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भारतीय समाज में धर्म की भमि

ू का
भारतीय दर्शन में धर्म की विविध संकल्पनाओं का उल्लेख मिलता है । गौतम ऋषि के अनस ु ार " यतो
अभ्यदु यनिश्रेयस सिद्धिः स धर्म।' अर्थात ् जिस काम के करने से अभ्यद ु य और निश्रेयस की सिद्धि हो वो धर्म है ।
स्मति
ृ यों में धर्म को मानव गणु ों से जोड़ा गया है । परु ाणों में धर्म का मानवीकरण किया गया है उसे ब्रह्मा का पत्र

और विष्णु का पिता स्वीकार किया गया है ।

महाजनपदाओं के समय मगध सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म में 'धम्म' का प्रचार किया। इस धम्म का सार हिंद ु
परं पराओं में पाए जाने वाले धर्म के अति निकट था ।
तर्कों
ु के आक्रमण के उपरांत औरअब्रहामिक संप्रदायों के भारत में आने से धर्म को संप्रदाय मात्र से जोड़ा जाने लगा
। इसकी व्यंजना अंग्रेज़ी के 'रिलीजन' शब्द के अर्थ मात्र तक सीमित कर दी गई। उल्लेखनीय है कि बौद्ध धर्म के
संस्थापन से पहले पष्ु यभति
ू वंश के काल में वैदिक धर्म में कई आडंबरों का प्रवेश हो गया था इस कारण भी धर्म की
व्यंजना सीमित हो गई।

धर्म की साकारात्मक भमि


ू का

धर्म के कई पंथों ने पद्धतियाँ बनकर कई शारीरिक विषमताओं के निवारण के मार्ग खोजे । वात्सायन के अनस ु ार
,"धर्म " मनसा वाच: कर्मणा है " अर्थात ् मन, वाणी और कर्म है । योग जैसी लाभकारी पद्धतियों का स्त्रोत भी
धार्मिक उपासना ही है । आयर्वे
ु द का समस्त ज्ञान, वनस्पतियों की उपासना से ग्रहण किया गया है । शंकराचार्य का
अद्वैतवाद एवं उसके बाद दर्शन की सभी शाखाएँ यहाँ तक की चारवाकों और जैनियों के शास्त्रार्थ भी धर्म के
विश्लेषण मात्र हैं।

आज कई संगठन एवं आश्रम, कई उपासना पद्धतियों से लोगों की सहायता कर रहें है । ईशा फाउं डेशन का
''इनर इंजिनियरिंग कार्यक्रम'', ''आर्ट आफ लिविंग वर्क शाप'', "विपासना'' , "सहज योग" आदि इसके कुछ प्रसिद्ध
उदाहरण है । इन सभी का
प्रमख
ु आधार धर्म मंत्रणा है ।

औपनिवेशिककाल में अंग्रेज़ों ने धर्म को बाँटो और राज करो नीति का मख् ु य माध्यम बनाया । धार्मिक संवेदनाओं
ने 1857 की स्वतंत्रता संग्राम को जन्म दिया समाज में सति और बालविवाह जैसे दष्ु कृत्य धर्म के नाम पर किए
जा रहे थे । कई समाज सध ु ारकों जैसे दयानन्द सरस्वति ने इनका कड़ा विरोध किया उन्होंने 'वेदों की ओर लौटने'
का नारा दिया । स्वामि विवेकानंद ने अपने वेदांत में धर्म की प्रसांगिकता कर्म से जोड़ी और आध्यात्मिकता को
अकर्मण्यता और अंधविश्वास से अलग करके दे खा।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के धार्मिक मल्


ू यों को अपनाया । स्वदे शी आंदोलन के समय
मदिरालयों की बंदी करने के लिए धर्म का सहारा लिया गया । तिलक जैसे गर्म दल के नेता ने भी गणपति
महोत्सव जैसे त्यौहारों को सांप्रदायिक सहिष्णत
ु ा का आधार बनाया।

धर्म की नाकारात्मक भमि


ू का

एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनस ु ार 2005 -2009 की अवधि में भारत में प्रतिवर्ष 130 मत्ृ यु धार्मिक हिंसा के कारण
होतीं है । अभी हाल ही में हुई बैंगलोर हिंसा ताजा उदाहरण है । स्त्रियों का शोषण भी धर्म के नामपर होता आया है ।
दे वदासी और मासिक धर्म से जड़ ु ी मान्यताएँ वर्तमान के कुछ ऐसे मद् ु दे हैं जहाँ महिला संगठन और धर्म आमने
सामने हैं। यही हाल पिछड़ी जनजातियों का है जिन्होंने सदियों से जाति प्रथा का दं श झेला है । स्वतंत्रता संग्राम में
इ वी रामास्वामि नायकर ने मंदिरों में पिछड़ी जनजाति के लोगों के प्रवेश से जड़
ु ा व्यापक आंदोलन छे ड़ा था।

बी बी सी की एक रिपोर्ट के अनस ु ार भारतीय चनु ावों में धर्म आज भी मतव्यवहार का दस


ू रा सबसे बड़ा घटक है ।
यदि पर्यावरण की बात करें तो धार्मिक अनष्ु ठानों का गंगा एवं अन्य नदियों को दषि
ू त करने में प्रमख
ु योगदान रहा
है । नैतिक मल्
ू यों का तेजी से पयन धर्म की असफलताओं की प्रतिछाया मात्र हैं।

धर्म में पसरे इस विरोधाभास का उल्लेख करते हुए विदे शी विचारक 'से मेरी डोल' ने कहा है कि " 'पाप' शब्द की जब
मैने व्यतु पत्ती खोजी तो पाया । एक व्यक्ति जो अपना धर्म समस्त संसार का धर्म मानता है । उसके लिए इस धर्म
का पर्ण
ू रुप में होना 'पाप' है । अर्थात ् धरम की अपर्ण
ू समझ एवं प्रचार ही इन विषमताओं का कारण है और इनका
त्याग ही इसका उपाय है ।

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