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Hindi Project 1
Hindi Project 1
ले खक परिचय
हमारे बे चारे पु रखे न गरुड़ के रुप में आ सकते हैं , न मयूर के, न हं स
के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही
अवतीर्ण होना पड़ता है । इतना ही नहीं, हमारे दरू स्थ प्रियजनों को
भी अपने आने का मधु सन्दे श इनके कर्क श स्वर ही में दे ना पड़ता है ।
दसू री ओर हम कौआ और काँ व-काँ व करने की अवमानना के अर्थ में
ही प्रयु क्त करते हैं । मे रे काकपु राण के विवे चन में अचानक बाधा आ
पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की सन्धि में छिपे एक छोटे -से जीव
पर मे री दृष्टि रुक गयी। निकट जाकर दे खा, गिलहरी का छोटा-सा
बच्चा है , जो सम्भवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौए जिसमें
सु लभ आहार खोज रहें हैं ।
दो फू ल कहानी की समीक्षा
फागु न की गु लाबी जाड़े की वह सु नहली सं ध्या क्या भु लायी जा
सकती है ! सवे रे के पु लकपं छी वै तालिक एक लयवती उड़ान में
अपने -अपने नीड़ों की ओर लौट रहे थे । विरल बादलों के अन्ताल से
उन पर चलाए हुए सूर्य के सोने के शब्दवे धी बाण उनकी उन्माद गति
में ही उलझ कर लक्ष्य-भ्रष्ट हो रहे थे । पश्चिम में रं गों का उत्सव
दे खते -दे खते जै से ही मुँ ह फेरा कि नौकर सामने आ खड़ा हुआ। पता
चला, अपना नाम न बताने वाले एक वृ द्ध मु झसे मिलने की प्रतीक्षा
में बहुत दे र से बाहर खड़े हैं । उनसे सवे रे आने के लिए कहना अरण्य
रोदन ही हो गया।