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6 आजादी के बाद का भारत VISION 2021 24907 unlocked 231126 221341
6 आजादी के बाद का भारत VISION 2021 24907 unlocked 231126 221341
2.3. काांग्रस
े प्रणािी का प्रभुत्ि ___________________________________________________________________ 26
2.3.1. काांग्रेस के प्रभुत्ि की प्रकृ वत ______________________________________________________________ 27
3.2. वनयोजन तथा ाआसके प्रभाि (Planning and its Impact) ____________________________________________ 31
3.2.1. प्रथम पांचिषीय योजना (1951-1956) _____________________________________________________ 32
3.2.2. वद्वतीय पांचिषीय योजना (1956-1961) ____________________________________________________ 32
3.2.3. तृतीय पांचिषीय योजना (1961-1966) _____________________________________________________ 33
3.2.4. 1947–65 की योजनाओं की ाईपिवधधयााँ ____________________________________________________ 33
3.2.5. पांचिषीय योजनाओं से सम्बांवधत मुख्य वििाद _________________________________________________ 34
3.2.5.1. कृ वष बनाम ाईद्योग (Agriculture vs. Industry) __________________________________________ 34
3.2.5.2. वनजी क्षेत्र बनाम सािाजवनक क्षेत्र (Public vs. Private Sector) _______________________________ 35
5.1. ाअपातकाि_____________________________________________________________________________ 52
5.1.1. ाअपातकाि की पृष्ठभूवम ________________________________________________________________ 52
8.4. नाइ ाअर्थथक नीवत, 1991 (New Economic Policy 1991) __________________________________________ 74
8.4.1. ाईदारीकरण _________________________________________________________________________ 74
8.4.2. वनजीकरण _________________________________________________________________________ 75
8.4.3. िैश्वीकरण __________________________________________________________________________ 75
द्वेष, पूिााग्रह, ाऄसमानता और वनरक्षरता से पीवड़त था। औपवनिेवशक शासन और ाईद्योगों के सक्रदयों के
ाईत्पीड़न के बाद ाअर्थथक क्षेत्र में गरीबी थी और कृ वष की दशा ाऄच्छी नहीं थी। ाआस समय भारत के
सम्मुख तात्काविक समस्याएाँ वनम्नविवखत थीं-
देशी ररयासतों का वििय एिां क्षेत्रीय और प्रशासवनक एकीकरण
विभाजन के साथ चि रहे साम्प्रदावयक दांगों पर वनयांत्रण
पाक्रकस्तान से ाअये साठ िाख शरणार्थथयों का पुनिाास
साम्प्रदावयक वगरोहों से मुसिामानों की सुरक्षा
पाक्रकस्तान के साथ युद्ध से बचाि और कम्युवनस्ट विद्रोहों पर वनयांत्रण
साथ ही कु छ मध्यकाविक काया भी थे जैसे - सांविधान का वनमााण, प्रवतवनवधमूिक जनिाद और
नागररक स्ितांत्रता पर ाअधाररत राजनीवतक व्यिस्था का वनमााण, कें द्र और राज्यों में ाईत्तरदायी और
प्रवतवनवधत्ि व्यिस्था पर ाअधाररत सरकारों की स्थापना के विए चुनािों का ाअयोजन एिां ाअमूि भूवम
सुधार के माध्यम से ाऄधा सामांती कृ वष व्यिस्था का ाईन्मूिन।
ाआसके ाऄवतररि निगरठत स्ितांत्र सरकार का दीघाकािीन कायाभार था राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन एिां
राष्ट्र का सुदढ़ृ ीकरण, राष्ट्र की रचना प्रक्रिया को ाअगे बढ़ाना, तीव्र स्ितांत्र ाअर्थथक विकास को प्रोत्साहन,
जनता की ाऄसीम दररद्रता का वनिारण और ाईसके विए वनयोजन प्रक्रिया का ाअरम्भ, शतावधदयों के
सामावजक ाऄन्याओं, ाऄसमानताओं और शोषण का ाईन्मूिन एिां ाऄांतताः एक ऐसी विदेश नीवत का
विकास जो भारत की स्ितांत्रता की रक्षा कर सके एिां शावन्त को बढ़ािा दे सके ।
ाआन चुनौवतयों के कारण काइ पयािेक्षकों ने भारत के विघटन की भविष्प्यिाणी की, विशेष रूप से जब
ाईन्होंने िोकतांत्र के विकास के विए जरूरी वस्थवतयों के न होने के बािजूद सरकार की िोकताांवत्रक
व्यिस्था को ाऄपनाया। हािाांक्रक स्ितांत्र भारत ने जब ाऄपने निवनमााण का शुभारम्भ क्रकया तो ाईसके
पास मात्र समस्याएाँ ही नहीं थी ाऄवपतु शवि भी थी। सबसे बड़ी शवि थी ाईच्च क्षमता और ाअदशा िािे
समर्थपत महान नेताओं की मजबूत पांवि। ाआस समय का नेतृत्ि भारत के सामावजक और ाअर्थथक
रूपाांतरण तथा समाज और राजनीवत के जनिादीकरण के प्रवत पूणाताः समर्थपत था। नेहरु और ाऄन्य नेता
मानते थे क्रक देश के विकास और प्रशासन के विए राष्ट्रीय ाअम सहमवत का वनमााण ाअिश्यक था। ाआसके
ाऄवतररि देश का प्राकृ वतक सांसाधन और यहााँ के पररिमी िोग तथा काांग्रस
े पाटी वजसकी जनता पर
गहरी पकड़ और व्यापक समथान था। ाआस प्रकार ाआन शवियों ने राष्ट्र वनमााण की प्रक्रिया में महत्िपूणा
िक्ष्यों को प्राप्त करने का ाऄिसर प्रदान क्रकया।
स्ितांत्रता की खुवशयााँ विभाजन की त्रासदी भी ाऄपने साथ िेकर ाअाइ थी। ाआसके पररणामस्िरूप बड़े
पैमाने पर साांप्रदावयक हहसा और विस्थापन हुाअ। ाआस प्रकार, प्रारम्भ में ही एकता और सामावजक
एकजुटता को औपवनिेवशक शासन द्वारा छोड़ी गाइ विरासत द्वारा चुनौती दी गाइ।
ाअजादी में पाक्रकस्तान भारत के साथ था। ाआस प्रकार, विरटश भारत के 'विभाजन' के कारण, दो राष्ट्र
राज्य ाऄवस्तत्ि में ाअए। पाक्रकस्तान विरटश शासन द्वारा ाईत्पन्न की गाइ साांप्रदावयक राजनीवत का
चरमोत्कषा था, वजसका मुवस्िम िीग द्वारा "वद्वराष्ट्र वसद्धाांत" के रूप में समथान क्रकया गया था।
1940 के दशक की ाईग्र पररवस्थवतयों और काइ ाऄन्य राजनीवतक घटनाओं के कारण राजनीवतक स्तर
पर काइ बदिाि ाअए। काांग्रेस और मुवस्िम िीग के बीच राजनीवतक प्रवतस्पधाा तथा विरटश सरकार की
भूवमका जैसी काइ ाऄन्य बातों के कारण पाक्रकस्तान के वनमााण की माांग मान िी गाइ।
1.2.2. सीमा रे खा
ाऄब एक बहुत ही महत्िपूणा काया सीमाओं का सीमाांकन था। मााईां टबेटन की तीन जून की योजना के
फिस्िरूप विरटश न्यायिादी सर वसररि रे डवलिफ की ाऄध्यक्षता में दो सीमा ाअयोग वनयुि क्रकए गए-
एक बांगाि और एक पांजाब के विए। ाआसका काया एक सुवनवित समय सीमा में वहन्दू तथा मुवस्िम
बहुसांख्या िािे परन्तु सांिग्न प्रदेशों ाऄथिा ग्रामों का मानवचत्रों पर वनधाारण करना था। जनसाँख्या के
साथ-साथ ाऄन्य तत्िों जैसे सांचार के साधन, नक्रदयों तथा पहाड़ों ाअक्रद को भी ध्यान में रखना था। ाआस
काया के विए 6 सप्ताह का समय वनधााररत क्रकया गया था। ाअयोग में चार ाऄन्य सदस्य भी थे िेक्रकन
काांग्रेस और मुवस्िम िीग के बीच गवतरोध था। 17 ाऄगस्त, 1947 को रे डवलिफ महोदय ने ाऄपने
वनणाय की घोषणा की।
ाआस वनणाय में धार्थमक बहुसांख्या के वसद्धाांत का पािन करने का वनणाय विया गया, वजसका ाऄथा था क्रक
ऐसे क्षेत्र जहााँ मुसिमान बहुसांख्या में हैं िहााँ पाक्रकस्तान के क्षेत्र का वनमााण क्रकया जाएगा। शेष
जनसाँख्या को भारत के साथ ही रहना था।
विया गया क्रक नए देश पाक्रकस्तान में दो क्षेत्र होंगे, पहिा पविमी पाक्रकस्तान और दूसरा पूिी
पाक्रकस्तान।
सभी मुसिमान पाक्रकस्तान में सवम्मवित होने के पक्ष में नहीं थे। सीमान्त गाांधी, खान ाऄधदुि
गफ्फार खान, जो पविमोत्तर सीमा प्राांत के वनर्थििाद नेता थे, ने ‘वद्वराष्ट्र वसद्धाांत’ का दृढ़ विरोध
क्रकया। खान ाऄधदुि गफ्फार खान ने सीवमत मतावधकारों के प्रािधान के कारण जनमत सांग्रह का
बवहष्प्कार क्रकया, ाआसविए मैदान में बची एकमात्र प्रवतयोगी, मुवस्िम िीग स्िताः विजयी हो गाइ
और ाऄांतताः पविमोत्तर सीमा प्राांत (NWFP) का पाक्रकस्तान के साथ वििय कर क्रदया गया।
विरटश भारत के मुवस्िम बहुसांख्यक दो प्राांतों, पांजाब और बांगाि के एक बड़े क्षेत्र पर गैर-मुवस्िम
ाअबादी भी बहुसांख्या में थी। ाऄांतताः यह वनणाय विया गया क्रक वजिा या यहाां तक क्रक ाआससे वनचिे
प्रशासवनक स्तर पर धार्थमक बहुसांख्या के ाअधार पर ाआन दो प्राांतों का विभाजन क्रकया जाएगा। ाआन
दो प्राांतों के विभाजन ने विभाजन को एक कटु ाऄनुभि बना क्रदया।
ाऄांवतम गांभीर बात यह थी क्रक सीमा के दोनों ओर ाअबादी का एक बड़ा वहस्सा ऐसा था वजसे
"ाऄलपसांख्यक" कहा जा सकता था। जो क्षेत्र ाऄब पाक्रकस्तान में हैं िहााँ िाखों की सांख्या में वहन्दू
और वसख ाअबादी थी। ठीक ाआसी तरह पांजाब और बांगाि के भारतीय भू-भाग में भी िाखों की
सांख्या में मुसिमान ाअबादी थी। सक्रदयों से ाअबाद रहे ाईसी जमीन पर ये विदेशी बन गए थे। दोनों
तरफ के ाऄलपसांख्यक भय के िातािरण में रहते थे और विभाजन के दौरान िू र हहसा से ाऄपने
जीिन की रक्षा के विए ाआन्होंने ाऄपने घरों को छोड़ क्रदया था।
न्यायमूर्थत रे डवलिफ को भारत के बारे में कोाइ पूिा ज्ञान नहीं था।
काया के विए ाईनके पास कोाइ विशेष ज्ञान भी नहीं था।
ाईनके पास सिाहकार और विशेषज्ञों का ाऄभाि था।
ाआस वनणाय के विए 6 सप्ताह की समय सीमा तय की गाइ थी।
िषा 1947 में, बड़े पैमाने पर एक जगह की ाअबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुाइ थी। ाअबादी का
यह स्थानान्तरण ाअकवस्मक, ाऄवनयोवजत और त्रासदी से भरा था। मानि ाआवतहास के ाऄब तक ज्ञात
सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था।
सीमा के दोनों ओर िू र हत्याएां, ाऄत्याचार और बिात्कार हुए।
िाहौर, ाऄमृतसर और किकत्ता (ाऄब कोिकाता) जैसे शहर "साांप्रदावयक ाऄखाड़े" में बदि गए।
काइ घटनाएाँ ऐसी भी हुईं वजनमें 'पररिार के सम्मान' को सांरवक्षत रखने के विए मवहिाओं को
ाऄपने ही पररिार के सदस्यों द्वारा मार क्रदया गया था।
मवहिाओं को जबरन वििाह करना पड़ा और धमा पररितान करना पड़ा।
वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ सरकारी ाऄवधकाररयों के टेबि, कु र्थसयों और यहााँ तक क्रक पुविस के
िाद्ययांत्रों तक का बांटिारा हुाअ था।
भारत सरकार पाक्रकस्तान से ाअये िगभग साठ िाख शरणार्थथयों के पुनिाास और ाईन्हें राहत प्रदान
करने में सफि रही थी।
शरणार्थथयों के देख-रे ख के विए राहत और पुनिाास विभाग की स्थापना की गाइ थी।
बम्बाइ के कोििाड़ा और कु रुक्षेत्र में शरणाथी वशविर स्थावपत क्रकए गए थे।
भारत सरकार द्वारा यह वनदेवशत क्रकया गया था क्रक पविम पांजाब से ाअने िािे वहन्दू और वसख
शरणार्थथयों को कु रुक्षेत्र के शरणाथी वशविर में रखा जाए। एक खुिे मैदान पर तम्बुओं का विशाि
शहर स्थावपत हो गया था।
कु रुक्षेत्र पविम पांजाब से ाअने िािे शरणार्थथयों के विए स्थावपत िगभग 200 वशविरों में से सबसे
बड़ा था। हसध क्षेत्र से ाअने िािे शरणार्थथयों के विए मुब
ां ाइ में पाांच शरणाथी वशविर बनाए गए थे।
कु छ शरणाथी सत्ता-हस्ताांतरण की तारीख से पहिे ही पहुाँच गए थे; ाआनमें मुख्य रूप से िे व्यिसायी थे
वजन्होंने ाऄपनी सांपवत्तयों को पहिे ही बेच क्रदया और क्रफर स्थानाांतररत हो गए। हािाांक्रक, एक विशाि
जनसाँख्या 15 ाऄगस्त 1947 के बाद ाअाइ, वजनके शरीर पर बहुत ही कम कपड़े थे। ये िो क्रकसान थे जो
'ाअवखरी पि तक िहााँ रुके रहे और यह चाहते थे क्रक यक्रद ाईन्हें सम्मानजनक जीिन का ाअश्वासन क्रदया
जाए तो िे पाक्रकस्तान में रह सकते हैं'। िेक्रकन, वसतांबर और ाऄलटू बर में जब पांजाब में हहसा बहुत बढ़
गाइ तो ाईन्हें ाऄपना यह विचार त्यागना पड़ा। हहदू और वसख िोग सड़क, रे ि, समुद्र मागा द्वारा या
पैदि ही भारत चिे गए।
शरणार्थथयों को स्थायी घर और ाईत्पादक कायों की ाअिश्यकता थी। शरणार्थथयों को स्थायी रूप से
रहने के विए भूवम की ाअिश्यकता थी। भारत से पाक्रकस्तान की तरफ भी एक बड़ा प्रिास हुाअ। ाआस
प्रकार, पांजाब के पूिी वहस्से में मुसिमानों द्वारा खािी की गाइ भूवम पर शरणार्थथयों को पुनस्थाावपत
करने का प्रयास क्रकया गया। यक्रद ाआवतहास में जनसांख्या का स्थानाांतरण 'सबसे बड़ा जन प्रिास' रहा है
तो ाऄब 'दुवनया में सबसे बड़ा पुनिाास ाऄवभयान' प्रारम्भ हुाअ था।
क्रकया गया। ाआन दािों को खुिी सभा में सत्यावपत क्रकया गया, वजसमें एक ही गाांि के ाऄन्य प्रिासी भी
शावमि होते थे। चूांक्रक प्रत्येक दािे को सरकारी ाऄवधकारी द्वारा पढ़ा गया था ाऄताः ाऄसेंबिी ने ाआसे
मांजरू ी दे दी या सांशोवधत क्रकया या ाऄस्िीकार कर क्रदया।
ाऄनुमानताः काइ शरणार्थथयों द्वारा प्रस्तुत दािों को पहिी ही नज़र में ाऄवतशयोविपूणा पाया गया।
हािाांक्रक, प्रत्येक झूठे दािों के विए ाईन्हें दवडडत क्रकया गया, कभी ाईनको ाअिांरटत भूवम को कम कर
क्रदया गया तो कभी ाईन्हें कारािास के रूप में भी दवडडत क्रकया गया। ाआसने वनिारक के रूप में काया
क्रकया; क्रफर भी, ाआस प्रक्रिया के साथ वनकटता से जुड़े एक ाऄवधकारी ने ाऄनुमान िगाया क्रक ाआस तरह के
कु ि मामिों में िगभग 25 प्रवतशत तक की िृवद्ध हुाइ थी। दािों को ाआकट्ठा करने, एकत्र करने, सत्यावपत
करने और काया करने के विए जुिुांडुर (ाअधुवनक जािांधर) में एक पुनिाास सवचिािय स्थावपत क्रकया
गया था।
भारतीय वसविि सेिा के सरदार तरिोक हसह ने पुनिाास क्रियाओं का नेतृत्ि क्रकया। ये पुनिाास विभाग
के महावनदेशक थे। िांदन स्कू ि ऑफ ाआकोनॉवमलस से स्नातक, तरिोक हसह ने ाऄपने ाऄकादवमक
प्रवशक्षण के ाऄनुभि को ाऄच्छी तरह से प्रयोग क्रकया। ाआनके निीन विचारों ने शरणार्थथयों के पुनिाास को
सफि बनाया।
ाआस प्रकार पुनिाास के काया को पूरा करने में समय िगा और 1951 तक, पविम पाक्रकस्तान के
शरणार्थथयों के पुनिाास की समस्या को पूरी तरह से सुिझा विया गया था।
पूिी बांगाि से ाअने िािे शरणार्थथयों के पुनिाास की समस्या ाआसविए ज्यादा गांभीर थी लयोंक्रक िहााँ से
वहन्दुओं का ाअना काइ िषों तक चिता रहा।
विभाजन के ाआस सबसे बुरे स्िप्न से वनपटने के बाद, भारतीय नेतृत्ि ने भारत को एकीकृ त करने और
ाऄपने ाअांतररक मामिों की देखभाि करने का प्रयास क्रकया।
1947 के बाद क्रकए जाने िािे राष्ट्रीय एकीकरण की व्यापक रणनीवत में शावमि थे:
क्षेत्रीय एकीकरण,
राजनीवतक और सांस्थागत सांसाधनों का सांघटन
ाअर्थथक विकास और
सामावजक न्याय को बढ़ािा देने िािी नीवतयों को ाऄपनाना, ाऄसमानताओं को समाप्त कर ाऄिसरों
की समता प्रदान करना।
विरटश भारत दो वहस्सों में बांटा था। एक वहस्से में विरटश प्रभुत्ि िािे भारतीय प्राांत थे तो दूसरे वहस्से
में देशी ररयासतें। विरटश प्रभुत्ि िािे भारतीय प्राांतों पर विरटश सरकार का सीधा वनयांत्रण था। दूसरी
तरफ छोटे-बड़े ाअकार के कु छ और राज्य थे वजन्हें ‘देशी ररयासतें’ या ‘रजिाड़ा’ कहा जाता था। देशी
ररयासतों पर राजाओं का शासन था। ाआन राजाओं ने विरटश राज की ाऄधीनता या कहें क्रक सिोच्च सत्ता
स्िीकार कर रखी थी और ाआसके ाऄांतगात िे ाऄपने राज्य के घरे िू मामिों का शासन चिाते थे।
विभाजन के बाद भारत एिां देशी ररयासतों को एक प्रशासन के ाऄांतगात िाना प्रायाः राजनीवतक नेतृत्ि
के सामने सबसे महत्िपूणा कायाभार था। औपवनिेवशक भारत में, िगभग ाआसका 40% भू-भाग छोटे
और बड़े ऐसे 565 ररयासतों द्वारा वघरा था वजस पर शासन करने िािे राजाओं को ‘विरटश
पारामााईां टसी’ (विरटश सिोच्चता) के ाऄांतगात विवभन्न प्रकार की स्िायत्तता प्राप्त थी। विरटश शासन ाईन्हें
ाऄपनी जनता से बचाने के साथ-साथ बाहरी ाअिमणों से तब तक बचाती थी जब तक िे ाऄांग्रेजों की
बात मानते रहे।
जैसे ही विरटश सरकार भारत से िापस जाने के विए तैयार होने िगी, िैसे ही 565 ररयासतों में से
काआयों ने ाअजादी के सपने देखने शुरू कर क्रदए। ाईन्होंने यह दािा क्रकया क्रक ाआन दो निजात राज्यों
ाऄथाात भारत और पाक्रकस्तान को पारामााईां टसी हस्ताांतररत नहीं क्रकया जा सकता। 20 फरिरी, 1947
को तत्कािीन विरटश प्रधानमांत्री लिीमेंट एटिी की ाआस घोषणा ने ाईनकी महत्िाकाांक्षाओं को और बढ़ा
क्रदया क्रक "सम्राट की सरकार पारामााईां टसी के ाऄांतगात ाऄपनी शवियों और कताव्यों को विरटश भारत की
क्रकसी सरकार को सौंपने का ाआरादा नहीं रखती है"।
राष्ट्रिादी ाअन्दोिन िम्बे समय से यह मानता ाअ रहा था क्रक राजनीवतक सत्ता पर ाऄवधकार ाईसके
राजा का नहीं बवलक जनता का होता है और ररयासतों की जनता भी भारत राष्ट्र का ाऄवभन्न ाऄांग है।
ाऄताः राष्ट्रिादी नेताओं ने सभी ररयासतों के ाअजादी के ाआन दािों को ठु करा क्रदया और कहा क्रक देशी
ररयासतों के सामने ाअज़ादी का कोाइ विकलप नहीं है – ाईनके पास मात्र यही विकलप है क्रक ाऄपनी
क्षेत्रीय वस्थवत की वनकटता और ाआसकी जनता की ाआच्छाओं के ाऄनुरूप िे या तो भारत में शावमि हो
सकते हैं या पाक्रकस्तान में।
1.3.2. कश्मीर
1947 से पहिे कश्मीर में राजशाही थी। ाआसके वहन्दू शासक हरर हसह भारत में शावमि नहीं होना
चाहते थे। ाईन्होंने ाऄपने स्ितांत्र राज्य के विए भारत और पाक्रकस्तान के साथ समझौता करने की
कोवशश की। पाक्रकस्तानी नेता सोचते थे क्रक कश्मीर,
पाक्रकस्तान से सम्बद्ध है लयोंक्रक राज्य की ज्यादातर
ाअबादी मुवस्िम है। यहााँ के िोग वस्थवत को ाऄिग
नजररये से देखते थे। िे ाऄपने को कश्मीरी सबसे पहिे और
बाकी कु छ बाद में मानते थे। राज्य में नेशनि काांफ्ेंस के
शेख ाऄधदुलिा के नेतृत्ि में जन ाअन्दोिन चिा। शेख
ाऄधदुलिा चाहते थे क्रक महाराजा पद छोड़ें परन्तु िे ाआसके
पाक्रकस्तान में शावमि होने के वखिाफ थे। नेशनि काांफ्ेंस
एक धमावनरपेक्ष सांगठन था और ाआसका काांग्रेस के साथ
काफी समय तक गठबांधन रहा। ाऄधदुलिा ने डोगरा िांश
को सत्ता छोड़कर ाआसे िोगों को सौंपने के विए कहा।
महाराजा हरर हसह 15 ाऄगस्त को हरर हसह ने दोनों देशों
के साथ यथावस्थवत समझौते (standstill agreement) की पेशकश की वजसमें िोगों और िस्तुओं के
स्ितांत्र ाअिागमन की भी ाऄनुमवत शावमि थी। पाक्रकस्तान ने ाआस समझौते पर हस्ताक्षर कर क्रदए
िेक्रकन भारत ने ाआस पर हस्ताक्षर नहीं क्रकया और प्रतीक्षा करना ाईवचत समझा। पाक्रकस्तान ाऄधीर हो
गया और यथावस्थवत समझौते का ाईलिांघन करना शुरू कर क्रदया। तब कश्मीर के प्रधानमांत्री मेहर चांद
महाजन ने विरटश सरकार से ाअर्थथक नाके बांदी और यथावस्थवत समझौते का ाईलिांघन करने की
वशकायत की। महाराजा की सेनाओं द्वारा पुांछ की मुवस्िम ाअबादी के वखिाफ ाऄत्याचारों की ररपोटा ने
शासक के विरूद्ध नागररक ाऄशाांवत को और बढ़ािा क्रदया।
22 ाऄलटू बर को ाअवधकाररक रूप से पाक्रकस्तानी सैवनक ाऄफसरों के नेतृत्ि में काइ पठान कवबिााइयों ने
कश्मीर की सीमा का ाऄवतिमण क्रकया और तेजी से कश्मीर की राजधानी िीनगर की तरफ बढ़ने िगे।
महाराज की ाऄकु शि सेना ाअिमणकारी सेनाओं के सामने कहीं ठहर नहीं सकी। घबराकर 24 ाऄलटू बर
को महाराज ने भारत से सैवनक सहायता की ाऄपीि की। गिनार जनरि मााईन्टबेटन ने यह रे खाांक्रकत
क्रकया क्रक ाऄांतरााष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत ाऄपनी सेनाएां कश्मीर में तभी भेज सकता है जबक्रक राज्य
