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Xii अतीत में दबे पांव
Xii अतीत में दबे पांव
परियोजना कार्य
कक्षा-12 TH
-A
ईंटें मनके
औरअस्थियां
( हड़प्पा
सभ्यता )
समह
ू के सदस्यों का नाम-
1- फारूक खान
2- जितें द्र चौधरी
3- यार मोहम्मद
4- यश कुमार
5- दिलीप चरण
श्रीमान बजरं ग बाली
सर
( PGT- HISTORY )
(सिंधु घाटी
सभ्यता )
विभिन्न विद्धानों द्वारा सिंध ु सिधु सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उसके खोजकर्ता हड़प्पाकालीन नदियों के किनारे
सभ्यता का काल निर्धारण बसे नगर
प्रमुख स्थल खोजकर्ता वर्ष
काल विद्धान माधो स्वरूप वत्स, नदी/सागर
1- 3,500 - माधोस्वरूप
1- हड़प्पा
दयाराम साहनी
1921 नगर
तट
2,700 ई.प.ू वत्स
2- मोहनजोदाड़ो राखाल दास बनर्जी 1922 1- मोहनजोदाड़ो सिंध ु नदी
2- 3,250 -
जॉन मार्शल
2,750 ई.प.ू 3- रोपड़ यज्ञदत्त शर्मा 1953 2- हड़प्पा रावी नदी
3- 2,900 - ब्रजवासी लाल, 3- रोपड़ ु नदी
सतलज
डेल्स 4- कालीबंगा 1953
1,900 ई.प.ू अमलानन्द घोष
4- कालीबंगा घग्घर नदी
4- 2,800 - 5- लोथल ए. रंगनाथ राव 1954
अर्नेस्ट मैके
1,500 ई.प.ू . 5- लोथल भोगवा नदी
6- चन्हू दड़ों एन.गोपाल मजमू दार 1931
5- 2,500 - 6- सुत्कागेनडोर दाश्त नदी
मार्टीमर ह्यीलर
1,500 ई.प.ू 7- सूरकोटदा जगपति जोशी 1964
7- वालाकोट अरब सागर
6- 2,350 - 8- बणावली रवीन्द्र सिंह विष्ट 1973
सी.जे. गैड 8- सोत्काकोह अरब सागर
1,700 ई.प.ू
9- आलमगीरपुर यज्ञदत्त शर्मा 1958
7- 2,350 - डी.पी. 9- आलमगीरपरु हिन्डन नदी
माधोस्वरूप वत्स,
1,750 ई.प.ू अग्रवाल 10- रंगपुर 1931.-1953
रंगनाथ राव 10- रंगपुर मदर नदी
8- 2,000 -
फेयर सर्विस 10- कोटदीजी फज़ल अहमद 1953 10- कोटदीजी सिंध ु नदी
1,500 ई.प.ू
ऑरेल स्टाइन, जार्ज
11- सुत्कागेनडोर 1927
एफ. डेल्स
कठिन शब्दों के अर्थ
मुअनजो-दड़ो – पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित पुरातात्त्विक स्थान स्थान, जहाँ सिंधु घाटी
सभ्यता बसी थी। मुअनजो-दड़ो का अर्थ है – मुर्दों का टीला। वर्तमान समय में इसे मोहनजोदड़ो के
नाम से जाना जाता है।
हड़प्पा – पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का पुरातात्त्विक स्थान , जहाँ सिंधु घाटी सभ्यता का दूसरा
शहर बसा था।
इलहाम – अनुभूति
कशीदेकारी तथा ग़ुलकारी – कपड़ों पर फू ल / चित्र अंकित करने की कला ।
अजायब घर – संग्रहालय
उत्कीर्ण – खुदी हुई
असबाब – सामान
पर्यटक – सैलानी, भ्रमणकारी
पुरातत्त्ववेत्ता – Archeologist
उत्कृ ष्ट - सबसे अच्छा
सिंध ु घाटी सभ्यता
आज से लगभग 158 वर्ष पर्वू पाकिस्तान के 'पश्चिमी पंजाब
पर् ांत‘के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों
को शायद इस बात का किंचित्मातर् भी आभास नही ं था कि
वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का पर् योग इतने
धड़ल्ले से अपने मकानों के निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई
साधारण ईटें नही ं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष परु ानी और परू ी
तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब
हुआ जब 1856 ई. में ‘जॉन विलियम बर् न्टम' ने कराची से
लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेत ु ईटों की आपर्ति ू के इन
खण्डहरों की खदु ाई पर् ारम्भ करवायी। खदु ाई के दौरान ही इस
सभ्यता के पर् थम अवशेष पर् ाप्त हुए,जिसे इस सभ्यता का नाम
‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया ।
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता
है ।
उन्होंने ही पु रातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदे शक 'सर जॉन मार्शल' के
निर्दे शन में 1921 में इस स्थान की खु दाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922
में
'श्री राखल दास बनर्जी' के ने तृत्व में पाकिस्तान के सिं ध प्रान्त के 'लरकाना'
ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खु दाई के समय एक और
स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने क उपरान्त यह
मान लिया गया कि सं भवतः यह सभ्यता सिं धु नदी की घाटी तक ही सीमित
है , अतः इस सभ्यता
का नाम ‘सिधु घाटी की सभ्यता‘ (Indus Valley Civilization) रखा गया।
सबसे पहले 1927 में 'हड़प्पा' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण 'सिन्धु
सभ्यता' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में 'पिग्गट' ने हड़प्पा
एवं मोहनजोदड़ों को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जु ड़वा राजधानियां ‘
बतलाया।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में खुदाई
सन्१८५६ में कुछ अंग्रेज़ों के द्वारा वर्तमान पाकिस्तान के
सिंधु नदी घाटी में एक रे ल लाइन बिछाते समय उन्होंने
प्राचीन और विकसित सिंधु सभ्यता के कुछ अंशों को खोज
निकाला था। वे वहाँ रे ल लाइन के बगल से जल निकासी
की व्यवस्था करने हे तु कुछ पत्थर के टुकड़ों और मलवे को
निकालने की कोशिश कर रहे थे।
तब उन्हें कु छ प्राचीन काल के ईंट के टुकड़े मिले। वहाँ के स्थानीय लोगों ने
इसकी पुष्टि की कि ये प्राचीन सभ्यता की ईंटें हैं।
अंग्रेज़ पुरातत्त्ववेत्ताओं ने सिंधु नदी के
किनारे प्राचीन सभ्यता के लगभग
१५०० साक्ष्य इकट्ठे किए; ठीक वैसे
ही जैसे मेसोपोटामिया, मिश्र की
प्राचीन सभ्यताओं से मिले थे। नदियों
के किनारे उनकी अवक्षेप में इनके दबे
होने के ज़्यादा आसार होते हैं।
मिट्टी पर बने चित्रों (साक्ष्यों) से यह
प्रमाणित होता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों
ने अपनी एक लिपि विकसित कर ली थी ;
किं तु अब तक उन लिपियों को पढ़ने में
सफलता नहीं मिल पाई है। अत: उनके
धार्मिक विश्वास, रीत-रिवाज़ों, संस्कृ ति,
उनकी शासन-व्यवस्था के बारे अब तक
कोई पुख़्ता जानकारी नहीं हो पाई है।
सिंधु सभ्यता की लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। उसके कारण भी कई गुत्थियाँ अनसुलझी है।
विभाजन के बाद राजनीतिक कारणों से भी इन सभ्यताओं के आगे के खोज कार्य में निरंतर बाधा आती
रही है। मुअनजोदड़ो की खुदाई बंद कर दी गई है। ऐसे में दोनों देशों की सरकारों से यही उम्मीद की जा
सकती है कि वे अपने राजनीतिक भेदभाव को परे रखकर इतिहास के तथ्यों की पड़ताल करने में
मददगार बने न कि बाधक। जब तथ्य अपने आप में पवित्र होते हैं तो यह जरुरी हो जाता है कि तथ्यों की
पड़ताल पूरी निष्ठा के साथ की जाए। अतीत की स्मृतियों को लेखक कै से महसूस करता है। ‘मुअनजोदड़ो
की खूबी यह है कि इस आदिम शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम-फिर सकते हैं। यहाँ
की सभ्यता और संस्कृ ति का सामान चाहे अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, शहर जहाँ था अब भी
वहीं है। आप इसकी किसी भी दीवार पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह कोई खॅड़हर क्यों न
हो,किसी घर की देहरी पर पाँव रख कर सहसा सहम जा सकते हैं, जैसे भीतर अब भी काई रहता हो।
रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं।
‘ मअ
ु न जो दड़ो ' सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमख
ु नगर अवशेष,
जिसकी खोज १९२२ ईस्वी में राखाल दास बनर्जी ने की।
यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है ।
मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'।
सिन्धी भाषा में इसका अर्थ है - मत
ृ कों का टीला।
मोहन जोदड़ो- (सिंधी: موئن جو دڙوऔर उर्दू में अमोमअ मोहनजोदउड़ो
भी)वादी सिंध की आदिम संस्कृति का एक स्थल था।
यह लड़काना से बीस किलोमीटर दरू और सक्खर से 80 किलोमीटर
दक्षिण-पर्व
ू में स्थित है । यह नगर क़रीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फै ला हुआ है।
