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Disaster Management For UPSC
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आपदा प्रबंधन
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9818869135
अध्याय-2 ___________________________________________________________________________________ 10
अध्याय-3 ___________________________________________________________________________________ 35
आपदाएं (प्राकृ वतक या मानि-जन्य) विि भर में सामान्य हैं। ऐसा माना जाता है क्रक हाल के क्रदनों में
आपदाओं के पररमाण, जरटलता, बारं बारता और आर्नथक प्रभाि में िृवि हुई है। भारत, विि में
प्राकृ वतक संकटों के जोवखम के प्रवत सुभेद्यता के मामले में शीषव स्थान पर है।
1.1. आपदा (Disaster) क्या है?
आपदा शब्द की उत्पवत्त फ्रेंच शब्द “डेसास्त्रे” से हुई है। यह दो शब्दों ‘डेस’ (वजसका अथव है ‘खराब’) और
‘एस्टर’ (वजसका अथव है ‘वसतारा’) से वमलकर बना है। इस प्रकार यह शब्द ‘खराब या अमंगल वसतारे ’
को संदर्नभत करता है। क्रकसी आपदा को वनम्नवलवखत रूप में पररभावषत क्रकया जा सकता हैैः
“क्रकसी समुदाय या समाज के सुचारु रूप से कायव करने में एक ऐसी गंभीर बाधा जो व्यापक भौवतक,
आर्नथक, सामावजक या पयाविरणीय क्षवत उत्पन्न करती है और वजसके प्रभािों से वनपटना समाज द्वारा
मापा जाता है। यह प्रभावित क्षेत्र में भौवतक पररसंपवत्तयों के सम्पूणव या आंवशक विनाश,
आधारभूत सेिाओं में व्यिधान तथा आजीविका के स्रोतों में हुई हावनयों को वनरूवपत करती है।
आपदा प्रभाि, क्रकसी संकटपूणव घटना या आपदा के नकारात्मक प्रभािों (जैसे आर्नथक हावनयों)
और सकारात्मक प्रभािों (जैस,े आर्नथक लाभों) सवहत सम्पूणव प्रभाि को दशावता है। आपदा प्रभाि
में आर्नथक, मानिीय ि पयाविरणीय प्रभाि सवम्मवलत होते हैं तथा इसमें मृत्यु, चोटें, बीमाररयां
और मानि के शारीररक, मानवसक ि सामावजक स्िास््य पर पड़ने िाले अन्य नकारात्मक प्रभाि
सवम्मवलत हो सकते हैं।
आपदा, संकट, सुभद्य
े ता ि जोविम की संभावित पररवस्थवतयों को कम करने की अपयावप्त क क्षमता के
संयोजन का पररणाम होती है।
‘है़डव’ शब्द की उत्पवत्त प्राचीन फ्रेंच शब्द “हैसाडव” और अरबी के ‘अ़-़हर’ से हुई है, वजसका
अथव है ‘संयोग’ या ‘भाग्य’। संकट को “एक ऐसी खतरनाक वस्थवत या घटना के रूप में पररभावषत
क्रकया जा सकता है वजसमें जीिन को नुकसान पहुाँचाने अथिा संपवत्त या पयाविरण को क्षवत
पहुंचाने की क्षमता हो।”
कोई भी संकट, जैस-े बाढ़, भूकंप या चक्रिात, अपेक्षाकृ त अवधक सुभेद्यता (संसाधनों तक अपयावप्त क
पहुाँच, बीमार तथा िृि लोगों की उपवस्थवत, जागरूकता का अभाि आक्रद) िाले कारकों के साथ
वमलकर आपदा का कारण बन सकता है। आपदा से जान ि माल की अपेक्षाकृ त अवधक क्षवत होती
है। उदाहरण के वलए; एक वनजवन रे वगस्तान में आए भूकंप को एक आपदा नहीं माना जा सकता है,
चाहे िह क्रकतना भी शवक्तशाली और तीव्र क्यों न रहा हो। भूकंप के िल तब ही विनाशकारी होता
सुभेद्यता को “भौवतक, सामावजक, आर्नथक और पयाविरणीय कारकों या प्रक्रक्रयाओं द्वारा वनधावररत ऐसी
पररवस्थवतयों के रूप में पररभावषत क्रकया जा सकता है, जो संकट के पररणामस्िरूप उत्पन्न प्रभािों के
जोवखम “क्रकसी विवशष्ट समयािवध में क्रकसी वनर्ददष्ट क्षेत्र में संकट की घटना के कारण होने िाली
अनुमावनत हावन की माप है। जोवखम, क्रकसी विवशष्ट संकटपूणव घटना की तथा उससे होने िाली
हावनयों की संभािना का एक फलन (function) है।”
जोवखम का स्तर िस्तुतैः संकट की प्रकृ वत, प्रभावित हुए तत्िों की सुभेद्यता और उन तत्िों के
आर्नथक मूल्य पर वनभवर करता है।
आपदा जोवखम को प्रबंवधत एिं न्यूनीकृ त करने तथा प्रत्यास्थता को प्रबल बनाने के वलए क्रकसी
संगठन, समुदाय या समाज के भीतर उपलब्ध सभी साम्यों, विशेषताओं और संसाधनों के समुच्चय को
क्षमता कहते हैं। क्षमता में अिसंरचना, संस्थान, मानि ज्ञान ि कौशल, तथा सामूवहक विशेषताएं जैसे
करते हुए प्रवतकू ल पररवस्थवतयों, जोवखमों या आपदाओं को प्रबंवधत करने की लोगों, संगठनों और
प्रणावलयों की क्षमता है। इस क्षमता के वलए सामान्य समय के साथ-साथ आपदाओं या प्रवतकू ल
पररवस्थवतयों में भी सतत जागरूकता, संसाधनों ि कु शल प्रबंधन की आिश्यकता होती है। आपदा
का सामना करने की ये क्षमताएं, आपदा जोवखमों के न्यूनीकरण में सहायक होती हैं।
आपदाओं को दो मुख्य श्रेवणयों नामतैः प्राकृ वतक और मानि-जन्य में विभावजत क्रकया जा सकता है।
प्राकृ वतक आपदाएं िे आपदाएं हैं जो प्राकृ वतक (मौसम संबंधी, भूगभीय या जैविक मूल की)
पररघटनाओं के कारण घरटत होती हैं। चक्रिात, सुनामी, भूकंप और ज्िालामुखी विस्फोट उन
प्राकृ वतक आपदाओं के उदाहरण हैं जो पूणत
व ैः प्राकृ वतक मूल की हैं। भूस्खलन, बाढ़, सूखा, आग
आक्रद सामावजक-प्राकृ वतक आपदाएं हैं क्योंक्रक ये प्राकृ वतक और मानि-जन्य दोनों ही कारणों से
घरटत होती हैं। उदाहरण के तौर पर, बाढ़ की वस्थवत अत्यवधक िषाव, भूस्खलन या मानि अपवशष्ट
के कारण जल वनकासी में व्यिधान के कारण उत्पन्न हो सकती है।
मानि-जन्य आपदाएं िे आपदाएं हैं जो मानिीय उपेक्षाओं या असािधानी के कारण घरटत होती
हैं। ये उद्योगों या ऊजाव उत्पादन इकाइयों से संबि होती हैं और इनमें विस्फोट, विषाक्त अपवशष्टों
का ररसाि, प्रदूषण, बांध का टू टना, युि या नागररक संघषव आक्रद सवम्मवलत हैं। इनमें से कई
आपदाएं प्रायैः घरटत होती रहती हैं जबक्रक कु छ कभी-कभी घरटत होती हैं।
आपदा जोवखम प्रबंधन में िे सभी गवतविवधयां, कायवक्रम और उपाय सवम्मवलत हैं जो एक आपदा से
पहले, उसके दौरान और उसके पश्चात् अपनाए जा सकते हैं।
आपदा प्रबंधन की एक आदशव सतत प्रक्रक्रया में सवम्मवलत चरण हैं:
आपदा पूिव जोवखम प्रबंधन चरण, वजसमें रोकथाम, शमन और तैयारी सवम्मवलत हैं।
आपदा पश्चात् संकटकालीन प्रबंधन चरण, वजसमें राहत, अनुक्रक्रया, पुनिावस, पुनर्ननमावण और
सामान्य वस्थवत की बहाली सवम्मवलत हैं।
आपदा जोवखम प्रबंधन गवतविवधयों के अंतगवत तीन प्रमुख चरण हैं:
इसमें संभावित संकट के कारण होने िाली जान ि माल की क्षवतयों को कम करने के वलए की जाने
िाली गवतविवधयााँ सवम्मवलत हैं। उदाहरण के वलए- जागरूकता अवभयान चलाना, ितवमान
कमजोर ढांचों को मजबूत बनाना, घरे लू ि सामुदावयक स्तर पर आपदा प्रबंधन योजनाएाँ तैयार
करना आक्रद। इस चरण के तहत उठाये गये जोवखम न्यूनीकरण उपायों को शमन तथा तैयारी
गवतविवधयां कहा जाता है।
इसमें पीवड़तों की आिश्यकताओं की पूर्नत एिं रसद सामग्री उपलब्ध कराने संबंधी तथा उनके
कष्टों को कम करने संबंधी पहलों को सवम्मवलत क्रकया जाता है। इस चरण के तहत सवम्मवलत
गवतविवधयों को आपातकालीन अनुक्रक्रया गवतविवधयां कहा जाता है।
इसमें क्रकसी आपदा के घरटत होने के तुरंत पश्चात, प्रभावित समुदायों की शीघ्र पुनबवहाली तथा
पुनिावस के उद्देश्य से आपदा की अनुक्रक्रया में की गई पहलें सवम्मवलत होती हैं। इन्हें अनुक्रक्रया ि
पुनबवहाली गवतविवधयां कहा जाता है।
बंगाल में बाढ़ एिं राजस्थान में 2008 में भगदड़ जैसी आपदाएाँ घरटत हुईं तो भी सवमवत की
बैठक कभी-कभार ही हुई।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रावधकरण द्वारा िषव 2009 में 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीवत (NDMP)'
जारी गई। इसे “रोकथाम, शमन, तैयारी और अनुक्रक्रया की संस्कृ वत के माध्यम से समग्र,
अग्रसक्रक्रय, बहु-आपदा उन्मुख और प्रौद्योवगकी आधाररत रणनीवत विकवसत कर सुरवक्षत और
आपदा प्रत्यास्थ भारत के वनमावण” के वि़न के तहत तैयार क्रकया गया है।
आपदा प्रबंधन बहु-विषयक गवतविवध है वजसे सभी वहतधारकों के मध्य परस्पर सहक्रक्रया के साथ
सम्पन्न करने की आिश्यकता होती है। NDMP विवभन्न स्तरों पर रणनीवतक साझेदारी के
वनमावण पर बल देते हुए प्रबंधन हेतु एकीकृ त दृवष्टकोण का प्रािधान करती है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीवत, 2009 के उद्देश्य
ज्ञान, निाचार और वशक्षा के माध्यम से सभी स्तरों पर रोकथाम, तैयारी और प्रत्यास्थता की
संस्कृ वत को बढ़ािा देना।
प्रौद्योवगकी, पारं पररक ज्ञान और पयाविरणीय संधारणीयता के आधार पर शमन संबंधी उपायों को
प्रोत्सावहत करना।
