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ी सशील

ु कमार
ु गु ा डॉ.अिमत सहगल डॉ. ाची दवेरी डॉ. नीतू शमा डॉ. अवनीश कमार
ु डॉ. मक
ु ु द माधव िम
(कायवाहक शासिनक अिधकारी)
ी एस. एन. साद सु ी िच शमा डॉ. िवजय कमार
ु िम ी अजीत कमार
ु डॉ. फ़रहत जहां

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िव ािथय क रचना मकता को सही िदशा दनेे क ि से कॉलेज क इस वष 'हस' ं अपने परपरागत
ं व प और
वािषक पि का का योगदान सविविदत ह।ै हसराज
ं कॉलेज क वािषक ढाँचे के मल ू व प को बरकरार रखते हए नए
पि का 'हस'
ं िवगत वष म अनेकानेक िव ािथय क रचनाओ ं के काशन कलेवर म आपके सामने ततु ह।ै इसके िलए
का मह वपणू मचं रही ह।ै 'हस'
ं म अपनी रचनाएँ कािशत करवाने म अपना मह वपणू योगदान दनेे वाले सपादन ं
सफल रहे कई िव ाथ सािह य, मीिडया, िसनेमा आिद े म आज मडल
ं के सभी सद य को म दय से बधाई
उ कृ दशन करते हए कॉलेज का नाम रौशन कर रहे ह। अपने दतेी ह।ँ मझु े पराू िव ास है िक आप सबको
िव ािथय क सजनाृ मक मता को िनखारने के येय से ित वष हम भी उनके ये यास और िव ािथय क
अपनी वािषक-पि का 'हस' ं का काशन करते ह। रचना मक अिभ यि याँ भािवत करगी। म
इस वष के 'हस' ं म शािमल सभी िव ािथय
इस पि का म हम सािहि यक रचनाओ ं के साथ ही िच कला और दसरी
ू क रचना मकता क सराहना करते हए उनके
कला मक िवधाओ ं को भी उपयु थान दक े र अपने िव ािथय क उ वल भिव य क कामना करती ह।ँ
कला मक िच और ितभा के प र कार का यास करते ह।
Editorial

Dr. Amit Sehgal


Convener, Editorial Board

Over the years, our college magazine, Hans, has served as putting this magazine together. My
a platform for the students, faculty and staff of Hansraj special thanks to the student editors
College to showcase their immense talent and express Ujjwal Parashar, Areeb Ahmad, Suyash
their thoughts, feelings and insights about the world Dixit, Nitesh Yadav, Rajeev Ranjan
around them. It has provided a space for students and Yadav, Rahul Kumar and their entire
faculty to communicate with each other across team. You all did a great job! I would
departments and beyond the confines of the classroom. also like to thank the students of
Kalakriti, the fine arts society, and
This editorial board has tried to present to you the best
Pixels, the photography society, who
talent that Hansraj has to offer in diverse fields and diverse
have contributed generously to
creative forms such as poetry, prose, photography and
embellish the magazine with sketches,
painting. The multilingual nature of the magazine is a
paintings and images. Last, but not
testament to the diversity of the student and teaching
least, I would like to express immense
community of Hansraj College. Collecting inputs, sifting
gratitude to my editorial team and the
through the wide array of contributions and finally
college staff.
designing and printing the magazine has been a
challenging yet rewarding experience. I hope you will enjoy reading this issue
which we have put together with great
Publishing this new issue of Hans would not have been
effort and dedication.
possible without the efforts of students, colleagues and
associates who have contributed to the different stages of
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1 नेक के शॉटकट – डॉ. मकद
ु ुं माधव िम | 6
2 िश ा म िव सनीयता का सवाल – डॉ. नृ यगोपाल शमा | 8
3 शतरज
ं के िखलाड़ी का िसनेमाई पातरण
ं – डॉ. िवजय कमार
ु िम | 9
4 ेम गीत – बजमोहन
ृ व सल | 14
5 इसान
ं भी बाँस नह होता / दय का िव ोह / दीपावली से दीवाली – आिद य रजन
ं | 17
6 आज़ादी मरेे दो त आज़ादी / मरेी िकताब – जावेद जकरै
ु त | 18
7 सकन
ु ू से खड़ा हँ – नीतेश ' ान’ | 19
8 या िलखँू / म ऐसा हो जाता हँ – के शव | 20
9 ऐ िजदगी
ं – सा ी अहलावत | 21
10 मरेा वॉचमने / रोटी – आदश िसहं | 21
11 वासी सािह यकार तेजदर शमा से सा ा कार – सयश
ु दीि त | 22
12 जब तमको
ु दखे ता हँ – हरे तवर
ं | 23
13 उ ही रा त से – शिकत
ं कमार
ु | 23
14 तमु – सिचन शु ला | 24
15 काम करे गा जो - नाम करे गा वो – िगरजाशकर
ं कशवाहा
ु 'कशराज'
ु | 24
16 ल ह / अि त व / अधरीू चादनी
ं – उ कष सोनी | 24
17 बचपन / सोशल मीिडया और मानव – हािदक अ वाल | 25
18 म ढ़कू तो ढकू कहाँ तक – पजा
ू आया | 26
19 मरेी यारी दीदी / मरेे ज बात – स यम | 27
20 फटपाथ
ु – सयश
ु दीि त | 27
21 िव बधं ु व – आिद य रजन
ं | 28
22 िव ास है तमु आओगी – श भू अमलवासी | 29
23 ेरणा – आयषु पा डेय | 29
24 ी शि – हिषत राज ीवा तव | 30
25 िजजीिवषा – ल य आनदं | 31
नेक के शॉटकट
& डॉ. मकद
ु ुं माधव िम
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उदू म नेक कह, िहदी ं म भलाई या िफर अं ेजी म चै रटी, इन श द का हर धम, नाजायज़ तरीक़े से कमाए धन क कोई कमी नह होती। कभी अपने
स दाय और स यता म िवशषे मह व रहा ह।ै कोई भी धािमक थं उठा पाप को कटवाने के िलए, तो कभी इनकम टै स िवभाग को चकमा
लीिजये या 'िव म-बेताल', 'िसहासन ं ब ीसी' और 'पचत ं ं क कहािनया'ं दनेे के िलए, अमीर का पैसा चै रटी म लगता ही रहता ह।ै और अगर
जैसा कोई द तकथा सं ह ले लीिजये, बरेु च र या खलनायक को नायक के इनम से भी कोई वजह नह ह,ै तो भी अहम क पिु करने के िलए, खदु
च र से कछ ु अलग करता है तो वो है उसक नेक । और दरू य जाते ह, को े एवं ई र तु य िदखाने के िलए भी धनवान पैसे तो खच करे गा
राजामौली क क ितमान थािपत करने वाली िफ म बाहबली का नायक भी ही। धनवान क नेक मिदरं म 11 पये का साद नह चढ़ाती, बि क
अपनी नेक के कारण राजग ी का अिधकारी माना गया ह।ै यि गत लाभ को आलीशान मिदर ं ही बनवा दतेी ह।ै उस मिदर
ं के ई र म खदु को पजा

भला ु कर समाज के िवषय म सोचने वाल को े थान दनेे का गु जन का जाता दख े ने का म िकसी भी दसरे
ू नशे से अिधक मादक होता ह।ै
िनणय इस बात को यान म रखते हए िदया जाता है िक मनु य एक सामािजक वना िनदा फ़ाज़ली यंू ही नह कहते
ाणी ह।ै समाज के िबना एकल का कोई अि त व नह होता, और दरदश ू इस ब चा बोला देखकर, मि जद आलीशान
बात को भली भाित ं जानते ह। नेक होने का दावा या िदखावा अपने-अपने तर
पर हर कोई कर लेता ह।ै लेिकन आज से कछ अ लाह तेरे एक को, इतना बड़ा मकान ?
ु समय पहले तक भलाई के काम
अलग-अलग समीकरण से तय होते थे, य िक हर िकसी क अपनी गणना अब वापस आते ह अपने म यमवग य के पास। अगर वो अपनी
होती है और उस गणना के अनसार ु हर भले काम के बदले कछ ु पा सकने क साम य के अनसारु दान करने लगे तो उसके पनीर का बजट डगमगा
अपे ा। न जाने िकतने तरह के फल का लालच दनेे के बाद ही कोई "कम कर, जाता ह,ै और िबना कछ ु खच िकये िकसी क म से या िफ़र के वल
फल क इ छा मत कर" जैसे सवचन ु सनाता ु ह।ै लेिकन कौन सा तबका सबसे मौिखक सहायता करने का समय भी िनकालता है तो घर पहचने ं म दरे
यादा नेक करता था या कर पाता था? आिथक आधार पर समाज के बटवारे ं हो जाएगी, और पनीर ठडा ं हो जाएगा, िचकन बे वाद हो जाएगा। न
को दख े तो म यम वग का िविच ाणी सबसे यादा नेक होते हए भी नेक जाने यँ,ू ई र ने इस बेचारे म यम वग य को अमीर नह बनाया। वो
नह कर पाता था। जहाँ ग़रीब का सारा पु षाथ दो व क रोटी जटाने ु के िलए भी अपने भले मन से खबू भलाई करता। ई र और तकदीर के िसर पर
होता ह,ै अमीर के पास खाने क टेबल पर सब कछ ु होता ह,ै भखू के िसवा। इन चपचाप
ु अपना ठीकरा फोड़ते हए ये भला मानस बोिटयां तोड़ने म
दोन िकनार के बीच अटका हआ हमारा म यम वग, न िसफ दो व क रोटी मश फ हो जाता ह।ै ये िसलिसला आज से १५ साल पहले तक यंू ही
का इतजाम
ं करके चलता है बि क स ाह म एक बार क बोटी, या शाकाहारी है चलता रहा। दिनया
ु म आई इटरने ं ट ाित ं भी हमारे भले मानस के िलए
तो पनीर, भी उसके मनेु म होती ह।ै ये स ाह म एक बार का पनीर म यमवग य कछु नह लेकर आई। बस बेरोजगार बेटे को नए कं यटर ू कोस कराने
लोग के िलए दो व क रोटी से भी यादा मायने रखता ह।ै उसे पता है िक क िज मदेारी बढ़ गयी। और तब म यम वग के िलए जादू का िपटारा
इससे यादा कछ ु कर पाता तो अभी तक िबल गेट् स बन चका ु होता। लेिकन लेकर आया अपना ज़करबगवा।
ु अरे वही फे सबकु वाला! फे सबक ु के
इससे कम म समझौता भी उसे मजर ं ू नह । ग़रीब का या ह,ै वो तो एक िदन और आने से म यम वग के पास नेक करने के शॉटकट आ गए। बस एक
भखाू रह लेता है और अपने साथी क मदद कर दतेा ह,ै या एक िडनर के बदले ि लक और काम ख म। पनीर क कबानी ु िदए िबना एक से बढ़कर
मिदर
ं म चढ़ावा चढ़ा दतेा ह,ै य िक इहलोक क भख ू क पीड़ा को वो परलोक एक भलाई के काम हो जाते ह इस फे सबक ु पर-- " ह ग लगे ना
म साथ नह ले जाना चाहता। वह उ च वग के महानभाव ु के पास जायज़- िफटकरी, रगं भी चोखा होय "। दिेखये न, िकसी बीमार ब ची के िदल

6
म छे द हो तो ित लाइक या शयेर पर कछ ु पैसे उस ब ची के इलाज के िलए कमी नह ह।ै हाटसएप ् पर भगवान ीकृ ण क 20 मगेािप सेल के
माक जकरबग
ु दतेे ह। हम तो भलाई के ठे केदार ह, लाइक और शयेर दोन कर DSLR से ख ची हई फ़ोटो से लेकर अ थामा िवरिचत गीता तक,
दतेे ह तािक ब ची को दोगना ु पैसे िमल। अपने पास से एक ढेला खच नह हआ कसर को जड़ से िमटा सकने वाले घरे लू नु खे से लेकर दिनया ु के
और वहाँ िकसी का मु त म इलाज हो गया। इससे अ छा शॉटकट या हो सबसे बड़े दय िवशषे क सलाह तक और मु त म 50000 पये
सकता था। और तो और, यहाँ पु य कमाने के भी शॉटकट मौजदू ह। बजरगं कमाने के मौके से लेकर बाबा बड़बोलानदं के आशीवाद तक सब
बली या साई ं बाबा क बहत सी ऐसी त वीर लोग ने डाल रखी ह िजनको कछ ु सहज उपल ध ह।ै ये थोड़े से लालची, थोड़े आलसी पर बहत ही
लाइक या शयेर करने से पु य क ाि होती ह।ै जो भी पहली बार ऐसी िकसी नेकिदल वाले मा यम वग के िलए िबलकल ु उपयु साधन िस
त वीर को डालता है उसके पास बजरगं बली न वयं व न म आकर इस बात हआ। हाटसएप ् एक ऐसा शॉटकट है िजससे अपनी िडनर टेबल पर
क पिु क होती ह,ै इसिलए शका ं का तो कोई ही नह उठता। इसी तरह बैठा हआ एक औसत म यम वग य िदन भर क नेक का कोटा पराू
बैठे िबठाए फे सबकु के एक शयेर से िकसी खोये हए ब चे को चटिकय ु म ढढूं कर लेता ह।ै आपाधापी वाले जीवन म स य क परख करने का समय
िलया जाता ह।ै मझु े याद है बचपन म छोटी बहन रा ता भटक गई थी तब परेू िकसके पास ह!ै बस ये नेक वाले सदश ं े एक फोन से दसरेू फोन, एक
गावं के लोग खोजने म जटु गए थे। तब फे सबक ु नह था ना। अब तो फे सबकु पर पु से दसरेू पु म भजेे जाते रहते ह। इ ह भजेने वाले वो ह जो
भलाई करने क ऐसी आदत हो गयी है िक 5 िमनट के एक सेशन म कम से कम होिमयोपैथी म िव ास रखते ह। दवा खा लो, फायदा नह तो कोई
10 भले काम करने होते ह। 2010 म एक चार साल का ब चा गमु हो गया था नकसान
ु भी नह होगा। वैसे ही, मसैेज भजे दो, फायदा नह तो कोई
जो ३ िदन बाद ही माँ-बाप को वापस िमल गया। लेिकन उन तीन िदन म ही नकसान
ु भी नह ह।ै एक बटन दबाने से अगर भलाई करने क अपनी
िकसी शभिचतक
ु ं टेक-सेवी ने फे सबक ु पर ब चे के गमु होने क पो ट बना कर सारी भड़ास िनकल जाती है तो हज़ ही या ह?ै कम से कम हाटसएप ्
डाल दी। सना ु है िपछले साल वो ब चा 11 का हआ तो अपना फे सबक ु क आभासी दिनया ु बाहर क दिनया ु िजतनी ू र नह ह,ै झठी ू ही
ोफाइल बनाने के बाद सबसे पहली नेक के तौर पर उसने खदु के ही गमु होने सही, बनावटी ही सही, यहाँ नेक िज़दा ं ह।ै ये आभासी दिनया
ु एक
वाली पो ट शयेर क । शॉटकट म नेक करने वाल ने उस पो ट को तबतक सघषर ं त म यमवग य के पनीर क थाली म चपके ु से डोपामाइन या
िज़दां रखा था। या कर, यहाँ भी ितयोिगता इतनी बढ़ गयी है िक गमशदा ु ु क आनदं के हॉम न का छ क लगा दतेी है और यही डोपामाइन बेच कर
पो ट कम पड़ती ह। फे सबक ु पर सबकछ ु ठीक ही चल रहा था लेिकन वो मज़ा ज़करबग ु दिनया
ु के सबसे अमीर लोग म शमार ु हो गए। पर हम िजसे
नह आ पा रहा था। एक बार फे सबक ु लॉिगन करो तो ऊपर से नीचे तक ॉल शॉटकट समझते ह वो एक छलावा होता ह,ै या एक झठी ू आस, उनके
के दौरान कछ ु ऐसी भी पो ट नज़र आ जाती थ िजनम िदमाग़ी कसरत करनी िलए जो किठन लबें रा ते पर या तो चलने क िह मत नह जटा ु पाते
पड़ती थी। तक को आधार बनाकर आकड़ ं के साथ कछ ु भी सजीदा
ं िलखा हो या कछ ु दरू चल कर थक चकेु होते ह। सवा पये के साद से ई र को
तो उसे समझने म िकतनी महेनत करनी पड़ती ह।ै इस सब म भलाई का काम तो पा लेने क आस है शॉटकट, एक चरण ू खाकर मृ यु पर िवजय पा लेने
मार खा रहा था। सोचने-समझने और तक करने िजतनी ऊजा कहाँ बची होती है क उ मीद है शॉटकट, बेरोजगारी से जझते ू यवा ु के िलए शहर म
दो रोटी और एक िचकन का इतजाम ं करने के बाद। िफर आया तारणहार, नेक अपना बगला ं बना सकने के िदवा व न ह शॉटकट। लेिकन असल
करने वाल के िलये रामबाण। इसका नाम लोग ने हाटसएप ् िदया था। यहाँ िज़दगी ं म शॉटकट नह हआ करते, न सफलता के , न स प नता के
आने से पहले आप अपना िदमाग़ ताले म बदं करके आ सकते ह। और िफर और न ही नेक के ।
नेक तो िदल से होती ह।ैइसम िदमाग़ का या काम! यहाँ िवक प क कोई

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िश ा म िव सनीयता का सवाल
& डॉ. नृ यगोपाल शमा
अिस टट ोफे सर, िहदी
ं िवभाग, हसराज
ं कॉलेज