का औपचाररक रूप से भारत में वििय हो चुका हो। िी. पी. मेनन कश्मीर गए और 26 ाऄलटू बर को
था, ाऄताः भारत चाहता था क्रक सांयुि राष्ट्र ाआसके ाईत्तरी वहस्सों को खािी करिाने में मदद करे , जो
ाआसके ाऄनुसार पाक्रकस्तान समथाक गुट के गैर-क़ानूनी कधज़े में चिा गया था।”
सुरक्षा पररषद में ाआस मुद्दे को 'कश्मीर प्रश्न' से 'भारत-पाक्रकस्तान वििाद’ में बदि क्रदया गया। भारत
ाऄपना पक्ष रखने में पाक्रकस्तान की तुिना में कम प्रभािशािी रहा। जफरुलिा खान एक जन्मजात ििा
थे। ये सांयुि राष्ट्र सांघ के प्रवतवनवधयों को यह भरोसा क्रदिाने में कामयाब रहे क्रक कश्मीर पर हमिा
ाईत्तर भारत में हुए साम्प्रदावयक हमिों का नतीजा था। यह मुसिमानों द्वारा ाऄपने तकिीफों के प्रवत
स्िाभाविक प्रवतक्रिया थी।
नेहरु कश्मीर मुद्दे को सुरक्षा पररषद् में िे जाने के ाऄपने वनणाय पर बाद में बहुत पछताए लयोंक्रक सुरक्षा
पररषद पाक्रकस्तान के ाऄवतिमण पर ध्यान देने के बजाए विटेन और ाऄमेररका के वनदेशों पर पाक्रकस्तान
की तरफदारी करने िगा।
21 ाऄप्रैि 1948 को सुरक्षा पररषद के सांकलप 47 ने भारत और पाक्रकस्तान के बीच युद्ध विराम िागू
क्रकया। 31 क्रदसम्बर 1948 को युद्ध विराम स्िीकार कर विया गया जो ाऄब तक िागू है। 1951 में
राज्य के विए एक सांविधान तैयार करने के ाईद्देश्य से सांविधान सभा की बैठक िीनगर में हुाइ। ाआसने
1954 में वििय को मांजरू ी दे दी।
1951 में सांयुि राष्ट्र ने एक प्रस्ताि पास क्रकया वजसमें पाक ाऄवधकृ त कश्मीर (POK) से पाक्रकस्तान की
सेनाओं को िापस हटा विए जाने के बाद सांयुि राष्ट्र की देखरे ख में एक जनमत सांग्रह का प्राविधान था।
यह प्रस्ताि भी विफि हो गया लयोंक्रक पाक्रकस्तान ने ाअज के तथाकवथत ाअज़ाद कश्मीर से ाऄपनी
सेनाओं को िापस बुिाने से ाआनकार कर क्रदया।
1.3.3. है द राबाद
पूणत
ा या भारतीय क्षेत्र से वघरा हुाअ, हैदराबाद देशी ररयासतों में से सबसे बड़ा राज्य था। ाआसके शासक,
"वनजाम" ने एक स्ितांत्र वस्थवत का दािा क्रकया। िह चाहता था क्रक हैदराबाद ररयासत को ाअज़ाद
ररयासत का दजाा क्रदया जाए। निांबर 1947 में वनजाम ने भारत के साथ यथावस्थवत बहाि रखने का
एक समझौता क्रकया। यह समझौता एक साि के विए था। पटेि ाईस पर कोाइ वनणाय थोपने की
जलदबाजी में वबिकु ि नहीं थे लयोंक्रक मााईां टबेटन वनजाम के साथ क्रकसी समझौते की मध्यस्थता करने
के विए ाईत्सुक बैठा हुाअ था।
1.3.4. मवणपु र
ाअज़ादी के कु छ क्रदन पहिे मवणपुर के महाराजा बोधचांद्र हसह ने भारत सरकार के साथ ाआस ाअश्वासन
पर ाऄपनी ररयासत के वििय के एक सहमवत पत्र पर हस्ताक्षर क्रकया था क्रक मवणपुर की ाअांतररक
स्िायत्तता बनाए रखी जाएगी।
जनमत के दबाि में, महाराजा ने जून 1948 में मवणपुर में चुनाि ाअयोवजत क्रकए और ाआस चुनाि के
फिस्िरूप ररयासत में सांिैधावनक राजतांत्र कायम हुाअ। मवणपुर भारत का पहिा भाग है जहााँ
सािाभौवमक ियस्क मतावधकार के वसद्धाांत को ाऄपनाकर चुनाि सम्पन्न हुए थे।
मवणपुर के भारत में वििय के प्रश्न पर कु छ गहरे मतभेद थे। मवणपुर की काांग्रेस चाहती थी क्रक ाआस
ररयासत को भारत में वमिा क्रदया जाए जबक्रक ाऄन्य राजनीवतक दिों ने ाआस विचार का विरोध क्रकया।
मवणपुर की िोकवप्रय वनिाावचत विधान सभा से परामशा क्रकए वबना, भारत सरकार ने वसतांबर 1949
में महाराज पर दबाि डािा क्रक िे भारतीय सांघ में शावमि होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दें।
मवणपुर में ाआस कदम को िेकर िोगों में िोध और नाराजगी के भाि पैदा हुए।
देशी ररयासतों का भारतीय राष्ट्र में पूणा वििय का दूसरा और ाऄवधक करठन चरण क्रदसम्बर 1947 में
प्रारम्भ हुाअ। पटेि ने काफी शीघ्रता से सक्रिय होकर एक िषा के ाऄन्दर ही ाआस काया को भी पूरा कर
विया। छोटी ररयासतों को या तो पड़ोसी राज्यों के साथ वमिा क्रदया गया या क्रफर ाईन्हें ाअपस में
वमिाकर कें द्र शावसत प्रदेशों में बदि क्रदया गया। बहुत बड़ी सांख्या में ररयासतों को पाांच नए समूहों में
वमिाया गया। ये थे: मध्य भारत, राजस्थान, परटयािा और पूिी पांजाब राज्य सांघ [PEPSU], सौराष्ट्र
एिां त्रािणकोर-कोचीन। मैसूर, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर ाऄपने मूि रूप में ही सांघ के ाऄिग राज्य
बने रहे।
ाऄपनी शवि और सत्ता का ाअत्मसमपाण करने के बदिे प्रमुख ररयासत के शासकों को कर मुि प्रीिी
पसा ाऄनांत काि के विए दे दी गाइ। शासकों को गद्दी पर ाईत्तरावधकार के साथ-साथ कु छ ाऄन्य
विशेषावधकारों जैसे ाऄपनी पदिी, ाऄपना वनजी झांडा तथा विशेष समारोहों पर बन्दूक सिामी िेने का
ाऄवधकार क्रदया गया था।
देशी ररयासतों के एकीकरण के बाद भी दो मुख्य समस्याएां ाऄब भी विद्यमान थीं। ये थीं- भारत के पूिी
और पविमी समुद्र तटों पर पाांवडचेरी और गोिा के ाअस-पास फै िी हुाइ फ्ाांसीसी और पुतग ा ािी
स्िावमत्ि िािी बवस्तयााँ। एक िांबी सांवध िाताा के बाद पाांवडचेरी और ाऄन्य फ्ाांसीसी ाअवधपत्यों को
1954 में भारत को सौंप क्रदया गया।
राष्ट्र के ाऄन्दर जनजातीय िोगों का एकीकरण और ाईन्हें मुख्य धारा में िाने का काया काफी करठन था,
मुख्य रूप से ाआसविए लयोंक्रक जनजातीय िोग देश के विवभन्न भागों में ाऄिग-ाऄिग पररवस्थवतयों में रह
रहे थे, िे ाऄिग- ाऄिग भाषाएाँ बोिते थे और ाईनकी ाऄपनी-ाऄपनी सांस्कृ वतयाां थीं।
जनजातीय ाअबादी पूरे भारत में फै िी हुाइ थी, परन्तु ाआनका सबसे ज्यादा सांकेंद्रण मध्य प्रदेश,
वबहार, ाईड़ीसा, पूिोत्तर भारत, पविम बांगाि, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में है। पूिोत्तर
राज्यों को छोड़कर बाकी सभी जगह ये वजन राज्यों में रह रहे थे िहााँ िे ाऄलपसांख्यक थे। ज्यादातर
पहाड़ों और जांगिों में रहने िािी ये जनजावतयााँ औपवनिेवशक काि में ाऄपेक्षाकृ त ाऄिगाि में
जीिन व्यतीत करती थीं। ाईनकी परां परा, ाअदतें, सांस्कृ वत और जीिन शैिी ाऄपने गैर-जनजातीय
पड़ोवसयों की तुिना में वबिकु ि ाऄिग थी।
देश के ाऄवधकाांश वहस्सों में औपवनिेवशक काि के दौरान जनजातीय िोग एक मूिभूत पररितान
की प्रक्रिया से गुजर रहे थे। ाईनके समाज में बाज़ार की शवियों के प्रिेश के कारण ाईनका ाअपेवक्षक
ाऄिगाि समाप्त हो रहा था और ाईन्हें विरटश और देशी ररयासतों के प्रशासन का वहस्सा बनाया जा
रहा था। बड़ी सांख्या में महाजन, व्यापारी, मािगुजार और काइ प्रकार के वबचौविए एिां छोटे
ाऄवधकारी जनजातीय क्षेत्रों का ाऄवतिमण करने िगे। ाआन िोगों ने जनजावतयों को औपवनिेवशक
ाऄथाव्यिस्था के चि के ाऄन्दर खींचकर ाईनके पारां पररक जीिन शैिी का ाऄांत कर क्रदया। िे
ाऄवधकावधक क़ज़ा के वशकार होते चिे गए और ाऄपनी जमीन बाहरी िोगों के हाथों खोते चिे गए।
भारत के काइ वहस्सों में मैदानों से ाअने िािे क्रकसानों की जमीन की भूख ने जांगिों को नि कर
क्रदया वजससे जनजावतयों की पारां पररक जीविका के साधन वछन गए। जांगि को सुरवक्षत रखकर
ाईसका व्यापाररक दोहन करने के विए औपवनिेवशक शासन विशाि जांगि क्षेत्रों को िन कानून के
तहत िे ाअया वजसमें झूम खेती पर रोक िगााइ गाइ थी और जनजावतयों द्वारा जांगि एिां जांगि
ाईत्पादों के ाईपभोग पर कड़े प्रवतबन्ध िगाए गए थे।
भूवम के नुकसान, क़ज़ा का बोझ, वबचौवियों के शोषण, िन तथा िन ाईत्पाद तक पहुाँच से रोक तथा
पुविस, िन ाऄवधकारी और ाऄन्य सरकारी ाऄवधकाररयों द्वारा शोषण एिां ाईत्पीड़न ने ाईन्नीसिीं एिां
बीसिीं शताधदी में ाऄनेक जनजातीय विद्रोहों को जन्म क्रदया। ाईदाहरणस्िरुप- सांथाि और मुांडा
विद्रोह।
जिाहरिाि नेहरू के नेतृत्ि में भारत सरकार ने जनजातीय िोगों को भारतीय समाज में एकीकृ त
करने की नीवत का पक्ष विया। सरकार ाईनकी विवशि सांस्कृ वत और पहचान को ाऄक्षुडण रखते हुए
भी ाईन्हें भारत का ाऄवभन्न ाऄांग बना िेने की समथाक थी।
जनजावतयों के प्रवत सरकार के दृविकोण को ाअकार देने में प्रधानमांत्री नेहरू का मुख्य रूप से
प्रभाि रहा। नेहरु जनजातीय िोगों के बहुमुखी सामावजक और ाअर्थथक विकास के पक्षधर थे।
विशेष रूप से सांचार, ाअधुवनक स्िास्थ्य सुविधाओं, कृ वष और वशक्षा के क्षेत्र पर ाईनका विशेष
ध्यान था।
ाऄनुच्छेद 46 के ाऄांतगात - राज्य को यह वनदेश क्रदया गया है क्रक “राज्य जनजातीय िोगों के
शैक्षवणक और ाअर्थथक विकास को प्रोत्साहन देने तथा सभी प्रकार के शोषण एिां सामावजक ाऄन्याय
से ाईनकी रक्षा करने के विए विशेष कानूनों का प्राविधान करे गा।
सांिैधावनक सुरक्षा ाईपायों और कें द्र और राज्य सरकारों के प्रयासों के बािजूद दुभााग्य से ाऄभी भी तक
जनजातीय िोगों के विकास और कलयाण की गवत काफी धीमी, यहााँ तक क्रक ाऄसांतोषजनक रही है।
पूिोत्तर भारत को छोड़कर शेष सभी जगह के जनजातीय िोग ाऄभी भी गरीब, कजा से िदे हुए,
भूवमहीन और प्रायाः बेरोजगार रहते हैं। काइ बार कें द्र और राज्य सरकार की जनजातीय नीवतयों में भी
काफी ाऄांतर देखा जा सकता है लयोंक्रक राज्य सरकारें काइ मामिों में जनजातीय वहतों के प्रवत बहुत
ाईदासीन पााइ गईं हैं। विशेष रूप से कें द्र और यहााँ तक क्रक राज्य सरकारों द्वारा स्ियां घोवषत
सकारात्मक नीवतयों और कायािमों को प्रशासवनक रूप से िागू करने में ाऄवनयवमतता बरती गाइ है।
प्रायाः जनजातीय कलयाण के विए ाअिांरटत धनरावश को या तो खचा ही नहीं क्रकया जाता या तो
खचा का कोाइ िक्ष्य ही पूरा नहीं होता। जनजातीय ाईत्थान के विए बनने िािी योजनाओं को गित
या ाऄवनयोवजत तरीके से िागू क्रकया जाता है। जनजातीय वहतों की एक प्रमुख रक्षक ‘जनजातीय
यक्रद समग्र रूप से देखा जाए तो 1947 के बाद से जनजातीय क्षेत्रों में कु छ सकारात्मक विकास भी हुए
हैं। जनजातीय ाऄवधकारों और वहतों की रक्षा के विए िैधावनक प्राविधान, जनजातीय कलयाण विभाग
की गवतविवधयों, पांचायती राज, साक्षरता और वशक्षा के प्रसार, ाईच्च वशक्षा के सांस्थानों और सरकारी
नौकररयों और बार-बार होने िािे चुनािों ने जनजातीय िोगों में चेतना जागृत की है। ाईनका
ाअत्मविश्वास बढ़ा है और कम से कम ाईनके ाऄन्दर विकवसत मध्यम और बुवद्धजीिी िगों की राजनीवतक
भागीदारी पहिे से काफी ाऄवधक हो गाइ है। ाआन सांिैधावनक राजनीवतक प्रक्रियाओं के ाऄन्दर िे ाऄपने
विए ज्यादा से ज्यादा सक्रिय राजनीवतक भूवमका की माांग करने िगे हैं।
विवभन्न राजनीवतक ढााँचे और सांस्थाएां ाऄवधक से ाऄवधक प्रवतवनवधत्ि प्राप्त करते जा रहे हैं। ाआन सब से
ाऄवधक िे राष्ट्रीय ाअर्थथक विकास में ाऄपने विए और ाऄवधक वहस्सा माांग रहे हैं। विकास के ाऄभाि और
कलयाण योजनाओं की ाऄसफिताओं से वनराश और सामावजक-ाअर्थथक शोषण के जारी रहने से क्षुधध
होकर देश के विवभन्न वहस्सों में जनजातीय िोग िगातार सांगरठत होकर ाईग्र विरोध ाअन्दोिनों में
सवम्मवित हो रहे हैं। ाआनमें से कु छ विरोध ाअन्दोिनों में हहसा का रास्ता ाऄपनाया गया है वजसको
सरकार द्वारा कठोर कारा िााइ कर समाप्त करने का प्रयास क्रकया जा रहा है।
स्ितांत्रता के बाद के पहिे 20 िषों में सबसे बड़ा विभाजनकारी मुद्दा भाषा की समस्या थी। िोगों को
ाऄपनी भाषा से प्रेम होता है और ाईनकी सांस्कृ वत भी भाषा से जुड़ी होती है पररणामस्िरूप प्रत्येक
समाज में यह एक मजबूत शवि सावबत हुाइ है।
भाषााइ विविधता के ाअधार पर ाईत्पन्न राष्ट्रीय एकता के सांकटों ने दो प्रमुख चुनौवतयााँ प्रस्तुत कीं:
सांघ की राजभाषा पर वििाद
भाषााइ ाअधारों पर राज्यों का पुनगाठन
भाषा के मुद्दे पर ाअन्दोिन ने हहदी विरोध का स्िरुप ाऄपनाकर एक विकराि रूप धारण कर
विया और देश के हहदी भाषी और गैर-हहदी भाषी प्रदेशों के बीच टकराि की वस्थवत पैदा होने
िगी। यह स्पि कर देना ाईवचत है क्रक यह वििाद एक राष्ट्रीय भाषा के चुनाि को िेकर नहीं था
लयोंक्रक यह विचार क्रक भारतीय राष्ट्रीय ाऄवस्मता के विए एक राष्ट्रीय भाषा ाऄवनिाया है, बड़े पैमाने
पर देश के धमावनरपेक्ष नेतृत्ि द्वारा बहुमत से खाररज कर क्रदया गया था।
राष्ट्रीय भाषा के मुद्दे का समाधान तो सांविधान वनमााताओं द्वारा सभी प्रमुख भाषाओं को ‘भारत
की भाषाएां’ ाऄथिा भारत की राष्ट्रीय भाषाएाँ मानकर सुिझा विया गया।
गाांधी जी ाआस बात से सहमत थे क्रक स्ितांत्र भारत में ाअम जनता की प्रवतभा और ाईनकी सांस्कृ वत
कभी भी एक विदेशी भाषा के माध्यम से नहीं व्यि हो सकती।
ाआस ाऄवधवनयम ने 1959 में नेहरू द्वारा क्रदए गए ाअश्वासन को स्पि एिां ठोस कानूनी स्िरुप प्रदान
क्रकया। ाआसमें प्राविधान क्रकया गया था क्रक हहदी के ाऄवतररि सहायक भाषा के रूप में कें द्र सरकार
के काम-काज एिां कें द्र तथा गैर-वहन्दी भाषी राज्यों के बीच सांिाद के विए ाऄांग्रेजी तब तक प्रयोग
में िााइ जायेगी जब तक क्रक गैर-हहदी राज्य ाआसे चाहें।
ाआस प्रकार हमेशा के विए वद्वभाषााइ नीवत स्िीकार कर िी गाइ।
सांघ िोक सेिा ाअयोग की परीक्षाएां वहन्दी और ाऄांग्रजे ी के ाऄवतररि क्षेत्रीय भाषाओं में सांगरठत की
जाएांगी परन्तु यह शता होगी क्रक ाईम्मीदिारों को हहदी या ाऄांग्रज
े ी का ाऄवतररि ज्ञान होना चावहए।
राज्यों को वत्रभाषा फामूािा िागू करना था वजसके तहत गैर-हहदी राज्यों में मातृभाषा, वहन्दी और
ाऄांग्रेजी ाऄथिा कोाइ ाऄन्य राष्ट्रीय भाषा स्कू िों में पढाया जाना था और वहन्दी भाषी प्रदेशों में गैर-
वहन्दी भाषा, विशेषकर दवक्षण भारतीय भाषा की वशक्षा ाऄवनिाया की जानी थी।
भारत सरकार ने भाषा के प्रश्न पर जुिााइ 1967 में एक और महत्िपूणा कदम ाईठाया। 1966 की
वशक्षा ाअयोग की ररपोटा के ाअधार पर यह घोवषत क्रकया गया क्रक ाऄांतताः विश्वविद्यािय स्तर पर
सभी विषयों के विए वशक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओं को बनाया जाएगा और ाआस रूपाांतरण
के विए समय सीमा प्रत्येक विश्वविद्यािय ाऄपनी सुविधानुसार तय करे गा।
स्ितांत्रता के पिात् ही देश के सामने भाषा के ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन का प्रश्न खड़ा हो गया। यह
राष्ट्र की एकता और ाईसके एकीकरण का एक महत्िपूणा पक्ष था। विरटश शासन द्वारा भारत का जो
प्रशासवनक विभाजन क्रकया गया था, िह भाषााइ या साांस्कृ वतक समानता के ाअधार पर नहीं िरन्
साम्रावज्यक विस्तार ि ाईपवनिेशिादी ाअिश्यकताओं के पररप्रेक्ष्य में क्रकया गया था। ाआन्होंने भारतीय
प्रदेश की जो सीमायें बनााइ थीं िह ाऄस्िाभाविक और ाऄतार्दकक थी। ाआसविए ाऄवधकतर राज्य बहुभाषी
एिां बहुसांस्कृ वत युि थे।
भाषााइ ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन के मुद्दे पर विचार करने के विए सांविधान सभा ने 1948 ाइ. में
एस. के . धर के नेतृत्ि में भाषााइ राज्य ाअयोग की वनयुवि की। एस. के . धर ाअयोग ने यद्यवप भाषााइ
ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन की िोकवप्रय माांग की ाईपवस्थवत को स्िीकारा परन्तु विद्यमान
पररवस्थवतयों में राष्ट्र के रूप में भारत के विकास पर जोर क्रदया ि ाआस माांग को क्रफिहाि नहीं
स्िीकारने की सांस्तुवत की। परन्तु ाआससे विवभन्न भाषा-भावषयों, विशेषकर दवक्षण भारतीय क्षेत्र के
िोगों को सांतुवि नहीं वमिी।
26 जनिरी, 1950 को सांविधान को ाऄांगीकृ त करने के बाद, देश की पहिी िोकताांवत्रक ढांग से
वनिाावचत सरकार स्थावपत करना ाअिश्यक था। स्ितांत्र और वनष्प्पक्ष चुनाि कराने के विए एक
सांिैधावनक प्रािधान के साथ भारत वनिााचन ाअयोग (ECI) जनिरी 1950 में स्थावपत क्रकया गया।
सुकुमार सेन पहिे मुख्य वनिााचन ाअयुि बने, ाईस समय ECI एक सदस्यीय वनकाय था।
भारत ने िोकतांत्र के सािाभौवमक ियस्क मतावधकार प्रणािी को ाऄपनाया, जहाां एक पूि-ा वनधााररत ाईम्र
तक का कोाइ भी व्यवि वबना क्रकसी भेदभाि के मतदान कर सकता है। चुनाि ाअयोग को जलद ही यह
ाऄहसास हो गया क्रक भारत जैसे बड़े देश में स्ितांत्र और वनष्प्पक्ष चुनाि ाअयोवजत कराना दुरूह काया है।
कोाइ चुनाि कराने के विए वनिााचन क्षेत्रों का पररसीमन करने और मतदाता सूची तैयार करने की
ाअिश्यकता होती है। िगभग 40 िाख मवहिाओं ने स्ियां का पांजीकरण ाऄपने नाम के बजाए क्रकसी की
पत्नी या क्रकसी की बेटी के रूप में कराया। चुनाि ाअयोग ने ाआन प्रविवियों को स्िीकार करने से ाआां कार
कर क्रदया तथा यक्रद सांभि हो तो ाआन प्रविवियों में सांशोधन करने और यक्रद ाअिश्यक हो तो ाआन
प्रविवियों को हटाने का ाअदेश क्रदया।
पहिे ाअम चुनाि की तैयारी एक बड़ी वजम्मेदारी थी। ाआससे पहिे सांसार में ाआस पैमाने पर कोाइ भी
चुनाि सम्पन्न नहीं हुाअ था। ाईस समय 17 करोड़ योग्य मतदाता थे, वजन्हें िोकसभा के 489 साांसदों
और राज्य विधानसभाओं के 3200 विधायक चुनने थे। ाआन योग्य मतदाताओं में से के िि 15% साक्षर
मतपेरटयों का प्रयोग ाआनमें क्रकया गया। िगभग 620,000,000 मतपत्र मुक्रद्रत क्रकये गए। फस्टा पास्ट दी
पोस्ट (first past the post) प्रणािी में जो ाईम्मीदिार सबसे ज्यादा मत प्राप्त करता है िही वनिाावचत
घोवषत क्रकया जाता है।
कु ि वमिाकर, 14 से ाऄवधक राष्ट्रीय और 63 क्षेत्रीय या स्थानीय दिों के ाईम्मीदिार और बड़ी सांख्या में
वनदािीय ाईम्मीदिार चुनाि िड़े। िोकसभा और राज्य विधानसभा की सीटों के विए कु ि वमिाकर
िगभग 17500 ाईम्मीदिार थे। चुनाि 25 ाऄलटू बर, 1951 से 21 फरिरी, 1952 तक िगभग चार
महीने में सांपन्न हुए। बाद के चुनािों में यह ाऄिवध कम होकर 1957 में 19 क्रदन और ाईसके पिात 07
से 10 क्रदन तक हो गयी। चुनािों में जनसांघ और भारतीय कम्युवनस्ट पाटी (CPI) सवहत विपक्षी दिों
की भागीदारी के विए ाईपयुि वस्थवतयाां बनााइ गाइ थीं। नेहरू ने काांग्रेस के विए जोरदार प्रचार
ाऄवभयान चिाया। विभाजन से प्रभावित साांप्रदावयक हहसा और दांगों की पृष्ठभूवम में साम्प्रदावयक और
धमावनरपेक्ष शवियों के मध्य सांघषा का मुख्य मुद्दा साम्प्रदावयकता होने का कारण नेहरू ने
साम्प्रदावयकता को चुनािों का मुख्य मुद्दा बनाया। चुनाि बहुत कम हहसा के साथ एक वनष्प्पक्ष, मुि,
पक्षपात रवहत और व्यिवस्थत ढांग से ाअयोवजत क्रकए गए।
नाइ राजनीवतक प्रणािी के प्रवत िोगों की प्रवतक्रिया जबरदस्त थी। ाईन्होंने ाआस बात के पयााप्त ज्ञान के
साथ चुनाि में भाग विया क्रक ाईनका िोट एक सम्मावनत ाऄवधकार था। कु छ स्थानों पर िोगों ने
मतदान को ाईत्सि के रूप में विया, िोगों ने मतदान के क्रदन ाईत्सि के दौरान पहनने िािे कपडे पहने
और मवहिाओं ने ाअभूषण पहने। गरीबी और वनरक्षरता के ाईच्च प्रवतशत के बािजूद, ाऄिैध िोटों की
सांख्या मात्र 0.3% से 0.4% थी। मवहिाओं की व्यापक भागीदारी एक ाईलिेखनीय विशेषता थी:
मतदान करने योग्य कम से कम 40% मवहिाओं ने मतदान में भाग विया। ाआस प्रकार, िोगों में नेतृत्ि
