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‘गाय ी ताई िब कुल तु हारी दादी क तरह थी । उ ह ने मझु े कभी एहसास ही नह होने िदए िक मेरी माँ अब इस दिु नया
म नह है । म पूरा-पूरा िदन बस उनके साथ ही िबताया करता था । उनके बेटे, बह और पोते क िकसी लटु ेरे ने घर म
घुसकर ह या कर दी थी िजसके वजह से वो बहत मायूस हो गयी थी लेिकन िफर जब म उनके घर जाने लगा तो वो मझु े
िब कुल अपने बेटे क तरह यार और दल ु ार करती थ । हम दोन एक-दसू रे के ऊपर बहत आि त थे ।’ िविच अपने
िपता क गोद म बैठे हए उनक बचपन क कहानी सुन रहा था । उसके िपता क आँख म आँसू छलक आये थे । िविच
महज 10 वष का था लेिकन आँसओ ू ं के पीछे क यथा को भलीभाँित पहचानता था । ासिदयाँ इसं ान को समझदार
बनने पर मजबूर कर ही देती ह, वो न चाहे तो भी ।
‘वो मझु े ब दर कहकर बल ु ाती थी ।’ िपता क छोटी-सी हँसी छूट गयी ।
‘ या? ब दर? य ?’ िविच ने मु कुराते हए पछ ू ा।
‘अरे ! य िक म बंदर क तरह उनके घर म घसु कर उनके बेसन के लड्डू खा जाता था ।’ िविच ये बात सुनकर इतने
ज़ोर से हँसा िक अपने िपता क गोद से नीचे लढ़ु क गया । बड़े िदन बाद िविच इतने खुलकर हँसा होगा । उसके िपता
ने भी हँसते हए उसे वापस गोद म िबठा िलया । ‘बेटा, वो बेसन के लड्डू इतने वाद होते थे िक कोई अपनी उँगिलयाँ
तक साथ म चबा जाये ।’
‘म मी भी िकतने अ छे बेसन के लड्डू बनाती थी न?’ िविच क हँसी गायब हो चुक थी ।
िविच के िपता ने देखा िक उनका बेटा और ही खो गया था । और उनको समझ आ गया िक िविच को िफर से अपने
माँ क याद आने लगी है । उ ह वो बेसन के लड्डू वाली बात नह छे ड़नी चािहए थी । िविच क माँ हर रोज़ िविच के
लंच बॉ स म एक लड्डू िस वर फॉयल म लपेटकर रख देती थी िजसे वो बस म ही िनकालकर अपने जेब म रख िलया
करता था िजससे उसके दो त उस लड्डू पर कु ि न डाल पाय । उस एक लड्डू के िलए वो िकसी से भी लड़ सकता
था । 6 महीने पवू लगं -कसर ने उसक माँ को लील िलया और तब से उसके जीवन म बेसन के लड्डू का अभाव हो गया
। अ सर, लोग को उनसे स बंिधत व तुओ ं से ही याद रख िलया जाता है । दसु रे िकसी के हाँथ के बेसन के लड्डुओ ं म
वो वाद नह आता था जो उसक माँ के हाँथ के लड्डुओ ं म आता था । प रणाम व प, िविच ने बेसन के लड्डू खाने
ही छोड़ िदए ।
िद ली जैसे बड़े शहर म उनका एक बहत बड़ा घर था और अब तो घर को सँभालने वाला भी कोई नह था । िविच के
िपता को ही अब ये सनू ी चार-दीवारी काटने को दौड़ रही थी तो वो क पना भी नह कर सकते थे िक िविच के सक
ु ोमल
मन पर इस ासदी का िकतना भयानक भाव पड़ा होगा ।
‘िविच , मने सोचा है िक हम िद ली छोड़ दगे ।’ उ ह ने िविच के सर पर हाँथ फे रते हए कहा ।
‘िफर कहाँ जायगे हम पापा?’
