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मजबू र
(एक औरत की दास्तान)

रुखसाना की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी... पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके

शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। रुखसाना बेवा हो लखनऊ में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका ममडल-क्लास घर

था। रुखसाना के वाललद की रेमडमेड गामेंट्स की दुकान थी। रुखसाना माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसललये वो

शहर के एक बड़े अपस्केल लेमडज़ बुटीक में अससस्टें ट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पाललर भी था तो

रुखसाना के ललये ये अच्छा तजुबा था... कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप

रूकसाना की दूसरी शादी के ललये बहोत कोसशश कर रहे थे। रुखसाना बेहद गोरी और खूबसूरत और स्माटल थी लेमकन इसके

बावजूद कहीं अच्छा और मुनाससब ररश्ता नहीं ममल रहा था। मिर साल भर बाद एक मदन उसके मामा ने उसकी शादी फ़ारूक

नाम के आदमी से तय कर दी। तब फ़ारूक की उम्र अढ़तीस साल थी और रुखसाना की तेईस साल। फ़ारूक की पहली बीवी

का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक नौ साल की बेटी भी थी। फ़ारूक रेलवे में जॉब करता था।

इसललये घर वालों ने सोचा मक सरकारी नौकरी है... और मकसी चीज़ की कमी भी नहीं... इसललये रुखसाना की शादी फ़ारूक

के साथ हो गयी। फ़ारूक की पोस्स्ट


ं ग शुरू से ही मबहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था।

शादी कमहये या समझौता... पर सच तो यही था मक शादी के बाद रुखसाना को मकसी तरह की खुशी नसीब ना हुई.... ना ही वो

कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार ममला। बस यही था मक समाज में शादीशुदा होने का दज़ा

और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी अज़रा के साथ कुछ

नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी मनकला। एक मदन जब फ़ारूक के भाई के बीवी उनके यहाँ

आयी हुई थी, तब रुखसाना ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरललयाँ मनाते... ऐय्याशी करते हुए दे ख ललया।

जब रुखसाना ने इसके बारे में फ़ारूक से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं अज़रा ने फ़ारूक पर क्या जादू

मकया था मक फ़ारूक ने रुखसाना को साफ़-साफ़ बोल मदया मक अगर ये बात मकसी को पता चली तो वो रुखसाना को

तलाक़ दे दे गा... और उसकी बुरी हालत कर दे गा। रुखसाना ये सब चुपचाप बदाश्त कर गयी। सजतने मदन अज़रा उनके यहाँ

रुकती... फ़ारूक और अज़रा दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब

रुखसाना की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी.... कभी-कभी तो रुखसाना के बगल में ही बेड पर फ़ारूक और अज़रा चुदाई करने
लगते। ये सब दे ख कर रुखसाना भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वामहशों को अपने सीने में दबाये रखती और सज़ल्लत

बदाश्त करती रहती। रुखसाना के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक अज़रा बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेमकन

रुखसाना भी खूबसूरती और बनने-स


ं वरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी। अज़रा ने फ़ारूक की स्ज़ंदगी इस क़दर तबाह कर दी

थी मक वो जो कभी-कभार रुखसाना के साथ सैक्स करता भी था.... वो भी करना छोड़ मदया। धीरे-धीरे उसकी मदाना ताकत

शराब में डू बती चली गयी। कोई मदन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त मगरते पड़ते घर ना आया हो। इस सबके बावजूद

फ़ारूक चुदक्कड़ नहीं था मक कहीं भी मू


ूँ ह मारता मिरे। उसका सजस्मानी ररश्ता ससफ़ल अज़रा के साथ ही था सजसे वो मदलो-

जान से चाहता था।

रुखसाना ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से फ़ारूक को ररझाने और सुधारने की बेहद कोसशश की...

लेमकन उसे नाकामयाबी ही हाससल हुई। मिर रुखसाना ने सामनया... जो मक फ़ारूक की पहली बीवी से बेटी थी... उसकी

परवररश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर मदया। अपनी सजस्मानी तस्कीन के ललये रुखसाना हफ़्ते में एक-दो

दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और रुखसाना और फ़ारूक की शादी को दस-ग्यारह

साल गुज़र गये। रुखसाना चौंतीस साल की हो गयी और सामनया भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर

में थी। रुखसाना कभी सोचती थी मक सामनया ही इस दुमनया में उसके आने की वजह है... उसका दुमनया में होना ना होना एक

बराबर है.... पर कर भी क्या सकती थी... जैसे तैसे स्ज़ंदगी कट रही थी। इस दौरान रुखसाना ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था

लेमकन फ़ारूक़ ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अ
ं दाज़गी और सदल महरी के बावजूद

अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के ललये हमेशा मेक-अप करके... नये िैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने... सलीके

से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी। वो उन मगनी चुनी औरतों में से थी सजसे शायद ही कभी मकसी ने बे-तरतीब हालत में

दे खा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे.... वो हमेशा बनी संवरी रहती थी।

मिर एक मदन वो हुआ सजसने उसकी पूरी स्ज़ंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था मक ये बेरंग मदखने वाली दुमनया

इतनी हसीन भी हो सकती है... पर रुखसाना को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की स्ज़ंदगी में सुनील आया।

सुनील की उम्र बीस-इक्कीस साल की थी। बीस साल का होते-होते ही उसने ग्रैजए
ू शन कर ललया था। उसके घर पर ससफ़ल

सुनील और उसकी माँ ही रहते थे। बचपन में ही मपता की मौत के बाद माँ ने सुनील को पाला पोसा पढ़ाया ललखाया। उसके

पापा के गुज़रने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे में नौकरी ममल गये थी। ससफ़ल दो जने थे... इसललये पैसो की कभी तंगी

महसूस नहीं हुई। सुनील की पढ़ायी ललखायी भी एक साधारण से स्कूल और मिर सरकारी कॉलेज से हुई थी... इसललये

सुनील की माँ को उसकी पढ़ायी ललखायी का ज्यादा खचल नहीं उठाना पढ़ा। सुनील पढ़ायी ललखायी में बेहद होसशयार भी था।

ग्रैजूएशन करते ही सुनील ने रेलवे में नौकरी के ललये फ़ॉमल भर मदये थे। उसके बाद पररक्षायें हुई और सुनील का चयन हो गया

और जल्दी ही सुनील को पोस्स्ट


ं ग भी ममल गयी। सुनील बेहद खुश था पर एक दुख भी था क्योंमक सुनील की पोस्स्ट
ं ग मबहार

में हुई थी। सुनील पंजाब का रहने वाला था। इसललये वहाँ नहीं जाना चाहता था मक पता नहीं कैसे लोग होंगे वहाँ के... कैसी

उनकी भाषा होगी... बस यही सब ख्याल सुनील के मदमाग में थे।


सुनील की माँ भी उदास थी पर सुनील के ललये सुकून की बात ये थी मक दस मदन बाद ही सुनील की माँ का ररटायरमेंट होने

वाला था। इसललये वो अब सुकून के साथ मबना मकसी टें शन के सुनील के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी। सजस

मदन माँ को नौकरी से ररटायरमेंट ममला... उसके अगले ही मदन सुनील मबहार के ललये रवाना हो गया। वहाँ एक छोटे शहर के

स्टेशन पर उसे क्लकल मनयुक्त मकया गया था। जब सुनील वहाँ पहु
ूँ चा और स्टेशन मास्टर को ररपोटल मकया तो उन्होंने स्टेशन के

बाहर ही बने हुए स्टाफ़ हाऊज़ में से एक फ़्लैट सुनील को दे मदया।

जब सुनील फ़्लैट के अ
ं दर गया तो अ
ं दर का हाल दे ख कर परेशान हो गया। फ़शल जगह -जगह से टू टा हुआ था... दीवारों पर

सीलन के मनशान थे... मबजली की मफ़टटंग जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। जब सुनील ने स्टेशन मास्टर से इसकी सशकायत की

तो उसने सुनील से कहा मक उसके पास और कोई फ़्लैट खाली नहीं है... एडजस्ट कर लो यार! स्टेशन मास्टर की उम्र उस वक़्त

पैंतालीस के करीब थी और उसका नाम अज़मल था।

अज़मल: "यार सुनील कुछ मदन गुजारा कर लो... मिर मैं कुछ इंतज़ाम करता ह
ूँ !"

सुनील: "ठीक है सर!"

उसके बाद अज़मल ने सुनील को उसका काम और सजम्मेदाररयाँ समझायीं! सुनील की ड्यूटी नौ बजे से शाम पाँच बजे तक ही

थी। धीरे-धीरे सुनील की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के कमलचाररयों से भी होने लगी। जब कभी सुनील फ़्री होता तो

ऑमफ़स से बाहर मनकल कर प्लेटफ़ोमल पर घूमने लगता... सब कुछ बहुत अच्छा था। ससफ़ल सुनील के फ़्लैट को लेकर अज़मल

भी अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। सुनील उससे बार-बार सशकायत नहीं करना चाहता था। एक मदन सुनील दोपहर को

जब फ़्री था तो वो ऑमफ़स से मनकल कर बाहर आया तो दे खा अज़मल भी प्लैटफ़ोमल पर कुसी पर बैठे हुए थे। सुनील को दे ख

कर उन्होंने उसे अपने पास बुला ललया।

अज़मल: "सॉरी सुनील यार... तुम्हारे फ़्लैट का कुछ कर नहीं पा रहा ह


ूँ !"

सुनील: "कोई बात नहीं सर... अब सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं है... ये मुझे भी पता है!"

अज़मल: "और बताओ मैं तुम्हारे ललये क्या कर सकता ह


ूँ ... अगर मकसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बेलझझक बोल दे ना!"

सुनील: "सर जब तक मेरे फ़्लैट का इंतज़ाम नहीं हो जाता... आप मुझे पास में ही कहीं हो सके तो मकराये पर ही रूम मदलवा दें !"

अज़मल (थोड़ी दे र सोचने के बाद): "अच्छा दे खता ह


ूँ !"

तभी अज़मल की नज़र प्लैटफ़ोमल पे थोड़ी सी दूर फ़ारूक पर पड़ी। फ़ारूक रेल यातायात सेवा महकमे में ऑमिसर था। उसका

ऑमिस प्लैटफ़ोमल के दूसरी तरफ़ की मबल्ड


ं ग में था। उसे दे ख कर अज़मल ने फ़ारूक को आवाज़ लगायी।
अज़मल: "अरे फ़ारूक यार ज़रा सुनो तो!"

फ़ारूक: "हुक्म कीसजये अज़मल साहब!" फ़ारूक उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। फ़ारूक और अज़मल दुआ सलाम

के बाद बात करने लगे।

अज़मल: "फ़ारूक यार! ये सुनील है... अभी नया जॉइन हुआ है इसके ललये कोई मकराये पर रूम ढूूँ ढना है... तुम तो यहाँ करीब ही

रहते हो कोई कमरा अवैलबल हो तो बताओ!"

फ़ारूक: "जरूर... कमरा ममलने में तो कोई मुसश्कल नहीं होनी चामहये...! मकतना बजट है सुनील तुम्हारा?"

सुनील : "अगर दो-तीन हज़ार मकराया भी होगा तो भी चलेगा!"

अज़मल: "और हाँ... रूम के आसपास कोई अच्छा सा ढाबा भी हो तो मुनाससब रहेगा तामक इसे खाने पीने की तकलीफ़ ना

हो!"

फ़ारूक (थोड़ी दे र सोचने के बाद बोला): "सुनील अगर तुम चाहो तो मेरे घर में भी एक रूम खाली है ऊपर छत पर... बाथरूम

टॉयलेट सब अलग है ऊपर... बस सीमढ़याँ बाहर की बजाय घर के अ


ं दर से हैं... अगर तुम्हें प्रॉब्लम ना हो तो... और रही खाने के

बात तो तुम्हें मेरे घर पर घर का बना खाना भी ममल जायेगा... पीने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं... है क्या कहते हो?"

सुनील: "जी आपका ऑिर तो बहुत अच्छा है... आपको ऐतराज़ ना हो तो शाम तक बता दू
ूँ आपको?"

फ़ारूक के जाने के बाद सुनील ने अज़मल से पूछा मक क्या फ़ारूक के घर पर रहना ठीक होगा... तो उसने हंसते हुए कहा, "यार

सुनील तू आराम से वहाँ रह सकता है... वैसे तुझे पता है मक ये जो फ़ारूक है ना बड़ा मपयक्कड़ मकस्म का आदमी है... रोज रात

को दारू मपये मबना नहीं सोता... वैसे तुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी वहाँ पर... बहुत अच्छी फ़ैममली है और तुझे घर का बना

खाना भी ममल जायेगा!"

शाम को सुनील अपने ऑमिस से मनकल कर फ़ारूक के ऑमफ़स में गया जो प्लैटफ़ोमल के दूसरी तरफ़ था और फ़ारूक को

अपनी रज़ामंदी दे दी। फ़ारूक बोला, "तो चलो मेरे घर पर... रूम दे ख लेना और अगर तुम्हें पसंद आये तो आज से ही रह लेना

वहाँ पर!"

सुनील ने फ़ारूक की बात मान ली और उसके साथ उसके घर की तरफ़ चल पढ़ा। वो दोनों फ़ारूक के स्कूटर पर बैठ के

उसके घर पहु
ूँ चे तो फ़ारूक ने डोर-बेल बजायी। थोड़ी दे र बाद दरवाजा खुला तो फ़ारूक ने थोड़ा गुस्से से दरवाजा खोलने वाले

को कहा, "क्या हुआ इतनी दे र क्यों लगा दी!" सुनील बाहर से घर का मुआयना कर रहा था। घर बहुत बड़ा नहीं था लेमकन
बहोत अच्छी हालत में था। अच्छे रंग-रोगन के साथ गमलों में खूबसूरत िूल-पौधे लगे हुए थे। फ़ारूक की आवाज़ सुन कर

सुनील ने दरवाजे पर नज़र डाली।

सामने बीस-इक्कीस साल की बेहद ही खूबसूरत गोरे रंग की लड़की खड़ी थी... उसके बाल खुले हुए थे और उसके हाथ में बाल


ं वारने का ब्रश था... उसने सफ़ेद कलर का सलवार कमीज़ पहना हुआ था सजसमें उसका सजस्म कयामत ढा रहा था। सुनील

को अपनी तरफ़ यू
ूँ घूरता दे ख वो लड़की माबलल के िशल पे अपनी हील वाली चप्पल खटखटाती हुई अ
ं दर चली गयी। तभी

फ़ारूक ने सुनील से कहा, "सुनील ये मेरी बेटी सामनया है... आओ अ


ं दर चलते हैं...!"

सुनील उसके साथ अ


ं दर चला गया। अ
ं दर जाकर उसने सुनील को ड्राइंग रूम में सोफ़े पर मबठाया और अ
ं दर जाकर आवाज़

दी, "रुखसाना... ओ रुखसाना! कहा चली गयी... जल्दी इधर आ!" और मिर फ़ारूक सुनील के पास जाकर बैठ गया।

रुखसाना जैसे ही रूम मैं पहु


ूँ ची तो फ़ारूक उसे दे ख कर बोला, "ये सुनील है... हमारे स्टेशन पर नये क्लकल हैं... इनको ऊपर वाला

कमरा मदखाने लाया था... अगर इनको रूम पस


ं द आया तो कल से ये ऊपर वाले रूम में रहेंगे... जा कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम

कर!"

सुनील: "अरे नहीं फ़ारूक भाई... इसकी कोई जरूरत नहीं है!"

फ़ारूक: "चलो यार चाय ना सही... एक-एक पेग हो जाये!"

सुनील: "नहीं फ़ारूक भाई... मैं पीता नहीं... मुझे बस रूम मदखा दो!" सुनील ने फ़ारूक से झूठ बोला था मक वो मड्रंक नहीं करता

पर असल में वो भी कभी-कभी मड्रंक कर ललया करता था।

रुखसाना ने बड़ी खुशममजाज़ी से सुनील को सलाम कहा तो उसने एक बार रुखसाना की तरफ़ दे खा। वो सर झुकाये हुए

उनकी बातें सुन रही थी। रुखसाना ने कढ़ाई वाला गहरे नीले रंग का सलवार- कमीज़ पहना हुआ था और बड़ी शालीनता से

दुपट्टा अपने सीने पे ललया हुआ था। खुले लहराते ल


ं बे बाल और चेहरे पे सौम्य मेक-अप था और पैरों में ऊ
ूँ ची हील की चप्पल

पहनी हुई थी। रुखसाना की आकषलक शलससयत से सुनील काफ़ी इंप्रेस हुआ। रुखसाना को भी सुनील शरीफ़ और माकूल

लड़का लगा। सुनील भी अच्छी पसलनैललटी वाला लड़का था। हट्टा-कट्टा कसरती सजस्म था और उसके चचकने चेहरे पे कमिनी

और मासूममयत की झलक थी। मदखने में वो बारहवीं क्लास या कॉलेज के स्टू डेंट जैसा लगता था।

फ़ारूक बोले, "चलो तुम्हें रूम मदखा दे ता ह


ूँ !" मिर सुनील फ़ारूक के साथ छत पर चला गया। सुनील को घर और ऊपर वाला

रूम बेहद पसंद आया। अ


ं दर बेड, दो कुर्सलयाँ और स्टडी टेबल मौजूद थी। बाथरूम और टॉयलेट छत के दूसरी तरफ़ थे लेमकन

वो भी साफ़-सुथरे थे। रूम दे खने के बाद सुनील ने फ़ारूक से पूछा, "बताइये फ़ारूक भाई... मकतना मकराया लेंगे आप...?"

फ़ारूक ने सुनील की तरफ़ दे खते हुए कहा, "अरे यार जो भी तुम्हारा बजट हो दे दे ना!"
रूम का और खाने-पीने का ममला कर साढ़े तीन हज़ार महीने का मकराया तय करने के बाद मिर सुनील ने फ़ारूक से रुखसाना

और उसके ररश्ते के बारे में पूछा तो फ़ारूक ने बताया मक रुखसाना उसकी बीवी है। सुनील को लगा था मक रुखसाना फ़ारूक

की बड़ी बेटी है शायद।

फ़ारूक: "वो दर असल सुनील बात ये है मक, रुखसाना मेरे दूसरी बीवी है। जब मैं चौबीस साल का था तब मेरी पहली शादी हुई

थी और पहली बीवी से सामनया हुई थी... शादी के तेरह साल बाद मेरी पहली बीवी की मौत हो गयी... मिर मैंने अपनी बीवी की

मौत के बाद अढ़तीस साल की उम्र में रुखसाना से शादी की। रुखसाना की भी पहले शादी हुई थी... लेमकन उसके शौहर की

भी मौत हो गयी और बाद में जब रुखसाना तेईस साल की थी तब मेरी और रुखसाना की शादी हुई!"

अब सारा मसला सुनील के सामने था। थोड़ी दे र बाद सुनील वापस चला गया। अगले मदन शाम को सुनील फ़ारूक के साथ

ऑटो से अपना सामान ले कर आ गया और मिर अपना सामन ऊपर वाले रूम में सेट करने लगा।

फ़ारूक: "अच्छा सुनील... गरमी बहुत है... तुम नहा धो लो... मिर रात के खाने पर ममलते हैं!" उसके बाद नीचे आने के बाद

फ़ारूक ने रुखसाना से बोला, "जल्दी से रात का खाना तैयार कर दो... मैं थोड़ी दे र बाहर टहल कर आता ह
ूँ !" ये कह कर फ़ारूक

बाहर चला गया। रुखसाना जानती थी मक फ़ारूक अब कहीं जाकर दारू पीने बैठ जायेगा और पता नहीं कब नशे में धुत्त

वापस आयेगा। इसललये उसने खाना तैयार करना शुरू कर मदया। आधे घंटे में रुखसाना और सामनया ने ममल कर खाना

तैयार कर ललया। अभी वो खाना डॉयटनंग टेबल पे लगा ही रही थी मक लाइट चली गयी। ऊपर से इतनी गरमी थी मक नीचे तो

साँस लेना भी मुसश्कल हो रहा था।

रुखसाना ने सोचा मक क्यों ना सुनील को ऊपर ही खाना दे आये। इसललये उसने खाना थाली में डाला और ऊपर ले गयी।

जैसे ही वो ऊपर पहु


ूँ ची तो लाइट भी आ गयी। सुनील के रूम की तरफ़ बढ़ते हुए उसके ज़हन में अजीब सा डर उमड़ रहा था।

रूम का दरवाजा खुला हुआ था। रुखसाना ससर को झुकाये हुए रूम में दालखल हुई तो उसके सैंडलों की आहट सुन कर सुनील

ने पीछे पलट कर उसकी तरफ़ दे खा।

"हाय तौबा..." रुखसाना ने मन में ही आह भरी क्योंमक सुनील ससफ़ल ट्रैक सूट का लोअर पहने खड़ा था उसने ऊपर बमनयान

वगैरह कुछ नहीं पहना हुआ था। रुखसाना की नज़रें उसकी चौड़ी छाती पर ही जम गयीं... एक दम चौड़ा सीना माँसल बाहें...

एक दम कसरती सजस्म! रुखसाना ने अपनी नज़रों को बहुत हटाने की कोसशश की... पर पता नहीं क्यों बार-बार उसकी नज़रें

सुनील की चौड़ी छाती पर जाकर मटक जाती।

रुखसाना: "जी वो मैं आपके ललये खाना लायी थी!"

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अभी सुनील कुछ बोलने ही वाला था मक एक बार मिर से लाइट चली गयी और रूम में एक दम से घुप्प अ
ं धेरा छा गया। एक

जवान लड़के के साथ अपने आप को अ


ं धेरे रूम में पा कर रुखसाना एक दम से घबरा गयी। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "मैं नीचे

से एमजेंसी लाइट ला दे ती ह
ूँ !" पर सुनील ने उसे रोक मदया, "अरे नहीं आप वहीं खड़ी रमहये... आप मुझे बता दो एमजेंसी लाइट

कहाँ रखी है... मैं ले कर आता ह


ूँ !" रुखसाना ने उसे बता मदया मक एमजेंसी लाइट नीचे डॉयटनंग टेबल पे ही रखी है तो सुनील


ं धेरे में नीचे चला गया और मिर थोड़ी दे र बाद सुनील एमजेंसी लाइट ले कर आ गया और उसे टेबल पर रख मदया।

जैसे ही एमजेंसी लाइट की रोशनी रूम में िैली तो रुखसाना की नज़र एक बार मिर उसके गठीले सजस्म पर जा ठहरी। पसीने

से भीगा हुआ उसका कसरती सजस्म एमजेंसी लाइट की रोशनी में ऐसे चमक रहा था मानो जैसे सोना हो। रुखसाना को सबसे

अच्छी बात ये लगी मक सुनील के सीने या पेट पर एक भी बाल नहीं था। मबल्कुल चीकना सीना था उसका। रुखसाना को खुद

आपने सजस्म पे भी बाल पस


ं द नहीं थे और वो बाकायदा वेटक्स
ं ग करती थी। यहाँ तक मक अपनी चूत भी एक दम साफ़

रखती थी जबमक उसे चोदने वाला या उसकी चूत की कद्र करने वाला कोई नहीं था। तभी सुनील उसकी तरफ़ बढ़ा और

रुखसाना की आूँ खों में झाँकते हुए उसके हाथ से खाने की थाली पकड़ ली। रुखसाना ने शरमा कर नज़रें झुका ली और

हड़बड़ाते हुए बोली, "मैं बाहर चारपाई मबछा दे ती ह


ूँ ... आप बाहर बैठ कर आराम से खाना खा लीसजये...!"

रूखसाना बाहर आयी और बाहर चारपाई मबछा दी। सुनील भी खाने की थाली लेकर चारपाई पर बैठ गया।

"फ़ारूक भाई कहाँ हैं...?" सुनील ने खाने की थाली अपने सामने रखते हुए पूछा पर रुखसाना ने सुनील की आवाज़ नही सुनी...

वो तो अभी भी उसके बाइसेप्स दे ख रही थी। जब रुखसाना ने उसकी बात का जवाब नहीं मदया तो वो उसकी और दे खते हुए

दोबारा फ़ारूक के बारे में पूछने लगा। सुनील की आवाज़ सुन कर रुखसाना होश में आयी और एक दम से झेंप गयी और ससर

झुका कर बोली "पता नहीं कहीं पी रहे होंगे... रात को दे र से ही घर आते हैं!"

सुनील: "अच्छा कोई बात नहीं... उफ़्फ़ ये गरमी... इतनी गरमी में खाना खाना भी मुसश्कल हो जाता है!"

रुखसाना सुनील की बात सुन कर रूम में चली गयी और हाथ से महलाने वाला पंखा लेकर बाहर आ गयी और सुनील के पास

जाकर बोली, "आप खाना खा लीसजये... मैं हवा कर दे ती ह


ूँ ...!"

सुनील: "अरे नहीं-नहीं... मैं खा लु


ूँ गा आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं!"

रुखसाना: "इसमें तकलीफ़ की क्या बात है... आप खाना खा लीसजये!"


सुनील चारपाई पर बैठ कर खाना खाने लगा और रुखसाना सुनील के करीब चारपाई के बगल में दीवार के सहारे खड़ी होकर

खुद को और सुनील को पंखे से हवा करने लगी। "अरे आप खड़ी क्यों हैं... बैमठये ना!" सुनील ने उसे यू
ूँ खड़ा हुआ दे ख कर

कहा।

"नहीं कोई बात नहीं... मैं ठीक ह


ूँ ...!" रुखसाना ने अपने सर को झुकाये हुए कहा।

सुनील: "नहीं रुखसाना जी! ऐसे अच्छा नहीं लगता मुझे मक मैं आराम से खाना खाऊ
ूँ और आप खड़ी होकर मुझे पंखे से हवा

दें ... मुझे अच्छा नहीं लगता... आप बैमठये ना!" अ


ं जाने में ही उसने रुखसाना का नाम बोल मदया था पर उसे जल्दी ही एहसास

हो गया। "सॉरी मैंने आप का नाम लेकर बुलाया... वो जल्दबाजी में बोल गया!"

रुखसाना: "कोई बात नहीं...!"

सुनील: "अच्छा ठीक है... अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो आज से मैं आपको भाभी कहु
ूँ गा क्योंमक मैं फ़ारूक साहब को भाई

बुलाता ह
ूँ ... अगर आपको बुरा ना लगे।"

रुखसाना: "जी मुझे क्यों बुरा लगेगा!"

सुनील: "अच्छा भाभी जी... अब ज़रा आप बैठने की तकलीफ़ करेंगी!"

सुनील की बात सुन कर रुखसाना को हंसी आ गयी और मिर सामने चारपाई पे पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और पंखा

महलाने लगी। सुनील मिर बोला, "भाभी जी एक और गुज़ाररश है आपसे... प्लीज़ आप भी मुझे 'आप-आप' कह कर ना

बुलायें... उम्र में मैं बहुत छोटा ह


ूँ आपसे... मुझे नाम से बुलायें प्लीज़!"

"ठीक है सुनील अब चुपचाप खाना खाओ तुम!" रुखसाना हंसते हुए बोली। उसे सुनील का हंसमुख ममजाज़ बहोत अच्छा

लगा।

सुनील खाना खाते हुए बार-बार रुखसाना को चोर नज़रों से दे ख रहा था। एमजेंसी लाइट की रोशनी में रुखसाना का हुस्न भी

दमक रहा था। बड़ी- बड़ी भूरे रंग की आूँ खें... तीखे नयन नक्श... गुलाब जैसे रसीले होंठ... ल
ं बे खुले हुए बाल... सुराही दार गदल न...

रुखसाना का हुस्न मकसी हर से कम नहीं था।

रुखसाना ने गौर मकया मक सुनील की नज़र बार-बार या तो ऊ


ूँ ची हील वाली चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों पर या मिर उसकी

चूचचयों पर रुक जाती। गहरे नीले रंग की कमीज़ में रुखसाना की गोरे रंग की चूचचयाँ गजब ढा रही थी... बड़ी-बड़ी और गोल-

गोल गुदाज चूचचयाँ। इसका एहसास रुखसाना को तब हुआ जब उसने सुनील की पतली ट्रैक पैंट में तने हुए ल
ं ड की हल चल

को दे खा। खैर सुनील ने जैसे तैसे खाना खाया और हाथ धोने के ललये बाथरूम में चला गया। इतने में लाइट भी आ गयी थी।

जब वो बाथरूम में गया तो रुखसाना ने बतलन उठाये और नीचे आ गयी। नीचे आकर उसने बतलन मकचन में रखे और अपने बेड
पर आकर लेट गयी, "ओहहहह आज ना जाने मुझे क्या हो रहा है....?" अजीब सी बेचन
ै ी महसूस हो रही थी उसे। बेड पर लेटे हुए

उसने जैसे ही अपनी आूँ खें बंद की तो सुनील का चचकना चेहरा और उसकी चौड़ी छाती और मजबूत बाइसेप्स उसकी आूँ खों

के सामने आ गये। पेट के मनचले महस्से में कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था... रह-रह कर इक्कीस साल के नौजवान सुनील

की तस्वीर आूँ खों के सामने से घूम जाती।

रुखसाना पेट के बल लेटी हुई अपनी टाँगों के बीच में अपना हाथ चूत पर दबा कर अपने से पंद्रह साल छोटे लड़के का

तसव्वुर कर कर रही थी... मकस तरह सुनील उसकी चूचचयों को मनहार रहा था... कैसे उसकी ऊ
ूँ ची हील की चप्पल में उसके गोरे-

गोरे पैरों को दे खते हुए सुनील का ल


ं ड ट्रैक पैंट में उछल रहा था। रुखसाना का हाथ अब उसकी सलवार में दालखल हुआ ही था

मक तभी वो ख्वाबों की दुमनया से बाहर आयी जब सामनया रूम में अ


ं दर दालखल होते हुए बोली... "अम्मी क्या हुआ खाना नहीं

खाना क्या?"

रुखसाना एक दम से बेड पर उठ कर बैठ गयी और अपनी साँसें संभालते हुए अपने मबखरे हुए बालों को ठीक करने लगी।

सामनया उसके पास आकर बेड पर बैठ गयी और उसके माथे पर हाथ लगा कर दे खते हुए बोली, "अम्मी आप ठीक तो हो ना?"

रुखसाना: "हाँ... हाँ ठीक ह


ूँ ... मुझे क्या हुआ है?"

सामनया: "आपका सजस्म बहोत गरम है... और ऊपर से आपका चेहरा भी एक दम लाल है!"

रुखसाना: "नहीं कुछ नहीं हुआ... वो शायद गरमी के वजह से है... तू चल मैं खाना लगाती ह
ूँ !"

मिर रुखसाना और सामनया ने ममल कर खाना खाया और मकचन संभालने लगी। तभी फ़ारूक भी आ गया। जब रुखसाना ने

उससे खाने का पूछा तो उसने कहा मक वो बाहर से ही खाना खा कर आया है। फ़ारूक शराब के नशे में एक दम धुत्त बेड पर

जाकर लेट गया और बेड पर लेटते ही सो गया। रुखसाना ने भी अपना काम खतम मकया और वो लेट गयी। करवटें बदलते

हुए कब उसे नींद आयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह- सुबह फ़ारूक ने ऊपर जाकर सुनील के रूम का दरवाजा खटकटाया।

सुनील ने दरवाजा खोला तो फ़ारूक सुनील को दे खते हुए बोला "अरे यार सुनील... मुझे माफ़ कर दो... कल तुम्हारा यहाँ पहला

मदन था... और मेरी वजह से..."

सुनील: "अरे फ़ारूक भाई कोई बात नहीं... अब जबमक मैं आपके घर में रह रहा ह
ूँ तो मुझे बेगाना ना समझें..!"

फ़ारूक: "अच्छा तुम तैयार होकर आ जाओ... आज नाश्ता नीचे मेरे साथ करना!"

सुनील: "अच्छा ठीक है मैं तैयार होकर आता ह


ूँ !"
फ़ारूक नीचे आ गया और रुखसाना को जल्दी नाश्ता तैयार करने को कहा। थोड़ी दे र बाद सुनील तैयार होकर नीचे आ गया।

रुखसाना ने नाश्ता टेबल पर रखते हुए सुनील के जामनब दे खा तो उसने रुखसाना को सलाम कहा। रुखसाना ने भी मुस्कुरा

कर उसे जवाब मदया और नाश्ता रख कर मिर से मकचन में आ गयी। नाश्ते के बाद सुनील और फ़ारूक स्टेशन पर चले गये।

इसी तरह दो हफ़्ते गुज़र गये। फ़ारूक और सुनील हर रोज़ नाश्ता करने के बाद साथ-साथ स्टेशन जाते। मिर शाम को छः-सात

बजे के करीब कभी दोनों साथ में वापस आते और कभी सुनील अकेला ही वापस आता। फ़ारूक जब सुनील के साथ वापस

आता तो भी थोड़ी दे र बाद मिर शराब पीने कहीं चला जाता और दे र रात नशे की हालत में लौटता। सुनील ज्यादातर शाम को

ऊपर अपने कमरे में या छत पे ही गुज़ारता था। रुखसाना उसे ऊपर ही खाना दे आती थी। सुनील की खुशममजाज़ी और अच्छे

रवैये से रुखसाना के मदल में उसके ललये उल्फ़त पैदा होने लगी थी। उसे सुनील से बात करना अच्छा लगता था लेमकन उसे

थोड़ा-बहोत मौका तब ही ममलता था जब वो उसे खाना दे ने ऊपर जाती थी। सुनील खाने की या उसकी तारीफ़ करता तो उसे

बहोत अच्छा लगता था। रुखसाना ने नोट मकया था मक सुनील भी कईं दफ़ा उसे चोर नज़रों से मनहारता था लेमकन रुखसाना

को बुरा नहीं लगता था क्योंमक सुनील ने कभी कोई ओछी हकलत या बात नहीं की थी। उसे तो बलल्क खुशी होती थी मक कोई

उसे तारीफ़-अमेज़ नज़रों से दे खता है।

एक मदन शाम के छः बजे डोर-बेल बजी तो रुखसाना ने सोचा मक सुनील और फ़ारूख आ गये हैं। उसने सामनया को आवाज़

लगा कर कहा मक, "तुम्हारे अब्बू आ गये है, जाकर डोर खोल दो!"

सामनया बाहर दरवाजा खोलने चली गयी। सामनया ने उस मदन गुलाबी रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जो उसके गोरे

रंग पर क़हर ढा रहा था। गरमी होने की वजह से वो अभी थोड़ी दे र पहले ही नहा कर आयी थी। उसके बाल भी खुले हुए थे और

बला की क़यामत लग रही थी सामनया उस मदन। रुखसाना को अचानक महसूस हुआ मक जब सुनील दे खेगा तो उसके मदल

पर भी सामनया का हुस्न जरूर क़हर बरपायेगा।

सामनया दरवाजा खोलने चली गयी। रुखसाना बेडरूम में बैठी सब्जी काट रही थी और आूँ खें कमरे के दरवाजे के बाहर लगी

हुई थी। तभी उसे बाहर से सुनील की हल्की सी आवाज़ सुनायी दी। वो शायद सामनया को कुछ कह रहा था। रुखसाना को

पता नहीं क्यों सामनया का इतनी दे र तक सुनील के साथ बातें करना खलने लगा। वो उठ कर बाहर जाने ही वाली थी मक

सुनील बेडरूम के सामने से गुजरा और ऊपर चला गया। उसके पीछे सामनया भी आ गयी और सीधे रुखसाना के बेडरूम में

चली आयी।

इससे पहले मक रुससना सामनया से कुछ पूछ पाती वो खुद ही बोल पड़ी, "अम्मी आज रात अब्बू घर नहीं आयेंगे... वो सुनील

बोल रहा था मक आज उनकी नाइट ड्यूटी है...!" सामनया सब्जी काटने में रुखसाना की मदद करने लगी। रुखसाना सोच में पड़

गयी मक आलखर उसे हो क्या गया है... सुनील तो शायद इसललये सामनया से बात कर रहा था मक आज फ़ारूक घर पर नहीं

आयेगा... यही बताना होगा उसे... पर उसे क्या हुआ था को वो इस कदर बेचैन हो उठी... अगर वैसे भी सामनया और सुनील
आपस में कुछ बात कर भी लेते है तो इसमें हजल ही क्या है... वो दोनों तो हम उम्र हैं... क
ं ु वारे हैं और वो एक शादीशुदा औरत है

उम्र में भी उन दोनों से चौदह-पंद्रह साल बड़ी।

रुखसाना को सामनया और सुनील का बात करना इस ललये भी अच्छा नहीं लगा था मक जब से सुनील उनके यहाँ रहने आया

था तब से सामनया के तेवर बदले-बदले लग रहे थे... कहाँ तो हर रोज़ सामनया को ढंग से कपड़े पहनने और सजने संवरने के

ललये जोर दे ना पड़ता था और कहाँ वो इन मदनों नहा-धो कर मबना कहे शाम को कॉलेज से लौट कर तैयार होती और आइने के

सामने बैठ कर अच्छे से मेक-अप तक करने लगी थी। इन दो हफ़्तों में उसका पहनावा भी बदल गया था। यही सब महसूस

करके रुखसाना को सामनया के ऊपर शक सा होने लगा।

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मिर रुखसाना ने सोचा मक अगर सामनया सुनील को पसंद करती भी है तो उसमें सामनया की क्या गल्ती है... सुनील था ही

इतना हैंडसम और चार्ममग लड़का मक जो भी लड़की उसे दे खे उस पर मफ़दा हो जाये। रुखसाना खुद भी तो इस उम्र में सुनील पे

मफ़दा सी हो गयी थी और अपने कपड़ों और मेक-अप पे पहले से ज्यादा तवज्जो दे ने लगी थी। रुखसाना उठी और सामनया

को सब्जी काट कर मकचन में रखने के ललये कहा। मिर आईने के सामने एक दफ़ा अपने खुले बाल संवारे और थोड़ा मेक-

अप दुरुस्त मकया। रुखसाना घर के अ


ं दर भी ज्यादातर ऊ
ूँ ची हील वाली चप्पल पहने रहती थी लेमकन अब मेक-अप दुरुस्त

करके उसने अलमारी में से और भी ज्यादा ऊ


ूँ ची पेंससल हील वाली सैंडल मनकाल कर पहन ली क्योंमक इन दो हफ़्तों में

सुनील की नज़रों से रुखसाना को उसकी पस


ं द का अ
ं दाज़ा हो गया था। सुनील की नज़र अक्सर हील वाली चप्पलों में

रुखसाना के पैरों पे अटक जाया करती थी। सैंडलों के बकल बंद करके वो एक मगलास में ठंडा पानी लेकर ऊपर चली गयी।

सोचा मक सुनील को प्यास लगी होगी तो गरमी में उसे मफ़्रज का ठंडा पानी दे आये लेमकन इसमें उसका खुद का मकसद भी

छुपा था। जैसे ही रुखसाना सुनील के कमरे के दरवाजे पर पहु


ूँ ची तो सुनील अचानक से बाहर आ गया। उसके सजस्म पर ससफ़ल

एक तौललया था... जो उसने कमर पर लपेट रखा था। शायद वो नहाने के ललये बाथरूम में जा रहा था।

रुखसाना ने उसकी तरफ़ पानी का मगलास बढ़ाया तो सुनील ने शुमिया कह कर पानी का मगलास लेते हुए पानी पीना शुरू

कर मदया। रुखसाना की नज़र मिर से सुनील की चौड़ी छाती पर अटक गयी। पसीने की कुछ बू
ूँ दें उसकी छाती से उसके पेट

की तरफ़ बह रही थीं सजसे दे ख कर रुखसाना के होंठ थरथराने लगे। सुनील ने पानी खतम मकया और रुखसाना की तरफ़

मगलास बढ़ाते हुए बोला, "थैंक यू भाभी जी... लेमकन आप ने क्यों तकलीफ़ उठायी... मैं खुद ही नीचे आ कर पानी ले लेता!"

रुखसाना ने नोमटस क्या मक सुनील उसके काँप रहे होंठों को बड़ी ही हसरत भरी मनगाहों से दे ख रहा था। सुनील उसे मनहारते

हुए बोला, "भाभी जी कहीं बाहर जा रही हैं क्या...?"

रुखसाना चौंकते हुए बोली, "नहीं तो क्यों!"


"नहीं बस वो आपको इतने अच्छे से तैयार हुआ दे ख कर मुझे ऐसा लगा... एक बात कह
ूँ भाभी जी... आप खूबसूरत तो हैं ही

और आपके कपड़ों की चॉईस... मतलब आपका ड्रेस्स


ं ग सेंस भी बहुत अच्छा है... जैसे मक अब ये सैंडल आपकी खूबसूरती कईं

गुना बढ़ा रहे हैं। सुनील से इस तरह अपनी तारीफ़ सुनकर रुखसाना के गाल शमल से लाल हो गये। फ़रूक से तो कभी उसने

अपनी तारीफ़ में दो अल्फ़ाज़ भी नहीं सुने थे। ससर झुका कर शरमाते हुए वो धीरे से बोली, :बस ऐसे ही सजने-संवरने का थोड़ा

शौक है मुझ!े " मिर वो मगलास लेकर जोर-जोर से धड़कते मदल के साथ नीचे आ गयी।

जब रुखसाना नीचे पहु


ूँ ची तो सामनया खाना तैयार कर रही थी। सामनया को पहले कभी इतनी लगन और प्यार से खाना बनाते

रुखसाना कभी नहीं दे खा था। थोड़ी दे र में ही खाना तैयार हो गया। रुखसाना ने सुनील के ललये खाना थाली में डाला और

उसने सोचा क्यों ना आज सुनील को खाने के ललये नीचे ही बुला लू


ूँ । उसने सामनया से कहा मक वो खाना टेबल पर लगा दे जब

तक वो खुद ऊपर से सुनील को बुला कर लाती है। रुखसाना की बात सुन कर सामनया एक दम चहक से उठी।

सामनया: "अम्मी सुनील आज खाना नीचे खायेगा?"

रुखसाना: "हाँ! मैं बुला कर लाती ह


ूँ ..!"

रुखसाना ऊपर की तरफ़ गयी। ऊपर सन्नाटा पसरा हुआ था। बस ऊ


ूँ ची पेंससल हील वाले सैंडलों में रुखसाना के कदमों की

आवाज़ और सुनील के रूम से उसके गुनगुनाने की आवाज़ सुनायी दी रही थी। रुखसाना धीरे-धीरे कदमों के साथ सुनील के

कमरे की तरफ़ बढ़ी और जैसे ही वो सुनील के कमरे के दरवाजे पर पहु


ूँ ची तो अ
ं दर का नज़ारा दे ख कर उसकी तो साँसें ही

अटक गयीं। सुनील बेड के सामने एक दम नंगा खड़ा हुआ था। उसका सजस्म बॉडी लोशन की वजह से एक दम चमक रहा था

और वो अपने ल
ं ड को बॉडी लोशन लगा कर मुठ मारने वाले अ
ं दाज़ में महला रहा था। सुनील का आठ इंच ल
ं बा और मोटा

अनकटा ल
ं ड दे ख कर रुखसाना की साँसें अटक गयी। उसके ल
ं ड का सुपाड़ा अपनी चमड़ी में से मनकल कर मकसी साँप की

तरह ि
ं ु िकार रहा था।

क्या सुपाड़ा था उसके ल


ं ड का... एक दम लाल टमाटर के तरह इतना मोटा सुपाड़ा... उफ़्फ़ हाय रुखसाना की चूत तो जैसे उसी

पल मूत दे ती। रुखसाना बुत्त सी बनी सुनील के अनकटे ल


ं ड को हवा में झटके खाते हुए दे खने लगी... इस बात से अ
ं जान मक

वो एक पराये जवान लड़के के सामने उसके कमरे में खड़ी है... वो लड़का जो इस वक़्त एक दम नंगा खड़ा है। तभी सुनील एक

दम उसकी तरफ़ पलटा और उसके हाथ से लोशन के बोतल नीचे मगर गयी। एक पल के ललये वो भी सकते में आ गया। मिर

जैसे ही उसे होश आया तो उसने बेड पर पड़ा तौललया उठा कर जल्दी से कमर पर लपेट ललया और बोला, "सॉरी वो मैं... मैं डोर

बंद करना भूल गया था...!" अभी तक रुखसाना यू


ूँ बुत्त बन कर खड़ी थी। सुनील की आवाज़ सुन कर वो इस दुमनया में वापस

लौटी। "हाय अल्लाह!" उसके मु


ूँ ह से मनकला और वो तेजी से बाहर की तरफ़ भागी और वापस नीचे आ गयी।

रुखसाना नीचे आकर कुसी पर बैठ गयी और तेजी से साँसें लेने लगी। जो कुछ उसने थोड़ी दे र पहले दे खा था... उसे यकीन

नहीं हो रहा था। सजस तरह से वो अपने ल


ं ड को महला रहा था... उसे दे ख कर तो रुखसाना के रोंगटे ही खड़े हो गये थे... उसकी
चुत में हलचल मच गयी थी और गीलापन भर गया था। तभी सामनया अ
ं दर आयी और उसके साथ वाली कुसी पर बैठते हुए

बोली, "अम्मी सुनील नहीं आया क्या?"

रुखसाना: "नहीं! वो कह रहा है मक वो ऊपर ही खाना खायेगा!"

सामनया: "ठीक है अम्मी... मैं खाना डाल दे ती ह


ूँ ... आप खाना दे आओ...!"

रुखसाना: "सामनया तुम खुद ही दे कर आ जाओ... मेरी तमबयत ठीक नहीं है...!" सुनील के सामने जाने की रुखसाना की महम्मत

नहीं हुई। उसे यकीन था मक अब तक सुनील ने भी कपड़े पहन ललये होंगे... इसललये उसने सामनया से खाना ले जाने को कह

मदया।

सामनया मबना कुछ कहे खाना थाली में डाल कर ऊपर चली गयी और सुनील को खाना दे कर वापस आ गयी और रुखसाना

से बोली, "अम्मी सुनील पूछ रहा था मक आप खाना दे ने ऊपर नहीं आयीं... आप ठीक तो है ना...?" रुखसाना ने एक बार

सामनया की तरफ़ दे खा और मिर बोली, "बस थोड़ी थकान सी लग रही है... मैं सोने जा रही ह
ूँ तू भी खाना खा कर मकचन का

काम मनपटा कर सो जाना!" सामनया को महदायत दे कर रुखसाना अपने बेडरूम में जा कर दरवाजा बंद करके बेड पर लेट

गयी। उसके मदल-ओ-मदमाग पे सुनील का लौड़ा छाया हुआ था और वो इस कदर मदहोश सी थी मक उसने कपड़े बदलना तो

दूर बलल्क सैंडल तक नहीं उतारे थे। ऐसे ही सुनील के ल


ं ड का तसव्वुर करते हुए बेड पर लेट कर अपनी टाँगों के बीच तमकया

दबा ललया हल्के-हल्के उस पर अपनी चूत रगड़ने लगी। मिर अपना हाथ सलवार में डाल कर चूत सहलाते हुए उंगललयों से

अपनी चूत चोदने लगी। आमतौर पे मिर जब वो हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती करती थी तो इतने में उसे तस्क़ीन

हाससल हो जाती थी लेमकन आज तो उसकी चूत को करार ममल ही नहीं रहा था।

थोड़ी दे र बाद वो उठी और बेडरूम का दरवाजा खोल कर धीरे बाहर मनकली। अब तक सामनया अपने कमरे में जा कर सो

चुकी थी। घर में अ


ं धेरा था... बस एक नाइट-लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। रुखसाना मकचन में गयी और एक छोटा सा खीरा

ले कर वापस बेडरूम में आ गयी। दरवाजा बंद करके उसने आनन फ़ानन अपनी सलवार और पैंटी उतार दी और मिर वो बेड

पर घुटने मोड़ कर लेटते हुए खीरा अपनी चूत में डाल कर अ


ं दर बाहर करने लगी। उसकी बंद आूँ खों में अभी भी सूनील के नंगे

सजस्म और उसके तने हुए अनकटे लौड़े का नज़ारा था। करीब आठ-दस ममनट चूत को खीरे से खोदने के बाद उसका सजस्म

झटके खाने लगा और उसकी चूत ने पानी छोड़ मदया। उसके बाद रुखसाना आसूदा होकर सो गयी।

अगले मदन सुबह सुबह जब रुखसाना की आूँ ख खुली तो खुद को मबस्तर पे ससफ़ल कमीज़ पहने हुए नंगी हालत में पाया।

सुनील के ललये जो पेंससल हील के सैंडल मपछली शाम को पहने थे वो अब भी पैरों में मौजूद थे। मबस्तर पे पास ही वो खीरा भी

पड़ा हुआ था सजसे दे ख कर रुखसाना का चेहरा शमल से लाल हो गया। उसकी सलवार और पैंटी भी िशल पर पड़े हुई थी। उसने

कमरे और मबस्तर की हालत ठीक की और मिर नहाने के ललये बाथरूम में घुस गयी। इतने में फ़ारूक वामपस आ गया और

सामनया और रुखसाना से बोला मक सामनया की मामी की तमबयत खराब है और इसललये वो सामनया को कुछ मदनो के ललये
अपने पास बुलाना चाहती है। फ़ारूक ने सामनया को तैयार होने के ललये कहा। रुखसाना ने जल्दी से नाश्ता तैयार मकया और

नाश्ते की ट्रे लगाकर सामनया से कहा मक वो ऊपर सुनील को नाश्ता दे आये। आज सामनया और भी ज्यादा कहर ढा रही थी।

रुखसाना ने गौर मकया मक सामनया ने मरून रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था। उसका गोरा रंग उस मरून जोड़े में और

लखल रहा था और पैरों में सफ़ेद सैंडल बेहद सूट कर रहे थे। रुखसाना ने सोचा मक आज तो जरूर सुनील सामनया की

खूबसूरती को दे ख कर घायल हो गया होगा। सामनया नाश्ता दे कर वापस आयी तो उसके चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान

थी। मिर थोड़ी दे र बाद सुनील भी नीचे आ गया। रुखसाना मकचन में ही काम कर रही थी मक फ़ारूक मकचन मैं आकर बोला,

"रुखसाना! मैं शाम तक वापस आ जाऊ


ूँ गा... और हाँ आज अज़रा भाभीजान आने वाली हैं... उनकी अच्छे से मेहमान नवाज़ी

करना!"

ये कह कर सामनया और फ़ारूक चले गये। रूखसाना ने मन ही मन में सोचा मक "अच्छा तो इसललये फ़ारूक सामनया को

उसकी मामी के घर छोड़ने जा रहा था तामक वो अपनी भाभी अज़रा के साथ खुल कर रंगरललयाँ मना सके।" सामनया

समझदार हो चुकी थी और घर में उसकी मौजूदगी की वजह से फ़ारूक और अज़रा को एहचतयात बरतनी पड़ती थी।

रुखसाना की तो उन्हें कोई परवाह थी नहीं।

फ़ारूक के बड़े भाई उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले थे। वो एक प्राइवेट क
ं पनी में ऊ
ूँ चे ओहदे पर थे। उनका बड़ा लड़का

इंसजमनयररंग कर रहा था और दो बच्चे बोर्मडग स्कूल में थे। उन्हें भी अक्सर दूसरे शहरों में दौरों पे जाना पड़ता था इसललये

अज़रा भाभी हर महीने दो-चार मदन के ललये फ़ारूक के साथ ऐयाशी करने आ ही जाती थी। कभी-कभार फ़ारूक को भी

अपने पास बुला लेती थी। अज़रा वैसे तो फ़ारूक के बड़े भाई की बीवी थी पर उम्र में फ़ारूक से छोटी थी। अज़रा की उम्र

करीब बयालीस साल थी लेमकन पैंतीस-छत्तीस से ज्यादा की नहीं लगती थी। रुखसाना की तरह खुदा ने उसे भी बेपनाह हुस्न

से नवाज़ा था और अज़रा को तो रुपये-पैसों की भी कमी नहीं थी। फ़रूक को तो उसने अपने हुस्न का गुलाम बना रखा था

जबमक रुखसाना हुस्न और खूबसूरती में अज़रा से बढ़कर ही थी।

अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था मक डोर-बेल बजी। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन अज़रा खड़ी थी।

रुखसाना को दे ख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अ


ं दर चली आयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद

मकया और ड्राइंग रूम में आकर अज़रा को सोफ़े पर मबठाया। "और सुनाइये अज़रा भाभी-जान कैसी है आप!" रुखसाना

मकचन से पानी लाकर अज़रा को दे ते हुए तकल्लुफ़ मनभाते हुए पूछा।

अज़रा: "मैं ठीक ह


ूँ ... तू सुना तू कैसी है?"

रुखसाना: "मैं भी ठीक ह


ूँ भाभी जान... कट रही है... अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शबलत?"

अज़रा: "तौबा रुखसाना! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शबलत ही बना ले!"
रुखसाना मकचन में गयी और शबलत बना कर ले आयी और शबलत अज़रा को दे कर बोली, "भाभी आप बैमठये, मैं ऊपर से कपड़े

उतार लाती ह
ूँ ...!" रुखसाना ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीमढ़याँ बची थी मक

अचानक से उसका बैलेंस मबगड़ गया और वो सीमढ़यों से नीचे मगर गयी। मगरने की आवाज़ सुनते ही अज़रा दौड़ कर आयी

और रुखसाना को यू
ूँ नीचे मगरी दे ख कर उसने रुखसाना को जल्दी से सहारा दे कर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर ललटा

मदया। "हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी रुखसाना! अगर सलामहयत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊ
ूँ ची हील वाली

चप्पलें... मेरी नकल करना जरूरी है क्या!"

अज़रा का ताना सुनकर रुखसाना को गुस्सा तो बहोत आया लेमकन ददल से कराहते हुए वो बोली, "आहहह हाय बहोत ददल हो

रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!" ये बात सही थी मक रुखसाना की तरह अज़रा को भी आम तौर पे

ज्यादातर ऊ
ूँ ची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेमकन रुखसाना उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी।

अज़रा फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीमनक था... वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक

अप मकया और कहा, "घबराने की बात नहीं है... कमर के नीचे हल्की सी मोच है... आप ये ददल की दवाई लो और ये बाम मदन में

तीन-चार दफ़ा लगा कर माललश करो... आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!"

डॉक्टर के जाने के बाद अज़रा ने रुखसाना को दवाई दी और बाम से माललश भी की। शाम को फ़ारूक और सुनील घर वापस

आये तो अज़रा ने डोर खोला। फ़ारूक बाहर से ही भड़क उठा। रुखसाना को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी,

"भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की... वो रुखसाना कहाँ मर गयी... वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?"

अज़रा: "अरे फ़ारूक ममयाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो... वो बेचारी तो सीमढ़यों से मगर गयी थी... चोट आयी है... उसे डॉक्टर ने

आराम करने को कहा है!"

सुनील ऊपर जाने से पहले रुखसाना के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। सुनील का अपने ललये इस तरह मफ़ि ज़ामहर करना

रुखसाना को बहोत अच्छा लगा। रुखसाना ने सोचा मक एक उसका शौहर था सजसने मक उसका हालचाल भी पूछना जरूरी

नहीं समझा। रात का खाना अज़रा ने तैयार मकया और फ़ारूक सुनील को ऊपर खाना दे आया। फ़ारूक आज मटन लाया था

सजसे अज़रा ने बनाया था।

उसके बाद फ़ारूक और अज़रा दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरललयों में मशगूल हो गये। थोड़ी दे र बाद दोनों नशे की

हालत में बेडरूम में आये जहाँ रुखसाना आूँ खें बंद मकये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। रुखसाना बेड पर लेटी उनकी ये

सब हकलतें दे ख कर खून के आूँ सू पी रही थी। उन दोनों को लगा मक रुखसाना सो चुकी है जबमक असल में वो जाग रही थी।

वैसे उन दोनों पे रुखसाना के जागने या ना जागने से कोई िक़ल नहीं पड़ता था।

"फ़ारूक ममयाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!" अज़रा ने फ़ारूक का ल


ं ड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।
फ़ारूक: "क्या हुआ जानेमन... मकस बात की कमी है?"

अज़रा: "हम्म दे खो ना... पहले तो ये मेरी िुद्दी दे खते ही खड़ा हो जाता था और अब दे खो दस ममनट हो गये इसके चुप्पे लगाते

हुए... अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!"

फ़ारूक: "आहह तो जल्दी मकसे है मेरी जान! थोड़ी दे र और चूस ले मिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता ह
ूँ !"

"अरे फ़ारूक़ ममयाँ अब रहने भी दो... खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से मकसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गमनमत है...!"

अज़रा ने तंज़ मकया और मिर उसका ल


ं ड चूसने लगी।

थोड़ी दे र बाद अज़रा फ़ारूक के ल


ं ड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गु
ूँ ज रही

थी। रुखसाना के ललये ये कोई नयी बात नहीं थी लेमकन हर बार जब भी वो अज़रा को फ़ारूक़ के साथ इस तरह चुदाई के मज़े

लेते दे खती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी दे र बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को

अज़रा के बोलने की आवाज़ आयी, "फ़ारूक मैं कल घर वापस जा रही ह


ूँ !"

फ़ारूक: "क्यों अब क्या हो गया..?"

अज़रा: "मैं यहाँ तुम्हारे घर का काम करने नहीं आयी... ये तुम्हारी बीवी जो अपनी कमर तुड़वा कर बेड पर पसर गयी है... मुझे

इसकी चाकरी नहीं करनी... मैं घर जा रही ह


ूँ कल!"

रुखसाना को बेहद खुशी महसूस हुई मक चलो सीमढ़यों से मगरने का कुछ तो फ़ायदा हुआ। वैसे भी उसे इतना ददल नहीं हुआ था

सजतना की वो ज़ामहर कर रही थी। उसे मगरने से कमर में चोट जरूर लगी थी लेमकन शाम तक दवाई और बाम से माललश करने

मक वजह से उसका ददल मबल्कुल दूर हो चुका था लेमकन वो अज़रा को परेशान करने के ललये ददल होने का नाटक ज़ारी रखे हुए

थी।

फ़ारूक: "अज़रा मेरे जान... कल मत जाना...!"

अज़रा: "क्यों... मैंने कहा नहीं था तुम्हें मक तुम मेरे घर आ जाओ... तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान मदल्ली गये हैं... दस मदनों के

ललये घर पर कोई नहीं है!"

फ़ारूक: "तो ठीक है ना कल तक रुक जओ... मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता ह
ूँ ... मिर परसों साथ में चलेंगे!"

उसके बाद दोनों सो गये। रुखसाना भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो दे खा अज़रा ने नाश्ता

तैयार मकया हुआ था और फ़ारूक डॉयटनंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। फ़ारूक ने अज़रा से कहा मक ऊपर सुनील को
थोड़ी दे र बाद नाश्ता दे आये। दर असल उस मदन सुनील ने छुट्टी ले रखी थी क्योंमक सुनील को कुछ जरूरी सामान खरीदना

था। फ़ारूक के जाने के बाद अज़रा ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी दे र बाद जब अज़रा नीचे आयी तो

रुखसाना ने नोमटस मकया मक उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर रुखसाना को अज़रा के मनयत ठीक नहीं

लग रही थी।

रुखसाना की कमर का ददल आज मबल्कुल ठीक हो चुका था लेमकन वो नाटक ज़ारी रखे हुए मबस्तर पे लेटी रही। अज़रा से

उसने एक-दो बार बाम से माललश भी करवायी। इस दौरान रुखसाना ने मिर नोमटस मकया मक अज़रा सज-धज के ग्यारह बजे

तक बार-बार मकसी ना मकसी बहाने से चार पाँच बार ऊपर जा चुकी थी। रुखसाना को कुछ गड़बड़ लग रही थी। मिर सुनील

नीचे आया और रुखसाना के रूम में जाकर उसका हाल चल पूछा। रुखसाना बेड से उठने लगी तो उसने रुखसाना को लेटे

रहने को कहा और कहा मक वो बाज़ार जा रहा है... अगर मकसी चीज़ के जरूरत हो तो बता दे ... वो साथ में लेता आयेगा।

रुखसाना ने कहा मक मकसी चीज़ की जरूरत नहीं है। सुनील बाहर चला गया और दोपहर के करीब डेढ़-दो बजे वो वापस

आया।

उसके बाद रुखसाना की भी बेड पे लेटे-लेटे आूँ ख लग गयी। अभी उसे सोये हुए बीस ममनट ही गुजरे थे मक तेज प्यास लगने

से उसकी आूँ ख खुली। उसने अज़रा को आवाज़ लगायी पर वो आयी नहीं। मिर वो खुद ही खड़ी हुई और मकचन में जाकर

पानी मपया। मिर बाकी कमरों में दे खा पर अज़रा नज़र नहीं आयी। बाहर मेन-डोर भी अ
ं दर से बंद था तो मिर अज़रा गयी

कहाँ! तभी उसे अज़रा के सुबह वाली हकलतें याद आ गयी... हो ना हो दाल में जरूर कुछ काला है... कहीं वो सुनील पर तो डोरे

नहीं डाल रही? ये सोचते ही पता नहीं क्यों रुखसाना का खून खौल उठा। वो धड़कते मदल से सीमढ़याँ चढ़ के ऊपर आ गयी।

जैसे ही वो सुनील के दरवाजे के पास पहु


ूँ ची तो उसे अ
ं दर से अज़रा की मस्ती भरी कराहें सुनायी दी, "आहहह आआहहह धीरे

सुनील डर्ललग... आहहह तू तो बड़ा दमदार मनकला... मैं तो तुझे बच्चा समझ रही थी.... आहहह ऊहहह हायऽऽऽ मेरी िुद्दी िाड़

दीईई रे.... आआहहहह मेरी चूत... सुनीललल!"

ये सब सुन कर रुखसाना तो जैसे साँस लेना ही भूल गयी। क्या वो जो सुन रही थी वो हकीकत थी! रुखसाना सुनील के कमरे

के दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो थोड़ा सा खुला हुआ था। अभी वो दरवाजे की तरफ़ धीरे से बढ़ ही रही थी मक उसे सुनील की

आवाज़ सुनायी दी, "साली तू तो मुझे नामदल कह रही थी... आहहह आआह ये ले और ले... ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में साली...

अगर रुखसाना भाभी घर पर ना होती तो आज तेरी चूत में लौड़ा घुसा-घुसा कर सुजा दे ता!"

अज़रा: "हुम्म्मम्म्मम्म हायऽऽऽ तो सुजा दे ना मेरे शेर... ओहहह तेरी ही चूत है... और तू उस गश्ती रुखसाना की मफ़ि ना कर मेरे

सनम... वो ऊपर चढ़ कर नहीं आ सकती.... और अगर आ भी गयी तो क्या उखाड़ लेगी साली!"

रुखसाना धीरे- धीरे काँपते हुए कदमों के साथ दरवाजे के पास पहु
ूँ ची और अ
ं दर झाँका तो अ
ं दर का नज़ारा दे ख कर उसके

होश ही उड़ गये। अ
ं दर अज़रा ससफ़ल ऊ
ूँ ची हील के सैंडल पहने मबल्कुल नंगी बेड पर घोड़ी बनी हुई झुकी हुई थी और सुनील भी

मबल्कुल नंगा उसके पीछे से अपना मूसल जैसा लौड़ा तेजी से अज़रा की चूत के अ
ं दर-बाहर कर रहा था। अज़रा ने अपना
चेहरा मबस्तर में दबाया हुआ था। उसका पूरा सजस्म सुनील के झटकों से महल रहा था। "आहहह सुनील मेरी जान... मैंने तो सारा

जहान पा ललया... आहहह ऐसा लौड़ा आज तक नहीं दे खा... आहहह एक दम जड़ तक अ


ं दर घुसता है तेरा लौड़ा... आहहह मेरी

चूत के अ
ं दर इस कदर गहरायी पर ठोकर मार रहा है जहाँ पहले मकसी का लौड़ा नहीं गया... आहहह चोद मुझे िाड़ दे मेरी चूत

को मेरी जान!"

रुखसाना ने दे खा दोनों के कपड़े फ़शल पर चततर-मबतर पड़े हुए थे। टेबल पे शराब की बोतल और दो मगलास मौजूद थे सजससे

रुखसाना को साफ़ ज़ामहर हो गया मक सुनील और अज़रा ने शराब भी पी रखी थी। इतने में सुनील ने अपना ल
ं ड अज़रा की

चूत से बाहर मनकला और बेड पर लेट गया और अज़रा फ़ौरन सुनील के ऊपर चढ़ गयी। अज़रा ने ऊपर आते ही सुनील का


ं ड अपने हाथ में थाम ललया और उसके ल
ं ड के सुपाड़े को अपनी चूत के छेद पर लगा कर उसके ल
ं ड पर बैठ गयी... और तेजी

से अपनी गाँड ऊपर नीचे उछलते हुए चुदाने लगी। सुनील का चेहरा दरवाजे की तरफ़ था। तभी उसकी नज़र अचानक बाहर

खड़ी रुखसाना पर पड़ी और दोनों की नज़रें एक दूसरे से ममली। रुखसाना को लगा मक अब गड़बड़ हो गयी है पर सुनील ने ना

तो कुछ मकया और ना ही कुछ बोला। उसने रुखसाना की तरफ़ दे खते हुए अज़रा के नंगे चूतड़ों को दोनों हाथों से पकड़ कर

दोनों तरफ़ फ़ैला मदया।

अज़रा की गाँड का छेद रुखसाना की आूँ खों के सामने नुमाया हो गया जो अज़रा की चूत से मनकले पानी से एक दम गीला

हुआ था। सुनील ने रुखसाना की तरफ़ दे खते हुए अपनी कमर को ऊपर की तरफ़ उछालना शुरू कर मदया। सुनील का आठ

इंच का ल
ं ड अज़रा की गीली चूत के अ
ं दर बाहर होना शुरू हो गया। सुनील बार-बार अज़रा की गाँड के छेद को िैला कर

रुखसाना को मदखा रहा था। रुखसाना के पैर तो जैसे वहीं जम गये थे। वो कभी अज़रा की चूत में सुनील के ल
ं ड को अ
ं दर-

बाहर होता दे खती तो कभी सुनील की आूँ खों में!