का विश्वास पूरी तरह से सही सावबत हुाअ। जब चुनाि के नतीजे घोवषत क्रकए गए, तो यह महसूस
क्रकया गया क्रक िगभग 46% योग्य मतदाताओं ने ाऄपना मत डािा था।
स्ितांत्र भारत में देश के पहिे ाअम चुनािों और राज्य विधानसभा चुनािों में भाग िेने िािे भारतीय
राष्ट्रीय काांग्रस
े से िेकर सोशविस्ट पाटी, क्रकसान मजदूर प्रजा पाटी, कम्युवनस्ट और सहयोगी, जन सांघ,
त्रािणकोर-कोचीन, ाईड़ीसा, PEPSU में बहुमत नहीं वमिा,परन्तु वनदािीयों और छोटे स्थानीय दिों
की सहायता से काांग्रस
े ने िहाां भी सरकारें बनाईं, बाद में दिों का काांग्रेस के साथ वििय हो गया।
कम्युवनस्ट पाटी का प्रदशान ाऄप्रत्यावशत था और यह िोकसभा में दूसरे सबसे बड़े दि के रूप में ाईभरी।
ाऄभी भी देश के कु छ वहस्सों में राजाओं और बड़े जमींदारों का बहुत ाऄवधक प्रभाि था। ाईनकी पाटी
गणतांत्र पररषद ने ाईड़ीसा विधानसभा में 31 सीटें जीतीं।
सांख्यात्मक रूप से काांग्रस
े की प्रभािी वस्थवत के बािजूद विपक्ष सांसद में काफी प्रभािी था। व्यापार
सांघों, क्रकसान सभा, हड़ताि, बांद और प्रदशान जैसे राजनीवतक भागीदारी के ाऄन्य रूप मध्यम िगा,
सांगरठत मजदूर िगा तथा समृद्ध और मध्यम िगीय क्रकसान ाअक्रद विवभन्न िगों के विए ाईपिधध थे।
ग्रामीण और शहरी गरीबों की विशाि जनसाँख्या के विए प्रत्यक्ष राजनीवतक भागीदारी का मुख्य रूप
चुनाि थे।
1952 के बाद, नेहरू के काि में, 1957 और 1962 में िोकसभा और राज्य विधानसभाओं के विए दो
ाऄन्य ाअम चुनाि हुए। मतदान 1957 में 47% से बढ़कर 1962 में 54% हो गया। दोनों चुनािों में,
काांग्रेस क्रफर से सबसे बड़ी पाटी के रूप में ाईभरी और कें द्र और राज्य स्तरों पर सरकारें बनाईं। हािाांक्रक,
कम्युवनस्ट पाटी 1957 में के रि में सरकार बनाने में सक्षम हुाइ जो दुवनया में कहीं भी पहिी
िोकताांवत्रक ढांग से वनिाावचत कम्युवनस्ट सरकार थी।
चुनािों का वनष्प्पक्ष और शाांवतपूणा सांचािन एक सांकेत था क्रक राष्ट्रीय ाअांदोिन की विरासत के रूप में
िोकताांवत्रक व्यिस्था और सांस्थान ाअकार िेना शुरू कर रहे थे। चुनािों का सफि सांचािन, विदेशों में
विशेष रूप से पूिा औपवनिेवशक देशों में भारत और नेहरू की प्रशांसा के कारणों में से एक था।
राजनीवतक नेतत्ृ ि ने राष्ट्रीय समेकन को बढ़ािा देने और एकीकरण की नीवतयों को िैध बनाने के विए
चुनािों का ाआस्तेमाि क्रकया। जैसा की ाऄशोक मेहता ने कहा, "सांसद ने देश की एकता के प्रमुख सूत्रधार
के रूप में काया क्रकया"।
चुनाि प्रणािी में प्रमुख पाटी के रूप में काांग्रेस की सफिता ने काइ िोगों को गणराज्य के प्रारां वभक िषों
को काांग्रेस प्रणािी के रूप में िर्थणत करने के विए प्रेररत क्रकया। ाआन िषों की मुख्य विशेषता काांग्रस
े की
चुनािी सफिता और कमजोर विपक्ष था। स्ितांत्रता के बाद के तीन ाअम चुनािों में, काांग्रेस को भारी
बहुमत वमिा। काांग्रस
े ने ाईस समय भी प्रत्येक चार सीटों में से तीन पर जीत हावसि की जब ाईसे कु ि
क्रकया, िेक्रकन यह कु ि सीटों की 74% सीटें जीतने में कामयाब रही। पहिे ाअम चुनािों में, िोकसभा
काांग्रेस ने कु ि 494 में से िमशाः 371 और 361 सीटें हावसि की थीं। 1957 में के रि जैसे ाऄपिादों को
छोड़कर ाआसने पूरे देश में राज्य स्तर पर भी सरकारें बनााइ थीं।
भारत ही एक मात्र ऐसा देश नहीं है जो एक पाटी के प्रभुत्ि के दौर से गुजरा हो। हम दुवनया के ाऄन्य
वहस्सों में भी 'एक पाटी प्रभुत्ि' का ाईदाहरण देख सकते हैं। हािाांक्रक ाआसमें महत्िपूणा ाऄांतर यह था क्रक
काइ ाऄन्य देशों में िोकताांवत्रक मूलयों और मानदांडों से समझौता क्रकया गया, जबक्रक भारत में ाआन मूलयों
और मानदांडों का पािन क्रकया गया। चीन, लयूबा और सीररया जैसे कु छ देशों का सांविधान के िि एक
ही पाटी को देश पर शासन करने की ाऄनुमवत देता है। म्याांमार, बेिारूस, वमस्र और ाआररररया जैसे कु छ
ाऄन्य देश कानूनी और सैन्य ाईपायों के कारण प्रभािी रूप से एक पाटी देश थे। कु छ साि पहिे तक
मेवलसको, दवक्षण कोररया और तााआिान भी प्रभािी रूप से एक पाटी देश थे।
और विवभन्न िगों और क्षेत्रीय वहतों के सुिह, पुनिाास और समायोजन के माध्यम के रूप में काया करती
रही और ाआनके प्रवत ाऄपनी सांिेदनशीिता को बनाए रखा।
काांग्रेस एक िैचाररक गठबांधन थी। ाआसने ाऄपने ाऄन्दर िाांवतकारी और शाांवतिादी, कां जरिेरटि और
क्रकया। ाआसविए, ाईलिेखनीय राजनीवतक िैज्ञावनक िी रजनी कोठारी ने भारतीय राजनीवत की ाआस
काांग्रेस पाटी के प्रदशान के कारण, सभी विपक्षी दिों ने िोकसभा और राज्य विधानसभाओं में "काांग्रेस
प्रणािी" ाऄिवध के दौरान के िि नाममात्र का प्रवतवनवधत्ि प्राप्त क्रकया। शुरुाअत में, भारत में िोकतांत्र
2.4. विपक्षी दि
विपक्षी दिों की चुनािी भागीदारी ने ाऄपनी स्थापना के बाद से शासन के िोकताांवत्रक चररत्र को
बनाए रखने में महत्िपूणा भूवमका वनभााइ। विपक्षी दिों ने काांग्रेस पाटी के कायों और नीवतयों की
वनरां तर और िैचाररक ाअिोचना की। विपक्षी दिों ने िोकताांवत्रक राजनीवतक विकलप को जीवित रखते
हुए शासन के भीतर की नाराजगी को ाऄिोकताांवत्रक बनने से रोक क्रदया।
भारत में सांसदीय िोकतांत्र के विकास के विए पहिे चुनािों से ही भारतीय जनसांघ, सोशविस्ट पाटी,
कम्युवनस्ट पाटी, क्रकसान मजदूर प्रजा पाटी (KMPP) जैसे काइ राजनीवतक दिों का ाऄवस्तत्ि महत्िपूणा
था। ाआस प्रकार, गणराज्य के प्रारां वभक िषों में िोकताांवत्रक समेकन की प्रक्रिया में योगदान देने िािे
प्रमुख राजनीवतक दिों पर चचाा करना महत्िपूणा होगा।
BJS का गठन 1951 में श्यामा प्रसाद मुखजी ने क्रकया था और ाआसकी ाईत्पवत्त स्ितांत्रता पूिा
RSS (राष्ट्रीय स्ियांसेिक सांघ) और हहदू महासभा में देखी जा सकती है।
BJS ने ‘एक देश, एक सांस्कृ वत और एक राष्ट्र’ के विचार पर जोर क्रदया और तका क्रदया क्रक देश
भारतीय सांस्कृ वत और परां पराओं के ाअधार पर ाअधुवनक, प्रगवतशीि और मजबूत हो सकता है।
BJS के प्रमुख नेताओं में श्यामा प्रसाद मुखजी, दीन दयाि ाईपाध्याय और बिराज मधोक थे।
हािाांक्रक तत्कािीन िोकसभा चुनािों में ाआसका प्रदशान िगातार प्रभािहीन रहा, ाआसकी
राजनीवतक यात्रा का चरम काि जनता पाटी में ाआसका वििय था और 1977 में जनता सरकार के
मांवत्रमांडि में BJS के प्रमुख नेता ाऄटि वबहारी िाजपेयी और िािकृ ष्प्ण ाअडिाणी शावमि थे।
समकािीन समय में, भारतीय जनता पाटी (बीजेपी) ाऄपनी जड़ें BJS में बताती है।
रूस की बोलशेविक िाांवत से प्रेरणा िेते हुए, 1920 के दशक में राष्ट्र को प्रभावित करने िािी समस्याओं
के समाधान के रूप में समाजिाद की िकाित करते हुए काइ कम्युवनस्ट समूहों का ाईद्भि हुाअ।
कम्युवनस्टों ने मुख्य रूप से काांग्रस
े के ाऄांदर से ही काया क्रकया, िेक्रकन जब कम्युवनस्टों ने वद्वतीय
विश्वयुद्ध में ाऄांग्रज
े ों का समथान क्रकया तो ाईन्होंने खुद को काांग्रस
े से ाऄिग कर विया था।
राजनीवतक दि का सांचािन करने के विए ाआसके पास समर्थपत कायाकताा और प्रभािी सांगठन
ाईपिधध था।
कम्युवनस्ट हहसक विद्रोह में विश्वास करते थे, लयोंक्रक ाईनके विचार में सत्ता का हस्ताांतरण
िास्तविक नहीं था। बाद में ाईन्होंने हहसक साधनों को त्याग क्रदया तथा ाअम चुनािों में भाग विया
और सबसे बड़ी विपक्षी पाटी के रूप में ाईभरे ।
पाटी के समथाकों का सांकेन्द्रण ाअांध्र प्रदेश, पविम बांगाि, वबहार और के रि में ाऄवधक था।
ाईनके सशि नेताओं में ए. के . गोपािन, एस.ए. डाांग,े ाइएमएस नांबद
ू रीपाद, पी.सी. जोशी, ाऄजय
घोष और पी. सुद
ां रै या शावमि थे।
1964 में CPI का विभाजन हो गया और चीन समथाक गुट ने CPI (मालसािादी) का गठन क्रकया।
ाऄब, दोनों ही पार्टटयों का जनाधार बहुत कम हो गया है और ाईनकी ाईपवस्थवत देश के बहुत कम
राज्यों में ही है।
वमवित ाऄथाव्यिस्था
ाईस समय ाआस हबदु पर सिासहमवत थी क्रक सरकार को विकास की योजनाएाँ बनानी चावहए, वनजी क्षेत्र
को नहीं। यहााँ तक की ाऄथाव्यिस्था के पुनर्थनमााण की प्रक्रिया के रूप में वनयोजन के विचार ने 1940
और 1950 के दशक में समूचे विश्व में व्यापक जनसमथान प्राप्त क्रकया। यूरोप में महामांदी के ाऄनुभि,
जापान और जमानी में युद्धों के बाद पुनर्थनमााण तथा सबसे ाऄवधक सोवियत सांघ में 1930 और 1940
के दशक में प्रवतकू ि पररवस्थवतयों के बाद भी शानदार ाअर्थथक सांिृवद्ध ने ाआस सिासहमवत का मागा
प्रशस्त क्रकया।
ाअम तौर पर, यह माना जाता है क्रक बड़े ाईद्यमी वनयोजन के विचार के विरोधी होते हैं। क्रकन्तु भारत
में, बड़े ाईद्योगपवतयों के एक िगा ने 1944 में एक साथ ाअकर देश में एक योजनाबद्ध ाऄथाव्यिस्था
स्थावपत करने के विए सांयि
ु प्रस्ताि तैयार क्रकया। ाआसे बॉम्बे प्िान कहा गया।
स्ितांत्रता के बाद, माचा 1950 में भारत सरकार के एक साधारण सांकलप द्वारा योजना ाअयोग की
स्थापना की गाइ थी। ाआसकी भूवमका सिाहकारी थी तथा ाआसकी ाऄनुशस ां ाएाँ के िि तब प्रभािी होती थीं
जब ाआन्हें कें द्रीय कै वबनेट से मांजरू ी वमि जाती थी। योजना ाअयोग का गठन करने िािे ाआस सांकलप का
ाईद्देश्य:
1. प्रत्येक व्यवि को ाअजीविका के पयााप्त साधनों तक पहुाँच का ाऄवधकार होना चावहए।
2. समुदाय के भौवतक सांसाधनों, ाईनके स्िावमत्ि और वनयांत्रण को सबके विकास में सहायक होना
चावहए।
3. ाअर्थथक प्रणािी को ाआस तरह से सांचावित करना चावहए क्रक 'ाईत्पादन के साधन' और 'धन' के
प्रयोग से क्रकसी समुदाय विशेष को िाभ और समाज को हावन न हो।
पहिी पांचिषीय योजना का ड्राफ्ट और िास्तविक योजना दस्तािेज क्रदसांबर 1951 में जारी क्रकया
1956) का ाईद्देश्य ाऄथाव्यिस्था को गरीबी के दुष्प्चि से वनकािना था। प्रख्यात युिा ाऄथाशास्त्री के . एन.
राज के कहा था क्रक भारत को पहिे दो दशकों में धीमी गवत से ाअगे बढ़ना चावहए लयोंक्रक विकास की
तीव्र गवत िोकतांत्र के विए सांकट ाईत्पन्न कर सकती है। पहिी पांचिषीय योजना ने मुख्यताः कृ वष क्षेत्र
को सांबोवधत क्रकया वजसमें बााँधों एिां हसचााइ पर वनिेश भी सवम्मवित था। देश के विभाजन ने कृ वष
क्षेत्र को सिाावधक भयािह तरीके से प्रभावित क्रकया था तथा ाआसपर शीघ्र ही ध्यान क्रदए जाने की
ाअिश्यकता थी। ाऄताः “ाअधुवनक भारत के मांक्रदरों” यथा भाखड़ा-नाांगि बाांध के विए बड़ी मात्रा में धन
ाअिांरटत क्रकया गया। ाआसके साथ ही पहिी पांचिषीय योजना में देश के विकास के विए भूवम सुधारों पर
ध्यान के वन्द्रत क्रकया गया। योजना वनमााताओं के मूिभूत ाईद्देश्यों में से एक राष्ट्रीय ाअय के स्तर को ाउपर
ाईठाना था। 1950 के दशक में व्यय का मूि स्तर बहुत कम था। ाऄताः योजना वनमााताओं ने बचत को
बढ़ाने पर बि क्रदया। ाईनके प्रयासों से बचत में िृवद्ध हुाइ और यह िृवद्ध तीसरी पांचिषीय योजना तक
जारी रही। हािााँक्रक बाद में ाआसमें तीव्र वगरािट देखने को वमिी।
वद्वतीय योजना ने मुख्यताः भारी ाईद्योगों पर बि क्रदया तथा ाआसका वनमााण पी.सी. महािनोवबस के
नेतत्ृ ि में ाऄथाशावस्त्रयों एिां योजना-वनमााताओं के एक दि ने क्रकया। पहिी योजना में ाऄपनाये गए धैया
के विपरीत, दूसरी योजना में सभी सांभावित क्रदशाओं में पररितान करके त्िररत सांरचनात्मक पररितान
िाने का प्रयास क्रकया गया। 1955 में काांग्रेस पाटी ने दूसरी योजना के मसौदे को ाऄांवतम रूप देने से
पहिे मद्रास के पास ाऄिाडी में एक प्रस्ताि पाररत क्रकया और "समाज के समाजिादी प्रवतरूप" के ाऄपने
िक्ष्य की घोषणा की। यह दूसरी योजना में प्रत्यक्षताः पररिवक्षत हुाअ। सरकार ने घरे िू ाईद्योगों को
सांरक्षण प्रदान करने के विए ाअयात प्रशुलक िगाये। ाआसने घरे िू ाईद्योगों की सांिृवद्ध में सहायता की। ाआस
कािखांड में बचत और वनिेश में िृवद्ध हुाइ तथा सािाजवनक क्षेत्र में विद्युत,् रे ििे, ाआस्पात, मशीनरी तथा
सांचार जैसे बड़े ाईद्योगों का विकास हुाअ।
तीसरी पांचिषीय योजना हेतु एक ाऄन्तर्थनवहत धारणा यह थी क्रक भारत की ाऄथाव्यिस्था ाऄब ाईड़ान
भरने को तैयार है। ाआस प्रकार ाआसने भारत को ाअत्मवनभार तथा ‘ाऄपने विए पयााप्त ाईत्पादन में समथा’
बनाने का िक्ष्य तय क्रकया। ाआस योजना की मुख्य प्राथवमकता कृ वष (खाद्य ाअपूर्थत को बढ़ाना तथा
वनयाात एिां ाईद्योग को समथान) थी।
हािााँक्रक यह योजना ाऄपने िक्ष्यों की पूर्थत में ाऄसफि रही वजसका प्राथवमक कारण चीन (1962) एिां
पाक्रकस्तान (1965) के साथ युद्ध तथा 1965-66 में पड़ा गांभीर सूखा था। ाआन पररवस्थवतयों के कारण
योजना ाऄिकाश की घोषणा की गयी।
1. विकास दर बढ़ने के विए वनिेश दर बढ़ाना ाअिश्यक था। ाआस ाऄिवध की एक महत्िपूणा ाईपिवधध
बचत और वनिेश दरों में िृवद्ध थी।
2. कृ वष के क्षेत्र में ाअज़ादी के बाद से व्यापक भूवम सुधार िागू क्रकये गए। ग्राम-स्तर पर कृ वष के
विकास के विए तथा सामुदावयक विकास से सम्बांवधत कायों का जाि वबछा क्रदया गया। हसचााइ,
ाउजाा, कृ वष ाऄनुसन्धान ाआत्याक्रद क्षेत्रों में ाअधारभूत रचना के विकास के विए बड़े पैमाने पर वनिेश
क्रकया गया। ाआन सारे कदमों के फिस्िरूप खेती का काफी विकास हुाअ। 1965-66 को छोड़कर
प्रथम तीन योजनाओं के दौरान भारतीय कृ वष का विकास 3 फीसदी के िार्थषक दर से हुाअ।
3. प्रथम तीन योजनाओं में ाईद्योगों का विकास तो कृ वष से भी तीव्र हुाअ। 1951-1965 के मध्य िह
7.1 फीसदी प्रवत िषा की कु ि दर से बढ़ा। ाईद्योगों के ाआस विकास ने तेजी से ाअयावतत िस्तुओं की
जगह िे िी, शुरू में ाईपभोिा िस्तुओं की, बाद में मूि िस्तुओं और ाऄन्य सामानों की, विशेष तौर
पर दूसरी योजना से। विकास के ाआस रुझान ने मूि िस्तुओं और यांत्रों के सम्बन्ध में विकवसत देशों
पर भारत की करीब-करीब पूरी वनभारता को काफी कम कर क्रदया।
4. ाईद्योग और कृ वष के ाऄवतररि योजनाओं में वशक्षा और स्िास्थ्य समेत सामावजक मूि ढाांचे के
विकास पर सबसे ाऄवधक जोर क्रदया गया। औपवनिेवशक काि में ाआन क्षेत्रों की ाईपेक्षा की गयी थी।
शुरूाअती दौर में विकास की जो रणनीवतयााँ ाऄपनााइ गईं ाईन पर काइ महत्त्िपूणा प्रश्न ाईठाये गए।
विकास के दो जाने-माने मॉडि थे, भारत ने ाईनमें से क्रकसी को भी नहीं ाऄपनाया। पूज
ां ीिादी मॉडि में
विकास का काम पूणातया वनजी क्षेत्र के भरोसे होता है। भारत ने यह रास्ता नहीं ाऄपनाया। भारत ने
विकास का समाजिादी मॉडि भी नहीं ाऄपनाया वजसमें वनजी सांपवत्त को ख़त्म कर क्रदया जाता है और
हर तरह के ाईत्पादन पर राज्य का वनयांत्रण होता है। ाआन दोनों ही मॉडि की कु छ एक बातों को िे विया
गया और ाऄपने देश में ाआन्हें वमिे-जुिे रूप में िागू क्रकया गया। ाआसी कारण भारतीय ाऄथाव्यिस्था को
‘वमवित ाऄथाव्यिस्था’ कहा जाता है। कृ वष, व्यापार और ाईद्योगों का एक बड़ा भाग वनजी क्षेत्र के हाथों
में रहा। राज्य ने ाऄपने हाथ में भारी ाईद्योगों को रखा और ाईसने ाअधारभूत ढाांचा प्रदान क्रकया। राज्य ने
व्यापार का वनयमन क्रकया और कृ वष के क्षेत्र में कु छ बड़े हस्तक्षेप क्रकये।
ाआस तरह के वमिे-जुिे मॉडि की ाअिोचना दवक्षणपांथी और िामपांथी दोनों खेमों से हुयी। ाअिोचकों
का कहना था क्रक योजनाकारों ने वनजी क्षेत्र को पयााप्त जगह नहीं दी है और न ही वनजी क्षेत्र की िृवद्ध के
विए कोाइ ाईपाय क्रकया है। विशाि सािाजवनक क्षेत्र ने ताकतिर वनवहत स्िाथों को खड़ा क्रकया है और
ाआन न्यस्त वहतों ने वनिेश के विए िााआसेंस और परवमट की प्रणािी खड़ी करके वनजी पूाँजी की राह में
रोड ाऄटकाए हैं। ाआसके ाऄवतररि सरकार ने ऐसी िस्तुओं के ाअयात पर बाधा ाईत्पन्न की है वजन्हें घरे िू
बाजार में बनाया जा सकता हो। ऐसी िस्तुओं के ाईत्पादन का बाजार एक तरह से प्रवतस्पधााविहीन हो
गया। ाआसकी िजह से वनजी क्षेत्र के पास ाऄपने ाईत्पादों की गुणित्ता सुधारने ाऄथिा ाईन्हें सस्ता करने की
कोाइ हड़बड़ी नहीं रही। सरकार ने ाऄपने वनयांत्रण में जरुरत से ज्यादा िस्तुएाँ रखी हैं। ाआससे भ्रिाचार
और ाऄकु शिता ही बढ़ी है।
भारत में हररत िाांवत को सूख,े बाढ़ ाआत्याक्रद जैसे कृ वष सांकटों के दौरान ाऄनाज की ाअपूर्थत के विए
विदेशी सहायता पर भारत की वनभारता को कम करने के विए जाना जाता है साथ ही ाआसमें खाद्यान्न
की ाईपिधधता के मामिे में भारत को ाअत्मवनभार और ाअत्म-सांति ु राष्ट्र बनाने की पररकलपना की गाइ
है। हररत िाांवन्त प्रारम्भ करने का िेय नोबि पुरस्कार विजेता प्रोफे सर नारमन बोरिॉग को जाता है।
एम. एस. स्िामीनाथन को "भारत में हररत िाांवत का जनक" माना जाता है।
पड़े दो ाऄकािों के फिस्िरूप कृ वष ाईत्पादन में 17 प्रवतशत एिां खाद्यान्न ाईत्पादन में 20 प्रवतशत
की कमी हुाइ। ाआससे खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ने िगीं।
भारत-पाक युद्ध, विएतनाम सम्बन्धी भारत की नीवत और भारत को ाऄमेररकी नीवत मनिाने के
ाआरादे से ाऄमेररका ने भारत को खाद्यान्न के वनयाात पर रोक िगाने की धमकी दी। काफी िम्बे
समय से भारत ाऄमेररका द्वारा PL-480 स्कीम के तहत खाद्यान्न ाअपूर्थत पर वनभार था।
साठ के दशक की विषम पररवस्थवतयों के कारण ाअर्थथक ाअत्मवनभारता और खाद्यान्न में ाअत्म-
पूणत
ा ा भारतीय नेतृत्ि की प्रथम िरीयता बन गयी।
नेहरू के युग के दौरान ऐसी गित धारणा प्रचवित थी क्रक ाईन्होंने कृ वष क्षेत्र की ाईपेक्षा की और
ाआसके बजाय तीव्र औद्योगीकरण पर बहुत ाऄवधक ध्यान कें क्रद्रत क्रकया। परन्तु समय के साथ यह
ाऄिधारणा पररिर्थतत होती गयी। तेजी से औद्योगीकरण करने के ाऄपने सपने को पूरा करने के
वसिवसिे में नेहरू कृ वष के विकास की प्रमुखता के प्रवत पूरी तरह सचेत थे। नेहरू शुरू से ही
सांस्थागत सुधारों के साथ-साथ ाअधुवनक कृ वष का िैज्ञावनक तकनीकी ाअधार तैयार करने पर भी
जोर क्रदया करते थे। विशाि हसचााइ और ाउजाा पररयोजनाओं जैसे भाखड़ा- नाांगि, काइ कृ वष
विश्वविद्यािय, शोध प्रयोग शािाएां, कृ वत्रम खाद के कारखाने ाआत्याक्रद विकवसत क्रकये गए।
देश के विवभन्न क्षेत्रों में विवभन्न समयों पर तीन वभन्न-वभन्न चरणों में हररत िाांवत हुाइ।
हररत िाांवत का पहिा चरण: 1962-65 से 1970-73 के हररत िाांवत के प्रथम चरण में ाऄवखि
भारतीय वमवित विकास दर 2.08 प्रवतशत प्रवतिषा थी, िेक्रकन यह मुख्य रूप से पांजाब, हररयाणा और
पविमी ाईत्तर प्रदेश में गेहाँ के ाईत्पादन में िृवद्ध के कारण हावसि हो सकी। ाआन राज्यों की िृवद्ध औसत से
ाऄवधक थी। ाआस दौरान पांजाब में 6.63 प्रवतशत की भारी िृवद्ध हुाइ।
हररत िाांवत का दूसरा चरण: 1970-73 से 1980-83 के दुसरे चरण में ाईच्च ाईत्पादन िािे बीजों की
तकनीक के सहारे गेहाँ की जगह धान के ाईत्पादन पर जोर क्रदया गया। फिस्िरूप हररत िाांवत देश के