‘जबलपरु म दादाजी का परु ाना घर है जो िक हमारे िद ली िश ट होने के बाद से बंद पड़ा है । रमेश को बोल िदया है वो
िकसी से कहकर उसको साफ़ करा देगा । मेरा परू ा बचपन उस ही घर म गज़ु रा है, बेटा । इस बड़े घर म अब िब कुल
अ छा नह लगता । जबलपरु म मेरे कुछ दो त भी ह तो मझु े जॉब िमलने म कोई िद कत नह आएगी । म बस इस घर
से बहत दरू जाना चाहता हँ । इस घर क हर एक चीज़ तु हारी म मी क याद के दपण क तरह है ।’ िपता ने एक गहरी
साँस ली और घर के हर कोने को एक अजीब से भारीपन के साथ तकने लगे ।
‘पापा, आप म मी को बहत miss करते हो?’ िविच ने अ यतं भोलेपन से पछू ा ।
‘हाँ बेटा । बहत यादा ।’ उ ह ने तरु ं त उ र िदया । ‘और तमु ?’
‘म भी करता हँ । लेिकन मझु े कभी-कभी लगता है िक म मी कह नह गय ह । वो यह कह ह…मेरे साथ ।’ िविच ने
यह कहकर अपना सर अपने िपता क छाती से िचपका िलया । उसके िपता ने उसके माथे को धीरे से चमू िलया । और
िफर फुसफुसाकर कहा -
‘हाँ बेटा, म मी हमारे साथ ही ह ।’ ये श द उनके मुँह से िनकलते ही उ ह उनका खोकलापन भािसत हो गया लेिकन
एक छोटे ब चे को मरण के दख ु को समझाना उ ह ने ठीक नह समझा । िविच समझदार है, खदु ही समझ जायेगा -
ऐसा जानकर उ ह ने चु पी साध ली । सधु ीर एक अ छे िपता थे ।
िविच क न द लग चुक थी । सधु ीर ने उसको धीरे से गोद म उठाकर िब तर पर िलटा िदया और खदु भी उसके बगल
म जाकर लेट गए । उन दोन के शरीर और मन को आराम क स ज़ रत थी य िक अगले िदन उ ह ये याद का
बंदरगाह छोड़कर जबलपरु रवाना होना था ।


घर छोड़ने से पहले सधु ीर ने परू े घर को छू-छूकर देखा । ये अपनी प नी के अंितम पश पा लेने क एक रहायती नाकाम
कोिशश थी । िविच ने अपने बनाये हए सारे िच और पिटंग सँभालकर एक ब से म पैक कर िदये । उसने यान िदया
तो देखा िक उसके लगभग हर िच म िचथरी-िबखरी उसक माँ क त वीर उभर रही थी । उसे इस बात का कोई दःु ख
नह था य िक ये उसका अपने माँ से बात करने का एक मा यम था । अपना बाक ज़ री सामान भी पैक करके वो
अपने िपता के पास आ गया । सबु ह क ीधाम ए स ेस पकड़कर िपता-पु जबलपरु के िलए रवाना हो गए ।
जबलपरु का घर, िद ली वाले घर से काफ छोटा था लेिकन उससे कई गुना सु दर था । चार ओर ऊँचे-ऊँ चे हरे -भरे
पेड़ थे और गहरा-नीला आसमान । बहत शांत वातावरण था, िद ली से एकदम िवपरीत । सधु ीर और िविच ने िमलकर
परू ा घर जमा तो िलया लेिकन िविच को लग रहा था िक उसक माँ क यव थाओ ं क बात ही कुछ अलग थी । िफर
भी उसने अपने मेहनती िपता क खूब सराहना करी ।
अगले कुछ िदन म िविच का नये कूल म एडिमशन हो गया । और उसके िपता को भी बड़ी आसानी से एक जॉब
िमल गयी । िविच के िपता थोड़े य त रहने लगे थे । यादातर िदन म जब तक वो ऑिफस से वापस आते थे तब
तक िविच अपना कूल का काम िनपटाकर सो चक ु ा होता था । वो बस, िविच के सर पर हाँथ फे रकर पलगं पर पसर
जाते । समय के साथ दोन लोग म एक अनकही दरू ी पैदा होने लगी िजससे वो दोन ही अछूते नह थे ।
