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ब्राह्मी लिलि में अनुस्वार का प्रयोग:

यह चिन्ह ‘ ’ अनस्ु वार के चिए प्रयोग चकया जाता है । अचििेखों में इसका स्थान किी किी
वर्णों के पास तो किी किी वर्णण से थोडी दूरी पर देखनो को चमिता है । यचद इकार या उकार मात्रा
चमचित वर्णण हो तो अनस्ु वार मत्रा के पूवण में देखने को चमिता है ।
कुछ उदाहरर्ण इस प्रकार हैं –
कं खं गं जं धं1 तं ु

सं चकं 2 च ं चवं िु प3ंु

चवं िंु
िं ु चनं चहं

उदाहरर्ण इस प्रकार है-

1
.अनस्ु वार किी किी अपने चनयचमत स्थान से काफी दूर िी देखनो को चमिता है । अचििेख पढते समय ध्यान देना जरूरी है
2
. अनस्ु वार ‘इ’ मात्रा से पहिे एवं वाद में अचििेखों में चमिता है ।
3
. अनस्ु वर ‘उ’ मात्रा के साथ नीिे िी अचििेखों में चमिता है ।
िुुं लम लन गा मे
यहााँ ‘ि’ंु में अनस्ु वार के चिन्ह नीिे चदया गया है ।

भ ग वुं
यहााँ ‘वं’ में अनस्ु वार के चिन्ह मध्य में चदया गया है ।

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