ाऄन्य भागों में फ़ै ि गयी, खासकर पूिी ाईत्तर प्रदेश, ाअांध्र प्रदेश, कनााटक के तटीय क्षेत्रों, तवमिनाडु ,
ाआत्याक्रद में। महाराष्ट्र, गुजरात, ाअांध्र प्रदेश खाद्यान्न ाईत्पादन में तीव्र िृवद्ध के फिस्िरूप ाऄब 2.38
प्रवतशत प्रवत िषा की ाऄवखि भारतीय विकास दर से ाऄवधक तेजी से विकवसत हुए।
हररत िाांवत का तीसरा चरण: 1980-83 तथा 1992-95 के बीच का हररत िाांवत का तीसरा चरण
बड़े ाईत्साहिद्धाक और महत्िपूणा नतीजे दशााता है। हररत िाांवत ाऄब कम विकास िािे पूिी क्षेत्रों में फ़ै ि
गयी यथा: पविम बांगाि, वबहार, ाऄसम और ाईड़ीसा। पविम बांगाि में 5.39 प्रवतशत की ाऄसाधारण
िृवद्ध दजा की गयी। दूसरे क्षेत्रों का भी तेजी से विकास हुाअ, जैसे दवक्षणी ाआिाके , मध्य प्रदेश, राजस्थान
ाआत्याक्रद। िास्ति में, दवक्षणी क्षेत्रों में पहिी बार ाईत्तर-पविमी क्षेत्रों के मुकाबिे ाऄवधक विकास दर
कृ वष में सरकारी वनिेश काफी बढ़ गया। कृ वष को दी जाने िािी सांस्थागत वित्तीय मदद 1968 से
1973 के मध्य दोगुनी हो गाइ।
1965 में कृ वष मूलय ाअयोग का गठन क्रकया गया। ाआसकी कोवशश यह थी क्रक क्रकसान के विए
वनरां तर ाईत्पादक मूलय के जररये बाज़ार की गारां टी दी जाए।
सािाजवनक वनिेश, सांस्थागत कजों, ाईत्पादक मूलय और कम कीमत पर नाइ तकनीक ाईपिधध
कराने से क्रकसानों द्वारा वनजी वनिेश के मुनाफे की क्षमता बढ़ गयी।
सरकार द्वारा ाईठाये गए कदमों के पररणामस्िरूप कृ वष के क्षेत्र में कु ि सकि पूज ाँ ी वनमााण ाऄवधक
तेजी से बढ़ने िगा। ाआसका पररणाम सकि हसचााइ क्षेत्र में िृवद्ध में क्रदखााइ पड़ा। यह हररत िाांवत से
पहिे के 10 िाख हेलटेयर प्रवत िषा से बढ़कर सत्तर के दशक में करीब 25 िाख टन हेलटेयर प्रवत
िषा तक जा पहुांचा।
हररत िाांवत के तीनों चरणों के दौरान खाद्यान्न ाईत्पादन में ाईलिेखनीय ढांग से िृवद्ध हुाइ। ाऄस्सी का
दशक ाअते-ाअते भारत खाद्यान्न के मामिे में ाअत्मवनभार हो गया और ाईसके पास 3 करोड़ टन से
भी ाऄवधक का जमा भडडार तैयार हो गया। ाआतना ही नहीं, वपछिे कजे चुकाने के विए िह
खाद्यान्न का वनयाात भी करने िगा, यहााँ तक क्रक ाऄनाज की कमी िािे देशों को ाऄनाज ाईधार के
रूप में देने िगा। ाआसी ाऄनुकूि पररवस्थवत के कारण भारत 1987 और 1988 के ाऄकािों का
सामना वबना क्रकसी बड़े पैमाने की विदेशी सहायता के कर पाया, जबक्रक साठ के दशक में ाईसने
बड़ी विदेशी सहायता िी थी।
कृ वष विकास दरें बरकरार रखने के ाऄिािा हररत िाांवत का सबसे महत्िपूणा प्रभाि बाज़ार में बेचे
जाने िायक खाद्यान्नों के ाऄवतररि ाईत्पादन में िृवद्ध थी।
PL-480 तथा ाऄन्य प्रकार के ाअयातों पर वनभारता समाप्त होना भारत के ाअत्मवनभार विकास का
एक महत्िपूणा पहिू बन गया।
नाइ हररत िाांवत तकनीक न वसफा ाअकार से स्ितांत्र हैं, ाऄवपतु ाआसमें ाअकार और ाईत्पादकता के
मध्य विपरीत ाऄनुपात भी है। 21 प्रवतशत जमीन के छोटे माविक कृ वष के कु ि ाईत्पाक्रदत मूलय का
26 प्रवतशत तक ाईत्पाक्रदत करने में सफि हुए। ाआसके विए ाईन्होंने बड़े क्रकसानों के मुकाबिे प्रवत
ाआकााइ जमीन पर ाऄवधक कच्चे माि (वनिेश) का प्रयोग क्रकया है।
हररत िाांवत ने छोटे क्रकसान को भूवमहीन बनाने के बजाए ाईसे बचे रहने में सहायता की है। नयी
तकनीक, बेहतर बीजों और ाऄन्य कृ वष सामानों के प्रयोग से छोटा क्रकसान ाऄवधक सक्रिय हो ाईठा
है, और सांकट के समय ाईसे ाऄपनी जोतों को बड़े क्रकसानों को बेचना नहीं पड़ा है।
खेती में रोजगार पैदा करने के ाऄिािा हररत िाांवत ने गैर-कृ वष ग्रामीण और ाऄद्धा-शहरी रोजगार
पैदा क्रकये हैं। ाआनके जररये कृ वष-ाईद्योगों, व्यापार, कृ वष ाईत्पादों का भडडारण, खाद, कीटनाशक
दिाओं ाआत्याक्रद के ाईत्पादन में भारी िृवद्ध, रकों, रैलटरों, वबजिी और डीज़ि पम्पों तथा ाऄन्य
प्रकार के कृ वष सामानों एिां मशीनों ाआत्याक्रद में विकास के जररये रोजगार का वनमााण हुाअ है।
िगों और क्षेत्रों के बीच भारी ाऄसमानता और ध्रुिीकरण ने ाऄपने ाऄवधकारों हेतु ाईग्र-पांथ का मागा
ाऄपनाने के विए गरीब क्रकसानों को सांगरठत करने का मौका िाम पांथी सांगठनों को दे क्रदया; हररत
िाांवत के पररणामस्िरूप मध्यिगीय कृ षक िगा का भी ाईद्भि हुाअ। मध्यम जोत िािे ाआन मध्य
िगीय क्रकसानों को ाआन पररितानों से काफी िाभ हुाअ और बाद में देश के काइ वहस्सों में यह िगा
राजनीवतक रूप से प्रभािशािी िगा के रूप में ाईभरा।
हाि के िषों में पयाािरण के विनाश और कृ वष विकास बनाये रखने की समस्याएां ाईभरी हैं।
रासायवनक खादों एिां कीटनाशक दिाओं के ाऄत्यवधक प्रयोग से हुए नुकसान और पांजाब जैसी
जगहों में िम्बे काि तक ाईनके प्रयोग से विकास-दर ज्यों-की-त्यों बने रहने की समस्याएां पैदा हो
गयी हैं। हररत िाांवत िािे काइ क्षेत्रों के ाऄांदर का पानी ाऄत्यवधक मात्रा में बाहर वनकािा गया है,
िेक्रकन जि पुनभारण की कोाइ व्यिस्था नहीं की गयी। यह पयाािरण की दृवि से हावनकारक है।
िे काश्तकार और बाँटााइदार ही घाटे में रहे वजन्हें सुरक्षा नहीं वमिी थी। भू-राजस्ि और भूवम का
मूलय हररत िाांवत के ाआिाकों में बढ़ने के साथ ाआन तबकों पर दबाि बढ़ने िगा।
हररत िाांवत िािे क्षेत्रों के कृ षक समुदायों को खुश करने के विए ाऄवधकतर राज्य सरकारें कृ वष
योग्य विद्युत् ाअपूर्थत ाऄनुदावनत कीमतों पर या कभी-कभी एकदम मुफ्त करती हैं। ाआससे भारतीय
ाऄथाव्यिस्था की सम्पूणा वस्थवत दूरगामी रूप से प्रभावित हो रही है।
of holdings)
सहकारी सामूवहक कृ वष को प्रोत्साहन छोटी जोतों द्वारा ाईत्पन्न ाऄसुविधाओं को दूर करने के
(Encouragement of co- विए।
बड़े वित्तीय सांसाधनों का वनिेश क्रकया जा सकता था।
operative joint farming)
ाआससे रोजगार के ाऄिसरों में िृवद्ध हुाइ।
काइ िोगों ने तका क्रदया है क्रक हदबांदी और काश्तकारी कानून, िास्ति में सांिैधावनक ाऄवधकारों का
ाईलिांघन करें गे।
यह कहा गया क्रक चूांक्रक छोटी जोतें मशीनीकरण की िागत का भुगतान करने में ाऄक्षम होंगी ाऄताः
देश के कृ वष ाईत्पादन पर ाआसका प्रवतकू ि प्रभाि पड़ेगा।
यह तका क्रदया गया क्रक भूवम एक प्रकार की सांपवत्त है और भूवम ाऄवधकार पर हदबांदी के रूप में
पूांजी िेिी का ाअरोपण ाऄन्यायपूणा होगा जबक्रक समान समय में ाऄन्य क्षेत्रों पर ऐसे क्रकसी ाईपायों
को िागू नहीं क्रकया जा रहा हो।
चूांक्रक भूवम सुधार राज्य ाऄनुसच
ू ी का विषय था, ाआसविए योजना ाअयोग ने ाआन सुधारों हेतु राज्यों
को मनाने में कड़ी मेहनत की। ाआस प्रक्रिया ने सुधार ाईपायों को कमजोर कर क्रदया।
NSS ने 1954 में डेटा एकत्र क्रकया जो 1960 में योजनाकारों को ाईपिधध कराया गया। चूांक्रक
योजनाकार पहिे से ही नीवतयााँ तैयार कर चुके थे ाऄताः सांरचनात्मक पुनगाठन में शावमि
समस्याओं की जरटिता को सही समय पर महसूस नहीं क्रकया जा सका।
ाआस योजना ने मुकदमेबाजी और ाऄदािती मामिों को जन्म क्रदया, वजनमें से काइ िांबे समय से
विवभन्न ाऄदाितों में िांवबत हैं। ाआसने ग्रामीण क्षेत्रों के शाांत माहौि को ाऄशाांत क्रकया है।
महात्मा गाांधी, जिाहरिाि नेहरू, समाजिाक्रदयों एिां कम्युवनस्टों समेत राष्ट्रीय ाअांदोिन के काइ नेता
ाआस बात पर सहमत थे क्रक सहकाररता से भारत की कृ वष में बड़ी ाईन्नवत होगी, और ाआससे विशेष तौर
पर गरीबों को फायदा पहुांचेगा। ाअज़ादी के बाद भी सहकाररता को कृ वष क्षेत्र में सांस्थागत सुधार के
विए महत्त्िपूणा भाग के रूप में देखा गया।
जुिााइ 1949 में काांग्रस
े कृ वष सुधार सवमवत ने कु छ सुझाि पेश क्रकए। यह सवमवत ाऄपने ाऄध्यक्ष के नाम
से कु मारप्पा सवमवत भी कहिाती थी। ाआसमें पहिी बार ितामान ाअम सहमवत से ाअगे जाने के रुझान
काांग्रेस में क्रदखााइ क्रदए। सवमवत ने सुझाि क्रदया क्रक “राज्य को कृ वष के विवभन्न स्तरों के ाऄनुरूप विवभन्न
सहकारों को िागू करिाने के ाऄवधकार सौंपे जाने चावहए।”
प्रथम योजना में ाआस प्रश्न पर ाऄवधक बुवद्धमत्तापूणा विचार क्रकया गया। योजना में छोटे और माध्यम
जोतों को कृ वष सहकारी सांस्थाओं के रूप में साथ ाअने के विए प्रोत्सावहत करने और ाआसमें ाईनकी
सहायता करने की बात की गाइ। योजना में ाआन्हें िागू करिाने के ाऄवधकारों सांबांधी कोाइ बात नहीं की
गाइ। हााँ, दबाि की बात तब जरुर की गयी जब ाआसने यह सुझाि क्रदया क्रक यक्रद क्रकसी गााँि के माविकों
एिां पट्टेदार क्रकसानों का बहुमत, वजनके पास कु ि जमीन का कम से कम ाअधा हो, यक्रद ग्राम भूवम
प्रबांधन सहकाररता में शावमि होना चाहें, तो ाईनका वनणाय पूरे गााँि पर िागू हो।
प्रारम्भ में योजनाकारों ने सोचा क्रक सक्रिय पाटी कायाकताा ाऄलटू बर 1952 में ाअरम्भ क्रकए गए
सामुदावयक विकास कायािमों के प्रवशवक्षत कायाकतााओं की सहायता से काइ प्रकार के काया कर सकें गे। िे
न के िि ग्रामीण विकास योजनाएां िागू कर सकें गे, बवलक भारतीय कृ वष में महत्िपूणा सांस्थागत
पररितान भी िा सकें गे। ाईदाहरण के विए, िे सामुदावयक काया के विए स्िैवच्छक िम के सांगठन तथा
सहकारों की स्थापना में मदद करके भूवम सुधार िागू करिा सकें गे। वद्वतीय पांचिषीय योजना के दौरान
मुख्य वजम्मेदारी सहकारी जैसे क़दमों के विए ठोस ाअधार तैयार करना था वजससे िगभग दस िषों के
दौरान खेती की जमीन के काफी बड़े वहस्से पर सहकारी तरीके से खेती की जा सके ।
जनिरी 1959 में स्िीकृ त नागपुर प्रस्ताि में स्पि रूप से कहा गया क्रक “ गााँि का सांगठन पांचायतों एिां
ग्राम सहकारों, दोनों पर ाअधाररत होना चावहए। ाआन दोनों को ाऄपने काया सांपाक्रदत करने के विए
पयााप्त ाऄवधकार वमिने चावहए।” भविष्प्य में कृ वष का स्िरुप सहकारी सांयुि कृ वष होनी चावहए। ाआसके
ाऄांतगात वमिजुिकर जोतने के विए भूवम को ाआकट्ठा क्रकया जाना चावहए। क्रकसानों के स्िावमत्ि के
ाऄवधकार बरकरार रहेंगे और ाईन्हें ाऄपनी जमीन के ाऄनुपात में ाईत्पाद में वहस्सा वमिेगा। ाआसके
ाऄवतररि जो काम करें गे ाईन्हें सांयुि फ़ामा में काम के ाऄनुपात में वहस्सा वमिेगा। सांयुि खेती के प्रथम
चरण के रूप में सम्पूणा देश में सेिा सहकाररताएां सांगरठत की जानी चावहए। ाआन तीन िषों के भीतर भी
क्रकसानों की ाअम सहमवत से सांयुि खेती प्रारम्भ की जा सकती है। नागपुर प्रस्ताि ने न के िि भविष्प्य
में सांयुि सहकारी खेती की कलपना की, बवलक ाईसने ाआसे तीन िषों के ाऄन्दर-ाऄन्दर प्राप्त करने की
काफी व्यिहाररक और सचेत भी। सहकारी कृ वष के बारे में प्रत्येक वजिे में 10 पायिट योजनायें
ाऄपनाना तय क्रकया गया। साथ ही ाआस ओर भी ध्यान क्रदिाया गया क्रक “सहकारी कृ वष सामुदावयक
विकास, ाऊण, वििय, वितरण और िस्तु पररितान प्रक्रिया, ग्रामीण ाईद्योग के विकास तथा भूवम सुधार
हुाअ, जो पूरे भारत में फै ि गया। कै रा वजिे के क्रकसान बांबाइ शहर को दूध की ाअपूर्थत करते थे। िेक्रकन
ाईन्हें दूध के व्यापारी ाआस काम में धोखा क्रदया करते थे। ाआसविए ाईन क्रकसानों ने प्रवसद्ध राष्ट्रीय नेता
सरदार पटेि से ाआस सांबांध में मदद के विए मुिाकात की। पटेि ाआसी वजिे के थे। पटेि और मोरारजी
देसााइ के कहने पर क्रकसानों ने एक यूवनयन बनााइ। िे एक दूध हड़ताि के जररए बांबाइ सरकार पर
दबाि डािने और ाईनकी यूवनयन से सीधे दूध खरीदने पर मजबूर करने में सफि हुए। ाआस प्रकार, कै रा
वजिा सहकारी दूध ाईत्पादक सांघ विवमटेड का जन्म हुाअ। ाआसका औपचाररक पांजीकरण क्रदसांबर 1946
में हुाअ और ाआसने ाअनांद नामक स्थान से एक साधारण सी शुरुाअत की।
गाांधीिादी स्ितांत्रता सेनानी वत्रभुिनदास के . पटेि ने गााँि-गााँि पैदि घूमकर बड़े धैया से क्रकसानों को
दुग्ध सहकारी सांस्थाएां बनाने के विए राजी क्रकया। िे जनिरी 1947 में सांघ के प्रथम ाऄध्यक्ष बने। ाआस
पद पर िे 25 िषों से भी ाऄवधक समय तक चुने जाते रहे। 1950 से 1973 तक डॉ. िगीज कु ररयन ाआस
सांघ के मुख्य कायाकारी ाऄवधकारी (सीाइओ) के पद पर रहे। 1955 में यूवनयन ने ाऄपने ाईत्पादों के विए
ाऄमूि (AMUL) शधद का प्रयोग करना शुरू कर क्रदया। िस्तु का यह नाम ग्िैलसो और नेस्िे जैसे दुवनया
के शविशािी बहुराष्ट्रीय कां पवनयों से मुकाबिा करने िगा और पूरे भारत में एक घरे िू नाम बन गया।
गुजरात के ाऄन्य वजिों में फै िने के साथ ही 1974 में ाअनांद में गुजरात सहकारी दुग्ध व्यापार सांघ
विवमटेड की स्थापना की गाइ, जो वजिे में सहकारों के ाईत्पाद बेचने के विए शीषास्थ सांस्था थी।
सहकाररता के कारण कै रा वजिे के ग्रामीणों का जीिन-स्तर काफी सुधर गया है, खासकर गरीब
क्रकसानों और भूवमहीनों का। एक ाऄध्ययन के ाऄनुसार सहकाररता की गवतविवधयों के कारण हाि के
िषों में कै रा वजिे के ग्रामीण पररिारों की ाअय का करीब 48 प्रवतशत डेयरी ाईद्योग से ाअता है। ‘ाअनांद
क्रदसम्बर 1958 से माइ 1959 के बीच सहकारी सवमवतयों के ाऄििोकन के दौरान प्रवसद्ध ाऄथाशास्त्री
डेवनयि थॉनार को सहकारी ाअांदोिनों में काइ तरह की कमजोररयााँ क्रदखीं। ाईन्होंने सांयुि खेती के मामिे
में दो प्रकार की सहकारी सवमवतयों को देखा-
पहिी, ाईस प्रकार की थीं वजनका ाईद्देश्य मूि रूप से भूवम सुधारों से बचना और राज्य द्वारा दी
जाने िािी सुविधाओं का िाभ ाईठाना था। ाआन सहकारी सांस्थाओं की स्थापना ाऄपेक्षाकृ त धनी
तथा प्रभािशािी पररिारों द्वारा की गाइ थी। ाआसमें ाईन्होंने बोगस सदस्यों के रूप में खेवतहर
मजदूरों या भूतपूिा काश्तकारों को शावमि क्रकया।
दूसरी, पायिट योजनाओं के रूप में राज्य द्वारा सांचावित सहकारी फामा भी चिाए गए। ाआनमें
ाअमतौर पर पहिे न ाआस्तेमाि की गाइ खराब जमीनों को भूवमहीनों, विस्थावपतों और ाआसी प्रकार
के ाऄसुरवक्षत िोगों में बाांटा गया। सहकारी खेती में जो ाऄपेवक्षत ाईत्पादकता िृवद्ध और व्यापकता
के फायदे होने चावहए, िे ाआन फमों में नहीं थे।
कु ि वमिाकर सेिा सहकारी सवमवतयों ने कृ वष सहकारी सवमवतयों की तुिना में बेहतर प्रदशान क्रकया।
क्रफर भी, सेिा सहकारी सवमवतयों में काइ कवमयाां थीं।
सेिा सहकारी सवमवतयों ने जावत ाअधाररत पदानुिवमक सांरचना को मजबूत क्रकया।
ऐसे सहकारी सवमवतयों के नेता गााँि के प्रभािशािी पररिार के थे और िे ाऄवधकतर व्यापारी या
महाजन िगा से ाअते थे।
ाआसके ाऄवतररि, सहकारी ाऊण सवमवतयों के सन्दभा में, 1969 की ाऄवखि भारतीय ाऊण समीक्षा
सवमवत की ररपोटा तथा 1971 की कृ वष सांबध
ां ी राष्ट्रीय कमीशन की छोटे एिां सीमान्त क्रकसानों के विए
ाऊण सेिा सांबध ां ी ररपोटा ने भूवमहीनों को ाआस प्रक्रिया से िगभग पूरी तरह ाऄिग रखने की पुवि की।
ाऄथाात ाआन क्रकसानों को ाआन सहकारी सवमवतयों द्वारा ाऊण सुविधा नहीं प्रदान की गयी।
िेक्रकन सहकारी ाऊण सवमवतयों को कजों का बड़ा वहस्सा िौटाया नहीं गया ि बकाए का प्रवतशत
बढ़ता गया।
यह ध्यान देने िािी बात है क्रक कज़े िापस न करने िािे ाऄवधकतर धनी पररिारों के िोग थे और
गरीब तथा क्रकसान पररिारों के कम। ऐसे धनी क्रकसानों के बढ़ते राजनीवतक एिां ाअर्थथक पहुाँच से
यह समस्या खतरनाक रूप धारण करने िगी। ाआससे ग्रामीण ाऊण सांस्थाओं की क्षमता और विकास
दर पर प्रवतकू ि प्रभाि पड़ने िगा।
ाआस प्रकार, ाआतने िषों में सहकारी ाअांदोिन िोगों की भागीदारी को बढ़ािा देने के बजाय विशाि
ाऄफसरशाही से ग्रस्त होकर ाऄक्षम हो गया।
ाऄांतरााष्ट्रीय मामिों में भारत तथा ाऄन्य राष्ट्रों के एक स्ितांत्र तथा समान मत के ाऄवधकार को सुवनवित
करने के विए पांवडत नेहरु ने गुटवनरपेक्षता के विचार को ाअकार प्रदान क्रकया। िास्ति में , वद्वतीय विश्व
युद्ध के ाईपराांत दो गुटों में विभावजत विश्व और दोनों गुटों के कटु तापूणा सांबांधों ने गुटवनरपेक्षता के
त्िररत ाईद्भि हेतु ाऄनुकूि पररवस्थवतयाां वनर्थमत कीं। नेहरु ने तका क्रदया क्रक एवशया और ाऄफ्ीका के नि-
स्ितांत्र राष्ट्रों को महाशवियों के सैन्य गुटों में शावमि होने से कोाइ िाभ नहीं होगा। ाआसी विचार ने
कािाांतर में गुटवनरपेक्ष ाअन्दोिन (NAM) का रूप विया।
गुटवनरपेक्ष ाअन्दोिन के नेता शत्रुता के बजाय "शाांवत के क्षेत्र" का विस्तार करने के विए प्रवतबद्ध
थे। ाऄताः भारत, वमस्र तथा ाआां डोनेवशया जैसे ाऄन्य देशों ने बगदाद पैलट, मनीिा सांवध, SEATO
तथा CENTO जैसे सैन्य समझौतों का वहस्सा बनने से ाआांकार कर क्रदया।
गुटवनरपेक्ष ाअन्दोिन, ाईपवनिेशिाद और साम्राज्यिाद से ाऄपनी स्ितांत्रता को बनाए रखने और
सशि करने के विए भारत और ाऄन्य नि-स्ितांत्र राष्ट्रों के सांघषा का प्रतीक बन गया।
भारत ने शीत युद्ध के तनाि को कम करने तथा सांयुि राष्ट्र के शाांवत ाऄवभयानों में मानि सांसाधन
का योगदान करने के माध्यम से गुटवनरपेक्ष नीवत की िकाित की ताक्रक एक शाांवतपूणा विश्व के
स्िप्न को साकार क्रकया जा सके ।
गुटवनरपेक्षता की नीवत ाऄपनाने के कारण विश्व के बहुत से देशों को सांयुि राष्ट्र सांघ में ाऄपना पक्ष
रखने का ाऄिसर प्राप्त हुाअ तथा ाईनकी बात सुनी गयी। एक देश, एक मत की प्रणािी से
गुटवनरपेक्ष राष्ट्रों के समूह ने पविमी गुट के प्रभुत्ि को प्रवतसांतुवित क्रकया। ाआस प्रकार गुटवनरपेक्षता
ने ाऄांतरााष्ट्रीय सांबांधों के िोकतांत्रीकरण की प्रक्रिया को ाअगे बढ़ाया।
भारत एिां पाक्रकस्तान के मध्य विभाजन के कटु ाऄनुभिों के कारण तनािपूणा सम्बन्ध थे जो कश्मीर के
मुद्दे पर ाऄांतरााष्ट्रीय स्तर तक पहुाँच गए। पाक्रकस्तान के द्वारा कश्मीर पर कबााआिी हमिे का समथान
क्रकया गया वजसके पररणामस्िरूप होने िािे सांघषा ने ाऄांतरााष्ट्रीय समुदाय का ध्यान ाअकर्थषत क्रकया।
ाआस वस्थवत में भारत ने ाऄपनी िाभदायक वस्थवत के बािजूद युद्धविराम पर सांयुि राष्ट्र के सांकलप को
स्िीकार कर विया और कश्मीर में जनमत सांग्रह के विए सहमवत व्यि की। ाआस जनमत सांग्रह के विए
दो शतें रखी गयी थीं:
पाक्रकस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर से ाऄपनी सेना को पीछे हटाया जाए।
पूरे राज्य में िीनगर प्रशासन के प्रावधकार को बहाि क्रकया जाए।
क्रकन्तु ाईपयुाि प्रथम शता कभी पूरी नहीं की गयी और िहाां कोाइ जनमत सांग्रह नहीं करिाया जा सका।
ाआसी बीच जम्मू-कश्मीर ने भारत के पहिे ाअम चुनाि में भाग विया वजसके पररणामस्िरूप जनमत
सांग्रह का मुद्दा ाऄप्रासांवगक हो गया। हािााँक्रक, ाआसके बाद से ही कश्मीर वद्वपक्षीय सांबांधों में, विशेष रूप
से पाक्रकस्तान के विए, वििाक्रदत मुद्दा बना रहा। ाआस मुद्दे का ाईपयोग भारत को सांयुि राष्ट्र सांघ में घेरने
के विए क्रकया गया लयोंक्रक पाक्रकस्तान CENTO एिां SEATO की सदस्यता ग्रहण कर ाऄमेररका
समर्थथत पविमी गुट का ाऄवभन्न ाऄांग बन गया था।
हािााँक्रक, कश्मीर सांघषा ने भारत और पाक्रकस्तान की सरकारों के मध्य सहयोग को ाऄिरोवधत नहीं
