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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज.)
सद य
1. ोफेसर(डॉ.) संतोष शु ला 2. डॉ. जे .के. जैन
ोफेसर एवं वभागा य , पू व एसो सये ट ोफेसर एवं वभागा य ,
सामा य एवं यवहा रक भू गोल वभाग भू गोल वभाग
एच.एस. गौड़ व व व यालय,सागर(म. .) जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर (राज.)
3. ोफेसर(डॉ.) एन. एल. गु ता 4. डॉ. बी.एल. शमा
पू व ोफेसर एवं वभागा य , भू गोल वभाग वभागा य , भू गोल वभाग
एम.एल. सु ख ड़या व व व यालय, उदयपु र(राज.) राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)
5. डॉ. मनोज गौतम
व र ठ या याता, भू गोल वभाग
राजक य नातको तर महा व यालय, कोटा(राज.)
पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
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उ पादन : पु नः मु ण : जू न, 2010
इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा
या अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।
व. म. खु. व., कोटा के लये कु लस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत
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वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
भारत का भू गोल
इकाई सं. इकाई पृ ठ सं
इकाई -1 भू गा भक संरचना, धरातल य वभाग एवं अपवाह तं 8—40
इकाई -2 जलवायु 41—67
इकाई -3 म ी, वन प त एवं वन वतरण 68—92
इकाई -4 संचाई- मु ख ोत एवं प रयोजनाएँ 93—112
इकाई -5 कृ ष एवं पशु पालन 113—154
इकाई -6 सू खा और बाढ़ 155—182
इकाई -7 ख नज संसाधान 183—207
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प रचया मक
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इकाई 1: भू ग भक, संरचना धरातल य वभाग एवं अपवाह
तं (Geological Structure, Physiographic
Division and Drainage Pattern)
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 भारत क भू ग भक संरचना
1.2.1 भू ग भक संरचना का इ तहास
1.2.2 पुरा कैि यन युगीन शैल
1.2.3 पुराण युगीन शैल
1.2.4 वड़ युगीन शैल
1.2.5 आय युगीन शैल
1.2.6 भारत के भू क पीय े व भौग भक संरचना का स ब ध
1.3 भारत के धरातल य वभाग
1.3.1 उ चावचीय त प
1.3.2 हमालय पवतीय े
1.3.3 उ तर भारत का वशाल मैदान
1.3.4 ाय वीपीय पठार
1.3.5 समु तट य मैदान
1.3.6 भारतीय वीप
1.4 भारत का अपवाह तं
1.4.1 भारत म नद अपवाह तं का वकास
1.4.2 भारत म न दय के अपवाह त प
1.4.3 अरबसागर य अपवाह तं
1.4.4 बंगाल क खाड़ी म गरने वाल न दय का अपवाह तं
1.4.5 उ तर एवं द ण भारत क न दय क तुलना
1.5 सारांश
1.6 श दावल
1.7 स दभ थ
ं
1.8 बोध न के उ तर
1.9 अ यासाथ न
1.0 उ े य (Objective)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरांत आप समझ सकगे :-
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भारत क भौग भक संरचना - भौग भक संरचना का इ तहास,
भारत के धरातल य वभाग - येक वभाग क वशेषताय
भारत का अपवाह तं - उ तर भारत व द णी भारत क वाह णाल
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नवा सय क भाषा, बोल रहन-सहन, खान-पान, यौहार आ द सां कृ तक व भ नताय होते हु ए
भी एकता के दशन होते है, दे श के कसी भी ा त के नवासी ह , हम सब भारतदे श के वासी
भारतीय ह । हमारे रा य पव स पूण दे श म मनाये जाते ह, यहाँ क नृ य कलाय , संगीत,
लोकगीत, लोक नृ य , सं वधान म व णत 15 भाषाओं के साथ स पक भाषा अं ज
े ी के साथ
राजक य भाषा ह द एकता के सू ह, दे श के सभी धमावल बी एक दूसरे क सं कृ त से
भा वत ह, पर पर आदर करते ह । साथ ह दे श के पवत , न दय , मैदान , पठार म भू म से
सभी दे शवासी ऋणी ह, स पूण दे श मानसू नी वषा से यून अ धक मा ा म भा वत ह, ये सभी
भारत म व भ नताओं म एकता के कारक है ।
भारत के पड़ौसी दे श म पि चम एवं उ तर पि चम म पा क तान, उ तर सीमा पर
नेपाल, भू टान तथा चीनमय त बत पूव सीमा पर यांमार (बमा) द ण म ह द महासागर म
ि थत ीलंका, बंगाल क खाड़ी के शीष पर ि थत बांगलादे श मु य ह । व व के सभी दे श से
भारत के स ब ध शां त, म ता व सह अि त व पर आधा रत है । व व क सभी महाशि तयां
व अ य सभी रा भारत के त अपने स मान का द दशन करते ह ।
वतमान समय म कुल 28 रा य तथा 7 के शा सत दे श ह । ये न न है -
रा य: 1. आं दे श, 2. असम, 3. उड़ीसा, 4. उ तर दे श, 5. केरल, 6. ज मु-कशमीर,
7. पंजाब, 8. ह रयाणा, 9. पि चमी बंगाल, 10. बहार, 11, महारा , 12. गुजरात, 13. म य
दे श, 14. त मलनाडु , 15. कनाटक, 16. राज थान, 17. नागालै ड, 18. हमाचल दे श, 19.
मेघालय, 20. म णपुर , 21. पुरा, 22 सि कम, 23. मजोरम, 24. अ णाचल दे श, 25.
गोआ, 26. उ तराख ड, 27. झारख ड एवं, 28. छ तीसगढ़ ।
के शा सत दे श : 1. द ल , 2. अ डमान एवं नकोबार वीप समू ह, 3. ल वीप,
म नकोय तथा अमीनद वी वीप समू ह, 4. दादरा व नगरहवेल , 5. दमन एवं वीप, 6.
पाि डचेर एवं, 7. च डीगढ़ । के शा सत द ल दे श को व श ट रा य का दजा ा त है ।
बोध न : 1
1. े फल क ि ट से भारत का व व म न न म से थान ह –
(अ) पाँ च वा (ब) छठा
(स) सातवीं (द) आठवाँ
2. भारत म भू म डल के कु ल े फल का िजतना तशत भाग ह, वह है –
(अ) 2.1 तशत (ब) 2.2 तशत
(स) 2.3 तशत (द) 2.4 तशत
3. अ डमान एवं नकोबार वीप के द ण म ि थत भारत के अं तम भू - भाग का
नाम है :-
(अ) ने ह पॉइ ट (ब) गां धी पॉइ ट
(स) इं दरा पॉइ ट (द) पटे ल पॉइ ट
4. भारत क थलवत सीमाओं क ल बाई है :-
(अ) 15000 कमी. (ब) 15100 कमी.
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(स) 15200 कमी. (द) 15300 कमी.
5. भारत का उ तर से द ण व तार ह :-
(अ) 3000 कमी. (ब) 3214 कमी.
(स) 4000 कमी. (द) 4214 कमी.
इस अ त ाचीन काल म न मत
शैल को दो वग म वभ त कया जा
सकता है (अ) आ कयन म क च ान एवं
(ब) धारवाड़ म क शैल ।
(अ) आ कयन युगीन शैल का व तार
ाय वीप पठार के लगभग दो तहाई भाग
पर पाया जाता है । इस म क च ान म
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ेनाइट, नील व श त शैल तथा धारवाड़ म क च ान सि म लत ह । उ त संरचना क
च ान का व तार भारत म 1 .87 लाख वग कमी. े पर पाया जाता है । ये मु यत:
कनाटक, त मलनाडु , आ दे श, उड़ीसा, म य दे श, छ तीसगढ, झारख ड तथा बहार के
अ त र त सी मत े म द णी एवं द णीपूव राज थान, पि चमी बंगाल म पायी जाती है ।
ये च ान रवेदार काया त रत होने के कारण इनम जीवा म का अभाव है । ( च 1. 1)
(ब) धारवाड़ म क च ान का नमाण आ कयन युगीन च ान के अ य धक रण से हु आ,
फलत: इनम जीवा म का अभाव पाया जाता है । धारवाड़ ु ाइट,
म क च ान म आ नेय ( ेनल
लोराइट आ द) तथा अवसाद ( वाटजाइट, टै क श त, लेट, लाइम टोन, कॉ लोमसेट आ द)
दोन कार क पायी जाती ह । इन च ान से लौह अय क, मगनीज, सोना, तांबा, ज ता, आ द
धाि वक ख नज ा त होते है ।
ये च ान ाय वीपीय तथा अ ाय वीपीय भारत दोन म पायी जाती ह । ाय वीपीय
े म ये शैल मु यत: 1 कनाटक म धारवाड़, बलार व शमोगा िजल म, 2. महारा म
नागपुर िजले म , 3. म य दे श म जबलपुर, बालाघाट, र ंवा, हजार बाग, 4. उड़ीसा के
वशाखाप नम िजले म. पायी जाती है ( च 1 .2) ।
अ ाय वीपीय े म धारवाड़ शैले हमाचल दे श म पीतीघाट , उ तरांचल म गढ़वाल,
कु मायू ं े तथा क मीर एवं असम रा य म पायी जाती है ।
इन च ान म लोहा, सोना, मगनीज, तांबा, ज ता, अ क, ' ो मयम, टं टन,
वुल ाम, सीसा, सु रमा, इ मेनाइट आ द ख नज मुखत: पाये जाते ह ।
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उ तर पि चमी म य दे श, उ तर छ तीसगढ़ आ द े म पायी जाती ह । इन शैल म लौह
अय क, मगनीज, तांबा आ द पाये जाते ह ।
(ब) वं यन म क शैल
इन शैल क उ प त कुड़ पा म क शैल के बाद हु ई ह । वं याचल े म ये अ धक
व तृत प म पायी जाती है, अत: ये वं यन म नाम से स है । इन च ान म बालू चू ना
प थर, शैल क धानता है । ये च ान द णी-पूव उ तर दे श, प. बहार, उ तर म य दे श,
नमदा घाट , अरावल व समीपवत े म पायी जाती है ( च 1.3) ।
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दलदल घा टय म उगे वन दलदल े मे दब गय, फलत: वन प त के पा तरण से कोयले
क उ प त हु ई । भारत म ग डवाना शैल ाय वीपीय भारत म मु यत: दामोदर घाट , महानद
घाट , गोदावर घाट के अ त र त आंध दे श व महारा म पाई जाती ह ( च 14) । इन शैल
से दे श का 98 तशत कोयला ा त होता ह, बालू प थर, चीका म ी व ल नाइट भी मलता
है।
(ब) द कन े प
टे शस युग के अंत म ाय वीपीय भारत
के पि चमी भाग पर दरार उदभेदन से बड़े पैमाने पर
वालामुखी या होने से द कन के मु य पठार क
उ प त हु ई । दकन े प म बेसा ट व डोलोराइट लावा
न मत शैल मुखत: पाई जाती ह । लावा न ेप क
परत कु छ े म 2 मीटर से 35 मीटर गहर ह
क तु पि चमी भाग मे 2500 मीटर से अ धक
गहराई तक मलती है।
वालामुखी च ान के रण से ए यू मना
लोहा, मगनीज यु त उवर काल म ी का नमाण
हु आ, िजसे रे गर या कपास क काल म ी भी कहते
ह ।
भारत म दकन े प का व तार लगभग 5
लाख वग कमी. े पर मु यत: महारा , गुजरात, मान च 1.6 ट यर शैल
त मलनाडु के अ त र त म य दे श, आ दे श, कनाटक आ द रा य म दे खा जाता है ( च 15)।
(स) टरशर म क शैल
इन शैल का नमाण इओसीन युग से लेकर लायोसीन युग तक हु आ । इस युग म पांच
व भ न चरण म हमालय का उ थान हु आ । इस युग म न मत च ान भारत म हमालय ेणी,
िजनका व तार समीपवत पड़ौसी दे श पा क तान म मकरान तट ेणी, सु लेमान-क थर तथा
यांनमार म अराकान योमा तक है तथा ाय वीपीय भारत म केवल तट य े म भी टरशर
शैल पायी जाती ह ( च 1 .6) । इन च ान म चू ना प थर, बलु आ प थर, लेट आ द के साथ
जीवा म भी पाये जाते है ।
(द) वाटरनर युगीन शैल
इस समू ह से स बि धत शैल का नमाण ल टोसीन तथा आधु नक काल (होलोसीन
युग ) म हु आ । ल टोसीन म क शैल क उ प त काल म यापक हमावरण का सार था ।
इस युग म क मीर घाट , झेलम घाट क शैल क उ प त के साथ गंगा, मपु , सतलज,
नमदा, ता ती, गोदावर , कृ णा न दय क घा टय मे पुरातन काँप (गंगा घाट म िजसे बागर भी
कहते है) तथा उ त न दय क नचल घा टयाँ म नवीन काँप (िजसे गंगा धाट मे खादर कहा
जाता है) यापक प मे पायी जाती है ।
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बोध न : 2
1. आ क यनयु गीन शै ल द णी ाय वीप के कु ल भाग के कतने तशत भाग पर
व तृ त ह, वह है :
(अ) 1/4 भाग पर (ब) 1/2 भाग पर
(स) 2/3 भाग पर (द) 3/4 भाग पर
2. धारवाड़ म क च ान का नामकरण कनाटक रा य के िजस िजले के आधार
पर हु आ ह, वह है
(अ) धारवाड़ (ब) शमोगा
(स) चतलदु ग (द) चकमं ग लू र
3. व ड़यन यु गीन शै ल का नमाण आज से कतने वष पू व हु आ ह, वह है
(अ) 60 करोड़ वष से 35 करोड़ वष पू व
(ब) 70 करोड़ वष पू व.
(स) 80 करोड़ वष से 40 करोड़ वष पू व
(द) 90 करोड़ वष पू व
4. दकन े प म लावा न े प क गहराई जहाँ तक ह , वह ह
(अ) 2000 मीटर से कम 2500 मीटर से अ धक (व)
(स) 2500 मीटर से कम (द) 3000 मीटर से अ धक
5. हमालय िजस पवत नमाणकार यु ग से स बि धत ह, वह ह :
(अ ी के ि यन यु ग (ब) के ि टयन यु ग
(स) हरसी नयन यु ग (द) ट शयर यु ग
आधु नक युग क शैल क नमाण या वतमान समय भी अनवरत प से जार है ।
उ तर व द णी भारत क न दय के मु हान पर काँप के नवीनतम न ेप के माण ह।
गंगा- मपु क नचल घाट के बंगाल क खाड़ी तट य े म बालु का तु प के नवीनतम
न ेप इसी ेणी म आते ह ।
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1.3 धरातल य वभाग (Relief divisions)
भारत क धरातल य आका रक म पया त व वधताये पायी जाती ह । उ तर भाग म
युवाव लत ऊँचे पवत, हमा छादन, वषम धरातल, युवा नद घा टयाँ व यमान है । इसके
द ण म समाना तर प मे व तृत मैदान अवि थत ह । द ण म ाचीन युग के अपर दत
ाय वीपीय पठार भू ख ड ि थत है, द ण म यह पठार दोन ओर से तट य मैदान से आब है
तथा अरब सागर व बंगाल क खाड़ी म वीपीय मालाय अवि थत है । इन उ चवचीय व प के
वकास म भू ग भक संरचना, म तथा वकास क अव था का भाव प टत: प रल त होता
है । इन भू व प क व वधताओं के प रपे य म भारत क उ चावचीय व वधताओं को
न नां कत तीन वग म वभ त कया जा सकता है ।
1. 300 मीटर से कम ऊँचाई वाले भूभाग : दे श का लगभग 43 तशत भू भाग 300 मीटर
से कम ऊँचाई वाला है, इसम गुजरात का क छ ांत 50 मीटर से कम ऊँचा है, जब क गंगा
सतलज के मैदान 150-300 मीटर ऊँचे ह, पूव व पि चमी समु तट य मैदानी भाग 50 से
150 मीटर ऊँचे ह ।
2. 300 मीटर से 1200 मीटर ऊँचाई वाले भू भाग : दे श का स पूण ाय वीपीय भाग इस
ेणी म आता ह, जो दे श के 27.7 तशत भाग पर फैला हु आ है ।
3. 1200 मीटर से अ धक ऊँचाई वाले भूभाग: इस वग म भारत के उ तर भाग क
पवतीय े णयां सि म लत ह । दे श के 29.3 तशत भूभाग पर पवत े णय का व तार
दे खा जा सकता है।
1.3.1 भौ तक वभाग
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खृं ला का व तार भारत, नेपाल व भू टान म ह कं तु इसका उ तशं ढाल अंशत: त बत म,
पि चमी व तार पा क तान, अफगा न तान, म य ए शया म ह । व तु त: यह पवतीय खृं ला
पामीर क गाँठ से द ण पूव म नकलने वाल एक शाखा है ।
व वान ने इस पवतीय भूभाग को दो भाग म वभ त कर अ ययन कया है :-
(1) भौगो लक वभाजन, (2) ादे शक वभाजन
(1) हमालय का भौगो लक वभाजन –
इस वभाजन को अनुदै य वभाजन भी
कहते ह । इस 'आधार पर हमालय को चार
भाग म वभािजत कया जाता है । (अ) ांस
हमालय, (ब) वृहद हमालय , (स) लघु हमालय
एवं (द) शवा लक ( च 1.8)।
(अ) ांस हमालय : यह हमालयी पवत
े णय उ तरतम व त बत क ओर अवि थत
होने से इसे त बत हमालय भी कहते ह । ांस
हमालय क ल बाई लगभग. 1000 कमी चौड़ाई
म य म 20 कमी से लेकर शर पर 40 कमी. मान च 1.8 हमालय तथा उससे संबं धत
पवत मालाएँ
तथा औसत ऊँचाई 3000 मीटर है । ांस हमालय म ।मान च 1 .8 हमालय तथा उससे
स बि धत पवत मालाएँ कराकोरम, ल ाख, जा कर, कैलाश पवत े णयॉ सि म लत ह ।
जा कर व ल ाख े णय के म य संधु नद वा हत होती है, कराकोरम ेणी क मुख चोट के
2 है जो 8611 मीटर ऊँची है । यहाँ अनेक हमन दयां ह, िजनम सयाचेन हसपार, बलटार
मु य ह तथा डगला बमा, शाल आ द मु ख दर भी ि थत है ।
(ब) वृहद हमालय: इसे हमा , महान हमालय, मु य हमालय, आंत रक हमालय भी कहा
जाता है । इसका व तार पि चम म संधु नद के मोड़ (नंगा पवत के पास) से पूव म ापु
नद के मोड़ (नामचा बरवा पवत के पास) तक लगभग 2500 कमी. ल बाई ह । इसक औसत
ऊँचाई 6000 मीटर ह । इसम 40 से अ धक पवत चो टयां 7000 मीटर से अ धक ऊँची ह ।
इनम मु य उ लेखनीय - माउं ट एवरे ट (या सागर माथा या चोमोलंगमा 8848), न दादे वी
(7818 मीटर), नंगा पवत (8126 मीटर), गोसाई थान (8013 मीटर), गाड वन आ तीन
(8611 मीटर), कंचनजंघा (8598 मीटर), मकालू (8481मीटर), अ नपूणा (8078 मीटर),
मनसालू (8156 मीटर), धौला गर (8172 मीटर), ब नाथ (7138 मीटर), नीलकंठ (7033
मीटर) पवत चो टयाँ है ( च 1.9) । अ धक ऊँचाई के कारण ये पवत े णयाँ सदै व हमा छा दत
रहती ह तथा यहाँ अनेक हमन दयां ह िजनम गलाम, गंगो ी, जेमू हमनद मु य ह । यहां
संध,ु सतलुज, व मपु ( दहांग) न दय क बहु त सक ण
ं घा टयाँ है तथा यह े गंगा, यमु ना
व इसक सहायक न दय का उ गम े भी ह । इस े म भी अनेक दर भी मलते ह - इनम
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ज मु क मीर म बुिजला, जोिजला, हमाचल दे श म शपक ला, उ तराख ड म ल पूलेख,
सि कम म नाधू ला दरा वशेष उ लेखनीय ह ।
(स) लघु हमालय : इसे म य हमालय भी कहते ह । यह े महान ् हमालय के द ण म
समाना तर प से फैला ह, िजसक चौड़ाई 60 से 80 कमी. तथा ऊँचाई मु यत: 1000 से
3000 के म य ह तथा अ धकतम ऊँचाई 4500 मीटर तक पायी जाती है । यहाँ क मु य
े णयां मे पीरपंजाल, धौलाधर उ लेखनीय है । इस दे श मे ि थत पवत ढाल पर घास के मैदान
ह, िजनमे गुलमग, सोनमग, खलनमग, टनमग स घास के मैदान है । लघु हमालय मे
ि थत पवत े णय पर शमला, चकराता, नैनीताल, रानीखेत, मसूर आ द पयटन नगर बसे हु ए
ह । इस दे श के पि चमी भाग म क मीर घाट तथा पूव म य भाग मे काठमांडू क घाट
ि थत है ।
(द) शवा लक: इसे उप हमालय या बा ा हमालय भी कहते ह, ये हमालय के द णी भाग
ह । इस े म ज मू क पहा ड़य से लेकर वखं डत खृं ला म नेपाल म धां ग, ड डवा तथा
अ णाचल दे श म डफला, म र अभोर आ द पहा ड़याँ सि म लत है ।
इस े म व तृत धा टयाँ भी ि थत ह, िज ह पि चम म दून तथा पूव म वार कहते
ह । इनम दे हरादून, ह र वार वशेष उ लेखनीय है ।
(1) हमालय का ादे शक वभाजन
यह हमालय का अनु थ वग करण नाम से भी जाना जाता है । सडनी बुराड ने नद
घा टय के आधार पर हमालय का ादे शक वग करण तु त कया ह, िजसक पूव सीमा
मपु नद तथा पि चमी सीमा संधु नद वारा नधा रत होती है । इ होन क मीर से असम
तक हमालय को 4 ादे शक ख ड म वभ त कया है, जो न न है -
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(स) नेपाल हमालय: हमालय का यह भाग पि चम म काल नद से लेकर पूव म त ता
नद के म य 800 कमी. क ल बाई म व तृत है । हमालय क 8000 मीटर से
अ धक ऊँची चो टयां इसी भाग म ि थत ह, उनम माउ ट एवरे ट, कंचनजगा, मकालू
धौला गर , मनसालू अ नपूणा मु य ह ।
(द) असम हमालय : इसका व तार त ता नद से दहंग ( मपु ) नद तक 720 कमी.
ल बाई म सि कम से अ णाचल दे श रा य म व तृत ह । यहां क पवत े णय मे
चोमोलहाट , कु लाकाग डी, आका, दफला, म र, अमोर, आ द मु य ह ।
पूवाचल क पवत े णय म मु य प से मेघालय मे गारो, खासी, जयं तयाँ, तथा
नागालै ड, म णपुर, पुरा क े णय मे मसमी, पटकोई व लु साई उ लेखनीय ह ।
बोध न : 3
1. भारत म 3 00 मीटर से कम ऊँ चाई वाले भू भाग कु ल े का तशत है :
(अ) 33 तशत (ब) 43 तशत
(स) 53 तशत (द) 23 तशत
2. भारत म 1200 मीटर से अ धक ऊँ चाई वाले भू भाग कु ल े का तशत है :
(अ) लगभग 29.3 तशत (ब) लगभग 3 0. 3 तशत
(स) लगभग 31. 3 तशत (द) लगभग 32.3 तशत
3. क मीर से अ णाचल दे श तक हमालय कु ल ल बाई म चापाकार आकृ त म
फै ल ह , वह है :
(अ) 23 00 कमी ल बाई म (ब) 24 00 कमी. ल बाई म
(स) 25 00 कमी ल बाई म (द) 2200 कमी. ल बाई म
4. हमालय पवत े णय क ओर सबसे बा य भाग भाग का नाम न न म से
ह:-
(अ) कु मायू ं हमालय (ब) ने पाल हमालय
(स) ां स हमालय (द) लघु हमालय
5. के 2 पवत शखर क ऊँ चाई ह
(अ) 8411 मीटर (ब) 85 1 1 मीटर
(स) 66 1 1 मीटर (द) 87 11 मीटर
6. पि चम म सतलज व पू व म काल संध के म य ि थत हमालय का ादे शक
वग करण का नाम ह:
(अ) पं जाब हमालय (ब) कु मायू ं हमालय
(स) ने पाल हमालय (द) असम हमालय
असम हमालय के ादे शक वग करण हे तु इसक पू व एवं पि चमी सीमाओं पर
वा हत होने वाल जो न दयाँ ह , वे ह
(अ) संधु व सतलज (ब) सतलज व काल
(स) काल व त ता (द) त ता एवं मपु
हमालय क उ प त
19
हमालय क उ प त 65-70 म लयन वष पूव पुरानी मानी गई ह । काब नीफेरस काल
(35 म लयन वष पूव ) म हमालय के थान पर एक टे थीजसागर नामक भूस न त थी, िजसके
उ तर म अंगारा लै ड एवं द ण म गौ डवाना लै ड भू ख ड अवि थत थे । कालांतर म टे थीज
सागर म तलछट न ेपण होता गया । त प चात ् मेसोजोइक युग के अं तम चरण म तथा
के य जोइक युग के ारं भक काल म गौ डवाना लै ड के उ तर क ओर खसकने से टैथीज सागर
म न े पत अवसाद म स पीडन से हमालय का उदव ट शयर काल म हु आ । हमालय क
उ पत क या इयोसीन, मायोसीन, लायोसीन, काल तक अनवरत जार रह । व वानो का
मत ह क वतमान म भी हमालय ऊँचा हो रहा है ।
लेट ववत नक के अनुसार हमालय का उ थान भारतीय लेट के यूरे शयन लेट से
टकराव के कारण पांच चरण म स प न हु आ । इस मतानुसार हमालय का थम उ थान
टे शयस पूव इयोसीन युग म ादे शक काया तरण हु आ, वतीय उ थान इयोसीन युग म
टै थीज सागर म हु आ, तृतीय उ थान म य मायोसीन युग म लघु हमालय म वृहद चलन के प
म था, चौथा उ थान लायोसीन- ल टोसीन युग म हमालय पद य भाग म ऊ थान के साथ
मु य सीमा श
ं क उ प त हु ई तथा पांचवा ग थान ल टोसीन युग म हमालय अवसानकाल म
हु आ ।
हमालय का मह व
भारत क भू आक रक म हमालय का अपना अ वतीय थान व व श ट मह व ह यथा
1. हमालय भारत क जलवायु को नयं त फरता ह उ तर से आने वाल ठं डी हवाओं को
रोककर दे श म उ च ताप बनाये रखन म योगदान दे ता ह, रगथ ह मानसू नी
आ तायु त पवन को रोककर वषा करने म अहम कु मइका अदा करता ह ।
2. हमालय अनेक हम न दय का उ गम ोत ह, गंगौ ी व यमु नो ी से मश: गंगा व
यमु ना न दयाँ ज म लेती ह । इ ह ं न दय से उ तर भारत के मैदान म जलाशतइr
होती ह ।
3. हमालय े म सघन वन व धास के मैषान भी पाये जाते ह
4. ये व य जीव क आ य थल , फलो यान, वभ न कार के पु प, जड़ी बू टय ,
ाकृ तक चारागाह उपल य कराते ह ।
5. हमालय े म ल नाइट, पे ो लयम, तांबा, सीसा आ द अनेक कार के ख नज ा त
होते ह ।
6. इस े म अनेक पयटन वार यवधक थल ि थत ह यथा पहलगाम, गुलमग , ीनगर,
धमशाला, शमला, सोलन, अ मोड़ा, मसू र , रानीखेत, दे हरादून आ द ।
7. यहाँ ब नाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, ह र वार आ द तीथ थल ि थत ह ।
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1. ि थ त एवं व तार : उ तर भारत का मैदान हमालय पवत एवं द णी ाय वीप के
म य अवि थत ह । रावी-सतलज के कनार से लेकर गंगा नद के मु हाने तक 2400 क.मी.
ल बाई म व तृत ह , िजसक चौड़ाई अ धकांशत: 250 से 350 कलोमीटर ह कं तु सबसे संक ण
प म असम घाट म 90 से 100 क.मी.तथा बंगाल म अ धकतम 400 क.मी., चौड़ा है ।
इसका कुल े फल 7.77 लाख दवग क.मी.है िजसमे संध का मैदान, पंजाब ह रयाणा का
मैखाना राज थान का म थल, गंगा यमु ना का मैदान व असम क मपु क घाट सि म लत
है।
2. जलोढ़क न ेप क गहराई : यह मैदान उ तर म हमालय तथा द ण मे ाय वीपीय
भारत से आने वाल न दय वारा लाये गये जलोढ़क पदाथ के न ेपण से न मत हु आ है ।
अत: यह एक व श ट अ भवृ क के प मे ह , जहाँ जलोढ़ के जमाव 2000 मीटर क गहराई
तक मलते ह, पि चमी भाग म तलछट का भराव सापे क प से कम गहरा है ।
3. ढाल व ऊँचाई : यह मैदान समतल एवं धीमे ढाल क वशेषताओ से यु त है । इस
मैदान का औसत ढाल 25 सेमी. त क.मी.से भी कम है । यह मैदान औसतन समु तल से
200-300 मीटर ऊँचा ह । मैदान का ढाल समु के नकट म ी तलछट जमाव से इतना कम
हो जाता है न दय म म ी भार वहन करने क शि त ीण हो जाती है । प रणामत: नद
अनेक धाराओं म वभ त हो जाती है, बीच-बीच म डे टा दे श म रे त के ट ले न े पत हो जाते
ह ।
4. उप वभाग : उ तर भारत के वशाल मैदान भी उ चावच भ नताओं तथा कछार -तलछट
के भ न वभाव व कृ त के आधार पर इसे न न उप वभाग म वभािजत कया जा सकता
है-
(अ) भाबर: सतलज से त ता नद तक 8 से 16 क.मी. चौड़ाई म व तृत पवतपद य मैदान
को भाबर कहते ह । शवा लक के ढाल पर तेज ग त से वा हत नद के साथ कंकड़, रे त बजर
आ द यहाँ न े पत हो जाते ह । चू ं क ये न ेप काफ पारग य होते ह अत: छोट -छोट
स रताय ी म ऋतु म यहाँ भू मगत हो जाती ह, बड़ी न दय म अ धक जल वाह से सतह पर
वा हत दखाई दे ती है ।
(ब) तराई : यह े भाबर के लगभग द ण म समाना तर प से 15 से 30 क.मी.चौड़ाई
म व तृत ह जहाँ भाबर े म भू मगत हु ई न दय पुन: धरातल पर कट होती ह तथा चू ं क
यहाँ न दय का नि चत वाह माग नह ं होने से जल फैल जाता है अत: यह दलदल भू व प
बन जाता है । भाबर क तु लना म यहाँ तलछट न ेप बार क कण को दे खा जाता है। यहां वन
का अ छा व तार ह, फलत: व य जीव ज तु भी पाये जाते ।
(स) बांगर: उ तर भारत म न दय के तट से दूर उ चभाग पर पुराने कछार तलछट न ेप
को बांगर कहते ह । यहाँ क म ी म चू ना, कंकड़-प थर न े पत हो जाते ह । अब यहाँ न दय
क बाढ का पानी नह , पहु ंचता है । यहां बाढ़कृ त मैदान के ऊपर जलोड़क वे दकाय बनी हु ई
दे खी जाती ह । बांगर म य -त मलने वाले बालू के ढे र को भू ड़ कहते ह ।
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(द) खादर : नद तट के नकट ये नवीन काँप के ऐसे मैदान ह जहाँ तवष बाढ़ के पानी
वारा म ी का नवीनीकरण होता रहता ह । फलत: म ी क उवरता बनी रहती ह । ये पंजाब,
उ तर दे श, बहार तथा बंगाल म अ धक ह । उ तर दे श म इ ह खादर तथा पंजाब म बेट कहते
ह ।
उ तर मैदान का ादे शक वभाजन
उ चावचीय वशेषताओं के आधार पर इस मैदान को न न भाग म वभ त कया जाता
ह :-
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5. मपु का मैदान : हमालय पवत तथा मेघालय पठार के बीच ि थत संक ण प ी म
व तृत इस मैदान क मु य नद मपु है । यह मैदान 720 क.मी.ल बा तथा 80
क.मी. चौड़ा है ।
6. राज थान का मैदान : यह एक शु क व अ शु क रे तीला म थल य मैदान ह जो अरावल
पवत के पि चम म भारत-पाक सीमा तक 644 क.मी.ल बाई व 661 क.मी.चौड़ाई म
व तृत है । यह राज थान के थार म थल के नाम से जाना जाता है , जहाँ बालु का तु प
पाये जाते ह ।
मैदान क उ पत : हमालय पवत मालाओं के उ थान प चात ् पवतीय भाग के पदतल पर
इओसीन काल म वशाल खडु का नमाण हु आ । यह खडु पवत म तथा व यन- कैमू र पवत
के म य समु वारा आवृत था । कालांतर म भौग भक हलचल से इस जल य खडु का अवसान
होता गया । इओसीन काल म समु के मश: सकु ड़त जाने से उ तर पि चमी वा हत न दय
वारा आसाम से पंजाब तक वा हत होता रहा । व भ न भौग भक हलचल से काला तर म
उ तर पि चमी जल वाह म प रवतन होने से न दय को पुनजीवन मलने से तलछट भराव
होता रहा तथा काला तर म वृह खडु भरने से भारत के उ तर मैदान का नमाण हु आ ।
23
3. यह द ण म ऊँचा है तथा उ तर पूव क ओर अपे ाकृ त नीचा होता गया है । यहाँ पर
पूव म यह औसतन 760 मीटर ऊँचा है व अ धक कटा-फटा है ।
4. पि चमी भाग पर अरब सागर के समाना तर पवतीय द वार को पि चमी घाट कहते ह
इस घाट म तीन दर ह । उ तर म थाल घाट व भोर घाट तथा द ण-पि चम म पाल घाट है ।
इन दर से रे लमाग गुजरते ह ।
5. पठार के पूव भाग पर महानद , गोदावर , कृ णा, कावेर आ द न दयाँ तट य डे टा
बनाकर समु म गरती है ।
ाय वीपीय पठार क मह वपूण पवत े णयाँ
इस पठार े के उ तर सरे पर पूव-पि चम व तार वाले पवत तथा शेष उ तर-द ण
व तार वाले पवतीय भू भाग इसके पि चमी व पूव भाग पर फैले हु ए ह । ये पवत अनावृ तकरण
क याओं के फल व प काफ अपर दत हो गये ह तथा अव श ट पवत के प म दखाई दे त
ह ।
अरावल पवत ेणी: भारत के पवत म अरावल सवा धक ाचीनतम ह । ये े णयाँ गुजरात से
द ल तक लगभग 800 क.मी.क ल बाई म फैल ह । ये े णयाँ औसतन 200 से 600 मीटर
तक ऊँची ह । इनम सव च शखर आबू पवत पर गु शखर है । अरावल ेणी जल वभाजक
के प म मलती ह । इस ेणी से नकलकर पि चम क ओर माह व लू नी न दयाँ अरबसागर
म गरती ह तथा पूव क ओर बनास जो चंबल क सहायक ह, यमु ना नद म मलकर बंगाल क
खाड़ी म गरती ह ।
वं याचल कैमू र पवत खृं ला : पि चम म गुजरात से ार भ होकर भारत के म यवत भाग पर
मालवा के पठार के द ण म बघेलख ड तक 760 से 1220 मीटर ऊँचाई म फैल वं याचल
पवत ह । ये े णयाँ मु यत: बलु ई, चू ना प थर व वाटजाइट च ान से न मत ह । पूव क
ओर वं याचल पवत ेणी एक ढ़ कगार के प म पायी जाती ह । यह ेणी एक (जल
वभाजक के प म गंगा के वाह दे श को नमदा-ता ती तथा महानद के वाह दे श से अलग
करते हु ए उ तर भारत को द ण भारत से अलग करती ह । कैमू र े णयाँ बघेलख ड और
बु दे लख ड क सीमा पर व तृत ह ।
सतपुड़ा : नमदा ओर ता ती न दय के म यवत व तृत दे श अनेक समाना तर े णय से धरा
हु आ है, ये े णयाँ सतपुड़ा क ह िजनक ल बाई 1120 क.मी.ह, ये पि चम म पि चमी घाट से
राजपीपला पहा ड़य से होती हु ई महादे व, मैकाल क पहा ड़य के प म छोटा नागपुर पठार तक
फैले हु ए ह । सतपुड़ा क औसत ऊँचाई 760 मीटर ह, धू पगढ़ (1350 मी.), पंचमढ़ (1334
मी.), व अमरकंटक (1066 मी.) मु ख चो टयाँ है ।
पि चमी घाट क पहा ड़याँ: यह पवत खृं ला द णी पठार के पि चमी-उ तर से द ण दशा मे
पि चमी तट के समाना तर कु मार अंतर प तक 1600 क.मी.ल बाई म फैल हु ए ह । अरब
सागर क ओर से कगार स श है । जब क पूव म इनका ढाल कम है ।
उ तर मे ये 50 क .मी.चौड़े ह जब क द ण म इनक चौड़ाई 80 क.मी.है । इनक
औसत ऊँचाई 1200 मीटर ह, क तु द ण म ये 2600 मी. से अ धक ऊँचे ह । अ नैमलाई म
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अनैमद (2700 मीटर), नील गर क पहा ड़य म दोदाबेटा (2636 मी.) यहाँ क स पवत
शखर है ।
उ तर म पि चमी घाट के उ तर भाग क ताि त नद से गोआ तक फैला है, उसे उ तर
सहया नाम से जाना जाता है । यहां महाबले वर (1438 मी.) एक स पयटन थल है ।
द ण सहया े म अ य पयटन थल म नील गर क तलहट म उटकमंड, पालनी
क पहा ड़य म कोडाईकनाल ि थत है ।
पूव घाट क पहा ड़याँ : पूव घाट ाय वीप के पूव भाग पर समु तट के समाना तर लगभग
1300 क.मी.ल बाई म फैला हु आ ह । ये पि चमी घाट क भां त सतत ् अ वि छ न खृं ला के
प म नह ं ह, महानद गोदावर , कृ णा, कावेर न दय ने इसे कई टु कड़ म काट कर वभ त
कर दया है । इसक औसत ऊँचाई 615 मीटर तथा उ तर म चौड़ाई लगभग 200 क.मी. व
द ण म लगभग 100 क.मी.है । उ तर भाग म गंजाम म महे गर शखर (1501 मीटर)
कोरापुत म नमै गर (1516 मीटर), द ण म शवैराय (1650 मीटर) मु ख पवत शखर है ।
पूव घाट क पहा ड़याँ घस- घस कर अपरदन वारा अ व श ट प म प रव तत हो गई ह ।
ाय वीप के म यवत मु ख पठार
ाय वीपीय पठार दे श लाख वष से नर तर मौसमी याओं तथा अपरदन शि तय
के भाव से अनेक छोटे -छोटे पठार म वभािजत हो गया है । इन पठार म मु य ह - म य दे श
म मालवा, वा लयर, बु दे लख ड, बघेलख ड के पठार, छ तीसगढ़ और ब तर के पठार,
झारख ड रा य म छोटा नागपुर का पठार, उड़ीसा म कोरापुर पठार, महारा रा य म महारा
पठार, गुजरात म सौरा पठार, कनाटक का माल द पठार, त मलनाडु म कोय बटू र व मदुरे का
पठार मु य है । मेघालय रा य म ि थत पठार भी ाय वीपीय पठार का ह भाग माना जाता है,
यह पूवकाल म सतत ् प से ाय वीप से जु ड़ा हु ाअ था कं तु बाद म अधो ंशन से पृथक हो गया
। यह 240 क.मी. ल बा व 96 क.मी.चौड़ा 11000 मीटर ऊँचा कटा-फटा पठार है ।
इनम दकन का पठार महारा , म य दे श, गुजरात, कनाटक व आ दे श के पठार
सि म लत होते ह, छोटा नागपुर का पठार क मु य नद दामोदर नद है । इस पठार क उ तर
सीमा राजमहल व पारसनाथ क पहा ड़याँ बनाती ह, सोन नद उ तर पि चमी सीमा बनाती है,
महानद द णी सीमा, सु वण रे खा नद इसके द णी पूव भाग म बहती ह, ख नज क ि ट से
यह पठार अ यंत समृ है । यहां बॉ साइट , अ क, कोयला, तांबा, वाटज, ोमाइट आ द
ख नज पया त मा ा म मलते ह ।
भारत का ाय वीपीय पठार यहाँ वा हत होने वाल न दय यथा महानद , गोदावर ,
कृ णा, दामोदर, सोन आ द के अपरदन से कई उप वभाग म वभ त हो गया है ।
ाय वीपीय पठार क मह वपूण ंश घा टयाँ : ाय वीपीय पठार के भू ग भक इ तहास के दौरान
कई ववतनकार हलचल वारा श
ं घा टय का नमाण हु आ ह । व वान के मतानुसार ट शयर
युग के पहले हमालय उ थान के पूव सहया पवत के पि चमी घाट का पि चमी ढाल ती है ।
25
हमालय उ थान काल न समय भी ाय वीपीय भाग पर ंश पड़ने से नमदा व ता ती
न दय का वाह उ त ंश म नधा रत हु आ । इनम नमदा नद घाट ंश सवा धक मह वपूण
ह ।
नमदा श
ं घाट के उ तर म वं याचल तथा द ण म सतपुड़ा पवत ि थत है । इस
नद घाट क कुल ल बाई 1312 क.मी.है । इसम अपवाह े का वृहद भाग म य दे श म
पड़ता है, शेष गुजरात व महारा रा य म बहु त कम भाग है ।
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6. लैगन
ू के ट ब को जब नहर वारा तट के पृ ठ भाग से जोड़ दया जाता है, पृ ठ जल (बैक
वॉटर) बन जाते ह, मालाबार तट पर पृ ठ जल के य दे खे जाते ह ।
7. मालाबार तट पर उथला जलम न मैदान भी है, िजसे समु लहर ने काटकर बचनुमा बना
दया ह ।
8. पूव तट य े जो कृ णा नद के उ तर म गंगा के डे टा तक का भाग काक नाड़ा गोलकु डा
तट नाम से जाना जाता है । कृ णा नद के द ण से कुमार अंतर प का भाग कोर म डल
तट नाम से जाना जाता है ।
9. पूव तट पर अनेक सु दर लैगन
ू झील क उपि थ त दे खी जाती ह । इनम महानद डे टा के
द ण म च का झील िजसक ल बाई 75 क.मी.है, आ दे श के समु तट य भाग पर
पुल कट नामक एक अ य भ य लैगन
ू झील है िजसे ी ह रकोटा नामक वीप समूह समु
से अलग कये हु ए है । मालाबार तट पर संकरे, कं तु ल बे लैगन
ू को कयाल कहते ह ।
10. तट रे खा पर कटान, खा ड़याँ कम होने से अ छे ाकृ तक पोता य कम है । पूव तट पर
वशाखाप नम, मछल प नम ् समु प नम ह अ छे ाकृ तक पोता य के प म वक सत
हु ए ह, जब क पि चमी तट पर मु बई, पणजी, मंगलूर , कोचीन अ छे ब दरगाह वक सत
हु ए ह ।
11. पूव तट पर जलम न घा टयाँ है । इनके ढाल क टबंध महा वीपीय जलम न तट बना रहे ह।
बोध न : 4
1. पु रानी तलछट न े प जहां नद बाढ़ का पानी न पहु ँ चे, वह िजस नाम से जाना
जाता है , वह ह :
(अ) तराई (ब) बां ग र
(स) खादर (द) भाबर
2. भारत का ाचीनतम भू - व प ह
(अ) हमालय (ब) तट य मै दान
(स) द ण का पठार (द) थार का म थल
3. भारत के ाय वीपीय पठार का े फल ह
(अ) लगभग 15 लाख वग क.मी. (ब) लगभग 16 लाख वग क.मी..
(स) लगभग 15.5 लाख वग क.मी. (द) लगभग 16.6 लाख वग क.मी.
4. नील ग र पवत क मु ख चोट का नाम ह
(अ) अमरकं टक (ब) दोदाबे टा
(स) पचमढ़ (द) महे गर
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1. तट के समीपवत वीप: तट के समीप कई छोटे -छोटे वीप वक सत हु ए ह ।
का ठयावाड़ समु तट के कनारे पीरम व भैसला वीप, ख भात क खाड़ी म द व
वीप, क छ क खाड़ी म ि थत वेद, परटान क मार व नोरा वीप तथा नमदा व
ता ती न दय के मु हान के नकट आ लया वेट तथा ख डया वे काँप से न मत छोटे -छोटे
वीप है ।
मु बई के नकट समु े म कई वीप ि थत है । मु बई वयं सालसेट नामक वीप
पर बसा हु आ है । इसके नकट ह हैनरे, कैनरे , बुचर , अरनाल व पयटन थल एल फै टा वीप
ि थत है । मंगलूर के उ तर म भटकल, जननाक वीप अवि थत ह ।
2. तट से दूरवत वीप : भारत के पि चमी तट से लगभग 200 से 300 क.मी.दूर
अरबसागर म 29 वग क.मी. े पर व तृत 25 वीप के समूह-ल वीप समू ह
ि थत ह । इस समू ह म 3 वीप वशेष उ लेखनीय ह । 1 ल क (ल वीप), 2.
अमीनी वीप, 3. मनीकाय वीप । ये सभी वीप मु यत: वाल भि तय से न मत
है । व वान के मतानुसार ये वीप पूववत जलम न अरावल पवत ेणी के ह
अव श ट भाग ह िजन पर वाल भि तयाँ वक सत हो गई है ।
(ब) बंगाल क खाड़ी के वीप
1. तट के समीपवत वीप : बंगाल क खाड़ी मे न दय के मुहान समीप काँप से न मत
कई वीप पाये जाते है । इनम हु गल नद के मुहाने के सामने वीप, महानद के डे टा
े समीप शोट वीप, मु हाने पर हवीलर वीप मु य ह । कु छ च ानी वीप भी पाये
जाते ह उनम च का झील समीप मांडला वीप, ने लोर के नकट ी ह रकोटा मु य है
। तु तीको रन समीप वाल न मत हे यर वीप, म नार क खाड़ी म ो ोडाइल कोटा,
अंडा व पामवन वीप आ द च ानी वीप है ।
2. तट से दूरवत वीप : बंगाल क खाड़ी म लगभग 590 क.मी.ल बाई म, लगभग 58
क.मी.चौड़ाई से व तृत 222 वीप का समू ह चापाकार प म मु य भू म से लगभग
1400 क.मी.पूव म अ डमान नकोबार वीप समूह ि थत है । पोट लेयर यहाँ क
राजधानी है । इस वीप समू ह क ट शयर काल म न मत हमालय के पूवाचल ेणी
का ह एक भाग माना जाता है । ये अराकानयोमा के ह सामु क जलम न पवतीय
व तार ह । अ डमान वीप समू ह म मु य अ डमान (उ तर , म य, द णी,
अ डमान) व लघु अ डमान वीप समू ह म वभ त ह ।
बोध न : 5
का ठयावाड़ तट का व तार न न म से िजन े के म य है , वह ह.
(अ) सू रत से गोआ तक (ब) क छ से सू रत तक
(स) मु बई से सू रत तक (द) मु बई से गोआ तक
पि चमी तट के द ण भाग का नाम न न म से ह.
(अ) गोलकु डा तट (ब) उ तर सरकार
(स) मालाबार तट (द) कोरोम डल तट
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गोलकु डा तट न न म से िजन े के म य ह , वह ह :
(अ) कृ णा नद डे टा से गं गा नद डे टा तक
(ब) कृ णा नद डे टा से कु मार अं त र प तक
(स) सू रत से गोवा तक
(द) मं ग लू र से कु मार अं त रप तक
पु ल कट झील भारत के िजस रा य से स बि धत ह वह ह :
(अ) आं ध दे श (ब) त मलनाडु
(स) उड़ीसा (द) पि चमी बं गाल
भारत के पि चमी समु तट के िजस भाग पर लै गू न का पयाय कयाल नाम से
स है , वह ह
(अ) मालाबार तट (ब) कनाटक तट
(स) का ठयावड़ तट (द) क कण तट
अ डमान वीप समू ह तथा नकोबार वीप समू ह क वभाजक रे खा का नाम
बातइये ।
(अ) 7 ड ी चै न ल (ब) 8 ड ी चै न ल
(स) 9 ड ी चै न ल (द) 10 ड ी चै न ल
नकोबार वीप समू ह 10 ड ी चैनल वारा अ डमान वीप समू ह से अलग है । इसम
उ तर समू ह कार नकोबार तथा द ण भाग महान नकोबार कहलाता है।
29
1.4.1 भारत म नद अपवाह तं का वकास
30
मेघना, भागीरथी, हु गल , आ द अनेक उपभाग मे वभ त हो जाती है । यह गुि फत अपवाह
त प के उदाहरण है ।
7. पूववत अपवाह त प: हमालय दे श क संध,ु मपु , गंगा व अ य न दयाँ
हमालय ज म के पूव त बत व इ डो म ( शवा लक) नामक ाचीन न दय के प म
व यमान थी । इ ह ने हमालय के उ थान के साथ-साथ अपने वाह माग को पूववत थान पर
ह बनाय रखकर हजार फ ट महाख ड का नमाण कया है । इन न दय ने ऊपर भाग म
उ थान के व संधष कया ह । अत: ये पूववत अपवाह त प के अ वतीय उदाहरण है ।
8. पूवारो पत (अ यारो पत) अपवाह त प : इस वग म द णी ाय वीपीय भारत क
न दय के अपवाह तं सि म लत होत ह य क इन न दय ने च ानी संरचना के व संधष
कया है, पठार के ऊपर नचल परत क च ानी संरचना म भ नता होने के बावजू द
ाय वीपीय न दय वारा अपना वाह तं उसी माग पर बनाये रखे हु ए ह ।
भू-वै ा नक के मत म वण रे खा, दामोदर, च बल आ द न दयाँ अ यारो पत अपवाह णाल क
तीक है
9. अ तः थल य अपवाह त प : भारत म राज थान के थार म थल म घ घर,
पनारायण, मेढ़ा आ द न दयाँ कसी समु म नह ं गरती ह । ये न दयाँ अ तः थल य अपवाह
त प का नमाण करती. ह । सं ेप म भारत म जल वाह णाल के दोन प अनुवत
(धरातल य ढाल का अनुसरण करने वाल ) तथा अनुवत (धरातल के ढाल के अनु प नह ं , पूववत
व अ यारो पत) अपवाह णाल के प म वा हत होती है ।
भारत क मु ख न दयाँ
भारतं क न दय को मु य प से दो वग - उ तर भारत क न दयाँ व द णी भारत
क न दयाँ म वभ त कया जाता है ।
1. उ तर भारत क न दयाँ : उ तर भारत क अ धकांश मुख न दयाँ हमालय पवत म
ि थत हमनद एवं झील से ज म लेने के कारण वष वा हनी होती है, जो न न ह :
1. संधु नद म : यह व व के वृह अपवाह तं म से एक ह । इस अपवाह तं के
अंतगत संध, झेलम, चनाव, रावी, सतलज, यास मुख न दयाँ है ।
संधु नद का उ गम थल त बत म ि थत मानसरोवर झील का समीपवत भाग -
कैलाश हमानी ह जो समु तल से 5 हजार मीटर ऊँचाई से नकलकठ ल ाख ेणी के सहारे
वा हत होती हु ई नंगा पवत के नकट मोड़ बनाती हु ई द ण पि चम दशा म मु ड़कर भारत
पा क तान म बहती हु ई अरब सागर म गरती ह इस नद क कु ल ल बाई 3890 क.मी.ह ।
भारत म यह 1114 क.मी.ल बाई म बहती ह ।
इसम आकर. मलने वाल छोट -छोट न दय ( गल गत, यांग, योक काबुल नद ) के
अ त र त पांच बड़ी न दयाँ - झेलम (400 क.मी.) चनाव (1180 क.मी.) रावी (25 क.मी)
यास (615 क.मी.) एवं सतलज (470 क.मी.) मु य ह । ये सभी हमालय क बफ ल चो टय
से नकलती ह । इन न दय का वाह े लगभग 12 लाख वग क.मी. है, िजसका 3/4. भाग
31
पा क तान के अंतगत अवि थत है । संधु व इसक पांच न दय का अपवाह पंचनद े
ऐ तहा सक भारतीय पौरा णक वै दक सं कृ त का जनक थल भी रहा है ।
2. माह , साबरमती एवं लू नी अपवाह म : ये न दयाँ क छ क खाड़ी व ख भात क खाड़ी
म गरने वाल न दयाँ. है माह नद : माह नद का उ गम े वं यन क पहा ड़याँ ह इसक
सहायक न दयाँ सोम तथा जाखम, अरावल के द णी भाग से पेनाम तथा बनास वं यन क
पहा ड़य से ज म लेती ह । माह नद मालवा पठार के धार, झाबुआ, राज थान के डू ग
ं रपुर
त प चात गुजरात म वेशकर गोधरा, बड़ोदरा िजल क सीमा बनाते हु ए ख भात क खाड़ी मे
गर जाती है । इस नद क कुल ल बाई 583 क.मी. है ।
साबरमती: यह नद भी राज थान म द णी अरावल दे श म उदयपुर के सीमावत े
से ज म लेती है । इस नद क ल बाई 583 क.मी.है । अ य सहायक न दयाँ हाथमती, मं बा,
मजाम आ द डू ग
ं रपुर पहाड़ी से नकलकर साबरमती म मलती ह तथा गुजरात म बहती हु ई
ख भात क खाड़ी म गर जाती है ।
लू नी: इस नद क ल बाई 450 क.मी.है । इस नद का ज म थल अजमेर के समीप
अरावल क पहा ड़याँ ह तथा अरावल के समाना तर बहती, अ म थल य े से गुजरती हु ई,
गुजरात तट पर क छ क खाड़ी म गरती है । यह केवल वषा काल म ह वा हत होती है ।
3. नमदा व ता ती अपवाह म
नमदा: इस नद का उ गम मैकाल पवत क 1057 मीटर ऊँची अमरकंटक चोट ह, इस
नद क कुल ल बाई 1312 क.मी.व वाह े 98.8 हजार वग क.मी.ह जो अरब सागर म
गरने वाल ाय वीपीय भारत क सबसे बड़ी नद है । यह उ तर म वं ययन पवतमाला कगार
तथा द ण म सतपुड़ा पवत खृं ला के म य ि थत एक दरारघाट म पूव से पि चम दशा म
बहती ह । नमदा नद जबलपुर के नकट संगमरमर च ानी े पर धु आधार (क पल धारा) 9
मीटर ऊँचा जल पात का नमाण करती है तथा भड़ौच समीप ख भात क खाड़ी म गरती है ।
इसके कनारे पर अनेक धा मक थल वक सत हु ए ह और यह भारत क प व न दय म से
एक है ।
ता ती: इसका उतगम थल सतपुड़ा पवत म 760 मीटर ऊँचे मु ताई नामक थान
(बैतू ल िजला) है । इसक ल बाई 724 क.मी.तथा अपवाह े लगभग 65.15 हजार वग
क.मी.है । यह नमदा नद के समाना तर बहती हु ई सू रत नगर के समीप ख भात क खाड़ी म
अपने मु हाने से गर जाती है ।
4. पि चमी तट य नद म
भारत के पि चमी घाट से अनेक छोट छोट न दयाँ बफ ले शखर से अनुवत अपवाह प म
ज म लेती ह, जो एक दूसरे के समाना तर बहती हु ई अरब सागर म दुत वाह से गर जाती है
। इनम गुजरात तट क श ु जी (182 क.मी.) भादर (198 क.मी.) न दयाँ तथा उ तर क कण
क उ हास, वैतरणा, अि बका, सा व ी, वा शरथी एवं गोआ-उ तर कनाटक तट क का ल द ,
गंगावती-वेदती, सरावती और द ण कनाटक क नेभावती (िजस पर मंगलू र नगर बसा हु आ है)
मु य है ।
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इसके अ रि त मालाबार तट क मह वपूण न दय म पे रयार , वेपरु , भारतपुझा, प पा
आ द मु य है ।
1. गंगा अपवाह म:
यह भारत भू म के सबसे ठडे भूभाग पर वा हत होने वाला अपवाह तं है । इस नद
तं क सबसे मु ख नद गंगा है । इस नद तं का व तार 8.6 लाख वग क.मी. े पर
व तृत है । इस नद का ज म थल महान हमालय म उ तरकाशी नकट गंगो ी 7016 मी.
ऊँचाई पर ि थत है । ारंभ म गंगा नद क 2 शाखाय ह - भागीरथी एंव अलकन दा, िजनका
संगम दे व याग म होता है । इनम भागीरथी मु य ह । मंदा कनी तथा अलकन दा का संगम
याग म होता ह तथा अलकन दा तथा प डार का संगम कण याग म होता ह अलकन दा तथा
धौल का संगम व णु याग म होता है ।
ह र वार के बाद गंगा मैदानी भाग मे वा हत होती है। इसका गंगा नद नामकरण दे व याग म
भागीरथी - अनलन दा दोन के मलन ले प चात होता ह । गंगा नद क ल बाई 2510 क .मी.
है तथा हमालय े मे 4870 मीटर गहरे गाज का नमाण करती है ।
इस णाल म हमालय से आकर मलने वाल सहायक न दय म यमु ना, रामगंगा,
गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी मुख है तथा ाय: वीपीय पठार भाग से आने वाल सहायक
न दय म च बल, बेतवा, सोन, केन आ द मु य है ।
उ तरखंड, उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल म बहती हु ई बंगाल क खाडी म गरने से
पूव यह नद कई शाखाओं म वभ त हो जाती है यथा - भागीरथी, हु गल , माटला ह रघाटा,
ना डया, मलचा आ द । हु गल-मेघाना के म य 51.31 हजार वग क. मी. े पर व तृत डे टा
का नमाण करती ह, डे टा े म समु तट पर सघन वन आ छा दत ह, िज ह सु दर वन
कहते ह । इस डे टा े म छोट -छोट उपजलधाराओ के म य छोटे -छोटे वीप भी ि थत है ।
यह भारत क दय थल , दे वभू म, मानव स यता का पलना तथा आ द के , मानवता
क ाण पोषक तीथ थल जननी, मो दा यनी नद के प म पहचानी जाती है ।
अना दकाल म गंगा नद सभी भारतवा सय क आ था का के रह है व सदै व रहे गी ।
2. मपु अपवाह म
यह नद त बत म कैलाश पवत व
मानसरोवर झील के नकट ज म लेकर सापू (सां पो)
नाम धारण कर पि चम से पूव दशा म 1600
क.मी.क दूर वा हत होकर नमचा बरवा पवत के
नकट आसाम हमालय े म दहांग नाम धारण
कर वेश करती ह तथा अपनी सहायक दवांग नद
से मलकर स मपु नाम से अना दकाल से
भारतवा सय के लये सु प र चत तथा एक प व
नद है । मान च 1.12 भारत क न दयाँ
33
मपु क सहायक न दय म सु वग ग र, धन शर , मानस, स कोश, रै दाक त ता,
दवांग लो हत, द शू यमु ना, कोपल आ द मु य है ।
बांगलादे श म मपु को यमु ना नद कहते ह । सु रमा नद से मलने के बाद इसे
मेघना नद कहते ह, अंत म मेघना व पदमा (गंगा) नद मपु के नचले भाग म मलती है ।
इसका नचला वाह े बांगलादे श म अवि थत है ।
मपु नद क कु ल ल बाई 2900 क.मी. है । भारत म यह 916 क.मी.ल बाई म
बहती है तथा इसका कुल जल हण े 5,80,000 वग क.मी.से अ धक है, िजसम से भारत म
3,40 वग क.मी.है ।
3. महानद अपवाह म
महानद ाय वीप भाग क एक मु ख नद है, जो म य दे श के अमरकटक के द णी
भाग से ज म लेकर पूव, द ण मे वा हत होती हुई 890 क.मी.ल बाई युका छ तीसगढ़ व
उड़ीसा म वा हत होकर दसात डे टा का नमाण कर कटक के नकट बंगाल क खाड़ी म गरती
है ।
इस नह पर ह राकं ु ड , टकरपारा नराज व अ य बांध बनाये गये है ।
मपु , वैतरणी व वण नद अपवाह म
ा मणी नद (799 क.मी..), सु वण ( पण रे खा) रे खा (395 क.मी.), छोटा नागपुर
पठार के समीपवत े से ज म लेकर वैतरणी य झर से ज म लेकर वा हत होती हु ई बंगाल
क खाड़ी म गरती ह
गोदावर नद वाह तं
ाय वीपीय भारत क (1465 क.मी.ल बी) अपवाह े क ि ट से सबसे बड़ी नद
पि चमी घाट के समीप ना सक से 60 क.मी.दूर 1067 मीटर ऊँचाई वाले यवंक नामक थान
से ज म लेकर द ण पूव दशा म बहती हु ई अपनी सहायक - वेनगंगा, मजरा, पेनगंगा, वधा,
इ ावती आ द न दयो को साथ लेती हु ई बंगाल क खाडी म गरने से पूव वृह डे टा बनाती है ।
कृ णा नद अपवाह तं
कृ णा नद ाय वीपीय भारत क दूसर मु ख नद है । यह नद पि चमी घाट के
महाबले वर के नकट 1337 मीटर क ऊँचाई वाले थल से ज म लेकर 1401 क.मी.ल बाई म
द ण पूव दशा म वा हत होती हु ई बंगाल क खाड़ी म गरती ह । इसक मु ख न दय म -
तु ंगभ ा, कोयना, यरला, वणा, पंचगंगा, दूध गंगा, भीमा, घट भा आ द ह । कृ णा नद भी एक
वृह डे टा बनाती है । यह डे टा गोदावर नद ' वारा न मत डे टा से संल न है ।
कावेर नद अपवाह म
भारत म 'द ण क गंगा' के नाम से अलंकृ त 800 क.मी.ल बाई यु त इस नद का
ज म थल कनाटक रा य, के 1340 मीटर उ च कु ग पठार े ह तथा द ण पूव क ओर
कनाटक-त मलनाडु रा य म वा हत होती हु ई नचल घाट म 3100 क.मी.वृहद उपजाऊ डे टा
बनाती हु ई बंगाल क खाड़ी म गरती है । इसका डे टा 'द ण का उ यान' कहलाता है । इसक
मु ख सहायक न दय म हेमावती, लोकपावनी ल मणतीथ, सु वणवती, भवानी आ द ह । यह
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शवसमु म नामक स जल पात बनाती है । इस नद से संबं धत कई बहु उ श
े ीय प रयोजनाय
संचा लत ह ।
35
(अ) दे व याग (ब) याग
(स) कण याग (द) व णु याग
6. भारत म िजस नद को द ण क गं गा कहते ह , वह ह :-
(अ) नमदा नद (ब) गोदावर नद
(स) कृ णा नद (द) कावे र नद
6. हमालय ज नत न दयाँ जब कॉप जलौढू मैदानी भाग म वा हत होती ह तो वे वसपण
का नमाण करती ह, अमु ख े म अपना माग भी प रव तत करती ह, कं तु ाय वीपीय
न दयाँ अपनी तल य कठोर च ान व जलोढ़ क कमी से वसपण का नमाण नह ं कर पाती है ।
7. व तृत समतल मैदानी भाग म उ तर भारत क न दयाँ यातांबात क ि ट से अ धक
उपयोगी है, उनम वष भर या त जल रहता है, जब क ाय वीपीय न दयाँ पठार े म ती
वेग से बहन से तथा वे माग म अनेक जल ापत बनाती ह, तथा वषा काल के अ त र त न दय
म जल क कमी होने से कुछ न दयाँ सूख जाने से जल यातांबात के अ धक अनुकू ल नह ं ह ।
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10. अनुवत नद : धरातल के ढाल का अनुसरण करते हु ए वा हत होने
वाल स रता ।
11. अनुवत नद : धरातल के ढाल का अनुसरण नह ं करते हु ए वा हत
होने वाल स रता ।
12. अ यारो पत वाह णाल : ऊपर व नचल च ान परत म संरचना म भ नता
होते हु ए भी नद घाट का उसी थान पर वा हत होना
व घाट वक सत करना (नद का व भ न च ानी
संरचना के व संघष)
13. पूवारो पत वाह णाल : भू ख ड के कलेप के साथ-साथ नद वारा पूव माग पर
ह अपने धाट / वाह माग अपनाये रहना (नद का
उ थान के व संघष)
1.8 बोध न के उ तर
बोध न 1 का उ तर
1. (स) सातवाँ
2. (द) 2.4 लशत
3. (स) इं दरा पॉइंट
4. (स) 15200 कलोमीटर
5. 3214 क.मी.
बोध न 2 का उ तर
1. (स) 2/3 भाग पर
2. (अ) धारवाड़
3. (अ) आज से 60. करोड़ वष से 35 करोड़ वष पूव
4. (ब) 2500 मीटर से अ धक गहराई तक
5. (द) टि यर युग
बोध न 3 का उ तर
1. (ब) लगभग 43 तशत
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2. (अ) लगभग 29.3 तशत
3. (ब) 2400 क.मी.ल बाई म
4. (स) ांस हमालय
5. (स) 8611मी.
6. (ब) कुमायू ँ हमालय
7. (द) त ता व मपु न दय के म य भाग
बोध न 4 का उ तर
1. (स) बांगर
2. (स) द ण का पठार
3. (स) लगभग 16 लाख वग क.मी...
4. (ब) दोदाबेटा
बोध न 5 का उ तर
1. (ब) क छ से सू रत तक
2. (स) मालाबार तट
3. (अ) कृ णा नद डे टा से गंगा नद डे टा तक
4. (अ) आ दे श
5. (अ) मालाबार तट
6. (द) 10 ड ी चैनल
बोध न 6 था उ तर
1. (स) नमदा - ता ती नद
2. (अ) मदु नहो
3. (अ) अ त: थल य
4. (ब) मैकाल पवत क अमरकंटक चोट
5. (अ) दे व याग
6. (द) कावेर नद
1.9 अ यासाथ न
1. भू ग भक संरचना क ि ट -से भारत को व भ न भाग म वभ त क िजए तथा येक
का वणन क िजए ।
2. भारत को धरातल य वभाग म वभ त क िजए तथा हमालय क उ प त क या या
करते हु ए इसका भौगो लक व ादे शक वग करण का ववरण द िजए ।
3. भारत के उ तर मैदान क वशेषताओं का उ लेख. करते हु ए इसके ादे शक वभाजन
का ववरण द िजए ।
4. भारत के ाय वीपीय पठार क उ प त का वणन करते हु ए इसक मु ख भौगो लक
वशेषताओं व उ चावच का वणन क िजए ।
39
5. भारत के पूव तथा पि चमी समु तट य मैदान क वशेषताओं का उ लेख करते हु ए
उनम अंतर बताइये ।
6. अपवाह तं कसे केहते ह? भारत म नद अफवाह तं के वकास क या या करते हु ए
भारतीय न दय के वाह त प का उदाहरण स हत वणन क िजए ।
7. भारत म उ तर व द णी भारत क न दय क तु लना करते हु ए न दय के अपवाह तं
का वणन क िजए ।
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इकाई 2: जलवायु (Climate)
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 भारत क जलवायु क मु ख वशेषताएँ
2.2.1 जलवायु को भा वत करने वाले घटक
2.3 मानसू न क उ पि त एवं या- व ध संक पनाएँ
2.3.1 तापीय संक पनाएँ
2.3.2 ग या मक संक पनाएँ
2.3.3 अ भनव स ा त
2.3.3.1 जेट म
2.3.3.2 त बत का पठार
2.3.3.3 महासागर य रा शयाँ
2.4 मौसम क दशाएँ
2.4.1 शीत ऋतु
2.4.2 उ ण शु क ऋतु
2.4.3 आ ऋतु
2.4.4 लौटते हु ए मानसू न क ऋतु
2.5 वा षक वषा का वतरण
2.5.1 वषा क प रवतनशीलता-सू खा एवं बाढ़
2.6 जलवायवीय दे श
2.6.1 कोपेन का वग करण
2.6.2 थान वेट का वग करण
2.7 सारांश
2.8 श दावल
2.9 संदभ नथ
2.10 बोध न के उ तर
2.11 अ यासाथ न
1.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन से आप समझ सकगे :
भारत क जलवायु तथा मौसम क दशाएँ
जलवायु को भा वत करने वाले संघटक
मानसू न क उ पि त एवं या व ध
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वष क चार ऋतु ओं का वतरण तथा कृ त
मानसू नी जलवायु क वशेषताएँ
कोपेन तथा थान वेट वारा ता वत जलवायु वभाग
42
उ तर मैदान म गम लू के थपेड़े महसू स कए जाते ह क तु जू न माह के म य म सापे क
आ ता बढ़ने लगती है और जुलाई से सत बर माह के म य पूरे दे श म यापक वषा होती है ।
ाय: इस मौसम म वा षक वषा का 80% ा त होता है ।
7. म थल य भाग म वा षक वषा का औसत 25 सेमी से भी कम रहना और मेघालय के
मॉव सनराम थान पर सवा धक 1141 सेमी वा षक वषा का औसत दे श क जलवायु के एक
अ य ल ण को दशाती है ।
8. दे श के कसी न कसी े म उ ण आ , उ ण शु क, उपो ण, समशीतो ण और शीत
जलवायु का पाया जाना जलवायु व वधता क वशेषता है ।
9. पि चमी तट पर मु बई के नकट तापमान सम रहते ह, ले कन केरल तट पर मौसम
गम रहता है, जब क दस बर से फरवर तक क मीर म कड़ाके क सद पड़ती है ।
10. ी मकाल न वषा का आगमन और समापन भी भ न- भ न थान पर अलग-अलग
होता है । पि चमी समु तट तथा भारत के पूव भाग म मानसू न पहले आ जाता है, ले कन
उ तर-पि चम भारत म मानसू न क ती ा करनी पड़ती है ।
43
ए शया भू-ख ड पर उ प न होने वाले उ च वायुदाब तथा न न वायुदाब तथा उनके म य
वा हत होने वाल हवाओं का भाव पड़ता है ।
3. ह द महासागर से स ब ध: ह द महासागर क नकटता से भारत को उ ण मानसू नी
जलवायु क आदश दशाएँ ा त होती ह । समु जल के भाव के कारण तटवत े के
तापमान सम रहते ह, अथात ् तापा तर कम पाए जाते ह, जब क े ीय व तार क वशालता के
कारण भारत का आ त रक भाग इस भाव से वं चत रहता है । आ त रक भाग म महा वीपीय
जलवायु का प पाया जाता है । अत: थल य पवन क अ धकता होती है । यहाँ वायु शु क पाई
जाती है, दै नक ताप प रसर अ धक होता है और वषा क यूनता पाई जाती है ।
4. धरातल य व प: भारत क जलवायु पर यहाँ के पवत, पठार तथा मैदानी व प का
यापक भाव दखाई दे ता है । हमालय पवत े णयाँ अ य त ऊँची ह । इन भाग म ऊँचाई के
साथ तापमान घटते जाते ह और हमालय के अ य त ऊँचे भाग वष भर हमा छा दत रहते ह ।
ऊंचाई क व वधता तथा उसके साथ तापमान, आ ता, वषा आ द जलवाय वक दशाओं म
भ नता के कारण ह व भ न ऊँचाइय पर अलग-अलग कार क जलवायु पाई जाती ह ।
इसके अ त र त हमालय पवत ेणी एक ओर म य ए शया से आने वाल ठं डी हवाओं
को रोककर जलवायु को महा वीपीय प दान करती है तो दूसर ओर यह मानसू नी हवाओं को
रोककर उ ह भारत म वषा करने को बा य करती ह । हमालय पवत के भाव के कारण ह
स पूण मैदानी भाग ी म काल म अ य धक गम रहता है और ी मकाल के उ तरा म वषा
भी ा त करता है ।
5. वायुम डल य याओं का भाव :अ यतन अनुसध
ं ान दशाता है क भारतीय जलवायु
पर थानीय घटक के अ त र त भू म डल य (Global) वायुम डल क व भ न वशेषताओं का
भाव भी पड़ता है । जेट म एवं एल ननो भाव भारत क जलवायु दशाओं म अ तवाद
ि थ त लाते ह । इसका मु ख कारण भूम डल य तर पर वायुम डल क ऊपर परत म होने
वाला प रवतन है ।
बोध न :1
1. भारत क जलवायु को कोन से दो कारक जलवायवीय व श टता दान करते ह?
2. वषा क कोन सी कृ त भारत क कृ ष तथा अथ यव था पर तकू ल भाव
डालती है ?
3. शीत काल न वषा क अ प मा ा ह कहाँ और कन फसल के लए लाभदायक
है ?
4. भारत के कस थान पर वषा का सवा धक औसत रहता है ?
5. भारत को दो भागो मे बाटने वाल रे खा का तथा क टबंधीय े के नाम बताइये ।
6. ह द महासागर के नकटता भारत को कोण सो जलवायु दान करती है ?
44
2.3 भारतीय मानसू न क उ पि त एवं या- व ध (Origin and
Mechanism of Indian Monsoon)
2.3.1 तापीय संक पना (Thermal Concept)
45
6. ी मकाल न वषा न तो नय मत होती है और न ह समान प से वत रत । इसक
अ नय मत तथा अ नि चत कृ त दशाती है क मानसू नी वषा केवल मानसू नी पवन पर ह
नभर नह ं ह ।
46
यह वायुम डल के ऊपर तर म चलने वाल जेट पवन क ऋि वक भ नता एव प रवतन से
भी जु ड़ी हु ई ह । जेट हवाओं के ऋि वक प रवतन का गहरा भाव अ त: उ ण क टबंधीय
अ भसरण (inter-tropical convergence) के उ तर या द णी दशा म थाना तरण पर
पड़ता है जो मानसू न को भारत क और अ सर करने म एक मह वपूण भू मका नभाती है ।
धरातल के वायुम डल म वायुदाब क जो हय यव था पायी जाती है ठ क उसके वपर त
यव था वायुम डल के ऊपर भाग म पाई जाती है । जैसे- धरातल य वायुम डल म दो-तीन
क.मी. क ऊँचाई तक न न अ ांश के पास वायुदाब कम रहता है , क तु ऊँचे अ ांश क ओर
अ धक रहता है । इसके वपर त ऊपर वायुम डल म ु व पर वायुदाब कम तथा न न अ ांश
क ओर अ धक होता है । इस कारण उ तर तथा द णी दोन ु व पर न न वायुम डल य दाब
बहु त बड़े व तार म था पत रहता है । ु व पर वायुम डल कम होने के कारण वायु म घूमने
क एक ग त पाई जाती है । समताप म डल के न न तर (21 क.मी. ऊँचाई) पर शीत ऋतु म
ु वीय च वात के कारण सभी अ ांश पर पछुआ हवाएँ चलती ह । इसी कार 5.5 क.मी. क
ऊँचाई पर शीत ऋतु म ह 25° उ तर अ ांश म द ण पि चम च वातीय हवाएँ चलती ह,
क तु गम म म द ग त से पूव त-च वातीय हवाएँ चलती ह । वायुम डल के ऊपर भाग म
ि थत यह वायु- णाल धरातल क वायु णाल के वपर त है । धरातल के वायुम डल म
शीतऋतु म तच वात क ि थ त होती है और ी म ऋतु म च वातीय ि थ त होती है।
47
च 2.2 : ी मकाल न मानसू न
ी म ऋतु म ु व के ऊपर उ चदाब कमजोर पड़ जाता है और ऊपर वायुम डल य
प र ु वीय भंवर (circum polar whirl) उ तर क ओर खसक जाता है । प रणामत: ऊपर
वायुम डल य पछुआ जेट पवन भी हमालय के द णी ढाल से हटकर उ तर क ओर खसक
जाती ह । ये पछुआ जेट पवन जू न के थम स ताह के अ त तक हमालय के द णी ढाल से
अ य हो जाती ह तथा वषुवत रे खीय पछुआ जेट पवन भारतीय उपमहा वीप पर चलने लगती ह
। जेट म के त बत के पठार से उ तर क ओर खसकने से उपमहा वीप के उ तर तथा
उ तर-पि चम भाग के ऊपर मु त वायु के वाह के व का उ कमण (reversal) हो जाता है ।
इस च वातीय व के कारण उ तर ईरान तथा अफगा न तान के ऊपर एक ग या मक गत
(dynamic depression) बन जाता है । यह घटना एक कार से एक गर का काय करती
है, िजससे मानसून का व फोट (burst of monsoon) होता है।
48
ी मकाल म त बत के पठार के तपने से इस दे श म 500 मल बार क ऊँचाई पर
एक तापीय तच वात उ प न हो जाता है जो हमालय के द ण म ि थत पि चमी उपो ण
क टब धीय जेट म को कमजोर कर दे ता है, क तु इस तच वात के द ण क ओर उ ण
क टब धीय पूव जेट पैदा कर दे ता है । यह उ ण क टब धीय पूव जेट 80° पूव दे शा तर पर
वक सत होती है तथा ह द महासागर के ऊपर उ च दाब को शका को ती बनाती है, िजससे
द णी पि चमी मानसू न स य होता है ( च 2 .3) ।
49
क ऋतु का अ त कर दे ती ह । इस प रघटना ने सव थम 1972 म यान आक षत कया, जब
ल बे समय तक समु तट य जल के उ ण रहने पर पी का म यो पादन यवसाय ठ प हो
गया तथा भयंकर खा य संकट पैदा हो गया । इसी समय भारत म मानसू नी वषा कमजोर रह
तथा सहेल दे श (अ का) म सू खा पड़ा । ये पर पर दूर थ प रघटनाएँ एक सु नि चत लोबीय
त प के प म पर पर स बि धत लगती थी जो एल-नीनो से स बि धत थी । अब यह स
हो चु का है क एल/नीनो तथा द णी दोलन य प से भारतीय मानसू न से स बि धत ह ।
1987 तथा 2002 क एल नीनो के कारण भारत म अ प वषा क ऋतु अनुभव क गई ।
भारतीय मौसम सेवाओं के थम डायरे टर जनरल गलबट वाकर (Gilbert Walker)
ने सव थम 1924 म एल नीनो भाव का आंकलन कया था । उ ह ने यह खोज नकाला क
शा त महासागर म उ च दाब होने पर ह द महासागर म न न दाब होता है तथा शा त
महासागर म न न दाब होने पर ह द महासागर म उ च दाब वक सत होता है । उ ह ने इस
प रघटना को 'द ण दोलन' (Southern Oscilltion) नाम दया । लगभग चार दशक बाद,
बयकनीज (j.Bjerknes), एक डच मौसम व ने, द णी दोलन तथा एल नीनो म घ न ठ
स ब ध बतांबा ।
चू ं क वायुदाब तथा वषा का वपर त (Inverse) स बंध होता है, इससे ात होता है क
जब ह द महासागर म शीतकाल म न न दाब होते ह तो आगामी मानसू न वषा चुर मा ा म
होती है । द णी दोलन क ती ता (SOI) म य शा त महासागर तथा ह द महासागर म पोट
डा वन के सागर तल वायु दाब के अ तर वारा मापी जाती है । द णी दोलन सू चक (SOI) का
ऋणा मक मान उ तर ह द महासागर म उ चतर वायुदाब तथा दुबल मानसू न को सू चत करता
है । इस कार, एल नीनो के कट होने तथा द णी दोलन के ऋणा मक सूचक म घ न ठ
स बंध होता है । द णी दोलन सूचक क ऋणा मक ाव था तथा एल नीनो के कट करण को
(ENSO) प रघटना कहा जाता है ।
अत: प ट है क द णी पि चमी मानसू न न न ल खत मु ख कारक क अ त या
को प रल त करता है - (1) जेट म क ि थ त, (2) अ तरा-उ ण क टब धीय अ भसरण का
सार एवं संकुचन, (3) त बत के पठार के ऊ मन म अ तर, (4) शा त महासागर म उ ण
क टब धीय च वात क उ पि त तथा ग तशीलता एवं ENSO का यवहार ।
बोध न : 2
7. एडम ड हे ल नामक मौसम वद ने मानसू न क या व ध स बची कौन सी
सं क पना का तपादन कया है ?
8. पलोन के अनु सार मानसू न कन घटक का थाना तरण मा है ?
9. अ भनव सं क पना कन त य पर आधा रत है ?
10. कस जलवायवीय सं क पना के अनु सार शीतकाल म वायु दाब तथा पवन पे टयाँ
द ण क ओर थाना त रत हो जाया करती ह ?
50
2.4 भारतीय जलवायु क ऋि वक वशेषताएँ (Seasonal
Characteristics of Indian Climate) भारतीय मौसम वभाग
ने वष को चार व श ट ऋतु ओं म वभ त कया है -
1. शीत ऋतु (म य दस बर से म य माच तक)
2. उ ण शु क ऋतु (म य माच से मई के अ त तक)
3. आ ऋतु (जू न से सत बर तक)
4. लौटते हु ए मानसू न क ऋतु (अ टू बर से म य दस बर तक)
51
औसत दै नक यूनतम तापमान उ तर पि चम म 5°C से ाय वीप मे 24°C तक होता है ।
उ तर पि चम के मैदानी भाग म रा के तापमान कभी-कभी हमांक से नीचे गर जाया करते ह,
िजससे धरातल य कोहरा पैदा होता है । जनवर म ाय: उ तर मैदान म शीत लहर चलती है,
कैि पयन सागर तथा तु क तान से आने वाल ठ डी पवन शीतलता म वृ करती ह, िजससे
घना कोहरा एवं पाला पैदा होता है । इसके वपर त, ाय वीपीय पठार पर सु नि चत ठ डी ऋतु
का अनुभव नह ं होता ।
वषा: उ तर तथा कोरोम डल तट को छो कर स पूण दे श म शीत ऋतु सामा यत: शु क होती है
। उ तर भारत म भूम य सागर क ओर से ईरान तथा पा क तान होकर भारत म वेश करने
वाले पि चमी व ोभ से दस बर से फरवर के म य ह क वषा होती है । इन च वात के पथ
सामा यत: हमालय के सहारे ि थत होते ह । इन च वातीय गत क सं या 4-6 होती है ।
य य प इनसे अ प वषा होती है िजसक मा ा पूव क ओर घटती जाती है । फर भी, यह वषा
उ तर भारत म रबी क फसल के लए अ य धक लाभदायक होती ह ( च 2.5)
52
नव बर म वषा कराती ह । 90°E के पि चम म उ प न कुछ च वात भी तट क ओर बढ़ते हु ए
त मलनाडु के तट य मैदान म वषा कराते ह ।
53
उ प न होती है, ह द महासागर मे उ च दाब को शका को ती बना दे ती है जहाँ से द ण
पूव यापा रक पवने ाय वीपीय भारत क ओर द ण पि चमी मानसू न के प म खंच आती ह।
तापमान : मानसू न के व फोट के पूव मई-जू न म अ धकतम तापमान होते ह । जू न म
औसत दै नक अ धकतम तापमान जोधपुर तथा इलाहाबाद म 40°C, द ल म 39°C, पुणे तथा
तेजपुर मे 32°C, मामु गाओ म 31°C, को च तथा ीनगर म 29°C, तथा शमला मे 23°C
होते ह । मानसू न के आगमन पर ये तापमान 1-7°C घट जाते ह । जु लाई का औसत तापमान
राज थान, पंजाब, ह रयाणा तथा उ तर दे श म 30°C से अ धक तथा अ य उ तर मैदान एवं
ाय वीपीय भारत म 25-30°C के म य रहते ह । उ तर के पवतीय े के तापमान 20°C से
कम रहते ह ( च 2.6)
54
वषा : जू न के ार भ म द ण-पि चम मानसू न ह द महासागर क ओर से ाय वीप पर
पहु ँ चता है और लगभग एक माह के भीतर मानसू न स पूण दे श परब फैल जाता है तथा मेघ
गजन के साथ मानसू न वी फोट होता है । ायद प क धरातल य आकृ त के कारण मानसू न
पवन दो शाखाओं म बट जाती है -
1. अरब सागर य शाखा : द णी-पि चमी मानसू न केरल तट पर हार करके उ तर म
क कण क ओर बढ़ता है । पि चमी घाट (स या ) जो 1200 मीटर ऊँचे ह मानसू नी पवन के
समु ख पड़ते ह । पि चमी तट तथा स या के पि चमी ढाल पर पवतीय वषा होती है जो 250
सेमी से अ धक होती ह । घाट के वमु ख ढाल वृि ट छाया म पड़ने के कारण कम वषा (100
सेमी) ा त करते ह जो पूव क ओर मश: 50 सेमी तक घटती है । वषा क मा ा उ तर क
ओर भी घटती जाती है; पि चमी तट पर ि थत मंगलौर म 301 सेमी, र ना ग र म 253 सेमी,
मु बई म 183 सेमी तथा सूरत म 106 सेमी मा तक रह जाती है ।
अरब सागर य मानसू न क एक शाखा पि चमी घाट को पार कर नमदा घाट के सहारे
म य दे श तक पहु ंचती है । इस शाखा का उ तर भाग गुजरात तथा थार म थल होकर
हमाचल दे श तक पहु ंचता है । गुजरात तथा राज थान म वरल वषा ह होती है य क यहाँ
वषाकार पवन को रोकने के लए कोई पवत या पहाड़ी नह ं है । अरावल क नीची पहा ड़यां
मानसू न पवन क दशा के समाना तर ि थत होने के कारण कोई अवरोध उपि थत नह ं कर
पाती, अतएव ाय: वषा वह न रह जाती ह । ( च 2.7)
55
2. बंगाल क खाड़ी क शाखा : बगाल क खाड़ी का मानसू न लगभग 20 मई तक अ डमान
एवं नकोबार वीप पर सव थम द तक दे ता है तथा लगभग व जू न तक पुरा एवं मजोरम
पहु ंचता है । इसक एक शाखा पि चम क ओर मु ड़कर असम धाट म वेश कर मेघालय क
ं ी (1087 सेमी) तथा मौ सनराम (1141 सेमी)
खासी पहा ड़य म भार वषा करती है । चेरापूज
भारत म अ धकतम वषा ा त करने वाले थान ह । मेघालय क व श ट क पाकार (funnel
shaped) ि थ त तथा 1525 मीटर ऊँची पहा ड़य से घरे रहने के कारण इस दे श म भार
वषा होती है । इन पहा ड़य के उ तर म ि थत शलॉग म मा 143 सेमी वषा होती है, जब क
गुवाहाट म 161 सेमी वषा होती है । मानसू न आगे बढ़कर गंगा घाट म वेश करता है तथा
पंजाब तक पहु ंचता है । वषा क मा ा मश: पि चम क ओर घटती जाती है । कोलकाता म
119 सेमी, पटना म 105 सेमी, इलाहाबाद म 91 सेमी, द ल म 56 सेमी तथा बीकानेर म
24 सेमी वषा होती है । हमालय के ढाल पर भी वषा क मा ा पि चम क ओर घटती जाती ह
- दाज लंग म 250 सेमी, मसू र म 206 सेमी तथा शमला म 122 सेमी वषा होती है ।
हमालय के ढाल से गंगा के मैदान म उतरते हु ए भी वषा क मा ा म कमी दज होती है ।
नैनीताल म 206 सेमी, बरे ल म 81 सेमी तथा आगरा म मा 75 सेमी वषा हो पाती है ।
पि चम क ओर वा त वक वषा के दन क सं या भी घटती जाती है ।
आ मानसू नी ऋतु का मौसम तथा वषा बंगाल क खाड़ी तथा अरब सागर पर बनने
वाले च वातीय गत से भी भा वत होते ह । मानसू न काल म ऐरने 20-25 च वातीय गत
उ प न होते है, िजनम से कुछ . तटवत े म रहने वाले लोग के जीवन तथा स पि त को
बहु त हा न पहु ंचाते ह । लाख है टे यर े म खड़ी फसल भी न ट हो जाती ह तथा लाख लोग
बेघरबार हो जाया करते ह ।
56
वषा : इस ऋतु म उ तर पूव पवन सामा यत: शु क होती ह तथा नव बर म सापे क
आ ता कम रहती है - जयपुर म 48%नागपुर म 59%, हैदराबाद म 68%, मु बई म
73% त वन तपुर 87% तथा चे नई म 83%रहती है । लौटते मानसू न से त मलनाडु के तटवत
े म कु छ वषा होती है, जब ये मानसू नी पवन बंगाल क खाड़ी को पार करते समय कु छ नमी
ा त कर लेती ह । वनाशकार च वात से भी त मलनाडु के तट य े म वषा होती है, िजससे
लोग के जीवन तथा स पि त को बहु त हा न होती है ।
57
2. यून वषा (30-60 सेमी): ये अ शु क े ह जो तीन भाग म वभ त ह - (1) ज मू
एवं क मीर मे दे वसाई पवत तथा जा कर ेणी स हत एक संक ण पवतीय पेट , (2) पंजाब-
ह रयाणा मैदान , म यवत राज थान तथा पि चमी गुजरात म व तृत एक च ाकार पेट तथा
(3) पि चमी घाट के पूव म ि थत एक संक ण पेट जो। महारा के पठार, कनाटक तथा
द णी पूव आं दे श के पि चमी भाग से होकर गुजरती
3. म यम वषा (60-100 सेमी) यह एक ल बी पेट है जो उ तर पंजाब से लेकर द ण म
क याकुमार तक व तृत है तथा यून वषा के कु छ े वारा वि छ न होती है । इसके
अ तगत क मीर घाट , उ तर दे श का द णी भाग, पूव राज थान, म य दे श, पूव गुजरात ,
महारा के पठार का अ धकांश भाग, कनाटक का पठार. द णी आं दे श तथा त मलनाडु के
आ त रक भाग सि म लत ह ।
4. उ च वषा (100-200 सेमी) : दे श म उ च वषा के चार े ह जो पर पर पृथक ह - (i)
पि चमी घाट तथा नमदा के द ण म गुजरात का तट य मैदान , (ii) ज मू क पहा ड़याँ, द ण
हमाचल दे श, उ तराखंड, उ तर दे श, बहार, पि चमी बगाल के उ तर मैदान, उड़ीसा,
म यवत म य दे श, छ तीसगढ़, पूव महारा तथा उ तर आं दे श सि म लत प से एक
उ च वषा का वशालतम े बनाते ह, (iii) त मलनाडु क द ण पूव तट य संकर पेट तथा
(iv) असम क म यवत एवं नचल घाट , म कर पहा ड़याँ, म णपुर एवं पुरा ।
5. अ यु च वषा (200 सेमी से अ धक): इस दे श म दो े सि म लत कए जाते ह -
(1) सलवासा से त वन तपुरम तक एक ल बी व संकर पेट , पि चमी घाट के पि चमी ढाल
तथा संल न तट य मैदान एवं (2) दाज लंग एवं बंगाल दुआर, मेघालय, असम क ऊपर घाट
तथा अ णाचल दे श ।
58
म थल े म 80% तक बढ़ जाती है । इसके वपर त, पि चमी तट, उप हमालय पेट ,
सि कम, अ णाचल दे श तथा उ तर पूव के पहाड़ी े यथा नागालै ड, म णपुर तथा मजोरम
म 15% से कम प रवतनशीलता मलती है । ाय वीपीय पठार के आ त रक भाग तथा पि चम
बंगाल एवं उड़ीसा से उ तर तथा पि चम क ओर प रवतनशीलता म वृ होती है । महारा ,
आं दे श तथा कनाटक के आ त रक भाग 30% तक उ च प रवतनशीलता । दज करते ह ।
वषा क प रवतनशीलता से वषा क कमी तथा अ धकता क दोहर सम याएँ पैदा होती ह जो
मश: सूखा (drought) तथा बाढ़ के प म ि टगोचर होती है । '
59
राज थान म इि दरा गांधी नहर प रयोजना तथा गुजरात म नमदा नद पर सरदार सरोवर बांध
प रयोजना सूखे के भाव को कम करने म लाभदायक स हु ई है । ( च 2.11)
च 2.10 : सू खा वण े
2. पि चमी घाट के वृि टछाया दे श : पि चमी घाट क पहा ड़य के पूव का भाग वृि ट
छाया दे श कहलाता है । अरब सागर य मानसू नी हवाएँ सहया पहा ड़य के पि चम क ओर
अ धक वषा करने के बाद जब इस भाग पर पहु ंचती ह तब उनम वषा करने क मता ीण हो
जाती है । प रणामत: यहां अ य त कम वषा हो पाती है और यह भाग ाय: सूखा त रह
जाता है । इस दे श का व तार जलगांव (महारा ) से च तू र (आ दे श) तक व तृत 300
क.मी. चौड़ी व तृत पेट म पाया जाता है ।
3. अ य े : इसके अ त र त भारत के लगभग एक लाख वग क.मी. े म सू खा त
े बखरे हु ए पाए जाते ह । इनम कालाहा डी (उड़ीसा), पु लया (प. बंगाल), मजापुर पठार
(उ तर दे श), पलामू (झारख ड), कोय बटू र तथा त नेलवल (त मलनादडु आ द उ लेखनीय ह।
आधु नक समय म प रवहन एवं संचार के साधन के व तार तथा संचाई सु वधाओं के
वकास ने सू खे तथा अकाल क ती णता को कम ज र कया है, क तु फर भी इनका दे श क
अथ यव था तथा जन-जीवन पर तकू ल भाव पड़ता है ।
2. बाढ़े (floods) : मानसू नी वषा ाय: तेज धाराओं के प म आती ह, िजससे न दय म
बाढ़ आ जाती ह । इसके अ त र त नवीनीकरण, दोषपूण भू-उपयोग, बाढ़ मैदान म अ नयोिजत
बि तयां, ाकृ तक अपवाह म बाधा आ द मानवीय कारक भी बाढ़ के संकट म वृ करते ह ।
बाढ़ का लगभग 25 म लयन हे टे यर े बाढ़ वण (flood prone) है िजसम 7.4 म लयन
हे टे यर े त वष बाढ़ त होता है । 3.1 म लयन हे टे यर े कृ ष के अ तगत है । ऐसा
60
अनुमान है क बाढ़ से होने वाल कु ल त का 60 तशत नद क बाढ़ से होता है तथा शेष
40 तशत च वात तथा वषा से । हमालय के पवत पद य बे सन म दो तहाई त बाढ़ से
होती है । उ तर दे श सवा धक बाढ़ त रा य है जहाँ 33 तशत त दज होती है । बहार
(27 तशत), पंजाब एवं ह रयाणा (15 तशत) बाढ़ वारा त त अ य रा य ह ।
मपु वनाशकार बाढ़ के कारण असम का शोक कहलाती है । दामोदर, कोसी, ग डक घाघरा,
रामगंगा, गंगा तथा यमु ना भी वृहत े को बाढ़ त करती है ।
पूव तथा पि चमी तट के तटवत े भी ाय: उ ण क टब धीय च वात से भा वत
होते ह िजनसे आकि मक बाढ़े आती ह तथा जन-स पि त क हा न होती है । उड़ीसा, आ दे श
तथा त मलनाडु च वात के शकार होते ह ।
रा य बाढ़ नय ण काय म व 1954 म ार भ कया गया । इसके तीन चरण ह -
(i) ता का लक, (ii) लघु अव ध तथा (iii) द घ अव ध । 1976 म सरकार ने बाढ़ के नय ण
एवं ब धन के लंए रा य बाढ़ आयोग का गठन कया है । के य बाढ़ भ व ये ण संगठन
(Central Flood Forecasting Organisation) दे श भर म बाढ़ को मो नटर करता है तथा
चेतावनी भी जार करता है । इस संगठन के दे श भर म नौ के ह जो सू रत, भड़ौच, वाराणसी
ब सर, पटना, गुवाहाट , लखनऊ, द ल तथा गांधीनगर म ि थत ह ।
च : बाढ़ त े
61
2.6 जलवायवीय दे श (Climatic Regions)
अनेक व वान ने भारत को जलवायवीय दे श म बांटने के यास कये ह । इनम
कोपेन (1931-1936) तथा थान वेटट (1933-1948) के वभाजन उ लेखनीय ह ( च 2.13)।
62
7. Dfc (शीतल आ शीत ऋतु कार). इस दे श म शीत ऋतु अ धक ठ डी रहती है ।
इसम उ णतम मास का तापमान 2200 से नीचे तथा शीतलतम मास का तापमान
1000 के आसपास रहता है । इसम सि कम, असम के कुछ भाग तथा अ णाचल
दे श सि म लत ह ।
8. E( ु वीय या पवतीय कार) : इस जलवायु म उ णतम माह का तापमान 10°C से कम
रहता है । ज मु क मीर तथा हमाचल दे श म यह जलवायु मलती है ।
9. ET (टु ा कार) : इस जलवायु म उ णतम मास का तापमान शू य से 10°C के बीच
रहता है । यह जलवायु उ तराखंड के उ तर पवतीय े म पायी जाती है ।
63
1- AA’r - यह वभाग अ धक आ जलवायु का सूचक है िजसम वष पय त ऊँचे तापमान
तथा आ ता पायी जाती है । यहाँ PE/TE सू चक 128 से अ धक, उ च तापमान, भार वषा
तथा उ ण क टब धीय वषा वन पाये जाते ह । इसका व तार पि चमी घाट के सहारे , एक
संक ण पेट म, पुरा एवं मजोरम म मलता है ।
2- BA’w - यह जलवायु उ ण क टब धीय नम (wet) कार क है िजसम शीतकाल म
नमी कम होती है तथा ग मय म वषा होती है । PE128 से अ धक तथा TE 64-127 रहता है
। यह जलवायु पि चमी घाट तथा पि चम बंगाल के पूव भाग म मलती है ।
3- BB’w - यह समशीतो ण क टब धीय आ जलवायु है िजसम शीतकाल म नमी कम
रहती है । PE/TE अनुपात 64-127 रहते ह । यह जलवायु मेघालय, असम, नागालै ड तथा
म णपुर म पायी जाती है ।
4- CA’w - यह उ ण क टब धीय उपा जलवायु है िजसम शीतकाल शु क रहता है और
ी मकाल म वषा होती है । वषण भा वत (PE अनुपात) 32-63 तथा तापीय द ता (TE
अनुपात) 128 से अ धक पाया जाता है । इस जलवायु का व तार अ धकांश ाय वीपीय भारत
तथा गंगा के मैदान के द णी भाग म मलता है ।
5- CB’w - यह उपो ण क टब धीय तथा उपा जलवायु है िजसम शीत ऋतु म वषा क
कमी रहती है । इसका वषण भा वत (PE अनुपात) 32-63 तथा (TE अनुपात) 64-127 रहता
है । यह जलवायु गंगा, मपु के मैदान के व तृत भाग म मलती है
64
6- DA’w - यह उ ण क टब धीय अ शु क जलवायु है जहाँ शीतकाल शु क रहता है ।
इसका वषण भा वत (pe अनुपात) 16-31 तथा तापीय द ता (TE अनुपात) 128 से अ धक
होता है । यह जलवायु क छ तथा द णी पूव राज थान म मलती है ।
7- DB'w - यह शीतो ण क टब धीय अ शु क जलवायु है िजसका वषण भा वत (PE
अनुपात) 16-31 तापीय द ता (Te अनुपात) 64-127 तथा शीतकाल शु क रहता है । इसके
अ तगत उ तर पि चमी राज थान, पंजाब तथा द णी पि चमी ह रयाणा सि म लत ह ।
65
17. कोपे न वारा तपा दत जलवायवीय वभाग कन मौसमी करको पर आधा रत
है ?
