 10 लाख टन इ पात के प ड तथा 8 लाख टन तैयार इ पात उ प न करने क
है ।
3. मैसरू आयरन ए ड ट ल क पनी (MISCO) आधु नक ढं ग से इस कारखाने क
थापना भ ावती (कनाटक) मे 1923 म क गयी थी । यहाँ लोह क क ची धातु कादूर िजले के
बाबाबुदन पहाड़ क केमनगुडडी खान से ा त होती है । यहाँ शि त के लये कोयले क असु वधा
है, क तु नकट ह पया त वन उगते है, अत: लकड़ी का कोयला योग कया जाता ह । चू ने का
प थर भ ावती से केवल 10 क.मी. दूर पर मलता ह डोलामाइट, शंकरगूडा से ा त कया
जाता है । शवसमु म पात से जल वधु त शि त ा त होती है ।

241
इस कारखाने वारा इ पात- प ड के उ पादन का ल य एक लाख मी क टन रखा गया
था । उ पादन ल य स अभी कु छ कम है ।
1 अग त, 1989 को सेल (SAIL) ने इस बीमार इकाई को अपने नयं ण म ले लया
है ।
4. राउरकेला इ पात कारखाना- जमन सहयोगं से न मत यह कारखाना कलक ता से
लगभग 413 क.मी. पि चम म द ण-पूव रे लमाग पर उड़ीसा रा य म ि थत है । औ यो गक
े साख और कोइल न दय क संगम पर बनाया गया है । इस े म लोह क क ची धातु 72
क.मी. दूर बरसु आ नामक थान क खान से ा त होती है । धातु ा त करने के लए एक
नया रे लमाग बनाया गया ह चू ने का प थर व डोलोमाई 24 क.मी. दूर हाथीवाड़ी तथा बीर म पुर
से ा त कया गया ह । मगनीज बासपानी व बोलानी े से ा त होता है । धुला हु आ कोयला
भोगर डह प थर डह करगल दोगला े से ा त कया जाता है । वधु त शि त ह राकं ु ड
प रयोजना से ा त होती है । यहाँ अ धकतर चपटे आकर क लेट, व भ न मोटाई वाल चादर,
लेट पि तयाँ आ द बनाई जाती है िजनका उपयोग रे ल के डबे तथा जलयान बनाने म होता है ।
इनके अ त र त यहाँ काब लक तेल, ने थाल न, ए े ीन तेल, बे जोल, टू टोल आ द बनाने क

यव था क गई है । नाइ ोजन उवरक बनाने का भी संय था पत कया गया है । कारखाने
का नमाण व भ जमन क प नय वारा कया गया है ।
इस कारखाने क 18 लाख टन इ पात प ड तथा 12.25 लाख टन ब यो य इ पात
बनाने क मता है ।
5. भलाई इ पात कारखाना- यह कारखाना सी तकनीक तथा आ थक सहायता से 1953
म म य दे श (अब छतीसगढ) म था पत कया गया । भलाई थान रायपुर से 21 क.मी. दूर
मु बई-कोलका ता मु य रे ल माग पर ि थत है । इसके लये राजहरा पहा ड़य से 65% धातु
अंश उ तम लोहा, झ रया (720 क.मी.) और कोरबा (1000 क.मी.) से को कं ग कोयला तथा
कोरबा क ह ताप- व युत (90000 कलोवाट) योग क जाती है । करगाल , प थर हड व
दुगदा स धुला हु आ कोयला ा त होता है । चू ना प थर दुग, रायपुर व बलासपुर , डोलोमाईट
रायपुर व बलासपुर से ा त कया जाता ह । यहाँ रे ल क पट रयाँ, छड़े, शहतीर, ल पर,
कतरन आ द तैयार क जाती है । अमो नयम स फेल, ब ज ल, टु टोल, िजलोन सोलवे ट नै था,
नै थाल न तेल, काब लक ए सड आ द तैयार करने क भी यव था है । इस कारखाने का
व तार 40 लाख टन इ पात उ पादन मता वक सत क गई है ।
6. दुगापुर इ पात कारखाना - यह कारखाना आसनसोल के नकट दुगापुर म ब टश
तकनीक तथा आ थक सहायता से था पत कया गया ह । झ रये से कोयला तथा दामोदर
योजना से जल- व युत शि त का योग यहाँ कया जाता है । जल वारा प रवहन क सु वधा
भी ा त है । लोह क क ची धातु बहार क नोआम डी थीगूआ नामक खान से ा त होती ह ।
चू ना प थर सतना, वर म ापुर व हाथीवाड़ी से तथा कोयला रानीगंज व झ रया से ा त होता है ।
दुगापुर का कारखाना 1962 म बनकर तैयार हो गया था । भ व य म यहाँ 34 लाख टन
इ पात प ड मता बनाने का ल य है । यहाँ प हये, धु रयाँ, रे ल क पट रयाँ छड़, कतरने आ द

242
तैयार कये जाते है । अमो नयम स फेट, बे जोल, िजलोन दूटोल, नै था, कोलतार भी बनाया
जाता है ।
7. बोकार इ पात कारखाना - यह कारखाना स के सहयोग से चौथी पंचवष य योजना क
दौरान बोकार थान पर बहार (अब झारख ड) म था पत कया गया । यह थान करगल ,
बोकार तथा झ रया के कोयला े ो से अ य धक नकट है, क तु लोहे क क ची धातु के े
यहाँ से दूर है । इस समय इ पात- प ड क वा षक उ पादन मता 25 लाख टन ह । बोकार
कारखाना कोयला व इ पात े क बीच संग ठत औ यो गक के क प म वक सत हो रहा है
। इसम न मत कोक का उपयोग स के उवरक कारखाने म होता ह । 40 क.मी. दूर मुर म
ऐलु म नमय शोधक, गुलमार म टन क चादर बनाने, गो मया म व फोटक पदाथ बनाने, त दु
म सीसा व ज ता साफ करने तथा अ य के म कॉच व अि न- तरोधक ईट बनाने का काम
होता है ।
8. सलेम इ पात कारखाना- सलेम (त मलनाडु ) म यह कारखाना था पत कया गया है ।
1982 से यहाँ उ पादन आर भ हो गया है । सलेम म मै नेटाइट, लोह धातु, चू ना प थर व
मै नेसाइट तथा नेवल
े से ल नाइट कोयला उपल ध होते है । यहाँ तवष 70 हजार टन
टै नलैस ट ल, 75 हजार टन स लकन इ पात तथा 75 हजार टन अ य व श ट इ पात
उ पादन क मता है ।
9. वशाखापतनम इ पात कारखाना- 1980 म भारत क छठे समे कत संय क प म यह
कारखाना रा य इ पात नगम व आं दे श सरकार के संयु त यास के प म था पत कया
गया । द ण े म थम समे कत इ पात संय ह जो समु तट पर था पत कया गया है
। यह आधु नकतम ौ यो गक पर आधा रत है । इसक वा षक उ पादन मता 30 लाख टन
ह।
इस कारखाने को दामोदर घाट े से कोयला, म य दे श क बैला डला खान (ब तर)
से लोहा व चू ना प थर, डोलोमाईट अि न तरोधक म ी आ द आव यक सु वधाय ा त होती
है।
10. वजयनगर इ पात कारखाना- कनाटक के बलार िजले के, हा पेट के नकट पूणत:
भारतीय तकनीक के कारखाना था पत करने क योजना ह । इसक उ पादन मता 30 लाख
टन होगी । इसके लए कनाटक म उ तम का हन घाट व आं क संगरे नी े से को कं ग
कोयला, तु ंगभ ा बांध से जल एवं व युत शि त क भी सू वधाय ा त ह । यह नम इ पात
तैयार कया जायेगा । 1971 म नमाण काय आर भ होने के 20 वष बाद भी यह कारखाना
चालू नह हो सका है । पाराद प प तन के नकट दैतार (उड़ीसा) म भी इ पात सय था पत
करने क योजना चालू है ।

9.2.3 इ पात उ पादन

243
ता लका 9.1
संयं क इ पात उ पादन क मता
1960-61 70-71 80-81 90-91 00-01 01-02 02-03 03-04 04-05
तैयार इ पात( म.टन) 2.4 4.6 6.8 13.5 30.3 31.1 34.5 36.9 39.3
ढल व तु एँ (हजार टन) 35 62 71 262 352 409 483 407.8 42.57

ोत- आ थक समी ा- 2005-06


अशु इ पात के उ पादन म भारत का व व मे न वा थान है । 2004-05 मे अशु
इ पात का उ पादन 34.8 म लयन टन था । तैयार इ पात अथवा काबन-इ पात का उ पादन
2004-05 म 39.3 म लयन टन हु आ । पंज लोहे का उ पातन 2004-05 म 10 म लयन टन
दज हु आ ।
1. भार पूँजी का नवेश - इ पात उ योग क थापना के लये भार पूँजी क आव यकता
है । सावज नक े म भी वदे शी आ थक सहयोग से ह उ योग था पत कया जा
सकता है ।
2. ा व धक जानकार क कमी - इस ज टल उ योग के लये नयी उ नत ा व धक क
आव यकता है जो उ योग क थापना के समय वदे श से ा त क गयी ।
3. बढ़ती हु ई माँग - दे श के बहु मु खी वकास के लये इस आधारभू त उ योग क माँग
नर तर बढ़ रह है तथा उ पादन उसके अनु प नह ं है ।
4. था पत मता का अधूरा उपयोग - इ पात कारखान म मक हड़ताल , क चे माल
क कमी, ऊजा संकट, प रवहन क सम या, अकु शल कारखाना ब ध आ द कारण से
था पत मता का पूरा उपयोग नह ं हो पाता । इ पात कारखाने कु ल था पत मता
का 80% से अ धक उपयोग नह ं कर पाते ।
5. न न उ पादकता (Low Productivity) - दे श म नर तर उ पादन वृ के बावजू द
इ पात क माँग व पू त म अ तर बढ़ता जा रहा है । व व बक सव ण क एक रपोट
के अनुसार व व के इ पात उ पादक दे श म भारत म इ पात का लागू मू य सबसे
ऊँचा है । इस न न उ पादक के अ ल खत कारण ह -
(i) को कं ग कोयला घ टया क म का है, उसम राख का अंश अ धक है, (ii) स टर क
सु वधाय अपया त है । IISCO म स टर सु वधाय उपल ध ह नह ं ह । (iii) भ य म
अपे त ताप व दबाव नह ं बन पाता । (iv) क चे माल क सम या के कारण भ य म गम
धातु म स लकन तथा ग धक क मा ा अ धक होती है। (v) अ धकांश इ पात खुल भ य म
तैयार कया जाता है िजससे ऊजा क खपत अ धक तथा उ पादकता कम रहती है। (vi) इ पात
क ढलाई क या नर तर चालू न रहने के कारण ब यो य इ पात का उ पादन कम होता
है। (vii) इ पात प ड बनाने म भी अ धक ऊजा क खपत होती है। (viii) लघु कारखाने मे
व युत शि त क स लाई सु वधाय अपया त होती ह ।
दे श म इ पात क बढ़ती माँग को दे खते हु ए भारतीय इ पात ा धकरण (SAIL) ने
शता द के अ त तक 15 म लयन टन इ पात का ल य रखा है । इसके लये न न ल खत

244
उपाय कये जायगे – (i) वतमान सु वधाओं का व तार, (ii) इ पात संय का आधु नक करण,
(iii) वतमान इ पात संय क उ पादन मता का व तार, तथा (iv) नये इ पात संय क
थापना ।

9.2.5 यापार

वदे श क तु लना म (पूववत सो वयत संघ 418, टे न 422, अमे रका 685, जापान
499, पि चमी जमनी 579) भारत म त यि त इ पात का उपभोग केवल 16 क ा. है ।
घरे लू माँग क पू त के लये भारत, पूववत सो वयत संघ , जापान, पि चमी जमनी, टे न,
अमे रका, बेि जयम, चैको लोवा कया आ द दे श से क चे लोहे (pig iron) का आयात करता है।
यूजीलै ड. मले शया, बंगलादे श, ईरान, कु वैत, ीलंका, बमा, त जा नया, संयु ता अरब
अमीरात, क नया आ द दे श को इ पात के सामान का नयात कया जाता है ।
ता लका 9.2
भारत- इ पात का आयात करोड़ .
1960-61 70 - 71 80 - 81 90 - 91 00 - 01 01 - 02 03 - 04 04 - 05
123 147 852 2113 3569 3975 6921 11678
Source; Economic Survey, 2005-06
बोध न : 1
1. इ पात उ योग क थापना मू लत: कहाँ होती है ?
2. बोनाटो और दु गापु र कस क चे माल के नकट ि थत है ।
3. Tisco कहाँ ि थत है ।
4. राउरके ला इ पात कारखाना कसके सहयोग से बना है ।

9.3 सू ती व उ योग (Cotton Textile Industry)


9.3.1 उ योग का थानीयकरण

कपास एक शु क चा माल (pure raw material) है । यह नमाण या म अपना


वजन नह ं खोता । िजतना वजन क चे माल का होता है, लगभग उतना ह तैयार माल का वजन
रहता है । इस लए व उ योग का थान कपास उ पादक े तक सी मत नह ं रहा है । इसका
थापन कपास उ पादक े से दूर ऐसे थान पर भी हो गया है जहाँ अ य सु वधाएँ जैसे
बाजार, मजदूर, व युत -शि त आ द ा त ह । हमारे दे श म यह उ योग के आरि भक काल म
मु बई-अहमदाबाद े तक सी मत रहा । यहाँ पर ह ार भ म कपास उ पादक े म व
कारखान का जमघट लगता रहा । अपने वकास के बाद क अव था म वशेष प से थम
व व-यु के बाद यह उ योग दे श के अ य भाग म फैलने लगा । कारखाने कपास उ पादक े
के बाहर था पत होने लगे । इसका प रणाम यह हु आ क दे श के भीतर अनेक थान पर जहाँ
अ य सु वधाय उपल ध थीं, व उ योग के कारखान था पत हो गये । ये सु वधाएँ व
कारखान के वके करण के लये उ तरदायी रह ं ।

245
9.3.2 वतरण

मान च 9.1 व उ योग


दे श का सबसे अ धक वके कृ त उ योग है । वशेष प से इसका जमाव गंगा के
मैदान व ाय वीपीय भू-भाग के शु क पि चमी भाग म अ धक मलता है । महारा और
गुजरात सूती कपडा उ योग म सबसे आगे ह । अ य मह वपूण रा य त मलनाडु , आं दे श,
उ तर दे श, म य दे श, पि चम बंगाल और कनाटक ह । वैसे उड़ीसा, सि कम, मेघालय,
अ णाचल दे श, नागालै ड, मणीपुर, मजोरम को छोडकर सभी रा य म यह उ योग वक सत
मलता है ।
(1) महारा - यह रा य थम थान रखता है । यहाँ पर 112 मल ह िजनम से अकेले
मु बई महानगर म 63 मल ह । इस लये इसे सूती व क राजधानी (Cottonopolis of
India) कहते ह । इस रा य म 30 लाख से अ धक मक इस काय म लगे ह । रा य म
शोलापुर, अकोला, अमरावती, वधा, पूना , सतारा, को हापुर , साँगल जलगाँव, नागपुर सू ती व
उ योग के मु ख के है । यह रा य मु खत: उ तम क म का कपड़ा तैयार करने म
वशेषीकरण रखता है । इस रा य म न न भौगो लक प रि थ तयाँ इसके अनुकू ल रह ह,
िजसक वजह से यह उ योग अपना अि त व बनाये हु ये है-
(i) कपास का पया त मा ा म यहाँ उ पादन होना
(ii) मु बई ब दरगाह वारा मशीन माँगाने क सु वधा
(iii) मु बई का एक बड़े यापा रक के के प म होना
(iv) मु बई का दे श के भीतर भाग से रे ल व सड़क माग वारा जुड़ा होना,
(v) पया त जल व युत शि त का मलना
(vi) मु बई म पूँजीप तय का जमाव
246
(vii) मु बई क जलवायु का उ योग के अनुकूल होना ।
(2) गुजरात- यह दूसरा सबसे बड़ा व उ पादक रा य है । यहाँ पर 120 मल है । इस
रा य म वह सब सु वधाएँ ा त ह जो महारा रा य को ा त ह । अहमदाबाद सू ती व क
राजधानी है । इस नगर म 72 मल है । अ य मह वपूण के बड़ोदरा, सू रत, भावनगर,
पोरब दर, राजकोट, भड़ौच ह । अहमदाबाद धो तय व सा ड़य के लये स है । इसको 'भारत
का मानचे टर’ कहते ह ।
(3) म य दे श- यहाँ कपास बहु तायत से उ प न क जाती है । इसके अलावा यहाँ कोयला,
स ते मक रे ल प रवहन क सु वधा आ द ा त है । यहाँ 23 मल है । मु ख के इ दौर,
उ जैन, दे वास, रतलाम, म दसौर वा लयर, भोपाल और जबलपुर है ।
(4) उ तर दे श- उ पादन क ि ट से इसका चौथा थान है । यह पर 36 मल ह ।
कानपुर उ तर भारत का मानचे टर कहलाता है । मु रादाबाद, मोद नगर, सहारनपुर , अल गढ़,
आगरा, हाथरस, इटावा, रामपुर वाराणसी, लखनऊ, बरे ल अ य मु ख के है । इस रा य म
व उ योग का वकास बाजार तथा प रवहन क उ तम सु वधाओं के कारण हु आ है । कपास
पंजाब, ह रयाणा, महारा रा य से मंगायी जाती है ।
(5) पि चम बंगाल- इस रा य म यह बाजार- थापन उ योग (Market-oriented
Industry) है जब क महारा म यह क चा माल थापन उ योग (Raw-material Oriented
Industry) है । इस भ नता के कारण शेष सभी वह सु वधाय यह उपल ध है जो महारा को
है । कुछ बात म इसक ि थ त अ धक अनुकूल है । यहाँ पर रे ल व जल प रवहन क सु वधा,
कपड़े क भार माँग, पया त सं या म स ते मजदूर, रासाय नक पदाथ क सरल उ लि ध,
कोलकाता ब दरगाह का यापा रक व औ यो गक महानगर के प म होना, कोयले क ाि त,
द णी-पूव ए शयाई दे श के समीप ि थ त आ द वशेषताओं के कारण यह उ योग पनप गया हे
। कपास का दे श के अ य भागो से आयात कया जाता है । यहाँ 45 मले है । कोलकाता के
आसपास 50 क.मी. क प र ध म हु गल नद के दोन कनार पर हु गल, हावड़ा, चौबीस परगना
िजल म व उ पादन केि त है । कोलकाता सबसे बड़ा के है ।
(6) त मलनाडू - इस रा य म मल क सं या सबसे अ धक 208 है । उ पादन क ि ट से
इसका छठा थान है । यहाँ पर कपास का यथे ट मा ा म मलना, स ती जल व युत, पया त
मक जैसी सु वधाय उपल ध ह । कोय बटू र इस रा य क व राजधानी है । यहाँ पर 41
मल है । अ य मुख के मदुराई , सलेम, म ास, पेरा बूर , चत चराप ल , पाि डचेर
त नलवेल , रामनाथपुरम , तू तीको रन है ।
(7) कनाटक- यह 30 मल ह । दे वन ग र, हु बल , बेलार , मैसू र, बंगलौर और गोकाक म
बडी-बडी व मल ि थत ह । यहाँ म यम व न न क म के व तैयार कये जाते है ।
(8) आ दे श- तेलंगाना के कपास उ पादक े से व उ योग वक सत हो गया है ।
हैदराबाद, बारं गल गुत
ं ू र, सक दराबाद मु ख व उ योग के ह । यहाँ हथकरघा का सामान
अ धक तैयार होता है ।

247
अ य रा य-राजरथान मे अजमेर, यावर, पाल , जयपुर , कोटा, ीगंगानगर, भीलवाड़ा
और उदयपुर नगर उ लेखनीय है । पंजाब मे अमृतसर , लु धयाना, फगवाड़ा मु ख के ह पंजाब
और ह रयाणा म उ तम क म क कपास से व तैयार कये जाते ह । केरल म
त वन तपुरम, ि वलोन, अलवाय अल पी मुख के ह । बहार म पटना, भागलपुर , गया म
व तैयार कये जाते ह । द ल रा य म चार सू ती व के कारखाने ह ।

9.3.3 उ पादन

1947 म सू ती धागे का उ पादन 59.7 करोड़ क ा. तथा सू ती कपड़े का उ पादन 351


करोड़ मीटर था । पछले 55 वष मे उ पादन म भार वृ हु ई है । 1950-51 क तु लना म
2001-02 म सू ती धागे का उ पादन साढ़े चार गुना तथा सू ती कपड़े का उ पादन लगभग 12
गुना हो गया है । संग ठत व असंग ठत दोन े म इस उ योग ने भार ग त क है । कुल
उ पादन म असंग ठत े क भागीदार 94 तशत है ।
ता लका 9.3
भारत - सू ती व उ पादन
वष सू ती धागा (करोड़ क ा.) सू ती व (करोड़ वग मीटर)
1950-51 53.4 421.5

1960-61 80.1 637.8


1970-71 92.9 759.6
1980-81 106.7 386.8
1990-91 182.4 2292.8
1995-96 248.5 3335.7
1996-97 279.4 3689.6
1997-98 296.3 3554.3
1998-99 277.8 3862.7
1999-00 304.6 3920.8
2000-01 316.0 4023.3
2001-02 - 4203.4
2002-03 - 4741.3
ोत- आ थक समी ा 2003-04
उपरो त ता लका से व दत होता है क- पछले सात वष म उ पादन मे नर तर गत
हो रह है । 2001-02 म कुल उ पादन का 76.8 तशत व युत करघ , 18.0 तशत हथ
कर य तथा 3.7 तशत मल ने तैयार कया । धीरे -धीरे हाथ व व युत करघ का योगदान
बढ़ रहा है । 1999-2000 म व युत करघ ने 2956 करोड़ वग मीटर व तैयार कया, जो
बढ़कर 2002-03 म 3624.4 करोड़ वग मीटर तक पहु ँच गया । इसी कार हाथ करघ ने
248
1999-2000 म 735.2 करोड़ वग मीटर कपड़ा तैयार कया, जब क 2002-03 म यह उ पादन
बढ़कर 870.4 करोड़ वग मीटर तक पहु ँ च गया । मल े क भागीदार नर तर घट रह है ।
सू ती धागा का उ पादन भी पछले पचास वष म छ: गुना बढ़ गया है । प ट है क यह उ योग
नर तर ग त के पथ पर अ सर है ।

9.3.4 व उ योग क सम याय

दे श का सबसे बड़ा संग ठत (organised) उ योग होते हु ए भी भारतीय सूती व


उ योग न न ल खत सम याओं से त है -
1. पुराने संय तथा मशीनर - दे श के अ धकांश कारखान म संय (plant) एवं मशीनर
घसी- पट व पुरानी हो चु क ह । इसका दु भाव कपड़े क क म तथी उ पादकता पर पड़ता है
तथा उ पादन क लागत अ धक आती है ।
2. आधु नक करण क आव यकता - घसे- पटे संय तथा मशीन का डजाइन पुराना हो
चु का है । नये वचा लत -करघ क बहु त आव यकता है, क तु इसम अ धक यय के अलावा
बेरोजगार क सम या भी बहु त बडा यवधान है ।
3. क चे माल क कमी - दे श म उ तम कपास का उ पादन बहु त कम है तथा उसका मू य
भी अ धक है ।
4. न न मक उ पादकता - म मू य म वृ तो नर तर हो रह है क तु उ पादकता
न न है । इसी लये भारतीय माल वदे श क प ा म टक नह ं पाता ।
5. ऊजा क कमी - दे श म शि त का उ पादन अ नय मत तथा अपया त है, इसका भाव
उ पादकता पर पड़ता है ।
6. स थे टक व से प ा - स थे टक व के आकषक, उपयोग तथा टकाऊ तथा
स ता होने के कारण सूती वर को भार प ा का सामना करना पड़ता है ।
7. सरकार नयं ण - सू ती व के उ पादन, मू य व क म पर कड़ा सरकार नयं ण है।
8. भार कर तथा आबकार (excise) नयं ण - सू ती व पर कर वृ का भार अ धक
है।
9. म- ब धक स ब ध - वगत अनेक वष से दे श के अनेक कारखान म मल मा लक
व मक के बगड़े स ब ध के कारण तालाब द , हड़ताल, आ द का दु भाव सू ती व ो योग
पर पड़ा है ।
10. है डलूम तथा पावरलूम क े से कड़ी प ा - संग ठत कारखाना उ योग को सबसे
गहरा ध का वकेि त (decentralised) े से पहु ँचा है। है डलूम तथा पावरलू म े म कर
नयं ण होने के कारण उ पादकता अ धक तथा उ पादन मू य कम है । इस े म नयात व
स ते, आकषक तथा जन सुलभ ह ।
11. वदे श म प ा - भारतीय सूती व वदे शी मालक तु लना म महंगा है अत: यापार म
घाटा रहता है ।

249
12. अना थक एवं बीमार कारखाने - उपरो त अनेक कारण से 177 कारखाने 'बीमार'
(sick) घो षत हो गये ह । सरकार ने ऐसे 125 कारखान को अपने अ धकार म लेकर नेशनल
टै सटाइल काप रे शन (NTC) वारा उनका ब धन आर भ कया है ।
बोध न - 2
1. सू त व उ योग के लए क चा माल या है ?
2. महारा दे श म सू ती व उ योग म कौनसा थान रखता है ?
3. कौनसे रा य म सू ती व उ योग क मीले सबसे अ धक है ?

9.4 सीमे ट उ योग (Cement Industry)


भवन नमाण तथा अ य व वध कार के नमाण काय म सीमे ट क आव यकता तथा
उपयो गता सव व दत ह इमारत, बांध सड़क, पुल आ द बनाने म सीमे ट का योग अ त
आव यक ह इस लये भारत जेसे सघन आबाद तथा वकासो मु ख दे श म सीमे ट उ योग के
वकास क बहु त आव यकता है ।

9.4.1 उ योग का थानीयकरण

सीमट कई कार का होता ह- जलसह सीमट(water proof cement) लेप सीमट,


सफेद तथा अनेक रं ग का सीमट, आ द । दे श म पोटले ड सीमट का ह योग अ धक कया
जाता है । इसका आ व कार 1824 म इं ले ड म हआ था । पोटले ड सीमेट बनाने के लए चू ने
का प थन अथव कसी भी चू ना- धान पदाथ जैसे- ख ड़या- म ी, संगमरमर, समु से सी पय को
पीसकर लगभग 1500°C ताप म धुमने वाल भ य म भुनते ह इस कार उ प न होने वाल
व तु को 'ि लकर' कहते है । इसको ठ डा करके पीस लया जाता ह त प चात ् इसम िज सम
मलाया जाता है । इस कार पौटले ड सीमट बनकर तेयार हो जाता ह । एक टन सीमट तैयार
करने के लए 1 .6 टन चू ने का प थर, 0.4 टन िज सम तथा 3.8 टन कोयले क आव यकता
होती है । ये सभी भार पदाथ है, प रवहन क सु वधा को यान म रखकर सीमेट क कारखाने
क चे माल क समीप था पत कये जाते है । इस कार सीमट उ योग क थापना म शि त के
साधन, क चा माल, कोयला तथा प रवहन के साधन मु य कारक ह क चा माल राज थान से
लेकर द णी बहार तक व तृत पेट म बहु तायत से मलता है । म य दे श व बहार म
कोयला पया त मा ा म मलता है । सडक वारा सीमट का प रवहन (मांग े तक) करना
अ धक- खच ला होने के कारण रे ल प रवहन अ धक उपयोगी है । 70% सीमट प रवहन रे ल
वारा ह कया जाता है ।
उपरो त त य के स दभ म सीमट उ योग म वके करण क वृ त दखाई दे ती है ।
दे श क अ धकांश रा य म सीमट उ योग था पत. है । बहार, त मलनाडु , गुजरात, म य दे श,
आक दे श, कनाटक एवं राज थान म दे श क 86% कारखाने तथा 75% उ पान मता पायी
जाती है ।

250
9.4.2 उ योग का वतरण

आ दे श - यहाँ 18 कारखाने था पत ह िजनक उ पादन मता दे श क उतपादन मता का


19% है । कृ णा, मांचे रयल, कर मनगर, वशखाप नम, वजयवाड़ा, पनायाम चेरागू तल,
आ दलावाद त दूर व जय तीपुरम म कारखाने था पत है ।
म य दे श तथा छ तीसगढ़ - यहाँ 16 कारखाने खोर कैमुर , जामु ल, सतना, म धार, अकालतार
नीमच, जापला बनमोर आ द म था पत ह इनक उतपादन मता दे श क कु ल मता का
लगभग 21% है ।
राज थान - यह 10 कारखाने लाखेर चतौड़गढ़ सवाई माधोपुर , न बाहे ड़ा, उदयपुर, आ द म
था पत है िजनक कुल उ पादन मता दे श का 10.5% है ।
गुजरात - यह 10 कारखाने स का, पोरब दर, अहमदाबाद, सेवा लया ओखा, जाफरावाद
वारका, रणाबाव आ द म था पत है । इनक कु ल उ पादन मता दे श क 9% से अ धक है ।
कनाटक - यहॉ 8 कारखाने बगलकोट, भ ावती, कु रकु ता, शहाबाद म ि थत है । इनक उ यादन
मता दे श का 8% है ।
बहार तथा झारख ड - यहाँ 6 कारखाने डाल मयानगर, स बंजार , चायबासा खलार व
क याणघूर म था पत है । इनक उ पादन मता (दे श क ) 4% से अ धक है ।
त मलनाडु - यहाँ 8 कारखाने तु लु का प ी, तलैयथ
ु ू त नेलवल , डाल मयानूरम , अलंगल
ू म,
संकर दुग, मधू करायी व शंकरनगर म ि थत है । इनक उ पादन मता दे श का लगभग 8% है।
महारा - यहाँ 5 कारखाने चाँदा, र ना ग र, सेवर , म णकगढ म था पत कया ह । इनक
उ पादन मता दे श का 8% है ।
उ तर दे श - यहाँ 4 कारखाने चू क, ढ ला, चु नार म था पत ह इनक उतपादन कता दे श का
5% है ।
ह रयाणा - 2 कारखाने सुरजपुर व चख दादर म ।
उड़ीसा - 2 कारखाने राजगंगपुर व ह राकु ड मे ।
हमाचल दे श - 2 कारखाने राजबन औ गागल म ।
ज मू क मीर - बुयान म ।
असम - बोकाजन मे ।
पं. बगाल - दुगापुर म ।
केरल - को ायम म ।

9.4.3 उ योग का उ पादन

दे श म उ पादन क ग त न न ता लका से प ट होती ह -


ता लका 9.4
भारत-सीमे ट. उ पादन
1960 – 61 70 – 71 80 – 81 90 – 91 00 – 01 01 – 02 02 – 03 03 – 04
8.0 14.3 18.6 48.8 99.5 106.9 123.4 131.6

251
Source: Economic Survey, 2005-06
वतमान समय म नजी े म सीमट उ पादन क सबसे बड़ी क पनी बड़ला प
ु ह
िजसक 17 इकाइय क उ पादन मता 188.06 लाख टन (दे श क मता का 20% से
अ धक) है । ए.सी.सी (ACC) क भी 17 इकाइयाँ है िजनक उ पादन कता 88.25 लाख टन
(दे श का 16% से अ धक) है । सावज नक े म सीमट काप रे शन ऑफ इि डया(CCI) सबसे
अ धक क पनी है िजसक 10 इकाइयो क उ पादन कता 37.54 लाख टन (लगभग 7%) है ।

9.4.4 सीमे ट उ योग क सम याएँ

य य प भारत म आरि भक वष म सीमे ट का उ पादन मांग से काफ कम रहा है


तथा प पि चमी ऐ शयाई दे शो म सीमेट क मांग के कारण इसका नयात होता रहा है ।
(1) सीमे ट उ योग म अ धक पुँजी का नवेश आव यक ह उ योग से आ थक लाभ
कम होने के कारण बड़े पुँजीप त पुज
ँ ी लगाने से कतराते है ।
(2) सीमे ट के प रवहन म रे ल व क का योग होता है । वगत वष म कोयला
व पे ोल उ योग क सम याओं के कारण सीमे ट का प रवहन भा वत हु आ है ।
(3) सीमे ट का उ पादन मांग क उपे ा अ धक बढ़ गया है ।
(4) कई रा य म संकट क कारण सीमे ट उ योग को भी त पहु ँ ची है ।
आधु नक करण - सीम ट उ योग म आधु नक करण तथा उ नत ौ यो गक क
आव यकता को अनुभव करते हु ए मानव संसाधन वकास प रयोजना के तहत दे श मे चार
दे शक श ण के ो क थापना ACC जामु ल (म य दे श) डाल मया सीमे ट, डाल मया
पुरम (त मलनाडु ))JK सीमे ट, न बाहे ड़ा (राज थान) तथा गुजरात अ बुजा, अ बुजानगर
(गुजरात) म क गयी है ।

9.4.5 यापार

भारतीय सीमे ट उ योग ने उ नत ौ यो गक का योग करके व व के बाजार मे


अ छ साख कमा ल है । अब यहाँ से बं लादे श, इ डोने शया, मले शया, नेपाल, यानमार, म य
पूव के दे श द णी पूव ऐ शयाई दे श , तथा अ का दे श को सीमे ट का नयात होने लगा है ।
2004-05 मे 100.6 लाख टन सीमे ट का नयात कया गया है ।
बोध न : 3
1. सीमे ट के कारखान कहाँ था पत कये जाते है ?
2. पोट लै ड या है ?
3. लाखे र सीमे ट कारखाना कौनसी रा य म ि थत है ?
4. वतमान समय म नजी े के सीमट उ पादन क सबसे बड़ी कं पनी कौनसी
है ?

252
9.5 ए यु मी नयम उ ययोग (Aluminium Industry)
भारत के धातु कम उ योग म लौह-इ पात के बाद ए युमी नयम उ योग का मह वपूण
थान है । ए युमी नयम एक ऐसी धातु है, िजसका उपयोग धरे लू बतन से लेकर बजल के तार ,
मोटरगाडी रे लगाड़ी के ड बे, वायुयान , भवन नमाण, तर ा उपकरण आ द व वध काय के
लये सव तम साम ी है । हाल के वष म यह वकास काय वशेषकर व युत वतरण म, सबसे
अ धक योगदान दया है ।

9.5.1 उ योग का थानीयकरण

ए युमी नयम का उ पादन बॉ साइट अय क से कया जाता ह बॉ साइट से ए यू मना


ा त करने के लए सोडा का म त कर स लका, लोहा आ द अनाव यक पदाथ को अलग
करने के लये ए युमी नयम ऑ साइड म बदला जाता है और आ साइड को बजल क मदद से
ए यूमीना प ड म प रव तत कया जाता है । फलत: ए युमी नयम उ योग के क चे माल
(बॉ साइट) के साथ स ती बजल क उपलखता आव यक हे । साथ ह प रवहन सु वधा भी एक
मह वपूण कारक है , य क बॉ साइट एक वजनी ख नज ह एक टन ए युमी नयम बनाने के
लए 6 टन बा साइट, 0.5 टन पे ो लयम कोक, 0.32 टन काि टक सोडा, 0.1 टन चू ना एवं
कु छ अ य रसायन क आव यकता पड़ती है । इस या म कुल 1873 कलोवाट बजल खच
होती है । भारत म बॉ साइट का वशाल भ डार झारख ड, गुजरात, म य दे श, महारा ,
कनाटक, त मलनाडु एवं उ तर दे श म है । फलत: भारत म इस उ योग के वकास क सार
सु वधाय उपल ध है ।

9.5.2 उ योग का उ पादन

ता लका 9.5
भारत म ए यू म नयम का उ पादन (लाख टन)
वष बॉ साइट का उ पादन ए युमी नयम का उ पादन
1950-51 0.7 0.40
1960-61 4.8 0.18
1970-71 15.7 1.68
1980-81 19.2 1.099
1990-91 49.8 4.49
1992-93 49.9 4.83
1995-96 39.0 5.36
1999-2000 68.5 6.14
2003-04 97.7 6.15
ोत- आ थक समी ा- 2004-05

253
मान च 92 ए युमी नयम उ योग के के

9.5.3 उ योग का वतरण

च के अवलोकन से कट होता है क ए युमी नयम उ पादन के कारखाने मु यत: दो


े म के भूत ह- उ तर पूव भाग (छतीसगढ़, झारख ड, द णी-पि चमी बंगाल और उ तर
उड़ीसा) तथा ाय वीपीय भाग (द णी महारा , उ तर कनाटक, केरल एवं उ तर -पि चमी
त मलनाडु इन कारखान क थापना म बॉ साइट क उपल धता एवं स ती बजल का मु ख
हाथ रहा है । जैसा क पहले बताया जा चु का है क ए युमी नयम उ योग का वकास सावज नक
और नजी दोन े म साथ-साथ हु आ है । सावज नक े म कुल चार कारखाने लगाये गये ह,
जब क नजी े म छ: कारखाने ए युमी नयम बनाते ह और अ य तीन स ब कारखाने
ए युमी नयम का सामान तैयार करते ह । इस कार भारत म यह उ योग पाँच मु ख क प नय
के वारा संचा लत हो रहा है-
1. भारतीय ए युमी नयम क पनी (I.A. Co);
2. भारत ए युमी नयम क पनी (B.A.L. Co);
3. ह दु तान ए युमी नयम काप रे शन (Hindal Co);
4. म ास ए युमी नयम क पनी (M.A. Co);
5. नेशनल ए युमी नयम क पनी (N.A. Co) ।
1. भारतीय ए युमी नयम क पनी- ए युमी नयम उ योग क यह एक बड़ी क पनी है जो
पूणत: वावल बी है । यह बॉ साइट से ए यू मना, ए युमी नयम और ए युमी नयम क चादर
भी तैयार करती है । मूर (झारख ड) मे ि थत इस कारखाने को स ती ताप बजल और
लोहरद गा जनपद से बॉ साइट क आपू त होती है । इस कारखाने म तैयार ए यू मना क
आपू त केरल के एलू परु म कारखाने को क जाती हे । इस क पनी का एक अ य कारखाना

254
महारा के थाना नामक थान पर था पत कया गया है जो ए यूमी नयम से चादर, तार,
छाजन आ द का नमाण करता है । इस क पनी क एक अ य इकाई ह राकु ड (उड़ीसा) म
था पत क गई है जो मू र कारखाने से एलु म नयम ा त कर ए यू म नयम और उसक साम ी
का नमाण करती हे । इस कारखाने को ह राकुड जल- व युत सं थान से स ती बजल ा त
होती है । इसक उ पादन मता 80 हजार टन सालाना तक पहु ँच गई है । आसनसोल (पि चम
बंगाल) के जे.के. नगर का कारखाना ए यू मना प ड और ए युमी नयम चादर का नमाण करता
है । यहाँ छोटा नागपुर े के लोहरद गा से नमाण करता है । यहाँ छोटा नागपुर े के
लोहरद गा से बॉ साइट क आपू त होती है । छ तीसगढ और जबलपुर े से भी कु छ बॉ साइट
मंगाया जाता है । यह कारखाना ताप और जल- व युत दोन का उपयोग करता है ।
2. भारत ए युमी नयम क पनी- इस क पनी का कारखाना छ तीसगढ के कोरबा नामक
थान पर ि थत है । इस कारखाने को उड़ीसा, छ तीसगढ और झारख ड क खान से बॉ साइट
और ताप तथा जल- व युत क सु वधा ा त है । इस कारखाने क उ पादन मता एक लाख टन
सालाना है ।
3. ह दु तान ए युमी नयम काप रे शन यह कारखाना उ तर दे श के रे णु कू ट नामक थान
पर लगाया गया है । यहाँ झारख ड से बॉ साइट और रह द प रयोजना से व युत क आपू त
होती है । इसक उ पादन मता 1.2 लाख टन सालाना है । यहाँ ए युमी नयम , ए यू मना प ड
और उसक साम ी- तार, चादर आ द का नमाण हाता है । इस कारखाने क बजल कटौती के
कारण परे शा नयां बढ़ गई ह । फलत: क पनी वयं व युत गृह का नमाण कर रह है ।
4. म ास ए युमी नयम क पनी- इस क पनी का कारखाना मेटूर म ि थत है, िजसे
शवराय पहा ड़य से बॉ साइट और चू ना-प थर तथा मैटर जल- व युत प रयोजना से स ती
बजल क आपू त होती है । इसक उ पादन मता 25 हजार टन सालाना है ।
5. नेशनल ए युमी नयम क पनी - 1981 म था पत इस क पनी का एक वशाल
कारखाना िजसक सालाना उ पादन मता 8 लाख टन ए यूमीना है, उड़ीसा म था पत कया
गया ह । कोरापुट िजले के दामन जोड़ी े के बॉ साइट पर आधा रत यह कारखाना था पत
कया गया है, जो 8 लाख टन ए यू मना तैयार करता है । ढे कानल जनपद के अंगल
ु नामक
थान पर 2.2 लाख टन वा षक मता का एक ए युमी नयम कारखाना खोला गया है ।
कारखाने के लए एक बड़ा ताप व युत गृह भी था पत कया गया है । यह कारखाना उड़ीसा के
वशाल बॉ साइट भ डार को यान म रखकर था पत कया गया है । सव ऑफ इि डयन
इ ड , 1999 के अनुसार भारत सरकार क दोषपूण नी त के कारण ए युमी नयम उ योग का
व रत वकास नह ं हो पा रहा है । कु छ रा य सरकार भी इसके वकास म बाधक ह । हाल के
वष म कबाड़ पर आधा रत इस उ योग क ग त सराहनीय है ।

9.5.4 यापार

भारत म बढ़ती माँग के कारण अ प मा ा म ए युमी नयम का नयात कया जाता ह


भारत के ए युमी नयम क माँग वदे श म तेजी से बढ़ रह है । मु ख ाहक म अ का दे श,

255
पि चमी एवं द णी-पूव ए शया , यूगो ला वया एवं स वशेष उ लेखनीय ह । यहाँ से
ए युमी नयम क छड, चादर, संचालक साम ी और कु छ उपकरण भी नयात कये जाते ह ।
बोध न : 4
1. ए यु मनीयम उ योग म मु यत: कौनसा अय क काम म आता है ?
2. सावज नक े के ए यु मनीयम उ योग के कतने कारखाने है ?
3. ने श नल ए यु मनीयम क पनी कहाँ ि थत है ?

9.6 लु द व कागज उ योग (Pulp and Paper Industry)


आधु नक स य एवं श त समाज म कगज का मह व सभी को ात है । कागज
आधु नक स यता का सूचक है । वक सत रा म कागज का उपभोग अ धक होता है । कागज
बनाने क कला का आ व कार अनुमानत: चीन म ईसा से 300 वष पूव हु आ था । भारत म
कागज बनाने क कला का चार 10वीं शता द म हु आ था । तब र से, बोर , र ी कपड , आ द
से कागज बनाया जाता था । आज भी ह त श प के प म वह ाचीन कला दे श म अनेक
थान पर च लत है । कालपी, मथु रा, सांगानेर, आ द के म कु ट र उ योग के प म कागज
नमाण होता है ।
आधु नक ढं ग से कागज बनाने का थम यास 1816 म म ास रा य (वतमान
त मलनाडु ) म तंजौर िजले के कुबार नामक थान पर डॉ. व लयम कारे वारा कया गया ।
यह यास असफल रहा । त प चात ् 1618 म हु गल नद के कनारे बाल नामक थान पर एक
कारखाना था पत कया गया, क तु वह भी सफल न हो सका । 1879 म लखनऊ तथा 1881
म ट टागढ़ म कारखाने था पत कये गये, यह ं से कागज उ योग क सफलता क शु आत हु ई
। 1894 म कान कनारा म इ पी रयल पेपर मल क थापना हु ई । थम महायु आर भ होने
पर आयात क क ठनाइयाँ उ प न होने पर कागज उ योग को सरकार ो साहन मला । 1918
म नैहाट पेपर मल क थापना हु ई । 1925 म कागज उ योग को 7 वष के लये तटकर
(tariff) संर ण दया गया अत: 1925 से 1933 के म य कागज यवसाय तथा उ पादन म
नर तर ग त हु ई । 1936 म वतीय महायु होने पर पुन : कागज उ योग को सरकार
संर ण मला । 1950-51 म दे श म कागज व ग ता (paper board) बनाने के 17 कारखाने
था पत थे िजनक उ पादन मता 138 लाख टन थी एवं उ पादन 116 लाख टन हु आ । अब
दे श म लगभग 380 कागज के कारखाने कायरत है िजनक कुल था पत मता लगभग 45
लाख टन है । इनम 30 बड़े समे कत (लु द व कागज) तथा शेष छोटे कारखाने ह । 125 छोटे
कारखाने ब धन सम याओं, क चे माल क अनुपलखता तथा घरनी- पट मशीनर के कारण
ब द पड़े ह । 275 छोटे कारखान म से 165 इकाइयाँ (500-5000 टन वा षक मता वाल ) र ी
कागज का योग क चे माल के प म करती ह । 85 कारखाने (5000-10000) टन वा षक
मता र ी कागज तथा कृ ष पदाथ (ग ने क खोई, चावल का भू सा आ द) का योग करते ह ।
25 कारखाने (10000-20000 टन वा षक मता) कृ ष पदाथ से कागज बनाते ह ।

256
9.6.1 क चा माल

एक टन कागज बनाने के लए न न ल खत संसाधन क आव यकता होती है ।


ु ोस (cellulosic) क चा माल
सेलल 2700-3000 क ा
कोयला 1500-2000 क ा
रसायन 975-1250 क ा
जल (घन मीटर) 250-350
व युत (Kwh) 1500-1800
कागज बनाने के लये क चे माल तथा रसायन क अ धक आव यकता होती है । लकड़ी
क लु द (pulp), घास, बाँस, कपड़े के चथड़े (Rags), जू ट, आ द अनेक कार के पदाथ से
कागज तैयार होता है । लकड़ी क लु द , चीड़, ू , हे मलॉक फर, आ द शंकु धार वृ
स से
बनायी जाती है । ये वन हमालय के दुगम े म ि थत ह । अत: भारत म लकड़ी क लु द
का चनल कम है । यूरोपीय दे श से कु छ लकड़ी आयात क जाती है । लु द दो कार क होती
है-
1. यां क लु द (Mechanical pulp) लकड़ी को पीसकर बनायी जाती है ।
2. रासाय नक लु द (Chemical pulp) पोपलार, ए पेन आ द क लकड़ी के
साथ रसायन म त करके बनायी जाती है । इससे उ तम क म का कागज
तैयार होता है ।
भारत म लु द बनाने के लये सलाई, वैटल, युक ल टस , शहतू त, आ द वृ क लकड़ी,
बांस, घास तथा खोई (Bagasse) का योग कया जाता है ।
बांस का योग यापक प से होता है । दे श म 70 तशत लु द इसी से तैयार क
जाती है । असम, उड़ीसा, म य दे श, महारा , आं दे श, त मलनाडु , कनाटक एवं महारा म
यह यापक प से उगता है । बांस के वृ 2-3 वष म पुन : आगे आते ह अत: क चे माल क
पू त लगातार होती रहती है। अनुमानत: 20 लाख टन वा षक उ पादन होता है ।
सबाई घास- इसके रे शे से उ तम कागज तैयार होता है तथा रसायन क आव यकता भी
कम पड़ती है । बांस का योग होने से सबाई घास का योग घट गया है । लगभग 9 तशत
लु द इससे तैयार होती है । शवा लक े णय म यह घास बहु तायत से मलती है उड़ीसा, म य
दे श, ह रयाणा म भी उगती है । इसका वा षक उ पादन लगभग 3-4 लाख टन है ।
ग ने क खोई- इससे 4 तशत लु द तैयार क जाती है । दे श म लगभग 30 लाख
टन ग ने क खोई कागज बनाने के लये सुलभ हो सकती है क तु वा त वक उपयोग 5 लाख
टन से अ धक नह ं है । धान व गेहू ँ के भूसे का योग ग ता बनाने के लये कया जाता है । बड़े
नगर म र ी कागज, सन, पटु आ, चथड़ से भी लु द तैयार क जाती है ।

9.6.2 थानीयकरण के कारक

कागज व बोड उ योग धानत: क चे माल क ाि त पर नभर करता है अत: क चे


माल क ाि त के े म ह इसक थापना हु ई है । यह उ योग पि चमी बंगाल, आं दे श,

257
उड़ीसा, महारा , कनाटक एवं म य दे श रा य म अ धक था पत हु आ है । दे श का 70
तशत कागज उ पादन एवं उ पादन मता इ ह ं रा य म केि त है । शेष 30 तशत
बहार, ह रयाणा, त मलनाडु , उ तर दे श, गुजरात, केरल व नागालै ड से ा त होता है ।

9.6.3 उ योग का वतरण

पि चमी बंगाल- यहाँ कागज के 19 कारखाने था पत ह िजनक उ पादन मता 236


लाख टन है । ट टागढ़ (75,000 टन), रानीगंज (50,000 टन), नैहाट (23,000 टन) बड़े
कारखाने ह । अ य कारखाने बाँसबे रया हावड़ा, बड़ा नगर, च हाट , आलम बाजार, गंगानगर
(चौबीस परगना), डमडम, शवराफूल आ द म ि थत ह । इस रा य म कागज उ योग के वकास
के न न ल खत कारक ह- (i) इस रा य को उ योग के पूवार म का लाभ ा त होता है । (ii)
क चा माल नकटवत रा य से ा त होता है । बांस असम से तथा सबाई घास म य दे श तथा
बहार से ा त होती है । (iii) कोयला बहार से ा त होता है । (iv) दामोदर एवं मयूरा ी
प रयोजनाओं से स ती जल व युत ा त होती है । (v) हु गल व दामोदर न दय से व छ जल
ा त होता है । (vi) रा य म तथा नकटवत ( बहार व उड़ीसा) रा य से स ते मक मलते है
। (vii) कलक ता से रासाय नक पदाथ ा त होते ह । (viii) कोलकता पतन से यापार क
सु वधा ा त है ।
आं दे श- यह कागज उ योग क थापना य य प दे र से हु ई? क तु कागज उ पादन
म ती ग त हु ई है । यह कारखान क सं या 15 है िजनक उ पादन मता 3.29 लाख टन
है । सरपुर (कागजनगर 66 हजार टन मता) राजमहे (75 हजार टन), कु नू ल (42 हजार
टन), म ाचलम (50 हजार टन) बड़े कारखाने था पत ह । बोधन, ख माम, ीकाकुलम,
प नचे नै लोर, भीमावरम बामु लरु , गौर प नम आ द म अ य कारखाने था पत है ।
उड़ीसा- रा य म बांस क अ धकता का लाभ उठाते हु ये 6 कारखाने था पत कये गये ह
िजनक कु ल उ पादन मता 1.88 लाख टन है । जराजनगर (76 हजार टन), जेपरु (कोरापुट )
बालगोपालपुर (बालासोर) म छोटे कारखाने था पत ह ।
महारा - इस रा य म व भ न आकार के न कारखाने था पत ह । ब लारपुर
(80,5000 टन) म दे श का सबसे ड़ाडा कारखाना ि थत है । क याण, खोपोल चंचवाड, ख डाला
वरनगर, जलगाँव कोलाबा, का पट , आ द म छोटे कारखाने ि थत ह । ग ता बनाने के
कारखाने गोरे गाँव क याण, वखरोल म था पत ह । महारा म बाँस , खोई, चथड़े के अलावा
वदे श से आय तत लु द से कागज बनाया जाता है । धान के भूसे तथा ग ने क खोई से ग ता
बनाया जाता है ।
कनाटक- यहाँ कारखाने था पत ह िजनक कु ल उ पादन मता 1.60 लाख टन है ।
डा डेल (60 हजार टन) तथा भ ावती (75 हजार टन) म बड़े कारखाने तथा ननजनगड़ा,
बेलागुला, कु भलगढ़, म डी रामनगरम आ द म छोटे कारखाने था पत ह ।
म य दे श तथा छतीसगढ़- रा य म 11 कारखाने था पत ह िजनक कु ल उ पादन
मता 1.49 लाख टन है । सबसे बड़ा कारखाना अमलाई (उ पादन मता 85 हजार टन) म

258
था पत हे । अ य कारखाने भोपाल, ढे मका, बलासपुर , बुधनी ( सहोर) व दशा, आ द म ि थत
ह । दे श म अखबार कागज बनाने का थम कारखाना नेपानगर (75 हजार टन मता) म
1955 म था पत कया गया था । होशंगाबाद म व श ट क म का कागज बनाने का कारखाना
था पत है । म य दे श म बाँस, सलाई, युक ल टस आ द के वृ क बहु लता के कारण कागज
उ योग वक सत हो सका है ।
बहार - यहाँ कारखाने था पत ह िजनक उ पादन मता 87.6 हजार टन है । डाल मया नगर
(60 हजार टन) म रा य का सबसे बड़ा कारखाना था पत है । रामे वर-नगर, बरौनी (बेगस
ु राय),
बाधा (च पारन), पू णया, सम तीपुर म अ य कारखाने ि थत ह ।
गुजरात - इस रा य म कागज बनाने क 38 इकाइयाँ कायरत है िजनक उ पादन मता 1.96
लाख टन है । इनम खड़क (23,000 टन), सोनागढ़ (16500 टन), ब लमोरा (14,000 टन),
वलसाड (10,000 टन), कलोल (10,000 टन), उटरन (9,000 टन) मु य ह अ य सभी लघु
इकाइयाँ ह । गंग ा, दगे नगर, रमोल ब लमोरा व डु ँगसी म ग ता बनाने क इकाइयाँ तथा
सोनगढ़ म पेपर- ेड लु द बनाने क इकाई ि थत ह ।
त मलनाडु - यहाँ 15 कारखाने ि थत ह िजनक उ पादन मता 1.68 लाख टन है । पुगालु र
( ची) म था पत अखबार कागज का कारखाना (50,000 टन) तथा प ल पलायम (इरोड) म
था पत (55 हजार टन मता) कारखाना बड़ी इकाइयाँ ह । चरनमाह ( त नेलवेल ), वदाकुथु (द॰
अकाट), वीलमप ी, पलनी तथा पु पथुर (मदुरै ), पोलाची (कोय बटू र) लघु इकाइयाँ ह।
उ तर दे श - यह कु ल 46 कारखाने ह िजनक उ पादन मता 2.25 लाख टन है । अ धकांश
कारखाने लघु आकार के ह । सहारनपुर (46 हजार टन), लाल कु आ (उ तराखंड) (20,000 टन)
बड़े कारखाने ह । अगवानपुर (मुरादाबाद), रामपुर, गजरौला, रायबरे ल , सक दराबाद, ब ती म
म यम आकार के कारखाने था पत ह । ग ता बनाने क इकाइयाँ मेरठ, मोद नगर, नैनी, बदायू ँ
व मैनपुर म ि थत ह ।
पंजाब - यहाँ 15 कारखाने ि थत ह िजनक उ पादन मता 1.16 लाख टन है । हो शयारपुर,
संग र, बटाला, सैलाखुद राजपुरा म म यम आकार क (10,000-20,000 टन मता) इकाइयाँ
था पत ह ।
केरल - यहाँ पुनालुर (33,000 टन), कोजीखोड व रे यनपुर म कागज के कारखाने ि थत ह ।
ह रयाणा - यहाँ 15 कारखाने ि थत ह िजनक उ पादन मता 1.25 लाख टन है । यमु नानगर
(58,000 टन) इकाई सबसे बड़ी है । धा हे ड़ा, फर दाबाद म अनेक लघु इकाइयाँ था पत ह ।
हमाचल दे श - यहाँ 6 लघु इकाइयाँ कायरत ह िजनक कुल उ पादन मता 28,710 टन है ।
इनम बरोट वाला ि थत पमवा कुल (5,500 टन) सबसे बडी है । बरोट वाला तथा काला अ ब म
कई इकाइयाँ ि थत ह।
असम - नवगाँव म दे श का सबसे बड़ा कारखाना (1 लाख टन मता) सावज नक म था पत है।
नागालै ड - तु ल (मोकोकचु ंग) म 33 हजार टन का कारखाना ि थत है ।
दे श के अ धकांश कागज के कारखाने नजी े म था पत ह । सावज नक े म
कागज उ योग के वकास के लये ह दु तान पेपर काप रे शन (HPC) क थापना 1970 म क

259
गयी । यह नयम न न ल खत इकाइय के काया वयन म संल न है - (i) केरल अखबार कागज
ोजे ट (80 हजार टन मता), (ii) नागालै ड लु गद व कागज ोजे ट (33 हजार टन),
(iii)मा डया नेशनल पेपर मल व तार (39,600 टन), (iv) नवगाँव लु द व कागज ोजे ट (1
लाख टन), (v) कछार लु द व कागज ोजे ट (1 लाख टन) ।

9.6.4 उ पादन (Production)

कागज उ योग के इ तहास से प ट होता है क 1951 म दे श म कागज उ पादन


मता 1.36 लाख टन मा थी जो 1989 म 52.77 लाख टन हो गयी । कागज उ योग क
ग त न न ता लका से प ट होती है -
ता लका 9.6
भारत- कागज व ग ता उ पादन (लाख टन)
1970-71 1970-71 1970-71 1970-71 1970-71 1970-71 1970-71 1970-71
7.55 7.55 7.55 7.55 7.55 7.55 7.55 7.55
वगत 40 वष म दे श म कागज का उ पादन 12 गुना से भी अ धक हो गया है ।
तथा प दे श क माँग को दे खते हु ए यह बहु त कम है । भारत म त यि त कागज क खपत
केवल 1.58 क ा है जब क अमे रका म 227, कनाडा म 140, जापान म 73, आ े लया म
56 क ा है ।

9.6.5 कागज उ योग क सम याय (Problems of paper industry)

दे श म श ा के सार और जनसं या क नर तर वृ के कारण कागज क माँग म


वृ वाभा वक है । वतमान समय म दे श म कुल कागज उ पादन मता 30 लाख टन है तथा
वा त वक उ पादन 60% से 75% तक होता है । कारखाने अपनी कु ल उ पादन मता का
उपभोग नह ं कर पाते, इसके न न ल खत कारण ह -
(1) क चे माल क बहु त कमी है ।
(2) उ तम कोयले क कमी है तथा घ टया कोयला मल पाता है ।
(3) ऊजा (शि त) क कमी के कारण कारखान को समु चत स लाई नह ं मल
पाती।
(4) अवसंरचना (infra structure) सु वधाय अ प ह ।
(5) कारखाना ब धक एवं मक के म य का मक स ब ध खराब होने से
हड़ताल, तालाब द , आ द के कारण मल क उ पादकता कम रहती है ।
(6) ा यो गक का तर पछड़ा व पुराना है ।
(7) शोध एवं वकास काय क कमी है ।
(8) संय (plant)एवं मशीनर पुरानी है ।
(9) कागज क क म घ टया तथा लागत मू य अ धक है ।
(10) कागज उ योग म उ नत ौ यो गक (improved technology) का लाभ
उठाने के लये भार पूँजी नवेश क आव यकता है ।

260
(11) कागज उ योग क सम या का एक व श ट पहलू अप श ट (waste) पदाथ
का उपयोग एवं दूषण कम करना भी है । कागज बनाने क या म
समे कत (integrated) कारखान से भार मा ा म तरल व ठोस अप श ट
पदाथ बचता है । तरल पदाथ को ाय: न दय म बहा दया जाता है िजससे
पयावरण दू षत होता है । ठोस पदाथ से वायुम डल दू षत होता है ।

9.6.6 यापार

भारत म कागज उ योग का व तार ती ग त से हु आ है । क तु क चे माल क कमी


के अलावा तैयार माल क भी कमी के कारण दे श क माँग पूर करने के लये आयात क
आव यकता सदै व रह है । जैसा क न न ल खत ऑकड से प ट होता है
ता लका 9.7
भारत - कागज का आयात (करोड़ .)
वष लु द तथा र ी कागज कागज, ग ता, अखबार कागज आ द
1960-61 7 12
1970-71 12 25
1980-81 18 187
1990-91 458 456
2000-01 1290 2005
2001-02 1405 2131
2003-04 1880 2136
2004-05 1411 1455
Source: Economic survey 2005-06
नाव, वीडन, जापान, कनाडा, हालै ड तथा पि चमी जमनी से लु द व कागज का
आयात कया जाता है । वीडन, पोलै ड, चैक गणत लोवे नया तथा कनाडा से अखबार
कागज का आयात होता है । इन मद पर त वष भार यय होता है
बोध न : 5
1. सव थम कागज उ योग के कारखाने का सफल भाव कहाँ हु आ?
2. लु द कतने कार क होती है ?
3. सबाई घास और ग ने क खोई कस काम आती है ?
4. ह दु तान पे प र काप रे शन कारखाना कोनसे े का है ?