िविच इस दरू ी का रह य जानकर जानबझू के अपने िपता को यादा परे शान नह करता था । वो अपने कूल, पिटंग
और खेल-कूद म ही वयं को य त रखने लगा । रह-रहकर उसे अपने माँ क कमी खलती रहती और वो तरु ं त ही
एक खाली प ना उठाकर अपनी पीड़ा को आकार देकर उसम कुछ रंग भर देता । बस, इसी तरह वो उस सूनेपन से वयं
को सरु ि त रख लेता था । सुधीर जब देर रात आकर उन रंग-िबरंगी पीड़ाओ ं को देखता तो उसके आँख से अ -ु धारा
बह िनकलती । िक ही िच म िविच क माँ हाँथ छोड़कर दरू कह खड़ी िदखती थी तो िक ही िच म िविच वयं
को उनक गोद म बनाता और उस कमज़ोर पल म सधु ीर वयं को बहत असहाय महसूस करता । लेिकन वो करे भी तो
या? वो िविच के इस अभाव-गत को शायद कभी नह भर पायेगा ।
एक िदन हआ यँू िक कूल से वापस आते व त िविच को एक बहत सु दर घर िदखाई िदया । उस घर के चार ओर
बगीचा था िजसम अलग-अलग रंग के फूल िखले हए थे । उन फूल को देखकर िविच क आँख चमक उठी । उस घर
के अगल-बगल म और कोई घर नह था जो उसे और भी अिधक आकिषत बना रहा था । घर के आँगन म एक छोटा-
सा तल ु सी का पेड़ था और परू ा घर अ यतं व छ िदखाई दे रहा था । िविच िकसी चु बक क भाँित उस घर क ओर
िखंचा चला गया । उस घर के बाहर एक छोटा-सा लोहे का दरवाज़ा था िजसके सामने एक प थर का सकरा रा ता था
जो सीधे घर क देहलीज तक जाता था । इस कार के घर के वल पहाड़ पर ही देखने को िमलते ह । िविच ने बाहर
खड़े रहकर एक-दो बार आवाज़ लगायी लेिकन अ दर से िकसी क आवाज़ ही नह आई तो उसने एक बार इधर-उधर
नज़र दौड़ाई और लोहे के दरवाज़े को खोलकर सीधे अ दर घुस गया । दोन ओर बेहद मनमोहक फूल क पंि याँ थी
जो ऐसे लग रहे थे जैसे िविच के वागत के िलए ही वहाँ तैनात ह । दाय तरफ एक छोटा बोड लगा हआ था िजसपर
िलखा था – ‘फूल और िकसी का िदल तोड़ना स त मना है!’ । लेिकन ये सब बात अब बेहद Outdated हो चक ु
है शायद इसिलए ही उस बोड के हर एक कोने पर जंग ने क ज़ा कर िलया था । वो घर देखने पर भी काफ़ साल पुराना
लग रहा था । िविच ने यान से देखा तो हर एक पौधे के आस-पास छोटे बड़े बोड्स लगे हए थे िजनपर उनके नाम
िलखे हए थे । एक गमले म इमली जैसा एक पौधा था िजसके नीचे िविच ने पढ़ा तो ‘छुई-मुई’ िलखा था और उसके
नीचे को क म ‘शमा जी’ िलखा था । छुई-मईु ? ये कै सा नाम है? िविच ने खेल-खेल म उसक पि य पर एक ऊँगली
फे र दी । उसके आ य का िठकाना नह रहा जब उसने देखा िक वो पि याँ अचानक से अपने-आप झक ु गय ! एक
दस-वष के बालक के िलए ये जादू से कम नह था! उसने बािक क पि य को भी छुआ और हर बार वो एक अिभनव
उ माद से भरता गया । वो ख़श ु ी के मारे उछल पड़ा और उसके मँहु से ज़ोर से ‘Wow!’ िनकल गया! उसने तरु ं त अपने
मुँह पर हाँथ रखा लेिकन शायद अब तक गड़बड़ हो चुक थी ।
घर के भीतर से एक कोई वृ मिहला क अ यंत मीठी आवाज आई – ‘कौन है बाहर? िपंटू बेटा, तमु हो या?’
