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छ र अ क (सु त

ु )

ध दे ने वाले ाणी -: ग माजं तथा चौ मा वकं मा हषं च यत।

अ वाया चैव नाया च करेणन


ू ाम च य पयः

आचाय सु त
ु ने भी अ कार के ध का ह वणन कया है जो क न नानुसार है

1) गाय

2) बकरी

3)ऊटनी

4)भेड़

5) भेस

6) अ वा

7) ी

8) हथनी

# ध के सामां य गुण -:

लोक -: त वनेकौष ध सादं ाणद गु ।

मधुर ं प चछलम शीत्ं न धं ल णम सरम मृ । सव ाण तां त मात


सा य्ं छ र महो यते।।

1) अनेको षध स सा द अथात् गौ ,बकरी आ द ाणी जन ो को खाते है ध उन ो का रस या न ओज, शू कत


र ह सार भुत साद "चरमपाक " है

2) ाणद (अ न सोम दधारणात उपचया दकरणाद वा )

3) गु (भारी)

4) मधुर

5) प छल ( वशद वपरीतम)

6 )शीत

7 न धं
8) छं ण

9)सर

10) मृ

इन सब गुणो के कारण ह ध सभी ाणीयो के लये सा य होता है

# सभी ध के सामा य गुण -:

"त सवमेव ीरम ाणीनाम त ष ं जा तसा म यात, वात प शो णतमान से व प वकारे व व धं,ं जीण वरकास
वासशोष यगु मो मादोदरमू छा मददाह पपासा द तदोषपा डु रोग हणीदोषाश: शु लोदावता तसार वा हकायो नरोग
गभा ावर प म ल्ं महर, पा मापहं ब य्व ं ृ यम वा जकरणम रसायनम मे यम वय: थापनमयू यम जीवनम बृहणम
स धानम वमन वरेचन ्ं ा थापनम तु यगुण वा चौजसो वधनम बालवृ द त ीणानां ु यवाय ायामक शतानाम च प यतमम
"(शु . सु 41/49)

आठ कार के सभी ध ज म से ह लाभ कर होने म भी इसके योग का नषे ध नही है ।

जीण वर ,कास , वास शोष , य ,गु म ,उ माद,

य यद रोग, ब तदोष ,पा डु रोग , ह णी रोग, अश, शू ल, उदावत, अ तसार, वा हक, यो न रोग, गव ाव, र प ,
म,और म को र करता है

ध पाप हर है, ब य, वृ य वा जकरण और रसायन है ।

इसी कार यह मे य, वय: थापन, शु .सु 41/42, जीवन,बृहण,स धान क र, वमन, वरेचन,आ थप्ंन,और तु य गुण होने से
ओज को बढाता है । ध बाल,वृ द, त, ी ण, यो के लये एवं जो ु धा, मे थू न एवं ा या म से कमजोर हो ग ये है,
उनके लए नता त प य है।।

# गो ध के गुण-:

"अ पा भ य द गो र् ं न धम गु र सायनम । र प हरम शीत्ं मधुर रस पा क यो: जीवनी यम तथा


वात प नम प रम त म "

।(शु .सु 41/50)

गाय का ध कम अ भ य द, न ध, गु , र सायन, र प हर, शीत, रस, और पाक मे मधुर, जीवनीय और वात - प


वकारो को र करने मे े होता है

# अजा ध के गुण -: ग तु य गुणम वाज्ं वशे षा छो ष णाम हतम ।।(शु .सु 41/41)

द प नं लघु सं ा ह वास का सा प नुत।


अजानाम पकाय वात् कटु त नषे वणात।। (शु .सु 41/42 )

ना यंं बू पानाद ायमा सव ा ध हरम पय:।

यह गुणो क से गो ध स श होता है, वशे ष कर शोषपीड़तो के लए उपयोगी होता है ।

यह द पन, लघु, सं ाही होता है और वास, कास एवं र प हर होता है । बक रयो का शरीर छो टा होने के कारण , कटु -
त ो का से वंन क रने से ,अ धक जल न पीने से और ायाम अ धक करने से बक रयो का ध सभी कार के वकारो
को र करता है

#ऊ ी ध के गुण -: ो णम लवणम क चददौ म वा रसम लघु ।

प य्ं केवल वातेषु कासे चा नल स भवे ।।(शु .सु 41/53)

#आ वक ध के गुण -: आ वक्ं मधुर ं न धम गु प कफ़ावहम ।

प य्ं केवल वातेषु कासे चा नल स भवे ।।।(शु .सु 41/54)

यह ध मधुर, न ध, गु , प हर,केवल वात ज धयो एवं वा तक कास मे हतकर है

#म ह ष ध के गुण-:

