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CLASS NOTES

Class: X Topic: कविता- स ू र् यकाां त त्रिपाठी ‘निराला’


Subject: HINDI

कविता का भािार्य I :- प्रस्तुत पंक्ततयों में कवि ने बारिश होने से पहले आकाश में दिखने िाले काले बािलों
के गिज़ने औि आकाश में बबजली चमकने का अद्भुत िर्णन ककया है। कवि कहते हैं कक बािल धिती के
सभी प्राणर्यों को नया जीिन प्रिान किते हैं औि यह हमािे अंिि के सोये हुए साहस को भी जगाते हैं।
आगे कवि बािल से कह िहे हैं कक “हे काले िं ग के संि
ु ि-घंघ
ु िाले बािल! तम
ु पिू े आकाश में फैलकि उसे घेि
लो औि खूब गिजो। कवि ने यहााँ बािल का मानिीयकिर् किते हुए उसकी तुलना एक बच्चे से की है , जो
गोल-मटोल होता है औि क्जसके ससि पि घुंघिाले एिं काले बाल होते हैं, जो कवि को बहुत प्यािे औि सुन्िि
लगते हैं।
आगे कवि बािल की गजणन में क्राक्न्त का संिेश सुनाते हुए कहते हैं कक हे बािल! तुम अपनी चमकती
बबजली के प्रकाश से हमािे अंिि पुरुषार्ण भि िो औि इस तिह हमािे भीति एक नये जीिन का संचाि किो!
बािल में िषाण की सहायता से धिती पि नया जीिन उत्पन्न किने की शक्तत होती है, इससलए, कवि बािल
को एक कवि की संज्ञा िे ते हुए उसे एक नई कविता की िचना किने को कहते हैं।

कविता का भािार्य II :- कवि बािलों को क्रांतत का प्रतीक मानते हुए यह कल्पना कि िहे हैं कक िह हमािे
सोये हुए पुरुषार्ण को कफि से जगाकि, हमें एक नया जीिन प्रिान किे गा, हमें जीने की नई आशा िे गा।
कवि इन पंक्ततयों में कहते हैं कक भीषर् गमी के कािर् ितु नया में सभी लोग तड़प िहे र्े औि तपती गमी
से िाहत पाने के सलए छााँि ि ठं डक की तलाश कि िहे र्े।
तभी ककसी अज्ञात दिशा से घने काले बािल आकि पूिे आकाश को ढक लेते हैं, क्जससे तपती धूप धिती
तक नहीं पहुाँच पाती। कफि बािल घनघोि िषाण किके गमी से तड़पती धिती की प्यास बुझाकि, उसे शीतल
एिं शांत कि िे ते हैं। धिती के शीतल हो जाने पि सािे लोग भीषर् गमी के प्रकोप से बच जाते हैं औि
उनका मन उत्साह से भि जाता है।
कविता का भािार्य III :- कवि के अनुसाि फागुन मास में प्रकृतत इतनी सुन्िि नजि आती है कक उस पि
से नजि हटाने को मन ही नहीं किता। चािों तिफ पेड़ों पि हिे एिं लाल पत्ते दिखाई िे िहे हैं औि उनके बीच
िं ग-बबिं गे फूल ऐसे लग िहे हैं, मानो पेड़ों ने कोई सुंिि, िं गबबिं गी माला पहन िखी हो। इस सुगक्न्धत पुष्प
माला की ख़ुशबू कवि को बहुत ही मािक लग िही है। कवि के अनुसाि, फागुन के महीने में यहााँ प्रकृतत में
होने िाले बिलािों से सभी प्रार्ी बेहि ख़श
ु हो जाते हैं। कविता में कवि स्ियं भी बहुत ही खश
ु लग िहे हैं।

इन पंक्ततयों में कवि ये संिेश िे ना चाहते हैं कक क्जस तिह धिती के सूख जाने के बाि भी बािलों के आने
पि नये पौधे उगने लगते हैं। ठीक उसी तिह अगि आप जीिन की कदठनाइयों के आगे हाि ना मानें औि
अपने पुरुषार्ण पि भिोसा िखकि कड़ी मेहनत किते िहें , तो आपके जीिन का बगीचा भी िोबािा फल-फूल
उठे गा। इससलए हमें अपने जीने की इच्छा को कभी मिने नहीं िे ना चादहए औि पिू े उत्साह से जीिन जीने
की कोसशश किनी चादहए।

अभ्र्ास प्रश्ि

1. कवि बािल से फुहाि, रिमणझम या बिसने के स्र्ान पि ‘गिजने’ के सलए कहता है , तयों?
उत्तर:- कवि ने बािल से फुहाि, रिमणझम या बिसने के सलए नहीं कहता बक्ल्क ‘गिजने’ के सलए कहा है ;
तयोंकक कवि बािलों को क्रांतत का सूत्रधाि मानता है। ‘गिजना’ विद्रोह का प्रतीक है। कवि बािलों से पौरुष
दिखाने की कामना किता है। कवि ने बािल के गिजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्िान
ककया है।

2. कविता का शीषणक उत्साह तयों िखा गया है ?


उत्तर:- कवि क्रांतत लाने के सलए लोगों को उत्सादहत किना चाहते हैं। बािलों में भीषर् गतत होती है उसी
से िह संसाि के ताप हिता है। कवि ऐसी ही गतत, ऐसी ही भािना औि शक्तत चाहता है। बािल का
गिजना लोगों के मन में उत्साह भि िे ता है। इससलए कविता का शीषणक उत्साह िखा गया है।

3. कविता में बािल ककन-ककन अर्ों की ओि संकेत किता है ?


उत्तर:- उत्साह’ कविता में बािल तनम्नसलणखत अर्ों की ओि संकेत किता है –
1. जल बिसाने िाली शक्तत है।
2. बािल पीडड़त-प्यासे जन की आकााँक्षा को पिू ा किने िाला है।
3. बािल कवि में उत्साह औि संघषण भि कविता में नया जीिन लाने में सकक्रय है ।

4. शब्िों का ऐसा प्रयोग क्जससे कविता के ककसी खास भाि या दृश्य में ध्िन्यात्मक प्रभाि पैिा हो, नाि-
सौंियण कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-सेशब्ि हैं क्जनमें नाि-सौंियण मौजूि है , छााँटकि सलखें।
उत्तर:- 1. “घेि घेि घोि गगन, धािाधि ओ!
2. लसलत लसलत, काले घुाँघिाले,
बाल कल्पना के-से पाले
3. “विद्युत-छवि उि में” कविता की इन पंक्ततयों में नाि-सौंियण मौजूि है।

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