You are on page 1of 6

न्यायालय अवमान अिधिनयम, 1971

(1971 का अिधिनयम सं 70)


[24 िदसम्बर, 1971]
न्यायालय के अवमान के िलए दिण्डत करने के बारे म कु छ न्यायालय
की शिक्तय को पिरिनिश्चत और पिरसीिमत करने के िलए
और उस सम्बन्ध म उनकी पर्िकर्या को
िविनयिमत करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के बाईसव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :--
1. संिक्षप्त नाम और िवस्तार—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम न्यायालय अवमान अिधिनयम, 1971 है ।
(2) इसका िवस्तार सम्पूणर् भारत पर है :
परन्तु यह जम्मू-कश्मीर राज्य को वहां तक के िसवाय लागू नह होगा जहां तक इस अिधिनयम के उपबंध का सम्बन्ध
उच्चतम न्यायालय के अवमान से है ।
2. पिरभाषाएं—इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,--
(क) “न्यायालय अवमान” से िसिवल अवमान अथवा आपरािधक अवमान अिभपर्ेत है;
(ख) “िसिवल अवमान” से िकसी न्यायालय के िकसी िनणर्य, िडकर्ी, िनदेश, आदेश, िरट या अन्य आदेिशका की
जानबूझकर अवज्ञा करना अथवा न्यायालय से िकए गए िकसी वचनबन्ध को जानबूझकर भंग करना, अिभपर्ेत है;
(ग) “आपरािधक अवमान” से िकसी भी ऐसी बात का (चाहे बोले गए या िलखे गए शब्द ारा, या संकेत ारा, या
दृश्य रूपण ारा, या अन्यथा) पर्काशन अथवा िकसी भी अन्य ऐसे कायर् का करना अिभपर्ेत है—
(i) जो िकसी न्यायालय को कलंिकत करता है या िजसकी पर्वृि उसे कलंिकत करने की है अथवा जो
उसके पर्ािधकार को अवनत करता है या िजसकी पर्वृि उसे अवनत करने की है; अथवा
(ii) जो िकसी न्याियक कायर्वाही के सम्यक् अनुकर्म पर पर्ितकू ल पर्भाव डालता है, या उसम हस्तक्षेप
करता है या िजसकी पर्वृि उसम हस्तक्षेप करने की है; अथवा
(iii) जो न्याय पर्शासन म िकसी अन्य रीित से हस्तक्षेप करता है या िजसकी पर्वृि उसम हस्तक्षेप करने
की है अथवा जो उसम बाधा डालता है या िजसकी पर्वृि उसम बाधा डालने की है;
(घ) “उच्च न्यायालय” से िकसी राज्य अथवा संघ राज्यक्षेतर् के िलए उच्च न्यायालय अिभपर्ेत है और िकसी संघ
राज्यक्षेतर् म न्याियक आयुक्त का न्यायालय इसके अन्तगर्त है ।
3. िकसी बात के िनद ष पर्काशन और िवतरण का अवमान न होना—(1) कोई िक्त इस आधार पर िक उसने िकसी ऐसी
बात को (चाहे बोले गए या िलखे गए शब्द ारा या संकेत ारा या दृष्य रूपण ारा या अन्यथा) पर्कािशत िकया है जो पर्काशन के
समय लिम्बत िकसी िसिवल या दािण्डक कायर्वाही के सम्बन्ध म न्याय के अनुकर्म म हस्तक्षेप करती है या िजसकी पर्वृि उसम हस्तक्षेप
करने की है अथवा जो उसम बाधा डालती है या िजसकी पर्वृि उसम बाधा डालने की है, उस दशा म न्यायालय अवमान का दोषी नह
होगा िजसम उस समय उसके पास यह िवश्वास करने के समुिचत आधार नह थे िक वह कायर्वाही लिम्बत थी ।
(2) इस अिधिनयम म या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी पर्ितकू ल बात के होते हुए भी, िकसी ऐसी िसिवल या
दिण्डक कायर्वाही के संबंध म, जो पर्काशन के समय लिम्बत नह है, िकसी ऐसी बात के पर्काशन के बारे म, जो उपधारा (1) म विणत
