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Surdas Ss
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व्याख्या: इन छंदों में गोपिया उद्धव से अपने मन की व्यथा कह रही है और साथ ही उद्धव पर कटाक्ष भी कर रही है। उनके अनुसार उद्धव अत्यंत
भाग्यशाली है जो कृ ष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम में मोहित नहीं हुए। वे कृ ष्ण के प्रेम से उस तरह अछू ते हैं जैसे कमल के पत्ते जल के भीतर रहकर
भी जल से अछू ते रहते हैं। जिस तरह तेल में डु बाई हुई गगरी को जल स्पर्श नहीं कर पाता उसी तरह उद्धव पर भी कृ ष्ण के प्रेम का कोई असर नहीं
हुआ है। गोपियों के अनुसार उद्धव तो प्रेम की नदी के पास रहकर भी उस में डु बकी नहीं लगाते हैं। उनका मन तो कृ ष्ण रूपी सागर को देखकर भी
मोहित नहीं होता। लेकिन हम (गोपियां) तो भोली और अबला है जो कृ ष्ण के प्रेम में इस तरह से लिपट गई है। जैसे गुड़ से चीटियां लिपट जाती है
और वही प्राण त्याग देती है।
व्याख्या: गोपियों को लगता है कि श्री कृ ष्ण ने अब राजनीति भी पढ़ ली है अर्थात वह चतुराई से काम कर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने अपना संदेश स्वयं
ना आकर उद्धव के द्वारा भेज दिया ताकि वह गोपियों का सारा हाल जान पाए। गोपियों के अनुसार श्री कृ ष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे। लेकिन अब तो
लगता है कि उन्होंने कोई गुरु ग्रंथ ही पढ़ लिया है। इसीलिए उन्होंने बहुत बुद्धिमानी के साथ उद्धव के द्वारा उन्हें योग का संदेश भेजा है। गोपियों को
लगता है कि अब उन्हें कृ ष्ण से अपना मन फे र लेना चाहिए क्योंकि कृ ष्ण अब वैसे नहीं रहे जैसे पहले थे अर्थात कृ ष्ण अब गोपियों से प्यार नहीं करते।
क्योंकि अगर वह भी उनसे प्यार करते होते तो उद्धव को ना भेज कर स्वयं आते। गोपियों को लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है क्योंकि राज
धर्म के अनुसार तो राजा को कभी भी प्रजा को सताना नहीं चाहिए।