ाकलता
ु ान क पहली सीढ़ी ह।ै िश ा का ल य भी िव ाथ को िज ासु पर वाद-िववाद, भाषण, लेख आिद क ितयोिगताएं होती ह। नाटक,
बनाना ह।ै वतमान िश ा प ित म ये कर िज ासा क पड़ताल होनी चािहए। खल े कद,
ू सगीत
ं सफल यि य के या यान, िपकिनक, रा ीय-
हम यह दख े ना होगा िक हम िव सनीय िज ासा उ प न करने म सफल हो रहे ह अ तरा ीय िदवस का आयोजन वै ािनक -राजनेताओ,
या नह ? सकरात
ु लेटो और अर तु म गु िश य सबधं ं िज ासा उ प न करने से सािह यकार या इसी कार क िति त शि सयत पर चचा-
मजबतू हआ था समाधान से नह । ब च और यवाओ ु ं म िज ासा उ प न करने प रचचा का आयोजन िकया जाता ह।ै अ य दश े के साथ आवागमन
से ही हमारी िश ा प ित गभीर ं और जवाबदहे हो सकती ह।ै मौजदू नीित का म भी चल पड़ा ह।ै जािहर है इससे एक ख़ास तरह का िज ासु
िनधारक समाज के अभाव का दोष मक ै ाले क िश ा प ित पर मढ़कर वयं और तािकक समाज खड़ा करने म सहायता िमल रही है अथवा ऐसा
को िज मदेारी से हटा लेना पलायनवादी ि कोण होगा। 1900 से 1950 के समाज खड़ा हो रहा ह।ै इन कल ू म मिहला कमचा रय क सं या
आसपास तक का पाँचव पास िव ाथ िहदी, ं उद,ू अं ेजी और गिणत म उतना पया ह।ै 100 म से एक साड़ी छाटने ं म जो तािकक बिु काय करती
काम करने म स म था िजतना आज का नातक शायद होता हो? ह।ै उसका उपयोग िव ािथय को सू म अ वेशी बनाने म सहायक
वतं ता के प ात् भारत क िश ा यव था म नीितगत और यावहा रक होता ह।ै सू म िववेचन क मता का बहआयामी योग िव ािथय
व प दो िभ न ि य म िवकिसत हआ ह।ै कई िश ा आयोग का गठन हआ के िलए लाभकारी होता ह।ै मिहलाओ ं के िश ा के े म आगमन से
ह।ै 1882 म िश ा के िलए ह टर आयोग गिठत हआ तब से अब तक यापक सकारा मक प रवतन हए ह। इसम बािलकाओ ं क िश ा
राधाकृ ण आयोग, कोठारी आयोग आिद बने। ल बी चौड़ी काययोजना का िच िवशषे उ लेखनीय ह।ै हाँ, एक जगह हम ककर यह भी सोचना
मसौदा हर बार आता रहा। भारत क परपरागत िश ा प ितय – गु कल होगा िक मह वपणू सै ाितक ं अवसर पर ' यश बाँस' और
ं ु
िश ा प ित, याकरणा मक िश ा, य िश ा आिद को व त कर हम 'अनशासन'
ु क ि थित का िव े षण करना होगा। समाज म बढते
मील आगे आये ह। अनैितक आचरण को रोकने के िलए आ मानशासन ु और
समाजानशासन
ु का िचतन
ं आव यक ह। अशोभन यवहार के बहत
'सािह य सगीतं कलािवहीनः सा ात् पशु पु छ िवषाणहीनः' को हमने पीछे से उदाहरण कल ू िव ािथय से आते ह। इसे रोकने के कारगर उपाय
छोड़ा ह।ै 'िव ा ददाित िवनय'ं के उ े य को िनरथक सािबत िकया ह।ै िश क – िशि का वग को खोजने ह गे।
वसं नवीनता क आव यकता ह।ै पर, तिनक ठहरकर यह भी सोचना होगा िक सरकारी कल,ू भौितक साधन का अभाव झल े ते ह और सरकारी
वसं क ि थितयां भी अलग-अलग हो सकती ह। भकपू ं के ारा िकया गया योजनओ ं के ि या वयन का भार झल े ते ह। िश क – िव ाथ
वसं और नए भवन के िलए जजर भवन का वसं एक से नह हो सकते। ितशत के िनयम का पालन छोड़कर िश ा-आयोग या सरकार के
वतमान िश ा म पि लक कल ू यव था िशि काओ ं और समाज के सभी सम त िनदश इ ह वीकार करने होते ह।ै ऐसे म िज ासु िव ािथय
वग के लोग का िश क प म आना बड़े बदलाव ह। का िवकास चनौती
ु ह।ै िश ा यव था को अिधकािधक िव सनीय
पि लक कल ू यथा सभवं भौितक साधन से स प न ह। िव ािथय म बनाए जाने क आव यकता ह।ै
िव सनीय िज ासा के िलए िविभ न कार क गितिविधय का आयोजन
िश ा णाली का अगं बने ह। िव ान मल
े े, िव ान दिशनी समसामियक मु

8
शतरज
ं के िखलाड़ी का िसनेमाई पातरण

& डॉ. िवजय कमार
ु िम
अिस टट ोफे सर, िहदी
ं िवभाग, हसराज
ं कॉलेज

सु िस िफ मकार स यजीत राय ने ेमचदं क कहानी 'शतरज ं के िखलाड़ी' उदासीन शतरजं म मशगलू रहते ह। ये च र ह िमजा स जाद अली
पर इस नाम से एक मह वपणू ऐितहािसक िफ म का िनमाण िकया। िह दी और मीर रौशन अली। कहानी और िफ म के कथानक म िजस च र
सािह य और िसनेमा के े म एक े लेखक और िफ मकार स यजीत के के चलते मल
ू अतर
ं आता है वह है वािजद अली शाह। ेमचदं ने
ारा िह दी सािह य पर बनायी गयी यह पहली िफ म थी। वािजद अली शाह का कहानी के ारभं म लखनऊ के पतनो मख ु यगु
पेर् मचदं क मल और उसक भ सना के िलए और अ त म कै द म बदं वािजद अली
ू कहानी अवध के नवाब वािजद अली शाह का समय और दो
नवाब के बीच शतरज शाह क ि थित का ही वणन िकया ह।ै वे कहानी के ारभ
ं म िलखते
ं के खल े के बीच उभरती ह।ै लखनऊ के नवाब िमरजा
स जाद अली और मीर रोशन अली दोन खाना&पीना भलकर शतरज ह—
ू ं के
खल े म य त रहते ह। उन दोन नवाब क पि नयाँ उनके शतरज ं ेम से परे शान ‘'नवाब वािजद अली शाह का समय थ। लखनऊ िवलािसता के रगं म
रहती ह। इसके साथ ही कहानी म अवध क राजनीितिक दराव ु था का वणन डबा
ू हआ था। छोटे&बड़े, अमीर व गरीब िवलािसता के रगं म डबेू हए
भी होता चलता ह।ै घर म शतरज ं खल े ना मिु कल हो जाने पर दोन गोमती थे। कोई नृ य और गान क मजिलस सजाता था तो कोई अफ म क
िकनारे बने वीरान मि जद म शतरज ं खल े ने चले जाते ह। वीरान मि जद म पीनक ही के मजे लेता था। जीवन के हर भाग म आमोद& मोद का
चमगादड़ का चीखना&िच लाना शाम होते ही शु हो जाता ह।ै कहानी म ाधा य था। .... ससार
ं म या हो रहा है इसक िकसी को खबर न थी।''
इसका वणन इस कार ह— ै ''नवाब का हाल इससे भी बदतर था। वहाँ गीत और तान क ईजाद
''शाम हो गई, खडहर
ं म चमगादड़ ने चीखना शु िकया। अबाबीले आ होती थी। मनोरजन
ं के नए&नए लटके , नए&नए नु खे सोचे जाते थे''
आकर अपने&अपने घ सल म िचमटी। पर दोन िखलाड़ी डटे हए थे मानो दो कहानी के अतं म ेमचदं ने एक बार िफर नवाब वािजद अली शाह का
खनू के यासे सरमा
ू आपस म लड़ रहे ह ।'' उ लेख इन श द म िकया ह— ै ''नवाब वािजद अली शाह पकड़
िमरजा और मीर खल े ते&खल
े ते िभड़ जाते ह और दोन एक&दसरे
ू को नीचा िलए गए थे और सेना उ ह िकसी अ ात थान क ओर िलए चली
िदखाते ह। अ त म दोन तलवार िनकाल लेते ह और एक&दसरे
ू पर हमला कर जाती थी। .... लखनऊ का नवाब बदी ं बना चला जाता था और
दतेे ह— लखनऊ ऐश क न द म म त था।''
''अधरं े ा हो चला था। बाजी िबछी हई थी। दोन बादशाह अपने&अपने स यजीत राय ने ेमचदं के इ ह वा य के सू को अपनी िफ म म
िसहासन
ं पर बैठे हए मानो इन दोन वीर क मृ यु पर रो रहे थे। चार तरफ कहानी के िव तार का आधार बनाया। उ ह ने वािजद अली शाह के
स नाटा छाया हआ था। खडहर ं क टटी ू हई महराब, िगरी हई दीवार और धिल
ू िविभ न प को अपने गहन शोधपरक पड़ताल के ज रए सामने रखा।
धसू रत मीनार इन लाश को दख े ती और िसर धनती
ु थ ।'' उ ह ने वािजद अली शाह के दरबार, च र आिद का बखबी ू
ेमचदं ारा िलिखत मल िफ माकन
ं िकया। उ ह ने वािजद अली शाह क दबलताओ ु ं के
ू कहानी चार खडं म िवभ है पर चार क
प रि थितयाँ और घटनाएँ एक—दसरे बावजदू उसके ित सहानभितपवक
ु ू ू िवचार िकया। जबिक ेमचदं ने
ू से गथी
ंु हई ह। िफ म बनाते समय
स यजीत राय ने मल नाम मा के िलए ही वािजद अली शाह का उ लेख िकया ह।ै इसका
ू कहानी को तो िलया ही है लेिकन उ ह ने अपनी ओर से
शोध कर िफ म के अनकल कारण बताते हए िववेक दबेु िलखते ह—
ु ू नए सगं को जोड़ा भी। 'शतरज ं के िखलाड़ी'
कहानी म दो मु य पा ह जो शतरज
ं के शौक न ह और रा य क दराव ु था से '' ेमचदं का सवें दना मक उ े य, राय के सवें दना मक उ े य से िभ न

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था। वे अपना पराू यान कहानी के दो मु य पा िमजा स जाद अली और मीर रा य, अं ेजी सा ा य क गहरी चाल आिद को दशक आसानी से
रोशन अली पर ही रखना चाहते थे। य िक यही उनक कहानी के उ े य के समझ पाते ह। मलू कहानी म इन सगं के साथ लदन
ं म लॉड ड हौजी
िलए उिचत भी था। वािजद अली शाह क चा रि क िवशषेताओ ं पर िवचार के सामने बनी योजना आिद का सगं नह ह।ै स यजीत राय ने यहाँ
करना उनके िलए अनाव यक था। वे उ दो पा के मा यम से तीका मक ेमचदं क मलू कहानी और िफ म को ऐितहािसकता म प रवितत
प से परेू यगु के पतन को रे खािकत
ं करना चाहते थे। ेमचदं क अ य कर िदया ह।ै
कहािनय के समान इस कहानी के पा भी ितिनिध पा ह। यहाँ तो िमजा और यही नह राय ने मल ू कहानी से इतर मशी
ंु नदलाल
ं और कलआ ु के
मीर न िसफ अपने वग का ितिनिध व कर रहे ह बि क परेू समाज के च र को भी गढ़ा ह।ै यह दोन च र कहानी के परक ू लगते ह। मशींु
ितिनिधय के प म हमारे सामने खड़े ह। अपने को इन दो पा तक सीिमत नदलाल के च र से मीर और िमरजा के खोखले वीर व का आभास

रखने के कारण ही हम ेमचदं क 'शतरज ं के िखलाड़ी' म वह एकाि वित होता है जो दादा परदादाओ ं के तलवार के सगं से उभर कर सामने
िमलती है जो शायद िफ म म नह िदखती। लेिकन इस त य को भी अनदख े ा आता ह।ै इसी कार राय ने िफ म क कहानी के अ त म कलआ ु
नह िकया जा सकता िक कहानी का कलेवर अ यतं छोटा है और इतनी छोटी नामक पा क सिृ क ह।ै िजसके मा यम से कथा और िफ म का
कहानी पर परीू फ चर िफ म का िनमाण करना िकसी कार भी सभव ं नह ह।ै मल ू क य िब कल ु प हो जाता ह।ै कलआ ु मीर और िमरजा के
अतः िफ म म मल ू कथानक का िव तार कर उसम नये च र को डालने के पछने
ू पर कहता ह— ै
पीछे अ य रचना मक कारण के अलावा राय का एक उ े य मल ू कहानी को
िफ म के कलेवर के अनकल ''सभी लोग अं ेज क फौज के डर से गाँव छोड़ गये ह।' कलआ
ु के
ु ू बनाना भी रहा होगा।''
इस कथन से कहानी म आई हई त कालीन प रि थितयाँ भी
स यजीत राय वािजद अली शाह के च र और उससे जड़ी ु कछु िवशषेताओ ं प रलि त होती ह— ''इधर दश
े क राजनीितक दशा भयकर ं होती जा
को बार&बार रे खािकत
ं करते ह और उसम 'उ ह इस हद तक सफलता िमलती रही थी। शहर म हलचल मची हई थी। लोग बाल ब च को लेकर
है िक चा रि क दबलताओ
ु ं के बीच भी वह दशक क सहानभित
ु ू बटोरने म दहेात म भाग रहे थे।''
सफल रहता ह।ै वािजद अली शाह के च र के बारे म खदु स यजीत राय
िलखते ह— कलआ
ु क उपि थित कहानी का परक
ू ह।ै

''मरेे याल म वािजद अली शाह के च र के दो प ह— एक िजसक आप इस िफ म म मशी ंु नदलाल


ं और कलआ ु के च र को लेकर स यजीत
शसा राय काफ सजग थे। उ ह ने उन दोन च र क सिृ के सदभ ं म खदु
ं कर सकते ह और दसरा
ू िजसक आप शसा ं नह कर सकते ह। मने एक
बार आपको िलखा भी था िक मरेे मन म इस मख ही प िकया ह।ै इन दोन च र क उदभावना क आव यकता के
ू च र के िलए कोई सहानभित
ु ू
नह है और जब तक सहानभित सदभं म रे कहते ह— मने महससू िकया िक इन पा क रचना
ु ू न हो म िफ म नह बना सकता। लेिकन
आिखर महीन तक नवाब , लखनऊ आिद सब चीज का अ ययन करने के मह वपणू है य िक िह दू पा को रखने से वािजद अली शाह के
बाद म इस नवाब को एक ऐसे कलाकार के प म, एक ऐसे सगीतकार के प म समय म दो धिमक सं दाय के बीच मै ीपणू सबध ं ं को थािपत

दखे सका िजसने लखनऊ घराने क गायक म अपना योगदान िदया। राजा के िकया जा सकता है जो उस समय इन वग के बीच मौजदू था। कथानक
बारे म एक बहत बड़ी बात यह थी िक वह सगीत क ि से नदलाल ं मीर और िमरजा को ि िटश तरीके का शतरज ं
ं का बहत बड़ा सरं क था।''
खल े ने के ारिभक
ं ान क िश ा दनेे का िनणायक कृ य करता ह,ै जो
वािजद अली शाह के अित र स यजीत राय ने अ य सगं को भी िफ म म िफ म के अतं म अ यिधक मह वपणू एवं साकें ितक प हण करता
जोड़ा ह,ै नए च र क उ ावना क है और मल
ू कहानी क कथा, सगं और ह'ै'
च र म आव यक प रवतन भी िकया ह।ै स यजीत राय ने मल
ू कहानी को तो
िलया ही है लेिकन इसक परक '' ेमचदं ने अपनी कहानी के अ त म िदखलाया है िक मीर और िमजा
ू और समाना तर जनरल ऑ म से सबं सगं
िफ म क कहानी को और गहराई, साथकता दान करते ह। इससे िबखरे हए एक टटी—फटी
ू ू मि जद म शतरज ं खले ते ह। मने इस य क क पना
करने क कोिशश क और म सोचने लगा िक दोन को िकतनी धल ू

10
िम ी और गदगीं का सामना करना पड़ा होगा। और ये तब जब हम चमगादड़ , यही नह स यजीत राय ने ेमचदं क मलू कहानी के अ त को भी बड़ी
चहू , ितलच और िब छओ ु ं क तो बात ही न कर। इस सबसे िनबट कर ही वे ही कशलता
ु से बदला ह।ै मल
ू कहानी म मीर और िमरजा आपस म
शाित ं से शतरजं खल े ने बैठ पाए ह गे। तो मने िन य िकया िक म मि जद लड़कर मर जाते ह पर राय ने ऐसा नह िकया। लीलाधर माडलाई
ं के
िदखाने क बजाय कोई शातं सी ामीण जगह िदखाऊँगा। ऐसी जगह घटन ु अनसार—

वाली नवाबी हवेिलय से िब कल ु उ टी भी होगी। जब मने इस बारे म और ''कहानी म मीर और िमरजा लड़ते हए मर जाते ह जो दो यि य का
सोचा तो मझु े लगा िक िबना िकसी नौकर के तो ये दोन नवाबी लोग िब कल ु मरना ह।ै राय मृ यु के इस सगं को कहानी से हटाकर अवध के पतन
असहाय ही हो जायगे। इ ह तमाम छोटे&मोटे काम के िलए जैसे ह का तैयार के बाद भी उ ह एक और बाजी क तैयारी म िदखाते ह। आशय यही
करने के िलए, खाना लाने के िलए िकसी नौकर क ज रत तो होगी ही। तो इस िक सामतवाद ख म नह होता और यह एक बड़ा अथ कहानी को दतेा

ज रत से क लू का ज म हआ जो न िसफ मीर और िमजा का नौकर है बि क ह।ै अं ेज क फौज के वेश के य सा ा यवाद क आमद और
परीू िफ म म आम इसान ं का एकमा ितिनिध है और अके ला ऐसा यि है ताकत क सचना ू दतेे ह। समानातरं कथा इस तरह मल ू कथा म
िजसम दश े भि क भावना िदखाई पड़ती ह।ै'' पातं रत होती ह।ै िबना िकसी आघात के । िफ म के पवू िह स म
मल
ू कहानी और िफ म म प रवतन के सदभ ं म कछ
ु अ यिधक रोचक और दोन कहािनय म अिभ नता पैदा करने के िलए या तो वे य रचते ह
मह वपणू बात क ओर िववेक दबेु भी यान आकृ करते ह। वे िलखते ह— जो उ ह जोड़े रखे या िफर कम ी (अिमताभ ब चन का नरे शन) का
''हम जब मल उपयोग करते ह। राय जैसे िफ मकार ही कहानी क मल ू आ मा इस
ू कहानी और पटकथा क तलना ु करते ह तो च र ाकन ं सबधी
ं ं
एक मख तरह बचा सकता था।''
ु अतरं यह पाते ह िक जहाँ ेमचदं क कहानी म मीर और िमजा क
बेगम के कोई नाम नह है वहाँ राय ने िफ म म दोन बेगम को नाम िदए ह जो मे चदं क मल
ू कहानी के अ त म हए इस बदलाव पर अनेक
मशः नफ स और खश ु द ह। ऐसा करके उ ह ने उ ह अलग यि व दान समी क और खदु राय ने कई बार अपनी राय दी। मल
ू कहानी म िकए
कर िदए ह जबिक कहानी म वे मा मीर क बेगम और िमजा क बेगम से ही गए इस प रवतन के कारण को प करते हए डॉ. सरेु नाथ ितवारी ने
जानी जाती ह। मीर क बेगम का उसके भाजे ं से नाजायज सबधं ं ह।ै इसक ओर िलखा ह— ै
ेमचदं ने अपनी कहानी म सकें त िकया है लेिकन भाजे ं को भी न कोई नाम ''िनदशक ने गहराई से अनभत
ु ू िकया है िक ेमचद, ं िमरजा और मीर
िदया ह,ै न अलग यि व। राय ने न िसफ उसको अक ल नाम िदया है बि क के मरने से िजस यव था का समल ू अतं दख
े ते ह वह समा नह होती,
ऐसे य का सयोजन ं भी िकया है िजनम हम उसको अ छी तरह दख े पाते ह। वािजद अली शाह के समय म पनपने वाले िवलास भोगी वग यथावत
राय ारा िफ म म इन पा को िव तार से िदखाने का कारण मीर और िमजा के बना रहता ह।ै के वल उसका प बदल जाता है इसिलए कहानी के
च र को और अिधक उजागर करना ही ह।ै मीर क प नी चाहती है िक वह घर भावक ु अतं क अपे ा उसके यथाथवादी अतं को िदखाना अिधक
से बाहर ही रहे िजससे उसे अपने ेमी से िमलने म बाधा न हो। दसरी
ू ओर िमजा वाभािवक तीत होता ह।ै .... िफ म का अ त अिधक िव सनीय
क बीवी को शतरज ं क उसक लत के कारण अपनी यौन इ छओ ं क तिृ का धरातल पर हआ ह।ै मीर और िमरजा िजस यव था के अगं ह, वह
अवसर ही नह िमलता बि क िफ म से तीत यही होता है िक िमजा शतरज ं म आज भी मौजदू ह।''
इसीिलए मशगल ू रहता है िक वह नपसकंु है और अपनी बेगम को सतं ु नह
कर सकता। िमजा हमश े ा शतरज अितम
ं य के इस प रवतन के ज रए राय यह िदखाने म परीू तरह से
ं के बहाने से अपनी बीवी के साथ समय िबताने
से कतराता रहा ह।ै उसक बेगम गु से म मीर को कोसती रहती ह।ै'' सफल रहे िक सामतवादी
ं और नवाबी वित ृ का खा मा नह हआ,
वह मरा नह ह,ै उसके अवशषे आज भी हमारे बीच मौजदू ह।
इस सदभ
ं म िचदानदं दास गु ा के श द ह—
इस सबके बीच इस कहानी के पातरण
ं क सफलता के पीछे एक
''बीिवय को रित ड़ा चािहए और खािब द को शतरज।
ं दोन के िलए ये बड़ी भिमका पा के चयन क रही। राय ने कहानी के अनु प न