क्रकया। जहााँ एक ओर दोनों देशों ने ाऄपहृत मवहिाओं को ाईनके पररिारों को िापस िौटाने हेतु साथ
वमिकर काया क्रकया िहीं दूसरी ओर विश्व बैंक की मध्यस्थता से वसन्धु जि सांवध भी सांपन्न हुाइ। 1960
में पांवडत नेहरु तथा जनरि ाऄयूब खान ने ाआस सांवध पर हस्ताक्षर क्रकए तथा दोनों देशों के मध्य नदी
जि वितरण का दीघाकाि से िांवबत मुद्दा सुिझा विया गया।
1965 का युद्ध:
1947 में भारतीय सेना से वमिी हार के बािजूद पाक्रकस्तान कश्मीर पर ाअवधपत्य जमाना चाहता था।
ाआसी िम में ाऄप्रैि 1965 में गुजरात के कच्छ के रण में पाक्रकस्तान द्वारा सशस्त्र घुसपैठ की गयी। ाआसके
ाईपराांत ाआसने 1965 के ाऄगस्त एिां वसतम्बर में ऑपरे शन वजिालटर के रूप में जम्मू-कश्मीर में बड़ा
ाअिमण क्रकया। पाक्रकस्तान का विचार था क्रक ाईसे स्थानीय िोगों का समथान प्राप्त होगा क्रकन्तु यह
योजना िोगों को प्रभावित नहीं कर सकी और ाऄसफि हो गयी। ाआसी दौरान, कश्मीर मोचे पर दबाि
कम करने के विए तत्कािीन भारतीय प्रधानमांत्री िािबहादुर शास्त्री ने भारतीय टुकवड़यों को पांजाब
सीमा पर जिाबी ाअिमण करने का वनदेश क्रदया। ाआस युद्ध में भी भारत की विजय हुाइ तथा सांयुि राष्ट्र
के हस्तक्षेप के ाईपराांत सांघषा विराम क्रकया गया।
1971 का युद्ध:
पाक्रकस्तान में हुए ाअम चुनािों के ाईपराांत िहाां के ाअांतररक सांघषा ने हहसक रूप धारण कर विया। ाआस
चुनाि में जहााँ पविमी पाक्रकस्तान में सत्तारूढ़ जुवलफकार भुट्टो की पाटी ने विजय प्राप्त की िहीं पूिी
पाक्रकस्तान में शेख मुज़ीबुराहमान की ाऄिामी िीग ने ाऄवधकाांश सीटों पर बड़े ाऄांतर से जीत दजा की।
क्रकन्तु, शविशािी पविमी पाक्रकस्तानी धड़े ने िोकतावन्त्रक पररणाम को दरक्रकनार करते हुए िीग की
पररसांघ की माांग को ाऄस्िीकार कर क्रदया। ाआसके साथ ही पाक्रकस्तानी सेना ने शेख मुज़ीब को वगरफ्तार
कर विया और िू र ाईत्पीड़न के माध्यम से िोगों की ाअिाजों को दबाने का प्रयास क्रकया।
ाआन समस्याओं के स्थायी समाधान के विए पूिी पाक्रकस्तान के िोगों ने पाक्रकस्तान से बाांग्िादेश की
मुवि का सांघषा प्रारां भ क्रकया। ऐसे में पूिी पाक्रकस्तान से शरणार्थथयों के भारी प्रिाह के कारण, भारत ने
काफी विचार-विमशा के पिात् जनाांदोिन को भौवतक एिां नैवतक समथान प्रदान क्रकया। ाआसे पविमी
पाक्रकस्तान ने पाक्रकस्तान को तोड़ने के भारतीय षड्यांत्र के रूप में देखा।
जाता था, के सहयोग से के िि 10 क्रदनों में ही पाक्रकस्तानी सेना को ाअत्मसमपाण हेतु बाध्य कर क्रदया।
तत्पिात् एक स्ितांत्र राष्ट्र के रूप में बाांग्िादेश का ाईदय हुाअ तथा भारत ने एकपक्षीय युद्धविराम की
घोषणा कर दी। कु छ समय पिात् ाआां क्रदरा गााँधी तथा जुवलफकार भुट्टो के मध्य वशमिा समझौता हुाअ
तथा दोनों देशों के मध्य पुनाः शाांवत स्थावपत हुाइ। ाआसके बाद से भारत, वशमिा समझौते को दोनों देशों
के मध्य वििादों के समाधान की रूपरे खा के रूप में मान्यता देता रहा है।
कारवगि युद्ध:
1971 के युद्ध में वमिी हार के बाद, पाक्रकस्तान ने जम्मू-कश्मीर और भारत में विनाश तथा ाअतांक के
प्रसार हेतु ाऄपनी गुप्त एजेंवसयों द्वारा प्रवशवक्षत ाअतांकिाक्रदयों को भेजने और ‘छद्म (प्रॉलसी) युद्ध’ की
रणनीवत ाऄपनााइ।
1999 में तथाकवथत मुजावहद्दीनों ने वनयांत्रण रे खा पार कर मश्कोह, द्रास, कलसर, बटाविक ाअक्रद
ाआिाकों में कु छ भारतीय क्षेत्र में कधज़ा कर विया। ाआन गवतविवधयों में पाक्रकस्तान के हाथ होने का पता
िगने पर, भारतीय सैन्यदिों ने ाआस प्रालसी युद्ध का त्िररत ाईत्तर क्रदया वजसे ‘कारवगि सांघषा’ कहा
जाता है।
ाआस सांघषा ने समस्त विश्व का ध्यान ाअकर्थषत क्रकया लयोंक्रक ाआन दोनों ही देशों ने 1998 में परमाणु
क्षमता ाऄर्थजत कर िी थी और दोनों में से क्रकसी के भी द्वारा ाआसका प्रयोग क्रकया जा सकता था।
हािााँक्रक, भारतीय सैन्य दि ने पारां पररक युद्धक रणनीवतयों के प्रयोग तथा िायुसन
े ा की सहायता से
ाऄपने क्षेत्र को पुनाः प्राप्त कर विया। कारवगि सांघषा को िेकर एक बड़ा वििाद यह भी देखने को वमिा
क्रक तत्कािीन पाक्रकस्तानी प्रधानमांत्री को ाआस कदम की जानकारी नहीं दी गयी थी। कािाांतर में
तत्कािीन सैन्य प्रमुख जनरि परिेज़ मुशरा फ ने राष्ट्रपवत का पद धारण क्रकया।
भारत ने प्रारां भ से ही चीन के साथ वमत्रता की नीवत ाऄपनााइ। भारत ने 1 जनिरी, 1950 को नए
जनिादी गणराज्य चीन (People's Republic of China) को मान्यता दी तथा ऐसा करने िािा
पहिा राष्ट्र बना। ाआसके साथ ही नेहरु ने चीन की सांयुि राष्ट्र सुरक्षा पररषद् में सदस्यता को भी समथान
प्रदान क्रकया। वजस समय नेहरु और चीनी प्रधानमांत्री चााउ एन िााआ ने पांचशीि सांवध पर हस्ताक्षर
क्रकए, ाईसी समय भारत ने वतधबत के वििाक्रदत क्षेत्र में चीनी दािे को मान्यता प्रदान की तथा वतधबत
पर 1954 में क्रकये गए चीनी वनयांत्रण को स्िीकार कर विया।
1962 का युद्ध:
1962 में चीनी सेना द्वारा थााँगिा ररज पर ाअिमण करने तथा िहााँ से भारतीय सैन्य टु कवड़यों को
पीछे हटने को बाध्य करने के पररणामस्िरूप भारत और चीन के मध्य सांबांधों में खटास ाअ गयी। चीन
का यह कदम एक ाअगामी बड़े ाअिमण की प्रारां वभक हचगारी थी। ाऄलटू बर 1962 में चीनी सेना ने
भारत पर जोरदार हमिा क्रकया तथा NEFA (ितामान ाऄरुणाचि प्रदेश) के पूिी सेलटर में भारतीय
चौक्रकयों पर कधज़ा कर विया। NEFA में भारतीय सेना के कमाांडर वबना प्रवतरोध के पीछे हट गए तथा
चीनी सेनाओं को भारत पर ाअिमण का खुिा मागा वमि गया। ाईधर पविमी सेलटर में चीनी सेनाओं ने
गििान घाटी पर 13 चौक्रकयों पर कधज़ा कर विया तथा चुशुि हिााइपट्टी के समक्ष सांकट ाईत्पन्न हो
गया। चीन के ाआस कदम से भारत में भय की िहर दौड़ गयी तथा बाद में भारत ने ाऄमेररका और विटे न
से सहायता प्राप्त करने का प्रयास क्रकया, क्रकन्तु तब तक चीनी सेना ने स्ियां ही एकतरफ़ा सैन्य िापसी
की घोषणा कर दी। हािााँक्रक ाआस युद्ध के ाईपराांत िषों तक दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध तनािपूणा बने
रहे।
1962 के युद्ध के प्रभाि:
ाअर्थथक विकास एिां तृतीय पांचिषीय योजना के विए ाईपिधध सांसाधनों को रक्षा के ाईद्देश्य में िगा
क्रदया गया और भारत को ाऄत्यांत किप्रद वस्थवतयों का सामना करना पड़ा।
ाऄगस्त 1963 में, नेहरु को िोकसभा में ाऄविश्वास प्रस्ताि का सामना करना पड़ा।
1962 के युद्ध ने राष्ट्रीय ाऄपमान की भािना का सांचार क्रकया तथा देश के भीतर तथा बाहर भारत
की छवि धूवमि हुाइ।
चीन के ाआरादों को न समझ पाने तथा सैन्य तैयाररयों में कमी के कारण नेहरु की कटु ाअिोचना की
गयी।
1976 तक दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध वनवष्प्िय रहे। 1976 में सामान्य सम्बन्ध पुनाः बहाि हुए
तथा ाआसके बाद 1979 में तत्कािीन विदेश मांत्री ाऄटि वबहारी िाजपेयी ने चीन की यात्रा की।
[नोट: यहााँ के िि भारत की परमाणु नीवत की पृष्ठभूवम पर चचाा की जाएगी। भारत की परमाणु नीवत
के सन्दभा में विस्तृत वििरण ाअप सामान्य ाऄध्ययन, प्रश्न पत्र- 3 के सुरक्षा सम्बन्धी मुद्दे नामक ाऄध्याय
में पढ़ेंग।े ]
पांवडत नेहरु का सदैि यह मानना था क्रक ाअधुवनक भारत के द्रुतगवत से वनमााण के विए विज्ञान एिां
प्रौद्योवगकी सिाावधक महत्िपूणा है। ाईनकी औद्योगीकरण योजनाओं में एक महत्िपूणा वहस्सा परमाणु
कायािम का था वजसे 1940 के दशक के ाईत्तराधा में होमी जहााँगीर भाभा के नेतृत्ि में प्रारां भ क्रकया
गया। जून 1948 में िैज्ञावनक ाऄनुसांधान विभाग की स्थापना की गयी तथा ाआसके ाऄांतगात सिाप्रथम
ाऄगस्त 1948 में भारतीय परमाणु ाउजाा ाअयोग की स्थापना की गयी। तत्पिात् 3 ाऄगस्त, 1954 को
राष्ट्रपवत के ाअदेशानुसार, प्रधानमांत्री के प्रत्यक्ष वनदेशन में परमाणु ाउजाा विभाग (DAE) का गठन
क्रकया गया। ाआसके बाद, 1 माचा, 1958 के एक सरकारी सांकलप के द्वारा परमाणु ाउजाा विभाग के
ाऄांतगात परमाणु ाउजाा ाअयोग (AEC) की स्थापना की गयी। भारत परमाणु ाउजाा का प्रयोग के िि
शाांवतपूणा ाईद्देश्यों के विए करना चाहता था। नेहरु, हमेशा से परमाणु शस्त्रों के विरोधी थे, ाऄताः ाईन्होंने
सभी महाशवियों से पूणा परमाणु वनाःशस्त्रीकरण की ाऄपीि की। हािााँक्रक, ाआसके साथ ही ाईन्होंने
व्यािहाररक दृविकोण ाऄपनाते हुए परमाणु तकनीक के विकास को भी ख़ाररज नहीं क्रकया।
1974 में, ाआां क्रदरा गााँधी के नेतृत्ि में भारत ने ाऄपना पहिा परमाणु परीक्षण क्रकया। भारत ने ाआसे
शाांवतपूणा विस्फोट कहा तथा ाऄपना पक्ष रखते हुए तका क्रदया क्रक भारत के िि शाांवतपूणा ाईद्देश्यों के विए
परमाणु शवि का प्रयोग करने को प्रवतबद्ध है।
ाआससे पहिे सांयुि राष्ट्र सुरक्षा पररषद् के पाांच स्थायी सदस्यों, ाऄमेररका, सोवियत सांघ, रूस, यूनााआटेड
ककगडम तथा चीन (वजन्होंने परमाणु ाऄस्त्रों के वनमााण की क्षमता विकवसत कर िी थी) ने 1968 में शेष
विश्व पर परमाणु ाऄप्रसार सांवध (NPT) िागू करने का प्रयास क्रकया। भारत ने ाआस तरह के कदम को
भेदभािपूणा माना और ाआसका पािन करने से ाआांकार कर क्रदया। भारत का सदैि यह विचार रहा है क्रक
NPT जैसी सांवध का के िि गैर-परमाणु शवियों पर िागू क्रकया जाना, पाांच परमाणु सांपन्न राष्ट्रों के
की क्षमता का प्रदशान क्रकया गया। ाआसके कु छ समय पिात् ही, पाक्रकस्तान ने भी ाआस तरह का परीक्षण
क्रकया। भारत और पाक्रकस्तान के ाआन क़दमों से ाऄप्रसन्न होकर ाऄांतरााष्ट्रीय समुदाय ने कठोर प्रवतबांध
ाअरोवपत कर क्रदए। हािााँक्रक, बाद में जब भारत ने परमाणु हवथयारों के ‘प्रथम प्रयोग नहीं (नो फस्टा
यूज)’ करने की प्रवतबद्धता व्यि की, परमाणु ाउजाा के शाांवतपूणा ाईपयोग का विचार रखा तथा परमाणु-
मुि विश्व के स्िप्न हेतु िैवश्वक स्तर पर सत्यापन योग्य और गैर-भेदभािपूणा परमाणु वनरस्त्रीकरण के
प्रवत ाऄपनी प्रवतबद्धता दोहरााइ; तब ाआन प्रवतबांधों को हटा विया गया।
5.1. ाअपातकाि
26 जून 1975 को घोवषत ाअांतररक ाअपातकाि को स्ितांत्रता के पिात् भारत का सबसे बड़ा
राजनीवतक सांकट माना जाता है।
I. ाअर्थथक मुद्दे
o मांदी, बढ़ती बेरोजगारी, ाऄवनयांवत्रत मुद्रास्फीवत और ाऄनाज की कमी जैसे कारकों के सवम्मवित
प्रभाि ने गांभीर ाअर्थथक सांकट ाईत्पन्न क्रकया।
o बाांग्िादेश की मुवि के विए भारत द्वारा क्रकये गए समथान का भौवतक रूप से भारत के विदेशी
मुद्रा भडडार पर गांभीर प्रभाि पड़ा। ाआन भांडारों में कमी ाअाइ एिां बहुत से सांसाधनों की क्रदशा
बदिकर ाईन्हें रक्षा क्षेत्र की ओर मोड़ क्रदया गया।
o 1972 और 1973 में मानसून की वनरां तर विफिता ने भारत में खाद्यान्न ाईपिधधता को प्रभावित
क्रकया तथा यह व्यापक रूप से मूलयों में िृवद्ध का कारण बना।
o बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और ाअर्थथक मांदी के कारण औद्योवगक ाऄशाांवत ाईत्पन्न हुाइ। ाआस दौरान
देश के विवभन्न भागों में हड़तािें हुईं, वजनका सिाावधक व्यापक स्तर 1974 की देश व्यापी रे ििे
हड़ताि में देखा जा सकता है।
II. न्यायपाविका के साथ सांघषा
o िीमती ाआां क्रदरा गाांधी के नेतृत्ि में कें द्र सरकार ने सांविधान में सांशोधन क्रकया वजसने सांसद को नीवत
वनदेशक तत्िों को प्रभािी बनाने िािे विधायन के मामिे में मौविक ाऄवधकारों में कटौती करने की
शवि प्रदान की। ाअगे चिकर के शिानांद भारती िाद (1973) में, सिोच्च न्यायािय ने वनणाय क्रदया
क्रक सांविधान की कु छ ाअधारभूत विशेषताएाँ हैं, वजन्हें सांशोवधत नहीं क्रकया जा सकता है।
o के शिानांद िाद में शीषा न्यायािय के वनणाय से रुि कें द्र सरकार ने सिोच्च न्यायािय के मुख्य
न्यायाधीश के रूप में िररष्ठतम न्यायाधीश की वनयुवि की परां परा को बदि क्रदया। 1973 में,
सरकार ने तीन न्यायाधीशों की िररष्ठता को दरक्रकनार करते हुए न्यायमूर्थत ए. एन. रे को भारत के
मुख्य न्यायाधीश के रूप में वनयुि क्रकया।
o ाआिाहाबाद ाईच्च न्यायािय ने िोकसभा में ाआां क्रदरा गाांधी के चुनाि की िैधता पर समाजिादी नेता
राज नारायण की यावचका की सुनिााइ करते हुए ाईनके पक्ष में वनणाय क्रदया तथा सत्ता के दुरुपयोग
के ाअधार पर ाआां क्रदरा गााँधी के चुनाि को ाऄिैध घोवषत कर क्रदया। हािाांक्रक, सिोच्च न्यायािय ने
बाद में ाआस ाअदेश को ाअांवशक रूप से स्थवगत कर क्रदया और िीमती गाांधी को साांसद रहने की
ाऄनुमवत दी क्रकन्तु साथ ही यह ाअदेश भी क्रदया क्रक िह सांसद की कायािाही में भाग नहीं िे सकती
हैं।
III. ाअपातकाि का ाअरोपण
o ाआिाहाबाद ाईच्च न्यायािय के वनणाय और बाद में सिोच्च न्यायािय की राय और पहिे के ाअदेश को
ाअांवशक रूप से स्थवगत क्रकये जाने के कारण, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्ि में सभी राजनीवतक
दिों ने नैवतक ाअधार पर ाआां क्रदरा गााँधी से त्यागपत्र देने की माांग की। क्रकन्तु ाआां क्रदरा गाांधी ने ाआन
माांगों का विरोध क्रकया और प्रवतक्रियास्िरुप 26 जून, 1975 को ाअांतररक ाऄशाांवत के खतरे के
ाअधार पर सांविधान के ाऄनुच्छेद 352 के तहत ाअपात काि की घोषणा कर दी गयी। एक बार
ाअपातकाि घोवषत हो जाने के बाद, शवियों का सांघीय वितरण वनिांवबत रहता है और सभी
शवियााँ कें द्र सरकार में वनवहत हो जाती हैं। ाआस ाऄिवध के दौरान मूि ाऄवधकार न्यून हो जाते हैं।
ाअपातकाि की घोषणा के बाद प्रेस पर प्रवतबन्ध िगाए गए तथा विपक्ष के नेताओं की वगरफ़्तारी
की गयी।
ाअधुवनक भारत के महानतम व्यवियों में से एक जयप्रकाश नारायण के नाम पर ाआस ाअन्दोिन को
जे.पी.ाअांदोिन नाम क्रदया गया। ाआस ाअांदोिन को ाअम िोगों के समक्ष ाईपवस्थत बेरोजगारी और
ाअर्थथक करठनााआयों के बीच भारत में सािाजवनक जीिन और राजनीवत में व्याप्त भ्रिाचार के प्रत्युत्तर के
रूप में देखा जाता है। जनिरी 1974 में गुजरात के छात्रों ने ाऄनाज, खाना पकाने के तेि और ाऄन्य
ाअिश्यक िस्तुओं की कीमतों में िृवद्ध के वखिाफ प्रबि विरोध क्रकया। जैसे-जैसे विरोध प्रदशान बढ़ा,
ाआसमें राजनीवतक दि भी शावमि हो गए। पुविस प्रशासन ने ाऄत्यवधक बि, ाऄांधाधुांध वगरफ्तारी और
िाठी चाजा का ाआस्तेमाि क्रकया। बाद में कें द्र सरकार ने विधानसभा को भांग कर क्रदया और नये चुनािों
की घोषणा की।
गुजरात के छात्र ाअांदोिन के प्रयासों और सफिता से प्रेररत होकर माचा 1974 में छात्रों ने वबहार में
ाआसी तरह का ाअांदोिन ाअरम्भ क्रकया। जयप्रकाश नारायण ने ाऄपना राजनीवतक सांन्यास त्याग कर ाआन
छात्रों को सही नेतृत्ि प्रदान क्रकया। ाईन्होंने प्रधानमांत्री ाआां क्रदरा गाांधी के सत्तािादी ाअचरण से िोकतांत्र
की रक्षा के विए एिां व्यापक भ्रिाचार के विरुद्ध "सम्पूणा िाांवत" का ाअह्िान क्रकया।
जे.पी. ाअांदोिन के दौरान, िोगों ने सम्पूणा राज्य में समानाांतर सरकारों की स्थापना की तथा करों का
भुगतान नहीं क्रकया। जे.पी. ाअांदोिन को छात्रों, मध्य िगा, व्यापाररयों और बुवद्धजीवियों के एक िगा से
व्यापक समथान प्राप्त हुाअ।
जे.पी. ाअांदोिन को िगभग सभी गैर-िाम दिों का समथान भी वमिा। हािाांक्रक, 1974 के ाऄांत तक
ाअांदोिन की सांगठनात्मक सांरचनाओं के ाऄभाि के कारण जेपी ाअांदोिन मांद पड़ गया। ाआसमें शावमि
ाऄवधकाांश छात्रों ने ाऄपनी कक्षाएां पुनाः ाअरम्भ कर दीं। ाआसके साथ ही यह ाअांदोिन, गुजरात और
वबहार दोनों ही राज्यों में ग्रामीण और शहरी गरीबों को ाअकर्थषत करने में विफि रहा था। तथावप,
जेपी के नेतृत्ि ने तत्कािीन सरकार के वखिाफ ाअांदोिन को नेतृत्ि प्रदान कर ाआस ाअन्दोिन की साख
में िृवद्ध की और ाईसके बाद ाआस ाअन्दोिन ने जनता पाटी के रूप में सांयुि मोचाा बनाने एिां विपक्षी
दिों को िामबांद करने में एक महत्िपूणा भूवमका वनभााइ।
विचारण की प्रक्रिया में था। ाआसविए, दार्थजहिग वजिे के नलसिबाड़ी ाआिाके के स्थानीय नेता चारू
मजूमदार ने तका क्रदया क्रक भारत में िोकतांत्र और भूवम के वितरण की यह िोकताांवत्रक प्रक्रिया एक
ढकोसिा है और साथ ही एक िाांवत के विए एक दीघाािवधक गुररलिा युद्ध की रणनीवत को ाऄपनाने का
वनणाय विया।
मजूमदार के नेतृत्ि में ाआस नलसिी ाअांदोिन ने समृद्ध भूवम माविकों से जमीन छीनने और ाईसे गरीबों
एिां भूवमहीनों के बीच वितररत करने के विए बि का प्रयोग क्रकया। ाआसके समथाकों ने ाऄपने राजनीवतक
िक्ष्यों को प्राप्त करने के विए हहसक साधनों के ाईपयोग का समथान क्रकया। प्रारां भ में UF सरकार द्वारा
समझौते के विए एक मांवत्रमांडिीय वमशन भेजा गया क्रकन्तु यह वमशन विफि रहा और िाताा के बाद
क्रदए गए समाधान को चारू मजूमदार ने मानने से ाआनकार कर क्रदया। ाऄांतताः सरकारी दमन की नीवत
का प्रभाि पड़ा और जुिााइ 1967 तक ाऄवधकाांश नेताओं के जेि जाने के साथ ही यह क्रकसान ाअन्दोिन
भी ख़त्म हो गया।
नलसिी खतरे को वनयांवत्रत करने के विए बाद की सरकारों द्वारा क्रकये गए प्रयासों के बािजूद, ाआसी
तरह के ाअांदोिनों ने ाऄन्य क्षेत्रों यथा ाअांध्र प्रदेश में िीकाकु िम में जड़ें जमा िीं। यहाां माओत्से तुांग के
विचारों से प्रेररत 'िाांवतकाररयों' ने राज्य के साथ ाअत्मघाती सांघषा में जनजावतयों के समूह का नेतृत्ि
क्रकया। नलसिबाड़ी की तरह यहााँ भी ाऄसांतुि CPM नेताओं ने सशस्त्र सांघषा और गुररलिा युद्ध की राह
पकड़ िी। निांबर 1967 में ाअरम्भ हुाअ यह ाअांदोिन निांबर 1968 से फरिरी 1969 के मध्य और
तीव्र हो गया। ाऄप्रैि 1969 में चरम िामपांथी कायाकतााओं की एक नाइ पाटी CP(ML) के गठन के साथ
यह ाअन्दोिन सामूवहक सांघषा से गुररलिा कारा िााइ और व्यविगत हत्याओं की ओर मुड़ गया। ाऄांतताः
पुविस कारा िााइ के कारण यह ाअांदोिन मांद पड़ गया।
1971 तक ाअांदोिन को पुनजीवित करने के विए कु छ माओिादी गुटों द्वारा कमजोर प्रयास क्रकए गए
क्रकन्तु 1975 तक ाआन प्रयासों का ाऄांत हो गया। हािााँक्रक ाआसके बाद भी देश के दूरस्थ क्षेत्रों (ाअांध्र प्रदेश,
वबहार और मध्य प्रदेश के वपछड़े और गरीब क्षेत्र जहााँ ाऄवधकाांशताः जनजावत या वनम्न जावत के क्रकसान
और कृ वष मजदूर रहते हैं) में माओिाक्रदयों के समूह मौजूद थे। कािाांतर में 2000 के दशक के ाअरां भ में
काइ ाऄिग-ाऄिग समूह एकीकृ त CPI (माओिादी) बनाने के विए साथ ाअ गये वजससे भारत के कु छ
क्षेत्रों में गांभीर ाअांतररक सुरक्षा सम्बन्धी खतरे ाईत्पन्न हुए हैं।
साांप्रदावयकता की समस्या तब ाअरम्भ होती है जब क्रकसी धमा को राष्ट्रीय एकता और पहचान के ाअधार
के रूप में देखा जाता है। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब क्रकसी धमा को विवशि और पक्षपातपूणा
शधदों में ाऄवभव्यि क्रकया जाता है तथा क्रकसी विशेष धमा के ाऄनुयावययों को दूसरे धमा के ाऄनुयावययों के