आपदा प्रबंधन को विकासात्मक योजना वनमावण प्रक्रक्रया में सवम्मवलत करना।
सक्षमकारी विवनयामकीय पररिेश और अनुपालन व्यिस्था का वनमावण करने के वलए संस्थागत
और तकनीकी-कानूनी ढााँचों की स्थापना करना।
आपदा जोवखमों की पहचान, आकलन और वनगरानी के वलए कु शल तंत्र सुवनवश्चत करना।
सूचना प्रौद्योवगकी की सहायता से अनुक्रक्रयाशील एिं अचूक सम्प्रेषण (fail-safe
communication) द्वारा समर्नथत समकालीन पूिावनुमान और पूिव चेतािनी प्रणाली का विकास
करना।
समाज के सुभेद्य िगों की जरूरतों के प्रवत देखभाल के दृवष्टकोण के साथ कु शल अनुक्रक्रया और
राहत सुवनवश्चत करना।
सुरवक्षत जीिन सुवनवश्चत करने हेतु पुनर्ननमावण गवतविवधयों को आपदा प्रत्यास्थ संरचनाओं का
वनमावण करने का एक अिसर मानकर सम्पन्न करना।
आपदा प्रबंधन के वलए मीवडया के साथ उपयोगी और अग्रसक्रक्रय भागीदारी को प्रोत्साहन प्रदान
करना।
भारत सरकार ने पहली बार 2016 में अपनी प्रथम राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना जारी की। इस
योजना का वि़न “प्रशासन के सभी स्तरों एिं समुदायों के मध्य आपदाओं से वनपटने की क्षमता
को अवधकतम कर, भारत को आपदा प्रत्यास्थ बनाना, आपदा जोवखम न्यूनीकरण उपलवब्ध प्राप्त
करना तथा जीिन, आजीविकाओं और आर्नथक, शारीररक, सामावजक, सांस्कृ वतक एिं
इसे व्यापक रूप से आपदा जोवखम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमिकव , सतत विकास लक्ष्य 2015-
2030 एिं COP-21 में जलिायु पररितवन पर पेररस समझौते में वनधावररत लक्ष्यों और
प्राथवमकताओं के अनुसार सूत्रबि क्रकया गया है। जहााँ सेंडाई फ्रेमिकव 2015 के बाद के विकास
एजेंडे के अंतगवत अंगीकृ त क्रकया गया प्रथम अंतरावष्ट्रीय समझौता है, िहीं सतत विकास लक्ष्य भी
आपदा जोवखम न्यूनीकरण के महत्ि को सतत विकास के अवभन्न घटक के रूप में मान्यता प्रदान
करते हैं। पेररस समझौता िैविक जलिायु पररितवन के कारण चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती
बारं बारता पर तत्काल विचार करने की आिश्यकता पर ध्यान आकर्नषत करता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना में शावमल दृवष्टकोण के तहत, प्रत्येक संकट के वलए आपदा जोवखम
न्यूनीकरण के फ्रेमिकव में सेंडाई फ्रेमिकव में घोवषत चार प्राथवमकताओं को शावमल क्रकया गया है।
आपदा जोवखम न्यूनीकरण के वलए पांच कायवक्षेत्र वनम्न हैं:
o जोवखम को समझना
o एजेंवसयों के मध्य समन्िय
o आपदा जोवखम न्यूनीकरण (DRR) में वनिेश– संरचनात्मक उपाय
बहाली को किर करती है और मानि जवनत आपदाओं जैसे रासायवनक, नावभकीय आक्रद को किर
करती है।
यह आपदाओं से वनपटने हेतु लघु, मध्यम और दीघाविवध (क्रमशैः 5, 10, और 15 िषव) योजनाओं
की पररकल्पना करती है।
विकास संबंधी सभी क्षेत्रकों में आपदा जोवखम आपदा सम्बन्धी अध्ययन हेतु
प्रबंधन के वसिांत को अवनिायव रूप से आत्मसात वििविद्यालयों के एक नेटिकव का विकास
करना। करना।
आपदा जोवखम प्रबंधन में मवहलाओं की अवधक स्थानीय क्षमता तथा पहलों को प्रोत्साहन
भागीदारी और उनकी नेतृत्िकारी भूवमका को देना।
प्रोत्साहन देना।
िैविक रूप से जोवखम मानवचत्रण में वनिेश। यह सुवनवश्चत करना क्रक क्रकसी आपदा से
सीखने का अिसर व्यथव न जाए।
आपदा जोवखम प्रबंधन प्रयासों की दक्षता के आपदाओं के प्रवत अंतरावष्ट्रीय अनुक्रक्रया में
संिधवन हेतु प्रौद्योवगकी का लाभ उठाना। बेहतर सामंजस्य लाना।
राष्ट्रीय नीवत में आपदा जोवखम न्यूनीकरण तथा शमन हेतु एक बहु-आयामी दृवष्टकोण का सुझाि क्रदया
गया है, वजसमें वनम्नवलवखत त्य सवम्मवलत हैं:
सभी विकासात्मक पररयोजनाओं में जोवखम न्यूनीकरण संबंधी उपायों को सवम्मवलत करना।
कें द्र तथा राज्य सरकारों के सवम्मवलत प्रयासों के माध्यम से वनधावररत उच्च प्राथवमकता प्राप्त क क्षेत्रों
में शमन पररयोजनाओं को प्रारं भ करना।
राज्य स्तरीय शमन पररयोजनाओं को प्रोत्साहन तथा सहायता प्रदान करना।
आपदा तथा उसका सामना करने सम्बन्धी प्रणावलयों के संबंध में स्थानीय ज्ञान को महत्ि देना।
विरासत अिसंरचनाओं की सुरक्षा को उवचत महत्ि प्रदान करना।
सेंडाई फ्रेमिकव के वनदेशक वसिांतों के अनुसार, आपदा जोवखम न्यूनीकरण के वलए विवभन्न सरकारी
प्रभागों तथा विवभन्न एजेंवसयों द्वारा उत्तरदावयत्िों को साझा करने की आिश्यकता होती है। आपदा
जोवखम न्यूनीकरण की प्रभािशीलता सभी क्षेत्रकों के मध्य, क्षेत्रकों के भीतर तथा सभी स्तरों पर
सम्बंवधत वहतधारकों के समन्िय तंत्रों पर वनभवर करती है। प्रत्येक संकट के वलए, सेंडाई फ्रेमिकव में
घोवषत चार प्राथवमकताओं को आपदा जोवखम न्यूनीकरण के फ्रेमिकव में शावमल क्रकया गया है। आपदा
जोवखम न्यूनीकरण के वलए पांच कायवक्षत्र
े वनम्नवलवखत हैं:
जोवखम को समझना: इसमें जोवखम की समझ विकवसत करने पर बल क्रदया जाता है तथा यह
सेंडाई फ्रेमिकव के तहत प्रथम प्राथवमकता है। इसमें a) प्रेक्षण नेटिकव , शोध, पुिावनम
ु ान, b) जोनों
में िगीकरण/मानवचत्रण, c) वनगरानी तथा चेतािनी प्रणावलयााँ, d) संकट जोवखम तथा सुभेद्यता
मूल्यांकन (Hazard Risk and Vulnerability Assessment: HRVA), तथा e) चेतािवनयााँ,
आंकड़े तथा सूचना का विस्तार सवम्मवलत होते हैं। चेतािवनयााँ ़ारी करने तथा सूचना प्रसाररत
करने हेतु पयावप्त क वसस्टम का होना जोवखमों की समझ में सुधार का एक अवभन्न वहस्सा है।
एजेंवसयों के मध्य समन्िय: एजेंवसयों के मध्य समन्िय आपदा जोवखम शासन के सुदढ़ृ ीकरण हेतु
मुख्य अियि है। प्रमुख क्षेत्र, वजनमें एजेंवसयों के मध्य शीषव स्तरीय समन्िय में सुधार की
आिश्यकता है, िे वनम्नवलवखत हैं: a) समग्र आपदा शासन b) अनुक्रक्रया c) चेतािवनयााँ, सूचना
और आंकड़े उपलब्ध कराना, तथा d) गैर-संरचनात्मक उपाय।
आपदा जोवखम न्यूनीकरण में वनिेश– संरचनात्मक उपाय: आपदा जोवखम न्यूनीकरण तथा
प्रत्यास्थता बढ़ाने हेतु प्रमुख कायव-क्षेत्रों में से एक आिश्यक संरचनात्मक उपायों को आरं भ करना
है। इनमें आपदाओं से वनपटने में प्रयासरत समुदायों की सहायता हेतु आिश्यक विवभन्न भौवतक
अिसंरचनाएं तथा सुविधाएं सवम्मवलत हैं।
आपदा जोवखम न्यूनीकरण में वनिेश– गैर-संरचनात्मक उपाय: यथोवचत कानूनों, व्यिस्थाओं तथा
तकनीकी-क़ानूनी व्यिस्था का समुच्चय, आपदा जोवखम को प्रबंवधत करने के वलए आपदा जोवखम
शासन के सुदढ़ृ ीकरण हेतु महत्िपूणव घटक है। इन गैर-संरचनात्मक उपायों में क़ानून, प्रवतमान,
सारणी : प्राकृ वतक संकट-विवशष्ट पूिव चेतािनी जारी करने हेतु प्रावधकृ त के न्द्रीय एजेंसी
संकट एजेंसी
1 वहमस्खलन वहम एिं वहमस्खलन अध्ययन प्रवतष्ठान (Snow and Avalanche Study
Establishment: SASE)
5 महामारी स्िास््य एिं पररिार कल्याण मंत्रालय (MInistry of Health and Family
Welfare: MoHFW)
8 सुनामी भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेिा के न्द्र (Indian National Center for
Ocean Information Services: INCOIS)
राष्ट्रीय स्तर पर, कें द्र सरकार के द्वारा आपदा-विवशष्ट अनुक्रक्रयाओं के समन्िय हेतु मुख्य
उत्तरदावयत्ि कु छ विवशष्ट मंत्रालयों को सौंपे गए हैं। क्रकसी आपदा की आशंका की वस्थवत में या
आपदा के दौरान अनुक्रक्रया का समन्िय NEC द्वारा क्रकया जाता है।
12 तेल ररसाि (ऑयल वस्पल्स) रक्षा मंत्रालय/इं वडयन कोस्ट गाडव (Ministry of Defence:
MoD/ Indian Coast Guard: ICG)
राहत उपाय
यह आिश्यक है क्रक आपदा प्रभावित क्षेत्र में यथाशीघ्र प्रथम अनुक्रक्रयाकतावओं (First
Responders) और राहत सामग्री की उपलब्धता सुवनवश्चत की जाए। प्रायैः ऐसा पाया गया है
NDMA द्वारा राहत हेतु जारी न्यूनतम मानदंड संबंधी क्रदशा-वनदेशों में वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
राज्य तथा वजला प्रशासन को विद्यालयों, आंगनिाड़ी के न्द्रों जैसे ऐसे स्थानों की पहचान पहले से
कर लेनी चावहए वजनका उपयोग आपदा के दौरान राहत वशविर के रूप में क्रकया जा सके ।
टेंट/शौचालय/मूत्रालय आक्रद के प्रािधानों हेतु आपूर्नतकतावओं के साथ पूिव में ही समझौता ज्ञापन
(MoU) हस्ताक्षररत क्रकया जा सकता है।
सुभेद्य िगों यथा मवहलाओं, बच्चों, िृि व्यवक्तयों तथा विकलांगों के वलए विवशष्ट देखभाल की