अततः
ं पैर के नीचे से िखसकती जमीन के एहसास से आजाद होने के के वल कथा म प रवतन िकया बि क इसम भिमका
ू िनभाने वाले पा
पलायनवादी रा ते ह।''
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के चयन म भी काफ सतकता बरती। इस सबध ं ं म पा के चयन, उनके साथ िफ म म िकए गए प रवतन आिद को लेकर एक&एक आरोप के
राय के सबध
ं ं और सामजं य का िज करते हए लीलाधर माडलोई
ं िलखते ह— जवाब म उसके कारण िगनाए और प ीकरण िदया। िफ म म िकए
'' न पर कहानी के आने म मख गए प रवतन आिद के भाव के मह व को बताते हए डॉ. सरेु नाथ
ु होते ह िकरदार। राय क हर िफ म म
िकरदार का चयन बहत सोच—िवचार के बाद होता ह।ै चयन के बाद उनको ितवारी िलखते ह—
िकसी भी कारण बदलना वयं राय के िलए ममिकन
ु नह हआ। अमजद खान ''कहानी म जो ऐितहािसक अशं दब सा गया है या मखता
ु से सामने
(नवाब वािजद अली शाह) के अ व थ होने पर राय ने शिटगू ं उनके व थ होने नह आता िफ म म वह ऐितहािसक प परीू तरह से उ ािटत होता ह।ै
तक बढ़ा दी थी। अपने चयन पर इतना भरोसा कम ही िनदशक करते ह। िह दी स यजीत राय ने ेमचदं क कहानी म विणत ऐितहािसक वातावरण
म पहली िफ म करते हए े तम कलाकार का उनका चयन कािबले तारीफ को त य के आधार पर इितहासस मत बना िदया ह।ै ेमचदं वािजद
ह।ै सजीव
ं कमार ु (िमजा स जाद अली), रचड एटनबरो (ऑटरम), शबाना अली शाह, रे जीडट और अं ेजी फौज का उ लेख तो करते ह परतं ु
आजमी (स जाद अली क बेगम), बवीना (नवाब शाह क माँ), डेिवड (मशी ंु अपनी क पना से वे ऐितहािसक त य को दरू रखते ह। स यजीत राय
नदलाल),
ं िव टर बनज (वजीरे आजम), फा ख शख े (अक ल), टॉम ने क पना और त य दोन को िफ म म अनु यतू कर िदया ह।ै
अ टन (कै टन वे टन), लीला िम (िह रया), बैरी जॉन (डॉ. जोजेफ फे यटर), प रणामतः िफ म म शतरज ं का खल े के वल खले नह रह जाता।
समथ नारायण (क ल)ू आिद। इस काि टगं के िलए काफ होमवक क ज रत उसका िव तार त कालीन सामािजक राजनैितक जीवन तक हो जाता
थी। िजसम हर कलाकार क रज, मनै र म, सवाद ं अदायगी, उ चारण, है और सभी पा मोहरे िदखाई पड़ते ह और सभी घटनाएँ शतरजं क
लहजा, भिगमाए,
ं ँ अग—सचालन
ं ं का सू म अ ययन अप रहाय था। िकरदार चाल क तरह ि याशील अनभत ु ू होती ह।''
को यान म रखकर ही सवादं िलखना ममिकन
ु होता ह।ै उनक भिमका
ू को अतं हालाँिक िफ म को लेकर िमली जली
ु िति या रही। ेमचदं सािह य
तक एक लय म बाधना ं होता ह।ै के अनेक िव ान ने मलू कथानक के िव तार और प रवतन पर
पा के नाम क मौिलक उ ावना, नए सगं क उ ावना और उसका िनराशा य क । उनके अनसार ु ऐसा करने से एकाि वित भगं हई
समावेश, कथा का िव तार आिद के साथ&साथ िफ म के अ त म िकए गए और भाव कमजोर हो गया। इस सबध ं ं म डॉ. लोठार लु से कछ

प रवतन आिद से स यजीत राय ने ेमचदं क मल
ू कहानी के सवें दना मक खड़ा करते ह—
उ े य क नकारा मक ित करने क जगह उसे और अिधक गहराई दान क । '' या एक कहानी, िजसका उ े य एक ण म भाव डालना ह,ै एक
िफ म के अितम
ं य के िवषय म हरीश कमार
ु िलखते ह— परीू िफ म के िलए पया साम ी, पया त व महय ु ै ा कर भी सकती
''िमरजा&मीर का शतरज ं के खल
े म आपसी झगड़ा होने पर, िमरजा मीर पर ह?ै .... सािह य को सफलता से परदे पर लाना वह िकतना भी दलभ ु
गोली चला दतेा है जो उसक बाँह म लगती ह।ै दसरी
ू ओर गाँव के रा ते पर हो, ायः उप यास के आधार पर ही होता ह.ै.. राय क पटकथा,
अं ेज क फौज चली आ रही ह।ै यह सब दखे कर कलआ ु िमरजा और मीर को बजाय इस कहानी के िव तार के , एक ऐसे सपण ं ू 'कछ'ु म उसक
कहता है 'अं ेज क फौज को भगाने के िलए कोई ब दकू नह उठाता।' यह फ ित तो नह थी, जो अतं म .... िकसी को भी वाक़ई खश ु नह
िफ म क चरम सीमा ह।ै यहाँ िमरजा गोली लगी बाँह को लेकर खड़ा ह।ै करती?''
िन सहाय, शू य म ताकता हआ। अं ेजी फौज जाने के बाद बाजी िफर जटु वह दसरी
ू ओर िचदानदं दास गु ा जैसे आलोचक भी ह जो इस
जाती ह।ै िमरजा शतरज
ं क बाजी से बादशाह को हटा दतेा ह।ै तीक प म िफ म के बारे म इस कार से अपनी राय रखते ह—
लखनऊ से यह वािजद अली शाह का स ा यतु होना ही ह।ै''
''शतरज
ं के िखलाड़ी को राय क अनोखी सरचना
ं वाली िफ म कहा
बहरहाल, स यजीत राय ारा िनिमत इस िफ म के दशन के बाद ऐसा भी नह जा सकता ह।ै िफ म म एक& दसरे ू को काटती हई दो गाँठ
है िक के वल शसा
ं ही सनने
ु को िमली हो। बि क अनेक आलोचक ने इस ह&वृ िच के प म और कथेतर के प म। जहाँ अं ेज क
िफ म के िविवध प पर राय क जमकर आलोचना क । हालाँिक राय ने कार तानी को सवाद
ं म मह र बलाघात तथा अनु ेरणा के िव े षण

12
के मा यम से िदखाया गया ह,ै वह भारतीय प , जो सभवतःं कम विणत ह,ै जबिक इन समी ाओ ं और आलोचनाओ ं के बीच लीलाधर
यादा साकें ितक ह।ै रचना क यह खास कमजोरी&राय क िफ म म ऐसी माडलोई
ं िलखते ह—
कमजोरी िवरले ही दख े ने को िमलती ह&
ै समवेत भाव पैदा नह होने दतेी।.... ''स यजीत राय को शतरजं के िखलाड़ी क मलकथा
ू को अपने काल
शतरजं के िखलाड़ी को दख े कर ऐसा लगता है िक राय कई&कई गद से एक ही बोध और ि से पनसिजत
ु ृ करने का हक िमलना ही चािहए। िफ म
साथ खले ने क बाजीगरी िदखा रहे ह ।'' मा यम म कथा को पातं रत करने के िलए उन तमाम तकाज और
राय ने इस िफ म म अवध के पतन के साथ&साथ उस कालखडं का पराू खाका ज रत को छटू दनेा भी ज री है िजसक अपे ा एक िनदशक करता
ख चा ह।ै उ ह ने अं ेज क चाल, ि थित को भी ततु िकया ह।ै इस सबके ह।ै एक दशक या समी क का सरोकार यह होना चािहए िक वह कितृ
बारे म वयं स यजीत राय का कहना है िक— िफ म के मानदडं पर िकतनी खरी या खोटी ह।ै िसफ सािह य को
''म सामतवादी और उपिनवेशवादी दो नकारा मक शि य का िच ण कर रहा के म रख कर बात आधी अधरीू होगी। य िक समी ा परीू तरह

था। मझु े वािजद और डलहौजी दोन क भ सना करनी थी। चनौती िफ म क है न िसफ कहानी क । यह भी गौरतलब है िक एक िनदशक
ु यह थी िक
म दोन प के कछ ने कहानी क आ मा को ठीक से पकड़ा या नह । यिद आ मा सरिु त
ु सकारा मक प िदखाकर ... उनके ितिनिधय म कछ ु
मानवीय गणु डालकर इस भ सना को रोचक बनाना चाहता था। ये गणु मरेे ारा है तो िनदशक क िफ म सरचना
ं म ली गयी तमाम छटू वीकाय होनी
कि पत नह ह बि क इनके ऐितहािसक माण िमलते ह। म जानता था िक चािहए।''
इससे मरेा ि कोण थोड़ा अिनि त हो जाएगा। लेिकन मने शतरज ं को कभी कहना न होगा िक 'शतरज ं के िखलाड़ी' न के वल स यजीत राय बि क
भी ऐसी कहानी के प म नह दख े ा िजसम आप खलकर ु िकसी एक प क िह दी िसनेमा जगत क एक मह वपणू उपलि ध ह।ै इस िफ म का
वकालत कर सक। मने उसको हमश े ा दो सं कितय
ृ क ट कर के ित िनमम दायरा अपने आप म बहत यापक ह।ै औपिनवेिशक दबाव के तहत
िकतं ु गभीर
ं िचतनमय
ं ि के प म दख े ा&एक िन ाण और बौि क सं कित ृ टटते
ू भारत के एक िह से का िच ण राय ने अपनी पारपं रक शल ै ी से
और दसरी ू ऊजि वत और किटल।ु मने इन दो घोड़ के बीच के अनेक रगं का काफ हट कर िकया ह।ै राय क यह िफ म िसनेमाई भ यता क ि से
भी यान रखा। ... आपको इस िफ म को बहत बारीक से दख े ना होगा।'' उनक सबसे बड़ी िफ म ह।ै िवषय क ऐितहािसक पृ भिम ू का दखल
वैसे तो स यजीत राय क इस िफ म के दशन के बाद भारतीय और पा ा य और कशलु अिभनेताओ ं ने भी िफ म को ऊँचाई दान क ह।ै इ कल ु
सभी कार के समी क , आलोचक ने अपनी िति या दी पर तु अिधकाश िमलाकर कहा जा सकता है िक ेमचदं क िस कहानी पर

भारतीय िव ान ने जहाँ इसे कित
ृ क आ मा और उसम िकए गए प रवतन के आधा रत िफ म 'शतरज ं के िखलाड़ी' म िनदशक स यजीत राय ने
इद&िगद रखी तो पा ा य समी क ने िफ म मा यम क सरचना को अपनी मलू कहानी के क य को सरिु त रखते हए कहानी के श द म

आलोचना के के म रखकर अपनी राय दी। कहना न होगा िक पा ा य झलकने वाले समय और थान िवशषे को उसके ऐितहािसक
समी ा सकारा मक और शसा प र े य और सदभ ं के साथ बड़ी ही खबसरती
ू ू और भ यता से परदे
ं मक रही। वािशगटन
ं टार म रै म डोिलगं ने
िलखा— ''तकनीक कौशल से तिभत पर उतार िदया ह।ै इस कहानी को और अिधक सश , ऐितहािसक,
ं करने वाली नह , वरन चा षु प से
मोिहत करने वाली तथा भावनाओ ं को तृ करने वाली िफ म ह।ै'' जीवतं और ामािणक बनाने के िलए यापक शोध के ज रए इसम कई
नए और समाना तर सगं क रचना क । उस यगु िवशषे क झलक
वह जिडथु मािटन ने जहाँ इस िफ म को सकोमल
ु वैभव और िव ाितमय
ं सख
ु और त कालीन प रि थितय क कहानी क अपे ा कह अिधक
के गणु से यु माना तो िव सट कै नेबी ने िनदशक ारा सामािजक यं य को प ता और मखरता के साथ इस िफ म म उभारने म िनदशक को

अिधक िवन ता, सतलन
ं ु और सु िच के साथ ततु क गयी िफ म के प म पया सफलता िमली ह।ै यह िफ म वयं स यजीत राय और िह दी
वीकारा। इसके अित र कै थरीन कै रोल, डैिवड रॉिबनसन, कै रोल बु स, सािह य और िसनेमा क एक िविश उपलि ध ह।ै
डैिवड रोजेन बाम आिद समी क ने भी राय क इस िफ म को सकारा मक
ढगं से ही िलया।

okf"kZd if=dk ^gal* 13


"नह -नह , आशीष दवेल नह , इसका उ टा था शायद" – मघेपाल
ेम गीत सर ने झट से कहा।
& बजमोहन
ृ व सल "आप सही कह रहे ह सर, उनका नाम आशीष दवेल नह ह,ै उनका
सहायक ोफ़े सर, गिणत िवभाग नाम दवेल आशीष ह"ै – वेद सर ने बड़े िव ास के साथ मरेी तरफ
दख
े ते हए कहा।
कमरा नबरं 47, जो हॉ टल के मु य ार म वेश करते ही, एकदम से सीधे हाथ
पर मड़कर,
ु सीधे जाकर सबसे अितम ं वाली सीिढ़य से चढ़कर, थम तल पर "सही है सर, हाँ यही है .... दवेल आशीष" – मने गदन को िहलाते हए
इन सीिढ़य के अतं होते ही, पास के बने वाश म के ठीक सामने ह।ै चौधरी और ऊँगली से मघेपाल सर क ओर इशारा करते हए कहा।
चरण िसहं िवि ालय, मरेठ प रसर के आर. के . िसहं हॉ टल का ये कमरा हम "अरे सर सनाओ
ु ना! या पिं थी वो जब शु वात म किवता शु
सब के िलए ऐसे मायेने रखता है जैसे हमारा खदु का घर हो। वैसे तो कछ ु ही हई थी ?" – मने वेद सर को सनाने
ु के िलए कहते हए ख़शी
ु के साथ
महीने हए थे और ये प रवार भी कछ ु ही महीन म, मरेे दय म ऐसे बस-सा गया कहा।
था जैसे सारे के सारे मरेे सगे बड़े भाई ह । हॉ टल म सीिनयर को सर या डॉ टर
साब कहने का रवाज़ था जो हम सब मानते थे य िक कल को हम भी तो "एक बार जीवन म यार कर लो ि ये .... एक बार जीवन म यार
सीिनयर ह गे ना। नह , म िबलकल ु भी इस कमरे म नह रहता था, बि क मरेा करलो ि ये... एक बार जीवन म ...." – वेद सर गनगनाने
ु ु लगे।
कमरा तो N-3 था। वही! जो चार म बाद म बने थे, ये थम और अितम ं "सर या यही गाते रहोगे ? शु वात से सनाओ
ु ना, बड़ी मज़ेदार थी !"
तल पर ही ह,ै कमरा नबर ं 47 के िवपरीत दसरे ू छोर पर। – वेद सर को टोकते हए मने कहा।
23 िदस बर 2004, ये तारीख मझु े िबलकल
ु याद है य िक आज ही चौधरी "इसे कौनसी याद ह"ै – िखड़क के पास बैठे ह र ताप सर ने वेद सर
चरण िसहं के ज मो सव पर िव िव ालय के नेता जी सभाषच ु बोस क ओर हसँते हए कहा।
सभागार म बहत बड़े वािषक रा ीय किव स मलेन का आयोजन हआ था।
िभ न-िभ न जगह से किवगण आये थे। वाह! अ ु त का य पाठ ! "हाँ तो !तझु े याद ह?ै तो तू सनाद"
ु े – वेद सर ने फट से अपने दो त क
िखचाई
ं करते हए कहा।
"है ना सर" – मने अ ु त कहकर मघेपाल सर क ओर ह क भ ह उठाते हए
पछा
ू । "याद तमम
ु से िकसी को नह है और बात बना रहे हो" – मघेपाल सर
ने हम सब को कहा।
"तमु तो अभी आये हो िडअर, यहाँ हर साल होता है ऐसा बड़ा ो ाम या तो
किव स मलेन या कछु और!" – मरेी तरफ दखे ते हए हलक मु कान के साथ "मझु े सर किवता तो याद नह पर उसका तर नमु याद ह"ै – मने
उ ह ने मझसे
ु कहा । मघेपाल सर को कहा और गनगनाने
ु ु लगा.....
"सर उनका नाम या था िज ह ने वो यार वाली किवता गायी थी" – मने म म "ला ला .. ला ला ला ला ...ला ला ला ...ला ला ला....
बैठे सभी क तरफ दख
े ते हए पछा
ू । ला ला .. ला ला ला ला ...ला ला ला ...ला ला ला....
एक बार जीवन म यार कर लो ि ये
"कमाल थी वो तो! और िकतने आराम से, धीरे से, मगन होकर सनाई, ु मज़ा आ एक बार जीवन म ....... यार कर लो ि ये"
गया !" – मरेे एक वष सीिनयर वेद सर ने तारीफ़ म हाथ उठाते हए कहा ।
"वाह! या बात है परीू किवता... ला ला ला ...म ही ख़ म कर दी" –
"आपको आती है वो किवता सर ?" – वेद सर को आ य से दख
े ते हए जानने वेद सर ने हसँते हए मझसे
ु कहा ।
के िलए मने पछा।