9.7 औ यो गक दे श (Industrial Regions)


औ यो गक दे श से अ भ ाय ऐसे े से है जहाँ पर पर स ब उ योग के अनेक
कारखाने केि त होते है तथा औ यो गक भू य वक सत होते है । औ यो गक दे श क
न न लखत वशेषताय होती है- (1) े म उ योग क धानता व कारखान क अ धक सं या

261
होती है । (2) अनेक छोटे व बड़े नगर का संके ण होता है- जहाँ मक के आवास (कॉलानी),
औ यो गक माल के बाजार, खपत आ द त व क आपू त होती है । (3) ामीण सं या क
वरलता पायी जाती है ।(4) प रवहन साधन का जाल वक सत हो जाता है । (5) पर पर
स ब कारखान क थापना से औ यो गक कॉ ले स वक सत हो जाता है । (6) ाथ मक
यवसाय (कृ ष पशु चारण, आखेट आ द) क यू ता अथवा अभाव होता है ।(7) नगर क के
म सघन अ धवास एवं बाहर क ओर जनरां या क वरलता पायी जाती है । (8) नगर क बा य
सीमा पर नगर य जनसं या के उपभोग के लए शाक, स जी, फल, दूध आ द यवसाय वक सत
हो जाते है । (9) कारखान क धुआ
ँ उगलती चम नयाँ, औ यो गक आवासीय इमारत, रे लयाड,
क चा व तैयार माल लाने-ले जाने वाले भार वाहन, आ द अनेक भू य क धानता होती है ।
भारत मे औ यो गक दे श के सीमांकन का यास वाथा एवं बनर, पी. करण एवं
जेन क स दासगुपग़, आरएल. सह, आ द अनेक व वान ने कएया है ।

9.7.2 करण व जेन क स के अनुसार औ यो गक दे श

अनेक व ान ने म सं या के आकँडो के आधार पर 1950 म भारत म तीन कार के


औ यो गक दे श बसाये-
(अ) धान औ यो गक दे श- यहाँ उ योग का भार जमा व तथा बड़े-बडे उ योग मलते है-
(1) बहार-बंगाल औ यो गक दे श; (क) कलक ता-हु गल दे श; (ब) दामोदर घाट दे श (2)
अहमदाबाद बड़ोदा दे श; (3) मदुराइ-कोय बटू र बंगलौर दे श ।
(ब) छोटे औ यो गक दे श- (1) असम धाट , (2) दािज लंग तराई दे श (3) बहार-पूव
उ तर दे श, (4) द ल -मेरठ दे श, (5) इ दौर-उ जैन दे श, (6) नागपुर -वघा दे श, (7)
धारवाड़-बेलगगाँव दे श, (8) गोदावर -कृ णा डे टा दे श, (10) लू धइयाना राजपुरा दे श ।
(स) औ यो गक के - (1) आगरा, (2) अमृतसर , (3) वा लयर, (4) हैदराबाद, (5) ज मू
(6) जबलपुर, (7) कानपुर , (8) चे नई (म ास) (9) मालाबार, (10) ि वलोन (11) शोलापुर ,
(12) पुरा (13) वशाखापतनम ।

9.7.3 आर. एल. संह के अनुसार औ यो गक दे श

इ ह ने भारत म न न ल खत औ यो गक दे श बताये है-


(1) कलक ता-हु गल औ यो गक दे श, (2) द णी बहार- उ तर उड़ीसा औ यो गक
दे श, (3) अहमदाबाद -बड़ौदा औ यो गक दे श, (4) मु बई-पूना औ यो गक दे श , (5) बंगलोर
-म ास औ यो गक दे श, (6) कोय बदुर-मदुराइ- शवकाशी औ यो गक दे श (7) केरल
औ यो गक दे श, (8) लखनऊ- कानपुर औ यो गक दे श, (9) द ल -गिजयाबाद-अमृतसर
औ यो गक दे श, (10) डगबोई औ यो गक दे श, (11) पूव उ तर दे श व उ तर बहार
औ यो गक दे श

262
9.7.4 सामा य वग करण

व भ न व वान वारा भारत के औ यो गक दे श के' सीमांकन का ववेचन करने के


प चात ् भारत म तीन कार के औ यो गक दे श बताये जा सकते है ।
(I) मु ख औ यो गक दे श (Major Industrial Regions)-
(1) कोलकाता- हु गल , (2) राउरकेला-जमशेदपुर -आसनसोल, (3 भलाई-जबलपुर-
बलासपुर,
(4) मु बई-पुणे -शोलापुर, (5) अहमदाबाद-बड़ोदरा, (6) द ल - गािजयाबाद-मेरठ,
(7) अमृतसर-अ बाला, (8) मदुराई- कोय बटु र, (9) चे नई (म ास)-बंगलौर ।
(II) लघु औ यो गक दे श (Minor Industrial Regions)-
(1) असम घाट , (2) दािज लंग तराई, (3) बहार-उतर दे श, (4) इ दौर-उ जैन,
(5) नागपुर -वधा, (6) धारवाड़-बेलगाँव, (7) गोदावर कृ णा डे टा ।
(III) औ यो गक के थल (Manufacturial centresए कानपुर , आगरा,
वा लयर, भोपाल, राँची, वशाखापतनम।

9.7.5 मु ख औ यो गक दे श

भारत म मु ख औ यो गक दे श एवं े न न ल खत है-


1. कोलकाता- हु गल दे श- यह दे श का ाचीनतम औ यो गक दे श है । कोलकाता व
हावड़ा इसके के है । इस दे श का व तार हु गल नद के कनारे 100 क.मी. ल बी पेट म
हि दया से बलासपुर तक हु आ है । हि दया, ीरामपुर , रशरा, हावड़ा, कोलकाता, नेहाट ,
कान कनारा, ट टागढ़ बजबज, बडलापुर, बांसबे रया आ द इसके मु ख के है । यहाँ दे श का
80% जु ट उ योग 1/3 कागज उ पादन (कोलकता-ट टागढ़ े म) सू ती व ो योग, भार
इ जी नय रंग (लोकोमो टव, मोटर वाहन, जलयान नमाण), रसायन, औष ध, रबड, लाि टक,
सीमे ट, वन प त, दयासलाई, आ द उ योग संकेि त ह । हि दया म पे ोलशोधन एवं प तन
तथा कोलकाता म प तन, वा ण य, बै कं ग, पुँजी, ौ यो गक, म, अ तराि य शेयर बाजार
तथा प रवहन क सु वधाय उपल ध है । प तन के पृ ठ दे श म क चे माल, बाजार एवं म क
सु वधाओं के अ त र त रानीगंज झ रया कोयला े दामोदर घाट प रयोजना से जल व युत
शि त एवं हु गल से व छ जल क सु वधाये उपल ध है ।
2. राउरकेला-जमशेदपुर -आसनसोल- यह औ यो गक दे श भारत क स ख नज
औ यो गक मेखला क अ तगत ह इस े म रानीगंज व झ रया कोयला े , मयूरभंज
ग म हसानी व बादाम पहाड़ लोह े , बोनाई व बाराकर मगनीज े , बीर म पूर म वशाल
चू ना प थर भ डार, दामोदर व. बाराकर न दय क रा श एवं उससे उ प न व युत शि त पाये
जाते है इस संसाधन के आधार पर यह धातु शोधन व भार उ योग क धानता ह राउरकेला,
जमशेदपुर , बोकार , दुगापुर व कु ट म लोहा इ पात, चतरंजन म दे श व वशालतम लोकोमो टव
उ योग, जेकेनगर मुर व आसनसोल म ऐलू म नयम व तांबा शोधन, रानीगंज म कागज, चीनी

263
म ी कोयला धोवनशालाये (Coal Washeries) स म- रसायन एवं उवरक, जमशेदपुर म
टे को (TELCO) इि ज नय रंग के अलावा सीमे ट, रसायन, कृ ष उपकरण तथा अ य अनेक
उ योग था पत है ।
3. भलाई-जबलपुर- बलासपुर- इस वकासो मु ख औ यो गक दे श म क चे माल क सु वधा
के कारण म त उ योग का वकास हु आ है । भलाई(दुग) दे श का वतीय वशालतम इ पात
कारखाना है, जबलपूर म इ जी नय रंग, व , रसायन, वन प ततेल, सतना-कटनी-दमोह व
बलासपुर म -सीमे ट व सरे मक; कोरबा म एलु म नयम आ द उ योग था पत हो गये है । इस
दे श म वकास क मु ख बाधाय प रवहन साधन एवं थानीय बाजार क कमी है ।
4. मु बई-पुणे -शोलापुर- मु बई भारत का ाचीनतम प तन एवं यापा रक राजधानी नगर है
। मु बई शोलापुर (पि चमी) रे लमाग पर सू ती व के लगभग 120 कारखाने केि त ह इसके
अ त र त भार इंजी नय रंग (मोटर वाहन व जलयान नमाण), काँच, सीमे ट, रसायन, औष ध,
उवरक, वन प त तेल, आ द उपभो ता उ योग, व युत उपकरण, मशीनर , पे ोलउ पादन एवं
शोधन (मु बई हाई े ), फ मो योग, अणुशि त के , अनेक अनुसधान, शोध सं थान, श ण
एवं श ण के थ पत है । पूणे, अहमदनगर, सतारा, शोलापुर म व ो योग के अ त र त
चीनी, रसायन, इंजी नय रंग आ द उ योग वक सत ह को हापुर, सतारा व सांगल ती ता से
ँ ी, द ,
वक सत हो रहे ह यह अनेक उ योग के पूवार भ के कारण पूज म, बाजार, प रवहन
अ तरा य बै कं ग, प तन आ द अनेक सु वधाय ा त है ।
5. अहमदाबाद-बडोदरा दे श- अहमदावाद से कोयल तक व तृत गुजरात के इस
वकासो मु ख औ यो गक दे श म अहमदाबाद, न दयाड गोधरा, भड़ौच, बडोदरा, सू रत, कोयल
आद मु ख के द ह यह दे श का मुख कपास उ पादक े है । समु तट क नकटता,
अ तरा य यापार क सू वधा, धनी सेठ क पुज
ँ ी, प रवहन एवं म क सू वधाओं के कारण
यहाँ सू ती व ो योग का सवा धक संके ण हु आ है । अकेले अहमदाबाद म 75 से अ धपक सू ती
व क कारखाने था पत ह इसी लये यह 'पूव का बो टन' कहलाता है । सूरत म नकल रे शम,
रसायन, चीनी, बीड़ी, वन प त तेल एवं इंजी नय रंग उ योग वक सत होने के साथ ह सोने
चांद के तार व जर क कढ़ाई, बतन एवं कला मक व तुओं का नमाण ाचीन व पर परागत है
। कोयल म पे ोल शोधन तथा पै ो-रसायन उ योग, बड़ोदरा म सू ती व , रसायन, औष ध,
काँच, ह के व भार रासाय नक तथा दयासलाई उ योग न दयाड व आन द म डेयर उ योग
था पत है ।
6. द ल -गािजयाबाद- मेरठ दे श- यह नवीन तथा लघु औ यो गक े ती ता से बृहत ्
औ यो गक दे श बनने क या म है । इस औ यो गक पेट का व तार: ह रयाणा म गुड़गाँव,
फर दाबाद से लेकर द ल शाहदरा, नोएडा, मोहननगर, गािजयाबाद, मु रादनगर, मोद नगर,
परतापूर मेरठ व मोद पूरम ् तक ह गुडगाँव म मा त मोटर उ योग के कारण ती औ यो गकरण
हु आ है । द ल , फर दाबाद े म इले ो नक उपकरण (रे डयो, टे ल वजन, ांिज टर,
केलकुलेटर) क युटर, कैसेट, टे प रकाडर, घ ड़याँ, पुज , े टर कृ ष मशीनर आ द, शहदरा म

264
होजर , मोद नगर म सू ती एवं नकल रे शम, वन प त घी, चीनी रसायन, गािजयाबाद मे
साइ कल, टायर, यूब , कृ ष उपकरण, रसायन व औष ध, व युत मोटर , इले ो नक, सगरे ट,
आ द, द ल म सू त व , रसायन, साइ कल, कुटर व पुज, मशीनर , व युत उपकरण
उपभो ता व तु, पॉटर , होजर , सले सलाये व , आद क व वधता पायी जाती है ।
मु रादनगर म आयुध नमाण (ऑ डने स), मोद पुरम म -टायर, परतापुर म टायर, इले ॉ नक
आ द मेरठ म चीनी, शराब ( ड टलर ), मोहननगर म ेवर व ड टलर का वशेषीकरण पाया
जाता है । रा य राजधानी े के वकास से इस े म औ यो गकरण को वशेष ो साहन
मलता है ।
7. अमृतसर-अ बाला दे श- पंजाब व ह रयाणा मूलत: कृ ष धान ह तथा प यहाँ वगत दो
दशक म औ यो गकरण म हु आ है । इस दे श म दे श क 85% होजर व 60% खेल का
सामान बनता है । इस दे श क मु ख के अमृतसर, धार वाल, ग दासपुर , प टयाला, फगवाड़ा,
हो शयारपूर जालंधर, लू धयाना, बटाला, नवाशहर, नंगल, अ बाला, जगाधर , यमु नानगर,
सू रजपुर आ द है । अमृतसर-लु धयाना, जालंधर, बटाला म कृ ष व औ यो गक मशीनर व पूज,
जालंधन व बटाला म खेल का सामन, धार वाल, लू धयाना, हो शयापूर अमृतसर म एवं फगवाडा
म ऊनी व तथा होजर , रसायन, औष ध, नाईलोन टायर, इले ो नक उपकरण, नंगल म
उवरक, डाल मयादादर व सूरजपुर म सीमे ट , जगाधर , यमु नानगर, राजपुरा, कपूरथला, बटाला
आ द म पीतल ट ल व धातु के बतन व सामान, नल व से नटर का सामान, आ द के उ योग
था पत ह ।
8. मदुराई-कोय बटु र दे श- कोय बटू र म व ो योग क धानता ह पहले यह कुट र तर
पर क तु अब वृहत ् तर पर सू ती, रे शम व नकल रे शम (रे यन) उ योग च लत है । कोय बटु र
‘त लमनाडु का मानचे टर' कहलाता है । सू ती व के अ तर त यहाँ चीनी, औ यो गक उपकरण,
रबड़, सगरे ट, रसायन, कहवा, सीमे ट व 'चमड़ा उ योग 'भी था पत है । 'के य ग ना शोध
सं थान' भी यह ि थत ह मदुराई म इंजी नय रंग उ योग का वशेषीकरण हु आ है ।
9. चे नई (म ास) बंगलौर दे श- चे नई- मू बई रे लमाग पर यह औ यो गक दे श
वक सत ह चे नई त मलनाडु क राजधानी, दे श का मुख प तन तथा ओ यो गक नगर है ।
इसक पृ ठभू म कृ ष धान ह यहाँ सू ती व ो योग, मोटर वाहन, जलयान नमाण, रे लवे कोच
तथा वैगन (पेरा बूर म) दयासलाई, चमड़ा, सगरे ट, साइ कल, रसायन, मशीनर उपकरण आ द
उ योग था पत है ।
उ तम प रवहन एवं जल व युत के कारण बंगलौर म अनेक उ योग वक सत हो गये ह
। घड़ी व मशीने (HMT), वायुयान (HAL) टे लफोन (I.T.I) भार मशीनर , सू ती, ऊन, रे शमी व
कृ म रे शम व ो योग, वधु त एवं इले ा नक उपकरण, रसायन, औष ध, चमड़ा, इ पात
(भ ावती) उ योग आ द वक सत है ।
1. असम घाट - कृ ष, व य एवं ख नज तेल इस े म मुख आ थक संसाधन ह िजनके
आधार पर यहाँ चाय के बागात जू ट यवसाय, चावल साफ करने के कारखाने, कागज, लकड़ी

265
चराई, दयासलाई लाइवुड, रे शम तथा पे ो लयम उ योग वक सत है । डगबोई, अर , डबुगढ
तनसू खया मु ख औ यो गक के है ।
2. दािज लंग तराई- पि चमी बंगाल क उ तर भाग म चाय व अन नास क बागात
उ लेखनीय हे । वनो योग भी वक सत ह दािज लग व जलपाई गुड़ी औ यो गक के है ।
दािज लंग म पयटन उ योग भी वक सत है ।
3. बहार- उ तर दे श- उ तर बहार व पूव उतर दे श म चीनी, चावल, आ द खा य
उ योग गंगा क द णी कनारे पर भागलपुर से ब सर तक इ जी नय रंग उ योग,
डाल मयारनगर म कागज, सीमट, चीनी, वन प त तेल; पटना मे रसायन एवं व ो योग,
गोरखपुर मे - चीनी, शराब, जू ट, खा य उ योग आ द था पत है । सघन आबाद े होने के
कारण यहाँ बाजार उपल ध है । कृ ष एवं ख नज संसाधन उपल ध होने के कारण यहाँ कुछ
वशेष उ योग था पत हो गये है ।
4. इ दौर-उ जैन- म य दे श के, द णी पि चमी भाग म ि थत इस दे श मे सू ती व ,
इ जी नय रंग व धातु कम उ योग क अ त र त खा य से स बि धत एवं रसायन उ योग
वक सत हु ए है । इ दौर व उ जैन मुख
औ यो गक् के है ।
5. नागपुर -वधा- महारा के उ तर मे ि थत इस दे श म सूती व , इंजी नय रंग रसायन
आ द उ योग वक सत हु ए है । नागपुर एवं वधा इसके मुख के है ।
6. धारवाड़-बेलगाँव- कनाटक के उ तर पि चमी भाग म ि थ त इस दे श म सूती व ,
चावल साफ करना, रासाय नक एवं ह क इ जी नय रंग उ योग के अ त र त मछल से
स बि धत उ योग एवं मसालो का यापार होता ह हु बल , धारवाड़ बेलगाँव मु ख औ यो गक
के है ।
7. गोदावर - कृ णा डे टा- आं दे श के तट य भाग म ि थत इस कृ ष धान े म
चावल, जु ट, सू ती व , चीनी एवं मलय उ योग के अ त र त सीमट, उवरक, रसायन, ह के
इ जी नय रंग, इ पात एवं जलयान नमाण उ योग का वकास हु आ है । राजमहे , गु तु र,
वजयवाड़ा, मछल प नम तथा वशाखापतनम मुख औ यो गक के है ।
बोध शन-6
1. औ यो गक दे श से या अ भ ाय है ?
2. म सं या के आधार पर कतने भाग म बां टा गया है ?
3. आर.एल. संह के अनु सार कतने औ यो गक दे श मे बां टा गया है ?
4. कोलक ता – हु गल दे श का व तार कहाँ से कहाँ तक हु आ है ?

9.8 सारांश (Summary)


भू गोलवे ता मूलत: तीन प का अ ययन करता है (1) उ योग के वतरण का ादे शक
त प (2) उ योग के थापन वाले दे श म अ य भौगो लक प से उनका स ब ध (3) उन
उ योगो का अ य दे श से स ब ध । जैसे, वन पर आधा रत उ योग से उस दे श म कौन से

266
आ थक प रवतन होते है, तथा उनसे यापार आ द अनेक अ य अ त ादे शक काय भी वक सत
होते है । इन तीन प का एक दूसरे से संब ध है । जैसे भारत म लोहा इ पात उ योग का
ादे शक वतरण या है । उन थान पर कौन से अनुकूल भौगो लक कारक है तथा इस उ योग
के थापन से भारत म आ थक वकास को कस प म सहायता मल है तथा कौन से अ य
उ योग एवं आ थक काय वक सत हु ए है ।
भौगो लक अ ययन म हम उ योग के ऐ तहा सक एवं आ थक प को भी जानना चाहते
ह । जैसे भारत म सू ती कपड़ा उ योग के वकास के कौन से कारण रहे है । भौगो लक कारक के
अ त र त वतमान शता द म कौन से अनुकूल कारक रहे क यह उ योग टे न के उ योग के
बावजू द भी वक सत हु आ । इस कार उ योग के पुन वतरण के इ तहास और उसके कारण का
समायोजन भी करते ह ।
उ पादन के साथ यापार भी संब है अत: औ यो गक भूगोल म उ पा दत व तु ओं के
यापार को भी हम जानना चाहते ह ।
भारत म लोहा पात उ योग मु खत: बोकार , जमशेदपुर, भलाई, राउरकेला, दुगापुर ,
वशाखाप नम, सलेम, भ ावती आ द म केि त है । व उ योग म महारा , गुजरात,
आं दे श, पि चमी बंगाल अ णी है । सीमे ट उ योग म आं दे श , छ तीसगढ़, म य दे श,
झारख ड, बहार, गुजरात व त मलनाडु मु ख है ।
ए युमी नयम उ योग भूर , रे णक
ु ू ट, भेटर, कोरबा आ द म वक सत है । कागज लु द
उ योग पि चमी बंगाल, आं दे श, उड़ीसा, छ तीसगढ़, म य दे श, गुजरात, उ तर दे श आ द
म केि त है ।
औ यो गक दे श ऐसा े है जहाँ पर पर स ब उ योग के अनेक कारखाने केि त हो
तथा औ यो गक भू य वक सत हो । करण व जेन व स तथा आर.एल. संह ने भारत के
औ यो गक दे श को नधारण कया है । भारत के मुख , लघु व औ यो गक के 3 थल
नधा रत कये गये है ।

9.9 श दावल
1. उ योग :- उ योग वह आ थक काय है िजससे उपयोगी व तु एँ बनाई जाती है या सेवा
काय का ज म होता है । (Economic Activity which fields goods, Utilities of
Services)
2. उ योग का थानीयकरण :- थान वशेष पर उ योग का के यकरण ह उसका
थानीयकरण माना जाता है । औ यो गक वशेषता क . एक वशेषता यह है क एक थान पर
य द कु छ उ योग वक सत हो जाते है तो उनका उ योग भी कह आक षत होते है य क वहाँ
उ ह आव यक सु वधाएँ जैसे कु शल कार गर, प रवहन के साधन, पूँजी, यापार का बंध आ द
उपल ध हो जाते है ।
3. क चा माल - ऐसे पदाथ िजनका प, गुण धम प रव तत कर नया माल तैयार कया
जाता है ।

267
4. औ यो गक दे श :- ऐसे दे श को औ यो गक दे श कहा जाता है जहाँ उ योग का
संके ण हो और जहाँ अ य आ थक काय क तुलना म औ यो गक याय ह मुख हो । यह
औ यो गक भू य व औ यो गक संकु ल के संयोजन का प रणाम है ।
5. वके करण - ऐसा उ योग िजसके कारखाने वभ न े म अनेक के पर
वक सत होते है ।

9.10 स दभ थ (References)
1. डॉ. मीला कु मार व डॉ. ी कमल: म य दे श ह द थ अकादमी, भोपाल ।
2. वी.एस. चौहान व अलका गौतम : भारत का भू गोल र तोगी पि लकेश स, मेरठ ।
3. डॉ. सुरेश च बंसल : भारत का भू गोल मीना ी काशन, मेरठ ।
4. डॉ. बीपी राव : भारत का भू गोल वसु धरा काशन, गोरखपुर ।
5. डॉ. चतु भु ज मामो रया व डॉ.जे.पी. म ा. भारत का वृहतभू गोल सा ह य भवन
पि लकेशन, आगरा ।

9.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. क चे माल के नकट होती है । 2. कोयला
3. सांकची (झारख ड) 4. जमनी के सहयोग से ।
बोध न - 2
1. कपास 2. थम 3. त मलनाडू
बोध न - 3
1. क चे माल के नकट 2. सीमट
3. राज थान 4. बरला मू प
बोध न - 4
1. बॉ साइट 2. चार कारखान 3. उड़ीसा रा य म
बोध न - 5
1. ट टागढ़ (1881) 2. दो कार क (i) यां क लु द (ii) रासाय नक लु द
3. लद बनाने के काम। 4. सावज नक े का ।
बोध न - 6
1. यहाँ पर पर स ब उ योग के अनके कारखाने केि त होते है तथा औ यो गक भू य
वक सत होते है ।
2. तीन कार के औ यो गक दे श म 3. यारह (11)
4. हु गल नद के कनारे 100 कमी.ल बी पेट म हि दया से बलासपुर तक हु आ है ।

9.12 अ यासाथ न
.1 लोहा इ पात उ योग क थापना के कारक का ववेचन क िजये ।
.2 भारत म सू ती कपड़ा उ योग का वतरण बतलाइये ।

268
.3 भारत म सीमट उ योग के वकास पर लेख ल खये ।
.4 ए यू म नयम उ योग क समी ा क िजये ।
.5 भारत म कागज उ योग के थानीयकरण क कारक क या या क िजये ।
.6 भारत को औ यो गक दे श म बा टये तथा उनके संसाधन का ववरण द िजये ।

269
इकाई 10 : जनसं या एवं नगर करण
(Population and Urbanisation)
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना.
10.2 जनसं या
10.2.1 अथ एवं प रभाषा
10.2.2 जनसं या वृ
10.2.3 जनसं या वृ क अव थाएँ
10.2.4 जनसं या वृ दर म था नक वषमता (1991-2001)
10.2.5 जनसं या वृ व लेषण (1991-2001)
10.2.6 जनसं या क ती वृ को नयं त करने के उपाय
10.3 जनसं या वतरण एवं घन व
10.3.1 जनसं या वतरण को भा वत करने वाले कारक
10.3.2 जनसं या घन व
10.4 जनसं या सम याएँ एवं समाधान
10.5 नगर करण
10.5.1 अथ एवं प रभाषा
10.5.2 नगर य जनसं या म वृ एवं नगर करण
10.5.3 नगर करण को भा वत करने वाले कारक
10.5.4 भारत म नगर करण
10.5.5 नगर करण क वृि तयाँ
10.5.6 नगर करण चु नौ तयाँ
10.6 सारांश
10.7 श दावल
10.8 संदभ थ
10.9 बोध न के उ तर
10.10 अ यासाथ न

10.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे :
 भारत म जनसं या का व प
 जनसं या का वतरण एवं घन व
 वतरण को भा वत करने वाले कारक,

270
 जनसं या वृ का व लेषण
 जनसं या वृ क अव थाएँ
 जनसं या क ती वृ को नयि त करने के उपाय ,
 जनसं या क सम याएँ एवं समाधान
 नगर करण जनसं या म वृ के कारण
 नगर करण क वृ तयां
 नगर करण क चु नौ तयां ।

10.1 तावना ((Introduction)


कसी भी दे श के उ नत वकास म ाकृ तक एवं मानवीय संसाधन का मह वपूण
योगदान होता है । मानव वारा ह ाकृ तक संसाधन के उपयोग से रा का आ थक वकास
होता है । क तु ाकृ तक तथा मानवीय संसाधन के म य उ चत अनुपात होने पर ह रा का
वकास नभर करता है । य द संसाधन क तुलना म जनसं या घन व क अ धकता होगी तो
उस रा के आ थक वकास क दर धीमी होगी । अत: जनसं या के े ीय वतरण, वृ एवं
घन व तथा जनसं या सम याओं का अ ययन एवं व लेषण आव यक है, य क ये सभी घटक
एक दे श क उ न त व भावी वकास के अनुमान लगाने के भी मु य आधार होते ह ।
व व म चीन के प चात ् भारत ह ऐसा दे श है िजसक जनसं या सवा धक एवं एक
अरब से अ धक है । भारत का े फल व व के े फल का लगभग 2.4 तशत है, जब क
व व क कु ल जनसं या का 16.7 तशत भाग भारत म नवास करता है । सन ् 1881 म
भारत क कुल जनसं या 23.7 करोड़ थी जो माच 2001 मे 102.7 करोड़ हो गई । भारत क
जनसं या भू- े ीय संसाधन क तुलना म अनुकूलतम सीमा को पार करते हु ए व फोटक ि थ त
तक पहु ंच चुक है । अत: इस दे श म जनसं या स ब धी ठोस नी त को अपनाया जाना
आव यक है । दुतग त से बढती हु ई आबाद हमारे दे श के वकास तथा अनेक सम याओं के
नदान म बाधा उ प न कर रह है । भारत क जनसं या का 72.22 तशत भाग गांव म तथा
27.78 तशत शहर े म नवास करता है । जनसं या क अ य धक वृ नगर तथा
महानगर मे हु ई है । नगर का े फल धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है । नगर य सीमा का समीपवत
ामीण यि तय पर अ त मण हो रहा है ।

10.2 जनसं या (Population)


आज जनसं या िजस ग त से बढ़ रह है, यह भयावह ि थ त को इं गत कह रह है ।
य द इस पर ठोस नी त को नह ं अपनाया गया सो आने खाले समय मे खा या नो क कमी
मानव नवास के लए भू म, वा य सेवाओं क कमी, पयावरण आ द का सम याय उ प न हो
जायेगी । जनसं या क इन सम याओं को समझने से पहले हम जनसं या का अथ एवं प रभाषा
समझ क जनसं या या है और कैसे इसक ती ग त होती है।

10.2.1 जनसं या - अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition)

271
जनसं या का शाि दक अथ दे खा जाए तो यह सं कृ त के दो श द के योग से
(जन+सं या) बना है । जन का अथ है – लोग/ जा/ समू ह/ आ द तथा सं या श द से अ भ ाय
है ' गनती’ । अत: जनसं या श द का शाि दक अथ हु आ 'लोग क गनती' । यहां न उठता
है, कन लोग क गनती और कहाँ के लोग क गनती । इसका उ तर है - '' कसी नि चत भू-
भाग ( दे श या े ीय इकाई अथवा अ य कोई थान वशेष) म रहने वाले सम त नवा सय क
सं या । वो छोटे ह या बड़े उ दराज, म हलाएँ ह या पु ष , ब चे ह या युवा वग या बुजु ग ।
कसी भी धम के ह या कसी भी जा त के ह , इन सभी क एक नि चत समय म गनती क
जाती है, वह उस समय व थान क जनसं या कहलाती है ।
जनसं या श द को आं ल भाषा म पॉपुलेशन (Population) कहते ह । िजसका
अ भ ाय साधारणतया जनसं या, आबाद , अथवा जनसमू ह के प म नकाला जाता है । जब क
सांि यक य भाषा (Statistical Language) म पॉपुलेशन (Population) श द का अथ कसी
भी सं या (Number) से लगाया जाता है । पॉपुलेशन (Population) मानव समू ह क हो
सकती है, पेड़-पौध क हो सकती है, पशु ओं या प य क हो सकती है, फन चर या ऐसे ह
अ य भी सं या हो सकती है । इस कार य द मानव जनसं या कहना हो तो उसे 'Human
Population,' कहा जाता है, य द पेड़ क सं या हो तो उसे ‘Tree Population’, पशु ओं क
सं या को 'Animal Population', कहा जायेगा, तो 'Furniture Population’ के वारा
फन चर क सं या य त क जाती है अथात ् पॉपुलेशन (Population) श द कसी भी व तु,
पेड़-पौध , पशु-प ी अथवा मानव आ द क सं या को अ भ य त करता है ।

10.2.2 जनसं या वृ (Growth of Population)

कसी नि चत समयाव ध म जनसं या म होने वाले शु प रवतन को जनसं या वृ


दर कहते है । जनसं या वृ दर को ारि भक जनसं या के तशत के प म य त कया
जाता है । य द वचाराधीन समय म जनसं या घटती (कम) है तो जनसं या वृ ऋणा मक
होगी । इसके वपर त य द जनसं या बढ़ती है तो इसे घना मक वृ दर कहगे । बीसवीं शता द
म भारत क जनसं या म चार गुना (330.8 तशत) वृ हु ई है।
भारत म जनसं या का आकार एवं दर अपने जनां कक य इ तहास के लए अभूतपूव एवं
च ताजनक है । मू रलै ड के अनुसार भारत क जनसं या 16 वीं शता द के अ त तक 10
करोड़ थी । 1800 ( लेफेयर) म यह 13 करोड़ तक पहु ँच गयी । इस दौरान मृ युदर एवं ज मदर
म वशेष अ तर नह ं था । इस धीमी ग त से बढती हु ई भारत ्। क जनंस या 1901 म 23.8
करोड़ हो गई तथा 1951 म वतं भारत क पहल जनगणना म बढ़कर 36.10 करोड़ और
1991 म 84.3 करोड़ तथा 2001 म 102.70 करोड़ थी । इस तरह भारत क जनसं या 1991-
2001 के दशक म 18 करोड़ बढ़ गई । तवष हमारे दे श म लगभग 1.8 करोड़ जनसं या बढ़
जाती है, जो आ े लया क जनसं या के लगभग बराबर है । भारत म जनसं या का घन व
324 यि त त वग कलोमीटर है । भारत क जनसं या उ तर और द णी अमे रका क कुल
जनसं या के योग से अ धक है । अ ु ी, आ
का महा वीप रो दुगन े लया से 44 गुनी अ धक है ,

272
स से 2.5 गुनी अ धक, उ तर अमे रका से 2.8 गुनी अ धक और टे न से 7 गुनी अ धक है ।
इतनी वशाल जनसं या के सी मत संसाधन पर नभर होने के कारण अनेक सामािजक,
राजनी तक और आ थक सम या पैदा हो जाती ह । य द भारत क जनसं या वृ दर और कु ल
जनसं या कम होती तो भारत अब तक एक राजनी तक और आ थक महाशि त बन गया होता ।
भारत म जनसं या का आकार एवं वृ दर न न ता लका से दे खे जा सकते ह । (ता लका
10.1)
ता लका - 101. भारत म जनसं या का आकार एवं वृ दर (1901-2001)
जनगणना जनसं या दशक य वृ औसत वा षक ज मदर मृ यु दर 1901 के प चात
वष वृ दर त हजार त बढ़ती वृ दर
( तशत म) हजार ( तशत)
नरपे ( तशत)
1901 238,396,327 - - - - - -
1911 252,093,390 113,697,063 5.75 0.56 49.2 42.2 5.75
1921 251,321,213 -772,177 –0.31 -0.03 48.1 48.6 5.42
1931 278,977,238 27,656,025 11.00 1.04 46.4 36.3 17.02
1941 318,660,580 39,683,342 14.22 1.33 42.2 31.2 33.67
1951 361,088,090 42,427,510 13.31 1.25 39.9 27.4 51.47
1961 439,234,771 78,146,681 21.64 1.96 41.7 22.8 84.25
1971 548,159,652 108,924,881 24.80 2.20 41.2 19.0 129.94
1981 683,329,097 135,169,445 24.66 2.22 37.2 15.0 186.64
1991 843,387,888 163,058,791 23.86 2.14 32.5 11.4 255.03
2001 1,027,015,247 180,627,359 21.34 1.93 26.0 8.0 330.80

Source: Census of India-2001

10.2.3 भारत म जनसं या वृ क अव थाएँ (Stages of Population Growth in


India)

ता लका 10.1 से ात होता है क सन ् 1901 म भारत क जनसं या 23.86 करोड़ थी


जो बढ़कर 2001 म 102.702 करोड़ हो गई । इस कार वगत एक शता द म भारत म
78.862 करोड़ यि त बढ़ गए । सन ् 1901 से भारत क जनसं या नर तर बढ़ रह है; केवल
सन ् 1911 और 1921 के म य क अव ध म यह थोड़ी घट थी । तथा प जनसं या क दशक य
वृ दर म सन ् 1981 तक नर तर वृ हु ई है । ले कन इसके बाद इसम कमी आनी शु हो
गई थी । इस कार भारत क जनसं या वृ के जनां कक य इ तहास को चार अव थाओं म
वभािजत कया जा सकता है ।
1. धीमी वृ क अव ध (1921 से पूव )
2. नर तर वृ क अव ध (1921 से 1951)
3. ती वृ क अव ध (1951 से 1987) और
4. घटती वृ क अव ध (1981 से बाद)

273
1. धीमी वृ क अव ध (1921 से पूव )
यह अव ध भारत क पहल जनगणना सन ् 1872 ई. से 1921 के दौरान रह है । इस
समय जनसं या वृ बहु त धीमी थी य क ज मदर एवं मृ युदर दोन ह ऊँचे थे । इसका
मु ख कारण दे श म पड़ने वाले भीषण अकाल, महामार तथा अ नाभाव के कारण जनसं या म
उ च ज मदर होने के बावजू द ऊँची मृ युदर रह । इस अव ध म ज मदर 48 से 49 यि त त
हजार तथा मृ युदर 42 से 48 त हजार रह । अत: इन तीन दशक म जनसं या केवल 1 .54
करोड़ क वृ हु ई है । इस अव ध म त वष वृ लगभग 5 लाख क थी जब क वतमान
समय म यह लगभग 1 .4 करोड़ क है । 1927 के बाद जनसं या वृ दर धीरे -धीरे वढ़ने लगी
। इस लए 1921 को भारत क जनसं या का वृहत ् वभाजक (Great Divide) अथवा जनां कक
वभाजक (Demographic Divide) वष कहते ह ।

मान च सं या 10.1 जनसं या वृ


2. नर तर वृ क अव ध (1921 से 1951)
1921 के बाद वा य सेवाओं म सुधार के प रणाम व प लेग, हैजा, चेचक, मले रया
आ द महामा रय के कारण होने वाल मौत म कमी आई । इस कार 1921 से 1951 के तीन
दशक म जनसं या म नर तर वृ हु ई । इन तीन दशक म जनसं या मश: 2.8, 4.0 तथा
4.2 करोड़ क वृ हु ई । इन तीस वष क कु ल वृ लगभग 11करोड़ थी अथात तवष 36.6
लाख रह , 1921 - 31 म जनसं या क वृ दर 11 तशत, 1931 - 41 म यह 14.22
तशत तथा 1941 -51 म यह 13.31 तशत थी । ज मदर 46.4 त हजार से घटकर
39.9 त हजार हो गई तथा मृ युदर 36.3 त हजार से घटकर 27.4 त हजार हो गई ।

274
इस अव ध म अकाल के कारण होने वाल मौती म कमी आई तथा प टता और
च क सा सु वधाएँ बेहतर हो गई । प रवहन के साधन मे व तार तथा खा यान के उ पादन म
वृ क गई । प रणाम व प ज मदर क तुलना म मृ युदर अ धक तेजी से घटने के कारण
वृ दर अ धक होती गई फर भी यह त दशक 10 तशत से 15 तशत के म य सामा स
बनी रह इसे इन े रत व ध कहा गया है ।
3. ती वृ क अव ध (1951 से 1981)
1951 से 1981 क अव ध म भारत क जनसं या लगभग दुगन
ु ी हो गई । इस अव ध
म औसत वृ दर लगभग 2.2 तशत रह । जनसं या म यह अभू तपूव वृ वकास काय म
तेजी, च क सा सु वधाओं म और अ धक सुधार तथा खा या न म बढोतर हे तु ह रत ाि त का
भाव आ द के फल व प हु ई । लोग के जीवन क दशाओं म बहु त सु धार हु आ । ज मदर क
तु लना म मृ युदर तेजी से घट । इसका प रणाम अ त उ च ाकृ तक वृ है । इस कार यह
जनन े रत वृ है ।
4. घटती वृ क अव ध (1981 के बाद)
य य प 1981 के बाद भी जनंस या म उ च वृ हु ई ले कन वृ दर म मक ास
हु आ । भारत के जनां कक य इ तहास म यह नए युग क शु आत का संकेत है । इस अव ध म
ज मदर तेजी से घट । यह 1981 से 37.2 त हजार थी जो 2001 म घट कर 26 त हजार
हो गई । मृ युदर म भी घटने क वृि त बनी रह ले कन कमी क दर धीमी हो गई । 2001 म
मृ युदर 8.0 थी, ज मदर और मृ युदर म अ तर घटते -घटते 18 त हजार रह गया है ।
जनसं या म ास क यह वृ त संत त नरोध के सरकार य न , छोटे प रवार के त झान,
शै णक वकास तथा जाग कता के कारण हु आ । इस अव ध म मृ युदर के साथ-साथ ज मदर
को भी नयि त कया गया है । अत: 2001 के जनगणना से प ट है क भारत जनां कक य
सं मण (Demographic Transition) क चतु थ अव था क ओर अ सर हो रहा है ।
बोध न : 1
1. जनसं या के ि टकोण से भारत का व व म कौनसा थान है ?
2. व व क कु ल जनसं या का कतना तशत भाग भारत म नवास करता है ?
3. भारत म ामीण एवं नगर य जनसं या का अनु पात कतना है ?
4. भारत क पहल एक का लक ( Synchronous ) जनगणना कब और कसके
शासन काल म हु ई थी?
5. 2001 क जनसं यानु सार भारत म ज मदर एवं मृ यु द र का अनु पात कतना
है ?

275
ता लका – 10.2
रा य एवं के शा सत दे श क राजधानी, े फल, जनसं या तथा जनसं या का घन व

10.2.4 वृ दर म था नक वषमता (1991-2001) (Regional Differences in


Population Growth rate (1991-2001)

भारत के व भ न रा य व के शा सत दे श म जनसं या एवं जनसं या घन व म


मापक वषमता है (ता लका 10.2) । भारत क वतमान (1991-2001) जनसं या वृ 21.34 है
। यह स पूण भारत क दशक य वृ को दशाता है , जब क रा यवार अ ययन करने पर इसम
काफ वषमता पायी जाती है । केरल म दशक य वृ दर 9.42 तशत है, जो यूनतम है
जब क नागालै ड म अ धकतम 64.41 तशत है । इसी कार के शा सत दे श म सवा धक
वृ दर दादरा एवं नागर हवेल क 59.20 तशत तो सबसे कम ल वीप के 17.19 तशत
है । (ता लका 10.3)

276
277
सामा यत: उ च वृ दर वाले (2 तशत वा षक से अ धक) रा य दे श के उतर आधे भाग वाले
रा य ह । हालां क उतर पूव रा य म वृ दर ऊँची रह । इसके वपर त द ण के मुख
रा य म जनसं या वृ दर धीमी रह है। इसका मु ख कारण सामािजक-आ थक वकास म
अ तर है । द ण के रा य म सा रता दर ऊँची गार य जनसं या अ धक तथा आ थक वकास
अपे ाकृ त अ धक है । यह वजह है क द ण के रा य म ज मदर अपे ाकृ त कम है ।

10.2.5 जनसं या वृ का व लेषण (Analysis of Population Growth)

दे श म जनसं या वृ के 1991 से 2001 के म य के आंकड़ का व लेषण तथा


मान च सं या 10.1 का अ ययन करने पर तीन कार के े प ट प से दखाई दे ते ह:-
1. अ धक जनसं या वृ वाले े - दे श म इस काल म 30 तशत से अ धक जनसं या
वृ के रा य दे श के अ तगत मु य प से म णपुर , नागालै ड, सि कम, दादरा और नगर
हवेल , दमन और द व, द ल , च डीगढ़ आ द थे ।
2. म यम जनसं या वृ वाले े - ऐसे रा य/ दे श े िजनम इस काल म 20 तशत
से 30 तशत के म य दशक य वृ दर थी , उनम म य दे श, झारख ड, ह रयाणा,
उ तर दे श, बहार, राज थान, मजोरम, गुजरात, पां डचेर आ द थे ।
3. कम जनसं या वृ वाले े - इसके अंतगत वे रा य थे िजनक दशक य वृ दर 20
तशत से कम थी, जैसे-त मलनाडु , केरल, गोवा, आ ध दे श, उड़ीसा, पुरा, पि चमी बंगाल,
कनाटक, हमाचल दे श, छ तीसगढ़, उ तराखंड, असम आ द ।
दे श म जनसं या क वृ दर 1991 से 2001 के काल म 21.34 तशत रह । सवा धक वृ
दर मु य प से नागालै ड, सि कम, म णपुर , मेघालय, मजोरम, जग और क मीर, दादरा
और नगर हवेल , द ल , चंडीगढ, दमन और द व म रह तथा यूनतम वृ दर केरल ,
त मलनाडु , आध दे श, गोवा आ द रा य म दज क गई ।

10.2.6 जनसं या क ती वृ को नयं त करने के उपाय (Measures to Control


Growth of Population)

हमारे दे श म प रवार क याण, जनसं या नयं ण एवं नयोजन काय म को सव च


ाथ मकता दे ने क मह ती आव यकता है । जनसं या क इस ती वृ पर नयं ण हे तु न न
उपाय क आव यकता है :-
1. ववाह क आयु पर नगरानी - सरकार वारा घो षत लड़के-लड़ कय क यूनतम आयु
सीमा म ववाह करने पर कड़ी नगाह रखना भी आव यक है, वशेषकर कृ षक, पशु पालक वग,
मक वग तथा अ प वक सत समाज के व भ न वग पर ।
2. उ पादन म वृ - मानव क भौ तक च उ पादन म वृ के यास करने से बढ़ती है ,
अत: इसके कारण जीवन तर ऊँचा होने पर वह भ व य के लये अनेक योजनाओं का नमाण
करता है । इससे भी जनसं या नयं ण को बल मलता है ।

278
3. प रवार क याण काय म का व तार - रा य तर पर तथा साथ ह साथ रा य तर
पर भी सरकार सं थान , अ सरकार एवं नजी सं थान वारा इस े म जनजागरण
अ भयान चलाकर इस स ब ध म आमजन को अ धका धक जानकार उपल ध कराने के साथ ह
व भ न योजनाय बनाकर उनक ठोस याि व त के यास कया जाना आव यक है ।
4. श ा - श ा का न केवल कसी रा क उ न त म मह वपूण योगदान रहता है ,
अ पतु इसके वारा अनेक सामािजक-सां कृ तक सम याओं का हल भी नकाला जा सकता है ।
अत: प रवार क याण काय मो क उ चत याि व त हेतु दे श म अ धका धक जनसं या को
श त करना आव यक है, इसके मा यम से लोग न केवल प रवार को छोटा रखने एवं जीवन
तर को ऊँचा उठाने के यास करगे अ पतु वे जीवन के त बु -सगत ि टकोण -रखना भी
ार भ कर दगे अत: श ा का यावहा रक चार, वशेषकर ि य क श ा के लए समु चत
यव था हो ।
5. योजना के थान पर नी त - भारत म जनसं या नयं ण करने के लए एक ठोस नी त
नह ं है । यहाँ धा मक अ ध व वास, राजनै तक वाथ आ द जनसं या को नयं ण करने म
असमथ ह । सरकार वारा चलाये जा रहे काय म भी योजना के तहत सु यवि थत नह ं है जैसे
70 के दशक म तीन ब च क योजना थी, बाद म यह दो ब च क बनी क तु कसी द पि त
ने दो से अ धक ब चे पैदा कये तो कोई द ड का ावधान नह ं है जब क चीन म जनसं या
नयोजन नह ं है वहाँ जनसं या नी त है । इसके अ तगत अ धक ब चे पैदा करने वाले द पि त
को दि डत करने का ावधान है, जब क नयोजन म द ड का ावधान नह ं है ।
6. समान आचार सं हता - सभी जा त धम के लोग के लए संतानो प त के स ब ध म
एक आचार सं हता बननी चा हए । कसी वशेष धम या जा त को छूट नह ं मलनी चा हए ।
7. पुर कार योजना - िजन नव द पि तय के दो या दो से कम ब चे ह उनको पुर कृ त
करना चा हए और िजनके दो या दो से अ धक ब चे ह उनके लए द ड यव था होनी चा हए ।
8. जनसं या नयं ण के साधन को सावज नक प से सुलभ कराने क यव था होनी
चा हए ।
9. शशु मृ युदर पर नयं ण - शशु मृ यु का यथा स भव नयं ण हो ता क लोग म कम
ब च के त व वास बढ सके । अत: उ च च क सीय यव थाएँ वक सत होनी चा हए ।
10. सामािजक सु र ा - सामािजक सु र ा का व तार होना चा हए ता क वृ ाव था काल म
संतान पर नभरता कम हो सके ।
11. रा य संक प - जन वृ को रोकने के लए रा य संक प क आव यकता है ता क
हर तर पर जाग कता पनप सके । पि चमी दे श म ऐसे संक प के प रणाम साथक हु ए ह ।
इस कार उपयु त कु छ मह वपूण ब दु ह िजनको आमजन और सरकार यास दोन
ह साथ साथ जनचेतना के चार- सार, रोग क रोकथाम आ द जैसे वषय पर एक होकर काय
कर । वरना भारत जैसे बो झल दे श म कठोर कदम उठाये बना इसका समाधान क ठन है ।

279
बोध न : 2
1. भारत म 1991-2001 के दशक म कतनी तशत जनसं या वृ दर थी?
2. कस रा य म सबसे कम जनसं या दशक य वृ हु ई और कतना तशत है?
3. कस रा य म सवा धक जनसं या दशक य वृ हु ई और यह कतना तशत
है ?
4. भारत म नवद पि त क ववाह आयु का अनु पात या है ?

10.3 भारत म जु नसं या का वतरण एवं घन व (Distribution and


Density of Population in India)
भारत म जनसं या वतरण असमान है । दे श क 102.87 करोड़ जनसं या दे श म
असमान प से वत रत है तथा इसम े ीय व भ नताऐ दे खने को मलती ह, य क जनसं या
वतरण एवं घन व म भौगो लक कारक मु य प से अहम ् भू मका अदा करते ह । भारत के एक
ओर उ तर भारत के सम त दे श , नद घा टय , तट य मैदान , ख नज पदाथ के भ डार वाले
े तथा औ यो गक े आ द म जनसं या का जमाव अ धक दे खने को मलता है, तो वह ं
दूसर ओर राज थान के पि चमी भाग वाले े , असम के पहाड़ी े तथा द ण पठार के
अ धकांश भाग '1 जनसं या का समूह करण कम दे खने को मलता है ।
भारत म मु य प से कृ ष भू म तथा घनी आबाद के म य मह वपूण स ब ध है ।
भारत म लगभग 40 तशत जनसं या सतलज, गंगा-यमु ना, मपु के मैदान म पाई जाती है
और यह मैदानी े भारत ह नह ं वरन ् व व का सबसे अ धक उपजाऊ और घनी जनसं या
वाला मैदान है । पूव तटवत भाग म महानद डे टा, तट य मैदान, गोदावर , कृ णा तथा कावेर
डे टा व पि चम म मालाबार, कोकण तट पर लगभग 20 तशत जनसं या केि त है । इस
तरह दे श क 60 तशत जनसं या व तृत उपजाऊ कृ ष धान मैदानी भाग म पाई जाती है ।
सन ् 2001 क जनगणना के अनुसार इन नद कृ त जलोढ़ मैदानी भाग उ तर दे श
(16.61 करोड़), बहार (8.29 करोड़), पि चम बंगाल (8.01 करोड़), झारख ड (2.69 करोड़),
पंजाब (2.43 करोड़), ह रयाणा (2.11 करोड़) आ द रा य मु य प से बसे हु ए ह िजनका
जनसं या वतरण अपे ाकृ त अ धक है । उ तर दे श सबसे अ धक मह वपूण मैदानी े म ह
जहां दे श क कुल जनसं या का लगभग 16 तशत भाग नवास करता है । इस मैदानी े म
जनसं या का आकषण का कारण न केवल कृ ष वरन ् कृ ष पर आधा रत औ यो गक इकाइयाँ एवं
इनसे जु ड़ा यातायात तथा यापार भी मह वपूण है ।
जनसं या के वतरण म ाय वीपीय पठार े दूसरा थान रखता है । इस भाग म
सामा यत: महारा (9.68 करोड़), म य दे श (6.03 करोड़), कनाटक (5.27 करोड़), आ ध दे श
(7.57 करोड़), तीसगढ़ (2.07 करोड़) आ द रा य शा मल कए जा सकते ह । इन रा य म
अ धकतर जनसं या का वतरण शहर े म पाया जाता है । मैदानी भाग क अपे ा यातायात

280
कम वक सत हु आ है । त मलनाडु के औ यो गक नगर, पि चमी महारा तथा कनाटक के
औ यो गक के म उ च जनसं या घन व दे खने को मलता है ।
तीसरे वग म वो े सि म लत कए गये ह, जहाँ जनसं या घन व वरल है । इसम
मु य प से भारत के सीमा ा तीय भाग ह । पा क तान सीमा से संल न क छ का दलदल य
भाग, थार का म थल व क मीर के पवतीय भाग है जहां वषम जलवायु के कारण जनसं या
यून है तथा बहु त ह वरल है । उ तर म हमालय के पवतीय दे श , पूव म अ णाचल दे श,
नागालै ड, म णपुर , पुरा, मेघालय तथा मजोरम आ द घने वन से आ छा दत पहाड़ी दे श
यातायात क सु वधाओं का अभाव, ाकृ तक तकू लता एवं धरातल य वषमता, कृ ष भू म क
कमी, औ यो गक वकास क लगभग शू यता के कारण यह जनसं या कम है ।

10.3.1 जनसं या वतरण को भा वत करने वाले कारक (Factors Affecting Population


Distribution)

भारत म जहाँ औ यो गक वकास अभी भी अपनी युवाव था म है , जनसं या का


वतरण पा रि थ तक दशाओं (Ecological Conditions) से अ धक भा वत है । औ यो गक
वकास के साथ जनसं या म पुन वतरण हो रहा है । औ यो गक दे श व नये औ यो गक के
म घने बसे भाग से जनसं या का थाना तरण हो रहा है । इससे घने बसे े मे जनसं या
क वृ दर कम है । य य प नरपे वृ दर अ धक होने के कारण घन व म वृ हु ई है ।
भारत म जनसं या के वतरण को भा वत करने वाले कारक को मोटे तौर पर न न े णय म
वभािजत कया जा सकता है :-

1. भौ तक कारक (Physical Factors)


(i) ि थ त (Location) - जनसं या वतरण पर दे श वशेष क ि थ त का मह वपूण
भाव पड़ता है । भारत क अ ांशीय ि थ त 8 4 ' उ तर से 3706 ' उ तर अ ांश के म य
0

ि थत है । भारत के म य से कक रे खा गुजरती है , जहाँ से शीतो ण क टबंध का े ार भ हो

281
जाता है । ये क टबंध मानव बसाव के लए उपयु त है तथा य यो द ण क ओर बढ़गे
ऊ णक टबंधीय े ार भ होता है जो अ त उ ण होने के कारण जनसं या कम पाई जाती है ।
समु तट य भाग म भी अनुकूल जलवायु खा या न हे तु मछल ाि त आ द दशाओं के कारण
भारत के पि चमी एवं पूव तट य े म जनसं या का घन व अ धक है ।
(ii) धरातल अथवा उ चावच - धरातल अथवा उ चावच के व भ न भाग - पवत, पठार,
मैदान, घाट आ द क वजह से जनसं या का वतरण असमान पाया जाता है । पवतीय एवं
पठार े उबड़-खाबड़ होते ह िजसके कारण कृ ष, यातायात नवास, औ यो गक वकास आ द के
लए अनुपयु त होते ह ।
अत: इन भाग क जनसं या का वतरण असमान तथा वरल पाया जाता है । यहां कृ ष
यो य भू म का अभाव है, यातायात के साधन का वकास नह ं हो पाता है । क तु समतल
मैदानी भाग म सवा धक जनसं या नवास करती है यहाँ जनसं या का संके ण अ धक है ।
मैदान म उपजाऊ जलोढ़ म ी पायी जाती है,
िजसके कारण कृ ष तथा समतल होने के कारण यातायात, उ योग एवं अ य याओं
का अ य धक वकास हुआ । उबड़-खाबड़ पवतीय एवं पठार भाग जन शू य एवं समतल मैदानी
भाग म सघन जनसं या नवास करती है ।
(iii) जलवायु (Climate) - जनसं या वतरण को जलवायु सबसे अ धक भा वत एवं
नयि त करती है । अ त उ ण, आ एवं अ य धक शीतल जलवायु मानवीय नवास पर वपर त
भाव डालती है । भारत के उ तर-पि चम भाग म ि थत थार के रे ग तानी भाग म अ त उ ण
एवं शु क जलवायु के कारण ह जनसं या वतरण न न पाया ाता है । भारत के ाय वीपीय
भाग के पूव एवं पि चम म वषा पया त होती है । अत: यह सघन जनसं या रहती है । तापमान
भी जनसं या के वतरण को भा वत करता है । अ त उ च एवं अ त न न तापमान वाले
थान पर बहु त कम जनसं या नवास करती है, जैसे भारत के हमालय पवतीय े के पास
ि थत भाग एवं द ण का पठार ।

(iv) जल क उपल धता (Availability of Water) - मनु य के जी वत रहने के लए जल


एक मह वपूण संसाधन है । अत: जहाँ जल पया त मा ा म उपल ध है वह जनसं या का
सवा धक वतरण पाया जाता है । जल अ धकतर हम वषा वारा ा त होता है । भारत म जहाँ
वषा क मा ा अ धक है वहाँ जनसं या अ य धक सघन पायी जाती है, जैसे भारत के द ण म
तट य मैदान, म यवत भाग म अ धक वषा होती है । अत: यहाँ जनसं या भी अ धक पायी
जाती है । ले कन राज थान के पि चमी भाग म ि थत रे ग तानी े म यून वषा के कारण
जनसं या अ य धक वरल पायी जाती है । वषा क मा ा म जैस-े जैसे पूव से पि चम क ओर
कम होती जाती है जनसं या का वतरण भी कम होता जाता है । जल क चु र मा ा क ाि त
े म ह संचाई, पेयजल, औ यो गक सं थान, जल व युत , प रवहन आ द आ थक याएँ
था पत होती ह । अत: जल क मा ा के घटने के अनुपात म जनसं या क मा ा भी कम होती
जाती है । वषा के अ त र त जल न दय वारा ा त होता है । वतमान म णई भारत क

282
अ धकांश जनसं या गंगा, यमु ना, गोदावर , कृ णा, कावेर आ द नद घा टय म ि थत है ।
य क यहाँ जल पया त मा ा म उपल ध हो जाता है ।
(v) मृदा (Soil) - मनु य के जी वकोपाजन हे तु खा या न का उ पादन सवा धक अ नवाय
कारक है । खा या न का उ पादन उपजाऊ म य म ह होता है । अत: भारत क जनसं या
का अ धकतम भाग न दय वारा न े पत जलोढ म य के े म बसा हु आ है । न दयाँ
तवष अपने साथ उपजाऊ जलोढ़ म ी लाती ह, िजसे मैदान म न े पत कर दे ती ह । भारत
का वशाल उ तर मैदान जो गंगा-यमु ना एवं इनक सहायक न दय वारा न मत है, अ य धक
उपजाऊ है िजसके कारण यहाँ सघन जनसं या नवास करती है । ले कन जहाँ अनुपजाऊ बंजर
एवं अनु पादक म याँ पायी जाती ह वह वरल जनसं या रहती है । भारत के रे ग तानी भाग,
पवतीय े म म ी क अनु पादकता के कारण जनसं या का वतरण अ य धक यून पाया
जाता है ।
2. आ थक कारक (Economic Factors)
(i) ख नज संसाधन (Mineral Resources) - अ य भौ तक कारक के जनसं या नवास
के वपर त होते हु ए भी य द संसाधन चु र मा ा म उपल द हो तो उन थान पर जनसं या
घन व भी अ धक पाया जाता है । ख नज ाि त थान पर औ यो गक एवं यातायात माग का
ती वकास होता है, िजनम थानीय लोग को रोजगार ा त होता रहता है । भारत म दामोदर
घाट कोयला उ पादक े , म थल य े म िज सम, गैस ाि त े आद दे श म अ य
कारक के जनसं या वतरण के तकूल होते हु ए भी ख नज ाि त के कारण सघन जनसं या
पायी जाती है ।
(ii) शि त के साधन (Power Resources) - व भ न औ यो गक याओं के वक सत
नह ं होने के बावजू द य द कसी थान पर पै ो लयम, गैस के भ डार तथा व युत आ द क
स भावना वाले थान पर भी जनसं या अ धक पायी जाती है ।
(iii) यातायात के साधन (Means of Transport) - जहाँ प रवहन माग का जाल फैला
होता ह, उन े म व भ न औ यो गक इकाइय क थापना हो जाती है । प रवहन साधन के
कारण वह े सभी नगर से जु ड़ जाता है । इसी कारण पवत एवं पठार क अपे ा मैदानी
भाग म सघन जनसं या पायी जाती है । भारत के गंगा-यमु ना मैदान म सघन जनसं या होने
का कारक प रवहन भी है । यहाँ सड़क एवं रे ल प रवहन का जाल सा बछा हु आ है । ले कन
हमालय पवत, रे ग तानी े एवं भारत के उ तर -पूव पहाड़ी रा य म वरल जनसं या होने
का एक कारण प रवहन माग क कमी है. ।
(iv) कृ ष-उ पादकता (Agricultural Productivity) - मनु य के जीवनयापन हे तु अ त
उ पादन अ त आव यक है । भारत म जनसं या का सवा धक घन व उन भाग म पाया जाता है
जहाँ कृ षगत फसल का अ धकतम उ पादन होता है । भारत म गंगा- मपु न दय के मैदानी
भाग, गोदावर , कृ णा, कावेर तथा अ य न दय के मैदान म उपजाऊ म ी के होने के कारण
कृ षगत फसल का उ पादन अ धक होता है । अत: इन भाग म जनसं या का वतरण अ धक

283
पाया जाता ह । हमालय पवत, रे ग तानी े एवं उ तर -पूव पहाड़ी रा य म कृ ष उ पादकता
क कमी के कारण जनसं या घन व भी वरल पाया जाता है ।
3. सामािजक कारक (Social Factors) -
जनसं या का वतरण, सामािजक कारक जैसे धा मक, सां कृ तक, भाषा, रहन-सहन आ द के
वारा भी भा वत होता है भारत म हमालय पवतीय े , द णी पठार े म आ दवा सय म
अलगाववाद वृ त नह ं होती ह । अत: इन े म कह -ं कह ं जनसं या समू ह म पायी जाती है
। कई लोग का अपनी ज मभू म के त लगाव थाना तरण को अनाव यक मानते ह । अपने
य खा य फसल के त लगाव जैसे भारत के द णी एवं द णी-पूव भाग म चावल के
उ पादन का कारण जलवायु के साथ इनक च भी है । इनम उ च जनन मता पायी जाती
है । धा मक व वास के कारण जनसं या बढ़ती
4. राजनै तक कारक (Political Factors) -
राजनै तक कारक जैसे अस तोष, असु र ा, राजनी तक उथल-पुथल आ द राजनै तक कारक
जनसं या के वतरण को अ य धक भा वत करते ह । शा त एवं सुर त थान पर जनसं या
अ धक पायी जाती है । भारत के ज मु-क मीर म पा क तानी आतंकवाद संगठन एवं उ तर -पूव
रा य असम, मेघालय, नागालै ड म बोड़ो उ वा दय के कारण असु र ा है । अत: इन भाग म
वरल जनसं या पायी जाती है । जब क भारत के अ य भाग म इन भाग क अपे ा सघन
जनसं या रहती है ।
5. जनां कक य कारक (Demographic Factor) -
जनसं या के वतरण को भा वत करने वाले जनां कक य कारक भी मह वपूण है - जनन दर,
मृ युदर और वास आ द । आ वासन महानगर म वशाल जनसं या के संके ण का मु य
कारक है । नगर कृ त और औ योगीकृ त िजल म जनसं या के उ च घन व का मु य कारक
जनसं या का बड़े पैमाने पर आ वासन है ।

10.6.2 जनसं या घनत (Population Density)

जनसं या के घन व से आशय लखी े म एक वग कलोमीटर म रहने वाले कुल यि तय क


सं या से है । जनसं या के घन व को अनेकानेक कारक भा वत करते ह, िजनमे भौगो लक,
आ थक, सामािजक, सा कृ तक आ द कारक मु य ह । दे श के व भ न भागॉ म जनसं या के
घन व म भ नता दे खने को मलती है । कुछ े ऐसे ह जहॉ जनसं या घन व बहु त अ धक है
तो कु छ े मे यह बहु त कम है । इस कार के जनघन व का कारण मु य प से भू म क
भरण-पोषण क शि त, जलवायु स ब धी दशाओं, ाकृ तक संसाधन , यातायात के माग क
उपल धता आ द कारक पर नभर करता है । िजन े म उपयु त कृ ष यो य भू म, जल क
पया त उपल धता, उपयु त तापमान, समतल धरातल के कारण यातायात माग क सु वधा आ द
ा त होती है, अ धकांश जनसं या उ ह ं े म नवास करती है । इसी कार कु छ े म,
जहाँ ख नज े तथा औ यो गक के वारा अनेकानेक सु वधाएं ा त होती ह, वहाँ पर भी
जनसं या का जमाव अ धक दे खने को मलता है । भारत म 1901 क जनगणना के अनुसार

284
जनसं या घन व मा 77 यि त त वग कलोमीटर था । गत दशक म उसम लगातार वृ
दज क गयी है, जैसे 1951 म 117,1961 म 142,1971 म 177,1981 म 216,1991 म 267
(असम व ज मू क मीर को छोड़कर) तथा 2001 म यह बढ़कर 324 यि त त वग कलोमीटर
हो गया है । य द रा य के घन व का अवलोकन कर तो सवा धक घन व 904 यि त त वग
कलोमीटर पि चमी बंगाल का था, जब क के शा सत दे श म द ल का घन व 9294 यि त
त वग कलोमीटर सवा धक था । भारत को जनसं या घन व के आधार पर तीन दे श म
वभािजत कया जा सकता है-

मान च सं या – 10.2 जनसं या घन व


1. सवा धक घन व वाले े - दे श के लगभग एक चौथाई िजले इस घन व ेणी के
अ तगत आते है । उनका व तार मु य प रवे पि चमी बंगाल, बहार, उ तर दे श तथा
ह रयाणा म है । इन े म जनसं या का घन व 500 से अ धक यि त त वग कलोमीटर
है । ये े दे श के कृ ष धान तथा ामीण बहु ल ह । औ यो गक वकास के कारण पूव तथा
पि चमी भाग म नगर य संके ण अ धक दे खने को मलता है । अ धक जन घन व का कारण
इन े म उवर मैदान, काँप म य , संचाई एवं पेयजल हे तु जल क उपल धता आ द ह ।
द णी भारत म त मलनाडु के उ च दे श एवं मालाबार तट पर उ च घन व दे खने को मलता है
। त मलनाडु म बागाती कृ ष, कावेर डे टा म गहन कृ ष तथा लघु गह उ योग के वक सत होने
एवं मलाबार तट पर चावल धान कृ ष होने के कारण जनसं या का जमाव अ धक ह ।
2. म यम घन व वाले े - दे श के लगभग 130 िजले ऐसे ह, जहां जन घन व 300 से
500 यि त त वग कलोमीटर के म य पाया जाता ह । इन े म मु य प से महारा
एवं गुजरात के अ धकांश भाग तेलंगाना े , आंध दे श के तटवत भाग तथा छोटा नागपुर के
पठार वाला भाग होता है । वषम धरातल एवं जल क पया त उपल धता नह ं होने के कारण
यहां कृ ष का अ धक वकास नह ं हो पाया है, क तु ख नज क पया त उपलअता के कारण

285
औ यो गक तथा आ थक वकास हु आ है । राज थान, पंजाब तथा ह रयाणा म म यम घन व के
कु छ े वृा ष तथा लघु उ योग के वकास के कारण वक सत हु ए ह ।
3. कम घन व वाले े - कम घन व वाले दे श के लगभग 150 ऐसे िजले ह, जहाँ जल
घन व 300 यि त त वग कलोमीटर से भी कम है । दे श के पि चमी म थल य भाग तथा
उतर -पूव हमालय े म पवतीय धरातल के कारण कम घन व दे खने को मलता है । इसी
कार उड़ीसा एवं म य दे श के पठार एवं आ दवासी े , आध दे श के म यवत एवं कनाटक के
पूव भाग म कृ ष भौ तक बाधाओं के कारण कम वक सत होने रवे वरल जनसं या दे खने को
मलती है । क छ के दलदल वाले भाग भी कम आबाद ह ।

10.4 जनसं या सम याएँ एवं समाधान (Population Problems


and Solution)
भारत म जनसं या स ब धी सम याएँ व वध प म कट हो रह ह । ऐसी
सम याओं क ओर वत ता पूव कम यान दया गया िजसके कारण इनम से कु छ सम याओं
क ऐ तहा सक पृ ठभू म ल बी है । व तु त: कसी दे श क जनसं या संसाधन होती है ले कन
वपर त प रि थ त म यह सम या का कारण भी बन जाती है । वत ता ाि त के बाद भारत
क बढ़ती जनसं या को नयं त करने का यास तब शु कया गया जब इसका भार अस य
होने लगा ।
जनसं या को सम या के प म तब दे खा जाता है जब उपल ध भौ तक संसाधन क
तु लना म जना ध य हो जाता है । संसाधन क तु लना म कम जनसं या होने पर उ च जीवन
तर, पया त रोजगार, श ा और वा य क यव था तथा औ च यपूण वकास को बनाये
रखना स भव होता है । फलत: सामािजक-आ थक ग त का सात य बना रहता है । ऐसी
संतु लत जनसं या को अभी ट जनसं या (Optimum Population) कहा जाता है । ले कन
भारत म संसाधन क तुलना म जनसं या अ धक हो गई है िजससे जनसं या अ तरे क (Over
Population) क ि थ त उ प न हो गई है । जनसं या अ तरे क के कारण यूनतम त
यि त आय गर बी, अ श ा, बीमार , बेरोजगार , नराशा और े ीय अलगाव जैसी क ठनाइय
के कारण भारत क ग त धीमी हो गई है । पछले 60 वष के यास के बावजू द जनसं या
स ब धी सम याएँ सु लझने के थान पर उलझती जा रह ह । भारत कहने के लये कृ ष उ पाद
म आ म- नभर हो गया है ले कन एक वशाल जनसं या कु पोषण से सत है । कु पोषण
बीमा रय का कारण बन गया है । घटती रोग तरोधक मता के कारण वा य पर खच
बढ़ता जा रहा है िजससे जीवन तर म सुधार के थान पर गरावट आती जा रह है । भारत क
एक- तहाई जनसं या गर बी क रे खा के नीचे है । गर बी भारत क सबसे बड़ी सम या है य क
गर ब, जानवर से ब तर जीवन जीने के लए बा य है । भारत म गर बी का इ तहास ल बा है ।
भारत क जनसं या स ब धी सम याओं को सु वधा के लए न न वग मे वभ त
कया जा सकता है-
(1) ती जनसं या वृ ;
(2) जनसं या का असमान वतरण;

286
(3) त यि त यूनतम आय;
(4) अ श ा, गर बी, बीमार एवं बेकार ।
(1) ती जनसं या वृ - पहले बताया जा चु का है क औसतन तवष लगभग 1 .8 करोड़
लोग भारत क जनसं या म जु ड़ते जा रहे ह । कृ ष धान दे श होने के कारण यह जनभार
कृ षगत भू म क वहन मता से अ धक है । 2001 म भारत क जनसं या एक अरब से
अ धक हो गई है । ऐसी दषा म उपल ध संसाधन क तुलना म जना ध य क भयावह ि थ त
उ प न हो सकती है । भारत अपनी अ धकतम भू म का उपयोग करने के लए वन वनाश कर
चु का है जो एक अलग सम या है । प ट है क संसाधन वकास के लए भू म के गहन उपयोग
के साथ अ य संसाधन के वकास के लये यास करना होगा । ले कन अनेकानेक कारण से
संसाधन का वकास म द ग त से हो रहा है जब क जनसं या वृ सतत बनी हु ई है । अत: इस
ती ग त से बढ़ती जनसं या का यथास भव नयं ण करना सम या के समाधान के लये
आव यक है ।
(2) जनसं या का असमान वतरण - अनेकानेक आ थक, सामािजक और ऐ तहा सक
कारण से भारत क जनसं या के े ीय वतरण म अ य धक वषमता है िजसके कारण
संसाधन के उपयोग म अ त यता पाई जाती है । अ धकांश जनसं या कृ ष आधा रत होने के
कारण उपयुका मृदा और जलवायु के े म आव यकता से अ धक के भू त ह । फलत :
जनसं या अ तरे क क ि थ त उ प न हो गई है । उतर भारत का मैदानी े , तट य मैदान और
पठार का कृ षगत े ऐसे ह जना ध य े ह । य द संचाई, आवागमन, कृ ष उपकरण क
सु वधा ा त हो जाय तो इस वषमता को कम कया जा सकता है ।
(3) त यि त यून आय - सारे यास के बावजू द भारत के नाग रक क आय इतनी
कम है क उससे जीवन तर म सु धार लाना क ठन है । कायशील जनसं या मा 37.2 तशत
है और उसम भी कम पा र मक पाने वाल क सं या सवा धक है । यह कारण है क
सामा यत: आधी कायशील जनसं या अपने प रवार के लये मा जीने का साधन जु टा ले यह
बहु त बड़ी उपलि ध है । कम आय का मु य कारण है वकास काय म श थलता तथा ती गत
से बढती जनसं या ।
(4) अ श ा, गर बी, बीमार और बेकार - ये सम याएँ एक दूसरे से जु ड़ी हु ई ह । अ श ा
धनोपाजन म बाधक है और कम आय से गर बी पनपती है । गर बी कु पोषण को य दे ती है
िजससे अनेक बीमा रयाँ पैदा होकर जीवन को न ट कर दे ती है । भारत म बढती बेरोजगार ,
वशेषकर पढे - लखे युवक म कु ठा को ज म दे रह है । इसका प रणाम न केवल उ पादकता का
हास है अ पतु इससे सामािजक तनाव को बढ़ावा मल रहा है ।
इस कार उपयु त आधार पर हम यह कह सकते है क जनसं या क सम याएँ ती
ग त से उभरती जा रह ह िजस कार जनसं या म ती ग त से बढ़ोतर हो रह है । इन
सम याओं के समाधान हे तु कु छ सुझाव व उपाय हो सकते ह िजनको जनसं या क ती वृ को
नय त करने के उपाय नामक शीषक के अ तगत दे ख ।

287
बोध न : 3
1. 2001 क जनगणना के अनु सार भारत म त वग कलोमीटर घन व कतना
है ?
2. वष 2001 के अनु सार भारत क जनसं या कतनी है ?
3. 2001 क जनगणना के अनु सार कस रा य म दे श क कु ल जनसं या का
सवा धक व कतना तशत भाग पाया जाता है ?
4. दे श क कु ल जनसं या का सबसे कम तशत ह सा कहाँ रहता है ?
5. राज थान म दे श क कु ल जनसं या का कतना तशत भाग नवास करता है ?

