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महर्षि गौतम ऋषि विधि

सस्ं थान प्रा. लि.


साक्ष्य विधान पर अभिभाषक सतर्क ता
भाग-२
29/07/2023
आज हम साक्ष्य अधिनियम 1872 के निम्नलिखित
अनुभागों पर चर्चा करेंगे
धारा
32

साक्ष्य
अधिनियम

धारा 9
धारा 32 साक्ष्य अधिनियम 1872
ऐसे मामले जिनमें मृत या न मिल पाने वाले व्यक्ति आदि द्वारा प्रासंगिक तथ्य का बयान प्रासंगिक है। 

- किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दिए गए प्रासंगिक तथ्यों के लिखित या मौखिक बयान, जो मर चक ु े हैं, या जो पाया नहीं जा सकता है, या जो साक्ष्य देने में असमर्थ हो गया है,
या जिसकी उपस्थिति बिना किसी देरी या व्यय के प्राप्त नहीं की जा सकती है, जिसके तहत मामले की परिस्थितियाँ, जो न्यायालय को अनचि ु त प्रतीत होती हैं, स्वयं
निम्नलिखित मामलों में प्रासगिं क तथ्य हैं: -1 जब यह मत्ृ यु के कारण से सबं धि
ं त है। -जब किसी व्यक्ति द्वारा उसकी मत्ृ यु के कारण के बारे में या लेन-देन की किसी भी
परिस्थिति के बारे में बयान दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप उसकी मत्ृ यु हुई, तो ऐसे मामलों में जहां उस व्यक्ति की मत्ृ यु का कारण प्रश्न में आता है। इस तरह के
बयान प्रासगि
ं क हैं, चाहे जिस व्यक्ति ने उन्हें बनाया है, उस समय जब वे दिए गए थे, वह मत्ृ यु की प्रत्याशा में था या नहीं था, और कार्यवाही की प्रकृति जो भी हो,
जिसमें उसकी मत्ृ यु का कारण प्रश्न में आता है।
2 या व्यवसाय के क्रम में बनाया गया है। -जब यह बयान ऐसे व्यक्ति द्वारा व्यवसाय के सामान्य क्रम में किया गया हो, और विशेष रूप से जब इसमें व्यवसाय के
सामान्य क्रम में या पेशेवर कर्तव्य के निर्वहन में रखी गई पस्ु तकों में उसके द्वारा की गई कोई प्रविष्टि या ज्ञापन शामिल हो; या धन, माल, प्रतिभति
ू यों या किसी भी प्रकार
की सपं त्ति की प्राप्ति की उसके द्वारा लिखित या हस्ताक्षरित पावती; या उसके द्वारा लिखित या हस्ताक्षरित वाणिज्य में प्रयक्त ु दस्तावेज़; या किसी पत्र या अन्य दस्तावेज़
की तारीख जो आमतौर पर उसके द्वारा दिनांकित, लिखित या हस्ताक्षरित होती है।
3 या निर्माता के हित के विरुद्ध. -जब बयान देने वाले व्यक्ति के आर्थिक या मालिकाना हित के खिलाफ हो, या जब, यदि यह सच है, तो यह उसे बेनकाब कर देगा या
उस पर आपराधिक मक ु दमा चला देगा या नकु सान के लिए मक ु दमा दायर कर देगा।
4 या सार्वजनिक अधिकार या प्रथा, या सामान्य हित के मामलों के बारे में राय देता है। -जब कथन किसी सार्वजनिक अधिकार या प्रथा या सार्वजनिक या सामान्य
हित के मामले के अस्तित्व के बारे में किसी ऐसे व्यक्ति की राय देता है, जिसके अस्तित्व के बारे में, यदि वह अस्तित्व में होता तो उसे इसकी जानकारी होने की
संभावना होती, और कब ऐसा बयान किसी भी विवाद से पहले दिया गया था कि ऐसा अधिकार, प्रथा या मामला उत्पन्न हुआ था।
5 या रिश्ते के अस्तित्व से सबं धि
ं त है. -जब कथन व्यक्तियों के बीच किसी रिश्ते 25 [रक्त, विवाह या गोद लेने द्वारा] के अस्तित्व से सबं धि
ं त है, जिसके रिश्ते 25 [रक्त, विवाह या गोद
लेने द्वारा] बयान देने वाले व्यक्ति के पास ज्ञान के विशेष साधन थे, और जब बयान विवादग्रस्त प्रश्न उठाए जाने से पहले बनाया गया था।
6 या पारिवारिक मामलों से सबं धि ं त वसीयत या विलेख में बनाया गया है। -जब कथन मृत व्यक्तियों के बीच किसी रिश्ते 25 [रक्त, विवाह या गोद लेने से] के
अस्तित्व से संबंधित है, और उस परिवार के मामलों से संबंधित किसी वसीयत या विलेख में दिया गया है, जिसमें ऐसा कोई मतृ व्यक्ति था, या किसी में
पारिवारिक वश ं ावली, या किसी समाधि स्थल, पारिवारिक चित्र, या अन्य चीज़ पर जिस पर ऐसे बयान आमतौर पर दिए जाते हैं, और जब ऐसा बयान विवाद में
प्रश्न उठाए जाने से पहले दिया गया था।
7 या धारा 13, खंड (ए) में उल्लिखित लेनदेन से संबंधित दस्तावेज़ में। -जब विवरण किसी विलेख, वसीयत या अन्य दस्तावेज़ में निहित है जो धारा 13, खंड
(ए) में उल्लिखित किसी भी ऐसे लेनदेन से संबंधित है।
