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मार्क्सवाद का अर्स,

ववशेषताएं, एवं प्रमुख स्द्ांत

MARGDARSHAN For Civil Services


ANURAG CHAUDHARI
मार्क्सवाद का अर्स, ववशेषताएं,एवं प्रमख
ु स्द्ांत.

मार्क्सवादी ववचारधारा के जन्मदाता कार्स मार्क्स


1818-1883. तथा फ्रेडररक एन्न्जल्् 1820-1895 . है । इन
दोनों ववचारको ने इततहा्, ्माजशास्त्र ववज्ञान अथसशास्त्र
व राजनीतत ववज्ञान की ्मस्त्याओ पर ्ंयर्क
ु त रूप ्े
ववचार करके न्ज् तनन्चचत ववचारधारा को ववचव के
्म्मुख रखा उ्े मार्क्सवाद का नाम ददया गया।

मार्क्सवाद का अर्स

मार्क्सवाद क्ांततकारी ्माजवाद का ही एक रूप है । यह


आर्थसक और ्ामान्जक ्मानता में ववचवा् रखता है
अत: मार्क्सवाद ्भी व्यन्र्कतयो की ्मानता का दशसन है ।
मार्क्सवाद की उत्पवि खुर्ी प्रततयोर्गता स्त्वतंर व्यापार
पंजीवाद के ववरोध के कारण हुई। मार्क्सवाद और पंजीवाद
व्यवस्त्था को आमर् रूप ्े पररवततसत करने और ्वसहारा
वगस की ्माजवादी व्यवस्त्था को स्त्थावपत करने के लर्ये
दहं्ात्मक क्ांतत को एक अतनवायसता बतर्ाता है . इ्
क्ांतत के पचचात ही आदशस व्यवस्त्था की स्त्थापना होगी
वह वगसववहीन, ्ंघर्सववहीन और शोर्णववहीन राज्य की
होगी।

मार्क्सवाद की ववशेषताएं

1. मार्क्सवाद पज
ं ीवाद के ववरूद्ध एक प्रततक्रक्या है ।
2. मार्क्सवाद पंजीवादी व्यवस्त्था को ्माप्त करने के
लर्ये ह ्
ं ात्मक ्ा्नो का प्रयोग करता है ।
3. मार्क्सवाद प्रजातांरीय ्ंस्त्था को पज
ं ीपततयो की
्ंस्त्था मानते है जो उनके दहत के लर्ये और श्रलमको
के शोर्ण के लर्ए बनायी गयी है ।
4. मार्क्सवाद धमस ववरोधी भी है तथा धमस को जनता की
अफीम कहा है न्ज्के नशे में र्ोग उं घते रहते हैं ।
5. मार्क्सवाद अंतरासष्ट्रीय ्ाम्यवाद मे ववचवा् करते हे ।
6. ्माज या राज्य में शा्कों और शोवर्तों में
पंजीपततयों और श्रलमको में वगस ्ंघर्स अतनवायस है ।
7. मार्क्सवाद अततररर्कत मल्य के ल्द्धांत द्वारा
पंजीवाद के जन्म को स्त्पष्ट्ट करता हे ।
मार्क्सवाद के स्द्ांत

दवन्ददवात्मक भौततकवाद का स्द्ांत

द्वन्द्वात्मक भौततकवाद मार्क्स के ववचारो का मर्


आधार है . मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक प्रणार्ी को ीगल ्े
ग्रहण क्रकया है . मार्क्स के द्वन्द्ववाद को ्मझने के लर्ए
हीगर् के ववचारो को जानना आवचयक है । हीगर् के
ववचारो में ्म्पणस ्ं्ार गततशीर् है और इ्में तनरं तर
पररवतनस होता रहता हे । हीगर् के ववचारो में इततहा्
घटनाओ का क्म मार नही है बन्ल्क ववका् की तीन
अवस्त्थाओं का वववेचन क्रकया है – 1. वाद 2. प्रततवाद
3.्ंवाद। हीगर् की मान्यता क्रक कोई भी ववचार अपनी
मर् अवस्त्था में वाद होता है । कुछ ्मय बीतने पर उ्
ववचार का ववरोध उत्पन्न होता है . इ् ्ंघर्स के
पररणामस्त्वरूप मौलर्क ववचार वाद पररवततसत होकर
प्रततवाद बनता है .प्रततवाद का ववरोध होने ्े एक नये
ववचार की उत्पवि होती है जो ्ंवाद कहर्ाती है।
हीगर् का कहना है क्रक द्वंद्व के माध्यम ्े ्ंवाद आगे
चर्कर वाद का रूप र्े र्ेता है , न्जनका पुनः प्रततवाद
होता है और द्वन्द्व के बाद ्ंवाद का रूप धारण करता
है । इ् प्रकार यह क्म चर्ता रहता है अन्त मे ्त्य की
प्रान्प्त होती है ।