सुनील: "बोल साली... मज़ा आ रहा है ना?"

अज़रा: "हाँ सुनील मेरी जान! बहोत मज़ा आ रहा है.... आहहह मदल कर रहा है मक मैं सारा मदन तुझसे अपनी चूत ऐसे ही

मपलवाती रह
ूँ ... आहहहह सच में बहोत मज़ा आ रहा है...!"

सुनील अभी भी रुखसाना की आूँ खों में दे ख रहा था। मिर रुखसाना को अचानक से एहसास हुआ मक ये वो क्या कर रही है

और वहाँ से हट कर नीचे आ गयी। उसकी सलवार में उसकी पैंटी अ


ं दर से एक दम गीली हो चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था

मक सजस्म का सारा खून और गरमी चूत की तरफ़ ससमटते जा रहे हों! वो बेड पर मनढाल सी होकर मगर पड़ी और अपनी टाँगों

के बीच तमकया दबा ललया और अपनी चूत को तमकये पर रगड़ने लगी पर चूत में सरसराहट और बढ़ती जा रहा थी। रुखसाना

की खुली हुई आूँ खों के सामने अज़रा की चूत में अ


ं दर-बाहर होता सुनील का आठ इंच ल
ं बा और बेहद मोटा ल
ं ड अभी भी था।

अपनी सलवार का नाड़ा ढीला करके उसका हाथ अ


ं दर पैंटी में घुस गया। वो तब तक अपनी चूत को उंगललयों से चोदती रही

जब तक मक उसकी चूत के अ
ं दर से लावा नहीं उगल पढ़ा। रुखसाना का पूरा सजस्म थरथरा गया और उसकी कमर झटके

खाने लगी। झड़ने के बाद रुखसाना एक दम मनढाल सी हो गयी और करीब पंद्रह ममनट तक बेसुध लेटी रही। मिर वो उठ कर
बाथरूम में गयी और अपने कपड़े उतारने शुरू मकये। उसने अपनी सलवार कमीज़ उतार कर टाँग दी और मिर ब्रा भी उतार

कर कपड़े धोने की बाल्टी में डाल दी और मिर जैसे ही उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाने की कोसशश की पर उसकी पैंटी

नीचे से बेहद गीली थी और गीलेपन के वजह से वो चूत की फ़ाँकों पर चचपक सी गयी थी। रुखसाना ने मिर से अपनी पैंटी

को नीचे सरकाया और मिर मकसी तरह उसे उतार कर दे खा। उसकी पैंटी उसकी चूत के लेसदार पानी से एक दम सनी हुई

थी। उसने पैंटी को भी बाल्टी में डाल मदया और मिर नहाने लगी। नहाने से उसे बहुत सुकून ममला। नहाने के बाद उसने दूसरे

कपड़े पहने और बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो उसने दे खा मक अज़रा बेड पर लेटी हुई थी और धीरे-धीरे अपनी चूत को

सहला रही थी।

रुखसाना को बाथरूम से मनकलते दे ख कर अज़रा ने अपनी चूत से हाथ हटा ललया। रुखसाना आइने के सामने अपने बाल


ं वारने लगी तो अज़रा ने उससे कहा, "रुखसाना मैं कल घर वापस जाने की सोच रही थी लेमकन अब सोच रही ह
ूँ मक तुम्हारी

कमर का ददल ठीक होने तक कुछ मदन और रुक जाऊ


ूँ !" रुखसाना के मदल में तो आया मक अज़रा का मु
ूँ ह नोच डाले। बदकार

कुचत्तया साली पहले तो उसके शौहर को अपने बस में करके उसकी शादीशुदा स्ज़ंदगी नरक बना दी और स्ज़ंदगी में अब जो

उसे थोड़ी सी इज़्ज़त और खुशी उसे सुनील से ममल रही थी तो अज़ारा सुनील को भी अपने चंगुल में ि
ं सा रही थी। रुखसाना

ने कुछ नहीं कहा। कमर में ददल का नाटक जो उसने अज़रा को जल्दी वापस भेजने के ललये मकया था अब अज़रा उसे ही यहाँ

रुकने का सबब बना रही थी। अब उसे यहाँ पर तगड़ा जवान ल


ं ड जो ममल रहा था।

रात को फ़ारूक घर वापस आया तो वो बहुत खुश लग रहा था... शायद उसे छुट्टी ममल गयी थी। रात को फ़ारूक ही सुनील का

खाना उसे ऊपर दे आया। जब फ़ारूक ने अज़रा को बताया मक उसे एक हफ़्ते की छुट्टी ममल गयी है तो अज़रा ने उसे यह

कहकर अगले मदन जाने से मना कर मदया मक रुखसाना की तमबयत अभी ठीक नहीं है। लेमकन शायद मकस्मत अज़रा के

साथ नहीं थी। मदल्ली से उसके शौहर का फ़ोन आ गया मक उनके बेटे की बोर्मडग स्कूल में तमबयत खराब हो गयी है और वो

जल्दी से जल्दी घर पहु


ूँ चे। अज़रा को बेमदल से अगले मदन फ़ारूक के साथ अपने घर जाना ही पड़ा लेमकन उस रात मिर

अज़रा और फ़ारूक ने शराब के नशे में चूर होकर खूब चुदाई की। हसद की आग में जलती हुई रुखसाना कुछ दे र तक चोर

नज़रों से उनकी ऐयाशी दे खते-दे खते ही सो गयी।

अगली सुबह सुनील भी फ़ारूक और अज़रा के साथ ही स्टेशन पर चला गया था। रुखसाना को सुनील पे भी गुस्सा आ रहा

था। उसने कभी सोचा नहीं था मक वो मासूम सा मदखाने वाला सुनील इस हद तक मगर सकता है मक अपने से दुगुनी उम्र से भी

ज्यादा उम्र की औरत के साथ ऐसी मगरी हुई हकलत कर सकता है। उसका सुनील से कोई ज़ाती या सजस्मानी ररश्ता भी नहीं था

लेमकन रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मक अज़रा और सुनील ने ममल कर उसके साथ धोखा मकया है। हालांमक

सुनील से कोई सजस्मानी ररश्ता कायम करने का रुखासाना का कोई इरादा मबल्कुल था भी नहीं लेमकन उसे ऐसा क्यों लग

रहा था जैसे अज़रा ने सुनील को उससे छीन ललया था। अज़रा तो थी ही बदकार-बेहया औरत लेमकन सुनील ने उसके साथ

धोखा क्यों मकया। रुखसाना को मबल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा पहली दफ़ा अपने शौहर फ़ारूक के अज़रा के साथ

सजस्मानी ररश्तों के मालूम होने के वक़्त हुआ था बलल्क उससे भी ज्यादा बदहाली महसूस हो रही थी उसे।
शाम को जब सुनील के आने का वक़्त हुआ तो रुखसाना ने पहले से ही मेन-डोर को खुला छोड़ मदया था तामक उसे सुनील की

शक़्ल ना दे खनी पड़े। वो अपने कमरे में आकर लेट गयी। थोड़ी दे र बाद उसे बाहर के गेट के खुलने की आवाज़ आयी और

मिर अ
ं दर मेन-डोर बंद होने की। रुखसाना को अपने कमरे में लेटे हुए अ
ं दाज़ा हो गया मक सुनील घर पर आ चुका है और

थोड़ी दे र बाद सुनील ने उसके कमरे के खुले दरवाजे पे दस्तक दी। जैसे ही दरवाजे पे दस्तक हुई तो रुखसाना उठ कर बैठ गयी

और उसे अ
ं दर आने को कहा। सुनील पास आकर कुसी पर बैठ गया और बोला, "आपका ददल अब कैसा है..?"

रुखसाना ने थोड़ा रूखेपन से जवाब मदया, "अब पहले से बेहतर है!"

सुनील: "आप दवाई तो समय से ले रही हैं ना?"

रुखसाना: "हाँ ले रही ह


ूँ !"

सुनील: "अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता ह


ूँ ... आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीसजयेगा... क्या

खायेंगी आप...?"

सुनील के मदल में अपने ललये परवाह और मफ़ि दे ख कर रुखसाना का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब

मदया, "कुछ भी ले आ सुनील!"

सुनील उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने रुखसाना के मदमाग में क्या आया और वो सुनील से पूछ बैठी, "तूने ऐसी हकलत

क्यों की सुनील?"

उसकी बात सुन कर सुनील मिर से कुसी पर बैठ गया और ससर को झुकाते हुए शमलसार लहज़े में बोला, "मुझे माफ़ कर

दीसजये भाभी... मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी... ये सब अ


ं जाने में हो गया!" उसने एक बार रुखसाना की आूँ खों में दे खा और

मिर से नज़रें झुका ली।

"अ
ं जाने में गल्ती हो गयी...? तू तो पढ़ा ललखा है... समझदार है अच्छे घराने से है... तू उस बेहया-बदज़ात अज़रा की बातों में कैसे

आ गया...?" सुनील ने एक बार मिर से रुखसाना की आूँ खों में दे खा। इस दफ़ा रुखसाना की आूँ खों में सशकायत नहीं बलल्क

सुनील के ललये मफ़िमंदी थी।

सुनील नज़रें नीचे करके बोला, "भाभी सच कह


ूँ तो आप नहीं मानेंगी... पर सच ये है मक इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... दर

असल कल अज़रा भाभी बार-बार ऊपर आकर मुझे उक्सा रही थी... मैं इन सब बातों से अपना मदमाग हटाने के ललये बाहर

बज़ार चला गया... बज़ार में अपने काम मनपटा कर मैं लौटते हुए मिस्की की बोतल भी साथ लाया था। दोपहर में मैंने सोचा

आप दोनों खाने के बाद शायद सो गयी होंगी तो मैं अपने कमरे में मड्रंक करने लगा। इतने में अचानक अज़रा भाभी ऊपर मेरे

कमरे में आ गयीं और बैठते हुए बोली मक अकेले-अकेले शौक फ़मा रहे हो सुनील ममयाँ हमें नहीं पूछोगे... पीने का मज़ा तो
मकसी के साथ पीने में आता है... उनकी बात सुनकर मैं सकपका गया और इससे पहले मक मैं कुछ कहता वो खुद ही एक

मगलास में अपने ललये मड्रंक बनाने लगी। मिर मड्रंक करते -करते वो मिर मुझे अपनी हकलतों से उक्साने लगीं। मुझे ये सब

अटपटा लग रहा था लेमकन अज़रा भाभी तेजी से मड्रंक कर रही थीं और उन्हें नशा चढ़ने लगा तो उनकी हकलतें और भी बोड

होने लगीं। उन्होंने अपनी कमीज़ के हुक खोल मदये और मेरी टाँगों के बीच में अपना हाथ रख कर दबाते हुए गंदी-गंदी बातें

बोलने लगीं। मैंने उन्हें वहाँ से जाने को कहा और आपका वास्ता भी मदया मक रुखसाना भाभी आ जायेंगी लेमकन अज़रा

भाभी ने एक नहीं मानी और मुझे नामदल बोली... मैं मिर भी चुप रहा तो उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर मदये और मेरे

सामने नंगी होते हुए मुझे गंदी-गंदी गाललयाँ दे कर उक्साने लगी मक तू महजड़ा है क्या जो एक खूबसूरत हसीन औरत तेरे सामने

नंगी होके खड़ी है और तू मना कर रहा है... भाभी मैंने भी मड्रंक की हुई थी और आप यकीन करें मक अज़रा भाभी की उकसाने

वाली गंदी-गंदी बातों से और उन्हें अपने सामने इस तरह मबल्कुल नंगी खड़ी दे ख कर खासतौर पे ससफ़ल हाई हील के सैंडल

पहने मबल्कुल नंगी... मैं कमज़ोर पड़ गया और मैं इतना उत्तेसजत हो गया था मक मुझसे और रुका नहीं गया....!" ये कहते हुए

सुनील चुप हो गया।

रुखसाना अब उसकी हालत समझ सकती थी। आलखर एक जवान लड़के के सामने अगर एक औरत नंगी होकर उक्साये तो

उसका नतीजा वही होना था जो उसने अपनी आूँ खों से दे खा था। "भाभी मैं सच कह रहा ह
ूँ ... मेरा ये पहला मौका था... इससे

पहले मैंने कभी ऐसा नहीं मकया था... हो सके तो आप मुझे माफ़ कर दें भाभी..!" ये कह कर सुनील ऊपर चला गया। सुनील ने

मबल्कुल सच बयान मकया था और वाकय में ये उसका चुदाई करने का पहला मौका था। मिर वो थोड़ी दे र में फ्रेश होकर नीचे

आया तो अभी भी शमलसार नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा मक उसे शर्ममदा होने की मबल्कुल जरूरत

नहीं है क्योंमक उसकी कोई गल्ती नहीं है। मिर सुनील खुश होकर ढाबे से खाना लेने चला गया। रुखसाना भी उठी और तैयार

होकर थोड़ा मेक अप मकया और मिर टेबल पर प्लेट और पानी वगैरह रखने लगी। थोड़ी दे र में सुनील भी खाना लेकर आ

गया। हालांमक सुबह का नाश्ता तो सुनील ने कईं दफ़ा फ़ारूक के साथ नीचे मकया था लेमकन आज पहली बार सुनील रात का

खाना रुखसाना के साथ नीचे खाना खा रहा था। रुखसाना ने नोमटस मकया मक हमेशा खुशममजाज़ रहने वाला सुनील इस

वक़्त काफ़ी संजीदा था और कुछ बोल नहीं रहा था। इसी बीच रुखसाना ने बड़े प्यार और नरमी से पूछा, "सुनील एक और

बात बता... वो अज़रा भाभी उस मदन रात को दोबारा भी आयी थी क्या तेरे कमरे में... तेरे साथ.... हममबस्तर...?"

"जी भाभी वो आयी थीं रात को करीब तीन-साढ़े तीन बजे... मैं गहरी नींद सोया हुआ था... गरमी की वजह से कमरा खुला रखा

हुआ था मैंन.े .. जब मेरी आूँ ख खुली तो वो पहले से ही मेरे ऊपर सवार थीं... मैंने मिर एक बार उन्हें संतुष्ट मकया और मिर वो

नीचे चली गयीं... कािी नशे में लग रही थीं वो!" सुनील ने काफ़ी संजीदगी से जवाब मदया।

खाना खतम करने के बाद जब रुखसाना बतलन उठाने के ललये उठी तो सुनील ने उसे रोक मदया और बोला, "रहने दें भाभी! मैं

कर दे ता ह
ूँ ...!" रुखसाना ने कहा मक नहीं वो कर लेगी पर सुनील ने उसकी एक ना सुनी और उसे बेड पर आराम करने को कह

कर खुद बतलन लेकर मकचन में चला गया और बतलन साफ़ करके सारा काम खतम कर मदया। सुनील मिर से रुखसाना के

बेडरूम में आया तो वो बेड पर पीछे कमर मटकाये हुई थी। सुनील ने एक मगलास पानी रुखसाना को मदया और बोला "भाभी
जी... बताइये कौन सी दवाई लेनी है आपको!" रुखसाना ने उसे बताया मक उसका ददल अब काफ़ी ठीक है और अब मकसी

दवाई की जरूरत नहीं है। तभी सुनील के नज़र साइड-टेबल पे रखी हुई बाम पर गयी तो वो बोला, "चललये आप लेट जाइये... मैं

आपकी कमर पर बाम लगा कर माललश कर दे ता ह


ूँ ... आपका जो थोड़ा बहुत ददल है वो भी ठीक हो जायेगा!"

वो सुनील को मना करते हुए बोली, "नहीं रहने दे सुनील... मैं खुद कर लु
ूँ गी...!"

सुनील: "आप लगा तो खुद लेंगी पर माललश नहीं कर पायेंगी... मैं आपकी माललश कर दे ता ह
ूँ ... आप का रहा सहा ददल भी ठीक

हो जायेगा!" ये कह कर सुनील कुसी से उठ कर बेड पर आकर रुखसाना के करीब बैठ गया और उसे लेटने को बोला, "चललये

भाभी जी बताइये कहाँ लगाना है...!" अपने ललये सुनील की इतनी हमददी और मफ़ि दे ख कर रुखसाना उसे और मना नहीं

कर सकी और ये हकीकत भी बता नहीं पायी मक उसे ददल तो कभी हुआ ही नहीं था और ये ददल का तो ससफ़ल बहाना था अज़रा

को परेशान करने का। रुखसाना शमाते हुए पेट के बल लेट गयी और अपनी कमीज़ को कमर से ज़रा ऊपर उठा ललया और

बोली यहाँ कमर पर! सुनील ने थोड़ा सा बाम अपनी उंगललयों पर लगाया और मिर रुखसाना की कमर पर मलने लगा। जैसे

ही उसके हाथ का लि रुखसाना ने अपनी नंगी कमर पर महसूस मकया तो उसका पूरा सजस्म काँप गया। उसकी ससस्करी

मनकलते-मनकलते रह गयी। सुनील ने धीरे-धीरे दोनों हाथों से उसकी कमर की माललश करनी शुरू कर दी। उसके हाथों का

लि उसे बेहद अच्छा लग रहा था। कईं दफ़ा उसके हाथों की उंगललयाँ रुखसाना की सलवार के जबर से टकरा जाती तो

उसका मदल जोरों से धड़कने लगता। वो मदहोश सी हो गयी थी।

"भाभी ज्यादा ददल कहाँ पर है?" सुनील ने पूछा तो मबना सोचे ही रुखसाना के मु
ूँ ह से मदहोशी में खुद बखुद मनकल गया मक

थोड़ा सा नीचे है!

सुनील ने मिर थोड़ा और नीचे बाम लगाना शुरू कर मदया। भले ही उस माललश से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था क्योंमक

चोट तो कहीं लगी ही नहीं थी पर मिर भी रुखसाना को उसके हाथों के लि से जो सुकून ममल रहा था उसे वो बयान नहीं कर

सकती थी। "भाभी जी थोड़ी सलवार नीचे सरका दो तामक अच्छे से बाम लग सके...!" सुनील की बात सुन कर रुखसाना के

ज़हन में उसका वजूद काँप उठा पर उसे सुनील के हाथों का लि अच्छा लग रहा था और उसे सुकून भी ममल रहा था।

रुखसाना ने तुनकते हुए अपनी सलवार को थोड़ा नीचे के तरफ़ सरकाया। उसने नाड़ा बाँधा हुआ था इसललये सलवार पूरी

नीचे नहीं हो सकती थी पर मिर भी काफ़ी हद तक नीचे हो गयी। "भाभी जी आप तो बहुत गोरी हो... मैंने इतना गोरा सजस्म

आज तक नहीं दे खा..!" सुनील की बात सुनकर रुखसाना के गाल शमल के मारे लाल हो गये। वो तो अच्छा था मक रुखसाना

उल्टी लेटी हुई थी। रुखसाना को यकीन था मक अकेले कमरे में वो उसे इस तरह अपने पास पाकर पागल हो गया होगा।

सुनील ने थोड़ी दे र और माललश की और रुखसाना ने जब उसे कहा मक अब बस करे तो वो चुपचप उठ कर ऊपर चला गया।

रुखसाना को आज बहुत सुकून ममल रहा था। आज कईं सालो बाद उसके सजस्म को ऐसे हाथों ने छुआ था सजसके लि में

हमददी और प्यार ममला हुआ था। सुनील के बारे में सोचते हुए रुखसाना को कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला। अगली

सुबह जब वो उठी तो बेहद तरो तज़ा महसूस कर रही थी।


नहाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई... आसमानी रंग का सफ़ेद कढ़ाई वाला जोड़ा पहना और सफ़ेद रंग के ऊ
ूँ ची

हील के सैंडल भी पहने। मिर हल्का सा मेक-अप करने के बाद वो मकचन में गयी और नाश्ता तैयार करने लगी। नाश्ता तैयार

करते हुए वो बार-बार मकचन के दरवाजे पर आकर सीमढ़यों की तरफ़ दे ख रही थी। सुनील के काम पर जाने का वक़्त भी हो

गया था। जैसे ही वो नाश्ता तैयार करके बाहर आयी तो सुनील सीमढ़यों से नीचे उतरा। "आज तो आपकी तमबयत काफ़ी

बेहतर लग रही है भाभी जी... लगता है कल की माललश ने काफ़ी असर मकया!" उसने रुखसाना के ललबास और मिर उसके

पैरों में हाई पेंससल हील के सैंडलों की तरफ़ दे खते हुए अपने होंठों पर मदलकश मुस्कान लाते हुए कहा। बदले में रुखसाना ने

भी मुस्कुराते हुए कहा, "असर तो जरूर हुआ पर तुझे कैसे पता?" तो सुनील थोड़ा झेंपते हुए बोला मक "भाभी जी वो आज

आपने मिर हमेशा की तरह हाई हील के सैंडल जो पहने हैं... तो मुझे लगा मक कमर का ददल अब बेहतर है!"

रुखसाना: "मबल्कुल ठीक पहचना तून.े .. अब डायटनंग टेबल पे बैठ... मैं नाश्ता लेकर आती ह
ूँ !" मिर दोनों साथ बैठ कर नाश्ता

करने लगे। इसी बीच में सुनील ने रुखसाना से पूछा मक, "भाभी जी... आप कभी साड़ी नहीं पहनती क्या?"

रुखसाना: "पहनती ह
ूँ लेमकन बहोत कम... साल में एक-आध दफ़ा अगर कोई खास मौका हो तो... क्यों!"

सुनील: "नहीं बस वो इसललये मक कभी दे खा नहीं आपको साड़ी में... मेरा ख्याल है आप पे साड़ी भी काफ़ी सूट करेगी!"

मिर सुनील जाते हुए रुखसाना से बोला, "भाभी जी, रात का खाना मैं बाहर से ही ले आऊ
ूँ गा... आप बनाना नहीं..!"

रुखसाना ने मुस्कुराते हुए कहा मक ठीक है तो सुनील ने मिर कहा, "अगर मकसी और चीज़ के जरूरत हो तो बता दीसजये... मैं

आते हुए लेता आऊ


ूँ गा!"

रुखसाना ने कहा मक मकसी और चीज़ के जरूरत नहीं है और मिर सुनील के जाने के बाद वो घर के छोटे-मोटे कामों में लग

गयी। मिर ऊपर आकर सुनील के कमरे को भी ठीकठाक करने लगी। इसी दौरान रुखसाना को उसके बेड के नीचे कुछ पड़ा

हुआ नज़र आया। उसने नीचे झुक कर उसे बाहर मनकाला तो उसकी आूँ खें एक दम से िैल गयीं। वो एक लाल रंग की रेशमी

पैंटी थी। अब इस मडज़ाइन की पैंटी ना तो रुखसाना के पास थी और ना ही सामनया के पास। तभी रुखसाना को दो मदन पहले

का शाम वाला वाक़्या याद आ गया जब सुनील ने अज़रा को इसी कमरे में चोदा था। ये जरूर अज़रा की ही पैंटी थी।

उस पैंटी पर जगह- जगह-जगह चूत से मनकले पानी और शायद सुनील के ल


ं ड से मनकली मनी के धब्बे थे। पैंटी का कोई भी

महस्सा ऐसा नहीं था सजस पर उस मदन हुई घमासान चुदाई के मनशान ना हों। रुखसाना ने पैंटी को अपने दोनों हाथों में लेकर

नाक के पास ले जाकर सू


ूँ घा तो मदहोश कर दे ने वाली खुश्बू उसके सजस्म को लझनझोड़ गयी। वो पैंटी को लेकर बेड पर बैठ

गयी और उसे दे खते हुए उस मदन के मंज़रों को याद करने लगी। सुनील का मूसल जैसा ल
ं ड अज़रा की चूत में अ
ं दर-बाहर हो

रहा था। रुखसाना एक बार मिर से अपना आपा खोने लगी पर तभी बाहर मेन-गेट पर दस्तक हुई तो उसने उस पैंटी को वहीं

बेड के नीचे िेंक मदया और बाहर आकर छत से नीचे गेट की तरफ़ झाँका तो दे खा मक पड़ोस में रहने वाली नज़ीला खड़ी थी।

"अरे नज़ीला भाभी आप..! मैं अभी नीचे आती ह


ूँ .!" रुखसाना ने जल्दी से सुनील का कमरा बंद मकया और नीचे आकर
दरवाजा खोला। नज़ीला उसके पड़ोस में रहती थी। उसकी उम्र चालीस साल थी और वो अपने घर में ही ब्यूटी पाललर चलाती

थी। वो दोपहर में कईं बार रुखसाना के घर आ जाया करती थी या उसे अपने यहाँ बुला लेती थी और दोनों इधर-उधर की बातें

मकया करती थी। उस मदन भी रुखसाना और नज़ीला ने गली मोहल्ले की ढेरों बातें की।

नज़ीला के जाने के बाद वो मिर नहाने चली गयी। सुबह सुनील ने साड़ी का सज़ि मकया था इसललये रुखसाना ने नहा कर

मिरोज़ा नीले रंग की टप्रंटेड साड़ी पहन ली और साथ में ससल्वर रंग के हाई पेंससल हील वाले खूबसुरत सैंडल भी पहने। सुनील

के आने का समय भी हो चला था। सुनील आज पाँच बजे ही आ गया। जब रुखसाना ने दरवाजा खोला तो वो उसे बड़े गौर से

दे खने लगा। उसे यू


ूँ अपनी तरफ़ ऐसे घूरता दे ख कर रुखसाना शरमाते हुए लेमकन अदा से बोली, "ऐसे क्या दे ख रहा है

सुनील!" तो वो मुस्कुराता हुआ बोला, "वॉव भाभी! आज तो आप बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही हो इस साड़ी में..!" ये कह

कर वो अ
ं दर आ गया। वो साथ में रात का खाना भी ले आया था। "भाभी ये खाना लाया ह
ूँ ... आप बाद में रात को गरम कर

लेना... मैं ऊपर जा रहा ह


ूँ फ्रेश होने के ललये... आप एक मगलास शबलत बना दें गी प्लीज़?"

रुखसाना उसकी तरफ़ दे ख कर मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ क्यों नहीं..!"

मिर सुनील ऊपर चला गया और फ्रेश होकर जब वो नीचे आया तो उसने एक ढीली सी टी-शटल और शॉट्लस पहना हुआ था।

रुखसाना ने शबलत बनाया और उसे अपने बेड रूम में ले गयी क्योंमक वहाँ पे कूलर लगा हुआ था। सुनील रूम में आकर बेड के

सामने कुसी पर बैठ गया और रुखसाना भी बेड पर टाँगें नीचे लटका कर बैठ गयी। दोनों ने इधर उधर की बात की। इस दौरान

सुनील ने रुससना से पूछा, "भाभी अब आपकी कमर का ददल कैसा है?"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "अरे अब तो मैं मबल्कुल ठीक ह


ूँ ... कल तूने इतनी अच्छी माललश जो की थी!"

अपना शबलत का खाली मगलास साइड टेबल पे रखते हुए सुनील उससे बोला, "भाभी आप उल्टी लेट जाओ... मैं एक बार और

बाम से आपकी माललश कर दे ता ह


ूँ ...!"

रुखसाना मना मकया मक, "नहीं सुनील! मैं अब मबल्कुल ठीक ह


ूँ ..!" लेमकन सुनील भी मिर इसरार करते हुए बोला, "भाभी आप

मेरे ललये इतना कुछ करती है... मैं क्या आपके ललये इतना भी नहीं कर सकता... चललये लेट जाइये!"

रुखसाना सुनील के बात टाल ना सकी और अपना खाली मगलास टेबल पे रखते हुए बोली, "अच्छा बाबा... तू मानेगा नहीं...

लेटती ह
ूँ ... पहले सैंडल तो खोल के उतार दू
ूँ !"

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"सैंडल खोलने की जरूरत नहीं है भाभी... इतने खूबसूरत सैंडल आपके हसीन गोरे पैरों की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ा रहे हैं...

आप ऐसे ही लेट जाइये!" सुनील मकसी बच्चे की तरह मचलते हुए बोला तो रुखसान को हंसी आ गयी और वो उसकी बात

मान कर बेड पर लेट गयी। क्योंमक आज उसने साड़ी पहनी हुई थी इसललये उसकी कमर पीछे से सुनील की आूँ खों के सामने

थी। सुनील ने बाम को पहले अपनी उंगललयों पर लगाया और रुखसाना की कमर को दोनों हाथों से माललश करना शुरू कर

मदया। "एक बात बता सुनील! तुझे मेरा ऊ


ूँ ची हील वाले सैंडल काफ़ी पसंद है ना?" रुखसाना ने पूछा तो इस बार सुनील का

चेहरा शरम से लाल हो गया। वो झेंपते हुए बोला, "जी... जी भाभी आप सही कह रही हैं... आपको अजीब लगेगा लेमकन मुझे

लेमडज़ के पैरों में हाई हील वाले सैडल बेहद अट्रैमक्टव लगते हैं... और संयोग से आप तो हमेशा हाई हील की सैंडल या चप्पल

पहने रहती हैं!"

"अरे इसमें शमाने वाली क्या बात है... और मुझे मबल्कुल अजीब नहीं लगा... मैं तेरे जज़्बात समझती ह
ूँ ... कुछ कूछ होता है... है

ना?" रुखसाना हंसते हुए हुए बोली। सुनील के हाथों की माललश से मपछले मदन की तरह ही बेहद मज़ा आ रहा था। सुनील के

हाथ अब धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। रुखसाना को मज़ाक के मूड में दे ख कर सुनील भी महम्मत करते हुए बोला,

"भाभी... आपकी सस्कन मकतनी सॉफ्ट है एक दम मुलायम... भाभी आप अपनी साड़ी थोड़ा नीचे सरका दो... पूरी कमर पे नीचे

तक अच्छे से माललश हो जायेगी और साड़ी भी गंदी नहीं होगी।" रुखसाना ने थोड़ा शमाते हुए अपनी साड़ी में हाथ डाला और

पेटीकोट का नाड़ा खोल मदया और पेटीकोट और साड़ी ढीली कर दी। रुखसाना को मपछली रात माललश से बहुत सुकून

ममला था और बहुत अच्छी नींद भी आयी थी इसललये उसने ना-नुक्कर नहीं की। जैसे ही रुखसाना की साड़ी ढीली हुई तो

सुनील ने उसकी साड़ी और पेटीकोट के अ


ं दर अपनी उंगललयों को डाल कर उसे नीचे सरका मदया पर रुखसाना को तभी

एहसास हुआ मक उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। रुखसाना ने नीचे पैंटी ही नहीं पहनी हुई थी... पर तब तक बहुत दे र हो चुकी

थी। उसके आधे से ज्यादा चूतड़ अब सुनील की नज़रों के सामने थे।

सुनील ने कोई रीऐक्शन नहीं मदखाया और धीरे-धीरे कमर से माललश करते हुए अपने हाथों को रुखसाना के चूतड़ों की ओर

बढ़ाना शुरू कर मदया। उसके हाथों का लि रुखसाना के सजस्म के हर महस्से को ऐसा सुकून पहु
ूँ चा रहा था जैसे बरसों के प्यासे

को पानी पीने के बाद सुकून ममलता है। वो चाहते हुए भी एतराज नहीं कर पा रही थी। वो बस लेटी हुई उसके छुने के एहसास

का मज़ा ले रही थी। रुखसाना की तरफ़ से कोई ऐतराज़ ना दे ख कर सुनील की महम्मत बढ़ी और अब उसने रुखसाना के

आधे से ज्यादा नंगे हो चुके गुदाज़ चूतड़ों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर मदया। रुखसाना की साड़ी और पेटीकोट सुनील

के हाथ से टकराते हुए थोड़ा-थोड़ा और नीचे सरक जाते। रुखसाना को एहसास हो रहा था मक अब सुनील को उसके चूतड़ों के

बीच की दरार भी मदखायी दे रही होगी। उसने शरम के मारे अपने चेहरे को तमकये में छुपा ललया और अपने होंठों को अपने

दाँतों में भींच ललया तामक कहीं वो मस्ती में आकर सससक ना पड़े और उसकी बढ़ती हुई शहवत और मस्ती का एहसास

सुनील को हो। सुनील उसके दोनों गोरे-गोरे गोल-गोल चूतड़ों को बाम लगाने के बहाने से सहला रहा था। रुखसाना को भी

एहसास हो रहा था मक सुनील बाम कम लगा रहा था और सहला ज्यादा रहा था। जब रुखसाना ने मिर भी ऐतराज ना मकया

तो सुनील और नीचे बढ़ा और चूतड़ों को जोर-जोर से मसलने लगा। थोड़ी दे र बाद उसके हाथों की उंगललयाँ रुखसाना की गाँड

की दरार में थी। मिर उसने अचानक से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को हाथों से चौड़ा करते हुए िैला कर बीच की जगह दे खी तो
रुखसाना साँस लेना ही भूल गयी। रुखसाना को एहसास हुआ की शायद सुनील ने उसके चूतड़ों के िैला कर उसकी गाँड का

छेद और चूत तक दे ख ली होगी लेमकन रुखसाना अब तक सुनील हाथों के सहलाने और मसलने से बहुत ज्यादा मस्त हो गयी

थी और उसकी चूत गीली और गीली होती चली जा रही थी। वो ये सोच कर और शरमा गयी मक सुनील उसकी मबल्कुल

मुलायम और चचकनी चूत को दे ख रहा होगा सजसे उसने आज सुबह ही शेव मकया था। उसकी चचकनी चूत को दे खने वाला

आज तक था ही कौन लेमकन उसके घर में रहने वाला मकरायेदार आज उसके चूतड़... उसकी गाँड और उसकी चचकनी चूत को

दे ख रहा था और वो भी पड़े-पड़े नुमाईश कर रही थी। ये सोच कर उसका मदल जोर-जोर से धक-धक करने लगा मक कहीं

सुनील को उसकी चूत के गीलेपन का एहसास ना हो जाये।

पर थोड़ी दे र में जब सुनील ने जानबूझकर या अ


ं जाने में रुखसाना की गाँड के छेद को अपनी उंगली से छुआ तो वो एक दम से

उचक पड़ी। उसके सजस्म में जैसे करंट लग गया हो... जैसे तन-बदन में आग लग गयी हो। रुखसाना ने एक दम से सुनील का

हाथ पकड़ कर झटक मदया और उसके मु


ूँ ह से मनकल पड़ा, "हाय आल्लाह ये क्या कर रहा है तू...?" रुखसाना उससे दूर होते हुए

उठ कर बैठ गयी। रुखसाना एक दम से घबरा गये थी और सुनील तो उससे भी ज्यादा घबरा गया था। रुखसाना को उसका

इरादा ठीक नहीं लगा और घबराहट में वो एक दम से बेड से नीचे उतर कर खड़ी हो गयी। पर उसके खड़े होने का नतीजा ये

हुआ मक गजब हो गया... उसकी साड़ी और पेटीकोट कमर से खुले हुए थे... जब वो खड़ी हुई तो साड़ी और पेटीकोट दोनों सरक

कर उसके पैरों में जा मगरे। रुखसाना नीचे से एक दम नंगी हो गयी। इस तरह से अपने मकरायेदार और बीस साल के जवान

लड़के के सामने नंगी होने में उसकी शरम की कोई इंतेहा ना रही। उसे कुछ नहीं सूझा... मदमाग ने काम करना बंद कर मदया...

साँस जैसे अटक गयी थी! वो घबराहट में वहीं जमीन पर बैठ गयी। इससे पहले मक रुखसाना को कुछ समझ आता... तब तक

सुनील ने उसे गोद में उठा कर बेड पर डाल मदया और अगले ही पल वो हुआ सजसका रुखसाना ने तसव्वुर तक नहीं मकया था

मक आज उसके साथ ये सब होगा।

रुखसाना को पल
ं ग पर पटकते ही सुनील खुद रुखसाना पर चढ़ गया। अगले ही पल रुखसाना उसके नीचे थी और वो

रुखसाना के ऊपर था। उसके बाद अगले ही पल सुनील ने रुखसाना की टाँगों को हवा में उठा मदया। रुखसाना को वो कुछ

भी सोचने समझने का मौका नहीं दे रहा था। अगले ही पल वो रुखसाना की टाँगों के बीच में जगह बना चुका था और पाँचवे

सेकेंड में ही उसका शॉट्लस और अ


ं डरमवयर उसके सजस्म से अलग हो गये और उसके अगले ही पल उसने अपने ल
ं ड को हाथ में

लेकर अपने लु
ं ड का मोटा सुपाड़ा रुखसाना की चूत के छेद पर लगा मदया। एक मोटी सी गरम सी कड़क सी चीज़ रुखसाना

को अपनी चूत के अ
ं दर जाती हुई महसूस हुई।

बस मिर क्या था... शाम के वक़्त में रुखसाना के अपने कमरे में एक बीस-इक्कीस साल का मकरायेदार और चौंतीस-पैंतीस

साल की मकान मालल्कन औरत और मदल बन गये थे! रुखसाना की तो मस्ती में साँसें उखड़ने लगी थीं... सजस्म ऐंठ गया था...

आूँ खें झपकना भूल गयी थी... और ज़ुबान सूखने लगी थी। उसे कुछ होश नहीं था मक क्या हो रहा है. सुनील कर रहा था... और

वो चुपचप उसे करने दे रही थी... वो ना तो उसे रोक रही थी और ना ही उसे उक्सा रही थी। वो मबना कुछ बोले अपनी टाँगें

उठाये और सुनील की कमर में हाथ डाले लेटी रही और सुनील का मोटा मूसल जैसा ल
ं ड उसकी चूत को रौंदता रहा रगड़ता
रहा... पता नहीं कब तक रुखसाना को चोदता रहा। ऐसा नहीं था मक रुखसाना को मज़ा नहीं आ रहा था पर वो जैसे मक सक्ते

की हालत में थी। सजस्म तो चुदाई के मज़े ले रहा था लेमकन मदमाग सुन्न था। मिर उसकी चूत को सुनील ने अपने गाढ़े वीयल से

भर मदया। रुखसाना अपने गैर-मज़हब वाले इक्कीस साल के मकरायेदार के ल


ं ड के पानी से तरबतलर हो चुकी थी।

जैसे ही सुनील रुखसाना के ऊपर से उठा तो वो भी काँपती हुई मबस्तर से उठी और ससफ़ल ब्लाउज़ और सैंडल पहने नंगी हालत

में ही बाथरूम में चली गयी। उसके मदल में उलझने बढ़ने लगीं मक हाय ये मैंने क्या कर मदया... शादीशुदा होकर दूसरे मदल से

चुदवा लाया... वो भी सामनया की उम्र के लड़के से... खुद से पंद्रह साल छोटे लड़के से गैर मज़हब वाले लड़के से... नहीं ये गलत

है... सरासर गलत है... जो हुआ नहीं होना चामहये था... मैं कैसे बहक गयी... अब क्या होगा...! रुखसाना बाथरूम में कमोड पे बैठ

कर मूतने लगी। उसे बहोत तेज पेशाब लगी थी। उसने झुक कर दे खा तो उसकी रानें और चूत उसकी चूत के पानी और

सुनील के वीयल से चचपचचपा रही थी। मूतने के बाद रुखसाना खड़ी हुई और टाँगें थोड़ी चौड़ी करके उसने अपनी चूत की फ़ाँकों

को िैलाते हुए चूत की माँसपेसशयों पर जोर लगाया तो सुनील का वीयल उसकी चूत से बाहर टपकने लगा। एक के बाद एक

वीयल की कईं बड़ी-बड़ी बू


ूँ दें उसकी चूत से बाहर नीचे मगरती रही। मिर उसने अपनी चूत और रानों को पानी से साफ़ मकया।

उसने सोचा मक कल सुबह -सुबह केममस्ट की दुकान से बच्चा ना ठहरने की दवाई ले आयेगी। मिर वो अपना ब्लाऊज़ और

सैंडल मनकाल कर नहाने लगी। मिर तौललया लपेट कर वो बाथरूम से मनकल कर बाहर आयी। सुनील ऊपर जा चुका था।

रुखसाना ने अलमारी में से सलवार सूट मनकाल कर पहन ललया और बाल संवार कर आदतन थोड़ा मेक-अप मकया और

अपने बेड पर जाकर मगर पड़ी। शाम के छः बज रहे थे। खुमारी में उसे नींद आ गयी। वो आज कईं सालों बाद चुदी थी... चुदाई


ं जाने में अचानक हुई थी पर चुदाई तो चुदाई है! रुखसाना मुतमाईन होकर ऐसे मीठी नींद सोयी मक रात के नौ बजे बाहर डोर-

बेल बजने की आवाज़ से ही उठी। उसने घड़ी में वक़्त दे खा तो नौ बज रहे थे। उसके मु
ूँ ह से मनकला, "हाय अल्लाह ये क्या नौ

बज गये...!" वो जल्दी से उठी और बाहर जाकर दरवाजा खोला तो बाहर नज़ीला खड़ी थी और उसके साथ में उसका छोटा बेटा

सलील था जो महज आठ साल का था।

"नज़ीला भाभी आप इस वक़्त... खैररयत तो है ना?" रुखसाना ने पूछा तो नज़ीला बोली, "रुखसाना मेरे अब्बू की तमबयत बहुत

ज्यादा खराब हो गयी है... अभी फ़ोन आया है... मैं और अकरम साहब अभी वहाँ के ललये रवाना हो रहे है... तुम सलील को दो

मदन के ललये अपने पास रख लो प्लीज़ हम दो मदन बाद वापस आ जायेंगे!"

रुखसाना ने कहा मक, "कोई बात नहीं भाभी जान ये भी तो आपका अपना ही घर है... आप इसे छोड़ कर बेमफ़ि होकर जायें!"

उसके बाद नज़ीला सलील को रुखसाना के पास छोड़ कर चली गयी। रुखसाना ने दरवाजा बंद मकया और सलील के साथ


ं दर आ गयी। उसने एक बार मिर से घड़ी की तरफ़ नज़र डाली तो नौ बज के पाँच ममनट हो रहे थे। उसने टीवी चालू मकया

और सलील से पूछा मक उसने खाना खाया है मक नहीं तो वो बोला, "नहीं आूँ टी अभी नहीं खाया!" रुखसाना ने उसे कहा मक,

"तुम टीवी दे खो... मैं खाना गरम कर के लाती ह


ूँ ..!" वो मकचन में गयी और खाना गरम करने लगी। खाना काफ़ी था इसललये

मकसी बात की परेशानी नहीं थी। उसने खाना गरम मकया और मिर डायटनंग टेबल पर लगा मदया और सलील को खाना

परोस कर उसके साथ कुसी पर बैठ गयी।


सुनील अभी तक खाना खाने नहीं आया था। रुखसाना उसे ऊपर जाकर भी नहीं बुलाना चाहती थी क्योंमक उसकी तो सुनील

से आूँ खें ममलाने की महम्मत नहीं हो रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था मक जो कुछ भी हुआ उसके पीछे कसूर मकसका

है... उसका खुद का या सुनील का। वो अभी यही सोच रही थी मक सुनील के कदमों की आहट सुन कर सुनकर उसका ध्यान

टू टा। रुखसाना उसकी तरफ़ दे खे मबना बोली, "खाना खा ले सुनील... गरम कर मदया है!" सुनील उसके सामने वाली कुसी पर

बैठ कर खाना खाने लगा। रुखसाना भी खाना खा रही थी। वो अपनी नज़रें भी नहीं उठा पा रही थी। बार-बार उसके जहन में

यही ख्याल आ रहा था मक शादीशुदा होते हुए भी उसने ये कैसा गुनाह कर डाला। खाना खाते हुए सुनील ने पूछा, "ये साहब

कौन हैं भाभी?"

रुखसाना ने नज़रें झुकाये हुए ही जवाब मदया, "ये पड़ोस की नज़ीला भाभी का बेटा है... उनके वाललद की तमबयत खराब हो

गयी अचानक तो वो उनके यहाँ गये हैं!" मिर ना वो कुछ बोला और ना ही रुखसाना। सुनील ने खाना खाया और उसे गुड

नाइट बोल कर ऊपर चला गया। उसने बतलन उठा कर मकचन में रखे और अपने रूम में आकर दरवाजा अ
ं दर से बंद कर ललया।

रुखसाना सलील के साथ जाकर बेड पर लेट गयी। सलील तो बेचारा मासूम सा बच्चा था... जल्द ही सो गया। रुखसाना अभी

तक जाग रही थी। शाम को तीन घंटे तक सोने की वजह से नींद भी नहीं आ रही थी और आज तो उसकी स्ज़ंदगी ही बदल

गयी थी। वो दो महस्सों में बट गयी थी... मदल और मदमाग! मदल कह रहा था मक जो हुआ ठीक हुआ और मदमाग गलत करार दे

रहा था। मदल कह रहा था मक शादीशुदा होते हुए भी अपने शौहर के होते हुए भी वो एक बेवा जैसी स्ज़ंदगी जी रही थी... और

अगर अल्लाह तआला ने उसकी सुन कर उसके ललये एक ल


ं ड का इंतज़ाम कर मदया है तो क्या बुराई है। रुखसाना यही सब

सोच रही थी मक दरवाजे पर दस्तक हुई। घर में उसके और सलील और सुनील के अलावा कोई नहीं था तो ज़ामहर है सुनील ही

होगा। रुखसाना ने सोचा मक अब वो क्यों आया है। उसका मदल मिर जोर से धड़कने लगा। वो चुपचाप लेटी रही पर मिर से

दस्तक हुई।

सलील कहीं उठ ना जाये... भले ही वो मासूम था पर कहीं उसे मकसी तरह का शक हो गया तो यही सोचकर रुखसाना उठी

और धीरे से जाकर दरवाजा खोला। सामने सुनील ही था। उसे दे ख कर रुखसाना झेंप गयी, "अब क्या है क्यों आये हो यहाँ

पर...?"

"भाभी जी मैं अ
ं दर आ जाऊ
ूँ ?" सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने उसे मना करते हुए कहा मक, "नहीं तू जा अभी यहाँ से..!" ये कह

कर रुखसाना ने दरवाजा बंद कर मदया। उसकी साँसें तेज हो गयी थी। वो सोचने लगी मक "ये तो अ
ं दर आने को कह रहा है...

क्या करेगा अ
ं दर आकर... मुझे मिर से चोदे ग...? हाय अल्लाह सलील भी तो कमरे में है... दोबारा चुदाई... तौबा मेरी तौबा एक

दफ़ा गल्ती कर दी अब नहीं..!" तभी उसके मदल के कोने से आवाज़ आयी, "तो क्या हो गया इसमें सब करते हैं... अब एक बार

तो तू कर चुकी है... एक बार और कर ललया तो क्या है? अगर दोबारा भी करवा ललया तो क्या मबगड़ जायेगा... अल्लाहा

तआला ने मौका मदया है इसे ज़ाया ना जाने दे ... बार-बार ऐसे मौके नहीं आने वाले स्ज़ंदगी में... मपछले दस सालों से तरसी है

इसके ललये..!" रुखसाना बेड पर बैठी सोचती रही, "मौका ममला है तो रुखसाना इसका फ़ायदा उठा... आधी से ज्यादा जवानी

तो यू
ूँ ही मनकल गयी... बाकी भी ऐसे ही मनकल जायेगी... अच्छा भला आया था बेचारा... उसे तो कोई और ममल जायेंगी... वो तो
अभी-अभी जवान हुआ है... शादी भी होगी... तेरा कौन है... वो फ़ारूक सजसने तुझे कभी प्यार से छुआ तक नहीं... ये सब गुनाह ये

गलत है... वो गलत है... इन ही सब में स्ज़ंदगी मनकल गयी... उधर अज़रा को दे ख स्ज़ंदगी के मज़े ले रही है... तू तो उससे कहीं

ज्यादा हसीन है तुझे हक नहीं है क्या स्ज़ंदगी के लुत्फ़ उठाने का!" यही सब सोचते-सोचते थोड़ी दे र गुज़रने के बाद रुखसाना के

मदल और मदमाग की जंग में आलखरकार मदमाग की सशकस्त हुई।

रुखसाना को अब सुनील के साथ अपने रवैय्ये के ललये बुरा महसूस होने लगा। मिर वो कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए उठी और

अलमारी में से एक बेहद मदलकश सुखल रंग का जोड़ा मनकाल कर बाथरूम में जा कर कपड़े बदले। मिर कमरे में आकर अच्छा

सा मेक-अप मकया और लाल रंग के ही ऊ


ूँ ची पेमिल हील वाले काचतलाना सैंडल पहने। ये सोच कर रुखसाना के होंठों पे

मुस्कुराहट आ गयी मक अगर सुनील उससे खफ़ा भी होगा तो और कुछ नहीं तो उसे ये काचतलाना सैंडल पहने दे ख कर तो

जरूर घायल होकर उसके कदमों में मगर पड़ेगा। मिर उसने पर्फ्ूलम लगाया और एक दफ़ा तसल्ली करी मक सलील गहरी नींद

सो रहा है और मिर लाइट बंद करके बेडरूम से बाहर मनकल कर दरवाजा बाहर से बंद कर मदया। रुखसाना आमहस्ता-

आमहस्ता सीमढ़याँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी। उसका मदल जोर-जोर से धड़क रहा था। जब वो ऊपर पहु
ूँ ची तो सुनील के कमरे

का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में नाईट लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। जब वो उसके दरवाजे तक पहु
ूँ ची तो उसे हैरानी

हुई मक सुनील तो अ
ं दर था ही नहीं। तभी उसे अपने पीछे सुनील के कदमों आहट आयी तो वो पलटी। उसने दे खा सुनील के

हाथ में शराब का मगलास था। शायद वो इतनी दे र से छत पर शराब पी रहा था। सुनील उसके करीब आया तो रुखसाना

लझझकते हुए बोली, "तू सोया नहीं अब तक...?"

सुनील ने आगे बढ़ कर रुखसाना के एक हाथ को अपने हाथ में थाम ललया। उसके मदाना हाथ का एहसास पाते ही रुखसाना

पे नशा सा होने लगा। "मुझे यकीन था आप जरूर आओगी..!" ये कह कर सुनील ने उसे अपनी तरफ़ खींचा और वो उसकी

तरफ़ ल्ख
ं चती चली गयी... मबना मकसी मुज़ामहमत मकये। सुनील ने उसे अपनी बाहों में भर ललया। उसके चौड़े सीने से लग कर

रुखसाना को जवानी का अनोखा सुकून ममलने लगा। रुखसाना ने उसके चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा ललया और बोल

पड़ी, "सुनील मुझे डर लगता है..!" सुनील ने उसकी कमर को अपनी बाहों में और जकड़ ललया। "डर... कैसा डर भाभी?"

रुखसाना उसकी बाहों में कसमसायी। अपने जवान सजस्म को सुनील की जवान बाहों की मगरफ़्त में उसे बहुत अच्छा लग रहा

था। रुखसाना िुसिुसाते हुए बोली, "कोई दे ख लेगा!"

सुनील बोला, "यहाँ और कौन है जो दे ख लेगा..!"

रुखसाना: "नीचे सलील है वो..."

सुनील: "अरे वो तो अभी छोटा है... उसे क्या समझ..!"

रुखसाना: "और अगर कुछ ठहर गया तो..?"


सुनील: "क्या...?" सुनील को शायद समझ में नहीं आया था। रुखसाना एक दम से शरमा गयी। वो थोड़ी दे र रुक कर बोली,

"अगर मैं पेट से हो गयी तो?" सुनील के ज़ररये प्रेग्नेन्ट होने की बात से रुखसाना के सजस्म में झुरझुरी सी दौड़ गयी। सुनील

उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला, "ऐसा कुछ नहीं होगा..!" रुखसाना ने उसकी आूँ खों में सवाललया नज़रों से दे खा तो वो

मुस्कुराते हुए बोला, "मैं कल बज़ार से आपके ललये बच्चा ना ठहरने वाली दवाई ला दु
ूँ गा... वैसे मुझे लगता है मक अब आपको

रोज़ाना ये गोललयाँ लेने की जरूरत पड़ने वाली है..!" रुखसाना उसकी बात सुन कर ससर झुका कर मुस्कुराने लगी। सुनील ने

उसे अपनी बाहों में और जोर से भींच ललया। रुखसाना की चूचचयाँ उसके सीने में दब गयीं। सुनील ने उसके चूतड़ों को जैसे ही

हाथ लगाया तो रुखसाना एक दम से मचल उठी और बोली, "सुनील यहाँ नहीं..!"

सुनील उसका इशारा समझ गया और उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए अपने कमरे में ले गया। जैसे ही रुखसाना उसके

कमरे में दालखल हुई तो उसकी धड़कनें बढ़ गयी। शाम को तो सब इतनी जल्दी हुआ था मक उसे कुछ समझ में ही नहीं आया

था।

कमरे में आते ही सुनील ने लाइट जला दी और रुखसाना को पीछे से बाहों में भर ललया। रुखसाना ने धीरे से अपनी पीठ

उसके सीने से सटा ली। सुनील के हाथ में शराब का आधा भरा मगलास अभी भी मौजूद था। उसने अपने होंठों को रुखसाना

की गदल न पर रखा तो रुखसाना का तो रोम-रोम काँप गया। "रुखसाना भाभी आज तो आपका हुस्न कुछ ज्यादा ही कहर ढा

रहा है..!" सुनील बुदबुदाते हुए बोला। सुनील ने आज दूसरी बार उसे नाम से पुकारा था। सुनील के होंठ रुखसाना की गदल न पे

और उसका एक हाथ रुखसाना के सिम पेट और नाचभ के आसपास चथरक रहा था। सुनील के हाथ के सहलाने और अपनी

गदल न पे सुनील के होंठों और गमल साँसों का एहसास रुखसाना को बहुत अच्छा लग रहा था... वो मदहोश हुई जा रही थी। दो

दफ़ा शादीशुदा होने के बावजूद पहली बार उसे ऐसा मज़ा और इशरत नसीब हो रही थी।

"घायल करके रख मदया भाभी आपके हुस्न ने मुझ!े " रुससाना की गदल न को चूमते हुए सुनील बोला और मिर अपना शराब का

मगलास रुखसाना के होंठों से लगा मदया। रुससना उसकी मगरफ़्त में कसमसाते हुए शराब का मगलास अपने होंठों से ज़रा दूर

करते हुए बोली, "नहीं सुनील... मैं नहीं... पी नहीं कभी!"

"थोड़ी सी तो पी कर दे खो भाभी आपके इन सुखल होंठों में जब ये शराब चथरकेगी तो शराब और आपके हुस्न का नशा ममलने से

ऐसा नशा तैयार होगा मक कयामत आ जायेगी..!" सुनील रुखसाना की गदल न पे अपने होंठ मिराते हुए बोला। रुखसाना तो

पहले ही सुनील के आगोश में मदहोश हुई जा रही थी और सुनील की शायराना बातों से वो मबल्कुल बहक गयी और उसकी

तमाम ज़हनी महचमकचाहट काफ़ूर हो गयी। सुनील ने जैसे ही मगलास मिर से उसके होंठों से लगाया तो रुखसाना फ़ौरन

अपने सुखल होंठ खोलकर शराब पीने लगी। शुरू-शुरू में तो रुखसाना को ज़ायका ज़रा सा कड़वा जरूर लगा लेमकन मिर दो-

तीन घू
ूँ ट पीने के बाद उसे ज़ायका भाने लगा। इसी तरह एक हाथ से रुखसाना के सजस्म को सहलाते हुए और उसकी गदल न पे

अपनी नाक रगड़ते और उसे चूमते हुए सुनील ने मगलास में मौजूद सारी शराब रुखसाना को मपलाने के बाद ही उसके होंठों से

मगलास हटाया।
उसके बाद सुनील ने रुखसाना को अपनी तरफ़ घुमाया और उसे ऊपर से नीचे तक मनहारते हुए बोला, "रुखसाना भाभी

इतनी हॉट लग रही हो आज मक बस ज्या कह


ूँ ... और इन हाई हील सैंडलों में आपके ये खूबसूरत पैर तो मुझे पागल कर रहे हैं...

मदल कर रहा है मक चूम लू


ूँ इन्हें!" रुखसाना पे शराब की हल्की-हल्की खुमारी छाने लगी थी। अपनी तारीिें सुनकर पहले तो वो

थोड़ी शमा गयी लेमकन मिर शरारत भरी नज़रों से उसे दे खते हुए बोली, "तो कर ले ना अपनी हसरत पूरी... रोका मकस ने है!"

इतना सुनते ही सुनील फ़ौरन रुखसाना के कदमों पे झुक गया और उसके गोरे-गोरे नमल पैरों और सैंडलों मक तमनयों को कुत्ते

की तरह चूमने-चाटने लगा। रुखसाना को यकीन ही नहीं हो रहा थी मक कोई उसे इस कदर भी चाहता है मक इस तरह उसके

पैरों को उसके सैंडलों को चूम रहा है। उसके सजस्म में मस्ती भरी सनसनी सी दौड़ गयी। उसके दोनों पैर चूमने के बाद सुनील ने

उठ कर मिर रुखसाना को अपने आगोश में ले कर उसके सजस्म पे हाथ मिराता हुआ उसकी गदल न पे चूमने लगा।

रुखसाना भी सुनील के मदाना आगोश में मस्ती में कसमसा रही थी। शराब की खुमारी उसकी मस्ती को और ज्यादा बढ़ा रही

थी। उसने भी अपनी बाँहें सुनील की कमर में डाल राखी थी। जब उसे लगा मक सुनील शायद अब उसके कपड़े उतारने शुरू

करेगा तो रुखसाना ने धीरे से सुनील को कमरे का दरावाजा बंद करने को कहा तो सुमनल बोला, "यहाँ कौन आ जायेगा इस

वक़्त?"

लेमकन रुखसाना इसरार करते हुए बोली, "हुम्म्मम्म तू दरवाजा लॉक कर दे ना प्लीज़?"

सुनील ने उसे छोड़ा और दरवाजा लॉक कर मदया और मिर से रुखसाना को पीछे से जकड़ ललया तो वो उसकी बाहों में

कसमसाते हुए मिर िुसिुसाते हुए बोली, "सुनील लाइट भी..!"

सुनील बोला, "रहने दो ना भाभी.. मैं आज आपके हुस्न का दीदार करना चाहता ह
ूँ ..!" और रुखसाना के पेट से होते हुए उसके

हाथ रुखसाना की चूचचयों के तरफ़ बढ़ने लगे।

"मुझे शरम आती है सुनील... लाईट ऑि कर दे ना... नाईट लैम्प की रोशनी काफ़ी होगी!" अपनी चूचचयों पे सुनील के हाथों

का दबाव महसूस होने से रुखसाना सससकते हुए बोली। सुनील ने एक बार मिर से उसे छोड़ा और थोड़े बेमन से लाइट ऑफ़

कर दी। लेमकन सुनील ने दे खा मक वाकय में नाईट लैम्प की कािी रोशनी थी और खुली लखड़मकयों से कमरे में चाँद की भी

कािी रोशनी आ रही थी। इतनी रोशनी रुखसाना के हुस्न का दीदार करने के ललये काफ़ी थी। अब उससे और सब्र नहीं हो रहा

था और वो रुखसाना को लेकर बेड पर आ गया।

एक बार मिर से रुखसाना की चुदने की घड़ी आ गयी थी। बेड पर आते ही सुनील उसके साथ गुथमगुथा हो गया। उसके हाथ

कभी रुखस्ना की पीठ पर तो कभी उसके चूतड़ों पर घूम रहे थे। रुखसाना उससे और वो रुखसाना से चचपकने लगा। रुखसाना

की चूचचयाँ बार-बार सुनील के सीने से दबी जा रही थी। रुखसाना का इतने सालों में और सुनील के साथ भी चुदाई का दूसरा

ही मौका था इसललये रुखसाना ज़रा शरम रही थी... शराब की खुमारी के बावजूद वो बहोत ज्यादा खुल कर साथ नहीं दे रही थी।
सुनील ने पहले उसकी कमीज़ उतारी और मिर सलवार और मिर उसकी पैंटी भी खींच कर मनकाल दी। रुखसाना के सजस्म

पे अब ससफ़ल काली ब्रा बची थी और पैरों में ऊ


ूँ ची हील वाले लाल सैन्डल। सुनील उसकी बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचचयाँ ब्रा के ऊपर

से ही दबाने और मसलने लगा जो रुखसाना को बहुत अच्छा लग रहा था। दस सालों में पहली बार उसकी चूचचयों को मदाना

हाथों का मसलना नसीब हुआ था। रुखसाना की हालत खराब हो गयी थी और उसके होंठों से बे-इलियार सससमकयाँ मनकल

रही थीं। जब सुनील ने उसकी ब्रा को खोला तो रुखसाना की साँस बहोत तेज चल रही थी और मदल ज़ोर-ज़ोर से धक-धक कर

रहा था। सजस्म का सारा खून उसे अपनी चूत की तरफ़ ससमटता हुआ महसूस हो रहा था। अब रुखसाना उस मबस्तर पर ससफ़ल

सैंडल पहने एक दम नंगी पड़ी थी... वो भी अपने मकरायेदार के साथ। सोच कर ही रुखसाना की चूत मचलने लगी मक वो अपने

से पंद्रह साल छोटे जवान लड़के के साथ उसके ही मबस्तर पे एक दम नंगी लेटी हुई थी।

इतने में सुनील ने भी अपने कपड़े उतार मदये और अगले ही पल वो रुखसाना के ऊपर आ चुका था। उसने रुखसाना की टाँगों

को उठा कर उसके पैर अपने क


ं धों पे रखे और अपना मूसल जैसा सख्त अनकटा ल
ं ड रुखसाना की चूत के छेद पर लगा

मदया और मिर धीरे-धीरे दबाते हुए ल


ं ड को अ
ं दर घुसेड़ने लगा। वो घुसड़
े ता गया और रुखसाना उसके ल
ं ड को अ
ं दर समेटती

गयी। जैसे ही उसका ल


ं ड रुखसाना की चूत के गहराइयों में पहु
ूँ चा, तो वो एक दम मस्त हो गयी। सुनील एक पल भी ना रुका,

और अपने ल
ं ड को रुखसाना की चूत के अ
ं दर बाहर करने लगा। रुखसाना को लग जैसे मक वो जन्नत की हसीन वामदयों में उड़

रही हो। ऐसा सुकून और लुत्फ़ उसे आज तक नहीं ममला था। जैसे ही वो अगला शॉट लगाने के ललये अपना लौड़ा रुखसान

की िुद्दी से बाहर मनकालता तो रुखसाना की कमर उसके लौड़े को अपनी िुद्दी मैं लेने के ललये बे-इलियार ऊपर की तरफ़

उठ जाती और सुनील का ल
ं ड मिर से चूत की गहराइयों में उतर जाता।

सुनील एक स्पीड से मबना रुके अपने लौड़े को अ


ं दर-बाहर करता रहा। इस तरह चोदते हुए ना ही वो रुखसाना के मम्मों से

खेला और ना ही कोई चूमा चाटी की चुदाई का आलखर था तो वो भी नया लखलाड़ी। दो बार अज़रा को चोदा था और आज

रुखसाना को दूसरी बार चोद रहा था। करीब दस ममनट बाद रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसकी चूत के नसें ऐंठने लगी हों।

रुखसाना को अपनी चूत की दीवारें सुनील के ल


ं ड के इदल मगदल कसती हुई महसूस होने लगी और मिर उसकी चूत से पानी का

दररया बह मनकला। रुखसाना झड़ कर बेहाल हो गयी। "ओहहह सुनीईईल मेरीईईई जाआआआन आूँ हहहह...!" रुखसाना ने

जोर से चींखते हुए सुनील को अपनी बाहों में कस ललया। सुनील ने उसकी चूत में अपना ल
ं ड पेलते हुए पूछा, "क्या कहा

भाभी आपने?" रुखसाना अभी भी झड़ रही थी और चूत में अभी भी जकड़ाव हो रहा था। रुखसाना मस्ती की बुल
ं दी पर थी।

रुखसाना ने मस्ती में आकर सुनील होंठों को चूम ललया। "मेरी जान... मेरे मदलबर..." कहते हुए रुखसाना सुनील के सीने में

ससमटती चली गयी। सुनील ने मिर तेजी से धक्के मारने शुरू कर मदये और रुखसाना की चूत के अ
ं दर अपने वीयल की बौछार

करने लगा। झड़ते हुए उसने झुक कर रुखसाना के एक मम्मे को मु


ूँ ह में भर ललया। सुनील के मु
ूँ ह और जीभ का लि अपने

मम्मे और अ
ं गूर के दाने सजतने बड़े मनप्पल पर महसूस हुआ तो एक बार मिर से रुखसाना की चूत ने झड़ना शुरू कर मदया।

उसकी चूत ने पता नहीं सुनील के ल


ं ड पर मकतना पानी बहाया।
वो दोनों उसी तरह ना जाने मकतनी दे र लेटे रहे। सुनील रुखसाना के नंगे मुलायम सजस्म को सहलाता रहा और रुखसाना भी

इसका लुत्फ़ उठाती रही। रुखसाना को लग रहा था मक ये हसीन पल कभी खत्म ना हों लेमकन मिर वो मबस्तर से उठी और

अपने कपड़े ढूूँ ढे और ससफ़ल कमीज़ पहनने के बाद लाइट ऑन की। सुनील बेड से उठा और रुखसाना का हाथ पकड़ कर

बोला, "क्या हुआ?" रुखसाना ने उसकी तरफ़ दे खा और मिर शरमा कर नज़रें झुका ली, "सलील अकेला है मुझे जाने दे !"

सुनील बोला, "थोड़ी दे र और रुको ना!" तो रुखसाना एक सुनील के नंगे ल


ं ड पे एक नज़र डालते हुए बोली, "जाना तो मैं भी

नहीं चाहती... लेमकन अभी मुझे जाने दे ... अगर वो उठ गया तो मसला हो जायेगा!"

