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आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया

मैं इस क़दर उड़ा की ख़लाओं में खो गया

कतरा रहे हैं आज के सु क़रात ज़हर से


इं सान मस्लहत की अदाओं में खो गया

शायद मिरा ज़मीर किसी रोज़ जाग उठे


ये सोच के मैं अपनी सदाओं में खो गया

लहरा रहा है साँप सा साया ज़मीन पर


सूरज निकल के दरू घटाओं में खो गया

मोती समे ट लाए समुं दर से अहल-ए-दिल


वो शख़्स बे -अमल था दुआओं में खो गया

ठहरे हुए थे जिस के तले हम शिकस्ता पा


वो साएबाँ भी ते ज़ हवाओं में खो गया

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