मार्क्स ने हीगर् के द्वन्द्ववाद को स्त्वीकार क्रकया क्रकन्तु


हीगर् के ववचारो को उ्ने अस्त्वीकार क्रकया। जहां हीगर्
ववचार को ्ं्ार को तनयामक तथा ववचवात्मा मानता
है । वहां मार्क्स भौततक तत्व को स्त्वीकार करता हे । मार्क्स
का मानना है क्रक द्वन्द्ववाद का आधार ववचव आत्मा न
होकर पदाथस ही है । यह भौततक पदाथस ही ्ं्ार का
आधार है . पदाथस ववका्मान है और उ्की गतत तनरं तर
ववका् की ओर है ववका् द्वन्द्वात्मक रीतत ्े होता है ।
वाद प्रततवाद और ्ंवाद के आधार पर ही ववका्
गततमान रहता है . मार्क्स के ववचारो मे पज
ं ीवाद वाद है
जहां दो वगस पंजीपततयों व श्रलमक है एक धनवान और
द्रा तनधसन है इन दोनो के दहतो मे ववरोध है । इन
ववरोधी वगो मे ्ंघर्स होना आवचयक है , इ् ्ंघर्स में
श्रलमको की ववजय होगी और ्वसहारा वगस अथासत श्रलमक
वगस का अर्धनायक वाद स्त्थावपत होगा यह प्रततवाद की
अवस्त्था है । इन दोनो अवस्त्थाओ मे ्े एक ती्री व नई
न्स्त्थतत उत्पन्न होगी जो ्ाम्यवादी ्माज की है । इ्
न्स्त्थतत मे न वगस रहें गे न वगस ्ंघर्स होगा और न राज्य
आवचयर्कतान्
ु ार ्माज ्े प्राप्त करे गा। यह ती्री
न्स्त्थतत ्ंवाद की न्स्त्थतत होगी।

दवन्ददवात्मक भौततकवाद की आलोचना

1. मार्क्स द्वारा प्रततपाददत दशसन का आधार


द्वन्द्वात्मक भौततकवाद है क्रकन्तु इ्ने इतने
महत्वपणस ल्द्धांत का कहीं भी ववस्त्तत
ृ रूप ्े वणसन
नही क्रकया।
2. मार्क्स ने हीगर् के आध्यात्मवाद के स्र्ान पर
भौततकवाद का ्मथसन क्रकया है ।
3. मार्क्स का मानना है क्रक ्माज की प्रगतत के लर्ए
्ंघर्स व क्ांतत का होना अतनवायस है। क्रकन्तु यह ्त्य
है क्रक शांततकार् में ही ्माज की प्रगतत तीव्र गतत
्े होती है।
इतत ा् की आर्र्सक भौततकवादी व्याख्या

मार्क्स की ववचारधारा में द्वंद्वात्मक भौततकवाद की


भांतत इततहा् की आर्थसक व्याख्या का ल्द्धांत भी
महत्वपणस है । मार्क्स के ववचार में इततहा् की ्भी
घटनाएं आर्थसक अवस्त्था में होने वार्े पररवतसनो का
पररणाम मार है । मार्क्स का मत है क्रक प्रत्येक दे श मे
और प्रत्येक कार् मे ्भी राजनीततक, ्ामान्जक ्ंस्त्थाएं
कर्ा, रीतत ररवाज तथा ्मस्त्त जीवन भौततक अवस्त्थाओ
व आर्थसक तत्वो ्े प्रभाववत होती है । मार्क्स अपनी
आर्थसक व्याख्या के आधार पर मानवीय इततहा् की छ:
6 अवस्त्थाएं बतर्ायी है जो इ् प्रकार हैं-

