साराांश – प्रस्ततु कविता ‘मधबु न सरल विन्दी’ से ली गई िै | यि
कविता किवयत्री कमला दीवित द्वारा वलखी गई िै| इस कविता के द्वारा किवयत्री ने बताया िै वक छोटी – छोटी बूँदें लेकर जब बादल फलों, पत्तों पर बरसता िै, तो प्रकृवत को और भी ज़्यादा मनोिर बना देता िै|बादल से जल की बूँदें जब घास, पेड़ – पौधों पर वगरती िैं और उनपर सरज की वकरणें पड़ती िैं तो ऐसा लगता िै वक मानो सोने का मक ु ु ट पिन वलया िो|अनवगनत जलकणों से भीगी घास मखमल के समान लगती िै |उस समय लगता िै जैसे पररयों की राजकुमारी मोवतयों से आूँचल भर रिी िो |इस प्रकार किवयत्री ने बादलों के द्वारा धरती की सुंदु रता का िणणन वकया िै | प्रश्नोत्तर
(क) बेला की पूँखवु ड़यों पर बादल क्या करता िै?
उत्तर : बेला की पूँखवु ड़यों पर बादल जल की बूँदें बरसाता िै जो मोती के समान लगती िैं |
(ख) चपुं ा की कवलयों पर िर्ाण का क्या प्रभाि पड़ता िै
उत्तर : िर्ाण की बूँदें चुंपा की कवलयों पर वगरने से कवलय
वखलकर फल बन जाती िैं |
(ग) उपिन वकस प्रकार आभामय िो उठता िै ?
उत्तर : सयण की वकरणें जब बूँदों पर पड़ती िैं तो बूँदें सनु िरी लगती िैं| इस समय वनकले इन्रधनर्ु से फलों पर सोने के मक ु ुट िोने का आभास िोता िै | इस प्रकार उपिन आभामय िो उठता िै | (घ) इन्रधनर्ु कै से बनता िै ?
उत्तर – िर्ाण के समय जब सयण की वकरणें बाररश की बूँदों से िोकर
गजु रती िैं तो उसमें मौजद सातों रुंग आसमान में फै ल जाते िैं और अधणचरुं का रूप ले लेते िैं | इस प्रकार इन्रधनर्ु बनता िै |
SEA :- चार प्रमुख ऋतुओं के क्षचत्र बनाकर दो – दो पंक्तियााँ