है, यह नह समझा जाएगा िक उससे न्यायालय अवमान होता है ।
(3) कोई भी िक्त इस आधार पर िक उसने ऐसा कोई पर्काशन िवतिरत िकया है िजसम कोई ऐसी बात अन्तिवष्ट है जो
उपधारा (1) म विणत है, उस दशा म न्यायालय अवमान का दोषी नह होगा िजसम िवतरण के समय उसके पास यह िवश्वास करने के
समुिचत आधार नह थे िक उसम यथापूव क्त कोई बात अन्तिवष्ट थी या उसके अन्तिवष्ट होने की सम्भावना थी :
परन्तु यह उपधारा िनम्निलिखत के िवतरण के बारे म लागू न होगी—
(i) कोई ऐसा पर्काशन जो पर्ेस और पुस्तक रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम, 1867 (1867 का 25) की धारा 3 म अंतिवष्ट
िनयम के अनुरूप मुिदर्त या पर्कािशत न होते हुए अन्यथा मुिदर्त या पर्कािशत पुस्तक या कागजपतर् है;
2

(ii) कोई ऐसा पर्काशन जो उक्त अिधिनयम की धारा 5 म अन्तिवष्ट िनयम के अनुरूप पर्कािशत न होते हुए
अन्यथा पर्कािशत समाचारपतर् है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा के पर्योजन के िलए कोई न्याियक कायर्वाही—
(क) िनम्निलिखत दशा म लिम्बत कही जाती है—
(क) िसिवल कायर्वाही के मामले म जब वह वादपतर् फाइल करके या अन्यथा संिस्थत की जाती है,
(ख) दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) या िकसी अन्य िविध के अधीन िकसी दिण्डक कायर्वाही के
मामले म—
(i) जहां वह िकसी अपराध के िकए जाने से संबंिधत है वहां जब आरोप-पतर् या चालान फाइल
िकया जाता है अथवा जब अपराधी के िवरु न्यायालय, यथािस्थित, समन या वारं ट िनकालता है,
और
(ii) िकसी अन्य मामले म जब न्यायालय उस िवषय का संज्ञान करता है िजससे कायर्वाही
संबंिधत है; और
िकसी िसिवल या दािण्डक कायर्वाही के मामले म तब तक लिम्बत बनी रही समझी जाएगी जब तक वह सुन नह ली जाती
और अिन्तम रूप से िविनिश्चत नह कर दी जाती, अथार्त् उस मामले म जहां अपील या पुनरीक्षण हो सकता है, जब तक
अपील या पुनरीक्षण को सुन नह िलया जाता और अिन्तम रूप से िविनिश्चत नह कर िदया जाता, या जहां अपील या
पुनरीक्षण न िकया जाए वहां जब तक उस पिरसीमा-काल का अवसान नह हो जाता जो ऐसी अपील या पुनरीक्षण के िलए
िविहत है;
(ख) िजसे सुन िलया गया है और अिन्तम रूप से िविनिश्चत कर िदया गया है के वल इस बात के ही कारण लिम्बत
नह समझी जाएगी िक उसम पािरत िडकर्ी, आदेश या दण्डादेश के िनष्पादन की कायर्वाही लिम्बत है ।
4. न्याियक कायर्वाही की उिचत और सही िरपोटर् का अवमान न होना—धारा 7 म अन्तिवष्ट उपबंध के अधीन रहते हुए,
कोई भी िक्त िकसी न्याियक कायर्वाही या उसके िकसी पर्कर्म की उिचत और सही िरपोटर् पर्कािशत करने से न्यायालय अवमान का
दोषी न होगा ।
5. न्याियक कायर् की उिचत आलोचना का अवमान न होना—कोई भी िक्त िकसी मामले के , िजसे सुन िलया गया है और
अिन्तम रूप से िविनिश्चत कर िदया गया है, गुणागण पर उिचत टीका-िटप्पणी पर्कािशत करने से न्यायालय अवमान का दोषी
न होगा ।
6. अधीनस्थ न्यायालय के पीठासीन आिधकािरय के िवरु पिरवाद का कब अवमान न होना—कोई भी िक्त िकसी ऐसे