व्यिस्था की जानी चावहए। वबजली की व्यिस्था के साथ प्रवत व्यवक्त 3.5 िगव मीटर क्षेत्र अिश्य
उपलब्ध कराया जाना चावहए।
पुरुषों तथा वस्त्रयों के वलए प्रवत क्रदन 2,400 क्रकलो कै लोरी युक्त भोजन की उपलब्धता सुवनवश्चत
की जानी चावहए। प्रवत व्यवक्त कम से कम 3 लीटर पेयजल आपूर्नत की व्यिस्था की जानी चावहए।
व्यवक्तगत स्ि्छता हेतु पयावप्त क जल की व्यिस्था सुवनवश्चत करने के साथ ही प्रत्येक कै म्प में
स्ि्छता स्तर को अिश्य बनाए रखा जाना चावहए। शौचालयों से वनकली नावलयों की क्रदशा
क्रकसी सतही जल स्रोत की ओर नहीं होनी चावहए।
क्रकसी भी आपदा के पश्चात के गोल्डन ऑिर में FES प्रथम अनुक्रक्रयाकतावओं (responders) में
से एक होती हैं तथा जान-माल की रक्षा में इनकी महत्िपूणव भूवमका होती है। FES की मुख्य
भूवमका आग की घटनाओं के दौरान अनुक्रक्रया करना होता है। अविशमन के अवतररक्त, FES अन्य
आपात वस्थवतयों यथा इमारत के ढहने, सड़क दुघवटनाओं, मानि तथा पशुओं के बचाि तथा अन्य
कई आपातकालीन वस्थवतयों में भी सहायता करती है।
ितवमान में राज्य, संघ शावसत प्रदेश तथा ULBs, FES का प्रबंधन करती हैं। यद्यवप उपकरणों के
स्तर, प्रकार तथा कमवचाररयों के प्रवशक्षण की बात की जाए तो इस हेतु कोई तय मानक उपलब्ध
नहीं हैं। राज्यों द्वारा की गई पहलों तथा FES के वलए उपलब्ध कराए गए धन की मात्रा के
अनुसार, प्रत्येक राज्य का अपना पृथक मानदडड है।
UNISDR (2009) के अनुसार, पुनबवहाली अथिा सामान्य वस्थवत की बहाली से तात्पयव पुनस्थावपना
और आपदा प्रभावित समुदायों को प्राप्त क सुविधाओं, आजीविका और रहन-सहन की वस्थवतयों में सुधार
से है। इसमें आपदा जोवखम कारकों को कम करने के प्रयास सवम्मवलत हैं।
पुनबवहाली के वनम्नवलवखत तीन चरणों के अंतगवत समुवचत नीवतयों एिं कायवक्रमों का वनमावण तथा
कायावन्ियन क्रकया जाता है:
(a) प्रारं वभक (b) मध्यािवधक, और (c) दीघाविवधक।
प्रारं वभक 3-18 माह कायों के बदले नकदी; बा़ार,िावणज्य तथा व्यापार का
पुनैः आरम्भ होना, सामावजक सेिाओं की पुनस्थावपना;
माध्यवमक तथा अस्थायी आश्रय-स्थलों का वनमावण
पुनर्ननमावण (Reconstruction)
प्रश्न: बड़ी पररयोजनाओं के वनयोजन के समय मानि बवस्तयों का पुनिावस एक महत्िपूणव पाररवस्थवतक
संघात (environmental impact) है, वजस पर सदैि वििाद होता है। विकास की बड़ी पररयोजनाओं
के प्रस्ताि के समय इस संघात को कम करने के वलए सुझाए गए उपायों पर चचाव कीवजए। (UPSC,
2016)
o 58.6 प्रवतशत भूभाग, मध्यम से अत्यवधक उच्च तीव्रता िाले भूकंपों के प्रवत प्रिण है।
o इसके भूवम-क्षेत्र का 40 वमवलयन हेक्टेयर (12%) से अवधक क्षेत्र, बाढ़ों तथा नक्रदयों द्वारा
अपरदन के प्रवत प्रिणता रखता है।
o 7,516 क्रक.मी. लंबे समुद्र तट में से लगभग 5,700 क्रक.मी. चक्रिात तथा सुनामी के प्रवत
प्रिण हैं।
o इसके कृ वष योग्य क्षेत्र का 68 % भाग सूखे के प्रवत सुभद्य
े है।
o इसके पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन तथा वहमस्खलन का जोविम रहता है।
o रासायवनक, जैविक, रे वडयोलॉवजकल और नावभकीय (CBRN) आपदाओं/आपात-वस्थवतयों
के प्रवत सुभेद्यता भी विद्यमान है।
(Natural Disasters)
3.2.1. भू कं प (Earthquake)
भूकंप को दो विवशष्टतया वभन्न पैमानों का प्रयोग करके मापा जा सकता है। ये भूकंप के पररमाण
(ररक्टर स्के ल द्वारा) तथा तीव्रता (मके ली स्के ल द्वारा) की जानकारी देते हैं। हालांक्रक, कु छ
िैज्ञावनक भूकंपों की भविष्टयिाणी करने की क्षमता का दािा करते हैं तथावप ऐसी आकवस्मक
घटनाओं की सही ि सटीक भविष्टयिाणी अभी भी संभि नहीं हैं।
भूकंप के पररणाम
प्राथवमक क्षवत: मानि बवस्तयों, भिनों, संरचनाओं ि अिसंरचनाओं, विशेष रूप से पुलों, फ्लाई-
ओिरों, रे ल की पटररयों, पानी की टंक्रकयों, पाइपलाइनों और विद्युत उत्पादन इकाइयों आक्रद को
क्षवत पहुाँचती है। भूकंप के पश्चिती झटके (Aftershocks) पहले से ही कमजोर हो चुकी
संरचनाओं को बहुत अवधक क्षवत पहुंचा सकते हैं।
II 41.40
III 30.40
IV 17.30 58.6%
V 10.90
वद्वतीयक प्रभािों में आग, बांध की विफलता तथा भूस्खलन (जो जल वनकायों के मागों को अिरुि
कर सकते हैं, वजससे बाढ़ आ सकती है), सुनामी, रासायवनक ररसाि, संचार सुविधाओं का बावधत
होना, मानि जीिन की क्षवत आक्रद शावमल हैं। प्रभावित क्षेत्रों में सािवजवनक स्िास््य प्रणाली,
पररिहन सुविधाओं एिं जल-आपूर्नत व्यिस्था को भी भारी क्षवत पहुाँचती है।
भूकंप के तृतीयक प्रभािों में पोस्ट-रॉमेरटक तनाि विकार, दीघवकावलक मनोिैज्ञावनक समस्याएं,
आजीविका की हावन, स्थानांतरण संबंधी मुद्दों के कारण सामावजक पूंजी की क्षवत आक्रद सवम्मवलत
हैं।
भूकंप के संकट का शमन
चूंक्रक भूकंप अवधकांश पररिहन ि संचार संपकों को भी ध्िस्त कर देता है इसवलए पीवड़तों को
समय पर राहत प्रदान करना करठन हो जाता है। भूकंप को रोक पाना संभि नहीं है; इसवलए
आपदा के उपचारात्मक उपायों के स्थान पर इससे वनपटने की तैयारी तथा शमन के उपायों पर
बल देना ही सिवश्रष्ठ े विकल्प बचता है।
सुभेद्य क्षेत्रों में वनयवमत वनगरानी तथा जनता में सूचना के तीव्र प्रसार हेतु भूकंप वनगरानी कें द्र
(भूकंप-विज्ञान कें द्र) स्थावपत क्रकये जाने चावहए। ितवमान में, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान कें द्र
(National Centre for Seismology: NCS) भारत सरकार की एक नोडल एजेंसी है जो
संपूणव देश और इसके आस-पास की भूकंपीय गवतविवधयों की वनगरानी हेतु उत्तरदायी है।
राष्ट्रीय भूकंप जोवखम शमन पररयोजना (National Earthquake Risk Mitigation Project)
राष्ट्रीय भूकंप जोवखम शमन (प्रारं वभक चरण) को 2013 में एक के न्द्र-प्रायोवजत योजना के रूप में
मंजरू ी दी गई थी। इस पररयोजना को NDMA द्वारा देश के भूकंप ़ोन IV एिं V में वस्थत राज्यों
की सरकारों / संघ राज्य क्षेत्रों के साथ समन्िय से कायाववन्ित क्रकया जाना है। इसका उद्देश्य मुख्य
वहतधारकों में मॉडल भिन वनमावण उपवनयमों एिं भूकंप-रोधी वनमावण ि योजना मानकों को
अपनाने की आिश्यकता पर जागरूकता बढ़ाना है।
प्रश्नैः भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप की आिृवत्त बढ़ती हुई प्रतीत होती है। क्रफर भी, इनके प्रभाि के
न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्िपूणव कवमयााँ हैं। विवभन्न पहलुओं की चचाव कीवजए।
(UPSC, 2015)
i. नई संरचनाओं का भूकंप-रोधी वनमावण: सभी कें द्रीय मंत्रालय एिं विभाग तथा राज्य सरकारें
अपने प्रशासवनक क्षेत्र में आने िाली इमारतों और अत्यािश्यक ि व्यािसावयक रूप से
महत्िपूणव अन्य संरचनाओं जैसे क्रक पुल, फ्लाईओिर, बंदरगाह, पत्तन आक्रद के वलए भूकंप से
सुरवक्षत वडजाइन एिं वनमावण हेतु प्रासंवगक मानकों के कायावन्ियन को सुविधाजनक बनाएाँगे।
ii. चयनात्मक भूकंपीय सुदढ़ृ ीकरण एिं ितवमान प्राथवमक रूप से महत्िपूणव संरचनाओं तथा
अत्यािश्यक संरचनाओं की रे रोक्रफटटग: सभी कें द्रीय मंत्रालयों एिं राज्य सरकारों द्वारा
प्राथवमक रूप से महत्िपूणव संरचनाओं के भूकंपीय सुदढ़ृ ीकरण हेतु शहरी स्थानीय वनकायों
(ULBs) तथा पंचायती राज संस्थानों (PRIs) के माध्यम से कायवक्रम तैयार करना आिश्यक
है। इन संरचनाओं में राज भिन, विधानसभा, न्यायालय जैसी राष्ट्रीय महत्ि की इमारतें,
अकादवमक संस्थानों जैसे महत्िपूणव भिन, जलाशय ि बांध जैसी सािवजवनक सुविधाओं िाली
संरचनाएं तथा पांच या अवधक मंवजल िाली बहुमंवजला इमारतें शावमल हैं। इन संरचनाओं की
पहचान करने की वजम्मेदारी राज्य सरकारों को दी गयी है।
iii. विवनयमन एिं प्रितवन: राज्य सरकारें भिन वनमावण संवहता एिं अन्य सुरक्षा संवहताओं के
कायावन्ियन हेतु ऐसे तंत्र स्थावपत करने हेतु उत्तरदायी हैं वजससे यह सुवनवश्चत हो सके क्रक
वबल्डर, िास्तुविद् (आर्दकटेक्ट्जस), अवभयंता ि सरकारी विभागों जैसे सभी वहतधारक वडजाइन
तथा वनमावण सम्बन्धी समस्त गवतविवधयों में भूकंप सुरक्षा वनयमों का पालन कर रहे हैं। गृह
1762
31 कार वनकोबार द्वीप पर ररक्टर पैमाने पर 7.9 भारत का सम्पूणव पूिी तट तथा अंडमान
क्रदसंबर की तीव्रता का भूकंप और वनकोबार द्वीप समूह; चेन्नई में 1
1881 मीटर की ऊाँचाई िाली सुनामी लहरें द़व
की गयी थीं।
26 अगस्त इं डोनेवशया में क्राकाटोआ ज्िालामुखी का भारत का पूिी तट प्रभावित हुआ था;