2.9 स दभ ध (References)
एस.सी. बंसल : भारत का भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ, 2004
अलका गौतम : भारत का वृह भू गोल, शारदा पु तक भवन, इलाहबाद, 2007,
पी.आर. चौहान एवं : भारत का व तृत भू गोल, र तोगी काशन, मेरठ, 2007
महातम साद :
बी.पी राव. : भारत - एक भौगो लक समी ा, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2007
R.C.Tiwari : Geography of India, Prayag Pustak Bhawan,
Allahbad, 2003
R.L. Singh (ed.) : India _A Regional Geography, NGSI, Varansi, 1971
66
2.10 बोध न के उ तर
1. मौसम क लयब ता (Rhythm) तथा पवन क दशा का उ मण (reversal)
2. अ नय मतता तथा अ नि चतता
3. उ तर भारत म रबी क तथा त मलनाडु म चावल क फसल
4. मेघालब के मौ नसराम थान पर
5. कक रे खा - उ तषी े उपो ण का टब ध तथा द णी े उ ण क टब ध े
6. उ ण मानसू नी जलवायु
7. तापीय संक पना (thermal concept)
8. वायुदाब पे टय तथा ह य पवन का मौसमी थाना तरण
9. जेट म, त बत के पठार तथा महासागर य रा शय
10. ग या मक संक पना (dynamic concept)
11. चार व श ट ऋतु ओ;ं शीत, उ ण-शु क, आ तथा लौटते मानसू न क ऋतु
12. जेट म
13. अरब सागर य तथा बंगाल क खाड़ी क शाखा
14. तच वातीय दशाएँ
15. सू खा तथा बाढ़
16. तापमान और वषा
2.11 अ यासाथ न
1. भारत क जलवायु क वशेषताओं तथा उसका भा वत करने वाले संघटक का वणन
क िजए ।
2. भरतीय मानसू न क उ पि त तथा या- व ध (mechanism) क ववेचना क िजए ।
3. भारत क जलवायु क ऋि वक वशेषताओं क ववेचना क िजए ।
4. कोपेन तथा थान वेट वारा तपा दत भारत के जलवायु दे श को स च दशाइये ।
5. भारत म वषा क प रवतशीलता तथा उसके दु प रणामो क ववेचना क िजए ।
6. 'भारतीय वषा समय व थान दोन म अ नि चत है । प ट क िजए ।
67
इकाई 3 : म ी, ाकृ तक वन प त एवम ् वन- वतरण,
(Soil, Natural vegetation and Forest)
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 म य के कार
3.3 म य का वतरण
3.4 म य क सम याएँ
3.5 म य का संर ण
3.6 वन प त एवं वन
3.7 वन के कार
3.8 वन का वतरण
3.9 वन क सम याएँ
3.10 वन का संर ण
3.11 सारांश'
3.12 श दावल
3.13 स दभ थ
3.14 बोध न के उ तर
3.15 अ यासाथ न
3.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे.
मृदा , वन प त एवं वन
भारत म म य का वतरण
रा म म य क सम याएँ
म य का व धवत संर ण
भारत म वन प त एवं वन का वतरण
भारत मे वन क सम याएँ
दे श म वन का व धथत संर ण
68
भ नताओं का मूल आधार च ान क कृ त, जलवायु, पशु-प ी, क ड़ -मकोड़ , मानव का भाव,
ाकृ तक वन प त इ या द से है ।
उपरो त सभी घटक का य एवं परो भाव एक-दूसरे पर पड़ता है । इसके
अ त र त म य के नमाण म च ान का वख डन एवं यीकरण मु ख कारण है । च ान के
वख डन का मूल आधार तापमान क असमानता , वषा, वायु इ या द है िजनसे म ी छोटे -छोटे
कण म प रव तत हो जाती है । यह म ी को पुन: वषा वायु के कारण एक थान से दूसरे थान
पर वा हत कर दे ती है ।
भारत म म य का वै ा नक व प म यवि थत अ ययन व भ न व वान वारा
समय-समय पर तुत कया गया है जो म य के कार , वतरण एवं संरचना मक आयाम
पर पूण काश डालते है । भारत क म य पर मूलभूत प से ारि भक अ ययन वॉलेकर
(Volekar) महोदय वारा 1893 ई. म तथा लेदर (Leather) महोदय वारा 1898 म तु त
कया गया । इसी कार से 1921 म े प महोदय तथा 1932 म सी वै ा नक ीमती
कोक सकाया (Zjschokalskaya) ने वन प त, च ान एवं जलवायु को आधार मान कर
म य के वतरण का मान च तु त करने का साथक यास कया है । इसी कार से 1936
म चैि पयन महोदय ने भी वन का वग करण करते समय म य का अ ययन तु त कया था
। इसी म म भारतीय व वान का योगदान भी अमू य माना जाता है । भारतीय व वान ने
म य के अ ययन म धरातल य व प, भू-त व इ या द को आधार मानकर व तृत अ ययन
तु त कया है । डी. डी.एन. वा डया एवं उनके सहयो गय ने 1935 म भू- व व ान के आधार
पर दे श क म य का मान च तैयार कया । 1937 म बसु महोदय ने यह था पत कया क
भारत के व भ न दे श म उस वशेष कार क भ नताएँ पाई गयी है । 1944 म व वनाथ
एवं उनके साथी उ कल ने भारतवष क म य को अलग-अलग जलवायु दे श म वग कृ त कया
। डॉ. एम.एस. कृ णनन एवं डॉ. एस.पी. चटज का योगदान भी अभू तपूव है । इसी कड़ी म
1954 म डी. एसपी. राय चौधर तथा मु खज ने म ी के नमाण म भू-त व, जलवायु एवं
वन प त के भाव का अ ययन कर स पूण रा ो 16 वृह तथा 106 लघु म ी दे श मे
वभािजत कया ।
69
(2) रग : भारत वष क म याँ मू लतः चार कार के रग क मानी जाती है जो उसके
भौ तक फप क प रचायक है जैसे - लाल, काशी, पील एवं भू र कार इ या द ।
(3) उ पादक मता : कसान या लगान अ धका रय वारा म ी क उवरता को आधार मान
कर भी. मृदा का वग करण कया गया है जो उसक उ पादक मता को दशाता है जैसे -
अ धक उपजाऊ म ी
उपजाऊ म ी
कम उपजाऊ म ी
अनुपजाऊ म ी
(4) भू-त वीय गुण :
म ी म पाई जाने वाल च ान , उसके अवशेष इ या द के आधार पर भारत क म याँ
मू लत: पाँच कार क मानी जाती है
ाचीन रवेदार एवं प रव तत च ान से न मत लाल एवं पील म याँ
कु ड पा एवं वं यन कम क च ान से न मत बार क बलु ई एवं ार य म याँ
ग डवाना काल क च ान से बनी रवेदार अनुपजाऊ म याँ
ड कन े प क लावा च ान से बनी काल उपजाऊ म याँ
टर शयर काल व नवीन च ान से न मत म याँ जैसे - खादर, बाँगर,
डे टाई कांप, लेटेराईट एवं म थल म ी इ या द ।
(5) कृ ष अनुसध
ं ान का वग करण :
ं ान सं थान, नई द ल
भारतीय कृ ष अनुसध वारा भारत क म य को न न वग मे
वभािजत कया - (मान च 3.1)
न दय वारा लाई गई म ी
नद वारा लाई गई ख नजीय लवणयु त म ी
न दय वारा लाई गई तट य दे श क बलु ई म ी
नद क तलहट क पुरानी म ी
डे टा दे श क लवणमय म ी
तराई क म ी
दलदल मदट
चू नायु त मदट
गहर काल म ी
म यकाल म ी
म त म ी (काल + लाल)
कम गहर चकनी म ी
लाल म ी
लाल बलु ई म ी
लाल दोमट एवं बलु ई म ी
कंकर ल म ी
70
पवतीय म ी
पीट म ी
रे तील म ी
71
जाते है । उ तराखंड के नैनीताल, मसूर , चकरोता के समीपवत भू-भाग म इसी कार क म ी
पाई जाती है ।
(ब) आ नेय म याँ (Inneous soil): हमालय पवत े ीय भाग म डायोराईट और ेनाइट
नामक आ नेय च ाने पाई जाती है िजससे आ नेय म य का नमाण हु आ है । इन म य म
चु र खेती होती ह य क इसम नमी बनाए रखने क मता होती है ।
(स) टर शयर म ी (Tertiary soil): हमालय के घाट े म एक त हु ई कम गहराई क
म ी इसी कार क है । क मीर एवं दून घाट म इस कार क म ी मु य प से पाई जाती है
जो काफ उपजाऊ भी ह एवं इसक मु य फसल चाय, चावल, आलू इ या द है ।
(द) चाय म ी - हमालय पवतीय े के म यवत भाग म पाई जाने वाल यह म ी िजसम
वन प त अंश तथा लोहे क मा ा क अ धकता तथा चू ने क मा ा कम होती है । इसे चाय क
म ी के नाम से भी जाना जाता है य क यह चाय उ पादन के लए सव े ठ मानी जाती है ।
इस कार क म ी क चुरता असम रा य के पहाड़ी ढलान , उ तर बंगाल के दािज लंग,
दे हरादून तथा कांगड़ा े म पाई जाती है ।
(य) पथर ल म ी: हमालय पवत के द णी भू-भाग म इसक अ धकता पाई जाती है । इस
कार क म ी म कंकड़-प थर के टु कड़े िजसके कण मोटे होते है । पवतीय ढलान के नचले
भाग म चुरता होती है ।
(2) दलदल म याँ (Marshy soils) :
(3) समु तट य एवं कांप े म न दय एवं झील के सूखने, वहाँ क वन प त के सड़ने,
गलने इ या द से दलदल म ी का नमाण होता है । इस म ी म लोहे एवं जीवा म का अंश
होता है िजसके फल व प इसका रं ग नीला हो जाता है । भारतवष म इस कार क म याँ
त मलनाडु रा य क द णी-पूव समु य तट, उड़ीसा के समु तट य े एवं पि चमी बंगाल के
सु दरवन एवं म यवत बहार के भू-भाग म पाई जाती है ।
(4) पीट म याँ (Peat soil) :
इस कार क म ी का नमाण वन प त के सडने से होता है । इसका बाहु य - आ
दे श म है । जै वक साम ी का अ धक मा ा म इक ा होना ह इन म य के बनने का मु य
कारण है । इस । म ी मे - उ चत मा ा म घुलनशील नमक भी पाया जाता है । यह म ी ार य
होने के साथ- साथ एवं काले रं ग क होती है । वषा क समाि त के तु र त बाद इसम धान क
खेती क जाती है । भारत मे 'इस कार क म ी त मलनाडु एवं केरल रा यो म पाई जाती है ।
(5) नमक न म याँ एवं अ य :
उ तर भारत के वशाल मैदानी भाग म उपर सतह पर सफेद पत जमा हो जाती है
िजसके फल व प भू म क उ पादक मता यूनतम हो जाती है । इसे ऊसर या क लर भी
कहते है । इस कार क म ी म सो डयम मै नी शयम लवण एवं कैि शयम क मा ा अ धक
होती है । इस म ी म नमक क मा ा इस लए अ धक होती है क बहते हु ए पानी म नमक
घुलकर नचले भाग म पहु ँच जाता है । नचल परत के यादा पानी सोखने तथा उपर परत पर
भी नमक न पानी से सीधा स पक हो जाता है । जब गम के मौसम म वा पीकरण ती होने
लगता है तब नीचे क सतह का पानी उपर आने लगता है । इस म म पानी तो भाप बन कर
72
उड़ जाता है पर तु उसके साथ घुलकर आए हु ए नमक क तह म ी के उपर जम जाती है । इस
जमे हु ए सफेद पदाथ को रे ह (Reh) नाम से भी जाना जाता है । इसम सो डयम काब नेट,
लोराइड, स फेट, कैि शयम तथा मै नी शयम लवण के त व पाये जाते है । इस कार क म ी
म नमक क मा ा न न ोत से धीरे -धीरे जमा होती रहती है
1. हमालय से नकलने वाल न दयाँ अपने साथ नमक न ख नज त व बहाकर लाती है, जो
धीरे -धीरे म ी म जमा होता रहता है ।
2. द ण-पि चम मानसू न क वायु जब क छ के रण से गुजरती है तब अपने साथ नमक के
कण उड़ा कर लाती है, जो वषा के जल म घुलकर कम ऊँचाई वाले े म जमा हो जाते है
।
3. समु तट य भाग म वार के समय सागर का नमक न जल नकटवत भू म म फैल जाता है
इस लए दलदल े म नमक न म ी क अ धकता दे खी जाती है ।
वन म य का नमाण वन े म पाए जाने वाले जै वक त व के जमा होने के
फल व प होता है । इस कार क म ी मे वन प त का अंश अ धक होता है । इसका रं ग भू रा
होता है य क इसम ह के अ ल य तथा गहरे अ ल य त व पाये जाते है ।
म थल य म याँ भारतवष के पि चमो तर े , द णी ह रयाणा, पि चमी राज थान
एवं उ तर गुजरात रा य के भू-भाग म थल य े है । इस े म वषा बहु त कम होती है,
तेज वायु आ धय वारा म ी एक थान से दूसरे थान पर जमा होती रहती ह िजसे रे तीले
ट ल के नाम से जाना जाता है । यह भू-भाग थार के रे ग तान के नाम से भी स है । इस
म ी म ख नज नमक (शी घुलनशील) अ धक मा ा म पाया जाता है । म थल य म ी े
म कह -ं कह ं पर पानी क पया त मा ा पाई जाती है जहाँ पर संचाई से खेती क जाती है । इन
भाग म लगभग हर वष अकाल क ि थ त बनी रहती है तथा इस े क म ी अनुपजाऊ होती
है ।
बोध न : 1
1. रं ग के आधार पर भारत क म याँ मू ल त: कतने कार क ह ?
2. भारत म कस कार क म ी के कण अ य त सू म होते ह ?
3. भारत के द कन े प क लावा च ान से बनी म ी का रं ग कै सा है ?
4. भारत क म य म पाये जाने वाले च ान के अवशे ष के आधार पर म याँ
कतने कार क है ?
5. उ तराखं ड के नै नीताल एवं मसू र े मे कस कार क म ी पायी जाती है ?
73
(1) बंजर भू म क सम या (Problem of Wasteland)
(2) म भू म व तार क सम या (Problem of desert land)
(3) भू म अपरदन क सम या (Soil erosion)
(4) ार य भू म क सम या (Problem of alkaline soil)
(5) जल स ती क सम या (Problem of Water logging)
(6) कृ ष भू म के वकास हे तु अप हण क सम या (Problem of Agricultural land
grabbing for development)
(7) भू-शोषण क सम या. (Problem of land exploitation)
(1) बंजर भू म क सम या (Problem of Wasteland)
भारतवष म म य क मुख सम याओं म तवष होने वाल सैकड़ है टे यर भू म का
बंजर होना चतादायक है सरकार ने इस सम या के समाधान हे तु बंज र भू म बंधन बोड का
गठन कया है । इसका मु यालय नई द ल म है तथा इस संदभ म शोध एवं अनुसध
ं ान जार
है जो सम या के समाधान म सहायक स होगा ।
(2) म भू म व तार क सम या (Problem of desert land)
भारत के पि चमो तर भाग म जो क उ तर के मैदान का अ भ न अंग है, को थार के
रे ग तान के नाम से भी जाना जाता है । यह भू-भाग भारत एवं पा क तान के संयु त रे ग तान
का े है । भारत के पि चमो तर भाग का रे ग तान उ तरोतर द णी ह रयाणा, द ल एवं
पि चमी उ तर दे श तथा पूव उ तराख ड क ओर बढ़ रहा है । इस े म चलने वाल तेज
वायु एवं आ धयो के कारण रे ग तान का व तार होता है जो क भारतीय म य क एक
वलंत सम या है । यह म ी अनुपजाऊ होती है तथा वायु के वेग से एक थान से दूसरे था न
पर जमा होकर रे तीले ट लो का प हण कर लेती है । अत: पि चमो तर भारत म म भू म
व तार म दटयो क एक मु य सम या है ।
(3) भू म अपरदन क सम या (Soil erosion)
स पूण रा क लगभग एक-चौथाई कृ ष यो य भू म अपरदन क सम या से सत है
। वायु या जल वारा कसी थान वशेष क भू म के उपर आवरण क परत का धीरे -धीरे न ट
हो जाना, इस म म भू म का कटाव या अपरदन माना जाता है । यह कटाव या अपरदन दो
कार का होता है -
1. परत अपरदन (Soil erosion): कसी भू-भाग के म ी क उपर परत ाकृ तक
शि तयाँ (वायु जल) इ या द वारा बहा कर या उड़ा कर ले जायी जाती है तब यह अपरदन कहा
जाता है । इसके कारण नीचे क परत उपर आ जाती है जो अनुपजाऊ होती है एवं इस भू म को
बंजर छोड़ना पडता है ।
2. अवना लका अपरदन (Gully erosion): इस कार का अपरदन सामा यत: ढालदार
भू म पर तेज पानी के बहाव या वायु के वेग वारा होता है । इसके फल व प भू म मे गहरे
ग ढे एवं ना लयां बन जाती है, भू म उबड़-खाबड़ हो जाती है िजसे अवना लका अपरदन या कटाव
कहा जाता है । दे श के मैदानी भाग म जल वारा एवं शु क भाग म वायु वारा अपरदन होता
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है जो म ी क एक मु य सम या है । इस सम या से नजात पाने के लए भारत सरकार ने
1953 म के य भू म र ा बोड क थापना क थी िजसके मु य उ े य थे - म भू म के
व तार को नयि त करना, कृ ष भू म क उवरता बनाए रखना तथा कट -फट भू म को कृ ष
यो य बनाना ।के सरकार ने इन उ े य क पू त हे तु दे हरादून, जोधपुर, कोटा, ऊटकम ड एवं
बेलार म शोध सं थान था पत कए है ।
75
(द) वायु वषा क ि थ त: अ य धक वषा, तेज वायु आ द भी अपरदन क ग त को य प से
भा वत करती है । मू सलाधार वषा वाले े म भू म को जल सोखने का अवसर ह नह ं मलता
तथा शी ह तेज अपरदन ार भ हो जाता है । इसी कार से कम एवं यूनतम वषा तथा वायु
वेग वाले े म अपरदन क ग त यूनतम दे खी जाती है ।
भू-उपयोग
अपरदन क ग त, ि थ त इ या द भू म के उपयोग पर नि चत प से नभर करती है ।
भू म के परत, चारागाह, खनन, कृ ष जैसे व भ न यवसाय भी म ी के कटाव को नधा रत
करते है । परती एवं चारागाह पर अपरदन क ग त सवा धक तथा कृ षगत भू म म अपरदन क
गत यूनतम होती है ।
भारत के अपरदन से भा वत े
भारतवष म अपरदन क सम या एक मु य सम या है जो वशेषत: ज मु क मीर,
हमाचल दे श, उ तराखंड, पंजाब, ह रयाणा, उ तर दे श, म य दे श, छ तीसगढ़, गुजरात, उड़ीसा
एवं असम रा य म वकराल प हण कर चु क है ।
भू म अपरदन क ग त कृ त क दोन शि तय (वायु एवं जल) वारा भा वत होती है
। दे श के व भ न भाग म दोन शि तय का सि म लत एवं अलग-अलग वाह अपरदन को
भा वत करता है । (मान च 3 .2)
पंजाब, ह रयाणा े म जल एवं वायु दोन शि तय वारा अपरदन क ग त भा वत
होती है । य क यहां पर शवा लक पहा ड़य से आने वाल न दयाँ उन थान से म ी बहा कर
लाती है इ ह थानीय भाषा म चो के नाम से या रे तील न दय के नाम से जाना जाता है । इस
े म अ बाला एवं हो शयारपुर िजल म ऐसी रे तील न दय का भाव सवा धक दे खा जाता है ।
उ तर दे श, द ल एवं राज थान. के भू-भाग म वायु वारा भू म का अपरदन सवा धक दे खा
जाता है य क राज थान के रे ग तान का व तार उ तरो तर एवं उ तर एवं पूव सीमांत े
क ओर बढ़ रहा है । राज थान क भू म पर पा क तान के संध से म थल य म ी का भाव
भी बढ़ रहा है िजसके फल व प जोधपुर, बीकानेर, जयपुर , भरतपुर, कशनगढ़ आ द िजल म
गत शता द म त वग कलोमीटर भू म म लगभग 34 लाख टन उपजाऊ म ी वायु वारा उड़ा
कर ले जाई गई है जो अपरदन क गहन व तु ि थ त का वलंत उदाहरण है ।
भारतवष म जल वारा भू म अपरदन मु य प से मपु एवं उसक सहायक न दयां
जैसे - कोसी, त ता, हु गल , गंगा, यमु ना, गंडक, महानद इ या द के सहारे सवा धक दे खा जाता
है । उ तर दे श के द णी-पि चमी भू-भाग, उ तर एवं म य बहार, पि चमी बंगाल, जल
वारा अपरदन से भा वत े म सवा धक मह वपूण े है । इन े के आगरा, मथुरा,
पटना, इटावा जैसे नगर एवं शहर पर भी जल वारा अपरदन का सवा धक भाव दे खा जाता है
। इसी कार से म य दे श म च बल नद एवं उसके घाट े म जल वारा अपरदन सवा धक
दे खा जाता है । इससे भा वत े म भ ड, मु रैना, वा लयर मु ख है जहाँ पर हजार है टे यर
भू म असमतल भू म मे प रव तत हो चु क है िजसे बीहड़ (Ravines) के नाम से जाना जाता है
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। इसी कार से झारख ड के े , त मलनाडु के धमापुर , क यापुर , त चराप ल , सेलम,
कोय बदूर े म भी न दय वारा अपर दत भू- व प को य प से दे खा जा सकता है ।
इस कार भारतवष म भू म अपरदन क सम या एक मह वपूण वलंत सम या मानी
जाती है िजसके नराकरण हे तु वशेषत: वतं ता के प चात के य एवं थानीय रा य सरकार
यासरत ह एवं नकट भ व य म स पूण रा क न दय को आपस म जोड़ने क प रयोजना से
सम या के आं शक समाधान क संभावना है ।
(4) लवणता एवं ार य भू म क सम या (Problem of alkaline soil)
ार यता जल, थल सब जगह पाई जाती है । एक नि चत तर से अ धक ार यता
अपने आप म सम या है । ाय: यह माना जाता है क सभी कार के ाकृ तक पयावरण म 4
से 9 के म य अ ल यता (pH) पाई जाती है । जल य पयावरण म यह ार यता 2.5 से 7.8 के
म य रहती है । ार यता से स ब ध समु म गहराई से भी य प से भा वत होता है ।
1000 मीटर क गहराई पर ार यता 36.5 है जब क 1200 मीटर पर 36 त प चात ् नर तर
कम होती जाती है । अत: सरल श द म यह य त कया जाता है क जल म लवणता क वृ
2000 मीटर तक पाई जाती है । उसके बाद ार यता उ तरो तर वत: कम हो जाती है । जल
क सतह के नकट जहाँ पर जल एवं वायुम डल क काबनडाईआ साईड म सतुलन रहता है ,
औसत अ ल यता से कुछ वचलन पाया जाता है । वालामु खीय े म ि थत झील म 2.5
(pH) जब क म थल य शु क ईगल म 10.5 तक अ ल यता पाई जाती है ।
जल के साथ काबन डाईऑ साईड म त होने पर काब नक अ ल बनता है । अत:
सतह पर 8.1 से 8.3 तक (pH) रहती है तथा जहाँ पर भी काश सं लेषण क या होती है
वहाँ पर अ ल यता क मा ा इससे भी अ धक होती है । काश सं लेषण क या से काबन
डाईऑ साईड क मा ा घटती है तथा (pH) अ ल यता बढ़ती है । काश सं लेषण क टबंध के
न न तर पर जै वक या को भा वत करती है । चू ं क ाणी ऑ सीजन हण करते है तथा
काबन डाईऑ साईड बाहर नकालते है अत: समु तल म (pH) 7.5 एवं कह -ं कह ं 7.0 से भी
कम पाया जाता है । इसी कार से थल य (pH) भी थल य पयावरण के अनु प म ी म पाये
जाने वाले नमक क मा ा के अनु प ह ार य त व को नि चत करती है । सामा यत: म ी
म 85 या उससे अ धक (pH) को ह ार यता क ेणी म माना जाता है । नमक क मा ा
घुलनशील अव था म होती है तथा य प से म ी क उवरता को भा वत करती है । इस
कार म ी म ार य त व क धानता अपने आप म एक वकट सम या है ।
भारत वष म म ी क ार य सम या मु य प से शु क एवं अ -शु क म थल य
े , उ च वा पीकरण के भू-भाग तथा शीत रे ग तान के आ त रक दे श म पाई जाती है ।
इस सम या का ार भ मू ल प से म ी म पाये जाने वाले नमक क मा ा उ तरो तर जल के
वाह, अवशोषण, स ती इ या द के कारण सतह पर आ जाती है जो एक सम या का प हण
कर लेती है । शु क दे शो 'म समतल भाग क लवणता, शु क े के ह नमक न खारे पानी
क झील का भाग इरनके वलंत उदाहरण है । इन भू-भाग म कृ ष स हत अ य यवसाय
बा धत होते है य क भू म क उवरता समा त हो जाती है । इस कार क सम या रा म
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राज थान के रे ग तान, ज मू क मीर के लरदाख, आ दे श के रायलसीमा इ या द े ो म
या त है ।
(5) जल स ती क सम या (Problem of Water logging)
भारत म म य क सम याओं म जल स ती क सम या भी अपने आप मे एक
मह यपूण सम या है िजसके समाधान हे तु थानीय एवं के य सरकार, जन सेवी सं थाय
इ या द यासरत है । यह सम या मु य प से नद वाह े म, अ तवृि ट , बाढ़, जल के
नकास म अवरोध, चकनी म ी का जमाव इ या द भू-भाग म केि त होती है । इसके साथ ह
नहर े , अ य धक रासाय नक खाद के उपयोग े इ या द म मु य प से पाई जाती है ।
इसके प रणाम व प भू म क उवरता म कमी जल के एक त रहने से चकनी म ी का जमाव,
आवागमन के साधन म अवरोध तथा व भ न कार क बीमा रय जैसे मले रया, हैजा इ या द
का कोप मुखता से पाया जाता है । उपरो त े म सामा यत: म ी क अवशोषण शि त से
अ धक, ल बी समयाव ध तक वषा इ या द के कारण रा के पंजाब, ह रयाणा, उ तर बहार,
पि चम बगाल एवं पि चमो तर राज थान के घ घर नद वाह े हनुमानगढ़ , गंगानगर इ या द
दे शो म वकट सम या है ।
(6) कृ ष भू म के वकास हे तु अप हण सम या
(Problem of Agricultural land grabbing for development)
भारत वष म म य क सम याओं म अप हण कृ ष क सम या भी अपने आप म
एक मह वपूण सम या मानी जाती है । य क वभ न थान पर वशेषत: कृ ष यो य भू म
पर यि तय , समू ह , सं थान , नगम एवं व भ न कार के संगठन वारा आवास- नवास,
यातांबात के साधन का वकास, उ योग एवं अ य त ठान हे तु नर तर कृ ष भू म का
अप हण कया जाता है । िजसके फल व प कृ षगत उवरक म ी का अ य यवसाय म
प रवतन एक वकट सम या है ।
यह म भारत वष म वशेषत: केरल, महारा , गुजरात, पि चम बंगाल, बहार, उ तर
दे श, ह रयाणा एवं पंजाब जैसे े म या त है ।
औ यो गकरण एवं शहर करण एक ऐसी या है िजसके वारा उ तरो तर शहर एवं
औ यो गक सं थान के समीपवत उवरक दे श क म ी का अप हण होता रहता है । चू ं क
शहर करण एवं औ यो गक करण मूल प से एक सतत या है जो जनसं या क वृ के
कारण, नवीनतम तकनीक के आ व कार तथा मानवीय आव यकताओं ( यवसाय प रवतन एवं
आवास) क पू त हे तु अनवरत प से संचा लत होता रहता है । रा म आ थक वकास का
म ार भ होने के कारण म ी अप हण क सम या सामाना तर प से संचा लत होती हे ।
अत: समय के साथ इस सम या का समाधान भी च तनीय एवं वचारणीय है ।
(7) भू-शोषण (land exploitation)
भारत वष म भू-शोषण क सम या भी अपने आप म म ी क व भ न सम याओं म
मु ख मानी जाती है । य क शहर करण एवं यवसाय के प रवतन के फल व प कृ ष यो य
भू म का व भ न कार से प प रवतन, वकास क तेज ग त, आधु नक तकनीक , अ धक से
78
अ धक पूज
ं ी अिजत करने क लालसा इ या द के फल व प वकट सम या के प म था पत
हु ई है । रा म उ तर के वकासरत रा य तथा द ण भारत के हैदराबाद, वशाखाप नम एवं
चै नई जैसे शहरो क व तार के कारण दन- त दन भू-शोषण क सम या अि त व म आई है
। इसका समाधान समय क मह वपूण आव यकता है ।
बोध न : 2
1. भारतीय म य क सबसे बड़ी सम या या है ?
2. अपरदन क मु य शि तयां या- या है ?
3. दे श मे जल वारा कतनी म ी समु मे तवष वा हत हो जाती है ?
4. ढालदार भू म पर होने वाले अपरदन को या कहते है ?
5. बीहड़ ( Ravines) कसे कहते है ?
6. वायु वारा भारत मे सवा धक अपरदन कहाँ होता है ?
7. ार यता कसे कहते है ?
79
1953 म म ी संर ण बोड क थापना भी इसी उ े य से क गई थी । इसी कार वतीय
पंचवष य योजना म 500 है टयर भू म म बड़े बांध, 50 है टयर भू म पर मेड़बंद , 300 लाख
है टयर भू म पर भू म संर ण एवं चारागाह इ या द वक सत कये गये । तृतीय पंचवष य
योजना म 550 लाख है टयर भू म पर' शु क खेती के वकास, नद घा टय म बांध का नमाण,
भू म के कटाव पर नय ण एवं भू म क उपजाऊ मता, भाखड़ा नांगल, दामोदर, ह राकु ड
जैसी मु य प रयोजनाओं क थापना क गई । इसी कार से राजरथान, पंजाब, कनाटक,
महारा , गुजरात इ या द रा य म 5 लाख है टयर भू म का सुधार कया गया िजसम ढाई लाख
हे टयर बंजर भू म भी सि म लत है । चतु थ पंचवष य योजना म म ी के संर ण हे तु 71 लाख
है टयर भू म म वृ ारोपण , कृ ष सु धार एवं अ य संर ण काय स प न कये गये । इसी कार
से पांचवी पंचवष य योजना म लगभग 10 लाख है टे यर भू म पर जल हण, भू म सु धार, नद -
घाट योजनाओं, बीहड़ भू म सुधार इ या द के यास कये गये । इसी कार से छठ पंचवष य
योजना म भू म के कटाव, संर ण, छोटे बांध बनाने, मेड़बंद इ या द हे तु 450 करोड़ का
ावधान नि चत कया गया । इसी कार से सातवीं, आठवीं, नवीं एवं दसवी पंचवष य योजना
म वशेषत: पूव तर भारत, उ तर भारत के वशाल मैदान, राज थान के रे ग तान गुजरात,
महारा एवं आ दे श के े म पाई जाने वाल ार य व बंजर भू म इ या द को वक सत
करने हे तु वशेष यास कये गये । जल एवं वायु वारा अपर दत म य के संर ण हे तु
म थल य एवं पवतीय ढलान क म य के संर ण व तृत काय म , श ण एवं मृदा
स बि धत त ठान क थापना क गई ।
भारतवष म भारत के कुल े म से लगभग 8 करोड़ है टयर भू म वा त वक कृ ष के
अ तगत है िजसम 4 करोड़ हे टयर भू म का कटाव वायु एवं जल वारा तवष होता है । इसी
कार से अपरदन क अ य शि तय वारा दे श के व भ न भाग म भू म के कटाव इ य द के
बंधन हे तु संर ण के ि टकोण से के य म ी शोध सं थान, के य शु क अनुसंधान सं थान
जैसी व भ न सं थान वारा भी समय-समय पर दे श के व भ न भाग म भू म के संर ण
संबं धत श ण काय म, बाढ़ नय ण, जल शि त बंधन इ या द के वारा यापक यास
कये गये है । चू ं क रा म भू म संर ण एक मह वपूण आयाम है । अत: के एवं व भ न
रा य सरकार वारा व भ न कारगर उपाय कये गये है जैसे - छोटे क ब एवं शहरो के मलबा,
कू ड़ा करकट इ या द को बंजर भू म, अनुपजाऊ मृदा , रे ग तानी े इ या द म डालना, इसी
तरह बड़े शहर एवं महानगर के कूड़ा कररट इ या द का भी भू म संर ण म उपयोग कया जा
सकता है । नद -नाल एवं झील म भी पाये जाने वाले व भ न पदाथ का कृ ष एवं अ य भू म
संर ण हे तु उपयोग लया जा सकता है । य क सड़ा-गला कू डा-करकट िजसम व भ न कार
के जै वक त व भी होते है, बंजर एवं उसर भू म म खाद का काम करते है ।
इस कार से भारतवष म भू म संर ण हे तु व भ न सं थान , रथानीय एवं के य
सरकार वारा समय-समय कये गये साथक यास अ त मह वपूण एवं कारगर माने जाते है ।
80
बोध न : 3
1. म ीके रण को रोकने के चार मु ख उपाय बताईये ?
2. म ी म जल हण क मता कै से बढ़ाई जा सकती है ?
3. भारत मे म ी सं र ण बोड क थापना कब हु ई ?
4. क य म ी सं क शन बोड के उदे य या– या है ?
81
मान च - 3.3 भारत म वन प त के कार
83
(य) वार य वन: भारतवष म समु तट , दलदल य भाग , न दय के डे टाई भाग म पाये जाते
है जैसे - गंगा नद के डे टा का सु दरवन इ या द मु ख है । इस कार के वन से ताड़, बत,
केतक तथा नाव बनाने हे तु लकड़ी एवं ईधन के प म उपयोग लाया जाता है ।
(2) उ णक टब धीय शु क वन: इस कार के वन 100 सेमी. से कम वषा वाले भू-भाग म
पाये जाते है जो मु य प से 4 कार के है
(अ) शु क सदाबहार वन: इस कार के वन का व तार त मलनाडु के समु तट य, आ दे श
के द णी पूव भाग तक है । य क मानसू न के लौटते समय ा त वषा वाले भू-भाग माने
जाते है तथा इन वन को कृ ष हेतु समा त भी कया जाता है । इन वन े क मु य उपज
केसु आर ना वृ है ।
(ब) शु क पतझड़ वन: इस कार के वन ाय वीपीय पठार, हमालय के तराई भाग, न दय के
कनारे , भारत के म यवत भाग इ या द है जहाँ पर बांस, खेर, साल, पै डु ला एवं सवाई घास
मु य उ पादन है ।
(स) शु क कंट ल झाड़ी वन: भारतवष म पि चमो तर भाग के रे ग तान तथा पि चमी घाट के
वृि ट छाया दे श सव मुख है जहाँ पर कंट ल झा ड़या, खेजड़ी, बबूल एवं झाऊ इ या द वृ है ।
(द) म थल य वन: इस कार के वन पि चमी राज थान, द णी ह रयाणा इ या द े म पाये
जाते है । यह पर पाये जाने वाले मु ख वृ कंट ल झा ड़या खेजडी, ताड, नागफनी, खजू र, केर
एवं क ंकर है ।
(3) उपो ण क टब धीय पवतीय वन: इस कार के वन भारत म पालनी एवं नील गर
पहा ड़या िजनक ऊँचाई 1070 से 1525 मीटर तक ह, के े म मैकाल सतपुडा एवं स यादर
भू भाग म पाये जाते है । इसी कार से हमालय े म 1000 से 2000 मीटर क ऊँचाई पर
पाये जाने वाले मु ख वृ ऑक, चे टनट, एश इ या द सि म लत ह । इसी म पि चमी हमालय
के चीड तथा क मीर हमालय के जैतू न इ या द उपवग भी सि म लत है ।
84
3.8 वनो का वतरण (Distribution of Forest)
85
यो क पवतीय े ो क कुल भू म का 60 तशत एवं मैदानी भाग का कु ल भू म का 20
ातेशत भागो पर वन का व तार होना चा हए । जब क उ तर भारत के मैदान एवं हमालय े
भी इसके अपवाद ह । भारत म नये रा य के गठन के प चात रा य म वन का वतरण इस
कार है :
ता लका 3.2 : भारत म रा यवार वन का तशत
.सं. रा य े (वग तशत .सं. रा य े (वग तशत
क.मी.) क.मी.)
1. आ दे श 44229 16.08 16. झारख ड 26052 34.9
86
3.9 वन क सम याएँ (Problems of Forests)
भारतवष म वन क सम याएं एवं उनसे स बि धत व भ न आयाम व व के अ य
दे श से दयनीय ि थ त म है । भारतवष म वन क ह न दशा का मु य कारण यह है क रा
के पूव तर रा य , म य दे श एवं हमालय े के अ त र त सभी थान पर वन े कम पाये
जाते है तथा उ तरो तर इसम गरावट दज क गई है । भारत म वन क वा षक त है टे यर
उ पादकता केवल 0.5 घन मीटर है जब क अमे रका म 1.25, ांस म 3.9 घन मीटर, जापान
म 1.8 घन मीटर इ या द है । इसी कार से भारत म त यि त वन का े फल 0.14
है टयर है जब क सो वयत स म 3.5 है टे यर, संयु त रा य अमे रका म 1.8 है टे यर तथा
व व का औसत 1.08 है टयर है । भारत म एक ह े म एक ह कार के वृ समू ह नह ं
मलते ह अत: कसी वशेष कार क लकड़ी ा त करने म समय एवं पूज
ं ी दोन क अ धकता
आव यक होती है । इसी कार से व व के अ य रा क तु लना मे भारत म लकड़ी का उपयोग
कम होता है । आवास, फन चर इ या द म अ य रा म जैसे इं लै ड, संयु त रा य अमे रका
म अ धकतम लकड़ी का योग कया जाता है । भारतवष म लगभग 37 तशत वन नजी
स प त म है । शेष 63 तशत सरकार नय ण म है । इस कार वन के बंधन इ या द म
अ यव था है । वन एवं वन प त के त वै ा नक ि टकोण एवं यवि थत बंधन हेतु जन
सामा य म श ण एवं श ा क आव यकता ह । वन व ान के अथवा वन र ण व या के
ान के अभाव म वन स प त का पूरा बंध, उपयोग इ या द अ यवि थत है । जनसामा य म
वन के त िज मेवार एवं उपयो गता के ि टकोण म पूणत: अन भ ता दे खी जाती है । इसी
कार से रा म वन आधा रत उ योग जैसे लकड़ी काटना इ या द म भी आधु नक तकनीक का
अभाव है । भारत म लगभग 10 लाख है टे यर वन तवष न ट हो रहे है ।
इसी कार से वन प त एवं वन के वै ा नक बंधन म के एवं रा य के सतत
यास के उपरा त भी वै ा नक ि टकोण उ प न करने हेतु व भ न आव यकताओं क ज रत
है । रा म वशेषत: उ तर भारत के वशाल मैदान म वन एवं वन े का जनसं या वृ ,
शहर करण एवं औ यो गकरण के फल व प उ तरो तर ास हो रहा है िजसके वकास एवं बंधन
हे तु वशेष यास क आव यकता है । वन क मु य सम याओं, मे 40 तशत वन पदतीय
े , दुग य थानो पर ि थत होने के कारण आवागमन एवं प रवहन के साधन से दूर थ ि थत
है । इसी कार से षशुचारण, वृ क कटाई, पूव तर रा य मे झू मंग कृ ष इ या द ला व भी
वन क मु य सम याओ म वलंत मु े है । वन के त जाग कता, बै ा नक ि टकोण
इ या द उ प न करने हेतु जनसामा य एवं कमचा रयो के श ण हे तु दे हरादून एवं कोयंबटू र
इ या द थान पर था पत कये गये ह ।
बोध न : 5
1. वन क सबसे बड़ी सम या या है ?
2. भारत म तवष कतने े म वन न ट हो रहे है ?
3. दे श म पशु चारण क वकट सम या कह है ?
4. भारत म झू मंग कृ ष कहाँ होती है ? ;
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3.10 वन का संर ण (Conservation of Forest)
भारतवष म ाकृ तक वन प त एवं वन संसाधन एक वशाल वरासत है । िजसम
लगभग 5 हजार कार क जा तयां पाई जाती है तथा उसम से 450 कार क जा तयां एवं
उनका उपयोग आ थक एवं यवसा यक मह व का है । व भ न वन प तय का औष यीय
उपयोग जैसे - लोरोफाम, स केनेमाइड, म थल ए कोहोल, तेल, ए सटोन इ या द वन से ा त
होता है । वन म 856960 लाख घन मीटर उ तम क म ट बर लकड़ी के वृ है । अ य
इमारती वृ म कोणधार वन से ा त , चौड़ी प ती से ा त लक ड़य से कागज, पेि सल, चाय
क पे टयाँ, लाईवुड, दयासलाई एवं अ य खलौने इ या द बनाये जाते है । अत: उपरो त सभी
कार के वृ , वन का आ थक, यवसा यक एवं दै नक जीवन के उपयोग हे तु संर ण अ त
आव यक है य क वन े म अ धवास करने वाले आ दम वग क जीवन शैल मु य प से
वन से नधा रत होती है ।
भारतवष म चू ं क अ धकांश वन दुग य थान म केि त है अत: उनका उपयोग,
आवागमन, सदुपयोग इ या द मानव पहु ँ च से बाहर है । रा म वन का भौगो लक वषमताओं के
अनु प ह असमान वतरण है । अत: पूव तर एवं हमालय े एवं पि चमी घाट के े पर
पाये जाने वाले वन का संर ण अ त आव यक है । य क उ तर के मैदान म वन क नर तर
कमी, पशु चारण, नये वृ के रोपण मे कमी , जनसं या वृ इ या द के फल व प कृ षगत
भू म का उ तरो तर वृ के फल व प वन का संर ण आव यक माना जाता है । संर ण के
ि टकोण से भारत क वन नी त 1952,1983 इ या द भी मह वपूण मानी जाती है य क वन
संर ण हे तु इसम व भ न कारगर उपाय समा हत कये गये है । वन के संर ण के मुख
उपायो म वन के वनाश को रोकना अत: सी मत पशु पालन, सामािजक वा नक , पवतीय ढलान
पर मेढ़ बना कर वृ एवं म ी के कटाव को रोकना , सरकार सं थान क थापना, वन े म
प रवहन के माग का वकास, वन के त े म तथा छोटे क ब एवं महानगर म वन क
उपयो गता एवं मनोरं जन वा नक के ि टकोण से व भ न सं थान था पत करना । इसी कार
से पवतीय ढलान , नद वभाजक , समु तट , बंजर भू म म सु र ा मक वन लगाना इ या द
सि म लत है । वृ ारोपण एवं वन संर ण का वतमान संदेश 'एक यि त एक वृ ' को च रताथ
करना इ या द वन संर ण के मु य याकलाप माने जाते है ।
बोध न : 6
1. वन क सु र ा एवं अ य उप म से व वध पू व क वन के वनाश को रोकने को
या कहा जाता है ?
2. वन सं र ण मे भू - व प क या भू मका है ?
3. वन सं र ण के कोई दो कारगर उपाय बताइये ।
4. वन सं र ण के अ य उपाय या है ?
88
3.11 सारांश (Summary)
भारत एक कृ ष धान रा है अत: म य को मह व दे श के वकास एवं कृ ष
यवसाय म मूलभू त माना जाता है । रा म पाई जाने वाल म ी एवं उसके व भ न कार एवं
वतरण पर भू- व प एवं च ान क कृ त क अ मट छाप दे खी जाती है मृदा के वभ न
कारो को नधा रत करने म म ी के कण, उसक आकृ त, रं ग, े एवं च ानो क मू लभू त
ं ान सं थान, नई द ल ने
संरचना मक ढांचे को आधार माना जाता है । भारतीय कृ ष अनुसध
स पूण रा क म य को 27 भाग म वभािजत कया है । दे श म 35 तशत े पर वायु
या जल वारा वा हत म ी 'तथा 20 तशत भाग पर बलु ई, काप चकनी और चका म ी
पाई जाती है ।
भारत म 2.04 करोड़ है टे यर पहाड़ी दे श क म ी है । उ तर भारत के मैदान मे
क छार , कांप एवं जलोड़ म यां पाई जाती है जो अ धक उपजाऊ होती है । द णी भारत क
म यां पठार है जो काल रे गड कार क है । काल म ी म जल हण क मता अ धक होती
है । दे श क अ य म य म लाल, भू र , म थल य पीट इ या द मु य है । भारत म पाई जाने
वाल म य क मु य सम याएं अपरदन, लवणता एवं ार यता, बंजर भू म, जल स ती, म
व तार, भू-शोषण इ या द मु ख है । जल वारा सवा धक अपरदन पूव तर भारत तथा पि चमी
घाट े म होता है जब क वायु वारा सवा धक अपरदन राज थान के म थल , द णी
ह रयाणा, द ण पि चम पंजाब इ या द म होता है । दे श म लवणीयता और ार यता भी एक
वकट सम या है । 68 हजार वग कलोमीटर े म यह सम या या त है जो मूलत: उ तर
बहार, उ तर दे श, ह रयाणा, पंजाब, राज थान, महारा एवं आं दे श आ द म केि त है ।
म य के संर ण हे तु वतं ता के प चात वशेष यास कये गये है । भारतवष म
1429 करोड़ है टै यर अत: भू म के 44.8 तशत भाग पर ह कृ ष होती है । 2 तशत भू म
कृ ष यो य तवष जल एवं वायु वारा न ट कर द जाती है । अत: अपरदन के कारण म ी क
उवरता समा त हो जाती है । 60 करोड़ टन म ी तवष जल वारा बहा कर समु म वा हत
कर द जाती है । भारत म म य का संर ण अ त आव यक है । म ी के संर ण हे तु
वृ ारोपण, पशुचारण पर नय ण , मेडु बनाना, छोटे -छोटे बांध एवं तालाब बना कर बहते जल
को रोकना एवं उसे संचाई म उपयोग लेना, खेती म फसल का हे रफेर कर बोना, कसान एवं
जनसामा य को भू म संर ण के संबं धत श ा एवं श ण दे ना इ या द मु ख है ।
भारत म पाई जाने वाल वन प त एवं वन का भी रा क धरातल य असमानता एवं
व वधता से गहरा संबध
ं है । वन प त एवं वन का व तार हमालय पवत े , पूव तर भारत,
ाय वीपीय भारत, पि चमी घाट पर सवा धक है । इसके वप रत पि चमो तर भारत के
रे ग तान, ह रयाणा, पंजाब, उ तर दे श, बहार, बंगाल एवं महारा इ या द े म वन क
यूनता पाई जाती है । वन क व भ नता को नधा रत करने म वषा क मा ा भी आधारभूत
कारण है । रा म वन का तशत उ तरो तर घट रहा है अत: उपरो त सभी सम याओं का
समाधान वन के संर ण म ह न हत है ।
89
3.12 श दावल (Glossary)
खादर : नवीन जलोढ़ म ी
बागर : पुरातन जलोढ़ म ी
रे ह (REH) : पृ वी के धरातल पर नमक यु त सफेद पदाथ जो अ धक वा पीकरण के
कारण जल के उड़ जाने के प चात दखाई दे ता है ।
बंजर भू म : अनुपजाऊ म ी या े िजसक उवर मता समा त हो गई हो ।
लवणता : कसी त व म पाई जाने वाल नमक क मा ा ।
अ ल यता : िजस त व म चू ने क मा ा कम हो ।.
ार यता : िजस त व म चू ने क मा ा अ धक हो ।
ड कन े प : द ण भारत का भू-भाग ।
अपरदन : जल एवं वायु वारा म ी का एक थान से दूसरे थान पर जमाव ।
बीहड : नद -घाट े का उबड़-खाबड़ भाग जो जल वाह के फल व प वक सत
होता है ।
भू-रव प : पृ वी के धरातल पर समु तल क ऊँचाई के अनु प भू-भाग जैसे मैदान,
पठार, पवत इ या द ।
जल हण : वषा या अ य ोत से ा त जल को अपने आप म रोके रखने क मता ।
वृ ारोपण : नये वृ लगाना ।
जल सि त : नद , नहर इ या द के वाह े म जल का एक त होना ।
झू मंग कृ ष : तवष थान प रवतन करके क जाने वाल खेती ।
संर ण : व धपूवक न ट होने से रोकना ।
सदाबहार : येक दन, तवष एक समान ि थ त म रहना ।
90
3.14 बोध शन के उ तर
बोध न-1
1. चार कार क लाल, काल , पील एवं भू र ।
2. चकनी म ी ।
3. काला
4. पाँच कार क ।
5. चू ना एवं डोलोमाईट से बनी म ीया ।
बोध न-2
1. भू म अपरदन क सम या ।
2. वायु एवं जल ।
3. लगभग 60 करोड़ टन म ी ।
4. अवना लका अपरदन ।
5. म य दे श एवं राज थान के च बल नद घाट े म जल वारा अपर दत भू-भाग ।
6. राज थान के म थल य े म ।
7. 8.5 या उससे अ धक pH क मा ा ।
बोध न-3
1. न दय के कनारे , पहाड़ी ढलान पर तथा बंजर भू म म वृ ारोपण व पशु ओं क चराई पर
नय ण ।
2. म ी म पड़ी रहने वाल वन प त को वत: सड़ने दया जाए ।
3. के सरकार वारा सन ् 1953 म ।
4. म ी संर ण हे तु व भ न काय म बनाना तथा रा य सरकार को इस संबध
ं म सलाह दे ना।
बोध न -4
1. 33 तशत ।
2. राज थान के रे ग तान म ।
3. वार दे शीय या दलदल वन े ।
4. नद तट के वन े म ।
5. पि चमी हमालय े म ।
6. शोला वन (Shola Forest)
बोध न-5
1. वन े का े फल उ तरो तर घट रहा है ।
2. लगभग 10 लाख है टयेर ।
3. मैदानी भाग म ।
4. उ तर-पूव रा य म ।
91
बोध न-6
1. संर ण ।
2. वन े का 43 तशत भाग दुग य थान पर ि थत है ।
3. वृ क कटाई पर रोक , वृ ारोपण ।
4. पशु चारण पर नय ण, भू म कृ ष पर रोक ।
3.15 अ यासाथ न
. 1. भारत म पाई जाने वाल म य का वणन क िजए ।
. 2. रा म म य क या- या सम याएं है?
. 3. मृदा संर ण के कारगर उपाय बताईये ।
. 4. भारत म वन के कार एवं वतरण को प ट क िजए ।
. 5. दे श म वन क या- या सम याएं है? वणन क िजए ।
. 6. भारत म वन संर ण के उपाय बताईये ।
92
इकाई 4 : सचांई - मुख ोत तथा प रयोजनाएँ
(Irrigation – Major Sources and Projects)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 संचाई
4.3 मु ख ोत
4.4 प रयोजनाएँ
4.5 दामोदर घाट
4.6 च बल
4.7 सरदार सरोवर
4.8 इं दरा गाँधी नहर
4.9 सारांश
4.10 श दावल
4.11 स दभ थ
4.12 बोध न के उ तर
4.13 अ यासाथ न
4.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन के उपरा त आप समझ सकगे:
भारत म संचाई के मुख ोत
दे श क मु ख नद -घाट प रयोजाएं
दामोदर घाट का व तृत अ ययन
च बल नद घाट का ववरण
सरदार सरोवर क जानकार
इं दरा गांधी नहर का मह व
93
म वारा समय -समय पर सदुपयोग सि म लत है । भारतवष म ाचीनकाल से ह संचाई के
कृ म साधन का योग होता आया है । वेद म कुओं, नहर , बांध, तालाब इ या द का प ट
उ लेख मलता है । ऋ वेद म ‘अवाता’ श द कु ए का प रचायक माना जाता है । यजु वद म
कु या नहर के लए तथा ‘सरसी’ श द तालाब के लए यु त हुआ है । इसी कार से अथवद म
भी नहर क खु दाई का वणन मलता है । भारत के महान व वान चाण य ने अपने अथशा
के थ म भी नहर का प ट उ लेख कया है । इस कार दे श म संचाई क यव था, ोत
एवं व तु ि थ त ाचीनकाल से म यकाल एवं वतमान समयाव ध तक व णल है । ई वी शता द
के आसपास संचाई के साधन का चलन तथा ईसा क दूसर सद म ाय वीपीय भारत के चोल
राजाओं ने कावेर नद पर ांड ए नकट बांध का नमाण संचाई के लए करवाया था । इसी
कार से बौ काल न समयाव ध म खेत संचाई एवं ना लय के संदभ म वशेष न वणन कया है
। दसवीं एवं बाहरवीं सद म. त मलनाडु रा य म जलाशय का नमाण संचाई के ि टकोण से
वक सत कया गया था । म यकाल न समयाव ध म मु गल शासक वारा यमु ना नद ं से
व भ न नहर नकाल कर समीपवत े म संचाई यव था को सु यवि थत प से था पत
कया था ।
चू ं क रा क भौगो लक व भ नताओं, धरातल य व प एवं व भ न अ य आयाम
को ि ट म रखते हु ए दे श के व भ न भाग म संचाई क यव था समान प से था पत करने
म धरातल य व प को आधार मानकर भ न- भ न समयाव ध तथा शासक वारा यवि थत
प से था पत करने का यास कया गया है । रा म कृ ष, जल क ाि त, मानसू न क
व तु ि थ त, जनसं या का वतरण एवं धरातल य असमानता के ि टकोण से स पूण रा को
व भ न संचाई के मह व को आधार मानकर न न कार से व णत कया जाता है-
(1) म ी क कृ त
उ तर भारत के वशाल मैदान एवं ाय वीपीय े म पाई जाने वाल मु य म ी जैसे
काँप, दोमट बलु ई दोमट इ या द क उवरक मता इ या द के आधार पर उपरो त े क
न दय से नहर वारा एवं अ य कृ म साधन ारा संचाई को संचा लत कया जाता है ।
(2) मानसू न क अ नि चतता
भारतवष मु य प से मानसू नी वषा का भू-भाग है जो अपने आप म तवष अ नि चत
होता है । य क कसी वष वषा क अ धकता एवं कसी वष यूनता दे खी जाती है िजसके
फल व प संचाई के साधन का वकास अकाल समयाव ध म अ त आव यक मानी जाती है।
(3) वषा का असमान वतरण
भारत म वषा का औसत लगभग 100 सेमी. माना जाता है तथा पूव तर के असम
रा य एवं पि चमी तट य े जहाँ पर 250 सेमी. वषा पि चमो तर के रे ग तानी े ो म 25
सेमी. से भी कम वषा आंक जाती है जो क वषा क असमानता को द शत करती है । अत:
उपरो त प र य म दे श म संचाई क यव था कृ ष यवसाय हे तु एक मह वपूण आयाम माना
जाता है ।
94
(4) खा या न क बढ़ती हु ई मांग
रा मे जनसं या क वृ के साथ-साथ खा या न क मांग उ तरो तर बढ़ रह है तथा
वषा क असमानता एवं म य क व भ नता के कारण यह इस मांग क पू त करना अस भव
तो नह ं पर तु क ठन ज र है । अत: उपरो त असंतु लन का संतु लत करने हे तु संचाई का
वै ा नक व प म वकास आव यक है ।
(5) जनसं या क वृ
दे श म अ नयि त एवं अ नयोिजत जनसं या वृ के व भ न आयाम के समाधान हे तु
संचाई साधन का वकास अ तआव यक है । वतमान भारत क जनसं या 102 करोड़ है जो
तवष लगभग 1.8 करोड़ यि त बढ़ जाते है अत: इनक मू लभू त आव यकताओं क पू त हे तु
संचाई के साधन का वकास समीचीन है ।
वषा क यूनतम समयाव ध
भारतवष म ा त होने वाल वषा क समयाव ध मा 3 से 4 मह ने है, जो क अपने
आप म अपूण है । य क उपरो त समयाव ध म भी अ तराल के प चात ाकृ तक जल ा त
होता है । उनका संर ण, रख-रखाव इ या द भी धरातल य व प के आधार पर लगभग
अ नयि त है । अत: इस संतु लन को यवि थत करने हेतु य क अ धकांश समयाव ध सू खा
एवं अकाल के अ तगत होती है इसके समाधान हेतु संचाई क यव था परम आव यक मानी
जाती है ।
दे श क कुल कृ षत भू म का 30 तशत भू-भाग सू खा एवं 35.9 तशत भू-भाग
म यम तथा शेष भाग अ य वग म समा हत है । अत: रा के िजन े म संचाई क अ त
आव यकता है उनक पहचान वषा क ा त मा ा, कृ षत भू म के अनुपात इ या द पर कया
जाता है । वषा के ि टकोण से स पूण रा को चार भाग म बांटा जाता है - उ च, म यम,
न न एवं अपया त । उ च वषा वाले भाग म पि चम बंगाल, केरल, उड़ीसा, छ तीसगढ़,
म णपुर, नागालै ड, मेघालय एवं सि कम रा य सि म लत है । म यम े म महारा ,
म य दे श, कनाटक एवं द णी आ दे श इ या द सि म लत है । न न वषा े म उ तर
म य दे श, द णी उ तर दे श इ या द े सि म लत है जब क अपया त वषा वाले भू-भाग म
राज थान एवं उ तर-पूव गुजरात सि म लत है । इसी कार उ तर आ दे श िजसका 75
तशत भाग अपया त वषा े म सि म लत है ।
95
1930-31 923 171 18.90
1950-1951 1188 208 17.60
1970-71 1391 380 27.32
1990-91 1420 708 49.85
2000-2001 1430 947 68.00
उपरो त ता लका से व दत होता है क वत भारत के संचाई े म भार वृ हु ई
है य क अ वभािजत भारत म कु ल सं चत े 282 लाख है टे यर था जो व व के कसी भी
दे श के सं चत े से अ धक था । दे श वभाजन के प चात भारत का सं चत ै 195 लाख
है टे यर रह गया एवं 50 वष प चात 947 लाख है टे यर सं चत े हो गया जो क 1947-48
के सं चत े का चार गुणा है । अत: कु ल कृ षत भू म म सं चत े का अनुपात 19.6
तशत से बढ़ कर 68 तशत हो गया है । अत: दे श के व भ न भाग म संचाई सु वधाओं के
व तार ने कृ ष उ पादन म नि चतता दान क है । रा म ह रत ाि त जैसे यास एवं
पंजाब, त मलनाडु एवं महारा के अपया त वषा वाले े को संचाई के साधन से ह समु चत
वकास दान कया है ।
96
नहर 44.15 41.86 40.06 45.00 37.20 37.00
तालाब 19.15 18.68 16.42 17.00 6.00 3.00
अ य 4.79 9.79 7.70 10.00 - -
उपरो त संचाई के व भ न साधन एवं उनके दशक समयाव ध म प रव तत होते हु ए
व प को अ ययन हे तु तु त कया जा सकता है । जैसे कु आ एवं नलकू प वारा उ तरो तर
वृ दशायी गयी है पर तु अपवाद व प 1980-81 म कम हु ई है (28 तशत) जब क वतमान
म यह 60 तशत है । इसी कार से नहर वारा सं चत े का तशत यूतनम होता जा
रहा है । जैसे 1980-81 म यह 45 तशत था जो क वतमान म 37 तशत है । इसी कार
से तालाब वारा सं चत े के अनुपात म मू लभू त प रवतन हु आ है । य क 1950-51 जो
19.15 था जो वतमान म केवल 3 तशत है ।
(अ) कुओं वारा संचाई
इस कार दे श के व भ न भाग म कु एँ और नलकू प वारा संचाई का काय सव च
थान पर माना जाता है । कु ओं का नमाण उनक रचना के आधार पर तीन भाग म बांटा गया
है - क चे कु ए, प के कु ए और नलकू प इ या द । नलकू प जो क वा तव म वतमान शता द क
दे न है िजसका ार भ भारतवष म 1930 के आसपास माना जाता है । त प चात ् इसक
अ भवृ दे खी गयी है ।चू ं क भू मगत जल का भंडार, उसका उपयोग इ या द के संदभ म कु ओं
का मह वपूण थान माना जाता है , रा म वशेषकर उ तर े के मैदानी भाग जैसे गुजरात,
महारा , राज थान, पंजाब, उ तर दे श इ या द े क कु ल सं चत भू म का लगभग 50
तशत भाग कुओं एवं नलकू प वारा ह सं चत कया जाता है । इसी कार से े के अनु प
गुजरात म सं चत भू म का 78 तशत महारा म, 56 तशत, राज थान म 62 तशत,
उ तर दे श म 61 एवं पंजाब म 51 तशत भाग नलकूप वारा सींचा जाता है । शेष अ य
रा य म सं चत भ म का सवा धक भाग कु ओं एवं नलकू प के संि म लत आयाम से सींचा जाता
है जैसे ह रयाणा, कनाटक, आ दे श, त मलनाडु एवं बहार इ या द ।
भारत म बढ़ती हु ई जनसं या के फल व प कुओं एवं नलकू प से संचाई का म भी
तेजी से उसी अनु प म बढ़ रहा है । नलकू प एवं प प सेट क सवा धक सं या 10.3 लाख
त मलनाडु म जो क स पूण रा का 16 तशत है के प चात वतीय थान महारा का
माना जाता है जहाँ पर 8.9 लाख प प सेट है जो कुल आयाम का 15.6 तशत है । इसी कार
से अ य े म जैसे म य दे श 4.58 लाख (8 तशत), आ दे श 6.64 लाख (11.6
तशत), उ तर दे श 5.27 लाख (9.2 तशत), कनाटक 4.37 लाख (7.6 तशत), पंजाब
3.88 लाख (6.8 तशत) है जब क अ य रा य म इनक सं या यूनतम है ।
पंजाब, ह रयाणा एवं राज थान तथा पि चमी उ तर दे श के भू-भाग म नलकू प का
मह व एवं उपयोग वगत 20 वष से बहु त अ धक बढ़ा है । पि चमी राज थान के वशेषत:
पाल , जोधपुर , जैसलमेर एवं नागौर तथा गुजरात रा य के सु रे नगर, भु ज, अहमदाबाद तथा
त मलनाडु के त चलाप ल , थंजाबुर तथा पि चमी बंगाल के मालदा, हावड़ा, हु गल एवं चौबीस
परगना े नलकू प से संचाई काय म ो साहन हे तु स है ।
97
(ब) नहर वारा संचाई
इसी कार से भारत म नहर वारा संचाई भी अपने आप म मह वपूण आयाम माना
जाता है । समतल एवं मुलायम च ान को कृ ष काय हेतु उपयोग म लेने के कारण नहर वारा
वकास कया जाता है । सन ् 1900 म नहर वारा केवल 59.2 लाख है टे यर भू म सं चत क
जाती थी जो 50 वष प चात ् 1950-51 म यह े बढ़ कर 83 लाख है टयेर हो गया है ।
वत ता के प चात व भ न पंचवष य योजनाओं म दे श क कृ ष यव था को सु यवि थत करने
हे तु नहर े का वकास, नहर का नमाण इ या द पर वशेष बल दया गया है ।
पंजाब-ह रयाणा क नहर
सर ह द नहर: यह नहर रोपड नामक थान पर 1886 म नकाल गई थी । इसक कु ल
ल बाई 6115 कलोमीटर है । मु य शाखाएं प टयाला, हबोर भ ट डा, कोटला तथा घ घर है ।
पि चमी यमु ना नहर: यह नहर 14वीं शता द म फरोजशाह तु गलक वारा बनायी गयी
थी जो यमु ना नद से तेजवाना थान से नकाल गई है । 1568 म अकबर ने इसक मर मत
करवायी । 1628 म अल मरदान ने जीण वार कया तथा 1886 म अं ेज ने इसम सु धार
कया । सन ् 1944-45 म इसका व तार कया गया । यह नहर 3200 क.मी. ल बी है तथा
इसक मु य शाखाएं सरसा, हांसी और द ल है ।
ऊपर बार दो-आब नहर: यह नहर पंजाब म सन ् 1879 म रावी नद से माधोपुर थान
से नकाल गई है । इसक ल बाई 2900 कलोमीटर है । इससे अमृतसर , गुरदासपुर िजलो क
3 लाख है टे यर भू म क संचाई होती है । इसक लाहौर और कसूर शाखाएं अभी पा क तान म
है ।
ब त दो-आब: यह नहर 1954 म सतलज नद के नोवा थान से नकाल गई है ।
इसक ल बाई 145 क.मी. ह । इससे जालंधर, हो शयारपुर िजल क 4 लाख है टयेर भू म म
संचाई होती है ।
पूव नहर: 1954 म माधोपुर यास स पक नहर खोदकर रावी नद से नकाल गई है ।
इससे फरोजपुर िजले क संचाई होती हे ।
भाखड़ा नहर: यह रोपड से सतलज नद से नकाल गई है, शाखाओं स हत इसक
ल बाई 3360 क.मी. है ।
वष कु आ एवं नलकू प नहर तालाब अ य
1950-51 31.91 44.15 19.15 4.79
98
इसक ल बाई 64 क.मी. है जो पूणत: सीमे ट न मत है तथा यह नांगल बांध से
नकाल गई है । इससे अ बाला, हसार, करनाल, प टयाला, नाभा, जालंधर, लु धयाना तथा
उ तर राज थान म संचाई होती है ।
गुडगांव नहर: यमु ना नद से ओखला के नकट से नकाल गई है िजससे फर दाबाद एवं
गुडगांव े क 3.2 लाख है टे यर क संचाई होती है ।
उ तर दे श क नहर
उ तर दे श रा य म 30 तशत भू म पर नहर वारा संचाई होती है ।
पूव यमु ना नहर: िजसक शाखाओं स हत ल बाई 1440 क.मी. है तथा 2 लाख है टे यर
भू म क संचाई होती है । यह नहर 1831 म बनाई गई है ।
आगरा नहर: इसक ल बाई शाखाओं स हत 1600 क.मी. है जो 1857 म बनाई गई थी
। इससे द ल , आगरा, मथुरा, गुडगांव और भरतपुर क 1.5 लाख हे टे यर भू म क संचाई
होती है ।
ऊपर नगा नहर: यह नहर ह र वार के पास गंगा नद से नकाल गई है । इसका
नमाण 1842 से 56 म य हु आ । यह गंगा-यमु ना दो आब के साहरनपुर, बुलंदशहर , मेरठ,
अल गढ़, मथु रा, इटावा, कानपुर तथा फतेह पुर िजल क 7 लाख है टे यर भू म क संचाई करती
है । शाखाओं स हत इसक ल बाई 5600 क.मी. है ।
नचल गंगा क नहर : यह नहर गंगा नद से नरोरा के नकट से नकाल गई है ।
इसक धान शाखाएं कानपुर और इटावा है । शाखाओं स हत इसक कुल ल बाई 8800 क.मी.
है तथा इससे मैनपुर , अल गढ, इलाहाबाद, कानपुर , एटा एवं फ खाबाद िजल क 45 लाख
है टर भू म क संचाई होती है । इसका नमाण 1872 से 1878 के म य हु आ हे । अ य नहर
म शारदा नहर तथा बतवा नहर मु ख है ।
बहार क नहर : बहार क नहर मे पूव सोन नहर जो 1875 म बनाई गई थी पटना
के समीप गंगा म मलती है तथा पटना गया िजल क संचाई करती है ।
पि चमी सोन नहर : यह ब सर के नकट गंगा म मल जाती है । इनक शाखाओं म
डु मराव तथा आरा, चौसा मु य है । बहार क अ य नहरो म वेणी, कोशी मु ख है ।
उड़ीसा क नहर : उड़ीसा रा य क मुख नहर म के पारा जो ब पा नद से नकाल
गई है,तल दा नहर जो महानद से नकाल गई है तथा सल द नहर जो बालासोर म 62 हजार
है टे यर भू म क संचाई करती है ।
पि चम बंगाल : पि चम बंगाल क मु ख नहर म मदनापुर नहर 1888 म कोसी नद
से नकाल गई है । पूव म यह हु गल नद म मल जाती है । इसक ल बाई 520 क.मी. है ।
इससे लगभग 50 है टे यर भू म क संचाई होती है । पि चम बंगाल क अ य नहर म एडन
नहर जो 1938 म दामोदर नद से नकाल गई है । इसक ल बाई 65 कलोमीटर है । पि चम
बंगाल क अ य नहर म तलपाडा बांध से दो नहर नकाल गई है जो वीरभूम तथा मु शदाबाद
िजल क संचाई करती है ।
(स) तालाब वारा संचाई
99
भारत म तालाब वारा संचाई भी एक मह वपूण आयाम है । वषा वारा जल एक त.
होने पर तालाब के मा यम से कृ म व प से भू म खोद कर तालाब का नमाण कया जाता
है एवं इस साधन वारा दे श म सवा धक संचाई त मलनाडु , आ दे श, पि चम बंगाल, द णी
म य दे श, द णी पूव राज थान, झारखंड इ या द मु ख है । पंजाब एवं उ तर पूव ह रयाणा
ऐसे े है जहाँ पर तालाब वारा संचाई लगभग नग य है ।
भारतवष म कु ओं एवं नलकू प तथा नहर एवं तालाब तथा अ य सोती के मा यम से
संचाई संच लत करने हे तु मु य प से मानसू न दवा पर आधा रत माना जाता है य क वषा
वारा ा त जल ह धरातल पर एवं भू गभ मे संच लत होता है । जैसे भारत मे ा त होने वाल
वषा का 45 तशत जल न दय म वा हत होता है, 36 ि तशत जल वा प बन कर उड़ जाता
है और 22 तशत जल भू म वारा सोख लया जाता है तथा भू गभ म समा हत होता है ।
बोध न :1
1. भारत मे कु ल सं चत े कतना है ?
2. दे श मे संचाई के मु य ोत या- या है ?
3. भारत मे सवा धक संचाई कस ोत से होती है ?
4. दे श मे नहर वारा कतने तशत संचाई क जाती है ?
5. भारत मे सबसे कम संचाई कस ोत से होती है ?
100
वृ ारोपण वारा म ी के कटाव को रोकना इ या द मह वपूण है ।
उपरो त उ े य क पू त हे तु थानीय एवं के य सरकार सतत य नशील है । भारत
म वशेषत: वतं ता के प चात वै ा नक व प म वक सत क गई नद -घाट प रयोजनाओं का
वणन आगे कया गया है ।
101
म ी को काट कर अपने साथ एक थान से दूसरे थान पर उवरक भू म का पा त रत करती
रहती है । इसी कार से यातांबात, दूरसंचार, आवास, फसल एवं जंगल को भी न ट करती हु ई
मानव स हत पशु-प य क हा न करती हु ई े के लगभग 20 हजार वग कलोमीटर तक के
े म अ यव था उ प न करती है । दामोदर नद वारा लगभग 16 बार भीषण बाड़े िजसम से
1913,1919,1935,1943 मह वपूण है । 1948 म भारत सरकार वारा दामोदर घाट नगम
क थापना क गई िजसका मु य उ े य झारख ड एवं पि चम बंगाल घाट े के नवा सय
का जीवन तर सुधारना एवं सु र त रखना है । इसके साथ-साथ संचाई हे तु नहर का नमाण,
जल- व युत उ प न करना, जल प रवहन वक सत करना, मछल पालन, भू म रण को
नयि त करना इ या द सि म लत है । दामोदर घाट े म दे श के कुल लोहे का 90 तशत,
अ क का 70 तशत, म नीज 10 तशत एवं ोमाइट 70 तशत इसी दामोदर घाट
प रयोजना े से ा त होता है ।
102
3. दामोदर घाट प रयोजना कन – कन सरकार के सहयोग से याि वत हो रह
है ?
4. दामोदर घाट ने कु ल कतने बां ध बनाए जाएं गे ?
5. बं गाल का शोक कसे कहते है ?
103
मान च 4.3 - च बल घाट प रयोजना
च बल नद -घाट प रयोजना राज थान के लये वरदान स हु ई है, य क इसके वारा
औ योगीकरण व युतीकरण, संचाई एवं भू म कटाव तथा बाढ़ नय ण जैसे आयाम स पा दत
हु ए है । इस प रयोजना से 3.86 लाख कलोवाट व युत उ पादन मता का वकास हु आ है जो
रा य के व युतीकरण एवं औ योगीकरण जैसे आयाम स पूण हु ए है । इस प रयोजना म
व युत उ पादन इकाईय म गांधीसागर बांध, राणा ताप सागर बांध एवं जवाहर सागर बांध
सव मु ख है । इसी कार से थमल पावर क दो इकाईयां कोटा बैराज पर जो क येक इकाई
220-220 मेगावाट मता क है, कायरत है । संचाई क सु वधा म कोटा बैराज से नकाल गई
दायीं-बायीं नहर से राज थान एवं म य दे श क 56 लाख है टे यर भू म मे संचाई क सु वधा म
वृ हु ई है । इसी कार से बाढ़ नय ण, म ी कटाव जैसी अ य सम याओं का समाधान भी
इसी नद -घाट प रयोजना से संभव हु आ है ।
बोध न : 3
1. चं ब ल नद घाट प रयोजना कन- कन रा य का सं यु त यास है ?
2. यह घाट प रयोजना कतने चरण म पू ण होगी?
3. च बल नद -घाट प रयोजना से राज थान एवं म य दे श क कतनी भू म मे
4. संचाई होती है ?
5. कोटा संचाई बां ध कब बन कर तै यार हु आ?
104
4.7 सरदार सरोवर प रयोजना(Sardar सरोवर Project)
यह प रयोजना मु य प से नमदा घाट प रयोजना का एक अ भ न भाग है जो क
भारत क सबसे बड़ी पांचवी प रयोजना मानी जाती है िजसका मु य उ े य जल- व युत , संचाई
एवं जल आपू त इ या द है । यह प रयोजना 1312 कलोमीटर ल बी है िजसम नमदा क
सहायक न दय पर बड़े बांध, 135 म यम तथा 3000 छोटे बांध का नमाण ता वत है । इन
सभी बांध म 2 बड़े बांध मु ख है जो सरदार सरोवर एवं नमदा सागर के नाम से स है ।
105
राज थान के वशाल रे तीले भू-भाग पर जहाँ पर कसी समयाव ध म सर वती नद
वा हत होती थी, के थान पर वतमान म सव थम राज थान नहर क प रक पना बीकानेर
रा य के त काल न इंिज नयर ी कंवरसेन ने 1948 म क थी । इ ह ने बीकानेर रा य म पानी
क आव यकता को यान म रखते हु ए एक ारि मक अ ययन रपोट भारत सरकार को तुत
क थी, परं तु दुभा यवश सन ् 1957 इस संदभ म कोई वशेष कदम नह ं उठाया गया । त प चात ्
इस नहर का नमाण आर भ कया गया ।
पंजाब रा य म सतलज एवं यास न दय के संगम पर ह रके बैराज से राज थान फ डर
नहर ार भ होती है । यह नहर पंजाब एवं ह रयाणा रा य के े म 177 क.मी. क दूर तक
वा हत होने के प चात राज थान म वेश करती है ।
राज थान के कु ल 3.42 करोड़ है टे यर े म से 37 भाग तशत म थल य े है ।
इस त य को यान म रखते हु ए गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर', बाड़मेर, जोधपुर , नागौर, पाल
एवं चु िजल क पेयजल एवं संचाई यव था के वकास हे तु इस नहर का नमाण व भ न
इकाईय एवं चरण म आर भ कया गया ता लका 4.3 म दशाया है ।
ता लका 4.3: इं दरा गांधी नहर प रयोजना – व भ न चरण
. सं. इकाई थम चरण वतीय चरण योग
इं दरा गांधी फ डर 204 - 204
इं दरा गांधी फ डर कमी 189 256 445
इं दरा गांधी नहर कमी 393 256 649
योग ( कलोमीटर)
106
वतरण णाल क ल बाई
वाह े कमी 2743 3152 5895
लपट े कमी 332 1960 2292
योग ( कलोमीटर) 3075 5112 8187
कृ ष यो य सं चत े
वाह े लाख है टे यर 4.79 7.00 11.79
लपट े लाख है टे यर 0.79 3.12 3.58
योग(लाख है टे यर) 5.25 10.12 15.37
संचाई मता लाख है टे यर 5.78 8.10 13.88
नमाण काय क लागत करोड़ है टे यर 255 1420 1675
वा षक खा या न उ पादन लाख टन 14.5 22.5 37.00
औ यो गक तथा पेयजल हे तु आर ण घनफुट पानी / सै. 1200
थम चरण : नमाण क ि टकोण से इस योजना को दो भाग म वभािजत कया गया
है । थम चरण म 204 कलोमीटर क ल बाई म राज थान फ डर नहर जो क जू न 1964 म
बन कर तैयार हो गई थी । इसी कार राज थान मु य नहर िजसक ल बाई 189 कलोमीटर
जो क जू न 1975 म बन कर तैयार हो गई थी । थम चरण के अ तगत 3075 कलोमीटर
क ल बाई म वतरण णाल न मत कये जाने का ल य नधा रत कया गया था, जो माच
1999 तक स पूण हो चु का है । थम चरण म नकलने वाल मु ख शाखाओं म सूरतगढ़,
अनूपगढ़ व पूगल शाखाएँ है । इस चरण का एक मह वपूण ह सा बीकाने र लू णकरणसर
जलो थान नहर 1976 म बन कर तैयार हो गई थी । चतुथ पि पंग टे शन तक वतरण णाल
1980 म पूण कर ल गई थी । शेष काय भी माच 1984 तक स पूण हो गया था । इस
णाल म 10342 कलोमीटर ल बी प क जल धाराओं का नमाण स पूण हो चु का है िजसके
अ तगत नौरं गसरदे सर, रावतसर, खेतावल जाखपुरा वतरक नहर को नमाण काय भी स पूण
हो गया है । थम चरण का नमाण काय माच 1990 तक स पूण होकर 5.76 लाख है टे यर
भू म क (सचाई हे तु युका हो रहा है । उपरो त े म लगभग 100 करोड़ से अ धक वा षक
उ पादन संभव हु आ है । थम चरण म 246 करोड़ पये क अनुमा नत लागत माच 1990 तक
बढ़ कर 264.69 करोड़ पये तक वृ हो चु क है ।
वतीय चरण : इसके अंतगत 256 कलोमीटर मु य नहर तथा 5112 कलोमीटर
ल बी वतरण णाल का नमाण िजसम लगभग 8.10 लाख है टे यर े क संचाई का ल य
नधा रत है। इसके अंतगत वतरण णाल तक 256 कलोमीटर ल बी नहर तथा 1067
कलोमीटर ल बी वतरण णाल का काय स पूण हो चु का है । पि चमी राज थान के लये 1
जनवर 1987 का दन ऐ तहा सक माना जाता है य क 649 कलोमीटर ल बी इं दरा गांधी
नहर इसी दन स पूण हु ई है । त काल न व त मं ी ी व वनाथ ताप संह ने जैसलमेर के
मोहनगढ के नकट नहर के अं तम छोर पर पानी क अगवानी क । इसम 449 कलोमीटर
ल बी प क मु य नहर बनाने म 28 वष 9 मह ने का समय तथा 500 करोड़ पये खच हु ए ।
107
मु य नहर क चौड़ाई तल म 125 फ ट व ऊपर 200 फ ट है जब क गंगानगर े म यह मा
52 फ ट व 80 फ ट है । जनवर 1987 को ह अि तम छोर पर 1458.5 आरडी से सागरमल
गोपा शाखा म भी जल वा हत कया जाने लगा है । इस े के 8.1 लाख है टे यर े म
संचाई के फ व प सागरमलगोपा ल लवा डीगा बीरबल इ या द शाखाओं के मा यम से संचाई
होती है । वतीय चरण का संशो धत ा प सत बर 1984 म भारत सरकार को े षत कया
गया था िजसके अ तगत 7 लाख है टे यर कृ ष यो य सं चत े को लपट योजनाओं के
मा यम से संचाई, जल आपू त औ यो गक आव यकताओं हे तु 1200 यूसेक पानी का आर ण
कया गया है ।
मु ख जलो थान योजनाओं म सहाबा, कोलायत, गजनेर, फलोद , पोकरण, बागड़सर
इ या द मु ख है । इन नहर से पानी को 60 मीटर ऊँचा उठा कर गंगानगर, बीकानेर, चु ,
जोधपुर एवं जैसलमेर िजल म 3.12 लाख है टे यर भू म सं चत करने क योजना है ।
इं दरा गांधी नहर प रयोजना से वशेषत: उ तर एवं पि चमी राज थान के गंगानगर,
बीकानेर, चु , जैसलमेर, जोधपुर नागौर एवं बाड़मेर िजल क लगभग 15 लाख है टे यर भू म म
संचाई क सु वधाऐं उपल ध होगी । इसके साथ-साथ म थल वकास रोकने म मददगार स
होगी । कृ ष उपज तवष लगभग 1000 करोड़ पये के आसपास होगी । उपरो त े म
पेयजल क आपू त हे तु 1800 यूसेक पानी आर त रहता है िजससे लगभग 25 लाख
जनसं या एवं पशुओं को पीने यो य शु जल उपल ध होता है । इसी तरह पयटन, उ योग,
पशु पालन इ या द यवसाय भी इं दरा गांधी नहर प रयोजना के फल व प पि चमी राज थान म
वक सत हु ए ह ।
बोध न :5
1. इं दरा गां धी नहर (पू व मे राज थान नहर) क प रक पना कसने क थी ?