उनके कदम क आवाज िविच को सनु ाई दे रही थी । उधर से भाग जाना िविच को सही नह लगा य िक इस तरह
तो वो और भी चोर िस हो जाएगा । तो उसने दबी हई आवाज़ म बोला –
‘म हँ...’ म हँ? बोलने के बाद लगा क वो मिहला उसे पहचानती थोड़ी न है इसिलए उसने अंत म ‘िविच ’ जोड़
िदया ।
‘िविच ? कौन िविच ?’ उनक आवाज म शक ं ा थी । वो और भी तेज गित से आगं न म आ गय । उनके बाल परू ी
तरह सफ़े द थे और कमर िकसी अपराधी के चेहरे क तरह झक ु थी । उमर क झु रयाँ उनके चेहरे पर लटक रह थ ।
लेिकन उनके चेहरे पर इतना तेज था जो चाँद को भी फ का कर दे । उ ह ने क थई रंग क साड़ी पहन रखी थी और
उनके एक हाथ म बेलन था । लगता है, खाना बना रह थ । उ ह ने अपना च मा नीचे करके िविच को थोड़ी देर
तक घरू ा और िफर अ यंत ेम से कहा –
‘ या तमु चोर हो, बेटा?’
िविच को एक ह का ध का लगा । उसने तुरंत उ र िदया – ‘नह नह , दादी । म तो िविच हँ ।’
वो वृ मिहला ने िविच के भोलेपन पर थोड़ा हँस िदया । उ ह ने अपना बेलन एक जगह रख िदया और अपने हाथ
धोते व हए िविच से पूछा –
‘यहाँ पहले तो कभी नह िदखे, बेटा । नये हो?’
‘हाँ दादी । एक मिहना ही हआ है ।’ िविच ने थोड़ा उनके पास जाते हए कहा । ‘दादी, ये छुई-मुई क पि याँ मुझा
य गई?’ िविच ने तरु ं त िवषय बदल िदया ।
‘ओह, वो...ये उनके बचने का तारीका है, बेटा । पौधे भी िकतने होिशयार होते ह ना!’ उ ह ने िविच के पास आते
हए कहा ।
‘और ये शमा जी?’ िविच ने उस बोड क तरफ ऊँगली िदखाते हए कहा ।
‘छुई-मुई को छू लो तो शमा जाती है, इसिलये मने उसका नाम शमा जी रखा है ।’ ये सुनकर िविच ठहाके मारकर
हँसने लगा । वो बार-बार 'शमा जी...शमा जी’ दोहराने लगा । उसको इतना खशु देख उन बढ़ू ी मिहला ने कहा –
‘मने अपने हर पौधे को इसी तरह के नाम िदए ह, जाकर देखो!’ उनक कहने क देर थी िक िविच मडक क तरह
उछल-उछलकर सारे पौध के नीचे लगे बोड्स को बहत िदलच पी से देखने लगा । मनी लांट के नीचे को क म
‘अबं ानी’ िलखा था, एलो-वेरा के पौधे के नीचे ‘िसहं साहब’ िलखा था...उन सबको पढ़कर वो बहत देर तक हँसता
रहा । साथ ही उसे उन मिहला क होिशयारी पर भी बहत आ य हआ ।
‘मेरी माँ को भी फूल बेहद पसंद थे ।’ िविच ने थोड़े गंभीर होते हए कहा ।
‘थे?’ उन मिहला ने तरु ं त पूछा ।
िविच एक पल के िलए सु न हो गया । उसक हँसी गायब हो गई और एक घोर मातम ने उसके चेहरे पर जगह बना
ली । उन बढ़ू ी मिहला को तब अपने छोटे से क बड़ी मह वता समझ आई ।
‘ओह! मुझे माफ़ करना, बेटा । सुंदर फूल को सबसे पहले तोड़ िलया जाता है ।’ उ ह ने िविच को सां वना दी और