"अब सर मझु े याद थोड़ी है सारी, मने िलखी थोड़ी है जब वो सना ु रहे
"हाँ वो थी ना िक...... एक बार जीवन म ....." – याद करते-करते वो जैसे ही थे, म तो बस सनु रहा था" – मने वेद सर को जवाब दतेे हए कहा।
गनगनाने
ु ु लगे िक तभी मघेपाल सर ने बीच म टोकते हए पछा ू – "अरे यार!
नाम या था उनका ?" "कोई नह याद कर ले भाई, जब याद आ जाए तब सना ु दनेा" – ह र
सर ने मरेी ओर दख
े ते हए ह क मु कान के साथ कहा।
"उनका नाम सर ........आशीष .....आशीष .....दवेल था शायद !" मने याद
करते हए कहा। "याद आ गयी तो िलख लँगू ा, प का !" – मने झट से कहा और

14
िब तर से उठकर दरवाजे क ओर बढ़ने लगा। पिं मने ली है जो हम सबको याद ह"ै – थोड़ा िव तार दतेे हए
मने कहा ।
म गनगनाते
ु ु हए और वही ... ला ला ला ... करते हए दरवाजे को पार कर पास "कौन सी पिं ?"- वेद सर ने पछा
ू ।
वाले वाश म के बाहर लगे शीशे म अपने को दख े कर, आख ँ े िसकोड़ते हए
"वही सर !.. एक बार जीवन म यार कर लो ि ये"- बड़ी ही ख़शी ु
याद करने क कोिशश करने लगा। सच कहँ तो मझु े कछ ु भी याद नह आ रहा के साथ मने कहा।
था। वो किवता थी या गीत, पर जो भी था, िदल को छू लेने वाले श द थे। अपने
"ठीक है अब सनाु भी द"े- ह क उ सकताु के साथ वेद सर ने मझु े
बाल म ह का पानी लगाके म अपने म क ओर चल िदया।
सनाने
ु को कहते हए कहा।
म का दरवाजा खोलते ही, उलटे हाथ क ओर दीवार पर िलखा एक बड़ा सा "हाँ सर"- कहते हए मने वो तर नमु याद करते हए अपनी िलखी
नाम मझु े दख
े रहा था। वैसे तो ये नाम मने ही िलखा था। आिखर एक तरफ़ा यार पिं याँ सनानी
ु शु कर दी।
और चाहत म आप कर भी या सकते ह। म मरेे िब तर पर लेट आख ँ दीवार पर
" व न सलोने िदखाओ तो नयन को
िलखे नाम पर िटका कर दवेल आशीष को गनगनाते ु ु हए महससू करने क नयन म भर दो ेम के तरल को
कोिशश कर रहा था शायद उनके उस गीत क पिं याँ याद आ जाये जो मरेे
तरल बना दो इस दय बल को
िदल म गँजू रही थी। शाम से होते-होते रात हो गयी पर ना वो पिं या सही से
बल धरा म िखला दो कमल को
याद आ पायी और ना ही न द। आिखर कछ ु तो जादू था उन श द म जो मझको
ु तो कमल से अधर का पान कर लो ि ये
मरेी अ दर क आवाज़ से तीत हो रहे थे। बार-बार वही पिं दोहरा रहा था –
एक बार जीवन म यार कर लो ि ये ।।"
“एक बार जीवन म यार कर लो ि ये ... एक बार जीवन म यार कर लो ि ये”।
"ये तनेू िलखी है ?"- बड़े ही आ य के साथ मरेी तरफ दख
े ते हए
आज क तरह ना मरेे पास माट-फोन था और ना ही इ टरनेट क सिवधा। ु वेद सर ने पछा
ू ।
माट-फोन तो बहत दरू क बात है तब तो मरेे या मरेे करीबी दो त म से िकसी
के पास भी फोन नह था। हाँ, िव िव ालय क लाइ रेी म इ टरनेट क सिवधा ु "हाँ सर! कै सी लगी ?"- मने जानने के िलए पछा।

थी पर मने आजतक ई-मल े भी नह िकया था। आज क बात कछ ु और ह।ै
"बस ये ही िलखी है ?"- वेद सर ने मरेी तरफ दख
े ते हए पछा।

अचानक ना जाने या सझा ू िक म कॉपी और पेन उठाकर अपने िब तर पर बैठ
"हाँ सर और भी है आगे ...."- ख़शी
ु के साथ मने कहा।
गया। उस गीत के श द मरेे अतरमन
ं म जैसे घमू रहे थे और म वो श द कॉपी पर
िलख रहा था। इन श द से ना तो वो किवता बन रही थी और ना ही वो तर नमु उनके चहेरे से लग रहा था िक उनको मरेी िलखी पिं याँ पसदं आयी
आ पा रहा था। िनराश भी था और उ सािहत भी। ना जाने कब रात अपने चरम ह।ै चिँू क वो पहले हम कई बार िकसी अ य किव क एक किवता
पर पहचँ गयी, पता ही ना चला। अब तक मने कछ ु फै सला अपने आप से कर अनेक बार सना ु चकेु थे तो जािहर है िक अगर इ ह पसदं आ गयी तो
िलया था और वो पेन उस कॉपी पर कछ
ु िलखने लगा था। बाक को भी आयेगी। यही मन म सोचते हए मने अगली पिं याँ पढ़ी।
सबह
ु होते ही म वेद सर के म क ओर झट से पहचँ गया जो ि ितज तल पर "शीतल से तन म है भानु क दहक सी
था। वेद सर अपने िब तर पर ही थे और जागे हए तीत हो रहे थे। दहक ये उर म मरली
ु क चहक सी
चहक उपवन म जैसे कोयिलया गाई हो
"सर, वेद सर, सनो
ु मने िलख ली" – ख़शी
ु के साथ मने कॉपी को आगे करते हए
गाये गीत िदल ने जैसे मीरा ही समाई हो
कहा।
तो मीरा के ही प का गार ंृ भर लो ि ये
" या िलख िदया?"- ह क हसी
ं के साथ उ ह ने मरेी तरफ दख
े ा। एक बार जीवन म यार कर लो ि ये।।"
"अरे सर जी! परीू रात काली कर दी पर मने हार नह मानी, कहो तो सनाऊ"-
ु "अरे वाह! या बात ह,ै श द बड़े ठीक लगाये है तनेू "- वेद सर ने
मने बड़े ही िव ास के साथ कहा। ख़शी
ु के साथ शसां करते हए कहा।
"सना
ु दे भाई, वैसे भी मरेे कहने से क थोड़ी जायेगा,....सना"-
ु उ ह ने मरेी ओर "सही बताओ सर, अ छी लगी आपको?"- मने मु कराते
ु हए पछा।

दख
े ते हए कहा।
"बहत बिढ़या है िडअर, िलख-िलख और िलख आगे, मज़ेदार ह।ै मझु े
"पहले एक बात तो बता दंू सर िक ये वो नह है जो किव ने सनाई
ु है बि क तो अ छी लगी सच म।" उ ह ने मरेे का उ र दतेे हए कहा।
मने उनके तर नमु पर अपने श द को िलखा है और हाँ! उनक वो एक

okf"kZd if=dk ^gal* 15


"पहले सर आगे क भी तो सनु लो !"- मने कॉपी क तरफ दख
े ते हए कहा। श द का इ तेमाल तो लाजवाब िकया ह"ै- वेद सर ने मरेी ओर से
उ र दतेे हए कहा।
"अ छा! और भी िलखी ह?ै तो सना
ु परी"-
ू िब तर पर हलके से बैठते हए मरेी
अगली पिं या सनने
ु के िलए मरेी ओर हाथ से इशारा करते हए उ ह ने कहा। किवता को गाते हए िजतनी ख़शी
ु मझु े थी उससे कह यादा मझु े
ख़शी
ु इस बात क थी क इनको मरेी िलखी पिं याँ बहत पसदं आयी
कछ
ु ना कहते हए मने अगली पिं याँ पढ़नी शु कर दी। थी। चहेरे पर ख़शी
ु और खदु पर गव के साथ मने आगे क पिं याँ
“ ेम के काश म अधँरेा तो िवफल है पढ़ी।
िवफल है मजनंू पर ेम हर पल है " ेम िबन कै से तर जाओगी जीवन म
पल भर क ये ज़वानी चचल ं है जीवन अपार फस ं जाओगी भवरं म
चचल
ं मन म मची सी हलचल है भवर
ं दय म फल ू बन जो समाओगी
तो हलचल तन क वीकार कर लो ि ये फल
ू सी कोमलता हर पल यहाँ पाओगी
एक बार जीवन म यार कर लो ि ये।।” तो हर पल क ये मु कान भर लो ि ये
एक बार जीवन म यार कर लो ि ये ।।"
"आह! या बात है िडअर, बड़ी सही िलखी ह"ै- शसा
ं के वर म उ ह ने
मझसे
ु कहा । ह र सर ने ये पिं याँ सनने
ु के बाद, मझु े किवता शु से सनाने
ु को कहा
जो उनसे छटू गयी थी। मने िफर से सारी किवता उसी तर नमु म सनाई ु
"सर मरेी पहली किवता ह!ै"- अपने आप को उ साह दतेे हए मने कहा और िजस तर नमु म किव दवेल आशीष ने सनाई ु थी। िजतनी बार भी म
अगली पिं याँ पढ़नी शु दी। सनाता
ु उतनी ही बार ये मझु े याद होती जाती। कमरे से िनकल कर हम
" ेम क ये योत ेम दीप म जलाओ तमु ना ता करने गये और वहां पर िमले दसरे ू सीिनयर और दो त से भी ये
दीप क िकरण से मन मिदर पिं याँ साझां क । कई िदन तक म ये गाता रहा और किव दवेल
ं महकाओ तमु
आशीष जी को हमश े ा याद करते हए सबको सनाता ु रहा। सभी का
मिदर
ं के ेम शख ं क यही आवाज़ है किवता के ित झान सकारा मक था एवं मझु े और िलखने के िलए
ेम िबन िज़ दगी रह जाती एक राज़ है े रत करते।
तो राज इस िदल पर बार-बार कर लो ि ये
एक बार जीवन म यार करलो ि ये ।।" कभी-कभी लगता था िक अगर म किव दवेल आशीष से िमला तो
उनको ये ज़ र सनाऊगा।
ु ं िजनक वजह से म ये किवता िलख पाया
म गीत गा ही रहा था िक दरवाजे से ह र सर ने वेश िकया और वेद सर क था। मरेी पहली किवता के बाद मने कई साल म जब भी समय िमला,
ओर दखे ते हए कहा – "ना ता करने नह चलना है ?" सौ से यादा किवताएँ िलखी िजनको म आज सनाताु हँ और गाता हँ
"हाँ चलते ह, पहले इसक किवता तो सनु ल, सारी रात बैठ के िलखी ह"ै- मरेी कछ
ु अपने नए तर नमु के साथ।
ओर इशारा करते हए कहा। इ टरनेट के मा यम से पता चला िक गीतकार किव दवेल आशीष का
िनधन 4 जनू 2013 को लखनऊ म हो गया। इस ख़बर के साथ मरेा
"सर सनो
ु और बताओ, कै सी ह!ै" - उनको बैठने के िलए कहते हए मने कहा उनसे िमलने का सपना भी समा हो गया पर उनक किवताय और
और आगे क पिं याँ पढ़ी। गीत आज भी मरेे साथ ह। किव दवेल आशीष को मरेी किवताएँ ही
"यौवन सजा दो अलक के चमन म मरेी स ची ाजिल ं ह।ै आज भी जब ये ेम गीत गाता हँ तो इस किव
चमन िखला दो ी म तन के िमलन म क आवाज़ मरेे ह ठ से सनाई ु दतेी है और जब भी इस गीत को पढ़ता
िमलन कर दो इस उजली धपू का हँ तो नयी पिं याँ अपने आप जड़ती
ु चली जाती ह।ै
धपू सा उज़ाला च दन के रगं प का " ेम म िवरह क मझु े घरेे परछाई है
तो प क तन से आख ँ चार कर लो ि ये परछाई तन पर जैसे आ मा समाई है
एक बार जीवन म यार कर लो ि ये ।।" आ मा ये यार वाली िकसने जगाई है
"ये तनेू ही िलखी ह!ै या दवेल आशीष क सना जागते लोगो को िदया धोखा ही िदखाई है
ु रहा ह?ै"- ह र सर ने आ य के
तो धोखे वाली रात म काश भर लो ि ये
साथ मझसे ु पछा।
ू एक बार जीवन म यार करलो ि ये ।।"
"लड़के ने रात म जाग कर िलखी ह। तर नमु दवेल आशीष का ही है पर सही म *** इस एकल य का अपने गु को नमन ! शत-शत नमन !! ***

16
इसान
ं भी बाँस नह होता दय का िव ोह
& आिद य रजन
ं & आिद य रजन

िहदी
ं (िवशषे), ि तीय वष िहदी
ं (िवशषे), ि तीय वष

एक बरगद का पेड़ या िकसी का िनयं ण नह होता?


बड़ा तानाशाह होकर, दय क धड़कन पर,
फै लाकर अपनी तनाएँ
पहले उनके अदर या इनक वतं स ा होती ह?ै
ं ढका,
बाग से सभी पेड़ को हमारे शरीर म,
िफर, शायद
आम अम द शीशम को समझाकर
नीम के पेड़ को उखाड़ इन धड़कन के कने से अिधक वीभ स है
लगवा िदया, बगल के दसरेू बाग म इनका अचानक तेज हो जाना
चार फ ट गहरे गडढे् म धसा
ं िदया मझु े िशकायत है अपने दय से
उस बड़े नीम के पेड़ को
आिखर य तेज हो जाती है इसक गित,
पर बेचारा नीम, झकने
ु लगा
उसे एक लबें डडें से बाधं खड़ा िकया गया उस चहेरे के सामने आ जाने पर
पानी क टोटी उसके जड़ म घसा ु दी या, ये दय क बढ़ी गित
पर उसक आ मा अटक थी ितफलन है ?
दातनु तोड़ने वाले लड़के म
प े लेने वाली बिढ़या होठ क चु पी म कै द कछ
ु श द का,
ु म
उसके ऊपर फै ली करे ले के लताओ ं म झक
ु हई आख
ं म कै द उस ल जा का,
आिखरकार, सख ू कर लटक गया वो नीम सलझी
ु हई मु कान म कै द िनराशा का,
िगरे पेड़ पर चढ़कर सफे द कत
ु वाले ने या, दसरे
ू दय तक जाने को ितब
लोग को बताना शु िकया
नीम का पेड़ ग ना नह होता, वह एक सगीत
ं ह,ै
जो काटकर कह और लगा िदया हो सकता ह,ैये बढ़ी हई धड़कन
अचानक भीड़ म से िकसी ने कहा आवाज हो दय के िव ोह का
इसान
ं भी बाँस नह होता। िजसे बताया है मने,
अब उस चहेरे से ेम नह है मझ.
ु े ......

okf"kZd if=dk ^gal* 17


दीपावली से दीवाली आज़ादी मेरे दो त आज़ादी
& आिद य रजन
ं & जावेद जकरै
ु त
िहदी
ं (िवशषे), ि तीय वष एम. ए. िहदी

दीपावली पहले आती थी हारना मत -बचाना है आज़ादी को जैसे भी हो सके :


ह क सद रात क शु आत म वह कोई ऐसी चीज़ नह िजसे मसला जा सके
पर अब गम िदन म मनाई जाती है 'िदवाली' दो एक या अनेक, िवफलताओ ं से
ऐसा होने स,े या लोग क उपे ा या बेिदली से
सख ू गया है दीपावली के िदये का तेल या बेईमानी से,
पैसे से ले आयी जाती है झालर या ज़ोर ज़बरद ती, िसपाही, तोप
िफर पैसे दके र जलवाई जाती ह झालर या कारावास से
दीपावली के िदय के तेल सनद रह.े..
पैस से नह आते थे,,बि क आज़ादी कह से भी यँू ही नह जाया करती
पराू प रवार िमलकर भरता था खिशया ु ं वो इतज़ार
ं करती है
ेमी ेिमका भरते थे अपना यार सब कछ ु के चले जाने का
िकसान भरता था सतोषजनक
ं मु कान जब बाक़ नह रखी जाती शहीद क याद भी
बजगु ु इसे जलाते थे अपने आशीवाद से जब मरने लगती ह
लोग क आ माएँ
एक िनराश ेमी बता रहा था अपनी ेिमका से
जब ख़ म हो जाता है िज़दगी
ं का आिख़री अहसास ..
उसने दीपावली के िदये से जलाई है फलझिड़या,
ु ं
उस व त जहाँ क हर स त से
अब कोई उसे िसखाये कच
ू करता है आज़ादी का ख़याल
कै से जलाएं इन झालर से फलझड़ी
ु और सर उठाता है कोई कमीना
या इन झालर क शु आत तब से हई, करता है एकछ राज...
जब जवान लड़का माँ से दरू नौकरी करने लगा साथी...
बजगु ु अलग घर के अहाते म रहने लगे या जीत महान होती है ?
ेिमका ेमी से दरू हो गयी हाँ शायद, होती होगी-
या िफर जब िकसान मजदरू हो गया। पर अब, ऐसा लगता है ..
ऐसा भी व त गज़रा
ु होगा
जब पराजय महान होती होगी
जब महान होगी..
मृ यु और याकलता...