कथन के बारे म जो उसने िकसी अधीनस्थ न्यायालय के पीठासीन अिधकारी की बाबत—
(क) िकसी अन्य अधीनस्थ न्यायालय से, या
(ख) उच्च न्यायालय से,
िजसके अधीनस्थ वह न्यायालय है, सद्भावपूवर्क िकया हो, न्यायालय अवमान का दोषी न होगा ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “अधीनस्थ न्यायालय” से िकसी उच्च न्यायालय के अधीनस्थ कोई न्यायालय अिभपर्ेत है ।
7. चैम्बर म या बन्द कमरे म कायर्वािहय के संबधं म जानकारी के पर्काशन का कु छ दशा के िसवाय अवमान न
होना—(1) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, कोई िक्त चैम्बर म या बन्द कमरे म बैठे हुए न्यायालय के समक्ष िकसी
न्याियक कायर्वाही की उिचत और सही िरपोटर् पर्कािशत करने से, िनम्निलिखत दशा के िसवाए, न्यायालय अवमान का दोषी न
होगा, अथार्त्—
(क) जब पर्काशन तत्समय पर्वृ िकसी अिधिनयिमित के उपबंध के पर्ितकू ल है;
(ख) जब न्यायालय, लोक नीित के आधार पर या अपने म िनिहत िकसी शिक्त का पर्योग करते हुए उस कायर्वाही
से सम्ब सभी जानकारी का या उस वणर्न की जानकारी का, जो पर्कािशत की जाती है, पर्काशन स्पष्टत: पर्ितिष कर
देता है;
(ग) जब न्यायालय लोक वस्था अथवा राज्य की सुरक्षा से सम्बिन्धत कारण से चैम्बर म या बन्द कमरे म बैठता
है तब उस कायर्वाही से संब जानकारी का पर्काशन;
(घ) जब जानकारी िकसी ऐसी गुप्त पर्िकर्या, खोज या आिवष्कार के सम्बन्ध म है जो कायर्वाही म िववा क है ।
(2) उपधारा (1) म अन्तिवष्ट उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, कोई भी िक्त चैम्बर म या बन्द कमरे म बैठे हुए
न्यायालय ारा िदए गए सम्पूणर् आदेश या उसके िकसी भाग का मूल पाठ या उिचत और सही सारांश पर्कािशत करने से न्यायालय
3

अवमान का दोषी न होगा जब तक िक न्यायालय ने लोक-नीित के आधार पर, या लोक वस्था अथवा राज्य की सुरक्षा से संब
कारण से, या इस आधार पर िक उसम गुप्त पर्िकर्या, खोज या आिवष्कार से संबंिधत जानकारी अन्तिवष्ट है, या अपने म िनिहत िकसी
शिक्त का पर्योग करते हुए, उसका पर्काशन स्पष्टत: पर्ितिष नह कर िदया है ।
8. अन्य पर्ितवाद पर कोई पर्भाव न होना—इस अिधिनयम म अन्तिवष्ट िकसी भी बात का यह अथर् न लगाया जाएगा िक
उसम यह िवविक्षत है िक कोई अन्य ऐसा पर्ितवाद जो न्यायालय अवमान की िकन्ह कायर्वािहय म िविधमान्य पर्ितवाद होता, के वल
इस अिधिनयम के उपबन्ध के कारण ही उपलभ्य नह रहा है ।
9. अिधिनयम ारा, अवमान की पिरिध का बढ़ाना, िवविक्षत न होना—इस अिधिनयम म अन्तिवष्ट िकसी भी बात का यह
अथर् न लगाया जाएगा िक उसम यह िवविक्षत है िक कोई ऐसी अवज्ञा या ऐसा भंग, पर्काशन या अन्य कायर् जो इस अिधिनयम से
अन्यथा न्यायालय अवमान के रूप म दण्डनीय न होता ऐसे दण्डनीय है ।
10. अधीनस्थ न्यायालय के अवमान के िलए दिण्डत करने की उच्च न्यायालय की शिक्त—पर्त्येक उच्च न्यायालय को उपने
अधीनस्थ न्यायालय के अवमान के बारे म वही अिधकािरता, शिक्तयां और पर्ािधकार पर्ाप्त ह गे और वह उसी पर्िकर्या और प ित के