10.5 नगर करण (Urbanization)


वतमान समय क मह वपूण घटनाओं म से एक घटना नगर करण क भी है । नगर म
जनसं या का ती ग त से बढ़ना तथा नगर क सं या म अपार वृ वतमान युग का मह वपूण
त य है । नगूर करण , औ योगीकरण और त ज नत आ थक वकास का एक आव यक घटक है,
अत: नगर करण को आधु नक रण के एक सू चकांक के प म भी माना जाता है । सामा यत:
नगर करण कसी दे श क अथ यव था के व प और वृ तय का एक मह वपूण सूचकांक होता
है । पुराताि वक एवं इ तहास व के अनुसार सबसे पहले नगर पृ वी पर 5000 से 6000 वष
पूव दे खने म आए । अत: नगर नये नह ं ह, ले कन मानव इ तहास म नगर करण या क
ग त बहु त ह म द रह है ।
नगर करण या है ? साधारणत: नगर क वृ को ह नगर करण समझने क गलती
कर बैठते ह । क तु नगर क वृ और नगर करण दोन भ न - भ न ह और दोन ह
घन ट प से स बि धत भी ह । नगर य वृ या है ? यहाँ हम नगर करण या है? इसको
समझने का यास करगे । कसी दे श क कुल जनसं या म नगर य अ धवास म संकेि त
जनसं या के अनुपात को या इस अनुपात म वृ क या को नगर करण कहते ह । इसके
अ तगत ामीण से नगर य अव था म प रव तत होने क या नगर े म नर तर होते
रहने वाला फैलाव तथा नगर य जनसं या के आकार म व भ न कारण से होने वाल वृ क
या दोन ह सि म लत है । सं ेप म नगर यता के ल ण के वकास एवं सार क य
नगर करण कहलाता है ।
नगर करण क या को वभ न व वान अपने - अपने ि टकोण से दे खते एवं
समझते है । समाजषा ी के ि टकोण से नगर करण 'जनसं या समू ह म नि चत
आधु नक करण क या है ।’ अथषा ीय ि टकोण से 'यह एक ऐसी या है िजसके वारा
ाथ मक उ पादन याओं का सगन वतीयक व तृतीयक याएँ ले लेती ह, जब क
भू गोलवे ताओं के ि टकोण म 'नगर करण बड़े अ धवास म जनसं या के संके ण क एक
या है, जो क संके ण के क सं या म वृ होने या वतमान संके ण के के आकार
म वृ होने से होती है । मेक जी (Mc. Gee; T.G.) का कथन जो अपनी पु तक म

288
(Urbanization Process in the World- 1971) लखा है क ' 'नगर करण एक ऐसा
गुबारा है िजसम येक समाज व ानी वयं का अथ फूँ कता है । '' स य तीत होता है ।

10.5.1 अथ एवं प रभाषाएँ (Meaning and Definitions)

ई.ई. बगल के अनुसार '' ाम के नगर य े म प रव तत होने क या को नगर करण कहते


ह ।'
कं सले डे वस के मतानुसार ''कु ल जनसं या म नगर य बि तय म रहने वाल जनसं या के
अनुपात या इस अनुपात म वृ को नगर करण कहते ह । '
डे वस - ''नगर करण सामािजक जीवन क स पूण ा प म ां तकार प रवतन क ओर संकेत
करता है । यह वय एक आधारभू त अथ यव था और तकनीक वकास का प रणाम है ।' '
जी.ट . वाथा- ''कु ल जनसं या म नगर य थान म रहने वाल जनसं या के अनुपात को
नगर करण का तर कहा जाता है ।'' यह प रभाषा नगर क सह सं या को नह ं बताती है अत:
वह आगे बताते ह क यह एक कया है । ''नगर करण या का ता पय कु ल जनलं या मे
उस वृ से है , जो क नगर य है ।'' यह वृ एक ह दर से नह ं होती । '' यहाँ ' 'नगर करण क
दर से हमारा ता पय है क व भ न समय मे कु ल जनसं या मे नगर य बि तयो म रहने वाल
जनसं या के अनुपात मे कतनी वृ हु ई है ।''
फथ टे लर के अनुसार 'गांव से नगर को जनसं या का थाना तरण ह नगर करण कहलाता
है ।''
भारतीय व वान बी.एन. घोष ने बताया क ' 'नगर करण वह या है, िजसम गाँव क ब म
और क बे नगर म प रव तत होते जाते ह । ''
हाँसर (Hauser, P.M., and Schnore, L.F., Study of Urbanization- 1965)
“नगर करण क या के अ तगत कृ ष समु दाय से कृ ये तर व औ यो गक समु दाय क ओर
लोग क ग त या वाह सि म लत है ।'' उपयु त प रभाषाओं के व लेषण से व दत होता है क
नगर करण ि थर नह ं है, बि क ग तशील है । इसक ग त पर अथ यव था का भाव पड़ता है ।
यह अथ यव था िजतनी ती ता से कृ ष अथ यव था से औ यो गक अथ यव था क ओर बढ़ती
है, उतनी तेजी से नगर करण भी बढ़ता है । नगर क जनसं या म वृ के साथ-साथ उनक
सं या म भी नर तर वृ होती रहती है । कु ल जनसं या म नगर य जनसं या का अनुपात भी
बढ़ता रहता है । इस लए यह कहा जा सकता है क नगर करण चतु व तार य एक या है,
िजसको नगर करण का मापक कहा जा सकता है जो चार ि टकोण पर आधा रत है ।
1. भौ तक - ति टकोण रो न मत े म ै तज एवं ऊ वाधर व तार को नगर करण का
सू चक माना जाता है ।
2. सामािजक-सां कृ तक - ' ि टकोण से ा य जीवन प त भ न- भ न उ च तर प त ह
नगर करण का ल ण होती है ।
3. आ थक - ि टकोण से ाथ मक याओं वशेषत: कृ ष को ामीण यवसाय तथा कृ ये तर
यवसाय को नगर य यवसाय क सं ा द जाती है ।
289
4. जनां कक - ि टकोण से कुल जनसं या से नगर य जनसं या के अनुपात (नगर य जनसं या
/कु ल जनसं या) म वृ ह नगर करण क सूचक होती है ।
उपयु त ि टकोण म आंकड़ क सु गम उपल धता के कारण नगर करण का
जनां कक य अ ययन हा अ धक च लत है िजसम मु यत: चार सूचकांक का योग कया जाता
है ।
(i) नगर क सं या म वृ
(ii) नगर य जनसं या म वृ
(iii) नगर य जनसं या और कुल जनसं या के अनुपात ( तशत) म सकारा मक वृ
और
(iv) व भ न नगर य वग म जनसं या (आनुपा तक) वृ या प रवतन ।

10.5.2 नगर य जनसं या म वृ एवं नगर करण (Growth in Urban Population and
Urbanisation)

सामा यत: नगर करण का भाव नगर य वृ पर पड़ता है , जब क यह आव यक नह ं है क


नगर य वृ का भाव नगर करण पर पड़े । नगर करण या म जनसं या का उ च घन व पर
संके ण, ामीण े से नगर क ओर थाना तरण, कृ षहर जनसं या का कृ य तेर काय क
ओर यावसा यक थाना तरण तथा कृ ष से कृ येतर काय हे तु भू म उपयोग म प रवतन भी
सि म लत है ।
नगर य वृ
नगर य वृ के अ तगत कसी दे श क कुल जनसं या क बात क जाती है तो उसम
ामीण एवं नगर य दोन कार क जनंस या सि म लत होती ह । नगर करण अनुपात इन दोन
का ह काय प रणाम होता है । नगर करण म वृ न होने पर भी नगर क वृ हो सकती है ,
यद ामीण जनसं या भी समान या अ धक दर से वृ करे । ऐ तहा सक प से नगर करण
एवं नगर करण वृ साथ - साथ होते रहते ह । अत: इस कारण नगर य वृ के स ब ध म
ाय: म उ प न हो जाता है । अ धक वक सत दे शो के उदाहरण से इसको अ धक अ छ तरह
समझा जा सकता है, जहाँ नगर य जनसं या मे अब भी वृ हो रह है क तु कुल जनसं या से
उसका अनुपात लगभग ि थर है । यहाँ तक क यह वृ तब भी हो सकती है जब क कसी दे श
के सभी यि त ह नगर म नवास करने लग जाएँ एवं मृ युदर क अपे ा ज मदर अ धक हो ।
इस कार कु ल जनसं या म नगर य जनसं या के अनुपात म वृ क तीन स भावनाएँ
हो सकती ह:-
1. ाकृ तक ज नत - ामीण े क अपे ा नगर य े म मृ युदर क तुलना म
ज मदर अ धक ऊँची रह हो ।
2. थाना तरण ज नत - ामीण े से नगर य े क ओर लोग का अ धक सं या म
आ वास हो ।

290
3. पुनवग त - व भ न जनगणनाओं म नगर य मापद ड म बदलाव के कारण कसी ब ती
को नगर य बि तय के वग म सि म लत कर लया हो ।

10.5.3 नगर करण को भा वत करने वाले कारक (Factors Affecting Urbanisation)

औ यो गक ां त से पूव व व म नगर क सं या तथा नगर य जनसं या बहु त यून


थी । सन ् 1800 ई. तक व व क लगभग 3% जनसं या ह नगर य थी । ारि भक नगर
मु य प से रा य क राजधा नय गवनर अथवा सै नक षासक के नवास, फौजी छाव नय
अथवा मुख धा मक थल ह थे । ाचीन नगर का मु ख आधार उपजाऊ कृ ष े थे ।
म ययुग म इनका आधार यापार तथा कु ट र उ योग हो गया बाद म राजनै तक आधार वक सत
हु आ, धीरे -धीरे राजनै तक आधार के थान पर आ थक आधार नगर के वकास म मह वपूण
होता गया ।
आधु नक नगर करण औ यो गक ां त के समय से ार भ हु आ । औ यो गक ांत का
सू पात 18 वीं सद म इं लै ड से हु आ तथा वह से यूरोप महा वीप के दूसरे दे श म ती गत
से फैला । औ यो गक के म रोजगार के व भ न अवसर होने के कारण ामीण जनसं या का
इन के क ओर भार आ वास हु आ िजससे इनक जनंस या म ती वृ हु ई । जहाँ एक ओर
ाम म यापक प से उपल ध द र ता, ऋण तता अ प नयुि त तथा रोजगार के ीण
अवसर ने अ धक से अ धक मक को ाम से बाहर क ओर वास के लए बा य कया तो
वह ं दूसर ओर नगर के वतीय तथा तृतीयक यवसाय ने मक को आक षत कया है ।
नगर म श ा तथा वा य स ब धी सु वधाएँ, सां कृ तक और मनोरं जन के साधन, अ छ
आवास यव था, काय स ब धी उ तरो तर दशाएँ, नाग रक सेवा तथा समाज क याण के काय
ने भी ामीण े से नगर य े के लए आ वास के लए मानव समु दाय को आक षत कया
है ।
व व के सभी दे श म समान प से नगर करण नह ं हु आ है, य क नगर के धान
काय, व तु ओं के उ पादन उपभोग, व नमय, शासन व अ य सेवाएँ ह । इनके वकास क
अव था पर ह नगर करण क मा ा नभर है । अत: व व म े वशेष पर ह नगर करण का
वकास हु आ । असमान नगर करण के लए मह वपूण कारक न न है:-
1. आ थक कारक - नगर करण को भा वत करने वाले कारक म मह वपूण व सवा धक
शि तषाल कारक आ थक कारक है । आ थक कारक म अथ यव था का कार, कृ ष तथा
उ योग म यं ीकरण क मा ा, अथ यव था म व वधता क मा ा, कृ ष फाम / खेत का
बदलता आकार, आ थक वकास क अव था, प रवहन तथा संचार के साधन के वकास क
ग त आ द मह वपूण ह, जो नगर करण के प रमाण तथा व प को नधा रत करते ह ।
नगर करण उ ह ं दे श म अ धक पाया जाता है जहाँ -
 उ योग धान अथ यव था है ।
 कृ ष का व प यापा रक है ।
 कृ ष अ त यं ीकृ त है ।
 फाम का आकार बड़ा है ।

291
 अथ यव था म यवसाय क व वधता पाई जाती है ।
 उपयु त कारक को ो साहन करने हेतु राजनै तक व सामािजक यि तय क भागीदार
है ।
2. सामािजक कारक - सामािजक कारक म सामािजक, आ थक चेतना क मा ा मह वपूण
है । जीवन तर सु धारने क इ छा तथा उनके लए क ठन प र म करने क ल न भी नगर करण
को बढ़ावा दे ती है । नगर य जनसं या क सामािजक मू य णा लयाँ ामीण लोग से भ न
होती ह । नगर करण क वृ के साथ ह सामािजक मू य भी बदलने लगते ह । संयु त प रवार
टू टने लगते ह, ि टकोण भौ तकवाद होने लगते ह । राजनै तक व शासक य नणय भी
नगर करण म वृ करते ह तथा व वधता लाते ह ।
3. जनां कक कारक - जनां कक कारक म नगर य जनसं या क ाकृ तक वृ दर तथा
ामीण नगर य वास गह चपूण ह । ाकृ तक वृ दर से नगर य जनसं या म आ त रक ोत
से वृ होती है , क तु आ वास से बा य ोत से । ामीण े म जब कृ ष जनंस या का
भार बढ़ने लगता है तो अ त र त मक रोजगार के लए नगर क ओर वास कर जाते ह ।
यह नगर करण का सबसे बड़ा कारण है । कृ ष य - य यं ीकृ त होती जाती है तथा फाम का
आकार बढ़ने लगता है तब ामीण े से अ धक से अ धक लोग नगर य े क ओर वास
पर जाते ह, और वहां क बढ़ो तर करते ह ।

10.5.4 भारत म नगर करण (Urbanisation in India)

भारत म नगर करण का इ तहास बहु त पुराना है । भारतीय ाचीन स यताओं म नगर
वकास के अवशेष दे खन को मलते ह । चाहे वो ाचीन स दु स यता के नगर ह या त शला,
अ ह छ , ह पी आ द ाचीन नगर । क तु उस समय नगर करण क वृ दर (01% से भी
कम) भारत के वशाल भू-भाग को दे खते हु ए बहु त यून थी । भारत म ार भ से ह कृ ष का
नवाहन व प रहा है । यहाँ उ योग का अ य धक थानीयकरण व प रवहन का वकास कम
हु आ तथा ढवा दताएँ, पैत ृक जमीन से लगाव आ द कारण से ामीण े से नगर क ओर
थाना तरण भी धीमा रहा, साथ ह नगर य जनसं या क ाकृ तक वृ दर भी कम रह ।
अत: स पूण भारत मु ख प से ाम का दे श रहा है, ो. लाश के अनुसार ' 'भारत ाम का
एक अ त उ कृ ट दे श है ।
वतमान समय म भारत क जनसं या म तेजी से वृ होने के साथ-साथ नगर य
जनसं या म भी तेजी से बढ़ो तर हो रह है । 1901 म कु ल नगर य जनसं या 25.7 म लयन
थी जो 2001 म बढ़कर 285.35 म लयन तक पहु ँ च गई । वगत 100 वष म नगर य
जनसं या म यारह गुना से भी अ धक बढ़ो तर दे खने को मलती है । 1901 म नगर य
जनसं या का कुल जनसं या म 10.91 तशत था, जो बढ़कर 2001 म 27.78 तशत हो
गया है । वतमान समय (2001) क जनगणना के अनुसार दे श क जनसं या का 72.22
तशत ाम म तथा 27.78 तशत नगर म रहती है ।
नगर य जनसं या म वृ (Growth of Urban Population)
भारतीय जनगणना के अनुसार नगर क प रभाषा न नानुसार है -
292
 जनसं या 5000 या इससे अ धक है ।
 जनसं या का घन व 1000 यि त त वगमील अथवा 400 यि त त वग
कलोमीटर से अ धक है ।
 कम से कम 75% से अ धक याशील पु ष मक कृ य तेयर काय मे संल न है

 थानीय वशासन के लए नगरपा लका या त सम ् संगठन काय कर रहा है ।
 इस आधार पर पछले 100 वष क नगर य जनसं या वृ न नानुसार रह है-
ता लका – 10.4
भारत म नगर य जनसं या क वृ दर (1901-2001)
जनगणना नगर क नगर य सं या दशाि दक वृ कु ल जनसं या का
वष सं या (करोड़ म) तशत तशत
1901 1917 2.99 - 10.8
1911 1909 2.59 –0.4 10.3
1921 2049 2.81 +8.3 11.2
1931 2219 3.35 +19.1 12.0
1941 2424 4.42 +32.0 13.9
1951 3059 6.24 +41.4 17.3
1961 2690 7.89 +26.4 18.0
971 3119 10.91 +38.2 19.9
1981 3263 15.95 +46.1 23.3
1991 3897 21.76 +36.4 25.7
2001 5161 28.61 +31.5 27.8
ोत : 2001 Primary Census Abstract- A.5

10.5.5 नगर करण क वृि तयां (Trends of Urbanisation)

वगत सौ वषा म नगर य जनसं या म वृ तीन चरण म हु ई है सन ् 1901 से 1931


क तीन दशक म नगर य जनसं या वृ क दर बहु त कम रह है । 1931 के बाद यह तेजी से
बढ़ती दखाई दे ती है, क तु 1961 के वष म नगर य जनसं या म वृ का तशत घटा दखाई
दे रहा है । इसका कारण नगर य े क नई या या व प रभाषा होना है । जहाँ तक कु ल
जनसं या म नगर य जनसं या के अनुपात का न है ; तो यह मालूम पड़ता है , क वगत सौ
वष म नगर य जनसं या का तशत कुल जनसं या म लगभग 2 ½ गुने से अ धक हो गया है
। जब क नगर य जनसं या इस दौरान यारह गुना से भी अ धक बढ़ है । इस कार दे श म
बीसवीं शता द म हु ए नगर करण को वशेषताओं एवं वृि तय के आधार पर न न काल-ख ड
म बाँट सकते ह:-

293
1. नगर करण वृ ास एवं म द काल (1901-1931) - यह काल 1901 से 1931 के
दौरान रहा जब दे श म अकाल एवं भयंकर बीमा रयाँ जैसे लेग, इन लु ए जा आ द महामार एवं
ाकृ तक आपदाओं के कोप से जनसं या म भार कमी आई । य प 1918 म ामीण
जनसं या का कुछ भाग अकाल के कारण नगर क ओर वा सत हु आ, क तु उसका भाव
बीमा रयाँ फैलने के कारण भावी स न हो सका । 1921 के बाद य य प ाकृ तक आपदाओं
के भाव से दे श मु ता रहा ले कन नगर य जनसं या का तशत अ धक नह ं बढ़ सका । इस
कार बीसवीं शता द के थम तीन दशक म नगर य जनसं या का तशत 10.8 से बढ़कर
केवल 11.9 तशत हो पाया ।
2. नगर करण वृ का म यम काल (1931 -61) - 1931 के 1961 के तीस वष के
दौरान नगर य जनसं या म 45 म लयन (44.2 करोड़) क बढ़ो तर हु ई । 1931 म नगर य
जनसं या का तशत 11.9 था जो 1961 म बढ़कर 18 तशत हो गया । इस कार इन तीन
दशक म केवल 1 1/2 गुना वृ हु ई जब क इस दौरान नगर य जनसं या म लगभग 2 1/2
गुना वृ हु ई । इस काल म म यम वृ का कारण ारि मक वषा म राजनी तक अि थरता
( वतीय व व यु , दे श वभाजन आ द) का रहा । बाद म वतं भारत के शु आती दौर म
आ थक वकास ारि भक दौर म होने के कारण धीमा रहा ।
3. नगर करण वृ का ती काल (1981 - 2001) - 1961 के बाद नगर य जनसं या
बहु त ती ग त से बढ है । इन चाल स वष म यह वृ वगत साठ वष से भी अ धक है ।
नगर य जनसं या का कु ल जनसं या म तशत 18 से बढकर 27.78 तक पहु ंच गया । 1961
म जनसं या 7.89 करोड़ से बढ़कर 2001 म 28.61 करोड़ हो गई । इस अ तशय वृ के
मु ख कारण न न ह -
 ामीण े के लोग का नगर य े क ओर बढ़ता वास;
 मृ युदर म कमी , ाकृ तक वृ दर म बढ़ो तर ;
 दे श म भार सं या म उ योग एवं यापा रक त ठान क थापना;
 प रवहन एवं संचार साधन का वकास;
 अनेक ामीण बि तय को नगर य दजा ा त होना;
 नये-नये नगर का नमाण होना;
 वतमान नगर वारा अपने आकार म अ य धक वृ करना ।

10.5.6 नगर करण - चु नौ तयाँ (Urbanisation- Challenges)

नगर करण वतमान समय म आधु नक सु वधाओं एवं रोजगार क ि ट से सु ख-


सु वधापूण माने जाते ह । क तु अ त नगर करण क वृि त के कारण नगर धीरे -धीरे एक
सम या े के प म प रव तत होते जा रहे ह । अत: हम नगर करण क न न चु नौ तय का
सामना करना पड़ रहा है ।
1. अव थापन स ब धी सु वधाएँ :- बढ़ती जनसं या के कारण बड़े शहर का वकास
अ नय मत एवं अ नयोिजत ढं ग से हो रहा है । मूलभू त नाग रक सु वधाएं जनसं या वृ से मेल

294
नह ं खाती । प रणाम व प मांग और आपू त का अ तर नर तर बढ़ता जा रहा है , अव थापन
सु वधाओं के अ तगत हम न न चु नौ तय दे खने को मल रह ह ।
(i) थान स ब धी - दन- त दन नगर य जनसं या म होने वाल ती वृ के कारण
व भ न मू लभू त सु वधाओं हे तु शहर े म थान कम पड़ते जा रहे ह - जैसे औ यो गक
सं थान क थापना, कू ल-कॉलेज क थापना, आवासीय े , मनोरं जन के े - सनेमा,
पाक आ द के लए थान वशेष कम होते जा रहे ह । नगर के व तार से कृ ष भू म, जंगल
भू म आ द तेजी से कम होती जा रह है ।
(ii) आवासीय स ब धी - ती नगर करण के कारण आवासीय सु वधा यवि थत प म नह ं
वक सत हो पाती है । य क ती जनसं या वृ तथा मक के आगमन के कारण आवासीय
थल क कमी होती जा रह है । नगर म जहां खुले -हवादार आवास होने चा हए वहाँ सघन
आवास बनने के साथ-साथ ग द बि तय का ती ता से वकास हो रहा है । बड़े महानगर म
आवास क सम या बड़ी ग भीर है । कई लोग उ चत कार से जीवनयापन करने भर को कमा
लेते है ले कन आवास क यव था करने म वे असमथ होते ह । िजसके कारण एक ह कमरे म
कई लोग को रहना पड़ता है, जो लोग एकदम न न आय वग के होते ह, वे झु गी-झोप ड़य म
गुजारा करते ह ।
(iii) जलापू त स ब धी - नगर य े म उ च जनसं या घन व के कारण पेयजल क मांग
के अनुसार पू त नह ं हो पाती । आंकड़ के अनुसार शहर म रहने वाले लगभग 10 तशत घर
को शु पेयजल नह ं मल पा रहा है तथा घर म कने शन से लगभग 35 तशत घर वं चत
रहते ह । ले कन शु पेयजल क वा त वक उपल धता अ य त सी मत है । जल क आपू त भी
धीरे -धीरे घटती जा रह है । आज कुछ शहर म तो दन म दो समय क आपू त के बजाय
स ताह म केवल दो या तीन दन वो भी कुछ घंट के लए सु नि चत है । पेयजल के अ त र त
व भ न उ योग , व भ न व तु ओं के नमाण आ द म जल क आव यकता रहती है, क तु
ाकृ तक जल ोत म जल क कमी तथा भूजल का गरता तर आ द के कारण जल क
सु यवि थत यव था नह ं हो पाती ।
(iv) प रवहन स ब धी - अ तषय ती नगर करण वृ के कारण नगर य यातायात माग क
चौड़ाई कम तथा वाहन क सं या अ य धक होती जा रह है । प रणाम व प कभी-कभी
यातायात माग घंट तक अव रहते ह साथ ह दुघटनाओं म भी बढो तर हो रह है ।
(v) श ा एवं मनोरंजन स ब धी - नगर य े म ती जनसं या वृ तथा उ च
जनसं या घन व पाये जाने के कारण शै क सं थाओं, जैसे - व यालय, महा व यालय,
व व व यालय, श ण सं थान आ द क अ धक आव यकता है । मनोरं जन के साधन जैसे -
सनेमा, ना यकला के , लोक रं गमंच कला के व मेले आ द के लए जगह वशेष क
आव यकता होती है । इनके वकास हे तु जगह व धन क कमी तथा अ य सम याओं के कारण
ये जनसं या के अनुपात म वक सत नह ं हो पाते ह ।
(vi) वा य एवं च क सा स ब धी - य य प नगर म ामीण े क अपे ा च क सा
सु वधाएँ अ धक पायी जाती ह । क तु अ य धक जनसं या होने के कारण अ धकतर वकासशील
दे श म वतमान समय म भी जनसं या के अनुपात म नगर य े म च क सा सु वधाएँ अ धक

295
वक सत नह ं हो. पायी ह । य द कुछ उ च को ट के औषधालय का नमाण भी होता है तो
उनका संके ण नगर म ह होता है जहां कई ाणघातक बीमा रय का इलाज तो कया जाता है,
क तु ऐसी बीमा रय के उपचार के फल व प उ प न होने वाले कचरे के न तारण क कोई
उ चत यव था नह ं है । स अि थ रोग वशेष और पयावरण संर क डॉ. आर.सी. गु ता के
अनुसार औषधालयीय कचरे को जब नगर के सामा य कचर के साथ मलाकर इधर-उधर फक
दया जाता है तो लोग म व भ न बीमा रय के फैलने का भय बना रहता है अत: सरकार को
इसके वै ा नक तर के से न तारण क यव था क जानी चा हए ।
(vii) सफाई एवं कचरा न तारण स ब धी - नगर म सघन बि तय व अ धक जनसं या
दबाव के कारण सफाई क सम या भयावह प लेती जा रह है । अ धकांश नगर नगम इतने
अस म ह क रोजाना पैदा होने वाले कू ड़े का 40% भी वे एक त करके न तारण नह ं कर
पाते ह । न तारण नह ं कए जाने के कारण कू ड़े के ढे र सड़ते रहते ह िजनम व भ न रोग के
जीवाणु पैदा होते रहते ह । शहर म चौराह पर कू ड़ का ढे र आसानी से दे खा जा सकता है ।
कू ड़ का कुछ भाग (िजसम पॉ लथीन भी होता है) ना लय म जाकर उ ह अव कर दे ता है
िजससे पानी एक जगह इक ा होकर ग दगी फैलाने के साथ म छर का जनन थान बन जाता
है । म छर से मले रया, फाइले रया तथा को आ द ाणघातक बीमा रयाँ फैलती ह ।
(viii) व युत स ब धी - नगर करण के वकास एवं समृ का आधार व युतीकरण को ह
माना जाता है अत: वतमान समय म व युत आपू त ह नगर करण वृ के वकास का
आधारभू त कारक है । ले कन नगर य जनसं या म ती वृ के दबाव के कारण वतमान समय
म व भ न घरे लू काय तथा औ यो गक एवं यापा रक सं थान म व युत स ब धी चु नौ तयाँ
आती रहती ह ।
2. जनसं या घन व स ब धी - आधु नक औ योगीकरण के फल व प अ धक से अ धक
लोग नगर क ओर पलायन कर वहाँ का जनसं या घन व बढ़ा दे ते ह । लगभग 19%' भारतीय
प रवार 10 मीटर से भी कम जगह म रहते ह । मु बई जैसे वृहत ् नगर म 44% प रवार एक
कमरे म ह रहते ह । जनघन व अ धक होने के का पा 52% नगर य जनसं या वा यकार
सफाई के अभाव क ि थ त (Unhygienic condition) म रहती है । 24% जनसं या के लये
शौचालय क सु वधा नह ं है । बड़े महानगर म 80% जनसं या सीवर लाइन से आ छा दत है
जब क छोटे शहर म आधे से भी कम है । दे श के शहर के लगभग एक चौथाई प रवार क चे
मकान म रहने को ववश ह । 34% आबाद के लए बरसाती पानी के वकास क उ चत
यव था नह ं है ।
3. सामािजक चु नौ तयां :- नगर करण म अ तशय जनसं या घन व के प रणाम व प कई
घटनाएँ चोर , आपसी रं िजश, नशील दवाएँ, छोटे प रवार आ द से स बि धत सामािजक
चु नौ तय का सामना भी करना पडेता है िजनम कुछ मुख इस कार ह-
(i) अपसं कृ त के सार से स बि धत - आधु नक महानगर अपसं कृ त या कुसं कृ त के
सार का के बनते जा रहे ह । संयु त प रवार क अपे ा के क प रवार क सं कृ त भावी
हो रह है । के क प रवार से अ भ ाय है िजसम प त-प नी और केवल उनके ब चे रहते ह ।

296
ऐसे प रवार म घर के वृ माता- पता तथा अ य सद य के लए कोई थान नह ं रहता है य द
घर म वृ माँ -बाप को रहने भी दया जाता है तो वे सवथा उपे त रहते ह ।
(ii) अपराध वृ क बबो तर - नगर म आपरा धक ग त व धयाँ बड़ी तेजी से बढ़ रह ह ।
मशीनीकरण व क यूटर करण के कारण बेरोजगार क सम या बढ़ती जा रह है । बेरोजगार
युवक अपराधी वृ त के बनते जा रहे ह । इस भौ तकवाद युग म असी मत आव यकताओं के
अनु प पया-पैसा न मलने पर अ छे घर के नवयुवक अपराध म ल त पाये जाते ह, यहां
तक क नगर म एकाक नवास करने वाले वृ द पि तय का जीवन भी सु र त नह ं है ।
द ल -मु ंबई आ द महानगर म कई लेट म लू ट के लए वृ क ह या कर दे ना आम बात हो
गई है । कई बार पड़ौसी के लड़के ह अपने पड़ोसी क ह या कर उनका धन लू ट लेते ह और यह
सब अथ लोलु प और उपभो तावाद सं कृ त म हर यि त बड़े ठाट-बाट से रहने क चाह म
करते ह ।
(iii) नशील दवाओं के लत स ब धी सम या - बडे महानगर म ह नह ं वरन छोटे -छोटे
क ब म आज मु ा अिजत करने क अतृ त पपासा मनु य को घृ णत से घृ णत काय करवाने
को दु े रत करती है । नगर क म लन बि तय म रहने वाले गर ब तबके के लोग पय के
लालच म कु छ भी करने को तैयार हो जाते ह । द ल जैसे शहर म 40 से 50 करोड़ पये क
नशील दवाएँ हर वष पकड़ी जाती ह । ये नशील दवाएँ तबि धत ह, िजनम मु यत: कोक न,
हे रोइन, चरस, ाउन शु गर मैक आ द ह । युवा वग इन नशील दवाओं के आद हो जाते है ।
नशील दवाओं का घृ णत ध धा करने वाले लोग नगर क म लन बि तय म रह रहे नधन लोग
को अपना वाहक (Carrier) बनाकर समाज के युवा वग को इस मकड़जाल म उलझाते जाते ह ।
नषाखोर नगर करण का एक भयावह पहलू है ।
4. पयावरणीय दूषण स ब धी :- नगर य े म उ च जनसं या घन व ती जनसं या
वृ , भू म का अभाव, पेड-पौध क कमी, वभ न कार के कू ड़ा-करकट का पाया जाना,
अ य धक औ यो गक सं थान के था पत होने, व भ न प रवहन साधन से नकलने वाल
हा नकारक गैस - काबन डाई ऑ साइड तथा काबन मोनोऑ साइड आ द के कारण जलवायु तथा
धनी दूषण का उ च तर पाया जाता है । फलत: शहर पयावरण व भ न दूषण का षकार
हो रहा है । पयावरणीय ास का य भाव शहर म रहने वाल के वा य पर दे खा जा
सकता है ।
5. इले ो धु ध स ब धी :- आधु नक नगर करण म इले ो धु ध क सम या चु नौती के
प म सामने आई है । इले ो धु ध नगर म ऐसा दूषण है िजसे न तो दे खा जा सकता है
और न ह सू ंघ कर पता लगाय। जा सकता है । क तु यह बड़ा ह घातक दूषण है । हमारे
ऊपर से गुजरने वाले उ च वो टे ज के व युत तार तथा नगर य जीवन म न य- त यु त होने
वाले इले ॉ नक उपकरण जैसे - कपड़ा धुलाई क मशीन (Washing machine), वै यूम
ल नस (Vacuum cleaners), लेट धु लाई करने के वाशरस (Dish Washers), मोबाइल
टावर (Mobile Towers) आ द के कारण व युत चु बक य े (Electro Magnetic
Field) का नमाण हो जाता है और उससे नकलने वाले व करण का एक अ य धु ध हमारे
चार और प र या त हो जाता है जो हमारे वार य पर बड़ा घातक और वपर त भाव डालता है

297
। इसके कारण सरदद, मि त क सके ण (Concentration of Mind) म बाधा, वभ न
कार क एलज (Allergies) तथा सामा य रोग नरोधक शि त क कमजोर आ द बीमा रयाँ
हो जाती है । कु छ वै ा नक के अनुसार व युत चु बक य व करण कसर कारक भी हो सकता है
। सबसे अ धक खतरा मोबाइल फोन से है य क इनसे उ च आवृिज का व करण नःसृत होता
है । िजसके कारण कसर का खतरा बना रहता है ।
संभवत: स ह एक ऐसा दे श है जहाँ वतीय यु के दौरान राडार पर काम करने वाले
तकनी शयन ने जब आख म जलन, सरदद और ग भीर थकावट क शकायत क थी, िजस
पर स के वै ा नक ने पूर खोज क और वहाँ इन खतर के त सावधानी बरती जाती है ।
हमारे दे श म भी इस अ य श ु से लड़ने क तैयार करने क परम आव यकता है ।
6. भू ग भक घटनाओ से स बि धत - नगर करण क सम याओ म भू ग भक चु नौ तय से
भी सामना करना पड़ता है य क जहां महानगर का वकास हो रहा है वहाँ कँकर ट के बडे-बड़े
जंगल वक सत हो रहे है जो क भू- थै तक स तुलन को बगाड़ दे ते ह प रणाम व प जमीन
धँसना, भू क प का आना आ द खतरे मंडराते रहते ह ।
(i) जमीन धँसने क सम या - नगर म अ धक आबाद होने के कारण पानी क भी अ धक
खपत होती है कारण कसी नगर के भू-जल का अ धक से अ धक दोहन होता रहता है । नीचे का
पानी खाल हो जाने से जमीन के धँस जाने क भी सम या आ जाती है । कु छ वष पूव बनारस
म कई जगह जमीन धँस गयी पर उस समय तक लोग को यह ात नह ं था क भू-जल के
अ य धक दोहन से जमीन भी धँस जाती है । अमे रका के लॉस एंिज स नगर म भू क पीय ंश
(Seismic Fault) क खोज करते हु ए भू-गभ वै ा नक को यह ात हु आ क लॉस एंिज स के
तवष 12 मल मीटर धँसने का कारण इसके नीचे के भू-जल का अ य धक दोहन है । इतना ह
नह ं कभी-कभी लॉस एंिज स 11 मल मीटर ऊपर नीचे उठता - बैठता भी रहता है । लांस
एंिज स नगर क वशाल जनसं या के लए वशाल जल रा श क आव यकता रहती है जमीन के
नीचे का पानी नकल जाने से वहाँ क जमीन तवष 12 मल मीटर क दर से धँसती जा रह है
। इसी कारण वह पछले 17 वषा म दो बार भूक प आये और 65 लोग क जान गयी तथा
दस अरब डालर क स पि त न ट हु ई ।
दो वष क कड़ी मेहनत व शोध के बाद लॉस एंिज स के भू-गभ वै ा नक ने इस रह य का पता
कया । यह सम या ाकृ तक गैस व तेल के दोहन से भी उ प न होती है । पानी, तेल या गैस
के अ य धक दोहन से जमीन के नीचे जो ं (Fault) बन जाता है इसे
श लाइ ड थ फा ट
(Blind Thrust Fault) कहते ह ।
(ii) भू क प आने का खतरा - अभी तक यह माना जाता था क नगर करण और भूक प म
कोई वशेष स ब ध नह ं है लॉस एंिज स म भू गभ वै ा नक क खोज ने यह सा बत कर दया
क नगर म बड़ी-बड़ी अ ा लकाओं व जनसं या का बोझ बढ़ जोता है और नीचे क जमीन के
जल म दोहन के फल व प जमीन धँसने लगती है, ऊपर नीचे सरकती और इसके कारण भूक प
भी आ जाते ह । शहर म अ य धक जल दोहन के कारण लाइ ड थ ट फा ट बन जाता है जो
क भूक प का रत कर सकता है । अब भारत सरकार ने घो षत कया है क शहर म उ ह ं
मकान को बनने दया जायेगा जो भू क परोधी (Earthquake Resistant) ह ।
298
बोध न : 4
1. औ यो गक ाि त का सू पात कहाँ और कौनसी शता द म हु आ?
2. औ यौ गक ाि त से पू व व व म नगर य जनसं या कतने तशत थी?
3. आसमान नगर करण के लए मु यत: कौन-कौन से कारक ह ?
4. वत भारत क पहल जनगणना कब हु ई?
5. 2001 म नगर य जनसं या कतनी थी ?

10.6 सारांश (Summary)


जनसं या एवं नगर करण के व वध प का अ ययन मानव संसाधन एवं भारत के
सामािजक, सां कृ तक व आ थक वकास के मू याकंन हेतु आव यक है । वकास काय का
ल य, े म नवास करने वाले लोग क सं या, ामीण व नगर य े म नवास करने वाले
लोग का आ थक व सामािजक जीवन का व लेषण रने म सहायता मलती है । इस इकाई के
कु छ मह वपूण ब दु सारांश के प म न न कार ह-
 भारत जनसं या के ि टकोण से चीन के बाद व व का दूसरा बड़ा दे श है । जब क
े फल म सातवां ।
 भारत म पहल जनगणना 1872 ई वीं म हु ई थी क तु यवि थत प से 1881
म शु क गई । त प चात ् येक दशक म जनगणना क जाती है ।
 भारत का औसत घन व 2001 क जनगणना अनुसार 324 यि त त वग
कलोमीटर है ।
 भारत म सबसे अ धक जनसं या का घन व पि चमी बंगाल म है जो 904 यि त
त वग कलोमीटर है ।
 भारत म जनसं या क वृ 1971 के बाद ती ग त से बढ़ है ।
 2001 क जनसं यानुसार भारत का लंगानुपात 923 ि याँ त 1000 पु ष है ।
 भारत म ामीण जनसं या - ब ती, बखरे और अपखि डत त प म मलते है ।
 भारत म व व क तु लना म नगर करण बहु त कम हु आ है । यहाँ क 27.72
तशत जनसं या नगर म नवास करती है । शेष 72.22 तशत जनसं या
ामीण े म नवास करती है ।
 भारत म जनसं या वतरण एवं घन व को व भ न भौ तक, आ थक, जनां कक य
राजनै तक, ऐ तहा सक, आ द कारक भा वत करते ह ।
 दे श के व भ न भाग म जनसं या का वतरण एवं घन व असमान है ।
 दे श मे जनसं या क वृ दर वष 1991 से 2001 के म य 21.34 तशत रह है।
 भारत के जनां कक य इ तहास को चार अव थाओं - धीमी वृ क अव ध (1921
से पूव ), गर तर वृ क अव ध (1921 से 1951) ती वृ क अव ध (1951
से 1981) और घटती वृ क अव ध (1981 के बाद) म वभािजत कया जा
सकता है ।
299
10.7 श दावल (Glossary)
अ त नगर करण : कसी नगर य े म वहाँ व यमान नगर य सु वधओं क
तु लना म अ धक जनसं या बस जाती है तो इस ि थ त को
अ त नगर करण कहते ह ।
जनन दर सामा यत : जनन दर म उ पादक आयु वग (15 से 49 वष) क त
हजार ववा हत म हलाओं पर जी वत ज म शशुओं क सं या।
जनां कक : जनसं या के आकार, संगठन, वृ , वतरण, घन व, आ द का
अ ययन कया जाता है । आकार म कु ल जनसं या तथा
संगठन म यौन अनुपात सा रता, ामीण-नगर य अनुपात
आ द को सि म लत कया जाता है ।
मृ युदर : ज मदर क तरह मृ युदर को भी त हजार जनसं या के
पीछे एक वष क अव ध म मृत यि तय क सं या से ात
कया जाता है ।
मु य कायशील : वष भर म 6 माह से अ धक समय तक काय करने वाले ।
सीमा त कायशील : वष भर म 6 माह से कम समय तक काय करने वाले ।
अकायशील जनसं या : जो जनसं या कसी कार का कोई काय नह ं करती है ।
ामीण जनसं या : गाँव म नवास करने वाल जनसं या ।
नगर य जनसं या : नगर म रहने वाल जनसं या ।
लंगानुपात : त हजार पु ष पर ि य क सं या ।

10.8 सदभ थ (References)


1. बंसल, एस.सी. : भारत का बृहत ् भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ-2006
2. गुजर, आर.के. व जाट : भारत का भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर - 2007
3. जोशी, रतन : नगर य भू गोल, राज थान ह द थ अकादमी, जयपुर
1997
4. प डा, बी.पी : जनसं या भू गोल, म य दे श ह द थ अकादमी,
2007
5. राव, बी.पी. : भारत एक भौगो लक समी ा, वसु धरा काशन,
गोरखपुर , 2002
6. शमा व शमा : जनसं या एवं अ धवास भू गोल, म लक ए ड क पनी,
जयपुर , 1995
7. संह एवं मौय : भौगो लक पा रभा षक श दकोष, शारदा पु तक भवन,
इलाहबाद, 2007
8. भारत जनगणना 2001

300
10.9 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. दूसरा थान
2. 16.7 तशत
3. 72.22 : 27.78
4. 1881 म लाड रपन के शासन काल म
5. 26 : 8
बोध न-II
1. 21.34 तशत
2. केरल म 9.42 तशत
3. नागालै ड म 64.41 षत
4. 18:21 (लड़क 18 वष और लड़का 21 वष)
बोध न-111
1. 324 यि त त वग कलोमीटर
2. 1,027,015,247 (एक अरब दो करोड़ स तर लाख प ह हजार दो सौ सैता लस)
3. उ तर दे श म 16.17 तशत)
4. ल वीप (0.01 तशत)
5. 5.50 तशत
बोध न-IV
1. इ लै ड म 18 वीं शता द म
2. 3 तशत
3. मु य तीन कारक ह - आ थक, सामािजक व जनां कक
4. 1951 म
5. 28.61 करोड़

10.10 अ यासाथ न
1. भारत म जनसं या वृ का काल के अनुसार व तृत ववेचना क िजए ।
2. भारत क जनसं या घन व का ता कक या या क िजए ।
3. भारत म जनसं या घन व म असमानता के लए उ तरदायी कारण का स व तार
वणन क िजए ।
4. भारत क जनंस या वृ पर एक लेख ल खए ।.
5. भारत म नगर करण क वृ एवं चु नौ तयाँ का स व तार वणन क िजये ।
6. भारत म जनसं या वृ एवं समाधान पर व तृत आलेख ल खए ।

301
इकाई 11 : यातायात व सड़क यातायात Transportation :
Rail and Road Transport
इकाई क परे खा
11.1 उ े य
11.2 तावना
11.3 रे ल यातायात
11.3.1 रे लमाग का वतरण
11.3.2 रे ल क शास नक यव था
11.4 सड़क यातायात
11.4.1 सड़क का वग करण
11.4.2 सड़क का भौगो लक वतरण रे ल व सड़क यातायात का काया मक मह व
11.5 रे ल सड़क यातायात- पधा एवं स पूरकता
11.6 मु ख सम याएँ
11.7.1 रे ल यातायात क सम याएँ
11.7.2 सड़क यातायात क सम याएँ
11.8 सारांश
11.9 श दावल
11.10 स दभ थ

11.11 बोध न के उ तर
11.12 अ यासाथ न

11.1 उ े य (Objectives)
तु त अ याय को पढ़ने के बाद आप :
1. भारत म रे ल व सड़क यातायात के वतरण के वषय म बता सकगे ।
2. भारत के मान च पर मु य प रवहन माग को दशा सकगे ।
3. भारत के यातायात के काया मक मह व के बारे म बतला सकगे ।
4. रे ल व सड़क यातायात म पधा एवं स पूरकता को जान सकगे ।
5. भारत म यातायात स बि ध व भ न सम याओं को समझा सकेग ।

11.2 तावना (Objectives)


यातायात से सामा य प म आने और जाने क या का बोध होता है । प रवहन
श द का भार उठाने, कंधे या सर पर लेने, भार वहन करने अथवा सींचने के संदभ म यु त।
कया जाता है । अ ेजी भाषा म इसके लए ''TRANSPORT' श द का योग होता है । ांस
(TRANS) का अथ ''आर-पार'' तथा पोट (PORT) का अथ ''ले जाना' है । सामा यत या आर-

302
पार पहु ँचने या ले जाने को ांसपोट कहा जाता ह । पा रभा षत अथ म ांसपोट का योग
व तु ओ,ं यि तय और वचार को एक थान से दूसरे थान पर ले जाने के लये कया जाता है
। यातायात त के वारा क जाने वाल या क जा रह अथवा क गई सेवा के लये भी
यातायात श द का योग होता है । यातायात क याऐं मह वपूण तथा उ े यपूण होती है ।
इसी कारण माल या व तुओं को कम सीमांत उपयो गता वाले े से अ धक उपयो गता वाले
े म पहु ँचाया जाता है ।
आधु नक संदभ म यातायात श द का योग स पूण तकनीक यातायात त और उस
त वारा क जाने वाल सेवा के लये यु त होता है । आधु नक यातायात से ता पय
ती गामी तथा स ते साधन से है । इन साधन के अि त व से पूव व तुओं तथा यि तय को
एक थान से दूसरे थान तक ले जाने और लाने के साधन के प म मानवीय एवं पशु शि तय
का योग कया जाता था । इस काय म ययभार अ य धक या ाय क ट द तथा धीमी होती थी
। इसके तकू ल आधु नक यातायात के साधन म ाकृ तक शि तय का उपयोग होता है ।
गत ् दो शताि दय म प रवहन साधन का वकास बहु त ती ग त से हु आ है । अठाहरवीं
शता द म सड़क, 19वी शता द म भाप से चलने वाल रे लगा ड़याँ तथा 20वी शता द म मोटर
प रवहन तथा वायुयान म त पधा होने लगी । वै ा नक तथा तकनीक ग त के फल व प
प रवहन के साधन म बड़े मह वपूण सुधार हु ए तथा प रवहन वाहन क ग त म अ धका धक
तेजी होती चल गई ।
कसी भी दे श के सामािजक व आ थक वकास म प रवहन के साधन का अ य धक
मह व होता है । यवसा यक तथा औ यो गक उ न त, मनु य का आवागमन, माल का प रवहन
यापार तथा कृ ष पूण प से प रवहन क सु वधाओं और संचार साधन पर आ त रहते है ।
रा य और अ तरा य यापार का संचालन भी प रवहन के साधन पर नभर करता है ।
भारत म वक सत प रवहन के साधन को चार े णय म बाँटा जा सकता है, 1 रे ल
यातायात, 2. सड़क यातायात, 3. वायु यातायात , 4. जल यातायात । ले कन उपल धता एवं
उपयो गता के ि टकोण से थलमाग - रे ल पथ एवं सड़क अ धक मह वपूण है ।

11.3 रे ल यातायात (Rail Transport)


दूर थ े को जोडने के लए एवं आ त रक प रवहन क ि ट से रे ल मह वपूण साधन
है । स, सयु त रा य अमे रका तथा कनाडा के प चात ् भारतीय रे लत व व मे चौथा बडा
रे ल जाल है ।
भारत क रे लमाग का वकास 19वीं शता द मे ार भ हु आ । दे श म पहल रे ल मु बई
से थाणे तक 34 कलोमीटर माग पर 10 अ ल
ै , 1853 को चलायी गई । तय से भारतीय रे लो ने
बहु त उ न त क है और आज यह एक वशाल रे ल त के प म वक सत हु आ है । वतमान म
भारत म रे लमाग क कुल ल बाई 63465 कलोमीटर है िजनमे से 5% बडी लाइने (Brode
Gauge) 20% छोट लाइने (Meter Gauge) व 5% संकर लाइने (Terrout Gauge) है ।

303
11.3.1 रे लमाग का वतरण

भारत म रे लमाग का वतरण समान नह है । दे श म े ीय तर पर सघन, सामा य


तथा वरल रे ल जाल पाया जाता है । भारत म रे ल के वतरण मान च से प ट है ।
मान च से भारत म रे लमाग के वतरण के तीन व भ न त प न टा कार से है-
अ - सघन रे लमाग वाला े -
भारत के उ तर मैदान मं अमृतसर से कोलकाता के बीच रे लमाग का सघन जाल बछा
हु आ है । यहाँ रे लमाग क सघनता 40 क.मी.लाख त 1000 क.मी. है । उसी मैदान म कृ ष
तथा उ योग क ि ट से वक सत े म रे लमाग का सघन जाल मलता है । इस े के
मु य टे शन म अमृतसर, द ल , कानपुर , लखनऊ, आगरा, पटना, इलाहबाद, वाराणासी तथा
हावडा शा मल है । द ल उ तर मैदान म रे ल का सबसे बडा के है ।
ब - सामा य रे लमाग वाला े -
ता मलनाडु तथा छोटा नागपुर के े को छोडकर लगभग सम त ाय वीपीय पठार पर
रे लो का घन व सामा य है । यहाँ रे लमाग उ तर मैदान क तुलना म कम है । अपे ाकृ त
म यम जनसं या घन व, पहाडी तथा पठार भू दे श के कारण रे ल का आ त रक भाग म
व तार कम है । इस े म रे ल पट रय को बछाने के लए ल बी सुरंगे तथा कई थान पर
पहा डय को काटना पडा है । अत: यहाँ रे लमाग का जाल सामा य है । मु बई-चै नई, चै नई-
द ल , च नई -कोची तथा चै नई-हैदराबाद इस े के मु य रे ल माग है ।
स - वरल रे लमाग वाला े -
इसके अ तगत न न े आते है - 1. हमालय दे श, 2. उ तर पूव भारत, 3.
पि चमी राज थान ।
बखर हु ई अ प जनसं या, अ प वका सत अथ यव था क ठन भू दे श तथा रे ल
वकास क उ च लागत इन े क न न सघनता के

11.3.2 रे ल क शास नक यव था

भारतीय रे ले का संचालन के सरकार वारा होता है । भारतीय रे लवे का नौ ख ड म


बाँटकर शासन और सचालन को अवि थत करने का यास 1950 के बाद कया गया है ।
सम त दे श म रे लमाग का जाल नर तर सघन होता जा रहा है । इस प रपे मे म डल के
पुनगठन क आव यकता महसूस क गई। वतमान म शास नक ि ट से भारतीय रे लवे को 16
पर े (Zone) म रखा गया है । ये सभी नए म डल व अ ल
ै 2003 से भावी हु ए है ।
वतमान म दे श म रे ल म डल न न है ।
.म. रे लम डल मु यालय
1. उ तर -पूव सीमा त रे ल म डल माले गाँव (गुवाहाट )
2. उ तर -पूव रे ल म डल गोरखपुर
3. पूव रे ल म डल कोलकाता
4. द णी-पूव रे ल म डल कोलकाता

304
5. पूव तट य रे ल म डल भु वने वर
6. पूव म य रे ल म डल हाजीपुर
7. द णी-पूव -म य रे ल म डल बलासपुर
8. उ तर-म य रे ल म डल इलाहबाद
9. पि चम-म य रे ल म डल जबलपुर
10. उ तर रे ल म डल नई द ल
11. उ तर -पि चमी रे ल म डल जयपुर
12. पि चमी रे ल म डल मु बई (चच गेट)
13. द ण-म य रे ल म डल सक दराबाद
14. म य रे ल म डल मु बई ( व टो रया ट मनल)

15. द ण-पि चमी रे ल म डल हु नल


16. द णी रे ल म डल चै नई

बोध न : 1
1. प रवहन के मु ख कार कौन-कौनसे ह ?
2. भारत म सव थम रे ल प रवहन का आर भ कब हु आ?
3. दो े के नाम बताइए जहाँ रे ल का वरल जाल ह ?
4. ाय वीपीय पठार पर रे ल लाइन बछाने म मु य सम या या ह ?
5. द णी-पू व -म य रे ल म डल का मु यालय कह ं ह?