18
मेरी िकताब सकन
ु ू से खड़ा हँ
& जावेद जकरै
ु त & नीतेश ' ान’
एम. ए. िहदी
ं बी.ए.(िवशषे)िहदी
ं ि तीय वष

जो नह जानती िक म हँ भी बेचनैी म बैठने से अ छा है िक


उतना ही मरेा िह सा है सकन
ु ू से खड़े हो जाओ
िजतना मरेा नक
ु ला चहेरा शायद,टपकते हए आसँू
औसत से कान और शहद सी आख
ँ िटमिटमाती हई आशा बन जाये
आइने म िदखाई तक नह पड़ता मरेा अ स घने बादल के बीच
िजसे टटोलता हँ अ सर नेप य पर पहचकर

ग देार हाथ क मख़मली गोलाइय से िवकल हई नज़रे
और पी जाता हँ उ मीद क तलाश म,
ये कड़वा सच िक असली श द मानक पर रगड़ा भी गया,
जो मझु े कर रहे ह य , उ ह प न म ह पर मनै कोई िति या नही दी
जो नह जानते मझु े , िशिथल पड़ा िमट रहा हँ म,
उनम नह िज ह िलखा है मने … शू यता क असीमता म,
यँू ही है आ माओ ं के साथ ं धी हई आवाज़ म हकार
ं नही,
चलता ये आलाप...!!! अब म हािसये पर ह,ँ
अि त व क टकराहट रोज होती ह,ै
िवखरता ह,ँटटती
ू है उ मीद,
'मच'
ं बहत 'बड़ा' लगता है पास से
म दरू हँ पर छोटा नह
ु ू से खड़ा ह।ँ
सकन

okf"kZd if=dk ^gal* 19


या िलखँू म ऐसा हो जाता हँ
& के शव & के शव
रसायन िव ान, ि तीय वष रसायन िव ान ऑनस, ि तीय वष

कॉलेज क मगैज़ीन छपने वाली ह,ै तु हारी अदाओ ं का म


िमला मझु े यह समाचार। दीवाना हो जाता ह,ँ
बात कर के तमसे ु
सोचा… तो या म िलख डाल,ंू
िपघल जाता हँ ।
आिटकल दो चार। मु कराहट
ु दखे तु हारी
कहानी िलखँू या किवता िलख,ँू िबखर जाता ह,ँ
या िफर िलखँू कोई लेख? भावनाओ ं म तु हारी
बह जाता हँ ।
इसके िलए म बैठ गया,
या क म ऐसा हो जाता ह… ँ
टेबल पर िसर टेक। तु हारी िजद के आगे
पापा से पछा,
ू म मी से पछा,
ू झक ु जाता ह,ँ
भयैा से पछा,
ू भाभी से भी पछा।
ू गु सा तु हारा दख े कर
सहम-सा जाता हँ ।
फौज पर िलखँू या चार पर,
बाल से खल े ना तु हारा
साथ-साथ नोटबदी
ं भी था िवचार। िदल को छू जाता ह,ै
सोचा बहत… पर बैठे – बैठे, पश से तु हारे
सबह
ु से शाम हो गयी । िबजली – सी पाता हँ ।
या क म ऐसा हो जाता ह… ँ
और, इ ही िवचार म खोकर,
तु ह भलनेू क कोिशश म
यह किवता तैयार हो गयी l
अधमरा – सा हो जाता ह,ँ
तु हारी याद म
अदर ं से टटू जाता हँ ।
दखी
ु तमको ु दख े कर
पागल – सा हो जाता ह,ँ
सदश
ं े ा तु हारा पाकर
उ सक ु हो जाता हँ ।
या क म ऐसा हो जाता हँ ।

20
ऐ िजदगी
ं मेरा वॉचमेन रोटी
& सा ी अहलावत & आदश िसहं & आदश िसहं
िहदी
ं (िवशषे) ततीय
ृ वष बी.ए. िहदी
ं िवशषे, ि तीय वष बी.ए. हदी िवशेष, ि तीय वष

एक चाँद के टकड़े
ु क
आज िजदगी
ं क िकताब म सारा शहर सो गया है
सड़क पे
नए प न से शु आत जगा हँ म और
नगें पाँव चलते
करती ह,ं मरेा वॉचमने
तन पर फटे पराने
ु कपड़े म
ऐ िजदगी
ं कछु नए रगं म जगा हँ उसके शरीर पर पड़ गयी थी
भरती ह।ं अपने वाब को सच झु रयाँ जैसे
सजाती हं तु हे कछ
ु मनचाहे करने के िलए पड़ जाती ह उ ढलने पर
रगो
ं और उ मीद से, और वो जगा है उसके हाथ भी सख
ू गये थे
जैसे सख
ू जाते ह पेड़ के प े
अब खदु से यादा तमु पर हजार सोये हए
कई िदन से
ऐतबार करती ह।ं वाब को सच म
भखा
ू नगा

साथ - साथ जब चलते हो तमु बदलने के िलए
घमू रहा सड़क पे
मानो परछाई हो मरेी, रोज आता है रातो म दो तीन हाथ म कटोरा िलए
तभी मरेा अ कहकर पकारा
ु बजे और लभा
ु लेता है इधर उधर
करती ह।ं मझु े अपनी अदाओ ं से दौड़ता रहता गािड़य के
मन को जीत िलया है मरेे गिलय से गजरता
ु है पीछे
छप
ु छप
ु के दख
े ता है
"िजते " हो तम,
ु मरेे बजाते हए सीटी
अपने हमदम सािथय को
म तु ही से यार करती ह।ं सद रात म घने कोहरे म
कल
ू जाते
उसका शरीर घल
ु िमल जाता है और िफ़र
उसके आख पे पर गए ह
एक िबदं ु म बदल कर ओझल हो जाता है । काले ध बे रोते रोते
मने दख
े ा है एक चाँद के
टकड़े
ु को रोटी ढँूढते हए
कड़े
ू के ढेर म मने दख
े ा है
एक चाँद के टकड़े
ु को

okf"kZd if=dk ^gal* 21


वासी सािह यकार तेजदर शमा से सा ा कार
& सयश
ु दीि त
िहदी
ं िवशषे, ततीय
ृ वष

आपके िहसाब से वासी सािह य क मल


ू अवधारणा या है ? िनभाना। मझु े िसनेमाई गीतकारो ने बहत भािवत िकया िजसम शल
ै े ,
सव थम कोई भी सािह यकार ये सोच कर नह िलखता है िक वह वासी शक ल और सािहर मख ु ह। शक ल क गजल, सािहर क न म और
सािह य क रचना कर रहा ह।ै ये जो आलोचक ह ये सािह य को खाच म बाँटते शलै े के गीत मख ु ह।
है और ऐसा य है इसका जबाब के वल वही दे सकते ह य िक ये जो खाच म या िसनेमाई गीत सािह य के अगं बनने चािहए?
बाँटता है िसफ िहदी
ं सािह य ही ह।ै अ य भाषाई सािह य उदहारण के िलए व र आलोचक ये यास करते रहे ह िक िसनेमाई गीत सािह य का
अं ेजी, जमन, च आिद सािह य म जो भी रचनाकार रचना करता है वह चाहे अगं न बन पाए पर तु मरेा मानना है िक ये सािह य का अगं बनने चािहए
िव के िकसी भी कोने म बैठा कर रहा हो वह मल ू सािह य ही िलखता ह।ै । एक गीत है शल
ै े का --
वासी सािह य जैसी श दावली वहाँ नह ह।ै वासी सािह य म भी घालमल े
“ िकसी क मु कराहट
ु पर हो िनसार, िकसी का दद ले सको तो लो
ह।ै हम उन यि य को भी वासी मान लेते है िज ह ने कभी भारत म वास भी
उधार,
नह िकया ह।ै उदाहरण के िलए िफजी, सरीनाम
ू आिद दशे के ततीय
ृ पीढ़ी के
लोग जैसे रजीव रमण आिद। अततः ं हम वासी सािह य क अगर एक मल ू िकसी के वा ते हो तेरे िदल म यार, जीना इसी का नाम है ।।”
अवधारणा बाधं तो कह सकते ह िक जो पहली पीढ़ी का यि िकसी अ य इस गीत म उ ह ने परीू िज दगी के फलसफे को बाँध िदया है और मरेा
दश
े म रह कर िलख रहा है उसे वासी रचनाकार और उस रचना को वासी मानना है िक ऐसे गीत को सािह य म शािमल करना चािहए। सािहर भी
सािह य माना जाना चािहए । वयं मरेे िलए दिवधा
ु है य िक भारत से जाने से िलखते ह िक ससारं से भागे िफरते हो, भगवान से या पाओगे। वही
पहले मरेे तीन कहानी सं ह कािशत हो चकेु थे, या मरेे वासी होने से वे गार
ंृ क बात कर तो मज ह सु तान परीु कहते ह िक वािदयाँ मरेा
वासी हो गए। अतः मझु े लगता है िक इससे वासी सािह य क पर परागत दामन रा ते मरेी बाँहे मरेे िबना तमु कहाँ जाओगे। इसके अलावा कई
अवधारणा क यि के वासी होने से रचना वासी हो जाती है , खिडत
ं होती ह।ै ऐसे िसनेमाई गीत ह िजनम िज दगी के फलसफे को िलखा गया है
सामा य सािह य जैसे ीवादी, दिलत सािह य, आिदवासी िवमश िज दगी के दद को बयाँ िकया गया ह।ै इन गीत को सािह य म शािमल
आिद खाचो
ं म बाँटा' हआ है वैसा कछ
ु वासी सािह य म भी है या ? िकया जाना चािहए । मरेा तो मानना है क शल ै े , शक ल और सािहर
को पाठय
् म म भी लाना चािहए।
हम वासी सािह यकार इन सब बातो म िब कल
ु भी िच नह रखते ह। हम
अ छी रचना आप तक पहचँाने के िलए यासरत ह। हाल ही म आपको ि टे न के िति त स मान MBE स मान से
स मािनत िकया गया यह स मान पाने वाले आप पहले िहदी ं
समाज को सािह य को इन खाचो
ं म बाँट कर पढना चािहए ।
सािह यकार थ।ेआपको यह परु कार लतेे समय कै सा महससू हआ ।
पढ़नेवाले को िसफ सािह य पढ़ना चािहए। उसे सािह य को खाचो
ं म नही
जब मझु े ि टेन क महारानी का मल े आया क मझु े इस स मान से
बाँटना चािहए। इससे सािह य का दायरा सीिमत होता है ।
नवाजा जायेगा तो मझु े लगा िक ऐसा कै से हआ य िक िहदी ं सािह य
आपको िसनमेाई गीत म बहत िच है इसक रण
े ा आपको कहाँ से िमली? के िलए पहली बार िकसी को िमला। मझु े लगा यह परेू िहदीं जगत का
िफ़ मी गीत मझु े हमशे ा से आकिषत करते थे य िक वह एक िवशषे प रि थित स मान ह।ै यह अं ेजी के गढ़ म िहदी
ं सेनािनय का स मान ह।ै अतः म
म िलखे जाते थे, उनके िलए एक िवशषे धनु बनती ह।ै इन सभी पहलओ ु ं पर यह स मान अपने हर छोटे बड़े के साथ बाँटता ह।ँ परु कार लेते समय म
नज़र रख कर गीतकार गीत िलखता है व िज दगी का एक पराू फलसफा हमारे वयं को िहदी
ं का राजदतू महससू कर रहा था। मरेा मत है िक ि िटश
सामने ख च दतेा ह।ै वतमान समय म िफ़ मी गीत ने लोक गीत क जगह ले राजघराने क यह महर ु इस बात का सबतू है िक भिव य म िहदी ं को
ली ह।ै उदाहरण के िलए राखी म अब लोग गाते ह भयैा मरेे राखी के बधन
ं को आगे बढ़ने से कोई नह रोक पायेगा ।

22
जब तमको
ु देखता हँ उ ह रा त से
& हरे तवर
ं & शिकत
ं कमार

रसायन िव ान ऑनस, ि तीय वष एम.ए. िहदी

समय क-सा जाता है कोई कपन ं नह ह म


सासं थम-सी जाती है िदन गजर ु गया है
रात गजरती
ु जाती ह
जब तमको
ु दखे ता हँ और हम दख े रहे ह ि ितज पर डबते
ू चं मा को
िकतनी यारी हो तम।
ु सयू का चबन ंु लेते हए
धड़कन सहम-सी जाती है भात क थम िकरण के साथ
िनकल हम जाएगें उ ह या ाओ ं पर
आख
ँ े भर-सी जाती ह ( तमु साथ चलना ि य )
जब तमको
ु दखे ता हँ जाना है हम
िकतनी मासमू हो तमु उ ह रा त से

िदल खश जहाँ से हमारे पवज


ू ने अपनी या ाएँ परीू क
ु हो जाता है
(सदह
ं े है मझ)
ु े
मन उछलने लगता है
जब तमको
ु दखे ता हँ
िकतनी उ मादक हो तम।

शरीर क-सा जाता है
दय उमड़ आता है
जब तमको
ु दखे ता हँ म
िकतनी प रप व हो तम।

okf"kZd if=dk ^gal* 23


तमु काम करेगा जो - नाम करेगा वो
& सिचन शु ला & िगरजाशकर
ं कशवाहा
ु 'कशराज'

िहदी
ं िवशषे ततीय
ृ वष िह दी िवशषे, थम वष

सबह
ु क पहली िकरण म मरेे ेम प का पता जो हमशे ा मझु े ो सािहत करती ह;ै
तम;
ु तम;
ु जो मझम
ु नया जोश भरती ह,ै
फल कतरते
ु तोते म मझु पर चढ़ा सबसे गहरा रगं जो मझसे
ु अपनी हर बात साझा करती ह;ै
तम;
ु तम;
ु उसम शौय ह;ै साहस है और वािभमान,
उछलती-कदती
ू िगलहरी म मरेी किवता का पहला श द िफर भी वह करती न कभी अिभमान;
य रहते हो इतने य त? कहती मझु े वो,
तम;
ु तम;

म बोलता काम करे गा जो नाम करे गा वो...........
हरी कोमल घास म तु ह तु ह तु ह तु ह
तम;
ु तम।

कोयल क क-क
ू ूम म, नसरत,क
ु वाली
तम;
ु और तम;
ु लह
बा रश क रमिझम फहार
ु म म,अनपम,तानपरा
ु ु & उ कष सोनी
बी.एस.सी.(िवशषे) जलोजी
ू ि तीय वष
तम;
ु और तम;

चाँद क शीतलता म म, िशवम, बकबक ल ह इतजार
ं के कटते य नह
तम;
ु और तमु हम राह ताक-ताक कर थकते य नह
य -त -सव म,अिभषक
े , खाना वािहश को पाने क है अपनी आरजू
तम।
ु और तम;
ु फासले दरिमयान ये िमटते य नह ।
मरेी ाथना क बदबदाहट
ु ु म, लाखन, दशन ल हे इतजार
ं के कटते य नह ............
तम;
ु और तम;
ु परवाना शमां के िलए, य इतना बेताब
मरेी ती ा का फल म, अवनीश,गािलयाँ हर बार ज म लेता ह,ै होने को उसम ख़ाक
तम;
ु और तम;

यास कै सी शमा क , जला दीवाने को
मझु े िमले आशीवाद का जोड़ म, मे ो, बस
ये थमती य नह ये कती य नह
तम;
ु और तम;

ल हे इतजार
ं के कटते य नह ?.......
मरेे गमले म िखला गलाब
ु म, किवता,श द
शाम इन सबह
ु का, कै से करती इतजार

तम;
ु और तम।

मरेे जीवन क सबसे खबसरत
कै से कट जाते ह, िदन महीने और साल
ू ू घटना
तम;
ु आिशक है मरेी, या जादगरी
ू तेरी
एक पल भी अब तेरे िबन गजरता
ु य नह
ल ह इतजार
ं के कटते य नह ?.....

24
सह लेता हँ तेरी सवाई का सोच के
अि त व थोड़ा ही सही पर दद मझु े आज भी होता है
& उ कष सोनी
बी.एस.सी.(िवशषे) जलोजी
ू ि तीय वष
आज राहे अके ली ह तो या, चलना तो कल भी पड़ता
हमसफ़र नह तो या, सभलना
ं तो कल भी पड़ता
कई बार अपने वजदू से सवाल करता हँ
मरेे आजाद याल मझु े अब भी यारे ह
इन रगं भरे जहान म म या अि त व रखता हँ ?
उसे िजताने के िलए हम सब कछ
ु हारे ह
पवन क पि य से होती फसफसाहट
ु ु सनना
ु चाहता हँ
या हआ जो मरेा चाँद कही खो गया
बादल का सरज
ू छपाने
ु का हनर जानना चाहता हँ
या हआ जो वह मझसे
ु जदा
ु हो गया?
िदल करता है कोयल से भी मीठा गाने का
आसमान म और भी कई िसतारे है |
पहली बरसात म मयरू के साथ मदम त हो जाने का
खदु को हवाओ ं सा आजाद पाता हँ
एक ठडक
ं और सकँू भरा एहसास बन जाता हँ
अके ला रहना चाहता हँ पर त हा नह बचपन
व से अलग हए एक ल हा सही & हािदक अ वाल
नातक भौितक िव ान ि तीय वष
आसमान से टटता
ू तारा बनाना चाहता हँ
कहाँ गए वो िदन जब ब चे थे हम ,
खदु िमट के सब के गम िमटाना चाहता हँ
कहाँ गए वो िदन जब स चे थे हम,
पर सवाल अब भी वजदू से ही करता हँ
जब िश ा के िलए क उठाया,
आिखर इन रगं भरे जहान म म या अि त व रखता हँ
किठन प रि थितय ने चार ओर घरेा बनाया,
भारी ब ते ने कधो
ं को झकाया,

माँ-पापा क उ मीद पर जब खड़ा होने का मन बनाया,
अनेक िज मदेा रय ने हमे लाया,
अधरी तब हताश मन ने यही गया,
ू चादनी
ं कहाँ गया वो बचपन हमारा,
& उ कष सोनी
बी.एस.सी.(िवशषे) जलोजी
ू ि तीय वष कहाँ गया वो बचपन हमारा,
कछ
ु शाम आज भी त हा है न ऊँच-नीच क थी िफ़ , न जात-पात क थी िफ़ ,
कछ
ु राते आज भी अके ली है जैसे जैसे बढ़ती गयी उ , िदखने लगा कल ु का असर,
चाँद आज भी उसी िश त से चमक रहा है न जाने कै सा है ये सफर, िकस बयार का है ये असर,
बस तेरे िबना चादनी जो मजहबो म अतर ं िदखलाये,
ं अधरीू है
इसान
ं को भदेभाव िसखलाये,
झठू कहता ह,ँ िदल मरेा आज भी रोता है
हे परमा मा ! तू कोई जादू ऐसा िदखला द,े
चपु रहता ह,ँ गम मझु े आज भी होता है
अपने इस ब चे को िफर से ब चा बना दे |

okf"kZd if=dk ^gal* 25


कभी बा रश क इन बदंू म
सोशल मीिडया और मानव कभी कड़कड़ाती धपू म
& हािदक अ वाल तो कभी रगं क बहार म
नातक भौितक िव ान ि तीय वष
कभी छल िकये हार म
इटरने
ं ट का बढ़ता मायाजाल,
म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक.........
मनजु भल
ू रहा घर- प रवार,
कभी व के साथ
फे सबक,
ु हाटस
् प कर रहा धमाल,
सजाकर तो दख
े ो
लोग कर रहे अथदडं वीकार,
तो भी इतनी ही सु दर नज़र आउगी

नेट रचाज के िनत नए िझकाल,
तब भी इतना ही अपने आप को
िसमट रहा पा रवा रक सरोकार,
मोहक बनाऊँगी
दबोचे हम बन मकड़ी जाल,
म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक...........
कसर जैसा इसका ससार,

य दतेे है ये स जा
कोई उपाय करो त काल,
या िमलता है
न हो रहे है सं कार |
या आता है
तमको
ु मजा
म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक.............
म ढ़कँू तो ढकँू कहाँ तक
मई भी इ जत क एक मरत
ू हँ
& पजा
ू आया
िहदी
ं िवशषे ततीय
ृ वष िदल से वीकारो

म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक..............

कभी लोगो क बात म शायद इस य न के साथ भी

तो कभी समाज के इन रवाजो म व के साथ म अधरीू नज़र आऊँगी

कभी िच कार क कितय म और उ भर बनकर '



तो कभी लेखक क कहािनयो म पछती
ू रह जाउगी

म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक......... म ढकू तो ढकू कहाँ तक...........

कभी शायर क शाय रय म


तो कभी ौपदी क साड़ी म
कभी राह चलती गािड़य म
तो कभी आख क हवैािनयो म
म ढकँू तो ढकँू कहाँ तक........

