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मानव जीवन के मकसद को तनधामररत करने के शलए और उसे काब करने के शलए

ब्रह्मा ने एक संववधान बनाया जजसके अंदर लगभग 1 लाख अध्याय र्े। इन अध्र्यार्यों में
जीवन के हर पहल का ववशद्, संयमन और तनरूपण का उकलेख र्ा। मनु ने उस ववशाल ग्रंर्
को मर्कर आचारशास्त्र का एक अलग संस्करण पेश ककया जो मनस्
ु मतृ त या धममशास्त्र के
नाम से प्रचशलत है।

मनु ने जो मनुस्मतृ त रची र्ी वह असली रूप में उपलब्ध नहीं है । प्रचशलत स्मतृ त उसी
स्मतृ त का संक्षक्षतत वववरण है जजसे मनु ने पेश ककया र्ा। आचायम बह
ृ स्पतत ने भी उसी ववशाल
ग्रंर् के द्वारा अर्मशास्त्र ववषयक भाग अलग करके बाहमस्पत्यम अर्मशास्त्र की रचना की।
कौहिकय के अर्मशास्त्र में बह
ृ स्पतत के अर्मशास्त्र के अंतगमत ही दे खने को शमलते है।

ब्रह्मा से लेकर बाभ्रव्य तक की कामशास्त्र की रचना पर ववहंगम दृजष्ि डालने से ग्रंर्


रचना पद्धतत की परं परा और उसके इततवत
ृ का भी बोध होता है । कामशास्त्र को ब्रह्मा ने
नहीं रचा उन्होने तो शसफम इसके बारे में बताया है। इससे यह बात सात्रबत हो जाती है कक
रचनाकाल से ही कामसत्र का प्रवचन काल शुरू होता है ।

कामसत्र के छठे और सातवें अध्याय से पता चल जाता है कक ब्रह्मा के प्रवचन शास्त्र


से पहले मनु ने मानवधमम को अलग ककया, उसके बाद बह
ृ स्पतत ने अर्मशास्त्र को अलग ककया,
इसके बाद कफर नन्दी ने इसको अलग ककया।

इसके बाद अर्मशास्त्र और मनुस्मतृ त की रचना हुई क्योंकक बह


ृ स्पतत और मनु ने
कामसत्र की रचना नहीं की बजकक इसे शसफम अलग ककया है । इसके बाद ही श्वेतकेतु और
नन्दी ने इसके 1000 अध्यायों को छोिा करके 500 अध्यायों का बना हदया। इस बात से साफ
जाहहर हो जाता है कक ब्रह्मा द्वारा रधचत शास्त्र में से नन्दी ने कामववषयक सत्रों को एक
सहस्त्र अध्यायों में बांि हदया। उसने अपनी ओर से इसमें कुछ भी बदलाव नहीं ककया क्योंकक
वह प्रवचन काल र्ा।

उसने जो कुछ भी पढ़ा या सुना र्ा वह ऐसे ही शशष्यों और जानने वालों को बताया।
लेककन श्वेतकेतु के काल में संक्षक्षततीकरण का प्रचलन हो चुका र्ा और बाभ्रव्य के काल में
तो ग्रंर्-प्रणयन और संपादन की एक मजबत प्रणाली प्रचशलत हो गयी। पांचाल द्वारा तैयार
ककए गए 7 अधधकरण इस प्रकार है -

•साधारण अधधकरण

•साम्प्रयोधगक अधधकरण

•कन्या सम्प्रयक्
ु तक अधधकरण

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