विरुद्ध खड़ा कर क्रदया जाता है।
साांप्रदावयक राजनीवत ाआस विचार पर ाअधाररत है क्रक धमा सामावजक समुदाय का मुख्य ाअधार है।
साांप्रदावयकता की सबसे ाअम ाऄवभव्यवि रोज़मराा की मान्यताओं में होती है जो वनयवमत रूप से
धार्थमक पूिााग्रहों, धार्थमक समुदायों की रूक्रढ़िाक्रदता और ाऄन्य धमों की तुिना में क्रकसी धमा विशेष की
िेष्ठता में विश्वास को शावमि करती है। ाआसके साथ ही धार्थमक ाअधारों पर राजनीवतक ाअांदोिन,
साांप्रदावयकता का एक और बहुधा क्रदखााइ देने िािा रूप है। ाआसमें पवित्र प्रतीकों, धार्थमक नेताओं की
भािनात्मक ाऄपीि और भय का ाईपयोग क्रकया जाता है ताक्रक क्रकसी ाऄन्य धार्थमक समुदाय के विरुद्ध
ाईस धमा के िोगों को एकजुट क्रकया जा सके । कभी-कभी साांप्रदावयकता साांप्रदावयक हहसा, दांगों और
नरसांहार के िीभत्स रूपों में हमारे सामने ाअती है।
साांप्रदावयकता, हमारे देश में िोकतांत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौवतयों में से एक थी। राष्ट्र के
सांस्थापक एक धमावनरपेक्ष भारत चाहते थे, ाआसविए ाईन्होंने सख्ती से स्ियां को भारत के ाअवधकाररक
धमा की घोषणा करने से रोका और विवभन्न धमों के सभी ाऄनुयावययों को समान स्ितांत्रता प्रदान की।
देश में प्रत्येक व्यवि के विए समान स्ितांत्रता और देश के धमावनरपेक्ष चररत्र के बािजूद भारत ाऄनेक
साांप्रदावयक दांगों का साक्षी रहा जो ाऄत्यांत िू र और भयानक थे।
यहाां साांप्रदावयक राजनीवत की कु ख्यात घटनाओं पर चचाा ाअिश्यक हो जाती है।
मुगि सम्राट बाबर के सेनापवत मीर बाकी ताशकां दी द्वारा वनर्थमत ाऄयोध्या की बाबरी मवस्जद पर काइ
दशकों से वििाद चि रहा था। कु छ हहदुओं का मानना है क्रक यह मवस्जद, भगिान राम के जन्मस्थान
पर वनर्थमत राम मांक्रदर को ध्िस्त कर बनााइ गाइ थी। यह वििाद न्यायािय पहुांचा और ाआसके न्यायािय
में होने के कारण 1940 के ाऄांत में मवस्जद को बांद कर क्रदया गया।
ाआां क्रदरा गाांधी सरकार के ाअदेशों के तहत, जून 1984 में भारतीय सेना ने कोडनेम "ऑपरे शन धिू स्टार"
के तहत ाऄमृतसर के स्िणा मांक्रदर में वसख ाअतांकिाक्रदयों के विरुद्ध हमिा कर क्रदया। सेना वसखों के
पवित्र स्थान से ाअतांकिाक्रदयों को बाहर वनकािने में सफि रही, क्रकन्तु ाआस घटना ने ाईन्हें रुि कर क्रदया
और ाईनकी धार्थमक भािनाओं को ठे स पहुांची। ाआस कारा िााइ का बदिा िेने के विए िीमती गाांधी के
ाऄांगरक्षकों ने ाईनके घर में ही ाईनकी हत्या कर दी। ाआसके बाद रुि काांग्रेस कायाकतााओं और समथाकों ने
कवथत रूप से देश में वनदोष वसख िोगों की िू रतापूणा हत्याएाँ कीं। वसख दांगों के दौरान क्रदलिी
सिाावधक प्रभावित क्षेत्र था। कें द्र सरकार ने दोषी िोगों के सम्बन्ध में पूछताछ करने और
सावजशकतााओं का पता िगाने हेतु ाऄनेक ाअयोग गरठत क्रकए, क्रकन्तु ाआस तरह के ाअयोगों से कोाइ ठोस
वनष्प्कषा प्राप्त नहीं हुाअ। वसख विरोधी दांगों के पीवड़तों के सम्बन्धी, घटना के 30 िषों बाद भी ाऄभी
न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
फरिरी और माचा 2002 के महीनों में गुजरात ाऄपने ाआवतहास में सबसे ाईग्र साांप्रदावयक दांगों में से एक
का साक्षी रहा। दांगों का ाअरम्भ ‘गोधरा’ स्टेशन पर घटी ाईस घटना से हुाअ वजसमें ाऄयोध्या से
कारसेिकों को िेकर ाअ रही रे िगाड़ी की एक बोगी को ाअग िगा दी गयी थी। ाआस ाअगजनी को
मुसिमानों की सावजश मान कर गुजरात के काइ वहस्सों में मुसिमानों के वखिाफ बड़े पैमाने पर हहसा
ाअरम्भ हुाइ। राष्ट्रीय मानिावधकार ाअयोग ने हहसा को वनयांवत्रत करने, पीवड़तों को राहत प्रदान करने
और ाआस हहसा के ाऄपरावधयों पर मुकदमा चिाने में गुजरात सरकार की भूवमका की ाअिोचना की।
गुजरात दांगों से पता चिता है क्रक सरकारी मशीनरी भी साांप्रदावयक ाईन्माद के प्रभाि में ाअ सकती है।
िस्तुताः विवभन्न राज्यों और क्षेत्रों के मध्य व्याप्त ाअर्थथक ाऄसमानता विवभन्न समस्याओं का एक
सांभावित कारण हो सकती है। ाआसविए स्ितांत्रता के बाद से ही, राष्ट्रीय सरकार को क्षेत्रीय विकास में
ाऄसांतुिन दूर करने के ाईत्तरदावयत्ि का बोध था। ऐसे में कें द्र सरकार ने गरीब राज्यों एिां क्षेत्रों में सांिृवद्ध
दर को प्रभावित करने तथा तुिनात्मक रूप से समृद्ध राज्यों से ाअर्थथक ाऄांतराि को पाटने हेतु विवभन्न
नीवतयों की एक िृांखिा ाऄपनााइ।
भूवमपुत्र की ाऄिधारणा (Sons of Soil Doctrine) के ाऄनुसार क्रकसी राज्य पर िहाां वनिास करने
िािे बहुसांख्यक भाषााइ समूह का ाऄवधकार होता है ाऄथिा िह क्षेत्रीय भाषा बोिने िािे वनिावसयों के
विए ‘मातृभूवम’ के समान है। यह ाऄिधारणा मुख्य रूप से शहरों में ाऄवधक िोकवप्रय है। ाआसके तहत
ाअर्थथक सांसाधनों और ाअर्थथक ाऄिसरों के विवनयोजन के सांघषा में, प्रायाः सांसाधनों की प्रावप्त के विए
साांप्रदावयकता, जावतिाद और भााइ-भतीजािाद को साधन के रूप में ाऄपनाया जाता है।
ाआसी प्रकार, क्रकसी भाषा के प्रवत वनष्ठा और क्षेत्रिाद का प्रयोग "बाहरी िोगों" को व्यिवस्थत रूप से
बाहर करने के विए क्रकया जाता रहा है। मुब
ां ाइ (मराठी) [ाआससे पहिे बॉम्बे], बैंगिोर (कन्नड़),
कोिकाता (बांगािी) ाआत्याक्रद जैसे बड़े महानगरों में ाआस वसद्धाांत का व्यापकता से ाईपयोग क्रकया गया।
भारतीय सांविधान के ाऄनुच्छेद 371 (D) में प्रािधावनत "मुलकी वनयम" रोजगार और वशक्षा में स्थानीय
िोगों के ाऄवधकारों की रक्षा करता है। ाआसे ाअांध्र प्रदेश में ाअांदोिन के पिात् ाऄांताःस्थावपत क्रकया गया
था। यह भूवमपुत्र की ाऄिधारणा का एक ाईदाहरण है, िेक्रकन यह के िि समूह ‘ग’ और ‘घ’ की सेिाओं के
विए प्रदान क्रकया गया था।
भूवमपुत्र की ाऄिधारणा प्रिावसयों और स्थानीय वशवक्षत मध्यिगीय युिाओं के मध्य, औद्योवगक और
मध्यिगा की नौकररयों के विए िास्तविक या सांभावित प्रवतस्पधाा की वस्थवत में ाईत्पन्न होती है। प्रिासी-
विरोधी या भूवमपुत्र की ाऄिधारणा के ाऄनुपािन का सबसे कु ख्यात ाईदाहरण महाराष्ट्र में वशिसेना
द्वारा ाअरम्भ क्रकया गया ाअन्दोिन था। वशिसेना द्वारा क्षेत्रीय वनष्ठा की ाऄपीि की गयी और ाआसने शीघ्र
ही फासीिादी स्िरूप ग्रहण कर विया। हािाांक्रक, न्यायाियों द्वारा वनिास के ाअधार पर ाअरक्षण को
स्िीकृ वत प्रदान की गाइ परन्तु साथ-साथ िोगों के ाअिागमन के सांदभा में ाईनके प्रिास और ाऄन्य सांबद्ध
मौविक ाऄवधकारों को भी सांरक्षण प्रदान क्रकया गया है।
6.2. जम्मू - कश्मीर एिां पां जाब का मु द्दा (Issue of J & K, Punjab)
जम्मू-कश्मीर राज्य के ाऄांतगात तीन सामावजक और राजनीवतक क्षेत्र शावमि हैं: जम्मू, कश्मीर और
िद्दाख। कश्मीर घाटी ाआस क्षेत्र का कें द्रीय भाग है। जम्मू में वगररपदीय एिां मैदानी भाग सवम्मवित हैं
तथा यहााँ विवभन्न भाषाएाँ बोिने िािे हहदू, मुसिमान और वसख वनिास करते हैं। िद्दाख क्षेत्र एक
पहाड़ी क्षेत्र है। ाआस क्षेत्र की जनसांख्या ाऄत्यांत कम है, जो बौद्धों और मुसिमानों के मध्य समान रूप से
विभावजत है।
पांजाब की सामावजक सांरचना में पररितान सिप्राथम विभाजन के दौर में और तत्पिात 1966 में
हररयाणा और वहमाचि प्रदेश के वनमााण के ाईपराांत हुाअ। यहााँ स्ितांत्रता से पूिा, 1920 में वसखों की
राजनीवतक शाखा के रूप में ाऄकािी दि का गठन क्रकया गया था। ाआस दि ने एक ‘पांजाबी सूबा’ के
गठन के विए ाअांदोिन का नेतत्ृ ि क्रकया। विभाजन के पिात्, वसख एक खांवडत एिां ाऄपेक्षाकृ त छोटे
पांजाब राज्य में बहुमत में थे। ाआसविए ाऄपनी माांग को पूरा करिाने के विए, 1970 के दशक के दौरान
ाऄकावियों के एक िगा ने ाआस क्षेत्र के विए राजनीवतक स्िायत्तता की माांग शुरू कर दी। ाईन्होंने 1973 में
ाऄपने ाअनांदपुर सावहब सम्मेिन में ाआस सांबांध में एक प्रस्ताि पाररत क्रकया। ाआस प्रस्ताि ने क्षेत्रीय
स्िायत्तता और देश में कें द्र-राज्य सांबांधों को पुनाः पररभावषत करने पर बि क्रदया। ाईन्होंने वसखों का
बोिबािा (प्रभुत्ि या ाअवधपत्य) प्राप्त करने को ाऄपना िक्ष्य घोवषत क्रकया। हािाांक्रक, ाआसका ाऄथा भारत
से ाऄिग होना नहीं था। िेक्रकन ाऄवधक चरमपांथी तत्िों ने "खाविस्तान" के रूप में भारत से पूणा
स्ितन्त्रता की भी माांग प्रारां भ कर दी।
ाआसके ाईपराांत ाऄकािी नेतृत्ि में पररितान हुाअ और ाआसने ाईदारिादी से ाईग्रिादी रूप ग्रहण कर विया।
चूाँक्रक 1947 से ही राज्य में ाअांवशक रूप से साांप्रदावयक राजनीवत का प्रारां भ हो गया था, ाऄताः 1981 में
पांजाब में ाऄकािी ाईग्रिाद के साथ-साथ, ाअतांकिादी तत्िों का भी समािेश हुाअ। ाआन तत्िों ने
खाविस्तान के वनमााण के विए सशस्त्र विद्रोह का मागा ाऄपनाया। ाईन्होंने ाऄमृतसर में स्िणा मांक्रदर को
ाऄपना मुख्यािय बनाया और ाआसे एक सशस्त्र क्रकिे में पररिर्थतत कर क्रदया। जून 1984 में, भारत
सरकार ने ाअतांकिाक्रदयों को बाहर वनकािने के विए "ऑपरे शन धिू स्टार" नामक सफि सैन्य कारा िााइ
की। ाआस कारा िााइ के दौरान पवित्र स्थान क्षवतग्रस्त हो जाने के कारण िोगों की भािनाओं को ाअघात
पहुांचा तथा ाआससे ाअतांकिादी और चरमपांथी समूहों को प्रोत्साहन वमिा। कु छ समय पिात, भारतीय
प्रधानमांत्री ाआां क्रदरा गाांधी के ाऄांगरक्षकों ने वसखों की भािनाओं का बदिा िेने के विए ाईनकी हत्या कर
दी, वजसके पररणामस्िरूप हहसक वसख-विरोधी दांगें भड़क गये।
शाांवत के प्रयास
ाऄगस्त 1985 में भारत के नि वनिाावचत प्रधानमांत्री राजीि गाांधी ने ाऄकािी दि के तत्कािीन ाऄध्यक्ष
हरचांद हसह िोंगोिाि के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर क्रकए। ाआसे "राजीि गाांधी-िोंगोिाि ाऄकॉडा
या पांजाब ाऄकॉडा" के रूप में भी जाना जाता है। पांजाब में वस्थवत को सामान्य करने की क्रदशा में यह एक
सकारात्मक कदम था।
ाआस समझौते की मूि विशेषताएाँ थीं:
चांडीगढ़ पांजाब को क्रदया जाना।
राजस्थान, पांजाब, हररयाणा के मध्य जि के बाँटिारे के विए न्यायावधकरण का गठन।
दांगा-पीवड़त िोगों के विए मुाअिजा।
पांजाब से AFSPA का वनरसन।
क्रकन्तु ाआस समझौते द्वारा तत्काि शाांवत स्थावपत नहीं हो सकी। ाईग्रिाद और ाईग्रिाद-विरोधी हहसा
जारी रही वजससे मानि ाऄवधकारों का व्यापक ाईलिांघन हुाअ। ाऄकािी दि का विखांडन प्रारां भ हो गया।
राज्य में सामान्य राजनीवतक प्रक्रिया को वनिांवबत कर राष्ट्रपवत शासन िागू क्रकया गया था। धीरे -धीरे
राज्य से सेना को हटाते हुए सुरक्षा बिों को तैनात क्रकया गया। 1990 के मध्य तक पांजाब में शाांवत
स्थावपत की जा सकी। ाआसके पिात् हुए चुनाि में भाजपा और वशरोमवण ाऄकािी दि का गठबांधन
विजयी हुाअ और राज्य में िोकताांवत्रक प्रक्रिया को पुनाः प्रारां भ क्रकया गया।
पूिोत्तर क्षेत्र
पूिोतर क्षेत्र की क्षेत्रीय ाअकाांक्षाएां 1980 के दशक में और ाऄवधक मुखर हो गईं। ाआस क्षेत्र में 1947 के
बाद से ाऄनेक पररितान हुए हैं। मवणपुर, वत्रपुरा, खासी वहलस ऑफ मेघािय जैसी ररयासतों का
स्ितांत्रता के पिात भारत में वििय हुाअ। सांपूणा पूिोत्तर क्षेत्र में राजनीवतक पुनगाठन का स्िरूप पूणत
ा ाः
वभन्न रहा। ाआससे पूि,ा भारत के विभाजन ने पूिोत्तर क्षेत्र को एक स्थिरुद्ध क्षेत्र में पररिर्थतत कर क्रदया
और ाआसे ाअर्थथक रूप से प्रभावित क्रकया। भारत की मुख्यधारा से ाआस ाऄिगाि के कारण, यह क्षेत्र
विकास के मानकों के सांदभा में वपछड़ा रहा।
नागािैंड को 1960 में, मेघािय, मवणपुर एिां वत्रपुरा को 1972 में और ाऄरुणाचि प्रदेश एिां वमजोरम
को 1987 में ाऄिग राज्य का दजाा प्रदान क्रकया गया। ाआस क्षेत्र के ाऄिगाि, विवभन्न जनजावतयों एिां
ाईनकी सांस्कृ वत के कारण ाआसकी जरटि सामावजक सांरचना, विकास का ाऄभाि, पूिोत्तर क्षेत्र एिां शेष
भारत के मध्य कमजोर सांचार ाअक्रद के कारण ाआस क्षेत्र और कें द्र के पारस्पररक सांबांधों में कटुता ाईत्पन्न
हो गयी। ाआसके साथ ही ाआस क्षेत्र के वनिावसयों की विवभन्न माांगें भी सामने ाअयीं। शेष भारत के साथ
कमजोर सांबांधों के कारण, ाआस क्षेत्र के वनिासी ाऄपनी स्िायत्तता, ाऄिगाििादी ाअांदोिनों और ाआस क्षेत्र
में बाहरी िोगों के प्रिेश के विरोध हेतु प्रेररत हुए।
1972 में ाआस क्षेत्र के व्यापक पैमाने पर पुनगाठन के बाद, एक क्षेत्रीय वनकाय, पूिोत्तर पररषद (NEC)
का गठन क्रकया गया वजसका ाईद्देश्य ाऄांताःक्षेत्रीय ाऄसमानताओं को कम करने हेतु ाऄांतर-राज्यीय सहयोग,
क्षेत्रीय योजना और क्षेत्रीय एकीकृ त विकास के विए एक मांच प्रदान करना था।
हािाांक्रक, यह पररषद् क्षेत्र की स्िायत्तता सांबांधी भािनाओं और ाईसके विए प्रारां भ हहसक ाऄिगाििादी
ाअांदोिनों को वनयांवत्रत करने में विफि रही। पूिोत्तर क्षेत्र के विवभन्न वहस्सों से ाईठने िािी माांगों पर
वनम्नविवखत वबन्दुओं के तहत चचाा की गयी है:
स्ितन्त्रता के पिात्, मवणपुर और वत्रपुरा को छोड़कर, सम्पूणा पूिोत्तर क्षेत्र ाऄसम राज्य में शावमि था।
साांस्कृ वतक और जनजातीय वभन्नता के कारण, ाआस क्षेत्र में रहने िािे गैर-ाऄसवमया िोग, स्ियां को
मैदानी भाग में रहने िािे ाऄसवमया और बांगािी िोगों से पृथक मानते थे। ाआसके ाऄवतररि, ाऄसम
सरकार द्वारा ाईन पर ाऄसवमया भाषा सांबांधी बाध्यताएां ाअरोवपत कर दी गयीं। ाआन गैर-ाऄसवमया िोगों
ने ाआस कदम के वखिाफ हहसक विरोध प्रदशान क्रकया और जनजातीय नेताओं ने ाऄसम से ाऄिग होने की
माांग प्रारम्भ कर दी। ाऄिगाि के विए ाऄपनी ाअिाज को मजबूत करने हेतु जनजातीय नेताओं ने ‘ाइस्टना
ाआां वडयन रााआबि यूवनयन’ का गठन क्रकया जो बाद में 1960 में ‘ाअि पाटी वहि िीडसा काांफ्ेंस’ के रूप
में पररिर्थतत हो गयी।
कािाांतर में ाआनकी माांगें स्िीकार करते हुए एकीकृ त ाऄसम राज्य के विभाजन से काइ राज्यों का वनमााण
क्रकया गया। हािाांक्रक ाआन माांगों की पूर्थत के बाद भी बोडो, काबी और दीमा जैसी कु छ जनजावतयों की
एक ाऄिग राज्य की ाअकाांक्षाओं को पूरा नहीं क्रकया जा सका। ाईन्होंने कें द्र सरकार का ध्यान ाऄपनी
स्िायत्तता सांबांधी माांगों की ओर ाअकर्थषत क्रकया तथा जन ाअांदोिनों और विद्रोह के माध्यम से जनमत
को सांगरठत क्रकया। क्रकन्तु कें द्र के विए सभी क्षेत्रीय ाअकाांक्षाओं को पूरा करना और छोटे -छोटे राज्यों का
वनमााण सांभि नहीं था। ाआसविए कें द्र ने ाआस माांग को शाांत करने हेतु कु छ ाऄन्य विकलप (जैसे
'जनजावतयों के विए स्िायत्त वजिों के गठन') प्रदान क्रकए।
6.3.2.1. वमजोरम
वमजो िोग कभी भी स्ियां को विरटश सांघ का वहस्सा नहीं मानते थे। ाआसविए ाईन्होंने भारत की
स्ितन्त्रता के पिात स्ियां को भारतीय मानने से भी ाआां कार कर क्रदया। 1959 में ाऄसम में पड़े ाऄकाि के
दौरान, वमजो िोगों ने सरकार के ाऄकाि राहत प्रयासों में ाईपेवक्षत महसूस क्रकया ाआसके पिात् ाईनमें
ाऄिगाििाद की भािना बढ़ गयी। वमजो िोगों के एक िगा के ाऄसांतोष के कारण, 1961 में िाि डेंगा के
MNF ने गुररलिा युद्ध के माध्यम से भारतीय सेना के वखिाफ सशस्त्र ाऄवभयान प्रारां भ कर क्रदया। ाआन्हें
पाक्रकस्तान सरकार से सहायता और पूिी पाक्रकस्तान में ाअिय प्राप्त होता था। पाक्रकस्तान विवभन्न
प्रकार से भारत को ाऄवस्थर करने के विए भारत में ऐसे सभी ाऄिगाििादी ाअांदोिनों को सहायता
प्रदान कर रहा था। कें द्र सरकार ने MNF विद्रोह को समाप्त करने के विए थि और िायु सेना का प्रयोग
क्रकया। ाआस सांघषा की व्यथाता को महसूस करने के बाद, िाि डेंगा ने भारत सरकार के साथ िाताा प्रारां भ
की। 1986 में तत्कािीन प्रधानमांत्री राजीि गाांधी और िाि डेंगा के मध्य वमजो-ाऄकॉडा के नाम से एक
समझौता सांपन्न हुाअ। ाआस समझौते के ाऄनुसार, वमजोरम को विशेष शवियों के साथ एक पूणा राज्य का
ितामान में, ाआस राज्य ने विकास कायािमों के कायाान्ियन और कृ वष को िाभकारी बनाने में सराहनीय
काया क्रकया है।
6.3.2.2. नागािैं ड
नागा पहावड़यों में वनिास करने िािे नागा वभन्न-वभन्न जनजावतयों से सांबांवधत थे तथा ाआनमें भाषागत
वभन्नता भी विद्यमान थी। ाऄांग्रज
े ों ने नागा िोगों को सापेवक्षक ाऄिगाि की वस्थवत में छोड़ क्रदया था।
ाऄांग्रेजों द्वारा ाऄनुमत वमशनरी गवतविवधयों के कारण िहाां एक वशवक्षत िगा ाईत्पन्न हुाअ जो एक पृथक
नागा पहचान का ध्िजिाहक बन गया था। ाआसने भारत से पूणा स्ितन्त्रता एिां पृथकता की माांग की।
विरटश शासन के ाऄांत के तुरांत बाद नागाओं ने नागा राष्ट्रीय पररषद (NNC) के ाऄांगामी जापू क्रफजो के
नेतृत्ि में भारत से स्ितांत्रता और पृथकता की ाऄपनी माांगों को व्यि क्रकया।
1951 में NNC द्वारा ाअयोवजत एक जनमत सांग्रह के बाद, क्रफजो ने माचा 1956 में भूवमगत नागा
सांघीय सरकार (NFG) और नागा सांघीय सेना (NFA) के गठन के माध्यम से भारत सरकार के विरुद्ध
सशस्त्र विद्रोह प्रारां भ कर क्रदया। भारत सरकार द्वारा विद्रोह को दबाने के विए सेना की सहायता िी
गयी और 1958 में, राज्य में सशस्त्र बि (विशेष शवियाां) ाऄवधवनयम को ाऄवधवनयवमत क्रकया गया।
सरकार ने 1957 में काइ नागा क्षेत्रों को एक स्िायत्त ढाांचे के भीतर शावमि कर विद्रोह को समाप्त करने
में सीवमत सफिता प्राप्त करने की कोवशश की और 1963 में नागािैंड राज्य का गठन क्रकया गया।
सांगठन
नागा राष्ट्रीय पररषद् (NNC) के नेताओं के एक िगा ने 11 निांबर 1975 को भारत सरकार के साथ
वशिाांग समझौते पर हस्ताक्षर क्रकए, वजसके तहत NNC और NFG का एक िगा हहसा का मागा छोड़ने
पर सहमत हो गया। थूाआांगिेंग मुाआिा (ाईस समय िे चीन में थे) के नेतृत्ि में 140 सदस्यों के एक समूह ने
वशिाांग समझौते को स्िीकार करने से ाआांकार कर क्रदया और 1980 में नेशनि सोशविस्ट कााईां वसि ऑफ
नागािैंड (NSCN) का गठन क्रकया। ाआस सांगठन में मुाआिा के साथ ाआसाक वचसी सू और एस एस
खापिाांग भी शावमि थे। 1988 में, एक हहसक सांघषा के पिात NSCN का NSCN ( ाआसाक
मुाआिा:IM) और NSCN (खापिाांग:K) में विभाजन हो गया जबक्रक NNC समाप्त हो गया। 1991 में
िांदन में क्रफजो की मृत्यु के पिात्, NSCN (IM) के महत्ि में िृवद्ध हुाइ।
NSCN का मुख्य ाईद्देश्य पूिोत्तर भारत और बमाा में नागा िोगों से ाऄवधिावसत क्षेत्रों को एकजुट करके
एक सांप्रभु राज्य "नागाविम" की स्थापना है। हािाांक्रक कें द्र सरकार और NSCN (IM) तथा बाद में
NSCN (K) के मध्य सांघषा विराम समझौतों के कारण नागा क्षेत्रों में हहसा में कमी ाअयी है। महत्िपूणा
बात यह है क्रक NSCN (IM) नेतृत्ि और भारत सरकार के मध्य काइ चरणों की िातााओं के पिात
ाऄगस्त 2015 में "फ्े मिका समझौते" पर हस्ताक्षर क्रकए गए। हािाांक्रक, NSCN (K) द्वारा युद्धविराम
का ाईलिांघन करने और हहसा में शावमि होने से पड़ोसी राज्यों जैसे ाऄसम, मवणपुर और ाऄरुणाचि में