2. इं दरा गां धी नहर कहाँ से ार भ होती है ?
3. इं दरा गां धी नहर क कु ल ल बाई कतने कलोमीटर है ?
4. इं दरा गां धी नहर से प चमी राज थान मे कतनी भू म पर संचाई होगी?
5. इं दरा गां धी नहर को कु ल कतनी शाखाओं एवं उप-शाखाओं म वभािजत कया
गया है ?
108
के लये होती है । अत: संचाई के साधन का वकास एक अ त आव यक आयाम है । 1901 म
भारत का सं चत े 131 लाख है टे यर (16 तशत) था जो 1950 म 208 लाख है टे यर
(17.60 तशत) हो गया एवं 2001 म 947 लाख है टे यर (68 तशत) है जो यह दशाता है
क रा क वतं ता के प चात लगभग संचाई े म 50 तशत क अ भवृ हु ई है । 50
वष क समयाव ध अपने आप मे मह व रखती है, परं तु त य के व लेषण से ात होता है क
थम पंचवष य योजना से पूव मा सं चत े क वृ 1.60 थी । अत: वतमान भारत म
संचाई क सु वधा तवष 1 तशत के अनुपात म बढ़ रह है ।
भारत म सचाई के व भ न ोत म से कु एं एवं नलकू प अपने आप म वशेष थान
रखते ह, य क दे श क कुल सं चत भू म का 60 तशत भाग इसी से स प न होता है ।
अत: भू-गभ का जल उ तरो तर अ धक उपयोग म लाया जा रहा है । भारत म उ तर दे श,
पंजाब, राज थान, गुजरात एवं महारा म दन- त दन कु ओं एवं नलकू प से संचाई का चलन
बढ़ रहा है ।
दे श म नहर वारा संचाई का अनुपात उ तरो तर घट रहा है य क 1950 म जो
44.15 तशत था वह 2001 म 37 तशत रह गया है । इसी कार से तालाब वारा संचाई
म भी मू लभू त गरावट आई है । जैसे - 1950 म जो 19.15 तशत थी वह 2001 म मा 3
तशत रह गई है । अत: भारतवष म संचाई के ाचीन साधन- ोत जैसे - तालाब एवं नहर का
चलन कम हो रहा है तथा कु ओं एवं नलकू प वारा भू-गभ का जल दोहन लगातार बढ़ रहा है ।
भारत म वक सत क गई नद -घाट प रयोजनाओं का मूल उ े य मु यत: न दय पर
बांध बना कर ज ल व युत गृहो क थापना करना, बाढ़ क रोकथाम, संसाधन को सु नयोिजत
वकास, म ल पालन, अनावृि ट म जल का उपयोग, पयटन उ योग वक सत करना इ या द है ।
दामोदर घाट प रयोजना से झारख ड, बहार एवं बंगाल रा य म बाढ़ पर नय ण,
संचाई, व युत उ पादन एवं भू म बंधन म सहयोग मला है । दामोदर नद िजसे बंगाल का
शोक नाम से भी जाना जाता है, इस प रयोजना के फल व प जल एवं धन क हा न से भी
बचाव हु आ है । हजार है टे यर भू म का कटाव का है । नद-घाट मे कुल 9 बांध बना कर
संचाई एवं जल- व युत तथा पयटन उ योग वक सत कया जा रहा है ।
च बल नद -घाट प रयोजना से राज थान एवं म य दे श रा य क 3.5 लाख है टे यर
भू म सं चत होगी, जल व युत क ाि त, कोटा शहर एक औ यो गक त ठान के प म
वक सत हु आ, पयटन उ योग म वृ , इ या द मह वपूण उ े य क पू त हु ई है ।
इसी कार से गुजरात रा य क सरदार सरोवर प रयोजना भी गुजरात एवं समीपवत
राज थान रा य क बाड़मेर, जालोर े म संचाई एवं शु पेयजल क आपू त होगी । सरदार
सरोवर प रयोजना मूलत: वशालकाय नमदा घाट प रयोजना का अ भ न अंग है । यह नद -घाट
प रयोजना वशालकाय बांध, अ य छोटे बांध इ या द के लये स है । मु य बांध क ऊँचाई,
व था पत क सम याएं, पयावण य प रपे य एवं यायपा लका का ह त ेप इ या द के कारण
यह योजना सदै व सु खय म रह है ।
109
इं दरा गांधी नहर प रयोजना पूव म राज थान नहर के नाम से जानी जाती थी,
म थल य े म सव दय का काम कर रह है । इस नहर क प रक पना सव थम बीकानेर
रा य के इंजी नयर कवंरसेन ने 1948 म क थी । यह नहर पंजाब रा य के सतलज एवं यास
न दय के संगम थल से ह रके बैराज से नकाल गई है । इं दरा गांधी नहर क कुल ल बाई
649 कलोमीटर है जो राज थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ , बीकानेर, नागौर, चु , जोधपुर,
जैसलमेर, बाड़मेर एवं पाल े क पेयजल सम या एवं 15 लाख है टे यर भू म क संचाई
करे गी । यह नहर 9 शाखाओं एवं 21 उप-शाखाओं म वभािजत क गई है ।
रा के आ थक एवं सवागीण वकास म कृ ष काय, संचाई क यव था, संचाई के
ाचीन एवं नवीनतम ोत व भ न नद -घाट प रयोजनाओं इ या द का य एवं परो प से
मह वपूण योगदान है । िजसे उ तरो तर वक सत करने हेतु दे श क आजाद के प चात भ न-
भ न पंचवष य योजनाओं म साथक यास कये गये है तथा इनके सकारा मक प रणाम
प रल त हु ए है ।
110
8. Kothari & Singh: The Narbada Valley Project: A Critic, New Delhi,
1987.
9. Morse B.F. : Independent Review of Sardar Sarovar Project.,
Report, june18, 1992.
10. Joshi, V. : Sardarsarovar Project, Jesus Antithesis and Synthesis,
yojna, june1-15, Delhi, 1990.
4.12 बोध नो के उ तर
बोध न - 1
1. 947 लाख है टे यर, 68 तशत ।
2. कु आ एवं नलकू प, नहर तथा तालाब ।
3. कु आ एवं नलकू प से, 60 तशत ।
4. 37 तशत ।
5. तालाब वारा, 3 तशत ।
बोध न - 2
1. छोटा नागपुर क पहा ड़य से ।
2. 1948 ई वी म ।
3. के सरकार, बहार, पि चमी बंगाल ।
4. नौ (9) ।
5. दमोदर नद को ।
बोध न - 3
1. म य दे श एवं राज थान ।
2. तीन (3)
3. 3.5 लाख है टे यर ।
4. 1960 ।
बोध न - 4
1. 1961, धानमं ी जवाहर लाल नेह ने ।
2. नमदा घाट प रयोजना का ।
3. गुजरात म ।
4. गुजरात रा य को ।
बोध न - 5
1. इजी नयर ी कंवरसेन ने 1948 म ।
2. पंजाब म सतलज एवं यास न दय के संगम पर बने ह रके बैराज से ।
3. 649 कलोमीटर ।
111
4. 15 लाख है टे यर ।
5. 9 शाखाओं एवं 21 उप-शाखाओं म ।
4.13 अ यासाथ न
.1 भारत म संचाई के खेत या- या है? वणन क िजए ।
.2 रा म वतं ता के प चात सं चत भू म म वृ हु ई है । प ट क िजए ।
.3 दामोदर घाट प रयोजना के मु य उ े य या- या ह?
.4 दामोदर घाट प रयोजना से पि चमी बंगाल को या- या लाभ हु ए ह ।
.5 च बल नद -घाट प रयोजना से व युत आपू त म वृ हु ई है प ट क िजए ।
.6 कोटा शहर के वकास पर च बल नद -घाट प रयोजना का भाव या है? ववेचना
क िजए।
.7 सरदार सरोवर प रयोजना को सु प ट क िजए
.8 इं दरा गांधी नहर से पि चमी राज थान क कायाक प हो रह है । या या क िजए ।
.9 इं दरा गांधी नहर के संदभ म व तृत ववरण द िजए ।
112
इकाई 5 : कृ ष एवं पशु पालन (Agriculture and
Livertock)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 भारतीय कृ ष क मुख वशेषताएँ
5.3 मु य फसल
5.3.1 चावल
5.3.2 गेहू ँ
5.3.3 कपास
5.3.4 ग ना
5.3.5 चाय
5.3.6 कहवा
5.4 ह रत ां त
5.4.1 भारत म ह रत ां त
5.4.2 ह रत ां त भाव
5.4.3 ह रत ां त दोष एवं सम याय
5.5 कृ ष दे श
5.5.1 भारत के कृ ष दे श
5.6 पशु सस
ं ाधन/पशु पालन
5.6.1 भारत म पशुसंसाधन एवं इसका मह व
5.6.2 भारत म पशु पालन े
5.6.3 भारत मे पशु ओं क न ल
5.6.4 पशु सध
ु ार योजनाय
5.7 सारांश
5.8 श दावल
5.9 स दभ थ
ं
5.10 बोध न के उ तर
5.11 अ यासाथ न
113
भारत क ख नज क मुख वशेषताये ।
भारत क मु ख फसल के उ पादन े ।
ह रत ां त का अथ, भाव व इससे उ प न सम याएँ ।
भारत मे कृ ष दे श ।
भारत के पशु पालन े ।
भारत म पशु ओ क व भ न न ल तथा पशु सुधार योजनाएँ ।
114
कार हमारे दे श का 66.5% भू म पर कृ ष क जाती ह । अत: प ट ह क भारत म कृ ष े
के व तार क काफ स भावनाय मोजू द ह ।
4. भारतीय कृ ष मानसू न के हाथ म जु आ ह : हमारे दे श क कृ ष अभी भी मानसू नी वषा
पर नभर करती ह । भारतीय मानसू न वषा अ नय मत तथा अ नि चत ह । कभी कभी तो
सामा य से कम वषा होने के कारण सूख क ि थ त पैदा हो जाती ह तो कभी-कभी सामा य से
अ धक वषा होन पर बाड़े आ जाती ह । कभी-कभी मानसून वषा समय से पहले हो जाती ह या
दे र से हो जाती ह या बीच बीच म कई दन तक वषा नह ं हो पाती । इस कार प ट ह क
भारत क कृ ष क सफलता मानसू न पवन वारा होने वाल वषा पर यादा नभर ह अत:
भारतीय कृ ष मानसू न के हाथ म जु आ ह ।
5. कृ ष पर जनसं या का दबाव : हमार जनसं या का बहु त बड़ा ह सा कृ ष पर नभर
करता ह । इसका कारण अभी भी ह रत ां त का लाभ सह दे श म नह ं पहु ंच पाया है और
हमार कृ ष म य ीकरण का अभाव ह । अ धकांश कृ ष काय कसान तथा उसके प रवार के
सद य हाथ से करते ह िजससे कृ ष पर जनसं या का दबाव बहु त अ धक है ।
6. संचाई क सु वधाओं का अभाव : भारत म वषा अ नि चत तथा अ नय मत मानसू न
पवन वारा होती ह िजस पर भरोसा नह ं कया जा सकता । इस लए नय मत कृ ष करने के
लए संचाई क सु वधाओं का पया त मा ा म उपल ध होना अ त आव यक है । ले कन अभी
तक भारत म कु ल बोई भू म के 45% भाग पर ह संचाई क सु वधा उपल ध करवाई जा सक
ह ।
7. कृ ष फसल क व वधता : भारत एक वशाल दे श ह । उ तर से द ण तक हमारे दे श
म वभ न कार क जलवायु पाई जाती ह । यह कारण ह क हमारे दे श म अनेक कार क
फसल उ प न क जाती है।
8. म ी क उपजाऊपन शि त का कम होना : भारत म स दयो से खेती होती आ रह ह ।
लगातार खेती ह ने से म ी क उपजाऊपन शि त बहु त ीण हो जाती ह । मजबूत आाथक दशा
के अभाव म यादातर कसान महंगे रासाय नक खाद को खर दने म असमथ रहते ह ।
9. फसल क बीमा रयां तथा क ड़े : अनेक कार क बीमा रय तथा क ड़े-मकौड़े भी फसल
को नुकसान पहु चाते ह । गेहू ँ को करंजवा (Rust) नामक बीमार लग जाती ह िजससे गेहू ं के
दाने बेकार हो जाते ह । कई क ड़े मकोड़े भी फसल को नुकसान पहु ंचाते ह । भारत म लगभग
10 तशत फसल क ड़ वारा खराब कर द जाती ह ।
10. त हे टे यर उपज क कमी : य य प हमारा दे श कृ ष धान दे श है तथा प हमारे दे श
क कृ ष अ य वक सत दे श क अपे ा पछड़ी हु ई ह । भारत क कृ ष पछड़ी होने के
न न ल खत कारण ह :-
1. भारत दे श के अ धकांश भाग म अभी तक ाचीन प त से बैल तथा हल आ द से
कृ ष क जाती ह । खेती म आधु नक कृ ष य का योग बहु त ह कम होता ह । कमजोर
पशु ओ तथा पुराने कृ ष य वारा उ तम खेती स भव नह ं ह ।
115
2. हमारे दे श के कृ षक के पास छोटे-छोटे खेत ह ओर साथ ह ये खेत अलग-अलग और
दूर तक बखरे हु ए ह अलग-अलग दशाओं म और दूर-दूर बखरे खेत को जोतने, बोने तथा
उनक सुर ा करने म बहु त अ धक असु वधा होती ह ।
3. हमारे दे श के अ धकांश कृ षक अभी भी अ श त है । वे न तो अ छे बीज का योग
करते ह न रासाय नक खाद का योग करते ह, न ह कृ ष म आधु नक कृ ष य का योग
करते और न ह उ हे उ चत फसल प रवतन का ान ह । उनम खेती बाड़ी के सामा य ान क
कमी ह । अत: कसान का अ श त होना भी कृ ष के पछड़ेपन का एक बहु त बड़ा कारण ह ।
4. भारत म ाचीन समय से ह भू म पर कृ ष क जा रह है िजससे भू म के पोषक त व
और उपजाऊपन शि त समा त होने के कगार पर है । य द भू म म रासाय नक खाद न डाले
जाएँ तो कसान को पूरा लाभ नह ं मल सकता । गर ब क खाद का भी योग नह ं कर पाता
य क वह गोबर को भी उपले बनाकर ईधन के प म जला दे ता है । अत: कसान का आ थक
प से स प न न होना भी दे श क कृ ष के पछड़े होने का एक मह वपूण कारण है ।
उपरो त कारण के प रणाम व प हमारे दे श म त हे टे यर उपज दूसरे दे श क अपे ा
कम है । हमारे दे श म गेहू ं का त. हे टे यर उ पादन 2770 क. ाम है जब क ांस म यह
4773 क. ाम तथा टे न म 5212 क. ाम है । इसी कार भारत म चावल का त हे टे यर
उ पादन 208 क ाम है जब क जापान म 6340 क. ाम तथा को रया म 6556 क. ाम है ।
116
2. पेय फसल - चाय तथा कहवा ।
3. यवसा यक फसल - ग ना, रबड़, त बाकू तलहन ।
4. रे शेदार फसल - कपास, पटसन ।
5.3.1 चावल: चावल भारत क मह वपूण खा य फसल ह । ाचीन काल से ह ह दुओं के
धा मक काय म चावल का योग होता आया है । भारत क 50 तशत से अ धक जनसं या
चावल पर नभर करती ह । भारत क कुल कृ ष भू म के 23 तशत भाग पर चावल क खेती
क जाती ह । इसक खेती के लए न न ल खत भौगो लक दशाओं क आव यकता होती ह -
उपज क दशाएँ - चावल क कृ ष के लए न न ल खत दशाएँ आव यक है :-
तापमान : आदत गम जलवायु का पौधा है इसक कृ ष के बोते समय 21° सेि सयस बढ़ते समय
24° सेि सयस तथा पकते समय 27° सेि सयस क आव यकता होती है । 20° सेि सयस से
कम तापमान पर चावल अंकु रत ह नह होता है ।
वषा : चावल क खेती के 150 से 200 से.मी. वा षक वषाहोनी चा हए। 100 से.मी. से कम वषा
वाले े म संचाई क सहायता से कृ ष क जाती ह ।
धरातल : चावल क खेती मे पानी अ धक दे र तक भरा रहना आव यक है । इस लए चावल क
कृ ष के लए मैदानी भाग उपयु त है । बाढ के मैदान तथा न दयो के डे टा चावल क कृ ष के
लए उ तम थान है । म ी चावल क कृ ष के लए उपजाऊ चकनी म ी उपयु त होती ह
य क इस म अ धक समय तक नमी धारण करने क शि त अ धक होती है ।
म : चावल क कृ ष के लए लगभग सभी काय हाथ से करने पड़ते ह, इस लए इसक खेती के
लए प र मी, कु शल तथा स ते मजदूर क आव यकता होती ह यह कारण है क चावल क
कृ ष घनी आबाद वाले े मे ह क जाती ह ।
जी.बी े सी के अनुसार ''चावल को अ धक ताप, अ धक जल, अ धक कॉप क म ी
तथा अ धक म क आव यकता होती ह ता क यह अ धक जनसं या को अ धक भोजन दे
सके।''
118
वतरण : संचाई के वकास से पहले चावल क कृ ष डे टाई तथा तट य दे श म होती थी जहां
वा षक औसत वषा 150 सेमी. से अ धक होती ह अब संचाई क उ न त से सतलज गंगा के
मैदान म भी चावल क कृ ष ने आ चयजनक वकास कया है । भारत म चावल के मु य
उ पादक रा य उ तर दे श, पि चमी बंगाल, आ दे श, पंजाब, बहार, त मलनाडु तथा उड़ीसा ह
। इनके अ त र त असम, छ तीसगढ़, ह रयाणा, कनाटक, महारा तथा म य दे श रा य म भी
चावल क खेती क जाती है ।
पि चमी बंगाल : यह भारत का सबसे अ धक चावल उ पादक रा य है । यह दे श का 16.61
तशत चावल का उ पादन करता है । इस रा य क लगभग 60 तशत भू म पर चावल क
कृ ष क जाती है जो मश: जाड़े, पतझड़ तथा गम क ऋतु म बोई जाती है । यहां मदनापुर,
बांकु रा, फर दपुर तथा बदवान तथा जलपाईगुड़ी मु ख चावल उ पादक िजले ह ।
ता लका 5.3
भारत- चावल का रा यवार उ पादन, 2005-06
रा य उ पादन (लाख. टन) भारत के कुल उ पादन का
तशत
1. पि चमी बंगाल 146.62 16.61
2. उ तर दे श 130.18 16.75
3. पंजाब 95.56 10.94
4. आ दे श 89.52 10.19
5. उड़ीसा 68.02 7.71
6. बहार 53.93 6.11
7. असम 38.81 4.39
8. त मलनाडु 32.23 3.60
9. अ य 226.93 25.70
भारत 882.80 100.00
Source CMIE, March 2006-p50
2. उ तर दे श : पहले उ तर दे श भारत का केवल 7 से 8 तशत चावल ह उ प न
करता था । अब यह भारत का लगभग 15 तशत चावल उ प न करता ह । उ नत संचाई क
सु वधा, अ छे बीज और रासाय नक खाद के योग ने इस दशा म सहयोग कया है । उ तर
दे श म चावल क कृ ष ी मकाल म क जाती है । सहारनपुर, गोरखपुर , दे व रया, लखनऊ,
ग डा, ब ती, ब लया, रायबरे ल तथा पील भीत िजले चावल के मु ख उ पादक है ।
3. पंजाब : यह रा य चावल उ पादन क ि ट से भारत म तीसरे थान पर है । यहाँ
भारत का लगभग 11 तशत चावल उ प न कया जाता है । इस रा य म चावल क कृ ष
ी मकाल म क जाती है । संचाई क सु वधाओं के वकास के कारण चावल क कृ ष म बहु त
अ धक उ न त हु ई ह ।
119
4. आ दे श: यह रा य चावल का चौथा बड़ा उ पादक रा य है । यहाँ भारत का लगभग
10 तशत चावल उ प न कया जाता है । यह कृ णा तथा गोदावर न दय के डे टा, एवं
घा टय म चावल क कृ ष क जाती है । इस रा य के स उ पादक िजले कनू ल, गोदावर ,
कृ णा, कु ड पा, नैलोर तथा गंतरू ह ।
5. उड़ीसा : यह रा य भारत का 7.71 तशत चावल का उ पादन करता ह । कटक, पुर
तथा स भलपुर यह के स चावल उ पादक िजले ह । महानद का डे टा चावल क कृ ष के
लए वशेष प से अनुकू ल ह।
6. बहार: चावल क उपज के लए बहार रा य का भारत म छठा थान है । यहाँ दे श का
लगभग 6 तशत चावल उ प न कया जाता ह । इस रा य क कृ ष भू म के 30 तशत भाग
पर चावल क कृ ष क जाती है । गया, भागलपुर , मु ज फरपुर, तथा मु ंगरे िजले चावल क कृ ष
के लए बहु त स ह ।
7. असम : यह रा य भारत का 4.39 तशत चावल उ प न करता है । यह पहाड़ी
ढलान के साथ-साथ मपु तथा सुरमा न दय क घा टय म चावल क कृ ष क जाती है ।
गोलपाड़ा, नंदगांव तथा काम प यहां के मु य चावल उ पादक िजले ह जहां लगभग 75 तशत
भाग पर चावल क कृ ष क जाती ह ।
8. त मलनाडु : यह रा य भारत का 3.60 तशत चावल उ प न करता ह । यहाँ कावेर
डे टा चावल क कृ ष के लए स है । नील ग र, तंजाबूर , चंगलपेट तथा द णी अरकाट
िजल म चावल क खेती क जाती
9. अ य उ पादक : ह रयाणा, छ तीसगढ़, कनाटक, महारा , म य दे श तथा केरल चावल
के अ य उ पादक रा य ह । यहाँ पि चमी घाट तथा तट य भाग म चावल क खेती क जाती ह
। केरल म मालाबार तट य मैदान चावल क कृ ष के लए स है । ह रयाणा म संचाई क
सहायता से करनाल तथा कु े िजल म चावल उ प न कया जाता है ।
यापार :
य य प भारत संसार म चावल का दूसरा सबसे बड़ा उ पादक ह तथा प अ धक जनसं या
के कारण घरे लु खपत अ धक होने के कारण हम वदे श से चावल आयात करना पड़ता है । हम
मु यत: थाईलै ड, तथा क बो डया से चावल खर दते ह । ह रत ाि त के कारण अब हमारे दे श
म उ पादन बढ़ा है इसके प रणाम व प हम थोड़ी मा ा म चावल नयात भी कर दे ते ह । सन ्
2004-05 म भारत ने 2700 करोड़ पये का बासमती चावल स तथा मौ रशस आ द दे श को
नयात कया । यहां कम चावल उ पादक रा य म खपत अ धक ह अत: अ धक उ पादकता वाले
रा य कम चावल उ पादकता वाले रा य को रा य क आव यकतानुसार चावल भेजते है । अत:
घरे लु यापार अ तरा य यापार क अपे ा अ धक मह वपूण ह ।
121
म गेहू ँ के अ तगत े फल बढ़कर 265.7 लाख हे टे यर, उ पादन 740.50 लाख टन तथा उपज
2790 क ाम त हे टे यर हो गई । गेहू ँ के उ पादन म वृ के मु य कारण संचाई का
वकास, उ नत कार के बीज का तथा रासाय नक खाद का उपयोग ह ।
वतरण : उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा, म य दे श, बहार, तथा महारा रा य दे श के मु ख
उ पादन रा य ह । गेहू ँ के अ य उ पादक रा य गुजरात तथा ज मु क मीर ह जो थोड़ा बहु त
गेहू ँ उ पादन करते ह ।
उ तर दे श : इस रा य म गेहू ँ क उपज सबसे अ धक होती ह । यह रा य दे श के कुल गेहू ँ
उ पादन का 35.46 तशत गेहू ँ उ प न करता है । गंगा-घाघरा दोआब तथा गंगा यमु ना दोआब
गेहू ँ क कृ ष के मु ख उ पादक े ह । ये दोन े उ तर दे श क मश: 50 तथा 25
तशत गेहू ँ पैदा करते है । यहां क उ नत संचाई यव था तथा उपजाऊ म ी गेहू ँ उ पादन म
मु य प से सहयोग दे ती है । सहारनपुर , मु ज फर नगर, मु रादाबाद, मेरठ, कानपुर , रामपुर
तथा बुल दशहर आ द इस रा य के मु ख गेहू ँ उ पादक िजले ह ।
ता लका 5.4
भारत म गेहू ँ का रा यवार, उ पादन (2003-04)
.सं. रा य भारत के कु ल उ पादन का तशत
1. उ तर दे श 35.46
2. पंजाब 20.10
3. ह रयाणा 12.87
4. म य दे श 10.02
5. राज थान 8.15
6. बहार 5.24
7. अ य 8.36
भारत 7100.00
Source: Statistical Abstract of India 2005
पंजाब: गेहू ँ उ पादन म पंजाब का दे श म वतीय थान है । यहां क कुल कृ ष यो य भू म के
30 तशत भाग पर गेहू ँ उगाया जाता ह । यहां कु ल कृ ष भू म के 70 तशत भाग पर संचाई
क सु वधा है । गेहू ँ क कृ ष पर ह रत ाि त का मह वपूण भाव दे खने को मलता है । रा य
के अ धकांश कृ ष काय मशीन तथा मक वारा कए जाते ह । यहां के मु य गेहू ँ उ पादक
िजले लु धयाना, जाल धर, अमृतसर , कपूरथला, प टयाला, फरोजपुर, भ ट डा तथा संग र है ।
ह रयाणा : ह रयाणा रा य भारत का 12.67 तशत गेहू ँ पैदा करके तीसरे थान पर है ।
रोहतक, हसार, करनाल, कु े , अ बाला, जींद, फर दाबाद तथा सोनीपत मु य उ पादक िजले
ह । रा य के अ य िजल म भी थोडा बहु त गेहू ँ उ प न कया जाता है ।
म य दे श : यह रा य भारत का लगभग 10 तशत गेहू ँ पैदा करता है । गेहू ँ के उ पादन के
लए इस रा य को चौथा थान ा त है । यहां क पथर ल भू म तथा संचाई सु वधाओं के अ प
122
वकास के कारण यहां त हे टे यर उ पादन कम है । गेहू ँ के मुख उ पादक िजले उ जैन,
होशंगाबाद, सागर, इ दौर, भोपाल, दे वास, गुना , जबलपुर तथा वा लयर आ द है ।
राज थान : यह रा य भारत का 8.15 तशत गेहू ँ उ प न करता है । वषा क कमी के कारण
यहां गेहू ँ क खेती मु यत: संचाई क सहायता से क जाती है । इस रा य के गेहू ँ उ पादक
मु य िजले ी गंगानगर, भरतपुर , भीलवाड़ा, कोटा, आ द है ।
अ य : अ य रा य म महारा , पि चम बंगाल, गुजरात तथा उ तराखंड मुख गेहू ँ उ पादक
रा य ह । ये सभी रा य मलकर दे श का 8.36 तशत गेहू ँ पैदा करते ह ।
यापार : भारत म जनसं या म ती वृ के कारण गेहू ँ क मांग म वृ हु ई है । िजस कारण
गेहू ँ का नयात नह ं हो पाता है । भारत म गेहू ँ का आयात व नयात यादा नह ं है । जब हमारे
दे श म गेहू ँ अ धक हो जाता है तो हम नयात कर दे ते ह और जब कम उ प न होता है तो हम
गेहू ँ का आयात कर लेते ह । सन ् 2004-05 म भारत ने 1560 करोड़ . मू य का गेहू ँ नयात
कया है ।
कपास एक झाड़ीनुमा पौधा है िजसक ल बाई लगभग 1.5 से 2 मीटर तक पाई जाती है
। कपास एक रे शेदार फसल है िजसके रे शे से व बनाये जाते है । व व म आधे से अ धक
व कपास के रे शे के ह बनाये जाते ह । भारत म कपास के रे शे से व बनाने का काय 5000
वष पूव भी कया जाता था । यूनानी व वान हे रोडोटस ने भारत म कपास का उ लेख कया ह ।
कपास के कार
यवसा यक ि टकोण से कपास का वग करण इसके रे शे क ल बाई चमक तथा मजबूती
के आधार पर कया जाता है । कपास को न न ल खत तीन वग म बांटा जा सकता ह :-
1. ल बे रे शे क कपास : यह उ नत क म क कपास होती है िजसका रे शा ल बा,
चमक ला, ह का, मु लायम तथा मजबूत होता है । इसके रे शे क ल बाई 60 मल मीटर होती है
। इससे उ च को ट के व बनाये जाते ह । भारत क कु ल कपास क उपज का 41 तशत
भाग ल बे रे शे क कपास है ।
2. म यम रे शे क कपास : इसका रे शा 25 मल मीटर से 40 मल मीटर तक होता ह ।
यापा रक ि टकोण से यह मह वपूण कपास है । भारत म उ प न होने वाल 43 तशत
कपास म यम रे शे वाल कपास होती है ।
3. छोटे रे शे वाल कपास : इस जा त क कपास का रे शा 25 मल मीटर से कम ल बा
होता है । भारत म कु ल उपज का 16 तशत भाग छोट रे शे क कपास का होता है ।
4. भारत म कपास के कुल े फल का 39 तशत ल बे रे शेवाल , 44 तशत म यम रे शे
वाल तथा 17 तशत छोटे रे शे वाल कपास के अ तगत आता है ।
उपज क दशाएँ : कपास क कृ ष के लए न न ल खत भौगो लक प रि थ तय क आव यकता
होती है :-
123
1. तापमान : कपास उ ण क टब धीय पौधा है । इसके लए 250 सेि सयस तापमान आव यक
होता है । इसक कृ ष के लए वष म 210 दन पाला र हत दन होने चा हए । पाला कपास
क कृ ष के लए ह नकारक होता है । तेज धू प इसके लए उ तम होती है ।
2. वषा : कपास क , खेती के लए 50 से 100 सेमी. वा षक वषा उपयु त होती है । इससे
कम वषा वाले े म संचाई क सहायता से कपास क कृ ष क जाती है ।
3. म ी : काल म ी तथा भूर दोमट म ी कपास क कृ ष के लए उ तम होती है । म ी म
चू ने के अंश क अ धकता होनी चा हए । चू ने का अंश कम हो तो उवरक का योग करना
चा हए ।
4. म : कपास क कृ ष म यादातर काय हाथ से कया जाता है । इसक गुड़ाई तथा बनाई
के समय कुशल एवं स ते मको क आव यकता होती है ।
124
उपरो त ता लका से प ट है क सन ् 1950-51 म भारत म 58.82 लाख हे टे यर
े फल पर 30.44 लाख गाँठ का उ पादन कया गया जो 2005-06 म बढ़कर 89.20 लाख
हे टे यर े फल र 185.11 लाख गॉठे हो गया ह ।
वतरण :
भारत क लगभग 70% कपास द णी भारत म काल म ी के े म उ प न क
जाती ह । जब क 30% कपास भारत के उ तर भाग म उगाई जाती ह । द णी भारत के
रा य म गुजरात, महारा , आ दे श, कनाटक तथा त मलनाडु रा य कपास क कृ ष के लए
स है । उ तर भारत के रा यो म पंजाब, ह रयाणा राज थान तथा उ तर दे श रा य कपास
क खेती के लए स है ।
ता लका 5.8
भारत- रा यानुसार कपास उ पादन
स. रा य उ पादन (लाख गांठ म) भारत के कु ल उ पादन का:
126
उपज क दशाएँ - ग ने क कृ ष के लए न न ल खत भौगो लक दशाओं क आव यकता होती
ह:-
1. तापमान : ग ने क फसल के वधनकाल काफ ल बा होता है िजसे पकने म लगभग
एक वष लग जाता ह । ग ने क फसल के लए 20° से 30° तापमान क आव यकता होती है ।
इससे कम या अ धक तापमान पर ग ने क फसल को नह ं उगाया जा सकता । अ धक शीत
और पाला इसके लए हा नकारक होता ह ।
2. वषा : ग ने क कृ ष के लए 100 से 125 सेमी. वा षक वषा होनी चा हए । इससे कम
वषा वाले े म संचाई क सहायता से ग ने क कृ ष क जाती है ।
3. म ी : ग ने क कृ ष के लए दोमट तथा नमीयु त म यां उपयुक त रहती ह ।
द ण क लावायु त म ी म ग ना उ प न कया जाता है । नद घा टयां, डे टाई म ी तथा
बाढ़ के मैदान ग ने क कृ ष के लए बहु त उपयु त होते ह । इसक कृ ष के लए अ धक
उवरक क आव यकता होती है ।
4. भू म : इसके लए समतल मैदानी भाग उ तम रहते ह । समतल मैदान म ग ने क
खेती के लए आधु नक कृ ष य का योग आसानी से हो सकता है । 5. म. ग ने क खेती
म अ धकांश काय हाथ से करना पड़ता ह अत: अ धक म क आव यकता पड़ती है । िजन े
म ग ने क कृ ष म मशीनो का योग हो रहा है वहां कम म से काम चल जाता है ।
उ पादन : भारत व व क एक तहाई कृ ष भू म पर संसार का लगभग 2590, ग ना उ प न
करता ह, पर तु त हे टे यर उ पादन कम होने के कारण कु ल उ पादन भी कम होता है ।
ता लका 5 .7
भारत- ग ने का े फल व उ पादन
वष े फल उ पादन (लाख टन) उपज
(लाख हे टे यर) (ि वंटल) ( त हे टे कयर)
1970-71 26.15 1236.68 483.22
1980-81 26.17 154248 578.44
1990-91 36.86 241046 653.95
2001-02 43.16 295996 685.72
2005-06 42.10 315540 660
ोत : आ थक समी ा 2008-07
उपरो त ता लका से प ट है क ग ने के े फल उ पादन तथा त हे टे यर उपज म
उ लेखनीय बढो तर हु ई ह । वष 1970-71 म ग ने के अधीन े 26.15 लाख हे टे यर,
उ पादन 1263.68 लाख टन तथा उपज त हे टे यर 483.22 ि वंटल थी जो वष 2005-06 म
बढ़कर े फल 42.10 लाख हे टे यर, उ पादन 3155.40 लाख टन तथा उपज 660.00 ि वंटल
त हे टे यर हो गई ।
वतरण :
127
भारत के उ तर वशाल मैदान म भारत का लगभग दो तहाई ग ना उ प न होता ह ।
यहाँ उ तर दे श, पंजाब ह रयाणा तथा बहार ग ना के मु य उ पादक रा य ह ।
द ण भारत म महारा , त मलनाडु , आ दे श, कनाटक तथा म य दे श रा य म
ग ने क कृ ष क जाती ह ।
ता लका 5.8
भारत म ग ने का वतरण (2003-04)
. सं. रा य भारत के कु ल उ पादन का :
1. उ तर दे श 47.51
2. महारा 11.37
3. त मलनाडु 7.44
4. कनाटक 6.66
5. आ दे श 6.35
6. गुजरात 5.34
7. ह रयाणा 3.94
8. पंजाब 2.79
9. अ य मय 8.60
10. भारत 100.00
128
पंजाब : यह रा य भारत का 2.79% ग ना उ प न करता है । लु धयाना, जाल धर, अमृतसर ,
फरोजपुर तथा गुरदासपुर िजलो म ग ने क कृ ष क जाती है । अ य. उपरो त के अ त र त
उ तराख ड, बहार, म य दे श तथा पि चमी बंगाल भारत के अ य ग ना उ पादक रा य है ।
129
हे टे यर उ पादन 2.77 लाख टन तथा उपज. त हे टे यर 876 कलो ाम थी जो वय 2004-05
म बढ़कर मश : 4.85 लाख हे टे यर 8.00 लाख टन तथा 1649 क ाम त हे टे यर हो गई।
130
। चाय के मु य उ पादक िजले शवसागर, लखीमपुर व दरांग, नवगांव, तेजपुर व जोरहट,
गोलपाडा व काम प है । असम क मु य अथ यव था चाय क कृ ष पर ह आधा रत है ।
पि चमी बंगाल : यहाँ भारत क लगभग 24% चाय का उ पादन कया जाता है । चाय के मु य
उ पादक िजले दािज लंग, जलपाईगुडी, कू च बहार तथा पु लया है । दािज लंग क चाय
सु गि धत तथा उ तम कार क होती है िजसक दे श व वदे श म भार मांग रहती ह ।
त मलनाडु : यह रा य भारत क लगभग 15% चाय उ प न करता है । यहाँ नील गर तथा
अ नामलाई क पहा ड़य म इस रा य क मश: 46% तथा 33% चाय ा त होती है । चाय के
मु य उ पादक िजले नील गर , अ नामलाई, क याकु मार , कोय बटू र, मदुरई तथा त ने वल ह।
केरल : यह रा य भारत क लगभग 8% चाय उ प न करता ह । ावनकोर तथा कानन दे व स
केरल रा य क लगभग 75% चाय उ प न करते ह ।
अ य े : हमाचल दे श, उ तराख ड, पुरा, म णपुर, अ णाचल दे श तथा कनाटक म भी
अ प मा ा म चाय का उ पादन कया जाता है ।
यापार : भारत व व क चाय का मुख उ पादक होने के साथ-साथ चाय का सबसे बड़ा
नयातक भी है । व व के कु ल चाय नयात लगभग 25% भाग भारत से होता है । सन ् 1950-
51 से अब तक चाय के उ पादन म तो वृ हु ई है ले कन नयात म वशेष वृ नह ं हु ई ।
इसका कारण यह है क हमारे दे श म जनसं या वृ के साथ-साथ चाय क खपत म भी वृ का
होना है । 1950-51 म हम दे श क उपज का लगभग 70% चाय नयात करते थे और व व के
कु ल नयात का लगभग 40% था ।
ता लका 5.10
भारत-चाय का नयात
वष नयात (लाख टन म) मू य (करोड़ पये म)
1950-51 1.95 80
1960-61 1.99 124
1970-71 1.99 148
1980-81 2.29 1070
190-91 1.99 1070
1999-2000 1.65 1364
2005-06 1.81 1631
Source: Tea Board Statistices, Kolkata, 2006-07
उपरो त ता लका से प ट है क 1950-51 म हमारे दे श से 1.95 लाख टन चाय का
नयात कया गया जो 60 करोड़ पये का था । सन ् 2005-06 म 1.81 लाख टन चाय का
नयात कया गया िजसका मू य 16314 करोड़ पये था । चाय के नयात म तो कमी हु ई
जब क यापार मू य म लगभग 19 गुना वृ हु ई है ।
भारत क चाय का सबसे बडा ाहक दे श टे न है जो हमार चाय के कुल नयात का
60% खर दता है । हमारे दे श क चाय के अ य ाहक संयु त रा य अमे रका, स, आ े लया,
131
कनाडा, ईरान, पि चमी जमनी, नीदरलै ड, तु क , इराक, अफगा न तान, सू डान ह । भारत क
अ धकांश चाय कोलकाता, चे नई, मु बई, मंगलौर तथा कोची ब दरगाह से नयात क जाती है।
कहवा एक झाड़ी क उपज है िजनके फल लगते ह तथा उनके फूल के बीज को भू नकर
पीस लया जाता है और फर इसको चायं क भां त योग कया जाता है ।
उपज क दशाएँ :- कहवा एक गम एवं नम जलवायु का पौधा है । उ ण क टब धीय े म 15
से 1800 मीटर क ऊँचाई तक आता है । इसके लए व 17 से 25° सेि सयस तापमान क
आव यकता होती है । छोटे पौध को छायादार पौधे उगाकर धू प से र ा क जाती है । कहवे क
जड़ भी पानी म गल जाती है अत: इसे पहाड़ी ढाल पर उगाया जाता है । इसके लए उपजाऊ
गहर तथा सु वा हत म ी िजसम जीवांश तथा लोहांश तथा चू ना हो उपयु त होती है । अ धक
खड़ी ढाल इसके लए उपयु त नह ं रहती ।
म : कहवा के उ पादन म अ धक तथा स ते मक क आव यकता होती है । पेड़ को काटने,
छांटने, फल तोड़ने, बीज नकालने तथा धोने तथा सु खाने के लए तथा कहवा तैयार करने के
लए चुर म आव यक है : ।
उ पादन तथा वतरण :
भारत म लगभग 300 हजार हे टे यर भू म पर कहवा क कृ ष क जाती है । 1995-96
म 223 लाख टन कहवा का उ पादन कया गया जो व व का 3.5 तशत है । कनाटक रा य
सम त भारत का लगभग 70 तशत कहवा उ प न करता है । थम गा कनाटक, काठू र तथा
हसन िजल म कहवा क कृ ष के लए स है । त मलनाडु के नील ग र, उ तर अराकट तथा
कोय बटू र िजल म कहवा क कृ ष क जाती है । केरल तथा उड़ीसा रा य म भी कहवा के बाग
लगाये जाते ह ।
133
1980- 81 3678 1214 624 5516
1990-91 8000 3200 1300 12500
2004-05 11076 4124 1598 16798
3. सचाई का व तार :-
ह रत ाि त के लए बीज और खाद के. साथ-साथ संचाई क यव था करना अ य त
आव यक ह । भारत म वषा कुछ क मह न म होती है तथा वह भी अ नय मत एवं अ नि चत
होती है । अत: संचाई पर वशेष यान दया गया है । भारत म 1965-66 म केवल 320 लाख
हे टे यर भू म पर संचाई क सु वधा उपल ध थी जो 2002-03 म बढ़कर 728 लाख हे टे यर हो
गई तथा 2010 तक 1130 लाख हे टे यर कृ ष े को संचाई के अ तगत उपल ध कराने क
योजना है ।
4. लघु संचाई यव था :-
यह यव था बडे बांध के अ त र त कु ओं, नहर नलकू प तथा तालाब से भी करनी
पड़ती है िजससे छोट, म यम व बड़े कसान को इसका लाभ पहु ंचे । इस यव था म नलकू प,
कु एँ तथा तालाब बनाने के लए सरकार सहायता उपल ध कराती ह । सन ् 2004-05 म कुल
सं चत भू म क 70 तशत से अ धक संचाई लघु संचाई योजनाओं वारा क गई ।
5. क टनाशक दवाइय का योग :
एक अनुमान के अनुसार फसल म लगने वाल बीमा रयाँ तथा क ड़े -मकोड़े जीव-ज तु
फसल के उ पादन को एक चौथाई तक कम कर दे ते ह । अत: अ धक कृ ष उ पादन ा त करने
के लए फसल को क ड़े-मकोडे तथा बीमा रय से बचाना आव यक है । इनक रोकथाम के लए
वभ न कार क क टनाशक दवाइय का योग कया गया है । खड़ी फसल क र ा के लए
भारत म के य पौध संर ण सं थान, हैदराबाद श ण दे ता ह । प रणाम व प भारत म
क टनाशक दवाइय क खपत लगातार बढ़ रह है ।
6. आधु नक कृ ष य का योग :- भारतीय कृ ष म पुराने साधारण तथा पर परागत हाथ के
औजार के थान पर आधु नक मशीन का योग अ धक बढ़ गया िजससे ह रत ाि त को
सफलता मल । आधु नक कृ ष य म ै टर, क बाइन, हाव टर, थैशर, डीजल ईजन
तथा संचाई के लए अ याधु नक सबम सबल प प आ द का योग शु कर दया है । इन
सभी साधन के योग से अब भारतीय कसान अपने सभी कृ ष काय समय पर समा त
करने म स म हो गया है । कसान को स ती तथा अ छ मशीनर दलाने के लए
व भ न रा य म कृ ष उ योग नगम था पत कये गए ह । ये नगम कसान को कृ ष
स ब धी उपकरण स ते ऋण तथा आसान क त पर भी उपल ध कराते ह । कई रा य म
ै टर, थैशर, क बाईन आ द उपकरण कसान के लए कमाई के साधन बन गए ह ।
7. बहु फसल णाल - कृ ष य , उ नत बीज , रासाय नक उवरक तथा संचाई आ द क
सु वधाओं से फसल कम समय म पक कर तैयार होने लगी ह । इससे एक ह खेत म वष म
दो या दो से अ धक फसल उगाना भी स भव हो गया है । पर परागत खर फ व रबी क
फसल के अ त र त अब जायद फसल भी उगाना स भव हो गया है । वतमान म कु ल
सं चत े के लगभग 35 तशत भाग म दो फसल या अ धक फसल बोई जा सकती है ।
134
8. सु ऋण-सु वधाएँ :- सरकार नी त के अ तगत कसान को ऋण क सु वधाएं ा त होने लगी
ह । पहले कसान अपनी आव यकता का 90 तशत ऋण महाजन से ऊंचे याज पर लया
करता था । िजसे चु काना उसके लए बहु त क ठन हो जाता था । पर तु अब कसान को
सरकार स म तय , बैक तथा अ य साधन से कम याज पर ऋण मलने लगा है । कम
याज पर आव यकतानुसार ऋण मलने पर कसान उ चत मा ा म उ नत बीज, कृ ष य ,
उवरक आ द खर द सकता है और संचाई के साधन का योग भी कर सकता है ।
9. मृदा-पर ण :- ह रत ाि त के व तार हे तु मृदा पर ण अ त आव यक है । इस स दभ म
सरकार ने व तृत काय म बनाया है , िजसके अ तगत व भ न े क मृदा का सरकार
योगशालाओं म पर ण कया जाता है । इस पर ण से यह पता लगाया जाता है क
वभ न कार क म य म कन त व क कमी है और इसे कन उवरक तथा तर क से
दूर कया जा सकता है क कस कार क म ी म कस कार क फसल अ धक होगी और
उसम कस कार के बीज का योग कया जाए िजससे कृ ष फसल का अ धकतम लाभ
ा त हो सक ।
10. भू-संर ण :- ह रत ाि त को सफल बनाने के लए भू-संर ण का काय म भी लागू कया
गया ह । भू म कटाव को रोकने तथा भू म उवरता को बनाए रखने के लए व भ न उपाय
कये गऐ ह म थल के व तार को रोकने तथा शु क णाल के व तार को रोकने क
नई-नई योजनाएं बनाई जा रह है दे श के लगभग 5 करोड़ एकड़ बंजर भू म को कृ ष यो य
बनाने के लए य न कये जा रहे ह । इससे फसल म हेर-फेर को भी ो साहन मल रहा
है िजसके आगे कु छ सकारा मक प रणाम भी मले ह ।
11. कृ ष श ा एवं शोध :- कृ ष श ा एवं शोध ह रत ाि त क एक नई तथा मुख वशेषता
है । ह रत ाि त के बाद दे श म कृ ष को उ नत बनाने के लए कृ ष काय म सभी तर
पर शोध करना अ य त आव यक हो गया है । भारत सरकार ने 1975 से ह कृ ष
अनुसंधान सेवा का गठन करके सारे दे श म िजला तर पर कृ ष ान के खोले ह । ये
के अपने कमचा रय तथा कसान को कृ ष श ण श ा तथा नवीनतम कृ ष तकनीक
क जानकार दे ते ह । रे डयो -तथा ट वी. पर भी कृ ष से स बि धत काय म का सारण
कया जा रहा है ता क कसान को अ धक से अ धक से अ धक लाभ ा त हो सके ।
12. ामीण व युतीकरण :- कृ ष उपकरण को चलाने के लए व युत सबसे स ता एवं सु गम
शि त साधन है । अत: कृ ष के वकास के लए ामीण व युतीकरण नगम क थापना
क गई है । वत ता ाि त के समय हमारे दे श म केवल 0.5 तशत गाँव को ह
बजल उपल ध थी । सन ् 1970- 71 म 18.5 तशत गाँव , 1980-81 म या 47.3
तशत गाँव , 1990-91 म 80.6 तशत गाँव को बजल ा त हो चुक थी । 31 माच
2000 तक कुल 580,781 गाँव म से 5,08,065 गाँव अथात 87.48 तशत गाँव म
व युतीकरण हो चु का था । ह रयाणा दे श का पहला रा य था जहां पर सभी गाँव को
बजल उपल ध कराई गई ।पंजाब, केरल, आं दे श, कनाटक, गुजरात, हमाचल दे श,
त मलनाडु महारा तथा नागालड आ द म 97 तशत से 100 तशत गाव म बजल
ा त हो चुक ह ।
135
13. कृ ष वकास हेतु नगम क थापना :- भारत म ह रत ाि त क सफलता के लए अनेक
नगम को था पत कया गया है । कृ ष मि डय , रा य. बीज नगम, भारतीय खाद
नगम, रा य सहकार वकास नगम, ामीण व युतीकरण नगम तथा रा य डेयर
वकास जैसी सं थाऐं कृ ष वकास के लए क टब ह । कृ षक को उनक उपज का उ चत
मू य मल सके, इसके लए भारत सरकार ने 'कृ ष मू य आयोग' क भी थापना क ।
14. उ पाद क ब स ब धी सु वधाएँ :- पहले कसान अपनी फसल को महाजन को बेचते थे
। इससे उनको उ चत मू य नह ं मल पाता था । आज कसान अपनी फसल को अपनी
इ छा से बेचने के लए वत है । सरकार मि डय क थापना, सरकार वारा कृ ष
उपज को खर दना, समय पर पैस का भु गतान आ द क उपल धता के कारण अब कसान
कृ ष काय म च ले रहा है तथा कसान क इस कार क च के कारण ह रत ाि त
वकास क ओर अ सर है ।
15. समथन मू य या फसल क क मत का नधारण :- अनेक बार कृ ष उ पादन अ धक हो
जाने क वजह से बाजार म कृ ष उपज क क मत कम हो जाती है । इससे कृ ष उ पादन
पर वपर त भाव पड़ता ह । इस सम या को दूर करने के लए सरकार ने कृ ष लागत तथा
मू य आयोग क थापना क । इस आयोग का काय व भ न फसल का यूनतम मू य
नधा रत करना है । अगर कभी फसल का वा त वक मू य यूनतम समथन मू य से कम
होने लगता है तो सरकार अपने वारा नधा रत मू य पर कसान से फसल खर द लेती है ।
इससे कसान को कोई दु वधा नह ं रहती और वह नि चत होकर कृ ष करता है ।
136
1990-91 696.81 876.98 75.29 67.59 120.43 1837.1
2004-05 740.50 871.20 76.50 81.10 141.30 1910.60
Source: Statistical Abstract of India 2005, CMIE 2005may
2. कसान क आ थक ि थ त म सुधार :- ह रत ाि त से कृ ष उ पादन म अ य धक
वृ होने से कसान क आ थक ि थ त म काफ सु धार हु आ है और वे समृ क और अ सर
हु ए है । ह रत ाि त से छोटे तथा बड़े कसान को लाभ हु आ है ।
3. कसान क वचारधारा म प रवतन :- ह रत ाि त के आने से भारतीय कसान क
ढ़वाद वचारधारा म प रवतन हु आ है । अब कसान ाचीन कृ ष प त को छो कर नई कृ ष
प त अपनाने लगा है । जहां कह ं भी नई तकनीक मल है कसी भी कसान ने उसके भाव
से इ कार नह ं कया ।
4. ं ीवाद खेती :- ह रत
पू ज ाि त म नई कृ ष तकनीक से पूरा लाभ उठाने के लए
वभ न कार क मशीन , उवरक , उ नत बीज तथा संचाई आ द का ब ध कया जाता है ।
िजनके लए पया त धन क आव यकता होती है । इससे कृ ष म पूज
ं ीवाद को बढ़ावा मलता है
। अत: बड़े कसान िजनके पास 10 एकड़ से अ धक जमीन है वे अ धक कृ ष उ पादन के लए
कृ ष क गई तकनीक के ब ध म होने वाले खच को सहन करने म समथ होते है तथा छोटे
कसान िजनके पास दो एकड़ से कम जमीन है वे पया त मा ा म कृ ष म पूज
ं ी लगाने म
असमथ रहते ह । अत: ह रत ाि त से बड़े कसान ह यादा लाभाि वत हो रहे ह । वतमान म
ऋण आ द सु वधाओं के कारण छोटे कसान भी इसका लाभ उठा रहे ह ।
5. उ योग का वकास :- आधु नक य , उ नत बीज, रासाय नक खाद, संचाई के साधन,
ह रत ाि त के आधार ह । ह रत ाि त के अ तगत व भ न कार क मशीन जैसे ै टर,
थैशर, हाव टर, डीजल इंजन, प प सैट तथा रासाय नक उवरक जैसे नाइ ोजन, फ केट, पोटाश
आ द बड़े पैमाने पर योग कये जाते ह । अत: ह रत ाि त के बाद भारत म उपरो त व तु ओं
के नमाण उ योग म उ लेखनीय वकास हु आ है ।
6. मू य पर नय ण :- तृतीय पंचवष य योजना म कृ ष उपज के मू य म ती ग त से
वृ हु ई । पर तु ह रत ाि त के बाद कृ ष उ पादन म ती ग त से वृ हु ई िजसके
प रणाम व प कृ ष उ पाद के मू य म काफ कमी आई है । अत: प ट है क ह रत ाि त ने
अपने आरि भक वष म मू य को अ धक बढ़ने से रोकने म सहायता क ।
7. कृ ष काय म समय क बचत :- ह रत ाि त के अ तगत कृ ष का आधु नक करण होने
से कृ ष काय म मशीन का अ धका धक योग कया जाने लगा है । मशीनीकरण से कृ ष काय
करने पर समय क बचत होती है । कसान अब बचे हु ए समय का सदुपयोग अ य आ थक
ग त व धय म करके अ त र त आय ा त कर रहे ह ।
8. कृ ष के व प म प रवतन :- कृ ष काय म नवीन कृ ष य , रासाय नक उवरक के
उपयोग के साथ-साथ संचाई के साधन के वकास से ाकृ तक वषा पर कसान क नभरता
कम हु ई ह । भारतीय कृ ष अब जीवन नवाह कृ ष न रहकर एक यापा रक कृ ष का प ले
चु क ह । अत: हम कह सकते ह क वतमान म ह रत ाि त से भारतीय कृ ष का व प
ब कु ल बदल गया ह ।
137
5.4.3 ह रत ाि त के दोष या सम याएँ (Problems of green Revolution)
138
स मावना बनी हु ई ह । फर भी हम कह सकते ह क भू मह न मजदूर क दशा पहले से अ धक
खराब हो गई है ।
6. पयावरण दूषण : - कसान अ धक उ पादन के लए अ धक क टनाशक दवाओं तथा
रासाय नक उवरक का योग करते ह िजससे वायु, जल तथा भू म दू षत होती ह । वायु तथा
जल दूषण के कारण मनु य तथा जीव ज तु अनेक बीमा रय से त हो जाते ह जब क भू म
दूषण से म ी क उपजाऊ शि त न ट होकर भू म बंजर हो जाती ह ।
7. म ी क उपजाऊ शि त म ास :- कसान वारा अ धक पैदावार के लालच म एक ह
भू-भाग पर बार-बार खेती करने से भू म क उपजाऊ शि त कम ह जाती ह । कसान अ धक
पैदावार के च कर म भू म से िजतने पोषक त व को खींचते ह उसके बदले उतने लौटा नह ं पाते
। ह रयाणा तथा पंजाब के अनेक भाग म ह रत ाि त के कारण गहन कृ ष का चलन इसका
मु य कारण है ।
8. जल जमाव तथा खारे पन क सम या :- ह रत ाि त के अ तगत दे श म नहर तथा
नलकू प से संचाई क सु वधा क यव था क गई ह । कृ ष भू म क नहर वारा अ य धक
संचाई से जल जमाव क सम या आर भ हो गई ह साथ ह साथ पंजाब, ह रयाणा तथा उ तर
दे श क कृ ष भू म म खारे पन (रे ह) क सम या भी उभरकर सामने आ रह ह िजससे कसान
को लाभ होन क अपे ा हा न अ धक होती ह ।
ह रत ाि त क सफलता एंव था य व के लए सु झाव :-
दे श मे ह रत ाि त क सफलता एवं था य व के लए न न ल खत सु झाव दये जा
सकते ह :-
1. यापक े :- दे श म ह रत ाि त का भाव कु छ रा य जैसे पंजाब, ह रयाणा,
त मलनाडु तथा महारा तथा पि चम उ तर दे श तक ह सी मत ह जो पया त नह ं ह । ह रत
ाि त का पूरा लाभ उठाने के लए इसे दे श के अ य रा य म भी फैलाना आव यक ह ।
2. यापक फसल :- ह रत ाि त का भाव गेहू ँ के उ पादन तक ह सी मत ह । इसे
चावल, कपास, ग ना, पटसन आ द अ य यापक फसल क कृ ष पर भी लागू कया जाना
चा हए ।
3. संचाई क सु वधाओं का व तार :- ह रत ाि त क सफलता के लए संचाई का बहु त
अ धक मह व ह । उ नत बीज के योग के लए संचाई का मह वपूण योगदान ह । अत: ह रत
ाि त क सफलता के लए अ धक से अ धक े म संचाई क यव था क जानी चा हए ।
4. बहु फसल णाल :- ह रत ाि त का पूरा लाभ उठाने के लए वष म दो या दो से
अ धक फसल को बोया जाना चा हए । इससे कृ ष उ पादन बढ़े गा और बेरोजगार क सम या को
कम करने म भी सहायता मलेगी ।
5. एक कृ त फाम नी त :- इस नी त के अ तगत कसान को उ नत बीज, क टनाशक
दवाय, कृ ष य उ चत मू य पर उपल ध कराए जाते ह । इस नी त से छोटे तथा गर ब कसान
भी पूण लाभ उठा सकेग ।
139
6. छोटे कसान पर वशेष यान :- दे श म 85 तशत छोटे कसान ह । ह रत ाि त से
बड़े कसान को ह लाभ हु आ ह । छोटे कसान क आ थक ि थ त सुधारने के लए
न न ल खत सुझाव दए जा सकते ह:-
1. भू म सुधार को तुर त लाग कया जाए ।
2. अ त र त भू म को भू मह न तथा छोटे कसान म बांटा जाये ।
3. छोटे कसान को कृ ष य स ते कराये पर मलने चा हए ।
4. छोटे कसान को उ नत बीज, खाद तथा कृ ष य खर दने के लए कम याज पर
ऋण उपल ध होने चा हए ।
5. फसल के नुकसान पर तु र त भु गतान क यव था होनी चा हए तथा फसल बीमा
योजना अ नवाय होनी चा हए ।
7. नई कृ ष नी त म सुधार :- दे श क नई कृ ष नी त म न न ल खत सु धार कये जाने
चा हए:-
1. दे श के येक रा य म अ धक उपज दे ने वाले बीज का योग कया जाना चा हए ।
2. रासाय नक खाद क जगह गोबर तथा क पो ट खाद का अ धका धक योग कया जाना
चा हए ।
3. खाद बनाने के लए कारखान म महंगे ख नज तेल क बजाय सरसे कोयले तथा व युत
शि त का योग कया जाना चा हए । ऐसा करने से खाद नमाण लागत कम हो जायेगी तथा
छोटे कसान को खाद स ती दर पर उपल ध क जा सकेगी ।
8. सं थागत सुधार :- ह रत ाि त क सफलता म सं थागत सु धार का मह वपूण योगदान
हो सकता ह । का तकार के हत क र ा क जानी चा हए । इसके अलावा जोत का वभाजन
भी रोकने का यास करना चा हए ता क अ धक उ पादन को बढ़ावा मल सके । कृ ष उपज के
वपणन क उ चत सु वधा होनी चा हये । संचाई सु वधाओं के लए नहर, नद व जल ड क
योजनाएँ चलाई जानी चा हए । म ी कटाव से होने वाले नुकसान क जानकार कसान को द
जानी चा हए । जोत का आकार बढ़ाया जाना चा हये िजससे कृ ष उ पादन म वृ हो सके ।
उपरो त सु झाव को यान म रखकर कसान अपनी फसल म वृ कर खुशहाल जीवन
यतीत कर सकता ह ।
140
व श टता ज य स ब ता मलती ह ।'' अत: कृ ष दे श का अ भ ाय ऐसे दे श से ह जहाँ कृ ष
भू म के उपयोग, फसल के कार तथा उनक उ पादन व ध म सम पता मलती ह । भारत म
भौगो लक व वधताओं के फल व प कृ षगत फसल म भी व भ नताएँ पाई जाती है । तापमान,
वषा धरातल य दशा, म ी, फसल एवं पशु ओं के सह स ब ध तथा कृ ष उ पादन व ध इ या द
त य के आधार पर कृ ष दे श का नधारण कया जाता है ।
141
ो. आर.एल. संह का वग करण:-
फसल क धानता के आधार पर डॉ. रामलोचन संह ने भारत को न न ल खत 10
मु ख तथा 50 गौण दे श म बांटा है ।
1. चावल दे श
2. वार बाजरा दे श
3. गेहू ँ दे श
4. चना दे श
5. कपास दे श
6. म का दे श
7. मू ंगफल दे श
8. ना रयल दे श
9. बागाती या रोपण दे श
10. थाना तरणशील कृ ष दे श
ो. संह ने चावल दे श को 21, गेहू ँ दे श को 7, चना दे श को 3, वार बाजरा दे श
को 12 तथा कपास दे श को दो गौण भाग म बांटा ह मू ंगफल , म का, बागाती कृ ष,
थाना तरणशील कृ ष तथा ना रयल दे श एक-एक े म सीमां कत कये ह ।
भारत के कृ ष दे श :
जलवायु तथा म ी क व भ नता के कारण कृ ष म व भ नता पाई जाती है । समान
भौ तक प रि थ तय वाले दे श म बोई जाने वाल फसल लगभग एक जैसी होती है, उनको कृ ष
दे श कहते ह । भारत के व भ न भाग म भौ तक प रि थ तयाँ असमान होने के कारण वहाँ
वभ न कार क फसल उ प न क जाती है । कुछ दे श ऐसे ह जहाँ भौ तक प रि थ तयाँ
समान होती ह वह कृ ष लगभग समान होती है । अत: भौ तक प रि थ तय वशेषकर जलवायु
तथा म ी को यान म र कर भारत को न न ल खत कृ ष दे श म बीटा जा सकता है ।
1. नचल गंगा एवं मपु घाट का दे श :- इस दे श म प. बंगाल तथा असम सि म लत
है । यहाँ वष भर उ च तापमान, 150 से 250 सेमी. वा षक वषा तथा कांप म याँ पाई जाती
है । चावल, जू ट, ग ना तथा तलहन यह क मु य फसल ह । अ धकतर जनसं या कृ ष काय
म लगी हु ई है ।
2. गंगा क म य घाट का दे श:- इसम बहार व पूव उ तर दे श को शा मल कया गया
है । इसम दे श म 100 से 150 सेमी. वा षक तापमान तथा उपजाऊ कांप म याँ पाई जाती है
। यह चावल, गेहू ँ जी, चना व म का मु ख खा या न तथा ग ना व तलहन मु य यावसा यक
फसले ह । यह दे श वषा क अ नय मतता तथा अ नि चतता के कारण सामा यत: अकाल त
एवं बाढ़ त रहता है ।
3. गंगा क ऊपर घाट का दे श:- यह दे श पि चमी उ तर दे श म फैला हु आ है । यह ं
75 से 100 सेमी. वा षक वषा, उ च वा षक तापमान तथा कॉप म ी पाई जाती है । गहू ग ना,
142
चावल, जौ, चना, वार, म का, तलहन व कपास यह क मु य उपज ह । शीतकाल म संचाई
क सहायता से रबी फसल बोई जाती ह ।
4. सतलूज दे श :- यह दे श पंजाब तथा ह रयाणा रा य म व तृत है । यह वा षक वषा
50 से 75 सेमी. होती है । नहर वारा संचाई से चारा तथा फसल का उ पादन कया जाता है
। गेहू ँ यह क मु ख फसल ह । इस दे श म वार, बाजरा, जौ, तलहन चना तथा फलो पादन
क अ य मु ख फसल ह ।
5. म थल य दे श:- यह दे श उ तर-पि चमी गुजरात एवं राज थान म फैला हु आ है ।
इस दे श म 10 से 30 सेमी. वा षक वषा तथा उ च तापमान पाया जाता है । शु क े होने
कारण यह संचाई क बहु त अ धक आव यकता है । भाखड़ा नांगल, च बल एवं इं दरा गाँधी
नहर योजना से इस दे श क कृ ष काफ लाभाि वत हु ई है । गेहू ँ चना वार, बाजरा चना, मोठ,
जौ तथा कपास यहाँ क मु ख फसल है ।
6. काल म ी का दे श:- इस दे श म महारा , द णी गुजरात, पि चमी म य दे श
तथा कनाटक रा य के कुछ भाग शा मल है । यह 75 से 100 सेमी. वा षक वषा, उ च वा षक
तापमान तथा काल म ी पाई जाती है । लपा२नृ ग ना , गेहू ँ बाजरा, वार आ द यहाँ क मु ख
फसल है ।
7. लाल व लेटराइट म ी का दे श :- यह दे श कनाटक, उड़ीसा, पूव महारा , अ ध दे श
एवं मधा दे श रा य पर वसात है । यहाँ पर 75 से 125 सेमी के म य वा षक वषा होती है ।
यहाँ लेटराइट म ी पाई जाती है । यह उपजाऊ नह ं होती है । नद घा टय के उपजाऊ े म
चावल, ग ना, वार, बाजरा, कपास तथा मू गफल मह वपूण फसल उगाई जाती है । यह गेहू ँ
का उ पादन काफ कम पाया जाता है । पहाड़ी ढालू भाग म चाय, कहवा, मसाले आ द फसल
क कृ ष क जाती है । यहाँ तालाब वारा संचाई क यव था मह वपूण है ।
8. तट य मैदान :- यह दे श का व तार पूव एवं पि चमी समु तट य मैदान पर है । इन
तट पर पया त वषा होती है । तट य मैदान म चावल मुख खा या न फसल है । यह ग ना,
कपास, ना रयल, त बाकू व गम मसाले अ य मु ख यापा रक फसल उगाई जाती है ।
9. उ तर पवतीय दे श:- इस दे श म ज मु-क मीर, हमाचल दे श, उ तराखंड, सि कम,
अ णाचल दे श, नागालै ड, म णपुर , मेघालय, पुरा आ द पवतीय दे श शा मल है । यह कृ ष
का वकास बहु त कम हु आ है । पवतीय ढलान पर पशु एवं भेड़ बक रयाँ पाल जाती है । यहाँ
सेब क खेती अ धकतर क मीर, हमाचल दे श तथा उ तराखंड म क जाती है । क मीर म
केसर क कृ ष क जाती है ।
बोध न : 1
1. भारत क कु ल आय का कतने तशत भाग कृ ष से ा त होता है?
2. भारतीय कृ ष क चार मु ख वशे ष ताय लख ।
3. न न म से कौनसी फसल खा या न फसल नह ं है ?
(अ) चावल (ब) ग ना (स) गे हू ँ (द) म का
4. न न म से चाय का उ पादक नह ं है .
143
(अ) प.बं गाल (ब) हमाचल दे श (स) उ तराखं ड (द) म य दे श
5. ह रत ां त के ज मदाता का नाम बताइये ।
6. कृ ष दे श से आप या समझते ह?
7. भारत के कृ ष दे श नधा रत करने वाले दो मु ख व वान के नाम बताइये ।
144
करोड़ पये के उ पादन मू य का लगभग 35.7% है । 2004-05 के दौरान सकल घरे लू उ पाद
म इन े का योगदान 5.40% रहा ।
ता लका 5.14
भारत म पशुधन क ि थ त (करोड़ मे)
पशु धन 1966 1972 1982 1997 2003
1 गौ पशु 17.6 17.9 19.2 19.89 18.52
2 भस 5.3 5.8 7.0 8.99 9.79
3 भेड़ 4.2 4.0 4.9 5.75 6.15
4 बकर 5.5 6.8 9.5 12.27 12.44
5 अ य 0.8 0.8 1.4 1.68 1.60
योग 34.4 35.5 42.0 48.54 48.50
ोत- भारत- पशु गणना तवेदन 2003-04
6. अ डा उ पादन :- अ डा उ पादन म वगत वष म नर तर ग त हु ई है । िजसका मूल
कारण सरकार क अनुसध
ं ान तथा वकासा मक योजनाएं एवं संग ठत नजी े वारा
भावकार ब धन एवं वपणन था । वष 2005-06 म दे श म अ ड का उ पादन 46.5
म लयन था । भारत का अ डा उ पादन म पांचवा थान है ।
7. ऊन उ पादन:- पशु पालन म ऊन उ पादन का मह वपूण थान है दे श म ऊन का उ पान
1990-91 म 41.20 म लयन कलो ाम था वह बढ़कर 2005-06 म 49.0 म लयन
क ाम तक पहु ंच गया ।
8. अ य योगदान :- पशु पालन े म दूध, अ डा, मांस आ द के मा यम से पोषक त व
मानवीय आहार के लए ह ोट न उपल ध करता है बि क पशु े चमड़ा तथा खाल, र त,
ह डी तथा वसा जैसी क ची साम ी भी उपल ध करता है ।
145
3. पूव और पि चमी े : इसम बहार, पं. बंगाल, उड़ीसा, असम, पूव उ तर दे श ,
केरल तथा आ दे श सि म लत कये जाते ह । यहां पर पायी जाने वाल गाय कम दूध दे ने
वाल होती ह । चारे के लए बहु त ह कम भू म बोयी जाती है । इस े म भस व भसे अ धक
पाले जाते ह । इ ह दूध दे ने और खेती म काम करने के लए अ धक योग म लाया जाता है ।
4. म य वषा वाले े : इसम हम म य दे श, आ दे श, पं. त मलनाडू आ द को
सि म लत करते है । यह पर मोटे अनाज म बाजरा, वार आ द मु य फसल ह । दूध के लए
भस यादा पाल जाती है ।
दे श म गाय-बैल क सवा धक सं या म य दे श एवं पि चमी बंगाल रा य म है । इन
दोनो ह रा य म कु ल गाय-बैल क सं या का 20.42% भाग पाया जाता है ।
भसे मु यत: उ तर दे श के साथ-साथ पंजाब, ह रयाणा. आ दे श व पूव बहार म
पाल जाती ह । झारखंड, राज थान, महारा , गुजरात और म य दे श अ य मु ख भस पालक
रा य ह । दे श म भस क मूल सं या का एक चौथाई से कु छ कम अकेला उ तर दे श म पाया
जाता है ।
दे श म कुल भेड़ का 60% भाग मा तीन रा यो तथा आ दे श (34.77%) राज थान
(16.35%) तथा त मलनाडु (9.09%) म पाया जाता है । शेष महारा , कनाटक, उ तर दे श
और ह रयाणा म मु यतः पायी जाती ह ।
मु ख पशु पालन स ब धी अनुसध
ं ान :
भारतीय पशु च क सा ं ान सं थान ,
अनुसध इ जतनगर (बरे ल ), रा य डेयर
अनुसंधान सं थान करनाल (ह रयाणा), के ं ान सं थान, नगर मैसू र, के
य प ी अनुसध य भेड़
अनुसंधान सं थान अ वकानगर (राज थान) एवं के ं ान सं थान,
य भस अनुसध हसार
(ह रयाणा) आ द मु ख पशु पालन स ब धी अनुसध
ं ान ह ।
146
इसम ह रयाणा, ओंगोल धोआलो, कृ णा घाट , थारपारकर तथा कांकरे ज जा त क गाय बहु त
स ह ।
3) बोझा ढोने वाले न ल :
इसम मु य प से बहु त कम दूध दे ने वाल गाय भी होती है पर तु बैल बोझा ढोने यो य होते ह
। मु य प से नागोर , सांचोर कनकथा, मालवी, ह ल कर, खलार पंवार और सीर गाय क
जा तयां ह । भारत म
गाय क मु य न ल न न ह :
1. गर: यह मु य प से दूध दे ने वाल ट-पु ट एवं ल बे ऐंठे सींग वाल न ल है । इस
न ल का मू ल थान गुजरात म गर वन दे श है । यह गुजरात, महारा और राज थान म
मलती है । इससे त दूध काल (325 दन) मे 2000 ल टर तक दूध मलता है ।
2. कांकरे ज : इसका मूल थान क छ क खाड़ी का तट य दे श है । इस न ल का शर र
भार , सींग मोटे तथा बडे होते ह । इससे औसत तदु ध काल (325 दन) म 1800 ल टर दूध
मलता है ।
3. दे यनी : यह न ल हैदराबाद के नकटवत े म मलती है । इसक पीठ सीधी पु े
और पैर मजबूत, कान छोटे तथा सींग मु ड़े हु ऐ और शर र ध बेदार होता है । इसक उ नत न ल
1200 से 1800 ल टर तक दूध दे ती है ।
4. थारपारकर: इस न ल का ज म थान पा क तान के स ध े म है । भारत म
जोधपुर, जैसलमेर और गुजरात के क छ े म पायी जाती है । इसके सींग तथा सर छोटे होते
है । गाय मु य प से दुध के लए पायी जाती है ।
5. साह वाल :- यह न ल मु य प से पा क तान म मॉटगोमर िजले क है । भारत म
पंजाब के करनाल िजले उ तर दे श, म य दे श, बहार तथा द ल रा य म मलती ह । इस
न ल क गाय त दु ध काल म 1350 ल टर तक दूध दे ती है ।
6. मेवाती :- यह न ल उ तर दे श के खेरागढ़ म मलती है । इसका वतरण राज थान के
अलवर, भरतपुर तथा उ तर दे श के मथुरा िजले म वशेष प से पाया जाता ह
7. संधी :- इस न ल का ज म थान पा क तान है, क तु भारत म यह न ल सौरा ,
कनाटक, केरल, उड़ीसा, पंजाब आ द रा य म पाई जाती है । गाय का त ल टर दु ध काल
1800 से 2000 होता है ।
भैस क मु ख न ल न न है:
गायो के अलावा दु ध ाि त के लए भसे अ धक पाल जाती है । इनका दूध अ धक
पौि टक, भार और चकना होता है । सबसे अ धक आ दे श म उ तर दे श, आ दे श और
त मलनाडु म भी भसे पाल जाती ह । भस क मु ख न ल न न है
1. जाफरावाद : न ल सौरा के ग र वन दे श म पायी जाती है । इसका रं ग काला,
सींग बड़े और सर बड़ा होता है । इस कार क न ल तवष 1,900 से 5,000 ल टर तक दूध
दे ती है ।
147
2. मु रा : इस कार क न ल मु य प से उ तर दे श, पंजाब, ह रयाणा और द ल म
यह पायी जाती ह । इसका शर र भार , सु ग ठत एवं सर छोटा तथा रं ग काला होता है । इस
न ल क भस त दूध काल म 1800 से 6000 ल टर तक दूध दे ती है ।
3. मदावर : उ तर दे श के इटावा और म य दे श के वा लयर िजल म यह वशेष प से
मलती है । इस न ल से 1500 से 2500 कलो ाम तक दूध ा त होता है ।
भारत म भेड़ क न ल तथा भेड़ पालन े :
भेड़ : भारत म भेड़ व तृत चारागाह े म पायी जाती ह । भारत म लगभग 6.14 करोड़ भेड़
है। ये अ धकतर शीतल और सूखे े म मलती ह । भेड़ को मु यत: दो ि ट से पाला जाता
है -
1. इनसे ब ढ़या क म का ऊन ा त कया जाता है । उ पादन का 40 तशत वदे श का
नयात कया जाता है ।
2. भेड़ मांस के लए भी पाल जाती है पर तु इनक मा ा कम होती है ।
भेड़ पालन के मु ख े :
1. भारत के उ तर े : इस े म अ धक अ छ और सफेद बाल वाल भेड़ पाल जाती
है । भेड़ पालन के मु य े पंजाब म लु धयाना, अमृतसर , प टयाला, ह रयाणा म हसार और
अ बाला िजले, उ तराख ड म गढ़वाल, अ मोड़ा तथा ज मु-क मीर का पवतीय भाग आता है ।
हमाचल दे श क मु य न ल न न ह :
1. गुरैल : यह क मीर क गुरैल तहसील म पायी जाती ह । ये बना सींग वाल होती ह ।
इनसे सफेद ऊन वष म दो बार 6 से 8 माह ा त होती है ।
2. गढ़ या भदरवाह: इस कार क भेड़ ज मू क भदरवाह और क तवार तहसील म पाल
जाती है । इसके मु ँह पर काले या भूरे ध बे होते ह । इनसे वष म तीन बार ऊन काट जाती है ।
इनसे क बल और शाल बनाने के लए अ छ क म क ऊन ा त होती है ।
3. अ य कार क भेड़ : इसम भ खरवाल, करजा आ द न ल क भेड़ पाल जाती है ।
इसम भी भ खरवाल भेड़ क मीर के नचले ढाल तथा क मीर घाट म व पहलगांव तहसील म
पायी जाती ह । इसक ऊन मोट और मह न दोनो ह कार क होती है ।
2. शु क उ तर पि चमी े : भारत के पि चमी शु क े म जो भेड़ पायी जाती ह वे
गम तथा कठोर शीत को भी सहन कर सकती ह ये छोट घास पर ह नभर रह सकती ह । इस
े म पायी जाने वाल भेड़ के बाल का उपयोग गल चे बनाने म कया जाता है ।
पि चमी भाग म न न न ल क भेड़ पायी जाती है :
1. बीकानेर : इस कार क भेड़ मु य प से राज थान, ह रयाणा के सूखे भाग और
पंजाब के फरोजपुर िजले म पायी जाती ह । इनके कान छोटे और सींग नह ं होते, मु ँह लाल या
सफेद होता है । त भेड़ 4 से 8 माह तक ऊन मलती है ।
2. लोह : इस कार क भेड़ राज थान क द णी भाग तथा अमृतसर म पाल जाती ह
। इनक ऊन से मोटे क बल तथा कपडे बनाये जाते है ।
148
3. मारवाड़ी : इस न ल क भेड़ जोधपुर, पाल व बाड़मेर िजल म पायी जाती ह । त
भेड़ के पीछे 1.5 से 2.5 कलो ाम ह के क म का ऊन मलता है ।
3. अ -शु क द णी े :
1. दकनी भेड़: ये मु यत: द णी महारा और कनाटक रा य म मलती है इस कार
क भेड़ से 1.5 कलो ाम ऊन वष भर म ा त होती है ।
2. नेलौर : यह मु य प से त मलनाडु और कनाटक म पायी जाती ह । इनसे सफेद,
भू रा, पील आ द रं ग क ऊन ा त क जाती है । यह भारतीय भेड़ म सबसे ल बी
न ल होती है ।
भारत म ऊन के कु ल उ पादन का लगभग 40 तशत अकेले राज थान से ा त होता
है । शेष उ पादन ज मूक मीर, गुजरात, आं दे श, कनाटक, उ तर दे श व पंजाब से ा त
होता है ।
भारत म भेड़ क न ल सुधार के काय के लए 90 भेड़ जनन के और 1331
व तार के खोले गये है । ह रयाणा के हसार म ि थत फाम ने व भ न रा य को अब तक
4000 से अ धक उ तम न ल के भेड़ जनन के लए उपल ध कराये ह । राज थान म
अ वकानगर एवं सूरतगढ़ म के य भेड़ अनुसध
ं ान सं था खोले गऐ ह ।
ऊँट :
यह म थल य और अध-म थल य पशु है । वशष प से ऊँट म थल य े म
सवार करने और बोझा ढोने के लए इसका उपयोग कया जाता है । यह कई दन तक बना
खाना खाये व जल पीये रह सकते ह । इनका पावं चौड़ा व गदे दार होता है । अत: यह म थल
म भी अ छ तरह दौड़ व चल सकता है । यह कारण है क ऊँट को म थल का जहाज कहा
जाता है ।
ऊँट के बाल से र से-क बल, द रयां आ द बनायी जाती है । चमड़े का उपयोग काठ ,
थैले और तेल रखने क कु ि पयाँ बनाने को कया जाता है ।
भारत म सबसे अ धक ऊँट राज थान म मलते ह । पंजाब, ह रयाणा, गुजरात उ तर
दे श म भी यह पाया जाता है । भारत म मु य प से तीन कार के ऊँट पाये जाते है -
1. मैदानी: जो मु य प से पंजाब तथा उ तर दे श म पाये जाते ह ।
2. म थल : इस कार के ऊँट राज थान के जैसलमेर तथा बीकानेर म पाये जाते ह।
ये काफ मजबूत होते ह ।
3. पहाड़ी ऊँट: इस कार के ऊँट पंजाब के पवतीय े म पाये जाते है ।
राज थान म ऊँट क अलवर, बीकानेर , क छ , जैसलमेर न ल सव तम मानी जाती ह
। एक ऊँट 50 क.मी.तक दन भर म चल सकता है ।
बक रयाँ :
बकर गर ब क गाय समझी जाती है । बकर बहु उपयोगी होती है । इससे दूध, मांस,
चमड़ा और बाल ा त होते है । इनका दूध वा य क ि ट से बड़ा उपयोगी माना जाता है 20
तशत बक रयाँ दूध के लए पाल जाती ह ।
149
1. जमु नापार :- इस कार क बक रयाँ, गंगा, च बल न दय के े म पायी जाती ह ।
इनका रं ग सफेद तथा भू रा होता है । इनके बाल ल बे तथा सींग छोटे होते ह । इनका उपयोग
भार ढोने. मांस और दूध ा त करने के लए कया जाता है । एक बकर से त दन औसतन 5
कलो ाम दूध ा त होता है ।
2. बरबर :- यह मु य प से द ल , ह रयाणा के गुड़गाँव और करनाल िजल तथा यूपी
के इटावा, मथुरा व आगरा मे पायी जाती है । यह 1 से 2 माह त दन दूध दे ती है ।
3. हमालय बकर :- यह हमाचल दे श, पंजाब और क मीर रा य म मु य प से दूध के
लए पाल जाती ह । इस बकर के बाल अ धक मु लायम होते है ।
4. प मीना :- इस न ल क बकर हमाचल े म 3500 मीटर क ऊंचाई तक पाल
जाती है । इससे ा त ऊन से कपड़े तैयार कया जाता ह ।
5. बंगाल :- यह बकर बंगाल म अ धक वषा वाले े म पायी जाती है इनसे दूध कम व
मांस का योग यादा कया जाता है । इनका मांस बड़ा ह वा द ट होता है ।
अ य पशु पालन :
अ य पशु पालन म घोड़े व ट ू ख चर, गधे, मु ग पालन, रे शम क ट पालन को शा मल
कया जाता है ।
150
ग) ब ढ़या न ल का आयात :- यूल लै ड से जस और हा ट न फ िजयन न ल का
आयात कर उ ह व भ न रा य म बाँटा जा रहा है ।
घ) चारे व पशु खा यान के लए फाम क थापना :- ज मु-क मीर, क याणी, पि चमी
बंगाल, सू रतगढ हसार और ममीद प ल (आं दे श) म चारा उ प न के फाम
था पत कये जा रहे ह ।
ङ) दुधा पशु ओं क न ल सुधारने म रा य डेयर वकास बोड (NDDB) आन द,
गुजरात एवं खेड़ा डेयर वकास आन द वारा व ता रत योजना एवं शोध तथा
सहयोग कया जा रहा है । इनसे गाँव- गाँव म पशु न ल सुधार हो सकता है ।
अत: सभी योजनाऐं ऐसी ह, िजससे पशु ओं क दशा को सुधारने म मदद मलती है ।
बोध : 2
1. 2003 क पशु गणना के अनु सार भारत म कु ल पशु कतने ह?
2. व व म भारत का पशु धन क ि ट से कौनसा थान है ?
3. न न म से गाय क न ल नह ं ह:
(अ) गर (ब) मु रा (स) कां क रे ज (द) थारपारकर
4. के य भे ड़ अनु सं धान सं थान कह ं पर ि थत है ?
151
उ पादन, म ी क उ पादन मता के हलास, जल भाव व खारापन, े ीय असंतु लन व
यि तगत वएषमताय. आ द ।
कृ ष दे श से अ भ ाय ऐसे दे श से है जहाँ कृ ष भू म के उपयोग, फसल के कार व
उ पादन व ध म सम पता मलती है । डा. र धावा व डा. आर.एल. सह वारा भारत के कृ ष
दे श नधारण का यास सराहनीय है ।
भारतीय कृ ष म पशु संसाधन भी मह वपूण भू मका नभाते है । दे श म गाय-बैल क
सवा धक सं या म य दे श एवं पि चमी बंगाल म है । भसे मु यत: उ तर दे श, पंजाब,
ह रयाणा, आं दे श व बहार म पाल जाती है । भेड़ धानत: आ दे श, राज थान व
त मलनाडु म पायी जाती है । बरे ल , करनाल, अ वकानगर हसार आ द म मुख पशु अनुसंधान
सं थान है । ऊँट सवा धक राज थान म मलते है । पशु ओ क दशा सुधार हे तु गौशालाय, ाम
के योजना, उ तम वैल के , पशु जनन फाम, रा य डेयर वकास योड आ द क थापना
क गई है ।
5.10 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. 35 तशत
152
2. ज़ोत का छोटा होना, मानसू न का जु आ, फसल वै व य, त एकड़ उजप कम
3. (ब)
4. (द)
5. ो. अरने ट बौरलॉग
6. कृ ष दे श से अ भ ाय ऐसे दे श से है जहाँ पर कृ ष भू म के उपयोग, फसल के
कार तथा उनक उ पादन व ध म सम पता मलती है ।
7. ो. र धावा एवं ो.आर.एल. संह
बोध न-2
1. करोड़
2. वतीय
3. (ब)
4. अ वकानगर, मालपुरा (राज थान)
5.11 अ यासाथ न
1. भारतीय कृ ष क वशेषताओं का व तारपूवक वणन क िजए।
2. भारत म चावल के उगाने क दशाएँ उपज एवं ववरण क ववेचना क िजए।
3. गेहू ँ क कृ ष के लए अनुकूल प रि थ तय का वणन क िजए और भारत म गेहू ँ क कृ ष
का उ लेख क िजए।
4. कपास क उपज के लए कौन-कौन सी भौगो लक प रि थ तयाँ अनुकू ल ह? भारत म
इसके उ पादन तथा वतरण का व तृत वणन क िजए ।
5. कपास क कृ ष के लए अनुकूल प रि थ तय का वणन क िजए और भारत म कपास
क कृ ष क ववेचना क िजए ।
6. ग ने क कृ ष के लए कौन-कौन सी भौगो लक प रि थ तय अनुकू ल ह? भारत म ग ने
के उ पादन तथा वतरण का वणन क िजए ।
7. भारत म चाय के उ पादन, वतरण तथा यापार क ववेचना क िजए तथा इसक कृ ष
के भौगो लक कारक क या या क िजए।
8. भारत म पैदा होने वाले मु ख पेय पदाथ के नाम गनाते हु ए कसी एक पेय पदाथ हे तु
आदश भौगो लक दशाओं वतरण तथा यापार का वणन क िजऐ ।
9. न न ल खत का कारण बताइए :-
1. चावल मु यत: नद डे ट क फसल है ।
2. गेहू ँ मु यत: सतलुज गंगा के मैदान म उगाया जाता है ।
3. भारत क दो तहाई चाय असम व पि चमी बंगाल म होती है।
4. महारा कपास का मु य उ पादक है ।
5. चाय का आ थक मह व अ धक है ।
10. भारतीय अथ यव था म पशु स पदा के मह व एवं पशुओं क वतमान ि थ त क
समी ा क िजए।
153
11. भारत म गाय क मु य न ल के वतरण ा प का वणन किजए ।
12. भारत म भस क मु ख न ल के वतरण ा प का वणन क िजए ।
13. ट पणी ल खए :
1. भारत के मु य पशु पालन े ।
2. भेड़ और बक रय क उ नत न ल एवं वतरण ा प ।
3. ऊट क क म एवं वतरण ा प ।
4. पशु धन सु धार के उपाय ।
154
इकाई 6 : सू खा और बाढ़ (Drought and Flood)
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 सू खा
6.3 सू खे के कार
6.4 सू खा पड़ने के कारण
6.5 दे श म मु ख सखा वष
6.6 सू खा भा वत े
6.7 सू खे का भाव एवं सम याएँ
6.8 सू खे का समाधान
6.9 बाढ़
6.10 बाढ़ के कारण
6.11 बाढ़ भा वत े
6.12 बाढ़ का भाव एवं सम याएँ
6.13 बाढ़ से होने वाल त
6.14 बाढ़ का समाधान
6.15 बाढ़ नयं ण स ब धी काय
6.16 सारांश
6.17 श दावल
6.18 संदभ थ
6.19 बोध न के उतर
6.20 अ यासाथ न
6.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप समझ सकगे -
सू खा के कार, सू खा से उ प न सम याएँ तथा समाधान के लए सुझाव।
बाढ़ के कारण, भा वत े , सम याएँ तथा समाधान के लए सुझाव ।
सू खा व बाढ आपदा ब धन के वषय म जानकार ।
155
ाकृ तक आपदा है । िजसका जन-जीवन तथा औ यो गक जगत पर बहु त तकूल भाव पड़ता
है ।
6.2 सू खा (Drought)
सू खा एक ाकृ तक संकट है और ाचीनकाल से ह एक च ता का वषय है । हमारे.