1. आहदम ्ाम्यवादी अवस्र्ा- ्ामान्जक ववका् की


इ् पहर्ी अवस्त्था में जीववकोपाजसन के तरीके बहुत
्रर् थे,लशकार करना, मछर्ी मारना, जंगर्ो ्े
कंदमर् एकत्ररत करना ही इनका मुख्य व्यव्ाय था।
भोजन प्राप्त करने व जंगर्ी जानवरो ्े अपनी रक्षा
करने के लर्ये ही मनुष्ट्य ्मह में झुण्ड बनाकर ्ाथ
्ाथ रहते थे। इ् अवस्त्था में उत्पादन के ्ाधन
्मस्त्त ्माज की ्ामदहक ्म्पवि हुआ करते थे.
इ् अवस्त्था में तनजी ्म्पवि नही थी और न ही
कोई शोर्क था और न ही को शोवर्त ्ब मनष्ट्ु य
्मान थे। इ्लर्ए मार्क्स ने इ् अवस्त्था को
‘्ाम्यवादी अवस्त्था’ कहा है ।
2. दा्ता की अवस्र्ा – धीरे धीरे भौततक पररन्स्त्थततयों
में पररवतसन
हुआ। व्यन्र्कतयों ने खेती करना,
पशुपार्न करना और दस्त्तकारी करना प्रारं भ कर
ददये। इ््े ्माज में तनजी ्म्पवि के ववचारो का
उदय हुआ। न्जन्होने उत्पादन के ्ाधनो, भलम आदद
पर अर्धकार कर लर्या। वे ‘स्त्वामी’ कहर्ाये ये द्रे
व्यन्र्कतयों ्े बर्पवसक काम करवाने र्गे वे ‘दा्’
कहर्ाये. ्माज ‘स्त्वामी’ और ‘दा्’ दो वगो में
ववभन्जत हो गया. आददम ्माज की ्मानता और
स्त्वतंरता ्माप्त हो गई । इ्ी अवस्त्था ्े ्माज
के शोर्क और शोवर्त दो वगो के मध्य अपने
आर्थकस दहतों के लर्ये ्घंर्स प्रारं भ हो गया।
3. ्ामंतवादी अवस्र्ा – जब उत्पादन के ्ाधनो में
और अर्धक उन्नतत हुई ,पत्थर के औजार और धनर्