11.4 सड़क यातायात (Road Transport)


आ द काल से ह भारत म थल प रवहन के अ तगत सड़क का अ धक मह व रहा है ।
इसे प रवहन के अ य सभी कार का आधार त भ भी कहा जाता है ।
सड़क प रवहन अपनी लचक, माल क सु र ा, समय क बचत, सेवा का यापक े
तथा स ती सेवा के कारण सवा धक लोक य साधन माना जाता है ।
भारत म सड़क क यव था बहु त पुरानी है । माना जाता है क 5000 वष पूव भी
भारत मे प क सड़के पाई जाती थी । भारतीय शासको ने अपने रा य को दूसरे रा य से जोड़ने
के लये अनेक सड़क का नमाण करवाया । इन प क सड़क पर जल के बहकर चले जाने क
अव था भी रखी गई थी । स ाट अशोक ने राजक य राजमाग को सुधारा तक उनका व तार
कया । ईसा से 200-300 वष पूव उ तर भारत म दो माग से मु य यापार होता था जो
पाटल पु से स धु क घाट तथा काबुल तक जाते थे । 700 ई0 म भारत व चीन क म य
तीन मु य यापा रक माग गमनशील थे ।
मु गल बादशाह म शेरशाह सूर का योगदान सड़क बनाने म अ य धक माना जाता है ।
उ ह ने ढाका से वाराणसी, आगरा द ल होते हु ए लाहौर तक ओर वहाँ से स दु नद तक ांड
ं क रोड (G.T. Road) बनवाई । बाद म अ ेजी वारा इस ांड ं क रोड क मर मत वष

305
1880 म करवाई गई । यह रा य राजमाग सं या 1 अथवा शेरशाह सू र माग के नाम से जाना
जाता है । 1870 के प चात रे लमाग के वकास क ओर यान होने के कारण सड़क का वकास
ती ग त से नह हो पाया । केवल उ ह ं सड़क माग के नमाण पर यान दया गया जो
आ थक व सामािजक ि ट रो अ धक मह वपूण थी ।

11.4.1 सड़क का वग करण :-

भारत म सड़क वकास हेतु बनाई गई नागपुर सड़क योजना (1944-54) (Nagpur
Road Plan) के अ तगत भारतीय सड़क को चार वग म वभािजत कया गया ।
1. रा य राजमाग (National Highways)
ये राजमाग रा य क राजधा नय , बड़े-बड़े औ यो गक तथा यापा रक नगर , मु य
बंदरगाह , खनन े तथा रा य मह व के शहर तथा क ब को आपस म जोडते है । जो क
न केवल आ थक ि ट से अ पतु सै नक ि ट से भी मह वपूण है । रा य राजमाग णाल के
नमाण, सु धार, रख रखाव तथा वकास क िज मेदार पूणतया के सरकार क है । ये भारत
को यांनमार, बंगला दे श, नेपाल, भू टान, चीन तथा पा क तान से भी जोड़ती है । इस समय दे श
क रा य राजमाग णाल म कुल 38,517 कलो मीटर लंबी सड़के शा मल है । ये अ धतर
प क सड़के है ।
भारत के मु ख रा य महामाग
म सं0 रा य महामाग महामाग वारा जु ड़े मु ख नगर
1. ांड क रोड कोलकाता, पटना, इलाहाबाद, कानपुर द ल,
(शेरशाह सूर माग) अ बाला, अमृतसर
2. वृहत द कन महामाग मजापुर, जबलपुर , नागपुर , हैदराबाद, बंगलौर
3. कोलकाता-मु बई महामाग कोलकाता, स बलपुर, नागपुर , मु बई
4. मु बई-चे नैई महामाग चे नैई, बंगलौर, पूना , मु बई
5. आगरा-मु बई आगरा, णा लयर, इ दौर, मु बई
6. कोलकाता- च नैई महामाग कोलकाता, कटक, वशाखापटनम, च नैई
7. चे नैई-कोलकाता महामाग चे नैई, कोलकाता
8. पठानकोट-ज मू महामाग पठानकोट, ज मू ीनगर
9. गोहाट -चेरापू ज
ं ी महामाग गोहाट -चेरापू ज
ं ी

10. अ बाला-कालका- शमला महामाग अ बाला, च डीगढ़, कालका, शमला


11. बरे ल -नैनीताल महामाग बरे ल , नैनीताल, अ मोड़ा
12. दािज लग- ड ग
ु ढ़ महामाग दािज लंग, ड ग
ु ढ़
2. ांतीय राजमाग (State Highways)
ये रा य क मु ख सड़के है । ये यापार, उ योग तथा सवार यातायात क ि ट से
रा य के लये अ य त मह वपूण है । ये सड़के रा य के येक क बे, िजला मु यालय , रा य

306
के मह वपूण यापा रक-औ यो गक नगर तथा रा य क राजधानी को आपस म जोडती है । ये
रा य राजमाग तथा नकटवत रा य से भी मल होती है । इन राजमाग के नमाण तथा
रख-रखाव क िज मेदार रा य सरकार पर होती है ।
3. िजला सड़क (District Roads)
ये सड़क िजल के बड़क गाव , व भ न क ब, मुख नगर , उ पादक के और
मि डय को आपस म तथा िजला मु यालय से जोडती है । इनम से अ धकांश क ची होती है ।
अनेक थान पर ये बडी सड़क से भी जु डी होती है । इनके नमाण तथा दे ख भाल का दा य व
िजला बोड , िजला प रषद या स बि धत सावज नक नमाण वभाग का होता ह ।
4. ामीण सड़क (Villages Roads)
व भ न गांव को आपस म जोडने वाल ये सड़के गांव को िजला एवं रा य सड़क से
भी जोडती है । ये सड़क ाय: क ची संकर तथा पगडि डयाँ मा होती है । ाम पंचायत इन
सड़क का नमाण तथा रख रखाव करती है । िजला शासन भी इन सड़क के नमाण म
सहायता करता है । आजकल इ ह प का करने क ाथ मकता द जा रह है ।
भारत म वतं ता ाि त के प चात सड़क के नमाण को बहु त ाथ मकता द गई है ।
ले कन व व के वक सत दे श के सामने अभी भी हम सड़क क ि ट से बहु त पीछे ह । न दय
पर पुल का अभाव है अथवा इनक चौड़ाई इतनी कम है क भार यातायात को चलाना क ठन है
। भारत का सड़क - े फल तथा सड़क-जनसं या अनुपात अ य दे श क तु लना म बहु त कम है
। भारत म प क सड़क क ल बाई त 100 वग कलो मीटर े म 124 कलोमीटर तथा
त 10 लाख यि तय के पीछे 74 कलोमीटर है, िजसे संतोषजनक नह ं कहा जा सकता ।
सड़क के उपरो त वग के अ त र त तीन अ य वग भी मौजू द है ।
5. ु राजमाग (Express Highways)

दे श म यापा रक यातायात के व रत संचलन के लये इन राजमाग का नमाण कया
जाता है ।
मु ख त
ु राजमाग न न है :-
1- पूव ए स ेस राजमाग
2- पि चमी ए स ेस राजमाग
3- कोलकाता से दमदम हवाई अ डे के बीच राजमाग
4- सु क दा खान से पाराद प ब दरगाह के बीच राजमाग
5- दुगापुर - कोलकाता त
ु राजमाग
6- द ल -आगरा त
ु राजमाग
7- अहमदाबाद-बडोदरा त
ु राजमाग
अ तरा य राजमाग (International Highways)
ये राजमाग ए शया- शांत आ थक एवं सामािजक आयोग के साथ कये गये करार के
आधीन व व बैक क सहायता से बनाये गये ह । इनका उ े य भारत के रा य राजमाग को
इन राजमाग से जोडना है । िजससे ये पडौसी दे श पा क तान, नेपाल, भू टान, यांमार तथा
बंगला दे श के साथ जु ड़ सक ।
307
सीमा सड़क (Border Roads)
दे श क सीमाओं पर सीमावत सड़क के नमाण व रख रखाव के लये 1960 म सीमा
सड़क वकास बोड क थापना क गई । इसक थापना का उ े य अ प वक सत जंगल ,
पवतीय तथा म थुल य सीमा े म आ थक वकास को ग त दे ने के साथ-2 र ा सै नक के
लये अ नवाय आपू त को भी बनाये रखना था । दे श क तर ा तथा सुर ा म इन सड़क का
मह वपूण थान है । यह संगठन हमालय, पूव तर के पहाड़ी इलाक तथा राज थान के
म थल य भाग म सड़क के नमाण तथा रख रखाव के लये उतरदायी है । इसम हमाचल
दे श म मानल से लेकर ज मु-क मीर के लेह तक जाने वाल व व क सबसे उं ची सड़क
सि म लत है । इस सड़क पर मनाल और लेह के बीच अ तरा यीय बसे चलाई जाती है । इसके
नमाण के बाद चंडीगढ़ और ल ाख के म य दूर काफ कम हो गई है ।

11.4.2 सड़क का भौगो लक वतरण

लगभग 30 लाख कलोमीटर सड़क के साथ भारत व व के तीसरे थान पर है । भारत


म द ण के पठार पर पहाड़ी धरातल तथा क ची च ाने पाई जाने के कारण सड़के कठोर और
सु ढ़ होती है । जब क उ तर भारत म प क सड़क का जाल अपे ाकृ त कम है । आसाम के
पहाड़ी भाग म अ धक वषा, राज थान म म थल तथा मालवा का असमान धरातल सड़क
बनाने के लये बडी क ठन प रि थ तयाँ पैदा करते है । इस लये यहां सड़क का अभाव है ।
तवष न दय म आने वाल बाढ के कारण गंगा के. मैदान म भी अ छ प क सड़को, का
अभाव है ।
भारत के पांच रा य मश: गोआ, पंजाब, ता मलनाडु , केरल तथा ह रयाणा सड़क क
सवा धक सघनता वाले रा य है । (ता लका 11.1) जब क द कन े म यम तर तथा पूव तर
भाग, हमालय तथा राज थान के म थल य भाग न न तर क सघनता वाले े है ।

मान च -11.1 भारत के राि य राजमाग

308
मान च – 11.2 भारत म जाल संघनता
ता लका - 11.1
भारत म सड़क क रा यवार ल बाई तथा सतह सघनता
म रा य के0शा0 दे श कु ल ल बाई क0मी0 घन व क0मी0 त 100वग
सं0 म क ची प क क0मी0 े पर
1. आ ध दे श 178012 30
2. अ णाचल दे श 14092 03
3. असम 68418 14
4. बहार एवं झारख ड 88352 20
5. गोआ 8563 123
6. गुजरात 90896 37
7. ह रयाणा 28168 60
8. हमाचल दे श 30193 13
9. ज मु एवं क मीर 21446 04

309
10. कनाटक 144012 45
11. केरल 145704 84
12. म य दे श एवं छतीसगढ़ 200137 18
13. महारा 61893 48
14. म णपुर 10941 12
15. मेघालय 8480 13
16. मजोरम 4829 06
17. नागालै ड 18356 41
18. उड़ीसा 262703 37
19. पंजाब 64352 94
20. राज थान 129874 18
21. सि कम 1834 26
22. ता मलनाडु 206503 91
23. पुरा 14729 42
24. उ तर दे श एवं उ तराख ड 255467 32
25. प0 बंगाल 75435 32
26. अंडमान एवं नकोबार वीप 1317 10
27. च डीगढ 1753 1535
28. दादरा और नगर हवेल 533 68
29. दमन और द व 101 उ0न0

30. द ल 26582 1006

31. ल वीप 01 उ0न0


32. पां डचेर 2405 353
संपण
ू भारत 2465877 31
ोत: भारत 2008
भारत म सड़क का वतरण असमान है । ये े न न कार से है :-
1. पवतीय और म थीलय े
इन े म सड़को का जाल बहु त ह वरल है । अत: यहां पर सड़क घन व बहु त कम
है । साम रक मह व के कारण इन े म बहु त सी सीमावत सड़क का नमाण कया गया है।
2. पठार े
भारत के पठार े म सड़क का घन व सामा य (म यम तर) है । पूव राज थान,
म य दे श, आध दे श तथा उड़ीसा रा य इस े के अ तगत आते है ।
3. मैदानी े

310
उ तर भारत म गंगा और पंजाब के मैदान तथा द ण भारत म केरल, कनाटक और
ता मलनाडु म सड़क के जाल का घन व सबसे सघन पाया जाता है । कुछ सड़क दूर-दराज के
े ो को भी मलाती है । इनम राज थान, क छ का ठयावाड़ के े सि म लत है ।
बोध न : 2
1. रा य राजमाग के नमाण वकास तथा सु धार का भार कस पर होता है ?
2. रा य राजमाग नं . 7 भारत के दो नगर को जोड़ता है ?
3. क ह दो मु ख ु त राजमाग के नाम बताइये ।
4. सबसे अ धक सड़क घन व वाले भारत के दो रा य के नाम बताइये ।
5. ां ड ं क रोड कहाँ से कहाँ तक है ।

11.5 रे ल व सड़क यातायात का काया मक मह व


(अ) रे ल प रवहन का काया मक मह व-
1. रे ल ल बी दूर तथा उपनगर य या य के लए यातायात का मुख साधन है । अ धक
दू रय के अ धकांश या ी तथा ढोये जाने वाले माल का 80 तशत भारतीय रे लो पर
नभर करते है ।
2. कोयला, लौह, व इ पात, सीमट, ख नज तेल, खा या न, उवरक, नमाण प थर, धातु
अय क आ द मू ल व उपयोगी व तु ओं से जुडे उ योग पूण प से रे ल प रवहन पर
नभर है । यो क 100 तशत क चा व तैयार माल रे ल वारा लाया ले जाया जाता
है ।
3. रे ल प रवहन कृ ष व उ योग े के वकास एवं व तार के लए उ तरदायी है । य क
ये क चे माल, मशीनर , तैयार, माल, मक तथा ईधन के यापक संचलन के वारा
बाजार के एक करण म सहायता करते है ।
4. भारतीय रे ल ने दे श के व भ न े को पर पर जोड़कर उनके लोग को नकट लाकर
रा य एकता म योगदान दया है ।
5. भारतीय रे ल ने दे श क बहु त बड़ी जनसं या को रोजगार दया है ।
6. ाकृ तक वपदाओं जैस-े बाढ़, सू खा, एवं अ य आपदाओं से त े तथा यु के
समय अ नवाय व तु ओं क आपू त कर रे वे अपने नै तक व सामािजक दा य व क त
करता है ।
7. भारतीय रे ल रा य एक करण क दशा म मह वपूण भू मका नभाता ह ।
8. रे ल का व तार गंगा घाट म अ धक हु आ है य क ये बहु त अपजाऊ व सघन े ह
। ऐसे ह े म या ी तथा माल ढोने को मलता है ।
9. रे ल प रवहन स बंदरगाह को औ यो गक तथा यापा रक के से जोड़ते है ।
10. कृ ष े के उ पादन को कारखान तक तथा उ पा दत या आया तत माल को देश के
भीतर भाग म वतरण करने म सहयोग करते है ।
11. ाकृ तक आपदाओं के समय पी ढ़त तथा वपदा े को आव यक साम ी तथा सहायता
पहु ँ चाने म भारतीय रे ल भारतीय रे ल सदै व अ णी रहा है ।

311
(ब) सड़क प रवहन का काया मक मह व -
प रवहन के अ य साधन क तुलना म सड़क का वशेष आया मक मह व न न कार
है ।
1. सड़क प रवहन कम एवं म यम दूर तय करने का एक मह वपूण साधन है । यह तेज
व व वसनीय साधन है जो घर के दरवाजे तक सेवाय उपल ध कराता ह ।
2. यह गाँव को बाजार , क व , शास नक व सां कृ तक के से जोड़कर उ ह दे श क
मु य धारा म मलाता है ।
3. सड़क प रवहन म, क चे, माल व तैयार माल के संचलन वारा उ योग तथा कृ ष
काय म मदद करता है।
4. सड़क प रवहन मानक तथा य के संचलन म तेजी लाकर दे श क आ त रक तथा
वाहन सु र ा म मह वपूण भू मका नभाता है ।
5. यह अ य प से रोजगार नमाण म सहायक ह ।
6. सडके रे लमाग के पोषक के प म काय करती है । सु यवि थत एवं अ छ सड़क के
बना रे ल प रवहन वारा समु चत एवं सु यवि थत सेवा दे ना संभव नह ं ।
7. सड़क प रवहन अ य साधन क अपे ा अ धक लचीला है जो कसी भी समय, थान
पर उपल ध है।
8. शी खराब होने वाल व तुओं के लए सड़क प रवहन ह े ठ है ।
9. सड़क प रवहन वारा उन े तथा थान तक पहु ँचा जा सकता है । जहाँ रे ल प रवहन
नह ं है ।
10. सड़क का नमाण व रख रखाव अपे ाकृ त सरल होता है ।
बोध न : 3
1. क तपय उ योग का नामो ले ख क िजए जो क रे ल प रवहन पर पू ण प से
नभर ह ।
2. रे ल का व तार गं गा घाट म अ धक य हु आ ह?
3. रे ल प रवहन बं द रगाह को कन के से जोड़ते ह ?
4. कौनसा प रवहन कम एवं म यम दू र तय करने का मह वपू ण साधन है ?
5. कौनसा प रवहन रे ल प रवहन के पोषक के प म काय करता ह ?

11.8 रे ल-सड़क यातायात- पधा एवंम-स पू रकता


प रवहन के अ य साधन क अपे ा रे ल व सड़क पर पर अ धक पूरक ह । अ छ तथा
पया त सड़क के अभाव म रे ल प रवहन वारा क चे माल के े , उ पादन के तथा
उपभो ताओं से दूर-दूर तक संपक था पत नह ं कया जा सकता है । साथ ह , अ छे से अ छा
सड़क त भी उ पा दत व तु ओं को रे ल त के बना उ पादक से अि तम उपभो ता तक नह ं
पहु ँ चा सकता ।
सड़क व रे ल के म य सवार तथा माल यातायात आकृ ट करने म पधा रहती है ।
सड़क प रवहन म अनेक सु वधाएँ ऐसी ह, जो रे ल प रवहन म संभव नह ं होती है । उदाहरणाथ

312
क चा माल घर-घर से एक करना तथा ग त य तक पहु ँ चाना, तेज प रवहन आ द । य द
अपे ाकृ त कम दूर पर थोड़ा माल भेजना हो तो सड़क प रवहन े ठ ह, कभी-कभी सड़क
प रवहन वारा प रवहन लागत आधी रह जाती है । तथा समय क अ य धक बचत होती है ।
रे ल प रवहन क तु लना म सड़क प रवहन वारा कोई हा न, क ट या खच ल पै कं ग व ध का भी
योग नह ं होता । दोन प रवहन क पधा म सड़क प रवहन क े ठता का एक कारण यह भी
है क रे ल प रवहन को कुछ मू ल भू त सामािजक नयम तथा स ा त के आधीन काय करना
पडता ह । रे ल को सामािजक एवं रा य उ े य के लए रयायत दे नी पड़ती है । उ ह सभी
कार के यातयात को वीकार करना पड़ता है । रा य नी तय के तहत इ ह खा या न ,
सीमट, कोयला, खाद तथा अ य आव यक व तु ओं पर वशेष रयायत दे नी पड़ती है य क ये
व तु ऐं भाड़े क ऊँची दर को सहन नह ं कर सकती है । एक सावज नक उपयोगी उ यम होने के
कारण रे ल को अलाभकार माग का संचालन, न न दर पर दुलाई तथा नयात यापार के लए
रयायत के प म हा न सहन करनी होती है । यु के उ े य से बनाए गए माग पर रे लवे को
सदै व हा न ह होती ह । संकट के समय अ नवाय व तु ओं का ाथ मकता के आधार पर प रवहन
करना पड़ता है । उदाहरण के लए अकाल े म खा या न और चारा पहु ँ चाने के लए अनेक
सवार गा ड़य को र करना पड़ता है । िजससे बहु त से उ च दर वाले यातयात को छोड़ना पड़ता
है ।
रे ल अपनी सामािजक तथा रा य दा य व के कारण सड़क प रवहन क सु वधाओं क
तु लना म उतने ह लाभ के आधार पर काय नह ं कर सकती । इस कारण रे ल प रवहन पधा म
पीछे छूट जाता है । रे ल के हत के लए उसे सड़क प रवहन के साथ तयो गता से बचाना
चा हए य क रे ल क दर नधा रत करते समय अ धकतम लाभ के स ा त का पालन नह ं
होता । सबसे मह वपूण है क रे ल को रा य आव यकताओं के लए हा न सहन करनी पड़ती
है । सामािजक व रा य उ े य के लए वशेष यातायात स ब धी रयायत भी दे नी पड़ती है ।
अत: रे ल एक व श ट ि थ त म काय करती है जो सड़क प रवहन पर लागु नह ं होती । रल
और सड़क म कोई समानता नह ं है और इन दोन के बीच तयो गता दे श हत म नह ं है । रे ल
तथा सड़क प रवहन को एक दूसरे से सहयोग करना चा हए न क त पधा । वा तव म ये एक
दूसरे के पूरक ह , त व द नह ं ।

11.7 मु ख सम याएँ (Major Problems)


11.7.1 रे ल यातायात क सम याएँ

1. सड़क यातायात के बढ़ते व तार के कारण रे ल प रवहन सुधार हे तु संसाधन एवं यास
म कमी आ रह है ।
2. रे ल प रवहन क सड़क प रवहन के साथ पधा रहती ह ।
3. व भ न गेज क लाईन के कारण या य को रे लगाड़ी बदलने म समय न ट करना
पड़ता है । पूनलदान के कारण धन व समय अप यय तथा सामान क त जैसी
सम याएँ झेलनी पड़ती है । इससे नपटने के लए ह एक कृ त गेज प रयोजना बनाई
गई है । सभी पट रय को ॉडगेज म बदलना भी एक चु नौती ह ।

313
4. माग म माल क अ य धक मा ा म चोर भी मु ख सम या है ।
5. रे लमाग का रख रखाव यथा पट रय व पुल क मर मत एक खच ला काय है ।
6. एकल माग के कारण रे ल को ॉस करने म लगने वाले समय के कारण दे र तथा
या य को परे शानी ।

11.7.2 सड़क यातायात क सम याएँ

1. भारतीय सड़क क गुणव ता न न तर य ह । अ धकांश सड़क क ची ह तथा उनम से


70% पर पूरे वष वाहन नह ं चलाए जा सकते ।
2. अ धकांश राजमाग क मोटाई अपया त व कम है ।
3. चेक पो ट , चु ं गय तथा रे लवे फाटक क बड़ी सं या यातायात के वाह को रोकती है ।
4. सड़क सु र ा के उपाय अपया त है ।
5. राजमाग ाय: बड़े शहर के भीड़ वाले सघन माग से होकर गुजरते है ।
6. भारत म बहन वाल अनेक न दय व उनम आने वाल बाढ़ के कारण सड़क का रख
रखाव क ठन हो जाता है ।
7. वाहन वारा होने वाला दूषण स प त सबसे च तनीय वषय है ।
बोध न : 4
1. अ धकां श राजमाग कहाँ से होकर गु ज रते ह?
2. सड़क प रवहन के वाह म कौन-कौन बाधा डालते है ।
3. रे ल को ॉस करने म अ धक समय य लगता है ।
4. सभी रे लवे पट रय को कस कार क गे ज लाइन म बदला जा रहा है ।

11.8 सारांश (Summary)


'प रवहन' कसी भी रा क भौगो लक का मह वपूण त व है । स प त तकनीक युग
म उपभोग, उ पादन व यापार क मा ा या इनका वकास तब तक अपंग है जब तक क
प रवहन व संचार के साधन का वकास न हु आ हो । 'प रवहन' से अ भ ाय यि तय व व तुओं
को एक थान से दूसरे थान पर पहु ँचाना ह । थाना तरण वारा व तु अथवा यि तय क
उपयो गता म वृ होती ह । प रवहन के साधन को ‘उ योग और यापार क र त वा हनी
न लयाँ' कहा जाता है । िजस कार मानव शर र म र त का प रसंचरण धम नय व शराओं
वारा होता है । उसी कार धरातल पर बछे हु ए प रवहन के माग के जाल से सम त आ थक
याकलाप स प न होते ह । यावसा यक तथा औ यो गक उ न त के लए प रवहन क
सु वधाएँ नता त आव यक ह ।
भारत ल बी दू रय वाला एक वशाल दे श ह । प रवहन के साधन को 3 भाग म बाँटा
गया है- 1 थल प रवहन, 2. जल प रवहन, 3. वायु प रवहन । येक प रवहन के अपने गुण -
दोष व सीमाएँ है । इनम पर पर त पधा रहती है तथा प ये सभी एक दूसरे के पूरक ह

314
दे श क अथ यव था को मजबूत बनाने , सामािजक स ाव को वक सत करने, दे श क
व वधता को एक कृ त करने, दूर -दूर ि थत वेश को एकसाथ जोड़ने व दे श क सुर ा को
सु नि चत करने म प रवहन तं के अ य त वक सत व पर पर पूरक होने क आव यकता है ।

11.9 श दावल (Glossary)


1. गेज :- रे लवे क पट रय क चौड़ाई क माप ।
2. नैरोगेज :- रे लवे क पट रय क म य 0.675 मीटर क दूर ।
3. मीटर गेज :- पट रय के म य 1 मीटर क दूर ।
4. बॉड गेज :- पट रय के म य 1.675 मीटर क दूर ।
5. सीमावत सड़क (Border Roads) :- इनका नमाण एवं ब धन सीमा सड़क वकास
बोड B.R.D.R. (Border Roads Development Board) करता है िजसका गठन
1960 म कया गया था ।

11.10 स दभ ंथ (Reference Book)


1. स सेना, एच.एम. (1975) : ' ' यो ाफ ऑफ ासपोट ए ड माकट से टस' ' एस चाँद
क पनी ल मटे ड, नई द ल पृ ठ 12
2. जोशी, एन.वी. (1986) : ' 'आ थक भू गोल क सै ाि तक परे खा' ' राज थान ह द
ं अकादमी, जयपुर पृ ठ 155

3. राव. बी.जी. (2007) '' भारत क भौगो लक समी ा'' वसु धरा काशन गोरखपुर, पृ ठ
385-400

11.11 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. प रवहन के चार मु ख कार है, (i) रे लयातायात (ii) सड़क यातायात (iii) वायु
यातायात (iv) जल यातायात ।
2. 16 अ ल
ै 1853 ।
3. (i) हमालय दे श, (ii) पि चमी राज थान ।
4. पहाड़ी एवं पवतीय े के उबड खाबड भाग ।
5. बलासपुर ।
बोध न-2
1. के सरकार ।
2. चै नई - कोलकाता ।
3. (i) पूव ए स ेस राजमाग ।
(ii) पि चमी ए स ेस राजमाग ।
4. (i) गोवा, (ii) पंजाब ।
5. कलक ता से अमृतसर ।
315
बोध न-4
1. लौहइ पात उ योग, सीमट, उ योग व उवरक उ योग आ द ।
2. उपजाऊ व सघन े ।
3. औ यो गक तथा यापा रक के से ।
4. सड़क प रवहन ।
5. सड़क प रवहन ।
बोध न-4
1. महानगर से ।
2. रे वे फाटक, चैक पो ट, चु ंगीनाक ।
3. एकल माग के कारण ।
4. ाँड गेज ।

11.12 अ यासाथ न
1. प रवहन से या ता पय है ।
2. रे ल व सड़क यातायात के दो-दो मह व बताइए ।
3. रे ल माग के वतरण त प को प ट क िजए ।
4. “रे ल व सड़क यातायात एक दूसरे के पूरक है ' ' कैसे? प ट क िजए ।
5. सड़क यातायात क मुख सम याओं का उ लेख क िजए ।
6. शा सक ि ट से भारतीय रे ले को कतने प र े म वग कृ त कया गया है?
7. अ तर प ट क िजए :
(i) रा य राजमाग तथा ा तीय राजमाग ।
(ii) उ तर रे ल म डल तथा द णी रे ल म डल ।

316
इकाई 12 : भारत का वदे शी यापार (Foreign Trade
of India)
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 वत ता-उपरा त काल म भारत का वदे शी यापार
12.2.1 1951-52 से 1955-56 - पहला योजना काल
12.2.2 1956-57 से 1960-61 - दूसरा योजना काल
12.2.3 1961 -62 से 1965-66 - तीसरा योजना काल
12.2.4 1966-67 से 1968-69 - वा षक योजना काल तथा 1969-1970 से 1973-
74 - चौथा योजना काल
12.2.5 1974-75 से 1977-78 - पांचवीं योजना काल
12.2.6 1978-79 से 1979-80 - वा षक योजना काल तथा 1980-81 से 1984-85
- छठवाँ योजना काल
12.2.7 1985-66 से 1989-90 सातवाँ योजना काल
12.2.8 1990-91 से 1991-92 - वा षक योजना काल
12.2.9 1992-93 से 1996-97 – आठवाँ योजना काल
12.2.10 1997-98 से 2001-02 - नौवां योजना काल
12.2.11 2002-03 से 2005-06 - दसवीं योजना काल
12.3 भारतीय वदे श यापार क संरचना
12.3.1 आयात का ढांचा
12.3.1.1 उपभो ता व तुएँ एवं खा या न
12.3.1.2 मशीनर
12.3.1.3 ख नज तेल
12.3.1.4 धातु एँ
12.3.1.5 रसायन तथा औष धयाँ
12.3.1.6 ह रे तथा क मती प थर
12.3.1.7 उवरक
12.3.2 नयात का ढाँचा
12.3.2.1 चाय एवं काँफ
12.3.2.2 ई का रात और न मत व तु एँ
12.3.2.3 सले सलाए कपड़े

317
12.3.2.4 चमड़ा तथा न मत व तु एँ
12.3.2.5 लौह-अय क
12.3.2.6 काजू
12.3.2.7 ह त श प व तु एँ
12.3.2.8 इंजी नय रंग व तु एँ
12.3.2.9 नयात का बदलता हु आ ढाँचा
12.4 भारत के वदे शी यापार क दशा
12.5 भारत के वदे शी यापार क मु ख वशेषताएँ
12.6 भारत क यापार नी त
12.7 नयात ो नत
12.7.1 नयात संवधन े
12.7.2 वशेष आ थक े
12.8 व व यापार संगठन का भाव
12.8.1 अवसर
12.8.2 चु नौ तयाँ सारांश
12.10 श दावल
12.11 स दभ थ
12.12 बोध नो के उ तर
12.13 अ यासाथ न

12.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप भारत के वदे शी यापार के न न पहलु ओं के
वषय मे समझ सकगे
 वकासशील अथ यव था म वदे शी यापार का मह व,
 वत ता- ाि त के उपरा त व भ न योजना काल म भारत के वदे शी यापार का बदलता
हु आ संरचना मक संघटन
 वत ता-उपरा त काल म भारत के आयात व नयात ढाँचे का प रवतनशील संरचना मक
संघटन
 भारत के वदे शी यापार म े ीय दशागत प रवतनो का अ यतन ान
 भारत के वदे शी यापार क मु ख ला णक वशेषताएँ
 भारत क यापार नी त
 भारत के नयात संव न उपाय
 भारत के वदे शी यापार पर व व यापार संगठन (WTO) के अनुकूल व तकू ल भाव ।

318
12.1 तावना (Introduction)
1947 से पूव भारत टश शासन का एक उप नवेश था और उसके वदे शी यापार का
ढाँचा एक कार से औप नवे शक ढाँचा ह था। भारत औ यो गक दे श , वशेषकर इं लै ड को
खा य पदाथ और क चे माल का नयात करता था और उनसे न मत व तु ओं का आयात करता
था । न मत व तुओं के लए वदे श पर नभर होने के कारण दे श औ योगीकरण न कर सका
बि क टश न मत व तु ओं वारा भारतीय माल से घोर त प ा के कारण दे शी ह त श प
को भार ध का लगा ।
वत ता- ाि त के प चात ् वकासशील अथ यव था क आव यकताओं के लए यापार
के औप नवे शक ढाँचे को बदलना अ नवाय था । जो-भी अथ यव था वकास काय म को
कायाि वत करने का नणय करती है उसे अपनी उ पादन मता को तेजी से बढ़ाना पड़ता है ।
इस कारण वकास क आरि भक अव था म मशीनर तथा अ य सामान, जो दे श म नह ं बनाया
जा सकता, का आयात करना पड़ता है । ऐसे आयात जो उ पादन के अ य े म मता का
व तार करते ह, वकासा मक आयात (development imports) कहलाते ह । उदाहरणाथ,
इ पात, संयं , इंजन बनाने के कारखाने, जल व युत ् प रयोजनाएँ आ द था पत करने के लए
कया गया आयात वकासा मक आयात ह है । दूसरे , एक वकासशील दे श जो औ योगीकरण के
लए य नशील हो उसे दे श म था पत मता के योग के लए क चे माल तथा अ तवत
व तु ओं (intermediate goods) का आयात करना पड़ता है । ऐसा आयात जो दे श म था पत
उ पादन मता का पूरा उपयोग करने के लए कया जाता है , प रपोषक आयात
(maintenance imports) कहलाता है । वकासशील अथ यव था के लए प रपोषक आयात
बहु त मह वपूण है य क बहु त-सी औ यो गक प रयोजनाएँ प रपोषक आयात के अभाव म क
जाती ह । कसी वकासशील अथ यव था के लए वकासा मक और प रपोषक आयात यह सीमा
नधा रत करते ह िजसम कसी समय- वशेष पर औ योगीकरण कया जा सकता है । इसआयात
के अ त र त एक वकासशील दे श को ऐसी उपभोग-व तु ओ का आयात भी करना पड़ता है
िजनका संभरण औ योगीकरण काल मे कम होता है । पसे आयात अ फ तकार (Anti-
inflationary) होते है य क वे उपभोग-व तु ओं क दुलभता को कम करते है । वत ता-
उपरा त भारत मे खा या न का आयात एक ऐसा उदाहरण है िजसके कारण दे श मे क मत क
वृ पर रोक लगाई जा सक ।
बहु त वाभा वक है क वकास के आरि भक वष म आयात म ती वृ हो िजस
कारण वकासशील दे श का यापार-शेष (trade balance) बहु त तकू ल हो जाए । वदे शी
सहायता म वकासशील दे श को वकास का भार वयं सहन करना पड़ता है । आयात लोचह न
होने क ि थ त म कसी वकासशील अथ यव था को अपने नयात को बढाना अ नवाय हो जाता
है ता क अपने बढते हु ए वदे शी ऋण को कम कया जा सके । पर परा से भारत-जैसे
अ प वक सत दे श खा य पदाथ और क चे माल के नयातक रहे ह । जैसे-जैसे आ थक वकास
ग त करता है क चे माल का नयात कम हो जाता है य क दे श म बढ़ते हु ए उ योग के लए
क चे माल क माँग बढ जाती है । ती जनसं या वृ के कारण नयात के लए उपल ध

319
खा या तरे क (Food surplus) या तो बहु त कम हो जाता है या घाटे म प रव तत हो जाता है ।
प रणामत: वकासशील अथ यव था को अपने नयात बढाने के लए नई व तु एँ और नए बाजार
ढू ँ ढने पड़ते ह । अ प वक सत दे श म औ योगीकरण के लए वक सत दे श यापार-अवरोधक
(Trade barriers) को कम करके और इसक उपभोग तथा अ न मत व तु ओं के नयात को
वीकार करके सहायता कर सकते ह । अ प वक सत दे श के लए वदे शी सहायता य य प मह व
रखती है तथा प इससे भी अ धक मह वपूण वदे शी यापार है । अत: अ प वक सत दे श वारा
जो नया नारा बुल द कया गया है , वह है ' यापार और सहायता' ।
बोध न : 1
1. वकासा मक आयात ( Development imports) कसे कहते ह ? उदाहरण
द िजए।
2. प रपोषक आयात ( Maintenance imports) कसे कहते ह? उदाहरण
द िजए।
3. अद फ तकार आयात ( Anti-inflationary imports) कसे कहते ह?
उदाहरण द िजए।
4. यापार-शे ष से या ता पय ह ?
5. यापार के अवरोधक कारक कौन-कौन-से ह ?

12.2 वत ता-उपरा त काल म भारत का वदे शी यापार (Foreign


Trade of India After Independance)
वत ता-उपरा त काल म भारत के वदे शी यापार का अ ययन करने के लए इस
सम त अव ध को सात काल म वभ त करना सु वधाजनक होगा ।
आयोजन क ारि भक अव था म भारत म नयात क अपे ा आयात कह ं अ धक थे ।
आयात म वृ के कई कारण थे - (1) यु काल म अव मांग और यु ोपरा त काल म लगाए
गए वभ न नय ण एवं तब ध के प रणाम व प आयात म वृ , (11) वभाजन के
फल व प खा य तथा मू ल क चे माल (पटसन और ई) क दुलभता के कारण आयात म वृ ,
और (।।।) त थापन और वकास प रयोजनाओं क आव यकताओं क ि ट से मशीनर तथा
अ य सामान के आयात मे वृ ।

12.2.1 1951-52 से 1955-56 - पहसा योजना काल

इस काल म आयात का औसत वा षक मू य 730 करोड़ पए और नयात का 822


करोड़ पए था । इस कार औसत वा षक यापार-घाटा 108 करोड़ पए था । आपार घाटे का
मु य कारण औ योगीकरण के लए पू ज
ं ी व तु ओं के आयात म वृ था । कुल आयात के
तशत प मे क चे माल के आयात म कुछ कमी हु ई । नयात मे कोई उ न त नह ं ह ।

12.2.21956-57 से 1960-61 - दूसरा योजना काल

320
-दूसर योजना के दौरान औ योगीकरण का एक वशाल काय म ार भ कया गया ।
इसके अ दर इ पात कारखान क थापना, रे ल का व तार तथा नवीनीकरण और कई उ योग
का आधु नक करण समा व ट थे । प रणामत: आयात क मा ा बहु त अ धक बढ गई । इसके
अ त र त वकासशील अथ यव था के लए प रपोषक आयात क आव यकता से दे श का आयात
और भी बढ़ गया । दूसर योजना म खा या न का भी लगातार आयात करना पड़ा और इस
अव ध म कुल 805 करोड़ पए के खा या न का आयात कया गया ।
ता लका 12.1 : भारत पहल तीन योजनाओं एवं वा षक योजनाओं म यापार-शेष
योजना नयात आयात यापार े
थम योजना 3,109 3,651 -542
(1951-52से 1955-56)
वा षक औसत 622 730 -108
दूसर योजना 3,083 5,402 - 2339
(1956-57 से 1960-61)
वा षक औसत 613 1,080 - 487
तीसर योजना 3,735 6,119 - 2,384
(1961-62 से 1965-66)
वा षक औसत 747 1,224 - 477
वा षक योजनाएँ 3,708 5,775 - 2,067
(1966-67 से 1968-69)
वा षक औसत 12361 ,925 - 689
ोत: रजव बक ऑफ इि डया बुले टन, जु लाई 2004
दूसर योजना म नयात वारा औसत वा षक ाि त थम योजना काल क अपे ा कम
थी जो यह कट करती है क नयात व वधता और नयात ो साहन के यास सफल न हो पाए
। प रणामत: दूसर योजना के दौरान भारत म औसत वा षक तकू ल यापार-शेष 467 करोड़
पए था जो क थम योजना क वा षक औसत अथात ् 108 करोड़ पए से कह ं अ धक था ।

12.2.3 1961-62 से 1965-66 - तीसरा योजना काल

तीसर योजना के नयात स ब धी आँकड़ से प ट है क औसत वा षक नयात 747


करोड़ पए था । इसके वपर त औसत वा षक आयात 1,224 करोड़ पए था (ता लका 12.1) ।
इसके मु यत: दो कारण थे - थम, तर ा क आव यकताएँ बढ गई, और वतीय, सू खे के
कारण खा या न क भार मा ा का आयात करना पड़ा ।
ता लका 12.2 भारत 1969-70 से 1990-91 काल म यापार-शेष
(करोड़ पय म)
वष नयात आयात यापार शेष
चौथी योजना (1969-70 से 1973-74)

321
1969 - 70 1,413 1582 -199
1970 – 71 1,525 1634 -99
1971 – 72 1,607 1824 -217
1972 - 73 1,971 1867 +104
1973 - 74 2,523 2955 -432
वा षक औसत 1,810 1972 -162
पाँचवी योजना (1974- 75 से 1 977- 78)
1974 - 75 3,329 4519 -1190
1975 – 76 1,043 5262 -1222
1976 – 77 5,146 5074 +72
1977 – 78 5,404 6025 -621
वा षक औसत 4,472 5231 -740
1978 – 79 5,726 6814 1088
1979 – 80 6,418 9142 -2724
छठ योजना (1980-81 से 1984-85)
1980 – 81 6,711 12549 -5838
1981 – 82 7,606 13608 -5805
1982 – 83 8,803 14293 -5489
1984 – 85 9,770 15831 -6061
1984 – 85 11,744 17134 -5390
वा षक औसत 8,967 14683 -5390
सातवीं योजना (1985-88 से 1989-90)
1985 – 86 10,895 19658 -8763
1986 – 87 12,452 20096 -764
1987 – 88 15,674 22096 -6570
1988 – 89 20,23 128235 -8004
वा षक औसत 17,382 35328 -7670

ोत : रजव बक ऑफ इि डया बुले टन , जु लाई 2004

12.2.4 1966-67 से 1968-69-वा षक योजना काल तथा 1969-70 से 1973-74-चौथा


योजना काल

1966 म भारत ने अपने पए का 36.5 तशत अवमू यन कया । अवमू यन क


घोषणा सूखे के वष म क गई और इसके बाद का वष भी मौसम क ि ट से तकूल ह रहा ।
साथ ह इस वष सरकार ने 59 उ योग म उदार आयात नी त अपनाने क घोषणा भी क । इन

322
सबका संचयी भाव यापार-शेष के घाटे को और बढाना था । य य प पए के अवमू यन के
प चात ् 1966-67 और 1967-68 के दौरान नयात म वृ हु ई तथा प आयात के लोचह न होने
के कारण आयात का मू य 1967-68 म एकदम बढ़कर 2,043 करोड़ पए हो गया ।
प रणाम व प 1966-67 और 1967-68 के दौरान यापार-शेष क ि थ त और भी खराब हो
गई । 1968-69 और 1989-70 म अ छ फसल होने के कारण खा या न आयात म
उ लेखनीय कमी हु ई । इसके अ त र त अवमू यन के कारण भी नयात ो साहन को बल मला
। अत: यापार-शेष जो 1987-68 म 788 करोड़ पए तक तकूल था, 1968-69 म कम
होकर केवल 373 करोड़ पए तक तकू ल रह गया । 1969-70 म यह और भी कम हो गया ।
1972-73 म आयात प रसीमन, खा या न आयात को कम करने और नयात ो साहन नी त के
प रणाम व प दे श म वत ता-उपरा त काल म पहल बार यापार-शेष अनुकू ल तो हु आ पर तु
1973-74 म ह इसका भाव समा त हो गया य क बहु त-से अ तरा य कारण त व ने
पे ो लयम पदाथ , इ पात और अलौह धातु ओ,ं उवरक और अखबार कागज क क मत को ऊँचा
चढ़ा दया । नयात क मत म वृ से य य प नयात 2523 करोड़ पए के तर तक पहु ँच गए
तथा प आयात क मत म ती वृ के कारण उनका मू य भी 2,955 करोड़ पए के उ च तर
पर पहु ँ च गया । प रणामत: यापार-शेष म 432 करोड़ पए का घाटा फर य त हो गया । कुल
मलाकर यह कहा जा सकता है क वा षक योजनाओं और तृतीय योजना क तुलना म चौथी
योजना म यापार-शेष का रकॉड संतोषजनक था ।

12.2.5 1074-75 से 1977-78 - पाँचवाँ योजना काल

तेल क क मत म वृ (जो अ टू बर 1973 म ार भ हु ई) ने दु नयाभर म आयात एवं


नयात मू य पर भार भाव डाला । भारत भी इसका अपवाद न रह सका । ता लका 12.2 से
प ट है क पाँचवीं योजना के दौरान आयात मू य कस कार ऊँचे तर पर पहु ँ च गए । इसका
मु य कारण भारत क धान आयात व तु ओं अथात ् पे ो लयम, उवरक एवं खा या न के मू य
म ती वृ था । साथ ह भारत के नयात म भी मह वपूण वृ हु ई और वे पाँचवीं योजना के
येक उ तरो तर वष मे बढ़ते ह गए । यह वृ इतनी ती थी क 1076-77 तक नयात
मढ़कर 5,140 करोड़ पए हो गए और वे आयात से 72 करोड़ पए अ धक हो गए । अत: भारत
के वदे शी यापार मे दूसर बार अ तरे क पैदा हो गया । इसका मु य कारण दे श क नयातोमुखी
नी त था । मछल , मछ लय से बनी व तु ओ,ं काँफ , मू ँगफल , सू तीव और ह त श प नयात
मे ती वृ हु ई । लौह एवं इ पात के नयात मे भी उ लेखनीय वृ हु ई ।
1977-78 म भारत सरकार वारा आयात म उदारता क नी त अपनाने और नयात-
तेजी (Export boom) के समा त हो जाने के कारण भारत के वदे शी यापार म पुन : 621
करोड़ पए का भार घाटा उ प न हो गया । इस कार पाँचवीं योजना के दौरान दे श का औसत
वा षक यापार-घाटा 740 करोड़ पए हो गया ।

12.2.6 1978-79 से 1979-80-वा षक योजना काल तथा 1980-81 से 1984-85-

छठवीं योजना काल

323
पे ो लयम नयात करने वाले दे श वारा पे ो लयम क क मत म और अ धक वृ कर
दे ने के कारण दे श का आयात बल, जो 1978-79 म 6,814 करोड़ पए था, बढ़कर 19790-80
म 9,142 करोड़ पए हो गया । इसके वपर त नयात, जो 1978-79 म 5,726 करोड़ पए थे,
बढकर 1979-80 म केवल 6,418 करोड़ पए तक ह पहु ँ च सके अथात ् इनम केवल 12.।
तशत क वृ हु ई । प रणामत: 1979-80 म दे श का यापार-घाटा 3,724 करोड़ पए हो गया
। 1980-81 म ि थ त और भी ग भीर हो गई और यापार-घाटा 5838 करोड़ पए के उ च
तर पर पहु ँच गया । 1981-82 और 1982-83 के दौरान भी यापार-घाटा मश: 5802 करोड़
और 5489 करोड़ पए रहा । आयात और नयात के ऑकड़ क समी ा से पता चलता है क
इसके बावजू द पे ो लयम तथा इससे स बि धत पदाथ का आयात, जो 1980-81 म 5267 करोड़
पए था, गरकर 1983-84 म 4830 करोड़ पए रह गया य क एक तो तेल क अ तरा य
क मत गर रह ं थीं और दूसरे तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग वारा क चे तेल के दे शीय उ पादन
को बढ़ाया गया । फर भी 1983-84 म यापार-घाटा 6061 करोड़ पए था । इस ि थ त क
या या इस बात से होती है क वदे शी मु ा क जो बचत पे ो लयम के आयात म कमी के
कारण हु ई वह आयात उदारता क नी त अपनाने के कारण गैर-पे ो लयम आयात म वृ के
प रणाम व प कट गई । छठवीं योजना के दौरान 14683 करोड़ पए के औसत वा षक आयात
के व 8967 करोड़ पए का औसत वा षक नयात कया गया । इस कार छठवीं योजना के
दौरान 5716 करोड़ पए का भार वा षक यापार-घाटा य त हु आ जो रा के लए च ताजनक
रहा ।

12.2.7 1985-86 से 1989-90 - सातवाँ योजना काल

सातवीं योजना के आँकड़ से पता चलता है क भारत सरकार क उदार करण क नी त


के प रणाम व प औसत वा षक आयात बढ़कर 25114 करोड़ पए हो गए जब क नयात केवल
17382 करोड़ पए तक ह पहु ँच -सके । अत: 17,382 करोड़ पए का अभू तपूव औसत वा षक
घाटा य त हो गया । इतने भार यापार-घाटे के उ प न होने के कारण भारत सरकार को ववश
होकर अ तरा य मु ा कोष के पास 670 करोड़ डॉलर के ऋण के लए जाना पड़ा । बढ़ते हु ए
आयात को रोकने के लए भी सरकार को आयात लाइसस क उदार नी त पर अंकुश लगाना पड़ा।

12.2.8 1990-91 से 1991 -92 - वा षक योजना काल

इसम स दे ह नह ं क नयात ो साहन के यास के कारण दे श के नयात बढ़कर


1990-91 म 32,558 करोड़ पए हो गए अथात ् इनम 17. 7 तशत क वृ हु ई, पर तु खाड़ी
यु के प रणाम व प सरकार आयात को सी मत न कर सक और ये बढकर 43,193 करोड़
पए के उ च तर पर पहु ँच गए अथात ् इनम 22.6 तशत क वृ हु ई । प रणामत: यापार-
शेष 1990-91 म एकदम बढ़कर 10,635 करोड़ पए हो गया (ता लका 12.3) ।
ता लका 12.3. भारत का यापार-शेष 1990-91 के प चात ्
वष करोड़ पया करोड़ यू.एस डॉलर
नयात आयत यापार शेष नयात आयात यापार शेष

324
1990–91 32558 43,193 -10635 1,8145 2,407.3 -592.8
1991-92 44,042 47,851 -3,809 1,768.6 1,941.1 -154.5
1992–93 53,688 63,375 -9,887 18537 2,188.2 -334.5
1993-94 69751 73,101 -3,350 2,223.8 2330.6 - 106.8
1994–95 82672 89971 -7,297 2633.1 2865.4 -232.3
1995-96 106353 121678 - 16325 3179.7 3367.8 -488.1
1996-97 118817 138920 -20,10 3,347 3913.2 -566.2
वा षक औसत 86,257 97, 609 - 11,35 2,647.4 2.993.0 -345. 6
(1992-93 से 96-97)
1997–98 1,30,101 154,176 -24076 3,500.6 4,1484 -647.8
1998-99 139753 178332 -38,579 3321.9 4238.9 -917.0
1999–2000 159561 2,15,528 -55,967 3682.7 4967.1 -1284.8
2000-01 203571 230873 -27,302 4456.0 5053.3 -597.6
2001-02 209018 2,45200 -36,182 4,382.7 2,141.3 -785.7
वा षक औसत
1,68,401 2,04,784 -36,363 3868.7 4,709.9 - 841.2
(1997-98 से 2001-
02)

2002–03 255,137 2,97,206 -42.069 5271.9 6141 .2 -869.3


2003-04 2,93,637 3,59,108 -65,741 6,384.3 7814.9 -1430.6
2004-05 3,75,340 5,04,065 -125725 8353.6 11,151.7 -3,798.1
2005 - 06 456418 660409 -20391 10,309 114916.6 -4807.5
ोत : रजव बक ऑफ इि डया बुले टन, अ ेल 2007
1991-92 के दौरान यू.एस. डॉलर के प म नयात म 1.5 तशत क कमी हु ई और
वे 1991-92 म 1,786 करोड़ डॉलर थे । पर तु आयात-संकुचन (import compression)
अ धक ती था और इनम 19.4 तशत क गरावट आई - 1990-91 म 2,407 करोड़ डॉलर
से गरकर 1991-92 म 1,941 करोड़ डॉलर । प रणामत: यापार-घाटा 1991-92 म 155
करोड़ डॉलर हो गया जब क यह 1990-91 म 593 करोड़ डॉलर था । इसके बावजू द क सरकार
ने नई यापार नी त म नयात बढ़ाने के लए बहु त-से उपाय कए, जैसे - नयात-आयात ि स
(exim scrips) क इजाजत दे ना, नकद तपू त आल बन (cash compensatory) और
पए का दो चरण म अवमू यन - पर तु ये सभी उपाय नयात को ो सा हत करने म वफल
रहे । सामा य करसी े म भी डॉलर के प म नयात म केवल 6.3 तशत क वृ हु ई ।
इसक तुलना म पया करसी े म 1991-92 के दौरान नयात म 42.5 तशत क गरावट
आई । इसका मु य कारण सो वयत संघ म अ नि चत राजनी त ि थ त थी िजसका प रणाम
इसके वघटन के प म य त हु आ । प रणामत: नयात म गरावट आई ।

325
12.2.9 1902-93 से 1998-97 - आठवीं योजना काल

1992-93 के दौरान नयात म केवल 3.7 तशत क वृ हु ई और नयात, जो


1991-92 म 1787 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर केवल 1854 करोड़ डॉलर ह हो पाए । इसके
वपर त आयात म 12.7 तशत क अ धक वृ हु ई - वे 1991-92 म 1,941 करोड़ डॉलर थे
जो बढ़कर 1992-93 म 2,188 करोड़ डॉलर हो गए । प रणामत: यापार-घाटा जो 1991-92 म
154.5 करोड़ डॉलर था बढकर 1992-93 म 334.5 करोड़ डॉलर हो गया ।
पाँच वष (1992-93 से 1996-97) क अव ध के व लेषण से पता चलता है क नयात
यास को 1990-97 तक तेजी से बढ़ावा मला । नयात जो 1991-92 म 1,786.6 करोड़
डॉलर थे बढ़कर 1990-97 मे 3347 करोड़ डॉलर हो गए अथात ् 5 वष क अव ध म इनमे
लगभग 87 तशत क मृ द हु ई । पर तु इसके साथ-साथ उदार करण क नी तय के कारण
सीमा-शु क (custom duties) म कटौती करने से आयात भी, जो 1991-92 म 1,041 करोड़
डॉलर थे बढ़कर 1998-97 मे 3,913.2 करोड़ डॉलर पर पहु ँ च गए अथात ् इनम लगभग 102
तशत क वृ हु ई । प रणामत: दे श का यापार-घाटा, जो 1991-92 म 1545 करोड़ डॉलर
था, बढ़कर 1990-97 म 566.2 करोड़ डॉलर हो गया अथात ् इसमे तीन गुना वृ हु ई ।

12.2.10 1997-98 से 2001-02 - नौवाँ योजना काल

1996 के प चात ् व व के यापार स ब धी आ थक वातावरण म ती गरावट, द ण-


पूव ए शयाई संकट, जापान म लगातार तसार (recession), स म भयंकर आ थक संकट
और 1997-98 म व व उ पादन म 2 तशत गरावट के कारण व व यापार म कमी - इन
सभी कारणत व के प रणाम व प भारत के वदे शी यापार क ग त भी म द पड़ गई । 1998-
99 म नयात गरकर 3,312.9 करोड़ डॉलर रह गए जब क ये 1997-98 म 3,500.6 करोड़
डॉलर थे । क तु अगले दो वष (1999-2000 और 2000-01) म नयात म वृ हु ई और ये
बढ़कर 2000-01 म 4,456.0 करोड़ डॉलर तक पहु ँच गए । इसके तदनु प आयात के आँकड
से पता चलता है क इनम लगातार और ती वृ हु ई और ये 1997-98 म 4,148.4 करोड़
डॉलर से बढ़कर 2000-01 म 5,053.6 करोड़ डॉलर हो गए । 2001-02 म नयात म गरावट
हु ई और ये घटकर 4,382.7 करोड़ डॉलर रह गए पर तु आयात क वृ जार रह और वे बढ़कर
5141.3 करोड़ डॉलर के रकॉड तर पर पहु ँच गए । नौवीं योजना क सम पचवष य अव ध के
दौरान नयात क वा षक औसत 3,668.7 करोड़ डॉलर थी और आयात क 4709.9 करोड़ डॉलर
। प रणामत: नौवीं योजना म औसतन यापार-घाटा 8,41.2 करोड़ डॉलर था जो आठवीं योजना
के दौरान 345.6 करोड़ डॉलर से लगगग 143 तशत अ धक था ।

12.2.11 2002-03 से, 2005-06 - दसवीं योजना काल

326
दसवीं योजना के पहले चार वष (2002-03 से 2005-06) के दौरान नयात, जो 2001-
02 म 4,382.7 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर 2003-04 म 6384 करोड़ डॉलर हो गए अथात ् इनम
458 तशत क भार वृ हु ई । पर तु व व यापार संगठन के दबाव के अधीन आय त
2002-03 म 5141.3 करोड़ डॉलर से बढ़कर 2003-04 म 7815 करोड़ डॉलर पर पहु ँ च गए
अथात ् इनम सापे त: 52.0 तशत क वृ हु ई । प रणामत: यापार-घाटा 2003-04 म
14.31 अरब करोड़ डॉलर के रकॉड तर पर पहु ँच गया । 2004-05 म यापार-घाटा 27.98
अरब डॉलर के उ च तर तक बढ़ गया । यह प र थ त 2005-06 म बनी रह जब क नयात
बढ़कर 103.1 अरब डॉलर हो गए । आयात म अभू तपूव वृ हु ई और ये 149.2 अरब डॉलर पर
पहु ँ च गए । इसके प रणाम व प 46.1 अरब डॉलर का भार यापार-घाटा उ प न हो गया । यह
दे श के लए च ता का कारण था ।.
एक और यान दे ने यो य बात यह है क पए के प म नयात म 18.5 तशत क
वा षक वृ 8 वष (1992-93 से 2001-02) के दौरान हु ई और आयात म 19.1 तशत क
वा षक वृ हु ई । पर तु नयात यास का अ धकतर भाग दो चरण म कए गए अवमू यन के
भाव का नराकरण करने म ह समा त हो गया । आयात मू य म वृ बहु त हद तक
अवमू यन के कारण ह हु ई । प ट है क अवमू यन एक अ पकाल न उपाय है और यह दे श के
लगातार चलते हु ए यापार-घाटे क सम या का कोई थाई हल तु त नह ं करता । इस ि ट से
यह कह ं अ धक वांछनीय होता क भारत म क मती पर कड़ा नय ण रखा जाता ता क
अ तरा य बाजार म पया अ तमू ि यत नह ं होता और इस कारण एक और अवमू यन क
आव यकता नह ं पड़ती । सह उपचार तो यह था क दे श क अथ यव था क वृ -दर अ धक
तेज होती ता क फ त पर भावी प से नय ण पाया जा सकता । इसी कार नयात यास
वा तव म भावी बन सकता था । दे श इस बात के लए गव तो कर सकता है क उसके नयात
2005-06 म 103.1 अरब डॉलर हो गए पर तु इसके साथ-साथ आयात छलाँग लगाकर 140.2
अरब डॉलर तक पहु ँच जाने से यापार-घाटा 2005-00 म 46.1 अरब डॉलर हो गया जो पछले
पाँच वषा का रकॉड- तर है (ता लका 12.4) ।
नयात, जो 1999-2000 म 3682 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर 2000-01 म 4456 करोड़
डॉलर हो गए अथात ् इनम 21.1 तशत क वृ हु ई । इसके मु य कारण थे - पए का
मू यहास, उदार करण का बढ़ावा, टै रफ म कटौती और नयातो मु खी े , जैसे - सू चना
तकनीक म वदे शी नवेश - के त उदारता । क तु आयात प क ओर , 1999-2000 और
2000-01 के दौरान क चे तेल क अ तरा य क मत म ती वृ हु ई । इसके प रणाम व प
पे ोल, तेल और नेहको का आयात, जो 1998-1999 म 640 करोड़ डालर था, बढ़कर 1999-
2000 म 961 करोड़ डॉलर पर पहु ँच गया अथात ् इसम 1999-2000 म 50 तशत क वृ
और 2001-01 के दौरान गत वष क तुलना म 67.4 तशत वृ हु ई । पे ो लयम के आयात
म ती वृ ने गैर -पे ो लयम आयात क पया त वृ को रोक दया । गैर -पे ो लयम आयात,
जो 1998-99 म 3599 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर 1999-2000 म 4006 करोड़ डॉलर हो गए
अथात ् इनम केवल 11.3 तशत क वृ हु ई; पर तु यह 2000-01 मे गएरं कर 3445 करोड़

327
डॉलर हो गए अथात ् इनम 14 तशत क कमी हु ई । इसका अथ यह हु आ क पी.ओ. एल.
आयात को ब धनीय सीमाओं के बीच रखा जाए । सन ् 1999-2000 के दौरान आयात म 17.1
तशत क वृ हु ई जब क 2000-01 म इसम सीमा त प म मा 1.7 तशत क ह वृ
हु ई । आयात को 1.7 तशत तक सी मत कर दे श अपने यापार-शेष को 2000-01 म 598
करोड़ डॉलर तक सी मत कर पाया जब क यह 1999-2000 म 1,265 करोड़ डॉलर था ।
ता लका 124 : भारत - आयात और नयात म वृ
आयात
वष पी.ओ.एल गैर-पी.ओ.एल. कु ल नयात
1996 - 97 1003.6 2906.6 3913.2 3347.0
1997 - 98 816.3 3332.1 4,148.4 35,00.6
1998 - 99 639.9 3,599.0 4,238.9 3,321.9
1999 - 00 960.7 4,006.4 4,967.1 3,682.2
(50. 1) (11 .3) (17.1) (15.0)
2000 - 01 1,608 3,445.0 5,053.6 4,456.0
(67 .4) (-14.0) (1. 7) (21.0)
2001 - 02 1,468 3,873 5,141 4,383
(-8. 7) (6.6) (1 .7) (-1.6)
दसवी योजना
2002 – 03 1887.2 4,254.0 6,141.2 5,271.9
(28 .5) (57.0) (19.4) (21.4)
2003 - 04 2,059.9 5,765.2 7,825.1 6,397.9
(9 .3) (35.5) (27.4) (21.3)
2004 - 05 3,447.5 7,672.2 11,151.7 8,353.6
(68.6) (33.2) (42 .5) (30.6)
2005 - 06 5,277.3 9,639.3 1,4916.6 10,309.1
(51 .9) (25.6) (33.8) (23.4)
नोट : को ठक म दए गए आँकड़े गत वष पर तशत वृ को य त करते ह।
ोत : भारतीय रजव बक, Handbook of Stiatistics on Indian Economy (2005-
06)
य य प 2002-03 म नयात म 21.4 तशत क वृ हु ई तथा प आयात म 19.4
तशत क वृ के प रणाम व प यापार-घाटा 869 करोड़ डॉलर हो गया । प रि थ त 2003-
04 म बहु त बगड़ गई जब आयात बढकर 7825 करोड़ डॉलर के रकॉड- तर पर पहु ँ च गए
अथात ् 2002-03 क तु लना म 27.4 तशत अ धक । चाहे नयात म 21.3 तशत क भार
वृ हु ई हो फर भी यापार-घाटा 1,445 करोड़ डॉलर तक पहु ँ च गया । इसका मु य कारण गैर-

328
पी.ओ.एल आयात म 35.5 तशत क ती वृ के कारण इनका 5765 करोड़ डॉलर हो जाना
था । 2004-05 और 2005-06 के दौरान पी.ओ.एल. और गैर-पी.ओ.एल दोन के आयात म ती
वृ हु ई जब क गैर-पी.ओ.एल आयात क तु लना म पी.ओ.एल आयात म अपे ाकृ त तेज वृ हु ई
। 2005-06 म कुल आयात 14,917 करोड़ डॉलर तक पहु ँच गए ।

12.3 भारतीय वदे शी यापार क संरचना (Composition of India’s


Foreign Trade)
भारत सरकार ने भारतीय वदे शी यापार के व तु-वग करण को 1987-88 से संशोधत
कर दया । अत: 1987-88 के बाद के ऑकड़े इससे पहले के काल से तुलनीय नह ं ह । यहाँ
1970-71 और 1980-81 के आँकड़ेएं को पुनवग कृ त करके कुछ हद तक तुलनीय बनाने का
यास कया गया है ।

12.3.1 आयात का ढाँचा (Pattern of Imports)

आयात को अ बार आयात (bulk imports) और गैर-अ बार आयात (नॉन-bulk


imports) म वग कृ त कया जाता है । अ बार आयात के तीन अंग ह - (i) क चा पे ो लयम
एवं उ पाद, (ii) अ बार उपभोग व तु एँ िजनम अनाज और दाल, खा य--तेल और चीनी शा मल
कए जाते ह, और (iii) अ य अ बार मद म उवरक, अलौह धातु ए,ँ कागज एवं गला, रबर, गुहा
एवं रह कागज, ख नज अयरक, लौह तथा इ पात शा मल कए जाते ह ।
गैर-अ बार आयात को भी तीन भाग म वभ त कया जाता है - (i) पू ज
ं ी व तु एँ
िजनम धातु ए,ँ मशीनी औजार, इलेि क एवं गैर-इलेि क मशीनर , प रवहन उपकरण और
प रयोजना व तु एँ शा मल क जाती ह; (ii) मु यत: नयात-स बि धत-मद म ह रे तथा क मती
प थर, कॉब नक एवं अकॉब नक रसायन व (सू त एवं फै स) एवं काजू शा मल कए जाते ह;
तथा (iii) अ य मद म लाि टक का सामान, यावसा यक एवं वै ा नक उपकरण, कोयला एवं
कोक, रसायन, गैर-धातु क ख नज उ पाद आ द शा मल कए जाते ह ।
ता लका 12.5 से पता चलता है क आयात म लगातार वृ क वृि त व यमान 'रह
है िजसके लए आ त रक एवं बाहर दोन कार के कारणत व उ तरदायी रहे ह । 1970-80
दशक के दौरान पे ो लयम नयातक दे श के संगठन (Organisation of Petroleum
Exporting Countries) वारा पहल बार 1973-74 म और फर दोबारा 1979-80 म क मत
म ती वृ क गई । प रणामत: पे ो लयम पदाथ के आयात म 1970-80 के दशक म तेज
वृ हु ई िजसका भाव 1980-90 के दशक म भी महसूस कया गया । 1979-80 म
अथ यव था म भार सू खा पड़ा ।
1980-90 के दशक के दौरान बहु त-से कारणत वो ने आयात को बढ़ाने म संचयी भाव
डाला । इनम उ लेखनीय ह- गत दशक के दौरान तेल क क मत म वृ के प रणाम व प
वदे शी मु ा का भार उ वाह, 1987 के सू खे के कारण दे श म खा या न का ग भीर प म
अभाव, अथ यव था क बढ़ती हु ई वृ दर के कारण माँग का दबाव और सरकार वारा अपनाई

329
गई उदार करण क नी त । इन सब कारणत व के प रणाम व प एक ऐसी या ग तमान हो
गई िजसने आयात पर अथ यव था क नभरता बढ़ा द । 1970-71 म कु ल आयात ।,634
करोड़ पए थे जो बढ़कर 1980-81 म 12,549 करोड़ पए हो गए । अत: इस दशक के दौरान
आयात म 19.2 तशत क वा षक वृ हु ई । 1980-90 दशक के दौरान और वशेषकर
1984-85 के प चात ् जब भारत सरकार ने उदार करण क नी त का अनुसरण कया तो आयात
एकदम तेजी से बढ़कर 1990-91 म 43,193 करोड़ पए के तर पर पहु ँच गए । 1980-81
और 1990-91 के दौरान आयात क वृ दर 13.1 तशत के उ च तर पर बनी रह ।
2000-01 और 2005-2006 के दौरान आयात क वा षक औसत वृ दर 22.3 तशत थी ।
आमतौर पर आयात म वृ के लए पी.ओ.एल क मद को दोषी ठहराया जाता है । यह
बात स तर के दशक के लए स य है । अ सी के दशक का अनुभव यह बताता है क पी.ओ.एल
क मद क वृ -दर 1980-81 और 1990-91 के दशक के दौरान केवल 7.4 तशत थी, जब क
सम आयात क वृ -दर 13.1 तशत थी । अत: आयात म वृ क या या उदार करण क
नी त के कारण ह क जा सकती है िजसे सरकार ने तकनीक उ नयन के नाम पर बढ़ावा दया
। ता लका 12.5 म दए गए आँकड़ से पता चलता है क 1996-97 से 2005-06 के दौरान
पी.ओ.एल के आयात म औसत वा षक वृ 20.3 तशत थी, जब क गैर-पी.ओ.एल मद क
आयात म औसतन 14.2 तशत तवष क वृ हु ई ।
अ बार आयात, िजनम क चे माल, अ तवत व तु एँ और खा या न शा मल ह,
अथ यव था क वृ एवं ि थरता से स बि धत ह । स तर के दशक म इनक औसत वा षक
वृ -दर 23.2 तशत रह । प रणामत: कुल आयात म उनका भाग, जो 1970-71 म 50.5
तशत था, बढ़कर 1980-81 म 69.6 तशत हो गया, क तु इनक वृ -दर अ सी के दशक
म पया त प से कम हो गई और यह बाद म भी बनी रह ।
ता लका 12.5 : भारतीय आयात का ढाँचा
वा षक च वृ दर
करोड़ पए 1980-81 1990-91 2000-01
आयात क व तुएँ से से से
1980-81 1990-91 2000-01 2005-06 1990-91 2000-01 2005-06
I. अ बार आयात 8,39 19,464 95,095 2,68,594 8.6 17.2 23.0
(69.6) (45.1) (41.2) (42.6)
1. पे ो यम एवं उ पाद 5,267 10,816 71,497 1, 94,640 7.4 20.8 22.0
(42.0) (25.0) (31.0) (30.7)
2. अ बार उपभोग व तु एँ 901 999 999 6,593 11,870 10.7 20.5 12.5
(7.2) (2.2) (2.8) (1.9)
क. अनाज और दाल 100 673 586 2,801 29.3 - 1.4 33.7
ख. खा य तेल 704 326 5,977 8,716 – 33.8 7.9
3. अ य अ बार मद 2,571 7,650 17,005 62,084 11.5 8.3 29.6
(20.5) (17.7) (7.4) (9.8)
क. उवरक 818 1,766 3,435 9,159 8.0 6.9 21.7

330
ख. अलौह धातुएँ 477 1,102 2,439 8,157 8.7 8.3 18.8
ग. कागज एवं ग ता 187 456 2131 4168 9.3 16.6 14.4
घ. ख नज अय क 116 1,528 3537 16693 29.4 7.9 36.4
ड. लौह एवं इ पात 852 2,113 3554 19622 9.5 5.3 40.7
11. गैर-अ बार आयात 3,472 23,729 135,778 361,933 21.2 19.1 21.7
(27.7) (54.9) (58.8) (57.4)
4. पू ँजी व तु एँ 1,910 10,471 40,847 1,40,245 18.5 14.6 28.0
क. मशीनर 1,089 10,471 40,847 140245 18.5 14.6 28.9
ख. इलेि क एवं
इलै ो न स व तु एँ 260 1,702 18,226 64,878 20.7 26.7 28.9
ग प रवहन उपकरण 472 1,670 3,199 13,940 13.5 6.7 34.2
घ. ोजे ट व तु एँ - 2,556 3,414 3,613 - 2.9 1.4
5. नयात स ब धी व तुएँ 1,158 6,603 36,815 82,053 19.0 18.7 17.4
(9.2) (15.3) (15.9) (13.0)
क. ह रे तथा क मती प थर 417 3,738 21,964 40,469 24.5 19.4 13.0
ख. काब नक तथा आकब नक
रसायन 673 2,289 11,165 30,501 13.0 17.2 22.2
ग. व सू त एवं न मत व तुएँ 59 443 2,726 8,994 215 19.9 27.0
घ. काजू 9 134 431 2,090 12.4 30.1
ड़. अ य 404 6,655 58,116 13,9635 - 24.2 23.7
(3.2) (15.4) (25.2) (22.1)
कु ल (I+II) 12,549 43,193 2,30,873 3,30,527
(100.0) (100.0) (100.0) (100.0) 13.1 18.2 22.3
ोत भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy
(2005-06)
गैर-पी.ओ.एल. मद म उपभोग व तु ओ,ं िजनम अनाज और अनाज से तैयार व तु ए,ँ
खा य-तेल, दाल और चीनी शा मल ह, क वा षक वृ जो 1980-81 और 1990-91 के दौरान
10.7 तशत थी, एकदम बढ़कर 1990-91 और 2000-01 के दौरान 20.8 तशत हो गई ।
इसका मु य कारण खा य-तेल के आयात म ती वृ था जो 1990-91 म 326 करोड़ पए से
बढ़कर 2004-05 म 10,578 करोड़ पए हो गया, क तु लौह और इ पात के आयात क वृ -
दर 1985-86 से 1990-91 के दौरान 14.4 तशत के अपे ाकृ त उ च तर पर बनी रह । इसके
बाद 1991-2003 के दौरान इसम गरावट आई ।
मोटे तौर पर अ बार मद के आयात क वृ -दर सातवीं योजना के दौरान गरकर 7.2
तशत रह गई जब क यह छठवीं योजना के दौरान 10.2 तशत थी । अत: अ बार मद का
कु ल आयात म भाग, जो 1980-81 म 69.6 तशत था, 2005-06 म घटकर 42.6 तशत रह
गया । गैर-अ बार मद म पूजी व तुओं का भाग , जो 1980-81 म गरकर 15.2 तशत रह
गया था, 2005-06 के दौरान बढ़कर 22.2 तशत तक पहु ँच गया ।