विस्फोट
1883 चेन्नई में 2 मीटर की ऊाँचाई िाली सुनामी
लहरें द़व की गयी थीं।
26 जून अंडमान द्वीप समूह पर ररक्टर पैमाने पर 8.1 भारत का पूिी तट प्रभावित हुआ था क्रकन्तु
की तीव्रता का भूकंप सुनामी लहरों की ऊाँचाई के आंकड़े
1941
उपलब्ध नहीं हैं।
27 निंबर कराची से दवक्षण में लगभग 100 क्रकमी की भारत के पवश्चमी तट के उत्तरी भाग से
लेकर कारिार (कनावटक) तक प्रभावित
26 बांदा आचेह, इं डोनेवशया; तवमलनाडु , के रल, भारत का पूिी तट प्रभावित हुआ था।
क्रदसंबर आंध्र प्रदेश, अंडमान और वनकोबार द्वीप लगभग 10 मीटर ऊाँची सुनामी लहरों से
2004 समूह, भारत; श्रीलंका; थाईलैंड; मलेवशया; 10,000 से अवधक लोगों की मृत्यु हो गयी
थी।
के न्या; तंजावनया
o जलग्रहण क्षेत्र उपचार/ िनीकरण: िाटरशेड प्रबंधन उपाय जैसे क्रक िनस्पवत आिरण विकवसत
करना अथावत् िनीकरण और चेक डैम, अिरोध बेवसन इत्याक्रद जैसे संरचनात्मक कायों के साथ
मृदा आिरण का संरक्षण, बाढ़ की प्रचंडता को कम करने और अपिाह की आकवस्मकता को
वनयंवत्रत करने हेतु प्रभािी उपाय के रूप में कायव करते हैं।
गैर-संरचनात्मक उपाय (Non-Structural Measures)
o बाढ़ के मैदान का जोनों में िगीकरण: यह बाढ़ से अवधकतम लाभ प्रावप्त क हेतु बाढ़ के कारण होने
िाली क्षवत को सीवमत करने के वलए बाढ़ के मैदानों में भूवम के उपयोग को वनयंवत्रत करने हेतु
क्रकया जाता है।
o फ्लड प्रूकफग: यह संकट के शमन में सहायता करता है और बाढ़ प्रिण क्षेत्रों में जनसंख्या को
तत्काल राहत प्रदान करता है। यह संरचनात्मक पररितवन और आपातकालीन कायविाही का
संयोजन है क्रकन्तु इसमें लोगों को प्रभावित क्षेत्र से बाहर वनकालना सवम्मवलत नहीं है। इसमें
लोगों और मिेवशयों के वलए बाढ़ आश्रय के वलए ऊंची समतल भूवम प्रदान करना; सािवजवनक
उपयोवगता संस्थापनाओं, विशेष रूप से पीने के पानी के हैंडपंपों और बोरिेल का प्लेटफॉमव बाढ़
के स्तर से ऊपर उठाना तथा दो-मंवजला इमारतों का वनमावण प्रोत्सावहत करना सवम्मवलत है,
वजसमें ऊपरी मंवजल का उपयोग बाढ़ के दौरान आश्रय-स्थल के वलए क्रकया जा सकता है।
o बाढ़ प्रबंधन योजनाएं: सभी सरकारी विभागों और एजेंवसयों को अपनी स्ियं की बाढ़ प्रबंधन
योजनाएं तैयार करनी चावहए।
o बेवसन या िाटरशेड पैमाने पर जल संसाधनों के एकीकृ त प्रबंधन के उद्देश्य से एकीकृ त जल
संसाधन प्रबंधन।
भारत में बाढ़ का पूिावनम
ु ान और चेतािनी
बाढ़ पूिावनम
ु ान के वलए जल प्रिाह और िषाव के ररयल-टाइम आंकड़े आधारभूत आिश्यकताएं हैं।
अवधकांश जल-मौसमविज्ञान संबध ं ी आंकड़े कें द्रीय जल आयोग के क्षेत्रीय के न्द्रों द्वारा प्रेवक्षत और
एकत्र क्रकए जाते हैं; IMD दैवनक िषाव संबंधी आंकड़े प्रदान करता है।
शहरीकरण से िषाव में िृवि होती है: 1921 में, िैज्ञावनकों ने पाया क्रक बड़े शहरों के ऊपर तवड़तझंझा का
वनमावण होता है, जबक्रक ग्रामीण इलाकों के ऊपर ऐसे क्रकसी तवडतझंझा का वनमावण नहीं होता। इसे
शहरी ऊष्टमा द्वीप प्रभाि से बहुत अ्छी तरह समझा जा सकता है- बढ़ती गमी बादल वनमावण को प्रेररत
करती है और पिनें शहर द्वारा प्रेररत संिहन के साथ अंतरक्रक्रया करके िषाव करती हैं।
3.2.6. भू स्खलन
(Landslides)
29 वसतम्बर, 2010 राष्ट्रीय रक्षा अकादमी मात्र 1 घंटे में 14.4 सेमी िषाव
4 अक्टू बर, 2010 पाषाण, पुणे मात्र 1.5 घंटे में 18.2 सेमी िषाव
चक्रिातों को विि के विवभन्न भागों में वभन्न-वभन्न नामों से जाना जाता है:
अंतरावष्ट्रीय वतवथरे खा के पवश्चम में उत्तरी-पवश्चमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टाइफ़ू न;
उत्तरी अटलांरटक महासागर, अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा के पूिव में उत्तरी-पूिी प्रशांत महासागर और
दवक्षणी प्रशांत महासागर के क्षेत्रों में हररके न;
दवक्षणी-पवश्चमी प्रशांत महासागर और दवक्षणी-पूिी वहन्द महासागर के क्षेत्रों में उष्टणकरटबंधीय
चक्रिात ;
उत्तरी वहन्द महासागर क्षेत्र में भीषण चक्रिाती तूफ़ान;
दवक्षणी-पवश्चमी वहन्द महासागरीय क्षेत्र में उष्टणकरटबंधीय चक्रिात;
ऑस्रेवलया में विली-विली ; एिं
दवक्षणी अमेररका में टोरनेडो ।
चक्रिात में, वनम्न दाब कें द्र के चारों ओर - उत्तरी गोलािव में िामाितव क्रदशा में एिं दवक्षणी गोलािव में
दवक्षणाितव क्रदशा में - प्रबल पिनें प्रिावहत होती हैं, हालांक्रक कें द्र (वजसे चक्रिात की आंख कहते हैं) में
पिन बहुत कम होती है और आम तौर पर यह क्षेत्र मेघ और िषाव रवहत होता है। कें द्र से लगभग 20 से
30 क्रक.मी. की दूरी पर पिनें तेजी से अपना अवधकतम िेग प्राप्त कर लेती हैं (प्राय: 150 क्रक.मी./घन्टे
से अवधक) और इसके आगे क्रवमक रूप से इनका िेग कम होता जाता है और लगभग 300 से 500
क्रक.मी. की दूरी पर सामान्य हो जाता है। चक्रिातों का व्यास 100 से 1000 क्रक.मी. तक होता है
लेक्रकन इनका प्रभाि महासागरों एिं साथ ही तट के क्रकनारे कई हजार क्रकलोमीटर के क्षेत्र में अवधक
होता है। इसकी ऊजाव का स्रोत चक्रिात की आाँख के 100 क्रकलोमीटर वत्रज्या में वस्थत होता है, जहााँ
आाँख के व्यास से परे एक संकीणव क्षेत्र में अत्यवधक प्रबल पिनें उत्पन्न हो सकती हैं, वजनकी गवत कभी-
कभी 250 क्रक.मी. प्रवत घंटे से अवधक होती है।
3.2.9. सू खा (Drought)
यह अन्य चरों यथा तापमान, आद्रवता, सौर विक्रकरण तथा पिन प्रवतरूप से प्रभावित होती रहती
है।
सूखे के प्रकार
मौसम विज्ञान इस वस्थवत में लंबी अिवध तक अपयावप्त क िषाव होती है और साथ ही िषाव का
संबंधी सूखा सामवयक एिं स्थावनक वितरण भी असमान होता है।
औसत से 90 प्रवतशत से कम िषाव की वस्थवत को मौसम विज्ञान संबंधी सूखे
के रूप में िगीकृ त क्रकया जाता है।
कृ वष संबंधी मृदा में नमी की कमी इस वस्थवत का लक्षण है। मृदा में नमी फसल की रक्षा के
सूखा वलए आिश्यक होती है और नमी के अभाि में फसलें नष्ट हो जाती हैं।
यक्रद क्रकसी क्षेत्र के सकल फसल क्षेत्र की 30 प्रवतशत से अवधक भूवम ससचाई
के तहत आती हो तो उस क्षेत्र को सूखा-प्रिण िगव के तहत सवम्मवलत नहीं
माना जाता है।
चरम कृ वष सूखे के पररणामस्िरुप अकाल की वस्थवत उत्पन्न हो सकती है।
अकाल से आशय क्रकसी सीवमत क्षेत्र में दीघवकाल तक खाद्यान्न की कमी से है,
वजसके पररणामस्िरूप व्यापक स्तर पर रोग तथा भूखमरी की वस्थवत उत्पन्न
‘सूखा सप्त काह (Drought Week)’ जब साप्त कावहक िषाव की मात्रा सामान्य के आधे से भी कम हो।
‘कृ वष संबंधी सूखा (Agricultural Drought)’ जब मध्य जून से वसतंबर के दौरान वनरं तर चार
सूखे सप्त काहों की वस्थवत उत्पन्न हो जाए।
‘मौसमी सूखा (Seasonal Drought)’ जब मौसमी िषाव सामान्य से मानक विचलन की तुलना
में कम हो।
‘सूखा िषव (Drought Year)’ जब िार्नषक िषाव सामान्य से 20 प्रवतशत या अवधक कम हो।
‘गंभीर सूखा िषव (Severe Drought Year)’ जब िार्नषक िषाव सामान्य से 25 से 40 प्रवतशत
या और अवधक कम हो।
भारत में सूखा संबध
ं ी जोवखम
भारत में सूखे की अपनी विवशष्टता है, इसवलए इसके संबंध में कु छ आधारभूत त्यों को समझा जाना
आिश्यक है। जैसे:
भारत में औसत िषाव लगभग 1150 वममी होती है। क्रकसी भी अन्य देश का िार्नषक औसत इतना
उच्च नहीं है, यद्यवप इसमें िार्नषक रूप से पयावप्त क विविधता देखने को वमलती है।
सामान्य से अवधक (Above सामान्य से अवधक (Above प्राप्त क िषाव का दीघाविवधक औसत से
Normal) Normal) प्रवतशत विचलन > 10% हो
न्यूनता िाला िषव सम्पूणव भारत में सूखे का िषव जब िषाव की कमी 10% से अवधक हो
(Deficient Year) (All India Drought Year) और देश के 20-40% भाग में सूखे की
दशाएाँ व्याप्त क हों
भारी न्यूनता िाला िषव सम्पूणव भारत में गंभीर सूखे का जब िषाव की कमी 10% से अवधक हो
(Large Deficient Year) िषव (All India Severe और देश के 40% से अवधक भाग में
Drought Year) सूखे की दशाएाँ व्याप्त क हों
सूखे की गंभीरता के आधार पर भारत को तीन क्षेत्रों में विभावजत क्रकया जा सकता है:
आिश्यक रूप से क्रकये जाने िाले कायव (Must-Do-Practices: MDPs): प्रारं वभक तैयारी
प्रश्न: 1987-88 के सूखे से भारत के कौन-से भाग मुख्यतैः प्रभावित हुए थे? इसके मुख्य पररणाम क्या
थे? (UPSC, 88/II/6b/20)