26
मेरी यारी दीदी मेरे ज बात
& स यम & स यम
सं कत
ृ िवशषे ततीय
ृ वष सं कत
ृ िवशषे ततीय
ृ वष
अपनी बीती िजदगी ं को जब हम याद करते ह
मरेे हर दःख
ु को समा ले गयी अपने जहन म खदा ु कसम उसम तु हारा ही दीदार करते ह
यह ताकत है बआ ु मरेी बहन म तु हारी याद म हम मदमद ं ं मु काते ह
मरेी गलितयाँ कर ले दफ़न जो खदु म िफर भी पता नह य आख ँ से आसं ू झलक आते ह
यह सि नम ख़ोज है मरेी बहन म तु हारी याद क कशमकश ने हम लड़ना िसखा िदया
जब भी खदु को अके ला पता हँ आरजू िम नत और दआ ु करना भी िसखा िदया
दीदी तमको
ु अपने साथ पता हँ उदासी भरी िनगाह से लब को हसँना िसखा िदया
ज़माने क भीड़ म जब खो जाता हँ बझीु हई िचराग से िदये को जलाना िसखा िदया
तमको
ु याद कर घर लौट आता हँ गवाह है हर मिदरं मरेी वफ़ा क
न जाने कब हो जाए तु हारी िवदाई हर जलती हई दीप ने तेरी दआ ु क
कै से बदा त क ँ गा वो जदाईु हर बजते घटें ने बस तेरी म णा क
समाज ने बना िदया इसे र म-ए-खदाई
ु बदं आख ँ ने हमारे िमलन क क पना क
इस बात से है मरेी उस रब से लड़ाई िफर भी तमु ठी रही
तू जहाँ भी रहे खश ु रहे अपनी नजर म उठी रही
खशब ु ू क तरह महकती रहे िमलन को अिभशाप समाज पछताती रही
बाबल ु का यार तझको ु िमलता रहे अपने ही धनु म गाती रही
या फक पड़ता है हमारा साथ रहे न रहे वादा है ये मरेा तमसे

एक भाई क बस यही है आराधना दरू न होगी तमु मझसे ु
परीू हो बहन क हर साधना बस एक आभास चािहए तमसे ु
उपर वाले से बस इतना है कहना िक कभी खदु को अलग न समझना मझसे ु
सदा खश ु रहे मरेी यारी बहना

तेजस िच ताओ ं से मन भारी था कभी चटाई कभी वो खिटया


फटपाथ
ु भरी अब हर पहर लग रहा था बचपन से काटी मौज से रितया
& सयश
ु दीि त जग सो रहा बस म जग रहा था कभी कब ही सोया म पेड़ क साख म
िहदी
ं िवशषे ततीय
ृ वष तन को रख धरा माँ के हाथ म पर एक रात गजारी
ु आज फटपाथ ु म
कछ
ु अनजान लोगो के साथ म एक रात गजारी
ु फटपाथ
ु पर भोर भई तो अिखया
ं खोली
एक रात गजारी
ु फटपाथ
ु पर थके सर को धरा माँ ने सहलाया तो एकाएक िज हा बोली
उमगं और सोच के इतर सब खो गया पता न द का नए शहर म बतलाया नह म अके ला , भीड़ थी मरेे साथ म
नए शहर म आसँू भी बह कर खो गया िफर म पहचा
ं व न जगत के बाग म एक रात गजारी
ु मने फटपाथ
ु म
बस एक वासन म तन गाँधी था झमा
ू म अपने गाँव के ममतामयी राग म
okf"kZd if=dk ^gal* 27
िहदी
ं िवभाग, हसराज
ं कॉलेज ारा आयोिजत
ितयोिगताओ ं म परु कत
ृ रचनाएँ
अपनी तनाए,ँ उनका िव तार करने के िलए दतेे ह। यही अगर हम
िव बध
ं ुव इ सान के साथ हो तो िकतना अ छा हो। िकसी दशे को अनाज क
& आिद य रजन
ं तगी
ं से नह जझना
ू पड़े और न ही िकसी दशे के आ मण से। तब एक
िहदी
ं (िवशषे), ि तीय वष, हसराज
ं कॉलेज ाम क सक ं पना साकार हो जाएगी। उपिनषद के िकसी ोक म
मान लीिजए दो बाग ह। िब कलु आस-पास एक दसरे ू से सटे हए। या हम भी यह विणत है िक 'इक े चल, एक जैसे बोल और सबके मन एक
उनके बीच िसफ एक मड़े बनाकर उ ह दो भाग म बाटं भर दनेे से उनके बीच से हो जाव।’
बहने वाली हवाओ ं को रोक सकते ह? या सयू से िमलने वाली रोशनी को
सोिचए कै सा होगा अगर सारी दिनया ु इन रे खाओ ं के मोह को छोड़ द।े
रोक सकते ह? या जड़ ारा सोखी जाने वाले जल को बाटं सकते ह?
तब न कोई िहटलर यहिदय को काटेगा, न ही अमरीका िहरोिशमा
शायद आपका उ र होगा नह । चाह जो कर ल, कोई दीवार खड़ी कर ल
पर एटम बम िगरायेगा। न ही इराक़, पािक तान आिद अनेक दश े म
आप उ ह एक दसरे
ू पर अ यो याि त होने से नह रोक सकते। आतकवाद ं फै लाएगें । तब साइबे रया का बफ, अ का का
यह उदाहरण हम इसानं के ऊपर भी उतना ही लागू होता ह।ै उ ह भी हम चदं रे िग तान, खाड़ी के तेल उ पादक दश े , ाजील के वन, भारत क
रे खाओ ं ारा अलग-अलग नह कर सकते। अगर कछ ु भी हमारे हाथ म नह मनोहारी जलवायु सब कछ ु सबका होगा। इितहास गवाह है िक जब-
है तो ये िदखावे क रे खाएं िकस काम क । दिनयाु का कोई दश े नह है जो जब कोई िसक दर दिनया ु जीतने िनकला ह,ै कोई िहटलर परीू दिनया ु
दिैनक उपयोग क सभी व तओ ु ं का उ पादन करता हो। जब भारत गेहं के का तानाशाह बनने िनकला है तो मारी गयी है के वल 'मानवता'। उस
िलए अमरीका पर, याज के िलए पािक तान पर आि त ह।ै पराू िव िसक दर, िहटलर ने चदं रे खाओ ं के अदर ं िसमटे े के िलए इसान

अ क के िलए भारत पर, चीनी के िलए ाजील और भारत पर, तेल के िलए को न िसफ मारा, बि क पैदा िकया है एक भय। उन चदं रे खाओ ं के
खाड़ी के दश े पर िनभर है तो िफर रे खाओ ं का यह ढ ग य रचाया जा रहा? ित इतना भय िजससे ज म लेती है ई या। या रे डि लफ रे खा,
िववेकानदं ारा १८९३ ई. म अमरीका म िदए भाषण का स बोधन "मरेे मक ै मोहन रे खा के उस पार दसराू सयू ह,ै उधर दसरा
ू च मा ह।ै या
अमे रकावासी भाइय एवं बहन " के वल एक स बोधन मा नह है बि क उस पार का इसान ं िसफ इस िलए भारत आिद दश े से नफरत करे गा
वहाँ उपि थत िव भर के लोग के स मख ु " वसधवु ै कटु ु बकम" के िवचार िक उसका ज म बस एक पतली लक र के उस पार हआ ह।ै हम चदं
को जीवतं करने वाला स दशे था। यह मानवता का सदशं े था जो परेू िव के रे खाओ ं को इतना शि शाली बना रहे ह। हम बहत कछ ु ख म करना
लोग को एक ही अश ं होने क या या करता ह।ै िववेकानदं कहते ह , "हम है इस दिनया
ु से, तो िफर साथ िमलकर ख म कर न, य हम रे खाओ ं
सभी समान ह, इसीिलए हम एक स दाय के प म सगिठत ं हो जाना के प म एक नया श ु पैदा कर रहे ह। हम इनके िलए लड़कर अपनी
चािहए। पर तु इस म म हमे समता िवरोधी होने से बचना ह।ै" शि यथ कर रहे ह। शषे चनौितय ु को ख म करने के िलए हम साथ
िव बधं ु व क आव यकता को हम इस उदाहरण से समझ सकते ह। सोिचए आना ही पड़ेगा। बचपन म पढ़ी वो लकड़ी के ग र वाली कहानी इस
एक आदमी िसफ आम के पेड़ से पराू बाग भर दे तो आप उसे िकस प म बात को िब कल ु साफ कर दतेी है िक हम उन ग र पी अनेक
दख
े गे, एकदम नीरस। अगर वह कछ ु आम, अम द और अ य िविभ न चनौितय
ु को साथ िमलकर ही तोड़ सकते ह।
आकार,रग, ं प के पौधे और साथ म उन पर कछ
ु लताए,ं फल ू भी पसरे ह तो िव बधं ु व क िवचारधारा कोई आज का िवचार नह है बि क
शायद उसे आप यादा मह व दगे। हमने दख े ा है बड़े पेड़ छोटे पेड़ को ाचीन मनीिषय ने ही इसक या या क ह।ै वसधव
ु ै कट
ु ु बकम" के

28
सू ारा भारतीय मनीिषय ने िजस उदार मानवतावाद का सू पात िकया था सदभं म अ यतं सराहनीय ह।ै कछु उदाहरण को दख े तो पि मी
यह पार प रक स ाव पर िटका ह।ै यह अवधारणा ' व' और 'पर' के बीच क और पवू जमनी का एक होना, सी रया के पीिड़त को िव भर के
खाई को पाटने का काय करती ह।ै दशे ारा शरण दनेा, उ री एवं दि णी को रया का शीतकालीन
"अयं िनजः परो वेित गणना लघचत ु े साम।् ओलि पक म साथ िमलकर खल े ना िव बधं ु व क भावना के
जीवतं होने का माण ह। अगर हाल ही म दख े तो बां लादश
े जो
उदारच रतानां तु वसधव
ु ै कट
ु ु बकम् ।।"
िक आिथक प से काफ कमजोर है उसने यामार ं से आये
येक दश
े के िवचारक इसके प म खड़े होते ह। वामी िववेकानदं के बाद
रोिहं या शरणािथय को शरण दी, उनके िलए अपना एक ीप
महा मा गाधी
ं ने इस सदभ ं म अपने िवचार ततु िकये ह। महा मा गाधीं खाली करा उ ह वहां बसाया जो िक यह दिशत करता है िक
िलखते ह िक,''भिव य म सारी दिनया
ु म शाित,ं सरु ा एवं गितशील िव के िव ब धु व का भाव अभी जीिवत ह।ै यह सभी के िलए एक
िनमाण हतेु वतं रा के सघं क अ यतं आव यकता ह।ै इसके अलावा
स दश े है िक हम मानवता को जीिवत रखने के िलए वयं के
आधिनक
ु िव क सम याओ ं के समाधान हतेु कोई अ य माग नह ह।ै" अलावा परिहत को भी यान म रखना होगा। इस े म सभी
वतमान दौर क बात कर तो कई दश े एवं सगठन
ं िव ब धु व क सक ं पना कायशील ह। सबके अदर ं इस भावना का सचार
ं हो, सभी य न
को साकार करने का य न कर रहे ह। बौ धमगु दलाई लामा का काय इस कर रहे ह। िक तु इस े म और काय अपेि त ह।ै

िव ास है तमु आओगी ेरणा


& श भू अमलवासी & आयषु पा डेय
िहदी
ं ित ा ततीय
ृ वष,स यवती महािव ालय बी.ए. िहदी
ं िवशषे थम वष, हसराज
ं कॉलेज
बस क िखड़क से बहार झाकते ं हए
कई बार चाहा मने िक इस समय के साथ िबना ेरणा के िलखँू गीत कै से ज़ री
चल रही र तार को कछ ु समय के िलए रोक लँू बस! कछ ु समय के िलए। िबना ेरणा या कलम को उठाऊँ सात समदर ं ये बन जाये याही
म इन भागते पेड़ और इन चटानो को ,एक बार िफर छना ू चाहता ह।ँ जो जीवन म आओ मधरु ेरणा तमु मगर िफर भी पड़ जाए याही अधरी।ू
म चाहँ तो इन पेड़ो क र तार को रोककर तो िफर क पना म म डबक ु लगाऊँ। मासमू मरेे दय को यँू छना

उनको छकर
ू च ान पर भागकर चढ़ सकता हँ सरजू क िकरण सा बनकर तमु आना िक िफर धड़कन भी एक गीत गाए
म उस च ान क ऊँची छोटी पर जाकर आकाश म दख े कर, मझु े करना पागल, खलकर
ु लाना हर एक क पना एक बल वेदना हो
तु ह आवाज़ लगा सकता ह.ँ.िक तमु एक बार िफर आओ पतझड़ का मझको ु एहसास दक े र हर एक अ र आसं ू बहाये।
और छओ ु मरेे साथ इन हरे -हरे पेड़ को ,दख े ो मरेे साथ तमु इस हरयाली जीवन मे उ वल मधमास ु लाना। मरेी ेरणा मझम
ु कछ ु न बचा हो
को , जो अब
म थल हए िदल पे खलकर ु बरसना मरेी ि थित को कछु ऐसा बनाना
पहले जैसी नही है ,जब तमु मरेे साथ थी।
क पना को तमु एक आयाम दनेा िदनभर का मरेा जीवन यही हो
अब उस च ान पर िकसी हमारे जैसे लोग ने
हमी पर अपना- अपना नाम गोद िदया है
बेताबी, बेचनैी, बेिफ हो िजसम कछु दरे रोना, कछ
ु दरे गाना ।
और िमटा िदया है हम दोन के नाम को। गीत को ऐसी एक पहचान दनेा। यथाथ क यथता मझको ु िदखाकर
पर म अपने आप से ये वादा करता रहता हँ मरेी ेरणा तमु कछु ऐसे आना क पनाएँ सारी मझु े बेच दनेा
िक तमु हरे -हरे पेड़ को िफर से छओगी
ू और िक हद से भी यादा लगे िव यारा मरेी लेखनी क बन कर वजह तमु
िफर वो पहले जैसे हरे भरे हो जायगे....तमु मरेी क पना को यू िव ततृ बनाना मरेी लेखनी को वजह एक दनेा ।
आओगी उसी च ान के पास...जहाँ हमारा नाम क छोटा लगे िफर ये आकाश सारा।
अब अपना अि त व खो चका ु ह.ै.. िक उस खो मरेी ेरणा मझको
ु करना यँू े रत
चकेु अि त व को तमु एक बार िफर िक िफर जीवन म बस हो िलखना
उस च ान पर उके र के जाओगी
" िव ास है तम,आओगी
ु "

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अथात् दिलत से भी वीभ स ि थित ि य क ह।ै ी शि क
ी शि प रक पना तब तक साकार प नह ले सकती जब तक वे अपने
& हिषत राज ीवा तव शोषण से प रिचत नह होगी।
बी.ए.(िवशषे) िहदी,ततीय
ं ृ वष
िकरोड़ीमल महािव ालय ी शि क सक ं पना उनके आिथक सशि करण के िबना सभव ं
ी शि के सगं म एक शरे को जोड़ कर दख
े ा जा सकता है िक - नह ह।ै परापाषाण
ु काल से ही ससाधन
ं पर एकािधकार पु ष स ा का
ही रहा ह।ै
'तेरे माथे पे ये आचँल तो बहत खबू है
पर इस आचँल से तू परचम बना लेती तो अ छा था' सबसे मह वपणू और आ यजनक यह है िक िजस िपतसृ ा ने उनका
शोषण कर उनको दोयम दजा दान िकया है वे उस िपतसृ ा क ही
ी या एक सामािजक पहचान है या िलगं आधा रत यव था। वा तिवकता
प रपोषक ह। एक बहन या माँ के प म वे उसी िपतसृ ा को पोिषत
म 'य नाय तु पू य ते रम ते त दवेता' जैसी आदशवादी पिं सनने ु म िजतनी
करती रहती ह।ै यिद वे अपनी वचतेना क भावना को पहचान लेती
मधरु है उसके पीछे क वा तिवकता उतने ही भयावह ह।ै आिदकाल से ही पु ष
है तो वे िनि त तौर पर स ा का िवक ीकरण करने म स म ह गी और
समाज ने उसे दगा ु माँ, सर वती माँ बनाकर उसे ससाधनिवहीन
ं कर िदया ह,ै या
इस िवक ीकरण से जो उजा िनकलेगी वह ी को सश एवं समृ
तो उसे सीधे जमीन पर लाकर खड़ा कर िदया। उसे सदवै सामािजक अिधकार
करने म सहायक होगी।
से विचत
ं रखा गया।
िहदी
ं सािह य म वु वािमनी भी अपने समाज म मख ु तीन स ाओ ं
ी शि क भावना क अिभ यि इस त य से पु होती है िक इस सिृ के
से लड़ रही थी। वह िपतसृ ा, राजस ा व धमस ा से सघष
ं करती ह।ै
िनमाण म नारी भावना ही धान रही ह।ै पृ वी, गाय, माँ आिद नारी के ही
भारतीय समाज म भी दिलत ि याँ इ ह यी शि य से लड़ रही ह।ै
ित प ह। यह हमारे समाज क िवसगित
ं ही है िक उसने कभी इसे एक शि के
जयशकरं साद िलखते ह –
प म िति त ही नह होने िदया।
पु ष व के मोह म भल
ू गये कछ
ु स ा है नारी क
ी शि क सबसे मख ु बाधक िपतसृ ा मक सोच तथा इस मानिसकता से
उपजी वह यव था है जो ी को दोयम दजा दान करती ह।ै समाज क यह सहचर स ब ध बने, अिधकार व अिधकारी क ।”
िवसगित
ं रही है िक उसने ी को मनु य माना ही नह , हमश
े ा एक व तु के प
तभी वा तिवकता म साथक सशि करण सभव ं हो पायेगा व इसके
म उसक अि मता का दोहन करता रहा। ी शि क ारिभक ं लड़ाई ही उसे
प रणाम धरातल पर मतू होते हए िदखगे।
एक मनु य मानने क ह।ै अततः
ं हम बस इतना समझना होगा िक ी शि उसके वयं के
Simon the Bua कहती है 'one is not born, but rather become a अटटू सकं प और इ छाशि पर िनभर ह।ै ी सिृ का आधार ह।ै
women' अथात ी पैदा नह होती बना दी जाती ह।ै इसका आशय यह हआ 'रथ का दसरा
ू पिहया ह'ै किवता म किव ने िलखा है –
िक सं थागत प से एक ी का िनमाण समाज ारा कर िदया जाता ह।ै बचपन “एक ओर नारी को हम ा के यो य बताते ह
से ही ी के िलए गिड़या,
ु फल
ू आिद िखलौने िदलाये जाते ह और लड़के को
और णू क या को गभ म दफनाते ह]
ब दक ू जैसे िखलौने। बचपन म हमशे ा एक सं कत ृ अनवाद
ु करने को िमलता है
िक 'राम खल े ता है और सीता खाना पकाती ह'ै। आिखर य राम ही खले ता है यिद क या णू िशशओ ु ं क यंू ही घटती जायेगी,
और सीता खाता पकाती ह।ै वा तिवकता म ऐसी बहत सारी िवड बनाएँ ह जो िफर शादी जैसे बधनं क याद मा रह जाएगी
ी को सं थागत प से पु ष के दोयम दजा दान करती ह।ै िफर कै से सपने आयगे मधरु िमलन अहसास के
कै से कोई गीत िलखगेा, यार भरे अहसास के
मै ेयी पु पा जी दिलत और ि य के म य अतर ं करते हए प करती हए दिनया
ु सारी सनी ू होगी,सृ ी च क जाएगा |
कहती है िक “ि य और दिलत के शोषण म बस इतना ही अतर ं है िक दिलत कृ ण अके ले घमगू े,राधा से कौन िमलाएगा”
तो अपने शोषण से प रिचत होता है पर तु ि याँ अपने शोषण से अिनिभ
रहती ह।ै वे अपने शोषण को अपना दािय व समझकर उसका िनवहन करती ह।ै”