बाण ्े तनकर्कर र्ोहे के हर् आदद का चर्न शुरू
हुआ, कृवर्, दस्त्तकारी, बागवानी, कपडा बनाने के
उद्योगो का ववका् हुआ। अब दा् के स्त्थान पर
उद्योगो में काम करने वार्े श्रलमक थे। भलम और
उत्पादन के अन्य ्ाधनो पर तथा कृवर् पर न्जनका
आर्धपत्य था उन्हे ‘जागीरदार व ‘्ामन्त’ कहा जाता
था। कृवर् कायस करने वार्े कृर्कों और दस्त्तकारी
करने वार्े श्रलमको का वगस ्ांमतो के अधीन था।
इ् व्यवस्त्था को ्ामंतवादी अवस्र्ा कहा जाता है ।
मार्क्स के अन्
ु ार इ् अवस्त्था मे भी ्ामन्तो तथा
कृर्को दस्त्तकारो के आर्थसक दहतों में परस्त्पर ्ंघर्स
चर्ता रहा।
4. पंजीवादी अवस्र्ा – अठारहवीं शताब्दी के उिराधस में
औदयोर्गक क्ांतत हुई न्ज्के पररणामस्त्वरूप उत्पादन
के ्ाधनो पर पंजीपततयों का तनयंरण स्त्थावपत हो
गया अथासत पज
ं ीपतत उत्पादन के ्ाधनो के स्त्वामी
हो गये र्ेक्रकन वस्त्तओ
ु के उत्पादन का कायस श्रलमकों
द्वारा क्रकया जाता है , वस्त्तओ
ु ं का उत्पादन बहुत बडे
पैमाने पर होता है अत: श्रलमक स्त्वतंर होकर कायस
करते है क्रकन्तु श्रलमको के पा् उत्पादन के ्ाधन
नहीं होते, अत: वे अपनी आर्थसक आवचयकता पणस
करने लर्ये श्रम बेचने को बाध्य होते है । तनजी र्ाभ
के लर्ये पंजीपतत वगस ने श्रलमकों को शोर्ण क्रकया
द्री तरफ श्रलमकों में भी अपने दहतों के रक्षा के
लर्ये जागरूकता आई, पररणामस्त्वरूप दो वगो
पंजीपतत-शोर्क वगस और ्वसहारा श्रलमक-शोवर्त वगस
के बीच ्घंर्स प्रारं भ हो जाता है । मार्क्स का मत है
क्रक ्ंघर्स अपने चरमोत्कर्स पर पहुंच कर पंजीवाद को
्माप्त कर दे गा।
5. श्रसमक वगस के अर््नायकत्व की अवस्र्ा – मार्क्स
का ववचार है क्रक पज
ं ीवादी अवस्त्था द्वन्द्वात्मक
भौततकवाद के माध्यम ्े श्रलमको व पंजीपततयो के
मध्य ्ंघर्स में जब पज
ं ीपततयो की पराजय होगी, तब
पंजीवाद ्माप्त होकर ऐततहाल्क ववका् की पांचवी
अवस्त्था ‘‘श्रलमक वगस के अर्धनायकत्व की अवस्त्था’’
आयेगी। इ् अवस्त्था में उत्पादन के ्म्पणस ्ाधनों
पर श्रलमको का अर्धकार हो जायेगा न्ज्े ‘श्रसमक
वगस का अर््नायक तंत्र या तानाशा ी’ कहा गया है .
इ् पांचवी अवस्त्था के बहुमत वगस श्रलमक वगस
अल्पमत वगस पंजीपतत वगस के ववरूध्द अपनी शन्र्कत
का प्रयोग कर उ्े पणसतया ्माप्त कर दे गा।
6. राज्यवव ीन और वगसवव ीन ्माज की अवस्र्ा –
मानवीय इततहा् की अन्न्तम अवस्त्था राज्यववहीन
और वगसववहीन ्माज की अवस्त्था आयेगी इ्
अवस्त्था में ्माज में केवर् एक ही वगस होगा न्ज्े
श्रलमक वगस कहा गया है । इ् ्माज में न शोर्क
वगस होंगे न शोवर्त वगस होंगे। यह ्माज राज्यववहीन
आरै वगसववहीन होगा, अत: वगसववहीन ्माज में राज्य
स्त्वत: ही ्माप्त हो जायेगा तथा इ् ्माज में
उत्पादन और ववतरण का ल्द्धांत र्ाग होगा न्ज्में
्माज के प्रत्येक र्ोग अपनी यागेयता के अन्
ु ार
कायस करें ओर उ्े आवचयर्कतानु्ार प्रान्प्त हो। इ्
अवस्त्था ्ाम्यवादी युग में वगसववहीन ्माज की
स्त्थापना ्े वगस ्ंघर्स प्रकृतत ्े होगा। मनष्ट्ु य प्रकृतत
्े ्ंघर्स कर मानव कल्याण हे तु नवीन खोज
आववष्ट्कार करे गें तथा ्ाम्यवादी ्माज आगे ववका्
करता रहे गा।
इतत ा् की आर्र्सक व्याख्या की आलोचना

1. आर्र्सक तत्वों पर अत्यर््क और अनावश्यक बल –


आर्ोचको के अनु्ार मार्क्सवाद ने ्माज के
राजनीततक, ्ामान्जक और वैधातनक ढांचे में आर्र्सक
तत्वों को आवश्यकता ्े अर््क म त्व ददया है
्ामान्जक अवस्त्था एवं ्मस्त्त मानवीय क्रक्यायें
केवर् आर्थसक तत्व पर ही आधाररत नहीं होती है
आर्थसक तत्व के अततररर्कत अन्य तत्वों के द्वारा भी
कायस क्रकया जाता है इन द्रे तत्वो में ्ामान्जक
वातावरण मानवीय ववचारो और भौगोलर्क तत्वों को
लर्या जा ्कता है।
2. इतत ा् का काल तन्ासरण त्रहु िपणस – मार्क्स ने
मानवीय इततहा् की जो छ: अवस्त्थाएं बतर्ायी है
वह रुदटपणस है , उ्ने इततहा् की गर्त व्याख्या की
है । कई ववचारक मार्क्स के आददम ्ाम्यवाद ्े
्हमत नहीं है ।
3. ्मस का तनम्न स्र्ान – मार्क्स ने इततहा् की
व्याख्या में धमस को तनम्न स्त्थान प्रदान करते हुए
उ्े अफीम की ्ंज्ञा ददए है मानव केवर् अथस की
ही आवचयकता मह्् नही करता, मानव को
मानल्क शांतत भी चादहए।