प्रश्न: भारत में सूखे के कारणों पर रटप्पणी वलवखए। (UPSC, 2005)
प्रश्न: सूखे को उसके स्थावनक विस्तार, कावलक अिवध, मंथर प्रारं भ और कमजोर िगों पर स्थायी प्रभािों
की दृवष्ट से आपदा के रूप में मान्यता दी गयी है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रावधकरण (NDMA) के वसतंबर
2010 मागवदशी वसिांतों पर ध्यान के वन्द्रत करते हुए भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित
दुष्टप्रभािों से वनपटने के वलए तैयारी की कायवविवधयों पर चचाव कीवजए। (UPSC, 2014)
जेट धाराएं।
हीट िेि के लक्षण
अत्यवधक गमी - क्षेत्र के औसत तापमान की तुलना में न्यूनतम 9 वडग्री सेवल्सयस उ्च तापमान।
आद्रवता – उच्च तापमान पर िायु में अत्यवधक नमी की उपवस्थवत अत्यंत असुविधाजनक हो सकती
है।
क्रकसी क्षेत्र में न्यूनतम पांच क्रदनों के वलए तेज गमी।
मृदा में नमी की कमी।
भारत में हीट िेि जोवखम
जलिायु पररितवन के कारण उच्च दैवनक शीषव तापमान एिं अवधकावधक लंबी, अवधक प्रचंड हीट
िेव्स िैविक रूप से वनरं तर घरटत होने िाली घटनाएं बनती जा रही हैं। हीट िेि की बढ़ती
घटनाओं की दृवष्ट से भारत भी जलिायु पररितवन के प्रभािों का अनुभि कर रहा है। हीट िेि िषव
दर िषव अवधकावधक तीव्र होती जा रही हैं और मानि स्िास््य पर विनाशकारी प्रभाि डालती हैं।
पररणामस्िरूप हीट िेि के कारण होने िाली मौतों की संख्या में िृवि होती जा रही है।
भारत में, अप्रैल से जून विवशष्ट हीट िेि की ऋतु है। जून दवक्षण-पवश्चम मानसून के आगमन का
महीना है इस महीने में प्रायद्वीपीय एिं मध्य भारत से ग्रीष्टमऋतु जैसी वस्थवतयााँ समाप्त होने
लगती हैं परन्तु उत्तर भारत में बनी रहती हैं। जनसंख्या घनत्ि, औद्योवगक गवतविवधयों से प्रदूषण
एिं इमारतों की उपवस्थवत के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहर अवधक गमव होते हैं।
असाधारण ग्रीष्टम तनाि एिं भारत में विद्यमान ग्रामीण जनसंख्या की अवधकता के कारण भारत
हीट िेि के प्रवत सुभेद्य है। हीट िेि देश के आंतररक क्षेत्रों में अपेक्षाकृ त अवधक प्रभािी होती हैं।
पहाड़ी क्षेत्र, पूिोत्तर भारत और तटीय क्षेत्र आम तौर पर हीट िेि अनुभि नहीं करते हैं। हीट िेि
हररयाणा, क्रदल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओवडशा, पवश्चम बंगाल, वबहार, झारखंड,
छत्तीसगढ़ और कनावटक के क्षेत्रों में प्रिावहत होती हैं।
शीतलक प्रभाि (wind chills) अत्यवधक बढ़ जाता है। शीत लहर, ठं ड के मौसम से संबंवधत
महत्िपूणव घटनाओं यथा वहमझंझािात या बफीले तूफान से पहले या उनके साथ प्रिावहत हो
सकती हैं।
शीत लहर के कारण
भारत में शीत लहर का विस्तार अपेक्षाकृ त उच्च अक्षांशों से ठं डी िायु के आगमन के कारण होता
है। यह सामान्यतैः, अल नीनो, चक्रिातीय गवतविवधयों तथा जेट धाराओं (पवश्चमी विक्षोभ) से
संबि होती है।
पवश्चमी विक्षोभ, 20°N के उत्तर में ऊपरी क्षोभमंडलीय पछु आ पिनों के साथ पूिव की ओर अग्रसर
सुस्पष्ट गतव (troughs) के रूप में प्रकट होते हैं और प्रायैः वनचले क्षोभमंडल तक विस्ताररत होते
हैं। ये उत्तरी अक्षांश से ठं डी िायु को भारत की ओर ले आते हैं। उत्तरी अरब सागर के ऊपर वनम्न
दाब तंत्र के विकवसत होने के कारण भी शीत लहर के कु छ दृष्टांत सामने आए हैं। इन वस्थवतयों में,
वनम्न दाब तंत्र के उत्तर की ओर की पूिाव पिनें उच्च अक्षांशों से ठं डी पिनें अपने साथ लाती हैं।
सेंटीग्रेड से अवधक की वगरािट देखी जाती है। यह दौर सामान्यतैः 3 से 5 क्रदनों तक चलता है तथा
जनिरी में ऐसी वस्थवतयां सिाववधक देखने को वमलती हैं।
उत्तरी भारत
उत्तरी मैदानों में क्रदसंबर तथा जनिरी सिाववधक ठं डे महीने होते हैं। पंजाब तथा राजस्थान में
रावत्रकालीन तापमान के वहमांक के भी नीचे जाने की संभािना रहती है। उत्तर भारत में अत्यवधक
ठं ड के वनम्नवलवखत कारण हो सकते हैं:
o समुद्र के समकारी प्रभाि से बहुत दूर वस्थत होने के कारण पंजाब, हररयाणा तथा राजस्थान
जैसे राज्यों में महाद्वीपीय जलिायु पाई जाती है।
o वनकटिती वहमालय पिवतश्रेवणयों में होने िाली बफ़व बारी के कारण शीतलहर की वस्थवत
उत्पन्न हो जाती है; तथा
o फरिरी के आस-पास कै वस्पयन सागर तथा तुकवमेवनस्तान से आने िाली ठं डी पिनें भारत के
उत्तर-पवश्चमी भागों में तुषार तथा कोहरे के साथ-साथ शीतलहर के आगमन का कारण
बनती हैं।
प्रायद्वीपीय क्षेत्र
भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र में स्पष्ट रूप से पररभावषत शीत ऋतु नहीं होती है। समुद्री समकारी
प्रभाि तथा विषुितरे खा से वनकटता के कारण तटीय क्षेत्रों में तापमान के वितरण प्रवतरूप में
कदावचत ही कोई मौसमी पररितवन आता है।
शीत लहर के प्रभाि
तुषार के साथ यह कृ वष, अिसंरचना तथा संपवत्त को नुकसान पहुाँचा सकती है।
भारी वहमपात तथा अत्यवधक ठं ड के कारण सम्पूणव क्षेत्र वनवष्टक्रय हो सकता है।
वहमआंवधयों के कारण बाढ़ आना, तूफान महोर्नम, राजमागव एिं सड़कें अिरुि होना, वबजली की
लाइनों का धराशायी होना तथा हाइपोथर्नमया।
आर्नथक तथा मानिीय क्षवत।
सिड वचल यह िास्तविक तापमान नहीं बवल्क खुली त्िचा पर पिन एिं ठं ड का अहसास
(Wind Chill) होता है। जैस-े जैसे पिन आगे बढ़ती है, अत्यंत तीव्रता से शरीर में ऊष्टमा की
कमी होती है तथा शरीर का तापमान कम होने लगता है। जीि-जंतु भी सिड
वचल से प्रभावित होते हैं; हालांक्रक गावड़यााँ, िनस्पवतयााँ एिं अन्य िस्तुएं
प्रभावित नहीं होती हैं।
करने, बगीचों में अिवशष्ट पदाथों को जला कर धुआं करने, मृत भागों की छंटाई कर फसलों को
पुनैः निजीिन प्रदान करने तथा पवत्तयों पर वछड़काि के माध्यम से उिवरक की अवतररक्त खुराकों
की आपूर्नत करने की आिश्यकता होती है।
सुभेद्य जनसंख्या को ठं ड से बचाने के वलए विद्यालयों तथा अन्य सािवजवनक इमारतों को आश्रय-
स्थलों में पररिर्नतत करने की संभािना से संबंवधत योजना तैयार करना।
बच्चों, िृि एिं बीमार व्यवक्तयों पर ठं ड से होने िाले प्रभािों के प्रवत जागरूक तथा अवभगम एिं
तैयारी संबंधी प्रयासों को बढ़ािा देना।
बाह्य दीिारों से लगी पाइपलाइनों पर ऊष्टमा रोधी परत चढ़ाना ताक्रक इनके भीतर का जल जमे
नहीं और जलापूर्नत के प्रभावित होने की संभािना कम हो सके ।
अपने घर के वलए शीत ऋतु हेतु एक क्रकट तैयार रखना। मानक आधारभूत घरे लू आपातकालीन
क्रकट के अवतररक्त ऐसे खाद्य-पदाथव रखना वजन्हें पकाने या क्रफ्रज में रखने की आिश्यकता न हो।
साथ ही जल, कं बल, सेंधा नमक तथा वबजली आपूर्नत व्यिस्था भंग होने की वस्थवत में अपने घर
को सुरवक्षत तरीके से गमव रखने की व्यिस्था की जानी चावहए।
समुदाय तथा स्थानीय शासन की पयावप्त क तैयारी शीत लहर के कारण होने िाली मौतों में कमी ला
सकती है।
चूाँक्रक शीत लहर/पाला एक स्थानीय आपदा है, अतैः इसके वलए राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं की
बजाय संबंवधत राज्य सरकारों द्वारा स्थान विवशष्ट शमनकारी योजनाएं तैयार क्रकये जाने की
आिश्यकता होती है।
स्थानीय स्तर पर SHGs तथा PRIs आक्रद की भागीदारी में कमी।
समयपूिव तैयारी का अभाि।
नोट: िषव 2016 में, शीत लहर तथा हीट िेि को पररभावषत करने िाले मानकों में पररितवन कर
राष्ट्रीय मौसम संस्थान IMD ने एक नयी वनयमािली को अंगीकृ त क्रकया है।
िनावि के प्रभाि
िनावि को वनयंवत्रत करने हेतु सरकार द्वारा भारी व्यय।
बाढ़, मलबे के प्रिाह एिं भूस्खलन की संभािना बढ़ जाती है।
धुएाँ एिं अन्य उत्सजवनों में प्रदूषक होते हैं, जो गंभीर स्िास््य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
भूवम की उत्पादकता में ह्रास, प्रजावतयों के पुनजवनन पर प्रभाि तथा िाटर शेड पर अत्यवधक
हावनकारक प्रभाि।
नई तकनीक, सेंसर जाल (sensor webs) ि उपग्रह प्रौद्योवगकी के उपयोग से वनगरानी एिं पूिव
चेतािवनयां जारी करने हेतु संकीणव स्थावनक पहुाँच।
विशेष रूप से िन भूवम-शहरी अंतरापृष्ठ क्षेत्रों में मानि जीिन एिं संपवत्त पर प्रभाि के
न्यूनीकरण हेतु उपकरणों ि विवधयों को विकवसत करने की आिश्यकता।
ग्रामीण समुदायों से िन संसाधनों के प्रबंधन में भागीदारी के वलए आग्रह नहीं क्रकया जाता है,
परं तु संकट के समय उनसे सहयोग की अपेक्षा जाती है। उन्हें वस्थवत के बारे में जागरूक कर इस