महा भ य द मधुर ं मा हषम व ह शनम।

न ाकरं शीततरं ग ात न धतरं गु ।।(शु .सु 41/55)

यह ध अ य धक अ भ य द,मधुर, अ न मांधय क रने वाला , न ा कर , शीत और गाय के ध से अ धक न ध त था


भारी होता है

#एक श फ वाले पशु ओ के ध के गुण -:

उ णमै क शफ्ं ब य्ं शाखावात हरं पयः।

मधुर ा लरसं म लवणानरसम लघु।।(शु .सु 41/56)

एक श फ वाले पशु ओ घोडा आ द का ध उ ण,ब य,अध:शा खा और उ व शाखा के वात रोगो को र करने वाला, मधुर
एवं अ ल रस , , लवण अनुरस वाला ओर लघु होता है

#नारी ध के गुण -:

नाया तु मधुर ं त यं काषायानुरसं हमम ।


न य योतनयो: प यम जीवनं लघु द पनम।।(शु .सु 41/57)

यह मधुर, कषाय अनुरस वाला, शीतल, न य, और आ योतन के लये हतकर,जीवन लघु और द पन होता है

# वज य वा या: त यमाममेव ह त द तम्।।

(शु .सु 41/ 62)

ी ध को छोडकर अ य सभी ध उबाल कर ह पीना चा हये ।

ी ध आम ह हत कर होता है ।।

#ह थनी के ध के गुण-:

ह त या मधुर ं वृ यं कषायनुरसं गु ।

न धं थे यकरं शीत्ं च ु यं बल वधन्ं ।।(शु .सु 41/58)

यह ध, मधुर, च ु यं, कषायनुरस, गु , न ध, थे यकर शीत च ु य और बल वधक हो ता है।

#काल भेद से ध के गुण -:

ाय: ाभा तकं ीरं गु व भ शीतलम्ं ।

रा या: सोमगुण वा य ायामाभावत तथा।।

द वा क रा भत ता नां ायामा नल से व नात्।

म नं वातनु चै व च ु यं चापर हणकम्।।(शु .सु 41/59-60)

ाय: ा :त का लक ध रात को चं मा के शीतल गुणो के कारण और ा या म न होने से भारी, व भ और शीतल होता


है ।

सायं काल का ध सु य क करणो से त त होने के कारण तथा ायाम करने और वायू के से वन से वायू

का अनुलोम करने वाला और ने ो के लए हत क र होता है ।।

#क चे ध के गुण -:

पयोअ भ यं द गुवामं ायश: प रक ततम्।


तदे वो ं लघुतरन भ यं द वै ृ त म् ।।(शु .सु 41/61)

# धारो णं ध के गुण -:

धारो णं गुण वत् ीरं वपरीतमतोअ यथा ।

तदे वा त त
ृ ं शीतं गु बृहणमु चते।।(शु .सु 41/63)

धारो ण गुण यु होता है ओर इसके वपरीत अथात् नकलने के बाद काफ समय तक रखा आ ध गुण यु नही रहता
य द धारो ण ध या काफ समय से रखे ए को अ धक उबाला जाय तो यह ठं ड़ा होने पर भारी तथा बृहण होता है ।

# ध के दोष-:

अ न ग ध लं च व वण व रस च यत।

व य सलवणं ीरं य च व थतं भवेत।।(शु .सु 41/64)

उस ध का से वन नही करना चा ह ए जो अ न ग ध वाला हो, अ लीय हो, ववण वाला हो, वरस हो, नमक न, हो और
गाठदार अथात् फ़ट गया हो

वा भट(अ ाग दयं )

ग मा हषमाजं च कारभं ै णमा वकम् ।

ऐभमैकशफं चे त ी र म वधं मृतमं ।।

* वा पाकरसं न धमोज य धातु वधनम्

वात प हरं वृ य ले मलं गु शीतलम् ।। (अ. .सु .5/20)

ाय:पय: - 1.ग

2.मा हष

3.अज
4.कारभ

5. ी

6.आ वक

7. ऐभ

8.एक शफ

इस कार आठ कार का ध माना गया है ।

ा य: सभी कार के ध मधुर रस, वपाक,ओजोवृ धकर,वात प न, वृ य, ले मकारक, गु तथा शीतल होते है ।

# गो ध के गुण -:

अ ग ं तु जीवनीयं रसायनम्।ं

त ीण हतं मे यं व य त य करं सरम।।

म ममदाल मी वासकासा ततृट् ध


ु ः।

जीण वरं मू कृ र प ं च नाशये त।


(अ. .सु .5/21-22)

गाय का ध वषे श प से जीवनीय,रसायन, त तथा ीण के लए हतकर, मे य, व य, त यकर तथा सर होता है । यह म,