उसके कंधे पर ह के से अपना हाथ रख िदया । उनसे बेसन के लड्डू जैसी खश
ु बू आ रही थी । उन मिहला ने जब
देखा क िविच क हवाईयाँ उड़ चुक ह तो उ ह ने उसके सर पर हाँथ फे रते हए कहा –
‘आओ, तु ह एक चीज़ िखलाती हँ ।’ वो अपनी धीमी-चाल से घर के भीतर चली गय । िविच भी उनके पीछे -पीछे
उतने ही धीरे -धीरे घर म वेश कर गया । घर बहत अ छे तारीके से जमा हआ था, जैसे उसक माँ हमेशा जमाया
करती थी । हर चीज अपने यवि थत जगह पर सश ु ोिभत हो रही थी । एक ऊँचे शे फ पर िकताबे जमी हई थी, एक
तरफ बड़ी-सी िखड़क थी िजससे सुनहरी धपू घर म दािखला ले रही थी, एक िदवार पर एक वृ पु ष और तीन और
लोग क त वीर टंगी हई थी िजनपर फूल क एक माला डली हई थी । फूल बहत ही ताज़ा लग रहे थे । शायद उन
मिहला ने आज ही वह माला बदली होगी । िविच अपने सर को घुमा-घुमाकर गरीब घर को बहत बारीक से देख
रहा था । तभी वो मिहला अपने हाथ म एक टील का ड बा थामे उसके पास वापस आ गयी ।
‘ये लो, बेटा ।’ उ होने छोटे से टील ड बे को आगे बढ़ते हए कहा ।
‘ या है इसम दादी?’ िविच के अ दर घर क हई मायूसी उसक आवाज़ म झलक रही थी ।

‘बेसन के लड्डू’ मिहला ने मु कुराकर कहा । यह सनु कर बहत सारी याद एक साथ िविच को कह बहाकर ले गय ।
माँ, कूल, बस, िस वर फ़ॉइल... सब कुछ एक झटके म उसके सामने आने लगे । ‘पसदं नह है या बेटा?’ मिहला ने
च मे के ऊपर से तकते हए पछू ा ।
‘नह , ऐसा नह है । बहत पसंद ह । लेिकन, मुझे अपने माँ के अलावा िकसी और के हाथ के बेसन के लड्डू पसंद
नह आते इसिलए उनके जाने के बाद से मने बेसन के लड्डू खाने ही छोड़ िदए ।’ िविच ने महससू िकया िक उसने
बड़ी ही सहजता से इतना कुछ बोल डाला था । कुछ पल के िलए वो मिहला िविच को देखती रही जैसे उसे नह
िकसी और को देख रही हो ।
‘बेटा! तमु अपनी उमर से कह यादा होिशयार हो । लेिकन कभी-कभी अिधक होिशयार लोग अपने आप पर
अिधक कठोर भी हो जाते ह ।’ वो मिहला उनके घर म टंगी त वीर को देखने लग । ‘तुम मझु े िबलकुल अपने पोते
जैसे लगते हो । वो भी ऐसी बड़ी-बड़ी बात िकया करता था ।’ उ होन एक लबं ी साँस ली और िफर कहा – ‘होनी को
कोई नह टाल सकता । अब जो हो गया सो हो गया । म शत लगाती हँ िक तमु मेरा एक लड्डू खाओगे तो बार-बार
माँगोगे ।’
अब तक िविच उन मिहला से काफ़ भािवत हो गया था । और उसे उनक बात म दम भी लगी । कब तक वो इसी
तरह अपने आप पर कठोरता करता रहेगा? या उसक माँ अगर यहाँ होती तो उसे इस तरह देखकर खुश होती?