प्रकार के मनोभाि एिं दृवष्टकोण को बदला जाना चावहए तथा उन्हें यह वसखाया जाना चावहए
क्रक ऐसी आपात वस्थवत के दौरान िे क्या कदम उठा सकते हैं।
देश के विवभन्न भागों में अनुषंगी कें द्रों के साथ एक राष्ट्रीय िनावि प्रबंधन संस्थान स्थावपत करने
की आिश्यकता है।
सामररक िनावि कें द्रों, मंत्रालयों के मध्य समन्िय, वित्त पोषण, मानि संसाधन विकास, अवि
अनुसंधान, अवि प्रबंधन तथा विस्तार कायवक्रमों जैसे महत्िपूणव िनावि प्रबंधन तत्िों का अभाि
है।
क्या क्रकया जाना चावहए
िनावि को पूणवरूपेण विनाशकारी प्रकृ वत के रूप में देखने के बजाय िन प्रबंधकों को कदावचत
अपने दृवष्टकोण का विस्तार करना चावहए। उन्हें आग को पुरुिारक एिं पुनजीिन प्रदान करने
िाली घटना के रूप में देखने िाली पाररवस्थवतकीय तथा स्थानीय ज्ञान प्रणावलयों से प्राप्त क
जानकाररयों के प्रवत और अवधक समािेशी होना चावहए।
ितवमान चुनौवतयां
रोग के प्राकृ वतक एिं कृ वत्रम प्रकोपों (जैि आतंकिाद) से उत्पन्न महत्िपूणव चुनौवतयााँ वनम्नवलवखत हैं:
प्रारं वभक प्रकोपों का शीघ्र पता लगाने िाली क्रक्रयाविवधयों के विकास का अभाि।
परीक्षण एिं वचक्रकत्सीय प्रत्युपायों को गवत प्रदान करने में अक्षमता।
अंतरावष्ट्रीय सहयोग का अभाि, जबक्रक महामाररयां राष्ट्रीय सीमाओं से परे होती हैं।
आपदा पश्चात् उत्पन्न महामाररयों की रोकथाम हेतु एक उपयुक्त योजना का अभाि।
एकीकृ त रोग वनगरानी प्रणाली का विकास क्रकया जाना अभी भी शेष है।
मानक जोवखम और सुभेद्यता आकलन योजनाओं की अनुपवस्थवत।
जैविक आतंकिादी गवतविवधयों हेतु विवभन्न सुभेद्य स्थानों के वलए संकेतकों और फ़ील्ड-परीवक्षत
चरों का अभाि।
विशेषकर सीमा-पार प्रसार की संगणना (कं प्यूटटग) हेतु जोवखम-क्षेत्र वनधावरक मानवचत्रों की
उपलब्धता न होना।
विवभन्न िैविक आक्रमणों एिं भारतीय संदभव में संिर्नधत संभावित जोवखम के मध्य संपकों के
आकलन हेतु कोई व्यापक अध्ययन नहीं क्रकया गया है।
वहतधारकों के मध्य बहु-आयामी सूचना नेटिकव एिं विवभन्न जैविक एजेंटों से संबंवधत जानकारी
का अभाि है।
आपातकालीन कायवकतावओं की भूवमका के विस्तृत वििरण के साथ-साथ खुक्रफया जानकारी एकत्र
करने िाली एजेंवसयों का भी काफी अभाि है।
नमूनों के संग्रहण एिं प्रयोगशालाओं तक उनके उवचत प्रेषण हेतु क्षमता का अभाि।
घटना स्थल पर जैविक एजेंटों का शीघ्र पता लगाने एिं उनकी विशेषताओं के वनधावरण हेतु
अपयावप्त क सुविधाएाँ।
जैविक आपदा प्रबंधन के वलए आिश्यक कदम
विवधक ढांचा: महामारी रोग अवधवनयम को 1897 में अवधवनयवमत क्रकया गया था वजसे वनरस्त
क्रकए जाने की आिश्यकता है। यह अवधवनयम कें द्र को जैविक आपात वस्थवत में हस्तक्षेप करने की
कोई शवक्त प्रदान नहीं करता। इसे ऐसे अवधवनयम द्वारा प्रवतस्थावपत क्रकया जाना चावहए जो जैि
आतंकिादी हमलों एिं शत्रु द्वारा जैविक हवथयारों के उपयोग, सीमा-पार के मुद्दों तथा रोगों के
अंतरराष्ट्रीय प्रसार सवहत प्रचवलत एिं संभावित सािवजवनक स्िास््य आिश्यकताओं का ध्यान
रखें।
पररचालन ढांचा: राष्ट्रीय स्तर पर, जैविक आपदाओं पर कोई नीवत मौ़ूद नहीं है। स्िास््य एिं
पररिार कल्याण मंत्रालय की मौजूदा आपात योजना लगभग 10 िषव पुरानी है और इसमें व्यापक
संशोधन की आिश्यकता है। जन स्िास््य से संबंवधत सभी घटक, अथावत् सिोच्च संस्थाएं,
जानपक्रदक रोग विज्ञान (field epidemiology), पयविेक्षण, वशक्षण, प्रवशक्षण, अनुसंधान आक्रद
के सुदढ़ृ ीकरण की आिश्यकता है।
कमान, वनयंत्रण और समन्िय: 1994 में सूरत में प्लेग एिं 2006 में एवियन इं फ्लूएज
ं ा के प्रकोप
से सीखे गए सबकों में से एक यह है क्रक ऐसे के प्रकोप के प्रबंधन हेतु पशु स्िास््य, गृह विभाग,
2. रानीपेट क्रोवमयम संदवू षत क्षेत्र, 7. जूही-बबुरैया-राखी मंडी, कानपुर, उत्तर प्रदेश: सघन
तवमलनाडु : यहााँ लगभग 3 आबादी िाले अवधिासीय क्षेत्र के भीतर लगभग 2 हेक्टेयर
हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग क्षेत्र की मृदा हेक्सािैलेन्ट क्रोवमयम के लगभग 10,000 टन
2,20,000 टन क्रोवमयम अपवशष्ट से संदवू षत; प्रदूषणकतावओं के विषय में जानकारी नहीं।
का 2 से 4 मीटर ऊंचा ढेर लगा
हुआ है।
3. रतलाम औद्योवगक क्षेत्र, रतलाम, 8. रवनया, कानपूर देहात, उत्तर प्रदेश: वनजी भूवम के लगभग
मध्य प्रदेश: H-अम्ल बनाने िाले 200 हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 45,000 टन हेक्सािैलेन्ट
फामाव उद्योग के अपिाह से क्रोवमयम अपवशष्ट का ढेर लगा हुआ है।
संदवू षत
5. तालचेर क्रोवमयम संदवू षत क्षेत्र, 10. स्थायी काबववनक प्रदूषक (POP)-संदवू षत क्षेत्र, लखनऊ:
तालचेर, ओवडशा: बंद हो चुकी इं वडयन पेस्टीसाइड वलवमटेड ने 36,432 टन
क्रोम सॉल्ट वनमावण इकाई के हेक्साक्लोरोसाइडोहेक्सेन (HCH) अपवशष्ट उत्पन्न क्रकया है।
60,000 टन अपवशष्ट का खुले में
ढेर लगा हुआ है।
भारत, िषव 1984 में विश्ि की एक प्रमुख विनाशकारी रासायवनक (औद्योवगक) आपदा "भोपाल
गैस त्रासदी" का साक्षी रहा है। यह इवतहास में सबसे विनाशकारी रासायवनक दुघवटना थी, वजसमें
विषाक्त गैस वमथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के दुघवटनािश ररसाि के कारण हजारों लोगों की
मृत्यु हो गयी थी।
भोपाल की त्रासदी द्वारा देश की सुभेद्यता सुस्पष्ट हो जाने के पश्चात् भी भारत वनरं तर विवभन्न
रासायवनक दुघवटनाओं का साक्षी रहा है। के िल वपछले दशक में ही, भारत में 130 महत्िपूणव
रासायवनक दुघवटनाएं दजव की गईं, वजनके कारण 259 लोगों की मृत्यु हुई और 563 लोग गंभीर
रूप से घायल हुए।
देश के सभी जोनों में लगभग 1861 प्रमुख दुघवटना संकट (Major Accident Hazard: MAH)
इकाइयााँ हैं जो 301 वजलों (25 राज्यों तथा 3 संघ शावसत प्रदेशों) में विस्तृत हैं। इसके अवतररक्त
विवभन्न प्रकार की खतरनाक सामवग्रयों से संबंवधत हजारों पंजीकृ त और खतरनाक कारखाने
(MAH मानदंड से नीचे) एिं असंगरठत क्षेत्र गंभीर और जरटल स्तर के आपदा जोवखम उत्पन्न कर
रहे हैं। तीव्र औद्योगीकरण के साथ, औद्योवगक आपदाओं से संबंवधत खतरे में भी िृवि हुई है।
मृत्यु, अत्यवधक या स्थायी दुबवलता या कैं सर, आंखों में मोवतयासबद, बालों का झड़ना इत्याक्रद का
खतरा बढ़ जाना।
विक्रकरण रुग्णता: व्यवक्त के बीमार पड़ने का जोवखम इस त्य पर वनभवर करता है क्रक शरीर के
द्वारा क्रकतने विक्रकरण का अिशोषण क्रकया गया है। विक्रकरण रुग्णता प्राय: घातक होती है और
जठरांत्र पथ (gastrointestinal tract) की आंतररक परत से रक्तस्राि का कारण बन सकती है।
कृ वष उत्पादों, पशुओं और फसलों की क्षवत या विनाश;
पयाविरणीय संसाधनों का वनम्नीकरण;
सािवजवनक और वनजी संपवत्त की क्षवत या अिमूल्यन; तथा
भविष्टय की पीक्रढ़यों में उत्पररितवन द्वारा आनुिंवशक पररितवन।
वचवन्हत विक्रकरण स्रोतों से व्यवक्तयों की सुरक्षा हेतु चार पिवतयां वनम्नवलवखत हैं:
o समय को सीवमत करना: व्यािसावयक पररवस्थवतयों में एक्सपोजर टाइम को सीवमत करके
ग्रहण क्रकये जाने िाली विक्रकरण की मात्रा कम की जा सकती है।
o दूरी: स्रोत से बढ़ती दूरी के साथ विक्रकरण की तीव्रता घटती है।
o परररक्षण (Shielding): सीसा, कं क्रीट या जल अिरोध गामा क्रकरणों जैसे उच्च स्तरीय भेदक
विक्रकरण से बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस प्रकार तीव्र रे वडयोधमी पदाथव जल के अन्दर
या मोटी कं क्रीट वनर्नमत या सीसे से आस्तररत कमरों में भडडाररत या संचावलत क्रकये जाते हैं।
o प्रसार का वनयंत्रण (Containment): अत्यवधक रे वडयोधमी पदाथों को भलीभांवत बंद करके
कायवस्थल और पयाविरण से बाहर रखा जाता है। परमाणु ररएक्टर कई अिरोध युक्त क्लोज्ड
वसस्टम के भीतर संचावलत क्रकए जाते हैं जो रे वडयोधमी पदाथों के प्रसार को वनयंवत्रत रखते
हैं।
संसाधनों के कु शल उपयोग हेतु आपात वस्थवतयों के प्रबंधन में लचीलेपन को प्रोत्साहन प्रदान
करना।
तत्काल कायविाही हेतु पूणवकावलक क्षमता का अनुरक्षण।
िांवछत सुरक्षा प्रदान करने के वलए अनुक्रक्रयाओं, योजनाओं, सुविधाओं और क्रकसी भी आिश्यक
अंतर-संगठनात्मक समन्िय को सुवनवश्चत करना पयावप्त क है।
भीड़ प्रबन्धन
इसमें क्रकसी स्थान के उपयोग से पहले उसके संबंध में इस बात का मूल्यांकन सवम्मवलत है क्रक उसमें
क्रकतने लोगों को साँभालने की क्षमता है।