8 या कई व्यक्तियों द्वारा बनाया गया है, और विचाराधीन मामले से संबंधित भावनाओ ं को व्यक्त करता है। -जब बयान कई व्यक्तियों द्वारा दिया गया हो, और
उनकी ओर से प्रश्नगत मामले से सबं धि
ं त भावनाएं या धारणाएं व्यक्त की गई हों।
धारा 32 साक्ष्य अधिनियम 1872
Cases in which statement of relevant fact by person who is dead or cannot be found, etc ., is relevant.
—Statements, written or verbal, of relevant facts made by a person who is dead, or who cannot be found, or who has become incapable of giving evidence, or whose
attendance cannot be procured without an amount of delay or expense which, under the circumstances of the case, appears to the Court unreasonable, are themselves
relevant facts in the following cases:—
1 when it relates to cause of death. —When the statement is made by a person as to the cause of his death, or as to any of the circumstances of the transaction which
resulted in his death, in cases in which the cause of that person's death comes into question. Such statements are relevant whether the person who made them was or
was not, at the time when they were made, under expectation of death, and whatever may be the nature of the proceeding in which the cause of his death comes into
question.
2 or is made in course of business. —When the statement was made by such person in the ordinary course of business, and in particular when it consists of any entry
or memorandum made by him in books kept in the ordinary course of business, or in the discharge of professional duty; or of an acknowledgment written or signed
by him of the receipt of money, goods, securities or property of any kind; or of a document used in commerce written or signed by him; or of the date of a letter or
other document usually dated, written or signed by him.
3 or against interest of maker. —When the statement is against the pecuniary or proprietary interest of the person making it, or when, if true, it would expose him or
would have exposed him to a criminal prosecution or to a suit for damages.
4 or gives opinion as to public right or custom, or matters of general interest. —When the statement gives the opinion of any such person, as to the existence of any
public right or custom or matter of public or general interest, of the existence of which, if it existed he would have been likely to be aware, and when such statement
was made before any controversy as to such right, custom or matter had arisen.
5 or relates to existence of relationship. —When the statement relates to the existence of any relationship  25 [by blood, marriage or adoption] between persons as to
whose relationship 25 [by blood, marriage or adoption] the person making the statement had special means of knowledge, and when the statement was made before
the question in dispute was raised.
6 or is made in will or deed relating to family affairs. —When the statement relates to the existence of any relationship  25 [by blood, marriage or adoption]
between persons deceased, and is made in any will or deed relating to the affairs of the family to which any such deceased person belonged, or in any
family pedigree, or upon any tombstone, family portrait, or other thing on which such statements are usually made, and when such statement was made
before the question in dispute was raised.
7 or in document relating to transaction mentioned in section 13, clause (a). —When the statement is contained in any deed, will or other document which
relates to any such transaction as is mentioned in section 13, clause (a).