वगस ्ंघषस का स्द्ांत

मार्क्स का अन्य ल्द्धांत वगस ्ंघर्स का ल्द्धांत है


मार्क्स ने कहा है - अब तक के ्मस्त्त ्माजो का
इततहा् वगस ्ंघर्स का इततहा् रहा है । कुर्ीन और
्ाधारण व्यन्र्कत ्रदार-्ेवक, ्ंघपतत-श्रलमक तनरं तर
एक द्रे के ववरोध में खडे रहे है । उनमें अबाध गतत ्े
्ंघर्स जारी है । मार्क्स ने इ््े तनष्ट्कर्स तनकार्ा है क्रक
आधुतनक कार् में पंजीवाद के ववरूध्द श्रलमक ्ंगदठत
होकर पंजीवादी व्यवस्त्था को ्माप्त कर दें गे तथा
्वसहारा वगस की तानाशाही स्त्थावपत हो जायेगी।
वगस ्ंघषस के स्द्ांत की आलोचना

1. कार्स मार्क्स का ्टन्ष्ट्टकोण गर्त क्रक ्ामान्जक


जीवन का आधार ्ंघर्स है वास्त्तव में ्ामान्जक
जीवन का आधार ्हयोग है ।
2. मार्क्स ने घोर्णा की है क्रक छोटे छोटे पंजीपतत
्माप्त हो जायेंगे क्रकन्तु ऐ्ा नही हुआ ये पंजीपतत
ववकल्त हुए।
3. मार्क्स ने ्माज में केवर् दो वगो की बात कही है।
जबक्रक आधुतनक युग में दो वगो की बात कही है।
जबक्रक आधुतनक यग
ु में दो वगो के बीच में एक
महत्वपणस तथा ववशार् मध्यम वगस ववद्यमान है ।

अततररर्कत मल्य का स्द्ांत

मार्क्स ने अपनी पस्त्


ु तक दा् कैवपिल में अततररर्कत मल्य
के ल्द्धांत की वववेचना की है । मार्क्स की मान्यता है क्रक
पंजीपतत श्रलमको को उनका उर्चत पाररश्रलमक न दे कर
उनके श्रम का ्म्पणस र्ाभ स्त्वयं हडप र्ेता है मार्क्स ने
माना है क्रक क्रक्ी वस्त्तु का मल्य इ्लर्ए होता है र्कयोंक्रक
इ्में मानवीय श्रम र्गा है । द्रे शब्दों में वस्त्तु के
मल्य का तनधासरण उ् श्रम ्े होता है जो उ् वस्त्तु के
उत्पादन पर र्गाया जाता है न्ज् वस्त्तु पर अर्धक श्रम
र्गता है ,उ्का मल्य अर्धक और न्ज् वस्त्तु के उत्पादन
पर कम श्रम र्गता है उ्का मल्य कम होता है . इ्
प्रकार मार्क्स का ववचार है क्रक क्रक्ी वस्त्तु का वास्त्तववक
मल्य वह होता है जो उ् पर व्यय क्रकये गये श्रम के
बराबर होता है क्रकन्तु जब वह वस्त्तु बाजार में त्रबकती है
तो वह उं चा मल्य पाती है ।
इ् प्रकार वस्त्तु के बाजार मल्य व वास्त्तववक मल्य के
अंतर को पज
ं ीपतत स्त्वयं हडप र्ेता है । मार्क्स की ्टन्ष्ट्ट में
जो धन पज
ं ीपतत द्वारा अपने पा् रख लर्या गया वही
धन अततररर्कत मल्य कहर्ाता है। स्त्वयं मार्क्स के शब्दो
में ‘‘अततररर्कत मल्य” इन दो मल्यों का अंतर ै जज्े
श्रसमक पैदा करता ै और जज्े व वास्तव में प्राप्त
करता ै।’’ इ् प्रकार वास्त्तववक मल्य और ववक्य मल्य
का अंतर ही अततररर्कत मल्य है । इ् ्म्बन्ध में मार्क्स
ने लर्खा है ’’ यह वह मल्य है न्ज्े पंजीपतत श्रलमको के
खन प्ीने की कमाई पर पथकर (tolltax) के रूप में
व्र् करता है।’’