इसमें भीड़ के संभावित स्तर, प्रिेश और वनकास मागों की पयावप्त कता, रटकट कलेक्शन जैसी प्रिेश
संबंधी प्रक्रक्रयाएं और संभावित गवतविवधयों एिं समूह व्यिहार का मूल्यांकन सवम्मवलत है।
भीड़ वनयंत्रण
यह भीड़ प्रबन्धन योजना का एक भाग हो सकता है, या भीड़ द्वारा उत्पन्न क्रकसी समस्या की
प्रवतक्रक्रया स्िरूप की गयी आकवस्मक कायविाही भी हो सकता है।
इसमें चरम उपाय सवम्मवलत हो सकते हैं, जैसे क्रक बल प्रयोग, वगरफ़्तारी या शारीररक रूप से
क्रकसी प्रकार के नुकसान की धमकी।
इसके अंतगवत अिरोधों का प्रयोग करके लोगों के वलए उपलब्ध स्थान और उनकी सामूवहक
आिाजाही को वनयंवत्रत क्रकया जा सकता है।
अनुपयुक्त और खराब तरह से प्रबंवधत वनयंत्रण प्रक्रक्रया, भीड़ से होने िाली दुघवटनाओं को रोकने के
बजाए उनकी संभािनाओं को और बढ़ा देती है। उदाहरण के वलए, क्रकसी रॉक कं सटव में असभ्य
व्यवक्तयों के समूह पर पुवलस की प्रवतक्रक्रया दशवकों के समूह को ऐसे क्षेत्र में खदेड़ सकती है जहााँ कोई
वनकास मागव उपलब्ध न हो।
भीड़ आपदाओं के कारण और उत्प्रेरक
संरचनात्मक विध्िंस
o अिरोधों या अस्थाई संरचनाओं का का टू ट जाना;
o मागों में अिरोध;
o खराब सुरक्षा रे सलग;
o अपयावप्त प्रकावशत सीक्रढ़यााँ, संकीणव सीक्रढ़यााँ; एिं
o आपातकालीन वनकासों का अभाि।
अवि/विद्युत
o आग पकड़ने िाले लकड़ी के ढांचे;
o विद्युत आपूर्नत में विफलता; एिं
o शॉटव सर्दकट।
भीड़ वनयंत्रण
o भीड़ को पृथक करने हेतु उपयुक्त विभाजन व्यिस्था का अभाि;
o उवचत सािवजवनक संबोधन प्रणावलयों का अभाि;
o िाहनों की अवनयंवत्रत पार्ककग ि आिाजाही; एिं
o के िल एक प्रमुख वनकास मागव पर वनभवरता।
भीड़ व्यिहार
o प्रिेश द्वार या वनकास द्वारों की ओर असभ्य उतािलापन;
o क्रकसी िस्तु का वितरण क्रकए जाने के दौरान उतािलापन;
o अचानक सामूवहक वनकासी;
o रेनों के प्लेटफामों में अंवतम समय में बदलाि; एिं
o क्रकसी कायवक्रम की शुरुआत में विलंब के कारण क्रोवधत भीड़।
सुरक्षा
o भीड़ की CCTV वनगरानी का अभाि;
o सुरक्षा कमवचाररयों के पास िॉकी–टॉकी का अभाि;
भीड़-भाड़ िाले स्थानों में वचक्रकत्सीय आपात वस्थवत उत्पन्न हो सकती है। एम्बुलेंस और स्िास््य
देखभाल पेशेिरों को तैयार रखने (stand-by) से आकवस्मक पररवस्थवतयों में जीिन रक्षा की जा
सकती है।
प्रवतभावगयों के वलए:
o वनकास मागों से पररवचत होना, शांवत बनाए रखना एिं वनदेशों को पालन करना भगदड़
जैसी वस्थवतयों को रोकने में सहायक होगा।
o यक्रद भगदड़ हो जाती है तो अपने हाथों को एक बॉक्सर की तरह रखकर सीने को बचाएाँ और
भीड़ की क्रदशा में आगे बढ़ते रहें।
o ररक्त स्थान के वलए चौकन्ने रहें और कहीं भी भीड़ कम हो तो बल ल में चले जाएं। दीिारों,
वसकोड़ लें ताक्रक जोवखम क्षेत्र (exposure area) कम होने के कारण गंभीर रूप से घायल
आग से संबवं धत: पंडालों में अवनयोवजत और अनवधकृ त वबजली के तार, खाने-पीने के स्टॉलों पर
LPG वससलडर एिं दशहरे में रािण दहन के वलए बनाए गए पुतलों में छु पे पटाखे आग लगने का
o आयोजकों को वबजली का अवधकृ त प्रयोग, अवि शामक एिं अन्य व्यिस्थाओं को सुवनवश्चत करना
चावहए तथा सुरक्षा क्रदशावनदेशों का अनुपालन करना चावहए। आस-पड़ोस में वस्थत अस्पतालों
की एक सूची आपात वस्थवत में काम आ सकती है।
4.1.1. ह्योगो फ्रे मिकव फॉर एक्शन 2005-2015: राष्ट्रों तथा समु दायों की प्रत्यास्थता का
वनमाव ण
[Hyogo Framework for Action (HFA): Building the Resilience of Nations and
Communities 2005-2015]
भारत ह्योगो फ्रेमिकव फॉर एक्शन (HFA) का हस्ताक्षरकताव है। इस फ्रेमिकव को िैविक स्तर पर
आपदाओं से होने िाली जीिन की हावन तथा राष्ट्रों ि समुदायों की आर्नथक एिं पयाविरणीय
पररसंपवत्तयों की हावन को कम करने हेतु स्िीकृ त क्रकया गया था। इस फ्रेमिकव के अंतगवत
संधारणीय विकास नीवतयों, क्षमता वनमावण तथा तैयारी एिं सुभेद्यता न्यूनीकरण संबंधी
रणनीवतयों में आपदा जोवखम न्यूनीकरण (DRR) के एकीकरण हेतु तीन रणनीवतक लक्ष्य
(strategic goals) एिं पांच प्राथवमक कायविाही क्षेत्र (priority action areas) वनयत क्रकए
गए हैं।
HFA के तीन रणनीवतक लक्ष्य और उनके कायावन्ियन हेतु भारत द्वारा उठाए जाने िाले कदम:
(i) लक्ष्य 1 : “आपदा की रोकथाम, उसका शमन, संबवं धत तैयारी तथा सुभद्य
े ता में कमी लाने पर
विशेष बल देते हुए, सभी स्तरों पर संधारणीय विकास नीवतयों, वनयोजन तथा कायवक्रम वनमावण के
साथ आपदा जोवखम संबधी उपायों का अवधक प्रभािकारी समेकन”
o आपदा प्रबंधन अवधवनयम, 2005 के अवधवनयमन तथा आपदा प्रबंधन योजना, 2016 के
वनमावण के बाद, ितवमान में सरकार का ध्यान उनके अंतगवत क्रकये गए विवभन्न प्रािधानों के
कायावन्ियन पर है।
o सभी सरकारी कायवक्रम “कोई क्षवत न पहुंचाएं (do no harm)” के वसिांत को ध्यान में
रखते हुए वडजाइन क्रकये जा रहे हैं।
(ii) लक्ष्य 2: “सामुदावयक स्तर पर विशेष ध्यान देते हुए सभी स्तरों पर ऐसी संस्थाओं, कायवप्रणावलयों
और क्षमताओं का विकास तथा उन्हें सशक्त क्रकया जाना जो संकटों के प्रवत प्रत्यास्थता विकवसत करने
में व्यिवस्थत रूप से योगदान कर सकें ”
o राज्य आपदा प्रबंधन प्रावधकरणों (SDMA’s) तथा वजला आपदा प्रबंधन प्रावधकरणों
(DDMA’s) को सुदढ़ृ बनाने हेतु उपयुक्त रणनीवतयां स्िीकृ त की गयी हैं।
o संपूणव राष्ट्र के वलए एक व्यापक मानि संसाधन विकास कायवक्रम तैयार क्रकया जा रहा है।
o वसविल सोसाइटी के साथ विवभन्न साझेदाररयों को सशक्त बनाया जा रहा है।
(iii) लक्ष्य 3: "प्रभावित समुदायों के पुनर्ननमावण के वलए आपातकालीन तैयारी, अनुक्रक्रया तथा सामान्य
वस्थवत की बहाली संबध
ं ी कायवक्रमों की अवभकल्पना तथा उनके कायावन्ियन में जोवखम न्यूनीकरण
संबध
ं ी दृवष्टकोण का सुवनयोवजत समािेश।”
o "सरकार द्वारा आपदा पश्चात् पुनर्ननमावण तथा पुनबवहाली गवतविवधयों के वलए “बेहतर
पुनर्ननमावण (Build Back Better)” का वसिांत अमल में लाया जा रहा है।
4.2.3. आपदा न्यू नीकरण तथा सामान्य वस्थवत की बहाली हे तु िै विक सु विधा
4.3.1. आपदा प्रत्यास्थ अिसं र चना पर प्रथम अं त राव ष्ट्रीय कायव शाला , 2018
4.3.2. वबम्सटे क राष्ट्रों के वलए प्रथम सं यु क्त आपदा प्रबं ध न अभ्यास, 2017
(BIMSTEC DMEx-2017)
[First Joint Disaster Management Exercise for BIMSTEC Countries (BIMSTEC
DMEx-2017)]
भारत सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में अक्टूबर 2017 में ‘बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और
आर्नथक सहयोग के वलए बंगाल की खाड़ी पहल (Bay of Bengal Initiative for Multi-
Sectoral Technical and Economic Cooperation: BIMSTEC) या वबम्सटेक’ देशों हेतु
प्रथम िार्नषक आपदा प्रबंधन अभ्यास (BIMSTEC DMEx-2017) की मे़बानी की। सभी सात
BIMSTEC देशों से आए लगभग 200 आपदा पेशेिरों ने पहली बार आपदा प्रबंधन से सम्बंवधत
विचार विमशव सत्रों तथा फील्ड अभ्यासों में वहस्सा वलया।
भारत ने 25-26 मई, 2017 को क्रफजी के सुिा में भारत-प्रशांत द्वीप समूह सतत विकास सम्मेलन
का आयोजन क्रकया। इसका उद्देश्य प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों के साथ आपदा जोवखम न्यूनीकरण
गवतविवधयों में सहयोग के माध्यम से उनकी प्रत्यास्थता को सुदढ़ृ बनाना था।
आपदा जोवखम न्यूनीकरण पर जापान तथा भारत के मध्य समझौते के एक भाग के रूप में, 19-
भारत 2017 में शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation: SCO)
का सदस्य बना। भारत के अवतररक्त, SCO के सात अन्य सदस्य राष्ट्र (चीन, क़ािस्तान,
क्रकर्नग़स्तान, पाक्रकस्तान, रूस, तावजक्रकस्तान तथा उज़्बेक्रकस्तान) तथा चार पयविेक्षक राष्ट्र
अगस्त, 2017 में क्रकर्नग़स्तान में, SCO के सदस्य राष्ट्रों की सरकारों के प्रमुखों की 9िीं बैठक का
आयोजन हुआ। इस दौरान भारत सरकार ने यह घोषणा की क्रक िह संयुक्त तैयारी को बेहतर
बनाने के वलए 2019 में SCO सदस्य राष्ट्रों के एक संयुक्त शहरी भूकंप खोज तथा बचाि अभ्यास
का आयोजन करे गी और साथ ही 2019 में ही SCO सदस्यों के आपदा रोकथाम से संबंवधत
विभागाध्यक्षों की अगली बैठक की मे़बानी भी करे गी।
4.4.1. जापान
