Professional Documents
Culture Documents
६. प्राचीन-भारतीय-वैज्ञानिकाः
६. प्राचीन-भारतीय-वैज्ञानिकाः
६. प्राचीन-भारतीय-वैज्ञानिकाः
प्राचीन-भारतीय-वैज्ञाननकााः
पाठ पररचय : हमारा दे श वैज्ञानिको का दे श कहलाता है । यहााँ चिककत्सा, ज्योनतष, गणित, ववज्ञाि,
विस्पनत आदद क्षेत्रो में अतल
ु िीय योगदाि दे िे वाले ववख्यात वैज्ञानिक हुए है ।
ववद्यद्
ु उत्पन्िा भवनत इनत महवषयः अगस्त्यः भलणितवाि ्|
िेतिः - महोद्य! वदतु कृपया, अस्माकां भारते गणितववषये अन्यत ् ककां प्रमि
ु ां काययम ्
अभवत ्?
आिाययः - प्रािीिः भारतीयः महाि गणितज्ञः आययभट्टः प्रकाशस्य गनतां सम्यक् जािानत स्म|
पथ्
ृ वीगोलाकारा अस्स्त| पथ्
ृ वी स्व अक्षे भ्रमनत, तेि एव ददवारात्री भवतः| पथ्
ृ वी
सय
ू स्
य य पररिमाां करोनत, तेि एव षड् ऋतवः भवस्न्त| सप्ताहे ददिािाां िमः,
प्रकाशस्य गनतः, कालगििा, िगोलववज्ञािां, त्रत्रकोिभमनत इत्याददषु क्षेत्रष
े ु आिाययः
आययभट्टः बहुकायं कृतवाि ्|
आददत्यः - आिायय! ककां भास्करः अवप गणित-ववषये
कायं कृतवाि ्?
आिाययः - आम ्! गरु
ु त्वाकषयिभसध्दान्तां (पै) इनत
गणित-चिह्रस्यमािां त्रैराभशक-नियमादीि ्
भास्करािाययः प्रनतपाददतवाि ्|
आिाययः - वानभट्टे ि| असौ वानभट्टः रिस्तम्भपरु स्य (रिथम्भौरः) धीर-वीरः हम्मीरस्य वपतामहः
आसीत ्|
आददत्यः - राजस्थािस्य िगोलशास्त्री, ज्योनतषािाययः कः आसीत ्?
हिन्दी अनव
ु ाद :
(ववद्यालय में आिायय तथा छात्रों के बीि वैज्ञानिको के ववषय में ििाय हो रही है ।)
जया - महोद्य ! विस्पनत-ववज्ञाि के ववषय में भारत में क्या कायय हुआ है ?
आिायय - अवश्य ही था। तााँबे के तार (छड़), जस्ते की छड़, कोयला, पारा आदद के सांयोग से
ववद्यत
ु ् उत्पन्ि होती है , ऐसा महवषय अगस्त्य िे भलिा है ।
िेति - महोद्य ! कृपया बताइए, हमारे भारत में गणित-ववषय में अन्य क्या प्रमि
ु कायय
हुआ है ?
आिायय - प्रािीि भारतीय महाि ् गणितज्ञ आययभट्ट प्रकाश की गनत को अच्छी प्रकार से
जािते थे। पथ्
ृ वी गोलाकार है । पथ्
ृ वी अपिी धुरी (अक्ष) पर र्म
ू ती है , उसी से
ददि-रात होते हैं। पथ्
ृ वी सय
ू य की पररिमा करती है , उसी से छः ऋतए
ु ाँ होती हैं।
सप्ताह में ददिों का िम, प्रकाश की गनत, काल-गििा, िगोल-ववज्ञाि,
त्रत्रकोिभमनत आदद क्षेत्रों में आिायय आययभट्ट िे बहुत कायय ककया है ।
आिायय - वानभट्ट िे। यह वानभट्ट रिथम्भौर के धीर-वीर राजा हम्मीर के दादा थे।
आददत्य - राजस्थाि के िगोलशास्त्री और
ज्योनतषािायय कौि थे ?
शब्दार्थाः
अभ्यासाः
गम ् गतः गतवाि ्
हस ् हभसतः हभसतवाि ्
(र्) सश्र
ु ुतः - शल्यकिया
(क) वक्ष
ृ ायव
ु ेदग्रन्थस्य रिनयता कः ?
(ि) शल्
ु वसत्र
ू ां केि रचितम ् ?
उत्तरम ् : बोधायिेि।
(ङ) गरु
ु त्वाकषयिभसद्धान्तां कः प्रनतपाददतवाि ् ?
उत्तरम ् : भास्करािाययः।
(ग) "पथ्
ृ वी सय
ू स्
य य पररिमाां करोनत" इनत भसद्धान्तां कः प्रनतपाददतवाि ् ?
वस्तनु नष्ठप्रश्नााः
2) "वक्ष
ृ ायव
ु ेदः" इनत ग्रन्थः कः भलणितवाि ् ?
(क) पराशरः
(ि) भास्कर
(ग) आययभट्ट
(र्) िरक
(क) षड्
(ि) पचि
(ग) नतस्रः
(र्) ितस्रः
(क) हम्मीरस्यः
(ग) पथ्
ृ वीराज िौहािः
5) शल्यकियायाः जिकः कः ?
(क) आययभट्टः
(ि) पराशरः
(ग) बािभट्टः
(र्) ब्र्मभट्टः
योग्यता-ववस्ताराः
पाठ-ववस्तारः
भाषा ववस्तार :
सर्ास
पररभाषा : दो या दो से अचधक पदो को भमलािे या जोड़िे को समास कहते है । समास करते समय
पव
ू य शब्द की ववभस्क्त हिा दी जाती है तथा अन्त मे ववभस्क्त रहती है । समस्त पद को अलग-अलग
करिे को समास ववग्रह कहते है । समास के छः प्रकार होते है ।
१) अव्ययीभाव
२) तत्परु
ु ष
३) द्वन्ध्व
४) कमयधारय
५) द्ववगु
६) बहुव्रीदहां
२) तत्परु
ु ष : इसमें दोिों शब्दों के बीि की ववभस्क्त का लोप हो जाता है और पहला शब्द दस
ू रे शब्द
की ववशेषता बतलाता है ।
जैसे - राज्ञः पत्र
ु ः (राजा का पत्र
ु ) - राजपत्र
ु ः
विे वासः (वि में वास) - विवासः
पथात ् भ्रष्िः (पथ से भ्रष्ि) – पथभ्रष्िः
६) बिुव्रीहि सर्ास : स्जस समास में अन्य पद के अथय की प्रधािता होती है उसे बहुव्रीदह समास कहते
है ।
जैसे - ति
ृ जल सन्तोष ववदहतवत्ृ तीिाम ् - ति
ृ ैः जलैः
सन्तोषैः ववदहता वस्ृ त्तः येषाां ते (बहुव्रीदह)
सक
ु ृ नतिः - सक
ु ृ तां आस्स्त येषाां ते (बहुव्रीदह)