8 or is made by several persons, and expresses feelings relevant to matter in question. —When the statement was made by a number of persons, and
expressed feelings or impressions on their part relevant to the matter in question.
Illustrations
(a) The question is, whether A was murdered by B; or A dies of injuries received in a transaction in the course of which she was ravished. The question is,
whether she was ravished by B; or The question is, whether A was killed by B under such circumstances that a suit would lie against B by A's widow.
Statements made by A as to the cause of his or her death, referring respectively to the murder, the rape, and the actionable wrong under consideration, are
relevant facts.
मत्ृ युपूर्व घोषणा or DYING DECLARATION
मत्ृ युपूर्व घोषणा' का आशय
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-32(1) ‘मत्ृ यपु र्वू घोषणा' को मतृ व्यक्ति द्वारा दिये गए प्रासंगिक तथ्यों के लिखित या मौखिक बयान के
रूप में परिभाषित करती है। यह उस व्यक्ति का कथन होता है जो अपनी मत्ृ यु की परिस्थितियों के बारे में बताते हुए मर गया था।
यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि ‘एक व्यक्ति झठू के साथ अपने सजृ नकर्त्ता के समक्ष नहीं जा सकता।
अधिनियम की धारा 60 के तहत सामान्य नियम यह है कि सभी मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होने चाहिये यानी पीड़ित ने इसे सनु ा, देखा या महससू किया
हो।
‘मृत्युपूर्व घोषणा' संबंधी नियम
‘मत्ृ यपु र्वू घोषणा' को मख्ु यतः दो व्यापक नियमों के आधार पर स्वीकृति दी जा सकती है:
जब पीड़ित प्रायः अपराध का एकमात्र प्रमख
ु प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य हो।
‘आसन्न मृत्यु का बोध’, जो न्यायालय में शपथ दायित्व के समान ही होता है।
मत्ृ युपूर्व घोषणा की रिकॉर्डिंग एवं अस्वीकर्ती
‘मृत्युपूर्व घोषणा' की रिकॉर्डिंग:
काननू के अनसु ार, कोई भी व्यक्ति मृतक का मृत्यपु र्वू बयान दर्ज कर सकता है। हालाँकि न्यायिक या कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया मृत्यक
ु ालीन बयान
अभियोजन मामले में अतिरिक्त शक्ति प्रदान करे गा।
‘मत्ृ यपु र्वू घोषणा' कई मामलों में "घटना की उत्पत्ति को साबित करने के लिये साक्ष्य का प्राथमिक हिस्सा" हो सकती है।
इस तरह की घोषणा के लिये अदालत में परू ी तरह से जवाबदेह होने की एकमात्र आवश्यकता पीड़ित के लिये स्वेच्छा से बयान देना और उसकी मानसिक स्थिति का
स्वस्थ्य होना है। 
मत्ृ यु से पहले की गई घोषणा को दर्ज करने वाले व्यक्ति को इस बात से संतष्टु होना चाहिये कि पीड़ित की मानसिक स्थिति ठीक है।
ऐसी स्थितियाँ जहाँ न्यायालय इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं करता है:
हालाँकि ‘मृत्यपु र्वू घोषणा' अधिक प्रभावकारी होती है क्योंकि आरोपी के पास जिरह की कोई गजंु ाइस नहीं होती है।
यही कारण है कि अदालतों ने सदैव इस बात पर ज़ोर दिया है कि ‘मत्ृ यपु र्वू घोषणा' इस तरह की होनी चाहिये कि अदालत को इसकी सत्यता पर परू ा भरोसा हो।
अदालतें इस बात की जाँच करने के मामले में सतर्क होती हैं कि मतृ क का बयान किसी प्रोत्साहन या कल्पना का उत्पाद तो नहीं है। 
धारा 32
पुष्टि की आवश्यकता (सबूत के समर्थन में): 
कई निर्णयों में यह उल्लेख किया गया है कि यह न तो काननू का नियम है और न ही विवेक का, कि मृत्यु से पहले की घोषणा की बिना पुष्टि किये कार्रवाई
नहीं की जा सकती है।
यदि न्यायालय इस बात से संतष्टु है कि मृत्यपु र्वू घोषणा सत्य और स्वैच्छिक है तो बिना पष्टि
ु के उस आधार पर दोषसिद्ध किया जा सकता है।
जहाँ मत्ृ यपु र्वू घोषणापत्र सदं हे ास्पद हो, उस पर बिना पष्टु साक्ष्य के कार्रवाई नहीं की जानी चाहिये क्योंकि मत्ृ यपु र्वू घोषणा में घटना के बारे में विवरण नहीं होता है।
इसे के वल इसलिये खारिज नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि यह एक संक्षिप्त कथन है। इसके विपरीत कथन की संक्षिप्तता ही सत्य की गारंटी देती है।

