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सूर के पद
सूर के पद
दस
ू रों को नीति की सीख दे ने वाले कृष्ण स्वयं अनीति का आचरण करने लगे।
गोपियों ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर: दस
ू रों को नीति की सीख दे ने वाले श्रीकृष्ण स्वयं अनीति पर चलने लगे। ऐसा गोपपयों ने इसललए कहा है ।
क्योंकक श्रीकृष्ण ही उन्हें प्रेम की महत्ता बिाकर प्रेम अपनाने के ललए प्रेररि करिे थे। प्रेम की साथथकिा को पुष्ट
करिे हुए वे स्वयं भी प्रेम में मग्न रहिे थे। लेककन अब वही श्रीकृष्ण प्रेम के आदर्थ रूप को छोड़कर ज्ञान एवं
योग के संरक्षक बन गए हैं। उन्होंने गोपपयों के ललए प्रेम को छोड़कर ज्ञान और योग का संदेर् भेजा है । दस
ू रों को
नीति लसखाने वाले स्वयं अनीति के रास्िे पर चलने लगे हैं।
प्रश्न 2.गोपियों ने कृष्ण के प्रति अिने प्रेमभाव की गहनिा को ककस प्रकार प्रकट ककया
है ? सूरदास-रचचि िदों के आधार िर स्िष्ट कीजिए।
उत्तर: गोपपयों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेमभाव की गहनिा को प्रकट करने के ललए स्वयं को हाररल पक्षी के
समान बिाया है और श्री कृष्ण के प्रेम को हाररल की लकड़ी के समान बिाया है जजसे वे दृढ़िा से पकड़े हुए हैं। वे
मन, कमथ और वचन से श्री कृष्ण को अपने हृदय में धारण ककए हुए हैं। वे श्रीकृष्ण के प्रेम में उस िरह से बँधी
हुई हैं, जजस िरह गुड़ से चीटटयाँ चचपटी रहिी हैं। श्री कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम के कारण ही वे पवरह व्यथा को
सहन कर रही हैं। इस प्रकार गोपपयों ने श्री कृष्ण के प्रति अपनी प्रेम की अनन्यिा एवं गहनिा को पष्ु ट ककया
है ।
प्रश्न 3.सरू दास द्वारा रचचि िदों के आधार िर गोपियों के वाक् -चािय
ु य की पवशेषिाओं
का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: गोपपयों का श्री कृष्ण के प्रति एकतनष्ठ प्रेम है । श्रीकृष्ण के परम लमत्र उद्धव उन्हें ज्ञान और योग का
संदेर् दे िे हैं। गोपपयाँ अपने वाक् -चािुयथ से उन्हें परास्ि कर दे िी हैं। उनके वाक् -चािय
ु थ की कुछ पवर्ेषिाएँ इस
प्रकार हैं-
(i) सरलिा- गोपपयों का हृदय सरल है और वे अपने सरल हृदय से योग का खंडन करिी हुई श्रीकृष्ण के प्रति
अपना अनन्य प्रेम प्रकट करिी है ।
(ii) सहििा और स्िष्टिा- गोपपयाँ बहुि ही सहज एवं स्पष्ट र्ब्दों में उद्धव के द्वारा टदए गए योग संदेर् को
कड़वी ककड़ी िथा रोग की भांति बिािी हैं।
प्रश्न 5.गोपियों ने उद्धव के सामने िरह-िरह के िकय ददए हैं, आि अिनी कल्िना से और िकय दीजिए।
उत्तर- गोपपयाँ- ऊधौ! यटद यह योग-संदेर् इिना ही प्रभावर्ाली है िो कृष्ण इसे कुब्जा को क्यों नहीं दे ि?
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िम
ु यों करो, यह योग कुब्जा को जाकर दो। और बिाओ! जजसकी जब
ु ान पर मीठी खाँड का स्वाद चढ़ गया हो,
वह योग रूपी तनबौरी क्यों खाएगा? किर यह भी िो सोचो कक योग-मागथ कटठन है । इसमें कटठन साधना करनी
पड़िी है । हम गोपपयाँ कोमल र्रीर वाली और मधुर मन वाली हैं। हमसे यह कठोर साधना कैसे हो पाएगी। हमारे
ललए यह मागथ असंभव है ।
प्रश्न 6.उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बािें िानिे थे; गोपियों के िास ऐसी कौन-सी शजक्ि थी िो उनके वाक्चािय
ु य
में मुखररि हो उठी?
उत्तर- उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बािें जानिे थे परं िु उन्हें व्यावहाररकिा का अनुभव नहीं था। गोपपयों ने यह
जान ललया था कक उद्धव को श्रीकृष्ण से अनुराग नहीं हो सका, इसललए उन्होंने कहा था, ‘प्रीति नदी में पाउँ न
बोरयो’। उद्धव के पास इसका कोई जवाब न था। इससे गोपपयों का वाक्चािय
ु थ मख
ु ररि हो उठा। गोपपयाँ कृष्ण
के प्रति असीम, अथाह लगाव रखिी थी। जबकक उद्धव को प्रेम जैसी भावना से कोई मिलब न था। उद्धव को
इस जस्थति में चुप दे खकर उनकी वाक्चािुयथ और भी मुखर हो उठी।
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