यह वादी सिंध के एक और अहम सभ्यता हड़प्पा से 400 मील दरू है ।
यह शहर 3300 ईसा पूर्व में मौजूद था और 1700 ईसा पूर्व में अनजान
कारणों से ख़त्म हो गया। पुरातत्त्ववेत्ताओं के ख़्याल में सिंधु नदी में
आई बाढ़ के कारण या बाहरी हमलों या भक ू ं प आदि से नष्ट हुआ माना
जाता है । सन ् 1922 में भारत के तत्कालीन परु ातत्त्ववेत्ता विभाग के
निदे शक सर जान मार्शल ने मुअनजो दड़ो का पता लगाया था और इन
की गाड़ी आज भी मुअनजो दड़ो- के अजायब ख़ाने की शोभा बढ़ा रही है ।
सिंधु घाटी सभ्यता(३३००-१७०० ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी
सभ्यताओं में से एक प्रमख
ु सभ्यता थी। यह हड़प्पा सभ्यता और सिंध-ु
सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है । इसका विकास सिंधु और
घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल,
धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमखु केन्द्र थें। ब्रिटिश काल में हुई
खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि
यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े
हैं। चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने
१८७२ में इस सभ्यता के बारे मे सर्वेक्षण किया। फ्लीट ने इस पुरानी
सभ्यता के बारे मे एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का
उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा
गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी मे फैली हुई थी इसलिए इसका नाम
सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे
प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण
इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है । सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों
को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है । ८० प्रतिशत्त
स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियो के आस-पास है । अभी
तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है ।
कुल 6 नगर
अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग
1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था
में पर् ाप्त हुए हैं। इन स्थानों के केवल 6 को ही नगर की संज्ञा
दी जाती है। ये हैं -
हड़प्पा मोहनजोदाड़ो चन्हूदड़ों लोथल कालीबंगा हिसार
बणावली
विशेष इमारतें
ू
सिंध ु घाटी पर् देश में हुई खदु ाई कुछ महत्त्वपर्ण
ध्वंसावशेषों के पर् माण मिले हैं। हड़प्पा की खदु ाई में
ू थे -
मिले अवशेषों में महत्त्वपर्ण
1.दुर्ग
2.रक्षा-पर् ाचीर
3.निवासगहृ
4.चबत ू रे
5.अन्नागार आदि ।
दर्गु
नगर की पश्चिमी टीले पर सम्भवतः सरु क्षा हेत ु एक 'दुर्ग' का निर्माण हुआ था जिसकी उत्तर से दक्षिण की
ओर लम्बाई 460 गज एवं पर्वू से पश्चिम की ओर लम्बाई 215 गज थी। ह्वीलर द्वारा इस टीले को 'माउन्ट
ए-बी' नाम प्रदान किया गया है। दुर्ग के चारों ओर क़रीब 45 फीट चौड़ी एक सुरक्षा प्राचीर का निर्माण
किया गया था जिसमें जगह-जगह पर फाटकों एव रक्षक गहृ ों का निर्माण किया गया था। दुर्ग का मख्ु य
पर् वेश मार्ग उत्तर एवं दक्षिण दिशा में था। दुर्ग के बाहर उत्तर की ओर 6 मीटर ऊंचे 'एफ' नामक टीले पर
पकी ईटों से निर्मित अठारह वत्त ृ ाकार चबत ू रे मिले हैं जिसमें पर् त्येक चबत
ू रे का व्यास क़रीब 3.2 मीटर है
चबत ू रे के मध्य में एक बड़ा छे द हैं, जिसमें लकड़ी की ओखली लगी थी, इन छे दों से जौ, जले गेहूँ एवं भस ू ी
के अवशेष मिलते हैं। इस क्षेतर् में शर् मिक आवास के रूप में पन्द्रह मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं
जिनमें सात मकान उत्तरी पंक्ति आठ मकान दक्षिणी पंक्ति में मिले हैं। पर् त्येक मकान में एक आंगन एवं
क़रीब दो कमरे अवशेष प्राप्त हुए हैं। ये मकान आकार में 17x7.5 मीटर के थे। चबत ू रों के उत्तर की
