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राम कथा व तो े
जो जो जो जो रे
सु
खधामा । भ पू
ण कामा ॥धृ
॥
य सं
हारी रणां
गणी । उ वभाव करणी ।
भारी मलासी खे
ळणी । उ रता हे
धरणी ।
धे
नुजां
चे
पाळणा । क रता अवतारणा ।
तु
जला नजवीता पाळता । द नाव र करी क णा ॥१॥
दे
व अवतरलेषीके
शी । भृ
गु
ऋषी या वं
शी ।
सं
गे
घे
ऊ नया व ध ह रसी । रे
णु
के
चेकु
शी ।
सागर सा नया वस वले
। कोकण जन पा ळले
।
ा चरणाते
दव डले
। यश हे स के
ले॥२॥
व थानी जावे
भागवा । अखं
डत चरं
जीवा ।
योगमाया ते
क र से
वा । परशु
राम दे
वा ।
हालवी रे
णु
का पाळणा । गाई या सगु
णा ।
सखया रामा या आभरणा । चु
कवी ज ममरणा ॥३॥
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परशु
राम गाय ी
3. 'ॐ रां
रां
ॐ रां
रां
परशु
ह ताय नम:।।'
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परशु
राम तु
तः
कु
लाचला य य मह जे यः य छतः
सोम ष वमापु
ः । बभू
वुसगजलंसमुाः स रै
णु
के
यः
यमातनीतु
॥१॥
ना श यः कमभूवः कपभव ापुणी रे णु
का
नाभू मकामु कंक म त यः ीणातु
राम पा ।
व ाणां तम दरं म णगणो म ा ण
द डाहतेना धीनो स मया यमोऽ प म हषे
णा भां
स
नो ा हतः ॥२॥
पाया ो यमद नवंश तलको वीर तालङ्कृतो रामो
नाम मु
नी रो नृ
पवधेभा व कु
ठारायु
धः ।
ये
नाशे
षहता हता धरै
ः स त पताः पू
वजा भ या
चा मखेसमुवसना भू
ह तकारीकृता ॥३॥
ारे
क पत ंगृ
हे
सुरगव च तामणीन दे
पीयू
षं
सरसीषुव वदनेव ा त ो दश ।
एव कतुमयंतप य त भृ
गोवशावतंसो मु
नः
पाया ोऽ खलराजक यकरो भू दे
वभूषाम णः ॥४॥
॥इ त परशु
राम तु
तः ॥
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परशु
रामा ा वश तनाम तो म्
ऋ ष वाच ।
यमा वासु
दे
वां
शं
है
हयानां
कुला तकम्
। ःस तकृवो
य इमां
च ेनः यां
महीम्॥१॥
ं ं भु
वो भारम यमनीनशत्
। त य नामा न
पु
या न व म ते पुषषभ ॥२॥
भू
भारहरणाथाय मायामानु
ष व हः । जनादनां
शस भू
तः
थ युप य ययेरः ॥३॥
भागवो जामद य प ा ाप रपालकः । मातृाण दो
धीमान् या तकरः भु
ः ॥४॥
रामः परशु
ह त कातवीयमदापहः ।
रे
णुका ःखशोक नो वशोकः शोकनाशनः ॥५॥
नवीननीरद यामो र ो पल वलोचनः । घोरो द डधरो
धीरो यो ा ण यः ॥६॥
तपोधनो महेादौ य तद डः शा तधीः ।
उपगीयमानच रतः स ग धवचारणैः ॥७॥
ज ममृ यु
जरा ा ध ःखशोकभया तगः ।
इ य ा वश तना नामुा तो ा मका शु
भा ॥८॥
अनया ीयतां दे
वो जामद यो महेरः । ने
दं
तो मशा ताय नादा तायातप वने
॥९॥
नावे
द व षे
वा यम श याय खलाय च ।
नासू
यकायानृ
जवेन चा न द का रणे
॥१०॥
इदं याय पुाय श यायानुगताय च । रह यधम
व ो ना य मै
तुकदाचन ॥११॥
॥इ त परशु
रामा ा वश तनाम तो ं
स पू
णम्
॥
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परशु
राम तो म्
करा यां
परशु
ं
चापं
दधानं
रे
णु
का मजम्
।
जामद यं
भजे
रामं
भागवं या तकम्
॥१॥
नमा म भागवं
रामं
रे
णु
का च नं
दन ।
मो चता बा तमु
पातनाशनं नाशनं
॥२॥
भयात वजन ाणत परं
धमत परम्
।
गतवग यं
शू
रं
जमद नसु
तं
मतम्
॥३॥
वशीकृ
तमहादे
वं तभू
पकु
ला तकम्
।
ते
ज वनं
कातवीयनाशनं
भवनाशनम्
॥४॥
परशु
द णे
ह ते
वामे
च दधतं