सुनील कुछ नहीं बोला और मुस्कुरा कर उसे जाने मदया। रुखसाना ने अपने बाकी कपड़े उठाये और ससफ़ल कमीज़ पहने हुए

सुनील के कमरे से बहार मनकली और सीमढ़याँ उतर कर नीचे चली गयी। शराब और ज़ोरदार चुदाई के लुत्फ़ की खुमारी से वो

खुद को हवा में उड़ता हुआ महसूस कर रही थी। अपने बेडरूम का दरवाजा खोल कर अ
ं दर झाँका तो सलील अभी भी सो रहा

था। बेडरूम में आकर उसने दरवाजा बंद मकया और रात के कपड़े पहन कर लेट गयी। रात कब नींद आयी उसे पता नहीं चला।

सुबह उठ कर नहा-धो कर तैयार होने के बाद उसने नाश्ता तैयार मकया । सुनील नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना के चेहरे

पर अभी भी लाली थी... वो अभी भी उसके साथ नज़रें नहीं ममला पा रही थी। सलील की मौजूदगी में दोनों कुछ बोले नहीं।

नाश्ता करते हुए सुनील ने टेबल के नीचे रुखसाना का हाथ पकड़ा तो वो अचानक से हड़बड़ा गयी लेमकन सुनील ने उसका

हाथ छोड़ा नहीं बलल्क रुखसाना का हाथ अपनी गोद में खींच कर पैंट के ऊपर से ल
ं ड पे रख के दबाने लगा। इस सबसे बेखबर

सलील सामने बैठा चुपचाप नाश्ता कर रहा था लेमकन रुखसाना की तो धड़कनें तेज़ हो गयीं और चेहरा शमल से सुखल हो गया।

मिर नाश्ता करके सुनील तो चला गया लेमकन रुखसाना के जज़बातों को भड़का गया।

सारा मदन रूकसाना का मदल लखला-लखला रहा। सलील की बचकानी बातें सुन कर हंसते-खेलते मदन मनकला। आज

रुखसाना के खुश होने की वजह और भी थी। उसे नहीं पता था मक उसका ये उठाया हुआ कदम उसे मकस मुक़ाम की ओर ले

जायेगा या आने वाले वक़्त में उसकी तक़दीर में क्या ललखा हुआ था। पर अभी तो वो सातवें आसमान पे थी और स्ज़ंदगी में

पहली बार इतनी खुशी मीली थी उसे।

शाम को मकसी ने गेट के सामने हॉनल बजाया तो रुखसाना ने सोचा मक ये कौन है जो उनके घर गाड़ी ले कर आया। जब उसने

बाहर जाकर गेट खोला तो दे खा मक बाहर सुनील बाइक पर बैठा था। वो रुखसाना की तरफ़ दे ख कर मुस्कुराया और उसने

बाइक गेट के अ
ं दर ला कर स्टैं ड पर लगा दी। मिर दोनों घर के अ
ं दर दालखल हुए और रुखसाना अभी क
ं ु डी लगा ही रही थी

मक सुनील ने उसे पीछे से बाहों में दबोच ललया। "आहहह हाय अल्लाह क्या करते हो कोई दे ख लेगा....!" रुखसाना कसमसाते

हुए बोली।

"कौन दे खेगा भाभी हमें यहाँ..?" सुनील ने उससे अलग होते हुए कहा।

"सलील है ना घर पर...!" रुखसाना ने कहा तो सुनील बोला, "उसे क्या समझ वो तो बच्चा है...!"
"नहीं मुझे डर लगता है... कुछ गड़बड़ ना हो जाये!" रुखसाना बोली।

"अच्छा रात को तो आओगी ना... ऊपर मेरे कमरे में..!" सुनील ने पूछा तो रुखसाना ने मुस्कुराते हुए गदल न महला कर आूँ खों के

इशारे से रज़ामंदी बता दी। मिर उसने सुनील से पूछा मक "ये बाइक मकसकी है?" तो सुनील ने कहा, "मेरी है... आज ही खरीदी

है... नयी है!"

"हाँ वो तो दे ख ही रही ह
ूँ !" रुखसाना बोली। उसने दे खा मक सुनील ने हाथ में खाने का पैकेट पकड़ा हुआ था जो वो ढाब्बे से

लेकर आया था। "अब मैं ठीक ह


ूँ सुनील... घर पर बना लेती... इसकी क्या जरूरत थी!" रुखसाना ने सुनील के हाथों से खाने के

पैकेट लेते हुए कहा तो सुनील शरारत भरे अ


ं दाज़ में बोला, "आप बना तो लेती... पर मैं आपको काम करके थकाना नहीं

चाहता था... रात को आपको काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी..!" ये सुनते ही रुखसाना के गाल शरम से लाल होकर दहकने लगे।

सुनील ने दूसरे हाथ में एक और बैग पकड़ा हुआ था। उसने रुखसाना को मदखाया मक उसमें एक पैकेट में खूब सारी गुलाब के

िूलों की पंखुमड़याँ और चमेली के िूल थे। उसी बैग में रॉयल स्टैग मिस्की की एक बोतल भी थी। रुखसाना ने सवाललया

नज़रों से दे खते हुए पूछा तो सुनील बड़े प्यारे अ


ं दाज़ में बोला, "भाभी ये सब तो आज की रात आपके ललये खास बनाने के

ललये है... आओगी ना आप?" अब तो रुखसाना ऐसे शमा गयी जैसे नयी नवेली दुल्हन हो। वो अपने होंठ दाँतों मे दबा कर

दौड़ती हुई मकचन में चली गयी। सलील टीवी पर कॉटू ल न दे ख रहा था। सुनील सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। वो तीन-

चार घंटे ऊपर ही रहा और रात के करीब नौ बजे वो नीचे आया तो रुखसाना ने खाना गरम करके टेबल पर लगाया। सुनील

सलील के साथ वाली कुसी पर बैठा था। "आज बड़ी दे र कर दी नीचे आने में...!" रुखसाना सुनील की ओर दे खते हुए

मुस्कुरायी तो सुनील आूँ ख मारते हुए बोला, "वो रात को जागना है तो सोचा मक कुछ दे र सो लेता ह
ूँ !"

मिर कुछ खास बात नहीं हुई। सुनील खाना खा कर ऊपर चला गया। रुखसाना सलील के साथ अपने बेडरूम में आकर

सलील के साथ लेट गयी। सलील थोड़ी दे र मैं ही सो गहरी नींद सो गया। उसके बाद रुखसाना उठ कर बाथरूम में गयी और

उस मदन वो ये तीसरी बार नहा रही थी। सुनील ने रात के ललये काफ़ी तैयारी की थी तो रुखसाना भी अपनी तरफ़ से कोई

कमी नहीं रखना चाहती थी। वो भी आज रात को होने वाली चुदाई को लेकर काफ़ी इक्साइमटड थी। नहाने के बाद उसने पूरे

सजस्म पे पर्फ्ूलम सछड़का। उसकी चूत और सजस्म तो पहले ही मबल्कुल मुलायम और चचकने थे... एक रोंआूँ तक भी मौजूद नहीं

था। उसके बाद उसने अलमारी में सालों से रखा शरारा सूट मनकाला जो उसने फ़ारूख़ के साथ मनकाह के वक़्त पहना था।

रुखसाना को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आज उसकी सुनील के साथ सुहाग रात थी। ज़री वाला हरे रंग का शरारा-सूट

पहनने के बाद उसने अच्छे से मेक-अप मकया। मिर अलमारी की सेफ़ में से ज़ेवर मनकाल कर पहने जैसे मक गले का हार...


ं गन कानों के बूंदे और बालों में झुमर भी पहना। मिर आलखर में उसने सुनहरी गोडन रंग के बेहद ऊ
ूँ ची पेंससल हील के

सैंडल पहने। उसने खड़े होकर ससर पे दुपट्टा ओढ़ कर जब आइने में दे खा तो खुद का हुस्नो-शबाब दे ख कर शमा गयी... मबल्कुल

नयी नवेली दुल्हन की तरह बेहद खूबसूरत लग रही थी वो।

रुखसाना ने एक बार तस्ल्ली की मक सलील गहरी नींद सो रहा है और मिर लाइट बंद करके आमहस्ता से कमरे से मनकली

और दरवाजा बंद करके धड़कते मदल के साथ आमहस्ता-आमहस्ता सीमढ़याँ चढ़ने लगी। जब वो ऊपर पहु
ूँ ची तो सुनील के कमरे
में लाईट जल रही थी। तभी उसे एहसास हुआ की सीमढ़यों से सुनील के कमरे तक रास्ते में िूलों की पंखुमड़याँ मबछी हुई थीं।

सुनील का ये अमल रुखसाना के मदल को छू गया। उसने कभी तसाव्वुर भी नहीं मकया था मक कोई उसके कदमों में िूल तक

मबछा सकता है। रुखसाना उन िूलों पे बड़ी नफ़ासत से ऊ


ूँ ची पेंससल हील वाले सैडल पहने पैरों से आमहस्ता-आमहस्ता कदम

रखती हुई सुनील के कमरे में दालखल हुई तो अचानक उसके ऊपर ढेर सारे िूलों की बाररश हो गयी। इतने में अचानक सुनील

ने रुखसाना को बाहों में भर ललया। रुखसाना की तनी हुई चूचचयाँ सुनील के सीने में दबने लगीं।

"हाय भाभी आप तो मेरी जान मनकाल कर ही रहोगी... कल तो इतनी बुरी तरह घायल मकया था और आज तो लगता है मेरा

कत्ल ही करोगी आप... वाओ!" रुखसाना को दुल्हन के ललबास में दे ख कर सुनील उत्तेसजत होते हुए बोला। रुखसाना ने दे खा

मक मबस्तर पे भी गुलाब और चमेली के िूलों की चादर मौजूद थी।

"वेलकम भाभी... मेरे कमरे में और मेरी स्ज़ंदगी में... मैं मकतना खुशनसीब ह
ूँ बता नहीं सकता!" सुनील चहकते हुए बोला और

उसने टेबल पे पहले से रखे हुए शराब के दो मगलास उठाये और एक मगलास रूकसाना को पक्ड़ाते हुए बोला, "ये लीसजये

भाभी... आज का पहला जाम आपके बेममसाल हुस्न के नाम!" रुखसाना के मदल में थोड़ी महचमकचाहट तो हुई लेमकन उसने

ज़ामहर नहीं होने दी। जैसे ही वो अपना मगलास होंठों से लगाने लगी तो सुनील ने उसके मगलास से अपन मगलास टकराते हुए

'चचयसल' कहा और मिर रुससाना की बाँह में अपनी बाँह लपेट कर बोला, "अब मपयो भाभी एक ही घू
ूँ ट में!"

सुनील की तरह रुखसाना ने भी एक ही घू


ूँ ट में मगलास खाली कर मदया। आज उसे शराब मपछली रात से थोड़ी ज्यादा स्ट्रॉंग

और तीखी लगी क्योंमक आज सुनील ने दोनों मगलासों में नीट मिस्की डाल राखी थी। मिर सुनील ने कामरे की लाइट ऑि

करके नाइट लैम्प ऑन कर मदया और अपने िोन पे कम वल्यूम पे पुराना गाना चला मदया, "आओ मानायें जश्न-ए-मोहब्बत...

जाम उठायें जाम के बाद...!" और रुखसाना को बाहों में भर कर धीरे-धीरे चथरकने लगा। नाइट लैम्प की ममद्दम सी नीली रोशनी

के साथ-साथ कमरे में खुली लखड़मकयों से चाँद की चाँदनी भी मबखरी हुई थी । गमी का मौसम था लेमकन बाहर से हल्की-

हल्की ठंडी पूवा हवा बह रही थी। रुखसाना को सुनील का तैयार मकया हुआ ये रंगीन और रुमानी समाँ बेहद मदलकश लग रहा

था और वो भी सुनील के सीने में चेहरा छुपाये और उसकी कमर में बांहें डाल कर उससे चचपक कर गाने की धुन पे धीरे-धीरे

चथरकने लगी। सुनील के हाथ में मिस्की की बोतल थी और दोनों एक दूसरे के आगोश में चथरकते-चथरकते बीच-बीच में उस

बोतल से मिस्की के छोटे-छोटे घू


ूँ ट पी रहे थे। वही गाना बार-बार लूप में चल रहा था।

चथरकते हुए सुनील के हाथ रुखसाना की कमर से चूतड़ों तक हर महस्से को सहला रहे थे। एक पराये मदल ... वो भी उम्र में उससे

पंद्रह साल छोटा... उससे इतनी तवज्जो... इतनी मोहब्बत.... इतना सुकून उसे ममलेगा... रुखसाना ने स्ज़ंदगी में कभी सोचा नहीं

था। जल्दी ही रुखसाना पे शराब का नशा भी सवार होने लगा था और इतने रोमांमटक माहौल में वो सुरूर में मस्त हो चुकी थी

और उसे इस वक़्त दीन-दुमनया की कोई खबर नहीं थी। वो आज इस सुरूर-ओ-मस्ती के समंदर में डू ब जाना चाहती थी। इसी

बीच कब मिस्की की बोतल उसने सुनील के हाथ से अपने हाथ में ले ली उसे पता हा नहीं चला। नशे की खुमारी में सुनील के


ं धे पे ससर मटकाये उससे ललपट कर चथरकती हुई वो बीच-बीच में मिस्की के छोटे-छोटे ससप ले रही थी।
सुनील ने अब रुखसाना के कपड़े उतारने शुरू कर मदये... वहीं चथरकते-चथरकते खड़े-खड़े ही। मदहोशी में रुखसाना ने ज़रा भी

मुखाललफ़त नहीं की बलल्क वो तो नंगी होने में सुनील का साथ दे रही थी जब वो धीरे-धीरे उसके कपड़े खोल रहा था। थोड़ी ही

दे र में उसका शरारा सूट उसके सजस्म से अलग हो चुका था! नाइट लैंप और चाँदनी रात की ममद्दम सी रोशनी में अब वो

मबल्कुल नंगी आूँ खें बंद मकये सुनील के क


ं धे पे ससर रख कर उससे ललपटी हुई नाच रही थी। मिर सुनील उससे थोड़ा अलग

हुआ और रुखसाना को कुछ सरसराहट सुनायी दी। उसका मदल ये सोच कर धोंकनी की तरह बजने लगा मक सुनील भी

अपने कपड़े उतर रहा है। मिर एक सख्त सी गरम चीज़ रुखसाना को अपनी रानों पर चुभती हुई महसूस हुई तो उसका सजस्म

एक दम से थरथरा गया ये सोच कर मक सुनील का तना हुआ ल


ं ड उसकी रानों से रगड़ खा रहा था।

मिर अचानक से पता नहीं क्या हुआ... सुनील उससे मबल्कुल अलग हो गया। रुखसाना को नशे की खुमारी में समझ में नहीं

आया मक आलखर हुआ क्या... लेमकन तभी अचानक कमरे की ट्यूब- लाइट ऑन हो गयी और कमरा पुरी तरह रोशन हो गया।

अचानक तेज़ रोशनी से रुखसाना की आूँ खें चौंचधया गयीं। रुखसाना कमरे के ठीक बीचोबीच शराब की बोतल हाथ में पकड़े

और ससफ़ल ज़ेवर और सुनहरे रंग के हाई पेमिल हील के सैंडल पहने एक दम मादरजात नंगी खड़ी थी। सुनील लाइट के सस्वच

के पास खड़ा रुखसाना के तराशे हुए स


ं गमरमर जैसे गोरे नंगे सजस्म को मनहारते हुए अपने मूसल जैसे ल
ं ड को हाथ में लेकर

सहला रहा था। नशे की हालत में भी रुखसाना शरमा गयी लेमकन उसने अपना नंगापन छुपाने की कोसशश नहीं की। "सुनील!

ये क्या... प्लीज़ बंद कर दे ना मुझे शमल आती है... मकतना शैतान है तू!" रुखसाना कुनमुनाते हुए नशे में लरज़ती आवाज़ में

बोली। वो हाई हील के सैंडल पहने नशे में ठीक से एक जगह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। "ऑफ़ कर दे और मेरे करीब आ ना...

जानू!" वो कुनमुनाते हुए सुनील के लौड़े की तरफ़ दे खते हुए बोली और नशे में झूमती हुई अचानक धम्म से फ़शल पे टाँगें फ़ैला

कर बैठ गयी। उसने अपनी पीठ पीछे बेड से मटका रखी थी। सुनील लाइट बंद मकये बगैर रुखसाना की तरफ़ बढ़ा। सुनील का

तना हुआ लौड़ा हवा में लहरा रहा था सजसे दे ख कर रुखसाना की चूत िड़िड़ाने लगी। सुनील उसके पास आया और उसके

चेहरे के मबल्कुल सामने अपना लौड़ा लहराते हुए खड़ा हो गया।

"वॉव भाभी इस वक़्त आप जन्नत की हरों से भी ज्यादा हसीन लग रही हो... आपको इस तरह दे ख कर तो मुदों के ल
ं ड भी खड़े

हो जायें!" सुनील अपना लौड़ा उसके चेहरे को छुआते हुए बोला तो रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़रें झुका लीं। रुखसाना की

तारीफ़ सुनील ज़रा भी बढ़ा चढ़ा कर नहीं कर रहा था बलल्क हकीकत बयान कर रहा था। ट्यूब-लाइट की रोशनी में घुटने मोड़

कर टाँगें िैलाये बैठी रूखसाना का दमकता हुआ चचकना नंगा सजस्म... बालों में झूमर... गले में सोने का नेकलेस... कानों में

लटकते हुए सोने के बू


ूँ दे ... दोनों हाथों में एक-एक चौड़ा क
ं गन और पैरों में बेहद ऊ
ूँ ची और पतली हील वाले काचतलाना

सुनहरी सैंडल... होंठों पे लाल ललपसस्टक.... गालों पे लाली... बेशक रुखसाना क़यामत ढा रही थी। उसकी नशीली आूँ खों में

शरम भी थी और शरारत भी थी... थोड़ी घबराहट के साथ-साथ बेकरारी और प्यास भी मौजूद थी। सुनील का ल
ं ड तो मबल्कुल

लोहे के रॉड जैसा सख्त हो गया था। मिर अपने लौड़े का सुपाड़ा रुखसाना के लरज़ते लबों पे लगाते हुए सुनील बोला, "लो

भाभी इसे अपने नमल होंठों से प्यार कर दो ना!" इससे पहले सुनील को ल
ं ड चुसवाने का एक ही बार तजुबा था... जब अज़रा ने

उसका ल
ं ड चूस-चूस कर उसका पानी मनकाल कर मपया था। सुनील को बेहद मज़ा आया था। रुखसाना को भी खास तजुबा
नहीं था ल
ं ड चूसने का। दास साल पहले शादी के बाद शुरू-शुरू में फ़ारूक़ उससे ल
ं ड चुसवाता था। उसके बाद तो उसने ससफ़ल

अज़रा को ही फ़ारूक ल
ं ड चूसते और उसकी मनी पीते हुए दे खा था।

सुनील का जवान मबला-कटा ल


ं बा-मोटा ल
ं ड रुखसाना को अपने चेहरे के सामने सख्त हो कर लहराता हुआ बेहद हसीन लग

रहा था और उसने धीरे से अपने होंठ सुनील के ल


ं ड के चचकने सुपाड़े पे रख मदये और चूमने लगी और मिर एक हाथ से उसे

पकड़ कर एक बार उसे आगे से पीछे तक सहलाने के बाद अपने होंठ खोल कर सुपाड़ा अपने मु
ूँ ह में ले ललया और अपनी

ज़ुबान उसके इदल -मगदल मिराने लगी। सुनील की मस्ती में आूँ खें मू
ूँ द गयी और होठों से सससकरी मनकल पड़ी, "ऊउहहह

भाआआआभी...! रुखसाना को भी अपनी मुट्ठी और होंठों और ज़ुबान पे सुनील के सख्त गरम लौड़े का एहसास दीवाना बना

रहा था। सुनील के ल


ं ड की गमी रुखसाना की मुट्ठी और होंठों से उसके सजस्म में समाती हुई सीधी उसकी चूत तक जा रही थी।

मिर रुखसाना ने मज़े से चुप्पे लगाने शुरू कर मदये। जल्दी ही रुखसाना उसका आधे से ज्यादा ल
ं ड मू
ूँ ह में अ
ं दर-बाहर लेते हुए

चूस रही थी। सुनील इतना उत्तेसजत हो गया मक उसने रुखसाना का ससर पकड़ के अचानक जोर से धक्का मारते हुए अपना

पूरा लौड़ा रुखसाना के हलक तक ठे ल मदया। रुखसाना की तो साँस ही घुट गयी और वो तड़प उठी। सुनील ने अपना लौड़ा

फ़ौरन बाहर खींच ललया तो रुखसाना खाँसते हुए जोर-जोर से साँसें लेने लगीं। "सॉरी भाभी... मैं रोक नहीं पाया खुद को!"

सुनील बोला। रुखसाना की साँसें बहाल हुई तो उसने मुस्कुराते हुए सुनील को तसल्ली दी मक कोई बात नहीं। रुखसाना ने

मिर अपने थूक से सना हुआ लौड़ा मुट्ठी में ले ललया और सहलाते हुए दूसरे हाथ में अपनी बगल में िशल पे ही रखी मिस्की की

बोतल लेकर एक छोटा सा घू


ूँ ट पी ललया। उसके बाद उसने मिर सुनील के ल
ं ड के सुपाड़े को मु
ूँ ह में ले कर चुप्पा लगाया तो

सुनील को अलग ही मज़ा आया।

सुनील के मदमाग में कुछ मवचार आया और उसने रुखसाना को ज़रा सा रुकने को कहा और मिर टेबल से काँच का एक

छोटा सा मगलास ले कर उसे आधे तक मिस्की से भर मदया। मिर रुखसाना के चेहरे के सामने खड़े होकर अपना लौड़ा उस

मगलास में डाल कर मिस्की में डु बो कर रुखसाना के होंठों पे रख मदया। रुखसाना फ़ौरन अपने लब खोल कर शराब में भीगा

सुपाड़ा मु
ूँ ह में ले कर मिर चुप्पे लगाने लगी। ऐसे ही सुनील बार-बार अपना लौड़ा शराब में चभगो-चभगो कर रुखसाना से

चुसवा रहा था और रुखसाना को भी इस तरह शराब में भीगा ल


ं ड चूसने में बेहद मज़ा आ रहा था। इतने में सुनील का सब्र

जवाब दे गया और उसकी टाँगें काँपने लगीं वो जोर से सससकते हुए रुखसाना के मु
ूँ ह में ही झड़ने लगा। रुखसाना बेलझझक

उसकी मनी का ज़ायका ले रही थी। इतने मोटा ल


ं ड मु
ूँ ह में भरे होने की वजह से सुनील का वीयल रुखसाना के होंठों के मकनारों

से बाहर बहाने लगा तो सुनील ने अपना झड़ता हुआ ल


ं ड उसके मु
ूँ ह से बाहर मनकाल ललया और वीयल की बाकी मपचकाररयाँ

शराब के मगलास में मनकाल दीं। रूकसाना तो मस्ती में अपने होंठों के मकनारों से बाहर मनकली हुई मनी भी उंगललयों से पोंछ

कर चाट गयी और होंठों पे ज़ुबान मिराने लगी।

जैसे ही सुनील ने शराब का मगलास सजसमें उसका वीयल मलाई की तरह मिस्की में तैर रहा था... उसे टेबल पे रखने के इरादे से

हाथ आगे बढ़ाया तो रुखसाना ने उसका हाथ पकड़ के रोक मदया और मगलास अपने हाथ में लेकर और उसे महलाते हुए

महसलना नज़रों से शराब में तैरती मनी दे खने लगी। सुनील तो झड़ने के बाद के लम्हों की मस्ती में था और इससे पहले वो कुछ
समझ पाता रुखसाना ने अपने थरथराते होंठ मगलास पे लगा मदये और मगलास को मबना होंठों से हटाये हुए धीरे-धीरे मिस्की

और उसमें तैरती हुई मनी बड़े मज़े से पी गयी। सुनील आूँ खें िाड़े दे खता रहा गया। वो सपने में भी सोच नहीं सकता था

मकरुखसाना जैसी शर्मलली औरत ऐसी अश्लील हकलत भी कर सकती। लेमकन हवस का तुफ़ान सारी शमल और हया खतम

कर दे ता है।

ये दे खकर सुनील में नया जोश आ गया और उसने रुखसाना को गोद में उठा कर मबस्तर पे ललटा मदया। रुखसाना ने जो मज़ा

और खुशी उसे दी थी तो अब सुनील की बारी थी बदला चुकाने की। सुनील रुखसाना के ऊपर छा गया और उसके होंठों को

अपने होंठों में ले कर चूसने लगा। मिर धीरे-धीरे रुखसाना के गालों और गदल न को चूमते और अपनी जीभ मिराते हुए नीचे

सरका। रुखसाना के दोनों मम्मों को मसलते हुए उसके मनप्पलों को मु


ूँ ह में ले कर चुभलाया तो रुखसाने की सससकाररयाँ शुरू

हो गयीं। इसके बाद सुनील अचानक बेड से उतरा और मिस्की की बोतल ले कर वापस आ गया। रुखसाना के पैरों के

नज़दीक बैठ कर उसने रुखसाना का एक पैर उठा के सैंडल के स्ट्रैप के बीच में उसके पैर को चूम ललया। मिर रुखसाना को

उस पैर पे कुछ ठंडा बहता हुआ महसूस हुआ तो उसने दे खा सुनील उसके पैर और सैंडल पे शराब डाल-डाल के चाट रहा था।

सुनील ने एक-एक करके दोनों पैरों और सुनहरी सैंडलों के हर महस्से को शराब में चभगो-चभगो कर चाटा। सैंडलों के तलवे और

हील तक उसने शराब में चभगो कर अपनी जीभ से चाट कर साफ़ मकये। सुनील की इस हरकत से रुखसाना के सजस्म में हवस

की मबजललयाँ कड़कने लगीं। ऐसे ही धीरे-धीरे उसकी दोनों सुडौल चचकनी टाँगों और जाँघों पे थोड़ी-थोड़ी शराब डाल कर

चाटते हुए ऊपर बढ़ा। रुखसाना मस्ती में छटपटाने लगी थी और उसकी सससकाररयाँ लगातार मनकल रही थीं, "ओहहह मेरी

जान ऊ
ूँ ऊ
ूँ हह सुनीईईल जानू.... आूँ आआहहह!" उसके ससर के नीचे तमकया था तो वो नशीली आूँ खों से सुनील को ये सब करते

दे ख भी रही थी। जब सुनील का चेहरा उसकी चूत के करीब आया तो पहले ही मचल उठी लेमकन सुनील उसकी चूत को नज़र-


ं दाज़ करता हुआ ऊपर उसके पेट और नाचभ की तरफ़ गया और उसके पेट पर शराब उड़ेल कर चाटने लगा। रुखसाना को

अपने सजस्म पे जहाँ-जहाँ सुनील के चाटने का एहसास होता उन-उन महस्सों में उसे हवस की चचंगररयाँ भड़कती महसूस होने

लगती। जब उसकी नाफ़ में सुनील ने जाम की तरह शराब भर के उसे अपने होंठों से सुड़का तो रुखसाना सससकते हुए मस्ती

में जोर से मकलकारी मार उठी। इसके बाद सुनील ने उसकी चूचचयों और चूचचयों के बीच की घाटी में भी शराब डाल कर मिर

से उन्हें मसलते हुए चूमा-चाटा। मिर सुनील ने शराब का एक घू


ूँ ट अपने मु
ूँ ह में भरा और झुक कर रुखसाना के होंठों पे होंठ

रख मदये और अपने मु
ूँ ह में भरी शराब रुखसाना के मु
ूँ ह में उतार दी।

रुखसाना को सुनील की इन हरकतों में बेहद मज़ा आ रहा था और उसकी हवस परवान चढ़ती जा रही थी। आलखर में जब

सुनील उसकी चूत को शराब में नहला कर चूत के ऊपर और अ


ं दर अपनी जीभ डाल-डाल कर चाटने लगा तो रुखसाना मस्ती

में छटपटाते हुए अपनी टाँगें मबस्तर पे पटकने लगी और जोर-जोर से मस्ती में कराहते हुए अपना ससर दांये-बांये पटकने लगी

और कुछ ही दे र में उसकी चूत ने सुनील के मु


ूँ ह में और चेहरे पे पानी छोड़ मदया। स्ज़ंदगी में अपनी चूत चटवाने का रुखसाना

का ये पहला मौका था और उसे बेपनाह मज़ा आया था। दो ही मदन में सुनील ने रुखसाना की बरसों से मबयाबान स्ज़ंदगी को

ऐश-ओ-इशरत की बहारों से लखला मदया था। आज तक रुखसाना को इतना मज़ा कभी नहीं आया था। सैक्स ससफ़ल ल
ं ड के

चूत में अ
ं दर-बाहर चोदने तक महदूद नहीं होता ये बात रुखसाना को अब पता चल रही थी।
अब तक सुनील का ल
ं ड मिर से खड़ा होकर सख्त हो चुका था। वो एक बार मिर रुखसाना के ऊपर छाता चला गया और

कुछ ही पलों में वो रुखसाना की टाँगों के बीच में था और रुखसाना की टाँगें सुनील की जाँघों के ऊपर थी। सुनील ने अपनी

हथेली रुखसाना की हसास चूत पर रखी तो उसके मु


ूँ ह से आह मनकल गयी। उसकी हथेली का एहसास इतना भड़कीला था

मक रुखसाना ने मबस्तर की चादर को दोनों हाथों में थाम ललया। नीचे से उसकी चूत मिर से मचलते हुए पानी-पानी हो रही थी।

सुनील का ल
ं ड उसकी चूत की फ़ाँकों पर रगड़ खा रहा था। "रुखसाना भाभी आपकी चूत बहुत खूबसूरत है..!" सुनील ने

रुखसाना की चूत की फ़ाँकों को हाथों से िैलाया तो रुखसाना की मस्ती सातवें आसमान पर पहु
ूँ च गयी। हालाँमक रुखसाना

ने 'चूत-चुदाई' जैसे अल्फ़ाज़ अकसर अज़रा और फ़ारुख के मु


ूँ ह से सुने थे और वो इस तरह के लफ़ज़ों और गाललयों से


ं जान नहीं थी लेमकन रुखसाना के साथ कभी मकसी ने ऐसे अल्फ़ाज़ों में बात नहीं की थी और ना ही कभी रुससआना ने

ऐसे अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल मकया था। रुखसाना को मबल्कुल भी बुरा या अजीब नहीं लगा बलल्क सुनील के मु
ूँ ह से अपनी

चूत की इस तरह तारीफ़ सुनकर वो गुदगुदा गयी थी। "ऊ


ूँ म्म... खुदा के ललये ऐसी बातें ना कर सुनील!" रुखसाना मस्ती में बंद

आूँ खें मकये हुए लड़खड़ाती ज़ुबान में बोली।

"क्यों ना करू
ूँ भाभी... ऐसी बातें सुन कर ही तो चुदाई का मज़ा आता है..!" सुनील ने अपने ल
ं ड के सुपाड़ा से रुखसाना की चूत

की फ़ाँकों के बीच में रगड़ा तो रुखसाना को ऐसा लगा जैसे उसका मदल अभी धड़कना बंद कर दे गा। "उफ़्फ़्फ़...!" सुनील के

मु
ूँ ह से मनकला और उसने अपने ल
ं ड के सुपाड़े को ठीक रुखसाना की चूत के ऊपर रखा और उसके ऊपर झुकते हुए उसके

गालों को चूमा। "सीईईई...." रुखसाना के तो रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गयी। मिर सुनील उसके गालों को चूमते हुए

रुखसाना के होंठों पर आ गया। सुनील उसके होंठों को एक बार मिर से अपने होंठों में लेकर चूमने वाला था... ये सोचते ही

रुखसाना की चूत िुदकने लगी... ल


ं ड को जैसे अ
ं दर लेने के ललये मचल रही हो। मिर तो जैसे सुनील उसके होंठों पर टू ट पड़ा

और उसके होंठों को चूसने लगा। सुनील से अपने होंठ चुसवाने में और उसकी ज़ुबान के अपनी ज़ुबान के साथ गुथमगुथा

होने से रुखसाना को इस कदर लुत्फ़ ममल रहा था मक वो बेहाल होकर सुनील से ललपटती चली गयी। इसी दौरान सुनील का


ं ड भी धीरे-धीरे रुख़साना की चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। जैसे ही सुनील का ल
ं ड रुखसाना की चूत के गहराइयों

में उतरा तो उसने रुखसाना के होंठों को छोड़ मदया और झुक कर उसके दांये मम्मे के मनप्पल को मु
ूँ ह में भर ललया और जोर-

जोर से चूसने लगा। रुखसाना एक दम मस्त हो गयी और उसकी बाँहें सुनील की पीठ पर चथरकने लगी। सुनील मपछली रात

की तरह जल्दबाज़ी में नहीं था। वो कभी रुखसाना के होंठों को चूसता तो कभी उसके मम्मों को! उसने रुखसाना के मनप्पलों

को मनचोड़-मनचोड़ कर लाल कर मदया।

रुखसाना के होंठों में भी सरसराहट होने लगी थी और जब सुनील उसके होंठों को चूसना छोड़ता तो खून का दौरा उसके होंठों

में तेज हो जाता और तेज सरसराहट होने लगती। रुखसाना का मदल करता मक सुनील उसके होंठों को चूमता ही रहे... उसकी

ज़ुबान को अपने मु
ूँ ह में ले कर सुनील चूसता ही रहे..! रुक़साना की दोनों चूचचयों और मनप्पलों का भी यही हाल था लेमकन

सुनील के ललये उसके होंठों और दोनों चूचचयों और मनप्पलों को एक वक़्त में एक साथ चूसना तो मुममकन नहीं था। नीचे

रुखसाना की िुद्दी भी िुदिुदा रही थी। रुखसाना इतनी मस्त हो गयी थी मक उसकी िुद्दी सुनील के ल
ं ड पे ऐंठने लगी
जबमक अभी तक सुनील ने एक भी बार अपने मूसल ल
ं ड से उसकी चूत में वार नहीं मकया था। वो रुखसाना की चूत में ल
ं ड

घुसाये हुए उसके मम्मों और होंठों को बारी-बारी चूस रहा था और रुखसाना मस्ती में आूँ खें बंद मकये हुए सससकती रही और

मिर उसकी चूत के सब्र का बाँध टू ट गया। रुखसाना काँपते हुए झड़ने लगी पर सुनील तो अभी भी उसके मम्मों और होंठों

का स्वाद लेने में ही मगन था। सुनील को भी एहसास हो गया था मक रुखसाना मिर झड़ चुकी है।

मिर सुनील उठा और घुटनों के बल बैठ गया और अपने ल


ं ड को सुपाड़े तक रुखसाना की चूत से बाहर मनकाल-मनकाल कर


ं दर बाहर करने लगा। ल
ं ड चूत के पानी से चचकना होकर ऐसे अ
ं दर जाने लगा जैसे मक्खन में गरम छुरी। "भाभी दे खो ना

आपकी चूत मेरे ल


ं ड को कैसे चूस रही है..... आहहह दे खो ना..!" रुकसाना उसके मु
ूँ ह से मिर ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर मिर मस्ती में

भर गयी। वो पूरी रोशनी में सुनील के सामने अपनी टाँगें िैलाये हुए एक दम नंगी होकर उसका ल
ं ड अपनी चूत में ले रही थी

और सुनील उसकी चूत में अपने ल


ं ड को अ
ं दर-बाहर कर रहा था। "आहहह दे खो ना भाभी... आपकी चूत कैसे मेरे ल
ं ड को चूम

रही है... दे खो आहहह सच भाभी आपकी चूत बहुत गरम है!" सुनील झटके मारते हुए बोले जा रहा था।

रुखसाना की पहाड़ की चोमटयों की तरह तनी हुई गुदाज़ चूचचयाँ सुनील के धक्कों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। "ऊ
ूँ ऊ
ूँ हह

सुनील... मेरे मदलबर ऐसी बातें ना कर... मुझे शमल आती है!" रुखसाना की बात सुनकर सुनील ने दो तीन जोरदार झटके मारे

और अपना ल
ं ड चूत से बाहर मनकाल ललया। "दे खो ना भाभी... आपकी चूत की गरमी ने मेरे ल
ं ड के टोपे को लाल कर मदया

है!" सुनील की ये बात सुनकर रुखसाना मस्ती में और मचल गयी। रुखसाना ने अपनी मस्ती और नशे से भरी हुई आूँ खों से

नीचे सुनील की रानों की तरफ़ नज़र डाली तो उसे सुनील के ल


ं ड का सुपाड़ा नज़र आया जो मकसी टमाटर की तरह िूला

हुआ एक दम लाल हो रखा था। रुखसाना मन ही मन सोचने लगी मक सच में चूत के गरमी से उसके ल
ं ड का टोपा लाल हो

सकता है..!

"आप भी कुछ कहो ना भाभी प्लीज़ एक बार... आपको भी ज्यादा मज़ा आयेगा!" सुनील ने ज़ोर मदया तो रुखसाना िुसिुसा

कर बोली, "हाय अल्लाहा मुझे शरम आती है..!"

"ये शरम छोड़ कर करो ना चुदाई की बातें... भाभी आपको मेरी कसम!" सुनील की बात ने तो जैसे रुखसाना के मदल पर ही

छुरी चला दी हो। "मुझसे नहीं होगा सुनील... अपनी कसम तो ना दे ... प्लीज़ अब ऐसे तड़पा नहीं और जल्दी अ
ं दर कर... मुझसे

बदाश्त नहीं हो रहा!"

रुखसाना की चूत की फ़ाँकों पर अपने ल


ं ड को रगड़ते सुनील मिर बोला, "लेमकन ये तो बताओ मक क्या अ
ं दर करू
ूँ ?"

रुखसाना अपनी नशे और चुदास में बोझल आूँ खों से सुनील के ल


ं ड के सुपाड़ा को दे खते हुए बेकरार होके बड़ी मुसश्कल से

बोली, "ये... अपना ल...ल


ं ड... कर ना प्लीज़!" सुनील अभी भी उसकी चूत के बाहर अपने ल
ं ड का सुपाड़ा रगड़ रहा था। सुनील ने

मिर रुखसाना को तड़पाते हुए पूछा, "कहाँ डालू


ूँ अपना ल
ं ड भाभी... और क्या करू
ूँ खुल के बताओ ना।" अब रुकसाना का

सब्र जवाब दे गया और वो तमाम शमल और हया छोड़ कर नशे में लरजती आवाज़ में गुस्से से कड़ाक्ते बोली, "अरे मादरचोद

क्यों तड़पा रहा है मुझ.े .. ले अब तो डाल अपना ल


ं ड... मेरी चूत में और चोद मुझ.े .!"
"ये हुई ना बात भाभी... अब आपको रंडी बना के चोदने में मज़ा आयेगा!" कहते हुए सुनील ने अपने ल
ं ड को हाथ से पकड़ कर

रुखसाना की आूँ खों में झाँका और मिर ल


ं ड को उसकी चूत के छेद पर मटकाते हुए ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआय

अल्लाआहहह!" रुखसाना की िुद्दी की दीवारें जैसे मस्ती में झूम उठी हों.., मदल क्या होता है... ये आज उसे एहसास हो रहा था।

रुखसाना ने सुनील को कसकर अपने आगोश में लेते हुए अपने ऊपर खींचा और उसके आूँ खों में आूँ खें डाल कर बोली,

"सुनील मेरी जान! चोद मुझ.े .. इतना चोद मुझे मक मेरा सजस्म मपघल जाये... बना ले मुझे अपनी रंडी...!" ये कहते हुए उसके होंठ

थरथराये और चूत ऐंठी... जैसे मक आज उसकी चूत ने अपने अ


ं दर समाये ल
ं ड को अपना मदलबर मान ललया हो..!

रुखसाना की आरज़ू थी मक सुनील उसके होंठों को मिर बुरी तरह से चूमे... उसकी ज़ुबान को अपने मु
ूँ ह में लेकर चूसे... और ये

सोच कर ही रुखसाना के होंठ काँप रहे थे...! शायद सुनील भी उसके मदल के बात समझ गया था। वो रुखसाना के होंठों पर टू ट

पड़ा और अपने दाँतों से चबाने लगा... हल्के-हल्के धीरे से कभी उसके होंठ चूसता तो कभी होंठों को काटता... मीठा सा ददल

होंठों पर होता और मज़े के लहर उसकी चूत में दौड़ जाती। रुखसाना उससे चचपकी हुई उसके सजस्म में घुसती जा रही थी।

रुखसाना का मदल कर रहा था मक दोनों सजस्म एक हो जायें... एक होकर मिर कभी दो ना हों....! सुनील का ल
ं ड मिर उसकी

चूत की गहराइयों को नापने लगा था और अनकटे मोटे ल


ं ड के घस्से चूत में मकतने मज़ेदार होते हैं... ये रुखसाना ने पहले कभी

महसूस नहीं मकया था। उसकी मस्ती भरी ससस्काररयाँ और बढ़ने लगीं और पूरे कमरे में गू
ूँ जने लगीं।

रुखसाना अब खुद अपनी टाँगों को उठाये हुए सुनील से चुदवा रही थी। मस्ती के पल एक के बाद एक आते जा रहे थे।

सुनील के धक्कों से उसका पूरा सजस्म महल रहा था और मिर से वही मुक़ाम... चूत ने ल
ं ड को चारों ओर से कस ललया... और

अपना प्यार भरा रस सुनील के ल


ं ड की नज़र करने लगी। सुनील के वीयल ने भी मानो उसकी प्यासी मबयाबान चूत की जमीन

पर बाररश कर दी हो । रुखसाणा का पूरा सजस्म झटके खाने लगा। उसे सुनील की मनी अपनी चूत की गहराइयों में बहती हुई

महसूस होने लगी। बेइंतेहा लुत्फ़-अ


ं दोज़ तजुबा था... रुखसाना सोचने लगी मक क्यों उसने अब तक अपनी जवानी ज़ाया की।

रुखसाना कमज़ कम तीन बार झड़ चुकी थी। सुनील अब उसकी बगल में लेटा हुआ रुखसाना के सजस्म को सहला रहा था।

रुखसाना अचानक मबस्तर से उठने लगी तो सुनील ने उसका हाथ पकड़ कर रोक ललया। "कहाँ जा रही हो भाभी... एक बार

और करने दो ना?" उसने रुखसाना को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।

"उफ़्फ़्फ़ मुझे पेशाब लगी है... पेशाब तो करके आने दे ना... मिर कर लेना... वैसे खुल कर बोल मक क्या करना है!" रुखसाना

हंसते हुए बोली तो सुनील भी उसके साथ हंस पड़ा। रुखसाना पे अभी भी शराब का नशा हावी था। जब वो झूमती हुई मबस्तर

से उठ के नंगी ही टॉयलेट जाने लगी तो हाई हील के सैंडल में चलते हुए उसके कदम नशे में लड़खड़ा रहे थे। नशे में लड़खड़ाती

हुई मादरजात नंगी रुखसाना के बलखाते हुस्न को सुनील ने पीछे से दे खा तो उसके ल


ं ड में सनसनी लहर दौड़ गयी लेमकन मिर

वो रुखसाना को सहारा दे ने के ललये उठा मक कहीं वो मगर ना पड़े... क्योंमक बाथरूम और टॉयलेट कमरे से थोड़ा हट के छत के

दूसरी तरफ़ थे। जब सुनील लड़खड़ाती रुखसाना को सहारा दे कर कमरे से बाहर मनकल कर छत पर आया तो पास ही छत

की परनाली दे ख कर रुससना से बोला, "भाभी इस नाली पे ही मूत लो ना!"


"हाय अल्लाह... यहाँ तेरे सामने मैं... कैसे?" रुखसाना लरजती आवाज़ में नखरा करते हुए बोली तो सुनील मुस्कुराते हुए बोला,

"अब मुझसे शमाने के ललये बचा ही क्या है... यहीं कर लो ना?" रुखसाना को बहुत तेज पेशाब आया था और नशे की हालत में

उसने और ना-नुक्कर नहीं की। सुनील ने सहारा दे कर रुखसाना को परनाली के पास मूतने के ललये मबठा मदया। जैसे ही

उसकी चूत से मूत की धार मनकली तो बहुत तेज आवाज़ हुई। नशे में भी रुखसाना के चेहरे पे शमल की लाली आ गयी। सुनील

बड़े गौर से रुखसाणा को मूतते दे ख रहा था। चाँदनी रात में रुखसाना का नंगा सजस्म दमक रहा था। उसके बाल थोड़े मबखर

गये थे लेमकन बालों में झुमर अभी भी मौजूद था। सोने के झूमर... गले का हार... क
ं गन और सुनहरी सैंडल भी चाँदनी में चमक

रहे थे। करीब एक ममनट तक रुखसाना की चूत से मूत की धार बाहती रही और वो होंठों पे शमीली सी मुस्कान ललये सुनील

की नज़रों के सामने मूतती रही। ये नज़ारा दे ख कर सुनील का ल


ं ड मिर टनटनाने लगा। रुखसाना का मूतना बंद होने के बाद

सुनील उसका हाथ पकड़ के उसे खड़ा करते हुए बोला, "भाभी मुझे भी मूतना है... अब आप मेरी भी तो मदद कर दो ना!"

"तो मूत ले ना... मैं क्या मदद करू


ूँ गी इसमें!" रुखसाना बोली तो सुनील उसे छत की मुंडेर के सहारे खड़ा करके उसकी आूँ खों में

झाँकते हुए शरारत से बोला, "मेरा ल


ं ड पकड़ कर करवा दो ना भाभी!" मिर सुनील के ल
ं ड को अपनी काँपती उंगललयों में पकड़

कर रुखसाना ने उसे मोरी की तरफ़ करते हुए झटका मदया और मुस्कुराते हुए बोली, "हाय अल्लाह बड़ा बेशमल और शरारती है

तू... ले कर अब....!" सुनील के ल


ं ड से पेशाब की धार मनकली तो रुखसाना का पूरा सजस्म काँप गया और उसकी नज़रें सुनील

के ल
ं ड और उसमें से मनकलती पेशाब की धार पे जम गयीं और साँसें भी मिर से तेज हो गयी।

मूतने के बाद दोनों वापस कमरे में आये और मबस्तर पे लेटते ही सुनील ने रुखसाना का हाथ पकड़ कर उसे अपने ऊपर खींच

ललया। उस रात उसने रुखसाना को मिर से चोदा। इस बार रुखसाना के कहने पे सुनील ने उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोदा

क्योंमक रुखसाना भी वैसे ही चुदना चाहती थी जैसे उसने अज़रा को सुनील से चुदते दे खा था। करीब एक बजे दोनों थक कर

एक दूसरे के आगोश में नंगे ही सो गये। सुबह सढ़े चार बजे रुखसाना की आूँ ख खुली तो उसने सुनील को जगा कर कहा मक

वो उसे नीचे उसके बेडरूम तक छोड़ आये। सुनील नंगी रुखसाना को ही सहारा दे कर नीचे ले गया क्योंमक इस वक़्त इस

हालत में शरारा पहनने की तो रुखसाना की सलामहयत थी नहीं। अपने बेडरूम में आकर उसने एक नाइटी पहनी और सलील

की बगल में लेट कर सो गयी। सुबह वो दे र से उठी। उसके सजस्म में मीठा-मीठा सा ददल हो रहा था। गमनमत थी मक सलील

अभी भी सोया हुआ था।

सुनील हर रोज़ आठ बजे तक नाश्ता करके स्टेशन चला जाता था। वो भी आज नौ बजे नीचे आया और तीनों नाश्ता करने

लगे। आज रुखसाना मबल्कुल नहीं शमा रही थी बलल्क सलील की मौजूदगी में नाश्ता करते हुए उसने सुनील के साथ आूँ खों-

आूँ खों में इशारों से ही काफ़ी बातें की। नाश्ते के बाद मकचन में बतलन रखते वक़्त जब दोनों अकेले थे तो सुनील ने रुखसाना

को अपने आगोश में भर कर उसके होंठों को चूम ललया। रुक़साना भी उससे ललपटते हुए बोली, "सुनील... आज छुट्टी ले ले ना

प्लीज़... नज़ीला भाभी तो बारह बजे तक आकर सलील को ले जायेंगी... उसके बाद तू और मैं...!"
"हाय भाभी... चाहता तो मैं भी ह
ूँ लेमकन आज छुट्टी नहीं ले सक
ूँ ु गा... लेमकन इतना वादा करता ह
ूँ मक शाम को जल्दी आ

जाऊ
ूँ गा और मिर तो पूरी शाम और पूरी रात जब तक आप कहोगी आपकी सेवा करु
ूँ गा!" सुनील उसका गाल सहलाते हुए

बोला। "ठीक है... मुझे अपने मदलबर का इंतज़ार रहेगा... इसका ख्याल रखना!" रुखसाना पैंट के ऊपर से ही सुनील का ल
ं ड

दबाते हुए बोली। एक रात में वो बेशमल होकर मबल्कुल खुल गयी थी। उसके बाद सुनील ये कह कर चला गया मक वो आज

शाम का खाना ना बनाये। उसके बाद नज़ीला भी आकर सलील को ले गयी। रुखसाना ने घर का काम मनपटाया और ऊपर

जा कर सुनील का कमरा भी ठीकठाक मकया और मिर बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगी। रुखसाना को एक-एक पल

बरसों जैसा लग रहा था। फ़ारूक पाँच मदन बाद आने वाला था और सामनया भी अपने मामा के घर से जल्दी ही वामपस आने

वाली थी।

सुनील ने जल्दी आने का वादा मकया था लेमकन मिर भी उसे आते-आते पाँच बज गये। रुखसाना तब तक सज-संवर कर

तैयार हो चुकी थी और थोड़ी-थोड़ी दे र में बाहर गेट तक जा-जा कर दे ख रही थी। सुनील के घर में दालखल होते ही दोनों एक

दूसरे से ललपट गये। मिर सुनील फ्रेश होने के ललये ऊपर जाने लगा तो खाने के पैकेट टेबल से उठाते हुए रुखसाना ने ज़रा

मायूस से लहज़े में पूछा, "सुनील आज तू वो बोतल... मतलब मिस्की नहीं लाया?" रुखसाना की बात सुनकर सुनील को

यकीन नहीं हुआ। आज रुखसाना का खुलापन और ये बदला हुआ अ


ं दाज़ दे ख कर सुनील को बेहद खुशी हुई। "क्या बात है

भाभी जान.... कल तो आप नखरे कर रही थीं और आज खुद ही?" सुनील उसे छेडते हुए बोला। "कल से पहले कभी पी नहीं थी

ना... मुझे अ
ं दाज़ा नहीं था मक शराब के नशे की खुमारी इतनी मस्ती और सुकून अमेज़ होती है!" रुकसाना ने कहा तो सुनील ने

अपने बैग में से रॉयल- स्टैग मिस्की की बोतल मनकाल कर रुखसाना के सामने टेबल पे रख दी।

मिर अगले तीन मदनों तक हर रोज़ शाम को सुनील के घर आते ही दोनों शराब के नशे में चूर नंगे होकर रंगरललयों में डु ब जाते।

दे र रात तक रुखसाना के बेडरूम में खूब चुदाई और ऐश करते। रुखसाना तो जैसे इतने सालों का चुदाई की कमी पूरा कर

लेना चाहती थी और पुरजोश खुल-कर उसने सुनील के जवान ल


ं ड से चुदाई का खूब मज़ा ललया।

मिर चार मदन बाद सुनील के स्टेशान जाने के बाद डोर-बेल बजी। रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला तो बाहर सामनया और

उसके मामा खड़े थे। रुखसाणा ने सलाम मकया और उनको अ


ं दर आने को कहा। सामनया के मामा और उनके घर का

हालचाल पूछने के बाद रुखसाना ने उनके ललये चाय नाश्ते के इंतज़ाम मकया। चाय नाश्ते के बाद सामनया के मामा ने वापस

जाने का कहा तो रुखसाना ने फ़ॉमैललटी के तौर पे उन्हें थोड़ा और रुकने को कहा पर वो नहीं माने। उन्होंने कहा मक वो ससफ़ल

सामनया को छोड़ने की खाचतर ही आये थे क्योंमक सामनया के कॉलेज की छुट्टीयाँ खतम हो रही थीं और कल से उसकी क्लासें

भी शुरू होने वाली थी।

सामनया के आने से घर में रौनक जरूर आ गयी थी पर रुकसाना को एक गम ये था मक अब उसे और सुनील को मौका

आसानी से नहीं ममलेगा। मपछले पाँच मदनों में हर रोज़ शाम से दे र रातों तक बार-बार चुदने के बाद रुखसाना को तो जैसे

सुनील के ल
ं ड की आदत सी लग गयी थी। उस मदन शाम को जब बाहर डोर-बेल बजी तो सामनया ने जाकर दरवाजा खोला।

सामनया ने सुनील को सलाम कहा और सुनील अ


ं दर आकर चुपचाप ऊपर चला गया। उस मदन कुछ खास नहीं हुआ।
सामनया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और उसे बस से जाना पड़ता था। कईं बार उसे दे र भी हो जाती थी। अगले मदन

सुनील सुबह जब नाश्ता करने नीचे आया तो रुखसाना ने गौर मकया मक सामनया बार-बार चोर नज़रों से सुनील को दे ख रही

थी। सामनया उस वक़्त कॉलेज जाने के ललये तैयार हो चुकी थी। उसने सफ़ेद रंग की कुती के साथ नीले रंग की बेहद टाइट

सस्कनी-जींस पहनी हुई थी सजसमें उसका सैक्सी मिगर साफ़ नुमाया हो रहा था। उसने सफ़ेद रंग के करीब तीन इंच ऊ
ूँ ची हील

वाले सैंडल भी पहने हुए थे सजससे टाइट जींस में उसके चूतड़ और ज्यादा बाहर उभड़ रहे थे।

उस मदन सामनया कुछ ज्यादा ही सुनील की तरफ़ दे ख रही थी। इस दौरान कभी जब सुनील सामनया की तरफ़ दे खता तो वो

नज़रें झुका कर मुस्कुराने लग जाती। सुनील ने पहले अज़रा की चुदी चुदाई िुद्दी मारी थी और मिर बाद में रुखसाना की

बरसों से मबना चुदी चूत। सुनील ने उससे पहले कभी चुदाई नहीं करी थी लेमकन उसे जानकारी तो पूरी थी। इस बात का तो

उसे पता चल गया था मक औरत सजसके बच्चे ना हो और जो कम चुदी हो उसकी चूत ज्यादा टाइट होती है। और मिर जब एक

जवान लड़के को चुदाई की लत्त लग जाती है तो वो कहीं नहीं रुकती... खासतौर पर उन लड़कों के ललये सजन्होंने ऐसी औरतों

से सजस्मानी ररश्ते बनाये हों... जो उम्र में उनसे बड़ी हों और जो उन्हें मकसी तरह के बंधन में ना बाँध सकती हों... जैसे की

रुखसाना। वो जानता था मक रुखसाना उसे मकसी तरह अपने साथ बाँध कर नहीं रख सकती। अब वो उस आवारा साँड मक

तरह हो गया था सजसे ससफ़ चूत चामहये थी... हर बार नयी और मबना मकसी बंधन की!

रुखसाना ने उस मदन सामनया के बताव पे ज्यादा तवज्जो नहीं दी क्योंमक वो तो खुद सामनया की नज़र बचा कर सुनील के

साथ नज़रें ममला रही थी। सुनील ने नाश्ता मकया और बाइक बाहर मनकालने लगा तो सामनया दौड़ी हुई मकचन में आयी और

रुखसाना से बोली, "अम्मी सुनील से कहो ना मक वो मुझे कॉलेज छोड़ आये!" रुखसाना ने बाहर आकर सुनील से पूछा मक

क्या वो सामनया को कॉलेज छोड़ सकता है तो सुनील ने भी हाँ कर दी। सुनील ने बाइक स्टाटल की और सामनया उसके पीछे

बैठ गयी। सुनील के पीछे बैठी सामनया बेहद खुश थी। भले ही दोनों में अभी कुछ नहीं था पर सामनया सुनील की पसलनैललटी

से उसकी तरफ़ बेहद आकर्षलत थी। दोनों में कोई भी बातचीत नहीं हो रही थी। सामनया का कॉलेज घर से काफ़ी दूर था और

कॉलेज से घर तक के रास्ते में बहुत सी ऐसी जगह भी आती थी जहाँ पर एक दम मवराना सा होता था। थोड़ी दे र बाद कॉलेज

पहु
ूँ चे तो सामनया बाइक से नीचे उतरी और अपने बैक-पैक को अपने कपड़े पर लटकाते हुए सुनील को थैंक्स कहा। सुनील ने

सामनया की तरफ़ नज़र डाली। उसकी सुडौल लम्बी टाँगें और माँसल जाँघें स्कीनी जींस में कसी हुई नज़र आ रही थी... उसके

मम्मे उसकी कुती के अ


ं दर ब्रा में एक दम कसे हुए पहाड़ की चोमटयों की तरह तने हुए थे। सुनील की हम-उम्र सामनया अपनी

स्ज़ंदगी के बेहद नज़ुक मोड़ पर थी।

जब उसने सुनील को अपनी तरफ़ यू


ूँ घूरते दे खा तो वो ससर झुका कर मुस्कुराने लगी और मिर पलट कर कॉलेज की तरफ़

जाने लगी। सुनील वहाँ खड़ा सामनया को अ


ं दर जाते हुए दे ख रहा था... दर असल वो पीछे सामनया के चूतड़ों को घूर रहा था।

सामनया ने अ
ं दर जाते हुए तीन-चार बार पलट कर सुनील को दे खा और हर बार वो शमा कर मुस्कुरा दे ती। तभी सामनया के

सामने से दो लड़के गुजरे और कॉलेज से बाहर आये। दोनों आपस में बात कर रहे थे। उन्हें नहीं पता था मक सुनील सामनया के

साथ आया है। वो दोनों सुनील के करीब ही खड़े थे जब उनमें से एक लड़का बोला, "यार ये सामनया तो एक दम पटाखा होती
जा रही है... साली के मम्मे दे ख कैसे गोल-गोल और बड़े हो गये हैं..!" तो दूसरा लड़का बोला, "हाँ यार साली की गाँड पर भी अब

बहुत चबी चढ़ने लगी है... दे खा नहीं साली जब हाई हील वाली सैंडल पहन के चलती है तो कैसे इसकी गाँड मटकती है... बस

एक बार बात बन जाये तो इसकी गाँड ही सबसे पहले मारु


ूँ गा!"

सुनील खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा था पर सुनील कुछ बोला नहीं। उसने बाइक स्टाटल की और काम पर चला गया।

सुनील के मदमाग में उन लड़कों की बातें घूम रही थी और उनकी बातें याद करते हुए उसका ल
ं ड उसकी पैंट में अकड़ने लगा

था। सुनील ने करीब एक बजे तक काम मकया और मिर ल


ं च मकया। सुबह से उसका ल
ं ड बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था।

सुनील ने एक बार घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और मिर अज़मल से मकसी जरूरी काम का बहाना बना कर दो घंटे की छुट्टी

लेकर बाहर आ गया। उसने अपनी बाइक स्टाटल की और घर के तरफ़ चल पढ़ा। उन लड़कों की बातों ने सुनील का मदमाग

सुबह से खराब कर रखा था... वो जानता था मक रुखसाना इस समय घर पे अकेली होगी। सुनील की बाइक हवा से बातें कर

रही थी और पंद्रह ममनट में वो घर के बाहर था। उसने घर के गेट के बाहर सड़क पे ही बाइक लगायी और अ
ं दर जाकर डोर-बेल

बजायी। सुनील ने रुखसाना को मनकलने से पहले ही िोन कर मदया था इसललये वो भी तैयार होकर बेकरारी से सुनील के

आने का इंतज़ार कर रही थी। घंटी की आवाज सुनते ही उसने फ़ौरन दरवाजा खोल मदया।


ं दर दालखल होते ही सुनील ने रुखसाना को पीछे से अपनी बाहों में भर ललया। "आहहह दरवाजा तो बंद कर लेने दे !"