दे श म तवष कह ं न कह ं सूखा पडता है ले कन संपण
ू दे श म एक साथ सू खा कभी नह ं पड़ता
। दे श म ऐसे बहु त कम े ह िज ह सू खे का सामना नह ं करना पड़ता । इस ि ट से भारत
का पूव तथा उ तर -पूव े अव य भा यशाल है जहाँ सूखे क संभावना बहु त ह कम रहती है
। शेष भारत नर तर पड़ने वाले सूखे क सम या से सत रहता है । सू खा अब एक ाकृ तक
आपदा के साथ-साथ य से मानवीय याकलाप का तफल माना जाने लगा है । कृ त के
नर तर असी मत दोहन से वातावरण म असाम यक प रवतन होता जा रहा है । हमारे दे श म
नर तर पडने वाला सू खा एक सीमा तक उसी का प रणाम है । आज जलवायु प रवतन क
सम या से न केवल भारत अ पतु संपण
ू व व के दे श च ततन है । इस सम या के समाधान के
लए अनेक दे श यासरत है ।
इ तहास सा ी है क हमारे दे श को सू खे क ि थ त का अनेक बार सामना करना पड़ा है
। आज से लगभग 2000 वष पूव मौय युग के महान ् दाश नक चाण य ने सू खे से भा वत
जनता को राहत उपल ध कराने के वषय म रा य के काय और दा य व का वशद वणन कया
है । मु गलकाल न शासक वारा भी सूखा से लोग को बचाने के लए भावशाल उपाय कये
जाते थे । जगह-जगह बावड़ी व तालाब इ या द का नमाण इसके सूचक ह । राज थान म ऐसे
अनेक उदाहरण मौजू द ह । शु क े म जनसं या क वृ त जलाभाव के कारण ह पाई जाती
है । 19वीं शता द म दे श म -लगातार अकाल क ि थ त से ववश होकर टश सरकार ने
1878 ई. म एक आयोग का गठन कया िजसने दु भ सं हता क परे खा तु त क । यह
सं हता थानीय तर पर कु छ उपयोगी अव य स हु ई थी ले कन बड़े अकाल म यह यव था
कारगर नह ं हु ई । वष 1943 के बंगाल के अकाल म हजार लोग मारे गये जो क अकाल आपदा
ब ध, णाल के वफल होने का एक मु ख उदाहरण है । गत 50 वष म भारत म 14 से
अ धक बार भीषण सू खा पड़ा है िजनम व 1987 का सूखा सबसे भीषणतम सू खा था िजसने क
दे श के आधे से अ धक भाग को अपने चपेट म लया था ।
जल के अभाव के संचयी भाव से सू खा का ज म होता है तथा इसके कोप से अकाल
क ि थ त उ प न हो जाती है । ात य है क द घकाल तक शु कता म वृ के कारण उ प न
होने वाले सू खे का वषा क मा ा सामा य औसत वा षक वषा से उसका वचलन तथा व भ न
उ े य के लए जल क थानीय मांग से गहरा स ब ध होता है । सू खे के लए वषा क मा ा
उतनी िज मेदार नह ं होती िजतनी वषा क अ नय तता िज मेदार होती है । सामा यतया सूखे क
प रभाषा जमीन म नमी क उपल ता के आधार पर द जाती है िजसे आ ता सू चकाँक के प म
मापा जाता है । इसके अनुसार सूखा तकू ल आ ता सूचकॉक अथवा तकूल जल संतल
ु न को
कट करता है । य द थानीय फसल क सामा य आव यकताओं क पू त के लये वषा जल
उपल ध नह ं होता, उसे सू खे क ि थ त कहा जा सकता है । इस तरह से सूखे क सम या
मू ल प से कसी े वशेष क सम या होती है जो उस थान पर उगाई जाने वाल फसल के
156
लए जल क आव यकता पर नभर है । कसी भी े म सू खे क घोषणा वहाँ होने वाल कम
वषा के कारण फसल को हु ई त के आधार पर रा य सरकार वारा वत प से क जाती
है । उदाहरण के लए पि चमी राज थान म जहाँ बाजरा क फसल अ प वषा होने पर भी
सफलतापूवक उगा ल जाती है वह ये मापद ड पूव भारत के पि चमी बंगाल के मापद ड से पूर
तरह भ न है य क वहाँ धान क फसल के लए अ धक पानी क आव यकता होती है ।
सू खे को प रभा षत करना बहु त क ठन है । इसके नधारण म वषा एक मु ख वचार है
तथा प सूखे क प रभाषाओं एवं सूचकांको म सौ यक व करण तापमान, वा पीकरण आ ता, वायु,
मृदा , आ ता, स रत वाह वन प त आ द वचार को भी सि म लत कया जाता है । उपयु त
वचार के आधार पर क तपय प रभाषाएँ न न ल खत ह -
''सू खे क ि थ त उस समय उ प न होती है जब वा षक वषा सामा य वा षक वषा क
75 तशत या उससे कम तथा मा सक वषा सामा य मा सक वषा क 60 तशत या उससे
कम होती है ।
- सी.जी.बे स 1925
''जब वा षक एवं मा सक वषा सामा य वषा के 85 तशत से कम होती है तब सू खे क
ि थ त उ प न होती है ।
- जे.सी.होयट, 1936
''सू खे के समय एक स ताह तक वषा सामा य क आधी या उससे कम होती है । ''
- डी.ए.रामदास, 1950
भारत के स दभ म सू खा को प रभा षत करना अनेक कारण से क ठन है य क
भारतीय कृ षकाय का आधार जल मौसमी वृ त से स बि धत होता है । भारतीय सू खे का
य भाव खर फ क फसल पर पड़ता है । मानसू नी वषा के नह ं होने से अथवा कम होने से
सू खे क ि थ त उ प न हो जाती है तथा खर फ फसल न ट हो जाती है । भारतीय मौसम
व ान वभाग (आई.एम.डी.) के अनुसार उस दशा को सूखा कहते ह जब कसी भी े म
सामा य वषा से वा त वक वषा 75 तशत से कम होती है । सरल श द म कह सकते ह क
सू खा असामा य मौसम वाल समयाव ध है, िजसम वषा का पूण या लगभग अभाव होता है
िजससे वन प तयाँ और फसल सू खने लगती ह ।
157
(3) कृ षगत सू खा : मौसम वै ा नक और जल वै ा नक सूख के कारण जब पौध क जड़ म
पयापत नमी नह ं मलती तो उसे कृ षगत सू खा कहते है । कृ षगत सूखे का ह सवा धक
समािजक व आ थक भाव पड़ता है।
(4) पा र थ तक य सूखा : जब पानी क कमी से ाकृ तक पा र थ तक य तं क उ पादकता घट
जाती है और ाकृ तक पयावरण त त हो जाता है तो इसे पा रि थ तक य सू खा कहा जाता
है।
गहनता के आधार पर सू खे को तीन भाग म वभािजत कया जाता है:
1. अ य त सू खा े : यह कु ल सू खा भा वत े के 12 तशत भाग पर फैला है ।
2. बल सूखा े : इसका व तार 42 तशत भाग पर मलता है ।
3. म यम सू खा े : इसके अ तगत कु ल सू खा भा वत े का 46 तशत भाग सि म लत
कया जाता है ।
158
पि चमी भारत (50 तशत) म पाया जाता है । यह नय मतता अ धकतम व यूनतम वषा वाले
े म अ धक भावशाल नह ं होता य क जहाँ एक और अ धकतम वषा वाले े म सदै व ह
फसल के लए जल पया त मा ा म ा त हो जाता है वहाँ दूसर ओर शु क े म फसल
उगाने क लए संचाई क पहले से ह समु चत यव था कर लये जाने के कारण उ पादन पर
बहु त अ धक वपर त भाव नह ं पड़ता । म यम वषा वाले े म वषा क ं अ नय मतता फसल
उ पादन पर एकदम भावकार स होती है । ऐसा वशेष प से 50 से 100 सेमी. वषा वाले
े म होता है । यह थोड़ी सी वषा कम होने पर अकाल पड़ने क संभावना बढ़ जाती है ।
ऊपर व म य गंगा का मैदान, ाय वीप भारत ् के अ धकांश भाग म पडने वाला सू खा
ी मकाल न द.पि चमी मानसू न क अ नय मतता का प रणाम है । यह ं भाग भारत के अकाल
े कहलाते है । (मान च 6. 1)
इसी कार वषा क अ नि चतता का भाव भी सू खे क उ पि त पर पड़ता है । कभी
मानसू न समय से पूव, कभी समय पर तो कभी कई स ताह क दे र से आता है । ऐसा अनुमान
है क दस वष म से केवल दो वष मानसू न समय पर आता है वह समय पर समा त होता है
शेष आठ वष म उसका आने जाने का समय अ नि चत रहता ह ।
(iii) मानसू न वभंगता : मानसू नी वषा लगातार नह ं होती अ पतु क- ककर हु आ करती है । दो
वष के बीच म यह अ तर कभी-कभी जु लाई व अग त के मह ने म बहु त ल बा हो जाता है ।
इससे खड़ी फसल सू ख जाती है और कसान को बहु त त उठानी पड़ती है । कृ ष ज य सूखे
पर मानसू न क वभगता का सवा धक भाव पडता है ।
(iv) शु क मौसम क ल बी अव ध : भारत म 4 मह ने वषा क ऋतु रहती है । शेष 8 मह ने
शु क यतीत होते है । ी मकाल न द णी-पि चमी मानसून से (जू न से सत बर) दे श क कुल
वषा का 75 तशत ा त होता है । इसी समय संपण
ू दे श म वषा होती है । रबी क फसल के
लए संचाई आव यक हो, जाती है । शीतकाल न वषा' का े बहु त यापक नह ं है ।
(v) म ी क संरचना व वभाव : येक थान पर एक समान संरचना वाल म ी नह ं पायी
जाती है । कु छ म ी म अ धक दन तक नमी धारण करने क मता होती है जैसे चकनी म ी
और कु छ म ी म नमी धारण क मता अ पतम होती है जैसे रे तील म ी या मोटे कण वाल
म ी । एक ह े म समान वषा होने पर भी कसी े क फसल हर भर बनी रहती ह,
जब क उसी े म ि थत मोटे कण वाल म ी क फसल कम वषा होने पर सू ख जाती है ।
(vi) अल- नन भाव : मौसम वै ा नक ने वीकार कया है क अल- ननो का मानसू न पर गहरा
भाव पड़ता है । अल नन एक ऐसी प रघटना है जो शा त महासागर के तापमानो म भार
प रवतन से स बि धत है । यह मौसमी प रघटना 5 से 10 वष के अ तराल पर होती है तथा
व व म सूखा, बाढ़ तथा अ य मौसमी अ तरे क उ प न करती है । इसके भाव से पी तथा
म यवत शा त महासागर य वीप म भार वषा होती है जब क भारत, द णी पूव ए शया,
ऑ े लया आ द म सू खा पड़ता है ।
मानवीय कारक:
159
सू खा क गहनता को बढ़ाने वाले मानवीय कारक म वन वनाश, भू मगत जल का
अ धका धक मा ा म दोहन, बांधो व नहर का नमाण, जलच म अवरोध जल ोत का लु त
होना, जनसं या म वृ आ द को सि म लत कया जाता है ।
(i) वन वनाश : वन ाकृ तक पा रि थ तक तं या तं के जै वक संघटको म से एक मह वपूण
संघटक है तथा पयावरण क ि थरता तथा पा रि थ तक य संतल
ु न उस े क वन संपदा क
दशा पर आधा रत होता है । औ यो गक एवं आ थक मानव ने अपनी आव यकताओं क भू म के
लए वन क अ धाधु ध कटाई क है िजससे संपण
ू दे श का प रतं बदल गया है । हमालय े
म हमरे खा क ऊँचाई बढ़ रह है । सततवा हनी न दयाँ सू ख रह ह । राज थान म धीरे-धीरे
बंजर भू म के े फल म वृ हो रह है । गंगा नद म पानी का तर काफ गर गया है । जहाँ
कभी सू खा नह ं पड़ता था वहाँ सूखा पड़ना आम बात हो गई है । वन वायुम डल म नमी बनाये
रखने म सहयोग करते ह । इनके वनाश से बाढ़ एवं सू खे क घटनाओं म वृ हु ई है ।
(ii) गरता जल तर : घरे लू उपयोग एवं फसल क संचाई के लए सतह के नीचे से जल के
भार मा ा मे न कासन एवं दोहन से दन- त दन भू मगत जल- तर गरता जा रहा है । दे श
के अनेक भाग म भू मगत जल का दोहन उनक वा षक बहाल मता से अ धक हो रहा है ।
भू मगत जल का भ डारण एक नय मत, द घका लक ाकृ तक म द या है । इस या म
वषा, जलाशय, नद का जल, धीरे -धीरे रसकर भू मगत जल म प रवतन होता है । भू गा भक
जल के वशाल ोत पंजाब, ह रयाणा, उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल एवं तट य मैदान म
अनुमा नत कये गये ह । शेष भारत म भू मगत जल क ि थ त बहु त अ छ नह ं ह । शु क
े म भू मगत जल बहु त गहराई पर मलता है । भू मगत जल तर ऊपर रहने से वन प तयाँ,
कृ ष फसल तालाब , झील , न दय , आ द को जीवनदान मलता रहता है । अ धक दोहन से
जलाशय, न दय आ द म पानी क कमी हो जाती है । िजससे सू खे क गहनता म वृ होती है
। दे श के अनेक भाग म भू जल तर म तेजी से गरावट आने तथा सू खे कु ओं क बढ़ती सं या
इस बात के माण है क हम भू जल दोहन क सु र त सीमा को पार कर गये ह ।
(iii) बांधो तथा नहर का नमाण : नर तर बहने वाल न दयाँ न केवल अ त र त जल रा श को
वहन करती है अ पतु अपने माग के भू मगत जल ोत को भी भरती चलती ह । बांधो एवं नहर
के नमाण से जहाँ बाँधो के ऊपर भाग म संचाई आ द सु वधाओं का व तार होता है वह ं दूसर
तरफ नद के नचले भाग म भू मगत जल तर नीचे चला जाता है । महारा म येरला नद
पर न मत बाँध के कारण नचले े के सभी कु एँ सू ख गये । इसी कार यमु ना नद से अ धक
सं या म नहर नकालने के कारण गम म यह नद लगभग जल वह न हो गई है । इससे
समीपवत े के भू मगत जल तर काफ गहराई तक नीचे चले गये ह ।
(iv) जल च म अवरोध : मनु य अपनी याओं वारा जलयच को थानीय तर से लेकर
ादे शक तर तक भा वत तथा प रव तत कया है । इस प रवतन के प रमाण म पया त
अ तर होता है । इन प रवतन से उ प न कुछ भाव लघु तर य तथा नग य होते है जब क कु छ
भाव वृह तर य तथा लयकार होते है ।
जलच म मानवीय याओं के कारण उ प न अवरोध से वायुम डल य दशाओं पर
भाव पड़ता है िजससे सूखे क संभावना बढ़ जाती है ।
160
(v) जल ोत का लु त होना : कृ ष भू म के व तार के कारण भू म उपयोग म प रवतन हु आ
है । नद , नाल तथा तालाब म जहाँ वषा का जल एक त होता था वहाँ अब कृ ष होने के
कारण वषा का जल अनाव यक प से बह जाता है । इससे एक तरफ अ तवृि ट से बाढ़ क
ि थ त उ प न होती है वह ं दूसर तरफ जल ोत के लु त होने से भू मगत जल के तर म
गरावट आती है । ये जल ोत वायुम डल क नमी बनाये रखने म सहयोग दे ते ह । जल ोत
वायुम डल क नमी बनाये रखने म सहयोग दे ते है । जल ोत क कमी से सू खे क पुनरावृि त
म वृ हो जाती है ।
(vi) जनसं या म वृ : 1901 म भारत क जनसं या लगभग 24 करोड़ थी जो 2001 म
बढ़कर 103 करोड़ हो गई । इतनी बड़ी जनसं या के भरण-पोषण के लए ाकृ तक संसाधन का
दोहन बड़े पैमाने पर जहाँ कया गया वह ं दूसर तरफ कृ ष के े म यापक व तार हु आ ।
इन याओं से ाकृ तक पा रतं पर दबाव बढ़ा िजसके प रणाम व प बाढ़-सू खा क आवृि त म
वृ हु ई । बना ऋतु के मौसम म उगाई जाने वाल कृ ष फसल के कारण भी सूखे क ि थ त
उ प न हु ई है ।
इस कार सं ेप म कहा जा सकता है क भारत म मानसून क अ नि चतता, असमान
व पया त वषा सू खे का मु ख कारण है । वन वनाश, म ी का अपरदन, अ नयं त पशु चारण,
कृ ष यो य भू म का व तार, भू मगत जल तर म गरावट आ द ऐसे कारण है जो सूखे से होने
वाले भाव को यापक बना दे ते ह ।
161
सू खे क ि ट से भारत म तीन ऐसे े ह िज ह सूखा त े के अ तगत रखा जा
सकता है । ये े (मान च 6.1) न न ल खत है :-
(अ) म थल य एवं अ म थल य े : यह े अहमदाबाद, कानपुर तथा जाल धर को आपस
म जोडने वाल रे खा के पि चम म ि थत है । इस म डल के अ तगत संपण
ू राज थान तथा
गुजरात, ह रयाणा. पंजाब, द णी पि चमी उ तर दे श पि चमी तथा म य दे श के पि चमी एवं
उ तर दे श, पि चमी तथा म य दे श के पि चमी एवं उ तर पि चमी सीमा त भाग को
सि म लत कया जाता है । यह म डल लगभग 6 लाख वग मी े पर फैला है । यह वषा
नहायत कम होती है । औसत वा षक वषा 35 से 75 सेमी. तक होती है पर तु सु द ूर पि चमी
रे ग तानी भाग म 35 सेमी. से भी कम वषा होती है । वा तव म पंजाब तथा ह रयाणा म सू खे
का कोई वशेष भाव नह पड़ता य क यहाँ पर संचाई क पया त यव था है पर तु िजन े
म संचाई क सु वधाओं का अभाव है वह ं पर च ड सू खे के कारण अकाल तथा भू खमर क
ि थ त उ प न हो जाती है
मान च 8.1 सू खा भा वत े
(ब) पि चमी घाट म ि ट छाया वाले े : पि चमी घाट क पहा ड़य के पूव म वृि ट छाया
दे श ि थत है । अरबसागर य मानसू न पि चमी घाट क पहा ड़य के सहारे उठकर पि चमी भाग
म वषा तो कर दे ती है ले कन जब ये हवाएँ पि चमी घाट को पार करके पूव म पहु ँ चती है तो
वषण क मता कम हो जाती है । यह भाग ाय: सूखा त रहता है । यह े लगभग 4 लाख
वग क.मी.पर व तीण है । लगभग 300 क.मी.क चौड़ाई म फैले इसे सू खा भा वत े के
अ तगत द णी-पि चमी आ दे श पूव कनाटक (पि चमी घाट के पूव म ि थत) तथा द णी
162
पि चमी महारा (पि चमी घाट के पूव म ि थत) को सि म लत कया जाता है । यहाँ पर
औसत वा षक वषा 75 से ट मीटर से कम है ।
(अ) अ य े : भारत के व भ न भाग म बखरे हु ए कुछ छट-पुट े भी है ाय: सू खे से
भा वत होते रहते ह । वैगाई नद के द ण म ि थत त नेवाल जनपद, कोय बटू र े ,
बहार ा त का लामू े , पि चमी बंगाल का पु लया जनपद , उड़ीसा का कालाहांडी े मु ख
ह । इस क ण सू खा े का व तार लगभग 1 लाख वग कलोमीटर े पर पाया जाता है ।
संचाई आयोग के अनुसार जहाँ 75 से ट मीटर से कम वषा होती है, ऐसे िजलो क
सं या 77 है । दे श के 50 िजल म सू खे क बल संभावना हमेशा बनी रहती है और 22 िजले
ऐसे ह जो सदै व सू खा से सत रहते ह । इन सभी िजल का व तार राज थान, गुजरात,
कनाटक म य दे श, महारा व उ तर दे श म वशेष प से पाया जाता है । उ तर पूव रा य
पि चमी व पूव पबंगाल तथा उड़ीसा रा य के अ धकांश भाग सू खा भाव से मु त है । ता लका
6.। म भारत के सूखा त े को रा यानुसार दशाया गया है ।
सू खा वा तव म द णी पि चमी ( ी मकाल न) मानसू न क प रवतनशीलता के कारण
पड़ता है । िजन े म वषा क प रवतनशीलता िजतनी अ धक है वहाँ सूखे क बल आंशका
भी अ धक रहती है । ( च 6.2)
संचाई आयोग (1972) के अनुसार भारत के सू खा त े को दो भाग म वभािजत
कया गया है ।
(अ) सामा य से 25 तशत तक वषा क प रवतनशीलता वाले सू खा त े : ऐसे े जहाँ
वषा क अ नि चतता सवा धक पाई जाती है और वषा क औसत वा षक मा ा 50 सेमी. से भी
कम होती है, इसके अ तगत सि म लत ह । पि चमी राज थान तथा पि चमी गुजरात इसके
सबसे अ छे उदाहरण ह ।
163
ता लका 6.1
भारत: रा यानुसार सू खा भा वत े
रा य का नाम भा वत भा वत िजल का कु ल सू खे से भा वत रा य का कुल
िजलो क े फल (वग क .मी.म) े भा वत े फल
सं या (वग क .मी.म) का तशत
1. आ दे श 8 12113.03 32839.05 11.93
164
पड़ता रहता है । इन े म कु ल मलाकर 1950-60 के दशक म 9,1961-70 म 10, 1971-
80 म 16 तथा 1981-90 के दशक म 35 बार सूखा पडा । इससे प ट होता है दे श म सू खे क
आवृ त नर तर बढ़ती जा रह है ।
165
4. सामािजक जीवन शैल म थायी प रवतन हो जाता है ।
5. नगर क आबाद म वृ होने से अनेक नगर य सम याओं का ज म होता है ।
6. शु क े के अनेक गाँव जन-पलायन के कारण वीरान हो जाते है ।
7. कृ ष पर आधा रत उ योग के लए क चे माल क सम या उ प न हो जाती है । दे श
के आठ औ यो गक समू ह (पेय व त बाकू व , जू ता, रबड़ उ पादन, रसायन व रसायन उ पादन
इ या द) सू खे से अ धक भा वत रहते है ।
8. सू खा के कारण ामीण नवा सयो क यशि त मे हलाल हो जाता है । इससे
औ यो गक माल क मांग म कमी हो जाती है ।
9. सू खा राहत काय म चलाने के लए सरकार दूसर अनेक प रयोजनाओं को ब द करना
पड़ता है ।
10. द घका लक सू खे के कारण पौध तथा ज तु ओं क कु छ जा तयाँ समा त हो जाती ह,
य क वे कठोर सूखे को बदा त नह ं कर पाती ह ।
11. द घका लक सू खे के कारण दे श वशेष के ाकृ तक पा रि थ तक तं के जै वक संघटक
म प रवतन हो जाता है ।
वा तव म द घका लक सू खे पा रि थ तक, आ थक, जंनां कक य प पर भाव पड़ता है,
िजससे अनेक सम याएँ उ प न -होती है ।
166
म य दे श के दे वास िजल म मशन ाउ ड वाटर के तहत छत पर गरने वाले जल का सं ह
कया जाता है ।
(ii) छोटे बाँध अ धक उपयोगी स हु ए है । महारा म बाला राज मारक बाँध छोटे बाँध का
आदश उदाहरण है
(iii) गुजरात के बलसाड़ा िजल म चैक बाँध और उठान संचाई प रयोजनाओं से पयावरण म
आमू ल-चू ल प रवतन हु आ है । यह व ध अ य सू खा त े ो म अपनाई जा सकती है ।
(iv) सू खे कुओं को पुनजी वत कया जा सकता है । जैसे पोरब दर (गुजरात) को पास घोर जी म
कु ओं को पानी से पुनजी वत कया गया है ।
(v) अलवर म जोहड क सहायता से अटवार नद पानी से फर भर गई है । उ चत थान का
सव ण करके यह तर का अ य भी अपनाया जा सकता है ।
(vi) गुजरात और राज थान म सीढ़ दर बाव डय का पुन ार कया गया है । यह एक साह सक
कदम है । इसी कार तालाब का पुन ार अ नवाय कया जाना चा हए । इस काय म जन
सहभा गता आव यक होनी चा हए ।
(vii) पेय जल कह ं पर हो उसके उपयोग क नई व ध खोजी जानी चा हए । जैस-े हमाचल दे श
क पीतीघाट म कु हल नाम क छोट -छोट नाल दार 'नहर के मा यम से हमा नय से नकलने
वाल न दय का पानी गाँव तक पहु ँचाया गया है ।
(viii) आमजन के स य सहयोग से वषा के जल सं हण के समि वत काय म भी उपयोगी रहते
ह । महारा क पानी पंचायत और ह रयाणा म सू खामाजर योग सू खे का सामना करने के
लए यह एक साथक य न ह । यह काय म सभी सू खा र त े म जन सहयोग से चलाया
जाना चा हए ।
4. सू खे क च डता को कम करने के लए कु छ द घका लक यव था भी क जानी चा हए
इनम मुख है - वायु क नमी, जलवषा क मा ा तथा भू म म जलवषा के जल के अ त:
प दन आ द म वृ के लए वनारोपण करना , सू खा रत े म कृ ष क वषा पर नभरता को
कम करने के लए शु क कृ ष क व धय का योग, म थल करण तथा म थल सार पर
नयं ण करना, जल-संर ण उपाय पर स ती से अमल करना, जल भ डार का नमाण, कु ओं
का नमाण आ द । इसके अ त र त रोजगार गांरट , एक कृ त ामीण वकास उपयु त फसल
च , भू-संर ण, वैकि पक बाँध टे नॉलाजी पर भी, यान केि त करके सूखे के भाव को कम
कया जा सकता है । दूरदश ब धन नी त हे तु ाकृ तक वपदाओं पर थाई रा य आयोग
और थाईआपदा राहत कोष का गठन कया जाना चा हए ।
5. भू मगत जल भ डार क खोज के लए सु द ूरसंवेदन, उप हण मान च ण तथा भौगो लक
सू चना णाल जैसी यु कायो का उपयोग कया जाना चा हए ।
6. िजन े म नमक न म ी पायी जाती है उनम प- संचाई क णाल अपनाकर पुन ार
क गई म ी म फसला पादन कया जाना चा हए ।
167
7. सं चत े का व तार कया जाना चा हए । वतमान म अि तम संचाई मता का
आकलन व 39.80 म लयन हे टे यर कया गया है । इस मता का अब तक 68 तशत भाग
ा त कर लया गया है ।
8. खु ले चारागाह, घास थल, और ाकृ तक वन प त सू खे के भाव के आकलन के लए
व वसनीय संकेत होते है । सु दरू संवेदन णाल से सु द ूर संवेद ऑकड के आधार पर सू खे का
व वसनीय पूवानुमान लगाया जा सकता है । तदनु प राहत काय क पूव म तैया र रखी जा
सकती है ।
रा य तर पर यास:
मु ख सू खा त े म व भ न काय म के अ तगत उनेक भावशाल योजनाए
व भ न मं ालय के अधीन चलायी जा रह है । कृ ष मं ालय वारा बारानी तथा झू मंग कृ ष
वाले े म रा य जलागम वकास प रयोजना और खार भू म म सु धार काय म चलाये जा
रहे ह । ामीण वकास मं ालय वारा समि धत जलागम वकास प रयोजनाओं का वकास तथा
वशेष रोजगारो मु ख काय म और म थल वकास काय म संचा लत हो रहे ह । इसी कार
पयावरण और वन मं ालय ने व भ न े म समि वत वनीकरण और पा रि थ तक य वकास
प रयोजनाएँ लागू क है । वनीकरण तथा वृ ारोपण के लए वशेष सहायता काय म भी ारं भ
कया गया है ।
रा य जल ड
दे श को बाढ़ सू खा तथा बड़े जल संकट से बचाने के लए जल ड योजना एक थायी
समाधान हो सकता है । न दय को आपस म जोड़कर जल ड बनाने का ताव सव थम 1972
ई. म त काल न के य सचाई मं ी (एवं इंजी नयर के.एल.राव ने गंगा- कावेर नद 2640
क.मी.ल बी नहर वारा 'आपस म जोड़ने का सुझाव दया था ले कन कु छ कारण से यह योजना
मूत प नह ं ले सक । भारत म होने वाल मानसू नी वषा 4 मह ने (जू न से सत बर) ह होती है
। शेष 8 मह ना लगभग शु क ह यतीत होता है । इसका कृ ष व उ योग पर वपर त भाव
पड़ रहा है । उ चतम यायालय ने सरकार को दे श क मुख न दय को सन ् 2012 तक आपस
म जोडने का ऐ तहा सक नणय दया है । के सरकार ने 2035 तक ाय वीपीय तथा सन ्
2043 तक हमालयी न दय को आपस म जोड़ने का वचन दया है ।
सू खा नयं ण क नवीन योजनाएँ :
भारत सरकार ने सन ् 1973 म सू खा नयं ण े काय म तैयार कया था । इसके
1973-74 से 1993-94 तक लगभग 28.51 लाख हे टे यर भू म को सूखे से मु त कया जा चु का
है, 92 लाख हे टे यर भू म पर जल-संसाधन को उपयोग म लाया गया है तथा 1696 वकास
ख ड म सूखा नयं ण े काय म चलाया गया है । इससे दे श के 13 रा य के 149 िजले
लाभाि वत हु ए है ।
बोध न : 1
1. भारतीय मौसम व ान वभाग के अनु सार सू खा क प रभाषा बताइये ।
2. कौन से सू खे का सवा धक भाव पड़ता है ?
3. मु ख सू खा त े कौन-कौन से है ?
168
4. सू खा नयं ण े काय म क थापना कब हु ई थी
169
6.10 बाढ़ के कारण (Causes of floods)
सामा यतता बाढ़ एक ाकृ तक घटना है, ले कन जब यह दुघटना के प म कट होती
है तथा अपार धन जन के हा न का काराण बनती है । बाढ़ के कारण व व के सभी े म
समान नह ं है । कह ं कोई कारण बल है तो कह ं अ य बाढ़ मानव ज नत संकट भी है । बाढ़
ज य कारण ( ाकृ तक एवं मानव-ज नत) के सापे क मह व म थानीय व भ नताएँ पायी
जाती है । बाढ़ के कृ त-ज य कारण म ल बी अव ध तक उ च ती ता वाल जलवषा, (घनघोर
वृि ट) न दय के वस पत माग, व तृत बाढ़ , मैदान, न दय क जलधारा क वणता म
अचानक प रवतन, भू- खलन तथा वालामु खी उ गार के कारण न दय के वाभा वक वाह म
अवरोध, न दय क घा टय तथा जलधाराओं क वशेषताएँ मु ख है । मानवजा त कारक म
नमाणकाय, ती नगर करण न दय के जलमाग म प रवतन न दय पर बाँध , पुल एवं
जलभ डार का नमाण, कृ षकाय, भू म, उपयोग प रवतन आ द मु ख है । ये कई कार क
सम याओं का ज म दे ते ह, जैसे भीषण बाढ़ न दय के माग म थाना तरण एवं प रवतन, बाढ़
मैदान म जलोढ़ रे त, मृ तका , स ट आ द का न ेपण । इस कार कई कारण के सि म लत
संचयी भाव के कारण न दय के वनाशकार एवं आपदाप न बाढ़ क ि थ त उ प न होती है ।
बाढ़ उ प न करने वाले कारक का सं त वणन न न कार है ।
1. अ तवृि ट : भारत म होने वाल अ धक वषा मानसू नी है ल बे समय तक घनघोर वषा होना
न दय क बाढ़ का मू ल कारण है । न दय के ऊपर भाग और नद बे सनो म घनघोर वृि ट होने
के कारण उन न दय के नचले भाग म जल के आयतन म अचानक वृ हो जाती है िजस
कारण अपार जलरा श न दय के कनार के ऊपर से वा हत होकर आस-पास के न न े को
जलम न कर दे ती है । भारत म चार मह ने वषा क ऋतु होती है और इसी समय बाढ़ का कोप
भी अ तवृि ट के कारण होता ह । वष के अ धकांश भाग म न दय म जल का आयतन बहु त
कम होता है िजसका कारण जल का वसजन यूनतम होता है । उदाहरण के लए इलाहाबाद के
पास जुलाई-अग त म गंगा नद का जल वसजन. 40000 से 50,000 घनमीटर त सेक ड
तक हो जाता है जब क माच से जू न तक क समयाव ध म 1000 घनमीटर त सेक ड से भी
कम हो जाता है । उ तर भारत म वषाकाल म अचानक द घका लक घनघोर वषा के कारण
न दय के जल के आयतन म अ या शत वृ हो जाती है तथा न दय म बाढ़ क ि थ त
उ प न हो जाती है ।
वषा क अ नि चतता के कारण शु क एवं अ शु क े म अचानक एवं अ या शत
घनघोर वषा के कारण जल- लावन क ि थ त उ प न हो जाती है य क ऐसे े म
सामा यतया अ प वषा होती है तथा ाकृ तक अपवाह तं अ छ दशा म नह ं होते ह ।
राजरथान के अ धकांश े म आनी वाल बाढ़ इसी कार क होती है । एसी बाढ़ से कभी-कभी
बहु त त हो जाया करती है । अ तवृि ट वाले दे श म. बाढ़ का आना एक वाभा वक ाकृ तक
या है । इस कारण ऐसे े म बाढ़ से उतनी त नह ं होती िजतनी अ नि चत वषा वाले
े म होती है ।
170
2. नद क पेट म अवसाद का जमाव : न दय वारा अपरदन, प रवहन तथा अपर दत पदाथ
का न ेपण एक सामा य घटना है । न दयाँ अपने वारा अपर दत पदाथ को प रवहन करने क
मता रखती है, ले कन जब कभी नद माग म भू खलन अ धक हो जाता है तो अवसाद अ धक
आ जाने से नद का बोझ बढ़ जाता है तो नद क मलवा प रवहन क मता घट जाती है और
मलवा नद क पद म जमा हो जाता है । इससे नद क अपवाह मता कम हो जाती है ।
प रणाम व प अ धक वषा होने पर बाढ़ क ि थ त उ प न हो जाती है ।
हमालय से नकलने वाल न दयाँ उ तर के वशाल मैदानी भाग म अवसाद क अपार
रा श का न ेप करती है िजसके कारण न दय क घा टय म भराव होता है, उनका तल ऊपर
उठता है, न दय के माग म आये दन प रवतन होते रहते है, अथात न दय क जलधाराएँ कई
शाखाओं एवं तशाखाओं म वभ त हो जाती है तथा बाढ़ क आवृि त एवं प रमाण म वृ हो
जाती है । गंगानद म अवसाद भार ता लका 6.3 म द शत कया गया ह ।
आ थक एवं ौ यो गक मनु य के नर तर बढ़ते या- लाप (कृ ष म मशीन का
अ धका धक योग,वन वनाश, चराई, नमाण काय, खनन, नगर करण, औ योगीकरण, तकनीक
वकास म तेजी से वृ आ द) के कारण भौ मक य अपरदन म वृ होने के प रणाम व प
अवसाद क मा ा म तेजी से वृ हो रह है ।
3. नद क धारा म प रवतन : मैदानी भाग म न दय के वसप के कारण न दय के जल का
वाह कम हो जाता है । इस तरह न दय का वस पत माग न दय म जल के वाभा वक
वसजन को अव करता है तथा समीपवत भाग म बाढ़ उ प न करता है । उ तर भारत क
ाय: येक जलोढ़ नद म (गंगा, यमु ना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, ग डक, कोसी, त ता
आ द) इस तरह के वसप का वकास हो गया है । ये न दयां अपनी भयकर बाढ़ वारा ाय: हर
समय कहर ढाती है । वसप म बहने वाल न दयाँ कभी-कभी अ तवृि ट के कारण अपना माग
सीधा कर लेती है ओर बाढ़ उ प न कर दे ती है । कोसी नद अपने माग प रवतन एवं बाढ़ के
लए बहु त कु यात है ।
4. वन वनाश : वन- वनाश मानव-ज नत बाढ़ कारक म सबसे अ धक मह वपूण ह । मानव
अपनी आव यकताओं क पू त के लए न दय के लए न दय के ऊपर जल हण े म
यापक तर पर वन क कटाई क है । वन क कटाई के कारण न दय के ऊपर जल हण े
म धरातल य े न न हो जाता है । इससे वषा के जल का भू म म अ त: प दन यूनतम
तथा धरातल य वाह जल अ धकतम हो जाता है । फल व प यह धरातल त वाह जल बना
कसी अवरोध के न दय तक शी पहु ँच जाता है और जल के आयतन म वृ कर दे ता है ।
िजस कारण बाढ़ क ि थ त उ प न हो जाती है ।
वन क अ धाधु ध कटाई के कारण मृदा अपरदन म वृ होने से न दय के अवसाद
भार म अ य धक वृ होती जाती है । इस कार अवसाद से अ तभा रत न दयाँ अपनी घा टय
म अवसाद का जमाव करने लगती है । अवसादाकरण के कारण नद क तल धीरे -धीरे ऊपर
उठने लगती है और उसम जलधारण करने क मता घट जाती है । प रणाम व प अ तवृि ट के
समय धरातल य वाह जल के कारण न दय क घा टयाँ जल से शी भर जाती ह तथा जल
171
उनके कनार के ऊपर से होकर घाट के आस-पास दूर-दूर तक फैल जाता है तथा व तृत बाढ़
आ जाती है ।
ता लका 6.3
उ तर दे श म नगा नद का व भ न थान पर अवसाद भार तथा वाह जल
स ट मापन उ गम से औसत वा षक औसत औसत स टलो स ट
के थान दूर वाह जल (हजार वा षक डफै टर (हे टे यर क टे ट
कलोमीटर म लयन घन स ट ( मल. मी. त 100 वग ( तशत)
मी.) टन) तवष लोड
ऋ षकेश 250 27.78 24.99 8.34 0.064
कानपुर 760 33.43 53.28 - 0.109
वाराणसी 1115 116.99 179.72 2.48 0.116
उ तर दे श
तथा बहार
क
सीमा 1370 213.28 328.38 3.48 0.110
वगत सौ वष म हमालय े म वन क असी मत कटाई का कारण हमालय से
नकलने वाल न दयो म बाढ़ क आवृि त , ती ता तथा व तार म नर तर वृ दे खी जा रह है ।
गंगा, यमु ना, रामगंगा, घाघरा, ग डक, बूढ ग डक, कोसी व त ता आ द न दयाँ बाढ़ के कोप
वारा तबाह मचाती रहती ह ।
5. नद माग म मानव न मत यवधान : मानव ने अनेक कार से नद के माग म यवधान
खड़े कये है । (क) रे ल और सड़क सेत,ु जलाशय बाँध, तट बाँध, नहर नमाण आ द के कारण
नद जल वसजन म बाधा आती है और जल फैलकर बाढ़ क ि थ त उ प न कर दे ता है (ख)
ती नगर करण के कारण न दय के कनारे ि थत नगर के अप श ट पदाथ नद जल के बहाव
मे बाधा उ प न करता है । (ग) बढ़ती जनसं या के कारण उ तर दे श, बहार, पि चमी बंगाल
इ या द रा य के तालाब म जहाँ जल एक त होकर धीरे -धीरे नद -नाल के वारा वसिजत होता
था वह ं अब उन भाग म कृ ष काय होने से वषा जल बना रोक टोक नद के जल के आयतन
म वृ करता है । (घ) नद तटवत े म कृ ष काय हेतु खेत आ द तैयार करने से भी नद
माग अव हु आ है । नगर क बाढ़ से सुर ा के लए न मत बाँध भी बाढ़ को बढ़ावा दे ने म
सहायक हु ए ह । (च) ल बे चौड़े भाग पर व तीण बड़े नगर क सड़के प क होने के कारण वषा
का जल िजसका बहु त बड़ा भाग भू म के अ दर चला जाता था । बना रोक टोक बहता हु आ नद
के जल का आयतन बढ़ाकर बाढ़ क वभी षका म सहयोग दे ता है ।
6. तटब ध और तट य आवास : बाढ़ को रोकने के लए बनाये गए तटब ध बाढ़ के कारण
बनते रहे ह य क इससे एक े या थान पर बाढ़ से राहत मल जाती है, ले कन अ य े
पर इसका दु भाव पड़ता है । वा तव म ये तटब ध एक कार से नद जल- वाह म अवरोध
उ प न करते ह । इसी कार तट य आवास भी नद के वाह म अवरोध उ प न करते ह और
बाढ़ का कारण बनते है ।
172
7. दोषपूण संचाई प त : संचाई वाले े म अ य धक जल के योग करने से एवं जल
नकासी क समु चत यव था नह ं होने के कारण जला ांत क ि थ त पैदा हो जाती है ।
जला ांत के कारण भू म कुछ जल सोख नह ं पाती िजससे पृ ठ य वाह ती हो जाता है और
अचानक वषा होने से आसपास के े म बाढ़ आ जाती है । पंजाब, ह रयाणा, राज थान का
नहर े तथा पि चमी उ तर दे श इस सम या से सत है ।
173
2. उ तर ख ड : ज मु क मीर, हमाचल दे श, पंजाब, ह रयाणा तथा पि चमी उ तर दे श
उ तर ख ड के बाढ़ भा वत े म सि म लत कये जाते ह । इस ख ड क न दयाँ छोट ह ।
इनके माग म अ धक प रवतन नह ं होता और न ह इन न दय म जल क मा ा अ धक होती है
। फर भी झेलम, यास, रावी, चनाव, सतलज, यमु ना और स ध नद म जब वषा ऋतु म
अ य धक वषा के कारण बाढ़ आती है तो वनाश क ि थ त उ प न हो जाती है ।
174
5. म यपूव ख ड : उड़ीसा रा य म महानद , वैतरणी व ा मणी न दयाँ ावा हत होती ह ।
वषा के दन म जब ये न दयाँ अ धक मा ा म जल वा हत कर लाती ह तो उनके मु हान पर
तेजी से जल बहाव न हो पाने के कारण ाय: बाढ़े आ जाती है' ।
175
भाव पड़ता है और इससे अनेक सम याओं का ज म होता है । सं ेप म बाढ़ का न न ल खत
भाव पड़ता है -
1. इससे अनेक पयावरणीय सम याएँ उ प न हो जाती है । जैसे - संकटाप न बाढ़, भू म
खलन, मलवापात इ या द ।
2. बाढ़ के कारण न दय के माग म थाना तरण एवं प रवतन होता है ।
3. बाढ़ के मैदानो म जलोढ़, रे त, म ी, स ट आ द का न ेपन हो जाता है ।
4. बाढ़ आने से कृ तक वन प तयो को भार मा ा म त पहु ँ चती है ।
5. म ी के अपरदन क सम या बढ़ जाती है ।
6. ाकृ तक तट बांध को त पहु ँचती है ओर बाढ़ क वकरालता म वृ होती है ।
7. बाढ़ से हजार हे टे यर भू म पर फैल कृ ष फसल को त पहु ँ चती है ।
8. सु र ा के लए बनाये गये बाँध के टू टने से कभी-कभी न दय के कनारे ि थत नगर म जल
लावन क ि थ त उ प न हो जाती है ।
9. बाढ़ त े म जन-धन एवं पशुधन क हा न होती है ।
10. भीषण बाढ़ से सड़क माग एवं रे लमाग टू ट जाता है एवं त त हो जाता है ।
11. बाढ़ के कारण कृ ष पर आधा रत उ योग के सम क चे माल क सम या उ प न हो जाती
है ।
12. बाढ़ के कारण जल-आपू त म बाधा उ प न होती है ।
13. नगर य एवं ामीण मकान व त हो जाते है ।
14. बाढ़ के कारण संचार एवं व युत आपू त म अवरोध उ प न होता है ।
15. राहत काय चलाने के लए अ त र त धनरा श क यव था करनी पड़ती है । इससे राजक य
कोष पर अनाव यक भार पड़ता है ।
16. बाढ़ के बाद ाय: सं मत बीमा रय का कोप बढ़ जाता है ।
17. अनाज एवं पशु ओं के लए चारे क कमी हो जाती है ।
18. बाढ़ त े म बेरोजगार बढ़ जाती है और आ थक संकट उ प न हो जाती है ।
19. बाढ़ का दूरगामी भ व पड़ता है । इससे मँहगाई बढ़ जाती है और जनजीवन भा वत होने
लगता है ।
176
1953 से 1975 के म य बाढ़ से होने वाले नुकसान का दे श म अनुमान लगाया गया था , िजसके
अनुसार औसतन 74 लाख हे टे यर भू म तवष भा वत होती है, िजसम 31 लाख हे टे यर भू म
बोई गई है । औसतन 8 लाख मकान और 50 हजार पालतू पशु ओं का नुकसान होता है । मृतक
क औसत सं या 742 ऑक गई और फसल नुकसान 2 अरब पये से अ धक आँका गया ।
कभी-कभी यह नुकसान 1 साल म 9 अरब पखे तक पहु ँच जाता है । इसक तपू त के लए
सरकार को अ धक धनरा श खच करनी पड़ती है । लगभग तवष आने वाल बाढ़ से होने वाल
कु छ त का 72 तशत फसल , 20 तशत मकान , 8 तशत प रवहन एवं संचार साधनो व
सावज नक स पि त का होता है ।
बाढ़ से होने वाल सबसे अ धक त बहार, उ तर दे श और आ दे श म होती है ।
177
जा सकता है । इसके लए नद जल हण े म बड़े पैमाने पर वृ ारोपण करना चा हए ।
वना छा दत भू म न न प म बाढ़ कम करने म सहायता करती है वन प तयाँ जल को नद
तक पहु ँ चने म वल ब करती है । वन के कारण वषा जल का अ त: प दन अ धक होने से
वाह जल म कमी होती है । वन के कारण मृदा अपरदन कम होता है , िजससे न दय म अवसाद
भार कम हो जाता है । और नद म जल प रवहन क मता अ धक हो जाती है । इस कार
वन भी कटाई पर रोक तथा वृ ारोपण से न दया क बाढ़ क आवृि त तथा व तार दोन म कमी
क जा सकती है।
टे नसी घाट प रयोजना के आधार पर ह दामोदर घाट नगम के अ तगत बाढ़ के
नयं ण एवं अ य उ े य क पू त के लए दामोदर बहु उ े यीय नद घाट प रयोजना को साकार
प दया गया है । दामोदर तथा उसक सहायक न दय पर बाँध बनाकर (1958 से कायरत)
नचल दामोदर घाट म काफ हद तक बाढ़ पर नयं ण कर लया गया है । इसी कार ता ती
नद पर उकाई बाँध तथा जलाशय के नमाण वारा नद के नचले भाग तथा सूरत नगर
(गुजरात) को बाढ़ के कोप से काफ हद तक बचा लया गया है ।
4. बाढ़- द प रवतन णाल के वारा बाढ़ के कोप को एक सीमा तक कम कया जा
सकता है । इस णाल के अ तगत बाढ़ के समय अ त र त जल को न न भू मय , गती या
कृ म ढं ग से न मत जलवा हकाओ म मोड़ दया जाता है । इससे बाढ़ के प रमाण म कमी हो
जाती है । उदाहरण के लये बाढ़ क ि थ त म राज थान म व ट होने के पहले घ घर नद पर
न मत घ घर द प रवतन योजना के अ तगत 340 यूसे स (घन मीटर त सेक ड) जल को
गत , न नभू मय तथा बालु का- तूप के म य े म 'रोक लया जाता है ता क बाढ़ को
सु र त सीमा म रखा जा सकता है ।
2. मैदानी भाग म ाय: बड़ी न दयाँ वसप तथा मोड़ बनाती हु ई वा हत होती है िजससे
जल वसजन म बाधा आती है और व तृत े बाढ़ क चपेट म आ जाता है अत: जहाँ न दयाँ
अ धक वस पत है उनके माग को सीधा करके जल लावन क ि थ त से बचा जा सकता है ।
ले कन इस काय हेतु पया त धन क आव यकता होती है और दूसरे जलोड़ न दय म वसप का
नमाण एक ाकृ तक या है य द कसी थान पर इनका माग सीधा कर भी दया जाये तो
दूसरे थान पर वसप का नमाण हो जाता है ।
3. नद के माग म बाढ़- नयं ण भ डारण जलाशय का नमाण करके न दय के जल के
आयतन म कमी क जा सकती है । इसके अ तगत नद के माग म जल के भ डारण के लए
कई जल-भ डार का नमाण कया जाता है तथा बाढ़ के समय इनम अ त र त जलरा श को रोक
लया जाता है । ऐसा करने से दो लाभ होते ह 1. इन जलभ डार के कारण न दय के जल के
आयतन म कमी हो जाती है तथा 2. संचाई के जल सुलभ हो जाता है ।
4. बाढ़ नयं ण जल भ डारण का नमाण बाढ़- नयं ण के भावी उपाय के प म
अ य धक स हो गया है । यह व ध सव थम 1913 ई. म संयु त रा य अमे रका क
मयामी नद (ओ हयो ा त) पर अपनाई गयी थी । 1933 ई. म टे नेसी घाट प रयोजना के
तहत (संयु त रा य अमे रका) कई बाँध तथा जलभ डार के नमाण के वारा टे नेसी नद के
बाढ़ पर पूण पेण नयं ण कर लया गया है ।
178
5. न दय के कनारे बॉध बनाकर बाढ़ के जल को नद के अ तगत ह सी मत करने का
यास कया जाता है । गंगा मैदान म मु ख न दय के कनारे पर ि थ त अ धकांश नगर को
बाढ़ से बचाने के लए म ी के तटब धो का नमाण कया गया है । जैसे- द ल , लखनऊ,
इलाहाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़, पटना आ द नगर को बाढ़ से बचाने के लए इनसे स बि धत
न दय के कनार पर म ी के तटब ध बनाये गये ह । कह ं-कह ं पर बाढ़कृ त मैदान म फसल
को बचाने के लए भी स बि धत न दय के कनार पर म ी क ल बी-ल बी डाइक अ धक दूर
तक बनायी जाती है । इस तरह के तटब ध कोसी नद , वागमती नद तथा महान दा नद पर
बनाये गये ह । इससे लाख हे टे यर कृ ष भू म क बाढ़ से र ा होती है ।
6. भारत म बाढ़ नय ण
ं संगठन तथा बाढ़ क भ व यवाणी एवं चेतावनी णाल - सन ्
1954 ई. म बाढ़ क भ व यवाणी एवं आगमन क पूव सूचना तथा बाढ़ के नयं ण एवं बचाव
काय म के लए के य बाढ़- नयं ण बोड क थापना हु ई । इसी के साथ ा तीय बाढ़- नयं ण
बोड क भी थापना क गई है । द ल म बाढ़ को नयं त करने के लए बाढ़ भ व यवाणी
तथा चेतावनी णाल का थम शुभार भ 1950 ई. म कया गया इस समय’ दे श के व भ न
भागो म मु ख न दयो क बाढ़ क ताजा ि थ तय का सामना करने के लए बाढ़-भ व यवाणी
तथा चेतावनी णाल का जाल बछा दया गया है । इस णाल के अ तगत गंगा तथा उसक
सहायक न दय (यमु ना, रा ती, गोमती, घाघरा, बूढ गंडक , कोसी आ द) मपु तथा उसक
सहायक न दयाँ, वणरे खा, दामोदर, बैतरनी, तापी, नमदा, गोदावर , च बल, बेतवा, लू नी, माह
आ द क स भा वत बाढ़ क मानीटं रग क जाती है तथा भावी बाढ़ क पूव सू चना दूदशन,
रे डय तथा समाचार प के मा यम से जनता तक पहु ँचाई जाती है िजससे आकि मक कोप से
बचाव हो सके । बाढ़ भ व यवाणी का मुख कायालय पटना म ि थत है । गोहाट , मैथान
(झारख ड) द ल इसके के है ।
बाढ़ के वषय म पूव जानकार ा त हो जाने जान-माल और स पि त के नुकसान तथा
मानवीय वपि त को कु छ सीमा तक कम कया जा सकता है । द घकाल न और भावी उपाय से
बाढ़ से होने वाल त पूव क अपे ा बहु त कम हु ई है ।
179
बोध न : 2
1. बाढ़ के लए उ तरदायी मानवजा त कारक का उ ले ख क िजए।
2. भारत का सवा धक बाढ़ वाला े कौन सा है ?
3. बाढ़ दक् प रवतन णाल कसे कहते है ?
4. बाढ़ से सवा धक त कौन सी नद से होती है ?
5. बाढ़ वारा होने वाल ता का लक त बताइए।
180
सामा य सू खा : वषा का अभाव सामा य वषा से 50 से 25 तशत के बीच ।
खर फ : वषा के आर भ पर बोई जाने वाल फसल ।
अकाल या
दु भ : वषा क नता त कमी से जीवन के सम उ प न संकट ।
अकाल राहत : सू खा के समय द जाने वाल सहायता ।
अ तवृि ट : सामा य से अ धक वषा
जलोढ़ : न दय वारा प रवहन कया जाने वाला अवसाद ।
धरातल य
वाह जल : धरातल पर बहने वाला वषा जल ।
शु क कृ ष : सामा यतया 50 सेमी. वा षक वाले भाग म क जाने वाल अ सं चत कृ ष
कृ म तटब ध : बाढ़ से सु र ा के लए न दय के कनार बनाया गया बाँध ।
झू मंग कृ ष : वन को साफ करके ा त क गई भू म पर क जाने वाल थाना त रत
कृ ष
6.19 बोध न के उ तर
बोध न 1
1. भारतीय मौसम व ान वभाग (आई.एमडी.) के अनुसार उस दशा को सू खा कहते है जब
कसी भी े म सामा य वषा से वा त वक वषा 75 तशत से कम होती है ।
2. कृ षगत सूखे का सवा धक सामािजक व आ थक भाव पड़ता है ।
3. प. राज थान, गुजरात, बहार, मराठवाड़, तेलगांना रायलसीमा, उ तर दे श तथा उड़ीसा
म काला हा डी और समीपवत े मु ख सू खा त े ह ।
181
4. भारत सरकार वारा इसक थापना सन ् 1973 म क गई थी ।
बोध न 2
1. मानव ज नत कारक म नमाणकाय, ती नगर करण, न दय के जल माग म प रवतन
न दय पर बाँध , पुल एवं जलभ डार का नमाण , कृ ष काय, वन- वनाश, भू म-उपयोग
प रवतन आ द मु ख है ।
2. उ तर का वशाल मैदान े ।
3. जब बाढ़ के समय अ त रका जल को न नभू मय गत या कृ म ढं ग से न मत जल-
वा हकाओं म मोड़ दया जाता है तो उसे बाढ़ द प रवतन कहते ह । इससे बाढ़ के
प रणाम म कमी हो जाती है ।
4. गंगा व उसक सहायक न दय वारा ।
5. दे श म आने वाल तवष बाढ़ से फसल , मकान , प रवहन एवं संचार साधन
सावज नक स पि त तथा जन-धन क ता का लक त पहु ँचती है ।
6.20 अ यासाथ न
1. सू खा कृ तज य के साथ-साथ मानव ज य भी ह । प ट क िजए ।
2. सू खा नयं ण के लए भावी उपाय बताइए ।
3. बाढ़ के कोप एवं उसके नयं ण पर सं त काश डा लए ।
182
इकाई 7 : ख नज संसाधन (Mineral Resources)
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 लौह अय क
7.2.1 लौह अय क के कार
7.2.2 लौह अय क भ डार
7.2.3 लौह अय क उ पादन का ादे शक वतरण
7.2.4 लौह अय क यापार
7.3 मगनीज
7.3.1 मह व
7.3.2 मगनीज के संर त भ डार
7.3.3 मगनीज उ पादन का ादे शक वतरण
7.3.4 मगनीज का यापार
7.4 तांबा
7.4.1 मह व
7.4.2 सं चत भ डार
7.4.3 तांबा उ पादन का ादे शक वतरण
7.4.4 तांबे का यापार
7.5 अ क
7.5.1 मह व
7.5.2 कार
7.5.3 अ क के संर त भ डार व उ पादन
7.5.4 अ क उ पादन का ादे शक वतरण
7.5.5 अ क यापार
7.6 सारांश
7.7 श दावल
7.8 स दभ थ
7.9 बोध न के उ तर
7.10 अ यासाथ न
7.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का उा ययन करने के प चात ् आप समझ सकगे :-
ख नज का मह व, वग करण, भारत म ख नज क मु ख पे टयाँ
भारत म लौह अय क के कार, सं चत भ डार, उ पादक े , वतरण, यापार
भारत मे मगनीज के सं चत भ डार, उ पादक े , वतरण, यापार
183
भारत मे तांबा के सं चत भ डार उ पादक े , वतरण, यापर
भारत मे अ क खनन, कार, उ पादक े , वतरण, यापार
184
1. असम-अ णाचल े म ाकृ तमक गैस, पै ो लयम मलता है ।
2. ज मु-क मीर, हमाचल, उ तराखंड, आ द े म कोयला, िज सम, चू ना प थर आ द
मलते ह ।
3. अरब सागर म ख भात क खाड़ी, मु बई हाई, बसीन क कण, ल वीप म, बंगाल क
खाड़ी े म ख नज तेल व ं ा, शैल, मोती आ द पाये जाते ह ।
ाकृ तक गैस के अ त र त मू ग
कावेर , कृ णा, गोदावर बे सन म भी ख नज तेल व ाकृ तक गैस के भ डार मले है ।
उपरो त ववरण से प ट ह क दे श म अ धकांश ख नज कठोर, अ यंत ाचीन शैल से
न मत ाय वीपीय भाग म मलते ह जब क गंगा-सतलज- मपु का मैदानी भाग बालू कंकड़
आ द नवीन शैल से न मत ह, ख नज का यहां अभाव है ।
185
एपेटाइट 20(लाख टन) सोना 222 टन
मै नेसाइट 41.50 ह रा 9.82कैरे ट
इ मेनाइट 37 लूसपार 141.51(लाख टन)
कायनाइट 160(लाख टन) तंग टन 4.31
ेफाइट 160(लाख टन) अ क 59065
ोत : इि डया, 2008
भारत म मह वपूण ख नज का उ पादन न न ता लका म दखाया गया है
ता लक 7.2
ख नज धन उ पादन मा ा मू य(करोड़ .) उ पादन मा ा मू य(करोड़ .)
2004-05 2006-07
कोयला ( म लयन टन) 382 27250 430 34245
ल नाइट ( म लयन टन) 30 1970 31 2262.9
ा. गैस ( म लयन टन) 30828 8940 31800 9209
पै ोल (अशु म लयन टन) 34 18946 33 18221
धाि वक ख नज -
ोमाइट (हजार टन) 3610 815 4101 1171.6
लौह अय क (हजार टन) 140462 5406 172296 9695
मगनीज (हजार टन) 2375 467 1822 477
बॉ साइट (हजार टन) 11598 264 13075 303
तांबा अय क (हजार टन) 146 199 - -
सोना ( क ा.) 3638 192 2937 199.6
सीसा (हजार टन) 82 67 109 89.3
ज ता (हजार क ा.) 667 401 1020 647
अधाि वक ख नज -
ह रा (कैरे ट) 78297 34 2769 1.98
डोलोमाइट (हजार टन) 4506 88 4433 104
िज सम (हजार टन) 35 42 2207 29.68
चू ना प थर ( म लयन टन) 161 1595 179 2018.2
मै नेसाइट (हजार टन) 282 53 221 32.2
बेराइ स (हजार टन) 1085 47 1459 73.7
ट टाइट (हजार टन) 708 33 576 29
186
7.2.1 लौह अय क के कार Types of Iron - Ore)
187
दे श के अ य रा य म इसके बाद उड़ीसा (21%), कनाटक (20%), म य दे श व
छ तीसगढ़ (18%) तथा गोआ (11%) मु य है ।
188
भारत म रा य के अनुसार लौह अय क का उ पादन न न ता लका से प ट है क
लौह अय क मुख उ पादक रा य म कनाटक, उड़ीसा, छ तीसगढ़, गोआ,झारख ड मु य है ।
ता लका 7.4
भारत के मु ख रा य म लौह अय क का उ पादन
.सं. रा य उ पादन ( म लयन टन म)
1. कनाटक 24.0
2. उड़ीसा 21.5
3. तीसढ़ 19.3
4. गोआ 17.5
5. झारख ड 13.7
6. अ य 0.9
7. योग 96.9
ोत - टे टि टकल एव े ट ऑफ इि डया, 2003
कनाटक :
यह रा य भारत के लौह अय क उ पादक रा य म अ णीय रा य ह । जो दे श के कुल
लौह अय क का लगभग एक चौथाई भाग उ प न करता है । उ च को ट का लौह अय क
चकमंगलूर िजले क बाबाबूदन पहा ड़य म केमनगुडी , क मु ख, कालाहाड़ी तथा बे लार िजले म
हारपेट- संदरू खदान ह । यहां लोहांश 65 तशत तक होता है तथा मु यत: मै नेटाइट व
हे मेटाइट क म का लौह अय क पाया जाता है ।
अ य लौह अय क उ पादक िजल म च दुग, उ तर क नड, शमोगा, धारवाड़, व
टु मकुर मु य ह ।
बोध न : 1
1. भारतीय खनन यू र का मु यालय कहाँ है?
2. भारत सरकार वारा था पत चार े ीय ख नज वकास म डल (उ तर , पू व ,
म य , द णी म डल) कहाँ था पत है ?
3. मे ने टाइट अय क म शु लौह धातु क मा ा कतने तशत तक पायी जाती
है ?
4. लौह अय क के सं चत भ डार क ि ट से भारत म कौन सा रा य थम थान
पर है ?
5. कनाटक म बाबाबदू न क पहा ड़याँ कस ख नज के खनन के लए स है ?
उड़ीसा :
यहाँ दे श का लगभग 22 तशत लौह अय क ा त होता ह । यहाँ लौह अय क
उ पादन क ि ट से मयूरभंज िजल म गो मा हसानी बादाम पहाड़, सु लेपट मु य ह जहां
लोहांश क मा ा 60 तशत से अ धक ह । अ य े म सु दरगढ़ िजले का बोनाई े तथा
य झर िजल म बांसपानी, क ब क खान अ धक स है । इन सभी े म हेमेटाइट
189
क म का लौह अय क ा त होता है । स बलपुर, कटक आ द िजल से भी लौह अय क
उ पा दत होता है ।
छ तीसगढ़ :
यह रा य दे श के कुल लौह अय क का लगभग 20 तशत उ पादन करता ह । यहाँ
उ तम क म का मै नेटाइट व हे मेटाइट लौह अय क पाया जाता ह । यहां मु य लौह अय क
उ पादक िजल म ब तर, दुग रायगढ, बलासपुर, म डला, बालाधाट सरगूजा आ द है ।
इनम ब तर िजल म अवि थत बैलाडीला एवं राव घाट तथा दुग िजले क द ल,
राजहरा सबसे स खान ह, बैलाडीला क लौह अय क खान ए शया क सबसे बड़ी यं ीकृ त
खान म से एक ह, जहां भारतीय खनन वकास नगम वारा खनन काय कया जाता है । यहां
48 क.मी.ल बी प ी म 14 लौह अय क भ डार अवि थत ह । यहां लगभग 1422 म लयन
टन लौह अय क के संर त भ डार ह । यहां से लौह अय क वशाखाप नम बंदरगाह वारा
जापान को नयात भी कया जाता है ।
गोवा :
भारत के अ य लौह अय क उ पादन खनन े क तु लना म यहां क खनन े का
वकास ती ग त से हु आ है । वतमान समय म यह दे श का लगभग 18 तशत लौह अय क
उ पादन करने वाला रा य ह हांला क कुछ वष तक इसका थम थान भी रहा । 1975 म
भारतीय भू ग भक सव ण वभाग ने उ तर , म यवत व द ण गोवा म 34 लौह अय क के
संर त भ डार क अं कत कया । यहां मु यत: लमोनाइट व सडेराइट क म का लौह अय क
पाया जाता है । यहां क खान खु ल हु ई तथा मशीनीकृ त ह । परना अदोल, पाले ओनड़ा,
कु डनेम- पस लेम, वचो लग- स रगांव अरवालम, कु डनम- डगनेस-सरल बेलगाम-पाले, बराजाम-
बलेना आ द मु य स लौह अय क े ह । यह से लौह अय क मारमु गोआ बंदरगाह वारा
व व के अ य दे श को नयात कया जाता ह ।
झारख ड :
ख नज क ि ट से इस धनी रा य को दे श के लौह अय क संर त भ डार का
लगभग 25 तशत भाग अवि थत ह तथा दे श के कुल लौह अय क उ पादन का लगभग 18
तशत इस रा य से ा त होता है । यह से अ धकांशत: उ च क म का मै नेटाइट व हे मेटाइट
लौह अय क ा त होता ह । इस रा य के लौह अय क उ पादक िजल म संह भू म, पलामू
हजार बाग, संथाल परगना, धनबाद, रांची मु य ह ।
इनम संहभू म िजला उ लेखनीय उ पादक े ह । यह इस े क मु ख खादान
नोदूबू , नोटू बू , गोआ, पसार बु बांसगडा आ द ह । झारख ड क लौह अय क क पेट उड़ीसा
क लौह अय क पेट से सतत ् प से जुड़ी हु ई है । पलामू िजले का डा टनगंज भी लौह अय क
उ पादन के लये स ह । उ त खादान से ा त लौह अय क जमशेदपुर, बनपुर , कु ट ,
दुगापुर , व रकेला ि थत ट ल कारखान को भेजा जाता है ।
190
महारा :
इस रा य के लौह अय क उ पादक े इसके पूव तथा द ण पि चम दो धु र े म
व तृत है । थम पूव धु र े चांदा िजले म अवि थत ह - इस े म पीपलगांव दे वलागांव
लोहरा, सू रजगढ़, असोला मु य खदान ह ।
दूसर द णी पि चमी धु र े र ना ग र िजल म ि थत ह । यहाँ रे डी, गु डू र,
वेनगूरला, सावतवाद मु य लौह अय क खदान ह ।
आ दे श :
अ धकांशत: इस रा य म 50 से 60 तशत शु ता वाले लौह अय क के जमाव पाये
जाते ह, कु छ े म मै नेटाइट क म के लौह अय क के भी संर त भ डार पाये जाते ह ।
कृ णा, गु , कु ड पा, अन तपुर , कनू ल, ने लोर, ख माम आ द िजल म मै नेटाइट क म का
लौह अय क पाया जाता ह । आ दलाबाद, कर मनगर नजामाबाद लौह अय क के सबसे स
उ पादक े ह ।
त मलनाडु :
इस रा य म उ तम क म का मै नेटाइट लौह अय क सालेम िजल म पाया जाता ह ।
यहाँ कजामलाई ग डू मलाई, को लामलाई, तीथमलाई पहा ड़य पर लौह अय क के मु य जमाव ह
। अ य े म पंचमलाई, धरतामलाई, छे तर , अ तूर, महादे वी क पहा ड़या मु य है ।
ह क क म का लौह अय क कोय बटू र, मदुरै, त नवेल , रामनापुरम िजल म पाया
जाता ह । उपरो त के अ त र त लौह अय क उ तर अकाट व नील ग र िजल म भी पाया जाता
है । रा य क लौह खदान से ा त लोहा सालेम ि थत इ पात कराखान क आव यकता पू त
करता है ।
गुजरात :
यह लमोनाइट क म का लौह अय क पाया जाता ह । यहाँ पोरब दर, भावनगर,
नवागर बड़ोदरा जू नागढ, खा डे वर आ द लौह अय क उ पादक िजले मु य ह ।
केरल :
इस रा य म कोजीकोडे िजला लौह अय क उ पादन क ि ट से मह वपूण ह । यह
इल चेतीमाला चे रा, आलमयादा नान भंडा आ द मुख लौह अय क उ पादक े ह । यहां
मै नेटाइट क म का लौह अय क पाया जाता ह ।
राज थान :
राज थान म हेमेटाइट क म का लौह अय क पाया गया ह । लौह अय क उ पादन क
ि ट से राज थान एक मह वपूण रा य नह ं ह । यहां लौह अय क उ पादक े म जयपुर
िजल म मोर जा बानोल े , दौसा िजले नीमला उदयपुर िजले म नाथरा क पाल मु य ह ।
ं , डू ग
अ प मा ा म लौह अय क बूद ं रपुर, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा आ द िजल म भी पाया जाता है ।
ह रयाणा, पि चमी बंगाल, ज मू क मीर, उ तराखंड, उ तर दे श एवं हमाचल दे श :
रा य म लमोनाइट क म का लौह अय क पाया जाता है ।
191
ह रयाणा रा य म महे गढ़ िजल म लौह अय क ा त होता है, पि चमी बंगाल म
दािज लंग पहाड़ी े , व वान, वीरभू म े म लौह अय क के जमाव ह । अ प मा ा म ज मू
क मीर म उधमपुर व ज मू े म, उ तराखंड म गढ़वाल, अ मौड़ा, नैनीताल े म, हमाचल
दे श म कांगड़ा व मंडी े म, उ तर दे श म मजापुर िजले म भी लौह अय क पाया जाता
है।
192
बोध न : 2
1. व व के कु ल अय क यापार का भारत से लगभग कतने तशत ा त होता
है ?
2. भारत के कु ल लौह अय क का सवा धक भाग कस एकमा दे श को हय जाता
है ?
3. भारत के पू व तट तथा पि चमी तट के एक-एक बं द रगाह का नाम उ ले खत
क िजएं जहाँ से लौह अय क नयात कया जाता है ?
193
ता लका 7.8
भारत म मगनीज उ पादन
वष मगनीज उ पादन (लाख टन मे)
1950-51 13.98
1960-61 14.05
1970-71 18.41
1980-81 15.32
1990-91 13.88
2000-01 15.19
2002-31 16.62
ोत : टे टि टकल एब े ट ऑफ इि डया, 2003
194
अ य 0.14
योग 16.62
ोत - टे टि कल एब े ट ऑफ इि डया-2003
उ त ता लका से प ट है क भारत के कुल मगनीज उ पादन का लगभग 99 तशत
भाग उड़ीसा, महारा , कनाटक तथा आ दे श रा य से ा त होता ह । उड़ीसा तथा महारा
संयु त प से दे श म कुल मगनीज उ पादन का लगभग आधा भाग मगनीज पैदा करते ह ।
उड़ीसा : भारत म मगनीज उ पादन म इस रा य का थम थान ह । दे श के कुल मगनीज
उ पादन का यहां से लगभग 37 तशत ा त होता ह । यहां 40 से 50 तशत धातु शु ता
वाला मगनीज पाया जाता है । यहां मगनीज उ पादक मु य िजले - सु दरगढ़, य झर,
कालाहांडी, कोरापुर , ढकनाल, तालचेर, गंगापुर व स बलपुर आ द है।
महारा : महारा दे श के कुल मगनीज का लगभग 24 तशत उ पादन के साथ दूसरा मु ख
रा य ह । यहाँ नागपुर, भ डारा व र ना गर मगनीज उ पादन क ि ट से मु ख ह । नागपुर
िजले म मगनीज क मु ख खपत 19 वग क.मी. े म व तृत ह । यहां मु ख खदान
रामड गर भ डार खोल , धवल , सा दर चोखावल , चरगावां, नगरधान आ द ह । भ डारा िजले
के मु ख उ पादक े - कु समवाह, अशोलपानी, ड गर , सीतासोगी नवगांव व कांदे रया आ द है।
म य दे श : म य दे श म दे श का लगभग 20 तशत मगनीज उ पादन होता ह । म य दे श म
मगनीज उ पादक े 20 क.मी. ल बी तथा 16 क.मी.चौड़ी पेट म बालाघाट - छ दवाड़ा
िजल मे व तृत ह । मगनीज उ पादक अ य िजले - बलासपुर , झाबुआ, माडला, घाट, ब तर,
जबलपुर व इंदौर ह ।
उ लेखनीय है क म य दे श क बालाघाट व छंदवाड़ा मगनीज पेट सतत ् प से
महारा म नागपुर -भ डारा तक 200 क.मी.ल बी व 16 से 25 क.मी.चौडी व तृत है ।
कनाटक : इस रा य म 30 से 50 तशत धातु शु ता वाला मगनीज ा त होता ह । यह रा य
दे श के कु ल उ पादन का 16 तशत मगनीज उ पादन करता ह । यहाँ के मु ख उ पादक िजले
- चतलदुग, धारवाड़, बेलगाम, बेलार , संदरू , शमोगा, उ तर कनारा चकमंगलू र, बीजापुर आ द
ह । इनम बेजापुर िजला सबसे मु ख मगनीज उ पादक े ह । भ ावती व सलेम ि थत
कारखान म यहां से मैगनीज क आपू त क जाती ह । आ दे श दे श म मैगनीज उ पादन म
इस रा य का पांचवा थान ह । यहां के उ पा दत मगनीज म 25 से 55 तशत धातु शु होती
ह । इस रा य म मुख मैगनीज उ पादक िजले कु डामा, वशाखाप नम तथा ीकाकुलम ह ।
अ प मा ा म वजयनगर, गु त
ं ु र िजल से भी मगनीज ा त कया जाता है ।
झारख ड : इस रा य म संहभू म, धनबाद व हजार बाग िजल से मगनीज ा त होता है ।
संहभू म िजले म मगनीज मु य प से वीरपु पुर, चाइबासा, बसाडेरा, पहाड़पुर े मे पाया
जाता है ।
अ य े : इनके अ त र त अ प मा ा म अ य रा य म भी मगनीज पाया जाता ह । गोवा म
परनेम बरदार े से मगनीज ा त होता है ।
195
गुजरात : गुजरात म मगनीज उ पादन क ि ट से दो िजले पंचमहल तथा बडोदरा मु य ह ।
पंचमहल िजल म जाटवद, शवराजपुर , दोहद, वामनकु आ व भाट आ द मु ख मगनीज उ पादक
े ह । वडोदरा म खाडी तथा उनाध रया े म मगनीज पाया जाता ह । अ पमा ा म घ टया
क म का मगनीज सावरकाठा तथा बनासकाठा िजल म पाया जाता ह ।
राज थान : यहाँ का अ धकांश मगनीज बांसवाड़ा िजल से ा त होता ह । इसके अ त र त
ं रपुर, उदयपुर सरोह , पाल िजल म मगनीज पाया जाता ह । उदयपुर िजल म नाथ वारा,
डू ग
दे बार तथा सागरवाड़ा े म भी मगनीज उ पा दत होता ह । पाल िजल म ह रापुर े से
मगनीज पाया जाता है ।
196
5. राज थान म मु ख तां बा उ पादन का अ धकां श भाग कस िजले से ा त होता
ह?
तांबा एक ऐसी धातु है िजसका मानव वारा उपयोग स यता के आ द काल से होता रहा
ह । यह धातु बजल का सुचालक तथा अघातवतनीय आ द अपने वशेष गुण के कारण बजल
के तार, मोटर इंजन, बजल के ब व, डायनम , रे डय , दूरभाष व अ य व युत उपकरण म
वशेष उपयोगी ह ।
ाचीनकाल से स के, बतन, जेवर, आभू षण, रसायन व दवाइय म इस धातु का
उपयोग होता रहा ह । दूसर धातु ओं म तांबे को म त कर अनेक उपयोगी धातु एं तैयार क
जाती ह िजसम तांबा म रांगा मलाकर कांसा, सोना मलाकर रो ड गो ड, ज ता मलाकर
पीतल, सीसा मलाकर इ पात आ द बनाये जाते ह ।
197
होकर वष 2004-03 म मा 1.53 लाख टन रह गया । वष 2006-07 म उ पादन लगभग
1.25 लाख टन ह हु आ ।
ता लका 7.11
भारत मे तांबा अय क का उ पादन
वष उ पादन (लाख टन म)
1950-51 3.74(मू य 1.94 करोड़ .)
160-61 4.23
1970-71 6.66
1980-81 21.72
1990-91 52.90
2000-01 1.64
2004-05 (मू य 242.96 करोड़ .)
ोत भारत, 2006
भारत म मु ख तांबा उ पादक रा य न नानुसार ह :-
चू ं क भारत म तांबा संर त मु य भ डार सी मत े म सं चत ह । अत: भारत म
इसका उ पादन कुछ रा य म मु य प से झारख ड, राज थान, म य दे श, कनाटक, आ दे श
म अ धक केि त ह । अ य रा य म त मलनाडु , महारा , पि चम बंगाल, बहार, उ तराखंड,
हमाचल दे श, सि कम आ द है ।
झारख ड : तांबा संर त भ डार व उ पादन क ि ट से इस रा य का भारत म थम थान ह
। दे श के कुल तांबा उ पादन का लगभग आधा भाग यहाँ से ा त होता ह । यहां के मु य तांबा
उ पादक िजल म संहभू म, मानभू म, हजार बाग, लोहरडागा, कोडरमा, गरडीह, पलामू आ द ह
। संहभू म िजला मु य उ पादक े ह जहां 130 क.मी.ल बी पेट म तांबा न ेप पाये जाते ह
। इस े म 2 खदान से ा त तांबे म 1.7 तशत से 2.7 तशत शु धातु पायी जाती ह ।
यह मु ख तांबा उ पादक खनन े स नामाखी, मोसाबानी, घाट शला, धोबनी, राजदाहा,
तामापहाड, मु रमडीस आ द ह । मोसाबानी खान म तांबा उ पादन काय भारतीय तांबा नगम
वारा संचा लत कया जाता है ।
राज थान : भारत का दूसरा बड़ा तांबा उ पादक रा य कहलाता ह । भारत के कु ल तांबा उ पादन
का लगभग 40 तशत यहाँ से ा त होता ह । रा य म तांबे के 13 करोड़ टन से अ धक
भ डार का अनुमान ह । रा य म तांबा उ पादक मु य िजल म झु झूनू, अलवर, उदयपुर ,
भीलवाड़ा, चु , झालावाड़ व दौसा आ द है । इनम सवा धक झु झूनू िजला मह वपूण ह । यहां
खेतड़ी- संघाना े म चादमानी खोरखेड़ा को लहान, मंधान कुधगांन खान से तांबा ा त होता ह
। तांबा खनन काय ह दु तान तांबा नगम वारा कया जाता ह । यहां ांस के सहयोग से
खेतड़ी क पर कॉ पले स तांबा सं ावक था पत कया गया ह ।
198
सीकर िजल म नीमकाथाना के समीप भी तांबा पाया जाता ह । अलवर िजल म खो-
दर बा, भीलवाड़ा िजल मे पुर-बनेड़ा उदयपुर म सलू बर, रे लमगरा, दलवाड़ा, दे बार आ द े से
तांबा ा त होता ह ।
हाल ह जयपुर, द सा व बांसवाड़ा िजल म भी तांबे के नये भ डार मले ह ।
आ दे श : भारत म तांबा उ पादन म झारख ड व राज थान के प चात ् इस रा य का तीसरा
थान ह । यह ं तांबा उ पादक िजल म गु , ने लौर, कु डू पा, कु रनूल, नलग डा, अन तपुर आ द
मु य ह । गु िजल म 3.5 कलोमीटर अि न गुडाला पेट म तांबा, ज ता के म त भ डार
मले ह । इस पेट म लगभग 50 लाख टन तांबा न ेप का अनुमान ह । इस े म तांबे क
खदानो म धातु का तशत 0.5 ह ।
अ य तांबा उ पादक रा य :
त मलनाडु : इस रा य म द णी अकाट िजल म माम दूर े सै तांबा पाया जाता है । कुछ
मा ा म व लुपरु म , कु ालोट े से भी तांबा ा त होता है ।
महारा : महारा म च पुर िजल म तांबे क खदान पायी जाती ह ।
म य दे श : म य दे श म जबलपुर, होशंगाबाद, सागर िजल म तांबे क खदान ह जहां से तांबा
ा त होता ह । बालाघाट म खुल खदान से तांबा नकाला जाता है ।
बहार : बहार म गया िजले म तांबे के भ डार अ व थत है ।
उ तराखंड : यहां गढ़वाल िजले के
धानपुर व पोखट म , अ मोड़ा िजले म
दवालथल व बागे वर एवं दे हरादून िजले
म का सी म तांबे के भ डार 97
क.मी. े म व तृत ह ।
सि कम : यहाँ सबसे अ छ क म का
3 से 4 तशत धातु शु ता वाला रांगपो
के नकट ि थत भोटाग क खनन े
म चांद , सीसा, ज ता यु त तांबा पाया
जाता है । इसके अ त र त ड यू रोटोक
सरब ग आ द म भी तांबे क खाने
ि थत ह । ज मु क मीर म घाट म मान च 7.3 ताँबा एवं अ क े
हपतनगर के नकट ब नहाल-डोडा े , रयासी िजले म गेती े म तांबा मलता है ।
छ तीसगढ़ ब तर िजले म, हमाचल दे श म कांगड िजले व क न घाट आ द े म अ प
मा ा म तांबा पाया जाता है ।
7.5 अ क (Mica)
7.5.1 मह व
200
- आ दे श, झारख ड तथा राज थान । आ दे श म अ क के अनुमा नत भ डार लगभग 45
हजार टन, झारख ड म 13.5 हजार टन तथा राज थान म 1.5 हजार टन ह ।
व व म अ क के उ पादन क ि ट से भारत का थम थान ह । व व क कुल
अ क उ पादन का लगभग 80 तशत भाग भारत म उ पा दत होता है, िजसका अ धकांश भाग
अ छ क म क अ क ह । अ क के छोटे -छोटे चूण , टु कड़ म घ टया क म से न मत
माइकोनाइट क चादर का 90 तशत भाग भी भारत म उ पा दत होता है, िजसमे भी भारत का
व व का थमं थान ह ।
ता लका 7.12
भारत - अ क उ पादन
वष उ पादन(हजार टन म)
1960-61 28.34
1970-71 15.09
1980-81 8.53
1990-91 38.06
2000-01 11.54
2001-02 2.26
2002-03 1.21
ोत- टे टि टकल एव े ट ऑफ इि डया, 2003
201
ट क, भीलवाड़ा, उदयपुर, डू ग
ं रपुर आ द ह । रा य म सवा धक अ क भीलवाड़ा िजले क घोरास
तापुरा, टु का, छपर , बनेडी, फू लया, गंगापुर , घोटला, बे लया आ द खान से ा त होता ह ।
उदयपुर िजले का अ क उ पादन म रा य म दूसरा थान ह । इस रा य क अ क आ दे श,
झारख ड क तु लना म घ टया ेणी है ।
झारख ड : झारख ड रा य भी अ क उ पादन म दे श का सबसे मह वपूण रा य ह । यहां क
व व स अ क हजार बाग, ग रडीह, संथाल, कोडरमा, दे वगढ़, दूम का, धनबाद, रांची,
बोकार , पालामाऊ संहभू म आ द े म पायी जाती ह । रा य म अ छ क म क अ क
उ पादन का अ धकांश भाग अकेले हजार बाग िजले से ा त होता ह । रा य म अ क क कुल
600 खदान ह । यहां अ क एक पेट म पाया जाता ह, जो चतरा से दूमका तथा कोडरमा से
संहभू म िजले तक व तृत है । इस पेट का कुल े फल 3380 वग कलोमीटर है । यहां
उ तम क म क बी अ क पायी जाती ह । यहां पर अ क 30 मीटर तक क मोटाई वाल
परत म पायी जाती ह ।
बहार : झारख ड रा य नमाण से पूव अ वभािजत बहार भारत क कुल अ क का 48 तशत
उ पादन कर थम थान पर था । अ क उ पादक अ धकांश मु ख े झारख ड म चले जाने
के कारण बहार से वतमान समय मे भारत क कु ल अ क उ पादन का लगभग 13 तशत
ा त होती है ।
इस रा य के मु य अ क उ पादक े म ओरं गाबाद, गया, नवादा, शेखपुरा आ द ह ।
अ क उ पादक अ य रा य : भारत म उपयु त मु ख अ क उ पादक रा य के अ त र त अ य
रा य से भी अ क ा त होती ह । क तु रा य तर पर इनका कम मह व ह । ऐसे शेष
अ क उ पादक रा य ह ।
त मलनाडु : इस रा य म त नवेल िजले म को वलप ी के नकट अ क क खदान अवि थत ह
। अ क उ पादक अ य िजल म त चराप ल , नील ग र, सालेम मदुरै तथा कोय बटू र आ द
मु य है ।
म य दे श : म बालाघाट, छ दवाडा तथा नर समपुरा े म अ क का उ पादन होता है ।
छ तीसगढ़ : म ब तर, सरगुजा, बलासपुर मु य अ क उ पादक े ह ।
उड़ीसा : इस रा य म स भलपुर, ढकनाल, गंजाम, कोरापुट , सु दरगढ़, कटक आ द िजल म
अ क का उ पादन होता है ।
कनाटक : इस रा य म मैसरू व हासन िजल म अ क ा त होता है ।
पि चमी बंगाल : इस रा य म बांकु रा व मदनापुर िजल म अ क उ पा दत होता है ।
ह रयाणा : इस रा य म गुड़गाँव तथा नारनौल िजल म अ क ा त होती है । नारनौल िजले म
महे गढ़ अ क उ पादक े ह ।
केरल : इस रा य म ह क क म का अ क अले पी, ि व लोन, पु नालूर िजल म पाया जाता
ह ।
हमाचल दे श : इस रा य म क नौर िजल म अ क पाया जाता है ।
202
7.5.5 अ क यापार (Trade of Mica)
ता लका 7.13
भारत - अ क का नयात
वष उ पादन(हजार टन म)
1960-61 28.34
1970-71 26.7
1980-81 16.7
1990-91 42.0
2000-01 63.2
2001-02 57.7
2002-03 33.8
ोत : इकोनो मक सव, 2004-05 पृ ट 3।-84-86
बोध न : 5
1. राज थान म सवा धक अ क- उ पादक िजला कौन सा है ?
2. वष 2001-02 म भारत म अ क उ पादन कतना हु आ है?
3. वष 2002-03 म भारत म अ क उ पादन म कौन सा रा य थम थान पर
है ?
4. अ क के सं र त भ डार कस कार क च ान म पाये जाते है ?
ल बे समय से अ तरा य तज पर भारत मु ख अ क नयातक दे श रहा ह । वष
1960 से पूव अ क नयात मे भारत का व व म एका धकार था । क तु इसके बाद
अ तरा य बाजार म अ क क मांग कम होने के साथ ह अ य दे श म अ क उ पादन वृ
तथा नयात त प ा म वृ हु ई है । अ तरा य अ क नयात म ाजील वतमान समय
भारत का त पध दे श के प म उभर रहा ह । भारत से अ क नयात ास के अ य कारण
म मु य ह – 1. वदे शो म कृ म अ क के उ पादन म वृ के कारण ाकृ तक अ क क मांग
म कमी होना, 2. अ क का छोटे - छोटे टु कड़ म उ पादन होना, 3. प रवहन खच अ धक होने
से अ क नयात अपे ाकृ त अ धक लाभ द न होना आ द ।
भारत से कुल अ क नयात का 80 तशत मांग संयु त रा य अमे रका, इं लै ड,
कनाडा, नीदरलै ड, बेि जयम, जमनी, ांस, चीन, पौले ड, नाव, हगर आ द दे श को जाता ह ।
इनम संयु त रा य अमे रका तथा ेट टे न भारत के मुख अ क आयातक दे श ह ।
भारत से अ धक नयात म अ धक वृ हे तु भारत सरकार वारा माइका े डंग
कॉरपोरे शन ऑफ इि डया ( मटको) क थापना क गई ह । इस सं थान वारा अ क छोटे -छोटे
उ पादक से वयं अ क य कर अ क आधा रत उ योग म इसका उपयोग कर व वध साम ी
का उ पादन कया जाता ह - यथा - स वर माइका, कागज, माइ ोनाइट पाउडर, माइका
केपे सटर, ह टर माइ ोनाइट आ द । इन उ पाद को वदे श म नयात कया जाता है । भारत से
अ क क ईट का भी नयात कया जाता ह ।
203
7.8 सारांश (Summary)
मानव स यता के आ दकाल से मानव को व वध ख नज तथा बहु मू य प थर का
ान था । एक दे श के आ थक वकास म ख नज संसाधन क मह वपूण भू मका होती है ।
ख नज से दे श म औ यो गक वकास होता ह, जनसं या को रोजगार ा त होता है, इसके
नयात से दे श को वदे शी मु ा ा त होती ह ।
भारत ख नज क ि ट से एक धनी दे श ह । भारत म ख नज संसाधन का सव ण,
आकलन, दोहन, अनुसंधान, यापार हेतु भारतीय भू गभ सव ण वभाग, रा य ख नज नगम,
ख नज व धातु यापार नगम, ख नज अ वेषण नगम ल मटे ड, ख नज सलाहकार बोड आ द क
थापना क गई ह । भारत म ख नज का वतरण असमान ह - भारत म व वध कार के
ख नज 5 मेखलाओं म अ धक पाये जाते ह - ये मेखलाय न न ह-
1. बहार - झारख ड, उड़ीसा - पि चमी बंगाल मेखला, 2. म य दे श - छ तीसगढ़ -
आ दे श - महारा मेखला, 3. कनाटक त मलनाडु मेखला, 4. राज थान गुजरात मेखला, 5.