चिकित्सकीय राय की वैधता:


आमतौर पर अदालत इस बात की सतं ष्टि
ु के लिये चिकित्सकीय राय ले सकती है कि क्या व्यक्ति मत्ृ यक
ु ालीन घोषणा करने के समय स्वस्थ मानसिक स्थिति में था।
लेकिन जहाँ चश्मदीद गवाह के कथन के अनसु ार व्यक्ति ने मौत से पहले घोषणा मानसिक रूप से स्वस्थ और सचेत अवस्था में की है, वहाँ चिकित्सकीय राय मान्य
नहीं हो सकती।
न्याय दृष्टांत
मत्ृ यपु र्वू कथन
शरद बिरदी चंद्र शारदा बनाम स्टे ट ऑफ महाराष्ट्र 1984 AIR 1622, 1985 SCR (1) 88
मत्ृ यु कालिक कथन को के वल इस आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता की मत्ृ यक
ु ालिक कथन मत्ृ यु के समय नहीं कहा
गया था। मत्ृ यक
ु ालिक कथन किसी भी समय कहा जा सकता है तथा इस कथन का संबंध घटना और परिस्थितियों से होना
चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने इगि ं त किया है कि कथन का संबंध आवश्यक रूप से मत्ृ यु के कारण एवं मत्ृ यु पैदा करने वाले
सव्ं यवहार की परिस्थितियों से होना चाहिए। इस मामले में एक विवाहित स्त्री की विवाह के 4 महीने बाद ही ससरु ाल में मत्ृ यु
हो गयी। उन चार महीनों में वह अपनी दशा के बारे में अपनी बहन तथा अन्य सबं धि ं यों को पत्र लिखती रही थी। निर्णय किया
पत्र धारा 32(1)के अतं र्गत सही रूप से ससु ंगत थे क्योंकि वह मत्ृ यु के कारण का वर्णन कर रहे थे।
शांति बनाम स्टे ट ऑफ हरियाणा
Crl. Appeal No. 283-DB of 2000 & Crl. Appeal No. 583-SB of
2000.
पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती है किसी भी मृत्युकालिक कथन में पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मत्ृ यु कालिक कथन में पष्टि
ु आवश्यक नहीं होती है,क्योंकि हो सकता है कि स्वतंत्र गवाह
पष्टि
ु करने के लिए मिल ही ना पा रहे हों। परंतु मत्ृ यक
ु ालिक कथन को विश्वास योग्य मानने से पर्वू उचित सावधानी तथा
सतर्क ता का प्रयोग किया जाना चाहिए।
जब कथन के बारे में यह लगे कि वह विश्वसनीयता के साथ था तो इसके आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है।
मत्ृ यक
ु ालिक कथन ऐसा होना चाहिए जो विश्वास पैदा करे और यह ना लगे कि मतृ क को सिखा पढ़ा दिया था।
क्वीन बनाम अब्दुल्लाह (1885) ILR 7 All 385

इशारों के माध्यम से भी मृत्युकालिक कथन किया जा सकता है कोई मृत्यु कालिक


कथन इशारों के माध्यम से भी किया जा सकता है, एवं यह कथन ग्राह्यम होगा।
यह इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पर्णू न्यायपीठ में के मामले में प्रतिपादित किया था।
इस मामले में एक लड़की का गला काटकर मारा गया था और इसलिए होश में होते हुए भी वह
बोल नहीं पा रही थी। हाथों के इशारों से उसने अभियक्त
ु का नाम समझाया इसे मत्ृ यक
ु ालिक
कथन माना गया।
मामले हैं जिनमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि मत्ृ यक
ु ालिन घोषणा पर न्यायायल को यदि पर्णू रूप से
विश्वास हो जाता है तो इसके आधार पर आरोपी को दोषसिद्ध किया जा सकता है।