331
12.3.1.1 उपभो ता व तुएँ एवं खा यान

पहले योजना काल के दौरान उपभो ता व तु ओं एवं खा या न का कुल आयात म 40


तशत भाग था । इससे प ट है क भारत उस समय अ त-अ प वकास क ि थ त म था और
अपनी बु नयाद ज रत अथात ् खा या न के लए वदे श पर नभर था । इन व तु ओं के आयात
धीरे -धीरे समय के साथ कम होते चले गए - दूसर और तीसर योजना म 35 तशत, चौथी
योजना म 27 तशत, पाँचवी योजना म 24 तशत । ये आयात 1990-91 ये कु ल आयात का
केवल 2.2 तशत थे, पर तु इनका भाग बढकर 2003-04 म 4.0 तशत हो गया । इसका
मु य कारण खा य-तेल के आयात म ती वृ था ।
1957 के प चात खा यान आयात काफ अ धक थे और इनका संभरण यू.एस.ए. से
ा त पी.एल. 480 वारा उपल ध सहायता वारा कया जाता था । चौथी योजना के आर भ
तक कु ल आयात के तशत के प म खा या न आयात मे वृ का कारण सू खे क
प रि थ तयाँ और दे शीय संभरण वारा दे शी माँग को पूरा न कर पाना था । केवल चौथी योजना
के दौरान खा या न आयात कम होकर 10 तशत हो गए । 1970-80 के दशक म खा या न
के भार मा ा म भ डार इक े होने के प रणाम व प इनका आयात कु छ वष म ब कुल समा त
हो गया और 1980-90 के दशक म बहु त-ह थोड़ा आयात कया गया । 1951 के प चात ्
आयात म न न ल खत संरचना मक प रवतन हु ए -
1. औ योगीकरण म ती ग त के प रणाम व प पू ज
ं ी व तुओं और क चे माल के आयात
म वृ ।
2. नयात ो साहन के लए आयात के उदार करण के आधार पर क चेमाल के आयात म
वृ , और
3. खा यान एवं अ य उपभो ता व तु ओं म कृ ष तथा औ यो गक वकास के
प रणाम व प दे श के आ म नभर हो जाने के कारण इनके आयात म गरावट ।
कु छ चु नी हु ई व तु ओं के आयात क वृि त ता लका 12.6 म द गई है । भारत के
वभाजन और इसक बढ़ती हु ई आबाद के कारण खा या न के आयात क आव यकता अनुभव
हु ई । आयोजन के पहले दशक (1950-51 से 1960-61) के दौरान खा या न का औसत वा षक
आयात 141 करोड़ पए था । तीसर योजना के दौरान यह बढ़कर 241 करोड़ पए तवष हो
गया । 1965-66 और 1966-67 म सू खा पड़ने के कारण ि थ त और बगड़ गई । प रणामत:
1966-67 से 1968-69 के दौरान कु ल 1,201 करोड़ पए का खा या न वदे श से मँगवाया गया
। चौथी योजना म खा य आयात के गरने क वृि त य त हु ई । खा य आयात, जो 1969-70
म 184 करोड़ पए थे, गरकर 1972-73 म केवल यह करोड़ पए रह गए । पर तु ये अ छ
फसल के चार वष थे । यह वृि त 1973-74 म फर उलट गई और 1974-75 से 1979-80 के
दौरान खा या न का औसत वा षक आयात 548 करोड़ पए हो गया । खा या न क भरपूर
फसल होने और भार मा ा म बफर- टॉक उपल ध होने के कारण खा या न आयात म कमी
य त हु ई । 1980-81 से 1984-85 क 5-वष य अव ध म खा या न का औसत वा षक आयात
केवल 374 करोड़ पए था । 1985-86 और 1989-90 के दौरान खा या न आयात, जो औसतन

332
516 करोड़ पए तवष था, 1992-93 म बढकर 1,240 करोड़ पए हो गया । 2005-06 के
दौरान केवल 2,501 करोड़ पए के खा यान का आयात कया गया जो नाममा का था ।

12.3.1.2 मशीनर

िजस दे श म औ योगीकरण आर भ कया गया हो वहाँ मशीन के आयात क वृ


अ नवाय हो जाती है । 1950-51 और 1960-61 के दौरान मशीनर का औसत वा षक आयात
190 करोड़ पए हो गया था । चौथी योजना मे इस आयात क औसत 484 करोड़ पए हो गई
। 1974-75 और 1979-80 के दौरान 4,078 करोड़ पए क मशीनर का आयात कया गया ।
सातवीं योजना (1985-86 से 1989-90) के दौरान आधु नक करण काय म के लए मशीनर का
औसत वा षक आयात 6,415 करोड़ पए तक पहु ँच गया । यह 2005-06 म बढ़कर 43,806
करोड़ पए हो गया । मशीनर का बढ़ता आयात एक ओर जहाँ औ योगीकरण का संकेत करता
है वह ं दूसर ओर दे शी तकनीक का वकास करने म वफलता और आयात नी त म अ धाधु ध
उदार करण को दशाता है ।
ता लका 12.6 : भारत म मु य व तु ओं के आयात क वा षक औसत
1951-52 1961-62 1974-75 1980-81 1985-86 1991-92 2000-01
व तुएँ से से से से से से से
1960-61 1965-66 1979-80 1984-85 1989-90 1999-2000 2004-05
1. खा या न 141 241 548 374 516 624 2,170
2. मशीनर (इंजन समेत) 190 472 1,078 2,515 6,415 14,976 21,430
3. ख नज तेल 77 85. 2,063 5,264 4,498 27,469 88650
4. धातु एँ (लौह तथा अलौह) 93 172 647 1,448 2,450 7,003 9,825
5. रसायन और औष धयाँ 44 55 254 660 1,868 1,921 4,977
6. रासाय नक खाद - 28 439 698 1,114 4,707 3,707
7. ह रे तथा क मती ए थर - - 244 730 2,450 9,993 26,690

ोत भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy


(2005-06)

12.3.1.3 ख नज तेल

ख नज तेल के आयात म भी वृ हो रह है । भारत म ख नज तेल क कमी है । यह


कमी पे ो लयम म वशेष अनुभव क जा रह है । ख नज तेल का वा षक आयात 1969-70 और
1973-74 के दौरान औसतन बढ़कर 226 करोड़ पए का हो गया था । पे ो लयम नयातक दे श
के संघ वारा तेल क क मत म ती वृ क घोषणा करने के कारण 1973-74 के दौरान
पे ो लयम के आयात का मू य बढ़कर 569 करोड़ पए हो गया । इसके उपरा त 1974-75 और
1979-80 के दौरान इसका औसत वा षक आयात 2,063 करोड़ पए तक बढ़ गया । 1980-81
और 1984-85 म पे ो लयम, तेल और नेहको का औसत वा षक आयात 5,264 करोड़ पए के
रकॉड तर पर पहु ँच गया । तेल क अ तरा य कमत म कमी और दे शीय उ पादन म वृ
के कारण 1985-86 से 1985-90 के दौरान ख नज तेल का औसत वा षक आयात कम होकर

333
4,498 करोड़ पए हु आ । खाड़ी यु ने ख नज तेल क क मत म भार वृ क । प रणामत:
ख नज तेल आयात का बल बढ़कर 2005-06 म 1,94,640 करोड़ पए के उ च तर पर पहु ँच
गया अथात ् कुल आयात का लगभग 31 तशत ।

12.3.1.4 धातु एँ

भारत म लौह इ पात का आयात कया जाता ह । कु छ हद तक अलौह धातु ओं का भी


आयात होता है । 1969-70 और 1973-74 के दौरान धातु ओं का औसत वा षक आयात 309
करोड़ पए था जो 1974-75 और 1979-80 के दौरान बढ़कर 647 करोड़ पए हो गया । 1980-
81 और 1984-85 के दौरान लौह तथा अलौह धातु ओं का औसत वा षक आयात बढ़कर 1,448
करोड़ पए हो गया । दे श के इ पात संयं ो क उपयोग- मता म सु धार करके लौह तथा इ पात
के आयात को कम कया जा सकता है । यह व तु त: नराशाजनक ह है क 1985-86 से 1989-
90 के दौरान औसतन 2,450 करोड़ पये क ध तु ओ का वा षक आयात कया गया जब क
1990-91 से 1999-2000 के दौरान मा 7,003 करोड़ पए क । 2005-06 म 24,850 करोड़
पए मू य क धातु ओं का औसत आयात कया गया ।

12.3.1.5 रसायन तथा औष धयाँ

भारत म रसायन तथा औष धय के आयात म भी वृ हु ई है । इन व तु ओं का औसत


वा षक आयात पहल तथा दूसर योजना म 44 करोड़ पए तवष था जो 1989-70 और
1973-74 के दौरान बढ़कर 113 करोड़ पए हो गया । 1974-75 और 1979-80 के दौरान यह
और बढ़कर 254 करोड़ पए हो गया । 1985-88 और 1989-90 के दौरान इनका औसत वा षक
आयात पुन : बढ़कर 1868 करोड़ पए तथा 2005-06 म 6205 करोड़ पए हो गया ।

12.3.1.6 ह रे तथा क मती प थर

1974-75 और 1979-80 क अव ध के दौरान ह र तथा क मती प थर के आयात क


वा षक औसत 244 करोड़ पए थी जो 1985-86 से 1989-90 क अव ध के दौरान बढकर
2,405 करोड़ पए हो गई । इस आयात का एक भाग तो भारत म समृ वग क माँग तु ट
करने के लए कया जाता है और एक भाग इसके ह त श प नयात उ योग के लए क चा माल
उपल ध कराता है । यह बात यान दे ने यो य है क 1985-86 और 1989-90 के दौरान ह र
एवं क मती प थर का औसत वा षक नयात 2,405 करोड़ पए था । 2005-06 के दौरान
40,469 करोड़ पए के आयात के वरा इनका नयात 68,830 करोड़ पए था ।

12.3.1.7 उवरक

भारतीय कृ ष म नई तकनीक अपनाए जाने के कारण उवरक के आयात को बढ़ाया


गया । तीसर योजना के दौरान उवरक का औसत वा षक आयात, जो केवल 28 करोड़ पए था,
1966-67 और 1968-69 के दौरान बढ़कर 121 करोड़ पए हो गया । दे श म रासाय नक उवरक
के उ पादन म वृ के कारण इनका औसत वा षक आयात 1969-70 और 1973-74 दौरान

334
कम होकर 96 करोड़ पए रह गया । अ तरा य व तु ओं क क मत म वृ के कारण 1974-
75 और 1979-80 के दौरान रासाय नक उवरक का औसत वा षक आयात एकदम बढ़कर 439
करोड़ पए हो गया । 1980-81 से 1984-85 के दौरान उवरक का औसत वा षक आयात 698
करोड़ पए था । हाल ह म सरकार ने उवरक के आयात म कटौती करने क अपे ा इनके
आयात म उदार करण को बढ़ावा दया है । प रणामत: 1985-86 और 1989-90 के दौरान
उवरक का औसत वा षक आयात 1,114 करोड़ पए हो गया । 2005-06 के दौरान उवरक का
आयात 9,159 करोड़ पए था ।
बोध न : 2
1. वष 1951 के प चात ् भारत म उपभो ता व तु ओं एवं खा या न के आयात म
या- या सं र चना मक प रवतन ल त हु ए ह ?

12.3.2 नयात का ढाँचा

भारत के नयात मोटे तौर पर चार वग म वभ त कए जाते ह- (1) कृ ष और


स बि धत उ पाद, जैसे- काँफ , चाय, खल, त बाकू, काजू गम मसाले, चीनी, क ची, ई,
बादल, मछल और मछल से बनी व तु ए,ँ गो त और गो त से बनी व तु ए,ँ वन प त तेल, फल,
सि जयाँ और दाले, (2) अय क और ख नज, जैसे – क चा मगनीज, क चा लोहा और अ क,
(3) न मत व तु ए,ँ जैसे - सू तीव , सले सलाए कपड़े, पटसन क बनी व तु ए,ँ चमड़ा और
जू त,े ह त श प (िजनम ह रे और क मती प थर भी शा मल ह), रसायन, इंजी नयर व तु एँ और
लौह तथा इ पात, और (4) ख नज ईधन एवं नेहक ।
ता लका 12.7 म दए ऑकड से पता चलता है क कृ ष तथा ख नज स पि त पर
नभर पार प रक आयात 1970-71 म कुल आयात के 42 तशत के बराबर थे, क तु 2005-
06 म इनका भाग कम होकर 9.9 तशत रह गया । इसके वपर त न मत व तु ओं का भाग,
जो 1970-71 म लगभग 50 तशत था, बढ़कर 2005-06 म लगभग 70 तशत हो गया ।
प ट है क भारतीय नयात का ढाँचा न मत व तु ओं के प म प रव तत हो रहा है ।

12.3.2.1 चाय एवं कॉफ

चाय भारत के नयात क मह वपूण मद है । 1951-52 से 1960-61 काल म दे श से


चाय का औसत वा षक नयात 119 करोड़ पए था जो दूसर योजना के दौरान बढ़कर 132
करोड़ पए हो गया । तीसर योजना के दौरान चाय के नयात म थोडी गरावट आई पर तु चौथी
योजना के दौरान चाय का औसत वा षक नयात बढ़कर 142 करोड़ पए हो गया । 1991-92 के
दौरान चाय का औसत वा षक नयात 1,132 करोड़ पए था पर तु यह 2005-06 म बढकर
1,632 करोड़ पए हो गया । भारत क चाय के मु ख ाहक ह- यू.के., यू.एस. ए, कनाडा,
ऑ े लया, स, मस और जमनी । 2005-06 म काँफ का नयात 1,557 करोड़ पए था ।

335
12.3.2.2 ई का सूत और न मत व तु एँ

थम एवं वतीय योजना काल म सूत तथा कपड़े का औसत वा षक नयात 81 करोड़
पए था क तु तीसर योजना के दौरान यह गरकर 55 करोड़ पए तवष रह गया । भारतीय
सू तीव उ योग म उ पादन क लागत अपे ाकृ त अ धक होने के कारण भारत के लए
अ तरा य बाजार म सूत तथा कपड़ा बेचना क ठन हो जाता है । वा तव म अ धक लागत के
दो मु य कारण ह- अ धक म लागत और पुरानी मशीनर का योग । अवमू यन के प चात ्
कपड़े के नयात म वृ हु ई तथा 1990-91 और 2004-05 के दौरान सू त तथा कपड़े का नयात
2,100 करोड़ पए से बढ़कर 17,102 करोड़ पए हो गया ।

12.3.2.3 सले सलाए कपड़े

हाल ह के वष म सले सलाए कपड़ के नयात म वृ हु ई है । 1970-71 म


इनका नयात जो केवल 9 करोड़ पए का था 1980-81 म बढ़कर 378 करोड़ पए हो गया ।
इसम लगातार तेज वृ हु ई और 2005-06 के दौरान सले सलाए कपड़े का नयात बढ़कर
37,209 करोड़ पए के रकॉड तर पर पहु ँच गया ।
ता लका 2.7 : भारतीय नयात का वग करण
(करोड़ पए)
व तु एँ 1970-71 1980-81 2005-06
1 कृ ष तथा स बि धत व तु एँ 487 2,067 46,164
(31.7) (30.0) (9.9)
2 अय क पद ख नज 164 413 27,401
(10.7) (6.2) (6.0)
3 न मत व तु एँ - 772 3,747 3,17,953
(50.3) (55.8) (69.9)
4. ख नज तेल िजनम कोयला 13 28 50,979
शा मल (0.8) (0.4) (11.2)
5. अ य 99 465 13,312
(6.5) (6.9) (2.9)
कु ल 1,535 6,710 4,54,800
(100.0) (100.0) (100.0)
नोट. को ठक म दए गए आँकड़े कुल का तशत ह ।
ोत भारतीय रजव' बक, Handbook of Statistics on Indian Economy
(2005-06)

336
12.3.2.4 चमड़ा तथा न मत व तु एँ

भारतीय नयात क एक पार प रक मद क ची खाल तथा चमड़ा है, पर तु हाल ह के


वष म इस मद म कमाए हु ए चमड़े का अनुपात बढ गया है । यह व थ वृि त है । 1980-81
के दौरान भारत को इस मद से लगभग 337 करोड़ पए तवष ा ते हु ए । 2005--06 क
दौरान इस मद का नयात बढ़कर 11,625 करोड़ पए हो गया ।

12.3.2.5 लौह अय क

भारत क चे लोहे का नयात करता है । 1960-61 के दौरान इसका नयात मू य


लगभग 27 करोड़ पए था । इसम लगातार वृ होती चल गई और 1980-81 के दौरान नयात
303 करोड़ पए तक पहु ँच गया । 2005-06 म क चे लोहे का नयात 17,093 करोड़ पए था
। यह एक अ व थ वृि त है । भारत को अपने नयात म इ पात के भाग को बढाना चा हए
और क चे लोहे का योग अपने ट ल संयं म करना चा हए ।

12.3.2.6 काजू

हाल के वष म भारतीय नयात म काजू का मह व बढा है । 1970-71 के दौरान काजू


का नयात जो 52 करोड़ पए था 2005-06 म बढकर 2,570 करोड़ पए हो गया ।

12.3.2.8 ह त श प

भारतीय ह त श प का नयात म मह व बढ़ता जा रहा है । 1970-71 म यह 70 करोड़


पए के न न तर से 2005-06 म बढ़कर 70,647 करोड़ पए के उ च तर पर पहु ँ च गया ।
इनम ह र तथा जवाहरात का नयात 68,830 करोड़ पए का था ।

12.3.2.8 इंजी नय रंग व तु एँ

इस वग मे लौह एवं इ पात, इले ॉ नक व तु एँ और सॉ टवेयर शा मल कए जाते हँ ।


1980-81 तक इस यग का नयात केवल 727 करोड़ पए था जो 1990-91 मे बढकर 3,877
करोड़ पए और 2005-06 म 95,396 करोड़ पए हो गया । यह दे श के कुल नयात का 209
तशत है (ता लका 12.8) । यह एक मह वपूण उपलि ध है ।
ता लका 12.8 : भारत - मु ख नयात
(करोड़ पये)
व तु एँ 1960-61 1970-71 1980-81 1990-91 2005-06
1. काँफ 2 25 214 252 1,577
2. चाय 192 148 426 1,070 1,632
3. फल तथा सि जयाँ 7 18 116 335 2,102
4. ई का सूत और न मत व तु एँ 91 75 277 2,100 17,102
5. चमड़ा तथा न मत व तु एँ 39 72 337 2,566 11,625
6. लौह अय क 27 117 303 1,049 17,093

337
7. त बाकू 25 33 141 263 1,330
8. इंिज नय रंग व तु एँ 13 130 727 3,877 95,396
9. काजू 30 52 140 477 2,570
10. सले सलाए कपड़े अनु 9 378 4,102 37,209
11. ह त श प, ह रे एवं जवाहरात समेत अनु. 70 894 6,356 70,647
12. मछल तथा न मत व तु एँ 7 31 213 960 6,356
13. चावल - 5 224 462 7,174
14. रसायन एवं स बि धत पदाथ - - - 3,558 64,225
ोत : भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy (2005-
06)

12.3.2.9 नयात का बदलता हु आ ढाँचा

भारत के नयात का ढाँचा एक अ प वक सत अथ यव था का ा प है । भारत


पार प रक प म कृ ष स ब धी क चे माल और इन पर आधा रत न मत व तु ओं का नयातक
रहा है । कृ ष आधा रत क चे माल और इनसे स बि धत उ पाद के नयात म लगातार गरावट
आई है । कुल नयात म खा य, पेय पदाथ और त बाकू के नयात म गरावट का मूल कारण
जनसं या वृ के फल व प इन पदाथ के दे शीय उपभोग म वृ का होना है । प रणामत:
बहु त-सी पार प रक नयात व तु ओं (जैसे चाय) म नयात-अ तरे क म इतनी वृ नह ं हु ई िजतनी
सरकार चाहती थी । इस स ब ध म कु छ व तु ओं के बढ़ते हु ए मह व को वीकार करना ह होगा
। ये व तु एँ ह- मछल एवं मछल के उ पाद, काजू काँफ और चावल । सि जय एवं फल का
मह व भी बढ़ता जा रहा है ।
1960 के प चात औ योगीकरण के भावाधीन गैर-पार प रक व तु ओं के नयात का
मह व भी बढ़ रहा है । इन मद म उ लेखनीय है - इंजी नय रंग व तु ए,ँ रसायन, सले सलाए
कपड़े, मछल एवं मछल न मत व तु एँ । ये नयात भारत के कु ल नयात के 70 तशत से
कु छ अ धक ह । यह बात क इनम कु छ गैर-पार प रक व तु ओं - इंजी नय रंग व तु ओ,ं
ह त श प एवं सले सलाए कपड़ - ने सबसे उ नत दे श के बाजार म अपना थान कायम कर
लया है, यह संकेत करता है क आने वाले वष म भी वे भारतीय नयात म अपना योगदान
करते रहगे ।
इले ॉ नक व तु ओं एवं सॉ टवेयर के नयात म ती वृ वा तव म अ भन दनीय है ।
इस वृि त को मजबूत बनाना चा हए । सॉ टवेयर उ योग इले ॉ नक े म सबसे अ धक
तेजी से वक सत हो रहा है । क तु कु छ मद का नयात दे श के लए च ता का भी वषय है ।
उदाहरणाथ, क चे लोहे एवं लौह-इ पात का नयात इस बात का संकेत दे ता है क अथ यव था
इन बु नयाद वकास व तुओं के योग म असमथ रह है । इसके वपर त लौह एवं इ पात का
आयात कह ं अ धक मह वपूण है जो दे श म था पत इ पात- मता के अ प योग का संकेतक है
। अत: भारत के नयात म गैर-पार प रक व तुओं का योगदान शंसनीय है पर तु यह कई
कार से युि तयु त नह ।

338
इस ववरण से हम यह न कष नह ं नकालना चा हए क गैर-पार प रक व तु एँ तो
आगे बढ़ गई ह और पार प रक व तु एँ पछड़ गई है । पार प रक व तु ओं का नयात भी बढ़
रहा है, चाहे यह वांछनीय तर तक नह ं पहु ँच पाया हो । उदाहरण के तौर पर ई से बने कपड़े,
चाय, चमड़े और चमड़े से न मत व तुओं के नयात म सराहनीय वृ हु ई है।
अत: भारत के नयात ढाँचे म न न ल खत प रवतन य त हु ए ह -
1. भारतीय अथ यव था का व वधीकरण हो रहा है और गैर-पार प रक नयात का मह व
बढ़ रहा है ।
2. इंजी नय रग व तु ओं के नयात के व तार का कारण औ यो गक दे श और म यपूव के
दे श म इनक बढ़ती हु ई माँग है । इन दे श म आधारसंरचना प रयोजनाएँ, जैसे - सड़क,
ब दरगाह, रे ल- नमाण, टे ल -संचार और नाग रक नमाण-चालू क गई ह ।
3. भारत अ तरा य बाजार म माँग क अनुकू ल ि थ त और आकषक क मत का लाभ
उठाने क अब मता रखता है ।
4. एक ओर जहाँ कुछ व तुओं क नयात मता अ धक है (जैसे- ह त श प, इंजी नय रंग
व तु एँ और सले सलाए कपड़े) वह ं दूसर ओर अ य व तुओं (चीनी, पटसन, सू त एवं
न मत व तु ओ,ं लौह एवं इ पात) म भार उतार-चढ़ाव य त हु ए ह ।
5. नई -कृ ष नी त क घोषणा के प चात ् कृ ष व तु ओं के नयात पर बल दया जा रहा है।
चावल का नयात मह वपूण बनता जा रहा है । इसके अ त र त फल एवं सि जयाँ और
सा धत खा यपदाथ भी भारतीय नयात म मह वपूण बनते जा रहे ह ।
बोध न : 3
1. भारत के नयात को मोटे तौर पर कौन-से वग म वभ त कया जाता है ?
2. वष 19 6 0 के उपरा त भारत के नयात ढाँ चे म या मु य प रवतन य त हु ए
ह?

12.4 भारत के वदे शी आपार क दशा (Direction of Foreign


Trade of India)
भारत के वदे शी आपार ल े ीय दशा का अ ययन करने के लए व व को मोटे तौर
पर चार वग म बाँट लेना उ चत होगा । संयु त रा य अमे रका, यूरोप, ए शया एवं ओशे नया
और अ का । भारत के संयु त रा य अमे रका के साथ (िजसम कनाडा शा मल है) घ न ठ
यापा रक स ब ध ह । दे श के वदे शी यापार म लै टन व अ य अमे रक दे श का कोई
मह वपूण थान नह ं है ।
1951-52 म भारत संयु त रा य अमे रका को अपने कुल नयात का 28 तशत
भेजता था िजसम से 2। तशत उ तर अमे रका को और 6.3 तशत लै टन अमे रक दे श को
। समय के साथ लै टन अमे रक दे श का भाग कम होता गया और 1969-70 म यह भारत के
नयात का मा 0.3 तशत रह गया । उ तर अमे रका का भाग 1955-56 और 1968-70 के
दौरान 17से 21 तशत के बीच था । 1971 म बंगलादे श यु के प चात ् भारत और संयु त

339
रा य अमे रका के आपसी स ब ध म तनाव उ प न हो गया और उसके साथ भारत का यापार
कम हो गया । यह बहु त हद तक इस बात क या या है क 1976-77 म संयु त रा य
अमे रका के लए भारत का नयात गरकर 10 तशत य हो गया । हाल ह के वषा म इस
ि थ त म थोड़ा सु धार हु आ है और 2005-06 म संयक
ु ा रा य अमे रका के लए भारत का
नयात कु ल नयात का 17.7 तशत हो गया । आयात प क ओर अमे रका वारा 1951-52
म 36.3 तशत योगदान कया गया पर तु इसका भाग 1960-61 म गरकर 31.5 तशत
रह गया । फर 1965-66 म खा या न आयात म वृ होने के कारण यह बढ़कर 40 तशत
हो गया और 1970-71 म 35 तशत रह गया । बंगलादे श यु के कारण भारत ने संयु त
रा य अमे रका पर अपनी नभरता कम करने का फैसला कया । प रणामत: उ तर अमे रका से
भारत का आयात गरकर 1974-75 म कु ल आयात का केवल 19.2 तशत रह गया ।
खा या न के अ धक मा ा म आयात के फल व प भारत के आयात म संयु त रा य अमे रका
का भाग 1975-76 म बढकर 24.6 तशत हो गया पर तु यह 2005-06 म पुन: गरकर 6.1
तशत रह गया ।
ऐ तहा सक प से 1947 तक भारत संयु त रा य का एक उप नवेश होने के कारण
उसके साथ घ न ठ यापा रक स ब ध रखता था । इसके यूरोप के अ य दे श के साथ भी
यापा रक स ब ध थे । यापार क ि ट से यूरोप महा वीप को तीन बड़े े म वभ त कया
जा सकता है- पि चमी यूरोप को फर मोटे तौर पर दो भाग म बाँटा जाता है - यूरोपीय साझा
बाजार (European Common Market-ECM) और यूरोपीय वत बाजार े (European
Free Trade Area-EFTA) ।
1950-51 म कुल भारतीय आयात का 30.5 तशत पि चमी यूरोप से ा त होता था
जो 1955-56 म बढ़कर 48.9 तशत हो गया । इसके लए दो कारणत व उ तरदायी थे -
भारत का ट लग ऋण का भु गतान और उसका यूरोपीय साझा-बाजार म शा मल होने का नणय
। भारत के कुल आयात म यूरोपीय वत बाजार दे श (EFTA) का मह व सकु ड़कर मा 1.6
तशत रह गया । यूरोपीय साझा बाजार (ECM) दे श का भाग, जो 1955-56 म 18.2
तशत था, गरकर 1969-70 म 10.9 तशत रह गया । यह फर बढ़कर 1979-80 म
24.2 तशत हो गया । क तु एक हद तक यह वृ यूरोपीय वत बाजार े से केवल
प रवतन के प म ह है । य द हम यूरोपीय वत बाजार और यूरोपीय साझा बाजार े को
साथ ल तो 1955-56 के प चात ् यूरोप के भाग म कमी हु इ है और 1976-77 म यह गरकर
मा 21.3 तशत रह गया । 1979-80 म यह बढ़कर लगभग 27 तशत हो गया क तु
1967-88 म यह 33 तशत और 2006-00 म फर घटकर 16.7 तशत रह गया । ' _
हाल ह के वष म पूव यूरोप के दे शो – यू.एस,एस.आर, पोलड, मा नया, बु गा रया,
चैको सोवा कया, यूगो ला वया - के साथ भारत का यापार वक सत हु आ है । इन दे शो, से
आयात शी मु य मदे ह - लौह एवं इ पात, अलौह धातुएँ , रसायन, पूजी साज-सामान, रे लवे
टोर, कागज, दवाइयाँ एवं औष धयाँ ऑर पे ो लयम उ पाद । इनम से बहु त-सी व तुओं के
आयात दे श क आ त रक प रयोजनाओं और साम रक मह व के उ योग मे सहायक है । इनके

340
बदले भारत इन दे श को चाय, काजू, गम मसाले, त बाकू तलहन, चमड़ा, धाि वक अय क,
पटसन क न मत व तुओं आ द का नयात करता है जो भारतीय नयात क पार प रक मद ह ।
इन दे श से होने वाले आयात क संरचना से यह प ट हो जाता है क ये आयात आ थक वकास
क ि ट से मह वपूण ह । 1960-61 म भारत ने इस े से अपने कुल आयात का 4 तशत
मँगवाया और इस े को नयात का लगभग 8 तशत भेजा । पर तु 1962 म भारत-चीन यु
और 1965 म भारत-पाक यु के प चात ् पूव यूरोप के समाजवाद दे श के साथ भारत के
यापा रक स ब ध घ न ठ हो गए । 1970-71 म इस वग के दे श से दे श के कुल आयात का
13.5 तशत ा त हु आ और इ ह दे श के कुल नयात का 21 तशत भेजा गया । इस े से
कु ल यापार का 84 तशत यू.एस.एस.आर. से ा त हु आ । 2005-06 तक पूव यूरोप से भारत
के आयात गरकर 2.6 तशत रह गए, और इस े को नयात म भी गरावट आई । ये
नयात 1979-80 तक 14 तशत हो गए और 2005-06 तक केवल 1.9 तशत रह गए ।
सो वयत संघ के वघटन के प रणाम व प इन दे श के साथ भारत के यापा रक स ब ध म
प रवतन आया है ।
पे ो लयम नयातक दे श के संगठन के साथ भारत के यापा रक स ब ध बढ़े ह ।
1970-71 म इन दे श से भारत के आयात का लगभग 8 तशत ा त होता था जो 1987-88
म एकदम बढ़कर 13.3 तशत हो गया । इसका मु य कारण तेल क क मत म ती वृ था
। साथ ह आयात के प रमाणा मक सूचकांक म तदनु प वृ भी नह ं हु ई । नयात के े म,
1987-88 म इन दे श को भारत के नयात का 6.1 तशत ह सा भेजा जाता था जो 2005-06
म बढ़कर 14.8 तशत हो गया । तेल क अ तरा य क मत म गरावट के प रणाम व प
पे ो लयम नयातक दे श के साथ भारत के आयात 1987-88 म फर गरकर 13.3 तशत रह
गएंतथा 2005-06 म और गरकर मा 7.7 तशत रह गए ।
भारत के वदे शी यापार म ए शया एवं ओशे नया (िज ह अब अ य ओ.ई.सी.डी. दे श कहा जाता
है) म ऑ े लया और जापान मह वपूण ह । 1970-71 के दौरान भारत के नयात म इन दो
दे श का भाग 15 तशत था जो 2005-06 म घटकर 3.2 तशत रह गया, क तु भारत के
आयात म इनका जो भाग 1970-71 म 7.2 तशत था, वह 2005-06 म घटकर मा 5.9
तशत रह गया ।
भारत ए शयाई दे श के साथ अपने वदे शी यापार को बढ़ाने क भार मता रखता है
य क इन दे श म भारत क न मत व तुएँ भल भाँ त वीकार क जाती ह । इसी कार भारत
सापे त: अ प वक सत इन दे श से अपने बढ़ते हु ए उ योग के लए क चे माल का आयात भी
कर सकता है । इसका माण यह है क इन दे श से 2005-06 के दौरान भारत के कुल आयात
का 20.9 तशत ा त कया गया जब क 1970-71 म यह केवल 3.3 तशत था । नयात के
े म भी धीरे -धीरे और लगातार बढ़ोतर हु ई है और ए शयाई दे श को भारत के नयात, जो
1970-71 म 10.8 तशत थे, तेजी से बढ़कर 2005-06 म 30.1 तशत हो गए ह ।
अ का के साथ भारत के नयात 1951-52 और 1970-71 के दौरान लगभग 6-7
तशत के बीच रहे है, पर तु इसके प चात ् ये गरकर 2005-06 म 5.6 तशत रह गए ।

341
क तु आयात के े म अ क दे श का भाग घटता-बढता रहा है । यह 1951-52 म 9
तशत था जो 2005-06 म घटकर 3.2 तशत रह गया ।
सम प म यह कहा जा सकता है क भारत का वदे शी यापार अब अपे ाकृ त अ धक
व तृत हो गया है । 1951-52 और 1969-70 के दौरान पि चमी यूरोप और उ तर अमे रका पर
भारत क अ य धक नभरता अब कम हो गई है । धीरे -धीरे दे श का यापार पूव यूरोप और
ए शयाई दे श के साथ बढता जा रहा है । पर तु अ सी के दशक और 1990-91 से 2005-06 के
दौरान (िजसम सो वयत संघ का वघटन ना) पि चमी यूरोप और उ तर अमे रका का मह व बढ़
गया है । ये दोन े 2005-06 म भारत के नयात के 39 तशत और आयात के 22 तशत
के लए िज मेदार थे । पूव यूरोप के दे श का भाग सकु ड़कर नग य-सा रह गया है और ए शया
व अ क दे श का भाग बढ़ रहा है ।
कु छ मह वपूण दे श के स दभ म भारत के वदे शी यापार क दशा का पर ण चकर
होगा । भारत के वदे शी यापार म सात दे श मह वपूण थान रखते ह – यू.एस.ए., यूके ., जमनी,
जापान, यू.ए.ए.ई., सऊद अरब और इटल । 1951-52 से 2005-06 के दौरान इन सात दे श के
साथ भारत के नयात 40 से 57 तशत क अ भसीमा मे रहे । इसके वपर त इसी काल के
दौरान भारत के आयात म इनका भाग 22 से 43 तशत के बीच रहा ।
1987-88 और 2005-06 के दौरान भारत के वदे शी यापार क दशा म जो मह वपूण
प रवतन हु ए (ता लका 12.9) वे न न ल खत ह -
1. आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (Organisation of Economic Co-operation
and Development- OECD) दे श के साथ भारत के नयात, जो 1987-88 म 59 तशत
थे, गरकर 2005-08 म 44 तशत रह गए । इसी कार ओ.ई.सी.डी. दे श से भारत के
आयात, जो 1987-88 म 60 तशत थे, तेजी से गरकर जो 2005-06 म 33 तशत रह
गए । यह गरावट यापक प म यूरोपीय संघ, संयु त रा य अमे रका और अ य ओ.ई.सी.डी.
दे श (आ े लया, जापान और ि व जरलै ड) म य त हु ई ।
2. वकासशील दे श के साथ भारत के वदे शी यापार म बढ़ने क वृि त ल त हु ई है ।
इन वकासशील दे श म शा मल ह - ए शया, लै टन अमे रका और अ का । इन दे श को भारत
के नयात 1987-88 म केवल 14.2 तशत थे जो तेजी से बढ़कर 2005-06 म 38.7
तशत हो गए । ए शया के भाग म वशेष बढ़ोतर हु ई और यह इस अव ध म 12 तशत से
बढ़कर 30.1 तशत हो गई । इसम चीन और हांगकांग का भाग भारत के नयात म लगभग
11 तशत और साक दे श (SAARC Countries) का भाग 5.2 तशत हो गया ।
जहाँ तक आयात का स ब ध है वकासशील दे श से भारत के आयात, जो 1987-88 म
17.3 तशत थे, बढ़कर 2005-06 म म 25.8 तशत हो गए । केवल ए शया वारा 2005-06
म आयात का 21 तशत उपल ध कराया गया । चीन और हांगकांग से 2005-08 म आयात 9
तशत था क तु साक दे श का भाग केवल 1 तशत था । यान दे ने यो य बात यह है क
चीन 2005-06 म भारत के मु य यापा रक साझीदार के प म उभरा है और इसे यू.एस.ए. एवं
यू.ए.ई. के बाद तृतीय थान ा त हो गया है , पर तु यह यू.के. और बेि लयम से आगे नकल
342
गया है । य द चीन और हांगकांग को एक-साथ लया जाए तो इ ह भारत के वदे शी यापार म
वतीय थान ा त हो गया है ।
3. पे ो लयम नयातक दे श (Organisation Petroleum Exporting Countries-
OPEC) से भारत का वदे शी यापार बढ़ा है । इनको कए जाने वाले नयात, जो 1987-88 म
6.1 तशत थे, बढ़कर 2005-06 म 15 तशत हो गए । पर तु इसी अव ध के दौरान आयात
म गरावट क वृि त पाई गई- 13.3 तशत से गरकर 7.7 तशत । पे ो लयम नयातक
दे श म यू.ए.ई. सबसे अ धक मह वपूण हो गया और इसके बाद सऊद अरब और इंडोने शया ह ।
4. अ का के साथ भारत का वदे शी यापार शु हो गया है, भले ह नयात एवं आयात म
अ का का भाग 2005-06 म मश: 5.6 और 3.2 तशत था । अ का अब एक छोटे
साझेदार के प म उभर रहा है और भ व य म इसके और अ धक बढ़ने क मता है ।
5. वैयि तक दे श म यू.एस.ए. का थम थान है । भारत के नयात म इसका भाग
2005-06 म 16.7 तशत था और आयात म 5.5 तशत । यू.के. ने अपना मह वपूण थान
खो दया है । भारत के नयात एवं आयात म इसका केवल 4.5 तशत ह सा ह रह गया है ।
6. पूव यूरोपीय दे श ( वशेषकर स) का स तर के दशक म भारत के वदे शी यापार म
मह वपूण थान था जो 2005-06 तक मा 2 तशत रह गया । यह ि थ त वशेषकर
यू.एस.एस.आर. के वघटन और 1992-93 म वतं रा य के रा म डल के गठन के प चात ्
य त हु ई ।
7. ऑ े लया, जापान एवं ि व लै ड ने भारत के वदे शी यापार म मह वपूण ग त क है
। दे श के आयात म इनका भाग बढ़कर 11 तशत हो गया है । 2005-06 म नयात म इनका
भाग केवल 5 तशत था जब क 1987-88 म यह 14 तशत था ।
सं ेप म यह न कष ा त होता है क भारत के वदे शी यापार का व वधीकरण हु आ है
और ओ.ई.सी डी. दे श पर भारत क नभरता म कमी य त हु ई है । क तु वकासशील दे श
( वशेषकर ए शयाई दे श )
ता लका 12.9 : भारत - वदे शी यापार क दशा
( म लयन अमे रक डॉलर)
1987-88 205-06
दे श नयात (%) आयात (%) नयात (%) आयात (%)
1. आ थक सहयोग एवं वकास संगठन 7,122 58.9 10,266 59.8 45,460 44.3 46.607 32.7
(क) ांस 292 7.4 615 3.6 2048 2.0 1,764 1.2
(i) ांस 292 7.4 615 3.6 2,048 2.0 1,764 1.2
(ii) बेि लयम 374 3.1 1,057 6.2 2,853 2.8 4,705 3.3
(iii) जमनी 817 6.8 1,665 9.7 3,517 3.4 5,818 4.1
(iv) यू.के. 783 6.5 1,410 8.2 5,146 5.0 3,898 2.7
(v) इटल 384 3.2 373 2.2 2,490 2.4 1,829 1.3
(ख) उ तर अमे रका 2,380 19.7 1,774 10.3 18,212 17.7 8,673 6.1
(i) कनाडा 128 1.1 230 1.3 1,009 1.0 895 06
(ii) यू.एस.ए. 2,252 18.6 1,544 9.0 17,203 16.7 7,778 5.5

343
(ग) अ य ओ.इ.सी.डी देश 1708 14.1 2,784 16.2 5,025 4.9 15,592 10.9
(i) आ े लया 138 1.1 388 2.3 812 0.8 4,851 3.4
(ii) जापान 1,245 10.3 1,640 9.5 2,458 2.4 3,552 2.5
(iii) ि व जरलै ड 157 1.3 182 1.1 1,614 1.6 6,922 4.9
***
2. पे ो लयम नयातक दे श 742 6.1 2,277 13.3 15-223 14.8 11,014 7.7
(i) ईरान 107 0.9 111 0.6 1,176 1.1 686 0.5
(ii) इंडोने शया 21 0.2 54 0.3 1,371 1.3 2,933 2.0
(iii) सऊद अरब 214 1.8 590 3.4 1,807 1.8 1,617 1.1
(iv) यू.ए.ई. 239 2.0 558 3.4 8,593 8.4 4,312 3.0
3. पू व यूरोप 2,001 1.7 1,640 9.6 1,960 1.9 3,690 2.6
**
(i) र शया 1514 1.3 1240 7.2 730 0.7 1,992 1.4
4. वकासशील दे श िजसम 1,719 14.2 2,967 17.3 39,785 38.5 36,809 25.8
(क) ए शया 1,443 11.9 2,077 12.1 30,961 30.1 29,849 20.9
(i) चीन गणतं 15 0.1 119 0.7 6,721 6.5 10740 7.5
(ii) हांगकांग 344 2.8 93 0.5 4,457 4.3 2168 1.5
(iii) द ण को रया 112 0.9 258 1.5 1819 1.8 4343 3.0
(iv) मले शया 70 0.6 648 3.8 1,152 1.1 2,389 1.7
(v) संगापुर 210 1.7 323 1.9 5,570 5.4 3,230 2.3
***
(ख) साक देशै 213 2.6 75 0.4 5358 5.2 1,339 0.9
(ग) अ का 9 - - - 5,809 5.6 4,549 3.2
(घ) लासीन अमे रका 53 0.3 387 2.3 3,015 2.9 2,411 1.7
5. अ य 505 4.2 6 - 297 29.1 46,298 31.1
कु ल (1 से 6) 12,088 100.0 17,156 100.0 102,725 100.0 1,42,416 100.0
नोट : औंकड़े तदनु प कॉलम म कु ल का तशत ह ।
ोत. भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy
(2005-06)
* इसम पूव एवं पि चमी दोन भाग के आँकड़े स पूण जमनी के लए शा मल कए गए
ह ।
** वत रा य के रा म डल के लए आँकड़े दए गए ह । पहले इसे यू.एस.एस.आर.
कहते थे।
*** साक दे श म सि म लत ह - भारत, पा क तान, बंगलादे श, नेपाल, भू टान, ीलंका और
माल वीव ।
**** पे ो लयम नयातक दे श (OPEC) म सि म लत ह- ईरान, इराक, कु वैत, सऊद अरब
और यू.ए.ई. ।
***** यूरोपीय संघ म बेि जयम, ांस, जमनी, इटल , नीदरलै ड और यू.के. सि म लत ह।
के साथ भारत के नयात एवं आयात म उ लेखनीय ग त हु ई है । यह भारत के वदे शी यापार
क दशा म एक अ भन दनीय संकेत है ।

344
12.5 भारत के वदे शी यापार क मु ख वशेषताएँ (Salient
Features of India’s Foreign Trade)
1. वत ता के पूव भारत का यापार संतु लन उसके प म था, जो दे श के आ थक
वकास के लए आदाता क वृ के कारण तकूल होता गया । यापार का घाटा 1950-51 म
49 करोड़ पए से बढ़कर 2003 -04 म 62394 करोड़ पए हो गया ।
2. आयात क संरचना वगत पाँच दशक म बहु त बदल गई है । बढ़ते हु ए औ योगीकरण
के कारण ाकृ तक रबड़, क ची कपास, क चे ऊन, क चे जू ट, रसायन-जैसे क चे माल तथा
इले ॉ नक व तुओं, मशीनर , प रवहन उपकरण तथा पे ो लयम एवं इसके उ पाद क माँग
बहु त बढ़ गई है । खा या न, कागज, अखबार कागज, लोहा एवं इ पात तथा पू ज
ं ीगत व तुओं
का आयात घट गया है ।
3. नयात का संघटन भी अ य धक प रव तत हो गया है । कृ षीय एवं स ब पदाथ ,
अय क एवं ख नज म गरावट दज हु ई है, जब क व न मत व तु ओं (धाग , सू तीव ,
सले सलाए प रधान ), र न एवं जवाहरात आ द के नयात म भार वृ हु ई ह । यह भारतीय
अथ यव था के व वधीकरण का सू चक है ।
4. वतं ता के बाद नए यापा रक साझीदार बन गए ह । टे न तथा जापान का अंशदान
घंटा है, जब क संयक
ु ा रा य अमे रका और ए शया के अ प वक सत दे श का अंशदान बढ़ा है ।
स का अंशदान उसके वघटन के बाद घट गया है । संयु त रा य अमे रका 2003-04 म
वृह तम यापा रक साझीदार था , इसका अंशदान कुल भारतीय यापार म 11.6 तशत था ।
इसके प चात ् संयु त अरब अमीरात (5.1 तशत), चीन (5.0 तशत), टे न (4.4 तशत),
बेि लयम (4.1 तशत), जमनी (3.9 तशत), हांगकाग (3.4 तशत), जापान (3.1
तशत), संगापुर (3 तशत), ि व जरलै ड (2.7 तशत) तथा मले शया (2.1 तशत) का
थान रहा । ये दे श मलकर भारत के यापार म 48.2 तशत योगदान करते ह । इससे दे श के
यापार के व वधीकरण म सहायता मल ह ।
5. भारत ने अपने यापार के व वधीकरण के लए अनेक दे श से यापा रक समझौते कए
है । ये समझौते अफगा न तान, चेक गणतं , फनलै ड, मस, घाना, ईरान, इराक, जापान,
जोडन, हंगर , के या, मोजाि बक, लाइबे रया, मोर को, नेपाल, स, लोवाक, यूनी शया ,
युगा डा , युगो ला वया , यांमार, िज बाबे आ द दे श के साथ हु ए ह । अनेक ादे शक वप ीय
समझौते भी हु ए ह । गैट ने भारत को अ तरा य बाजार म वत तापूवक वेश करने के नए
अवसर दान कए ह ।
बोध न : 4
1. 1987-88 से 2005-06 के दौरान भारत क वदे शी यापार क दशा म या-
या मह व-पू ण प रवतन ल त हु ए ह?
2. भारत के वदे शी यापार चार मु ख वशे ष ताएँ बताइए।

345
12.6 भारत क यापार नी त (India’s Trade Policy)
वत ता के बाद भारत ने ऐसी यापार नी त अपनाई जो सामा य आ थक नी त का
भाग थी । यापार नी त के दो मु ख उ े य थे - आयात को यूनतम तर पर रखना तथा
नयात को समु नत करना । इन उ े य के साथ यापार नी त ने आयात पर कठोर नय ण,
नयात को ो साहन, वप ीय यापार समझौत तथा वदे श के साथ सरकार वारा यापार को
बढ़ाने पर बल दया गया ।
भारत ने चौथी पंचवष य योजना तक संर णवाद यापार नी त अपनाई । यह आयात
लाइस संग कोटा, शु क तथा पाबि दय वारा कया गया । तृतीय योजना काल म नयाल कौ
ो साहन दे ने पर बल दया गया था । इसम यापा रक सं थाओं क थापना, व तीय तथा
अ य ो साहन दे ना सि म लत थे । इसका उ े य औ यो गक लाइस संग नी त म उदार करण,
अनेक नयात सं करण े क थापना, नयातो मु खी इकाइय को ो साहन, नयातो पर लगे
नय ण म ढ ल, नयात के लए बल े क पहचान, नयातक को उधार तथा व तीय
सहायता, नयात को ो साहन दे ने के लए तकनीक वकास फ ड तथा उ पाकता फ ड का
सृजन आ द करना था । इन उपाय ने छठवीं योजना (1980-85) के अंत तक नयात क वृ
म सहायता क ।
नयात म ि थरता लाने, नयात उ पादन आधार को सश त बनाने, ा व धक य
उ नयन को सु वधा दे ने तथा आयात म बचत लाने के उ े य से 1985 क EXIM ( नयात-
आयात) नी त क घोषणा तीन वष के लए क गई । 1988 क EXIM नी त म वगत नी त
(1985) म मामू ल प रवतन कए गए । 1990 क EXIM नी त पुन . तीन वष के लए घो षत
क गई िजसम पुन: उदार करण पर बल दया गया । 1992 क EXIM नी त पाँच वष (1992-
97) के लए घो षत क गई िजसम नयात क वृ तथा पू ज
ं ीगत एवं अ य मह वपूण व तुओं
क आयात या म उदार करण के लए कुछ ाि तकार उपाय कए गए । 1997 क ह ाभ
नी त पुन : पाँच वष के लए (1997-2002) घो षत क गई । इसम उदार करण क या जार
रह ।
2002-07 क EXIM नी त म वशेष आ थक े (SEZs) के वकास, फाम उ पाद
के नयात बढ़ाने -के लए कृ ष े का व नय ण 32 कृ ष- नयात े क थापना, प रधान
े म 50 मू य अ भवृ के नयात मद को आर ण से बाहर रखना, वदे श-ि थत भारतीय
मशन म यवसाय के क थापना स हत एक स पूण पैकेज क घोषणा क गई ।

12.7 नयात ो न त (Export Promotion)


अथ यव था क ग त को व रत करने के लए यापार के मा यम से भू म डल करण
क आव यकता पर बल दया गया है । अतएवं भारत क नयात नी त उदार रह है तथा नयात
को ो साहन एक सतत एवं धारणीय य न बन गया है । वशेष आयात लाइसे स म
प ट करण, या का नधारण तथा मद म वृ जैसे नी तगत सुधार वारा यापार म मु त
वातावरण का सृजन हु आ है तथा नयात उ पादन का आधार सश त हु आ है । नयात े के

346
लए क चे माल के वाह तथा न वि टय को सहज बनाने के लए आयात का भी मश:
उदार करण कया जा रहा है । इसके प रणाम व प वदे शी उ पादन का आधार व तृत तथा
आधु नक बन गया है । भारत 1995 म था पत व व यापार संगठन का सं थापक सद य है ।
भारत के यूरोपीय संघ, संयु त रा य अमे रका, साक आ द से वप ीय समझौते ह । लै टन
अमे रका, अ का तथा म य ए शयाई गणत के साथ यापार पर वशेष बल दया जा रहा है
। ए सपो स मोशन इ डि यल पाक (EPP) योजना 1994 म लागू क गई है । इि डया
ा ड इि वट फ ड चालू कया गया है । नयात तथा ISO मानक म उ चतर गुणव ता ा त
करने के लए ो साहन दया जा रहा है ।

12.7.1 नयात संवधन े (EPZs)

भारत म 7 नयात संवधन े काँदला (गुजरात), सा ता ू ज (महारा ), कोि च


(केरल), चे नई (त मलनाडु ), नोएडा (उ तर दे श), फा टा (पि चम बंगाल) तथा वशाखाप नम
(आ ध दे श) म अवि थत थे । येक े आधारभू त अवसंरचना मक सु वधाएँ तथा व तीय
ो साहन दान करता था । सरकार ने हाल ह म नजी, रा य या संयु त े वारा EPZ के
वकास क अनुम त दान कर द है । तदनुसार नजी े म तीन ह ट मु बई , सू रत तथा
चे नई म एवं उ तर दे श सरकार वारा एक ह ट ेटर नोयडा म वक सत कया जा रहा है ।

12.7.2 वशेष आ थक े (SEZs)

सरकार ने माच 2000 म नयात संवधन े (EPZs) को वशेष आ थक े


(SEZs) म बदलने क योजना चालू क । सावज नक े म काँदला मु बई , कोि च,
वशाखाप नम व फा टा तथा नजी े म सू रत के नयात सवधन े को वशेष आ थक े
म प रव तत कया जा चुका है । इनके अ त र त न न ल खत 18 वशेष आ थक े था पत
कए जा रहे ह- पो स ा (गुजरात), ोणा ग र एवं को ता (महारा ), नानगुनेर (गुजरात), कु पी,
सा ट लेक (कोलकाता-पि चम बंगाल), पारा वीप एवं गोपालपुर (उड़ीसा), भदोह , कानपुर ,
मु रादाबाद एवं ेटर नोयडा (उ तर दे श), काक नाडा एवं वशाखाप नम (आ दे श), इ दौर
(म य दे श), सीतापुर (जयपुर ) एवं जोधपुर (राज थान), व लारपदम /पुि व पन (केरल) एवं
हसन (कनाटक) ।

12.8 व व यापार संगठन का भाव (Impact ऑफ World Trade


Organisation)
व व यापार संगठन जनवर 1995 म अि त व म आया । इसके पूव अ ल
े 1994 म
भारत स हत 124 दे श ने 'गैट' (General Agreement on Tariff and Trade - GATT)
समझौते पर ह ता र कए थे जो एक बहु प ीय आधा रक सि ध थी । इस समझौते के तहत
सद य दे श को अ तरा य यापार म उि ल खत नयम का पालन करना आव यक था । तब
से अ तरा य यापार का प र य तेजी से बदल रहा है । व व यापार संगठन (WTO) के
एक सं थापक सद य के प म भारत अनेक अवसर तथा चु नौ तय का सामना कर रहा है ।
347
12.8.1 अवसर (Opportunities)

1. अब भारत चीन स हत 145 दे श के साथ मु त यापार कर सकता है । अब, जब क


यूरोपीय संघ के दे श तथा संयु त रा य अमे रका कृ ष क वशाल नयात अनुदान रा श को
समा त करने के लए तब ह, तब भारत के पास अपने कृ षीय तथा कृ ष-औ यो गक पदाथ
के नयात क वृ के लए सु अवसर उपलख ह । अनुकूल कृ ष-पा रि थ तक य दशाओं, समृ
जैव व वधता, कृ षीय-शोध, वक सत ा व धक तथा स ते म के कारण भारत को कृ षीय
पदाथ म तुलना मक लाभ ा त ह ।
2. कतर म स प न दोहा स मेलन (2001) म हु ए समझौते के तहत बहु रे शी समझौता
(Multi Fibre Agreement) 2004 म म समा त हो गया है िजससे व एवं प रधान के
नयातक दे श के नि चत कोटे का समापन हो गया है । इससे भारत को वशेष लाभ होगा
य क व तथा सले सलाए प रधान र न एवं आभू षण के बाद भारतीय नयात के वतीय
सबसे मह वपूण मद ह ।
3. कृ ष उ पाद , व तथा प रधान के नयात म चीन भारत का त प है । अब चीन
को अ तरा य यापार नयम का पालन पारदश ढं ग से करना होगा ।

12.8.2 चु नौ तयाँ (Challenges)

1. अ य वकासशील दे श क भाँ त भारत को पारद शता, या मक समानता तथा गैर-


वभेदक त प ा के नाम म बहु रा य क प नय से अपनी भुस ता पर नय ण करने क
चु नौती का सामना करना है ।
2. कृ षीय आयात पर नय ण समा त होने से भारत को कृ षीय अथ यव था के व त
होने का खतरा झेलना पड़ सकता है य क अब बाजार आया तत स ते सामान से भर जाएँगे ।
3. वशेष क राय म बहु रे शी समझौता (MFA) क समाि त से भारत क अपे ा चीन
तथा द ण को रया को व एवं प रधान के नयात म अ धक लाभ होगा । इन दे श से
त प ा करने के लए भारत को औ यो गक े म अपनी ा व धक य कुशलता एवं उ पादकता
बढानी होगी ।
भारत सरकार इन चु नौ तय से पूणत: अवगत है । भारत को अवसंरचना, वशेषत: ऊजा,
प रवहन संचार, प तन क मता व तार, ा व धक य उ नयन तथा स पूण अथ यव था क
कु शलता म वृ करने क आव यकता है ।
बोध न : 5
1. भारत सरकार क 2002-07 क नयात-आयात नी त ( EXIM policy) के या
मु य ब दु ह?
2. भू म डल करण और उदार करण नी त के भारत के वदे शी यापार पर या
प रणाम कट हु ए?

348
3. व व यापार सं ग ठन के जु ड़ाव के फल व प भारत के वदे शी यापार के या
सु अवसर ा त हु ए?
4. व व यापार सं ग ठन के जु ड़ाव के फल व प भारत के वदे शी यापार को कौन-
कौन सी चु नौ तय का सामना करना पड़ रहा ह ?