अततररर्कत मल्य के स्द्ांत की आलोचना

1. मार्क्स ने उत्पादन का एकमार ्ाधन श्रम को माना


है जबक्रक, यह ्वसववददत है क्रक श्रम के अततररर्कत
भलम, पज
ं ी, ्ंगठन व उद्यम भी महत्वपणस ्ाधन
है । उत्पाददत वस्त्तु द्वारा प्राप्त र्ाभ को इन ्भी
्ाधनो पर ववतररत करना उर्चत है।
2. मार्क्स केवर् शाररररक श्रम को महत्व दे ता है
मानल्क श्रम को नही। पज
ं ीपतत अततररर्कत मल्य का
प्रयोग मशीने र्गाने व अन्य ्ाधनो के उपयोग में
करता है क्रकन्तु वह यह भी कहता है क्रक- मशीनो व
कच्चे मार् ्े कोई अततररर्कत मल्य प्राप्त नहीं होता,
यह तो श्रलमकों के श्रम ्े प्राप्त होता है । मार्क्स के
ये दोनो ववचार परस्त्पर ववरोधी है ।
्वस ारा वगस का अर््नायकवाद

मार्क्स का कहना है क्रक द्वन्द्वात्मक भौततकवाद के


ल्द्धांत के अनु्ार पंजीवादी व्यवस्त्था में अन्ततनसदहत
ववरोध स्त्वभाव के कारण पज
ं ीपतत वगस मे ्घंर्स होना
अवचयम्भावी है । इ् वगस-्ंघर्स में श्रलमक वगस ्ंगदठत
होकर पज
ं ीपतत वगस पर भरपर प्रहार करे गा और रन्र्कतम
क्ान्न्त द्वारा पंजीवाद को ्मर् रूप ्े नष्ट्ट कर दे गा.
्वसहारा के अर्धनायकवाद की ववशेर्ताएं है –

1. मार्क्स के अन्
ु ार पज
ं ीवादी ्माज में अल्प्ंख्यक
पंजीपतत वगस बहु्खंयक श्रलमको पर शा्न करता है
जबक्रक, श्रलमको की तानाशाही में बहु्ंख्यक श्रलमक
वगस अल्प्ंख्यक पज
ं ीपततयो पर शा्न करे गा। इ्
प्रकार यह पजीवादी शा्न की तर्
ु ना में अर्धक
र्ोकतान्न्रक होगा।
2. श्रलमकों के अर्धनायकवादी शा्न में तनजी ्म्पवि
का उन्मर्न क्रकया जायेगा और उत्पादन और
ववतरण के ्ाधनो पर राज्य का एकार्धकार हो
जायेगा।
3. श्रलमकों की तानाशाही में पंजीपतत वगस को बर्पवसक
दबा ददया जायेगा, न्ज््े भववष्ट्य में वह पुन: ल्र
न उठा ्के।
4. श्रलमको की तानाशाही की न्स्त्थतत में राज्य एक
्ंक्मणकार्ीन व्यवस्त्था है । ्ंक्मणकार् में राज्य तो
रहे गा, क्रकन्तु जब पज
ं ीपतत वगस को ्मर् रूप ्े
नष्ट्ट कर ददया जायेगा अथासत वगीय व्यवस्त्था
्माप्त कर दी जाएगी तो राज्य स्त्वयंमेव ्माप्त हो
जायेगा।

एंजजल्् के शब्दो में ‘‘जब श्रलमक वगस राज्य की ्म्पणस


शन्र्कत प्राप्त कर र्ेता है तो वह वगस के ्भी मतभेदो व
ववरोधो को ्माप्त कर दे ता है और पररणामस्त्वरूप राज्य
के रूप में ्माप्त हो जाता है।’’

वगस वव ीन व राज्य वव ीन ्माज

मार्क्स का कहना है क्रक जै्े ही पज


ं ीवादी वगस का अन्त
हो जायेगा और पंजीवादी व्यवस्त्था के ्भी अवशेर् नष्ट्ट
कर ददयें जायेंगे, राज्य के न्स्त्थत रहने का और्चत्य भी
्माप्त हो जायेगा और वह मरु झा जायेगा (the state
will wither away) जब ्माज के ्भी र्ोग एक स्त्तर
पर आ जायेंगे तो प्रत्येक व्यन्र्कत ्मपणस ्माज के लर्ये
्वासर्धक कायस करे गा और बदर्े मे अपनी ्म्पणस
आवचयर्कताओ की स्त्वतंरतापवसक पततस करे गा। इ् ्माज
में ववलभन्न ्ामान्जक ्ंगठनो के माध्यम ्े ्ावसजतनक
कायो की पततस होगी। ऐ्े वगसववहीन व राज्यववहीन ्माज
मे वगसववशेर् और वगसशोर्ण का पणस अभाव होगा और
व्यन्र्कत ्ामान्जक तनयमों का ्ामान्य रूप ्े पार्न
करें गे।
मार्क्स द्वारा प्रततपाददत ्माजवाद की यह ्वोच्च
न्स्त्थतत है । मानव कल्याण का यह ्वोच्च लशखर है । इ्
स्त्वतंर ्माज में प्रत्येक व्यजर्कत अपनी क्षमता तर्ा
योग्यतानु्ार कायस करे गा और आवश्यर्कतानु्ार प्राप्त
करे गा। इ् ्माज मे प्रत्यके व्यन्र्कत की आवचयर्कता की
पततस होगी तथा वह अपनी योग्यतान्
ु ार ्माज को
्हयोग दे गा। यह वह ्माज है न्ज्में न कोई वगस
होगा न राज्य रहे गा।
वगसवव ीन व राज्यवव ीन ्माज की आलोचना

