Professional Documents
Culture Documents
ऐसी टेक्नोलॉजी जो मानवीय व्यवहार और सोच को शुद्ध कर दे वही अंतत
ऐसी टेक्नोलॉजी जो मानवीय व्यवहार और सोच को शुद्ध कर दे वही अंतत
विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अंतिम सत्य मान लेने से जो समस्याएं पैदा हुई हैं वे अब नए-नए
रूप धरती जा रही हैं. टे क्नोलॉजी का चरित्र है परिवर्तनशीलता. वह बाधाओं से लडऩे की क्षमता
तो बढ़ाती है लेकिन शांति, अहिंसा, दया, करुणा और मैत्रीभाव जैसे शाश्वत मल्
ू यों के बिना अधरू ी
रह जाती है . चूंकि हम शाश्वत मूल्यों से भटक गए हैं इसलिए टे क्नोलॉजी से भी सामंजस्य बैठाने
में पीछे छूटते जा रहे हैं. टे क्नोलॉजी का लाभ लेने के लिए आध्यात्मिक गण
ु ों का विकास भी
निरं तर जारी रहे . यह हर समाज के लिए जरूरी है .''
सोलंकी इन दिनों गांधी ग्लोबल सोलर यात्रा पर हैं. पिछले साल गांधी जी के साबरमती आश्रम से
ु आत कर अब तक 30 दे शों की यात्राएं कर चक
शरु ु े हैं. मिशन है सोलर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा
दे कर वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन के खतरों से लोगों को आगाह करना. पिछले हफ्ते
अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी दे शों की यात्रा से लौटने और फिर थाईलैंड, कंबोडिया होते हुए
ऑस्ट्रे लिया, न्यज
ू ीलैंड की ओर निकलने से पहले उनसे हुई बातचीत में उन्होंने अपने कुछ
अनुभव साझा किए.
महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के मौके पर प्रोफेसर सोलंकी चाहते हैं कि अगले 2 अक्तूबर को
ु या के 10 लाख बच्चे मिलकर एक साथ अपना सोलर लैंप बनाएं और रोशनी का
पूरी दनि
अधिकार साबित करें . वे मानते हैं कि गांधी के विचारों को व्यवहार में लाने का यह अच्छा अवसर
है . परू ी दनि
ू या को इसकी जरूरत है . ''सरू ज की रोशनी सबके लिए है और सबको रोशनी का
अधिकार है . इसका उपयोग करते हुए प्रकृति से दोस्ती बढ़ाना भी इस मिशन का उद्देश्य है . हर
बच्चे को अपनी जरूरत की रोशनी मिलनी चाहिए चाहे वह किसी भी दे श में रहता हो. सोलर ऊर्जा
टे क्नोलॉजी से यह संभव है .''
प्रकृति और प्रौद्योगिकी का मेल: ''समाज और प्रकृति के बीच दोस्ती को गहरा करने वाली
टे क्नोलॉजी की आज सख्त जरूरत है . प्रकृति के प्रति हिंसक साबित हो रही टे क्नोलॉजी का हम
बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं और इसके दष्ु परिणामों के प्रति लापरवाह भी हैं. इस दृष्टिकोण से सौर
ऊर्जा टे क्नोलॉजी को मैं मानववादी टे क्नोलॉजी मानता हूं. यह मानवता के महान चिंतक गांधी के
उस विचार को भी अभिव्यक्त करती है कि पथ्
ृ वी हर मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति तो कर
सकती है लेकिन लालच की नहीं.''
प्रतिबद्ध नेतत्ृ व की कमी: सोलर ऊर्जा टे क्नोलॉजी और ''एक मिलियन सोलर लैंप'' मिशन लेकर
जारी विदे श यात्राओं के अनुभवों को साझा करते हुए सोलंकी बताते हैं, ''अमेरिका से लेकर दक्षिण
अफ्रीका तक एक सामान्य समस्या है कि टे क्नोलॉजी सब चाहते हैं लेकिन प्रकृति के प्रति आभार
जताने का तनिक भी ख्याल नहीं है . दस
ू री बड़ी समस्या है टे क्नोलॉजी के बीच टकराव. सोलर
ऊर्जा से बिजली और रोशनी मिल जाती है लेकिन एयर कंडिशनर चलाकर प्रकृति के प्रति हिंसा
लगातार जारी है .
