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पाठ – 01
नमक का दरोगा
पाठ के साथ
उ तर1: कहानी का नायक मुंशी वंशीधर हम सवा धक भा वत करता है । मुंशी वंशीधर एक
ईमानदार और कत यपरायण यि!त है , जो समाज म ईमानदार% और कत य&न'ठा क)
*मसाल कायम करता है । उसने अलोपीद%न दातागंज जैसे सबसे अमीर और व1यात
यि!त को गर2तार करने का साहस 3दखाया। आ6खरकर पं7डत आलोपीद%न भी उसक)
9ढ़ता से मु;ध हो जाते ह<।
उ तर2: पं7डत अलोपीद%न के यि!त=व के &न>न*ल6खत दो पहलू उभरकर आते ह< –
एक - पैसे कमाने के *लए &नयम वBC काय करनेवाला D'ट यि!त। लोगF पर जुGम
करता था परं तु समाज म वह सफ़ेदपोश यि!त था। यह उसके दोगले चKरL को उजागर
करता है । दो - कहानी के अंत म उसका उMMवल चKरL सामने आता है । ईमानदार% एवं
धम&न'ठा के गुणF क) कN करनेवाला यि!त।
उ तर3:
(क) वC
ृ मंश
ु ी - वC
ृ मंश
ु ी समाज म धन को मह=ता दे नेवाले D'ट यि!त है । वे अपने बेटे को
ऊपर% आय बनाने क) सलाह दे ते ह<। वे कहते ह< - 'मा*सक वेतन तो पण
ू मासी का चाँद है
जो एक 3दन 3दखाई दे ता है और घटते-घटते लTु त हो जाता है । ऊपर% आय बहता हुआ
Uोत है िजससे सदै व Tयास बझ
ु ती है ।'
(ख) वक)ल - आजकल जैसे धन लट
ू ना ह% वक)लF का धम बन गया ह<। वक)ल धन के *लए
गलत यि!त के पW म लड़ते ह<। मिजYZे ट के अलोपीद%न के हक म फैसला सुनाने पर
वक)ल खश
ु ी से उछल पड़ता है ।
(ग) शहर क) भीड़ - शहर क) भीड़ दस
ू रF के दख
ु F म तमाशे जैसा मज़ा लेती है । पाठ म एक
Yथान पर कहा गया है - 'भीड़ के मारे छत और द%वार म भेद न रह गया।'
उ तर4:
(क) यह उि!त बूढ़े मुंशीजी क) है ।
(ख) मा*सक वेतन को पूणमासी का चाँद कहा गया है !यF^क वह मह%ने म एक 3दन 3दखाई
दे ता है और घटते-घटते लुTत हो जाता है । वेतन भी एक ह% 3दन आता है जैसे-जैसे माह
आगे बढ़ता है वैसे वह खच होता जाता है ।
(ग) जी नह%ं, म< एक पता के इस व!त य से सहमत नह%ं हूँ। ^कसी भी यि!त को D'टाचार
से दरू रहना चा3हए। एक पता अपने बेटे को Kर`वत लेने क) सलाह नह%ं दे सकता और
न दे नी चा3हए।
पाठ के आस पास:
उ तर1: वंशीधर का ऐसा करना उ चत नह%ं था। म< अलोपीद%न के &त कृतdता 3दखाते हुए उaह
नौकर% के *लए मना कर दे ता !यF^क लोगF पर जG
ु म करके कमाई हुई बेईमानी क)
कमाई क) रखवाल% करना मेरे आदशf के वBC है ।
उ तर2: वतमान समाज म ऐसे पद ह< - आयकर, gबh)कर, सेGसटे !स इंYपे!टर, आ3द। इaह पाने
के *लए लोग लाला3हत रहते हFगे !यF^क इसम ऊपर% कमाई (Kर`वत) *मलने क) संभावना
Mयादा होती है ।
उ तर3:
(क) जब म<ने दे खा पढ़े -*लख लोग गंदगी फैला रहे है तो मुझे उनका पढ़ना-*लखना यथ लगा।
(ख) जब हम पढ़े -*लख लोगF को उनके बkचF के उMMवल भ व'य क) योजना बनाते दे खते ह<
तो हम उनका पढ़ना-*लखना साथक लगता ह<।
(ग) 'पढ़ना-*लखना' को *शWा के अथ म यु!त ^कया गया ह<। नह%ं, इनम अंतर है ।
उ तर4: यह कथन समाज म लड़^कयF क) उपेlWत िYथ&त को दशाता है । लड़^कयF को बोझ माना
जाता ह<। उनक) उ चत दे ख-भाल नह%ं क) जा सकती।
उ तर5: अलोपीद%न जैसे यि!तयF दे खकर मेरे मन म यह &त^hया होती है ^क समाज म सारे
यि!त वंशीधर जैसे चKरLवान और साहसी !यF नह%ं होते। जो अलोपीद%न जैसे यि!तयF
को उनके कुकमf क) सज़ा 3दलाएँ।
समझाइए तो ज़रा -
उ तर1: इसम नौकर% के ओहदे और उससे जुड़े सaमान से भी Mयादा मह==व ऊपर% कमाई को
3दया गया है । ऐसी नौकर% करने के *लए कहा जा रहा है जहा Mयादा से Mयादा Kर`वत
*मल सके।
भाषा क( बात:
उ तर1: भाषा क) चLा=मकता -
'जाड़े के 3दन थे और रात का समय। नमक के *सपाह%, चौक)दार नशे म मYत थे...एक
मील पूव क) ओर जमुना बहती थी, उस पर नावF का एक पुल बना हुआ था। दारोगाजी
^कवाड़ बंद ^कए मीठs नींद से सो रहे थे।'
लोकोि!तयाँ -
• पूणमासी का चाँद।
• सुअवसर ने मोती दे 3दया।
मुहावरे -
• फूले न समाना।
• सaनाटा छाना।