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शिरीष के फूल PDF
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िनबंध
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िशर ष के फूल अंधकार से जूझना है
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हजार साद वेद अशोक के फूल
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आम फर बौरा गए
जहाँ बैठके यह लेख िलख रहा हूँ उसके आगे पीछे , दाएँ-बाएँ, िशर ष के अनेक पेड़ ह। जेठ क जलती धूप म, कुटज
घर जोड़ने क माया
जब क ध र ी िनधूम अ नकुंड बनी हु ई थी, िशर ष नीचे से ऊपर तक फूल से लद गया था। कम फूल इस कार
दे वदा
क गम म फूल सकने क ह मत करते ह। क णकार और आर वध (अमलतास) क बात म भूल नह ं रहा हूँ ।
नाखून य बढ़ते ह?
वे भी आसपास बहु त ह। ले कन िशर ष के साथ आर वध क तुलना नह ं क जा सकती। वह पं ह बीस दन के
भी म को मा नह ं
िलए फूलता है , वसंत ऋतु के पलाश क भाँित। कबीरदास को इस तरह पं ह दन के िलए लहक उठना पसंद
कया गया
नह ं था। यह भी या क दस दन फूले और फर खंखड़-के-खंखड़ - ' दन दस फूला फूिलके खंखड़ भया पलास'।
वषा : घनपित से
ऐसे दुमदार से तो लँडूरे भरे । फूल है िशर ष। वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है , आषाढ़ तक तो िन त
घन यागम तक
प से म त बना रहता है । मन रम गया तो भरे वाद म भी िनघात फूलता रहता है । जब उमस से ाण उबलता
िशर ष के फूल
रहता है और लू से दय सूखता रहता है , एकमा िशर ष कालजयी अवधूत क भाँित जीवन क अजेयता का अ य
मं चार करता रहता है । य प क वय क भाँित हर फूल प ते को दे खकर मु ध होने लायक दय वधाता ने नाखून य बढ़ते ह?
नह ं दया है , पर िनतांत ठूँ ठ भी नह ं हँू । िशर ष के पु प मेरे मानस म थोड़ा ह लोल ज र पैदा करते ह।
िशर ष के वृ बड़े और छायादार होते ह। पुराने भारत का रईस? जन मंगल जनक वृ को अपनी वृ
वा टका क चहारद वार के पास लगाया करता था, उनम एक िशर ष भी है (वृह सं हता, 55। 3)। अशोक,
अ र ट, पु नाग और िशर ष के छायादार और धनमसृण हर ितमा से प रवे त वृ -वा टका ज र बड़ मनोहर
दखती होगी। वा यायन ने 'कामसू ' म बताया है क वा टका के सघन छायादार वृ क छाया म ह झूला
( खा दोला) लगाया जाना चा हए। य प पुराने क व बकुल के पेड़ म ऐसी दोलाओं को लगा दे खना चाहते थे, पर
िशर ष भी या बुरा है । डाल इसक अपे ाकृ त कमजोर ज र होती है , पर उसम झूलनेवािलय का वजन भी तो
बहु त यादा नह ं होता। क वय क यह तो बुर आदत है क वजन का एकदम याल नह ं करते। म तुं दल
नरपितय क बात नह ं कर रहा हूँ , वे चाह तो लोहे का पेड़ बनवा ल।
िशर ष का फूल सं कृ त-सा ह य म बहुत कोमल माना गया है । मेरा अनुमान है क कािलदास ने यह बात
शु -शु म चार क होगी। उनका इस पु प पर कुछ प पात था (मेरा भी है )। कह गए ह, िशर ष पु प केवल
भौर के पद का कोमल दबाव सहन कर सकता है , प य का ब कुल नह ं - 'पदं सहे त मर य पेलवं िशर ष
पु पं न पुनः पत णाम ्।' अब म इतने बड़े क व क बात का वरोध कैसे क ँ ? िसफ वरोध करने क ह मत न
होती तो भी कुछ कम बुरा नह ं था, यहाँ तो इ छा भी नह ं है । खैर, म दूसर बात कह रहा था। िशर ष के फूल
क कोमलता दे खकर परवत क वय ने समझा क उसका सब-कुछ कोमल है । यह भूल है । इसके फल इतने
मजबूत होते ह क नए फूल के िनकल आने पर भी थान नह ं छोड़ते। जब तक नए फल-प े िमलकर
ध कयाकर उ ह बाहर नह ं कर दे ते तब तक वे डटे रहते ह। वसंत के आगमन के समय जब सार वन थली पु प
प न से मम रत होती रहती है , िशर ष के पुराने फल बुर तरह खड़खड़ाते रहते है । मुझे इनको दे खकर उन नेताओं
क बात याद आती है , जो कसी कार जमाने का ख नह ं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उ ह
ध का मारकर िनकाल नह ं दे ते तब तक जमे रहते ह।
म सोचता हूँ क पुराने क यह अिधकार िल सा य नह ं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृ यु,
ये दोन ह जगत ् के अितप रिचत और अित ामा णक स य ह। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनक सचाई पर
मुहर लगाई थी - 'धरा को मान यह तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना।' म िशर ष के फल को
शीष पर
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1 of 3 06-10-2020, 12:21 pm
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सपासाप कोड़े चला रहे ह, जीण और दुबल झड़ रहे ह, जनम ाणकण थोड़ा भी ऊ वमुखी है , वे टक जाते है ।
दुरंत ाणधारा और सव यापक काला न का संघष िनरं तर चल रहा है । मूख समझते ह क जहाँ बने ह वह ं दे र
तक बने रह तो कालदे वता क आँख बचा जाएँगे। भोले ह वे। हलते-बुलते रहो, थान बदलते रहो, आगे क और
मुँह कए रहो तो कोड़े क मार से बच भी सकते हो। जमे क मरे ।
न वा शर चं मर िचकोमलं
िशर षत सचमुच प के अवधूत क भाँित मेरे मन म ऐसी तरं ग जगा दे ता है जो ऊपर क ओर उठती
रहती ह। इस िचलकती धूप म इतना सरस वह कैसे बना रहता है ? या ये बा प रवतन धूप, वषा, आँधी, लू -
अपने आपम स य नह ं ह? हमारे दे श के ऊपर से जो यह मार-काट, अ नदाह, लूट पाट, खून-ख चर का बवंडर
बह गया है , उसके भीतर भी या थर रहा जा सकता है ? िशर ष रह सका है । अपने दे श का एक बूढ़ा रह सका
था। य मेरा मन पूछता है क ऐसा य संभव हु आ? य क िशर ष भी अवधूत है । िशर ष वायुमंडल से रस
खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है । गांधी भी वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर
हो सका था। म जब-जब िशर ष क ओर दे खता हूँ तब तब हूक उठती है 'हाय, वह अवधूत आज कहाँ है ।
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बाल सा ह य व वध सम -संचयन अनुवाद हमारे रचनाकार हं द लेखक पुरानी व वशे षांक खोज
संपक व व ालय
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3 of 3 06-10-2020, 12:21 pm