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Birth Of Karna Story From Mahabharat In


Hindi | दानवीर कण� क
े ज� क� कथा ~ महाभारत
 00

धृतरा��, पा�डु और �व�र क


े पालन-पोषण का भार भी�म क
े ऊपर था। तीन� पु�
बड़े होने पर �व�ा-अ�ययन क
े �लए भेजे गए। धृतरा�� बल �व�ा म�, पा�डु
धनु�व�ा म� तथा �व�र धम� और नी�त म� �नपुण �ए। युवा होने पर धृतरा�� अ�धे
होने क
े कारण रा�य क
े उ�रा�धकारी न बन सक
े । �व�र दासीपु� थे, इस�लये
पा�डु को ही हि�तनापुर का राजा घो�षत �कया गया।  

भी�म ने धृतरा�� का �ववाह गांधार क� राजक


ु मारी गांधारी से कर �दया। गांधारी को
जब �ात �आ �क उसका प�त अ�धा है तो उसने �वयं अपनी आँख� पर प�ी बाँध
ली। उ�हीं �दन� य�वंशी राजा शूरसेन क� पो�षत क�या क
ु �ती जब युवाव�ा को
�ा� �ई तो �पता ने उसे घर आये �ए महा�माओं क� सेवा म� लगा �दया। �पता क

अ�त�थगृह म� �जतने भी साधु-महा�मा, ऋ�ष-मु�न आ�द आते, क
ु �ती उनक� सेवा
मन लगा कर �कया करती थी।

एक बार वहाँ �वा�सा ऋ�ष आ प�ँचे। क


ु �ती ने उनक� भी मन लगाकर सेवा क�।

ु �ती क� सेवा से �स� होकर �वा�सा ऋ�ष ने कहा- "पु�ी! म� तु�हारी सेवा से
अ�य�त �स� �ँ, अतः तुझे एक ऐसा म�� देता �ँ, �जसक
े �योग से तू �जस देवता
का �मरण करेगी, वह त�काल तेरे सम� �कट होकर तेरी मनोकामना पूण�
करेगा।" �वा�सा ऋ�ष क
ु �ती को म�� �दान कर चले गये।

महाभारत क� स�पूण� कथा पढ़� :


Complete Mahabharata Katha In Hindi | स�पूण� महाभारत क� कथा!

म�� क� स�यता क� जाँच हेतु एक �दन क


ु �ती ने एका�त �ान पर बैठकर उस
म�� का जाप करते �ए सूय�देव का �मरण �कया। उसी �ण सूय�देव वहाँ �कट �ए
और बोले- "दे�व! मुझे बताओ �क तुम मुझसे �कस व�तु क� अ�भलाषा करती हो।
म� तु�हारी अ�भलाषा अव�य पूण� क�ँगा।" इस पर क
ु �ती ने कहा- "हे देव! मुझे
आपसे �कसी भी �कार क� अ�भलाषा नहीं है। म�ने तो क
े वल म�� क� स�यता
परखने क
े �लये ही उसका जाप �कया है।" क
ु �ती क
े इन वचन� को सुनकर सूय�देव
बोले- "हे क
ु �ती! मेरा आना �यथ� नहीं जा सकता। म� तु�ह� एक अ�य�त परा�मी
तथा दानशील पु� �दान करता �ँ।" इतना कहकर सूय�देव अ�त�या�न हो गये।

ु �ती ल�जावश यह बात �कसी से नहीं कह सक�। समय आने पर उसक
े गभ� से
कवच-क
ु �डल धारण �कये �ए एक पु� उ�प� �आ। क
ु �ती ने उसे एक मंजूषा म�
रखकर रा�� बेला म� गंगा म� बहा �दया। वह बालक बहता �आ उस �ान पर
प�ँचा, जहाँ पर धृतरा�� का सारथी अ�धरथ अपने अ� को गंगा नदी म� जल �पला
रहा था। उसक� दृि� कवच-क
ु �डल धारी �शशु पर पड़ी। अ�धरथ �नःस�तान था,
इस�लये उसने बालक को अपने छाती से लगा �लया और घर ले जाकर अपनी
प�नी राधा को स�प �दया। उ�ह�ने उस बालक को गोद ले �लया और उसका
ललन-पालन करने लगे। उस बालक क
े कान अ�त सु�दर थे, इस�लये उसका नाम
'कण�' रखा गया।

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