रुखसाना मचलते हुए बोली। मिर सुनील ने रुखसाना को अपनी बाहों में उठा ललया और उसे उठा कर ड्राइंग रूम में ले आया।

मिर उसे सोफ़े के सामने खड़ी करते हुए रुखसाना को पीछे से बाहों में भर ललया और मेरे उसकी गदल न पर अपने होंठों को

रगड़ने लगा। रुकसाना ने मस्ती में आकर अपनी आूँ खें बंद कर लीं। "हाय सुनील मेरी जान... अच्छा है तू आ गया... मैं तो कल

पूरी रात अपने इस मदलबर की याद में तड़पती रही!" रुखसाना उसके ल
ं ड को पैंट के ऊपर से दबाते हुए बोली। सुनील कुछ

नहीं बोला। वो शायद मकसी और ही धुन में था। उसने रुखसाना की गदल न पर अपने होंठों को रगड़ना ज़ारी रखा और मिर एक

हाथ से रुखसाना की गाँड को पकड़ कर मसलने लगा।

जैसे ही सुनील ने अपने हाथों से रुखसाना के चूतड़ों को दबोच कर मसला तो रुखसाना की तो साँसें ही उखड़ गयी। आज वो

बड़ी बेददी से रुखसाना के दोनों चूतड़ों को अलग करके िैला रहा था और मसल रहा था। उसके कड़क मदाना हाथों से अपनी

गाँड को यू
ूँ मसलवाते हुए रुखसाना एक दम हवस ज़दा हो गयी उसकी आूँ खें बंद होने लगी... मदल जोर-जोर से धड़कने लगा।

मिर अचानक ही सुनील के दोनों हाथ रुखसाना की सलवार के आगे जबरदन तक पहु
ूँ च गये। रुकसाना ने आज इलासस्टक

वाली सलवार पहनी हुई थी। जैसे ही सुनील को एहसास हुआ मक रुखसाना ने इलासस्टक वाली सलवार पहनी हुई है तो उसने

दोनों तरफ़ सलवार में अपनी उंगललयों को ि


ं सा कर रुखसाना की सलवार नीचे सरका दी। रुखसाना ने नीचे पैंटी भी नहीं

पहनी थी और जैसे ही सलवार नीचे हुई तो सुनील ने उसे सोफ़े की ओर ढकेला। रुखसाना ने हमेशा की तरह ऊ
ूँ ची पेंससल

हील की सैंडल पहनी हुई थी तो सुनील के धकेलने से उसका बैलेंस मबगड़ गया और सोफ़े की और लुढ़क गयी। रुखसाना ने

सोफ़े की बैक पर अपने दोनों हाथ जमाते हुए दोनों घुटनों को सोफ़े पर रख ललया।
रुखसाना सोचने लगी मक, "हाय आज क्या सुनील यहाँ ड्राइंग रूम में ही मुझे नंगी करके इस तरह मुझे चोदे गा!" ये सोच कर

रुखसाना के चेहरे पर शमल से सुखी छा गयी। "ओहहहह सुनील यहाँ मत करो ना... बेडरूम में चलते हैं...!" रुकसाना ने सससकते

हुए मस्ती में लड़खड़ाती हुई ज़ुबान में सुनील को कहा। पर सुनील नहीं माना और उसने पीछे से रुखसाना की कमीज़ का

पल्ला उठा कर उसकी कमर पर चढ़ा मदया। रुखसाना की सलवार पहले से ही उसकी रानों में अटकी हुई थी। मिर रुखसाना

को कुछ सरसराहट की आवाज़ आयी तो उसने गदल न घुमा कर पीछे दे खा मक सुनील अपनी पैंट की जेब में से कोई ट्यूब सी

मनकाल रहा है सजसपे "ड्यूरक्स


े के-वॉय जैली" ललखा था। सुनील ने ये अभी घर आते हुए रास्ते में केममस्ट की दुकान से खरीदी

थी। मिर सुनील ने अपनी पैंट और अ


ं डरमवयर नीचे मकया और धीरे से काफ़ी सारी के-वॉय जैली अपने ल
ं ड पर मगरा कर उसे

मलने लगा। रुखसाना अपने चेहरे को पीछे घुमा कर अपनी नशीली आूँ खों से उसे ये सब करता हुआ दे ख रही थी। मिर

सुनील ने जैली की उस ट्यूब को वहीं सोफ़े पर एक तरफ़ उछाल मदया मिर वो रुखसाना के पीछे आकर खड़ा हुआ और

अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ कर झुका और अगले ही पल उसके ल


ं ड का मोटा गरम सुपाड़ा रुकसाना की चूत की फ़ाँकों

को फ़ैलाता हुआ उसकी चूत के छेद पर आ लगा।

रुखसाना को ऐसा लगा मानो चूत पर मकसी ने सुलगती हुई सलाख रख दी हो। उसने सोफ़े की बैक को कसके पकड़ ललया।

सुनील ने रुखसाना के दोनों चूतड़ों को पकड़ कर जोर से िैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और सुनील का ल
ं ड उसकी चूत

को चीरता हुआ अ
ं दर घुसता चला गया। रुखसाना एक दम से सससक उठी, "हाआआआय अल्लाआआआहहह .. मैं

मरीईईईई!" सुनील ने अपना ल


ं ड जड़ तक उसकी चूत में घुसेड़ा हुआ था। सुनील ने वैसे ही झुक कर मिर से सोफ़े पे पड़ी के-

वॉय जैली की वो ट्यूब उठायी और रुखसाना की गाँड के ऊपर करते हुए के-वॉय जैली को मगराने लगा। जैसे ही जैली की

मपचकारी रुखसाना की गाँड के छेद पर पड़ी तो वो बुरी तरह से मचल उठी। सुनील ने ट्यूब को नीचे रखा और मिर अपना ल
ं ड

धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अ


ं दर-बाहर करने लगा।

गाँड से बहती हुई जैली नीचे सुनील के ल


ं ड और रुखसाना की चूत पर आने लगी। तभी सुनील ने वो मकया सजससे रुखसाना

एक दम से उचक सी गयी पर सुनील ने उसे उसकी कमर से कसके पकड़ ललया। दर असल सुनील ने अपनी उंगली को

रुखसाना की गाँड के छेद पर रगड़ना शुरू कर मदया। रुखसाना की कमर को पकड़ते ही सुनील ने तीन चार जबरदस्त वार

उसकी चूत पर मकये तो चूत बेहाल हो उठी और मस्ती आलम में रुखसाना में मुज़ामहमत करने की ताकत नहीं बची थी।

सुनील ने मिर से रुखसाना की गाँड को दोनों हाथों से दबोच कर िैलाया और मिर अपने दांये हाथ के अ
ं गूठे से रुखसाना की

गाँड के छेद को कुरेदने लगा।

रुखसाना की कमर उसके अ


ं गूठे की हकलत के साथ एक के बाद एक झटके खाने लगी। सुनील का ल
ं ड एक रफ़्तार से

रुखसाना की चूत के अ
ं दर बाहर हो रहा था और उसका अ
ं गूठा अब रुखसाना की गाँड के छेद को और जोर से कुरेदने लगा

था। रुखसाना इतनी गरम हो चुकी थी मक अब वो सुनील की मुखाललफ़त करने की हालत में नहीं थी। वो जो भी कर रहा था

रुखसाना मज़े से सससकते हुए उसका ल


ं ड अपनी चूत में लेते हुए करवा रही थी। सुनील ने उसकी गाँड के छेद को अब उंगली

से दबाना शुरू कर मदया। के-वॉय जैली की वजह से और सुनील की उंगली की रगड़ की वजह से रुखसाना की गाँड का क
ं ु वारा
छेद नरम होने लगा और उसे अपनी गाँड के छेद पर लज़्ज़त-अमेज़ गुदगुदी होने लगी थी सजसे महसूस करके उसकी चूत और

ज्यादा पानी बहा रही थी। बेहद मस्ती के आलम में रुखसाना को इस वक़्त कहीं ना कहीं शराब की तलब हो रही थी क्योंमक

चार-पाँच मदन उसने शराब के नशे की खुमारी में ही सुनील के साथ चुदाई का खूब मज़ा लूटा था और चुदाई के लुत्फ़ और

मस्ती में शराब के नशे की मस्ती की अमेसज़श से रुखसाना को जन्नत का मज़ा ममलता था। मिर सुनील ने अपनी उंगली को

धीरे-धीरे से रुखसाना की गाँड के छेद पर दबाया और उंगली का अगला महस्सा रुखसाना की गाँड के छेद में उतरता चला

गया। पहले तो रुखसाना को कुछ खास महसूस नहीं हुआ पर जैसे ही सुनील की आधे से थोड़ी कम उंगली उसकी गाँड के छेद

में घुसी तो रुखसाना को तेज ददल महसूस हुआ। "आआहहह सुनीईईल मत कर.... ददल हो रहा है!" रुखसाना चींखी तो सुनील

शायद समझ गया मक रुखसाना की गाँड का छेद एक दम कोरा है। वो कुछ पलों के ललये रुका और मिर उतनी ही उंगली

रुखसाना की गाँड के छेद के अ


ं दर बाहर करने लगा।

सुनील ने रुखसाना की चूत से अपने ल


ं ड को बाहर मनकाला और मिर गाँड के छेद से उंगली को मनकाल कर चूत में पेल मदया

और चूत में अ
ं दर-बाहर करते हुए घुमाने लगा। "हाआआय मेरे जानू ये क्या कर रहे हो तुम ओहहह... अपना ल
ं ड... मेरा प्यारा

मदलबर... उसे मेरी चूत में वापस डाल ना...!" अपनी चूत में अचानक से मोटे ल
ं ड की जगह पतली सी उंगली महसूस हुई तो

रुखसाना तड़पते हुए बोली। सुनील ने मिर से उसकी चूत में से उंगली बाहर मनकाली और चूत में अपना मूसल ल
ं ड घुसड़
े कर

धक्के लगाने शुरू कर मदये। उसकी उंगली रुखसाना की चूत के पानी से एक दम तरबतर हो चुकी थी। उसने मिर उसी उंगली

को रुखसाना की गाँड के छेद पर लगाया और रुखसाना की चूत के पानी को गाँड के छेद पर लगाते हुए तर करने लगा।

रुखसाना को ये सब थोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेमकन मस्ती में उसने ज्यादा ध्यान नहीं मदया। सुनील ने मिर से अपनी

उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में घुसेड़ दी लेमकन इस बार सुनील ने कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी मदखायी और अगले ही पल

उसकी पूरी उंगली रुखसाना की गाँड के छेद में थी।

रुखसाना ददल से एक दम कराह उठी। भले ही ददल बहोत ज्यादा नहीं था पर रुखसाना को अब तक सुनील के इरादे का अ
ं दाज़ा

हो चुका था और वो सुनील के इरादे से घबरा कर वो कराहते हुए बोली, "हाय सुनील... ये... ये क्या कर रहा है जानू... वहाँ से

उंगली मनकाल ले... बहोत ददल हो रहा है!" पर सुनील ने उसकी कहाँ सुननी थी। सुनील अब उस उंगली को रुखसाना की गाँड

के छेद में अ
ं दर बाहर करने लगा। रुखसाना को थोड़ा ददल हो रहा था पर कुछ ही पलों में उसकी गाँड का छेद नरम और मिर

और ज्यादा नरम पड़ता गया। उसकी चूत के पानी और के-वॉय जैली ने गाँड के छेद के छाले की सख्ती बेहद कम कर दी थी।

अब तो सुनील मबना मकसी दुश्वारी के रुखसाना की गाँड को अपनी उंगली से चोद रहा था। रुखसाना भी अब मिर से एक

दम मस्त हो गयी। हवस और मस्ती के आलम में रुखसाना को ये भी एहसास नहीं हुआ मक कब सुनील की दो उंगललयाँ

उसकी गाँड के छेद के अ


ं दर-बाहर होने लगी। कभी ददल तो कभी मज़ा... कैसा अजीब था ये चुदाई का मज़ा। मिर सुनील ने

अपना ल
ं ड रुखसाना की चूत से बाहर मनकला और उसकी गाँड के छेद पर मटका मदया। उसकी इस हकलत से रुखसाना एक

दम दहल गयी, "नहीं सुनील.... खुदा के ललये... ऐसा ना कर... मैं ददल बदाश्त नहीं कर सक
ूँ ु गी..!"
लेमकन सुनील तो जैसे रुखसाना की बात सुनने को तैयार ही नहीं था। उसने दो तीन बार अपने ल
ं ड का सुपाड़ा रुखसाना की

गाँड के छेद पर रगड़ा और मिर धीरे-धीरे उसकी गाँड के छेद पर दबाता चला गया। जैसे ही उसके सुपाड़े का अगला महस्सा

उसकी गाँड के छेद में उतरा तो रुखसाना मबदक कर आगे हो गयी... ददल बहद तेज था।" नहीं सुनील नहीं... मेरे जानू मुझसे नहीं

होगा... प्लीज़ तुझे हो क्या गया है...?" रुससाना अपने चूतड़ों को एक हाथ से सहलाते हुए ररररया कर बोली। रुखसाना ने अज़रा

को कईं दफ़ा फ़ारूक से अपनी गाँड मरवाते हुए दे खा था लेमकन रुखसाना को इस बात का डर था मक एक तो उसकी गाँड

मबल्कुल क
ं ु वारी थी और मिर फ़ारूक और सुनील के ल
ं ड का कोई मुकाबला नहीं था। सुनील का तगड़ा-मोटा आठ इंच ल
ं बा

मूसल जैसा ल
ं ड वो कैसे बदाश्त करेगी अपनी कोरी गाँड में!

"भाभी जान कुछ भी हो... मुझे आज आपकी गाँड मारनी ही है...!" ये कह कर उसने रुखसाना को सोफ़े से खड़ा मकया और

उसकी रानों में ि


ं सी सलवार खींच कर उतार दी। मिर उसने रुखसाना को खींचते हुए सामने बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक

मदया। मिर रुखसाना की टाँगों को पकड़ कर उसने उठाया और अपने क


ं धों पर रख ललया और एक हाथ से अपने ल
ं ड को

पकड़ कर उसकी गाँड के छेद पर मटका मदया। रुखसाना समझ चुकी थी मक अब सुनील उसकी एक नहीं सुनने वाला।

"आमहस्ता से करना जानू!" रुखसाना ने अपने हाथों में मबस्तर की चादर को दबोचते हुए कहा और अगले ही पल गच्च की एक

तेज आवाज़ के साथ सुनील का लौड़ा रुखसाना की गाँड के छेद को चीरता हुआ आधे से ज्यादा अ
ं दर घुस गया। ददल के मारे

रुखसाना का पूरा सजस्म ऐंठ गया... आूँ खें जैसे पत्थरा गयीं... मु
ूँ ह खुल गया... और वो साँस लेने के ललये तड़पने लगी। उसे

यकीन नहीं हो रहा था मक सुनील उसके साथ इतनी वहसशयत से पेश आयेगा।

"बस भाभी हो गया.. बसऽऽऽ हो गया..!" और सुनील ने उतने ही आधे ल


ं ड को रुखसाना की गाँड के अ
ं दर-बाहर करना शुरू कर

मदया। उसके हर धक्के के साथ रुखसाना को अपनी गाँड के छेद का छल्ला भी अ


ं दर-बाहर ल्ख
ं चता हुआ महसूस हो रहा था

पर सुनील का ल
ं ड के-वॉय जैली और रुखसाना की चूत के पानी से एक दम भीगा हुआ था। इसललये गाँड का छेद थोड़ा नरम

हो गया था और मिर एक ममनट बीता... दो ममनट बीते... मिर तीन ममनट मकसी तरह बीते और रुखसाना की गाँड में उठा ददल

अब ना के बराबर रह गया था। अब सुनील के ल


ं ड के सुपाड़े की रगड़ से रुखसाना को अपनी गाँड के अ
ं दर की दीवारों पर

मज़ेदार एहसास होने लगा था। रुखसाना ज़ोर-ज़ोर से "आआहह ओहह" करती हुई ददल और मस्ती में सससकने लगी।

"अभी भी ददल हो रहा है क्या भाभी!" सुनील ने अपने ल


ं ड को और अ
ं दर की ओर ढकेलते हुए पूछा। "आूँ आूँ हहह हाँ थोड़ा सा

हो रहा है... ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह लेमकन अब मज़ाआआ भी आआआूँ रहा है आआआहहह...!" रुखसाना सससकते हुए बोली। धीरे-धीरे

अब सुनील का पूरा का पूरा ल


ं ड रुखसाना की गाँड के अ
ं दर-बाहर होने लगा और ददल और मस्ती की तेज़-तेज़ लहरें अब

रुखसाना के सजस्म में दौड़ रही थी। काले रंग के ऊ


ूँ ची हील वाले सैंडल में रुखसाना के गोरे-गोरे पैर जो सुनील के क
ं धों पर थे

उन्हें रूकसाना ने मस्ती में सुनील की गदल न के पीछे कैंची बना कर कस ललया। रुखसाना का एक हाथ उसकी खुद की चूत के


ं गूर को रगड़ रहा था। धीरे-धीरे सुनील के धक्कों की रफ़्तार बढ़ने लगी और मिर वो रुखसाना की गाँड के अ
ं दर झड़ने लगा।

उसके साथ ही रुखसाना की चूत ने भी धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ मदया। सुनील ने अपना ल
ं ड बाहर मनकाला और रुखसाना की

कमीज़ के पल्ले से उसे पोंछ कर उसने आगे झुक कर रुखसाना के होंठों पे चूमा और मिर ये बोल कर कमरे से बाहर चला
गया मक उसे जल्दी से वापस स्टेशन पहु
ूँ चना है। रुखसाना थोड़ी दे र लेटी रही और सुनील भी वापस चला गया। थोड़ी दे र बाद

रुखसाना उठी और बाथरूम में जाकर अपनी चूत और गाँड को अच्छे से साफ़ मकया और बाहर आकर अपनी सलवार पहन

कर मिर लेट गयी। उसकी गाँड में मीठी-मीठी सी कसक अभी भी उठ रही थी।

शाम को सुनील घर वापस आया तो सामनया भी कॉलेज से वापस आ चुकी थी। सुनील ऊपर चला गया। शाम के साढ़े पाँच

बज रहे थे और लाइट एक बार मिर से गुल थी। सामनया पढ़ने के बहाने ऊपर छत पर आकर कुसी पर बैठ गयी। रुखसाना

नीचे काम में मसरूफ़ थी। जब सुनील ने सामनया को बाहर छत पर दे खा तो वो भी रूम से मनकल कर बाहर आ गया और हवा

खाने के ललये इधर उधर टहलने लगा। सामनया चोर नज़रों से बार-बार सुनील की ओर दे ख रही थी।

"कैसा रहा आज कॉलेज में?" सुनील ने सामनया के पास से गुज़रते हुए पूछा तो सामनया उसकी के आवाज़ सुन कर एक दम

चौंकी और मिर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा रहा...!"

सुनील मिर से सामनया के पास से गुज़रते हुए बोला, "एक बात पूछ
ूँ ू ?" सामनया ने अपनी नज़रें मकताब में गड़ाये हुए कहा,

"पूछो!"

"क्या कॉलेज में ऐसे टाइट कपड़े पहन कर जाना जरूरी है... सलवार कमीज़ पहन कर नहीं जा सकते?" सामनया को सुनील के

ये सवाल अजीब सा लगा तो वो बोली, "क्यों... सभी लड़मकयाँ ऐसे ही कपड़े पहनती हैं इसमें क्या गलत है?"

"नहीं गलत तो नहीं है पर वो बस जब तुम कॉलेज के अ


ं दर जा रही थी तो सामने से दो लड़के आ रहे थे बाहर की तरफ़ और

तुम्हारे बारे में कुछ गलत कह रहे थे!" सुनील बोला।

"क्या बोल रहे थे वो?" सामनया ने पूछा तो सुनील बोला, "छोड़ो तुम... मैं तुम्हे नहीं बता सकता मक कैसे-कैसे गंदे कमेंट कर रहे थे

तुम्हारे बारे में!" ये सुनकर सामनया बीच में ही बोली, "वो लड़के हैं ही ऐसे आवारा... उनके तो कोई मु
ूँ ह भी नहीं लगता!"

सुनील ने आगे कहा, "वैसे वो जो भी बोल रहे थे तुम्हारे बारे में... है तो वो सच!" सुनील की बात सुन कर सामनया हैरान-परेशान

रह गयी और उसके मु
ूँ ह से मनकला, "क्या?"

"हाँ सच कह रहा ह
ूँ अगर समय आया तो तुम्हें जरूर बताऊ
ूँ गा कभी!" ये कह कर सुनील अपने कमरे में चला गया। सामनया

ऐसी बातों से अ
ं जान नहीं थी। बीस साल की कॉलेज में पढ़ने वाली आज़ाद ख्यालों वाली काफ़ी तेज तरार लड़की थी। पंद्रह-

सोलह साल की उम्र में ही उसने खुद-लज़्ज़ती करनी शुरू कर दी थी। कॉलेज में अपनी सहेललयों से उनके बॉय-फ्रेंड्स के साथ

चुडाई के मकस्से भी सुनती थी तो मदल तो उसका भी बेहद मचलता था लेमकन खुद को अभी तक उसने मकसी लड़के को छूने

नहीं मदया था। उसे रोमांमटक और सैक्सी कहामनयाँ-मकस्से पढ़ने का बेहद शौक था और हर रोज़ रात को केले ये मोमबत्ती से

खुद-लज़्ज़ती करके अपनी चूत का पानी मनकालने के बाद ही सोती थी। भले ही उसकी चूत में आज तक कोई ल
ं ड नहीं घुसा

था लेमकन वो मोमबत्ती या बैंगन जैसी बेज़ान चीज़ों से अपनी सील पता नहीं कब की तोड़ चुकी थी॥
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खैर उस रात कुछ खास नहीं हुआ। सामनया की मौजूदगी में सुनील और रुखसाना दूर-दूर ही रहे। रुखसाना की गाँड में वैसे

अभी तक ददल की मीठी-मीठी लहरें रह-रह कर उठ जाती थीं और वो अपनी गाँड सहलाते हुए उस रात खूब सोयी। अगले मदन

फ़ारूक भी वापस आ गया। फ़ारूक के आने से वैसे ज्यादा फ़क़ल नहीं पड़ा क्योंमक वो तो अपनी बीवी पे ज़रा भी ध्यान दे ता

नहीं था और रात को शराब के नशे में इतनी गहरी नींद सोता था मक अगर रुकसाना उसकी बगल में भी सुनील से चुदवा लेती

तो फ़रूक को पता नहीं चलता। सबसे बड़ा खतरा सामनया से था क्योंमक वो शाम को कॉलेज से घर आने के बाद ज्यादातर घर

पे ही रहती थी और उसकी खुद की भी नज़र सुनील पे थी। अब तो सुनील और रुखसाना को कभी चार-पाँच ममनट के ललये

भी मौका ममलता तो दोनों आपस में ललपट कर चूमते हुए एक दूसरे के सजस्म सहला लेते या कभी रुखसाना खाना दे ने के

बहाने ऊपर जाकर सुनील के कमरे में कभी उससे ललपट कर उसके साथ खूब चूमा-चाटी करती और कभी उसका ल
ं ड चूस

लेती या कभी मुममकन होता तो दोनों जल्दबाजी में चुदाई भी कर लेते लेमकन पहले की तरह इससे ज्यादा मौका उन्हें नहीं ममल

रहा था। रुखसाना तो सुनील के ल


ं ड की बेहद दीवानी हो चुकी थी। अगले दो-तीन हफ़्तों में एक-दो बार तो फ़ारूक को बेडरूम

में गहरी नींद सोता छोड़कर रात के दो बजे रुखसाना ने सुनील के कमरे में जाकर उससे चुदवाया लेमकन खौफ़ की वजह से

रुखसाना बार-बार ऐसी महम्मत नहीं कर सकती थी। चुदाई का सबसे अच्छा मौका दोनों को तब ममलता जब हफ़्ते में एक-दो

बार सुनील मौका दे खकर दोपहर को स्टेशन पे कोई बहाना बना कर थोड़ी के ललये घर आ जाता और मिर दोनों अकेले में

मज़े से चुदाई कर लेते। सुनील का मन होता तो रुखसाना खुशी-खुशी उससे अपनी गाँड भी मरवा लेती। अब तो रुखसाना के

सजस्म में हवस ऐसे जाग गयी थी की सुनील का तसव्वुर करते हुए उसे रोज़ाना कमज़ कम एक-दो दफ़ा मकसी बेजान चीज़ के

ज़ररये खुद-लज़्ज़ती करनी पड़ती थी।

एक मदन ऐसे ही रुखसाना को दोपहर में चोदने के बाद सुनील वापस स्टेशान पहु
ूँ चा और अपनी टेबल पे जा कर काम में

मसरूफ़ हो गया। सजस कमरे में सुनील का टेबल था उस कमरे में तीन बड़े कैमबन भी बने हुए थे जो ऊपर से खुले थे। एक तरफ़

स्टेशन मास्टर अज़मल का कैमबन था और सुनील के पीछे की तरफ़ दो और कैमबन थे सजनमें रशीदा और नफ़ीसा नाम की

औरतें बैठती थीं। सुनील का अपना कैमबन नहीं था और उस कमरे में एक लखड़की के पास थोड़ी सी जगह में सुनील की टेबल

थी। जब भी कोई उन तीन कैमबन में आता-जाता तो सुनील के पीछे से गुज़र कर जाता था।

रशीदा और नफ़ीसा दोनों ही रेलवे में काफ़ी सीमनयर ऑमफ़सर थीं और दोनों सीधे मडमवज़नल ऑमिस में ररपोटल करती थीं।

रशीदा की उम्र चवालीस-पैंतालीस के करीब थी और उसके बच्चे अमरीका में पढ़ाई कर रहे थे और उसके शौहर कोलकाता में

एक बड़ी मल्टीनेश्नल क
ं पनी में काफ़ी ऊ
ूँ ची पोस्ट पे काम करते थे। रशीदा अपनी बुजग
ु ल सास के साथ तीन बेडरूम के बड़े

फ्लैट में रहती थी उसके शौहर महीने में एक-दो बार आते थे। रशीदा ने कोलकाता के ललये अपने ट्राँसफ़र की अज़ी भी रेलवे
में लगा रखी थी। रशीदा अपने शौहर के साथ कईं दूसरे मुल्कों की सैर भी कर चुकी थी। रशीदा काफ़ी पढ़ी ललखी और

आज़ाद खयालों वाली औरत थी... और बेहद रंगीन ममजाज़ थी। शादीशुदा स्ज़ंदगी के बीस-इक्कीस सालों में वो करीब डेढ़-दो

दजलन ल
ं ड तो ले ही चुकी थी पर वो हर मकसी ऐरे-गैरे के साथ ऐसे ही ररश्ता नहीं बना लेती थी।

नफ़ीसा भी रशीदा की हम-उम्र थी और उसी की तरह काफ़ी पढ़ी ललखी और आज़ाद खयालों वाली रंगीन औरत थी।

नफ़ीसा का एक ही बेटा था जो अलीगढ़ युनीवर्सलटी में पढ़ रहा था। उसके शौहर का तीन साल पहले बहुत बुरा हादसा हो गया

था सजसकी वजह से उसके शौहर को लक़वा मार गया था और वो मबस्तर पर ही पड़े रहते थे। उनकी दे खभाल के ललये उन्होंने

एक कामवाली को रखा हुआ था जो उनके सरे काम करती थी। नफ़ीसा के शौहर हादसे से पहले इंकम टैक्स कमीश्नर थे और

अब उन्हें अच्छी पेंशन ममलती थी और पहले भी नम्बर-दो का खूब पैसा कमाया हुआ था। उनकी माली हालत बेहद अच्छी थी।

नफ़ीसा शहर से थोड़ा सा बाहर अपने खुद के बड़े बंगले में रहती थी जो उसके शौहर का पुश्तैनी घर था। घर काफ़ी बड़ा था

सजसमें छः बेडरूम थे... तीन नीचे और तीन पहली मंसजल पर और इसके अलवा बड़ा लॉन और सस्वटमंग पूल भी था। नफ़ीसा

कद-काठी और शक़्ल-सूरत में मबल्कुल बॉलीवुड की महरोइन ज़रीन खान की तरह मदखती थी। जहाँ तक उसकी रंगीन

ममजाज़ी का सवाल है तो नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा से भी बहुत आगे थी। शादी से पहले भी और शादी के बाद अब तक

नफ़ीसा अनमगनत ल
ं ड ले चुकी थी और वो अमीर-गरीब... जान-अ
ं जान... कममस्न लड़कों से बूढ़ों तक हर तरह के लोगों से

चुदवा चुकी थी। चुदाई के मामले में नफ़ीसा मकसी तरह का कोई गुरज़
े नहीं करती थी। हकीकत में चाहे कभी अमल न मकया

हो लेमकन तसव्वुर में तो अक्सर जानवरों से भी चुदवा लेती थी।

तो दोनों औरतें में काफ़ी बातें एक जैसी थीं। दोनों ही खूभ पढ़ी-लीखी और अच्छे पैसे वाले घरों से होने के साथ-साथ खुद भी


ूँ ची पोस्ट पे काम करती थीं। दोनों ही कािी खूबसूरत और सैक्सी मिगर वाली चुदैल औरतें थीं और दोनों खूब बन-ठन कर

अपनी-अपनी कारों से काम पे आती थीं। इसके अलावा दोनों ससफ़ल गहरी सहेललयाँ ही नहीं थी बलल्क उनका आपस में

सजस्मानी लेसियन ररश्ता भी था।

शाम के वक़्त अपना काम मनपता कर सुनील अपनी कुसी पर आूँ खें मू
ूँ द कर बैठ गया और स्टेशन मास्टर अज़मल भी बाहर

मनकल गया था। अज़मल बाहर गया तो उधर दोनों औरतें शुरू हो गयी। नफ़ीसा अपने कैमबन में से मनकल कर सुनील के

सामने रशीदा के कैमबन में जा कर बैठ गयी। "और रशीदा कल तो तेरे हिैंड आये हुए थे... खूब चुदाई की होगी तुम लोगों ने...!"

नफ़ीसा चहकते हुए बोली तो रशीदा ने उसे खबरदार करते हुए कहा, "शशशऽऽऽ अरे धीरे बोल... वो नया लड़का सुनील भी है...

अगर उसने सुन ललया तो..!"

नफ़ीसा बोली, "अरे सुन लेगा तो क्या होगा... उसके पास भी तो ल


ं ड है... और सारी दुमनया करती है ये काम हम क्यों मकसी से

डरें..!"

"अरे नहीं यार अच्छा नहीं लगता... अगर सुन लेगा तो क्या सोचेगा बेचारा..!" रशीदा ने कहा तो नफ़ीसा उसे टालते हुए बोली,

"तू वो छोड़.. बता ना... कल तो जरूर तेरी गाँड का बैंड बजाया होगा खुशीद साहब ने..!"
रशीदा मायूस से लहज़े में बोली, "अब उनमें वो बात नहीं रही यार... ऊपर से इतनी तोंद बाहर मनकल लायी है.. दो तीन धक्कों में

ही उनकी साँस िूलने लगती है..!"

"तो मतल्ब कुछ नहीं हुआ हाऽऽ...?" नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा बोली, "अरे नहीं वो बात नहीं है... पर अब वो मज़ा नहीं रहा... एक

तो उनका मोटापा और अब उम्र का असर भी होने लगा है... मकतनी बार कह चुकी ह
ूँ मक सजम जाया करें... कसरत वसरत

करने... पर मेरी सुनते ही कहाँ है वो..!"

"मतलब तेरी गाँड का बैंड नहीं बजा इस बार हेहह


े !े " नफ़ीसा हंसते हुए बोली। "अरे कहाँ यार... चूत और गाँड दोनों मारी... पर बड़ी

मुसश्कल से चार पाँच धक्के में उनका पानी मनकल जाता है... अब तो काफ़ी वक़्त से ल
ं ड भी ढीला पड़ने लगा है... तुझे तो

मालूम ही है... जब तक लौड़ा इंजन के मपस्टन की तरह चूत को चोद-चोद कर पानी नहीं मनकाले और गाँड मराते हुए से पुरलरल-

पुरलरल की आवाज़ ना आये तो मज़ा कहाँ आता है और उसके ललये मोटा सख्त ल
ं ड चामहये.... तू सुना तेरी कैसी चल रही है... तेरा

भतीजा तो तेरी गाँड की बैंड तो बजा ही रहा होगा..!"

नफ़ीसा मायूस होकर बोली, "हम्म्मम्म क्या यार... क्यों दुखती रग़ पर हाथ रखती हो यार... उसकी अम्मी ने एक मदन दे ख ललया था

तब से वो घर नहीं आया...!"

"चल पहले तो कािी ऐश कर ली तूने उसके साथ... दे ख मकतनी मोटी गाँड हो गयी है तेरी..." रसशदा बोली।

"यार चूत तक तो ठीक था लड़का पर साले का पाँच इंच का ल


ं ड क्या खाक मेरी गाँड की बैंड बजाता... ससफ़ल दो इंच ही अ
ं दर

जाता था... बाकी दो-तीन इंच तो चूतड़ों में ही ि


ूँ स कर रह जाता था...!" नफ़ीसा की ये बात सुनकर रशीदा लखललखला कर जोर

से हंसने लगी। "रशीदा तुझे वो आदमी याद है... जो उस मदन इस स्टेशन पर गल्ती से उतर गया था..." नफ़ीसा की बात सुनते ही

रशीदा की चूत से पानी बाहर बह कर उसकी पैंटी को चभगोने लगा और वो आह भरते हुए बोली, "यार मत याद मदला उसकी...

साले का क्या ल
ं ड था... एक दम मूसल था मूसल..!"

"हाँ यार... मदल हो तो वैसा... साले ने हम दोनों की गाँड रात भर बजायी थी... गाँड और चूत दोनों का ढोल बजा मदया था... कैसे

गाँड से पुरलरल-पुरलरल की आवाज़ें मनकल रही थी तेरी..." नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने भी पलट कर हंसते हुए कहा, "और तेरी गाँड ने

क्या कम पाद मारे थे... साले के धक्के थे ही इतने जबरदस्त मक साली गाँड हवा छोड़ ही दे ती थी पर हम दोनों ने भी ममलकर

सुबह तक उसे गन्ने की तरह चूस डाला था।"

"हाँ रशीदा यार! मेरी तो अभी से गाँड और चूत में खुजली होने लगी है... कुछ कर ना यार... कहीं से ल
ं ड का इंतज़ाम कर!"

नफ़ीसा ने आह भरते हुए कहा तो रशीदा बोली, "यार वैसे लौंडे तो बहोत पीछे है पर साला काम का कौन सा है... पता नहीं

चलता!"
ये सुनकर नफ़ीसा भी बोली, "यार मेरा भी यही हाल है... मकतनों के साथ कोसशश करके दे ख चुकी ह
ूँ लेमकन वो मज़ा नहीं

आया! पर मैं नज़रें जमाये हुए ह


ूँ ... तू भी दे ख शायद कोई काम का लौंडा ममल जाये... वैसे हम दोनों तो हैं ही एक-दूसरे के ललये.....

आजा मेरे घर आज रात को...!"

उधर कैमबन के बाहर अपनी कुसी पे बैठा सुनील उनकी बातों को सुन कर एक दम हैरान था। उनकी बातें सुन कर उसका ल
ं ड

एक दम तन चुका था और अब ददल भी करने लगा था। सुनील इतना तो जान ही गया था मक ये साली दोनों हाई-क्लॉस और

शरीफ़ मदखाने वाली औरतें मकतनी चुदैल हैं और उसे अब उनकी दुखती रग का भी पता था। नफ़ीसा और रशीदा दोनों बेहद

सैक्सी सजस्म वाली खूबसूरत औरतें थीं। दोनों करीब साढ़े पाँच िुट ल
ं बी थीं। दोनों ज्यादातर सलवार-कमीज़ ही पहनती थीं

और ऊ
ूँ ची पेमिल हील वाली सेन्डल पहनने से उनकी बड़ी-बड़ी गाँड बाहर की ओर मनकली हुई होती थी। सुनील पहले भी

अक्सर चोर नज़रों से इन दोनों औरतों को दे खा करता था... खासतौर पर इसललये मक उसे ऊ
ूँ ची हील के सैंडल पहनने वाली

औरतें खास पसंद आती थीं। लेमकन ये दोनों औरतें कािी रोबदार और सीमनयर ऑमफ़सर थीं और वो महज़ नया-नया

कलकल लगा था... इसललये रोज़ सुबह की औपचाररक सलाम-नमस्ते के अलावा कभी उनसे कोई बात तक करने की महम्मत

नहीं हुई थी। मडपाटल मेंट भी अलग होने की वजह से सुनील का उनसे कोई काम भी नहीं पड़ता था मक कोई काम को लेकर ही

बात हो पाती। लेमकन अब वो उन दोनों की असललयत जान गया था।

अगले मदन सुनील ससफ़ल ट्रैक सूट का लोअर और टी-शटल पहन कर ही स्टेशन पर गया। ये सुनील ने पहले से प्लैन कर रखा

था। जब सुनील स्टेशन पर पहु


ूँ चा तो अज़मल ने सुनील से पूछा, "अरे यार क्या बात है... आज नाइट सूट में ही चले आये हो...

खैररयत तो है..?"

"हाँ सर सब ठीक है.. बस थोड़ी सी तमबयत खराब थी... इसललये नहाने और तैयार होने का मन नहीं मकया... ऐसे ही चला

आया..!" सुनील ने सफ़ाई पेश की तो अज़मल बोला, "यार अगर तमबयत खराब थी तो फ़ोन कर दे ते... और आज घर पर

आराम कर लेते..!"

सुनील बोला, "सर घर में पड़ा-पड़ा भी बोर हो जाता.. और वैसे भी यहाँ काम होता ही मकतना है..!"

अज़मल ने कहा मक "हाँ वो तो है... वैसे दवाई तो ली है ना?"

"जी सर ले ली है..!" ये कहकर सुनील जाकर अपनी कुसी पर बैठ गया और िाइल खोलकर अपने काम में लग गया। थोड़ी दे र

बाद नफ़ीसा और रशीदा भी आ गयीं और सुनील से 'गुड मोर्मनग' के बाद वो भी अपने-अपने कैमबन में जा कर अपने कामों में

मसरूफ़ हो गयीं।

थोड़ी दे र बाद अज़मल प्लैटफ़ोमल पर राउ


ूँ ड पे चला गया और उसके थोड़ी दे र बाद रशीदा अपने कैमबन से बाहर मनकली कर

टॉयलेट की तरफ़ गयी तो माबलल चचप वाले ससमेंट के पशल पे सैंडल खटखटाती हुई वो सुनील के पीछे से गुजरी। दो छोटे-छोटे
टॉयलेट उसी रूम में पीछे की तरफ़ थे सजनमें एक लेडीज़ था और एक जेंट्स का। सुनील की नज़र जैसे ही तंग कमीज़ और

चुड़ीदार सलवार में कैद रशीदा की गाँड पर पड़ी तो उसका ल


ं ड तुनक उठा और उसका ल
ं ड ट्रैक-सूट के पजामे में कुलांचें मारने

लगा। सुनील ने जो प्लैन सोचा था अब उसको काम में लाने का समय आ गया था। "आहह कैसी मदखती होगी रशीदा की

गाँड... मकतनी मोटी गाँड है साली की... एक बार ममल जाये तो आहहह.!" ये सोचते हुए सुनील का ल
ं ड पूरी औकात में आ गया।

सुनील का ल
ं ड उसके ट्रैक-सूट के पजामे में तन कर तम्बू सा बन गया जो बाहर से दे खने से साफ़ पता चल रहा था। थोड़ी दे र

बाद जब रशीदा के ऊ
ूँ ची हील के सैंडलों की िशल पे खटखटा कर चलने की आवाज़ आयी तो सुनील अपनी पीठ पीछे मटका

कर कुसी पर लेट सा गया और अपने पायजामे के ऊपर से अपने ल


ं ड को जड़ से पकड़ ललया तामक वो ज्यादा से ज्यादा बड़ा

मदख सके। उसने अपनी आूँ खें बंद कर लीं और वही हुआ जो सुनील चाहता था। जब रशीदा वापस आयी और सुनील के

पीछे से गुज़रने लगी तो उसकी नज़र सुनील पर पड़ी जो अपने हाथ से अपने ल
ं ड को पायजामे के ऊपर से पकड़े हुए था।

रशीदा एक दम धीरे-धीरे चलने लगी और सुनील के ल


ं ड का मुआयना करने लगी पर वो रुक नहीं सकती थी और वो वापस

अपने कैमबन में गयी और कुसी पर बैठ कर सोचने लगी। थोड़ी दे र सोचने के बाद उसने नफ़ीसा को धीरे से बुलाया और अपने

कैमबन में आने को कहा। नफ़ीसा अपने कैमबन से मनकल कर रशीदा के कैमबन में गयी और एक कुसी रशीदा के करीब सरका

कर बैठ गयी।

रशीदा धीरे से बोली, "अरे यार नफ़ीसा! लगता है आज सुनील का ल


ं ड उसे तंग कर रहा है... दे ख साला बाहर कैसे अपने ल
ं ड

को पकड़ कर बैठा है!"

नफ़ीसा ने पूछा, "तूने दे खा क्या उसे अपना पकड़े हुए...?"

रशीदा बोली, "हाँ अभी दे खा है... जब मैं टॉयलेट से वापस आ रही थी... यार दे ख तो सही!"

नफ़ीसा उठी और रशीदा के कैमबन से मनकल कर बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। जब वो सुनील के पीछे से गुजरी तो उसने

चतरछी नज़रों से सुनील की तरफ़ दे खा जो अभी भी अपने आूँ खें बंद मकये हुए कुसी पे आधा लेटा हुआ था। सुनील ने अभी

भी अपना ल
ं ड हाथ में पायजामे के ऊपर से थाम रखा था। नफ़ीसा अच्छे से तो नहीं दे ख पायी और वो टॉयलेट में चली गयी।

नफ़ीसा के जाने के बाद सुनील उठा और टॉयलेट की तरफ़ चला गया। वो जेंट्स टॉयलेट में घुसा और जानबूझ कर कुछ

"आहह आहहह" की आवाज़ की और अपने पजामे को नीचे सरका मदया।

सुनील को पता था मक अज़मल जल्दी वापस नहीं आने वाला था। सुनील ने अपने टॉयलेट का दरवाजा थोड़ा सा खोल रखा

था और दीवार की तरफ़ दे खते हुए अपने ल


ं ड को हाथ से सहलाने लगा। नफ़ीसा बगल वाले टॉयलेट में बैठी हुई सुनील की

आवाज़ सुन कर चौंक गयी। वो टॉयलेट से बाहर आयी तो उसने दे खा मक साथ वाले जेंट्स टॉयलेट का दरवाजा ज़रा सा
खुला हुआ था। अ
ं दर लाइट जल रही थी सजससे अ
ं दर का नज़ारा साफ़ मदखायी दे रहा था। नफ़ीसा धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी

और दीवार से सटते हुए उसने अ


ं दर झाँका। उसके ऊ
ूँ ची हील वाले सैंडल की आवाज़ ने सुनील को उसकी मौजूदगी से

आगाह करवा मदया। सुनील ने अपने ल


ं ड को जड़ से पकड़ कर दबाया और उसका ल
ं ड और ल
ं बा हो गया। जैसे ही नफ़ीसा ने


ं दर दे खा तो उसका केलजा मु
ूँ ह को आ गया।


ं दर सुनील अपने मूसल जैसे ल
ं ड को महला रहा था। सुनील के अनकटे ल
ं ड की ल
ं बाई और मोटाई दे ख कर नफ़ीसा की चूत

कुलबुलाने लगी और गाँड का छेद िुदकने लगा। सुनील ने थोड़ी दे र अपने ल


ं ड का दीदार नफ़ीसा को करवाया और ट्रैक सूट

का पायजामा ऊपर करने लगा। नफ़ीसा जल्दी से वापस रशीदा के कैमबन में गयी और रशीदा के पास आकर बैठ गयी।

उसकी साँसें उखड़ी हुई थी और आूँ खों में जैसे हवस का नशा भरा हो। "क्या हुआ नफ़ीसा... तेरी साँस क्यों िूली है...?" रशीदा

ने नफ़ीसा के सुखल चेहरे और उखड़ी हुई साँसों को दे ख कर पूछा। "पूछ मत यार... क्या लौड़ा है साले अपने नये हीरो का...

माशाल्लह... इतना बड़ा और मूसल जैसा ल


ं ड... साला जैसे गाधे का ल
ं ड हो...!"

रशीदा: "क्या बोल रही है यार तू...?"

नफ़ीसा: "सच कह रही ह


ूँ यार... तू भी अगर एक दफ़ा दे ख लेती तो तेरी चूत में भी मबजललयाँ कड़कने लगती... साले का ये ल
ं बा


ं ड है... और इतना मोटा...!" नफ़ीसा ने हाथ से इशारा करते हुए मदखाया।

रशीदा: "सच कह रही है तू?"

नफ़ीसा: "हाँ सच में तेरी इस मोटी गाँड की कसम...!"

रशीदा: "चुप कर रंडी... साली जब दे खो मेरी गाँड के पीछे ही पड़ी रहती है...!"

नफ़ीसा: "तो क्या बोलती है... साले चचकने को ि


ं साया जाये...?"

रशीदा: "पता नहीं यार... हमारे साथ जॉब करता है और बहोत जुमनयर भी है... और जवान खून है... अगर साले ने बाहर मकसी के

सामने कुछ बक मदया तो खामाखाँ मसला हो जायेगा!"

नफ़ीसा: "अरे यार कुछ नहीं होता... तू तो हमेशा ऐसे ही ऐसे ही बेकार में घबराती है... साले को साफ़-साफ़ बोल दें गे मक मज़ा

लो और अपना-अपना रास्ता नापो... बोल तू बात करेगी या मैं करू


ूँ उससे बात!"

रशीदा: "अच्छा-अच्छा मैं दे खती ह


ूँ ... पहले ये तो मालूम हो मक साले का लौड़ा चूत और गाँड मारने के ललये बेकरार है भी या

नहीं...!"

नफ़ीसा: "यार कुछ भी कर पर जल्दी कर... मेरी चूत और गाँड दोनों छेदों में खुजली हो रही है... जब से उसका ल
ं ड दे खा है..!"
रशीदा: "हाँ-हाँ पता है... इसी ललये तुझे बात करने नहीं भेज रही... तू तो वहीं सलवार खोल के खड़ी हो जायेगी उसके सामने...

अब तू अपने कैमबन में जा कर बैठ... मैं दे खती ह


ूँ मक अपना चचकना हाथ आने वाला है मक नहीं...!"

नफ़ीसा अपने कैमबन में वापस चली गयी और रशीदा उठ कर सुनील के पास गयी और सुनील के पास जाकर कुसी पर बैठते

हुए हंस कर बोली, "और सुनील कैसे हो... क्या बात है आज बड़े फ़ॉमलल कपड़ों में जोब पर चले आये..!"

नफ़ीसा के इस तरह अचानक अपनी टेबल पे बैठ कर उससे बात करने से सुनील पहले तो थोड़ा घबरा गया लेमकन जल्दी ही


ं भल गया। उसे उम्मीद तो थी ही मक दोनों औरतों में कोई तो पहल करेगी। सुनील संभलते हुए बोला, "वो मैडम बस ऐसे ही...

आज तमबयत थोड़ी खराब थी... नहाने और तैयार होने का मन नहीं मकया तो ऐसे ही चला आया..!"

रशीदा थोड़ा सा झुक कर अपना दुपट्टा गदल न में ऊपर खींच कर सुनील को अपनी कमीज़ के गहरे गले से अ
ं दर कैद दोनों

खरबूजों के बीच की घाटी का दीदार करवाती हुई बोली, "उफ़्फ़ ये गरमी भी ना... और कहाँ पर रह रहे हो!"

सुनील: "ये वो जो ट्रेमफ़क मडपाट्लमेंट में ऑमफ़सर हैं ना फ़ारूक साहब... उन्ही के घर पर पेईंग गेस्ट रह रहा ह
ूँ !"

रशीदा: "अच्छा वो फ़ारूक... मकतना मकराया ले रहा है वो तुमसे?"

सुनील: "ये खाने का ममला कर साढ़े-तीन हज़ार रुपये दे रहा ह


ूँ ..!"

रशीदा: "ये तो बहोत ज्यादा है... पहले बताया होता तो तुम्हें नफ़ीसा के घर में रूम मदलवा दे ती... उसका इतना बड़ा बंगला है...

और रहने वाले ससफ़ल दो जने हैं... बेटा उनका बाहर अलीगढ़ में पढ़ रहा है...!"

सुनील: "कोई बात नहीं मैडम मैं ठीक ह


ूँ ... कोई मदक्कत नहीं है वहाँ!"

रशीदा: "और कभी हमारे साथ भी बैठ कर बातें वातें कर ललया करो... यू
ूँ अकेले बैठे-बैठे बोर नहीं हो जाते?"

सुनील: "जी मैडम जरूर... वो बस मैं सोचता था मक आप दोनों इतनी सीमनयर हैं तो शायद आप दोनों को बुरा ना लगे मक मैं

आपको परेशान कर रहा ह


ूँ !"

रशीदा: "अरे सीमनयसल के साथ क्या बातें करने की कोई पाबंदी है.. हम क्या खा जायेंगी तुम्हें!"

सुनील: "ओहह सॉरी मैडम मेरा मतलब वो नहीं था... वैसे मैं भी बोर हो जाता ह
ूँ ... घर जाकर भी अकेले रूम में बैठा-बैठा उकता

जाता ह
ूँ ..!"
रशीदा: "तुम्हारे कोई दोस्त या कोई गलल-फ़्रेंड नहीं है क्या..!"

सुनील: "जी नहीं मैडम वैसे भी नया ह


ूँ यहाँ पे...!"

रशीदा: "इसी ललये तो कह रही ह


ूँ ... ज़रा ममलोजुलो लोगों से... बातचीत करो... तुम हैंडसम हो... अच्छी शक़्ल सूरत है... बॉडी भी

अच्छी बनायी हुई है... क्या प्रॉब्लम हो सकती है!"

सुनील: "पर मैडम आप तो जानती है ना... आज कल की लड़मकयों को बस महंगे-महंगे मगफ़्ट चामहये और बदले में क्या... बस

पैसे बबाद..!"

रशीदा: "अच्छा शाम को क्या कर रहे हो..?"

सुनील: "जी मैडम... कुछ खास नहीं!"

रशीदा: "तो चलो आज नफ़ीसा के घर में पाटी करते हैं... मड्रंक तो कर ही लेते हो ना?"

सुनील: "जी कभी-कभी!"

रशीदा: "और कोई शौक भी है तो बता दो... उसका अरेंजमेंट भी कर लेंगे..!"

सुनील: "जी शौक तो बहुत हैं... जैस-े जैसे जान पहचान बढ़ेगी... आपको पता चल जायेगा...!"

रशीदा: "अच्छा ऐसी बात है... चलो दे खते हैं..!"

इस दौरान सुनील बार-बार रशीदा की बड़ी- बड़ी चूचचयों को उसकी कमीज़ के गहरे गले में से दे ख रहा था और रशीदा टाँग पर

टाँग चढ़ा कर बैठी हुई अपनी टाँग महला रही थी तो सुनीळ की नज़रें उसके ऊ
ूँ ची हील वाले काचतलाना सैंडल से भी नहीं हट

रही थी। रशीदा भी सुनील के ल


ं ड को ट्रैक-पैंट में झटके खाता हुआ साफ़ दे ख रही थी। मिर रशीदा उठी और अपनी मोटी

गाँड मटकाते हुए जाने लगी। "भूलना नहीं आज शाम नफ़ीसा के घर पर... नफ़ीसा से घर का अड्रेस समझ लेना..." रशीदा ने

जाते हुए कहा।

थोड़ी दे र बाद नफ़ीसा उसके पास आयी, "तो क्या इरादा है सुनील!" सुनील ने चौंक कर नफ़ीसा की तरफ़ दे खा... "जी मैडम

इरादा तो नेक है बस आपके हुक्म का इंतज़ार है...!" नफ़ीसा अपने होंठों को दाँतों में दबाते हुए बोली, "अच्छा ये लो इसमें मेरा

अड्रेस ललखा है और मोबाइल नम्बर भी... अगर रास्ता ढूूँ ढने में तकलीफ़ हो तो फ़ोन कर दे ना!"

सुनील: "जी मैडम ठीक है... वैसे आपके घर वाले मतलब आपके हिैंड को कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?"
नफ़ीसा: "अरे नहीं... वो तो मबल्कुल पेरलाइज़्ड हैं... मबस्तर से उठ तक नहीं सकते हैं!" ये कह कर नफ़ीसा भी चली गयी।

दोनों औरतें शाम को एक घंटा पहले ही मनकल गयीं। दोनों पहले रशीदा के फ़्लैट में गयी और वहाँ पर रशीदा ने अपनी एक

सलवार-कमीज़... नाइटी... सैंडल वगैरह और कुछ समान ललया। रशीदा ने अपनी सास को भी बताया मक वो आज रात को

नफ़ीसा के घर पर ही रहेगी। ये कोई नयी बात नहीं थी क्योंमक वो अक्सर नफ़ीसा के घर रात मबताया करती थी। रसशदा ने

अपनी कार नहीं ली और दोनों नफ़ीसा की कार में ही उसके घर की तरफ़ रवाना हो गयीं। नफ़ीसा ने रस्ते में से खाने पीने की

कुछ चीज़ें खरीदीं और मिर घर पहु


ूँ ची।

घर आकर उसने अपनी नौकरानी ज़ोहरा को बुलाया। उसने ज़ोहरा को रात का खाना तैयार करने के ललये कहा और उसे कहा

मक वो गोड-फ्लेक ससगरेट के दो पैकेट और ऑमिसर चाइस मिस्की की दो बोतलें अपने शौहर से मंगवा दे । ये भी कोई

नयी बात नहीं थी क्योंमक नफ़ीसा अक्सर ज़ोहरा के शौहर के ज़ररये शराब और ससगरेट खरीदवाया करती थी। नफ़ीसा ने उसे

पैसे मदये और ज़ोहरा पास ही अपने घर चली गयी। उसका शौहर जाकर ससगरेट के पैकेट और मिस्की की बोतलें ले आया

और ज़ोहरा ने वो नफ़ीसा को लाकर दे दी। रात के चुदाई की पाटी का इंतज़ाम हो चुका था और दोनों चुदैल औरतें नया

बकरा हलाल करने के ललये बेकरार थीं।

दूसरी तरफ़ सुनील ने भी अपना काम खतम मकया और स्टेशन से बाहर आकर अपना मोबाइल मनकाल कर घर पर फ़ोन

मकया। फ़ोन सामनया ने उठाया तो सुनील ने उसे कहा मक आज रात कुछ जरूरी काम से उसे स्टेशन पर ही रुकना पड़ेगा।

सुनील कुछ दे र बज़ार में घूमता रहा। जब अ


ं धेरा होने लगा तो उसका फ़ोन बजने लगा। फ़ोन रशीदा का था, "हैलो सुनील...

कहाँ रह गये?"

"जी अभी आ रहा ह


ूँ ... थोड़ी ही दे र में पहु
ूँ च जाऊ
ूँ गा!" सुनील ने कहा तो रशीदा ने "ठीक है... जल्दी आओ..." कह कर फ़ोन काट

मदया। सुनील ने बाइक नफ़ीसा के घर की तरफ़ घुमा दी। सुनील जानता था मक आज रात बहुत ल
ं बी होने वाली है और दोनों

औरतें बेहद चुदैल हैं... इसललये वो एक दवाई की दुकान पर रुका और एक दो गोली वायग्रा की ले ली। वैसे तो सुनील के

सजस्म और ल
ं ड में इतनी जान थी मक वो एक साथ नफ़ीसा और रशीदा की चुदाई तसल्ली से कर सकता था पर सुनील आज

उन दोनों की गाँड और चूत पर अपने ल


ं ड की ऐसी छाप छोड़ना चाहता था मक वो दोनों उसके ल
ं ड की गुलाम हो जाये। सुनील

ये भी जानता था मक नफ़ीसा और रशीदा दोनों मालदार औरतें है और दोनों के पास बहुत पैसा है। वो वक़्त आने पर सुनील

की कोई भी जरूरत पूरी कर सकती थीं। लेमकन उसके ललये सुनील को पहले उन दोनों को अपने ल
ं ड का आदी बनाना था

जैसे उसने रुखसाना को अपने ल


ं ड की लत्त लगा दी थी। यही सोच कर उसने वायग्रा खरीद ली और नफ़ीसा के घर के तरफ़

चल पड़ा। थोड़ी ही दे र में वो नफ़ीसा के घर के पास पहु


ूँ च गया और उसने रशीदा को फ़ोन मकया।

"हाँ बोलो सुनील... कहा पहु


ूँ चे?" रशीदा ने िोन उठाते ही पूछा। "मैडम मैं उस गली में पहु
ूँ च गया ह
ूँ पर यहाँ सभी इतने बड़े-बड़े

बंगले हैं मक समझ में नहीं आ रहा मक नफ़ीसा मैडम का घर कौन सा है!" सुनील ने पूछा तो रशीदा ने उसे समझाया, "दे खो तुम

सीधे गली के एंड में आ जाओ... राइट साइड पर सबसे आलखरी घर है... उसके सामने खाली प्लॉट है..!"
"ठीक है समझ गया मैडम!" सुनील ने फ़ोन काटा। "रशीदा क्या हुआ... पहु
ूँ चा मक नहीं अभी तक..." नफ़ीसा ने पूछा तो रशीदा

अपने होंठों पे बेहद कमीनी मुस्कान के साथ बोली, "हाँ पहु


ूँ च गया है... तू जाकर गेट खोल और उसकी बाइक अ
ं दर करवा ले...

बहोत मदनों बाद साला आज तगड़ा बकरा हाथ में आया है... खूब मजे से उसे हलाल करके अपनी हसरतें पूरी करेंगी दोनों

ममलकर!"

नफ़ीसा ने बाहर जाकर गेट खोला और इतने में सुनील की बाइक उसके घर के सामने थी। सुनील ने अपनी बाइक अ
ं दर कर

ली और नफ़ीसा ने अ
ं दर से गेट बंद करते हुए पूछा, "ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई तुम्हें घर ढूूँ ढने में...?"

"जी नहीं!" नफ़ीसा ने कॉटन का पतला सा हल्के सब्ज़ रंग का िीवलेस और तंग कमीज़ और नीचे सफ़ेद चुड़ीदार सलवार

पहनी हुई थी। उसने दुपट्टा भी नहीं ललया हुआ था और उसकी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही लो-कट था सजसमें से उसकी

बड़ी-बड़ी चूचचयाँ करीब-करीब आधी नंगी थीं और बाहर आने को उतावली हो रही थी। इसके अलावा नमिसा ने पाँच इंच


ूँ ची पेंससल हील के बेहद सैक्सी सैंडल पहन रखे थे। ये सब दे खते ही सुनील के ल
ं ड में सरसराहट होने लगी।

तजुबेकार नफ़ीसा भी सुनील की नज़र को फ़ौरन ताड़ गयी और मुस्कुराते हुए बोली, "चलो अ
ं दर चलो... यहीं खड़े- खड़े दे खते

रहोगे क्या?" नफ़ीसा पहचान गयी थी मक उन दोनों को सुनील को अपने हुस्न ओर अदाओं से पटाने में ज्यादा वक़्त नहीं

लगेगा। नफ़ीसा उसे साथ लेकर हाल में पहु


ूँ ची। नफ़ीसा का घर सच में बहुत बड़ा था। घर के सामने एक बड़ा लॉन था और

पीछे की तरफ़ सस्वटमंग पूल था... नफ़ीसा के ससुर बहुत बड़े जागीरदार हुआ करते थे और अपनी ढेर सारी दौलत और

जायदाद वो नफ़ीसा के शौहर के नाम छोड़ गये थे।

नफ़ीसा ने उसे सोफ़े पर मबठाया और बोली मक वो आराम से बैठे और वो अभी आती है! सुनील ने ऐसा शानदार सजा हुआ

ड्राइंग रूम और फ़र्नलचर ससफ़ल मफ़ल्मों में ही दे खा था। "जी वो रशीदा मैडम कहाँ हैं?" सुनील ने नफ़ीसा से पूछा। "रशीदा चेंज

करने गयी है... अभी आती है..!" ये कह कर नफ़ीसा मकचन में चली गयी और मिर एक मगलास में कोड मड्रंक ले आयी और

सुनील को दे ने के बाद बोली, "तुम बैठो मैं भी चेंज करके आती ह


ूँ ..!"

जैसे ही नफ़ीसा गयी तो सुनील ने वायग्रा की एक गोली मनकाली और कोड-मड्रंक के साथ मनगल ली। थोड़ी दे र बाद नफ़ीसा

बाहर आयी तो सुनील के मु


ूँ ह से सीटी मनकल गयी और धड़कनें तेज़ हो गयीं। नफ़ीसा ने ससफ़ल मैरून रंग का छोटा सा

मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में मेल खाते मैरून रंग के ही पहले जैसे पाँच-छः इंच ऊ
ूँ ची पेंससल हील के बारीक

स्ट्रैप वाले सैंडल। नसीफ़ा की ल


ं बी-ल
ं बी और सुडौल टाँगें और गोरी माँसल जाँघें मबल्कुल नंगी सुनील की नज़रों के सामने

थीं। उसका ल
ं ड तो उसी वक़्त टनटना गया। उसे ये तो पता था मक आज रात दोनों औरतों ने उसे चुदाई के मक़सद से ही

बुलाया है लेमकन ये नहीं सोचा था मक इतनी जल्दी बेधड़क नंगी हो जायेगी। ये औरतें उसकी उम्मीद से काफ़ी ज्यादा ही फ़ॉवलडल

और बोड थीं।

नफ़ीसा ने ज़रा इतराते हुए पूछा, "ऐसे क्या दे ख रहे हो...?"


सुनील खुद को संभालते हुए बोला, "वो... वो कुछ नहीं.. वो आप आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं!"

"अच्छा! वैसे तुम्हे मुझ में क्या खूबसूरत लगता है...?" नफ़ीसा ने पूछा तो सुनील बोला, "जी सब कुछ...!" नफ़ीसा मुस्कुराते हुए

बोली, "मिर तो सब कुछ दे खना भी चाहते होगे...!"

सुनील: "जी अगर आप मौका दें तो!"

नफ़ीसा ने सुनील के पास आकर अपना एक पैर उठा कर सोफ़े पे सुनील की जाँघों के बीच मे रखा मदया और बोली, "मौके

तो आज तुम्हें ऐसे-ऐसे ममलेंगे मक तुमने सोचा भी नहीं होगा... ज़रा मेरी सैंडल का बकल तो कस दो... थोड़ा लूज़ लग रहा है!"

सुनील को ऐसी आशा नहीं थी... ये तो खुला-खुला आमंत्रण था। सुनील थोड़ा नरवस हो गया। उसने काँपते हुए हाथों से

नफ़ीसा के सैंडल की बकल खोल कर उसकी सुईं अगले छेद में डाल कर बकल मिर बंद कर मदया। नफ़ीसा ने मिर दूसरा पैर

वैसे ही सुनील की जाँघों के बीच में रख मदया... इस बार उसके सैंडल का पंजा और पैर की उंगललयाँ सीधे उसके टट्टों और ल
ं ड

को छू रहे थे। सुनील का ल


ं ड उसके ट्रैक-पैंट में कुलांचे मारने लगा। सुनील ने उस सैंडल की बकल भी काँपते हुए हाथों से कस

दी। नफ़ीसा के सैंडल इतने सैक्सी थे मक सुनील का मन हुआ मक झुक कर उसके सैंडल और नरम-नरम गोरे पैर चूम ले।

नफ़ीसा के पैरों के उंगललयों में नेल-पॉललश भी मैरूण ही थी।

"घबरा नहीं सुनील आज की रात तुम्हारे ललये यादगार होने वाली है... अभी तो कईं सप्राइज़ ममलने हैं... चल आजा!" ये कह कर

नफ़ीसा आगे चलने लगी। सुनील खड़ा होकर नफ़ीसा के पीछे जाने लगा। नफ़ीसा उसे घर के पीछे सस्वटमंग पूल की तरफ़ ले

गयी। अ
ं धेरा हो चुका था लेमकन सस्वटमंग पूल के चारों तरफ़ बहुत खूबसूरत रंगमबरंगी रोशनी की हुई थी। वहाँ एक ल
ं बी सी

कुसी पर रशीदा आधी लेटी हुई थी। उसने भी नफ़ीसा की तरह मैरून रंग का मखमली बाथरोब पहना हुआ था और पैरों में

काले रंग के ऊ
ूँ ची पेंससल हील वाले बेहद काचतलाना सैंडल मौजूद थे। रशीदा ने अपनी एक टाँग ल
ं बी कर मबछायी हुई थी

और दूसरी को घुटने से मोड़ा हुआ था। उसके एक हाथ में शराब का मगलास और ससगरेट थी। "ओहह सुनील आओ... कब से

हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे... यहाँ बैठो..." रशीदा ने उसे अपने पास मबठा ललया और उसकी जाँघ को सहलाते हुए बोली

"सुनील क्या लोगे..!"

"जी आप जो भी प्यार से मपला दें वो मैं पी लु


ूँ गा!" सुनील ने जवाब मदया। सुनील को एहसास हो गया था मक वो सशकार करने

आया था लेमकन यहाँ तो उसका ही सशकार होने वाला था।

"माशाल्लह... यार तुम तो बहोत चंट हो बातें बनाने में!" रशीदा बोली तो सुनील मिर तपाक से बोला, "जी बनाने में ही नहीं...

करने में भी चंट ह


ूँ ..!" ये सुनकर रसशदा ससगरेट का धुआं उड़ाते हुए बोली, "क्यों नफ़ीसा.... लगता है आज की रात यादगार होने

वाली है..!"
नफ़ीसा ने पास में टेबल पर रखी मिस्की की बोतल से एक मगलास में मिस्की और सोडा डाल कर सुनील को दी और मिर

रशीदा के मगलास में भी एक और नया पैग बना कर मदया और अपने ललये भी एक पैग बनाया। मिर उसने अपने ललये

ससगरेट सुलगायी और सुनील को भी ससगरेट पेश की तो सुनील ने मना कर मदया। तीनों साथ में बैठ कर मिस्की पीने लगे।

सुनील खुद तो ससगरेट नहीं पीता था लेमकन ये दोनों औरतें ससगरेट पीती हुई बेहद सैक्सी और काचतल लग रही थीं उसे।

रशीदा ने अपनी ससगरेट और पैग खतम मकया और अपने मगलास को टेबल पर रख कर खड़ी हो गयी, "चलो पूल में चलते हैं...

उफ्फ बहोत गरमी है यहाँ पर..!" ये कहते हुए उसने अपने बाथरोब की बेल्ट को खोला और बाथरोब उतार मदया। सुनील की

आूँ खें एक दम से चौंचधया गयी। रशीदा का मिगर दे खते ही सुनील को सन्नी ललयॉन की याद आ गयी।

रचत्त भर भी कम नहीं था रशीदा का सजस्म... वैसे ही अढ़तीस साइज़ के बड़े-बड़े तने हुए मम्मे और वैसे ही बाहर की तरफ़

मनकली हुई गाँड... लाल रंग की छोटी सी लेस की ब्रा के साथ जी-सस्ट्रंग की चचंदी सी लाल पैंटी और ऊ
ूँ ची हील के सैंडल में

क़हर ढा रहा था। अब रशीदा अगर सन्नी ललयॉन थी तो नफ़ीसा तो कहाँ कम थी... मिगर के साथ-साथ शक़्ल-सूरत में भी हुबहु

बॉलीवुड महरोइन ज़रीन खान लगती थी। नफ़ीसा ने भी अपना पैग खतम मकया और ससगरेट का आलखरी कश लगा कर

ऐशट्रे में बुझा दी और अपना बाथरोब उतार मदया। उसने नीचे काले रंग की ब्रा और काले रंग की ही जी-सस्ट्रंग पैंटी पहनी हुई

थी। अपने आप को इन दोनों गज़ब की सैक्सी औरतों के बीच पाकर सुनील का ल


ं ड उसके ट्रैक सूट के पायजामे में कुलांचे

मारने लगा। वैसे तो रुखसाना भी रशीदा और नफ़ीसा से मिगर और खूबसूरती में कम नहीं थी लेमकन ये दोनों बेहद

तेजतरार... डॉममनेटटंग और बेतकल्लुफ़ थीं और रुखसाना थोड़ी शर्मलली और नरम थी।

"अब तुम मकसका इंतज़ार कर रहे हो... चलो कपड़े उतारो..!" नफ़ीसा ने कहा तो सुनील ने एक दम चौंकते हुए खड़े होकर

अपनी टी-शटल उतार दी। मिर उसे याद आया मक आज तो उसने जानबूझ कर सुबह ट्रैक-पैंट के नीचे अ
ं डरमवयर पहना ही नहीं

था तो वो एक दम से रुक गया। "क्या हुआ सुनील... कोई प्रोब्लेम है..?" कहते हुए रशीदा अपने सैंडल पहने हुए ही पूल में उतर

गयी।

"जी मैडम वो मैंने नीचे अ


ं डरमवयर नहीं पहना!" सुनील झेंपते हुए बोला तो रशीदा हंसते हुए बोली, "तो यहाँ कौन सा कोई तुम्हें

दे ख रहा है.... ससफ़ल हमारे अलावा... यार कोई बात नहीं... आजा..!" नफ़ीसा ने अपने और रशीदा के ललये एक-एक पैग और

बनाया और दोनों मगलास लेकर वो भी सैंडल पहने हुए ही सस्वटमंग पूल मैं उतर गयी। सस्वटमंग पूल ज्यादा गहरा नहीं था और

ससफ़ल कमर तक ही पानी था। सुनील ने सोचा मक साला ये तो सीधे चुदाई का आमंत्रण है... ऐसा मौका हाथ से नहीं जाने दे ना

चामहये। सुनील ने अपना ट्रैक-सूट वाला पायजामा भी उतार मदया। नवलस होने के कारण उसका ल
ं ड लटक सा गया था।

सुनील का पहला पैग अभी खतम नहीं हुआ था। उसने अपना मगलास पूल के मकनारे पे रखा और अपने झूलते हुए ल
ं ड को

लेकर सस्वटमंग पूल में उतर गया। जैसे ही सुनील पूल के अ


ं दर आया तो नफ़ीसा उसके करीब आ गयी और उसके होंठों पर

अपना मगलास लगाते हुए बोली, "एक जाम इस नयी दोस्ती के नाम!" सुनील ने एक ससप ललया और मुस्कुरा कर नफ़ीसा की

तरफ़ दे खा। रशीदा भी सुनील के करीब आयी और उसने भी अपने मगलास को सुनील के होंठों की तरफ़ बढ़ा मदया। नफ़ीसा

सुनील की चौड़ी छाती को अपने एक हाथ से सहला रही थी। सुनील ने रशीदा के मगलास से भी एक ससप ललया।
सुनील ने पूल के मकनारे रखा हुआ अपना मगलास उठा ललया और मिर तीनों धीरे-धीरे ससप करने लगे। रशीदा और नफ़ीसा

दोनों अपने एक-एक हाथ से सुनील के चौड़े सीने को सहला रही थी। सुनील का ल
ं ड अब मिर खड़ा होने लगा था। आलखर वो

मबल्कुल नंगा दो-दो इतनी सैक्सी और करीब-करीब नंगी हसीनाओं से चघरा हुआ सस्वटमंग पूल में मौजूद था और ऊपर से

दोनों हुस्न की मलल्लकाओं ने पूल के अ


ं दर भी हाई हील वाले सैंडल पहने हुए थे। सुनील को तो अपनी मकस्मत पे मवश्वास ही

नहीं हो रहा था। रशीदा बीच-बीच में अपना हाथ नीचे सुनील के पेट की ओर ले जाती तो कभी नफ़ीसा उसकी जाँघों को

अपने हाथ से सहलाने लग जाती। सुनील का ल


ं ड अब धीरे-धीरे मिर से अपनी औकात में आने लगा था। सुनील भी उन

दोनों के सजस्म छुना उनके मम्मे और गाँड दबाना चाहता था लेमकन उन दोनों का दबदबा ही ऐसा था मक सुनील की खुद से

महम्मत नहीं हुई। रशीदा ने जब सुनील के ल


ं ड को खड़ा होते दे खा तो उसकी आूँ खों में चमक आ गयी और टाँगें थरथराने लगी।

सुनील के खड़े होते हुए ल


ं ड का साइज़ दे ख कर रशीदा को समझ आया मक क्यों नफ़ीसा सुबह सुनील का ल
ं ड दे ख कर इतनी

बेकरार हो रही थी। उसने इशारे से नफ़ीसा को नीचे की और दे खने को कहा तो नफ़ीसा की चूत भी सुनील के अकड़ते हुए ल
ं ड

को दे ख कर िुदिुदाने लगी।

रशीदा ने गटक कर अपना पैग खतम करते हुए कहा, "नफ़ीसा चलो ना अब खाना खाते हैं... बहुत हो गया..!" ये सुनकर सुनील

के तो खड़े ल
ं ड पे जैसे धोखा हो गया। उसे लग रहा था मक अभी बात शायद आगे बढ़ेगी। दोनों औरतें उसे इस तरह क्यों तड़पा

रही थीं। दो-दो रसगुल्ले उसके सामने थे... उसे तरसा रहे थे लेमकन वो खा नहीं पा रहा था।

तीनों पूल से बाहर आये और नफ़ीसा ने सुनील को एक तौललया मदया। सुनील ने अपनी कमर पर तौललया लपेटा और मिर

अपने कपड़े उठा ललये। नफ़ीसा और रशीदा ने वहाँ पर बने हुए बाथरूम में जाकर अपनी गीली पैंटी और ब्रा उतार दीं लेमकन

सैंडल अभी भी नहीं उतारे। मिर तौललये से अपने सजस्म और सैंडल वाले पैर सुखा कर दोनों ने अपने-अपने बाथरोब पहने

और तीनों घर के अ
ं दर आ गये। अ
ं दर आकर तीनों ने वैसे ही खाना खाया और मिर शराब पीने लगे। शराब और शबाब का

नशा अब तीनों पर हावी होने लगा था। दोनों औरतें खुल कर बाथरोब में छुपे हुए अपने हुस्न का दीदार सुनील को कराने लगी

थीं। सुनील जानबूझ कर सावधानी से थोड़ी-थोड़ी ही शराब पी रहा था लेमकन दोनों औरतें बे-रोक पैग लगा रही थीं और एक

के बाद एक ससगरेट ि
ूँ ू क रही थीं और नशे में झूमने लगी थीं। सुनील का तो बुरा हाल हो चुका था। तौललये के अ
ं दर उसका


ं ड धड़क-धड़क कर िुिकारें मार रहा था। "तो सुनील तू कह रहा था मक तेरी कोई गलल फ्रेंड नहीं है..!" रशीदा ने नफ़ीसा की

ओर दे खते हुए कहा। दोनों औरतें अब तुम से तू पे आ गयी थीं।

"जी नहीं है!" सुनील ने भी नफ़ीसा के ओर दे खते हुए कहा तो नफ़ीसा बोली, "तो इश्क़ के खेल में अभी अनाड़ी हो..?"