केरल मेखला ।
भारत म अ धकांश ख नज अ यंत ाचीन शैल से न मत ाय वीपीय भाग म पाय जाते
ह जब क उ तर भारत के नवीन शैल से न मत मैदानी भाग म ख नज का अभाव है ।
भारत म पया त उ पादन के साथ आ थक मह व वाले ख नज म लौह अय क,
मगनीज, अ क, कोयला, सोना, इ मैनाइट, बॉ साइट आ द ह तथा औ यो गक ि ट से
मह वपूण कं तु अ प मा ा म पाये जाने वाले ख नज म तांबा , न कज, टन, कोबा ट, ेफाइट
पारा, ख नज तेल आ द ह ।
लौह अय क : व व म लौह अय क के सं चत भ डार, उ पादन क ि ट से भारत का मह वपूण
थान ह । लौह अय क 4 कार के होते ह मै नेटाइट, हे मेटाइट, लमोनाइट, सडेराइट । सबसे
शु धातु का अंश मै नेटाइट म 72 तशत से अ धक, हे मेटाइट म 60 से 70 तशत,
लमोनाइट म 40 से 60 तशत, सडेराइट म 40 से 48 तशत तक होता है ।
भारतीय भू गभ वभाग के सव ण के अनुसार भारत म दोहनयो य मै नेटाइट लौह
अय क के लगभग 340.8 करोड़ टन तथा हेमेटाइट लौह अय क के लगभग 1005.2 करोड़ टन
सं चत भ डार ह । भारत म कु ल लौह सं चत भ डार का झारख ड म दे श का लगभग 25
तशत, उड़ीसा म 21 तशत, कनाटक म 20 तशत व म य दे श व छ तीसगढ़ म संयु त
प से 18 तशत व गोआ म 11 तशत सं चत ह ।
भारत म लौह अय क उ पादन का लगभग एक चौथाई भाग कनाटक, उड़ीसा 22
तशत, छ तीसगढ़ 20 तशत, गोआ 18 तशत, झारख ड 18 तशत रा य से ा त होता
है, अ य रा य म महारा , आ दे श त मलनाडु , गुजरात , राज थान आ द मु य ह । भारत
से कुल लौह अय क नयात का लगभग 60 तशत भाग जापान व शेष चैको लोवा कया,
मा नया, बेि जयम, हंगर , ईरान, इटल आ द दे श म नयात कर दया जाता है।
204
मगनीज : भारत म 16.70 करोड़ टन के संर त भ डार पाये जाते ह । भारत म मगनीज सं चत
भ डार का कनाटक म 37.8 तशत, उड़ीसा म 17.6 तशत, म य दे श म 10.4 तशत,
महारा म 7.8 तशत भाग न े पत है । भारत म मगनीज उ पादक मु ख रा य उड़ीसा (37
तशत), महारा (24 तशत), कनाटक (20 तशत) एवं अ य रा य म आ दे श,
झारख ड, गुजरात आ द ह ।
तांबा : भारत म तांबा ाचीन रवेदार व पा त रत च ान म चांद , टन, सीसा, व सोना आ द
धातु ओं के साथ म त प म पाया जाता ह । भू वै ा नक सव ण के अनुसार भारत म दोहन
यो य तांबे के भ डार लगभग 71.25 करोड़ टन ह । इनका अ धकांश भाग झारख ड, म य दे श,
राज थान, आ दे श, कनाटक, गुजरात आ द रा य म पाया जाता ह ।
भारत म तांबा उ पादक मु ख रा य न न ह - झारख ड (दे श के तांबा उ पादन का
लगभग आधा भाग) राज थान (40 तशत), आ दे श, त मलनाडु , महारा , बहार आ द ।
भारत म तांबा संयु त रा य अमे रका, िज बा वे, जापान, मैि सक आ द दे श से
आयात कया जाता है ।
अ क : अ क एक बहु उपयोगी अधाि वक ख नज ह । अ क आ नेय एवं कायांत रत च ान म
पायी जाती है । अ क मु यत: वेत, गुलाबी, पील रं ग क पायी जाती ह - कु छ ह क काल व
हरे रं ग म भी पायी जाती ह । व व म अ क के संर त भ डार व उ पादन क ि ट से भारत
का थम थान ह । भारत म मु ख उ पादक रा य म आ दे श, राज थान, झारख ड, बहार,
त मलनाडु आ द है ।
व व म अ क नयातक दे श म भारत एक अ णी दे श ह । भारत से अ क नयात का
80 तशत संयु त रा य अमे रका, टे न, कनाडा, नीदरलै ड, बेि जयम, जमनी, ांस, चीन,
पोले ड, हंगर , नाव आ द दे श को जाता है । भारत से अ क क ईट का भी नयात कया जाता
है । भारत से अ क नयात म वृ हे तु भारत सरकार वारा माइका े डंग कॉरपोरे शन ऑफ
इि डया ( मटको) क थापना क गई ह ।
7.9 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. नागपुर
2. उ तर म डल-अजमेर, पूव म डु ल-कोलकाता म य म डल- नागपुर , द णी म डल-
बंगलौर
3. 60 - 70 तशत
4. झारख ड
5. मै नेटाइट व हैमेटाइट क म का लौह अय क
बोध न - 2
206
1. लगभग 8 तशत
2. जापान
3. पूव तट पर - वशाखाप नम
4. पि चमी तट पर - मारमगोओ या मंगलोर
बोध न - 3.
1. टरबाइन ले स
2. उड़ीसा
3. मगनीज
4. लगभग 37 तशत
5. बांसवाड़ा िजला
बोध न - 5
1. पीतल
2. तांबा
3. झारख ड
बोध न - 5
1. भीलवाड़ा िजला
2. 20.26 हजार टन
3. आ दे श
4. आ नेय एवं कायांत रत च ान म
7.10 अ यासाथ न
1. भारत म लौह अय क के संर त भ डार, उ पादन, वतरण व यापार का ववरण
द िजये ।
2. भारत म मगनीज के उ पादन, वतरण एवं अ तरा य यापार पर एक भौगो लक लेख
ल खये ।
3. भारत म तांबा के संर त भंडार, उ पादन, वतरण के साथ यापार का वणन क िजये ।
4. भारत म अ क के उ पादन, वतरण के साथ अ तरा य यापार म भारत क ि थ त
का वणन क िजए ।
207
इकाई 8 : ऊजा संसाधन (Energy Resources)
इकाई क परे खा :
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 कोयला
8.2.1 कोयले क उ पि त
8.2.2 कोयले क क म
8.2.3 कोयले के सुर त भ डार
8.2.4 भारत म कोयले का वतरण एवं उ पादन
8.2.5 कोयले का उपयोग
8.2.6 कोयले क सम याएं एवं संर ण
8.3 ख नज तेल
8.3.1 ख नज तेल क उ पि त
8.3.2 भारत म ख नज तेल के भ डार
8.3.3 भारत म ख नज तेल का वतरण एवं उ पादन
8.3.4 तेल शोधनशालाएं
8.3.5 ख नज तेल का उपयोग
8.3.6 ख नज तेल का आयात- नयात
8.3.7 ख नज तेल का संर ण
8.3.8 भारत म ाकृ तक गैस
8.4 जल- व युत
8.4.1 जल- व युत उ पादन क आव यक दशाएं
8.4.2 भारत म जल- व युत उ पादन के स भा वत े
8.4.3 भारत म जल- व युत उ पादन े
8.4.4 जल- व युत का उपयोग एवं मह व
8.5 आण वक ऊजा
8.5.1 भारत म आण वक ख नज पदाथ
8.5.2 आण वक ऊजा का उ पादन
8.5.3 आण वक ऊजा का उपयोग
8.5.4 आण वक ऊजा का संर ण
8.6 गैर-पार प रक ऊजा ोत
8.6.1 सौर ऊजा
8.6.2 पवन ऊजा
8.6.3 वार य ऊजा
208
8.6.4 जैव ऊजा
8.6.5 भू तापीय ऊजा
8.7 सारांश
8.8 श दावल
8.9 संदभ थ
ं
8.10 बोध न के उ तर
8.11 अ यासाथ न
8.0 उ े य(Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप स नझ सकगे क -
भारत म पर परागत एवं गैर-पर परागत ऊजा ोत का ववरण ।
कोयले का वतरण, उपयोग एवं संर ण ।
ख नज तेल का वतरण, मह व एवं संर ण ।
जल व युत उ पादन क आव यक दशाएं, उ पादन े , उपयोग एवं मह व ।
आण वक ऊजा का उ पादन, आण वक ख नज, उनका उ पादन एवं सरं ण ।
गैर-पर परागत ऊजा ोत जैसे सौर ऊजा, पवन ऊजा, वार य ऊजा, जैव ऊजा एवं भू-
तापीय ऊजा का ववरण, मह व, सम याएं एवं स भावनाएं आ द ।
209
यावसा यक, कु ट र उ योग व लघु उ योग आ द के लये तब तक 60 तशत ऊजा क आपू त
गोबर, लकड़ी, पशुधन एवं मनवा म से ा त होती थी । 1975 के प चात नर तर भार
उ योग का वकास, यापा रक ऊजा क ाि त व नभरता म तेजी से वृ , जल व युत व
ख नज तेल तेजी से गांव तक पहु ँ चना, स क का जाल, वाहन क सं या म वृ तथा लघु व
म यम उ योग को बढ़ना आ द कारण से पर परागत ऊजा उ पादन व उपभोग म वृ हु ई ।
8.2 कोयला(Coal)
कोयला काला रग भू रे रं ग का काबनयु ता ठोस जीवा म ईधन है, जो मु यत: अवसाद
शैल म पाया जाता है । यह वलनशील होता है । यह घरे लू ईधन से लेकर औ यो गक ईधन
तक म उपयोग म लाया जाता है ।
210
ह । इसम वा पशील पदाथ बहु त कम होता है । यह जलने म धु आँ कम दे ता है तथा ताप बहु त
अ धक होता है ।
(2) बटु मनस (Bituminus)- यह काले रं ग का चमकदार कोयला होता है । इसम काबन
क मा ा 70 तशत से 90 तशत होती है । इसम वा पशील पदाथ क मा ा अ धक होती है
। यह जलने म बहु त धु आँ दे ता है । यह पील लौ के साथ जलता है ।
(3) ल नाइट (Lignite) -यह भू रे रं ग का कोयला है, इसम काबन क मा ा 45-70 तशत
होती है । यह जलने म धुऑ अ धक दे ता है तथा राख भी बहु त छोड़ता है । इसम वन प त का
अंश अ धक मा ा म होता
(4) पीट कोयला (Peat Coal) - यह वन प त के मौ लक प म थोड़ा सा ह प रव तत
कोयला है । इसम काबन क मा ा 40 तशत पायी जाती है । यह ाय: लकड़ी क तरह जलता
है और जलने म बहु त धुऑ दे ता है ।
8.2.4 भारत म कोयले वतरण एवं उ पादन (Distribution and Production of Coal
in India)
211
छ तीसगढ़ व म य दे श रा य म अवि थत ह । शेष 12 तशत कोयला आ दे श, उड़ीसा,
महारा , मेघालय, असम, नागालै ड, ज मु क मीर तथा अ णाचल दे श म उ पादन कया
जाता है । भारत के कोयला उ पादक े को ग डवाना तथा ट शयर दो भाग म वभािजत
कया गया है, िजनका वणन न न कार से है-
गो डवाना कोयला े -
1. महानद घाट कोयला े - यह े मु य प से उड़ीसा के धनकमल, स बलपुर,
सु दरगढ़ िजल म पाया जाता है । यह े भारत के कुल कोयला भ डार का 2 तशत तथा
उ पादन का 6 तशत भाग उ पा दत करता है । उड़ीसा का धनकनाल िजला तीसरा मु य
कोयला उ पादक िजला है, जहाँ तलचर े मु ख है । यह े लगभग 518 वग क.मी. े म
वसात है । यहाँ 8 मीटर मोटाई तक क कोयले क परत पायी जाती है । रामपुर- हम गर
कोयला उ पादक े स बलपुर-सु दरगढ़ िजल म व तृत है । यहाँ लगभग 150 करोड़ टन
कोयला के भ डार ह ।
2. गोदावर नद घाट कोयला े - इसका व तार गोदावर नद घाट म आं दे श के
आ दलाबाद, पि चमी गोदावर , कर म नगर, ख माम तथा वारं गल िजल म है । यहाँ भारत के
कु ल उ पादक का 7.5 तशत कोयला ा त होता है । आ दलाबाद िजले का त दूर े गोदावर
तथा तहर न दय के म यवत भाग म लगभग 250 वग क.मी. े म व तृत है । वधा नद के
पि चम म ि थत स ती तथा अ नागाँव इस िजले के अ य कोयला उ पादक े है । ख माम
िजले का संगरोल े , येले दू कोठागुडम
े , ताताप ल , वारं गल िजले के करलाप ल अ य
मह वपूण कोयला उ पादक े ह ।
आरे ख 8.1 भारत - रा यानुसार कोयला उ पादन ( तशत मे)
212
3. दामोदर नह घाट शोयला े - यह भारत का मुख कोयला उ पादक तथा सवा धक
भ डार रखने याला े है । िजस पर स पूण भारत क औ यो गक याएं नभर ह । इस े
को न न उपभाग म वभािजत कया जाता है ।
(1) मु य दामोदर नद घाट कोयला े - झारख ड म मु य कोयला उ पादक े रानीगंज
से 48 क.मी.पि चम मे ि थत झ रया है जो 436 वग क.मी. े म व तृत है । इस े म
दे श का 90 तशत को कं ग कोयले का भ डार है । कुल भ डार लगभग 1860 करोड़ टन है ।
धनबाद िजले का झ रया े अकेला झारख ड का 50 तशत कोयला उ पा दत करता है । यहाँ
उ तम क म का बदु म स कोयला मलता है । िजसक लगभग 20 मीटर मोट परत पायी
जाती है । च पुरा व धनबाद म घ टया क म का कोयला मलता हे ।
हजार बाग िजला झारख ड का दूसरा मुख कोयला उ पादक िजला है । जहाँ गर डीह ,
बोकार , करनपुरा व रामगढ़ मु ख उ पादक े ह । गर डीह े म उ तम ेणी का टम
कोक मलता है िजसका कुल भ डार 7.3 करोड़ टन है ।
213
बोकार े बोकार नद घाट म व तृत है । यह झ रया से 3 क.मी.पि चम म
अवि थत है । 674 वग क.मी. े म व तृत यह दे श पूव तथा पि चमी बोकार े म
वभािजत है । इस े म 30 मीटर मोट कोयले क परत पायी जाती ह । यहाँ कुल भ डार
लगभग 1004 करोड़ टन है ।
करनपुरा े बोकार े के 3 क.मी.पि चम म ि थत है, जो रानीगंज तथा झ रया के
बाद कोयला उ पादन म अपना मह वपूण थान रखता है । 1500 वग क.मी. े म व तृत यह
दे श उ तर तथा द णी करनपुरा म वभािजत है । जहाँ 1260 करोड़ टन कोयला के भ डार ह
। रामगढ़ े करनपुरा कोयला े के पि चम म ि थत है । जहाँ लगभग 103 करोड़ टन
कोयले के भ डार है ।
इसका व तार भारत के झारख ड तथा पि चम बंगाल रा य म है । जहाँ से भारत का
लगभग 50 तशत कोयला उ पा दत होता है । पि चम बंगाल म रानीगंज मु य कोयला
उ पादक े ह। िजसका व तार बदवान, पु लया तथा बाँकु डा िजल म है । रानीगंज कोयला
े म ह भारत म सव थम 1774 म कोयला उ पादन शु हु आ । यह े 1092 वग
क.मी. े म व तृत है , जहाँ लगभग 9508 करोड़ टन कोयले का भ डार अवि थत है । यह
भारत का सबसे बड़ा कोयला उ पादक े है । जहाँ से भारत का लगभग 25 तशत कोयला
उ पा दत होता है । इस े म कोयले क परत 16 मीटर तक मोट है । धनबाद, हजार बाग
िजले झारख ड के मु ख उ पादक िजले ह ।
(2) उ तर दामोदर नद घाट कोयला े - इसका व तार मु य दामोदर नद घाट के
उ तर भाग म ि थत राजमहल पहा ड़य (झारख ड) म ह । जहाँ सहजोर जै ती तथा कु ि दत
छोटे उ पादक े है । यह दे श झारख ड रा य के पूव भाग तथा पि चम बंगाल म व तृत है।
(3) पि चमी एवं उ तर-पि चमी दामोदर नद घाट कोयला े - मु य दामोदर नद घाट के
उ तर-पि चम एवं पि चम भाग म व तृत इस े का व तार झारख ड रा य के पलामू िजले
के ओरं गा डा टनगंज, हु नार े म पाया जाता है । डा टनगंज मु य े है, जो 80 वग
क.मी. े म व तृत है ।
(4) छ तीसगढ़ कोयला े - इस रा य के उ तर भाग म मु य कोयला उ पादक े ि थत
है । िजसम रामकोला तातापानी कोयला उ पादक े मह वपूण ह । यह लगभग 2000 वग
क.मी. े म व तृत है ले कन यहाँ अ धकतर कोयला न न ेणी का है । छ तीसगढ़ के
बलासपुर के समीप ि थत कोरबा े है , जहाँ लगभग 36.5 करोड़ टन कोयले के भ डार
अवि थत है । अ धकतर कोयला उ तम ेणी का है, िजसका उपयोग भलाई लौह इ पात
कारखाने म होता है । सरगुजा िजले के व ामपुर े म लगभग 1 करोड़ टन कोयले का भ डार
है । जहाँ 2 मीटर से 60 मीटर मोट कोयले क परत ि थत है । इसके अ त र त इस िजले के
झल मल , झगड़ख ड, खर सया, सोवहर तथा को रयागढ़ म भी कोयले के भ डार पाए जाते ह ।
रामपुर ह गर चरामेर -कु र सया लखनुपर आ द इस रा य के अ य मह वपूण कोयला उ पादक
े ह ।
214
ये सभी कोयला उ पादक े ग डवाना च ान से स बि धत है जहाँ भारत के कुल
कोयला भ डार का 98 तशत है । स पूण ग डवाना युगीन कोयले के भ डार लगभग 90650
वग क.मी. े म व तृत है , जहाँ अ धकतर बटु मनस कोयला पाया जाता है । िजसम 55
तशत काबन, 15 से 20 तशत राख, कम वा प तथा गंधक एवं फा फोरस क मा ा म त
प से पायी जाती है ।
(5) सोन नद घाट कोयला े - इस े का व तार म य दे श रा य म है । जहाँ शहडे..
तथा सीधी िजल म संगरोल मु य कोयला उ पादक े है । यहाँ 3 से 5 मीटर मोट कोयले
क परत के प म लगभग 830 करोड़ टन के भ डार है । जो लगभग 300 वग क.मी. े म
व तृत है । शहडोल िजले का दूसरा मु य कोयला उ पादक े सोहागपुर है । उम रया इस
दे श का तीसरा मु य कोयला उ पादक े है। इस े म उ पा दत कोयले म राख तथा
जलवा प क अ धकता के कारण इसका अ धकतर उपयोग कोयले क वा प तथा गैस बनाने म
कया जाता है ।
(6) वधा घाट कोयला े - इसका व तार महारा म है, जहाँ भारत के कुल कोयला
भ डार का 3 तशत कोयला है । मु य उ पादक े च पुर िजले के घुघु , बसेरा म ि थत
है, जहाँ 50 करोड़ टन कोयले के भ डार है । इसके अ त र त यवतमाल िजले का ब लारपुर
े , नागपुर का का पट े अ य मु य कोयला उ पादक े ह।
(7) सतपुड़ा कोयला उ पादक े - इस े का व तार म य दे श तथा महारा के
समीपवत े म दोन रा य म पाया जाता ह । इस े म अ धकतर कोयला म यम तथा
न न ेणी का है । नर संहपुरा िजले म महपानी े , छ दवाड़ा िजले के का हन तथा पच घाट
े तथा वे य िजले के पाथरखेड़ा म कोयले के पया त भ डार अवि थत ह ।
ट शयर युग के कोयला े - भारत म 1.8 से 2 तशत कोयला टशर युग क च ानो से ा त
होता है । इसे भूरा या ल नाइट कोयला भी कहते ह । इसम पया त मा ा म आ ता पायी जाती
है । इसके उ पादन े न न ह-
ज मू-क मीर के द णी-पि चमी भाग म कारे वा संरचनाओं के अ तगत घ टया क म का कोयला
मलता है । यहां के मु य कोयला े म चनाव नद के पि चम म कालाकोट, महोगला चकर
व मेटका क खाने तथा धनसाल-सवालकोट े और चनाव नद के पूव म ल ा े मु ख है ।
असम म कोयला पूव नागा पवत के लखीमपुर तथा शवसागर िजल म पाया जाता है । यहां का
सबसे बड़ा े माकूम है, जो 80 क.मी.ल बा है । यह नामदं गा ल डो कोल े के नाम से
स है ।
पि चम बंगाल- इस रा य के उ तर भाग म ि थत दािज लंग िजले के पनकाबड़ी े म टर शयर
काल न कोयला का उ पादन कया जा रहा है ।
अ णाचल दे श- यहां क डाफला पहा ड़य म ि थत डगराक े मु य कोयला उ पादक है ।
मेघालय- इस रा य म कोयला उ पादक े गारो पहाड़ी है, जो 52 वग क.मी. व तृत है । यह
15.6 करोड़ टन कोयला के भ डार ह । हर गाँव सीजू दौज शर र गरे गर उ बले मु य उ पादन
े है । इसके अ त र त खासी पहाड़ी े म याहां, बेर, लरकर, चेरापूज
ं ी, जयं तयाँ पहाड़ी े
म लकाद ग अ य कोयला उ पादक े है ।
215
ल नाइट कोयला े - ग डवाना तथा ट शयर काल न कोयला क अपे ा यह एक घ टया ेणी
का कोयला है । िजसके उ पादक रा य न न ह-
त मलनाडु - भारत म ल नाइट कोयले के उ पादन म त मलनाडु का नेवेल मह वपूण कोयला
उ पादक े है । नेवेल े का व तार त मलनाडु के वे लोर त वनालोर िजल म लगभग
256 वग क.मी. े म ह । यह े चे नई से 216 क.मी.दूर है । इस े म 52 मीटर क
गहराई पर 20 मीटर मोट परत के प म ल नाइट कोयला पाया जाता है । न न ेणी का
होते हु ए भी नेवल
े ल नाइट कोयले का मह व अ धक है, य क भारत के द णी भाग म
कोयले क कमी थी िजसक पू त इन भ डारो से हो जाती है । इस े म औ यो गक वकास
नेवल
े ल नाइट कोयला े क ाि त के बाद ह अ धक हु आ है ।
राज थान - इस रा य म ल नाइट कोयले के भ डार मु य प से बीकानेर, जोधपुर, नागौर,
जैसलमेर तथा बाड़मेर िजल म पाये जाते ह । यीकानेर के पलाना, खार , चा नेर गंगा सरोवर,
मढ़ मु य कोयला उ पादक े है । िजसम पलाना मे सवा धक कोयला उ पा दत कया जाता है।
इसके अ त र त उ तराखड के शोहरतगढ़ तथा खाजावाल े म भी ल नाइट कोयले के जमाव
पाए जाते ह, जो तराई े मे ि थत ह ।
ता लका 8.2 भारत - कोयला उ पादन
उ पा वत वष उ पादन ( म लयन टन मे)
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
1950-51 32.8
216
व युत उ पादन म होता था । 2003-04 म यह बदलकर व युत म लगभग 76 तथा रे ल
प रवहन म मा 0.31 तशत रह गया ।
व व यापार - भारत अपने उ पा दत कोयले का कु छ भाग वदे श म नयात भी करता है ।
मु य आयातक दे श भारत के पड़ौसी दे श भू टान, नेपाल, मॉर शस, याँमार, पा क तान,
बां लादे श, ीलंका, संगापुर आ द ह । व व म कोयले यापार म भारत का अंश केवल 0.5
तशत है । भारत कोयले के साथ-साथ कोक कोयला का आयात भी करता है य क भारत म
उ पा दत कोयले म 20 से 30 तशत तक राख क मा ा पायी जाती है । िजसके कारण इसका
उपयोग करने से पहले इसम कोक कोयला मलाया जाता है । अत: भारत कोयला का नयात
करने के साथ-साथ कोक कोयला का आयात भी करता है ।
217
1. कोयले का उ पादन कसी वशेष व ध से हो, िजसम कोयले का य कम हो ।
2. रासाय नक कया वारा न न क म के कोयले को उ तम क म का बनाया जाये ।
3. भाप के ईधन म कोयले के उपयोग पर रोक ।
4. कोयले का शु करण उ पादन े के पास म हो ।
5. कोयले का उपयोग अ य त आव यक उ योग म ह हो ।
6. कोयले का वक प योजना चा हए ।
7. उ च गुणव ता क मशीन म कोयले का उपयोग हो, िजससे अ धक ऊजा ा त क जा
सके आ द ।
बोध न : 1
1. कोयले क उ पि त कै से हु ई?
2. कोयले के कार ल खये ।
3. सव े ठ कोयला कौनसा है ?
4. कोयला उ पादन म व व म भारत का कौनसा थान है ?
5. भारत के सवा धक कोयला उ पादन के पां च े ो के नाम लखो ।
6. कोयला कौनसी शै ल म पाया जाता है ?
218
भारत म ाचीन एवं नवीन भू ग भक सव ण के अनुसार वतमान म ख नज तेल के कुल
भ डार 625 करोड़ टन ह । िजसम से 500 लाख टन गुजरात म , 500 लाख टन असम म और
1250 लाख टन मु बई म भ डार ि थत ह । गंगा नद के उ पा दत े मे अवसाद च ान के
े म नवीन तेल भ डार मलने क संभावनाएं है । भारत मे 1990 से पि चमी समु तट य
े मे तेल उ पादन काय को ती ग त से संचा लत कया जा रहा है । इस े म नीलम,
मु ता प ना तथा मु बई हाई म एल- वतीय, एल-तृतीय आ द े म तेल का उ पादन का
काय संचा लत कया जा रहा है । वतमान म नवीन तेल भ डार क खोज, सव ण काय और
उ पादन का काम दो रा य क प नयां तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग तथा ऑयल इि डया
ल मटे ड कर रह ह । भारत म ख नज तेल के भ डार का वदरण न न ता लका से प ट है-
ता लका नं. 8॰3 भारत क चे तेल के भ डार ( म लयन मै क टन)
े (AREA) 1990 2000 2002 2003 2004 2005 2006 2007
1 2 3 4 5 6 7 8 9
Onshore 307 317 332 339 357 376 387 357
Offshore 432 386 409 422 382 410 369 369
Total 739 703 741 761 739 786 756 726
ोत : http;//data.un.org/data.aspx?d=edata ef
219
ल मटे ड इस े के ब पापांग, हसापांग, डगबोई, पानीटाले े म ि थत कुँ ओं म उ पादन काय
कर रह ह, जो डगबोई तेल शोधन शाला म साफ कया जाता है ।
(ब) नाहरक टया े - यह तेल े डगबोई से लगभग 40 क.मी.दूर द हांग नद तट के
समीप ि थत है, जहाँ 1953 से ख नज तेल उ पादन हो रहा है । यहां पर तेल के साथ-साथ
ाकृ तक गैस का उ पादन भी कया जा रहा है । यहां पर लगभग 60 कु ए ह िजनम 4000 से
5000 मीटर क गहराई से तेल नकाला जाता है । बरोनी तथा नूनमती तेल शोधन शालाओं म
तेल को साफ कया जाता है । इस े म ऑयल इि डया कं. वारा तेल उ पादन कया जाता है।
(स) सू रमा घाट - इस दे श के मु य तेल उ पादक े बदरपुर, मसीमपुर, पथ रया ह, जहाँ
लगभग 60 कुओं से तेल उ पादन हो रहा है । इस े म ा त तेल म यम ेणी का है जो
अ धक गहराई से नकाला जाता है ।
(द) सागर-लखवा े - यह े शवसागर िजले म ि थत है । जहाँ लगभग 50 करोड़
टन तेल के भ डार है । तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग वारा खोज एवं उ पादन काय कया जा
रहा है ।
(य) हगर जन-मोरे न े - यह दे श नाहरक टया के द ण-पि चम म 40 क.मी.दूर ि थत
है । इस े म तेल के 22 कु ए ह, जहाँ उ पादन कया जा रहा है ।
2. गुजरात - इस रा य म तेल उ पादक पेट सूरत से राजकोट तक 15360 वग
क.मी. े म व तृत है । नवीन खोज के अनुसार इस रा य के क छ े म भी तेल के नवीन
भ डार क स भावना है । इस रा य म न न मु य तेल उ पादक े ह-
(अ) अंकले वर े - यह े गुजरात के भड़ौच िजले म बड़ोदरा से 45 क.मी.द ण म
नमदा नद के तट पर ि थत है । यहाँ उ पा दत तेल म म ी के तेल तथा गैसोल न क मा ा
पायी जाती है । इस े म 1100 से 1200 मीटर गहराई से तवष लगभग 30 लाख टन तेल
का उ पादन कया जाता है ।
(ब) कलोल े - यह े अहमदाबाद के पि चम म नवागाँव कोस बा, मेहसाना, कोथाना
रकसोल सान द, बचराजी, काडी वासना आ द छोटे तेल उ पादक े म व तृत है ।
(स) लू नेज े - यह े गुजरात म अरब सागर के तट य े म ख भात क खाड़ी के
ऊपर उ तर भाग म ि थत है । जहाँ से 15 लाख टन वा षक तेल उ पादन हो रहा है ।
(द) अ य े - इसके अ त र त गुजरात के बड़ौदा, भडौच सूरत, खेड़ा, अहमदाबाद, आ द
िजल म छोटे े म भी तेल उ पादन कया जा रहा है ।
3. भारत के मैदानी भाग म गुजरात तथा असम के तेल उ पादक े ि थत है । इसके
अ त र त भारत म मु य तेल उ पादक े समु तट के अपतट य े म भी ि थत है िजनका
वणन न न कार से है-
(अ) मु बई हाई - यह भारत म सवा धक तेल उ पादक े है । महारा रा य के अरब
सागर के तट य े म महा वीपीय म न तट पर मु बई से लगभग 176 क.मी., उ तर-पि चम
मु बई हाई तेल उ पादक े ि थत है । इस े म तेल ाि त सागर स ाट नामक जलयान
वारा 1975 म हु ई, जहां 1976 से उ पादन हो रहा है । इस े म 2500 वग क.मी. े म
220
तेल उ पादन च ान व तृत ह, जो 80 मीटर तक क गहराई मे पायी जाती ह । िजनका नमाण
मायो सन युग म हु आ । वतमान म इस े से 200 लाख टन तेल का उ पादन तवष कया
जा रहा है । नवीन सव ण काय म म मु बई हाई े म नवीन तेल उ पादक े का पता
चला है । जहाँ भ व य म उ पादन होने लगेगा । एक अनुमान के अनुसार मु बई हाई म
3,78,000 लाख घन मीटर गैस तथा 5,110 लाख टन ख नज तेल के भ डार अवि थत ह ।
(ब) आ लयाबेट े - यह े गुजरात के सौरा े म भावनगर से 45 क.मी.पूव म
अरब सागर अपतट य े म ि थत है । इस दे श म स क सहायता से सव ण एवं खोज
काय कया गया था । यह ं वतमान म तेल उ पादन हो रहा है ।
(स) बेसीन े - यह एक नवीन तेल े है, जो अरब सागर म मु बई हाई के द ण म
ि थत है । इस े म 1900 मीटर क गहराई तक अगाध-तेल भ डार ा त हु ए ह । इस े
म 1986 म तेल भ डार का पता लगा है । इस े म 1110 लाख टन तेल के भ डार
अवि थत ह ।
कावेर नद का बे सन े तथा गोदावेरोरनद बे सन म भी नवीन खोज से पया त तेल
तथा गैस के भ डार का पता चला है ।
4. राज थान - इस रा य म 1999 म पहल बार बाड़मेर िजले म गुढा के पास म गा क
ढाणी के धोर के नीचे 1910 मीटर क गहराई पर तेल भ डार मला । इसका नाम ' सर वती
ऑयल फ ड ' रखा गया । इसी म म सन 2002 म बाड़मेर के को प व साढाझु ड म 1400
मीटर क गहराई पर तेल भ डार मला । फरवर , 2003 म गुढामलाणी के नगर गाँव म 1241
मीटर क गहराई पर तेल भ डार मला । जनवर 2004 म बाड़मेर के ह बायत कवास लाँक म
केवल 900 मीटर क गहराई पर ह उ च गुणवजा वाला तेल मला । यह 450 से 1150
म लयन बैरल तेल के भ डार ह । इसका नाम बदलकर 10 फरवर 2004 को ' मगला 1 ' कर
दया गया है । रा य म इं लै ड क केयन एनज ल. स हत अनेक क प नयाँ तेल खोजने म
लगी ह ।
221
5. ख नज तेल संभा वत े - उपयु त तेल उ पादक रा य के अ त र त पंजाब के
हो शयारपुर, लु धयाना दासूजा े मे तेल के तर वधमान है । हमाचल दे श के वालामु खी,
नूरपुर , धमशाला और बलासपुर तथा ज मु म मू सलगढ़ म भी तेल मलने क स मावना है ।
उड़ीसा के आठगडू , पुर , बालासोर एवं वार पदा तथा आ दे श के गोदावर बे सन म तेल के
भ डार का पता चला है । कावेर नद घाट , त मलनाडु क पाक खाड़ी और अ डमान- नकोबार
वीप के तट य े म भी तेल भ डार क स मावना ह ।
ता लका 8.4 भारत - ख नज तेल उ पादन (000 टन मै)
ववरण 1990-91 2001-02 2004-05 2006-07
1 2 3 4 5
(अ) थल य े
गुजरात 6357 5815 6187 6212
असम 5070 5199 4503 4400
अ य 357 677 600 674
कु ल 11784 11791 11590 11326
(ब) अपतट य े
ओएनजीसी 20376 16629 18165 17993
जेवीसी 0 4006 4226 4669
कु ल 20376 20635 22391 22882
सम त योग 32160 32426 33981 33988
ोत – http.:data.un.org./data.aspx? d=edata &f
222
8 कोचीन केरल 17 जामनगर गुजरात
9 म ास त मलनाडु
ोत – http.;//data.un.org/data.aspx?d=edata&f
223
2. पे ो लयम उ पाद 9.27 8.83 16.97
नयात पे ो लयम उ पाद 8.37 18.21 32.4
ोत – http.;//data.un.org/data.aspx?d=edata&f
224
जल व युत एक कार क यां क ऊजा है । यह ऊपर से नीचे गरती हु ई जलधारा क
ऊजा से संचा लत टरबाइन तथा डायनेम से उ प न क जाती है । य य प ाचीन काल से ह
समु लहर व जल- पात से पन चि कय को चलाने का चलन रहा है । क तु जल व युत
का उ पादन बीसवीं शता द से कया जाने लगा है । इसके अ तगत धरातल के वाह जल के
वेग तथा आयतन को यां क ऊजा म प रव तत करके जल व युत का उ पादन कया जाता है ।
भारत का सबसे पहला जल- व युत के 1898 ई. म दािज लंग मे बनाया गया था ।
225
1. भारत म हमालय पवत के सहारे पि चम म क मीर से लगाकर सुदरू पूव म सीमावत
पहा ड़य तक फैला है ।
2. द ण ाय वीप क पि चमी सीमा के पि चमी घाट, सहया पवत व अ य पहा ड़यां
तथा पठार भाग तक जल व युत शि त का े है ।
3. तीसरा जल व युत शि त का े सतपुड़ा , व यांचल, महादे व और मैकाल क
पहा ड़य के
4. सहारे -सहारे पि चम से पूव तक ि थत है ।
226
ता लका नं. 8.8 - भारत म जल व युत उ पादन (दस लाख कलोवाट त घ टे )
उ पा दत वष जल व युत
1950-51 25
1960-61 78
1970-71 252
1980-81 465
1990-91 717
2000-01 745
2001-02 736
2004-05 998
ोत – http.;//data.un.org/data.aspx?d=edata&f
मान च 8.3 जल शि त े
227
8.4.4 जल व युत का उपयोग एवं मह व
मान च 8.4 मु ख जल शि त गह
उधोग-ध ध म,
कृ ष काय म,
प रवहन के साधन म,
228
व भ न भाग म ऊजा के प म,
घरे लू उपकरण म,
काश के लए,
यापा रक काय म आ द ।
हम न न ब दुओं से जल- व युत के मह व को दशायगे-
उपयोग म सु गम एवं सरल,
अ ु ण संसाधन,
तु लना मक ि ट से स ता साधन
उ च बो ट क शि त का होना
बहु उपयो गता का ऊजा ोत
सं ेषण म सु गमता,
घरे लू उ योग, यापा रक, शै क व रोशनी आ द सभी े म उपयोग से
मह वअ धक है ।
बोध न : 3
1. भारत मे सबसे अ धक जल व यु त कौन से रा य म उ प न क जाती है ?
2. कौन से उ चावच म जल व यु त उ प न करने क सबसे अ धक सं भावना है ?
3. आधु नक समय म जल- व यु त का अ धक मह व. य है ?
229
िजरकन - इस ख नज के मु ख े वलोन और क याकुमार के बीच त मलनाडु और
आ दे श म पाये जाते ह ।
230
नह ं होने वाले होते ह । इनका पुन: उपयोग कया जाता है । इन ोत के उपयोग से पयावरण
म दूषण नह ं होता है । सौर ऊजा, पवन ऊजा, जैव ऊजा, वार य ऊजा तथा भूतापीय ऊजा
आ द अप परागत ऊजा ोत ह । भारत म इन ऊजा ोतो का वकास होना अभी शेष है ।
सू य असीम ऊजा शु ि त का ोत ह । इससे ा त होने वाल ऊजा को '' सौर ऊजा ''
कहते है । यह सतत प से ा त होने वाला थायी ऊजा ोत है । सौर ऊजा सू य क सतह से
लघु तरं ग वारा सा रत होती है । भारत म उ तर पहाड़ी े को छोड़कर स पूण दे श म वष
भर कु छ मह न को छोड़कर सू य का काश दनभर ा त होता है । िजस कारण भारत म सौर
ऊजा क पया त स भावनाएं ह । सौर ऊजा का को ड टोरे ज, शीतन, खाना पकाने, पानी गम
करना, बजल उ पादन करना, सौर चू हा, सौर फोटो बोि टक सैल आ द म उपयोग कया जाता
है ।
भारत म व व के वशालतम सौर सरोवर क थापना गुजरात म भु ज नगर के समीप
‘माधापार’ नामक थान पर क गई है । ह रयाणा, कनाटक, त मलनाडु , म य दे श, महारा ,
उ तर दे श और राज थान म सौर ऊजा उ पादन लांट था पत है । राज थान म जोधपुर िजले
के मथा नया क बे म सौलर ऊजा शि तगृह था पत कया गया है । खाना बनाने के लए व व
क सबसे बड़ी सौर वा प णाल आ दे श म त माला म 2002 म था पत क गई । भारत
म 2002 तक 500 मेगावाट व युत का उ पादन सौर ऊजा से हो रहा है ।
231
वार च क या सागर मल था पत क जाती है, इनको वार य तरं ग से ा त होने वाल
शि त से संचा लत कया जाता है ।
भारत म ख भात क खाड़ी तथा गंगा नद के मु हाने वाले े म वार य लहर वारा
ऊजा उ पादन क अ धकतम स भावनाएँ है । पि चमी तट य े म एक वार य ऊजा संयं क
थापना केरल के तट य े म ि थत व झंगम थान पर क गई है । यहां पर 105 मेगावाट
ऊजा उ प न क जा रह है । इस ऊजा के उ पादन म पू ज
ं ी एवं तकनीक क अ धक आव यकता
होती है ।
232
4 पवन ऊजा 20,000 40,000
5 सौर ऊजा 120 1500
Source: Annual Report Non-Conventional sources Ministry 205-06
बोध न : 5
1. सौर ऊजा या है ?
2. पावन ऊजा या है ?
3. भू - तापीय ऊजा कै से उ प न होती है ?
4. वार य ऊजा या है ?
5. जै व ऊजा के उ पादन म कन दाथ का उ पादन कया जाता है ?
233
5. वक ण - लघु तंरग का सा रत होना ।
6. सू यताप - सू य से पृ वी को ा त होने वाल व करण ऊजा ।
7. बायोमास - त इकाई े फल म व यमान जै वक पदाथ का कुल भार ।
8. वार - सागर य जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ।
9. भाटा - सागर य जल नीचे गरकर पीछे लौटने को ।
8.9 स दभ ंथ (References)
1. चतुभु ज, मामो रया (2007) : आधु नक भारत का वृहत भू गोल, सा ह य' भवन,
आगरा ।
2. एल.एन. वमा (2003) : भारत का भू गोल, राज थान ह द थ
अकादमी, जयपुर ।
3. रामकु मार गुजर व बी. सी. जाट : भारत का भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर ।
4. एस. सी. बंसल (2007) : भारत का भू गोल, मीना ी काशन, मेरठ ।
5. ट . एस. चौहान (1995) : भारत का भू गोल, व ान काशन, जोधपुर ।
6. Gopal Singh (1998) : Geography of India, Atma Ram&
Sans, New Delhi
7. 7. R.L. Singh (1978) : India, A Regional Geography, UBS
Publishers, Delhi
8. T.C. Sharma (2003) : Economic and Commercial
Geography of India, Vikas Publish
House, New Delhi.
9. India 2008 Govt. of India
10. Economic Survey of India 2007- Govt. of India
8.10 बोध नो के उ तर
बोध न-1
1. व तृत सघन दलदल वन का भू ग भक हलचल के कारण भू म म दबने से
आ त रक दबाव, भचाव एवं ताप से कोयले क उ पि त ।
2. (i) ए ेसाइट
(ii) बटु मनस
(iii) लगनाइट
(iv) पीट
3. ए ेसाइट
4. तीसरा
5. (i) झ रया
234
(ii) रानीगंज
(iii) गर डह
(iv) संगरोल
(v) रामकोला तातापानी
6. अवसाद शैल म
बोध न-2
1. शैल से ा त तेल
2. उथले समु , झील , दलदल , न दयो के डे टाओं आ द म मृत जीव-ज तु तथा
वन प तय पर नर तर अवसाद के जमाव एवं. आ त रक ताप, दाब व रे डयो
ध मता के भाव से ख नज तेल क उ पि त ।
3. (i) मु बई हाई
(ii) डगबोई
(iii) अंकले वर े
(iv) सु रमा घाट
4. (i) पे ो-रासाय नक उ योग म
(ii) प रवहन के साधन म
(iii) कलपुज म नेहक के प म
(iv) व नमाण उ योग म
(v) मशीन एवं कृ ष यं म
बोध न-3
1. महारा
2. ती ढाल वाले पहाड़ी-पठार भू-भाग
3. (i) तु लना मक ि ट से स ती ऊजा ोत
(ii) अ य धक ऊजा का उ प न होना
(iii) व भ न भाग म उपयोग
(iv) उपयोग म सरल आ द
बोध न-4
1. आण वक ख नज के वखंडन से ा त होने वाल ऊजा
2. यूरे नयम , थो रयम, रे डयम तथा लू टो नयम
3. तारापुर, रावतभाटा, कलप कम, नरोरा व काकरापारा
4. (i) मानव क याणकार काय म
(ii) च क सा व ान के े म
(iii) साम रक मह व के उ े य के लए
(iv) कृ ष-उ योग म उपयोग
(v) ताप व युत उ पादन
235
(vi) आण वक बन एवं रे डयाधम दूषण
बोध न-5
1. सू य से ा त होने आल ऊजा?
2. पावन के वेग से तरबाइन को संचा लत करके व युत ऊजा उ प न करना ?
3. भू ग भक ताप से उ प न होने वाल ऊजा
4. समु तट य भाग म वार य तरं ग के दबाव से व युत उ प न करना।
5. वन प तय के अप श ट पदाथ, पशुओं का गोबर, जीव के उ सिजत पदाथ, कूड़ा-
करकट आ द पदाथ से जैव ऊजा उ प न क जाती है ।
236
इकाई 9: मु ख उ योग एवं अदयौ गक दे श (Major
Industries and Industrial Regions)
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 मु ख उ योग- लोहा इ पात उ योग
9.2.1 थानीयकरण के कारक
9.2.2 इ पात उ योग का वतरण
9.2.3 इ पात उ पादन
9.2.4 इ पात उ योग क सम याएँ
9.2.5 यापार
9.3 सू ती व उ योग
9.3.1 उ योग का थानीयकरण
9.3.2 उ योग का वतरण
9.3.3 उ योग का उ पादन
9.3.4 उ योग क सम याय
9.4 सीमे ट उ योग
9.4.1 उ योग का थानीयकरण
9.4.2 उ योग का वतरण
9.4.3 उ योग का उ पादन
9.4.4 उ योग क सम याएँ
9.4.5 यापार
9.5 ए यु म नयम उ योग
9.5.1 उ योग का थानीयकरण
9.5.2 उ योग का उ पादन
9.5.3 उ योग का वतरण
9.5.4 यापार
9.6 लु द व कागज उ योग
9.6.1 क चा माल
9.6.2 थानीयकरण के कारक
9.6.3 वतरण
9.6.4 उ पादन
9.6.5 उ योग क सम याएँ
237
9.6.6 यापार
9.7 औ यो गक दे श
9.7.1 औ यो गक दे श से अ भ ाय
9.7.2 करण जेन क स के अनुसार औ यो गक दे श
9.7.3 आर.एल. संह के अनुसार औ यो गक दे श
9.7.4 सामा य वग करण
9.7.5 मु ख औ यो गक दे श
9.8 सारांश
9.9 श दावल
9.10 स दभ म थ
9.11 बोध न के उ तर
9.12 अ यासाथ न
9.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात आप :-
उ योग क कृ त एवं वषय े को समझना,
उ योग के वकास को समझना
उ योग क थानीयकरण कारक क पालना,
उ योग क उ पादन के वषय म जानकार होना,
उ योग के वतरण का ान होना तथा,
औ यो गक दे श के बारे म समझना ।
238
agglomeration) को वक सत होने म सहायता दे ते है, साथ ह नगर पु ज
ं म औ यो गक
वकास क सु वधा के कारण अनेक उ योग आक षत होते है ।
'इंड ' श द का अ ेजी मे अथ ह क चे माल से व तु ओ का नमाण करना
(Febrication from raw material) । जमन श द इ ड (Industria) का अथ है मशीन
अथवा या से आधु नक ढं गो वारा बड़ पैमाने पर नमाण (Processing on large scale
with the use of machinery of modern method of working) लै टन श द इंडि या
(Industria) का अथ है यवसाय अथवा म का नंरतर उपयोग (study application to
business or labour) ।
रॉ ब सन ने उ योग को और प ट श द म प रभा षत कया है: पदाथ को या के
बाद उनका प प रव तत कया जाता है, िजसम कोई नई उपयोगी व तु बनाई जाती है ।
(Manufacture may be define as the processing and altering to materials,
whather in their raw or partly altered state, to make new products to
serve new ends.)
उ योग वह आ थक काय है िजससे उपयोगी व तु एँ बनाई जाती है या सेवा काय का
ज म होता है (Economic activity which yields goods ,utilities, of service) ।
अले जडर ने भी औ यो गक भू गोल को प रभा षत कया है- औ यो गक भू गोल म उ योग क
वतमान वतरण क ववेचना क जाती है, संसार, महा वीप दे शो दे श तथा नगर म
।(Geography of manufacturing is concerned with the interpretation of the
present distribution patterns global, continental, national, regional or
urban) । यह कारण है क औ यो गक भू गोल क मु ख वषय व तु उ योग का थानीकरण
एवं वतरण है । थानीकरण के कारक सभी उ योग म लगभग समान है क तु वभ न
उ योग म उनका सापे क मह व भ न- भ न है । यह एक मह पबूण कारण है क सभी
उ योग का कसी दे श अथवा दे श के समान वतरण नह मलता है । वभ न कार के
उ योग संसार म समान प से वक सत भी नह होते । व ान तथा तकनीक के वकास के
साथ अनेक नये उ योग वक सत होते जाते है । उनका थानीकरण भी उनक आव यकताओं के
अनु प भ न- भ न होता जाता है ।
239
य और उपकरण तथा प रवहन के साधन इ या द न रहे गे और इस कार का समाज आधु नक
जीवन के लये आव यक व तु य तैयार करने म पूणतया असमथ रहे गा ।''
इ पात उ योग मूलत: क चे माल पर आधा रत उ योग है । लोह धातु भार तथा स ती
होती है । कोयल मगनीज, चू ना प थर, डोलामाइट, आ द भी आव यक क चे माल है । इस लये
क चे माल के नकट ह इ पात उ योग क थापना होती है । इसके अ त र त जल, स ता
प रवहन, शि त एवं मक क भी आव यकता होती है । एक टन ढलवाँ लोहा (Pig iron)
बनाने के लए 3 टन कोयला व 2 टन लोहा आव यक होता है । इस लये कोयला व लोहा े के
नकट ह इ पात उ योग था पत करना उपयोगी रहता है । हमारे दे श म सभी सु वधाये एक ह
े म ा त नह है । अतएवं इ पात उ योग क थापना चार भ न ि थ तय वाले े ो म हु ई
है-
1. कोयला े के नकट- बनपुर , ह रापुर , कु लट (IISCO), दुगापुरा व बोकार के कारखाने
ि थत है ।
2. लोह अय क े के नकट- भलाई, राउरकेला व भ ावती कारखान के अ त र त सलेम
व वजयनगर (कनाटक) के कारखाने ने भी लोह े ो के ह नकट ि थत एवं ता वत
है ।
3. कोयला व लोह धातु े के म य प रवहन सु वधा के नकट- टाटा का इ पात कारखाना
ि थत है ।
4. यापार क सु वधा- वशाखापतनम इ पात कारखाने को तट य ि थ त के कारण प रवहन
एवं यापार क वशेष सु वधा ा त है ।
भारत म क चा माल (लोह धातु) पया त मा ा म मौजू द है । झारख ड, उड़ीसा, गोवा,
महारा , म य दे श व कनाटक म लोहा पाया जाता है । उ तम को कं ग कोयला वहार,
झारख ड तथा घ टया कोयला म य दे श म मु यत: पाया जाता है । चू ना प थर म य दे श,
बहार, झारख ड, उड़ीसा व कनाटक म बड़ी मा ा म मलता है । मगनीज भी इ ह ं रा य म
मलता है । उपरो त सु वधाये पि चमी बंगाल, बहार, उड़ीसा, म य दे श, छ तीसगढ व
कनाटक म मलती है, अतएवं इ ह रा य म इ पात उ योग वक सत हु आ है ।
1. टाटा आयरन एवं ट ल क पनी (TISCO) यह कारखाना 1907 मे सांकची (झारख ड),
म था पत कया गया है । थम व व यु के समय इस कारखाने ने पया त उ न त क ।
सरकार का संर ण इसको बराबर मलता रहा । वतीय व व यु म इस कारखाने का ओर
अ धक वकास हु आ । कारखाने का नकटवत े जमशेदपुर नाम से एक बहु त बडा औ यो गक
के बन गया है । लोह-इ पात उ योग के था पत कये जाने के लये यहाँ भौगो लक सु वधाये
ह । लोहे क क ची धातु बहार (अब झारख ड) के सहभूम िजले म कोलहन व नोआमु डी क
खान से तथा उड़ीसा क मयूरभंज े से मलती है । कोयला 217 क.मी. दूर रानीगंज ओर
240
झा रया से आता ह । धुला हु आ कोयला जमदोबा, पि चमी बोकार , लोदना व भेगरडीह के
कारखान से ा त होता है । मेगनीज डोलोमाइट टं सटन, आ द पदाथ 500 क.मी. घेरे क े
म. ह ा त होते है । आइटे नयम द णी भारत से तथा अि न म ी बेलपहाड़ से ा त होती है
। चू ना और डोलोमाइट उड़ीसा से गंगपुर थान से ा त कये जाते ह । मैगनीज बहार,
झारख ड, और म य दे श से आता ह । लोहा ढालने क भ य को बनाने के लए वाटजाइट
कलू केवल 10 कसी दूर काल मती नामक थान से ा त होता है । वण रे खा ओर खोरकाई
न दय का व छ जल ह उपल ध होता है । पूव उ तर दे श , म य दे श, छ तीसगढ़,
झारख ड, बहार उड़ीसा रा य से स ते मक मल जाते है । जमशेदपुर, द णी पूव रे लमाग
वारा कोलकाता और मु बई से जु ड़ा ह । कोलकाता े म अनेक इंजी नय रंग उ योगो म
इ पात क थानीय खपत होती है ।
इस औ यो गक के म लोहे क चादर, गाडर, रे ल के डबे, प ट रयाँ ल पर, काँटेदार
तार, आ द भी बनाये जाते है । व भ न व तु ओं के नमाण के लये यहाँ अलग-अलग कारखान
को था पत कया गया है- जैसे भारतीय टन- लेट इ ड ज इ पात व तार क पनी टाटा
इंजी नय रंग ए ड लोकेमो टव क पनी, ए ीक वर इ पल मे स आ द ।
2. इि डयन आयरन ए ड ट ल क पनी (IISCO) - इसके कारखाने पि चमी बंगाल म
कु ती (1864) ह रापुरा (1908) और बनपुर (1937) म था पत कये गये है । कु लती बाराकर
नद पर ि थत ह तथा कोलक ता म 215 क.मी. दूर है । ह रापुर आसनसोल के केवल 6
क.मी. और कु लती से 11 क.मी. दूर है । कुलती के कारखाने म इ पात के प ड बनाये जाते ह
तथा बनपुर म तैयार इ पात बनाया जाता है, जो क ह रापुर म लोह- प ड के प म उ प न
कया गया था । इस लोहा-इ पात औ यो गक के को अनेक सु वधाय ा त है । संह भू म
और मयूरभंज से लोहा मल जाता है । रानीगंज , झ रया व रामनगर से कोयले क सु वधा ह ।
धु ला हु आ कोयला प थर हड, लोदना जमदोबा व पि चमी बोकार के कारखाने से ा त होता ह
चू ना प थर उड़ीसा क गंगपुर से तथा व छ जल दामोदर नद से ा त होत ह । कलक ता व
हु गल के औ यो गक े म इनके उ पा दत माल क बहु त खपत होती है । मक क पू त
पि चमी बंगाल से सघन आबाद े , उड़ीसा, बहार, म य दे श आ द से होती है । रे ल और
जल माग वारा इस े को कलक ता से जोड़ दया गया है । इस औ यो गक के क
नधा रत मता 10 लाख टन इ पात के प ड तथा 8 लाख टन तैयार इ पात उ प न करने क
है ।
3. मैसरू आयरन ए ड ट ल क पनी (MISCO) आधु नक ढं ग से इस कारखाने क
थापना भ ावती (कनाटक) मे 1923 म क गयी थी । यहाँ लोह क क ची धातु कादूर िजले के
बाबाबुदन पहाड़ क केमनगुडडी खान से ा त होती है । यहाँ शि त के लये कोयले क असु वधा
है, क तु नकट ह पया त वन उगते है, अत: लकड़ी का कोयला योग कया जाता ह । चू ने का
प थर भ ावती से केवल 10 क.मी. दूर पर मलता ह डोलामाइट, शंकरगूडा से ा त कया
जाता है । शवसमु म पात से जल वधु त शि त ा त होती है ।
241
इस कारखाने वारा इ पात- प ड के उ पादन का ल य एक लाख मी क टन रखा गया
था । उ पादन ल य स अभी कु छ कम है ।
1 अग त, 1989 को सेल (SAIL) ने इस बीमार इकाई को अपने नयं ण म ले लया
है ।
4. राउरकेला इ पात कारखाना- जमन सहयोगं से न मत यह कारखाना कलक ता से
लगभग 413 क.मी. पि चम म द ण-पूव रे लमाग पर उड़ीसा रा य म ि थत है । औ यो गक
े साख और कोइल न दय क संगम पर बनाया गया है । इस े म लोह क क ची धातु 72
क.मी. दूर बरसु आ नामक थान क खान से ा त होती है । धातु ा त करने के लए एक
नया रे लमाग बनाया गया ह चू ने का प थर व डोलोमाई 24 क.मी. दूर हाथीवाड़ी तथा बीर म पुर
से ा त कया गया ह । मगनीज बासपानी व बोलानी े से ा त होता है । धुला हु आ कोयला
भोगर डह प थर डह करगल दोगला े से ा त कया जाता है । वधु त शि त ह राकं ु ड
प रयोजना से ा त होती है । यहाँ अ धकतर चपटे आकर क लेट, व भ न मोटाई वाल चादर,
लेट पि तयाँ आ द बनाई जाती है िजनका उपयोग रे ल के डबे तथा जलयान बनाने म होता है ।
इनके अ त र त यहाँ काब लक तेल, ने थाल न, ए े ीन तेल, बे जोल, टू टोल आ द बनाने क
स
यव था क गई है । नाइ ोजन उवरक बनाने का भी संय था पत कया गया है । कारखाने
का नमाण व भ जमन क प नय वारा कया गया है ।
इस कारखाने क 18 लाख टन इ पात प ड तथा 12.25 लाख टन ब यो य इ पात
बनाने क मता है ।
5. भलाई इ पात कारखाना- यह कारखाना सी तकनीक तथा आ थक सहायता से 1953
म म य दे श (अब छतीसगढ) म था पत कया गया । भलाई थान रायपुर से 21 क.मी. दूर
मु बई-कोलका ता मु य रे ल माग पर ि थत है । इसके लये राजहरा पहा ड़य से 65% धातु
अंश उ तम लोहा, झ रया (720 क.मी.) और कोरबा (1000 क.मी.) से को कं ग कोयला तथा
कोरबा क ह ताप- व युत (90000 कलोवाट) योग क जाती है । करगाल , प थर हड व
दुगदा स धुला हु आ कोयला ा त होता है । चू ना प थर दुग, रायपुर व बलासपुर , डोलोमाईट
रायपुर व बलासपुर से ा त कया जाता ह । यहाँ रे ल क पट रयाँ, छड़े, शहतीर, ल पर,
कतरन आ द तैयार क जाती है । अमो नयम स फेल, ब ज ल, टु टोल, िजलोन सोलवे ट नै था,
नै थाल न तेल, काब लक ए सड आ द तैयार करने क भी यव था है । इस कारखाने का
व तार 40 लाख टन इ पात उ पादन मता वक सत क गई है ।
6. दुगापुर इ पात कारखाना - यह कारखाना आसनसोल के नकट दुगापुर म ब टश
तकनीक तथा आ थक सहायता से था पत कया गया ह । झ रये से कोयला तथा दामोदर
योजना से जल- व युत शि त का योग यहाँ कया जाता है । जल वारा प रवहन क सु वधा
भी ा त है । लोह क क ची धातु बहार क नोआम डी थीगूआ नामक खान से ा त होती ह ।
चू ना प थर सतना, वर म ापुर व हाथीवाड़ी से तथा कोयला रानीगंज व झ रया से ा त होता है ।
दुगापुर का कारखाना 1962 म बनकर तैयार हो गया था । भ व य म यहाँ 34 लाख टन
इ पात प ड मता बनाने का ल य है । यहाँ प हये, धु रयाँ, रे ल क पट रयाँ छड़, कतरने आ द
242
तैयार कये जाते है । अमो नयम स फेट, बे जोल, िजलोन दूटोल, नै था, कोलतार भी बनाया
जाता है ।
7. बोकार इ पात कारखाना - यह कारखाना स के सहयोग से चौथी पंचवष य योजना क
दौरान बोकार थान पर बहार (अब झारख ड) म था पत कया गया । यह थान करगल ,
बोकार तथा झ रया के कोयला े ो से अ य धक नकट है, क तु लोहे क क ची धातु के े
यहाँ से दूर है । इस समय इ पात- प ड क वा षक उ पादन मता 25 लाख टन ह । बोकार
कारखाना कोयला व इ पात े क बीच संग ठत औ यो गक के क प म वक सत हो रहा है
। इसम न मत कोक का उपयोग स के उवरक कारखाने म होता ह । 40 क.मी. दूर मुर म
ऐलु म नमय शोधक, गुलमार म टन क चादर बनाने, गो मया म व फोटक पदाथ बनाने, त दु
म सीसा व ज ता साफ करने तथा अ य के म कॉच व अि न- तरोधक ईट बनाने का काम
होता है ।
8. सलेम इ पात कारखाना- सलेम (त मलनाडु ) म यह कारखाना था पत कया गया है ।
1982 से यहाँ उ पादन आर भ हो गया है । सलेम म मै नेटाइट, लोह धातु, चू ना प थर व
मै नेसाइट तथा नेवल
े से ल नाइट कोयला उपल ध होते है । यहाँ तवष 70 हजार टन
टै नलैस ट ल, 75 हजार टन स लकन इ पात तथा 75 हजार टन अ य व श ट इ पात
उ पादन क मता है ।
9. वशाखापतनम इ पात कारखाना- 1980 म भारत क छठे समे कत संय क प म यह
कारखाना रा य इ पात नगम व आं दे श सरकार के संयु त यास के प म था पत कया
गया । द ण े म थम समे कत इ पात संय ह जो समु तट पर था पत कया गया है
। यह आधु नकतम ौ यो गक पर आधा रत है । इसक वा षक उ पादन मता 30 लाख टन
ह।
इस कारखाने को दामोदर घाट े से कोयला, म य दे श क बैला डला खान (ब तर)
से लोहा व चू ना प थर, डोलोमाईट अि न तरोधक म ी आ द आव यक सु वधाय ा त होती
है।
10. वजयनगर इ पात कारखाना- कनाटक के बलार िजले के, हा पेट के नकट पूणत:
भारतीय तकनीक के कारखाना था पत करने क योजना ह । इसक उ पादन मता 30 लाख
टन होगी । इसके लए कनाटक म उ तम का हन घाट व आं क संगरे नी े से को कं ग
कोयला, तु ंगभ ा बांध से जल एवं व युत शि त क भी सू वधाय ा त ह । यह नम इ पात
तैयार कया जायेगा । 1971 म नमाण काय आर भ होने के 20 वष बाद भी यह कारखाना
चालू नह हो सका है । पाराद प प तन के नकट दैतार (उड़ीसा) म भी इ पात सय था पत
करने क योजना चालू है ।
243
ता लका 9.1
संयं क इ पात उ पादन क मता
1960-61 70-71 80-81 90-91 00-01 01-02 02-03 03-04 04-05
तैयार इ पात( म.टन) 2.4 4.6 6.8 13.5 30.3 31.1 34.5 36.9 39.3
ढल व तु एँ (हजार टन) 35 62 71 262 352 409 483 407.8 42.57
244
उपाय कये जायगे – (i) वतमान सु वधाओं का व तार, (ii) इ पात संय का आधु नक करण,
(iii) वतमान इ पात संय क उ पादन मता का व तार, तथा (iv) नये इ पात संय क
थापना ।
9.2.5 यापार
वदे श क तु लना म (पूववत सो वयत संघ 418, टे न 422, अमे रका 685, जापान
499, पि चमी जमनी 579) भारत म त यि त इ पात का उपभोग केवल 16 क ा. है ।
घरे लू माँग क पू त के लये भारत, पूववत सो वयत संघ , जापान, पि चमी जमनी, टे न,
अमे रका, बेि जयम, चैको लोवा कया आ द दे श से क चे लोहे (pig iron) का आयात करता है।
यूजीलै ड. मले शया, बंगलादे श, ईरान, कु वैत, ीलंका, बमा, त जा नया, संयु ता अरब
अमीरात, क नया आ द दे श को इ पात के सामान का नयात कया जाता है ।
ता लका 9.2
भारत- इ पात का आयात करोड़ .
1960-61 70 - 71 80 - 81 90 - 91 00 - 01 01 - 02 03 - 04 04 - 05
123 147 852 2113 3569 3975 6921 11678
Source; Economic Survey, 2005-06
बोध न : 1
1. इ पात उ योग क थापना मू लत: कहाँ होती है ?
2. बोनाटो और दु गापु र कस क चे माल के नकट ि थत है ।
3. Tisco कहाँ ि थत है ।
4. राउरके ला इ पात कारखाना कसके सहयोग से बना है ।
245
9.3.2 वतरण
247
अ य रा य-राजरथान मे अजमेर, यावर, पाल , जयपुर , कोटा, ीगंगानगर, भीलवाड़ा
और उदयपुर नगर उ लेखनीय है । पंजाब मे अमृतसर , लु धयाना, फगवाड़ा मु ख के ह पंजाब
और ह रयाणा म उ तम क म क कपास से व तैयार कये जाते ह । केरल म
त वन तपुरम, ि वलोन, अलवाय अल पी मुख के ह । बहार म पटना, भागलपुर , गया म
व तैयार कये जाते ह । द ल रा य म चार सू ती व के कारखाने ह ।
9.3.3 उ पादन
249
12. अना थक एवं बीमार कारखाने - उपरो त अनेक कारण से 177 कारखाने 'बीमार'
(sick) घो षत हो गये ह । सरकार ने ऐसे 125 कारखान को अपने अ धकार म लेकर नेशनल
टै सटाइल काप रे शन (NTC) वारा उनका ब धन आर भ कया है ।
बोध न - 2
1. सू त व उ योग के लए क चा माल या है ?
2. महारा दे श म सू ती व उ योग म कौनसा थान रखता है ?
3. कौनसे रा य म सू ती व उ योग क मीले सबसे अ धक है ?
250
9.4.2 उ योग का वतरण
251
Source: Economic Survey, 2005-06
वतमान समय म नजी े म सीमट उ पादन क सबसे बड़ी क पनी बड़ला प
ु ह
िजसक 17 इकाइय क उ पादन मता 188.06 लाख टन (दे श क मता का 20% से
अ धक) है । ए.सी.सी (ACC) क भी 17 इकाइयाँ है िजनक उ पादन कता 88.25 लाख टन
(दे श का 16% से अ धक) है । सावज नक े म सीमट काप रे शन ऑफ इि डया(CCI) सबसे
अ धक क पनी है िजसक 10 इकाइयो क उ पादन कता 37.54 लाख टन (लगभग 7%) है ।
9.4.5 यापार
252
9.5 ए यु मी नयम उ ययोग (Aluminium Industry)
भारत के धातु कम उ योग म लौह-इ पात के बाद ए युमी नयम उ योग का मह वपूण
थान है । ए युमी नयम एक ऐसी धातु है, िजसका उपयोग धरे लू बतन से लेकर बजल के तार ,
मोटरगाडी रे लगाड़ी के ड बे, वायुयान , भवन नमाण, तर ा उपकरण आ द व वध काय के
लये सव तम साम ी है । हाल के वष म यह वकास काय वशेषकर व युत वतरण म, सबसे
अ धक योगदान दया है ।
ता लका 9.5
भारत म ए यू म नयम का उ पादन (लाख टन)
वष बॉ साइट का उ पादन ए युमी नयम का उ पादन
1950-51 0.7 0.40
1960-61 4.8 0.18
1970-71 15.7 1.68
1980-81 19.2 1.099
1990-91 49.8 4.49
1992-93 49.9 4.83
1995-96 39.0 5.36
1999-2000 68.5 6.14
2003-04 97.7 6.15
ोत- आ थक समी ा- 2004-05
253
मान च 92 ए युमी नयम उ योग के के
254
महारा के थाना नामक थान पर था पत कया गया है जो ए यूमी नयम से चादर, तार,
छाजन आ द का नमाण करता है । इस क पनी क एक अ य इकाई ह राकु ड (उड़ीसा) म
था पत क गई है जो मू र कारखाने से एलु म नयम ा त कर ए यू म नयम और उसक साम ी
का नमाण करती हे । इस कारखाने को ह राकुड जल- व युत सं थान से स ती बजल ा त
होती है । इसक उ पादन मता 80 हजार टन सालाना तक पहु ँच गई है । आसनसोल (पि चम
बंगाल) के जे.के. नगर का कारखाना ए यू मना प ड और ए युमी नयम चादर का नमाण करता
है । यहाँ छोटा नागपुर े के लोहरद गा से नमाण करता है । यहाँ छोटा नागपुर े के
लोहरद गा से बॉ साइट क आपू त होती है । छ तीसगढ और जबलपुर े से भी कु छ बॉ साइट
मंगाया जाता है । यह कारखाना ताप और जल- व युत दोन का उपयोग करता है ।
2. भारत ए युमी नयम क पनी- इस क पनी का कारखाना छ तीसगढ के कोरबा नामक
थान पर ि थत है । इस कारखाने को उड़ीसा, छ तीसगढ और झारख ड क खान से बॉ साइट
और ताप तथा जल- व युत क सु वधा ा त है । इस कारखाने क उ पादन मता एक लाख टन
सालाना है ।
3. ह दु तान ए युमी नयम काप रे शन यह कारखाना उ तर दे श के रे णु कू ट नामक थान
पर लगाया गया है । यहाँ झारख ड से बॉ साइट और रह द प रयोजना से व युत क आपू त
होती है । इसक उ पादन मता 1.2 लाख टन सालाना है । यहाँ ए युमी नयम , ए यू मना प ड
और उसक साम ी- तार, चादर आ द का नमाण हाता है । इस कारखाने क बजल कटौती के
कारण परे शा नयां बढ़ गई ह । फलत: क पनी वयं व युत गृह का नमाण कर रह है ।
4. म ास ए युमी नयम क पनी- इस क पनी का कारखाना मेटूर म ि थत है, िजसे
शवराय पहा ड़य से बॉ साइट और चू ना-प थर तथा मैटर जल- व युत प रयोजना से स ती
बजल क आपू त होती है । इसक उ पादन मता 25 हजार टन सालाना है ।
5. नेशनल ए युमी नयम क पनी - 1981 म था पत इस क पनी का एक वशाल
कारखाना िजसक सालाना उ पादन मता 8 लाख टन ए यूमीना है, उड़ीसा म था पत कया
गया ह । कोरापुट िजले के दामन जोड़ी े के बॉ साइट पर आधा रत यह कारखाना था पत
कया गया है, जो 8 लाख टन ए यू मना तैयार करता है । ढे कानल जनपद के अंगल
ु नामक
थान पर 2.2 लाख टन वा षक मता का एक ए युमी नयम कारखाना खोला गया है ।
कारखाने के लए एक बड़ा ताप व युत गृह भी था पत कया गया है । यह कारखाना उड़ीसा के
वशाल बॉ साइट भ डार को यान म रखकर था पत कया गया है । सव ऑफ इि डयन
इ ड , 1999 के अनुसार भारत सरकार क दोषपूण नी त के कारण ए युमी नयम उ योग का
व रत वकास नह ं हो पा रहा है । कु छ रा य सरकार भी इसके वकास म बाधक ह । हाल के
वष म कबाड़ पर आधा रत इस उ योग क ग त सराहनीय है ।
9.5.4 यापार
255
पि चमी एवं द णी-पूव ए शया , यूगो ला वया एवं स वशेष उ लेखनीय ह । यहाँ से
ए युमी नयम क छड, चादर, संचालक साम ी और कु छ उपकरण भी नयात कये जाते ह ।
बोध न : 4
1. ए यु मनीयम उ योग म मु यत: कौनसा अय क काम म आता है ?
2. सावज नक े के ए यु मनीयम उ योग के कतने कारखाने है ?
3. ने श नल ए यु मनीयम क पनी कहाँ ि थत है ?
256
9.6.1 क चा माल
257
उड़ीसा, महारा , कनाटक एवं म य दे श रा य म अ धक था पत हु आ है । दे श का 70
तशत कागज उ पादन एवं उ पादन मता इ ह ं रा य म केि त है । शेष 30 तशत
बहार, ह रयाणा, त मलनाडु , उ तर दे श, गुजरात, केरल व नागालै ड से ा त होता है ।
258
था पत हे । अ य कारखाने भोपाल, ढे मका, बलासपुर , बुधनी ( सहोर) व दशा, आ द म ि थत
ह । दे श म अखबार कागज बनाने का थम कारखाना नेपानगर (75 हजार टन मता) म
1955 म था पत कया गया था । होशंगाबाद म व श ट क म का कागज बनाने का कारखाना
था पत है । म य दे श म बाँस, सलाई, युक ल टस आ द के वृ क बहु लता के कारण कागज
उ योग वक सत हो सका है ।
बहार - यहाँ कारखाने था पत ह िजनक उ पादन मता 87.6 हजार टन है । डाल मया नगर
(60 हजार टन) म रा य का सबसे बड़ा कारखाना था पत है । रामे वर-नगर, बरौनी (बेगस
ु राय),
बाधा (च पारन), पू णया, सम तीपुर म अ य कारखाने ि थत ह ।
गुजरात - इस रा य म कागज बनाने क 38 इकाइयाँ कायरत है िजनक उ पादन मता 1.96
लाख टन है । इनम खड़क (23,000 टन), सोनागढ़ (16500 टन), ब लमोरा (14,000 टन),
वलसाड (10,000 टन), कलोल (10,000 टन), उटरन (9,000 टन) मु य ह अ य सभी लघु
इकाइयाँ ह । गंग ा, दगे नगर, रमोल ब लमोरा व डु ँगसी म ग ता बनाने क इकाइयाँ तथा
सोनगढ़ म पेपर- ेड लु द बनाने क इकाई ि थत ह ।
त मलनाडु - यहाँ 15 कारखाने ि थत ह िजनक उ पादन मता 1.68 लाख टन है । पुगालु र
( ची) म था पत अखबार कागज का कारखाना (50,000 टन) तथा प ल पलायम (इरोड) म
था पत (55 हजार टन मता) कारखाना बड़ी इकाइयाँ ह । चरनमाह ( त नेलवेल ), वदाकुथु (द॰
अकाट), वीलमप ी, पलनी तथा पु पथुर (मदुरै ), पोलाची (कोय बटू र) लघु इकाइयाँ ह।
उ तर दे श - यह कु ल 46 कारखाने ह िजनक उ पादन मता 2.25 लाख टन है । अ धकांश
कारखाने लघु आकार के ह । सहारनपुर (46 हजार टन), लाल कु आ (उ तराखंड) (20,000 टन)
बड़े कारखाने ह । अगवानपुर (मुरादाबाद), रामपुर, गजरौला, रायबरे ल , सक दराबाद, ब ती म
म यम आकार के कारखाने था पत ह । ग ता बनाने क इकाइयाँ मेरठ, मोद नगर, नैनी, बदायू ँ
व मैनपुर म ि थत ह ।
पंजाब - यहाँ 15 कारखाने ि थत ह िजनक उ पादन मता 1.16 लाख टन है । हो शयारपुर,
संग र, बटाला, सैलाखुद राजपुरा म म यम आकार क (10,000-20,000 टन मता) इकाइयाँ
था पत ह ।
केरल - यहाँ पुनालुर (33,000 टन), कोजीखोड व रे यनपुर म कागज के कारखाने ि थत ह ।
ह रयाणा - यहाँ 15 कारखाने ि थत ह िजनक उ पादन मता 1.25 लाख टन है । यमु नानगर
(58,000 टन) इकाई सबसे बड़ी है । धा हे ड़ा, फर दाबाद म अनेक लघु इकाइयाँ था पत ह ।
हमाचल दे श - यहाँ 6 लघु इकाइयाँ कायरत ह िजनक कुल उ पादन मता 28,710 टन है ।
इनम बरोट वाला ि थत पमवा कुल (5,500 टन) सबसे बडी है । बरोट वाला तथा काला अ ब म
कई इकाइयाँ ि थत ह।
असम - नवगाँव म दे श का सबसे बड़ा कारखाना (1 लाख टन मता) सावज नक म था पत है।
नागालै ड - तु ल (मोकोकचु ंग) म 33 हजार टन का कारखाना ि थत है ।
दे श के अ धकांश कागज के कारखाने नजी े म था पत ह । सावज नक े म
कागज उ योग के वकास के लये ह दु तान पेपर काप रे शन (HPC) क थापना 1970 म क
259
गयी । यह नयम न न ल खत इकाइय के काया वयन म संल न है - (i) केरल अखबार कागज
ोजे ट (80 हजार टन मता), (ii) नागालै ड लु गद व कागज ोजे ट (33 हजार टन),
(iii)मा डया नेशनल पेपर मल व तार (39,600 टन), (iv) नवगाँव लु द व कागज ोजे ट (1
लाख टन), (v) कछार लु द व कागज ोजे ट (1 लाख टन) ।
260
(11) कागज उ योग क सम या का एक व श ट पहलू अप श ट (waste) पदाथ
का उपयोग एवं दूषण कम करना भी है । कागज बनाने क या म
समे कत (integrated) कारखान से भार मा ा म तरल व ठोस अप श ट
पदाथ बचता है । तरल पदाथ को ाय: न दय म बहा दया जाता है िजससे
पयावरण दू षत होता है । ठोस पदाथ से वायुम डल दू षत होता है ।
9.6.6 यापार
261
होती है । (2) अनेक छोटे व बड़े नगर का संके ण होता है- जहाँ मक के आवास (कॉलानी),
औ यो गक माल के बाजार, खपत आ द त व क आपू त होती है । (3) ामीण सं या क
वरलता पायी जाती है ।(4) प रवहन साधन का जाल वक सत हो जाता है । (5) पर पर
स ब कारखान क थापना से औ यो गक कॉ ले स वक सत हो जाता है । (6) ाथ मक
यवसाय (कृ ष पशु चारण, आखेट आ द) क यू ता अथवा अभाव होता है ।(7) नगर क के
म सघन अ धवास एवं बाहर क ओर जनरां या क वरलता पायी जाती है । (8) नगर क बा य
सीमा पर नगर य जनसं या के उपभोग के लए शाक, स जी, फल, दूध आ द यवसाय वक सत
हो जाते है । (9) कारखान क धुआ
ँ उगलती चम नयाँ, औ यो गक आवासीय इमारत, रे लयाड,
क चा व तैयार माल लाने-ले जाने वाले भार वाहन, आ द अनेक भू य क धानता होती है ।
भारत मे औ यो गक दे श के सीमांकन का यास वाथा एवं बनर, पी. करण एवं
जेन क स दासगुपग़, आरएल. सह, आ द अनेक व वान ने कएया है ।
262
9.7.4 सामा य वग करण
9.7.5 मु ख औ यो गक दे श
263
म ी कोयला धोवनशालाये (Coal Washeries) स म- रसायन एवं उवरक, जमशेदपुर म
टे को (TELCO) इि ज नय रंग के अलावा सीमे ट, रसायन, कृ ष उपकरण तथा अ य अनेक
उ योग था पत है ।
3. भलाई-जबलपुर- बलासपुर- इस वकासो मु ख औ यो गक दे श म क चे माल क सु वधा
के कारण म त उ योग का वकास हु आ है । भलाई(दुग) दे श का वतीय वशालतम इ पात
कारखाना है, जबलपूर म इ जी नय रंग, व , रसायन, वन प ततेल, सतना-कटनी-दमोह व
बलासपुर म -सीमे ट व सरे मक; कोरबा म एलु म नयम आ द उ योग था पत हो गये है । इस
दे श म वकास क मु ख बाधाय प रवहन साधन एवं थानीय बाजार क कमी है ।
4. मु बई-पुणे -शोलापुर- मु बई भारत का ाचीनतम प तन एवं यापा रक राजधानी नगर है
। मु बई शोलापुर (पि चमी) रे लमाग पर सू ती व के लगभग 120 कारखाने केि त ह इसके
अ त र त भार इंजी नय रंग (मोटर वाहन व जलयान नमाण), काँच, सीमे ट, रसायन, औष ध,
उवरक, वन प त तेल, आ द उपभो ता उ योग, व युत उपकरण, मशीनर , पे ोलउ पादन एवं
शोधन (मु बई हाई े ), फ मो योग, अणुशि त के , अनेक अनुसधान, शोध सं थान, श ण
एवं श ण के थ पत है । पूणे, अहमदनगर, सतारा, शोलापुर म व ो योग के अ त र त
चीनी, रसायन, इंजी नय रंग आ द उ योग वक सत ह को हापुर, सतारा व सांगल ती ता से
ँ ी, द ,
वक सत हो रहे ह यह अनेक उ योग के पूवार भ के कारण पूज म, बाजार, प रवहन
अ तरा य बै कं ग, प तन आ द अनेक सु वधाय ा त है ।
5. अहमदाबाद-बडोदरा दे श- अहमदावाद से कोयल तक व तृत गुजरात के इस
वकासो मु ख औ यो गक दे श म अहमदाबाद, न दयाड गोधरा, भड़ौच, बडोदरा, सू रत, कोयल
आद मु ख के द ह यह दे श का मुख कपास उ पादक े है । समु तट क नकटता,
अ तरा य यापार क सू वधा, धनी सेठ क पुज
ँ ी, प रवहन एवं म क सू वधाओं के कारण
यहाँ सू ती व ो योग का सवा धक संके ण हु आ है । अकेले अहमदाबाद म 75 से अ धपक सू ती
व क कारखाने था पत ह इसी लये यह 'पूव का बो टन' कहलाता है । सूरत म नकल रे शम,
रसायन, चीनी, बीड़ी, वन प त तेल एवं इंजी नय रंग उ योग वक सत होने के साथ ह सोने
चांद के तार व जर क कढ़ाई, बतन एवं कला मक व तुओं का नमाण ाचीन व पर परागत है
। कोयल म पे ोल शोधन तथा पै ो-रसायन उ योग, बड़ोदरा म सू ती व , रसायन, औष ध,
काँच, ह के व भार रासाय नक तथा दयासलाई उ योग न दयाड व आन द म डेयर उ योग
था पत है ।
6. द ल -गािजयाबाद- मेरठ दे श- यह नवीन तथा लघु औ यो गक े ती ता से बृहत ्
औ यो गक दे श बनने क या म है । इस औ यो गक पेट का व तार: ह रयाणा म गुड़गाँव,
फर दाबाद से लेकर द ल शाहदरा, नोएडा, मोहननगर, गािजयाबाद, मु रादनगर, मोद नगर,
परतापूर मेरठ व मोद पूरम ् तक ह गुडगाँव म मा त मोटर उ योग के कारण ती औ यो गकरण
हु आ है । द ल , फर दाबाद े म इले ो नक उपकरण (रे डयो, टे ल वजन, ांिज टर,
केलकुलेटर) क युटर, कैसेट, टे प रकाडर, घ ड़याँ, पुज , े टर कृ ष मशीनर आ द, शहदरा म
264
होजर , मोद नगर म सू ती एवं नकल रे शम, वन प त घी, चीनी रसायन, गािजयाबाद मे
साइ कल, टायर, यूब , कृ ष उपकरण, रसायन व औष ध, व युत मोटर , इले ो नक, सगरे ट,
आ द, द ल म सू त व , रसायन, साइ कल, कुटर व पुज, मशीनर , व युत उपकरण
उपभो ता व तु, पॉटर , होजर , सले सलाये व , आद क व वधता पायी जाती है ।
मु रादनगर म आयुध नमाण (ऑ डने स), मोद पुरम म -टायर, परतापुर म टायर, इले ॉ नक
आ द मेरठ म चीनी, शराब ( ड टलर ), मोहननगर म ेवर व ड टलर का वशेषीकरण पाया
जाता है । रा य राजधानी े के वकास से इस े म औ यो गकरण को वशेष ो साहन
मलता है ।
7. अमृतसर-अ बाला दे श- पंजाब व ह रयाणा मूलत: कृ ष धान ह तथा प यहाँ वगत दो
दशक म औ यो गकरण म हु आ है । इस दे श म दे श क 85% होजर व 60% खेल का
सामान बनता है । इस दे श क मु ख के अमृतसर, धार वाल, ग दासपुर , प टयाला, फगवाड़ा,
हो शयारपूर जालंधर, लू धयाना, बटाला, नवाशहर, नंगल, अ बाला, जगाधर , यमु नानगर,
सू रजपुर आ द है । अमृतसर-लु धयाना, जालंधर, बटाला म कृ ष व औ यो गक मशीनर व पूज,
जालंधन व बटाला म खेल का सामन, धार वाल, लू धयाना, हो शयापूर अमृतसर म एवं फगवाडा
म ऊनी व तथा होजर , रसायन, औष ध, नाईलोन टायर, इले ो नक उपकरण, नंगल म
उवरक, डाल मयादादर व सूरजपुर म सीमे ट , जगाधर , यमु नानगर, राजपुरा, कपूरथला, बटाला
आ द म पीतल ट ल व धातु के बतन व सामान, नल व से नटर का सामान, आ द के उ योग
था पत ह ।
8. मदुराई-कोय बटु र दे श- कोय बटू र म व ो योग क धानता ह पहले यह कुट र तर
पर क तु अब वृहत ् तर पर सू ती, रे शम व नकल रे शम (रे यन) उ योग च लत है । कोय बटु र
‘त लमनाडु का मानचे टर' कहलाता है । सू ती व के अ तर त यहाँ चीनी, औ यो गक उपकरण,
रबड़, सगरे ट, रसायन, कहवा, सीमे ट व 'चमड़ा उ योग 'भी था पत है । 'के य ग ना शोध
सं थान' भी यह ि थत ह मदुराई म इंजी नय रंग उ योग का वशेषीकरण हु आ है ।
9. चे नई (म ास) बंगलौर दे श- चे नई- मू बई रे लमाग पर यह औ यो गक दे श
वक सत ह चे नई त मलनाडु क राजधानी, दे श का मुख प तन तथा ओ यो गक नगर है ।
इसक पृ ठभू म कृ ष धान ह यहाँ सू ती व ो योग, मोटर वाहन, जलयान नमाण, रे लवे कोच
तथा वैगन (पेरा बूर म) दयासलाई, चमड़ा, सगरे ट, साइ कल, रसायन, मशीनर उपकरण आ द
उ योग था पत है ।
उ तम प रवहन एवं जल व युत के कारण बंगलौर म अनेक उ योग वक सत हो गये ह
। घड़ी व मशीने (HMT), वायुयान (HAL) टे लफोन (I.T.I) भार मशीनर , सू ती, ऊन, रे शमी व
कृ म रे शम व ो योग, वधु त एवं इले ा नक उपकरण, रसायन, औष ध, चमड़ा, इ पात
(भ ावती) उ योग आ द वक सत है ।
1. असम घाट - कृ ष, व य एवं ख नज तेल इस े म मुख आ थक संसाधन ह िजनके
आधार पर यहाँ चाय के बागात जू ट यवसाय, चावल साफ करने के कारखाने, कागज, लकड़ी
265
चराई, दयासलाई लाइवुड, रे शम तथा पे ो लयम उ योग वक सत है । डगबोई, अर , डबुगढ
तनसू खया मु ख औ यो गक के है ।
2. दािज लंग तराई- पि चमी बंगाल क उ तर भाग म चाय व अन नास क बागात
उ लेखनीय हे । वनो योग भी वक सत ह दािज लग व जलपाई गुड़ी औ यो गक के है ।
दािज लंग म पयटन उ योग भी वक सत है ।
3. बहार- उ तर दे श- उ तर बहार व पूव उतर दे श म चीनी, चावल, आ द खा य
उ योग गंगा क द णी कनारे पर भागलपुर से ब सर तक इ जी नय रंग उ योग,
डाल मयारनगर म कागज, सीमट, चीनी, वन प त तेल; पटना मे रसायन एवं व ो योग,
गोरखपुर मे - चीनी, शराब, जू ट, खा य उ योग आ द था पत है । सघन आबाद े होने के
कारण यहाँ बाजार उपल ध है । कृ ष एवं ख नज संसाधन उपल ध होने के कारण यहाँ कुछ
वशेष उ योग था पत हो गये है ।
4. इ दौर-उ जैन- म य दे श के, द णी पि चमी भाग म ि थत इस दे श मे सू ती व ,
इ जी नय रंग व धातु कम उ योग क अ त र त खा य से स बि धत एवं रसायन उ योग
वक सत हु ए है । इ दौर व उ जैन मुख
औ यो गक् के है ।
5. नागपुर -वधा- महारा के उ तर मे ि थत इस दे श म सूती व , इंजी नय रंग रसायन
आ द उ योग वक सत हु ए है । नागपुर एवं वधा इसके मुख के है ।
6. धारवाड़-बेलगाँव- कनाटक के उ तर पि चमी भाग म ि थ त इस दे श म सूती व ,
चावल साफ करना, रासाय नक एवं ह क इ जी नय रंग उ योग के अ त र त मछल से
स बि धत उ योग एवं मसालो का यापार होता ह हु बल , धारवाड़ बेलगाँव मु ख औ यो गक
के है ।
7. गोदावर - कृ णा डे टा- आं दे श के तट य भाग म ि थत इस कृ ष धान े म
चावल, जु ट, सू ती व , चीनी एवं मलय उ योग के अ त र त सीमट, उवरक, रसायन, ह के
इ जी नय रंग, इ पात एवं जलयान नमाण उ योग का वकास हु आ है । राजमहे , गु तु र,
वजयवाड़ा, मछल प नम तथा वशाखापतनम मुख औ यो गक के है ।
बोध शन-6
1. औ यो गक दे श से या अ भ ाय है ?
2. म सं या के आधार पर कतने भाग म बां टा गया है ?
3. आर.एल. संह के अनु सार कतने औ यो गक दे श मे बां टा गया है ?
4. कोलक ता – हु गल दे श का व तार कहाँ से कहाँ तक हु आ है ?