अनुसार उनका पर्योग करे गा जैसे उसे स्वयं अपने अवमान के बारे म पर्ाप्त ह और िजसके अनुसार वह उनका पर्योग करता है :
परन्तु कोई भी उच्च न्यायालय अपने अधीनस्था न्यायालय के बारे म िकए गए अिभकिथत अवमान का संज्ञान नह करे गा
जबिक वह अवमान भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अधीन दण्डनीय अपराध है ।
11. अिधकािरता के बाहर िकए गए अपराध या पाए गए अपरािधय का िवचारण करने की उच्च न्यायालय की शिक्त—
उच्च न्यायालय को अपने या अपने अधीनस्थ िकसी न्यायालय के अवमान की जांच करने और उसका िवचारण करने की अिधकािरता
होगी चाहे ऐसे अवमान का उसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िकया जाना अिभकिथत हो या बाहर और चाहे वह
िक्त जो अवमान का दोषी अिभकिथत है ऐसी सीमा के भीतर हो या बाहर ।
12. न्यायालय अवमान के िलए दण्ड—(1) इस अिधिनयम या िकसी अन्य िविध म अिभ क्त रूप से जैसा अन्यथा
उपबिन्धत है उसके िसवाय न्यायालय अवमान सादे कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दो
हजार रुपए तक का हो सके गा, अथवा दोन से दिण्डत िकया जा सके गा :
परन्तु न्यायालय को समाधानपर्द रूप से माफी मांगे जाने पर अिभयुक्त को उन्मोिचत िकया जा सके गा या अिधिनण त दण्ड
का पिरहार िकया जा सके गा ।
स्पष्टीकरण—कोई भी माफी, जो अिभयुक्त ने सद्भावपूवर्क मांगी है, के वल इस आधार पर नामंजूर नह की जाएगी िक वह
सापेक्ष अथवा सशतर् है ।
(2) तत्समय पर्वृ िकसी िविध म िकसी बात के होते हुए भी कोई न्यायालय चाहे अपने या अपने अधीनस्थ िकसी न्यायालय
के अवमान के बारे म उपधारा (1) म िविनिदष्ट दण्ड से अिधक दण्ड अिधरोिपत नह करे गा ।
(3) इस धारा म िकसी बात के होते हुए भी, जब कोई िक्त िसिवल अवमान का दोषी पाया जाता है तब यिद न्यायालय यह
समझता है िक जुमार्ने से न्याय का उ ेश्य पूरा नह होगा और कारावास का दण्ड आवश्यक है, तो वह उसे सादे कारावास से दण्डािदष्ट
करने के बजाय यह िनदश देगा िक वह छह मास से अनिधक की इतनी अविध के िलए, िजतनी न्यायालय ठीक समझे, िसिवल कारागार
म िनरु रखा जाए ।
(4) जहां न्यायालय से िकए गए वचनबंध के बारे म न्यायालय अवमान का दोषी पाया गया िक्त, कोई कम्पनी है, वहां
पर्त्येक िक्त जो अवमान के िकए जाने के समय कम्पनी के कारबार के संचालन के िलए कम्पनी का भारसाधक और उसके पर्ित
उ रदायी था, और साथ ही वह कम्पनी भी, अवमान के दोषी समझे जाएंगे और न्यायालय की इजाजत से, दण्ड का पर्वतर्न, पर्त्येक ऐसे
िक्त को िसिवल कारागार म िनरु करके िकया जा सके गा :
परन्तु इस उपधारा की कोई बात िकसी ऐसे िक्त को दण्ड का भागी नह बनाएगी यिद वह सािबत कर देता है िक अवमान
उसकी जानकारी के िबना िकया गया था अथवा उसने उसका िकया जाना िनवािरत करने के िलए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।
(5) उपधारा (4) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां उसम िनिदष्ट न्यायालय अवमान िकसी कम्पनी ारा िकया गया है और
यह सािबत हो जाता है िक वह अवमान कम्पनी के िकसी िनदेशक, पर्बन्धक, सिचव या अन्य अिधकारी की सम्मित अथवा मौनानुकूलता