"जी हाँ! इश्क़ के खेल में शायद अनाड़ी ह


ूँ पर मस्ती के खेल में नहीं..!" सुनील ने जवाब मदया। रशीदा बोली, "ओहो... तू तो मिर

बड़ा छुपा रुस्तम मनकला... यार नफ़ीसा मैंने कहा था ना अपना सुनील सजतना मासूम मदखता है... उतना है नहीं..!"
नफ़ीसा ससगरेट का कश लगाते हुए आूँ खें नचाते हुए बोली, "तो तू मस्ती करने में अनाड़ी नहीं है... हमें भी तो पता चले मक तूने

कहाँ और मकसके साथ और मकतनी मस्ती की है..!"

सुनील का सब्र टू टा जा रहा था। "छोमड़ये ना मैडम... वो सब पुराने मकस्से हैं...!" सुनील बोला तो नफ़ीसा अपनी कुसी से उठी

और बड़ी ही अदा के साथ चलते हुए सुनील के करीब आयी और अपनी एक बाँह सुनील की गदल न में डाल कर सुनील के गोद

में बैठ गयी और रशीदा की तरफ़ दे ख कर मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा... चाहे तो आज मस्ती के नये मकस्से बना ले... क्या

ख्याल है..?"

"ख्याल तो बहुत बमढ़या है...!" सुनील बोला। सुनील के कुलांचे मार रहे ल
ं ड की नफ़ीसा चुभन अपनी गाँड के नीचे महसूस कर

रही थी। वो हंसते हुए बोली, "हाँ खूब पता चल रहा है मक तू क्या चाहता है!" "वो कैसे...?" सुनील ने पूछा तो नफ़ीसा बोली, "वो

ऐसे मक तेरा हचथयार जो बार-बार मेरे चूतड़ों पर जोर-जोर से ठोकरें मार रहा है..!"

सुनील बोला, "लेमकन मेरे अकेले के चाहने से क्या होगा..?"

"ओह हो... अब तू इतना नादान तो नहीं है... तू भी समझ तो गया ही होगा मक हम दोनों भी यही चाहती हैं!" ये कहते हुए नफ़ीसा

सुनील की गोद से खड़ी हुई और सुनील का हाथ पकड़ कर झूमती हुई चलती हुई उसे बेडरूम की तरफ़ ले जाने लगी। रशीदा

भी नशे में झूमती हुई उनके पीछे चल पड़ी। नफ़ीसा के मुकाबले रशीदा कुछ ज्यादा नशे में थी जबकी शराब दोनों ने तकरीबन

बराबार ही पी थी... शायद इसललये मक नफ़ीसा अक्सर शराब पीने की आदी थी जबमक रसशदा को कभी-कभार ही मौका

ममलता था। नफ़ीसा की सोहबत में ही उसने शराब और ससगरेट पीना शुरू की थी।

बेडरूम में पहु


ूँ च कर नफ़ीसा ने सुनील को धक्का दे कर बेड पर मगरा मदया और रशीदा ने भी अ
ं दर आकर पीछे से कमरे के

दरवाजा को लॉक कर मदया। नफ़ीसा बेड पर चढ़ी और सुनील के ऊपर झुकते हुए बोली तो "बखुलरदार... ज़रा हमें भी तो बता

मक तू क्या-क्या जानता है!" दूसरी तरफ़ रशीदा भी बेड पर सुनील के दूसरी तरफ़ करवट के बल लेट गयी और सुनील के चौड़े

सीने को एक हाथ से सहलाते हुए अपनी एक टाँग उठा कर सुनील के टाँगों पर रख दी। "जी बहुत कुछ जानता ह
ूँ ..!" सुनील ने

अपने दोनों तरफ़ लेटी हुई मस्त चुदैल औरतों को दे ख कर कहा जो उम्र में उससे दुगुनी से ज्यादा बड़ी थीं। "रशीदा तुझे स्ट्राबेरी

फ्लेवर बहोत पसंद है ना..?" नफ़ीसा की ये बात सुन कर सुनील चौंक गया मक अब साला स्ट्राबेरी फ्लेवर बीच में कहाँ से आ

गया। "हाँ यार बेहद पस


ं द है..!" रशीदा बोली तो नफ़ीसा ने उसे कहा मक "तो उस ममनी-मफ्रज में तेरे ललये कुछ है... जा मनकाल

कर ले आ!"

रशीदा उठी और बेडरूम के एक कोने में मेज के नीचे रखे छोटे से मफ़्रज को खोला। उसमें एक काँच के बड़े से मगलास में

स्ट्राबेरी फ़्लेवर की िीम मौजूद थी। उसे दे ख कर रशीदा की आूँ खों में चमक आ गयी। रशीदा वो िीम भरा मगलास लेकर बेड

पर आकर बैठ गयी। उसने एक बार नफ़ीसा की तरि मुस्कुराते हुए दे खा तो नफ़ीसा ने सुनील के तौललये को पकड़ कर

खींचा पर तौललया सुनील के वजन से दबा हुआ था। सुनील ने खुद ही अपने चूतड़ उचका कर तौललया अपने सजस्म से अलग
करके िेंक मदया। सुनील का आठ इंच से ल
ं बा और खूब मोटा मूसल जैसा ल
ं ड झटके खाते हुए िुिकारने लगा सजसे दे ख

कर दोनों चुदैल राँडों के मु


ूँ ह से सससकरी मनकल गयी!। "याल्लाहा ऊ
ूँ ऊ
ूँ हह नफ़ीसा... ये तो बहोत तगड़ा... घोड़े जैसा है..!" रशीदा

ने सुनील के ल
ं ड को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए कहा। "मैंने तो सुबह ही तुझे बता मदया था... साले ऐसे घोड़े की ही तो

सवारी करने में मज़ा है.. आज तो हमारी मकस्मत खुल गयी... यार सुनील पहले मालूम होता मक तू अपनी टाँगों के दर्मलयान इस

कदर ल
ं बा और मोटा लौड़ा छुपाये हुए है तो आल्लाह कसम पहले मदन ही तेरे से चुदवा लेती..!" ये कहते हुए नफ़ीसा ने हाथ

बढ़ा कर सुनील के ल
ं ड को अपने हाथ में पकड़ ललया और उसके ल
ं ड के आगे की चमड़ी पीछे की तरफ़ सरकायी तो सुनील के


ं ड का सुपाड़ा लाल टमाटर की तरह चमकने लगा सजसे दे ख कर दोनों की चूत कुलबुलाने लगी। रशीदा जल्दी से स्ट्राबेरी

िीम का मगलास सुनील के ल


ं ड के ठीक ऊपर ले जाकर उस पर ठंडी िीम टपकाने लगी। ठंडी िीम को अपने ल
ं ड पर मगरता

महसूस करके सुनील एक दम से सससक उठा। "क्या हुआ बखुलरदार?" नफ़ीसा ने सुनील को सससकते हुए दे ख कर पूछा।

"आहहह बहुत ठंडा है मैडम!" सुनील ने सससकते हुए कहा।

"थोड़ा सा इंतज़ार कर... अभी दे खना तेरे इस ल


ं ड को मकतनी गरमी ममलने वाली है!" नसीफ़ा बोली। सुनील का ल
ं ड पूरी तरह

से िीम से भीग गया। रशीदा ने मगलास नीचे रखा और सुनील की जाँघों के पास मु
ूँ ह करके पेट के बल लेट गयी। दूसरी तरफ़

ठीक वैसे ही नफ़ीसा भी लेट गयी। रशीदा ल


ं ड पर झुकी और अपने होंठों को सुनील के ल
ं ड के मोटे सुपाड़े पर लगा मदया।

सुनील मस्ती से सससक उठा और उसने रशीदा के खुले हुए बालों को कसके पकड़ ललया। रशीदा ने इस बात का बुरा नहीं

माना और अपने होंठों को सुनील के ल


ं ड के सुपाड़ा के चारों तरफ़ कसती चली गयी। थोड़ी ही दे र में सुनील के ल
ं ड का सुपाड़ा

रशीदा के मु
ूँ ह में था और वो उसे अपने होंठों से दबा-दबा कर चूसने लगी। दूसरी तरफ़ से नफ़ीसा ने भी दे र ना की और अपनी

ज़ुबान और होंठों से सुनील के ल


ं ड के मनचले महस्सों और टट्टों को चाटने लगी। सुनील के ल
ं ड को अब दोहरी मार पड़ रही थी

और ऊपर से वायग्रा का भी असर था। सुनील का ल


ं ड एक दम अकड़ गया था। सुनील ने अपने दूसरे हाथ से नफ़ीसा के खुले

हुए बालों को पकड़ ललया। दोनों औरतें सुनील के ल


ं ड पर कुचत्तयों की तरह टू ट पड़ी। रशीदा तो सुनील के ल
ं ड को चूसने में

मश्गूल थी और नफ़ीसा कभी सुनील के ल


ं ड की ल
ं बाई पर अपनी ज़ुबान मिराती तो कभी सुनील की गोमटयों को पकड़ कर

मु
ूँ ह में भर कर चूसने लगती।

सुनील आूँ खें बंद मकये हुए जन्नत सा मज़ा ले रहा था। नफ़ीसा और रशीदा सजस जोशीले अ
ं दाज़ में सुनील के ल
ं ड को चूस

और चाट रही थीं... दे खने से लग रहा था मक जैसे सामने मकसी पोनल मूवी का मंज़र चल रहा हो। थोड़ी ही दे र में सुनील के ल
ं ड से

िीम मबल्कुल सफ़ाचट हो चुकी थी और ल


ं ड उन दोनों के थूक से पुरी तरह सन गया। जैसे ही रशीदा ने सुनील के ल
ं ड को

अपने मु
ूँ ह से बाहर मनकला तो नफ़ीसा ने लपक कर उसे अपने मु
ूँ ह में भर ललया। 'पक-पक' 'गलप --गलप' जैसी आवाज़ें पूरे

कमरे में गू
ूँ जने लगीं। "नफ़ीसा यार बे-इंतेहा मज़ा आ रहा है... एक मुद्दत से ऐसे जवान ल
ं ड का ज़ायका नहीं चखा था..." रशीदा

बोली। नफ़ीसा ने सुनील के ल


ं ड को मु
ूँ ह से बाहर मनकाल कर अपने हाथ से महलते हुए कहा, "हाँ सच रसशदा... मैंने कईं जवान

लौड़े चूसे हैं लेमकन ऐसा कमाल का ल


ं ड कभी नहीं चूसा... अलाह कसम मज़ा आ गया यार.. मदल करता है रोज़ इस ल
ं ड के

चुप्पे लगाऊ
ूँ !" ये कहते हुए उसने मिर से सुनील के ल
ं ड को मु
ूँ ह में भर कर चूसना शुरू कर मदया।
नफ़ीसा का बेडरूम चुसाई की आवाज़ों से भर गया था। रशीदा बोल "यार... पहले तू इस लौड़े की सवारी करेगी क्या?" नफ़ीसा

ने सुनील का ल
ं ड मु
ूँ ह से बाहर मनकाल कर अपने हाथ से मुमठयाते हुए पूछा तो रशीदा मबना कुछ बोले उठ कर बैठ गयी उसने

अपना बाथरोब मनकाल कर िेंक मदया। दूसरी तरफ़ नफ़ीसा ने भी अपना बाथरोब उतार कर िेंक मदया और अब दोनों ऊ
ूँ ची

हील के सैंडलों के अलावा सुनील की तरह मादरजात नंगी हो गयीं। दोनों सुनील के अगल-बगल में लेट कर उसके ऊपर झुक

गयीं। दोनों की बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचचयाँ सुनील के चेहरे के ऊपर झूलने लगीं सजसे दे ख सुनील की आूँ खों में चमक आ गयी।

नफ़ीसा के मनप्पल कुछ ज्यादा ही ल


ं बे और मोटे थे सजन्हें दे ख कर ऐसा लग रहा था जैसे चींख-चींख कर कह रहे हों मक आओ

हमें मु
ूँ ह में भर कर मनचोड़ लो! सुनील ने भी एक पल की दे र नहीं की और अपने ससर को थोड़ा सा ऊपर उठा कर नफ़ीसा की

चूंची के मनप्पल को मु
ूँ ह में भर ललया। नफ़ीसा सुनील के ऊपर झुक गयी और अपनी चूंची को सुनील के मु
ूँ ह में और ज्यादा

ठे ल मदया। सुनील ने भी उसकी चूंची और मनप्पल को अपने होंठों में दबा-दबा कर चूसना शुरू कर मदया। "आहहहह हाँआूँ ऽऽ

चूस सुनील.... आहहहह बहोत अच्छा लग रहा है..!" और उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर सुनील के ल
ं ड को पकड़ कर

मुमठयाना शुरू कर मदया। दूसरी तरफ़ लेटी रशीदा सुनील के टट्टों के साथ खेलने लगी। सुनील ने कभी सोचा नहीं था मक ये

दोनों औरतें उसे इतना मज़ा दें गी। नफ़ीसा की चूंची को थोड़ी दे र चूसने के बाद उसने चूंची को मु
ूँ ह से बाहर मनकला और

रशीदा के तरफ़ दे खा।

रशीदा ने अपनी एक चूंची को हाथ में पकड़ कर अपने मनप्पल की ओर नोकदार बनते हुए उसे सुनील के मु
ूँ ह से सटा मदया।

सुनील ने भी िौरन मु
ूँ ह खोल कर रशीदा की चूंची को मु
ूँ ह में भर ललया और चूसना शुरू कर मदया। रशीदा की मस्ती में आूँ खें

बंद होने लगी। उसका हाथ सुनील के चौड़े सीने पर तेजी से घूमने लगा। दूसरी तरफ़ लेटी नफ़ीसा उठ कर सुनील के ऊपर आ

गयी और अपने घुटनों को सुनील की कमर के दोनों तरफ़ रख कर बैठते हुए सुनील के ल
ं ड को हाथ से पकड़ ललया। अपनी

चूत की फ़ाँकों पर जैसे ही उसने सुनील के ल


ं ड का सुपाड़ा रगड़ा तो वो एक दम से सससक उठी, "आहहहह सुनील... तेरा ल
ं ड तो

बेहद गरम है साले..!" नफ़ीसा की आवाज़ सुन कर रशीदा ने भी अपने मम्मे को सुनील के मु
ूँ ह से बाहर मनकला और नसीफ़ा

को िटकारते हुए बोली, "साली नसीफ़ा चूतमरानी... तूने ही तो मुझे पहले सवारी करने को कहा था और अब खुद मौका

ममलते ही इसके ल
ं ड पे सवार हो गयी तू!"

"अरे यार नाराज़ क्यों होती है गुदमरानी... तू भी सवार हो जा... हम दोनों एक साथ बारी-बारी से जगह बदल- बदल कर पूरी रात

सवारी करेंगी इस घोड़े की!" नफ़ीसा बोली तो रशीदा ने सुनील के ससर के दोनों तरफ़ अपने घुटनों को बेड पर रखा सजससे

रशीदा की गंजी चचकनी चूत ठीक सुनील के चेहरे के ऊपर आ गयी। रशीदा और नफ़ीसा दोनों एक दूसरे के तरफ़ मु
ूँ ह करके

सुनील के ऊपर बैठी हुई थीं और उनके घूटने एक दूसरे के घुटनों से सटे हुए थे। रशीदा ने अपनी चूत के होंठों को िैलाते हुए

अपनी चूत के दाने (मक्लट) को मदखाते हुए कहा, "दे ख सुनील ये है औरतों का मट्रगर... मालूम है ये औरतों का सबसे सेमिमटव

महस्सा होता है!" सुनील आूँ खें फ़ाड़े रशीदा की गुलाबी चूत के छेद और दाने को अपने आूँ खों के तीन-चार इंच के फ़ासले पर

दे ख रहा था। "चल अब तेरी बारी है हमें मज़ा दे ने की... इसे चूस..!" नफ़ीसा भी मस्ती में बोली, "हाँ सुनील चाट ले... इस रस का

ज़ायका हाससल करने के ललये तो मदल तरसते रह जाते है..!"


रशीदा ने अपने चूतड़ महलाते हुए अपनी चूत के दाने को दो उंगललयों के दर्मलयान दबाते हुए रगड़ा तो वो छोटे से बच्चे के ल
ं ड

की तरह िूल गया। रशीदा सससकते हुए बोली, "ये वो चीज़ है सुनील सजससे हर लड़की और औरत मपघल जाती है... एक बार

अगर तूने मकसी की चूत या दाने को चूस ललया... तो वो खुद ब-खुद तेरे ल
ं ड के नीचे आ जायेगी... मेरी बात याद रखना!" और ये

कहते हुए रशीदा ने अपनी चूत सुनील के होंठों के और करीब कर दी। सुनील ने फ़ौरन रशीदा की चूत के छेद पर अपने होंठों

को लगा मदया कुछ पलों के ललये सुनील की नाक और साँसों में चूत की तेज़ महक समा गयी। जैसे ही उसने रशीदा के चूत के

छेद पर अपने होंठों लगाया तो रशीदा का पूरा सजस्म काँप उठा... उसकी कमर झटके खाने लगी। "आआहहह सुनील

ओहहहह आूँ हहहह सीईईऽऽऽ आूँ हहह ऊऊईईईईं आआहहहल्लाआआह सुनीईईल येस्सऽऽऽ सक मीईईई... आआहहह!"

सुनील को समझते दे र नहीं लगी मक रशीदा जो कह रही है... वो एक दम सच है अपने ऊपर रशीदा को यू
ूँ तड़पते दे ख कर उसने

रशीदा की चूत के दाने को अपने होंठों में भर कर और जोर-जोर से चूसना शुरू कर मदया। रशीदा एक दम से मचल उठी,

"ओहहहह सुनीईईल आहहहह आूँ हहह ररयली में बेहद अच्छा आआआह लग रहा है..हाय अल्लाआआहाआआ मेरी िुद्दी

आहहह ओहहहह सीईईईई!"

दूसरी तरफ़ सुनील को अपना ल


ं ड मकसी गीली और गरम चीज़ में घुसता हुआ महसूस हुआ। "आहहह सुनील... तेरा ल
ं ड तो

सच में बहोत मोटाआआ है... आहहहह मेरी िुद्दी ओहहहह आहहहहह..!" नफ़ीसा धीरे-धीरे सुनील के ल
ं ड पर अपनी चूत को

दबाती जा रही थी और सुनील के ल


ं ड का मोटा सुपाड़ा नफ़ीसा की चूत के अ
ं दर उसकी दीवारों से रगड़ खाता हुआ अ
ं दर जाने

लगा। नफ़ीसा के सजस्म अपनी चूत की दीवारों पर सुनील के ल


ं ड के रगड़ को महसूस करके थरथराने लगा। उसने अपने आप

को मकसी तरह से संभालते हुए अपने सामने रशीदा के क


ं धों पर हाथ रख मदये जो उस वक़्त सुनील के मु
ूँ ह के ऊपर बैठी उससे

अपनी चूत चुसवाते हुई बेहद मस्त हो चुकी थी। "हाय रशीदा ये लौड़ा तो नाफ़ तक अ
ं दर जा रहा है!"

रशीदा भी मस्ती में सससकते हुए बोली, "आहहहह तो साली ले ले ना पूरा का पूरा अ
ं दर... मज़ा आ जायेगा... आहहह मेरी चूत

तो बुरी तरह से फ़ुदक रही है... आहहहह सुनील चूस्स्स्स नाआआ ज़ोर-ज़ोर से!" नफ़ीसा ने अब धीरे-धीरे अपनी गाँड को ऊपर-

नीचे करते हुए सुनील के ल


ं ड पर अपनी चूत को चोदना शुरू कर मदया था। सुनील का ल
ं ड कुछ ही पलों में नफ़ीसा की चूत के

चचकने पानी से भीग कर चचकना हो गया और तेजी से अ


ं दर-बाहर होने लगा। "आहहह साले ऐसा लौड़ा रोज़-रोज़ नहीं ममलता

चुदवाने के ललये... आआआहहहहह ओहहह ऊहहहह रशीदा मेरी चूत... आहहह कब से घोड़ों और गधों के लौड़ों से चुदने के

ख्वाब दे खती थी.... आहहह आआआज आआआल्लाआआहह ने मेरी दुआआआ कुबूल कर ली..!" सुनील भी अब तेजी से

अपने ल
ं ड को ऊपर के तरफ़ उछालने लगा। नफ़ीसा की चूत में सुनील का ल
ं ड 'िच्च-िच्च' की आवाज़ करते हुए अ
ं दर-बाहर

होने लगा।

नफ़ीसा ने अपने सामने सुनील के चेहरे के ऊपर बैठी रशीदा को अपनी बांहों में जकड़ ललया और रशीदा के होंठों को अपने

होंठों में लेकर चूसना शुरू कर मदया। रशीदा भी पूरी तरह गमल हो चुकी थी। दोनों पागलों की तरह एक दूसरे के होंठों को चूसते

हुए एक दूसरे के मु
ूँ ह में अपनी ज़ुबाने घुसड़
े ने लगीं। सुनील ये दे ख तो नहीं सकता था क्योंमक उसकी आूँ खें रशीदा के चूतड़ों

के पीछे थी लेमकन उसे समझ आ गया था मक दोनों औरतें एक दूसरे से चचपकी हुई चूमा-चाटी में शरीक हैं। सुनील ने रशीदा
की चूत के दाने को अपने होंठों में और जोर-जोर से दबा कर चूसना शुरू कर मदया और रशीदा एक दम से मचल उठी। उसका

सजस्म अचानक अकड़ कर जोर-जोर से झटके खने लगा। उसने नफ़ीसा को कस के जकड़ मकया और अपने होंठों को उसके

होंठों से अलग करके जोर-जोर से सससकते हुए चींखने लगी, "ओहहहह सुनीईईईल आहहहह सुनील मेरी िुद्दी आहहहह

हायऽऽऽऽ ओहहहह सीईईईईईई ऊ


ूँ हहहह सुनीईईईल लेऽऽऽऽ मेरीईईईई िुद्दी के पानी का ज़ायक़ा चख आहहहह ओहहहह!"

रशीदा की चूत से पानी बह मनकला और वो काँपते हुए झड़ने लगी और थोड़ी दे र बाद मनढाल होकर सुनील के बगल में लुढ़क

गयी। सुनील का पूरा चेहरा रशीदा की चूत के पानी से भीग गया था। नफ़ीसा ने भी अपनी गाँड को सुनील के ल
ं ड पर तेजी से

ऊपर-नीचे उछालना शुरू कर मदया और सुनील भी पूरे जोश में अपने चूतड़ उठा-उठा कर नीचे से नफ़ीसा की चूत में अपना

लौड़ा ठोकने लगा। थोड़ी दे र बाद ही नफ़ीसा की चूत ने भी सुनील के ल


ं ड पर पानी छोड़ना शुरू कर मदया और नफ़ीसा भी

सुनील के ऊपर लुढ़क गयी। तीनों आपस में ललपटे हुए थोड़ी दे र तक अपनी साँसें दुरस्त करते रहे। इस दौरान दोनों औरतों ने

सुनील के चेहरे को चाट-चाट कर साफ़ कर मदया जो मक रसीदा की चूत के पानी से सना हुआ था। "ओहहह सुनील तूने तो

कमल ही कर मदया..!" रशीदा उसके ल


ं ड को हवस ज़दा नज़रों से घूरते हुए बोली। रशीदा को नसीफ़ा आूँ खों से कुछ इशारा

करते हुए बोली, "अरे यार सुनील के लौड़े की सवारी करने से पहले अपनी स्पेशल शेंपेन तो मपला दे !" ये सुनकर रशीदा के

होंठों पे कुमटल मुस्कान िैल गयी। सुनील मिर चकरा गया मक अब ये कौनसा नया मिस्ट है। "जरूर मेरी जान मुझे वैसे भी

लगी हुई थी... बाथरूम में चलेगी मेरे साथ या यहीं ले आऊ


ूँ ... सुनील भी लेगा क्या?" रशीदा बेड से उठते हुए बोली। "तू यहीं ले

आ यार... क्यों सुनील तू भी लेगा ना रशीदा की बनायी हुई स्पेशल शेम्पेन!" सुनील ने पहले कभी शेम्पेन नहीं पी थी और इन

दोनों चुदैल औरतों की बातों से उसे शक सा हो रहा था मक कुछ तो गड़बड़ है। इसललये जब उसने पूछा मक वो दोनों कैसी

शेम्पेन की बात कर रही हैं तो दोनों जोर-जोर से हंसने लगी। मिर नफ़ीसा ने हंसी रोकते हुए बताया मक वो दर असल रशीदा

के पेशाब की बात कर रही हैं तो ना चाहते हुए भी सुनील को बेहद अजीब लगा और वो फ़ौरन अजीब सा मु
ूँ ह बनाते हुए बोला,

"नहीं नहीं... मुझे नहीं चामहये!" रसशदा हंसते हुए बोली, "कोई बात नहीं यार... कोई जबदल स्ती नहीं है!" ये कह कर रशीदा ने मेज पर

से दो बड़े-बड़े मगलास उठाये और नशे में झूमती हुई बाथरूम में चली गयी।

रशीदा बाथरूम में कमोड पर बैठ कर मगलासों में मूतने लगी। उसने अभी एक मगलास अपने मूत से भर कर नीचे रखने के बाद

दूसरे मगलास में मूतना शुरू ही मकया था मक उसे बाहर से नफ़ीसा के तेज सससकने और कराहने की आवाज़ आयी। "साली

राँड चूतमरनी कहीं की... लगता है मिर से उसका ल


ं ड चूत में ले कर चुदवाना शुरू कर मदया.... भोंसड़ी की... मुझे भी चुदवाने दे गी

मक नहीं!" रशीदा बड़बड़ायी। दोनों मगलास अपने मूत से भरने के बाद बाकी उसने कमोड में मूत मदया। जब वो मूत से भरे

मगलास लेकर बाहर आयी तो उसने दे खा मक नफ़ीसा बेड पर कुचत्तया की तरह अपनी गाँड पीछे की और मनकाल कर अपनी

कोहमनयाँ मबस्तर पर मटकाये हुए झुकी हुई थी। सुनील मबस्तर पर अपने घुटनों को मोड़ कर कुचत्तया बनी नफ़ीसा के ऊपर चढ़ा

हुआ था और सुनील का ल
ं ड नफ़ीसा की गाँड के छेद में बुरी तरह ि
ं सा हुआ था। "आहहह सुनील आराम सेऽऽऽ ओहहहह

तेरा लौड़ा तो मेरी गाँड ही िाड़ दे गा.. हाय अल्लाहऽऽ.. मर गयी मैं...!" पीछे खड़ी रशीदा ने एक मगलास बेड की साइड टेबल पे

रखा और अपनी सहेली को इस तरह चींखते दे ख कर मुस्कुरायी और एक मगलास अपने हाथ में पकड़े हुए बेड पर चढ़ गयी।
मिर मगलास में से अपने ही मूत के दो तीन घू
ूँ ट पी कर सुनील के पीठ को सहलाते हुए बोली, "बहोत खूब सुनील...

सुभानल्लाह... बजा दे इस गाँडमरी की गाँड का ढोल... पूरे घर में इसकी गाँड का ढोल बजता हुआ सुनायी दे ना चामहये..!"

नफ़ीसा सससकते हुए बोली, "आअहहह चुप कर साली ओहहह हाय अल्लाह आूँ हहह गाँड मरवाने का असली मज़ा तो ऐसे

मूसल जैसे ल
ं ड से ही आता है... इस ददल में भी लज़्ज़त है मेरी जान... अभी थोड़ी दे र में मेरी गाँड का ढोल नहीं... मपयानो बजता

सुनायी दे गा तुझे कुचत्तया!" सुनील का अभी आधा ल


ं ड ही नफ़ीसा की गाँड में उतरा था और नफ़ीसा को मस्ती और ददल की

तेज लहर अपनी गाँड में महसूस होने लगी थी। सुनील धीरे-धीरे अपना आधा ल
ं ड ही नफ़ीसा की गाँड के अ
ं दर बाहर करने

लगा। "सुनील यार... ऐसे मज़ा नहीं आयेगा हमारी नफ़ीसा को.. एक नंबर की गाँडमरी है ये... जोर से चाँप साली की गाँड को...

मिर दे ख कैसे इसकी गाँड से पादने की आवाज़ें आती हैं!" रसशदा मगलास में से अपना मूत ससप करते हुए बोली। नफ़ीसा

रशीदा की तरफ़ दे खते हुए थोड़ा चचढ़ कर बोली, "तू क्यों मफ़ि कर रही है कुचत्तया... तेरी गाँड का ढोल भी आज िटेगा सुनील

के ल
ं ड से..!"

"ओहहह भोंसड़ी की... तू इसका लौड़ा छोड़े तब ना... तू ही मरवा ले पहले अपनी गाँड!" रशीदा बोली और मगलास में बचा

अपना मूत गतक-गटक पी कर खाली मगलास साइड में रख मदया। सुनील अब नॉमलल स्पीड से नफ़ीसा की गाँड के छेद में

अपना ल
ं डअ
ं दर-बाहर कर रहा था। नफ़ीसा की गाँड अब सुनील के मोटे ल
ं ड के मुतामबक एडजस्ट हो गयी थी और उसका ददल

का एहसास मबल्कुल खतम हो चुका था। नफ़ीसा ने भी अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ ढकेलना शुरू कर मदया। "आहहहहह

ओहहहह येस्स्सऽऽऽ सुनील... और तेज़ मार मेरी गाँड... पूरा का पूरा घुसा दे अपना लौड़ा.... ओहहहह... मैं भी दे ख
ूँ ू मक मकतनी

अकड़ है तेरे लौड़े में... आहहह आूँ आहहहहहह...!" सुनील अब पूरी ताकत के साथ अपना मोटा मूसल जैसा ल
ं ड नफ़ीसा की

गाँड के छेद में अ


ं दर तक पेलने लगा और नफ़ीसा भी मकसी मंझी हुई रंडी की तरह अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ सुनील के


ं ड पर ढकेलने लगी।

सुनील ने नफ़ीसा की गाँड को चोदते हुए एक दम से अपने ल


ं ड को पूरा बाहर मनकला तो उसने दे खा मक नफ़ीसा की गाँड का

छेद और आसपास का महस्सा एक दम सुखल हो चुका था और अगले ही पल उसने मिर से अपने ल


ं ड को एक ही बार में

नफ़ीसा की गाँड के छेद में पेल मदया। जैसे ही सुनील के ल


ं ड का मोटा सुपाड़ा नफ़ीसा की गाँड के छेद के अ
ं दर की तरफ़ हवा

को दबाते हुए बढ़ा और जड़ तक अ


ं दर घुसा तो हवा गाँड के छेद से पुरलरल की आवाज़ करते हुए बाहर मनकली सजसे सुनते ही

नफ़ीसा की गाँड और िुद्दी में सरसराहट दौड़ गयी। "ऊऊऊहहह आआओहहह सुनीईईल तूने तो कमाल ही कर मदया...

आहहह मार मेरी गाँड और जोर-जोर से... आूँ आूँ हहह ओं ओं ओं हहहह हाँआआआ ऐसे ही... शाबाश मेरे शेर ओअहहह और

तेज... पाद मनकाल दे ... सुनील... िक मॉय ऐस ओहहहह ओं ओं हहह!"

सुनील अब मबना मकसी परवाह के नफ़ीसा की गाँड में अपना ल


ं ड तेजी से अ
ं दर-बाहर कर रहा था और बीच-बीच में नफ़ीसा

की गाँड में से हवा बाहर मनकल कर पुरलरल-पुरलरल की आवाज़ करती और सुनील की जाँघें नफ़ीसा के मोटे चूतड़ों के साथ टकराते

हुए ठप-ठप की आवाज़ करती जो कमरे के अ


ं दर नफ़ीसा की मस्ती भरी सससमकयों के साथ गू
ूँ जने लगी। थोड़ी ही दे र में

नफ़ीसा को अपनी गाँड और चूत के छेद में सरसराहट बढ़ती हुई महसूस हुई और मिर नफ़ीसा की चूत ने अपना लावा
उगलना शुरू कर मदया। नफ़ीसा आगे की तरफ़ लुढ़क गयी और सुनील का गंदा सना हुआ ल
ं ड नफ़ीसा की गाँड से बाहर

आकर हवा में झटके खाने लगा।

इस दौरान रशीदा ये सब दे खते हुए अपनी चूत को रगड़ रही थी और जैसे ही उसने नफ़ीसा का काम होते दे खा तो उसने

नफ़ीसा की गाँड में से मनकला और गंदगी से सना हुआ ल


ं ड लपक कर अपने मु
ूँ ह में भर ललया और बड़े मज़े से उसे चूस कर

साफ़ करने लगी। रशीदा की ये हरकत दे खकर सुनील भौंचक्का रह गया लेमकन सुनील ने सोचा मक ये चुदैल औरतें जब

पेशाब पी सकती हैं तो मिर ये हकलत भी उनसे अप्रत्यासशत तो नहीं है। चार-पाँच ममनट में ही रशीदा ने उसका ल
ं ड चूस-चूस कर

और चाटते हुए मबल्कुल साफ़ कर मदया। सजतने मज़े और बेसाख्तगी से रसशदा ने नफ़ीसा की गाँड में से मनकला गंदा ल
ं ड चूस

कर साफ़ मकया था उससे साफ़ ज़महर था मक ये उसके ललये कोई नयी बात नहीं थी। सुनील का ल
ं ड वायग्रा के असर के कारण

अभी भी अकड़ा हुआ था। सुनील पीठ के बल लेटा हुआ था और रशीदा भूखी कुचत्तया की तरह सुनील के ऊपर चढ़ गयी

और जोशीले अ
ं दाज़ में सुनील के ल
ं ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर मटका मदया और गप्प से सुनील के ल
ं ड पर अपनी

चूत को दबाते हुए बैठ गयी। एक ही पल में सुनील का ल


ं ड नफ़ीसा के चूत की गहराइयों में समा चुका था।

"ओहहहह हाऽऽय अलाहऽऽ तेरा लौड़ा तो सच में बहोत बड़ा है सुनील... कमीना नाफ़ तक पहु
ूँ च गया महसूस हो रहा है!" रशीदा

जोर से सससकते हुए बोली। "क्यों आपको अच्छा नहीं लगा..." सुनील ने पूछा तो रशीदा उसकी आूँ खों में झाँकती हुई बोली,

"ओहहहह सुनील... ऐसा लौड़ा हाससल करने के ललये ना जाने मकतनी मुद्दत से तरस रही थी... काश मक तू दस साल पहले ही

मेरी जवानी में ममला होता... ओहहह सुनील... तेरे जैसे ल


ं ड वाले लड़के से चुदने का मज़ा ही कुछ और है...!"

"तो अब आप कौन सा बुड्ढी हो गयी हो... एक दम सैक्सी और हॉट हो आप!" सुनील बोला तो रशीदा ने कहा, "अरे मेरी जान...

तेरी उम्र का मेरा बेटा है...!" रशीदा ने अपने हाथों को सुनील की चौड़ी छाती पर रखा और अपनी गाँड को ऊपर नीचे करना

शुरू कर मदया। सुनील का ल


ं ड रशीदा की पमनयाई हुई चूत में रगड़ खाता हुआ अ
ं दर-बाहर होने लगा। अपनी चूत और गाँड

दोनों चुदवा चुकी नफ़ीसा अपनी सहेली रशीदा के पेशाब से भरा मगलास होंठों से लगा कर ससप करती हुई अपनी नशीली

आूँ खों से उन दोनों को दे ख कर मिर से सुरूर और मस्ती में आने लगी थी। सुनील रशीदा की चूत में अपना ल
ं ड पेलते हुए

उसकी गाँड को अपने हाथों से दबा-दबा कर मसलने लगा। नफ़ीसा ने मगलास में भरा रशीदा का सारा मूत पीने के बाद खाली

मगलास साइड-टेबल पे रखा और अपने होंठों पे ज़ुबान मिराती हुई वो रशीदा के पीछे आ गयी और बोली, "सुनील चल इस

साली राँड की गाँड को खोल दे तो मैं इसकी गाँड को नरम कर दू


ूँ ... मिर इसकी गाँड का ढोल भी तो बजाना है..!"

सुनील ने रशीदा की गाँड को दोनों तरफ़ से पकड़ कर िैला मदया। जैसे ही रशीदा की गाँड का छेद नफ़ीसा की हवस ज़दा

आूँ खों के सामने आया तो नफ़ीसा ने झुक कर अपनी ज़ुबान रशीदा की गाँड के छेद पर लगा दी। "ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहहह याल्लाहऽऽऽ...

आहहहह ओहहह नफ़ीसाऽऽऽ मेरीईईई जान क्या कर रही है.... ओहहहह सक मीईईई ओहहह येस्स्स्स.!" सुनील के लौड़े पर

ऊपर-नीचे कूदती हुई रशीदा अपनी गाँड के छेद पर नफ़ीसा की ज़ुबान महसूस करती हुई मचल कर जोर से सससक उठी। नीचे

लेटा सुनील रशीदा की मस्ती भरी सससकाररयाँ सुन कर और ज्यादा जोश में आ गया और अपनी कमर को तेजी से ऊपर की

ओर उछालने लगा। सुनील का ल


ं ड रेल-इंजन के मपस्टन की तरह रशीदा की चूत के अ
ं दर बाहर होने लगा। "ओहहहह सुनील
आहहहह ऐसे ही... और तेज़ तेज़ ऊऊऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह ऊऊऊहहहह ओहहहह सुनील मेरी जान...!" रशीदा अब एक दम मस्त हो चुकी

थी। उसने झुक कर सुनील के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर मदया। उधर नफ़ीसा पीछे से रशीदा की गाँड में

अपनी ज़ुबान घुसड़


े -घुसेड़ कर चूसती हुई रशीदा की मस्ती में इज़ाफ़ा कर रही थी। लेसियन चुदाई के वक़्त दोनों औरतें

अक्सर एक दूसरी की गाँड ज़ुबान से चाटने के साथ-साथ गाँड में अ


ं दर तक उंगललयाँ घुसड़
े -घुसेड़ कर गंदगी से सनी हुई

उंगललयाँ खूब मज़े से चाट जाती थीं और एक-दूसरे के पाद सू


ूँ घने में भी उन्हें बेहद मज़ा आता था।

रशीदा के मु
ूँ ह से "ऊ
ूँ हहह ऊ
ूँ हहह" जैसी सससकाररयों के आवाज़ें आने लगी और मिर उसका सजस्म एक दम ऐंठने लगा।

सजस्म का सारा लह उसे अपनी चूत की तरफ़ दौड़ता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल रशीदा की चूत से गाढ़े लेसदार

पानी की धार बह मनकाली। रशीदा बुरी तरह काँपते हुए झड़ने लगी और मिर सुनील के ऊपर मनढाल होकर मगर पढ़ी। रूम में

एक दम से सन्नाटा सा छा गया। थोड़ी दे र बाद साँसें बहाल होने पर रशीदा सुनील के ऊपर से उतर कर बेड पे लेट गयी सुनील

ने नफ़ीसा के कहने पर रशीदा की गाँड के नीचे एक तमकया लगा कर उसकी गाँड ऊपर उठा दी। नफ़ीसा ने पहले ही उसकी

गाँड के छेद को अपनी जीभ और उंगललयों से चोद कर नरम कर मदया था। सुनील ने जैसे ही अपने ल
ं ड का सुपाड़ा रशीदा की

गाँड के छेद पर रख कर दबाया तो सुनील के ल


ं ड का सुपाड़ा रशीदा की गाँड के छेद को िैलाता हुआ अ
ं दर की ओर मिसल

गया। सुनील के ल
ं ड का सुपाड़ा जैसे ही रशीदा की गाँड के छेद में घुसा तो रशीदा की आूँ खें िैल गयी और साँसें जैसे अटक

गयी हों। "सुनील... मफ़ि करने के जरूरत नहीं है... शाबाश मेरे शेर... िाड़ दे इस राँड की गाँड भी...!" नफ़ीसा ने नीचे झुक कर

सुनील के टट्टों को सहलाते हुए कहा। रशीदा पत्थरायी हुई आूँ खों से सुनील को दे ख रही थी और अगले ही पल सुनील ने एक

ज़ोरदार झटका मारा। "हाआआआयल्लाआआआआह.. िाआआड़ दी ना मेरी गाँड ओहहहहह.. ऊ


ूँ ऊ
ूँ हहह.!"

"अभी तो शुरुआत है मेरी जान... आगे-आगे दे ख मकतना मज़ा आता है... दे ख तेरी गाँड के आज कैसे चचथड़े उड़ते हैं..!" नफ़ीसा

ने कहा और मिर सुनील से बोली, "सुनील कोई रहम मत करना इस राँड पे... खूब गाँड मरवायी हुई है इसने... कुछ नहीं होगा

इसे!" ये सुनते ही सुनील ने एक बार और करारा झटका मार कर अपना पूरा का पूरा ल
ं ड रशीदा की गाँड के छेद में चाँप मदया।

रशीदा के चेहरे पर ददल के आसार दे ख कर नफ़ीसा का मदल उसके ललये मपघल गया। उसने झुक कर पहले रशीदा की चूत की

फ़ाँकों को िैलाया और उसकी चूत के मोटे अ


ं गूर जैसे दाने को बाहर मनकला कर अपने मु
ूँ ह में भर ललया। जैसे ही रशीदा के

चूत का दाना नफ़ीसा के मु


ूँ ह में गया तो रशीदा एक बार मिर से सससक उठी, "आआहहहह चूस साआलीईईई... मेरीईईई चूत

ओहहह नफ़ीसाआआआ... चाट ले मेरे चूत ओहहहह दे ख तेरे सहेली की चूत ने आज मकतना रस बहाया है..!"

नफ़ीसा ने भी रशीदा की बात सुनते हुए उसकी चूत के छेद पर अपना मु


ूँ ह लगा मदया और उसकी चूत की फ़ाँकों और छेद को

चाटते हुए उसकी चूत से मनकल रहे गाढ़े लेसदार पानी को चाटने लगी। उसने रशीदा की चूत चाटते हुए सुनील की जाँघ पे

चपत लगा कर धक्के लगाने का इशारा मकया और सुनील ने धीरे-धीरे अपना ल


ं ड बाहर मनकाल कर अ
ं दर पेलना शुरू कर

मदया। सुनील का ल
ं ड पुरी तरह ि
ं सता हुआ रशीदा की गाँड के छेद के अ
ं दर-बाहर हो रहा था। रशीदा की चूत चाटते हुए

नफ़ीसा की नाक सुनील के ल


ं ड की जड़ में टकरा रही थी। कुछ ही पलों में रशीदा भी अपने रंग में आ गयी। सुनील का ल
ं ड
जब उसकी गाँड के छेद में अ
ं दर-बाहर होता तो उसके सजस्म में मस्ती की लहरें दौड़ जातीं। "ओहहहह सुनील येस्स्स िक मॉय

ऐस ओहहहहहह िाड़ दे मेरी गाँड... ओहह आहहहह ऊ


ूँ हहहह आहहहहह.!"

सुनील ने भी ऐसे कस-कस के शॉट्स लगाये मक रशीदा की गाँड में सुरसुरी दौड़ने लगी। अब सुनील अपना पूरा ल
ं ड बाहर

मनकाल-मनकाल कर रशीदा की गाँड में पेल रहा था और रशीदा की चूत का पानी और नफ़ीसा का थूक बह कर सुनील के ल
ं ड

गीला कर रहा था। एक बार मिर से वही पुरलरल-पुरलरल की आवाज़ें रशीदा की सससकाररयों के साथ ममलकर पूरे कमरे में गू
ूँ जने

लगी। रशीदा और नमफ़सा दोनों की चूत की धुनकी बज उठी... खासतौर पर रशीदा की चूत बुरी तरह कुलबुलाने लगी और वो

"आहहहह ओहहहह सुनील... आहहहहह ऊ


ूँ हहह आआईईई" करते हुए झड़ने लगी। सुनील ने भी अपनी रफ़्तार को चरम तक

पहु
ूँ चा मदया सजससे बेड भी चरमराने लगा। "ओहहहह सुनील इसकी गाँड के अ
ं दर नहीं झड़ना... हमें तेरे ल
ं ड के पानी का

ज़ायक़ा चखना है...!" नफ़ीसा बोली तो सुनील ने जल्दी से अपना ल


ं ड बाहर मनकाल ललया। नफ़ीसा ने जल्दी से घुटनों के बल

बैठते हुए सुनील के ल


ं ड को अपने हाथ में ली ललया और उसके ल
ं ड के सुपाड़ा पर अपनी जीभ िेरते हुए उसपे अपनी सहेली

की गाँड की गंदगी चाटने लगी। रशीदा भी भी रंडी की तरह सुनील के टट्टों को अपने मु
ूँ ह मैं भर कर चूसने लगी और अपनी ही

गाँड का ज़ायक़ा लेने लगी। कुछ ही पलों में सुनील के ल


ं ड की नसें िूलने लगी और मिर जैसे ही दोनों रंमडयों को अ
ं दाज़ा

हुआ मक सुनील के ल
ं ड से अब मनी इखराज़ होने वाली है... दोनों ने अपने मु
ूँ ह खोल ललये और मिर सुनील के ल
ं ड से वीयल की


ं बी-ल
ं बी मपचकाररयाँ मनकलने लगी जो सीधा जाकर दोनों के मु
ूँ ह और मम्मों पर मगरने लगी। सुनील के ल
ं ड इतना पानी

मनकला मक दोनों के चेहरे और मम्मे पूरी तरह से सन गये। मिर सुनील झड़ने के बाद बेड पर लेट गया और दोनों औरतें एक

दूसरे का चेहरे और मम्मे चाटते हुए सुनील की मनी का ज़ायका लेने लगीं। तीनों सुबह तीन बजे तक चुदाई का खेल खेलते रहे

और सुबह तीन बजे सोये।

मिर सुबह नफ़ीसा ने सुनील और रशीदा को आठ बजे उठाया। सुनील ने अपने कपड़े पहने और घर की तरफ़ चला गया।

जैसे ही उसने घर पहु


ूँ च कर डोर-बेल बजायी तो रुखसाना ने दरवाजा खोला और सुनील दुआ-सलाम के बाद ऊपर चला गया।

ऊपर जाने के बाद सुनील फ्रेश हुआ और नाश्ता करके मिर से स्टेशन पर पहु
ूँ च गया। जब सुनील वहाँ पहु
ूँ चा तो नफ़ीसा और

रशीदा भी आ चुकी थी। तीनों ने एक दूसरे के तरफ़ दे खा और मुस्कुरा पड़े।

उस मदन जब सुनील रात को घर आया तो रुखसाना घर पे अकेली थी सामनया को नज़ीला अपने साथ अपने घर ले गयी थी

क्योंमक उसका शौहर और बेटा नज़ीला के ससुर के पास गये हुए थे। इसललये वो सामनया को अपने साथ ले गयी थी और

सामनया को आज रात वहीं सोना था। इधर फ़ारूक़ भी दो-तीन मदनों के ललये अपने मडपाटलमेंट के काम से हाजीपुर हेडक्वाटलर

ऑमफ़स गया हुआ था। इसललये रुखसाना बेहद खुश थी मक आज तो पूरी रात वो सुनील के साथ खुल कर मज़े कर सकेगी।

सामनया और नज़ीला के जाने के बाद रुखसाना बहुत अच्छे से तैयार हुई थी। उसने दो मदन पहले ही खरीदा नया जोड़ा पहना

था... बेहद गहरे सब्ज़ रंग की ससल्क की िीवलेस कमीज़ सजसपे सुनहरे धागे और मिस्टल की कढ़ाई थी और झीनी जारजेट

की टप्रंमटड काली सलवार सजस्में नीचे लाइटनंग लगी थी... ससफ़ल एक हाथ में हरी चूमड़याँ और पैरों में मेल खाते गोडन रंग के

बेहद ऊ
ूँ ची पेंससल हील वाले खूबसूरत प्लेटिॉमल सैंडल। सुनील ने घर में दालखल होते ही हर रोज़ की तरह रुखसाना की
खूबसूरती और उसके ललबास की तारीफ़ की और घर में कोई और नज़र नहीं आया तो रुखसाना को आगोश में लेकर उसके

होंठों पे एक चुम्मी दे कर फ्रेश होने ऊपर चला गया।

फ्रेश होकर थोड़ी दे र के बाद नीचे खाने के ललये आया तो रुससाना ने मानी-खेज़ मुस्कुराहट के साथ उसे बताया मक आज

सामनया नज़ीला भाभी के घर पर है और रात को भी वहीं सोयेगी... और फ़ारूक भी टू र पे गया है... तो ये सुन कर सुनील का

कोई खास रीऐक्शन ना दे ख कर रुखसाना को बेहद हैरानी हुई। जब से सामनया नज़ीला के घर गयी थी तब से ये सोच-सोच

कर मक आज वो और सुनील मिर से घर में मबल्कुल अकेले हैं और सुनील जरूर उसे शराब मपलाकर फ़ुसलत से उसकी िुद्दी

और गाँड मारेगा और जन्नत की सैर करवायेगा... रुखसाना का बुरा हाल था। चूत शाम से चुलचुला रही थी पर सुनील आज

जैसे मकसी और ही दुमनया में था। सुनील ने चुपचाप खाना खाया और रुखसाना को बस आगोश में लेकर चूमते हुए गुड-नाईट

कह कर ऊपर चला गया। दर असल सुनील थका हुआ था क्योंमक मपछली रात मुसश्कल से चार-पाँच घंटे ही सोया था और

नफ़ीसा और रसशदा ने उसे पूरी रात मबल्कुल मनचोड़ कर रख मदया था। लेमकन रुखसाना तो इस बात से अ
ं जान थी। उसने

सोचा था मक जब सुनील को पता चलेगा मक आज वो दोनों अकेले हैं तो वो खुद को रोक नहीं पायेगा और उसे अपनी बाहों में

कसके पूरी रात खूब प्यार करेगा... खूब चोदे गा... पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

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सुनील के ऊपर जाने के बाद रुखसाना ने मायूस होकर मकचन संभाली और अपने बेडरूम में चली गयी। पर रुखसाना का बुरा

हाल था... उसका पूरा सजस्म सुलग रहा था... मदल चाह रहा था मक सुनील अभी आकर उसे बाहों में जकड़ कर उसके सजस्म को

पीस दे ... और चूत तो कब से मबलमबला रही थी। रुखसाना को बड़ी मुसश्कल से आज मौका ममला था जो उसे ज़ाया होता नज़र

आ रहा था। वो सोच रही थी सुनील तो खुद हमेशा ज़रा सा भी मौका दे खते ही उसे अपने आगोश में भर कर चूमने और

दबोचने लगता था... उसकी चूत या गाँड मारने के ललये बेकरार रहता था तो आज इतने मदन बाद अच्छा मौका ममलने पर भी

उसे क्या हो गया.... शायद कल सारी रात स्टेशन पे नाइट-ड्यूटी के बाद आज मिर सारा मदन काम करने की वजह से थका

होगा। रुखसाना से बदाश्त नहीं हो रहा था तो उसने खुद ऊपर जाने का िैसला मकया... प्यासे को ही क
ं ु ए के पास जाना पड़ता

है... और इस वक़्त उसके सजस्म की प्यास ससफ़ल सुनील और उसका ल


ं ड ही बुझा सकता था। उसने सोचा मक अगर सुनील

थका भी है तो वो उसे अपने हुस्न और प्यार की बाररश में नहला कर उसकी थकान दूर कर दे गी।

ये सब सोच कर वो खड़ी हुई एक बार आइने के सामने अपना मेक-अप दुरुस्त मकया और खुद अपनी िुद्दी चुदवाने ऊपर की

तरफ़ चल दी। वो ऊपर पहु


ूँ ची, तो उसे छत के दूसरी तरफ़ बने हुए बाथरूम में कुछ आवाज़ सुनायी दी। सुनील बाथरूम में नहा

रहा था। रुखसाना सुनील के कमरे में चली गयी। कमरे में ससफ़ल टेबल लैम्प जल रहा था। उसे मालूम था मक सुनील की

अलमारी में मिस्की की बोतल होगी तो उसने अलमारी खोल कर बोतल मनकाल ली और दो मगलासों में पैग तैयार ललये।
मिर अपना मगलास लेकर वो सुनील के बेड पर पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और सुनील के आने का इंतज़ार करते हुए ससप

करने लगी। वो आज मदहोश होकर बेमफ़ि होकर चुदवाने के मूड में थी। थोड़ी दे र बाद सुनील के कदमों की आहट कमरे की

तरफ़ बढ़ती हुई सुनायी दी तो रुखसाना का मदल धड़कने लगा। थोड़ी दे र बाद सुनील अ
ं दर आया तो रुखसाना ने नशीली

नज़रों से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ़ दे खा। सुनील ससफ़ल अ


ं डरमवयर पहने हुए था। सुनील भी रुखसाना को अपने बेड पर बैठ

कर मिस्की पीते हुए दे ख कर समझ गया था मक रुखसाना उसके कमरे में क्यों आयी है। सुनील कुछ बोला नहीं और उसने

कमरे की ट्यूब लाइट भी ऑन कर दी। मिर टेबल पर से अपना मगलास और साथ ही मिस्की की बोतल भी लेकर रुखसाना

के सामने आकर खड़ा हो गया। रुखसाना का मगलास तकरीबन खाली हो चुका था तो सुनील ने उसका मगलास आधे से

ज्यादा मिस्की से भर मदया और मिर उसके मगलास से अपना मगलास टकरा कर मुस्कुराते हुए बोला, "चचयसल भाभी... अब

िटािट खींच दो..!" य़े कहकर सुनील अपना पैग एक साँस में गटक गया और रुखसाना ने भी तीन-चार घू
ूँ ट में ही तीन-

चौथाई भरा मगलास खाली कर मदया जो मक तीन-चार पैग के बराबर था।

सुनील ने अपना और रुखसाना का मगलास टेबल पर रख मदया मिर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और अ
ं डरमवयर के

ऊपर से अपना ल
ं द मसलते हुए बोला, "कसम से भाभी... कुछ ज्यादा ही गज़ब लग रही हो आज तो... मक इतनी थकान के बाद

भी आपका मदल तो रखना ही पड़ेगा... ये लो अपका मदलबर!" और ये कहते हुए उसने एक झटके में अपना अ
ं डरमवयर उतार

िेंका। उसका आधा खड़ा ल


ं ड रुखसाना के चेहरे के सामने लहराने लगा। सुनील के ल
ं ड को रुखसाना प्यार से अपना मदलबर

बुलाती थी। अपनी आूँ खों के सामने सुनील का लौड़ा लहराते दे ख उसकी आूँ खें हवस से चमक उठीं और उसने फ़ौरन उसे

अपने हाठों में लेकर सहलाते हुए उसके सुपाड़े पर अपने होंठ रख मदये और मिर चुप्पे लगाने लगी। शराब के नशे की खुमारी

धीरे-धीरे रुखसाना पे छाने लगी थी। सुनील का लौड़ा जल्दी ही िूल कर मबल्कुल सख्त हो गया। रुखसाना की राल से उसका


ं ड बेहद सन गया था। सुनील ने सससकते हुए रुखसाना का ससर पीछे से कस कर पकड़ ललया और अपना लौड़ा उसके मु
ूँ ह में

ठे लने लगा। जैसे ही सुनील का लौड़ा उसके हलक में पहु


ूँ चा तो रुखसाना का दम घुटने लगा और उसने पीछे हटने की

कोसशश की लेमकन सुनील ने उसका ससर कस के पकड़े रखा और सजतना मुममकन हो सकता था अपना ल
ं ड उसके हलक में

ठूूँ स मदया। रुखसाना की आूँ खों में पानी भर आया और वो बाहर को मनकल आयीं। वो नाक से ल
ं बी-ल
ं बी साँसें लेने लगी।

सुनील ने इसी तरह वहसशयाना ढंग से रुखसाना का मु


ूँ ह अपने लौड़े से चोदना शुरू कर मदया। वो बीच-बीच में धक्के ज़रा धीमे

कर दे ता तामक रुखसाना साँस ले सके और मिर ज़ोर-ज़ोर से रुखसाना के हलक तक धक्के मारने लगता। रुखसाना के मु
ूँ ह

से ठु ड्डी तक लार बह कर नीचे टपकने लगी। रुखसाना को सुनील का ल


ं ड अपने हलक के नीचे उतरता हुआ महसूस हो रहा था

और बार-बार साँस घुटने से उसके मु


ूँ ह से गों-गों की आवाज़ें आ रही थीं लेमकन मिर भी सुनील का वहसशयानापन कहीं ना

कहीं रुखसाना की हवस भड़का रहा था। मिर सुनील अचानक अपना लौड़ा रुखसाना के होंठों से हटाते हुए बोला, "उतारो...

भाभी!" रुखसाना ने राहत की साँस लेते हुए चौंक कर उसकी तरफ़ दे खा तो सुनील ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मिर से

कहा, "अपनी सलवार उतारो..!" रुखसाना तो शराब के नशे की खुमारी और चुदासी मस्ती के आलम में थी... उसकी भीगी चूत


ं ड लेने के ललये मचमचा रही थी। रुखसाना ने वैसे ही बैठे-बैठे अपनी कमीज़ के नीचे हाथ डाल कर अपनी सलवार का नाड़ा

खोलना शुरू कर मदया। रुखसाना ने सलवार का नाड़ा खोलते हुए एक बार नज़र उठा कर सुनील की आूँ खों में दे खा और
मिर अपनी सलवार उतार कर बेड के एक तरफ़ रख दी। उसने जानबूझ कर पैंटी नहीं पहनी हुई थी। सुनील ने नीचे झुक कर

उसकी टाँगों को पकड़ कर ऊपर उठा मदया सजसकी वजह से रुखसाना बेड पर पीछे की तरफ़ लुढ़क गयी। सुनील ने मिर उसे

टाँगों से घसीट करल बेड पर सीधा ललटा मदया और उसकी टाँगों को खोल कर जाँघों के बीच में आ गया। उसने अपने ल
ं ड को

एक हाथ से पकड़ा और रुखसाना की चूत की फ़ाँकों पर रगड़ते हुए अपनी एक उंगली को उसकी चूत के छेद के बीच में घुसा

कर बोला, "भाभी आपकी चूत तो पहले से ही लार टपका रही है!"

सुनील की बात सुन कर रुखसाना ने मुस्कुराते हुए उसकी चौड़ी छाती में मुक्का झड़ मदया, "इसका तो शाम से ही ये हाल है...

