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VIVAV MAURYA KABEER

1. कैसे वाणी बोलने पर बल दिया है?

कबीर ने अहंकार रहित शीतल और मधुर वाणी के प्रयोग पर बल दिया है।

2.मीठे वाणी से क्या प्राप्त होता है?

मीठी वाणी के प्रयोग से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है।

3.मन का आप खोने से क्या तात्पर्य है?

मन का आपा खोने से तात्पर्य है - अहंकार रहित होना।

4.कस्तूरी किसे कहते हैं और यह कहाँ प्राप्त होती है?

कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है जो मृग की नाभि में प्राप्त होती है।

5.कस्तूरी और मृग के उदाहरण से कवी ने क्या समझाया है?

उपर्युक्त उदहारण के माध्यम से यह समझाया है की ईश्वर का वास मनुष्य के भीतर ही होता है।

6.मृग किसका प्रतीक है और वह कस्तूरी को वन में क्यों ढूं ढता है?

मृग अज्ञानी जीव का प्रतीक है और यह अपनी नाभि में कस्तूरी होने के बावजूद अज्ञानता के
कारण उसे वन में ढूं ढ़ता है।

7."जब मैं था , तब हरी नहीं" - में "मैं" से क्या आशय है?

उक्त पंक्ति में 'मैं' अहंकार की ओर संकेत करता है।


8.ईश्वर की प्राप्ति कब होती है?

जब व्यक्ति के मन मस्तिष्क से अहंकार दूर हो जाता है जब ईश्वर रुपी डीप जलता है।

9."अब हरी है , मैं नाही" - का क्या अर्थ है?

परमात्मा रूपी ज्ञान के आने से अज्ञानता रुपी अन्धकार मिट गया है।

10.कबीर ने अपनी एक साही में "खाये और सोवे" के द्वारा क्या कहना चाहते हैं?

"खाये और सोवे" के द्वारा कबीर उन लोगों की ओर संकेत करते हैं जो निरुदे श्य जीवन जीते हैं
और खाने-पीने और सोने को ही जीवन का सबसे बड़ा सुख मानते हैं।

11.कबीर संसार को इस दशा में दे खकर दुखी क्यों हैं?

संसार की अज्ञानता दे खकर कबीर दुखी हैं।

12.सोना और जागना किस बात का प्रतीक है?

सोने से अर्थ है मोह-माया में लिप्त रहना , विषय-वासना को भोगते हुए अचेत रहना और 'जागने'
से अर्थ है प्रभु के अस्तित्व के प्रति जागृत रहना।

13.विरह को भुवंगम क्यों कहा है?

भुवंगम का अर्थ है सर्प और इसे विरह के साथ जोड़ा गया है क्योंकि कबीर के अनुसार दोनों का
प्रभाव पीड़ा दायक होता है।

14.ईश्वर के वियोग में मनुष्य की क्या दशा हो जाती है?


ईश्वर के वियोग में मनुष्य ना तोह जी पता है न तोह मर पाटा है , उसकी स्थिति पागल की तरह हो
जाती है।

15.राम वियोगी का क्या अर्थ है?

राम वियोगी से अर्थ है - ईश्वर के वियोग में जीवित रहना।

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