‘ठीक है । म एक ले लेता हँ ।’ उसने बड़ी िह मत जोड़कर कहा । बढ़ू ी अ मा ने मु कुराकर िदया ।


िविच ने ड बा खोला । उसम चार लड्डू रखे थे । उसने एक लड्डू उठा िलया और सबसे पहले अपनी जीभ बाहर
िनकालकर उसे थोड़ा-सा चाँटा । उसका वाद लेते ही उसके परू े बदन म एक फुित दौड़ गयी । उसक आँख चमकने
लग और उसने एक बार म ही परू ा लड्डू अपने मँहु म घसु ा िलया ।
‘अरे बेटा! आराम से...आराम से ।’ वो मिहला हँसते हए बोली ।
‘दादी...ये बहत tasty ह । िबलकुल मेरी माँ के हाथ के लड्डू क तरह!’ उसके मुँह म लड्डू भरा हआ था इसिलए
श द कुछ अ प से िनकले । िविच ने ड बे म रखे सारे लड्डू बारी-बारी से चट कर गया । बढ़ू ी मिहला बहत सतं ोष
से उसे देखती रही ।
‘तु ह देर तो नह हो रही? तु हारा घर कहाँ है ?’
‘पास म ही है, दादी । कृ णा डेयरी के ठीक सामने ।’ िविच अभी भी लड्डू खाने म य त था ।
‘ या! कृ णा डेयरी के सामने? लेिकन वो घर तो बंद पड़ा हआ है ना?’ बूढ़ी अ मा के श द कुछ लड़खड़ाते हए से
बाहर आये । उनम एक आ य ने डेरा डाला हआ था ।
‘हाँ बंद था । लेिकन हम िद ली से वापस आ गए और अब वही रहते ह । वो मेरे दादाजी का पु तैनी मकान है ।’
िविच ने आखरी लड्डू भी मुँह म डालते हए कहा । वृ मिहला कुछ पल के िलए स न-ब न हो गई ।
‘तमु ...तमु सधु ीर के बेटे हो?’ मिहला ने हकलाते हए पछू ा । िविच ने सर उठाकर देखा िक वो खड़ी हो चक
ु ह और
भरपरू अिव ास के साथ उसे देख रही ह ।
‘आप पापा को जानती ह?’ िविच ने लड्डू का ड बा नीचे रखते हए पूछा ।
‘बहत अ छे से’ । ये कहकर उ ह ने अपना मुँह फे र िलया ।
िविच को एक झटके म सब समझ आ गया । िफर भी उसने अपनी तस ली के िलए उस मिहला से पँछू ही डाला –
‘आपका नाम या है, दादी?’