से िकया गया है या उसकी िकसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा िनदेशक, पर्बन्ध, सिचव या अन्य अिधकारी भी
उस अवमान का दोषी समझा जाएगा और न्यायालय की इजाजत से, दण्ड का पर्वतर्न, उस िनदेशक, पर्बन्धक, सिचव या अन्य
अिधकारी को िसिवल कारागार म िनरु करके िकया जा सके गा ।
स्पि करण—उपधारा (4) और (5) के पर्योजन के िलए,—
(क) “कम्पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभपर्ेत है और उसके अन्तगर्त फमर् या ि य का अन्य संगम भी है; और
(ख) िकसी फमर् के सम्बन्ध म, “िनदेशक” से, उस फमर् का भागीदार अिभपर्ेत है ।
4

1
[13. कितपय मामल म अवमान का दंडनीय न होना—तत्समय पर्वृ िकसी िविध म िकसी बात के होते हुए भी,—
(क) कोई न्यायालय इस अिधिनयम के अधीन न्यायालय अवमान के िलये दंड तब तक अिधरोिपत नह करे गा जब
तक उसका यह समाधान नह हो जाता है िक अवमान ऐसी पर्कृ ित का है िक वह न्याय के सम्यक् अनुकर्म म पयार्प्त हस्तक्षेप
करता है, या उसकी पर्वृि पयार्प्त हस्तक्षेप करने की है;
(ख) न्यायालय, न्यायालय अवमान के िलए िकसी कायर्वाही म, िकसी िविधमान्य पर्ितरक्षा के रूप म सत्य ारा
न्यायानुमत की अनुज्ञा दे सके गा यिद उसका यह समाधान हो जाता है िक वह लोकिहत म है और उक्त पर्ितरक्षा का आशर्य
लेने के िलए अनुरोध सद्भािवक है ।]
14. जहां अवमान उच्चतम न्यायालय या िकसी उच्च न्यायालय के सन्मुख है वहां पर्िकर्या—जब यह अिभकिथत िकया जाता
है या उच्चतम या उच्च न्यायालय को अपने अवलोकन पर यह पर्तीत होता है िक कोई िक्त उसकी उपिस्थित म या उसके सुनते हुए
िकए गए अवमान का दोषी है तब वह न्यायालय ऐसे िक्त को अिभरक्षा म िनरु करा सके गा और न्यायालय के उठने से पूवर्उ सी
िदन िकसी भी समय या उसके पश्चात् यथासम्भवशीघर्—
(क) उसे उस अवमान की िलिखत जानकारी कराएगा िजसका उस पर आरोप है;
(ख) उसे आरोप का पर्ितवाद करने का अवसर देना;
(ग) ऐसा सा य लेने के पश्चात् जो आवश्यक हो या जो ऐसे िक्त ारा िदया जाए और उस िक्त को सुनने के
पश्चात्, चाहे तत्काल या स्थगन के पश्चात्, आरोप के मामले का अवधारण करने के िलए अगर्सर होगा; और
(घ) ऐसे िक्त को दिण्डत करने या उन्मोिचत करने का ऐसा आदेश करे गा जो न्यायसंगत हो ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां कोई िक्त िजस पर उस उपधारा के अधीन अवमान का आरोप लगाया
गया है, चाहे मौिखक रूप से या िलिखत रूप से, आवेदन करता है िक उसके िवरु आरोप का िवचारण उस न्यायाधीश या उन
न्यायाधीश से, िजसकी या िजनकी उपिस्थित म या िजसके या िजनके सुनते हुए अपराध का िकया जाना अिभकिथत है, िभ िकसी
न्यायाधीश ारा िकया जाए और न्यायालय की राय है िक ऐसा करना साध्य है और आवेदन को उिचत न्याय पर्शासन के िहत म मंजूर
िकया जाना चािहए तो वह उस मामले को, मामले के तथ्य के कथन सिहत मुख्य न्यायमूित के समक्ष ऐसे िनदेश के िलए रखवाएगा
िजन्ह वह उसके िवचारण की बाबत जारी करना ठीक समझे ।