पर तुझे क्या फ़कल पड़ता है... हरजाई कहीं का!" रुखसाना के जवाब में सुनील बोला, "तो ये लो भाभी मेरी जान!" और अपना


ं ड रुखसाना की चूत में एक धक्के के साथ पेल मदया। "आआआऊऊऊहहहह याल्लाआआहहहह ऊऊहहहह आहहहहह"

रुखसाना जोर से सससकते हुए सुनील से चचपक गयी। सुनील ने झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों में भर ललया और तेजी

से अपने ल
ं ड को अ
ं दर-बाहर करते हुए रुखसाना के होंठों को चूसने लगा। रुखसाना मस्ती के समंदर में गोते खाते हुए सुनील

के नीचे मचल रही थी और वो लगातार अपना मूसल उसकी चूत में चला रहा था। रुखसना को अपनी चूत की दीवारों पे

सुनील के ल
ं ड की रगड़ इंतेहाई लज़्ज़त दे रही थी। रुखसाना के हाथ खुद-ब-खुद सुनील की पीठ पर कसते चले गये। उसने

अपनी टाँगें उठा कर सुनील की गाँड के नीचे लपेट कर कैंची की तरह कस दीं और उसकी खुद की गाँड बेकाबू होकर अपने

आप ऊपर की और उछलने लगी। करीब दस ममनट की धुंआधार चुदाई में ही रुखसाना मस्ती के सातवें आसमान पे उड़ने

लगी और मिर उसकी चूत में तेज ससकुड़न होने लगी और उसकी चूत ने सुनील के ल
ं ड के टोपे को चूमते हुए उस पर अपना

प्यार भरा रस लुटाना शुरू कर मदया। सुनील भी चंद और झटकों के बाद रुखसाना की चूत में ही झड़ने लगा। झड़ने के बाद

रुखसाना को बेहद सकुन ममल रहा था। शाम से सजसके ललये वो तड़प रही थी... उस लौड़े ने दस ममनट में रुकसाना को दुमनया

भर की जन्नत की सैर करवा दी थी।

उसके बाद दे र रात तक दोनों चुदाई के मज़े लूटते रहे। सुनील ने रुखसाना की गाँड भी मारी और मिर पहली दफ़ा सुनील ने

रुखसाना की गाँड में से मनकला गंदा ल


ं ड उससे चुसवाया। दरसल सुनील ने उसकी गाँड मारने के फ़ौरन बाद अपना गंदा ल
ं ड

अचानक ही रुखसाना के मु
ूँ ह में दे मदया। नशे और मस्ती के आलम में पहले तो रुखसाना को एहसास नहीं हुआ और जब उसे

एहसास हुआ तब तक काफ़ी दे र हो चुकी थी और वो अपने मु


ूँ ह में चूसते हुए उसपे ज़ुबान मिरा कर चुप्पे लगाते उसका गंदा


ं ड पुरी तरह चाट चुकी थी। आलखर में दोनों मबल्कुल नंगे एक दूसरे के आगोश में लेट कर सो गये। रात के तीन बजे के करीब

रुखसाना की आूँ ख खुली तो उसने दे खा मक सुनील गहरी नींद में सोया हुआ था। कमेरे में ट्यूब लाइट अभी भी चालू थी।

रुखसाना को पेशाब भी लगी थी तो उसने मबस्तर से उतर कर ससफ़ल अपनी कमीज़ पहन ली। मिर सुनील के नंगे सजस्म और

मुझाये हुए ल
ं ड को उसने एक बार प्यार भरी नज़र से दे खा और मिर लाईट बंद करके कमरे से बाहर मनकल गयी। शराब के

नशे की खुमारी अभी भी छायी हुई थी तो रुखसाना झूमती हुई हाई पेमिल हील के सैंडलों में आमहस्ता-आमहस्ता सीमढ़याँ

उतर कर अपने कमरे में आयी और बाथरूम में जा कर पेशाब करने के बाद उसी हालत में अपने बेड पर आकर लेट गयी। भले

ही वो हवस के नशे में और सजस्मानी सुकून के ललये ये सब कुछ कर रही थी पर मदल के एक कोने में उसे ये ख्याल आ रहा था

मक यही उसका वजूद है... वो सजस्मानी ररश्ते के साथ-साथ कहीं ना कहीं सुनील में अपनी मोहब्बत भी ढूूँ ढ रही थी पर उसे
एहसास हो गया था मक सुनील के ललये शायद वो ससफ़ल सैक्स और मौज मस्ती करने की जरूरत है। वो सोच रही थी मक क्या

सुनील उसे ससफ़ल उसके हसीन सजस्म के ललये चाहता है... और वो खुद भी क्या से क्या बन गयी है.... वो खुद भी तो सुनील के

ज़ररये अपनी हवस की आग बुझा रही है... एक शादीशुदा औरत होकर भी वो आधी रात को अपने से आधी उम्र से भी कम

जवान लड़के के कमरे में जाकर खुद अपने कपड़े उतार के नंगी होके अपनी टाँगें और चूत खोल कर शराब के नशे में उससे

चुदवाती है... उससे गाँड मरवाती है... अपनी गाँड में से मनकला उसका गंदा ल
ं ड चाट कर चुप्पे लगाती है... बेहयाई से खुल कर

गंदी- गंदी अश्लील बातें और गाललयाँ बोलती है...! लेमकन इसमें गलत भी क्या है... उसका शौहर तो उसे छोड़ कर अपनी

भाभी का गुलाम बना हुआ है... इतने सालों से वो अपनी हसरतों का गला घोंटती रही थी पर जब से सुनील से ररश्ता बना है

उसकी स्ज़ंदगी मकतनी खुशगवार हो गयी है... यही सब उधेड़बुन उसके मदमाग में चल रही थी मक पता नहीं कब उसे नींद आ

गयी।

सुबह सात बजे रुखसाना उठी और खुद तैयार होकर नाश्ता तैयार करने लगी। इतने में सामनया भी आ गयी और वो भी

कॉलेज जाने के ललये जल्दी से तैयार हुई। मिर तीनों ने एक साथ नाश्ता मकया। जैसे ही सुनील नाश्ता करके उठा तो उसने

सामनया से पूछा, "तुम्हें कॉलेज जाना हो तो छोड़ दू


ूँ ..?" सामनया ने सुनील की बात सुनते ही रुखसाना की तरफ़ दे खा तो

रुखसाना ने रज़ामंदी में ससर महला मदया। सामनया ने अपना बैक-पैक क


ं धे पे लटकाया और मिर वो सुनील की बाइक के पीछे

बैठ कर चली गयी। दर असल अब सुनील सामनया को अपने नीचे ललटाने की मफ़राक़ में था सजसका रुखसाना को अ
ं दाज़ा

नहीं था।

उस मदन जब दोनों बाइक पर मनकले तो सामनया के मदमाग में उस शाम की बातें घूम रही थी जब सुनील ने उसे कहा था मक

उसके कॉलेज के लड़के उसे दे ख कर गंदे -गंदे कमेंट्स कर रहे थे। सामनया जवान थी और उसकी चूत में खूब चुलचुलाहट होती

थी। सामनया ने सुनील के बाइक पीछे बैठे हुए पूछा, "उस मदन तुमने ये क्यों कहा था मक वो लड़के जो भी मेरे बारे में गंदे कमेंट्स

कर रहे थे... वो सही है... क्या मैं तुम्हें ऐसी लड़की लगती ह
ूँ ...?"

सुनील बोला, "नहीं-नहीं... मेरा मतलब वो नहीं था...!"

"तो मिर तुम्हारा मतलब क्या था... अगर कोई बोले मक मैं चालू लड़की ह
ूँ तो तुम सच मान लोगे..?" सामनया ने नाराज़गी ज़ामहर

की तो सुनील बोला, "नहीं मबल्कुल नहीं... मैं मकसी की कही हुई बातों पर यकीन नहीं करता..!"

"मिर तुमने क्यों कहा मक वो लड़के जो भी कह रहे थे सच कह रहे थे...?" समनया बोली। "हाँ सच कह रहे थे... वो तुम्हारे सजस्म के

बारे में कुछ गलत शब्द इस्तेमाल कर रहे थे... पर उन्होंने जो भी तुम्हारे मफ़गर के बारे में कहा... एक दम सच कहा था..!" सुनील ने

कहा तो सामनया उसकी बात सुन कर थोड़ा शरमा गयी। दोनों में से कुछ दे र कोई भी कुछ ना बोला। सामनया का मदल जोरों से

धड़क रहा था। उसका मदल बार-बार गुदगुदा रहा था। "वैसे क्या बोल रहे थे वो कमीने मेरे बारे में...?" सामनया का मदल अब

सुनील से अपने बारे में सुनने को बेचैन होता जा रहा था। "वो कमीने जो भी बोल रहे थे उसे छोड़ो... मैं नहीं बता सकता!" सुनील

बोला। "क्यों..?" सामनया ने पूछा तो सुनील बोला, "क्योंमक इस तरह तो मैं भी कमीना हुआ ना?"
"तुम क्यों? मैंने तुम्हें थोड़ा ना कहा है!" सामनया ने कहा। "कहा तो नहीं पर मुझे उनकी बातें सही लगी... अगर तुम सुनोगी तो

तुम्हें लगेगा मक मैं भी उनकी तरह ही कमीना ह


ूँ क्योंमक मैं भी उनके बातों से सहमत ह
ूँ ..!" सुनील की ये बात सुन कर सामनया

बोली, "अरे तौबा मैं तुम्हें ऐसा नहीं कह सकती..!"

"चलो छोड़ो सब... तुम बेकार ही परेशान हो गयी!" सुनील ने कहा लेमकन सामनया बोली, "नहीं एक बार पता तो चले वो

हरामजादे कह क्या रहे थे..!" सामनया बेलझझक कमीने और हरामजादे जैसे अल्फ़ाज़ बोल रही थी। सुनील ने कहा, "अभी नहीं...

अभी तुम्हारा कॉलेज आने वाला है!" थोड़ी दे र बाद सामनया का कॉलेज आ गया। सामनया सुनील की तरफ़ दे ख कर एक बार

मुस्कुरायी और मिर कॉलेज की तरफ़ जाने लगी। "सामनया तुम्हारा कॉलेज मकतने बजे खतम होता है..?" सामनया ने सुनील

की तरफ़ मुड़ कर दे खा और बोली, "साढ़े तीन बजे... क्यों?" सुनील ने एक बार गहरी साँस ली और मिर महम्मत करते हुए

बोला, "मेरे साथ घूमने चलोगी..?" जैसे ही सुनील ने सामनया से ये बात कही तो सामनया के मदल धड़कन बढ़ गयी। आज तक

सामनया मकसी लड़के के साथ डेट पर नहीं गयी थी। "बोला ना... चलोगी..?" सुनील ने मिर पूछा तो सामनया बोली, "अगर

अम्मी को पता चला तो..!" सुनील बोला, "नहीं पता चलेगा... तुम बारह बजे छुट्टी लेकर आ सकती हो?" सामनया ने हाँ में सर

महला मदया और बोली, "पक्का ना... घर पर तो मकसी को पता नहीं चलेगा..?" सामनया तो खुद ही सुनील के साथ वक़्त मबताने

को बेताब थी पर थोड़ी शरम-हया और घर वालों का डर अभी तक उसे बाँधे हुए थे। अब जब मक उसके ख्वाबों का शहज़ादा

उसे खुद साथ में चलने को कह रहा था तो वो भला कैसे इंकार कर सकती थी! "ठीक है मैं बारह बजे आ जाऊ
ूँ गी!" सामनया ने

मुस्कुराते हुए कहा।

उसके बाद सुनील स्टेशन पर आ गया। सुनील ने ग्यारह बजे तक वहाँ काम मकया और मिर वो उठ कर रशीदा के कैमबन में

चला गया। "आओ सुनील... बैठो... कैसे हो?" रशीदा ने कहा तो सुनील बैठते हुए बोला, "मैं ठीक ह
ूँ मैडम... मेरा एक काम

करेंगी..?" ये सुनकर रशीदा कमीनगी से मुस्कुराते हुए बोली, "हाय मैं तो हमेशा तैयार ह
ूँ ... चल आजा टॉयलेट में?"

"नहीं-नहीं... वो काम नहीं... दर असल एक और जरूरी काम है... मुझे थोड़ी दे र बाद मनकलना है और आज अज़मल साहब भी

नहीं हैं पर्मलशन लेने के ललये... अगर कोई और पूछे या अज़मल साहब कॉल करें तो क्या आप संभाल लोगी?" सुनील ने कहा

तो रशीदा बोली, "हाँ-हाँ क्यों नहीं... ये भी कोई बात है.. अरे तुम जान माँग लो तो वो भी हम हंसते हुए दे दें गे..!"

उसके बाद सुनील साढ़े ग्यारह सामनया के कॉलेज के ललये मनकल गया। सुनील ठीक बारह बजे सामनया के कॉलेज के बाहर

पहु
ूँ च गया। थोड़ी दे र इंतज़ार करने के बाद उसे सामनया कॉलेज के गेट से बाहर आती हुई नज़र आयी। सामनया बेहद खूबसूरत

और सैक्सी लग रही थी। उसने बेबी टपंक कुती-टॉप के साथ सफ़ेद कैप्री और बेबी टपंक रंग की ही ऊ
ूँ ची वेज हील वाली सैंडल

पहनी हुई थी। अपने बाल उसने पीछे पोनी टेल में बाँधे हुए थे और होंठों पे हल्की गुलाबी ललपसस्टक थी। कॉलेज के गेट से

बाहर आकर सामनया मबना कुछ बोले सुनील के पीछे बाइक पर दोनों तरफ़ पैर करके बैठ गयी। सुनील बाइक चलाने लगा पर

उसे समझ नहीं आ रहा था मक वो सामनया को लेकर कहाँ जाये। "कहाँ चलें...?" सुनील ने आगे रास्ते पर दे खते हुए पूछा तो

सामनया उसके दोनों क


ं धों पे अपने हाथ रखते हुए बोली, "कहीं भी... जहाँ तुम्हारा मदल करे वहाँ ले चलो!"
"तुम्हें कोई ऐसी जगह पता है जहाँ पर हम दोनों अकेले कुछ दे र तक बातें कर सकें?" सुनील ने पूछा। सामनया का मदल सुनील

की बातें सुन कर मचलने लगा। सामनया की कईं सहेललयाँ अपने बॉय फ्रेंड्स के मकस्से उसे सुनाया करती थीं मक कैसे उनके

बॉय फ़्रेंड ने उन्हें बाँहों में भरा... कैसे मकस मकया... कहाँ-कहाँ हाथ लगाया... एक दो सहेललयों ने तो अपने बॉय फ्रेंड के लौड़े चूसने

और चुदने के मकस्से भी बयान मकये थे। ये सब बातें सुन-सुन कर सामनया का मदल भी मचलने लगता था पर सामनया अपने

खू
ं सठ बाप फ़ारूक से डरती थी और खासतौर पर बदनामी के डर से भी उसने खुद पे काबू रखा हुआ था और रोज़ाना खुद-

लज़्ज़ती करके अपनी हवस की आग बुझानी पड़ती थी। सामनया बोली, "मालूम नहीं पर मेरी एक सहेली ने बताया था मक

शहर के बाहर हाईवे पर एक बहोत बड़ा नेश्नल पाकल है... जंगल सा है... पर काफ़ी लोग वहाँ घूमने जाते हैं!"

उन्होंने वहीं जाने का फ़ैसला मकया। दोनों थोड़ी दे र में ही शहर से बाहर आ चुके थे। रास्ता एक दम मवराना था और कुछ अगे

जाने पर वो उस जंगल में पहु


ूँ च गये। जैसे ही वो उस जंगल में पहु
ूँ चे, तो वहाँ सुनील को एक बाइक स्टैंड नज़र आया। उसने

सामनया को नीचे उतरने के ललये कहा और उसे उतार कर वो बाइक पाकल करने के ललये स्टैं ड में चला गया। जैसे ही वो बाइक

स्टैं ड पर पहु
ूँ चा तो उसे वहाँ उसका कॉलेज का एक पुराना दोस्त ममल गया। उसने सुनील को दे खते ही पहचान ललया। उसका

नाम रमव था। रमव ने सुनील को पीछे से आवाज़ लगायी, "अरे सुनील तुम यहाँ?" तो सुनील ने घूम कर रमव को दे खते हुए कहा,

"अरे रमव तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो?"

"कुछ नहीं यार... मुझे यहाँ पर पार्मकग का ठे का ममला है... बस यही अपनी रोजी रोटी है... और तू सुना... तू यहाँ क्या कर रहा है...?"

रमव ने कहा। सुनील ने कहा, "यार मुझे रेलवे में जॉब ममल गयी है... और मेरी पोस्स्ट
ं ग यहीं हुई है...!"

रमव ने कहा, "यार ये तो बहुत अच्छी बात है मक तुझे गवर्न्लम्म्मट जॉब ममल गयी है... और मिर पाकल में घूमने आये हो... अकेले हो

या कोई और भी साथ मैं है?" सुनील मुस्कुराते हुए बोला, "हाँ यार मेरी फ्रेंड है साथ में..!" रमव बोला, "ओह हो... नौकरी और

छोकरी... यार तुझे ये दोनों बड़ी जल्दी ममल गयी... भाई यहाँ पर घूमने तक तो ठीक है... पर ध्यान रखना यार... "पाकल में हर समय

गाडल गश्त करते रहते हैं.. यहाँ पर िैममलीज़ आती हैं... इसललये यहाँ पर वो बहुत सख्ती बरतते हैं!" ये सुनकर सुनील बोला,

"ओह अच्छा... यार मिर तू मकस मदन काम आयेगा!"

रमव हंसते हुए बोला, "हुम्म बेटा... मैं तेरा इरादा समझ गया... चल तू भी क्या याद करेगा... तू इस पार्मकग के पीछे वाले रास्ते से

चले जाना... यहाँ से और कोई नहीं जाता... आगे जाकर काफ़ी घना जंगल है... वहाँ पर कोई नहीं होता...!" सुनील ने उसे धन्यवाद

मकया और उसके बाद बाइक पाकल की और सामनया को इशारे से आने के ललये कहा। मिर वो सामनया को लेकर रमव के

बताये हुए रास्ते पर जाने लगा। उसके पीछे चलते हुए सामनया का मदल ज़ोर से धड़क रहा था वो इस तरह पहली बार मकसी

लड़के के साथ अकेली थी... वो भी कॉलेज बंक करके आयी थी। एक तरफ़ उसके मदल में सुनील के साथ वक़्त मबताने की

लालसा भरी हुई थी और दूसरी तरफ़ उसे थोड़ा डर भी लग रहा था।


दोनों दस ममनट तक मबना कुछ बोले चलते रहे। अ
ं दर की तरफ़ जंगल घना होता जा रहा था। थोड़ी दूर और चलने पर दोनों

को एक बेंच मदखायी दी। दोनों उस पर जाकर बैठ गये। थोड़ी दे र दोनों खमोश बैठे रहे... दोनों में से कोई बात नहीं कर रहा था।

सामनया इधर-उधर दे ख रही थी जैसे अपना ज़हन मकसी बात से हटाने की कोसशश कर रही हो पर एक जवान लड़की जब

मकसी जवान लड़के के साथ ऐसे सुनसान माहौल में हो तो उसके मदल में कुछ-कुछ होने लगता है! सामनया चुप्पी तोड़ते हुए

बोली, "अब तो तुम बता ही सकते हो.!"

"क्या..?" सुनील ने पूछा तो बोली, "मक वो लड़के मेरे बारे में क्या कह रहे थे?" सुनील ने कहा, "छोड़ो तुम्हें बुरा लगेगा..!" सामनया

बोली, "नहीं मैं बुरा नहीं मानती"! सुनील ने मिर एक बार उसे आगाह मकया, "दे ख लो मुझसे बाद में नाराज़ मत होना...!"

सामनया बोली, "नहीं होती नाराज़... अब बताओ भी!"

"वो कह रहे थे मक तुम्हारे वहाँ पर बहुत चबी चढ़ गयी है!" सुनील बताने लगा तो सामनया ने बीच में पूछा, "मेरे चबी... कहाँ?"

सुनील ने कहा, "अब मैं तुम्हें कैसे कह


ूँ ... तुम बुरा मान जओगी..!" सामनया बोली, "मैं क्यों तुम्हारा बुरा मानु
ूँ गी... तुमने थोड़े ना कुछ

कहा...!" सुनील की बात सुन कर सामनया को कुछ अ


ं दाज़ा तो हो ही गया था और उसका मदल धधक -धधक करने लगा था।

"वो तुम्हारी गाँड पर!" सुनील ने जानबूझ कर झेंपने का नाटक करते हुए कहा। "क्या..?" सामनया एक दम से चौंक उठी... उसे

नहीं मलूम था मक सुनील ऐसे अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल करेगा। "हाँ वो कह रहे थे मक तुम्हारी गाँड पर बहुत चबी चढ़ गयी है!" ये

बात सुनते ही सामनया का चेहरा सुखल लाल हो गया। उसने अपनी नज़रें झुकाते हुए सुनील को कहा, "तुम्हें तो ऐसे बोलने में

शरम आनी चामहये... वो तो है ही कमीने!"

सुनील बोला, "दे खा मैंने कहा था ना मक तुम बुरा मान जाओगी... मैं इसी ललये तुम्हें नहीं बता रहा था... ठीक है अब मैं ऐसी बात

नहीं करता!" सामनया थोड़ी दे र चुप रहने के बाद बोली, "मैंने ये नहीं कहा मक तुम गलत बोल रहे हो... पर तुम ऐसे अल्फ़ाज़ तो

इस्तेमाल ना करो..!" सुनील बोला, "अब मुझे जैसी वर्मडग आती है वैसे ही बोलु
ूँ गा ना... अगर तुम नहीं सुनना चाहती तो मैं नहीं

बोलता..!" सामनया सुनील की बात सुन कर चुप हो गयी। अपनी गाँड पर चबी चढ़ने की बात सुनकर उसका मदल गुदगुदा उठा

था... मदल बार-बार सुनील के मु


ूँ ह से अपने बारे में सुनने के ललये मचल रहा था। "अच्छा सॉरी.. मैं ही गलत ह
ूँ ..!" सामनया ने

सुनील के गुस्से से भरे चेहरे को दे खते हुए कहा। "अच्छा क्या तुम्हारी कोई गलल-फ्रेंड है...?" सामनया ने सुनील की ओर दे खते हुए

बड़ी बेकरारी से पूछा और धड़कते हुए मदल के साथ उसके जवाब का इंतज़ार करने लगी। सुनील भी अपने मदमाग के घोड़ों

को तेजी से दौड़ा रहा था मक वो सामनया को क्या जवाब दे ... ऐसा जवाब सजससे वो मुगी खुद ही कटने को तैयार हो जाये।

"क्या हुआ मैंने कुछ गलत पूछ ललया क्या?" सामनया बोली तो सुनील ने कहा, "नहीं ऐसी बात नहीं है... अब तुम्हें क्या बताऊ
ूँ ...

अगर मानो तो है भी और ना मानो तो नहीं है..!" सामनया बोली, "मतलब... मैं कुछ समझी नहीं...!" सुनील ने कहा, "हाँ मेरी गलल-

फ्रेंड है पर वो ससफ़ल मेरी नहीं है..!" सामनया हैरान होते हुए बोली, "तो क्या तुम्हारी गलल-फ्रेंड मकसी और की भी गलल-फ्रेंड है?"

सुनील बोला, "गलल-फ्रेंड नहीं... वो मकसी की बीवी है..!"


सामनया ने पूछा, "क्या तुम्हारा चक्कर एक शादी शुदा औरत के साथ है..?" सुनील ने जवाब मदया, "हम दोनों के बीच में कोई

कममट्मेंट नहीं थी... और वैसे भी मैं अब उसे नहीं ममलता... अपने-अपने सजस्म की जरूरत पूरा करने का हम एक दूसरे के ललये

ज़ररया भर थे... इससे से ज्यादा कुछ नहीं... तब मैं नादान था... इसललये मैं मबना कुछ सोचे समझे इतना आगे बढ़ गया!" सामनया

को तो जैसे अपनी ख्वाबों की दुमनया आग में जल कर खाक़ होती हुई नज़र आने लगी पर सुनील का जादू सामनया के ससर

पर इस क़दर चढ़ा हुआ था मक वो सुनील को खोना नहीं चाहती थी। इसललये उसने आलखर कोसशश करते हुए पूछा, "और

अब उसे नहीं ममलते..?" "नहीं!" सुनील ने कहा तो सामनया ने पूछा, "और कोई गलल-फ्रेंड नहीं बनायी?" सुनील ने मिर कहा,

"नहीं..!"

सामनया के मदल को सुनील की ये बात सुन कर थोड़ी तसल्ली हुई। इसका मतलब सुनील ने नादानी में सैक्स मकया था... उसे

उस औरत के साथ इश्क़-मवश्क़ नहीं था। सामनया बोली, "अच्छा छोड़ो ये सब बातें... आब तुम ये बताओ मक वो कमीने मेरे बारे

में और क्या कह रहे थे..!" सुनील ने सामनया की तरफ़ दे खा और बोला, "अरे नहीं बाबा... अब नहीं बोलता मैं कुछ... तुम मिर

भड़क जाओगी!" सामनया अब सुनील की चटपटी बातों का मज़ा लेना चाहती थी। "अरे नहीं तुम बोलो... मैं मबल्कुल नहीं

भड़क
ूँ ु गी!"

सुनील बोला, "अब मैं कैसे कह


ूँ ... वो कह रहे थे मक तुम्हारे ये दोनों पहले से ज्यादा बड़े हो गये हैं!" सुनील ने अपनी आूँ खों से

सामनया की टॉप में कैद... कसे हुए मम्मों की तरफ़ इशारा मकया तो सामनया का चेहरा शरम से लाल हो गया। उसने अपनी

नज़रें नीचे झुका ली। सुनील थोड़ी दे र चुप रहा और मिर बोला, "और बताऊ
ूँ वो और क्या कह रहे थे...?" सामनया का मदल धक-

धक करने लगा मक ना जाने अब सुनील उसे क्या बोल दे .... साथ ही चूत की धुनकी भी बजने लगी। "हाँ बताओ!" सामनया ने

शमाते हुए हाँ में ससर महला मदया। सुनील को समझते दे र ना लगी मक मुगी कटने के ललये बेताब हो रही है। सुनील लखसक कर

सामनया के और करीब बैठ गया। उसकी जाँघें सामनया की जाँघों से सटने लगी तो सामनया के सजस्म में झुरझुरी सी दौड़ गयी।

सुनील बोला, "पता है वो तुम्हारे बारे में और क्या कह रहे थे..!" मिर थोड़ी दे र खामोश रहने के बाद वो बोला, "वो कह रहे थे मक

जरूर तुम्हारी झाँटें भी आ गयी होंगी!"

ये सुनते ही सामनया का मदल जैसे धड़कना ही भूल गया हो... साँसें जैसे हलक में ही अटक गयी हो... शरम और हया की जैसे

कोई इंतेहा नहीं थी... पर अब वो क्या बोलती। सुनील के मु


ूँ ह से ऐसे अल्फ़ाज़ सुन कर उसका पूरा सजस्म काँप गया था। उसने

खुद को नादान मदखने का नाटक करते हुए पूछा, "ये क्या होती है...?" सुनील ने जब पूछा मक "तुम्हें नहीं पता झाँटें क्या होती

है..?" तो सामनया ने इंकार में ससर महला मदया। सुनील बोला, "अब मैं तुम्हें कैसे बताऊ
ूँ ... दे खोगी?"

सामनया का मदल ज़ोरों से धड़कने लगा। सुनील भी जान चुका था मक ये लड़की भी मस्ती करने के मूड में आ चुकी है और

नादान बनने का ससफ़ल नाटक कर रही है। सामनया के जवाब का इंतज़ार मकये मबना सुनील खड़ा हुआ और इधर-उधर दे खते

हुए अपनी पैंट की सज़प खोल दी। सामनया का मदल तो पहले ही जोर-जोर से धक-धक कर रहा था और अब हाथ-पैर काँपने

लगे थे। सुनील ने सज़प खोल कर अपने अ


ं डरमवयर के छेद को खोल कर अपने ल
ं ड को बाहर मनकल ललया। सामनया ने ससर

झुका रखा था इसललये वो सुनील का ल


ं ड नहीं दे ख पा रही थी। मिर सुनील ने अपनी कुछ झाँटों को बाहर मनकाला और
सामनया के पास आकर उसके ठीक सामने खड़ा हो गया और अपनी काली झाँटों को हाथ से पकड़ कर मदखाते हुए बोला, "ये

दे खो... इसे कहते हैं झाँट!" सामनया को ऐसी उम्मीद नहीं थी मक उसके ये कहने पर मक वो नहीं जानती मक झाँट क्या होती है...

सुनील अपना ल
ं ड ही मनकाल कर उसे मदखा दे गा। जैसे ही सामनया ने सुनील की तरफ़ नज़र उठायी तो उसकी आूँ खें िटी

की िटी रह गयीं। उसकी आूँ खों के सामने सुनील का साढ़े-आठ इंच ल


ं बा और बेहद मोटा ल
ं ड था। सुनील अपने ल
ं ड को

अपनी मुट्ठी में भर कर महलाते हुए बोला, "ये दे खो... इसे कहते है लौड़ा... और ये बाल दे ख रही हो... इसे कहते झाँट!"

सामनया बोली, "हाय तौबा ये तुम क्या कर रहे हो..!" सामनया ने मिर से नज़रें झुका ली पर आठ इंच के तने हुए लौड़े को दे ख

कर उसकी पैंटी के अ
ं दर जवान चूत में धुनकी बजने लगी थी और चूत की फ़ाँकें िड़िड़ाने लगी थी। सुनील एक बार

मुस्कराया और उसने अपने ल


ं ड को अ
ं दर कर ललया। "क्यों अच्छा नहीं लगा?" सुनील ने मिर से सामनया के पास बैठते हुए

पूछा। "तुम बहोत बेशमल हो..." सामनया ने नज़रें झुकाये हुए शमाते हुए कहा। सुनील ने पूछा, "क्यों क्या हुआ?" तो सामनया

बोली, "ऐसे भी कोई करता है क्या..?" सुनील बोला, "तुमने ही तो कहा था मक तुम्हें नहीं पता झाँट मकसे कहते हैं... वैसे एक बात

कह
ूँ बुरा तो नहीं मानोगी..?" सामनया का मदल अब और गुदगुदा दे ने वाली जवानी के रस से भरपूर बातें सुनने का कर रहा था।

"अभी तक मैंने तुम्हारी मकसी बात का बुरा माना है क्या?" सामनया का जवाब सुन कर सुनील मुस्कुरा उठा, "वैसे तुम्हारी गाँड

पर सच में बहुत माँस चढ़ा है... बहुत मस्त और मोटी है!" सामनया सुनील के मु
ूँ ह से ऐसी बात सुन कर एक दम से चौंक गयी,

"हाय तुम ऐसी बात ना करो मुझे शरम आती है... मैं ऐसी बातें नहीं करती..!"

सुनील बोला, "अच्छा वैसे तुम्हारी मस्त गाँड दे ख कर मुझे सुहाना की याद आ जाती है!" "ये सुहाना कौन?" सामनया ने पूछा।

"वही सजसके बारे में थोड़ी दे र पहले तुम्हें बताया था... क्या मस्त गाँड थी उसकी... मबल्कुल तुम्हारी तरह... बाहर को मनकाली हुई...

हाइ हील की सैंडल पहन कर जब वो गाँड मनकाल कर चलती थी तो मदल करता था मक उसकी गाँड को पकड़ कर मसल दू
ूँ ...

जब मैं उसकी मारता था तो साली की गाँड से पादने जैसी आवाज़ आने लगती थी..!" हालाँमक सामनया को सुनील की बातों में

बेहद मज़ा आ रहा था लेमकन मिर भी शराफ़त का नाटक करती हुई बोली, "हाय अल्लह ये तुम क्या बोल रहे हो... तुम्हें तो

मकसी लड़की से बात करना ही नहीं आता... बहोत गंदा बोलते हो तुम..!" सुनील ने कहा, "अब ये क्या बात हुई... मैंने कहा तो था

मक मुझे ऐसे ही बोलना आता है... और मैंने सच में आज तक मकसी लड़की से बात नहीं की जो मुझे पता चलता मक मकसी

लड़की से कैसे बात करते हैं!" सामनया बोली, "पर ऐसे भी नहीं बोलना चामहये तुम्हें!" उसकी बात पर ध्यान ना दे ते हुए सुनील

बोला, "अच्छा एक बात कह


ूँ तो मानोगी?"

"क्या..?" समनया ने पूछा तो सुनील बोला, "पहले बताओ मक मानोगी?" सामनया ने हाँ मैं ससर महला मदया। सुनील का आठ इंच

का तन्नाया हुआ मोटा लौड़ा दे ख कर उसकी चूत की तो पहले से धुनकी बज रही थी। "तुम भी मुझे अपनी झाँटें मदखाओ ना!"

सुनील की ये बात सुनते ही सामनया के एक दम होश उड़ गये... वो बुत सी बनी उसको दे खने लगी। "क्या हुआ सामनया... प्लीज़

मदखाओ ना... दे खो अगर तुम मुझे अपना दोस्त मानती हो तो प्लीज़ मदखा दो ना... तुमने भी तो मेरी दे ख ली है... बोलो तुम मुझे

अपना दोस्त नहीं मानती... मानती हो ना?" सामनया ने हाँ मैं ससर महला मदया। सुनील बोला, "तो मिर मदखाओ ना..!" सामनया

बोली, "अगर मकसी को पता चल गया तो..?"


"नहीं चलता मकसी को पता... तुमने मेरी दे खी... मकसी को पता चला... तुमने तो मेरा लौड़ा भी दे ख ललया है!" सामनया को समझ

नहीं आ रहा था मक वो क्या करे और क्या ना करे। सुनील के ललये तो वो मकतने मदनों से तड़प रही थी लेमकन उसे उम्मीद नहीं

थी मक पहली ही डेट पे बात यहाँ तक पहु


ूँ च जायेगी। "अगर तुमने ने मकसी को बता मदया तो..?" सामनया ने अपना शक ज़महर

करते हुए कहा तो सुनील बोला, "अब भला मैं क्यों बताने लगा... प्लीज़ मदखा दो ना... अपने दोस्त की इतनी सी भी बात नहीं

मान सकती चलो मत मदखाओ... मैं आगे से तुम्हें कुछ नहीं कहु
ूँ गा...!" सुनील ने मिर से उसे जज़्बाती तौर पे ब्लैकमेल मकया।

"पक्का मकसी को पता तो नहीं चलेगा ना?" सामनया बोली तो सुनील बेंच से खड़ा हो गया और इधर-उधर दे खते हुए बोला,

"मुझ पर भरोसा रखो... मकसी को नहीं पता चलेगा..!"

"अगर इधर कोई आ गया तो?" सामनया ने पूछा तो इधर-उधर दे खते हुए सुनील की नज़र थोड़ी आगे घनी झामड़यों पर पड़ी। वो

झामड़याँ कोई दस िीट ऊ


ूँ ची जंगली घास की थी। "तुम उन झामड़यों के बीच में चली जाओ... वहाँ ऐसे बैठना जैसे पेशाब करते

हुए बैठते हैं... मैं तुम्हारे पीछे आता ह


ूँ ..!" सुनील ने उसे समझाया। सामनया मबना कुछ बोले खड़ी हुई और झामड़यों के तरफ़ जाने

लगी। सुनील वहीं खड़ा इधर-उधर दे ख कर जायज़ा लेटा रहा। तभी उसकी नज़र दूसरी तरफ़ की झामड़यों पर लटक रहे

चतरपाल के टु कड़े पर पढ़ी। शायद मकसी ट्रक के ऊपर रखे सामान को ढकने वाली चतरपाल का िटा हुआ टु कड़ा था। सुनील

ने आगे बढ़ कर उस चतरपाल को उठाया और उसे लपेट कर इधर उधर दे खने लगा। उसके दोस्त रमव ने बताया था मक इधर

कोई नहीं आता। थोड़ी दे र बाद वो भी झामड़यों की तरफ़ बढ़ने लगा। झामड़याँ बहुत घनी और ऊ
ूँ ची थीं। सुनील जगह बनाता

हुआ आगे बढ़ा। तभी उसे सामनया उकड़ू बैठी नज़र आयी। सुनील को दे खते ही उसके चेहरे का रंग लाल सेब जैसा हो गया।

सुनील उसके पास जाकर खड़ा हुआ और उसने वहाँ की झामड़यों को जल्दी से हटा कर थोड़ी जगह बनायी और उस चतरपाल

को मबछा मदया। सामनया अब खड़ी होकर ये सब दे ख रही थी।

आगे क्या होने वाला है ये सोच-सोच कर उसकी चूत में तेज सरसराहट होने लगी थी। सुनील चतरपाल पर घुटनों के बल बैठ

गया और सामनया को पास आने का इशारा मकया। सामनया धड़कते हुए मदल के साथ सुनील के करीब आ गयी। "पक्का

ससफ़ल दे खोगे ना..? प्लीज़ कुछ और मत करना..!" उसने सुनील की तरि दे खते हुआ कहा। "हाँ-हाँ... कुछ नहीं करु
ूँ गा... ससफ़ल

दे ख
ूँ गा...
ु जल्दी करो उतारो अपनी कैप्री..!" सामनया मिर से बुरी तरह शरमा गयी। सामनया वैसे तो काफ़ी तेज तरार लड़की थी

लेमकन इस तरह पमब्लक प्लेस में कपड़े उतारने में उसे घबराहट और शमल महसूस हो रही थी। उसने अपनी कैप्री के आगे का

बटन खोल कर धीरे से नीचे अपनी गोरी रानों तक कैप्री सरका दी और अपनी सफ़ेद रंग की लेस वाली पैंटी के इलासस्टक में

उंगललयाँ ि
ं सा कर धीरे-धीरे नीचे सरकाना शुरू कर मदया। सुनील ने उसे कैप्री और पैंटी मबल्कुल उतार दे ने को कहा तो

सामनया ने लझझकते हुए दोनों मनकाल दीं। सामनया की गोरी चचकनी टाँगें और जाँघें दे ख कर सुनील का ल
ं ड उसकी पैंट में

कुलांचे भरने लगा। सामनया की चूत और चूतड़ उसके कुती-टॉप से ढंके हुए थे। सुनील ने सामनया के हाथ से कैप्री और पैंटी

को लेकर चतरपाल पर रख मदया और समनया को कमर से पकड़ कर बैठने को कहा। सामनया थोड़ा डरी हुई सी नीचे अपने

चूतड़ों के बल बैठ गयी। अब वो ससफ़ल अपने गुलाबी कुती-टॉप और ऊ


ूँ ची वेज हील वाली सैंडल पहने हुई थी। सुनील ने उसकी

टाँगों को उसकी टपंडललयों से पकड़ कर िैला मदया और उसकी आूँ खों में झाँकते हुए बोला, "अब मदखाओ भी!" सामनया ने
अपने काँपते हुए हाथ से अपनी कुती को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर करने लगी और अगले ही पल सुनील का मु
ूँ ह

खुला का खुला रह गया। सामनया की गुलाबी चूत दे खते ही सुनील का ल


ं ड झटके पे झटके खाना लगा। झाँट तो दूर... बाल का

एक रोआूँ भी नहीं था। एक दम चचकनी और गुलाबी चूत... मबल्कुल अपनी अम्मी रुखसाना की तरह। चूत की दोनों िाँकें

आपस में कसी हुई थी। सुनील से रहा नहीं गया और उसने अपनी उंगली को उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच रख कर मिरा

मदया। "श्श्शहहह ऊ
ूँ हहह... ये क्या कर रहे हो सुनील तुम..!" सामनया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा और सुनील का हाथ पकड़

कर उसका हाथ हटाने की कोसशश करने लगी। लेमकन सुनील ने धीरे-धीरे उसकी चूत की फ़ाँकों के दर्मलयान अपनी उंगली

रगड़ते हुए पूछा, "इस पर तो एक भी बाल नहीं है... कैसे साफ़ मकया इसे?" सामनया को जवानी का ऐसा मज़ा पहली बार ममल

रहा था। उसका पूरा सजस्म काँप रहा था और उसके हाथ में इतनी ताकत नहीं बची थी मक वो सुनील का हाथ हटा पाये।

"आआहहह स्स्सीईई उईईईई... ऐसे ना करो आआहहह..." सुनील ने जैसे ही अपनी उंगली को उसकी चूत की फ़ाँकों के बीच में

दबाया तो उसकी उंगली उसकी चूत के रस टपका रहे छेद पर जा लगी। सामनया का पूरा सजस्म थरा उठा। "बोलो ना कैसे

साफ़ की तुमने अपनी झाँटें ..." इस बार सुनील ने अपनी उंगली को सख्ती से रगड़ा तो सामनया की चूत मपघल उठी।

"उईईईईई.... याल्लाहहह.... ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह िीम से..!"

"क्यों?" सुनील ने पूछा तो सामनया मस्ती में आूँ खें बंद करके सससकते हुए बोली, "हाइजीन के ललये... मुझे साफ़-सफ़ाई पसंद है

इसललये...! तभी सामनया को कुछ सरसराहट सुनायी दी तो उसने अपनी आूँ खें खोल कर दे खा तो सुनील अपनी पैंट और


ं डरमवयर उतार रहा था। सामनया ये दे ख कर एक दम से घबरा गयी। "ये... ये तुम क्या कर रहे हो ऊ
ूँ हहह!" वैसे तो मकतने मदनों

से वो सुनील से चुदने के ख्वाब दे ख रही थी लेमकन आज जब असल में उसका ख्वाब पूरा होने जा रहा था तो पता नहीं वो क्यों

घबरा रही थी। "कुछ नहीं मेरी जान... तुम्हारी चूत का उदघाटन करने की तैयारी कर रहा ह
ूँ !" सुनील ने कहा तो सामनया उसे

रोकते हुए बोली, "नहीं ये ठीक नहीं है.... प्लीज़ मुझे जाने दो..!" लेमकन सामनया ने कोई मुज़ामहमत नहीं की और उसकी आवाज़

में भी ज़रा सी भी मज़बूती नहीं थी।

"प्लीज़ सामनया एक बार!" सुनील ने कहा और घुटनों के बल नीचे झुक कर उसने सामनया की तमतमा रही सुखल चूत की

फ़ाँकों पर अपने होंठ रख मदये। जवान सामनया को जैसे ही जवानी का मज़ा ममला वो एक दम से मपघल गयी। वो पीछे के

तरफ़ लुड़क गयी और उसकी कुती उसकी कमर पर इकट्ठी हो गयी। "नहीं ओहहहह येऐऐऐ तुम हायऽऽऽ आूँ हहह


ूँ हहफ़्फ़्फ़..." सामनया जैसी जवान गरम लड़की के ललये ये सब बदाश्त से बाहर था। आज तक उसे मकसी लड़के ने छुआ तक

नहीं था और कहाँ आज वो अपनी जवानी के बेशकीमती खज़ाने को सुनील के सामने खोल कर बैठे थी। सामनया की आूँ खें

मस्ती में बंद हो चुकी थी। उसने सससकते हुए दोनों हाथों से सुनील के ससर को पकड़ ललया और उसके चेहरे को पीछे हटाने की

हल्की सी कोसशश करने लगी। सामनया की चूत मैं तेज मचमचाहट और मस्ती की लहरें दौड़ने लगीं... चूत िक-िक करने

लगी। आलखरकार उसने चूत की आग के आगे हचथयार डाल मदये और बुरी तरह काँपते सससकते हुए पीछे के तरफ़ लेट गयी।

सामनया की कमर अब उसके काबू में नहीं थी। रह-रह कर उसकी कमर झटके खाती और उसकी गाँड ऊपर की ओर उछल

जाती। चूत से चचपचचपा रसीला रस बह-बह कर बाहर आने लगा।


सुनील ने सामनया की चूत को चूसते हुए उसकी कुती में कैद दोनों कबूतरों को पकड़ ललया और धीरे-धीरे मसलने लगा।

सामनया ने एक दम से अपने हाथ सुनील के हाथों के ऊपर रख मदये पर सुनील नहीं रुका। उसने सामनया की कमर में हाथ डाल

कर उसकी कुती के हुक एक-एक करके खोलने शुरू कर मदये। "स्स्सीईईई ऊ


ूँ ऊ
ूँ हहह स्स्सीईईई ना करो... नाआआ... मुझे कुछ

हो रहा है...!" सामनया सससकते हुए बोली और मिर सामनया की कुती के हुक खोल कर उसे मनकालते ही सुनील ने उसकी ब्रा

के कपों को पकड़ कर ऊपर लखसका मदया और सामनया की मोटी और कसी हुई चूचचयाँ उछल कर बाहर आ गयीं। एक दम

सख्त और तनी हुई चूंचीयों पर हाथ लगते ही सामनया मिर से सससकाररयाँ भरने लगी। सुनील ने अपना मु
ूँ ह सामनया की चूत

से हटाया और ऊपर की ओर आते हुए सामनया के एक मम्मे को मु


ूँ ह में भर ललया और उसके मनप्पल को होंठों और जीभ से

चुलबुलाने लगा। सामनया का बुरा हाल हो रहा था। सामनया का पूरा सजस्म आग की तरह तपने लगा था। सुनील अपने नीचे

जवान लड़की के एक दम तने हुए मम्मों को दे ख कर पागल सा हो गया था। वो सजतना अपने मु
ूँ ह में उसकी चूचचयों को भर

सकता था उतना भर कर जोर-जोर से उसके मम्मों को चूसने लगा।

सुनील ने दे खा मक अब सामनया पूरी तरह से गरम हो चुकी है तो उसने उसकी चूत से मु


ूँ ह हटाया और सामनया की जाँघों के

बीच में घुटनों के बल बैठ गया। उसने सामनया की चचकनी टाँगों को उठा कर हल्के गुलाबी सैंडलों में उसके गोरे-गोरे पैरों को

एक-एक बार चूमा और मिर उसकी टाँगों को अपने क


ं धों पर रख के अपने ल
ं ड का मोटा सुपाड़ा उसकी चूत की फ़ाँकों के

बीच में दो-तीन बार रगड़ा। जैसे ही सामनया को अपनी चूत के छेद पर सुनील के ल
ं ड के गरम सुपाड़े के छूने का एहसास हुआ

तो सामनया बुरी तरह से मचल उठी। इससे पहले मक सामनया कुछ कर पाती सुनील ने अपने ल
ं ड को जोर से सामनया की चूत

पर दबा मदया। गच की आवाज़ से सुनील के ल


ं ड का मोटा सुपाड़ा सामनया की जवान अनचुदी चूत को िाड़ता हुआ अ
ं दर जा

घुसा।

इससे पहले आज तक उसकी चूत में मोमबत्ती, हेयर-ब्रश का हैंडल, खीरा-बैंगन-केला वगैरह जैसी बेजान चीज़ें ही घुसी थीं

लेमकन सुनील के इतने मोटे ल


ं ड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही सामनया की चूत के अ
ं दर घुसा तो ददल के मारे सामनया एक दम से

तड़प उठी। उसकी साँसें अटक गयीं और मु


ूँ ह ऐसे खुल गया जैसे उसकी साँस बंद हो गयी हों... आूँ खें एक दम से पत्थरा गयीं।

'गच-गच' मिर से दो बार और ये आवाज़ आयी और साथ ही सुनील का पूरा का पूरा ल


ं ड सामनया की चूत की गहराइयों में

उतर गया। "आअहहहह याआआलाहहहह ओहहहह..." सामनया एक दम से चचल्ला उठी। लेमकन अगले ही पल सुनील ने

उसकी टाँगें अपने क


ं धों से उतार दीं और आगे झुक कर सामनया के रसीले गुलाब की पंखुमड़यों जैसे नाजुक होंठों को अपने

होंठों में भर ललया और उसके होंठों को अपने दाँतों से हल्का सा चबाते हुए चूसना शुरू कर मदया। गरम जवान लड़की के होंठ

और चूत दोनों पा कर सुनील एक दम मस्त हो चुका था। "बस मेरी जान बस हो गया..!" सुनील ने ये कहते हुए मिर से सामनया

के होंठों को चूसना शुरू कर मदया... तामक वो चींख भी ना सके और मिर अपने मोटे मूसल जैसे ल
ं ड को अ
ं दर-बाहर करने

लगा। सामनया ने ददल के मारे सुनील के क


ं धों पर अपने नाखून गड़ा मदये पर सुनील को कोई फ़क़ल नहीं पढ़ा। वो अपना मूसल

जैसा ल
ं ड उस जवान लड़की की चूत में पागलों की तरह पेलने लगा। सुनील नहीं रुका पर सामनया का ददल अब धीरे-धीरे

कमतर होने लगा था। उसकी चूत अब मिर से पानी छोड़ने लगी थी। ल
ं ड के सुपाड़े की तंग चूत की दीवारों पर हर रगड़

सामनया को जन्नत की ओर ले जने लगी। पाँच ममनट बाद ही सामनया ने मस्ती में आकर सससकना शुरू कर मदया और वो भी
धीरे-धीरे अपनी गाँड को ऊपर की ओर उछालने लगी। ये दे ख कर सुनील ने अपना ल
ं ड बाहर मनकल कर एक झटके में उसे

कुचत्तया की तरह घुटनों पर कर मदया और मिर पीछे से अपना मूसल ल


ं ड उसकी चूत में पेल मदया। मिर क्या था सुनील के

जबरदस्त झटकों से उसका ल


ं ड सामनया की चूत के अ
ं दर-बाहर होने लगा।

सुनील की माँसल जाँघें सामनया के चूतड़ों से टकरा कर 'थप-थप' की आवाज़ करने लगी। सुनील ने अपना ल
ं डअ
ं दर-बाहर

करते हुए सामनया के दोनों चूतड़ों को िैला मदया और उसकी चूत के पानी से भीगे उसकी गाँड के छेद को अपनी उंगली से

कुरेदने लगा। सामनया का पूरा सजस्म एक दम से काँप गया। बेजान चीज़ों से खुद-लज़्ज़ती के मुकाबले असल ल
ं ड से चुदवाने

में इतना मज़ा आता है... ये आज सामनया को एहसास हो रहा था और वो भी सससकते हुए सुनील के ल
ं ड को अपनी चूत की

गहराइयों में महसूस कर रही थी। सामनया का पूरा सजस्म ऐंठने लगा था। उसे अपने सजस्म का सारा लह चूत में इकट्ठा होता

हुआ महसूस होने लगा। "ओहहहह सुनील येऽऽऽ मुझऽ


े ऽऽ क्याआआ कर मदयाआआ तुमनेऽऽऽ ऊउहहह हाआआय मैं

पागल.... ओहहहह सुनील!"

"क्यों क्या हुआ मेरी जान... मज़ा नहीं आ रहा क्या?" सुनील ने पूछा तो सामनया सससकते हुए बोली, "आआआहहह ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह

बहोत आ रहा है..!" सुनील ने पूछा, "और मारू


ूँ क्या?" "हुम्म्मम्म्मम्म्मम्म!" सामनया सससकी। सुनील ने अपने झटकों की रफ़्तार और बढ़ा

दी। अब सुनील का ल
ं ड सामनया की तंग चूत में पूरी रफ़्तार से अ
ं दर-बाहर हो रहा था और मिर सामनया का सजस्म एक दम

अकड़ने लगा। चूत का सैलाब बाहर जलजला बन कर बह मनकला और उसका पूरा सजस्म झटके खाते हुए झड़ने लगा।

सुनील भी उसकी गरम तंग चूत में ज्यादा दे र नहीं मटक पाया और उसके चूत के अ
ं दर ही उसके ल
ं ड ने वीयल के बौंछार कर दी।

सामनया झड़ने के बाद बुरी तरह हाँि रही थी। सुनील ने जैसे ही अपना ल
ं ड सामनया की चूत से बाहर मनकाला तो सामनया

आगे के तरफ़ लुढ़क कर उस चतरपाल पर लेट गयी और गहरी साँसें लेने लगी। सुनील कुछ दे र वैसे ही घुटनों के बल बैठा रहा

और सामनया के नरम और माँसल चूतड़ों को सहलाता रहा। अपनी साँसें कुछ दुरुस्त होने के बाद जैसे ही उसे अपने चूतड़ों पर

सुनील का हाथ मिरता हुआ महसूस हुआ तो वो उठ कर बैठ गयी। उसने शमाते हुए एक बार सुनील के तरफ़ दे खा और मिर

नीचे अपनी रानों में दे खा तो उसकी चूत की फ़ाँकें उसकी चूत के गाढ़े पानी और सुनील की मनी से सनी हुई थी। सामनया

शमाते हुए बोली, "ये तुमने ठीक नहीं मकया सुनील... मैं भी तुम्हारी बातों से बहक गयी!"

सुनील बोला, "अरे क्यों घबरा रही हो मेरी जान... यही तो जवानी के मज़े लूटने के मदन हैं... मैं तुम्हारा ख्याल रखु
ूँ गा ना... चलो

इसे साफ़ कर लो!" "मकससे साफ़ करू


ूँ ...?" सामनया ने पूछा तो सुनील ने सामनया की पैंटी उठायी और उसी से अपना ल
ं ड

साफ़ करने लगा। ये दे खकर सामनया एक दम से बोल पढ़ी, "अब मैं क्या पहनु
ूँ गी..?" सुनील ने हंसते हुए अपने ल
ं ड को साफ़

मकया और मिर वो पैंटी सामनया की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "क्यों कैप्री तो है ना... मकसी को नहीं पता चलता... मैं तुम्हें घर

वाली गली के बाहर छोड़ दु


ूँ गा... वहाँ से तुम पैदल चली जाना!" सामनया ने ससर झुकाये हुए सुनील के हाथ से पैंटी ली और

अपनी चूत और रानों को ठीक से साफ़ मकया। सामनया उसके सामने बेहद शरमा रही थी। सामनया की गोरी चचकनी जाँघें

और चूत दे ख कर एक बार मिर से सुनील का ल


ं ड झटके खाने लगा था। उसने अभी तक अ
ं डरमवयर और पैंट नहीं पहनी थी।

सुनील का ल
ं ड मिर से खड़ा होने लगा था। तभी अचानक सामनया की नज़र सुनील के झटके खा रहे ल
ं ड पर गयी सजसे दे खते
ही उसके मदल की धड़कने मिर से बढ़ने लगी। सामनया एक दम से खड़ी हो गयी और थोड़ा आगे खड़ी हो कर अपनी कैप्री

पहनने के बाद अपनी कुती पहन कर उसके हुक बंद करने लगी। सुनील सामनया की कैप्री में मटकते हुई उसके गोलमटोल

चूतड़ों को दे ख कर पगल हो उठा। उसने जल्दी से अपनी अ


ं डरमवयर और पैंट पहनी पर उसे जाँघों तक चढ़ा कर छोड़ मदया

और मिर अपनी पैंट को पकड़ कर सामनया के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया। सुनील ने उसे पीछे से बाहों में भर ललया और

उसकी ल
ं बी सुराहीदार गदल न पर अपने होंठों को लगा मदया। सामनया एक दम से चौंक गयी और सुनील की बाहों से मनकलने

की कोसशश करने लगी पर सुनील के होंठों की तमपश अपनी गदल न पर महसूस करके वो एक दम से बेजान से हो गयी।

"ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह क्या क्या कर रहे हो तुम्म्मम्म!"

"कुछ नहीं अपनी जान को प्यार कर रहा ह


ूँ !" सुनील ने अपने होंठों को सामनया की गदल न पर रगड़ते हुए कहा। "ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह बस

करो.. कोई दे ख लेगा आहहह...!" सामनया सससकी तो उसकी कुती के ऊपर से उसकी चूचचयों को मसलते हुए सुनील बोला,

"हुम्म्मम्म यहाँ कोई नहीं दे खेगा... प्लीज़ मेरी जान मुझसे रहा नहीं जा रहा आज... तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो... प्लीज़ एक बार

और दे दो ना..?" सुनील लगातार सामनया की चूचचयों को मसलते हुए उसकी गदल न और गाल पर अपने होंठों को रगड़ रहा था

और सामनया भी मस्त होती जा रही थी। "प्लीज़ जान एक बार और दे दो ना..!"

"क...क...क्या...?" सामनया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में पूछा। "ऊम्म्मम्म िुद्दी... तुम्हारी िुद्दी चामहये!" सुनील बोला तो सामनया

मस्ती में भर कर बोली, "हाय अल्लाहहहह... कैसी बातें करते हो तुम!" सुनील बोला, "प्लीज़ जान मेरे ललये इतना भी नहीं कर

सकती... प्लीज़ एक बार... तुम्हें मज़ा नहीं आया क्या!" ये कहते हुए सुनील ने आगे की तरफ़ नीचे हाथ ले जाकर कैप्री का बटन

खोल कर सामनया की कैप्री नीचे सरकानी शुरू कर दी। सामनया की कैप्री को उठा कर उसके घुटनों के नीचे सरका मदया और

मिर अपनी टाँगों को िैला कर अपने घुटनों को मोड़ते हुए नीचे झुका और सामनया के कान में धीरे से बोला, "सामनया खोलो

ना...!" सामनया ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में पूछा, "क्या?"

सुनील बोला, "अपनी टाँगें खोलो ना!" सामनया सससकते हुए िुसिुसा कर धीरे से बोली, "ऊ
ूँ म्म... कुछ हो गया तो..!" सुनील

मिर उसकी गदल न पे अपने होंठ रगड़ते हुए बोला, "मैं भला अपनी जान को कुछ होने दु
ूँ गा... प्लीज़ सामनया एक बार और कर

लेना दो ना... तुम्हें मेरी कसम..!" सामनया सुनील की प्यार भरी चचकनी चुपड़ी बातें सुन कर एक दम से मपघल गयी। उसने

लरजते हुए टाँगों में ि


ं सी अपनी कैप्री को अपने पैरों मे मगरा मदया और मिर उसमें से एक पैर मनकाल कर खड़े-खड़े अपनी

टाँगें िैला दी। सुनील ने एक हाथ से अपने ल


ं ड को पकड़ कर सामनया की गाँड से नीचे ले जाते हुए उसकी चूत की फ़ाँकों पर

रख कर अपने ल
ं ड के सुपाड़ा को सामनया के चूत के छेद पर मटकाने की कोसशश करने लगा पर खड़े-खड़े उसे सामनया की चूत

के छेद तक अपना ल
ं ड पहु
ूँ चाने में परेशानी हो रही थी।

"सामनया तुम्हारी िुद्दी के छेद पर ल


ं ड लगा क्या?" सुनील ने पूछा। "ऊ
ूँ म्म्मम्म मुझे नहीं मालूम..!" सामनया बोली। "बताओ ना..!"

सुनील ने मिर पूछा तो सामनया ने कसमसाते हुए कहा, "नहीं..!" सामनया की चूत की फ़ाँकों में अपने ल
ं ड को रगाड़ कर छेद को

तलाशते हुए सुनील ने मिर पूछा, "अब..?" सामनया ने मिर से ना में गदल न महला दी और सुनील ने मिर से अपने ल
ं ड को

एडजस्ट मकया और जैसे ही सुनील के ल


ं ड का दहकता हुआ सुपाड़ा सामनया की चूत के छेद से टकराया तो सामनया के पूरे
सजस्म ने एक तेज झटका खाया। उसके होंठों पर शमीली मुस्कान िैल गयी और उसने अपने ससर को झुका ललया। सुनील ने

पुछा, "अब?" सामनया ने हाँ में ससर महलाते हुआ कहा, "हु
ूँ म्म्मम्म्मम्म!"

सुनील ने धीरे-धीरे अपने मूसल ल


ं ड को ऊपर की ओर चूत के छेद पर दबाना शुरू कर मदया। सुनील का ल
ं ड सामनया की तंग

चूत में धीरे-धीरे अ


ं दर जाने लगा। ल
ं ड के सुपाड़े की रगड़ सामनया को अपनी चूत की दीवारों पर मदहोश करती जा रही थी।

उसके पैर खड़े-खड़े काँपने लगे और आूँ खें मस्ती में बंद होने लगी थी। सुनील ने सामनया को थोड़ा सा धक्का दे कर ठीक एक

पेड़ के नीचे कर मदया और उसकी पीठ को दबाते हुए उसे झुकाना शुरू कर मदया। सामनया ने अपने हाथों को पेड़ के तने पर

मटका मदया और झुक कर खड़ी हो गयी। सामनया की बाहर की तरफ़ मनकाली गाँड दे ख कर सुनील एक दम से पागल हो

गया। उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर मदये। सुनील की जाँघें सामनया के चूतड़ों से टकरा कर थप-थप कर रही थी और

सामनया बहुत कम आवाज़ में सससकाररयाँ भरते हुए चुदाई का मज़ा ले रही थी। उसके पैर मस्ती के कारण काँपने लगे थे।

सुनील ने सामनया की चूत से ल


ं ड बाहर मनकाला और मिर से एक झटके के साथ सामनया की चूत में पेल मदया। सामनया एक

दम से सससक उठी। सुनील ने मिर से अपने ल


ं ड को रफ़्तार से सामनया की चूत के अ
ं दर-बाहर करना शुरू कर मदया। पाँच

ममनट बाद सामनया और सुनील मिर से झड़ गये। सुनील ने अपना ल


ं ड सामनया की चूत से बाहर मनकाला और चतरपाल पर

पड़ी हुई पैंटी को मिर से उठा कर अपना ल


ं ड साफ़ करने लगा।

सामनया पेड़ के तने से अपना क


ं धा मटकाये हुए मदहोशी से भरी आूँ खों से ये सब दे ख रही थी। उसकी कैप्री अभी भी उसके

एक पैर में ि
ं सी हुई ज़मीन पे पड़ी हुई थी। सुनील ने अपना ल
ं ड साफ़ करने के बाद अपना अ
ं डरमवयर और पैंट पहनी और

सामनया के पास आकर झुक कर बैठ गया और उसकी जाँघों को िैलाते हुए उसकी चूत को पैंटी से साफ़ करने लगा।

सामनया बेहाल सी ये सब दे ख रही थी। मिर सामनया ने अपने कपड़े ठीक मकये और दोनों घर वापस चल मदये।

सामनया की ताई अज़रा और उसकी सौतेली अम्मी रुखसाना ने सजस तरह सुनील को लड़के से मदल बनाया था वैसे ही सुनील

ने आज रुखसाना को कली से िूल बना मदया था। सुनील ने उसे घर से थोड़ा पहले ही उतार मदया। सफ़ेद कैप्री के नीचे बगैर

पैंटी पहने सामनया धीरे-धीरे चलती हुई घर पहु


ूँ ची। उसके मन में अजीब सा डर था। जब रुखसाना ने दरवाज़ा खोला तो

सामनया को बाहर खड़ा दे खा। सामनया की हालत कुछ बदतर सी नज़र आ रही थी। "क्या हुआ सामनया... तुम ठीक तो हो ना?"

रुखसाना ने सामनया की ओर दे खते हुए पूछा। "हाँ अम्मी... ठीक ह


ूँ बस थोड़ा ससर में ददल है..!" ये कहकर सामनया सीधे अपने

कमरे में जाने लगी। "ठीक है... तुम फ्रेश होकर कपड़े चेंज कर लो.. मैं चाय बना दे ती ह
ूँ !" रुखसाना ने कहा और उसके बाद

सामनया अपने कमरे में चली गयी। वहाँ से अपने कपड़े लेकर वो बाथरूम में घुस गयी और नहाने के बाद सलवार कमीज़ पहन

कर बाहर आ गयी।

रुखसाना को मबल्कुल अ
ं दाज़ा नहीं था मक उसकी जवान बेटी सामनया आज कली से िूल बन चुकी थी। सुनील घर नहीं

आया था तो उन दोनों ने खाना खाया और सामनया अपने कमरे में जाकर सो गयी। वो कहते है ना मक सैक्स का नशा जो भी

इंसान एक बार कर ले तो मिर तो जैसे उसे उसकी लत्त सी लग जाती है... सामनया भी जवान लड़की थी... घी में ललपटी हुई उस

रुआनी की तरह सजसे आग मदखाओ तो जल उठे ... सामनया भी अपनी उम्र के ऐसे ही मकाम पर खड़ी थी। दूसरी तरफ़ सुनील
भी उम्र के उसी मोड़ पर था और अपने से दुगुनी उम्र की चार-चार चुदैल औरतों के साथ नाजायज़ संबंध बना के जवानी के नशे

में इतनी बुरी तरह मबगड़ चुका था मक उसे कुछ होश नहीं था मक वो मकस राह पर चल मनकला है।

रुखसाना को खबर नहीं थी मक सामनया और सुनील के बीच इतना कुछ हो चुका है। सामनया ने भी कुछ ज़ामहर नहीं होने मदया

था और रुखसाना को पता चलता भी कैसे... वो तो खुद हर वक़्त सुनील के ल


ं ड से अपनी चूत की आग को ममटाने के ललये

बेकरार रहती थी और उससे चुदवाने के मौकों की मफ़राक़ में रहती थी। पर सामनया की मौजूदगी और मिर फ़ारूक के भी

वापस आ जाने के बाद मौका ममलना दुश्वार हो गया था... दरसल इसकी सबसे बड़ी वजह खुद सुनील था क्योंमक अब नफ़ीसा

और रशीदा सुनील से बाकायदा तौर पे चुदवाती थीं। सुनील हफ़्ते में कम से कम तीन रातें नफ़ीसा और रशीदा के घर पे

मबताता था। इसके अलावा मदन में स्टेशन पर भी कभी टॉयलेट में तो कभी मकसी दूसरी मुनाससब जगहों पर और कभी-कभी

तो अपनी कारों की मपछली सीट पे भी दोनों चुदक्कड़ औरतें सुनील से अपनी चूत और गाँड मरवाने से बाज़ नहीं आती थीं।

रुखसाना को तो इस बात की मबल्कुल भी खबर नहीं थी और वो समझ रही थी मक सुनील की जॉब में मसरूमफ़यत बढ़ गयी है।

अब तो सुनील ने पहले की तरह रुखसाना को चोदने के ललये दोपहर में भी घर आना बंद कर मदया था। अब तो तीन-तीन चार-

चार मदन मनकल जाते थे और रुखसाना को सुनील के साथ चुदवाना तो दूर उसके साथ ललपटने-चचपटने और चूमने-चाटने

तक के ललये तरस जाती थी। रुखसाना का तो बुरा हाल था ही पर सामनया जैसी जवान लड़की जो एक बार ल
ं ड का मज़ा चख

ले और वो भी सुनील जैसे जवान लड़के के ल


ं ड का मज़ा जो मकसी भी औरत की चूत का पानी छुड़ा सकता हो... उसकी बुरी

हालत थी। सामनया भी अक्सर सुनील को खा जाने वाली नज़रों से घुरती रहती और सुनील के करीब होने का मौका

तलाशती रहती पर ना तो सामनया को मौका ममल पा रहा था और ना ही उसकी अम्मी को।

ढाई-तीन हफ़्ते बाद की बात है... एक मदन फ़ारूक और सुनील अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे लेमकन सामनया की छुट्टी थी। उस

मदन सामनया दोपहर में पड़ोस में नज़ीला के घर गयी हुई थी। उस मदन नज़ीला और उसके बीच में एक अजीब सा ररश्ता बनने

वाला था। सामनया नज़ीला के कमरे में बैठी उसके साथ चाय पी रही थी और नज़ीला का बेटा सलील बाहर हाल में टीवी दे ख

रहा था। नज़ीला ने चाय की चुसकी लेते हुए सामनया से कहा, "सामनया दे ख ना... क्या ज़माना आ गया है... आज कल मकसी

पर कोई ऐतबार नहीं क्या जा सकता..!"

सामनया: "क्यों क्या हुआ आूँ टी?"

नज़ीला: "अब दे खो ना... ये जो हमारी पड़ोसन शहला है ना...?"

सामनया: "हाँ क्या हुआ उन्हें..?"

नज़ीला: "अरे होना क्या है उसे... दो मदन से घर से लापता है..!"

सामनया: "क्या?"
नज़ीला: "हाँ और नहीं तो क्या... मुझे तो पहले से ही मालूम था मक यही होने वाला है एक मदन!"

सामनया: "पर हुआ क्या शहला आूँ टी को? और आप को क्या मालूम था?"

नज़ीला: "अरे कुछ नहीं अपने आसशक़ के साथ भाग गयी है... अपने शौहर को छोड़ कर..!"

सामनया: "आप को कैसे पता..?"

नज़ीला: "सामनया बताना नहीं मकसी को... मैंने एक बार पहले भी उसके शौहर आससफ़ और उनकी सास ज़ोहरा को ये बात

बतायी थी मक शहला का चाल-चलन ठीक नहीं है पर वो दोनों उल्टा मुझ पर ही बरस पड़े... बोले मक मुझे दूसरों के घरों में ताँक-

झाँक करने की आदत है और मैं अपने काम से काम रखा करू


ूँ ... उनके घर में मुझे दखल दे ने की जरूरत नहीं है... अगर मेरी बात

पहले मान लेते तो आज मोहल्ले वालों के सामने यू


ूँ जलील तो ना होना पड़ता!"

सामनया: "पर आप को पहले कैसे पता चल गया आूँ टी?"