12.9 सारांश (Summary)


वदे शी यापार कसी-भी दे श क आ थक ग त का बैरोमीटर होता है । सन ् 1947 से
पूव टश शासन काल म भारत औ यो गक दे श ( वशेषकर इं लै ड) को खा य पदाथ और
क चे माल का नयात करता था तथा उनसे न मत व तुओं का आयात । वत ता उपरा त
अपनी वकासशील अथ यव था ( वशेषकर उ योग ) के उ नयन हे तु भारत ने वकासा मक,
प रपोषक एवं अ क तंकार आयात को बढ़ावा दया । अत: उस समय से हमारा यापार-शेष
अनेक यास एवं ो साहन के बावजू द नर तर बढ़ता ह गया िजस पर आज तक हम आ शक
नय ण ह पा सके ह । स भवत: भारत-जैसी येक वकासशील अथ यव था क यह
वाभा वक प रण त है ।
भारत का यापार-घाटा 1950-51 म 49 करोड़ पए से बढकर 2003-04 म 62,394
करोड़ पए तक पहु ँच गया । इस दौरान दे श के आयात और नयात क संरचना म भी अ य धक
बदलाव हु ए । क चे माल और इले ॉ नक व तुओं के आयात म वृ हु ई, जब क खा या न,
ं ीगत व तु ओं के आयात म गरावट । नयात के अ तगत कृ ष पदाथ , अय क
कागज एवं पू ज
एवं ख नज म गरावट दज क गई, जब क व न मत व तुओं , ह रे और जवाहरात के नयात म
भार वृ । 1960 के प चात ् औ योगीकरण के भावाधीन भारत के नयात ढाँचे म कई
प रवतन य त हु ए, जैसे - (1) अथ यव था के व वधीकरण के कारण गैर-पार प रक यापार म
वृ , (1।) इंजी नय रंग व तु ओं के नयात म व तार, (।;।) अ तरा य बाजार म भारत क
यापार- त प ा मक मता म वृ , (19) ह त श प, प रधान और सले सलाए कपड़ के
नयात म बढ़ो तर , (४) चीनी, पटसन, सू त व न मत व तु ओं तथा लौह-इ पात के नयात म
भार उतार-चढ़ाव, और (४1) कृ षगत व तु ओं ( वशेषकर चावल), फल-स जी एवं सा धत खा य
पदाथ के नयात म वृ ।
1987-88 से 2005-06 क समयाव ध म भारत के वदे शी यापार म जो मह वपूण
प रवतन ल त हु ए वे ह- (1) आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (OECD) दे श के साथ
आयात और नयात दोन म गरावट, (11) वकासशील दे श के साथ आयात और नयात दोन
म वृ , (iii) पे ो लयम नयातक दे श (OPEC) को नयात म वृ , क तु आयात म गरावट,
(iv) संयु त रा य अमे रका और अ का के साथ यापार म वृ , क तु संयु त रा य के साथ
कमी, (v) आ े लया, जापान और ि व जरलै ड के साथ आयात म वृ , क तु नयात म
कमी, और (vi) ए शयाई दे श के साथ यापार म अ य धक कमी ।
भू म डल करण, उदार करण, अ तरा य यापार समझौत और यापार संगठन के साथ
सहयोग के फल व प भारत के वदे शी यापार पर कई अनुकू ल प रणाग ल त हु ए, जैसे -

349
नयात को ो साहन, मु त यापार वातावरण का सृजन, नयात आधार का सश तीकरण,
वदे शी उ पादन के आधार म व तृतीकरण व आधु नक करण, नयात संवधन पाक (EPIPs)
और वशेष आ थक े (SEZs) क योजना का काया वयन, इि डया ा ड इि वट फ ड का
शु भार भ, नयात तथा 150 मानक म उ चतर गुणव ता क ाि त इ या द ।
व व यापार संगठन (WTO) से जु डाव के फल व प भारत अब (i) चीन स हत 145
दे श के साथ मु त यापार कर सकेगा, तथा (ii) अपने कृ षीय व कृ ष'-औ यो गक पदाथ , व
व सले सलाए कपड़ , र न व आभू षण का नयात बढा -सकेगा । साथ ह , कु छ चु नौ तयाँ भी
बढ जाएँगी, जैसे - (i) बहु रा य क प नय से अपनी भु स ता पर नय ण, (ii) कृ षीय आयात
पर नय ण समा त होने से कृ षीय अथ यव था के व त हो जाने का खतरा, (iii) बहु रे शी
समझौता समा त हो जाने से व एवं प रधान के नयात म चीन व द ण को रया से कड़ी
त प ा आद ।
उपयु त चु नौ तय का सामना करने के लए भारत ने अपनी 2002-07 क यापार
नी त म अनेक उपाय कए ह, जैसे - वशेष आ थक े (SEZs) का वकास कृ ष े का
व नय ण 32 कृ ष- नयात े क थापना, प रधान े म 50 मू य अ भवृ के नयात
मद को आर ण से बाहर रखना, वदे श-ि थत भारतीय मशन म यवसाय के क थापना
आ द । इन सम त उपाय को एक पैकेज के प म लाग कया जाएगा ।

12.10 श दावल (Glossary)


1. वकासा मक आयात (Developmental Imports) : ऐसे आयात जो उ पादन के
कु छ े म नई मता था पत करते ह या उ पादन के अ य े म मता का व तार करते
ह ।
2. प रपोषक आयात (Maintenance Imports) : ऐसे आयात जो दे श मे था पत
उ पादन मता का पूरा उपयोग करने के लए कए जाते ह ।
3. अ फ तकार आयात (Anti-inflationary Imports) : ऐसी उपभो ता व तु ओं के
आयात िजनका संभरण औ योगीकरण के काल म कम होता है । इससे उपभो ता व तु ओं क
कमी दूर होती है और उनक क मत म वृ भी कती हे ।
4. यापार-शेष / यापार-संतु लन (Balance of Trade) : एक नि चत समयाव ध म
कसी दे श के सम त य आयात मू य तथा नयात मू य का अ तर । जब नयात मू य
आयात मू य से अ धक होता है तब यापार-संतल
ु न धना मक होता है और इसक वपर त ि थ त
म ऋणा मक ।
5. अ बार आयात (Bulk Imports) : (1) क चा पे ो लयम एवं उ पादन, (ii) उपभोग
व तु ए-ँ अनाज, दाल, खा य तेल और चीनी, (iii) उवरक, अलौह धातु ए,ँ कागज एवं ग ता, रबड़,
गुददा एवं र ी कागज, ख नज अय क तथा लौह-इ पात ।
6. गैर-अ बार आयात (Non-bulk Imports) : (i) पू ज
ं ी व तु एँ - धातु ए,ँ मशीनी
औजार, इलेि क एवं गैर-इलेि क मशीनर , प रवहन उपकरण और ोजे ट व तु ए,ँ (ii) नयात

350
स बि धत मद म ह रे व क मती प थर, कॉब नक व अकॉब नक रसायन व (सू त एवं
फै स) तथा काजू और (iii) लाि टक का सामान, यावसा यक एवं वै ा नक उपकरण, कोयला
एवं कोक, रसायन तथा गैर- धातु क ख नज उ पाद ।
7. अय क (Ore) : भू गभ से खदान वारा नकाला जाने वाला ाकृ तक पदाथ िजसम
उपयोगी धाि वक ख नज व यमान होते ह ।
8. वक सत दे श (Developed Countries) : वे दे श िजनके संसाधन का पया त
वकास हो चु का हो तथा जहाँ त यि त वा त वक आय अपे ाकृ त अ धक हो । उदाहरणाथ,
संयु त रा य अमे रका, पि चम यूरोपीय दे श , जापान, ऑ े लया आ द ।
9. वकासशील दे श (Developing Countries) : वे दे श जो पहले अ प वक सत थे
क तु वतमान म वक सत होने क या म ह । उदाहरणाथ, ए शयाई, लै टन अमे रक तथा
अ क दे श ।

12.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. ऐसे आयात जो उ पादन के कु छ े म नई मता था पत करते ह या उ पादन के
अ य े म मता का व तार करते है । उदाहरणाथ, इ पात संयं , इंजन कारखाने,
जल व युत ् प रयोजनाएँ ।
2. ऐसे आयात जो दे श म था पत उ पादन मता का. पूरा योग करने के लए कए जाते
ह । उदाहरणाथ, क चे माल तथा अ तवत व तु एँ ।
3. ऐसी उपभो ता व तुओं के आयात िजनका संभरण औ योगीकरण काल म कम होता है ।
इससे उपभो ता व तु ओं क कमी दूर होती है और उनक क मत म वृ भी कती है ।
उदाहरणाथ, खा या न, चीनी, व आद ।
4. एक नि चत समयाव ध म कसी दे श के सम त य आयात मू य तथा नयात मू य
का अ तर । नयात मू य आयात मू य से अ धक होने पर धना मक यापार-संतल
ु न और इसक
वपर त दशा म ऋणा मक संतल
ु न ।
5. सीमा शु क, अ वक सत या अ प वक सत दे श, वेदशी माल के उ पादन पर छूट अथवा
सि सडी, कोटा णाल , यापार संघ का गठन (जैसे - पे ोल नयातक संघ - OPEC), वदे शी
मु ा नयमन वारा तब धन, प रवहन लागत म वृ , अ तरा य यापार समझौते व
संगठन, जैसे- GATT, NAFTA, OPEC, SAFTA, EEC, EFTA, LAFTA, 'ASEAN
आद ।
बोध न - 2
6. (i) पू ज
ं ीगत व तु ओं व क चे माल के आयात म वृ , (ii) नयात ो साहन हेतु क चे
माल के आयात का उदार करण, तथा (iii) खा या न व उपभो ता व तुओं म
आ म नभरता के फल व प इनके आयात म गरावट ।
बोध न - 3

351
7. (i) कृ ष और स बि धत उ पाद, (ii) अय क एवं ख नज, (iii) न मत व तु ए,ँ तथा
(iv) ख नज ईधन (कोयला स हत) और नेहक ।
8. (i) भारतीय अथ यव था म व वधीकरण, (ii) गैर-पार प रक नयात म वृ , (iii)
इंजी नय रंग व तु ओं के नयात म व तार, (iv) अ तरा य बाजार म भारत क
त प ा मक मता म वृ , (v) ह त श प, इंजी नय रंग व तु ओं और सले सलाए
कपड़ के नयात म वृ , (vi) चीनी, पटसन, सू त एवं न मत व तुओं तथा लौह-इ पात
के नयात म भार उतार-चढ़ाव, तथा (vii) कृ षगत व तुओं ( वशेषकर चावल), फल-
स जी और सा धत खा य पदाथा के नयात म वृ ।
2. ऐसे आयात जो दे श म था पत उ पादन मता का पूरा योग करने के लए कए जाते
ह । उदाहरणाथ, क चे माल तथा अ तवत व तु एँ ।
3. ऐसी उपभो ता व तुओं के आयात िजनका संभरण औ योगीकरण काल म कम होता है ।
इससे उपभो ता व तुओं क कमी दूर होती है और उनक क मत म वृ भी कती है ।
उदाहरणाथ, खा या न, चीनी, व आद ।
4. एक नि चत समयाव ध म कसी दे श के सम त य आयात मू य तथा नयात मू य
का अ तर । नयात मू य आयात मू य से अ धक होने पर धना मक यापार-संतु लन
और इसक वपर त दशा म ऋणा मक संतु लन ।
5. सीमा शुला, अ वक सत या अ प वक सत दे श, वेदशी माल के उ पादन पर छूट अथवा
सि सडी, कोटा णाल , यापार संघ का गठन (जैसे - पे ोल नयातक संघ - OPEC),
वदे शी मु ा नयमन वारा तब धन, प रवहन लागत म वृ , अ तरा य यापार
समझौते व संगठन, जैसे- GATT, NAFTA, OPEC, SAFTA, EEC, EFTA,
LAFTA,ASEAN आ द ।
बोध न. 2
1. (i) पू ज
ं ीगत व तु ओं व क चे माल के आयात म वृ , (ii) नयात ो साहन हेतु क चे
माल के आयात का उदार करण, तथा (iii) खा या न व उपभो ता व तुओं म
आ म नभरता के फल व प इनके आयात म गरावट ।
बोध न : 3
1. कृ ष और स बि धत उ पाद, (ii) अय क एवं ख नज, (iii)ऐ न मत व तु ए,ँ तथा (iv)
ख नज ईधन (कोयला स हत) और नेहक ।
2. भारतीय अथ यव था म व वधीकरण, (ii) गैर-पार प रक नयात म वृ , (iii)
इंजी नय रंग व तु ओं के नयात म व तार, (iv) अ तरा य बाजार म भारत क
त प ा मक मता म वृ , (v) ह त श प, इंजी नय रग व तु ओं और सले सलाए
कपड़ के नयात म वृ , (vi) चीनी, पटसन, सू त एवं न मत व तुओं तथा लौह-इ पात

352
के नयात म भार उतार-चढ़ाव, तथा (vii) कृ षगत व तुओं ( वशेषकर चावल), फल-
स जी और सा धत खा य पदाथ के नयात म वृ ।
बोध न 4
1. (i) आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (ii) दे श के साथ नयात म गरावट (59
तशत से 44 तशत) । इ ह ं दे श से आयात म गरावट (60 तशत से 33
तशत), (iii) वकासशील दे श (ए शया लै टन अमे रका और अ का) के साथ नयात
म वृ (14 तशत से 39 तशत) । इ ह ं दे श से आयात मे भी वृ (17 तशत
से पढ़कर 28 तशत), (iii) पे ो लयम नयातक दे शो (OPEC) को नयात म वृ द (6
तशत से 16 तशत), क तु आयात मे गशदट (1३ तशत से 8 तशत), (iv)
अ का के साथ वदे शी यापार म वृ , (9) संयु त रा य अमे रका के साथ यापार म
वृ जव क सयुक रा य (U.K.) के साथ कमी, (vi) ए शया के साथ यापार म
अ य धक कमी, तथा (vii) ऑ े लया, जापान और ि वटजरलै ड के साथ आयात ने
वृ क तु नयात ने कमी ।
2. (i) यापार-घाटे म वृ (1950-51 म 49 करोड़ पए से बढ़कर 2003-04 म
62,394 करोड़ पए), (ii) आयात क संरचना म अ य धक बदलाव - क चे माल और
इलेि ा नक व तुओं के आयात म वृ जब क खा या न , कागज व पू ज
ं ीगत व तु ओं के
आयात म गरावट, (iii) नयात संरचना म भी अ य धक बदलाव - कृ ष पदाथ , अय क
एवं ख नज म गरावट जब क व न मत व तु ओ,ं ह रे एवं जवाहरात के नयात म भार
वृ , तथा (iv) अ तरा य यापा रक समझौत तथा यापार संगठन के साथ
साझीदार के कारण यापार व वधीकरण ।
बोध न. 5
1. वशेष आ थक े (SEZs) का वकास, कृ ष े का व नय ण 32 कृ ष- नयात
े क थापना, प रधान े म 50 तशत मू य अ भवृ के नयात मद को
आर ण से बाहर रखना, वदे श-ि थत भारतीय मशन म यवसाय के क थापना
आ द का स पूण पैकेज ।
2. नयात को ो साहन, यापार म मु त वातावरण सृजन के अनेक उपाय , नयात के
आधार का सश तीकरण, वदे शी उ पादन के आधार म व तृतीकरण व आधु नक करण,
अ तरा य यापार समझौत और यापार संगठन के साथ सहयोग म वृ , नयात
संवधन औ यो गक पाक (EPIP) क योजना लागू इि डया ा ड इि वट फ ड चालू
नयात तथा ISO मानक म उ चतर गुणव ता ।
3. (i) अब भारत चीन स हत 145 दे श के साथ मु त यापार कर सकेगा, (ii) भारत
अपने कृ षीय तथा कृ ष -औ यो गक पदाथ का नयात बढ़ा सकेगा, तथा (iii) भारत
व तथा सले सलाए कपड़ , र न एवं आभू षण का नयात बढ़ा सकेगा य क कतर म

353
स प न दोहा स मेलन (2001) म हु ए समझौत के तहत बहु रे शी समझौता वष 2004
म समा त हो गया है ।
4. (i) बहु रा य क प नय से अपनी भु स ता पर नय ण करने क चु नौती, (ii) कृ षीय
आयात पर नय ण समा त होने से कृ षीय अथ यव था के व त हो जाने क चु नौती,
तथा (iii) बहु रे शी समझौता क समाि त से व एवं प रधान के नयात म चीन तथा
द ण को रया से कड़ी त प ा ।

12.13 अ यासाथ न
1. वदे शी यापार कसी-भी दे श क आ थक ग त का बैरोमीटर होता है । वकासशील
अथ यव था के स दभ म इस कथन का आशय व मह व प ट क िजए ।
2. वत ता-उपरा त छठव योजना काल (1960-65) तक भारत के वदे शी यापार क
संरचना व दशागत प रवतनो क समी ा मक दवेचना क िजए ।
3. सातव योजना काल (1985-90) से नौव योजना काल (2001 -02) तक भारत के
वदे शी आपार क संरचना व दशागत प रवतन क समी ा मक वदे चना क िजए ।
4. दसव पंचवष य योजना काल (2002-06) के दौरान भारत के वदे शी यापार क संरचना
व दशागत प रवतन क समी ा मक ववेचना क िजए ।
5. 1951 के प चात ् भारत के आयात ढाँचे म लगातार. वृ तथा संरचना मक प रवतन
के लए उ तरदायी उन कारणत व क ववेचना क िजए िज ह ने इस पर संचयी भाव
डाला ।
6. 'वष 1970-71 के प चात ् भारतीय नयात ढाँचा न मत व तु ओं के प म प रव तत हो
रहा है ।’ सकारण सोदाहरण प ट क िजए ।
7. वत ता-उपरा त काल म भारत के नयात ढाँचे म संरचना मक व दशागत प रवतन
क सकारण सोदाहरण ववेचना क िजए ।
8. वगत छ: दशक म भारत के वदे शी यापार म घ टत संरचना मक तथा े ीय दशागत
प रवतन क सकारण सोदाहरण समी ा क िजए ।
9. वतं ता-उपरा त भारत क बदलती हु ई यापार नी तय क समी ा मक या या
क िजए।
10. सं त ट प णयाँ ल खए -
(i) नयात संवधन े (Export Promotion Zones- EPZs), तथा
(ii) वशेष आ थक े (Special Economic Zones- SEZs) ।
11. व व यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) ने भारत के वदे शी
यापार के सम या- या सु अवसर और चु नौ तयाँ उपि थत क ह?

354
इकाई 13 : मु ख जनजा तयाँ : नागा, गो ड, भील, संथाल,
टोडा एवं सह रया (Major Tribes: Naga,
Gond, Bhil, Santhal, Toda, and
Sahariya)
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 भारत म जनजा तय का वतरण
13.3 नागा जनजा त
13.3.1 आवास
13.3.2 अथ यव था
13.3.3 सां कृ तक वातावरण
13.4 ग ड जनजा त
13.4.1 आवास
13.4.2 अथ यव था
13.4.3 सां कृ तक वातावरण
13.5 भील जनजा त
13.5.1 आवास
13.5.2 अथ यव था
13.5.3 सां कृ तक वातावरण
13.6 संथाल जनजा त
13.6.1 आवास
13.6.2 अथ यव था
13.6.3 सां कृ तक वातावरण
13.7 टोडा जनजा त
13.7.1 आवास
13.7.2 अथ यव था
13.7.3 सां कृ तक वातावरण
13.8 सह रया जनजा त
13.8.1 आवास
13.8.2 अथ यव था
13.8.3 सां कृ तक वातावरण
355
13.9 सारांश
13.10 श दावल
13.11 स दभ थ
13.12 बोध न के उ तर
13.13 अ यासाथ न

13.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क -
 भारत क मु ख जनजा तयाँ कौन सी ह?
 भारत क इन मु ख जनजा तय का वतरण कह -ं कह ं पाया जाता है?
 भारत क इन मु ख जनजा तय के आवास कैसे होते ह?
 भारत क इन मु ख जनजा तय क अथ यव था कस कार क है? एवं
 भारत क इन मु ख जनजा तय का पयावरण के साथ सामंज य कैसा है?

13.1 तावना (Introduction))


तु त इकाई म भारत क मह वपूण जनजा तय के आवास, अथ यव था एवं
सां कृ तक वातावरण के बारे म अ ययन करगे । इस इकाई म हम इन जनजा तय के कृ त के
साथ उनके अ तस ब ध को भी जानगे । आ दवासी एवं जनजा त श द का योग कसी भू-भाग
के मौ लक नवा सय के लए कया जाता है, िज ह ने तमाम सां कृ तक, आ थक, सामािजक
प रवतन से अपनी जा त को बचाए रखा है । आ दवा सय का पयावरण के साथ बड़ा सहज और
सहयोगपूण स ब ध होता है । ये अपनी आव यकताओं को यूनतम बनाए हु ए पयावरण के साथ
कम से कम छे ड़-छाड़ करते ह । पयावरणीय अनुकूलन और सामंज य का अनूठा उदाहरण
आ दवासी जनजा तय म दे खने को मलता है ।

13.2 जनजा तय का भारत म वतरण (Distribution of Tribes in


India)
भारत के व भ न दे श म बहु त-सी आ दम जनजा तयाँ रहती ह । भारत क आ दम
जनजा तय को तीन मु ख ादे शक े म बाँटा गया है -
(i) उ तर े ,
(ii) म य े और
(iii) द ण े ।
(i) उ तर े : इस े के अ तगत हमाचल दे श, त ता घाट के पूव म ि थत उ तर-पूव
भारत क पहाड़ी और पवतमालाएँ, अ णाचल तथा मपु नद का जमु ना-प ा वाला भाग आते
है । इस े म नवास करने वाल मुख जनजा तयाँ ह - गु गा , लकु, लेपचा, आका, डफला,
अबोर, गर म मी, संगफो, म कर, रामा, कचार , गारो, खासी, नागा, कू क , लु शाई, चकमा
आद ।

356
(ii) म य े : यह े गारो पहा ड़य तथा राजमहल पहा ड़य के बीच के अ तर के कारण
उ तर-पूव े से अलग पड़ गया है । उ तर म स दु गंगानद के े से लेकर द ण म
लगभग कृ णा नद के पठार और पहाड़ आते ह । इस े म संथाल, मु डा, ओरांव, लुमइज,
ख रया, क ध, सावरा, ग ड, बैगा, भील आ द मु य जनजा तयाँ पाई जाती ह ।
(iii) द ण े : इस े म कृ णा नद से द ण का भाग आता है । इस े म नवास करने
वाल मु ख जनजा तयाँ ह – चगू, कोटा, बडागा, टोडा, काडर, मलयान, मु थु वन, उरल , का णकर
आद ।
इन े के अ त र त बंगाल क खाड़ी म ि थत अ डमान तथा नकोबार वीप समू ह
का े है । ल वीप म भी आ दम जनजा तयाँ पाई जाती ह । सं या क ि ट से ये
जनजा तयाँ छोट ह, क तु मानव- व ान क ि ट से मह वपूण ह ।

मान च 131 : भारत क जनजा तयाँ


उपयु त े क इन व भ न जनजा तय म से कु छ मु य जनजा तय - नागा, ग ड, भील,
संथाल, टोडा एवं सह रया आ द के आवास, अथ यव था एवं पयावरणीय अनुकू लन का वणन
आगे कया जा रहा है ।

13.3 नागा जनजा त (Naga Tribe)


13.3.1 आवास (Habitat)

नागा जनजा तय का मु य नवास दे श नागालै ड है पर तु नागालै ड के बाहर भी ये


जनजा तयाँ रहती ह । म णपुर क पटकोई पहा ड़य तथा मजोरम के पठार भाग म असम और
अ णाचल मे नागा जा तय के लोग रहते ह । म णपुर, मजोरम तथा पुरा के पवतीय े से
लेकर यानमार क अराकान पहा ड़य तक व तृत नागा पहा डय के द ण म कूक (उपवग),
लशाई, लाखेर, चन आ द -जनजा तयाँ रहती ह । सुमन सर नद के पि चम म आका ,

357
अ णाचल म डफला, मर और लपायती और दहाग घाट म गल ग, मनय ग, पासी, प ा और
पगी नागा जनजा त के उपवग रहते ह ।
इस े म उ णाद जलवायु क धानता है । समु तल से अ धक ऊँचाई के कारण
तापमान नीचा रहता है । बंगाल क खाड़ी के मानसू न से औसत वषा 200 से 250 से.मी. तक
होती है । नचले भाग दलदल होने के कारण नागा लोग 2000 मीटर ऊँचाई के पवत पर
नवास करते ह । इनके घर 7-8 मीटर ल बे, 4-5 मीटर चौड़े होते ह, िजनके पछवाड़े म चबूतरा
बना होता है । छत पर ताड़, चीड़, साल या बीस के ल पर छ पर बने होते ह । फश पर व
द वार पर चटाई, बाँस क चटाई होती है । नागा ब ती म 250-300 घर या इयप डयाँ तथा
700-800 कु ल जनसं या पाई जाती है । ब ती वन से घर होती है ।
नागा लोग के गाँव ढाल पर नह ं वरन ् पहाड़ी कटक पर बसते ह । ढाल पर उनके खेत
होते ह जो जंगल को जलाकर बनाये जाते ह । गाँव बसाने क ि थ त (Location) के लए दो
बात का यान रखा जाता है - (i) गाँव के आस-पास कृ ष यो य भू म उपल ध हो, और (ii)
पास म जल का कोई थाइ ोत हो ।
िजस थान पर नागा लोग नृ य करते ह , वहाँ एक वृ ताकार ईट का घेरा बना होता है
। मारम नागा अपने घर का वार पि चम को नह ं बनाते ह, य क पि चम से शीतल वायु
आती है ।

13.3.2 अथ यव था (Economy)

नागा जनजा त मु य आ थक याओं म - आखेट, मछल पालन, कृ ष काय आ द ह ।


आखेट (Hunting)
नागा जनजा त आखेट म वीण होती है । यह जनजा त जंगल जानवर का शकार
करके उसके मांस एवं खाल का यापार करती ह । पहाड़ी और मैदानी नागाओं क आखेट करने
क व ध भ न- भ न है । जगल जानवर को खदे ड़कर न दय के खादर म लाकर, भाल से
मारना सभी नागाओं म च लत है । ये जनजा त शकार म मुख ह थयार तीर-कमान, भाला
तथा दाव (Hand-axe) का योग करती है । इनका सव य ह थयार दाव है जो अनेक काय म
उपयोग म आता है । जैसे - जंगल म लकड़ी काटना, रा ता साफ करना, गृह नमाण करना
आ द । दाव फरसे के समान होता है । तीर पर वष लगाने क था म णपुर के मारम नागाओं
म बहु त च लत है । आखेट के नयम सभी नागाओं म कठोरता के साथ माने जाते ह । जैसे -
कृ ष के समय कोई भी नागा शकार नह ं कर सकता । य द कसी अ य गाँव क सीमा म
अ दर शकार कया जाता है, तो दूसरे गाँव के लोग भी शकार मे ह सेदार होते ह ।
मछल पालन (Fishing)
यह जनजा त मछल पकड़ने का काय तालाब एवं न दय म करती है । मछ लयाँ
पकडने का काम पहाड़ के नचले भाग म, न दय और तालाब के कनारे , जाल , टोकर और
भाल क सहायता से होता है।
कृ ष काय (Agriculture)

358
पहाडी े म रहने वाले नागा पहाड़ को काटकर सीढ़ नुमा खेत तैयार करके अब कृ ष
काय करने लग गए ह । पर तु अभी भी कई े म थाना त रत कृ ष ह क जाती है, िजसे
झू मंग कृ ष के नाम से जाना जाता है । जंगल को काटकर व साफ करके भू म पर एक थान
पर दो या तीन वष तक कृ ष क जाती है । बाद म ल बे समय के लए उस भू म को परती
छोड़ दया जाता है । इस बीच म इस पर पुन: झा ड़याँ उग आती ह, तब उ ह फर साफ करके
कृ ष करते ह । सीढ़ दार खेत बनाने से भू म अपरदन व कटाव क जाता है फसल क संचाई
के लए तालाब व नहर का उपयोग कया जाता है । कृ ष पादन क ि ट से नागा जनजा त
वावल बी नह ं है । ये लोग बाग भी लगाते ह । बागवानी फसल के उ पादन म संतरा, सेव,
नासप त तथा चाय का उ पादन करते ह । इस दे श क मु य फसल ' पहाड़ी धान ' है । चाय
क झा ड़याँ जंगल प म मलती ह । कु छ कपास भी उ प न कया जाता है ।
कु ट र उ योग (Cottage Industry)
नागा जनजा त का मु य कु ट र उ योग धाग वारा कपड़ा बुनना है उ तर -पूव भारत
क अ धकांश आ दम जनजा तय वारा छोटे क व के मा यम से कपड़ क बुनाई क जाती है ।
यह ध धा सभी नागाओं म च लत नह ं है । केवल दो उपवग ह इस उ योग म लगे ह । नागा
जनजा त म म वभाजन का कठोरता से पालन कया जाता है । जैसे - कु छ लोग कपास उगाते
ह, कु छ सू त कातते ह, अ य कपड़ा बनाते ह तथा कु छ म ी के बरतन बनाते ह । चटाइयाँ एवं
टोक रयाँ बनाना सभी वग म च लत है । लु हार को बड़े आदर-भाव क ि ट से दे खा जाता है ।
यह येक गाँव म रहता है और कृ ष के लए औजार बनाता है ।

13.3.3 सां कृ तक वातावरण (Cultural Environment)

नागा जनजा त म सि म लत प रवार था च लत है । कृ ष काय म ि याँ भी पु ष


के साथ काय करती ह । आखेट करना केवल पु ष का काम है । येक गाँव म गाँव का एक
मु खया होता है । यह एक मह वपूण यि त होता है । पा रवा रक और सामािजक झगड़ का
नपटारा गाँव का मु खया ह करता है ।
येक नागा जनजा त के समू ह क अपनी बोल और पौशाक है, िजससे इसे अ य से
भ न कया जाता है । नागा लोग सदै व समू ह म एक थान से दूसरे थान को जाते ह । सभी
अ य जा तय क तरह नागा लोग भी उपगो म वभािजत ह । येक उपगो के लोग गाँव के
भीतर उ च चारद वार के अ दर रहते ह । नागाओं का युवागह होता है , िजसे ' मोरं ग ' नाम से
जाना जाता है । यहाँ सभी कुँ आरे युवक-युव तयाँ आते ह । मोरं ग म नाच-गाना भी होता है ।
इनम समगो ीय ववाह विजत है, इस लए एक मोरं ग का लड़का या लड़क दूसरे मोरं ग क लड़क
या लड़के से म
े स ब ध था पत करते ह । यह ं ये अपने जीवन साथी का चु नाव करते ह तथा
लड़क को जब स तान उ प न हो जाती है तो उसका ववाह कर दया जाता है । ववाह के
उपरा त ये माता- पता से अलग घर बनाकर रहते ह । इस कार मोरं ग को एक मह वपूण ,
सं था के नाम से जाना जाता है ।
यह जनजा त जादू-टोन तथा दे वी-दे वताओं म व वास करती है । इनके वचार म संसार
के पंचभूत के अलावा एक सू मतर शि त और है जो यि त को जीवन और बल दान करती है

359
। फसल का उ पादन अ धक या कम होना दे वा मा क शि त पर नभर माना जाता है । ये लोग
जादू-टोन म बहु त व वास करते ह । भारत क वतं ता ाि त के बाद से नागा लोग अ य
लोग के स पक म आए ह और श ा का चार बढ रहा है ।
ईसाई मशन रय के स पक म आने से अ धकतर नागा लोग ईसाई बन गए ह ।

13.4 ग ड जनजा त (Gond Tribe)


13.4.1 आवास (Habitat)

भारत क सभी जनजा तय म ग ड (Gond) सबसे मुख है । इनक जनसं या भी


अ धक है तथा मु गलकाल म इनका अपना शासन े भी था । यह े ग डावन दे श के नाम
से जाना जाता था । सन ् 1760 म मराठ ने इ ह हराकर अपने रा य म मला लया था ।
भौगो लक ि ट से इस जनजा त का नवास े . म य दे श, छ त सगढ़, आ दे श
के पठार भाग तथा उड़ीसा के द णी-पि चमी भाग म है । इनक ि थ त उ तर म वं याचल
से लेकर द ण म गोदावर नद तक है । छ तीसगढ़ म वशेषकर ब तर पठार े म इनके
मु य वग मा रया (Maria), मु रया (Muria), परजा (Parja), भटरा (Bhatra), गडाबा
(Gadaba), हालबा (Halba) और ढाकर (Dhakar) रहते ह । आ दे श के गंजम व
वशाखाप नम ् िजल म साओरा (Saora), कु ष (Kurush), तथा केवट (Kewat) वग का
नवास है ।
ग ड म राज ग ड सबसे स य व वक सत माने जाते ह । इनके र त- रवाज पर ह दू
सं कृ त क छाप प ट दे खी जाती है । मानवशा ी इनके शार रक ल ण के आधार पर इ ह
व ड़यन जा त से जोड़ते ह । ग ड े मानसू नी जलवायु के भाव े म आता है । इस े
े के बीच रहता है । वा षक वषा का औसत 140-165
म वा षक औसत तापमान 270-340 सट ड
से.मी. रहता है । इस े म लाल-पील म ी पाई जाती है । छ तीसगढ़ के मैदान म गहर
चकनी म ी पाई जाती है । ढलवाँ भाग पर बलु ई दोमट म ी पाई जाती है ।

13.4.2 अथ यव था (Economy)

ग ड जा त के लोग छोटे -छोटे गाँव म नवास करते ह, िज ह प ल या नंगले


(Hamlet) कहते ह । इन लोग क आव यकताएँ सी मत होती ह । ये लोग सादगी भरा जीवन
पस द करते ह । अपने वातावरण से ह ाथ मक आव यकताएँ - रोट , कपडा, मकान आ द क
पू त क जाती है । ग ड लोग का मु य यवसाय कृ ष, आखेट, वन क उपज ा त करना,
म स पालन और पशु पालन है ।
कृ ष काय (Agriculture)
ग ड जनजा त े म थाना त रत कृ ष बहु त आम है । इस कार क कृ ष म जंगल
को काटकर जला दया जाता है तथा ा त राख पर बीज को छटक कर बो दया जाता है खेत
को जोतने म फावड़ तथा हल का योग कया जाता है । कु छ वष तक जोतने-बोने के बाद इस
भू म को छोड़ दया जाता है और नई भू म के वन को काटकर जला दया जाता है तथा जोतने-

360
बोने क या दोहराई जाती है । कृ ष के इस तर के को यहाँ ' द पा (Dippa)' कहते ह ।
ब तर के पहाड़ी ढाल म सीढ़ नुमा खेत बनाकर इसी कार क कृ ष क जाती है । िजसे यहाँ
'पै डा (Penda)'' कहते ह । दोन कार क कृ ष म एक कार क फसल होने के प चात ् भू म
को दो-तीन वषा के लए परती छोड़ दया जाता है, िजससे नए पेड़-पौधे उग सक और भू म क
उवरता बढ़ सके । इसी कार क कृ ष भारत के उ तर -पूव े क जनजा तय वारा भी क
जाती है ।
इन जनजा त े ो के िजन भाग म जल ा त होता है, वहाँ ढाल से छोट -छोट नहर
काटकर नीचे खेत को लाई जाती ह । खेत म म ी क आ ता को बनाए रखने के लए ढाल के
नचले भाग म लकड़ी के ल े रख दए जाते ह, िजनके वारा बहता हु आ जल म ी म का
रहता है । भू म संर ण क यह व ध ग ड जनजा तय वारा वातावरण वारा समायोजन का
एक बु पूण उदाहरण है ।
म यपालन (Fishing)
ब तर क सभी आ दम जनजा तयाँ म ल पालन थोड़ी बहु त मा ा म अव य करती ह ।
पर तु कु ख वग ने म ल पालन को थाई पेशा बना लया है । ये लोग कृ ष नह ं करते ह,
इस लए यह मा रया वग से पूणत पृथक है । कु ख , केवट तथा धींमर वग के ग ड लोग मलय
पालन के वारा जीवन-यापन करते ह ।
पशु चारण (Pasturing)
ग ड जा त का रावत वग पशु पालन करता है । इनका दया दु ध, दह व अ य साम ी
सभी हण कर लेते ह, य क समाज म इ ह उ च थान ा त है । रावत को इन साम य
के बदले अ य साम ी मल जाती है । ये लोग क ब व शहर म जाकर भी दूध बेचते ह ।
कु ट र उ योग (Cottage Industry)
ग ड लोग गाँव म कु ट र उ योग था पत कर अपने आव यकता के औजार बनाते ह ।
येक गाँव या दो-तीन गाँव के लए एक लौहार होता है, जो खेती के बहु त साधारण औजार
बनाता है । उन लोग म लौहार कोई अलग जा त नह ं होती पर तु ग ड म से कुछ लोग लौहार
का पेशा पीढ़ -दर-पीढ़ करते रहते ह ।
आ दे श म गंजम और वशाखाप नम ् िजल म सावरा (Savra) वग के बहु ंत से
ग ड प रवार छोटे उ योग म लगे रहते ह । जैसे - अर सी (Arisi) वग के लोग हाथ करघ से
कपड़े बुनते ह; कु दाल वग के लोग टोक रयाँ बनाते ह और बहु त से प रवार लौहार ह ।

13.4.3 सां कृ तक वातावरण (Cultural Environment)

ग ड जनजा त के लोग पतृ धान समाज से जु ड़े ह । पता क मृ यु के प चात ्


स पि त बेट म वत रत क जाती है । पता या प रवार का सबसे बड़ा सद य प रवार का
मु खया होता है । यहाँ प रवार क इकाई को ' भाई बंद ' कहा जाता है । इस समाज म ववाह
के कई प पाए जाते ह, जैसे - सेवा ववाह, वधवा ववाह, हरण ववाह, व नमय ववाह,
मकल ववाह तथा पैठू ववाह आ द । पैठू ववाह करने के लए लड़के को लड़क के घर कुछ

361
साल काम करना पड़ता है । पस द आने पर ववाह होता है , अ यथा लड़क को लड़क का घर
छोड़ना पड़ता है । पु ष एक से अ धक प नी रख सकते ह । इसी कार प नी अपने प त को
छो कर अ य पु ष के साथ भी रह सकती है । तलाक के बाद ब च पर पहले प त का अ धकार
होता है ।
ग ड लोग ववाह उ सव आम, पीपल, तालाब व नद कनारे करना पस द करते ह ।
इनक रामधु न, नृ य तथा वा य यं को बजाने क भी च होती है । पु ष- ी साथ-साथ नृ य
म भाग लेते ह । गाँव के मु खया को पटे ल तथा चौक दार को कोतवाल कहते ह । इनके येक
गाँव म एक पुजार होता है , िजसे ' दे वार ' कहते ह ।
ये लोग मांसाहार व शाकाहार दोन कार का भोजन पस द करते ह । ववाह तथा
अ य उ सव पर शराब का अ धक उपयोग कया जाता है । यह इनक गर ब व पछड़ेपन का
एक मु ख कारण है । वतमान म बड़ी सं या म ये लोग लौह इ पात कारखान तथा खान म
मजदूर करते ह ।
भारत सरकार वारा जनजा त समू ह को वतमान म कई कार क सहायता द जा रह
है िजससे इनका पछड़ापन दूर हो सके । आधु नक समाज के स पक म आने के बाद ग ड
जनजा त म भी जाग कता आती जा रह है ।
बोध न : 1
1. डफला जनजा त कस जनजा त का उपवग है ? 0
2. नागा लोग वारा क जाने वाल थाना त रत कृ ष को कस नाम से जाना
जाता है ?
3. नागा जनजा त का मु य कु ट र उ योग या है ?
4. ग ड जा त का नवास े कह ं है ?
5. ग ड जनजा त के छोटे -छोटे गाँ व को या कहते ह ?
6. ' द पा ' कृ ष कस जनजा त वारा क जाती है ?

13.5 भील जनजा त (Bhil Tribe)


13.5.1 आवास (Habitat)

भील जनजा त मु यत: राज थान, म य दे श, खानदे श और गुजरात म मलती है ।


इनका नवास पहाड़ के ढाल , चो टय , घा टय तथा बे सन म दुगम े म पाया जाता है ।
इनक बि तय को 'फाला' तथा इनके मकान को ''टापरा'' कहते ह । अ धकांशत: एक फाला के
लोग एकं ह गो के होते ह । येक फाल वतं प से आ म नभर होता है । फाल के समू ह
को 'गाँव' कहते ह । गाँव के समू ह को 'पाल' कहते ह । इनके मकान अ धकांशत: क चे, को हू-
यु त , अंधेरे यु त तथा ऊँचाई पर बने होते ह, जहाँ से खेढ़ क दे ख-भाल क जा सके, जंगल
जानवर से बचा जा सके तथा दु मन को भी दूर से दे खकर अपनी सुर ा कर सके ।

362
इनके घर म एक् भाग म या पडौस म भेड़, बकर या गाय के बाँड़ने का थान भी
ऊँचाई पर होता है । घर म ये लोग मचान या ऊँचे बांस क लकड़ी या खपि चय से बने नाग पर
सोते ह, ता क जमीन क सीलन से एवं जहर ले जानवर से बचा जा सके ।
डॉ. मजू मदार के अनुसार भील लोग पूव- ा व ड़यन जा त के ह । क तपय व वान इ ह
मु डा जा त के भी मानते ह । कुछ के अनुसार भील जा त के लोग भारत के ह मूल नवासी
ह।
भील के नवास े क जलवायु उपो ण है ।अत: ये लोग सू ती व पहनते ह । ऊनी
पहनने क आव यकता केवल शीतकाल म होती है, पर तु तब ये लोग क बल ओढ़कर शीत से
र ा कर लेते ह । भील जा त के लोग जंगल म रहकर धनुष-बाण वारा आखेट करके कई
शताि दय से अपना जीवन यापन कर रहे ह।

13.5.2 अथ यव था (Economy)

भील जा त क अथ यव था का आधार कृ ष, आखेट एवं वन के उ पाद रहे ह । कृ षक


वग मैदानी भाग या घा टय म व भ न कार क फसल, जैसे - म का, गेहू ँ चना, चावल,
मू ँगफल ग ना, कपास, तल आ द का उ पादन कर अपना जीवनयापन कर रहे ह, जब क पहाड़
एवं वन म नवास करने वाले भील आखेट एवं वन उ पाद पर नभर ह । ये लोग जड़ी-बू टयाँ ,
लकड़ी, शहद ग द, क था व फल-फूल आ द को एक त कर, बेचकर अपना जीवन-यापन करते ह
। कृ षक वग थाना त रत कृ ष करता है, िजसे थानीय भाषा म 'वालरा' कहते ह । वतमान म
जंगल को जलाना काटना रारकार क ओर से मना है । अत: अब ये लोग थाई कृ ष करने लगे
ह । इनम से कु छ लोग म यो पादन के काय म लगे हु ए ह । म यम एवं न न वग के भील
पूव म भी और अब भी, मजदूर कर अपना पेट पालते ह । ये लोग ठे केदार के यहाँ ठे के पर या
शहर म खुल मजदूर कर , जैसे - प लेदार , गाडी खींचना, ठे ल चलाना, रमग़ चलाना, दुकान
पर मजदूर करना, कारखान म मजदूर करना, मकान क चु नाई का काम करना तथा घर पर
काम करना आ द से अपना जीवन यतीत कर रहे ह ।
भारत सरकार का जा त उ थान वभाग इन लोग के आ थक और सामािजक वकास
पर यान दे रहा है ।

13.5.3 सां कृ तक वातावरण (Cultural Environment)

भीलो म पतृस ता मक प रवार पाए जाते ह । प रवार का मु खया पता, दादा, पड़डदादा
होता है, िजसक आ ा का पालन करना हर प रवार के सद य का उ तरदा य व होता है । वंश
यव था पतृप से ह चलती है । प रवार के येक सद य के भोजन, व , यवहार,
अनुशासन, ववाह आ द क यव था एवं उ तरदा य व प रवार के मु खया का होता है ।
सि म लत कु टु ब णाल उनके प रवार का आधार है । भील के नवास े क जलवायु उपो ण
होने के कारण ये लोग सू ती व पहनते ह । शीतकाल म ये लोग क बल ओढ़कर सद से अपनी
र ा कर लेते ह । इन लोग म म दरापान का चलन है । जंगल से ा त हु ई भाँग आ द क

363
पि तय को सड़ाकर घरे लू म दरा बनाई जाती है । वशेषत: ववाह के अवसर एवं उ सव पर
म दरा का चलन अ धक है ।
ि य को आभू षण का बड़ा चाव होता है । हाथ म हाथी दाँत के ले और चाँद के कड़े
होते ह । ग ने म चाँद क हँ सल , माला, माथे पर चाँद का बोरला तथा जंजीर, पैर म चाँद के
कडे, हाथ और पाँव क अंगु लय म चाँद के छ ले होते ह ।
भील म बहु त से दे वी-दे वताओं क पूजा क जाती है । ये अ ध व वासी होते ह । भूत -
ेत म व वास करते ह ।
भारत सरकार क ओर से, अब इनके े ो म व यालय खोले जा रहे ह, कु छ
द तका रयाँ सखलाई जा रह ह और श ा का चार कया जा रहा है ।

13.6 संथाल जनजा त (Santhal Tribe)


13.6.1 आवास (Habitat)

यह ग ड जनजा त के बाद भारत क सबसे बड़ी दूसर आ दम जनजा त है , िजसक


जनसं या लगभग 50 लाख है । इनका मु य दे श बहार है । उसम भी वशेषकर छोटा नागपुर
के पठार म िजला संथाल, परगना, रांची, पालामऊ और हजार बाग मु य ह । इसके अ त र त
उ तर बंगाल म वीरभू म म और उड़ीसा म कटक के समीपवत थान म ये कृ ष करते ह ।
इस दे श क जलवायु उ णक टबंधीय मानसू नी है । यहाँ वन प त सघन पाई जाती है ।
ी म ऋतु म दन का तापमान 40o से. .े से 45o से. .े तक रहता है । वषाकाल म वषा 160
से.मी. से 180 से.मी. तक हो जाती है । शीतकाल म वषा केवल 10 से.मी. तक होती है ।
संथाल जनजा त के लोग पहाड़ी एवं एवं वन े म रहना पस द करते ह । य य प
वतमान म यह मैदानी भाग म थाई नवास करके कृ ष काय करने लग गए ह । इनके आवास
राह क चे ले कन साफ-सु थरे होते ह ।

13.6.2 अथ यव था (Economy)

संथाल लोग अ धकतर कृ ष काय करते ह । खेती क कमी म ये लोग आखेट करके तथा
जंगल से क द-मूल -फल एक त कर अपना जी वकोपाजन करते ह । हालाँ क कृ ष इनका
पर परागत यवसाय है फर भी ये लोग मछल पालन, भोजन सं हण म शकार जैसे काय भी
करते ह । आजकल संथाल जनजा त पशु पालन यवसाय भी करने लग गई है । ये लोग अब
थाई कृ ष करने लग गए ह । जहाँ पर भू म उपजाऊ है, वह पर ये अपना थाई नवास बना
लेते ह । िजस े म ख नज पदाथ मलते ह, वहाँ ये लोग औ यो गक काय म संल न हो गए
ह । जमशेदपुर आ द नगर म ये लोग सरकार और गैर-सरकार उ योग म रोजगार करने लग
ग ए है । कृ ष काय म भ न- भ न फसल बोने के लए व भ न तर के काम म लेते ह । चावल
को या रय म बोया जाता है, िजसम धान के पौध को थाना त रत करके लगाया जाता है
। वार, बाजरा आ द मोटे अनाज को बखेरकर बोया जाता है ।

364
जंगल काटकर, साफ करने वाल जनजा तय म संथाल सबसे उ तम है, क तु अ छे
कृ षक बनने के लए अभी उ ह बहु त कुछ सीखना पडेगा । िजन भाग म कटे जंगल है. वहाँ
संथाल लोग भू म साफ करके बस गए ह । एक ह खेत को ये तवष बोते रहते ह । ये लोग
संचाई, खा य तथा फसल के हेर-फेर पर कम यान दे ते ह, अत: खेती क उपज बहु त ह कम
होती है, और इन लोग को जीवन-यापन करने के लए आखेट तथा मजदूर क शरण लेनी पड़ती
है । खान खोदने, चाय के बगीच म काम करने वाले मजदूर म अ धक सं या संथाल मजदूर
क होती है । बहार क अ क कोयले तथा लौहे क खान म ये लोग काय करते ह ।

13.6.3 सां कृ तक वातावरण (Cultural Environment)

संथाल जा त कृ त-पूजक (Totemistic Tribe) है, जो भूत - ेत को भी मानती है । ये


लोग बहु त से वंश म बँट गए ह, िजनके नाम न दय , पशुओं , पौध या पदाथ के नाम पर होते
ह । ये लोग गो से बाहर ववाह-स ब ध को मानने वाले ह ।
इस जनजा त के लोग म सामािजक संगठन बहु त वक सत ढं ग का ादे शक संगठन है
जो 'परहा' (Parha) णाल पर आधा रत होता है । येक गाँव का एक मु खया होता है. जो
गाँव क सीमा के अ तगत रहने वाले सभी वंश पर साधारण राजक य अ धकार रखता है । बड़े
गाँव म समाज क स ता गाँव क पंचायत के हाथ म होती है, पर तु वहाँ भी गाँव के साधारण
व राजनी तक मामल म मु खया क बात मह वपूण होती ह ।
संथाल लोग पुनज म म व वास करते ह । मृता मा क पूजा -आराधना क जाती है ।
ह दूओं क भाँ त ये लोग भी दाह-सं कार करते ह तथा अवशेष को नद म वा हत करते ह ।
इस काय के लए संथाल लोग दामोदर नद को प व मानते ह ।
संथाल जनजा त शाकाहार एवं मांसाहार दोन कार का भोजन करते ह । इन लोग म
म यपान का पया त चलन है । संगीत व नृ य इनके जीवन के मह वपूण भाग ह । इसम
ी-पु ष दोन ह लोग समान प से भाग लेते ह । नृ य म मोरपंख तथा पु प से अपने को
सजाते-संवारते ह ।
वतमान म संथाल जनजा त के सामािजक जीवन म बदलाव दे खे जा रहे ह । ये लोग
अब थाई कृ षक के प म काय करने लगे ह । यातायात एवं आवागमन के साधन के व तार,
बाजार के व तार तथा सरकार संर ण एवं जनसं या वृ के प रणाम व प इन लोग ने छोटा
नागपुर क ओर गमन कया है । इसके फल व प प रवतन क या म ती ता आई है ।
औ यो गक े म संथाल के वास के फल व प इनके जीवन म पया त प रवतन आया है ।
इनम श ा का सार हु आ है । इसके प रणाम व प इनक थाओं, र त- रवाज आ द म
प रवतन आया है ।
बोध न : 2
1. भील जनजा त के मकान को करन नाम से जाना जाता है ?
2. भील जनजा तय वारा क जाने वाल थाना त रत कृ ष को रथानीय भाषा म
या कहते ह ?
3. भील के प रवार कै से होते ह ?

365
4. सं थाल जनजा त का नवास मु य दे श कौनसा है ?
5. सं थाल लोग का मु य यवसाय या है ?
6. सं थाल जनजा त का सामािजक सं ग ठन कस णाल पर आधा रत होता है ?

13.7 टोडा जनजा त (Toda Tribe)


13.7.1 आवास (Habitat)

टोडा जा त के लोग नील गर क पहा ड़य पर नवास करते ह । पर परा के अनुसार,


टोडा लोग नील गर के भू- वामी रहे ह, पर तु धीरे-धीरे इनका े कम होता चला गया है ।
टोडा नर-नार सु दर आकृ त के, सु ग ठत शर र वाले यि त होते ह । इनका कद ाय: ल बा
होता है । ये लोग द ण भारत क अ य आ दम जा तयो से ब कु ल. ग न दखाई दे ते ह ।
टोडा नवास-गृह ल बे बड़े ढोल क आकृ त क झ प ड़य (Barrel Shaped Huts) के प म
ह । भू म पर तो इनका फश सपाट होता है, पर तु इनक द वार और छत मलकर मेहराब बनाती
ह । इस मेहराबदार झ पड़ी के पीछे का भाग एक छ पर से ब द कर दे ते ह और वार क ओर
दूसरा छ पर लगाते ह, िजसम केवल एक मीटर ऊँचा छोटा वार होता है । इस छोटे से वार म
होकर ये लोग रगकर आते ह ।
आठ-दस मेहराबदार झोप ड़य का एक गाँव -होता है, जो पहाड़ी ढाल पर बसा होता है ।
गाँव के चार ओर पशु ओं को चराने क भू म होती है; कु छ भू म पर झूम कृ ष भी क जाती है ।

13.7.2 अथ यव था (Economy)

टोडा जा त के जी वका नवाह का मु य साधन पशु चारण तथा जंगल से क द-मू ल,


शहद, ग द इ या द एक त करना है । कुछ शाक-सि जयाँ उ प न कर लेते ह, पर तु मु ख
ध धा भस पालना है । टोडा लोग का कहना है क भस के वषय म िजतनी बात जानने यो य
होती ह, उन सबको वे जानते ह । वे जंगल भस को पालतू बनाकर दूध दुहने लगते ह । चारे
क खोज म उनको एक चरागाह से दूसरे चरागाह को जाना होता है । अत: इनका जीवन चलवासी
पशु चारक का है ।
टोडा लोग कृ ष काय को नीचा समझते ह । वे दूध भी नह ं बेचते ह । वन वभाग म
लकड़ी काटने वाल क मजदूर या अ य नौकर भी उनको पस द नह ं है । वे अपने आप को इन
पहा ड़य का भू- वामी मानते ह ।

13.7.3 सां कृ तक वातावरण (Cultural Environment)

टोडा लोग म सि म लत पल था है, िजसके अनुसार एक प रवार म दो या अ धक


भाइय क एक प नी अथवा एक से अ धक पि नयाँ सि म लत कार से होती ह । जनसं या के
अनुपात म पु ष अ धक ह ।

366
टोडा लोग शाकाहार होते ह, जो केवल पूजा-उ सव , यौहार आ द के समय दे वताओं को
स न करने के लए द गई पशु-ब ल के प चात ् कम -का ड के प म माँस भ ण करते ह ।
इनका मु य भोजन भस का दूध, दह , क दर-मू ल-फल और शाक-सि जयाँ ह ।
ं येक गांव का एक ाम दे वता होता है । अ य दे वी-दे वताओं को भी मानते ह । मृतक
सं कार बड़े ज टल होते ह । मृतक यि त क है सयत के अनुसार कम या अ धक सं या म
भस क पशु-ब ल द जाती ये लोग धोती बाँधते ह और कंधे से लेकर नीचे तक एक सूती चौगा
पहनते ह, जो गदन से पैर तक शर र को ढके होता है, इसम से दोन हाथ बाहर नकले होते ह
। पु ष और ि याँ सभी इस कार के ल बे चौगे पहनते ह । वतमान म अ य लोग से स पक
के कारण इनके पहनावे म प रवतन आ रहा है ।
दूसरे लोग से बातचीत करते समय टोडा लोग त मल और क नड़ क म त भाषा
बोलते ह पर तु वे आपस म अपनी आ दम भाषा बोलते ह । त मलनाडु रा य सरकार अब इनक
श ा, च क सा और आ थक सहायता का ब ध करने पर वशेष यान दे रह है ।

13.8 सह रया जनजा त (Sahariya Tribe)


13.8.1 आवास (Habitat)

सह रया जनजा त राज थान रा य के बार िजले म नवास करती है । यहाँ भी इनका
अ धकांश भाग शाहबाद एवं कशनगंज पंचायत स म तय म पाया जाता है । बार िजले क
सम त जनजा त जनसं या का 20 तशत भाग सह रया लोग से बना है ।
ये लोग समू ह म नवास करते ह । इनके घर बाँस क खपि चय , बाँस और घास क
छत के बने होते ह । इनके घर के समू ह को शहरोल (Shahrol) कहते ह । इनके गाँव बखरे
हु ए नह ं वरन ् एक समू ह म पाए जाते ह ।

13.8.2 अथ यव था (Economy)

सह रया लोगो क अथ यव था कृ ष और पशु पालन पर टक हु ई है । ये लोग छोट से


छोट पहाड़ी के ढाल पर भी सीढ़ नुमा खेत बनाकर कृ ष काय कर लेते ह । ये लोग कृ ष के लए
पर परागत तर के ह अपनाते ह । पशु ओं से सह रया लोग दूध, माँस तथा चमड़ा ा त करते ह
। कु छ सह रया जनजा त के लोग लकड़ी काटने, वन स पदा को एक त करने और खनन काय
म लगे हु ए ह । कु छ सह रया लोग कोटा एवं अ य क ब म दूध पहु ँचाने का भी काय करते ह ।
सह रया जनजा त क 45 तशत जनसं या य प से खेती म लगी हु ई है, जब क 35
तशत जनसं या कृ ष मजदूर के प म काय करती है ।

13.8.3 सां कृ तक वातावरण (Cultural Environment)

सह रया लोग मजबूत, सु दर एवं ह ट-पु ट होते ह । इनका प रवार समाज क एक


इकाई है । ये लोग कृ त से संतु ट वृि त के होते ह । ये लोग अपराधी वृि त से कोस दूर
रहते ह । ये लोग वानुशासन, आ मस मान एवं आ मर ा के त संक पब ह । सह रया

367
जा त का मु ख कोतवाल कहलाता है उसी क आ ा का पालन सभी लोग करते ह। वह गाँव के
सामािजक, आपरा धक सभी मामल का नपटारा करता है ।
ये लोग अब गेहू ँ खाना पस द करते ह । क तु इनका पूव खा या न वार रहा है ।
म का, जौ, साक एवं अ य खा य पदाथ बाजरा है । ये लोग यौहार पर पकवान बनाकर भी
खाते ह । इसके अलावा ये लोग ‘पुवार ’ स जी और महु आ के फल का सेवन भी करते ह । ये
लोग धोती, अंगरखा एवं कमीज पहनते ह । ि याँ घाघरा, खड़ी और ल बी बाँह का कु ता पहनती
ह । ि याँ आभू षण पहनती ह जो चाँद के कड़े तथा हाथी-दाँत क चू ड़याँ होती ह । ये शर र पर
नाम और दे वी-दे वताओं क मू तयाँ भी गुदवाते ह ।
सहारे याओ के वकास के लए अनेक सरकार एवं गैर-सरकार सहायता ा त सं थाएँ
काय कर रह ह । ये सं थाएँ इनके वा य, श ा, कृ ष एवं चहु ँ मख
ु ी वकास के लए स य है
। सरकार भी इनके वकास के लए व भ न योजनाएँ कायाि वत कर रह है ।
बोध न : 3
1. टोडा जनजा त का नवास कहाँ है ?
2. टोडा जनजा त के जी वका नवाह के मु य साधन या ह ?
3. टोडा का मु य भोजन या है ?
4. सह रया जनजा त कहाँ पाई जाती है ?
5. सह रया लोग के घर के समू ह के या कहते ह?
6. सह रया जाती के मु ख को या कहते ह?

13.9 सारांश (Summary)


जनजा त कसी भी दे श के मू ल नवासी होते ह, जो तमाम प रवतन से अपनी मौ लक
पहचान को बनाए रखते ह । इनका पयावरण के साथ बड़ा सहज और सहयोगपूण स ब ध होता
है । ये अपनी आव यकताओं को यूनतम बनाए हु ए पयावरण के साथ कम से कम छे ड़-छाड़
करते ह । पयावरणीय अनुकू लन और सांमज य का अनूठा उदाहरण आ दवासी जनजा तय म
दे खने को मलता है ।
नागा आ दवा सय का मु य नवास े नागालै ड दे श है । पर तु नागालै ड दे श के
बाहर भी पूव तर अ य रा य म ये जनजा त रहती है । इस े म उ णा जलवायु पाई जाती
है । ये लोग पहाड़ी कटक पर अपने घर बनाते ह । इनका मु य यवसाय कृ ष, पशु पालन एवं
आखेट है । इनम सि म लत प रवार था च लत है ।
ग ड जनजा त का नवास े म य दे श, छ तीसगढ़, आक दे श के पठार भाग एवं
उड़ीसा के द णी-पि चमी भाग म ह । इनके गाँव को प ल या नंगल कहते ह । इनका मु य
यवसाय कृ ष, आखेट, वन के उ पाद को एक त करना, म यपालन और पशु पालन है । इस
जनजा त म पत धान समाज होता है । पता क मृ यु के बाद स पि त बेट म वत रत क
जाती है । ये लोग माँसाहार व शाकाहार दोन कार का भोजन करते ह ।

368
भील जनजा त मु यत: राज थान, म य दे श, और गुजरात म नवास करती है । इनक
बि तय को 'फाला' तथा इनके मकान को 'टापरा' कहते ह । इनक अथ यव था का आधार
कृ ष, आखेट एवं वनो के उ पाद रहे ह । नके वारा क जाने वाल थाना त रत कृ ष को
'वालरा' कहते ह । इनम पतृस ता मक प रवार पाए जाते ह ।
संथाल जनजा त का नवास मु यत: बहार व झारख ड दे श है । यह ं उ णक टब धीय
जलवायु पाई जाती है । इन लोग का मु य यवसाय कृ ष व आखेट है । ये लोग कृ त-पूजक ह
। इनका सामािजक संगठन 'परहा' णाल पर आधा रत होता है । ये लोग पुनज म म व वास
करते ह ।
टोडा जा त के लोग नील गर क पहा ड़य पर नवास करते ह । इनके नवास गह ल बे
बड़े ढोल क आकृ त क झ प डय के प म होते ह । इनका मु य यवसाय पशुचारण तथा
वनो पादो का सं हण है । ये लोग शाकाहार होते ह । इनम सि म लत प नी था पाई जाती है।
सह रया जनजा त राज थान रा य के बार िजले म पाई जाती है । इनके घर के समू ह
को 'शहरोल' कहते ह । इनका मु य यवसाय कृ ष और पशु पालन है । ये लोग अनुशासन,
आ मस मान एवं आ मर ा के त संक पब होते ह ।
भारत सरकार एवं रा य सरकार वारा जनजा तय के सामािजक, आ थक, शै णक
वकास के लए व भ न योजनाएँ कायाि वत क जा रह ह । इस े म कई गैर-सरकार
संगठन भी इनके उ थान के लए कायरत ह ।

13.10 श दावल (Glossary)


आवास : नवास थान।
दाव : नागा लोग वारा शकार म काम आने वाला ह थयार ।
द पा : ग ड जनजा त के कृ ष का तर का ।
दे वार : `ग ड जनजा त के गाँव का पुजार ।
फाला : भील क ब ती ।
जनजा त : कसी े के मू ल नवासी ।
कोतवाल : सह रया जा त का मु ख ।
मोरं ग : नागाओं के युवा गृह।
प ल : ग ड जा त के गाँव ।
परहा : संथाल जा त के सामािजक संगठन क णाल ।
शहरोल : सह रया जनजा त के घर का समूह ।
टापरा : भील के मकान ।
वालरा : भील के वारा क जाने वाल थाना त रत कृ ष ।

13.11 स दभ म थ (Reference Books)


1. अ वाल, एल. सी. : ले वल ऑफ एजू केशनल ए ड मे डकलऐमे नट ज इन
ाइबल ए रया (ए केस टडी ऑफ सह रया ाइ स),
ोजे ट रपोट, 2003

369
2. अ वाल, एल. सी. : पे शयल ड बूशन ऑफ लटरे सी (ए केस टडी ऑफ
सह रया ाइ स), ोजे ट रपोट, 2007
3. गुजर एवं जाट : मानव एवं आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर ,
2006
4. कौ शक, एस, डी. : मानव तथा आ थक भू गोल, र तोगी पि लकेशन मेरठ,
2008
5. स सेना, एच. एम. : राज थान का भू गोल, राज थान ह द थ अकादमी,
जयपुर , 2007
6. शमा एवं शमा. : राज थान का पंचशील काशन, जयपुर , 2007

13.12 बोध न के उ तर
बोध न. 1
1. नागा जनजा त
2. झू मंग कृ ष
3. कपड़ा बुनना
4. म य दे श, छ तीसगढ़, आ ध दे श के पठार भाग तथा उड़ीसा के द ण-पि चमी भाग

1. 5 प ल या नगले
5. ग ड जनजा त वारा
बोध न : 2
1. टापरा
2. वालरा
3. पतृस ता मक
4. छोटा नागपुर के पठार पर िजला संथाल , परगना, रांची, पालामऊ
5. कृ ष, आखेट और वनो पाद का सं ह
6. परहा
बोध न. 3
1. नील गर क पहा ड़याँ
2. पशु चारण तथा जंगल से कंद-मू ल, शहद, ग द इ या द एक त करना
3. भस का दूध, दह , क द-मूल , फल और शाक सि जयाँ
4. राज थान रा य के बार िजले म
5. शहरोल
6. कोतवाल

370
13.13 अ यासाथ न
1. 'जनजा त' कसे कहते ह? नागा जनजा तय के आवास, अथ यव था एवं उनके
सां कृ तक वातावरण का वणन क िजए ।
2. ग ड जा त का नवास कहाँ पाया जाता है? इनक अथ यव था एवं सामािजक यव था
का वणन क िजए ।
3. भील जनजा त के आवास, अथ यव था एवं वातावरण के साथ स ब ध का वणन
क िजए ।
4. टोड़ा एवं सह रया जनजा तय क अथ यव था क ववेचना क िजए ।
5. संथाल जनजा त के नवास एवं अथ यव था का वणन क िजए ।

371
इकाई 14: ादे शक वषमताएँ (Regional Disparities)
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 े ीय असंतु लन के सूचक
14.2.1 त यि त शु रा यीय घरे लू उ पाद
14.2.2 शु रा यीय घरे लू उ पाद
14.2.3 नवेश एवं व तीय सहायता क वृ तयाँ
14.2.4 आधारसंरचना स ब धी असमानताएँ
14.2.5 सामािजक आधारसंरचना और मानवीय वकास
14.3 वकास के तर
14.4 आ थक पछड़ेपन और े ीय असंतु लन के कारण
14.5 योजना काल म े ीय असमानताएँ
14.5.1 पाँचव योजना काल (1980) तक े ीय असमानताएँ
14.5.2 छठव योजना काल (1980-85) म े ीय असमानताएँ
14.5.3 सातव योजनाकाल (1985-90) म े ीय असमानताएँ
14.5.4 आठव योजना काल (1992-97) म े ीय असमानताएँ
14.5.5 नौव योजना काल (1997-2002) म े ीय असमानताएँ
14.5.6 दसव योजना काल (2002-06) म े ीय असमानताएँ
14.5.7 यारहव योजनाकाल (2006-11) म े ीय असमानताएँ
14.6 े ीय असमानताओं को दूर करने के नी तगत उपाय
14.6.1 पछड़ापन और संसाधन-ह तांतरण
14.6.2 े - शेष वकास काय म
14.6.3 पछड़े े मे नवेश ो नत करने के लए ो साहन
14.6.3.1 के सरकार वारा दए गए ो साहन
14.6.3.2 रा यीय सरकार के ो साहन
14.6.3.3 व तीय सं थान वारा रयायती व त
14.7 े ीय आयोजन क वफलता
14.8 सारांश
14.9 श दावल
14.10 स दभ थ
14.11 बोध न के उ तर
14.12 अ यासाथ न

372
14.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप भारत म े ीय असंतु लन के वषय म
समझ सकगे-
 भारत-जैसे संघीय रा य के समि वत वकास के लए संतु लत े ीय वकास क
अ नवायता ।
 े ीय असंतु लन के सूचक का सोदाहरण ान ।
 भारत म ादे शक वकास के वतमान तर ।
 भारत म व भ न योजना काल म आ थक पछडेपन और े ीय असंतल
ु न के
कारणत व का
 संचयी भाव ।
 े ीय असंतल
ु न को दूर करने के लए भारत सरकार , रा य सरकार व मु य
व तीय सं थान वारा अपनाए गए नी तगत उपाय का समी ा मक ान ।
 भारत म े ीय आयोजन क वफलता का समी ा मक आकलन ।

14.1 तावना (Introduction)


भारत-जैसे संघीय रा य (Federal State) के समि वत वकास के लए संतु लत े ीय
वकास अ नवाय है । य द हम आ थक वकास के कुछ सूचक , जैसे- त यि त आय, गर बी
रे खा से नीचे रहने वाल जनसं या, कृ ष म कायरत जनसं या, व नमाण उ योग म काम करन
वाले मक क सं या आ द के आधार पर अ ययन कर तो भारत म े ीय भ नता क एक
चरम त वीर दखाई दे ती है । कु छ रा य आ थक ि ट से अ गामी (advanced) ह जब क
अ य सापे त: पछड़े हु ए । येक रा य म भी कुछ े अ धक वक सत ह जब क अ य
लगभग आ दम युग म ह । सापे त: वक सत और आ थक ि ट से दबे हु ए रा य का
सहअि त व और येक रा य के वभ न े म गत क ि ट से भ नता को ह े ीय
ु न (regional imbalance) कहते ह ।
असंतल े ीय असंतु लन का कारण ाकृ तक साधनो क
उपलि ध म अ तर हो सकता है या यह मनु यकृ त कारण का प रणाम भी हो सकता है िजसके
अधीन कुछ े को नवेश एवं वकास यास म अ य े क अपे ा ाध मकता द जाती है ।
े ीय अरनतुलन अ तःरा यीय (inter-state) हो सकते है और आ तर-रा यीय (intra-state,)
भी । वे सकल प मे भी हो सकते ह और वभ न े मे भी । कसी े के आ थक
पछड़ेपन के कई सूचक हो सकते है जैसे - जनसं या का भू म पर अ य धक दबाव, कृ ष पर
अ य धल नभरता, ाम-बेरोजगार क अ धकता, कृ ष तथा कु ट र उ योग म न न उ पा दता
आद ।

14.2 े ीय अ ंतु लन के सू चक (Indicators of Regional


Imbalance)
े ीय असंतु लन का अ ययन करने के लए भारत के 15 बड़े रा य दो वग म बाँटे गए
ह - अ गामी रा य और पछड़े रा य । अ गामी रा य म शा मल ह - पंजाब, गुजरात, पि चम

373
बंगाल, कनाटक, केरल, त मलनाडू और आं दे श । पि चम बंगाल को अ गामी रा य के
समू ह म इस लए शा मल कया गया है य क पि चम बंगाल क त यि त आय कनाटक और
केरल रवे अ धक है और सा रता (पु ष एवं ी दोन ), शशु मृ युदर , मृ यु दर उगैर ज मदर म
इसका रकॉड कई अ य रा य से बेहतर है जो इस वग म शा मल कए जाते ह । पि चग बंगाल
के शु रा यीय घरे लू उ पाद (Net State Domestic Product) क वृ दर केरल ,
त मलनाडु और कनाटक से अ भक है । ये सभी कारणत व पि चम बंगाल को अ गामी रा य क
ेणी म शा मल करने के लए यायो चत माने जा सकते ह ।
पछड़े रा य गे म य दे श, असम, उ तर दे श, राज थान, उड़ीसा और बहार शा मल
ह । उ त 15 रा य म 2001 क जनगणना के अनुसार दे श क कुल 90 तशत जनसं या
नवास करती है - 48 तशत अ गामी रा य म और 42 तशत पछड़े रा य म ।

14.2.1 त यि त शु रा यीय घरे लू उ पाद

ता लका 14.1 म 1993-94 क क मत पर त यि त शु रा यीय घरे लू उ पाद के


आकड़े तु त कए गए ह । इन आंकड़ो से पता चलता है क 1990-91 म पंजाब क अ धकतम
त यि त आय और बहार क यूनतम त यि त आय का अनुपात 2.74 था । यह अनुपात
बढ़कर 2002-03 म 3.8 तशत हो गया । सु धार या ने े ीय असमानताओं को बढा दया
है य क इसके दौरान अ गामी रा य को अ धक ो साहन मला ।
ता लका 14.1 : भारत - रा यवार त यि त शु घरे लू उ पाद
(1993-94 क क मत पर)
रा य 1990-91 2002-03 औसत वा षक वृ दर
अ गामी रा य
पंजाब 11,776 15,264 2.2
महारा 10,159 15,466 3.6
ह रयाणा 11,125 14,694 2.3
गुजरात 8,788 14,539 4.3
पि चम बंगाल 5,991 10952 5.2
कनाटक 6,631 11,799 4.9
केरल 6,851 11,389 4.3
त मलनाड़ु 7,864 12,839 4.2
आ दे श 6,873 10,634 3.7
पछड़े रा य
म य दे श 6,350 7,015 0.8
असम 5574 6,221 0.9
उ तर दे श 5,342 5,610 0.4
राज थान 6,760 7,608 1.0
374
उड़ीसा 4300 5,836 2.6
बहार 4474 4,048 -0.8
अ खल-भारत 7,430 11,088 3.4
अ धकतम एवं यूनतम त यि त
शु 2.73.8 रा यीय 2.7 3.8
ोत Ministry of Finance, Indian Public Finance Statistics (2004-05)
े ीय असंतल
ु न क या या के लए रा य को त यि त शु आय के आधार पर
अ गामी और पछड़े रा य म वभ त कया गया है । 1990-91 म त यि त आय क ि ट
से पंजाब सव च थान पर था जब क उड़ीसा सबसे नीचे । वष 2002-03 म महारा सव च
थान पर पहु ँ च गया और बहार सबरने नीचे रहा ।