(3) िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, उस िक्त के , िजस पर उपधारा (1) के अधीन अवमान का आरोप है,
उस िवचारण म जो उपधारा (2) के अधीन िदए गए िनदेश के अनुसरण म उस न्यायाधीश या उन न्यायाधीश से, िजसकी या िजनकी
उपिस्थित म या िजसके या िजनके सुनते हुए अपराध का िकया जाना अिभकिथत है, िभ िकसी न्यायाधीश ारा िकया जाता है, यह
आवश्यक न होगा िक वह न्यायाधीश या वे न्यायाधीश िजसकी या िजनकी उपिस्थित म या िजसके या िजनके सुनते हुए अपराध का
िकया जाना अिभकिथत है, साक्षी के रूप म उपिस्थत हो या उपिस्थत ह और उपधारा (2) के अधीन मुख्य न्यायमूित के समक्ष रखा
गया कथन मामल म सा य माना जाएगा ।
(4) न्यायालय िनदेश दे सके गा िक वह िक्त िजस पर इस धारा के अधीन अवमान का आरोप है आरोप का अवधारण होने
तक ऐसी अिभरक्षा म िनरु रखा जाएगा जैसी वह न्यायालय िविनिदष्ट करे :
परन्तु यिद पर्ितभु सिहत या रिहत बन्धपतर् िनष्पािदत कर िदया जाता है जो उतनी रकम का है िजतनी न्यायालय पयार्प्त
समझता है और िजसम यह शतर् है िक वह िक्त िजस पर आरोप है, बन्धपतर् म विणत समय और स्थान पर हािजर होगा और जब तक
न्यायालय ारा अन्यथा िनदेश नह दे िदया जाता ऐसे हािजर होता रहेगा तो उसे जमानत पर छोङ िदया जाएगा :
परन्तु यह और िक यिद न्यायालय ठीक समझता है तो ऐसे िक्त से जमानत लेने के बजाय उसकी यथापूव क्त हािजरी के
िलए पर्ितभु के िबना उसके ारा बन्धपतर् िनष्पािदत िकए जाने पर उसे उन्मोिचत कर सके गा ।
15. अन्य दशा म आपरािधक अवमान का संज्ञान—(1) धारा 14 म िनिदष्ट अवमान से िभ आपरािधक अवमान की दशा
म, उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय या तो स्वपर्ेरणा से या—
(क) महािधवक्ता के , अथवा
(ख) महािधवक्ता की िलिखत सम्मित से िकसी अन्य िक्त के , 2[अथवा]
2
[(ग) िदल्ली संघ राज्यक्षेतर् के उच्च न्यायालय के सम्बन्ध म, ऐसे िविध अिधकारी के , िजसे के न्दर्ीय सरकार,
राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे , या ऐसे िविध अिधकारी की िलिखत सम्मित से िकसी अन्य
िक्त के ,]
समावेदन पर कारर् वाई कर सके गा ।

1
2006 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 2 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
5

(2) िकसी अधीनस्थ न्यायालय के आपरािधक अवमान की दशा म उच्च न्यायालय, उस अधीनस्थ न्यायालय ारा िकए गए
िनदश पर या महािधवक्ता ारा, या िकसी संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म, ऐसे िविध अिधकारी ारा, िजसे के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म
अिधसूचना ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे , िकए गए समावेदन पर कारर् वाई कर सके गा ।
(3) इस धारा के अधीन िकए गए पर्त्येक समावेदन या िनदश म वह अवमान िविनिदष्ट होगा िजसका िक वह िक्त, िजस
पर आरोप है, दोषी अिभकिथत है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “महािधवक्ता” पद से अिभपर्ेत है—
(क) उच्चतम न्यायालय के सम्बन्ध म, महान्यायवादी या महासािलिसटर; तथा