266
आ थक प रवतन होते है, तथा उनसे यापार आ द अनेक अ य अ त ादे शक काय भी वक सत
होते है । इन तीन प का एक दूसरे से संब ध है । जैसे भारत म लोहा इ पात उ योग का
ादे शक वतरण या है । उन थान पर कौन से अनुकूल भौगो लक कारक है तथा इस उ योग
के थापन से भारत म आ थक वकास को कस प म सहायता मल है तथा कौन से अ य
उ योग एवं आ थक काय वक सत हु ए है ।
भौगो लक अ ययन म हम उ योग के ऐ तहा सक एवं आ थक प को भी जानना चाहते
ह । जैसे भारत म सू ती कपड़ा उ योग के वकास के कौन से कारण रहे है । भौगो लक कारक के
अ त र त वतमान शता द म कौन से अनुकूल कारक रहे क यह उ योग टे न के उ योग के
बावजू द भी वक सत हु आ । इस कार उ योग के पुन वतरण के इ तहास और उसके कारण का
समायोजन भी करते ह ।
उ पादन के साथ यापार भी संब है अत: औ यो गक भूगोल म उ पा दत व तु ओं के
यापार को भी हम जानना चाहते ह ।
भारत म लोहा पात उ योग मु खत: बोकार , जमशेदपुर, भलाई, राउरकेला, दुगापुर ,
वशाखाप नम, सलेम, भ ावती आ द म केि त है । व उ योग म महारा , गुजरात,
आं दे श, पि चमी बंगाल अ णी है । सीमे ट उ योग म आं दे श , छ तीसगढ़, म य दे श,
झारख ड, बहार, गुजरात व त मलनाडु मु ख है ।
ए युमी नयम उ योग भूर , रे णक
ु ू ट, भेटर, कोरबा आ द म वक सत है । कागज लु द
उ योग पि चमी बंगाल, आं दे श, उड़ीसा, छ तीसगढ़, म य दे श, गुजरात, उ तर दे श आ द
म केि त है ।
औ यो गक दे श ऐसा े है जहाँ पर पर स ब उ योग के अनेक कारखाने केि त हो
तथा औ यो गक भू य वक सत हो । करण व जेन व स तथा आर.एल. संह ने भारत के
औ यो गक दे श को नधारण कया है । भारत के मुख , लघु व औ यो गक के 3 थल
नधा रत कये गये है ।
9.9 श दावल
1. उ योग :- उ योग वह आ थक काय है िजससे उपयोगी व तु एँ बनाई जाती है या सेवा
काय का ज म होता है । (Economic Activity which fields goods, Utilities of
Services)
2. उ योग का थानीयकरण :- थान वशेष पर उ योग का के यकरण ह उसका
थानीयकरण माना जाता है । औ यो गक वशेषता क . एक वशेषता यह है क एक थान पर
य द कु छ उ योग वक सत हो जाते है तो उनका उ योग भी कह आक षत होते है य क वहाँ
उ ह आव यक सु वधाएँ जैसे कु शल कार गर, प रवहन के साधन, पूँजी, यापार का बंध आ द
उपल ध हो जाते है ।
3. क चा माल - ऐसे पदाथ िजनका प, गुण धम प रव तत कर नया माल तैयार कया
जाता है ।
267
4. औ यो गक दे श :- ऐसे दे श को औ यो गक दे श कहा जाता है जहाँ उ योग का
संके ण हो और जहाँ अ य आ थक काय क तुलना म औ यो गक याय ह मुख हो । यह
औ यो गक भू य व औ यो गक संकु ल के संयोजन का प रणाम है ।
5. वके करण - ऐसा उ योग िजसके कारखाने वभ न े म अनेक के पर
वक सत होते है ।
9.10 स दभ थ (References)
1. डॉ. मीला कु मार व डॉ. ी कमल: म य दे श ह द थ अकादमी, भोपाल ।
2. वी.एस. चौहान व अलका गौतम : भारत का भू गोल र तोगी पि लकेश स, मेरठ ।
3. डॉ. सुरेश च बंसल : भारत का भू गोल मीना ी काशन, मेरठ ।
4. डॉ. बीपी राव : भारत का भू गोल वसु धरा काशन, गोरखपुर ।
5. डॉ. चतु भु ज मामो रया व डॉ.जे.पी. म ा. भारत का वृहतभू गोल सा ह य भवन
पि लकेशन, आगरा ।
9.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. क चे माल के नकट होती है । 2. कोयला
3. सांकची (झारख ड) 4. जमनी के सहयोग से ।
बोध न - 2
1. कपास 2. थम 3. त मलनाडू
बोध न - 3
1. क चे माल के नकट 2. सीमट
3. राज थान 4. बरला मू प
बोध न - 4
1. बॉ साइट 2. चार कारखान 3. उड़ीसा रा य म
बोध न - 5
1. ट टागढ़ (1881) 2. दो कार क (i) यां क लु द (ii) रासाय नक लु द
3. लद बनाने के काम। 4. सावज नक े का ।
बोध न - 6
1. यहाँ पर पर स ब उ योग के अनके कारखाने केि त होते है तथा औ यो गक भू य
वक सत होते है ।
2. तीन कार के औ यो गक दे श म 3. यारह (11)
4. हु गल नद के कनारे 100 कमी.ल बी पेट म हि दया से बलासपुर तक हु आ है ।
9.12 अ यासाथ न
.1 लोहा इ पात उ योग क थापना के कारक का ववेचन क िजये ।
.2 भारत म सू ती कपड़ा उ योग का वतरण बतलाइये ।
268
.3 भारत म सीमट उ योग के वकास पर लेख ल खये ।
.4 ए यू म नयम उ योग क समी ा क िजये ।
.5 भारत म कागज उ योग के थानीयकरण क कारक क या या क िजये ।
.6 भारत को औ यो गक दे श म बा टये तथा उनके संसाधन का ववरण द िजये ।
269
इकाई 10 : जनसं या एवं नगर करण
(Population and Urbanisation)
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना.
10.2 जनसं या
10.2.1 अथ एवं प रभाषा
10.2.2 जनसं या वृ
10.2.3 जनसं या वृ क अव थाएँ
10.2.4 जनसं या वृ दर म था नक वषमता (1991-2001)
10.2.5 जनसं या वृ व लेषण (1991-2001)
10.2.6 जनसं या क ती वृ को नयं त करने के उपाय
10.3 जनसं या वतरण एवं घन व
10.3.1 जनसं या वतरण को भा वत करने वाले कारक
10.3.2 जनसं या घन व
10.4 जनसं या सम याएँ एवं समाधान
10.5 नगर करण
10.5.1 अथ एवं प रभाषा
10.5.2 नगर य जनसं या म वृ एवं नगर करण
10.5.3 नगर करण को भा वत करने वाले कारक
10.5.4 भारत म नगर करण
10.5.5 नगर करण क वृि तयाँ
10.5.6 नगर करण चु नौ तयाँ
10.6 सारांश
10.7 श दावल
10.8 संदभ थ
10.9 बोध न के उ तर
10.10 अ यासाथ न
10.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे :
भारत म जनसं या का व प
जनसं या का वतरण एवं घन व
वतरण को भा वत करने वाले कारक,
270
जनसं या वृ का व लेषण
जनसं या वृ क अव थाएँ
जनसं या क ती वृ को नयि त करने के उपाय ,
जनसं या क सम याएँ एवं समाधान
नगर करण जनसं या म वृ के कारण
नगर करण क वृ तयां
नगर करण क चु नौ तयां ।
271
जनसं या का शाि दक अथ दे खा जाए तो यह सं कृ त के दो श द के योग से
(जन+सं या) बना है । जन का अथ है – लोग/ जा/ समू ह/ आ द तथा सं या श द से अ भ ाय
है ' गनती’ । अत: जनसं या श द का शाि दक अथ हु आ 'लोग क गनती' । यहां न उठता
है, कन लोग क गनती और कहाँ के लोग क गनती । इसका उ तर है - '' कसी नि चत भू-
भाग ( दे श या े ीय इकाई अथवा अ य कोई थान वशेष) म रहने वाले सम त नवा सय क
सं या । वो छोटे ह या बड़े उ दराज, म हलाएँ ह या पु ष , ब चे ह या युवा वग या बुजु ग ।
कसी भी धम के ह या कसी भी जा त के ह , इन सभी क एक नि चत समय म गनती क
जाती है, वह उस समय व थान क जनसं या कहलाती है ।
जनसं या श द को आं ल भाषा म पॉपुलेशन (Population) कहते ह । िजसका
अ भ ाय साधारणतया जनसं या, आबाद , अथवा जनसमू ह के प म नकाला जाता है । जब क
सांि यक य भाषा (Statistical Language) म पॉपुलेशन (Population) श द का अथ कसी
भी सं या (Number) से लगाया जाता है । पॉपुलेशन (Population) मानव समू ह क हो
सकती है, पेड़-पौध क हो सकती है, पशु ओं या प य क हो सकती है, फन चर या ऐसे ह
अ य भी सं या हो सकती है । इस कार य द मानव जनसं या कहना हो तो उसे 'Human
Population,' कहा जाता है, य द पेड़ क सं या हो तो उसे ‘Tree Population’, पशु ओं क
सं या को 'Animal Population', कहा जायेगा, तो 'Furniture Population’ के वारा
फन चर क सं या य त क जाती है अथात ् पॉपुलेशन (Population) श द कसी भी व तु,
पेड़-पौध , पशु-प ी अथवा मानव आ द क सं या को अ भ य त करता है ।
272
स से 2.5 गुनी अ धक, उ तर अमे रका से 2.8 गुनी अ धक और टे न से 7 गुनी अ धक है ।
इतनी वशाल जनसं या के सी मत संसाधन पर नभर होने के कारण अनेक सामािजक,
राजनी तक और आ थक सम या पैदा हो जाती ह । य द भारत क जनसं या वृ दर और कु ल
जनसं या कम होती तो भारत अब तक एक राजनी तक और आ थक महाशि त बन गया होता ।
भारत म जनसं या का आकार एवं वृ दर न न ता लका से दे खे जा सकते ह । (ता लका
10.1)
ता लका - 101. भारत म जनसं या का आकार एवं वृ दर (1901-2001)
जनगणना जनसं या दशक य वृ औसत वा षक ज मदर मृ यु दर 1901 के प चात
वष वृ दर त हजार त बढ़ती वृ दर
( तशत म) हजार ( तशत)
नरपे ( तशत)
1901 238,396,327 - - - - - -
1911 252,093,390 113,697,063 5.75 0.56 49.2 42.2 5.75
1921 251,321,213 -772,177 –0.31 -0.03 48.1 48.6 5.42
1931 278,977,238 27,656,025 11.00 1.04 46.4 36.3 17.02
1941 318,660,580 39,683,342 14.22 1.33 42.2 31.2 33.67
1951 361,088,090 42,427,510 13.31 1.25 39.9 27.4 51.47
1961 439,234,771 78,146,681 21.64 1.96 41.7 22.8 84.25
1971 548,159,652 108,924,881 24.80 2.20 41.2 19.0 129.94
1981 683,329,097 135,169,445 24.66 2.22 37.2 15.0 186.64
1991 843,387,888 163,058,791 23.86 2.14 32.5 11.4 255.03
2001 1,027,015,247 180,627,359 21.34 1.93 26.0 8.0 330.80
273
1. धीमी वृ क अव ध (1921 से पूव )
यह अव ध भारत क पहल जनगणना सन ् 1872 ई. से 1921 के दौरान रह है । इस
समय जनसं या वृ बहु त धीमी थी य क ज मदर एवं मृ युदर दोन ह ऊँचे थे । इसका
मु ख कारण दे श म पड़ने वाले भीषण अकाल, महामार तथा अ नाभाव के कारण जनसं या म
उ च ज मदर होने के बावजू द ऊँची मृ युदर रह । इस अव ध म ज मदर 48 से 49 यि त त
हजार तथा मृ युदर 42 से 48 त हजार रह । अत: इन तीन दशक म जनसं या केवल 1 .54
करोड़ क वृ हु ई है । इस अव ध म त वष वृ लगभग 5 लाख क थी जब क वतमान
समय म यह लगभग 1 .4 करोड़ क है । 1927 के बाद जनसं या वृ दर धीरे -धीरे वढ़ने लगी
। इस लए 1921 को भारत क जनसं या का वृहत ् वभाजक (Great Divide) अथवा जनां कक
वभाजक (Demographic Divide) वष कहते ह ।
274
इस अव ध म अकाल के कारण होने वाल मौती म कमी आई तथा प टता और
च क सा सु वधाएँ बेहतर हो गई । प रवहन के साधन मे व तार तथा खा यान के उ पादन म
वृ क गई । प रणाम व प ज मदर क तुलना म मृ युदर अ धक तेजी से घटने के कारण
वृ दर अ धक होती गई फर भी यह त दशक 10 तशत से 15 तशत के म य सामा स
बनी रह इसे इन े रत व ध कहा गया है ।
3. ती वृ क अव ध (1951 से 1981)
1951 से 1981 क अव ध म भारत क जनसं या लगभग दुगन
ु ी हो गई । इस अव ध
म औसत वृ दर लगभग 2.2 तशत रह । जनसं या म यह अभू तपूव वृ वकास काय म
तेजी, च क सा सु वधाओं म और अ धक सुधार तथा खा या न म बढोतर हे तु ह रत ाि त का
भाव आ द के फल व प हु ई । लोग के जीवन क दशाओं म बहु त सु धार हु आ । ज मदर क
तु लना म मृ युदर तेजी से घट । इसका प रणाम अ त उ च ाकृ तक वृ है । इस कार यह
जनन े रत वृ है ।
4. घटती वृ क अव ध (1981 के बाद)
य य प 1981 के बाद भी जनंस या म उ च वृ हु ई ले कन वृ दर म मक ास
हु आ । भारत के जनां कक य इ तहास म यह नए युग क शु आत का संकेत है । इस अव ध म
ज मदर तेजी से घट । यह 1981 से 37.2 त हजार थी जो 2001 म घट कर 26 त हजार
हो गई । मृ युदर म भी घटने क वृि त बनी रह ले कन कमी क दर धीमी हो गई । 2001 म
मृ युदर 8.0 थी, ज मदर और मृ युदर म अ तर घटते -घटते 18 त हजार रह गया है ।
जनसं या म ास क यह वृ त संत त नरोध के सरकार य न , छोटे प रवार के त झान,
शै णक वकास तथा जाग कता के कारण हु आ । इस अव ध म मृ युदर के साथ-साथ ज मदर
को भी नयि त कया गया है । अत: 2001 के जनगणना से प ट है क भारत जनां कक य
सं मण (Demographic Transition) क चतु थ अव था क ओर अ सर हो रहा है ।
बोध न : 1
1. जनसं या के ि टकोण से भारत का व व म कौनसा थान है ?
2. व व क कु ल जनसं या का कतना तशत भाग भारत म नवास करता है ?
3. भारत म ामीण एवं नगर य जनसं या का अनु पात कतना है ?
4. भारत क पहल एक का लक ( Synchronous ) जनगणना कब और कसके
शासन काल म हु ई थी?
5. 2001 क जनसं यानु सार भारत म ज मदर एवं मृ यु द र का अनु पात कतना
है ?
275
ता लका – 10.2
रा य एवं के शा सत दे श क राजधानी, े फल, जनसं या तथा जनसं या का घन व
276
277
सामा यत: उ च वृ दर वाले (2 तशत वा षक से अ धक) रा य दे श के उतर आधे भाग वाले
रा य ह । हालां क उतर पूव रा य म वृ दर ऊँची रह । इसके वपर त द ण के मुख
रा य म जनसं या वृ दर धीमी रह है। इसका मु ख कारण सामािजक-आ थक वकास म
अ तर है । द ण के रा य म सा रता दर ऊँची गार य जनसं या अ धक तथा आ थक वकास
अपे ाकृ त अ धक है । यह वजह है क द ण के रा य म ज मदर अपे ाकृ त कम है ।
278
3. प रवार क याण काय म का व तार - रा य तर पर तथा साथ ह साथ रा य तर
पर भी सरकार सं थान , अ सरकार एवं नजी सं थान वारा इस े म जनजागरण
अ भयान चलाकर इस स ब ध म आमजन को अ धका धक जानकार उपल ध कराने के साथ ह
व भ न योजनाय बनाकर उनक ठोस याि व त के यास कया जाना आव यक है ।
4. श ा - श ा का न केवल कसी रा क उ न त म मह वपूण योगदान रहता है ,
अ पतु इसके वारा अनेक सामािजक-सां कृ तक सम याओं का हल भी नकाला जा सकता है ।
अत: प रवार क याण काय मो क उ चत याि व त हेतु दे श म अ धका धक जनसं या को
श त करना आव यक है, इसके मा यम से लोग न केवल प रवार को छोटा रखने एवं जीवन
तर को ऊँचा उठाने के यास करगे अ पतु वे जीवन के त बु -सगत ि टकोण -रखना भी
ार भ कर दगे अत: श ा का यावहा रक चार, वशेषकर ि य क श ा के लए समु चत
यव था हो ।
5. योजना के थान पर नी त - भारत म जनसं या नयं ण करने के लए एक ठोस नी त
नह ं है । यहाँ धा मक अ ध व वास, राजनै तक वाथ आ द जनसं या को नयं ण करने म
असमथ ह । सरकार वारा चलाये जा रहे काय म भी योजना के तहत सु यवि थत नह ं है जैसे
70 के दशक म तीन ब च क योजना थी, बाद म यह दो ब च क बनी क तु कसी द पि त
ने दो से अ धक ब चे पैदा कये तो कोई द ड का ावधान नह ं है जब क चीन म जनसं या
नयोजन नह ं है वहाँ जनसं या नी त है । इसके अ तगत अ धक ब चे पैदा करने वाले द पि त
को दि डत करने का ावधान है, जब क नयोजन म द ड का ावधान नह ं है ।
6. समान आचार सं हता - सभी जा त धम के लोग के लए संतानो प त के स ब ध म
एक आचार सं हता बननी चा हए । कसी वशेष धम या जा त को छूट नह ं मलनी चा हए ।
7. पुर कार योजना - िजन नव द पि तय के दो या दो से कम ब चे ह उनको पुर कृ त
करना चा हए और िजनके दो या दो से अ धक ब चे ह उनके लए द ड यव था होनी चा हए ।
8. जनसं या नयं ण के साधन को सावज नक प से सुलभ कराने क यव था होनी
चा हए ।
9. शशु मृ युदर पर नयं ण - शशु मृ यु का यथा स भव नयं ण हो ता क लोग म कम
ब च के त व वास बढ सके । अत: उ च च क सीय यव थाएँ वक सत होनी चा हए ।
10. सामािजक सु र ा - सामािजक सु र ा का व तार होना चा हए ता क वृ ाव था काल म
संतान पर नभरता कम हो सके ।
11. रा य संक प - जन वृ को रोकने के लए रा य संक प क आव यकता है ता क
हर तर पर जाग कता पनप सके । पि चमी दे श म ऐसे संक प के प रणाम साथक हु ए ह ।
इस कार उपयु त कु छ मह वपूण ब दु ह िजनको आमजन और सरकार यास दोन
ह साथ साथ जनचेतना के चार- सार, रोग क रोकथाम आ द जैसे वषय पर एक होकर काय
कर । वरना भारत जैसे बो झल दे श म कठोर कदम उठाये बना इसका समाधान क ठन है ।
279
बोध न : 2
1. भारत म 1991-2001 के दशक म कतनी तशत जनसं या वृ दर थी?
2. कस रा य म सबसे कम जनसं या दशक य वृ हु ई और कतना तशत है?
3. कस रा य म सवा धक जनसं या दशक य वृ हु ई और यह कतना तशत
है ?
4. भारत म नवद पि त क ववाह आयु का अनु पात या है ?
280
कम वक सत हु आ है । त मलनाडु के औ यो गक नगर, पि चमी महारा तथा कनाटक के
औ यो गक के म उ च जनसं या घन व दे खने को मलता है ।
तीसरे वग म वो े सि म लत कए गये ह, जहाँ जनसं या घन व वरल है । इसम
मु य प से भारत के सीमा ा तीय भाग ह । पा क तान सीमा से संल न क छ का दलदल य
भाग, थार का म थल व क मीर के पवतीय भाग है जहां वषम जलवायु के कारण जनसं या
यून है तथा बहु त ह वरल है । उ तर म हमालय के पवतीय दे श , पूव म अ णाचल दे श,
नागालै ड, म णपुर , पुरा, मेघालय तथा मजोरम आ द घने वन से आ छा दत पहाड़ी दे श
यातायात क सु वधाओं का अभाव, ाकृ तक तकू लता एवं धरातल य वषमता, कृ ष भू म क
कमी, औ यो गक वकास क लगभग शू यता के कारण यह जनसं या कम है ।
281
जाता है । ये क टबंध मानव बसाव के लए उपयु त है तथा य यो द ण क ओर बढ़गे
ऊ णक टबंधीय े ार भ होता है जो अ त उ ण होने के कारण जनसं या कम पाई जाती है ।
समु तट य भाग म भी अनुकूल जलवायु खा या न हे तु मछल ाि त आ द दशाओं के कारण
भारत के पि चमी एवं पूव तट य े म जनसं या का घन व अ धक है ।
(ii) धरातल अथवा उ चावच - धरातल अथवा उ चावच के व भ न भाग - पवत, पठार,
मैदान, घाट आ द क वजह से जनसं या का वतरण असमान पाया जाता है । पवतीय एवं
पठार े उबड़-खाबड़ होते ह िजसके कारण कृ ष, यातायात नवास, औ यो गक वकास आ द के
लए अनुपयु त होते ह ।
अत: इन भाग क जनसं या का वतरण असमान तथा वरल पाया जाता है । यहां कृ ष
यो य भू म का अभाव है, यातायात के साधन का वकास नह ं हो पाता है । क तु समतल
मैदानी भाग म सवा धक जनसं या नवास करती है यहाँ जनसं या का संके ण अ धक है ।
मैदान म उपजाऊ जलोढ़ म ी पायी जाती है,
िजसके कारण कृ ष तथा समतल होने के कारण यातायात, उ योग एवं अ य याओं
का अ य धक वकास हुआ । उबड़-खाबड़ पवतीय एवं पठार भाग जन शू य एवं समतल मैदानी
भाग म सघन जनसं या नवास करती है ।
(iii) जलवायु (Climate) - जनसं या वतरण को जलवायु सबसे अ धक भा वत एवं
नयि त करती है । अ त उ ण, आ एवं अ य धक शीतल जलवायु मानवीय नवास पर वपर त
भाव डालती है । भारत के उ तर-पि चम भाग म ि थत थार के रे ग तानी भाग म अ त उ ण
एवं शु क जलवायु के कारण ह जनसं या वतरण न न पाया ाता है । भारत के ाय वीपीय
भाग के पूव एवं पि चम म वषा पया त होती है । अत: यह सघन जनसं या रहती है । तापमान
भी जनसं या के वतरण को भा वत करता है । अ त उ च एवं अ त न न तापमान वाले
थान पर बहु त कम जनसं या नवास करती है, जैसे भारत के हमालय पवतीय े के पास
ि थत भाग एवं द ण का पठार ।
282
अ धकांश जनसं या गंगा, यमु ना, गोदावर , कृ णा, कावेर आ द नद घा टय म ि थत है ।
य क यहाँ जल पया त मा ा म उपल ध हो जाता है ।
(v) मृदा (Soil) - मनु य के जी वकोपाजन हे तु खा या न का उ पादन सवा धक अ नवाय
कारक है । खा या न का उ पादन उपजाऊ म य म ह होता है । अत: भारत क जनसं या
का अ धकतम भाग न दय वारा न े पत जलोढ म य के े म बसा हु आ है । न दयाँ
तवष अपने साथ उपजाऊ जलोढ़ म ी लाती ह, िजसे मैदान म न े पत कर दे ती ह । भारत
का वशाल उ तर मैदान जो गंगा-यमु ना एवं इनक सहायक न दय वारा न मत है, अ य धक
उपजाऊ है िजसके कारण यहाँ सघन जनसं या नवास करती है । ले कन जहाँ अनुपजाऊ बंजर
एवं अनु पादक म याँ पायी जाती ह वह वरल जनसं या रहती है । भारत के रे ग तानी भाग,
पवतीय े म म ी क अनु पादकता के कारण जनसं या का वतरण अ य धक यून पाया
जाता है ।
2. आ थक कारक (Economic Factors)
(i) ख नज संसाधन (Mineral Resources) - अ य भौ तक कारक के जनसं या नवास
के वपर त होते हु ए भी य द संसाधन चु र मा ा म उपल द हो तो उन थान पर जनसं या
घन व भी अ धक पाया जाता है । ख नज ाि त थान पर औ यो गक एवं यातायात माग का
ती वकास होता है, िजनम थानीय लोग को रोजगार ा त होता रहता है । भारत म दामोदर
घाट कोयला उ पादक े , म थल य े म िज सम, गैस ाि त े आद दे श म अ य
कारक के जनसं या वतरण के तकूल होते हु ए भी ख नज ाि त के कारण सघन जनसं या
पायी जाती है ।
(ii) शि त के साधन (Power Resources) - व भ न औ यो गक याओं के वक सत
नह ं होने के बावजू द य द कसी थान पर पै ो लयम, गैस के भ डार तथा व युत आ द क
स भावना वाले थान पर भी जनसं या अ धक पायी जाती है ।
(iii) यातायात के साधन (Means of Transport) - जहाँ प रवहन माग का जाल फैला
होता ह, उन े म व भ न औ यो गक इकाइय क थापना हो जाती है । प रवहन साधन के
कारण वह े सभी नगर से जु ड़ जाता है । इसी कारण पवत एवं पठार क अपे ा मैदानी
भाग म सघन जनसं या पायी जाती है । भारत के गंगा-यमु ना मैदान म सघन जनसं या होने
का कारक प रवहन भी है । यहाँ सड़क एवं रे ल प रवहन का जाल सा बछा हु आ है । ले कन
हमालय पवत, रे ग तानी े एवं भारत के उ तर -पूव पहाड़ी रा य म वरल जनसं या होने
का एक कारण प रवहन माग क कमी है. ।
(iv) कृ ष-उ पादकता (Agricultural Productivity) - मनु य के जीवनयापन हे तु अ त
उ पादन अ त आव यक है । भारत म जनसं या का सवा धक घन व उन भाग म पाया जाता है
जहाँ कृ षगत फसल का अ धकतम उ पादन होता है । भारत म गंगा- मपु न दय के मैदानी
भाग, गोदावर , कृ णा, कावेर तथा अ य न दय के मैदान म उपजाऊ म ी के होने के कारण
कृ षगत फसल का उ पादन अ धक होता है । अत: इन भाग म जनसं या का वतरण अ धक
283
पाया जाता ह । हमालय पवत, रे ग तानी े एवं उ तर -पूव पहाड़ी रा य म कृ ष उ पादकता
क कमी के कारण जनसं या घन व भी वरल पाया जाता है ।
3. सामािजक कारक (Social Factors) -
जनसं या का वतरण, सामािजक कारक जैसे धा मक, सां कृ तक, भाषा, रहन-सहन आ द के
वारा भी भा वत होता है भारत म हमालय पवतीय े , द णी पठार े म आ दवा सय म
अलगाववाद वृ त नह ं होती ह । अत: इन े म कह -ं कह ं जनसं या समू ह म पायी जाती है
। कई लोग का अपनी ज मभू म के त लगाव थाना तरण को अनाव यक मानते ह । अपने
य खा य फसल के त लगाव जैसे भारत के द णी एवं द णी-पूव भाग म चावल के
उ पादन का कारण जलवायु के साथ इनक च भी है । इनम उ च जनन मता पायी जाती
है । धा मक व वास के कारण जनसं या बढ़ती
4. राजनै तक कारक (Political Factors) -
राजनै तक कारक जैसे अस तोष, असु र ा, राजनी तक उथल-पुथल आ द राजनै तक कारक
जनसं या के वतरण को अ य धक भा वत करते ह । शा त एवं सुर त थान पर जनसं या
अ धक पायी जाती है । भारत के ज मु-क मीर म पा क तानी आतंकवाद संगठन एवं उ तर -पूव
रा य असम, मेघालय, नागालै ड म बोड़ो उ वा दय के कारण असु र ा है । अत: इन भाग म
वरल जनसं या पायी जाती है । जब क भारत के अ य भाग म इन भाग क अपे ा सघन
जनसं या रहती है ।
5. जनां कक य कारक (Demographic Factor) -
जनसं या के वतरण को भा वत करने वाले जनां कक य कारक भी मह वपूण है - जनन दर,
मृ युदर और वास आ द । आ वासन महानगर म वशाल जनसं या के संके ण का मु य
कारक है । नगर कृ त और औ योगीकृ त िजल म जनसं या के उ च घन व का मु य कारक
जनसं या का बड़े पैमाने पर आ वासन है ।
284
जनसं या घन व मा 77 यि त त वग कलोमीटर था । गत दशक म उसम लगातार वृ
दज क गयी है, जैसे 1951 म 117,1961 म 142,1971 म 177,1981 म 216,1991 म 267
(असम व ज मू क मीर को छोड़कर) तथा 2001 म यह बढ़कर 324 यि त त वग कलोमीटर
हो गया है । य द रा य के घन व का अवलोकन कर तो सवा धक घन व 904 यि त त वग
कलोमीटर पि चमी बंगाल का था, जब क के शा सत दे श म द ल का घन व 9294 यि त
त वग कलोमीटर सवा धक था । भारत को जनसं या घन व के आधार पर तीन दे श म
वभािजत कया जा सकता है-
285
औ यो गक तथा आ थक वकास हु आ है । राज थान, पंजाब तथा ह रयाणा म म यम घन व के
कु छ े वृा ष तथा लघु उ योग के वकास के कारण वक सत हु ए ह ।
3. कम घन व वाले े - कम घन व वाले दे श के लगभग 150 ऐसे िजले ह, जहाँ जल
घन व 300 यि त त वग कलोमीटर से भी कम है । दे श के पि चमी म थल य भाग तथा
उतर -पूव हमालय े म पवतीय धरातल के कारण कम घन व दे खने को मलता है । इसी
कार उड़ीसा एवं म य दे श के पठार एवं आ दवासी े , आध दे श के म यवत एवं कनाटक के
पूव भाग म कृ ष भौ तक बाधाओं के कारण कम वक सत होने रवे वरल जनसं या दे खने को
मलती है । क छ के दलदल वाले भाग भी कम आबाद ह ।
286
(3) त यि त यूनतम आय;
(4) अ श ा, गर बी, बीमार एवं बेकार ।
(1) ती जनसं या वृ - पहले बताया जा चु का है क औसतन तवष लगभग 1 .8 करोड़
लोग भारत क जनसं या म जु ड़ते जा रहे ह । कृ ष धान दे श होने के कारण यह जनभार
कृ षगत भू म क वहन मता से अ धक है । 2001 म भारत क जनसं या एक अरब से
अ धक हो गई है । ऐसी दषा म उपल ध संसाधन क तुलना म जना ध य क भयावह ि थ त
उ प न हो सकती है । भारत अपनी अ धकतम भू म का उपयोग करने के लए वन वनाश कर
चु का है जो एक अलग सम या है । प ट है क संसाधन वकास के लए भू म के गहन उपयोग
के साथ अ य संसाधन के वकास के लये यास करना होगा । ले कन अनेकानेक कारण से
संसाधन का वकास म द ग त से हो रहा है जब क जनसं या वृ सतत बनी हु ई है । अत: इस
ती ग त से बढ़ती जनसं या का यथास भव नयं ण करना सम या के समाधान के लये
आव यक है ।
(2) जनसं या का असमान वतरण - अनेकानेक आ थक, सामािजक और ऐ तहा सक
कारण से भारत क जनसं या के े ीय वतरण म अ य धक वषमता है िजसके कारण
संसाधन के उपयोग म अ त यता पाई जाती है । अ धकांश जनसं या कृ ष आधा रत होने के
कारण उपयुका मृदा और जलवायु के े म आव यकता से अ धक के भू त ह । फलत :
जनसं या अ तरे क क ि थ त उ प न हो गई है । उतर भारत का मैदानी े , तट य मैदान और
पठार का कृ षगत े ऐसे ह जना ध य े ह । य द संचाई, आवागमन, कृ ष उपकरण क
सु वधा ा त हो जाय तो इस वषमता को कम कया जा सकता है ।
(3) त यि त यून आय - सारे यास के बावजू द भारत के नाग रक क आय इतनी
कम है क उससे जीवन तर म सु धार लाना क ठन है । कायशील जनसं या मा 37.2 तशत
है और उसम भी कम पा र मक पाने वाल क सं या सवा धक है । यह कारण है क
सामा यत: आधी कायशील जनसं या अपने प रवार के लये मा जीने का साधन जु टा ले यह
बहु त बड़ी उपलि ध है । कम आय का मु य कारण है वकास काय म श थलता तथा ती गत
से बढती जनसं या ।
(4) अ श ा, गर बी, बीमार और बेकार - ये सम याएँ एक दूसरे से जु ड़ी हु ई ह । अ श ा
धनोपाजन म बाधक है और कम आय से गर बी पनपती है । गर बी कु पोषण को य दे ती है
िजससे अनेक बीमा रयाँ पैदा होकर जीवन को न ट कर दे ती है । भारत म बढती बेरोजगार ,
वशेषकर पढे - लखे युवक म कु ठा को ज म दे रह है । इसका प रणाम न केवल उ पादकता का
हास है अ पतु इससे सामािजक तनाव को बढ़ावा मल रहा है ।
इस कार उपयु त आधार पर हम यह कह सकते है क जनसं या क सम याएँ ती
ग त से उभरती जा रह ह िजस कार जनसं या म ती ग त से बढ़ोतर हो रह है । इन
सम याओं के समाधान हे तु कु छ सुझाव व उपाय हो सकते ह िजनको जनसं या क ती वृ को
नय त करने के उपाय नामक शीषक के अ तगत दे ख ।
287
बोध न : 3
1. 2001 क जनगणना के अनु सार भारत म त वग कलोमीटर घन व कतना
है ?
2. वष 2001 के अनु सार भारत क जनसं या कतनी है ?
3. 2001 क जनगणना के अनु सार कस रा य म दे श क कु ल जनसं या का
सवा धक व कतना तशत भाग पाया जाता है ?
4. दे श क कु ल जनसं या का सबसे कम तशत ह सा कहाँ रहता है ?
5. राज थान म दे श क कु ल जनसं या का कतना तशत भाग नवास करता है ?
288
(Urbanization Process in the World- 1971) लखा है क ' 'नगर करण एक ऐसा
गुबारा है िजसम येक समाज व ानी वयं का अथ फूँ कता है । '' स य तीत होता है ।
10.5.2 नगर य जनसं या म वृ एवं नगर करण (Growth in Urban Population and
Urbanisation)
290
3. पुनवग त - व भ न जनगणनाओं म नगर य मापद ड म बदलाव के कारण कसी ब ती
को नगर य बि तय के वग म सि म लत कर लया हो ।
291
अथ यव था म यवसाय क व वधता पाई जाती है ।
उपयु त कारक को ो साहन करने हेतु राजनै तक व सामािजक यि तय क भागीदार
है ।
2. सामािजक कारक - सामािजक कारक म सामािजक, आ थक चेतना क मा ा मह वपूण
है । जीवन तर सु धारने क इ छा तथा उनके लए क ठन प र म करने क ल न भी नगर करण
को बढ़ावा दे ती है । नगर य जनसं या क सामािजक मू य णा लयाँ ामीण लोग से भ न
होती ह । नगर करण क वृ के साथ ह सामािजक मू य भी बदलने लगते ह । संयु त प रवार
टू टने लगते ह, ि टकोण भौ तकवाद होने लगते ह । राजनै तक व शासक य नणय भी
नगर करण म वृ करते ह तथा व वधता लाते ह ।
3. जनां कक कारक - जनां कक कारक म नगर य जनसं या क ाकृ तक वृ दर तथा
ामीण नगर य वास गह चपूण ह । ाकृ तक वृ दर से नगर य जनसं या म आ त रक ोत
से वृ होती है , क तु आ वास से बा य ोत से । ामीण े म जब कृ ष जनंस या का
भार बढ़ने लगता है तो अ त र त मक रोजगार के लए नगर क ओर वास कर जाते ह ।
यह नगर करण का सबसे बड़ा कारण है । कृ ष य - य यं ीकृ त होती जाती है तथा फाम का
आकार बढ़ने लगता है तब ामीण े से अ धक से अ धक लोग नगर य े क ओर वास
पर जाते ह, और वहां क बढ़ो तर करते ह ।
भारत म नगर करण का इ तहास बहु त पुराना है । भारतीय ाचीन स यताओं म नगर
वकास के अवशेष दे खन को मलते ह । चाहे वो ाचीन स दु स यता के नगर ह या त शला,
अ ह छ , ह पी आ द ाचीन नगर । क तु उस समय नगर करण क वृ दर (01% से भी
कम) भारत के वशाल भू-भाग को दे खते हु ए बहु त यून थी । भारत म ार भ से ह कृ ष का
नवाहन व प रहा है । यहाँ उ योग का अ य धक थानीयकरण व प रवहन का वकास कम
हु आ तथा ढवा दताएँ, पैत ृक जमीन से लगाव आ द कारण से ामीण े से नगर क ओर
थाना तरण भी धीमा रहा, साथ ह नगर य जनसं या क ाकृ तक वृ दर भी कम रह ।
अत: स पूण भारत मु ख प से ाम का दे श रहा है, ो. लाश के अनुसार ' 'भारत ाम का
एक अ त उ कृ ट दे श है ।
वतमान समय म भारत क जनसं या म तेजी से वृ होने के साथ-साथ नगर य
जनसं या म भी तेजी से बढ़ो तर हो रह है । 1901 म कु ल नगर य जनसं या 25.7 म लयन
थी जो 2001 म बढ़कर 285.35 म लयन तक पहु ँ च गई । वगत 100 वष म नगर य
जनसं या म यारह गुना से भी अ धक बढ़ो तर दे खने को मलती है । 1901 म नगर य
जनसं या का कुल जनसं या म 10.91 तशत था, जो बढ़कर 2001 म 27.78 तशत हो
गया है । वतमान समय (2001) क जनगणना के अनुसार दे श क जनसं या का 72.22
तशत ाम म तथा 27.78 तशत नगर म रहती है ।
नगर य जनसं या म वृ (Growth of Urban Population)
भारतीय जनगणना के अनुसार नगर क प रभाषा न नानुसार है -
292
जनसं या 5000 या इससे अ धक है ।
जनसं या का घन व 1000 यि त त वगमील अथवा 400 यि त त वग
कलोमीटर से अ धक है ।
कम से कम 75% से अ धक याशील पु ष मक कृ य तेयर काय मे संल न है
।
थानीय वशासन के लए नगरपा लका या त सम ् संगठन काय कर रहा है ।
इस आधार पर पछले 100 वष क नगर य जनसं या वृ न नानुसार रह है-
ता लका – 10.4
भारत म नगर य जनसं या क वृ दर (1901-2001)
जनगणना नगर क नगर य सं या दशाि दक वृ कु ल जनसं या का
वष सं या (करोड़ म) तशत तशत
1901 1917 2.99 - 10.8
1911 1909 2.59 –0.4 10.3
1921 2049 2.81 +8.3 11.2
1931 2219 3.35 +19.1 12.0
1941 2424 4.42 +32.0 13.9
1951 3059 6.24 +41.4 17.3
1961 2690 7.89 +26.4 18.0
971 3119 10.91 +38.2 19.9
1981 3263 15.95 +46.1 23.3
1991 3897 21.76 +36.4 25.7
2001 5161 28.61 +31.5 27.8
ोत : 2001 Primary Census Abstract- A.5
293
1. नगर करण वृ ास एवं म द काल (1901-1931) - यह काल 1901 से 1931 के
दौरान रहा जब दे श म अकाल एवं भयंकर बीमा रयाँ जैसे लेग, इन लु ए जा आ द महामार एवं
ाकृ तक आपदाओं के कोप से जनसं या म भार कमी आई । य प 1918 म ामीण
जनसं या का कुछ भाग अकाल के कारण नगर क ओर वा सत हु आ, क तु उसका भाव
बीमा रयाँ फैलने के कारण भावी स न हो सका । 1921 के बाद य य प ाकृ तक आपदाओं
के भाव से दे श मु ता रहा ले कन नगर य जनसं या का तशत अ धक नह ं बढ़ सका । इस
कार बीसवीं शता द के थम तीन दशक म नगर य जनसं या का तशत 10.8 से बढ़कर
केवल 11.9 तशत हो पाया ।
2. नगर करण वृ का म यम काल (1931 -61) - 1931 के 1961 के तीस वष के
दौरान नगर य जनसं या म 45 म लयन (44.2 करोड़) क बढ़ो तर हु ई । 1931 म नगर य
जनसं या का तशत 11.9 था जो 1961 म बढ़कर 18 तशत हो गया । इस कार इन तीन
दशक म केवल 1 1/2 गुना वृ हु ई जब क इस दौरान नगर य जनसं या म लगभग 2 1/2
गुना वृ हु ई । इस काल म म यम वृ का कारण ारि मक वषा म राजनी तक अि थरता
( वतीय व व यु , दे श वभाजन आ द) का रहा । बाद म वतं भारत के शु आती दौर म
आ थक वकास ारि भक दौर म होने के कारण धीमा रहा ।
3. नगर करण वृ का ती काल (1981 - 2001) - 1961 के बाद नगर य जनसं या
बहु त ती ग त से बढ है । इन चाल स वष म यह वृ वगत साठ वष से भी अ धक है ।
नगर य जनसं या का कु ल जनसं या म तशत 18 से बढकर 27.78 तक पहु ंच गया । 1961
म जनसं या 7.89 करोड़ से बढ़कर 2001 म 28.61 करोड़ हो गई । इस अ तशय वृ के
मु ख कारण न न ह -
ामीण े के लोग का नगर य े क ओर बढ़ता वास;
मृ युदर म कमी , ाकृ तक वृ दर म बढ़ो तर ;
दे श म भार सं या म उ योग एवं यापा रक त ठान क थापना;
प रवहन एवं संचार साधन का वकास;
अनेक ामीण बि तय को नगर य दजा ा त होना;
नये-नये नगर का नमाण होना;
वतमान नगर वारा अपने आकार म अ य धक वृ करना ।
294
नह ं खाती । प रणाम व प मांग और आपू त का अ तर नर तर बढ़ता जा रहा है , अव थापन
सु वधाओं के अ तगत हम न न चु नौ तय दे खने को मल रह ह ।
(i) थान स ब धी - दन- त दन नगर य जनसं या म होने वाल ती वृ के कारण
व भ न मू लभू त सु वधाओं हे तु शहर े म थान कम पड़ते जा रहे ह - जैसे औ यो गक
सं थान क थापना, कू ल-कॉलेज क थापना, आवासीय े , मनोरं जन के े - सनेमा,
पाक आ द के लए थान वशेष कम होते जा रहे ह । नगर के व तार से कृ ष भू म, जंगल
भू म आ द तेजी से कम होती जा रह है ।
(ii) आवासीय स ब धी - ती नगर करण के कारण आवासीय सु वधा यवि थत प म नह ं
वक सत हो पाती है । य क ती जनसं या वृ तथा मक के आगमन के कारण आवासीय
थल क कमी होती जा रह है । नगर म जहां खुले -हवादार आवास होने चा हए वहाँ सघन
आवास बनने के साथ-साथ ग द बि तय का ती ता से वकास हो रहा है । बड़े महानगर म
आवास क सम या बड़ी ग भीर है । कई लोग उ चत कार से जीवनयापन करने भर को कमा
लेते है ले कन आवास क यव था करने म वे असमथ होते ह । िजसके कारण एक ह कमरे म
कई लोग को रहना पड़ता है, जो लोग एकदम न न आय वग के होते ह, वे झु गी-झोप ड़य म
गुजारा करते ह ।
(iii) जलापू त स ब धी - नगर य े म उ च जनसं या घन व के कारण पेयजल क मांग
के अनुसार पू त नह ं हो पाती । आंकड़ के अनुसार शहर म रहने वाले लगभग 10 तशत घर
को शु पेयजल नह ं मल पा रहा है तथा घर म कने शन से लगभग 35 तशत घर वं चत
रहते ह । ले कन शु पेयजल क वा त वक उपल धता अ य त सी मत है । जल क आपू त भी
धीरे -धीरे घटती जा रह है । आज कुछ शहर म तो दन म दो समय क आपू त के बजाय
स ताह म केवल दो या तीन दन वो भी कुछ घंट के लए सु नि चत है । पेयजल के अ त र त
व भ न उ योग , व भ न व तु ओं के नमाण आ द म जल क आव यकता रहती है, क तु
ाकृ तक जल ोत म जल क कमी तथा भूजल का गरता तर आ द के कारण जल क
सु यवि थत यव था नह ं हो पाती ।
(iv) प रवहन स ब धी - अ तषय ती नगर करण वृ के कारण नगर य यातायात माग क
चौड़ाई कम तथा वाहन क सं या अ य धक होती जा रह है । प रणाम व प कभी-कभी
यातायात माग घंट तक अव रहते ह साथ ह दुघटनाओं म भी बढो तर हो रह है ।
(v) श ा एवं मनोरंजन स ब धी - नगर य े म ती जनसं या वृ तथा उ च
जनसं या घन व पाये जाने के कारण शै क सं थाओं, जैसे - व यालय, महा व यालय,
व व व यालय, श ण सं थान आ द क अ धक आव यकता है । मनोरं जन के साधन जैसे -
सनेमा, ना यकला के , लोक रं गमंच कला के व मेले आ द के लए जगह वशेष क
आव यकता होती है । इनके वकास हे तु जगह व धन क कमी तथा अ य सम याओं के कारण
ये जनसं या के अनुपात म वक सत नह ं हो पाते ह ।
(vi) वा य एवं च क सा स ब धी - य य प नगर म ामीण े क अपे ा च क सा
सु वधाएँ अ धक पायी जाती ह । क तु अ य धक जनसं या होने के कारण अ धकतर वकासशील
दे श म वतमान समय म भी जनसं या के अनुपात म नगर य े म च क सा सु वधाएँ अ धक
295
वक सत नह ं हो. पायी ह । य द कुछ उ च को ट के औषधालय का नमाण भी होता है तो
उनका संके ण नगर म ह होता है जहां कई ाणघातक बीमा रय का इलाज तो कया जाता है,
क तु ऐसी बीमा रय के उपचार के फल व प उ प न होने वाले कचरे के न तारण क कोई
उ चत यव था नह ं है । स अि थ रोग वशेष और पयावरण संर क डॉ. आर.सी. गु ता के
अनुसार औषधालयीय कचरे को जब नगर के सामा य कचर के साथ मलाकर इधर-उधर फक
दया जाता है तो लोग म व भ न बीमा रय के फैलने का भय बना रहता है अत: सरकार को
इसके वै ा नक तर के से न तारण क यव था क जानी चा हए ।
(vii) सफाई एवं कचरा न तारण स ब धी - नगर म सघन बि तय व अ धक जनसं या
दबाव के कारण सफाई क सम या भयावह प लेती जा रह है । अ धकांश नगर नगम इतने
अस म ह क रोजाना पैदा होने वाले कू ड़े का 40% भी वे एक त करके न तारण नह ं कर
पाते ह । न तारण नह ं कए जाने के कारण कू ड़े के ढे र सड़ते रहते ह िजनम व भ न रोग के
जीवाणु पैदा होते रहते ह । शहर म चौराह पर कू ड़ का ढे र आसानी से दे खा जा सकता है ।
कू ड़ का कुछ भाग (िजसम पॉ लथीन भी होता है) ना लय म जाकर उ ह अव कर दे ता है
िजससे पानी एक जगह इक ा होकर ग दगी फैलाने के साथ म छर का जनन थान बन जाता
है । म छर से मले रया, फाइले रया तथा को आ द ाणघातक बीमा रयाँ फैलती ह ।
(viii) व युत स ब धी - नगर करण के वकास एवं समृ का आधार व युतीकरण को ह
माना जाता है अत: वतमान समय म व युत आपू त ह नगर करण वृ के वकास का
आधारभू त कारक है । ले कन नगर य जनसं या म ती वृ के दबाव के कारण वतमान समय
म व भ न घरे लू काय तथा औ यो गक एवं यापा रक सं थान म व युत स ब धी चु नौ तयाँ
आती रहती ह ।
2. जनसं या घन व स ब धी - आधु नक औ योगीकरण के फल व प अ धक से अ धक
लोग नगर क ओर पलायन कर वहाँ का जनसं या घन व बढ़ा दे ते ह । लगभग 19%' भारतीय
प रवार 10 मीटर से भी कम जगह म रहते ह । मु बई जैसे वृहत ् नगर म 44% प रवार एक
कमरे म ह रहते ह । जनघन व अ धक होने के का पा 52% नगर य जनसं या वा यकार
सफाई के अभाव क ि थ त (Unhygienic condition) म रहती है । 24% जनसं या के लये
शौचालय क सु वधा नह ं है । बड़े महानगर म 80% जनसं या सीवर लाइन से आ छा दत है
जब क छोटे शहर म आधे से भी कम है । दे श के शहर के लगभग एक चौथाई प रवार क चे
मकान म रहने को ववश ह । 34% आबाद के लए बरसाती पानी के वकास क उ चत
यव था नह ं है ।
3. सामािजक चु नौ तयां :- नगर करण म अ तशय जनसं या घन व के प रणाम व प कई
घटनाएँ चोर , आपसी रं िजश, नशील दवाएँ, छोटे प रवार आ द से स बि धत सामािजक
चु नौ तय का सामना भी करना पडेता है िजनम कुछ मुख इस कार ह-
(i) अपसं कृ त के सार से स बि धत - आधु नक महानगर अपसं कृ त या कुसं कृ त के
सार का के बनते जा रहे ह । संयु त प रवार क अपे ा के क प रवार क सं कृ त भावी
हो रह है । के क प रवार से अ भ ाय है िजसम प त-प नी और केवल उनके ब चे रहते ह ।
296
ऐसे प रवार म घर के वृ माता- पता तथा अ य सद य के लए कोई थान नह ं रहता है य द
घर म वृ माँ -बाप को रहने भी दया जाता है तो वे सवथा उपे त रहते ह ।
(ii) अपराध वृ क बबो तर - नगर म आपरा धक ग त व धयाँ बड़ी तेजी से बढ़ रह ह ।
मशीनीकरण व क यूटर करण के कारण बेरोजगार क सम या बढ़ती जा रह है । बेरोजगार
युवक अपराधी वृ त के बनते जा रहे ह । इस भौ तकवाद युग म असी मत आव यकताओं के
अनु प पया-पैसा न मलने पर अ छे घर के नवयुवक अपराध म ल त पाये जाते ह, यहां
तक क नगर म एकाक नवास करने वाले वृ द पि तय का जीवन भी सु र त नह ं है ।
द ल -मु ंबई आ द महानगर म कई लेट म लू ट के लए वृ क ह या कर दे ना आम बात हो
गई है । कई बार पड़ौसी के लड़के ह अपने पड़ोसी क ह या कर उनका धन लू ट लेते ह और यह
सब अथ लोलु प और उपभो तावाद सं कृ त म हर यि त बड़े ठाट-बाट से रहने क चाह म
करते ह ।
(iii) नशील दवाओं के लत स ब धी सम या - बडे महानगर म ह नह ं वरन छोटे -छोटे
क ब म आज मु ा अिजत करने क अतृ त पपासा मनु य को घृ णत से घृ णत काय करवाने
को दु े रत करती है । नगर क म लन बि तय म रहने वाले गर ब तबके के लोग पय के
लालच म कु छ भी करने को तैयार हो जाते ह । द ल जैसे शहर म 40 से 50 करोड़ पये क
नशील दवाएँ हर वष पकड़ी जाती ह । ये नशील दवाएँ तबि धत ह, िजनम मु यत: कोक न,
हे रोइन, चरस, ाउन शु गर मैक आ द ह । युवा वग इन नशील दवाओं के आद हो जाते है ।
नशील दवाओं का घृ णत ध धा करने वाले लोग नगर क म लन बि तय म रह रहे नधन लोग
को अपना वाहक (Carrier) बनाकर समाज के युवा वग को इस मकड़जाल म उलझाते जाते ह ।
नषाखोर नगर करण का एक भयावह पहलू है ।
4. पयावरणीय दूषण स ब धी :- नगर य े म उ च जनसं या घन व ती जनसं या
वृ , भू म का अभाव, पेड-पौध क कमी, वभ न कार के कू ड़ा-करकट का पाया जाना,
अ य धक औ यो गक सं थान के था पत होने, व भ न प रवहन साधन से नकलने वाल
हा नकारक गैस - काबन डाई ऑ साइड तथा काबन मोनोऑ साइड आ द के कारण जलवायु तथा
धनी दूषण का उ च तर पाया जाता है । फलत: शहर पयावरण व भ न दूषण का षकार
हो रहा है । पयावरणीय ास का य भाव शहर म रहने वाल के वा य पर दे खा जा
सकता है ।
5. इले ो धु ध स ब धी :- आधु नक नगर करण म इले ो धु ध क सम या चु नौती के
प म सामने आई है । इले ो धु ध नगर म ऐसा दूषण है िजसे न तो दे खा जा सकता है
और न ह सू ंघ कर पता लगाय। जा सकता है । क तु यह बड़ा ह घातक दूषण है । हमारे
ऊपर से गुजरने वाले उ च वो टे ज के व युत तार तथा नगर य जीवन म न य- त यु त होने
वाले इले ॉ नक उपकरण जैसे - कपड़ा धुलाई क मशीन (Washing machine), वै यूम
ल नस (Vacuum cleaners), लेट धु लाई करने के वाशरस (Dish Washers), मोबाइल
टावर (Mobile Towers) आ द के कारण व युत चु बक य े (Electro Magnetic
Field) का नमाण हो जाता है और उससे नकलने वाले व करण का एक अ य धु ध हमारे
चार और प र या त हो जाता है जो हमारे वार य पर बड़ा घातक और वपर त भाव डालता है
297
। इसके कारण सरदद, मि त क सके ण (Concentration of Mind) म बाधा, वभ न
कार क एलज (Allergies) तथा सामा य रोग नरोधक शि त क कमजोर आ द बीमा रयाँ
हो जाती है । कु छ वै ा नक के अनुसार व युत चु बक य व करण कसर कारक भी हो सकता है
। सबसे अ धक खतरा मोबाइल फोन से है य क इनसे उ च आवृिज का व करण नःसृत होता
है । िजसके कारण कसर का खतरा बना रहता है ।
संभवत: स ह एक ऐसा दे श है जहाँ वतीय यु के दौरान राडार पर काम करने वाले
तकनी शयन ने जब आख म जलन, सरदद और ग भीर थकावट क शकायत क थी, िजस
पर स के वै ा नक ने पूर खोज क और वहाँ इन खतर के त सावधानी बरती जाती है ।
हमारे दे श म भी इस अ य श ु से लड़ने क तैयार करने क परम आव यकता है ।
6. भू ग भक घटनाओ से स बि धत - नगर करण क सम याओ म भू ग भक चु नौ तय से
भी सामना करना पड़ता है य क जहां महानगर का वकास हो रहा है वहाँ कँकर ट के बडे-बड़े
जंगल वक सत हो रहे है जो क भू- थै तक स तुलन को बगाड़ दे ते ह प रणाम व प जमीन
धँसना, भू क प का आना आ द खतरे मंडराते रहते ह ।
(i) जमीन धँसने क सम या - नगर म अ धक आबाद होने के कारण पानी क भी अ धक
खपत होती है कारण कसी नगर के भू-जल का अ धक से अ धक दोहन होता रहता है । नीचे का
पानी खाल हो जाने से जमीन के धँस जाने क भी सम या आ जाती है । कु छ वष पूव बनारस
म कई जगह जमीन धँस गयी पर उस समय तक लोग को यह ात नह ं था क भू-जल के
अ य धक दोहन से जमीन भी धँस जाती है । अमे रका के लॉस एंिज स नगर म भू क पीय ंश
(Seismic Fault) क खोज करते हु ए भू-गभ वै ा नक को यह ात हु आ क लॉस एंिज स के
तवष 12 मल मीटर धँसने का कारण इसके नीचे के भू-जल का अ य धक दोहन है । इतना ह
नह ं कभी-कभी लॉस एंिज स 11 मल मीटर ऊपर नीचे उठता - बैठता भी रहता है । लांस
एंिज स नगर क वशाल जनसं या के लए वशाल जल रा श क आव यकता रहती है जमीन के
नीचे का पानी नकल जाने से वहाँ क जमीन तवष 12 मल मीटर क दर से धँसती जा रह है
। इसी कारण वह पछले 17 वषा म दो बार भूक प आये और 65 लोग क जान गयी तथा
दस अरब डालर क स पि त न ट हु ई ।
दो वष क कड़ी मेहनत व शोध के बाद लॉस एंिज स के भू-गभ वै ा नक ने इस रह य का पता
कया । यह सम या ाकृ तक गैस व तेल के दोहन से भी उ प न होती है । पानी, तेल या गैस
के अ य धक दोहन से जमीन के नीचे जो ं (Fault) बन जाता है इसे
श लाइ ड थ फा ट
(Blind Thrust Fault) कहते ह ।
(ii) भू क प आने का खतरा - अभी तक यह माना जाता था क नगर करण और भूक प म
कोई वशेष स ब ध नह ं है लॉस एंिज स म भू गभ वै ा नक क खोज ने यह सा बत कर दया
क नगर म बड़ी-बड़ी अ ा लकाओं व जनसं या का बोझ बढ़ जोता है और नीचे क जमीन के
जल म दोहन के फल व प जमीन धँसने लगती है, ऊपर नीचे सरकती और इसके कारण भूक प
भी आ जाते ह । शहर म अ य धक जल दोहन के कारण लाइ ड थ ट फा ट बन जाता है जो
क भूक प का रत कर सकता है । अब भारत सरकार ने घो षत कया है क शहर म उ ह ं
मकान को बनने दया जायेगा जो भू क परोधी (Earthquake Resistant) ह ।
298
बोध न : 4
1. औ यो गक ाि त का सू पात कहाँ और कौनसी शता द म हु आ?
2. औ यौ गक ाि त से पू व व व म नगर य जनसं या कतने तशत थी?
3. आसमान नगर करण के लए मु यत: कौन-कौन से कारक ह ?
4. वत भारत क पहल जनगणना कब हु ई?
5. 2001 म नगर य जनसं या कतनी थी ?
300
10.9 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. दूसरा थान
2. 16.7 तशत
3. 72.22 : 27.78
4. 1881 म लाड रपन के शासन काल म
5. 26 : 8
बोध न-II
1. 21.34 तशत
2. केरल म 9.42 तशत
3. नागालै ड म 64.41 षत
4. 18:21 (लड़क 18 वष और लड़का 21 वष)
बोध न-111
1. 324 यि त त वग कलोमीटर
2. 1,027,015,247 (एक अरब दो करोड़ स तर लाख प ह हजार दो सौ सैता लस)
3. उ तर दे श म 16.17 तशत)
4. ल वीप (0.01 तशत)
5. 5.50 तशत
बोध न-IV
1. इ लै ड म 18 वीं शता द म
2. 3 तशत
3. मु य तीन कारक ह - आ थक, सामािजक व जनां कक
4. 1951 म
5. 28.61 करोड़
10.10 अ यासाथ न
1. भारत म जनसं या वृ का काल के अनुसार व तृत ववेचना क िजए ।
2. भारत क जनसं या घन व का ता कक या या क िजए ।
3. भारत म जनसं या घन व म असमानता के लए उ तरदायी कारण का स व तार
वणन क िजए ।
4. भारत क जनंस या वृ पर एक लेख ल खए ।.
5. भारत म नगर करण क वृ एवं चु नौ तयाँ का स व तार वणन क िजये ।
6. भारत म जनसं या वृ एवं समाधान पर व तृत आलेख ल खए ।
301
इकाई 11 : यातायात व सड़क यातायात Transportation :
Rail and Road Transport
इकाई क परे खा
11.1 उ े य
11.2 तावना
11.3 रे ल यातायात
11.3.1 रे लमाग का वतरण
11.3.2 रे ल क शास नक यव था
11.4 सड़क यातायात
11.4.1 सड़क का वग करण
11.4.2 सड़क का भौगो लक वतरण रे ल व सड़क यातायात का काया मक मह व
11.5 रे ल सड़क यातायात- पधा एवं स पूरकता
11.6 मु ख सम याएँ
11.7.1 रे ल यातायात क सम याएँ
11.7.2 सड़क यातायात क सम याएँ
11.8 सारांश
11.9 श दावल
11.10 स दभ थ
ं
11.11 बोध न के उ तर
11.12 अ यासाथ न
11.1 उ े य (Objectives)
तु त अ याय को पढ़ने के बाद आप :
1. भारत म रे ल व सड़क यातायात के वतरण के वषय म बता सकगे ।
2. भारत के मान च पर मु य प रवहन माग को दशा सकगे ।
3. भारत के यातायात के काया मक मह व के बारे म बतला सकगे ।
4. रे ल व सड़क यातायात म पधा एवं स पूरकता को जान सकगे ।
5. भारत म यातायात स बि ध व भ न सम याओं को समझा सकेग ।
302
पार पहु ँचने या ले जाने को ांसपोट कहा जाता ह । पा रभा षत अथ म ांसपोट का योग
व तु ओ,ं यि तय और वचार को एक थान से दूसरे थान पर ले जाने के लये कया जाता है
। यातायात त के वारा क जाने वाल या क जा रह अथवा क गई सेवा के लये भी
यातायात श द का योग होता है । यातायात क याऐं मह वपूण तथा उ े यपूण होती है ।
इसी कारण माल या व तुओं को कम सीमांत उपयो गता वाले े से अ धक उपयो गता वाले
े म पहु ँचाया जाता है ।
आधु नक संदभ म यातायात श द का योग स पूण तकनीक यातायात त और उस
त वारा क जाने वाल सेवा के लये यु त होता है । आधु नक यातायात से ता पय
ती गामी तथा स ते साधन से है । इन साधन के अि त व से पूव व तुओं तथा यि तय को
एक थान से दूसरे थान तक ले जाने और लाने के साधन के प म मानवीय एवं पशु शि तय
का योग कया जाता था । इस काय म ययभार अ य धक या ाय क ट द तथा धीमी होती थी
। इसके तकू ल आधु नक यातायात के साधन म ाकृ तक शि तय का उपयोग होता है ।
गत ् दो शताि दय म प रवहन साधन का वकास बहु त ती ग त से हु आ है । अठाहरवीं
शता द म सड़क, 19वी शता द म भाप से चलने वाल रे लगा ड़याँ तथा 20वी शता द म मोटर
प रवहन तथा वायुयान म त पधा होने लगी । वै ा नक तथा तकनीक ग त के फल व प
प रवहन के साधन म बड़े मह वपूण सुधार हु ए तथा प रवहन वाहन क ग त म अ धका धक
तेजी होती चल गई ।
कसी भी दे श के सामािजक व आ थक वकास म प रवहन के साधन का अ य धक
मह व होता है । यवसा यक तथा औ यो गक उ न त, मनु य का आवागमन, माल का प रवहन
यापार तथा कृ ष पूण प से प रवहन क सु वधाओं और संचार साधन पर आ त रहते है ।
रा य और अ तरा य यापार का संचालन भी प रवहन के साधन पर नभर करता है ।
भारत म वक सत प रवहन के साधन को चार े णय म बाँटा जा सकता है, 1 रे ल
यातायात, 2. सड़क यातायात, 3. वायु यातायात , 4. जल यातायात । ले कन उपल धता एवं
उपयो गता के ि टकोण से थलमाग - रे ल पथ एवं सड़क अ धक मह वपूण है ।
303
11.3.1 रे लमाग का वतरण
11.3.2 रे ल क शास नक यव था
304
5. पूव तट य रे ल म डल भु वने वर
6. पूव म य रे ल म डल हाजीपुर
7. द णी-पूव -म य रे ल म डल बलासपुर
8. उ तर-म य रे ल म डल इलाहबाद
9. पि चम-म य रे ल म डल जबलपुर
10. उ तर रे ल म डल नई द ल
11. उ तर -पि चमी रे ल म डल जयपुर
12. पि चमी रे ल म डल मु बई (चच गेट)
13. द ण-म य रे ल म डल सक दराबाद
14. म य रे ल म डल मु बई ( व टो रया ट मनल)
बोध न : 1
1. प रवहन के मु ख कार कौन-कौनसे ह ?
2. भारत म सव थम रे ल प रवहन का आर भ कब हु आ?
3. दो े के नाम बताइए जहाँ रे ल का वरल जाल ह ?
4. ाय वीपीय पठार पर रे ल लाइन बछाने म मु य सम या या ह ?
5. द णी-पू व -म य रे ल म डल का मु यालय कह ं ह?
305
1880 म करवाई गई । यह रा य राजमाग सं या 1 अथवा शेरशाह सू र माग के नाम से जाना
जाता है । 1870 के प चात रे लमाग के वकास क ओर यान होने के कारण सड़क का वकास
ती ग त से नह हो पाया । केवल उ ह ं सड़क माग के नमाण पर यान दया गया जो
आ थक व सामािजक ि ट रो अ धक मह वपूण थी ।
भारत म सड़क वकास हेतु बनाई गई नागपुर सड़क योजना (1944-54) (Nagpur
Road Plan) के अ तगत भारतीय सड़क को चार वग म वभािजत कया गया ।
1. रा य राजमाग (National Highways)
ये राजमाग रा य क राजधा नय , बड़े-बड़े औ यो गक तथा यापा रक नगर , मु य
बंदरगाह , खनन े तथा रा य मह व के शहर तथा क ब को आपस म जोडते है । जो क
न केवल आ थक ि ट से अ पतु सै नक ि ट से भी मह वपूण है । रा य राजमाग णाल के
नमाण, सु धार, रख रखाव तथा वकास क िज मेदार पूणतया के सरकार क है । ये भारत
को यांनमार, बंगला दे श, नेपाल, भू टान, चीन तथा पा क तान से भी जोड़ती है । इस समय दे श
क रा य राजमाग णाल म कुल 38,517 कलो मीटर लंबी सड़के शा मल है । ये अ धतर
प क सड़के है ।
भारत के मु ख रा य महामाग
म सं0 रा य महामाग महामाग वारा जु ड़े मु ख नगर
1. ांड क रोड कोलकाता, पटना, इलाहाबाद, कानपुर द ल,
(शेरशाह सूर माग) अ बाला, अमृतसर
2. वृहत द कन महामाग मजापुर, जबलपुर , नागपुर , हैदराबाद, बंगलौर
3. कोलकाता-मु बई महामाग कोलकाता, स बलपुर, नागपुर , मु बई
4. मु बई-चे नैई महामाग चे नैई, बंगलौर, पूना , मु बई
5. आगरा-मु बई आगरा, णा लयर, इ दौर, मु बई
6. कोलकाता- च नैई महामाग कोलकाता, कटक, वशाखापटनम, च नैई
7. चे नैई-कोलकाता महामाग चे नैई, कोलकाता
8. पठानकोट-ज मू महामाग पठानकोट, ज मू ीनगर
9. गोहाट -चेरापू ज
ं ी महामाग गोहाट -चेरापू ज
ं ी
306
के मह वपूण यापा रक-औ यो गक नगर तथा रा य क राजधानी को आपस म जोडती है । ये
रा य राजमाग तथा नकटवत रा य से भी मल होती है । इन राजमाग के नमाण तथा
रख-रखाव क िज मेदार रा य सरकार पर होती है ।
3. िजला सड़क (District Roads)
ये सड़क िजल के बड़क गाव , व भ न क ब, मुख नगर , उ पादक के और
मि डय को आपस म तथा िजला मु यालय से जोडती है । इनम से अ धकांश क ची होती है ।
अनेक थान पर ये बडी सड़क से भी जु डी होती है । इनके नमाण तथा दे ख भाल का दा य व
िजला बोड , िजला प रषद या स बि धत सावज नक नमाण वभाग का होता ह ।
4. ामीण सड़क (Villages Roads)
व भ न गांव को आपस म जोडने वाल ये सड़के गांव को िजला एवं रा य सड़क से
भी जोडती है । ये सड़क ाय: क ची संकर तथा पगडि डयाँ मा होती है । ाम पंचायत इन
सड़क का नमाण तथा रख रखाव करती है । िजला शासन भी इन सड़क के नमाण म
सहायता करता है । आजकल इ ह प का करने क ाथ मकता द जा रह है ।
भारत म वतं ता ाि त के प चात सड़क के नमाण को बहु त ाथ मकता द गई है ।
ले कन व व के वक सत दे श के सामने अभी भी हम सड़क क ि ट से बहु त पीछे ह । न दय
पर पुल का अभाव है अथवा इनक चौड़ाई इतनी कम है क भार यातायात को चलाना क ठन है
। भारत का सड़क - े फल तथा सड़क-जनसं या अनुपात अ य दे श क तु लना म बहु त कम है
। भारत म प क सड़क क ल बाई त 100 वग कलो मीटर े म 124 कलोमीटर तथा
त 10 लाख यि तय के पीछे 74 कलोमीटर है, िजसे संतोषजनक नह ं कहा जा सकता ।
सड़क के उपरो त वग के अ त र त तीन अ य वग भी मौजू द है ।
5. ु राजमाग (Express Highways)
त
दे श म यापा रक यातायात के व रत संचलन के लये इन राजमाग का नमाण कया
जाता है ।
मु ख त
ु राजमाग न न है :-
1- पूव ए स ेस राजमाग
2- पि चमी ए स ेस राजमाग
3- कोलकाता से दमदम हवाई अ डे के बीच राजमाग
4- सु क दा खान से पाराद प ब दरगाह के बीच राजमाग
5- दुगापुर - कोलकाता त
ु राजमाग
6- द ल -आगरा त
ु राजमाग
7- अहमदाबाद-बडोदरा त
ु राजमाग
अ तरा य राजमाग (International Highways)
ये राजमाग ए शया- शांत आ थक एवं सामािजक आयोग के साथ कये गये करार के
आधीन व व बैक क सहायता से बनाये गये ह । इनका उ े य भारत के रा य राजमाग को
इन राजमाग से जोडना है । िजससे ये पडौसी दे श पा क तान, नेपाल, भू टान, यांमार तथा
बंगला दे श के साथ जु ड़ सक ।
307
सीमा सड़क (Border Roads)
दे श क सीमाओं पर सीमावत सड़क के नमाण व रख रखाव के लये 1960 म सीमा
सड़क वकास बोड क थापना क गई । इसक थापना का उ े य अ प वक सत जंगल ,
पवतीय तथा म थुल य सीमा े म आ थक वकास को ग त दे ने के साथ-2 र ा सै नक के
लये अ नवाय आपू त को भी बनाये रखना था । दे श क तर ा तथा सुर ा म इन सड़क का
मह वपूण थान है । यह संगठन हमालय, पूव तर के पहाड़ी इलाक तथा राज थान के
म थल य भाग म सड़क के नमाण तथा रख रखाव के लये उतरदायी है । इसम हमाचल
दे श म मानल से लेकर ज मु-क मीर के लेह तक जाने वाल व व क सबसे उं ची सड़क
सि म लत है । इस सड़क पर मनाल और लेह के बीच अ तरा यीय बसे चलाई जाती है । इसके
नमाण के बाद चंडीगढ़ और ल ाख के म य दूर काफ कम हो गई है ।
308
मान च – 11.2 भारत म जाल संघनता
ता लका - 11.1
भारत म सड़क क रा यवार ल बाई तथा सतह सघनता
म रा य के0शा0 दे श कु ल ल बाई क0मी0 घन व क0मी0 त 100वग
सं0 म क ची प क क0मी0 े पर
1. आ ध दे श 178012 30
2. अ णाचल दे श 14092 03
3. असम 68418 14
4. बहार एवं झारख ड 88352 20
5. गोआ 8563 123
6. गुजरात 90896 37
7. ह रयाणा 28168 60
8. हमाचल दे श 30193 13
9. ज मु एवं क मीर 21446 04
309
10. कनाटक 144012 45
11. केरल 145704 84
12. म य दे श एवं छतीसगढ़ 200137 18
13. महारा 61893 48
14. म णपुर 10941 12
15. मेघालय 8480 13
16. मजोरम 4829 06
17. नागालै ड 18356 41
18. उड़ीसा 262703 37
19. पंजाब 64352 94
20. राज थान 129874 18
21. सि कम 1834 26
22. ता मलनाडु 206503 91
23. पुरा 14729 42
24. उ तर दे श एवं उ तराख ड 255467 32
25. प0 बंगाल 75435 32
26. अंडमान एवं नकोबार वीप 1317 10
27. च डीगढ 1753 1535
28. दादरा और नगर हवेल 533 68
29. दमन और द व 101 उ0न0
310
उ तर भारत म गंगा और पंजाब के मैदान तथा द ण भारत म केरल, कनाटक और
ता मलनाडु म सड़क के जाल का घन व सबसे सघन पाया जाता है । कुछ सड़क दूर-दराज के
े ो को भी मलाती है । इनम राज थान, क छ का ठयावाड़ के े सि म लत है ।
बोध न : 2
1. रा य राजमाग के नमाण वकास तथा सु धार का भार कस पर होता है ?
2. रा य राजमाग नं . 7 भारत के दो नगर को जोड़ता है ?
3. क ह दो मु ख ु त राजमाग के नाम बताइये ।
4. सबसे अ धक सड़क घन व वाले भारत के दो रा य के नाम बताइये ।
5. ां ड ं क रोड कहाँ से कहाँ तक है ।
311
(ब) सड़क प रवहन का काया मक मह व -
प रवहन के अ य साधन क तुलना म सड़क का वशेष आया मक मह व न न कार
है ।
1. सड़क प रवहन कम एवं म यम दूर तय करने का एक मह वपूण साधन है । यह तेज
व व वसनीय साधन है जो घर के दरवाजे तक सेवाय उपल ध कराता ह ।
2. यह गाँव को बाजार , क व , शास नक व सां कृ तक के से जोड़कर उ ह दे श क
मु य धारा म मलाता है ।
3. सड़क प रवहन म, क चे, माल व तैयार माल के संचलन वारा उ योग तथा कृ ष
काय म मदद करता है।
4. सड़क प रवहन मानक तथा य के संचलन म तेजी लाकर दे श क आ त रक तथा
वाहन सु र ा म मह वपूण भू मका नभाता है ।
5. यह अ य प से रोजगार नमाण म सहायक ह ।
6. सडके रे लमाग के पोषक के प म काय करती है । सु यवि थत एवं अ छ सड़क के
बना रे ल प रवहन वारा समु चत एवं सु यवि थत सेवा दे ना संभव नह ं ।
7. सड़क प रवहन अ य साधन क अपे ा अ धक लचीला है जो कसी भी समय, थान
पर उपल ध है।
8. शी खराब होने वाल व तुओं के लए सड़क प रवहन ह े ठ है ।
9. सड़क प रवहन वारा उन े तथा थान तक पहु ँचा जा सकता है । जहाँ रे ल प रवहन
नह ं है ।
10. सड़क का नमाण व रख रखाव अपे ाकृ त सरल होता है ।
बोध न : 3
1. क तपय उ योग का नामो ले ख क िजए जो क रे ल प रवहन पर पू ण प से
नभर ह ।
2. रे ल का व तार गं गा घाट म अ धक य हु आ ह?
3. रे ल प रवहन बं द रगाह को कन के से जोड़ते ह ?
4. कौनसा प रवहन कम एवं म यम दू र तय करने का मह वपू ण साधन है ?
5. कौनसा प रवहन रे ल प रवहन के पोषक के प म काय करता ह ?
312
क चा माल घर-घर से एक करना तथा ग त य तक पहु ँ चाना, तेज प रवहन आ द । य द
अपे ाकृ त कम दूर पर थोड़ा माल भेजना हो तो सड़क प रवहन े ठ ह, कभी-कभी सड़क
प रवहन वारा प रवहन लागत आधी रह जाती है । तथा समय क अ य धक बचत होती है ।
रे ल प रवहन क तु लना म सड़क प रवहन वारा कोई हा न, क ट या खच ल पै कं ग व ध का भी
योग नह ं होता । दोन प रवहन क पधा म सड़क प रवहन क े ठता का एक कारण यह भी
है क रे ल प रवहन को कुछ मू ल भू त सामािजक नयम तथा स ा त के आधीन काय करना
पडता ह । रे ल को सामािजक एवं रा य उ े य के लए रयायत दे नी पड़ती है । उ ह सभी
कार के यातयात को वीकार करना पड़ता है । रा य नी तय के तहत इ ह खा या न ,
सीमट, कोयला, खाद तथा अ य आव यक व तु ओं पर वशेष रयायत दे नी पड़ती है य क ये
व तु ऐं भाड़े क ऊँची दर को सहन नह ं कर सकती है । एक सावज नक उपयोगी उ यम होने के
कारण रे ल को अलाभकार माग का संचालन, न न दर पर दुलाई तथा नयात यापार के लए
रयायत के प म हा न सहन करनी होती है । यु के उ े य से बनाए गए माग पर रे लवे को
सदै व हा न ह होती ह । संकट के समय अ नवाय व तु ओं का ाथ मकता के आधार पर प रवहन
करना पड़ता है । उदाहरण के लए अकाल े म खा या न और चारा पहु ँ चाने के लए अनेक
सवार गा ड़य को र करना पड़ता है । िजससे बहु त से उ च दर वाले यातयात को छोड़ना पड़ता
है ।
रे ल अपनी सामािजक तथा रा य दा य व के कारण सड़क प रवहन क सु वधाओं क
तु लना म उतने ह लाभ के आधार पर काय नह ं कर सकती । इस कारण रे ल प रवहन पधा म
पीछे छूट जाता है । रे ल के हत के लए उसे सड़क प रवहन के साथ तयो गता से बचाना
चा हए य क रे ल क दर नधा रत करते समय अ धकतम लाभ के स ा त का पालन नह ं
होता । सबसे मह वपूण है क रे ल को रा य आव यकताओं के लए हा न सहन करनी पड़ती
है । सामािजक व रा य उ े य के लए वशेष यातायात स ब धी रयायत भी दे नी पड़ती है ।
अत: रे ल एक व श ट ि थ त म काय करती है जो सड़क प रवहन पर लागु नह ं होती । रल
और सड़क म कोई समानता नह ं है और इन दोन के बीच तयो गता दे श हत म नह ं है । रे ल
तथा सड़क प रवहन को एक दूसरे से सहयोग करना चा हए न क त पधा । वा तव म ये एक
दूसरे के पूरक ह , त व द नह ं ।
1. सड़क यातायात के बढ़ते व तार के कारण रे ल प रवहन सुधार हे तु संसाधन एवं यास
म कमी आ रह है ।
2. रे ल प रवहन क सड़क प रवहन के साथ पधा रहती ह ।
3. व भ न गेज क लाईन के कारण या य को रे लगाड़ी बदलने म समय न ट करना
पड़ता है । पूनलदान के कारण धन व समय अप यय तथा सामान क त जैसी
सम याएँ झेलनी पड़ती है । इससे नपटने के लए ह एक कृ त गेज प रयोजना बनाई
गई है । सभी पट रय को ॉडगेज म बदलना भी एक चु नौती ह ।
313
4. माग म माल क अ य धक मा ा म चोर भी मु ख सम या है ।
5. रे लमाग का रख रखाव यथा पट रय व पुल क मर मत एक खच ला काय है ।
6. एकल माग के कारण रे ल को ॉस करने म लगने वाले समय के कारण दे र तथा
या य को परे शानी ।
314
दे श क अथ यव था को मजबूत बनाने , सामािजक स ाव को वक सत करने, दे श क
व वधता को एक कृ त करने, दूर -दूर ि थत वेश को एकसाथ जोड़ने व दे श क सुर ा को
सु नि चत करने म प रवहन तं के अ य त वक सत व पर पर पूरक होने क आव यकता है ।
11.11 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. प रवहन के चार मु ख कार है, (i) रे लयातायात (ii) सड़क यातायात (iii) वायु
यातायात (iv) जल यातायात ।
2. 16 अ ल
ै 1853 ।
3. (i) हमालय दे श, (ii) पि चमी राज थान ।
4. पहाड़ी एवं पवतीय े के उबड खाबड भाग ।
5. बलासपुर ।
बोध न-2
1. के सरकार ।
2. चै नई - कोलकाता ।
3. (i) पूव ए स ेस राजमाग ।
(ii) पि चमी ए स ेस राजमाग ।
4. (i) गोवा, (ii) पंजाब ।
5. कलक ता से अमृतसर ।
315
बोध न-4
1. लौहइ पात उ योग, सीमट, उ योग व उवरक उ योग आ द ।
2. उपजाऊ व सघन े ।
3. औ यो गक तथा यापा रक के से ।
4. सड़क प रवहन ।
5. सड़क प रवहन ।
बोध न-4
1. महानगर से ।
2. रे वे फाटक, चैक पो ट, चु ंगीनाक ।
3. एकल माग के कारण ।
4. ाँड गेज ।
11.12 अ यासाथ न
1. प रवहन से या ता पय है ।
2. रे ल व सड़क यातायात के दो-दो मह व बताइए ।
3. रे ल माग के वतरण त प को प ट क िजए ।
4. “रे ल व सड़क यातायात एक दूसरे के पूरक है ' ' कैसे? प ट क िजए ।
5. सड़क यातायात क मुख सम याओं का उ लेख क िजए ।
6. शा सक ि ट से भारतीय रे ले को कतने प र े म वग कृ त कया गया है?
7. अ तर प ट क िजए :
(i) रा य राजमाग तथा ा तीय राजमाग ।
(ii) उ तर रे ल म डल तथा द णी रे ल म डल ।
316
इकाई 12 : भारत का वदे शी यापार (Foreign Trade
of India)
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 वत ता-उपरा त काल म भारत का वदे शी यापार
12.2.1 1951-52 से 1955-56 - पहला योजना काल
12.2.2 1956-57 से 1960-61 - दूसरा योजना काल
12.2.3 1961 -62 से 1965-66 - तीसरा योजना काल
12.2.4 1966-67 से 1968-69 - वा षक योजना काल तथा 1969-1970 से 1973-
74 - चौथा योजना काल
12.2.5 1974-75 से 1977-78 - पांचवीं योजना काल
12.2.6 1978-79 से 1979-80 - वा षक योजना काल तथा 1980-81 से 1984-85
- छठवाँ योजना काल
12.2.7 1985-66 से 1989-90 सातवाँ योजना काल
12.2.8 1990-91 से 1991-92 - वा षक योजना काल
12.2.9 1992-93 से 1996-97 – आठवाँ योजना काल
12.2.10 1997-98 से 2001-02 - नौवां योजना काल
12.2.11 2002-03 से 2005-06 - दसवीं योजना काल
12.3 भारतीय वदे श यापार क संरचना
12.3.1 आयात का ढांचा
12.3.1.1 उपभो ता व तुएँ एवं खा या न
12.3.1.2 मशीनर
12.3.1.3 ख नज तेल
12.3.1.4 धातु एँ
12.3.1.5 रसायन तथा औष धयाँ
12.3.1.6 ह रे तथा क मती प थर
12.3.1.7 उवरक
12.3.2 नयात का ढाँचा
12.3.2.1 चाय एवं काँफ
12.3.2.2 ई का रात और न मत व तु एँ
12.3.2.3 सले सलाए कपड़े
317
12.3.2.4 चमड़ा तथा न मत व तु एँ
12.3.2.5 लौह-अय क
12.3.2.6 काजू
12.3.2.7 ह त श प व तु एँ
12.3.2.8 इंजी नय रंग व तु एँ
12.3.2.9 नयात का बदलता हु आ ढाँचा
12.4 भारत के वदे शी यापार क दशा
12.5 भारत के वदे शी यापार क मु ख वशेषताएँ
12.6 भारत क यापार नी त
12.7 नयात ो नत
12.7.1 नयात संवधन े
12.7.2 वशेष आ थक े
12.8 व व यापार संगठन का भाव
12.8.1 अवसर
12.8.2 चु नौ तयाँ सारांश
12.10 श दावल
12.11 स दभ थ
12.12 बोध नो के उ तर
12.13 अ यासाथ न
12.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप भारत के वदे शी यापार के न न पहलु ओं के
वषय मे समझ सकगे
वकासशील अथ यव था म वदे शी यापार का मह व,
वत ता- ाि त के उपरा त व भ न योजना काल म भारत के वदे शी यापार का बदलता
हु आ संरचना मक संघटन
वत ता-उपरा त काल म भारत के आयात व नयात ढाँचे का प रवतनशील संरचना मक
संघटन
भारत के वदे शी यापार म े ीय दशागत प रवतनो का अ यतन ान
भारत के वदे शी यापार क मु ख ला णक वशेषताएँ
भारत क यापार नी त
भारत के नयात संव न उपाय
भारत के वदे शी यापार पर व व यापार संगठन (WTO) के अनुकूल व तकू ल भाव ।
318
12.1 तावना (Introduction)
1947 से पूव भारत टश शासन का एक उप नवेश था और उसके वदे शी यापार का
ढाँचा एक कार से औप नवे शक ढाँचा ह था। भारत औ यो गक दे श , वशेषकर इं लै ड को
खा य पदाथ और क चे माल का नयात करता था और उनसे न मत व तु ओं का आयात करता
था । न मत व तुओं के लए वदे श पर नभर होने के कारण दे श औ योगीकरण न कर सका
बि क टश न मत व तु ओं वारा भारतीय माल से घोर त प ा के कारण दे शी ह त श प
को भार ध का लगा ।
वत ता- ाि त के प चात ् वकासशील अथ यव था क आव यकताओं के लए यापार
के औप नवे शक ढाँचे को बदलना अ नवाय था । जो-भी अथ यव था वकास काय म को
कायाि वत करने का नणय करती है उसे अपनी उ पादन मता को तेजी से बढ़ाना पड़ता है ।
इस कारण वकास क आरि भक अव था म मशीनर तथा अ य सामान, जो दे श म नह ं बनाया
जा सकता, का आयात करना पड़ता है । ऐसे आयात जो उ पादन के अ य े म मता का
व तार करते ह, वकासा मक आयात (development imports) कहलाते ह । उदाहरणाथ,
इ पात, संयं , इंजन बनाने के कारखाने, जल व युत ् प रयोजनाएँ आ द था पत करने के लए
कया गया आयात वकासा मक आयात ह है । दूसरे , एक वकासशील दे श जो औ योगीकरण के
लए य नशील हो उसे दे श म था पत मता के योग के लए क चे माल तथा अ तवत
व तु ओं (intermediate goods) का आयात करना पड़ता है । ऐसा आयात जो दे श म था पत
उ पादन मता का पूरा उपयोग करने के लए कया जाता है , प रपोषक आयात
(maintenance imports) कहलाता है । वकासशील अथ यव था के लए प रपोषक आयात
बहु त मह वपूण है य क बहु त-सी औ यो गक प रयोजनाएँ प रपोषक आयात के अभाव म क
जाती ह । कसी वकासशील अथ यव था के लए वकासा मक और प रपोषक आयात यह सीमा
नधा रत करते ह िजसम कसी समय- वशेष पर औ योगीकरण कया जा सकता है । इसआयात
के अ त र त एक वकासशील दे श को ऐसी उपभोग-व तु ओ का आयात भी करना पड़ता है
िजनका संभरण औ योगीकरण काल मे कम होता है । पसे आयात अ फ तकार (Anti-
inflationary) होते है य क वे उपभोग-व तु ओं क दुलभता को कम करते है । वत ता-
उपरा त भारत मे खा या न का आयात एक ऐसा उदाहरण है िजसके कारण दे श मे क मत क
वृ पर रोक लगाई जा सक ।
बहु त वाभा वक है क वकास के आरि भक वष म आयात म ती वृ हो िजस
कारण वकासशील दे श का यापार-शेष (trade balance) बहु त तकू ल हो जाए । वदे शी
सहायता म वकासशील दे श को वकास का भार वयं सहन करना पड़ता है । आयात लोचह न
होने क ि थ त म कसी वकासशील अथ यव था को अपने नयात को बढाना अ नवाय हो जाता
है ता क अपने बढते हु ए वदे शी ऋण को कम कया जा सके । पर परा से भारत-जैसे
अ प वक सत दे श खा य पदाथ और क चे माल के नयातक रहे ह । जैसे-जैसे आ थक वकास
ग त करता है क चे माल का नयात कम हो जाता है य क दे श म बढ़ते हु ए उ योग के लए
क चे माल क माँग बढ जाती है । ती जनसं या वृ के कारण नयात के लए उपल ध
319
खा या तरे क (Food surplus) या तो बहु त कम हो जाता है या घाटे म प रव तत हो जाता है ।
प रणामत: वकासशील अथ यव था को अपने नयात बढाने के लए नई व तु एँ और नए बाजार
ढू ँ ढने पड़ते ह । अ प वक सत दे श म औ योगीकरण के लए वक सत दे श यापार-अवरोधक
(Trade barriers) को कम करके और इसक उपभोग तथा अ न मत व तु ओं के नयात को
वीकार करके सहायता कर सकते ह । अ प वक सत दे श के लए वदे शी सहायता य य प मह व
रखती है तथा प इससे भी अ धक मह वपूण वदे शी यापार है । अत: अ प वक सत दे श वारा
जो नया नारा बुल द कया गया है , वह है ' यापार और सहायता' ।
बोध न : 1
1. वकासा मक आयात ( Development imports) कसे कहते ह ? उदाहरण
द िजए।
2. प रपोषक आयात ( Maintenance imports) कसे कहते ह? उदाहरण
द िजए।
3. अद फ तकार आयात ( Anti-inflationary imports) कसे कहते ह?
उदाहरण द िजए।
4. यापार-शे ष से या ता पय ह ?
5. यापार के अवरोधक कारक कौन-कौन-से ह ?