30
रटा िदए थे उसने अपने प रजन तक को
िजजीिवषा इजीिनय
ं रगं क तैयारी करने वाला
& ल य आनदं एक छटकऊ-साु छा भी यही कहता था
बी.टेक (ततीय
ृ वष) िक खदु उसके िश क तक उसे ग रयाते ह
िद ली तकनीक िव िव ालय वे कहते ह िक
ल य बु होने क कोिशश म
हर ज म म जैन दशन के वादवाद से आगे नह बढ़ा
शराब क तासीर वो रजनीश के िकसी दु ह उदाहरण-सा था
इसके पहले घटँू सी कड़वी आदश को ओढकर शराब पीता था
और आिखरी सी बेशम नह होती और जब रजनीश उसे खदु से दरू जाते िदखते थे
बि क, इन दोन के बीच के तब वो ओढ़ लेता था
अपने गाधीवादी
ं िपता के िवरोध का पसदीदा
ं क बल
वो सभी घटँू भी िगने जाने चािहए और वही क बल, उसे उसक भोली माँ के आचँल का
उन चीज़ क फे ह र त म आकाश भी दतेा था!
जो मरेे बाद, मरेे वा रस को िमलगी! एक आिखरी बात मरेे वा रस
उनम सबसे पहले, नामजद िकए जाएँ वो भरैो मिदर ं का पजारी,
ु मरेा िवरोधी कभी नह रहा
िपताजी का िवरोधी ह!ै
101 घटँू , मरेी ेयसी के नाम
और इसी आधार पर
मरेी प नी के अलावा आगे चलकर
उसके बाद मरेी साड़ी बौि कता तु हारा भी रहगँा
न थी क जाए, बाक के घटंू के साथ! सनो ु
उसके आगे तमु चले जाना बड़े मिदर ं के परोिहत
ु के पास!
और हाँ मरेे वा रस, इसम िकसी और का नाम मत िलखना
एक कॉलम बना कर िलखा जाये
मरेे अलावा!
िक बराु था। मरेे िपता का भी नह
गलाम
ु था अपनेपन का मरेी माँ का भी नह
यंू तो जीवन भर करता रहा किवता अपनी माँ का भी नह !
खदम ु ु तारी को खदा ु कहने क मरेे वा रस!
म तमसे ु वो सब कहना चाहता हँ
लेिकन, लेिकन मरेे वा रस म उतना भी बराु नह जो मरने से पहले
िजतना मरेे मिदर
ं का पजारी
ु कहता है 'सकरात'ु ने लेटो से कहा था
वो कहता है िक और वो सब भी
ल य हो सकता था िबल गेट् स जो जहर पीने के ठीक बाद
सी. वी. रमण, और यिद रोज काली मिदर और मरने के ठीक पहले
ं जाता
सोचा था 'सकरात' ु ने
तो शायद िववेकान द भी मगर तब तक
खरै,ये बात ज़रा बढ़ा चढ़ाकर िलखना मरेे वा रस ! सकरात
ु क जीभ
तािक सर न झकेु मझु जैसे बचे फक र का तालु से िलपटकर रोने लगी थी
हाँ, तो शराब बाले कॉलम म, सीधे सीधे िलख दनेा और लेटो भी!
िक िजदगीं को गाली दतेे-दतेे पीने बैठता था
और आसमान को गाली दतेे-दतेे
जमीन पर ढ प! ढेर हो जाता था

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6- laLÑrok³~e;s 'kkluL; fLFkfr%
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7- osnkuka egÙoe~ & LofLr% | 42
8- laLÑrHkk"kk;k% xkSjoe~ & jfouk | 43
9- laLÑrL; oSf'k"V~;e~ & t;Ñ".k% | 43
10- ;ksx% & fu'kkar% dqekj% | 44
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12- lnkpkj% & Le`fr% | 44
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19- gksfydksRlo% & lR;e~ dqekj% | 47
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444
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okf"kZd if=dk ^gal* 37


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ch-,- laLd`ra ¼fo'ks"k%½ r`rh;o"kZe~

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^;ksx* 'kCn% lek/;FksZ iz;qDrks·fLrA ;ksx% bfr inL;
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O;qRifÙkyH;% vFkZ% ¼fpÙko`fÙkfujks/k:ia½ lekf/k%A ;ksx% lokZlq
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i´~piokZ% vfo|k] vfLerk] }s"k%] jkx%] vfHkfuos'k%A
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dSoY;a izkIuksfrA ;e%] fu;e%] vklu%] izk.kk;ke%]
fpÙko`Ùkhuka fujks/ka ,o ;ksx% mDr%A
izR;kgkj%] /kj.kk] /;ku%] lekf/k%A ,rs"kq v"Vk³xs"kq
egf"kZosnO;klsu vUr%dj.klkekU;a ,o fpÙke~ mDre~ A rL; /kkj.kk] /;kulekf/k% lk{kkr~ lgk;dk% lfUr] ;ksxL;
vuqlkjs.k fpÙkizdk'k'khy%] ps"Vk'khy% LFkS;Z'khy% p vUrj³~xlk/kukfu mP;UrsA ;e% fu;e% p ;ksxL;
f=xq.kkRed% orZrsA fpRra ;fLeu~ :is o fLFkR;ka Hkofr vFkkZr~ fu"ks/k% fgalkn;forZdku~ uk'kf;Rok lek/ks% flf)a
ifj.kr% Hkofr rk% fLFkr;% ,o fpÙko`Ùk;% HkofUrA fpÙkL; djksfrA vU;s =;% midkjdk% lfUr vFkkZr~ vklus
vla[;o`Ùk;% HkofUr ij´~p lRokfnxq.kkuka izk/kkU;su rklka lfr izk.k;keR; fLFkjrk Hkofr rFkk izk.k;keL;
frlz% Hksnk% fØ;UrsA lkfRodo`fÙk% jktfldo`fÙk% rkefld fLFkjs lfr izR;kgkjL; flf)% HkofrA euq";k%
o`fÙk'pA cfgeqZ[kh HkwRok cgqfo/k nq%[ka vkIuqofUrA ,rs"kka
nq%[kkuka fuo`Ùks% Øekuqlkjs.k vUreqZ[kh Hkforqa ljyk
,rkH;% f=l`H;% o`fÙkH;% i´~pfo/kk o`Ùk;% orZUrsA f{kIr% ew<+%
mik;k% v"Vk³~;ksx% vfLr&
fof{kIr%] ,dkxz% fu:)'pA fpÙkO;kikjka ,rk% fofHkUuo`Ùkh%
vFkkZr~ fpÙkO;kikja fuxzg ,o fpÙko`fÙkfujks/k% HkofrA rFkk p ;e% cfgeqZ[krk;k% vUrHkkZoLFkk euq";k.kka vU;S%
,rkuka o`Ùhkuka fpÙks foyhu% Hkw;e~ ,o fujks/k% vfLrA izk.kfHk% lg O;okgkj% orZrsA vr% loZizFke:is.k ,oa
O;ogkfjda thoua ;eS% lkfÙod% fnO;a p HkforR;e~A
vkpk;sZ.k ir´~tfyuk&;ksxf'pÙko`fÙkfujks/k%A
ldkedekZf.k ;kfu tUeu% vk;ks% Hkksxkuka p
lw=s dsoya ^fpÙko`fÙkfujks/k%* ine~ vfLrA ^loZfpÙko`fÙkfujks/k% dkj.kkfu lfUr rFkk ckáO;ogkjk.kka lEcfU/ku%
uSoA ,rsu lw=dkjs.k lEizKkr% vlEizKkrlekf/k% f}/kk jkx%}s"k%] bZ";k± vfHkfuos'k% Dys'kk% ;eS% fuo`ra HkofrA
lekf/k% ;ksx% mP;rsA lexz:is.k fpÙko`Ùkhuka fujks/k% i´~p;ek% lfUr& vfgalk] lR;e~] vLrs;e~]
vlEizKkrlek/ks% fLFkR;ke~ ,o Hkofr] rFkkfi rLekr~ iwoZfLFkfra czãp;Ze~] vifjxzga pA vfgalklR;kLrs;&
lEizKkrlekf/k% vfi ;ksx% mP;rsA ,rkor~ ,o u czãp;kZifjxzgk% ;ek%A
lEizKkrlekf/k% fLFkR;ke~ vfi dsoya vfLerkuqxr% ,o u
fordkZuqxr% vkuUnkuqxrHkwfe% p ;ksx% mP;rs] ;rksfg ,rk% fu;e% fu;ekuka lEcU/k% LoL; O;fDrxr'kjhjs.k]
Hkwe;% Øes.k fpÙko`Ùkhuka fujks/kL; lksikua Hkw;u~ futhZolekf/ka bfUnz;S% rFkk vUr%djs.k lg HkofrA vr% fu;ekuka
izkIrqa lgk;dk% HkofUrA ;FkkFkZlsousu O;fDrhuke~ ckáO;kogkfjda thousH;%
jktlh] rkelh] fo{ksi% vkoj.k:ia eye~ p iz{kkY;
vH;kl% oS j kX;a p ;ks x L; mik;kS Lr%] rFkk lkfÙoda] ifo=e~ fnO;a p HkofrA i´~pfu;ek% mDrk%
ri%Lokè;k;s'ojizf.k/kkukfu fØ;k;ksx% vfi lek/ks% mik;k% 'kkSp%] lUrks"k%] ri%] Lok/;k;%] bZ'ojizf.k/kkue~ pA
lfUr] fØ;k;ksx% vH;kloSjkX;a p izdkjde~ p ;ksxlk/kukuka 'kkSplUrks"kri%Lok/;k;s'ojizkf.k/kkukfu
dFkua Øes . k mÙkeeè;ekf/kdkfj.ks p mP;s r s A fu;ek%A

38
vklue~ vkluL; lEcU/k% 'kkjhfjdfØ;;k lg
orZrs] ,rn~ 'kjhjk.kka la;e% orZrsA ,rsu 'kjhjk.kka Hkz"VkpkjL; mUewyue~
jt:ik papyrk vfLFkjrk p re:ie~ vkyL;a izekna & rkjds'oj% >k
p fuo`ZR; 'kjhjs"kq lkfÙodrk izdk'k% fnO;rk p ch-,- laLd`ra ¼fo'ks"k%½ f}rh;o"kZe~
mn~Hkw;rsA vkluS% 'kjhja LoLFk% y?kq% p ;ksxlk/kuL;
;ksX;e~ HkofrA vklue~ ; fLFkj% lq[knk;h p Hkosr~ Hkz"VkpkjLrq losZ"kka] ikikuka ewydkj.ke~A
vklue~ mP;rsA fLFkjlq[kekluEk~A
Hkz"Vkpkjs.k yksdkuka] lUefr% {kh;rs lnkAA
izk.kk;kke~ ,rfLeu~ ikz.kkuka xfr fu:á vFkok 'ku%S
dR`ok 'kjhjLFk vUrxfZra lkfÙoda HkofrA vkluL; d% Hkz"Vkpkj%\ vuqfprlk/kusu /kuksiktZue~A Hkz"Vkpkj%
fLFkjs 'okla i'zokla p fujk/skue~ i.zkk;ke% vfLrA ijwd% vud s :i% & ;Fkk mRdkp s xgz.ke]~ [kk|oLr"qkq v[kk|L; feJ.ke]~
dEqHkd% jps d% p ,rL; id z kjdk% lfUrA rfLeu~ lfr vuq f prlk/kus u /kuiz k fIr%] Los " Vdk;Z L ; la i knukFkZ e ~
'okliz'okl;ksxZfrfoPNsns izk.kk;ke%A mRdkp s inzkueA~ lkEirza Hkkjro"kZs Hk"zVkpkj% fo"ko{`kor~ loa/krZAs
mRdkp s nkue]~ mRdkp s xgz.ka p vkey w a n'`;rAs mRdkp s inzkua fouk
izR;kgkj% bfUn;zkf.k id z R`;oS fo"k;kUse[qkkfu HkofUrA jktdh;dk;ky Z ;kfn"kq LoYiefi dk;± lk/kf;raq u 'kD;rAs ins
r"skka cfge[Zqkrka vUre[Zqkhdj.ke~ bfUn;zkf.k ckáfo"k;Hs;% ins mRdkp s xgz.kleL;k orrZAs dosya lkekU;k% vf/kdkfj.k% ,o
fu:);~ eufl lfUu/kk; ,o iRz;kgkj% HkofrA ,rus v= u iozrUZr]s vfirq mPpkf/kdkfj.k% vfi vkey w e~ mRdkp s xgz.ks
bfUn;zk.kka vkyL;e~ iezkne~ rekx s .qke~ cfge[Zqkjtla iozÙ`kk%A ^;Fkk jktk rFkk it z k* ;nk mPpkf/kdkfj.k% mRdkp s a
'kUw;a dR`ok bUn;zkf.k lkfÙod:ia fpÙkus lg vUre[Zqka x`g~.kfUr] rnk fuEuinLFkk% vf/kdkfj.k% vfi fuHkZ;e~
dR`ok fnO;e~ Hkkof;rO;eA~ Lofo"k;klEiz;ksxs fpÙkL; mRdkp s xgz.ks iozrUZrAs Hkkjrs Hk"zVkpkjL; fLFkfr% Hk;kogk orrZAs
Lo:ikuqdkj bosfUnz;k.kka izR;kgkj%A lkekU;tuk% fdd a rOZ;foe<wk+ orUZrAs da uq 'kj.ka xPNkfe] u
/kkj.kk fpÙka o`fÙkek=s.k LFkkufo'ks"ks lfUu/kkue~ ,o dfÜpr~ eka J.`kkfsrA
/kkj.kk mP;rsA ns'kcU/kf'prL; /kkj.kkA Hkz"Vkpkj% 'krfo/k%A ;ks ;= orZrs] l r=So Hkz"Vkpkjs izo`Ùk%A
/;kue~ vL;ke~ voLFkk;ka /;s;a fogk; vU;fo"k;% u efU=.k% lkalnk%] fo/kk;dk% vfi ,rfLeu~ dk;sZ u yTtke~
izrh;rs rFkk vU;KkusH;% vfofPNUu/kkjk /;kue~ vuqHkofUrA
orZrsA rr~ /;kue~ ,o lekf/k% orZrs] ;fLeu~ /;kus lR;e~ ,rn~ ;n~ Hkz"Vkpkj% vlk/;ks jksx%A ijUrq fuiq.kk% fHk"kt%
dsoye~ /;s;% vFkZek=s.k vklrs rFkk rL; /;kuL; vlk/;kefi jksxa lk/;a dqoZfUrA ;Rus d`rs ufg fdafpn~ vlk/;a
Lo:ia 'kwU;feo HkofrA lek/;FkZ% orZrs /;s;oLrqfu HkofrA loZdkjL; f'kfFkyrSo v= izeq[ka dkj.ke~A ;fn
fpÙkL; fo{ksijfgrk ,dkxzrkA lek/ks% }kS izdkjkS Lr%A loZdkj% n`<+fu';;su izorZrs] rnk u fdafpn~ vlk/;e~A
lEizKkr% vlEizKkr% p lekf/k%A lEizKkrlek/kkS
/;s;oLrqu% Kkua HkofrA vlEizKkrlek/kkS /;krk rFkk Hkz"VkpkjL; fu"ks/kksik;k%A vkpkjf'k{kk;k% uSfrdf'k{kk;kÜp
/;kue~ mHkkofi /;s;kdkj% Hkofr ,r;ks% /;s;H;% 'krfo/k% izpkj% izlkj% p L;kr~A dBksjn.MO;oLFkk Hkosr~A
i`Fkd~ vuqHkwfr% u HkofrA vlEizKkrlek/kkS egkHkkjrs mP;rs& ^n.M% 'kkfLr iztk% lokZ%] n.M
/;s;oLrqu% Kkuefi u HkofrA /;s;% /;kue~ /;krk p ,okfHkj{kfr*A /kuyks y q i rk;k% ifjR;kxL; f'k{k.ke~ A
f=iqVhuka vfuoZpuh;r;k foyhu% HkofrA foykflthouL; ifjR;kx%A dBksjJeL; f'k{kkA jktiq:"kk.kka
pykpylaiÙks ?kks"k.kk vfuok;kZ L;kr~A euks% f'k{kk;k%
444
izlkj.ke~A ;Fkk&
v/kesZ.kS/krs rkor~] rrks Hknzkf.k i';frA
rr% liRuku~ t;fr] lewyLrq fou';frAA ¼euq % 4-174½
444