14.2.2 शु रा यीय घरे लू उ पाद क वृ दर

ता लका 14 .2 से संकेत मलता है क 1990-91 से 2002-03 के दौरान शु रा यीय


घरे लू उ पाद (Net State Domestic Product- NSDP) क औसत वा षक वृ दर अ गामी
रा य के लए 5.6 तशत थी, जब क पछड़े रा य के लए केवल 1 .7 तशत । इस अ तर
के कारण सु धार-उपरा त काल म े ीय असमानताएँ और बढ गई जब क अ गामी रा य -
पि चम बंगाल, कनाटक और गुजरात-क वृ दर बहु त ऊँची (6 तशत से अ धक) थीं । पछडे
रा य , जैसे - उ तर दे श, म य दे श और बहार - क वृ दर 12-वष क अव ध (1990-91
और 2002-03) म बहु त नीची थी । सबसे नराशाजनक बात यह है क बहार ने नकारा मक
वृ दर (-0.7 तशत) दशाई, जब क उ तर दे श ने 2. 1 तशत क न न वृ दर दशाई ।
म य दे श का न पादन अ य त नराशाजनक था - मा 0.4 तशत क वृ दर । इसका
अ भ ाय यह है क पछड़े रा य (उ तर दे श, म य दे श और बहार), िजनम जनसं या क
बडी मा ा नवास करती है, भारतीय अथ यव था क वकास या पर वम दन भाव डालते ह
। उड़ीसा और राज थान ने अपनी वृ दर थोड़ी बढ़ा ल है - मश: 4. 1 तशत और 3 .5
तशत । हालाँ क इनक वृ दर अभी-भी नीचे है फर भी अ य पछड़े रा य क तु लना म
इ ह ने 12-वष क अव ध के दौरान बेहतर वृ दर ा त कर ल है । यह बात भी यान दे ने
यो य है क कु छ अ गामी रा य , जैसे - पंजाब और ह रयाणा - क वृ दर म हास हु आ है,
भले ह ये 1980-81 और 1990-91 के दशक म वृ दर म सव च थान ा त कर चुके थे ।
आयोजन या ने पछडे रा य क सहायता करके े ीय असमानताओं को कम करने
का यास तो कया क तु उदार करण और वै वीकरण क शि तय ने अ गामी रा य म पछड़े
रा य क तु लना म नवेश को बढ़ावा दे कर े ीय असमानताओं को और बढ़ा दया ।

14.2.3 नवेश एवं व तीय सहायता क वृि तयाँ

योजना आयोग के डी. जे.जे. कु रयन ने भारत म बढ़ती हु ई े ीय असमानताओं का


व तृत ' अ ययन कया है । उनका मत है क नवेश- ताव के दो- तहाई से अ धक भाग (69.2

375
तशत) का सुधार-उपरा त काल म संके ण अ गामी रा य म हु आ और ऐसी-ह प रि थ त
अ खल भारतीय व तीय सं थान एवं रा यीय व तीय नगम (State Financial
Corporations) वारा द त व तीय सहायता के बारे म व यमान थी (ता लका 14.3) ।
अ खल भारतीय व तीय सं थान , जैसे - भारतीय औ यो गक वकास बक, भारतीय औ यो गक
व त नगम, आईसीआई. सी.आई. बक, भारतीय इकाई यास, भारतीय जीवन बीमा नगम,
सामा य बीमा नगम तथा भारतीय लघु उ योग वकास बक - ने 31 माच 1997 तक व तीय
सहायता का 67.3 तशत अ गामी रा य म वत रत कया । नौ अ गामी रा य म से भी
चार रा य अथात ् महारा , गुजरात, त मलनाडु और आ दे श ने कुल सहायता का 51 तशत
ह थया लया । रा यीय व तीय नगम ने भी व तीय सहायता का 70 तशत अ गामी रा य
को ह दया । इस व लेषण से यह बात प ट होती है क सु धार या ने नवेश- ताव क
रचीकृ तय एवं व तीय सहायता म अ गामी रा य को ह ाथ मकता द । प रणामत: अ गामी
रा य, जो पहले से ह बेहतर ि थ त म थे, अपनी वकास या को और व रत कर पाए
जय क पछड़े रा यॉ, िज हे अनुशल
ू यवसू र ा त नह ं हु आ, के वकास पर म द भाव पड़ा ।
इससे शु रा यीय घरे लू उ पाद (कुल एवं त यि त दोन ) म बढ़ती हुई असमानताओ क
या या हो जाती है ।
ता लका 14.2. भारत - रा यवार शु घरे लू उ पाद
(1993-94 क क मत पर)
रा य औसत वा षक वृ दर 1990-91 से 2002-
(करोड़ पये) 03
1990-91 2002-03
अ गामी रा य
पंजाब 23,693 37,582 3.9
महारा 79,869 1,53,429 5.6
ह रयाणा 18,215 31,952 4.8
गुजरात 36,207 75,447 6.3
पि चम बंगाल 40,633 89,792 6.8
कनाटक 29,845 63,978 6.6
केरल 19,774 37,037 5.4
त मलनाडु 43,937 81,019 5.2
आ दे श 45131 82,046 5.1
उप- योग 3,37,304 82,046 5.6
पछड़े रा य
म य दे श 41,833 43,770 0.4
असम 2.6 12,299 16,788 2.6

376
उतार दे श 2.1 74,791 96,011 2.1
राज थान 3.5 29,713 44,553 3.5
उड़ीसा 4.1 13,450 21,862 4.1
बहार -0.7 37,607 34,553 -0.7
उप-योग 2,09,693 2,57,753 1.7
अ खल-भारत 6,23,407 11,69,793 5.4
ोत : Ministry of Finance, Indian Public Finance Statistics (2004-05)

14.2.4 आधारसंरचना स ब धी असमानताएँ

आधार संरचना स ब धी असमानताएँ भारत म खर प से व यमान ह । ता लका


14.4 म दए गए आँकड़ से इनका बोध होता है ।
त यि त ऊजा उपभोग ऊजा के उपभोग- तर का सूचक है । इसके बारे म दए गए
आकड़ से पता चलता है क आ दे श, केरल और पि चम बंगाल को छो कर अ य सभी
अ गामी रा य 1996-97 म दे श क रा य औसत (338 कलोवॉट /घ टे ) से ऊपर ह । इनके
वपर त पछडे रा य, वशेषकर उ तर दे श और बहार मश: 145 कलोवॉट /घ टे और 194
कलोवॉट /घ टे के उपभोग के कारण बहु त ह पीछे ह । इससे साफ जा हर है क जब तक इन
रा य म औ योगीकरण क या तेज नह ं होती, इनम असमानताएँ बनी रहगी ।
आधारसंरचना म त 1, 000 यि तय के लए रा यवार पंजीकृ त गा डय क सं या एक
मह वपूण सूचक है । भले ह यह प रवहन के वकास का यापक सू चक नह ं है य क यह (1)
रे लवे, और (ii) त 100 वग क.मी. के लए सड़क क ल बाई को समा व ट नह ं करता ।
इनके योग क ती ता रा य के शु रा यीय घरे लू उ पाद एवं त यि त आय पर नभर करे गी
। इस कारण उ प न कुछ वसंग तय क या या करनी ज र है । उदाहरणाथ, उड़ीसा के पास
त 100 वग क.मी. े के लए 134 .8 क.मी. ल बाई क सड़क अव य उपल ध ह पर तु
इसम कु ल एवं त यि त रा यीय घरे लू उ पाद का तर बहु त नीचा होने के कारण इन सड़क
का अ प योग ह हो रहा है ।
ता लका 14.3 भारत - नवेश- ताव और नवेश के लए सहायता का वतरण
रा य नवेश ताव का अ खल-भारतीय रा यीय व तीय
तशत (अग त सं थान वारा द नगम वारा वत रत
1991 से सत बर गयी व तीय सहायता सहायता का संचयी
1998 तक) म संचयी भाग (माच भाग (माच 31, 1997
31, 1997 तक) तक)
अ गामी रा य
पंजाब 3.4 2.4 3.6
महारा 18.0 21.0 11.5
ह रयाणा 3.6 2.5 4.8

377
गुजरात 18.7 13.5 9.3
पि चम बंगाल 3.3 3.9 2.5
कनाटक 5.6 6.1 15.5
केरल 1.1 1.7 4.4
त मलनाडु 7.2 9.0 10.6
आ दे श 8.3 7.2 7.8
उप- योग 69.2 67.3 7.00
पछड़े रा य
म य दे श 7.4 5.1 3.2
असम 2.6 0.7 0.5 0.5
उतार दे श 2.1 9.4 7.9 11.1
राज थान 3.5 3.9 4.5 6.1
उड़ीसा 4.1 2.2 1.8 3.7
बहार -0.7 1.2 1.4 2.0
उप-योग 24.8 21.2 26
अ खल-भारत 100.0 100.0 100
(7,37,516) (3,12,516) (20,896)
नोट : को ठक म दए गए आकड़े करोड़ पए म योग को य त करते ह ।
ोत : कु रयन, जे. जे., Economic and Political Weekly, February 12-18,
2000
चाहे हम त 1,000 यि तय के लए पंजीकृ त गा ड़य या त 100 यि तय के
लए टे ल कॉम लाइन का पर ण कर, इनम से कोई-भी सू चक योग क ती ता का ज़ंकेतक
नह ं है । इन कसौ टय के उपयोग और वकास क दर म रन कध था पत करने म अपनी
सीमाएँ ह । आधारसंरचना वकास माँग-चा लत (demand-driven)) बन सकता है जब इसके
साथ य प म उ पादक याओं म नवेश होता रहे और यह संभरण-चा लत (supply-
driven) हो सकता है जब इसके वकास से पहले य प म उ पादक याओं म नवेश
कया गया हो । माँग-चा लत आधारसंरचना के वकास के प रणाम व प थोड़े समय के बाद
इसका बेहतर उपयोग होने लगता है पर तु संभरण-चा लत साम य के वकास का योग काफ
समय के बाद होता है । दोन ह ि टकोण को यायो चत समझने के प म तक दए जा सकते
ह ।
ता लका 14.4 : भारत - आधारसंरचना वकास के तर
त यि त त 1000 100 वग त 1000 कुल फसल-अधीन सामािजक
पॉवर उपभोग यि तय के े क.मी. के यि तय के े फल सं चत एवं आ थक

रा य के लए पंजीकृ त लए सड़क लये टे ल कॉम े का तशत आधारसं रचना


गा डयाँ(31.3.97) क ल बाई लाइने (माच (1994-95) सू चकांक

31,99) (1999)

अ गामी रा य

378
पंजाब 790 103.2 113.1 5.34 94.8 187.6
महारा 557 57.2 73.1 4.93 15.3 112.8
ह रयाणा 508 64.6 61.0 3.18 77.2 137.5
गु जरात 686 91.5 55.6 3.75 28.9 124.3
पि चम बंगाल 197 19.8 69.9 1.86 28.7 111.3
कनाटक 338 56.5 73.0 3.25 23.9 104.9
केरल 236 42.1 358.2 4.66 13.9 175.7
त मलनाडु 469 103.2 157.5 3.84 49.5 149.1
आंध दे श 332 57.2 20.7 2.36 39.6 103.3
पछड़े रा य
म य देश 368 38.8 47.6 1.38 22.3 76.8
असम 108 19.9 86.7 0.95 15.0 77.7
उ तर दे श 194 22.7 72.7 1.21 62.6 101.2
राज थान 295 45.1 38.0 2.11 29.1 75.9
उड़ीसा 447 22.9 134.8 1.05 25.8 81.0
बहार 145 16.4 50.6 0.58 43.2 81.3
अ खल भारत 338 44.0 91.7 2.55 36.5 100.0
ोत Planning Commission, Ninth Five Year Plan (1997-2002), CMIE,
Profiles of States (March 1997), and Tata Services Ltd. Statistical Outline
of India (1999-2000), and Eleventh Finance Commission (2000)
इस ि थ त के बावजू द भी यह कहा जा सकता है क आधारसंरचना का वकास कसी
ने के वकास क अ नवाय शत है, भले ह यह इसक पया त शत न हो । इस बात का अथ
पूर तरह समझने के लए सी.एम. आई.ई वारा तपा दत आधार सूचकांक पर यानपूवक
वचार करना होगा । इस सूचकांक म जो मद शा मल क गई है उनेक् , मह व को टक म दए
गए ह –
(i) प रवहन सु वधाएँ (26 तशत) (ii) ऊजा उपभोग (24 तशत)
(iii) संचाई सु वधाएँ (20 तशत) (iv) ब कं ग सु वधाएँ (12 तशत)
(v) संचार सु वधाएँ (6 तशत) (vi) श ा सु वधाएँ (6 तशत)
(vii) वा य सु वधाएँ (6 तशत)
अ खल भारतीय सू चकांक के मू य को 100 मानते हु ए सभी रा य के लए
आधारसंरचना वकास के सूचकांक के सापे -मू य कॉलम 6 म दए गए ह । यान दे ने यो य
बात यह है क पंजाब का सापे सू चकांक 187.6 उ चतम है, इसके बाद ह त मलनाडु और
हरयाणा िजनके मू य मश: 149.1 और 137.5 ह । सबसे कब मू य म य दे श का है (76.8)
। इसके ऊपर है असम (77.7) और बहार (81.3) । भले ह उ तर दे श के सूचकांक का मू य
101.2 अ खल भारतीय तर से ऊँचा हो, फर भी खा या न उ पादन और गर बी-उ मूलन म यह
कनाटक, पि चम बंगाल और त मलनाडु से बहु त पीछे है - िजनके आधारसंरचना सू चकांक
379
सापे त: नीचे ह । जहाँ तक संचाई-आधारसंरचना का स ब ध है, पंजाब म कुल फसल-अधीन
े फल के 94.8 तशत को संचाई सु वधाएँ ा त थीं और इसक त है टे यर उ पा दता भी
अ धकतम थी । उ तर दे श म यह अनुपात 62.6 तशत से ऊँचा था भी त है टे यर
उ पा दता सापे त: नीची थी । इससे यह बात प ट होता है क जहाँ पंजाब और हरयाणा
संचाई-आधारसंरचना का योग कृ ष वकास के लए करने म सफल हो गए यह उ तर- दे श को
इसम पया त सफलता ा त नह ं हु ई ।

14.2.5 सामािजक आधारसंरचना और मानवीय वकास

ता लका 14. 5 म मानवीय वकास के कु छ चु ने हु ए सूचक - जीवन- याशा, सा रता


दर, शशु मृ युदर और ज म-दर स ब धी आकड़े दए गए ह । य द सभी कार के वकास का
उ े य जीवन क गुणव ता को. उ नत करना है तो मानवीय वकास के सू चक वकास या के
प रणाम ह माने जा सकते ह ।
व भ न रा य म इनके स ब ध म भार असमानताएँ पाई गई ह । केरल और कुछ हद
तक त मलनाडु ने यह मा णत कया है क मानवीय वकास के उ च तर आ थक वकास के
न न तर के बावजू द भी ा त कए जा सकते है । पर तु मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है
क त यि त आय के बेहतर तर के साथ मानवीय वकास के उ च तर ा त कए जा सकते
ह । मानवीय वकास के उ च तर ा त करने के लए यह ज र है क श ा और वा२ य
स ब धी आधारसंरचना म नवेश को बढ़ाया जाए । पछड़े रा य म बहार, राज थान और उ तर
दे श का सा रता, वशेषकर ी-सा रता, म बहु त-ह न न रकॉड है । वे वा य स ब ह
आधारसंरचना म भी पया त नवेश नह ं कर पाए, प रणामत: इनम न न जीवन- याशा, उ च
शशु मृ युदर और उ च ज मदर पा ई जाती है । नजी े , जो आ थक सुधार का मु खया है,
न सग होम या उ च श ा सं थान कायम तो कर सकता है (जहाँ समृ या उ च म य वग
अ धक शु क चु काकर सु वधाएँ ा त कर सकता है) पर तु यह गर ब के क याण हे तु कु छ भी
सहायता नह ं कर सकता । इस हे तु नजी े को या तो उ च सामािजक उ े य के लए अपना
ह सा अदा करना होगा या रा य सरकार को श ा और वा य म अ धक नवेश करना होगा ।
आ थक सुधार के आर भ के बाद े ीय असमानताओं का व तृत व लेषण करने पर
जे.जे. कु रयन इस न कष पर पहु ँचते ह - ''1960 दशक के आर भ के बाद नजी े के
सहयोग म वृ के प रणाम व प े ीय असमानताएँ बढ ह । 1991 के प यात ् चल रहे आ थक
सु धार (िजनम ि थर करण और व नयमन धान उपकरण ह और िजनम नजी े को
मह वपूण कायभाग दया गया है) ने अंत:रा यीय असमानताओं को और बढ़ा दया है । '' उ ह ने
इस स ब ध म उ लेख कया है - ''समृ रा य अपनी वकास-साम य को बढ़ाने के लए नजी
नवेश (दे शीय एवं वदे शी) क भार मा ा आक षत कर सके ह य क इनम अनुकू ल नवेश
वातावरण (बेहतर सामािजक-आ थक आधारसंरचना) व यमान है । पछडे रा य नजी नवेश
आक षत नह ं कर पाते य क इनम तकू ल नवेश वातावरण ( न न आधारसंरचना) व यमान
है । वे अपने नवेश वातावरण को उ नत करने के लए वतमान आधार संरचना सु वधाओं म

380
सु धार नह ं कर पाते य क उनके पास संसाधन का अभाव होता है । संसाधन के अभाववश
उनम वकास का तर नीधा रहता है । इव कार वे एक दु च म फंस जाते है ।
ता लका 14.5 : भारत - मानवीय वकास के चु ने हु ए सू चक
जीवन- याशा सा रता 2001 अ थाई अनु पात (2005)
रा य (वष म )
1999.2003 कु ल पु ष ि याँ ि याँ शशु मृ यु दर मृ यु दर ज मदर
अ गामी रा य
पंजाब 68.8 69.9 75.6 63.6 44 6.7 18.1
महारा 64.4 77.3 86.3 67.5 36 6.7 19.0
ह रयाणा 65.4 68.6 79.3 56.3 60 6.7 24.3
गु जरात 63.5 70.0 80.5 58.6 54 7.1 23.7
पि चम बंगाल 64.1 69.2 77.6 60.2 55 6.4 18.8
कनाटक 64.6 67.0 76.3 57.5 50 7.1 20.6
केरल 73.6 90.9 94.2 87.9 14 6.4 15.0
त मलनाडु 65.4 73.5 82.3 64..6 37 7.4 16.5
आं दे श 63.7 61.1 70.8 51.2 57 7.3 19.1
पछड़े रा य
म य देश 57.1 64.1 76.8 50.3 76 9.0 29.4
असम 58.0 64.3 71.9 56.0 68 8.7 25.0
राज थान 59.3 57.4 70.2 43.0 73 8.7 30.4
उ तर दे श 61.3 61.0 76.5 44.3 68 7.0 28.4
उड़ीसा 58.7 63.6 75.5 51.0 75 9.5 22.3
बहार 61.0 58.7 60.3 33.6 61 8.1 30.4
अ खल भारत 62.7 65.4 76.0 54.30 58 7.6 23.8
ोत : भारत सरकार, आ थक समी ा (2006-07) और Census of India 2001
Series 1-India, Paper 1 of 2001
सम व लेषण का सार यह है क आयोजन या के दौरान य य प े ीय
असमानताओं म कु छ वृ अव य हु ई, फर भी सरकार ने इन असमानताओं को कम करने का
समु चत यास कया । सु धार या (िजसने वै वीकरण के साथ बाजार-शि तयो को बढावा
दया) से तो केवल अ गामी रा य का ह भला हु आ, पछड़े रा य का नह ं । प रणाम व प
े ीय असमानताओं म वृ हु ई ।

14.3 वकास के तर (Levels of Development)


स तु लत ादे शक वकास रा य आ थक नी त का मुख उ े य है । 1960-75 के
म य अनेक समाज-वै ा नक ने अ त ादे शक वषमताओं का अ ययन कया । रा य तर,
ादे शक तर एवं िजला तर पर वकास के तर का आकलन करने के लए व भ न तकनीक
का योग करते हु ए इन वै ा नक ने दे श म वकास के तर का च ण कया । इनम अशोक

381
म ा (1961) वाजबग (Schwartzberg,1962) सु दरम ् (1971, 1983), अशोक माथु र
(1978) तथा मोनी (1999) के यास उ ले खनीय ह ।
अशोक थम वै ा नक थे िज ह ने िजला तर पर ादे शक वषमताओं का व लेषण
कया । उ ह ने 1961 जनगणना के व भ न सूचक के आकड़े यु त कए तथा उ ह 6 लाँक
म बाँटकर भारत के येक िजले के बारे म न न सूचनाएँ एक त क ं.-
लाँक I (a) भू-वै ा नक संरचना, थलाकृ त, वषा, गृह कार , भाषा,
अनुसू चत जा त एवं अनुसू चत जनजा त जनसं या, तथा (b) म ी,
फसल तथा चावल क उपज।
लाँक II कृ षीय अवसंरचना ।
लाँक III पर परागत े म सहभा गता क दर ।
लाँक IV मानव संसाधन का वभव ।
लाँक V यापार, व नमाण एवं अवसंरचना ।
लाँक VI आधु नक े म संग ठत औ यो गक या ।
म ा के अ ययन से यह प ट हु आ क दे श के 327 िजल म से 79 िजले वकास के
न नतम तर पर, 88 िजले वतीय न नतम तर पर, 76 िजले वकास के तृतीय तर पर
तथा 84 िजले वकास के उ चतम तर पर व यमान थे ।
च 14.1 वकास के चार तर द शत करता है - (i) उ च, (ii) म यम, (iii) न न,
तथा (iv) अ त न न । न न तथा अ त न न वग सापे प से अ प वक सत े को सू चत
करते ह िज ह 'अ वक सत' कहा जा सकता है । अ वक सत भारत के अ तगत पूव , म य
तथा म य द णी भारत का व तृत े आता है िजसके म य नगर य के के चार ओर छोटे
वक सत े वीप के प म ि थत ह ।
अ वक सत े भ न कार के ाकृ तक संसाधन-आधार तथा सामािजक-आ थक
पयावरण वाले व वध दे श के प म बखरे ह । ऐसे े पाँच संहत दे श के प म व यमान
ह- (।) उ तर-पूव दे श , (ii) पूव म य भारत क जनजातीय पेट , (iii) पूव उ तर दे श एवं
बहार, (iv) बु दे लख ड दे श , तथा (v) सू खा वण े , बा वण े , बीहड़, म थल एवं
पहाड़ी े जो पा रि थ तक प से असंतु लत ह ।
मोनी (1999) ने 1990 दशक के 38 चर के आँकड़ का योग करते हु ए ' मु ख घटक
व लेषण तकनीक' के अनुसार वकास के तर का गहन अ ययन कया ( च 14.2) ।
च 14.। तथा 14.2 क तुलना से यह प ट होता है क 1961 म उपि थत 'ती
पछड़े े ’ 1991 म य -के- य ' व यमान रहे । ऐसे े को वक सत करने के लए पया त
यास नह ं कए गए ।

382
च 14.। : भारत म वकास के तर, 1981 (अशोक म ा के अनुसार)
योजना आयोग के अनुसार दे श का आ थक पछड़ापन न न कारण का प रणाम ह- (1)
वगत म उपे ा, (ii) तकू ल कारक, जैसे - तकू ल जलवायु, वषम धरातल, अनुवर म ी,
धरातल य जल क कमी, तथा (iii) जनजातीय े म सामािजक पछड़ापन । ऐसे सभी े के
लए उनक दशाओं एवं आव यकताओं के अनु प वशेष योजनाएँ बनानी चा हए । येक े के
वकास के लए पृथक् उपागम अपनाना चा हए ।

14.4 आ थक पछड़ेपन और े ीय असंतु लन के कारण (Causes of


Economic Backwardness and Regional Imbalances)
कु छ ऐसे अवरोधक कारणत व होते ह जो कसी े के ती आ थक वकास म कावट
बन जाते ह । इनम सबसे मह वपूण ह - भौगो लक अलगाव, प रवहन, म, तकनीक , आ थक
ऊपर यय (overheads) क अपया तता आ द ।

च 14.2 भारत म िजलावार वकास के तर, 1991 (मोनी के अनुसार)


383
भारत म ऐ तहा सक ि ट से पछड़े हु ए े टश शासन क नी तय का प रणाम ह ।
टश शासन ने केवल उन े के वकास म सहायता द िजनम व नमाण एवं यापार
स ब धी याओं के लए अ छ सु वधाएँ उपल ध थी । टश उ योगप तय ने महारा और
पि चम बंगाल-जैसे रा य को ाथ मकता द । तीन महानगर - कोलकाता, मु बई और चै नई -
ने सभी उ योग को आक षत कया । बाक दे श क उपे ा क गई इस लए वह पछड़ा गया ।
इसके अ त र त, टश भू- णाल के अधीन ाम े का लगातार द र करण हु आ
और कसान सबसे उ पी ड़त वग रहा । ाम े म केवल जमींदार और मझूजन ह समृ वग
रह गए थे । भावी भू- सु धार के अभाव म ामीण भारत का आ थक ढाँचा वकास के अनुकूल
नह ं था । टश शासनकाल म कुछ े म संचाई म नवेश अव य कया गया िजससे इन
े को समृ बनने म सहायता मल ।
वकासशील दे श म वक सत े सामा यत: शहर े तक ह सी मत हो जाते ह ।
इसका कारण युह है क वक सत दे श क अपे ा वकासशील दे श म भौगो लक कारक आ थक
वकास को काफ हद तक नयं त करते ह । जापान और ि व जरलै ड ने तो पहाड़ी े क
दुगमता पर नयं ण पा लया क तु भारत के हमालयी रा य - उ तर क मीर, हमाचल दे श,
उ तर दे श और बहार के पहाड़ी े और उ तर-पूव सींमा े पहु ँच के अभाव म पछडे बने
रहे । वषम जलवायु भी भारत के बहु त-से े के आ थक वकास म बाधक रह है । प रणामत:
इन े म कृ ष उ पादन कम रहा और बड़े पैमाने के उ योग भी कायम नह ं हो सके ।
कु छ े को ि थ त स ब धी क तपय लाभ के कारण भी ाथ मकता द जाती है ।
लौह-इ पात उ योग तथा तेल प र करण शालाऐ केवल उ ह ं े म कायम क जाती ह जहाँ ये
ख नज पाए जाते ह । वभा वकत: वकास क या जैसे-जैसे ग त ा त करती है इन े म
बा य मत ययताऐ उपल ध होने के कारण ये म, पूजी एवं यापार को आक षत कर लेते ह ।
नए नवेश ( वशेषकर नजी े म) क वृ त ाय: वक सत े क ओर केि त होने
क होती है य क इस कार यह बा य मत ययताओ का लाभ उठा सकता है । ऐसा करना
नजी े क ि ट से वाभा वक भी है य क अ छ तरह वक सत े नजी नवेशक को
कु छ बु नयाद लाभु, जैसे - श त म, उदधारसंरचना, प रवहन, बाजार आ द उपल ध कराता
है ।

14.5 योजना काल म े ीय असमानताएँ (Regional Imbalances


in Plan Periods)
14.5.1 पाँचव योजना काल (1980) तक े ीय असमानताएँ

1950-51 के प चात ् आयोिजत आ थक वकास क अव ध के दौरान ग भीर े ीय


ु न उ प न हो गए । भले ह 1956 क औ यो गक नी त म संतु लत वकास का पुरजोर
असंतल
समथन कया गया हो और दूसर योजना के प चात ् इसे आ थक आयोजन के मु ख उ े य म
माना गया हो, फर भी आयोजक एवं लाइसस दान करने वाले ा धकार ने इसक पूगतया
अवहे लना क । सच तो यह है क वयं आयोजन या ने रा य के बीच असमानताओं को

384
बढ़ावा दया है । वक सत रा य को अ धक सहायता दान क गई जब क अ प वक सत रा य
क उपे ा क गई । वा तव म पाँच रा य - पजाब, महारा , गुजरात, कनाटक एवं हरयाणा -
को सभी योजनाओं म अ धक त यि त योजना प र यय उपल ध कराया गया जब क बहार,
उड़ीसा, उ तर दे श और राज थान-जैसे अ प वक सत रा य को त यि त बहु त कम योजना
प र यय ा त हुआ । प रणामत: रा य के बीच असमानताएँ बढती चल गई ।
1951 के प चात ् ''कुशलता क कसौट '' के आधार पर भार मा ा म नवेश कुछ-ह
के , जैसे - मु बई, अहमदाबाद, द ल , कानपुर, कोलकाता, बंगलौर आ द म संकेि त हो
गया । ये े अपनी साम य से अ धक वक सत कए गए और इसके प रणाम व प इनम
जनसं या का अ य धक दबाव, म लन बि तय का व तार, प रवहन, सावज नक वा य आद
क सम याएँ ग भीर प धारण कर गई । ये े आसपास के इलाक से संसाधन को अपनी
ओर खींचने म सफल हो गए । इन के को चू षण-प प क सं ा द गई है य क ये अपने
वकास के लए पड़ोसी े से जनशि त, पू ज
ं ी एवं अ य साधन का उ वाह कराने म सफल हो
जाते ह ।
1960 दशक के प चात ् कृ ष म नई तकनीक के अपनाए जाने के कारण भी े ीय
आ थक असमानताओं म वृ हु ई । दुलभ संसाधन को सबसे अ धक उ पादक े म यु त
करने क मा यता के आधार पर और खा या न अभाव क सम या के समाधान के लए
खा या न उ पाद को अ धका धक बढ़ाने के ल य को ि ट म रखते हु ए सरकार ने दे श के उन
े म संसाधन नवेश क ठानी िजनम संचाई सु वधाएँ बहु त वक सत थीं । इन इलाक के
कसान, जो पहले से ह स प न थे, अब और अ धक स प न हो गए । इसके वपर त सू खा त
े के कसान और ाम म रहने वाल कृ षइतर जनसं या उपे त रह । प रणाम व प,
संचाई-अधीन और शु क े तथा बडे और छोटे कसान के बीच येक रा य म असमानताएँ
और भी बढ़ गई ।
सरकार ने वके करण और पछड़े े के वकास का यास तो कया (राऊरकेला,
भलाई, बरौनी आ द म सावज नक े के नवेश को बढ़ाया), क तु इन े म सहायक
उ योग के तेजी से न बढ़ सकने के कारण ये े के सरकार के भार नवेश के बावजू द
पछड़े ह बने रहे ।
एक और कारण बढ़ती हु ई े ीय असमानताओं के लए उ तरदायी है । एक ओर जहाँ
कु छ रा य , जैसे- पंजाब, हरयाणा, गुजरात, महारा , त मलनाडु आ द - ने अपने े के
औ यो गक वकास क ओर अ धक यान दया वह ं दूसर ओर अ य रा य राजनी तक उलझन
म फंसे रहे और अपने रा य के संतु लत व व रत आ थक वकास क उपे ा करते रहे ।
नौवीं योजना के अनुसार , 'दे श क एकता और अख डता को कायम रखने के लए
संतु लत े ीय वकास भारतीय वकास रणनी त का सदा से अ नवाय अंग रहा है । चू ं क दे श के
सभी भाग वकास अवसर क ि ट से न तो समान प से स प न ह और न ह ऐ तहा सक
असमानताएँ दूर क जा सक ं, इस लए यापक े ीय असमानताओं को रोकने के लए आयोिजत
यास क आव यकता है । '

385
पहल योजना म े ीय असमानताओं क सम या का उ लेख तक नह ं कया गया ।
दूसर और तीसर योजना म अ प वक सत े के वकास क आव यकता क ओर यान अव य
दलाया गया, पर तु इस सम या के समाधान के लए कोई ठोस उपाय नह ं कए गए ।
1968 म रा य वकास प रष (National Development Council) ने व भ न
रा य म औ यो गक पछड़ेपन क सम या पर वचार कया और औ यो गक ि ट से पछड़े
रा य एवं संघीय े क पहचान के लए न न ल खत पाँच कसौ टय क सफा रश क -
1. त यि त कुल आय के साथ उ योग एवं खनन का योगदान,
2. त एक लाख जनसं या के लए कारखान म काम करने वाले मक क सं या,
3. बजल का त यि त वा षक उपभोग
4. रा य क जनसं या और े फल क तुलना म प क सड़क क ल बाई, तथा
5. रा य क जनसं या और े फल क तुलना म रे लमाग क ल बाई ।
रा य वकास प रष ने इस स ब ध म दो कायदल ग ठत कए - (i) पांडे कायदल
(Pande Work Group) जो ऊपर द गई कसौ टय के आधार पर पछड़े रा य क पहचान
करे , तथा (ii) वांचू कायदल (Wanchoo Working Group) जो पछडे े म उ योग
था पत करने के लए राजकोषीय एवं व तीय ो साहन क सफा रश करे ।
पांडे कायदल ने रा य वकास प रषद वारा बताई गई पाँच कसौ टयो के आधार पर
न न ल खत रा य क पछड़े रा यो के कर म पहचान क ता क उ ह औ यो गक दकास के
लए वशेष सहायता द जा सके - (i) आंध दे श, असम, बहार, हमाचल दे श, ज मू एवं
क मीर, म य दे श, नागालै ड, उड़ीसा, राज थान और उ तर दे श, तथा (ii) च डीगढ़, द ल
व पॉि डचेर को छो कर अ य सभी संघीय े ।
त प चात ् योजना आयोग ने सभी रा यो म पछडे िजल क पहचान के लए अ ल खत
कसौ टयाँ नधा रत क - (।) त यि त खा या न /वा ण य फसल का उ पादन, (ii) कु ल
जनसं या म कृ ष मन का अनुपात, (iii) त यि त औ यो गक उ पाद, (iv) त एक लाख
जनसं या के लए कारखान म काम करने वाले मक क सं या, (v) त एक लाख
जनसं या के लए वतीयक एवं तृतीयक याओं म कायरत यि तय क स या , (vi) बजल
का त यि त उपभोग, तथा (vii) जनसं या क तु लना म प क सड़क एवं रे लमाग क ल बाई
। इन कसौ टय के आधार पर योजना आयोग ने 246 िजल एवं संघीय े क पहचान क
ता क उ ह रयायती व त एवं अ य सु वधाएँ द जा सक।
वांचू कायदल ने अ ल खत सफा रश क ं - (i) पछड़े े म ि थत उ योग को
अ धक वकास-छूट, (ii) पाँच वष के लए नगम-आय कर से छूट, (iii) पछड़े म ि थत
इकाई के लए संयं एवं मशीनर और पुज पर आयात-शु क से छूट, (iv) उ पाद-शु क से पाँच
वष के लए छूट, (v) ब कर से पाँच वष के लए छूट, तथा (vi) प रवहन साहा य
(Transport Subsidy) उपल ध कराना । मोटे तौर पर ये सभी सफा रश क तपय संशोधन के
साथ लाग कर द गई ।

386
14.5.2 छठव योजना काल (1980-85) म े ीय असमानताएँ

छठवी योजना के दौरान पछड़े े के वकास के लए एक उ च तर य स म त ग ठत


क गई िजसने अ ल खत सफा रश क ं - (i) रा यीय एवं के य तर पर पछड़े े के
वकास के लए एक उपयोजना होनी चा हए, (ii) थानीय आयोजन के लए वशेष आबंटन रा श
उपल ध होनी चा हए िजसके काया वयन से पछड़े े का वकास कया जाए, (iii) पछड़े और
दुगम े के वकास के लए नधा रत रा श का योग कई बार रा य सरकार अ े और
सु गम काय म के लए कर लेती ह, अत: रा यीय सरकार पर व तीय अनुशासन लागू करना
चा हए ता क वे पछड़े े के लए नधा रत रा श का योग उसी वष उ ह ं प रयोजनाओं के
लए कर लए वह द गई है, तथा (iv) वकास वभाग के कमचार पछड़े े म जाने से ाय:
कतराते ह, अत: इन कमचा रय को ो साहन दे ना चा हए । ज रत पड़े तो द ड का ावधान भी
करना चा हए ता क यो य कमचार इन े म वकास काय के लए जा सके ।
इन सफा रश के अ त र त स म त ने कु छ और सफा रश भी क ,ं जैसे - (i) उ योग
के कु छ-ह के द म संकेि त हो जाने क वृि त के म न
े जर यह सफा रश क गई क नई
इकाइय का ि थ त- न चयन उ चत वकास के (growth centres) म ह होना चा हए
िजससे पछड़े े म ि थत वकास के को उ चत मह व मल सके, (ii) पछड़े े म
वकास क द को वक सत करने के लए औ यो गक वकास ा धकरण था पत होना चा हए जो
इन के के लए आव यक आधारसंरचना का ब ध करे ता क के व रा य सरकार वारा
इनके वकास के लए द गई रा श का उपयोग इ ह ं के के लए हो' सके, तथा (iii) स म त
एक मा टर योजना तैयार करे गी िजसके आधार पर व तीय सं थान इस े के वकास म
सहायता दे सक । भारत सरकार ने उ त सफा रशो को छठवीं योजना के दौरान वीकृ त दे द ।

14.5.3 सातव योजनाकाल (1985-90) म े ीय असमानताएँ

सातवीं योजना ने पूव े म कृ ष उ पा दता बढ़ाने पर बल दया - वशेषकर चावल,


मोटे अनाज, दाल व तलहन पर । इसके साथ-साथ शु क भू म और वषा पर आधा रत े के
वकास को ो नत करने पर भी बल दया ता क इन े म कृ ष आय म वृ हो । कृ ष
रणनी त म इस प रवतन के साथ सू खा त, म थल य, पवतीय और जनजातीय े के
वकास काय म वारा कृ ष उ पा दता को पछड़े े म बढ़ाने का ल य रखा गया ता क
अ तत: ये सब मलकर त यि त असमानताओं को कम कर सक ।
सातवीं योजना मे मानवीय संसाघन वकास क क पना एक मु य काय म के प मे
क गई। इसके लए ाथ मक वा य दे खभाल, ाथ मक श ा का सव यापीकरण, नौजवान
बा लग म नर रता क समाि त, जलसंभरण, ाम सड़क और ाम व युतीकरण पर अ धक
बल दया गया । योजना आयोग ने यह आशा य त क क पछड़े े ो म मानव संसाधनो क
उ नत वारा े ीय असमानताएँ कम क जा सकती ह ।

387
14.5.4 आठव योजना काल (1992-97) म े ीय असमानताएँ

आठव योजना काल म दे श के सभी रा य म असंतु लत वकास क सम या को वीकार


कया गया और सातवीं योजना म चलाए जा रहे काय म को अ धक मजबूत बनाने पर बल
दया गया ।

14.5.5 नौव योजना काल (1997-2002) म े ीय असमानताएँ

नौवीं योजना म यह चेतावनी द गई क आने वाले वष म े ीय असंतल


ु न म वृ हो
सकती है । आ थक उदार करण के अधीन चू ं क अब उ योग को ि थ त- न चयन के चु नाव म
अ धक वतं ता ा त है इस कारण कु छ रा य अ य रा य क अपे ा अ धक नवेश आक षत
कर सकते ह । इसके अ त र त रा य सरकार रा यकोषीय एवं अ य रयायत के मा यम से
नजी नवेश को भी आक षत कर सकती ह । रा य म इन रयायत को ा त करने के लए
त पधा बनी रहती है । इन प रि थ तय म नौवीं योजना म उ लेख कया गया क - (i) यह
अ नवाय होगा क आधारसंरचना म सावज नक नवेश का झु काव अ पस प न रा य क ओर
कया जाए, और (ii) सभी रा य को आपसी सहयोग वारा ऐसी सावज नक नी त और
काययोजना तैयार करनी होगी जो सभी रा यो को वीकाय हो ।
नौवीं योजना म गर बी से त ऐसे े क व यमानता का उ लेख कया गया जो
सम वकास या से लाभ नह ं उठा सके । यह या तो ऐ तहा सक कारण का प रणाम हो
सकता है या इस लए भी स भव है क ये े वकास या के साथ थानीय अथ यव था को
जोड़ नह ं सके । आयोजक के अनुसार बाजार-आधा रत अथ यव था म इन े क उपे ा हो
सकती है । इस कारण सरकार को गर बी उ मूलन काय म , य रोजगार नी तय , आय-
बढ़ोतर और गर ब को प रस पि तयाँ स पने के काय म वारा ह त ेप करना यायो चत
होगा।

14.5.8 दसव योजना काल (2002-06) म े ीय असमानताएँ

दसवीं योजना ने े ीय असंतु लन क सम या को एक चु नौती के प म लया य क


पछड़े रा य वगत म कए गए सघन यास के बावजू द गर बी के ऊँचे तर, न न वकास और
श थल शासन के कारण वकास नह ं कर सके । अत: ये रा य वतमान नी तय क वफलता
का जलत उदाहरण ह और इस कारण दसवीं योजना म इनके समाधान क ओर वशेष यान
दया गया ।
चूँ क अ प वक सत रा य के पास उ तम आधारसंरचना होती है वे सामा यत: अ य
रा य क अपे ा आ धक नजी नवेश आक षत कर लेते ह । अत: दसवीं योजना म
अ प वक सत रा य म पछड़े े के व रत वकास क बहु आयामी रणनी त अपनाई गई ।
पू ज
ं ी- नवेश का उ च तर इस रणनी त का मह वपूण अंग था । के य सहायता और रा य के
अपने संसाधन वारा अ प वक सत रा य म आधारसंरचना को ो नत करने का यास कया
गया । साथ-ह कु शल शासन और सं थाना मक सुधार को भी लागू कया गया ता क ल त
नवेश भावी बन सके ।

388
इस रणनी त के आधार पर दसवीं योजना म एक नई योजना - रा य सम वकास
योजना (National Equal Development Plan) - ार भ क गई । इस नई पहल को
2002-03 से पछड़े े मे लागू कया गया ता क इनके वकास पर वशेष बल दे ने वाले
काय म चालू कर े ीय असमानताओं, गर बी व बेरोजगार को कम कया जा सके । इस
योजना का उ े य उ पा दता बढ़ाने वाले सुधार को इन े म सु वधाजनक बनाना था ।
रा य सम वकास योजना अ त र त अनुदान वारा पछड़े े के वकास म सहायता
दान करती ह । यह सहायता तभी द जाती है जव कोई रा य सव वीकृ त सु धार काय म को
लाग करता है । यह एक शत- तशत अनुदान आधा रत योजना है और इस कारण इसने रा य
को सुधार लाग करने के लए ो साि त भी कया । ये अनुदान त काल न योजनाओं के लए द
जाने वाल रा शयो के अ त र त होते ह और संसाधन न पादन के आधार पर दए जाते ह ।
पछड़े े म व भ न वकास काय म के काया वयन से यह बात प ट उभर कर
आई है क वकास या म पू ज
ं ी का अथगव एकमा अड़चन नह है । ाय: यह दे खा गया है
क वतमान नयम और उनक वैि छक या या गर ब और सीमात समूह तक सु वधाएँ पहु ँचाने
म कावट डालते ह ।
रा य सम वकास योजना के अधीन येक रा य को ऐसे सुधार क पहचान और
चु नाव करना होता है जो वे लागू करना चाहते ह । साथ-ह के सरकार के साथ सु धार या
को लागू करने के लए सं ध भी करनी होती है । केवल वे ह रा य इस योजना के अधीन
आवंटन के हकदार होते ह जो के सरकार से सं ध करते ह ।

14.5.7 यारहव योजनाकाल (2006-11) म े ीय असमानताएँ

यारहवीं योजना का दशा नदश प संतु लत वकास के स ब ध म उ लेख करता है -


' व भ न रा य म वकास न पादन म भ नता व यमान है । अ छे न पादन वाले रा य म
अ तर कु छ कम हु ए ह और गर ब रा य म वा य एवं श ा स ब धी प रणाम म उ न त
हु ई है । अतएवं यारहवीं योजना म े ीय असमानताओं के बारे म वकास नी त इस कार
तु त क गई - 'सामािजक आधारसंरचना म ो न त के साथ भौ तक और आ थक
आधारसंरचना मे भी ो न त अ नवाय है । यह गर ब रा य के वकास न पादन को ो नत
करने का सबसे व वसनीय उपाय है ।
इस नी त को कायाि वत करने के लए यारहवीं योजना म न न ल खत उपाय पर बल
दया गया है - (i) उ तर-पूव रा य के साथ स पक बढ़ाने को सव च ाथ मकता द जाएगी
और इसके लए प रवहन आधारसंरचना को ो नत कया जाएगा, तथा (ii) एक नया काय म
आर भ कया जाएगा जो च हत पछड़े िजल के पछडे े के लए अनुदान- न ध पर लागू
होगा । ये िजले ऐसे ह जो वषा-आधा रत कृ ष पर नभर ह या िजनम व तृत भू म-हास हु आ है
या िजनम सामा यत: न न आधारसंरचना और स पक पाया जाता है और जो न न मानवीय
वकास वाले ह । इनम से अ धकांश िजले बड़ी मा ा म जनजातीय जनसं या वाले ह जहाँ
जनजातीय अ धकार क सम याएँ बनी हु ई ह । उनके लए ाथ मक उपचारा मक उपाय करने
ह गे । इनम से बहु त-से िजल म न सलवाद फैल रहा है जो आत रक सुर ा के लए खतरा है ।

389
बोध न : 1
1. े ीय असं तु लन से या आशय है ?
2. अ गामी रा य क ह कहते ह ?
3. आधारसं र चना वकास के तर-मापन हे तु कौन-से चर पर वचार कया जाता
है ?
4. मारवीय वकास क माप के मु ख सू चक या ह?
5. रा य वकास प रष वारा सन ् 1968 म ग ठत पां डे कायदल ने भारत के
6. कन रा यो क पहचान पछड़े रा य के प म क थी ?
7. रा य वकास प रष वारा सन ् 1968 म ग ठत वां चू कायदल ने भारत के
8. पछड़े े म उ योग था पत करने के लए या सफा रशे क थीं ?
9. भारत मे आ थक पछड़ापन दू र करने के लए दसवीं पं च वष य योजना ( 2002-
06 ) मे या रणनी त अपनाई गई थी ?
10. भारत मे सं तु लत े ीय वकास के सु न चयन हे तु यारहवीं पं च वष य योजना
( 2000 - 11) मे या रणनी त ता वत है ?
11. भारत म
1961 म व यमान ‘ ती पछड़े े ' 1991 म य -के - य
व यमान रहे । य ?

14.6 े ीय असमानताओं को दूर करने के नी तगत उपाय


(Remedial Measures to Remove the Regional
Imbalances)
योजना आयोग ने े ीय असमानताओं और पछड़ेपन को दूर करने के लए तीन कार
के उपाय बताए ह - (i) के से रा य को संसाधन-ह तांतरण म पछड़ेपन को एक कारणत व
के प म वीकार करना, (ii) पछडे े के वकास के लए वशेष- े काय म तैयार करना,
और (iii) नजी े के नवेश को पछड़े े मे ो नत करने के उपाय करना ।

14.6.1 पछड़ापन और संसाधन-ह तांतरण

भारत म व भ न व त आयोग ने के से रा य को संसाधन ह तांत रत करने के


लए रा य के पछड़ेपन को एक कसौट के प मे माना है । ता लका 14.6 म तु त आंकड़ से
पता चलता है क पछड़े रा य का योजना-प र यय और के य सहायता म योगदान तीसर
योजना तक लगातार बढ़ता ह गया । चौथी योजना के प चात ् इनका कुल योजना-प र यय और
के य सहायता म ह सा कम हो गया जो व तु त: ठ क नह ं है । य द हम पछड़े रा य और
वशेष-वग के रा य को एक-साथ ल तो ि थ त इस कार बनती है - (i) उनका कु ल योजना-
प र यय म भाग, जो तीसर योजना म 51 तशत था, बढ़कर चौथी योजना म 53 तशत
और पाँचवीं योजना म 54 तशत हो गया, और (ii) के य योजना म उनका भाग तीसर

390
योजना म 53 तशत था जो बढकर चौथी योजना म 68 तशत और पाँचवी योजना म 69
तशत हो गया ।
ता लका-6 भारत - पछड़े रा य का योजना-प र यय और के य सहायता म भाग
( तशत म)
योजना- प र यय म भाग के य सहायता म भाग
योजना पछड़े रा य वशेष-वग के रा य पछड़े रा य वशेष-वग के रा य
पहल योजना 46 - 48 -
दूसर योजना 47 - 53 -
तीसर योजना 51 - 57 -
चौथी योजना 45 8 53 15
पाँचवीं योजना 46 8 50 19
ोत : (Planning Commission, Draft Sixth Five Year Plan (Revised),p.194
क तु के य सहायता के आबंटन के व लेषण से पता चलता है क दो सबसे अ धक
पछड़े रा य ( बहार और उ तर दे श) को त यि त के द य सहायता हमेशा रा य औसत से
कम रह है । उदाहरणाथ, चौथी योजना क अव ध म सम दे श के लए औसत त यि त
के य सहायता 63 पए थी जब क यह बहार और उ तर दे श के लए मश: 57 और 56
पए थी । सापे त: अ धक उ नत रा य म पजाब को पछड़े रा य क औसत से अ धक यानी
66 पए के य सहायता द गई । दूसरे श दो म, के य सहायता के संशो धत फॉमू ले वारा
इि छत संतु लन पछड़े रा य के प म झुकाया नह ं जा सका । बहु त-से रा य ने वशेष
प रयोजनाओं के लए के य सहायता 10 तशत से बढ़ाकर 25 तशत करने क मांग क
ता क पछड़े रा य को लाभ मल सके ।
े ीय असमानताओं एवं पछड़ेपन क सम या को के से रा य को संसाधन-
ह तांतरण वारा हल करने के रा ते म कुछ आधारभू त क ठनाइयाँ ह । इस बात क कोई
गार ट नह ं है क जो संसाधन के से रा य को ह तात रत कए जाएँगे उनका उपयोग रा य
के पछड़े इलाक के वकास के लए ह कया जाएगा । जैसा क छठवीं योजना गे उ लेख कया
गया क रा य पछडे और क ठन े के लए आवं टत संसाधन का उपयोग ाय: अ - े या
सु गम काय म के लए कर लेते ह । दूसरे, गैर- पछड़े रा य म पछड़े े क सम या के
समाधान का कोई उपाय अ भकि पत नह ं है । इस कारण योजना आयोग ने संसाधन-ह तांतरण
के साथ े - वकास काय म (Area development programmes) को जोड़ने का यास
कया ।

14.6.2 े - वशेष वकास काय म

के सरकार वारा पवतीय, जनजातीय और सूखा त े के वकास के लए वशेष


योजनाएँ बनाई गई ह । इसके अ त र त छोटे कसान और कृ ष मक -जैसे वशेष वग क
उ न त के लए भी ाम- वकास काय म म व शेष योजनाएँ बनाई गई ह जो पछड़े े म
ि थत ह । समय के साथ वशेष ल त समू ह के लए बनाई गई ये वशेष योजनाएँ लॉक-

391
तर य आयोजन काय म का अंग बन जाती ह िजनके अधीन समि वत ाम- वकास और पूण
रोजगार के ल य ा त करने का यास कया जाता है ।
यारहव व त आयोग ने य य प पछड़ेपन को संसाधन- वतरण के फॉमू ले का अंग नह ं
बनाया तथा प संसाधन-ह तांतरण फॉमू ले क व भ न कसौ टय म रा य क त यि त आय
और अ धकतम आय वाले रा य क त यि त आय के मा यम से और आधारसंरचना सूचकांक
क कसौट से समा व ट करने का यास अव य कया । नए फॉमू ले के आधार पर 6 पछड़े
रा य - म य दे श, असम, उ तर दे श, राज थान, उड़ीसा और बहार - को कुल संसाधन का
57 तशत ह तांत रत कया जाएगा । वशेष वग के रा य - अ णाचल दे श, हमाचल दे श,
ज मू तथा क मीर , म णपुर , मेघालय, मजोरम, नागालै ड, गोवा, सि कम एवं पुरा - को
कु ल संसाधन-ह तांतरण का 4.2 तशत ा त होगा । इस कार इन दोन वग - पछड़े और
वशेष - के रा य को कु ल संसाधन-ह तांतरण का 61.2 तशत ा त होगा ।

14.6.3 पछड़े े म नवेश ो नत करने के लए ो साहन

औ यो गक पछड़ेपन और पछड़े े म नजी नवेश को ो नत करने के लए कई


कार के ो साहन दए गए ह । कुछ ो साहन राजकोषीय ह और कु छ अ य कार के ।

14.6.3.1 के सरकार वारा दए गए ो साहन

भारत सरकार ने पछडे े म नवेश ो सा हत करने के लए न न ल खत ो साहन


दए ह-
1. आयकर रयायत - 1971 के प चात ् पछड़े े म औं यो गक इकाइय के लए अपनी कु ल
करयो य आय म 20 तशत कटौती क अनुम त द गई । 1974 म ार भ क गई यह
रयायत 10 वष तक जार रहे गी ।
2. के य नवेश साहा य योजना - इस योजना क घोषणा 1870 म क गई और इसम अचल
ं ी नवेश- भू म भवन, संय
पू ज और मशीनर – पर सीधा 10 तशत (अ धकतम सीमा 5
लाख पय) साहा य का ावधान कया गया है । साहा य क दर को बढ़ाकर पहले 18
तशत और बाद मे 20 े 1983 म साहा य के न न ल खत
तशत कर दया गया । अ ल
ढ़ाँचे का अनुसरण लया गया - (i) े ण ी ‘ क' े (उ योग वह न िजले और वशेष े ) -
25 तशत साहा य (अ धकतम सीमा 25 लाख पए), (i) ेणी ‘च' े - 15 तशत
साहा य (अ धकतम सीमा 15 लाख पए), तथा (iii) ेणी ‘ग' े - 10 तशत साहा य
(अ धकतम सीमा 10 लाख पए) ।
3. प रवहन साहा य योजना - जु लाई 1971 म चालू गई इस योजना के अधीन पवतीय और
दुगम े – ज मू-क मीर तथा उ तर-पूव रा य - म लगाई गई औ यो गक इकाइय वारा
चु ने हु ए रे लवे टे शन से औ यो गक इकाइय तक क चे और न मत माल के प रवहन पर
कए गए खच पर 50 तशत प रवहन साहा य ा त होगा ।
4. अ य उपाय - अग त 1972 के प चात ् के सरकार पछड़े े को औ यो गक लाइसस
जार करने म सव च ाथ मकता दे ती रह शै । के सरकार ने उ योग वह न िजल म

392
आधारसंरचना वकास के लए कु ल लागत क एक- तहाई (अ धकतम सीमा 2 करोड़ पए)
सहायता दे ने क योजना ार भ क है िजसक सहायता से बहु त-से वकास-के वक सत
कए गए ह ।

14.8.3.2 रा यीय सरकार के ो साहन

रा यीय सरकार ने भी पछड़े े म नजी े क इकाइयाँ आक षत करने के लए


ो साहन दए ह । इसम वक सत भू ख ड 'न लाभ, न हा न' के आधार पर दए जाएँगे । इसी
कार ब -कर क अदायगी के लए याजर हत ऋण, चु ंगी से छूट, कु छ वष तक स पि त-कर
से छूट आ द साहा य भी दए गए । हाल ह के वष म व तीय सं थाओं वारा रयायती व त
के प म दए गए कुल साहा य का 50 तशत से अ धक पछड़े े को दया गया ।

14.6.3.3 व तीय सं थान वारा रयायती व त

तीन मु ख सावज नक व तीय सं थान - भारतीय औ यो गक वकास बक, भारतीय


औ यो गक व त नगम और भारतीय औ यो गक ऋण तथा नवेश नगम - पछड़े म
ि थत औ यो गक इकाइय के लए रयायती व त उपल ध कराते ह । इन रयायत म
उ लेखनीय ह - पए के प म लए गए ऋण पर माज क दर 11.5 तशत क बजाए 9.5
तशत, ऋण अदायगी के लए समय सीमा 10 से 12 वष के बजाए 15 से 20 वष, जो खम
पू ज
ं ी या ऋण-प म सहभा गता आ द ।
सावज नक े के सं थान ने पछड़े े ो के वकास के लए कई कदम उठाए ह, जैसे
- अपने यय पर प रयोजनाओ क यवहायता स ब धी अ ययन, छोटे व म यम उ यमकताओं
के लए श ण काय म, तकनीक परामश आ द ।

14.7 े ीय आयोजन क वफलता (Failure of Regional


Planning)
यहाँ े ीय असंतल
ु न म कमी लाने के लए कए गए व भ न उपाय क समी ा
समीचीन होगी-
1. बढती हु ई असमानताओं का एक मु य कारण समृ रा य वारा पछड़े रा य को
ससाधन-ह तांतरण से मनाह कर दे ना है । पंजाब और हरयाणा-जैसे अ रा य का त यि त
वकास- यय बहार-जैसे पछड़े रा य क तुलना मे ढाई गुना अ धक है । प ट है क इन रा य
मे आ थक वलास ल दर ऊँची होगी िजवके प रणाम व प े ीय असमानताएँ बढ़ जाएँगी ।
2. पछड़े रा य समृ रा य क भाँ त के सरकार से अ धका धक संसाधन ा त शरने
शी को शश करते ह। वे वकास के लए व यास या वसहायता लो नथा नह ं दे ते । इसके
अ त र त पछड़े रा य सी मत साधन का दु पयोग भी करते ह िजसके फल व प उनका वकास
चरकाल से अपया त ह बना हु आ है ।
3. े वकास के अ धकतर उपाय सूखा त, पवतीय या अनुसू चत जनजा तयाँ के नवास
े के लए होते हँ, पर तु ये उपाय उन पछड़े े क उपे ा करते ह जो इन वग के अधीन

393
नई। आते । पछड़े े के वकास म ऐसी बाधाएँ ह िजनको दूर करने के लए समि वत योजना
णाल अपनानी आव यक है । पहल पाँच योजनाओं म इसक उपे ा क गई । छठवीं योजना म
इस कमजोर को दूर करने के लए समि वत ाम वकास क रणनी त अपनाई गई ।
4. बड़ी के य प रयोजनाओं क पछडे े म ि थ त- न चयन क नी त के फल व प
इनक अथ यव था म मह वपूण सु धार नह ं हो सका ।
5. के सरकार वारा व तत औ यो गक वकास साहा य के लाभ अनुसू चत पछड़े
रा य के कु छ िजल तक संकेि त होकर रह गए । इसके अ त र त साहा य के लए द गई
रा श का स ब ध रोजगार क अपे ा पू ज
ं ी- नवेश से जोड़ा गया न क रोजगार-सृजन से ।
रा यीय सरकार वारा अपया त मौ क एवं राजकोषीय ो साहन के कारण मु य औ यो गक
के के चहु ँ ओर सहायक, वतीयक या तृतीयक उ योग का वकास नह ं हो पाया । ाय: ऐसा
दे खने को नह ं मलता क इस के नवेश ने पछड़े े म ि थत प रयोजनाओं का कोई
उ लेखनीय वकास कया हो । अ य श द म, इनके सार- भाव बहु त कम ह और इनके
आसपास के े गर ब और आ वक सत ह बने रहते ह । वा तव म ऐसे वकास से एक ऐसा
वैतवाद आ थक ढाँचा बन जाता है िजससे सम या के समाधान क अपे ा सम याएँ और बढ़
जाती है ।
6. सावज नक व तीय सं थान वारा द त व तीय रयायत का लाभ बहु त कम
उ यमकताओं ने उठाया और इनके लाभ बहु त सी मत िजल तक ह पहु ँ च पाए । यह योजना
उ योग के स ब ध म चयना मक नह ं है और म क अपे ा पू ज
ं ी को साहा य दान करती है

7. कसी-भी रा य म संतु लत वकास के लए आयोजन या का वके करण अ य त
आव यक है । पंजाब, हरयाणा और त मलनाडु ने वभ न कार के ो साहन वारा नजी
उ य मय को औ यो गक इकाइयाँ था पत करने के लए े रत कया जब क अ य रा य ऐसा
नह ं कर सके ।
8. सभी रा य ने पछड़े एवं वशेष सम या वाले े के वकास के लए अलग प र यय
क यव था नह ं क । ऐसा कए बना व भ न े म असमानताएँ दूर नह ं क जा सकतीं ।
9. पहल पाँच योजनाओं म प र यय के योग के आकड़ से पता चलता है क 6 म से 4
पछड़े रा य म प र यय का तशत योग सम - योग कारणत वो क तु लना म कम था ।
यह प रि थ त व भ न रा य म सावज नक े क सं थान वारा दए गए ऋण एवं अ म
के स ब ध म भी व यमान थी ।
े ीय असंतु लन के समाधान के लए अभी तक कए गए उपाय क मूल कमजोर यह
रह है क ये उपाय मु यत: व तीय प म थे । इ ह पछड़े रा य के वकास के व श ट
काय म से नह ं जोड़ा गया । उ चत यह होता क व तीय- ि टकोण का त थापन आयोजन-
ि टकोण रो कया जाता । इससे पछड़े े क प ट पहचान हो जाती और उनक साम य एवं
मताओं का सह अनुमान लग जाता । वाभा वकत: केवल ो साहन से उ योग का सार नह ं
हो सकता । इसके अ त र त वकास या म कृ ष वकास का भी वशेष मह व है । अत: यह
आव यक है क सार या और कृ ष वकास का सम वय कया जाए ।

394
बोध न : 2
1. भारत के कौन-से तीन मु ख सावज नक व तीय सं थान पछड़े े ो म
औ यो गक इकाइय क थापना के लए रयायती व त उपल ध कराते ह ?
2. भारत म े ीय आयोजन क वफलता के कोई पाँ च कारण बताइए ।

14.8 सारांश (Summary)


भारत जैसे संघीय रा य के समि वत वकास के लए संतु लत े ीय वकास अप रहाय
है । सापे त: वक सत और अ प वक सत या अ वक सत े के सहअि त व और व भ न े
म गत क ि ट से भ नता को ह े ीय असंतु लन कहते ह । े ीय असंतल
ु न अ त:रा यीय
या आ तर-रा यीय हो सकते ह ।
े ीय असंतल
ु न का अ ययन भारत के 15 बड़े रा य को दो वग म बाँटकर कया गया
है - अ गामी रा य और पछड़े रा य । अ गामी रा य म शा मल ह - पंजाब, गुजरात, पि चम
बंगाल, कनाटक, केरल, त मलनाडु और आ दे श । पछड़े रा य म म य दे श, उ तर दे श,
राज थान, उड़ीसा और बहार को शा मल कया गया है । इन 15 रा य म 2001 क जनगणना
के अनुसार दे श क कुल 90 तशत जनसं या नवास करती है - 48 तशत अ गामी और 42
तशत पछड़े रा य म ।
भारत म े ीय असंतु लन का अ ययन कई सूचक के आधार पर कया गया है, जैसे-
(i) शु रा यीय घरे लू उ पाद (सकल और त यि त दोन ), (ii) नवेश और व तीय सहायता
क वृि तयाँ , और (iii) आधारसंरचना स ब धी असमानताएँ । न कषत: कहा जा सकता है क
आयोजन या ने पछड़े रा य क सहायता करके े ीय असमानताओं को कम करने का
यास तो कया क तु उदार करण व वै वीकरण क शि तय ने पछड़े रा य क अपे ा
अ गामी रा य म नवेश को बढ़ावा दे कर े ीय असमानताओं को और बढ़ा दया । आधार
गैरसंरचना स ब धी असमानताएँ भी भारत म खर प से व यमान ह । अ खल भारतीय
आधारसंरचना का सू चकांक मू य 1000 मानते हु ए दे ख तो पंजाब का सापे सूचकांक 187.6
उ चतम है । उसके बाद ह - त मलनाडु 149.1, हरयाणा 137.5, बहार 81.3, असम 77.7 और
म य दे श 76.8 । उ तर दे श का सूचकांक 101.2 अ खल भारतीय तर से ऊँचा अव य है,
फर भी यह रा य खा या न उ पादन व गर बी उ मूलन म कनाटक, पि चम बंगाल और
त मलनाडु से बहु त पीछे है ।
1961 म अशोक म ा ने थम बार भारत म िजला तर पर ादे शक असमानताओं का
अ ययन कर वकास के चार तर द शत कए - (i) उ च, (ii) म यम, (iii) न न, और (iv)
अ त न न । म ा के अ ययन से यह प ट हु आ क दे श के 327 िजल म से 79 िजले वकास
के न नतम तर पर, 88 िजले वतीय न नतम तर पर, 76 िजले तृतीय तर पर तथा 84
िजले उ चतम तर पर व यमान थे । इसी कार 1999 म मोनी ने 1990 दशक के 38 चर
के आँकड़ का योग करते हु ए ' मुख घटक व लेषण तकनीक' क सहायता से 1991 के वकास