320
-दूसर योजना के दौरान औ योगीकरण का एक वशाल काय म ार भ कया गया ।
इसके अ दर इ पात कारखान क थापना, रे ल का व तार तथा नवीनीकरण और कई उ योग
का आधु नक करण समा व ट थे । प रणामत: आयात क मा ा बहु त अ धक बढ गई । इसके
अ त र त वकासशील अथ यव था के लए प रपोषक आयात क आव यकता से दे श का आयात
और भी बढ़ गया । दूसर योजना म खा या न का भी लगातार आयात करना पड़ा और इस
अव ध म कुल 805 करोड़ पए के खा या न का आयात कया गया ।
ता लका 12.1 : भारत पहल तीन योजनाओं एवं वा षक योजनाओं म यापार-शेष
योजना नयात आयात यापार े
थम योजना 3,109 3,651 -542
(1951-52से 1955-56)
वा षक औसत 622 730 -108
दूसर योजना 3,083 5,402 - 2339
(1956-57 से 1960-61)
वा षक औसत 613 1,080 - 487
तीसर योजना 3,735 6,119 - 2,384
(1961-62 से 1965-66)
वा षक औसत 747 1,224 - 477
वा षक योजनाएँ 3,708 5,775 - 2,067
(1966-67 से 1968-69)
वा षक औसत 12361 ,925 - 689
ोत: रजव बक ऑफ इि डया बुले टन, जु लाई 2004
दूसर योजना म नयात वारा औसत वा षक ाि त थम योजना काल क अपे ा कम
थी जो यह कट करती है क नयात व वधता और नयात ो साहन के यास सफल न हो पाए
। प रणामत: दूसर योजना के दौरान भारत म औसत वा षक तकू ल यापार-शेष 467 करोड़
पए था जो क थम योजना क वा षक औसत अथात ् 108 करोड़ पए से कह ं अ धक था ।
321
1969 - 70 1,413 1582 -199
1970 – 71 1,525 1634 -99
1971 – 72 1,607 1824 -217
1972 - 73 1,971 1867 +104
1973 - 74 2,523 2955 -432
वा षक औसत 1,810 1972 -162
पाँचवी योजना (1974- 75 से 1 977- 78)
1974 - 75 3,329 4519 -1190
1975 – 76 1,043 5262 -1222
1976 – 77 5,146 5074 +72
1977 – 78 5,404 6025 -621
वा षक औसत 4,472 5231 -740
1978 – 79 5,726 6814 1088
1979 – 80 6,418 9142 -2724
छठ योजना (1980-81 से 1984-85)
1980 – 81 6,711 12549 -5838
1981 – 82 7,606 13608 -5805
1982 – 83 8,803 14293 -5489
1984 – 85 9,770 15831 -6061
1984 – 85 11,744 17134 -5390
वा षक औसत 8,967 14683 -5390
सातवीं योजना (1985-88 से 1989-90)
1985 – 86 10,895 19658 -8763
1986 – 87 12,452 20096 -764
1987 – 88 15,674 22096 -6570
1988 – 89 20,23 128235 -8004
वा षक औसत 17,382 35328 -7670
322
सबका संचयी भाव यापार-शेष के घाटे को और बढाना था । य य प पए के अवमू यन के
प चात ् 1966-67 और 1967-68 के दौरान नयात म वृ हु ई तथा प आयात के लोचह न होने
के कारण आयात का मू य 1967-68 म एकदम बढ़कर 2,043 करोड़ पए हो गया ।
प रणाम व प 1966-67 और 1967-68 के दौरान यापार-शेष क ि थ त और भी खराब हो
गई । 1968-69 और 1989-70 म अ छ फसल होने के कारण खा या न आयात म
उ लेखनीय कमी हु ई । इसके अ त र त अवमू यन के कारण भी नयात ो साहन को बल मला
। अत: यापार-शेष जो 1987-68 म 788 करोड़ पए तक तकूल था, 1968-69 म कम
होकर केवल 373 करोड़ पए तक तकू ल रह गया । 1969-70 म यह और भी कम हो गया ।
1972-73 म आयात प रसीमन, खा या न आयात को कम करने और नयात ो साहन नी त के
प रणाम व प दे श म वत ता-उपरा त काल म पहल बार यापार-शेष अनुकू ल तो हु आ पर तु
1973-74 म ह इसका भाव समा त हो गया य क बहु त-से अ तरा य कारण त व ने
पे ो लयम पदाथ , इ पात और अलौह धातु ओ,ं उवरक और अखबार कागज क क मत को ऊँचा
चढ़ा दया । नयात क मत म वृ से य य प नयात 2523 करोड़ पए के तर तक पहु ँच गए
तथा प आयात क मत म ती वृ के कारण उनका मू य भी 2,955 करोड़ पए के उ च तर
पर पहु ँ च गया । प रणामत: यापार-शेष म 432 करोड़ पए का घाटा फर य त हो गया । कुल
मलाकर यह कहा जा सकता है क वा षक योजनाओं और तृतीय योजना क तुलना म चौथी
योजना म यापार-शेष का रकॉड संतोषजनक था ।
323
पे ो लयम नयात करने वाले दे श वारा पे ो लयम क क मत म और अ धक वृ कर
दे ने के कारण दे श का आयात बल, जो 1978-79 म 6,814 करोड़ पए था, बढ़कर 19790-80
म 9,142 करोड़ पए हो गया । इसके वपर त नयात, जो 1978-79 म 5,726 करोड़ पए थे,
बढकर 1979-80 म केवल 6,418 करोड़ पए तक ह पहु ँ च सके अथात ् इनम केवल 12.।
तशत क वृ हु ई । प रणामत: 1979-80 म दे श का यापार-घाटा 3,724 करोड़ पए हो गया
। 1980-81 म ि थ त और भी ग भीर हो गई और यापार-घाटा 5838 करोड़ पए के उ च
तर पर पहु ँच गया । 1981-82 और 1982-83 के दौरान भी यापार-घाटा मश: 5802 करोड़
और 5489 करोड़ पए रहा । आयात और नयात के ऑकड़ क समी ा से पता चलता है क
इसके बावजू द पे ो लयम तथा इससे स बि धत पदाथ का आयात, जो 1980-81 म 5267 करोड़
पए था, गरकर 1983-84 म 4830 करोड़ पए रह गया य क एक तो तेल क अ तरा य
क मत गर रह ं थीं और दूसरे तेल एवं ाकृ तक गैस आयोग वारा क चे तेल के दे शीय उ पादन
को बढ़ाया गया । फर भी 1983-84 म यापार-घाटा 6061 करोड़ पए था । इस ि थ त क
या या इस बात से होती है क वदे शी मु ा क जो बचत पे ो लयम के आयात म कमी के
कारण हु ई वह आयात उदारता क नी त अपनाने के कारण गैर-पे ो लयम आयात म वृ के
प रणाम व प कट गई । छठवीं योजना के दौरान 14683 करोड़ पए के औसत वा षक आयात
के व 8967 करोड़ पए का औसत वा षक नयात कया गया । इस कार छठवीं योजना के
दौरान 5716 करोड़ पए का भार वा षक यापार-घाटा य त हु आ जो रा के लए च ताजनक
रहा ।
324
1990–91 32558 43,193 -10635 1,8145 2,407.3 -592.8
1991-92 44,042 47,851 -3,809 1,768.6 1,941.1 -154.5
1992–93 53,688 63,375 -9,887 18537 2,188.2 -334.5
1993-94 69751 73,101 -3,350 2,223.8 2330.6 - 106.8
1994–95 82672 89971 -7,297 2633.1 2865.4 -232.3
1995-96 106353 121678 - 16325 3179.7 3367.8 -488.1
1996-97 118817 138920 -20,10 3,347 3913.2 -566.2
वा षक औसत 86,257 97, 609 - 11,35 2,647.4 2.993.0 -345. 6
(1992-93 से 96-97)
1997–98 1,30,101 154,176 -24076 3,500.6 4,1484 -647.8
1998-99 139753 178332 -38,579 3321.9 4238.9 -917.0
1999–2000 159561 2,15,528 -55,967 3682.7 4967.1 -1284.8
2000-01 203571 230873 -27,302 4456.0 5053.3 -597.6
2001-02 209018 2,45200 -36,182 4,382.7 2,141.3 -785.7
वा षक औसत
1,68,401 2,04,784 -36,363 3868.7 4,709.9 - 841.2
(1997-98 से 2001-
02)
325
12.2.9 1902-93 से 1998-97 - आठवीं योजना काल
326
दसवीं योजना के पहले चार वष (2002-03 से 2005-06) के दौरान नयात, जो 2001-
02 म 4,382.7 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर 2003-04 म 6384 करोड़ डॉलर हो गए अथात ् इनम
458 तशत क भार वृ हु ई । पर तु व व यापार संगठन के दबाव के अधीन आय त
2002-03 म 5141.3 करोड़ डॉलर से बढ़कर 2003-04 म 7815 करोड़ डॉलर पर पहु ँ च गए
अथात ् इनम सापे त: 52.0 तशत क वृ हु ई । प रणामत: यापार-घाटा 2003-04 म
14.31 अरब करोड़ डॉलर के रकॉड तर पर पहु ँच गया । 2004-05 म यापार-घाटा 27.98
अरब डॉलर के उ च तर तक बढ़ गया । यह प र थ त 2005-06 म बनी रह जब क नयात
बढ़कर 103.1 अरब डॉलर हो गए । आयात म अभू तपूव वृ हु ई और ये 149.2 अरब डॉलर पर
पहु ँ च गए । इसके प रणाम व प 46.1 अरब डॉलर का भार यापार-घाटा उ प न हो गया । यह
दे श के लए च ता का कारण था ।.
एक और यान दे ने यो य बात यह है क पए के प म नयात म 18.5 तशत क
वा षक वृ 8 वष (1992-93 से 2001-02) के दौरान हु ई और आयात म 19.1 तशत क
वा षक वृ हु ई । पर तु नयात यास का अ धकतर भाग दो चरण म कए गए अवमू यन के
भाव का नराकरण करने म ह समा त हो गया । आयात मू य म वृ बहु त हद तक
अवमू यन के कारण ह हु ई । प ट है क अवमू यन एक अ पकाल न उपाय है और यह दे श के
लगातार चलते हु ए यापार-घाटे क सम या का कोई थाई हल तु त नह ं करता । इस ि ट से
यह कह ं अ धक वांछनीय होता क भारत म क मती पर कड़ा नय ण रखा जाता ता क
अ तरा य बाजार म पया अ तमू ि यत नह ं होता और इस कारण एक और अवमू यन क
आव यकता नह ं पड़ती । सह उपचार तो यह था क दे श क अथ यव था क वृ -दर अ धक
तेज होती ता क फ त पर भावी प से नय ण पाया जा सकता । इसी कार नयात यास
वा तव म भावी बन सकता था । दे श इस बात के लए गव तो कर सकता है क उसके नयात
2005-06 म 103.1 अरब डॉलर हो गए पर तु इसके साथ-साथ आयात छलाँग लगाकर 140.2
अरब डॉलर तक पहु ँच जाने से यापार-घाटा 2005-00 म 46.1 अरब डॉलर हो गया जो पछले
पाँच वषा का रकॉड- तर है (ता लका 12.4) ।
नयात, जो 1999-2000 म 3682 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर 2000-01 म 4456 करोड़
डॉलर हो गए अथात ् इनम 21.1 तशत क वृ हु ई । इसके मु य कारण थे - पए का
मू यहास, उदार करण का बढ़ावा, टै रफ म कटौती और नयातो मु खी े , जैसे - सू चना
तकनीक म वदे शी नवेश - के त उदारता । क तु आयात प क ओर , 1999-2000 और
2000-01 के दौरान क चे तेल क अ तरा य क मत म ती वृ हु ई । इसके प रणाम व प
पे ोल, तेल और नेहको का आयात, जो 1998-1999 म 640 करोड़ डालर था, बढ़कर 1999-
2000 म 961 करोड़ डॉलर पर पहु ँच गया अथात ् इसम 1999-2000 म 50 तशत क वृ
और 2001-01 के दौरान गत वष क तुलना म 67.4 तशत वृ हु ई । पे ो लयम के आयात
म ती वृ ने गैर -पे ो लयम आयात क पया त वृ को रोक दया । गैर -पे ो लयम आयात,
जो 1998-99 म 3599 करोड़ डॉलर थे, बढ़कर 1999-2000 म 4006 करोड़ डॉलर हो गए
अथात ् इनम केवल 11.3 तशत क वृ हु ई; पर तु यह 2000-01 मे गएरं कर 3445 करोड़
327
डॉलर हो गए अथात ् इनम 14 तशत क कमी हु ई । इसका अथ यह हु आ क पी.ओ. एल.
आयात को ब धनीय सीमाओं के बीच रखा जाए । सन ् 1999-2000 के दौरान आयात म 17.1
तशत क वृ हु ई जब क 2000-01 म इसम सीमा त प म मा 1.7 तशत क ह वृ
हु ई । आयात को 1.7 तशत तक सी मत कर दे श अपने यापार-शेष को 2000-01 म 598
करोड़ डॉलर तक सी मत कर पाया जब क यह 1999-2000 म 1,265 करोड़ डॉलर था ।
ता लका 124 : भारत - आयात और नयात म वृ
आयात
वष पी.ओ.एल गैर-पी.ओ.एल. कु ल नयात
1996 - 97 1003.6 2906.6 3913.2 3347.0
1997 - 98 816.3 3332.1 4,148.4 35,00.6
1998 - 99 639.9 3,599.0 4,238.9 3,321.9
1999 - 00 960.7 4,006.4 4,967.1 3,682.2
(50. 1) (11 .3) (17.1) (15.0)
2000 - 01 1,608 3,445.0 5,053.6 4,456.0
(67 .4) (-14.0) (1. 7) (21.0)
2001 - 02 1,468 3,873 5,141 4,383
(-8. 7) (6.6) (1 .7) (-1.6)
दसवी योजना
2002 – 03 1887.2 4,254.0 6,141.2 5,271.9
(28 .5) (57.0) (19.4) (21.4)
2003 - 04 2,059.9 5,765.2 7,825.1 6,397.9
(9 .3) (35.5) (27.4) (21.3)
2004 - 05 3,447.5 7,672.2 11,151.7 8,353.6
(68.6) (33.2) (42 .5) (30.6)
2005 - 06 5,277.3 9,639.3 1,4916.6 10,309.1
(51 .9) (25.6) (33.8) (23.4)
नोट : को ठक म दए गए आँकड़े गत वष पर तशत वृ को य त करते ह।
ोत : भारतीय रजव बक, Handbook of Stiatistics on Indian Economy (2005-
06)
य य प 2002-03 म नयात म 21.4 तशत क वृ हु ई तथा प आयात म 19.4
तशत क वृ के प रणाम व प यापार-घाटा 869 करोड़ डॉलर हो गया । प रि थ त 2003-
04 म बहु त बगड़ गई जब आयात बढकर 7825 करोड़ डॉलर के रकॉड- तर पर पहु ँ च गए
अथात ् 2002-03 क तु लना म 27.4 तशत अ धक । चाहे नयात म 21.3 तशत क भार
वृ हु ई हो फर भी यापार-घाटा 1,445 करोड़ डॉलर तक पहु ँ च गया । इसका मु य कारण गैर-
328
पी.ओ.एल आयात म 35.5 तशत क ती वृ के कारण इनका 5765 करोड़ डॉलर हो जाना
था । 2004-05 और 2005-06 के दौरान पी.ओ.एल. और गैर-पी.ओ.एल दोन के आयात म ती
वृ हु ई जब क गैर-पी.ओ.एल आयात क तु लना म पी.ओ.एल आयात म अपे ाकृ त तेज वृ हु ई
। 2005-06 म कुल आयात 14,917 करोड़ डॉलर तक पहु ँच गए ।
329
गई उदार करण क नी त । इन सब कारणत व के प रणाम व प एक ऐसी या ग तमान हो
गई िजसने आयात पर अथ यव था क नभरता बढ़ा द । 1970-71 म कु ल आयात ।,634
करोड़ पए थे जो बढ़कर 1980-81 म 12,549 करोड़ पए हो गए । अत: इस दशक के दौरान
आयात म 19.2 तशत क वा षक वृ हु ई । 1980-90 दशक के दौरान और वशेषकर
1984-85 के प चात ् जब भारत सरकार ने उदार करण क नी त का अनुसरण कया तो आयात
एकदम तेजी से बढ़कर 1990-91 म 43,193 करोड़ पए के तर पर पहु ँच गए । 1980-81
और 1990-91 के दौरान आयात क वृ दर 13.1 तशत के उ च तर पर बनी रह ।
2000-01 और 2005-2006 के दौरान आयात क वा षक औसत वृ दर 22.3 तशत थी ।
आमतौर पर आयात म वृ के लए पी.ओ.एल क मद को दोषी ठहराया जाता है । यह
बात स तर के दशक के लए स य है । अ सी के दशक का अनुभव यह बताता है क पी.ओ.एल
क मद क वृ -दर 1980-81 और 1990-91 के दशक के दौरान केवल 7.4 तशत थी, जब क
सम आयात क वृ -दर 13.1 तशत थी । अत: आयात म वृ क या या उदार करण क
नी त के कारण ह क जा सकती है िजसे सरकार ने तकनीक उ नयन के नाम पर बढ़ावा दया
। ता लका 12.5 म दए गए आँकड़ से पता चलता है क 1996-97 से 2005-06 के दौरान
पी.ओ.एल के आयात म औसत वा षक वृ 20.3 तशत थी, जब क गैर-पी.ओ.एल मद क
आयात म औसतन 14.2 तशत तवष क वृ हु ई ।
अ बार आयात, िजनम क चे माल, अ तवत व तु एँ और खा या न शा मल ह,
अथ यव था क वृ एवं ि थरता से स बि धत ह । स तर के दशक म इनक औसत वा षक
वृ -दर 23.2 तशत रह । प रणामत: कुल आयात म उनका भाग, जो 1970-71 म 50.5
तशत था, बढ़कर 1980-81 म 69.6 तशत हो गया, क तु इनक वृ -दर अ सी के दशक
म पया त प से कम हो गई और यह बाद म भी बनी रह ।
ता लका 12.5 : भारतीय आयात का ढाँचा
वा षक च वृ दर
करोड़ पए 1980-81 1990-91 2000-01
आयात क व तुएँ से से से
1980-81 1990-91 2000-01 2005-06 1990-91 2000-01 2005-06
I. अ बार आयात 8,39 19,464 95,095 2,68,594 8.6 17.2 23.0
(69.6) (45.1) (41.2) (42.6)
1. पे ो यम एवं उ पाद 5,267 10,816 71,497 1, 94,640 7.4 20.8 22.0
(42.0) (25.0) (31.0) (30.7)
2. अ बार उपभोग व तु एँ 901 999 999 6,593 11,870 10.7 20.5 12.5
(7.2) (2.2) (2.8) (1.9)
क. अनाज और दाल 100 673 586 2,801 29.3 - 1.4 33.7
ख. खा य तेल 704 326 5,977 8,716 – 33.8 7.9
3. अ य अ बार मद 2,571 7,650 17,005 62,084 11.5 8.3 29.6
(20.5) (17.7) (7.4) (9.8)
क. उवरक 818 1,766 3,435 9,159 8.0 6.9 21.7
330
ख. अलौह धातुएँ 477 1,102 2,439 8,157 8.7 8.3 18.8
ग. कागज एवं ग ता 187 456 2131 4168 9.3 16.6 14.4
घ. ख नज अय क 116 1,528 3537 16693 29.4 7.9 36.4
ड. लौह एवं इ पात 852 2,113 3554 19622 9.5 5.3 40.7
11. गैर-अ बार आयात 3,472 23,729 135,778 361,933 21.2 19.1 21.7
(27.7) (54.9) (58.8) (57.4)
4. पू ँजी व तु एँ 1,910 10,471 40,847 1,40,245 18.5 14.6 28.0
क. मशीनर 1,089 10,471 40,847 140245 18.5 14.6 28.9
ख. इलेि क एवं
इलै ो न स व तु एँ 260 1,702 18,226 64,878 20.7 26.7 28.9
ग प रवहन उपकरण 472 1,670 3,199 13,940 13.5 6.7 34.2
घ. ोजे ट व तु एँ - 2,556 3,414 3,613 - 2.9 1.4
5. नयात स ब धी व तुएँ 1,158 6,603 36,815 82,053 19.0 18.7 17.4
(9.2) (15.3) (15.9) (13.0)
क. ह रे तथा क मती प थर 417 3,738 21,964 40,469 24.5 19.4 13.0
ख. काब नक तथा आकब नक
रसायन 673 2,289 11,165 30,501 13.0 17.2 22.2
ग. व सू त एवं न मत व तुएँ 59 443 2,726 8,994 215 19.9 27.0
घ. काजू 9 134 431 2,090 12.4 30.1
ड़. अ य 404 6,655 58,116 13,9635 - 24.2 23.7
(3.2) (15.4) (25.2) (22.1)
कु ल (I+II) 12,549 43,193 2,30,873 3,30,527
(100.0) (100.0) (100.0) (100.0) 13.1 18.2 22.3
ोत भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy
(2005-06)
गैर-पी.ओ.एल. मद म उपभोग व तु ओ,ं िजनम अनाज और अनाज से तैयार व तु ए,ँ
खा य-तेल, दाल और चीनी शा मल ह, क वा षक वृ जो 1980-81 और 1990-91 के दौरान
10.7 तशत थी, एकदम बढ़कर 1990-91 और 2000-01 के दौरान 20.8 तशत हो गई ।
इसका मु य कारण खा य-तेल के आयात म ती वृ था जो 1990-91 म 326 करोड़ पए से
बढ़कर 2004-05 म 10,578 करोड़ पए हो गया, क तु लौह और इ पात के आयात क वृ -
दर 1985-86 से 1990-91 के दौरान 14.4 तशत के अपे ाकृ त उ च तर पर बनी रह । इसके
बाद 1991-2003 के दौरान इसम गरावट आई ।
मोटे तौर पर अ बार मद के आयात क वृ -दर सातवीं योजना के दौरान गरकर 7.2
तशत रह गई जब क यह छठवीं योजना के दौरान 10.2 तशत थी । अत: अ बार मद का
कु ल आयात म भाग, जो 1980-81 म 69.6 तशत था, 2005-06 म घटकर 42.6 तशत रह
गया । गैर-अ बार मद म पूजी व तुओं का भाग , जो 1980-81 म गरकर 15.2 तशत रह
गया था, 2005-06 के दौरान बढ़कर 22.2 तशत तक पहु ँच गया ।
331
12.3.1.1 उपभो ता व तुएँ एवं खा यान
332
516 करोड़ पए तवष था, 1992-93 म बढकर 1,240 करोड़ पए हो गया । 2005-06 के
दौरान केवल 2,501 करोड़ पए के खा यान का आयात कया गया जो नाममा का था ।
12.3.1.2 मशीनर
12.3.1.3 ख नज तेल
333
4,498 करोड़ पए हु आ । खाड़ी यु ने ख नज तेल क क मत म भार वृ क । प रणामत:
ख नज तेल आयात का बल बढ़कर 2005-06 म 1,94,640 करोड़ पए के उ च तर पर पहु ँच
गया अथात ् कुल आयात का लगभग 31 तशत ।
12.3.1.4 धातु एँ
12.3.1.7 उवरक
334
कम होकर 96 करोड़ पए रह गया । अ तरा य व तु ओं क क मत म वृ के कारण 1974-
75 और 1979-80 के दौरान रासाय नक उवरक का औसत वा षक आयात एकदम बढ़कर 439
करोड़ पए हो गया । 1980-81 से 1984-85 के दौरान उवरक का औसत वा षक आयात 698
करोड़ पए था । हाल ह म सरकार ने उवरक के आयात म कटौती करने क अपे ा इनके
आयात म उदार करण को बढ़ावा दया है । प रणामत: 1985-86 और 1989-90 के दौरान
उवरक का औसत वा षक आयात 1,114 करोड़ पए हो गया । 2005-06 के दौरान उवरक का
आयात 9,159 करोड़ पए था ।
बोध न : 2
1. वष 1951 के प चात ् भारत म उपभो ता व तु ओं एवं खा या न के आयात म
या- या सं र चना मक प रवतन ल त हु ए ह ?
335
12.3.2.2 ई का सूत और न मत व तु एँ
थम एवं वतीय योजना काल म सूत तथा कपड़े का औसत वा षक नयात 81 करोड़
पए था क तु तीसर योजना के दौरान यह गरकर 55 करोड़ पए तवष रह गया । भारतीय
सू तीव उ योग म उ पादन क लागत अपे ाकृ त अ धक होने के कारण भारत के लए
अ तरा य बाजार म सूत तथा कपड़ा बेचना क ठन हो जाता है । वा तव म अ धक लागत के
दो मु य कारण ह- अ धक म लागत और पुरानी मशीनर का योग । अवमू यन के प चात ्
कपड़े के नयात म वृ हु ई तथा 1990-91 और 2004-05 के दौरान सू त तथा कपड़े का नयात
2,100 करोड़ पए से बढ़कर 17,102 करोड़ पए हो गया ।
336
12.3.2.4 चमड़ा तथा न मत व तु एँ
12.3.2.5 लौह अय क
12.3.2.6 काजू
12.3.2.8 ह त श प
337
7. त बाकू 25 33 141 263 1,330
8. इंिज नय रंग व तु एँ 13 130 727 3,877 95,396
9. काजू 30 52 140 477 2,570
10. सले सलाए कपड़े अनु 9 378 4,102 37,209
11. ह त श प, ह रे एवं जवाहरात समेत अनु. 70 894 6,356 70,647
12. मछल तथा न मत व तु एँ 7 31 213 960 6,356
13. चावल - 5 224 462 7,174
14. रसायन एवं स बि धत पदाथ - - - 3,558 64,225
ोत : भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy (2005-
06)
338
इस ववरण से हम यह न कष नह ं नकालना चा हए क गैर-पार प रक व तु एँ तो
आगे बढ़ गई ह और पार प रक व तु एँ पछड़ गई है । पार प रक व तु ओं का नयात भी बढ़
रहा है, चाहे यह वांछनीय तर तक नह ं पहु ँच पाया हो । उदाहरण के तौर पर ई से बने कपड़े,
चाय, चमड़े और चमड़े से न मत व तुओं के नयात म सराहनीय वृ हु ई है।
अत: भारत के नयात ढाँचे म न न ल खत प रवतन य त हु ए ह -
1. भारतीय अथ यव था का व वधीकरण हो रहा है और गैर-पार प रक नयात का मह व
बढ़ रहा है ।
2. इंजी नय रग व तु ओं के नयात के व तार का कारण औ यो गक दे श और म यपूव के
दे श म इनक बढ़ती हु ई माँग है । इन दे श म आधारसंरचना प रयोजनाएँ, जैसे - सड़क,
ब दरगाह, रे ल- नमाण, टे ल -संचार और नाग रक नमाण-चालू क गई ह ।
3. भारत अ तरा य बाजार म माँग क अनुकू ल ि थ त और आकषक क मत का लाभ
उठाने क अब मता रखता है ।
4. एक ओर जहाँ कुछ व तुओं क नयात मता अ धक है (जैसे- ह त श प, इंजी नय रंग
व तु एँ और सले सलाए कपड़े) वह ं दूसर ओर अ य व तुओं (चीनी, पटसन, सू त एवं
न मत व तु ओ,ं लौह एवं इ पात) म भार उतार-चढ़ाव य त हु ए ह ।
5. नई -कृ ष नी त क घोषणा के प चात ् कृ ष व तु ओं के नयात पर बल दया जा रहा है।
चावल का नयात मह वपूण बनता जा रहा है । इसके अ त र त फल एवं सि जयाँ और
सा धत खा यपदाथ भी भारतीय नयात म मह वपूण बनते जा रहे ह ।
बोध न : 3
1. भारत के नयात को मोटे तौर पर कौन-से वग म वभ त कया जाता है ?
2. वष 19 6 0 के उपरा त भारत के नयात ढाँ चे म या मु य प रवतन य त हु ए
ह?
339
रा य अमे रका के आपसी स ब ध म तनाव उ प न हो गया और उसके साथ भारत का यापार
कम हो गया । यह बहु त हद तक इस बात क या या है क 1976-77 म संयु त रा य
अमे रका के लए भारत का नयात गरकर 10 तशत य हो गया । हाल ह के वषा म इस
ि थ त म थोड़ा सु धार हु आ है और 2005-06 म संयक
ु ा रा य अमे रका के लए भारत का
नयात कु ल नयात का 17.7 तशत हो गया । आयात प क ओर अमे रका वारा 1951-52
म 36.3 तशत योगदान कया गया पर तु इसका भाग 1960-61 म गरकर 31.5 तशत
रह गया । फर 1965-66 म खा या न आयात म वृ होने के कारण यह बढ़कर 40 तशत
हो गया और 1970-71 म 35 तशत रह गया । बंगलादे श यु के कारण भारत ने संयु त
रा य अमे रका पर अपनी नभरता कम करने का फैसला कया । प रणामत: उ तर अमे रका से
भारत का आयात गरकर 1974-75 म कु ल आयात का केवल 19.2 तशत रह गया ।
खा या न के अ धक मा ा म आयात के फल व प भारत के आयात म संयु त रा य अमे रका
का भाग 1975-76 म बढकर 24.6 तशत हो गया पर तु यह 2005-06 म पुन: गरकर 6.1
तशत रह गया ।
ऐ तहा सक प से 1947 तक भारत संयु त रा य का एक उप नवेश होने के कारण
उसके साथ घ न ठ यापा रक स ब ध रखता था । इसके यूरोप के अ य दे श के साथ भी
यापा रक स ब ध थे । यापार क ि ट से यूरोप महा वीप को तीन बड़े े म वभ त कया
जा सकता है- पि चमी यूरोप को फर मोटे तौर पर दो भाग म बाँटा जाता है - यूरोपीय साझा
बाजार (European Common Market-ECM) और यूरोपीय वत बाजार े (European
Free Trade Area-EFTA) ।
1950-51 म कुल भारतीय आयात का 30.5 तशत पि चमी यूरोप से ा त होता था
जो 1955-56 म बढ़कर 48.9 तशत हो गया । इसके लए दो कारणत व उ तरदायी थे -
भारत का ट लग ऋण का भु गतान और उसका यूरोपीय साझा-बाजार म शा मल होने का नणय
। भारत के कुल आयात म यूरोपीय वत बाजार दे श (EFTA) का मह व सकु ड़कर मा 1.6
तशत रह गया । यूरोपीय साझा बाजार (ECM) दे श का भाग, जो 1955-56 म 18.2
तशत था, गरकर 1969-70 म 10.9 तशत रह गया । यह फर बढ़कर 1979-80 म
24.2 तशत हो गया । क तु एक हद तक यह वृ यूरोपीय वत बाजार े से केवल
प रवतन के प म ह है । य द हम यूरोपीय वत बाजार और यूरोपीय साझा बाजार े को
साथ ल तो 1955-56 के प चात ् यूरोप के भाग म कमी हु इ है और 1976-77 म यह गरकर
मा 21.3 तशत रह गया । 1979-80 म यह बढ़कर लगभग 27 तशत हो गया क तु
1967-88 म यह 33 तशत और 2006-00 म फर घटकर 16.7 तशत रह गया । ' _
हाल ह के वष म पूव यूरोप के दे शो – यू.एस,एस.आर, पोलड, मा नया, बु गा रया,
चैको सोवा कया, यूगो ला वया - के साथ भारत का यापार वक सत हु आ है । इन दे शो, से
आयात शी मु य मदे ह - लौह एवं इ पात, अलौह धातुएँ , रसायन, पूजी साज-सामान, रे लवे
टोर, कागज, दवाइयाँ एवं औष धयाँ ऑर पे ो लयम उ पाद । इनम से बहु त-सी व तुओं के
आयात दे श क आ त रक प रयोजनाओं और साम रक मह व के उ योग मे सहायक है । इनके
340
बदले भारत इन दे श को चाय, काजू, गम मसाले, त बाकू तलहन, चमड़ा, धाि वक अय क,
पटसन क न मत व तुओं आ द का नयात करता है जो भारतीय नयात क पार प रक मद ह ।
इन दे श से होने वाले आयात क संरचना से यह प ट हो जाता है क ये आयात आ थक वकास
क ि ट से मह वपूण ह । 1960-61 म भारत ने इस े से अपने कुल आयात का 4 तशत
मँगवाया और इस े को नयात का लगभग 8 तशत भेजा । पर तु 1962 म भारत-चीन यु
और 1965 म भारत-पाक यु के प चात ् पूव यूरोप के समाजवाद दे श के साथ भारत के
यापा रक स ब ध घ न ठ हो गए । 1970-71 म इस वग के दे श से दे श के कुल आयात का
13.5 तशत ा त हु आ और इ ह दे श के कुल नयात का 21 तशत भेजा गया । इस े से
कु ल यापार का 84 तशत यू.एस.एस.आर. से ा त हु आ । 2005-06 तक पूव यूरोप से भारत
के आयात गरकर 2.6 तशत रह गए, और इस े को नयात म भी गरावट आई । ये
नयात 1979-80 तक 14 तशत हो गए और 2005-06 तक केवल 1.9 तशत रह गए ।
सो वयत संघ के वघटन के प रणाम व प इन दे श के साथ भारत के यापा रक स ब ध म
प रवतन आया है ।
पे ो लयम नयातक दे श के संगठन के साथ भारत के यापा रक स ब ध बढ़े ह ।
1970-71 म इन दे श से भारत के आयात का लगभग 8 तशत ा त होता था जो 1987-88
म एकदम बढ़कर 13.3 तशत हो गया । इसका मु य कारण तेल क क मत म ती वृ था
। साथ ह आयात के प रमाणा मक सूचकांक म तदनु प वृ भी नह ं हु ई । नयात के े म,
1987-88 म इन दे श को भारत के नयात का 6.1 तशत ह सा भेजा जाता था जो 2005-06
म बढ़कर 14.8 तशत हो गया । तेल क अ तरा य क मत म गरावट के प रणाम व प
पे ो लयम नयातक दे श के साथ भारत के आयात 1987-88 म फर गरकर 13.3 तशत रह
गएंतथा 2005-06 म और गरकर मा 7.7 तशत रह गए ।
भारत के वदे शी यापार म ए शया एवं ओशे नया (िज ह अब अ य ओ.ई.सी.डी. दे श कहा जाता
है) म ऑ े लया और जापान मह वपूण ह । 1970-71 के दौरान भारत के नयात म इन दो
दे श का भाग 15 तशत था जो 2005-06 म घटकर 3.2 तशत रह गया, क तु भारत के
आयात म इनका जो भाग 1970-71 म 7.2 तशत था, वह 2005-06 म घटकर मा 5.9
तशत रह गया ।
भारत ए शयाई दे श के साथ अपने वदे शी यापार को बढ़ाने क भार मता रखता है
य क इन दे श म भारत क न मत व तुएँ भल भाँ त वीकार क जाती ह । इसी कार भारत
सापे त: अ प वक सत इन दे श से अपने बढ़ते हु ए उ योग के लए क चे माल का आयात भी
कर सकता है । इसका माण यह है क इन दे श से 2005-06 के दौरान भारत के कुल आयात
का 20.9 तशत ा त कया गया जब क 1970-71 म यह केवल 3.3 तशत था । नयात के
े म भी धीरे -धीरे और लगातार बढ़ोतर हु ई है और ए शयाई दे श को भारत के नयात, जो
1970-71 म 10.8 तशत थे, तेजी से बढ़कर 2005-06 म 30.1 तशत हो गए ह ।
अ का के साथ भारत के नयात 1951-52 और 1970-71 के दौरान लगभग 6-7
तशत के बीच रहे है, पर तु इसके प चात ् ये गरकर 2005-06 म 5.6 तशत रह गए ।
341
क तु आयात के े म अ क दे श का भाग घटता-बढता रहा है । यह 1951-52 म 9
तशत था जो 2005-06 म घटकर 3.2 तशत रह गया ।
सम प म यह कहा जा सकता है क भारत का वदे शी यापार अब अपे ाकृ त अ धक
व तृत हो गया है । 1951-52 और 1969-70 के दौरान पि चमी यूरोप और उ तर अमे रका पर
भारत क अ य धक नभरता अब कम हो गई है । धीरे -धीरे दे श का यापार पूव यूरोप और
ए शयाई दे श के साथ बढता जा रहा है । पर तु अ सी के दशक और 1990-91 से 2005-06 के
दौरान (िजसम सो वयत संघ का वघटन ना) पि चमी यूरोप और उ तर अमे रका का मह व बढ़
गया है । ये दोन े 2005-06 म भारत के नयात के 39 तशत और आयात के 22 तशत
के लए िज मेदार थे । पूव यूरोप के दे श का भाग सकु ड़कर नग य-सा रह गया है और ए शया
व अ क दे श का भाग बढ़ रहा है ।
कु छ मह वपूण दे श के स दभ म भारत के वदे शी यापार क दशा का पर ण चकर
होगा । भारत के वदे शी यापार म सात दे श मह वपूण थान रखते ह – यू.एस.ए., यूके ., जमनी,
जापान, यू.ए.ए.ई., सऊद अरब और इटल । 1951-52 से 2005-06 के दौरान इन सात दे श के
साथ भारत के नयात 40 से 57 तशत क अ भसीमा मे रहे । इसके वपर त इसी काल के
दौरान भारत के आयात म इनका भाग 22 से 43 तशत के बीच रहा ।
1987-88 और 2005-06 के दौरान भारत के वदे शी यापार क दशा म जो मह वपूण
प रवतन हु ए (ता लका 12.9) वे न न ल खत ह -
1. आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (Organisation of Economic Co-operation
and Development- OECD) दे श के साथ भारत के नयात, जो 1987-88 म 59 तशत
थे, गरकर 2005-08 म 44 तशत रह गए । इसी कार ओ.ई.सी.डी. दे श से भारत के
आयात, जो 1987-88 म 60 तशत थे, तेजी से गरकर जो 2005-06 म 33 तशत रह
गए । यह गरावट यापक प म यूरोपीय संघ, संयु त रा य अमे रका और अ य ओ.ई.सी.डी.
दे श (आ े लया, जापान और ि व जरलै ड) म य त हु ई ।
2. वकासशील दे श के साथ भारत के वदे शी यापार म बढ़ने क वृि त ल त हु ई है ।
इन वकासशील दे श म शा मल ह - ए शया, लै टन अमे रका और अ का । इन दे श को भारत
के नयात 1987-88 म केवल 14.2 तशत थे जो तेजी से बढ़कर 2005-06 म 38.7
तशत हो गए । ए शया के भाग म वशेष बढ़ोतर हु ई और यह इस अव ध म 12 तशत से
बढ़कर 30.1 तशत हो गई । इसम चीन और हांगकांग का भाग भारत के नयात म लगभग
11 तशत और साक दे श (SAARC Countries) का भाग 5.2 तशत हो गया ।
जहाँ तक आयात का स ब ध है वकासशील दे श से भारत के आयात, जो 1987-88 म
17.3 तशत थे, बढ़कर 2005-06 म म 25.8 तशत हो गए । केवल ए शया वारा 2005-06
म आयात का 21 तशत उपल ध कराया गया । चीन और हांगकांग से 2005-08 म आयात 9
तशत था क तु साक दे श का भाग केवल 1 तशत था । यान दे ने यो य बात यह है क
चीन 2005-06 म भारत के मु य यापा रक साझीदार के प म उभरा है और इसे यू.एस.ए. एवं
यू.ए.ई. के बाद तृतीय थान ा त हो गया है , पर तु यह यू.के. और बेि लयम से आगे नकल
342
गया है । य द चीन और हांगकांग को एक-साथ लया जाए तो इ ह भारत के वदे शी यापार म
वतीय थान ा त हो गया है ।
3. पे ो लयम नयातक दे श (Organisation Petroleum Exporting Countries-
OPEC) से भारत का वदे शी यापार बढ़ा है । इनको कए जाने वाले नयात, जो 1987-88 म
6.1 तशत थे, बढ़कर 2005-06 म 15 तशत हो गए । पर तु इसी अव ध के दौरान आयात
म गरावट क वृि त पाई गई- 13.3 तशत से गरकर 7.7 तशत । पे ो लयम नयातक
दे श म यू.ए.ई. सबसे अ धक मह वपूण हो गया और इसके बाद सऊद अरब और इंडोने शया ह ।
4. अ का के साथ भारत का वदे शी यापार शु हो गया है, भले ह नयात एवं आयात म
अ का का भाग 2005-06 म मश: 5.6 और 3.2 तशत था । अ का अब एक छोटे
साझेदार के प म उभर रहा है और भ व य म इसके और अ धक बढ़ने क मता है ।
5. वैयि तक दे श म यू.एस.ए. का थम थान है । भारत के नयात म इसका भाग
2005-06 म 16.7 तशत था और आयात म 5.5 तशत । यू.के. ने अपना मह वपूण थान
खो दया है । भारत के नयात एवं आयात म इसका केवल 4.5 तशत ह सा ह रह गया है ।
6. पूव यूरोपीय दे श ( वशेषकर स) का स तर के दशक म भारत के वदे शी यापार म
मह वपूण थान था जो 2005-06 तक मा 2 तशत रह गया । यह ि थ त वशेषकर
यू.एस.एस.आर. के वघटन और 1992-93 म वतं रा य के रा म डल के गठन के प चात ्
य त हु ई ।
7. ऑ े लया, जापान एवं ि व लै ड ने भारत के वदे शी यापार म मह वपूण ग त क है
। दे श के आयात म इनका भाग बढ़कर 11 तशत हो गया है । 2005-06 म नयात म इनका
भाग केवल 5 तशत था जब क 1987-88 म यह 14 तशत था ।
सं ेप म यह न कष ा त होता है क भारत के वदे शी यापार का व वधीकरण हु आ है
और ओ.ई.सी डी. दे श पर भारत क नभरता म कमी य त हु ई है । क तु वकासशील दे श
( वशेषकर ए शयाई दे श )
ता लका 12.9 : भारत - वदे शी यापार क दशा
( म लयन अमे रक डॉलर)
1987-88 205-06
दे श नयात (%) आयात (%) नयात (%) आयात (%)
1. आ थक सहयोग एवं वकास संगठन 7,122 58.9 10,266 59.8 45,460 44.3 46.607 32.7
(क) ांस 292 7.4 615 3.6 2048 2.0 1,764 1.2
(i) ांस 292 7.4 615 3.6 2,048 2.0 1,764 1.2
(ii) बेि लयम 374 3.1 1,057 6.2 2,853 2.8 4,705 3.3
(iii) जमनी 817 6.8 1,665 9.7 3,517 3.4 5,818 4.1
(iv) यू.के. 783 6.5 1,410 8.2 5,146 5.0 3,898 2.7
(v) इटल 384 3.2 373 2.2 2,490 2.4 1,829 1.3
(ख) उ तर अमे रका 2,380 19.7 1,774 10.3 18,212 17.7 8,673 6.1
(i) कनाडा 128 1.1 230 1.3 1,009 1.0 895 06
(ii) यू.एस.ए. 2,252 18.6 1,544 9.0 17,203 16.7 7,778 5.5
343
(ग) अ य ओ.इ.सी.डी देश 1708 14.1 2,784 16.2 5,025 4.9 15,592 10.9
(i) आ े लया 138 1.1 388 2.3 812 0.8 4,851 3.4
(ii) जापान 1,245 10.3 1,640 9.5 2,458 2.4 3,552 2.5
(iii) ि व जरलै ड 157 1.3 182 1.1 1,614 1.6 6,922 4.9
***
2. पे ो लयम नयातक दे श 742 6.1 2,277 13.3 15-223 14.8 11,014 7.7
(i) ईरान 107 0.9 111 0.6 1,176 1.1 686 0.5
(ii) इंडोने शया 21 0.2 54 0.3 1,371 1.3 2,933 2.0
(iii) सऊद अरब 214 1.8 590 3.4 1,807 1.8 1,617 1.1
(iv) यू.ए.ई. 239 2.0 558 3.4 8,593 8.4 4,312 3.0
3. पू व यूरोप 2,001 1.7 1,640 9.6 1,960 1.9 3,690 2.6
**
(i) र शया 1514 1.3 1240 7.2 730 0.7 1,992 1.4
4. वकासशील दे श िजसम 1,719 14.2 2,967 17.3 39,785 38.5 36,809 25.8
(क) ए शया 1,443 11.9 2,077 12.1 30,961 30.1 29,849 20.9
(i) चीन गणतं 15 0.1 119 0.7 6,721 6.5 10740 7.5
(ii) हांगकांग 344 2.8 93 0.5 4,457 4.3 2168 1.5
(iii) द ण को रया 112 0.9 258 1.5 1819 1.8 4343 3.0
(iv) मले शया 70 0.6 648 3.8 1,152 1.1 2,389 1.7
(v) संगापुर 210 1.7 323 1.9 5,570 5.4 3,230 2.3
***
(ख) साक देशै 213 2.6 75 0.4 5358 5.2 1,339 0.9
(ग) अ का 9 - - - 5,809 5.6 4,549 3.2
(घ) लासीन अमे रका 53 0.3 387 2.3 3,015 2.9 2,411 1.7
5. अ य 505 4.2 6 - 297 29.1 46,298 31.1
कु ल (1 से 6) 12,088 100.0 17,156 100.0 102,725 100.0 1,42,416 100.0
नोट : औंकड़े तदनु प कॉलम म कु ल का तशत ह ।
ोत. भारतीय रजव बक, Handbook of Statistics on Indian Economy
(2005-06)
* इसम पूव एवं पि चमी दोन भाग के आँकड़े स पूण जमनी के लए शा मल कए गए
ह ।
** वत रा य के रा म डल के लए आँकड़े दए गए ह । पहले इसे यू.एस.एस.आर.
कहते थे।
*** साक दे श म सि म लत ह - भारत, पा क तान, बंगलादे श, नेपाल, भू टान, ीलंका और
माल वीव ।
**** पे ो लयम नयातक दे श (OPEC) म सि म लत ह- ईरान, इराक, कु वैत, सऊद अरब
और यू.ए.ई. ।
***** यूरोपीय संघ म बेि जयम, ांस, जमनी, इटल , नीदरलै ड और यू.के. सि म लत ह।
के साथ भारत के नयात एवं आयात म उ लेखनीय ग त हु ई है । यह भारत के वदे शी यापार
क दशा म एक अ भन दनीय संकेत है ।
344
12.5 भारत के वदे शी यापार क मु ख वशेषताएँ (Salient
Features of India’s Foreign Trade)
1. वत ता के पूव भारत का यापार संतु लन उसके प म था, जो दे श के आ थक
वकास के लए आदाता क वृ के कारण तकूल होता गया । यापार का घाटा 1950-51 म
49 करोड़ पए से बढ़कर 2003 -04 म 62394 करोड़ पए हो गया ।
2. आयात क संरचना वगत पाँच दशक म बहु त बदल गई है । बढ़ते हु ए औ योगीकरण
के कारण ाकृ तक रबड़, क ची कपास, क चे ऊन, क चे जू ट, रसायन-जैसे क चे माल तथा
इले ॉ नक व तुओं, मशीनर , प रवहन उपकरण तथा पे ो लयम एवं इसके उ पाद क माँग
बहु त बढ़ गई है । खा या न, कागज, अखबार कागज, लोहा एवं इ पात तथा पू ज
ं ीगत व तुओं
का आयात घट गया है ।
3. नयात का संघटन भी अ य धक प रव तत हो गया है । कृ षीय एवं स ब पदाथ ,
अय क एवं ख नज म गरावट दज हु ई है, जब क व न मत व तु ओं (धाग , सू तीव ,
सले सलाए प रधान ), र न एवं जवाहरात आ द के नयात म भार वृ हु ई ह । यह भारतीय
अथ यव था के व वधीकरण का सू चक है ।
4. वतं ता के बाद नए यापा रक साझीदार बन गए ह । टे न तथा जापान का अंशदान
घंटा है, जब क संयक
ु ा रा य अमे रका और ए शया के अ प वक सत दे श का अंशदान बढ़ा है ।
स का अंशदान उसके वघटन के बाद घट गया है । संयु त रा य अमे रका 2003-04 म
वृह तम यापा रक साझीदार था , इसका अंशदान कुल भारतीय यापार म 11.6 तशत था ।
इसके प चात ् संयु त अरब अमीरात (5.1 तशत), चीन (5.0 तशत), टे न (4.4 तशत),
बेि लयम (4.1 तशत), जमनी (3.9 तशत), हांगकाग (3.4 तशत), जापान (3.1
तशत), संगापुर (3 तशत), ि व जरलै ड (2.7 तशत) तथा मले शया (2.1 तशत) का
थान रहा । ये दे श मलकर भारत के यापार म 48.2 तशत योगदान करते ह । इससे दे श के
यापार के व वधीकरण म सहायता मल ह ।
5. भारत ने अपने यापार के व वधीकरण के लए अनेक दे श से यापा रक समझौते कए
है । ये समझौते अफगा न तान, चेक गणतं , फनलै ड, मस, घाना, ईरान, इराक, जापान,
जोडन, हंगर , के या, मोजाि बक, लाइबे रया, मोर को, नेपाल, स, लोवाक, यूनी शया ,
युगा डा , युगो ला वया , यांमार, िज बाबे आ द दे श के साथ हु ए ह । अनेक ादे शक वप ीय
समझौते भी हु ए ह । गैट ने भारत को अ तरा य बाजार म वत तापूवक वेश करने के नए
अवसर दान कए ह ।
बोध न : 4
1. 1987-88 से 2005-06 के दौरान भारत क वदे शी यापार क दशा म या-
या मह व-पू ण प रवतन ल त हु ए ह?
2. भारत के वदे शी यापार चार मु ख वशे ष ताएँ बताइए।
345
12.6 भारत क यापार नी त (India’s Trade Policy)
वत ता के बाद भारत ने ऐसी यापार नी त अपनाई जो सामा य आ थक नी त का
भाग थी । यापार नी त के दो मु ख उ े य थे - आयात को यूनतम तर पर रखना तथा
नयात को समु नत करना । इन उ े य के साथ यापार नी त ने आयात पर कठोर नय ण,
नयात को ो साहन, वप ीय यापार समझौत तथा वदे श के साथ सरकार वारा यापार को
बढ़ाने पर बल दया गया ।
भारत ने चौथी पंचवष य योजना तक संर णवाद यापार नी त अपनाई । यह आयात
लाइस संग कोटा, शु क तथा पाबि दय वारा कया गया । तृतीय योजना काल म नयाल कौ
ो साहन दे ने पर बल दया गया था । इसम यापा रक सं थाओं क थापना, व तीय तथा
अ य ो साहन दे ना सि म लत थे । इसका उ े य औ यो गक लाइस संग नी त म उदार करण,
अनेक नयात सं करण े क थापना, नयातो मु खी इकाइय को ो साहन, नयातो पर लगे
नय ण म ढ ल, नयात के लए बल े क पहचान, नयातक को उधार तथा व तीय
सहायता, नयात को ो साहन दे ने के लए तकनीक वकास फ ड तथा उ पाकता फ ड का
सृजन आ द करना था । इन उपाय ने छठवीं योजना (1980-85) के अंत तक नयात क वृ
म सहायता क ।
नयात म ि थरता लाने, नयात उ पादन आधार को सश त बनाने, ा व धक य
उ नयन को सु वधा दे ने तथा आयात म बचत लाने के उ े य से 1985 क EXIM ( नयात-
आयात) नी त क घोषणा तीन वष के लए क गई । 1988 क EXIM नी त म वगत नी त
(1985) म मामू ल प रवतन कए गए । 1990 क EXIM नी त पुन . तीन वष के लए घो षत
क गई िजसम पुन: उदार करण पर बल दया गया । 1992 क EXIM नी त पाँच वष (1992-
97) के लए घो षत क गई िजसम नयात क वृ तथा पू ज
ं ीगत एवं अ य मह वपूण व तुओं
क आयात या म उदार करण के लए कुछ ाि तकार उपाय कए गए । 1997 क ह ाभ
नी त पुन : पाँच वष के लए (1997-2002) घो षत क गई । इसम उदार करण क या जार
रह ।
2002-07 क EXIM नी त म वशेष आ थक े (SEZs) के वकास, फाम उ पाद
के नयात बढ़ाने -के लए कृ ष े का व नय ण 32 कृ ष- नयात े क थापना, प रधान
े म 50 मू य अ भवृ के नयात मद को आर ण से बाहर रखना, वदे श-ि थत भारतीय
मशन म यवसाय के क थापना स हत एक स पूण पैकेज क घोषणा क गई ।
346
लए क चे माल के वाह तथा न वि टय को सहज बनाने के लए आयात का भी मश:
उदार करण कया जा रहा है । इसके प रणाम व प वदे शी उ पादन का आधार व तृत तथा
आधु नक बन गया है । भारत 1995 म था पत व व यापार संगठन का सं थापक सद य है ।
भारत के यूरोपीय संघ, संयु त रा य अमे रका, साक आ द से वप ीय समझौते ह । लै टन
अमे रका, अ का तथा म य ए शयाई गणत के साथ यापार पर वशेष बल दया जा रहा है
। ए सपो स मोशन इ डि यल पाक (EPP) योजना 1994 म लागू क गई है । इि डया
ा ड इि वट फ ड चालू कया गया है । नयात तथा ISO मानक म उ चतर गुणव ता ा त
करने के लए ो साहन दया जा रहा है ।
348
3. व व यापार सं ग ठन के जु ड़ाव के फल व प भारत के वदे शी यापार के या
सु अवसर ा त हु ए?
4. व व यापार सं ग ठन के जु ड़ाव के फल व प भारत के वदे शी यापार को कौन-
कौन सी चु नौ तय का सामना करना पड़ रहा ह ?
349
नयात को ो साहन, मु त यापार वातावरण का सृजन, नयात आधार का सश तीकरण,
वदे शी उ पादन के आधार म व तृतीकरण व आधु नक करण, नयात संवधन पाक (EPIPs)
और वशेष आ थक े (SEZs) क योजना का काया वयन, इि डया ा ड इि वट फ ड का
शु भार भ, नयात तथा 150 मानक म उ चतर गुणव ता क ाि त इ या द ।
व व यापार संगठन (WTO) से जु डाव के फल व प भारत अब (i) चीन स हत 145
दे श के साथ मु त यापार कर सकेगा, तथा (ii) अपने कृ षीय व कृ ष'-औ यो गक पदाथ , व
व सले सलाए कपड़ , र न व आभू षण का नयात बढा -सकेगा । साथ ह , कु छ चु नौ तयाँ भी
बढ जाएँगी, जैसे - (i) बहु रा य क प नय से अपनी भु स ता पर नय ण, (ii) कृ षीय आयात
पर नय ण समा त होने से कृ षीय अथ यव था के व त हो जाने का खतरा, (iii) बहु रे शी
समझौता समा त हो जाने से व एवं प रधान के नयात म चीन व द ण को रया से कड़ी
त प ा आद ।
उपयु त चु नौ तय का सामना करने के लए भारत ने अपनी 2002-07 क यापार
नी त म अनेक उपाय कए ह, जैसे - वशेष आ थक े (SEZs) का वकास कृ ष े का
व नय ण 32 कृ ष- नयात े क थापना, प रधान े म 50 मू य अ भवृ के नयात
मद को आर ण से बाहर रखना, वदे श-ि थत भारतीय मशन म यवसाय के क थापना
आ द । इन सम त उपाय को एक पैकेज के प म लाग कया जाएगा ।
350
स बि धत मद म ह रे व क मती प थर, कॉब नक व अकॉब नक रसायन व (सू त एवं
फै स) तथा काजू और (iii) लाि टक का सामान, यावसा यक एवं वै ा नक उपकरण, कोयला
एवं कोक, रसायन तथा गैर- धातु क ख नज उ पाद ।
7. अय क (Ore) : भू गभ से खदान वारा नकाला जाने वाला ाकृ तक पदाथ िजसम
उपयोगी धाि वक ख नज व यमान होते ह ।
8. वक सत दे श (Developed Countries) : वे दे श िजनके संसाधन का पया त
वकास हो चु का हो तथा जहाँ त यि त वा त वक आय अपे ाकृ त अ धक हो । उदाहरणाथ,
संयु त रा य अमे रका, पि चम यूरोपीय दे श , जापान, ऑ े लया आ द ।
9. वकासशील दे श (Developing Countries) : वे दे श जो पहले अ प वक सत थे
क तु वतमान म वक सत होने क या म ह । उदाहरणाथ, ए शयाई, लै टन अमे रक तथा
अ क दे श ।
12.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. ऐसे आयात जो उ पादन के कु छ े म नई मता था पत करते ह या उ पादन के
अ य े म मता का व तार करते है । उदाहरणाथ, इ पात संयं , इंजन कारखाने,
जल व युत ् प रयोजनाएँ ।
2. ऐसे आयात जो दे श म था पत उ पादन मता का. पूरा योग करने के लए कए जाते
ह । उदाहरणाथ, क चे माल तथा अ तवत व तु एँ ।
3. ऐसी उपभो ता व तुओं के आयात िजनका संभरण औ योगीकरण काल म कम होता है ।
इससे उपभो ता व तु ओं क कमी दूर होती है और उनक क मत म वृ भी कती है ।
उदाहरणाथ, खा या न, चीनी, व आद ।
4. एक नि चत समयाव ध म कसी दे श के सम त य आयात मू य तथा नयात मू य
का अ तर । नयात मू य आयात मू य से अ धक होने पर धना मक यापार-संतल
ु न और इसक
वपर त दशा म ऋणा मक संतल
ु न ।
5. सीमा शु क, अ वक सत या अ प वक सत दे श, वेदशी माल के उ पादन पर छूट अथवा
सि सडी, कोटा णाल , यापार संघ का गठन (जैसे - पे ोल नयातक संघ - OPEC), वदे शी
मु ा नयमन वारा तब धन, प रवहन लागत म वृ , अ तरा य यापार समझौते व
संगठन, जैसे- GATT, NAFTA, OPEC, SAFTA, EEC, EFTA, LAFTA, 'ASEAN
आद ।
बोध न - 2
6. (i) पू ज
ं ीगत व तु ओं व क चे माल के आयात म वृ , (ii) नयात ो साहन हेतु क चे
माल के आयात का उदार करण, तथा (iii) खा या न व उपभो ता व तुओं म
आ म नभरता के फल व प इनके आयात म गरावट ।
बोध न - 3
351
7. (i) कृ ष और स बि धत उ पाद, (ii) अय क एवं ख नज, (iii) न मत व तु ए,ँ तथा
(iv) ख नज ईधन (कोयला स हत) और नेहक ।
8. (i) भारतीय अथ यव था म व वधीकरण, (ii) गैर-पार प रक नयात म वृ , (iii)
इंजी नय रंग व तु ओं के नयात म व तार, (iv) अ तरा य बाजार म भारत क
त प ा मक मता म वृ , (v) ह त श प, इंजी नय रंग व तु ओं और सले सलाए
कपड़ के नयात म वृ , (vi) चीनी, पटसन, सू त एवं न मत व तुओं तथा लौह-इ पात
के नयात म भार उतार-चढ़ाव, तथा (vii) कृ षगत व तुओं ( वशेषकर चावल), फल-
स जी और सा धत खा य पदाथा के नयात म वृ ।
2. ऐसे आयात जो दे श म था पत उ पादन मता का पूरा योग करने के लए कए जाते
ह । उदाहरणाथ, क चे माल तथा अ तवत व तु एँ ।
3. ऐसी उपभो ता व तुओं के आयात िजनका संभरण औ योगीकरण काल म कम होता है ।
इससे उपभो ता व तुओं क कमी दूर होती है और उनक क मत म वृ भी कती है ।
उदाहरणाथ, खा या न, चीनी, व आद ।
4. एक नि चत समयाव ध म कसी दे श के सम त य आयात मू य तथा नयात मू य
का अ तर । नयात मू य आयात मू य से अ धक होने पर धना मक यापार-संतु लन
और इसक वपर त दशा म ऋणा मक संतु लन ।
5. सीमा शुला, अ वक सत या अ प वक सत दे श, वेदशी माल के उ पादन पर छूट अथवा
सि सडी, कोटा णाल , यापार संघ का गठन (जैसे - पे ोल नयातक संघ - OPEC),
वदे शी मु ा नयमन वारा तब धन, प रवहन लागत म वृ , अ तरा य यापार
समझौते व संगठन, जैसे- GATT, NAFTA, OPEC, SAFTA, EEC, EFTA,
LAFTA,ASEAN आ द ।
बोध न. 2
1. (i) पू ज
ं ीगत व तु ओं व क चे माल के आयात म वृ , (ii) नयात ो साहन हेतु क चे
माल के आयात का उदार करण, तथा (iii) खा या न व उपभो ता व तुओं म
आ म नभरता के फल व प इनके आयात म गरावट ।
बोध न : 3
1. कृ ष और स बि धत उ पाद, (ii) अय क एवं ख नज, (iii)ऐ न मत व तु ए,ँ तथा (iv)
ख नज ईधन (कोयला स हत) और नेहक ।
2. भारतीय अथ यव था म व वधीकरण, (ii) गैर-पार प रक नयात म वृ , (iii)
इंजी नय रंग व तु ओं के नयात म व तार, (iv) अ तरा य बाजार म भारत क
त प ा मक मता म वृ , (v) ह त श प, इंजी नय रग व तु ओं और सले सलाए
कपड़ के नयात म वृ , (vi) चीनी, पटसन, सू त एवं न मत व तुओं तथा लौह-इ पात
352
के नयात म भार उतार-चढ़ाव, तथा (vii) कृ षगत व तुओं ( वशेषकर चावल), फल-
स जी और सा धत खा य पदाथ के नयात म वृ ।
बोध न 4
1. (i) आ थक सहयोग एवं वकास संगठन (ii) दे श के साथ नयात म गरावट (59
तशत से 44 तशत) । इ ह ं दे श से आयात म गरावट (60 तशत से 33
तशत), (iii) वकासशील दे श (ए शया लै टन अमे रका और अ का) के साथ नयात
म वृ (14 तशत से 39 तशत) । इ ह ं दे श से आयात मे भी वृ (17 तशत
से पढ़कर 28 तशत), (iii) पे ो लयम नयातक दे शो (OPEC) को नयात म वृ द (6
तशत से 16 तशत), क तु आयात मे गशदट (1३ तशत से 8 तशत), (iv)
अ का के साथ वदे शी यापार म वृ , (9) संयु त रा य अमे रका के साथ यापार म
वृ जव क सयुक रा य (U.K.) के साथ कमी, (vi) ए शया के साथ यापार म
अ य धक कमी, तथा (vii) ऑ े लया, जापान और ि वटजरलै ड के साथ आयात ने
वृ क तु नयात ने कमी ।
2. (i) यापार-घाटे म वृ (1950-51 म 49 करोड़ पए से बढ़कर 2003-04 म
62,394 करोड़ पए), (ii) आयात क संरचना म अ य धक बदलाव - क चे माल और
इलेि ा नक व तुओं के आयात म वृ जब क खा या न , कागज व पू ज
ं ीगत व तु ओं के
आयात म गरावट, (iii) नयात संरचना म भी अ य धक बदलाव - कृ ष पदाथ , अय क
एवं ख नज म गरावट जब क व न मत व तु ओ,ं ह रे एवं जवाहरात के नयात म भार
वृ , तथा (iv) अ तरा य यापा रक समझौत तथा यापार संगठन के साथ
साझीदार के कारण यापार व वधीकरण ।
बोध न. 5
1. वशेष आ थक े (SEZs) का वकास, कृ ष े का व नय ण 32 कृ ष- नयात
े क थापना, प रधान े म 50 तशत मू य अ भवृ के नयात मद को
आर ण से बाहर रखना, वदे श-ि थत भारतीय मशन म यवसाय के क थापना
आ द का स पूण पैकेज ।
2. नयात को ो साहन, यापार म मु त वातावरण सृजन के अनेक उपाय , नयात के
आधार का सश तीकरण, वदे शी उ पादन के आधार म व तृतीकरण व आधु नक करण,
अ तरा य यापार समझौत और यापार संगठन के साथ सहयोग म वृ , नयात
संवधन औ यो गक पाक (EPIP) क योजना लागू इि डया ा ड इि वट फ ड चालू
नयात तथा ISO मानक म उ चतर गुणव ता ।
3. (i) अब भारत चीन स हत 145 दे श के साथ मु त यापार कर सकेगा, (ii) भारत
अपने कृ षीय तथा कृ ष -औ यो गक पदाथ का नयात बढ़ा सकेगा, तथा (iii) भारत
व तथा सले सलाए कपड़ , र न एवं आभू षण का नयात बढ़ा सकेगा य क कतर म
353
स प न दोहा स मेलन (2001) म हु ए समझौत के तहत बहु रे शी समझौता वष 2004
म समा त हो गया है ।
4. (i) बहु रा य क प नय से अपनी भु स ता पर नय ण करने क चु नौती, (ii) कृ षीय
आयात पर नय ण समा त होने से कृ षीय अथ यव था के व त हो जाने क चु नौती,
तथा (iii) बहु रे शी समझौता क समाि त से व एवं प रधान के नयात म चीन तथा
द ण को रया से कड़ी त प ा ।
12.13 अ यासाथ न
1. वदे शी यापार कसी-भी दे श क आ थक ग त का बैरोमीटर होता है । वकासशील
अथ यव था के स दभ म इस कथन का आशय व मह व प ट क िजए ।
2. वत ता-उपरा त छठव योजना काल (1960-65) तक भारत के वदे शी यापार क
संरचना व दशागत प रवतनो क समी ा मक दवेचना क िजए ।
3. सातव योजना काल (1985-90) से नौव योजना काल (2001 -02) तक भारत के
वदे शी आपार क संरचना व दशागत प रवतन क समी ा मक वदे चना क िजए ।
4. दसव पंचवष य योजना काल (2002-06) के दौरान भारत के वदे शी यापार क संरचना
व दशागत प रवतन क समी ा मक ववेचना क िजए ।
5. 1951 के प चात ् भारत के आयात ढाँचे म लगातार. वृ तथा संरचना मक प रवतन
के लए उ तरदायी उन कारणत व क ववेचना क िजए िज ह ने इस पर संचयी भाव
डाला ।
6. 'वष 1970-71 के प चात ् भारतीय नयात ढाँचा न मत व तु ओं के प म प रव तत हो
रहा है ।’ सकारण सोदाहरण प ट क िजए ।
7. वत ता-उपरा त काल म भारत के नयात ढाँचे म संरचना मक व दशागत प रवतन
क सकारण सोदाहरण ववेचना क िजए ।
8. वगत छ: दशक म भारत के वदे शी यापार म घ टत संरचना मक तथा े ीय दशागत
प रवतन क सकारण सोदाहरण समी ा क िजए ।
9. वतं ता-उपरा त भारत क बदलती हु ई यापार नी तय क समी ा मक या या
क िजए।
10. सं त ट प णयाँ ल खए -
(i) नयात संवधन े (Export Promotion Zones- EPZs), तथा
(ii) वशेष आ थक े (Special Economic Zones- SEZs) ।
11. व व यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) ने भारत के वदे शी
यापार के सम या- या सु अवसर और चु नौ तयाँ उपि थत क ह?
354
इकाई 13 : मु ख जनजा तयाँ : नागा, गो ड, भील, संथाल,
टोडा एवं सह रया (Major Tribes: Naga,
Gond, Bhil, Santhal, Toda, and
Sahariya)
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 भारत म जनजा तय का वतरण
13.3 नागा जनजा त
13.3.1 आवास
13.3.2 अथ यव था
13.3.3 सां कृ तक वातावरण
13.4 ग ड जनजा त
13.4.1 आवास
13.4.2 अथ यव था
13.4.3 सां कृ तक वातावरण
13.5 भील जनजा त
13.5.1 आवास
13.5.2 अथ यव था
13.5.3 सां कृ तक वातावरण
13.6 संथाल जनजा त
13.6.1 आवास
13.6.2 अथ यव था
13.6.3 सां कृ तक वातावरण
13.7 टोडा जनजा त
13.7.1 आवास
13.7.2 अथ यव था
13.7.3 सां कृ तक वातावरण
13.8 सह रया जनजा त
13.8.1 आवास
13.8.2 अथ यव था
13.8.3 सां कृ तक वातावरण
355
13.9 सारांश
13.10 श दावल
13.11 स दभ थ
13.12 बोध न के उ तर
13.13 अ यासाथ न
13.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे क -
भारत क मु ख जनजा तयाँ कौन सी ह?
भारत क इन मु ख जनजा तय का वतरण कह -ं कह ं पाया जाता है?
भारत क इन मु ख जनजा तय के आवास कैसे होते ह?
भारत क इन मु ख जनजा तय क अथ यव था कस कार क है? एवं
भारत क इन मु ख जनजा तय का पयावरण के साथ सामंज य कैसा है?
356
(ii) म य े : यह े गारो पहा ड़य तथा राजमहल पहा ड़य के बीच के अ तर के कारण
उ तर-पूव े से अलग पड़ गया है । उ तर म स दु गंगानद के े से लेकर द ण म
लगभग कृ णा नद के पठार और पहाड़ आते ह । इस े म संथाल, मु डा, ओरांव, लुमइज,
ख रया, क ध, सावरा, ग ड, बैगा, भील आ द मु य जनजा तयाँ पाई जाती ह ।
(iii) द ण े : इस े म कृ णा नद से द ण का भाग आता है । इस े म नवास करने
वाल मु ख जनजा तयाँ ह – चगू, कोटा, बडागा, टोडा, काडर, मलयान, मु थु वन, उरल , का णकर
आद ।
इन े के अ त र त बंगाल क खाड़ी म ि थत अ डमान तथा नकोबार वीप समू ह
का े है । ल वीप म भी आ दम जनजा तयाँ पाई जाती ह । सं या क ि ट से ये
जनजा तयाँ छोट ह, क तु मानव- व ान क ि ट से मह वपूण ह ।
357
अ णाचल म डफला, मर और लपायती और दहाग घाट म गल ग, मनय ग, पासी, प ा और
पगी नागा जनजा त के उपवग रहते ह ।
इस े म उ णाद जलवायु क धानता है । समु तल से अ धक ऊँचाई के कारण
तापमान नीचा रहता है । बंगाल क खाड़ी के मानसू न से औसत वषा 200 से 250 से.मी. तक
होती है । नचले भाग दलदल होने के कारण नागा लोग 2000 मीटर ऊँचाई के पवत पर
नवास करते ह । इनके घर 7-8 मीटर ल बे, 4-5 मीटर चौड़े होते ह, िजनके पछवाड़े म चबूतरा
बना होता है । छत पर ताड़, चीड़, साल या बीस के ल पर छ पर बने होते ह । फश पर व
द वार पर चटाई, बाँस क चटाई होती है । नागा ब ती म 250-300 घर या इयप डयाँ तथा
700-800 कु ल जनसं या पाई जाती है । ब ती वन से घर होती है ।
नागा लोग के गाँव ढाल पर नह ं वरन ् पहाड़ी कटक पर बसते ह । ढाल पर उनके खेत
होते ह जो जंगल को जलाकर बनाये जाते ह । गाँव बसाने क ि थ त (Location) के लए दो
बात का यान रखा जाता है - (i) गाँव के आस-पास कृ ष यो य भू म उपल ध हो, और (ii)
पास म जल का कोई थाइ ोत हो ।
िजस थान पर नागा लोग नृ य करते ह , वहाँ एक वृ ताकार ईट का घेरा बना होता है
। मारम नागा अपने घर का वार पि चम को नह ं बनाते ह, य क पि चम से शीतल वायु
आती है ।
13.3.2 अथ यव था (Economy)
358
पहाडी े म रहने वाले नागा पहाड़ को काटकर सीढ़ नुमा खेत तैयार करके अब कृ ष
काय करने लग गए ह । पर तु अभी भी कई े म थाना त रत कृ ष ह क जाती है, िजसे
झू मंग कृ ष के नाम से जाना जाता है । जंगल को काटकर व साफ करके भू म पर एक थान
पर दो या तीन वष तक कृ ष क जाती है । बाद म ल बे समय के लए उस भू म को परती
छोड़ दया जाता है । इस बीच म इस पर पुन: झा ड़याँ उग आती ह, तब उ ह फर साफ करके
कृ ष करते ह । सीढ़ दार खेत बनाने से भू म अपरदन व कटाव क जाता है फसल क संचाई
के लए तालाब व नहर का उपयोग कया जाता है । कृ ष पादन क ि ट से नागा जनजा त
वावल बी नह ं है । ये लोग बाग भी लगाते ह । बागवानी फसल के उ पादन म संतरा, सेव,
नासप त तथा चाय का उ पादन करते ह । इस दे श क मु य फसल ' पहाड़ी धान ' है । चाय
क झा ड़याँ जंगल प म मलती ह । कु छ कपास भी उ प न कया जाता है ।
कु ट र उ योग (Cottage Industry)
नागा जनजा त का मु य कु ट र उ योग धाग वारा कपड़ा बुनना है उ तर -पूव भारत
क अ धकांश आ दम जनजा तय वारा छोटे क व के मा यम से कपड़ क बुनाई क जाती है ।
यह ध धा सभी नागाओं म च लत नह ं है । केवल दो उपवग ह इस उ योग म लगे ह । नागा
जनजा त म म वभाजन का कठोरता से पालन कया जाता है । जैसे - कु छ लोग कपास उगाते
ह, कु छ सू त कातते ह, अ य कपड़ा बनाते ह तथा कु छ म ी के बरतन बनाते ह । चटाइयाँ एवं
टोक रयाँ बनाना सभी वग म च लत है । लु हार को बड़े आदर-भाव क ि ट से दे खा जाता है ।
यह येक गाँव म रहता है और कृ ष के लए औजार बनाता है ।
359
। फसल का उ पादन अ धक या कम होना दे वा मा क शि त पर नभर माना जाता है । ये लोग
जादू-टोन म बहु त व वास करते ह । भारत क वतं ता ाि त के बाद से नागा लोग अ य
लोग के स पक म आए ह और श ा का चार बढ रहा है ।
ईसाई मशन रय के स पक म आने से अ धकतर नागा लोग ईसाई बन गए ह ।
13.4.2 अथ यव था (Economy)
360
बोने क या दोहराई जाती है । कृ ष के इस तर के को यहाँ ' द पा (Dippa)' कहते ह ।
ब तर के पहाड़ी ढाल म सीढ़ नुमा खेत बनाकर इसी कार क कृ ष क जाती है । िजसे यहाँ
'पै डा (Penda)'' कहते ह । दोन कार क कृ ष म एक कार क फसल होने के प चात ् भू म
को दो-तीन वषा के लए परती छोड़ दया जाता है, िजससे नए पेड़-पौधे उग सक और भू म क
उवरता बढ़ सके । इसी कार क कृ ष भारत के उ तर -पूव े क जनजा तय वारा भी क
जाती है ।
इन जनजा त े ो के िजन भाग म जल ा त होता है, वहाँ ढाल से छोट -छोट नहर
काटकर नीचे खेत को लाई जाती ह । खेत म म ी क आ ता को बनाए रखने के लए ढाल के
नचले भाग म लकड़ी के ल े रख दए जाते ह, िजनके वारा बहता हु आ जल म ी म का
रहता है । भू म संर ण क यह व ध ग ड जनजा तय वारा वातावरण वारा समायोजन का
एक बु पूण उदाहरण है ।
म यपालन (Fishing)
ब तर क सभी आ दम जनजा तयाँ म ल पालन थोड़ी बहु त मा ा म अव य करती ह ।
पर तु कु ख वग ने म ल पालन को थाई पेशा बना लया है । ये लोग कृ ष नह ं करते ह,
इस लए यह मा रया वग से पूणत पृथक है । कु ख , केवट तथा धींमर वग के ग ड लोग मलय
पालन के वारा जीवन-यापन करते ह ।
पशु चारण (Pasturing)
ग ड जा त का रावत वग पशु पालन करता है । इनका दया दु ध, दह व अ य साम ी
सभी हण कर लेते ह, य क समाज म इ ह उ च थान ा त है । रावत को इन साम य
के बदले अ य साम ी मल जाती है । ये लोग क ब व शहर म जाकर भी दूध बेचते ह ।
कु ट र उ योग (Cottage Industry)
ग ड लोग गाँव म कु ट र उ योग था पत कर अपने आव यकता के औजार बनाते ह ।
येक गाँव या दो-तीन गाँव के लए एक लौहार होता है, जो खेती के बहु त साधारण औजार
बनाता है । उन लोग म लौहार कोई अलग जा त नह ं होती पर तु ग ड म से कुछ लोग लौहार
का पेशा पीढ़ -दर-पीढ़ करते रहते ह ।
आ दे श म गंजम और वशाखाप नम ् िजल म सावरा (Savra) वग के बहु ंत से
ग ड प रवार छोटे उ योग म लगे रहते ह । जैसे - अर सी (Arisi) वग के लोग हाथ करघ से
कपड़े बुनते ह; कु दाल वग के लोग टोक रयाँ बनाते ह और बहु त से प रवार लौहार ह ।
361
साल काम करना पड़ता है । पस द आने पर ववाह होता है , अ यथा लड़क को लड़क का घर
छोड़ना पड़ता है । पु ष एक से अ धक प नी रख सकते ह । इसी कार प नी अपने प त को
छो कर अ य पु ष के साथ भी रह सकती है । तलाक के बाद ब च पर पहले प त का अ धकार
होता है ।
ग ड लोग ववाह उ सव आम, पीपल, तालाब व नद कनारे करना पस द करते ह ।
इनक रामधु न, नृ य तथा वा य यं को बजाने क भी च होती है । पु ष- ी साथ-साथ नृ य
म भाग लेते ह । गाँव के मु खया को पटे ल तथा चौक दार को कोतवाल कहते ह । इनके येक
गाँव म एक पुजार होता है , िजसे ' दे वार ' कहते ह ।
ये लोग मांसाहार व शाकाहार दोन कार का भोजन पस द करते ह । ववाह तथा
अ य उ सव पर शराब का अ धक उपयोग कया जाता है । यह इनक गर ब व पछड़ेपन का
एक मु ख कारण है । वतमान म बड़ी सं या म ये लोग लौह इ पात कारखान तथा खान म
मजदूर करते ह ।
भारत सरकार वारा जनजा त समू ह को वतमान म कई कार क सहायता द जा रह
है िजससे इनका पछड़ापन दूर हो सके । आधु नक समाज के स पक म आने के बाद ग ड
जनजा त म भी जाग कता आती जा रह है ।
बोध न : 1
1. डफला जनजा त कस जनजा त का उपवग है ? 0
2. नागा लोग वारा क जाने वाल थाना त रत कृ ष को कस नाम से जाना
जाता है ?
3. नागा जनजा त का मु य कु ट र उ योग या है ?
4. ग ड जा त का नवास े कह ं है ?
5. ग ड जनजा त के छोटे -छोटे गाँ व को या कहते ह ?
6. ' द पा ' कृ ष कस जनजा त वारा क जाती है ?
362
इनके घर म एक् भाग म या पडौस म भेड़, बकर या गाय के बाँड़ने का थान भी
ऊँचाई पर होता है । घर म ये लोग मचान या ऊँचे बांस क लकड़ी या खपि चय से बने नाग पर
सोते ह, ता क जमीन क सीलन से एवं जहर ले जानवर से बचा जा सके ।
डॉ. मजू मदार के अनुसार भील लोग पूव- ा व ड़यन जा त के ह । क तपय व वान इ ह
मु डा जा त के भी मानते ह । कुछ के अनुसार भील जा त के लोग भारत के ह मूल नवासी
ह।
भील के नवास े क जलवायु उपो ण है ।अत: ये लोग सू ती व पहनते ह । ऊनी
पहनने क आव यकता केवल शीतकाल म होती है, पर तु तब ये लोग क बल ओढ़कर शीत से
र ा कर लेते ह । भील जा त के लोग जंगल म रहकर धनुष-बाण वारा आखेट करके कई
शताि दय से अपना जीवन यापन कर रहे ह।
13.5.2 अथ यव था (Economy)
भीलो म पतृस ता मक प रवार पाए जाते ह । प रवार का मु खया पता, दादा, पड़डदादा
होता है, िजसक आ ा का पालन करना हर प रवार के सद य का उ तरदा य व होता है । वंश
यव था पतृप से ह चलती है । प रवार के येक सद य के भोजन, व , यवहार,
अनुशासन, ववाह आ द क यव था एवं उ तरदा य व प रवार के मु खया का होता है ।
सि म लत कु टु ब णाल उनके प रवार का आधार है । भील के नवास े क जलवायु उपो ण
होने के कारण ये लोग सू ती व पहनते ह । शीतकाल म ये लोग क बल ओढ़कर सद से अपनी
र ा कर लेते ह । इन लोग म म दरापान का चलन है । जंगल से ा त हु ई भाँग आ द क
363
पि तय को सड़ाकर घरे लू म दरा बनाई जाती है । वशेषत: ववाह के अवसर एवं उ सव पर
म दरा का चलन अ धक है ।
ि य को आभू षण का बड़ा चाव होता है । हाथ म हाथी दाँत के ले और चाँद के कड़े
होते ह । ग ने म चाँद क हँ सल , माला, माथे पर चाँद का बोरला तथा जंजीर, पैर म चाँद के
कडे, हाथ और पाँव क अंगु लय म चाँद के छ ले होते ह ।
भील म बहु त से दे वी-दे वताओं क पूजा क जाती है । ये अ ध व वासी होते ह । भूत -
ेत म व वास करते ह ।
भारत सरकार क ओर से, अब इनके े ो म व यालय खोले जा रहे ह, कु छ
द तका रयाँ सखलाई जा रह ह और श ा का चार कया जा रहा है ।
13.6.2 अथ यव था (Economy)
संथाल लोग अ धकतर कृ ष काय करते ह । खेती क कमी म ये लोग आखेट करके तथा
जंगल से क द-मूल -फल एक त कर अपना जी वकोपाजन करते ह । हालाँ क कृ ष इनका
पर परागत यवसाय है फर भी ये लोग मछल पालन, भोजन सं हण म शकार जैसे काय भी
करते ह । आजकल संथाल जनजा त पशु पालन यवसाय भी करने लग गई है । ये लोग अब
थाई कृ ष करने लग गए ह । जहाँ पर भू म उपजाऊ है, वह पर ये अपना थाई नवास बना
लेते ह । िजस े म ख नज पदाथ मलते ह, वहाँ ये लोग औ यो गक काय म संल न हो गए
ह । जमशेदपुर आ द नगर म ये लोग सरकार और गैर-सरकार उ योग म रोजगार करने लग
ग ए है । कृ ष काय म भ न- भ न फसल बोने के लए व भ न तर के काम म लेते ह । चावल
को या रय म बोया जाता है, िजसम धान के पौध को थाना त रत करके लगाया जाता है
। वार, बाजरा आ द मोटे अनाज को बखेरकर बोया जाता है ।
364
जंगल काटकर, साफ करने वाल जनजा तय म संथाल सबसे उ तम है, क तु अ छे
कृ षक बनने के लए अभी उ ह बहु त कुछ सीखना पडेगा । िजन भाग म कटे जंगल है. वहाँ
संथाल लोग भू म साफ करके बस गए ह । एक ह खेत को ये तवष बोते रहते ह । ये लोग
संचाई, खा य तथा फसल के हेर-फेर पर कम यान दे ते ह, अत: खेती क उपज बहु त ह कम
होती है, और इन लोग को जीवन-यापन करने के लए आखेट तथा मजदूर क शरण लेनी पड़ती
है । खान खोदने, चाय के बगीच म काम करने वाले मजदूर म अ धक सं या संथाल मजदूर
क होती है । बहार क अ क कोयले तथा लौहे क खान म ये लोग काय करते ह ।
365
4. सं थाल जनजा त का नवास मु य दे श कौनसा है ?
5. सं थाल लोग का मु य यवसाय या है ?
6. सं थाल जनजा त का सामािजक सं ग ठन कस णाल पर आधा रत होता है ?
13.7.2 अथ यव था (Economy)
366
टोडा लोग शाकाहार होते ह, जो केवल पूजा-उ सव , यौहार आ द के समय दे वताओं को
स न करने के लए द गई पशु-ब ल के प चात ् कम -का ड के प म माँस भ ण करते ह ।
इनका मु य भोजन भस का दूध, दह , क दर-मू ल-फल और शाक-सि जयाँ ह ।
ं येक गांव का एक ाम दे वता होता है । अ य दे वी-दे वताओं को भी मानते ह । मृतक
सं कार बड़े ज टल होते ह । मृतक यि त क है सयत के अनुसार कम या अ धक सं या म
भस क पशु-ब ल द जाती ये लोग धोती बाँधते ह और कंधे से लेकर नीचे तक एक सूती चौगा
पहनते ह, जो गदन से पैर तक शर र को ढके होता है, इसम से दोन हाथ बाहर नकले होते ह
। पु ष और ि याँ सभी इस कार के ल बे चौगे पहनते ह । वतमान म अ य लोग से स पक
के कारण इनके पहनावे म प रवतन आ रहा है ।
दूसरे लोग से बातचीत करते समय टोडा लोग त मल और क नड़ क म त भाषा
बोलते ह पर तु वे आपस म अपनी आ दम भाषा बोलते ह । त मलनाडु रा य सरकार अब इनक
श ा, च क सा और आ थक सहायता का ब ध करने पर वशेष यान दे रह है ।
सह रया जनजा त राज थान रा य के बार िजले म नवास करती है । यहाँ भी इनका
अ धकांश भाग शाहबाद एवं कशनगंज पंचायत स म तय म पाया जाता है । बार िजले क
सम त जनजा त जनसं या का 20 तशत भाग सह रया लोग से बना है ।
ये लोग समू ह म नवास करते ह । इनके घर बाँस क खपि चय , बाँस और घास क
छत के बने होते ह । इनके घर के समू ह को शहरोल (Shahrol) कहते ह । इनके गाँव बखरे
हु ए नह ं वरन ् एक समू ह म पाए जाते ह ।
13.8.2 अथ यव था (Economy)
367
जा त का मु ख कोतवाल कहलाता है उसी क आ ा का पालन सभी लोग करते ह। वह गाँव के
सामािजक, आपरा धक सभी मामल का नपटारा करता है ।
ये लोग अब गेहू ँ खाना पस द करते ह । क तु इनका पूव खा या न वार रहा है ।
म का, जौ, साक एवं अ य खा य पदाथ बाजरा है । ये लोग यौहार पर पकवान बनाकर भी
खाते ह । इसके अलावा ये लोग ‘पुवार ’ स जी और महु आ के फल का सेवन भी करते ह । ये
लोग धोती, अंगरखा एवं कमीज पहनते ह । ि याँ घाघरा, खड़ी और ल बी बाँह का कु ता पहनती
ह । ि याँ आभू षण पहनती ह जो चाँद के कड़े तथा हाथी-दाँत क चू ड़याँ होती ह । ये शर र पर
नाम और दे वी-दे वताओं क मू तयाँ भी गुदवाते ह ।
सहारे याओ के वकास के लए अनेक सरकार एवं गैर-सरकार सहायता ा त सं थाएँ
काय कर रह ह । ये सं थाएँ इनके वा य, श ा, कृ ष एवं चहु ँ मख
ु ी वकास के लए स य है
। सरकार भी इनके वकास के लए व भ न योजनाएँ कायाि वत कर रह है ।
बोध न : 3
1. टोडा जनजा त का नवास कहाँ है ?
2. टोडा जनजा त के जी वका नवाह के मु य साधन या ह ?
3. टोडा का मु य भोजन या है ?
4. सह रया जनजा त कहाँ पाई जाती है ?
5. सह रया लोग के घर के समू ह के या कहते ह?
6. सह रया जाती के मु ख को या कहते ह?