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग हेतु 2017 में भारत तथा जापान के बीच एक सहयोग ज्ञापन
(MoC) पर हस्ताक्षर क्रकये गये। इसके अनुसार दोनों पक्ष आपदा जोवखम न्यूनीकरण हेतु
जानकारी का आदान-प्रदान ि सहयोग करें गे। इसके साथ ही िे रोकथाम, अनुक्रक्रया एिं "बेहतर
जानकारी साझा करें गे। दोनों देश सुनामी जोवखम न्यूनीकरण हेतु सूचना, अनुभिों से वमली सीखों
एिं नीवतयों को साझा करने के वलए भी सहयोग करें गे। इसमें सुनामी जागरूकता, पूि-व चेतािनी
विशेष जोर देते हुए आपदा जोवखम न्यूनीकरण के क्षेत्र में सहयोग के वलए ‘आपदा जोवखम
4.4.3. जमव नी
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के वलए भारत तथा जमवनी के बीच एक संयुक्त घोषणा पर
अक्टू बर 2015 में हस्ताक्षर क्रकए गए थे। इसका उद्देश्य आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सूचनाओं एिं
अन्य िैज्ञावनक/तकनीकी विशेषज्ञताओं का आदान-प्रदान करना है। इसका उद्देश्य नागररक सुरक्षा,
शहरी खोज ि बचाि, अविशमन सेिाओं तथा वचक्रकत्सा के क्षेत्र में प्रथम अनुक्रक्रयाकतावओं का
प्रवशक्षण एिं उनकी क्षमता वनमावण करना भी है।
2013 में भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रावधकरण (NDMA) तथा इं डोनेवशया की आपदा
प्रबंधन की राष्ट्रीय एजेंसी के बीच आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग विकवसत करने के उद्देश्य से
एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर क्रकये गये थे। दोनों राष्ट्रों के बीच सहयोग के क्षेत्रों में
आपदा प्रबंधन, प्रवशक्षण तथा क्षमता वनमावण के क्षेत्र में जानकारी का आदान-प्रदान; आपदा
प्रबंधन के वलए विशेषज्ञों तथा मानि संसाधनों का आदान-प्रदान आक्रद सवम्मवलत हैं।
निंबर, 2011 में मालदीि के अद्दू वसटी (Addu City) में आयोवजत 17िें साकव वशखर सम्मेलन
में ‘प्राकृ वतक आपदाओं पर तीव्र अनुक्रक्रया हेतु साकव समझौते’ (SAARC Agreement on
Rapid Response to Natural Disasters) पर मंत्रालयी स्तर पर हस्ताक्षर क्रकए गए थे।
समझौते का उद्देश्य "आपदाओं पर तीव्र अनुक्रक्रया हेतु प्रभािी क्षेत्रीय तंत्र प्रदान कर आपदा से होने
िाली जीिन की हावन तथा सामावजक, आर्नथक ि पयाविरणीय पररसम्पवत्तयों की क्षवत में कमी
लाना, और समेक्रकत राष्ट्रीय प्रयासों तथा गहन क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से आपदा आपातकालीन
वस्थवतयों में संयुक्त अनुक्रक्रया करना है।"
4.4.6. रूस
क्रदसंबर 2010 में नई क्रदल्ली में आयोवजत 11िें भारत-रूस िार्नषक वशखर सम्मेलन के दौरान
भारत सरकार तथा रूसी संघ की सरकार ने आपातकालीन प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के वलए
समझौते पर हस्ताक्षर क्रकए थे। इसमें शावमल सहयोग के मुख्य क्षेत्र एिं प्रकार हैं: सूचना का
आदान-प्रदान, पूि-व चेतािनी, जोवखमों का मूल्यांकन, संयुक्त सम्मेलन, सेवमनार, कायवशालाएं,
विशेषज्ञों का प्रवशक्षण, तकनीकी सुविधाएं एिं उपकरण प्रदान करने में परस्पर सहायता आक्रद।
4.4.7. वस्िट्ज़रलैं ड
भारत एिं वस्िट्ज़रलैंड ने प्राकृ वतक आपदाओं से वनपटने के वलए रोकथाम तैयारी तथा आपदाओं
या प्रमुख आपात वस्थवतयों के दौरान सहायता के वलए सहयोग में िृवि हेतु एक समझौते पर
हस्ताक्षर क्रकये हैं।
5. विविध विषय
(Miscellaneous Topics)
(Disaster Insurance)
राहत एिं पुनिावस पैकेज पर अत्यवधक वनभवरता एक ऐसी व्यिस्था वनर्नमत करती है जहां जोवखम
न्यूनीकरण के उपायों को अपनाने हेतु कोई प्रोत्साहन नहीं होता है। बीमा, आपदा-प्रिण क्षेत्रों में
संभावित रूप से महत्िपूणव शमन उपाय है क्योंक्रक यह अिसंरचना ि सजगता में गुणित्ता तथा
सुरक्षा ि रोकथाम की संस्कृ वत उत्पन्न करता है। आपदा बीमा प्रायैः ‘वजतना अवधक जोवखम,
उतना अवधक प्रीवमयम‘ के वसिांत के आधार पर काम करता है। इस प्रकार, यह सुभेद्य क्षेत्रों के
प्रवत जागरूकता उत्पन्न करता है तथा लोगों को अपेक्षाकृ त सुरवक्षत क्षेत्रों में बसने के वलए प्रेररत
करता है।
ग्रामीण विकास के वलए सूक्ष्म-ऋण की सफलता के बाद सूक्ष्म-बीमा, प्रत्यावशत जोवखम प्रबंधन के
एक उपकरण के रूप में उभरने लगा है। िास्ति में, सूक्ष्म-ऋण एिं सूक्ष्म-बीमा एक-दूसरे का
समथवन करते हैं। बीमा उपकरणों को नीवतगत उपायों तथा वित्तीय प्रोत्साहनों के माध्यम से
आकषवक बनाया जाना चावहए।
व्हाट्जसएप ग्रुप बनाया था, वजसने सूचनाएाँ साझा करने के वलए संचार के मुख्य साधन के रूप में
कायव क्रकया था। वजला स्तर पर कोई बैठक या चचाव नहीं की गयी थी क्योंक्रक व्हाट्जसएप ग्रुप ने
आिश्यक संसाधनों की पहचान और उन तक पहुाँचने में सहायता प्रदान कर दी थी।
ऑनलाइन सोशल नेटिर्ककग सेिाएं और फे सबुक, वट्जिटर, गूगल प्लस आक्रद सोशल मीवडया
प्लेटफॉमव, प्राकृ वतक आपदाओं के दौरान वप्रयजनों से सम्पकव स्थावपत करने में सहयोग कर कई
समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। हालााँक्रक, आपातकालीन ऑनलाइन नेटिकव के
विकास के संबंध में प्रौद्योवगकीय विफलता, हैकर, स्टॉकर, िायरस के खतरे जैसी सचताओं को
संबोवधत क्रकया जाना आिश्यक है। इसके अवतररक्त अफिाहों का तेजी से प्रसार भय का माहौल
उत्पन्न कर सकता है। इसवलए, सोशल मीवडया, आपदा प्रबन्धन संचार के ितवमान दृवष्टकोणों से
अवधक प्रभािी नहीं हो सकता और न ही यह ितवमान संचार अिसंरचनाओं को प्रवतस्थावपत कर
सकता है, लेक्रकन यक्रद इसे रणनीवतक रूप से प्रबंवधत क्रकया जाए तो इसका उपयोग ितवमान
व्यिस्था को सुदढ़ृ बनाने के वलए क्रकया जा सकता है।
भारतीय मानक संवहता, 2002 में भूकम्प रोधी वनमावण के वलए मानदंड वनधावररत क्रकये गये हैं।
ग्रेनेडा में इिान नामक तूफ़ान के गुजरने के पश्चात (वसतम्बर 2004) के िल दो स्कू ल ही खड़े रहे
थे। दोनों स्कू लों की विि बैंक की पहल से रे रोक्रफटटग की गयी थी। इनमें से एक स्कू ल का उपयोग
घटना से विस्थावपत लोगों को आश्रय प्रदान करने के वलए क्रकया गया था।
भारत में, भिन सामग्री और प्रौद्योवगकी संिधवन पररषद (Building Materials &
रे रोक्रफटटग की पररयोजनाएं प्रारम्भ की हैं। पररषद ने क्रदल्ली में MCD स्कू ल भिनों और जम्मू-
कश्मीर में अन्य संरचनाओं की रे रोक्रफटटग की शुरुआत की है।
(Museums)
भारतीय संग्रहालयों में संग्रहण (collections) और विषय-िस्तुओं की व्यापक रें ज और विविधता
दृवष्टगोचर होती है। संग्रहण एिं भिन संरचनाओं की क्षवत से आय और संबंवधत िस्तुओं से जुड़ी
सांस्कृ वतक मूल्यों की भी क्षवत होती है। संग्रहालयों में आपदा जोवखम प्रबंधन की कु छ विवशष्ट
चुनौवतयां नीचे सूचीबि की गई हैं:
o संग्रहालयों में पुरातावत्िक से लेकर काबववनक पदाथों तक विवशष्ट िस्तुओं की विविधता होती है,
ये िस्तुएं सुभेद्य होती हैं।
o आपदा पश्चात् सांस्कृ वतक धरोहर के पहलुओं को प्राथवमक महत्ि नहीं क्रदया जाता है क्योंक्रक
अिसंरचना और समुदायों के पुनिावस को प्राथवमकता दी जाती है।
o संग्रहालय में संग्रवहत िस्तुओं के वलए विशेष वनयोजन दृवष्टकोण की आिश्यकता होती है।
o संग्रहालय प्राय: ऐवतहावसक भिनों में होते हैं। ये भिन संरचनात्मक रूप से अवधक सुभेद्य होते हैं
और पहुंच की दृवष्ट से दुगम व क्षेत्रों में वस्थत होते हैं।
o सामान्यत:, संग्रहालय के कमवचारी आिश्यक साधनों से भली-भांवत सुसवज्जत नहीं होते हैं और
आपदा जोवखम न्यूनीकरण के आधारभूत उपायों से अनवभज्ञ होते हैं।
o अस्थायी भंडारण के वलए वनधावररत क्षेत्रों की कमी आपदा पश्चात् क्षवत में और अवधक िृवि करती
है।
o आपदा पश्चात् पुनबवहाली योजनाओं में प्राय: संग्रहालय सवम्मवलत नहीं होते हैं और इनके
पुनर्ननमावण के वलए धनरावश का आबंटन नहीं क्रकया जाता है।
संग्रहालयों को सािवजवनक, अिव-सािवजवनक, वनजी और सेिा क्षेत्रों में विभावजत क्रकया जाना
चावहए। मूल्य आकलन, प्रलेखन तथा िस्तुओं और संग्रह की प्राथवमकता का वनधावरण अिश्य
क्रकया जाना चावहए। िस्तुओं की प्रामावणकता और विवशष्टता को ध्यान में रखा जाना चावहए।
भिन के अंदर और बाहर, दोनों के वलए संकट और जोवखम की पहचान की जानी चावहए और
तदनुसार आपदा जोवखम न्यूनीकरण के वलए कदम उठाए जाने चावहए।
DEEPAK PHOTOSTAT
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