(ख) उच्च न्यायालय के सम्बन्ध म राज्य का या उन राज्य म से िकसी का िजनके िलए उच्च न्यायालय स्थािपत
िकया गया है महािधवक्ता; तथा
(ग) न्याियक आयुक्त के न्यायालय के संबंध म ऐसा िविध अिधकारी िजसे के न्दर्ीय सरकार राजपतर् म अिधसूचना
ारा, इस िनिम िविनिदष्ट करे ।
16. न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या न्याियकत: कायर् करने वाले अन्य िक्त ारा अवमान—(1) तत्समय पर्वृ िकसी िविध के
उपबन्ध के अधीन रहते हुए कोई न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या न्याियकत: कायर् करने वाला अन्य िक्त भी अपने न्यायालय के या िकसी
अन्य न्यायालय के अवमान के िलए उसी रीित से दण्डनीय होगा िजससे कोई अन्य िक्त होता है, और इस अिधिनयम के उपबन्ध,
यावत्शक्य तद्नुसार लागू ह गे ।
(2) इस धारा की कोई बात िकसी न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या न्याियकत: कायर् करने वाले अन्य िक्त ारा, िकसी अधीनस्थ
न्यायालय के आदेश या िनणर्य के िवरु उस न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या अन्य िक्त के समक्ष लिम्बत िकसी अपील अथवा पुनरीक्षण म
उस अधीनस्थ न्यायालय की बाबत की गई िकन्ह समुिक्तय या िटप्पण को लागू नह होगी ।
17. संज्ञान के पश्चात् पर्िकर्या—(1) धारा 15 के अधीन पर्त्येक कायर्वाही की सूचना की तामील उस िक्त पर, िजस पर
आरोप है, वैयिक्तक रूप से की जाएगी जब तक िक न्यायालय, ऐसे कारण से जो अिभिलिखत िकए जाएंगे, अन्यथा िनदेश न दे ।
(2) सूचना के साथ िनम्निलिखत ह गे—
(क) िकसी समावेदन पर पर्ारम्भ की गई कायर्वाही की दशा म, समावेदन की पर्ितिलिप तथा उन शपथपतर् की भी
पर्ितिलिपयां, यिद कोई ह , िजन पर ऐसा समावेदन आधािरत है; तथा
(ख) िकसी अधीनस्थ न्यायालय ारा िकए गए िनदश पर पर्ारम्भ की गई कायर्वाही की दशा म, उस िनदश
की पर्ितिलिप ।
(3) यिद न्यायालय का समाधान हो जाता है िक उस िक्त के , िजस पर धारा 15 के अधीन आरोप ह, सूचना की तामील से
बचने के िलए फरार होने या िछप जाने की सम्भावना है तो वह उसकी उतने मूल्य या रकम की सम्पि की, जो वह न्यायालय
युिक्तयुक्त समझे, कु क का आदेश कर सके गा ।
(4) उपधारा (3) के अधीन पर्त्येक कु क िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) म धन के संदाय की िडकर्ी के िनष्पादन
म सम्पि की कु क के िलए उपबिन्धत रीित से िकर्यािन्वत की जाएगी और यिद ऐसी कु क के पश्चात्, आरोिपत िक्त उपिस्थत हो
जाता है और न्यायालय को समाधानपर्द रूप से दिशत कर देता है िक वह सूचना की तामील से बचने के िलए फरार नह हुआ था या
िछपा नह था तो न्यायालय खच के बारे म या अन्यथा ऐसे िनबन्धन पर, जैसे वह ठीक समझे, उसकी सम्पि को कु क से िनम िचत
करने का आदेश देगा ।
(5) कोई िक्त िजस पर धारा 15 के अधीन अवमान का आरोप है अपने पर्ितवाद के समथर्न म शपथपतर् फाइल कर सके गा,
और न्यायालय या तो फाइल िकए गए शपथपतर् पर या ऐसा अितिरक्त सा य लेने के पश्चात्, जैसा आवश्यक हो, आरोप के िवषय को