• दर्शन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब (एआईआर 1983 सप्रु ीम कोर्ट 554)
के मामले में कहा गया कि मत्ृ यक ु ालीन घोषण के आधार पर दोषसिद्धि के लिए कथनों को इतना अतं : विश्वसनीय होना
अपेक्षित है, जिस पर पर्णू विश्वास किया जा सके ।
• के पी मणि बनाम तमिलनाडु राज्य (2006) 3 SCC
के मामले में सप्रु ीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ मरने से तरु ं त पहले के बयान के एकमात्र आधार पर भी दोषी ठहराया जा
सकता है लेकिन यह विश्वसनीय होना चाहिए।
मत्ृ यक
ु ालिक कथन का कोई फॉर्मेट नहीं विभिन्न हाईकोर्ट और सप्रु ीम कोर्ट के कई मामलों में
मत्ृ यक
ु ालिक कथन के निश्चित प्रारूप (फॉर्मेट) के बारे में सवाल उठा।

गणपत लाड और अन्य मामले विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य CRIMINAL APPEAL


NO.186 OF 2013
इस पर यह माना गया कि न तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) और न ही सप्रु ीम कोर्ट का कोई निर्णय
ही कोई फॉर्मेट के बारे में बताया है जिसके अनरू
ु प किसी व्यक्ति का मत्ृ यपु र्वू बयान रिकॉर्ड किया जाए।
मत्ृ यकु ालिक कथन मौखिक हो सकता है या फिर लिखित। जहां तक मौखिक बयान का सवाल है, तो
इसका अस्तित्व या इसको मरने वाले व्यक्ति को सनु ाने और विस्तार से इसे समझाने का मद्दु ा नहीं उठता। में
सप्रु ीम कोर्ट ने मत्ृ यक
ु ालिक कथन का कोई निश्चित फॉर्मेट नहीं होने की बात कही।
धारा 9 साक्ष्य अधिनियम 1872
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9 के तहत निम्नलिखित तथ्य हैं जो अदालत के समक्ष मामले में महत्वपर्णू तथ्यों को समझाने या प्रस्ततु करने के लिए आवश्यक
हैं:
तथ्य जिन्हें समझाया जाना आवश्यक है, या
विवाद में एक तथ्य का बताना, या
अदालत के समक्ष मामले के संबंध में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रासंगिक तथ्य, या
जिन तथ्यों का समर्थन किया जा सकता है, या
वे तथ्य जिनका खंडन (रिबट) किसी विवाद के तथ्य से निकाले गए निष्कर्ष के परिणामस्वरूप होता है, या
तथ्य जो किसी भी चीज़ या किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करता है जिसकी पहचान प्रासंगिक है, या
वे तथ्य जो उस समय या स्थान को निर्धारित करते हैं जिस पर किसी मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य में कोई तथ्य घटित होता है, या
तथ्य जो पक्षों के संबंध को दर्शाते है जिनके द्वारा इस तरह के किसी भी तथ्य का लेन-देन किया गया था, उस हद तक प्रासंगिक है कि किस उद्देश्य
के लिए इसकी आवश्यकता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 की धारा 9 का दायरा
व्याख्यात्मक तथ्य
जब तथ्यों को अके ले देखा जाता है, तो कुछ साक्ष्यों का कोई अर्थ नहीं होता है, लेकिन जब किसी मामले में अन्य तथ्यों के सबं धं में उनकी व्याख्या
की जाती है, तो वे सार्थक हो जाते हैं। ऐसे तथ्य महत्वपर्णू या प्रासगि
ं क तथ्य हैं जिन्हें उचित रूप से सप्रं षि
े त (कम्यनि
ु के ट) किया जाना चाहिए।
परिचयात्मक तथ्य
जब तथ्य एक महत्वपर्णू तथ्य के परिचय के रूप में कार्य करते हैं, तो वे एक महत्वपर्णू लेनदेन की वास्तविक प्रकृति को समझने में मदद करते हैं।
साक्ष्य की अनमु ति के वल उस सीमा तक दी जाती है जिसका उपयोग विवाद में तथ्यों या प्रासंगिक तथ्यों को पेश करने के लिए किया जाता है।