नज़ीला: "अरे क्या बताऊ


ूँ तुझे सामनया... एक मदन मैं दोपहर को अपनी छत पर सुखे कपड़े उतारने के ललये गयी थी... तब मैंने

पहली बार उस लड़के को छत पर दे खा था... जब मैंने शहला की सास से पूछा तो उसने कहा मक ऊपर के रूम में मकराये पर रह

रहा है... मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं मदया पर मिर एक मदन मैंने शहला को छुपते हुए उसके रूम में जाते हुए दे खा तो मेरा मदमाग

ठनक गया... मैंने उन दोनों पर नज़र रखनी शुरू कर दी... एक मदन मुझे याद है तब शायद आससफ़ टू र पर गया हुआ था... और

शहला की सास बाहर गयी हुई थी मकसी काम से... तो मैंने उन दोनों को उस लड़के के कमरे के बाहर छत पे पानी की टंकी की

पीछे रंग-रललयाँ मनाते हुए दे ख ललया था... अब तुझे क्या बताऊ


ूँ सामनया मैंने जो दे खा... मुझे तो दे खते ही शरम आ गयी...!"

सामनया के मदल के धड़कनें भी नज़ीला की बातें सुन कर बढ़ने लगी थी। उसने पूछा, "क्या... क्या दे खा आप ने...?"

नज़ीला: "जाने दे तेरी उम्र नहीं है इन सब बातों को जानने की... कहीं गल्ती से तूने कहीं मु
ूँ ह खोल मदया तो सारा मोहल्ला मेरा ही

कसूर मनकालने लग जायेगा...!"

सामनया: "नहीं आूँ टी मैं नहीं बताती मकसी को.... मैं कोई बच्ची थोड़े ही ह
ूँ ... आप बताओ ना क्या दे खा आप ने..!"

नज़ीला: "पक्का ना... नहीं बतायेगी ना...?"

सामनया: "हाँ नहीं बताऊ


ूँ गी प्रॉममस!"

नज़ीला: "तो उस मदन जब मैं ऊपर छत पर गयी तो मैंने दे खा मक दोनों उस लड़के के रूम के बाहर पानी की टंकी के पीछे खड़े

हुए थे... दोनों ने एक दूसरे को बाहों में कस रखा था... शहला ने उस वक़्त ससफ़ल कमीज़ पहनी हुई थी और उसने अपनी सलवार
उतार कर एक तिल िेंक रखी थी... उस लड़के ने शहला को अपनी बाहों में उठा रखा था.... और वो भी मकसी रंडी की तरह

उसकी कमर में अपनी दोनों नंगी टाँगें लपेटे हुए थी... हाय-हाय सामनया... मैंने आज तक मकसी को ऐसे करते नहीं दे खा... वो तो

उसकी खड़े-खड़े ही ले रहा था... और वो कमीनी भी उसकी गोद में चढ़ी हुई अपनी कमर महला-महला कर उसे दे रही थी!

नज़ीला की बातें सुन कर सामनया का मदल जोरों से धड़कने लगा... चूत कुलबुलाने लगी और ऐसे धुनकने लगी जैसे उसकी

चूत में ही उसका मदल धड़क रहा हो। "हाय आूँ टी क्या खड़े-खड़े ही... वो भी गोद में उठा कर..?" सामनया ने धड़कते हुए मदल के

साथ कहा। "हाँ और नहीं तो क्या... आज कल ये सब नये पैशन हैं..." नज़ीला उठ कर सामनया के करीब आकर बेड पर बैठ गयी।

सामनया: "पर आूँ टी ऐसे खड़े होकर कैसे कर सकते हैं...?"

नज़ीला: "अरे तूने अभी तो कुछ दे खा ही नहीं है... आज कल के लोग तो पता नहीं क्या-क्या करते हैं.. तुम दे ख लोगी तो तौबा

कर उठोगी!"

सामनया: "क्या... पर आप ने ये सब कहाँ दे खा... क्या अ


ं कल भी आपके साथ..?"

नज़ीला: "चुप कर बदमाश एक मारु


ूँ गी हाँ...!"

सामनया: "मिर बताओ ना... अगर अ


ं कल ऐसे नहीं करते तो आपको कैसे पता मक क्या-क्या करते हैं?"

नज़ीला: "हमारे नसीब में कहाँ ये सब... ये तो आज कल के लड़के-लड़मकयाँ करते हैं... तेरे अ
ं कल की तो कईं सालों से मदलचस्पी

ही नहीं रही इन सब में... वैसे भी उनको दे खा है ना मकतने सुस्त से रहते हैं... जब से उन्हें ब्लड-प्रेशर और डॉयबटीज़ हुई है... थोड़ा

सा काम करते ही थक जाते हैं... वो चाहें तो भी उनसे कुछ होने वाला नहीं!"

सामनया: "तो मिर आप ने मकया नहीं तो कहाँ दे खा...!"

नज़ीला: "अरे वो आती है ना ब्लू मफ़ल्में... उनमें दे खा है...!"

सामनया ने अ
ं जान बनते हुए पूछा, "ब्लू मफ़ल्म! वो क्या होता है..?"

नज़ीला: "अरे वही सजसमें औरतों और मदों को सैक्स करते मदखाते हैं... कमाल है तुझे नहीं मालूम... वना आज कल के लड़के-

लड़मकयाँ तो तौबा... पैदा बाद में होते हैं और ये सब उनको पहले से ही मालूम होता है..!"

सामनया: "आपका मतलब पोनल मूवीज़ आूँ टी?"

नज़ीला: "हाँ वही... तूने दे खी है..?"


सामनया: "नहीं बस सुना है... कॉलेज में मेरी कईं फ्रेंड्स के घर पर क
ं प्यूटर और इंटरनेट लगा हुआ है... उनसे सुना है...!"

नज़ीला: "ससफ़ल सहेललयाँ ही हैं... या अभी तक कोई बॉय फ्रेंड भी बनाया है...?"

सामनया शमलते हुए बोली, "नहीं आूँ टी...!"

नज़ीला: "अरे तू तो ऐसे शमा रही है जैसे सच में तेरा कोई बॉय फ्रेंड हो... सच- सच बता ना... है क्या कोई..? दे ख मुझसे क्या

छुपाना मैं भी तेरी सहेली जैसी ह


ूँ ...!"

सामनया: "नहीं आूँ टी सच में कोई नहीं है!"

नज़ीला: "अच्छा चल ठीक है... मैं तेरी बात मान लेटी ह


ूँ ... पर अगर कभी तेरा कोई बॉय फ्रेंड बने तो मुझे बताना... दे ख ज़माना

बहोत खराब है... बाहर कुछ गलत मत कर दे ना... मुझे बताना... मैं तेरी मदद करु
ूँ गी..!"

सामनया: "ररयली आूँ टी?"

नज़ीला को खटक गया मक सामनया उससे झूठ बोल रही है क्योंमक सामनया मु
ूँ ह से कुछ और बोल रही थी पर उसका चेहरा

कुछ और बोल रहा था। नज़ीला ने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या... दे ख हम दोनों हमेशा सहेललयों की तरह रहे हैं और आगे भी

ऐसे ही रहेंगे..!"

सामनया: "ठीक है आूँ टी... अगर मेरी लाइि में कोई आया तो मैं आपको जरूर बताउ
ूँ गी!"

नज़ीला: "वैसे सामनया जो तुम्हारे घर में मकरायेदार आया है... क्या नाम है उसका?"

सामनया: "सुनील...!"

नज़ीला: "हाँ सुनील.... बहुत हैंडसम है तेरा क्या ख्याल है?"

सामनया: "होगा मुझे उससे क्या...?"

नज़ीला: "नहीं मैं तो वैसे ही पूछ रही थी... वैसे तू तो इतनी खूबसूरत है... तेरा सजस्म तो क़यामत है... उसने तेरे साथ कभी ट्राई नहीं

मकया फ्रेंडसशप करने को?"

सामनया: "नहीं आूँ टी... मैंने उसकी तरफ़ कभी तवज्जो नहीं दी...!"
नज़ीला: "मिर तो तू बड़ी बेवकूफ़ है... घर में इतना जवान और हैंडसम लड़का है... और तू कह रही है मक तुझे उसमें कोई

मदलचस्पी नहीं है... काश तेरे जगह मैं होती...!" नज़ीला ने एक ठंडी साँस लेते हुए कहा।

सामनया: "अच्छा आूँ टी एक बात पूछ


ूँ ू ...?"

नज़ीला: "हाँ पूछ ना...!"

सामनया: "अगर वो लड़का आपसे सैटटंग करना चाहता हो तो क्या आप कर लेंगी...?"

सामनया की बात सुन कर नज़ीला थोड़ा हैरान होकर बोली, "चुप कर... मैं तो वैसे ही बोल रही थी!"

सामनया: "नहीं आूँ टी प्लीज़ सच बताओ!"

नज़ीला: "पहली बात तो ये मक मेरी ऐसी मकस्मत कहाँ मक वो मुझे लाइन मारे... और दूसरी बात ये मक जब वो तेरी जैसी लड़की

पर नहीं लाइन मार रहा तो मुझे क्या खाक मरेगा...!"

सामनया: "ओहहो आूँ टी... क्यों आप में क्या कमी है.. आप तो हमारे मोहल्ले में सबसे खूबसूरत औरत हो!"

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नज़ीला: "अरे खूबसूरती के मामले में तो तेरी अम्मी का इस मोहल्ले में तो क्या पूरे शहर में कोई मुकाबला नहीं कर सकती...

मुझ पर क्यों लाइन मरने लगा वो लड़का... और अगर ऐसे हुआ तो सच कहती ह
ूँ मक मैं तेरी जैसी बेवकूफ़ नहीं ह
ूँ ... मौका हाथ

से नहीं जाने दु
ूँ गी हाहाहाहा!"

सामनया: "पर अभी तो आप कह रही थी मक मुझे उसके साथ फ्रेंडसशप कर लेनी चामहये... बहोत चलाक हो आप आूँ टी... अब

खुद की सैटटंग करने की जामनब सोचने लगी..!"

नज़ीला: "दे ख सामनया यार... ये स्ज़ंदगी है ना... बार-बार नहीं ममलती तो क्यों ना इसका ज्यादा से ज्यादा मज़ा ललया जाये... और

वैसे भी क्या फ़क़ल पड़ता है... अगर वो मेरे साथ भी कर लेगा...!"

सामनया ने काँपती हुई आवाज़ में पूछा, "क्या कर लेगा?"


नज़ीला: "सैक्स और क्या... उसका क्या मबगड़ जायेगा और तेरा भी क्या मबगड़ जायेगा... अरे मैंने ऐसी-ऐसी ब्लू मफ़ल्में दे खी हैं...

सजसमें एक औरत अपनी सहेललयों के साथ अपने बॉय फ़्रेंड या शौहर को शेयर करती हैं... और अपनी आसशक़ से ही अपनी

सहेललयों को चुदवाती हैं... मिर मैं भी तो तेरी सहेली ही ह


ूँ और वैसे भी वो कौन सा तेरा शौहर है..!"

सामनया: "क्या सच में होता है ऐसे!"

नज़ीला: "चल तुझे मैं एक मूवी मदखाती ह


ूँ !" ये कह कर नज़ीला ने अपनी अलमारी खोली और उसमें से एक डी-वी-डी मनकाल

कर सामनया की तरफ़ बढ़ायी।

सामनया: "ये... ये क्या है आूँ टी?"

नज़ीला: "वही सजसे तू पोनल कहती है... दे खनी है तो दे ख ले... मैं बाहर सलील का होमवकल करवा कर आती ह
ूँ ..!" ये कह कर

नज़ीला सामनया के हाथ में डी-वी-डी थमा कर बाहर चली गयी और हाल में सलील को उसके स्कूल का होमवकल कराने लगी।

सामनया ने काँपते हुए हाथों से उस मडस्क को डी-वी-डी प्लेयर में डाल कर ऑन कर मदया। सामनया ने पोनल कहामनयाँ-मकस्से तो

खूब पढ़े थे लेमकन पोनल मूवी कभी नहीं दे खी थी। उस डीवीडी में बहुत सारे थ्रीसम और फ़ोरसम सीन थे सजनमें दर्मलयानी उम्र

की दो या तीन औरतें ममलकर मकसी जवान लड़के के साथ चुदाई के मज़े ले रही थीं। एक सीन में तो माँ और बेटी ममलकर

एक लड़के से चुदवा रही थीं। सामनया की हालत ये सब दे ख कर खराब हो गयी। सामनया का अब सैक्स के जामनब नज़ररया

बदल गया था। ना जाने क्यों उसके मदमाग में अजीब -अजीब तरह के ख्याल आने लगे... वो वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी

और आते ही अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके नंगी हो गयी और बहोत दे र तक मोमबत्ती अपनी चूत में डाल कर

काफ़ी दे र तक अपनी हवस की आग बुझाने की कोसशश करती रही।

उसके बाद ऐसे ही करीब एक महीना और गुज़र गया। सुनील तो अपना मन रशीदा और नफ़ीसा के साथ बाहर बहला रहा था

लेमकन रुखसाना और सामनया का बुरा हाल था। दोनों के ज़हन में अब हर वक़्त चुदाई का नशा सवार रहता था। सुनील से

चुदवाने के बाद अब सामनया को हर वक़्त अपनी चूत में खालीपन महसूस होता था और रुखसाना को तो पहले से ही सुनील

के ल
ं ड का ऐसा चस्का लग चुका था मक उसके मदन और रात बड़ी मुसश्कल से कट रहे थे। रुखसाना तो मिर भी कभी-कभार

सुनील के साथ जल्दबज़ी वाली थोड़ी-बहुत चुदाई में कामयाब हो जाती थी लेमकन सामनया को तो सुनील के साथ थोडी

छेड़छाड़ या चूमने-चाटने से ज्यादा मौका नहीं ममल पाता था। रुखसाना भले ही सामनया की हालत से अ
ं जान थी पर अब उसे

सामनया के चेहरे पर मकसी चीज़ की कमी होने का एहसास होने लगा था।

इसी दौरान एक वामक़या हुआ सजससे रुखसाना की स्ज़ंदगी में वापस बहारें लौटने लगीं। रशीदा की ट्राँसफ़र की अज़ी रेलवे

में मंज़ूर हो गयी और उसकी पोस्स्ट


ं ग कोलकत्ता में हो गयी। रशीदा के जाने के बाद भी सुनील का नफ़ीसा के साथ ररश्ता

पहले जैसा ही बना रहा। रुखसाना ने इन मदनों नोमटस मकया मक सुनील अब पहले की तरह उसमें मिर से कािी मदलचस्पी

लेने लगा था... अब वो खुद से कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ता था। जब रुखसाना उसे दो-तीन ममनट के ललये भी अकेली मदख
जाती तो वो मौका दे ख कर कभी उसे बाहों में जकड़ के चूम लेता तो कभी उसकी सलवार के ऊपर से उसकी िुद्दी को मसल

दे ता।

तभी एक और वामक़या हुआ सजसने रुखसाना के सोचने का नज़ररया ही बदल मदया। एक मदन रुखसाना नज़ीला के घर गयी।

सुबह के ग्यारह बजे का वक़्त था। फ़ारूक और सुनील दोनों जॉब के ललये जा चुके थे और सामनया भी कॉलेज गयी हुई थी।

रुखसाना को आइब्राउ बनवानी थी तो उसने सोचा मक नज़ीला भाभी से थ्रेटडंग के साथ-साथ फ़ेसशयल भी करवा लेती ह
ूँ । वैसे

तो वो खुद ये सब करने में मामहर थी लेमकन आइब्राउ क्योंमक खासतौर पे खुद बनाना आसान नहीं होता इसललये वो अक्सर

नज़ीला से थ्रेटडंग करवाती थी। नज़ीला तो वैसे भी अपने घर में ही ब्यूटी पाललर चलाती थी। रुखसाना ने घर का काम मनपटाया

और अपने घर को बाहर से लॉक करके नज़ीला के घर की तरफ़ गयी। जैसे ही वो नज़ीला के घर का गेट खोल कर अ
ं दर गयी

तो सामने गैराज का दरवाजा खुला हुआ था सजसमें नज़ीला का ब्यूटी-पाललर था। रुखसाना ब्यूटी-पाललर में घुसी तो वहाँ कोई

नहीं था। रुखसाना ने दे खा मक पाललर में से घर के अ


ं दर जाने वाला दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। रुखसाना और नज़ीला

अच्छी सहेललयाँ थीं और वैसे भी नज़ीला इस वक़्त घर में अकेली होती थी तो रुखसाना मबना कुछ बोले अ
ं दर चली गयी।


ं दर एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था लेमकन नज़ीला के बेडरूम से कुछ आवाज़ आ रही थी। नज़ीला की खुशनुमा आवाज़

सुन कर रुखसाना उसके बेडरूम के ओर बढ़ी... और जैसे ही वो बेडरूम के डोर के पास पहु
ूँ ची तो रुखसाना की आूँ खें िटी की

िटी रह गयीं।

नज़ीला ड्रेस्स
ं ग टेबल पर झुकी हुई थी और उसने ने अपनी कमीज़ को अपनी कमर तक उठा रखा था... उसकी सलवार उसकी

टाँगों से मनकली हुई उसके पैरों में ज़मीन पर थी और सफ़ेद रंग की पैंटी उसकी रानों तक उतारी हुई थी और एक लड़का जो

मुसश्कल से पंद्रह-सोलह साल का था... उसके पीछे खड़ा हुआ था। उस लड़के का ल
ं ड नज़ीला की गोरी िुद्दी के लबों के

दर्मलयान िुद्दी में अ


ं दर-बाहर हो रहा था और उस लड़के ने नज़ीला के चूतड़ों को दोनों तरफ़ से पकड़ा हुआ था सजन्हें वो बुरी

तरह से मसल रहा था। तभी नज़ीला की मस्ती से भरी आवाज़ पूरे कमरे में गू
ूँ ज उठी।

नज़ीला: "आआहहहह आफ़्ताब ओहहह आहहह बाहर ब्यूटी-पाललर खुला हुआ है... मेरी कस्टमसल आकर लौट जायेंगी... एक

बजे पाललर बंद करने के बाद दोपहर में मिर आराम से कर लेना जो करना है!"

आफ़्ताब: "आआहह खाला... मुझे सब्र नहीं होता... मैं क्या करू
ूँ ... जब भी हाई हील वाली सैंडलों में आपकी मटकती गाँड दे खता


ूँ तो मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है और सलील भी दो बजे स्कूल से आ जायेगा.... मुझे आपकी िुद्दी मारने दो ना... आप ने तो

कल खालू से चुदवा ललया होगा ना...!

नज़ीला: "वो क्या खाक चोदता है मुझ.े ... तेरे खालू का ल


ं ड तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता... मुझे तो तेरे जवान ल
ं ड की लत्त लग

गयी है... बस मैं एक घंटे में पाललर बंद कर दु


ूँ गी... मिर सजतनी दे र करना हो कर लेना!"
पूरे कमरे में फ़च-फ़च जैसी आवाज़ गू
ूँ ज रही थी। रुखसाणा ने दे खा मक नज़ीला ससफ़ल ऊपर से मना कर रही थी... वो पूरी मस्ती

में थी और अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ धकेल-धकेल कर आफ़्ताब से चुदवा रही थी। तभी अचानक से रुकसाना महली तो

उसका सैंडल बेड रूम के दरवाजे से टकरा गया। आवाज़ सुनकर दोनों एक दम से चौंक गये। जैसे ही नज़ीला ने रुखसाना को

डोर पर खड़े दे खा तो उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उस लड़के की हालत और भी पत्तली हो गयी और उसने जल्दी

से अपने ल
ं ड को बाहर मनकाला और अटैच बाथरूम में घुस गया। नज़ीला ने जल्दी से अपनी पैंटी ऊपर की और फ़ौरन

अपनी सलवार उठा कर पहनी और घबराते हुए काँपती हुई आवाज़ में बोली, "अरे रुखसाना... तुम तुम कब आयीं?" मिर वो

रुकसाना के पास आयी और उसका हाथ पकड़ कर उसे ड्राइंग रूम में ले गयी और उसे सोफ़े पर मबठाया। वो कुछ कहना चाह

रही थी पर शायद नज़ीला को समझ नहीं आ रहा था मक वो रुखसाना से क्या कहे.... कैसे अपनी सफ़ाई दे ! "ये सब क्या है

नज़ीला भाभी...?" रुखसाना ने नज़ीला के चेहरे की ओर दे खते हुए पूछा।

नज़ीला मगड़मगड़ा कर ममन्नत करते हुए बोली, "रुखसाना यार मकसी को बताना नहीं... तुझे अल्लाह का वास्ता... वना मैं कहीं की

नहीं रहु
ूँ गी... मेरा घर बबाद हो जायेगा... प्लीज़ मकसी को बताना नहीं... मैं बबाद हो जाऊ
ूँ गी अगर ये बात मकसी को पता चल

गयी तो!" नज़ीला के हाथ को अपने हाथों में लेकर तसल्ली दे ते हुए नज़ीला बोली, "भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती

मकसी को... पर ये सब है क्या और वो लड़का कौन है..?"

नज़ीला बोली, "मैं बताती ह


ूँ ... तुझे सब बताती ह
ूँ ... पर ये बात मकसी को बताना नहीं... तू अभी अपने घर जा... मैं थोड़ी दे र में तेरे

घर आती ह
ूँ !" नज़ीला की बात सुनकर रुखसाना मबना कुछ बोले वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने रूम में

बेड पर लेट गयी। थोड़ी दे र पहले जो नज़ारा उसने दे खा था वो बहुत ही गरम और भड़कीला था। एक पंद्रह-सोलह साल का

लड़का एक पैंतीस साल की औरत को पीछे से उसके चूतड़ों से पकड़े हुए चोद रहा था... और नज़ीला भी मस्ती में अपनी गाँड

उसके ल
ं ड पर धकेल रही थी। रुखसाना का बुरा हाल था... उसकी चूत में अ
ं दर तक सनसनाहट हो रही थी और चूत से पानी बह

कर उसकी पैंटी को चभगो रहा था। रुखसाना करीब आधे घंटे तक वैसे ही लेटी रही और सोच-सोच कर गरम होती रही और

अपनी सलवार के अ
ं दर हाथ डाल कर पैंटी के ऊपर से अपनी िुद्दी को मसलती रही। करीब आधे घंटे बाद बाहर डोर-बेल

बजी तो रुखसाना बदहवास सी खड़ी हुई और बाहर जाकर दरवाजा खोला। सामने नज़ीला खड़ी थी और उसके चेहरे का रंग

अभी भी उड़ा हुआ था। रुखसाना ने नज़ीला को अ


ं दर आने के ललये कहा और मिर दरवाजा बंद करके उसे अपने कमरे में ले

आयी। नज़ीला अ
ं दर आकर रुखसाना के बेड पर नीचे पैर लटका कर बैठ गयी। खौफ़ उसके चेहरे पे साफ़ नज़र आ रहा था।

रुखसाना ने उसे चाय पानी के ललये पूछा तो उसने मना कर मदया।

"नज़ीला भाभी जो हुआ उसे भूल जायें... आप समझ लें मक मैंने कुछ दे खा ही नहीं है... मैं ये बात मकसी को नहीं बताऊ
ूँ गी... आप

बेमफ़ि रहें!" रुखसाना की बात सुनते ही नज़ीला की आूँ खें नम हो गयीं। रुखसाना समझ नहीं पा रही थी मक ये आूँ सू सच में

पछतावे के थे या नज़ीला मगमच्छी आूँ सू बहा कर उसे जज़बाती करके ये मनवा लेना चाहती थी मक रुखसाना उसकी फ़ाससक़

हकलत के बारे में मकसी को ना बताये। "रुखसाना मैं जानती ह


ूँ मक तू ये बात मकसी को नहीं बतायेगी... पर मिर भी मेरे मदल में

कहीं ना कहीं डर है... इसललये मुझे घबराहट हो रही है...!" नज़ीला बोली।
रुखसाना ने उसे मिर तसल्ली दे ते हुए कहा, "नसज़ला भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती मकसी को... पर ये सब है क्या...

और वो लड़का तो आप को खाला बुला रहा था ना..? क्या वो सच में आपका भांजा है..?" थोड़ी दे र चुप रहने के बाद नज़ीला

बोली, "हाँ वो मेरी बड़ी बेहन का बेटा है...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम से हैरान हो गयी, "क्या... क्या सच कह

रही हैं आप... पर ये सब आप ने.... ये सब कैसे... क्यों मकया..?"

नज़ीला ने अपनी दास्तान बतानी शुरू की, "अब मैं तुझे क्या बताऊ
ूँ रुखसाना... तू इसे मेरी मजबूरी समझ ले या मिर मेरी

जरूरत... हालात ही कुछ ऐसे हो गये थे मक मैं खुद को रोक ना सकी... शादी के बाद से ही हमारी सैक्स लाइफ़ बस सो-सो थी

और मिर धीरे-धीरे हमारी सैक्स लाइफ़ कमतर होती गयी... इसीललये सलील भी हमारी शादी के कईं सालों बाद पैदा हुआ...

ऊपर से इन्हें ब्लडप्रेशर और डॉयमबटीस भी हो गयी... और सैक्स में इनकी मदलचस्पी मबल्कुल खतम हो गयी... हमारी सैक्स

लाइफ़ मबल्कुल खतम हो चुकी थी... तुझे तो अच्छे से मालूम होगा मक मबना मदल के प्यार के रहना मकतना मुसश्कल होता है... पर

मैं अपनी सारी ख्वामहशें मार के जीती रही। सलील की दे खभाल और ब्यूटी पाललर में मदन का वक़्त तो कट जाता था पर रातों

को मबस्तर पे करवटें बदलती रहती थी... इन्हें तो जैसे मेरी कोई परवाह ही नहीं थी... मिर मुझे अपनी एक फ्रेंड से ब्लू-मफ़ल्में

ममल गयी तो उन्हें दे ख कर मेरे अ


ं दर की आग और भड़कने लगी... मुझे खुद-लज़्ज़ती की लत्त लग गयी और अकेले में ब्लू-

मिल्में दे खते हुए मैं अपनी चूत को मसल कर और केले और दूसरी चीज़ों के ज़ररये अपनी चूत के आग को बुझाने की

कोसशश करने लगी। पर खुद-लज़्ज़ती में असली सैक्स वाली तसल्ली कहाँ हो पाती है! मिर एक मदन मेरी स्ज़ंदगी तब बदल

गयी जब आफ़्ताब हमारे यहाँ गमी की छुमट्टयों में रहने आया... वो उस वक़्त नौवीं क्लास में था। अब्बास भी सुबह ही काम पर

चले जाते थे या मिर वही उनके हफ़्ते-हफ़्ते के टू र पे.... सब कुछ नॉमलल चल रहा था... सलील और आफ़्ताब के घर में होने से

मेरा भी मदल लगा हुआ था... िर एक मदन सब कुछ बदल गया!"

रुखसाना बड़े गौर से नज़ीला की दास्तान सुन रही थी जो हबह उसकी खुद की स्ज़ंदगी की कहानी थी। नज़ीला ने आगे बताया,

"वो मदन मुझे आज भी अच्छे से याद है... अब्बास ऑमिस जा चुके थे... सलील को नाश्ता दे ने के बाद मैं आफ़्ताब को उठने के

ललये गयी... वो तब तक सो रहा था... मैं जैसे ही कमरे में गयी तो मैंने दे खा मक आफ़्ताब बेड पर बेसुध सोया हुआ था और वो

ससफ़ल अ
ं डरमवयर में था। उसका अ
ं डरमवयर सामने से उठा हुआ था और उसका ल
ं ड उसके अ
ं डरमवयर में बुरी तरह तना हुआ

था... मेरी तो साँसें ही अटक गयीं... उस मदन से पहले मैं आफ़्ताब को अपने बेटे जैसा ही समझती थी पर उसके अ
ं डरमवयर के

ऊपर से उसका तना हुआ ल


ं ड दे ख कर मेरे सजस्म में झुरझुरी से दौड़ गयी... उसका ल
ं ड पूरी तरह तना हुआ अ
ं डरमवयर को ऊपर

उठाये हुए था... मैं एक टक जवान हो रहे अपने भाँजे के ल


ं ड को दे ख कर गरम होने लगी... पता नहीं कब मेरा हाथ मेरी सलवार

के ऊपर से मेरी चूत पर आ गया और मैं उसके अ


ं डरमवयर में बने हुए टें ट को दे खते हुए अपनी चूत मसलने लगी... मेरी चूत बुरी

तरह से पमनया गयी... मेरा बुरा हाल हो चुका था... तभी बाहर से सलील के पुकारने की आवाज़ आयी तो मैं होश में आयी और

बाहर चली गयी। आफ़्ताब गर्मलयों की वजह से शॉट्लस पहने रहते था।"

"मेरे जहन में बार-बार आफ़्ताब का वो अ


ं डरमवयर का उभरा हुआ महस्सा आ रहा था... उसी मदन दोपहर की बात है... आफ़्ताब,

मैं और सलील उस वक़्त मेरे ही बेडरूम में मटवी दे ख रहे थे क्योंमक हमारे बेडरूम में ही एयर क
ं मडशनर लगा हुआ है। मटवी दे खते
हुए हम तीनों बेड पर लेटे हुए थे। बाहर बहोत तेज धूप और गरमी थी और एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था। बेडरूम में लखड़मकयों

पर पदे लगे हुए थे और डोर बंद था... बस ससफ़ल टीवी की हल्की रोशनी आ रही थी सजस पर आफ़्ताब लो-वॉल्युम में कोई मूवी

दे ख रहा था। मैं सबसे आलखर में दीवार वाली साइड पे लेटी हुई थी। इतने में टीवी पे एक रोमांमटक उत्तेजक गाना आने लगा

सजसमें हीरो-महरोइन बाररश में भीग कर गाना गाते हुए एक दूसरे से चचपक रहे थे। महरोइन का व्लाऊज़ बेहद लो-कट था सजस्में

से उसकी चूचचयाँ बाहर झाँक रही थीं।"

"मैंने नोमटस मकया मक आफ़्ताब चोर नज़रों से मेरी छाती की तरफ़ दे ख रहा था। मेरे पूरे सजस्म में झुरझुरी दौड़ गयी और मेरी

चूत में मिर से कुलबुलाहट होने लगी। जब उसने मिर चतरछी नज़र से मेरी तरफ़ दे खा तो मैंने मस्ती वाले अ
ं दाज़ में आफ़्ताब

को पूछा जो मक वो क्या दे ख रहा था तो शरमा गया और एक दम से मटवी की तरफ़ दे खते हुए बोला मक कुछ नहीं! इस दौरान

मैं जानबूझ कर अपनी लो-कट गले वाली कमीज़ के ऊपर से अपनी चूची सहलाने लगी। आफ़्ताब चोर नज़रों से मिर मेरी

तरफ़ दे खने लगा। मैं जानती थी मक उसकी नज़र मेरे चूचचयों पर थी और वो कभी टीवी की ओर दे खता तो कभी मेरी ओर!

मिर मैंने बैठ कर सलील को दीवार वाली साइड पे लखसका मदया और खुद आफ़्ताब की तरफ़ करवट करके लेट गयी।

लेमकन इस दौरान मैंने अपनी कमीज़ थोड़ी और लखसका दी सजससे मेरी ब्रा और एक चूची काफ़ी हद तक नुमाया होने लगी।

आफ़्ताब की आूँ खें िटी रह गयीं। मैंने आफ़्ताब से पूछा मक मैं क्या उसे उस महरोइन से ज्यादा हसीन लग रही ह
ूँ जो वो मटवी

छोड़ कर बार-बार मुझे ताक रहा है। आफ़्ताब मेरी बात सुन कर शरमा कर मुस्कुराने लगा तो मैंने मिर अपने मम्मे को मसलते

हुए उससे पूछा मक मैं उसे हसीन लग रही ह


ूँ मक नहीं। आफ़्ताब हसरत भरी नज़रों से मेरी जामनब दे खने लगा तो मैंने इस बार

काचतलाना अ
ं दाज़ में मुस्कुराते हुए उसे अपने करीब आने का इशारा मकया।

आफ़्ताब लखसक कर मेरे करीब आ गया तो मैं अपने चूंची अपनी कमीज़ और ब्रा में से बाहर मनकाल कर मदखाते हुए बोली

मक दे खेगा मेरा हुस्न तो उसने अपने गले में थूक गटकते हुए हाँ में ससर महला मदया। मैं अपना एक हाथ उसके ससर के पीछे ले

गयी और उसके ससर को पकड़ कर अपनी चूंची के तरफ़ उसके चेहरे को खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से अपनी चूंची को पकड़

कर अपना मनप्पल उसके मु


ूँ ह के पास कर मदया। उसने भी मबना कोई दे र मकये मेरी चूंची के मनप्पल को मु
ूँ ह में भर कर चूसना

शुरू कर मदया। मैंने अपनी एक बाँह उसकी गदल न के पीछे से मनकाल कर अपना हाथ उसके ससर पर रखा और उसे अपने

चूचचयों पे दबा मदया। आफ़्ताब अब और लखसक कर मेरे साथ चचपक कर मेरी चूंची को चूसने लगा तो मेरी चूत िड़िड़ाने

लगी और मेरी चूत से पानी बह कर बाहर आने लगा। मैं एक दम मस्त हो चुकी थी और मैंने अपने दूसरे हाथ से अपनी

सलवार का नड़ा खोल मदया। मैं अपनी सलवार और पैंटी में नीचे हाथ डाल कर अपनी चूत को मसलने लगी और मेरे मु
ूँ ह से

से हल्की-हल्की सससकाररयों की आवाज़ आने लगी। मुझे एहसास भी नहीं हुआ मक कब आफ़्ताब ने मेरी उस चूंची को हाथ

से पकड़ कर मसलना शुरू कर मदया सजसे वो साथ में चूस रहा था। जैसे ही मेरा ध्यान इस जामनब गया मक आफ़्ताब मेरी चूंची

को मकसी मदल की तरह अपने हाथ से मसल रहा है तो मेरी चूत में तेज सरसराहट दौड़ गयी। मैंने उसके ससर को अपनी बाँह में

और कस के जकड़ लाया और अपनी दो उंगललयाँ अपनी चूत के अ


ं दर डाल दीं। मैं अपनी सससकरी को रोक नहीं सकी....

आूँ आूँ हहहह आआआफ़्ताआआब ऊ


ूँ ऊ
ूँ हहह.!"
"आफ़्ताब मेरे सससकने की आवाज़ सुन कर एक दम चौंक गया। उसने मेरे मनप्पल को मु
ूँ ह से बाहर मनकला जो उसके चूसने

से एक दम तन कर िूला हुआ था... और मेरी हवस से भरी आूँ खों में दे खते हुए बोला मक खाला क्या हुआ। मैं उसकी बात सुन

कर एक पल के ललये होश में आयी मक मैं ये क्या कर रही ह


ूँ अपने सजस्म की आग को ठंडा करने के ललये मैं अपनी ही कच्ची

उम्र के भांजे के साथ ये काम कर रही ह


ूँ ... लेमकन मैं हवस की आग में अ
ं धी हो चुकी थी मक मैंने उसका चेहरा अपने चू
ूँ ची पे

दबाते हुए उसे चूसते रहने को कहा। उसने मिर से मेरे मनप्पल को मु
ूँ ह में भर ललया और इस बार उसने मेरी चूंची के काफ़ी

महस्से को मु
ूँ ह में भर ललया और मेरी चूंची को चूसते हुए बाहर की तरफ़ खींचने लगा। मेरा पूरा सजस्म थरथरा गया और मु
ूँ ह से

एक बार मिर से आआआहहह मनकल गयी। इस बार उसने मिर से चूंची को मु


ूँ ह से बाहर मनकला और बोला मक बोलो ना

खाला क्या हुआ तो मैंने काँपती हुई आवाज़ में सससकते हुए उसे जवाब मदया मक कुछ नहीं आफ़्ताब... जल्दी कर मेरा बहुत

बुरा हाल है! अचानक से मुझे उसका ल


ं ड शॉट्लस के ऊपर से अपनी नाफ़ में चुभता हुआ महसूस हुआ। तब तक वो मिर से मेरी

चूंची को मु
ूँ ह में भर कर चूसना शुरू कर चुका था। मैं इस क़दर मदहोश हो गये मक मुझे कुछ होश ना था। मैंने अपनी टाँगों को

िैलाते हुए अपनी सलवार और पैंटी रानों पे लखसका कर आफ़्ताब का एक हाथ पकड़ के नीचे लेजाकर अपनी चूत पर रख

मदया जो एक दम भीगी हुई थी। आफ़्ताब मेरी समझ से कहीं ज्यादा तेज था... जैसे ही मैंने उसका हाथ अपनी चूत के ऊपर

रखा तो उसने मेरी चूत के फ़ाँकों के बीच अपनी उंगललयों को घुमाते हुए रगड़ना शुरू कर मदया। मेरा पूरा सजस्म एक दम से

ऐंठ गया। मिर उसने धीरे-धीरे से अपनी एक उंगली मेरी चूत में घुसा दी और अ
ं दर-बाहर करने लगा। मैं एक दम से मदहोश

होती चली गयी। वो मेरी चूत में उंगली अ


ं दर-बाहर करते हुए मेरे चूंची को चूस रहा था और वो धीरे-धीरे मेरे ऊपर आ चुका था।"

"तभी मेरा ध्यान सलील की तरफ़ गया मक वो भी मेरी बगल में सो रहा है। मैंने आफ़्ताब के ससर को दोनों हाथों से पकड़ कर

पीछे की तरफ़ ढकेला तो मेरी चूंची उसके मु


ूँ ह से बाहर आ गयी। मैंने आफ़्ताब को सलील की मौजूदगी की याद मदलायी तो

आफ़्ताब ने सलील की तरफ़ दे खा जो गहरी नींद में था और मिर मेरी तरफ़ दे खने लगा। उसकी उंगली अभी भी मेरी चूत में

थी। मैं नहीं चाहती थी मक सलील उठ जाये और हमें इस हालत में दे ख ले। इसललये मैंने आफ़्ताब को धीरे से कहा मक वो दूसरे

बेडरूम में जाये जहाँ वो रोज़ रात को सोता है और वहाँ कूलर ऑन कर ले... मैं अभी थोड़ी दे र में आती ह
ूँ ...!

मेरी बात सुन कर आफ़्ताब खड़ा हुआ और अपने बेडरूम की तरफ़ चला गया। मैं धीरे से बेड से नीचे उतरी और अपनी

सलवार का नाड़ा बाँधा और अपनी कमीज़ उतार दी । ससफ़ल सलवार और खुली हुई ब्रा पहने मैं हाइ हील वाली चप्पल में गाँड

मटकाती हुई अपने बेडरूम से मनकल कर आफ़्ताब के बेडरूम की तरफ़ चली गयी। जैसे ही मैं दूसरे बेडरूम में पहु
ूँ ची तो दे खा के

आफ़्ताब ने कूलर चालू कर मदया था और बेड पर पैर लटकाये मेरा इंतज़ार कर रहा था। मैंने अ
ं दर आकर दरवाजा बंद मकया

तो इतने में आफ़्ताब खड़ा होकर मुझसे ललपट गया और पीछे दीवार के साथ सटा मदया। उसने मेरी ब्रा के बाहर झाँक रही

चूचचयों को हाथों में पकड़ कर मसलना शुरू कर मदया और मिर मेरी एक चूंची को मु
ूँ ह में भर कर चूसने लगा। मैं मस्ती में

सससकने लगी मक ओहहहह आफ़्ताब हाँआआआ चूऊऊस ले अपनी खाला के मम्मों को... चूस ले मेरे बच्चे.... मैंने अपनी

सलवार का नाड़ा खोल मदया और सलवार मेरे पैरों में मगर पड़ी। मैं आफ़्ताब का हाथ पकड़ कर मिर से अपनी चूत पर रखते

हुए बोली मक... ओहहह आफ़्ताब दे ख ना मेरा मकतना बुरा हाल है! आफ़्ताब ने मेरी चूत को मसलते हुए अपने मु
ूँ ह से चूंची को
बाहर मनकाला और अपना मनक्कर नीचे घुटनों तक सरका मदया और मिर मेरा हाथ पकड़ कर अपने तने हुए छ इंच के ल
ं ड

पर रखते हुए बोला मक... खाला दे खो ना मेरा भी बुरा हाल है...!"

"जैसे ही मेरे हाथ में जवान तना हुआ ल


ं ड आया तो मैं सब कुछ भूल गयी और मिर मैं नीचे झुकते हुए घुटनों के बल बैठी और

आफ़्ताब के ल
ं ड को हाथ से पकड़ कर महलाने लगी। उसके ल
ं ड का टोपा लाल होकर दहक रहा था। मिर मैंने आफ़्ताब का

हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए पीछे मबस्तर पर लेटना शुरू कर मदया और आफ़्ताब को अपने ऊपर मगरा ललया। मैंने अपनी

टाँगों को नीचे से पूरा िैला ललया और आफ़्ताब अब मेरी टाँगों के बीच में था। मैंने उसका ल
ं ड पकड़ कर अपनी दहकती हुई

चूत के छेद पर लगा मदया और मस्ती में सससकते हुए बोली मक ओहहहह आफ़्ताब अपनी खाला की िुद्दी मार कर इसकी

आग को ठंडा कर दे मेरे बच्चे... और मिर उसका ल


ं ड अपनी चूत पर सटाये हुए ही अपनी टाँगों को उसकी कमर पर लपेट

ललया। आफ़्ताब ने मेरे कहने पर धीरे-धीरे अपना ल


ं ड मेरी चूत के छेद पर दबाना शुरू कर मदया। बरसों की प्यासी चूत जो एक

जवान और तने हुए ल


ं ड के ललये तरस रही थी... आफ़्ताब के तने हुए ल
ं ड की गरमी को महसूस करके कुलबुलाने लगी। मैंने

अपनी गाँड को पूरी ताकत से ऊपर की ओर उछाला तो आफ़्ताब का ल


ं ड मेरी चूत की गहराइयों में उतरता चला गया। मिर

तो आफ़्ताब ने भी बेकरारी में पुरजोश अपनी गाँड उठा-उठा कर मेरी चूत के अ


ं दर अपने ल
ं ड को पेलना शुरू कर मदया। वो

मकसी जवान मदल की तरह मेरे मम्मों को मसलते हुए अपने ल


ं ड को मेरे चूत के अ
ं दर बाहर कर रहा था और मिर उसने मेरे होंठों

पर अपने होंठ रख मदये। चूत की दीवारों पर उसके ल


ं ड की रगड़ मदहोश कर दे ने वाली थी और मस्ती में मुझे कच्ची उम्र के

अपने भांजे से अपने होंठ चुसवाने में ज़रा भी शरम नहीं आयी। मबल्कुल बेहयाई से मैंने उसका साथ दे ना शुरू कर मदया और

अपनी गाँड ऊपर उछाल-उछाल कर उसके ल


ं ड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने लगी। उसके पाँच ममनट के धक्कों ने ही

मेरी चूत को पानी-पानी कर मदया... मैं झड़ कर एक दम बेहाल हो गयी थी... थोड़ी दे र बाद उसने भी अपना सारा पानी मेरी चूत

के अ
ं दर उड़ेल मदया... रुखसाना अब मैंने तुझे सारी बात तफ़सील से बता दी है... प्लीज़ ये सब मकसी से नहीं कहना और हाँ

तुझे स्ज़ंदगी में कभी मेरी जरूरत पड़े तो मैं तेरे साथ ह
ूँ ... मुझसे एक बार कह कर दे खना... मैं तेरे ललये कुछ भी कर सकती ह
ूँ ...!"

उसके बाद नज़ीला रुखसाना को अपनी चुदाई की दस्तान सुना कर चली तो गयी लेमकन सजतनी तफ़सील और खुल्लेपन से

उसने अपनी दास्तान सुनायी थी उससे नज़ीला रुखसाना की चूत में आग और ज्यादा भड़का गयी थी। मपछले कुछ महीनों में

सजस रफ़्तार से उसकी स्ज़ंदगी में फ़ेरबदल हो रहे थे वो रुखसाना ने अपनी पूरी स्ज़ंदगी में कभी नहीं दे खे थे। सुनील का उसके

घर मकरायेदार के तौर पे आना और मिर उसे अज़रा के साथ सैक्स करते दे खना... और मिर खुद उससे नाजायज़ ररश्ता

बनाना और उसके ल
ं ड की लत्त लगा कर उसकी गुलाम बन कर रह जाना और मिर नज़ीला का ये मकस्सा। रुखसाना की

स्ज़ंदगी में इतना सब कुछ चंद महीनों के अ


ं दर हो चुका था और यही सब सोचती हुई वो ये अ
ं दाज़ा लगाने की कोसशश कर रही

थी मक आगे आने वाले मदनों में पता नहीं और क्या-क्या होगा...!

उस मदन के दो मदन बाद की बात है। सामनया सुबह कॉलेज चली गयी थी और फ़ारूक भी उस मदन घर से थोड़ा जल्दी मनकल

चुका था और सुनील भी काम पर जाने के ललये तैयार था। जैसे ही वो नीचे आया तो उसने रुकसाना से फ़ारूक के बारे में पूछा

तो रुखसाना ने उसे बताया मक वो थोड़ी दे र पहले ही मनकल गया है। जैसे ही सुनील को पता चला मक फ़ारूक और सामनया
घर पर नहीं है तो उसने हाल में ही उसे बाहों में भर ललया और उसके होंठों को चूसने लगा और साथ-साथ उसके चूतड़ों को

सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुससाना तो सुनील की बाहों में जाते ही मपघलने लगी और मस्ती में सससकते हुए बोली,

"ओहहह सुनील... मुझे कहीं भगा कर ले चल.... मुझे अब तुझसे एक पल भी दूर नहीं रहा जाता..!" सुनील ने उसकी आूँ खों में

दे खा और मुस्कुराते हुए बोला, "मेरी भाभी जान... चाहता तो मैं भी यही ह


ूँ ... पर मैं नहीं चाहता मक मेरे वजह से आपका घर बबाद

हो... थोड़ा सब्र रखो... हमें जल्द ही मौका ममलेगा...!" ये कहते हुए उसने एक बार मिर से रुखसाना के होंठों को चूसते हुए उसकी

चूत को सलवार के ऊपर से मसलने लगा। रुखसाना भी सुनील की पैंट के ऊपर से अपने मदलबर यामन सुनील के ल
ं ड को

मसल रही थी। पाँच-छः ममनट दोनों सब भूल कर एक दूसरे के होंठ चूसते हुए ये सब करते रहे और मिर सुनील काम पे चला

गया। रुखसाना ने दरवाजा बंद मकया और घर के काम मनपटाने लगी।

दो मदन से नज़ीला से उसकी बात नहीं हुई थी और उस मदन आई-ब्राऊ और िेसशयल करवाना भी रह गया था... इसललये

रुखसाना अपने काम मनपटा कर नज़ीला के घर जाने के ललये मनकली। आज भी नज़ीला गेट खोल कर अ
ं दर गयी तो मेन-

डोर तो बंद था लेमकन ब्यूटी पाललर का दरवाजा खुला हुआ था। वो पाललर के अ
ं दर गयी तो पाललर के पीछे से घर के अ
ं दर जाने

का दरवाजा आज भी खुला हुआ था। रुखसाना ने इस दफ़ा वो दरवाजा खटखटाना ही ठीक समझा। रुससाना ने दरवाजा

नॉक मकया तो नज़ीला ने आकर जब रुखसाना को पाललर में खड़े दे खा तो वो बोली, "अरे रुखसाना... तू वहाँ क्यों खड़ी है... अ
ं दर

आ जा ना!" नज़ीला घर के अ
ं दर आ गयी तो नज़ीला ने उसे हाल में सोफ़े पर मबठाते हुआ पूछा, "रुखसाना आज क्या बात है...

आज नॉक क्यों कर रही थी... सीधी अ


ं दर आ जाती... तेरा ही घर है!" रुखसाना ने मुस्कुराते हुए नज़ीला की ओर दे खते हुए

कहा, "भाभी वो मैंने इस ललये दरवाजे पे नॉक मकया था मक क्या मलूम आप मकसी और ही काम में मसरूफ़ ना हों!"

नज़ीला भी उसकी बात सुन कर मुस्कुराने लगी और उसके पास आकर बैठते हुए बोली, "रुखसाना... आफ़्ताब तो उसी मदन

चला गया था... मैं आज घर पर अकेली ह


ूँ ... वैसे तूने सही मकया मक दरवाजे पे नॉक कर मदया... हमें दूसरों के घर में जाने से पहले

डोर पे नॉक कर ही लेना चामहये... पता नहीं अ


ं दर क्या दे खने को ममल जाये... और हमें भी ऐसे काम डोर बंद करके ही करने

चामहये... पर शायद तू आज हाल का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी..!" रुखसाना थोड़ा सा हैरान होते हुए बोली, "क्यों क्या

हुआ नसजला भाभी...?"

नज़ीला बोली, "अब इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है... दे ख मैं तेरे घर आयी थी सुबह... तब तू उस लड़के के आगोश में ललपटी हुई

उससे अपनी गाँड मसलवा रही थी... तू तो बड़ी तेज मनकाली रुखसाना... घर में ही इंतज़ाम कर ललया है!" नज़ीला की बात सुन

कर रुखसाना का केलजा मु
ूँ ह को आ गया। वो िटी आूँ खों से नज़ीला के चेहरे को दे खने लगी सजसपे एक अजीब सी मुस्कान

छायी हुई थी। "अरे रुखसाना घबराने की कोई बात नहीं है... अगर मुझे तेरे राज़ का पता चल गया तो क्या.. तुझे भी तो मेरे बारे

में सब मालूम है... दे ख रुखसाना मैं सब जानती ह


ूँ मक तूने स्ज़ंदगी में कभी खुशी नहीं दे खी... तुझे अपने शौहर के साथ सैक्स

लाइफ़ का लुत्फ़ शायद कभी नसीब नहीं हुआ और तुझे अपनी स्ज़ंदगी जीने का पूरा हक़ है... तू घबरा नहीं... हम दोनों एक

दूसरे को मकतने सालों से जानती हैं... हम दोनों ने एक दूसरे का अच्छे-बुरे वक़्त में साथ मदया है... और मैं यकीन से कहती ह
ूँ मक

हम दोनों के ये राज हम दोनों के बीच में ही रहेंगे... पर ये बाता मक तूने उस हैंडसम लड़के को पटाया कैसे..!"
रुखसाना: "अब मैं आपको कैसे बताऊ
ूँ भाभी... बस ऐसे ही एक मदन अचानक से सब कुछ हो गया!"

नज़ीला: "अरे बता ना कैसे हुआ... जैसे मैंने तुझे अपने और आफ़्ताब के बारे में बताया था... दे ख मैंने अपनी कोई बात नहीं

छुपायी तुझसे... अब तू भी मुझे सब बता दे ...!" मिर नज़ीला ने तब तक रुखसाना की जान नहीं छोड़ी जब तक रुखसाना ने उसे

सब कुछ तफ़सील में नहीं बता मदया। रुखसाना ने भी काफ़ी तफ़सील से अपनी रंग रललयों की हर एक बात नसज़ला को

बतायी। रुखसाना की दास्तान सुनकर नज़ीला की हवस भी भड़क गयी। उसे रुखसाना की मकस्मत पे रश्क़ होने लगा। "वाह

रुखसाना... तू तो बड़ी मकस्मत वाली है... वो लड़का अपनी ज़ुबान से तेरे पैर और सैंडल तक चाटता है... माशाल्लाह... और तू

शराब भी पीती है उसके साथ...!" नज़ीला ने ताज्जुब जताते हुए कहा।

"पर नज़ीला भाभी... फ़ारूक से ज्यादा सामनया खासतौर पे हमेशा उस वक़्त घर पे होती है जब सुनील घर पर होता है... भाभी

दो-दो तीन-तीन मदन मनकल जाते हैं और मैं तड़पती रह जाती ह


ूँ ... समझ में नहीं आ रहा क्या करू
ूँ !"

नज़ीला: "तो मैं मकस रोज़ काम आऊ


ूँ गी... तू ये बता मक वो घर वापस कब आता है...!"

रुखसाना: "भाभी वो शाम को पाँच बजे के करीब घर वापस आता है... लेमकन हफ़्ते में दो या तीन मदन उसकी नाइट ड्यूटी

लगती है तो ससफ़ल फ्रेश होने आता है थोड़ी दे र के ललये!" रुखसाना को कहाँ मालूम था मक सुनील की नाइट ड्यूटी तो दर

असल नफ़ीसा के बेडरूम में लगती है।

नज़ीला: "और फ़ारूक भाई...?"

रुखसाना: "आपको तो मालूम ही है मक उनका कोई पता नहीं... वैसे तो सात बजे आते हैं और मिर पीने बैठ जाते हैं... और

अगर बाहर से अपने नशेड़ी दोस्तों के साथ पी कर आते हैं तो आने में नौ-दस बज जाते हैं... मुझे उनसे उतनी मफ़ि नहीं सजतना

मक सामनया की नज़रों से होसशयार रहना पड़ता है!"

नज़ीला: "अच्छा ठीक है... मैं आज शाम को तेरे घर आऊ


ूँ गी... और सामनया को अपने साथ बातों में मसरूफ़ करके बैठी रहु
ूँ गी...

तू मौका दे ख कर सुनील से चुदवा लेना!"

रुखसाना: "हाय तौबा नज़ीला भाभी.... आप कैसे बोल रही हैं ये सब..!" हालाँमक रुखसाना खुद सुनील के साथ खुलकर ऐसे

अल्फ़ाज़ बोलती थी लेमकन नज़ीला के सामने अभी भी शराफ़त मदखा रही थी।

नज़ीला: "तो क्या हुआ यार... सैक्स में इन सब बातों से और मज़ा आता है..!"

रुखसाना: "पर नज़ीला भाभी... कहीं कोई गड़बड़ हो गयी तो?"


नज़ीला: "मैं ह
ूँ ना.. तू मफ़ि ना कर... मैं स
ं भाल लु
ूँ गी...!"

उसके बाद नज़ीला से अपनी आई-ब्राऊज़ और िेसशयल करवा कर रुखसाना घर आ गयी। करीब चार बजे सामनया कॉलेज

से घर आ गयी। रुखसाना को आज कािी बेचैनी सी महसूस हो रही थी मक कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाये... कहीं सामनया को

शक़ ना हो जाये। जैस-े जैसे पाँच बजने को हो रहे थे रुखसाना का मदल रह-रह कर ज़ोर से धड़क उठता था। करीब साढ़े-चार बजे

नज़ीला सलील को साथ लेकर रुखसाना के घर आ गयी और रुखसाना को सजी-धजी दे खते ही बोली, "माशाल्लाह

रुखसाना... सच में कहर ढा रही हो...!" मिर रुखसाना और नज़ीला सामनया के रूम में ही चली गयीं और तीनों बैठ कर बातें

करने लगी।

करीब पाँच बजे सुनील घर आया तो रुखसाना ने जाकर दरवाजा खोला। रुखसाना ने सुनील को इशारे से बताया मक सामनया

के साथ-साथ और भी कोई घर में है और ये मक वो थोड़ी दे र में खुद ऊपर उसके पास आयेगी। सुनील सीधा ऊपर चला गया।

रुखसाना मिर से सामनया और नज़ीला के पास आकर बैठ गयी। तीनों थोड़ी दे र इधर-उधर के बातें करती रही। सामनया साथ-

साथ सलील को उसका होमवकल भी करवा रही थी। थोड़ी दे र बाद नज़ीला ने रुखसाना को इशारे से जाने के ललये कहा।

"भाभी आप बैठो... मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती ह


ूँ ..." ये कहते हुए रुखसाना ने एक बार ड्रेस्स
ं ग टेबल के सामने खड़े होकर थोड़ा

सा मेक-अप दुरुस्त मकया और पाँच इंच ऊ


ूँ ची पेंससल हील के सैंडल िशल पे खटखटाती हुई कमरे से बाहर मनकल गयी। ऊपर

जाते हुए उसका मदल जोरों से धड़क रहा था मक कहीं सामनया ऊपर ना जाये... क्या पता नज़ीला भाभी सामनया को संभाल

पायेंगी भी या नहीं। पर चूत में तीन मदनों से आग भी तो दहक रही थी। वो ऊपर सुनील के कमरे में आयी तो दे खा मक सुनील

वहाँ नहीं था। रुखसाना कमरे से बाहर आयी और बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था।

रुखसाना ने करीब पहु


ूँ च कर सुनील को आवाज़ लगायी, "सुनील तू अ
ं दर है क्या?" रुखसाना बाथरूम के दरवाजे के मबल्कुल

करीब खड़ी थी। अ


ं दर से कोई जवाब नहीं आया। बस पानी मगरने की आवाज़ आ रही थी। मिर अचानक से बाथरूम का

दरवाजा खुला और सुनील ने बाहर हाथ मनकाल कर रुखसाना को अ


ं दर खींच ललया। रुक्खसाना पहले तो कुछ पलों के ललये

एक दम से घबरा गयी। अ
ं दर सुनील एक दम नंगा खड़ा था। उसका ल
ं ड हवा में झटके खा रहा था। उसके तने हुए आठ इंच के

तगड़े ल
ं ड को दे ख कर रुखसाना की चूत में मबजललयाँ दौड़ने लगीं।

"कब से आपकी वेट कर रहा था... मकतना इंतज़ार करवाती हो आप भाभी!" सुनील ने कहा तो रुखसाना बोली, "वो नीचे

सामनया है... इस ललये ऐसे नहीं आ सकती थी ना!" सुनील ने उसकी तरफ़ दे खते हुए रुखसाना का हाथ अपने ि
ं ु िकारते हुए


ं ड पर रख मदया। रुखसाना का पूरा सजस्म सुनील के गरम ल
ं ड को अपनी हथेली में महसूस करते ही काँप उठा। उसकी मुट्ठी

अपने आप ही सुनील के ल
ं ड पर कसती चली गयी और उसके होंठ सुनील होंठों के करीब आते गये। मिर जैसे ही सुनील ने

रुखसाना के होंठों को अपने होंठों में दबोचा तो वो पागलों की तरह रुखसाना के होंठों को चूसने लगा। रुखसाना की चूत

उबाल मारने लगी और वो सुनील की बाहों में कसती चली गयी। रुखसाना की कमीज़ उतारने के बाद सुनील उसकी गदल न

और मिर उसकी चूचचयों को चूमने लगा। मिर रुखसाना की सलवार का नाड़ा खोल कर उसकी सलवार भी मनकाल दी और

मिर नीचे उसके पैर और सैंडल चूमने के बाद टाँगों से होते हुए सुनील उसकी जाँघों को को चूमने लगा। मिर सुनील खड़ा
हुआ और रुखसाना की एक टाँग के नीचे अपनी हाथ डाल कर ऊपर उठा मदया। रुक्खसाना का पूरा सजस्म जैसे ही थोड़ा सा

ऊपर उठा तो उसने दूसरा हाथ भी रुखसाना की दूसरी टाँग के नीचे डालते हुए उसे हवा में उठा ललया और रुखसाना के कान

में सरगोशी करते हुए बोला, "भाभी मेरी जान! अपने मदलबर लौड़े को पकड़ कर अपनी िुद्दी में डाल लो!" रुखसाना उससे

ललपटी हुई उसकी गोद में हवा में उठी थी। उसे ये पोसज़शन बड़ी मदलचस्प लग रही थी। सुनील ने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों

को दबोच रखा था। रुखसाना ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसके ल


ं ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा मदया। सुनील ने

मबना एक पल रुके उसके चूतड़ों को दबोचते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा और सुनील का ल
ं ड रुखसाना की िुद्दी की दीवारों

को चीरता हुआ एक ही बार में पूरा का पूरा समा गया। "ऊऊऊईईईई सुनील तूने तो मार ही डाला... आअहहहल्लाह!" रुखसाना

चचहु
ूँ कते हुए सससक उठी। सुनील ने हंसते हुए उसके होंठों को चूमा और मिर अपने ल
ं ड को आधे से ज्यादा बाहर मनकाल कर

एक ज़ोरदार धक्का मारा। सुनील का ल


ं ड फ़च की आवाज़ से रुखसाना की चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ मिर से अ
ं दर

जा घुसा। "आहह सुनील धीरे कर ना...!" रुखसाना ने अपनी बाहों को सुनील की गदल न में कसते हुए कहा। उसकी चूचचयाँ

सुनील के चौड़े सीने में धंसी हुई थी और सुनील का मोटा मूसल जैसा ल
ं ड उसकी चूत की गहराइयों में समाया हुआ था। "क्या

धीरे करू
ूँ भाभी!" सुनील अब धीरे-धीरे रुखसाना की चूत में अपने ल
ं ड को अ
ं दर बाहर करते हुए बोला।

रुखसाना समझ गयी मक सुनील क्या सुनना चाहता है। वो कसमसाते हुए बोली, "ऊ
ूँ हहह... धीरे प्यार से चोद!" सुनील ने उसकी

गाँड को दोनों तरफ़ से कस के पकड़ कर तेजी से अपने ल


ं ड को उसकी चूत में अ
ं दर-बाहर करना शुरू कर मदया... जब उसका


ं ड जड़ तक रुखसाना की चूत में समाता तो उसकी जाँघें रुखसाना के चूतड़ों पे नीचे से टकरा कर थप-थप की आवाज़ करने

लगती। सुनील के ताबड़तोड़ धक्कों ने उसकी चूत की दीवारों को रगड़ कर रख मदया। रुखसाना की चूत से पानी बह कर

सुनील के ल
ं ड को चभगो रहा था। "ओहहहह सुनील.... हाँ ऐसेऐऐऐ हीईई चोद मुझे मार मेरी िुद्दी.... आहहहह िाड़ दे मेरीईईई

िुद्दी आज.... आहहहहहह चोद मेरी चूत को.... आआह भर दे इसे अपनी ल
ं ड के पानी से... ऊ
ूँ ईईईंईं!" रुखसाना चुदाई की

मदहोशी में मबल्कुल बेपरवाह होकर सससकते हुए बोले जा रही थी। उसकी टाँगें सुनील की कमर में कैंची की तरह कसी हुई

थी।

सुनील अब पूरी ताकत से रुखसान को हवा में उठाये हुए चोद रहा था। रुखसाना उसके ल
ं ड के धक्के अपनी चूत की गहराइयों

में महसूस करते हुए इस कदर मदहोश हो चुकी थी मक उसे इस बात की परवाह भी नहीं रही मक नीचे सामनया भी घर में है।

रुखसाना भी अपनी गाँड को ऊपर-नीचे करने लगी थी। सुनील उसके होंठों को चूसते हुए अपने ल
ं ड को पूरी रफ़्तार से उसकी

चूत की गहराइयों में पेल रहा था। "हाय सुनील मेरीईई िुद्दी तो गयीईईई... हाँ येऽऽऽ ले आआहह ऊ
ूँ ऊ
ूँ हहह ऊऊऊईईईई ये ले

मेरीईईईई िुद्दी ने पानी छोड़ा... आहह आूँ हहह..! रुखसाना का सजस्म झड़ते हुए बुरी तरह काँपने लगा। सुनील का ल
ं ड भी इतने

में झड़ने लगा, "ओहहह रुखसानाआआहहहह भाआआभी येऽऽऽ लेऽऽऽ साली येऽऽऽ ले मेरऽ
े ऽऽ ल
ं ड का पानी ऊ
ूँ ह ऊ
ूँ ह ऊ
ूँ ह!"

दोनों झड़ कर हाँिने लगे और थोड़ी दे र बाद सुनील का ल


ं ड ससकुड़ कर रुखसाना की चूत से बाहर आ गया तो सुनील ने

रुखसाना को नीचे उतारा।


रुखसाना ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और बाहर आ गयी। जैसे ही वो बाहर आयी तो उसे नज़ीला ऊपर आती हुई नज़र

आयी। नज़ीला उसके पास आकर बोली, "यार वो सामनया पूछ रही थी मक अम्मी को इतना वक़्त क्यों लग गया ऊपर... और

ऊपर आने को हो रही थी... मैंने उसे मुसश्कल से रोका है सॉरी यार!"

रुखसाना मुस्कुराते हुए बोली, "कोई बात नहीं नज़ीला भाभी... आप सजस काम के ललये आयी थी वो तो हो गया!" नज़ीला ने

पूछा, "क्या हो गया... पर तू तो अभी बाथरूम से बाहर आ रही है... इतनी जल्दी...?" नज़ीला के कान में िुसिुसाते हुए

रुखसाणा बोली, "मैं जब ऊपर आयी थी तो सुनील अ


ं दर नहा रहा था... उसने मुझे अ
ं दर ही खींच ललया..!" नज़ीला ने शरारत

भरी मुस्कुराहट के साथ पूछा, "तो बाथरूम में ही तेरी िुद्दी मार ली उसने... कैसे?" रुखसाना शमाते हुए बोली, "वो मुझे अपनी

गोद में ऊपर उठा कर!"

