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गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम लेते ही भगवान श्री राम का स्वरूप सामने आ जाता है। स्वामी तुलसीदास जी ने ही रामचरित मानस

की रचना की थी।
तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को हुआ था। माना जाता है कि तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बॉंदा जिले के राजापुर नाम के एक छोटे
से गांव में हुआ था। तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दूबे था।

तुलसीदास जी ने गुरु बाबा नरहरिदास से भी दीक्षा प्राप्त की थी। इनके जीवन का ज्यादातर समय चित्रकू ट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ था।
तुलसीदास जी ने अपने जीवन पर कई स्थानों का भ्रमण किया था और लोगों को प्रभु श्री राम की महिमा के बारे में बताया था।
तुलसीदास जी ने अनेकों ग्रंथ और कृ तियों की रचना की थी जिनमें से रामचरित मानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान
चालीसा, बरवै रामायण इनकी प्रमुख रचनाएं मानी जाती है। तुलसीदास जी ने अपने जीवन में समाज में फै ली हुई कु रितियों के खिलाफ भी आवाज उठाई
थी। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा इन कु रितियों को दूर करने का प्रयास भी किया था।

महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सबसे बड़े लोकनायक महात्मा तुलसीदास थे। वे युग्स्रष्टा के साथ-साथ युगदृष्टा भी थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के
अनुसार:-"लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके । क्योंकि भारतीय जनता में नाना प्रकार की परस्पर विरोधिनी संस्कृ तियाँ, साधनाएँ, जातियाँ,
आचारनिष्ठा और विचार-पद्धतियाँ प्रचलित हैं। बुद्धदेव समन्वयकारी थे। गीता में समन्वय की चेष्टा है और तुलसीदास भी समन्वयकारी थे।" (हिन्दी साहित्य की
प्रवृतियाँ-डॉ.जयकिशन प्रसाद खंडेलवाल-पृ.सं.२२३) लोकनायक उस महान व्यक्ति को कहा जा सकता है जो समाज के मनोविज्ञान को समझकर प्राचीनता
का संस्कार करके नवीन दृष्टिकोण से उसमें उचित सुधार करके जातिगत संस्कृ ति का उत्थान करता हो। उस युग के संदर्भ में यह कहना सर्वथा उचित होगा
कि गोस्वामी तुलसीदासजी की वाणी की पहुँच मानव-हृदय के समस्त भावों एवं मानव-जीवन के समस्त व्यवहारों तक दिखाई देती है। उनके काव्य में युग-
बोध पूर्णरूपेण मुखरित हुआ है।

"कलि मल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सद्‍ग्रंथ।


दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहुपंथ॥"
इस प्रकार तुलसी अपनी समन्वय-साधना के कारण उस युग के लोकनायक थे। तुलसीदास में वह प्रगतिशीलता विद्यमान थी, जिससे वे परिस्थितियों के
अनुकू ल नवीन दृष्टिकोण अपना कर प्राचीनता का संस्कार कर सकें । इतनी विषमताओं में साम्य स्थापित करनेवाला पुरुष यदि लोकनायक नहीं होगा तो और
कौन होगा?
भक्ति शील और सौन्दर्य के अवतार तुलसी के राम:- तुलसी के राम सर्वशक्तिमान, सौन्दर्य की मूर्ति एवं शील के अवतार हैं। वे मर्यादापुरुषोत्तम हैं।

"जब-जब होहि धरम के हानि। बाढ़हि असुर महा अभिमानी॥


तब-तब धरि प्रभु मनुज सरीरा। हरहिं सकल सज्जन भव पीरा॥"राम का लोकसंग्रही रूप एवं धार्मिक समन्वय:- तुलसी ने तत्कालीन बौद्ध सिद्धों एवं नाथ
योगियों की चमत्कारपूर्ण साधना का खडंन करके राम के लोकसंग्रही स्वरूप की स्थापना की। राम के इस रूप में उन्होंने समन्वय की विराट चेष्टा की है।
तत्कालीन समाज में शैवों, वैष्णवों और पुष्टिमार्गी तीनों में परस्पर विरोध था। इस कठिन समय में तुलसीदास ने वैष्णवों के धर्म को इतने व्यापक रूप में
प्रस्तुत किया कि उसमें उक्त तीनों संप्रदायवादियों को एकरूपता का अनुभव हुआ। मानस में तुलसी के इस प्रयत्न की झाँकी देखी जा सकती है। राम कहते
हैं-
"शिव द्रोही मम दास कहावा। सो नर मोहि सपनेहु नहिं भावा॥
संकर विमुख भगति चह मोरि। सो नारकीय मूढ़ मति थोरी॥"

इसी प्रकार उन्होंने वैष्णवों और शाक्त के सामंजस्य को भी दर्शाया है।

"नहिं तब आदि मध्य अवसाना।अमित प्रभाव बेद नहिं जाना।


भव-भव विभव पराभव कारिनि। विश्व विमोहनि स्दबस बिहारिनि॥"

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