भय का माहौि बना हुाअ है और ाऄभी भी नागा समस्या का ाऄांवतम समाधान प्राप्त क्रकया जाना सांभि
नहीं हो सका है।
देश के ाऄन्य भागों से पूिोत्तर क्षेत्र में िोगों के प्रिासन ने ाऄनेक समस्याएां ाईत्पन्न की हैं तथा 'स्थानीय'
प्रिासी िोगों को ाऄवतिमण करने िािों के रूप में देखा जाता था। यह माना जाता था क्रक ये स्थानीय
वनिावसयों की भूवम, रोजगार के ाऄिसरों और राजनीवतक शवि जैसे सीवमत सांसाधनों को छीनकर
वबना क्रकसी िैध कारण के स्थानीय ाअबादी को ाआनसे िांवचत कर देते थे। 1975 से 1985 तक ाऄसम
ाअांदोिन का मुख्य ाईद्देश्य बाहरी िोगों को ाआस क्षेत्र से बाहर वनकािना था। ाआसका मुख्य िक्ष्य
बाांग्िादेश से ाअकर बसे बांगािी मुवस्िम थे।
1979 में ऑि ाऄसम स्टू डटें यूवनयन (AASU), एक छात्र समूह जो क्रकसी भी राजनीवतक दि से
सांबांवधत नहीं था, ने बाहरी िोगों के विरुद्ध ाअन्दोिन (anti-foreigner movement) का नेतृत्ि
क्रकया। ाआनका मुख्य बि ाऄिैध प्रिासन, बांगािी एिां ाऄन्य बाहरी िोगों के प्रभुत्ि तथा दोषपूणा मतदाता
के रूप में िाखों ाअप्रिावसयों के पांजीकरण के विरोध पर था। AASU सदस्यों ने ाऄहहसक और हहसक
दोनों विवधयों का प्रयोग क्रकया। ाईनके हहसक ाअांदोिन के कारण काइ मौतें हुईं और व्यापक स्तर पर
सांपवत्तयों का नुकसान हुाअ।
6 िषा के हहसक ाअांदोिन के पिात तत्कािीन प्रधानमांत्री राजीि गाांधी ने AASU नेताओं से िाताा की।
1985 में दोनों पक्षों (कें द्र सरकार और AASU) ने ाऄसम समझौते पर हस्ताक्षर क्रकए। ाआस समझौते के
ाऄनुसार, बाांग्िादेश युद्ध के दौरान और युद्ध के पिात् ाऄसम में प्रिास करने िािे विदेशी िोगों की
पहचान कर ाईन्हें वनिाावसत क्रकया जाना था। ाआस समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ ही, AASU और
दि ने 1985 में बाहरी िोगों की समस्या का समाधान करने और ाऄसम को "गोलडन ाऄसम" बनाने के
िादे के साथ विधानसभा चुनाि में विजय प्राप्त की। हािाांक्रक ाअप्रिासन की समस्या का समाधान ाऄभी
तक नहीं क्रकया जा सका है, िेक्रकन ाआसके द्वारा कु छ हद तक शाांवत स्थावपत की गयी है।
ाईपयुाि िर्थणत ाअांदोिनों में वनवहत स्िायत्तता और ाऄिगाि की माांग की चचाा से यह स्पि है क्रक क्षेत्रीय
ाअकाांक्षाएां िोकताांवत्रक राजनीवत का भाग हैं। ऐसी ाअकाांक्षाओं की ाऄवभव्यवि विश्व भर में विद्यमान
है। विटेन में, स्कॉटिैंड, िेलस और ाईत्तरी ाअयरिैंड में भी ऐसी क्षेत्रीय ाअकाांक्षाएां ाऄवभव्यि की गयी हैं।
स्पेन (बास्क में) और िीिांका (ाईत्तरी प्राांत में) भी ाआस तरह के मुद्दे का सामना कर रहे हैं।
ाआस सन्दभा में प्रमुख रूप से यह तका क्रदया जा सकता है क्रक क्षेत्रीय ाअकाांक्षाओं का दमन सिोत्तम ाईपाय
नहीं है। बवलक िोकताांवत्रक मानदांडों के तहत विचार-विमशा, परामशा और िाताा द्वारा ाआसका समाधान
सांभि है।
भारत ाऄनेक भाषाओं की भूवम है, प्रत्येक भाषा की विवशि विवप, व्याकरण, शधदाििी और सावहवत्यक
परां परा है। िषा 1917 में, भारत में भाषााइ प्राांतों के ाअधार पर एक सांगठनात्मक सांरचना के वनमााण का
तीव्र हो गाइ, जैसा क्रक ऐलय के रि, सांयुि महाराष्ट्र और विशाि ाअन्ध्र के विए ाअांदोिनों में देखा गया।
1948 में सांविधान सभा ने विशेष रूप से ाअांध्र, कनााटक, के रि और महाराष्ट्र के मामिे में भाषााइ प्राांतों
की िाांछनीयता की जाांच करने के विए न्यायमूर्थत एस. के . धर की ाऄध्यक्षता में भाषााइ प्राांत ाअयोग का
गठन क्रकया। धर ाअयोग ाईस समय भाषााइ ाअधार पर राज्यों के पुनगाठन के पक्ष में नहीं था लयोंक्रक
ाआससे राष्ट्रीय एकता के समक्ष खतरा ाईत्पन्न हो सकता था और यह प्रशासवनक रूप से ाऄसुविधाजनक
था।
हािाांक्रक, भाषााइ राज्यों के मुखर समथाकों के तुविकरण के विए, काांग्रेस ने भाषााइ प्रान्तों के प्रश्न पर नए
वसरे से विचार करने हेतु क्रदसांबर 1948 में एक सवमवत वनयुि की, वजसे जेिीपी (जिाहर िाि नेहरू,
सरदार पटेि और पट्टाभी सीतारमैय्या) सवमवत भी कहा जाता है। 1949 में पेश की गयी ाऄपनी ररपोटा
में जेिीपी सवमवत ने भाषााइ प्रान्त के विचार को नकार क्रदया; ाआसने तका क्रदया क्रक नए प्राांतों के वनमााण
के विए यह ाईपयुि समय नहीं है।
भाषााइ ाअधार पर पृथक राज्य की माांग में कमी नहीं हुाइ। 1948-1949 में भाषााइ स्िायत्तता के
ाअांदोिन पुनाः ाअरम्भ हुए। सांयुि कनााटक के विए भी एक ाऄवभयान चिाया गया वजसमें मद्रास, मैसूर,
बॉम्बे, हैदराबाद राज्यों में फै िे कन्नड़भाषी िोगों को एकजुट क्रकया गया। ाआसके ाऄवतररि सांयुि
महाराष्ट्र और महागुजरात के विए भी ाअांदोिन हुए। पांजाब के मामिे में, सांघषा ने भाषा और धमा
(वसख) दोनों कारकों को एक साथ िा क्रदया।
तेिुगू भावषयों ने काांग्रेस से भाषााइ राज्यों के पक्ष में ाऄपने पुराने सांकलप को िागू करने के विए कहा।
ाआन िोगों ने यावचकाओं, प्रवतवनवधत्ि, जुिूस, ाईपिास ाआत्याक्रद के माध्यम से ाऄपने ाईद्देश्य को ाअगे
बढ़ाया। ाईनके ाईद्देश्य का समथान करने के विए, मद्रास के पूिा मुख्यमांत्री टी.प्रकाशम ने 1950 में काांग्रेस
पाटी से ाआस्तीफा दे क्रदया। एक ाऄन्य राजनेता स्िामी सीताराम तेिुगू भावषयों की माांग का समथान
करने के विए भूख हड़ताि पर चिे गए। बाद में ाईन्होंने ाऄनुभिी गाांधीिादी नेता विनोभा भािे की
ाऄपीि पर ाऄपनी भूख हड़ताि को समाप्त क्रकया।
19 ाऄलटू बर 1952 को, एक प्रवसद्ध स्ितांत्रता सेनानी पोरट्ट िीरामुिु ने पृथक ाअांध्र की माांग पर
ाअमरण ाऄनशन ाअरम्भ क्रकया; दुभााग्यिश 15 क्रदसांबर 1952 को ाईनका वनधन हो गया। ाईनकी मृत्यु के
बाद िोग ाईत्तेवजत हो गए और ाआसके ाईपरान्त सम्पूणा ाअांध्र में दांगे, प्रदशान, हड़ताि और हहसा हुाइ।
विशािान्ध्र ाअांदोिन (एक पृथक ाअांध्र के विए ाअांदोिन को ाआस नाम से जाना जाता था) हहसक हो
गया। ाऄांतताः, तत्कािीन प्रधानमांत्री नेहरू ने 19 क्रदसांबर 1952 को एक ाऄिग ाअांध्र राज्य के गठन की
घोषणा की।
7.4.1 वसक्रिम
स्ितांत्रता के समय, वसक्रिम भारत का "सांरवक्षत राज्य" था। ाआसका ाऄथा है क्रक यह न तो ाऄन्य राज्यों के
समान भारत का वहस्सा था और न ही एक पूणा सांप्रभु देश था। वसक्रिम के रक्षा और विदेश मामिे
भारत द्वारा प्रबांवधत क्रकए जाते थे, जबक्रक ाअांतररक प्रशासन की शवि वसक्रिम के चोग्याि शासक के
पास थी। राज्य के िोग ाआस व्यिस्था से ाऄप्रसन्न थे और शासन की िोकताांवत्रक व्यिस्था के विए ाआच्छु क
थे। राज्य के ाऄवधकाांश िोग नेपािी थे और शासक ाऄलपसांख्यक समुदाय िेप्चा-भूरटया से सांबांवधत थे।
भारत सरकार और दोनों समुदायों के नेताओं ने ाआस ाईद्देश्य के विए राज्य के िोगों को समथान प्रदान
क्रकया।
1974 के विधानसभा चुनािों में, वसक्रिम काांग्रेस ने चुनािों में जीत हावसि की और िह भारत के साथ
ाऄवधक एकीकरण के मुद्दे के पक्ष में दृढ़ता से खड़ी हुाइ। ाअरम्भ में विधानसभा "सांबद्ध राज्य” का दजाा
प्राप्त करने की ाआच्छु क थी। तदुपराांत िषा 1975 में भारत के साथ पूणा एकीकरण का सांकलप पाररत
क्रकया गया। ाआसके पिात् तत्काि जनमत सांग्रह हुाअ वजसने विधानसभा के एकीकरण के ाऄनुरोध पर
मुहर िगा दी। भारतीय सांसद ने ाआस यावचका को स्िीकृ वत प्रदान करके वसक्रिम को एक राज्य के रूप में
स्िीकार कर विया।
7.4.2 गोिा की मु वि
1947 में विरटश साम्राज्य का िांबा शासन समाप्त हो गया। हािाांक्रक, पुतागाि ने गोिा, दीि और दमन
के क्षेत्रों को छोड़ने से ाआांकार कर क्रदया जहााँ िे 16िीं शताधदी से शासन कर रहे थे। गोिा के िोगों को
पुतागािी दमन का सामना करना पड़ा और ाईन्हें मूि नागररक ाऄवधकारों से िांवचत कर क्रदया गया था।
पुतागावियों ने ज़बरन िोगों का धमा पररितान भी क्रकया।
प्रारां भ में, भारत सरकार ने ाआन क्षेत्रों को खािी करने और स्थानीय िोगों के ाअन्दोिन पर विचार करने
के विए पुतग
ा ावियों को मनाने का प्रयास क्रकया। 1955 में वस्थवत और भी खराब हो गाइ जब
पुतागावियों ने एक मुवि माचा के ाअयोजन के दौरान गोिा के और भारतीय प्रदशानकाररयों के एक समूह
पर गोिी चिा कर ाईनकी हत्या कर दी। नेहरू सरकार ने गोिा के चारों ओर नाकाबांदी कर ाआसका
प्रत्युत्तर क्रदया, हािाांक्रक पाक्रकस्तान और िीिांका के साथ व्यापार को खोिने के विए हिााइ मागा को
ाऄपनाकर पुतग
ा ावियों ने ाआस नाके बांदी को दरक्रकनार कर क्रदया। ाऄांतताः 18 क्रदसांबर 1961 को,
ऑपरे शन विजय के ाऄांतगात, भारतीय सैवनक गोिा में प्रिेश कर गए और दो क्रदनों की कारा िााइ के बाद
पुतागावियों ने 19 क्रदसांबर को ाईनके समक्ष ाअत्मसमपाण कर क्रदया।
ाआस मुवि के बाद, गोिा में एक और वििाद ाईभरा जब महाराष्ट्रिादी गोमांतक पाटी (MGP) ने गोिा के
महाराष्ट्र में वििय की ाआच्छा जतााइ।
गोिा के िोगों का एक और गुट ाऄपनी ाऄिग पहचान और ाऄपनी सांस्कृ वत तथा मौविक रूप से ाऄपनी
कोंकणी भाषा बनाए रखना चाहता था। गुट को सांयुि गोिा पाटी (UGP) से समथान प्राप्त हुाअ।
1967 में, भारत सरकार ने ाआस मुद्दे को हि करने के विए एक कदम ाईठाया। ाआसने गोिा में एक
"ओवपवनयन पोि" करिाया क्रक लया गोिा का महाराष्ट्र के साथ वििय क्रकया जाना चावहए या ाआसे
ाऄिग रहना चावहए। यह एकमात्र ऐसा ाऄिसर था जब क्रकसी विशेष विषय पर िोगों की ाआच्छा जानने
7.5.1. छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से ाऄिग होकर 1 निांबर, 2000 को भारत का 26िाां राज्य बना। एक ाऄिग
राज्य की माांग औपवनिेवशक भारत में पहिी बार 1920 के दशक में ाईभरी। स्ितांत्र भारत में यह माांग
तब ाईभरी जब 1955 में राज्य पुनगाठन ाअयोग ने ाऄपनी ररपोटा सौंपी, क्रकन्तु ाआसने पृथक छत्तीसगढ़ की
माांग को खाररज कर क्रदया। हािाांक्रक िांबे समय बाद, ाआस माांग ने 1990 के दशक में पुनाः जोर पकड़ा।
ाआस निीनीकृ त माांग में वनवहत महत्िपूणा मुद्दे छत्तीसगढ़ की पहचान, बड़ी जनजातीय ाअबादी और
सांसाधन सांपन्न होने के बािजूद ाआसका ाऄविकवसत होना थे। चांदि ू ाि चांद्राकर के नेतृत्ि में छत्तीसगढ़
राज्य वनमााण मांच ने ाऄनेक क्षेत्रीय हड़तािों और रै वियों का ाअयोजन क्रकया और ाईन्हें काांग्रसे और
बीजेपी का समथान वमिा।
चांदि
ू ाि चांद्राकर
ाऄांत में, िषा 2000 में एनडीए सरकार ने ाऄिग छत्तीसगढ़ की माांग को स्िीकार करते हुए ाआसे भारत का
26िाां राज्य बना क्रदया।
7.5.2. ाईत्तराखां ड
ाईत्तराखांड (वजसे पहिे ाईत्तराांचि के नाम से जाना जाता था) को 9 निांबर 2000 को ाईत्तर प्रदेश से
ाऄिग करके भारत का 27िााँ राज्य बनाया गया। यह एक ाऄिग राज्य के विए पहाड़ी क्षेत्र के िोगों के
70िषा पुराने सांघषा की सफि समावप्त थी।
भौगोविक दृवि से ाऄवद्वतीय (पहाड़ी क्षेत्र में 93% क्षेत्र और कु ि क्षेत्रफि का 64% क्षेत्र िन क्षेत्र है) ाआस
क्षेत्र में विकास की कमी और बढ़ती बेरोजगारी ने एक ाऄिग राज्य की पुरानी माांग को बढ़ािा क्रदया।
यह सब 1930 में ाअरम्भ हुाअ जब पहाड़ी क्षेत्र के वनिावसयों द्वारा पृथक ाईत्तराखांड के विए बहुमत के
साथ एक सांकलप प्रस्तुत क्रकया गया। ाअगे चिकर 1973 में ाईत्तराखांड राज्य पररषद का गठन हुाअ और
यह पृथक राज्य के सांघषा के विए एक मांच बन गया। ाआसे 1979 में ाईत्तराांचि िाांवत दि में पररिर्थतत
कर क्रदया गया। बाद में 1994 में तत्कािीन मुख्यमांत्री मुिायम हसह यादि ने ाईत्तराखांड की माांगों का
7.5.3. झारखां ड
वबहार के जनजातीय क्षेत्रों को वमिाकर (वजसमें छोटा नागपुर और सांथाि परगना शावमि था) गरठत
झारखांड में स्िायत्तता की माांग की जाती रही। ाआस क्षेत्र में सांथाि, हो, ओरााँि और मुांडा ाअक्रद जैसी काइ
प्रमुख पारां पररक जनजावतयों का सांकेन्द्रण है।
जनजातीय क्षेत्र में वशक्षा और ाअधुवनक गवतविवध के विस्तार के साथ 1930 के दशक के ाऄांत में और
1940 के दशक में पृथक राज्य के विए एक ाअांदोिन ाअरम्भ हुाअ। िषा 1950 में जयपाि हसह के
नेतृत्ि में झारखडड पाटी की स्थापना हुाइ। हािाांक्रक, 1955 में SRC द्वारा पृथक राज्य की ाईनकी माांग
को खाररज कर क्रदया गया। बाद में काइ ाअक्रदिासी दिों और ाअांदोिनों ने पृथक राज्य की माांग के पक्ष
में ाअिाज ाईठााइ और ाईन्हें ाअगे बढ़ाया, वशबू सोरे न के नेतृत्ि में झारखांड मुवि मोचाा ाआन दिों में से
एक था। ाऄांतताः पृथक राज्य की माांग के विए ाईनके िांबे सांघषा के बाद कें द्र सरकार ने 15 निांबर 2000
को झारखांड को देश का 28िाां राज्य बनाया।
17 वसतांबर 1948 को हैदराबाद राज्य (वजसमें तेिांगाना भी शावमि था) का भारतीय सांघ में वििय
कर विया गया। यह एक सुविक्रदत तथ्य है क्रक राज्य पुनगाठन ाअयोग (SRC) ने ाअांध्र प्रदेश के साथ
तेिांगाना के वििय के विचार का पक्ष नहीं विया और ाआसने ाअगामी कु छ िषों तक ाआस क्षेत्र के िोगों के
वहतों की रक्षा के विए विवभन्न रक्षोपाय प्रदान क्रकये। 1956 में तेिांगाना का ाअांध्र में वििय करके ाअांध्र
प्रदेश का गठन क्रकया गया। 1969 में, तेिग
ां ाना प्रजा सवमवत के बैनर तिे मैरी चन्ना रे ड्डी के नेतृत्ि में
ाआस क्षेत्र में एक ाअांदोिन का ाअरम्भ हुाअ। वबना क्रकसी सफिता के यह सांघषा िांबे समय तक जारी रहा।
तेिग
ां ाना राष्ट्र सवमवत ने 2001 में पृथक तेिांगाना का मुद्दा ाऄपने हाथों में िे विया। 29 निांबर 2009
को, तेिांगाना राष्ट्र सवमवत ने ाऄवनवितकाि के विए भूख हड़ताि ाअरम्भ की। 9 क्रदसांबर 2009 को कें द्र
ने तेिांगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया ाअरम्भ करने की घोषणा की। ाऄांतताः 2014 में यह माांग पूरी हो
गाइ, काफी िम्बे समय तक ाऄवनणाय की वस्थवत के पिात् तेिांगाना भारत का 29िाां राज्य बन गया।
ाऄिग-ाऄिग ाअधारों, जैस-े जातीयता, विकास का ाऄभाि, प्रशासवनक ाऄसुविधा ाआत्याक्रद के ाअधार पर
पृथक राज्य के वनमााण की ाऄनेक माांगें ाऄभी भी िांवबत हैं। पृथक राज्य के विए प्रमुख माांगों में से कु छ
माांगें वनम्नविवखत हैं:
गोरखािैंड (पविम बांगाि),
कोच राजबोंग्शी (ाऄसम) के विए कामतपुर राज्य, बोडोिैंड (ाऄसम),
विदभा (महाराष्ट्र),
सौराष्ट्र (गुजरात)
हररत प्रदेश, ाऄिध प्रदेश, पूिाांचि और बुांदि
े खांड (ाईत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कु छ भाग को
वमिाकर) के रूप में ाईत्तर प्रदेश का चार भागों में विभाजन।
विवभन्न ाअधारों पर ाईठने िािी पृथक राज्य की माांगों से यह स्पि होता है क्रक एकमात्र भाषा ही िह
तत्ि नहीं है जो िोगों को एक साथ बाांध कर रख सकती है। ितामान में जहााँ एक ओर कु छ िोग पृथक
राज्य के रूप में ाऄपनी जातीय सांस्कृ वत का सांरक्षण करना चाहते हैं िहीं दूसरी ओर कु छ िोग िांबे समय
तक ाईदासीनता और वपछड़ेपन के बाद बेहतर विकास के ाआच्छु क हैं।
हमारे देश में सदैि राजनीवतक दिों की बड़ी सांख्या ने चुनािों में भाग विया है। स्ितांत्रता के बाद के
प्रारां वभक िषों में काांग्रस
े पाटी ने चुनािों में भारी बहुमत प्राप्त क्रकया। यह िोगों के मध्य िोकवप्रय और
सम्मावनत थी। पाटी का ाअधार ाऄत्यांत व्यापक था तथा यह ज़मीनी स्तर से जुड़ी थी। यह 1947 से
1967 तक कें द्र के साथ-साथ राज्यों में भी सत्ता में रही और ाआसका स्िरुप एकात्मक बना रहा।
हािाांक्रक, सशि क्षेत्रीय दिों के ाईदय, विवभन्न सामावजक समूहों के राजनीवतकरण और सत्ता में
भागीदारी के विए ाईनके सांघषा ने समकािीन भारत में राजनीवतक पररितान और ाईथि-पुथि का मागा
प्रशस्त क्रकया तथा ाआससे सांघीय स्तर पर गठबांधन सरकारों का गठन ाऄपररहाया हो गया।
नेहरू और शास्त्री के वनधन के बाद िोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चौथे ाअम चुनािों के दौरान
काांग्रेस पाटी का जनादेश कमजोर हो गया। ाआसने सामावजक और सांस्थागत पररितान की पाटी के रूप में
ाऄपने चररत्र एिां ाऄपनी प्रेरणा को खो क्रदया। िोग भ्रिाचार और पाटी के सदस्यों की वििावसतापूणा
जीिनशैिी से नाखुश थे। एक स्ितांत्र पत्रकार और प्रसारक ज़रीर मसानी के ाऄनुसार, पाटी के भीतर
वनरां तर शवि सांघषा तथा ाऄनुशासन में तीव्रता से कमी ाअने के कारण, 1967 के चुनािों के दौरान
काांग्रेस विरोधी िहर बन गयी थी।
ाआसके साथ ही विपक्षी दिों का एक साथ ाअना, 1967 के चुनािों की एक महत्िपूणा विशेषता थी।
1967 के चुनािों ने ाऄलपकाविक गठबांधन सरकारों और दि-बदि की राजनीवत के दोहरे युग का भी
सूत्रपात क्रकया। तवमिनाडु को छोड़कर विपक्ष द्वारा शावसत सभी राज्यों में गठबांधन सरकारों का गठन
क्रकया गया। काांग्रेस द्वारा भी कु छ राज्यों में गठबांधन सरकारें बनााइ गईं। ाआस प्रकार 1967 के चुनािों ने
गठबांधन की राजनीवत की शुरुाअत की।
सिाप्रथम दि-बदि की घटना हररयाणा में शुरू हुाइ और बारां बार ाऄपनी पाटी बदिने िािे नेताओं के
विए "ाअया राम गया राम" जैसे िालयाांश प्रचवित हो गए। 1967 से 1970 के दौरान िगभग 800
विधानसभा सदस्यों ने ाऄपना दि पररिर्थतत क्रकया और ाईनमें से 155 को मांत्री भी बनाया गया।
1967 के चुनािों ने काांग्रेस पाटी के भीतर सत्ता के सांति
ु न को भी नाटकीय रूप से पररिर्थतत क्रकया।
हसवडके ट (जो क्रक पाटी का एक शविशािी समूह था) को बड़ा झटका िगा लयोंक्रक काइ सशि नेता
चुनाि हार गए थे।
1977 का चुनाि स्ितांत्र भारत के ाआवतहास में वनणाायक था लयोंक्रक ाआसके माध्यम से न के िि िोकतांत्र
को बनाए रखने के विए िोगों के सांकलप का परीक्षण हुाअ बवलक चुनािी वनणाय के माध्यम से एक दि
से दूसरे दि में शाांवतपूणा तरीके से सत्ता हस्ताांतरण भी सुवनवित हुाअ। चुनाि पररणामों ने िीमती
ाआां क्रदरा गाांधी की ाऄगुिााइ िािी काांग्रेस के विए गांभीर हार और जनता पाटी बनाने के विए एक साथ
ाअए विपक्षी दिों की जीत सुवनवित की।
मोरारजी देसााइ के नेतृत्ि में चार दिों िािी जनता सरकार ने िगभग दो साि (1977-79) तक
शासन क्रकया। तकनीकी रूप से यह एक गठबांधन नहीं था लयोंक्रक ाआसके चार घटक दि वििय और एक
एकि घोषणापत्र तथा साझा प्रतीक पर चुनाि िड़ने पर सहमत हुए थे।
2 भारतीय िोक दि 71 12
3 काांग्रेस (ओ) 50 10
4 सोशविस्ट पाटी 28 04
6 पूिा काांग्रस
े ी नेता [चांद्रशेखर समूह] 05 02
सत्ता और पद की ाअकाांक्षा के कारण जुिााइ 1979 में जनता गठबांधन का पतन हो गया। पतन के ाऄन्य
कारणों में दि-बदि पर कोाइ रोकथाम न होना और ाऄकािी एिां ाऄन्य क्षेत्रीय समूहों का ाऄपना समथान
िापस िेना था। िािकृ ष्प्ण ाअडिाणी के ाऄनुसार, 1979 में जनता पाटी पतन की पीड़ा सह रही थी
वजसका एक कारण ाईसमें ाऄनुशासन की वभन्न-वभन्न ाऄिधारणाओं का होना भी था। ाऄवभशासन की
ाऄनुपवस्थवत प्रशासन के विए ाऄवभशाप बन गयी थी तथा गठबांधन के भीतर सत्ता के सांघषा ने वििाद,