अब पूरे विश्व में सिर्फ प्रकृति हितैषी टे क्नोलॉजी चुनने का समय आ गया है .'' क्या यह काम
सरकारों से हो सकता है ? सोलंकी के मत
ु ाबिक, ''यह संभव नहीं क्योंकि सरकारों को तात्कालिक
परिणाम चाहिए. वे ऐसे काम में अपनी ऊर्जा और संसाधन लगाने से बचती हैं जिसके
दीर्घकालिक परिणाम मिलते हों. जागरूक लोगों के नैतिक दबाव या व्यवहार परिवर्तन से ही यह
संभव है . फिर भी यह कोई मश्कि
ु ल काम नहीं लेकिन हर दे श में प्रतिबद्ध नेतत्ृ व की जरूरत है ,
चाहे वह राजनैतिक हो या वैज्ञानिक या फिर सामाजिक.''
ऊर्जा स्वराज: मध्य प्रदे श के खरगौन जिले के छोटे -से भीकनगांव में एजक
ु े शन पार्क स्कूल की
स्थापना और एक आदर्श स्कूल भवन बनाकर प्रोफेसर सोलंकी ने दिखाया है कि प्राकृतिक ऊर्जा
का इस्तेमाल कैसे होता है . इस भवन की डिजाइन कुछ यंू की गई है कि यह प्राकृतिक एयर
कंडिशनर की तरह काम करे . यहीं पास के गांव नेमित में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ली जहां स्कूल
में एक शिक्षक और एक कक्षा होती थी. यहां मिट्टी तेल के चिराग का उपयोग होता था. यहां से
निकलकर बेल्जियम के आइएमईसी से पीएचडी और आइआइटी बंबई में प्रोफेसर बनने तक के
सफर में सोलंकी ने प्रौद्योगिकी ज्ञान और विशेषज्ञता को समाज के हित में उपयोग करने की राह
पकड़ी और उस पर अडिग हैं.
गांधी जी के व्यक्तित्व और दर्शन से गहरे प्रभावित सोलंकी आजकल ऊर्जा स्वराज पर किताब
लिख रहे हैं. वे बताते हैं, ''गांधी जी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग ही किताब की प्रेरणा
है . सोलर टे क्नोलॉजी का जो सत्य है उसके साथ प्रयोग पर भी नई दृष्टि के साथ लिखा जाए
ताकि इसे समझना और आसान हो जाए.'' उनका सीधा-सा तर्क है : सोलर टे क्नोलॉजी शद्ध
ु रूप से
प्राकृतिक है . हर व्यक्ति को अपनी जरूरत की ऊर्जा आसानी से मिल सकती है . दनि
ु या के हर
ू को शक्ति का प्रतीक माना गया है और इसका आदर किया जाता है . इससे प्रकृति
समाज में सर्य
को समझने का मौका मिलता है इसे आदर भाव से दे खने का संस्कार भी. प्रकृति स्वयं एक
विशाल प्रौद्योगिकी तंत्र है . यह करोड़ों जीव जंतुओं को जीवन जीने में सहयोग करती है .
टे क्नोलॉजी आखिर कैसे अपनाएं? इसके जवाब में वे राजस्थान में सोलर मॉड्यूल वाली डूग
ं रपुर
रिन्यूएबल एनर्जी टे क्नोलॉजी लिमिटे ड कंपनी की स्थापना का अनुभव बताते हैं कि कैसे
ू रों को प्रशिक्षण दे रही हैं. इस पहल के लिए
आदिवासी महिलाएं अपनी कंपनी चला रहीं और दस
ं रपूर जिला प्रशासन को प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी ने सम्मानित किया था. ''इन
उन्हें और डूग
महिलाओं के सामाजिक व्यवहार और सोचने-समझने के तरीके में खासा बदलाव आया है . वे
प्रकृति को भी समझ रही हैं और टे क्नोलॉजी को भी.''