म, मद, अल मी, वास, कास, यास एवं भूख क अ धकता, जीण वर, मू कृ छ त था र प को न करता है।

#म हष ध के गुण -

हत म य य य न े यो गरीयो मा हषं हमम् (अ. .सु .5/23)

भैस का ध ती णा न तथा अ न ा के लए प य होता है । यह गाय के ध से गु तथा शीतवीय होता है।

#अजा ध के गुण -:

अ पा बुपान ा या म कटु त ाश नै लघुर ।

आजं शोष वर वासर प ा तसार जत्।।

(अ. .सु .5/24)

थोडा जल पीने, कुदने- फादने आ द ायाम करने तथा कटु - त रस वाले पदाथ का से वन करने से बकरी का ध लघु
होता है। यह शोष, वर, वास,र प , तथा अ तसार को न करता है।
#उ ी ध के गुण -:

ईषद ो णलवणमौ कं द पनम लघु ।

श तं वात कफ़ानाहकृ मशोफोदराशसाम।।(अ. .सु .5/25)

ऊटनी का ध कुछ , क चत् उ ण, क चत् लवण रस यु अ नद पक तथा लघु होता है ।यह वात रोग, कफरोग,
आनाह,कृ मरोग,शोफ़, उदररोग तथा अश रोग मे प य होता है।

# ी ध के गुण-:

मानूष वात प ा सृ ग भ घाता रोग जत्

तपणा चोतनैन यै :-

ी ध वात, प ,र तथा अ भघात से उ प ने रोगो को तपण, ने सचन एवं न य के ारा न करता है।

#आ वक ध के गुण -:

अ ध्ं तु णमा वकम् वात ा धहरं।

ह मा वास प कफ दम।।

(अ. .सु .5/26)

भेड़ का ध दय के लए हतकर त था उ ण वीय होता है ।यह वात ा ध- वनाशक त था ह का , वास, प रोग का


उ पादक होता है।

#ह तनी ध के गुण -:

ह त या : थै यकृद् -

ह थनी का ध अ तश य थरता दान करने वाला होता है ।

#एक शे फ वाले पशु ओ के ध के गुण( घोड़ी व गधी ) -:

बाढ मु णं वै कशफं लघु।

शाखा वातहर सा ललवणं जङताकरम् (अ. .सु .5/27)


एक नख वाले ( घोड़ी व गधी )का ध उ णवीय, लघु,शाखा थत वात का वनाशक, क चत् अ ल तथा क चत् लवण रस
वाला तथा जड़ता कारक होता है।

#प व व अप व ध के गुण -:

पयोअ भ यं द गु वाम्ं यु या त
ृ मतो अ यथा

(अ. .सु .5/28)

क चा ध अ भ य द तथा गु होता है और यु पुवक गम कया आ ध न अ भ य द और लघु होता है।

# धारो ण ध के गुण -:

भवेद ् गरीयोअ त त
ृ ं, धारो णममृतोपमम्।

अ तशय गम कया ध गु तर होता है तथा धारो ण अथात धारा ारा त काल नकाला गया ध अमृत के समान होता है।

चरक

आ.च रक ने भी अ ध का वणन कया है

ीरा ण व य ते कम चैषाम गुणा च ये ।

अ व ीर मजा ी रं गो ीरं मा हषमं च यत्

उ ी णा मथ नगीनाम वडवाया: या तथा ।।

( च.सु . 1/106)
आचय चरक ने ध के गुण व कम का वण न कया जो क न नानुसार ह -:

1)भेड़ का ध

2)बकरी का ध

3)गाय का ध

4) भेस का ध

5)ऊटनी का ध

6) ह थनी का ध

7)घोड़ी का ध

8) ी का ध

ये आठ कार के ध होते है

ध के सामा य गुण -:

ाय शो मधुर ं शीतं त य्ं पयो मतम्

(च.सु . 1/107)

ाय सभी कार के ध मधुररस, न ध,शीत,और ध को बढाने वाले होते है।

ीणनं बृहणं वृ यं मे यं ब य्ं मन करम।

जीवनीयं महरं वास का स नबहरण।। (च.सु . 1/108)

यह स ता कारक, मांसवधक, र तश वधक, बु वधक, बलवधक, और मन को फु लत करने वाला होत है ।

यह जीवनीय श को बढाने, थकावट को मटाने वाला,खासी, और दमा को र करने वाला होता है ।

ह त शो णत प मं च स धानं वहत य च ।

सव ाणभृतां सा यमं शमनं शोधनं तथा।।

यह र प का नाशक व भ न का सं धान करने वाला होता है. ाणी मा के लये सा य तथा दोषो का शमन व मलो का
शोधन करने वाला होत है