टकराि और एक-दूसरे की हनदा को बढ़ािा क्रदया।
जनता सरकार के पतन के बाद चरण हसह के नेतृत्ि में एक और गठबांधन सरकार की स्थापना हुाइ।
िेक्रकन यह सरकार भी बहुत कम समय तक सत्ता में रही। ाआसके बाद िगभग एक दशक तक कें द्र में
काांग्रेस के नेतृत्ि िािी एक दि की एक वस्थर सरकार बनी रही।
एक दशक तक काांग्रस
े द्वारा वस्थर सरकार के सांचािन के ाईपराांत गठबांधन की राजनीवत की िापसी हुाइ।
1989 के चुनािों में काांग्रेस पाटी की हार हुाइ िेक्रकन क्रकसी ाऄन्य पाटी को बहुमत प्राप्त नहीं हुाअ।
काांग्रेस पाटी की ाआस हार ने भारतीय दिीय प्रणािी पर काांग्रस
े के प्रभुत्ि का ाऄांत क्रकया तथा यहााँ से
बहुदिीय प्रणािी के युग का ाअरां भ हुाअ। कें द्र में बहुपक्षीय प्रणािी के ाईद्भि का ाऄथा यह था क्रक 1989
के पिात् क्रकसी भी िोकसभा चुनाि में क्रकसी भी दि ने सीटों का स्पि बहुमत प्राप्त नहीं क्रकया। यह
िम 2014 में भाजपा को बहुमत वमिने के बाद टू टा।
ाआसके साथ ही नधबे के दशक में दवित और वपछड़ी जावतयों का प्रवतवनवधत्ि करने िािे शविशािी
दिों और ाअांदोिनों का ाईदय हुाअ। 1989 से ाऄब तक कें द्र में नौ सरकारें बन चुकी हैं वजनमें से
ाऄवधकाांश गठबांधन सरकारें या ाऄलप बहुमत प्राप्त सरकारें थीं। ाआस चरण में सरकारों का गठन ाऄनेक
क्षेत्रीय दिों की भागीदारी या समथान के साथ ही क्रकया जा सका। ाआसे 1989 में राष्ट्रीय मोचाा, 1996
और 1997 में सांयुि मोचाा, 1997 में NDA, 1998 में भाजपा के नेतृत्ि में गठबांधन, 1999 में NDA
और 2004 और 2009 में UPA सरकार में स्पि देखा जा सकता है।
8.4.1. ाईदारीकरण
1980 के दशक के सुधारों की तुिना में 1991 के सुधार ाऄवधक व्यापक थे। शराब, वसगरे ट, खतरनाक
रसायन ाईद्योग, महांगे ाआिेलरॉवनलस, एयरोस्पेस, दिाओं और फामाास्यूरटकलस के ाऄवतररि ाईत्पादों की
ाऄन्य सभी िेवणयों के विए औद्योवगक िााआसेंस की ाऄवनिायाता को समाप्त कर क्रदया गया।
ितामान में के िि रक्षा ाईपकरण, परमाणु ाउजाा ाईत्पादन और रे ििे पररिहन ाईद्योग ही सािाजवनक क्षेत्र
के विए ाअरवक्षत हैं। ाऄनेक ाईद्योगों में कीमतों के वनधाारण की छू ट बाज़ार की शवियों को प्रदान की गाइ
है।
वित्तीय क्षेत्र के सुधार
वित्तीय क्षेत्र के सुधारों का प्रमुख ाईद्देश्य वित्तीय क्षेत्र में RBI की भूवमका को कम कर ाआसे विवनयामक से
सुविधा प्रदाता बनाना था। ाआसका ाऄथा एक ऐसी व्यिस्था के विकास से है वजसमें वित्तीय क्षेत्र को RBI
से परामशा क्रकए वबना वनणाय िेने की ाऄनुमवत प्रदान की जा सकती हो। ाआन सुधारों से वनजी क्षेत्र के
बैंकों की स्थापना का मागा प्रशस्त हुाअ। साथ ही विदेशी बैंकों के प्रिेश की ाऄनुमवत का मागा भी खुिा;
हािााँक्रक ाआस प्रिेश की ाऄनुमवत विदेशी सांस्थागत वनिेश (FII) पर कु छ शतों के साथ वमिी यथा मचेंट
बैंकरों, म्यूचुाऄि फां डों और पेंशन फां डों को भारतीय वित्तीय बाजारों में वनिेश करने की ाऄनुमवत नहीं
दी गाइ।
8.4.2. वनजीकरण
सरकार ने सरकारी स्िावमत्ि िािे काइ ाईद्यमों के स्िावमत्ि और प्रबांधन से स्ियां को बाहर कर विया
तथा PSUs की ाआक्रक्वटी का वििय ाअरम्भ कर विवनिेश की शुरुाअत की। ाआस तरह के कदम ाईठाए जाने
का ाईद्देश्य वित्तीय ाऄनुशासन में सुधार और ाअधुवनकीकरण सुवनवित करना था।
ाआसके साथ ही सरकार ने प्रबांधकीय वनणाय िेने में स्िायत्तता देकर PSU's की दक्षता में सुधार करने के
प्रयास भी क्रकए हैं।
8.4.3. िै श्वीकरण
िैश्वीकरण, ाईदारीकरण और वनजीकरण की नीवतयों का पररणाम है। िैश्वीकरण का ाऄथा ाऄवधक परस्पर
वनभारता और एकीकरण से है। ाआसमें नेटिकों का वनमााण तथा ाअर्थथक, सामावजक और भौगोविक
सीमाओं से परे जाकर गवतविवधयों का सांचािन करना सवम्मवित है। BPO’s की ाअाईटसोर्ससग ाआसका
सबसे ाऄच्छा ाईदाहरण है।
िैश्वीकरण पररणामों का सवम्मिण है। एक ओर यह िैवश्वक बाजारों, ाईच्च प्रौद्योवगकी ाअक्रद के ाअयात
के विए ाऄवधक पहुांच प्रदान करता है तो दूसरी ओर विकवसत देश ाआसके ाऄांतगात ाऄन्य देशों में ाऄपने
बाजारों का विस्तार कर रहे हैं। यह भी सामने ाअया है क्रक बाजार सांचावित िैश्वीकरण ने राष्ट्रों और
िोगों के मध्य ाअर्थथक ाऄसमानताओं को बढ़ा क्रदया है।
प्रौद्योवगकी में क्रकसी भी निाचार का मुख्य ाईद्देश्य यह सुवनवित करना है क्रक यह नागररकों को सुख -
सुविधा, ाईत्पादकता और जीिन ि पररिेश की बेहतर गुणित्ता प्रदान करे । भारत में प्रौद्योवगकी प्रेररत
विकास (विशेष रूप से ICT प्रौद्योवगकी से सम्बद्ध) के मागा को 1984 की राजीि गाांधी सरकार द्वारा
बढ़ािा क्रदया गया। ाईन्होंने सािाजवनक क्षेत्र के साथ-साथ िावणवज्यक और सािाजवनक क्षेत्रों के ाईपिमों
तथा प्रशासवनक विभागों में बड़े पैमाने पर कम्प्यूटरीकरण कायािम की शुरुाअत कर विकास के विए
एक प्रभािी मागा को ाऄपनाया। 1985 तक ाऄवधकाांश प्रमुख क्षेत्रकों द्वारा कम्प्यूटरीकरण योजनाओं की
घोषणा कर दी गाइ थी वजसमें रे ििे, बैंककग पररचािन, स्कू ि ाआत्याक्रद शावमि थे।
सूचना और सांचार प्रौद्योवगकी को व्यापक रूप से दो क्षेत्रों के ाऄांतगात विभावजत क्रकया जा सकता है:
सूचना प्रौद्योवगकी और
सांचार
1998 में, सॉफ्टिेयर विकास और सूचना प्रौद्योवगकी पर राष्ट्रीय कायादि ने सभी सरकारी और गैर-
सरकारी स्तरों पर, ाऄवधकार प्राप्त कायाबिों का एक विस्तृत नेटिका स्थावपत कर IT ाअधाररत
प्रौद्योवगकी को ाऄपनाने के विए एक राष्ट्रीय
ाऄवभयान का धिू हप्रट तैयार क्रकया।
1999 में, सांचार प्रौद्योवगकी के विवभन्न
ाअयामों में शावमि सरकारी एजेंवसयों को
एक साथ िाकर सूचना प्रौद्योवगकी मांत्रािय
की स्थापना की गयी। ाआसका ाईद्देश्य सांचार
प्रौद्योवगक्रकयों के ाऄवभसरण द्वारा प्रदान
क्रकए गए ाऄिसरों का िाभ ाईठाने के विए
रोजगारों का सृजन और ाआिेलरॉवनक-शासन
के प्रयोग में IT के ाईपयोग की सुविधा प्रदान
करना था।
ICT ग्रामीण गरीबी, ाऄसमानता और
पयाािरणीय वनम्नीकरण की समस्याओं के
समाधान के विए नाइ सांभािनाएां प्रदान करती है।
सूचना प्रौद्योवगकी
भारत में वपछिे दो दशकों में सूचना और सांचार प्रौद्योवगकी के क्षेत्र में महत्िपूणा प्रगवत हुाइ है। भारत में
IT ाईद्योग में सॉफ्टिेयर ाईद्योग और सूचना प्रौद्योवगकी समर्थथत सेिाएां (ITES) शावमि हैं, वजनका
एक भाग BPO ाईद्योग भी है। भारत को सॉफ्टिेयर विकास में ाऄग्रणी और ITES के विए
ाऄनुकूि गांतव्य माना जाता है। काइ ाऄन्य देश भारत को िैवश्वक ाअाईटसोर्ससग के एक िेष्ठ मॉडि के रूप
में देखते हैं और ाऄपनी रणनीवत में ाआसके तत्िों का ाऄनुकरण करने का प्रयास करते हैं।
भारत में कें द्र सरकार और सांबांवधत राज्य सरकारें , नागररकों (G2C), व्यिसायों (G2B), कमाचाररयों
(G2E), और सरकारों (G2G) को सरकारी सूचनाओं और सेिाओं के वितरण के विए ICT का ाईपयोग
करती हैं। 1990 के दशक के ाऄांत में, सन् 2000 में सूचना प्रौद्योवगकी ाऄवधवनयम को ाऄपनाकर भारत
सरकार ने ाइ-शासन कायािम ाअरम्भ क्रकया। ाआस ाऄवधवनयम का मुख्य ाईद्देश्य ाआिेलरॉवनक ाऄनुबांधों की
पहचान करना, कां प्यूटर सांबांधी ाऄपराधों की रोकथाम करना और ाइ-फााआहिग को सांभि बनाना था।
2006 में, सरकार ने भारत में ाइ-शासन सांबांधी पहिों को बढ़ाने के विए राष्ट्रीय ाइ-शासन योजना
(National e governance Plan: NeGP) को स्िीकृ वत प्रदान की। िगभग सभी राज्य सरकारों
और कें द्रशावसत प्रदेशों ने ाऄपने नागररकों और व्यिसायों को सेिा प्रदान करने के विए ाऄपनी स्ियां की
ाइ-शासन सेिाएां भी ाअरम्भ की हैं। ऐसी कु छ प्रमुख सेिाओं में कनााटक की ‘भूवम’, मध्यप्रदेश की
‘ज्ञानदूत’, ाअांध्र प्रदेश क्रक ‘स्माटा गिनामटें ’, तवमिनाडु की ‘SARI’ ाआत्याक्रद शावमि हैं।
पॉि विवलकन्सन के ाऄनुसार, सामावजक ाअांदोिनों की ाऄिधारणा का ाअशय क्रकसी भी क्रदशा में
क्रकसी भी तरीके से पररितान को प्रोत्सावहत करने के एक सांकवलपत सामूवहक प्रयास से है; वजसमें
हहसा, ाऄिैधता, िाांवत ाऄथिा क्रकसी ‘ाअदशा’ समाज की ओर पीछे िौटना भी शावमि हो सकते हैं।
घनश्याम शाह द्वारा ाअन्दोिनों को राजनीवतक व्यिस्था में पररितान िाने हेतु विद्रोह, विप्िि,
सुधार और िाांवत के रूप में िगीकृ त क्रकया गया है। पाथा मुखजी के ाऄनुसार, सामावजक ाअांदोिन
की प्रकृ वत सांचयी, िैकवलपक और पररितानकारी होती है।
टी.के . ओमेन के ाऄनुसार, ाअांदोिन चमत्कारी, िैचाररक और सांगठनात्मक होते हैं।
कु छ ाऄन्य िोगों ने ाअांदोिनों को भागीदारी करने िािे िोगों/समूहों के ाअधार पर विभावजत
क्रकया है जैसे क्रकसानों, ाअक्रदिावसयों, दवितों, मवहिाओं, वपछड़े िगों, छात्रों ाअक्रद से सांबांवधत
ाअन्दोिन। काइ ाऄन्य ाअांदोिन जो िगा ाअधाररत न होकर मुद्दों पर ाअधाररत होते हैं, ाईन्हें नये
सामावजक ाअांदोिनों के रूप में जाना जाता है।
यक्रद भारत के सांदभा में देखा जाए तो हमें ऐसे ाऄनेक ाईदाहरण वमि जाएाँगे जो ाईपयुाि िगीकरण से
सुसांगत हों। ाआनमें से कु छ प्रमुख ाअांदोिनों के सांबांध में वनम्नविवखत खांडों में चचाा की गयी है।
भारत में पयाािरणीय एिां पाररवस्थवतकीय सांघषा, िोगों द्वारा िन, भूवम, जि, मत्स्य ाआत्याक्रद कम होते
जा रहे सांसाधनों पर क्रकए जाने िािे दािों का पररणाम हैं। ये सांघषा देश के विकास के समक्ष एक
चुनौती रहें हैं तथा ाआन्होंने सांबांवधत सांगरठत ाअन्दोिनों को भी जन्म क्रदया है।
1973 में मध्य वहमाियी क्षेत्रों में ाअरां भ हुाअ वचपको ाअांदोिन भारत के सबसे प्रवसद्ध ाअांदोिनों में से
एक है। यह ाअांदोिन ाईत्तराखांड में तब ाअरां भ हुाअ जब िन विभाग ने ग्रामीणों िोगों को कृ वष ाईपकरणों
के वनमााण के विए प्रभूजा के िृक्षों (Ash trees) को काटने की ाऄनुमवत प्रदान करने से मना कर क्रदया
क्रकन्तु खेि-सामग्री के एक विवनमााता को ाईसी भूवम (वजस पर पेड़ िगे हुए थे) को िावणवज्यक ाईपयोग
के विए ाअिांरटत कर क्रदया।
ग्रामिावसयों ने माांग की क्रक िनों की कटााइ का कोाइ भी ठे का बाहरी व्यवि को नहीं क्रदया जाना चावहए
और स्थानीय समुदायों का भूवम, जि और िन जैसे प्राकृ वतक सांसाधनों पर प्रभािी वनयांत्रण होना
चावहए। ाआस प्रकार ाईनके द्वारा एक ाअन्दोिन का प्रारां भ क्रकया गया जो वचपको ाअांदोिन के नाम से
प्रवसद्द हुाअ।
वचपको ाअन्दोिन में मवहिाओं ने सक्रिय भागीदारी की, जो ाआस ाअांदोिन का एक नया पहिू था। ाआसके
तहत सामान्य रूप से ग्रामिासी और विशेष रूप से मवहिाएां िृक्षों से विपट जाया करती थीं ताक्रक
व्यािसावयक ाईद्देश्यों हेतु ाईनकी कटााइ को रोका जा सके । ाआसी से ाआसका नाम ‘वचपको ाअन्दोिन’ के
रूप में प्रवसद्ध हुाअ।
ाआस ाअांदोिन को सफिता प्राप्त हुाइ और तत्कािीन सरकार ने ाईस क्षेत्र में िृक्षािरण के पूणा रूप से पुनाः
स्थावपत होने तक पांद्रह िषों के विए वहमाियी क्षेत्रों में पेड़ों की कटााइ पर प्रवतबांध का ाअदेश जारी कर
क्रदया। एक मध्यम ाअयु की ग्रामीण विधिा गौरा देिी ाआस ाअांदोिन से सांबांवधत एक प्रमुख मवहिा थीं।
बाद में वचपको ाअांदोिन ने ाऄनेक पयाािरणीय ाअांदोिनों को प्रेररत क्रकया और गाांधीिादी एिां
िामपांवथयों के नेतृत्ि में वहमाियी तिहटी में िावणवज्यक ाईद्देश्यों हेतु िृक्षों की कटााइ के विरोध में
प्रदशान की एक नयी िृांखिा को जन्म क्रदया।
80 के दशक में मध्य भारत की नमादा घाटी में एक महत्िाकाांक्षी विकास पररयोजना का ाअरांभ
क्रकया गया।
ाआस पररयोजना में तीन राज्यों, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में प्रिावहत होने िािी नमादा एिां
ाआसकी सहायक नक्रदयों पर वनर्थमत होने िािे 30 िृहत, 135 मध्यम और िगभग 300 िघु ाअकार
रूप में गुजरात के सरदार सरोिर और मध्यप्रदेश की नमादा सागर पररयोजना की पररकलपना की
गयी थी।
ाआन पररयोजनाओं का ाईद्देश्य पेयजि तथा हसचााइ, वबजिी ाईत्पादन और कृ वष ाईपज में िृवद्ध के
नमादा बचाओ ाअन्दोिन (NBA) ने देश में ाऄब तक पूणा हो चुकी प्रमुख विकास पररयोजनाओं के
ाईवचत िागत-िाभ विश्लेषण की माांग की।
ाआसने यह भी माांग की क्रक ऐसी पररयोजनाओं के सांबांध में सामावजक िागत की भी गणना की
जानी चावहए। सामावजक िागत का ाअशय पररयोजना द्वारा प्रभावित िोगों का बिपूिक
ा
विस्थापन, ाअजीविका और सांस्कृ वत के साधनों की गांभीर क्षवत, पाररवस्थवतकीय सांसाधनों का ह्रास
ाआत्याक्रद से है।
वनरां तर सांघषा के कारण, सरकार और न्यायपाविका द्वारा पुनिाास के ाऄवधकार को मान्यता प्रदान
की गयी।
2003 में सरकार द्वारा वनर्थमत एक व्यापक राष्ट्रीय पुनिाास नीवत को NBA जैसे ाअांदोिनों की
ाईपिवधध के रूप में माना जा सकता है।
NBA ने प्रत्येक ाईपिधध िोकताांवत्रक रणनीवत यथा प्रदशान, धरना, घेराि, रास्ता रोको, जेि भरो
ाअांदोिन, भूख हड़ताि का ाईपयोग कर ाऄपनी माांगों को ाअगे बढ़ाने का काया क्रकया। सामावजक
कायाकत्ताा मेधा पाटकर ाआस ाअांदोिन का प्रमुख चेहरा रही हैं।
ाआस पयाािरणीय ाअांदोिन का ाईद्देश्य पििड़ वजिे (के रि) के सदाबहार िनों से पररपूणा सााआिेंट
िैिी क्षेत्र की सुरक्षा करना था।
सााआिेंट िैिी में ाऄिवस्थत कुां तीपुझा नदी (जहााँ विद्युत् ाईत्पादन की ाअदशा वस्थवतयाां ाईपवस्थत थीं)
पर एक बाांध के वनमााण की घोषणा के ाईपराांत ‘सेि सााआिेंट िैिी ाअांदोिन’ का ाअरम्भ हुाअ।
यह ाअांदोिन 1973 में ाअरां भ हुाअ। के रि शास्त्र सावहत्य पररषद (K.S.S.P) ने सााआिेंट िैिी को
बचाने के विए जन भािनाओं को ाईभारने में प्रभािशािी योगदान क्रदया।
प्रदशानकाररयों को 1985 में सफिता प्राप्त हुाइ जब तत्कािीन प्रधानमांत्री राजीि गाांधी द्वारा
सााआिेंट िैिी राष्ट्रीय ाईद्यान का ाईद्घाटन क्रकया गया और ाईद्यान को नीिवगरर बायोस्फीयर ररजिा
के कोर एररया के रूप में नावमत क्रकया गया।
सााआिेंट िैिी ाआन्डैन्जडा हसह-पूछ
ां मैकाक (lion-tailed macaque) के विए भी प्रवसद्ध है।
हमारे देश के पूिी और पविमी, दोनों ही तटीय क्षेत्रों में स्थानीय मछु ाअरों के हजारों पररिार
मत्स्य व्यिसाय में सांिग्न हैं।
सरकार द्वारा भारतीय समुद्र में बड़े पैमाने पर मत्स्य-दोहन के विए मशीनीकृ त रॉिरों और बॉटम
रॉहिग जैसी प्रौद्योवगक्रकयों के ाईपयोग को ाऄनुमवत प्रदान क्रकये जाने पर ाआनके समक्ष ाअजीविका
का सांकट ाईत्पन्न हो गया।
ाऄपने वहतों और ाअजीविका की रक्षा के विए, मछु ाअरों द्वारा नेशनि क्रफशिका सा फोरम (NFF) के
रूप में एक राष्ट्रीय मांच का वनमााण क्रकया गया।
NFF ने ाऄपनी पहिी सफिता गहरे समुद्र में बहुराष्ट्रीय कां पवनयों सवहत िावणवज्यक जहाजों के
प्रिेश को भारत सरकार द्वारा ाऄनुमवत प्रदान क्रकये जाने के विरुद्ध प्राप्त की। जुिााइ 2002 में,
NFF ने एक राष्ट्रव्यापी हड़ताि का ाअह्िान क्रकया। ाआस हड़ताि का ाअह्िान सरकार द्वारा
विदेशी रॉिरों को भी िााआसेंस जारी करने के विरोध में क्रकया गया था।
स्ितांत्रता के बाद, दवित ाअांदोिन द्वारा सामावजक न्याय और प्रवतष्ठा की माांग ाईठााइ गयी तथा ाआनके
द्वारा एक वनवित प्रकार की जावतगत िामबांदी के ाअधार पर चुनािी बहुमत का वनमााण करने का
प्रयास क्रकया गया।
"दवित" शधद के द्वारा पहिे ाऄस्पृश्य माने जाने िािे िोगों एिां जनजावतयों को सांदर्थभत क्रकया जाता है,
वजन्हें ाअवधकाररक रूप से िमशाः ाऄनुसूवचत जावत और ाऄनुसूवचत जनजावतयों के रूप में पररभावषत
क्रकया गया है।
घनश्याम शाह ने दवित ाअांदोिन को वनम्न प्रकार से िगीकृ त क्रकया है :
o सुधारात्मक ाअांदोिन (Reformative Movement)
o िैकवलपक ाअांदोिन (Alternative Movement)
सुधारात्मक ाअांदोिन: यह ाऄस्पृश्यता की समस्या का समाधान करने हेतु जावत व्यिस्था में सुधार करने
का प्रयास करता है।
िैकवलपक ाअांदोिन: यह धमाांतरण या वशक्षा, ाअर्थथक प्रवस्थवत और राजनीवतक शवि प्राप्त कर एक
िैकवलपक सामावजक-साांस्कृ वतक सांरचना के वनमााण का प्रयास करता है।
िगभग सभी दवित ाअांदोिनों में ाअरक्षण का मुद्दा ाऄत्यवधक महत्िपूणा रहा है और ाआसे प्रगवत का सबसे
वनणाायक साधन माना जाता है।
भोपाि घोषणा (2002) के ाऄांतगात 21िीं शताधदी में दवितों के विए एक नए 21 हबदुओं िािे काया
एजेंडे को सिासम्मवत से ाऄपनाया गया है।
1980 में महाराष्ट्र के नावसक में शरद जोशी के ‘शेतकारी सांगठन’ के नेतृत्ि में सड़क और रे ि रोको
ाअांदोिन के साथ ही क्रकसान ाअांदोिन राष्ट्रीय राजनीवतक मांच पर प्रभािशािी ढांग से ाईभरकर
सामने ाअए।
शरद जोशी द्वारा ाअांदोिन की विचारधारा को ‘ाआां वडया बनाम भारत’, ‘औद्योवगक बनाम ग्रामीण’
के सांदभा में व्यि क्रकया गया।
1986 में मुजफ्फरनगर (U.P.) में महेंद्र हसह रटकै त की ाऄध्यक्षता में िाखों ग्रामीण वनिावसयों की
एक सभा हुाइ। ाआसके पररणामस्िरूप वबजिी के शुलकों को कम कर पहिे के स्तर पर करने की माांग
को स्िीकार करने की घोषणा करने के विए ाईत्तर प्रदेश के मुख्यमांत्री को स्ियां ाईपवस्थत होना पड़ा
था।
1980 के दशक में जमीनी स्तर पर व्यापक रूप से ग्रामीण नागररकों की िामबांदी का ाईदय हुाअ,
जैसे वििा सवयगि सांगम (तवमिनाडु ), राज्य रै यत सांघ (कनााटक), भारतीय क्रकसान सांघ (पांजाब
एिां हररयाणा), खेड़त
़ु समाज और क्रकसान सांघ (गुजरात) और शेतकारी सांगठन (महाराष्ट्र)।
ाआन नये क्रकसान ाअन्दोिनों ने, विशेष रूप से 1980 के दशक में, मीवडया तथा राजनीवतक ध्यान
ाअकर्थषत क्रकया।
ाआनकी माांगे मुख्य रूप से कृ वष ाईपज के विए िाभकारी मूलयों तथा नहर के पानी के शुलकों,
वबजिी शुलकों, धयाज दरों और ाऊण के मूिधन जैसे सरकारी बकायों को कम करने या समाप्त
करने पर कें क्रद्रत थीं।
क्रकसान ाअांदोिन
ाआन ाअांदोिनों का ाईदय 1960 के दशक के ाईत्तराद्धा में हुाअ था। 1960 का दशक राजनीवतक
ाऄवनवितता की ाऄिवध थी लयोंक्रक सत्ताधारी िगा के साथ सांघषा तीव्र हो गया था और व्यापक स्तर
पर विद्रोह होने की ाअशांका थी।
राज्य के बढ़ते स्िेच्छाचारी व्यिहार के कारण िोकताांवत्रक ाऄवधकार ाअांदोिनों को बढ़ािा वमिा
था।
नागररक स्ितांत्रता ाअन्दोिनों के विकास के विए मुख्य प्रेरक शवि ाअपातकाि की ाईदघोषणा थी
वजसने सांविधान के भाग-III में प्रदत्त मौविक स्ितांत्रताओं को वनिांवबत कर क्रदया था।
क्रदलिी ाअधाररत सांगठनों दो प्रमुख, नामताः पीपुलस यूवनयन फॉर वसविि विबटीज (PUCL) और
पीपुलस यूवनयन फॉर डेमोिे रटक रााआ्स (PUDR) ने िोगों के िोकताांवत्रक ाऄवधकारों के विए
काया करना ाअरां भ क्रकया।
ितामान में ये सांगठन समाज के कमजोर और िांवचत िगों के वहतों के विए काया कर रहे हैं और
न्यायपाविका में ाआन िगों के वहतों की पैरिी कर रहे हैं।
DEEPAK PHOTOSTAT
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E-mail; deepakkumarnirala88@gmail.com