वृ मिहला िविच से नज़रे चरु ाने का यास करती हई दरवाजे के बाहर देख रह थ । कुछ याद म खोई हई वो
एकटक उन फूल को िनहार रही थी । उ ह ने अपना गला थोड़ा साफ़ िकया और िबलकुल धीमे वर म बोल –
‘गाय ी’

3
‘आप गाय ी ताई ह? पापा वाली गाय ी ताई? सच म?’ िविच , ताई के बगल म जाकर खड़ा हो गया । उसक ख़श
ु ी
का िठकाना नह था । उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसे कोई खोई हई िनिध िमल गयी हो ।
‘हाँ बेटा!’ ताई ने बड़ी सहजता से कहा ।
‘पापा हमेशा आपके बारे म बात करते रहते ह । म आपके बारे म सब कुछ जानता हँ । पापा बहत याद करते ह आपको,
ताई! जब म उ ह बताऊंगा िक म गाय ी ताई से िमला था तो वो तो ख़श ु ी से पागल हो जायगे! और –
‘नह ...नह िविच ! अपने पापा को मेरे बारे म कुछ मत बताना ।’ ताई ने बीच म ही िविच क बात काट दी ।
‘पर य ताई?’ िविच ने िझ लाते हए पूछा ।
‘नह ! मने मना िकया न! तु ह सब कुछ समझने क ज़ रत नह है । बस ये समझलो िक अगर उ ह पता लगा िक तुम
मेरे पास आये थे तो उ ह बहत बुरा लगेगा । और शायद तमु िफर मेरे घर कभी न आ पाओ!’ ताई ने इस बात को
चेतावनी के वर म कहा ।
िविच अपना-सा मँहु लेकर रह गया । िविच को यह बात थोड़ी अटपटी अव य लगी लेिकन वो नह चाहता था िक
अब अतीत क तंि य को एक बार िफर झंकृत िकया जाए ।
‘ठीक है ताई । जैसा आप कह ।’ इतना कहकर िविच , गाय ी ताई के घर से रवाना हो गया । बेसन के लड्डुओ ं का
मीठा वाद अब तक उसके मख ु म था । उसे बहत ख़श
ु ी थी िक वो गाय ी ताई से िमल पाया । ताई के कहे अनसु ार
उसने अपने िपता से इस घटना के बारे म एक श द भी नह कहा । उसने पहले सोचा िक यँू बात -बात म पापा से पछू
लँू गाय ी ताई के बारे म...लेिकन िफर कुछ सोचकर वो क गया ।
जब िकसी यि का हमारे जीवन म अभाव हो जाता है तो हमारे जीवन म उसके थान पर एक बड़ा गड्ढा हो जाता
है। हम अलग-अलग लोग से उस पीड़ा-दायक गड्ढे को भरने के िलए बहत हाँथ-पाँव मारते ह लेिकन अतं म वो पीड़ा
और भी अिधक क दायी बन जाती है । अगले कुछ िदन म िविच ितिदन गाय ी ताई के यहाँ आने-जाने लगा और
ताई भी अपने सपं णू लाड और ेम से उसको अपने पास रखने लगी । वो दोन एक-दसू रे के ऊपर आि त होने लगे
य िक दोन एक-दसू रे के जीवन म पड़े अभाव के गत को भरने क कोिशश करते । ताई, िविच म अपने पोते को
देखने लगी और िविच उनम अपनी म मी को । और ये दोन ही िकरदार वो दोन बखबू ी और बड़ी सहज रीित से िनभा
रहे थे ।
समय बीतने के साथ उनके ेम म और भी गहराई आते गयी । िविच ने ताई क तिबयत खराब होने के वजह से एक-
दो बार कूल से भी बंक मार िदया और िदन-िदन भर उनक सेवा करता रहा । िविच जब ताई को छोड़कर वापस
अपने घर जाता तो ताई का िदल बैठ जाता । दोन का एक दसू रे के िबना मन न लगता । िविच उनके साथ वो सारे
काम करता जो वो पहले अपनी माँ के साथ करता था जैसे साथ बैठके फूल क पिटंग बनाना, सांप-सीढ़ी खेलना,
होमवक करना...वो अपने आप को अ यंत सौभा यशाली समझता था िक उसे ताई जैसी इसं ान का साथ िमला ।
मे एक दोतरफा तलवार होता है । ेम और सनक म कई बार अतं र कर पाना बेहद मिु कल हो जाता है । ेम के बढ़ने
के साथ-साथ ही सामने वाले के ित एक कार का स ा मक भाव भी ज म ले िलया करता है । एक कार का अिधकार।
ेम जैसे दो ह को िक ही अ य तार से जोड़ िदया करता है िजसम चोट िकसी एक को लगती है और दद िकसी
और को होता है । कुछ िमलता िकसी एक को है और खश ु कोई दसू रा होता है । ताई और िविच ये सारी सीमाय न
जाने कब क पार कर आये थे ।

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