अनुमान का समर्थन करने वाले तथ्य
तथ्य की यह श्रेणी न तो किसी मद्दु े में तथ्यों के रूप में प्रासंगिक है और न ही प्रासंगिक तथ्य है, लेकिन यह मद्दु े में तथ्यों या प्रासंगिक तथ्यों द्वारा
प्रदान किए गए अनमु ान का समर्थन या विरोध करते है।
टे स्ट आइडेंटीफिके शन परे ड (टीआईपी)
‘टेस्ट आइडेंटीफिके शन परे ड’ आरोपी की पहचान निर्धारित करने के तरीकों में से एक है। परीक्षणों का उद्देश्य घटना के
प्रत्यक्षदर्शी (आई विटनेस) को मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपी की पहचान करने की अनमु ति देना है। परीक्षण पहचान का लक्ष्य
एक प्रत्यक्षदर्शी के स्मरण (रिकलेक्शन) का मल्ू याकं न करना और अभियोजन (प्रॉसिक्यश
ू न) पक्ष के लिए यह निर्धारित
करना है कि किसे प्रत्यक्षदर्शी कहा जा सकता है।
अदालत कुछ स्थितियों में पहचान या समर्थन साक्ष्य पर विचार कर सकती है। अदालत में पष्टि
ु के बिना नाबालिग (माइनर)
गवाह द्वारा किसी आरोपी की पहचान को स्वीकार करना, या किसी गवाह द्वारा पहली बार बिना पष्टि
ु के आरोपी की पहचान
को स्वीकार करना असंभव होगा।
न्याय दृष्टांत
धारा 9 के अतं र्गत
हीरा बनाम राजस्थान राज्य (2007)
• इस विशिष्ट मामले में टेस्ट आइडेंटीफिके शन परे ड के संबंध में डकै ती शामिल है। सात डकै तों ने पैसे चोरी करने के लिए आधी रात में एक पेट्रोल पंप
कार्यालय का दरवाजा तोड़ दिया, जब कर्मचारी कार्यालय में सो रहे थे। कार्यालय में घसु े तीन डकै तों ने मजदरू ों को लाठियों से पीटा। कार्यकर्ता के
रोने की आवाज सनु कर पास का एक पड़ोसी मौके पर आया और डकै तों ने उसकी भी पिटाई कर दी। बदमाश कै श बॉक्स से रुपये लटू कर फरार हो
गए। सनु वाई के दौरान 37 गवाहों से पछू ताछ की गई। टेस्ट आइडेंटीफिके शन परे ड का उपयोग करके सदि ं ग्धों की पहचान की गई।
• टेस्ट आइडेंटीफिके शन परे ड (टीआईपी) आयोजित करने के लिए निम्नलिखित सिद्धातं स्थापित किए गए हैं:
• टेस्ट आइडेंटीफिके शन परे ड (टीआईपी) को महत्वपर्णू साक्ष्य नहीं माना जाता है। इनका उपयोग सचू नाओ ं को सत्यापित (वेरिफाई) करने के लिए किया जाता है।
• मख्ु य लक्ष्य पछू ताछ चरण के दौरान गवाह की स्मृति का परीक्षण करना है।
• आरोपी के गिरफ्तार होते ही टेस्ट आइडेंटीफिके शन परे ड (टीआईपी) प्रक्रिया शरू
ु हो जाती है।
• प्रत्यक्षदर्शी की सत्यता के आधार पर सराहना की जाएगी।
आर बनाम टॉल्सन (1864)
• यह मामला फोटो पहचान से जड़ु ा है। विवाह प्रमाण पत्र पर गवाह के रूप में शादी में शामिल होने वाले व्यक्ति के साथ
पहले पति की पहचान की पष्टि
ु करने के लिए किया गया था।
• आरोपी व्यक्ति की छवि के दृश्य प्रतिनिधित्व की पहचान करने के लिए फोटो साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य थी। गवाह फोटो
के माध्यम से घटना की अपनी यादों को बताते हैं। यह गवाहों द्वारा मान्यता प्राप्त छवियों के आधार पर एक आरोपी की
पहचान मात्र है। नतीजतन, अदालत ने फै सला किया कि अपराध के दृश्यों के चित्र और फोटो स्वीकार किए जा सकते हैं।
महर्षि गौतम ऋषि विधि
सस्ं थान प्रा. लि.
BY SHEKHAR SHRIVASTAVA ADV.

अधिवक्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम


प्रत्येक शनिवार
रात्रि :- 09:00 - 09:40 बजे

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