okf"kZd if=dk ^gal* 39


laLd`rHkk"kk;k egÙoe~
& v´tyh
ch-,- laLd`ra ¼fo'ks"k%½ r`rh;o"kZe~

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Lo&fopkjku~ izLrkSfeA laLd`rHkk"kk lokZlq Hkk"kklq izkphurek oSKkfudk p Hkk"kk orZrsA mnkgj.kLo:is.k& ;rksfg
Hkk"kk orZrsA b;a Hkk"kk u dsoya rs"kka d`rs vfLr ;s egkfo|ky;s laLd`rsu U;wuS% 'kCnS% vfi lUns'ka izs"kf;rqa 'kDuqe% vFk
fo|ky;s ok iBfUr ikB;fUr ok vfirq rs"kka d`rs vfi vfLr ;s p inkuka Øe% vfi v= ukisf{kre~A vR;k/qfudL;
tuk% vU;ku~ fo"k;ku~ tkufUr mr ok vU; {ks=s"kq layXuk% ;qxL; uklk oSKkfudk% ;r~ laM-~x.kdL; fuekZ.ka
lfUrA nSos% iz;qDrS% ,"kk laLd`rHkk"kk izkphule;s vLekda dqoZUr% lfUr rr~ l³~x.kda laLd`rs ,oa vkfJr%
ekr`Hkk"kk:is.k izfrf"Brk vklhr~A Hkfo";frA ,rr~ l³~x.kda 2034 res o"ksZ HkkSfrds
;Fkk o;a tkuhe% ,o laLd`rHkk"kk HkkjrL; vusdkuka Hkk"kk.kka Lo:is vkxfe";frA laLd`ra oSKkfudh Hkk"kkfLrA b;a
tuuh vfLrA ,"kk u rq dsoya Hkkjrh;Hkk"kk.kkeso vfirq Hkk"kk ljyk vfLr ,rsu dkj.ksu O;ogkjs vL;k%
fo'oL; vus d kuka Hkk"kk.kka ;Fkk& xz h d&teZ u & Hkk"kk;k% iz;ksxa lgt:is.k drq± 'kDuqe%A vL;k%
bZjkuhvk³xyknhuk^% Hkk"kk.kkefi tuuh vfLrA fo'oL; Hkk"kk;k% ljyizd`R;k dkj.ksu] laLd`r lEHkk"k.ksu
cgwuka Hkk"kk.kka 'kCnk% laLd`rkr~ Lohd`rk% lfUr mr~ laLd`rsu ^rfU=dkrU=a* ldkjkRedkos'ksu lfØ;% Hkofr rFkk
lEcU/kk% lfUrA laLd`rHkk"kk;k% 'kCndks"ks dksfV 'kCnk% lfUrA 'kjhjs ^ldkjkRed'kfDr%* vkxPNfrA
,rkor~ 'kCnk% lu~ vfi vL;ka Hkk"kk;ka U;wuS% 'kCnS% okD;kfu ^vks…e~* bR;L; mPpkj.kek=s.kSo vusdkuka jksxk.kke~
fuekZrqa 'kDuqe%A ^uklk* vfi ,rka okrkZe~ v³~xhdjksfr ;r~ mipkj% Lo;eso HkofrA laLd`rL; vuqLokjh;%
i`fFkO;ka ;k% ;k% Hkk"kk% fo|ekuk% rklq lokZlq Hkk"kklq folxhZ;% /ous% mPpkj.ksu ^izk.kk;ke%* Lo;eso
laLd`reqÙkea ljya Li"Va p vfLrA fl)~;fr bR;qDrs O;Lrthous vfi laLd`r'kCnkuka
laLd`rHkk"kk;k% mifj vuqlU/kkua d`Rok ,rr~ Kk;rs ;r~ iz;ksxS% ;ksxklua drq± 'kDuqe%A laLdkj;qDrk Hkk"kk uke
laLd`reso rkn`'kh Hkk"kk vfLr ;L;k% mPpkj.ks eq[ks"kq laLd`re~A laLd`rlkfgR;s uSfrdf'k{kk fo|rsA iBusu
fo|ekuk% lokZ% vo;ok% lfØ;k% HkofUrA ;su vLekda O;ogkjs.k p vkuh; ckyds"kq laLdkjku~ mRiknf;rqa
jDrizokg% vfi mÙke% HkofrA 'kDuqe%A v|kfi lU/;koUnukfn"kq fookgkfn"kq dk;sZ"kq p
lkfgR;k/;;suu thous iz;ksxs.k p eU=k% mPpkj;fUrA
vuqlU/kkuS% fl)a d`ra ;r~ laLd`rk/;;usu cqf)% rhozk HkofrA
deZdk.ML; ,o u vfirq vusu lektL; thouL; p
vr% ,o fczVsu&vk;jyS.M% ,rkn`'ks"kq ns'ks"kq Nk=kk.kka d`rs
fofo/kkfu i{kkf.k mi;qT;UrsA
laLd`re~ vfuok;± d`re~A vejhdk&phu bo ns'ks"kq vfi
izosf'kdk d{kkr% ,oa Nk=k% laLd`ra iBfUr r= p 444
laLd`rk/;iuL; O;oLFkk vfLrA vesfjdk;ka uklkoSKkfudS%

40
laLd`rok³~e;s 'kkluL; fLFkfr% vf/kdkjk% dÙkZO;kfu p
& /ku´t;% dqekj%
ch-,- laLd`ra ¼fo'ks"k%½ f}rh;o"kZe~

laLd`rokM-~e;s& oSfndlafgrklq] czkã.kxzUFks"kq] mifu"kRlq] vFkoZosn 6-88-3


jke;.ks] egkHkkjrs] iqjk.ks"kq] dkSfVY;kFkZ'kkL=s] uhfrxzUFks"kq] jkK vk;ksX;Ro rnSo vklhr~ ;nk
dkO;s"kq] ukVds"kq 'kkluL; fofHkUuk% i)r;% mfYyf[krk%
ukLeS lfefr% dYirs u fe=a u;rs o'ke~A
lfUrA 'kklurU=L; vf/kdkjk.kka dÙkZO;kuka p ppkZ fo|rs
ijefLeu~ ys[ks oSfnd&okM-~e;s ,o of.kZrkuka 'kklui)rhuka vFkoZosn 5-1-15
ppkZ fØ;rsA lHkk;k% lfers% p lnL;k ee vkuqdwY;a Hkts;q% bfr
vFkoZosnL; v"Ves e.Mys n'kelwDrL; izFke% i;kZ;% ,o vklhr~ 'kkldL; cyorh dkeuk izkFkZuk ok&
'kklurU=L; fodklØea lwp;frA loZizFkea jkT;rU=foghuk lHkk p ek lfefr'pkorka iztkirsnqZfgrjkS
fLFkfr% vklhr~A bZn`'khe~ voLFkka n`"V~ok losZ Hkhrk% vklu~A lafonkusA
rnuUrja xkgZiR;a fodkflre~ vHkwr~ ,oa ifjokj% xkgZiR;a ok ;suk laxPNk miek l f'k{kkPpk# onkfu firj%
'kklulaLFkk vklhr~ ;= x`gifr% vklhr~ 'kkld%A laxrs"kqAA
xkgZiR;knuUrje~ vkgouh;a fodflra ;= dqyeq[;k% vkgwrk%
vHkwou~A vkgouh;kr~ vuUrja nf{k.kkfXulaLFkk lEiUuk ;= vFkoZosn 7-12-1
xzkeeq[;k 'kkldk% vklu~A rnuUrja lHkk;k% lfers p vL;lwDrL; vU;eU=s"kq vfi jkK% izkFkZuk fo|rs ;r~
fodkl% vHkor~A dkfi"BydBlafgrk;ka iB~;rs ^vkeU=.ke~ lHkk;k% lHkkln% rL; lokpl% HkoUrq&
vkgwrks ;k;kr~ rLekr~ vkeU=.ks u ve`ra onsr~* lEHkor% fon~e rs lesuke ufj"Vk uke ok vflA
vkeU=.klaLFkk U;k;ky;% vklhr~ ;= vijk/kfu.kZ;%
;s rs ds p lHkklnLrs es lUrq lokpl%AA
n.MO;oLFkk p vHkwrke~A
vFkoZosn 7-1-22
oSfnd;qxs 'kklurU=L; izeq[k% rq jktk vklhr~ ija l%
fujadq'k% u vklhr~A jktk iztkfHk% ,o o`r% vHkor~A vFkoZosns ,oe~ ,o _XosnL; n'kes e.Mys _"kHka eka
mDre~& ^^Rok fo'kks o`.kqrka jkT;k; RokfHke% izfn'k% iapnsoh%A lekukukfefr iapes lwDrs lfers% LofprkuqdkfjRoa
o` /kkrks% vFkkZ% oj.ka p;ua Lohdj.ka pA Li"Ve~ bna ;r~ tuS% izkIrqa izkFkZuk fo|rsA _XosnL; vfUres lwDrs lfers%A
Lohd`r% ,o jktk Hkforqa 'kDuksfr LeA vFkoZosnL; cgq"kq lnL;kuke~ ,deR;L; izk/kkU;a of.kZre~ vfLrA
eU=s.k oSfnd'kkluO;oLFkk;ka lHkk;k% lfers% p egRoa of.kZra vfLeu~ i=s 'kklurU=ef/kd`R; ;k lkexzh oSfnd okM-
;Fkk& ~e;s fo|rs rL;k ppkZ d`rk vfLrA
lokZ fo'k% laeul% l/zkhph /kzqok; rs lfefr% 444
dYirkfegA

okf"kZd if=dk ^gal* 41


osnkuka egÙoe~
& LofLr%
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42
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laLd`re~ ,o vk/kqfudizkUrh;Hkk"kk.kke~ tuuh vfLrA lokZlq izkphus le;s ,"kSo Hkk"kk loZlk/kkj.kk vklhr~] losZ tuk%
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HkofrA fu:DregkHkk";kfnxzUFksH;% loZFkk fl)esoA vk/kqfuda
Hkk"kkfoKkuefi ,rnso lqfu'p;a izek.k;frA
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laLd`rL; O;kdj.ke~ vfi vizfree~ vfLrA vL; O;kdj.ks rnuUrje~ v/;kRefo"k;izfrikfndk mifu"kn% lfUr]
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vfLrA dkO;'kkL=L; ukV~;'kkL=L; p vfi foospua egkHkkjrL; p jpuk fo'olkfgR;·siowkZ ?kVuk vklhrA~
laLd`rL; Kkua fouk dks·fi drq± u 'kDuksfrA Hkkjrh; loiZFzkea dfoRoL;] id z f`rlkUSn;LZ;] uhfr'kkL=L;]
iqjkroL; Nk=k.kka d`rs rq laLd`rL; Kkue~ vifjgk;± orZrsA v/;kRefo|k;k% r= n'kZ u a HkofrA rnuUrja
dkSfVY;ln`'kk% vFkZ'kkL=dkjk%]
izkP;Hkkjksih;Hkk"kk.kka lE;Difj'khyuk; laLd`rL; Kkue~ Hkkldkfynklk'o?kk"skHkoHkfwrnf.MlcqU/kcqk.kt;nosiHzkr`;ks
vR;ko';da orZrsA Hkkjrh;/keZL; laLd`rs% rÙoKkuL; p egkdo;ks ukV;~dkjk'p ijqr% lek;kfUr] ;"skka tUeykHkus
ifj'khyukFk± laLd`re~ ,o ,d% vk/kkj% vfLrA u dosya HkkjrHkfwejos vfirq leLra fo'oersn~ /kU;efLrA
ikf.kfuO;kdj.kL; v/;;ukr~ v;a ck/skks tk;rs ;r~ ij% ,r"skka dfoojk.kka x.qkx.kL; o.kuZs egkfo}kl
a k·sfi vleFkk%Z
lfUr] dk x.kuk lk/kkj.kkuka tukukeA~ Hkxonx ~ hrk]
lgloz"kHZs;% ikzd~ b;a Hkk"kk pjeka lef`)e~ vHktrA~ u dosya ijqk.kkfu] Lef`rxUzFkk% vU;f}"k;da p lo± lkfgR;a
ikjSkf.kdk% /kexZ UzFkk% ,o lLadr`Hkk"kk;ka fuc)k% lfUr vfirq lLadr`L; ekgkRE;eoskns?~kk"sk;frA
cgo% tuSck) S xUzFkk% vfi lLadr`Hkk"kk;ke~ ,o fuc)k% lfUrA laLd`rHkk"kSo HkkjrL; izk.kHkwrk Hkk"kk·fLrA ,"kSo leLra
ikfyikzdr`Hkk"kk.kke~ vkdyue~ lLadr`a fouk vi.wkeZ~ ,o vfLrA Hkkjro"kZesdlw=s c/ukfrA HkkjrhxkSjoL; j{k.kk;
vr% lLadr`Hkk"kk;k% xkjSoa egRoa p lofZofnre~ vfLrA ,rL;k% izpkj% izlkj'p loSZjso drZO;%A
444 444

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vfofPNUu:is.k izpfyrk vklhr~ xq#ijEijs;e~A oLrqr% fu;ekfu iky;Ur% bfr vuq'kkflr% dF;rsA
_f"keqfu;ksfxuke/;olk;tfura lk/kukyC/ka vUrtZxrks vuq'kklukHkkos lekts mPN`a[kyrk
egRoiw.kZeUrfoZKkua Hkofr vusu ;ksxlekf/kuk _"k;ks vkxPNfrA ifjokfjdh O;oLFkk u';frA
eU=ku~ nz"Vqa leFkkZ% vklu~A Jhen~Hkxorxhrk;ka ;ksxL; fo|kfFkZu% mn~n.Mk% HkofUr of.kdk% vf/kda
f}fo/kRoa of.kZra Jhd`".ksuA ;Fkk& Kku;ksx%] deZ;ksx'pA ykHke~ bzPNfUrA vuq'kklua ns'kk; lektk;
ijEijkfujis{ka eks{klk/kuRosu deZKku;ksx:ia euq";k; ija vko';defLrA vuq'kklua ^vuq*
fu"Bk};eqDre~A ;ksxn'kZukuqlkjs.k ;ksxL; v"VkS vM-~xkfu milxZ% rFkk ^'kklue~* bfr 'kCnkH;ke~
lfUrA rnqDra ;ksxn'kZus ;e&fu;e&vklu&izk.kk;ke& fufeZre~ vfLrA u{k=% pUnz% lw;Z% p losZ
izR;kgkj&/kkj.k& /;ku&le/k;ks·axkfu lfUrA ,rs"kka vuq'kklus c)k% lfUrA Nk=k.kka d`rs
cfgj³~xkUrj³~xHksnsu f}fo/kRoa dYirsAcfgj³~xkfu vuq'kkluL; cgqegRoe~ vfLrA vfLeu~
lfUrA,rs"kq;e&fu;e&vklu&izk.kk;ke&izR;kgkjknhfu dkys rs"kka euLlq ;% izHkko% lEi|rs l%
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lrke~ vkpkj% lnkpkj% dF;rsA lnkpkjh uj%
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444

44
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Hkko% ,rL; v"VHksnk% lfUr& jfr%] gkL;%] 'kksd%] Øks/k%] vn~Hkqrks foLe;LFkkf;Hkkoks xU/koZnSor%A
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fo'ks " kLFkkue~ v fLrA ^lkfgR;niZ . ks * vkpk;Z
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la[;k =;fL=a'kr~ vfLrA jlkReda okD;eso dkO;e~ vfLrA
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jkSnz%] ohj%] Hk;kud%] ohHkRl%] vn~Hkqr%] 'kkUr% pA vkpk;SZ% izoÙkZrs** vFkkZr~ fdefi jlghudkO;a u HkforO;e~A
HkfDr% okRlY;% p vfi jlkfl x.;rsA ^^jl% dkO;L; vkRek orZrs] dkO;s"kq ;ks vkuUn%
jlHksnk% vuqHkw;rs l% ,o dkO;L; jl% vfLrA
Ük`axkjjl% lân;S% dkO;s"kq ;% vkuUn% vuqHkw;rs l jl% ykSfdd%
u HkwRok vykSfdd% ,o HkofrA
Ük`xa fg eUeFkksHksnLrnkxeugsrqd%A
vkpk;ZvkuUno)Zu% dkO;s"kq jlkuka mi;ksfxrka ,oa
mÙkeizd`frizk;ks jl% Ük`axkj b";rsAA vonr~& n`"ViwokZ vfi áFkkZ dkO;s jl ifjxzgkr~A
gkL;jl% losZ uok bokHkofUr e/kqekl bo nzqek%AA
fod`rkdkjokXos"kps"Vkns% dqgdkn~Hkosr~A ,rsu izdkjs.k nf.Muk vfi] ^dkes loksZI;yadkjks jla
vFksZ fu"ifÙk bfr mDRok jla izfr LoL; vkLFkk
gkL;ks gklLFkkf;Hkko% 'osr% izeFknSor%AA vfHkO;DrkA vfHkizk;% ;r~ vfLr& jl% losZ"kq
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444
okf"kZd if=dk ^gal* 45
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ch-,-] laLd`ra ¼fo'ks"k%½ r`rh;o"kZe~ ch-,- laLd`ra ¼fo'ks"k%½ f}rh;o"kZe~
pyfp=e~ & ,e- ,l- /kksuh
xhre~& dkSu rq>s ;w¡ I;kj djsxk
izkjEHks LQfVdkr~ fcUnks% ,d% o`Ùk% mRiUu% cHkwoA 'ks"k%
fcUnq% ijearRoe~ ¼f'ko% vy[k% fujatu%½ vfLrA o`Ùkkr~ Roe~ vk;kfl o{kLFkysA gLrs vk;kfr ufgA
,dks·U;% o`Ùk% mRiUu% cHkwoA 'ks"k% o`Ùk% ijrRo% ¼vkfn ;nk ;nk 'okla LohdjksfeA mM~Mh;rs ee {k.ke~A
'kfDr%½ vfLrA f}rh;o`Ùkkr~ }kS v/kZo`ÙkkS mRiUukS cHkworq%A ro ân;L; ohFkhH;%A ee glua Ro;k
'ks"k% f}rh;o`Ùke~ vkdk'krÙoe~ ¼v/Zkukjh'oj%½ vfLrA }kS izfrfnue~ vga HkzekfeA ee lq[ka Ro;k
v/kZo`ÙkkS ikoZrhegknsokS Lr%A rkS ok;qrRokS Lr%A ok;q% bo pyfl Roe~A ro Kkua fde~ mUere~A
egknsoL; d.Bkr~ iknkS i;ZUre~ ,rLekr~ Hkkxkr~ fo".kq%] vga fldrso mn~;kfeA ;n~fnus Roke~ u i';kfeA
ikoZR;k% p ,rLekr~ Hkkxkr~ y{eh% mRiUu% cHkwoA d% Roke~ izs";frA ew<+% bo vga fopjkfeA
y{ehfo".kw vfXurÙokS Lr%A egknsoL; ukfHkdsUnzkr~ iknkS ;Fkkga Roka izh.kkfeA d% Roke~ ,oa izs";frA
i;ZUre~ ,rLekr~ Hkkxkr~ czãk] ikoZR;k% p ,rLekr~ Roa ;% eke~ vfe=k%A ;Fkkga Roke~ izh.kkfeA
Hkkxkr~ ljLorh mRiUu% cHkwoA czãkljLoR;kS tyrÙokS LoIue~ vHkwr~ mUere~A 444
Lr%A egknsoL; fyM-~xL; ey}kjL; e/;Hkkxkr~
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lIrrÙokuke~ va'kl`f"V% ekuofi.M% vfLrA ijrÙoa & jf'e% ;kno%
lkeosnL; ewye~ vfLrA ok;~ofXutykdk'kk% ;tqosZnL; ch-,- laLd`ra ¼fo'ks"k%½ r`rh;o"kZe~
ewye~ vfLrA i`FohrÙoe~ vFkoZosnL; ewye~ vfLrA
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ekuo% i`Foh&ty&vfXu&ok;q&vkdk'k&egk vkdk'kkr~ uhM% vklhr~A r= d'pu pVd% iRU;k lg olfr LeA
p ;Fkk Øes.k fl)a d`Rok ¼ikja d`Rok½ ijerÙoa izkIuksfrA dnkfpr~ o"kkZdky% vkxr%A cfg% loZ= 'khrya okrkoj.ke~
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dq= vfl \ bfr ro fo"k;%A 'kCn% eU=% /ofu% p vklhr~A
ijerÙoe~ vfLrA rnk d'pu okuj% r= vkxroku~A o`"V~;k rL; 'kjhja
/ofujfgrkS 'kCneU=kS ijerÙoe~ izHkkfora djksfrA fDyUue~ vklhr~A 'kSR;su l% dEirs LeA l% okuj%
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ijerÙoe~ &f'koe~ pVdk mDrorh fda Hkks% Hkor% gLriknlfgra lqn`<a 'kjhje~
ijerÙoe~ Lo:ie~ fujaturÙoe~ ¼xks&j{ke~½&lR;e~ vfLr rFkkfi ,da x`ga fuekZ; r= okla drq± Hkoku~ fda u
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