ओर निर्मित अन्नागारों को दो पंक्तियांमिली हैं, जिनमें पर् त्येक पंक्ति में 6-6 कमरे निर्मित हैं, दोनों पंक्तियों
के मध्य क़रीब 7 मीटर चौड़ा एक रास्ता बना था। पर् त्येक अन्नागार क़रीब 15.24 मीटर लम्बा एवं 6.10
मीटर चौड़ा है।
नगर निर्माण योजना
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहन ् जोदड़ो दोनो नगरों
के अपने दर्ग
ु थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दर्ग
ु के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का
शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल
की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दस ू रे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में
विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहन ्
जोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहां के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहां के शासक मजदरू जट ु ाने और कर-संग्रह
में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत दे ख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी
और प्रतिष्ठावान थे। मोहन जोदड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका
जलाशय दर्गु के टीले में है । यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है । यब 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा
और 2.43 मीटर गहरा है । दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियां लगी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं।
स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है । पास के कमरे में एक बड़ा सा कंु आ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में
डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक निर्गम (Outlet) है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। ऐसा माना जाता है
कि यह विशाल स्नानागर धर्मानुष्ठान सम्बंधी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में पारं परिक रूप से धार्मिक कार्यों
के लिए आवश्यक रहा है । मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ा संरचना है - अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा और
15.23 मीटर चौड़ा है ।
नगर निर्माण योजना
महु रें
सै न्धव सभ्यता की कला में मु हरों का अपना विशिष्ट स्थान था। अब तक
क़रीब 2000 मु हरें प्राप्त की जा चु की हैं। इसमें लगभग 1200 अकेले
मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं। ये मु हरे बे लनाकार, वर्गाकार, आयताकार एवं
वृत्ताकार रूप में मिली हैं। मु हरों का निर्माण अधिकतर से लखड़ी से हुआ है ।
इस पकी मिट्टी की मूर्तियों
का निर्माण 'चिकोटी पद्धति' से किया गया है । पर कुछ मु हरें 'काचल मिट्टी',
गोमे द, चर्ट और मिट्टी की बनी हुई भी प्राप्त हुई हैं। अधिकां श मु हरों पर
ृ ी, सांड, भैंस, बाघ, गै डा, हिरन, बकरी एवं हाथी के
सं क्षिप्त ले ख, एक श्रं ग
चित्र उकेरे गये हैं। इनमें से सर्वाधिक आकृतियाँ एक श्रं ग ृ ी, सांड की मिली
हैं। लोथल ओर दे शलपु र से तांबे की मु हरे मिली हैं।
गहने एवं मुहरें
कृषि एवं पशप
ु ालन
आज के मुकाबले सिन्धु प्रदे श पूर्व में बहुत ऊपजाऊ था।
सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली
बाढ़ भी थी।
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गें हू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज
पैदा करते थे।
वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत
किस्म का है ।
इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास
भी यहीं पैदा की गई।
इसी के नाम पर यन ू ान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे।
समह
ू संख्या
1
(कक्षा 12TH –A )
धन्यवाद !