अवधािरत कर सके गा और ऐसा आदेश पािरत कर सके गा जैसा मामले म न्याय के िलए अपेिक्षत हो ।
18. आपरािधक अवमान के मामल की सुनवाई न्यायपीठ ारा िकया जाना—(1) धारा 15 के अधीन के आपरािधक
अवमान के पर्त्येक मामले की सुनवाई और अवधारण कम से कम दो न्यायाधीश की न्यायपीठ ारा िकया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) न्याियक आयुक्त के न्यायालय को लागू न होगी ।
19. अपील—(1) अवमान के िलए दिण्डत करने की अपने अिधकािरता के पर्योग म उच्च न्यायालय के िकसी आदेश या
िविनश्चय की सािधकार अपील—
(क) यिद आदेश या िविन य एकल न्यायाधीश का है, तो न्यायालय के कम से कम दो न्यायाधीश की न्यायपीठ
को होगी ;
(ख) यिद आदेश या िविन य न्यायपीठ का है, तो उच्चतम न्यायालय को होगी :
6

परन्तु यिद आदेश या िविन य िकसी संघ राज्यक्षेतर् के िकसी न्याियक आयुक्त के न्यायालय का है तो ऐसी अपील उच्चतम
न्यायालय को होगी ।
(2) िकसी अपील के लिम्बत रहने पर, अपील न्यायालय आदेश दे सके गा िक—
(क) उस दण्ड या आदेश का िनष्पादन, िजसके िवरु अपील की गई है, िनलिम्बत कर िदया जाए;
(ख) यिद अपीलाथ पिररोध म है तो वह जमानत पर छोड़ िदया जाए; और
(ग) अपील की सुनवाई इस बात के होते हुए भी की जाए िक अपीलाथ ने अपने अवमान का माजर्न नह िकया है ।
(3) यिद िकसी आदेश से, िजसके िवरु अपील फाइल जा सकती है, िथत कोई िक्त उच्च न्यायालय का समाधान कर
देता है िक वह अपील करने का आशय रखता है तो उच्च न्यायालय उपधारा (2) ारा पर्द सभी शिक्तय का या उनम से िकन्ह का
पर्योग भी कर सके गा ।
(4) उपधारा (1) के अधीन अपील, उस आदेश की तारीख से िजसके िवरु अपील की जाती है,—
(क) उच्च न्यायालय की िकसी न्यायपीठ को अपील की दशा म, तीस िदन के भीतर की जाएगी;
(ख) उच्चतम न्यायालय को अपील की दशा म, साठ िदन के भीतर की जाएगी ।
20. अवमान के िलए कायर्वािहयां करने की पिरसीमा—कोई न्यायालय अवमान के िलए कायर्वािहयां, यो तो स्वयं स्वपर्ेरणा
पर या अन्यथा, उस तारीख से, िजसको अवमान का िकया जाना अिभकिथत है, एक वषर् की अविध के अवसान के पश्चात् पर्ारम्भ नह
करे गा ।
21. अिधिनयम का न्याय पंचायत या अन्य गर्ाम न्यायालय को लागू न होना—इस अिधिनयम की कोई भी बात न्याय
पर्शासन के िलए िकसी िविध के अधीन स्थािपत न्याय पंचायत या अन्य गर्ाम न्यायालय के , चाहे वे िकसी भी नाम से ज्ञात ह ,
अवमान को लागू नह होगी ।
22. अिधिनयम का अवमान से सम्बिन्धत अन्य िविधय के अितिरक्त होना, न िक उनका अल्पीकारक—इस अिधिनयम के
उपबन्ध, न्यायालय के अवमान से सम्बिन्धत िकसी अन्य िविध के उपबन्ध के अितिरक्त ह गे, न िक उनके अल्पीकारक ।
23. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की िनयम बनाने की शिक्त—यथािस्थित, उच्चतम न्यायालय या कोई उच्च
न्यायालय िकसी ऐसे िवषय का उपबन्ध करने के िलए जो उसकी पर्िकर्या से सम्बिन्धत हो, ऐसे िनयम बना सके गा जो इस अिधिनयम के
उपबन्ध से असंगत न हो ।
24. िनरसन—न्यायालय अवमान अिधिनयम, 1952 (1952 का 32) एतद् ारा िनरिसत िकया जाता है ।

______

You might also like