368
भील जनजा त मु यत: राज थान, म य दे श, और गुजरात म नवास करती है । इनक
बि तय को 'फाला' तथा इनके मकान को 'टापरा' कहते ह । इनक अथ यव था का आधार
कृ ष, आखेट एवं वनो के उ पाद रहे ह । नके वारा क जाने वाल थाना त रत कृ ष को
'वालरा' कहते ह । इनम पतृस ता मक प रवार पाए जाते ह ।
संथाल जनजा त का नवास मु यत: बहार व झारख ड दे श है । यह ं उ णक टब धीय
जलवायु पाई जाती है । इन लोग का मु य यवसाय कृ ष व आखेट है । ये लोग कृ त-पूजक ह
। इनका सामािजक संगठन 'परहा' णाल पर आधा रत होता है । ये लोग पुनज म म व वास
करते ह ।
टोडा जा त के लोग नील गर क पहा ड़य पर नवास करते ह । इनके नवास गह ल बे
बड़े ढोल क आकृ त क झ प डय के प म होते ह । इनका मु य यवसाय पशुचारण तथा
वनो पादो का सं हण है । ये लोग शाकाहार होते ह । इनम सि म लत प नी था पाई जाती है।
सह रया जनजा त राज थान रा य के बार िजले म पाई जाती है । इनके घर के समू ह
को 'शहरोल' कहते ह । इनका मु य यवसाय कृ ष और पशु पालन है । ये लोग अनुशासन,
आ मस मान एवं आ मर ा के त संक पब होते ह ।
भारत सरकार एवं रा य सरकार वारा जनजा तय के सामािजक, आ थक, शै णक
वकास के लए व भ न योजनाएँ कायाि वत क जा रह ह । इस े म कई गैर-सरकार
संगठन भी इनके उ थान के लए कायरत ह ।
369
2. अ वाल, एल. सी. : पे शयल ड बूशन ऑफ लटरे सी (ए केस टडी ऑफ
सह रया ाइ स), ोजे ट रपोट, 2007
3. गुजर एवं जाट : मानव एवं आ थक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर ,
2006
4. कौ शक, एस, डी. : मानव तथा आ थक भू गोल, र तोगी पि लकेशन मेरठ,
2008
5. स सेना, एच. एम. : राज थान का भू गोल, राज थान ह द थ अकादमी,
जयपुर , 2007
6. शमा एवं शमा. : राज थान का पंचशील काशन, जयपुर , 2007
13.12 बोध न के उ तर
बोध न. 1
1. नागा जनजा त
2. झू मंग कृ ष
3. कपड़ा बुनना
4. म य दे श, छ तीसगढ़, आ ध दे श के पठार भाग तथा उड़ीसा के द ण-पि चमी भाग
म
1. 5 प ल या नगले
5. ग ड जनजा त वारा
बोध न : 2
1. टापरा
2. वालरा
3. पतृस ता मक
4. छोटा नागपुर के पठार पर िजला संथाल , परगना, रांची, पालामऊ
5. कृ ष, आखेट और वनो पाद का सं ह
6. परहा
बोध न. 3
1. नील गर क पहा ड़याँ
2. पशु चारण तथा जंगल से कंद-मू ल, शहद, ग द इ या द एक त करना
3. भस का दूध, दह , क द-मूल , फल और शाक सि जयाँ
4. राज थान रा य के बार िजले म
5. शहरोल
6. कोतवाल
370
13.13 अ यासाथ न
1. 'जनजा त' कसे कहते ह? नागा जनजा तय के आवास, अथ यव था एवं उनके
सां कृ तक वातावरण का वणन क िजए ।
2. ग ड जा त का नवास कहाँ पाया जाता है? इनक अथ यव था एवं सामािजक यव था
का वणन क िजए ।
3. भील जनजा त के आवास, अथ यव था एवं वातावरण के साथ स ब ध का वणन
क िजए ।
4. टोड़ा एवं सह रया जनजा तय क अथ यव था क ववेचना क िजए ।
5. संथाल जनजा त के नवास एवं अथ यव था का वणन क िजए ।
371
इकाई 14: ादे शक वषमताएँ (Regional Disparities)
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 े ीय असंतु लन के सूचक
14.2.1 त यि त शु रा यीय घरे लू उ पाद
14.2.2 शु रा यीय घरे लू उ पाद
14.2.3 नवेश एवं व तीय सहायता क वृ तयाँ
14.2.4 आधारसंरचना स ब धी असमानताएँ
14.2.5 सामािजक आधारसंरचना और मानवीय वकास
14.3 वकास के तर
14.4 आ थक पछड़ेपन और े ीय असंतु लन के कारण
14.5 योजना काल म े ीय असमानताएँ
14.5.1 पाँचव योजना काल (1980) तक े ीय असमानताएँ
14.5.2 छठव योजना काल (1980-85) म े ीय असमानताएँ
14.5.3 सातव योजनाकाल (1985-90) म े ीय असमानताएँ
14.5.4 आठव योजना काल (1992-97) म े ीय असमानताएँ
14.5.5 नौव योजना काल (1997-2002) म े ीय असमानताएँ
14.5.6 दसव योजना काल (2002-06) म े ीय असमानताएँ
14.5.7 यारहव योजनाकाल (2006-11) म े ीय असमानताएँ
14.6 े ीय असमानताओं को दूर करने के नी तगत उपाय
14.6.1 पछड़ापन और संसाधन-ह तांतरण
14.6.2 े - शेष वकास काय म
14.6.3 पछड़े े मे नवेश ो नत करने के लए ो साहन
14.6.3.1 के सरकार वारा दए गए ो साहन
14.6.3.2 रा यीय सरकार के ो साहन
14.6.3.3 व तीय सं थान वारा रयायती व त
14.7 े ीय आयोजन क वफलता
14.8 सारांश
14.9 श दावल
14.10 स दभ थ
14.11 बोध न के उ तर
14.12 अ यासाथ न
372
14.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप भारत म े ीय असंतु लन के वषय म
समझ सकगे-
भारत-जैसे संघीय रा य के समि वत वकास के लए संतु लत े ीय वकास क
अ नवायता ।
े ीय असंतु लन के सूचक का सोदाहरण ान ।
भारत म ादे शक वकास के वतमान तर ।
भारत म व भ न योजना काल म आ थक पछडेपन और े ीय असंतल
ु न के
कारणत व का
संचयी भाव ।
े ीय असंतल
ु न को दूर करने के लए भारत सरकार , रा य सरकार व मु य
व तीय सं थान वारा अपनाए गए नी तगत उपाय का समी ा मक ान ।
भारत म े ीय आयोजन क वफलता का समी ा मक आकलन ।
373
बंगाल, कनाटक, केरल, त मलनाडू और आं दे श । पि चम बंगाल को अ गामी रा य के
समू ह म इस लए शा मल कया गया है य क पि चम बंगाल क त यि त आय कनाटक और
केरल रवे अ धक है और सा रता (पु ष एवं ी दोन ), शशु मृ युदर , मृ यु दर उगैर ज मदर म
इसका रकॉड कई अ य रा य से बेहतर है जो इस वग म शा मल कए जाते ह । पि चग बंगाल
के शु रा यीय घरे लू उ पाद (Net State Domestic Product) क वृ दर केरल ,
त मलनाडु और कनाटक से अ भक है । ये सभी कारणत व पि चम बंगाल को अ गामी रा य क
ेणी म शा मल करने के लए यायो चत माने जा सकते ह ।
पछड़े रा य गे म य दे श, असम, उ तर दे श, राज थान, उड़ीसा और बहार शा मल
ह । उ त 15 रा य म 2001 क जनगणना के अनुसार दे श क कुल 90 तशत जनसं या
नवास करती है - 48 तशत अ गामी रा य म और 42 तशत पछड़े रा य म ।
375
तशत) का सुधार-उपरा त काल म संके ण अ गामी रा य म हु आ और ऐसी-ह प रि थ त
अ खल भारतीय व तीय सं थान एवं रा यीय व तीय नगम (State Financial
Corporations) वारा द त व तीय सहायता के बारे म व यमान थी (ता लका 14.3) ।
अ खल भारतीय व तीय सं थान , जैसे - भारतीय औ यो गक वकास बक, भारतीय औ यो गक
व त नगम, आईसीआई. सी.आई. बक, भारतीय इकाई यास, भारतीय जीवन बीमा नगम,
सामा य बीमा नगम तथा भारतीय लघु उ योग वकास बक - ने 31 माच 1997 तक व तीय
सहायता का 67.3 तशत अ गामी रा य म वत रत कया । नौ अ गामी रा य म से भी
चार रा य अथात ् महारा , गुजरात, त मलनाडु और आ दे श ने कुल सहायता का 51 तशत
ह थया लया । रा यीय व तीय नगम ने भी व तीय सहायता का 70 तशत अ गामी रा य
को ह दया । इस व लेषण से यह बात प ट होती है क सु धार या ने नवेश- ताव क
रचीकृ तय एवं व तीय सहायता म अ गामी रा य को ह ाथ मकता द । प रणामत: अ गामी
रा य, जो पहले से ह बेहतर ि थ त म थे, अपनी वकास या को और व रत कर पाए
जय क पछड़े रा यॉ, िज हे अनुशल
ू यवसू र ा त नह ं हु आ, के वकास पर म द भाव पड़ा ।
इससे शु रा यीय घरे लू उ पाद (कुल एवं त यि त दोन ) म बढ़ती हुई असमानताओ क
या या हो जाती है ।
ता लका 14.2. भारत - रा यवार शु घरे लू उ पाद
(1993-94 क क मत पर)
रा य औसत वा षक वृ दर 1990-91 से 2002-
(करोड़ पये) 03
1990-91 2002-03
अ गामी रा य
पंजाब 23,693 37,582 3.9
महारा 79,869 1,53,429 5.6
ह रयाणा 18,215 31,952 4.8
गुजरात 36,207 75,447 6.3
पि चम बंगाल 40,633 89,792 6.8
कनाटक 29,845 63,978 6.6
केरल 19,774 37,037 5.4
त मलनाडु 43,937 81,019 5.2
आ दे श 45131 82,046 5.1
उप- योग 3,37,304 82,046 5.6
पछड़े रा य
म य दे श 41,833 43,770 0.4
असम 2.6 12,299 16,788 2.6
376
उतार दे श 2.1 74,791 96,011 2.1
राज थान 3.5 29,713 44,553 3.5
उड़ीसा 4.1 13,450 21,862 4.1
बहार -0.7 37,607 34,553 -0.7
उप-योग 2,09,693 2,57,753 1.7
अ खल-भारत 6,23,407 11,69,793 5.4
ोत : Ministry of Finance, Indian Public Finance Statistics (2004-05)
377
गुजरात 18.7 13.5 9.3
पि चम बंगाल 3.3 3.9 2.5
कनाटक 5.6 6.1 15.5
केरल 1.1 1.7 4.4
त मलनाडु 7.2 9.0 10.6
आ दे श 8.3 7.2 7.8
उप- योग 69.2 67.3 7.00
पछड़े रा य
म य दे श 7.4 5.1 3.2
असम 2.6 0.7 0.5 0.5
उतार दे श 2.1 9.4 7.9 11.1
राज थान 3.5 3.9 4.5 6.1
उड़ीसा 4.1 2.2 1.8 3.7
बहार -0.7 1.2 1.4 2.0
उप-योग 24.8 21.2 26
अ खल-भारत 100.0 100.0 100
(7,37,516) (3,12,516) (20,896)
नोट : को ठक म दए गए आकड़े करोड़ पए म योग को य त करते ह ।
ोत : कु रयन, जे. जे., Economic and Political Weekly, February 12-18,
2000
चाहे हम त 1,000 यि तय के लए पंजीकृ त गा ड़य या त 100 यि तय के
लए टे ल कॉम लाइन का पर ण कर, इनम से कोई-भी सू चक योग क ती ता का ज़ंकेतक
नह ं है । इन कसौ टय के उपयोग और वकास क दर म रन कध था पत करने म अपनी
सीमाएँ ह । आधारसंरचना वकास माँग-चा लत (demand-driven)) बन सकता है जब इसके
साथ य प म उ पादक याओं म नवेश होता रहे और यह संभरण-चा लत (supply-
driven) हो सकता है जब इसके वकास से पहले य प म उ पादक याओं म नवेश
कया गया हो । माँग-चा लत आधारसंरचना के वकास के प रणाम व प थोड़े समय के बाद
इसका बेहतर उपयोग होने लगता है पर तु संभरण-चा लत साम य के वकास का योग काफ
समय के बाद होता है । दोन ह ि टकोण को यायो चत समझने के प म तक दए जा सकते
ह ।
ता लका 14.4 : भारत - आधारसंरचना वकास के तर
त यि त त 1000 100 वग त 1000 कुल फसल-अधीन सामािजक
पॉवर उपभोग यि तय के े क.मी. के यि तय के े फल सं चत एवं आ थक
31,99) (1999)
अ गामी रा य
378
पंजाब 790 103.2 113.1 5.34 94.8 187.6
महारा 557 57.2 73.1 4.93 15.3 112.8
ह रयाणा 508 64.6 61.0 3.18 77.2 137.5
गु जरात 686 91.5 55.6 3.75 28.9 124.3
पि चम बंगाल 197 19.8 69.9 1.86 28.7 111.3
कनाटक 338 56.5 73.0 3.25 23.9 104.9
केरल 236 42.1 358.2 4.66 13.9 175.7
त मलनाडु 469 103.2 157.5 3.84 49.5 149.1
आंध दे श 332 57.2 20.7 2.36 39.6 103.3
पछड़े रा य
म य देश 368 38.8 47.6 1.38 22.3 76.8
असम 108 19.9 86.7 0.95 15.0 77.7
उ तर दे श 194 22.7 72.7 1.21 62.6 101.2
राज थान 295 45.1 38.0 2.11 29.1 75.9
उड़ीसा 447 22.9 134.8 1.05 25.8 81.0
बहार 145 16.4 50.6 0.58 43.2 81.3
अ खल भारत 338 44.0 91.7 2.55 36.5 100.0
ोत Planning Commission, Ninth Five Year Plan (1997-2002), CMIE,
Profiles of States (March 1997), and Tata Services Ltd. Statistical Outline
of India (1999-2000), and Eleventh Finance Commission (2000)
इस ि थ त के बावजू द भी यह कहा जा सकता है क आधारसंरचना का वकास कसी
ने के वकास क अ नवाय शत है, भले ह यह इसक पया त शत न हो । इस बात का अथ
पूर तरह समझने के लए सी.एम. आई.ई वारा तपा दत आधार सूचकांक पर यानपूवक
वचार करना होगा । इस सूचकांक म जो मद शा मल क गई है उनेक् , मह व को टक म दए
गए ह –
(i) प रवहन सु वधाएँ (26 तशत) (ii) ऊजा उपभोग (24 तशत)
(iii) संचाई सु वधाएँ (20 तशत) (iv) ब कं ग सु वधाएँ (12 तशत)
(v) संचार सु वधाएँ (6 तशत) (vi) श ा सु वधाएँ (6 तशत)
(vii) वा य सु वधाएँ (6 तशत)
अ खल भारतीय सू चकांक के मू य को 100 मानते हु ए सभी रा य के लए
आधारसंरचना वकास के सूचकांक के सापे -मू य कॉलम 6 म दए गए ह । यान दे ने यो य
बात यह है क पंजाब का सापे सू चकांक 187.6 उ चतम है, इसके बाद ह त मलनाडु और
हरयाणा िजनके मू य मश: 149.1 और 137.5 ह । सबसे कब मू य म य दे श का है (76.8)
। इसके ऊपर है असम (77.7) और बहार (81.3) । भले ह उ तर दे श के सूचकांक का मू य
101.2 अ खल भारतीय तर से ऊँचा हो, फर भी खा या न उ पादन और गर बी-उ मूलन म यह
कनाटक, पि चम बंगाल और त मलनाडु से बहु त पीछे है - िजनके आधारसंरचना सू चकांक
379
सापे त: नीचे ह । जहाँ तक संचाई-आधारसंरचना का स ब ध है, पंजाब म कुल फसल-अधीन
े फल के 94.8 तशत को संचाई सु वधाएँ ा त थीं और इसक त है टे यर उ पा दता भी
अ धकतम थी । उ तर दे श म यह अनुपात 62.6 तशत से ऊँचा था भी त है टे यर
उ पा दता सापे त: नीची थी । इससे यह बात प ट होता है क जहाँ पंजाब और हरयाणा
संचाई-आधारसंरचना का योग कृ ष वकास के लए करने म सफल हो गए यह उ तर- दे श को
इसम पया त सफलता ा त नह ं हु ई ।
380
सु धार नह ं कर पाते य क उनके पास संसाधन का अभाव होता है । संसाधन के अभाववश
उनम वकास का तर नीधा रहता है । इव कार वे एक दु च म फंस जाते है ।
ता लका 14.5 : भारत - मानवीय वकास के चु ने हु ए सू चक
जीवन- याशा सा रता 2001 अ थाई अनु पात (2005)
रा य (वष म )
1999.2003 कु ल पु ष ि याँ ि याँ शशु मृ यु दर मृ यु दर ज मदर
अ गामी रा य
पंजाब 68.8 69.9 75.6 63.6 44 6.7 18.1
महारा 64.4 77.3 86.3 67.5 36 6.7 19.0
ह रयाणा 65.4 68.6 79.3 56.3 60 6.7 24.3
गु जरात 63.5 70.0 80.5 58.6 54 7.1 23.7
पि चम बंगाल 64.1 69.2 77.6 60.2 55 6.4 18.8
कनाटक 64.6 67.0 76.3 57.5 50 7.1 20.6
केरल 73.6 90.9 94.2 87.9 14 6.4 15.0
त मलनाडु 65.4 73.5 82.3 64..6 37 7.4 16.5
आं दे श 63.7 61.1 70.8 51.2 57 7.3 19.1
पछड़े रा य
म य देश 57.1 64.1 76.8 50.3 76 9.0 29.4
असम 58.0 64.3 71.9 56.0 68 8.7 25.0
राज थान 59.3 57.4 70.2 43.0 73 8.7 30.4
उ तर दे श 61.3 61.0 76.5 44.3 68 7.0 28.4
उड़ीसा 58.7 63.6 75.5 51.0 75 9.5 22.3
बहार 61.0 58.7 60.3 33.6 61 8.1 30.4
अ खल भारत 62.7 65.4 76.0 54.30 58 7.6 23.8
ोत : भारत सरकार, आ थक समी ा (2006-07) और Census of India 2001
Series 1-India, Paper 1 of 2001
सम व लेषण का सार यह है क आयोजन या के दौरान य य प े ीय
असमानताओं म कु छ वृ अव य हु ई, फर भी सरकार ने इन असमानताओं को कम करने का
समु चत यास कया । सु धार या (िजसने वै वीकरण के साथ बाजार-शि तयो को बढावा
दया) से तो केवल अ गामी रा य का ह भला हु आ, पछड़े रा य का नह ं । प रणाम व प
े ीय असमानताओं म वृ हु ई ।
381
म ा (1961) वाजबग (Schwartzberg,1962) सु दरम ् (1971, 1983), अशोक माथु र
(1978) तथा मोनी (1999) के यास उ ले खनीय ह ।
अशोक थम वै ा नक थे िज ह ने िजला तर पर ादे शक वषमताओं का व लेषण
कया । उ ह ने 1961 जनगणना के व भ न सूचक के आकड़े यु त कए तथा उ ह 6 लाँक
म बाँटकर भारत के येक िजले के बारे म न न सूचनाएँ एक त क ं.-
लाँक I (a) भू-वै ा नक संरचना, थलाकृ त, वषा, गृह कार , भाषा,
अनुसू चत जा त एवं अनुसू चत जनजा त जनसं या, तथा (b) म ी,
फसल तथा चावल क उपज।
लाँक II कृ षीय अवसंरचना ।
लाँक III पर परागत े म सहभा गता क दर ।
लाँक IV मानव संसाधन का वभव ।
लाँक V यापार, व नमाण एवं अवसंरचना ।
लाँक VI आधु नक े म संग ठत औ यो गक या ।
म ा के अ ययन से यह प ट हु आ क दे श के 327 िजल म से 79 िजले वकास के
न नतम तर पर, 88 िजले वतीय न नतम तर पर, 76 िजले वकास के तृतीय तर पर
तथा 84 िजले वकास के उ चतम तर पर व यमान थे ।
च 14.1 वकास के चार तर द शत करता है - (i) उ च, (ii) म यम, (iii) न न,
तथा (iv) अ त न न । न न तथा अ त न न वग सापे प से अ प वक सत े को सू चत
करते ह िज ह 'अ वक सत' कहा जा सकता है । अ वक सत भारत के अ तगत पूव , म य
तथा म य द णी भारत का व तृत े आता है िजसके म य नगर य के के चार ओर छोटे
वक सत े वीप के प म ि थत ह ।
अ वक सत े भ न कार के ाकृ तक संसाधन-आधार तथा सामािजक-आ थक
पयावरण वाले व वध दे श के प म बखरे ह । ऐसे े पाँच संहत दे श के प म व यमान
ह- (।) उ तर-पूव दे श , (ii) पूव म य भारत क जनजातीय पेट , (iii) पूव उ तर दे श एवं
बहार, (iv) बु दे लख ड दे श , तथा (v) सू खा वण े , बा वण े , बीहड़, म थल एवं
पहाड़ी े जो पा रि थ तक प से असंतु लत ह ।
मोनी (1999) ने 1990 दशक के 38 चर के आँकड़ का योग करते हु ए ' मु ख घटक
व लेषण तकनीक' के अनुसार वकास के तर का गहन अ ययन कया ( च 14.2) ।
च 14.। तथा 14.2 क तुलना से यह प ट होता है क 1961 म उपि थत 'ती
पछड़े े ’ 1991 म य -के- य ' व यमान रहे । ऐसे े को वक सत करने के लए पया त
यास नह ं कए गए ।
382
च 14.। : भारत म वकास के तर, 1981 (अशोक म ा के अनुसार)
योजना आयोग के अनुसार दे श का आ थक पछड़ापन न न कारण का प रणाम ह- (1)
वगत म उपे ा, (ii) तकू ल कारक, जैसे - तकू ल जलवायु, वषम धरातल, अनुवर म ी,
धरातल य जल क कमी, तथा (iii) जनजातीय े म सामािजक पछड़ापन । ऐसे सभी े के
लए उनक दशाओं एवं आव यकताओं के अनु प वशेष योजनाएँ बनानी चा हए । येक े के
वकास के लए पृथक् उपागम अपनाना चा हए ।
384
बढ़ावा दया है । वक सत रा य को अ धक सहायता दान क गई जब क अ प वक सत रा य
क उपे ा क गई । वा तव म पाँच रा य - पजाब, महारा , गुजरात, कनाटक एवं हरयाणा -
को सभी योजनाओं म अ धक त यि त योजना प र यय उपल ध कराया गया जब क बहार,
उड़ीसा, उ तर दे श और राज थान-जैसे अ प वक सत रा य को त यि त बहु त कम योजना
प र यय ा त हुआ । प रणामत: रा य के बीच असमानताएँ बढती चल गई ।
1951 के प चात ् ''कुशलता क कसौट '' के आधार पर भार मा ा म नवेश कुछ-ह
के , जैसे - मु बई, अहमदाबाद, द ल , कानपुर, कोलकाता, बंगलौर आ द म संकेि त हो
गया । ये े अपनी साम य से अ धक वक सत कए गए और इसके प रणाम व प इनम
जनसं या का अ य धक दबाव, म लन बि तय का व तार, प रवहन, सावज नक वा य आद
क सम याएँ ग भीर प धारण कर गई । ये े आसपास के इलाक से संसाधन को अपनी
ओर खींचने म सफल हो गए । इन के को चू षण-प प क सं ा द गई है य क ये अपने
वकास के लए पड़ोसी े से जनशि त, पू ज
ं ी एवं अ य साधन का उ वाह कराने म सफल हो
जाते ह ।
1960 दशक के प चात ् कृ ष म नई तकनीक के अपनाए जाने के कारण भी े ीय
आ थक असमानताओं म वृ हु ई । दुलभ संसाधन को सबसे अ धक उ पादक े म यु त
करने क मा यता के आधार पर और खा या न अभाव क सम या के समाधान के लए
खा या न उ पाद को अ धका धक बढ़ाने के ल य को ि ट म रखते हु ए सरकार ने दे श के उन
े म संसाधन नवेश क ठानी िजनम संचाई सु वधाएँ बहु त वक सत थीं । इन इलाक के
कसान, जो पहले से ह स प न थे, अब और अ धक स प न हो गए । इसके वपर त सू खा त
े के कसान और ाम म रहने वाल कृ षइतर जनसं या उपे त रह । प रणाम व प,
संचाई-अधीन और शु क े तथा बडे और छोटे कसान के बीच येक रा य म असमानताएँ
और भी बढ़ गई ।
सरकार ने वके करण और पछड़े े के वकास का यास तो कया (राऊरकेला,
भलाई, बरौनी आ द म सावज नक े के नवेश को बढ़ाया), क तु इन े म सहायक
उ योग के तेजी से न बढ़ सकने के कारण ये े के सरकार के भार नवेश के बावजू द
पछड़े ह बने रहे ।
एक और कारण बढ़ती हु ई े ीय असमानताओं के लए उ तरदायी है । एक ओर जहाँ
कु छ रा य , जैसे- पंजाब, हरयाणा, गुजरात, महारा , त मलनाडु आ द - ने अपने े के
औ यो गक वकास क ओर अ धक यान दया वह ं दूसर ओर अ य रा य राजनी तक उलझन
म फंसे रहे और अपने रा य के संतु लत व व रत आ थक वकास क उपे ा करते रहे ।
नौवीं योजना के अनुसार , 'दे श क एकता और अख डता को कायम रखने के लए
संतु लत े ीय वकास भारतीय वकास रणनी त का सदा से अ नवाय अंग रहा है । चू ं क दे श के
सभी भाग वकास अवसर क ि ट से न तो समान प से स प न ह और न ह ऐ तहा सक
असमानताएँ दूर क जा सक ं, इस लए यापक े ीय असमानताओं को रोकने के लए आयोिजत
यास क आव यकता है । '
385
पहल योजना म े ीय असमानताओं क सम या का उ लेख तक नह ं कया गया ।
दूसर और तीसर योजना म अ प वक सत े के वकास क आव यकता क ओर यान अव य
दलाया गया, पर तु इस सम या के समाधान के लए कोई ठोस उपाय नह ं कए गए ।
1968 म रा य वकास प रष (National Development Council) ने व भ न
रा य म औ यो गक पछड़ेपन क सम या पर वचार कया और औ यो गक ि ट से पछड़े
रा य एवं संघीय े क पहचान के लए न न ल खत पाँच कसौ टय क सफा रश क -
1. त यि त कुल आय के साथ उ योग एवं खनन का योगदान,
2. त एक लाख जनसं या के लए कारखान म काम करने वाले मक क सं या,
3. बजल का त यि त वा षक उपभोग
4. रा य क जनसं या और े फल क तुलना म प क सड़क क ल बाई, तथा
5. रा य क जनसं या और े फल क तुलना म रे लमाग क ल बाई ।
रा य वकास प रष ने इस स ब ध म दो कायदल ग ठत कए - (i) पांडे कायदल
(Pande Work Group) जो ऊपर द गई कसौ टय के आधार पर पछड़े रा य क पहचान
करे , तथा (ii) वांचू कायदल (Wanchoo Working Group) जो पछडे े म उ योग
था पत करने के लए राजकोषीय एवं व तीय ो साहन क सफा रश करे ।
पांडे कायदल ने रा य वकास प रषद वारा बताई गई पाँच कसौ टयो के आधार पर
न न ल खत रा य क पछड़े रा यो के कर म पहचान क ता क उ ह औ यो गक दकास के
लए वशेष सहायता द जा सके - (i) आंध दे श, असम, बहार, हमाचल दे श, ज मू एवं
क मीर, म य दे श, नागालै ड, उड़ीसा, राज थान और उ तर दे श, तथा (ii) च डीगढ़, द ल
व पॉि डचेर को छो कर अ य सभी संघीय े ।
त प चात ् योजना आयोग ने सभी रा यो म पछडे िजल क पहचान के लए अ ल खत
कसौ टयाँ नधा रत क - (।) त यि त खा या न /वा ण य फसल का उ पादन, (ii) कु ल
जनसं या म कृ ष मन का अनुपात, (iii) त यि त औ यो गक उ पाद, (iv) त एक लाख
जनसं या के लए कारखान म काम करने वाले मक क सं या, (v) त एक लाख
जनसं या के लए वतीयक एवं तृतीयक याओं म कायरत यि तय क स या , (vi) बजल
का त यि त उपभोग, तथा (vii) जनसं या क तु लना म प क सड़क एवं रे लमाग क ल बाई
। इन कसौ टय के आधार पर योजना आयोग ने 246 िजल एवं संघीय े क पहचान क
ता क उ ह रयायती व त एवं अ य सु वधाएँ द जा सक।
वांचू कायदल ने अ ल खत सफा रश क ं - (i) पछड़े े म ि थत उ योग को
अ धक वकास-छूट, (ii) पाँच वष के लए नगम-आय कर से छूट, (iii) पछड़े म ि थत
इकाई के लए संयं एवं मशीनर और पुज पर आयात-शु क से छूट, (iv) उ पाद-शु क से पाँच
वष के लए छूट, (v) ब कर से पाँच वष के लए छूट, तथा (vi) प रवहन साहा य
(Transport Subsidy) उपल ध कराना । मोटे तौर पर ये सभी सफा रश क तपय संशोधन के
साथ लाग कर द गई ।
386
14.5.2 छठव योजना काल (1980-85) म े ीय असमानताएँ
387
14.5.4 आठव योजना काल (1992-97) म े ीय असमानताएँ
388
इस रणनी त के आधार पर दसवीं योजना म एक नई योजना - रा य सम वकास
योजना (National Equal Development Plan) - ार भ क गई । इस नई पहल को
2002-03 से पछड़े े मे लागू कया गया ता क इनके वकास पर वशेष बल दे ने वाले
काय म चालू कर े ीय असमानताओं, गर बी व बेरोजगार को कम कया जा सके । इस
योजना का उ े य उ पा दता बढ़ाने वाले सुधार को इन े म सु वधाजनक बनाना था ।
रा य सम वकास योजना अ त र त अनुदान वारा पछड़े े के वकास म सहायता
दान करती ह । यह सहायता तभी द जाती है जव कोई रा य सव वीकृ त सु धार काय म को
लाग करता है । यह एक शत- तशत अनुदान आधा रत योजना है और इस कारण इसने रा य
को सुधार लाग करने के लए ो साि त भी कया । ये अनुदान त काल न योजनाओं के लए द
जाने वाल रा शयो के अ त र त होते ह और संसाधन न पादन के आधार पर दए जाते ह ।
पछड़े े म व भ न वकास काय म के काया वयन से यह बात प ट उभर कर
आई है क वकास या म पू ज
ं ी का अथगव एकमा अड़चन नह है । ाय: यह दे खा गया है
क वतमान नयम और उनक वैि छक या या गर ब और सीमात समूह तक सु वधाएँ पहु ँचाने
म कावट डालते ह ।
रा य सम वकास योजना के अधीन येक रा य को ऐसे सुधार क पहचान और
चु नाव करना होता है जो वे लागू करना चाहते ह । साथ-ह के सरकार के साथ सु धार या
को लागू करने के लए सं ध भी करनी होती है । केवल वे ह रा य इस योजना के अधीन
आवंटन के हकदार होते ह जो के सरकार से सं ध करते ह ।
389
बोध न : 1
1. े ीय असं तु लन से या आशय है ?
2. अ गामी रा य क ह कहते ह ?
3. आधारसं र चना वकास के तर-मापन हे तु कौन-से चर पर वचार कया जाता
है ?
4. मारवीय वकास क माप के मु ख सू चक या ह?
5. रा य वकास प रष वारा सन ् 1968 म ग ठत पां डे कायदल ने भारत के
6. कन रा यो क पहचान पछड़े रा य के प म क थी ?
7. रा य वकास प रष वारा सन ् 1968 म ग ठत वां चू कायदल ने भारत के
8. पछड़े े म उ योग था पत करने के लए या सफा रशे क थीं ?
9. भारत मे आ थक पछड़ापन दू र करने के लए दसवीं पं च वष य योजना ( 2002-
06 ) मे या रणनी त अपनाई गई थी ?
10. भारत मे सं तु लत े ीय वकास के सु न चयन हे तु यारहवीं पं च वष य योजना
( 2000 - 11) मे या रणनी त ता वत है ?
11. भारत म
1961 म व यमान ‘ ती पछड़े े ' 1991 म य -के - य
व यमान रहे । य ?
390
योजना म 53 तशत था जो बढकर चौथी योजना म 68 तशत और पाँचवी योजना म 69
तशत हो गया ।
ता लका-6 भारत - पछड़े रा य का योजना-प र यय और के य सहायता म भाग
( तशत म)
योजना- प र यय म भाग के य सहायता म भाग
योजना पछड़े रा य वशेष-वग के रा य पछड़े रा य वशेष-वग के रा य
पहल योजना 46 - 48 -
दूसर योजना 47 - 53 -
तीसर योजना 51 - 57 -
चौथी योजना 45 8 53 15
पाँचवीं योजना 46 8 50 19
ोत : (Planning Commission, Draft Sixth Five Year Plan (Revised),p.194
क तु के य सहायता के आबंटन के व लेषण से पता चलता है क दो सबसे अ धक
पछड़े रा य ( बहार और उ तर दे श) को त यि त के द य सहायता हमेशा रा य औसत से
कम रह है । उदाहरणाथ, चौथी योजना क अव ध म सम दे श के लए औसत त यि त
के य सहायता 63 पए थी जब क यह बहार और उ तर दे श के लए मश: 57 और 56
पए थी । सापे त: अ धक उ नत रा य म पजाब को पछड़े रा य क औसत से अ धक यानी
66 पए के य सहायता द गई । दूसरे श दो म, के य सहायता के संशो धत फॉमू ले वारा
इि छत संतु लन पछड़े रा य के प म झुकाया नह ं जा सका । बहु त-से रा य ने वशेष
प रयोजनाओं के लए के य सहायता 10 तशत से बढ़ाकर 25 तशत करने क मांग क
ता क पछड़े रा य को लाभ मल सके ।
े ीय असमानताओं एवं पछड़ेपन क सम या को के से रा य को संसाधन-
ह तांतरण वारा हल करने के रा ते म कुछ आधारभू त क ठनाइयाँ ह । इस बात क कोई
गार ट नह ं है क जो संसाधन के से रा य को ह तात रत कए जाएँगे उनका उपयोग रा य
के पछड़े इलाक के वकास के लए ह कया जाएगा । जैसा क छठवीं योजना गे उ लेख कया
गया क रा य पछडे और क ठन े के लए आवं टत संसाधन का उपयोग ाय: अ - े या
सु गम काय म के लए कर लेते ह । दूसरे, गैर- पछड़े रा य म पछड़े े क सम या के
समाधान का कोई उपाय अ भकि पत नह ं है । इस कारण योजना आयोग ने संसाधन-ह तांतरण
के साथ े - वकास काय म (Area development programmes) को जोड़ने का यास
कया ।
391
तर य आयोजन काय म का अंग बन जाती ह िजनके अधीन समि वत ाम- वकास और पूण
रोजगार के ल य ा त करने का यास कया जाता है ।
यारहव व त आयोग ने य य प पछड़ेपन को संसाधन- वतरण के फॉमू ले का अंग नह ं
बनाया तथा प संसाधन-ह तांतरण फॉमू ले क व भ न कसौ टय म रा य क त यि त आय
और अ धकतम आय वाले रा य क त यि त आय के मा यम से और आधारसंरचना सूचकांक
क कसौट से समा व ट करने का यास अव य कया । नए फॉमू ले के आधार पर 6 पछड़े
रा य - म य दे श, असम, उ तर दे श, राज थान, उड़ीसा और बहार - को कुल संसाधन का
57 तशत ह तांत रत कया जाएगा । वशेष वग के रा य - अ णाचल दे श, हमाचल दे श,
ज मू तथा क मीर , म णपुर , मेघालय, मजोरम, नागालै ड, गोवा, सि कम एवं पुरा - को
कु ल संसाधन-ह तांतरण का 4.2 तशत ा त होगा । इस कार इन दोन वग - पछड़े और
वशेष - के रा य को कु ल संसाधन-ह तांतरण का 61.2 तशत ा त होगा ।
392
आधारसंरचना वकास के लए कु ल लागत क एक- तहाई (अ धकतम सीमा 2 करोड़ पए)
सहायता दे ने क योजना ार भ क है िजसक सहायता से बहु त-से वकास-के वक सत
कए गए ह ।
393
नई। आते । पछड़े े के वकास म ऐसी बाधाएँ ह िजनको दूर करने के लए समि वत योजना
णाल अपनानी आव यक है । पहल पाँच योजनाओं म इसक उपे ा क गई । छठवीं योजना म
इस कमजोर को दूर करने के लए समि वत ाम वकास क रणनी त अपनाई गई ।
4. बड़ी के य प रयोजनाओं क पछडे े म ि थ त- न चयन क नी त के फल व प
इनक अथ यव था म मह वपूण सु धार नह ं हो सका ।
5. के सरकार वारा व तत औ यो गक वकास साहा य के लाभ अनुसू चत पछड़े
रा य के कु छ िजल तक संकेि त होकर रह गए । इसके अ त र त साहा य के लए द गई
रा श का स ब ध रोजगार क अपे ा पू ज
ं ी- नवेश से जोड़ा गया न क रोजगार-सृजन से ।
रा यीय सरकार वारा अपया त मौ क एवं राजकोषीय ो साहन के कारण मु य औ यो गक
के के चहु ँ ओर सहायक, वतीयक या तृतीयक उ योग का वकास नह ं हो पाया । ाय: ऐसा
दे खने को नह ं मलता क इस के नवेश ने पछड़े े म ि थत प रयोजनाओं का कोई
उ लेखनीय वकास कया हो । अ य श द म, इनके सार- भाव बहु त कम ह और इनके
आसपास के े गर ब और आ वक सत ह बने रहते ह । वा तव म ऐसे वकास से एक ऐसा
वैतवाद आ थक ढाँचा बन जाता है िजससे सम या के समाधान क अपे ा सम याएँ और बढ़
जाती है ।
6. सावज नक व तीय सं थान वारा द त व तीय रयायत का लाभ बहु त कम
उ यमकताओं ने उठाया और इनके लाभ बहु त सी मत िजल तक ह पहु ँ च पाए । यह योजना
उ योग के स ब ध म चयना मक नह ं है और म क अपे ा पू ज
ं ी को साहा य दान करती है
।
7. कसी-भी रा य म संतु लत वकास के लए आयोजन या का वके करण अ य त
आव यक है । पंजाब, हरयाणा और त मलनाडु ने वभ न कार के ो साहन वारा नजी
उ य मय को औ यो गक इकाइयाँ था पत करने के लए े रत कया जब क अ य रा य ऐसा
नह ं कर सके ।
8. सभी रा य ने पछड़े एवं वशेष सम या वाले े के वकास के लए अलग प र यय
क यव था नह ं क । ऐसा कए बना व भ न े म असमानताएँ दूर नह ं क जा सकतीं ।
9. पहल पाँच योजनाओं म प र यय के योग के आकड़ से पता चलता है क 6 म से 4
पछड़े रा य म प र यय का तशत योग सम - योग कारणत वो क तु लना म कम था ।
यह प रि थ त व भ न रा य म सावज नक े क सं थान वारा दए गए ऋण एवं अ म
के स ब ध म भी व यमान थी ।
े ीय असंतु लन के समाधान के लए अभी तक कए गए उपाय क मूल कमजोर यह
रह है क ये उपाय मु यत: व तीय प म थे । इ ह पछड़े रा य के वकास के व श ट
काय म से नह ं जोड़ा गया । उ चत यह होता क व तीय- ि टकोण का त थापन आयोजन-
ि टकोण रो कया जाता । इससे पछड़े े क प ट पहचान हो जाती और उनक साम य एवं
मताओं का सह अनुमान लग जाता । वाभा वकत: केवल ो साहन से उ योग का सार नह ं
हो सकता । इसके अ त र त वकास या म कृ ष वकास का भी वशेष मह व है । अत: यह
आव यक है क सार या और कृ ष वकास का सम वय कया जाए ।
394
बोध न : 2
1. भारत के कौन-से तीन मु ख सावज नक व तीय सं थान पछड़े े ो म
औ यो गक इकाइय क थापना के लए रयायती व त उपल ध कराते ह ?
2. भारत म े ीय आयोजन क वफलता के कोई पाँ च कारण बताइए ।
395
तर को दशाते हु ए एक मान च तैयार कया । इसक तु लना अशोक म ा के 1961 के वकास
तर को द शत करने वाले मान च से करने पर यह प ट होता है क 1961 के ती पछड़े
े 1991 म पूववत ् व यमान रहे । इसके कई कारण ह, जैसे- वगत म उपे ा, तकूल
भौगो लक प रि थ तयाँ, जनजातीय े म सामािजक पछड़ापन इ या द । अत: इन े के
वकास के लए उनक आव यकताओं के अनु प वशेष योजनाएँ बनाने क आव यकता है ।
भारत म े ीय असंतु लन कई अवरोधक कारणत व का संचयी प रणाम है, जैसे -
प पातपूण टश नी त, भौगो लक पाथ य, अपया त प रवहन, अकु शल म, अ वक सत
तकनीक , आ थक ऊपर यय (overheads) क अपया तता, पूव - वक सत े क ओर नवेश
वाह क वृि त , नयोजन नी तय का दोषपूण या वयन इ या द । तु त इकाई म इन सभी
कारणत व का व भ न योजना काल म े ीय असमानताओं के स दभ म समी ा मक ववेचन
कया गया है । व तु ि थ त यह है क वयं आयोजन या ने रा य के बीच असमानताओं को
बढ़ावा दया है । 1960 दशक के बाद कृ ष म नई तकनीक अपनाने से भी े ीय आ थक
असमानताओं म वृ हु ई । सन ् 1968 म रा य वकास प रष वारा ग ठत पाडे कायदल और
वांचू कायदल ने पछड़े रा य के उ नयन हे तु अनेक व तीय व गैर- व तीय सफा रश क थीं ।
सातवीं योजना म मानवीय संसाधन वकास पर वशेष बल दया गया था िजसका अनुसरण नौव
योजना काल तक कया गया । पू ज
ं ी नवेश का उ च तर और सं थागत सुधार दसवीं योजना
क रणनी त के मु ख अग बने जब क वतमान यारहवीं योजना म सामािजक आ थक व भौ तक
आधारसंरचना के उ नयन को वकास- न पादन का मूल आधार बनाया गया है ।
योजना आयोग ने े ीय असमानताओं व पछड़ेपन को दूर करने के लए तीन कार के
उपाय बताए ह - (i) के से पछड़े रा य को संसाधन-ह तांतरण, (ii) वशेष- े वकास
काय म, और (iii) पछड़े े म नवेश ो नतीकरण । अभी तक अनेक बु नयाद कमजो रय
के कारण ये उपाय े ीय असंतु लन के समाधान म भावी स नह ं हु ए ह । इनक कु छ
कमजो रयाँ न न कार ह? (i) समृ रा य वारा गर ब रा य को संसाधन-ह तांतरण से
मनाह करना, (ii) गर ब रा य क के सरकार पर अ य धक नभरता और वकास हे तु उनम
व यास क भावना का अभाव, (iii) समि वत वकास योजना णाल का अभाव, (iv) सरकार
ं ी- नवेश से जोड़ने क दोषपूण नी त, (v) आयोजन
साहा य को रोजगार-सृजन से न जोड़कर पू ज
या म वके करण का अभाव इ या द ।
397
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12. Mahesh Chand and V.K. Puri : Regional Planning in India, Allied
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14.11 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. वक सत और अ प वक सत या अ वक सत े का सहअि त व और व भ न े म
गत क ि ट से भ नता ।
2. उ नत या वक सत रा य को िजनके संसाधन का पया त वकास हो चुका हो तथा जहाँ
त यि त वा त वक आय अपे ाकृ त अ धक हो । अ य ल ण - उ नत सामािजक-
सां कृ तक अथ यव था, कायकु शलता, मशीनर , तकनीक आ द का सम उपयोग ।
त यि त पावर उपभोग, त 1000 यि तय के लए रा यवार पंजीकृ त गा ड़य क
सं या, त 100 वग क.मी. े के लए सड़क क ल बाई, त 1000 यि तय के
लए टे ल कॉम लाईन, कु ल फसल-अधीन े फल के लए सं चत े का तशत,
सामािजक तथा आ थक आधार संरचना सूचकांक ।
3. (i) एक ल बे और व थ जीवन क माप के लए ज म पर जीवन- याशा, (ii) बा लग
सा रता
4. (दो - तहाई भार) और सम , ाथ मक, मा य मक व तृतीयक कु ल नामांकन अनुपात
(एक- तहाई भार), तथा (iii) अ छा जीवन तर िजसका माप है - त यि त सकल घरे लू
उ पाद (अमे रक डॉलर यशि त मता) । इन तीन मूल आयाम का साधारण औसत
।
5. (i) आं दे श, असम, बहार, हमाचल दे श, ज मु एवं क मीर , म य दे श,
नागालै ड, उड़ीसा, राज थान और उ तर दे श, तथा (ii) च डीगढ द ल व पाि डचेर
को छो कर अ य सभी संघीय े ।
6. (i) पछड़े े म ि थत उ योग को अ धक वकास छूट, (ii) पाँच वष के लए नगम
आयकर से छूट, (iii) पछड़े े म ि थत औ यो गक इकाई के लए आया तत संयं
एवं मशीनर व पुज पर आयात शु क से छूट, (iv) उ पाद शु क से पाँच वष के लए
398
छूट, (v) ब कर से पाँच वष के लए छूट, तथा (vi) प रवहन साहा य उपल ध
कराना।
7. (i) पू ज
ं ी नवेश का उ च तर, के य सहायता का उ च अनुपात और रा य के अपने
संसाधन वारा अ प वक सत -रा य म आधारसंरचना का ो नतीकरण (ii) कु शल
शासन और सं थाना मक सुधार को लागू करना ता क ल त नवेश भावी बन सके।
8. (i) के से रा य को संसाधन-ह तांतरण म पछड़ेपन को एक कारणत व के प म
वीकार करना, (ii) पछड़े े के वकास के लए वशेष- े वकास काय म तैयार
करना, तथा (iii) नजी े के नवेश को पछड़े े म ो नत करने के उपाय करना।
9. इसके कई कारण ह, जैसे - (i) वगत म इन े क उपे ा, (ii) तकू ल भौगो लक
प रि थ तयाँ, जैसे बाढ, सू खा, वषम धरातल, अनुपजाऊ म ी, धरातल य जल का
अभाव आ द, (iii) जनजातीय े म सामािजक पछड़ापन, (iv) वशेष- े योजनाओं
का अभाव, (v) नवेश वकषण, तथा (vi) स प न रा य वारा गर ब रा य को
संसाधन-ह तांतरण से मनाह करना. ।
बोध न - 2
1. भारतीय औ यो गक वकास बक, भारतीय औ यो गक व त नगम और भारतीय
औ यो गक ऋण तथा नवेश नगम ।
2. (i) समृ रा य वारा पछड़े रा य को संसाधन-ह तांतरण से मनाह करना, (ii)
पछड़े रा य क के सरकार से अ धका धक संसाधन ा त करने क लालसा और
वकास के लए व यास क भावना का अभाव, (iii) समि वत वकास योजना णाल
का अभाव, (iv) सरकार साहा य को रोजगार-सृजन से न जोड़कर पूज
ं ी-- नवेश से जोड़ने
क दोषपूण नी त, तथा- (v) आयोजन या म वके करण का अभाव ।
14.12 अ यासाथ न
1. भारत म े ीय असंतल
ु न के सू चक क या या क िजए ।
2. े ीय असंतु लन भारत के लए एक वा त वकता है । या आप सहमत ह ?तक द िजए।
3. भारत म ादे शक वकास के तर का सं ेप म आकलन क िजए ।
4. वत ता उपरा त भारत म 1980 तक के योजना काल म आ थक पछड़ेपन तथा
े ीय असंतु लन क सकारण समी ा क िजए ।
5. छठव पंचवष य योजना काल (1960-65) से दसव पंचवष य योजना काल (2002-06)
तक भारत म आ थक पछड़ेपन तथा े ीय असंतल
ु न क सकारण या या क िजए ।
6. भारत म आ थक पछड़ेपन तथा ु न को दूर करने के लए दसवीं (2002-
े ीय असंतल
06) और यारहवीं (2006-11) पंचवष य योजनाओं म या रणनी त अपनाई गई है?
समी ा क िजए ।
7. भारत म े ीय असंतु लन के समाधान हे तु के व रा य सरकार वारा व तत
नी तगत उपाय क समी ा मक या या क िजए ।
399
8. भारत के पछड़े े म नजी को ो नत करने के लए के व रा य सरकार वारा
द त वभ न ो साहन योजनाओं क भा वता का आकलन क िजए ।
9. 'भारत म े ीय असंतु लन के समाधान हे तु अभी तक अपनाए गए उपाय मु यत:
व तीय कृ त के थे, आयोजन कृ त के नह ं । भारत म े ीय आयोजन क वफलता
के स दभ म युि तयु त ववेचना क िजए ।
400
इकाई 15 : नयोजन दे श (Planning Regions)
इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 नयोजन दे श
15.3 नयोजन क वशेषताएँ
15.4 नयोजन का वषय े , उ े य तथा व धयाँ.
15.5 नयोजन दे श का सीमांकन
15.6 नयोजन दे श का पदानु म
15.7 भारत के नयोजन दे श
15.8 कृ ष-जलवा यक दे श
15.9 सारांश
15.10 स दभ थ
15.11 बोध न के उ तर
15.12 अ यासाथ न
15.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई के अ ययन के प चात ् आप समझ सकगे :
नयोजन का अथ एवं संक पना ।
नयोजन तथा आ थक-सामािजक सां कृ तक वकास का सहस ब ध ।
नयोजन क वशेषताएँ, उ े य एवं व धयाँ ।
नयोजन दे श के सीमांकन का आधार ।
भारत के व भ न नयोजन दे श ।
401
स बि धत हो गया । वतमान समय म, आ थक तं के स दभ म ादे शक नयोजन अ य त
मह वपूण है य क यह कसी दे श के संपण
ू वकास को अपने अ दर समा हत कये हु ए है ।
402
साथ-साथ आ थक संरचना म समाँगता होनी चा हए । इस तरह नयोजन दे श अपने आप म
पया त एवं पूण होना चा हए । अत: नयोिजत दे श के लए कुछ आव यकताय एवं वशेषताएँ
न न ल खत है.
1. नयोजन वेश को इतना बड़ा होना चा हए क उसम पया त संसाधन- व यमान हो जो
उसक अथ यव था को औ च यपूण बना सके ।
2. नयोिजत दे श म आ त रक वषमता नह ं होनी चा हए ।
3. इनम संसाधनो के भ डार इतने होने चा हए क उपभोग एवं व नमय के लए उ पादन का
एक स तोषजनक तर ा त कया जा सके ।
4. मानव एवं माल को वाह को सुचा प से नयि त करने के लए नयोजन दे श म कुछ
के ब दुओं को होना अ नवाय है ।
5. नयोजन दे श एवं सं पश (एक साथ जु ड़ा हु आ) इकाईय से बना होना चा हए ।
6. नगर दे श के सीमांकन म ाय: हर तर क शास नक इकाईय पर नजर रखनी चा हए ।
शास नक सु वधाओं के लए दे श, रा य तथा रा य क म न रय , िजल , तहसील तथा
वकास ख ड म बंटे हु ए है । इस कार क शास नक इकाईयाँ सभी दे श म मलती है ।
चू ं क नयोजन के लए गहन सव ण, आंकड़े एक करने तथा या वयन के लए उपयु त
इकाईय क आव यकता होती है । अत: इकाईया सु वधाजनक एवं यवहा रक होनी चा हए ।
वे एक दूसरे क सीमा को काटे नह ं तथा वामत हो । बि क नयोजन दे श क सीमा भी
शास नक इकाईय के साथ-साथ चले । अत: कु छ व वान के अनुसार नयोजन दे श का
सीमांकन इ ह ं इकाईय म से समू हन करके बनाया जाना चा हए ।
7. नयोजन दे श इस कार से तकसंगत होना चा हए िजसम सामािजक एकता बनी रह तथा
वहाँ के नवासी इसक नवासी इसक सम याओं को समझे तथा उनके नराकरण म
उ तरदा य वपूण सहयोग द ।
8. नयोजन दे श को लचीला होना चा हए तथा ादे शक वकास के लए दूसरा वक प भी
तैयार रखना चा हए ।
9. इन दे श म यातायात एवं संचार क यापक यव था रहनी चा हए िजससे योजनाएँ सुचा
प से याि वत हो सके ।
10. चुँ क नयोजन संसाधन वकास सम याओ के समाधान म एक या है अतएवं आदश
नयोजन दे श वे होते है जहाँ सम याय पूणत: प ट, तकसंगत आव यकता तथा
यायो चत हो ।
बोध न : 1
1. नयोजन से आप या समझते ह ?
2. नयोजन दे श या है ?
3. नयोजन दे श क मु य वशे ष ता या है ?
403
15.4 नयोजन का वषय े , उ े य तथा व धयाँ :(Scope, Aim
and Methods of Planning)
नयोजन का वषय े यापक है, एक ऐसी या है िजसक सहायता से संसाधन के
नयोजन हे तु सु झाव दया जाता है । नयोजन क सहायता से कृ ष दे श एवं औ यो गक दे श
नयोजन हे तु भी सु झाव अ स रत कये जाते है । पदानु म के अनुसार वभ न तर पर
नयोजन संभव है ।
नगर य एवं महानगर य नयोजन
समु दाय एवं मानव संसाधन नयोजन
वातावरण नयोजन
ाकृ तक संसाधन नयोजन
आ थक वकास के लए ादे शक नयोजन
ादे शक व ान एवं या मक नयोजन
येक दे श म भू म, संसाधन एवं पूज
ं ी सी मत है अत: नयोजन म उन सी मत संसाधन
क खोज करके उ च तकनीक एवं श ण वारा अ धकतम लाभ ा त करना मु ख उ े य है ।
कसी दे श का श त एवं व थ मनु य ह उसका सबसे बड़ा साधन होता है । इसी लए ममफोड
ने ादे शक नयोजन म मानव हत को ह सव प र बनाया है । इस या वारा कसी दे श
को आ म नभर बनाने का यास कया जाता है अत: नयोजन का मूल उ े य कसी दे श के
नवा सय क सम याओं, उनक आव यकताओं क पू त तथा वकास के लए काय करता है ।
भारतीय नयोजन के मु य काय न न है:
1. कृ ष एवं स बि धत व तु ओं का वकास - भू म सु धार, म ी संर ण, संचाई, खाद,
जंगल का वकास एवं पशु पालन आ द ।
2. उ योग, शि त संसाधन, यातायात एवं संचार साधन का वकास ।
3. सामािजक सेवाओ का वकास- श ा, रचार य सेवा तथा सामािजक हत ।
4. नगर य एवं ामीण वकास ।
5. वातावरण वकास ।
नयोजन या के अ तगत व भ न क ठनाईय का सामना करना पड़ता है ।
राजनै तक एवं आ थक प त साथ-साथ नह चलते । राजनै तक ि ट से उपयोगी ज रत आ थक
ि टकोण से उतनी उ चत नह होती । उदाहरण के लए येक रा य भार उ योग को लगाना
चाहते ह । यह राजनै तक ि ट से उपयोगी ह, पर तु आ थक ि टकोण से यह सव उ चत नह ं
हो सकता य क सबके पास लागत समान नह ं हो सकती ।
वक सत तथा वकासशील सभी दे श को उनक सम या, उ े य तथा नी तय के अनुसार
ादे शक नयोजन क आव यकता पड़ती है । सभी दे श इसको भ न- भ न प म अपनाते है ।
नयोजन करते समय मानव क याण के उ े य से आ थक वकास क सामा य दशा,
इसक ग त और इसके व भ न े क मब ता के लए नणय लेने होते ह । नयोजन व ध
म न न ल खत व धय या चरण का योग कया जाता है :
404
वतमान ादे शकता क पहचान,
नयोजन दे श का नधारण,
दे श क आव यकताओं का नधारण,
दे श क वकास-योजना का नमाण,
योजना का या वयन और
योजनाओं का पुनरावलोकन ।
योजना व ध या तो एक तर य होती है अथवा बहु- तर य । पहल दशा म नणय
केवल रा य तर पर कये जाते है । सार या इतनी केि त होती है क न न तर य
े ीय इकाईय का काम सवाय योजनाओं के कायाि वत करने के और कु छ नह होता ।
भारतवष म ल बे काल तक योजना का े ाय: केि त और एक तर य खडा मक अथात
से टोरल ह रहा है । इसके वपर त बहु- तर य योजना णाल को चलाने के लए रा य थल
को छोटे -छोटे े ीय भाग म वभािजत करना पड़ता है । इनक सं या दे श के आकार, व तार
और इसक शास नक, भौगो लक तथा ादे शक संरचना पर नभर करती है ।
भारत जैसे दे श के लए यह आव यक है क रा य अथ यव था को बहु- तर य णाल
के प म वीकार कर । िजतना बडा कोई दे श, उतनी ह अ धक आव यकता उसक अथ यव था
को भ न- भ न दे श म बाँटने क होती है । ऐसा हर एक दे श अपने आप म एक आ म नभर
और पूण थल य इकाई है जो कु छ समान दशाओं के आधार पर वक सत होती है ।
भारत म आ थक ादे शीकरण सन ् 1965 से कई समाज शाि य को यानाषण कर रहा
है । हमारे योजना उपयोग ने योजना दे श क आव यकता अनुभव क । कु छ समय बाद यह भी
अनुभव कया गया क दे श भर के लए अ तरा यीय, राजक य, अ तर िजला, िजला और
ामीण ख ड अथवा महानगर के थानीय तर पर भी योजना दे श का नमाण कया जाए ।
योजना दे श के व तार को बहु त से ऐसे लाभ द आँकड़ से सु ढ़ कया गया है, जो कई वषा के
अ ययन के बाद उपल ध हु ए ।
405
(ii) उस दे श क वशेषताओं का पूरा समाकलन होना चा हए, क तु व यमान व वधताओ
पर भी बल दया जाना चा हए ।
(iii) दे श के आ थक त प खासकर मानवीय आ थक याकलाप एवं यापा रक रा ब ध
पर वशेष प से यान दे ना चा हए ।
(iv) नयोजन दे श े फल क ि टकोण से ाय: समान होना चा हए ।
(v) नयोजन के लए आ थक दे श का उ पादन व श टकरण के आधार पर कया जाना
चा हए ।
(vi) नयोजन के लए ाकृ तक दे श एवं उनम उपल ध संसाधन का पूण इगन ा त करना
आव यक है ।
(vii) ाकृ तक दे शो एवं उप- दे श के ढॉचे के भीतर ह नयोजन दे श के पदानु म का
अि त व होता है अत: आ थक ादे शीकरण के लए सबसे पहले दे श को ाकृ तक द
े ेश
म बाँटा जाना चा हए ।
(viii) नयोजन क ईकाईय के नधारण के लए सबसे न न तर क इकाई का नधारण
पहले करना चा हए उसके प चात ् इन छोट इकाईय का समू ह बनकर म यम तर क
इकाईय तथा म य तर क इकाईय का समू ह बनाकर वृहतसार क इकाईय का नधारण
कया जा सकता है ।
(ix) स ा त: ादे शक सीमा रे खाओं को व भ न ेणीं के दे शो को काटना नह ं चा हए ।
सू म तर पर ादे शक सीमा रे खाएँ, शास नक सीमा रे खाओं के अनु प होनी चा हए
य क आँकड़ इ ह ं इकाईय के लए एक कये जाते है ।
(x) म यम तर के नयोजन दे श लघु तर क इकाईय को मलाकर नधा रत कए जाने
चा हए । इनके एक समू ह म मलाने से पहले ाकृ तक कारक तथा संसाधन भ डार क
एक पता को दे खना आव यक है ।
(xi) म यम तर के े ो को मलाकर वृहत े का नधारण कया जाना चा हए ।
सामा यत: उन सभी रा य को एक समू ह म रखना चा हए िजनक संसाधन उपयोग
स ब धी सम याएँ समान हो । ये दे श बड़े भू-भाग पर फैले होते है, इनमे व वध
संसाधन के भ डार पाये जाते है तथा इनम व- नवा हत अथ यव था वक सत हो
सकती है ।
उपयु त स ा त के आधार पर भारत को 13 नयोजन दे श म वभािजत कया गया
है । 1967 म गे लना सदासुक एवं पी.सेन गु ता ने 7 वृहत ् एवं 48 म य तर के दे श का
नधारण कया था ।
नयोजन दे श क सं या एवं उनक सीमाएँ इस बात पर नभर करती ह क उनके
नधारण क कसौट या रह है । कसी भी दे श का सह -सह सीमा नधारण साधारण काय
नह ं है य क क ह ं दो दे श के म य पृथ क करण क कोई नि चत सीमा न होकर दोन के
बीच म एक ऐसा म य दे श होता है िजसम दोन दे श के घटक आपस म मले-जु ले होते है ।
दे श क रचना कई आधार पर होने के कारण उनम अ त: स ब ध क भी व व धता होती है
406
। कसी भी कार के दे श मे साल रा य, दो रा य के कुछ भाग, केवल एक िजला तथा एक से
अ धक भाग या एक गाँव पर सि म लत े लाये जा सकते ह ।
कसी दे श क पहचान सव थम उसके घटके क आ त रक यव था या उनके े ीय
समू ह मे सम पता से करते ह । तदुपरात इजके अ य दे शो से स ब ध के दे खा और मापा
जाता है । यह हमे एक दे श कई एक दे श म वभ त करने मे सहायक होता है । अत: बहु त से
वेश एक अलग थल य इकाई होने के साथ-साथ अपने से बड़े और छोटे दे श पर नभर भी
होते ह
मु यत: दे श या तो सामा य सम पता धान दे श होते ह तथा कया धान के
भा वत दे श होते है । सम पता धान दे श क पहचान उनक अ त: प रि थ तय अथवा
पार प रक स ब ध को दे खकर क जाती है । कया धान दे श क पहचान उस दूर के आधार
पर होती है िजस पर के य थान अथवा नगर अपनी याशीलता का भाव डालता है ।
अ य धक आ थक याओं को ऐसे के ो से उसके भाव े क सीमाओं तक व तुओं, मनु य
तथा वचार का पार प रक बहाव सा रहता है । इस वषय म के य दे श के उसके वृ तीय
पृ ठ दे श के म य इनक काय णाल क आपसी नभरता इन दे श के चयन म सहायक है ।
बोध न : 2
1. नयोजन दे श के मा यम से कसको नयोिजत करने का यास कया जाता
है ?
2. नयोजन का मु य उ े य या है ?
3. ममफोड ने नयोजन म कसको मह व दया है ?
4. गरगे ज न के गु ट क् दो रत र कौन से है ।
407
वकास के लए अ याव यक संसाधन का जाल भी व यमान होता है । शि त संसाधन इसका
एक अ छा उदाहरण है । यह आ थक याओ के सार एवं बखराव म सहायक होता है । बृहत ्
दे श म उपल ध शि त संसाधन पर आधा रत औ यो गक संि ल ट या स भा वत औ यो गक
वकास के के का भी होने चा हए, इस के क को भी इस दे श म शीष के क के प म
रहना चा हए जो दे श के अ य भाग से जु ड़ा हो । इतना ह नह ं बृहत ् दे श म बड़े के ो
(Nodes) क भी आव यकता पड़ती है जो उस दे श के वकास के लए व तीय संगठन तथा
तकनीक उपल ध करा सक ।
वृहत दे श ऐसे े होने चा हए िजनम आ त रक आ म नभरता सम पेण पायी जाती
हो । ये आ थक तं म ऐसे जुड़े हो जो अपने आ त रक तथा बा य दे श म व तु ओ,ं जनसं या
एवं वचार का सरलतापूवक आदान- दान कर सक । वृहत दे श को खा य , रोजगार तर तथा
साम य एवं सेवाओं को उ पा दत करने क स भा वत मता के अनु प आ म नभर होना
चा हये, जो दूसरे े के नगर य एवं ामीण जनसं या को तृतीयक आव यकताओं क पू त भी
कर सके । नयोजन दे श म आव यक पा रि थ तक स तु लन भी इ ह ं बृहत ् दे शो वारा
स भव होता है ।
म यम दे श: म यम दे श वृहत दे श के उप वभाग है जो संसाधन के पोषण , संर ण तथा
उपयोग के लए एक तकयु त इकाई बनते है । ये नयोजन उ े य क वतीय आ थक इकाई है
। इनक आ थक उपयु तता त यि त आय, त यि त भू म उपल धता, उ पादन सू चकांक
तथा व तु नमाण स भा यता इ या द से परखी जाती है । म यम दे श कु छ व तु ओं के
उ पादन म व श टता भी रखते है ।
लघु दे श : लघु दे श म यम दे श के वे भाग है जो कसी वशेष सम या का उदबोधन करते
ह । इनक सबसे बडी पहचान आपसी टकराहट या वरोधाभास क अनुपि थ त ह है । लघु
दे श म समु दाय वशेष क इ छाओं को भी समाक लत कया जाता है । चू ं क ये दे श नीचे के
तर के े से जु ड़े रहते ह, अत: े के वकास नयोजन हे तु ये सवा धक उपयु त इकाई होते
है ।
408
10. ा स- स धु गंगा का मैदान एवं पहा ड़याँ
11. गंगा-यमु ना का मैदान
12. नचल गंगा घाट का मैदान
13. उ तर -पूव े
1. द णी ाय वीप : इस दे श म केरल एवं त मलनाडु रा य सि म लत है । दे श के
समि वत वकास के लए तट य म यसन कृ ष कोय बटू र पठार के ख नज संसाधन, पि चमी
घाट के वन े तथा मैदानी भाग म कृ ष, संचाई एवं ऊजा के लए जल संसाधन, ताप एवं
आण वक ऊजा आ द संसाधन उपल ध है । सम याओं क ि ट से दे खे तो यह ं पर सचांई एवं
बजल उ पादन से स बि धत जल संसाधन सम या, सघन जनसं या तथा नगर करण क
सम या है ।
इस नयोिजत दे श म भौ तक, आ थक एवं सां कृ तक स ब ध प रवहन माग को
वक सत करके सु ढ़ कया गया है । इस दे श म पीकराकु दाह, पे रयार, मे ूर जल- व युत
टे शन, चे नई तथा नेवेल म कोयला, व युत और क पक कम म एटा मक बजल टे शन है ।
कोय बदूर, कोचीन तथा चे नई इसके मुख औ यो गक एवं नगर य े है ।
द णी ाय वीप दे श के तीन म यम म के दे श जैसे केरल, चे नई, कोय बटू र
औ यो गक े तथा त मलनाडु तटवत मैदान म वभािजत कया गया है ।
2. म य ाय वीप : इस दे श म कनाटक, गोवा, उ तर -पूव भाग के अ त र त संपण
ू
आ ध दे श सि म लत है । इस दे श क मुख वशेषताओं मे तु ंगभ ा बहु उ ेशीय प रयोजना,
औ यो गक वकास वारा सु ढ़ कए गए ऐ तहा सक एवं सारकृ तक स ब ध आ द है । इस
दे श म जल संसाधन, खा या न के अभाव तथा आ थक पछड़ेपन क सम या है । भावी
वकास क ि ट से दे खे तो यहाँ तट य मलय, आ ध मैदान के कृ ष, गोवा एवं कनाटक के लौह
अय क, मगनीज एवं बॉ साइट, तथा जल संसाधन, गोवा म कोयला ससाधन आ द उपल ध है।
बंगलोर, हैदराबाद तथा गोवा मुख नगर य एवं औ योगक े इसम आते है । इसके
अ त र त शरावती, जोग, तु ंगभ ा, सले , सैलम म जल- व युत तथा कोथगुडम कोयला व युत
टे शन है । इस दे श को चार म यम म के उप दे श म बाँटा गया है कनाटक तट तथा
आ त रक औ यो गक दे श, रायलसीमा तथा संल न तट य मैदान दे श, लेसार तथा ह पेट का
खनन एवं औ यो गक दे श तथा तेलंगाना एवं आ धतट य मैदान आते है।
3. पि चमी ाय वीपीय : इसके अ तगत पि चमी महारा , इसके तट य एवं शोलापुर
आ त रक िजले सि म लत है । मु बई महानगर एवं ब दरगाह का पृ ठ दे श , ख नज आ थक
एवं सां कृ तक दे श आ द इस दे श क वशेषताए है । दे श म तट य म यसन, कपास, लौह
एवं अलौह ख नज के भ डार जल व युत एवं आि वक ऊजा आ द संसाधन भावी वकास के
लए उपल ध है । इस दे श म औ यो गक के करण के बखराव तथा मराठवाडा एवं र ना गर
के आ थक प से पछडे े ो के वकास क सम या बनी हु ई है ।
मु बई, पुणे , ना सक एवं शोलापुर मुख औ यो गक एवं नगर य े इसम समा हत है
। इस दे श को म यम म के दो दे श मु बई-द कन एवं लावा दे श को कृ ष पर आधा रत
409
औ यो गक दे श तथा क कण तथा द कन का कृ ष औ यो गक दे श म वभािजत कया गया
है।
4. म य द कन : म य द कन दे श के अ तगत पूव महारा , म य एवं द णी म य
दे श रा य सि म लत है । भौ तक दशाओं एवं म ी क समांगता, वकास के लए बा य
उ ीपक त वो के लए कम खुलापन आ द एक करण के त व एवं वशेषताएँ है । इस दे श म
नमदा के जल संसाधन वकास के साथ आ थक पछड़ेपन के नराकरण क मु ख सम या है ।
साथ ह भावी वकास के लए फलो पादन, कपास, लौह अय क (च पुर ), कृ ष पर आधा रत
उ योग, नमदा क जल-ऊजा तथा सतपुड़ा क तापीय ऊजा क स भावनाएँ उपल ध है । नागपुर
इस दे श का मु ख औ यो गक एवं नगर य दे श है । दे श को म यम म के दो दे श जैसे
म य दे श का नमदा घाट के दे श तथा खानदे श, बरार दे श म बभािजत कया गया है ।
5. पूव ाय वीप : इस दे श मे उड़ीसा, द णी बहार, झारख ड, उ तर -पूव आ दे श ,
उ तर दे श के सल न िजलो के भाग तथा पि चम बंगाल शा मल है । इस दे श म तट य
म ययन कोयला, लौह-अय क, मगनीज, बा साइट, अ क, द डकार य दे श का वन, कृ ष,
महानद बे सन क कृ ष जल- व युत एवं ताप व युत का वकास , लौह-इ पात के कारखाने तथा
आधारभू त उ योग आ द रासाधन जो समि दत वकास के लए उपल ध है । इसके वपर त
रासाय नक तथा ए यूमी नयम, जनसं या, अ प घन व, कम नगर करण तथा अ धकांश भाग
का आ थक ि ट से पछड़ा होना मु य समरयाय है । राउरकेला, जमशेदपुर, आसनसोल, भलाई,
दुगापुर , स बलपुर , कटक एवं वशाखप नम मु ख औ यो गक एवं नगर य े सि म लत है ।
इस दे श को पुन : 6 म यम म के दे शो म वभ त कया गया है जो इस कार है:
उ तर -पूव द कन तथा तट य मैदान , द डकार य, महानद बे सन, सोन घाट दे श, छोटानागपुर
औ यो गक दे श तथा ा मणी औ यो गक दे श आ द ।
6. गुजरात : गुजरात दे श म सां कृ तक एकता एवं प रवहन माग वारा दत अनुबध
ं न
आ द एक करण के त व है । सौरा एवं क छ के पछड़े े , भू म सुधार, तेल एवं ाकृ तक
गैस के उ पादन एवं उपयोग स ब धी सम याय इस े म व यमान है । य द दे श म भावी
वकास क ि ट से दे खे तो पे ो रसायन, नमक, चू ना-प थर, बा साइट, सं चत कृ ष क
स मावनाये (दांतीवाड़ी, नमदा) म यन, पशु पालन आ द संसाधन उपल ध है । अहमदाबाद,
बडोदरा, सू रत, पोरब दर मुख औ यो गक एवं नगर य े इसम सि म लत है ।
गुजरात दे श को दो म यम म के दे श जैसे गुजरात मैदान एवं पहाड़ी दे श तथा
क ठयावाड़ क छ दे श म वभािजत कया गया है ।
7. पि चमी राज थान : इस दे श के अ तगत राज थान के जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर,
सरोह , जालौर, बाड़मेर, पाल , जोधपुर, नागौर तथा चु िजले सि म लत है । भौ तक तथा
जलवायु दशाओं म उ च तर क समांगता, इि दरा गाँधी नहर का वकास, सामािजक एवं
सां कृ तक स ब ध आ द एक करण के त व है । इस दे श क मुख सम या जल का नता त
अभाव, म भू म सु धार तथा शु क एवं अधशु क े के वकास से स बि धत है । य द हम
समि वत वकास क ि ट से दे खे तो इस दे श म ल नाइट, िज सम, चू ना-पथर, बहु मू य
410
प थर, पे ो लयम एवं आण वक ऊजा क सभावनाएँ, पशु पालन, सं चत कृ ष आ द संसाधन
उपल ध है ।
जोधपुर, बीकानेर, ीगंगानगर आ द मुख औ यो गक एवं नगर य दे श है । इस दे श
को पुन : दो म यम म के दे श म थल य दे श तथा अ म थल य दे श म बाँटा है ।
8. अरावल े : इस दे श म पूव राज थान तथा पि चमी म यम दे श शा मल है ।
संसाधनो क ि ट से दे खे तो दे श म अलौह, धातु ए,ँ सीसा, ज ता, तांबा, अ क, चू ना-प थर,
संगमरमर, नमक, पशु पालन, सं चत कृ ष, जल व युत (च बल घाट प रयोजना) आण वक ऊजा
(कोटा) आ द भावी वकास के लए उपल ध है । म ी अरारदन पछड़े े का वकास तथा
सामािजक सु धार क यहाँ क सम याएँ है । कोटा राणा ताप सागर, गा धी-सागर जल व युत
टे शन तथा राणा ताप सागर के पास आण वक व युत टे शन भी है । कोटा, जयपुर , अजमेर,
सवाई माधोपुर व इ दौर , इस दे श के मु य औ यो गक एवं नगर य दे श है ।
इस दे श को म यम म के दो दे श कोटा औ यो गक एवं च बल घाट दे श तथा
जयपुर -उदयपुर दे श म वभािजत कया गया है ।
9. ज मू-क मीर एवं ल ाख : इस दे श के अ तगत बारामूला , पु छ, राजौर , उधमपुर,
ज मू, ीनगर, कशु आ, अन तनाग, डोडा तथा ल ाख िजले सि म लत है । भौ तक, सामािजक
एवं सां कृ तक समानता, सीमा त े म रहने के कारण वक सत मान सकता इसक वशेषाताऐ
है । यहाँ पर औ यो गक वकास हे तु संसाधनो क अ पता, आ थक वकास का न न तर तथा
जनसं या दबाव स ब धी सम याय है । इसके अ त र त वन संसाधन, फलो पादन, पयटन तथा
जल व युत का वकास आ द संसाधन वकास के लए उपल ध है । इस दे श म मु ख
औ यो गक एवं नगर य दे श म ीनगर, सोपोर, ज मू एवं लेह सि म लत है । इस दे श के
अ तगत ज मु-क मीर तथा ल ाख दो म यम म के दे श है ।
10. ा स- सकु गंगा का मैदान एवं पहा ड़याँ : इस दे श के अ तगत पंजाब, ह रयाणा,
द ल, हमाचल दे श, पि चमी उ तर दे श तथा उतराँचल सि म लत है । उवर म ी,
सामािजक, सां कृ तक एवं ऐ तहा सक स ब ध दे श क वशेषता है । य द संसाधनो क ि ट से
दे खे तो समि वत वकास के लए आधार उपल ध है । यह पंजाब के मैदान मे सं चत कृ ष के
वकास का उ च तर जैसे गेहू ँ कपास, ग ना तथा चारे क फसल आ द हमाचल दे श तथा
उतराखड के पहाड मे फलो पाद तथा वा नक का वकास, पयटन कृ ष पर आधा रत उ योग ।
इस दे श मे बाढ़, शि त संसाधन उ पादन, संचाई, भू म-सुधार इ या द सम याय ह ।
उहल, योगदास यास, सतलज, भॉकड़ा, नांगल, यमु त तथा रामगंगा-जल व युत तथा
द ल कोयला व युत टे शन है । द ल , मेरठ, लु धयाना तथा च डीगढ़ के औ यो गक एवं
नगर य े सि म लत है । इस दे श को दो म यम म के दे श म वभािजत कया गया है ।
जैसे-भाखडा-नांगल कृ ष औ यो गक दे श तथा द ल , पि चमी उ तर दे श के मैदान तथा उ तर
दे श के पवतीय दे श आ द ।
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11. गंगा-यमु ना का मैदान : इसम पूव , म य एवं द णी-पि चमी उ तर दे श तथा म य
दे श के उ तर िजले सि म लत है । इस दे श म गंगा के मैदान के कृ ष संसाधन जैसे ग ना,
चावल तथा गेहू ँ म य दे श के वन तथा कृ ष पर आधा रत उ योग एवं ऊजा क संभावनाएँ आ द
भावी वकास के लए ससाधन उपल ध ह । साथ ह इस दे श म संचाई, बाढ़, मु यत: कृ ष पर
नभरता, व वधता क कमी तथा अ धक जनसं या का घन व मु य सम याय है । यहाँ
हरदुआगंज, कानपुर तथा पनक कोयला व युत टे शन है । कानपुर , वाराणसी, आगरा,
इलाहाबाद तथा लखनऊ मु य औ यो गक तथा नगर य े गंगा-यमु ना मैदान म सम हत है ।
इस दे श को पुन : दो उप वभाग म वभ त कया गया है, जैसे कानपुर-आगरा
औ यो गक दे श तथा पूव उ तर- दे श बधेलख ड दे श आ द ।
12. नचल गंगा घाट का मैदान : इस दे श म उ तर बहार तथा लगभग संपण
ू पि चमी
बंगाल सि म लत है । इस दे श म आ थक अ त नधनता, कलकला ब दरगाह का अपने पृ ठ-
दे श पर भाव, पया त बडे े पर सामािजक सां कृ तक सम पता आ द वशेषताएँ व यमान
है । बाढ़, संचाई, अ धक जनसं या, कृ ष पर नभरता तथा आ थक याओं म व वधता का
अभाव इस दे श क मु य सम याय है ।
भावी वकास के लए मैदानी भाग मे कृ ष वशेषकर जूट, पवतीय भाग पर चाय,
बरोनी-हि दया म पे ो-रसायन उ योग, ताप तथा जल- व युत आ द संसाधन उपल ध है ।
कलकता, पटना, बरौनी, बदवान मु ख औ यो गक एवं नगर य े इससे जुड़े हु ए है । बैरानी
ब दे ल, कोलकाता म कोयला व युत टे शन है । इस दे श को म य म के 3 दे श म बाँटा
गया है । जैसे उ तर बहार का कृ ष औ यो गक दे श, कलक ता-हु गल औ यो गक दे श तथा
उ तर बंगाल का मैदान आ द ।
13. उ तर -पूव े : इसम असम, पूव तर के अ य रा य, प. बंगाल के उ तर पवतीय
िजले शा मल है इस दे श क मु य वशेषता आ थक अ तः नधनता, सां कृ तक व वधता वारा
ज नत सामािजक अ तः नधनता, जन-जातीय सं कृ त एवं सामािजक संरचना आ द है । इस
दे श म बाढ़, खा या न तथा शि त संसाधन के अभाव क सम या है । संसाधन क ि ट से
इस दे श म चाय, जू ट क कृ ष, पे ो लयम, स ल मनाइट का खनन, वा नक , जल व युत
वकास क स भावनाय उपल ध है । नहरक टया कोयला व युत तथा उम जल व युत टे शन
ह । डगबोई, गुवाहट , शलांग तथा तनसु कया मख औ यो गक एवं नगर य े इसम
सि म लत है ।
मपु क नचल घाट तथा शलांग पठार दे श , ऊपर मपु घाट तथा पहाडी
दे श और पूव पहाड़ी एवं मैदानी दे श म यम म के तीन दे श है ।
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कम करने तथा स भा वत संसाधनो का दोहन के लए एक उ चत व ध है । कृ ष-जलवायु
नयोजन का मु य उ े य व भ न व तु ओं क मांग एवं पू त म संतु लन था पत करना,
उ पादक क कु ल आय म वृ , अ धक रोजगार उपल ध कराना, ाकृ तक संसाधन का द घकाल
तक योग के लए उपल ध करना, वशेषकर भू म, जल तथा वन संसाधनो के लए ।
भारतीय योजना आयोग ने संपण
ू दे श को न न ल खत 15 कृ ष जलवा यक दे श म
वभािजत कया है । िजसके लए धरातल, मृदा , जलवायु, भू-वै ा नक संरचना, भू म उपयोग,
संचाई तथा फसल त प को आधार बनाया है ।
1. पि चमी हमालय कृ ष दे श
2. पूव हमालय कृ ष दे श
3. नचल गंगा के मैदान का कृ ष दे श
4. म य गंगा के मैदान का कृ ष दे श
5. ऊपर गंगा के मैदान का कृ ष दे श
6. थार गंगा के मैदान का कृ ष दे श
7. पूव पठार एवं पठार कृ ष दे श
8. म य पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श
9. पि चमी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श
10. द णी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श
11. पूव तट य मैदान एवं पहाड़ी दे श
12. पि चमी तट य मैदान एवं घाट कृ ष दे श
13. गुजरात मैदान एवं पहाड़ी म ी कृ ष दे श
14. पि चमी शु क कृ ष दे श
15. वीपीय कृ ष दे श
1. पि चम हमालय कृ ष दे श : इसका व तार ज मू-क मीर, हमाचल दे श, उ तरांचल
रा य म है । यहाँ क जलवायु शीतो ण से आ व वषा का औसत 17 से.मी. से 300 से.मी. है
। इस दे श म पील , पहाड़ी, जलोढ़ म ी क अ धकता है िजसम गेहू ँ म का, धान, आलू का
उ पादन होता है । इस दे श क घा टय म अ छ वषा होती है और भू म भी उपजाऊ रहती है ।
शीतो ण े के लददाख े म अ प वषा एवं तापमान रहता है िजस कारण फसल का उ पादन
सी मत होता है । इस दे श म जनसं या का घन व 4.8 यि त तवग क.मी.
2. पूव हमालय कृ ष दे श : इस दे श म असम, पि चमी बंगाल, म णपुर , मेघालय,
नागालै ड, पुरा एवं मजोरम रा य को शा मल कया गया है । यहाँ क जलवायु उ ण-आ है,
वषा का औसत मा 184 से.मी. से 353 से.मी. रहता है, इस दे श म जलोढ़ लाल, दोमट लाल
बुलई तथा पील पहाड़ी म ी पाई जाती है । िजसम चावल और म का क खेती क जाती है ।
घा टयो म वषा भी अ छ होती है तथा म ी भी उपजाऊ है ले कन शीतो ण े के सि कम एवं
दािज लंग म कम वषा तथा कम तापमान के फसल का उ पादन सी मत दन म होता है ।
413
3. नचल गंगा के मैदान का कृ ष दे श : यह दे श पि चमी बंगाल रा य म व तृत है ,
यहाँ क जलवायु उपा से शु क उपाद कार क है । वषा का औसत 130 से 161 से.मी. के
बीच रहता है । इस दे श म लाल-पील डे टाई तथा जलोढ़ म ी का बाहु य है िजसम चावल,
जू ट तथा गेहू ँ का उ पादन होता है । इस दे श म जनसं या घन व 664.3 त वग क.मी.है ।
4. म य गंगा के मैदान का कृ ष दे श : इस दे श का व तार उ तर दे श तथा बहार
रा य म है । यहाँ क जलवायु तर उपा से शु क उपा कार क है । वषा क औसत मा ा
121 से.मी. से 147 या से.मी. के म य पाया जाता है । यहाँ क म ी जलोढ़ है िजसम चावल,
गेहू ँ और म का उगाया जाता है । इस दे श म जनसं या का घन व 531.2 यि त त वग
क.मी.है ।
5. ऊपर गंगा के मैदान का कृ ष दे श : इस दे श के अ तगत आ ध दे श का पि चमी
भाग सि म लत है । यहाँ क जलवायु शु क उपा से उपो ण है तथा औसत वषा 72 से.मी. से
98 से.मी. रहता है । यहाँ क म ी जलोढ़ है, िजसम गेहू ँ चावल, म का तथा तू र का उ पादन
होता है ।
6. थार गंगा के मैदान का कृ ष दे श : इसका व तार पंजाब, ह रयाणा, एवं राज थान
रा य म है । जहाँ क जलवायु अ य त शु क से शु क उपा है तथा वषा क औसत मा ा 36
से.मी. से 89 से.मी. तक रहता है यहाँ क म ी जलोढ़ चू ना यु त व रे तील है, िजसम गेहू ँ
म का, चावल तथा ग ना का उ पादन होता है । इस दे श का जनसं या घन व 328.9 यि त
तवग क.मी.है ।
7. पूव पठार एवं पठार कृ ष दे श : इसम महारा , म य दे श, उड़ीसा तथा पि चमी
बंगाल रा य का भाग सि म लत है । यहाँ क जलवायु तर-उपा से शु क उपा है तथा औसत
वषा 127 से 144 से.मी. है । यहाँ क म ी लाल बुलई, लाल एवं पील है । इसम चावल, गेहू ँ
म का तथा रागी का उ पादन होता है । यह जनसं या का घन व 136 यि त त वग
क.मी.है ।
8. म य पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श : इसके अ तगत म य दे श, राज थान तथा उ तर
दे श का भाग सि म लत है । यहाँ औसत वषा 49 से 157 से.मी. रहता है । इस दे श म लाल
एवं पील , म यम काल तथा जलोढ़ म ी मलती है िजसम वार, चावल तथा बाजरा उगाया
जाता है । यह जनसं या घन व 136 यि त तवग क. मी. है । 384
9. पि चमी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श : यह दे श महारा , म य दे श एवं राज थान
रा य म व तृत है । यह क जलवायु उपो ण है तथा औसत वषा क मा ा 69. से.मी. से
104. से.मी. रहता है । इस दे श म म यम काल व गहर काल म ी मलती है । यहाँ वार-
बाजरा, कपास तथा गेहू ँ क खेती क जाती है । यह जनसं या का घन व 169.3 यि त
तवग क.मी.है ।
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10. द णी पठार एवं पहाड़ी कृ ष दे श : इसम आ दे श, कनाटक एवं त मलनाडु रा य
सि म लत है । इस दे श क जलवायु उपो ण कार क है जहाँ औसत वषा क मा ा 68 से.मी.
से 100 से.मी. के म य रहता है । यह म यम काल , गहर काल , लाल बलु ई तथा लाल दुमट
म ी मलती है िजसम वार, चावल, रागी तथा मू ंगफल का उ पादन होता है । इस दे श म
जनसं या का घन व 199 यि त त वग क.मी.है ।
11. पूव तट य मैदान एवं पहाड़ी दे श : इसके अ तगत उड़ीसा, आ दे श, त मलनाडु व
पाि डचेर रा य शा मल है । यहाँ क जलवायु उपो ण से उपा कार क है जहाँ औसत वषा क
मा ा 78 से.मी. से 129 से.मी. के म य है । इस दे श म डे टाई, जलोढ़, लाल दुमट तथा
सागरतट य जलोढ़ म ी पाई जाती है िजसम चावल, मू ंगफल , रागी, वार व बाजरा उ पा दत
क जाती है । इस दे श म जनसं या का घन व 321 यि त त वग क.मी.है ।
12. पि चमी तट य मैदान एवं घाट कृ ष दे श : इसम त मलनाडु , केरल, गोआ, कनाटक एवं
महारा रा य सि म लत है । यह क जलवायु शु क उपा कार क है तथा औसत वषा क
मा ा 223 से.मी. से 364 से.मी है । इस दे श म लैटराइट, दुमट एवं तट य जलोढ़ म ी
मलती है । इसम चावल, रागी, मू ंगफल का उ पादन कया जाता है । इस दे श म जनसं या
का घन व 414 यि त त वग क.मी.है ।
13. गुजरात मैदान एवं पहाड़ी म ी कृ ष दे श : यह दे श गुजरात रा य म व तृत है ।
यहाँ क जलवायु शु क और शु क उपा कार क है तथा औसत वषा क मा ा 34 से.मी. से
179 से.मी. के म य पायी जाती है । इस दे श म गहर काल , तट य, जलोढ एवं म यम काल
म ी मलती है इसम चावल, मू ंगफल , कपास, बाजरा तथा गेहू ँ का उ पादन कया जाता है ।
इस दे श म जनसं या का घन व 174.2 यि त त वग क.मी.है ।
14. पि चमी शु क कृ ष दे श : इसम राज थान रा य सि म लत है, जहाँ क जलवायु शु क
एवं अ त शु क है तथा औसत वषा क मा ा 40 से.मी. से कम रहता है । इस दे श म बालुमय
भू र व पील म ी मलती है । िजसम गेहू ँ व बाजरा उ पा दत होता है । इस दे श म जनसं या
का घन व 58.2 यि त त वग क.मी.है ।
15. वीपीय कृ ष दे श : यह दे श अ डमान व नकोबार तथा ल य वीप म व तृत है यह
क जलभ उ ण-आ कार क है जहाँ वषा क औसत मा ा 150 से.मी. से 308 से.मी. के म य
रहता है । यहाँ चावल व ना रयल का उ पादन कया जाता है । इस दे श म जनसं या का
घन व 28.6 यि त त वग क.मी.है ।
बोध न : 3
1. पदानु म के अनु सार नयोिजत दे श को कतने तर म बां टा गया है?
2. भारत के मु ख नयोजन दे श को कतने भाग मे वभािजत कया गया है ?
3. भारत के मु ख नयोिजत दे श को मा यम म के कतने उप वभाग म
वभािजत कया गया है
4. पू व ाय वीप दे श को कतने मा यम म के दे श म बां टा गया है ?
5. भारत को कतने कृ ष जलवा यक दे श म बां टा गया है ?
415
15.9 सारांश (Summary)
े ीय आ थक तं के वकास हे तु बनाये गये काय म को नयोजन कहते है िजसम
आ थक के साथ-साथ सामािजक सा कृ तक एवं राजनी तक त प को शा मल कया गया है ।
दूसरे श द मे यह एक ऐसी या िजसम कु छ यि तय वारा कसी े वशेष को लए
काय क सूची तैयार क जाती है िजसका मु य उ े य दे श के नवा सय क सम याओं, उनक
आव यकताओ क पूत तथा वकास के लए काय करना है । इस या वारा कसी दे श को
आ म नभर बनाने का यास कया जाता है । कह ं और कस मा ा म कसी व तु का उ पादन
होगा तथा कसके वारा इसका एक ण होना आ द नणय े वशेष के आ थक णाल के
सम प से व तृत अ ययन के आधार पर कया जाता है ।
नयोजन दे श का सीमांकन नयोजन के तर, े क वशेषता एवं व वधता भावी
वकास क संभा यता पर नभर करते है । आ थक वकास तर, संसाधन का वतरण तथा
उपयोग के आधार पर भारत को 13 वृहत ् तथा 35 म यम दे श म वभािजत कया है । वृहत
दे श रा य के समू हन वारा बने है । केरल, त मलनाड, कनाटक, गुजरात, ह रयाण, पंजाब,
हमाचल दे श, द ल , ज मू-क मीर, आसाम तथा उड़ीसा एक-एक वृहत ् दे श के भाग है जब क
कु छ रा य महारा , उ तर दे श, बहार, अ ध दे श और राज थान दो-दो बृहत ् दे श के भाग
है । पि चमी बंगाल तथा म य दे श तीन-तीन बृहत ् दे श के भाग बन गये है । क मीर एवं
ल ाख वृहत दे श म संसाधन त प क अ प व वधता पायी जाती है । योजना आयोग वारा
भारत को कृ ष-जलवा यक दे श म बांटा गया है जो नयोजन दे श का अ छा उदाहरण तु त
करते ह, य क कृ ष भारतीय अथ यव था का आधार है तथा आ थक वृ के लए यह
आव यक है । अंत म हम कह सकते है क कसी भी े वशेष के सवागीण वकास हे तु बनाया
गया काय म ह नयोजन दे श है ।
15.12 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. नयोजन एक ऐसी णाल है जो कसी े वशेष के आ थक-सामािजक वकास एवं उनसे
जु ड़ी याओ को संचा लत करने के लए योग क जाती है ।
2. जब नयोजन का स ब ध कसी व श ट े ी इकाई से होता है तो उसे नयोिजत दे श
कहते है ।
3. नयोिजत दे श म धरातल य एवं सामािजक-सां कृ तक समाँगता के साथ-साथ आ थक
संरचना मे समागता होनी चा हए ।
बोध न-2
1. नयोजन क सहायता से संसाधन को नयोजन हे तु सु झाव दया जाता है ।
2. नयोजन का उ े य सी मत संसाधनो क खोज कर उ च तकनीक वारा अ धकतम लाभ
ा त करना
3. ममफोड ने नयोजन म मानव हत का मह व दया है ।
4. नयोजन एक तर य तथा बहु- तर य दो व धय से क जाती है ।
बोध न -3
1. 3
2. 13
3. 35
4. 6
5. 15
15.13 अ यासाथ न
1. नयोजन दे श क संक पना से आप या समझते है?
2. नयोजन दे श का मह व प ट क िजए ।
3. नयोजन दे श क वशेषतओं का वणन क िजए ।
4. भारतीय नयोजन वारा कये जाने वाले मु य काय का वणन कर ।
5. नयोजन दे श के सीमांकन के सामा य स ा तो क ं ववेचना क िजए ।
6. भारत के मु ख नयोजन दे श का सं त वणन क िजए ।
7. कृ ष-जलवा यक दे श के आधार को बताते हु ए भारत के कृ ष-जलवा यक दे श का वणन
क िजए ।
417