"क्या खड़े-खड़े ही तुझे उठा कर चोद मदया... वाह... काश हमारी भी मकस्मत ऐसे होती... तू कहे तो मैं सामनया को अपने घर ले

जाऊ
ूँ .!" नज़ीला ने पूछा तो रुखसाना ने कहा मक उसकी जरूरत नहीं क्योंमक सुनील नाइट-ड्यूटी पे जा रहा है जबमक सुनील तो

नफ़ीसा के घर उसके साथ अपनी रात रंगीन करने जा रहा था। मिर दोनों नीचे आ गयी। नज़ीला कुछ और दे र बैठी मिर वो

अपने घर चली गयी। रुखसाना ने महसूस मकया मक सामनया उसकी तरफ़ थोड़ा अजीब नज़रों से दे ख रही थी। रुखसाणा ने

तो कुछ ज़ामहर नहीं होने मदया लेमकन रुखसाना की ललपसस्टक ममट चुकी थी और उसकी सलवार- कमीज़ पे भी कईं जगहों पे

भीगने के मनशान सामनया के मदमाग में शक पैदा कर रहे थे।

मदन इसी तरह गुज़र रहे थे। उस मदन के बाद नज़ीला की बदौलत रुखसाना को अब अक्सर ऐसे मौके ममलने लगे जब शाम

को नज़ीला समनया को मकसी बहाने से एक-दो घंटे के ललये अपने घर बुला लेती थी। पर रुखसाना को ऐसा कोई मौका नहीं

ममला जब वो पुरी रात सुनील के साथ शराब के नशे में मदहोश होके चुदाई के मज़े ले सके। उधर सामनया को तो पहली बार

सुनील से चुदने के बाद दूसरा मौका ममला ही नहीं था। इसके अलावा सामनया को रुखसाना पे भी थोड़ा शक तो होने लगा था

पर वो भी श्योर नहीं थी। उसका रवैया वैसे रुखसाना के साथ नॉमलल था। इस दौरान रुखसाना और नज़ीला आपस में कुछ

ज्यादा ही फ्रेंक हो गयी थीं। जब भी नज़ीला उसके घर आती या रुखसाना उसके घर जाती तो दोनों ससफ़ल सैक्स की ही बातें

करतीं। रुखसाना और नज़ीला अक्सर मदन में नज़ीला के घर ब्लू मफ़ल्में दे खने के साथ-साथ शराब भी पीने लगीं। जब से

रुखसाना ने उसे बताया था मक वो शराब के नशे में मदहोश होकर खूब मज़े से रात भर सुनील से चुदवाती है तब से ही नज़ीला

को भी शराब पीने की ख्वामहश थी।

रुखसाना मकसी चुदैल राँड की तरह होती जा रही थी सजसे हर वक़्त अपनी चूत में लौड़ा लेने की मचमचाहट रहने लगी। शराब

पी कर साथ में ब्लू मफ़ल्में दे खते हुए इस दौरान रुखसाना और नज़ीला के बीच इस क़दर नज़दीमकयाँ बढ़ गयी मक दोनों

लेसियन सैक्स करने लगी। दोनों ब्लू-मफ़ल्में दे खते हुए घंटों आपस में ललपट कर एक दूसरे के सजस्म सहलाती... चूत और

गाँड चाटती। पर ल
ं ड तो ल
ं ड ही होता है और नज़ीला भी सुनील से चुदवाने के मौके की ताक में थी। एक मदन जब नज़ीला के

घर रुखसाना और नज़ीला नंगी होकर लेसियन चुदाई का मज़ा ले रही थीं तो नज़ीला ने रुखसाना को बताया मक उसका

शौहर अगले मदन टू र पर जा रहा है एक रात के ललये। "यार... रुखसाना कल रात मैं यहाँ अकेली रहु
ूँ गी... यार अच्छा मौका है... तू
सुनील को कल रात यहाँ बुला ले... हम दोनों खूब मस्ती करेंगे...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम चौंकते हुए बोली,

"क्या क्या कहा आपने भाभी...?"

नज़ीला बोली, "वही जो तूने सुना... दे ख यार मैं तेरी इतनी मदद करती ह
ूँ तामक तू उसके साथ मौज कर सके... तो बदले में मुझे

भी तो कुछ ममलना चामहये... और वैसे भी तेरा कौन सा उसके साथ कोई ररश्ता है... वो आज यहाँ तो कल कहीं और चला

जायेगा...! रुखसना नज़ीला की बात सुन कर सोच मैं पड़ गयी मक क्या करू
ूँ ... इतने मदनों बाद ऐसा मौका हाथ आया था...

रुखसाना उसे हाथ से जाने नहीं दे ना चाहती थी, "ठीक है भाभी मैं आपको आज शाम तक सोच कर बता दू
ूँ गी मक क्या करना

है!" नज़ीला बोली मक, "चल सोच ले... रोज़-रोज़ ऐसे मौके नहीं आयेंगे!" उसके बाद रुखसाना अपने घर आ गयी। मदल और

मदमाग दोनों में जंग चल रही थी। रुखसाना सोचने लगी मक नज़ीला भाभी कह तो ठीक रही हैं... जवान लड़का है.... क्या भरोसा

वो कल कहाँ हो... कल को अगर उसका तबादला हो गया तो... ये मदन बार-बार नहीं आयेंगे... इन मदनों को जी भर कर के जी

लेना चामहये! शाम को जब सुनील वापस आया तो रुखसाना ने उसे सारी बात बतायी। रुखसाना के सामने सुनील शरीफ़

बनते हुए बोला मक वो ये काम मकसी और के साथ नहीं करेगा पर रुखसाना के एक दो बार कहने पर ही वो मान गया।

रुकसाना ने नज़ीला को फ़ोन करके खुशखबरी दे दी।

फ़ारूक ने उसी रात को रुखसाना को बताया मक उसके मामा की मौत हो गयी है और अगले मदन सुबह उन दोनों को उनके

गाँव जाना है और शाम को चार-पाँच बजे तक वापस आ जायेंगे। एक पल के ललये रुखसाना को नज़ीला के साथ बनाया

प्रोग्राम बेकार होता नज़र आया पर ये सोच कर मदल को तसल्ली ममली मक शाम को तो वो वापस आ ही जायेंगे। अब प्लैन के

मुतामबक सुनील को सामनया और फ़ारूक के सामने नाइट-ड्यूटी का बहाना बनाना था और नज़ीला को रुखसाना को अपने

घर सोने के ललये फ़ारूक को कहना था। अगले मदन सुबह की ट्रेन से फ़ारूख और रुखसाना उसके मामा के गाँव के ललये

मनकल गये। सुनील भी उनके साथ ही घर से मनकल गया था स्टेशन जाने के ललये।

रुखसाना और फ़ारूक करीब ग्यारह बजे उसके मामा के घर पहु


ूँ चे पर उन्हें वहाँ दे र हो गयी और और उनकी आलखरी ट्रेन छूट

गयी। रुखसाना ने नज़ीला के साथ जो भी प्लैन बनाया था वो सब उसे ममट्टी में ममलता हुआ नज़र आ रहा था। उसे समझ में

नहीं आ रहा था मक वो क्या करे। उधर सामनया घर पर अकेली थी। उन्होंने सामनया को कभी रात भर के ललये अकेला नहीं

छोड़ा था। रुखसाना को उसकी चचंता सताने लगी थी। उसने फ़ारूक से कहा मक वो सामनया को घर पर फ़ोन करके उसे बता दें

मक वो आज रात नहीं आ पायेंगे और कल सुबह आयेंगे और इसललये वो नज़ीला भाभी के यहाँ सो जाये। रुखसाना के ज़हन

में अजीब सा डर था... सुनील को लेकर... कहीं वो सामनया के साथ कुछ गलत ना कर दे । रुखसाना इस बात से अ
ं जान थी मक

सुनील और सामनया इतने करीब आ चुके हैं मक वो चुदाई भी कर चुके हैं।

उसके बाद रुखसाना ने नज़ीला को भी फ़ोन करके सारी बात बता दी और उसे कहा मक सामनया को आज रात अपने घर

सुला ले और सुनील के आने पर उसे घर की चाबी दे दे। नज़ीला ने उसे बेमफ़ि रहने के ललये कहा तो रुखसा ना को राहत

महसूस हुई मक चलो नज़ीला की वजह से उसे सामनया की मफ़ि नहीं करनी पड़ेगी। पर जो वो सोच रही थी शायद उससे भी

बदतर होने वाला था।


शाम के पाँच बजे के करीब नज़ीला जब सामनया को अपने घर ले आने के ललये अपने घर से बाहर मनकली ही थी मक उसे

बाइक पर सुनील आता हुआ नज़र आया। नज़ीला ने दे खा मक सुनील ने बाइक गेट के अ
ं दर कर दी और मिर उसने घंटी

बजायी तो सामनया ने दरवाजा खोला और सुनील अ


ं दर चला गया। अब नज़ीला तो थी है ऐसी जो हर बात में कुछ ना कुछ

उल्टा जरूर सोचती थी। वो तेजी से चलते हुए रुकसाना के घर आयी और गेट खोलकर जैसे ही वो डोर-बेल बजाने वाली थी

मक उसे हॉल की लखड़की से कुछ आवाज़ें सुनायी दीं। उसने दे खा मक लखड़की खुली हुई थी लेमकन उसपे पदा पड़ा हुआ था।

नज़ीला थोड़ा सा आगे होकर पदे के मकनारे से अ


ं दर झाँकने लगी। अ
ं दर का नज़ारा दे ख कर नज़ीला के होंठों पर एक कमीनी

मुस्कान फ़ैल गयी। अ


ं दर सुनील ने सामनया को हॉल में ही अपनी बाहों में भरा हुआ था। सामनया और सुनील एक दूसरे के

होंठों को चूस रहे थे। सामनया ने हाई-हील के सैंडल पहने होन के बावजूद अपनी ऐमड़याँ और ज्यादा उठायी हुई थीं और सुनील

से मकसी बेल की तरह ललपटी हुई अपने होंठ चुसवा रही थी। सुनील का एक हाथ सामनया की सलवार के अ
ं दर था और वो

उसकी चूत को मसल रहा था।

सामनया: "ओहहहह सुनील... ये तुमने मुझे क्या कर मदया है!"

सुनील: "ऊ
ूँ हह सामनया मेरी जान... बहुत मदनों बाद आज तुम मेरे हाथ आयी हो..!"

सामनया: "लेमकन सुनील... नज़ीला आूँ टी आने वाली होंगी.. अम्मी ने नज़ीला आूँ टी को फ़ोन करके कहा है मक वो मुझे अपने

साथ अपने घर सुला लें!"

सुनील: "ओह ये क्या बात है... साला आज इतना अच्छा मौका था..!"

सामनया: "अब मैं क्या कर सकती ह


ूँ ... मैं तो खुद तुमसे ममलने के ललये तड़प रही थी...!"

तभी नज़ीला ने डोर-बेल बजा दी तो सुनील और सामनया दोनों हड़बड़ा गये। सुनील जल्दी से ऊपर चला गया। सामनया ने खुद

को ठीक मकया और दरवाजा खोला तो सामने नज़ीला खड़ी थी, "सामनया क्या कर रही थी?"

सामनया: "कुछ नहीं आूँ टी... पढ़ रही थी.!"

नज़ीला: "अच्छा वो लड़का जो ऊपर मकराये पे रहता है आ गया क्या?"

सामनया: "हाँ आूँ टी!"

नज़ीला: कहाँ है वो?

सामनया: "ऊपर है... अपने कमरे में!"


नज़ीला: "अच्छा एक काम कर तू जल्दी से उसके ललये चाय बना दे ... मैं उसे चाय दे आती ह
ूँ ... और उसे बता दू
ूँ गी मक आज तेरी

अम्मी और अब्बू नहीं आयेंगे और तू मेरे साथ मेरे घर पर सोने जा रही है... खाना वो बाहर होटल में खा लेगा..!"

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सामनया: "ठीक है आूँ टी!"

उसके बाद सामनया ने चाय बनायी और नज़ीला सुनील को चाय दे ने ऊपर चली गयी। सुनील अपने बेड पर बैठा कुछ सोच

रहा था। नज़ीला ने उसकी तरफ़ दे ख कर मुस्कुराते हुए कहा, "चाय रखी है तुम्हारे ललये... पी लेना... वो आज रुखसाना और

फ़ारूक भाई नहीं आ पायेंगे... इसललये सामनया को मैं अपने साथ अपने घर ले जा रही ह
ूँ ... मकसी चीज़ के जरूरत हो तो बे-

तकल्लुफ़ बता दो...!"

सुनील: "जी कोई बात नहीं मैं मैनेज कर लु


ूँ गा..!"

नज़ीला पलट कर जाने लगी लेमकन मिर वो रुकी और सुनील की तरफ़ पलटी। "वैसे सुनील... रुखसाना ने जो आज प्लैन

बनाया था... वो तो हाथ से गया... पर अगर तुम चाहो तो रात को नौ बजे आ सकते हो... मैं नौ बजे तक इंतज़ार करु
ूँ गी...!" नज़ीला

ने काचतल मुस्कान के साथ सुनील की तरफ़ दे खते हुए कहा।

सुनील: "पर सामनया... वो तो आपके घर ही जा रही है!"

नज़ीला: "तुम उसकी मफ़ि ना करो... तुम ठीक नौ बजे मेरे घर आ जाना... गेट के मबल्कुल सामने मेरा पाललर है... मैं उसका

दरवाजा अ
ं दर से खुला छोड़ दू
ूँ गी... पाललर में आने के बाद अ
ं दर से दरवाजा लॉक कर लेना और वहीं बैठे रहना... जब सामनया

सो जायेगी तो मैं वहाँ आ जाऊ


ूँ गी... और हाँ... तुम्हें कुछ लाने की जरूरत नहीं.... शराब और शबाब का सारा इंतज़ाम मैंने कर

रखा है!"

उसके बाद नज़ीला सामनया को साथ लेकर अपने घर चली गयी। सामनया और नज़ीला और सलील रूम में बैठे थे। शाम के

करीब साढ़े-छः बज चुके थे। "सामनया चल तेरा िेसशयल और पेमडक्योर कर दे ती ह


ूँ ...!" नज़ीला ने सामनया को कहा। मिर

सामनया और नज़ीला पाललर में आ गये। सामनया ने अपनी सैंडल उतार दी और नज़ीला उसका पेमडक्योर करने लगी।

"सामनया एक बात पूछ


ूँ ू ...?" नज़ीला ने सामनया की तरफ़ दे खते हुए कहा।

सामनया: "हाँ आूँ टी.. पूछें!"

नज़ीला: "तुझे सुनील कैसा लगता है...!"


नज़ीला की बात सुन कर घबराते हुए सामनया बोली, "पर आूँ टी आप ये क्यों पूछ रही हो?"

नज़ीला: "चल अब नाटक करने से क्या फ़ायदा... मैं तुझे बता ही दे ती ह


ूँ ... जब मैं तेरे घर आयी थी... तब मैंने लखड़की सब दे ख

ललया था... तू कैसे उससे अपने होंठ चुसवा रही थी... और वो तेरी िुद्दी को सलवार के अ
ं दर हाथ डाल कर सहला रहा था...!"

ये बात सुनते ही सामनया के चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उसका केलजा मु


ूँ ह को आ गया। वो कभी अपने सामने नज़ीला

की तरफ़ दे खती जो उसके पैर की माललश कर रही थी तो कभी नीचे फ़शल की तरफ़। "तुझे ये सब करते हुए डर नहीं लगा...

अगर तेरी अम्मी और अब्बू को पता चल गया मक तू उनके पीछे अपना मु


ूँ ह काला करवाती मिरती है तो वो तुझे स्जंदा नहीं

छोड़ेंगे... बोल बताऊ


ूँ तेरी अम्मी को..?" नज़ीला की धमकी सुनकर सामनया की हालत रोने जैसी हो गयी थी। सामनया ने

नज़ीला का हाथ पकड़ ललया और रुआूँ सी आवाज़ में बोली, "प्लीज़ आूँ टी... अम्मी-अब्बू को नहीं बताना... वो मुझे मार

डालेंगे...!"

सशकार को अपने जाल में ि


ं सते दे ख कर नज़ीला बोली, "तुझे क्या यही... दूसरे मज़हब का लड़का ममला था सामनया... क्यों

क्या तूने उसके साथ ये सब!"

सामनया: "आूँ टी मैं सुनील से प्यार करती ह


ूँ ..!"

नज़ीला: "प्यार हु
ूँ म्म.... आने दे तेरे अम्मी और अब्बू को... सब प्यार-मोहब्बत भूल जायेगी!"

सामनया: "आूँ टी प्लीज़... आपको अल्लाह का वस्ता... प्लीज़ आप अम्मी और अब्बू से कुछ ना कहना!"

नज़ीला: "हम्म्मम्म चल ठीक है... नहीं बताती... पर उसके बदले में मुझे क्या ममलेगा...?"

सामनया: "आूँ टी आप जो कहेंगी मैं वो करु


ूँ गी!"

नज़ीला: "सोच ले वरना मिर ना कहना मक मैंने तुझे मौका नहीं मदया और तेरी अम्मी से तेरी सशकायत कर दी...!"

सामनया: "नहीं आूँ टी ऐसी नौबत नहीं आयेगी... आप जो कहेंगी मैं वो ही करु
ूँ गी..!"

नज़ीला: "तो मिर मेरी बात का सही-सही जवाब दे ना... ये बता तूने सुनील के साथ सैक्स मकया है क्या... दे ख सच बोलना वरना

पता लगाने के मुझे और भी तरीके आते हैं...!"

नज़ीला की बात सुन कर सामनया खामोश हो गयी। वो कुछ नहीं बोल पायी। नज़ीला ने मिर से उसे पूछा, "इसका मतलब तू

उससे चुदवा चुकी है ना? बता मुझ!े " सामनया ने हाँ में ससर महला मदया।
नज़ीला: "हाय मेरे अल्लाह... तो तू हक़ीकत में उसका ल
ं ड अपनी िुद्दी मैं ले चुकी है... कब चोदी उसने तेरी िुद्दी?"

सामनया: "वो आूँ टी एक मदन घर पर ही..!"

नज़ीला: "अरे तो इसमें इतना शरमाने या घबराने की क्या बात है... मैं तो तेरी सहेली जैसी ह
ूँ ... खैर चल मैं तेरा िेसशयल कर दे ती


ूँ पहले मिर तू जल्दी से घर जा और कोई और बमढ़या से कपड़े और सैंडल पहन कर आ... उसके बाद तेरा मेक-अप कर दु
ूँ गी

तामक रात को जब सुनील तुझे दे खे तो बस दीवाना हो जाये!"

सामनया: "रात को सुनील... मैं समझी नहीं!"

नज़ीला: "चल ठीक है तो मिर सुन.... मैंने सुनील को आज रात यहाँ बुलाया है...!"

सामनया एक दम चौंकते हुए बोली, "क्या?"

नज़ीला: "हाँ मैंने उसे बुलाया है... वो रात को नौ बजे आयेगा.... अब मुद्दे की बात करते हैं... दे ख तुझे तो मालूम है मक तेरे अ
ं कल

तो मेरी चूत की प्यास नहीं बुझा पाते... इसललये मुझे भी जवान ल


ं ड की ख्वामहश है... आज मैं भी तेरे साथ उससे अपनी चूत की

आग को ठंडा करवाउ
ूँ गी!"

सामनया: "ये... ये आप क्या बोल रही हो आूँ टी!"

नज़ीला: "वही जो तू सुन रही है... अगर तुझे मेरी बात नहीं माननी तो ठीक है... मैं कल तेरी अम्मी को सब बता दु
ूँ गी...!"

सामनया: "नहीं नहीं... प्लीज़ आप अम्मी से कुछ नहीं कहना... आप जो बोलेंगी वो मैं करु
ूँ गी..!"

नज़ीला: "वेरी गुड... चल मिर रात के ललये तैयारी करते हैं!"

मिर नज़ीला ने सामनया का िेसशयल मकया और सामनया कपड़े बदलने अपने घर चली गयी। सुनील उस वक़्त घर पे नहीं था

क्योंमक वो खाना खाने बाहर चला गया था। इतने में नज़ीला भी नहा कर बेहद सैक्सी सलवार कमीज़ पहन कर तैयार हो गयी।

उसकी कमीज़ िीवलेस और बेहद गहरे गले वाली थी। रुखसाना से उसे सुनील की सब पसंद-नापसंद मालूम थी तो उसने

बेहद ऊ
ूँ ची पेंससल हील की काचतलाना सैंडल भी पहन ली। सामनया भी अपने घर से िीवलेस कुती और पलाज़्ज़ो सलवार

के साथ अपनी अम्मी की एक ऊ


ूँ ची हील वाली सेन्डल पहन कर आ गयी। मिर दोनों ने खाना खाया और उसके बाद नसज़ला

ने सामनया का और अपना अच्छे से मेक-अप मकया। आठ बजे के करीब दोनों की िुमद्दयाँ ल


ं ड लेने के मचलने लगी थीं।

रात के नौ बजे रहे थे। सलील नज़ीला के बेडरूम में सो चुका था और सामनया ड्राइंग रूम में टीवी दे ख रही थी। नज़ीला लखड़की

के पास खड़ी होकर बार-बार बाहर झाँक रही थी... पर सुनील अभी तक नहीं आया था। नज़ीला की बेकरारी बढ़ती जा रही थी।
साढ़े नौ बजे तक नज़ीला ने इंतज़ार मकया और मिर मायूस होकर सामनया से कहा मक लगता है मक शायद सुनील नहीं

आयेगा और मिर ये कह कर सामनया को दूसरे बेडरूम में भेज मदया मक अगर सुनील आया यो वो उसे वहीं ले आयेगी।

बेकरार और मायूस होकर नज़ीला कुद ड्राइंग रूम में ही अकेली बैठ कर शराब पीने लगी। उसने महंगी शराब की बोतल का

खास इंतज़ाम मकया था मक सुनील के साथ बैठ कर मपयेगी लेमकन अब अकेले ही शराब पीते हुए वो अपने मदल में बार-बार

सुनील को कोस रही थी। अगले आधे घंटे में नज़ीला दो स्ट्रॉंग पैग पी चुकी थी और तीसरा पैग पीते हुए उसके ज़हन में

सामनया को आज रात अपने साथ लेसियन सैक्स में शरीक करने का मंसूबा बन रहा था। इतने में उसे बाहर गेट खुलने की

आवाज़ आयी। उसने उठ कर लखड़की से झाँका तो उसे सुनील गेट के अ


ं दर सामने पाललर की तरफ़ जाता हुआ नज़र आया।

नज़ीला को शराब पीने का ज्यादा तजुबा नहीं था और मायूसी में आज उसने आमतौर से ज़्यादा पी ली थी तो शराब का खासा

नशा छाया हुआ था और वो हाई हील की सैंडल में झूमती हुई उस दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो उसके ब्यूटी पाललर में खुलता था।

नज़ीला ने ब्यूटी पाललर का दरवाजा खोला तो सुनील पाललर में अ


ं दर आ चुका था। नज़ीला ने उसे ब्यूटी पाललर का मेन-डोर


ं दर से लॉक करने को कहा और मिर उसे लेकर घर के अ
ं दर ड्राइंग रूम में आ गयी। ब्यूटी पाललर में तो हल्की सी नाइट-लैंप

की रोशनी थी लेमकन ड्राइंग रूम की ट्यूब-लाइट की रोशनी में सामने का नज़ारा दे ख कर सुनील के होश उड़ गये। चालीस

साल की एक गदरायी हुई औरत िीवलेस और बेहद गहरे गले की कमीज़ और सलवार पहने खड़ी थी... उसकी कमीज़ के

गहरे गले में से उसका क्लीवेज और चूचचयों का काफ़ी महस्सा साफ़ झलक रहा था... शराब और हवस के नशे में चूर नज़ीला

का हुस्न और उसके पैरों में हाइ हील के काचतलाना सैंडल दे खते ही सुनील का ल
ं ड पैंट में झटके खाने लगा। वो नज़ीला के

करीब गया और उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा ले जाकर सरगोशी में बोला, "आप तो चुदने के ललये पूरी तैयारी करके बैठी

हो..!"

नज़ीला उसे सोफ़े पर मबठा कर शराब का पैग दे ते हुए बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए बोली, "यू लक्की बास्टडल क्या... मकस्मत पायी

है तुन.े ... अभी तो तुझे पता ही नहीं मक मैंने और क्या-क्या तैयारी की हुई है इस रात को यादगार बनने के ललये... मुझे तो लगा

मक तू आयेगा ही नहीं..!" ये कह कर नज़ीला अपना शराब का पैग लेकर सुनील की गोद में उसकी जाँघ पर बैठ गयी और

अपनी एक बाँह उसकी गदल न में डाल दी। सुनील ने भी नज़ीला की कमर में एक बाँह डालते हुए उसकी गोलमटोल चूची को

जोर से दबा मदया "आआहहहस्सीईई... जान लेगा क्या मेरी..." नज़ीला जोर से सससकी। सुनील बोला, "मेरी बाइक पंक्चर हो

गयी थी इसललये दे र हो गयी... वैसे मुझे भी तो पता चले मक आपने और क्या-क्या तैयारी कर रखी है... शराब और शराब के नशे

में चूर शबाब तो मरे सामने है ही!"

नज़ीला शराब का घू
ूँ ट पीते हुए अदा से बोली, "बताऊ
ूँ ?" तो सुनील ने कहा मक "हाँ बताओ ना!" नज़ीला बेहद काचतलाना


ं दाज़ में मुस्कुराते हुए बोली, "मेरी चूत के अलावा अ
ं दर एक और चूत सज संवर कर तेरे ल
ं ड का इंतज़ार कर रही है..!"

"क्या.. कौन?" सुनील चौंकते हुए बोला। उसे लगा मक हो सकता है शायद रुखसाना वापस आ गयी है।
नज़ीला कमीनगी से मुस्कुराते हुए रसभरी आवाज़ में बोली, "सामनया और कौन... श्श्श अब तू सोच रहा होगा मक मुझे कैसे

मालूम ये सब कैसे हुआ... है ना? तो चल मैं ही बता दे ती ह


ूँ ... आज जब तू घर आया था तब मैंने लखड़की से सब दे ख ललया था...

कैसे तू उसकी चूत को मसल रहा था... मिर मैंने सामनया को ज़रा धमकाया मक मैं उसकी सशकायत रुखसाना से कर दु
ूँ गी...

और उसे कबूल करने पर मजबूर कर मदया..!" नज़ीला की बात सुनकर सुनील समझ गया मक ये चुदक्कड़ औरत अपनी सहेली

रुखसाना के मवपरीत मबल्कुल टबंदास मकस्म की है। "अच्छा... सजतना मैं सोचता था... आप तो उससे कहीं ज्यादा चालाक हो...

बहुत चालू चीज़ हो आप!" सुनील हंसते हुए बोला तो नसज़ला ने कहा, "अरे चालू नहीं ह
ूँ मैं... अब क्या करू
ूँ मेरी ये चूत ल
ं ड के

ललये तड़पती है... बस चूत के हाथों मजबूर ह


ूँ ... वैसे तू भी कम चालू नहीं है... दोनों माँ-बेटी को अपने ल
ं ड का दीवाना बना रखा है

तून.े .. चल पैग खतम कर... अ


ं दर चलते हैं.... सामनया भी तुझसे चुदने के ललये मरी जा रही है...!"

दोनों ने अपने पैग खतम मकये और नज़ीला और सुनील दोनों सामनया वाले बेडरूम की तरफ़ जाने लगे। हाइ हील के सैंडल में

चलते हुए नशे की हालत में नज़ीला के कदमों में लड़खड़ाहट नुमाया तौर पे मौजूद थी। पहले नज़ीला बेडरूम में दालखल हुई।

बेडरूम में ट्यूब-लाइट जल रही थी और सामनया बेड पर पैर नीचे लटका कर बैठी हुई कोई मैगज़ीन पढ़ रही थी। उसने अपने

कपड़े नहीं बदले थे क्योंमक उसे भी उम्मीद थी मक शायद सुनी.ल आ जाये। नज़ीला को दे ख कर सामनया का मदल जोरों से

धड़कने लगा। नज़ीला ने बाहर खड़े सुनील को अ


ं दर आने का इशारा मकया और जैसे ही सुनील अ
ं दर आया तो सामनया के

मदल की धड़कनें और तेज़ हो गयीं। अ


ं दर आते ही नज़ीला ने सुनील को दीवार से सटा मदया और खुद उसके सामने घुटनों के

बल नीचे कालीनदार िशल पर बैठ गयी। उसने सुनील की ट्रैक-पैंट को पकड़ कर नीचे खींचा तो सुनील का आठ-इंच का

लम्बा-मोटा अनकटा ल
ं ड बाहर आकर झटके खाने लगा। नज़ीला के पीछे मबस्तर पे बैठी हुई सामनया ये सब अपनी िटी

आूँ खों से दे ख रही थी। नजीला ने सुनील के लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर ललया और सामनया की तरफ़ सुनील के ल
ं ड को

मदखाते हुए बोली, "हाय अल्लाह... दे ख कैसे शरमा रही है... जैसे पहली दफ़ा अपने आसशक़ का ल
ं ड दे ख रही हो..!" और मिर

सामनया की तरफ़ दे खते हुए सुनील के ल


ं ड को ज़ोर से महलने लगी। नज़ीला ने एक हाथ सामनया की तरफ़ बढ़ाया जो उसके

पीछे दो िुट की दूरी पर बेड पर नीचे पैर लटकाये बैठी थी।

नज़ीला ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खींचा पर सामनया महली नहीं। नज़ीला ने मिर से उसे जोर लगा कर अपनी

तरफ़ खींचा तो सामनया उठ कर उसके करीब आ गयी और नज़ीला ने उसे अपने पास खींचते हुए मबठा ललया। "क्या हुआ

सामनया... तू पहली दफ़ा तो नहीं दे ख रही है सुनील का ल


ं ड... इतना क्यों शरमा रही है... ले पकड़ इसे हाथ में... माशाल्लाह ऐसा


ं ड तो बस ब्लू-मफ़ल्मों में ही दे खा है!" नज़ीला ने सामनया का हाथ पकड़ कर सुनील के ल
ं ड पर रखना चाहा तो सामनया ने

अपना हाथ पीछे कर ललया और ना में ससर महलाने लगी। नज़ीला की मौजूदगी में उसे बहोत अजीब लग रहा था। "चल तेरी

मज़ी... मिर बैठ कर दे खती रह...!"

नज़ीला ने सुनील के ल
ं ड को छोड़ा और अपनी कममज़ को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए अपने गले से मनकल कर

सामनया की तरफ़ िेंक मदया। नज़ीला ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी और उसकी छत्तीस-डी साइज़ के बड़ी-बड़ी चूचचयाँ ट्यूब-लाइट

की रोशनी में चमकने लगी। मिर नज़ीला ने सुनील के ल


ं ड को पकड़ा और अपनी दोनों चूचचयों के बीच में लेकर उसके ल
ं ड को
रगड़ने लगी। सुनील ने सामनया की तरफ़ दे खा जो बड़ी मदलचस्पी से उनकी तरफ़ दे ख रही थी। सुनील ने नज़ीला के मम्मों को

पकड़ कर अपने ल
ं ड को उसके मम्मों के बीच की गहरी घाटी में आगे-पीछे करते हुए रगड़ना शुरू कर मदया। दोनों के मु
ूँ ह से

'आहह आहह ओहह' जैसी सससकाररयाँ मनकल रही थी सजन्हें करीब बैठी सामनया सुन कर गरम होने लगी थी। सुनील पूरी

मस्ती मैं नज़ीला की बड़ी-बड़ी गुदाज़ चूचचयों के बीच अपने ल


ं ड को रगड़ रहा था और नज़ीला अपने ससर को नीचे के तरफ़

झुकाये हुए सुनील के ल


ं ड के सुपाड़ा को दे ख रही थी जो उसकी चूचचयों के बीच से बाहर आता और मिर से अ
ं दर छुप जाता।

नज़ीला की चूत सुनील के लाल हो चुके ल


ं ड के सुपाड़ा को दे ख कर और चुलचुलाने लगी थी।

मिर नजीला ने अपने ससर को और झुका कर सुनील के ल


ं ड के सुपाड़े को अपने होंठों से चूम ललया तो सुनील के सजस्म ने

एक तेज झटका खाया। उसने अपने ल


ं ड को उसकी चूचचयों से बाहर मनकाला और नसजला के ससर को पकड़ कर अपना ल
ं ड

का सुपाड़ा उसके होंठों के तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "आहह भाभी... चुसो ना इसे..!" नज़ीला ने सुनील की आूँ खों में हवस से भरी

नज़रों से दे खा और मिर सामनया के तरफ़ दे खते हुए बोली, "ओहहह सुनील.... तेरा ल
ं ड इतना शानदार है की इसका ज़ायका

चखने के ललये मेरे मु


ूँ ह में कब से पानी आ रहा है..!" ये कहते हुए नज़ीला ने सामनया की तरफ़ दे खते हुए सुनील के ल
ं ड को

अपने होंठों में भर ललया और अपने होंठों से सुनील के ल


ं ड के सुपाड़े को पूरे जोश के साथ चूसने लगी। सामने का नज़ारा दे ख

कर सामनया की चूत िुदिुदाने लगी। उसने आज तक चुदाई की सैक्सी कहामनयों मकताबों में ही ल
ं ड चुसने के मुताललक़ पढ़ा

था या अपनी सहेललयों से उनके बॉय फ्रेंड्स के ल


ं ड चूसने के मकस्से सुने थे। नज़ीला अब मकसी राँड की तरह सुनील का ल
ं ड

चूस रही थी। सुनील का आधे से ज्यादा ल


ं ड नजीला के मु
ूँ ह के अ
ं दर बाहर हो रहा था और उसका ल
ं ड नज़ीला के थूक से गीला

होकर चमकने लगा था।

मिर नज़ीला ने सुनील के ल


ं ड को मु
ूँ ह से बाहर मनकला और अपने हाथ से महलाते हुए सामनया की तरफ़ मदखाते हुए सुनील

के ल
ं ड के सुपाड़े के छेद को अपनी ज़ुबान बाहर मनकाल कर कुरेदते हुए सुपाड़े पर ज़ुबान मिराने लगी और आूँ खों ही आूँ खों

में सामनया को अपने करीब आने का इशारा मकया। सामने चल रहा गरम नज़ारा दे ख सामनया खुद-बखुद उसके करीब

ल्ख
ं चती चली गयी। अब सामनया नज़ीला के मबल्कुल करीब घुटनों के बल बैठी हुई थी। नज़ीला ने सुनील के ल
ं ड को हाथ में

थामे हुए सामनया से कहा, "ले तू भी चूस ले अपने यार का लौड़ा... बेहद मज़ेदार है!" नज़ीला की बात सुन कर सामनया के मदल

के धड़कनें बढ़ गयीं। सामनया भी सुनील का ल


ं ड चूसना तो चाह रही थी लेमकन नज़ीला के सामने उसे महचमकचाहट हो रही थी

और उसने ना में ससर महलाते हुए मना कर मदया। नज़ीला ने मुस्कुराते हुए सुनील के ल
ं ड के सुपाड़े के चारों तरफ़ अपनी ज़ुबान

रगड़ते हुए मिरायी और बोली, "सामनया दे ख ना सुनील का लौड़ा मकतना मस्त है... तू बहोत खुशनसीब है मक तेरा यार है

सुनील... दे ख सामनया मदल के ल


ं ड को तू सजतना प्यार करेगी उतना ही उसका ल
ं ड तेरी िुद्दी को ठंदक पहु
ूँ चायेगा... ले चूस ले..."

और नशे में लहकती आवाज़ में ये कहते हुए नज़ीला ने सामनया का हाथ पकड़ सुनील के ल
ं ड पर रख मदया।

सामनया अब पूरी तरह हवस से तड़प रही थी। उसने सुनील के ल


ं ड को अपनी मुट्ठी में भर ललया और मिर ऊपर सुनील की

आूँ खों में झाँकने लगी जैसे सुनील से पूछ रही हो मक अब क्या करू
ूँ । सुनील ने उसकी तरफ़ मुस्कुराते हुए दे खा और मिर

उसके प्यारे से चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों को अपने ल
ं ड के सुपाड़े की तरफ़ झुकाने लगा। सामनया ने
अपने होंठ खोल ललये और नज़ीला के थूक से सने हुए सुनील के ल
ं ड को अपने होंठों में भर ललया। "ओहहहह सामनया...

आहहहह" सामनया के रसीले तपते होंठों का स्पशल अपने ल


ं ड पर महसूस करते ही सुनील एक दम से सससक उठा और

सामनया के ससर को पकड़ कर अपने ल


ं ड को उसके मु
ूँ ह में ढकेलने लगा। सामनया अब पूरी तरह गरम और चुदास हो गये थी।

उसकी पैंटी सलवार के अ


ं दर उसकी चूत से मनकल रहे पानी से एक दम गीली हो चुकी थी। नज़ीला मौका दे खते हुए उसके

पीछे बैठ गयी और सामनया की कमीज़ को पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगी। जैसे ही सामनया को इस बात का एहसास

हुआ मक नज़ीला उसकी कमीज़ उतारने जा रही है तो उसने दोनों हाथों से अपनी कमीज़ को पकड़ ललया। "क्या हुआ

सामनया... शरमा क्यों रही है... यहाँ पर कोई गैर तो नहीं है.... तेरा बॉय फ्रेंड सुनील ही तो है... सुनील दे ख ना ये कैसे शरमा रही है!"

नज़ीला बोली। दर असल सामनया सुनील से नहीं बलल्क नसज़ला की मौजूदगी की वजह से महचमकचा रही थी। नज़ीला नहीं

होती तो सामनया खुद ही अब तक नंगी होकर सुनील का ल


ं ड अपनी चूत में ले चुकी होती।

सुनील ने सामनया के मु
ूँ ह से ल
ं ड मनकाला और नीचे बैठते हुए सामनया के हाथों को पकड़ कर कमीज़ से छुड़वा ललया। नज़ीला

ने फ़ौरन सामनया की कमीज़ पकड़ कर ऊपर कर दी और मिर गले से मनकाल कर नीचे िेंक दी। सुनील ने सामनया के होंठों

पर अपने होंठ रख कर चूसना करना शुरू कर मदया और एक हाथ नीचे ले जाकर सलवार के ऊपर से सामनया की चूत पर रख

मदया। अपनी चूत पर सुनील का हाथ पड़ते ही सामनया के सजस्म में करंट सा दौड़ गया और अपनी बाहों को सुनील की गदल न

में डालते हुए उसके सजस्म से चचपक गयी। पीछे नज़ीला ने अपना काम ज़ारी रखा और उसने सामनया की ब्रा के हुक खोल

मदये और जैसे ही सामनया के सजस्म से ब्रा ढीली हुई तो सुनील ने ब्रा के स्ट्रैप को पकड़ उसके क
ं धों से सरकाते हुए उसकी ब्रा

को भी उसके सजस्म से अलग कर मदया। मिर धीरे-धीरे सामनया को कालीन पे पीछे ललटाते हुए सुनील उस पर सवार हो गया

और उसकी एक चूंची को मु
ूँ ह में भर कर चूसने लगा। सान्या एक दम से सससक उठी और उसकी चूत में ज़ोर से कुलबुलाहट

होने लगी। ये नज़ारा कर दे ख नज़ीला की चूत भी और ज्यादा लार टपका रही थी। उसने फ़ौरन अपनी सलवार िेंकी। नज़ीला

ने नीचे पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी और अब वो हाइ पेमिल हील के सैंडलों के अलावा मबल्कुल नंगी थी।

सामनया की बगल में लेटते हुए नज़ीला ने सामनया के दूसरे मम्मे को अपने मु
ूँ ह में भर ललया। अपने दोनों मम्मों को एक साथ

चुसवाते हुए सामनया एक दम बेहाल हो गयी। उसके आूँ खें मस्ती में बंद होने लगी। नज़ीला ने सामनया की चूंची को मु
ूँ ह से

मनकाला और सुनील को सामनया की सलवार उतारने के ललये कहा। सुनील ने भी सामनया की चूंची को मु
ूँ ह से बाहर मनकाला

और सान्या की पलाज़्ज़ो सलवार का नाड़ा खोलने लगा। नज़ीला ने मिर सामनया की चूंची को मु
ूँ ह में भर कर चूसना शुरू कर

मदया और दूसरे हाथ से उसके दूसरी चूंची को मसलने लगी। स्स्सीईईई ऊ


ूँ हहह आूँ टी प्लीज़. आहहह मत करो ना! सामनया ने

मस्ती में सससकते हुए नज़ीला भाभी के ससर को अपनी बाहों में जकड़ ललया। दूसरी तरफ़ सुनील सामनया की सलवार और

पैंटी दोनों उतार चुका था। लोहा एक दम गरम था... सामनया की चूत अपने पानी से एक दम भीगी हुई थी। एक बार पहले

चुदाई का मज़ा ले चुकी सामनया एक दम मदहोश हो चुकी थी और मपछले कईं मदनों से मिर चुदने के ललये तड़प रही थी।

सामनया की सलवार और पैंटी उतारने के बाद जैसे ही सुनील सामनया की टाँगों के बीच में आया तो पूरी तरह गरम और

मदहोश हो चुकी सामनया ने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर खुद ही ऊपर उठा ललया। सामनया भी अब नज़ीला की तरह
ससफ़ल ऊ
ूँ ची हील वाले सैंडल पहने मबल्कुल नंगी थी। सामनया को बेकरारी में अपनी टाँगें उठाते दे ख कर नज़ीला को एक

तरकीब सूझी और उसने सामनया को पकड़ कर मबठाया और खुद उसके पीछे आकर बैठ गयी और अपनी टाँगों को सामनया

की कमर के दोनों तरफ़ करके आगे की ओर सरकते हुए उसने सामनया को पकड़ कर अपने ऊपर ललटा ललया। अब नज़ीला

नीचे लेटी हुई थी पीठ के बल और उसके ऊपर सामनया पीठ के बल लेटी हुई थी। सामनया नज़ीला आूँ टी की इस हकलत से

हैरान थी मक उसका मंसूबा क्या था। नज़ीला ने अपने हाथों को नीचे की तरफ़ ले जाते हुए सामनया की टाँगों को पकड़ कर

ऊपर उठा कर िैला मदया सजससे सामनया की चूत का छेद खुल कर सुनील की आूँ खों के सामने आ गया। सामनया की टाँगें

तो नज़ीला ने पकड़ कर ऊपर उठा रखी थीं और सुनील ने नज़ीला की टाँगों को िैला कर ऊपर उठाते हुए अपनी जाँघों पर

रख ललया।

अब नीचे नज़ीला की चूत और ऊपर सामनया की चूत... दोनों ही चचकनी चूतें अपने-अपने मनकले हुए रस से लबलबा रही थी।

अपने सामने चुदवाने के ललये तैयार दो-दो चचकनी चूतों को दे ख कर सुनील से रहा नहीं गया। उसने अपने ल
ं ड के सुपाड़े को

सामनया की चूत की फ़ाँकों के बीच रगड़ना शुरू कर मदया। "ऊ


ूँ ऊ
ूँ ऊ
ूँ स्स्सीईई आहहहह सुनील...!" सामनया ने सससकते हुए

अपने हाथों को अपने ससर के नीचे ले जाते हुए नज़ीला के ससर को कसके पकड़ ललया और नज़ीला ने सामनया की गदल न पर

अपने होंठों को रगड़ना शुरू कर मदया। सुनील ने सामनया की चूत के छेद पर अपना ल
ं ड मटकाते हुए धीरे-धीरे अपने ल
ं ड को

आगे की ओर दबाना शुरू कर मदया। सुनील के ल


ं ड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही सामनया की तंग चूत के छेद में घुसा तो सामनया

का पूरा सजस्म काँप गया और वो मस्ती में मछली की तरह छटपटाने लगी। सुनील के ल
ं ड का सुपाड़ा सामनया की चूत को बुरी

तरह िैलाये उसके अ


ं दर ि
ं सा हुआ था। "हाय सामनया... अपने यार का लौड़ा अपनी चूत में लेकर मज़ा आ रहा है ना...!"

नज़ीला ने सामनया की चूचचयों को मसलते हुए कहा।

सामनया मस्ती में सससकते हुए बोली, "ऊ


ूँ हहहहाँ आूँ टी.... बेहद मज़ा आ रहा है.... आहहहायऽऽ आूँ टी रोज सुनील को यहाँ

बुलाया करो ना..!" नज़ीला ने सामनया को छेड़ते हुए शरारत भरे अ


ं दाज़ में पूछा, "मकस ललये बुलाया करू
ूँ ..?" सामनया ने तड़पते

हुए कहा, "ऊ


ूँ हहह सजसके ललये आज बुलाया है... आूँ टीईईई...!"

"ये तो बता दे मक आज मकस ललये बुलाया है...?" नज़ीला ने उसे मिर छेड़ा तो सामनया चुदने के ललये बेकरार होते हुए बोली,

"आआहह चुदने के ललये... चूत में ल


ं ड लेने के ललये... आूँ आहहह... सुनील डालो ना..!" नज़ीला रसभरी आवाज़ में बोली, "दे ख

सुनील कैसे मगड़मगड़ा रही है बेचारी... आब डाल भी दी ने अपना लौड़ा साली के चूत में!" सुनील ने सामनया की टाँगों को पकड़

कर और िैलाते हुए एक जोरदार धक्का मारा और ल


ं ड सामनया की चूत की दीवारों को िैलाता हुआ अ
ं दर जा घुसा।

"आआआईईईई हाय सुनील.... ओहहहहह हाँ चोदो.... आहहह ऊ


ूँ हहह ऊ
ूँ ईईईई ओहहहह ऊ
ूँ हहह अम्म्मम्म्मम्म्मम्म ओहोहोहोआआहहह

बहोत मज़ा आ रहा है..!" सामनया मस्ती में जोर-जोर से सससकने लगी। सुनील ने धीरे-धीरे अपने ल
ं ड को सामनया की चूत के


ं दर-बाहर करना शुरू कर मदया। सुनील के झटकों से सामनया और नज़ीला दोनों नीचे लेटी हुई महल रही थीं। करीब पाँच

ममनट सामनया की चूत में अपना ल


ं ड पेलने के बाद जब सामनया की चूत ने पानी छोड़ मदया तो सुनील ने अपना ल
ं ड सामनया

की चूत से बाहर मनकला और नज़ीला की टाँगों को उठा कर उसकी चूत के छेद पर ल


ं ड को मटका कर एक ज़ोरदार धक्का
मारते हुए पूरा लौड़ा अ
ं दर थोक मदया। "हायै..ऐऐऐ ऊ
ूँ फ्फ सुनीईईईल.. आमहस्ता... आहहहह ओहहहहहह मर गयीईईई मैं....

याल्लाआआह... ओहहहह धीरेऽऽऽ आहहह आहहह हायेऐऐऐऐ सामनया... तेरे आसशक़ ने मेरी चूत का कचूमर बना मदया...!"

कमरे में थप-थप की आवाज़ गू


ूँ जने लगी। सुनील पूरी रफ़्तार से नज़ीला की चूत की गहराइयों में अपना ल
ं ड जोर-जोर से ठोक

रहा था। नज़ीला की चूत सुनील के जवान लौड़े के धक्कों के सामने ज्यादा दे र मटक नहीं सकी और नज़ीला सससकते हुए

झड़ने लगी, "आहहह आूँ आूँ हह ऊहहह सुनीईईल मेरी िुद्दी... हाआआआयल्लाआआह मेरी चूत पानी छोड़ने वाली आहहह

ओहहह गयीईई ओहहह मैं गयीईई आूँ आूँ हहह!"

सुनील भी नज़ीला की चूत में लगातार शॉट मारते हुए बोला, "आहहह भाभी आपकी भोंसड़ी सच में बहुत गरम है...!"

नज़ीला हाँिते हुए बोली, "बस रुक जा सुनील... थोड़ी दे र सामनया की चूत में चोद दे अब!" सुनील ने अपने ल
ं ड को नज़ीला की

चूत से बाहर मनकला और सामनया की चूत पर रखते हुए एक जोरदार धक्का मार कर आधे से जयादा ल
ं ड सामनया की चूत में

पेल मदया। ददल और मज़े की वजह से सामनया का सजस्म एक दम से अकड़ गया। सुनील ने अपने ल
ं ड को पूरी रफ़्तार से

सामनया की चूत के अ
ं दर-बाहर करना शुरू कर मदया। नज़ीला सामनया के नीचे से मनकल कर बगल में लेट गयी और सामनया

की चूंची को मु
ूँ ह में भर कर चूसने लगी और दूसरी चूंची को सुनील ने अपने मु
ूँ ह में भार ललया और हुमच-हुमच कर चोदते हुए

चूसने लगा। दस ममनट बाद सामनया की चूत ने अपने आसशक़ के ल


ं ड पर अपना प्यार बहान शुरू कर मदया और अगले ही

पल सुनील ने भी सामनया के चूत में अपने प्यार की बाररश कर दी। पूरी रात सामनया नज़ीला और सुनील की चुदाई का खेल

चला।

मदन इसी तरह गुज़र रहे थे और अगले दो महीनों के दौरान जब भी नज़ीला का शौहर दौरे पर शहर के बाहर गया तो करीब छः-

सात बार नज़ीला के घर पे नज़ीला और रुखसाना ने रात-रात भर सुनील के साथ ऐयासशयाँ की... हर तरह से खूब चुदवाया

और थ्रीसम चुदाई का मज़ा ललया। इसके अलावा नज़ीला और रुखसाना को अलग-अलग भी जब मौका ममलता तो अकेले

सुनील से चुदवा लेती। सुनील भी दूसरी तरफ़ नफ़ीसा के साथ भी ऐश कर रहा था पर सामनया को इन दो महीनों में ससफ़ल दो

बार ही सुनील से चुदवाने का मौका नसीब हुआ वो भी नज़ीला की ही मेहरबानी से। सामनया तो मदल ही मदल में सुनील से

और भी ज्यादा मोहब्बत करने लगी थी। हालांमक सामनया और रुखसाना को सुनील के साथ एक दूसरे के ररश्ते के बारे में तो

पता नहीं चला लेमकन सामनया को अपनी अम्मी पे शक पहले से ज्यादा बढ़ गया था।

मिर एक मदन की बात है... सामनया को अचानक से उलल्टयाँ शुरू हो गयी और वो बेहोश होकर मगर पड़ी। रुखसाना ने उसके

चेहरे पर पानी िेंका तो उसे थोड़ी दे र बाद होश आया। रुखसाना उसे हासस्पटल लेकर गयी क्योंमक सामनया को कभी कोई

मबमारी या सशकायत नहीं हुई थी। जब वहाँ पर एक लेडी डॉक्टर ने उसका चेक अप मकया तो उसने रुखसाना बताया मक

सामनया प्रेगनेंट है। रुखसाना के तो पैरों तले से जमीन लखसक गयी। उसने वहाँ तो सामनया को कुछ नहीं कहा और उसे लेकर

घर आ गयी। घर आकर रुखसाना ने सामनया को जब सारी बात बतायी तो सामनया के चेहरे का रंग उड़ गया। रुखसाना के

डाँटने और धमकाने पर सामनया ने सारा राज़ उगल मदया। रुकसाना बेहद परेशान थी... उसे यकीन नहीं हो रहा था मक सुनील

उसके साथ इतना बड़ा दगा कर सकता है। फ़ारूक़ दो-तीन मदन की छुट्टी लेकर अपनी भाभी अज़रा के साथ रंगरललयाँ मनाने
गया हुआ क्योंमक वो अकेली थी। शाम को जब सुनील घर वापस आने के बाद रुखसाना ऊपर सुनील के कमरे में गयी तो

सुनील उठ कर उसे अपने आगोश में लेने के ललये उसकी तरफ़ बढ़ा। रुखसाना ने सुनील को वहीं रुकने के ललये कह मदया

और मिर बोली, "सुनील तूने ये सब हमारे साथ ठीक नहीं मकया..?" सुनील ने पूछा, "पर हुआ क्या है... मुझे पता तो चले..!"

"सुनील तू हमारे साथ इस तरह दगा करेगा.. अगर मुझे पहले मालूम होता तो मैं तुझे अपने घर में कभी रहने नहीं दे ती...!"

सुनील को समझ नहीं आ रहा था मक अचानक रुखसाना को क्या हो गया। "साि-साि बोलो ना भाभी मक बात क्या है...?"

सुनील ने पूछा तो रुखसाना बोली, "सामनया के पेट में तेरा बच्चा है... अब मैं क्या करू
ूँ तू ही बता... तूने हम सब के साथ दगा

मकया है... मैं तुझे कभी माफ़ नहीं करु


ूँ गी... तूने सामनया की स्ज़ंदगी बबाद क्यों की...?" रुखसाना की बात सुन कर सुनील के

चेहरे का रंग उड़ चुका था। "कोई बात नहीं... मैं पैसे दे ता ह


ूँ ... आप उसका अबोशलन करवा दो!" सुनील ने ऐसा जताया जैसे उसे

मकसी की परवाह ही ना हो। "अबोशलन करवा दो...? अबोशलन से तूने जो गुनाह मकया है वो तो छुप जायेगा... पर सामनया का

क्या... सजसे तूने प्यार का झूठा ख्वाब मदखा कर उसके साथ इतना गलत मकया है!"

सुनील बोला, "दे खो भाभी ताली एक हाथ से नहीं बजती... अगर इस बात के ललये मैं कसूरवार ह
ूँ ... तो सामनया भी कम

कसूरवार नहीं है और भाभी अबोशलन के अलावा और कोई चारा है आपके पास...!" सुनील की बात सुनकर रुखसाना बोली,

"ठीक है सुनील मैं सामनया का अबोशलन करवा दे ती ह


ूँ ... पर एक बात बता मक क्या तू सच में सामनया से प्यार करता है..?"

सुनील बोला, "नहीं मैं उसे कोई प्यार-व्यार नहीं करता... वो ही मेरे पीछे पढ़ी थी..!"

रुखसाना ने कहा, "दे ख सुनील अगर सामनया को ये सब पता चला तो वो टू ट जायेगी... सामनया भले ही मेरी कोख से पैदा नहीं

हुई पर मैंने उसे अपनी बेटी के तरह पाला है... तुझे उससे शादी करनी ही होगी!" ये सुनकर सुनील थोड़ा गुस्से से से बोला,

"ख्वाब मत दे खो रुख़साना भाभी... आपको भी मालूम मक ऐसा कभी नहीं होगा.... इस शादी के ललये मैं तो क्या आपके और

मेरे घर वाले भी कभी तैयार नहीं होंगे... अगर आपको मेरा यहाँ रहना पसंद नहीं है तो मैं दो-तीन मदनों में मकसी दूसरी जगह

सशफ्ट हो जाउ
ूँ गा!" ये कह कर सुनील बाहर चला गया।

रुखसाना उसी के कमरे में ससर पकड़ कर बैठ गयी। एक तरि उसे सामनया की मफ़ि थी और सुनील के घर छोड़ के जाने की

बात सुनकर तो उसे अपनी दुमनया मबखरती हुई नज़र आने लगी। उसकी खुद की मबयाबान स्ज़ंदगी में सुनील की वजह से

इतने सालों बाद बहारें आयी थीं और मपछले कुछ महीनों में उसे सुनील के ल
ं ड की... उससे चुदवाने की ऐसी लत्त लग गयी थी

मक वो सुनील को मकसी भी कीमत पे खो नहीं सकती थी। अपनी सौतेली बेटी का मदल टू टने से ज्यादा उसे अब अपनी

हवस... रोज़-रोज़ अपनी चुत की आग बुझाने का ज़ररया खतम होने की मफ़ि सताने लगी। वो सोचने लगी मक सामनया तो

मिर भी जल्दी ही वक़्त के साथ सुनील को भुल जायेगी और उसका मनकाह भी एक ना एक मदन हो जायेगा... लेमकन वो खुद

तो मबल्कुल तन्हा रह जायेगी... पहले की तरह तड़प-तड़प कर जीने के ललये मजबूर...! ये सब सोचते हुए रुकसाना का मदल डू बने

लगा... उसे समझ नहीं आ रहा था मक वो क्या करे... अगर सुनील अभी घर छोड़ कर नहीं भी गया तो भी वो हमेशा तो यहाँ

उसके घर पे वैसे भी नहीं रहेगा... उसकी भी तो कभी ना कभी शादी होगी... तब वो क्या करेगी। तभी रुखसाना की नज़र टेबल

पर रखी हुई एक डायरी पर पड़ी। उसने वो डायरी उठा कर दे खी तो उसमें सुनील के दोस्तों और कुछ ररश्तेदारों के पते और
िोन नंबर ललखे हुए थे और रुखसाना को उसी डयरी में सुनील की मम्मी का िोन नंबर ममल गया। उसने पेन उठा कर उस

नंबर को अपने हाथ पर ललखा और नीचे आ गयी। सुनील को हमेशा अपने करीब रखने की आलखरी तरकीब उसे नज़र

आयी। मिर बाहर का दरवाजा लॉक करके उसने अपने बेडरूम में आकर सुनील के घर का नंबर ममलाया। थोड़ी दे र बाद मकसी

आदमी ने फ़ोन उठाया, "हेल्लो कौन..!"

रुखसाना बोली, "जी मैं रुखसाना बोल रही ह


ूँ ... सुनील हमारा मकरायेदार है... क्या मैं कवीता जी से बात कर सकती ह
ूँ !" उस

आदमी ने रुखसाना को दो ममनट होड करने को कहा और मिर उसे िोन पे उस आदमी की आवाज़ सुनायी दी मक, "कवीता

दीदी आपका फ़ोन है..!" मिर थोड़ी दे र बाद रुख़साना को एक औरत की आवाज़ सुनायी दी, "हेल्लो कौन..?"

रुखसाना: "जी मैं रुखसना बोल रही ह


ूँ ..!"

कवीता: "रुखसाना कौन... सॉरी मैंने आपको पहचना नहीं..!"

रुखसाना: "जी सुनील हमारे घर पर मकराये पे रहता है...!"

कवीता: "ओह अच्छा-अच्छा... सॉरी मैं भूल गयी थी.... हाँ एक बार सुनील ने बताया था.... जी कमहये कुछ काम था क्या...!"

रुखसाना: "जी क्या आप यहाँ आ सकती हैं..!"

कवीता: "क्यों... क्या हुआ... सब ठीक है ना... सुनील तो ठीक है ना...!"

रुखसाना: "जी सुनील मबल्कुल ठीक है..!"

कवीता: "तो मिर बात क्या है...?"

रुखसाना: "जी बहोत जरूरी बात है... फ़ोन पर नहीं बता सकती... बस आप यही समझ लें मक मेरी बेटी की लाइि का सवाल

है..!"

कवीता: "क्या आपकी बेटी... ओके-ओके मैं कल सुबह-सुबह ही अकाल-तख्त एक्सप्रेस से मनकलती ह
ूँ यहाँ से और मिर

पटना से लोकल ट्रेन या बस लेकर पसों तक पहु


ूँ च जाऊ
ूँ गी...!"

रुखसाना: "कवीता जी... प्लीज़ सुनील को नहीं बताना मक मैंने आपको फ़ोन मकया है... और आपको यहाँ बुलाया है..!"

कवीता: "ठीक है तुम चचंता ना करो... मैं पसों तक वहाँ पर पहु


ूँ च जाऊ
ूँ गी...!"
मिर रुखसाना ने कवीता को अपना पूरा पता समझाया और फ़ोन रख मदया। उस मदन और अगले मदन भी घर में मातम जैसा

माहौल बना रहा। सुनील ने भी दोनों रातें नफ़ीसा के घर पर गुज़ारीं... बस अगले मदन शाम को कपड़े बदलने के ललये आया

लेमकन रुखसाना या सामनया से कोई बात नहीं की । रुखसाना ने सामनया को कॉलेज नहीं जाने मदया। रुखसाना कवीता के

आने का इंतज़ार कर रही थी और दो मदन बाद शाम को चार बजे के करीब बजे कवीता उनके घर पहु
ूँ ची। रुखसाना और

सामनया ने कमवता की मेहमान नवाज़ी की और मिर रुखसाना कवीता को लेकर अपने कमरे में आ गयी।

कवीता: "हाँ रुखसाना... अब कहो क्या बात है..?"

रुखसाना: "कवीता जी दर असल बात ये है मक... आपके बेटे ने मेरी बेटी के साथ..." और ये बोलते-बोलते रुखसाना चुप हो

गयी।

कवीता: "तुम सच कह रही हो... और तुम्हें पूरा मवश्वास है मक मेरे बेटे ने...!"

रुखसाना: "जी... सामनया को दूसरा महीना चल रहा है..!"

कवीता एक दम से चौंकते हुए बोली, "क्या.... हे भगवान... उस नालायक ने... उसने तो मुझे कहीं मु
ूँ ह मदखाने लायक नहीं छोड़ा...

पर आपकी बेटी भी तो समझदार है ना... उसने ये सब क्यों होने मदया...?"

रुखसाना: "जी मैं नहीं जानती.... पर दोनों ही बच्चे हैं अभी..!"

कवीता: "दे खो मैं अभी कुछ नहीं कह सकती... और मेरा बेटा मुझसे कभी झूठ नहीं बोलता... तुम सामनया को यहाँ बुला कर

लाओ...!"

रुखसाना ने सामनया को आवाज़ दी तो सामनया कमरे में आ गयी। "तुम मेरे बेटे से प्यार करती हो?" कवीता ने पूछा पर

सामनया सहमी सी कभी रुखसाना की तरफ़ दे खती तो कभी जमीन की तरफ़। "घबराओ नहीं.... जो सच है बताओ...!"

सामनया हाँ में ससर महलाते हुए बोली, "जी..!"

कवीता: "और ये बच्चा..?"

सामनया: "जी..!"

कवीता: "हे भगवान... ये आज कल के बच्चे... माँ-बाप के ललये कहीं ना कहीं कोई ना कोई मुसीबत खड़ी कर ही दे ते हैं आने दो

उस नालायक को..!"
अभी वो बात ही कर रहे थे मक बाहर डोर-बेल बजी। "सुनो अगर सुनील होगा तो उसे यहीं बुला लाना और सामनया तुम अपने

कमरे में जाओ...!" कवीता की बात सुन कर रुखसाना ने हाँ में ससर महलाया और बाहर आकर दरवाजा खोला तो दे खा सामने

सुनील ही खड़ा था। उसके अ


ं दर आने के बाद रुखसाना ने डोर लॉक मकया और सुनील के पीछे चलने लगी। जैसे ही सुनील

ऊपर जाने लगा तो रुखसाना ने उसे रोक ललया, "तुम्हारी मम्मी आयी हैं... अ
ं दर बेडरूम में बैठी हैं!"

सुनील ने रुखसाना की तरफ़ दे खा। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था। वो तेजी से कमरे में गया और रुखसाना भी उसके पीछे

रूम में चली गयी। सामनया पहले ही अपने कमरे में जा चुकी थी। सुनील ने जाते ही अपनी मम्मी के पैर छुये, "मम्मी आप यहाँ

अचानक से...?"

कवीता: "जब बच्चे अपने आप को इतना बड़ा समझने लगें मक उनको मकसी और की परवाह ना रहे तो माँ बाप को ही दे खना

पड़ता है... क्या इसललये तुझे पढ़ा ललखा कर बड़ा मकया था... इसललये तुझे अपने से इतनी दूर भेजा था मक तुम बाहर जाकर

अपने पररवार का नाम ममट्टी में ममलाओ... सुनील जो कुछ भी रुखसाना ने मुझे बताया है क्या वो सच है...?"

सुनील ने ससर झुका कर बोला, "जी!"

कवीता: "और जो बच्चा सामनया के पेट में है वो तेरा है... उसके साथ तूने गलत मकया?"

सुनील: "जी..!"

कवीता: "शादी भी करना चाहता होगा तू अब उससे..?"

सुनील: "जी.. जी नहीं..!"

ये सुनकर कमवता उठकर खड़ी हुई और एक ज़ोरदार थप्पड़ सुनील के गाल पर जमाते हुए बोली, "नालायक ये सब करने से

पहले नहीं सोचा तून.े .. मकसने हक मदया तुझे मकसी की स्ज़ंदगी को बबाद करने का... हाँ बोल अब बुत्त बन कर क्यों खड़ा है..?"

सुनील: "मम्मी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी... मुझे माफ़ कर दो भले ही मुझे जो मज़ी सजा दो!"

कवीता: "गल्ती तो तूने की है... और गल्ती स्वीकार भी की है... अगर तेरी बहन होती और अगर सामनया के जगह तेरी बहन के

साथ ऐसा होता... तो तुझ पर क्या बीतती... कभी सोचा भी है मक मकसी की स्ज़ंदगी से ऐसे लखलवाड़ करने से पहले?"

मिर कवीता रुखसाना से बोली, "दे खो रुखसाना बच्चों ने जो गल्ती करनी थी कर दी... पर अब हमें इनकी गल्ती को सुधाराना

है... अगर तुम्हें और तुम्हारे हिैंड को स्वीकार हो तो मैं अभी इसके मामा जी को फ़ोन करके बुलाती ह
ूँ ... और जल्द से जल्द...

इसी हफ़्ते दोनों की शादी करवा दे ते हैं... और सुनील तुझे भी कोई प्रॉब्लम तो नहीं है..!" कवीता ने बड़े कड़क लहजे में सुनील

को कहा।
रुखसाना: "कवीता जी... मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है... बलल्क मैं तो आपका ये एहसान स्ज़ंदगी भर नहीं भूल
ूँ ुगी और मेरे

हिैंड भी राज़ी हो जायेंगे!"

उसके बाद सामनया और सुनील के शादी हो गयी। फ़ारूक़ ने पहले थोड़ा बवाल मकया लेमकन उसके पास भी अपनी इज़्ज़त

बचाने के ललये कोई और रास्ता नहीं था। शादी के बाद सामनया और सुनील दोनों उसी घर में रुखसाना और फ़ारूक़ के साथ

रहते हैं। । सुनील अपनी बीवी सामनया के साथ-साथ अपनी सास रुखसाना की चूत और गाँड का भी पूरा ख्याल रखता है। दर

असल रुखसाना और सुनील ने सामनया को समझा-बुझा कर अपने नाजायज़ ररश्ते से वामक़फ़ करवा मदया और सामनया ने

भी पहले-पहले थोड़ी नाराज़गी के बाद अपनी अम्मी को अपनी सौतन बनाना मंज़ूर कर ललया और अब तो तीनों अक्सर

ठ्रीसम चुदाई का रात-रात भर मज़ा लेते हैं। रुखसाना की स्ज़ंदगी अब बेहद खुशगवार है क्योंमक अब उसे कभी स्ज़ंदगी में

पहले की तरह अपनी सजस्मानी ख्वामहशों का गला घोंट कर जीने के ललये मजबूर नहीं होना पड़ेगा।

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