(च.सु . 1/109)
तृ णा नं द पनीय च े ं ीण तेषु च ।

पा डु रोगे अ ल प े च शोषे गु मे त थोदरे ।।

(च.सु . 1/110)

तृ णा को बुझाता है, अ नद पक है, ीण पु ष के लये और त होने पर े गुण कारक होत है।

पा डु ,अ ल प ,शोष, गु म,उदर, रोगो मे हतकर होता है

अतीसारे वरे दाहे वयथौ च व शे षत:।

य नशु दोषे षु मु ेषु दरेषु च

(च.सु . 1/111)

अतीसार, वर,(जीण वर ), दाह, ओर शोथ मे वशे ष क र हतकर होता है । यो नरोग,शु रोग, र रोग, मे भी हतकर होता
है ।

पुर ीषे थते प य्ं वात प वका रणाम् ।

न याले पावगाहेषु वमना थापनेषु च ।।

(च.सु . 1/112)

वब ध और वात त था प के रो गयो के लये प य होता है।

न य, आले प, अवगाहन,वमन, आ थापन ब त आ द मे भी उपयोगी होता है।

वरेचने ने हने च पय: सव यु यते

वरेचन और ने हन आ द मे भी उपयोगी होता है।

गो ध के गुण -: वा शीतं मृ न धं बहलं ल ण प छलम।

गु मंद स ं च ग ं दश गुणं पय : ।। (च.सु . 27/217)

गो ध के 10 गुण होते है - 1) रस मे मधुर

2) वीय मे शीत
3) गुण मे मृ

4) नध

5)बहल

6) ल ण

7 ) प छल

8) गु

9)म द

10) स

इ ही दस गुणो से यु ओज के साथ सामा य होने से ओज बढाता है ।यह सभी जीवनीय पदाथ मे े तथा रसायन है।

तदे वंगण
ु मेवौजः सामा यद भवधये त्

वरं जीवनीयानां ीर मु ् रसायनम्

(च.सु 27/218)

इ ही दस गुणो से यु ओज के साथ सामा य होने से ओज बढाता है ।यह सभी जीवनीय पदाथ मे े तथा रसायन है।

# मा हष ध के गुण -:

म हषीणाम् गु तरं ग छ ततरं पय : ।

ने हा यू न म न ाय हत म य नये च तत ।। ( च.सु 27/219)

यह गाय के ध से अ धक भारी, अ धक ने ह यु और शीत होता है ।यह अ न ा ना शक और भ मकनाशक होता है।

उ ी ध गुण -:

ो णमं ी र मु ीणा मी ष स लवणमं लघु । श त वात कफ़ा ना ह मशो फो द रा श साम्।।

( च.सु 27/220)

यह , उ णवीय, क चत् नमक न और लघु होता है ।यह वात तथा कफ से होने वाले रोग, आनह, म, उदररोग
( वषे शकर जलोदर) और अश रोग मे लाभ द होता है ।

# एक शे फ वाले पशु के ध के गुण -:

ब यं थै यकरं सवमु णं चैकशफं पय:।

सा लं सलवणं ं शाखावातहरं लघु।।

( च.सु 27/221)

बल कारक, थरता कारक, उ ण वीय, कुछ ख ा कुछ नमक न, , लघु और शाखाओ के वात रोगो का नाशक होता है

# अजा ध के गुण -:

छागं कषाय मधुर ं शीतं ा ह पयो लघु। र प ा त सार नमं यकास वरा प हम्।।

( च.सु 27/222)

यह रस मे कषाय और मधुर, वीय मे शीत, ाही और हलका होता है तथा र प , अ तसार, य, कास, एवं वर को र
करता है।

#अव ध के गुण -: ह का वासकरं तू णं प ले मलमा वकम्

( च.सु 27/223)

यह हचक एवं वास को उ प करता है, ऊ ण वीय एवं कफ- प वधक होता है।

# ह थनी ध के गुण -: ह तनीनां पयो ब यं गु थैयकरमं परम् ( च.सु 27/223)

यह बलवधक, गु पाक और दे ह को ढ बनाने वाला होता है।

# नारी ध के गुण -:
जीवनं बृहणं सा यं ने हनं मानुषं पय।

नावनं र प े च तपणं चा शू लनाम्।।

( च.सु 27/224)

यह जीवनीय श दाता है, शरीर को थू ल बनाता है, ज म से ही अनुकूल होने के कारण सा य होता है और शरीर का
ने हन करता है । यह र प रोग मे नाक मे टपका ने के लए और ने शु ल मे ने मे तपण के लए उपयोगी होता है ।

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