395
तर को दशाते हु ए एक मान च तैयार कया । इसक तु लना अशोक म ा के 1961 के वकास
तर को द शत करने वाले मान च से करने पर यह प ट होता है क 1961 के ती पछड़े
े 1991 म पूववत ् व यमान रहे । इसके कई कारण ह, जैसे- वगत म उपे ा, तकूल
भौगो लक प रि थ तयाँ, जनजातीय े म सामािजक पछड़ापन इ या द । अत: इन े के
वकास के लए उनक आव यकताओं के अनु प वशेष योजनाएँ बनाने क आव यकता है ।
भारत म े ीय असंतु लन कई अवरोधक कारणत व का संचयी प रणाम है, जैसे -
प पातपूण टश नी त, भौगो लक पाथ य, अपया त प रवहन, अकु शल म, अ वक सत
तकनीक , आ थक ऊपर यय (overheads) क अपया तता, पूव - वक सत े क ओर नवेश
वाह क वृि त , नयोजन नी तय का दोषपूण या वयन इ या द । तु त इकाई म इन सभी
कारणत व का व भ न योजना काल म े ीय असमानताओं के स दभ म समी ा मक ववेचन
कया गया है । व तु ि थ त यह है क वयं आयोजन या ने रा य के बीच असमानताओं को
बढ़ावा दया है । 1960 दशक के बाद कृ ष म नई तकनीक अपनाने से भी े ीय आ थक
असमानताओं म वृ हु ई । सन ् 1968 म रा य वकास प रष वारा ग ठत पाडे कायदल और
वांचू कायदल ने पछड़े रा य के उ नयन हे तु अनेक व तीय व गैर- व तीय सफा रश क थीं ।
सातवीं योजना म मानवीय संसाधन वकास पर वशेष बल दया गया था िजसका अनुसरण नौव
योजना काल तक कया गया । पू ज
ं ी नवेश का उ च तर और सं थागत सुधार दसवीं योजना
क रणनी त के मु ख अग बने जब क वतमान यारहवीं योजना म सामािजक आ थक व भौ तक
आधारसंरचना के उ नयन को वकास- न पादन का मूल आधार बनाया गया है ।
योजना आयोग ने े ीय असमानताओं व पछड़ेपन को दूर करने के लए तीन कार के
उपाय बताए ह - (i) के से पछड़े रा य को संसाधन-ह तांतरण, (ii) वशेष- े वकास
काय म, और (iii) पछड़े े म नवेश ो नतीकरण । अभी तक अनेक बु नयाद कमजो रय
के कारण ये उपाय े ीय असंतु लन के समाधान म भावी स नह ं हु ए ह । इनक कु छ
कमजो रयाँ न न कार ह? (i) समृ रा य वारा गर ब रा य को संसाधन-ह तांतरण से
मनाह करना, (ii) गर ब रा य क के सरकार पर अ य धक नभरता और वकास हे तु उनम
व यास क भावना का अभाव, (iii) समि वत वकास योजना णाल का अभाव, (iv) सरकार
ं ी- नवेश से जोड़ने क दोषपूण नी त, (v) आयोजन
साहा य को रोजगार-सृजन से न जोड़कर पू ज
या म वके करण का अभाव इ या द ।

14.9 श दावल (Glossary)


1. ु न (Regional
े ीय असंतल Imbalance) : वक सत और अ प वक सत या
अ वक सत े का सहअि त व औंर व भ न े म गत क ि ट से भ नता ।
2. अ त:रा यीय (Inter-State) : दो रा य के म य ।
3. आ तर-रा यीय (Intra-State) : रा य के अ दर ।
4. मानवीय वकास (Human Development): वह या िजसके वारा जनसामा य के
वक प का व तार कया जाता है और इनके वारा उनके क याण के उ नत तर को ा त
कया जाता है ।
396
5. कु ल रा य उ पादन (Gross National Product- GNP) : कसी दे श म एक वष
क अव ध म उ पा दत सभी अि तम व तु ओं तथा सेवाओं के बाजार मू य का जोड़ ।
6. वशु रा य उ पादन (Net National Product-NNP) : कु ल रा य उ पादन (-)
मू य हास ।
7. रा य आय (National Product- NI) : वशु रा य उ पादन (-) अ य कर
(+) अनुदान ।
8. आधारसंरचना /अवसंरचना (Infrastructure) : कसी अथ यव था या े के स यक्
वकास के लए आव यक आधारभू त संरचना िजसके ऊपर सम त वकास काय नभर होते ह ।
9. सा रता (Literacy) : सा र होने क दशा । तशत के प म य त । सू - सा र
जनसं या/कु ल जनसं या । कसी एक भाषा म पढ़ना और लखना जानना एवं अपने ह ता र
कर सकने वाला यि त सा र माना जाता है ।
10. सामािजक अंत: या/अ यो य या (Social Interaction) : कसी समाज के सद य
यि तय क सामािजक याओं का एक-दूसरे पर पड़ने वाला भाव ।
11. अ गामी रा य (Advanced States) : उ नत या वक सत रा य िजनके संसाधन
का स यक् वकास हो चुका हो ।
12. अ प वक सत या पछड़े रा य (Underdevelopment) : आ थक ि ट से पछड़े हु ए
ऐसे रा य जो अपनी वतमान जनसं या का जीवन तर ऊँचा उठाने के लए उपल ध संसाधन ,
ं ी,
पू ज म, तकनीक आ द का समु चत उपयोग न कर पाए ह । उदाहरणाथ, द ण-पूव ए शया
एवं अ का के अ धकांश दे श ।
13. वकास के (Growth Centre) : कसी दे श म ि थत ऐसे के या अ धवास
िजनम अपने चार ओर के े के वकास करने क साम य होती है ।

14.10 स दभ थ (Reference Books)


1. पी. आर. चौहान एवं महातम साद : भारत का बृह भू गोल, वसुधरा काशन,
गोरखपुर , 2007
2. अलका गौतम भारत का बृह भू गोल, शारदा पु तक भवन, इलाहाबाद, 2007 (अं ेजी
म भी उपल ध)
3. सु रेशच बंसल भारत का भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ, 2004
4. जे. पी. म भारत का भू गोल, शारदा पुरसक भवन, इलाहाबाद, 2007
5. द त एवं के. पी. एम. सु दरम ् भारतीय अथ यव था, एस. च द ए ड क पनी
ल मटे ड, नई द ल , 2008 (अं ेजी म भी उपल ध)
6. चतुभु ज मामो रया एवं जे. पी. म ा, भारत का बृह भू गोल, सा ह य भवन, आगरा,
2008
7. वजय कु मार तवार : भारत का भू गोल, भाग I व II, हमालया पि ल शंग हाउस,
मु बई, 1997

397
8. Jagdish Singh : India- An A Comprehensive Systematic
Geography, Gyanodaya Prakashan, Gorakhpur, 1994
9. T.C. Sharma : India- An Economic and Commercial Geography,
Vikas Publishing House Pvt. Ltd., New Delhi, 2003
10. Gopal Singh : Geography of India, Atma Ram& Sons, New
Delhi, 1998
11. Prithvish Nag and Smita Sengupta : Geography of India, Concept
Publications, New Delhi, 1998
12. Mahesh Chand and V.K. Puri : Regional Planning in India, Allied
Publishers, New Delhi, 1983

14.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. वक सत और अ प वक सत या अ वक सत े का सहअि त व और व भ न े म
गत क ि ट से भ नता ।
2. उ नत या वक सत रा य को िजनके संसाधन का पया त वकास हो चुका हो तथा जहाँ
त यि त वा त वक आय अपे ाकृ त अ धक हो । अ य ल ण - उ नत सामािजक-
सां कृ तक अथ यव था, कायकु शलता, मशीनर , तकनीक आ द का सम उपयोग ।
त यि त पावर उपभोग, त 1000 यि तय के लए रा यवार पंजीकृ त गा ड़य क
सं या, त 100 वग क.मी. े के लए सड़क क ल बाई, त 1000 यि तय के
लए टे ल कॉम लाईन, कु ल फसल-अधीन े फल के लए सं चत े का तशत,
सामािजक तथा आ थक आधार संरचना सूचकांक ।
3. (i) एक ल बे और व थ जीवन क माप के लए ज म पर जीवन- याशा, (ii) बा लग
सा रता
4. (दो - तहाई भार) और सम , ाथ मक, मा य मक व तृतीयक कु ल नामांकन अनुपात
(एक- तहाई भार), तथा (iii) अ छा जीवन तर िजसका माप है - त यि त सकल घरे लू
उ पाद (अमे रक डॉलर यशि त मता) । इन तीन मूल आयाम का साधारण औसत

5. (i) आं दे श, असम, बहार, हमाचल दे श, ज मु एवं क मीर , म य दे श,
नागालै ड, उड़ीसा, राज थान और उ तर दे श, तथा (ii) च डीगढ द ल व पाि डचेर
को छो कर अ य सभी संघीय े ।
6. (i) पछड़े े म ि थत उ योग को अ धक वकास छूट, (ii) पाँच वष के लए नगम
आयकर से छूट, (iii) पछड़े े म ि थत औ यो गक इकाई के लए आया तत संयं
एवं मशीनर व पुज पर आयात शु क से छूट, (iv) उ पाद शु क से पाँच वष के लए

398
छूट, (v) ब कर से पाँच वष के लए छूट, तथा (vi) प रवहन साहा य उपल ध
कराना।
7. (i) पू ज
ं ी नवेश का उ च तर, के य सहायता का उ च अनुपात और रा य के अपने
संसाधन वारा अ प वक सत -रा य म आधारसंरचना का ो नतीकरण (ii) कु शल
शासन और सं थाना मक सुधार को लागू करना ता क ल त नवेश भावी बन सके।
8. (i) के से रा य को संसाधन-ह तांतरण म पछड़ेपन को एक कारणत व के प म
वीकार करना, (ii) पछड़े े के वकास के लए वशेष- े वकास काय म तैयार
करना, तथा (iii) नजी े के नवेश को पछड़े े म ो नत करने के उपाय करना।
9. इसके कई कारण ह, जैसे - (i) वगत म इन े क उपे ा, (ii) तकू ल भौगो लक
प रि थ तयाँ, जैसे बाढ, सू खा, वषम धरातल, अनुपजाऊ म ी, धरातल य जल का
अभाव आ द, (iii) जनजातीय े म सामािजक पछड़ापन, (iv) वशेष- े योजनाओं
का अभाव, (v) नवेश वकषण, तथा (vi) स प न रा य वारा गर ब रा य को
संसाधन-ह तांतरण से मनाह करना. ।
बोध न - 2
1. भारतीय औ यो गक वकास बक, भारतीय औ यो गक व त नगम और भारतीय
औ यो गक ऋण तथा नवेश नगम ।
2. (i) समृ रा य वारा पछड़े रा य को संसाधन-ह तांतरण से मनाह करना, (ii)
पछड़े रा य क के सरकार से अ धका धक संसाधन ा त करने क लालसा और
वकास के लए व यास क भावना का अभाव, (iii) समि वत वकास योजना णाल
का अभाव, (iv) सरकार साहा य को रोजगार-सृजन से न जोड़कर पूज
ं ी-- नवेश से जोड़ने
क दोषपूण नी त, तथा- (v) आयोजन या म वके करण का अभाव ।

14.12 अ यासाथ न
1. भारत म े ीय असंतल
ु न के सू चक क या या क िजए ।
2. े ीय असंतु लन भारत के लए एक वा त वकता है । या आप सहमत ह ?तक द िजए।
3. भारत म ादे शक वकास के तर का सं ेप म आकलन क िजए ।
4. वत ता उपरा त भारत म 1980 तक के योजना काल म आ थक पछड़ेपन तथा
े ीय असंतु लन क सकारण समी ा क िजए ।
5. छठव पंचवष य योजना काल (1960-65) से दसव पंचवष य योजना काल (2002-06)
तक भारत म आ थक पछड़ेपन तथा े ीय असंतल
ु न क सकारण या या क िजए ।
6. भारत म आ थक पछड़ेपन तथा ु न को दूर करने के लए दसवीं (2002-
े ीय असंतल
06) और यारहवीं (2006-11) पंचवष य योजनाओं म या रणनी त अपनाई गई है?
समी ा क िजए ।
7. भारत म े ीय असंतु लन के समाधान हे तु के व रा य सरकार वारा व तत
नी तगत उपाय क समी ा मक या या क िजए ।

399
8. भारत के पछड़े े म नजी को ो नत करने के लए के व रा य सरकार वारा
द त वभ न ो साहन योजनाओं क भा वता का आकलन क िजए ।
9. 'भारत म े ीय असंतु लन के समाधान हे तु अभी तक अपनाए गए उपाय मु यत:
व तीय कृ त के थे, आयोजन कृ त के नह ं । भारत म े ीय आयोजन क वफलता
के स दभ म युि तयु त ववेचना क िजए ।

400
इकाई 15 : नयोजन दे श (Planning Regions)
इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 नयोजन दे श
15.3 नयोजन क वशेषताएँ
15.4 नयोजन का वषय े , उ े य तथा व धयाँ.
15.5 नयोजन दे श का सीमांकन
15.6 नयोजन दे श का पदानु म
15.7 भारत के नयोजन दे श
15.8 कृ ष-जलवा यक दे श
15.9 सारांश
15.10 स दभ थ
15.11 बोध न के उ तर
15.12 अ यासाथ न

15.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप समझ सकगे :
 नयोजन का अथ एवं संक पना ।
 नयोजन तथा आ थक-सामािजक सां कृ तक वकास का सहस ब ध ।
 नयोजन क वशेषताएँ, उ े य एवं व धयाँ ।
 नयोजन दे श के सीमांकन का आधार ।
 भारत के व भ न नयोजन दे श ।

15.1 तावना (Introduction)


भौगो लक अ ययन म नयोजन दे श एक व श ट थान रखता है । िजसके अ तगत
सामा य दशाओं क समानता के साथ-साथ कु छ व श टता और वकासीय सम याओं क झलक
दे खने को मलती है । ादे शक नयोजन एक नवीन संक पना है । 1930 के बाद सां कृ तक
एवं मानव संसाधन पर यान दया जाने लगा तथा यह से ादे शक नयोजन का सू पात हु आ
। 1940 म वा टर इजाड (W.Isard) ने उपयु त नयोजन को ादे शक व ान से अलग कया
एवं ादे शक नयोजन ा धकरण का गठन कया तथा इनके अ तगत तीन कार के संसाधन
रखे गये जैसे पदाथ संसाधन, जै वक संसाधन तथा सामािजक संसाधन । बाद म डमैन ने
नगर य एवं मे ोपो लटन नयोजन को भी ादे शक व ान के े के अ तगत रखा । इस कार
ादे शक नयोजन कसी दे श के नवा सय के आ थक, सां कृ तक, सामािजक वकास से

401
स बि धत हो गया । वतमान समय म, आ थक तं के स दभ म ादे शक नयोजन अ य त
मह वपूण है य क यह कसी दे श के संपण
ू वकास को अपने अ दर समा हत कये हु ए है ।

15.2 नयोजन दे श (Planning Regions)


नयोजन का अथ, आ थक वकास हे तु लये गये आ थक नणय एवं काया वयन से है
। नयोजन श द को हम एक ऐसी णाल नयम तथा दशा नदश के प मे समइा सकते है जो
कसी े वशेष के आ थक सामािजक वकास एवं उनसे जु ड़ी याओं को संचा लत करने के
लए योग क जाती है ।
नयोजन केवल वतमान सम याओं के समाधान हे तु ह नह ं वरन भ व य क
आव यकताओं एवं सम याओ के नराकरण हे तु भी योग म लाया जाता है । नयोजन का
मू लभू त ता पय मानव समाज को संग ठत कर बदलते सामािजक, तकनीक प रवेश म व भ न
समाज अपना समायोजन कर सके तथा इसका अ धकतमक लाभ अपने सद य को ा त करा
सक ।
नयोजन वा त वक प से थान से जु ड़ा हुआ है कभी यह एक व तृत े हो सकता
है, जैसे कोई रा य और कभी उसका एक भता जैसे कोई िजला, गाँव अथवा नगर आ द । इस
तरह नयोजन एक ऐसी या है िजसके मा यम से कसी े वशेष के आपसी असमनाओं के
कम करने, वतरण णाल म सु धार तथा मानवीय एवं आ थक याओं क उपयो गता म सुधार
लाया जाता है । यह वजह है क व व के लगभग सभी दे श अपने सामािजक एवं आ थक
वकास के लए नयोजन को एक तकनीक के प म उपयोग करते है ।
जब नयोजन का स ब ध कसी व श ट े ीय ईकाई से होता है तो इसे नयोिजत
दे श कहते है । अथात ् दे श एक ऐसा भू-भाग होता है िजसक सीमाओं के अ दर कसी एक
घटक वशेष क धानता व उसका भाव ि टगोचर होता है । दे श को नधारण का मु य
आधार कसी भू-भाग भौगो लक पं रधटना म सापे एक पता अथवा समागमता है, यह ं वशेषता
अ य दूसरे दे श से पृथक करती है ।
नयोजन के उ े य से चु ने गये दे श ाशस नक अथवा राजनी त हो सकते है जैसे
रा य, िजला अथवा वकास ख ड । कसी भी दे श का नयोजन उसम उपल ध आँकड के
आधार पर कया जाता है तथा ये आँकड़े सामा यत: शास नक दे श के लए एक कये जाते है
। अत: नयोजन दे श व तु त: शास नक दे श ह होते है । इस कार रा य नयोजन के लए
ू दे श , रा य नयोजन के लए संपण
संपण ू रा य तथा सू म तर पर नयोजन के लए िजला
अथवा वकास ख ड नयोजन दे श होते है ।

15.3 नयोजन दे श क वशेषताएँ (Characteristics of Planning


region)
' नयोजन दे श का योग रा य नयोजन के उ े य एवं ल य को ादे शक काय म
तथा नणय म प रव तत करने के लए कया जाता ह । नयोजन के उ े य को कायाि वत
करके पूरा करने के लए नयोजन दे श म धरातल य एवं सामािजक-सां कृ तक समॉगता के

402
साथ-साथ आ थक संरचना म समाँगता होनी चा हए । इस तरह नयोजन दे श अपने आप म
पया त एवं पूण होना चा हए । अत: नयोिजत दे श के लए कुछ आव यकताय एवं वशेषताएँ
न न ल खत है.
1. नयोजन वेश को इतना बड़ा होना चा हए क उसम पया त संसाधन- व यमान हो जो
उसक अथ यव था को औ च यपूण बना सके ।
2. नयोिजत दे श म आ त रक वषमता नह ं होनी चा हए ।
3. इनम संसाधनो के भ डार इतने होने चा हए क उपभोग एवं व नमय के लए उ पादन का
एक स तोषजनक तर ा त कया जा सके ।
4. मानव एवं माल को वाह को सुचा प से नयि त करने के लए नयोजन दे श म कुछ
के ब दुओं को होना अ नवाय है ।
5. नयोजन दे श एवं सं पश (एक साथ जु ड़ा हु आ) इकाईय से बना होना चा हए ।
6. नगर दे श के सीमांकन म ाय: हर तर क शास नक इकाईय पर नजर रखनी चा हए ।
शास नक सु वधाओं के लए दे श, रा य तथा रा य क म न रय , िजल , तहसील तथा
वकास ख ड म बंटे हु ए है । इस कार क शास नक इकाईयाँ सभी दे श म मलती है ।
चू ं क नयोजन के लए गहन सव ण, आंकड़े एक करने तथा या वयन के लए उपयु त
इकाईय क आव यकता होती है । अत: इकाईया सु वधाजनक एवं यवहा रक होनी चा हए ।
वे एक दूसरे क सीमा को काटे नह ं तथा वामत हो । बि क नयोजन दे श क सीमा भी
शास नक इकाईय के साथ-साथ चले । अत: कु छ व वान के अनुसार नयोजन दे श का
सीमांकन इ ह ं इकाईय म से समू हन करके बनाया जाना चा हए ।
7. नयोजन दे श इस कार से तकसंगत होना चा हए िजसम सामािजक एकता बनी रह तथा
वहाँ के नवासी इसक नवासी इसक सम याओं को समझे तथा उनके नराकरण म
उ तरदा य वपूण सहयोग द ।
8. नयोजन दे श को लचीला होना चा हए तथा ादे शक वकास के लए दूसरा वक प भी
तैयार रखना चा हए ।
9. इन दे श म यातायात एवं संचार क यापक यव था रहनी चा हए िजससे योजनाएँ सुचा
प से याि वत हो सके ।
10. चुँ क नयोजन संसाधन वकास सम याओ के समाधान म एक या है अतएवं आदश
नयोजन दे श वे होते है जहाँ सम याय पूणत: प ट, तकसंगत आव यकता तथा
यायो चत हो ।
बोध न : 1
1. नयोजन से आप या समझते ह ?
2. नयोजन दे श या है ?
3. नयोजन दे श क मु य वशे ष ता या है ?

403
15.4 नयोजन का वषय े , उ े य तथा व धयाँ :(Scope, Aim
and Methods of Planning)
नयोजन का वषय े यापक है, एक ऐसी या है िजसक सहायता से संसाधन के
नयोजन हे तु सु झाव दया जाता है । नयोजन क सहायता से कृ ष दे श एवं औ यो गक दे श
नयोजन हे तु भी सु झाव अ स रत कये जाते है । पदानु म के अनुसार वभ न तर पर
नयोजन संभव है ।
 नगर य एवं महानगर य नयोजन
 समु दाय एवं मानव संसाधन नयोजन
 वातावरण नयोजन
 ाकृ तक संसाधन नयोजन
 आ थक वकास के लए ादे शक नयोजन
 ादे शक व ान एवं या मक नयोजन
येक दे श म भू म, संसाधन एवं पूज
ं ी सी मत है अत: नयोजन म उन सी मत संसाधन
क खोज करके उ च तकनीक एवं श ण वारा अ धकतम लाभ ा त करना मु ख उ े य है ।
कसी दे श का श त एवं व थ मनु य ह उसका सबसे बड़ा साधन होता है । इसी लए ममफोड
ने ादे शक नयोजन म मानव हत को ह सव प र बनाया है । इस या वारा कसी दे श
को आ म नभर बनाने का यास कया जाता है अत: नयोजन का मूल उ े य कसी दे श के
नवा सय क सम याओं, उनक आव यकताओं क पू त तथा वकास के लए काय करता है ।
भारतीय नयोजन के मु य काय न न है:
1. कृ ष एवं स बि धत व तु ओं का वकास - भू म सु धार, म ी संर ण, संचाई, खाद,
जंगल का वकास एवं पशु पालन आ द ।
2. उ योग, शि त संसाधन, यातायात एवं संचार साधन का वकास ।
3. सामािजक सेवाओ का वकास- श ा, रचार य सेवा तथा सामािजक हत ।
4. नगर य एवं ामीण वकास ।
5. वातावरण वकास ।
नयोजन या के अ तगत व भ न क ठनाईय का सामना करना पड़ता है ।
राजनै तक एवं आ थक प त साथ-साथ नह चलते । राजनै तक ि ट से उपयोगी ज रत आ थक
ि टकोण से उतनी उ चत नह होती । उदाहरण के लए येक रा य भार उ योग को लगाना
चाहते ह । यह राजनै तक ि ट से उपयोगी ह, पर तु आ थक ि टकोण से यह सव उ चत नह ं
हो सकता य क सबके पास लागत समान नह ं हो सकती ।
वक सत तथा वकासशील सभी दे श को उनक सम या, उ े य तथा नी तय के अनुसार
ादे शक नयोजन क आव यकता पड़ती है । सभी दे श इसको भ न- भ न प म अपनाते है ।
नयोजन करते समय मानव क याण के उ े य से आ थक वकास क सामा य दशा,
इसक ग त और इसके व भ न े क मब ता के लए नणय लेने होते ह । नयोजन व ध
म न न ल खत व धय या चरण का योग कया जाता है :

404
वतमान ादे शकता क पहचान,
नयोजन दे श का नधारण,
दे श क आव यकताओं का नधारण,
दे श क वकास-योजना का नमाण,
योजना का या वयन और
योजनाओं का पुनरावलोकन ।
योजना व ध या तो एक तर य होती है अथवा बहु- तर य । पहल दशा म नणय
केवल रा य तर पर कये जाते है । सार या इतनी केि त होती है क न न तर य
े ीय इकाईय का काम सवाय योजनाओं के कायाि वत करने के और कु छ नह होता ।
भारतवष म ल बे काल तक योजना का े ाय: केि त और एक तर य खडा मक अथात
से टोरल ह रहा है । इसके वपर त बहु- तर य योजना णाल को चलाने के लए रा य थल
को छोटे -छोटे े ीय भाग म वभािजत करना पड़ता है । इनक सं या दे श के आकार, व तार
और इसक शास नक, भौगो लक तथा ादे शक संरचना पर नभर करती है ।
भारत जैसे दे श के लए यह आव यक है क रा य अथ यव था को बहु- तर य णाल
के प म वीकार कर । िजतना बडा कोई दे श, उतनी ह अ धक आव यकता उसक अथ यव था
को भ न- भ न दे श म बाँटने क होती है । ऐसा हर एक दे श अपने आप म एक आ म नभर
और पूण थल य इकाई है जो कु छ समान दशाओं के आधार पर वक सत होती है ।
भारत म आ थक ादे शीकरण सन ् 1965 से कई समाज शाि य को यानाषण कर रहा
है । हमारे योजना उपयोग ने योजना दे श क आव यकता अनुभव क । कु छ समय बाद यह भी
अनुभव कया गया क दे श भर के लए अ तरा यीय, राजक य, अ तर िजला, िजला और
ामीण ख ड अथवा महानगर के थानीय तर पर भी योजना दे श का नमाण कया जाए ।
योजना दे श के व तार को बहु त से ऐसे लाभ द आँकड़ से सु ढ़ कया गया है, जो कई वषा के
अ ययन के बाद उपल ध हु ए ।

15.5 नयोजन दे श का सीमांकन (Delimitation of Planning


Regions)
नयोजन दे श क सीमाकन के आधारभू त कारक नयोजन के तर, े क वशेषता एवं
व वधता तथा भावी वकास क स भा यता पर नभर करते ह । दे श क सीमा नधा रत करते
समय े क भौ तक एक पता एवं ाकृ तक संि ल ठता, आ थक तथा सामािजक एक पता पर
यान दया जाना चा हए । ऐसे दे श को वषय े तथा उपागमो क ि ट से काया मक होना
चा हएं िजससे सम वय एवं प रवतन म हणशील रन सके ।
नयोजन वेश के सीमांकन हेतु न न ल खत आधार इल तरह है-
(i) लखी दे श के सीमांकन के समय उस े क जलवायु, भू ग भक बनावट , ाकृ तक
उ पाद , जा तय , र त रवाज , इ तहास तथा भाषा क एक पता पर वचार करना
चा हए।

405
(ii) उस दे श क वशेषताओं का पूरा समाकलन होना चा हए, क तु व यमान व वधताओ
पर भी बल दया जाना चा हए ।
(iii) दे श के आ थक त प खासकर मानवीय आ थक याकलाप एवं यापा रक रा ब ध
पर वशेष प से यान दे ना चा हए ।
(iv) नयोजन दे श े फल क ि टकोण से ाय: समान होना चा हए ।
(v) नयोजन के लए आ थक दे श का उ पादन व श टकरण के आधार पर कया जाना
चा हए ।
(vi) नयोजन के लए ाकृ तक दे श एवं उनम उपल ध संसाधन का पूण इगन ा त करना
आव यक है ।
(vii) ाकृ तक दे शो एवं उप- दे श के ढॉचे के भीतर ह नयोजन दे श के पदानु म का
अि त व होता है अत: आ थक ादे शीकरण के लए सबसे पहले दे श को ाकृ तक द
े ेश
म बाँटा जाना चा हए ।
(viii) नयोजन क ईकाईय के नधारण के लए सबसे न न तर क इकाई का नधारण
पहले करना चा हए उसके प चात ् इन छोट इकाईय का समू ह बनकर म यम तर क
इकाईय तथा म य तर क इकाईय का समू ह बनाकर वृहतसार क इकाईय का नधारण
कया जा सकता है ।
(ix) स ा त: ादे शक सीमा रे खाओं को व भ न ेणीं के दे शो को काटना नह ं चा हए ।
सू म तर पर ादे शक सीमा रे खाएँ, शास नक सीमा रे खाओं के अनु प होनी चा हए
य क आँकड़ इ ह ं इकाईय के लए एक कये जाते है ।
(x) म यम तर के नयोजन दे श लघु तर क इकाईय को मलाकर नधा रत कए जाने
चा हए । इनके एक समू ह म मलाने से पहले ाकृ तक कारक तथा संसाधन भ डार क
एक पता को दे खना आव यक है ।
(xi) म यम तर के े ो को मलाकर वृहत े का नधारण कया जाना चा हए ।
सामा यत: उन सभी रा य को एक समू ह म रखना चा हए िजनक संसाधन उपयोग
स ब धी सम याएँ समान हो । ये दे श बड़े भू-भाग पर फैले होते है, इनमे व वध
संसाधन के भ डार पाये जाते है तथा इनम व- नवा हत अथ यव था वक सत हो
सकती है ।
उपयु त स ा त के आधार पर भारत को 13 नयोजन दे श म वभािजत कया गया
है । 1967 म गे लना सदासुक एवं पी.सेन गु ता ने 7 वृहत ् एवं 48 म य तर के दे श का
नधारण कया था ।
नयोजन दे श क सं या एवं उनक सीमाएँ इस बात पर नभर करती ह क उनके
नधारण क कसौट या रह है । कसी भी दे श का सह -सह सीमा नधारण साधारण काय
नह ं है य क क ह ं दो दे श के म य पृथ क करण क कोई नि चत सीमा न होकर दोन के
बीच म एक ऐसा म य दे श होता है िजसम दोन दे श के घटक आपस म मले-जु ले होते है ।
दे श क रचना कई आधार पर होने के कारण उनम अ त: स ब ध क भी व व धता होती है

406
। कसी भी कार के दे श मे साल रा य, दो रा य के कुछ भाग, केवल एक िजला तथा एक से
अ धक भाग या एक गाँव पर सि म लत े लाये जा सकते ह ।
कसी दे श क पहचान सव थम उसके घटके क आ त रक यव था या उनके े ीय
समू ह मे सम पता से करते ह । तदुपरात इजके अ य दे शो से स ब ध के दे खा और मापा
जाता है । यह हमे एक दे श कई एक दे श म वभ त करने मे सहायक होता है । अत: बहु त से
वेश एक अलग थल य इकाई होने के साथ-साथ अपने से बड़े और छोटे दे श पर नभर भी
होते ह
मु यत: दे श या तो सामा य सम पता धान दे श होते ह तथा कया धान के
भा वत दे श होते है । सम पता धान दे श क पहचान उनक अ त: प रि थ तय अथवा
पार प रक स ब ध को दे खकर क जाती है । कया धान दे श क पहचान उस दूर के आधार
पर होती है िजस पर के य थान अथवा नगर अपनी याशीलता का भाव डालता है ।
अ य धक आ थक याओं को ऐसे के ो से उसके भाव े क सीमाओं तक व तुओं, मनु य
तथा वचार का पार प रक बहाव सा रहता है । इस वषय म के य दे श के उसके वृ तीय
पृ ठ दे श के म य इनक काय णाल क आपसी नभरता इन दे श के चयन म सहायक है ।
बोध न : 2
1. नयोजन दे श के मा यम से कसको नयोिजत करने का यास कया जाता
है ?
2. नयोजन का मु य उ े य या है ?
3. ममफोड ने नयोजन म कसको मह व दया है ?
4. गरगे ज न के गु ट क् दो रत र कौन से है ।

15.6 नयोजन दे श का पदानु म (Hierarchy of Planning


Regions)
सभी कार के नयोजन शास नक सु वधा, वकास मापक, जीवनोपयोगी आ थक साधन
इ या द के आधार पर अलग-अलग कये जाते ह । सभी योजनाओं का या वयन एंव संचालन
वभ न तर पर एवं संगठन वारा स पा दत होता है तथा इ ह भावी प से संग ठत,
संचा लत तथा कायाि दत करने के लए तीन काय म तर बृहत ् (Macro), म यम (Meso)
तथा लघु (Micro) नधा रत कये गये है । इनका नधारण वकास के उ े य तथा मापक के
अनुसार उनके छोटे -छोटे े के समू हन वारा कया जा सकता है ।
वृहद दे श : वृहत दे श म वशु संसाधन वकास स ब धी नणय लए जाते है । उदाहरण के
लए नद -घाट वकास काय म, संचाई स ब धी प रयोजनाओं, व युत , खा य साम ी
स बि धत आ म नभरता, उ योग क अव थापना तथा उ योग को ऊजा आपू त आ द धान
काय म है, य क ये सम याय रा य या उनसे छोट इकाईय से स बि धत है । अत: इस
दे श म कम से कम एक रा य या दो अथवा तीन रा य के भाग सि म लत होते ह । वृहत
दे श म न केवल अ तस बधीय सम याओं का समाधान ह करना होता है वरन ् समि वत

407
वकास के लए अ याव यक संसाधन का जाल भी व यमान होता है । शि त संसाधन इसका
एक अ छा उदाहरण है । यह आ थक याओ के सार एवं बखराव म सहायक होता है । बृहत ्
दे श म उपल ध शि त संसाधन पर आधा रत औ यो गक संि ल ट या स भा वत औ यो गक
वकास के के का भी होने चा हए, इस के क को भी इस दे श म शीष के क के प म
रहना चा हए जो दे श के अ य भाग से जु ड़ा हो । इतना ह नह ं बृहत ् दे श म बड़े के ो
(Nodes) क भी आव यकता पड़ती है जो उस दे श के वकास के लए व तीय संगठन तथा
तकनीक उपल ध करा सक ।
वृहत दे श ऐसे े होने चा हए िजनम आ त रक आ म नभरता सम पेण पायी जाती
हो । ये आ थक तं म ऐसे जुड़े हो जो अपने आ त रक तथा बा य दे श म व तु ओ,ं जनसं या
एवं वचार का सरलतापूवक आदान- दान कर सक । वृहत दे श को खा य , रोजगार तर तथा
साम य एवं सेवाओं को उ पा दत करने क स भा वत मता के अनु प आ म नभर होना
चा हये, जो दूसरे े के नगर य एवं ामीण जनसं या को तृतीयक आव यकताओं क पू त भी
कर सके । नयोजन दे श म आव यक पा रि थ तक स तु लन भी इ ह ं बृहत ् दे शो वारा
स भव होता है ।
म यम दे श: म यम दे श वृहत दे श के उप वभाग है जो संसाधन के पोषण , संर ण तथा
उपयोग के लए एक तकयु त इकाई बनते है । ये नयोजन उ े य क वतीय आ थक इकाई है
। इनक आ थक उपयु तता त यि त आय, त यि त भू म उपल धता, उ पादन सू चकांक
तथा व तु नमाण स भा यता इ या द से परखी जाती है । म यम दे श कु छ व तु ओं के
उ पादन म व श टता भी रखते है ।
लघु दे श : लघु दे श म यम दे श के वे भाग है जो कसी वशेष सम या का उदबोधन करते
ह । इनक सबसे बडी पहचान आपसी टकराहट या वरोधाभास क अनुपि थ त ह है । लघु
दे श म समु दाय वशेष क इ छाओं को भी समाक लत कया जाता है । चू ं क ये दे श नीचे के
तर के े से जु ड़े रहते ह, अत: े के वकास नयोजन हे तु ये सवा धक उपयु त इकाई होते
है ।

15.7 भारत के नयोजन दे श (Planning Regions of India)


भारत को 13 नयोजन दे श म वभािजत कया गया है, जो न न ल खत है.
1. द णी ाय वीप
2. म य ाय वीप
3. पि चमी ाय वीप
4. म य द कन
5. पूव ाय वीपीय भाग
6. गुजरात
7. पि चमी राज थान
8. अरावल े
9. ज मू-क मीर एवं ल ाख

408
10. ा स- स धु गंगा का मैदान एवं पहा ड़याँ
11. गंगा-यमु ना का मैदान
12. नचल गंगा घाट का मैदान
13. उ तर -पूव े
1. द णी ाय वीप : इस दे श म केरल एवं त मलनाडु रा य सि म लत है । दे श के
समि वत वकास के लए तट य म यसन कृ ष कोय बटू र पठार के ख नज संसाधन, पि चमी
घाट के वन े तथा मैदानी भाग म कृ ष, संचाई एवं ऊजा के लए जल संसाधन, ताप एवं
आण वक ऊजा आ द संसाधन उपल ध है । सम याओं क ि ट से दे खे तो यह ं पर सचांई एवं
बजल उ पादन से स बि धत जल संसाधन सम या, सघन जनसं या तथा नगर करण क
सम या है ।
इस नयोिजत दे श म भौ तक, आ थक एवं सां कृ तक स ब ध प रवहन माग को
वक सत करके सु ढ़ कया गया है । इस दे श म पीकराकु दाह, पे रयार, मे ूर जल- व युत
टे शन, चे नई तथा नेवेल म कोयला, व युत और क पक कम म एटा मक बजल टे शन है ।
कोय बदूर, कोचीन तथा चे नई इसके मुख औ यो गक एवं नगर य े है ।
द णी ाय वीप दे श के तीन म यम म के दे श जैसे केरल, चे नई, कोय बटू र
औ यो गक े तथा त मलनाडु तटवत मैदान म वभािजत कया गया है ।
2. म य ाय वीप : इस दे श म कनाटक, गोवा, उ तर -पूव भाग के अ त र त संपण

आ ध दे श सि म लत है । इस दे श क मुख वशेषताओं मे तु ंगभ ा बहु उ ेशीय प रयोजना,
औ यो गक वकास वारा सु ढ़ कए गए ऐ तहा सक एवं सारकृ तक स ब ध आ द है । इस
दे श म जल संसाधन, खा या न के अभाव तथा आ थक पछड़ेपन क सम या है । भावी
वकास क ि ट से दे खे तो यहाँ तट य मलय, आ ध मैदान के कृ ष, गोवा एवं कनाटक के लौह
अय क, मगनीज एवं बॉ साइट, तथा जल संसाधन, गोवा म कोयला ससाधन आ द उपल ध है।
बंगलोर, हैदराबाद तथा गोवा मुख नगर य एवं औ योगक े इसम आते है । इसके
अ त र त शरावती, जोग, तु ंगभ ा, सले , सैलम म जल- व युत तथा कोथगुडम कोयला व युत
टे शन है । इस दे श को चार म यम म के उप दे श म बाँटा गया है कनाटक तट तथा
आ त रक औ यो गक दे श, रायलसीमा तथा संल न तट य मैदान दे श, लेसार तथा ह पेट का
खनन एवं औ यो गक दे श तथा तेलंगाना एवं आ धतट य मैदान आते है।
3. पि चमी ाय वीपीय : इसके अ तगत पि चमी महारा , इसके तट य एवं शोलापुर
आ त रक िजले सि म लत है । मु बई महानगर एवं ब दरगाह का पृ ठ दे श , ख नज आ थक
एवं सां कृ तक दे श आ द इस दे श क वशेषताए है । दे श म तट य म यसन, कपास, लौह
एवं अलौह ख नज के भ डार जल व युत एवं आि वक ऊजा आ द संसाधन भावी वकास के
लए उपल ध है । इस दे श म औ यो गक के करण के बखराव तथा मराठवाडा एवं र ना गर
के आ थक प से पछडे े ो के वकास क सम या बनी हु ई है ।
मु बई, पुणे , ना सक एवं शोलापुर मुख औ यो गक एवं नगर य े इसम समा हत है
। इस दे श को म यम म के दो दे श मु बई-द कन एवं लावा दे श को कृ ष पर आधा रत
409
औ यो गक दे श तथा क कण तथा द कन का कृ ष औ यो गक दे श म वभािजत कया गया
है।
4. म य द कन : म य द कन दे श के अ तगत पूव महारा , म य एवं द णी म य
दे श रा य सि म लत है । भौ तक दशाओं एवं म ी क समांगता, वकास के लए बा य
उ ीपक त वो के लए कम खुलापन आ द एक करण के त व एवं वशेषताएँ है । इस दे श म
नमदा के जल संसाधन वकास के साथ आ थक पछड़ेपन के नराकरण क मु ख सम या है ।
साथ ह भावी वकास के लए फलो पादन, कपास, लौह अय क (च पुर ), कृ ष पर आधा रत
उ योग, नमदा क जल-ऊजा तथा सतपुड़ा क तापीय ऊजा क स भावनाएँ उपल ध है । नागपुर
इस दे श का मु ख औ यो गक एवं नगर य दे श है । दे श को म यम म के दो दे श जैसे
म य दे श का नमदा घाट के दे श तथा खानदे श, बरार दे श म बभािजत कया गया है ।
5. पूव ाय वीप : इस दे श मे उड़ीसा, द णी बहार, झारख ड, उ तर -पूव आ दे श ,
उ तर दे श के सल न िजलो के भाग तथा पि चम बंगाल शा मल है । इस दे श म तट य
म ययन कोयला, लौह-अय क, मगनीज, बा साइट, अ क, द डकार य दे श का वन, कृ ष,
महानद बे सन क कृ ष जल- व युत एवं ताप व युत का वकास , लौह-इ पात के कारखाने तथा
आधारभू त उ योग आ द रासाधन जो समि दत वकास के लए उपल ध है । इसके वपर त
रासाय नक तथा ए यूमी नयम, जनसं या, अ प घन व, कम नगर करण तथा अ धकांश भाग
का आ थक ि ट से पछड़ा होना मु य समरयाय है । राउरकेला, जमशेदपुर, आसनसोल, भलाई,
दुगापुर , स बलपुर , कटक एवं वशाखप नम मु ख औ यो गक एवं नगर य े सि म लत है ।
इस दे श को पुन : 6 म यम म के दे शो म वभ त कया गया है जो इस कार है:
उ तर -पूव द कन तथा तट य मैदान , द डकार य, महानद बे सन, सोन घाट दे श, छोटानागपुर
औ यो गक दे श तथा ा मणी औ यो गक दे श आ द ।
6. गुजरात : गुजरात दे श म सां कृ तक एकता एवं प रवहन माग वारा दत अनुबध
ं न
आ द एक करण के त व है । सौरा एवं क छ के पछड़े े , भू म सुधार, तेल एवं ाकृ तक
गैस के उ पादन एवं उपयोग स ब धी सम याय इस े म व यमान है । य द दे श म भावी
वकास क ि ट से दे खे तो पे ो रसायन, नमक, चू ना-प थर, बा साइट, सं चत कृ ष क
स मावनाये (दांतीवाड़ी, नमदा) म यन, पशु पालन आ द संसाधन उपल ध है । अहमदाबाद,
बडोदरा, सू रत, पोरब दर मुख औ यो गक एवं नगर य े इसम सि म लत है ।
गुजरात दे श को दो म यम म के दे श जैसे गुजरात मैदान एवं पहाड़ी दे श तथा
क ठयावाड़ क छ दे श म वभािजत कया गया है ।
7. पि चमी राज थान : इस दे श के अ तगत राज थान के जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर,
सरोह , जालौर, बाड़मेर, पाल , जोधपुर, नागौर तथा चु िजले सि म लत है । भौ तक तथा
जलवायु दशाओं म उ च तर क समांगता, इि दरा गाँधी नहर का वकास, सामािजक एवं
सां कृ तक स ब ध आ द एक करण के त व है । इस दे श क मुख सम या जल का नता त
अभाव, म भू म सु धार तथा शु क एवं अधशु क े के वकास से स बि धत है । य द हम
समि वत वकास क ि ट से दे खे तो इस दे श म ल नाइट, िज सम, चू ना-पथर, बहु मू य

410
प थर, पे ो लयम एवं आण वक ऊजा क सभावनाएँ, पशु पालन, सं चत कृ ष आ द संसाधन
उपल ध है ।
जोधपुर, बीकानेर, ीगंगानगर आ द मुख औ यो गक एवं नगर य दे श है । इस दे श
को पुन : दो म यम म के दे श म थल य दे श तथा अ म थल य दे श म बाँटा है ।
8. अरावल े : इस दे श म पूव राज थान तथा पि चमी म यम दे श शा मल है ।
संसाधनो क ि ट से दे खे तो दे श म अलौह, धातु ए,ँ सीसा, ज ता, तांबा, अ क, चू ना-प थर,
संगमरमर, नमक, पशु पालन, सं चत कृ ष, जल व युत (च बल घाट प रयोजना) आण वक ऊजा
(कोटा) आ द भावी वकास के लए उपल ध है । म ी अरारदन पछड़े े का वकास तथा
सामािजक सु धार क यहाँ क सम याएँ है । कोटा राणा ताप सागर, गा धी-सागर जल व युत
टे शन तथा राणा ताप सागर के पास आण वक व युत टे शन भी है । कोटा, जयपुर , अजमेर,
सवाई माधोपुर व इ दौर , इस दे श के मु य औ यो गक एवं नगर य दे श है ।
इस दे श को म यम म के दो दे श कोटा औ यो गक एवं च बल घाट दे श तथा
जयपुर -उदयपुर दे श म वभािजत कया गया है ।
9. ज मू-क मीर एवं ल ाख : इस दे श के अ तगत बारामूला , पु छ, राजौर , उधमपुर,
ज मू, ीनगर, कशु आ, अन तनाग, डोडा तथा ल ाख िजले सि म लत है । भौ तक, सामािजक
एवं सां कृ तक समानता, सीमा त े म रहने के कारण वक सत मान सकता इसक वशेषाताऐ
है । यहाँ पर औ यो गक वकास हे तु संसाधनो क अ पता, आ थक वकास का न न तर तथा
जनसं या दबाव स ब धी सम याय है । इसके अ त र त वन संसाधन, फलो पादन, पयटन तथा
जल व युत का वकास आ द संसाधन वकास के लए उपल ध है । इस दे श म मु ख
औ यो गक एवं नगर य दे श म ीनगर, सोपोर, ज मू एवं लेह सि म लत है । इस दे श के
अ तगत ज मु-क मीर तथा ल ाख दो म यम म के दे श है ।
10. ा स- सकु गंगा का मैदान एवं पहा ड़याँ : इस दे श के अ तगत पंजाब, ह रयाणा,
द ल, हमाचल दे श, पि चमी उ तर दे श तथा उतराँचल सि म लत है । उवर म ी,
सामािजक, सां कृ तक एवं ऐ तहा सक स ब ध दे श क वशेषता है । य द संसाधनो क ि ट से
दे खे तो समि वत वकास के लए आधार उपल ध है । यह पंजाब के मैदान मे सं चत कृ ष के
वकास का उ च तर जैसे गेहू ँ कपास, ग ना तथा चारे क फसल आ द हमाचल दे श तथा
उतराखड के पहाड मे फलो पाद तथा वा नक का वकास, पयटन कृ ष पर आधा रत उ योग ।
इस दे श मे बाढ़, शि त संसाधन उ पादन, संचाई, भू म-सुधार इ या द सम याय ह ।
उहल, योगदास यास, सतलज, भॉकड़ा, नांगल, यमु त तथा रामगंगा-जल व युत तथा
द ल कोयला व युत टे शन है । द ल , मेरठ, लु धयाना तथा च डीगढ़ के औ यो गक एवं
नगर य े सि म लत है । इस दे श को दो म यम म के दे श म वभािजत कया गया है ।
जैसे-भाखडा-नांगल कृ ष औ यो गक दे श तथा द ल , पि चमी उ तर दे श के मैदान तथा उ तर
दे श के पवतीय दे श आ द ।

411
11. गंगा-यमु ना का मैदान : इसम पूव , म य एवं द णी-पि चमी उ तर दे श तथा म य
दे श के उ तर िजले सि म लत है । इस दे श म गंगा के मैदान के कृ ष संसाधन जैसे ग ना,
चावल तथा गेहू ँ म य दे श के वन तथा कृ ष पर आधा रत उ योग एवं ऊजा क संभावनाएँ आ द
भावी वकास के लए ससाधन उपल ध ह । साथ ह इस दे श म संचाई, बाढ़, मु यत: कृ ष पर
नभरता, व वधता क कमी तथा अ धक जनसं या का घन व मु य सम याय है । यहाँ
हरदुआगंज, कानपुर तथा पनक कोयला व युत टे शन है । कानपुर , वाराणसी, आगरा,
इलाहाबाद तथा लखनऊ मु य औ यो गक तथा नगर य े गंगा-यमु ना मैदान म सम हत है ।
इस दे श को पुन : दो उप वभाग म वभ त कया गया है, जैसे कानपुर-आगरा
औ यो गक दे श तथा पूव उ तर- दे श बधेलख ड दे श आ द ।
12. नचल गंगा घाट का मैदान : इस दे श म उ तर बहार तथा लगभग संपण
ू पि चमी
बंगाल सि म लत है । इस दे श म आ थक अ त नधनता, कलकला ब दरगाह का अपने पृ ठ-
दे श पर भाव, पया त बडे े पर सामािजक सां कृ तक सम पता आ द वशेषताएँ व यमान
है । बाढ़, संचाई, अ धक जनसं या, कृ ष पर नभरता तथा आ थक याओं म व वधता का
अभाव इस दे श क मु य सम याय है ।
भावी वकास के लए मैदानी भाग मे कृ ष वशेषकर जूट, पवतीय भाग पर चाय,
बरोनी-हि दया म पे ो-रसायन उ योग, ताप तथा जल- व युत आ द संसाधन उपल ध है ।
कलकता, पटना, बरौनी, बदवान मु ख औ यो गक एवं नगर य े इससे जुड़े हु ए है । बैरानी
ब दे ल, कोलकाता म कोयला व युत टे शन है । इस दे श को म य म के 3 दे श म बाँटा
गया है । जैसे उ तर बहार का कृ ष औ यो गक दे श, कलक ता-हु गल औ यो गक दे श तथा
उ तर बंगाल का मैदान आ द ।
13. उ तर -पूव े : इसम असम, पूव तर के अ य रा य, प. बंगाल के उ तर पवतीय
िजले शा मल है इस दे श क मु य वशेषता आ थक अ तः नधनता, सां कृ तक व वधता वारा
ज नत सामािजक अ तः नधनता, जन-जातीय सं कृ त एवं सामािजक संरचना आ द है । इस
दे श म बाढ़, खा या न तथा शि त संसाधन के अभाव क सम या है । संसाधन क ि ट से
इस दे श म चाय, जू ट क कृ ष, पे ो लयम, स ल मनाइट का खनन, वा नक , जल व युत
वकास क स भावनाय उपल ध है । नहरक टया कोयला व युत तथा उम जल व युत टे शन
ह । डगबोई, गुवाहट , शलांग तथा तनसु कया मख औ यो गक एवं नगर य े इसम
सि म लत है ।
मपु क नचल घाट तथा शलांग पठार दे श , ऊपर मपु घाट तथा पहाडी
दे श और पूव पहाड़ी एवं मैदानी दे श म यम म के तीन दे श है ।

15.8 कृ ष-जलवा यक दे श (Agro-Climatic Regions)


कृ ष जलवा यक दे श नयोजन दे श का एक अ छा उदाहरण है । कृ ष भारतीय
अथ यव था का आधार है तथा आ थक वृ के लए यह आव यक है क कृ ष का वकास हो ।
कृ ष वकास का नयोजन कृ ष जलवा यक दे श पर आधा रत है । यह ादे शक असंतल
ु न को

412
कम करने तथा स भा वत संसाधनो का दोहन के लए एक उ चत व ध है । कृ ष-जलवायु
नयोजन का मु य उ े य व भ न व तु ओं क मांग एवं पू त म संतु लन था पत करना,
उ पादक क कु ल आय म वृ , अ धक रोजगार उपल ध कराना, ाकृ तक संसाधन का द घकाल
तक योग के लए उपल ध करना, वशेषकर भू म, जल तथा वन संसाधनो के लए ।
भारतीय योजना आयोग ने संपण
ू दे श को न न ल खत 15 कृ ष जलवा यक दे श म
वभािजत कया है । िजसके लए धरातल, मृदा , जलवायु, भू-वै ा नक संरचना, भू म उपयोग,
संचाई तथा फसल त प को आधार बनाया है ।
1. पि चमी हमालय कृ ष दे श
2. पूव हमालय कृ ष दे श
3. नचल गंगा के मैदान का कृ ष दे श
4. म य गंगा के मैदान का कृ ष दे श
5. ऊपर गंगा के मैदान का कृ ष दे श
6. थार गंगा के मैदान का कृ ष दे श
7. पूव पठार एवं पठार कृ ष दे श
8. म य पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श
9. पि चमी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श
10. द णी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श
11. पूव तट य मैदान एवं पहाड़ी दे श
12. पि चमी तट य मैदान एवं घाट कृ ष दे श
13. गुजरात मैदान एवं पहाड़ी म ी कृ ष दे श
14. पि चमी शु क कृ ष दे श
15. वीपीय कृ ष दे श
1. पि चम हमालय कृ ष दे श : इसका व तार ज मू-क मीर, हमाचल दे श, उ तरांचल
रा य म है । यहाँ क जलवायु शीतो ण से आ व वषा का औसत 17 से.मी. से 300 से.मी. है
। इस दे श म पील , पहाड़ी, जलोढ़ म ी क अ धकता है िजसम गेहू ँ म का, धान, आलू का
उ पादन होता है । इस दे श क घा टय म अ छ वषा होती है और भू म भी उपजाऊ रहती है ।
शीतो ण े के लददाख े म अ प वषा एवं तापमान रहता है िजस कारण फसल का उ पादन
सी मत होता है । इस दे श म जनसं या का घन व 4.8 यि त तवग क.मी.
2. पूव हमालय कृ ष दे श : इस दे श म असम, पि चमी बंगाल, म णपुर , मेघालय,
नागालै ड, पुरा एवं मजोरम रा य को शा मल कया गया है । यहाँ क जलवायु उ ण-आ है,
वषा का औसत मा 184 से.मी. से 353 से.मी. रहता है, इस दे श म जलोढ़ लाल, दोमट लाल
बुलई तथा पील पहाड़ी म ी पाई जाती है । िजसम चावल और म का क खेती क जाती है ।
घा टयो म वषा भी अ छ होती है तथा म ी भी उपजाऊ है ले कन शीतो ण े के सि कम एवं
दािज लंग म कम वषा तथा कम तापमान के फसल का उ पादन सी मत दन म होता है ।

413
3. नचल गंगा के मैदान का कृ ष दे श : यह दे श पि चमी बंगाल रा य म व तृत है ,
यहाँ क जलवायु उपा से शु क उपाद कार क है । वषा का औसत 130 से 161 से.मी. के
बीच रहता है । इस दे श म लाल-पील डे टाई तथा जलोढ़ म ी का बाहु य है िजसम चावल,
जू ट तथा गेहू ँ का उ पादन होता है । इस दे श म जनसं या घन व 664.3 त वग क.मी.है ।
4. म य गंगा के मैदान का कृ ष दे श : इस दे श का व तार उ तर दे श तथा बहार
रा य म है । यहाँ क जलवायु तर उपा से शु क उपा कार क है । वषा क औसत मा ा
121 से.मी. से 147 या से.मी. के म य पाया जाता है । यहाँ क म ी जलोढ़ है िजसम चावल,
गेहू ँ और म का उगाया जाता है । इस दे श म जनसं या का घन व 531.2 यि त त वग
क.मी.है ।
5. ऊपर गंगा के मैदान का कृ ष दे श : इस दे श के अ तगत आ ध दे श का पि चमी
भाग सि म लत है । यहाँ क जलवायु शु क उपा से उपो ण है तथा औसत वषा 72 से.मी. से
98 से.मी. रहता है । यहाँ क म ी जलोढ़ है, िजसम गेहू ँ चावल, म का तथा तू र का उ पादन
होता है ।

6. थार गंगा के मैदान का कृ ष दे श : इसका व तार पंजाब, ह रयाणा, एवं राज थान
रा य म है । जहाँ क जलवायु अ य त शु क से शु क उपा है तथा वषा क औसत मा ा 36
से.मी. से 89 से.मी. तक रहता है यहाँ क म ी जलोढ़ चू ना यु त व रे तील है, िजसम गेहू ँ
म का, चावल तथा ग ना का उ पादन होता है । इस दे श का जनसं या घन व 328.9 यि त
तवग क.मी.है ।
7. पूव पठार एवं पठार कृ ष दे श : इसम महारा , म य दे श, उड़ीसा तथा पि चमी
बंगाल रा य का भाग सि म लत है । यहाँ क जलवायु तर-उपा से शु क उपा है तथा औसत
वषा 127 से 144 से.मी. है । यहाँ क म ी लाल बुलई, लाल एवं पील है । इसम चावल, गेहू ँ
म का तथा रागी का उ पादन होता है । यह जनसं या का घन व 136 यि त त वग
क.मी.है ।
8. म य पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श : इसके अ तगत म य दे श, राज थान तथा उ तर
दे श का भाग सि म लत है । यहाँ औसत वषा 49 से 157 से.मी. रहता है । इस दे श म लाल
एवं पील , म यम काल तथा जलोढ़ म ी मलती है िजसम वार, चावल तथा बाजरा उगाया
जाता है । यह जनसं या घन व 136 यि त तवग क. मी. है । 384
9. पि चमी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श : यह दे श महारा , म य दे श एवं राज थान
रा य म व तृत है । यह क जलवायु उपो ण है तथा औसत वषा क मा ा 69. से.मी. से
104. से.मी. रहता है । इस दे श म म यम काल व गहर काल म ी मलती है । यहाँ वार-
बाजरा, कपास तथा गेहू ँ क खेती क जाती है । यह जनसं या का घन व 169.3 यि त
तवग क.मी.है ।

414
10. द णी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श : इसम आ दे श, कनाटक एवं त मलनाडु रा य
सि म लत है । इस दे श क जलवायु उपो ण कार क है जहाँ औसत वषा क मा ा 68 से.मी.
से 100 से.मी. के म य रहता है । यह म यम काल , गहर काल , लाल बलु ई तथा लाल दुमट
म ी मलती है िजसम वार, चावल, रागी तथा मू ंगफल का उ पादन होता है । इस दे श म
जनसं या का घन व 199 यि त त वग क.मी.है ।
11. पूव तट य मैदान एवं पहाड़ी दे श : इसके अ तगत उड़ीसा, आ दे श, त मलनाडु व
पाि डचेर रा य शा मल है । यहाँ क जलवायु उपो ण से उपा कार क है जहाँ औसत वषा क
मा ा 78 से.मी. से 129 से.मी. के म य है । इस दे श म डे टाई, जलोढ़, लाल दुमट तथा
सागरतट य जलोढ़ म ी पाई जाती है िजसम चावल, मू ंगफल , रागी, वार व बाजरा उ पा दत
क जाती है । इस दे श म जनसं या का घन व 321 यि त त वग क.मी.है ।
12. पि चमी तट य मैदान एवं घाट कृ ष दे श : इसम त मलनाडु , केरल, गोआ, कनाटक एवं
महारा रा य सि म लत है । यह क जलवायु शु क उपा कार क है तथा औसत वषा क
मा ा 223 से.मी. से 364 से.मी है । इस दे श म लैटराइट, दुमट एवं तट य जलोढ़ म ी
मलती है । इसम चावल, रागी, मू ंगफल का उ पादन कया जाता है । इस दे श म जनसं या
का घन व 414 यि त त वग क.मी.है ।
13. गुजरात मैदान एवं पहाड़ी म ी कृ ष दे श : यह दे श गुजरात रा य म व तृत है ।
यहाँ क जलवायु शु क और शु क उपा कार क है तथा औसत वषा क मा ा 34 से.मी. से
179 से.मी. के म य पायी जाती है । इस दे श म गहर काल , तट य, जलोढ एवं म यम काल
म ी मलती है इसम चावल, मू ंगफल , कपास, बाजरा तथा गेहू ँ का उ पादन कया जाता है ।
इस दे श म जनसं या का घन व 174.2 यि त त वग क.मी.है ।
14. पि चमी शु क कृ ष दे श : इसम राज थान रा य सि म लत है, जहाँ क जलवायु शु क
एवं अ त शु क है तथा औसत वषा क मा ा 40 से.मी. से कम रहता है । इस दे श म बालुमय
भू र व पील म ी मलती है । िजसम गेहू ँ व बाजरा उ पा दत होता है । इस दे श म जनसं या
का घन व 58.2 यि त त वग क.मी.है ।
15. वीपीय कृ ष दे श : यह दे श अ डमान व नकोबार तथा ल य वीप म व तृत है यह
क जलभ उ ण-आ कार क है जहाँ वषा क औसत मा ा 150 से.मी. से 308 से.मी. के म य
रहता है । यहाँ चावल व ना रयल का उ पादन कया जाता है । इस दे श म जनसं या का
घन व 28.6 यि त त वग क.मी.है ।
बोध न : 3
1. पदानु म के अनु सार नयोिजत दे श को कतने तर म बां टा गया है?
2. भारत के मु ख नयोजन दे श को कतने भाग मे वभािजत कया गया है ?
3. भारत के मु ख नयोिजत दे श को मा यम म के कतने उप वभाग म
वभािजत कया गया है
4. पू व ाय वीप दे श को कतने मा यम म के दे श म बां टा गया है ?
5. भारत को कतने कृ ष जलवा यक दे श म बां टा गया है ?

415
15.9 सारांश (Summary)
े ीय आ थक तं के वकास हे तु बनाये गये काय म को नयोजन कहते है िजसम
आ थक के साथ-साथ सामािजक सा कृ तक एवं राजनी तक त प को शा मल कया गया है ।
दूसरे श द मे यह एक ऐसी या िजसम कु छ यि तय वारा कसी े वशेष को लए
काय क सूची तैयार क जाती है िजसका मु य उ े य दे श के नवा सय क सम याओं, उनक
आव यकताओ क पूत तथा वकास के लए काय करना है । इस या वारा कसी दे श को
आ म नभर बनाने का यास कया जाता है । कह ं और कस मा ा म कसी व तु का उ पादन
होगा तथा कसके वारा इसका एक ण होना आ द नणय े वशेष के आ थक णाल के
सम प से व तृत अ ययन के आधार पर कया जाता है ।
नयोजन दे श का सीमांकन नयोजन के तर, े क वशेषता एवं व वधता भावी
वकास क संभा यता पर नभर करते है । आ थक वकास तर, संसाधन का वतरण तथा
उपयोग के आधार पर भारत को 13 वृहत ् तथा 35 म यम दे श म वभािजत कया है । वृहत
दे श रा य के समू हन वारा बने है । केरल, त मलनाड, कनाटक, गुजरात, ह रयाण, पंजाब,
हमाचल दे श, द ल , ज मू-क मीर, आसाम तथा उड़ीसा एक-एक वृहत ् दे श के भाग है जब क
कु छ रा य महारा , उ तर दे श, बहार, अ ध दे श और राज थान दो-दो बृहत ् दे श के भाग
है । पि चमी बंगाल तथा म य दे श तीन-तीन बृहत ् दे श के भाग बन गये है । क मीर एवं
ल ाख वृहत दे श म संसाधन त प क अ प व वधता पायी जाती है । योजना आयोग वारा
भारत को कृ ष-जलवा यक दे श म बांटा गया है जो नयोजन दे श का अ छा उदाहरण तु त
करते ह, य क कृ ष भारतीय अथ यव था का आधार है तथा आ थक वृ के लए यह
आव यक है । अंत म हम कह सकते है क कसी भी े वशेष के सवागीण वकास हे तु बनाया
गया काय म ह नयोजन दे श है ।

15.10 श दावल (Glossary)


1. नयोजन दे श - ऐसा दे श िजसके अंतगत सामा य दशाओं क समानता के साथ-साथ
कु छ व श टता और वकासीय सम याओं क झलक दे खने को मलती है ।
2. एक तर य नयोजन - इसम नयोजन जन स बंधी नणय रा य तर पर कये जाते
है । सार या के यकृ त होती है ।
3. बहु तर य नयोजन - इसके अंतगत नयोजन हे तु रा य थल को छोटे -छोटे े . म
वभािजत कर दया जाता है । इनक सं या दे श वशेष के आकार- व तार, भौगो लक, ादे शक,
सं वना पर नभर करती है ।

15.11 स दभ थ (Reference Book)


1. चौहान : भारत का भू गोल, व ान काशन, जोधपुर , 2001 -2002
2. दुबे एवं संह : ादे शक नयोजन, तारा बुक एजे सी, वाराणसी, 1986
3. पवार एवं शु ला : ादे शक भू गोल के स ा त, म य दे श ह द ग ध अकादमी, भोपाल,
1994
416
4. जाट : आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2006

15.12 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. नयोजन एक ऐसी णाल है जो कसी े वशेष के आ थक-सामािजक वकास एवं उनसे
जु ड़ी याओ को संचा लत करने के लए योग क जाती है ।
2. जब नयोजन का स ब ध कसी व श ट े ी इकाई से होता है तो उसे नयोिजत दे श
कहते है ।
3. नयोिजत दे श म धरातल य एवं सामािजक-सां कृ तक समाँगता के साथ-साथ आ थक
संरचना मे समागता होनी चा हए ।
बोध न-2
1. नयोजन क सहायता से संसाधन को नयोजन हे तु सु झाव दया जाता है ।
2. नयोजन का उ े य सी मत संसाधनो क खोज कर उ च तकनीक वारा अ धकतम लाभ
ा त करना
3. ममफोड ने नयोजन म मानव हत का मह व दया है ।
4. नयोजन एक तर य तथा बहु- तर य दो व धय से क जाती है ।
बोध न -3
1. 3
2. 13
3. 35
4. 6
5. 15

15.13 अ यासाथ न
1. नयोजन दे श क संक पना से आप या समझते है?
2. नयोजन दे श का मह व प ट क िजए ।
3. नयोजन दे श क वशेषतओं का वणन क िजए ।
4. भारतीय नयोजन वारा कये जाने वाले मु य काय का वणन कर ।
5. नयोजन दे श के सीमांकन के सामा य स ा तो क ं ववेचना क िजए ।
6. भारत के मु ख नयोजन दे श का सं त वणन क िजए ।
7. कृ ष-जलवा यक दे श के आधार को बताते हु ए भारत के कृ ष-जलवा यक दे श का वणन
क िजए ।

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