धनु
ः।
र यं
भृ
गक
ुु
लो ं
सं
घन यामं
मनोहरम्
॥५॥
शुं
बुं
महा ामं
डतं
रणप डतं
।
रामंीद क णाभाजनं
व रं
जनं
॥६॥
मागणाशो षता यं
शं
पावनं
चरजीवनं
।
य एता न जपेामनामा न स कृ
ती भवे
त॥७॥
॥ इ त ी प. प. वासु
दे
वानं
दसर वती वर चतं
ीपरशु
राम तो ं संपण
ूम्॥
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ी परशु
राम चालीसा
दोहा
ी गुचरण सरोज छ व, नज मन म दर धा र।
सु
म र गजानन शारदा, ग ह आ शष पु
रा र।।
बु हीन जन जा नये
, अवगु
ण का भ डार।
बरण परशु
राम सु
यश, नज म त के
अनु
सार।।
चौपाई
जय भु परशु
राम सु
ख सागर, जय मु
नीश गु
ण ान
दवाकर।
भृ
गक
ुु
ल मु
कु
ट बकट रणधीरा, य ते
ज मु
ख सं
त
शरीरा।
जमद नी सु
त रे
णु
का जाया, ते
ज ताप सकल जग
छाया।
मास बै
साख सत प छ उदारा, तृ
तीया पु
नवसु
मनु
हारा।
हर थम नशा शीत न घामा, त थ दोष ाप
सु
खधामा।
तब ऋ ष कु ट र दन शशु
क हा, रे
णु
का को ख जनम
ह र ली हा।
नज घर उ च ह छः ठाढ़े
, मथु
न रा श रा सु
ख गाढ़े
।
ते
ज- ान मल नर तनु
धारा, जमद नी घर
अवतारा।
धरा राम शशु
पावन नामा, नाम जपत लग लह
व ामा।
भाल पु
ड जटा सर सु
दर, कां
धे
मू
ज
ंजने
ऊ मनहर।
मं
जु
मेखला क ठ मृ
गछाला, माला बर व
वशाला।
पीत बसन सु
दर तु
न सोह, कं
ध तु
रीण धनु
ष मन मोह।
वे
द-पु
राण- ु
त- मृ
त ाता, ोध प तु
म जग
व याता।
दाय हाथ ीपरसु
उठावा, वे
द-सं
हता बाय सु
हावा।
व ावान गुण ान अपारा, शा -श दोउ पर
अ धकारा।
भु
वन चा रदस अ नवखं
डा, च ं
द श सु
यश ताप
चं
डा।
एक बार गणप त के
संगा, जू
झे
भृ
गक
ुु
ल कमल पतं
गा।
दां
त तोड़ रण क ह वरामा, एक द द गणप त भयो
नामा।
कातवीय अजु
न भू
पाला, सह बा जन वकराला।
सु
रगऊ ल ख जमद नी पाही, र हह ं
नज घर ठा न मन
माह ।
मली न मां
ग तब क ह लड़ाई, भयो परा जत जगत
हं
साई।
तन खल दय भई रस गाढ़ , रपु
ता मु
न स अ तसय
बाढ़ ।
ऋ षवर रहेयान लवलीना, न ह पर श घात नृ
प
क हा।
लगत श जमद नी नपाता, मन ं कु
ल बाम
वधाता।
पतु
-बध मातु
- दन सु
न भारा, भा अ त ोध मन शोक
अपारा।
कर ग ह ती ण पराु
कराला, हनन क हे
उ
त काला।
य धर पतु
तपण क हा, पतु
-बध तशोध सु
त
ली हा।
इ क स बार भू य बहीनी, छ न धरा ब ह कहँ
द नी।
जु
ग े
ता कर च रत सु
हाई, शव-धनु
भं
ग क ह रघु
राई।
गुधनु भं
जक रपु
क र जाना, तब समू
ल नाश ता ह
ठाना।
कर जो र तब राम रघु
राई, वनय क ही पु
नश
दखाई।
भी म ोण कण बलव ता, भयेश य ापर महँ
अन ता।
श व ा दे
ह सु
यश कमावा, गु ताप दग त
फरावा।
चार युग तव म हमा गाई, सु
र मु
न मनु
ज दनु
ज
समुदाई।
दे
क यप स सं
पदा भाई, तप क हा महे ग र जाई।
अब ल लीन समा ध नाथा, सकल लोक नावइ नत
माथा।
चार वण एक सम जाना, समदश भु
तु
म भगवाना।
लह ह चा र फल शरण तु
हारी, दे
व दनु
ज नर भू
प
भखारी।
जो यह पढ़ै ी परशु
चालीसा, त ह अनु
कू
ल सदा
गौरीसा।
पू
ण न स बासर वामी, बस ंदय भु
अ तरयामी।
दोहा
परशु
राम को चा च रत, मे
टत सकल अ ान।
शरण पड़े
को दे
त भु
, सदा सु
यश स मान।।
ोक
भृ
गद
ुेव कु
लंभानु
,ं
सह बा मदनम्
।
रे
णु
का नयनानं
दं
, परशु
ं
व देव धनम्
।।
-------------------
परशु
रामाची आरती