मार्क्सवाद की यह मान्यता एक कोरी कल्पना प्रतीत होती


है क्रक ्वसहारा वगस के अर्धनायकवाद की स्त्थापना के
पररणामस्त्वरूप जब पज
ं ीवाद पणसत: ववनष्ट्ट हो जाएगा तो
राज्य भी स्त्वयं ही ्माप्त हो जाएगा। इ् प्रकार एक
वगसववहीन ्माज स्त्थावपत हो जाएगा. परन्तु अनुभव यह
बतर्ाता है क्रक ्ाम्यवादी दे शों में भी राज्य ्माप्त होने
के स्त्थान पर पवस की अपेक्षा और अर्धक ्ु्टढ ्शर्कत
एवं स्त्थायी होते जा रहे है । उनके स्त्वयं ्माप्त होने की
्म्भावना भी नही है । रू् और चीन अपनी ्ीमा का
वववाद नहीं ्र्
ु झा ्के है । इन राज्यो के उच्च अर्धकारी
्ाम्यवादी दर् के उच्च नेता ्ैतनक व प्रशा्तनक
अर्धकारी बहुत व्यापक अर्धकारों का उपभोग करते है ।
्ुरक्षा तथा पलु र्् अर्धकारी अपनी मनमानी के लर्ये
बदनाम हे । इ् ्दं भस में स्त्टालर्न ने कहा था’’ ्माजवादी
राज्य एक नये पक्ार का राज्य है ’ और इ्लर्ए इ्की
्मान्प्त का प्रचन नहीं उठता।’’
मार्क्सवाद की आलोचना या ववपक्ष में तकस

1. मार्क्सवाद का उददे श्य अस्पष्ि – मार्क्सवाद की


आर्ोचना का आधार उ्के उददे श्य की अस्पष्िता है।
मार्क्सवाद एक ऐ्े ्माज की कल्पना करता है जो
वगसववहीन और राज्यववहीन हो इ्का व्यावहाररक हर्
मार्क्सवाद मे आस्त्था रखने वार्े दे शो के पा् भी नही
है । आज भी चीन में श्रलमक वगस की तानाशाही
ववद्यमान है क्रकन्तु वहां अन्य वगस भी है ।
2. ह ्
ं ा दवारा ्ामाजजक पररवतसन- मार्क्सवाददयों का
्टन्ष्ट्टकोण है क्रक ्ामान्जक पररवतसन के लर्ए दहं्ा
आवचयक है क्रकतुं दह्ा क्रक्ी भी न्स्त्थतत में
्वमासन्य एवं वाछं नीय नही हो ्कती।
3. मजदरो की तानाशा ी खतरनाक- ववचव में ववद्यमान
शा्क वगस की तानाशाही के ्मान श्रसमको की
तानाशा ी भी शा्न का ववकृत रूप है ।
4. लोकतंत्र ववरो्ी ्ारणा- यद्यवप मार्क्सवाद ्माजवादी
र्ोकतंर के प्रतत आस्त्था व्यर्कत करते हे । क्रकन्तु
वास्त्तव में यह तानाशाही व्यवस्त्था का ही द्रा रूप
है । इ् व्यवस्त्था में कोई द्रा राजनीततक दर् नही
होता।
5. अततररर्कत मल्य का स्द्ांत त्रहु िपणस - मार्क्स ने
अपने अततररर्कत मल्य के ल्द्धांत में केवल श्रम को
ी वस्तु के मल्य तन्ासरण का आ्ार माना है जो
स्त्वयं मे रदु टपणस है । मल्य तनधासरण के लर्ये मांग-
पततस ्मय-स्त्थान आदद ऐ्े कारण है जो वस्त्तु के
मल्य तनधासरण को प्रभाववत करते है ।

मार्क्सवाद की उपयर्क
ुस त आलोचना के तनष्कषसस्वरूप क ा
जा ्कता है क्रक ्ाम्यवाद अथवा मार्क्सवाद ववचव की
्ब्े बडी ववध्वं्क शन्र्कत है। ववचव में स्त्थायी शांतत की
व्यवस्त्था की तब तक आशा नही की जा ्कती जब तक
क्रक ्ाम्यवादी ववचारधारा में ववचव कल्याण तथा र्ोकतंर
के लर्ए आवचयक ्ंशोधन न कर लर्ये जायें’’

मार्क्सवाद का म त्व या प्रभाव या पक्ष में तकस

मार्क्सवाद की ववलभन्न आर्ोचनाओ के बावजद इ्के


महत्व को नकारा नही जा ्कता। आज मार्क्सवाद ने परे
ववचव के स्त्वरूप को ही पररवततसत कर ददया है , पीडडतो,
दलर्तो, शोवर्त एवं श्रलमको का पक्ष र्ेकर उपेक्षक्षत मानव
कर्याण के लर्ये मार्क्सवाद ने ्माजवाद को एक ठो्
एवं वैज्ञातनक आधार प्रदान क्रकया है । उनकी प्रमुख दे न
है –

1. वैज्ञातनक दशसन- मार्क्वासद को वैज्ञातनक ्माजवाद


भी कहा जाता है मार्क्स के पवस के ्माजवादी
ल्द्धांतो मे वैज्ञातनक आधार दे ने का कभी भी प्रया्
नही क्रकया। इ् कायस को प्रारं भ करने का श्रेय मार्क्स
को जाता है।
2. ्ैध्दांततकता की अपेक्षा व्याव ाररकता पर बल –
मार्क्सवाद की र्ोकवप्रयता का प्रमख
ु कारण उ्का
व्यावहाररक होना है । इ्की अनेक मान्यताओ को
रू् और चीन में प्रयोग में र्ाया गया न्जनमें पणस
्फर्ता भी लमर्ी।
3. श्रसमक वगस की जस्र्तत को ्बलता प्रदान करना –
मार्क्सवाद की ्ब्े बडी दे न श्रलमक वगस में वगीय
चेतना और एकता को जन्म दे कर उनकी न्स्त्थतत में
्ध
ु ार करना है । मार्क्स ने नारा ददया ‘‘ववचव के
मज़दर एक हो जाओ तुम्हारे पा् खोने के लर्ये
केवर् जंजीरे है और पाने के लर्ये ्मस्त्त ववचव पडा
हे । ‘‘मार्क्स के इन नारो ने श्रलमक वगस में चेतना
उत्पन्न करने में अद्ववतीय ्फर्ता प्राप्त की।
4. पंजीवादी व्यवस्र्ा के दोषो पर प्रकाश डालना –
मार्क्सवाद के अनु्ार ्माज में ्दा शोर्क-शोवर्त
के बीच ्ंघर्स चर्ता रहता है । शोर्क या पंजीवादी
वगस ्दा अपने र्ाभ कमाने की र्चन्ता में रहता है ।
इ्के लर्ये वह श्रलमको तथा उपभोर्कताओ का तरह
तरह ्े शोर्ण करता रहता है । पररणाम स्त्वरूप
पंजीपतत और अर्धक धनी हो जाते है और गरीब और
अर्धक गरीब। ्माज में भखमरी और बेकारी बढती
है तो द्री ओर पज
ं ीवादी व्यवस्त्था के इन दोर्ो को
दर क्रकये त्रबना आदशस ्माज की स्त्थापना नही की
जा ्कती।
्ंक्षेप में मार्क्सवादी ववचारधारा ने दलर्त और उपेक्षक्षत
मानवता का पक्ष र्ेकर अपने को अत्यर्धक र्ोकवप्रय और
आकर्सक रूप में प्रस्त्तत
ु क्रकया है और ववचव राजनीतत में
अपने को एक प्रबर् चुनौती के रूप में खडा कर ददया हैं।
जब तक ववचव में अ्मानता और शोर्ण रहे गा मार्क्सवाद
की प्रा्ंर्गकता भी बनी रहे गी .

MARGDARSHAN For Civil Services


ANURAG CHAUDHARI

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